दहकता पलाश: भाग-1

‘‘अरे अर्पिता तुम?’’

अपना नाम सुन कर अर्पिता पीछे मुड़ी तो देखा, एक गोरा स्टाइलिश बालों वाला लंबा व्यक्ति उस की ओर देख कर मुसकरा रहा था. अर्पिता ने उसे गौर से देख कर पहचाना तो उत्साह से चहक कर बोली, ‘‘अरे प्रवीण तुम… यहां कैसे?’’

‘‘3 महीने पहले ही मेरी यहां पोस्टिंग हुई है और तुम अब भी यहीं हो?’’ प्रवीण ने उस से पूछा.

‘‘हां, मैं तो यहीं हूं. बस घर का पता बदल गया है,’’ अर्पिता ने हंसते हुए कहा.

‘‘हां उस की निशानी तो मैं देख रहा हूं,’’ प्रवीण ने मंगलसूत्र की तरफ इशारा किया तो दोनों हंस पड़े.

‘‘आओ न, यहां पास के रैस्टोरैंट में चल कर बैठते हैं,’’ प्रवीण ने सुझाव दिया तो अर्पिता इनकार नहीं कर पाई. फिर दोनों रैस्टोरैंट में एक कोने वाली टेबल पर जा कर बैठ गए.

‘‘तुम तो अब भी पहले जैसी हो, जरा भी नहीं बदलीं,’’ बेयरे को कौफी का और्डर देते हुए प्रवीण बोला.

‘‘वैसी कहां हूं मैं, थोड़ी मोटी तो हो ही गई हूं. हां, तुम जरूर बिलकुल पहले जैसे ही हो,’’ अर्पिता ने कहा.

‘‘मैं कहना चाह रहा था कि तुम्हारा चेहरा आज भी वैसा ही नाजुक और मासूम है, जैसा 7-8 साल पहले था. तभी तो मैं तुम्हें देखते ही पहचान गया…’’ प्रवीण ने अर्पिता को भरपूर नजर से देखते हुए कहा तो वह शरमा गई.

‘‘चलो छोड़ो, तुम क्या मेरे चेहरे को ले कर बैठ गए. यह बताओ कि आज भरी दोपहरी में बाजार में क्या कर रहे थे?

कालेज छोड़ने के बाद क्या किया? तुम तो आई.ए.एस. की तैयारी कर रहे थे न, क्या हुआ? और इतने दिन कहां रहे? अभी क्या काम कर रहे हो?’’ अर्पिता ने एक के बाद एक इतने सारे सवाल कर डाले कि प्रवीण हड़बड़ा गया.

‘‘तुम ने तो प्रैस वालों की तरह एक के बाद एक ढेर सारे सवाल कर डाले. पहले किस सवाल का जवाब दूं यही समझ में नहीं आ रहा,’’ फिर हंसते हुए बोला, ‘‘मैं बी.ए. करने के बाद आई.ए.एस. की कोचिंग करने इंदौर चला गया था, यह तो तुम्हें पता ही है. 2 साल जम कर मेहनत की पर पहली बार में सिलैक्शन नहीं हुआ. पर दूसरे अटैंप्ट में मैं सिलैक्ट हो ही गया. फिर मेन ऐग्जाम फिर इंटरव्यू. 6-7 साल के बाद अब जा कर मनचाही पोस्ट मिली है और चार इमली पर एक घर भी अलौट हुआ है.’’

‘‘अरे वाह,’’ अर्पिता के चेहरे पर प्रशंसा के भाव आ गए, ‘‘वहां के मकान तो बहुत बड़े और सुंदर है.’’

‘‘हां, उसी के लिए थोड़ाबहुत फर्नीचर देखने आया था. अब तो पापा का भी ट्रांसफर फिर से यहां हो गया है. अगले हफ्ते वे लोग भी यहां आ जाएंगे,’’ प्रवीण ने बताया.

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‘‘और तुम्हारी पत्नी? शादी की या नहीं की अब तक?’’ अर्पिता ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं की. 1-2 साल जरा सर्विस में जम जाऊं फिर सोचूंगा. अब

मैं तुम्हारी तरह सवालों की झड़ी नहीं लगाऊंगा, तुम खुद ही अपने बारे में बता दो,’’ प्रवीण ने कौफी का खाली प्याला नीचे रखते हुए कहा.

‘‘कुछ खास नहीं. बी.ए. करने के बाद मैं ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. अभी शहर के 4-5 बुटीक्स के लिए सूट्स डिजाइन करती हूं. रोजरोज आनेजाने की झंझट नहीं है. जब उन को जरूरत होती है बुला लेते हैं. बस कमाई भी हो जाती है और शौक भी पूरा हो जाता है. अगर मन हुआ तो अपना एक बुटीक भी खोल लूंगी. बस मेरी तो सीधीसादी छोटी सी कहानी है,’’ अर्पिता ने बताया.

‘‘और तुम्हारे पतिदेव क्या करते हैं?’’ प्रवीण ने पूछा.

‘‘वे एक प्राइवेट कंपनी में हैं और अकसर टूर पर रहते हैं,’’ अर्पिता के मुंह पर पति के टूर पर रहने की बात कहने पर हलकी सी मायूसी छा गई जिसे प्रवीण ने भांप लिया. वह तुरंत ही बातचीत का विषय कालेज के दिनों और पुराने साथियों की तरफ ले गया. फिर 2 घंटे कब निकल गए पता ही नहीं चला. फिर दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर लिए और अपनेअपने घरों की ओर लौट गए.

अर्पिता जब घर पहुंची तब तक उस के पति आनंद घर नहीं पहुंचे थे. बाजार से लाया सामान टेबल पर रख कर वह टीवी औन कर के बैठ गई, लेकिन आज उस का मन टीवी देखने में नहीं लग रहा था. वह तो प्रवीण के बारे में सोच रही थी.

वह और प्रवीण 8वीं कक्षा से साथसाथ पढ़े थे. कालेज में भी दोनों एक ही सैक्शन में थे. अन्य लड़कों की अपेक्षा प्रवीण अंतर्मुखी और मेधावी लड़का था. वह फ्री पीरियड में भी बाकी लड़कों की तरह ऊधम, मस्ती न करते हुए कुछ न कुछ पढ़ता रहता था. क्लास के अन्य लड़कों से अलग प्रवीण को स्कूल या कालेज की किसी भी लड़की में दिलचस्पी लेते हुए कभी किसी ने नहीं देखा था. प्रवीण के स्वभाव की इसी खूबी से अर्पिता मन ही मन उस से प्रभावित थी. फर्स्ट ईयर के अंत तक जहां क्लास के प्रत्येक लड़के की क्लास की या दूसरे क्लास की या महल्ले की किसी लड़की के साथ अफेयर की बातें सुनाई देती थीं, वहीं प्रवीण के बारे में अर्पिता ने कभी भी ऐसी कोई बात नहीं सुनी.

प्रवीण दिखने में बहुत अच्छा था. ऊंचा कद, हलके घुंघराले बाल, गोरा रंग, तीखी नाक. वह क्लास में ही क्या कालेज में सब से स्मार्ट लड़के के रूप में मशहूर हो गया था. पास से गुजरती लड़की चाहे जूनियर हो चाहे सीनियर एक बार तो भरपूर नजर से उसे देखती जरूर थी. प्रवीण के रंगरूप और बुद्धि पर फिदा बहुत सी लड़कियां उस पर मरती थीं, लेकिन वह आंख उठा कर भी किसी की ओर नहीं देखता था.

फाइनल तक पहुंचतेपहुंचते अर्पिता से उस की अच्छी पटने लगी थी, क्योंकि क्लास में प्रवीण के बाद अर्पिता ही पढ़ाई में तेज थी. विभिन्न चैप्टर्स और किस किताब में कौन सा चैप्टर कितना अच्छा है इस विषय पर क्लास में या लाइब्रेरी में दोनों देर तक बातें करते रहते थे. प्रवीण से दोस्ती की वजह से कई लड़कियां अर्पिता से ईर्ष्या करने लगी थीं. वर्ष के अंत तक अर्पिता भी प्रवीण के प्रति एक अलग ही आकर्षण महसूस करने लगी थी. उसे यह भी लगने लगा था कि प्रवीण का उसे देखने का अंदाज भी कुछ बदल सा गया है.

एक दिन फ्री पीरियड में दोनों लाइब्रेरी में बैठे थे. अर्पिता किताब पढ़ने में तल्लीन थी. बीच में इतिहास की एक तारीख समझ में न आने के कारण उस ने प्रवीण से पूछने के लिए सिर ऊपर उठाया तो देखा वह किताब टेबल पर रख कर खोईखोई सी नजरों से उसे देख रहा था.

अर्पिता का दिल बड़ी जोर से धड़कने लगा. वह भी बिना कुछ कहे अपनी किताब देखने लगी, लेकिन बड़ी देर तक उस के मन में एक हलचल सी होती रही.

इस के बाद अर्पिता को लगने लगा कि वह शायद धीरेधीरे प्रवीण की ओर आकर्षित होती जा रही थी. कालेज में प्रवेश करते ही उस की नजरें प्रवीण को खोजती रहतीं.

क्लास में बैठे हुए भी अर्पिता की नजरें दरवाजे पर ही टिकी रहतीं और जैसे ही प्रवीण अंदर आता अर्पिता का दिल बड़ी जोरजोर से धड़कने लगता.

अर्पिता के मन में भावनाओं के कई नएनए, अनजाने मगर अपने से लगने वाले रंग तैरने लगे थे. लेकिन दोनों ही ओर से ये रंग भावनाओं का रूप ले कर शब्दों में अभिव्यक्त हो पाते, फाइनल ऐग्जाम सिर पर आ गए और फिर लास्ट पेपर जिस दिन था उसी दिन प्रवीण अपने मातापिता के साथ इंदौर चला गया, क्योंकि उस के पिता का वहां ट्रांसफर हो चुका था. वे तो बस प्रवीण के पेपर की खातिर ही रुके थे. प्रवीण एक ख्वाहिश भरी नजर अर्पिता पर डाल कर चला गया.

दोनों के बीच जो भी था बस मूक ही रहा. कभी शब्दों या भावनाओं के रूप में अभिव्यक्त नहीं हो पाया, इसलिए कोई किसी का इंतजार भी क्या करता. अर्पिता ने फैशन डिजाइनर का कोर्स किया और जब उस के मातापिता ने आनंद को उस के जीवनसाथी  के रूप में चुना तो उस ने भी उन की इच्छा का सम्मान करते हुए अपनी स्वीकृति दे दी.

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आनंद के साथ उस का जीवन आराम से गुजर रहा था. आनंद अर्पिता का बहुत ध्यान रखता था, लेकिन उस के बारबार टूर पर जाने और काम में अत्यधिक व्यस्त रहने से अर्पिता अकेलापन महसूस करती थी. दिन तो घर के काम और बुटीकों के डिजाइन वगैरह तैयार करने में कट जाता, लेकिन उदास शामें और तनहा रातें उसे काट खाने को दौड़तीं. आनंद के बगैर वह सारीसारी रातें पलंग पर करवटें बदलते हुए गुजार देती. महीनों वह आनंद के साथ पिक्चर देखने या कहीं बाहर घूमने जाने को तरस जाती. लेकिन फिर भी आनंद की भी मजबूरी समझ कर वह अपने मन को समझा लेती.

अर्पिता एक गहरी सांस ले कर उठी. आज प्रवीण से मिल कर न जाने क्यों वह अपने अंदर बहुत खुशी महसूस कर रही थी. मन के कोने में बरसों से दबे हुए जिन रंगों पर समय की धूल पड़ गई थी, उन्हें जैसे किसी ने पानी की कुनकुनी फुहारें बरसा कर धो दिया था. और फीके पडे़ रंग धुल जाने से ताजे हो कर चमचमाने लगे थे.

2 दिन बाद बुटीक से आ कर अर्पिता चाय पीते हुए एक फैशन मैगजीन में कपड़ों के लेटैस्ट डिजाइन देख रही थी कि फोन बज उठा. अर्पिता ने फोन उठाया, ‘‘हैलो…’’

‘‘हैलो, क्या कर रही हो अर्पिता?’’ उधर से प्रवीण का स्वर सुनाई दिया.

‘‘अरे, तुम?’’ अर्पिता का स्वर और चेहरा दोनों खिल गए.

‘‘हां सुनो, संग्रहालय में मणिपुरी कलाकारों की बहुत अच्छी प्रस्तुति है. सारा इंतजाम मेरी ही देखरेख में चल रहा है. तुम लोग आ जाओ,’’ प्रवीण ने कहा.

‘‘आनंद तो टूर पर बैंगलुरु गए हुए हैं. मैं अगर आई तो लौटते वक्त रात हो जाएगी. मैं अकेली इतनी दूर रात में वापस कैसे आऊंगी?’’ अर्पिता के स्वर में मायूसी छा गई.

‘‘बस इतनी सी बात,’’ प्रवीण हंसते हुए बोला, ‘‘अरे पगली मेरे होते हुए तुम्हें अकेले आने की क्या जरूरत है? तुम ठीक 5 बजे तैयार रहना, मैं ड्राइवर को भेज दूंगा तुम्हें ले आने को. मैं बहुत बिजी हूं नहीं तो खुद आ जाता,’’ इतना कह कर बिना जवाब का इंतजार किए प्रवीण ने फोन काट दिया. अर्पिता मुसकरा दी.

प्रवीण ने उस दिन बताया कि वह संस्कृति विभाग में एग्जीक्यूटिव डायरैक्टर है. उसे यों भी भारतीय लोक संस्कृति से बहुत लगाव था. स्कूल, कालेज में भी वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन व संचालन करने में हमेशा आगे रहता था.

अर्पिता को भी सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां आदि देखने का बहुत शौक था लेकिन आनंद को कभी भी टाइम नहीं मिलता. संडे को भी आनंद अकसर या तो औफिस में या फिर घर पर ही कोई न कोई काम करता रहता था. 4 साल पहले 10 दिनों के लिए वे हनीमून पर गए थे. उस के बाद से आनंद लगातार अपने काम में व्यस्त ही रहा है.

5 बजे बाहर गाड़ी का हौर्न सुन कर अर्पिता ने खिड़की से झांक कर देखा. बाहर एक गाड़ी खड़ी थी. अर्पिता समझ गई कि यह गाड़ी प्रवीण ने ही भेजी होगी. वह ताला लगा कर बाहर आ गई.

‘‘आप अर्पिताजी हैं?’’ ड्राइवर ने गाड़ी से उतरते हुए पूछा. और अर्पिता के ‘हां’

कहते ही दरवाजा खोल दिया. अर्पिता गाड़ी में बैठ गई. संग्रहालय पहुंच कर ड्राइवर ने उसे प्रवीण के पास पहुंचा दिया और वापस चला गया.

‘‘आओ अर्पिता,’’ प्रवीण ने आगे बढ़ कर उस का स्वागत किया और उसे ले कर आगे चल कर सब से आगे के एक सोफे पर बैठा कर बोला, ‘‘तुम थोड़ी देर यहां बैठो मैं जरा व्यवस्था देख कर आता हूं. कार्यक्रम बस 10 मिनट में शुरू हो जाएगा.’’

10 मिनट बाद ही प्रवीण आ कर उस के बगल बैठ गया. कार्यक्रम शुरू हुआ और कलाकार अपनी मनोरम प्रस्तुतियां देने लगे. बेयरे पानी, चाय, कौफी और स्नैक्स वगैरह सर्व कर रहे थे. प्रवीण अर्पिता को अपने विभाग और विभाग के अन्य लोगों के बारे में बताता जा रहा था.

सुरमई शाम, सुहावना मौसम, सामने नृत्य व संगीत की प्रस्तुति. अर्पिता को लग रहा था कि वह सपनों के लोक में पहुंच गई है. कुछ बात कहने के लिए जब प्रवीण उस की ओर झुका तो उस का कंधा अर्पिता के कंधे से छू गया. अर्पिता का दिल अचानक वैसे ही जोर से धड़कने लगा जैसे कालेज के दिनों में प्रवीण को पहली बार अपनी ओर देखता पा कर धड़का था.

दिल में सालों से दबी हुई कोई कुंआरी अनछुई सी अनुभूति अचानक ही जाग गई. मन में न जाने कब से सोए पड़े एहसास अंगड़ाई ले कर जाग गए. अर्पिता को लग रहा था जैसे वह कुंआरी है और उस के कुंआरे मन में आज पहली बार किसी के प्रति कोई अनजानी सी कशिश, अनजाना सा रोमांच महसूस किया है. प्रवीण के साथ पहली पंक्ति में बैठी वह और चारों ओर बड़ेबड़े सरकारी अफसर और गणमान्य अतिथि. सब कुछ कितना भव्य लग रहा था.

तालियों की गड़गड़ाहट से अर्पिता की तंद्रा भंग हुई. कार्यक्रम समाप्त हो चुका था. प्रवीण ने अपने साथी अफसरों और उन की पत्नियों से अर्पिता की पहचान कराई. देर तक सब से बातें होती रहीं फिर डिनर के बाद प्रवीण उसे घर पहुंचा कर चला गया. विवाह के बाद शायद यह पहली शाम थी, जो अर्पिता अपनी मरजी से अपनी खुशी के लिए इतनी अच्छी तरह से बिताई थी.

– क्रमश:

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सांझ की दुलहन: भाग-3

लेखिका- मीना गुप्ता

अब तक आप ने पढ़ा:

अपनी भाभी राधिका से, जिन की राजन बहुत इज्जत करता था, एक दिन अपने मन की बात कहते हुए स्वप्न सुंदरी से शादी करने की बात कह दी. भाभी राधिका परेशान थीं कि कहां और कैसे देवर राजन की शादी इतनी खूबसूरत लड़की से कराई जाए.

तब दूर की एक रिश्तेदारी में जिस स्वप्न सुंदरी की तलाश थी वह मिल गई. मगर जब शादी हो कर वह घर आई तो घर का अच्छाभला माहौल बिगड़ने लगा, जबकि राजन इस ओर से अनजान था. सुंदरी काफी खुले विचारों वाली थी.

कुछ दिनों बाद सुंदरी ने बताया कि उस की शादी राजन से जबरदस्ती उस के घर वालों ने करा दी, लेकिन वह शुरू से ही किसी और को चाहती है.

अब वह यदाकदा अपने प्रेमी को घर पर भी बुलाने लगी. अंतत: आपसी रजामंदी से दोनों ने तलाक ले लिया.

राजन अब दोबारा शादी नहीं करना चाहता था. पर भाभी और अन्य लोगों के दबाव के आगे उसे झुकना पड़ा और उस ने शादी करने की रजामंदी दे दी. राजन की शादी बेहद साधारण और कम पढ़ीलिखी लड़की के साथ हुई. नई बहू ने राजन का घर भी जल्द संभाल लिया. घर के लोग भी उस से खुश थे.

– अब आगे पढ़ें:

राजन दूसरी शादी से बहुत खुश था. पहली बार उस ने अनु को उस नजर से देखा था जिस नजर से सुंदरी को देखा करता था. आज वह उसे वह प्यार दे सकेगा, जो सुंदरी को देने चला था. मगर उस ने उस की कीमत नहीं समझी थी.

रात राजन और अनु की थी. राधिका तो माध्यम बनी थी, जो इस वक्त दोनों की हंसी से गूंज रहे माहौल में खुद को हलका महसूस कर रही थी.

सुबह उठ कर राधिका ने ही चाय बनाई और दरवाजे पर रख कर बोली, ‘‘आप लोगों की चाय आप को बुला रही है.’’

अनु ने चाय सर्व करते हुए कहा, ‘‘सुनो, आज मुझे थोड़ी शौपिंग करनी है. तुम चलोगे?’’

‘‘हां, क्यों नही?’’

अनु तैयार हो कर राधिका से कह कर शौपिंग के लिए निकल गई. राधिका खुश थी.

जब अनु और राजन घर लौटे राधिका रात के खाने पर दोनों का इंतजार कर रही थी. खाना खा कर दोनों अपने कमरे में, बाबूजी अपने कमरे में, राधिका अपने कमरे में. राधिका जाग रही थी. शिब्बू बिजनैस के सिलसिले में बाहर था. उसे नींद नहीं आ रही थी.

8 साल हो गए थे शादी को. उसे कोईर् संतान नहीं थी. वह इस अकेलेपन को अकसर जाग कर काट लिया करती थी. डाक्टर ने कहा था कोई संभावना नहीं है. फिलहाल बहू में कोई कमी नहीं. राधिका उस की भरपाई में शिब्बू और बाबूजी को खुश करने में लगी रहती. शिब्बू को इस बात का अफसोस नहीं था. मगर वह इस अफसोस में अकसर खिलौनों और गुड्डों से बातें करती रहती और इस प्रकार अपने मातृत्व की पूर्ति करती. तभी किचने से आवाज आई. राधिका ने देखना चाहा क्या हुआ. शायद बिल्ली होगी. लेकिन घर में बिल्ली के आने का कोई रास्ता नहीं था. बाहर आ कर देखा राजन के कमरे से लगी छत का दरवाजा खुला था.

‘तो क्या देवरजी दरवाजा खोल कर सो गए?’ सोच राधिका ने टौर्च की रोशनी से देखना चाहा.

छत पर उसे बात करने की आवाज सुनाई दी. सोचने लगी इतनी रात गए कौन हो सकता है. लगता है दोनों अभी तक जाग रहे हैं. फिर मन ही मन मुसकराई और तसल्ली के लिए पूछा, ‘‘छत पर कौन है?’’

‘‘मैं हूं भाभीजी अनु… लाइट चली गई थी न, तो गरमी के कारण छत पर आ गई.’’

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‘‘ठीक है. मगर दरवाजा बंद कर के सोया करो… किचन में बिल्ली आ गई थी.’’

‘‘ठीक है भाभीजी, आप सो जाइए मैं देख लेती हूं किचन में कौन है… चूहा भी हो सकता है… आप सोई नहीं अभी तक?

‘‘नहीं. नींद नहीं आ रही है.’’

‘‘जाइए, अब सो जाइए.’’

राधिका ने बेचैनी से टहलते हुए बाबूजी के कमरे में झांक कर देखा. वे सो रहे थे.

सभी इतमीनान में हैं, फिर वह क्यों परेशान है? इस बेचैनी का कारण क्या है? शिब्बू का न होना या उस का निस्संतान होना या फिर कुछ और?

देर रात तक जागने पर भी भोर में ही राधिका की नींद खुल गई. देखा राजन का कमरा खुला था. लगता है राजन आज जल्दी उठ गया. अनु को आवाज देती हूं, बाबूजी को चाय दे देगी. आज तबीयत भारी हो रही है. रात भर नींद नहीं आई.

नीचे से ही आवाज दी, ‘‘अनु, नीचे आ जाओ. बाबूजी को चाय दे दो.’’

राजन बाहर आते हुए बोला, ‘‘भाभी, अनु यहां नहीं है. नीचे चली गई है.’’

राधिका ने फिर आवाज दी, ‘‘अनु कहां हो?’’ मगर उस के कहीं भी होने की आहट सुनाई नहीं दी. शायद बाथरूम में होगी. लेकिन वहां तो बाबूजी हैं. फिर कहां होगी? किचन में जा कर देखा वहां भी नहीं. शायद बाहर बगीचे में होगी. वहां भी नहीं. आखिर इतनी सुबह कहां जाएगी?

राधिका ने आवाज दी, ‘‘देवरजी देवरानी को नीचे भेज दो, मजाक मत करो.’’

‘‘भाभीजी मैं मजाक नहीं कर रहा. सच में अनु यहां नहीं है.’’

‘‘नहीं है?’’

बाबूजी बाथरूम से निकले तो बोले,

‘‘अरे बहू, आज तुम घर का दरवाजा बंद करना भूल गईं?’’

‘‘क्या घर का दरवाजा… छत का दरवाजा… अनु घर में नहीं है बाबूजी… यह सब क्या है? देवरजी, अनु घर पर नहीं है.’’

‘‘क्या तुम दोनों के बीच रात में कोई झगड़ा हुआ है?’’

‘‘नहीं.’’

कमरे में जा कर देखा तो अनु का सामान भी नहीं था. घर की तिजोरी भी खुली और खाली थी.

बहू घर छोड़ कर जा चुकी थी… ज्यादा ही समझदार निकली.

राधिका को रात की बिल्ली… छत का खुला दरवाजा… अनु का आश्वासन… सब कुछ बिजली की तरह कौंध गया. वह चकरा गई. बोली, ‘‘देवरजी, यह तो बहुत समझदार निकली.’’

राजन जो अब तक सब समझ चुका था, सिर थामे बैठा था.

देर तक घर में फैली खामोशी को कौन तोड़ता? किस में हिम्मत थी? भाभी में जिस ने राजन को दूसरी शादी के लिए प्रेरित किया था या बाबूजी में, जिन्होंने उस की समझदारी पर अनेक प्रश्न किए थे या फिर राजन जिस ने दोनों के निर्णय पर बंद आंखों से अपनी सहमति का अंगूठा लगा दिया था? कौन था समझदार? राधिका जिस ने राजन की गृहस्थी फिर से बसानी चाही, बाबूजी जो अपने आंगन में खेलताकूदता छोटा राजन चाहते थे या फिर राजन जिस के स्वभाव की सरलता ने अनु की बढ़ी समझदारी का कारण नहीं समझना चाहा. शायद इन तीनों से ज्यादा समझदार वह थी जिस ने तीनों की समझदारी पर पानी फेर दिया… सब कुछ ले गई… कुछ नहीं बचा.

रात में फोन आया, ‘‘मैं दूसरा विवाह करने जा रही हूं. उस दमघोंटू माहौल में मैं नहीं रह सकती थी और नई जिंदगी की शुरुआत के लिए पैसा तो चाहिए था सो मैं ले आई. मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत कीजिएगा. आखिर मैं आप के घर की बहू थी.

बाबूजी को काटो तो खून नहीं. राधिका भी जड़वत कि यह सब क्या हुआ? हमारे साथ इतना बड़ा धोखा? यह नजरों का धोखा था या फिर हमारी समझदारी का?

राजन दोनों के बीच मूकदर्शक था. भाभी क्या कहती हैं या बाबूजी क्या कहते हैं उस ने नहीं सुना. उसे लगा उस ने गलत सपना फिर देख लिया. हर बार रो कर चुप होना और फिर रोना. पहले सुंदरी के सौंदर्य ने धोखा दिया. इस बार समझदारी के बड़े भ्रम ने धोखा दिया. धोखा… धोखा… धोखा… कब तक? वह टूट चुका था. घर आने में भी उसे हिचक होती. उसे देखते ही राधिका हिचक जाती. सब एकदूसरे से नजर यों चुराते जैसे वे एकदूसरे के गुनहगार हैं और जिन की सजा यही है कि खुद को एकदूसरे से अलग कर लें. कहीं गुनाह का परदाफाश न हो जाए और ठीकरा किसी एक के सिर फोड़ दिया जाए.

