Social Media : सोशल मीडिया पर क्या देखें क्या सुनें, कौन तय करेगा ?

Social Media : सोशल मीडिया पर इन दिनों यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया को ले कर जबरदस्त बहस चल रही है. लोगों में उन के बयान को ले कर काफी आक्रोश है. उन्हें ले कर ट्रोलिंग रुकने का नाम नहीं ले रही है. रणवीर ने इस शो में एक प्रतिभागी से मातापिता के निजी संबंधों को ले कर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिस में समय रैना और अपूर्वा माखीजा ने भी उन का साथ दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए रणवीर ने इस बात के लिए माफी मांग ली और कहा कि मेरा कमैंट सही नहीं था और फनी भी नहीं था. कौमेडी मेरी विशेषज्ञता नहीं है. मैं इस का कोई स्पष्टीकरण नहीं दूंगा. मैं बस माफी मांगना चाहता हूं.

रणवीर के इस बयान पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि फ्रीडम औफ स्पीच सभी को है लेकिन हमारी आजादी वहां समाप्त हो जाती है जहां हम किसी और की आजादी का अतिक्रमण करते हैं. सब से बड़ी बात यह कि इस कंटैंट को एडल्ट भी नहीं बताया गया है, इसे बच्चे भी आसानी से देख सकते हैं जो सही नहीं है.

वहीं शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने चेतावनी देते हुए कहा कि वे ‘इंडियाज गाट लेटैंट’ शो को आईटी और कम्युनिकेशन से जुड़ी संसद की स्थाई समिति के सामने ले जाएंगी. उन्होंने लिखा कि कौमेडी के नाम पर जिस तरह के अपशब्द और अश्लील बातें की जाती हैं, इस के लिए हमें एक हद तय करनी होगी क्योंकि ऐसे शो युवाओं के दिमाग को प्रभावित करते हैं और ऐसे शो पूरी तरह से बकवास कंटैंट मुहैया कराते हैं.

कम उम्र में कामयाबी

बता दें कि रणवीर इलाहाबादिया एक यूट्यूबर हैं और वे ‘बीयरबाइसैप्स’ के नाम से यह शो करते हैं. इस शो में वे देश की कई नामचीन हस्तियों का इंटरव्यू कर चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 2024 में नैशनल अवार्ड से सम्मानित किया था. 2022 में उन्हें फोबर्स अंडर 30 एशिया सूची में शामिल किया था. रणवीर ने 22 साल की उम्र में अपना पहला यूट्यूब चैनल खोला था और आज वे 7 चैनलों का संचालन कर रहे हैं. इन के 1 करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर हैं.

कौमेडियन कपिल शर्मा का भी एक पुराना वीडियो 2023 का वायरल हो रहा है, जिस में सैलिब्रिटी और क्रिकेट के कई सितारे गैस्ट के रूप में पहुंचे थे. ऐपिसोड की शुरुआत में कपिल शर्मा ने मजाकिया अंदाज में कहा था कि हमारे देश में 2 चीजों का बड़ा क्रेज है- एक फिल्में और दूसरा क्रिकेट. कई बच्चे सुबह 4 बजे पढ़ाई के लिए भले न उठ पाएं लेकिन क्रिकेट मैच देखने के लिए 2 बजे रात को उठ जाते हैं और फिर मांबाप की कबड्डी देख कर सो जाते हैं.

यह कौन तय करता है

हम जब किसी रैस्टोरैंट या होटल में खाना खाने जाते हैं तब हमें एक मेन्यू दिया जाता है और उसे देख कर हम तय करते हैं कि हमें अपने खाने में क्या और्डर करना है. किसी की कोई जबरदस्ती नहीं होती कि हमें यही खाना है. वैसे ही टैलीविजन का रिमोट कंट्रोल और स्मार्टफोन हमारे हाथ में होता है. हमें क्या देखना है, क्या नहीं देखना है, यह तय करने का अधिकार केवल हमारे पास होना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी पसंद, रुचि और सोचनेसम?ाने की क्षमता अलग होती है. एक स्वतंत्र समाज में लोगों को यह तय करने की पूरी आजादी है कि वे क्या देखे और क्या सुनें.

हालांकि कुछ सीमाएं भी होती हैं जैसेकि अगर कोई चीज हिंसा भड़काने वाली हो, नफरत फैलाने वाली हो या समाज में अराजकता उत्पन्न करने वाला हो तो वहां सरकार या समाज की जिम्मेदारी बनती है इसे रोकने की. लेकिन इस का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सरकार या समाज व्यक्ति की पसंद पर पूरी तरह से नियंत्रण कर ले. सरकार का काम केवल यह सुनिश्चित करना है कि कोई सामग्री कानून और नैतिकता की सीमाओं को न लांघे न कि यह तय करना है कि लोग क्या देखें और क्या सुनें.

नया नहीं है कौमेडी में अश्लीलता का तरीका

यह बात सही है कि रणवीर इलाहाबादिया ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दीं लेकिन कौमेडी शो में अश्लीलता का तरीका कोई नई बात नहीं है. यहां तक कि लोगों को यह मनोरंजक ही लगता है, साइकोलौजी में इसे खास जगह मिली हुई है. मनोविज्ञान की एक टर्म है, रिलीज या रिलीफ थ्योरी. इस में लोग वे बातें करते हैं, जिन्हें करना या सुनना आमतौर पर वर्जित है. जाहिर है टैबू सब्जैक्ट पर बात यों ही तो नहीं होगी. लिहाजा, इसे कौमेडी की परत में लपेट कर परोसा और सुना जाता है खासकर स्टैंडअप या मौडर्न कौमेडी में.

कौमेडी में अश्लील कंटैंट का घालमेल मनोविज्ञान में भी स्वीकार्य है. इस के लिए कई सारी टर्म्स हैं जो मानती हैं कि रिस्ट्रिक्टेड बातों पर मजाक के बहाने चर्चा होनी चाहिए. इसे टैबू ह्यूमर भी कहते हैं.

जरूरी है हंसना और हंसाना

रिलीज थ्योरी की बात सब से पहले मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने 1905 में की थी. अपनी किताब ‘जोक्स ऐंड देयर रिलेशन टू द अनकौंशस’ में फ्रायड ने लिखा है कि हंसने से ब्रेन में जमती साइकिक ऐनर्जी बाहर निकलती है. अकसर हमारे दिमाग में कई ऐसी चीजें जमा रहती हैं, जिन पर चर्चा को सामाजिक तौर पर गलत माना जाता है. लेकिन कौमेडी के बहाने हम उस पर मजाक करते और सुनते हैं, जिस से दोनों ही पक्षों का तनाव कम हो जाता है और दिमाग काफी हलकाफुलका महसूस करता है.

यह वर्जित विषय यौन संबंध या भावनाओं से ले कर समाज की गैरबराबरी तक कुछ भी हो सकता है. लेकिन नैतिक पाबंदियों के चलते हम इन पर बात नहीं कर पाते बल्कि सोच का ढक्कन लगा कर रखते हैं. वहीं कौमेडी में यह कैप हटा दिया जाता है. चूंकि यह सीधे अचेतन मन को आराम देता है, यही वजह है कि सैक्सुअल या डार्क ह्यूमर को बेहद असरदार पाया जाता रहा है.

क्या कहती है साइंस

साइंस कहती है कि जब हम किसी सैक्सुअल जोक पर हंसते हैं तो ब्रेन में डोपामिन, ऐंडोर्फिंस और औक्सिटोसिन जैसे हारमोन निकलते हैं. ये फील गुड हारमोंस हैं जो स्ट्रैस कम करते हैं. इन के अलावा इन से मस्तिष्क के फ्रीफ्रंटल कौंटैक्स में हलचल होती है जो सीधे रिवोर्ड सिस्टम से जुड़ा है. 2017 में मनोवैज्ञानिक ‘जर्नल इवौल्युशनरी साइकोलौजी’ में एक रिसर्च छपी थी, जिस के मुताबिक डार्क ह्यूमर लोगों को एकदूसरे के करीब भी लाता है.

कुल मिला कर इस तरह की कौमेडी एक तरह की सेफ बगावत है जिस में प्रतिबंधित चीजों पर बात भी हो जाए और हमारी छवि पर भी कोई असर न पड़े.

यही वजह है कि दशकों से इस तरह की कौमेडी होती रही है. देश के कई हिस्सों में आज भी महिलाएं शादीब्याह में ऐसे गीत गाती हैं जो आमतौर पर काफी अश्लील माने जाते हैं. लेकिन उस माहौल में और गीतसंगीत की शक्ल में बेहद मजेदार लगते हैं. इस में शौक वैल्यू भी होती है जो एकदम से सामने आ कर चौंकाती और हंसाती है.

कब मिलने लगी ऐसे कंटैंट को मान्यता

70 के दशक में कौमेडी की शुरुआत अमेरिका में हुई लेकिन तब मजाक इतने बोल्ड नहीं हुआ करते थे बल्कि पारिवारिक ह्यूमर के बीच कहींकहीं थोड़ीबहुत अश्लीलता का तरीका होता था. 90 के दशक में ऐसा ह्यूमर पूरी तरह से मेन स्ट्रीम हो गया. ओटीटी के दौर में नो फिल्टर कौमेडी आने लगी जो काफी बोल्ड होती थी और लोगों को पचा पाना मुश्किल था. यही समय था जब हमारे यहां भी स्टैंडअप कौमेडी के चलन के साथ मजाकमस्ती होने लगी. लेकिन आज पेटी के नीचे और मांबाप के संबंधों पर मजाक होने लगा है.

रणवीर इलाहाबादिया की आपत्तिजनक टिप्पणी पर जहां कई लोगों ने इसे काफी शर्मनाक बताया, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस से ज्यादा आपत्तिजनक चीजें तो ओटीटी पर दिखाई जाती हैं.

पहले भी विवादों में रहा यह शो

‘इंडियाज गौट लेटैंट’ शो पहली बार विवादों में नहीं आया है. इस से पहले भी कई आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए यह विवादों में रह चुका है. इसी शो में अरुणाचल प्रदेश के लोगों के कुत्ते का मांस खाने के बारे में टिप्पणी की गई थी. इस के अलावा दीपिका पादुकोण की प्रैगनैंसी और डिप्रैशन का मजाक बनाया गया था.

2021 में रणवीर महिलाओं के कपड़ों पर सैक्सीएस्ट कमैंट करने की वजह से सोशल मीडिया पर बुरी तरह से ट्रोल हुए थे. हम क्या देखें और क्या सुनें यह केवल हम तय कर सकते हैं और कोई नहीं.

Relationship Tips : घरवाले किसी ओर से मेरी शादी करना चाहते हैं, लेकिन मेरा प्यार कोई और है?

Relationship Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 20 वर्षीय युवती एक युवक से प्यार करती हूं, लेकिन पिछले महीने मेरे घर वालों ने मेरी सगाई एक अन्य युवक से कर दी जो अच्छाखासा सैटल है. मैं ने मां से कहा भी पर वे नहीं मानीं, कारण था मेरे बौयफ्रैंड का सैटल न होना. बौयफ्रैंड से मेरे शारीरिक संबंध भी हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?

जवाब

जब आप किसी से प्यार करती हैं तो उस से शादी के लिए भी पहले से घर में बता कर रखना चाहिए था, साथ ही आप के बौयफ्रैंड को भी चाहिए था कि वह जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा हो ताकि आप का हाथ मांग सके, तिस पर आप इतनी आगे बढ़ गईं कि शारीरिक संबंध भी बना लिए.

‘खैर, जब प्यार किया तो डरना क्या.’ आप के सामने लक्ष्य है उसे भेदिए. सब से पहले अपने बौयफ्रैंड से सैट होने को कहिए, हो सके तो उस की मदद कीजिए. आप भी अपनी कोशिश कर  कोई जौब इत्यादि कीजिए, इस से आप घर में बता सकती हैं कि हम दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी चला लेंगे. मातापिता लड़की के सुरक्षित भविष्य को ले कर आश्वस्त होंगे तो अवश्य मान जाएंगे आप के रिश्ते को.

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शादी से पहले शारीरिक संबंध में बरतें सावधानी

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं. विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

युवती का विवाह यदि अन्यत्र हो जाता है और वैवाहिक जीवन ठीकठाक चलता रहता है, घर में बच्चे भी आ जाते हैं, लेकिन यदि भविष्य में बच्चों को अपनी मां के किसी दूसरे पुरुष से संबंधों के बारे में पता चले तो उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचेगा, खासकर तब जब बच्चे टीनएज में हों. मां के प्रति उन के मन में घृणा व उन के बौद्धिक विकास पर भी इस का असर पड़ता है.

इन संबंधों के कारण कई बार पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक विवाद व लड़ाईझगड़े भी हो जाते हैं, जिन में युवकयुवती के अलावा कई और लोगों की जानें जाती हैं. इस के बावजूद यदि युवकयुवती शारीरिक संबंध बना लेने का निर्णय कर ही लेते हैं, तो गर्भनिरोधक विशेषकर कंडोम का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इस से गर्भधारण व यौन संक्रमण का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Famous Hindi Stories : सत्यमेव जयते – त्रिपाठी जी कैसे वकील थे

Famous Hindi Stories : एकाएक मुझे अपने शरीर में ढेरों कांच के पैने टुकड़ों की चुभन की पीड़ा महसूस हुई. लड़कों ने क्या पड़ोसी धर्म निभाया है. मेरे मुंह से हठात निकला, ‘‘लगता है क्रिकेटर लक्ष्मण बनने की शुरुआत ऐसे ही होती है.’’

तभी पड़ोसी ने सांत्वना दी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप कार में नहीं बैठे थे. अब छोडि़ए, अड़ोसपड़ोस के बच्चे हैं. उन्हें हम लोग प्रोत्साहन नहीं देंगे तो कौन देगा और बच्चे खेलें भी तो कहां खेलें.’’

प्रोत्साहन? मैं खून का घूंट पी कर रह गया और सोचा, जब तक अपने पर नहीं बीतती, स्थिति की गंभीरता का अनुभव नहीं होता, दूसरे की चुभन का एहसास नहीं होता.

‘‘गाड़ी का दुर्घटना बीमा है न?’’

‘बीमा,’ यह शब्द सुनते ही मुझे अचानक डूबते को तिनके का सहारा जैसा एहसास हुआ.

‘‘हां है. 5 साल से है. अभी एक सप्ताह पहले ही पालिसी का नवीनीकरण कराया है.’’

‘‘फिर क्या चिंता है?’’

क्या चिंता है, सुन कर मैं चौंका. पैसा किसी का भी जाए, नुकसान तो नुकसान है और कोई भी नुकसान चिंता का विषय होना ही चाहिए.

देखते ही देखते अड़ोसपड़ोस के बच्चे मेरे आसपास जमा हो गए.

‘‘क्या हुआ अंकल?’’

‘‘ओह शिट.’’

बच्चे मेरे मुंह से निकले शब्दों की अनसुनी कर बोले, ‘‘आप एक किनारे हो जाइए अंकल, हम कांच साफ कर देते हैं. आप ऐसे में बैठेंगे कैसे?’’

आननफानन में बच्चों ने कांच के टुकड़े साफ कर दिए. शायद वे प्रायश्चित्त कर रहे थे या फिर अपने अच्छा नागरिक होने का परिचय दे रहे थे.

लगभग 10 बज रहा था. सोचा, बीमा कंपनी का आफिस खुल गया होगा, वहां चल कर दुर्घटना की सूचना दे दूं. उन्हें दुर्घटना हुई कार को देखने का अवसर भी मिल जाएगा. यदि बिना दिखाए ‘विंड स्क्रीन’ बदलवा लूंगा तो वह विश्वास नहीं करेंगे. फिर कुछ कागजी काररवाई भी करनी होगी.

आफिस खुल चुका था पर संबंधित अधिकारी नहीं आया था. वहां अधिकारी के इंतजार में मैं साढ़े 12 बजे तक बैठा रहा. वह आया, आते ही कुछ फाइलों में खो गया और 15-20 मिनट तक खोया ही रहा.

फिर मेरी ओर देख कर बोला, ‘‘कहिए, आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

मैंने अपनी समस्या उसे बताते हुए कहा, ‘‘मैं दुर्घटनाग्रस्त कार लाया हूं. आप देख लीजिए…’’

‘‘कार देखने का काम तो सर्वेयर करता है,’’ वह अधिकारी बोला, ‘‘वह अभीअभी कहीं सर्वे करने निकल गया है. वैसे मैं भी देख सकता हूं किंतु गाड़ी को सीधे देखने का नियम नहीं है. ऐसा कीजिए, किसी गैराज से खर्चे का एस्टीमेट (अनुमान) ले कर आइए. उस के बाद ही हम कार देखेंगे.’’

मेरी समझ में नहीं आया कि एस्टीमेट जब गैराज वाला देगा तो सर्वेयर क्या देखेगा? और एस्टीमेट से पहले कार देखने व उस का फोटो लेने में क्या हर्ज है.

‘‘देखिए, टूटे हुए विंड स्क्रीन के साथ गाड़ी चलाना खासा मुश्किल होता है ऐसे में आप कह रहे हैं कि पहले गाड़ी ले कर मैं गैराज जाऊं फिर वहां से एस्टीमेट ले कर आप के पास आऊं.’’ मैं ने उस अधिकारी को समझाने का प्रयास किया.

‘‘क्या किया जाए. नियमों से हम सब बंधे हैं. ‘क्लेम’ लेना है तो कष्ट तो उठाना ही होगा. घर बैठेबैठे तो क्लेम मिलने से रहा.’’

‘‘यह तो मैं भी देख रहा हूं कि आप के नियम दौड़ाने के नियम हैं. अगले को इतना दौड़ाया जाए, इतना दौड़ाया जाए कि वह ‘क्लेम’ के विचार से ही तौबा कर ले. जो हो आप रिपोर्ट तो लिख लीजिए.’’

‘‘जी हां. आप फार्म भर दीजिए.’’

फार्म भर कर मैं गैराज गया. फिर अगले दिन एस्टीमेट बना. चूंकि उस दिन शनिवार था इसलिए बीमा कंपनी का आफिस बंद था. बात सोमवार तक टल गई.

सोमवार का दिन आया. वह महाशय भी ड्यूटी पर आए थे किंतु कैमरा खराब हो गया. मंगल को कैमरा ठीक हुआ. कार का फोटोग्राफ खींचा गया किंतु आपत्ति के साथ.

