Rocket Boys REVIEW: डॉ. होमी जहांगीर भाभा और डॉ. विक्रम साराभाई की दिलचस्प कहानी

रेटिंगः साढ़े 3 स्टार

निर्माताः रौय कपूर फिल्मस और एम्मेय इंटरटेनमेंट

लेखक व निर्देशकः अभय पन्नू

कलाकारः जिम सर्भ,इश्वाक सिंह , रेजिना कसांड्रा , सबा आजाद , दिब्येंदु भट्टाचार्य , रजित कपूर , नमित दास,अर्जुन राधाकृष्णन व अन्य. . .

अवधिः लगभग सवा छह घंटे ,40 से 54 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव

भारत महान देश है. मगर इसे महान बनाने में किसी भी तरह के जुमलों की बजाय हजारों व लाखों युवकों के जुनून का योगदान है.  इन्ही में से दो महान वैज्ञानिक भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक डॉ.  होमी जहांगीर भाभा और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की संकल्पना करने वाले डॉ.  विक्रम साराभाई को श्रृद्धांजली के तौर पर लेखक व निर्देशक अभय पन्नू आठ भागों की वेब सीरीज ‘‘रॉकेट ब्वॉयज’’ लेकर आए हैं. इस सीरीज में 1940 से लेकर स्वतंत्र भारत के शुरुआती वर्षों का संघर्ष, वैज्ञानिकों पर राजनीतिक दबाव, सपने और आधुनिक तरक्की की बुनियाद की भी कहानी है. जो कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘सोनी लिव’ पर चार फरवरी से प्रसारित हो रही है.

कहानी:

वेब सीरीज की कहानी 1962 में चीन के हाथों भारत की सैन्य पराजय के बाद शुरू होती है, जब होमी भाभा (जिम सर्भ) तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.  जवाहर लाल नेहरू (रजित कपूर) से परमाणु बम बनाने की बात करते हैं. होमी,पं. नेहरू को भाई कहकर ही बुलाते हैं. होमी भाभा का तर्क है कि परमाणु बम नरसंहार के लिए नही बल्कि शांति बनाए रखने के लिए जरुरी है. क्योंकि चीन भविष्य में हमलावर नही होगा,यह मानना गलत होगा. पं.  नेहरू असमंजस में हैं.  होमी भाभा के मित्र और कभी उनके छात्र रहे विक्रम साराभाई (इश्वाक सिंह) परमाणु बम बनाए जाने का खुला विरोध करते हैं. क्योंकि पूरा विश्व दूसरे विश्व युद्ध में अमरीका द्वारा जापान के हिरोशिमा-नागासाकी पर गिराए परमाणु बमों से हुई तबाही देख चुका है. होमी और विक्रम के इस टकराव के साथ कहानी अतीत यानी कि 1940 में चली जाती है. जहां लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में विक्रम साराभाई ने बैलून से रॉकेट बनाया था. वहीं पर होमी भाभा भी हैं. मगर अचानक द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होते ही वह दोनों भारत वापस आ जाते हैं.

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अपने पिता अंबालाल के प्रयासों के चलते विक्रम को कलकत्ता के साइंस कालेज में प्रवेश मिल जाता है,जहंा होमी भाभा कलकत्ता के एक साइंस कॉलेज में प्रोफेसर हैं. यहीं पर वैज्ञानिक सी वी रमन कालेज के मुखिया हैं. होमी परमाणु विज्ञान में दिलचस्पी रखते हैं, वहीं विक्रम का सपना देश का पहला रॉकेट बनाने का है. यहीं दोनो दोस्त बन जाते हैं. जबकि कई मुद्दों पर उनके विचारों में मतभेद है. 1942 में महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर होमी और विक्रम कॉलेज के एक समारोह में अंग्रेज अफसर बेनेट के आगमन पर यह दोनों अंग्रेजों का यूनियन जैक उतार कर स्वराज का तिरंगा लहरा देते हैं. यहां से दोनो की तकलीफें बढ़ जाती हैं. कालेज को सरकार से मिल रही रकम को बरकार रखने के लिए होमी भाभा स्वतः नौकरी छोड़ कर मुंबई में जेआरडी टाटा के साथ मिलकर‘‘टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च’’ की शुरूआत करते हैं. उधर विक्रम साराभाई पढ़ाई के साथ-साथ कपड़ा मिल मालिक अपने पिता अंबालाल के कारोबार में हाथ बंटाने लगते हैं.  वह कपड़ा मिलों को आधुनिक बनाना चाहते हैं.  ऐसे में उनका रॉकेट बनाने का सपना पीछे चला जाता है. इसी के साथ होमी की परवाना इरानी  और विक्रम साराभाई की मृणालिनी संग रोमांस की कहानी भी चलती है. विक्रम डांसर मृणालिनी (रेजिना कैसेंड्रा) से प्रेम विवाह कर लेते हैं. पर वकील परवाना ईरानी उर्फ पीप्सी (सबा आजाद) से होमी की मोहब्बत अधूरी रहती है.

फिर यह कहानी इन दोनो वैज्ञानिको की दिमागी उलझनों,उनके सपनों को साकार करने के रास्तें में आने वाली देशी व विदेशी रूकावटों, विदेशों द्वारा होमी व विक्रम की गतिविधियों के पीछे जासूसों को लगाना,निजी जिंदगी के उतार-चढ़ावों और भावनात्मक उथल-पुथल की रोमांचक कहानी सामने आती है. इस कहानी में एपीजे अब्दुल कलाम (अर्जुन राधाकृष्णन) भी हिस्सा बन कर आते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार ने बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय को लोगों के सामने रखने का प्रयास किया है. मगर इसकी गति बहुत धीमी होने के साथ ही हर एपीसोड काफी लंबे हैं. दूसरी बात यह एपीसोड उन्हें ही पसंद आएंगे जिनकी रूचि विज्ञान अथवा देश के अंतरिक्ष और परमाणु इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं. उन युवकों को भी यह वेब सीरीज पसंद आ सकती है,जो  डॉ.  होमी जहांगीर भाभा और डॉ.  विक्रम अंबालाल साराभाई की जिंदगी के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं. लेखक ने विज्ञान की कई बातों को जिस अंदाज में पेश किया है,वह हर इंसान के सिर के उपर से जाने वाला है. विक्रम व होमी के जीवन के रोमांस को बहुत कम तवज्जो दी गसी है. इनकी पारिवारिक जिंदगी को भी महज छुआ गया है. अमरीका द्वारा होमी की जासूसी कराए जाने की कहानी से थोड़ा रोमांच पैदा होता है,पर इस घटनाक्रम को सही अंदाज में चित्रित करने में निर्देशक असफल रहे हैं. इसकी कमजोर कड़ी यह है कि इसके लगभग आधे संवाद अंग्रेजी में हैं. ऐसे में भला हिंदी भाषी दर्शक के लिए इससे दूरी बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता. मनोरंजन का मसला भी नहीं है. इस सीरीज की दूसरी कमजोर कड़ी यह है कि फिल्मकार ने जिस तरह कहानी शुरू की है,उसे देखकर पहले दर्शक को लगता है कि यह कहानी विश्व का नक्शा बदलने के दौर, युवकों के जुनून,रॉकेट या एटॉमिक रिएक्टर बनाने या भारत निर्माण की बजाय इश्क की है. फिल्मकार ने इस ओर भी इशारा किया है कि देश को सबसे बड़ा खतरा विदेशी ताकतों से नही बल्कि देश के भीतर छिपे गद्दारों से है.

