मुझे यकीन है: गुलशन के ससुराल वाले क्या ताना देते थे ?

पढ़ीलिखी गुलशन की शादी मसजिद के मुअज्जिन हबीब अली के बेटे परवेज अली से धूमधाम से हुई. लड़का कपड़े का कारोबार करता था. घर में जमीनजायदाद सबकुछ था. गुलशन ब्याह कर आई तो पहली रात ही उसे अपने मर्द की असलियत का पता चल गया. बादल गरजे जरूर, पर ठीक से बरस नहीं पाए और जमीन पानी की बूंदों के लिए तरसती रह गई. वलीमा के बाद गुलशन ससुराल दिल में मायूसी का दर्द ले कर लौटी. खानदानी घर की पढ़ीलिखी लड़की होने के बावजूद सीधीसादी गुलशन को एक ऐसे आदमी को सौंप दिया गया, जो सिर्फ चारापानी का इंतजाम तो करता, पर उस का इस्तेमाल नहीं कर पाता था.

गुलशन को एक हफ्ते बाद हबीब अली ससुराल ले कर आए. उस ने सोचा कि अब शायद जिंदगी में बहार आए, पर उस के अरमान अब भी अधूरे ही रहे. मौका पा कर एक रात को गुलशन ने अपने शौहर परवेज को छेड़ा, ‘‘आप अपना इलाज किसी अच्छे डाक्टर से क्यों नहीं कराते?’’

‘‘तुम चुपचाप सो जाओ. बहस न करो. समझी?’’ परवेज ने कहा.

गुलशन चुपचाप दूसरी तरफ मुंह कर के अपने अरमानों को दबा कर सो गई. समय बीतता गया. ससुराल से मायके आनेजाने का काम चलता रहा. इस बात को दोनों समझ रहे थे, पर कहते किसी से कुछ नहीं थे. दोनों परिवार उन्हें देखदेख कर खुश होते कि उन के बीच आज तक तूतूमैंमैं नहीं हुई है. इसी बीच एक ऐसी घटना घटी, जिस ने गुलशन की जिंदगी बदल दी. मसजिद में एक मौलाना आ कर रुके. उन की बातचीत से मुअज्जिन हबीब अली को ऐसा नशा छाया कि वे उन के मुरीद हो गए. झाड़फूंक व गंडेतावीज दे कर मौलाना ने तमाम लोगों का मन जीत लिया था. वे हबीब अली के घर के एक कमरे में रहने लगे.

‘‘बेटी, तुम्हारी शादी के 2 साल हो गए, पर मुझे दादा बनने का सुख नहीं मिला. कहो तो मौलाना से तावीज डलवा दूं, ताकि इस घर को एक औलाद मिल जाए?’’ हबीब अली ने अपनी बहू गुलशन से कहा. गुलशन समझदार थी. वह ससुर से उन के बेटे की कमी बताने में हिचक रही थी. चूंकि घर में ससुर, बेटे, बहू के सिवा कोई नहीं रहता था, इसलिए वह बोली, ‘‘बाद में देखेंगे अब्बूजी, अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’ हबीब अली ने कुछ नहीं कहा.

मुअज्जिन हबीब अली के घर में रहते मौलाना को 2 महीने बीत गए, पर उन्होंने गुलशन को देखा तक नहीं था. उन के लिए सुबहशाम का खाना खुद हबीब अली लाते थे. दिनभर मौलाना मसजिद में इबादत करते. झाड़फूंक के लिए आने वालों को ले कर वे घर आते, जो मसजिद के करीब था. हबीब अली अपने बेटे परवेज के साथ दुकान में रहते थे. वे सिर्फ नमाज के वक्त घर या मसजिद आते थे. मौलाना की कमाई खूब हो रही थी. इसी बहाने हबीब अली के कपड़ों की बिक्री भी बढ़ गई थी. वे जीजान से मौलाना को चाहते थे और उन की बात नहीं टालते थे. एक दिन दोपहर के वक्त मौलाना घर आए और दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘जी, कौन है?’’ गुलशन ने अंदर से ही पूछा.

‘‘मैं मौलाना… पानी चाहिए.’’

‘‘जी, अभी लाई.’’

गुलशन पानी ले कर जैसे ही दरवाजा खोल कर बाहर निकली, गुलशन के जवां हुस्न को देख कर मौलाना के होश उड़ गए. लाजवाब हुस्न, हिरनी सी आंखें, सफेद संगमरमर सा जिस्म… मौलाना गुलशन को एकटक देखते रहे. वे पानी लेना भूल गए.

‘‘जी पानी,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘लाइए,’’ मौलाना ने मुसकराते हुए कहा.

पानी ले कर मौलाना अपने कमरे में लौट आए, पर दिल गुलशन के कदमों में दे कर. इधर गुलशन के दिल में पहली बार किसी पराए मर्द ने दस्तक दी थी. मौलाना अब कोई न कोई बहाना बना कर गुलशन को आवाज दे कर बुलाने लगे. इधर गुलशन भी राह ताकती कि कब मौलाना उसे आवाज दें. एक दिन पानी देने के बहाने गुलशन का हाथ मौलाना के हाथ से टकरा गया, उस के बाद जिस्म में सनसनी सी फैल गई. मुहब्बत ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था. ऊपरी मन से मौलाना ने कहा, ‘‘सुनो मियां हबीब, मैं कब तक तुम्हारा खाना मुफ्त में खाऊंगा. कल से मेरी जिम्मेदारी सब्जी लाने की. आखिर जैसा वह तुम्हारा बेटा, वैसा मेरा भी बेटा हुआ. उस की बहू मेरी बहू हुई. सोच कर कल तक बताओ, नहीं तो मैं दूसरी जगह जा कर रहूंगा.’’

मुअज्जिन हबीब अली ने सोचा कि अगर मौलाना चले गए, तो इस का असर उन की कमाई पर होगा. जो ग्राहक दुकान पर आ रहे हैं, वे नहीं आएंगे. उन को जो इज्जत मौलाना की वजह से मिल रही है, वह नहीं मिलेगी. इस समय पूरा गांव मौलाना के अंधविश्वास की गिरफ्त में था और वे जबरदस्ती तावीज, गंडे, अंगरेजी दवाओं को पीस कर उस में राख मिला कर इलाज कर रहे थे. हड्डियों को चुपचाप हाथों में रख कर भूतप्रेत निकालने का काम कर रहे थे. बापबेटे दोनों ने मौलाना से घर छोड़ कर न जाने की गुजारिश की. अब मौलाना दिखाऊ ‘बेटाबेटी’ कह कर मुअज्जिन हबीब अली का दिल जीतने की कोशिश करने लगे. नमाज के बाद घर लौटते हुए हबीब अली ने मौलाना से कहा, ‘‘जनाब, आप इसे अपना ही घर समझिए. आप की जैसी मरजी हो वैसे रहें. आज से आप घर पर ही खाना खाएंगे, मुझे गैर न समझें.’’ मौलाना के दिल की मुराद पूरी हो गई. अब वे ज्यादा वक्त घर पर गुजारने लगे. बाहर के मरीजों को जल्दी से तावीज दे कर भेज देते. इस काम में अब गुलशन भी चुपकेचुपके हाथ बंटाने लगी थी.

तकरीबन 6 महीने का समय बीत चुका था. गुलशन और मौलाना के बीच मुहब्बत ने जड़ें जमा ली थीं. एक दिन मौलाना ने सोचा कि आज अच्छा मौका है, गुलशन की चाहत का इम्तिहान ले लिया जाए और वे बिस्तर पर पेट दर्द का बहाना बना कर लेट गए. ‘‘मेरा आज पेट दर्द कर रहा है. बहुत तकलीफ हो रही है. तुम जरा सा गरम पानी से सेंक दो,’’ गुलशन के सामने कराहते हुए मौलाना ने कहा.

‘‘जी,’’ कह कर वह पानी गरम करने चली गई. थोड़ी देर बाद वह नजदीक बैठ कर मौलाना का पेट सेंकने लगी. मौलाना कभीकभी उस का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर घुमाने लगे.

थोड़ा सा झिझक कर गुलशन मौलाना के पेट पर हाथ फिराने लगी. तभी मौलाना ने जोश में गुलशन का चुंबन ले कर अपने पास लिटा लिया. मौलाना के हाथ अब उस के नाजुक जिस्म के उस हिस्से को सहला रहे थे, जहां पर इनसान अपना सबकुछ भूल जाता है. आज बरसों बाद गुलशन को जवानी का वह मजा मिल रहा था, जिस के सपने उस ने संजो रखे थे. सांसों के तूफान से 2 जिस्म भड़की आग को शांत करने में लगे थे. जब तूफान शांत हुआ, तो गुलशन उठ कर अपने कमरे में पहुंच गई.

‘‘अब्बू, मुझे यकीन है कि मौलाना के तावीज से जरूर कामयाबी मिलेगी,’’ गुलशन ने अपने ससुर हबीब अली से कहा.

‘‘हां बेटी, मुझे भी यकीन है.’’

अब हबीब अली काफी मालदार हो गए थे. दिन काफी हंसीखुशी से गुजर रहे थे. तभी वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मुअज्जिन हबीब अली की जिंदगी में अंधेरा छा गया. एक दिन हबीब अली अचानक किसी जरूरी काम से घर आए. दरवाजे पर दस्तक देने के काफी देर बाद गुलशन ने आ कर दरवाजा खोला और पीछे हट गई. उस का चेहरा घबराहट से लाल हो गया था. बदन में कंपकंपी आ गई थी. हबीब अली ने अंदर जा कर देखा, तो गुलशन के बिस्तर पर मौलाना सोने का बहाना बना कर चुपचाप मुंह ढक कर लेटे थे. यह देख कर हबीब अली के हाथपैर फूल गए, पर वे चुपचाप दुकान लौट आए.

‘‘अब क्या होगा? मुझे डर लग रहा है,’’ कहते हुए गुलशन मौलाना के सीने से लिपट गई.

कुछ नहीं होगा. हम आज ही रात में घर छोड़ कर नई दुनिया बसाने निकल जाएंगे. मैं शहर से गाड़ी का इंतजाम कर के आता हूं. तुम तैयार हो न?’’ ‘‘मैं तैयार हूं. जैसा आप मुनासिब समझें.’’ मौलाना चुपचाप शहर चले गए. मौलाना को न पा कर हबीब अली ने समझा कि उन के डर की वजह से वह भाग गया है.

सुबह हबीब अली के बेटे परवेज ने बताया, ‘‘अब्बू, गुलशन भी घर पर नहीं है. मैं ने तमाम जगह खोज लिया, पर कहीं उस का पता नहीं है. वह बक्सा भी नहीं है, जिस में गहने रखे हैं.’’ हबीब अली घबरा कर अपनी जिंदगी की कमाई और बहू गुलशन को खोजने में लग गए. पर गुलशन उन की पहुंच से काफी दूर जा चुकी थी, मौलाना के साथ अपना नया घर बसान.

एहसास: कौन सी बात ने झकझोर दिया सविता का अस्तित्व?

नियत समय पर घड़ी का अलार्म बज उठा. आवाज सुन कर मधु चौंक पड़ी. देर रात तक घर का सब काम निबटा कर वह सोने के लिए गई थी लेकिन अलार्म बजा है तो अब उसे उठना ही होगा क्योंकि थोड़ा भी आलस किया तो बच्चों की स्कूल बस मिस हो जाएगी.

मधु अनमनी सी बिस्तर से बाहर निकली और मशीनी ढंग से रोजमर्रा के कामों में जुट गई. तब तक उस की काम वाली बाई भी आ पहुंची थी. उस ने रसोई का काम संभाल लिया और मधु 9 साल के रोहन और 11 साल की स्वाति को बिस्तर से उठा कर स्कूल भेजने की तैयारी में जुट गई.