‘‘आप ने टूटा हुआ कांच तो साफ कर दिया. फोटो में अब टूटा हुआ कांच कैसे आएगा?’’ अधिकारी ने कहा.

‘‘टूटे कांच के साथ कोई कार कैसे चला सकता है?’’ मैं ने उन्हें समझाने का प्रयास किया.

‘‘आप अपनी परेशानी बता रहे हैं पर मेरी परेशानी नहीं समझ रहे?’’ अधिकारी बोला, ‘‘फोटो में टूटा हुआ विंड स्क्रीन दिखना जरूरी है अन्यथा विंड स्क्रीन निकलवा कर कोई भी डैमेज क्लेम कर सकता है.’’

‘‘देखिए, अब आप हद से बाहर जा रहे हैं. पहले दिन जब मैं कार में आया था तो विंड स्क्रीन टूटा हुआ था किंतु तब आप ने विंड स्क्रीन देखा नहीं और अब…’’

मेरी बात को बीच में काट कर अधिकारी बोला, ‘‘मेरे देखने से कुछ नहीं होगा. टूटा हुआ विंड स्क्रीन कैमरे को दिखना चाहिए. इस के बिना आप का केस थोड़ा कमजोर पड़ जाएगा. खैर चलिए, आवश्यक फार्म भर दीजिए. कार को रिपेयर करा कर बिल आफिस में जमा कर दीजिए.’’

मैं आफिस से बाहर आया और गैराज में जा कर विंड स्क्रीन लगवाया. लगभग एक सप्ताह बाद कार चलाने लायक हुई थी अन्यथा बिना विंड स्क्रीन की कार लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी. लोग समझ रहे थे कि मैं बिना ‘विंड स्क्रीन’ के कार चलाने का रेकार्ड बनाने की कोेशिश कर रहा हूं.

मैं किसकिस के आगे रोना रोता और किसकिस को समझाता कि जब तक बीमा कंपनी वाले फोटो नहीं खींच लेते तब तक नया विंड स्क्रीन लगवाना संभव नहीं है. यदि कोई रेकार्ड स्थापित कर रहा है तो वह है बीमा कंपनी. ‘क्लेम’ के भुगतान में अधिकतम रुकावट एवं देरी का रेकार्ड.

मैं ने समझा कि अब क्लेम मिल जाएगा. बीमा कंपनी की सभी शर्तें पूरी हो गई हैं किंतु मुझे यह पता नहीं था कि ये शर्तें तो द्रौपदी का न खत्म होने वाला चीर हैं.

‘‘एक समस्या है,’’ अधिकारी ने धीमे स्वर में कहा.

मैं चौंक गया कि अब क्या हुआ.

‘‘पालिसी के नवीनीकरण के एक सप्ताह के भीतर दुर्घटना हो गई है. पुरानी पालिसी के समाप्त होने एवं नई पालिसी जारी होने के बीच एक दिन का अंतर है.’’

‘‘किंतु आप का एजेंट तो मुझ से एक सप्ताह पहले ही चैक ले गया था. आप चैक की तारीख देख सकते हैं. फिर यह पालिसी 5 सालों से लगातार चल रही है.’’

‘‘मैं आप की बात समझ रहा हूं. यह इनसानी शरीर का मामला है. वह एजेंट बीमार पड़ गया. खैर, जो भी हो, यह भुगतान का सीधा सपाट मामला नहीं है. इस पर जांच होगी. आप को जो कुछ कहना है जांच अधिकारी से कहिएगा,’’ उस ने अपना रुख साफ किया.

झुंझलाहट का करेंट मेरे शरीर में ऊपर से नीचे तक दौड़ गया. बीमा कंपनी का यह चेहरा पालिसी देते समय के आत्मीय चेहरे से एकदम अलग था. इच्छा हो रही थी कि यह 3 हजार की धन राशि मैं इस करोड़पति बीमा कंपनी को दान में दे दूं.

मुझे लगा कि इस चेहरे को और झेल पाना मेरे लिए संभव नहीं. दोनों की भलाई इसी में है कि एकदूसरे की नजरों से दूर हो जाएं, अभी, इसी वक्त.

मैं तेजी से आफिस से बाहर आया.

सर्विस इंडस्ट्री, हुंह, नहीं चाहिए ऐसी सर्विस. सर्विस ‘फील गुड.’ एक दिन बीता, एक सप्ताह गुजरा, एक महीना बीता, 2 महीने बीते.

फोन की घंटी बजती है.

‘‘आप के क्लेम के मामले में मुझे बीमा कंपनी ने जांच अधिकारी नियुक्त किया है. मैं एडवोकेट त्रिपाठी हूं. सचाई की तह में जाना अपने जीवन का लक्ष्य है. ‘सत्यमेव जयते’ अपना धर्म है. आप मुझ से मिलें.’’

अगले दिन काले कोट में त्रिपाठीजी सामने थे.

‘‘आप जो घटना है सचसच बताएं और निसंकोच बताएं.’’

मैं ने फिर टेप रेकार्ड की तरह घटनाक्रम को दोहरा दिया.

‘‘इस में नया क्या है? यह तो आप ने रिपोर्ट में लिखा है. मुझे सचाई का पता लगाने के लिए तैनात किया गया है.’’

‘‘रिपोर्ट का एकएक शब्द सच है. आप अड़ोसपड़ोस से पूछ सकते हैं,’’ मैं ने उन्हें समझाने का प्रयास किया.

‘‘मैं ने सचाई का पता लगा लिया है. आप शायद सचाई मेरे मुंह से सुनना चाहते हैं. हजरत, मेरी निगाहों में कोने वाले मकान के हैं, मुझ से बच के जाएंगे कहां ,’’ त्रिपाठीजी के स्वर में तीखा व्यंग्य था.

मैं ने त्रिपाठीजी का चेहरा ध्यान से देखा. वह एक वकील की भूमिका बखूबी निभा रहे थे. वह सच के सिवा और कुछ कहने वाले नहीं थे.

‘‘आप सच सुनना चाहते हैं न?’’ त्रिपाठीजी तल्ख शब्दों में बोले, ‘‘सच तो यह है कि आप कार चला ही नहीं रहे थे. कार आप का लड़का चला रहा था जिस का ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं है. ऊपर से वह शराब पीए था. उसे आगे जाता ट्रक नहीं दिखा जो लोहे की छड़ों को ले कर जा रहा था. छड़ें बाहर झूल रही थीं. गनीमत समझिए कि दुर्घटना विंड स्क्रीन तक सीमित रह गई अन्यथा लोहे की छड़ें सीने के पार हो जातीं. कार की किसे चिंता है, चिंता करने के लिए, माथा पकड़ने के लिए बीमा कंपनी तो है ही. लेकिन आखिरी सांस तक मैं बीमा कंपनी के साथ हूं.’’

मैं ठगा सा त्रिपाठीजी का सच सुन रहा था. उन की गंभीर छानबीन का नतीजा सुन रहा था. कहने को कुछ था भी नहीं. हां, जांच अधिकारी की यह भूमिका नए तर्ज की जरूर थी.

‘‘बोलती बंद हो गई न. अच्छाई इसी में है कि आप यह मामला वापस ले लें. नहीं तो मैं सचाई को अदालत में उजागर करूंगा और ट्रक के खलासी को गवाह के रूप में पेश करूंगा.’’

मैं ने अपने गुस्से को काबू में रखने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘त्रिपाठीजी यह मामला वापस नहीं होगा. अब परिणाम चाहे जो हो.’’

‘‘देखिए, मैं आप को फिर समझा रहा हूं. आप शायद कोर्ट में जाने का अर्थ नहीं समझ रहे. ढाई हजार तो आप को नहीं मिलेंगे ऊपर से 4-5 हजार खर्च हो जाएंगे. आगे आप समझदार हैं. समझदार को इशारा काफी होता है,’’ त्रिपाठीजी ने उठते हुए कहा.

पत्नी भी उन की बातें सुन कर घबरा गईं.

‘‘जाने भी दीजिए, झूठ ही सही. अदालत में लड़के का नाम आएगा, उस पर शराब पी कर गाड़ी चलाने का आरोप लगेगा. छी, जाने दीजिए. ऐसे ढाई हजार मुझे नहीं चाहिए.’’

किंतु यह सब मेरे लिए एक चुनौती थी. इस से पहले कि कंपनी अदालत में जाती मैं उपभोक्ता अदालत में चला गया और कंपनी के नाम नोटिस जारी हो गया. मैं ने संघर्ष करने का मन बना लिया था. खर्च जो हो, परिणाम जो हो.

नियत तारीख पर कंपनी अदालत में उपस्थित नहीं हुई. उस ने समय मांगा.

एक सप्ताह के भीतर कंपनी से फोन आया, ‘‘आप का चैक बन कर तैयार है, इसे ले लें. कुछ देर अवश्य हो गई है, कृपया अन्यथा न लें. आप नहीं आ सकते तो हम चैक आप के घर पर पहुंचा देंगे. जांच का परिणाम कुछ भी हो, कंपनी अपने ग्राहक को सही मानती है.’’

लेखक- सत्य स्वरूप दत्त

Moral Stories in Hindi : शेष चिह्न

Moral Stories in Hindi :  मायके और ससुराल वालों की सेवा में समर्पित निधि के सपने तो जैसे बिखर कर रह गए थे. जीवन के रेगिस्तान में भटकती निधि क्या ‘अपनों के प्यार’ की मरीचिका को पा सकी?

निधि की शादी तय हो गई थी पर उस को ऐसा लग रहा था मानो मरघट पर जाना है…लाश के साथ नहीं, खुद लाश बन कर. उस का और मेरा परिचय एक प्राइवेट स्कूल में हुआ था जिस में मैं अंगरेजी की अध्यापिका थी और वह साइंस की अध्यापिका हो कर आई थी.

उस का अप्रतिम रूप, कमल पंखड़ी सा गुलाबी रंग, पतला छरहरा बदन, सौम्य नाकनक्श थे पर घर की गरीबी के कारण विवाह न हो पा रहा था.

निधि का छोटा सा कच्चा पुश्तैनी मकान था. परिवार में 4 बहनों पर एकमात्र छोटा भाई अविनाश था. बस, सस्ते कपड़ों को ओढ़तेपहनते, गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह खिंच रही थी.

बड़ी बहन आरती के ग्रेजुएट होते ही एक क्लर्क से बात पक्की कर दी गई तो पिता ने कुछ जी.पी.एफ. से रुपए निकाल कर विवाह की रस्में पूरी कीं. किसी प्रकार आरती घर से विदा हो गई. सब ने चैन की सांस ली. कुछ महीने आराम से निकल गए.

आरती को दान- दहेज के नाम पर साधारण सामान ही दे पाए थे. न टेलीविजन न अन्य सामान, न सोना न चांदी. ससुराल में उस पर जुल्मों के पहाड़ टूटने लगे पर वह सब सहती रही.

फिर एक दिन उस ने अपनी कोख से बेटे के बजाय बेटी जनी तो उस पर जुल्म और बढ़ते ही गए. और एक रात अत्याचारों से घबरा कर वह पड़ोसियों की मदद से रोतीकलपती अपने साथ एक नन्ही सी जान को ले कर पिता की देहरी पर लौट आई. उस का यह हाल देख कर पूरे परिवार की चीत्कार पड़ोस तक जा पहुंची. फिर क्याकुछ नहीं भुगता पूरे घर ने. आरती ने तो कसम खा ली थी कि वह जीवन भर वहां नहीं जाएगी जहां ऐसे नराधम रहते हैं.

इस तरह मय ब्याज के बेटी वापस आ गई. अत्याचारों की गाथा, चोटों के निशान देख कर फिर उसी घर में बहन को भेजने का सब से ज्यादा विरोध निधि ने ही किया. 3-4 वर्ष के भीतर  ही तलाक हो गया तो मातापिता की छाती पर फिर से 4 बेटियों का भार बढ़ गया.

मुसीबत जैसे चारों ओर से काले बादलों की तरह घिर आई थी. उस पर महंगाई की मार ने सब कुछ अस्तव्यस्त कर दिया. जो सब की कमाई के पैसे मिलते वह गरम तवे पर पानी की बूंद से छन्न हो जाते. तीजत्योहार सूखेसूखे बीतते. अच्छा खाना उन्हें तब ही नसीब होता जब पासपड़ोस में शादी- विवाह होते. अच्छे सूटसाड़ी पहनने को उन का मन ललक उठता, पर सब लड़कियां मन मार कर रह जातीं.

निधि तो बेहद क्षुब्ध हो उठती. जहां उस के विवाह की बात होती, उस का रूप देख कर लड़के मुग्ध हो जाते  पर दानदहेज के लोभी उस के गुणशील को अनदेखा कर मुंह मोड़ लेते.

निधि मुझ से कहती, ‘‘सच कहती हूं मीनू, लगता है कहीं से इतना पैसा पा जाऊं कि अपने घर की दशा सुधार दूं. इस के लिए यदि कोई रईस बूढ़ा भी मिलेगा तो मैं शादी के लिए तैयार हो जाऊंगी. बहुत दुख, अभाव झेले हैं मेरे पूरे परिवार ने.’’

‘‘तू पागल हो गई है क्या? अपना पद्मिनी सा रूप देखा है आईने में? मेरे सामने ऐसी बात मत करना वरना दोस्ती छोड़ दूंगी. परिवार के लिए बूढ़े से ब्याह करेगी? क्या तू ने ही पूरे घर का ठेका लिया है? और भी कोई सोचता है ऐसा क्या?’’

मेरी आंखें नम हो गईं तो देखा वह भी अपनी पलकें पोंछ रही थी.

‘‘सच मीनू, तू ने गरीबी की परछाईं नहीं देखी पर हम बचपन से ही इसे भोग रहे हैं. अरे, अपनों के लिए इनसान बड़े से बड़ा त्याग करता है. मैं मर जाऊं तो मेरी आत्मा धन्य हो जाएगी. बीमार अम्मां व बाबूजी कैसे जी पाएंगे अपनी प्यारी बेटियों को दुखी देख कर. पता है, मैं पूरे 28 वर्ष की हो गई हूं, नीतिप्रीति भी विवाह की आयु तक पहुंच गई हैं. मुझे कई लड़के देख चुके हैं. लड़की पसंद, शिक्षा पसंद, नहीं पसंद है तो कम दहेज. यही तो हम सब के साथ होगा. धन के आगे हमारे रूपगुण सब फीके पड़ गए हैं.’’

उस की बातों पर मैं हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘अरे, तू तो किसी घर की राजरानी बनेगी. देख लेना तेरा दूल्हा सिरआंखों पर बैठाएगा तुझे. धनदौलत पर लोटेगी तू्.’’

‘‘रहने दे, ऐसे ऊंचे सपने मत दिखा, जो आगे चल कर मेरी छाती में टीस दें. हां, तुझे अवश्य ऐसा ही वरघर मिलेगा. अकेली बेटी, 2 बड़े भाई, सब ऊंचे पदों पर.’’

‘‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली? बड़े परिवार की समस्या पर ही तो सोचती हूं ऐसा, अपनी कुरबानी देने की.’’

फिर आएदिन मैं यही सुनती थी कि निधि को देखने वाले आए और गए. धन के अभाव में सब मुंह चुरा गए. इतनी तगड़ी मांगें कि घर भर के सिर फिर जाते. यहां तो शादी का खर्च उठाना मुश्किल था. उस पर लाखों की मांग.

एक दिन गरमी की दोपहर में आ कर निधि ने विस्फोट किया, ‘‘मीनू, तुझे याद है एक बार मैं ने तुझ से कहा था कि अगर कोई मालदार धनी बूढ़ा वर ही मिल जाएगा तो मैं उस से शादी करने को तैयार हो जाऊंगी. लगता है वही हो रहा है.’’

मैं ने घबरा कर अपनी छाती थाम ली फिर गुस्से से भर कर बोली, ‘‘तो क्या किसी बूढ़े खूसट का संदेशा आया है और तू तैयार हो गई है?’’ इतना कह कर तब मैं ने उस के दोनों कंधे झकझोर दिए थे.

वह बच्चों सी हंसी हंस दी. फिर पसीना पोंछती हुई बोली, ‘‘तू तो ऐसी घबरा रही है जैसे मेरे बजाय तेरी शादी होने जा रही है. देख, मैं बूढ़े खूसट की फोटो लाई हूं. उस की उम्र 40 के आसपास है और वह दुहेजा है. 4 साल पहले पत्नी मर गई थी.’’

उस ने फोटो मेरे हाथ पर रख दिया. ‘‘अरे वाह, यह तो बूढ़ा नहीं जवान, सुंदर है. तू मजाक कर रही है मुझ से?’’

‘‘नहीं रे, मजाक नहीं कर रही… दुहेजा है.’’

‘‘कहीं दहेज के चक्कर में पहली को मार तो नहीं डाला. क्या चक्कर है?’’ मैं बोली.

‘‘यह मेरी मौसी की ननद का देवर है,’’ निधि ने बताया.

‘‘सेल्स टेक्स कमिश्नर है. तीसरी बार बेटे को जन्म देते समय पत्नी की मौत हो गई थी.’’

‘‘तो क्या 2 संतान और हैं?’’

‘‘हां, 1 बेटी 10 साल की, दूसरी 8 साल की.’’

‘‘तो तुझे सौतेली मां का दर्जा देने आया है?’’

‘‘यह तो है पर पत्नी की मृत्यु के 4 साल बाद बड़ी मुश्किल से दूसरी शादी को तैयार हुआ है. घर पर बूढ़ी मां हैं. एक बड़ी बहन है जो कहीं दूर ब्याही गई है, बढ़ती बच्चियों को कौन संभाले. वह ठहरे नौकरीपेशा वाले. समय खराब है. इस से उन्हें तैयार होना पड़ा.’’

‘‘तो तू जाते ही मां बनने को तैयार हो गई, मदर इंडिया.’’

‘‘हां रे. अम्मांबाबूजी तो तैयार नहीं थे. मौसी प्रस्ताव ले कर आई थीं. मुझ से पूछा तो मैं क्या करती. जन्म भर अम्मांबाबूजी की छाती पर मूंग तो न दलती. दीदी व उन की बेटी बोझ बन कर ही तो रह रही हैं. फिर 2 बहनें और भी शूल सी गड़ती होंगी उन की आंखों में. कब तक बैठाए रहेंगे बेटियों को छाती पर?

‘‘मैं अगर इस रिश्ते को हां कर दूंगी तो सब संभल जाएगा. धन की उन के यहां कमी नहीं है, लखनऊ में अपनी कोठी है. ढेरों आम व कटहल के बगीचे हैं. नौकरचाकर सब हैं.

