रेटिंगः साढ़े 3 स्टार
निर्माताः रौय कपूर फिल्मस और एम्मेय इंटरटेनमेंट
लेखक व निर्देशकः अभय पन्नू
कलाकारः जिम सर्भ,इश्वाक सिंह , रेजिना कसांड्रा , सबा आजाद , दिब्येंदु भट्टाचार्य , रजित कपूर , नमित दास,अर्जुन राधाकृष्णन व अन्य. . .
अवधिः लगभग सवा छह घंटे ,40 से 54 मिनट के आठ एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव
भारत महान देश है. मगर इसे महान बनाने में किसी भी तरह के जुमलों की बजाय हजारों व लाखों युवकों के जुनून का योगदान है. इन्ही में से दो महान वैज्ञानिक भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की संकल्पना करने वाले डॉ. विक्रम साराभाई को श्रृद्धांजली के तौर पर लेखक व निर्देशक अभय पन्नू आठ भागों की वेब सीरीज ‘‘रॉकेट ब्वॉयज’’ लेकर आए हैं. इस सीरीज में 1940 से लेकर स्वतंत्र भारत के शुरुआती वर्षों का संघर्ष, वैज्ञानिकों पर राजनीतिक दबाव, सपने और आधुनिक तरक्की की बुनियाद की भी कहानी है. जो कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘सोनी लिव’ पर चार फरवरी से प्रसारित हो रही है.
कहानी:
वेब सीरीज की कहानी 1962 में चीन के हाथों भारत की सैन्य पराजय के बाद शुरू होती है, जब होमी भाभा (जिम सर्भ) तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू (रजित कपूर) से परमाणु बम बनाने की बात करते हैं. होमी,पं. नेहरू को भाई कहकर ही बुलाते हैं. होमी भाभा का तर्क है कि परमाणु बम नरसंहार के लिए नही बल्कि शांति बनाए रखने के लिए जरुरी है. क्योंकि चीन भविष्य में हमलावर नही होगा,यह मानना गलत होगा. पं. नेहरू असमंजस में हैं. होमी भाभा के मित्र और कभी उनके छात्र रहे विक्रम साराभाई (इश्वाक सिंह) परमाणु बम बनाए जाने का खुला विरोध करते हैं. क्योंकि पूरा विश्व दूसरे विश्व युद्ध में अमरीका द्वारा जापान के हिरोशिमा-नागासाकी पर गिराए परमाणु बमों से हुई तबाही देख चुका है. होमी और विक्रम के इस टकराव के साथ कहानी अतीत यानी कि 1940 में चली जाती है. जहां लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में विक्रम साराभाई ने बैलून से रॉकेट बनाया था. वहीं पर होमी भाभा भी हैं. मगर अचानक द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होते ही वह दोनों भारत वापस आ जाते हैं.
अपने पिता अंबालाल के प्रयासों के चलते विक्रम को कलकत्ता के साइंस कालेज में प्रवेश मिल जाता है,जहंा होमी भाभा कलकत्ता के एक साइंस कॉलेज में प्रोफेसर हैं. यहीं पर वैज्ञानिक सी वी रमन कालेज के मुखिया हैं. होमी परमाणु विज्ञान में दिलचस्पी रखते हैं, वहीं विक्रम का सपना देश का पहला रॉकेट बनाने का है. यहीं दोनो दोस्त बन जाते हैं. जबकि कई मुद्दों पर उनके विचारों में मतभेद है. 1942 में महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर होमी और विक्रम कॉलेज के एक समारोह में अंग्रेज अफसर बेनेट के आगमन पर यह दोनों अंग्रेजों का यूनियन जैक उतार कर स्वराज का तिरंगा लहरा देते हैं. यहां से दोनो की तकलीफें बढ़ जाती हैं. कालेज को सरकार से मिल रही रकम को बरकार रखने के लिए होमी भाभा स्वतः नौकरी छोड़ कर मुंबई में जेआरडी टाटा के साथ मिलकर‘‘टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च’’ की शुरूआत करते हैं. उधर विक्रम साराभाई पढ़ाई के साथ-साथ कपड़ा मिल मालिक अपने पिता अंबालाल के कारोबार में हाथ बंटाने लगते हैं. वह कपड़ा मिलों को आधुनिक बनाना चाहते हैं. ऐसे में उनका रॉकेट बनाने का सपना पीछे चला जाता है. इसी के साथ होमी की परवाना इरानी और विक्रम साराभाई की मृणालिनी संग रोमांस की कहानी भी चलती है. विक्रम डांसर मृणालिनी (रेजिना कैसेंड्रा) से प्रेम विवाह कर लेते हैं. पर वकील परवाना ईरानी उर्फ पीप्सी (सबा आजाद) से होमी की मोहब्बत अधूरी रहती है.
