मौनसून में आंखों का संक्रमण ज्यादा हो रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरा 24 साल की कामकाजी महिला हूं. मौनसून का मौसम जल्द ही शुरू होने वाला है. मैं ने सुना है कि इस मौसम में आंखों के संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है. क्या यह सच है? यदि यह सच है तो कृपया इस से बचाव का उपाय बताएं?

 जवाब-

आप ने बिलकुल सही सुना है. दरअसल, बारिश के पानी में कई प्रकार के बैक्टीरिया जन्म लेते हैं और साथ ही इस मौसम में कीड़ेमकोड़ों की भरमार हो जाती है.

वातावरण में नमी और बैक्टीरिया के कारण आंखों के संक्रमण का खतरा बढ़ता है. इस से बचने के लिए व्यक्तिगत स्वछता जरूरी है. आंखों को छुएं नहीं, रगड़ें नहीं और दिन में कम से कम 2-3 बार आंखों पर साफ और ठंडे पानी के छींटे मारें. इस से संक्रमण का खतरा कम होता है.

जिस जगह पानी भरा हो उस से दूर रहें, क्योंकि वहां पर बैक्टिरिया सब से ज्यादा पनपते हैं. आंखों में बारिश का पानी बिलकुल न जानें दें.

ये भी पढ़ें- 

कई बीमारियों के भी चपेट में आ जाते है. ऐसे में शरीर के सबसे नाजुक अंगों में से एक आंखों की देखभाल बहुत जरूरी है क्योंकि आंखों में होने वाली जरा सी दिक्कत चिंता का सबब बन सकती है. अक्सर लोग आंख में धूल या मिट्टी चले जाने पर उसे तेजी से रगड़ने लगते हैं जिसके कारण आंखे लाल हो जाती है और उन्हें परेशानियां होने लगती है. गर्मी के मौसम में सबसे आम दिक्कत है एलर्जिक रिएक्शन. आंखों में एलर्जी होने से आंखों में पानी, चुभन होना और लालपन आने लगता है. एलर्जिक कांजेक्टिवआइटिस इस मौसम में सबसे आम है जो कि एलर्जिक रिएक्शन के कारण होता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आंखों को ऐसे बचाएं एलर्जी से…

सही समय पर निदान के साथ संभव है ब्रेन ट्यूमर का सफल इलाज

न्यूरोसर्जरी के क्षेत्र में प्रगति के साथ आज ब्रेन ट्यूमर के इलाज में विभिन्न प्रकार की मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाएं शामिल हो चुकी हैं. एंडोस्कोपिक सर्जरी भी इसी प्रकार की सर्जरी है जो मुश्किल से मुश्किल ब्रेन ट्यूमर के इलाज में कारगर साबित हुई है.

इस प्रक्रिया में एक पतली ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है जिसके छोर पर एक कैमरा लगा होता है. यह कैमरा ट्यूमर को ढूंढ़कर इलाज करने में मदद करता है. अच्छी बात यह है कि इस प्रक्रिया में मस्तिष्क के स्वस्थ भाग को नुकसान पहुंचाए ही ट्यूमर को बाहर कर दिया जाता है. कई मुश्किल मामलों में बेहतर परिणामों के लिए इसे रोबोटिक साइबरनाइफ रेडिएशन थेरेपी के साथ इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रकार ट्यूमर के अतिरिक्त छोटे टुकड़ों को भी बाहर किया जा सकता है.

आर्टमिस हॉस्पिटल के अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेस में न्यूरोसर्जरी विभाग के निदेशक, डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने बताया कि, “जब ट्यूमर बढ़ने लगता है तो वह मस्तिष्क और वहां मौजूद उत्तकों पर दबाव बनाता है. यदि समय पर इसकी जांच की जाए तो इसके खतरे को कम किया जा सकता है. मस्तिष्क में मौजूद कोशिकाएं जब खराब होने लगती हैं तो बाद में जाकर ब्रेन ट्यूमर का रूप ले लेती हैं. ये ट्यूमर कैंसर वाला या बिना कैंसर वाला हो सकता है. जब कैंसर विकसित होता है तो यह मस्तिष्क में गहरा दबाव डालता है, जिससे ब्रेन डैमेज होने के साथ मरीज की जान तक जा सकती है. लगभग 45% ब्रेन ट्यूमर बिना कैंसर वाले होते हैं, इसलिए समय पर इलाज के साथ मरीज की जान बचाई जा सकती है.”

ये भी पढ़ें- मास्क के इस्तेमाल में जरा सी गलती से हो सकते हैं वायरस के शिकार

ब्रेन ट्यूमर, भारत में हो रहीं मौतों का दसवां सबसे बड़ा कारण है. इस घातक बीमारी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जहां विभिन्न प्रकार के ट्यूमर अलग-अलग उम्र के लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ कैंसर रेजिस्ट्रीज (आईएआरसी) द्वारा निकाली गई ग्लोबोकैन 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में, हर साल ब्रेन ट्यूमर के लगभग 28,000 नए मामले दर्ज किए जाते हैं. इस घातक कैंसर के कारण अबतक लगभग 24000 मरीजों की मौत हो चुकी है.

डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने और अधिक जानकारी देते हुए बताया कि, “ब्रेन ट्यूमर को प्राइमरी और सेकंडरी तौर पर विभाजित किया जाता है. प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर वह है, जो मस्तिष्क में ही विकसित होते हैं जिनमें से कई कैंसर का रूप नहीं लेते हैं. सेकेंडरी ब्रेन ट्यूमर को मेटास्टेटिक ब्रेन ट्यूमर के नाम से भी जाना जाता है. यह ट्यूमर तब होता है जब कैंसर वाली कोशिकाएं स्तन या फेफड़ों आदि जैसे अन्य अंगों से फैलकर मस्तिष्क तक पहुंच जाती हैं. अधिकतर ब्रेन कैंसर इन्हीं के कारण होता है. ग्लाइओमा (जो ग्लायल नाम की कोशिकाओं से विकसित होते हैं) और मेनिंग्योमा (जो मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड की परत से विकसित होते हैं) व्यस्कों में होने वाले सबसे आम प्रकार के ब्रेन ट्यूमर हैं.”

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण और संकेत ट्यूमर के आकार और जगह पर निर्भर करते हैं. कुछ लक्षण सीधा ब्रेन टिशू को प्रभावित करते हैं जबकी कुछ लक्षण मस्तिष्क में दबाव डालते हैं. ब्रेन ट्यूमर का निदान फिजिकल टेस्ट के साथ शुरू किया जाता है, जहां पहले मरीज से बीमारी के पारिवारिक इतिहास के बारे में पूछा जाता है. फिजिकल टेस्ट के बाद कुछ अन्य जांचों की सलाह दी जाती है जैसे कि एमआरआई, सीटी स्कैन.

साइबरनाइफ एम6 एक नॉन-इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसमें सर्जरी के बाद मरीज बहुत जल्दी रिकवर करता है. एम6 इलाज के दौरान 3डी इमेजिंग तकनीक ट्यूमर की सही जगह देखने में मदद करता है, जिससे इलाज आसानी से सफल हो पाता है. इस प्रक्रिया में किसी प्रकार के चीरे की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जिससे मरीज पर कोई घाव नहीं होने के कारण वह सर्जरी के बाद जल्दी रिकवर करता है. जबकी सर्जरी की पुरानी तकनीक में मरीज को कई समस्याएं होती हैं. जबकी यह प्रक्रिया 1 से 5 सिटिंग्स में पूरी हो जाती है और हर सिटिंग में आधे घंटे का समय लगता है. इस प्रकार न तो मरीज को कोई असुविधा महसूस होती और ट्यूमर भी दूसरे अगों तक नहीं फैलता है.