इस बार बाबूजी का चोटिल सम्मान रहरह कर चटक उठता. समाज में उठनेबैठने और तन कर चल सकने की सारी हिम्मत जाती रही. रिश्तेदारी में जहां जाओ एक ही चर्चा. बहू क्यों चली गई? जरूर इस परिवार में ही कोई कमी है, जो दूसरी भी छोड़ कर चली गई. अनेक इलजाम जमाने ने लगाए. खुद को इतना छोटा महसूस करते कि जिस टोपी को उन्होंने कभी नहीं भुलाया था उसे लगाना भी उन्हें याद नहीं रहता. वे बिना टोपी के ही निकल जाते. राधिका याद दिलाती, ‘‘बाबूजी, टोपी…’’

विश्रुतिजी निरुत्साहित से उसे पकड़ते, मगर टोपी लगा कर खुद को निहारने का दुस्साहस अब नहीं करते.

इधर समय की कमी ने शिब्बू और राधिका के बीच जो रिक्तता पैदा की थी उस

जगह अब एक लंबी दीवार खड़ी हो रही थी. अकसर वह बिजनैस के सिलसिले में देर रात तक बाहर होता और जब आता थकान से चूर होता. उस थकान के बीच राधिका उस की जिंदगी में अगर कुछ भरना चाहती तो वह यह कह कर सो जाता, ‘‘राधिका, मैं थक गया हूं, तुम से कल बात करता हूं.’’ और कल थकान बेहिसाब बढ़ी होती. राधिका पास जाने की हिम्मत भी न जुटा पाती.

वह उस टूटी नाव की पतवार थामे चल रही थी, जिस पर अनजाने, अनचाहे अनेक गड्ढे बन चुके थे, जिन्हें पाटते उस की उम्र बीत रही थी.

बाबूजी अपने आहत सम्मान और दम तोड़ती इच्छाओं के बीच खुद को अकेला पाते और सब से अलग रहने के प्रयास में अपने कमरे से बाहर नहीं आते.

राजन अपनी खिड़की में ढलती शाम से ले कर ढलती रात तक न जाने किस का इंतजार करता. उसे घर में क्या चल रहा है, पता भी नहीं रहता. राधिका घर में फैली इस खामोशी में कभी खुद को ढूंढ़ती तो कभी खुद को भुला देती तो कभी राजन और बाबूजी की खामोशी को तोड़ने की हिम्मत करती. कभीकभी उन 4 आंखों में तलाश करती कि वह कहां है?

क्या बाबूजी की इस हिदायत में कि बहू तुम मेरी नहीं इस घर की बहू हो और इस घर को जो तुम दोगी वही पाओगी या फिर शिब्बू की उन हिदायतों में जब वह राधिका के हाथों में रुपयों से भरा बैग थमाते हुए कहता, ‘‘यह घर तुम्हारा है जैसा चाहो चलाओ. मैं कभी नहीं पूछूंगा. मगर इस की खुशियों की परवाह तुम्हें ही करनी होगी.’’

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कागज के टुकड़ों को देख सोचती, ‘काश, मैं इन से इस घर की सारी खुशियां, बाबूजी का खोया सम्मान, उन के कुल के दीपक राजन भैया की उजड़ी गृहस्थी सब खरीद सकती. शिब्बू जिसे खुशी कहता है क्या उसी खुशी की तलाश है सभी को? शायद नहीं. मैं कब तक इन कागज के टुकड़ों को संभालती रहूंगी? ये मुझे चिढ़ाते से नजर आते हैं.

उस ने जब भी कुछ मांगा अपने बाबूजी और भाईर् की खुशी. कभी उस ने पूछा कि राधिका इन पैसों से तुम्हारी खुशी मिल सकेगी? रात का अकेलापन और जिंदगी का सूनापन अकसर उसे डसने लगता. शिब्बू तो बस आगे बढ़ने की धुन में बढ़ता जा रहा है. इस बढ़ने में उस के अपने पीछे छूट रहे हैं, उस ने भूल से भी यह नहीं सोचा. मुड़ कर ही नहीं देखना चाहा. कोई आवाज दे भी तो कैसे? वह तो ऐसी मंजिल को थामे चल रहा था, जिस के छूट जाने से वह बिखर जाता. महत्त्वाकांक्षा में वह भूल गया कि वह एक बेटा भी है, भाई भी है और एक पति भी है.

राजन भी अपनी तनख्वाह भाभी को देते हुए कहता, ‘‘भाभी, अब आप संभालो इसे भी. मैं नहीं संभाल सकता… क्या करूंगा मैं इस का?’’

‘‘और कितनी जिम्मेदारियों के बोझ तले मुझे दबना पड़ेगा? क्या इन कागज के टुकड़ों से घर की रौनक और खुशियां मैं ला सकूंगी? फिर मैं इन का क्या करूं? इन कागज के टुकड़ों में दबी कामनाएं दम तोड़ रही हैं देवरजी. मैं इन से बेजार सी हो रही हूं… अब और नहीं.’’

राधिका बोले जा रही थी और राजन सुनता जा रहा है. आज भाभी को उस ने पहली बार ऊबता महसूस किया था. उन की बातों में सदियों की तलखी थी. यह तलखी शायद हम से थी? नहीं तो फिर जिंदगी से? कब तक झेलेंगी? कौन है जिस से वे अपनी बात कहतीं? सोचता हुआ राजन राधिका के कमरे के सामने से गुजरा तो उसे सिसकने की आवाजें आईं. उस ने बाहर से ही आवाज दी, ‘‘भाभी…’’

‘‘हां, आती हूं,’’ कहते हुए बाहर आने का प्रयास किया मगर राजन उस से पहले ही अंदर पहुंच चुका था. पहली बार इस कमरे में आया था वह. भाभी का कमरा अपनी व्यवस्था से अव्यवस्थित सा लग रहा था. कांच का एक बड़ा सा शोकेस तरहतरह की गुडि़यों और गुड्डों से भरा था. बगल की ड्रैसिंगटेबल पर एक खूबसूरत परदा जो शायद ही कभी उठाया जाता होगा.

बिस्तर की चादर ठीक करते हुए राधिका बोली, ‘‘आइए देवरजी, आज कैसे इधर भटक गए?’’

‘‘यों ही भाभी… दिल किया आ गया.’’ तभी बिस्तर के सिरहाने रखी जापानी गुडि़या बोल पड़ी कि मम्मा, आई लव यू. राधिका ने उसे चुप कराया.

राजन ने कहा, ‘‘बोलने दीजिए अच्छा लग रहा है… भाभी एक बात पूछूं?’’

‘‘हां क्या पूछेंगे पूछिए. वैसे आप जो जानना चाहते हैं वह मुझे मालूम है. देवरजी, इस घर से खुशियों ने हमेशा के लिए मुंह फेर लिया है…

घर अब घर नहीं एक सरायखाना लगता है, जिस में सभी रह तो रहे हैं, मगर अजनबियों की तरह… कौन कब रोया, कब हंसा, किसे मालूम? किस की रात आंसुओं से भीगती रही या किस की शाम आंखों को धुंधला कर गई, किस ने जानना चाहा?’’

‘‘तो शिब्बू भैया…?’’ बेचैनी ने उसे वहां रुकने न दिया.

देर तक भाभी के आंसुओं में भीगे लफ्ज उस के जेहन में गूंजते रहे… मैं भी हूं इस घर

में. यह किसे पता है… सब अपने में गुम… मैं ने क्या पाया… कौन है मेरा… किसे फुरसत है मेरी खातिर?

शाम ढल रही थी, फिर भी राजन ने आज खिड़की नहीं खोली, न ही शाम ने खिड़की से दस्तक दी. बारबार राधिका का कुम्हलाया चेहरा याद आ रहा था कि उम्र में मुझ से सिर्फ 2 माह ही बड़ी हैं, मगर जिम्मेदारियों के बोझ ने उन्हें समय से पहले ही बहुत बड़ा कर दिया. बड़प्पन के एहसास तले उन्होंने खुद को भुला दिया और घर के 3-3 बड़े बच्चों को संभालती रहीं.

बाबूजी कमरे से बाहर नहीं आए थे. अब अकसर वे शाम के धुंधलके में ही घर से निकलते थे. राधिका ने शाम की रसोई शुरू कर दी.

बाबूजी घूम कर आए. बोले, ‘‘बहू खाना दे दो. जल्दी सो जाऊंगा,’’ और फिर खाना खा कर अपने कमरे में चले गए.

राधिका ने रसोई समेटी. किचन का दरवाजा बंद किया. जैसे ही अपने कमरे में जाना चाहा देखा राजन छत पर है. आवाज दी, ‘‘देवरजी.’’

कोई जवाब नहीं मिला… खुद जा कर देखना चाहा. राजन अपनी ही परछाईं के साथ आंखमिचौली कर रहा था. छत में फैली चांदनी सारी चीजों को स्पष्ट कर रही थी. फिर भी न जाने क्यों राजन कुछ ढूंढ़ता सा नजर आ रहा था.

‘‘क्या खो गया?’’ राधिका ने आज बहुत दिनों बाद छत पर कदम रखे थे. कभीकभी अनु के साथ आया करती थी.

अचानक भाभी को छत पर आया देख राजन बोला, ‘‘अरे भाभी आप? कुछ नहीं यों ही मेरी अंगूठी कहीं गिर गई है.’’

‘‘यहीं कहीं होगी,’’ कह राधिका ने छत से घर के अंदर जा रही सीढि़यों की तरफ झांकने का प्रयास किया. 2-3 सीढि़यां नीचे उतर कर देखा तो अंगूठी दिखाई दे गई. बोलीं, ‘‘देखिए देवरजी मिल गई.’’

‘‘अरे मैं कब से खोज रहा था. मिल ही नहीं रही थी.’’

‘‘पकडि़ए,’’ राधिका ने वहीं से देनी चाही. मगर उस का पैर डगमगा गया. चांदनी रात का उजाला सीढि़यों के अंधेरे को मिटा न सका था और राधिका उस अंधेरे से भिड़ने की कोशिश में डगमगा गई.

राजन भी तो राधिका को सीधे हाथ नहीं थाम सका उलटा हाथ पकड़ाया. संभल नहीं सका… लड़खड़ा गया. दूधिया चांदनी में राधिका के उजले चेहरे पर खुदी उदासी की गहरी रेखाएं भर आईं… सूखे और बिखरे बालों के बीच से झांकती आंखों का सूनापन महक उठा… बदन में वर्षों की सोई लचक जाग गई…

राजन ने देखा क्या ये वही राधिका भाभी हैं जिन्हें वर्षों से सिर्फ औरों के लिए खुश रहते देखा. आज पहली बार उन महकी आंखों में उन की ही खुशी तैरती दिखाई दी… इतना आवेग और इतना आकर्षण राधिका के सान्निध्य में? वह संभाल न सका था उस रूप को. राधिका के उस लड़खड़ा कर गिरने में सारा समर्पण समा गया और सारे आकाश ने उस समर्पण को अपनी बांहों में भर लिया कभी न छोड़ने के लिए और बोल पड़ा, ‘‘इन आंखों की खुशी मैं कभी सूखने नहीं दूंगा. परिवार की सारी खुशियां इन में भर दूंगा… यह मेरा वादा है… आखिर भैया को भी परिवार की खुशियां ही तो अजीज हैं.’’

तभी अचानक दरवाजे पर किसी ने आवाज दी, ‘‘भाभी,’’

‘‘अरे, यह तो सुंदरी की आवाज लग रही है.’’

‘‘मैं सुंदरी हूं. दरवाजा खोलिए,’’ फिर आवाज आई.

‘‘यह क्या, आज तो राजन ने खिड़की भी नहीं खोली फिर कौन सी सुंदरी आ गई…’’ सुंदरी यानी? राजन की पहली… नहींनहीं… अब नहीं.

बाबूजी ने कह दिया कि अब किसी सुंदरी की जगह हमारे यहां नहीं है.

दरवाजे पर हुई दस्तक को राजन ने भी सुना था और राधिका ने भी, लेकिन धोखा समझ कर कहा, ‘‘सुंदरी के लिए अब कोई दरवाजा नहीं… सांझ की दुलहन रात ढले घर नहीं आती… मेरी सांझ की दुलहन मुझे मिल गई है.’’

तभी दूर रेडियो पर गाना बज उठा, ‘कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते, कहीं से निकल आए जन्मों के नाते, घनी थी उलझन बैरी अपना मन अपना ही हो कर सहे दर्द पराए, कहीं दूर जब दिन ढल जाए.’

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सुखद मरीचिका: भाग-2

लेखिका- सिंधु मुरली

पूर्व कथा

डा. शांतनु के अस्पताल में अंजलि एक ऐसी मरीज बन कर आई थी, जिस का सामूहिक बलात्कार किया गया था. अंजलि से मिलने के बाद डा. शांतनु का ब्रह्मचर्य का प्रण डगमगाने लगा था. लेकिन अंजलि हादसे के बाद बिलकुल टूट चुकी थी. वह मर जाना चाहती थी. ऐसे में डा. शांतनु ने एक अच्छे सलाहकार की भूमिका निभाई और अंजलि का खोया आत्मविश्वास उसे वापस लौटा दिया. अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद अंजलि मुंबई वापस लौट आई. मगर उस का डा. शांतनु से संपर्क लगातार बना रहा.

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शांतनु और अंजलि के बीच फोन पर संपर्क बना रहा. दोनों के स्वर में एकदूसरे के लिए अपार ऊर्जा थी. शांतनु के मन ने तो अब अंजलि से विवाह की बात भी सोचनी शुरू कर दी थी, परंतु जबान तक आतेआते मन ही उन्हें खामोश कर देता.

शांतनु यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि सिर्फ उन्हीं के हृदय में अंजलि के लिए ऐसी भावनाएं हैं. यह भी एक कारण था उन की झिझक का और शायद उन का मन अंजलि को विवाह जैसे गंभीर मामले पर बातचीत के लिए और समय देना चाहता था.

‘‘सर, अगले महीने 15 डाक्टरों का दल एक सेमिनार में भाग लेने के लिए दिल्ली

जा रहा है. 7 दिनों का प्रोग्राम है. चीफ पूछ रहे थे कि क्या आप भी जाना चाहेंगे?’’

एक सुबह जूनियर डाक्टर मनु ने शांतनु से पूछा, तो उन का हृदय तो कुछ और ही

सोचने लगा.

‘‘तुम जा रहे हो क्या?’’ उन्होंने डा.

मनु से पूछा.

‘‘औफकोर्स, अपने देश जाने का मौका भला कौन छोड़ना चाहेगा सर,’’ डा. मनु बहुत उत्साहित लग रहे थे.

‘‘तो ठीक है. चीफ से कहो मेरा भी नाम लिख लें,’’ शांतनु ने भी उसी उत्साह से कहा. वे शायद एक फैसला ले चुके थे.

उस दल में 10 विदेशी व 5 भारतीय डाक्टर थे. शांतनु ने अंजलि को अपने आने की सूचना दे दी. वैसे उन का भारत में कोई नहीं था. पिता की मृत्यु के साथ ही सारे रिश्ते भी समाप्त हो चुके थे.

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शांतनु ने दिल्ली पहुंच कर जब अंजलि को फोन किया तो उस ने उन से पूछा, ‘‘आप भारत कब पहुंचे सर?’’ शांतनु ने उस के स्वर में पहले वाला दर्द और गंभीरता का थोड़ा अंश अभी भी महसूस किया.

‘‘बस आधा घंटा हुआ है.’’

‘‘मैं और बूआजी आप से मिलना चाहते हैं,’’ अंजलि ने इच्छा व्यक्त की.

‘‘अभी 5 दिन का सेमिनार है. फिर मैं ही मुंबई आ जाऊंगा तुम से मिलने. मेरी अमेरिका की फ्लाइट भी वहीं से है,’’ शांतनु ने उसे अपना कार्यक्रम बताया.

‘‘सर, यदि बुरा न मानें तो 2 दिन हमारे यहां ठहर जाइएगा,’’ अंजलि ने निवेदन किया तो शांतनु ने हंस कर स्वीकृति दे दी.

5 दिनों तक चलने वाला अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार किन्हीं कारणों से जब 4 दिन में ही समाप्त हो गया तो सभी की खुशी का ठिकाना न रहा. भारतीय मूल के सभी डाक्टर अपनेअपने शहरों की ओर गए तो शांतनु ने मुंबई का रास्ता पकड़ा.

आज सुबह ही अंजलि से उन्हें पता चला कि फैंसी ड्रैस कंपीटिशन में भाग लेने वह

2 दिनों से पूना में है. अंजलि के मुंबई पहुंचने से पहले ही वे स्वयं उस के घर पहुंच कर उसे आश्चर्यचकित करना चाहते थे.

शाम 7 बजे वे अंजलि द्वारा दिए गए पते के अनुसार उस के घर के सामने थे. बूआजी ने उन का स्वागत किया. एकदूसरे को फोटो द्वारा पहले से ही पहचानने के कारण दोनों खुले दिल से मिले.

अंजलि के कंपीटिशन में भाग लेने की बात से डा. शांतनु संतुष्ट थे कि अंजलि ने जीवन की ओर सकारात्मक रुख कर लिया है. इस बार वे अंजलि व बूआजी से अपने मन की बात साफसाफ कहने ही आए थे. जो अंजलि उन्हें अमेरिका में नहीं मिल

पाई वह शायद भारत में मिल जाए, यही सोच रहा था उन का मन. वे मन से अंजलि के जितने करीब जाते, अजंलि फिर उन्हें उतनी ही दूर लगती. शायद इस बार उन के हृदय की मरीचिका का अंत हो जाए, ऐसी उन्हें उम्मीद थी.

‘‘आप जैसे योग्य आदमी के हमारे यहां आने से हमारी तो इज्जत ही बढ़ गई.’’ चाय का कप शांतनु की ओर बढ़ाते हुए बूआजी बोलीं.

उत्तर में शांतनु बस मुसकरा दिए. चायनाश्ते के बाद फ्रैश हो शांतनु ऊपर छत पर टहलने चले गए. बूआजी रसोई में आया को रात के खाने का कार्यक्रम बताने चली गईं.

मुंबई उन्हें पसंद आ गई. उस पर हलकी हवा और चांदनी रात. शांतनु अपने वतन की खुशबू को अपने अंदर बसा कर ले जाना चाहते थे.

थोड़ी देर बाद बूआजी ऊपर आ गईं. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद बूआजी शांतनु के पास आईं और हाथ जोड़ते हुए बोलीं, ‘‘मुझे अंजलि ने अपने साथ हुई दुर्घटना के बारे में सब कुछ बता दिया और साथ ही यह भी बताया कि वहां किस तरह अपनों से भी बढ़ कर आप ने उसे संभाला. आज आप की वजह से ही मेरी बच्ची जिंदा है.’’

‘‘ओह, तो उस ने आप को बता दिया. चलिए, एक तरह से अच्छा ही हुआ. उस का भी मन हलका हो गया होगा,’’ शांतनु ने कहा.

‘‘आप ने उस की शादी के बारे में कुछ सोचा है?’’ थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शांतनु ने पूछा.

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‘‘अंजलि अभी भी इस सदमे से बाहर नहीं आई है. और जहां तक में उसे जानती हूं, वह शायद इस बात को राज रख कर किसी से भी शादी के लिए तैयार नहीं होगी. और सच जान कर कोई आगे आएगा भी नहीं,’’ बूआजी भरे गले से बोलीं.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. मेरी नजर में एक लड़का है, जो अंजलि के बारे में सब कुछ जानते हुए भी उस से शादी करने का इच्छुक है. हां, उम्र थोड़ी ज्यादा है. मेरा जूनियर है वह, अंजलि को बहुत खुश रखेगा,’’ शांतनु न चाहते हुए भी झूठ बोल गए.

‘‘सच, क्या अमेरिका में है ऐसा कोई?’’ बूआजी की आंखों में चमक आ गई, ‘‘आप मुझे थोड़ा वक्त दीजिए. मैं अंजलि को समझाऊंगी.’’

‘‘बड़ी अभागन है मेरी अंजलि,’’ थोड़ी देर बाद बूआजी बोलीं.

‘‘आप ऐसा मत सोचिए,’’ शांतनु ने उन का धीरज बंधाया.

‘‘मेरी अंजलि भी एक बलात्कार की ही पैदाइश है.’’ बूआजी ने बिना रुके शून्य की ओर देखते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ शांतनु चौंके.

‘‘हां, पता नहीं क्यों मैं आप को यह बता रही हूं. आप मेरी बच्ची की जिंदगी बनाने की सोच रहे हैं, इसलिए आप से यह कहने की हिम्मत हुई,’’ बूआजी ने शांतनु से नजरें मिलाते हुए कहा.

‘‘अंजलि की मां और मैं पक्की सहेली थीं. हम दोनों एक ही अस्पताल में स्टाफ नर्स थीं. हमारी दोस्ती के 5 साल बाद वह मेरी भाभी बनी. कविता नाम था उस का. उस की शादी के कई साल गुजर गए लेकिन औलाद न होने का दुख पतिपत्नी दोनों को था. कमी मेरे ही भाई में थी, लेकिन यह बात हम ने उसे कभी पता नहीं चलने दी थी, इसलिए शादी के 17 वर्षों बाद भी मेरे भाई ने औलाद की आस नहीं छोड़ी,’’ बूआजी आज अतीत के सारे पन्ने उलटना चाहती थीं.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘एक रात ड्यूटी के समय, उसी के कमरे में किसी ने क्लोरोफार्म सुंघा कर उस के साथ कुकर्म किया था. उस ने यह बात सिर्फ मुझे बताई. शिकायत करती भी तो किस की. चेहरा तो अंधेरे में देखा ही नहीं था. उस समय मेरा भाई भी अपने व्यवसाय के सिलसिले मुंबई में था, इसलिए मैं ने कविता को अंदरूनी सफाई के लिए कहा, पर उस ने तो घर से निकलना ही बंद कर दिया था. मैं भी चुप हो गई. परंतु 1 महीने बाद उस के गर्भवती होने की खबर ने हम दोनों को चौंका दिया.

‘‘कविता गर्भपात कराना चाहती थी, मगर अपने भाई की आस और इस घर में नन्ही जान की उपस्थिति के आभास ने मुझे कठोर बना दिया. यह जानते हुए भी कि उस का इस उम्र में गर्भधारण खतरे से खाली नहीं, मैं ने उसे आखिरकार अपने भाई की खुशियों का वास्ता दे कर मना ही लिया.

‘‘9 महीने बाद अंजलि आई तो भाई की तो खुशी का ठिकाना न रहा. कविता को

पूरे समय परेशानी रही. फिर 4-5 सप्ताह बाद बच्चेदानी में सूजन के कारण उस की

मौत हो गई. यह जानते हुए भी कि अंजलि मेरे भाई का खून नहीं है, मैं ने उसे सीने से लगा लिया,’’ कह कर बूआजी फूटफूट कर रोने लगीं.

अब शांतनु का अस्तित्व हिलने लगा. खुद के आश्वासन के लिए उन्होंने पूछा, ‘‘यह घटना मुंबई की नहीं है क्या?’’

‘‘नहीं, विशाखापट्टनम की है. कविता की मौत के बाद ही हम मुंबई आए थे,’’ बूआजी ने आंसू पोंछते हुए कहा. आज उन के मन का जैसे सारा बोझ उतर गया था.

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विशाखापट्टनम का नाम सुनते ही डा. शांतनु के जीवन की सब से बड़ी परीक्षा का फल घोषित हो चुका था. वे हार गए थे. उन की वर्षों की सज्जनता भी आज उन के पुराने पाप के आगे सिर झुकाए खड़ी थी. उन का सिर घूमने लगा. मुश्किल से वे दीवार के सहारे खड़े रहे.

उन की हालत देख बूआजी चौंकी, ‘‘क्या हुआ आप को?’’

‘‘एक गिलास पानी…’’ यही कह पाए वे.

बूआजी पानी लाने नीचे दौड़ीं. पानी पिला कर बूआजी उन्हें सहारा दे कर नीचे कमरे में ले आईं.

शांतनु को बुरी तरह पसीना आ रहा था. बूआजी उन के पास ही बैठी रहीं. फिर थोड़ी देर बाद वे शांतनु से अंजलि को कुछ न बताने का वादा ले कर बाहर आ गईं.

शांतनु आंखें मूंदे लेटे रहे. उन्हें याद आती रही अपने जीवन की वह एकमात्र गलती, जिस ने उन की जिंदगी के माने ही बदल दिए थे. यही तो थी वह गलती.

अपने दोस्तों की जबान से रोज नएनए रंगीन किस्से सुनने वाले मैडिकल प्रथम वर्ष के छात्र शांतनु ने अपने से 10-11 वर्ष बड़ी स्टाफ नर्स कविता को ही तो क्लोरोफार्म सुंघा कर अपनी वासना का शिकार बनाया था.

अगले ही दिन मुंह छिपा कर वह पिता के पास लौट आया. कोई हल्ला नहीं, शोरशराबा नहीं. कालेज से कोई बुलावा नहीं. करीब 1 महीने तबीयत खराब होने का बहाना कर वह घर पर ही रहा.

फिर अपने ही शहर में रह कर पढ़ाई की. परंतु उस दिन के बाद से वह चैन की नींद नहीं सो पाया. फिर मन लगा कर पढ़ाई में जुट गया और साथ ही साथ अपने जीवन के कई पन्नों को भी पढ़ डाला. फिर 3 वर्ष बाद पिता के न रहने पर मां के पास आ गया.

‘‘बूआजी, आज 10 बजे की फ्लाइट से डा. शांतनु आ रहे हैं याद है न? हम उन्हें लेने एयरपोर्ट चलेंगे,’’ सुबह 6 बजे मुंबई लौटी अंजलि ने गाड़ी से सामान उतारते हुए कहा.

‘‘क्या बताऊं बेटी, वे तो तुझे सरप्राइज देने कल ही यहां आ गए थे, परंतु तबीयत ज्यादा खराब हो जाने से आज सुबह की 4 बजे की इमरजैंसी फ्लाइट से ही वापस लौट गए.’’ बूआजी मायूसी से बोलीं.

