Serial Story: लाइफ कोच – भाग 3

‘‘नकुल, देखो, मैं ने तुम्हारे कपड़े, दवाइयां वगैरह अटैची में रख दिए हैं,’’ औफिस के कामों से मुंबई जाते समय किरण उसे एक छोटे बच्चे की तरह समझ रही थी और नकुल ‘ठीक है, ठीक है’ कहता जा रहा था.

‘‘कुछ समझ भी रहे हो या यों ही ‘ठीक है, ठीक है’ कहते जा रहे हो? फिर वहां से फोन कर दसों बार पूछोगे कि कौन सी चीज कहां रखी है,’’ किरण झिड़कते हुए बोली थी.

‘‘हां किरण, मैं सब समझ गया कि तुम ने कौन सी चीज कहां रखी है… नहीं भूलूंगा. लेकिन एक बात कहूं किरण? कम से कम मेरे दोस्तों के सामने ऐसा तो मत जाहिर किया करो कि तुम्हारे बिना मेरा काम नहीं चलता… मुझे कुछ नहीं आता. मैं तुम्हारे ही भरोसे हूं. अच्छा नहीं लगता है न?’’

‘‘ओह… कल की बात का बुरा मान गए,’’ किरण ने अपनी आंखें नचाईं, ‘‘तो क्या हो गया बोल दिया तो,’’ अटैची की चेन लगाते हुए किरण बोली, ‘‘वैसे, क्या गलत बोल दिया मैं ने? तुम्हें एक कपड़ा तक तो ठीक से खरीदना नहीं आता है और चले थे शौपिंग करने. देखा है मैं ने, कुछ भी उठा कर ले आते हो और फिर पैसे की बरबादी होती है. अच्छा चलो, छोड़ो वे सब. मुंबई पहुंचते ही फोन करना मत भूलना और सुनो, ध्यान रखना अपना, क्योंकि वहां मैं नहीं होऊंगी तुम्हारे साथ, समझे? और सुनो, बाहर का कुछ भी खानेपीने मत लगना, देख रहे हो न बीमारी फैली हुई है. और सुनो…’’

‘‘अच्छा भई, हो गया अब, जाने दो न,’’ खीजते हुए नकुल बोला. उसे लग रहा था जितनी जल्दी हो सके घर से निकल जाए. नहीं तो किरण बारबार उसे समझती रहेगी और फिर वह सब भूल जाएगा.

नकुल के घर से निकलतेनिकलते भी किरण ने 2-4 और नसीहतें और दे

डाली थीं, जिन से वह अंदर से तिलमिला उठा था. पर कुछ बोल  नहीं पाया और बाय कह कर घर से निकल गया. नकुल की चुप्पी का ही नतीजा था कि किरण इतना सिर चढ़ बोलने लगी थी. उसे लगता एक वही है जो घर में सब से बुद्धिमान इंसान है, एक वही है जिसे दुनियादारी की सारी समझ है नकुल तो बेवकूफ है. कुछ नहीं आता उसे. वह न आई होती उस की जिंदगी में, तो जाने उस का क्या हुआ होता, जैसे विचार उस के मन में पलते रहते थे. लेकिन उसे नहीं पता कि नकुल उस के जीवन में वह कुछ साल पहले आई है, उस से पहले वह खुद ही खुद की देखभाल करता था और आज जो वह इतने बड़े पोस्ट पर है, किरण की वजह से नहीं, बल्कि खुद की काबिलीयत के बल पर है.

लोग जो उस के कामों की तारीफ करते हैं, वह किरण की वजह से नहीं, बल्कि ये सब उस की मेहनत के कारण है, जो लोग उस का लोहा मानते हैं वरना कई ऐसे लोग हैं औफिस में जो मुंबई आना चाह रहे थे. मगर बौस ने इस काम के लिए नकुल को चुना, क्योंकि वही है जो इतनी बड़ी मीटिंग हैंडल कर सकता था.

नकुल अभी एअरपोर्ट से बाहर निकला ही था कि उस का फोन घनघना उठा. देखा, तो किरण का फोन था, ‘‘हां, बोलो’’ एक हाथ से अपना बैग पकड़े और दूसरे हाथ से वह टैक्सी को इशारा कर ही रहा था कि फोन उस के हाथ से गिरतेगिरते बचा, ‘‘रुको, मैं तुम्हें कौलबैक करता हूं,’’ कह कर नकुल ने फोन काट दिया और टैक्सी को आवाज देने लगा. रास्ते में कई बार उस के बौस का फोन आया, तो उन से काम और होने वाली मीटिंग के बारे में डिसकस करते हुए नकुल को याद ही नहीं रहा कि उसे किरण को फोन भी करना था.

होटल पहुंच कर जब उस ने अपना फोन चैक किया तो किरण के कई मिस्ट थे, ‘अरे, यार किरण को फोन करना तो भूल ही गया’ सोच कर ही नकुल का डर के मारे खून सूख गया कि कैसे वह किरण को फोन करना भूल गया और अब उस की खैर नहीं. दरअसल, मीटिंग के दौरान उस ने अपना फोन साइलैंट मोड पर रख दिया था, जिस के कारण उसे पता ही नहीं चला. खैर, हड़बड़ा कर अभी वह उसे फोन मिला ही रहा था कि उस के बौस का फोन आ गया यह पूछने के लिए कि मीटिंग कैसी रही? उन से बातें कर अभी वह किरण को फोन लगा ही रहा था कि फिर से उस का फोन आ गया तो बोला, ‘‘किरण मैं अभी तुम्हें ही फोन लगा रहा था. वह क्या है कि…’’ नकुल ने सफाई देनी चाही.

मगर वह फोन पर ही चीखने लगी, ‘‘पता था मुझे तुम यही करोगे. वहां जाते ही बेपरवाह हो जाओगे. भुल्लकड़ कहीं के. कब से… कब से मैं फोन लगा रही हूं. पर फोन बिजी ही आ रहा था. किस से बात कर रहे थे इतनी देर तक कि तुम्हें मुझे फोन करना भी याद नहीं आ रहा? बोलो, बोलते क्यों नहीं?’’ वह फोन पर ही इतना चीखने लगी कि नकुल का माथा झनझना उठा. एक तो वह खुद ही मीटिंग के कारण थक कर चूर हो चुका था. ऊपर से यह किरण कुछ समझती ही नहीं है. मन तो किया उस का कि अच्छे से समझ दे कि वह यहां होटल में ऐश करने नहीं आया है, बल्कि यहां औफिस के जरूरी काम से आया हुआ है. लेकिन उस ने केवल सौरी बोल कर फोन रख दिया, क्योंकि उसे समझने का कोई फायदा नहीं.

किरण के मुंह से कड़वी बातें सुनना नकुल के लिए कोई नई बात नहीं थी, बल्कि वह तो अब इस का आदी हो चुका था. रात में कितनी देर तक नकुल को नींद नहीं आई. बारबार उसे अपनी बेटी का चेहरा याद आ रहा था. वह फोन पर कैसे सिसकते हुए बोल रही थी कि मम्मी ने उसे मारा, क्योंकि उस ने पिज्जा खाने की जिद की थी इसलिए.

‘‘बेटा, कोई बात नहीं, जब मैं वहां आऊंगा न तब हम साथ में पिज्जा खाने चलेंगे, ओके? तो अब रोना बंद करो और मम्मी जो कहती है वही करो वरना फिर मारेगी वह तुम्हें. मेरा प्यारा बच्चा, मेरी परी, मानोगी न मेरी बात?’’ फोन पर जब नकुल ने बेटी को पुचकारा, तब जा कर वह चुप हुई. मन तो किया नकुल कि पूछे किरण से, क्यों उस ने पीहू को मारा? क्या प्यार से नहीं समझ सकती थी उसे? मारना जरूरी था? मगर क्या फायदा. वह तो वही करेगी जो उसे ठीक लगेगा उजटे और नकुल का गुस्सा भी पीहू पर ही उतार देगी.

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Serial Story: कोई अपना – भाग 2

चंद क्षणों के बाद उस युवक ने पूछा, ‘‘सुनीलजी कितने बजे तक आ जाते हैं?’’ ‘‘कोई निश्चित समय नहीं है. वैसे अच्छा होगा, आप उन से कार्यालय में ही मिलें. ऐसा है कि वे घर पर किसी से मिलना पसंद नहीं करते.’’

‘‘जी, औफिस में उन के पास समय ही कहां होता है.’’ ‘‘इस विषय में मैं आप की कोई भी मदद नहीं कर सकती. बेहतर होगा, आप उन से वहीं मिलें,’’ ढकेछिपे शब्दों में ही सही, मैं ने उन्हें फिर वह कहानी दोहराने से रोक दिया जिस की टीस अकसर मेरे मन में उठती रहती थी.

वे दोनों अपना सा मुंह ले कर चले गए. उन के इस तरह उदास हो कर जाने पर मुझे दुख हुआ, परंतु क्या करती? शाम को पति को सब सुनाया तो वे हंस पड़े, ‘‘ऐसा कहने की क्या जरूरत थी, उन की नईनई शादी हुई है. प्रेमविवाह किया है. दोनों के घर वालों ने कुछ नहीं दिया. सो, कर्ज ले कर कोई काम शुरू करना चाहता है. घर चला आया तो हमारा क्या ले गया. तुम प्यार से बात कर लेतीं, तो कौन सा नुकसान हो जाता?’’

‘‘लेकिन काम हो जाने के बाद तो ये मजे से अपना पल्ला झटक लेंगे.’’ ‘‘झटक लें, हमारा क्या ले जाएंगे. देखो शालिनी, हम समाज से कट कर तो नहीं रह सकते. मैं बैंक अधिकारी हूं, मुझ से तो वही लोग मिलेंगे, जिन्हें मुझ से काम होगा. अब क्या हम किसी के साथ हंसेंबोलें भी नहीं? कोई आता है या बुलाता है तो इस में कोई खराबी नहीं है. बस, एक सीमारेखा खींचनी चाहिए कि इस के पार नहीं जाना. भावनात्मक नाता बनाने की कोई जरूरत नहीं है. यों मिलो, जैसे हजारों जानने वाले मिलते हैं. इतनी मीठी भी न बनो कि कोई चट कर जाए और इतनी कड़वी भी नहीं कि कोई थूक दे.’’

मेरे पति ने व्यावहारिकता का पाठ पढ़ा दिया, जो मेरी समझ में तो आ गया, मगर भावुकता से भरा मन उसे सहज स्वीकार कर पाया अथवा नहीं, समझ नहीं पाई.

एक शाम एक दंपती हमारे यहां आए. बातचीत के दौरान पत्नी ने कहा, ‘‘अब आप कार क्यों नहीं ले लेते.’’ ‘‘कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई. जब लगेगा कार होनी चाहिए तब ले लेंगे,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘फिर भी भाभीजी, भाईसाहब बैंक में उच्चाधिकारी हैं, स्कूटर पर आनाजाना अच्छा नहीं लगता.’’ ‘‘क्यों, हमें तो बुरा नहीं लगता. कृपया आप विषय बदल लीजिए. हमारी जिंदगी में दखल न ही दें तो अच्छा है.’’

बच्चे बाहर पढ़ रहे थे, जिस वजह से कमरतोड़ खर्चा बड़ी मुश्किल से हम सह रहे थे. ईमानदार इंसान इन सारे खर्चों के बीच भला कहां कार और अन्य सुविधाओं के विषय में सोच सकता है. उस पर तुर्रा यह कि कोई आ कर यह जता जाए कि अब हमें स्कूटर शोभा नहीं देता, तो भला कैसे सुहा सकता है. एक बार तो कमाल ही हो गया. हमें किसी के जन्मदिन की पार्टी में जाना पड़ा. मेजबान ने मुझे घर की मालकिन से मिलाया, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं और ये हैं मेरी पत्नी सुलेखा.’’ कीमती जेवरों से लदी आधुनिका मुझे देख ज्यादा प्रसन्न नहीं हुईं. फीकी सी मुसकान से मेरा स्वागत कर अन्य मेहमानों में व्यस्त हो गईं. पति को तो 2-3 लोगों ने बैंक की बातों में उलझा लिया, लेकिन मैं अकेली रह गई. चुपचाप एक तरफ बैठी रही. अचानक हाथ में गिलास थामे एक आदमी ने कहा, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं?’’