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होमी भाभा के कट्टर विरोधी व वैज्ञानिक रजा मेहदी की कहानी को धार्मिक एंगल देना गलत है. रजा मेहदी के किरदार को सही परिप्रेक्ष्य के साथ नही उठाया गया. जहंा बात विज्ञान की हो, वैज्ञानिकों के बीच प्रतिद्धंदिता संभव है,मगर इसमें सिया सुन्नी व मोहर्ररम का अंश बेवजह जोड़ा गया है.  स्वतंत्र भारत के शिल्पी कहे जाने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के किरदार को  फिल्मकार ने जान बूझकर, किसी खास वग्र को खुश करने के मकसद से कमजोर और संशयग्रस्त दिखाने की कोशिश की है.  इस विषय पर यदि देश में एक नई बहस छिड़ जाए,तो गलत नही होगा.

वैसे यह वेब सीरीज देखकर लोगों की समझ में एक बात जरुर आएगी कि देश में बीते 70 साल में कुछ नहीं हुआ,ऐसा कहने का अर्थ लाखों युवकों के जुनून,लगन,देश के प्रति समर्पण,प्रेम को झुठलाने व मेहनतको झुठलाना ही है.

अभिनयः

जिम सर्भ निजी जीवन में पारसी होने के साथ ही अति उत्कृष् ट अभिनेता हैं. उन्होने होमी भाभा को परदे पर अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. जिम सर्भ अपने अभिनय के अनूठे अंदाज के चलते याद रह जाते हैं. ईश्वाक सिंह भी अपनी प्रतिभा से लोगों को अपना बनाते जा रहे हैं. इश्वाक सिंह ने जिस तरह बहुत ही सहजता से सधे हुए अंदाज में परदे पर विक्रम साराभाई का किरदार निभाया है,उससे दर्शक मान लेता है कि विक्रम साराभाई ऐसे ही रहे होंगे. यदि यह कहा जाए कि इश्वाक सिंह की सादगी मोहने वाली है,तो गलत नही होगा. मृणालिनी के किरदार में रेजिना कैसेंड्रा और पीप्सी के किरदार में सबा आजाद अपने किरदारों में जमी हैं,मगर इनके हिस्से करने को बहुत ज्यादा नही आया.  होमी के प्रतिद्वंद्वी रजा मेहदी के किरदार में दिव्येंदु भट्टाचार्य जब भी परदे पर आते हैं. वह अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अमरीकी जासूस व पत्रकार के किरदार में नमित दास की प्रतिभा को जाया किया गया है. उनके जैसे प्रतिभाशाली कलाकार का इस वेब सीरीज में अति छोटे किरदार से जुड़ना भी समझ से परे हैं.

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Lata Mangeshkar अलविदा: मेरी आवाज ही पहचान है

मेरी आवाज ही पहचान है…..ये आवाज आज हर हिन्दुस्तानी के दिल में हमेशा मौजूद रहेगी. सुरीली और सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर आज हमारे बीच नहीं रहीं, उन्होंने अपनी आखिरी सांस 92 वर्ष की उम्र में ली. बीते कई दिनों से वह बीमार चल रही थी और उनका इलाज अस्पताल में जारी था. उनके सुरों की गूंज सदियों तक धरा पर गुंजायमान रहेगी. स्वर कोकिला की जीवन यात्रा के बारें में लिख पाना शायद किसी के लिए संभव नहीं, क्योंकि उन्होंने संगीत जगत में एक अविस्मरणीय योगदान दिया है.

लता मंगेशकर ने अपनी मीठी आवाज से कई दशकों तक ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व को अपना दीवाना बनाया. उन्होंने न जाने कितने कलाकारों को संगीत की दुनिया में आगे बढ़ने के की प्रेरित किया. उन्हें भारत में स्वर कोकिला के नाम से भी जाना जाता है, उनको लोग प्यार से लता दीदी भी कहते थे.

उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से  लेकर फ़िल्म फेयर, पद्म भूषण, पद्म विभूषण समेत कई बड़े अवार्ड मिल चुके है. साल 2001 में लाता मंगेशकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया.92 साल की लता जी ने 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाए, जो किसी के लिए एक रिकॉर्ड है. करीब 1000 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज दी. 1960 से 2000 तक दौर था, जब लता की आवाज के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थीं. 2000 के बाद से उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया था.

लता जी जितनी विनम्र और सुरीली थी, उतनी ही स्वाभिमानी भी थी. किसी भी गलत बात को वह सहती नहीं थी. उन्होंने उसके विरुद्ध हमेशा अपनी आवाज उठाई, जिसमें संगीत के क्षेत्र में रोयल्टी की बात हो या संगीतकारों का सम्मान, उन्होंने मजबूती से अपनी बात रखी, जिसके परिणामस्वरूप उनकी बात फिल्म इंडस्ट्री ने मानी, उनके इस विद्रोह का ही नतीजा है कि आज गायकों को भी सम्मान मिल रहा है. 6 दशक पहले किए गए इस कार्य के लिए देश के सभी Playback Singers उनके आभारी है. ये सच है कि अगर उन्होंने आवाज ना उठाई होती, तो शायद किसी और ने इस पर ध्यान भी नहीं दिया होता.

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आज लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया. फिल्मी दुनिया ही नहीं, पूरे देश में उनके लिए शोक है. उन्होंने भले ही ‘प्लेबैक सिंगिंग’ काफी समय से छोड़ दी हो, पर उनकी लोकप्रियतामें कमी नहीं आई. सोशल मीडिया में लता जी खासी सक्रिय रहती थीं. वो बड़ी विनम्रता से अपने समकालीन कलाकारों की पुण्यतिथि या जन्मदिन पर उन्हें याद करती थीं. कई नए कलाकारों को जन्मदिन पर बधाई देती थी. वह क्रिकेट की शौकीन थी, इसलिए कई बार क्रिकेट के खेल को लेकर ट्वीट करती थीं. तमाम त्योहारों पर शुभकामनाएं देना वह कभी भूलती नहीं थी. लता मंगेशकर ने दुनिया छोड़ दी, लेकिन आज सभी सिंगर्स अपने अश्रुपूर्ण नेत्रों से उन्हें याद कर रहे है,

कुमार सानु

कुमार सानु कहते है कि लता दीदी का चले जाना संगीत जगत में सबके लिए एक गहरा धक्का है, उनके गीत आगे चार पुरखों तक लोग सुनते रहेंगे. उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है. उनका योगदान फिल्म इंडस्ट्री के लिए बहुत बड़ी है. केवल हमारा देश ही नहीं पूरे विश्व के लोग उनके मधुर आवाज के दीवाने है. वह पूरे महाराष्ट्र की गौरव है. संगीत के ज़रिये उन्होंने पूरे विश्व में हमारे देश को ऊँचा स्थान दिलवाया है. उनके बारें में कुछ भी कहते हुए मुझे बहुत दुःख हो रहा है. मैं यह सोच नहीं पा रहा हूँ कि वह अब नहीं रही, लेकिन उनकी यादें हमेशा मेरे दिल में रहेगी.

मधुश्री

प्ले बैक सिंगर मधुश्री आँखों में आंसू लिए कहती है कि सुरकोकिला लता जी अब इस दुनिया में नहीं रही. संगीत की देवी हम सभी को छोड़कर चली गयी है. उनकी कमी संगीत जगत में हमेशा महसूस की जायेगी.

कैलाश खेर

पार्श्व गायक कैलाश खेर कहते है कि सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के बारें में जितना भी कहूँ कम ही रहेगा,उनके व्यक्तिव से हर किसी को सीख लेनी चाहिए. मैं उनसे हमेशा प्रभावित रहा हूँ.

