लेखक -डा. व्योम अग्रवाल
रात के करीब 3 बजे मुझे अंजनी का फोन आया. बड़ी घबराहट भरी आवाज में पहले तो उन्होंने मुझ से असमय फोन करने पर खेद जताया और फिर लगभग रोते हुए बोलीं कि उन का 5 दिन का बच्चा आधे घंटे से बहुत परेशान था. फिर अचानक चीख मार कर रोने लगा. 5 मिनट पहले उस ने पेशाब किया. उस के बाद अब वह आराम से सो रहा है.
दरअसल, उन्हें डर था कि बच्चे के मूत्रमार्ग में कोई रुकावट या इन्फैक्शन है या फिर किडनी की कोई परेशानी है. मैं ने सारी बात सुन कर सांत्वना देते हुए समझाया कि यह नवजातों के लिए बिलकुल सामान्य है. इस का कारण कदाचित यह होता है कि शिशुओं का अपने मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण नहीं होता, इसलिए उन का मूत्रमार्ग कस कर बंद होता है, जिस से कि उन का पेशाब हर समय टपकता न रहे. सामान्यतया 2 महीने की उम्र तक यह होना बंद हो जाता है. इस के लिए न तो घबराने की जरूरत है न ही किसी जांच की. यदि अंजनी को यह जानकारी पहले से होती तो कदाचित वह उस के परिजन (और मैं भी) रात में परेशान न होते.
बच्चे का जन्म परिवार में सब को खुशियों से भर देता है. विशेषतया प्रथम बार मातृसुख का अनुभव करने वाली युवतियों के लिए तो यह अविस्मरणीय समय व अनुभव होता है. घर की अनुभवी महिलाएं जैसे दादी, नानी, भाभी, ननद इत्यादि बहुत सीख दे कर मां को असली मातृत्व के लिए तैयार करती हैं व दिनप्रतिदिन आने वाली समस्याओं का सरल उपाय भी बताती रहती हैं. एकल परिवारों में यह कमी प्रथम बार मां बनने वाली युवतियों के द्वारा बारबार महसूस की जाती है और दूसरों से मिलने वाली सलाह भी ठीक है या नहीं, इस का निर्णय कर पाना भी अधिकांश समय संभव नहीं हो पाता.
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1. शिशुओं की सामान्य समस्याएं
अपने लगभग 24 सालों के अनुभव से मैं ने जाना है कि नवजात के अस्पताल से घर जाने के बाद माताएं लगभग एकजैसी परेशानियां अनुभव करती हैं और उस समय डाक्टर से तुरंत संपर्क न होने पर या सही जानकारी के अभाव में बहुत विचलित हो जाती हैं. मातृत्व की दहलीज पर पहला कदम रखने वाली महिलाओं की इसी तरह की मुश्किल को ध्यान में रखते हुए शिशुओं की कुछ सामान्य समस्याओं के बारे में जानकारी दी जा रही है.
2. शरीर पर लाल दाने
कुछ दिन पहले एक बच्चा सांस में दिक्कत के कारण जन्म के 3 दिन बाद तक हमारी नर्सरी में रहा. चौथे दिन बच्चे को मां के पास दूध पिलाने के लिए भेजा गया. कुछ ही देर बाद बच्चे की नानी बहुत गुस्से में नर्सरी में आईं और करीब लड़ते हुए शिकायत करने लगीं कि नर्सरी में बच्चे को जो दवा दी गई उस के कारण उसे ऐलर्जी हो गई है. उस के पूरे शरीर पर खसरे जैसे दाने निकले हुए हैं.
हमारे डाक्टर उसी समय बच्चे के पास गए और उस का अच्छी तरह से परीक्षण किया. फिर हम ने सब परिवार वालों को तसल्ली देते हुए समझाया कि ज्यादातर शिशुओं के शरीर पर
जन्म के दूसरे दिन से लाल दाने दिखाई देने लगते हैं. इन्हें इरीदेमा टौक्सिकम कहा जाता है. इसे वायु के प्रथम संपर्क में आने पर होने वाली ऐलर्जी के रूप में समझा जा सकता है. ये दाने पूर्णरूप से अहानिकारक होते हैं और 6-7 दिनों में अपनेआप ठीक हो जाते हैं.
3. हरे रंग का मल
आमतौर पर बच्चे पहले 2 दिन पहले हरे, काले रंग का मल त्याग करते हैं. अगले कुछ दिनों तक रंग बदलता है और 10 दिन तक यह सामान्य रंग का हो जाता है. सफेद रंग का मल लिवर के रोगों में ही होता है. सामान्य रूप में यदि बच्चा केवल स्तनपान पर है तो वह दिन में कितनी ही बार मल त्याग करे यह चिंता का विषय नहीं होता व केवल स्तनपान कराने वाली मांओं को इस से परेशान नहीं होना चाहिए.