उसी समय बच्चों के पापा का फोन आ गया. बच्चों ने मां की हबड़दबड़ की शिकायत की और मधु को सुनील का उलाहना सुनना पड़ा कि वह थोड़ा जल्दी क्यों नहीं उठ जाती ताकि बच्चों को प्यार से उठा कर आराम से तैयार कर सके.

मधु हैरान थी कि कुछ न करते हुए भी सुनील बच्चों के अच्छे पापा बने हुए हैं और वह सबकुछ करते हुए भी बच्चों की गंदी मम्मी बन गई है. कभीकभी तो मधु को अपने पति सुनील से बेहद ईर्ष्या होती.

सुनील सेना में कार्यरत था. वह अपने परिवार का बड़ा बेटा था. पिता की मौत के बाद मां और 4 छोटे भाईबहनों की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. चूंकि सुनील का सारा परिवार दूसरे शहर में रहता था अत: छुट्टी मिलने पर उस का ज्यादातर समय और पैसा उन की जरूरतें पूरी करने में ही जाता था, ऐसे में मधु अपनी नौकरी छोड़ने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

सुबह से रात तक की भागदौड़ के बीच पिसती मधु अपने इस जीवन से कभीकभी बुरी तरह खीज उठती पर बच्चों की जिद और उन की अनंत मांगें उस के धैर्य की परीक्षा लेती रहतीं. दिन भर आफिस में कड़ी मेहनत के बाद शाम को बच्चों को स्कूल  से लेना, फिर बाजार के तमाम जरूरी काम निबटाते हुए घर लौटना और शाम का नाश्ता, रात का खाना बनातेबनाते बच्चों को होमवर्क कराना, इस के बाद भी अगर कहीं किसी बच्चे के नंबर कम आए तो सुनील उसे दुनिया भर की जलीकटी सुनाता.

सुनील के कहे शब्द मधु के कानों में लावा बन कर दहकते रहते. मधु को लगता कि वह एक ऐसी असहाय मकड़ी है जो स्वयं अपने ही बुने तानेबाने में बुरी तरह उलझ कर रह गई है. ऐसे में वह खुद को बहुत ही असहाय पाती. उसे लगता, जैसे उस के हाथपांव शिथिल होते जा रहे हैं और सांस लेने में भी उसे कठिनाई हो रही है पर अपने बच्चों की पुकार पर वह जैसेतैसे स्वयं को समेट फिर से उठ खड़ी होती.

बच्चों को तैयार कर मधु जब तक उन्हें ले कर बस स्टाप पर पहुंची, स्कूल बस जाने को तैयार खड़ी थी. बच्चों को बस में बिठा कर उस ने राहत की सांस ली और तेज कदम बढ़ाती वापस घर आ पहुंची.

घर आ कर मधु खुद दफ्तर जाने के लिए तैयार हुई. नाश्ता व लंच दोनों पैक कर के रख लिए कि समय से आफिस  पहुंच कर वहीं नाश्ता  कर लेगी. बैग उठा कर वह चलने को हुई कि फोन की घंटी बज उठी.

फोन पर सुनील की मां थीं जो आज के दिन को खास बताती हुई उसे याद से गाय के लिए आटे का पेड़ा ले जाने का निर्देश दे रही थीं. उन का कहना था कि आज के दिन गाय को आटे का पेड़ा खिलाना पति के लिए शुभ होता है. तुम दफ्तर जाते समय रास्ते में किसी गाय को आटे का बना पेड़ा खिला देना.

फोन रख कर मधु ने फ्रिज खोला. डोंगे में से आटा निकाला और उस का पेड़ा बना कर कागज में लपेट कर साथ ले लिया. उसे पता था कि अगर सुनील को एक छींक भी आ गई तो सास उस का जीना दूभर कर देंगी.

घर को ताला लगा मधु गाड़ी स्टार्ट कर दफ्तर के लिए चल दी. घर से दफ्तर की दूरी कुल 7 किलोमीटर थी पर सड़क पर भीड़ के चलते आफिस पहुंचने में 1 घंटा लगता था. रास्ते में गाय मिलने की संभावना भी थी, इसलिए उस ने आटे का पेड़ा अपने पास ही रख लिया था.

गाड़ी चलाते समय मधु की नजरें सड़क  पर टिकी थीं पर उस का दिमाग आफिस के बारे में सोच रहा था. आफिस में अकसर बौस को उस से शिकायत रहती कि चाहे कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, न तो वह कभी शाम को देर तक रुक पाती है और न ही कभी छुट्टी के दिन आ पाती है. इसलिए वह कभी भी अपने बौस की गुड लिस्ट में नहीं रही. तारीफ के हकदार हमेशा उस के सहयोगी ही रहते हैं, फिर भले ही वह आफिस टाइम में कितनी ही मेहनत क्यों न कर ले.

मधु पूरी रफ्तार से गाड़ी दौड़ा रही थी कि अचानक उस के आगे वाली 3-4 गाडि़यां जोर से ब्रेक लगने की आवाज के साथ एकदूसरे में भिड़ती हुई रुक गईं. उस ने भी अपनी गाड़ी को झटके से ब्रेक लगाए तो अगली गाड़ी से टक्कर होतेहोते बची. उस का दिल जोर से धड़क उठा.

मधु ने गाड़ी से बाहर नजर दौड़ाई तो आगे 3-4 गाडि़यां एकदूसरे से भिड़ी पड़ी थीं. वहीं गाडि़यों के एक तरफ  एक मोटरसाइकिल उलट गई थी और उस का चालक एक तरफ खड़ा  बड़ी मुश्किल से अपना हैलमेट उतार रहा था.

हैलमेट उतारने के बाद मधु ने जब उस का चेहरा देखा तो दहशत से पीली पड़ गई. सारा चेहरा खून से लथपथ था.

सड़क के बीचोंबीच 2 गायें इस हादसे से बेखबर खड़ी सड़क पर बिखरा सामान खाने में जुटी थीं. जैसे ही गाडि़यों के चालकों ने मोटरसाइकिल चालक की ऐसी दुर्दशा देखी, उन्होंने अपनी गाडि़यों के नुकसान की परवा न करते हुए ऐसे रफ्तार पकड़ी कि जैसे उन के पीछे पुलिस लगी हो.

मधु की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आज एक बेहद जरूरी मीटिंग थी और बौस ने खासतौर से उसे लेट न होने की हिदायत दी थी लेकिन अब जो स्थिति उस के सामने थी उस में उस का दिल एक युवक को यों छोड़ कर  आगे बढ़ जाने को तैयार नहीं था.

मधु ने अपनी गाड़ी सड़क  के किनारे लगाई और उस घायल व्यक्ति के पास जा पहुंची. वह युवक अब भी अपने खून से भीगे चेहरे को रूमाल से साफ कर रहा था. मगर  बालों से रिसरिस कर खून चेहरे को भिगो रहा था.

मधु ने पास जा कर उस युवक से घबराए स्वर में पूछा, ‘‘क्या मैं आप की कोई मदद कर सकती हूं?’’

युवक ने दर्द से कराहते हुए बड़ी मुश्किल से आंखें खोलीं तो उस की आंखों में जो भाव मधु ने देखे उसे देख कर वह डर गई.  उस ने भर्राए स्वर में मधु से कहा, ‘‘ओह, तो अब तुम मेरी मदद करना चाहती हो ? तुम्हीं  ने वह खाने के सामान से भरा लिफाफा  चलती गाड़ी से उन गायों की तरफ फेंका था न?’’

मधु चौंक उठी, ‘‘कौन सा खाने का लिफाफा?’’

युवक भर्राए स्वर में बोला, ‘‘वही खाने का लिफाफा जिसे देख कर सड़क के किनारे  खड़ी गायें एकाएक सड़क के बीच दौड़ पड़ीं और यह हादसा हो गया.’’

अब मधु की समझ में सारा किस्सा आ गया. तेज गति से सड़क पर जाते वाहनों के आगे एकाएक गायोें का भाग कर आना, वाहनों का अपनी रफ्तार पर काबू पाने के असफल प्रयास में एकदूसरे से भिड़ना और किन्हीं 2 कारों के बीच फंस कर उलट गई मोटरसाइकिल के इस सवार का इस कदर घायल होना.

यह सब समझ में आने के साथ ही मधु को यह भी एहसास हुआ कि वह युवक उसे ही इस हादसे का जिम्मेदार समझ रहा है. वह इस बात से अनजान है कि मधु की गाड़ी तो सब से पीछे थी.

मधु का सर्वांग भय से कांप उठा. फिर भी अपने भय पर काबू पाते हुए वह उस युवक से बोली, ‘‘देखिए, आप गलत समझ रहे हैं. मैं तो अपनी…’’

वह युवक दर्द से कराहते हुए जोर से चिल्लाया, ‘‘गलत मैं नहीं, तुम हो, तुम…यह कोई तरीका है गाय को खिलाने का…’’ इतना कह युवक ने अपनी खून से भीगी कमीज की जेब से अपना सैलफोन निकाला. मधु को लगा कि वह शायद पुलिस को बुलाने की फिराक में है. उस की आंखों के आगे अपने बौस का चेहरा घूम गया, जिस से उसे किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद नहीं थी. उस की आंखों के आगे अपने नन्हे  बच्चों के चेहरे घूम गए, जो उस के थोड़ी भी देर करने पर डरेडरे एकदूसरे का हाथ थामे सड़क पर नजर गड़ाए स्कूल के गेट के पास उस के इंतजार में खडे़ रहते थे.

मधु ने हथियार डाल दिए. उस घायल युवक की नजरों से बचती वह भारी कदमों से अपनी गाड़ी तक पहुंची… कांपते हाथों से गाड़ी स्टार्ट की और अपने रास्ते पर चल दी. लेकिन जातेजाते भी वह यही सोच रही थी कि कोई भला इनसान उस व्यक्ति की मदद के लिए रुक जाए.

आफिस पहुंचते ही बौस ने उसे जलती आंखों से देख कर व्यंग्य बाण छोड़ा, ‘‘आ गईं हर हाइनेस, बड़ी मेहरबानी की आज आप ने हम पर, इतनी जल्दी पहुंच कर. अब जरा पानी पी कर मेरे डाक्यूमेंट्स तैयार कर दें, हमें मीटिंग में पहुंचने के लिए तुरंत निकलना है.’’

मधु अपनी अस्तव्यस्त सांसों के बीच अपने मन के भाव दबाए मीटिंग की तैयारी में जुट गई. सारा दिन दफ्तर के कामों की भागदौड़ में कैसे और कब बीत गया, पता ही नहीं चला. शाम को वक्त पर काम निबटा कर वह बच्चों के स्कूल पहुंची. उस का मन कर रहा था कि आज वह कहीं और न जा कर सीधी घर पहुंच जाए. पर दोनों बच्चों ने बाजार से अपनीअपनी खरीदारी की लिस्ट पहले से ही बना रखी थी.

हार कर मधु ने गाड़ी बाजार की तरफ मोड़ दी. तभी रोहन ने कागज में लिपटे आटे के पेड़े को हाथ में ले कर पूछा, ‘‘ममा, यह क्या है?’’

मधु चौंक कर बोली, ‘‘ओह, यह यहीं रह गया…यह आटे का पेड़ा है बेटा, तुम्हारी दादी ने कहा था कि सुबह इसे गाय को खिला देना.’’

‘‘तो फिर आप ने अभी तक इसे गाय को खिलाया क्यों नहीं?’’ स्वाति ने पूछा.

‘‘वह, बस ऐसे ही, कोई गाय दिखी ही नहीं…’’ मधु ने बात को टालते हुए कहा.

तभी गाड़ी एक स्पीड बे्रकर से टकरा कर जोर से उछल गई तो रोहन चिल्लाया, ‘‘ममा, क्या कर रही हैं आप?’’

‘‘ममा, गाड़ी ध्यान से चलाइए,’’ स्वाति बोली.