‘‘ओह, ऐसा अचानक क्या हो गया उन्हें?’’ अंजलि चिंतित स्वर में बोली, ‘‘चलो, फोन कर के पता करूंगी.’’

‘मैं स्वयं को अध्यात्म ज्ञान में सर्वोपरि समझता था परंतु अपने ही खून को न पहचान पाया. जिस तरह रेगिस्तान में जल होने का एहसास मुसाफिर को थकने नहीं देता है, उसी तरह शायद मेरी मरीचिका मेरी बेटी अंजलि है. अब जो रूपरेखा मैं ने बूआजी के सामने बांधी थी, उस से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ना है अपनी अंजलि के लिए.’

विमान में सीट बैल्ट को कसते हुए शांतनु ने अपने मन को और ज्यादा कस लिया. इस नए उद्देश्य की पूर्ति के लिए.

सुखद मरीचिका: भाग-1

लेखिका- सिंधु मुरली

रोज की तरह आज भी डा. शांतनु बहुत खुश नजर आ रहे थे. जब से अंजलि मरीज बन कर उन के अस्पताल में आई थी, उन्होंने अपने अंदर एक बदलाव महसूस किया था. लेकिन बहुत सोचने पर भी इस बदलाव के कारण को वे समझ नहीं पा रहे थे. यह जानते हुए भी कि अंजलि के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है, वे खुद को उस की ओर खिंचने से रोक नहीं पा रहे थे. वर्षों पहले लिया गया उन का ब्रह्मचर्य का प्रण भी अब डगमगा रहा था.

ऐसा नहीं था कि उन के जीवन में कोई स्त्री आई ही नहीं थी या उन्होंने इस से पहले कोई रेप केस देखा ही नहीं था. लेकिन उन्होंने सभी से किनारा कर लिया था. उन स्त्रियों में से कुछ तो आज भी उन की अच्छी मित्र हैं.

लौस एंजिलिस जैसे आधुनिक शहर में रहते हुए भी उन्होंने योग और अध्यात्म से अपने शरीर और चरित्र को बाह्य सांसारिक सुखों से मुक्त कर लिया था, परंतु अपने बरसों से भटकते हुए मन पर अभी भी पूरी तरह नियंत्रण नहीं कर पाए थे.

मगर अंजलि से मिलने के बाद उन्होंने अपने मन पर पूर्णविराम अनुभव किया था. उन के चेहरे पर एक अद्भुत सी चमक आ गई थी. 42 की उम्र में यह परिवर्तन सिर्फ उन्होंने ही नहीं, उन की मां, मित्रों व अस्पताल के कर्मचारियों ने भी महसूस किया था.

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जानीपहचानी हस्ती होने के बावजूद डा. शांतनु हर पल सब की मदद को तैयार रहने वाले एक शांत और दयालु इंसान थे. मगर अचानक ही उन के व्यक्तित्व में आए इस सुखद परिवर्तन का राज कोई नहीं जान पाया था. उन के हंसने और बात करने के अंदाज में एक नई ऊर्जा का समावेश हुआ था.

‘‘योर कौफी सर,’’ सिस्टर एंजिल के स्वर ने डा. शांतनु को अंजलि के खयालों से आजाद किया.

‘‘हाय शांतनु,’’ डा. रेवती ने उन के कमरे में प्रवेश करते हुए कहा.

‘‘हाय. आओ बैठो,’’ शांतनु ने रेवती का अभिवादन किया और सिस्टर से एक कप कौफी और बनाने का निवेदन किया.

‘‘सो, हाउ इज योर पेशैंट नाउ?’’ उन्होंने जिज्ञासा भरी नजरों से रेवती से पूछा.

डा. रेवती ही अंजलि का केस हैंडल कर रही थीं. अंजलि के मानसिक तनाव की गंभीरता को भांप कर ही रेवती ने शांतनु से अंजलि की काउंसलिंग करने को कहा था.

‘‘शी इज रिकवरिंग नाउ. सब तुम्हारी मेहरबानी है, वरना पराए देश में कौन किस की इतनी मदद करता है. मगर तुम ठहरे शांतनु द ग्रेट,’’ रेवती ने हाथ जोड़ते हुए इस तरह कहा कि शांतनु मुसकराए बिना न रह सके.

‘‘और कितने दिन अंजलि को यहां रुकना होगा?’’ शांतनु ने पूछा.

‘‘एकडेढ़ हफ्ते बस,’’ कौफी का कप मेज पर रखते हुए रेवती बोली और, ‘‘ओके बौस, अब परसों मुलाकात होगी,’’ कहते हुए वह जाने को तैयार हो गई.

‘‘वीकेंड पर कहीं बाहर जा रही हो क्या?’’ शांतनु ने पूछा.

‘‘हां, बच्चों ने इस बार पिकनिक का प्रोग्राम बनाया है और निखिल भी तैयार हैं, तो जाना ही पड़ेगा,’’ सुस्त लहजे में रेवती बोली. फिर, ‘‘सब तुम्हारी कृपा है, वरना आज मैं भी चोट खाई लैला की तरह भटक रही होती. पर इस घरगृहस्थी के झंझट से तो आजाद होती,’’ रेवती ने नाटकीय अंदाज में कहा तो शांतनु खिलखिला कर हंस दिए.

‘‘पागल कहीं की,’’ रेवती को जाते देख शांतनु बुदबुदाए.

दरअसल रेवती भी उन लड़कियों की श्रेणी में आती है, जिन्होंने स्वयं ही शांतनु के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा था. परंतु लाख जतन कर के भी शांतनु के पत्थर दिल को पिघला नहीं पाई थी.

विवाह न करने के अडिग फैसले ने रेवती के दिल में निखिल के लिए जगह बना दी और इंटर्नशिप के बाद दोनों ने घर बसा लिया. शांतनु आज भी उन के हितैषी और मित्र बन कर उन के साथ थे.

‘‘सर, डाक्टर विल्सन इज कौलिंग यू,’’ एक जूनियर डाक्टर ने उन के कक्ष में झांकते हुए कहा तो वे अपनी खयाली दुनिया से बाहर आए.

‘‘सिस्टर, इन के खाने में नौनवेज कम कर दीजिए,’’ कुरसी खिसकाते हुए डा. शांतनु ने अंजलि की पल्स रेट चैक करते हुए सिस्टर जौन्स से मजाकिया लहजे में कहा तो अंजलि एक फीकी हंसी हंस दी.

सिस्टर जौन्स शांतनु को बहुत मानती थीं. उन के पति की मृत्यु के बाद शांतनु ने उन की हर तरह से मदद की थी, इसीलिए तो शांतनु के कहने पर उन्होंने अंजलि की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

डा. शांतनु, डा. रेवती, सिस्टर जौन्स आदि के प्यार और देखभाल ने ही इतने बड़े हादसे के बाद भी अंजलि को जिंदा रखा था. कितना रोईचिल्लाई थी अंजलि जब उसे आधेअधूरे वस्त्रों में यहां लाया गया था. उस के  शरीर पर जगहजगह नाखूनों के निशान थे. चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था और नीचे से लगातार खून बह रहा था.

‘मुझे मर जाने दो प्लीज,’ यही रट लगाए थी वह. रेवती ने उसे नींद का इंजैक्शन लगा दिया था और शांतनु से एक बार अंजलि से मिलने को कहा था.

रेवती जानती थी कि अंजलि जैसे कुछ भी अनिष्ट करने को तैयार मरीजों के लिए डा. शांतनु ही संजीवनीबूटी हैं. उन की आंखों का स्नेह, बातों की मधुरता ऐसे रोगियों में अजब सा जादू करती थी. उन के शब्दों में बहुत ताकत थी. उन से बातें कर रोगी स्वयं को बहुत हलका महसूस करता था. उस अस्पताल में और भी जानेमाने साइकोलौजिस्ट थे, परंतु डा. शांतनु का कोई सानी नहीं था.

प्रायश्चित्त की आग में जलने वाले डा. शांतनु को उन के जीवन की एक घटना ने जब इंसानियत की तरफ मोड़ा तो वे इंसानियत के स्तर से भी ऊंचे उठ गए.

पिता की मृत्यु के बाद हमेशा के लिए भारत छोड़ वे अपनी मां के पास लौस ऐंजिलिस आ गए और अपनी शेष पढ़ाई पूरी की. फिर अपनी कड़ी मेहनत से आंतरिक शक्ति को एकाग्र कर मन की सारी परतें खोल दीं और थोड़े ही समय में इस शहर के सब से प्रसिद्ध साइकोलौजिस्ट बन गए.

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उन्होंने तन, मन, धन से खुद को मानव सेवा में समर्पित कर दिया. लोगों का मानना था कि वे अपनी तरह के अकेले इंसान हैं. इस के बावजूद उन के मन में अभी भी एक बेचैनी थी.

जब पहली बार वे अंजलि से मिले तो उन्हें लगा जैसे किसी ने उन के मन की शांत नदी में एक बड़ा सा पत्थर फेंक दिया हो. फिर धीरेधीरे अंजलि उन के मन में गहरी उतरती चली गई. उस की हलकी भूरी आंखें जाने उन्हें क्या याद दिलाना चाह रही थीं.

बाद में अंजलि ने ही उन्हें बताया था कि वह फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के लिए यहां आई थी. उस की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी और अगले महीने उसे भारत लौटना था.

हादसे की रात मिस्टर जोसेफ को, जिन के घर वह पेइंग गैस्ट के तौर पर रह रही थी, अचानक ही सपरिवार किसी करीबी रिश्तेदार की मृत्यु पर सियाटल जाना पड़ा. उसी रात मौका देख उन के नौकर ने अपने 2 साथियों के साथ अंजलि पर धावा बोल दिया. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ बलात्कार किया और सुबह होने से पहले ही भाग गए.

सुबह 7 बजे जब अंजलि को होश आया उस ने फोन पर अपनी प्रिय सहेली जेनिल को सारी बात बताई. जेनिल फौरन अपने मातापिता के साथ वहां पहुंची और उसे अस्पताल पहुंचाया.

शांतनु की पहुंच से पुलिस ने भी केस को ज्यादा नहीं बढ़ाया. मिस्टर जोसेफ ने अंजलि की पैसों से मदद करनी चाही मगर अंजलि ने साफ इनकार कर दिया. उस ने अपनी बूआजी से पांव में फ्रैक्चर का बहाना कर पैसे मंगा लिए थे. बूआजी मुंबई में रहती थीं. वे दोनों ही एकदूसरे का सहारा थीं.

‘‘सर, आप मेरी कितनी मदद कर रहे हैं,’’ एक दिन अंजलि ने शांतनु से कहा.

‘‘यह तो मेरी ड्यूटी है,’’ शांतनु ने मुसकरा कर कहा.

‘‘ड्यूटी तो तुम पहले भी अच्छी कर लेते थे, पर इस ड्यूटी की शायद कोई खास वजह है,’’ अंजलि के कमरे से बाहर निकलते हुए कुहनी मारते हुए रेवती ने शांतनु से कहा.

‘क्या मैं अंजलि को चाहने लगा हूं?’

‘नहीं.’

‘तो फिर ऐसा क्या है जो मुझे बारबार उस की ओर खींच रहा है?’

‘पता नहीं.’

‘मेरी और उस की उम्र में कितना फर्क है.’

‘उस से कोई फर्क नहीं पड़ता है.’

एक रात शांतनु अपने शयनकक्ष में लेटे खुद से ही सवालजवाब कर रहे थे, परंतु किसी परिणाम तक नहीं पहुंचे.

उन का इस तरह अपनेआप में खोए रहना मां की आंखों से भी छिपा न था, परंतु उन्होंने बेटे से कुछ भी न पूछा था. जानती थीं कि कोई उत्तर नहीं मिलेगा.

बचपन में ही मातापिता को अलग होते देखा था 9 वर्षीय शांतनु ने. कोर्ट की आज्ञानुसार उसे अपने पिता के पास रहना था. मां रोतीबिलखती अपने कलेजे के टुकड़े नन्हे शांतनु को वहीं छोड़ कर अपने परिवार के पास लौस ऐंजिलिस आ गईं. मांबेटे के बीच की ये दूरियां उन के दोबारा साथ रहने के बावजूद भी नहीं भरी थीं.

शांतनु के पिता जानेमाने वकील थे. उन की व्यस्त जिंदगी ने बेटे को आजाद पंछी बना दिया था. किशोरावस्था में ही दोस्तों का जमघट, पार्टियां, मौजमस्ती यहां तक कि शराब पीना भी शांतनु की आदत में शुमार हो गया था.

बचपन से ही उस की इच्छा थी कि वह डाक्टर बने, परंतु कुशाग्र बुद्धि का होने के बावजूद बिगड़ी सोहबत निरंतर उसे पढ़ाई में पीछे ले गई.

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मैडिकल कालेज में पिता ने मोटी रकम दे कर बेटे का एडमिशन कराया. अब शांतनु अपने शहर अहमदाबाद को छोड़ कर विशाखापट्टनम आ गया.

यहां आ कर उस की आजादी को तो जैसे पंख ही लग गए. नए बिगड़ैल दोस्तों ने उसे अश्लील फिल्में देखने का आदी भी बना दिया. अब उस का मन स्त्री स्पर्श को व्याकुल रहता, मगर यह भावना उस ने कभी जाहिर नहीं होने दी.

‘‘बेटा, तबीयत ठीक नहीं लग रही तो आज छुट्टी ले लो,’’ एक दिन मां ने बुझे चेहरे को देख शांतनु से कहा.

‘‘नहीं मां, आज 2-3 वीआईपीज का अपौइंटमैंट है इसलिए जाना जरूरी है,’’ जूस का गिलास खाली करते हुए शांतनु बोले.

दरअसल, अंजलि से मिलने के बाद से जो आकर्षण वे उस की ओर महसूस कर रहे थे, वही अब पहेली बन उन की रातों की नींद उड़ा चुका था.

‘‘सिस्टर और कोई है बाहर?’’ शांतनु ने दीवार घड़ी देखते हुए पूछा.

‘‘नहीं सर, बाहर तो कोई नहीं है. हां, अंजलि मैडम आप से मिलना चाह रही थीं. उन्हें शाम का टाइम दे दूं?’’ उन की थकान देख सिस्टर ने पूछा.

‘‘नहीं, वैसे भी अब घर जाना है तो उस से मिलता हुआ जाऊंगा.’’ कह कर डा. शांतनु कुरसी से उठे. अंजलि से मिलने का कोई मौका वे गंवाना नहीं चाहते थे.

जब अंजलि के कमरे में उन्होंने प्रवेश किया तो जेनिल व उस के मातापिता को वहां पाया. उन के अभिवादन का जवाब दे कर वे अंजलि की ओर मुड़े.

‘‘कहो अंजलि, कैसे याद किया?’’ उन्होंने पास बैठते हुए पूछा.

‘‘सर, अब मैं यहां से जाना चाहती हूं,’’ उस ने गंभीरता से कहा.

‘‘हांहां जरूर, हम सब भी तो यही चाहते हैं ताकि जल्दी ही तुम अपनी पुरानी जिंदगी फिर से शुरू कर दो,’’ शांतनु ने उत्साह से भर कर कहा.

‘‘पुरानी जिंदगी तो शायद अब कभी नहीं…’’ कहतेकहते उस का स्वर भर्रा गया.

‘‘देखो अंजलि, हर प्रलय के बाद फिर से जीवन का आरंभ होता है. यही प्रकृति का नियम है. अगर तुम खुश रहना मन से चाहोगी, तभी खुश रह पाओगी. किसी और के कहने या चाहने से कुछ नहीं होगा,’’ शांतनु ने अंजलि की आंखों में झांक कर जिस आत्मविश्वास से यह बात कही, उस से अंजलि का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘कितनी गहराई है आप की बातों में. मैं खुशीखुशी जीने की पूरी कोशिश करूंगी,’’ अंजलि की आवाज में आज पहली बार आत्मविश्वास दिखा था.

‘‘हम अंजलि को अपने घर ले जाएंगे.’’ जेनिल के पिता बोले.

2 दिन बाद अंजलि जेनिल के साथ चली गई. भारत लौटने से पहले भी वह शांतनु के पास 2-3 बार काउंसलिंग के लिए आई.

‘‘सर, मुंबई से भी मैं आप के संपर्क में रहना चाहूंगी,’’ एयरपोर्ट पर भरी आंखों से अंजलि ने कहा तो शांतनु ने भी पलकें झपका कर जवाब दिया.

उस के जाने के बाद शांतनु को अपना मन संभालने में काफी वक्त लगा. फिर समय अपने वेग से चलने लगा.

– क्रमश:

सांझ की दुलहन: भाग-2

लेखिका- मीना गुप्ता

अब तक आप ने पढ़ा:

अपनी भाभी राधिका जिन की राजन बहुत इज्जत करता था, एक दिन अपने मन की बात कहते हुए स्वप्न सुंदरी से शादी करने की बात कह दी. भाभी राधिका परेशान थीं कि कहां और कैसे देवर राजन की शादी इतनी खूबसूरत लड़की से कराई जाए.

तब दूर की एक रिश्तेदारी में जिस स्वप्न सुंदरी की तलाश थी वह मिल गई. मगर जब शादी हो कर वह घर आई तो घर का अच्छाभला माहौल बिगड़ने लगा, जबकि राजन इस ओर से अनजान था. सुंदरी काफी खुले विचारों वाली थी.

अब आगे पढें:

घर की नववधू ने रात 9 बजे घर में कदम रखा. साथ में कौन है, बाबूजी ने खिड़की से झांक कर देखना चाहा. सुंदरी उस लड़के के हाथ में हाथ डाले थी. वहीं 2 हाथ खिलखिलाहट के साथ हवा में लहरा गए और खिलखिलाहट की आवाज माहौल में गूंज उठी.

बाबूजी का तनमन कांप उठा. उन्हें अपनी सालों की कमाई दौलत, मानमर्यादा सरेआम बिकती दिखी. झांक कर देखा कितने घरों की खिड़कियां उस दृश्य की साक्षी बनीं. खिड़कियां ही नहीं उन में रहने वाले लोग भी आवाक थे.

दूसरे दिन भी वही घटना दोहराई गई. सुंदरी को छोड़ जब वह जाने लगा तब बाबूजी ने बुला कर कहा, ‘‘बेटा क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘अनुभव?’’

‘‘लगते तो भले घर के हो, अनुभव तुम सुंदरी को कब से जानते हो?’’

‘‘मैं इस के साथ पढ़ा हूं,’’ कह कर वह जाने लगा तो बाबूजी ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘शायद तुम्हें हमारे घर की मर्यादा नहीं मालूम. तुम्हारा रिश्ता अब सिर्फ सुंदरी से ही नहीं वरन उस के परिवार से भी है. वह तुम्हारी क्लासमेट ही नहीं है, वह किसी की पत्नी भी है और किसी घर की बहू बन चुकी है. इस तरह उस के साथ तुम्हारा आनाजाना ठीक नहीं है.’’

वह बिना कुछ बोले चला गया. सुंदरी अंदर कमरे में आ कर बिफर पड़ी, ‘‘बाबूजी को क्या हो गया है? क्यों बेवजह शोर मचा दिया… कुल की मर्यादा… कुल की मर्यादा… क्या करूं मैं कुल की मर्यादा का… सारा दिन घर में रह कर उसे पालूं? मुझ से नहीं होगा… क्या हुआ जो मेरा दोस्त मुझे घर छोड़ने आ गया?’’

राजन ने समझाया, ‘‘बात दोस्त की नहीं संस्कारों की है… मर्यादा की है. उस ने आ कर किसी से कोई परिचय नहीं करना चाहा… तुम्हें बाय कह कर जाने लगा.’’

‘‘तो क्या हुआ? राजन तुम भी…’’

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धीरेधीरे उस का इस तरह आनाजाना साधारण सी बात हो गई, जिस की चर्चा भी नहीं की जाती.

हद तो तब हुई जब उस सांझ की दुलहन ने सच में रात ढले ही घर में कदम रखने शुरू किए. राजन ने सोचा कब तक बाबूजी की मर्यादा को यों सरेआम कुचलता देखूं. उस ने अलग घर ले लिया.

राजन सारा दिन औफिस में रहता और सुंदरी अपने दोस्तों के साथ. शाम को कभीकभी दोनों एकसाथ ही घर में प्रवेश करते. राजन जान चुका था कि कुछ कहना बेकार है. ऐसा नहीं कि उस ने उस की गलतियों को नजरअंदाज किया. वह जान कर भी अनजान बन जाता था, शायद खुद समझ जाए… उस की हर गलती पर खुद परदा डाल उसे सुधरने का मौका देता.

एक बार तो उस की आंखों के सामने ही सारा खेल हुआ. वह देखता रहा. बस इतना कह सका, ‘‘तुम्हें इस से क्या मिलता है?’’

‘‘वही जो तुम से नहीं मिलता… वह मेरा प्यार है… पहला प्यार…’’

‘‘मुझ से क्या नहीं मिला? तुम जिसे मिलना समझती हो वह मेरे परिवार की मर्यादाओं के खिलाफ है… अगर वह तुम्हारा प्यार है तो तुम ने मुझ से शादी क्यों की?’’

‘‘पापा ने कहा, शादी कर लो… हमारे घर से चली जाओ… फिर जैसी मरजी हो करना.’’

‘‘और तुम अपनी मरजी के कोड़े मुझ पर बरसा रही हो,’’ पहली बार चीखा राजन.

‘‘हां, क्योंकि तुम से मुझे बांधा गया है.’’

‘‘और तुम बंध नहीं सकीं… यही न?’’

‘‘तो अब तक तुम ने हमें धोखे में रखा था… क्या कमी रखी मैं ने तुम्हें खुश रखने में? सपनों की मलिका बना कर लाया था तुम्हें… सब से अलग भी कर लाया… किनारा कर लिया अपने घर से, अपने परिवार से. फिर भी तुम्हें नहीं जीत सका, शायद कमी मेरी ही थी कि मैं ने तुम्हें बहुत चाहा और यह नहीं जानना चाहा कि तुम्हें मेरी कितनी जरूरत है.’’

‘‘हां, मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं… मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी नहीं अपनी मरजी और शर्तों पर रह सकती हूं… तुम से पहले मेरे लिए अनुभव… मैं उस के बिना अपने एक पल की भी कल्पना नहीं कर सकती,’’ वह जोरजोर से चिल्ला रही थी.

राजन फिर भी नहीं हारा था. कई बार घर नहीं जाता. राधिका के पास चला जाता.

मगर सुंदरी यह भी जानने की कोशिश नहीं करती कि वह कहां है? उस दिन भी वह औफिस से सीधा राधिका के पास गया और फफक पड़ा.

‘‘क्या हुआ देवरजी?’’

‘‘उस ने सारी बात बता दी फिर बोला, भाभी अब आप ही कोई रास्ता निकालो.’’

‘‘क्या रास्ता निकालें देवरजी? मरजी आप की थी… हम लोग तो सिर्फ माध्यम बने थे आप की इच्छाओं के चलते… और मेरी आशंकाओं पर सभी ने आपत्ति जताई थी कि राजन सब संभाल लेगा.’’

‘‘हां भाभी, गलती मेरी थी. मेरी कल्पना सुंदर थी तो कोमल भी थी… इसलिए जल्दी टूट गई… वह तो बहुत कठोर है… जिस कल्पना सुंदरी को मैं हकीकत बना कर ला रहा हूं वह ऐसी होगी कि मेरी कल्पनाओं को ही निगल जाएगी, ऐसा तो मैं ने सोचा ही नहीं था. अगर कल्पना करना गुनाह था तो मेरा जुर्म सच में बहुत बड़ा है और मुझे उस की सजा मिल रही है. मेरी आंखों के सामने ही सब कुछ हो रहा है और मैं तमाशबीन बना हुआ हूं. उस के हर गुनाह का मैं एक ऐसा चश्मदीद गवाह हूं जिसे किसी भी अदालत में जा कर यह कहने की हिम्मत नहीं है कि मेरे घर में गुनाह पल रहा है. अब तो स्थिति यह है कि वे दोनों मेरे कमरे से लगी दीवार के पीछे होते हैं… मैं दीवारों के पार के दृश्य की कल्पना से कांप जाता हूं.’’

‘‘तो क्या आप यों ही देखते रहेंगे?’’

‘‘नहीं भाभी. मगर मैं करूं भी तो क्या?’’

‘‘बाहर करो देवरजी… जब घर की इज्जत खुद ही बाजार में बैठ जाए तो फिर उसे घर में रखना ठीक नहीं… उसे बिकना मंजूर है… आप क्या कर सकते हैं? मर्यादा की खातिर ही आप घर छोड़ कर गए थे कि लोगों की नजरों से दूर रहने पर बिगड़ी बात बन जाएगी, लेकिन…. मेरा कहा मानो तलाक ले लो.’’

‘‘लेकिन भाभी…’’

‘‘कोई लेकिनवेकिन नहीं… जब जिंदगी तुम से इतनी कुरबानियों के बाद भी खुश नहीं तो बेहतर है ऐसी जिंदगी से किनारा कर लो… आज तुम्हारे पास एक अच्छी नौकरी है, बंगला है, गाड़ी है सब कुछ है, तो फिर क्यों उस अप्सरा के पीछे भाग रहे हो? वह तुम्हारी नहीं… फिर उस ने खुद ही कह दिया है… खुद को कमजोर मत साबित करो देवरजी. रास्ते अनेक हैं, जिस मोड़ पर तुम खड़े हो उस से अनेक रास्ते जा रहे हैं और वह रास्ता भी जिस से तुम चले थे. अब एक ऐसी राह लो जहां से बीती गलियां नजर ही न आएं… छोड़ दो देवरजी उसे… छोड़ दो… अप्सरा किसी की नहीं होती… सब की हो कर भी किसी की नहीं हो पाती.’’

राजन फूटफूट कर रो पड़ा था. राधिका रो तो न सकी, मगर उस के लिए रास्ते की तलाश में जरूर निकल पड़ी.

आज वह निर्णय कर के रहेगा. इस हिम्मत के साथ वह घर में घुसा और जोर से दरवाजा पीटने लगा. दरवाजा सुंदरी ने खोला, ‘‘क्या हुआ? इतनी जोर से दरवाजा क्यों पीट रहे हो?’’

‘‘अब यह यहां नहीं होगा… मेरे घर में यह खेल अब नहीं होगा…’’

‘‘कौन सा नया पाठ पढ़ कर आए हो? यह कौन सी नई बात है?’’

सुंदरी को किनारे धकेलते हुए वह अंदर घुसा और अनुभव की कौलर पकड़ कर उसे घर से बाहर कर दिया.