‘‘जी हां,’’ मैं ने उत्तर दिया. ‘‘भाभीजी, आप से एक बात करनी थी…जरा सुनीलजी को समझाइए न, पूरे 50 हजार रुपए देने को तैयार हूं. आप कहिए न, मेरा काम हो जाएगा. अरे, ईमानदारी से रोटी ही चलती है, बस? आखिर वे कितना कमा लेते होंगे, यही 14-15 हजार…कितनी बार कहा है, हम से हाथ मिला लें…’’

मैं उस धूर्त व्यापारी को जवाब दिए बगैर ही वहां से उठ खड़ी हुई थी. मेरे पति पूरी बात सुन कर हैरान रह गए. मैं ने तनिक गुस्से से कहा, ‘‘आज के बाद ऐसी पार्टियों में मत ले जाना. मेरा वहां दम घुटता है.’’ ‘‘कोई बात नहीं, शालिनी, तुम एक कान से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आजकल हर तीसरा इंसान बिकाऊ है. शायद वह सोचता होगा, तुम से बात कर के उस का काम आसान हो जाएगा.’’

मैं रो पड़ी थी. फिर कितने दिन सामान्य नहीं हो पाई थी. इसी बीच फिर खाने का दावतनामा मिला तो मैं ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘उन लोगों ने हम दोनों को खासतौर पर बुलाया है. छोटा सा काम शुरू किया है, उसी खुशी में.’’ ‘‘मुझे किसी के काम से क्या लेनादेना है, आप ही चले जाइए.’’

‘‘ऐसा नहीं सोचते, शालिनी, वे हमारा इतना मान करते हैं, सभी एकजैसे नहीं होते.’’

पति ने बहुत जिद की थी, मगर मैं टस से मस न हुई. वे अकेले ही चले गए. जब पति 2 घंटे बाद लौटे तो कोई साथ था.

‘‘नमस्ते, भाभीजी,’’ एक नारी स्वर कानों में पड़ा, सामने एक युवा जोड़ा खड़ा था. ऐसा लगा, इस से पहले कहीं इन से मिल चुकी हूं. ‘‘आप हमारे घर नहीं आईं, इसलिए सोचा, हम ही आप से मिल आएं,’’ महिला ने कहा.

‘‘बैठिए,’’ मैं ने सोफे की तरफ इशारा किया. उस के हाथ में रंगदार कागज में कुछ लिपटा था, जिसे बढ़ कर मेरे हाथ में देने लगी. मुझे लगा, बिच्छू है उस में, जो मुझे डस ही जाएगा. मैं ने जरा तीखी आवाज में कहा, ‘‘नहींनहीं, यह सब हमारे यहां…’’

‘‘यह मेरे बुटीक की पहली पोशाक है. हमारे मांबाप ने तो हमें दुत्कार ही दिया था. लेकिन सुनील भाईसाहब की कृपा से हमें कर्ज मिला और छोटा सा काम खोला. हमें आप लोगों का बहुत सहारा है, आप ही अब हमारे मांबाप हैं. कृपया मेरी यह भेंट स्वीकार करें,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी. मैं भौचक्की सी रह गई कि पत्थरों के इस शहर में कोई रो भी रहा है. वह कड़वाहट जिसे मैं पिछले कई सालों से ढो रही थी, क्षणभर में ही न जाने कहां लुप्त हो गई.

‘‘भाभीजी, आप इसे स्वीकार कर लें, वरना इस का दिल टूट जाएगा,’’ इस बार उस के पति ने बात संभाली. मैं ने उस के हाथ से पैकेट ले कर खोला, उस में गुलाबी रंग की कढ़ाई की हुई सफेद साड़ी थी.

‘‘आप घर नहीं आईं, इसलिए हम स्वयं ही देने चले आए. आप इसे पहनेंगी न?’’ ‘‘हांहां, जरूर पहनूंगी, मगर इस की कीमत कितनी है?’’

‘‘वह तो हम ने लगाई ही नहीं, आप पहन लेंगी तो कीमत अपनेआप मिल जाएगी.’’ ‘‘नहींनहीं, भला ऐसा कैसे होगा,’’ फिर मेरा स्वर कड़वा होने लगा था. मैं कुछ और भी कहती, इस से पहले मेरे पति ने ही वह साड़ी ले कर मेज पर रख दी, ‘‘हमें यह साड़ी पसंद है, शालिनी इसे अवश्य पहनेगी. और गुलाबी रंग तो इसे बहुत प्रिय है.’’

आगे पढ़ें- मैं निरुत्तर हो गई. परंतु मन में दबा…

Serial Story: लाइफ कोच – भाग 2

हंसते वक्त किरण के बायां गाल पर पड़़ते गड्ढे देख नकुल दीवाना हो जाता था.

सिर्फ यही नहीं, किरण की हर एक अदा पर नकुल दीवाना हो जाता था.

लेकिन नकुल की कुछ आदतों पर मुंह बना कर किरण कभीकभार उसे ?िड़क भी देती थी, ‘‘शादी हो जाने दो हमारी, फिर देखना कैसे बनती हूं मैं तुम्हारी लाइफ कोच… मैनर्स में रहना सिखाऊंगी मैं तुम्हें.’’

उस की बातों पर हंसते हुए नकुल ने बोला, ‘‘अब इतनी सुंदर ‘लाइफ कोच’ किसे नहीं चाहिए. मेरा तो जीवन ही सफल हो जाएगा.’’

नकुल को अच्छा लगता था किरण का उसे यों रोकनाटोकना या डांट लगाना. उसे लगता किरण उस से बहुत ज्यादा प्यार करती है तभी तो हक से उसे रोकतीटोकती है.

‘‘हां, तुम्हारा जीवन बहुत जल्दी सफल हो जाता है, अब चलो,’’ हंसते हुए नकुल के बगल वाली सीट पर बैठते हुए किरण बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो? क्या तुम्हारे ऊपर मेरा अधिकार नहीं?’’

उस की बात पर नकुल ने उस के गाल पर एक किस करते हुए इस बात की मुहर लगा दी कि बिलकुल उस का अधिकार है.

2 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद अपने मातापिता के आशीर्वाद से दोनों एक हो गए. शादी के बाद उन की जिंदगी ऐसी लगने लगी जैसे सतरंगी आकाश. बस रोमांस ही रोमांस था उन की जिंदगी में और कुछ नहीं.

शादी के 1 साल बाद ही पीहू ने उन की जिंदगी में आ कर और रोशनी बिखेर दी. पीहू को कुछ महीने तक तो उस की नानीदादी ने संभाला. पर अब उन के लिए भी यहां रहना संभव नहीं था. इसलिए किरण ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया ताकि पीहू को एक अच्छी परवरिश दे सके. सोचा, जब पीहू थोड़ी बड़ी हो जाएगी तब वह फिर से जौब करने लगेगी.

लेकिन ऐसा हो नहीं पाया, क्योंकि पीहू हमेशा बीमार रहने लगी थी. वह जन्म से ही कमजोर बच्ची थी और डाक्टर का कहना था कि उसे चौबीसों घंटे एक आदमी की जरूरत है जो उस की अच्छी तरह देखभाल कर सके और मां से बेहतर एक बच्चे की देखभाल तो कोई कर ही नहीं सकता, इसलिए किरण ने जौब न करने का फैसला ले लिया. धीरेधीरे पीहू तंदुरुस्त होने लगी. लेकिन फिर किरण का जौब करने का मन ही नहीं हुआ, क्योंकि अब वह अपना पूरा वक्त अपने घरपरिवार पर देना चाहती थी.

नकुल औफिस के साथ बाहर का भी काम संभालता और किरण घर के साथ अपनी बेटी पीहू का भी ध्यान रखती. सबकुछ व्यवस्थित चल रहा था जिंदगी में. वैसे तो किरण की शुरू से ही आदत थी हर बात पर टोकाटाकी करने की जिसे नकुल बुरा भी नहीं मानता था. लेकिन पीहू के जन्म के बाद से ये सब कुछ ज्यादा ही होने लगा था. किरण का दूसरा ही रूप नकुल के सामने आने लगा था. बातबात पर वह उसे झड़प देती. लोगों के सामने ही उसे अपमानित करने लगती. उस के लाए सामान में मीनमेख निकालती और गुस्सा तेज होता तो सामान उठा कर फेंकने लगती थी.

इस पर भी नकुल उस की बातों का बुरा नहीं मानता था. सोचता जब शांत होगी तब खुदबखुद अपनी गलती का एहसास हो जाएगा. लेकिन नकुल गलत था, क्योंकि किरण को कभी अपनी गलती का एहसास हुआ ही नहीं. उसे तो यही लगता वह सही है और बाकी सब गलत.

दिनबदिन किरण का व्यवहार अपने पति और बेटी के प्रति सख्त होता जा रहा था. किसी न किसी बात को ले कर वह घर में हंगामा खड़ा कर देती और फिर बिना गलती के ही नकुल को सौरी बोलना पड़ता ताकि घर में शांति बनी रहे.

नकुल को घर में चप्पलें पहन कर चलना बिलकुल भी पसंद नहीं था. लेकिन उसे पहननी पड़ती थीं, क्योंकि किरण ऐसा चाहती थी. खाना खाने के समय मुंह से आवाज न करना, औफिस से आते ही अपने जूतेकपड़े सही जगह रखना, लोगों के सामने उतना ही बोलना, जितना किरण आंखों से इशारा करे, घर में दोस्तरिश्तेदारों को बुलाने से पहले किरण की अनुमति लेना, ये सारे रूल्स उस ने बना रखे थे जिन्हें नकुल को फौलो करना ही पड़ता था. किरण सफाई के मामले में कुछ ज्यादा ही सनकी थी. कोई गंदे पैर बिस्तर पर नहीं चढ़ सकता था. अगर कभी किसी ने ऐसी गलती कर दी तो समझ लो उस की खैर नहीं.

औफिस से आते हुए जब नकुल किरण को किचन में काम करते

देखता, तो रोमांटिक होते हुए उसे पीछे से पकड़ लेता था. तब किरण कैसे उसे धकेल देती और कहती, ‘‘उफ, दूर हटो… पहले बाथरूम से फ्रैश हो कर आओ, तब तक मैं खाना लगाती हूं.’’

उस के ऐसे व्यवहार से नकुल के रोमांटिक मूड की ऐसी की तैसी हो जाती थी. फिर उस का मन ही नहीं करता किरण के करीब जाने का. कभी बाथरूम में भीगे तौलिए को ले कर, तो कभी अपना सामान सही जगह न रखने को ले कर, तो कभी बाजार से सामान लाने को ले कर किरण उसे सुनाती ही रहती थी. यहां तक कि नकुल के बढ़ते वजन पर उसे एतराज होने लगा था. नकुल को हाई बीपी की शिकायत थी इसलिए किरण अपने हिसाब से उस के लिए डाइट फूड तैयार करती थी कम तेलमसाला वाला.