ये भी पढ़ें- कोविड-19 के खतरनाक सिग्नलों में एक बात कौमन राज नहीं खोज पा रहे मैडिकल एक्सपर्ट

साइबरनाइफ रेडिएशन थेरेपी का विशेष फायदा यह है कि यह मस्तिष्क के काम को प्रभावित किए बिना ही ट्यूमर का इलाज कर देता है. लेकिन जिन मरीजों का कैंसर पूरे शरीर में फैल जाता है, उनका इलाज होल ब्रेन रिजर्व थेरेपी (डबल्यूबीआरटी) से किया जाता है. साइबरनाइफ तकनीक ऐसे मरीजों का इलाज करने में सक्षम नहीं है. मेलानोमा जैसे फैलने वाले कैंसरों का इलाज केवल साइबरनाइफ तकनीक से ही किया जा सकता है.

#lockdown: डिजिटल स्क्रीन का बढ़ा इस्तेमाल, रखें अपनी आंखों का ख्याल

कोरोना काल में अभी ज्यादातर लोग घर से काम कर रहे हैं. सुरक्षा के लिए यह जरूरी कदम है. मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस दौरान हमारे डिजिटल स्क्रीन के इस्तेमाल के घंटे भी काफी बढ़ गए हैं. हर काम डिजिटली करना पड़ रहा है. भले ही वह मीटिंग हो कम्युनिकेशन हो या फिर दूसरे काम. आजकल तो बच्चों की पढ़ाई भी वर्चुअल ही हो रही है. ऐसे में लंबे समय तक मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर पर आंखें गड़ाए रखना आप की आंखों पर भारी पड़ सकता है.

ड्राई आंखें, आंखों से पानी आना, आंखों में लाली, दूर का दिखाई न देना, धुंधला दिखना, आंखों में जलन आदि समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

आंखों को डिजिटल स्क्रीन से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए, इस संदर्भ में सेंटर फॉर साइट के डायरेक्टर डॉ महिपाल सिंह सचदेव बताते हैं;

1. पलकों को झपकाते रहें

जब हम लैपटॉप या मोबाइल पर काम करते हैं तो हमारा सारा ध्यान उसी पर होता है. इस कारण देर तक हम पलकें झपकाना भूल जाते हैं. इस से आंखों पर जोर पड़ता है. पलकों को जल्दीजल्दी झपकाने से आंखों पर ज्यादा तनाव नहीं पड़ता है.

ये  भी पढ़ें- 5 टिप्स: बिना एक्साइज और डाइटिंग के आसानी से करें वजन कम

2. स्क्रीन की ब्राइटनेस कम रखें

अक्सर लोग स्क्रीन की ब्राइटनेस बढ़ा कर रखते हैं जिस से आंखों को काफी नुकसान पहुंचता है. अधिक ब्राइटनेस के कारण आंखों में दर्द, जलन और लाली की समस्याएं पैदा होती हैं. आंखों को सुरक्षित रखने के लिए स्क्रीन की ब्राइटनेस को बैलेंस मोड में रखें. इस के अलावा यदि आप डिस्प्ले को पावर सेविंग मोड में रखते हैं तो इस से न सिर्फ आंखों को कम नुकसान पहुंचता है बल्कि डिवाइस की बैटरी भी लंबे समय तक चलती है.

3. एंटी ग्लेयर चश्मा लगाएं

डिजिटल स्क्रीन पर अधिक देर काम करना हो तो काम करते समय एंटीग्लेयर चश्मा लगा कर रखें. यह चश्मा आप की आंखों को स्क्रीन से निकलने वाली रेडिएशन से बचाता है.

4. आंखों के आराम का ख्याल

स्क्रीन पर लगातार काम करने से बचें. हर 20 मिनट में ब्रेक जरूर लें. स्क्रीन से कुछ देर के लिए नजरें हटा कर इधरउधर देखें या हौले से आंखें बंद कर लें. इस से आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलेगा.

5. ठंडे पानी के छीटे मारें

काम के बाद आंखों में होने वाले दर्द को दूर करने के लिए आंखों पर ठंडे पानी से छीटे मारें. इस से आंखों को ठंडक मिलती है और आंखों की थकावट और लाली दूर होती है.

6. अच्छी नींद जरूरी

लैपटॉप, मोबाइल या कंप्यूटर पर काम करते समय अक्सर लोगों को समय का ख्याल नहीं रहता. ऐसे में स्वस्थ रह कर काम किया जाए इस के लिए अच्छी और भरपूर नींद लेनी आवश्यक होती है. नींद पूरी न करने से आंखों की समस्याएं गंभीर होती जाती हैं. इसलिए 7-8 घंटे की नींद जरूर लें.

7. आंखों का व्यायाम

काम के बीचबीच में आंखों का व्यायाम करते रहें. इस के लिए पहले अपनी बाईं ओर देखें फिर दाहिनी ओर देखें. इस के बाद ऊपर की ओर फिर नीचे की ओर देखें. इस व्यायाम को दिन में कम से कम 4 बार अवश्य करें.

8. कमरे की रौशनी को संतुलित रखें 

घर से काम करते समय अक्सर कुछ लोग छत पर तो कुछ अंधेरे कमरे में बैठकर आराम से काम करने को प्राथमिकता देते हैं. मगर याद रखें कि तेज़ धूप या खिड़कियों से आ रही तेज रौशनी से आंखों पर बुरा असर पड़ता है. इसी तरह अंधेरे कमरे में बैठकर काम करना भी नुकसानदेह है.
इसलिए कमरे में बैठे और कुछ पर्दों को गिरा कर रखें जिस से कमरे की रौशनी भी बनी रहे और आंखों को नुकसान भी न पहुंचे. इस के अलावा कमरे में बड़ी फ्लोरसेंट लाइट का उपयोग न करें.

9. कॉन्टेक्ट लेंस की जगह चश्मे का इस्तेमाल करें:

कोरोना के इस समय में काम करते वक्त कॉन्टेक्ट लेंस की जगह चश्मे का उपयोग बेहतर होगा. दरअसल चश्मा आंखों के बचाव के लिए एक अतिरिक्त प्रॉटेक्शन लेयर का काम करता है.

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: दांतों की घर पर करें खास केयर

10. पौष्टिक आहार:

आंखों की सेहत के लिए संतुलित आहार लेना जरूरी है. ऐसा भोजन लें जिस में विटामिन ए, विटामिन सी और फोलिक एसिड भरपूर मात्रा में मौजूद हों. विटामिन ए से युक्त संतरे, पालक, धनिया की पत्ती, पुदीना, मेथी, कद्दू और गाजर आंखों के लिए पोषण प्रदान करने वाले आहार हैं. इन के अलावा विटामिन सी युक्त शिमला मिर्च, हरी मिर्च, अमरूद और आंवला तथा फोलिक एसिड युक्त हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, अखरोट आदि खाना लाभप्रद होता है.

11. घर पर रखें आवश्यक दवाएं 

लॉकडाउन में आंखों की किसी भी समस्या से संबंधित दवाइयों की कमी न हो इस के लिए घर में आई ड्रॉप और जरूरी दवाइयां पहले ही खरीद कर रख लें.