‘‘मैं सब को ऊपर उठा दूंगी, मीनू,’’ निधि ने जैसे अपने दर्द को पीते हुए कहा, ‘‘मेरे मातापिता की कुछ उम्र बच जाएगी नहीं तो उन के बाद हम सब कहां जाएंगे. बाबूजी 2 वर्ष बाद ही तो रिटायर हो रहे हैं, फिर पेंशन से क्या होगा इतने बड़े परिवार का? बता तो तू?’’

मैं ने निधि को खींच कर छाती से लगा लिया. लगा, एक इतनी खूबसूरत हस्ती जानबूझ कर अपने को परिवार के लिए कुरबान कर रही है. मेरे साथ वह भी फूटफूट कर रो पड़ी.

निधि शाम को आने का मुझ से वचन ले कर वापस लौट गई. फिर शाम को भारी मन लिए मैं उस के घर पहुंची. उस की मौसी आ चुकी थीं और वर के रूप में भूपेंद्र बैठक में आराम कर रहे थे. निधि को अभी देखा नहीं था. मैं मौसी के पास बैठ कर वर के घर की धनदौलत का गुणगान सुनती रही.

‘‘बेटी, तुम निधि की सहेली हो न,’’ मौसी ने पूछा, ‘‘वह खुश तो है इस शादी से, तुम से कुछ बात हुई?’’

‘‘मौसी? यह आप स्वयं निधि से पूछ लो. पास ही तो बैठी है वह.’’

‘‘वह तो कुछ बोलती ही नहीं है, चुप बैठी है.’’

‘‘इसी में उस की भलाई है,’’ मैं जैसे बगावत पर उतर आई थी.

‘‘मीनू, तुम नहीं जानती घर की परिस्थिति, पर मुझ से कुछ छिपा नहीं है. निधि की मां मुझ से छोटी है. उसी के आग्रह पर मैं अब तक कई लड़के वालों के पतेठिकाने भेजती रही पर बेटा, पैसों के लालची आज के लोग रूपगुण के पारखी नहीं हैं…फिर आरती में क्या कमी है, लेकिन क्या हुआ उस के साथ…मय ब्याज के वापस आ गई…ये निधि है 28 पार कर चुकी है. आगे 2 और हैं.’’

मैं उन के पास से उठ आई, ‘‘चल निधि, कमरे में बैठते हैं.’’

वह उठ कर अंदर आ गई.

मैं ने जबरन निधि को उठाया. उस का हाथमुंह धुलाया और हलका सा मेकअप कर के उसे मौसी की लाई साडि़यों में से एक साड़ी पहना दी, क्योंकि निधि को शाम का चायनाश्ता ले कर अपने को दिखाने जाना था. सहसा वर बैठक से निकल कर बाथरूम की ओर गया तो मैं अचकचा गई. कौन कह सकता है देख कर कि वह 40 का है. क्षण भर में जैसे अवसाद के क्षण उड़ गए. लगा, भले ही वर दुहेजा है पर निधि को मनचाहा वरदान मिल गया.

शाम के समय लड़की दिखाई के वक्त नाश्ते की प्लेटें लिए निधि के साथ मैं भी थी. तैयार हो कर तरोताजा बैठा प्रौढ़ जवान वर सम्मान में उठ कर खड़ा हो गया और उस के मुंह से ‘बैठिए’ शब्द सुन कर मन आश्वस्त हो उठा.

हम दोनों बैठ गए. निधि ने चाय- नाश्ता सर्व किया तो उस ने प्लेट हम लोगों की ओर बढ़ा दी. फिर हम दोनों से औपचारिक वार्त्ता हुई तो मैं ने वहां से उठना ही उचित समझा. खाली प्लेट ले कर मैं बाहर आ गई. दोनों आपस में एकदूसरे को ठीक से देखपरख लें यह अवसर तो देना ही था. फिर पूरे आधे घंटे बाद ही निधि बाहर आई.

‘‘क्या रहा, निधि?’’ मैं निकट चली आई.

‘‘बस, थोड़ी देर इंतजार कर,’’ यह कह कर निधि मुझे ले कर एक कमरे में आ गई. फिर 1 घंटे बाद जो दृश्य था वह ‘चट मंगनी पट ब्याह’ वाली बात थी.

रात 8 बजतेबजते आंगन में ढोलक बज उठी और सगाई की रस्म में जो सोने की चेन व हीरे की अंगूठी उंगलियों में पहनाई गई उन की कीमत 60 हजार से कम न थी.

15 दिन बाद ही छोटी सी बरात ले कर भूपेंद्र आए और निधि के साथ भांवरें पड़ गईं. इतना सोना चढ़ा कि देखने वालों की आंखें चौंधिया गईं. सब यह भूल गए कि वर अधिक आयु का है और विधुर भी है. बस, एक बात से सब जरूर चकरा गए थे कि दूल्हे की दोनों बेटियां भी बरात में आई थीं. पर वे कहीं से भी 12 और 8 की नहीं दिखती थीं. बड़ी मधु 16 वर्ष और छोटी विधु 12 की दिखती थीं. जवानी की डगर पर दोनों चल पड़ी थीं. सब को अंदाज लगाते देर नहीं लगी कि वर 50 की लाइन में आ चुका है.

निधि से कोई कुछ न कह सका. सब तकदीर के भरोसे उसे छोड़ कर चुप्पी लगा गए. 1 माह तक ससुराल में रह कर निधि जब 10 दिन के लिए मायके आई थी तो मैं ही उस से मिलने पहुंची थी. सोने से जैसे वह मढ़ गई थी. एक से बढ़ कर एक महंगे कपड़े, साथ ही सारे नए जेवर.

एक बात निधि को बहुत परेशान किए थी कि वे दोनों लड़कियां किसी प्रकार से विमाता को अपना नहीं पा रही थीं. बड़ी तो जैसे उस से सख्त नफरत करती, न साथ बैठती न कभी अपने से बोलती. पति से इस बात पर चर्चा की तो उन्होंने निधि को समझा दिया कि लोगों ने या इस की सहेलियों ने इस के मन में  उलटेसीधे विचार भर दिए हैं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. अपनी बूढ़ी दादीमां का कहना भी वे दोनों टाल जातीं.

निधि हर समय इसी कोशिश में रहती कि वे दोनों उसे मां के बजाय अपना मित्र समझें. इस को निधि ने बताने की भी कोशिश की पर वे दोनों अवहेलना कर अपने कमरों में चली गईं. खाने के समय पिता के कई बार बुलाने पर वे डाइनिंग रूम में आतीं और थोड़ाबहुत खा कर चल देतीं. पिता भी जैसे पराए हो गए थे. पिता का कहना इस कान से सुनतीं उस कान निकाल देतीं.

निधि यदि कहती कि किसी सब्जेक्ट में कमजोर हो तो वह पढ़ा सकती है तो मधु फटाक से कह देती कि यहां टीचरों की कमी नहीं है. आप टीचर जरूर रही हैं पर छोटे से शहर के प्राइवेट स्कूल में. हम क्या बेवकूफ हैं जो आप से पढ़ेंगे और यह सुन कर निधि रो पड़ती.

एक से एक बढि़या डिश बनाने की ललक निधि में थी पर मायके में सुविधा नहीं थी इसलिए वह अपने शौक को पूरा न कर सकी. यहां पुस्तकों को पढ़ कर या टेलीविजन में देख कर तरहतरह की डिश बनाती, पूरे घर को खिलाती, पति और सास तो खुश होते पर उन दोनों बहनों की प्लेटें जैसी भरी जातीं वैसी ही कमरों से आ कर सिंक में पड़ी दिखतीं.

कई बार पिता ने प्यार से समझाया कि वह अब तुम्हारी मां हैं, उन का आदर करो, उन्हें अपना समझो तो बड़ी मधु फटाक से उत्तर दे देती, ‘पापा, आप की वह सबकुछ हो सकती हैं पर हमारी तो सौतेली मां हैं.’

इस पर पिता का कई बार हाथ उठ गया. निधि पक्ष ले कर आगे आई तो अपमानित ही हुई. इस से चुपचाप रो कर रह जाती. लड़कियां कहां जाती हैं, रात में देर से क्यों आती हैं. कुछ नहीं पूछ सकती थी वह.

लड़कियों के पिता सदैव गंभीर रहे. हमेशा कम बोलना, जैसे उन के चेहरे पर उच्च पद का मुखौटा चढ़ा रहता. बेटियों को भी कभी पिता से हंसतेबोलते नहीं देखा. कई बार निधि के मन में आया कि वह मधु से कुछ पूछे, बात करे पर वह तो हमेशा नाक चढ़ाए रहती.

बूढ़ी सास प्यार से बोलतीं, समझातीं, खानेपीने का खयाल रखने को कहतीं. जब बेटियों के बारे में वह पूछती तो कह देतीं, ‘‘सखीसहेलियों ने उलटासीधा भरा होगा. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. तू भूपेंद्र से बता दिया कर जो समस्या हो.’’

‘‘मांजी, एक तो रात में वह देर से आते हैं फिर वह इस स्थिति में नहीं होते कि उन से कुछ कहा जाए. दिन में बेटियों की बात बेटियों के सामने तो नहीं कह सकती, वह भी तब जब दोनों जैसे लड़ने को तैयार बैठी रहती हैं. मैं तो बोलते हुए भी डरती हूं कि पता नहीं कब क्या कह कर अपमान कर दें.’’

‘‘इसी से तो शादी करनी पड़ी कि पत्नी आ जाएगी तो कम से कम रात में घर आएगा तो उसे संभाल तो लेगी. अब तो तुझे ही सबकुछ संभालना है.’’

अधरों की हंसी, मन की उमंग, रसातल में समाती चली जा रही थी. सब सुखसाधन थे. जेवर, कपड़े, रुपएपैसे, नौकरचाकर परंतु लगता था वह जंगल में भयभीत हिरनी सी भटक रही है. मायके की याद आती, जहां प्रेम था, उल्लास था, अभावों में भी दिन भर किल्लोल के स्वर गूंजते थे. तभी एक दिन देखा कि दोनों बहनें मां का वार्डरोव खोल कर कपड़े धूप में डाल रही हैं और लाकर से उन के जेवर निकाल कर बैग में ठूंस रही हैं. निधि का माथा ठनका. उस दिन छुट्टी थी. सब घर पर ही थे. वह चुपके से घर के आफिस में गई. उस समय वह अकेले ही थे. बोली, ‘‘क्या मैं आ सकती हूं?’’

‘‘अरे, निधि, आओ, आओ, बैठो,’’ यह कहते हुए उन्होंने फाइल से सिर उठाया.

‘‘ये मधुविधु कहीं जा रही हैं क्या?’’

‘‘क्यों, तुम्हें क्यों लगा ऐसा? पूछा नहीं उन से?’’

‘‘पूछ कैसे सकती हूं…कभी वे बोलती भी हैं क्या? असल में उन्होंने अपनी मां के कपड़े धूप में डाले हैं और जेवर बैग में रख रही हैं.’’

‘‘दरअसल, वह अपनी मां के जेवर बैंक लाकर में रखने को कह रही थीं तो मैं ने ही कहा कि निकाल लो, कल रख देंगे, घर पर रखना ठीक नहीं है. दोनों की शादी में दे देंगे.’’

‘‘क्षमा करें, अकसर दोनों कभी अकेले जा कर रात में देर से घर आती हैं. इस से आप से कहना पड़ा,’’ निधि जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

‘‘ठहरो, निधि, तुम कभी शौपिंग को नहीं जाती हो? भई, रुपएपैसे मेरी अलमारी में पड़े रहते हैं. जेवर, कपड़े जो चाहिए खरीद लाया करो. कोई रोक नहीं है. आजकल तो महिलाएं नएनए डिजाइन के गहनेकपड़े पहन कर घूमती हैं. मैं चाहता हूं कि तुम भी वैसी ही घूमो, क्लब ज्वाइन कर लो, इस से परिचय बढ़ेगा. पढ़ीलिखी हो, सुंदर हो, थोड़ा स्मार्ट बनो.’’

दूसरे दिन दोनों बहनें बैंक जा कर सारे जेवर बैंक लाकर में रख आईं और चाबी अपने पास रख ली.

निधि कई बार मायके हो आई थी. कभी सोचा था कि दोनों छोटी बहनों को वह अपने पास रख कर पढ़ाएगी पर वह सब जैसे स्वप्न हो गया. हां, रुपए ले जा कर वह सब को कपड़े आदि अवश्य खरीद देती. हर बार जरूरत की कुछ न कुछ महंगी चीज खरीद कर रख जाती. रंगीन टेलीविजन, पंखे, छोटा सा फ्रिज आदि. इस से ज्यादा रुपए लेने की उस की हिम्मत नहीं थी. जब तक निधि मायके रहती कुछ दिन को अच्छा भोजन पूरे घर को मिल जाता, बाद में फिर वही पुराना क्रम चल पड़ता.

अभी मायके से आए निधि को केवल 15 दिन ही हुए थे कि अचानक जैसे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. वह बीमार थी. कई दिनों से खांसी से पीडि़त थी. दोनों बहनें खापी कर अपने कमरे में बैठी टेलीविजन देख रही थीं.

तभी जोर से दरवाजे की घंटी बजी. उस ने आ कर दरवाजा खोला तो कुछ अनजाने चेहरों को देख कर चौंक गई.

‘‘आप लोग कौन हैं. साहब घर पर नहीं हैं,’’ उन्हें भीतर घुसते देख कर निधि घबरा गई, ‘‘अरे, अंदर कैसे घुस रहे हैं आप लोग?’’ वह चिल्ला कर बोली ताकि दोनों बहनें सुन लें लेकिन  टेलीविजन के तेज स्वर के कारण उस की आवाज वहां तक नहीं पहुंची. खिड़की से झांक कर दोबारा निधि चिल्ला कर बोली, ‘‘मधु, देखो ये लोग कौन हैं और घर में घुसे जा रहे हैं.’’

‘‘मैडम, हम विजिलेंस आफीसर हैं और आप के यहां छापा मारने आए हैं. यह देखिए मेरा आई कार्ड.’’

दोनों बहनें बाहर दौड़ कर आईं और चिल्ला कर बोलीं, ‘‘पापा घर पर नहीं हैं. जब वह आएं तब आप लोग आइए.’’

‘‘पापा आप के अभी नहीं आ पाएंगे, क्योंकि वह पुलिस हिरासत में हैं.’’

‘‘क्यों, क्या किया है उन्होंने?’’

‘‘शायद आप को पता नहीं कि आप के पापा रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़े गए हैं. अब तो बेल होने पर ही घर आ पाएंगे,’’ यह सुन कर निधि को चक्कर आ गया और वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘पापा से फोन कर के हम बात कर लें तब आप को अंदर घुसने देंगे,’’ यह कहते हुए मधु ने फोन लगाया तो पापा का भर्राया स्वर गूंजा, ‘‘कानून में बाधा मत डालो, मधु. लेने दो तलाशी.’’

शाम को जब वह हारेथके घर आए तो लग रहा था महीनों से बीमार हों. पैर लड़खड़ा रहे थे. उन्होंने पहले निधि को फिर मधु व विधु की ओर देखा. बरामदे में पूरी शक्ति लगा कर वह अपने भारी- भरकम शरीर को चढ़ा पाए पर संभल नहीं पाए और धड़ाम से गिर पड़े. होंठों से झाग बह चला. तीनों के मुंह से चीखें निकल गईं. डाक्टर आया तो उन्होंने तुरंत अस्पताल में भरती करने की सलाह दी. तीनों उन्हें एंबुलेंस में लाद कर अस्पताल ले गईं. डाक्टरों ने हृदयाघात बताया.

निधि सारी रात पति के सिरहाने बैठी रही. दोनों बहनें कुछ देर को घर लौटीं, क्योंकि चपरासी ने बताया था कि मांजी की हालत बहुत खराब हो गई है.

उन्हें होश आया तो वह बोले, ‘‘निधि, मुझे बहुत दुख है कि अभी अपने विवाह को केवल 10 माह ही हुए हैं और मैं इस प्रकार झूठे मामले में फंसा दिया गया. तुम यह मकान बेच कर मां को ले कर मायके चली जाना. मधु के मामा संपन्न हैं. वे उन्हें जरूर इलाहाबाद ले जाएंगे. यदि मां को ले जाना चाहें तो ले जाने देना. मैं ने कुछ रुपए कबाड़खाने के टूटे बाक्स में पुराने कागजों के नीचे दबा रखे हैं. वहां कोई न ढूंढ़ पाएगा. तुम अपने कब्जे में कर लेना. बचे रहे तो मुकदमा लड़ने के काम आएंगे.’’

निधि फूटफूट कर रो पड़ी फिर बोली, ‘‘पर वहां तो सील लग गई है. पुलिस का पहरा है,’’ निधि के मुंह से यह सुन कर उन की आंखों से ढेरों आंसू लुढ़क पड़े. फिर पता नहीं कब दवा के नशे में सोतेसोते ही उन्हें दूसरा दौरा पड़ा, 3 हिचकियां आईं और उन के प्राण निकल गए.

निधि की तो अब दुनिया ही उजड़ गई. जिस धन की इच्छा में उस ने अधेड़ विधुर को अपनाया था वह उसे मंझधार में ही छोड़ कर चला गया.

मातापिता सब आए. मधु के नाना, मामा आदि पूरा परिवार जुड़ आया. सब उस के अशुभ चरणों को कोस रहे थे. चारों ओर के व्यंग्य व लांछनों से वह घबरा गई. पुलिस ने उस के मायके तक को खंगाल डाला था.

मांजी तो जीवित लाश सी हो गई थीं. निधि की हालत देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और पूजागृह से अपनी संदूक खींच कर उसे यह कहते हुए सौंप दी, ‘‘बेटी, इस में जो कुछ है तेरा है. मैं तो अपनी बेटी के पास शेष जीवन काट लूंगी. यह लोग तुझे जीने नहीं देंगे. मकान बिकेगा तो तुझे भी हिस्सा मिलेगा. मेरे दामाद व बेटी तुझे अवश्य हिस्सा दिलवाएंगे. तू अपने नंगे गले में मेरा यह लाकेट डाल ले और ये चूडि़यां, शेष तो सब सरकारी हो गया. बेटी, 1 साल बाद जहां चाहे दूसरा विवाह कर लेना… अभी तेरी उम्र ही क्या है.’’