फिर यह कहानी इन दोनो वैज्ञानिको की दिमागी उलझनों,उनके सपनों को साकार करने के रास्तें में आने वाली देशी व विदेशी रूकावटों, विदेशों द्वारा होमी व विक्रम की गतिविधियों के पीछे जासूसों को लगाना,निजी जिंदगी के उतार-चढ़ावों और भावनात्मक उथल-पुथल की रोमांचक कहानी सामने आती है. इस कहानी में एपीजे अब्दुल कलाम (अर्जुन राधाकृष्णन) भी हिस्सा बन कर आते हैं.
लेखन व निर्देशनः
फिल्मकार ने बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय को लोगों के सामने रखने का प्रयास किया है. मगर इसकी गति बहुत धीमी होने के साथ ही हर एपीसोड काफी लंबे हैं. दूसरी बात यह एपीसोड उन्हें ही पसंद आएंगे जिनकी रूचि विज्ञान अथवा देश के अंतरिक्ष और परमाणु इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं. उन युवकों को भी यह वेब सीरीज पसंद आ सकती है,जो डॉ. होमी जहांगीर भाभा और डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई की जिंदगी के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं. लेखक ने विज्ञान की कई बातों को जिस अंदाज में पेश किया है,वह हर इंसान के सिर के उपर से जाने वाला है. विक्रम व होमी के जीवन के रोमांस को बहुत कम तवज्जो दी गसी है. इनकी पारिवारिक जिंदगी को भी महज छुआ गया है. अमरीका द्वारा होमी की जासूसी कराए जाने की कहानी से थोड़ा रोमांच पैदा होता है,पर इस घटनाक्रम को सही अंदाज में चित्रित करने में निर्देशक असफल रहे हैं. इसकी कमजोर कड़ी यह है कि इसके लगभग आधे संवाद अंग्रेजी में हैं. ऐसे में भला हिंदी भाषी दर्शक के लिए इससे दूरी बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता. मनोरंजन का मसला भी नहीं है. इस सीरीज की दूसरी कमजोर कड़ी यह है कि फिल्मकार ने जिस तरह कहानी शुरू की है,उसे देखकर पहले दर्शक को लगता है कि यह कहानी विश्व का नक्शा बदलने के दौर, युवकों के जुनून,रॉकेट या एटॉमिक रिएक्टर बनाने या भारत निर्माण की बजाय इश्क की है. फिल्मकार ने इस ओर भी इशारा किया है कि देश को सबसे बड़ा खतरा विदेशी ताकतों से नही बल्कि देश के भीतर छिपे गद्दारों से है.
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होमी भाभा के कट्टर विरोधी व वैज्ञानिक रजा मेहदी की कहानी को धार्मिक एंगल देना गलत है. रजा मेहदी के किरदार को सही परिप्रेक्ष्य के साथ नही उठाया गया. जहंा बात विज्ञान की हो, वैज्ञानिकों के बीच प्रतिद्धंदिता संभव है,मगर इसमें सिया सुन्नी व मोहर्ररम का अंश बेवजह जोड़ा गया है. स्वतंत्र भारत के शिल्पी कहे जाने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के किरदार को फिल्मकार ने जान बूझकर, किसी खास वग्र को खुश करने के मकसद से कमजोर और संशयग्रस्त दिखाने की कोशिश की है. इस विषय पर यदि देश में एक नई बहस छिड़ जाए,तो गलत नही होगा.
वैसे यह वेब सीरीज देखकर लोगों की समझ में एक बात जरुर आएगी कि देश में बीते 70 साल में कुछ नहीं हुआ,ऐसा कहने का अर्थ लाखों युवकों के जुनून,लगन,देश के प्रति समर्पण,प्रेम को झुठलाने व मेहनतको झुठलाना ही है.
अभिनयः
जिम सर्भ निजी जीवन में पारसी होने के साथ ही अति उत्कृष् ट अभिनेता हैं. उन्होने होमी भाभा को परदे पर अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. जिम सर्भ अपने अभिनय के अनूठे अंदाज के चलते याद रह जाते हैं. ईश्वाक सिंह भी अपनी प्रतिभा से लोगों को अपना बनाते जा रहे हैं. इश्वाक सिंह ने जिस तरह बहुत ही सहजता से सधे हुए अंदाज में परदे पर विक्रम साराभाई का किरदार निभाया है,उससे दर्शक मान लेता है कि विक्रम साराभाई ऐसे ही रहे होंगे. यदि यह कहा जाए कि इश्वाक सिंह की सादगी मोहने वाली है,तो गलत नही होगा. मृणालिनी के किरदार में रेजिना कैसेंड्रा और पीप्सी के किरदार में सबा आजाद अपने किरदारों में जमी हैं,मगर इनके हिस्से करने को बहुत ज्यादा नही आया. होमी के प्रतिद्वंद्वी रजा मेहदी के किरदार में दिव्येंदु भट्टाचार्य जब भी परदे पर आते हैं. वह अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अमरीकी जासूस व पत्रकार के किरदार में नमित दास की प्रतिभा को जाया किया गया है. उनके जैसे प्रतिभाशाली कलाकार का इस वेब सीरीज में अति छोटे किरदार से जुड़ना भी समझ से परे हैं.
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