5 टिप्स: दांतों की घर पर करें खास केयर

कोरोनावायरस ने हमारे जीने का तरीका बदला है, चिंताएं भी बदल दी हैं. अभी हमारी परेशानी का सबब है, क्या करेंगे यदि अचानक से बीमार पड़ जाएं, क्या होगा यदि शरीर के किसी अंग खासकर दांतों में दर्द होने लगे? ऐसे हालात को सोचकर ही कंपकपी आ जाती है कि असहाय दर्द से आप तड़प रहे हों और डाक्टर और दवा तक आपकी पहुंच न हो.

अभी जैसे हालात में ऐसे अनुभव होने ही हैं. लेकिन कुछ ऐसे काम हैं , जिन्हें नियमित तौर पर करके आप अपने दांतों को बचा सकती हैं. इस सम्बंद में बता रही हैं क्लोव डेंटल क्लिनिक की डॉक्टर भवानी नायर , सबसे पहले हमें खुद को हाइड्रेट रखने के लिए खूब पानी पीते रहना होगा. हमें जितना हो सके वाइट ब्रेड, मैदा, चीनी का सेवन कम से कम करना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी बढ़ सकती है.

घर पर बैठे बोर हो रहे हैं , चलो कुछ खा लेते हैं , यह एक सहज सी प्रवृति हो गई है इन दिनों. हालांकि आप क्या और कितना खा रहे हैं इसका ध्यान जरूर रखें. दिन में दो बार ब्रश करना अनिवार्य है, चूंकि आप खाने के बीच में भी कुछ कुछ चबाते रहते हैं तो हल्का ब्रश तब भी तुरंत मार लेने में हर्ज नहीं, ताकि अन्न कण निकल जाएं. माउथ वाश का इस्तेमाल करें या फिर गुनगुना नमकीन पानी तो है ही, सुबह गरारे के लिए. दांतों से बोतल या हेयर पिन को न खोलें , इससे दांतों में चोट लग सकती है. ब्रश करने के बाद मसूड़ों पर 2 मिनट तक साफ ऊंगली से मसाज करें , यह रक्तसंचार को ठीक करता है.

सुबह और शाम टंग क्लीन्ज़र से अपनी जीभ साफ करें. यह कीटाणुओं को पनपने से रोकेगा व गंदी सांस से मुक्ति देगा. कभी भी टूथ पिक या पिन से दांत न खोदे, क्योंकि इससे मसूड़ों को चोट लग सकती है, इंफेक्शन होने के चांसेस ज्यादा रहते हैं.

1. बच्चों पर दें खास ध्यान

बच्चों में अच्छी आदतें डालने का यह सबसे अच्छा समय है, जहां तक मौखिक शुद्धि और खाने का संबंद है. इन दिनों चूंकि वे पूरी तरह अभिभावकों की नज़र में हैं , आप उनका फूड चार्ट बना सकते हैं. इससे आपको पता रहेगा कि वे कितनी चीनी खा रहे हैं. उनकी ब्रश करने में मदद करें, ताकि वे सही तरीका सीख सके. कार्टून ब्रश के जरिये सही तरीके से ब्रश करना सिखाएं. चोकलेट और कैंडीज का ढेर घर में न रखें.

ये भी पढ़ें- वैजाइनल ड्राईनैस और दर्द

2. बुजुर्ग भी रहें सावधान

बड़े बुजुर्गों को सावधान रहना चाहिए. उन्हें कठोर चीज़े खाने से परहेज करना चाहिए , ताकि कोई दांत न टूटे या फिर कमजोर दांत दर्द न करने लगे. उन्हें पिन के इस्तेमाल से परहेज़ करना चाहिए. खाने के बाद गुनगुने नमक वाले पानी से गरारे जरूर करें और दिन में 2 बार ब्रश जरूर करें. मसूड़ों के फूलने की स्तिथि में सरसों के तेल या नमक की मालिश आराम देगी. यदि वे डेंचर का इस्तेमाल करते हैं तो साफ करते वक्त खास सावधानी बरतें. ताकि यह गिरकर टूट न जाए. अगर डेंचर पहनने में दर्द हो रहा है तो कुछ घंटे के लिए उसे उतार कर आराम देना चाहिए. खाने के बाद डेंचर को साफ जरूर करें.

3. जवानी – रखो जरा सावधानी

युवाओं की खानपान की आदतों और प्रयोग करने की लत को देखते हुए उनको यही सलाह है कि इन दिनों स्वास्तवर्धक खाएं. उनको भी 2 बार ब्रश और हरेक खाने के बाद कुल्ला जरूर करना चाहिए. अगर आप धूम्रपान करते हैं तो उसे छोड़ने का यह बेहतरीन समय है. खूब पानी पियें. फास्ट फ़ूड को भी छोड़ना बेहतर ही है, क्योंकि गर्म चीज़ से आपकी तालू जल सकती है. बोतल को दांत से न खोलें, क्योंकि इसके कारण आपके दांतों में दर्द हो सकता है.

अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि चिन्गुम को 15 मिनट से अधिक चबाने पर आपके जोइंट्स थक सकते हैं. आम दिनों में शायद हम इन बातों पर ध्यान नहीं देते लेकिन इस समय हमें बहुत संभलने की जरूरत है.

4. दांत दर्द और कैविटी से कैसे निपटें

हमने सावधानी बरतने के बारे में जाना, ताकि दांतों की समस्या से बच सकें लेकिन समस्या अगर हो ही गई तो? यदि इस समय आपके दांतों में दर्द हो , तो उस पर ध्यान दें और समझे कि वह दर्द किस तरह का है और कब बढ़ता और घटता है. यदि ठंडे खाने से आपको ज्यादा दर्द होने लगे, तो उसे छोड़ दें. गर्म चाय से अगर दर्द बढ़ता है तो डेंटिस्ट की राय जरूर लें. यदि मसूड़ों में दर्द है तो गुनगुने नमकीन पानी से कुल्ला करें और आराम से उसकी मालिश भी. जहां आपको दर्द है. दवा अपने डेंटिस्ट से संपर्क करने के बाद ही लें.

यदि केस क्राउन गिर जाएं तो कतई घबराने की जरूरत नहीं है. बस तब तक संभाल कर रखें जब तक आप डेंटिस्ट के पास न पहुंच जाएं. अगर उसकी फिलिंग भी निकल गयी है तो उस तरफ से चबाना बंद करें. यदि कोई बहुत तेज दर्द से तड़प रहा है, किसी का दांत टूट गया है, या फिर किसी दुर्घटना में दांत और जबड़े का फ्रेक्टर हो गया है, तो उसे बाहर से कतई गर्म सिकाई न दें. ऐसी हालत में खुद से दवा न करें , बल्कि तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.

ये भी पढ़ें- सेहत वाले अचार

5. अफवाओं पर कतई ध्यान न दें

हरेक उपलब्ध सूचना सही हो, यह जरूरी नहीं है. दांतों के संदर्ब में भी कई तरह के मिथक मौजूद हैं , जो चीज़ों को जटिल कर सकते हैं. यदि अचानक से दांत में दर्द हो, तो कभी भी चेहरे से होट कंप्रेस न लगाये , न ही दांतों के बीच फंसे अन्न को पिन से निकालें. यह ऐसी भूल है जो कई लोग दोहराते हैं इसलिए इसे न करें. हड़बड़ी में आकर कोई गड़बड़ी न करें.

बच्चे मोटापे की ओर कैसे खिच जाते हैं?

हर कोई जानता है कि बच्चे स्कूल से बहुत सी बीमारियां लाते हैं, जैसे: चिकन पॉक्स, फ्लू और वार्षिक रिटर्न-टू-स्कूल ज़ुकाम .