वह चुपचाप रोती रही. फिर उसे ध्यान आया और जहां पति ने बताया था वहां ढूंढ़ा तो 10 लाख की गड्डियां प्राप्त हुईं. तलाशी तो पहले ही हो चुकी थी इस से वह सब ले कर मांबाप के साथ मायके आ गई. बस, वह पेंशन की हकदार रह गई थी. वह भी तब तक जब तक कि वह पति की विधवा बन कर रहे.

निधि ने रुपए किसी बैंक में नहीं डाले बल्कि उन से कंप्यूटर खरीद कर बहनों के साथ अपनी कंप्यूटर क्लास खोल ली. उस ने बैंक से लोन भी लिया था, जिस से कभी पकड़ी न जाए. अच्छी पेंशन मिली वह भी केस निबटने के कई वर्ष बाद.

मैं निधि के घर तुरंत गई थी. उस का वैधव्य रूप, शिथिल काया, कांतिहीन चेहरा देख कर खूब रोई.

‘‘मीनू, देख, कैसा राजसुख भोग कर लौटी हूं. रही बात अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने की तो वह 2 राज्यों के चलते कभी न मिल पाएगी. मैं उत्तर प्रदेश में रह नहीं सकती और मध्य प्रदेश में नौकरी मिल नहीं सकती. हर माह पेंशन के लिए मुझे लखनऊ जाना पड़ेगा. गनीमत है कि मैं बाप पर भार नहीं हूं. पति सुख नहीं केवल धन सुख भोग पाऊंगी. इसी रूप की तू सराहना करती थी पर वहां तो सब मनहूस की पदवी दे गए.

‘‘वे क्या जानें कि मैं ने आधी रात को नशे में चूर डगमगाए पति की भारीभरकम देह को कैसे संभाला है. मद में चूर, कामातुर असफल पुरुष की मर्दानगी को गरम रेत पर पड़ी मछली सी तड़प कर लोटलोट कर काटी हैं ये पूरे 10 माह की रातें. मेरा कुआंरा अनजाना तनमन जैसे लाज भरी उत्तेजना से उद्भासित हो उठता.’’

‘‘निधि, संभाल अपनेआप को. तू जानती है न कि मैं अभी इस अनुभव से सर्वथा अनजान हूं.’’

‘‘ओह, सच में मीना. मैं अपनी रौ में सब भूल गई कि तू यह सब क्या जाने. मुझे क्षमा करेगी न?’’

‘‘कोई बात नहीं निधि, तेरी सखी हूं न, जो समझ पाई वह ठीक, नहीं समझी वह भी ठीक. तेरा मन हलका हुआ. शायद विवाह के बाद मैं तेरी ये बातें समझ पाऊंगी, तब तेरी यह व्यथा बांटूंगी.’’

‘‘तब तक ये ज्वाला भी शीतल पड़ जाएगी. मैं अपने पर अवश्य विजय पा लूंगी. अभी तो नया घाव है न जैसे आवां से तप कर बरतन निकलता है तो वह बहुत देर तक गरम रहता है.’’

‘‘अच्छा, अब चलूंगी. बहुत देर हो गई.

Best Hindi Stories : अहसास – डांसर भाग्यवती को क्या मिला रामनाथ का साथ

Best Hindi Stories :  31 दिसंबर की रात को प्रेम पैलेस लौज का बीयर बार लोगों से खचाखच भरा हुआ था. गीत ‘कांटा लगा….’ के रीमिक्स पर बारबाला डांसर भाग्यवती ने जैसे ही लहरा कर डांस शुरू किया, तो वहां बैठे लोगों की वाहवाही व तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हाल गूंज उठा. लोग अपनीअपनी कुरसी पर बैठे अलगअलग ब्रांड की महंगी से महंगी शराब पीने का लुत्फ उठा रहे थे और लहरातीबलखाती हसीनाओं का आंखों से मजा ले रहे थे. पूरा बीयरबार रंगबिरंगी हलकी रोशनी में डूबा हुआ था. रामनाथ पुलिसिया अंदाज में उस बार में दबंगता से दाखिल हुए. उन्होंने एक निगाह खुफिया तौर पर पूरे बार व वहां बैठे लोगों पर दौड़ाई. उन्हें सूचना मिली थी कि वहां आतंकवादियों को आना है, लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया.

रामनाथ सीआईडी इंस्पैक्टर थे. किसी ने उन्हें पहचाना नहीं था, क्योंकि वे सादा कपड़ों में थे. जब कोई संदिग्ध नजर नहीं आया, तो रामनाथ बेफिक्र हो कर एक ओर कोने में रखी खाली कुरसी पर बैठ गए और बैरे को एक ठंडी बीयर लाने का और्डर दिया. वे भी औरों की तरह बार डांसर भाग्यवती को घूर कर देखने लगे. बार डांसर भाग्यवती खूबसूरत तो यकीनन थी, तभी तो सभी उस की देह पर लट्टू थे. एक मंत्री, जो बार में आला जगह पर बैठे थे, टकटकी लगाए भाग्यवती के बदन के साथ ऐश करना चाहते थे. वह भी चंद नोटों के बदले आसानी से मुहैया थी. मंत्री महोदय भाग्यवती की जवानी और लचकती कमर पर पागल हुए जा रहे थे, मगर वहां एक सच्चा मर्द ऐसा भी था, जिसे भाग्यवती की यह बेहूदगी पसंद नहीं थी.

रामनाथ का न जाने क्यों जी चाह रहा था कि वह उसे 2 तमाचे जड़ कर कह दे कि बंद करो यह गंदा नाच. पर वे ऐसा नहीं कर सकते थे. आखिर किस हक से उसे डांटते? वे तो अपने केस के सिलसिले में यहां आए थे. शायद यह सवाल उन के दिमाग में दौड़ गया और वे गंभीरता से सोचने लगे कि जिस लड़की के सैक्सी डांस व अदाओं पर पूरा बार झूम रहा है, उस की अदाएं उन्हें क्यों इतनी बुरी लग रही थीं? तभी बैरा रामनाथ के और्डर के मुताबिक चीजें ले आया. उन्होंने बीयर का एक घूंट लिया और फिर भाग्यवती को ताकने लगे.

भाग्यवती का मासूम चेहरा रामनाथ के दिलोदिमाग में उतरता जा रहा था. उन्होंने कयास लगाया कि हो न हो, यह लड़की मुसीबत की मारी है. बार डांसर रेखा रामनाथ को बहुत देर से देख रही थी. कूल्हे मटका कर उस ने रामनाथ की ओर इशारा करते हुए भाग्यवती से कहा, ‘‘देख, तेरा नया मजनू आ गया. वह जाम पी रहा है. तुझ पर उस की निगाहें काफी देर से टिकी हैं. कहीं ले न उड़े… दाम अच्छे लेना, नया बकरा है.’’

‘‘पता है…’’ मुसकरा कर भाग्यवती ने कहा.

भाग्यवती थिरकथिरक कर रामनाथ की ओर कनखियों से देखे जा रही थी कि तभी रामनाथ के सामने वाले आदमी ने कुछ नोटों को हाथ में निकाल कर भाग्यवती की ओर इशारा किया. भाग्यवती इठलातेइतराते हुए उस कालेकलूटे मोटे आदमी के करीब जा कर खड़ी हो गई और मुसकरा कर नोट लेने लगी.

इस दौरान रामनाथ ने कई बार भाग्यवती को देखा. दोनों की निगाहें टकराईं, फिर रामनाथ ने भाग्यवती की बेशर्मी को देख कर सिर झुका लिया. वह मोटा भद्दी शक्लसूरत वाला आदमी सफेदपोश नेता था. वह नई जवां लड़कियों का शौकीन था. उस के आसपास ही उस का पीए, 2-4 चमचे जीहुजूरी में वहां हाजिर थे. मंत्री धीरेधीरे भाग्यवती को नोट थमाता रहा. जब वह अपने हाथ का आखिरी नोट उसे पकड़ाने लगा, तो शराब के नशे में उस का हाथ भी पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. उस की छातियों पर हाथ फेरा, गालों को चूमा और बोला, ‘‘तुझे मेरे प्राइवेट बंगले पर आना है. बाहर सरकारी गाड़ी खड़ी है. उस में बैठ कर आ जाना. मेरे आदमी सारा इंतजाम कर देंगे. मगर हां, एक बात का ध्यान रखना कि इस बात का पता किसी को न लगे.’’

भाग्यवती मंत्री को हां बोल कर वहां से हट गई. यह देख कर रामनाथ के तनबदन में आग लग गई और वे अपने घर आ गए. उन की आंखों में भाग्यवती का मासूम चेहरा छा गया और वे तरहतरह के खयालों में डूब गए. दूसरे दिन डांस शुरू होने के पहले कमरे में बैठी रेखा भाग्यवती से बोली, ‘‘तेरा मजनू तो एकदम भिखारी निकला. उस की जेब से एक रुपया भी नहीं निकला.’’ भाग्यवती ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तो बस उसी का चेहरा देख रही थी. जब वह मंत्री मुझे नोट दे रहा था, तब वह एकदम सिटपिटा सा गया था.’’

बार डांसर रेखा बोली, ‘‘शायद तू ने एक चीज नहीं देखी. जब तू उस मंत्री की गोद में बैठी थी और वह तेरी छातियों की नापतोल कर रहा था, तब उस के चेहरे का रंग ही बदल गया था. देखना, आज फिर वह आएगा. हमें तो सिर्फ पैसा चाहिए, अपने खूबसूरत बदन को नुचवाने का.’’ तभी डांस का समय हो गया. वे दोनों बीयर बार में आ कर गीत ‘अंगूर का दाना हूं….’ पर थिरकने लगी थीं.

रामनाथ अभी तक बार में नहीं आए थे. भाग्यवती की निगाहें बेताबी से उन्हें ढूंढ़ रही थीं. नए ग्राहक जो थे, उन से मोटी रकम लेनी थी. कुछ देर बाद जब रामनाथ आए, तो उन्हें देख कर भाग्यवती को अजीब सी खुशी का अहसास हुआ, पर जब वे खापी कर चलते बने, तो वह सोच में पड़ गई कि यह तो बड़ा अजीब आदमी है… आज भी एक रुपया नहीं लुटाया उस पर. भाग्यवती का दिमाग रामनाथ के बारे में सोचतेसोचते दुखने लगा. वह उन्हें जाननेसमझने के लिए बेचैन हो उठी. जब वे तीसरेचौथे दिन नहीं आए, तो परेशान हो गई.

एक दिन अचानक ही एक पैट्रोल पंप के पास वाली गली के कोने पर खड़ी भाग्यवती पर रामनाथ की नजर पड़ी. कार में बैठा एक आदमी भाग्यवती से कह रहा था, ‘‘चल. जल्दी चल. मंत्रीजी के पास भोपाल. ये ले 10 हजार रुपए. कार में जल्दी से बैठ जा.’’ भाग्यवती ने पूछा, ‘‘मुझे वहां कितने दिन तक रहना पड़ेगा?’’

‘‘कम से कम 4-5 दिन.’’

‘‘मुझे उस के पास मत भेज. वह मेरे साथ जानवरों जैसा सुलूक करता है,’’ गिड़गिड़ाते हुए भाग्यवती बोली. इस पर वह आदमी एकदम भड़क कर कहने लगा, ‘‘तो क्या हुआ, पैसा भी तो अच्छा देता है,’’ और वह डांट कर वहां से चलता बना. इस भरोसे पर कि मंत्री को खुश करने वह भोपाल जरूर जाएगी. यह सारा तमाशा रामनाथ चुपचाप खड़े देख रहे थे. वे जल्दी से भाग्यवती के पीछे लपक कर गए और बोले ‘‘सुनो, रुकना तो…’’ भाग्यवती ने पीछे मुड़ कर देखा और रामनाथ को पहचानते हुए बोली, ‘‘अरे आप… आप तो बार में आए ही नहीं…’’

‘‘वह आदमी कौन था?’’ रामनाथ ने भाग्यवती के सवाल को अनसुना करते हुए सवाल किया.

‘‘क्या बताऊं साहब, मंत्री का खास आदमी था. बार मालिक का हुक्म था कि मैं भोपाल में मंत्रीजी के प्राइवेट बंगले पर जाऊं,’’ भाग्यवती ने रामनाथ से कहा.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती हो ऐसे धंधे को?’’ रामनाथ ने सवाल किया.

‘‘छोड़ने को मैं छोड़ देती साहब… उन को मेरे जैसी और लड़कियां मिल जाएंगी, पर मुझे सहारा कौन देगा? मुझ जैसी बदनाम औरत के बदन से खेलने वाले तो बहुत हैं साहब, पर अपनाने वाला कोई नहीं,’’ कह कर वह रामनाथ के चेहरे की तरफ देखने लगी. रामनाथ पलभर को न जाने क्या सोचते रहे. समाज में उन के काम से कैसा संदेश जाएगा. एक कालगर्ल ही मिली उन को? लेकिन पुलिस महकमा तो तारीफ करेगा. समाज के लोग एक मिसाल मानेंगे. भाग्यवती थी तो एक मजबूर गरीब लड़की. उस को सामाजिक इज्जत देना एक महान काम है. रामनाथ ने भाग्यवती से गंभीरता से पूछा, ‘‘तुम्हें सहारा चाहिए? चलो, मेरे साथ. मैं तुम्हें सहारा दूंगा.’’ भाग्यवती हां में सिर हिला कर रामनाथ के साथ ऐसे चल पड़ी, जैसे वह इस बात के लिए पहले से ही तैयार थी. वह रामनाथ के साथ उन की मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर चुपचाप जा कर बैठ गई.

रामनाथ के घर वालों ने भाग्यवती का स्वागत किया. खुशीखुशी गृह प्रवेश कराया. उस का अलग कमरा दिखाया. इसी बीच भाग्यवती पर मानो वज्रपात हुआ. टेबल पर रखी रामनाथ की एक तसवीर देख कर वह घबरा गई, ‘‘साहब, आप पुलिस वाले हैं? मैं ने तो सोचा भी नहीं था.’’ ‘‘हां, मैं सीबीआई इंस्पैक्टर रामनाथ हूं,’’ उन्होंने गंभीरता से जवाब दिया, ‘‘क्यों, क्या हुआ? पुलिस वाले इनसान नहीं होते हैं क्या?’’ ‘‘जी, कुछ नहीं, ऐसा तो नहीं है,’’ वह बोल कर चुप हो गई और सोचने लगी कि पता नहीं अब क्या होगा?

‘‘भाग्यवती, तुम कुछ सोचो मत. आज से यह घर तुम्हारा है और तुम मेरी पत्नी हो.’’

‘‘क्या,’’ हैरान हो कर अपने खयालों से जागते हुए भाग्यवती हैरत से बोली.

‘‘हां भाग्यवती, क्या तुम्हें मैं पसंद नहीं हूं?’’ उसे हैरान देख कर रामनाथ ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. आप मुझे बहुत पसंद हैं. मैं सोच रही थी कि हमारी शादी… न कोई रस्मोरिवाज…’’ भाग्यवती बोली. ‘‘देखो भाग्यवती, मैं नहीं मानता ऐसे ढकोसलों को. जब लोग शादी के बाद अपनी बीवी को छोड़ सकते हैं, जला सकते हैं, मार सकते हैं, उस से गिरा हुआ काम करा सकते हैं, तो फिर ऐसे रिवाजों का क्या फायदा? ‘‘मैं ने तुम्हें तुम्हारी सारी बुराइयों को दरकिनार करते हुए सच्चे मन से अपनी पत्नी माना है. तुम चाहो तो मुझे अपना पति मान कर मेरे साथ इज्जत की जिंदगी गुजार सकती हो,’’ रामनाथ ने जज्बाती होते हुए कहा. यह सुन कर भाग्यवती खुशी से हैरान रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस जिंदगी में उसे सामाजिक इज्जत मिलेगी. अगले दिन जब रामनाथ के आला पुलिस अफसरों ने आ कर भाग्यवती को शादी की बधाइयां दीं व भेंट दीं, तो उस की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. भाग्यवती को उस नरक जैसी जिंदगी से बाहर निकाल कर रामनाथ ने उसे दूसरी जिंदगी दी थी. प्यार के इस खूबसूरत अहसास से वे दोनों बहुत खुश थे.

लेखक- डा. राम सिंह यादव

Short Stories in Hindi : स्नेह की डोर – कौनसी उड़ी थी अफवाह

Short Stories in Hindi :  संजय  से हमारी मुलाकात बड़ी ही दर्दनाक परिस्थितियों में हुई थी. दीवाली आने वाली थी. बाजार की सजावट और खरीदारों की गहमागहमी देखते ही बनती थी. मैं भी दीवाली से संबंधित सामान खरीदने के लिए बाजार गई थी लेकिन जब होश आया तो मैं ने स्वयं को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. मेरे आसपास कई घायल बुरी तरह कराह रहे थे. चारों तरफ अफरातफरी मची थी. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. क्या हुआ, कैसे हुआ, मैं वहां कैसे पहुंची, कुछ भी याद नहीं आ रहा था.

मेरे शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे लेकिन वे ज्यादा गहरी नहीं लग रही थीं. मुझे होश में आया देख कर एक नौजवान मेरे पास आया और बड़ी ही आत्मीयता से बोला, ‘‘आप कैसी हैं? शुक्र है आप को होश आ गया.’’

अजनबियों की भीड़ में एक अजनबी को अपने लिए इतना परेशान देख कर अच्छा तो लगा, हैरानी भी हुई.

‘‘मैं यहां कैसे पहुंची? क्या हुआ था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बाजार में बम फटा है, कई लोग…’’ वह बहुत कुछ बता रहा था और मैं जैसे कुछ सुन ही नहीं पा रही थी. मेरे दिलोदिमाग पर फिर, बेहोशी छाने लगी. मैं अपनी पूरी ताकत लगा कर अपने को होश में रखने की कोशिश करने लगी. घर में निखिल को खबर करने या अपने इलाज के बारे में जानने के लिए मेरा होश में आना जरूरी था.

उस युवक ने मेरे करीब आ कर कहा, ‘‘आप संभालिए अपनेआप को. आप उस धमाके वाली जगह से काफी दूर थीं. शायद धमाके की जोरदार आवाज सुन कर बेहोश हो कर गिर गई थीं. इसी से ये चोटें आई हैं.’’

शायद वह ठीक कह रहा था. मेरे साथ ऐसा ही हुआ होगा, तभी तो मैं दूसरे घायलों की तरह गंभीर रूप से जख्मी और खून से लथपथ नहीं थी.