‘‘सौरी बेटा,’’ मधु के स्वर में बेबसी थी. वह चौकन्नी हो कर गाड़ी चलाने लगी. बाजार का सारा काम निबटाने के बाद उस ने बच्चों के लिए बर्गर पैक करवा लिए. घर जा कर खाना बनाने की हिम्मत उस में नहीं बची थी. घर पहुंच कर उस ने बच्चों को नहाने के लिए भेजा और खुद सुबह की तैयारी में जुट गई.

बच्चों को खिलापिला कर मधु ने उन का होमवर्क जैसेतैसे पूरा कराया और फिर खुद दर्द की एक गोली और एक कप गरम दूध ले कर बिस्तर पर निढाल हो गिर पड़ी तो उस का सारा बदन दर्द से टूट रहा था और आंखें आंसुओं से तरबतर थीं.

रोहन और स्वाति अपनी मां का यह हाल देख कर दंग रह गए. ऐसे तो उन्होंने पहले कभी अपनी मां को नहीं देखा था. दोनों बच्चे मां के पास सिमट आए.

‘‘ममा, क्या हुआ? आप रो क्यों रही हैं?’’ रोहन बोला.

‘‘ममा, क्या बात हुई है? क्या आप मुझे नहीं बताओगे?’’ स्वाति ने पूछा.

मधु को लगा कि कोई तो उस का अपना है, जिस से वह अपने मन की बात कह सकती है. अपनी सिसकियों पर जैसेतैसे नियंत्रण कर उस ने रुंधे कंठ से बच्चों को सुबह की दुर्घटना के बारे मेें संक्षेप में बता दिया.

‘‘कितनी बेवकूफ औरत थी वह, उसे गाय को ऐसे खिलाना चाहिए था क्या?’’ रोहन बोला.

‘‘हो सकता है बेटा, उसे भी उस की सास ने ऐसा करने को कहा हो जैसे तुम्हारी दादी ने मुझ से कहा था,’’ मधु ने फीकी हंसी के साथ कहा. वह बच्चों का मन उस घटना की गंभीरता से हटाना चाहती थी ताकि जिस डर और दहशत से वह स्वयं अभी तक कांप रही है, उस का असर बच्चों के मासूम मन पर न पडे़.

‘‘ममा, आप उस आदमी को ऐसी हालत में छोड़ कर चली कैसे गईं? आप कम से कम उसे अस्पताल तो पहुंचा देतीं और फिर आफिस चली जातीं,’’ रोहन के स्वर में हैरानी थी.

‘‘बेटा, मैं अकेली औरत भला क्या करती? दूसरा कोई तो रुक तक नहीं रहा था,’’ मधु ने अपनी सफाई देनी चाही.

‘‘क्या ममा, वैसे तो आप मुझे आदमीऔरत की बराबरी की बातें समझाते नहीं थकतीं लेकिन जब कुछ करने की बात आई तो आप अपने को औरत होने की दुहाई देने लगीं? आप की इस लापरवाही से क्या पता अब तक वह युवक मर भी गया हो,’’ स्वाति ने कहा.

अब मधु को एहसास हो चला था कि उस की बेटी बड़ी हो गई है.

‘‘ममा, आज की इस घटना को भूल कर प्लीज, आप अब लाइट बंद कीजिए और सो जाइए. सुबह जल्दी उठना है,’’ स्वाति ने कहा तो मधु हड़बड़ा कर उठ बैठी और कमरे की बत्ती बंद कर खुद बाथरूम में मुंह धोने चली गई.

दोनों बच्चे अपनेअपने बेड पर सो गए. मधु ने बाथरूम का दरवाजा बंद कर अपना चेहरा जब आईने में देखा तो उस पर सवालिया निशान पड़ रहे थे. उसे लगा, उस का ही नहीं यहां हर औरत का चेहरा एक सवालिया निशान है. औरत चाहे खुद को कितनी भी सबल समझे, पढ़लिख जाए, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाए पर रहती है वह औरत ही. दोहरीतिहरी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी, बेसहारा…औरत कुछ भी कर ले, कहीं भी पहुंच जाए, रहेगी तो औरत ही न. फिर पुरुषों से मुकाबले और समानता का दंभ और पाखंड क्यों?

मधु को लगा कि स्त्री, पुरुष की हथेली पर रखा वह कोमल फूल है जिसे पुरुष जब चाहे सहलाए और जब चाहे मसल दे. स्त्री के जन्मजात गुणों में उस की कोमलता, संवेदनशीलता, शारीरिक दुर्बलता ही तो उस के सब से बडे़ शत्रु हैं. इन से निजात पाने के लिए तो उसे अपने स्त्रीत्व का ही त्याग करना होगा.

मधु अब तक शरीर और मन दोनों से बुरी तरह थक चुकी थी. उसे लगा, आज तक वह अपने बच्चों को जो स्त्रीपुरुष की समानता के सिद्धांत समझाती आई है वह वास्तव में नितांत खोखले और बेबुनियाद हैं. उसे अपनी बेटी को इन गलतफहमियों से दूर ही रखना होगा और स्त्री हो कर अपनी सारी कमियों और कमजोरियों को स्वीकार करते हुए समाज में अपनी जगह बनाने के लिए सक्षम बनाना होगा. यह काम मुश्किल जरूर है, पर नामुमकिन नहीं.

रात बहुत हो चुकी थी. दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. मधु ने एकएक कर दोनों बच्चों का माथा सहलाया. स्वाति को प्यार करते हुए न जाने क्यों मधु की आंखों में पहली बार गर्व का स्थान नमी ने ले लिया. उस ने एक बार फिर झुक कर अपनी मासूम बेटी का माथा चूमा और फिर औरत की रचना कर उसे सृष्टि की जननी का महान दर्जा देने वाले को धन्यवाद देते हुए व्यंग्य से मुसकरा दी. अब उस की पलकें नींद से भारी हो रही थीं और उस के अवचेतन मन में एक नई सुबह का खौफ था, जब उसे उठ कर नए सिरे से संघर्ष करना था और नई तरह की स्थितियों से जूझते हुए स्वयं को हर पग पर चुनौतियों का सामना करना था.

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दोषी कौन: रश्मि के पति ने क्यों तोड़ा भरोसा

लॉकडाउन के कारण सभी की जानकारी में आई भोपाल की इस सच्ची कहानी में असली दोषी कौन है यह मैं आपको वाकिए के आखिर में बता पाऊँगा तो उसकी अपनी वजहें भी हैं . मिसेज वर्मा कोई 17 साल की अल्हड़ हाई स्कूल की स्टूडेंट नहीं हैं जिसे नादान , दीवानी या बाबली करार देते हुये बात हवा में उड़ा दी जाये . यहाँ सवाल दो गृहस्थियों और तीन ज़िंदगियों का है इसलिए फैसला करना मुझे तो क्या आपको और मामला अगर अदालत में गया तो किसी जज को लेना भी कोई आसान काम नहीं होगा .

जब कोई पेशेवर लिखने बाला किसी घटना को कहानी की शक्ल देता है तो उसके सामने कई चुनौतियाँ होती हैं जिनमें से पहली और अहम यह होती है कि वह इतने संभल कर लिखे कि किसी भी पात्र के साथ ज्यादती न हो इसलिए कभी कभी क्या अक्सर उस पात्र की जगह खुद को रखकर सोचना जरूरी हो जाता है . चूंकि इस कहानी का मुख्य पात्र 45 वर्षीय रोहित है इसलिए बात उसी से शुरू करना बेहतर होगा हालांकि इस प्लेटोनिक और मेच्योर लव स्टोरी की केंद्रीय पात्र 57 वर्षीय श्रीमति वर्मा हैं जिनका जिक्र ऊपर आया है .

श्रीमति वर्मा भोपाल के एक सरकारी विभाग में अफसर हैं लेकिन चूंकि विधवा हैं. इसलिए सभी के लिए उत्सुकता , आकर्षण और दिखावटी सहानुभूति की पात्र रहती हैं . दिखने वे ठीकठाक और फिट हैं लेकिन ठीक वैसे ही रहना उनकी मजबूरी है जैसे कि समाज चाहता है . हालांकि कामकाजी होने के चलते कई वर्जनाओं और बन्दिशों से उन्हें छूट मिली हुई है पर याद रहे इसे आजादी समझने की भूल न की जाए . कार्यस्थल पर और रिश्तेदारी में हर किसी की नजर उन पर रहती है कि कहीं वे विधवा जीवन के उसूल तो नहीं तोड़ रहीं . ऐसे लोगों को मैं सीसीटीवी केमरे के खिताब से नबाजता रहता हूँ जिन्हें दूसरों की ज़िंदगी में तांकझांक अपनी ज़िम्मेदारी लगती है .

उनके पति की मृत्यु कोई दस साल पहले हुई थी लिहाजा वे टूट तो तभी गईं थीं लेकिन जीने का एक खूबसूरत बहाना और मकसद इकलौता बेटा था जिसकी शादी कुछ साल पहले ही उन्होने बड़ी धूमधाम से की थी . उम्मीद थी कि बहू आएगी तो घर में चहल पहल और रौनक लेकर आएगी , कुछ साल बाद किलकारियाँ घर में गूँजेंगी और उन्हें जीने एक नया बहाना और मकसद मिल जाएगा . उम्मीद तो यह भी उन्हें थी कि बहू के आने के बाद उनका अकेलापन भी दूर हो जाएगा जो उन्हें काट खाने को दौड़ता था . कहने को तो बल्कि यूं कहना ज्यादा बेहतर होगा कि कहने को ही उनके पास सब कुछ था , ख़ासी पगार बाली सरकारी नौकरी रचना नगर जैसे पोश इलाके में खुद का घर और जवान होता बेटा , लेकिन जो नहीं था उसकी भरपाई इन चीजों से होना असंभव सी बात थी .

बहरहाल वक्त गुजरता गया और वे एक आस लिए जीती रहीं . यह आस भी जल्द टूट गई , बहू वैसी नहीं निकली जैसी वे उम्मीद कर रहीं थीं .  बेटे ने भी शादी के तुरंत बाद रंग दिखाना शुरू कर दिए . यहाँ मेरी नजर में इस बात यानि खटपट के कोई खास माने नहीं क्योंकि ऐसा हर घर में होता है कि बहू आई नहीं कि मनमुटाव शुरू हुआ और जल्द ही चूल्हे भी दो हो जाते हैं .  लेकिन जाने क्यों श्रीमति वर्मा से मुझे सहानुभूति इस मामले में हो रही है लेकिन पूरा दोष मैं उनके बेटे और बहू को नहीं दे सकता .

ऊपर से देखने में सब सामान्य दिख रहा था पर श्रीमति वर्मा की मनोदशा हर कोई नहीं समझ सकता जो जो दस साल की अपनी सूनी और बेरंग ज़िंदगी का सिला बेटे बहू से चाह रहीं थीं . कहानी में जो आगे आ रहा है उसका इस मनोदशा से गहरा ताल्लुक है जिसने खासा फसाद 30 अप्रेल को खड़ा कर दिया . इस दिन भी लोग असमंजस में थे कि 3 मई को लॉकडाउन हटेगा या फिर और आगे बढ़ा दिया जाएगा . बात सच भी है कि कोरोना के खतरे को गंभीरता से समझने बाले भी लॉकडाउन से आजिज़ तो आ गए थे .  खासतौर से वे लोग जो अकेले हैं लेकिन उनसे भी ज्यादा वे लोग परेशानी और तनाव महसूस रहे थे जो घर में औरों के होते हुये भी तन्हा थे जैसे कि श्रीमति वर्मा .