सुंदरी पागलों की तरह चीखती रही. आज वह जान चुकी थी कि उसे अब किसी एक को थामना होगा. शाम को जब राजन घर आया तो वह जा चुकी थी. अपने प्रेमी अनुभव के साथ. घर में अब सिर्फ वह था और उस की रोतीसिसकती कामनाएं. कल्पनाएं, जिन्हें वह शाम तक बटोरता रहा.

तलाक के वक्त कोर्ट में इतना ही कह सका था, ‘‘मैं इस के लायक नहीं. यह जिसे चाहती है उस के साथ इसे रहने और जीने का पूरा हक है… यह हक इस के मांबाप नहीं दे सके, मगर मैं देता हूं… यह आजाद है.’’

तलाक हुए काफी अरसा हो गया था. राधिका ने कई बार देवर का मन टटोला, जानना चाहा कि वहां अब क्या चल रहा है. राजन कभीकभी कह भी देता, ‘‘भाभी अब नहीं…’’

कल्पना का कटुसत्य जिंदगी में जो कड़वाहट पैदा कर गया था उसे वह भूल नहीं पा रहा था. उस दर्द को भुलाने का एक ही रास्ता था, जो राधिका ने बताया.

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‘‘देवरजी दूसरी शादी करिए और अपनी गृहस्थी बसाइए… वह तो अपनी जिंदगी मजे से जी रही है. फिर आप ने ऐसी जिंदगी क्यों अपना ली?’’

‘‘जिंदगी को मैं ने नहीं जिंदगी ने मुझे कुबूल किया है… उसे मैं इसी रूप में अच्छा लगता हूं.’’

‘‘ऐसा नहीं… आप जिसे जिंदगी कह रहे हैं वह ओढ़ी हुई जिंदगी है और यह आप ने सुंदरी के जाने के बाद ओढ़ी है. इसे उतार फेंकने की कोशिश ही नहीं की आप ने… जिस लाश को आप ढो रहे हैं उस से बदबू पैदा हो रही है… उतार फेंको उसे वरना उस की गंध आसपास फैल कर आप को सब से दूर कर देगी… अभी मौका है नई जिंदगी की शुरुआत करने का.’’

राधिका भाभी के लफ्ज उस के जेहन में रात भर गूंजते रहे. राजन सुंदरी को मन से निकाल नहीं पाया था. दूसरी का खयाल कैसे करे? वह सोच में पड़ गया कि क्या भाभी की बात मान कर दूसरी शादी कर ले… नहीं, नहीं, कहीं वह भी. वह भी ऐसी ही निकली तो? लेकिन भाभी ने जो कहा क्या वह सच है? वह सब से दूर जा रहा है? कितनी कातर दृष्टि से भाभी ने मुझे निहारा था और कहा था कि आप की खुशियों की खातिर हम ने सारे समझौते किए थे, लेकिन अब इस बार हमारी मरजी से फैसला लें… ऐसी लाएं जो समझदार हो, शालीन हो. क्या भाभी की तरह कोई मिल सकती है?

राजन ने अलसाई आंखों में ही सवेरा देखा और फिर अपने उजड़े घर पर ताला डाल कर घर पहुंच गया.

राधिका भाभी उस समय बाबूजी को सुबह की चाय दे रही थी. राजन को इतनी सुबह आता देख शंका से भर उठीं, ‘‘क्या हुआ देवरजी… आज इतनी सुबह?’’

‘‘हां भाभी, बहुत दिनों से सुबह की चाय आप के साथ नहीं पी न, इसलिए चला आया. छुट्टी है आज… सोचा थोड़ी देर बाबूजी से भी बातें हो जाएंगी.’’

राधिका ने राजन को बहुत दिनों बाद बदला पाया. पहले जब भी आता परेशान सा रहता. चाय का एक कप उसे पकड़ाया और खुद भी पास रखी कुरसी को और पास ला कर बैठ गईं. बोलीं, ‘‘चलिए अच्छा है… मैं आप को कई दिनों से याद कर रही थी.’’

बाबूजी ने भी कहा, ‘‘चलो अच्छा है… वैसे भी अब तुम उस घर में अकेले रह कर क्या करोगे. आ जाओ यहीं शिब्बू भी अकसर बाहर ही रहता है… राधिका अकेली बोर होती है.’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं उस सुंदरी के कारण आप को बहुत चोट पहुंचा चुका हूं… मुझे सजा मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘नहीं देवरजी, आप अपनी मरजी से नहीं गए थे… आप को उस की मरजी की खातिर जाना पड़ा था, जिसे आप बेहद प्यार करते थे और बेहतर भी यही था… लेकिन इस घर के दरवाजे आप के लिए खुले हैं… बाबूजी हमेशा रोते और कहते हैं कि मेरा राजन अपनी खातिर नहीं, अपनी मरजी से नहीं उस चुड़ैल की खातिर गया है… वह मेरे बेटे को खा जाएगी बहू. उसे बचा लो,’’ कहते हुए राधिका की आंखें भर आईं.

राजन प्रायश्चित की मुद्रा में जड़ हो चुका था. लड़खड़ाती जबान से यही कह सका, ‘‘भाभी, आप और बाबूजी जैसा चाहें मुझे मंजूर है.’’

राजन के इस निर्णय से राधिका और बाबूजी दोनों खुश हुए. बाबूजी ने सारे

रिश्तेदारों में खबर पहुंचा दी कि राजन ने दूसरी शादी के लिए हां कर दी है.

कई रिश्ते आए. राधिका और बाबूजी ने इस बार किसी भी धोखे की गुंजाइश नहीं रखनी चाही. लड़़की की समझदारी पर अनेक प्रश्न किए जाते और घर आ कर बाबूजी और राधिका घंटों चर्चा करते कि नहीं यह भी समझ में नहीं आ रही. होस्टल वाली तो बिलकुल नहीं चलेगी. घरेलू हो, कुलीन हो… कम पढ़ीलिखी भी चलेगी, लेकिन सलीके वाली हो.

काफी कोशिश के बाद जिस लड़की से रिश्ता तय हुआ वह बेहद पिछड़े इलाके से और गरीब घर की थी और 10वीं कक्षा पास. देखने में साधारण. बात तय कर के आ गए. राजन की हां भर चाहिए थी जो उस ने दे दी.

शादी की तारीख तय हुई. राधिका ने राजन से मजाक किया, ‘‘चलिए, अपनी दुलहन का जोड़ा पसंद कर लीजिए.’’

राजन उदास स्वर में बोला, ‘‘भाभी, आप  ही पसंद कर लीजिए… जोड़ी भी आप ही बना रही हैं… पहनावा भी आप ही तय कर लीजिए.’’

इस बार 24 घंटे वाली शहनाई नहीं बजी. बहू ने घर की चौखट पर कदम रखे. चावल का कलश फिर तैयार था. राजन की आंखें भर आईं, सुंदरी की याद में. नई बहू का पैर कलश पर था. उस ने बहुत समझदारी से चावल गिराए. राजन ने समेटे फिर फैलाए फिर समेटे. भाभी मुसकरा रही थीं.

नई बहू ने बहुत दिनों तक सब का दिल जीतना चाहा. समय पर उठ कर घर के काम में राधिका का हाथ भी बंटाती. बाबूजी का भी खयाल रखती.

राजन तो अपने सारे काम खुद कर लेता. इस बार वह बेहद सतर्क था, ‘‘जो भी पूछना हो भाभी से पूछो अनु. वे ही बता सकती हैं.’’

नई बहू की समझदारी थी या पुरानी वाली की कटु यादें बाबूजी और घर के बाकी लोग सभी अनु से खुश थे. उस ने घर में अपनी जगह बना ली थी. राजन पर भी उस ने धीरेधीरे अधिकार कर लिया.

घर की कुछ जिम्मेदारियों को राधिका ने अनु को सौंपने की सोची. फिर एक दिन तिजोरी खोलते हुए कहा, ‘‘राधिका, यह सब तुम्हारा है… इसे संभालो.’’

‘‘अभी बहू नई है. इतनी समझदार नहीं है… कुछ समय दो,’’ बाबूजी ने झिझकते हुए कहा ताकि कहीं राजन को बुरा न लगे.

‘‘जिम्मेदारी ही तो समझदार बनाएगी. फिर मैं भी तो जब इस घर में आई थी तो नई ही थी और अकेली भी… सब संभाला था,’’ यह सुन कर बाबूजी खुश हो उठे.

– क्रमश:

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वह नीला परदा: भाग-5

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान करना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

एक रोज क्रिस्टी के पास जैनेट नाम की लड़की का फोन आया. वह क्रिस्टी से मिल कर कुछ बताना चाहती थी.

जैनेट ने क्रिस्टी को जिस लड़की का फोटो दिखाया उस का नाम फैमी था. फोटो में वह अपने 3 साल के बेटे को गाल से सटाए बैठी थी. जैनेट ने बताया कि वह छुट्टियों में अपने वतन मोरक्को गई थी. क्रिस्टी ने मोरक्को से यहां आ कर बसी लड़कियों की खोजबीन शुरू की. आखिरकार क्रिस्टी को फहमीदा नाम की एक महिला की जानकारी मिली. क्रिस्टी फहमीदा के परिवार से

मिलने मोरक्को गया. वहां फहमीदा की मां ने लंदन में बसे अपने 2-3 जानकारों के पते दिए. क्रिस्टी को लारेन नाम की औरत ने बताया कि फहमीदा किसी मुहम्मद नाम के व्यक्ति से प्यार करती थी और वह उस के बच्चे की मां बनने वाली थी.

फिर एक दिन लारेन ने क्रिस्टी को बताया कि उस ने मुहम्मद को देखा है. क्रिस्टी और लारेन जब उस जगह पहुंचे तो पता चला कि यह दुकान मुहम्मद की नहीं बल्कि साफिया की थी, जिस के दूसरे पति का नाम नासेर था.

क्रिस्टी एक कबाब की दुकान पर गया तो अचानक दुकान के मालिक नासेर को देख उस के दिमाग में लारेन का बताया हुलिया कुलबुलाने लगा.

कांस्टेबल एंडी ने नासेर का पीछा किया तो मालूम पड़ा कि उस की बीवी और 3 बच्चे वहीं रहते हैं. क्रिस्टी ने एंडी को उस की बीवी का पीछा करने की सलाह दी. एंडी ने उस की बीवी, दुकान व बच्चों का ब्योरा क्रिस्टी को दे दिया. क्रिस्टी ने स्कूल से बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट निकलवाया तो कई बातें उजागर हो गईं. क्रिस्टी ने नासेर से फहमीदा नाम की औरत का जिक्र किया, तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. क्रिस्टी के साथ काम कर रही मौयरा ने स्कूल के हैडमास्टर की मदद से बच्चे को फहमीदा का फोटो दिखाया तो बच्चे ने तुरंत उसे पहचान लिया.

मौयरा साफिया से अब्दुल नाम के बच्चे की हकीकत उगलवाना चाहती थी, मगर अब्दुल का नाम सुनते ही साफिया सकपका गई. फिर जो कुछ भी उस ने मौयरा को बताया, वे सारी बातें उस ने रिकौर्ड कर लीं. क्रिस्टी को यकीन हो चला कि नासेर भागने की कोशिश करेगा मगर क्रिस्टी के बिछाए जाल में वह खुदबखुद फंसता चला गया. क्रिस्टी ने कड़ाई से पूछताछ की, तो नासेर ने फहमीदा और अब्दुल के बारे में सारी जानकारी पुलिस को दे दी. मगर नीले परदे में लिपटी लाश का रहस्य अभी बरकरार था.

– अब आगे पढ़ें :

थोड़ी नानुकर के बाद साफिया राजी हो गई, तो बच्चा नासेर ने हथिया लिया. इस के साथ ही उस ने 30-40 मील दूर सरे काउंटी में घर व बिजनैस भी शिफ्ट करने की योजना बना ली और एस्कौट में एक दुकान व उस के ऊपर एक फ्लैट ले कर उस में जा बसा. फैमी को पास ही के गांव बेसिंगस्टोक में बस जाने का सुझाव दिया. फैमी पढ़ाई के साथसाथ एक फैक्टरी में काम करने लगी. फैक्टरी बेसिंगस्टोक में ही थी. वह वहां से अपने बच्चे से आसानी से मिलने आ सकती थी.

बच्चा जब नासेर के घर चला गया तब वह बहुत रोईधोई मगर नासेर ने उसे बहलाफुसला लिया. अपनी बीवी से छिपा कर उसे खूब सैर कराई और वादे के मुताबिक मोरक्को, मां से मिलने भेज दिया.

वह जब वहां से लौटी तो सरे में शिफ्ट कर गई और जैनेट के घर में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. जैनेट ज्यादातर नर्सिंग के काम से बाहर ही रहती थी. उस का कमरा नासेर और फैमी का हनीमून चैंबर था. यहीं वह घुमाने के बहाने बेटे को भी ले आता था, फैमी से मिलवाने. यह सब इतनी चतुराई से चलता रहा कि साफिया को कुछ खबर नहीं लगी.

इधर छोटे से फ्लैट में 5 बेटियों का निर्वाह मुश्किल से हो रहा था. उन में से 3 तो कालेज जाने लगी थीं, लेकिन बच्चे के आ जाने से साफिया का सारा ध्यान उसी में लगा रहता था. उधर नासेर की दुकान नई जगह होने से अच्छी नहीं चल रही थी. इतना बदलाव तीनों बड़ी बेटियां निगल नहीं पा रही थीं.

साफिया ने अपने मांबाप को सब व्यथा सुनाई. उन्होंने कुछ पैसा अपने पास से लगा कर एक और दुकान न्यूजएजेंट की खरीद ली और उसी के ऊपर तीनों बड़ी बेटियों के संग रहने लगे. यह जगह नासेर की दुकान से 4-5 मील दूर उसी शहर में थी.

इधर नासेर ने देखा कि एस्कौट शहर में बाहर के टूरिस्ट बहुत आते हैं, क्योंकि यहां बहुत बड़ा रेसकोर्स है. अत: उस ने ग्रोसरी की दुकान हटा कर वहां कबाब व सैंडविच की दुकान खोल ली. वह बातचीत में लोगों का मन मोहने में नंबर वन था ही. दुकान धड़ल्ले से चल निकली. इस में साफिया का कोई काम नहीं था, इसलिए वह सुबह से दोपहर तक अपनी बड़ी बेटी की दुकान में हाथ बंटाती ताकि वह कालेज की पढ़ाई ढंग से कर सके.

नासेर की दुकान अच्छी चल निकली तो उस ने एक अच्छा सा 4 बैडरूम वाला घर भी खरीद लिया. यह वही घर था, जिस में मौयरा मनोवैज्ञानिक बन कर साफिया से मिलने गई थी.

सारी कहानी सामने आ चुकी थी मगर फैमी का क्या हुआ, इस बात का कोई इशारा भी नासेर नहीं दे रहा था. इस के अलावा वह फैमी को दुश्चरित्र औरत के अलावा और कुछ भी नहीं बता रहा था.

उस ने अपने बेटे के फैमी का बेटा होने की बात भी पुलिस को नहीं बताई. यह तो लारेन ने बताया डेविड क्रिस्टी को. बच्चे के गोद लेने का कोई पेपर भी नहीं मिला था.

नासेर ने फहमीदा का नाम तक जानने से इनकार कर दिया. सैकड़ों सवालों का उत्तर वह गोल कर गया. फिर भी झूठ पकड़ने वाली ‘लाई डिटेक्टर’ पर उस का झूठ पकड़ा जा रहा था. अंत में क्रिस्टी ने उस से पूछा, ‘‘जब जैनेट अपने घर में होती थी, तब तुम क्या फैमी के पास नहीं जाते थे?’’

नासेर बोला, ‘‘तब वही मेरे पास आती थी.’’

क्रिस्टी ने पूछा, ‘‘कहां सोते थे तुम दोनों?’’

अचानक नासेर बोल पड़ा, ‘‘दुकान के ऊपर फ्लैट खाली पड़ा था, हम वहीं

मिलते थे.’’

मौयरा को भी उस ने ऊपर के फ्लैट में चलने की दावत दी थी.

क्रिस्टी ने कड़क कर कहा, ‘‘तुम तो वहां और लड़कियों को भी ‘गुड टाइम’ देते थे. क्या यह नहीं हो सकता कि एक दिन फैमी ने तुम्हारी बेवफाई पकड़ ली और तुम से झगड़ा किया, इसलिए तुम ने उसे रास्ते से हटा दिया?’’

नासेर ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, बात कुछ और थी.’’

क्रिस्टी ने पूछा, ‘‘क्या बात थी.’’

नासेर पलट गया, ‘‘कुछ नहीं, कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘झूठ, बिलकुल झूठ. हमें पूरा यकीन है कि तुम ने उसे जान से मार डाला.’’

नासेर शांत था मगर अंदर की घबराहट मशीन पर साफ नजर आ रही थी.

क्रिस्टी ने उस की चुप्पी को अपराध छिपाने की कोशिश बताया और ऊपर के फ्लैट की फोरेंसिक जांच करने का हुक्म दिया.

फ्लैट हालांकि नया पेंट किया गया था फिर भी फोरेंसिक जांच के लिए उस की हरेक चीज उधेड़ कर देखने का उस ने हुक्म दिया.

 

साफिया नासेर की अचानक गिरफ्तारी से बेहद घबरा गई लेकिन उसे कुछ भी नहीं बताया गया.

मौयरा ने उस की दोनों छोटी बेटियों से पूछ लिया, ‘‘जब तुम लोग डैडी की दुकान के ऊपर फ्लैट में रहती थीं, तब तुम्हारे घर में किस रंग का सोफा था?’’

‘‘काले रंग का. मगर वह बहुत पुराना था, इसलिए डैड ने उसे फेंक दिया.’’

‘‘तुम्हें याद है कि तुम्हारे परदे किस रंग के थे?’’

‘‘थोड़ेथोड़े नीले, थोड़ेथोड़े ग्रे रंग के.’’

अब तो कोई शक बचा ही नहीं था. सारे फ्लैट में कोई सुराग नहीं मिला, मगर बाथरूम के टब के सामने का पैनल जब खींच कर हटाया गया तब उस का ऊपरी किनारा, जो टब से एकदम जुड़ जाता है, काफी गंदा मिला. उस में चिपचिपाहट थी. उसे माइक्रोस्कोप से देखने पर जमा हुआ पुराना

खून साफसाफ नजर आ गया, जिस में कुछ बाल भी फंसे हुए थे.

अब तो बाथरूम का सारा पेंट खुरचा गया. दरवाजे के पीछे पेंट के नीचे खून के धब्बे काफी मात्रा में पाए गए.

जांच करने पर वह खून जंगल में मिली लाश के खून से एकदम मिलता हुआ पाया गया.

अपने खिलाफ निकल रहे सुबूतों से डर कर अंतत: नासेर ने कबूल कर ही लिया कि उस ने फैमी को मार डाला था.

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह मुझे मजबूर कर रही थी कि मैं मोरक्को जा कर उस से निकाह कर लूं ताकि वह मेरी बीवी कहला सके. मैं ऐसा नहीं कर सकता था. साफिया को नाराज कर के मैं शादी की मंजूरी नहीं ले सकता था. दूसरी वजह थी मेरा बेटा. साफिया ने उसे 6 महीने की उम्र से पालापोसा था. उस की जानकारी में बच्चे की मां कब की उसे छोड़ चुकी थी.’’

नासेर ने एक और चालाकी यह खेली थी कि फैमी को कभी साफिया से नहीं मिलाया ताकि वह उस की अज्ञात प्रेमिका बनी रहे. बच्चे को अगर कानूनी तौर पर गोद लेता, तो फैमी को सब के सामने लाना पड़ता. वह इस खतरे से खेलना नहीं चाहता था. आमनासामना होने पर फैमी कभी भी सारे भेद खोल सकती थी, इसलिए उस ने बच्चे का नाम बदल कर उस का जन्म मोरक्को में लिखवा दिया और गलत तारीख से जन्मपत्र बनवा लिया.

बड़ी चालाकी से वह फैमी से बच्चे को मिलवाने ले जाता था. वह कभी मिलने आता तो फिर खूब प्यार लुटाता था उस पर. यही समय नासेर और फैमी का ‘गुड टाइम’ भी होता था.

साफिया के नए घर में जाने के बाद से फैमी अकसर डोनर कबाब की दुकान के ऊपर वाले फ्लैट में नासेर से मिलने आती थी. वहीं उस ने वह तसवीर अपने बेटे के संग खिंचवाई थी.

अब वह चाहती थी कि नासेर उस से इसलामिक रीति से मोरक्को जा कर शादी कर ले ताकि वह अपने समाज में मुंह दिखा सके. उस की उम्र 35 की हो चली थी. इस उम्र में उसे कोई और मर्द नहीं मिलने वाला था. मगर नासेर न तो मान रहा था न ही उस पर से अपना कब्जा हटा रहा था. फैमी ने उस के राज का परदा हटाने की धमकी दी. बस, यही उस की मौत का कारण बनी. दोनों का झगड़ा हुआ. नासेर ने सोफे के कुशन से उस का मुंह दबा दिया और उस की छाती पर चढ़ बैठा. जब वह सांस घुटने से मर गई, तब उस को घसीट कर बाथरूम में ले गया. वहां बाथटब में डाल कर उस ने उस की गरदन डोनर कबाब काटने वाली तेज छुरी से काट कर अलग कर दी.

जिस प्लास्टिक की ढक्कनदार बालटी में डोनर कबाब का कीमा आता था, उसी में उस ने फैमी के सिर को रखा और उस के ऊपर रेत भर दी ताकि खून न टपके. फिर ढक्कन को बंद कर दिया. इसी तरह उस ने एक दूसरी बालटी में उस के दोनों हाथ काट कर डाले और रेत भर दी. फिर बचे हुए शरीर को परदों में लपेट कर बांध दिया. अपनी वैन में लाश डाल कर वह रौक्सवुड में फेंक आया. दोनों प्लास्टिक की बालटियां उस ने 2 अलगअलग पुलों पर से रात में टेम्स नदी में फेंक दीं.

वापस फ्लैट में आ कर उस ने सोफे को आग लगा दी. रैक्सीन का सोफा जलने से सारा फ्लैट धुएं से भर कर काला हो गया. गलीचा भी जल गया. इस आग को उस ने खुद ही पानी डाल कर बुझा दिया.

देर रात गए वह घर पहुंचा. साफिया के पूछने पर उस ने आग लगने का ब्योरा बता दिया. बताया कि फ्लैट में जहरीला धुआं भरा है, इसलिए कोई वहां न जाए. वह क्लेम कर के इंश्योरैंस से इस नुकसान का मुआवजा लेगा. अगले ही दिन उस ने बाथटब को साफ किया और जहांजहां खून के छींटे पड़े थे उन पर पेंट मार दिया.

फैमी का हैंडबैग उस के पास था, जिस में से चाबी ले कर वह मौका देख कर उस के घर में घुसा और शिनाख्त के सारे पेपर, जेवर, पैसे और अब्दुल का असली जन्मपत्र वगैरह सब अपने कब्जे में कर लिया जो सामान बेमतलब का था, उसे वहीं छोड़ दिया. और फैमी के कपड़े भी वह ले आया ताकि लगे कि वह कहीं विदेश चली गई है.

जैनेट उन दिनों घर पर नहीं थी. उसे क्रिसमस पर एक बूढ़े की तीमारदारी करने के लिए मोरक्को में काम मिला था. उस के जाने से पहले फैमी ने उसे बताया था कि वह भी मोरक्को जा रही है.

ठोस सुबूतों के आधार पर पुलिस ने नासेर के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया. अदालती कार्यवाही के बाद नासेर को उम्रकैद की सजा हुई.

जौन और डोरा के ड्राइंगरूम में बैठ कर डेविड क्रिस्टी आराम से सारी कहानी सुना रहा था. मौयरा और उस की बीवी भी वहां थी.

‘‘जौन, तुम सचमुच मानते हो कि वह आत्मा तुम्हें ढूंढ़ती हुई आई थी?’’

‘‘अरे मैं कैसे विश्वास दिलाऊं तुम सब को. डेविड जितनी बार तुम ने कहा कि मैं यह केस बंद कर रहा हूं, उतनी बार उस के आने का एहसास मुझे हुआ. तुम मानो या न मानो पर मुझे अब और भी तसल्ली हो गई है कि यह सब मेरा भ्रम नहीं था. जरा सोचो, जब से उस के हत्यारे ने उसे जंगल में फेंका मैं पहला व्यक्ति था जिस ने उसे देखा और उस के बारे में बताया. शायद वह अपने शरीर में बैठी रही मदद मांगने के लिए और जैसे ही मैं उसे मिला वह मेरे पीछे हो ली. वह मुझ से बारबार विनती कर रही थी, इस पर मुझे पूरा विश्वास है. तुम लोग इसे पागलपन समझते हो तो समझो.’’

‘‘नहीं जौन, कम से कम मैं इसे तुम्हारा पागलपन नहीं मान रहा हूं.’’

‘‘कैसे बोल रहे हो अब,’’ डोरा उपहास से बोली, ‘‘तुम्हीं ने तो कहा था न अल्बर्ट म्यूजियम में कि यह सब जौन के उत्तेजित होने के कारण कल्पना का तानाबाना है. उसे मानसिक शांति चाहिए.’’

‘‘कहा था, जरूर कहा था मगर उस के बाद जो कुछ घटा वह कम विस्मयकारी नहीं है. बताता हूं.

 

‘‘एक दिन जब मैं पूरी तरह हार गया था और केस बंद करने वाला था, एक औरत मुझ से मिलने आई. वह ईरानी थी और सरे के इलाके बर्ग हीथ से आई थी. यह जगह एमएसएम मार्केट से कोई 5-6 मील दूर पड़ती है. यह ईरानी औरत एक जोड़ी पुराने नीले परदे लाई थी मुझे दिखाने जो उस ने बुढि़या मार्था से खरीदे थे. उसे पता चला कि ऐसे परदे की पुलिस को तलाश है. मगर तब वह अपने देश जाने वाली थी. वापस आने पर उस ने नए परदे खरीद लिए और ये नीले परदे वह मुझे देने के लिए ले आई.’’

‘‘मगर मार्था ने तो कहा था बेसिंगस्टोक से कोई आई थी,’’ मौयरा ने चौंक कर पूछा.