अकसर मांओं को दिनप्रतिदिन बदलते रंग या बारबार दस्त आते देख बहुत चिंता हो जाती है. बारबार यह हर दुग्धपान के बाद मलत्याग उतना ही सामान्य है जितना 3-4 दिन तक पेट का साफ न होना. मैं हर माता को समझाता हूं या बिना पूछे ही यह जानकारी अवश्य देता हूं कि यह कोई घबराने की बात नहीं है, परंतु यदि
शिशु सुस्त दिखे, स्तनपान छोड़ दे या पेशाब करना कम कर दे तो निश्चित रूप से बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए.
4. स्तनपान
एक दिन एक नवजात शिशु की मां ने मुझ से पूछा कि बच्चा केवल स्तनपान करता है पर दिन में 15-20 लंगोट खराब करता है. मेरे पूछने पर उन्होंने मुझे बताया कि वे एक स्तन से दूध पिलाना शुरू करती हैं और 5 से 10 मिनट बाद दूसरे स्तन से दूध पिलाती हैं. उन के अनुसार ऐसा वह स्तन के खाली होने के कारण नहीं, बल्कि एक मुद्रा में बैठने से थक जाने के कारण करती हैं.
वस्तुत: यही बच्चे के ज्यादा बार मलत्याग का कारण है. मां के स्तनों में शुरू का दूध शर्करा से युक्त होता है और बाद में दूध वसा से युक्त. वसा से तृप्ति आती है, जबकि शर्करा ज्यादा होने से ज्यादा मल बनता है. बच्चे के स्वास्थ्य के लिए दोनों मिश्रित और सही मात्रा में होने जरूरी हैं. इसलिए मैं ने उन्हें समझाया कि आगे से उन्हें एक बार में एक स्तन से पूरा दूध पिलाने पर यदि जरूरत रह जाए तो दूसरे स्तन से दूध पिलाना चाहिए. 2 दिन बाद ही उन का फोन आया कि बच्चे में बहुत सुधार लग रहा है.
5. दूध उगलना
शायद ही ऐसा कोई शिशु हो जो दूध न गिराता हो. कुछ सामान्य बालक तो नाक से भी दूध निकाल देते हैं. यदि बच्चे का वजन ठीक बढ़ रहा हो, उसे दूध पीते समय फंदा सा यानी सांस की नली में कुछ अटकना न महसूस होता हो, पेशाब पूरा आता हो, वह दूध पी कर निकालने के बाद भी तुरंत भूखा न हो जाता हो, उस का पेट फूलता न हो, वह चुस्त हो और निकला दूध हरे रंग का न हो तो दूध गिराना या हर बार दूध पी कर थोड़ी उलटी करना बिलकुल सामान्य बात है. बच्चे का वजन न बढ़ना इस बात का सूचक हो सकता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है और डाक्टर से परामर्श की जरूरत है.
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6. सोनेजागने का समय
बच्चे के जन्म के बाद के प्रथम परामर्श में थकी सी प्रतीत होती मांओं की सब से बड़ी परेशानी यह है कि बच्चा दिन में तो दूध पी कर सो जाता है पर रात को हर 10-20 मिनट में उठ जाता है, रोता है और बारबार दूध मांगता है. इस का कारण गर्भावस्था में मां के सोनेजागने के चक्र से जुड़ा है. साधारण भाषा में समझें तो जब मां दिन में चलती है तो शिशु झूला पा कर सो जाता है. रात में मां के लेटने के बाद गर्भस्थ शिशु उठ जाता है और घूमता है, पैर चलाता है और सक्रिय हो जाता है. जन्म के बाद उस की दिनरात की आदतें बदलने में करीब 2 महीने लगते हैं.
अत: रात में बच्चा जागा रहता है और जागे रहने पर उसे 2 ही काम आते हैं- रोना और दूध पीना. यही उस के रात को जागने और रोने का कारण है. मांओं को चाहिए कि वे दिन में विश्राम कर लें ताकि रात को बच्चे को पूर्ण स्तनपान करा पाएं. बीचबीच में हिलाना, कमरे में धीमी रोशनी, धीमा संगीत बच्चे को रात में भी ज्यादा सोने में मदद करते हैं. किसी भी अवस्था में बच्चे का रोज केवल रात में रोने को मां के दूध की कमी नहीं समझा जाना चाहिए और बच्चे तथा मां के स्वस्थ जीवन के लिए 6 माह तक बच्चे को केवल स्तनपान पर ही रखना चाहिए.
7. नवजात लड़की में रक्तस्राव
सरीन को अपनी बच्ची के डायपर को बदलते समय उस के योनिमार्ग से खून आता दिखाई दिया तो वे घबरा गईं. नवजात लड़कियों में जन्म के पहले सप्ताह में माहवारी जैसा रक्तस्राव हो सकता है जो कि 5-6 दिन तक हो सकता है. यह रक्तस्राव कुछ बूंदों जितना होता है और स्वत: ही कुछ दिनों में रुक जाता है. जन्म के बाद मां के हारमोन शरीर से हट जाने से यह होता है और कदापि चिंता का विषय नहीं होता.
मांओें को सलाह दी जाती है कि शिशुओं के विषय में कोई भी समस्या आने पर स्वयं डाक्टर बनने की कोशिश न करें वरन तुरंत बालरोग विशेषज्ञ को दिखाएं.