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अभिजीत सावंत

प्ले बैक सिंगरअभिजित सावंत कहते है कि लता जी से मैं 2-3 बार मिला हूँ. करीब 10 साल पहले एक बार मैं एक रेस्तरां में मिला था.वहां वह अपनी परिवार के साथ आई हुई थी. मैं भी फॅमिली के साथ डिनर करने गया था.मैने उनसे मिलने गया, तो वह बहुत ही सिंपल और प्यारी लगी थी. मैं एक नया गायक और जूनियर लड़का होने के बावजूद बहुत ही खूबसूरत तरीके से मिली. उनकी खास बात यह है कि उनकी आँखों में हमेशा एक पॉजिटिव भाव रहती थी. मैं बहुत आश्चर्य में पड़ गया था कि इतनी बड़ी सक्शियत होने के बावजूद उनमें प्यार और हम्बल से मुझसे मिली थी, जैसा अधिकतर नहीं होता. किसी भी काम में वह शिद्दत से लग जाती थी. मैंने कई बार उनके साथ परफॉर्म भी किया है जब वह परफॉर्म करती थी और एक गाना हजारों लोगों के बीच गाने पर भी वह किसी को निर्देश नहीं देती थी. वह एक सिंसियर आर्टिस्ट की तरह इमानदारी के साथ नए आर्टिस्ट के साथ गाती थी. उनमे एक आनेस्टी थी काम में, उम्र में, ओहदे में बड़े होने पर भी उन्हें हमेशा कुछ अलग सीखने की आदत थी. उम्र होने के बावजूद भी लता जीहम जैसे नए कलाकार के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करती थी. उस उम्र में भी उनमे एक अनोखी समझ थी, जिससे मुझे एक बड़ी सीख मिली है.

Lata Mangeshkar के निधन बीच ट्रोल हुईं Malaika Arora, लोगों ने पूछे सवाल

बीते दिन बौलीवुड की दिग्गज सिंगर लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने दुनिया को अलविदा कह दिया. जहां इस दौरान इंडस्ट्री के सितारे मायूस नजर आए तो वहीं एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा  (Malaika Arora) ट्रोलिंग का शिकार हो गईं. दरअसल, अपनी पर्सनल लाइफ के चलते सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा  (Malaika Arora Photos) अपनी बोल्ड फोटोज के चलते ट्रोलर्स के निशाने पर आ गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

 पोस्ट के चलते ट्रोल हुईं मलाइका

 

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सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली एक्ट्रेस मलाइका ने दिग्गज गायिका लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के निधन के बीच अपनी कुछ बोल्ड फोटोज शेयर की थीं, जिन्हें देखकर जहां अर्जुन कपूर तारीफ करते नजर आए तो वहीं ट्रोलर्स उन्हें ट्रोल करते दिखे. दरअसल, मलाइका अरोड़ा ने रविवार को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट  पर स्विमिंग पूल के साइड में लेटकर पोज देते हुए एक फोटो शेयर की, जिसके कैप्शन में उन्होंने लिखा, ‘संडे सनी साइड अप…..’.

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यूजर्स ने दागे सवाल

मलाइका अरोड़ा के पोस्ट शेयर करते ही ट्रोलर्स ने उनपर निशाना करना शुरु कर दिया. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘आज तो ये फोटो पोस्ट नहीं करतीं.’ वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, ‘आपको महसूस होना चाहिए कि महाराष्ट्र किस दौर से गुजर रहा है… हमने लता मंगेशकर जी को खो दिया… और आप इस तस्वीर को पोस्ट कर रहे हैं.’ हालांकि इन सब के बीच मलाइका अरोड़ा ने भी अपने इंस्टाग्राम पर स्टोरी शेयर की थी और उनके निधन पर दुख जताया था.

 

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बता दें, कि लंबे समय से बीमार चल रहीं सिंगर लता मंगेशकर का रविवार यानी 6 फरवरी को 92 साल की उम्र में निधन हो गया था. वहीं कोरोना का शिकार हो चुकीं  करीब 1 महीने से अस्पताल में भर्ती थीं, जिसके चलते फैंस उनके कुशल रहने की कामनाएं कर रहे थे.

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आखिर फिल्मों के किस प्लेटफॉर्म के बारें में बात कर रही है निर्माता शिखा शर्मा

मनोरंजन की दुनिया में क्रिएटिव हेड और प्रोड्यूसर शिखा शर्मा को हमेशा से अच्छी और मनोरंजक कहानियां कहने का शौक था. इसके लिए पहले उन्होंने कई कॉर्पोरेट संस्थानों में काम किया और फिल्मों के लिखने से लेकर रिलीज होने और दर्शकों की रिव्यु को समझने तक काम किया और उन्होंने उन कहानियों को पर्दे पर लाने की कोशिश की,जो उन्होंने अपने आसपास देखी हो और दर्शकों तक पहुंचना जरुरी था. इस श्रृंखला में शिखा ने पहले फिल्म मकबूल, के लिए पोस्ट-प्रोडक्शन एसिस्टेंट, फिल्म शेरनी, छोरी, शकुंतला देवी, दुर्गामती, ‘हश हश’, नूर आदि कई फिल्मो की निर्माता और लेखक है. उन्हें बचपन से फिल्में देखने का बहुत शौक था. कई बार उन्हें महसूस होता था कि कई ऐसी कहानियां हमारे आसपास है, जिससे लोग छुपते है, जबकि ऐसी कहानियां समाज और परिवार में जागरूकता फ़ैलाने का काम करती है. अपनी इस पैशन को शिखा आज भी जारी रखे हुए है. उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बातचीत कर बताया कि जिस प्रकार एक पुरुष को आगे लाने में महिला का योगदान होता है, वैसी ही मेरी सफलता में मेरे पति आरिफ शेख का बहुत बड़ा हाथ रहा है.

मिली प्रेरणा

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर शिखा बताती है कि बचपन से ही मुझे और मेरे पेरेंट्स को फिल्में देखने का शौक था. बचपन में मैंने कई फिल्में देखी है. ये फिल्में हमेशा मुझे फेसिनेट करती थी, क्योंकि मुझे स्टोरी कहने की जरुरत थी. इसलिए मैंने फिल्म मेकिंग में डिग्री ली और क्रिएटिव हेड के रूप में एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम करने लगी, लेकिन इम्पैक्ट फुल फैक्ट्स को सामने लाने की इच्छा हमेशा रही और तब मुझे मकबूल और मंगल पांडे फिल्म के लिए प्रोडक्शन एक्सिक्यूटिव बनने का मौका मिला. इसके बाद दूसरी कंपनी में मुझे कंटेंट डेव्लोप करने का मौका मिला और मैंने फिल्म शोर इन द सिटी, द डर्टी पिक्चर, क्या सुपर कूल है हम आदि कई फिल्मों के कंटेंट पर काम किया. उस दौरान मुझे एक अच्छी टीम के साथ काम करने का अवसर मिलता रहा. मैंने सोचा यही सबसे अच्छा मौका है, क्योंकि मुझे कम मेहनत से अच्छे निर्देशक, टेक्निशियन,क्रीयेटर्स आदि सब मिल गए थे. मैंने उन सबके साथ मिलकर कहानी कहने की शुरुआत की.

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मकसद कहानियों को कहना

इसके आगे शिखा कहती है कि मैं बोर्न दिल्ली में हुई थी, मेरे पिता ट्रांसफरेबल जॉब में थे इसलिए मुंबई आना हुआ और मैं पिछले 18 साल से मुंबई में काम कर रही हूँ. इस क्षेत्र में आने से पहले मैंने एक शार्ट फिल्म बनाई. कैंपस प्लेसमेंट से ही मुझे काम मिला और आगे बढती गई. मेरी डीएनए में ही ऐसी शौक थी, क्योंकि मैं हमेशा एक मीनिंग फुल और प्रेरणा दायक कहानियाँ कहना चाहती थी, जिसमें मनोरंजन के साथ कुछ मेसेज भी हो.