मुझे जाने क्यों लग रहा है कि कहानी में गैरज़रूरी और ज्यादा सस्पेंस पैदा करने की गरज से मैं उसे लंबा खींचे जा रहा हूँ .  मुझे सीधे कह देना चाहिए कि श्रीमति वर्मा अपने सहकर्मी रोहित से प्यार करने लगीं थीं जो उम्र में उनसे दो चार नहीं बल्कि 12 साल छोटा था और काबिले गौर बात यह कि शादीशुदा था . रोहित की पत्नी का नाम मैं सहूलियत के लिए रश्मि रख लेता हूँ . ईमानदारी से कहूँ तो मुझे वाकई नहीं मालूम कि रोहित और रश्मि के बाल बच्चे हैं या नहीं लेकिन इतना जरूर मैं गारंटी से कह सकता हूँ कि शादी के 14 साल बाद भी दोनों में अच्छी ट्यूनिंग थी . ये लोग भी भोपाल के दूसरे पाश इलाके चूनाभट्टी में रहते हैं .

लॉकडाउन के दौरान सरकारी दफ्तर भी बंद हैं इसलिए श्रीमति वर्मा और रोहित एक दूसरे से मिल नहीं पा रहे थे .  चूनाभट्टी और रचनानगर के बीच की दूरी कोई 8 किलोमीटर है , रास्ते में जगह जगह पुलिस की नाकाबंदी है जिससे इज्जतदार मध्यमवर्गीय लोग ज्यादा डरते हैं और बेवजह घरों से बाहर नहीं निकल रहे .  इससे फायदा यह है कि वे खुद को कोरोना के संकमण से बचाए हुए हैं . नुकसान यह है प्रेमी प्रेमिकाएं एक दूसरे से रूबरू मिल नहीं पा रहे . जुदाई का यह वक्त उन पति पत्नियों पर भी भारी पड़ रहा है जो एक दूसरे से दूर या अलग फंस गए हैं .

जिन्हें सहूलियत है वे तो वीडियो काल के जरिये एक दूसरे को देखते दिल का हाल बयां कर पा रहे हैं लेकिन शायद श्रीमति वर्मा और रोहित को यह सहूलियत नहीं थी और थी भी तो बहुत सीमित रही होगी क्योंकि रश्मि घर में थी .  श्रीमति वर्मा तो एक बारगी अपने बेडरूम से वीडियो काल कर भी सकतीं थीं लेकिन रोहित यह रिस्क नहीं ले सकता था . जिस प्यार या अफेयर पर दस साल से परदा पड़ा था और जो चोरी चोरी चुपके चुपके परवान चढ़ चुका था वह परदा अगर जरा सी बेसब्री में उठ जाता तो लेने के देने पड़ जाते .

लेकिन न न करते ऐसा हो ही गया . 30 अप्रेल की सुबह श्रीमति वर्मा रोहित के घर पहुँच ही गईं . कहने को तो अब कहानी में कुछ खास नहीं रह गया है लेकिन मेरी नजर में कहानी शुरू ही अब होती है . रश्मि किचिन से चाय बनाकर निकली तो उसने देखा कि रोहित एक महिला से पूरे अपनेपन और अंतरंगता से बतिया रहा है तो उसका माथा ठनक उठा . खुद पर काबू रखते उसने जब इस बात का लब्बोलुआब जानना चाहा तो सच सुनकर उसके हाथ के तोते उड़ गए .

श्रीमति वर्मा ने पूरी दिलेरी से कहा कि वे और रोहित एक दूसरे से प्यार करते हैं और लॉकडाउन की जुदाई उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए वे रोहित से मिलने चलीं आईं .  इतना सुनना भर था कि रश्मि का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा उसने सवालिया निगाहों से रोहित की तरफ देखा तो माजरा झट से उसकी समझ आ गया . चोर निगाहों से इधर उधर देखते रोहित की हिम्मत पत्नी से निगाहें मिलकर बात करने की नहीं पड़ी .

रश्मि की हालत काटो तो खून नहीं जैसी थी लिहाजा वह आपा खोते हिस्टीरिया और सीजोफ़्रेनिया के मरीजों जैसी फट पड़ी . जब एक पत्नी का भरोसा आखो के सामने पति पर से उठता है तो उसकी हालत क्या होती होगी यह सहज समझा जा सकता है . अब ड्राइंग रूम में कहानी के तीनों प्रमुख किरदार मौजूद थे और अपनी अपनी भूमिकाएँ तय कर रहे थे . खामोशी से शुरू हुई बात जल्द ही कलह और तू तू मैं मैं में बदल गई . रोहित बेचारा बना प्रेमिका और पत्नी के बीच अपराधियों सरीखा खड़ा था उसके चेहरे से मास्क यानि नकाब उतर चुका था .

कहते हैं सौत तो पुतले या मिट्टी की भी नहीं सुहाती फिर यहाँ तो रश्मि के सामने साक्षात श्रीमति वर्मा खड़ी थीं जिनके चेहरे या बातों में कोई गिल्ट नहीं था . उल्टे हद तो तब हो गई जब बात बढ़ते देख उन्होने रश्मि से यह कहा कि चाहो तो मेरी सारी जायदाद ले लो लेकिन मेरा रोहित मुझे दे दो , मुझे उसके साथ रह लेने दो .

पानी अब सर से ऊपर बहने लगा था इसलिए रश्मि ने चिल्लाना शुरू कर दिया रोहित अब भी खामोशी से सारा तमाशा देख रहा था इसके अलावा कोई और रास्ता उसके पास बचा भी नहीं था . दृश्य अनिल कपूर , श्रीदेवी और उर्मिला मांतोंडकर अभिनीत फिल्म जुदाई जैसा हो गया था , जिसमें मध्यमवर्गीय श्रीदेवी  रईस उर्मिला को पैसो की खातिर पति अनिल कपूर को न केवल सौंप देती है बल्कि दोनों की शादी भी करा देती है .

इस मामले में पूरी तरह ऐसा नहीं था फिल्म में अनिल कपूर उर्मिला को नहीं चाहता था बल्कि उर्मिला ही उस पर फिदा हो गई थी और श्रीदेवी की पैसों की हवस देखते उसने अपना प्यार और प्रेमी खरीद लिया था . इधर हकीकत में रोहित अब हिम्मत जुटाते रश्मि को यह कहते शांत कराते यह कह रह था कि श्रीमति वर्मा उसकी प्रेमिका नहीं बल्कि दोस्त हैं जो अकेलेपन से घबराकर सहारा मांगने चली आई है .

एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी की तर्ज पर पति की यह सफाई सुनकर  रश्मि और भड़क उठी और इतनी भड़की कि उनके पड़ोसी को शोरशराबा सुनकर उनके घर की कालबेल बजाने मजबूर होना पड़ा . आगुंतक पड़ोसी का नाम अशोक जी मान लें जो अंदर आए तो नजारा देख सकपका उठे . यकीन माने अशोक जी अगर ठीक वक्त पर एंट्री न मारते तो मुझे यह कहानी मनोहर कहानिया या सत्यकथा के लिए पूरा मिर्च मसाला उड़ेल कर लिखनी पड़ती .

अशोक जी ने मौके की नजाकत को समझा और तुरंत पुलिस को इत्तला कर दी . पुलिस के आने तक उनका रोल मध्यस्थ सरीखा रहा जो दरअसल में एक हादसे को रोकने का भी पुण्य कमा रहा था . इस दौरान भी श्रीमति वर्मा यह दोहराती रहीं कि वे अपनी सारी प्रापर्टी रश्मि के नाम करने तैयार हैं लेकिन एवज में उन्हें रोहित के साथ रहने की इजाजत चाहिए . लेकिन चूंकि रश्मि श्रीदेवी की तरह पति बेचने को तैयार नहीं थीं क्योंकि उसने शायद जुदाई  फिल्म देखी थी कि फिल्म के क्लाइमेक्स में जब अनिल कपूर उर्मिला के साथ जाने लगता है तो उसकी हालत पागलों सरीखी हो जाती है और तब उसे पति की अहमियत समझ आती है और उसके प्यार का व रिश्ते का एहसास होता है .

खैर पुलिस आई और सारा मामला सुनने समझने के बाद हैरान रह गई मुमकिन है लॉकडाउन की झंझटों के बीच कुछ पुलिस बालों को इस अनूठी प्रेम कहानी पर हंसी भी आई हो लेकिन उसे उन्होने दबा लिया हो . बात अब घर की दहलीज लांघ कर परिवार परामर्श केंद्र तक जा पहुंची जिसकी काउन्सलर सरिता राजानी ने वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश की . बात श्रीमति वर्मा के बेटे बहू से भी की गई लेकिन कोई समाधान नहीं निकला . श्रीमति वर्मा अंगद के पैर की तरह अपने प्रेमी के घर जम गईं थीं यह रश्मि के लिए नई मुसीबत थी .

सरिता राजानी को जो समझ आया वह इतना ही था कि श्रीमति वर्मा बेटे बहू की अनदेखी और अबोले के चलते लॉकडाउन के अकेलेपन से घबराकर रोहित के घर आ गईं थीं . इधर रश्मि का कहना यह था कि शादी के 14 साल बाद रोहित ने उसे धोखा दिया है जिसके लिए वे कभी उसे माफ नहीं करेंगी . रोहित के पास बोलने कुछ खास था नहीं उसकी चुप्पी ही उसका कनफेशन थी . दिन भर एक दिलचस्प काउन्सलिन्ग वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए चली जिसका सुखद नतीजा यह निकला कि श्रीमति वर्मा अपने घर वापस चली गईं लेकिन कहानी अभी बाकी है .

अब जो भी हो लेकिन अभी तक जो भी हुआ वह आमतौर पर इस तरह नहीं होता . हर किसी के विवाहेत्तर संबंध होते हैं जिनमे से अधिकांश अस्थायी होते हैं पर जो स्थाई हो जाते हैं उनका अंजाम तो वही होता है जो इस मामले में हुआ . ऐसे अफसानो को कोई साहिर लुधियानबी किसी खूबसूरत मोड पर नहीं ले जा सकते .  इनकी मंजिल तो अलगाव या ज़िंदगी भर की घुटन ही होती है और यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर दोष किसके सर मढ़ा जाए .

एक अनुभवी लेखक होने की नाते मैं पाठकों की यह जिज्ञासा बखूबी समझ रहा हूँ कि आखिर श्रीमति वर्मा और रोहित के बीच शारीरिक यानि नाजायज करार दिए जाने बाले संबंध थे या नहीं .  कुछ तो झल्लाकर यह तक सोचने लगे होंगे कि एक तरफ फेंको यह किस्सा और फलसफा  पहले मुद्दे और तुक की बात करो . लेकिन पूरी लेखकीय चालाकी दिखाते मैं इतना ही कहूँगा कि हो भी सकते हैं और नहीं भी .  वैसे भी इस मसले पर कुछ कहना बेमानी होगा इसलिए पाठक खुद अंदाजा लगाने स्वतंत्र हैं . ऊपर मैंने श्रीमति वर्मा की तुलना किसी स्कूली लड़की से जानबूझकर एक खास मकसद से की है और इसके लिए अब हमें कहानी से बाहर आकर सोचना पड़ेगा .

मेरे लिए दिलचस्प और चिंतनीय बात एक अधेड़ महिला का सारे बंधन तोड़कर अपने प्रेमी के यहाँ बेखौफ पहुँच जाना है जो जानती समझती है कि इसका अंजाम और शबब सिवाय जग हँसाई और बदनामी के कुछ नहीं होगा . दिल के हाथों मजबूर लोग मुझे इसलिए अच्छे लगते हैं कि उनमें एक वो हिम्मत होती है जो धर्म , समाज और घर परिवार नाते रिश्तेदारी किसी की परवाह नहीं करती .  वह अपने प्यार के बाबत किसी मुहर या किसी तरह की स्वीकृति की मोहताज नहीं उसका यह जज्बा और रूप नैतिकता से परे मेरी नजर मैं एक सेल्यूट का हकदार है .