‘‘मैं यहां कैसे पहुंची?’’

उस ने बताया कि वह पास ही रहता है. धमाके के बाद पूरे बाजार में कोहराम मच गया था. इस से पहले कि पुलिस या ऐंबुलैंस आती, लोग घायलों की मदद के लिए दौड़ पड़े थे. उसी ने मुझे अस्पताल पहुंचाया था.

‘‘मेरा नाम संजय है,’’ कहते हुए उस ने तकिए के नीचे से मेरा पर्स निकाल कर दिया और फिर बोला, ‘‘यह आप का पर्स, वहीं आप के पास ही मिला था. इस में मोबाइल देख कर मैं ने आखिरी डायल्ड कौल मिलाई तो वह चांस से आप के पति का ही नंबर था, वे आते ही होंगे.’’

उस के इतना कहते ही मैं ने सामने दरवाजे से निखिल को अंदर आते देखा. वे बहुत घबराए हुए थे. आते ही उन्होंने मेरे माथे और हाथपैरों पर लगी चोटों का जायजा लिया. मैं ने उन्हें संजय से मिलवाया. उन्होंने संजय का धन्यवाद किया जो मैं ने अब तक नहीं किया था.

इतने में डाक्टरों की टीम वहां आ पहुंची. अभी भी अस्पताल में घायलों और उन के अपनों का आनाजाना जारी था. चारों तरफ चीखपुकार, शोर, आहेंकराहें सुनाई दे रही थीं. उस माहौल को देख कर मैं ने घर जाने की इच्छा व्यक्त की. डाक्टरों ने भी देखा कि मुझे कोई ऐसी गंभीर चोटें नहीं हैं, तो उन्होंने मुझे साथ वाले वार्ड में जा कर मरहमपट्टी करवा कर घर जाने की आज्ञा दे दी.

मैं निखिल का सहारा ले कर साथ वाले वार्ड में पहुंची. संजय हमारे साथ ही था. लेकिन मुझे उस से बात करने का कोई अवसर ही नहीं मिला. मैं अपना दर्द उस के चेहरे पर साफ देख रही थी. निखिल ने वहां से लौटते हुए उस का एक बार फिर से धन्यवाद किया और उसे दीवाली के दिन घर आने का न्योता दे दिया.

दीवाली वाले दिन संजय हमारे घर आया. मिठाई के डब्बे के साथ बहुत ही सुंदर दीयों का उपहार भी था. मेरे दरवाजा खोलते ही उस ने आगे बढ़ कर मेरे पैर छुए और दीवाली की शुभकामनाएं भी दीं. मैं ठिठकी सी खड़ी रह गई, तभी वह निखिल के पैर छूने के लिए आगे बढ़ गया. उन्होंने उसे दोनों हाथों से थाम कर गले लगा लिया, ‘‘अरे यार, ऐसे नहीं, गले मिल कर दीवाली की शुभकामनाएं देते हैं. हम अभी इतने भी बुजुर्ग नहीं हुए हैं.’’

हमारा बेटा, सारांश उस से ज्यादा देर तक दूर नहीं रह पाया. दोनों में झट से दोस्ती हो गई. थोड़ी ही देर में दोनों बमपटाखों, फुलझडि़यों को चलाने में खो गए. निखिल उन दोनों का साथ देते रहे लेकिन मैं तो कभी रसोई तो कभी फोन पर शुभकामनाएं देने वालों और घरबाहर दीए जलाने में ही उलझी रही. हालांकि वह रात का खाना खा कर गया लेकिन मुझे उस से उस दिन भी बात करने का अवसर नहीं मिला.

निखिल ने मुझे बताया कि वह मथुरा का रहने वाला है और यहां रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. यहां पास ही ए ब्लौक में दोस्तों के साथ कमरा किराए पर ले कर रहता है. ऐसे में दूसरों की मदद करने के लिए इस तरह आगे आना यह बताता है कि वह जरूर अच्छे संस्कारी परिवार का बच्चा है. निखिल ने तो उसे यहां तक कह दिया था कि जब कभी किसी चीज की जरूरत हो तो वह बेझिझक हम से कह सकता है.

संजय अब अकसर हमारे घर आने लगा था. हर बार आने का वह बड़ा ही मासूम सा कारण बता देता. कभी कहता इधर से निकल रहा था, सोचा आप का हालचाल पूछता चलूं. कभी कहता, सारांश की बहुत याद आ रही थी, सोचा थोड़ी देर उस के साथ खेल कर फ्रैश हो जाऊंगा तो पढ़ूंगा. कभी कहता, सभी दोस्त घर चले गए हैं, मैं अकेला बैठा बोर हो रहा था, सोचा आप सब को मिल आता हूं.

वह जब भी आता, घंटों चुपचाप बैठा रहता. बोलता बहुत कम. पूछने पर भी सवालों का जवाब टाल जाता. बहुत आग्रह करने पर ही वह कुछ खाने को तैयार होता. बहुत ही भावुक स्वभाव का था, बातबात पर उस की आंखें भीग जातीं. मुझे लगता, वह अपने परिवार से बहुत जुड़ाव रखता होगा. तभी अनजान शहर में अपनों से दूर उसे अपनत्व महसूस होता है इसलिए यहां आ जाता है.

सारांश को तो संजय के रूप में एक बड़ा भाई, एक अच्छा दोस्त मिल गया था. हालांकि दोनों की उम्र में लगभग 10 साल का अंतर था फिर भी दोनों की खूब पटती. पढ़ाईलिखाई की या खेलकूद की, कोई भी चीज चाहिए हो वह संजय के साथ बाजार जा कर ले आता. अब उस की छोटीछोटी जरूरतों के लिए मुझे बाजार नहीं भागना पड़ता. इतना ही नहीं, संजय पढ़ाई में भी सारांश की मदद करने लगा था. सारांश भी अब पढ़ाई की समस्याएं ले कर मेरे पास नहीं आता बल्कि संजय के आने का इंतजार करता.

संजय का आना हम सब को अच्छा लगता. उस का व्यवहार, उस की शालीनता, उस का अपनापन हम सब के दिल में उतर गया था. उस एक दिन की घटना में कोई अजनबी इतना करीब आ जाएगा, सोचा न था. फिर भी उस को ले कर एक प्रश्न मन को निरंतर परेशान करता कि उस दिन मुझे घायल देख कर वह इतना परेशान क्यों था? वह मुझे इतना सम्मान क्यों देता है?

दीवाली वाले दिन भी उस ने आदर से मेरे पांव छू कर मुझे शुभकामनाएं दी थीं. अब भी वह जब मिलता है मेरे पैरों की तरफ ही बढ़ता है, वह तो मैं ही उसे हर बार रोक देती हूं. मैं ने तय कर लिया कि एक दिन इस बारे में उस से विस्तार से बात करूंगी.

जल्दी ही वह अवसर भी मिल गया. एक दिन वह घर आया तो बहुत ही उदास था. सुबह 11 बजे का समय था. निखिल औफिस जा चुके थे और सारांश भी स्कूल में था. आज तक संजय जब कभी भी आया, शाम को ही आया था. निखिल भले औफिस से नहीं लौटे होते थे लेकिन सारांश घर पर ही होता था.

उसे इतना उदास देख कर मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है न, आज कालेज नहीं गए?’’

वह कुछ नहीं बोला, बस चुपचाप अंदर आ कर बैठ गया.

‘‘नाश्ता किया है कि नहीं?’’

‘‘भूख नहीं है,’’ कहते हुए उस की आंखें भीग गईं.

‘‘घर पर सब ठीक है न? कोई दिक्कत हो तो कहो,’’ मैं सवाल पर सवाल किए जा रही थी लेकिन वह खामोश बैठा टुकुरटुकुर मुझे देख रहा था. शायद वह कुछ कहना चाहता था लेकिन शब्द नहीं जुटा पा रहा था. मुझे लगा उसे पैसों की जरूरत है जो वह कहने से झिझक रहा है. घर से पैसे आने में देर हो गई है, इसीलिए कुछ खायापिया भी नहीं है और परेशान है. उस का मुरझाया चेहरा देख कर मैं अंदर से कुछ खाने की चीजें ले कर आई. मेरे बारबार आग्रह करने पर वह रोंआसे स्वर में बोला, ‘‘आज मेरी मां की बरसी है.’’

‘‘क्या?’’ सुनते ही मैं एकदम चौंक उठी. लेकिन उस का अगला वाक्य मुझे और भी चौंका गया. वह बोला, ‘‘आप की शक्ल एकदम मेरी मां से मिलती है. उस दिन पहली बार आप को देखते ही मैं स्वयं को रोक नहीं पाया था.’’

यह सब जान कर मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. मैं एकटक उसे देखती रह गई. थोड़ी देर यों ही खामोश बैठे रहने के बाद उस ने बताया कि उस की मां को गुजरे कई साल हो गए हैं. तब वह 7वीं में पढ़ता था. उस की मां उसे बहुत प्यार करती थी. वह मां को याद कर के अकसर अकेले में रोया करता था. बड़ी बहन ने उसे मां का प्यार दिया, उस के आंसू पोंछे, कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी लेकिन 2 साल हो गए, बहन की भी शादी हो गई और वह भी ससुराल चली गई.

मेरे मन में उस बिन मां के बच्चे के लिए ममता तो बहुत उमड़ी लेकिन वह मुझे मां कह सकता है, ऐसा मैं उसे नहीं कह पाई.

संजय में अब मुझे अपना बेटा ही नजर आने लगा था. सारांश का बड़ा भाई नजर आने लगा था. घर में कुछ भी विशेष बनाती तो चाहती कि वह भी आ जाए. बाजार जाती तो सारांश के साथसाथ उस के लिए भी कुछ न कुछ खरीदने को मन चाहता. हम दोनों के बीच स्नेह के तार जुड़ गए थे. मैं सारांश की ही भांति उस के भी खाने का खयाल रखने लगी थी, उस की फिक्र करने लगी थी.

संजय भी हम सब से बहुत घुलमिल गया था. अपनी हर छोटीबड़ी बात, अपनी हर समस्या मुझे ऐसे ही बताता जैसे वह अपनी मां से बात कर रहा हो. यह बात अलग है कि उम्र में इतने कम अंतर के कारण वह भी मुझे मां कहने से झिझकता था.

कुछ दिनों से मैं महसूस कर रही हूं कि जैसेजैसे संजय के साथ जुड़ा रिश्ता मजबूत होता जा रहा था वैसेवैसे निखिल और सारांश का रवैया कुछ बदलता जा रहा था. सारांश अब पहले की तरह उसे घर आया देख कर खुश नहीं होता और निखिल के चेहरे पर भी कोई ज्यादा खुशी के भाव अब नजर नहीं आते. अब वे उस से न ज्यादा बात करते हैं न ही उस से बैठने या कुछ खाने आदि के लिए आग्रह ही करते हैं.

सारांश तो बच्चा है. उस के व्यवहार, उस की बेवजह की जिद और शिकायतों से मुझे अंदाजा होने लगा था कि वह मेरा प्यार बंटता हुआ नहीं देख पा रहा है. मेरे समय, मेरे प्यार, मेरे दुलार, सब पर सिर्फ उसी का अधिकार है. इस सब का अंश मात्र भी वह किसी से बांटना नहीं चाहता. लेकिन निखिल को क्या हुआ है?

मैं कुछ समय से नोट कर रही हूं कि संजय को घर पर आया देख कर निखिल बेवजह छोटीछोटी बात पर चिल्लाने लगते हैं. अलग से बैडरूम में जा कर बैठ जाते हैं. बातोंबातों में संजय का जिक्र आते ही या तो उसे अनसुना कर देते हैं या झट से बातचीत का विषय ही बदल देते हैं. उन के ऐसे व्यवहार से मैं बहुत आहत हो जाती, तनाव में आ जाती.

एक दिन मैं ने निखिल से पूछ ही लिया कि आखिर बात क्या है? उन्हें संजय की कौन सी बात बुरी लग गई है? उन का व्यवहार संजय के प्रति इतना बदल क्यों गया है? निखिल ने भी कुछ नहीं छिपाया. उन्होंने जो कुछ कहा, सुन कर मैं सन्न रह गई.

निखिल का कहना था कि मुझे इस तरह संजय की बातों में आ कर भावनाओं में नहीं बहना चाहिए. इतने बड़े नौजवान को इस उम्र में मां के प्यार की नहीं, एक अच्छे दोस्त की जरूरत होती है. वह यदि अपनी भावनाओं को ठीक से समझ नहीं पा रहा है तो मुझे तो समझदारी से काम लेना चाहिए. संजय का इस तरह अकसर घर आना अफवाहों को हवा दे रहा है. बाहर दुनिया न जाने क्याक्या बातें बना रही होगी.

यह सब सुन कर मैं ने कई दिनों तक इस विषय पर बहुत मंथन किया. निखिल ऐसे नहीं हैं, न ही उन की सोच इतनी कुंठित है. ऐसा होता तो वह पहले ही दिन से संजय के साथ इतने घुलमिल न गए होते. वे मेरे बारे में भी कोई शकशुबहा नहीं रखते हैं. जरूर आसपड़ोस से ही उन्होंने कुछ ऐसावैसा सुना होगा जो उन्हें अच्छा नहीं लगा.

अब कहने वालों का मुंह तो बंद किया नहीं जा सकता, स्वयं को ही सुधारा जा सकता है कि किसी को कुछ कहने का अवसर ही न मिले. लोगों का क्या है, वे तो धुएं की लकीर देखते ही चिनगारियां ढूंढ़ने निकल पड़ते हैं. मैं ने निखिल को कोई सफाई नहीं दी. न ही मैं उन्हें यह बता पाई कि मैं तो संजय में अपने सारांश का भविष्य देखने लग गई हूं. संजय को देखती हूं तो सोचती हूं कि एक दिन हमारा सारांश भी इसी तरह बड़ा होगा. पढ़लिख कर इंजीनियर बनेगा. उसी तरह हमारा सम्मान करेगा, हमारा खयाल रखेगा.

मैं ने महसूस किया है कि अपने इस बदले हुए व्यवहार से निखिल भी सहज नहीं हैं. वे संजय से नाराज भी नहीं हैं. अगर उन्हें संजय का घर आना बुरा लगता होता तो वे उसे साफ शब्दों में मना कर देते. वे बहुत ही स्पष्टवादी हैं, मैं जानती हूं.

लेकिन मैं क्या करूं? संजय से क्या कहूं? उसे घर आने से कैसे रोकूं? वह तो टूट ही जाएगा. जब से उस ने घर आना शुरू किया है वह कितना खुश रहता है.

पढ़ाई में भी बहुत अच्छा कर रहा है. उस का इंजीनियरिंग का यह अंतिम वर्ष है. क्या दुनिया के डर से मैं उस का सुनहरा भविष्य चौपट कर दूं? उस ने तो कितने पवित्र रिश्ते की डोर थाम कर मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाया है. मैं एक औरत, एक मां हो कर उस बिन मां के बच्चे का हाथ झटक दूं?

अभी पिछले दिनों ही तो मदर्स डे के दिन कितने मन से मेरे लिए फूल, कार्ड और मेरी पसंद की मिठाई लाया था. कह रहा था, जिस दिन उस की नौकरी लग जाएगी वह मेरे लिए एक अच्छी सी साड़ी लाएगा. उस की इस पवित्र भावना को मैं दुनिया की बुरी नजर से कैसे बचाऊं?

मैं ने संजय के व्यवहार को बहुत बारीकी से जांचापरखा है लेकिन कहीं कुछ गलत नहीं पाया. उस की भावनाओं में कहीं कोई खोट नहीं है. फिर भी अब न चाहते हुए भी उस के घर आने पर मेरा व्यवहार बड़ा ही असहज हो उठता. पता नहीं आसपड़ोस वालों की गलत सोच मुझ पर हावी हो जाती या निखिल का व्यवहार या सारांश की बिना कारण चिड़चिड़ाहट और जिद मुझ से यह सब करवाती.

इधर संजय ने भी घर आना कम कर दिया है. पता नहीं हम सब के व्यवहार को देख कर यह फैसला किया है या उस ने भी लोगों की बातें सुन लीं या वास्तव में वह परीक्षा की तैयारी में व्यस्त था, जैसा कि उस ने बताया था. मुझे उस की बहुत याद आती. उस की चिंता भी रहती लेकिन मैं किसी से कुछ न कहती, न ही उसे बुलाती.

निखिल औफिस के काम से 10 दिनों के लिए ताइवान गए हुए थे. कल सुबह उन की वापसी थी. मैं और सारांश बहुत बेसब्री से उन के लौटने की राह देख रहे थे. सुबह से मेरी तबीयत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी. शाम होतेहोते अचानक जोरदार कंपकंपाहट के साथ मुझे तेज बुखार आ गया. घर में रखी बुखार की गोली खा ली है. लिहाफकंबल सभी कुछ ओढ़ने के बाद भी मैं कांपती ही जा रही थी. बुखार बढ़ता ही जा रहा था. मैं कब बेहोश हो गई, मुझे कुछ पता ही नहीं लगा.

अगले दिन सुबह जब ठीक से होश आया तो परेशान, दुखी, घबराया हुआ संजय मेरे सामने खड़ा था. उस की उंगली थामे साथ में सारांश भी खड़ा था. मुझे होश में आया देख कर सारांश आंखों में आंसू भर कर मम्मीमम्मी कहता हुआ मुझ से लिपट गया. भाव तो संजय के भी कुछ ऐसे ही थे. आंखें उस की भी सजल हो उठी थीं लेकिन वह अपनी जगह स्थिर खड़ा रहा. तभी निखिल भी आ पहुंचे.

तब हम ने जाना कि मेरी हालत देख कर सारांश पड़ोस की वीना आंटी को बुलाने दौड़ा तो वे लोग घर पर ही नहीं थे. तभी उस ने घबरा कर संजय को फोन कर दिया था. संजय डाक्टर को ले कर पहुंच गया. डाक्टर ने तुरंत मलेरिया का इलाज शुरू कर दिया और खून की जांच करवाने के लिए कहा. उस समय 104 डिगरी बुखार था. डाक्टर के कहे अनुसार संजय रात भर मेरे सिर पर पानी की पट्टियां रखता रहा और दवा देता रहा था. इतना ही नहीं, उस ने सारांश की भी देखभाल की थी.