ओटीटी है वरदान

महिला होने पर भी शिखा को काम में कोई मुश्किल नहीं होती, क्योंकि उन्होंने फिल्म मेकिंग की बारीकियों को नजदीक से देखा है. अभी कई महिला निर्माता इंडस्ट्री में है. वह हंसती हुई कहती है कि स्टोरी टेलर्स के लिए ये समय बहुत एक्साईटिंग है, जहाँ पर निर्देशक और पूरी यूनिट एक साथ काम कर रही है और काम जल्दी भी हो रहा है. ओटीटी के माध्यम से बोल्ड, रियल और एक्शन की कहानियाँ शामिल हो रही है. पहले इन फिल्मों को पैरेलल सिनेमा कहाजाता था, पर अब ये लाइन बहुत ब्लर हो चुकी है. आज अच्छी तरह से एक राइटर अपनी बात रख सकती है, क्योंकि अच्छी कहानियों के लिए दर्शक उत्सुक रहते है. इस समय लेखक, निर्देशक, निर्माता सभी को फायदा इंडस्ट्री से हो रहा है. छोरी,शेरनी जैसी अच्छी फिल्में भी ओटीटी पर है, जिसे दर्शको ने काफी पसंद किया है. ख़ुशी की बात यह है कि इन फिल्मों में लेखक अपनी कहानी सबके सामने रख पाए है और लोगों को इन फिल्मों से मनोरंजन भी मिला है. साथ ही वे अपने घर पर बैठकर आराम से अपने डिवाइस पर इन फिल्मों को देख सकते है. इससे अलग रामसेतु जैसी बड़ी फिल्में थिएटर के लिए भी बन रही है.

दिल के करीब

शिखा हर तरह की कहानी कहने की कोशिश कर रही है, लेकिन ‘हश हश’शो की कहानी उनके दिल के काफी करीब है.जिसे इन हाउस डेवलप किया गया है,जो बहुत सारी औरतों के जीवन पर आधारित है, जो अलग-अलग चरित्र की होते हुए खुबसूरत और मीनिंगफुल है. ये औरते अलग-अलग परिस्थिति में कैसे रियेक्ट करती है. ये सारी कहानियाँ उनके आसपास घटी है और वह उससे बहुत प्रेरित है.

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जरुरी है मेंटल हेल्थ पर जागरूकता फैलाना

मेंटल हेल्थ के बारें में शिखा कहती है कि आज यह एक बड़ी समस्या है. इससे बच्चे ही नहीं बड़े भी प्रभावित है और दर्शकों के बीच इसकी जागरूकता फैलाने की जरुरत है, क्योंकि केवल शरीर ही बीमार नहीं होता, बल्किमानसिक स्वास्थ्य भी बीमार हो सकता है. कुछ लोग ऐसे है, जो इन बातों को कहना नहीं चाहते, शर्म महसूस करते है,इसे लोग एक टैबू के रूप में लेते है, उन्हें लगता है कि मानसिक बीमारी के बारें में बात करने पर लोग मजाक बनायेंगे.इसके लिए हमें बच्चों को समझाना पड़ेगा कि मानसिक समस्या कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती. इसके अलावा क्रिएटर का ये सामाजिक दायित्व है कि वे इस बात को कहानी और मनोरंजन के माध्यम से दर्शकों को समझा पाए. इस पर काम चल रहा है. आगे रामसेतु, जलसा, छोरी 2 आदि कई फिल्मों पर काम चल रहा है और कुछ को लिखने का काम चल रहा है.

परिवार का सहयोग

परिवार के सहयोग के बारें में शिखा का कहना है कि सपोर्ट न मिलने पर काम करना मुश्किल होता है. परिवार के सहयोग से ही मुझे हर रोज कुछ नया काम करने की प्रेरणा मिलती है, जिसमें मेरा बेटा, पति, माँ और सास सभी है. मेरे पति आरिफ शेख फिल्म एडिटर है, काम के दौरान ही मैं उनसे मिली थी. मेरा 11 साल का बेटा कियान शर्मा शेख भी फिल्मों का बहुत शौक़ीन है, पर अभी इस फील्ड में बिलकुल आना नहीं चाहता. उसको क्रिकेट में रूचि है और उसमे ही कुछ करना चाहता है. कोविड में जिंदगी ने बहुत कुछ समझा दिया है, उसे समझते हुए काम करे और आगे बढ़े. साथ ही अपने स्वास्थ्य की देखभाल अवश्य करें.

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जानें कैसा लाइफ पार्टनर चाहती हैं एक्ट्रेस Ananya Panday, पढ़ें इंटरव्यू

फ़िल्मी परिवेश में जन्मी और पली – बड़ी हुई 24 साल की यंग एक्ट्रेस अनन्या पांडे ने अपनी कोमलता और खूबसूरती से इंडस्ट्री में एक जगह बना ली है. उनमे हर नई किरदार को करने में एक जुनून है, जो उन्हें बाक़ी नई एक्ट्रेस से अलग बनाती है. सोशल मीडिया पर छाने वाली अनन्या के फोलोअर्स काफी है. चंकी पांडे और भावना पांडे की इस बेटी ने फिल्म स्टूडेंट ऑफ़ द इयर 2 से इंडस्ट्री में कदम रखी और एक के बाद एक अलग-अलग फिल्मों में नजर आ रही है. फिल्मों के अलावा अनन्या ने कई विज्ञापनों में भी काम किया है. इसकी वजह उनका सौम्य स्वभाव है.

अभिनय के साथ-साथ वह युनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफोर्निया, लोस एन्जिलोस में फैशन डिजाईनिंग की कोर्स भी कर चुकी है. अनन्या का फैशन स्किल काफी अच्छा है और वह अपने हिसाब से पोशाक का चयन करती है. इसके अलावा अनन्या को घूमना और जिम जाना बहुत पसंद है, इसलिए वह कई बार पैपराज़ी फोटोग्राफर का शिकार हो जाती है.हिंदी सिनेमा जगत में अनन्या अपने बोल्ड लुक और हॉट पर्सनालिटी के लिए जानी जाती है. बॉलीवुड में इस एक्ट्रेस की एक्टिंग को काफी सराहनीय माना जाता है, जिसे अनन्या ने हर फिल्म में काफी मेहनत कर संभव बनाई. उनकी फिल्म ‘गहराइयाँ’ रिलीज पर है,उन्होंने कुछ बातें अपनी जर्नी की शेयर की, आइये उन बातों को जानते है.

जरुरी है रिलेशन को बनाए रखना

रिलेशनशिप के बारें में अनन्या बताती है कि प्यार मेरे लिए दोस्ती है, जिसे मैंने अपने पेरेंट्स से सीखा है. 24 साल की शादीशुदा जिंदगी बिता लेने के बाद भी वे अच्छे फ्रेंड्स है. उनमें आपस में झगड़े भी होते है, पर वे दोनों साथ में खुश रहते है. मेरे लिए वही व्यक्ति मेरा जीवनसाथी बन सकता है, जिसके साथ मैं कोम्युनिकेट अच्छी तरह से कर सकूँ और वह मुझे हमेशा हंसाए. उसे मेरे पिता की तरह होने की आवश्यकता है. रियल लाइफ में मेरा पेरेंट्स के साथ सबसे गहरा रिश्ता है.