आजकल, इस बात का सबूत है कि वे अपने दोस्तों से कुछ और भी प्राप्त कर सकते हैं, वो है मोटापा I

एक नए अध्ययन में पाया गया कि जब स्केल एक व्यक्ति के लिए “अधिक वजन” की व्याख्या करता है, तो संभावना है कि उनके दोस्त 50 प्रतिशत से अधिक वज़न  वाले हो जाएंगे.

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के 26वें एडिशन में प्रस्तावित किया गया कि मोटापा “सामाजिक रूप से संक्रामक” है, क्योंकि यह निकट सांप्रदायिक समूहों के व्यक्तियों में फ़ैल सकता है. पहला जर्नल निकोलस क्रिस्टाकिस और जेम्स फाउलर द्वारा 2007 में प्रकाशित किया गया था. उन्होंने पाया कि मोटापा सोशल नेटवर्क के माध्यम से प्रसारित होता है. इस के लिए उपयुक्त उदाहरण है कि एक उचित शरीर के आकार के बारे में किसी व्यक्ति की अवधारणा क्या है ये उनके दोस्तों के आकार से प्रभावित होता है.

अनुसंधान ने संकेत दिया है कि मित्र एक-दूसरे के व्यवहार को प्रभावित करते हैं. एक पिछले अध्ययन में दिखाया गया है कि धूम्रपान और शराब पीने वाले दोस्तों के साथ रहने वाले किशोर स्वयं भी इस के आदी होंगे. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययनों में 12,067 व्यक्तियों के एक विशाल सामाजिक नेटवर्क की एक विस्तृत परीक्षा शामिल थी, जो 1971 से 2003 तक लंबे समय तक दृढ़ता से की गयी थी. शोधकर्ता जानते थे कि कौन किसका दोस्त,  कौन किसका जीवन साथी या परिजन थे, और प्रत्येक व्यक्ति का तीन दशकों के विभिन्न अवसरों पर कितना वजन था. इससे उन्हें पता चलता है कि इन सालों में क्या  हुआ– कुछ लोग मोटे हो गए. क्या उनके दोस्त भी मोटे हो गए थे? क्या रिश्तेदार या पड़ोसी भी मोटे हो गए?

ये भी पढ़ें- #coronavirus: Pets से नहीं फैलता कोरोना

इसका उत्तर यह था कि जब किसी व्यक्ति के दोस्त मोटे हो जाते हैं तो वह व्यक्ति भी मोटापे की ओर चल पड़ता है . इससे  किसी व्यक्ति की भारी होने की संभावनाएँ 57 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं. जब किसी पड़ोसी का वज़न बड़ा या घटा तो कोई असर नहीं पड़ा, अर्थात, दोस्तों की तुलना में पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने कम प्रभाव डाला. नज़दीकियों से कोई फर्क नहीं दिखाई दिया. दोस्तों का प्रभाव इस बात पर निर्भर नहीं किया कि साथी कई मील दूर था या नहीं. इसके अलावा, सबसे अच्छा प्रभाव सांझे और प्रिय दोस्तों के बीच था. ऐसी स्तिथि में अगर एक दोस्त मोटा हुआ, दूसरे के मोटे होने की संभावना काफी बढ़ गई.

डॉक्टर निकोलस क्रिस्टाकिस, एक चिकित्सक और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में चिकित्सा समाजशास्त्र के प्रोफेसर और नए अध्ययन में एक प्रमुख अन्वेषक, के अनुसार एक स्पष्टीकरण यह है कि दोस्त एक-दूसरे के शरीर के आकार की छाप को प्रभावित करते हैं. जब एक प्रिय साथी भारी हो जाता है, तो मोटापा शायद इतना भयानक नहीं लगता . डॉ. क्रिस्टाकिस ने कहा, “एक स्वीकार्य शरीर का प्रकार क्या है, इस के बारे में आपके अपने विचार आसपास के लोगों को देखकर बदलते रहते हैं.

फाउलर (यूसी सैन डिएगो के एक राजनीतिक शोधकर्ता) ने वजन बढ़ने का सबसे अच्छा सत्यापन किया. वो कहते हैं कि जिन व्यक्तियों को वे मित्र मानते थे, उनकी गतिविधियों पर उनके आचरण को पैटर्न देने के लिए अधिक संभावना थी. लेकिन ये समीकरण उलटे तरीके से लागु नहीं होता.

अगर आपने किसी और को एक साथी के रूप में चुना और आपके साथी का वज़न बड़ा, उस समय आप वज़न बड़ाने के लिए 50% बाध्य हो सकते हैं . इसके उल्ट, यदि आपके साथी ने आपको एक पारस्परिक मित्र के रूप में नामित नहीं किया है, और आप मोटे हो गए हैं, तो इससे आपके साथी के वजन पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा.

स्पष्ट प्रशन है :  केवल दोस्त ही क्यों? जीवन साथी भोजन और छत सांझा करते हैं; फिर भी  शोधकर्ताओं ने वजन बढ़ने का छोटा खतरा (सिर्फ 37%) पाया, जब एक साथी भारी हो गया.

भाई-बहन के जीन्स भी सांझे होते हैं फिर भी उनका प्रभाव बहुत कम था, एक-दूसरे के जोखिम को 40% तक बढ़ा दिया. फाउलर का मानना है कि जब हम उपयुक्त सामाजिक व्यवहार के बारे में सोचते हैं, तो ये सामाजिक मानकों से ज़्यादा प्रभावित होता है.  ‘मोटे दोस्त बनाओ और मोटे हो जाओ’ अधिक स्वीकार्य लगता है.

ये भी पढ़ें- नुकसानदायक है दूध के साथ इन 5 चीजों का सेवन

फाउलर का मानना है कि “आप क्या खाएं, कितना खाएं, कितनी कसरत करें, — जब आप ये निर्धारण करते हैं तो शायद आप अपने जीवन साथी कि ओर नहीं देखते हैं.”   ज़रूरी  नहीं कि हम अपने परिजनों के विपरीत भी अनिवार्य रूप से जाएं .

निष्कर्ष ये है कि “हमें दोस्तों को चुनने का मौका मिलता है, लेकिन परिवारों को चुनने का नहीं.”

क्या हंसने को व्यायाम के रूप में देखना सचमुच विवेकपूर्ण है?

सवाल-

मेरे पति और मैं रोजाना सुबह पास के पार्क में घूमने जाते हैं. वहां हर दिन हमारा कुछ ऐसे लोगों से सामना होता है, जो सामूहिक रूप से कई मिनटों तक खूब जोरजोर से हंसते हैं. मुझे उन का यह बनावटी हंसना कुछ समझ में नहीं आता, पर मेरी एक मित्र का कहना है कि यह हास्य योग है जो स्वास्थ्य के नजरिए से बेहद लाभकारी सिद्ध होता है. क्या यह सोच वैज्ञानिक है? क्या हंसने को व्यायाम के रूप में देखना सचमुच विवेकपूर्ण है?

जवाब-

यह बात बिलकुल सच है कि हंसना स्वास्थ्य के लिए हर लिहाज से बहुत अच्छा है. हास्य योग की सोच सदियों से जीवित है. समाज में इसी सोच के अंतर्गत लाफ्टर थेरैपी की बात कही गई है और आधुनिक वैज्ञानिक शोध से भी हंसने के शरीर और मन पर पड़ने वाले सद्प्र्रभावों की पुष्टि हो गई है.