‘‘तुम ने दूसरी बार मेरी पत्नी की जान बचाई है. मेरी गृहस्थी उजड़ने से बचाई है. मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूं,’’ कहते हुए निखिल ने संजय को गले से लगा लिया. निखिल बहुत भावुक हो उठे थे. मैं जानती हूं, वे मुझ से बहुत प्यार करते हैं. मेरी जरा सी परेशानी उन्हें झकझोर देती है.

‘‘यह तो मेरा फर्ज था. मैं एक बार अपनी मां को खो चुका हूं, दोबारा…’’ संजय के जो आंसू अभी तक पलकों में छिपे हुए थे, बह निकले. आंसू तो निखिल की भी आंखों में थे, पता नहीं मेरे ठीक होने की खुशी के थे या संजय के प्रति अपने व्यवहार के पश्चात्ताप के लिए थे.

‘‘तुम दोनों बैठो अपनी मां के पास, मैं नाश्ते का प्रबंध करता हूं. मैं भी रातभर सफर में था और लगता है तुम लोगों ने भी कल रात से कुछ नहीं खाया है,’’ कहते हुए निखिल जल्दी से बाहर चले गए.

मैं जान गई हूं कि अब निखिल को दुनिया की कोई परवा नहीं, उन्होंने मेरे और संजय के रिश्ते की पवित्रता को दिल से स्वीकार कर लिया था.

Famous Hindi Stories : शादी का जख्म – क्या सच्चा था नौशाद का प्यार

Famous Hindi Stories : मारिया की ड्यूटी आईसीयू में थी. जब वह बैड नंबर 5 के पास पहुंची तो सुन्न रह गई. उस के पांव जैसे जमीन ने जकड़ लिए. बैड पर नौशाद था, वही चौड़ी पेशानी, गोरा रंग, घुंघराले बाल. उस का रंग पीला हो रहा था. गुलाबी होंठों पर शानदार मूंछें, बड़ीबड़ी आंखें बंद थीं. वह नींद के इंजैक्शन के असर में था.

मारिया ने खुद को संभाला. एक नजर उस पर डाली. सब ठीक था. वैसे वह उस के ड्यूटीचार्ट में न था. बोझिल कदमों से वह अपनी सीट पर आ गई. मरीजों के चार्ट भरने लगी. उस के दिलोदिमाग में एक तूफान बरपा था. जहां वह काम करती थी वहां जज्बात नहीं, फर्ज का महत्त्व था. वह मुस्तैदी से मरीज अटैंड करती रही.

काम खत्म कर अपने क्वार्टर पर पहुंची तो उस के सब्र का बांध जैसे टूट गया. आंसुओं का सैलाब बह निकला. रोने के बाद दिल को थोड़ा सुकून मिल गया. उस ने एक कप कौफी बनाई. मग ले कर छोटे से गार्डन में बैठ गई. फूलों की खुशबू और ठंडी हवा ने अच्छा असर किया. उस की तबीयत बहाल हो गई. खुशबू का सफर कब यादों की वादियों में ले गया, पता ही नहीं चला.

मारिया ने नर्सिंग का कोर्स पूरा कर लिया तो उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिली. अपनी मेहनत व लगन से वह जल्द ही अच्छी व टैलेंटेड नर्सों में गिनी जाने लगी. वह पेशेंट्स से बड़े प्यार से पेश आती. उन का बहुत खयाल रखती. व्यवहार में जितनी विनम्र, सूरत में उतनी ही खूबसूरत, गंदमी रंगत, बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी होंठ. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता. होंठों पर हमेशा मुसकान.

उन्हीं दिनों नर्सिंगहोम में एक पेशेंट भरती हुआ. उस का टायफायड बिगड़ गया था. वह लापरवाह था. परहेज भी नहीं करता था. उस की मां ने परेशान हो कर नर्सिंगहोम में भरती कर दिया. उस के रूम में मारिया की ड्यूटी थी. अपने अच्छे व्यवहार और मीठी जबान से जल्द ही उस ने मरीज और मर्ज दोनों पर काबू पा लिया.

मारिया के समझाने से वह वक्त पर दवाई लेता और परहेज भी करता. एक हफ्ते में उस की तबीयत करीबकरीब ठीक हो गईर्. नौशाद की अम्मा बहुत खुश हुई. बेटे के जल्दी ठीक होने में वह मारिया का हाथ मानती. वह बारबार उस के एहसान का शुक्रिया अदा करती. मारिया को पता ही नहीं चला कब उस ने नौशाद के दिल पर सेंध लगा दी.

अब नौशाद उस से अकसर मिलने आ जाता. शुक्रिया कहने के बहाने एक बार कीमती गिफ्ट भी ले आया. मारिया ने सख्ती से इनकार कर दिया और गिफ्ट नहीं लिया. धीरेधीरे अपने प्यारभरे व्यवहार और शालीन तरीके से नौशाद ने मारिया के दिल को मोम कर दिया. अगर रस्सी पत्थर पर बारबार घिसी जाए तो पत्थर पर भी निशान बन जाता है, वह तो फिर एक लड़की का नाजुक दिल था. वैसे भी, मारिया प्यार की प्यासी और रिश्तों को तरसी हुई थी.

मारिया ने जब मैट्रिक किया, उसी वक्त उस के मम्मीपापा एक ऐक्सिडैंट में चल बसे थे. करीबी कोई रिश्तेदार न था. रिश्ते के एक चाचा मारिया को अपने साथ ले आए. अच्छा पैसा मिलने की उम्मीद थी. चाचा के 5 बच्चे थे, मुश्किल से गुजरबसर होती थी.

मारिया के पापा के पैसों के लिए दौड़धूप की, उसे समझा कर पैसा अपने अकाउंट में डाल लिया. अच्छीखासी रकम थी. चाचा ने इतना किया कि मारिया की आगे की पढ़ाई अच्छे से करवाई. वह पढ़ने में तेज भी थी. अच्छे इंस्टिट्यूट से उसे नर्सिंग की डिगरी दिलवाई. उस की सारी सहूलियतों का खयाल रखा. जैसे ही उस का नर्सिंग का कोर्स पूरा हुआ, उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिल गई.

जौब मिलते ही चाचा ने हाथ खड़े कर दिए और कहा, ‘हम ने अपना फर्ज पूरा कर दिया. अब तुम अपने पैरों पर खड़ी हो गई हो. तुम्हें दूसरे शहर में जौब मिल गई. तुम्हारे पापा का पैसा भी खत्म हो गया. इस से ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते हैं. हमारे सामने हमारे 5 बच्चे भी हैं.’

चाची तो वैसे ही उस से खार खाती थी, जल्दी से बोल पड़ी, ‘हम से जो बना, कर दिया. आगे हम से कोईर् उम्मीद न रखना. अपनी सैलरी जमा कर के शादीब्याह की तैयारी करना. हमें हमारी

3 लड़कियों को ठिकाने लगाना है. वहां इज्जत से नौकरी करना, हमारा नाम खराब मत करना. अगर कोई गलत काम करोगी तो हमारी लड़कियों की शादी होनी मुश्किल हो जाएगी.’

सारी नसीहतें सुन कर मारिया नई नौकरी पर रवाना हुई. वह जानती थी कि उस के पापा के काफी पैसे बचे हैं. पर बहस करने से या मांगने से कोई फायदा न था. चाचा सारे जहां के खर्चे गिना देते. उस का पैकेज अच्छा था. अस्पताल में नर्सों के लिए बढि़या होस्टल था. मारिया जल्द ही सब से ऐडजस्ट हो गई. अपने मिलनसार व्यवहार से जल्द ही वह पौपुलर हो गई.

एना से उस की अच्छी दोस्ती हो गई. वह उस के साथ काम करती थी. एना अपने पेरैंटस के साथ रहती थी. उस के डैडी माजिद अली शहर के मशहूर एडवोकेट थे. जिंदगी चैन से गुजर रही थी कि नौशाद से मुलाकात हो गई. नौशाद की मोहब्बत के जादू से वह लाख चाह कर भी बच न सकी. एना उस की राजदार भी थी. मारिया ने नौशाद के प्रपोजल के बारे में एना को बताया.

एना ने कहा, ‘हमें यह बात डैडी को

बतानी चाहिए. उन दोनों ने नौशाद

के प्रस्ताव की बात माजिद अली को बताई. माजिद अली ने कहा, ‘मारिया बेटा, मैं 8-10 दिनों में नौशाद के बारे में पूरी मालूमात कर के तुम्हें बताऊंगा. उस के बाद ही तुम कोई फैसला करना.’

कुछ दिनों बाद माजिद साहब ने बताया, ‘नौशाद एक अच्छा कारोबारी आदमी है. इनकम काफी अच्छी है. लेदर की फैक्टरी है. सोसायटी में नाम व इज्जत है. परिवार भी छोटा है. पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. एक बहन आस्ट्रेलिया में है. शादी के बाद वह वहीं सैटल हो गई है. घर में बस मां है. नौशाद घुड़सवारी व घोड़ों का शौकीन है. स्थानीय क्लब का मैंबर है. पर एक बुरी लत है कि शराब पीता है. वैसे, आजकल हाई सोसायटी में शराब पीना आम बात है. ये सब बातें देखते हुए तुम खुद सोचसमझ कर फैसला करो. मुझे तो रिश्ता अच्छा लग रहा है. बाकी तुम देख लो बेटा.’ मारिया ने खूब सोचसमझ कर रिश्ते के लिए हां कर दी.

शादी का सारा इंतजाम माजिद साहब ने किया. शादी में चाचाचाची के अलावा उस की सहेलियां व माजिद साहब के कुछ दोस्त शामिल हुए. बरात में कम ही लोग थे. नौशाद के बहनबहनोई और कुछ रिश्तेदार व दोस्त. शादी में चाचा ने एक चेन व लौकेट दिए.

मारिया शादी के बाद नौशाद के शानदार बंगले में आ गई. अम्मा ने उस का शानदार स्वागत किया. धीरेधीरे सब मेहमान चले गए. अब घर पर अम्मा और मारिया व एक पुरानी बूआ थीं. सर्वेंट क्वार्टर में चौकीदार व उस की फैमिली रहती थी. अम्मा बेहद प्यार से पेश आतीं. वे दोनों हनीमून पर हिमाचल प्रदेश गए. 2-3 महीने नौशाद की जनूनी मोहब्बत में कैसे गुजर गए, पता नहीं चला.

जिंदगी ऐश से गुजर रही थी. धीरेधीरे सामान्य जीवन शुरू हो गया. मारिया ने नर्सिंगहोम जाना शुरू कर दिया. घर का सारा काम बूआ करतीं. कभीकभार मारिया शौक से कुछ पका लेती. सास बिलकुल मां की तरह चाहती थीं.

मारिया अपनी ड्यूटी के साथसाथ नौशाद व अम्मा का भी खूब खयाल रखती. सुखभरे दिन बड़ी तेजी से गुजर रहे थे. सुखों की भी अपनी एक मियाद होती है. अब नौशाद के सिर से मारिया की मोहब्बत का नशा उतर रहा था.

अकसर ही नौशाद पी कर घर आता. मारिया ने प्यार व गुस्से से उसे समझाने की बहुत कोशिश की. पर उस पर कुछ असर न हुआ. ऐसे जनूनी लोग जब कुछ पाने की तमन्ना करते हैं तो उस के पीछे पागल हो जाते हैं और जब पा लेते हैं तो वह चाहत, वह जनून कम हो जाता है.

एक दिन करीब आधी रात को नौशाद नशे में धुत आया. मारिया ने बुराभला कहना शुरू किया. नौशाद भड़क उठा. जम कर तकरार हुई. नशे में नौशाद ने मारिया को धक्का दिया. वह गिर पड़ी. गुस्से में उस ने उसे 2-3 लातें जमा दीं. चीख सुन कर अम्मा आ गईं. जबरदस्ती नौशाद को हटाया. उसे बहुत बुराभला कहा. पर उसे होश कहां था. वह वहीं बिस्तर पर ढेर हो गया. अम्मा मारिया को अपने साथ ले गईं. बाम लगा कर सिंकाई की. उसे बहुत समझाया, बहुत प्यार किया.

दूसरे दिन मारिया कमरे से बाहर न निकली, न अस्पताल गई. नौशाद 1-2 बार कमरे में आया पर मारिया ने मुंह फेर लिया. 2 दिनों तक ऐसे ही चलता रहा. तीसरे दिन शाम को नौशाद जल्दी आ गया, साथ में फूलों का गजरा लाया. मारिया से खूब माफी मांगी. बहुत मिन्नत की और वादा किया कि अब ऐसा नहीं होगा. मारिया के पास माफ करने के अलावा और कोई रास्ता न था. नौशाद पीता तो अभी भी था पर घर जल्दी आ जाता था. मारिया हालात से समझौता करने पर मजबूर थी. वैसे भी, नर्सों के बारे में गलत बातें मशहूर हैं. सब उस पर ही इलजाम लगाते.

उस दिन मारिया के अस्पताल में कार्यक्रम था. एक बच्ची खुशी का बर्थडे था. उस की मां बच्ची को जन्म देते ही चल बसी. पति उसे छोड़ चुका था. एक विडो नर्स ने सारी कार्यवाही पूरी कर के उसे बेटी बना लिया.

अस्पताल का सारा स्टाफ उसे बेटी की तरह प्यार करता था. उस का बर्थडे अस्पताल में शानदार तरीके से मनाया जाता था. मारिया उस बर्थडे में शामिल होने के लिए घर से अच्छी साड़ी ले कर गई थी. अम्मा को बता दिया था कि आने में उसे देर होगी. प्रोग्राम खत्म होतेहोते रात हो गई. उस के सहयोगी डाक्टर राय उसे छोड़ने आए थे. नौशाद घर आ चुका था.

सजीसंवरी मारिया घर में दाखिल हुई. वह अम्मा को प्रोग्राम के बारे में बता रही थी कि कमरे से नौशाद निकला. वह गुस्से से तप रहा था, चिल्ला कर बोला, ‘इतना सजधज कर किस के साथ घूम रही हो? कौन तुम्हें ले कर आया है? शुरू कर दीं अपनी आवारागर्दियां? तुम लोग कभी सुधर नहीं सकते.’

वह गुस्से से उफन रहा था. उस के मुंह से फेन निकल रहा था. उस ने जोर से मारिया को एक थप्पड़ मारा. मारिया जमीन पर गिर गई. उस ने झल्ला कर एक लात जमाई.

अम्मा ने धक्का मार कर उसे दूर किया. अम्मा के गले लग कर मारिया देर रात तक रोती रही. बर्थडे की सारी खुशी मटियामेट हो गई. 2-3 दिनों तक वह घर में रही. पूरे घर का माहौल खराब हो गया. मारिया ने उस से बात करनी छोड़ दी.

ऐसे कब तक चलता. फिर से नौशाद ने खूब मनाया, बहुत शर्मिंदा हुआ, बहुत माफी मांगी, ढेरों वादे किए. न चाहते हुए भी मारिया को झुकना पड़ा. पर इस बार उसे बड़ी चोट पहुंची थी. उस ने एक बड़ा फैसला किया, नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उसे घर बचाना था. उसे घर या नौकरी में से किसी एक को चुनना था. उस ने घरगृहस्थी चुनी. अब घर में सुकून हो गया. जिंदगी अपनी डगर पर चल पड़ी. फिर भी नौशाद कभी ज्यादा पी कर आता, तो हाथ उठा देता. मारिया हालात से समझौता करने को मजबूर थी.

शादी को 2 साल हो गए. उस के दिल में औलाद की आरजू पल रही थी. अम्मा ने खुले शब्दों में औलाद की फरमाइश कर दी थी. उस की आरजू पूरी हुई. मारिया ने अम्मा को खुशखबरी सुनाई. अम्मा बहुत खुश हुईं. उन्होंने मारिया को पूरी तरह आराम करने की हिदायत दे दी. नौशाद ने कोई खास खुशी का इजहार नहीं किया. अम्मा उस का खूब खयाल रखतीं. दिन अच्छे गुजर रहे थे.

उस दिन नौशाद जल्दी आ गया था. मारिया जब कमरे में गई तो वह पैग बना रहा था. मारिया खामोश ही रही. कुछ कहने का मतलब एक हंगामा खड़ा करना. नौशाद कहने लगा, ‘मारिया, तुम अपने अस्पताल में तो अल्ट्रासाउंड करवा सकती हो, ताकि पता चल जाए लड़का है या लड़की. मुझे तो बेटा चाहिए.’

मारिया ने अल्ट्रासाउंड कराने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘मुझे नहीं जानना है कि लड़की है या लड़का. जो भी होगा, उसे मैं सिरआंखों पर रखूंगी. मैं तुम्हारी कोई शर्त नहीं सुनूंगी. मैं मां हूं, मुझे हक है बच्चे को जन्म देने का चाहे वह लड़का हो या लड़की.’

बात बढ़ती गई. नौशाद को उस का इनकार सुन कर गुस्सा आ गया. फिर नशा भी चढ़ रहा था. मारिया पलंग पर लेटी थी. उस ने मारना शुरू कर दिया. एक लात उस के पेट पर मारी. मारिया बुरी तरह तड़प रही थी. पेट पकड़ कर रो रही थी. चीख रही थी. अम्मा व बूआ ने फौरन सहारा दे कर मारिया को उठाया. उसे अस्पताल ले गईं. वहां फौरन ही उस का इलाज शुरू हो गया. कुछ देर बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि मारिया का अबौर्शन करना पड़ा. उस की हालत सीरियस है.

अम्मा और बूआ पूरी रात रोती रहीं. दूसरे दिन मारिया की हालत थोड़ी संभली. नौशाद आया तो अम्मा ने उसे खूब डांटा, मना करती थी मत मार बीवी को लातें. उस की कोख में तेरा बच्चा पल रहा है, तेरे खानदान का नाम लेवा. पर तुझे अपने गुस्से पर काबू कब रहता है? नशे में पागल हो जाता है. अब सिर पकड़ कर रो, बच्चा पेट में ही मर गया.

एना और माजिद साहब भी आ गए. वे लोग रोज आते रहे. मारिया की देखरेख करते रहे. नौशाद की मारिया के सामने जाने की हिम्मत नहीं हुई. हिम्मत कर के गया तो मारिया ने न तो आंखें खोलीं, न उस से बात की. उस का सदमा बहुत बड़ा था. मारिया जब अस्पताल से डिस्चार्ज हुई तो उस ने अम्मा से साफ कह दिया कि वह नौशाद के साथ नहीं रह सकती.