रोहित को भी दोषी मैं नहीं मानता क्योंकि उसने समाज से उपेक्षित और लगभग प्रताड़ित विधवा को भावनात्मक सहारा दिया .  यहाँ मैं इस प्रचिलित मान्यता को भी खारिज करता हूँ कि किसी विवाहित पुरुष को पत्नी के अलावा किसी दूसरी स्त्री से प्यार नहीं करना चाहिए . मुझे मालूम है अधिकतर लोग मेरी इस दलील से इत्तफाक नहीं रखेंगे लेकिन मेरी नजर में ये वही लोग होंगे जो यह राग अलापेंगे कि किसी विधवा को तो प्यार करने जैसी हिमाकत करनी ही नहीं चाहिए .  उसके लिए तो उन्हीं सामाजिक और धार्मिक दिशा निर्देशों का पालन करते रहना चाहिए जो राज कपूर की फिल्म प्रेम रोग में दिखाए गए है . फिल्म का कथानक रूढ़ियों और खोखले उसूलो में जकड़े एक ठाकुर जमींदार खानदान के इर्द गिर्द घूमता रहता है .

इस फिल्म में नायक की भूमिका में हाल ही में दुनिया छोड़ गए ऋषि कपूर थे . नायिका पद्मिनी कोल्हापुरे विधवा हो जाती है तो उस पर तरह तरह के अमानवीय जुल्म उसके ससुराल और मायके बाले ढाते हैं .  यहाँ तक कि उसके जेठ की भूमिका निभा रहे रजा मुराद तो उसका बलात्कार तक कर डालते हैं .  एक दृश्य में यह भी दिखाया गया गया है कि विधवा नायिका के मुंडन तक की तैयारियां हो गई हैं . नायिका जब वापस मायके आती है ऋषि कपूर से उसका प्यार परवान चढ़ने लगता है .  इसकी भनक जैसे ही ठाकुरों को लगती है तो वे भड़ककर बंदूक उठा लेते हैं . ऐसे में इस फिल्म में शम्मी कपूर द्वारा बोला यह डायलोग बेहद प्रासंगिक और उल्लेखनीय है कि समाज सहारा देने होना चाहिए न कि छीनने .

चल रही इस कहानी में इकलौता पेंच या उलझन रोहित का शादीशुदा होना है .  कहा जा सकता है कि उसने रश्मि से बेबफाई की , उसे धोखा दिया . इस मोड पर मेरे ख्याल में हमे धैर्य और समझ से काम लेना चाहिए . श्रीमति वर्मा से प्यार करने का हक छीना नहीं जा सकता और न ही रोहित से सिर्फ इस बिना पर कि वह शादीशुदा है . दो टूक सवाल ये कि क्या कोई शादीशुदा मर्द प्यार करने का हक नहीं रखता या कोई भी पति , पत्नी के अलावा किसी और औरत से प्यार करने का हकदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए . एक साथ दो स्त्रियों से प्यार करना गुनाह क्यों जबकि वह दोनों को भावनात्मक और शारीरिक संतुष्टि या सुख दे सकता है .

रश्मि का तो कोई दोष ही नहीं जो एक सीधी सादी घरेलू महिला है.  उसके लिए तो उसका पति और प्यार ही सब कुछ है पर उसका भरोसा ही नहीं बल्कि दिल भी टूटा है . मैं उससे इतने बड़े दिल की होने की उम्मीद नहीं करता कि वह पति की बेबफाई को पचा ले लेकिन यह उम्मीद तो उससे की जा सकती है कि वह श्रीमति वर्मा की हालत समझे . रोहित ने उन्हें बुरे वक्त में सहारा दिया इसके लिए वह उसकी तारीफ भले ही न करे और कर भी नहीं सकती लेकिन महिला होने के नाते यह तो समझ ही सकती है कि पति की प्रेमिका किन हालातों में उसके नजदीक आई और इस तरह दस साल रोहित के साथ गुजारे कि किसी को हवा तक नहीं लगी . वैसे भी यह विवाहेत्तर सम्बन्धों का पहला या आखिरी उजागर मामला नहीं है .

कहानी को दिए शीर्षक के मुताबिक यह बताना भी मेरी लेखकीय ज़िम्मेदारी है कि अगर सभी बेगुनाह हैं हैं तो फिर दोषी कौन है  . उसका नाम बताने के पहले मैं यह जरूर बताना चाहूँगा कि ऐसे मामले जब तक उजागर नहीं होते तब तक कोई नोटिस नहीं लेता यानि ढका रहे तो गुनाह गुनाह नहीं रह जाता . यह मामला उजागर हुआ है तो मेरी नजर में दोषी है – 

 

चलो रे डोली उठाओ: साची ने क्यों चुनी किताब की राह

नीचे से साची की चहकती हुई आवाज आई, मैं झट से सीढ़ियां उतरती हुई बोली, “क्या हो गया, इतनी खुश क्यों लग रही है? मम्मी पापा बाहर जा रहे हैं क्या?’’

मेरी इस बात पर मम्मी ने मुझे घूर कर देखा तो मैं हंस दी. साची ने मुझे इशारा किया कि ऊपर तेरे रूम में ही चलते हैं. मैं ने कहा, आ जा, साची, मेरे रूम में ही बैठते हैं, मम्मी यहां स्कूल का रजिस्टर खोल कर बैठी हैं, उन्हें डिस्टर्ब होगा.’’

पर मम्मी तो मम्मी हैं, ऊपर से टीचर. मेरे जैसी पता नहीं कितनी लड़कियों से दिनभर स्कूल में निबटती हैं, बोलीं, “नैना, आ जाओ, यहीं बैठ जाओ, कुछ डिस्टर्ब नहीं होगा.’’

“हम ऊपर ही जाते हैं,’’ कह कर मैं साची को अपने रूम में ले गई. मैं ने कहा, “चल बोल, आज सुबहसुबह 10 बजे कैसे आई?’’

साची ने थोड़ा ड्रामा करते हुए गुनगुनाया, “चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई…’’

मैं ने उस की कमर पर एक धौल जमाया, बकवास नहीं, जल्दी बताओ.’’

“वह जो पिछले हफ्ते लड़के वाले देखने आए थे न, उन्होंने हां कर दी है और वे शादी भी जल्दी करना चाह रहे हैं. वही ध्रुव, जो मुझे देखते ही पसंद आ गया था. हाय, क्या बताऊं कितनी ख़ुशी हो रही है.’’

“अरे वाह, मुबारक हो, मुबारक हो,’’ कहते हुए मैं ने उसे गले से लगा तो लिया पर मैं मन ही मन जल मरी. देखो तो, कैसी खुश हो रही है, हाय, इस की भी शादी हो रही है. एकएक कर के सब ससुराल चली जा रही हैं और मैं क्या इन की शादियों में बस नाचती रह जाऊंगी. दुख से मुझे रोना आ गया, मेरे आंसू सच में बह निकले जिन्हें देख कर वह चौंकी, बचपन की सहेली है नालायक, सारी खुराफातें साथ ही तो की हैं, एकदूसरे की नसनस तो जानती हैं हम, बोली, “क्या हुआ नैना, फिर वैसी ही जलन हो रही है जैसे हमें अब तक अपनी दूसरी सहेलियों की शादी होते देख होती है?’’

मुझे हंसी आ गई, सोचा अब क्या झूठ बोलना, कहा, “हां, यार, जलन तो बहुत हो रही है पर दुख भी हो रहा है कि मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी,” कहतेकहते अब की बार मेरे सच्चे प्यार और दोस्ती वाले आंसू बह गए तो वह मेरे गले लग गई, बोली, “यहीं लोकल ही तो है ससुराल, मिलते रहेंगे, नैना. तू आती रहना.’’

“सुन, तेरा कोई देवर है?’’

“न, ध्रुव अकेला है.’’

“मर, तू किसी काम की नहीं.’’

“बरात में ही अब देखना. कोई पसंद आता है तो बताना.’’

इतने में मम्मी कुछ फल काट कर ले आईं और हमारे पास ही बैठ गईं, पूछा, “किस की बरात है भई, क्या देखना है?’’

मम्मी के कान कितने तेज हैं.

मैं ने एक आस के साथ कहा, “मम्मी, इस की भी शादी हो रही है.’’

मम्मी ने कहा, “अरे, इतनी जल्दी!’’

मैं ने कहा, “कहां जल्दी है, मम्मी, हमारा एमए पूरा होने वाला है. लगभग सब लड़कियों की कहीं न कहीं बात चल रही है.’’

“फिर भी, पढ़ाई ख़त्म हो जाए, अपने पैरों पर खड़े होने के बाद ही शादी करनी चाहिए.’’

मुझे अपनी मम्मी पर इन बातों पर इतना गुस्सा आता है कि क्या बताऊं.

“बेटा, अपने मम्मीपापा से कहो कि हो सके तो लड़के वालों से बात कर लें कि तुम कहीं जौब कर लो तब तक रुक सकें तो. तुम कहो तो मैं उन से बात कर सकती हूं.’’

मम्मी भी न, कुछ नहीं समझतीं.

मैं ने झट कहा, “नहीं मम्मी, जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है, यही तो उम्र है शादी की.” पता नहीं कैसे न चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल ही गया.

“क्या? तुम्हें कुछ नहीं पता. लड़कियों का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है,’’ कहते हुए मम्मी नीचे जाने के लिए उठ गईं. उन के जाते ही मैं शुरू हो गई, “यार, ये मेरी मां भी न. अरे, नहीं होना है हमें आत्मनिर्भर. हम खुश हैं ऐसे ही. जो ले जाएगा, खिला लेगा. पहले कहां कमाती थीं लड़कियां. यार, मैं अपने मौडर्न मम्मीपापा से परेशान हो चुकी हूं. समझते ही नहीं. सारा दिन कैरियर की बातें. बहुत बोरिंग बातें करते हैं दोनों. मम्मी टीचर, पापा डाक्टर. यार, मैं कहां जाऊं. ये नवीन भैया भी बिलकुल मम्मीपापा की तरह बातें करने लगे हैं.

“मुझ से 2 साल बड़े हैं. कल उन के लिए रिश्ता आया तो कहा है कि अभी कैरियर बना रहे हैं. भई, कितना कैरियर बनाना है, अच्छाख़ासा कमा रहे हैं. मेरे लिए रिश्ता आया तो भैया ने कहा कि अभी तो नैना छोटी है, अभी तो सैट भी नहीं हुई. अरे, शादी करनी है मुझे. ये लोग क्यों ध्यान नहीं दे रहे.’’

मुझे साची की यही बात अच्छी लगती है जब मैं अपनी भड़ास निकाल रही होती हूं तो वह मुझे रोकती नहीं. पूरी बकवास अच्छी तरह करने देती है. जब मैं चुप हुई, उस ने कहा, “दुखी न हो, दोस्त, तेरा भी टाइम आएगा. तेरी भी डोली सजेगी, हाथों में मेहंदी लगेगी, पर हां, उस से पहले तू अपना कैरियर बना ले,’’ बात ख़म होतेहोते उसे शरारत सूझ गई तो मैं ने उसे लात मारमार कर बैड से गिरा दिया. फिर हम दोनों हंसने लगीं. उस ने और शरारत से कहा, “यार, रिश्ता पक्का होते ही पता नहीं कहांकहां दिमाग दौड़ने लगा है.’’ यह कहतेकहते उस के सुंदर

मुखड़े पर शर्म की लाली मुझे बहुत प्यारी लगी, कहा, “जरा मैं भी सुनूं तो, कहांकहां दिमाग जा रहा है?’’

“वही कि सुहागरात पर क्या होगा.’’

“वही होगा जो अपने मामा के घर जा कर कजिन के दोस्त अनिल के साथ कर के आई थी पिछले साल.’’

उस ने उठ कर मेरे मुंह पर हाथ रख दिया, शर्म करो, लड़की, दोस्त हो या दुश्मन? दीवारों के भी कान होते हैं. अब ये बातें सुनना भी मेरे लिए पाप है.’’