भौतिक स्तर पर हंसना एक भरपूर व्यायाम है. उस से छाती, पेट और हाथों की पेशियों की कसरत तो होती ही है, दिल, फेफड़ों और रक्तसंचार व्यवस्था का भी खूब अच्छा व्यायाम हो जाता है. दिल और संचरण की गति तेज हो जाती है और सांस नलियों में कहीं बलगम हो तो वह बाहर आ जाता है. यह मन के लिए भी बहुत अच्छा टौनिक है. खुल कर हंस लेने से आदमी जीवन की नीरसता, एकाकीपन, तनाव, अवसाद और थकान से भी छुटकारा पाता है.

इतना ही नहीं शोध चिकित्सकों ने हंसने के उपयोगी गुणों का जैव रासायनिक आधार भी तलाश किया है. पाया गया है कि हंसने से मस्तिष्क में अनेक महत्त्वपूर्ण जैव रसायन उत्पन्न होते हैं. उन में स्ट्रैस में काम आने वाले कुछ प्राकृतिक पीड़ाहारी जैव रसायन प्रमुख हैं.

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती. हंसने के बहुपयोगी गुणों को देखते हुए आधुनिक चिकित्सा में हास्य का प्रयोग रोगोपचार औषध के रूप में होने लगा है. बीते कई दशकों से लाफ्टर थेरैपी अमेरिका में कई अस्पतालों में उपचार का अंग बनी हुई है.

स्वस्थ बने रहने के लिए आप और आप के पति भी लाफ्टर थेरैपी क्लब के सदस्य बनें और खूब हंसें. इस से सस्ती, अच्छी चिकित्सा भला और क्या हो सकती है.

  -डा. यतीश अग्रवाल 

ये भी पढ़ें- नसबंदी कराने से मैरिज लाइफ पर कोई असर तो नहीं होगा?

अगर रहना हैं 40 की उम्र में फिट, तो फौलो करें ये 20 टिप्स

महिलाएं पति और बच्चों का तो खूब ख्याल रखती हैं पर खुद को इग्नोर करती हैं. युवावस्था तो सब झेल जाती है, पर 40 की दहलीज पर पहुंचने पर समझदारी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. इस उम्र में फिट रहने के 20 टिप्स हम आपको बता रहे हैं. इन में से कुछ तो आप जानती होंगी पर कुछ आप के लिए बिलकुल नए होंगे. अगर आप इन्हें धीरेधीरे अपने लाइफस्टाइल का हिस्सा बना लें तो बहुत सी परेशानियों से आप दूर रहेंगी.

1.कैल्शियम और आयरन हासिल करें: हिंदुस्तानी महिलाओं में आयरन और कैल्सियम की कमी आमतौर पर पाई जाती है. एक बार इन दोनों के टैस्ट करा लें और खानपान में ऐसी चीजें शामिल करें, जिन में इन की मात्रा अधिक हो. इन की गोलियां लेने से परहेज न करें.

2.एक प्याला सेहत का: कौफी हमारी दोस्त होती है. इस में मौजूद कैफीन फैट को एनर्जी में बदलने के लिए उकसाता है. यह काम ग्रीन टी भी बखूबी करती है. इसलिए दोनों को अपना दोस्त मानें.

3.वेट ट्रेनिंग करें: आप ने पहले कभी जिम जौइन की हो ये नहीं फर्क नहीं पड़ता. अब मसल्स कमजोर पड़ रहे हैं. वेट ट्रेनिंग उन्हें मजबूती देती है. हिंदुस्तानी महिलाएं वेट ट्रेनिंग से परहेज करती हैं पर इस के कई फायदे हैं. जिम नहीं जा सकतीं तो घर पर इस की व्यवस्था कर लें.

4.शैड्यूल चेंज करें: अगर आप योग करती हैं या सैर पर जाती हैं और लंबे समय से यह करती आ रही हैं तो इस शैड्यूल में थोड़ा बदलाव करें. हैल्थ स्पैशलिस्ट से सलाह ले कर कुछ और चीजें शामिल करें तो कुछ चीजों को बंद करें. सैर का टाइम भी बदल सकें तो बदलें.

ये भी पढ़ें- वर्किंग वुमन और हाउसवाइफ कैसे रहें फिट?

5.सप्लीमैंट्स का इस्तेमाल: इस उम्र में आप को सब से ज्यादा फिक्र अपने जोड़ों और हड्डियों की होनी चाहिए. कैल्सियम के बारे में हम बात कर चुके हैं. आप विटामिन डी, सी और ई का खयाल रखें. विटामिन सी और ई को एकसाथ लें. एक्सरसाइज करती हैं तो उस से 1 घंटा पहले डाक्टर से बात कर सप्लीमैंट का चुनाव करें.

6.पोस्चर पर ध्यान दें: पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कंधों, गरदन और कमर दर्द की शिकायत ज्यादा होती है. इस की प्रमुख वजह बैठने और सोने के तरीके में गड़बड़ी है. अब जरा इस पर ध्यान दें. फिजियोथेरैपिस्ट से बात करें, कैसे बैठें, कैसे सोएं वगैरह जानें.

7.दिमाग से तैयार हों: खुद को बदलाव के लिए तैयार करें. लेख पढ़ने और मन में सोचने से कुछ नहीं होगा. अगर स्वस्थ रहना चाहती हैं तो इसे ठान लें. शुरू में लोग टोकेंगे भी मगर उसे आप को संभालना है. ‘मैं करूंगी’, ‘मैं करना चाहती हूं’ की जगह ‘मैं कर रही हूं’, ‘मैं जा रही हूं’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें.

8.स्पोर्ट्स शूज खरीदें: हो सकता है आप को आदत न हो, मगर टहलने के लिए स्पोर्ट्स शूज अच्छे होते हैं. अपनी पसंद के शूज खरीदें और उसी में टहलने या जिम जाएं.

9.गलती से घबराएं नहीं: अगर कुछ नतीजे सामने नहीं आए तो परेशान होने की जरूरत नहीं. दोबारा नई तकनीक के साथ चीजें शुरू करें. ऐक्सपर्ट की मदद लेने में कोई बुराई नहीं.

10.सब को बताएं: आप जो कुछ कर रही हैं और जो कुछ करना चाहती हैं उस के बारे में खुद से जुड़े लोगों को जरूर बताएं. ताकि वे लोग आप की सफलता पर आप को बधाई दें और टोकते भी रहें, ‘आज जिम नहीं जा रहीं…’

11.खानासोना ऐसे हो: रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले खा लें. खाने के बाद कम से कम 100 कदम टहलें, लेकिन खाने के तुरंत बाद नहीं थोड़ा रुक कर.

ये भी पढ़ें- प्रैगनैंसी में करें ये डाइट फौलो

12.स्पा और मसाज: हफ्ते में एक बार अगर जेब आप को मंजूरी देती हो तो मसाज और स्पा का लुत्फ उठाएं. नहीं तो घर में किसी से कहें वह आप की मालिश कर दे. प्यारमुहब्बत से सब काम हो जाते हैं.

13.बाथरूम पर ध्यान दें: घर का सब से खतरनाक इलाका बाथरूम होता है. घर के बड़े अकसर वहीं फिसल कर चोट खाते हैं. घर में आदेश जारी कर दें कि कोई भी बाथरूम को गीला नहीं छोड़ेगा. इस्तेमाल के बाद तुरंत वाइपर से पानी पोंछ दें. बाथरूम में कभी जल्दी में न घुसें.