‘‘मौयरा, मार्था बूढ़ी है न इसलिए उस की याददाश्त में से बर्ग हीथ फिसल गया और ब शब्द से बेसिंगस्टोक उभर आया, तो वह वही बोल गई. न वह बेसिंगस्टोक का नाम लेती, न हम उसे टीवी पर घोषित करते. न वहां रहने वाली जैनेट आगे आती और हमें फैमी का फोटो दिखाती. हमारी तहकीकात तो बस वहीं से शुरू हुई. है न अजीब बात?’’

‘‘कमाल है,’’ सब के मुंह से एकसाथ निकला.

‘‘तुम अब आराम से बेफिक्र हो कर सो सकते हो जौन. मैं ने तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी कर दी है. मैं ने फैमी को उस के देश मोरक्को भेज दिया है और एक सरकारी चैरिटी की तरफ से एक मोटी रकम भी, जो उस के भाईबहनों के भविष्य को संवारने के काम आएगी.’’

वह नीला परदा: भाग-4

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह अपने कुत्ते डोरा के साथ जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर वह बुरी तरह घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान करना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. ऐसे में हत्यारे तक पहुंचने का जरिया सिर्फ वह नीला परदा था, जिस में उस लड़की की लाश थी. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

एक रोज क्रिस्टी के पास किसी जैनेट नाम की लड़की का फोन आया, जो पेशे से नर्स थी. वह क्रिस्टी से मिल कर नीले परदे के बारे में कुछ बताना चाहती थी.

जैनेट ने क्रिस्टी को जिस लड़की का फोटो दिखाया उस का नाम फैमी था. फोटो में वह अपने 3 साल के बेटे को गाल से सटाए बैठी थी. जैनेट ने बताया कि वह छुट्टियों में अपने वतन मोरक्को गई थी. क्रिस्टी ने मोरक्को से यहां आ कर बसी लड़कियों की खोजबीन शुरू की. आखिरकार क्रिस्टी को फहमीदा नाम की एक महिला की जानकारी मिली. क्रिस्टी फहमीदा के परिवार से मिलने मोरक्को गया. वहां फहमीदा की मां ने लंदन में बसे अपने

2-3 जानकारों के पते दिए. क्रिस्टी को लारेन नाम की औरत ने बताया कि फहमीदा किसी मुहम्मद नाम के व्यक्ति से प्यार करती थी. वह उस के बच्चे की मां बनने वाली थी.

एक रोज लारेन ने क्रिस्टी को बताया कि उस ने मुहम्मद को देखा है. क्रिस्टी और लारेन जब उस जगह पहुंचे तो पता चला कि यह दुकान मुहम्मद की नहीं, बल्कि साफिया की थी, जिस के दूसरे पति का नाम नासेर था. अब सवाल यह उठ रहा था, आखिर साफिया दुकान बेच कर कहां चली गई?

एक रोज डेविड एक कबाब की दुकान पर गया तो अचानक दुकान के मालिक को देख उस के दिमाग में लारेन का बताया हुलिया कुलबुलाने लगा.

नासेर के बारे में एकएक कर के जो बातें उजागर हो रही थीं, वे उसे कठघरे की तरफ धकेलती जा रही थीं. कांस्टेबल एंडी ने नासेर का पीछा किया तो मालूम पड़ा कि उस की बीवी और 3 बच्चे वहीं रहते हैं. डेविड ने एंडी को उस की बीवी का पीछा करने की सलाह दी. एंडी ने उस की बीवी, दुकान व बच्चों का ब्योरा डेविड को दिया. डेविड ने स्कूल से बच्चे का बर्थसर्टिफिकेट निकलवाया तो कई बातें उजागर हो गईं. डेविड ने नासेर से फहमीदा नाम की औरत का जिक्र किया, तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. मौयरा ने स्कूल के हैडमास्टर की मदद से बच्चे को फैमी का फोटो दिखाया तो बच्चे ने तुरंत उसे पहचान लिया.

-अब आगे पढ़ें…

शकूर की तारीफें सुन कर साफिया बहुत खुश हुई. मौयरा ने कहा कि वह उस के घर के वातावरण से परिचित होना चाहती है. साफिया ने झट से उसे बुलावा दे डाला, अगले ही दिन सुबह लंच से पहले.

घर बड़े करीने से सजा था. साफिया ने  मौयरा को बताया कि वह 2 साल पहले ही यहां आई है. इस से पहले वह पति की दुकान के ऊपर फ्लैट में रहती थी. वह दुकान ग्रोसरी की थी.

उस का पिता टर्की से आया था और उस ने काफी अच्छा पैसा बनाया लंदन में. उसी दौरान उस ने एक मोरक्कन मुसलमान से शादी कर ली. वह भी अच्छे घरपरिवार से था, मगर उसे सिगरेट पीने की बुरी लत थी. इसलिए

वह फेफड़े के कैंसर से मर गया. उन की 3 बेटियां थीं.

पति के मरने के बाद साफिया ने उस की फलसब्जी की दुकान संभाली. मगर 3 बच्चों को पालना और दुकान चलाना काफी भारी पड़ता था. कुछ साल बाद उस के पति के रिश्ते का भाई अली नासेर स्टूडैंट वीजा पर लंदन आया. पति का भाई होने के नाते साफिया ने उसे घर में रखा. बाद में उस से शादी कर ली. अली से भी उसे 2 बेटियां हुईं. अली हर हालत में एक लड़का चाहता था ताकि वह अपनी पुश्तैनी जायदाद का हक न खो दे.

‘‘फिर?’’ मौयरा ने पूछा.

साफिया थोड़ा अटकी फिर सोच कर बोली, ‘‘फिर क्या, शकूर आ गया, बस.’’

साफिया की कहानी हूबहू लारेन की बताई कहानी से मिलती थी. मौयरा ने अपने बैग में रखे टेपरिकौर्डर पर उस की सारी बातें रिकौर्ड कर ली थीं.

मौयरा ने आगे पूछा, ‘‘तुम किसी मुहम्मद नाम के आदमी को जानती हो?’’

‘‘वह तो मेरा पहला पति था, जो मर गया.’’

‘‘अली मुहम्मद?’’

‘‘नहीं, मुहम्मद जब्बार नासेर. यह नाम था उस का.’’

‘‘किसी अब्दुल नाम के बच्चे को जानती हो, वह भी मोरक्को से आया है?’’

‘‘नहीं, यहां कोई मोरक्कन नहीं है.’’

‘‘उस की मां का नाम फहमीदा है.’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जानती.’’

साफिया की बातचीत एकदम निश्छल लगी.

‘‘तुम्हारी बड़ी बेटियां?’’

साफिया उदासी को छिपाते हुए बोली, ‘‘वे अलग रहती हैं. दरअसल, मेरे पिता ने उन के लिए अलग से बिजनैस शुरू करवा दिया और फ्लैट खरीद कर दे दिया. दरअसल, ग्रोसरी ही हमारा पुराना धंधा है, जिसे अब वे तीनों मिल कर चलाती हैं और मैं भी वहां जा कर उन की मदद कर आती हूं. ये तीनों छोटे बच्चे मेरे दूसरे पति नासेर की जिम्मेदारी हैं. अब कोई तकरार नहीं.’’

‘‘क्या पहले तकरार होती थी?’’

साफिया मुसकरा कर चुप हो गई.

‘‘नासेर क्या करता है?’’

‘‘उसी दुकान में है मगर डोनर कबाब बेचता है.’’

‘‘फ्लैट में कौन रहता है?’’

‘‘कोई नहीं, पिछले क्रिसमस के बाद उस ने उसे रंगरोगन करवाया था मगर खाली ही पड़ा है.’’

मौयरा ने सारी रिपोर्ट क्रिस्टी को दे दी.

क्रिस्टी सावधान था. लारेन को चकमा दे कर दुकान से निकलने के बाद नासेर का अगला कदम होगा कि वह भाग जाए. क्रिस्टी

ने चारों तरफ से नाकेबंदी कर दी और वह सीधा दुकान पहुंचा. लारेन भी उस के साथ

थी. लारेन ने ऐसा दिखावा किया जैसे वह क्रिस्टी की बीवी हो और वह नासेर को पहचानती ही न हो.

मगर उसे देख कर नासेर का रंग उड़ गया.

क्रिस्टी ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम हमें पसंद नहीं करते?’’

नासेर संभल कर सामान्य होते हुए बोला, ‘‘नहीं, वह बात नहीं. दरअसल, आप की मित्र को देख कर मुझे किसी और का भ्रम हो गया था. आप गोरी चमड़ी के लोग न कभीकभी एकदूसरे से काफी मिलते हो.’’

‘‘मुझे भी तुम सारे मोरक्कन एकजैसे लगते हो.’’

सुन कर नासेर जोरजोर से हंसने लगा, मगर उस की घबराहट छिपी नहीं रही. क्रिस्टी ने लारेन को अभी तक नहीं बताया था कि फैमी गायब थी. मगर उस का शक एकदम पक्का हो गया कि नासेर अपराधी है. सिवा उसे हिरासत में ले कर सवालजवाब करने के, क्रिस्टी के पास दूसरा चारा नहीं बचा था.

 

नासेर और साफिया दोनों की इंक्वायरी अलगअलग तरीकों से की गई थी. दोनों को जरा भी शक नहीं हुआ कि यह सब तहकीकात एक ही गुत्थी को सुलझाने का प्रयास था. साफिया ने नासेर को मनोवैज्ञानिक टीचर के बारे में सब बताया मगर नासेर अपनी ही परेशानी में उलझा रहा.

लारेन को देखने के बाद वह बदहवास हो गया था. हालांकि लारेन ने उसे जरा भी यह एहसास नहीं होने दिया कि वह उसे पहचानती है. साफिया से बहाना बना कर वह अगले दिन चंपत हो गया. साफिया अपने दूर के किसी रिश्तेदार को दुकान खोलने के लिए कह कर स्वयं अपनी दुकान में चली गई.

क्रिस्टी इस के लिए तैयार था. जिस टे्रन से नासेर भागा वह उसी पर चढ़ गया. उस की तैनात की हुई पुलिस फोर्स ने उसे नासेर के स्टेशन पर गाड़ी पकड़ने की इत्तला तुरंत दे दी थी. अगले स्टेशन पर क्रिस्टी उस में चढ़ा और ऐसा दिखाया, जैसे यह इत्तफाक हो. नासेर उसे देख कर बेबसी से मुसकराया और उस से पूछा कि आप कहां तक जाएंगे?

क्रिस्टी ने कहा कि जहां तक यह टे्रन जाएगी.

मुझे तो पास ही जाना है, कह कर नासेर फटाफट अगले ही स्टेशन पर उतर गया.

मगर जैसे ही वह उतरा, क्रिस्टी ने इंटरकाम पर पुलिस को आगाह कर दिया. लंदन के बाहरी इलाकों में छोटे शहरों में उतरने वाले इक्केदुक्के लोग ही होते हैं. नासेर का पीछा करना आसान नहीं तो दुष्कर भी नहीं था.

अगले स्टेशन पर उतर कर वह झट से कार से पिछले स्टेशन पर लौट गया. पुलिस ने नासेर को एक टैक्सी में बैठते देखा था. पुलिस चुपचाप एक अन्य कार से उस का पीछा कर रही थी. क्रिस्टी भी कार से उस के पीछे लग गया.

नासेर ने सोचा, कहीं भागने से बेहतर वह वापस दुकान पर ही पहुंच जाए. आखिर उस के खिलाफ पुलिस के पास कोई सुबूत भी नहीं है. अत: वह वापस अपने ठिकाने लौट आया.

करीब आधे घंटे बाद क्रिस्टी सीधा उस की दुकान में दाखिल हो गया और अपना पुलिस बैज दिखा कर बोला, ‘‘अली नासेर, मुझे तुम से एक गुमशुदा लड़की फैमी के बारे में पूछताछ करनी है.’’

‘‘मैं इस नाम की किसी लड़की को नहीं जानता, तुम मेरा पीछा छोड़ दो.’’

‘‘तुम जानते नहीं हो तो लारेन को देख कर घबराए क्यों? तुम्हें उस ने पहचान लिया है, तुम्हारा एक नाम मुहम्मद है.’’

‘‘सब गलत, मुझे तंग मत करो.’’

‘‘ठीक है, तुम यहां नहीं तो पुलिस स्टेशन में अपनी सफाई दे देना, हमें अच्छी तरह पता है कि तुम और भी कई लड़कियों से संबंध रखते हो, इसलिए तुम ने 2-3 रोज पहले एक अंगरेज लड़की को भी फंसाने की कोशिश की थी. हम सब तुम्हारी बीवी साफिया को बताने वाले हैं, क्योंकि हम ने तुम्हारी बातचीत रिकौर्ड कर ली है.’’

अब अली नासेर कुछ ढीला पड़ा, उस ने क्रिस्टी से कहा, ‘‘चलो, ऊपर चल कर इतमीनान से बातें करते हैं.’’

क्रिस्टी उस के साथ ऊपर फ्लैट में अकेला चला गया, मगर अपनी जेब में रखे अलार्म बटन को दबा कर उस ने एंडी और मौयरा को इत्तला दे दी.

‘‘इतनी अच्छी साजसज्जा कितने पैसों में कराई?’’

‘‘नहीं, यह सब तो मैं ने खुद किया है.’’

फ्लैट बहुत शानदार ढंग से सजा था. हलके पीले रंग की दीवारें, सफेद रंग की खिड़कियां, दरवाजे, शानदार सफेद लैदर का सोफा उस पर हरेफीरोजी रंग के खूबसूरत कुशन. वैसे ही हरेफीरोजी परदे, बड़ीबड़ी पेंटिंग, हलके क्रीम रंग का गलीचा. सब बेहद साफसुथरा मगर क्रिस्टी की नजर सिटिंग रूम की बड़ी सी खिड़की पर अटक गई, जिस पर जाली का मेहराबदार परदा पड़ा हुआ था. उस के हरेफीरोजी परदे खुदबखुद मानो रंग बदलने लगे और नीले हो गए. सामने का सफेद सोफा काले रंग में बदल गया, जिस पर बैठी फैमी अपने बच्चे को गालों से सटाए मुसकराने लगी. क्रिस्टी मन ही मन उस तसवीर की असलियत को पहचान गया.

अली नासेर ने पूछताछ में इतना कबूल किया कि एक पेशा करने वाली मोरक्कन लड़की से उस के शारीरिक संबंध थे, क्योंकि उस की पत्नी उस से काफी बड़ी थी और दूसरा पति होने के नाते उस से उस की तृप्ति नहीं होती थी. उस औरत का नाम उसे नहीं मालूम, क्योंकि मोरक्कन होने के कारण वह अपना असली नाम नहीं बताती थी और न ही वह उस की असल जिंदगी के बारे में कुछ जानता था.

‘‘तो फिर तुम उसे कैसे बुलाते थे? अब वह कहां मिलेगी?’’

‘‘फोन नंबर था उस का. मगर वह कुछ महीनों पहले मोरक्को गई थी और अभी तक वापस नहीं आई.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता कि वह अभी तक नहीं आई? तुम ने उसे उस के नंबर पर फोन किया? मुझे वह नंबर दो.’’

‘‘मेरे पास नहीं है. बेकार परेशान मत करो,’’ नासेर उठ कर जाने लगा तो क्रिस्टी ने कड़क कर उसे बैठ जाने को कहा. तभी एंडी भी ऊपर आ गया. नासेर के पास कोई चारा नहीं बचा था.

उस ने नासेर को पुलिस की हिरासत में लेने के लिए एक और सुबूत सामने रखा.

मौयरा स्कूल के हैडमास्टर की इजाजत और असिस्टैंट टीचर की मदद से अब्दुल को ले आई और उस से सब के सामने उस तसवीर के बारे में पूछा, बच्चा फिर रोने लगा और उस ने बताया कि वह आंटी थी. यह सब अली नासेर के सामने किया. बच्चे से पूछा कि क्या तुम्हारे डैड इसे जानते थे? उस ने कहा कि हां वह यहां आती थी और डैड के साथ घूमने जाती थी.

अब अली नासेर के पास कोई जवाब नहीं था. वह मान गया कि अब्दुल फैमी को जानता था. क्रिस्टी ने बच्चे को सुरक्षित घर भिजवा दिया और कड़क कर कहा कि मिस्टर अली नासेर फैमी गायब है. तुम उसे जानते थे और उस के साथ तुम्हारे शारीरिक संबंध थे. उस के गुम हो जाने में तुम्हारा हाथ है. तुम्हें हम गिरफ्तार करते हैं. तुम्हें जो कुछ कहना है अदालत में कहना.

 

नासेर गिरफ्तार हो गया और थोड़ी सख्ती के बाद उसे सब बताना पड़ा. उस ने फैमी को अपना असली नाम नहीं बताया था और मुहम्मद नाम से उसे फंसा रखा था.

इस देश में वह स्टूडैंट वीजा ले कर मोरक्को से आया था. यहां वह अपने दूर के भाई मुहम्मद जब्बार नासेर का पता ले कर आया था, मगर जब वह उस से मिलने गया तो पता चला कि वह 2-3 साल पहले मर चुका था और उस की विधवा पत्नी साफिया अपनी 3 बेटियों के साथ अकेली गृहस्थी और बिजनैस दोनों चला रही थी.

अली नासेर ने उस से हमदर्दी दिखाई और उस के बिजनैस में हाथ बंटाने का बहाना कर के उस का विश्वास जीत लिया. जल्द ही साफिया ने उसे अपना पेइंग गैस्ट बना लिया. अली हंसमुख जवान लड़का था. साफिया की बेटियां उसे अंकल कहने लगीं और एक दिन साफिया के बूढ़े मांबाप ने उस से पूछा कि वह क्या यहां बस जाना पसंद करेगा?

अंधे को क्या चाहिए 2 आंखें. अली ने बताया कि वह एक अच्छे खातेपीते परिवार का लड़का है. बाप कपड़े का व्यापारी है. घर में सिलाई की दुकान है. मोरक्को से उस ने स्नातक क्रिमिनल ला में किया है और इधर आगे की पढ़ाई करना चाहता है.

साफिया के बाप ने उसे साफिया से शादी करने के लिए कहा और बताया कि मुहम्मद जब्बार अच्छाखासा पैसा छोड़ कर मरा है, इसलिए उस की बेटियां बेसहारा नहीं रहेंगी और वह शादी कर के यहां की नागरिकता पा जाएगा और घर व बिजनैस भी. अगर वह चारों तरफ से माली सुरक्षा पा जाएगा तो उसे पढ़ाई का खूब वक्त मिलेगा.

हालांकि साफिया उस से उम्र में 5-7 साल बड़ी थी, लेकिन उस ने उस से शादी कर ली. इस शादी से 2 बेटियां और पैदा हो गईं.

 

इधर अली को कालेज में फहमीदा मिल गई. एक ही देश के होने के कारण दोस्ती और फिर प्रेम होते देर न लगी. साफिया का पैसा तो उसे चाहिए था और उसी शादी की बिना पर उसे यू.के. में रहने का वीजा मिला था. भाई की बीवी से शादी करने पर उसे अपने और जब्बार नासेर दोनों के परिवारों से बहुत मानसम्मान मिला था. सब उसे ऊंचे खयालात का इज्जतदार शरीफ समझते थे. पारिवारिक रूप से जुड़े होने के कारण नासेर अपने भाई के बच्चों की जिम्मेदारी से मुंह नहीं चुरा सकता था.

इसलिए उस ने फैमी को अपना असली नाम व पता नहीं बताया. अपना नाम मुहम्मद अली बताया और अपनी शादी की बात छिपाए रखी. फहमीदा से वह मोरक्को जा कर शादी करने के वादे करता रहा. फिर उसे पता चला कि फैमी गर्भवती है. बस यहीं से उस की सचाई पकड़ी गई. पहले तो बहाने बना कर उस ने गर्भ गिरा देने की मांग की मगर फैमी अड़ी रही. उस की दलील थी कि बच्चे के रहते वह शादी क्यों नहीं कर सकता जबकि वह उन की पाक मुहब्बत का नतीजा था.

तब नासेर झुंझला गया और उस ने साफिया से अपनी शादी की बात बताई.

फैमी का दिल टूट गया. वह चुपचाप नौकरी छोड़ कर कहीं अज्ञात रूप से रहने लगी.  नासेर को इस बात का खौफ था कि कहीं वह उस का राज का परदाफाश न कर दे और पुलिस को न बता दे. वह उसे ढूंढ़ता रहा,

उस की सहेलियों से पूछता रहा फिर जब वह नहीं मिली तो उस के जानने वालों को उस के बारे में अनर्गल बातें बता कर उस का चरित्र हनन किया.

फैमी ने एक बेटे को जन्म दिया और अपनी प्रिय सहेली लारेन को बताया. मगर लारेन ने यह खबर मुहम्मद तक पहुंचा दी और उसे कानून से भी डराया.

इधर नासेर की अपनी बीवी साफिया से अनबन हो गई. साफिया 5 बेटियों की मां बन चुकी थी मगर अब उसे गर्भधारण करने में कठिनाइयां आने लगी थीं. हालांकि वह भी हर औरत की तरह एक पुत्र चाहती थी. पुत्र होने पर ही उसे अली नासेर का उत्तराधिकार मिल सकता था. नासेर उसे कई बार यह कह चुका था.

 

जब मुहम्मद को पता चला कि फैमी ने पुत्र को जन्म दिया है तो उस की नीयत डोल गई. यह उस का बच्चा था, कदाचित एकमात्र पुत्र, अत: उस ने फहमीदा को फिर से अपने प्रेमजाल में लपेट लिया. हजारों माफियां मांगी, कसमें खाईं और बच्चे के लिए उपहारों के ढेर लगा दिए. उस ने कसम खाई कि कभी वह अपने बेटे से अलग नहीं रहेगा और साफिया को कुछ भी पता नहीं होने देगा. वह फहमीदा को हर तरह से मदद करने लगा. ताकि वह बेटे की देखभाल ठीक से कर सके और उसे मदद के लिए कहीं भटकना न पड़े.

वह रोज बेटे से मिलने जाने लगा. फहमीदा उस के लाड़प्यार को देख कर आश्वस्त हो गई. कुछ दिन बाद नासेर ने पासा फेंका.

‘‘मुझ जैसा अभागा कौन है दुनिया में जो अपने बेटे को बेटा न कह सके.’’

इधर फहमीदा बदनामी के डर से घुली जा रही थी. वह न तो खुल्लमखुल्ला किसी से मिल सकती थी, न ही नौकरी कर सकती थी. न ही वह अपने देश वापस मां से मिलने जा सकती थी.

एक दिन नासेर ने साफिया को केवल बेटियां पैदा करने के लिए बहुत शर्मिंदा किया. कहा कि उस का पुश्तैनी हक का पैसा तो बिना वारिस के डूब ही जाएगा. साफिया बहुत रोईधोई. साफिया के बूढ़े मांबाप भी बहुत

दुखी हुए.

नासेर ने पासा फेंका, ‘‘मुझे लगता है कि अब बस यही सूरत है कि हम एक मोरक्कन बच्चा गोद ले लें.’’

साफिया डर गई कि कहीं नासेर उसेछोड़ कर दूसरी शादी न कर बैठे. हालांकि उसे पता था कि नासेर जैसा खुदगर्ज कभी भी उसे नहीं छोड़ेगा. वही तो उस की सोने का अंडा देने वाली मुरगी थी. एक तो मांबाप का पैसा, दूसरी अपने पहले पति की कमाई और तीसरी उस की खुद की कमाई. नासेर के पौबारह थे.

साफिया के मांबाप ने भी उसे समझाया कि अगर वह नासेर को रखना चाहती है तो उसे बात माननी पड़ेगी. पहले तो वह घबराई फिर रजामंदी दे दी. उस ने सोचा कौन सा कोई बच्चा हथेली पर उग रहा है. देखी जाएगी जब मिलेगा.

साफिया के हां कहते ही मुहम्मद ने फहमीदा को समझाना शुरू किया. उस ने कहा कि वह ऐसा इंतजाम करेगा कि फहमीदा बच्चे से मिल भी सकेगी और वह बाप के पास भी रह सकेगा.

जानबूझ कर नासेर ने फहमीदा को साफिया से नहीं मिलवाया. फहमीदा ने दूर से साफिया को देखा जरूर था मगर साफिया के तो सपने में भी कोई नासेर की चहेती नहीं थी. अकसर बीवियों से धोखा करने वाले ऊंचेऊंचे वादे करते हैं और अपने झूठे प्यार का इजहार करते हैं.

नासेर ने फहमीदा से भी झूठा नाटक खेला. उसे लालच दिया कि वह उसे

मोरक्को मां से मिलने जाने देगा. बस, वह बच्चा उस के पास छोड़ दे. फहमीदा राजी हो गई. उस का बच्चा अपने बाप के पास पलेगा. वह उस से मिलती रहेगी. उसे कोई कमी नहीं होगी कभी, न ही वह अवैध संतान कहलाएगा. वरना भविष्य में वह अपने ही बेटे को क्या जवाब देगी, अपनी मां को क्या जवाब देगी वगैरहवगैरह…

बच्चा 5-6 महीने का हो चला था. फहमीदा उसे बोतल से दूध पिलाने लगी थी. एक दिन मुहम्मद उसे साफिया को दिखाने ले गया. आंखों से आंसू भर कर फैमी ने उसे ले जाने दिया.

साफिया और उस की बेटियों ने जब गोलमटोल प्यारा सा बच्चा देखा तो वे उस की दीवानी हो गईं. नासेर ने बताया कि उस बच्चे की मां मोरोक्को की है. उस की उम्र अभी 20 वर्ष भी नहीं है, लेकिन उस का आदमी एक मोटरसाइकिल ऐक्सीडैंट में मर गया.

अगर साफिया बच्चा गोद ले लेती है, तो वह बेचारी दूसरी शादी कर लेगी या आगे पढ़ाई कर लेगी.

– क्रमश:

वह नीला परदा: भाग-3

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह अपने कुत्ते डोरा के साथ जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर वह बुरी तरह घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान करना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. ऐसे में हत्यारे तक पहुंचने का जरिया सिर्फ वह नीला परदा था, जिस में उस लड़की की लाश थी. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा. एक रोज क्रिस्टी के पास किसी जैनेट नाम की लड़की का फोन आया, जो पेशे से नर्स थी. वह क्रिस्टी से मिल कर नीले परदे के बारे में कुछ बताना चाहती थी.