“ड्रामेबाज.’’

थोड़ी देर बाद वह जाने के लिए उठ गई. जातेजाते बोली, “अब शौपिंग शुरू करेंगे, फ्री रहना, साथ रहना.’’

“मैं तो फ्री ही रहूंगी, मेरी शादी के टाइम सब अपनी ससुराल में बैठी होंगी. बच्चे खिला रही होंगी. मेरे जवान अरमान मचले जा रहे हैं और मेरे मम्मीपापा के सपनों की भेंट चढ़ रहे हैं, हाय, मेरी डोली कब उठेगी.’’

“बेटा, तुम कैरियर पर ध्यान दो.’’

“तुम दफा हो जाओ.’’

‘पालकी पे होके सवार, चली रे मैं तो अपने साजन के गांव, चली रे…,’ गाते हुए वह मुझे छेड़ती हुई जाने लगी तो मैं ने कहा, “मन कर रहा है तुम्हें सीढ़ियों से धक्का दे दूं.’’

वह हंसती हुई चली गई. मैं अपने बैड पर लेट गई. मन सचमुच उदास था, साची और मैं बचपन से अब तक हमेशा साथ रहे. उस का घर ठीक हमारे घर के सामने है. खतौली के एक महल्ले में हमारे परिवार सालों से साथ हैं. उस की एक बड़ी बहन है जो दिल्ली में रहती है. उन की शादी में मेरे नवीन भैया ने ही हर काम संभाल रखा था. मम्मीपापा दोनों बच्चों के कैरियर को बहुत गंभीरता से लेते हैं. आज के जमाने में तो कोई भी लड़की ऐसे पेरैंट्स पर गर्व करेगी पर मैं क्या करूं, मेरे सपने कुछ और हैं, मैं कुछ और चाहती हूं.

मेरा तो मन शादी करने का करता है, पता नहीं कैसेकैसे अरमान मचलते रहते हैं, ये मम्मी भी तो इस उम्र से गुजरी होंगी. उन्हें समझ नहीं आता क्या कि इस उम्र में लड़की क्याक्या सोचती है. सब जबान से कहना ही जरूरी है क्या. हद है. अरे, खुद भी तो शादी के बाद पढ़ी हैं, मैं भी पढ़ लूंगी. कितना मन करता है कि एक अच्छा सा पति मिल जाए, जीभर कर रोमांस करूं. 2 प्यारे बच्चे हो जाएं, सजीसंवरी घूमती रहूं. यहां तो जवानी ज़ाया हुई जा रही है. अरे, मुझे नहीं बनाना कैरियरवैरियर. शादी कर दो मेरी. जरूरी तो नहीं कि दुनिया की हर लड़की कैरियर ही बनाए.

इतने में मम्मी की नीचे से आवाज आई, “नैना, मैं कालेज के लिए निकल रही हूं, टाइम से कालेज चले जाना. सब काम अंजू से करवा लेना.”

ठीक है मम्मी, बाय, कहतेकहते मैं रोज की तरह नीचे आ कर मम्मी को गाल पर किस करने लगी तो उन्होंने प्यार से मुझ से कहा, “बेटा, टाइम मत खराब करना. तुम्हारे एक्जाम्स भी आने वाले हैं. मैं आज तुम्हारी पीएचडी के लिए भी प्रोफैसर शर्मा से बात करूंगी.’’

मुझे करंट लगा, “मम्मी, पीएचडी. क्यों?”

“फिर अच्छे कालेज में प्रोफैसर बन सकती हो. लड़कियों के लिए टीचिंग बेस्ट जौब है.’’

मैं बेहोश होतेहोते बची. पीएचडी. ये मेरी मां ऐसी क्यों है? मेरी शादी की किसी को चिंता नहीं? हाय. क्या होगा मेरा.

अगले कुछ दिन मैं और साची टाइम मिलते ही उस की शादी की शौपिंग में व्यस्त हो गए. हम अकसर मेरठ या दिल्ली उस की कार से जाते. वह कार चला लेती थी. शौपिंग करते हुए मैं अकसर स्मार्ट लड़कों को जीभर कर देखती और उस से कहती, “हाय, मैं कब अपनी शादी की शौपिंग करूंगी? मेरे पेरैंट्स तो मुझे प्रोफैसर बना कर छोड़ेंगे. तुम तो कई बार अफेयर कर चुकी, तुम ने तो हर आनंद उठा रखा है, मैं अपने जवान, अनछुए सपनों का क्या करूं, यार. मुझे भी शादी करनी है.’’

“देख नैना, तेरी तो अभी होती मुझे दिख नहीं रही. तू भले ही एकदो अफेयर चला कर थोड़ा मौजमस्ती कर ले. तो शायद तेरे दिल को चैन आए. अफेयर से भी थोड़ा मन बहला रहेगा.’’

“हम गर्ल्स कालेज में पढ़ते हैं. कहां से लड़के लाऊं. आतेजाते भी नहीं दिखता कोई ऐसा. तेरी तरह मेरा कोई कजिन भाई भी नहीं है. मेरे भाई के तो दोस्त भी घर नहीं आते, जो आते हैं, अच्छे हैं पर नालायक मुझ से राखी बंधवाते हैं. भैया का एक दोस्त इतना अच्छा लगता था, कम्बख्त ने मुझ से राखी बंधवा ली. सुन, क्या मेरी शक्ल पर लिखा है कि मैं कैरियर बनाना चाहती हूं?”

साची से जितना मरजी ड्रामा करवा लो. मुझे ध्यान से देखती हुई बोली, “नहीं, शक्ल तो रोमांस को तरसी हुई लगती है.’’

“साची, मन करता है तुझे कहीं बंद कर दूं जिस से तू भी ससुराल न जा पाए.’’

“मुझे लगता है, सारी गलती तेरी है. तू इतने अच्छे नंबर क्यों लाती रही कि अंकलआंटी को लगा कि तू पढ़ाई में बहुत सीरियस है. हमेशा फर्स्ट आती रही तो यही होना था. मुझे देख कितने खराब नंबर से पास हुई हमेशा कि घर में सब यही बात करते कि इस के बस की पढ़ाई नहीं है, इस की शादी कर दो. कितना आसान था, देख. मेहनत भी नहीं की कभी, और शादी भी टाइम से हो रही है. तू तो बस अब मेरे संगीत में नाचने की तैयारी कर और कैरियर बना.’’

“आई हेट यू, साची. तू मेरी दोस्त नहीं, दुश्मन है.!’’

“तेरी बात पर मुझे यकीन नहीं. चल, अब लहंगे देखते हैं,’’ बात करतेकरते हम दोनों एक शौप में घुस गए. मैं सचमुच अब काफी बिजी थी, पढ़ाई और साथसाथ साची की हर हैल्प के लिए हमेशा उस के साथ रहती. फिर हम दोनों एक दिन उस के लिए शादी के बाद पहनने वाली नाइट ड्रैसेस लेने गए. हाय, एक से एक सैक्सी ड्रैसेस सामने थीं. मेरे मुंह से एक आह निकल गई. वह हंस पड़ी और शर्माते हुए पता नहीं कैसीकैसी ड्रैसेस खरीदने लगी, यहां तक कि उस ने मुझे भी पहन कर दिखा दी. वह सचमुच उन जराजरा सी ड्रैसेस में कमाल लग रही थी. मैं ने वहां से निकलते हुए कहा, “यार साची, तू तो बहुत एंजौय करने वाली है. हाय, ये कपड़े देख कर तो ध्रुव राजा अपने होश खो बैठेंगे. तुम दोनों तो बहुत रोमांस करने वाले हो न.’’

“हां, मुझे भी लगता है, शादी टाइम से हो जाए तो अच्छा रहता है. एक उम्र होती है जब शरीर में उमंगें होती हैं. मन बातबात पर खुश होना चाहता है. यार, मैं सारा दिन ध्रुव के बारे में सोचने लगी हूं. तेरे लिए हमदर्दी है पर देखती हूं, ससुराल में कोई अच्छा, स्मार्ट लड़का दिखा तो तेरा कुछ करती हूं.’’

हां यार, ध्यान रखना. सोच रही हूं तेरी बात ही ठीक है. एकाध अफेयर भी चल जाए तो लाइफ में रौनक रहेगी. बड़ी सपाट जा रही है जवानी.’’

हम दोनों यों ही पूरा दिन बिता कर दिल्ली से वापस आए तो मम्मीपापा डिनर पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे. संडे था, मम्मी ने साची को भी मैसेज कर दिया था कि वह भी हमारे साथ ही डिनर करे.

हम दोनों फ्रैश हो कर ऊपर मेरे रूम में उस का सब सामान रख कर नीचे आए. आजकल वो अपना कुछ स्पैशल सामान खरीद कर मेरे रूम में ही रख देती, जैसे कि अभी उस ने नाइट ड्रैसेस ली थीं, कुछ हनीमून पर पहनने के लिए ख़ास अश्लील कपड़े लिए थे जिन्हें वह घर नहीं ले जाना चाहती थी. उस का मूड था कि वह इन की पैकिंग भी मेरे रूम में कर लेगी.

इतने में भैया भी आ गए. हम सब ने साथ खाना खाया. सब साची से उस की शादी की तैयारियों की बातें करते रहे. वह चहकचहक कर बताती रही. फिर उस ने हिम्मत कर के दोस्त होने का फ़र्ज़ पूरा करते हुए कह ही दिया, “आंटी, नैना के लिए भी देखो न कोई लड़का. मेरे जाने के बाद इस का मन नहीं लगेगा.’’

“नहीं, अभी नहीं. अभी पहले उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है,” मम्मी खाना खाते हुए आराम से बोलीं तो मेरा मन हुआ कि उठ कर मम्मी को झिंझोड़ दूं और कहूं कि मम्मी, देखो अपनी बेटी की आंखों में. क्या दिखता है आप को? हसीं सपने या किसी जौब की चाहत? मां तो बच्चों के दिल की बात आसानी से समझ लेती है पर अब कहां हैं वे माएं जो रातदिन बेटी की शादी की चिंता करती थीं. हाय, मम्मी, मुझे नहीं बनाना कैरियर.

खाना खा कर साची अपने घर चली गई. मैं भी थक गई थी, ऊपर आ कर बैड पर लेट कर सुस्ताने लगी तो मम्मी आईं. मेरे सिर पर हाथ फिराते हुए बोली, “बेटा, थक गई क्या? आज मैं ने कुछ प्रोफैसर से बात कर ली है, उन्होंने तुम्हें गाइड करने के लिए हाँ कर दी है और यह देखो, अभी से कुछ किताबें आज ही भिजवा भी दीं कि अपनी पढ़ाई के साथसाथ इन पर भी नजर डाल लेना कि किस विषय पर आगे काम करना चाहोगी.’’

मेरा दिल रुकने को हुआ, मैं ने आंखें बंद कर लीं. मम्मी मेरा माथा चूम कर चली गईं. मेरे स्टडी डैस्क पर नई किताबें रखी थीं. उन पर एक नजर डाल कर मैं नें उन की तरफ से करवट ले ली. आंखें फिर बंद कीं तो साची की हनीमून की ड्रैसेस आंखों के आगे घूम गईं और मेरे मन में फिर वही गाना चलने लगा जो आजकल साची गुनगुनाती रहती है, ‘चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई…’

पर फिर मैं ने खुद ही पैरोडी बना ली, ‘दफा ही हो जाओ कहार, यहां तो किताबों की रुत आई.’

मैं ने अपनी धुन साची को फोन पर हंसते हुए सुनाई. वह देर तक हंसती रही और मैं बीचबीच में कलपती रही.

कॉलगर्ल: होटल में उस रात क्या हुआ

मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.

मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर.

थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा.

मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली.

तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.

मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’

‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.

कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’

इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’

और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई.

मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.

लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’

उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’

मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी.

मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.

मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.

फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’

‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’

हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई.

मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’

मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था.

फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’

‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली.

मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’

‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’

‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’

‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’

मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी.

थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया.

इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे.

प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’

प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे.

मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’

‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’

‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’

‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’

‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’

‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’

‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’

प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था.

मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा.

तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया.

प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.

प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’

‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’

इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’

वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’

‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’

‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’

‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’

मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’

‘‘और कुछ लोगी?’’

‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’

इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’

डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.

‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे.

‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.

प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था.

‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’

‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.

‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’

‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’

इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था.

इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’

प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’

‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’

मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी.

प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई.

थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई.

सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.

मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’

‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’

‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’

प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले.

नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘बेशक दूंगी.’’

थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी.

‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’

प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’

प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई.

सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’

मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’

‘‘एयरपोर्ट.’’

मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’

‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’

और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’

‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’

‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’

और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं.

मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है.

एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’

‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’

आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.

मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट: क्यों परेशान थी मम्मी

पूरे घर में तूफान से पहले की शांति छाई हुई थी. पूरे महल्ले में एक हमारा ही घर ऐसा था जहां 4 पीढि़यां एकसाथ रह रही थीं. मेरी दादीसास इस का सारा क्रैडिट मेरी सासूमां को देती थीं, जिन्होंने अपनी उम्र के 15वें वसंत में ही उन के घर को खुशियों से भर दिया था और मेरे ससुरजी के 5 छोटे भाईबहनों सहित खुद अपनी 7 संतानों को पालपोस कर बड़ा किया.

दरअसल, मेरे पति सुमित मम्मीजी की गोद में तभी आ गए थे, जब वे स्वीट सिक्सटीन की थीं. उन्होंने अपनी सास को पोता थमा दिया और उन से घर की चाबियां हथिया लीं. वह दिन और आज का दिन, मजाल है किसी की जो हमारी मम्मीजी के सामने 5 मिनट भी नजरें उठा कर बातें कर ले.

हमारी दादीसास अपने बच्चों को भुला कर अपने पोतेपोतियों में व्यस्त हो गईं. कहते हैं न कि सूद से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है. उन के सभी बच्चे अपने हर छोटेछोटे काम के लिए अपनी भाभी यानी हमारी मम्मीजी पर आश्रित हो गए.

समय बीता, सब का अपनाअपना घर बस गया. मैं बड़ी बहू बन कर इस घर में आ गई और मेरे पीछेपीछे मेरी 2 देवरानियां भी आ गईं. ननदें ब्याह कर अपनेअपने घर चली गईं. दादीजी की जबान से मम्मीजी की बहुत सी वीरगाथाएं सुनी थीं, परंतु लाख चाह कर भी मैं वह स्थान न ले पाई, जो मम्मीजी ने बरसों पहले ले लिया था.

वे थी हीं कुछ हिटलर टाइप की. अपनी सत्ता छोड़ने को तैयार ही नहीं, इसलिए मैं ने भी उन की सीट हथियाने का विचार छोड़ कर दादी के लाड़लों की लिस्ट में शामिल होने का मन बना लिया था.

परंतु कल शाम हमारी फैमिली डाक्टर कुलकर्णी के क्लीनिक से जो फोन आया, उस ने तो पूरे घर में तहलका मचा दिया.

हमारी मम्मीजी पेट से थीं. फोन मैं ने ही सुना था. सुन कर मुंह खुला का खुला रह गया. दूसरी तरफ से डाक्टर की सहायक का सुरीला स्वर उभरा था, ‘‘कांग्रैचुलेशंस, मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट.’’

मैं शायद संसार की ऐसी पहली बहू थी, जो अपनी सास के गर्भवती होने की खबर उन्हें दे रही थी.

पूरे घर में तहलका मच गया. मम्मीजी अपने कमरे में नजरबंद हो गईं. दादीजी की खुशी सातवें आसमान पर थी. घर में पुरुषों के आने से पहले ही उन्होंने मेरे 7 वर्षीय बेटे अजय से मोबाइल से नंबर लगवा कर सारे रिश्तेदारों को यह खुशखबरी सुना कर अपने सास होेने के कर्तव्य का निर्वाह भी कर लिया.

हम तीनों बहुओं में से मैं ने और मझली देवरानी ने यह तय किया कि अपनेअपने पति को यह खबर सारे कामों से निबट कर रात को शयनकक्ष में ही सुनाएंगे. मगर छोटी देवरानी मोनाली को पति अतुल को अभी यह खबर सुनाने से सख्त मना कर दिया, क्योंकि वह इस समय शहर से बाहर था और बेवजह उसे तनाव देना ठीक नहीं लगा.

जब रात के खाने के समय मम्मीजी के साथसाथ पापाजी को भी नदारद पाया, तो हम समझ गए कि उन्हें भी खबर मिल गई होगी.

सुमित तो यह सुनते ही मुंह तक चादर ओढ़ कर सो गए, परंतु उस रात किसी की भी आंखों में नींद नहीं थी, क्योंकि रात भर सभी के कमरों के दरवाजों के बारबार खुलने व बंद होने की आवाजें आती रही थीं.

सुबह 6 बजतेबजते मेरी व मझली देवरानी सोनू की सहेलियों के फोन भी आ गए. किस ने बताया होगा इन लोगों को, मैं आंखें मलती हुई सोच रही थी. तभी दूध वाली की याद आई, क्योंकि 4-5 दिन पहले दूध लेते समय मम्मीजी को उसी के सामने उलटी आई थी. उस ने हंस कर पूछा भी था, ‘‘क्यों, दीदीजी सब ठीक तो है न? इस उम्र में भी उलटी आ रही है?’’

और कल जब फोन आया था तब भी वह यहीं पर थी. किसी ने बौखलाहट की वजह से उस पर ध्यान ही नहीं दिया था.

आज सुबह से ही मम्मीजी के दर्शन नहीं हुए. इत्तफाक से आज रविवार भी था, इसलिए सभी घर पर ही थे.

सुबह से ही मम्मी के काम बंट गए. स्नान के बाद जहां दादीजी ने पूजा घर संभाला, वहीं मुझे रसोई की ड्यूटी मिली.

जहां सुबह से दादीजी ने यह खबर पेपर वाले, सब्जी वाले को खुशीखुशी सुनाई, वहीं मोनाली थोड़ी शर्मिंदा थी. आखिर उस के रहते मम्मीजी ने जो बाजी मार ली थी.

‘‘कुसुम दीदी, यह कैसे संभव है?’’ उस ने आंखें फाड़ते हुए पूछा.

‘‘अरे मोनाली, हमारी मम्मीजी अभी सिर्फ 48 साल की ही तो हैं. उन की माहवारी भी अभी तक पूरी तरह से नहीं रुकी है. कुछ रेयर केसेज में ऐसा कभीकभी हो जाता है,’’ मैं ने उस की अवस्था को भांपते हुए उसे

आश्वस्त किया.

‘‘मैं ने भी नोटिस किया था, जब से मम्मीजी बरेली वाली शादी से लौटी हैं, उन का चेहरा बुझाबुझा सा है. पहले वाली चुस्तीफुरती नहीं है,’’ सोनू ने भी सोचते हुए कहा.

दादीजी को धोबिन से इस खबर की चर्चा करते देख कर मझले देवर राहुल, दादी के पास आ कर बोले, ‘‘दादी, प्लीज चुप हो जाइए. यह कोई शान की बात नहीं है.’’

‘‘तू चुप कर और पंडितजी को बुला ला. पूजा करवानी है. पूरे महल्ले में मिठाई बांटनी है,’’ दादीजी ने उसे डांटते हुए कहा तो राहुल अपना सिर पकड़ कर लौट गए और धोबिन मुसकराने लगी.

अब दादीजी की जबान पर कौन ताला लगाए. वे तो सभी से अपने बहादुर पुत्र की मर्दानगी का बखान बढ़ाचढ़ा कर कर रही थीं.

‘‘भैया, रिपोर्ट गलत भी तो हो सकती है,’’ नाश्ते की मेज पर राहुल ने सुमित से कहा.

‘‘काश, ऐसा ही हो,’’ गहरी सांस लेते हुए सुमित बोले.

मुझे दोनों भाइयों की शक्ल देख कर हंसी भी आ रही थी और दया भी.

सुबह की सैर पर पापाजी की अनुपस्थिति, आज उन के दोस्तों को घर तक खींच लाई. चाय सर्व करते समय इस उम्र में भी उन लोगों के गुलाबी होते झुर्रियों वाले गाल और पास बैठी मुसकराती हुई दादीजी को देख कर मैं समझ गई थी कि उन लोगों को भी खुशखबरी मिल गई है.

आज पूरे घर में मेरा ही राज था. माली, महाराज, धोबिन, चमकी, सोनू, मोनाली आदि मेरे नेतृत्व में अपनेअपने काम को अंजाम दे रहे थे. हां, बीचबीच में दादीजी आ कर मेरा मार्गदर्शन कर रही थीं. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. किसी महिला के राष्ट्रपति बनने की उस खुशी को आज मैं ने पहली बार पर्सनली महसूस किया था.

मम्मीजी और पापाजी का नाश्ता ले कर मैं दादीजी के साथ उन के कमरे में पहुंची. वहां का नजारा तो और भी रोमांचक था. हमेशा शेरनी की तरह गरजने वाली हमारी मम्मीजी आज मेमने की तरह नजरें झुकाए बैठी थीं. मेरा दिल यह देख कर बल्लियों उछल रहा था. जी चाह रहा था कि उन्हें चूम लूं, पर कहते हैं न कि घायल भी हो तब भी शेरनी तो शेरनी ही होती है.

पापाजी कमरे के दूसरे कोने में बैठे थे. अचानक मेरी नजरों ने नीचे से ऊपर तक उन का मुआयना किया, परंतु मुझे कहीं से भी यह नहीं लगा कि उन का यह दीनहीन शरीर ऐसा गुल भी खिला सकता है.

दादीजी को मम्मीजी की नजरें उतारते देख पापाजी कमरे से बाहर आ गए, तो उन के पीछेपीछे मैं भी बाहर आ गई.

‘‘दादाजी, चमकी आंटी कह रही थीं कि घर में मेहमान आने वाला है, कौन है वह?’’ मेरे बेटे अजय ने मासूमियत से पूछा, तो आंगन में खड़े माली, चमकी, सोनू सभी मुसकरा दिए. पापाजी जल्द ही गेट से बाहर हो लिए.

‘‘दीदीजी, आज क्या पकवान बनाए?’’ चमकी ने चहकते हुए पूछा.

‘‘क्यों, कोई त्योहार है क्या?’’ मैं ने त्योरियां चढ़ाते हुए पूछा.

‘‘कुछ ऐसा ही तो है. थोड़ी देर में तीनों चाचा अपने परिवारों समेत आ रहे हैं,’’ चमकी मुसकराते हुए बोली.

‘‘उफ, लगता है दादीजी का बुलावा है,’’ मैं ने खीजते हुए कहा.

‘‘तू इतना मुसकरा क्यों रही है?’’ सोनू ने चिढ़ते हुए चमकी से पूछा.

‘‘हमें तो मांजी के बारे में सोचसोच कर गुदगुदी हो रही है. हम ने भी अपने लल्ला के पापा को आज जल्दी काम से लौट आने को फोन कर दिया है,’’ चमकी मुंह में साड़ी का पल्लू ठूंसती हुई शरमा कर बोली.

कुछ देर बाद बाहर शोरगुल सुन कर मैं ने महाराज व चमकी को कुछ निर्देश दिए व रसोई से बाहर आई.

बाहर हमारा आधा खानदान पधार चुका था. मम्मीजी की सभी देवरानियां मेरे पीछेपीछे मम्मीजी के कमरे की ओर लपकीं. सोनू, मोनाली और मैं भी वहीं थे.