14.शुरुआत फल के साथ: दिन की शुरुआत किसी फल से करें. सेब अच्छा फल है, नहीं तो जो भी मौसमी फल मिले उसे खाएं. सेहत के लिए जितना अच्छा अनार है उतना ही अमरूद भी है.

15.आंवला कैंडी, बेल का मुरब्बा: पेट को दुरुस्त रखने में बेल का कोई जवाब नहीं. इस का फल तो आता ही है, मुरब्बा, पाउडर और सिरप भी आता है. आंवले की कैंडी इस्तेमाल करें.

16.दिन में 2 बार: अगर कंफर्टेबल फील करना चाहती हैं तो दिन में 2 बार पेट साफ करें. शरीर में हलकापन रहेगा.

17.पिएं और पीती रहें: अरे रे, शराब मत समझ लेना. हम पानी की बात कर रहे हैं. पानी किसी टौनिक से कम नहीं है. हमेशा साथ रखें और सिप कर के पीती रहें.

18.प्रोटीन से प्यार: प्रोटीन आप के कमजोर होते मसल्स में नई जान फूंक देगा. इस की मात्रा बढ़ाएं. यह मेटाबौलिज्म को तेज करते हुए फैट बर्न करने में भी मदद करता है.

ये भी पढ़ें- युवाओं को भी हो सकता है आर्थराइटिस का दर्द

19.चैकअप कराएं: डाक्टर से सलाह ले कर शुगर, कोलैस्ट्रौल, थाइराइड और एचबी की जांच करवाती रहें. जहां भी गड़बड़ी हो डाइट प्लान उसी हिसाब से करें.

20.नाराज होना बंद करें: यह बात बहुत जरूरी है. क्या जल गया, क्या खल गया इन सब का ध्यान रखना आप का काम है, मगर पैनिक होने की जरूरत नहीं. बच्चों को खुद सीखने दें. खुश रहना 100 बीमारियों का इलाज है.

न्यू बौर्न बेबी की इन प्रौब्लम से घबराएं नहीं

लेखक -डा. व्योम अग्रवाल

रात के करीब 3 बजे मुझे अंजनी का फोन आया. बड़ी घबराहट भरी आवाज में पहले तो उन्होंने मुझ से असमय फोन करने पर खेद जताया और फिर लगभग रोते हुए बोलीं कि उन का 5 दिन का बच्चा आधे घंटे से बहुत परेशान था. फिर अचानक चीख मार कर रोने लगा. 5 मिनट पहले उस ने पेशाब किया. उस के बाद अब वह आराम से सो रहा है.

दरअसल, उन्हें डर था कि बच्चे के मूत्रमार्ग में कोई रुकावट या इन्फैक्शन है या फिर किडनी की कोई परेशानी है. मैं ने सारी बात सुन कर सांत्वना देते हुए समझाया कि यह नवजातों के लिए बिलकुल सामान्य है. इस का कारण कदाचित यह होता है कि शिशुओं का अपने मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण नहीं होता, इसलिए उन का मूत्रमार्ग कस कर बंद होता है, जिस से कि उन का पेशाब हर समय टपकता न रहे. सामान्यतया 2 महीने की उम्र तक यह होना बंद हो जाता है. इस के लिए न तो घबराने की जरूरत है न ही किसी जांच की. यदि अंजनी को यह जानकारी पहले से होती तो कदाचित वह उस के परिजन (और मैं भी) रात में परेशान न होते.

बच्चे का जन्म परिवार में सब को खुशियों से भर देता है. विशेषतया प्रथम बार मातृसुख का अनुभव करने वाली युवतियों के लिए तो यह अविस्मरणीय समय व अनुभव होता है. घर की अनुभवी महिलाएं जैसे दादी, नानी, भाभी, ननद इत्यादि बहुत सीख दे कर मां को असली मातृत्व के लिए तैयार करती हैं व दिनप्रतिदिन आने वाली समस्याओं का सरल उपाय भी बताती रहती हैं. एकल परिवारों में यह कमी प्रथम बार मां बनने वाली युवतियों के द्वारा बारबार महसूस की जाती है और दूसरों से मिलने वाली सलाह भी ठीक है या नहीं, इस का निर्णय कर पाना भी अधिकांश समय संभव नहीं हो पाता.

ये भी पढ़ें- जब हों महीने में 2 बार हों पीरियड्स, कहीं ये 8 कारण तो नहीं

1. शिशुओं की सामान्य समस्याएं

अपने लगभग 24 सालों के अनुभव से मैं ने जाना है कि नवजात के अस्पताल से घर जाने के बाद माताएं लगभग एकजैसी परेशानियां अनुभव करती हैं और उस समय डाक्टर से तुरंत संपर्क न होने पर या सही जानकारी के अभाव में बहुत विचलित हो जाती हैं. मातृत्व की दहलीज पर पहला कदम रखने वाली महिलाओं की इसी तरह की मुश्किल को ध्यान में रखते हुए शिशुओं की कुछ सामान्य समस्याओं के बारे में जानकारी दी जा रही है.

2. शरीर पर लाल दाने

कुछ दिन पहले एक बच्चा सांस में दिक्कत के कारण जन्म के 3 दिन बाद तक हमारी नर्सरी में रहा. चौथे दिन बच्चे को मां के पास दूध पिलाने के लिए भेजा गया. कुछ ही देर बाद बच्चे की नानी बहुत गुस्से में नर्सरी में आईं और करीब लड़ते हुए शिकायत करने लगीं कि नर्सरी में बच्चे को जो दवा दी गई उस के कारण उसे ऐलर्जी हो गई है. उस के पूरे शरीर पर खसरे जैसे दाने निकले हुए हैं.

हमारे डाक्टर उसी समय बच्चे के पास गए और उस का अच्छी तरह से परीक्षण किया. फिर हम ने सब परिवार वालों को तसल्ली देते हुए समझाया कि ज्यादातर शिशुओं के शरीर पर

जन्म के दूसरे दिन से लाल दाने दिखाई देने लगते हैं. इन्हें इरीदेमा टौक्सिकम कहा जाता है. इसे वायु के प्रथम संपर्क में आने पर होने वाली ऐलर्जी के रूप में समझा जा सकता है. ये दाने पूर्णरूप से अहानिकारक होते हैं और 6-7 दिनों में अपनेआप ठीक हो जाते हैं.

3. हरे रंग का मल

आमतौर पर बच्चे पहले 2 दिन पहले हरे, काले रंग का मल त्याग करते हैं. अगले कुछ दिनों तक रंग बदलता है और 10 दिन तक यह सामान्य रंग का हो जाता है. सफेद रंग का मल लिवर के रोगों में ही होता है. सामान्य रूप में यदि बच्चा केवल स्तनपान पर है तो वह दिन में कितनी ही बार मल त्याग करे यह चिंता का विषय नहीं होता व केवल स्तनपान कराने वाली मांओं को इस से परेशान नहीं होना चाहिए.

अकसर मांओं को दिनप्रतिदिन बदलते रंग या बारबार दस्त आते देख बहुत चिंता हो जाती है. बारबार यह हर दुग्धपान के बाद मलत्याग उतना ही सामान्य है जितना 3-4 दिन तक पेट का साफ न होना. मैं हर माता को समझाता हूं या बिना पूछे ही यह जानकारी अवश्य देता हूं कि यह कोई घबराने की बात नहीं है, परंतु यदि

शिशु सुस्त दिखे, स्तनपान छोड़ दे या पेशाब करना कम कर दे तो निश्चित रूप से बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए.