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पसंद है चुनौतीपूर्ण फिल्में

गहराइयाँ फिल्म में अनन्या ने काफी चुनौती पूर्ण भूमिका निभाई है,जो उनकी उम्र से बड़ी भूमिका है. उनका कहना है कि मैं इसे बोल्ड चरित्र नहीं, बल्कि मैच्योर, इमोशनल चरित्र कहना पसंद करुँगी, जिसे करने सेपहले मैं घबराई हुई थी, लेकिन मुझे इसे करना भी था, क्योंकि ये मेरी विशलिस्ट के डायरेक्टर शकुन बत्रा की है. उन्होंने किसी फिल्म को फ़िल्मी से अधिक रियल दर्शाने की कोशिश की है. इसलिए निर्देशक शकुन बत्रा के साथ बैठकर मेरे किरदार को समझना पड़ा. केवल मैं ही नहीं बल्कि मेरे को स्टार सिद्दांत चतुर्वेदी को भी अपनी भूमिका के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. इस फिल्म से मैंने बहुत सारी बातें सीखी है, जिसमें अगर कोई दुखी है, तो भले ही वह जोर से रोये नहीं, उसके आंसू न बहे , लेकिन उसके अंदर उसका इमोशन तो है और उसे पर्दे पर सजीव करना आसान नहीं होता. वैसे ही अगर आप दुखी होने पर हँसते है, तो उसमे ख़ुशी नहीं, बल्कि उस दबी हुई दुःख का एहसास होता हो,ऐसे कई मुश्किल अभिनय मैंने दीपिका से सीखे है. ये भाग मेरे लिए बहुत कठिन था. इसके अलावा किसी भी रिश्ते की गहराई में जाने पर अगर आपको धोखा मिलता है, तो उसे बिना छुपाये बाहर निकाल देना और शेयर करना जरुरी होता है, क्योंकि अपने अंदर किसी स्ट्रेस को रखकर मैं कुछ अलग नहीं सोच सकती और ये सभी के लिए लागू होती है.भले ही कोई कुछ कहे पर मुझे अपने रिश्ते को सच्चाई से जीना पसंद है.

एन्जॉयड द शूट

अनन्या को इस चरित्र को निभाने के बाद में कुछ समस्या भी आई.अनन्या कहती है कि निर्देशक के अनुसार मैं टिया खन्ना की तरह हूँ, इसलिए मुझे अधिक मेहनत करने की जरुरत नहीं है, लेकिन रियल लाइफ में मैं वैसी लड़की नहीं. दर्शक मुझे अनन्या नाम से नहीं, बल्कि टिया के रूप में याद रखेंगे और मेरे लिए ये डरावनी बात थी, पर मैंने खुद को इस डर से निकाला और शूट को एन्जॉय किया, लेकिन ये सही है कि मैं इस

पॉजिटिव सोच है जरुरी

अनन्या हर फिल को खुद चुनती है और अगर कुछ गलत हुआ तो उसकी जिम्मेदारी खुद को ही समझती है. उनके पेरेंट्स अनन्या की इस मैच्योरिटी को पसंद करते है. वह हमेशा सकारात्मक सोच रखना पसंद करती है. इतना ही नहीं अनन्या ने साल 2019 में सो पॉजिटिवएक संस्था ‘डिजिटल सोशल रेस्पोंसिबिलिटी’ को ध्यान में रखकर की है. वह कहती है कि मैं एक सेफ कम्युनिटी डिजिटल पर बनाना चाहती थी. केवल मेरे साथ ही नहीं हर किसी के साथ ऐसा होने पर, खासकर इन्स्टाग्राम पर लोग एक दूसरे को नफरत की निगाह से देख रहे थे, पर हर इंसान चुप था, जबकि एक बातचीत शुरू होने की जरुरत थी, जिसके साथ भी ऐसा होता है, वह व्यक्ति कैसे और कहाँ कॉम्प्लेन करें. सो पॉजिटिवने एक स्ट्रीम लाइन और गाइडबुक बनाई है, जहाँ परेशान व्यक्ति कहाँ और कैसे शिकायत करें. पिछले साल कोविड की दूसरी लहर के समय मैंने एक सीरीज बनाई थी, जो सोशल मीडिया फॉर सोशल गुड के नाम से था. मैंने 10 यंग लोगों से उनके काम के बारें में बात किया तो पता चला कि वे सोशल मिडिया पर अच्छे काम के लिए जुड़े है, जिसमें बीमार को एम्बुलेंस मुहैय्या करवाना, जरुरतमंदों को ऑक्सिजन सिलिंडर दिलवाना, स्ट्रीट जानवरों को सुरक्षा देना आदि कई काम कर रहे है, लेकिन इस काम के पीछे कौन व्यक्ति एक्टिव है, उसे बताने की कोशिश की है. इसका अनुभव भी मेरे साथ अच्छा हुआ है. जब मैं दूसरे शहर में भी किसी यूथ से मिलती हूँ तो यूथ इस मुहीम की तारीफ़ करते है और इस मुहीम से जुड़ने के बाद वे खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करते.

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पेरेंट्स का मिला सहयोग

अनन्या आगे कहती है कि मैं पिता के बहुत करीब हूँ. मेरे पिता परिवार की एक मजबूत इंसान है. उन्होंने हमेशा समझाया है कि जीवन में सफलता और असफलता से अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए, दोनों ही परिस्थिति में न्यूट्रल रहने की जरुरत है. असफलता से सफलता को हैंडल करना अधिक मुश्किल है. इसके अलावा मेरे पिता ने कभी मुझे किसी बात पर टोका नहीं, लेकिन जरुरत के समय हमेशा मेरे साथ रहे.

12 साल के संघर्ष के बाद पंकज त्रिपाठी को मिली मंजिल, पढ़ें खबर

बिहार के गोपालगंज के बेलसंड गांव में जन्में अभिनेता पंकज त्रिपाठी हिंदी सिनेमा जगत के एक जाना-माना नाम है और आज हर निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना चाहते है, लेकिन कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचना पंकज के लिए आसान नहीं था. उनके पिता का नाम पंडित बनारस त्रिपाठी और माँ का नाम हेम्वंती त्रिपाठी है. पिता किसान होने के साथ-साथ पंडिताई भी करते थे. चार बच्चों में सबसे छोटे पंकज को बचपन से ही अभिनय का शौक था. छोटी उम्र में ही उन्होंने लड़की की वेशभूषा धारण कर किसी भी उत्सव या अवसर पर अभिनय किया करते थे, इससे उनके अंदर अभिनय की इच्छा जगी और वे इसे ही अपना प्रोफेशन मान लिए थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बने और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने पटना भेज दिए.

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पकज ने होटल मनेजमेंट की पढाई की और पटना के एक पांच सितारा होटल में किचन सुपरवाईजर का काम करने लगे, क्योंकि उन्हें कुछ पैसा कमा लेना था. पंकज के आदर्श मनोज बाजपेयी है, एक बार जब मनोज पटना होटल में आये और अपना स्लीपर छोड़कर चले गए थे तो पंकज ने उन स्लीपर्स को सम्हाल कर अपने पास रखा, ताकि अभिनय के प्रति उनकी शौक बनी रहे. करीब 7 साल होटल में काम करने के बाद वे दिल्ली एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए शिफ्ट हो गए और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में ग्रेजुएशन कर अभिनय के लिए मुंबई आ गए. मुंबई वे अपनी पत्नी मृदुला और बेटी आशी के साथ आये थे. अभी उनकी बेटी दसवीं कक्षा में है और पढाई पर ध्यान दे रही है.

पंकज को लगा नहीं था कि उनकी संघर्ष इतनी लम्बी होगी, लेकिन उन्होंने धीरज नहीं हारी. शुरू में पंकज ने कई विज्ञापनों और एक दो सीन्स में काम किये,उस दौरान उनकी पत्नी, मृदुला,जो एक स्कूल टीचर थी, पूरे परिवार का खर्चा चलाया और पंकज को उनके सपनों को पूरा करने की आज़ादी दी. कुछ दिनों बाद पंकज को फिल्म ‘रन’ मिली, लेकिन फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ उनके अभिनय कैरियर की माइलस्टोन बनी, जिसके बाद से उन्हें मुड़कर पीछे देखना नहीं पड़ा. इस फिल्म की ऑडिशन पंकज ने करीब 8 घंटे तक दिया था. व्यस्त जीवन शैली के बीच पंकज त्रिपाठी ने मुंबई स्थित अपने आवास से टेलीफोन पर गृहशोभा के लिए खास बात की, जो रोचक थी, पेश है, कुछ खास अंश.