नकुल को ‘ग्रीन टी’ पीना जरा भी पसंद नहीं था. लेकिन उसे पीनी पड़ती थी क्योंकि किरण ऐसा चाहती थी. हर दूसरेतीसरे दिन नौनवैज खाने वाले नकुल की उस पर भी पाबंदी लगा दी गई. अब उबला मटनचिकन और अंडे कैसे कोई खा सकता है भला? इसलिए नकुल ने नौनवैज खाना ही छोड़ दिया. वह सबकुछ इसलिए कर रहा था ताकि किरण खुश रहे. लेकिन फिर भी किरण को उस से कोईनकोई शिकायत लगी ही रहती थी. बिंदास किस्म का इंसान था नकुल, किरण के ऐसे व्यवहार से वह दुखी रहने लगा था.

किरण के तानाशाह व्यवहार के कारण जब नकुल को अपना घर ही जेल लगने लगता, तो वह कहीं बाहर निकल जाता. खीज उत्पन्न होती यह सोच कर कि वह किरण के हाथों की कठपुतली बन कर रह गया है. सिर्फ वही नहीं, बल्कि 11 साल की पीहू भी हमेशा अपनी मां से डरीसहमी रहती थी. वह कितनी देर टीवी या मोबाइल देख सकती है, वह अपने दोस्तों के साथ खेल सकती है या नहीं और कौनकौन उस के दोस्त बनने के लायक हैं, ये सब किरण ही तय करती थी.

अगर कभी पीहू से कोई गलती हो जाती, तो किरण उसे सजा देती. उस का मानना था कि ऐसे में बच्चे दोबारा गलती नहीं करेंगे. गलती करने पर बच्चों को सजा देना जरूरी है वरना वे बिगड़ जाएंगे. एकदम कड़े अनुशासन में किरण उसे रखती थी. लेकिन किरण को यह नहीं पता कि उस के ऐसे व्यवहार से मासूम पीहू के दिलोदिमाग पर क्या असर पड़ रहा है. रिसर्च भी कहती है कि बच्चों पर ज्यादा सख्ती से उन के मस्तिष्क की संरचना बदल जाती है. हरदम खिलखिलाने वाली पीहू इसीलिए तो बहुत गुमसुम सी रहने लगी थी.

आगे पढ़ें- नकुल के घर से निकलतेनिकलते भी…

 

Valentine’s Day: नया सवेरा- भाग 2

पिछला भाग- Valentine’s Day: नया सवेरा (भाग-1)

छोटी मां को कभी मैं ने पापा की कमाई पर ऐशोआराम करते नहीं देखा. वे तो घर से बाहर भी नहीं जाती थीं. चुपचाप अपने कमरे में रहतीं. धीरेधीरे मेरी उन के प्रति नफरत कम होती गई, लेकिन अभी भी मैं उन को मां मानने को तैयार नहीं थी. कभीकभी दिल जरूर करता कि मैं उन से पूछूं कि क्यों उन्होंने मेरे उम्रदराज पापा से शादी की जबकि उन्हें तो कोई भी मिल सकता था. आखिर इतनी खूबसूरत थीं और इतनी जवान. लेकिन हमारे बीच बहुत दूरी बन गई थी जिसे न मैं ने कभी दूर करना चाहा, न उन्होंने. ऐसा लगता था मानो घर के अलगअलग 2 कमरों में 2 जिंदा लाशें हों.

घड़ी की घंटी ने सुबह के 3 बजाए. मैं कमरे से बाहर गई और फ्रिज से पानी निकाल कर पिया. तभी मेरी नजर छोटी मां पर पड़ी जो बाहर बालकनी में बैठी थीं और बाहर की तरफ एकटक देख कर कुछ सोच रही थीं.

मु झे अनायास ही हंसी आ गई. मु झे दया आ रही थी इस बंगले पर जहां की महंगी दीवारों और महंगे कालीनों ने महंगे आंसुओं का मोल नहीं सम झा. मैं अपने कमरे में रो रही थी और छोटी मां इसी अवस्था में सुबह के 3 बजे बालकनी में बैठी हैं. खैर, मैं अपने कमरे में जाने के लिए जैसे ही मुड़ी, आज मेरे दिल ने मु झे रोक लिया.

दिमाग ने फिर उसे जकड़ा, कहा कि तु झे क्या मतलब है. यहां सब अपनी जिंदगियां जी रहे हैं. तू भी जी. क्या तु झे तेरी छोटी मां ने कभी कुछ कहा? जब तू उदास थी तब कभी तु झ से उदासी का कारण पूछा? जब कभी तू परेशान थी, कभी तेरे पास आ कर बैठीं वो? यह तो छोड़, कभी तु झ से कुछ बात भी करने की कोशिश की इन्होंने? तेरी जिंदगी में कभी कोई दिलचस्पी दिखाई इन्होंने? नहीं न, फिर तू किस बात की सहानुभूति दिखाना चाहती है? तो सब जैसा सब चल रहा है सदियों से इस घर में, वैसा ही चलने दे. अब और कुछ नए रिश्ते न बना. लेकिन पता नहीं क्या हुआ, आज तो मेरा मन मेरे दिमाग से हारने वाला नहीं था.

कदम वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ ही नहीं रहे थे. मैं ने एक नजर फिर छोटी मां पर डाली. उन के गालों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था. न जाने मु झे उस वक्त क्या हुआ, मेरे कदम उन की तरफ बढ़ने लगे. मैं उन के पास जा कर खड़ी हो गई.

मैं ने उन से पूछा, ‘‘आप ठीक तो हैं न? इस वक्त अकेले में यहां?’’ छोटी मां ने आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘मैं तो अकसर यहां बैठ कर खुद से बात कर लेती हूं

प्रीति, और अकेले रहना तो इस घर की नियति ही है. तुम भी तो अकेली ही रहती हो. हां, आज बात कुछ और है. प्रीति, कल रात 11 बजे मेरे पिता चल बसे.’’ यह कह कर छोटी मां चुप हो गईं. मु झे सम झ में नहीं आ रहा था मैं क्या कहूं. मैं ने पहली बार ठीक से उन से बात की थी. मैं तो शायद दूसरों से बात करना, उन्हें सांत्वना देना भी भूल गई थी.

मैं कुछ देर चुप रही. फिर छोटी मां ने खुद कहा, ‘‘मेरे पापा बहुत शराब पीते थे. हम 3 बहनें ही थीं. उन्हें बेटा नहीं था. वे कुछ कमाते भी नहीं थे. हमारी मां थोड़ाबहुत जो कमातीं उसी से गुजर चलता था. मां ने उस हालत में भी मेरी बड़ी 2 बहनों को तो पढ़ाया. परंतु जब मेरा स्कूल में दाखिले का समय आया तो वे किसी अनजान बीमारी से ग्रसित हो गईं. हालांकि, मैं 6 वर्ष की थी, मां मु झे बस थोड़ीथोड़ी याद हैं. हां, एक बार पापा ने मां को बहुत मारा था. मैं उस वक्त बहुत डर गई थी.

‘‘मां की मृत्यु के बाद मेरी बड़ी बहनों ने घर की जिम्मेदारी ले ली. वे खुद भी पढ़तीं और मु झे भी पढ़ातीं. मैं स्कूल नहीं जाती थी. उतना पैसा नहीं था हमारे पास. मेरी बहनें मु झे घर पर ही पढ़ातीं. मैं ने पढ़ाई काफी देर से शुरू की थी, परिणामस्वरूप 20 वर्ष की आयु में मैं ने मैट्रिक की परीक्षा ओपन स्कूल से दी. मैं पास तो हो गई, लेकिन अच्छे अंक नहीं आए. फिर घर का खर्चा भी चलाना मुश्किल होता जा रहा था. दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी. पापा तो पहले की तरह शराब के नशे में ही डूबे रहते.

‘‘कभीकभी सोचती हूं कि यदि दादाजी ने अपना घर नहीं बनाया होता, तब हमारा क्या होता. कम से कम सिर छिपाने की जगह तो थी. खैर, यही सब देखते हुए मैं ने अस्पताल में नौकरी करने की सोची. तनख्वाह बहुत कम थी, परंतु दालरोटी का खर्च निकल ही आता था. अस्पताल में मु झ पर बुरी नजर डालने वाले बहुत थे. कभीकभी खूबसूरती भी औरत की दुश्मन बन जाती है.

‘‘एक दिन तुम्हारे पिता किसी काम से अस्पताल आए. उन्होंने मु झे वहां देखा. मेरे बारे में पूछताछ की. मेरे घर का पता लिया और मेरे पापा से मिले. औरों की तरह उन्हें भी मेरी खूबसूरती भा गई और गरीब की खूबसूरती को खरीदना अमीरों के लिए शायद ही कभी मुश्किल रहा हो. उन्होंने मेरे पिता के सम्मुख शादी का प्रस्ताव रखा.

‘‘मेरे पिता तो जैसे खुशी से फूले नहीं समाए. 20 साल की बेटी को 42 साल के उम्रदराज से ब्याहने में उन्हें जरा सी भी तकलीफ नहीं हुई, बल्कि उन की खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं थी. उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उन की बेटी शहर के जानेमाने रईसजादे के साथ ब्याही जाएगी. पैसों में बहुत बल होता है. बहुत बुरा लगा मु झे. मेरी राय तो कभी ली ही नहीं गई. पापा किस अधिकार से मेरी जिंदगी का निर्णय कर सकते थे? कभी बाप होने का कोई फर्ज निभाया था उन्होंने? मैं बहुत रोई, चिल्लाई लेकिन मेरी कौन सुनने वाला था. मैं ने अपनी बहनों को यह बात कही, परंतु वे भी अपनी घरगृहस्थी के  झमेलों में इस तरह लिप्त थीं कि ज्यादा कुछ कर न सकीं. वे खुद भी इस स्थिति में नहीं थीं कि मेरी कोई सहायता कर सकें.

‘‘परंतु मेरा मन नहीं माना. मैं ने सोच लिया कि कुछ भी हो जाए, मैं यह शादी नहीं करूंगी. लेकिन, तभी मेरी बड़ी बहन के साथ एक दुर्घटना हो गई. वे बस से कहीं जा रही थीं और वह बस खाई में गिर गई. वे बच तो गईं लेकिन इलाज में बहुत पैसा लगता. तब मैं ने ठंडे मन से सोचा. बहन को बचाना जरूरी था. आखिर उन्होंने मां की तरह पाला था मु झे. पैसों की ताकत को मैं ने उस वक्त पहचाना. मैं ने चुपचाप तुम्हारे पापा से शादी करने का मन बना लिया. मु झे पता चला कि उन की एक 12 वर्ष की बेटी भी है परंतु फिर भी मैं ने सिर्फ अपनी बड़ी बहन को बचाने की खातिर यह सब किया.

आगे पढ़ें  तुम्हारे पिता ने हमारी आर्थिक रूप से बहुत मदद की…

Serial Story: कोई अपना – भाग 1

स्थानांतरण के बाद जब हम नई जगह आए तो पिछली भूलीभटकी कई बातें अकसर याद आतीं. कुछ दिन तो नए घर में व्यवस्थित होने में ही लग गए और कुछ दिन पड़ोसियों से जानपहचान करने में. धीरेधीरे कई नए चेहरे सामने चले आए, जिन से हमें एक नया संबंध स्थापित करना था. मेरे पति बैंक में प्रबंधक हैं, जिस वजह से उन का पाला अधिकतर व्यापारियों से ही पड़ता. अभी महीना भर ही हुआ था कि एक शाम हमारे

घर में एक युवा दंपती आए और इतने स्नेह से मिले, मानो बहुत पुरानी जानपहचान हो. ‘‘नई जगह पर दिल लग गया न, भाभीजी? हम ने तो कई बार सुनीलजी से कहा कि आप को ले कर हमारे घर आएं. आप आइए न कभी, हमारे साथ भी थोड़ा सा समय गुजारिए.’’ युवती की आवाज में बेहद मिठास थी, जो कि मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही थी. इतने प्यार से ‘भाभीभाभी’ की रट तो कभी मेरे देवर ने भी नहीं लगाई थी.