4. स्तनपान

एक दिन एक नवजात शिशु की मां ने मुझ से पूछा कि बच्चा केवल स्तनपान करता है पर दिन में 15-20 लंगोट खराब करता है. मेरे पूछने पर उन्होंने मुझे बताया कि वे एक स्तन से दूध पिलाना शुरू करती हैं और 5 से 10 मिनट बाद दूसरे स्तन से दूध पिलाती हैं. उन के अनुसार ऐसा वह स्तन के खाली होने के कारण नहीं, बल्कि एक मुद्रा में बैठने से थक जाने के कारण करती हैं.

वस्तुत: यही बच्चे के ज्यादा बार मलत्याग का कारण है. मां के स्तनों में शुरू का दूध शर्करा से युक्त होता है और बाद में दूध वसा से युक्त. वसा से तृप्ति आती है, जबकि शर्करा ज्यादा होने से ज्यादा मल बनता है. बच्चे के स्वास्थ्य के लिए दोनों मिश्रित और सही मात्रा में होने जरूरी हैं. इसलिए मैं ने उन्हें समझाया कि आगे से उन्हें एक बार में एक स्तन से पूरा दूध पिलाने पर यदि जरूरत रह जाए तो दूसरे स्तन से दूध पिलाना चाहिए. 2 दिन बाद ही उन का फोन आया कि बच्चे में बहुत सुधार लग रहा है.

5. दूध उगलना

शायद ही ऐसा कोई शिशु हो जो दूध न गिराता हो. कुछ सामान्य बालक तो नाक से भी दूध निकाल देते हैं. यदि बच्चे का वजन ठीक बढ़ रहा हो, उसे दूध पीते समय फंदा सा यानी सांस की नली में कुछ अटकना न महसूस होता हो, पेशाब पूरा आता हो, वह दूध पी कर निकालने के बाद भी तुरंत भूखा न हो जाता हो, उस का पेट फूलता न हो, वह चुस्त हो और निकला दूध हरे रंग का न हो तो दूध गिराना या हर बार दूध पी कर थोड़ी उलटी करना बिलकुल सामान्य बात है. बच्चे का वजन न बढ़ना इस बात का सूचक हो सकता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है और डाक्टर से परामर्श की जरूरत है.

ये भी पढ़ें- #lockdown: इन 5 टिप्स से घर पर खुद को रखें फिट

6. सोनेजागने का समय

बच्चे के जन्म के बाद के प्रथम परामर्श में थकी सी प्रतीत होती मांओं की सब से बड़ी परेशानी यह है कि बच्चा दिन में तो दूध पी कर सो जाता है पर रात को हर 10-20 मिनट में उठ जाता है, रोता है और बारबार दूध मांगता है. इस का कारण गर्भावस्था में मां के सोनेजागने के चक्र से जुड़ा है. साधारण भाषा में समझें तो जब मां दिन में चलती है तो शिशु झूला पा कर सो जाता है. रात में मां के लेटने के बाद गर्भस्थ शिशु उठ जाता है और घूमता है, पैर चलाता है और सक्रिय हो जाता है. जन्म के बाद उस की दिनरात की आदतें बदलने में करीब 2 महीने लगते हैं.

अत: रात में बच्चा जागा रहता है और जागे रहने पर उसे 2 ही काम आते हैं- रोना और दूध पीना. यही उस के रात को जागने और रोने का कारण है. मांओं को चाहिए कि वे दिन में विश्राम कर लें ताकि रात को बच्चे को पूर्ण स्तनपान करा पाएं. बीचबीच में हिलाना, कमरे में धीमी रोशनी, धीमा संगीत बच्चे को रात में भी ज्यादा सोने में मदद करते हैं. किसी भी अवस्था में बच्चे का रोज केवल रात में रोने को मां के दूध की कमी नहीं समझा जाना चाहिए और बच्चे तथा मां के स्वस्थ जीवन के लिए 6 माह तक बच्चे को केवल स्तनपान पर ही रखना चाहिए.

7. नवजात लड़की में रक्तस्राव

सरीन को अपनी बच्ची के डायपर को बदलते समय उस के योनिमार्ग से खून आता दिखाई दिया तो वे घबरा गईं. नवजात लड़कियों में जन्म के पहले सप्ताह में माहवारी जैसा रक्तस्राव हो सकता है जो कि 5-6 दिन तक हो सकता है. यह रक्तस्राव कुछ बूंदों जितना होता है और स्वत: ही कुछ दिनों में रुक जाता है. जन्म के बाद मां के हारमोन शरीर से हट जाने से यह होता है और कदापि चिंता का विषय नहीं होता.

मांओें को सलाह दी जाती है कि शिशुओं के विषय में कोई भी समस्या आने पर स्वयं डाक्टर बनने की कोशिश न करें वरन तुरंत बालरोग विशेषज्ञ को दिखाएं.

8 टिप्स: नेचुरल तरीकों से बनाएं हार्मोन्स का संतुलन

अगर हमारे हार्मोन संतुलित न हों तो हमें इसका अहसास होने लगता है, हालांकि हम इसके कारण से अनजान होते हैं. मूड में बदलाव, रोशनी के लिए संवेदनशीलता, औयली त्वचा और बाल, कुछ खाने का मन करना, नींद न आना, चिंता, तनाव और चिड़चिड़ापन ये सब हार्मोनल बदलावों के संकेत हो सकते हैं. महिलाओं में हामोनल संतुलन बदलने की संभावनाएं अधिक होती हैं, खासतौर पर जब वे गर्भवती हों, तनाव में हों या विशेष उम्र के बाद महिलाओं में हार्मोनल संतुलन बदलने लगता है. लेकिन हार्मोनों को फिर से सामान्य करना कोई मुश्किल बात नहीं. आइए कुछ तरीके जानें, जिनके द्वारा आप प्राकृतिक तरीकों से अपने हार्मोनों को संतुलित रख सकती हैं.

1. अलसी के बीज का सेवन करें

अलसी के बीज अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं. इनमें फाइबर, लिगनान, ओमेगा-3 फैटी एसिड पर्याप्त मात्रा में होता है, ये ब्लड शुगर और दिल के स्वास्थ्य को सामान्य बनाए रखने में मदद करते हैं. अनुसंधानों से साफ हो गया है कि वे महिलाएं जो अपने आहार में अलसी के बीज का सेवन करती हैं, उनके प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन स्तर में सुधार आता है. जो महिलाओं में हार्मोनों का संतुलन बनाए रखने के लिए ज़रूरी है.

ये भी पढ़ें- खुद को ढालें मौसम के अनुसार

2. पेय पदार्थों का सेवन सावधानी से करें-

एल्कोहल, कैफीन और चीनी युक्त पेय पदार्थ हमारे शरीर में हार्मोनों का संतुलन बिगाड़ सकते हैं, क्योंकि इनसे कार्टिसोल का उत्पादन बढ़ता है, जिसका असर अण्डाश्यों की कार्य प्रणाली पर पड़ता है. अगर आपको प्यास लगे, तो सादा, मिनरल या नारियल पानी पीएं. अगर आप एनर्जी चाहती हैं तो ग्रीन टी पीएं. इसमें कैफीन की सही मात्रा और एमिनो एसिड एल-थिएनिन होता है, जो दिमाग की कार्यप्रणाली को चुस्त बनाता है.

3. तनाव का बेहतर प्रबंधन करें

अक्सर हम तनाव में अपने स्वास्थ्य की अनदेखी करते हैं, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का सेवन करने लगते हैं और नींद पूरी नहीं करते. तनाव से शरीर में कार्टिसोल ज़्यादा बनता है जिससे थकान होती है. ऐसा होने पर शरीर की बीमारियों की लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और आपका हाॅर्मोनल संतुलन बिगड़ने लगता है. तनाव को दूर करने के लिए शावर लें, सैर करें या योगा करें.