सवाल – अभिनय की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

जवाब –जब गाँव में था तो वह किसी भी अवसर पर नाटक करता था. पटना जाने के बाद भी मैं वहां थिएटर करने लगा था, फिर महसूस हुआ कि ये फील्ड अच्छी है, इसमें काम कर जीवन चलाना आसान होगा. इसके बाद पटना से दिल्ली आ गया और एनएसडी में ज्वाइन किया. आज यहं तक पहुंचा हूँ. 12 साल की संघर्ष के बाद मुझे लोग थोडा जानने लगे थे. काम मिलने लगा था.

सवाल- 12 साल की संघर्ष में किसका सहयोग रहा?

जवाब – मेरी पत्नी मृदुला का जो उस समय मुंबई में टीचर थी और उनके पैसे से ही घर चल जाता था. उस दौरान मैं काम खोज रहा था और अपने क्राफ्ट पर काम कर रहा था. उन्होंने उनका काम मेरे स्टाब्लिश होने के बाद छोड़ दिया और अपने मनपसंद शूटिंग की कंपनी चलाती है.

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सवाल –पत्नी से आप कैसे मिले थे?

जवाब – मैं उनसे एक शादी में मिला था, मुझे मृदुला बहुत अच्छी लगी थी. इसके बाद प्यार और प्रेमविवाह किया है.

सवाल – मुंबई आने पर काम के लिए कितनी समस्याएं आई? क्या आउटसाइडर होने की वजह से आपको अधिक मेहनत करनी पड़ी?

जवाब –हमारे देश में हर काम के लिए भीड़-भाड होती है और एक्टर बनना तो सबसे कठिन काम होता है. उसमें जो मेहनत करते है, उनके लिए रास्ते बन जाने है, मैंने भी मेहनत कर अपना रास्ता बनाया. इतना ही नहीं कई बार काम होते-होते पता चलता था कि नहीं हुआ किसी दूसरे को ले लिया है, ये पार्ट ऑफ़ ऑडिशन होता है.

सवाल – आपकी अधिकतर फिल्मों या वेब सीरीज में आपके काम को सराहा जाता है, इसकीवजह क्या मानते है?

जवाब – इसके लिए मैं उन कहानियों में काम करना पसंद करता हूँ, जो मुझे अच्छी लगती है. उसे सजीव करने के लिए पूरी मेहनत करता हूँ और उससे जुड़ जाता हूँ. ये अच्छी बात है कि मेरे काम की प्रसंशा दर्शक करते है, जिससे मुझे हर फिल्म में अधिक अच्छा करने की इच्छा होती है.

सवाल – आप अपनी जर्नी से कितना संतुष्ट है, क्या कोई रिग्रेट रह गया है?

जवाब – मैं अपने जर्नी से बहुत संतुष्ट हूँ, क्योंकि जितना मैंने सोचा, उससे अधिक मुझे मिला है, इसलिए किसी प्रकार की रिग्रेट मुझमे नहीं है. इसके अलावा मैं सुकून गति का व्यक्ति हूँ और जिस गति से मेरा काम चल रहा है,उसे मैं वैसे ही चलने देना चाहता हूँ. मेरे जीवन में ठहराव है औरजब समय मिलने पर दार्शनिक किताबे पढना पसंद करता हूँ.

सवाल – आपके मुंबई एक्टिंग के लिए आने पर परिवार की प्रतिक्रियां कैसी थी?

जवाब – परिवार वालों को मुझपर भरोसा था, वे जानते थे कि मैं कुछ न कुछ अच्छा अवश्य कर लूँगा, इसलिए उन्होंने सफल होने का आशीर्वाद दिया. गांव मैं हर तीन से चार महीने बाद 2 दिन के लिए जाता हूँ. मेरे जाते ही कई लोग मुझसे मिलने आ जाते है.

सवाल –मुंबई में सभी यूथ हीरो बनने के लिए आते है,आपकी इच्छा क्या थी?

जवाब –मेरी इच्छा एक्टिंग करने की थी, इसलिए जो भी काम मिला मैं करता गया. इसमें मैंने केवल गैंग्स्टर ही नहीं, वकील, कॉमेडियन, आम आदमी आदि सबकी भूमिका निभा रहा हूँ.

सवाल – आगे आपकी कौन-कौन सी फिल्में रिलीज पर है?

जवाब – आगे फिल्म ‘ओह माय गॉड 2’ और  ‘शेरदिल’ है, जिसपर काम चल रही है.

सवाल – अभिनय से पहले और अब एक सफल एक्टर बनने की जर्नी में आप वजह क्या मानते है?

जवाब –मेरा धीरज, निरंतर प्रयास करते रहना, अपने क्राफ्ट को सवांरते रहना आदि कई बातें है, जिसे मैंने अपने जीवन में शामिल किया है.

सवाल – रियल लाइफ में पंकज कैसे है?

जवाब – रियल लाइफ में पंकज एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार का बेटा है, जिन्हें बाज़ार जाकर सब्जियां खरीदना, ट्रेन के स्लीपर कोच में सफ़र करना, परिवार के साथ समय बिताना, गांव और खेती को देखना, खाना बनाना आदि सब पसंद है.

सवाल – अगर आपको कोई सुपर पॉवर मिले तो आप देश में क्या बदलना चाहेंगे?

जवाब – मैं बहुत सारे पौधे लगाना चाहता हूँ, ताकि बहुत हरियाली रहे. ऑक्सिजन की कमी न रहे, नदियाँ साफ़ रहे, वातावरण सुंदर रहे, पशु पक्षी का समागम हो और सभी सुखी रहे. सुपर पॉवर से मैं पूरी दुनिया को सुखी बनाना चाहता हूँ.

सवाल – आपने अधिकतर फिल्मों में बाहुबली की भूमिका निभाई है, क्या आपको राजनीति में जाने की कभी इच्छा है?

जवाब –अभी तो बताना मुश्किल है, क्योंकि इस बारें में मैंने सोचा नहीं है, लेकिन आगे क्या होगा उसे आज समझ पाना बहुत मुश्किल है. राजनीति डेमोक्रेटिक देश में बहुत जरुरी होती है, क्योंकि इससे सामाजिक क्षमता बढ़ जाती है. हाथ में पॉवर होता है और आप कुछ सही काम करना चाहते है तो कर सकते है. देश का संविधान भी एक महत्व पूर्ण अंग है, जिसके आधार पर हम सब चलते है. इसके द्वारा हमें अपने अधिकार, कर्तव्य, स्वतंत्रता आदि कई मूलभूत बातों का पता चलता है.

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सवाल – बिहार का विकास बाकी राज्यों की तुलना में काफी कम है, क्या आप अपने राज्य के विकास के बारें में कभी सोचा है?

जवाब – सोचते है कि गांव और राज्य का विकास हो. अपने हिसाब से करने का प्रयास भी करते है. इसके अलावा कई सामाजिक कार्य से जुड़ा हूँ, पर उस बारें में बात करना नहीं चाहता.

सवाल – कोविड और लॉकडाउन ने बता दिया है कि हमारे देश में लोग कितने गरीब है और कितनी संख्या में वे माइग्रेट करते है, खासकर मुंबई से बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से, आपकी सोच इस बारें में क्या है?

जवाब – देश में माइग्रेशन सालों से होता आया है, मुंबई में अधिक होने की वजह काम का मिलना है, जिससे वे अपने गांव और शहर से आकर अपनी रोजी -रोटी कमाते है. विस्थापन एक बड़ी समस्या है और इसपर लगाम तभी लग सकेगा, जब उन राज्यों का समुचित विकास हो. अगर मेरे गाँव में एक फैक्ट्री लग जाती है, तो कोई मुंबई या कल्याण की फैक्ट्री में काम करने क्यों आएगा? हर राज्य में उद्योग – धंधे और काम के मौके का सही विकास हो तो कोई भी व्यक्ति अपने शहर और परिवार को छोड़कर दूसरी जगह नहीं जायेगा.