मेरे पति अभी बैंक से आए नहीं थे, सो मुझे ही औपचारिकता निभानी पड़ रही थी. नई जगह थी, सो, सतर्कता भी आवश्यक थी. शायद? उन्होंने मेरे चेहरे की असमंजसता पढ़ ली थी. युवक बोला, ‘‘मुझे सुनीलजी से कुछ विचारविमर्श करना था. बैंक में तो समय नहीं होता न उन के पास, इसलिए सोचा, घर पर ही क्यों न मिल लें. इसी बहाने आप के दर्शन भी हो जाएंगे.’’

‘‘ओह,’’ उन का आशय समझते ही मेरे चेहरे पर अनायास ही एक बनावटी मुसकान चली आई. शीतल पेय लेने जब मैं भीतर जाने लगी तो वह युवती भी साथ ही चली आई, ‘‘मैं आप की मदद करूं?’’

मेरे चेहरे पर खीझ उभर आई कि अपना काम हो तो लोग किस सीमा तक झुक जाते हैं.

लगभग 4 साल पहले जब नएनए लुधियाना गए थे, तब भी ऐसा ही हुआ था. मधु कैसे घुसी चली आई थी हमारी जिंदगी में. दोनों पतिपत्नी कितने प्यार से मिले थे. मधु के पति केशव ने कहा था, ‘भाभीजी, आप आइए न हमारे घर. मधु आप से मिल कर बहुत खुश होगी.’ ‘जी, जरूर आएंगे,’ मैं कितनी खुश हुई थी, कोई अपना सा लगने वाला जो मिला था. परिवार सहित पहले वे लोग हमारे घर आए और उस के बाद हम उन के घर गए. मधु मुझ से जल्दी ही घुलमिल गई थी जैसे पुरानी दोस्ती हो.

‘ये साहब आप को कैसे जानते हैं?’ मैं ने पति से पूछा. ‘हमारे बैंक की ही एक पार्टी है. अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए बेचारा दौड़धूप कर रहा है. बड़ी फैक्टरी खोलने का विचार है,’ पति ने लापरवाही से टाल दिया था, मानो उन्हें मेरा प्रश्न बेतुका सा लगा हो.

एक दिन मधु ऊन लाई और जिद करने लगी कि मैं उस के बेटे का स्वेटर बुन दूं. काफी मेहनत के बाद मैं ने रंगबिरंगा स्वेटर बुना था. उसे देख कर मधु बहुत खुश हुई थी, ‘भाभी, बहुत सफाई है आप के हाथ में. अब एक स्वेटर अपने देवर का भी बुन देना. ये कह रहे थे, इतना अच्छा स्वेटर तो उन्होंने आज तक नहीं देखा.’

‘मुझे समय नहीं मिलेगा,’ मैं ने टालना चाहा तो वह झट बोल पड़ी, ‘अपना भाई कहेगा तो क्या उसे भी इसी तरह इनकार कर देंगी?’ मधु के स्वर का अपनापन मुझे भीतर तक पुलकित कर गया था.

वह आगे बोली, ‘माना कि हम में खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी आप को अपनों से कम तो नहीं जाना. मुझे ऊन से एलर्जी है, तभी तो आप से कह रही हूं.’ आखिर मुझे उस की बात माननी पड़ी. लेकिन मेरे पति ने मुझे डांट दिया था, ‘यह क्या समाजसेवा का काम शुरू कर दिया है? उसे ऊन से एलर्जी है तो पैसे दे कर कहीं से भी बनवा लें. तुम अपनी जान क्यों जला रही हो?’

‘वे लोग हम से कितना प्यार करते हैं, और कुछ बना दिया तो क्या हुआ.’ मेरे पति खीझ कर चुप रह गए थे.

हमारा आनाजाना लगा रहता और हर बार वे लोग ढेर सारा प्यार जताते. धीरेधीरे उन का आना कम होने लगा. 2 महीनों की छुट्टियों में हम अपने घर गए थे. जब वापस आए, तब भी वे हम से मिलने नहीं आए.

एक दिन मैं ने पति से कहा, ‘मधु नहीं आई हम से मिलने, वे लोग कहीं बाहर गए हुए हैं?’ ‘पता नहीं,’ पति ने लापरवाही से उत्तर दिया.

‘क्या, केशव भाईसाहब आप से नहीं मिले?’ ‘कल उस का भाई बैंक में आया था.’

‘तो आप ने उन का हालचाल नहीं पूछा क्या?’ ‘नहीं. इतना समय नहीं होता, जो हर आनेजाने वाले के परिवार का हालचाल पूछता रहूं.’

‘कैसी रूखी बातें कर रहे हैं.’ किसी तरह पति मुझे टाल कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए और मैं यही सोचने लगी कि आखिर मधु आई क्यों नहीं?

15-20 दिनों बाद बच्चों के स्कूल में ‘पेरैंट्स मीटिंग’ थी. मधु का घर रास्ते में ही पड़ता था. अत: सो, वापसी पर मैं उस के घर चली गई. ‘ओह, आप,’ मधु का स्वर ठंडा सा था, मानो उसे मुझ से मिलना अच्छा न लगा हो. जब भीतर आई तो उस की सखियों से मुलाकात हुई. उस ने उन से मेरा परिचय कराया, ‘इन से मिलो, ये हैं मेरी रेखा और निशी भाभी, और आप हैं शालिनी भाभी.’

थोड़ी देर बाद 15-20 वर्ष का लड़का मेरे सामने शीतल पेय रख गया. सोफे पर 4-5 सूट बिछाए, वह अपनी सखियों में ही व्यस्त रही. वे तीनों महंगे सूटों और गहनों के बारे में ही बातचीत करती रहीं. मैं एक तरफ अवांछित सी बैठी, चुपचाप अपनी अवहेलना और उन की गपशप सुनती व महसूस करती रही. शीतल पेय के घूंट गले में अटक रहे थे. कितने स्नेह से मैं उस से मिलने गई थी बेगाना सा व्यवहार, आखिर क्यों?

‘अच्छा, मैं चलूं,’ मैं उठ खड़ी हुई तो वहीं बैठेबैठे उस ने हाथ हिला दिया, ‘माफ करना शालिनी भाभी, मैं नीचे तक नहीं आ पाऊंगी.’ ‘कोई बात नहीं,’ कहती हुई मैं चली आई थी.

मैं मधु के व्यवहार पर हैरान रह गई थी कि कहां इतना अपनापन और कहां इतनी दूरी.

दिनभर बेहद उदास रही. रात को पति से बात की तो उन्होंने बताया, ‘उन्हें बैंक से 2 करोड़ रुपए का कर्ज मिल गया है. नई फैक्टरी का काम जोरों से चल रहा है. भई, मैं तो पहले ही जानता था, उन्हें अपना काम कराना था, इसलिए चापलूसी करते आगेपीछे घूम रहे थे. लेकिन तुम तो उन से भावनात्मक रिश्ता बांध बैठीं.’ ‘लेकिन,’ अनायास मैं रो पड़ी, क्योंकि छली जो गई थी, किसी ने मेरे स्नेह को छला था.

‘कई लोग अधिकारी के घर तक में घुस जाते हैं, जबकि काम तो अपनी गति से अपने समय पर ही होता है. कुछ लोग सोचते हैं, अधिकारी से अच्छे संबंध हों तो काम जल्दी होता है और केशव उन्हीं लोगों में से एक है,’ पति ने निष्कर्ष निकाला था. उस के बाद वे लोग हम से कभी नहीं मिले. मधु का वह दोगला व्यवहार मन में कांटे की तरह चुभता है. कोई ज्यादा झुक कर ‘भाभीजी, भाभीजी’ कहता है तो स्वार्थ की बू आने लगती है.

इसी कारण मैं ने उस युवती को टाल दिया. फिर शीतल पेय उन के सामने रख, पंखा तेज कर दिया क्योंकि गरमी बहुत ज्यादा थी. वे दोनों बारबार पसीना पोंछ रहे थे.

आगे पढ़ें- चंद क्षणों के बाद उस युवक ने पूछा…

Women’s Day 2023: मां का घर- भाग 1

पूजा तेजी से सीढि़यां चढ़ कर लगभग हांफती हुई सुप्रिया के घर की कालबेल दबाने लगी. दोपहर का समय था, उस पर चिलचिलाती धूप. वह जब घर से निकली थी तो बादल घिर आए थे. सुप्रिया ने दरवाजा खोला तो पूजा हांफती हुई अंदर आ कर सोफे पर पसर गई. आने से पहले पूजा ने सुप्रिया को बता दिया था कि वह मां को ले कर बहुत चिंतित है. कल शाम से वह फोन कर रही है, पर मां का मोबाइल स्विच औफ जा रहा है और घर का नंबर बस बजता ही जा रहा है.

सुप्रिया ने फौरन उस के सामने ठंडे पानी का गिलास रखा तो पूजा एक सांस में उसे गटक गई. फिर रुक कर बोली, ‘‘सुप्रिया, मैं ने धीरा आंटी को कल रात फोन किया था और सुबह वे मां के घर गई थीं. वे कह रही थीं कि वहां ताला लगा हुआ है. अब क्या करूं? कहां ढूंढूं उन्हें?’’ रोंआसी पूजा के पास जा कर सुप्रिया बैठ गई और उस के कंधे पर हाथ रख धीरे से पूछा, ‘‘तेरी कब बात हुई थी उन से?’’

‘‘एक सप्ताह पहले, मेरे जन्मदिन के दिन. मां ने सुबहसुबह फोन कर के मुझे बधाई दी थीं.’’ पूजा रुक कर फिर बोलने लगी, ‘‘मैं चाहती थी कि मां यहां आ कर कुछ दिन मेरे पास रहें. मां ने हंस कर कहा कि तेरी नईनई गृहस्थी है, मैं तुम दोनों के बीच क्या करूंगी? देर तक मैं मनाती रही मां को, उन से कहती रही कि 2 दिन के लिए ही सही, आ जाओ मेरे पास. 5 महीने हो गए उन्हें देखे, होली पर घर गई थी, तभी मिली थी.’’

पूजा ने अपनी आंखों से उमड़ आए आंसुओं को रुमाल से पोंछा. सुप्रिया चुप बैठी रही. कल शाम जब पूजा ने उसे फोन पर बताया था कि उस की मां फोन नहीं उठा रहीं तो वह खुद परेशान हो गई थी. पूजा की शादी के बाद मां मुंबई में अकेली रह गई थीं. सुप्रिया और पूजा मुंबई में एकसाथ स्कूलकालेज में पढ़ी थीं. सुप्रिया उस समय भी पूजा के साथ थी जब उस के पापा का एक्सीडेंट से देहांत हो गया था. उस समय वे दोनों 8वीं में पढ़ती थीं.

पूजा की मां अनुराधा बैंक में काम करती थीं. उन्होंने पूजा की पढ़ाई और परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. पूजा ने स्नातक की पढ़ाई के बाद एमबीए किया और नौकरी करने लगी. 2 साल पहले सुप्रिया शादी कर दिल्ली आ गई. पिछले साल पूजा ने जब उसे बताया कि उस का मंगेतर सुवीर भी दिल्ली में काम करता है, तो सुप्रिया खुशी से उछल गई. कितना मजा आएगा, दोनों सहेलियां एक ही शहर में रहेंगी. पूजा की मां ने बेटी की शादी बहुत धूमधाम से की. हालांकि पूजा और सुवीर लगातार कहते रहे कि बिलकुल सादा समारोह होना चाहिए. पूजा नहीं चाहती थी कि मां अपनी सारी जमापूंजी उस पर खर्च कर दें, लेकिन मां थीं कि बेटी पर सबकुछ लुटाने को आतुर. पूजा के मना करने पर मां ने प्यार से कहा, ‘यही तो मौका है पूजा, मुझे अपने अरमान पूरे कर लेने दे. पता नहीं कल ऐसा मौका आए न आए.’