जैनेट ने क्रिस्टी को जिस लड़की का फोटो दिखाया उस का नाम फैमी था. फोटो में वह अपने 3 साल के बेटे को गालों से सटाए बैठी थी. जैनेट ने बताया वह छुट्टियों में अपने वतन मोरक्को गई थी. क्रिस्टी ने मोरक्को से यहां आ कर बसी लड़कियों की खोजबीन शुरू की. आखिरकार क्रिस्टी को फहमीदा सादी नाम की एक महिला की जानकारी मिली. क्रिस्टी फहमीदा के परिवार से मिलने मोरक्को गया. वहां फहमीदा की मां ने लंदन में बसे अपने 2-3 जानकारों के पते दिए. क्रिस्टी को लारेन नाम की औरत ने बताया कि फहमीदा किसी मुहम्मद नाम के व्यक्ति से प्यार करती थी. वह उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. एक रोज लारेन ने क्रिस्टी को बताया कि उस ने मुहम्मद को देखा है. क्रिस्टी और लारेन जब उस जगह पहुंचे तो पता चला कि यह दुकान मुहम्मद की नहीं, बल्कि साफिया नासेर नाम की औरत की थी. जिस के दूसरे पति का नाम नासेर था. अब सवाल यह उठ रहा था, आखिर साफिया दुकान बेच कर कहां चली गई?

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अगले दिन मौयरा ने अपनी एक तुर्की सहेली को तैयार किया और वह साफिया के बारे में उस दुकान के पासपड़ोस में पूछताछ कर आई. किसी ने बताया कि उस ने दूर कहीं नया रेस्टोरेंट खोल लिया है.

क्रिस्टी पिछले 6 सालों में जितने नए रेस्टोरेंट खोले गए, सब का कच्चाचिट्ठा निकाला. लेकिन कहीं कोई मुहम्मद या साफिया नासेर नहीं मिली. वह फिर हताश हो गया. तभी उसे याद आया कि जौन को देखने जाना है.

शनिवार को सजधज कर क्रिस्टी ने अपनी बीवी से कहा, ‘‘चलो, हम लोग जौन को देख आएं. पहले वोकिंग जाएंगे, वहां का बाजार अच्छा है. तुम चाहो तो किसी बुटीक में घूमती रहना. मैं जौन से मिल कर तुम से मिल लूंगा. फिर हम एस्कौट में रुक कर कुछ खापी लेंगे. अच्छी जगह है. थोड़ा ड्राइव पर जाने का मन कर रहा है.’’

क्रिस्टी की बीवी रोजी उस के साथ तैयार हो कर निकली. रोजी ने क्रिस्टी को जौन वाले अस्पताल के पोर्च में उतार दिया और खुद खरीदारी करने निकल गई. क्रिस्टी जौन से मिला तो वह बेहद खुश हुआ. उसे देखते ही वह बोला, ‘‘मुझे पता है कि तुम ने आधा रास्ता तय कर लिया है और जल्द ही कातिल तुम्हारे सामने होगा.’’

 

क्रिस्टी किस मुंह से बताता कि सभी रास्ते बंद हो चुके हैं. उस ने प्रकट में जरा भी संशय नहीं दिखाया. यही बताया कि खोज चल रही है.

‘‘तुम क्यों इतना परेशान हो, जौन? लंदन में तो आए दिन कत्ल होते रहते हैं. पिछले 20 सालों में विभिन्न जगहों से आ कर यहां बसने वाले लोग अपनी विभीषकाएं संग लाए हैं. ग्रीक साइप्रस के लोगों से तंग है, इटैलियन स्पैनिश लोगों को पसंद नहीं करते, रूमानिया वाले क्रोएशिया से घृणा करते हैं, पोलिश जर्मन से, तो फ्रेंच अंगरेजों से. कहां तक गिनाएं. सब के आने से क्राइम रेट बढ़ गया है.

‘‘सरकारें उन के अपने देशों की बनतीगिरती हैं, धरने सब यहां देते हैं. जुलूस निकालते हैं, तोड़फोड़, आपसी लड़ाइयां, मर्डर… क्या नहीं करते? अपने घरों में बैठे थे तो किसी को जानते भी नहीं थे. यहां आ कर अनजानों से बेपनाह दुश्मनी सिर्फ पूर्वाग्रह के कारण… सरकार, पुलिस और हमारी न्याय व्यवस्था सब पर भार डालते हैं ये सिरफिरे.

‘‘हमारा इंगलैंड ऐसा तो नहीं था. जब मैं बच्चा था सब के दरवाजे खुले पड़े रहते थे गली में. हम सड़क पर फुटबाल खेलते थे, न ट्रैफिक था न कोई खतरा, न बच्चे गायब होते थे, न लड़कियां. अब तो जाने कितने खतरे पैदा हो गए हैं.’’

‘‘हां, पहले केवल किलों, रजवाड़ों में अंगरेजों के भूतप्रेत दिखने की अफवाहें उड़ाई जाती थी. कब्रिस्तान तो बेपनाह आवाजाही के छोटे रास्ते हुआ करते थे. हम कब्रिस्तान में निडर हो कर लुकाछिपी का खेल खेलते थे. यह सब सिफ एक अंधविश्वास ही थी,’’ जौन ने कहा.

‘‘तुम क्यों डरे?’’

‘‘उस औरत की वजह से.’’

‘‘कैसी थी दिखने में, क्या पहने थी?’’

‘‘कह नहीं सकता.’’

‘‘जौन, तुम अपनी इच्छाशक्ति को काबू में रखो. मर्द हो, अपनी बीवी का खयाल करो. जो कुछ तुम महसूस कर रहे हो वह सिर्फ तुम्हारा अपना डर है. तुम ने तो उसे देखा तक नहीं, सिर्फ कपड़ा छुआ, वह भी एक कोना, मुश्किल से 2 इंच का.’’

‘‘डेविड, तुम ने देखा क्या?’’

‘‘जौन, अब मैं जाऊंगा. रोजी आती होगी. मैं आराम करना चाहता हूं. जरा तबीयत ताजा हो जाए तो ध्यान ज्यादा दे पाऊंगा. यह सब काम बेहद भारी पड़ता है दिलोदिमाग पर.’’

‘‘भई, मुझे माफ कर देना, तुम्हें बारबार मेरे पास आना पड़ता है. लेकिन चाहता यही हूं कि जल्दी कातिल पकड़ा जाए.’’

‘‘बायबाय…’’

‘‘बाय.’’

डेविड ने झूठ बोला कि उस ने लाश को नहीं देखा था. वह जौन को जरा भी उत्तेजित नहीं करना चाहता था. उत्तेजित होने के कारण ही वह सोचसोच कर और कल्पना कर के परेशान था.

‘‘क्या खाओगी रोजी?’’

‘‘कुछ भी जो बिना वक्त खराब किए खाया जा सके.’’

‘‘फिर तो हम रेस्टोरेंट में नहीं बैठ सकते.’’

‘‘चलो गरमगरम कुछ खाते हैं. रास्ते में कोई अच्छा टेक अवे दिखा तो वहीं रुकेंगे.’’

कुछ देर गाड़ी चलाने के बाद एक डोनर कबाब की दुकान दिखाई दी. नई व साफसुथरी दुकान थी. डेविड क्रिस्टी वहीं रुक गए.

दुकान का मालिक एक खुशमिजाज गोराचिट्टा आदमी था, जो खूब हंसहंस कर बातें बनाना जानता था. दुकान में 2-4 टेबल लगे थे. एक कसीनो मशीन भी थी. डेविड कबाब और सैंडविच बनाने का और्डर दे कर 10 मिनट तक इंतजार करता रहा. अचानक उस के दिमाग में लारेन का बताया हुलिया कुलबुलाया. इस दुकानदार के गालों पर पतली सी दाढ़ी की लकीरें कलमों से ठुड्डी पर जाती थीं. रंग गोरा, बदन मोटा.

‘‘बड़े जिंदादिल इंसान हो. क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘नासेर.’’

‘‘कहां से आए हो? तुम्हारी भाषा में विदेशीपन है.’’

‘‘टर्की का हूं, पढ़ने आया था मगर शादी कर के यहीं जम गया.’’

‘‘रहते भी इसी शहर में हो?’’

‘‘हांहां, और कहां जाना है. बिजनेस हो तो घर पास ही होना चाहिए. तुम कहां से आए हो? यहीं रहते हो क्या?’’

‘‘हांहां, बिलकुल पास में.’’

‘‘लो, तुम्हारा सामान तैयार है.’’

डेविड ने अपना कबाब लिया और नासेर से विदा ले कर वापस अपनी कार में आ बैठा. कबाब खाने का उस का सारा शौक जाता रहा. मन में जाने कैसी अजीब सी घृणा उतर आई. कैसे कीमे के थक्के को तेज लंबे चाकू से परतदरपरत काटकाट कर वह उतार रहा था. कितनी सफाई से स्लाइस निकाल कर ब्रैड में भरे उस ने. क्या इसी तेज चाकू से उस ने फहमीदा का कत्ल किया होगा?

‘‘कहां खो गए डेविड, खाओ न.’’

रोजी की आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई. बोला, ‘‘तुम खाओ, रोजी. मुझे पेट में कुछ गड़बड़ लग रही है. कहीं सोडा वाटर पिअूंगा.’’

रोजी भुनभुना कर चुपचाप कबाब खाने लगी. डेविड के मन में एक खयाल आता एक जाता. क्या करना है उसे इस के बाद.

‘बेकार उलझता जा रहा हूं’ उस ने सोचा. ‘अभी भी क्या पता कि वह औरत फहमीदा ही थी? क्या पता नासेर बेकुसूर हो. सफिया उस की बीवी है क्या? यह तो 40-42 का नहीं लगता, मुश्किल से 30-32 बरस का लगता है. कुछ बात तो जरूर है तभी यह अचानक मुझे मिल गया.’

डेविड ने समय नहीं गंवाया. मौयरा बड़ी घाघ औरत थी. डेविड ने उस को नासेर के राज जानने के लिए ठीक समझा. उस ने मौयरा से कहा, ‘‘मौयरा, तुम आजकल की छोकरियों वाले 2-4 कपड़े खरीद लो. तुम्हें किसी से इश्क लड़ाना है और उस की असलियत उगलवानी है. कर सकोगी?’’

मौयरा हंस पड़ी, ‘‘कर लूंगी, नौकरी और प्यार में सब जायज है. यह भी अच्छा है कि मैं कुंआरी हूं और मेरा बौयफ्रैंड एक पायलट है. कहीं वह घर बैठा आदर्श पति होता, तब तुम्हारे आधे से ज्यादा केस फाइलों में ही बंद रह जाते, कभी सुलझते नहीं.’’

‘‘चलचल, कौन सी दूध की धुली हो तुम. भूल गई जब टैक्स कमिश्नर को फांसा था?’’

‘‘बड़ा काइयां था वह, पर उस ने मुझे बहुत मजे कराए.’’

 

मौयरा अगले दिन किनारों पर से फटी काली हाटपैंट, कसा हुआ ब्लाउज और 10 इंच लंबा आगे बांधने वाला कार्डिगन पहन कर और छोटेछोटे बौबकट केशों में बिलकुल स्कूल गर्ल बन कर नासेर की दुकान में अकेली चली गई.

नासेर को चिडि़या अच्छी लगी. उस ने दाना फेंकने में देर नहीं लगाई. बताया कि वह दुकान के ऊपर अकेला रहता है. मौयरा ने कहा, ‘‘हो सकता है तुम अकेले हो पर अकसर तुम्हारी जात के लड़के 30 से पहले ही ब्याह जाते हैं.’’

‘‘ब्याह तो हुआ था. मगर मेरी बीवी मुझ से बहुत बड़ी है. मेरे भाई की बेवा थी वह.

3 बच्चे थे पर लड़का नहीं था. लड़के के बिना उस के आदमी की सारी जायदाद उस के भतीजे ले जाते, इसलिए उस ने मुझ से शादी कर ली.’’

‘‘लड़का हो गया तुम से उसे?’’

‘‘हां हुआ, मगर मैं कमाई करने इधर आ गया. 7-8 साल से मुल्क नहीं गया. तुम क्या इधर ही रहती हो?’’

‘‘हां, यहीं पास में. 4-5 मील दूर. तरहतरह की चीजें खानेपीने का शौक है, इसलिए इधर चली आई. तुम क्या पाकिस्तान से हो?’’

‘‘अरे नहीं, हम तो तुम्हारे पड़ोसी हैं. टर्की से आया हूं. वह तो यूरोप का ही हिस्सा है. देखो न, मेरा रंग भी कितना गोरा है.’’

मौयरा ने कबाब बनवाया.

फिर मौयरा से बोला, ‘‘यहीं बैठ कर खाओ न. मैं ने भी सुबह से दाना पेट में नहीं डाला. तुम्हारी कंपनी में मुझे भी भूख लग गई है.’’

नासेर बड़ा स्मार्ट और हंसमुख आदमी लगा मौयरा को, मगर एकएक कर के जो तथ्य सामने आ रहे थे, उसे कटघरे में धकेलते जा रहे थे.

‘‘नहीं, अभी पैक करा दो. फिर किसी दिन फुरसत में आ जाऊंगी. आज तो मेरा टैनिस कोर्ट में सेशन बुक किया हुआ है. बेकार में नुकसान हो जाएगा किराए का.’’

‘‘टैनिस तो मैं भी खेलता हूं. चलो अगली बार संगसंग बुक करवाएंगे. कल आओगी?’’

‘‘कह नहीं सकती पर मिलूंगी, तुम मुझे अच्छे लगे.’’

 

डेविड क्रिस्टी ने दुकान के बाहर एक सिपाही एंडी को ट्रैफिक वार्डन बना कर तैनात कर दिया. लोगों की गाडि़यों की अवैध पार्किंग पर नजर रखता. वह वहीं घूमता और नासेर की दुकान पर भी नजर रखता.

उस दिन तो नहीं मगर 2-4 दिन बाद नासेर बाहर निकला. वार्डन ने अपनी कार से उस का पीछा किया. नासेर एक मसजिद में गया, जहां लंबी स्कर्ट और पूरी बांह का ब्लाउज पहने एक प्रौढ़ सी खूबसूरत औरत 3 बच्चों को ले कर खड़ी थी. 2 बड़ी बेटियां और 1 बेटा, जो करीब 5 साल का था. बेटा नासेर को देख कर डैडडैड कहता हुआ आया और उंगली पकड़ कर मसजिद में दाखिल हो गया. स्कर्ट वाली औरत ने सिर पर रेशमी रूमाल बांधा हुआ था. वह बेटियों के साथ दूसरे दरवाजे से अंदर गई. नासेर उस बच्चे को देख कर एकदम खिल उठा.

यानी नासेर ने मौयरा को जो कहानी सुनाई थी वह झूठी थी. नासेर की बीवी वहीं पर थी.

क्रिस्टी ने इस औरत पर भी जाल बिछा दिया. टै्रफिक वार्डन बने हुए अपने सहायक से कहा कि वह नासेर को छोड़ कर इस स्त्री का पीछा करे.

2 घंटे बाद नासेर अपनी दुकान में चला गया. मसजिद के बाहर कई औरतें उस की बीवी से बातें करती रहीं. जब वह वहां से चली, सिपाही ने लगातार उस पर निगरानी रखी. अंत में उस ने उसे घर की चाबी निकाल कर ताला खोलते हुए और अंदर जाते हुए देखा. उस ने पता अपनी डायरी में लिख लिया और घर का एक फोटो भी कैमरे में कैद कर लिया.

उस दिन शुक्रवार था. शनिवार और इतवार को दफ्तर की छुट्टी थी. सोमवार को सुबह 7 बजे से एंडी की ड्यूटी नासेर के तथाकथित घर के बाहर लगा दी गई. वह एक वीडियो कैमरा ले कर अपनी कार में बैठा सारी गतिविधियां रिकार्ड करता रहा. 8 बजे नासेर की पत्नी अपने तीनों बच्चों को ले कर स्कूल की ओर रवाना हुई. स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. यही कोई 15 मिनट की चहलकदमी पर. एंडी अपना फासला रखते हुए धीमी रफ्तार से पीछेपीछे रेंगता हुआ स्कूल का नामपता भी दर्ज कर लाया.

बच्चों को भेज कर नासेर की बस से कहीं जाने लगी. एंडी ने पीछा किया. 2-3 मील दूर पर एक दुकान थी, जिस में मिठाइयां, स्वीट, अखबार आदि के साथसाथ ब्रैड, दूध, सब्जी, फल भी रखे थे. दुकान पहले से खुली हुई थी. मतलब उस का मालिक कोई और था. नासेर की पत्नी ने अंदर जा कर कार्यभार संभाल लिया और वहां से एक और औरत, जो काफी कम उम्र की और स्मार्ट थी बाहर आई और एक छोटी कार से कहीं चली गई.

शाम को 3 बजे वह लड़की दुकान में वापस आ गई और नासेर की पत्नी वापस अपने बच्चों को स्कूल से ले कर अपने घर चली गई.

एंडी ने यह सारी रिपोर्ट मौयरा और डेविड को दे दी. मौयरा की बातों से जाहिर था कि नासेर इस शादी की कतई इज्जत नहीं करता था. फिर भी वह उसी घर में रहता था और वहीं रात को सोता था. हो सकता है कि उस की बीवी को उस की तफरीहों का पता ही न हो. बेईमान पुरुष जरा ज्यादा ही शरीफ बने रहते हैं अपनी बीवियों के साथ. क्रिस्टी को संभलसंभल कर अगला कदम रखना होगा. मौयरा को वह इस खेल में झोंक नहीं सकता था. वह एक इज्जतदार स्त्री थी. कई सालों से एक ही बौयफैंरड से निभा रही थी. वह भी इसे पूरे मन से चाहता था, मगर उस की कमर्शियल पायलट की जिंदगी शादी, गृहस्थी के हिसाब से ठीक नहीं बैठती थी, इसलिए वे दोनों शादी नहीं कर रहे थे.

एक दिन मौयरा फिर उड़ती चिडि़या की तरह कबाब की दुकान में जा बैठी. नासेर खिल उठा. मौयरा ने जरा ज्यादा भाव दिया, तो नासेर सीधा मतलब पर आ गया.

‘‘तू आ न आज शाम को. हम इकट्ठे घूमेंगेफिरेंगे.’’

‘‘नहीं, शाम को बड़ा मुश्किल होता है. मेरी मां रहती है साथ में.’’

‘‘तो फिर अभी चल ऊपर मेरे फ्लैट में. वहां आराम से बैठते हैं. आई विल गिव यू ए गुड टाइम.’’

‘‘थैंक यू, मगर मैं तो तुम्हें ज्यादा जानती नहीं, फिर कभी मिलेंगे. हो सका तो वीकएंड में आऊंगी.’’

‘‘वीकएंड में ठीक नहीं रहेगा. काम बहुत बढ़ जाता है. मुझे फुरसत नहीं मिलती.’’

‘‘कोई बात नहीं अगले हफ्ते देखूंगी, बाय.’’

नासेर की दाल नहीं गल रही थी.

क्रिस्टी ने स्कूल के हेडमास्टर को अपने विश्वास में लपेटा. बिना उसे कुछ बताए उस ने नासेर के बच्चों का हवाला लिया. बड़ी लड़की 10 साल की होने जा रही थी. उस से छोटी 7 साल की थी और सब से छोटा लड़का 5 साल पूरे कर चुका था, अभी कुछ ही दिन पहले मां का नाम साफिया था मगर लड़के का नाम अब्दुल नहीं था. उसे सब शकूर अली नासेर बुलाते थे.

डेविड क्रिस्टी ने बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट निकलवाया. वह मोरक्को का पैदा हुआ बच्चा था और उस की जन्म की तारीख में भी फर्क था.

फिर से चक्का जाम हो गया यानी इस पहेली के कई दरवाजे अभी भी बंद थे. डेविड और मौयरा दोनों बौखला गए. अब किस आधार पर जा कर नासेर को पकड़ें? कहीं भी नासेर की तसवीर में फैमी फिट नहीं हो रही थी.

कहां थी जैनेट के घर में रहने वाली फैमी और उस का बच्चा? हो सकता है वे दोनों कहीं और रहते हों. बेकार ही वह इस परिवार को दोषी समझ बैठा है.

 

अगले दिन सुबह वह अपने औफिस में मौयरा के आने का इंतजार कर रहा था. नीचे से उस को खबर आई कि एक औरत मिलने आई है. डेविड ने उसे वहीं अपने औफिस में बुला लिया. आगंतुक एक ईरानी औरत थी. उस ने सिर में रूमाल बांधा हुआ था और टखनों तक लंबा कोट पहना था. डेविड देर तक उस से बातें करता रहा.

उस के जाने के बाद मौयरा आई तो डेविड खिड़की से बाहर खोयाखोया सा आसमान को ताक रहा था.

‘‘तुम्हारा चेहरा तो बेहद उतरा हुआ है डेविड, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ भी नहीं हुआ मगर मौयरा जब भी मैं यह केस बंद करना चाहता हूं, कुछ ऐसा हो जाता है कि मुझे अपना फैसला रद्द कर देना पड़ता है.’’

मौयरा ने पूछा, ‘‘यह औरत कौन थी?’’

‘‘यह एक ईरानी औरत है बर्ग हीथ से आई थी.’’

‘‘क्या चाहती थी?’’

‘‘फिर बताऊंगा, वह इत्तफाक से यहां आ पहुंची. हां, यह पता लगा है कि नासेर का बेटा मोरक्को में पैदा हुआ.’’

‘‘तो फिर अब्दुल कहां गया?’’

‘‘यही तो गड़बड़ है. अब किस बिना पर नासेर को दोषी मान लें?’’

‘‘छोड़ो मत उसे, वह बेहद गंदा आदमी है. एकदम घटिया. मैं अब अकेली उस के यहां नहीं जाऊंगी. वह तो सीधा गुड टाइम की बात करने लगता है.’’

‘‘हां, वह खतरनाक हो सकता है पर अब क्या करें कि उसे पकड़ कर इलजाम लगाया जा सके?’’

‘‘मेरी मानो तो लारेन को ले आना चाहिए. देखें कैसा रिएक्शन रहता है उस का.’’

‘‘चलो यह भी कर के देख लें.’’

अगले दिन डेविड फिर नासेर की दुकान में गया. नासेर हंसहंस कर उस से बातें करने लगा.

‘‘क्या बताया तुम ने कि टर्की से आए हो?’’

‘‘नहीं टर्की से तो मेरी बीवी है. मैं तो सच पूछो तो मोरक्को का रहने वाला हूं, वहां मेरे खानदान का बड़ा बिजनेस है.’’

‘‘मोरक्को के तो कई लोगों को मैं जानता हूं. एक बीवी की फ्रैंड थी फैमी फहमीदा सादी. वह भी मोरक्को से आई थी. तुम जानते हो उसे?’’

 

यह सुन कर नासेर का रंग उड़ गया. वह अटक कर बोला, ‘‘नहीं, मैं इस नाम की किसी और को नहीं जानता.’’

इस के बाद उस का बातचीत का रुख बदल गया. वह धंधे की परेशानियों का रोना रोने लगा.

क्रिस्टी का शक और पक्का हो गया मगर ऊपर से उस ने कुछ जाहिर नहीं किया.

इस के बाद क्रिस्टी लारेन से मिला. लारेन को पुलिस के काम के लिए छुट्टी दिला दी और वह उसे ले कर नासेर की दुकान में गया. खुद कुछ देर के लिए बाहर ही खड़ा रहा और अकेली लारेन अंदर गई. लारेन को देख कर नासेर के चेहरे पर की हवाइयां उड़ने लगीं. उस ने झूठा स्वांग रचा कि उसे दमा का रोग है और अटैक आ गया है, इसलिए वह दुकान बंद कर के बाहर खुली हवा में जाना चाहता है.

वह जोरजोर से खांसने लगा. काउंटर के नीचे झुक कर उस ने कबाब के ग्रिल का बटन बंद कर दिया और रुकरुक कर घुटती सी आवाज में गालियां बकने लगा.

‘‘ये कम्बख्त चूल्हा और यह गोश्त का धुआं मेरी जान ले लेगा. जाओ, प्लीज बाहर निकलो, मुझे जाना है.’’

लारेन बाहर चली गई तो उस ने झटपट दुकान का शटर गिरा दिया और ऊपर फ्लैट में चला गया.

इधर मौयरा बाल मनोविज्ञान का परीक्षण करने वाली टीचर बन कर शकूर अली नासेर के हेडमास्टर से मिली और उसे इस बात के लिए राजी कर लिया कि शकूर से अकेले में बात करेगी. एक अन्य डिनर लेडी शकूर को लाने की जिम्मेदारी बनी. शायद इतना छोटा बच्चा अजनबी स्त्री से ठीक तरह बात न करता.

मौयरा ने ढेर सारे कंस्ट्रक्शन गेम टेबल पर रख दिए और शकूर से उन्हें बनाने को कहा. बच्चा ही तो था झट बहल गया.

फिर उस की बनाई चीजें की खूब तारीफ की और अनेक मिलेजुले छोटेमोटे सामान मेज पर बिखेर दिए.

‘‘शकूर, तुम्हें जोड़े मिलाने पड़ेंगे यानी क्या चीज किस के साथ जोड़ी जाती है. जैसे, ताले के साथ चाबी, जूते के साथ मोजा वगैरह.’’

शकूर जब खूब मगन हो गया तब उस ने धीमे से फैमी का फोटो मेज पर रख दिया.

जैसे ही उस ने उसे देखा वह सकपका गया और फिर रोआंसा हो गया. उस ने फोटो उठा लिया और उसे निहारता रहा.

‘‘तुम जानते हो यह कौन है?’’

‘‘आंटी.’’

‘‘तुम्हें प्यार करती है?’’

‘‘बहुत, हम घूमने जाते थे. वह मुझे बाहर ले जाती थी.’’

‘‘कहां?’’

‘‘कभी चिडि़याघर तो कभी पार्क में.’’

‘‘अब भी जाते हो?’’

‘‘अब नहीं आती.’’

यह बात कह कर शकूर रोने लगा.

अगले दिन हेडमास्टर ने साफिया को स्कूल के बाद आधा घंटा रुकने को कहा. बताया कि तुम्हारा बेटा बहुत मेधावी है.

वह नीला परदा: भाग-2

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह अपने कुत्ते डोरा के साथ जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर वह बुरी तरह घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान कराना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. ऐसे में हत्यारे तक पहुंचने का जरिया सिर्फ वह नीला परदा था, जिस में उस लड़की की लाश थी. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा. एक रोज क्रिस्टी के पास किसी जैनेट नाम की लड़की का फोन आया, जो पेशे से नर्स थी. वह क्रिस्टी से मिल कर नीले परदे के बारे में कुछ बताना चाहती थी.

अब आगे पढ़ें…

मौयरा की मदद से जैनेट एक गत्ते का बड़ा सा डब्बा कमरे के बीचोबीच खींच लाई. बीच में बिछे गलीचे पर नीचे बैठ कर उस ने सभी चीजें तरतीब से सजा दीं. फैमी नाम की इस स्त्री का फोटो करीब 9५12 इंच के स्टील के फ्रेम में जड़ा था. उस में क्रिस्टी द्वारा प्रसारित खिड़की के अनुमानित चित्र से मिलतीजुलती एक खिड़की के सामने एक काले चमड़े से मढ़ा सोफा पड़ा था और उस पर एक युवती लगभग 3 साल के गोलमटोल बच्चे को गालों से सटाए बैठी मुसकरा रही थी.

‘‘क्या नाम बताया जैनेट आप ने?’’

‘‘फैमी.’’

‘‘सरनेम पता है?’’

‘‘नहीं, बताया तो था परंतु विदेशी नामों को याद रखना बेहद कठिन लगता है.’’

‘‘क्यों, क्या किराए की कोई लिखतपढ़त नहीं है?’’

जैनेट का मुंह उतर गया. घबरा कर हकलाती हुई वह बोली, ‘‘लड़की भली थी. ऐडवांस किराया नकद दे कर यहां रहने आई थी. कोई किरायानामा तो मैं ने नहीं लिखवाया, मगर रसीद मैं उसे जरूर दे देती थी. पहली तारीख को वह महीने का किराया कैश दे देती थी. मैं कुसूरवार हूं अफसर, पर यह कोई ऐसी बड़ी आमदनी तो न थी जिसे छिपाया जाए…’’

‘‘घबराओ नहीं, ऐसे गैरकानूनी अनुबंध अनेक बेवकूफ लोग कर लेते हैं. अब खुद ही देखो न क्या हो सकता है लापरवाही का अंजाम…’’

 

‘‘क्यों, क्या कोई संगीन मामला है?’’

‘‘हो भी सकता है. हम तुम्हें डराना नहीं चाहते, क्योंकि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. बहरहाल, हम एक लापता लड़की को ढूंढ़ रहे हैं. क्या कोई सुराग तुम हमें दे सकती हो? कोई इस का मित्र? यह तसवीर वाला बच्चा?’’

‘‘शायद यह बच्चा उस का बेटा है, जो अपने बाप के पास रहता है. फैमी छुट्टी वाले दिन शायद इस से मिलने जाती थी.’’

‘‘इस का मतलब वह तलाक ले चुकी थी?’’

‘‘नहीं पता.’’

‘‘बाकी समय वह क्या करती थी?’’

‘‘ठीक से नहीं पता, मगर कहीं 9 से 5 तक नौकरी करती थी. घर जल्दी आ जाती थी और मेरी ही रसोई में पकातीखाती थी. अफसर, बात यह है कि मैं ज्यादातर यूरोप में रहती हूं. मैं ने खुद ही नहीं पूछा.’’

‘‘जैनेट, यहां उस का कोई परिचित तो आता होगा?’’

‘‘विदेशियों पर मेरा इतना विश्वास नहीं है, इसलिए मैं ने उसे साफ मना कर दिया था कि वह किसी मेहमान को नहीं लाएगी. आप को तो पता ही है कि यहां जवान लड़कियां क्याक्या कर्म करती हैं. मगर मेरी पीठ पीछे अगर कोई आता हो तो कह नहीं सकती.’’

‘‘जब रखा तब कोई रेफरेंस लैटर तो लिया होगा उस के बौस का या बैंक का?’’

‘‘हां, मगर जब वह वापस नहीं आई तो मैं ने फेंक दिया.’’

‘‘कुछ कह कर गई थी तुम से?’’

‘‘हां, उस ने कहा कि वह क्रिसमस की छुट्टियों में मोरक्को अपने वतन जा रही है.’’

‘‘अच्छा, मदद के लिए शुक्रिया. अगर आप को कोई एतराज न हो तो मैं सामान का यह डब्बा संग ले जाऊं?’’

‘‘बेशक, बेशक.’’

अपने औफिस में ला कर क्रिस्टी ने सारा सामान खोला, मगर उस स्त्री की पहचान के सभी कागजात गायब थे. कहीं नाम तक का सुबूत नहीं था. क्रिस्टी ने अनुमान लगाया कि किसी ने जानबूझ कर सभी कागजात गायब किए होंगे. मगर मेज पर रखी तसवीर शायद इसलिए फेंक गया कि उस की अब जरूरत नहीं थी. फिर भी कुछ भी ठीक नहीं बैठ रहा था.

क्रिस्टी ने पुलिस फाइल के अगले कार्यक्रम में इस चित्र को प्रसारित किया. टीवी स्क्रीन पर बड़ा कर के दिखाया, मगर उस स्त्री को जानने वाला कोई भी सामने नहीं आया. उस का अगला कदम था, मोरक्को जाने वाली सभी सवारियों की पड़ताल. पिछले 1 साल के सभी यात्रियों के रिकार्ड उस ने हीथ्रो एअरपोर्ट से मंगवाए, मगर कोई सफलता नहीं मिली. हो सकता है कि वह स्त्री किसी अन्य देश में गई हो और फिर वहां से मोरक्को चली गई हो. हो सकता है, फैमी नाम केवल बुलाने का नाम हो. मगर उस का असली नाम क्या होगा?

मौयरा ने सुझाया कि जाने वाले यात्रियों के बजाय वह मोरक्को से आ कर यहां बस जाने वाली लड़कियों के रिकार्ड तफतीश करे. क्रिस्टी को यह बात जंच गई.

उस ने मोरक्को के दूतावास से संपर्क किया. वहां से आए नागरिकों को पासपोर्ट औफिस में ढूंढ़ा. आखिरकार एक लड़की का पता मिला, जो 7-8 साल पहले पढ़ाई करने के लिए यहां आई थी. उस का नाम फहमीदा सादी था. फहमीदा सादी के वापस मोरक्को जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला. यह आसानी से अपना नाम फैमी रख सकती थी. क्रिस्टी ने इसे भी एक सूत्र मान लिया और अपनी खोज जारी रखी, मगर अन्य तथ्यों की तरह यह भी एक हवाईकिला था. केवल मान्यता पर की गई खोज से क्या हत्यारा मिल जाएगा?

लंदन में फहमीदा सादी कहां रह रही थी, यह पता लगाना कठिन काम था, मगर पासपोर्ट औफिस से उस के अपने देश में उस का पता मिल गया. क्रिस्टी ने जैसेतैसे अपने विभाग को दलीलें दे कर खर्चे के लिए राजी कर लिया और वह मोरक्को चला गया फहमीदा के परिवार से मिलने.

फहमीदा का परिवार बहुत अमीर नहीं था. 1 विधवा अधेड़ उम्र की मां, 1 अंधा भाई और 3 कुंआरी छोटी बहनें. पर ये लोग बड़े शिष्ट और विनम्र थे.

 

क्रिस्टी को देख कर वे लोग घबरा न जाएं, इसलिए उस ने अपनेआप को उन की पुत्री का प्रोफेसर बताया. बताया कि फहमीदा उन से कई महीनों से नहीं मिली है. वह इत्तफाक से किसी रिसर्च के सिलसिले में यहां आए थे. उन्होंने सोचा वह यहां होगी. अत: मिलने चले आए.

फहमीदा की मां ने कौफी और खजूर चांदी की तश्तरी में पेश किए और हंस कर बोली कि उन की बेटी लंदन में ही है और उस के खत बराबर आते हैं.

अब क्रिस्टी यह कैसे सोच लेता कि फहमीदा मर गई है? उस का यहां आना बेकार की कोशिश साबित हो रहा था. उसे लग रहा था कि वह गलत जगह झक मार रहा है. अपनी नकली मित्रता की साख बरकरार रखने के लिए वह बेकार के हंसीमजाक और बातचीत की कडि़यां पिरोता रहा, लेकिन कुछ बातों पर मां और भाई की तरफ से अनापेक्षित बातें सुनने को मिलीं. मसलन, उस के यह कहने पर कि वह हिजाब पहनती है, इसीलिए मैं ने यहां से उस के लिए 2 बढि़या रूमाल खरीदे हैं. मां आश्चर्य से उसे देख कर बोली, ‘‘अरे वह कब से रूमाल सिर पर बांधने लगी?

वह तो नित नए फैशन रचती है केशों के.’’

क्रिस्टी सकपका गया. बोला, ‘‘नहीं, लंदन में विवाहित स्त्रियां हिजाब पहनने लगी हैं. उस का बेटा कैसा है?’’

‘‘हमारी बेटी तो अभी तक कुंआरी है. आप गलत पते पर आ गए हैं,’’ मां ने कहा.

‘‘हो सकता है. आप के पास आप की बेटी का कोई फोटो है?’’

मां झटपट फोटो ले आई. निस्संदेह यह फैमी का ही चित्र है. हालांकि इस में उस

के केश लंबे और वेशभूषा मोरक्कन थी. अब क्रिस्टी का माथा ठनका. उस ने दुभाषियों के माध्यम से बातचीत जारी रखते हुए पूछा, ‘‘क्या मैं आप की पुत्री के पत्र देख सकता हूं?’’

फैमी की मां को भी कुछ संदेह हुआ, मगर फिर वह पत्र ले आई. क्रिस्टी ने बहाने से मां को समझाया कि उसे ये पत्र दे दे ताकि वह फैमी को इन्हें दिखा कर चकित कर सके.

दुभाषियों के समझाने पर मां ने पत्र दे दिए.

‘‘1-2 दिन शहर घूम लूं. फिर आप से आ कर मिलूंगा जाने से पहले,’’ यह कह कर क्रिस्टी उठ खड़ा हुआ. फहमीदा सादी की मां को असमंजस में छोड़ कर वह भारी मन से बाहर आ गया.

2 बातें पक्की हो गई थीं. एक तो यह कि लड़की यही चित्र वाली लड़की थी, दूसरी यह कि उस का नाम फैमी ही था.

 

मगर तीसरी बात एक विशाल प्रश्न के हुक से लटक रही थी, वह यह कि फैमी का बेटा कहां था, क्यों उस के बारे में मां को पता नहीं था. जरूर या तो वह अवैध था या गोद लिया. जैनेट ने साफसाफ कहा था कि उस का किसी से संबंध था. बच्चा अपने बाप के पास था और फैमी उस से बराबर मिलने जाती थी. लंदन में अनेक बच्चे अकेले अभिभावक पालते हैं, परंतु अधिकांश में स्त्री के पास बच्चा रहता है और पुरुष अपना आनाजाना भर रखता है. यहां स्थिति उलटी बैठ रही थी. शायद अपने अवैध रिश्ते को छिपाने के लिए फैमी ने बच्चे को पिता के पास रखा हुआ था, विचित्र.

फैमी के लिखे हुए शुरू के पत्र, खुले दिल से एक बेटी की ओर से अपनी मां को लिखे गए पत्र थे. वे बराबर हर हफ्ते लिखे गए थे. उन में पैसा घर भेजने का भी जिक्र था, मगर बाद वाले पत्र बेहद संक्षिप्त और औपचारिक समाचार भर थे. पैसों का कोई जिक्र नहीं था.

अगले 2-4 दिन बाद क्रिस्टी फैमी की मां से विदा लेने गया. बातोंबातों में उस ने पूछा कि जब एक कुंआरी लड़की को इतनी दूर परदेश भेजा था तो कोई तो मित्र या जानपहचान का परिवार वहां होगा. मां ने कई नाम गिना दिए.

क्रिस्टी ने उन के पते मांगे तो मां अचंभित रह गई, पूछने लगी, ‘‘आप क्या करेंगे?’’

‘‘वह कई दिनों से मिली नहीं है न, इसलिए उस के मित्रों से पूछ लूंगा. यों ही बस.’’

फैमी की बहन ने किसी पुरानी डायरी में से 1-2 पते दिए, जो कई साल पहले के रहे होंगे. पते ले कर वह लंदन लौट गया.

लंदन आ कर क्रिस्टी ने उन पतों पर तहकीकात करनी चाही. एक घर में अब कोई नाइजीरियन परिवार रह रहा था, तो दूसरे घर के व्यक्ति का रुख बड़ा टालमटोल वाला था. ये सभी पते लंदन के पूर्वी भाग के थे, जो मुख्य शहर से करीब 30-40 मील दूर पड़ते हैं. तीसरे व्यक्ति ने फहमीदा के बारे में अच्छा नहीं बोला, मगर क्रिस्टी ने बल दे कर उस से तहकीकात की. पुलिस का नाम सुन कर वह कुछकुछ बता पाया.

फहमीदा पहले इधर ही रहती थी और कैडबरी की फैक्टरी में काम करती थी. मगर

4 साल पहले वह यह जगह छोड़ कर पता नहीं कहां चली गई.

इस फैक्टरी में सब कुछ बदल गया था. कैडबरी कंपनी ने यहां का काम बंद कर दिया था और कारखाना कोटपैंट बनाने वाले एक भारतीय ने खरीद लिया था.

फैमी अभी भी उस से आंखमिचौली खेल रही थी. कैडबरी के पुराने रजिस्टरों से उसे उसी जगह काम करने वाली स्त्रियों के नामपते मिले. बहुत ढूंढ़ कर एक ऐसी औरत मिली, जो फैमी को जानती थी और उसे कुछकुछ याद था. यह थी लारेन, जो फैमी के संग उसी जगह काम करती थी और आयरलैंड से आई थी. दोनों हमउम्र और विदेश में अकेली थीं, इसलिए मित्र बन गई थीं.

लारेन ने क्रिस्टी को बताया, ‘‘फैमी बेहद भोली और खुशमिजाज थी. 3-4 साल यहां रह कर वह अपने पुराने खयालों से उबर रही थी. खूब फैशन करती थी. कई लोग, जो उस के अपने ही कबीले के थे उस से शादी करना चाहते थे, मगर वह एक पढ़ालिखा व्यक्ति चाहती थी. धीरेधीरे उस की दोस्ती मुहम्मद नाम के एक आदमी से हो गई. मुहम्मद पढ़ने के लिए लंदन आया था.

वह मोरक्को का ही था. शायद कानून की पढ़ाई कर के यहां आया था. देखने में हट्टाकट्टा और अच्छी शक्लसूरत का था. फैमी उस के प्रेम में फंस गई, मगर जब उसे पता चला कि वह मुहम्मद के बच्चे की मां बनने वाली है तब सब कुछ ताश के किले की तरह ढह गया. मुहम्मद ने उस से गर्भ गिरा देने को कहा, क्योंकि वह शादीशुदा था. उस ने दलील दी कि उस की बीवी ही सब कुछ की मालिक है, वह उसी के दम पर इंग्लैंड आया है वगैरह…

‘‘फहमीदा ने बच्चा गिराने से मना कर दिया और वह सब से मुंह छिपा कर कहीं चली गई. उस को लड़का हुआ था और वह बहुत खुश थी. उस ने बेटे का नाम अब्दुल रखा था. यह बात उस ने मुझे फोन पर बताई थी. उस ने यह भी बताया कि मुहम्मद उस से मिलने और बेटे को देखने आया था.

‘‘बस, इस के बाद क्या हुआ, मुझे नहीं पता. फिर मेरी भी शादी हो गई, तो मैं यहां नए घर में आ गई. फैमी की 4 साल से कोई खबर नहीं मिली.’’

लारेन की कहानी सुन कर क्रिस्टी फैमी को तो जान गया, मगर यह कैसे पता चले कि वह कहां है. जो नीले परदे वाली लाश थी वह फैमी है या कोई और? लारेन की बातों से क्रिस्टी ने अंदाजा लगाया कि यह बच्चा अब्दुल करीब 5 साल का हो गया होगा. झटपट उस ने मौयरा से बर्थ रजिस्टर चैक करने को कहा. पूरे देश के जन्ममृत्यु के खाते में से यह ढूंढ़ना बड़ा मुश्किल काम था. कुछ दिन लगे, मगर बर्थ सर्टिफिकेट मिल गया. पिता का नाम मुहम्मद भी मिल गया. बच्चे का जन्म ईस्ट ऐंड के पास ही के इलाके हैक्नी के एक अस्पताल में हुआ था.

‘‘कहां मिलेगा यह बच्चा?’’

‘‘स्कूल में.’’

‘‘हां, मगर कहां के स्कूल में?’’

‘‘हर 2 मील पर स्कूल है. जन्म की तारीख मैच कराई जाए तो मिल जाएगा.’’

‘‘लगभग 20 हजार प्राइमरी स्कूलों में तुम ढूंढ़ने जाओगी? पागलपन है यह. कुछ

और सोचो.’’

क्रिस्टी का धीरज जवाब दे रहा था. अगर यह बच्चा मिल भी जाता तो केवल 1 फीसदी उम्मीद थी कि उस की मां का कत्ल हुआ है. मोरक्को में मिली फहमीदा सादी और बेसिंगस्टोक से मिली तसवीर भले ही एक हो, मगर उस के पास जो लाश थी वह उसी की थी, इस का भी कोई सुबूत नहीं था.

 

अगले दिन मौयरा ने एक और सलाह दी. हर बच्चे के नाम से उस के मांबाप को सरकारी भत्ता मिलता है. फहमीदा नाम की स्त्री या मुहम्मद नाम का पुरुष जरूर यह भत्ता ले रहा होगा कहीं न कहीं. क्रिस्टी यह सुन कर उछल पड़ा.

करीब 2 हफ्ते हरेक जगह से तमाम रजिस्टर देखतेदेखते वे लोग पस्त हो गए, जन्म की तारीख मिलती तो नाम नहीं. दोनों मिल भी गए तो जन्मस्थान का फर्क. तीनों मिल गए तो मांबाप सलामत.

यह एक जरिया भी बंद हो गया. हताश हो कर क्रिस्टी ने मौयरा से फाइल बंद करने को कहा. लंदन जैसे शहर में यह कोई एक ही किस्सा नहीं था उस के लिए. उस की टीम को जाने कितने कत्लों की तहकीकात करनी होती थी. यह बात और थी कि यह सब से ज्यादा चुनौती देने वाला कत्ल था.

क्रिस्टी और मौयरा दोनों दिमागी थकान से चूरचूर हो गए थे. हफ्ते भर के लिए यूरोप में छुट्टियां बिताने चले गए. क्रिस्टी अपने बीवीबच्चों के साथ और मौयरा अपने बौयफ्रैंड और उस की 7 साल की बेटी के साथ.

 

हफ्ते भर बाद सोमवार की एक सुहानी सुबह थी जब क्रिस्टी वापस अपने दफ्तर की कुरसी पर बैठा. सामने मेज पर एक स्लिप उस की फाइलों के रैक पर चिपकी उसे घूर रही थी. स्लिप के ऊपर एक नंबर लिखा था कि उसे फोन कर ले.

क्रिस्टी ने फोन मिलाया तो दूसरी तरफ से बैंक मैनेजर जौन की बीवी डोरा बोली, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. मुझ से आ कर मिलो या वक्त दो तो मैं ही आ जाऊं.’’

‘‘आप ही इधर आ जाइए. शहर में आ कर कुछ मन बदल जाएगा. जौन भी साथ

होगा क्या?’’

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकेगा, क्योंकि जौन अस्पताल में है. मैं ही आ जाती हूं अकेली.’’

‘‘तो फिर आप मुझ से विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम के दरवाजे के पास मिलिए, जहां सभी झंडे लगे हैं. ठीक 2 बजे दोपहर यह आप के लिए ठीक रहेगा.’’

‘‘हां, मैं पहुंच जाऊंगी.’’

ठीक 2 बजे डोरा स्कर्ट और लंबा कोट पहने हैट लगाए टैक्सी से उतरी. क्रिस्टी ने लपक कर उसे टैक्सी से उतारा और उस के हाथ को झुक कर चूमा. डोरा गंभीर स्वर में बोली, ‘‘हैलो, मैं आप को देख कर बेहद खुश हूं.’’

वे दोनों अंदर चले गए. वहां थोड़ा इधरउधर घूम कर वे एक बेंच पर एकांत में बैठ गए.

 

डोरा ने बताया कि 1 हफ्ता पहले शनिवार को वह शौपिंग करने गई थी अपनी पड़ोसिन को साथ ले कर. जौन घर पर अकेला था और रसोई के इलैक्ट्रिक उपकरण आदि चमका रहा था.

‘‘मैं ने जौन के लिए एक धुएं के रंग जैसा डल नीला जंपर खरीदा उस दिन. मगर जब मैं ने उसे घर ला कर दिखाया तो वह भड़क उठा.’’

‘‘ले जा, ले जा वापस यह ड्रैस. यह भी कोई रंग है जिंदा व्यक्ति के पहनने का,’’ यह कह कर वह कांपने लगा. उसे चक्कर से आए और उस की आंखें जैसे मेरे आरपार देखने लगीं. मैं एकदम घबरा गई और मैं ने एंबुलेंस मंगवा ली. जौन तभी से अस्पताल में है. जंपर मैं ने वापस कर दिया, मगर बड़ी हैरान हूं.’’

‘‘तुम बात को समझो, डोरा. शायद वह नीला रंग उसे कुछ याद दिला गया हो. तुम अब इस बात का खयाल रखना कि उसे कुछ भी ऐसा न दिखे, जो उसे उत्तेजित करे.’’

‘‘ठीक है, पर बात यहीं खत्म नहीं होती. अस्पताल के डाक्टर ने बताया कि वह रात

में 2-3 बार डर कर बड़बड़ करने लगा, जैसे किसी से कह रहा हो कि घबराओ नहीं, वह जरूर मिलेगा. डेविड, प्लीज कुछ करो.’’

‘‘कुछ नहीं कर पा रहे हम लोग, कोई सूत्र नहीं मिलता. फिलहाल केस बंद ही समझो.’’

‘‘ऐसा मत करो, केस बंद हो गया तो वह आत्मा निराश हो जाएगी.’’

‘‘हम पुलिस वाले आत्माओं से आर्डर नहीं लेते. तुम भी यह अंधविश्वास छोड़ दो. कोई आत्मावात्मा नहीं होती.’’

दोटूक बात सुन कर डोरा रोआंसी व हक्कीबक्की रह गई. क्रिस्टी ने उसे सांत्वना दी, रेस्तरां में जा कर चाय पिलाई और वादा किया कि वह जौन को देखने जरूर आएगा. उसे समझाएगा कि यह एक डेड केस है, जिस का कोई हल नहीं निकल सकता.

एक टैक्सी बुला कर उस ने डोरा को विदा किया और वापस अपने औफिस लौट आया. उस समय 5 बजे थे. अगले दिन का एजेंडा लिख कर और मौयरा को सब आदेश दे कर वह घर जाने की तैयारी कर रहा था. उस ने कोट व हैट पकड़ा ही था कि टैलीफोन की घंटी बज उठी. रिसीवर उठाया तो उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो इंस्पैक्टर क्रिस्टी, मैं लारेन बोल रही हूं. आप ने मुझे पहचाना? कुछ दिन पहले आप मुझ से मिले थे, फैमी नाम की औरत के बारे में जानने के लिए, याद आया?’’

‘‘हांहां, कहिए, कैसे फोन किया?’’

‘‘मेरा खयाल है मैं ने परसों मुहम्मद को देखा. वह एक सब्जी वाले से बातें कर रहा था. मैं उस की ओर बढ़ी पर पता नहीं कैसे वह भीड़ में गुम हो गया. मुझे पक्का विश्वास है कि वह मुहम्मद ही था. मैं ने उस सब्जी वाले से पूछा भी कि वह धारीदार कमीज वाला कौन था, तो उस ने बताया कि वह उस दुकान का पुराना मालिक नासेर था. मैं ने पूछा क्या उस का नाम मुहम्मद है, तो सब्जी वाला बोला, ‘नहीं वह नासेर ही है.’ पर इंस्पैक्टर मुझे तो वह मुहम्मद ही लगा.’’

‘‘ओ.के. लारेन, थैंक्स फौर कौलिंग. हम कल शाम को तुम से मिलते हैं.’’

लारेन के घर पर क्रिस्टी उस से मिला. लारेन का पति घर पर ही था. एक अच्छे नागरिक की तरह उस ने अपनी ओर से मदद करने को कहा. क्रिस्टी ने उस से पूछा कि यदि वह लारेन को ले जाए कुछ देर के लिए, तो क्या वह बच्चों को देख लेगा घर पर? इस पर वह सहर्ष राजी हो गया.

क्रिस्टी अपनी कार में लारेन को ले कर उस दुकान पर गया. दुकान बंद हो चुकी थी. मगर पूछने पर पता चला कि मालिक ऊपर ही रहता है. क्रिस्टी ने बहाना बना कर घंटी बजाई और सीधा सवाल पूछा, ‘‘मुहम्मद है क्या?’’

‘‘यहां तो इस नाम का कोई नहीं है. आप कौन हैं?’’

‘‘उस का पुराना दोस्त हूं. वह यहीं रहता था.’’

‘‘नहींनहीं, आप शायद धोखा खा रहे हैं. हम से पहले यहां एक औरत रहती थी. उस के आदमी के नाम से यह दुकान थी, मगर वह तो कई साल पहले नशे की बुरी लत के कारण मर गया. औरत 3 बेटियों के साथ विधवा हो गई. हालांकि उस ने दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन यह दुकान वही चलाती थी. उस का दूसरा पति यहां आताजाता था, मगर रहता कहीं और था. वह पढ़ता था शायद, उस का भी नाम मुहम्मद नहीं, नासेर था.’’

‘‘क्या वह तुम से कल मिलने आया था?’’

‘‘वह अकसर आ जाता है यहां. इधर उस के देश वाले लोग रहते हैं शायद. कभीकभी दुकान पर भी आ जाता है, मगर हम उस को नहीं जानते. हम लोग पाकिस्तान से हैं और हमारी भाषा उन से नहीं मिलती.’’

फिर कुछ रुक कर पुन: बोला, ‘‘देखो अफसरजी, हम कुछ और नहीं बता पाएंगे, क्योंकि दुकान का सौदा जिस एजेंट के साथ हुआ था वह मर गया. उस का बेटा अपना कारोबार किसी और को बेच कर अमेरिका चला गया. आप को उसी से सब पता चल सकता है.’’

क्रिस्टी को लगा वह व्यक्ति सच बोल रहा है. लारेन से उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पक्के तौर पर लगा कि तुम ने मुहम्मद को देखा है?’’

लारेन ने जिसे देखा था उस की महीन कटी हुई दाढ़ी थी, जबकि मुहम्मद दाढ़ी नहीं रखता. यह सोच कर लारेन असमंजस में पड़ गई. जो मुहम्मद उसे याद था वह इतना मोटा नहीं था जितना कल वाला नासेर. फिर भी क्रिस्टी ने लारेन को तसल्ली दी कि उस की मदद काफी काम आई है.

लारेन को उस के घर छोड़ कर क्रिस्टी वापस चला गया. अगले दिन उस ने मोयरा को उस दुकान के कागजात निकलवाने के लिए भेज दिया. दुकान की पहली मालकिन साफिया नासेर नाम की औरत थी. वह तुर्की की थी जिस की उम्र 42 वर्ष थी.

मगर सवाल यह था कि दुकान बेच कर वह चली कहां गई?

– क्रमश:                                              

वह नीला परदा: भाग-1

जौन एक सफल बैंक अधिकारी रहा था. संस्कारी परिवार के सद्गुणों ने उसे धर्मभीरु व कर्तव्यनिष्ठ बना रखा था. उस के पिता पादरी थे व माता अध्यापिका. शुरू से अंत तक उस का जीवन एक सुरक्षित वातावरण में कटा. नैतिक मूल्यों की शिक्षा, पिता के संग चर्च की तमाम गतिविधियों व बैंक की नौकरी के दौरान जौन ने कोई बड़ा हादसा नहीं देखा. जब तक नौकरी की, वह लंदन में रहा अपने छोटे से परिवार के साथ. फिर इकलौती बेटी का विवाह किया फिर समयानुसार उस ने रिटायरमैंट ले लिया. पत्नी को भी समय से पूर्व रिटायरमैंट दिला दिया था. फिर वह लंदन से 30 मील दूर रौक्सवुड में जा कर बस गया.

रौक्सवुड एक छोटा सा गांव था. हर तरह की चहलपहल से दूर, सुंदरसुंदर मकानों वाला. ज्यादा नहीं, बस, 100 से 150 मकान, दूरदूर छितरे हुए, बड़ेबड़े बगीचों वाले. वातावरण एकदम शांत. घर से आधा मील पर अगर कोई गाड़ी रुकती, तो यों लगता कि अपने ही दरवाजे पर कोई आया है. छोटा सा एक बाजार था,

2-3 छोटेबड़े स्कूल थे और एक चर्च था. हर कोई एकदूसरे को जानता था.

10 वर्षों से जौन यहां रह रहा था. चर्च की सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की उस की पुरानी हौबी थी. दोनों पतिपत्नी सब के चहेते थे. शादी हो या बच्चे की क्रिसनिंग सब में वे आगे बढ़ कर मदद देते थे.

जौन सुबह अंधेरे ही उठ जाता. डोरा यानी उस की पत्नी सो ही रही होती. वह कुत्ते को ले कर टहलने चला जाता. अकसर टहलतेटहलते उसे अपने जानने वाले मिल जाते. अखबार की सुर्खियों पर चर्चा कर के वह 1-2 घंटों में वापस आ जाता.

ऐसी ही अक्तूबर की एक सुबह थी. दिन छोटे हो चले थे. 7 बजे से पहले सूरज नहीं उगता था. 4 दिन की लगातार झड़ी के बाद पहली बार आसमान नीला नजर आया. पेड़ों के पत्ते झड़ चुके थे. जहांतहां गीले पत्तों के ढेर जमा थे. घरों के मालिक जबतब उन्हें बुहार कर जला देते थे.

जौन की आंख सुबह 5 बजे ही खुल गई. उस का छोटा सा कुत्ता रोवर उस का कंबल खींचते हुए लगातार कूंकूं  किए जा रहा था.

‘‘चलता हूं भई, जरा तैयार तो हो लेने दे,’’ जौन ने उसे पुचकारा.

उस की पत्नी दूसरे कमरे में सोती थी. जौन को उस का देर रात तक टीवी पर डरावनी फिल्में देखना खलता था.

जौन ने जूते पहने, कोट और गुलूबंद पहना, हैट पहन कर कुत्ते को जंजीरपट्टा पहना कर वह चुपचाप निकल गया.

 

घर से करीब 1 मील पर जंगल था. करीब 3 वर्गमील के क्षेत्र में फैला यह जंगल इस कसबे की खूबसूरती का कारण था. इसी से गांव का नाम रौक्सवुड पड़ा था. जंगल में चीड़ और बल्ली के पेड़ों के अलावा करीने से उगे रोडोडेंड्रन के पेड़ भी थे, जो वसंत ऋतु में खिलते थे. इन के बीच अनेक ऊंचीनीची ढलानों वाली पगडंडियां थीं, जिन पर लोग साइकिल चलाने का अभ्यास करते थे. कभीकभी कोई छोटी गाड़ी भी दिख जाती थी. चूंकि लोग खाद के लिए सड़ी पत्तियां खोद कर ले जाते थे, इसलिए ढलानों पर बड़ेबड़े गड्ढे भी थे.

जंगल की पगडंडियों पर दूरदूर तक चलना जौन का खास शौक था. 2-4 मिलने वालों को दुआसलाम कर वह अपने रास्ते चलता गया.

सूरज अभी उगा नहीं था, मगर दिन का उजाला फैलने लगा था. जौन जंगल में काफी दूर तक आ गया था. इस हिस्से में कई गड्ढे थे. पत्तियों ने उन गड्ढों को भर दिया था. घने पेड़ों की जड़ों के पास छाया होने के कारण वहां सड़न और काई जमा थी, जिस में कुकुरमुत्तों के छत्ते उगे हुए थे. एक अजीब दुर्गंध हवा में थी, जो सुबह की ताजगी से मेल नहीं खा रही थी.

रोवर दूर निकल गया था. जौन ने सीटी बजाई, मगर उस ने अनसुना कर दिया. जौन उसे पुकारता वहां तक पहुंच गया. सामने कीचड़ व सड़े पत्तों से भरे एक गड्ढे में रोवर अपने अगले पंजे मारमार कर कूंकूं कर रहा था. जौन कहता रहा, ‘‘छोड़ यार, घर चल, वापस जाने में भी घंटा लगेगा अब तो.’’

मगर रोवर वहीं अड़ा रहा. जौन पास चला गया, ‘‘अच्छा बोल, क्या मिल गया तुझे?’’

तभी जौन ने देखा गड्ढे में कीचड़ से सना एक कपड़ा था, जिसे रोवर दांतों से खींचे जा रहा था. कपड़ा मोटे परदे का था, जिस का रंग नीला था. तभी जौन पूरी ताकत से वापस भागा. रोवर को भी वापस आना पड़ा. जौन तब तक भागता रहा, जब तक उसे दूसरा व्यक्ति नजर नहीं आ गया. जौन रुक गया, मगर उस के बोल नहीं फूटे.

अंगरेज अपनी भावनाओं को बखूबी छिपा लेते हैं. जौन ने हैट को छू कर उस से सलाम किया और चाल को सहज कर के वह सीधा घर आ गया. रोवर के साथ होते हुए भी उसे लग रहा था कि जैसे कोई उस के पीछे आ रहा है. घर में घुसते ही उस ने दरवाजा इतनी जोर से बंद किया कि डोरा ऊपर से चिल्लाई, ‘‘कौन है?’’

जौन ने उत्तर नहीं दिया और सोफे पर बैठ गया. डोरा नीचे दौड़ी आई. जौन का चेहरा देख कर वह घबरा गई पर कुछ कहा नहीं. चुपचाप रोवर को बगीचे में भेज कर दरवाजा बंद करने लगी तो जौन ने कहा, ‘‘उसे बंधा रहने दो, नहीं तो जंगल में भाग जाएगा.’’

डोरा की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने वैसा ही किया और रोज की तरह चाय बनाने लगी. चाय की केतली की चिरपरिचित सीटी की आवाज से जौन वापस अपनी दुनिया में लौट आया और उस ने पास ही रखे फोन पर सीधा 999 नंबर मिलाया. पुलिस को अपना पता दे कर जल्दी आने को कहा.

पुलिस 10 मिनट में ही पहुंच गई. जौन ने पुलिस वालों को बताया कि उसे शक है कि जंगल में एक गड्ढे में कीचड़ में डूबी कोई लाश है. पुलिस को समझते देर नहीं लगी. हवलदार ने उस से संग चल कर दिखाने के लिए कहा, तो जौन को उलटी आ गई.

हवलदार समझदार आदमी था. वह समझ गया कि 75 वर्षीय जौन, जो दफ्तर की कुरसी पर बैठता आया था, इतना कठोर न था कि इस तरह के हादसे को सहजता से पचा लेता.

फिर भी उस ने कोशिश की. जौन से कहा, ‘‘कुछ दिशा, रास्ता आदि समझा सकते हो?’’

जौन को उगता सूरज याद आया, जिस से उस ने दिशा का अंदाजा लगाया. फिर कुकुरमुत्तों के झुरमुट याद आए और वह दुर्गंध जो पिछले 2 घंटे से उस के समूचे स्नायुतंत्र को जकड़े हुए थी और उसे बदहवास कर रही थी. फिर जौन को दोबारा उलटी आ गई.

हवलदार ने अंत में अपने एक सहायक सिपाही से कहा कि वह इंस्पैक्टर क्रिस्टी को ले कर आए, शायद यहां कोई हत्या का मामला है.

आननफानन हत्या परीक्षण दल अपने कुत्तों को ले कर आ पहुंचा. जौन थोड़ा संभल गया था. इंस्पैक्टर क्रिस्टी का स्वागत करते हुए उस ने सारी बात फिर से सुनाई.

क्रिस्टी ने पहला काम यह किया कि उस ने अपने कुत्ते को जौन के पास ले जा कर सुंघवाया. इस के बाद रोवर को भी अंदर लाया गया और पुलिस के कुत्ते ने उसे भी अच्छी तरह सूंघा, खासकर उस के अगले पंजों को. इस के बाद क्रिस्टी और उस का दल अपने कुत्ते को मार्गदर्शक बना कर जौन के बताए रास्ते पर निकल पड़े.

 

अगले 1 घंटे में ही पुलिस का एक भारी दस्ता अनेक उपकरण ले कर उस स्थान पर पहुंच गया और उस ने गड्ढे में से सड़ीगली एक स्त्री की लाश बरामद की, जिसे पता नहीं कितने महीनों पहले एक परदे में लपेट कर कोई वहां फेंक गया था. लाश का सिर गायब था और दोनों हाथ भी. परदे का रंग समुद्री नीला था, जो अब बिलकुल बदरंग हो गया था. कुत्तों की मदद से अधिकारियों ने जंगल का कोनाकोना छान मारा, मगर उस का सिर और हाथ नहीं मिले.

लाश को शव परीक्षण के लिए भेज दिया गया. जौन हफ्ता भर अस्पताल में रहा. स्थान बदलने की खातिर उसे पास के बड़े शहर वोकिंग में ले जाया गया. कुछ ही हफ्तों में उस ने वहीं दूसरा मकान ले लिया और रौक्सवुड छोड़ दिया.

शव परीक्षण से जो तथ्य सामने आए उन से पता चला कि स्त्री की हत्या किसी आरी जैसी चीज से गला काट कर की गई थी. मरने वाली भारतीय या अन्य किसी एशियाई देश की थी. उस के पेट पर मातृत्व के निशान थे. मृतका की उम्र 30 से 40 वर्ष ठहराई गई.

क्रिस्टी ने फाइल को मेज पर रखते हुए आवाज दी, ‘‘मौयरा.’’

‘‘यस डेव.’’

‘‘पिछले 3 सालों की खोई हुई स्त्रियों की लिस्ट निकलवाओ. हमें एक एशियन या ग्रीक जाति की थोड़ी हलके रंग की चमड़ी वाली स्त्री की तलाश है. उस का कद 5 फुट 3 से 5 इंच का हो सकता है. न बहुत मोटी, न पतली.’’

करीब 45 साल की मौयरा पिछले 15 सालों से डेविड क्रिस्टी की सेक्रेटरी है. क्रिमिनल ला में उस ने स्नातक किया था.

पूरे दिन की छानबीन के बाद भी कोई सुराग नहीं मिला. देश भर की सभी पुलिस चौकियों को इत्तिला भेज दी गई, मगर परिणाम कुछ नहीं निकला.

क्या वह कोई टूरिस्ट थी या किसी की मेहमान? हो सकता है कि उसे लूटपाट कर मार डाला गया हो. एशियन स्त्रियां अकसर कीमती गहने पहनती हैं. बाहर से आए आगंतुकों की पूरी जानकारी पासपोर्ट चैक करते समय रजिस्टर में दर्ज होती है. हीथ्रो एअरपोर्ट की पुलिस से पूछताछ की गई. अनेक नाम, अनेक देश, अनेक ऐसी स्त्रियां पिछले 3 सालों में ग्रेट ब्रिटेन में आईं.

लिस्टें महीने व साल के हिसाब से मौयरा के पास पहुंचीं. पासपोर्ट के फोटो सिर्फ चेहरे के होते हैं बाकी शरीर के नहीं और इस केस में सिर तो गायब ही था. ऐसे में चेहरा कहां देखने को मिलता, जिसे पासपोर्ट फोटो के साथ मैच किया जाता. खोए हुए पासपोर्ट भी गंभीरता से ढूंढ़े गए, मगर कोई सूत्र हाथ नहीं आया.

क्रिस्टी ने कहा, ‘‘अगर मेहमान थी तो 6 महीने के बाद जरूर वापस गई होगी अपने देश. जो वापस चली गईं उन को छोड़ दो, मगर जो वापस नहीं गईं उन की लिस्ट जरूर वीजा औफिस में होगी, क्योंकि वे अवैध नागरिक बन कर यहीं टिक गई होंगी.’’

3-4 दिन बाद वीजा औफिस से जवाब आ गया. ऐसी स्त्रियों में कोई भी लाश से मिलतीजुलती नहीं मिली.

आखिर डेविड क्रिस्टी ने फाइल बंद कर दी.

 

उसी दिन शाम को जौन का फोन आया. पूछा, ‘‘मि. क्रिस्टी, आप की तहकीकात कैसी चल रही है?’’

‘‘कुछ खास नहीं, कपड़े सड़गल गए हैं. न केश, न नाखून, न फिंगरप्रिंट, न दांत. किस आधार पर तहकीकात करूं?’’

‘‘मैं ने तो और कुछ नहीं बस वह नीला परदा देखा था, जो उस के बदन को ढके हुए था.’’

‘‘जौन, तुम परेशान क्यों होते हो. इस देश में हर महीने एक लड़की की हत्या होती है. लड़कियों को आजादी तो दे दी, मगर हम क्या उन्हें सुरक्षा दे सके? शायद पिछड़ी हुई सभ्यताओं में ठीक ही करते हैं कि स्त्रियों को घर से बाहर ही नहीं जाने देते.’’

‘‘परेशानी मुझे नहीं तो और किसे होगी. जब भी घर के अंदर घुसता हूं, तो लगता है कि वह मेरे पीछे भागी आ रही है और मैं ने उस के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया.’’

‘‘जौन, ऐसा है तो कुछ दिन किसी दूसरे देश में पत्नी के साथ हौलीडे मना कर आ जाओ और किसी अच्छे मनोरोगचिकित्सक को दिखा लो.’’

‘‘मुझे लगता है कि वह हम से न्याय मांग रही है.’’

‘‘हां, तुम चर्च में जाने वाले धर्मभीरु इंसान हो, मगर याद रखो मर कर कोई वापस नहीं आया. शांतचित्त हो कर सोचो, साहसमंद बनो, अपना खयाल रखो. तुम अगर विचलित होगे तो डोरा का क्या होगा?’’ कहने को तो क्रिस्टी बोल गया, मगर उस के मन में वह नीला परदा कौंध गया. उस ने उस परदे की बारीकी से छानबीन की, तो अंदर की तरफ एक लेबल मिल गया जिस पर कंपनी का नाम था.

‘‘मौयरा, देखो इस परदे की मैन्युफैक्चर कंपनी का नाम.’’

‘‘उस से क्या होगा. कंपनी ने कोई एक परदा तो बनाया नहीं होगा.’’

‘‘चलो, कोशिश करने में क्या हरज है.’’

मौयरा ने परदे बनाने वाली कंपनी को पत्र लिखा तो उत्तर मिला कि यह परदा 20 वर्ष पहले बना था, उन की कंपनी में. रिटेल में बेचने वाली दुकान का नाम ऐक्सल हाउजलिनेन स्टोर था. पर इस स्टोर की बीसियों ब्रांचें पूरे देश में फैली हुई थीं. सहायता के तौर पर उन्होंने अपने बचेखुचे स्टौक में से ढूंढ़ कर वैसा ही एक परदा क्रिस्टी को भेज दिया. उस स्टोर की एक भी ब्रांच इस क्षेत्र में नहीं थी. एक ब्रांच 40 मील दूर पर मिल ही गई, तो उन्होंने अपने सब रिकौर्ड उलटेपलटे और बताया कि परदा करीब 15 साल पहले बिका होगा. इस के बाद उस की बिक्री बंद हो गई थी, क्योंकि सारा माल खत्म हो गया था.

क्रिस्टी ने पुलिस फाइल के विशेष कार्यक्रम में कंपनी द्वारा भेजे गए परदों को टैलीविजन पर प्रस्तुत किया और जनता से अपील की कि अगर वे किसी को जानते हों, जिस के पास ऐसे परदे हों तो वे पुलिस की सहायता करें. उस ने किसी खोई हुई स्त्री का पता देने की भी मांग की. परदा 6 फुट लंबा था, जो किसी ऊंची खिड़की या दरवाजे पर टंगा हो सकता है.

एपसम में एक कार बूट सेल लगती है. दूरदूर से लोग अपने घरों का पुराना सामान कार के बूट में भर कर ले आते थे और कबाड़ी बाजार में बेच कर लौट जाते हैं. अकसर इस में कुछ पेशेवर कबाड़ी भी होते हैं. ऐसी ही एक कबाड़ी थी मार्था. उस का आदमी बिके हुए सामान खरीद लेता था. उस की एक सहेली थी शीला. शीला भी यही काम करती थी, मगर वह बच्चों के सामान यानी पुरानी गुडि़यां, फर के खिलौने, बच्चों के कपड़े आदि की खरीदारी करती थी.

पुलिस फाइल का प्रोग्राम लगभग सभी स्त्रियां देखती हैं. मार्था 1 हफ्ते की छुट्टी पर ग्रीस चली गई थी. लौट कर आई तो शीला का फोन आया, ‘‘मार्था, तू बड़ी खुश हो रही थी न कि तेरे पुराने परदे 10-10 पाउंड में बिक गए. ले देख, उन का क्या किया किसी खरीदार ने. पुलिस को तलाश है उन की. साथ ही, किसी खोई हुई औरत की भी. मुझे तो लगता है जरूर कोई हत्या का मामला है.’’

‘‘परदों से हत्या का क्या संबंध, अच्छेभले तो थे लेबल तक लगा हुआ था. मैं ने बेचे तो क्या गुनाह किया?’’

‘‘नहीं, वह तो ठीक है, मगर पुलिस क्यों पूछेगी? कुछ गड़बड़ तो है. तुझे फोन कर के उन्हें बताना चाहिए.’’

‘‘मैं ने बेच दिए, बाकी मेरी बला से. खरीदने वाला उन को क्यों खरीद रहा है, मुझे इस से क्या मतलब? चाहे वह उस का गाउन बना कर पहने, चाहे पलंग पर बिछाए, चाहे घर में टांगे उस की मरजी.’’

अगली बार फिर पुलिस फाइल पर अपील की गई. अब मार्था विचलित हो उठी. उस ने फोन उठा कर दिए हुए नंबर पर फोन मिलाया.

बात करने वाला कोई बेहद शालीन मृदुभाषी व्यक्ति था. मार्था ने बताया, ‘‘कुछ महीने पहले उस ने बिलकुल ऐसे ही 6 फुट लंबे परदे बेचे थे. खरीदने वाली कोई औरत थी और दूर से आई थी. उस ने परदे के दामों पर हुज्जत की थी, इसलिए मुझे कुछकुछ याद है.’’

‘‘बता सकती हो वह देखने में कैसी थी?’’

‘‘रंग गोरा था और उस ने सिर पर रूमाल बांधा हुआ था. शायद तुर्की या ईरानी होगी. उस ने यह भी कहा था कि वह दूर से आई थी शायद बेसिंग स्टोक से.’’

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, इतना भी क्लू मिल जाए तो हमारा काम आसान हो जाता है. आप इस बारे में चुप रहें तो अच्छा. कोई भी तहकीकात चुपचाप ही की जाती है.’’

‘‘मैं अब चैन से सो सकूंगी,’’ कह कर मार्था ने फोन रख दिया.

 

क्रिस्टी ने अपनी खोज बेसिंग स्टोक और उस के आसपास के इलाके में सीमित कर ली. परदों के बेचने का समय हत्या के समय से लगभग मिलता था.

फिर भी यह भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने जैसा ही था. तथ्यों से अभी वह कोसों दूर था. कैनवास अभी गीला ही था. किसी भी रंग की लकीर खींचो वह फैल कर गुम हो रही थी.

फिर से जौन का फोन आ गया. पूछा, ‘‘डेविड क्रिस्टी है क्या?’’

‘‘बोल रहा हूं. कौन है?’’

‘‘मैं जौन, पहचाना?’’

‘‘अरे हां, खूब अच्छी तरह, ठीक हो?’’

‘‘नहीं, अस्पताल में रह कर आया हूं.

मुझे फिर से वही बेचैनी और फोबिया तंग कर रहा था. डाक्टर ने मुझे ट्रैंक्विलाइजर पर रखा कुछ दिन और मेरा सुबह का घूमना बंद करवा दिया. अब मैं करीब 10-11 बजे डोरा के साथ टहलने जाता हूं, वह भी भरे बाजार में. कुत्ते को ले कर डोरा जाती है या चर्च का कोई जानने वाला. नया शहर है यह, तो भी न जाने कैसी दहशत बैठ गई है.’’

‘‘देखो, मैं इसी पर काम कर रहा हूं. तुम बेफिक्र रहो.’’

डेविड क्रिस्टी मार्था की बातें सोचता रहा. अगले पुलिस फाइल के प्रोग्राम में उस ने एक खिड़की का अनुमानित चित्र पेश किया, जिस पर नेट का परदा लगा था और दोनों ओर हूबहू वैसे ही नीले परदे डोरी से बंधे सुंदरता से लटक रहे थे.

इस फोटो के साथ ही उस ने जनता से अपील की कि यदि वह ऐसी किसी खिड़की को देखा हो तो उसे सूचित करें.

इस प्रोग्राम के बाद उसे एक स्त्री का फोन आया. इत्तफाक से वह बेसिंग स्टोक से ही बोल रही थी, ‘‘इंस्पैक्टर क्रिस्टी, मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’

बेसिंग स्टोक का नाम सुनते ही क्रिस्टी तुरंत उठ खड़ा हुआ. फौरन अपनी सेक्रेटरी मौयरा को ले कर वह बताए हुए पते पर पहुंच गया.

 

वह एक सुंदर सा मकान था, जो 3 ओर से बगीचे से घिरा हुआ था. चौथी ओर फेंस यानी बांस की चटाईनुमा दीवार थी.

क्रिस्टी ने घंटी बजाई तो किसी ने थोड़ा सा दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं इंस्पैक्टर क्रिस्टी और यह है मेरी सहायिका मौयरा. हमें बुलाया गया है,’’

कह कर क्रिस्टी ने अपना पुलिस का बैज दिखाया.

उत्तर में स्त्री ने दरवाजा पूरा खोल दिया और स्वागत की मुद्रा में एक ओर सरक गई, ‘‘प्लीज, कम इन. मैं जैनेट हूं. पेशे से नर्स हूं.’’

क्रिस्टी और मौयरा अंदर दाखिल हुए. जैनेट ने उन्हें बैठाया.

‘‘आप ने मुझे फोन क्यों किया?’’

‘‘इंस्पैक्टर, मैं बिलकुल अकेली रहती हूं. नर्स हूं और फ्रीलांस काम करती हूं, एजेंसी के माध्यम से. अकसर मुझे यूरोप भी जाना पड़ता है. कईकई महीने मुझे बाहर रहना पड़ता है. आप तो देख ही रहे हैं कि मेरा घर 3 तरफ से यह पूरी तरह असुरक्षित है. इसलिए मेरे मित्रों ने सलाह दी कि मैं कोई किराएदार रख लूं ताकि घर की सुरक्षा रहे.’’

‘‘वाजिब बात है. ऐसा तो अनेक लोग करते हैं.’’

‘‘इसलिए मैं ने अखबार में इश्तिहार दे दिया था. जवाब में जो लोग आए उन में एक स्मार्ट सी एशियन लड़की भी थी, जो काफी पढ़ीलिखी थी. वह भी बिलकुल अकेली थी. बातचीत से वह भली लगी, इसलिए मैं ने उसे चुन लिया. उस का नाम फैमी था और वह मोरक्को की रहने वाली थी. यहां वह स्टूडैंट बन कर आई थी, फिर यहीं नौकरी मिल गई और स्थाई रूप से बस गई. पिछले क्रिसमस पर वह अपने देश छुट्टियां मनाने गई, मगर वापस नहीं लौटी.’’

‘‘उस का कोई पत्र आया आप के पास?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस ने जाते समय अपने घर का पता दिया था आप को?’’

‘‘नहीं, वह कम बोलने वाली और खुशमिजाज लड़की थी. शायद वह वहीं रह गई हो सदा के लिए.’’

‘‘ऐसा कम ही होता है पर चलो मान लेते हैं. लेकिन आप ने मुझे क्यों बुलाया?’’

‘‘दरअसल, जब वह नहीं लौटी तो मैं ने कमरा खाली कर दिया और उस का सारा सामान इकट्ठा कर के रख दिया. आजकल उस कमरे में एक फ्रैंच स्टूडैंट रहता है.’’

‘‘सब कुछ ठीक है. इस में इतना घबराने और पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘आप लोगों ने जो खिड़की का फोटो और नीला परदा दिखाया था, उसी को देख कर मैं ने फोन किया. फैमी का जो सामान मैं ने पैक कर के बक्से में रखा, उस में उस का एक चित्र भी है, जिस में वह 2-3 साल के एक बच्चे के साथ वैसी ही खिड़की या दरवाजे के पास बैठी है. आप का चित्र देख कर मैं ने फोन कर दिया.’’

‘‘क्या वह चित्र दिखा सकती हैं मुझे?’’

‘‘हां, मैं ने सामान नीचे उतरवा लिया था.’’

– क्रमश:                             

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