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REVIEW: जानें कैसी वेब सीरिज ‘बरूण राय एंड द हाउस औन द क्लिफः’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः युनीकोर्न मोशन पिक्चर प्रोडक्शन

निर्देशकः सैम भट्टाचार्यजी

कलाकारः प्रियांशु चटर्जी,नायरा बनर्जी,सिड मक्कर,

अवधिः लगभग दो घंटे 45 मिनट , छह एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः ईरोज नाउ

इन दिनों छोटे परदे के साथ साथ ओटीटी प्लेटफार्म पर भी हॉरर यानी कि डरावनी कहानियंा व घटनाक्रम काफी पसंद किए जा रहे हैं. यह एक अलग बात है कि इस तरह के सीरियल, वेब सीरीज व फिल्में अंधविश्वास,आत्मा व भूतप्रेत आदि को बढ़ावा ही देती हैं. बहरहाल,इंग्लैंड के एक तट पर पहाड़ी पर नदी के किनारे बसे एक गांव में हो रही रहस्यमयी आत्महत्याओं का सच जानने के लिए पुलिस एक परामनोवैज्ञानिक की मदद लेता है. क्योंकि इन आत्महत्याओं के पीछे कोई स्पष्ट संदिग्ध नहीं है और परिस्थितियां समझ से परे हैं. पर इस वेब सीरीज को देखकर डर पैदा नही होता.

कहानीः

कहानी इंग्लैंड के एक टापू  कोर्विड्स हेड के एक छोटे से गांव में लगातार पुरूषों द्वारा आत्महत्या करने का सिलसिला जारी है. इन आत्महत्याओं को कोई स्पष् ट कारण भी समझ से परे है. ऐसे में इसकी जांच पड़ताल के लिए पुलिस  इंस्पेक्टर जेनी जोन्स (एम्मा गैलियानो), परामनोवैज्ञानिक जासूस बरुण राय (प्रियांशु चटर्जी) को कॉर्विड्स हेड के छोटे से गाँव में बुलाती है. बरूण राय परामनोविज्ञान में महारत रखते हैं. जेनी जोम्स की सोच के अनुसार ऐसे में बरुण की विशेष योग्यताएं असाधारण वजहों को जानने में मदद कर सकती हैं.

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इधर नवविवाहित जोड़ा  हरमेश (सिड मक्कड़) और शौमिली (नायरा बनर्जी) भारत से इंग्लेंड पहुॅचते हैं. वह कॉर्विड्स क्लिफ में एक घर में रहने पहुॅचते हैं. शौमिली नर्स के तौर पर कार्यरत है. दो दिन के अंदर ही शौमिली को घर के अंदर आसामान्य गतिविधियां घटित होने का अहसास होने लगता है. पुलिस को कुछ भी गलत नजर नहीं आता. उधर डौक्टर शौमिली कोे डिप्रेशन की दवा देने लगते हैं. पर हरमेश व शौमिली की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है. उधर ब्रायन(जौर्ज डावसन ) छिप कर इनकी तस्वीरें खींचता रहता है. धीरे धीरे यह स्पष्ट होता है कि एक बुरी आत्मा ही लोगों की इस तरह हत्या कर रही है कि वह आत्महत्या लगे. अब यह बुरी आत्मा हरमेश को भी मारना चाहती है.

स्थानीय चर्च के पादरी फादर पॉल (टोनी रिचर्डसन) और उनके गुरु (डेविड बेली) को इस आत्मा के बारे में कुछ ज्ञान है,जो इस घर के साथ ही हरमेश व शौमिल को प्रताड़ित कर रही है. फादर पॉल अतीत में कई बार इस बुराई से लड़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं. अब वह शौमिली व हरमेश की मदद करने इनके घर पहुॅचते हैं,पर किसी तरह अपनी जान बचाकर वापस आ जाते हैं.

इधर बरूण रौय को भी असफलता ही मिल रही हे. एक दिन ‘मिली,बरूण राय को एक किताब देती है. बरूण राय उस किताब को पढ़कर कुछ तो समझता है,पर इस किताब में ‘कोड वर्ड’ में भी कुछ लिखा है,जिसके लिए बरूण राय सुखबीर की मदद लेता है. इस किताब से बरूण की समझ में आता है कि किसी समय एलेक्जेंडर व पोली पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी में शादी करने वाले थे,मगर अलेक्जेंडर ने पोली को धो दिया था. इन सारी बातों को पोली ने इस किताब में लिखा है और यह भी लिखा है कि वह हर पुरूष से अपना बदला लेती रहेगी. इस बीच हरमेश भी नदी में कूदकरी आतमहत्या कर लेता है और बुरी आत्मा लगातार शौमिली को परेशान कर रही है. ब्रायन भी मारे जाते हैं.

अब पूर्णमासी की रात आ रही है. और बरूण राय,फादर पॉल व उनके गुरू के पास इस शहर के निवासियों को पोली की बुरी आत्मा से बचाने का एक आखिरी मौका है, इससे पहले कि आत्मा इतनी शक्तिशाली हो जाए कि कोई भी रोक न सके. बरूण व फादर पॉल पूरी तैयारी के साथ शौमिली के घर पहुंचते और इन्हें अपने लक्ष्य में सफलता मिल जाती है.

लेखन व निर्देशनः   

वेब सीरीज का हर एपीसोड बहुत धीमी गति से आगे बढ़ता है. पटकथा काफी गड़बड़ है. किसी भी किरदार को सही ढंग से विकसित नही किया गया है. एक भी दृश्य ऐसा नही है,जिससे दर्शक के अंदर भय का अहसास हो. कहानी का कोई प्रवाह नजर नही आता. कई दृश्यों के समय आदि की भी सही व्याख्या नही की गयी है. इस सीरीज की खासियत यह है कि इसमें बौलीवुड फिल्मों में दिखायी जाती रही बुरी आत्माएं या भूतप्रेत नजर नही आते.

कई दृश्य तो दर्शकों को भी द्विविधा में डालते हैं. निर्देशक ने अचानक  फर्नीचर के टकराने व हिलने या हवा से अचानक खिड़की के खुलने जैसे बहुप्रचलित साधनों का उपयोग कर डर व रहस्यमय माहौल पैदा करने का असफल प्रयास किया है. क्लायमेक्स तो काफी घटिया है.

मगर इस सीरीज में इंग्लैंड के ग्रामीण इलाकों की सुंदरता के साथ-साथ शानदार चट्टानों और तट को बेहतरीन तरीके से कैद करने में फिल्मकार सफल रहे हैं. यानी कि लोकेशन काफी सुंदर व खूबसूरत चुनी गयी है. हॉरर फिल्म या सीरीज  में आम तौर पर जिस तरह का संगीत परोसा जाता है,उससे इसका संगीत काफी अलग है.

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अभिनयः

परामनोवैज्ञानिक बरूण के किरदार में प्रियांशु चटर्जी काफी सुस्त नजर आते हैं. शोमिली के किरदार में कुछ दृश्यों में डर की भावनाओं को चित्रित करने में नायरा बनर्जी सफल रही हैं. नायरा बनर्जी अपने आस पास होने वाली घटनाओ को बेहतर अहसास दिलाती हैं. शौमिली के किरदार में उन्होने इस बात के संकेत दिए हैं कि उनके अंदर अभिनय प्रतिभा की कमी नही है. जरुरत है एक बेहतरीन निर्देशक की,जो उनके अंदर की कला को निखार सके. एम्मा गैलियानो, सिड मक्कर, टोनी रिचर्डसन और जॉर्ज डावसन के हिस्से करने को कुछ खास नही रहा.