मारिया एना व माजिद साहब के साथ उन के घर चली गई. नौशाद ने मिलने की, मनाने की बहुत कोशिश की, पर मारिया नहीं मिली. अब माजिद साहब एक मजबूत दीवार बन कर खड़े हो गए थे.

नौशाद फिर आया तो मारिया ने तलाक की मांग रख दी. नौशाद ने खूब माफी मांगी, मिन्नतें कीं पर इस बार मारिया के मातृत्व पर लात पड़ी थी, वह बरदाश्त न कर सकी, तलाक पर अड़ गई. नौशाद ने साफ इनकार कर दिया. मारिया ने माजिद साहब से कहा, ‘‘अगर नौशाद तलाक देने पर नहीं राजी है तो आप उसे खुला (खुला जब पत्नी पति से अलग होना चाहती है, इस में उसे खर्चा व मेहर नहीं मिलता) का नोटिस दे दें.’’

माजिद साहब की कोशिश से उसे जल्दी खुला मिल गया. एना और उस की अम्मी ने खूब खयाल रखा. अम्मा 2-3 बार आईं. मारिया को समझाने व मनाने की बहुत कोशिश की. पर मारिया अलग होने का फैसला कर चुकी थी. धीरेधीरे उस के जिस्म के साथसाथ दिल के जख्म भी भरने लगे. 3 महीने बाद उसे इस अस्पताल में जौब मिल गई. यहां स्टाफक्वार्टर भी थे. वह उस में शिफ्ट हो गई.

माजिद साहब और एना ने बहुत चाहा कि वह उन के घर में ही रहे, पर वह न मानी. उस ने स्टाफक्वार्टर में रहना ही मुनासिब समझा. माजिद साहब और उन की पत्नी बराबर आते और उस की खोजखबर लेते रहे.

एना की शादी पर वह पूरा एक  हफ्ता उस के यहां रही. शादी का काफी काम उस ने संभाल लिया. शादी में इरशाद, माजिद साहब का भतीजा, दुबई से आया था. काफी स्मार्ट और अच्छी नौकरी पर था. पर मनपसंद लड़की की तलाश में अभी तक शादी न की थी. उसे मारिया बहुत पसंद आई. माजिद साहब से उस ने कहा कि उस की शादी की बात चलाएं. माजिद साहब ने उसे मारिया की जिंदगी की दर्दभरी दास्तान सुना दी. सबकुछ जान कर भी इरशाद मारिया से ही शादी करना चाहता था.

माजिद साहब ने जब मारिया से इस बारे में बात की तो उस ने साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं ने एक शादी में इतना कुछ भुगत लिया है. अब तो शादी के नाम से मुझे कंपकंपी होती है. आप उन्हें मना कर दें. अभी तो मैं सोच भी नहीं सकती.’’

माजिद साहब ने इरशाद को मारिया के इनकार के बारे में बता दिया. पर उस ने उम्मीद न छोड़ी.

डेढ़ साल बाद आज नौशाद को आईसीयू में यों पड़ा देख कर मारिया के पुराने जख्म ताजा हो गए. दर्द फिर आंखों से बह निकला. दूसरे दिन वह अस्पताल गई तो अम्मा बाहर ही मिल गईं. उसे गले लगा कर सिसक पड़ीं.

जबरदस्ती उसे नौशाद के पास ले गईं और कहा, ‘‘देखो, तुम पर जुल्म करने वाले को कैसी सजा मिली है.’’ यह कह कर उन्होंने चादर हटा दी. नौशाद का एक पांव घुटने के पास से कटा हुआ था. मारिया देख कर सहम गई. अम्मा रोते हुए बोलने लगीं, ‘‘वह इन्हीं पैरों से तुम्हें मारता था न, इसी लात ने तुम्हारी कोख उजाड़ी थी. देखो, उस का क्या अंजाम हुआ. नशे में बड़ा ऐक्सिडैंट कर बैठा.’’

नौशाद ने टूटेफूटे शब्दों में माफी मांगी. मारिया की मिन्नतें करने लगा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. मारिया का दिल भर आया. वह आईसीयू से बाहर आ गई. अम्मा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘बेटा, मेरा बच्चा अपने किए को भुगत रहा है. बहुत पछता रहा है. तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी अहमियत का अंदाजा हुआ उसे. बहुत परेशान था. पर अब रोने से क्या हासिल था? मारिया, मेरी तुम से गुजारिश है, एक बार फिर उसे सहारा दे दो. तुम्हारे सिवा उसे कोई नहीं संभाल सकता. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. तुम लौट आओ. तुम्हारे बिना हम सब बरबाद हैं.’’

मारिया ने अम्मा के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘अम्मा, अब यह नामुमकिन है. मैं किसी कीमत पर उस राह पर वापस नहीं पलट सकती. जो कुछ मुझ पर गुजरी है उस ने मेरे जिस्म ही नहीं, जिंदगी को भी तारतार कर दिया है. मैं अब उस के साथ एक पल गुजारने की सोच भी नहीं सकती. आप से अपील है आप अपने दिल में भी इस बात का खयाल न लाएं. आप उस की दूसरी जगह शादी कर दें.’’

मारिया घर लौट कर उस बारे में ही सोचती रही. उसे लगा, अम्मा के आंसू और मिन्नतें वह कब तक टालेगी? इस का कोई स्थायी हल निकालना जरूरी है. कुछ देर में उस के दिमाग ने फैसला सुना दिया. मारिया ने माजिद साहब को फोन लगाया और कहा, ‘‘अंकल, मैं इरशाद से शादी करने के लिए तैयार हूं. आप उन्हें हां कर दें.’’ अब किसी नए इम्तिहान में पड़ने का उस का कोई इरादा न था, नौशाद से बचने का सही हल इरशाद से शादी करना था.

आज उस ने दिल से नहीं, दिमाग से फैसला लिया था. दिल से फैसले का अंजाम वह देख चुकी थी.

लेखक- शकीला एस हुसैन

Hindi Kahaniyan : तितली रंगबिरंगी: गायत्री का क्या था फैसला

Hindi Kahaniyan : रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मी और पापा के आपसी झगड़ों की कड़वी आवाज़ों से हुई . सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी ,चिकचिक सुनकर उसने चादर सर से ओढ़ ली ,आवाज़ पहले से कम तो हुई पर अब भी कानो से टकरा रही थी .

सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गयी थी पास में पड़े मोबाइल को टटोलकर उसमें एयरफोन लगाकर बड्स को कानो में कसकर ठूंस लिया और वॉल्यूम को फुल कर दिया .

अट्ठारह वर्षीय सियाली के लिए ये कोई नयी बात नहीं थी ,उसके माँबाप आये दिन ही झगड़ते रहते थे जिसका सीधा कारण था  उन दोनों के संबंधों में खटास का होना  …..ऐसी खटास जो एक बार जीवन में आ जाये तो आपसी रिश्तों की परिणिति उनका खात्मा ही होती है .

सियाली के माँबाप प्रकाश यादव और निहारिका यादव के संबंधों में ये खटास कोई एक दिन में नहीं आई बल्कि ये तो एक मध्यमवर्गीय परिवार के कामकाजी दम्पत्ति के आपसी सामंजस्य  बिगड़ने के कारण धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी   .

सियाली का पिता अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था उसका शक करना भी एकदम जायज था क्योंकि निहारिका का अपने आफिसकर्मी के साथ संबंध चल रहा था ,पतिपत्नी के हिंसा और शक समानुपाती थे ,जितना शक गहरा हुआ उतना ही प्रकाश की हिंसा बढ़ती गई और जिसका परिणाम परपुरुष के साथ निहारिका का प्रेम बढ़ता गया .

“जब दोनो साथ नहीं रह सकते तो तलाक क्यों नहीं दे देते … एक दूसरे को ”सियाली बिस्तर से उठते हुए झुंझुलाते हुए बोली

सियाली जब अपने कमरे से बाहर आई तो  दोनो काफी हद तक शांत हो चुके थे, शायद वे किसी निर्णय तक पहुच गए थे.

“तो ठीक है मैं कल ही वकील से बात कर लेता हूँ …..पर सियाली को अपने साथ कौन रखेगा?” प्रकाश ने निहारिका की ओर घूरते हुए कहा

“मैं समझती हूं ….सियाली को तुम मुझसे बेहतर सम्भाल सकते हो” निहारिका ने कहा ,उसकी इस बात पर प्रकाश भड़क सा गया

“हाँ …तुम तो सियाली को मेरे पल्ले बांधना ही चाहती हो ताकि तुम अपने उस ऑफिस वाले के साथ गुलछर्रे उड़ा सको और मैं एक जवान लड़की के चारो तरफ एक गार्ड बनकर घूमता रहूँ ”

प्रकाश की इस बात पर निहारिका ने भी तेवर दिखाते हुए कहा कि “मर्दों के समाज में क्या सारी जिम्मेदारी एक माँ की ही होती है ?”

निहारिका ने गहरी सांस ली और कुछ देर रुक कर बोली

“हाँ …वैसे सियाली कभीकभी मेरे पास भी आ सकती है ….एकदो दिन मेरे साथ रहेगी तो मुझे भी ऐतराज़ नहीं होगा ”निहारिका ने मानो फैसला सुना दिया था

सियाली कभी माँ की तरफ देख रही थी तो कभी अपनी पिता की तरफ ,उससे कुछ कहते न बना पर इतना समझ गयी थी कि माँबाप ने अपनाअपना रास्ता अलग कर लिया है और उसका अस्तित्व एक पेंडुलम से अधिक नहीं है  जो दोनो के बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोल रही है  .

माँबाप के बीच इस रोज़रोज़ के झगड़े ने एक अजीब से विषाद से भर दिया था सियाली को  और इस विषाद का अंत शायद तलाक जैसी चीज से ही सम्भव था इसलिए सियाली के मन में कहीं न कहीं चैन की सांस ने प्रवेश किया कि चलो आपस की कहा सुनी अब खत्म हुई और अब सबके रास्ते अलगअलग है .

शाम को कॉलेज से लौटी तो घर में एक अलग सी शांति थी ,पापा भी सोफे में धंसे हुए चाय पी रहे थे ,चाय जो उन्होंने खुद ही बनाई थी ,उनके चेहरे पर कई महीनों से बनी रहने वाली तनाव की वो शिकन गायब थी ,सियाली को देखकर उन्होंने मुस्कुराने की कोशिश भी करी

“देख ले…. तेरे लिए चाय बची होगी ….ले ले मेरे पास आकर बैठकर पी ”

सियाली पापा के पास आकर बैठी तो पापा ने अपनी सफाई में काफी कुछ कहना शुरू किया. “मैं बुरा आदमी नहीं हूँ पर तेरी मम्मी ने भी तो गलत किया था उसके कर्म  ही ऐसे थे कि मुझे उसे देखकर गुस्सा आ ही जाता था और फिर तेरी माँ ने भी तो रिश्तों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी  ”

पापा की बातें सुनकर सियाली से भी नहीं रहा गया. “मैं नहीं जानती कि आप दोनो में से कौन सही है और कौन गलत पर इतना ज़रूर जानती हूं कि शरीर में अगर नासूर हो जाये तो आपरेशन ही सही रास्ता और ठीक इलाज होता है ” दोनो बापबेटी ने कई दिनों के बाद आज खुलकर बात करी थी ,पापा की बातों में माँ के प्रति नफरत और द्वेष ही छलक रहा था जिसे चुपचाप सुनती रही थी सियाली .

अगले दिन ही सियाली के मोबाइल पर माँ का फोन आया और उन्होंने सियाली को अपना एड्रेस देते हुए शाम को उसे अपने फ्लैट पर आने को कहा जिसे सियाली ने खुशीखुशी मान भी लिया था और शाम को माँ के पास जाने की सूचना भी उसने अपने पापा को दे दी जिस पर पापा को भी कोई ऐतराज नहीं हुआ .

शाम को “शालीमार अपार्टमेंट” में पहुच गई थी सियाली ,पता नहीं क्या सोचकर उसने लाल गुलाब का एक बुके खरीद लिया था ,फ्लैट नंबर एक सौ ग्यारह में सियाली पहुच गई थी.

कॉलबेल बजाई ,दरवाज़ा माँ ने  खोला था , अब चौकने की बारी सियाली की थी माँ गहरे लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी ,माँग में भरा हुआ सिंदूर और माथे पर तिलक की शक्ल में लगाई हुई बिंदी ,सियाली को याद नहीं कि उसने माँ को कब इतनी अच्छी तरह से श्रंगार किये हुए देखा था ,हमेशा सादे वेश में ही रहती थी माँ और टोकने पर दलील देती

“अरे हम कोई ब्राह्मणठाकुर तो है नहीं जो हमेशा सिंगार ओढ़े रहें ….हम पिछड़ी जाति वालों के लिए सिंपल रहना ही अच्छा है ”

तो फिर आज माँ को ये क्या हो गया ?

उनकी सिम्पलीसिटी आज श्रंगार में कैसे परिवर्तित हो गई थी और क्यों वो जाति की दलीलें देकर सही बात को छुपाना चाह रही थी .

सियाली ने बुके माँ को दे दिये ,माँ ने बहुत उत्साह से बुके ले लिए और कोने की मेज पर सज़ा दिए .

“अरे अंदर आने को नहीं कहोगी सियाली से “माँ के पीछे से आवाज़ आई ,आवाज़ की दिशा में नज़र उठाई तो देखा कि सफेद कुर्ता और पाजामा पहने हुए एक आदमी खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था ,सियाली उसे पहचान गई ये माँ का सहकर्मी देशवीर था ,माँ इसे पहले भी घर भी ला चुकी थी .

माँ ने बहुत खुशीखुशी देशवीर से सियाली का परिचय कराया जिसपर सियाली ने कहा, “जानती हूँ माँ ….पहले भी तुम इनसे मिला चुकी हो मुझे ”

“पर पहले जब मिलवाया था तब ये सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त थे  पर आज मेरे सब कुछ हैं….हम लोग फिलहाल तो लिवइन में रह रहे हैं और तलाक का फैसला होते ही शादी भी कर लेंगे  ”

मुस्कुराकर रह गयी थी सियाली

सबने एक साथ खाना खाया , डाइनिंग टेबल पर भी माहौल सुखद ही था ,माँ के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी और ये चमक कृत्रिम या किसी फेशियल की नहीं थी ,उनके मन की खुशी उनके चेहरे पर झलक रही थी .

सियाली रात में माँ के साथ ही सो गई और सुबह वहीँ से कॉलेज के लिए निकल गयी ,चलते समय माँ ने उसे दो हज़ार रुपये देते हुए कहा

“रख ले…घर जाकर पिज़्ज़ा आर्डर कर देना  ”

कल से लेकर आज तक माँ ने सियाली के सामने एक आदर्श माँ होने के कई उदाहरण प्रस्तुत किये थे पर सियाली को ये सब नहीं भा रहा था और न ही उसे समझ में आ रहा था कि ये माँ का कैसा प्यार है जो उसके पिता से अलग होने के बाद और भी अधिक छलक रहा है.

फिलहाल तो वो अपनी ज़िंदगी खुलकर जीना चाहती थी इसलिए माँ के दिए गए पैसों से सियाली  उसी दिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने चली गयी .

“पर सियाली आज तू ये किस खुशी में पार्टी दे रही है ?”महक ने पूछा

“बस यूँ समझो …आज़ादी की ”मुस्कुरा दी थी सियाली.

सच तो ये था कि माँबाप के अलगाव के बाद सियाली भी बहुत रिलेक्स महसूस कर रही थी ,रोज़रोज़ की टोकाटाकी से अब उसे मुक्ति मिल चुकी थी और सियाली अब अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी इसीलिए उसने अपने दोस्तों से  अपनी एक इच्छा बताई .

“यार मैं एक डांस ट्रूप (नृत्य मंडली ) जॉइन करना चाहती हूं ताकि मैं अपने जज़्बातों को डांस के द्वारा दुनिया के सामने पेश कर सकूं ”सियाली ने कहा जिसपर उसके दोस्तों ने उसे और भी कई रास्ते बताए जिनसे वो अपने आपको व्यक्त कर सकती थी जैसे ड्राइंग,सिंगिंग,मिट्टी के बर्तन बनाना पर सियाली तो मज़े और मौजमस्ती के लिए डांस ट्रूप जॉइन करना चाहती थी इसलिए उसे  बाकी के ऑप्शन नहीं अच्छे लगे .

अपने शहर के डांस ट्रूप “गूगल” पर खंगाले तो  “डिवाइन डांसर” नामक एक डांस ट्रूप ठीक लगा जिसमे चार मेंबर लड़के  थे और एक लड़की थी  ,सियाली ने तुरंत ही वह ट्रूप जॉइन कर लिया और अगले दिन से ही डांस प्रेक्टिस के लिए जाने लगी ,सियाली अपना सारा तनाव अब डांस के द्वारा भूलने लगी और इस नई चीज का मज़ा भी लेने लगी .

डिवाइन डांसर नाम के इस ट्रूप को परफॉर्म करने का मौका भी मिलता तो सियाली भी साथ में जाती और स्टेज पर सभी परफॉर्मेंस देते जिसके  बदले सियाली को भी ठीकठाक पैसे मिलने लगे ,इस समय सियाली से ज्यादा खुश कोई नहीं था ,वह निरंकुश हो चुकी थी न माँबाप का डर और न ही कोई टोकाटोकी करने वाला ,जब चाहती घर जाती और अगर नहीं भी जाती तो भी कोई पूछने वाला नहीं था उसके माँबाप  का तलाक क्या हुआ सियाली तो एक आज़ाद चिड़िया हो गई जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए आज़ाद थी .

सियाली का फोन बज उठा था ,ये पापा का फोन था .

“सियाली….कई दिन से घर नहीं आई तुम…क्या बात है?…..हो कहां तुम?”

“पापा मैं ठीक हूँ…..और डांस सीख रही हूँ”

“पर तुमने बताया नहीं कि तुम डांस सीख रही हो ”

“ज़रूरी नहीं कि मैं आप लोगों को सब बातें बताऊं …..आप लोग अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जी रहे हैं इसलिए मैं भी अब अपने हिसांब से ही जियूंगी”

फोन काट दिया था सियाली ने,पर उसका मन एक अजीब सी खटास से भर गया था .

डांस ट्रूप के सभी सदस्यों से सियाली की अच्छी दोस्ती हो गई थी पर पराग नाम के लड़के से उसकी कुछ ज्यादा ही पटने लगी .