‘‘अब मैं बच्चों को, महल्ले वालों को क्या मुंह दिखाऊंगी छोटी. अपने पोतेपोतियों से क्या कहूंगी कि तुम्हारे छोटे चाचा आने वाले हैं,’’ अपनी देवरानी के गले लगते हुए मम्मीजी फूटफूट कर रो पड़ीं.

मुझे तो सुबह से इस नए रिश्ते का आभास ही नहीं हुआ था.

‘‘मैं ने इन से कितना मना किया, पर ये मेरी सुनते ही कहां हैं,’’ मम्मीजी रोती हुई अपना दुखड़ा सुना रही थीं.

‘‘अरे दीदी, क्या नहीं सुनते? भैयाजी तो सारी उम्र आप की हां में हां मिलाते आए हैं. अब थोड़ी सी अपने मन की कर ली तो क्या बुरा किया? एक मेरे वे हैं, पत्थर हैं पत्थर,’’ मम्मीजी की सब से छोटी देवरानी अपने पति को कोसते हुए बोलीं.

उन को हम तीनों की उपस्थिति का शायद आभास ही नहीं था.

‘‘पापाजी इस उम्र में भी मम्मीजी के साथ…’’ आंखें फाड़ते हुए मोनाली ने कहा तो मैं ने कुहनी मार कर उसे चुप रहने का इशारा किया.

मम्मीजी को यों रोता देख कर हम बहुओं का भी दिल पसीज गया था, परंतु हमारे अंदर तो उन्हें सांत्वना देने की हिम्मत नहीं थी.

पूरे घर में मेला सा लगा हुआ था. अब तक सुमित और राहुल भी चाचा लोगों के पास आ गए थे. बच्चे ऐंजौय कर रहे थे. उन्हें अचानक इस गैटटुगैदर का अर्थ समझ नहीं आ रहा था. जिसे देखो वही होंठ दबा कर मुसकरा रहा था, परंतु पूरी भीड़ में पापा नहीं थे.

अचानक मेरे मोबाइल पर मेरी सहेली सीमा की आवाज आई, ‘‘एक मजेदार बात सुनाऊं कुसुम?’’

‘‘क्या है?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मेरे पापाजी आज सुबह तेरे घर से लौट कर आए हैं न, तभी से मम्मी के साथ बाहर घूमने गए हैं. दोनों बड़े खुश लग रहे थे,’’ उस ने चहकते हुए कहा.

मुझे समझते देर न लगी कि उस के पापाजी में यह खुशहाल परिवर्तन हमारे यहां की खुशखबरी सुनने से ही आया है.

‘‘डाक्टर से एक बार और कन्फर्म कर लेते हैं,’’ चाचाजी झेंपते हुए सुमित से बोले.

‘‘आज संडे है, क्लीनिक बंद है और वैसे भी डाक्टर 2 दिनों के लिए चेन्नई गई हैं. फोन किया था मैं ने तो पता चला,’’ मैं ने बड़ी बहू होने का फर्ज निभाते हुए कहा.

‘‘अरे क्या पक्का करना रह गया है अब. उस का चेहरा नहीं देखा, कैसा पीला पड़ गया है. कुछ दिनों पहले ही तो वह लल्ला के संग गई थी अपनी जांच करवाने उसी डाक्टरनी के पास,’’ दादीजी ने झिड़कते हुए कहा तो सब चुप हो गए.

आज मम्मीजी की सत्ता लगभग मेरे हाथों में थी, इसलिए भागदौड़ भी कुछ ज्यादा थी और खीज भी हो रही थी. इसलिए मम्मीजी के कमरे के आसपास मोनाली को तैनात कर जेठानीदेवरानियों की खबरें एकत्र करने का निर्देश दे कर मैं सोनू को साथ ले रसोई की ओर बढ़ गई.

रसोई में भी मन कहां लग रहा था. थोड़ी देर बाद मोनाली ने आ कर एक खबर सुनाई. उन लोगों के बीच यह तय हुआ है कि अपने पूरे प्रसवकाल में मम्मीजी दुबई वाली बूआजी के पास रहेंगी और फिर बच्चा भी उन्हें दे दिया जाएगा. उन की अपनी औलाद नहीं है. बूआजी से फोन पर इस की स्वीकृति भी ले ली गई है.

इस खबर ने मुझे खुशी से भर दिया कि चलो उतना समय ही सही, मम्मीजी की कुरसी पर बैठने का मौका तो मिलेगा.

खैर, दोपहर का भोजन समय पर तैयार हो गया. खाने पर सभी मम्मीजी को मिस कर रहे थे.

दोपहर के कामों से निबट कर मैं और चमकी रात के भोजन का सामान लाने मार्केट निकले.

‘‘कुसुम, अब मिसेज अवस्थी की तबीयत कैसी है?’’ पड़ोस की चावला आंटी ने चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान बिखेरी.

‘‘जी…जी…ठीक है,’’ मैं ने झेंपते हुए कहा और आगे बढ़ गई.

‘‘कुसुम भाभी, मम्मी पूछ रही थीं कि हमारा टैलीफोन का बिल भी आप जमा कर देंगी?’’ 2 घर छोड़ 14 वर्षीय चंचल ने अपने घर के गेट पर से ही पूछा.

‘‘क्यों, मम्मी को कहीं जाना है क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, मम्मीपापा ने आज सुबह अचानक ही माउंट आबू जाने का प्रोग्राम बना लिया. इस बार दोनों ही जा रहे हैं. हमें नहीं ले जा रहे हैं,’’ रूठते हुए चंचल बोली.

‘‘लो दीदी, बम तो आप के घर फूटा है, पर धमाके दूरदूर तक हो रहे हैं,’’ चमकी मुसकराते हुए बोली.

हर 2 घर छोड़ कर अलगअलग लोगों की अलगअलग प्रतिक्रियाएं देखीं हम ने. ये सब हमारे घर के उस महान समाचार की ही उपज था.

‘‘दीदी, आज 6 बजे ही फ्लाइट से अतुल आ रहे हैं,’’ घर पहुंची तो मोनाली ने चहकते हुए कहा.

‘‘पर उन्हें तो कल आना था न?’’ मैं ने पूछा.

‘‘काम जल्दी खत्म हो गया, इसलिए आज ही पहुंच जाएंगे. वैसे भी कल रात से मुझे उन की कुछ ज्यादा ही याद आ रही है,’’ मोनाली शरमा कर बोली, तो हम सब भी मुसकरा दिए.

वैसे मम्मीजी के इस समाचार ने महल्ले के प्रौढ़ जोड़ों में जहां नई ऊर्जा का संचार किया था, वहीं नवविवाहितों की गरमी को भी और बढ़ा दिया था.

‘‘भाभी, सब ठीक तो है न? रास्ते में शर्माजी मुझे रोक कर कहने लगे कि घर जल्दी पहुंचो, सब इंतजार कर रहे हैं,’’ मेरे चरणस्पर्श करते हुए घर का माहौल देख हैरानपरेशान से अतुल ने पूछा.

मोनाली ने उस के कान में कुछ कहा तो थोड़ी देर सोच कर वह जोरजोर से हंसने लगा.

उस की हंसी देख कर हम सब सकते में आ गए. परंतु अतुल ने कुछ न कहा और इशारे से मम्मीजी के कमरे में आने को कहा. सभी बुत की तरह उस के पीछे हो लिए.

‘‘बधाई हो मम्मीजी,’’ उस ने शरारत से हंसते हुए कहा.

मम्मीजी को काटो तो खून नहीं.

‘‘क्या कहा था डाक्टर की सहायक ने?’’ उस ने हंसते हुए हम लोगों से पूछा.

‘‘यही कि मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट,’’ मैं ने सफाई दी.

‘‘तो आप सब ने मम्मीजी को…’’ और वह पेट पकड़ कर हंसने लगा.

अब की बार मम्मीजी ने धीरे से गरदन उठाई.

‘‘हंसना बंद कर और साफसाफ बता,’’ दादीजी बोलीं.

‘‘उफ दादी, इस घर में मम्मी के अलावा 3 और मिसेज अवस्थी भी हैं,’’ मुश्किल से हंसी रोकते हुए अतुल बोला.

अब सब की निगाहें मुझ पर और सोनू पर थीं. हम दोनों शर्म से पानीपानी हो रहे थे. न जाते बन रहा था न रुकते. मोनाली पर कोई इसलिए शक नहीं कर रहा था, क्योंकि हमारे खानदान के रिवाज के अनुसार, उसे तो 3 सप्ताह पहले ही गौना करा कर यहां लाया गया था.

‘‘तो क्या कुसुम या सोनू में से कोई?’’ दादी के शब्दों में हैरानी थी.

यह सुनते ही मम्मीजी के तेवर भी बदलने लगे.

‘‘सौरी दादी, वह मोनाली है,’’ अतुल बोला.

इस के बाद मोनाली तो कमरे से ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सिर से सींग. मेरी और सोनू की जान में जान आई.

दरअसल, हुआ यह कि रिवाज के मुताबिक शादी के 7 महीने तक मोनाली को मायके में ही रहना था, परंतु दोनों के घर एक ही शहर में होने की वजह से अतुल और मोनाली को एकदूसरे से मिलने की छूट थी. इन्हीं मुलाकातों ने मोनाली को गर्भवती कर दिया.

घर वालों के डर से अतुल ही गुप्त रूप से मोनाली को डाक्टर कुलकर्णी के पास यूरिन टैस्ट के लिए ले गया था. परंतु उस का परिणाम स्वयं डाक्टर ने अतुल को बता दिया था. वह यह खुशखबरी घर वापस आ कर देना चाहता था.

उधर शादी से लौटने के बाद बदहजमी व अन्य परेशानियों के कारण मम्मीजी की तबीयत भी ढीली हो गई थी और संयोग से उन का भी यूरिन टैस्ट उन्हीं डाक्टर के क्लीनिक पर हुआ. मम्मीजी के तो डाक्टर के पास जाने की बात हम सभी जानते थे, परंतु अतुल और मोनाली भी वहां गए थे, यह कोई नहीं जानता था. उस पर मम्मीजी की ढीली तबीयत ने आग में घी का काम कर दिया.

बस, इतनी छोटी सी गलतफहमी ने न सिर्फ हमारे घर की सत्ता पलट दी थी, बल्कि प्रेम के नाम पर महल्ले में नई क्रांति भी आ गई थी.

अब दनदनाते हुए मम्मीजी खड़ी हो गईं. मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरे एक दिन के राजपाट का अंत हो चुका है.

अब सभी पापाजी को ढूंढ़ रहे थे.

‘‘रीगल थिएटर में बैठे होंगे, जाओ बुला लाओ,’’ मम्मीजी की रोबदार आवाज गरजी.

‘‘आप को कैसे पता दादीजी?’’ मेरे बेटे अजय ने हैरानी से पूछा.

‘‘अरे बेटा, जब तुम्हारे दादाजी हद से ज्यादा परेशान होते हैं न तो अंगरेजी फिल्म देखने चले जाते हैं और इस समय अंगरेजी फिल्म रीगल में ही लगी है,’’ मम्मीजी ने अनजाने पापाजी के व्यक्तित्व की एक पोल खोल दी.

‘‘कुछ भी हो दीदी, पापाजी हैं बड़े हीरो वरना मम्मीजी की जबान पर यह बात कभी न आती कि मैं ने इन से कितना मना किया, यह हैं कि सुनते ही नहीं हैं,’’ सोनू ने धीरे से मम्मी की नकल करते हुए कहा तो मेरी भी हंसी छूट गई.

मम्मीजी अपने रोब के साथ रसोई की ओर चल दीं, रात के खाने का इंतजाम करने.

अब सभी खुशी मनाने के मूड में थे, क्योंकि मिसेज अवस्थी इज रीयली प्रैग्नैंट.

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