Virat Kohli की Copy हैं बेटी Vamika, Anushka Sharma संग सामने आई Cute फोटोज

बौलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) और क्रिकेटर विराट कोहली (Virat Kohli) अपनी बेटी वामिका (Vamika Kohli) की प्राइवेसी का पूरा ध्यान रखते हैं, जिसके चलते वह पूरी कोशिश करते हैं कि उसका चेहरा मीडिया या फैंस के सामने ना आए. लेकिन हाल ही में विराट कोहली के मैच के दौरान अनुष्का शर्मा ने अपनी बेटी का चेहरा फैंस को दिखा दिया हैं. वहीं वामिका की फोटोज सोशलमीडिया पर छा गई हैं. आइए आपको दिखाते हैं वामिका की फोटोज….

बेटी वामिका का चेहरा आया सामने

 

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भारत और साउथ अफ्रीका के बीच तीसरे वनडे मुकाबले के दौरान विराट कोहली की बेटी वामिका की पहली झलक दिखाई दी. दरअसल, मैच के दौरान विराट कोहली की पत्नी यानी बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा स्टैंड्स में अपनी बेटी वामिका के साथ विराट कोहली और टीम इंडिया के लिए चीयर करती नजर आईं. वहीं इस दौरान कैमरा की नजर वामिका पर पड़ी, जो पिंक कलर की ड्रेस पहने अनुष्का शर्मा की गोद में दिखीं. वहीं विराट बेटी को हाय करते हुए भी दिखे.

 

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विराट  की कौपी हैं वामिका

वामिका कोहली की फोटोज वायरल होने के बाद जहां फैंस उसकी क्यूटनेस की तारीफें कर रहे हैं तो वहीं वह वामिका को पापा विराट की कौपी बताते नजर आ रहे हैं. इसी के साथ सोशलमीडिया पर वामिका और अनुष्का शर्मा और विराट के बचपन की फोटोज वायरल हो रही हैं.

बता दें, क्रिकेटर विराट कोहली और एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा शुरुआत से ही मीडिया और फैंस से अपील की थी कि वह अपनी बेटी की प्राइवेसी का ख्याल रखते हुए उसे मीडिया से दूर रखेंगे. लेकिन मैच के दौरान वायरल हुई फोटोज और वीडियो को देखने के बाद फैंस के मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं. बात करें वामिका की तो वह जनवरी में ही एक साल की हुई हैं, जिसका बर्थडे सेलिब्रेशन मैच के दौरान ही मनाया गया था.

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बौलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) अपनी फिल्म की बजाय पर्सनल लाइफ को लेकर अक्सर सुर्खियां बटोरती हैं. बीते दिनों जहां उनके तलाक की खबरों ने फैंस को हैरान कर दिया था तो वहीं अब एक्ट्रेस की मां बनने की खबर ने लोगों को चौंका दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मां बनीं प्रियंका चोपड़ा

 

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दरअसल, थोड़ी देर पहले ही प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें उन्होंने अपने फैंस को जानकारी  दी है कि वह और उनके पति निक जोनस (Nick Jonas) सरोगेसी के जरिए पेरेंट्स बन गए हैं. प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) ने लिखा ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि हमने सेरोगेसी के जरिए बच्चे का स्वागत किया है. हम इस विशेष समय में आपसे सम्मानपूर्वक प्राइवेसी की अपील करते हैं क्योंकि हम अपने परिवार पर ध्यान दे रहे हैं. बहुत-बहुत धन्यवाद. वहीं निक जोनस ने भी एक जैसा पोस्ट अपने फैंस के लिए शेयर किया है. हालांकि दोनों ने बेटा या बेटी होने की खबर नहीं दी है. वहीं इस पोस्ट पर सेलेब्स और फैंस दोनों को बधाई देते नजर आ रहे हैं.

 

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फैमिली बढ़ाने को लेकर कह चुकी हैं ये बात

 

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साल 2018 के दिसंबर में जोधपुर में हिंदू और फिर ईसाई रीति-रिवाज से  शादी करने वाली प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra)मां बनने की इस खबर से पहले कई बार पति निक (Nick Jonas) के साथ परिवार बढ़ाने की बात कहते हुए नजर आ चुकी हैं. वहीं एक शो में उन्होंने लाइव औडियंस के सामने फैमिली बढ़ाने की बात कही थीं. हालांकि बाद में उन्होंने खुद उसे मजाक कहा था. इसके अलावा वह इंटरव्यू में भी वह मां बनने की बात कहती नजर आईं थीं.

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अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘गहराइयाँ’ की ट्रेलर लांच होने के मौके पर दीपिका भावुक हो गयी, क्योंकि उन्होंने इस फिल्म में उनकी भूमिका अबतक की सभी फिल्मों से अलग बताया है, क्योंकि इसमें दिखाई गयी कहानी भारत में पहली बार होगी, ऐसी फिल्में विदेशों में बहुत सामान्य होती है. इसे करने के पीछे उनकी भावनाएं है,जिसे उन्होंने अपने रियल लाइफ में जिया है. इसलिए उन्होंने इस फिल्म को करने के बारें में जरा भी नहीं सोची. वह इस फिल्म में अलीशा की भूमिका निभा रही है. इसमें रिलेशनशिप और प्यार को एक अलग नजरिये से दिखाया गया है, जिसमें प्रेम लालसा और तड़प खास है,जिसे हमारे देश के लोग अँधेरे में रहकर निभाते है.

वह कहती है कि रिलेशनशिप या प्यार को कई तरीके से निभाया जा सकता है, ये केवल बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के लिए नहीं होती, बल्कि किसी दोस्त या रिश्ते में भी हो सकती है. मेरे लिए भी ये एक स्ट्रोंग और चुनौतीपूर्ण चरित्र है, जिसे निभाना आसान नहीं था. चरित्र का संघर्ष और उनका सफर एकदम असली, स्वाभाविक और आम लोगों के जीवन से जुड़ा है, इसलिए बहुत हद तक दर्शक इससे जुड़ सकेंगे. इस चरित्र को आसान बनाने में निर्देशक शकुन बत्रा का काफी हाथ रहा. उन्होंने मुझे पूरी भूमिका के ग्राफ को बता दिया था, जिससे काम करना आसान हो गया. इसके अलावा मैंने इस फिल्म में हर काम टीम के साथ-साथ किया है, जिसमें एक साथ खाना, एक साथ शूटिंग करना, एक साथ कही घूमने जाना आदि.इससे मेरे और टीम के बीच एक अच्छी बोन्डिंग स्थापित हुई जिससे अभिनय करना आसान हुआ.

 

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इसके आगे दीपिका कहती है कि बोल्ड अभिनय को लेकर कई भ्रांतियां है, बोल्ड के अर्थ को समझने के लिए कहानी में चरित्र को देखना पड़ेगा, क्योंकि बोल्ड का स्ट्रोंग के साथ-साथ  इंटिमेसी भी है, जिसे फिल्म में बहुत ही बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है. इस तरह की इंटेंस सीन्स, जिसमें संबंधों के कई लेयर्स को पर्दे पर लाने में निर्देशक का हाथ रहा,जिसने ऐसे सीन्स के लिए अलग से कोरियोग्राफ किया. इससे इस फिल्म की किसी भी अन्तरंग दृश्य को परफॉर्म करने में सोचना नहीं पड़ा. इसके अलावा फिल्म में सिंद्दान्त चतुर्वेदी, अनन्या पांडे और धैर्य करवा ने साथ मिलकर हर अभिनय को अधिक रियल बनाया है.

 

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बहरहाल इस तरह की इंटेंस इमोशन के खेल को लेकर बनी फिल्में हमारी दर्शक अधिक डाइजेस्ट नहीं कर पाती और फिल्म फ्लॉप हो जाती है, लेकिन गहराइयाँ के लिए निर्माता निर्देशक बहुत अधिक गहराई तक सोच चुके है, उन्हें उबरने में कितना समय लगेगा, ये तो फिल्म की रिलीज के बाद ही पता चल पाएगी. ‘गहराइयां’ अमेजन प्राइम वीडियो पर 11 फ़रवरी को स्‍ट्रीम की जाएगी.

 

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