पराग स्मार्ट भी था और पैसे वाला भी ,वह सियाली को गाड़ी में घुमाता और ख़िलातापिलाता ,उसकी संगत में सिहाली को भी सुरक्षा का अहसास होता था.

एक दिन पराग और सियाली एक रेस्तराँ में गए ,पराग ने अपने लिए एक बियर मंगाई

“तुम तो सॉफ्ट ड्रिंक लोगी सियाली ”पराग ने पूछा

“खुद तो बियर पियोगे और मुझे बच्चों वाली ड्रिंक …..मैं भी बियर पियूंगी ”एक अजीब सी शोखी सियाली के चेहरे पर उतर आई थी .

सियाली की इस अदा पर पराग भी बिना मुस्कुराए न रह सका और उसने एक और बियर आर्डर कर दी .

सियाली ने बियर से शुरुआत जरूर करी थी पर उसका ये शौक धीरेधीरे व्हिस्की तक पहुच गया था .

अगले दिन डांस क्लास में जब दोनो मिले तो पराग ने एक सुर्ख गुलाब सियाली की ओर बढ़ा दिया

“सियाली मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ”घुटनो को मोड़कर ज़मीन पर बैठते हुए पराग ने कहा  सभी लड़के लड़कियाँ इस बात पर तालियाँ बजाने लगे.

सियाली ने भी मुस्कुराकर गुलाब पराग के हाथों से ले लिया और कुछ सोचने के बाद बोली, “लेकिन मैं शादी जैसी किसी बेहूदा चीज़ के बंधन में नहीं बढ़ना चाहती …..शादी एक सामाजिक तरीका है दो लोगों को एक दूसरे के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए  जीवन बिताने का पर क्या हम ईमानदार रह पाते हैं ?”सियाली के मुंह से ऐसी बड़ीबड़ी बातें सुनकर डांस ट्रूप के लड़केलड़कियाँ शांत से दिख रहे थे.

सियाली ने रुककर कहना शुरू किया, “मैने अपनी माँबाप को उसके  शादीशुदा जीवन में हमेशा ही लड़ते हुए देखा है जिसकी परिणिति तलाक के रूप में हुई और अब मेरी माँ अपने प्रेमी के साथ लिवइन में रह रहीं है और पहले से कहीं अधिक खुश है  ”

पराग ये बात सुनकर तपाक से बोला कि वो भी सियाली के साथ लिवइन में रहने को तैयार है अगर सियाली को मंज़ूर हो तो,पराग की बात सुनकर उसके साथ लिवइन के रिश्ते को झट से स्वीकार कर लिया था सियाली ने.

और कुछ दिनों बाद ही पराग और सियाली लिवइन में रहने लगे ,जहां पर दोनो जी भरकर अपने जीवन का आनंद ले रहे थे ,पराग के पास आय के स्रोत के रूप में एक बड़ा जिम था, जिससे पैसे की कोई समस्या नहीं आई

पराग और सियाली ने अब भी डांस ट्रूप को जॉइन कर रखा था और लगभग हर दूसरे दिन ही दोनो क्लासेज के लिए जाते और जी भरकर नाचते .

इसी डांस ट्रूप में गायत्री नाम की लड़की थी उसने सियाली से एक दिन पूछ ही लिया

“सियाली ….तुम्हारी तो अभी उम्र बहुत कम है ….और इतनी जल्दी किसी के साथ …..आई मीन….लिवइन में रहना ….कुछ अजीब सा नहीं लगता तुम्हे ?”

सियाली के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कुराहट आई और चेहरे पर कई रंग आतेजाते गए फिर सियाली ने अपने आपको संयत करते हुए कहा

“जब मेरे माँबाप ने सिर्फ अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचा और मेरी परवाह नहीं करी तो मैं अपने बारे में क्यों न सोचूँ……और…गायत्री  ….ज़िन्दगी मस्ती करने के लिए बनी है इसे न किसी रिश्ते में बांधने की ज़रूरत है और न ही रोरोकर गुज़ारने की ….और मैं आज पराग के साथ लिवइन में हूँ ….और कल मन भरने के बाद किसी और के साथ रहूंगी और परसों किसी और के साथ…..  उम्र का तो सोचो ही मत ….इनजॉय योर लाइफ यार…”

सियाली ये कहते हुए वहां से चली गयी थी जबकि गायत्री  अवाक सी खड़ी हुई थी .

तितलियाँ कभी किसी एक फूल पर नहीं बैठी ,वे कभी एक फूल के पराग पर बैठती है तो कभी दूसरे फूल के पराग पर….और तभी तो इतनी चंचल होती है और इतनी खुश रहती है तितली …रंगबिरंगी तितली ….जीवन से भरपूर तितली.

Tasty Dishes : खाने की हैं शौकीन, तो जरूर बनाएं ये स्वादिष्ट डिशेज

Tasty Dishes :  चटपटी पावभाजी

सामग्री

250 ग्राम लौकी छिली व कटी द्य 2 गाजरें द्य 150 ग्राम फूलगोभी, 6 फ्रैंचबींस द्य 1/4 कप मटर के हरे दाने,  250 ग्राम टमाटर कद्दूकस किया,  1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 1/2 कप प्याज बारीक कटा , 2 बड़े चम्मच पावभाजी मसाला,  2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप, 2 लाल मिर्च,  स्वादानुसार  2 छोटे चम्मच औलिव औयल, थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए

थोड़ा सा पनीर कटा सजावट के लिए द्य 6 पाव द्य 1 छोटा चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

गाजरों को छील कर मोटे टुकड़ों में व फूलगोभी को भी मोटे टुकड़ों में काट लें. फ्रैंचबींस को भी 1/2 इंच टुकड़ों में काट लें. अब सभी सब्जियों को 1/2 कप पानी और 1/2 चम्मच नमक के साथ प्रैशरकुकर में पकाएं. 1 सीटी आने के बाद लगभग 7 मिनट धीमी आंच पर और पकाएं. एक नौनस्टिक कड़ाही में औलिव औयल गरम कर प्याज सौते करें. फिर अदरकलहसुन पेस्ट डालें. 2 मिनट बाद टमाटर और पावभाजी मसाला डाल कर भूनें. जब मसाला भुन जाए तब इस में उबली सब्जियां डालें व मैशर से मैश करें. अच्छी तरह पकाएं. इस में टोमैटो कैचअप भी मिला दें. भाजी तैयार हो जाए तो सर्विंग बाउल में निकालें. पनीर के टुकड़ों और धनियापत्ती से सजाएं. एक नौनस्टिक तवे को मक्खन से चिकना कर उस पर पावभाजी मसाला बुरक तुरंत पाव को बीच से काट कर तवे पर डालें. अच्छी तरह सेंक लें. भाजी के साथ सर्व करें.

कौर्न कोन

सामग्री कोन की

1/2 कप मैदा

1 छोटा चम्मच घी

1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

कोन तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल

कोन बनाने का सांचा

नमक स्वादानुसार.

सामग्री कौर्न की

1/2 कप मक्की के दाने उबले

2 बड़े चम्मच हरे मटर उबले

1 बड़ा चम्मच टमाटर बारीक कटा

1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

1 छोटा चम्मच मक्खन पिघला

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

थोड़े से सलादपत्ते

चाटमसाला, लालमिर्च व नमक स्वादानुसार.

विधि

मैदे में घी, अजवाइन और नमक डाल कर पानी से पूरी लायक आटा गूंध लें. 15 मिनट ढक कर रखें फिर मोटीमोटी 2 लोइयां बनाएं और खूब बड़ी बेल लें. कांटे से गोद दें व 4 टुकड़े कर लें. प्रत्येक टुकड़े को कोन पर लपेटें और किनारों को पानी की सहायता से सील कर दें. धीमी आंच पर सारे कोन तल लें. मक्की के दानों में सारी सामग्री मिला लें. सलादपत्तों के छोटे टुकड़े कर लें. प्रत्येक कोन में थोड़ा सा सलादपत्ता लगाएं. फिर मक्की के दाने वाला मिश्रण भरें. स्पाइसी कौर्न इन कोन तैयार है. तुरंत सर्व करें.

‘मंचूरियन डिश को बेबीकौर्न हैल्दी भी बनाते  हैं और टेस्टी भी.’

बेबीकौर्न मंचूरियन

सामग्री

100 ग्राम बेबीकौर्न द्य 1/2 कप कौर्नफ्लोर द्य 1/4 कप मैदा

1 बड़ा चम्मच चावल का आटा द्य 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

तलने के लिए पर्याप्त तेल, नमक स्वादानुसार.

अन्य सामग्री

2 छोटे चम्मच सोया सौस , 2 छोटे चम्मच रैड चिली सौस

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस, 1 छोटा चम्मच व्हाइट सिरका

1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर, 2 बड़े चम्मच प्याज बारीक कटा

1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट द्य थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए, 2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल द्य नमक स्वादानुसार.

विधि

कौर्नफ्लोर, मैदा व चावल के आटे को मिक्स कर पकौड़ों लायक घोल तैयार करें. इस में कालीमिर्च चूर्ण और नमक डालें. बेबीकौर्न को 1/2 इंच के टुकड़ों में काट लें. कड़ाही में तेल गरम कर प्रत्येक बेबीकौर्न के टुकड़े को घोल में डिप कर डीप फ्राई कर लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के प्याज सौते करें. अदरकलहसुन पेस्ट डाल कर 30 सैकंड चलाएं. फिर सोया सौस, चिली सौस, टोमैटो सौस और सिरका डालें. 1/2 कप पानी में कौर्नफ्लोर घोल कर डाल दें. इस में फ्राइड बेबीकौर्न डालें और धीमी आंच पर चलाती रहें. जब मिश्रण अच्छी तरह बेबीकौर्न पर लिपट जाए तब आंच बंद कर दें. सर्विंग डिश में पलट धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

लगातार फ्लौप फिल्मों की वजह से Salman Khan को मिली नसीहत

Salman Khan : 100 से भी अधिक फिल्म कर चुके अभिनेता सलमान खान किसी परिचय के मोहताज नहीं, उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अधिकतर सुपरहिट फिल्में दी है, लेकिन पिछले कुछ सालों से अभिनेता सलमान खान की फिल्में लगातार फ्लौप हो रही है. दो साल पहले दिवाली पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म ‘टाइगर 3’ भी अपने बजट के बराबर घरेलू बौक्स औफिस पर कमाई नहीं कर सकी थी. नतीजतन यशराज फिलम्स के स्पाई यूनिवर्स में प्रस्तावित सलमान खान की शाहरुख खान के साथ निर्माणाधीन फिल्म ‘टाइगर वर्सेज पठान’ अनिश्चितकाल के लिए टाल दी गई.

लचर अभिनय

जानकारों की मानें, तो सलमान खान की फिल्में न चलने की मुख्य वजह इन फिल्मों में सलमान खान के लचर अभिनय के साथसाथ फिल्म के तमाम दृश्यों में उनके डुप्लीकेट की मौजूदगी को भी ठहराया जा रहा है. ये बात अब मुंबई फिल्म जगत मे किसी से छुपी नहीं है कि सलमान खान की फिल्मों में बीते कुछ साल से उनकी जगह उनके डुप्लीकेट को लेकर शूटिंग की जा रही है. सलमान इन फिल्मों के दृश्यों में बस वहीं नजर आते हैं, जहां उनका चेहरा दिखना जरूरी हो. कुछ फिल्मों के स्पेशल अपीयरेंस, तो उनके डुप्लीकेट ने ही शूट किए, जबकि फिल्म में नाम सलमान खान का गया. ऐसी एक फिल्म आनंद एल राय की ‘जीरो’ भी बताई जाती है.

अभी की फिल्म सिकंदर का तो बहुत ही बुरा हाल है, जो फिल्म की लागत भी नहीं कमा पा रही है, ओटीटी और सैटेलाइट राइट्स से मेकर्स को कुछ राहत जरूर मिल सकती है,लेकिन उसकी भी कोई गारंटी नहीं है. ऐसे में बौलीवुड के दबंग खान के अभिनय की वो चमक कहां खो कर रह गई है, जिसे दर्शक पिछले कुछ सालों से हर बार इंतजार करते है और बाद में निराश होते है.

हमेशा डटे रहे

हालांकि सलमान की फिल्मी कैरियर में काफी उतारचढ़ाव आए, लेकिन वे हमेशा डटे रहे और आगे बढ़ते रहे. एक बार तो उन्होंने बैक टू बैक 7 फ्लौप फिल्में लव, सूर्यवंशी, जागृति, निश्चय, चंद्रमुखी आदि कई दिए है. साथ ही ये वही अभिनेता है जिन्होंने एक से एक सुपरहिट फिल्में भी दी है, मैंने प्यार किया, साजन, मैंने प्यार क्यों किया, बीवी नंबर 1, टाइगर, करण अर्जुन, बजरंगी भाईजान आदि दर्जनों हिट फिल्में भी दी है, जिसमें सलमान खान के अभिनय को आलोचकों ने बहुत सराहा. उनके सहज अभिनय की वजह से एक अच्छी खासी फैन फौलोइंग है और ये फैंस उनकी हर एक फिल्म का बेसब्री से हर साल इंतजार करते हैं, लेकिन इस बार की फिल्म सिकंदर ने दर्शकों को बहुत मायूस किया और फिल्म बुरी तरह पिट गई.

ओवर द टौप ऐक्टिंग

फिल्म सिकंदर की असफलता के पीछे कई कारण माने जा रहे हैं, फिल्म की कहानी दर्शकों को बे-सिर पैर लगी. एक्शन तो दमदार था, लेकिन कहानी में वो पकड़ नहीं थी, जो दर्शकों को बांध सके. दर्शकों के सोशल मीडिया पर मिली मिक्स्ड रिव्यूज़ का भी असर पड़ा. बहुत से दर्शकों ने फिल्म को ‘ओवर द टौप’ बताया और कहा कि इसमें सलमान खान के स्टारडम का ही सहारा लिया गया है, कंटेंट कमजोर है. इतना ही नहीं उसमें सलमान के रोने के दृश्य देखकर दर्शकों को हंसी आ रही थी यानि ईमोशन में वो बात नहीं थी, जिससे दर्शक फ़ील कर सकें. इसके अलावा, साउथ के निर्देशक और बौलीवुड स्टाइल की मेल न बैठ पाना भी फिल्म की कमजोरी बनी है.

किये संघर्ष

आपको बता दें सलमान फिल्मी बैकग्राउंड से संबंध रखते हैं. उनके पिता सलीम खान एक्टर, फिल्म निर्माता और स्क्रीन राइटर हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाना सलमान खान के लिए बिल्कुल आसान नहीं था और न ही वह एक्टर बनना चाहते थे. पहली फिल्म के लिए भी उन्होंने काफी ठोकरें खाई थी, क्योंकि किसी भी निर्माता, निर्देशक को ये विश्वास नहीं था कि सलमान अच्छी ऐक्टिंग कर सकेंगे.

यही वजह थी कि फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने से लेकर पहली फिल्म मिलने तक सलमान खान का फिल्मी सफर बहुत कठिन था. सलमान ने एक जगह कहा है कि उन्होंने 15 साल की उम्र में मौडलिंग शुरू कर दी थी. शिक्षा पूरी करने के दौरान वे राइटिंग का काम भी कर रहे थे और दो निर्देशकों के अंडर असिस्टेंट के रूप में काम भी कर रहे थे.

16 साल की उम्र में उन्होंने कई फिल्म मेकर के पास स्क्रिप्ट लेकर गए, लेकिन उन्हे एक निर्देशक बनने के लायक उनकी उम्र कम कहा गया और ऐक्टिंग में कोशिश करने की सलाह दी गई. 18 साल तक उनका यही चलता रहा और अंत में उन्होंने ऐक्टिंग के बारें में सोच और औडिशन देने लगे और उन्हे बीवी हो तो ऐसी फिल्म मिली. हालांकि, इस मूवी में उन्होंने सपोर्टिंग रोल निभाया था, पर फिल्म फ्लौप रही.

मिली कामयाबी

अभिनेता सलमान को पहचान वर्ष 1989 में फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से मिली, जिसमें उनके साथ अभिनेत्री भाग्यश्री थी. फिल्म सुपर हिट रही और सलमान को पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. राजश्री प्रोडक्शन के प्रेम के किरदार के रूप में वे इतने सफल हुए कि आज भी सलमान को राजश्री के किसी भी फिल्म में प्रेम नाम दिया जाता है. उनके सहज अभिनय की वजह से उन्होंने बहुत जल्दी दर्शकों के दिल में अपनी जगह बना ली थी. आज भी उनका नाम एक सफल एक्टर के रूप में ही लिया जाता है, क्योंकि वह आज बॉलीवुड में सक्रिय हैं. सलमान खान का फिल्मी ग्राफ भले ही ऊपरनीचे होता रहा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने काम से ब्रेक नहीं लिया. उन्होंने अपने कैरियर में कई फ्लौप फिल्में भी दिए, लेकिन इससे उन्होंने अपने हौसले को कभी गिरने नहीं दिया.

गिरते ग्राफ और फ्लॉप फिल्में

पिछले कुछ सालों से अभिनेता सलमान के अभिनय के गिरते ग्राफ और फ्लौप होती फिल्मों की लिस्ट बड़ी होती जा रही है, जिससे देखकर फैन भी मायूस होते जा रहे है है. अभिनेता सलमान खान की फिल्म सिकंदर बौक्स औफिस पर फुस्स साबित हुई है, जिसके बाद से उनके फैंस को उनके कैरियर को लेकर चिंता होने लगी है. इसी को लेकर उनके फैंस ने उनसे मुलाकात की. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फैंस ने सलमान से अनुरोध किया कि वे अपनी पुरानी हिट फिल्मों के डायरेक्टर्स के साथ ही काम करें, जिनके साथ काम करते हुए उन्होंने सफल फिल्में दी है, जिसमें कबीर खान और अली अब्बास जफर का नाम उन्होंने सुझाया है. फैंस का मानना है कि सलमान खान ने कबीर खान के साथ बजरंगी भाईजान जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दी हैं, वहीं अली अब्बास जफर के साथ की गई सुल्तान जैसी फिल्मों ने दर्शकों का दिल जीता था.

देखना यह है कि आने वाले समय में क्या सलमान आने वाली फिल्मों में वाकई दर्शकों के सुझाव को मानकर एक बार फिर से अपनी खोई अभिनय की चमक को बरकरार रख पायेगे या उनके फैंस को फिर से मायूसी मिलेगी.

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