आज पूजा को न जाने क्यों मां की कही वे बातें याद आ रही हैं. ऐसा क्यों कहा था मां ने? सुप्रिया ने रोती हुई पूजा को ढाढ़स बंधाया और अपना फोन उठा लाई. उस ने मुंबई अपने भाई को फोन लगाया और बोली, ‘‘अजय भैया, आप से एक जरूरी काम है. मेरी सहेली पूजा को तो आप जानते ही हैं. अरे, वही जो कांदिवली में अपने पुराने घर के पास रहती थी? उस की मां अनुराधाजी कल शाम से पता नहीं कहां चली गईं. प्लीज, भैया, पता कर के बताओ तो. वे बोरिवली के कामर्स बैंक में काम करती हैं. मैं उन का पूरा पता आप को एसएमएस कर देती हूं. भैया, जल्द से जल्द बताइए. पूजा बहुत परेशान है, रो रही है. अच्छा, फोन रखती हूं.’’

सुप्रिया ने अजय भैया को बैंक और घर का पता एसएमएस कर दिया और पूजा के पास आ कर बैठ गई.

‘‘पूजा, भैया सब पता कर बताएंगे, तू चिंता मत कर.’’ पूजा ने सिर उठाया, ‘‘पूरे 24 घंटे हो गए हैं, सुप्रिया. धीरा आंटी बता रही थीं कि पिछले 3 दिन से घर बंद है. पड़ोस के फ्लैट में रहने वाली अमीना आंटी ने 4 दिन पहले मां को बाजार में देखा था. इस के बाद से मां की कोई खबर नहीं है. घर के बाहर न अखबार पड़े हैं न दूध की थैली. इस का मतलब है मां बता कर गई हैं अखबार और दूध वाले को.’’

सुप्रिया ने सिर हिलाया और बोली, ‘‘पूजा, हो सकता है मां कहीं जल्दी में निकल गई हों. पिछले दिनों उन्होंने तुम से कुछ कहा क्या? या कोई बात हुई हो?’’ पूजा कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘सुप्रिया, मैं ने अपने जन्मदिन के बारे में तुम को बताया था न कि उस दिन मां ने मुझ से कहा कि वे मुझे जन्मदिन पर कुछ देना चाहती हैं…इस के लिए उन्होंने मेरा बैंक अकाउंट नंबर मांगा था. कल मैं बैंक गई थी. मां ने मेरे नाम 5 लाख रुपए भेजे हैं. यह बात थोड़ी अजीब लगी मुझे, अभीअभी तो मेरी शादी पर इतना खर्च किया था मां ने और…मैं इसी सिलसिले में मां से बात करना चाहती थी तभी तो लगातार फोन पर फोन मिलाती रही, पर…’’

सुप्रिया के चेहरे का भाव बदलने लगा, ‘‘5 लाख रुपए? यह तो बहुत ज्यादा हैं. कहां से आए उन के पास इतने रुपए? अभी तुम्हें देने का क्या मतलब है?’’ पूजा चुप रही. उसे भी अजीब लगा था. मां को इस समय उसे पैसे देने की क्या जरूरत? सुप्रिया दोनों के लिए चाय बना लाई. चाय की चुस्कियों के बीच चुप्पी छाई रही. पूजा पता नहीं क्या सोचने लगी. सुप्रिया को पता था कि पूजा अपनी मां से बेहद जुड़ी हुई है. वह तो चाहती थी कि शादी के बाद मां उस के साथ रहें लेकिन अनुराधाजी इस के खिलाफ थीं. पूजा बड़ी मुश्किल से शादी के लिए राजी हुई थी. उसे हमेशा लगता था कि उस के जाने के बाद मां कैसे जी पाएंगी?

अनुराधा ने उस से बहुत कहा कि 12वीं के बाद वह पढ़ाई करने बाहर जाए, किसी अच्छे कालेज से इंजीनियरिंग या एमबीए करे, लेकिन पूजा मुंबई छोड़ने को तैयार ही नहीं थी. उस ने एक ही रट लगा रखी थी, ‘मैं आप को अकेला नहीं छोड़ सकती. यहीं रहूंगी आप के साथ.’ अनुराधा जब कभी दफ्तर के काम से या अपने किसी रिश्तेदार से मिलने 2 दिन भी शहर से बाहर जातीं, पूजा बेचैन हो जाती. साल में 2 बार अनुराधा अपने किसी गुरु से मिलने जाती थीं. पूजा ने कई बार कहा था कि मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी उन के पास लेकिन मां यह कह कर मना कर देतीं, ‘पूजा, जब मुझे लगेगा कि तुम इस लायक हो गई हो तो मैं खुद तुम्हें ले जाऊंगी.’

आगे पढें- सुप्रिया सोफे पर ढह गई. उस ने आंखें बंद…

Valentine’s Day: नया सवेरा- भाग 1

आज रोहित ने मु झ से वह कह दिया जिसे शायद मैं शायद सुनना भी चाहती थी और शायद नहीं भी. दिल तो कह रहा था कि उसी क्षण उस के साथ हो ले, पर हमेशा की तरह दिमाग ने उसे फिर जकड़ लिया, और हमेशा की तरह दिल हार गया. हालांकि वह उदास हो गया पर उदास होना तो इस दिल की नियति ही थी. जब भी मेरे दिल ने उन्मुक्त आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरना चाही, जब भी मेरे दिल ने गुब्बारे की तरह हलका हो कर बिना कुछ सोचे, बिना कुछ सम झे हवा के वेग के साथ अपने को खुले आसमान में छोड़ना चाहा या जब भी मेरे दिल ने रोहित की बांहों में छिप कर जीभर कर रो लेना चाहा, हर बार इस दिमाग ने मेरे मन की भावनाओं को इतना जकड़ लिया कि मन बेचारा मन मार कर ही रह गया. मैं आखिर ऐसी क्यों हूं? मात्र 23 वर्ष की तो हुई हूं. मेरी उम्र की लड़कियां जिंदगी को कितना खुल कर जीती हैं, उठती लहरों की तरह लापरवाह, सुबह की पहली किरण की तरह उम्मीदों से भरी, पलपल को खुल कर जीती हैं. आखिर यह सब मेरी नियति में क्यों नहीं? परंतु मैं नियति को दोष क्यों दूं?

आखिर किस ने मु झे रोका है? आखिर किस को मेरी चिंता है? पापा, जिन से एक छत के नीचे रहते हुए भी शायद ही कभी मुलाकात होती है, या छोटी मां जिन्होंने न ही मु झे कभी रोका है, न ही कभी किसी बात के लिए टोका है. हम तीनों कहने को तो एक ही घर में रहते थे पर परिवार जैसा कुछ नहीं हमारे बीच, बिलकुल पटरियों की तरह जो एकसाथ रह कर भी कभी नहीं मिलतीं.

अपने कमरे में बैठी मैं आज जब अपने मन के डर को कुरेदना चाहती थी, उस से जीतना चाहती थी, तब अनायास ही मेरी नजर मां की तसवीर पर पड़ी. कितना प्यार करती थीं मु झ से, मेरी पसंद का भोजन बनाने से ले कर मु झे पार्क में ले कर जाना, मेरे साथ खेलना, मु झे पढ़ाना, मानो उन की दुनिया मु झ से शुरू हो कर मु झ पर ही खत्म होती थी. पापा तो हो कर भी कभी नहीं होते थे. मैं ने कई बार मां को पापा के इंतजार में आंसू बहाते देखा. कई बार मैं उन से कहती, ‘मां, आप पापा के लिए क्यों रोती हैं? क्यों हमेशा मेरे जन्मदिन का केक काटने से पहले उन से बारबार घर आने की गुहार लगाती हैं, जबकि पापा कभी नहीं आते और कभी घर आते भी हैं तो अपने कमरे बंद रहते हैं. मां, आप पापा को छोड़ क्यों नहीं देतीं?’

मेरे ऐसा कहने पर मां मु झे प्यार से सम झातीं, ‘बेटी, मैं ने तुम्हारे पिता को अपना सबकुछ माना है. उन की महत्त्वाकांक्षाओं ने उन के रिश्तों की जगह ले ली है. मु झे उस दिन का इंतजार करना है जब उन का यह भ्रम टूटे कि वे अपने पैसों से सबकुछ खरीद सकते हैं. यदि हम लोग उन्हें छोड़ कर चले जाएंगे तो कल जब उन का यह भ्रम टूटेगा, वे अकेले पड़ जाएंगे. तब उन के साथ कौन होगा? और यह मैं नहीं देख सकती. मु झे अपने प्यार और समर्पण पर पूर्ण विश्वास है, वह दिन जरूर आएगा.’

11 वर्ष की आयु में मां की ये दलीलें मु झे बिलकुल सम झ में नहीं आतीं. आज याद करती हूं तो लगता है, इतना प्यार और इतना समर्पण, इतना निश्छल प्रेम और उस प्रेम को पाने के लिए इतना धैर्य, कैसे कर पातीं थीं मां ये सब? और आखिर क्यों करती थीं? क्यों उन्होंने उस इंसान के साथ अपनी जिंदगी खराब कर ली जिस की नजरों में मां की कोई इज्जत नहीं थी. जिस की नजरों में मां के लिए कोई प्यार नहीं था और न ही प्यार था अपनी बेटी के लिए.

वह इंसान तो केवल पैसों की मशीन बन कर रह गया था जिस के भीतर भावनाओं ने शायद पनपना भी बंद कर दिया था. और एक दिन अचानक कार ऐक्सिडैंट में मु झ से वह ममता की निर्मल छाया भी छिन गई. मात्र 12 वर्ष की थी मैं, खूब रोई, चिल्लाई पर मेरी पीड़ा सुनने वाला कौन था. जितनी मु झे पीड़ा थी उतना क्रोध भी था. क्रोध उस पिता पर जिन्होंने मेरी मां को आखिरी बार भी देखना उचित नहीं सम झा. विदेश गए थे वे, जब यह दुर्घटना घटी. मैं ने पापा से रोरो कर जल्दी से जल्दी आने की अपील की परंतु वे मु झे टालते रहे और अंत में नानाजी ने मां की अंत्येष्टि की. याद है मु झे कितना बिलखबिलख कर रोए थे नानाजी.

बारबार अपनी बेटी के मृत शरीर को देख कर माफी मांगते ही रहे कि कैसे उन्होंने अपनी फूल सी कोमल बेटी की शादी इस इंसान के साथ कर दी. उस के बाद नानाजी मु झे अपने साथ ले गए. परंतु कुछ ही वक्त बाद पश्चात्ताप में वे भी इस कदर जले कि यह प्यारभरा साया भी मु झ से छिन गया. तब कहीं जा कर पापा आए और मु झे अपने साथ घर ले गए. मैं अपने पापा से लिपट कर खूब रोई थी. तब पहली बार पापा ने मु झ से कहा था, ‘मां चली गईं तो क्या हुआ? तुम्हारे पापा हैं तुम्हारे पास. सब ठीक हो जाएगा, बेटा. हम जल्दी ही बंगले में शिफ्ट हो रहे हैं. वहां हमारा अपना बागान होगा. तुम वहां खूब खेलना.’

पापा आज पहली बार मु झ से प्यार से बोले थे. मु झे लगा कि शायद मां की तपस्या रंग ला रही है. शायद सच में पापा बदल गए हैं. शायद मां के जाने के बाद उन्हें अपनी गलती महसूस हुई. लेकिन, कुछ ही वक्त के बाद मैं यह सम झ गई कि ऐसा कुछ नहीं था.

पापा जैसे थे वैसे ही हैं. उन्होंने मु झे आश्रय जरूर दिया परंतु कभी मु झे स्नेह नहीं दिया. हमेशा की तरह फिर उन के पास समय नहीं था. धीरेधीरे अकेले रहने की मेरी आदत ही पड़ती गई. घर से स्कूल और स्कूल से घर. पापा शायद ही कभी मेरे स्कूल आए होंगे. न कभी अच्छे अंक लाने से मेरी पीठ थपथपाई गई, न ही कभी बुरे अंक लाने पर डांटा. हां, स्कूल में अन्य बच्चों के मातापिता को देखती तो बहुत तकलीफ होती. मां तो नहीं थीं पर पिता थे मेरे, जो हो कर भी नहीं थे.

कई बार टीचर ने मु झ से कहा, ‘प्रीति, तुम अपने पिता से कहना कि वे पेरैंट्सटीचर मीटिंग में आएं, सभी आते हैं.’ मैं चुप ही रहती. मानो मैं मन से हार चुकी थी. कौन पिता? कैसे पिता? धीरेधीरे ये सब खत्म हो गया. अब कोई मु झ से कुछ नहीं कहता. स्कूल वालों को टाइम पर फीस मिल रही थी और अब मेरे पिता शहर के जानेमाने रईस थे. उन्हें कोई क्या सिखाता. इसी बीच मेरी आया ने मु झे बताया कि पापा फिर शादी करने वाले हैं.

मेरा किशोरमन अपनी मां की जगह किसी और को कैसे दे सकता था. पापा से तो मैं ने कुछ नहीं कहा. परंतु मन ही मन ठान लिया कि वो औरत जो भी हो, पापा की पत्नी तो बन सकती है परंतु मेरी मां नहीं. मैं अपनी मां की जगह किसी और को कभी नहीं दूंगी. पापा ने मां की मृत्यु से 9 महीने बाद ही दूसरी शादी कर ली. वह कौन थी? कैसी थी? न तो मैं जानती थी और न ही जानना चाहती थी. मेरे स्कूल में कई लोग मु झ से पूछते लेकिन मैं चुप रहती. फिर उन्होंने पूछना भी बंद कर दिया. मैं कहीं न कहीं हीनभावना से ग्रस्त रहने लगी. मैं लोगों की भीड़ से बस भाग जाना चाहती थी. अकेलापन ही धीरेधीरे मु झे अपना सा लगने लगा. खैर, पापा ने छोटी मां से मेरा परिचय करवाया. ‘प्रीति, इन से मिलो. इन का नाम आशा है और आज से यही तुम्हारी मां हैं.’ मैं चुप रही. एक नजर भी उठा कर उस आशा को नहीं देखा. मैं अब घर में और कैद रहने लगी. स्कूल से आते ही अपने कमरे में चली जाती. बस, कभीकभार आशा आया से कुछ बात कर लेती. छोटी मां ने कभी मु झ से कुछ बात करने की कोशिश नहीं की. और समय गुजरता गया. पापा अब भी नहीं बदले. कई बार वे छोटी मां पर चिल्लाते. लगता था कि फिर वही सब दोहराया जा रहा है.

आगे पढें  छोटी मां को कभी मैं ने पापा की कमाई पर ऐशोआराम…

Serial Story: लाइफ कोच – भाग 1

आज औफिस का काम जल्दी निबट गया, तो नकुल होटल न जा कर जुहू बीच आ गया. बहुत नाम सुन रखा था उस ने मुंबई जुहू बीच का. यहां आते ही उसे एक अजीब सी शांति महसूस हुई. लोगों की भीड़भाड़ से दूर वह एक तरफ जा कर बैठ गया और आतीजाती लहरों को देखने लगा. कितना सुकून, कितनी शांति मिल रही थी उसे बता नहीं सकता था.

सब से बड़ी बात यह कि यहां उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था और न ही कोई सिर पर सवार रहने वाला. यहां तो बस वह था और उस की तनहाई. उस का मन कर रहा था यहां कुछ दिन और ठहर जाए या पूरी उम्र यहीं गुजार दे तो भी कोई हरज नहीं है. अच्छा ही है न, कम से कम ऐसे इंसान से तो छुटकारा मिल जाएगा जो हरदम उस के पीछे पड़ा रहता है. लेकिन यह संभव कहां था.

खैर, एक गहरी सांस लेते हुए नकुल आतेजाते लोगों को, भेलपूरी, पानीपूरी, सैंडविच का मजा लेते देखने लगा. अच्छा लग रहा था उसे. वहीं उधर एक जोड़ा दीनदुनिया से बेखबर अपने में ही मस्त नारियल पानी का मजा ले रहा था. वे जिस तरह से एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले एक ही स्ट्रो से नारियल पानी शिप कर रहे थे, उस से तो यही लग रहा था दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं. आंखों ही आंखों में दोनों जाने क्या बातें करते और फिर हंस पड़ते थे.

अच्छा है न, लोगों को पता भी नहीं चलता और 2 प्यार करने वाले आंखों ही आंखों में अपनी बातें कह देते हैं. मुसकराते हुए नकुल ने मन ही मन कहा, ‘चेहरा झठ बोल सकता है पर आंखें नहीं. यदि किसी व्यक्ति की बातों का सही और गहराई से अर्थ जानना हो तो उस के चेहरे को विशेष तौर पर आंखों को पढ़ना चाहिए. यदि 2 प्यार करने वाले आपस में एकदूसरे को अच्छी तरह समझते हैं तो उन्हें बोलने की कुछ भी जरूरत नहीं पड़ती.

कवि बिहारी अपनी कविता में ऐसे ही नहीं बोल गए हैं कि कहत, नटत, रीझत, खिजत, मिलत, खिलत, लजियात… भरे मौन में कहत हैं  नैनन ही सौ बात. हम भी तो कभी इसी तरह न्यू कपल थे. हम भी तो कभी इसी तरह एकदूसरे की आंखों को पढ़ा करते थे. लेकिन किरण ने अब मेरी आंखों को पढ़ना छोड़ दिया है, नहीं

तो क्या उसे नहीं पता चलता कि आज भी मैं उस से कितना प्यार करता हूं? सच कहूं तो वह मुझे मेरी पत्नी कम और हिटलर ज्यादा लगती है. डर लगता है मुझे उस से कि जाने कब, किस बात पर उखड़ जाए और फिर मेरा जीना हराम कर दे. छोटीछोटी बातों को बड़ा बना कर इतना ज्यादा बोलने लगती है कि मेरे कान सनसनाने लगते हैं.

नकुल अपनी सोच में डूबा हुआ था, तभी अचानक एक बौल उस से आ टकराई.

‘‘अंकल, प्लीज, थ्रो द बौल,’’ दूर खड़े उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा, तो नकुल ने अपने पैर से उस बौल को ऐसा उछाला कि वह सीधे जा कर उस बच्चे के पास पहुंच गई.

ताली बजाते हुए उस बच्चे ने कहा, ‘‘अंकल यू आर द ग्रेट,’’ सुन कर नकुल हंस पड़ा.

‘‘अंकल, जौइन मी,’’ उस 10 साल के बच्चे ने नकुल की तरफ बौल फेंकते हुए बोला तो नकुल भी जोश में आ गया और उस के साथ खेलने लगा. देखतेदेखते कुछ और लोग भी उन के साथ जुड़ गए और सब ऐसे जोश में खेलने लगे कि पूछो मत.

‘‘अंकल, यू आर सच ए ग्रेट पर्सन,’’ कह कर उस बच्चे ने ताली बजाई तो बाकी लोग भी तालियां बजाने लगे.

अपनी एक छोटी सी जीत पर आज नकुल इसलिए खुशी से झम उठा, क्योंकि

उस की काबिलीयत की तारीफ हो रही थी और यहां कोई यह बोलने वाला नहीं था कि नकुल को यह जीत तो उस की वजह से मिली है. अपने हाथ उठा कर सब को बाय कह कर नकुल आगे बढ़ गया.

‘किसी को शायद नहीं पता, पर कालेज के समय में मैं बढि़या फुटबौल प्लेयर हुआ करता था. अपने कालेज का मैं लीडर था. कालेज के ज्यादातर लड़केलड़कियां मुझ से राय लिया करते थे. पढ़ाई में भी मैं अव्वल था, इसलिए तो कालेज के प्रिंसिपल का भी मैं फैवरिट हुआ करता था. लेकिन समय के साथ सब पर धूल चढ़ गई. आज वही पुराना वाला जोश पा कर बता नहीं सकता कि अपनेआप में मैं कितना स्फूर्ति महसूस कर रहा हूं. लेकिन मैं ये सब कैसे भूल गया कि मैं एक बेहतर खिलाड़ी के साथसाथ एक आजाद सोच वाला इंसान भी हुआ करता था,’ एक गहरी सांस लेते हुए नकुल इधरउधर देखने लगा. लोग जाने लगे, पर वह वहां कुछ देर और ठहरना चाहता था, क्योंकि उसे यहां अपार शांति महसूस हो रही थी.

समुद्र किनारे रेत पर बैठ कर अपनी उंगलियों से आढ़ीतिरछी लकीरें खींचते हुए नकुल सोचने लगा कि पहले उन के बीच कितना प्यार था. दो जिस्म एक जान हुआ करते थे दोनों. लेकिन आज कितना कुछ बदल गया है. आज किरण की नजरों में वह एक बेवकूफ इंसान है. कोई सलीका नहीं है उस में. कोई काम का आदमी नहीं रहा वह. ‘काश, मैं और किरण एक न हुए होते तो आज मैं वह न बन गया होता लोगों की नजरों में, जो मैं हूं ही नहीं,’ मन ही मन बोल नकुल आसमान की तरफ देखने लगा.

किरण और नकुल दोनों एक ही कंपनी में जौब करते थे. जब नकुल ने पहली बार किरण को कंपनी मीटिंग में देखा, तो उसे देखता ही रह गया. गोरी, लंबी कदकाठी, बड़ीबड़ी आंखें, खुले बाल और उस पर उस के बात करने के अंदाज से तो नकुल की आंखें ही चौंधिया गई थीं.

किरण भी नकुल का गठीला बदन, घुंघराले बाल और उस के बात करने के अंदाज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई थी. कुछ ही महीनों में दोनों की मुलाकात बढ़तेबढ़ते ऐसे मुकाम पर पहुंच गई जहां अब एक दिन भी बिना मिले उन्हें चैन नहीं पड़ता था. औफिस के बाद वे घंटों व्हाट्सऐप पर चैटिंग के साथ फोन पर भी बातें करते. साथसाथ घूमनाफिरना, फिल्म देखना, शौपिंग करने जाना और छुट्टियों में किसी हिल स्टेशन पर एकदूसरे में खो जाना उन की आदतें बन चुकी थी. अकसर नकुल किरण को महंगेमहंगे गिफ्ट देता तो किरण भी उस के पसंद का उपहार लाना नहीं भूलती थी.

दीनदुनिया से बेखबर दोनों एकदूसरे की कंपनी खूब ऐंजौय करते थे. ऐसा लगता था कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं और जन्मजन्मांतर तक वे कभी एकदूसरे से अलग नहीं होंगे. दोनों इतने अच्छे और प्यारे जीवनसाथी बनेंगे कि उन का पूरा जीवन खुशनुमा हो जाएगा. किरण बड़े हक से नकुल पर और्डर पर और्डर झड़ती, तो नकुल भी हंसतेहंसते उस के सारे नखरे उठाता था.

‘‘नहीं नकुल, मुझे तो शाहरुख खान की ही फिल्म देखनी है. सोच लो, नहीं तो मैं नहीं जाऊंगी, तुम अकेले ही जाओ फिल्म देखने,’’ नाक सिकोड़ते किरण बोली.

‘‘अरे यार, तुम लड़कियां भी न… फिल्म अच्छी हो या बुरी पर देखने जाना ही है, क्योंकि उस में शाहरुख खान जो है. देखो मेरी तरफ, क्या मैं शाहरुख खान से कोई कम हूं मेरी क… क… किरण…’’ बोल कर नकुल जोर से हंसने लगा था.

उस के डायलौग पर किरण भी खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘बस… बस… बस… तुम से नहीं हो पाएगा मेरे शाहरुख… तुम तो रहने ही दो,’’

इस पर किरण को बांहों में भरते हुए नकुल बोला था कि कोई बात नहीं जो उस ने डायलौग कैसा भी मारा हो, पर किरण के लिए उस का प्यार तो सच्चा है न.

‘‘हूं… बात में दम है बौस,’’ कह कर किरण ने उस के सीने पर प्यार का एक घूंसा बरसाया.

नकुल ने खींच कर उसे अपनी मजबूत बांहों में भरते हुए चूम लिया.

सिनेमाहौल से बाहर निकलते हुए नकुल ने मुंह बनाते हुए कहा था, ‘‘मुझे फिल्म जरा भी पसंद नहीं आई.

‘‘वह तो मुझे भी नहीं आई, पर उस में शाहरुख खान तो था न,’’ बोल कर जब किरण हंसी तो नकुल उसे देखते रह गया.

आगे पढ़ें- हंसते वक्त किरण के बायां गाल पर…

मैं जहां हूं वहीं अच्छा हूं

Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के- भाग 4

लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

  अब तक आप ने पढ़ा:

तान्या अपनी मम्मी के साथ नानी के घर रुड़की आई. छुट्टियां खत्म होने के बाद वे वापस जाने के लिए एअरपोर्ट गए. जिस फ्लाइट से वे वापस जा रहे थे उस में साथ वाली सीट पर डाक्टर नितिन से तान्या की मुलाकात हुई. वह इंटर्नशिप कर रहा था. बातचीत के दौरान तान्या नितिन की तरफ आकर्षित हो गई. हवाईजहाज से बाहर निकलते ही तान्या की मम्मी को लगातार सूखी खांसी होने लगी. तब डाक्टर नितिन ने उन्हें मास्क पहनने की सलाह दी और सब से अलग बैठने को कहा. फिर तीनों एकसाथ बाहर निकले और नितिन ने तान्या को अपना फोन नंबर दिया.

एअरपोर्ट से बाहर निकलने के बाद तान्या गाड़ी में बैठ चुकी थी. वह कोरोना वायरस के फैलने पर चिंतित थी. घर पहुंचने के बाद उस की सोसाइटी में भी सबकुछ बदलाबदला सा नजर आ रहा था. पड़ोसी दूर से ही हैलोहाय कर रहे थे. पड़ोसी मिलने तक से बच रहे थे. 2-3 दिनों बाद तान्या की मां की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन्हें तेज बुखार था और सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. जांच रिपोर्ट में वे कोरोना पौजिटिव निकलीं. मां को अस्पताल में ऐडमिट कराने के बाद तान्या परेशान थी क्योंकि वहां भी सभी डरे हुए थे और अफरातफरी का माहौल था.

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शामढलते ही नितिन हौस्पिटल की वैन से तान्या से मिलने और अनिला का हालचाल बताने आ गया.

तान्या को पूरा विश्वास था कि नितिन उस से मिलने जरूर आएगा इसलिए आज न जाने क्यों उस ने अपने को कुछ ज्यादा ही आकर्षक बना लिया था. सुंदर तो वह थी ही और बस हलके मेकअप के साथ बालों के स्टाइल ने उसे मोहक बना दिया था.

बैल बजते ही उस ने निंदिया को निर्देश दिए और कहा, ‘‘आने वाला अगर अपना नाम डाक्टर नितिन बताएं तो सीधे ड्राइंग रूम में ला कर बिठा देना और हां उन के हाथ जरूर सैनिटाइज करवा लेना.

निंदिया ने ऐसा ही किया. नितिन को थोड़ा इंतजार करा कर तान्या ने ड्राइंग रूम में प्रवेश करते हुए मुंह से गले की तरफ मास्क सरका  कर पूछा, ‘‘वेलकम डाक्टर मम्मा कैसी हैं?’’

अपने मुंह और नाक पर चढ़ाया मास्क नीचे सरकाते हुए नितिन बोला, ‘‘कोरोना का ही अटैक है उस दिन एअरपोर्ट पर वो जिस फौरेन लेडी के पास बैठी थी मुझे पूरा विश्वास है कि उसी से उन्होंने वायरस कैरी किया है.’’

लेकिन तब से तो 7 दिन हो गए, आज कैसे इस का अटैक हो गया?

तान्या यही तो कठिनाई है कि इस वायरस का अटैक तुरंत नहीं होता है 10 दिन के भीतर यदि शरीर में नहीं मरा तो कभी भी अटैक कर सकता है. इस में हर व्यक्ति का इम्यून सिस्टम बहुत काम करता है. वैसे ट्रीटमैंट शुरू हो गया है और तुम सब की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट भी मैं ने जल्दी मंगवाई है.

‘‘और डाक्टर यदि… तान्या कुछ कहना चाहती थी पर नितिन बोल पड़ा,

‘‘तान्या, तुम मुझे केवल नितिन पुकार सकती हो… डाक्टर तो मैं हौस्पिटल के लिए हूं तुम्हारे लिए नहीं?

‘‘फिर मेरे लिए तुम क्या हो? तान्या ने बेबाकी से पूछा तो नितिन मास्क उतार कर मुसकराते हुए बोला,

‘‘अभी तो केवल मित्र… हो सकता है कि आगे चल कर कुछ हो जाऊं.

‘‘और कुछ न हो पाए तो?

‘‘तब की तब देखी जाएगी पर ये बात तो सच है प्लेन में हुई तुम्हारी दोस्ती ने मेरी राह आसान कर दी. मेरे अरमान तुम्हारे जैसी ही लड़की से शादी करने के थे और तुम्हें देखते ही मन तुम्हें चाहने लगा है.’’

‘‘नितिन, पहले मां का ठीक होना जरूरी है. दूसरे उन्हें मैं अकेला नहीं छोड़ सकती शादी होती भी है तो मैं उन्हें अपने साथ ही रखना चाहूंगी. शादी तभी करूंगी जब मेरा सपना पूरा हो जाएगा.

इसी बीच निंदिया कौफी और स्नेक्स रख गई थी. सैंटर टेबल के इस पार सोफे पर तान्या बैठी थी और दूसरी तरफ नितिन. दोनों के बीच मतलब भर की दूरी थी.

मास्क गले की तरफ सरका कर दोनों चुपचाप कौफी पीते रहे. तान्या ने स्नैक्स की प्लेट नितिन की तरफ बढ़ाते हुए कहा भी, ‘‘कुछ लो न’’ पर नितिन ने मना कर दिया.

कौफी खतम हुई ही थी कि नितिन का फोन बज उठा, कौल रिसीव करते ही वो उठ खड़ा हुआ बोला, ‘‘मुझे वापस हौस्पिटल जाना होगा, एक सीरीयस केस आ गया है, आई हैव टु अटैंड हर.’’

‘‘मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी नितिन’’ तान्या के मुंह से ये शब्द सुन कर नितिन के माथे पर कुछ देर को चिंताएं उभरीं फिर उस ने मास्क लगे ही कहा,

‘‘ओके, तुम्हारे लिए पीपीई किट की व्यवस्था करनी पड़ेगी,’’ जोखिम भी पूरा है… लेकिन चलो चलते हैं. मैं अपनी रिस्क पर तुम्हें साथ ले चलता हूं. मैं तुम्हें, तुम्हारी मम्मी से मिलवा कर उसी वैन से वापस भिजवा दूंगा.

हौस्पिटल की पिकअप वैन को ड्राइव करते हुए हौस्पिटल के वैन ड्राइवर को तान्या के साथ पीछे की सीट पर बैठे नितिन ने कुछ निर्देश दिए. उस ने कुशलता के साथ वैन को हौस्पिटल वाली रोड पर डाल कर स्पीड बढ़ा दी.

रास्ते में तान्या ने पूछा, ‘‘नितिन ये बताओ की यदि मेरी रिपोर्ट भी पौजिटिव आ गई तब क्या करोगे?’’

‘‘तब सब से पहले सारे मरीजों को छोड़ कर हम तुम्हारा इलाज करेंगे.’’

‘‘और तब भी मैं न बच पाई तो?’’

उस के इतना कहते ही नितिन ने उस के होठों पर अपने हाथ रख दिए और बोला, ‘‘अब तुम्हे मेरे लिए जीना है तान्या और मुझे तुम्हारे लिए.’’

ग्लब्स में लगे सैनिटाइजर की हलकी सी महक तान्या की नाक में घुस गई और कोई वक्त होता तो वो सैनिटाइजर की महक बर्दाश्त नहीं कर पाती लेकिन इस समय उसे वो महक अच्छी लगी.

फिर जब नितिन ने अपना एक हाथ उस के एक कंधे के ऊपर से निकाल कर अपनी हथेली उस के दूसरे कंधे पर प्यार से रख दी तो वो उस की तरफ थोड़ी सी सरक आई.

दोनों ने ही मास्क पहन रखे थे और नितिन ने आदतन हैंड ग्लब्स पहने हुए थे. कंधे पर रखा ग्लब्स पहना नितिन का हाथ तान्या को कुछ प्यार भरे मौन संदेश रास्तेभर देता रहा.

हौस्पिटल में अंदर ले जाने से पहले नितिन ने तान्या के लिए पीपीई किट की व्यवस्था कर के उसे सिक्योर किया मां के पास एक घंटा बिता कर तान्या संतुष्ट सी जब घर वापस आ रही थी तो उसे फिर लगा कि उस की धड़कनों में सुर वास्तव में पहले जैसे नहीं रहे, संगीतमय हो गए हैं.

जरा सी मुलाकात में ही उस ने मां को बता दिया था कि वह नितिन से प्यार करने लगी है और मामी को भी फोन पे उस ने बता दिया है कि उस ने लड़का पसंद कर लिया है.

नितिन उस के बाद 2 बार और तान्या से मिलने आ पाया और हर बार तान्या ने चाहा कि वो मास्क और दूरी का डर छोड़ कर नितिन के सीने से चिपक जाए पर ऐसा हो न सका.

नितिन को भी हौस्पिटल में थोड़ी फुरसत मिलती तो वो भी तान्या को फोन लगा लेता और प्यार भरी बातें करता. फिर बताता कि उस की मां अब खतरे से बाहर है.

इस बीच रुड़की से नानी और मामामामी के भी फोन आते रहे और मां के कोरोना संक्रमण से बच कर घर आने की बात सुनी तो सब से पहले नानी का फोन आया.

‘‘तान्या बेटी मन तो कर रहा है कि तुम्हारे पास हम सब पहुंच जाएं पर परिस्थितियां ऐसी हैं कि लौकडाउन में कहीं निकल ही नहीं सकते. तुम अपना ध्यान रखना.’’

जब मां कोरोना महामारी की जंग जीत कर विजयी भाव के साथ घर लौटीं तो तान्या ने उन के कमरे में आराम करने की व्यवस्था कर के उन्हें बेड पर लिटाने के बाद पूछा, ‘‘मम्मा नितिन साथ में नहीं आए.

‘‘हां वो नहीं आ पाया. मुझे घर भेजने की सब व्यवस्था तो उस ने कर दी थी पर चलते समय उस से मुलाकात नहीं हो पाई…

सुनते ही तान्या ने नितिन को फोन मिलाया पर वह स्विच औफ आया. पिछले 4 दिन से यही हो रहा था. 2 बार तो नर्स ने बताया कि मैडम, डाक्टर किसी से नहीं मिल सकते.

मां तो घर आ गई. ट्रेनिंग सैंटर के शीघ्र खुलने की कोई उम्मीद नहीं थी. लौकडाउन के

कारण वो घर से कहीं निकल सकती नहीं थी. नितिन ने फोन उठाना बंद क्यों कर दिया? अस्पताल में ज्यादा बिजी हो गया होगा? केसेज भी तो तेजी से बढ़ रहे हैं. यही सब सोच कर वो अपने को तसल्ली देती रही?

इसी बीच जब नानी का फोन आया तो अपने मन की बात बताते हुए उस ने कहा, नानी आप और मामी अकसर कहते थे कि अब और लंबी मत हो जाना वरना बड़ी मुश्किल से लड़का मिलता है. और जब मैं ने लड़का पसंद कर लिया तो वो फोन नहीं उठा रहा है. नानी मैं क्या करूं?

तू कुछ मत कर, बस उसे भूल जा क्योंकि मेरा अब तक का अनुभव कहता है कि हर डाक्टर चाहता है कि उस का ब्याह डाक्टर लड़की से हो क्योंकि किसी और प्रोफैशन की लड़की से उस का रूटीन मेल नहीं खाता है. फिर तेरे मामीमामा भी यही चाहते हैं कि जब तुझे आर्मी जौइन करनी है तो तू एक सिविल डाक्टर से कैसे तालमेल बैठा पाएगी.

बेचैनी में उस ने मामामामी से अगले दिन बात करी, उन्होंने भी उसे समझया कि हाईट इत्यादि की बात तो ठीक है पर जब तू पायलेट अफसर बन कर मिलिटरी जौइन कर लेगी तब क्या होगा. असल में मिलिटरी पर्सन्स की लिविंग स्टाइल तथा अनुशासन और सिविलियन्स की सोच में बहुत अंतर होता है इसलिए तू नितिन को भूल जा.

पर तान्या ने वास्तव में नितिन को अपना दिल दे दिया था और उस ने अपनी किताब नितिन के सामने खोल दी थी इसलिए वो उसे बंद करने के मूड में नहीं थी बल्कि जब मां के मुंह से भी उस ने शब्द सुने कि बेटे अभी तो तेरी पढ़ाई बाकी है और तेरा सपना भी अधूरा है फिर मामामामी और तेरी नानी भी नहीं चाह रहे हैं तो नितिन की तरफ से तू ध्यान हटा ले.

लेकिन तान्या जिस की धड़कनों के सुर बदलने के बाद इतने मधुर हो चले थे जिन्हें अब वो किसी कीमत पर बदलना नहीं चाहती थी.

उस का किसी काम में मन लगना बंद हो गया वो अपने कमरे में बंद रहने लगी. मामामामी और नानी से उस ने बात करना बंद कर दिया. बस कभीकभी नितिन के नंबर पर फोन लगा लेती. लेकिन उधर से लगातार स्वीच्ड औफ पा कर वो अजीब सी उलझन में घिर जाती.

लौकडाउन का दूसरा दौर भी शुरू हो गया. मां

को घर आए हुए भी 15 दिन हो गए तभी उस के मोबाइल पर एक मैसेज चमका, ‘‘तान्या कैसी हो? आज मैं बेहतर महसूस कर रहा हूं, असल में लोगों की बीमारी दूर करतेकरते मैं खुद संक्रमित हो गया था. किसी से मिल नहीं सकता था मोबाइल भी मुझ से दूर कर दिया गया था आज 15 दिन बाद जब मेरी रिपोर्ट नैगेटिव आई तो तुम्हें मैसेज कर रहा हूं. इस बीच हर पल हर दिन तुम्हें याद करता रहा.’’

तान्या ने जवाब में तुरंत नितिन को मैसेज न कर के कौल लगा दी और कहा, ‘‘जब तुम्हारी रिपोर्ट पौजिटिव आई थी तब तो मां हौस्पिटल में थी उन्हें बता देते तो इतने दिन मैं परेशान हो कर रोती न रहती.’’

इस का मतलब है कि मां ने तुम्हें नहीं बताया? जिस समय मेरी रिपोर्ट आई थी, उस समय तो मैं तुम्हारी मां के पास ही बैठा था क्योंकि वो मेरे ही मोबाइल से रुड़की वाले मामाजी से बातें कर रही थी. और मामाजी को भी उन्होंने ये खबर दे दी थी कि जो डाक्टर उन का इलाज कर रहा था वह खुद संक्रमित हो गया है.

‘‘फिर मेरी रिपोर्ट आने के बाद मुझे वहां से तुरंत हटा कर, अन्य चेकअप के लिए ले जाया गया तब भी मोबाइल उन के पास ही मैं छोड़ गया था.’’

तान्या का माथा ठनका उस ने नितिन से कहा, ‘‘तुम अपना ध्यान रखो मैं कुछ देर में तुम्हें फोन लगाती हूं.’’

ओह, तो इस का अर्थ है कि मम्मी और मामा दोनों जानते थे कि नितिन कोरोना पौजिटिव हो गया है तभी मुझ से ये बात छिपा कर ऐसी बातें की जा रही थीं, ‘‘उसे भूल जाओ’’ मिलिटरी और सिविलयन की लाइफ में बहुत फर्क होता है. लंबे लड़के और मिल जाएंगे.

उसे सब से ज्यादा आश्चर्य हो रहा था कि मां ने उस से यह बात छिपाई. इसलिए वह तेजी से मां के कमरे में गई.

मां स्वस्थ लग रही थी और नौवेल पढ़ने में व्यस्त थी. उन के पास पहुंच कर वह आदेश में बोली, ‘‘मां, मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी.’’

‘‘अरे इतने गुस्से में क्यों है? किस उम्मीद की बात कर रही है मेरी प्यारी बेटी.’’

‘‘यही तुम्हारा बेटी के प्रति प्यार है कि जिस डाक्टर ने तुम्हारी संक्रमण से जान बचाई उस के खुद संक्रमित होने की बात तुम ने मुझ से छिपाई. क्यों मां क्यों.’’

‘‘बेटी तेरे मामा और नानी ने मुझ से ऐसा करने को कहा था.’’

‘‘उन्होंने क्यों मना किया?’’

‘‘क्योंकि तेरी नानी और मामा का सोचना था कि मिलिटरी परिवार में पलीबढ़ी लड़की उसी परिवेश में ही खुश रह सकती है. दूसरे इस उम्र में कोरोना पौजिटिव लड़के से शादी के पक्ष में वे नहीं थे, उन का सोचना था कि इस खतरनाक वायरससे अगर तू भी संक्रमित हो गई तो तेरा भविष्य भी चौपट हो सकता है.’’

‘‘वाह, मम्मी वाह, बड़ा अच्छा तर्क दे कर तुम्हें समझ दिया नानी और मामा ने और तुम समझ भी गईं. लेकिन तुम ने यह नहीं सोचा कि जब तुम इतने खतरनाक वायरस के प्रभाव में आने के बाद भी बच कर आ सकती हो तो डाक्टर क्यों नहीं.’’

मां तुम सब भले ही कुछ भी सोचो पर अब मैं नितिन के साथ ही बिताऊंगी और उस के साथ ही मरूंगी. तुम नानी और मामा को बता देना और कह देना कि तान्या जिन सपनों को देखती है उन्हें पूरा भी करना जानती है. मैं आज से मामा और नानी से कोई बात नहीं करूंगी.

कहती हुई तान्या मां के कमरे से बाहर निकल कर अपने कमरे में आ गई.

उस ने नितिन को फोन लगा दिया, ‘‘बोली आज तुम से एक वादा लेना है.’’

‘‘कैसा वादा?’’ नितिन ने उधर से पूछा.

‘‘यही कि तुम वास्तव में मुझ से ही शादी करोगे न?’’

‘‘हां, तुम्ही से करूंगा’’

‘‘ठीक होने के बाद कोई और पसंद तो नहीं आएगी?’’

‘‘एक डाक्टर के नाते मुझे इतनी फुरसत कहां मिलेगी जो तुम जैसी दूसरी लड़की ढूंढ़ता फिरूं.’’

‘‘तो यह बताओ कि कब तक ठीक हो रहे हो?’’

‘‘ठीक तो हो गया हूं बस तीसरी रिपोर्ट और नैगेटिव आ जाए. पर ऐसी बातें तुम आज क्यों कर रही हो?’’

‘‘क्योंकि मुझे अपने मामामामी, मम्मी और नानी का यह भरम तोड़ना है कि कोरोना संक्रमित हो जाने वाले व्यक्ति से शादी करना एक जवान लड़की के लिए जोखिम भरा है.’’

‘‘ठीक है तान्या, मैं तुम्हारे साथ हूं पर अभी तो शादी और ऐसे सारे फंक्शन बंद हैं. जब सबकुछ ओपन होगा तो सब से पहले हम ही शादी करेंगे.’’

‘‘लौकडाउन खत्म हो गया. नितिन ठीक होकर फिर संक्रमितों की सेवा में जुट गया. अभी तक लगभग रोज ही दोनों की फोन पर बातें होती थीं. अनलौक 1 में दोनों एक पार्क में सारी सावधानियों के साथ मिले. मास्क पहनेपहने ही एकदूसरे को प्यार किया.

अनिला से तान्या केवल काम की ही बातें करतीं. एक दिन मां ने बताया कि बेटी मामा और नानी तुझ से बात करना चाहते हैं. ऐसी भी क्या जिद है क्या तू सदा के लिए उन से रूठी रहेगी.

‘‘मुझे उन से कोई बात नहीं करनी.’’

‘‘नानी से भी नहीं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तू अपना बचपन भूल गई जब नानी की गोद में चढ़ कर बैठ जाती थी और हर जिद पूरी करवा लेती थी.’’

‘‘लेकिन अब मैं बड़ी हो गई हूं, उन की गोद में नहीं बैठ सकती.’’

‘‘ठीक है अब तू बड़ी हो गई है और यह जान ले कि बड़ी होने पर उन्हें फोन करना भी गोद में बैठने के बराबर है. तू बात करेगी तो शायद वो तेरी यह बात भी मान जाएं.’’ देख मैं अपने मोबाइल से उन्हें फोन लगाती हूं तू अपनी बात तो कह के देख, फिर तेरे मामामामी भी कल वापस अपनी ड्यूटी पर जा रहे हैं.

कहतेकहते अनिला ने अपनी मां को फोन मिला दिया और उधर से हैलो की आवाज सुनते ही तान्या को फोन पकड़ा कर बोलीं, ‘‘बेटी, नानी तुझ से बात करना चाह रही हैं.’’अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उस ने नानी से बात करनी शुरू की, ‘‘हां, नानी बोलो क्या कहना चाह रही हो.’’

कुछ नहीं मैं सब कुछ सह सकती हूं पर तेरा रूठना नहीं. पता है तेरी आवाज सुने पूरा 1 महीना हो गया है… मुझ से बता तू क्या चाहती है… तुझे पता है कि तेरी खुशी ही हम सब की खुशी है.

‘‘पर नानी आप सब तो मेरी खुशी मुझ से छीनना चाहते हो.’’

‘‘हां, मन में कुछ नैगेटिव थौट्स आ गए थे… फिर लगा कि मेरा जीवन अब रह ही कितना गया है मैं क्यों अपनी इच्छाएं तुझ पे मढ़ूं इसलिए तू जिसे चाहती है उसी से तेरी शादी होगी. तेरे मामा को भी मैं ने समझ दिया है. वे भी तैयार हो गए हैं. बस सिचुएशन नौर्मल हो जाए तब हम सब का पहला काम तेरी धूमधाम से शादी.’’

ओह नानी, मेरी प्यारी नानी आई लव यू, रीयली आई लव यू कह कर तान्या खुशी और आवेश में मोबाइल चूमने लगी.

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