4. धूम्रपान छोड़ दें

तंबाकू का कई हार्मोनों पर बुरा असर पड़ता है. युनिवर्सिटी औफ रीडिंग के शोधकर्ताओं ने साफ कर दिया है कि तंबाकू के सेवन से थायराईड का स्तर बिगड़ जाता है, यह पिट्युटरी हार्मोन को स्टिमुलेट करता है और कोर्टिसोल को बढ़ाता है. अगर आप धूम्रपान छोड़ने की योजना बना रहे हैं तो यह सबसे अच्छा समय है.

5. डेयरी उत्पादों का सेवन सोच समझ कर करें

डेयरी उत्पाद पोषकों का अच्छा स्रोत हैं. हालांकि अगर आप सेक्स हार्मोनों को लेकर चिंतित हैं तो आपको डेयरी उत्पादों खासतौर पर योगहर्ट और क्रीम के सेवन से पहले दो बार सोचना चाहिए. एक अध्ययन से पता चला है कि डेयरी उत्पादों के सेवन से कुछ विशेष हार्मोंनों का स्तर कम हो जाता है. अध्ययनों में योगहर्ट एवं क्रीम तथा एनोवुलेटरी साइकल के बीच का संबंध भी बताया गया है.

ये भी पढ़ें- World Kidney Day 2020: नियमित देखभाल से किडनी को स्वस्थ रखना है आसान

6. पूरक आहार और हब्र्स का सेवन करें

विटामिन सी, बी5, इल्युथेरो और रोडिओला ऐसे हब्र्स हैं जो एनर्जी देते हैं. ये न्यूरोट्रांसमिटर्स को सपोर्ट करते हैं और तनाव दूर करने वाले हाॅर्मोन बढ़ाते हैं. ये शरीर में हाॅर्मोंनों का प्राकृतिक संतुलन बनाने में मदद करते हैं. मैका एक और शक्तिशाली बूटी है जो मेनोपाॅज़ के लक्ष्यों से राहत देती है जैसे रात मंे पसीना आना, अचानक गर्मी लगना. यह सेहतमंद लिपिडो को बढ़ाने में मदद करती है. मैका पाउडर को अपनी ग्रीन टी में मिलाएं और हार्मोनों को प्राकृतिक रूप से संतुलि बनाएं.

7. योगासन व्यायाम

योगा / नियमित व्यायाम के फायदों को नकारा नहीं जा सकता. इससे शरीर में बेहतर सर्कुलेशन बनता है, एंडोर्फिन रिलीज़ होते हैं, शरीर का वज़न सामान्य बना रहता है और दिल का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है. व्यायाम एक व्यक्ति के लिए प्राकृतिक दवा है. इससे शरीर में कोर्टिसोल की मात्रा कम होती है और तनाव दूर करने में मदद मिलती है. सप्ताह में कम से कम 150 मिनट के लिए हल्का एरोबिक व्यायाम करें.

8. पूरी नींद लें

जब आप सो रहे होते हैं तो दिमाग शरीर को डिटाॅक्सिफाय करता है. इसलिए रोज़ाना कम से कम आठ घण्टे की नींद ज़रूर लें. इससे शरीर में कोर्टिसोल, मेलाटोनिन, सोमाट्रोपिन हाॅर्मोन संतुलित रहते हैं. हमेशा अंधेरे कमरे में सोंएं जहां फोन, लैपटाॅप या टीवी स्क्रीन की नीली रोशनी न हो. इन आसान से उपायों के द्वारा आप तीन सप्ताह से भी कम समय में प्राकृतिक रूप से अपने हाॅर्मोनों को संतुलित कर सकती हैं. फिर भी अगर समस्या बनी रहे तो एक अच्छे न्यूरोपैथ और योगा अध्यापक से मिलें, जो आपकी ज़रूरत के अनुसार आपको सही सलाह देंगे.

डॉ श्रीविद्या नंदकुमार . सीनियर नेचुरोपैथ — जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट, से बातचीत पर आधारित.

ये भी पढ़ें- Holi Special 2020 : होली और डायबिटीज, रंगों को अपना जादू बिखेरने दें

खुद को ढालें मौसम के अनुसार

मौसम बदलने के साथ आपको अपनी दिनचर्या में भी बदलाव करना जरूरी है. खासकर रहन-सहन और  पहनावे में. अगर खान-पान सही है तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपकी सेहत दुरुस्त न रहे. गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है. इस मौसम में बीमारियां बढ़ने की ज्यादा संभावना रहती है. यह मौसम अन्य छोटी-बड़ी बिमारियों के साथ स्किन संबंधित समस्या भी साथ लेकर आता है, जो आपके लिए नुकसानदायक भी हो सकता है. हालांकि अब आपको घबराने की जरूरत नहीं है. यदि आप अपनी दिनचर्या में निम्नलिखित फलों और सब्जियों को शामिल करेंगी तो आप स्किन संबंधित समस्या से निजात पा सकती हैं:-

1. जामुन

यह स्किन के लिए सबसे ज्यादा लाभकारी फल होता है. यदि आप नियमित रूप से इसका सेवन करते हैं तो आप चेहरे के दाग-धब्बों से निजात पा सकते हैं. यह फल झुर्रियों के साथ-साथ त्वचा संबंधित अन्य समस्याओं के लिए भी काफी लाभदायक है. बाजार में मिलने वाले जामुन को खरीदने से पहले आपको यह देखना होगा कि वह ऑर्गैनिक है या नहीं.

ये भी पढ़ें- Holi Special 2020 : इन बातों का रखें ख्याल, होली होगी और मजेदार

2. गाजर

जैसा की हम सभी जानते हैं कि गाजर हमारी दृष्टि के लिए सबसे उपयोगी सब्जी है लेकिन यह हमारे स्किन के लिए भी लाभदायक है, ऐसा कम ही लोग जानते होंगे. विटामिन ए से भरपूर गाजर सर्दियों में आपके चेहरे को नमी प्रदान करती है.

3. खीरा

एक मात्र ऐसी सब्जी है जो हर मौसम में सबसे ज्यादा राहत देती है. खीरा ना केवल सेहत के लिए ही अच्छाम माना जाता है बल्किी कब्ज, एसिडिटी, छाती की जलन से भी मुक्ति दिलाता है. यहीं नहीं यह आपके बालों और त्वचा के लिए भी उपयोगी है. 95 फीसदी पानी होने की वजह से इसका इस्तेमाल आंखों के नीचे डार्क सर्कल और सूजन को खत्म करने के लिए किया जाता है.

ये भी पढ़ें- Holi Special 2020 : होली और डायबिटीज, रंगों को अपना जादू बिखेरने दें

4. खट्टे फल

अधिकतर बिमारियों में डॉक्टर हमेशा मरीज को खट्टे फल खाने की सलाह देते हैं. खट्टे फलो में मौसमी, संतरा, नींबू आदि आते हैं जिनके अंदर विटामीन सी के साथ-साथ लाइसिन और प्रोलाइन के रूप में महत्वपूर्ण अमीनो एसिड पाए जाते हैं, जो आपकी त्वचा को कोमल बनाते हैं तथा सिकुड़न को भी कम करते हैं. ऐसे फल आपकी कोशिकाओं के लिए भी बहुत उपयोगी हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें