कब करें सैकंड बेबी प्लानिंग

पेरैंट्स बनने का सपना हर किसी का होता है. जिस के लिए वे काफी ऐक्साइटेड रहते हैं और जैसे ही घर में पहले बच्चे की किलकारियां गूंजती हैं तो मेहमान, फ्रैंड्स यही बोल कर उन्हें और ब्लैस्सिंग्स देते हैं कि जल्द ही दूसरे बच्चे की भी खुशखबरी सुना कर अपनी फैमिली को कंपलीट कर लें, जिस के लिए कुछ पेरैंट्स तो पहले बच्चे के 2 से 3 साल के अंदर ही दूसरा बच्चा प्लान कर लेते हैं, तो कुछ पेरैंट्स सालों तक इस बारे में सोचते ही नहीं है.

वैसे तो दूसरा बच्चा चाहिए या नहीं, यह हर पेरैंट्स की अपनी चौइस पर निर्भर करता है, लेकिन अगर आप के मन में सैकंड बेबी का प्लान है तो ऐसे में सवाल यह है कि दोनों बच्चों के बीच में सही में कितना गैप होना चाहिए, आइए जानते हैं इस बारे में:

पहला बच्चा लेट होने पर चौइस नहीं

आज सब अपना कैरियर बनाने में इतने अधिक बिजी हो गए हैं कि न तो शादी को अधिक प्राथमिकता देते हैं और न ही बच्चों को, जिस कारण एक तो लेट मैरिज करते हैं और दूसरा फिर बच्चे भी लेट होते हैं. ऐसे में अगर आपका पहला बच्चा 32 या फिर 33 साल की उम्र में हो रहा है तो आप के पास सैकंड बच्चे की प्लानिंग के लिए ज्यादा चौइस या फिर सोचने का समय नहीं होता है क्योंकि ज्यादा लेट होने पर शारीरिक चैलेंजेज होने के साथसाथ जरूरी नहीं कि जब आप बच्चा प्लान करें, तब हो ही जाए क्योंकि बढ़ती उम्र में महिलाओं की ओवरीज में अंडे बहुत कम हो जाते हैं, जिस के कारण कंसीव करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इसलिए पहला बच्चा 32 या फिर 33 साल की उम्र में होने पर अगर आप सैकंड बेबी चाहते हैं तो अगले डेढ़दो साल में दूसरे बच्चे की प्लानिंग कर लें ताकि बढ़ती उम्र में कंसीव करने में दिक्कत न है और आप का सैकंड बेबी का सपना भी पूरा हो सके.

तुरंत कंसीव करने पर भी कई शारीरिक चैलेंजेस

कई बार जानकारी के अभाव में या फिर घर वालों के ज्यादा प्रैशर के चक्कर में पेरैंट्स पहले बच्चे के होने के 1 साल के भीतर ही दूसरा बच्चा प्लान कर लेते हैं, जो महिलाओं के लिए किसी बड़े शारीरिक चैलेंज से कम साबित नहीं होता है क्योंकि पहले बच्चे को जन्म देने के कारण उन के शरीर में हीमोग्लोबिन की काफी कमी हो जाती है. ऐसे में अगर वे 1 साल के अंतराल में ही दूसरे बच्चे की प्लानिंग कर लेती हैं, तो न तो शरीर को उस तरह से उबरने का समय मिल पाता है और साथ ही अनेक स्टडीज में यह भी साबित हुआ है कि 1 साल में दोबारा प्रैगनैंट होने वाली महिलाओं में कमियां रहने के कारण ऐसे बच्चों का वजन कम होने के साथसाथ प्रीमैच्योर डिलिवरी का भी डर बना रहता है. इसलिए सैकंड बेबी के लिए तुरंत कंसीव करने की भी भूल न करें.

6-7 साल से ज्यादा का गैप न रखें

सैकंड बेबी चाहिए लेकिन कब चाहिए यह सवाल पेरैंट्स के मन में बना रहता है. ऐसे में कई पेरैंट्स जौब में बिजी रहने के कारण इस बारे में सालोंसाल नहीं सोचते हैं, जो बिलकुल सही नहीं है क्योंकि बढ़ती उम्र में बायोलौजिकल क्लौक जिसे महिलाओं में ओवुलेशन कहते हैं, जो एक समय सीमा तक होता है और अगर 35 के बाद होता भी है तो स्लो होने के साथ एग और स्पर्म की क्वालिटी काफी डाउन हो जाती है. इसलिए जब सैकंड बेबी के बारे में प्लान करें तो बायोलौजिकल क्लौक का ध्यान रखने के साथसाथ दोनों बच्चों में 6-7 साल से ज्यादा का गैप न रखें क्योंकि इस से दोनों बच्चों पर अच्छी तरह ध्यान देने के साथसाथ सिबलिंग्स भी एकदूसरे को अच्छी तरह सम?ा पाते हैं वरना ज्यादा साल का गैप सिबलिंग्स अंडरस्टैंडिंग में प्रौब्लम का कारण बनता है. इसलिए बेहतर है कि समय पर बच्चा होने से आप उस की अपब्रिंगिंग में भी हैल्दी रोल निभा सकें.

3-4 साल का गैप आइडियल

अगर आप के मन में सैकंड बेबी की प्लान में शुरू से ही है तो आप को सैकंड बेबी के लिए

3-4 साल के बीच में ही प्लानिंग कर लेनी चाहिए क्योंकि यही गैप आइडियल होता है. ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि दोनों बच्चों में इतना गैप होने से पहले बच्चे को प्रौपर केयर मिलने के साथसाथ वह थोड़ा सम?ादार हो जाता है, जिस से मां को दूसरे बच्चे को संभालने व उस की केयर करने में आसानी होती है. साथ ही आगे के बारे में भी अच्छी तरह प्लानिंग हो जाती है वरना बच्चों के बीच में ज्यादा गैप किसी भी लिहाज से सही नहीं होता है.

डाक्टर की सलाह जरूर लें

आप जब भी सैकंड बेबी प्लान करने के बारे में सोचें तो उस से कुछ समय पहले इस बारे में डाक्टर की सलाह जरूर लें. अपने और अपने हस्बैंड की मैडिकल कंडीशंस से उन्हें अवगत करवाएं, फर्स्ट प्रैगनैंसी में किस तरह की परेशानियां फेस करनी पड़ीं ताकि समय से पहले आप दोनों के सभी जरूरी टैस्ट्स हो सकें और आप को समय पर सही सलाह मिलने के साथसाथ सैकंड प्रैगनैंसी में किसी भी तरह की कोई दिक्कत न हो.

एकमत होना जरूरी

बहुत सारे मामलों में देखने में आया है कि महिलाएं ही अपने पार्टनर पर सैकंड बेबी का प्रैशर डालती हैं, जिस की वजह से कई बार आपस में तनातनी का माहौल भी पैदा हो जाता है. ऐसे में जरूरी है कि इस मामले में दोनों की एक राय जब तक न बने तब तक जबरदस्ती सैंकंड बेबी की प्लानिंग के बारे में नहीं सोचना चाहिए.

प्रौपर स्पेस

जब घर में सदस्य बढ़ते हैं तो स्पेस की भी ज्यादा जरूरत होती है खासकर के बच्चों को तो ज्यादा स्पेस की जरूरत होती है. इसलिए जब भी सैकंड बेबी के बारे में प्लान करें तो इस बात का ध्यान रखें कि भले ही ज्यादा नहीं, लेकिन घर में बच्चों के खेलने के लिए थोड़ीबहुत स्पेस होनी बहुत जरूरी है.

उम्र का ध्यान रखना

रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जिस तरह से 35 के बाद महिलाओं के एग कम होने के साथसाथ उन की क्वालिटी भी प्रभावित होने लगती है, ठीक उसी तरह पुरुषों के स्पर्म की क्वालिटी भी 35 के बाद लो होने लगती है. ऐसे में अगर आप सैकंड बेबी के बारे में प्लान कर रहे हैं तो दोनों पार्टनर अपनी उम्र का ध्यान जरूर रखें ताकि जब सही समय पर प्लानिंग करें तो गड़बड़ न हो.

मम्मियां: जब रिश्तों में दूरी बढ़ाएं

मां बेटी का रिश्ता बहुत प्यारा रिश्ता है. हर मां दिल से चाहती है कि उस की बेटी अपनी ससुराल में बहुत खुश रहे, इसलिए वह बचपन से ही अच्छे संस्कार देती है परंतु समय के साथ इस सीख में बहुत फर्क आ गया है. आधुनिक परिवेश में विवाह के माने बदल गए हैं. जहां पहले समस्या लड़की के एक नए व अनजाने ससुराल के माहौल को समझने और तालमेल बैठाने में आती थी, वहीं अब लड़केलड़की की आपस में ही बन जाए तो शादी सफल मानी जाती है.

आजकल नई पीढ़ी के पास किताबी ज्ञान और डिगरियां तो बहुत हैं परंतु व्यावहारिक बुद्धि का अभाव है. शादी के बाद पतिपत्नी दोनों को ही काफी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, इस के लिए दोनों का आपसी सहयोग बेहद आवश्यक है, परंतु देखा यह जा रहा है कि लड़कियां पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को भूल कर बातबात पर एकदूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लग जाती हैं.

शादी को सफल बनाने में जहां पतिपत्नी दोनों की समझदारी काम देती है वहीं घर वालों का सकारात्मक रवैया भी काफी मददगार होता है.

मतभेद बढ़ाता है मोबाइल

पतिपत्नी के रिश्ते में फोन के कारण अकसर कड़वाहट आ जाती है. आजकल फोन के माध्यम से लड़की के मायके वाले, दोस्त आदि लगातार संपर्क में रहते हैं. हर समय बेटी का फोन बजता ही रहता.

न्यायाधिकारी मालिनी शुक्ला का कहना है कि आजकल बेटी ससुराल पक्ष की हर छोटीछोटी बात अपनी फ्रैंड या दूसरों से डिस्कस करती है और फिर वे अपनी राय भी थोपते है, अपनी सलाह भी देते हैं कि तुम्हें जरा भी दबने की जरूरत नहीं है. तुम घूमने चली जाया करो.

सारी जिम्मेदारी तुम्हारी थोडे़ ही है आदि भड़काऊ बातें कर के उस के मन में उलटासीधा भरते रहते हैं. इस तरह की बातें पतिपत्नी के बीच में गलतफहमियां पैदा कर के रिश्ते में दरार डाल देती हैं.

हर घर का अपना तरीका होता है, अपना बजट होता है और अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. संपन्न परिवार से आई आरुषि ससुराल मैं कदम रखते ही कभी परदे बदलने की बात करती तो कभी सोफा तो कभी पति से गाड़ी लेने की डिमांड करती. पति अमोल उसे प्यार से समझने का प्रयास करता रहा. लेकिन उस की फ्रैंड्स और रिश्तेदारों का रोज कौल पर कहना. परदे कितने पुराने हैं. सोफा तो जाने किस जमाने में खरीदा गया होगा आदि बातों ने दोनों के प्यारभरे रिश्ते में दरार पैदा कर दी.

झगड़ों के छोटेछोटे कारण

अमोल की अपनी सोच थी कि वह कर्ज ले कर घी पीयो पर विश्वास नहीं करता. वह अपने भविष्य के प्रति जागरूक था. वह अपना फ्लैट खरीदने की योजना के अनुसार बचत कर रहा था. परंतु आरुषि की रोजरोज की अनावश्यक डिमांड्स की वजह से दोनों के रिश्ते बिगड़ गए. आज आरुषि मायके में रह रही है और उस घड़ी को कोस रही है, जब उस ने फुजूल की बातों में आ कर अपने सुखी संसार में आग लगा ली.

डिस्ट्रिक जज रूपा महर्षि कहती हैं कि फोन के कारण दूसरों के अनाधिकृत हस्तक्षेप ने बेटियों के जीवन में कटुता घोल दी है. यह बीमारी अब शहरों से गांवों तक पहुंच चुकी है. घरेलू हिंसा के मुकदमों में सुलहसमझते के प्रयास में झगड़ों के छोटेछोटे कारण सामने आते हैं, जिन की वजह दूसरों का लगातार संपर्क में रहना होता है.

उन का कहना है कि आजकल की वीडियोकौल के कारण घर के हर कोने में मायके वालों की नजर पड़ने लगी है और बेटी को किचन में देखते ही हितैषी बन कर बहन या भाभी कहेगी, ‘‘तुम्हारी सास का मैनेजमैंट बिलकुल अच्छा नहीं है. खुद तो एसी में बैठी गप्पें मार रही हैं, मेरी लाडली बेचारी गरमी में पसीना बहा रही है.’’

‘‘पार्टी में तेरी ननद ने तेरी ड्रैस पहन रखी थी. उस ने पहन कर पुरानी कर दी, अब जब तुम पहनोगी तब सोचेंगे कि तुम ने नीरजा से मांग कर पहनी है.’’

‘‘रोहन तो दिनभर अपनी मां और भाईभाभी के आगेपीछे घूमता रहता है. तुझे प्यार भी करता है कि नहीं?’’

‘‘लवी तुम ने अपना हार सास को क्यों पहनने को दिया?’’

‘‘उन्हें अच्छा लग रहा था. मैं भी तो मम्मीजी का हार पहना था… दीदी बेमतलब की बात मत किया करो,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

इन्हें कौन समझाए

ममतामए मोह से भरे हितचिंतक का दिखावा करने वालों को कौन समझए कि बेटी स्वयं समझदार है. उस के मुंह में भी जबान है. वह खुद मैनेज कर लेगी. हर घर के अपने तौरतरीके होते हैं. वह यदि खुश है, उसे काम ज्यादा करना पड़ रहा है, तो वह ससुराल वालों के दिल में सदा के लिए जगह बना लेगी और इस के लिए उन्हें भी तो तारीफ मिलेगी कि बेटी को कितने अच्छे संस्कार दिए हैं.

उन्नाव निवासी उर्वशी की शादी 6 महीने पहले लखनऊ के सुदेश से खूब धूमधाम से हुई थी, लेकिन कुछ महीनों में ही दोनों का झगड़ा कोर्ट तक पहुंच गया. जब समझते के लिए प्रोबेशन अधिकारी के पास पहुंचा तो काउंसलिंग के दौरान उर्वशी ने बताया कि भाभी ने नया लहंगा खरीदा तो उन के सामने वह नीचा नहीं देखना चाहती थी. उस के चचेरे भाई की शादी थी, तो वह जबरदस्ती नया लहंगा खरीदने के लिए जोर डाल रही थी. सुदेश का कहना था कि शादी वाला लहंगा या दूसरी कोई साड़ी पहन लो, लेकिन लहंगे पर 40-50 हजार रुपए खर्च करना सरासर बेवकूफी है. शादी का लंहगा एक बार ही पहना है इसलिए वही पहन लो.

बस बहस बढ़ती चली गई और वह रूठ कर मायके चली गई. फिर तो वकील जो कहते रहे वही सारे इलजाम लगाए जाते रहे.

कानून का बेजा इस्तेमाल

कानपुर के किदवई नगर की उच्चशिक्षित सोमा की शादी प्रयागराज के दिलीप से हुई. दोनों ने लव मैरिज की थी. घर वाले भी काफी सुलझे हुए थे. दोनों बहुत प्यार से 1 साल तक रहते रहे, फिर दूसरों की बातों में आ कर आपस में झगड़ा शुरू हो गया.

एक दिन किसी बात पर दिलीप ने नाराज पत्नी का हाथ पकड़ लिया. बस घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवा दिया गया. काउंसलिंग के समय सोमा ने बताया कि दिलीप उसे बहुत प्यार करता है. उस ने उसे कभी भी नहीं मारा. सब लोग कहते हैं कि हर समय तुम काम में ही लगी रहती हो. तुम्हें मुझ से बात करने की भी फुरसत नहीं रहती. दिन भर के लिए कामवाली रख लो और आराम से रहो. धीरेधीरे दूसरों की सीख की वजह से घर के काम करने बंद कर दिए और फिर इसी कारण घर में तनाव, अव्यवस्था और झगड़े होने लगे. हंसताखेलता परिवार टूटने की कगार पर पहुंच गया.

‘‘गूंज… गूंज कहां हो? सुबहसुबह फोन पर लग जाती हो. मेरी शर्ट प्रैस नहीं है. बटन भी तुम ने नहीं लगाया,’’ राहुल जोर से चिल्ला रहा था.

गूंज के कुलीग का फोन था. उसे बहुत बेइज्जती महसूस हुई. वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम

से मैं ने कितनी बार कहा है कि जब मैं फोन पर रहूं तो तुम चिल्लाया मत करो, लेकिन तुम भला क्यों मानो.’’

राहुल नाराज हो कर औफिस चला गया. गूंज का मूड खराब था. उधर सास ने नाश्ता बनाया था और राहुल नाराज हो कर गया तो वाजिब था, उन्होंने भी चार बातें सुनाईं उस का मूड दिनभर खराब रहा. औफिस में भी उस का मन नहीं लगा और काम में गलती होने की वजह से बौस की डांट और पड़ गई.

अपनी गलती मानने के बजाय वह सोचती रही कि क्या राहुल अपनी शर्ट प्रैस नहीं कर सकता? अब गूंज हर समय राहुल से अपने काम खुद करने को कहती. राहुल को बिलकुल भी नहीं अच्छा लगता. वह गूंज के रवैए से आहत हो जाता. धीरेधीरे दोनों के रिश्ते में कड़वाहट बढ़ने लगी. आपस की जरा सी नासमझ के कारण रिश्ते में दरार पड़ गई. पति को इतना तो समझना ही चाहिए कि पत्नी फोन पर किसी जरूरी कौल पर ही होगी.

बेटी की हर तकलीफ पर दूसरों का दुखी होना स्वाभाविक और उचित है परंतु ससुराल की छोटीछोटी बातों पर अपनी बेटी का पक्ष लेने पर रिश्तों में कड़वाहट आने में देर नहीं लगती.

एक नई समस्या

एक नई समस्या देखने में आ रही है कि आजकल लड़कियों को घर संभालने की जिम्मेदारी उठाना यह कह कर नहीं सिखाया जाता कि दूसरे घर जाना है. वहां तो काम करना ही होगा, इसलिए अभी आराम करो. जिंदगी भर काम ही करना है.

यही वजह है कि लड़कियां शादी को अपने सपने पूरे करने का साधन मानने लगी हैं. मगर यथार्थ के धरातल पर जब उन के सपने जिम्मेदारियों के नीचे धराशायी हो जाते हैं तो वैवाहिक जीवन से चिढ़ होने लगती है और ससुराल पक्ष का हर व्यक्ति अपना दुश्मन सा दिखने लगता है, जिस का शिकार मुख्य रूप से सास या पति बन जाता है क्योंकि लड़कियों का ज्यादा समय उस के साथ ही बीतता है. लड़कियां आते ही पति और घर पर अपना पूरा अधिकार जमाना चाहती हैं, ऐसे में लड़का यदि मां, बहन, भाई किसी को भी कुछ दिनों तक प्राथमिकता देता है या आर्थिक सहायता करना चाहता है तो लड़की परेशान हो कर बात का बतंगड़ बना कर घर में अशांति फैला देती है. शादी का अर्थ ही है जिम्मेदारी और आपसी तालमेल, इसलिए लड़की को पति और परिवार की जिम्मेदारी और तालमेल से रहते देख कर खुश होने की जरूरत है न कि परेशान होने की.

दूसरों को समझदारी दिखाते हुए बेटी और उस के ससुराल वालों के घर में दखलंदाजी न कर के बेटी को तालमेल बना कर रहने की सीख देनी चाहिए.

हां, यह आवश्यक है कि बेटी को अपने साथ अन्याय या अत्याचार, दुर्व्यवहार सहन नहीं करना है और उस के विरोध में अवश्य आवाज उठानी है, यह समझने की जरूरत है.

बौयफ्रैंड कब बनें जीवनसाथी

मध्यवर्गीय परिवार की सुनिधि ने जब कालेज में उच्चवर्ग परिवारों की लड़कियों की चमकदमक देखी तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ. सभी लड़कियां अपनेअपने बौयफ्रैंड के साथ घूमती, मौजमस्ती करती थीं. बौयफ्रैंड उन लड़कियों को उन के जन्मदिन पर गिफ्ट देते थे, फाइवस्टार होटलों में पार्टी देते थे. उच्चवर्ग परिवारों की लड़कियों की मौजमस्ती देख कर सुनिधि ने भी एक धनी परिवार के खूबसूरत लड़के सौरभ से दोस्ती कर ली. सुनिधि को सौरभ का स्वभाव बहुत अच्छा लगा और वह उसे अपना जीवनसाथी बनाने की कल्पना में खोईखोई रहने लगी. लेकिन जल्द ही उस की कल्पना किसी स्वप्न की तरह टूट गई. सौरभ के परिवार वालों ने किसी धनी परिवार की लड़की से उस का रिश्ता पक्का कर दिया. सौरभ भी अपने परिवार वालों के सामने अधिक विरोध नहीं कर सका. उस के चले जाने से सुनिधि को बहुत आघात लगा और वह डिप्रैशन का शिकार हो गई.

अंधकारमय भविष्य

सुनिधि की तरह अनेक लड़कियां कालेज में किसी से दोस्ती कर के कल्पनाओं में इतनी खो जाती हैं कि फिर उन्हें उस बौयफ्रैंड के अलावा कुछ भी नहीं दिखाई देता. उस बौयफ्रैंड को अपना जीवनसाथी बनाने के चक्कर में वे शारीरिक संबंध तक बना लेती हैं. ऐसी परिस्थिति में जब किसी लड़की का उस लड़के से किसी कारण विवाह नहीं होता, तो आजीवन उस लड़की के मस्तिष्क में उस लड़के की यादें फिल्म की तरह घूमती रहती हैं और उस लड़की के भविष्य को अंधेरे की ओर ले जाती हैं. किसी लड़की के स्वप्नों का महल ध्वस्त होने पर मातापिता उस का विवाह कहीं और कर देते हैं. लेकिन लड़की इतनी संवेदनशील होती है कि विवाह के बाद भी बौयफ्रैंड को भूल नहीं पाती और उस की यादों में खोई रह कर अपने नए परिवार में एडजेस्ट नहीं होती.पति जब तक उस लड़की की वास्तविकता से परिचित नहीं हो पाता, तब तक गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह घिसटती है और जब पति को किसी तरह उस के बौयफ्रैंड की कहानी पता चल जाती है, तो दांपत्य में विस्फोट हो जाता है. कोई भी ति अपनी पत्नी की प्रेम कहानी को बरदाश्त नहीं कर पाता और एकदूसरे से अलग रहते हुए एक दिन सचमुच अलगाव हो जाता है. अलगाव के बाद पति का दूसरा विवाह हो जाता है, लेकिन लड़की पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है. तलाकशुदा नवयुवती कटी पतंग बन कर रह जाती है. कटी पतंग को सभी लूट लेना चाहते हैं, लेकिन स्थाई आश्रय कोई नहीं देता.

सतर्कता जरूरी

चौराहे पर भटकने वाली लड़की की परिस्थिति से बचने के लिए कालेज में बौयफ्रैंड के साथ दोस्ती करते समय कुछ बातों के लिए सतर्क रहना जरूरी होता है. बौयफ्रैंड के साथ डेटिंग पर जाने पर उस के व्यवहार से बहुत कुछ उस के संबंध में ज्ञात किया जा सकता है. किसी भी बौयफ्रैंड के साथ दोस्ती कर के लड़की को तुरंत उसे जीवनसाथी बनाने का निर्णय नहीं कर लेना चाहिए. जब कोई लड़की बौयफ्रैंड को जीवनसाथी बनाने का निश्चय कर लेती है, तो फिर उसे बौयफ्रैंड में कोई भी कमी दिखाई नहीं देती. ऐसे में कोई उस लड़की को बौयफ्रैंड के संबंध में सतर्क भी करता है, तो वह लड़की उस पर विश्वास नहीं करती. मातापिता भी जब बौयफ्रैंड से दूर रहने के लिए कहते हैं, तो लड़की उन का भी प्रबल विरोध करती है और अपने को उस बौयफ्रैंड की बांहों में समर्पित कर देती है. ऐसी स्थिति में जब बौयफ्रैंड उसे छोड़ कर किसी दूसरी लड़की को अपना जीवनसाथी बना लेता है तो उस लड़की को दिन में तारे दिखाई देने लगते हैं और अपनी गलती पर पछतावा होने लगता है. लेकिन तब तक परिस्थितियां इतनी परिवर्तित हो चुकी होती हैं कि लड़की के लिए केवल पछतावा ही शेष रह जाता है.

मानसिक आघात

बौयफ्रैंड के विश्वासघात का शिकार बनने पर किसी भी लड़की को अपने भविष्य को अंधकार में नहीं डुबोना चाहिए, बल्कि नए उत्साह और उमंग से जीवनयापन का प्रयत्न करना चाहिए. यदि लड़की उच्च शिक्षित है तो किसी औफिस में काम कर के, अपने लिए आजीविका तलाश कर के वह पूरी क्षमता से आगे बढ़ सकती है. लड़की को बौयफ्रैंड की यादों से बाहर निकल कर आत्मनिर्भर हो कर आगे बढ़ना चाहिए. बौयफ्रैंड से संबंधविच्छेद होने पर अकसर लड़की बुरी तरह निराश हो कर अपने को सब से अलग कर लेती है. फिर एक समय ऐसा आता है कि सब से अलग होने वाली लड़की से सब दूर होते जाते हैं और एक दिन सब से अलग हो कर वह लड़की डिप्रैशन की शिकार हो जाती है. डिप्रैशन की परिस्थिति मानसिक रूप से लड़की को इतना क्षुब्ध कर देती है कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती है.

ऐसी नौबत न आए

किसी लड़की के जीवन में इतनी दुखद परिस्थिति न आने पाए इस के लिए उस परिस्थिति की नींव प्रारंभ होने से पहले ही यानी किसी को बौयफ्रैंड बनाने से पहले ही यह सोच लेना चाहिए कि उस से दोस्ती केवल दोस्ती तक ही सीमित रखनी है और बौयफ्रैंड के साथ घूमतेफिरते, होटलरेस्तरां व पिकनिक पर जाते हुए बौयफ्रैंड की हरकतों के प्रति विशेष रूप से सतर्क रहना है. जैसे, सिनेमाहाल में फिल्म देखते हुए अंधेरे का अनुचित लाभ उठाते हुए बौयफ्रैंड अशिष्ट हरकत तो नहीं कर रहा. कार में गर्लफ्रैंड को घुमाते हुए बौयफ्रैंड दरवाजे का शीशा खोलने के बहाने लड़कियों को स्पर्श करने की कोशिश करते हैं. एक बार ऐसी कोशिश में सफल होने पर और लड़की के कोई विरोध नहीं करने पर वे बारबार ऐसी अशिष्ट हरकतें करते हैं. लिफ्ट में आतेजाते भी बौयफ्रैंड की ऐसी हरकतें कभीकभी लड़कियों को इतना कामोत्तेजित कर देती हैं कि वे स्वयं उन के आलिंगन में बंध जाती हैं. बस, यहीं से लड़कियां बौयफ्रैंड को जीवनसाथी बना लेने के स्वप्नों में खोते हुए शारीरिक समर्पण कर बैठती हैं और बौयफ्रैंड के विश्वासघात करने या दूसरे किसी कारण से संबंधविच्छेद हो जाने पर लड़की के पास उस के स्वप्नों में खोए रहने के अलावा कुछ शेष नहीं रहता.

बौडी लैंग्वेज

बौयफ्रैंड के व्यवहार और बौडी लैंग्वेज से ही पता चल जाता है कि भविष्य में बौयफ्रैंड उस का जीवनसाथी बन पाने में सफल होगा कि नहीं. बौयफ्रैंड का व्यवहार ही उस के स्वभाव को प्रदर्शित कर देता है. कालेज में लड़कियों के आसपास भंवरों की तरह मंडराने वाले लड़कों से पहले ही सतर्क हो जाना चाहिए. ऐसे बौयफ्रैंड की यादों को मन की गहराइयों तक नहीं उतारना चाहिए और अवसर देख कर ऐसे बौयफ्रैंड से स्वयं अलग हो जाना चाहिए. बौयफ्रैंड के साथ डेटिंग या होटलरेस्तरां में जाते हुए उस से कुछ अंतराल बनाए रखना चाहिए. एकदूसरे के बीच का अंतराल एक बार समाप्त हो जाए तो फिर उस लड़की के पास कुछ शेष नहीं रह पाता और ऐसी परिस्थिति में बौयफ्रैंड उस लड़की को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंकता है. एक बौयफ्रैंड से अलग हुई लड़की को दूसरा बौयफ्रैंड तो मिल जाता है. लेकिन वह भी केवल मौजमस्ती के लिए फ्रैंडशिप करता हैं.

कैरियर अहम है

बौयफ्रैंड से दोस्ती करते हुए किसी लड़की को कालेज में आने और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य को नहीं भूलना चाहिए. उसे उच्च शिक्षा प्राप्त कर के अपना कैरियर बनाने की बात पहले सोचनी चाहिए. कैरियर बन जाने पर कितने ही नवयुवक उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए तैयार हो जाएंगे. यदि किसी लड़की ने बौयफ्रैंड के चक्कर में अपना कैरियर दांव पर लगा दिया तो फिर भविष्य में प्रायश्चित्त करने के अलावा उस के पास कुछ शेष नहीं रह जाता.

ऐसे संभालें रिश्तों की डोर

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य की जिंदगी आत्मकेंद्रित हो कर रह गई है, संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है, कामकाजी दंपती अवकाश में नातेरिश्तेदारों के यहां जाने के बजाय घूमने जाना अधिक पसंद करते हैं. इस का दुष्परिणाम यह होता है कि उन के बच्चे नानानानी, दादादादी, चाचा, ताऊ, बूआ जैसे महत्त्वपूर्ण और निजी रिश्तों से अपरिचित ही रह जाते हैं. यह कटु सत्य है कि इंसान कितना ही पैसा कमा ले, कितना ही घूम ले परिवार और मित्रों के बिना हर खुशी अधूरी है. मातापिता, भाईबहन, दोस्तों की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. इसीलिए रिश्तों को सहेज कर रखना बेहद आवश्यक है.

जिस प्रकार अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हम धन का इन्वैस्टमैंट करते हैं उसी प्रकार रिश्तेनातों की जीवंतता बनाए रखने के लिए भी समय, प्यार, परस्पर आवागमन और मेलमिलाप का इन्वैस्टमैंट करना बहुत आवश्यक है. इन के अभाव में कितने ही करीबी रिश्ते क्यों न हों एक न एक दिन अपनी अंतिम सांसें गिनने ही लगते हैं, क्योंकि निर्जीव से चाकू का ही यदि लंबे समय तक प्रयोग न किया जाए तो वह अपनी धार का पैनापन खो देता है. फिर रिश्ते तो जीवित लोगों से होते हैं. यदि उन का पैनापन बनाए रखना है तो सहेजने का प्रयास तो करना ही होगा.

परस्पर आवागमन बेहद जरूरी

रेणु और उस की इकलौती बहन ने तय कर रखा है कि कैसी भी स्थिति हो वे साल में कम से कम 1 बार अवश्य मिलेंगी. इस का सब से अच्छा उपाय उन्होंने निकाला साल में एक बार साथसाथ घूमने जाना. इस से उन के आपसी संबंध बहुत अधिक गहरे हैं. इस के विपरीत रीता और उस की बहन पिछले 5 वर्षों से आपस में नहीं मिली हैं. नतीजा उनके बच्चे आपस में एकदूसरे को जानते तक नहीं.

वास्तव में रिश्तों में प्यार की गर्मजोशी बनाए रखने के लिए एकदूसरे से मिलनाजुलना बहुत आवश्यक है. जब भी किसी नातेरिश्तेदार से मिलने जाएं छोटामोटा उपहार अवश्य ले जाएं. उपहार ले जाने का यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि उन्हें आप के उपहार की आवश्यकता है, बल्कि यह तो परस्पर प्यार और अपनत्व से भरी भावनाओं का लेनदेन मात्र है.

संतुलित भाषा का करें प्रयोग

कहावत है आप जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे. यदि आप दूसरों से कटु भाषा का प्रयोग करेंगे तो दूसरा भी वैसा ही करेगा. मिसेज गुप्ता जब भी मिलती हैं हमेशा यही कहती हैं कि अरे रीमा तुम्हें तो कभी फुरसत ही नहीं मिलती. जरा हमारे घर की तरफ भी नजर कर लिया करो. इसी प्रकार मेरी एक सहेली को जब भी फोन करो तुरंत ताना मारती है कि अरे, आज हमारी याद कैसे आ गई?’’

एक दिन मैं अपनी एक आंटी के यहां मिलने गई. जैसे ही आंटी ने गेट खोला तुरंत तेज स्वर में बोलीं कि अरे प्रतिभा आज आंटी के घर का रास्ता कैसे भूल गईं. उन का ताना सुन कर मेरे आने का सारा जोश हवा हो गया. जबकि मेरे घर के नजदीक ही रहने के बाद भी वे स्वयं न कभी फोन करतीं और न ही आने की जहमत उठाती है. आपसी संबंधों में इस प्रकार के कटाक्ष और व्यंग्ययुक्त भाषा की जगह सदैव प्यार, अपनत्व और विनम्रतायुक्त मीठी वाणी का प्रयोग करें. सदैव प्रयास करें कि आप की वाणी या व्यवहार से किसी की भावनाएं आहत न हों.

संबंध निभाएं

गुप्ता दंपती को यदि कोई बुलाता है तो वे भले ही 10 मिनट को जाएं पर जाते जरूर हैं. कई बार नातेरिश्तेदारों या परिचितों के यहां कोई प्रोग्राम होने पर हम अकसर बहाना बना देते हैं या मूड न होने पर नहीं जाते. यह सही है कि आप के जाने या न जाने से उस प्रोगाम पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, परंतु आप का न जाना संबंधों के प्रति आप की उदासीनता अवश्य प्रदर्शित करता है. यदि किसी परिस्थितिवश आप उस समय नहीं जा पा रहे हैं तो बाद में अवश्य जाएं. किसी भी शुभ अवसर पर जाने का सब से बड़ा लाभ यह होता है कि आप अपने सभी प्रमुख नातेरिश्तेदारों और परिचितों से मिल लेते हैं, जिस से रिश्तों में जीवंतता बनी रहती है.

करें नई तकनीक का प्रयोग

मेरे एक अंकल जो कभी हमारे मकानमालिक हुआ करते थे, उन की आदत है कि वे देश में हों या विदेश में हमारे पूरे परिवार के बर्थडे और हमारी मैरिज ऐनिवर्सरी विश करना कभी नहीं भूलते. उस का ही परिणाम है कि हमें उन से दूर हुए 6 साल हो गए हैं, परंतु हमारे संबंधों में आज भी मिठास है. आज का युग तकनीक का युग है. व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वीडियो कौलिंग आदि के माध्यम से आप मीलों दूर विदेश में बसे अपने मित्रों और रिश्तेदारों से संपर्क में रह सकते हैं. सभी का प्रयोग कर के अपने रिश्ते को सुदृढ़ बनाएं. कई बार कार्य की व्यस्तता के कारण लंबे समय तक परिवार में जाना नहीं हो पाता. ऐसे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर के आप अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का प्रयास अवश्य करें.

करें गर्मजोशी से स्वागत

घर आने वाले मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत करें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप को उन के आने से खुशी हुई है. शोभना के घर जब भी जाओ हमेशा पहुंच कर ऐसा लगता है कि हम यहां क्यों आ गए? न मुसकान से स्वागत, न खुश हो कर बातचीत, बस उदासीन भाव से चायनाश्ता ला कर टेबल पर रख देती हैं, आप करो या न करो उन की बला से. इस के विपरीत हम जब भी अनिमेशजी के यहां जाते हैं उन पतिपत्नी की खुशी देखते ही बनती है. घर में प्रवेश करते ही खुश हो कर मिलना, गर्मजोशी से स्वागत करना, उन के हावभाव को देख कर ही लगता है कि हां हमारे आने से इन्हें खुशी हुई है.

आप के द्वारा किए गए व्यवहार को देख कर ही आगंतुक दोबारा आने का साहस करेगा.

छोटीछोटी बातों का रखें ध्यान

नमिता के चचिया ससुर आए थे. उसे याद था कि चाचाजी शुगर के पेशैंट हैं. अत: जब वह उन के लिए बिना शकर की चाय ले कर आई तो उस की इस छोटी सी बात पर ही चाचाजी गद्गद हो उठे. रीता की जेठानी आर्थ्राइटिस की मरीज है. अत: उन्हें बाथरूम में ऊंचा पटड़ा चाहिए होता है. उन के आने से पूर्व उस ने उतना ही ऊंचा पटड़ा बाजार से ला कर बाथरूम में रख दिया. जेठानी ने जब देखा तो खुश हो गई.

अर्चना के यहां जब भी कोई आता है वह प्रत्येक सदस्य की पसंद का पूरापूरा ध्यान रखती है. उस के यहां जो भी आता है उस की कोशिश होती है कि उन्हीं की पसंद का भोजन, नाश्ता आदि बनाया जाए.

समय दें

किसी भी मेहमान के आने पर उसे भरपूर समय दें, क्योंकि सामने वाला भी तो अपना कीमती वक्त निकाल कर आप से मिलने पैसे खर्च कर के ही आया है. अनीता जब परिवार सहित अपने भाई के यहां 2-4 दिनों के लिए गई तो भाई अपने औफिस चला गया और भाभी किचन और इकलौते बेटे में ही व्यस्त रही. बस समय पर खाना, नाश्ता टेबल पर लगा दिया मानो किसी होटल में रुके हों. अगले दिन भाई ने औफिस से अवकाश तो लिया पर अपने घर के काम ही निबटाता रहा. अनीता और उस के परिवार के पास बैठ कर 2 बातें करने का किसी के पास वक्त ही नहीं था. 2 दिन एक ही कमरे में बंद रहने के बाद वे अपने घर वापस आ गए, इस कसम के साथ कि अब कभी भी भाई के घर नहीं जाना. इस प्रकार का व्यवहार आपसी संबंधों में कटुता घोलता है. संबंध सदा के लिए खराब हो जाते हैं.

कई बार अपने सब से करीबी का ही जानेअनजाने में किया गया कठोर व्यवहार हमें अंदर तक आहत कर जाता है. अपने साथ किए गए लोगों के अच्छे व्यवहार का सदैव ध्यान रखें और मन को दुखी करने वाले व्यवहार को एक क्षणिक आवेश मान कर भूलना सीखें, क्योंकि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है.

अपनों से बनाएं मजबूत इमोशनल तालमेल

कल मैं अपने औफिस की रिटायर्ड सहकर्मी अनामिका के घर गई तो बड़ी व्यस्त और कहीं जाने की तैयारी में दिखीं. ड्राइंगरूम में रखे लगेज को देख कर मैं ने पूछा,  ‘‘बड़ी व्यस्त दिख रही हैं, कहीं जाने की तैयारी है, दीदी?’’

‘‘हां, कल हम दोनों बड़े बेटे बब्बू के पास जा रहे हैं. परसों उस का जन्मदिन है न,’’ वे खुशी से बोलीं.

‘‘क्या सब के जन्मदिन पर जाते हैं आप दोनों, रांची से पुणे की दूरी तो बहुत है?’’

‘‘हां, कोशिश तो यही रहती है कि जीवन के प्रत्येक खास दिन पर हमसब साथ हों. आनेजाने से हमारा शरीर तो ऐक्टिव रहता ही है, बच्चों और पोतेपोती का हम से जुड़ाव व लगाव बना रहता है. वे अपने दादादादी को पहचानते हैं और उन की चिंता करते हैं. बच्चों को तो इतनी छुट्टियां नहीं मिल पातीं और हम फ्री हैं, तो हम ही चले जाते हैं. मिलना चाहिए सब को, फिर चाहे कोई भी आए या जाए वे या हम लोग. दूरी का क्या है, बच्चे पहले ही फ्लाइट से रिजर्वेशन करवा देते हैं. कोई परेशानी नहीं होती,’’ अनामिका मुसकराती हुई बोलीं.

भावनात्मक लगाव की कमी

बच्चों के पास उन का जाने का उत्साह देखते ही बन रहा था. जीवन एक सतत प्रक्रिया है जिस में विवाह, बच्चे, उन का बड़ा होना और फिर उन का एक स्वतंत्र व पृथक व्यक्तित्व और अस्तित्व का होना एक प्राकृतिक जीवनचक्र है. जो आज हमारे बच्चे कर रहे हैं वही कल हम ने भी तो किया था. हम सब के जीवन में यह दौर आता ही है जब बच्चे अपना एक अलग नीड़ बना लेते हैं और मातापिता अकेले हो जाते हैं. आज ग्लोबलाइजेशन और मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी लगने के कारण मातापिता से दूर जाना उन की विवशता भी है और आवश्यकता भी.

जो लोग इस नैसर्गिक परिवर्तन को जीवन की सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया मान कर बच्चों के साथ खुद को ऐडजस्ट कर के चलते हैं उन के लिए कहीं कोई समस्या नहीं होती. परंतु जो लोग अपने अहंकार और कठोर स्वभाव के कारण स्वयं को परिवर्तित ही नहीं करना चाहते उन के लिए यह दौर अनेक समस्याओं का जनक बन जाता है. वे बच्चों से उतनी अच्छी बौंडिंग ही नहीं कर पाते कि वे बच्चों के साथ और बच्चे उन के साथ सहजता से एकसाथ रह सकें. परिणामस्वरूप, वे सदैव हैरानपरेशान से अपने बच्चों और नई पीढ़ी को दोष देते ही नजर आते हैं.

ओमप्रकाश की 5 संतानें हैं. 4 बेटियां और एक बेटा होने के बावजूद 8 वर्ष पूर्व बेटे की शादी होने के बाद से वे दोनों अकेले ही रहना पसंद करते हैं. बच्चों के यहां गए उन्हें सालों हो जाते हैं. बच्चों के पास जा कर उन्हें वह आजादी नहीं मिलती जो उन्हें अकेले रहने में मिलती है. यदि यदाकदा जाते भी हैं तो उन का वहां मन ही नहीं लगता क्योंकि प्रथम तो पारस्परिक मेलमिलाप के अभाव में अपनत्व ही जन्म नहीं ले पाता. दूसरे, वहां वे स्वयं को बंधनयुक्त महसूस करते हैं. जैसेतैसे 4-6 दिन काट कर वापस आ जाते हैं.

वहीं दूसरी ओर, कांता और रमाकांत हैं जिन के दोनों बेटेबहू सर्विस में हैं. मुंबई और इंदौर में उन्हें कोई फर्क ही महसूस नहीं होता. जब भी वे इंदौर स्थित अपने निवास पर आते हैं, 8-10 दिनों में ही बेटेबहू उन्हें अपने पास बुलाने के लिए फोन करने लगते हैं. साल में कम से कम एक बार वे सब एकसाथ किसी पर्यटन स्थल पर घूमने जाते हैं. वे अपने साथसाथ बहू के मातापिता को भी ले जाते हैं जिस से बहू भी अपने मातापिता की ओर से आश्वस्त रहती है.

वास्तव में देखा जाए तो बच्चों की खुशी ही मातापिता की खुशी होती है. बच्चों और आप की सोच में फर्क होना तो स्वाभाविक है परंतु बच्चों से कुछ पूछना, उन्हें तरजीह देना, उन के अनुसार थोड़ा सा ढल जाना, या उन की पसंद के अनुसार काम करने में क्या बुराई है? रमा कभी सलवारसूट नहीं पहनती थी पर जब मुंबई में उस की बहू ने सूट ला कर दिया तो उस ने बड़ी खुशी से सूट पहनना शुरू कर दिया. साथ ही, बर्गर, पिज्जा, चायनीज, कौंटीनैंटल जैसे आधुनिक भोजन खाना भी सीख लिया जिन के उस ने कभी नाम तक नहीं सुने थे. यह सब इसलिए ताकि बच्चों को उस के कारण किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े और बाहर जा कर भी वे कंफर्टेबल महसूस करें.

परस्पर समझ की बात

श्रीमती घुले और उन के पति साल के 8 महीने अपने बेटों के पास रहते हैं. उन के बच्चे उन्हें आने ही नहीं देते. वे कहती हैं कि आज की पीढ़ी हम से अधिक जागरूक और बुद्घिमान है. तो उन के अनुसार थोड़ा सा ढलने में क्या परेशानी है. श्रीमती घुले बताती हैं कि जब पोता हुआ तो उन्होंने बहू के अनुसार ही उस की देखभाल की क्योंकि हमारे जमाने की अपेक्षा अब बहुत आधुनिक हो गया है और उसे मेरी अपेक्षा बहू अधिक अच्छी तरह समझती है.

सर्विस और विवाह हो जाने के बाद बच्चों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है और वे इसे अपने तरीके से जीना चाहते हैं. कई बार बच्चे वही कार्य कर रहे होते हैं जो आप को लेशमात्र भी पसंद नहीं. ऐसे में आप को सोचना होगा कि वे अब बच्चे नहीं रहे जो हर बात आप से पूछ कर करेंगे. वे आप को आज भी उतना ही पूछें और आप के अनुसार आज भी चलें, इस के लिए आप को स्वयं समझदारी से कोशिशें करनी होंगी.

रीमा की मां ने जब उसे 5 साडि़यां दिलाई तो उस ने दुकानदार से अपनी सास को दिखा कर फाइनल करने की बात कही. जब उस की सास ने साडि़यां देखीं तो बोलीं, ‘‘मुझे क्या दिखाना, तेरी पसंद ही मेरी पसंद है.’’

वे कहती हैं, ‘‘मेरी बहू ने इतने मन से खरीदी हैं, मैं क्यों उस के मन को मारूं. उस की पसंद ही मेरी पसंद है.’’

सास की जरा सी समझदारी से बहू भी खुश और सास का मान भी रह गया.

आप बच्चों का सहारा बनें, न कि मुसीबत. आप का व्यवहार बच्चों के प्रति ऐसा हो कि वे सदैव आप को अपने पास बुलाने के लिए लालायित रहें, न कि आप के आने की बात सुन कर अपना सिर पकड़ कर बैठ जाएं. आप की और उन की भावनात्मक बौंडिंग इतनी मजबूत हो कि आप के बिना वे स्वयं को अपूर्ण अनुभव करें. इस के लिए आप को कोई बहुत अधिक परिश्रम नहीं करना है, उन पर विश्वास रखना है और उन्हें जताना है कि आप के लिए वे कितना महत्त्व रखते हैं. यह भी कि पहले की ही भांति आज भी आप की दुनिया उन के आसपास की घूमती है.

बच्चों को अपना बनाएं

बच्चों के दुख, तकलीफ और विवशताओं को समझें. उन के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ आदि पर उन के पास जाएं. इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार उन्हें उपहार दें. गरिमा की सास को जैसे ही पता चला कि उन की बहू गर्भवती है, वे तुरंत बहू के पास आ गई. उस का ध्यान रखने के साथसाथ उस का मनपसंद, स्वादिष्ठ और पौष्टिक भोजन खिलातीं. गरिमा कहती है, ‘‘इतना ध्यान तो मेरी मां ने कभी नहीं रखा जितना कि मेरी सास रखती हैं.’’ आप के द्वारा की गई छोटीछोटी बातें बच्चों को खुश कर देती हैं.

ईगो को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं

हम आज तक किसी के सामने नहीं झुके तो अब इस उम्र में क्यों झुकें? हमें किसी की भी जरूरत नहीं है. हम अपने को नहीं बदल सकते. उन्हें जो करना हो, सो करें. ऐसी बातें कह कर बच्चों का दिल न दुखाएं. उन के सामने अपने ईगो को न रखें और न ही किसी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाएं.

न दें छोटी छोटी बातों को तूल

बहू आप की पसंद की हो या बेटे की, अब वह आप के परिवार की एक सम्मानित सदस्य है. इसलिए कभी भी छोटीछोटी बातों को तूल न दें. आज की लड़कियां जींस, टौप, शौर्ट्स, स्कर्ट जैसे आधुनिक वस्त्र पहनना पसंद करती हैं. आप का दायित्व है कि अपनी बहू के पहनावे पर कोई प्रतिबंध न लगाएं. वह जो पहनना चाहती है, पहनने दें. ताकि आप के रहने से वह किसी भी प्रकार का बंधन महसूस न करे. किसी भी मनचाही बात के न होने पर तुरंत सब के सामने प्रतिक्रिया देने के स्थान पर अकेले में बड़े ही प्यार और अपनेपन से समझाएं ताकि आप जो कहना चाह रही हैं, बहू उसे उसी रूप में समझ सके. बहू को इतना प्यार और अपनत्व दें कि वह खुद को कभी पराया न समझे और उसे मायके की अपेक्षा ससुराल में रहना अधिक भाए. बहू को बेटी समझें ही नहीं, उसे बेटी बना कर रखें.

न करें अनावश्यक टोकाटाकी 

बच्चों के पास जा कर अनावश्यक टोकाटाकी न करें. उन के लिए नित नई समस्याएं खड़ी करने के स्थान पर उन का सहारा बनें. उन्हें इतना प्यार और अपनापन दें कि वे स्वयं आप के पास खिंचे चले आएं. उन्हें यह विश्वास हो कि कुछ भी और कैसी भी परिस्थिति हो, आप का संबल उन्हें अकेला नहीं होने देगा. आप ध्यान रखें, बच्चों की भी अपनी जिंदगी हैं और उन्हें इसी जिंदगी में जीना है.

न करें भेदभाव

कई मातापिता बच्चों में ही भेद करना प्रारंभ कर देते हैं. 2 बच्चों में से एक के पास अधिक रहेंगे, दूसरे के पास कम. इस से बच्चों में आपस में ही प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो जाती है. आप अपने सब बच्चों के पास जाएं और सब को भरपूर प्यार व अपनत्व दें, ताकि किसी को शिकायत का मौका न मिले. हां, किसी बच्चे को आप के सहारे की आवश्यकता है तो अवश्य उस के काम आएं. इस से बच्चों में भी परस्पर जुड़ाव होता है.

बच्चों को परस्पर जोड़ें

बच्चों का विवाह करने के साथ ही मातापिता का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं हो जाता. अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो जाने के बाद सभी बच्चे अपने परिवार के साथ अलगअलग रहने लगते हैं. अब उन्हें आपस में जोड़ने और परस्पर भरपूर प्यार बनाए रखने के लिए आप को मजबूत कड़ी की तरह कार्य करना होगा. नवीन साहब के 3 बेटों में से 2 विदेश में और एक दिल्ली में रहते हैं. जब भी उन के बेटे विदेश से आते हैं तो वे सब एक ही स्थान पर एकत्र हो जाते हैं. यही नहीं, सभी आपस में बात कर के एक ही समय पर आना सुनिश्चित भी करते हैं. वर्ष में कम से कम एक बार वे सब परिवार सहित एकसाथ होते ही हैं. इस से सभी में परस्पर प्यार और सौहार्द्र की भावना बनी रहती है. वरना, कुछ परिवारों में तो भाइयों के बच्चे एकदूसरे को पहचानते तक नहीं.

आजादी पर भारी शादी

‘‘बदलते समय के साथ न केवल लोगों की लाइफस्टाइल में बदलाव आया है, बल्कि उन की सोच और सामाजिक तौरतरीके भी बदले हैं. यह सही है कि आजकल लड़कियां अपने कैरियर और आजादी को प्राथमिकता दे रही हैं, लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि शादी के लिए अब लड़कों की लड़कियों से उम्मीदें भी बढ़ गई हैं. मैट्रो सिटी में रहनसहन के स्तर को संतुलित बनाए रखने के लिए लड़के उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियों को ही प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में लड़कियां अपने सुरक्षित भविष्य के लिए शादी करने में समय ले रही हैं. मुझे इस में कोई बुराई नहीं नजर आती. हां, शादी टालने की एक सीमा जरूर होनी चाहिए क्योंकि इस को जरूरत से ज्यादा टालने के विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं.’’

सोनल, ऐसोसिएट एचआर

‘‘यह हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है, जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को गहरा व मजबूत बनाती है.’’

28 साल की तान्या न सिर्फ गुड लुकिंग है बल्कि एक अच्छी मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर पोजिशन पर कार्यरत भी है. लेकिन अभी भी तान्या सिंगल है. शादी की बात आते ही तान्या उसे टाल जाती है.

हिना का भी हाल कुछ ऐसा ही है. हिना मौडलिंग करती है, ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी है और दिखने में काफी स्टाइलिश है. हिना से शादी करने को न जाने कितने लड़के बेताब हैं, लेकिन हिना अब तक कई प्रपोजल्स रिजैक्ट कर चुकी है. रिजैक्शन के पीछे वजह सिर्फ यही है कि हिना को लगता है कि भले ही उस का पार्टनर उसे शादी के बाद काम करने भी दे, लेकिन उस की आजादी तो कहीं न कहीं उस से छिन ही जाएगी. बस, यही वजह है कि हिना पेरैंट्स के कहने पर लड़कों से मिलती जरूर है, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ाती.

यह कहानी सिर्फ तान्या और हिना की ही नहीं, बल्कि आज हमारे समाज की उन ढेर सारी लड़कियों की है, जो अपनी पढ़ाईलिखाई कर सिर्फ अपनी जौब और कैरियर को प्रिफरैंस देती है. इन के लिए शादी प्रिफरैंस लिस्ट में तो दूर की बात, ये तो शादी के नाम से ही कतराती हैं.

बदल गए हैं जिंदगी के माने

अगर हम यह कहें कि अब समाज में लड़कियों की जिंदगी के माने पूरी तरह बदल चुके हैं, तो शायद यह भी गलत नहीं होगा. लड़कियां शादी कर चूल्हाचौका संभालने की सोच से बाहर निकल कर अपने कैरियर और समाज की सोच को एक नई दिशा दे रही हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि बदलते जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर चलने वाली ये पीढ़ी वाकई सही है या इस सफलता में छिपा है डिपै्रशन और फ्रस्ट्रेशन भी.

हाल ही में कई बड़े शहरों में एक सर्वे के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया. बड़े शहरों की पढ़ीलिखी लड़कियां अच्छी पढ़ाई कर प्रोफैशनली बाजी जरूर मार रही हैं, लेकिन उन की व्यक्तिगत जिंदगी उन्हें इतना परेशान कर रही है कि उस के चलते कई लड़कियां डिप्रैशन की शिकार हैं.

दिल्ली में पढ़ीलिखी गुड लुकिंग 36 साल की प्रीति मल्टी नैशनल कंपनी में सीनियर लीगल ऐडवाइजर है. देखने में खूबसूरत व स्टाइलिश और कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी प्रीति अभी भी सिंगल है. शादी के लिए उस के पास ढेर सारे प्रपोजल्स तो हैं मगर साथ ही कन्फ्यूजन भी कि शादी करे तो किस से? जो लड़का प्रीति को पसंद आता है उसे प्रीति को प्रोफाइल मैचिंग नहीं लगता और जिसे प्रीति पसंद आती है उस से प्रीति आगे बात बढ़ाना ही नहीं चाहती.

ऐसा सिर्फ प्रीति के साथ ही नहीं बल्कि न जाने कितनी लड़कियों के साथ होता है, जो कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी सही उम्र में शादी नहीं कर पातीं क्योंकि शादी के लिए उन की कुछ शर्तें भी होती हैं. आमतौर पर सभी शर्तों को पूरा करने यानी उन की कसौटी पर खरा उतरने के नाम से ही लड़के कन्नी काटने लगते हैं और अच्छी पढ़ीलिखी बड़े शहरों की लड़कियों के बजाय छोटे कसबे या गांव की कम पढ़ीलिखी लड़कियों को ही चुनना ज्यादा पसंद करते हैं.

ये बात थोड़ी चौंकाने वाली जरूर है लेकिन यही हकीकत है कि कम से कम 50% बड़े शहरों की लड़कियां अपनी आजादी को खोने के डर से अब शादी को तवज्जो नहीं देतीं.

35 वर्षीय दीप्ति एक नैशनल न्यूज चैनल में एक अच्छी पोस्ट पर काम करती हैं और सिंगल हैं. शादी से जुड़े सवाल पर तपाक से कहती हैं, ‘‘अच्छी है न जिंदगी क्योंकि कोई रोकटोक नहीं है. अपने तरीके से अपनी लाइफ ऐंजौय कर रही हूं. अपने पेरैंट्स का खयाल रखती हूं. अपना घर, गाड़ी सब कुछ है, तो ऐसे में शादी कर कई हजार बंदिशों में बंध रिस्क क्यों लिया जाए?’’

असल में ऐसी सोच सिर्फ दीप्ति की ही नहीं बल्कि शहरों में पलीबढ़ी 60% लड़कियों की है. या तो ये शादी करना नहीं चाहतीं या फिर अगर शादी करती भी हैं तो अपनी शर्तों पर. ऐसे में जाहिर सी बात है कि हमारे पितृसत्तात्मक समाज के लड़कों के माथे पर सिकुड़न पड़ना तय है.

कशमकश में उलझी हैं सफल महिलाएं

अजीब सी कशमकश में उलझी ऐसी सफल महिलाएं उम्र के इस पड़ाव पर आने के बावजूद भी शादी करने का फैसला सही उम्र में नहीं ले पातीं. जब तक हो सके अकेले ही रहना चाहती हैं, जिस की एक सीधी सी वजह यह है कि अब लड़कियां शादी जैसे बंधन में बंधने के लिए अपनी जिंदगी में न तो कोई बदलाव लाना चाहती हैं और न ही कोई समझौता करना चाहती हैं. जिस की सब से बड़ी वजह यही है कि अब लड़कियां अपनी आजादी नहीं खोना चाहतीं.

लेकिन इन का यही फैसला कहीं न कहीं इन के लिए एक वक्त के बाद मुश्किलें भी खड़ी कर देता है. एक वक्त के बाद सिंगल रहना अखरने भी लगता है. जिंदगी के सफर में तनहाई काटने को दौड़ती है. उस वक्त जरूरत महसूस होती है एक ऐसे साथी की जो हमसफर बन कर आप के साथ जिंदगी के सुखदुख साथ बांट सके.

अब सोचने वाली बात यह है कि लड़कियों की यह सोच वाकई समाज के माने बदल समाज को एक सही दिशा में जा रही है या फिर इस सोच के कल कई दुष्प्रभाव समाज पर पड़ सकते हैं?

सालता भी है अकेलापन

अगर देखा जाए तो लड़कियों का शादी जैसे मुद्दे पर खुद फैसला लेना सही है, लेकिन अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की चाहत में इस खूबसूरत पड़ाव से कतराना भी समझदारी नहीं, क्योंकि कुछ वक्त के बाद इंसान को अकेलापन सताने लगता है और अकेलेपन से बचना वाकई बड़ा मुश्किल है.

एक जमाने की मशहूर अदाकारा परवीन बौबी को ही ले लीजिए. उन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. एक वक्त था जब परवीन के पास ढेरों प्रपोजल्स थे. न जाने कितने नौजवान उन से शादी करने को बेताब थे. मगर उस वक्त सफलता के नशे में चूर परवीन बौबी सारे प्रपोजल्स टालती गईं. शादी की बात को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन बाद में उन का यही फैसला उन के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुआ. उन की जिंदगी के अंतिम दिनों में उन का अकेलापन ही उन की मौत का कारण बना.

एक जमाने में लाखोंकरोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस खूबसूरत अदाकारा की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया, जब इस ने खुद को अपनी तनहाई के साथ घर की चारदीवारी में कैद कर लिया. परवीन पर अकेलापन ऐसा हावी हुआ कि वे न सिर्फ डिप्रैशन में चली गईं बल्कि उन का मानसिक संतुलन तक बिगड़ गया. यहां तक कि उन्होंने लोगों से मिलनाजुलना तक बंद कर दिया और फिर एक दिन वही हुआ, जब करोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस अदाकारा ने अंतिम सांस ली, इन के पास कोई नहीं था. यहां तक कि इन की मौत का पता भी कई दिनों के बाद इन के पड़ोसियों को दरवाजे पर लटकी दूध की थैलियों और दरवाजे के पास पड़े अखबार के बंडलों से चला. फिर जांचपड़ताल के बाद घर के अंदर उन की लाश मिली तब जा कर पता चला कि लाखोंकरोड़ों दिलों की चहेती परवीन बौबी इस दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं.

ऐसा सिर्फ परवीन बौबी के साथ ही नहीं हुआ. इस के और भी ढेर सारे उदाहरण आप को मिल जाएंगे. हकीकत में यह अकेलापन ऐसी बीमारी है, जो बाद में डिप्रैशन का रूप ले लेती है आगे चल कर जिंदगी के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है. इसलिए बेहतर है कि जिंदगी को गंभीरता से लें.

क्या करें क्या न करें

शादी का बंधन इतना नाजुक नहीं होता कि उसे जब चाहे तोड़ लो और जब मन करे जोड़ लो. निश्चित तौर पर काफी सोचनेसमझने के बाद ही यह फैसला लेना सही होता है. और अगर आप अपने हिसाब से जीवनसाथी चुनना चाहती हैं तो इस में भी हरज कुछ नहीं, लेकिन ध्यान रखें कि आप जरूरत से ज्यादा चूजी भी न हो जाएं क्योंकि यह इकलौती वजह ही ढेरों प्रपोजल रिजैक्ट करने के लिए काफी होती है.

किसी भी रिश्ते को पनपने से पहले ही अपनी शर्तों में न बांध दें. किसी भी रिश्ते की बौंडिंग मजबूत होने में वक्त लगता है, तो आप भी अपने रिश्ते को वक्त दें. सामने वाले इंसान को पहले समझने की कोशिश करें.

परफैक्शन में नहीं हकीकत में विश्वास करें. यह कोई प्रोफैशनल टास्क नहीं है, जिस में आप को या आप के हमसफर को परफैक्शन के मापदंड पर खरा उतरना है. यह फिल्मी दुनिया नहीं बल्कि हकीकत है. हकीकत पर भरोसा करें. चांद सब से खूबसूरत होता है, लेकिन उस में भी दाग है. वही कहानी इंसानों की भी है. इसलिए परफैक्शन में जाने के बजाय प्रैक्टिकल हो कर सोचें.

फैसले का सही वक्त क्या हो

सही उम्र में सही फैसला लेना भी जरूरी होता है. कैरियर के साथसाथ पर्सनल लाइफ पर भी ध्यान दें. यदि आप ने समय से अपनी पढ़ाईलिखाई पूरी कर के मनचाहा मुकाम हासिल कर लिया है तो शादी का फैसला बेवजह टालने में समझदारी नहीं है.

ऐटिट्यूड में नहीं बौंडिंग में यकीन करना सीखें. हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को और गहरा और मजबूत बनाती है.

पहले से किसी इंसान या उस के प्रोफैशन को ले कर उस के प्रति अपने मन में कोई धारणा न बना लें. प्यार और विश्वास से एक नए रिश्ते की शुरुआत करें.

कई बार लड़कियां जब शादी के लिए किसी से मिलती हैं, तो वे उस लड़के की अपने ड्रीम बौय या फिर अपने आदर्श इंसान से तुलना शुरू कर देती हैं जो सही नहीं है, हर इंसान का व्यक्तित्व, व्यवहार और खूबियां अलगअलग होती हैं. इसलिए जब भी आप किसी से मिलें तो बेवजह उस की किसी और से तुलना न शुरू कर दें.

जैसे जीवनसाथी की कल्पना आप ने अपने लिए की है वैसा ही आप को मिले, यह थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में बेहतर यही होगा कि समझदारी के साथ जीवनसाथी का चुनाव करें और यह विश्वास रखें कि शादी के बाद भी आपसी समझ से रिश्ते को बेहतर बनाया जा सकता है. अकेला रह कर आप क्षणिक सुख तो पा सकती हैं पर सारी जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए एक हमकदम का साथ जरूरी होता है.

इस बात पर यकीन करें कि एक खूबसूरत जिंदगी एक अच्छे हमसफर के साथ आप का इंतजार कर रही है. बस जरूरत है तो सिर्फ पहल करने और गंभीरता से सोचने की. तो देर किस बात की, शुरुआत कीजिए और कदम बढ़ाइए इस खूबसूरत जिंदगी की तरफ.

इन 6 टिप्स से रखें बच्चों को टेंशन फ्री

हमारे पड़ोस में रहने वाली 8 वर्षीया अविका कुछ दिनों से बहुत परेशान सी लग रही थी. कल जब मैं उसके घर गयी तो उसकी मम्मी कहने लगीं,”आजकल पूरे समय एक ही बात कहती रहती है मुझे मिस वर्ल्ड बनना है जिसके लिए सुंदर होना होता है मम्मा मुझे बहुत सुंदर बनना है..आप मुझे गोरा करने के लिए ये वाली क्रीम लगा दो, वो वाला फेसपैक लगा दो.”

क्रिकेट का शौकीन 10 साल का सार्थक जब तब नाराज होकर घर से बाहर चला जाता है, अपनी बड़ी बहनों को मारने पीटने लगता है, मन का न होने पर जोरजोर से रोना प्रारम्भ कर देता है, उसे सचिन तेंदुलकर बनना है और वह बस क्रिकेट ही खेलना चाहता है.

कुछ समय पूर्व तक तनाव सिर्फ बड़ों को ही होता है ऐसा माना जाता है परन्तु आजकल बड़ों की अपेक्षा बच्चे बहुत अधिक तनाव में जीवन जी रहे हैं और उनके जीवन में समाया यह तनाव उनके स्वास्थ्य और पढ़ाई को भी प्रभावित कर रहा है. बच्चों में पनप रहे इस तनाव पर प्रकाश डालते हुए समाज कल्याण विभाग उज्जैन की वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक श्रीमती निधि तिवारी कहतीं हैं,”जिस उम्र में उन्हें मस्ती करते हुए जिंदगी का आनंद उठाना चाहिए उस उम्र में बच्चे तनाव झेल रहे हैं, बोर हो रहे हैं. बच्चों का इस तरह का व्यवहार बहुत चिंतनीय है.” उनके अनुसार बच्चों के इस प्रकार के व्यवहार के लिए काफी हद तक अभिभावक ही जिम्मेदार हैं. यहां पर प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जिन पर ध्यान देकर आप अपने बच्चों को इस तनाव से बचा सकते हैं-

-भरपूर समय दें

बच्चे चूंकि कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, बाल्यावस्था से उन्हें जिस प्रकार के सांचे में ढाल दिया जाए वे स्वतः ढल जाते हैं परन्तु वर्तमान समय में जहां परिवार में माता पिता दोनों ही कामकाजी हैं, बच्चे के पास माता पिता के समय को छोड़कर सब कुछ है. उनके मन में पनप रही किसी भी प्रकार की भावना को आप केवल तभी समझ सकते हैं जब आप उन्हें अपना भरपूर समय दें. आज के वातावरण में उन्हें क्वालिटी नहीं क्वांटिटी टाइम की आवश्यकता है ताकि बच्चे को हरदम आपके साथ होने का अहसास हो सके.

-उन्हें सुनें

बच्चों के मन में हर पल कोई न कोई जिज्ञासा जन्म लेती है, अथवा वे हरदम अपने मन की बात शेयर करना चाहते हैं अक्सर देखा जाता है कि बच्चे जब भी अपने मन की बात पेरेंट्स को बताना चाहते हैं तो अभिभावक उन्हें”अरे बाद में बताना, या तुम क्या हरदम कुछ न कुछ बकबक करते रहते हो” जैसी बातें बोलकर उन्हें चुप करा देते हैं इससे बच्चा उस समय शांत तो हो जाता है परन्तु उसके मन की बात मन में ही रह जाती है जिससे अक्सर वे सही गलत में फर्क करना ही नहीं समझ पाते.

-तुलना न करें

सदैव ध्यान रखिये हर बच्चा खास होता है, उसकी अपनी विशेषताएं होतीं हैं, और प्रत्येक बच्चे में अलग तरह की प्रतिभा होती है इसलिए एक बच्चे की कभी भी किसी दूसरे बच्चे से तुलना नहीं की जा सकती. अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना करने लगते हैं  जिससे बच्चे का कोमल मन आहत होता है और वे मन ही मन घुटना प्रारम्भ कर देते हैं.

-प्रकृति से परिचित कराएं

बच्चों पर हर समय पढ़ाई करने का दबाब बनाने के स्थान पर उन्हें बाग बगीचा, फूल पौधे और आसपास की प्रकृति से परिचित कराएं ताकि पढ़ाई से इतर भी उनके  व्यक्तित्व का विकास हो सके.

-उनकी क्षमताओं को पहचानें

अक्सर माता पिता अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चे पर थोपकर उसे अपने अनुसार चलाने का प्रयास करते हैं इसकी अपेक्षा अपने बच्चे की क्षमताओं को पहचानकर उस क्षेत्र में उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करें. आजकल कॅरियर की अनेकों ऑप्शन मौजूद हैं इसलिए बच्चे पर अनावश्यक रूप से पढ़ाई का दबाब बनाने के स्थान पर उसे समझने का प्रयास करना बेहद जरूरी है.

-बच्चे के दोस्त बनें

छोटी छोटी बातों पर बच्चे को हर समय टोकते रहने के स्थान पर बच्चे के दोस्त बनने का प्रयास करें ताकि बच्चा अपने मन की हर दुविधा या समस्या का आपके सामने जिक्र कर सके. इंडोर गेम्स में उसके साथी बनें, घर के छोटे मोटे कार्यों में उसे अपना साझीदार बनाएं, साथ ही प्रतिदिन उसे घर से बाहर अपने दोस्तों के साथ कम से कम 1 घन्टा खेलने अवश्य भेजें.

कभी न बताएं 9 बैडरूम सीक्रेट्स

रोमी की नइ नई शादी हुई थी. सैक्स जो अब तक उस के लिए अनजाना विषय था अब विवाह के बाद एकाएक रोमांचक हो उठा था. रोमी अपनी जिंदगी में होने वाले इन परिवर्तनों को किसी के साथ शेयर करना चाहती थी. वह जानना चाहती थी कि जैसा उसे महसूस होता है वैसा ही क्या सब को होता हैं?

रोमी ने खुशी और रोमांच के कारण अपने सारे बैडरूम सीक्रेट अपनी सहेलियों के साथ शेयर कर लिए थे. जब रोमी और उस का पति जय उस की सहेली श्वेता के यहां खाने के लिए गए तो श्वेता ने जय के सामने ही ऐसी बातें करनी शुरू कर दीं थी जो अश्लीलता की परिधि में आती थीं. जय को समझ आ गया था कि रोमी ने उन के मध्य की बेहद निजी बातें सार्वजनिक कर दी हैं. इस बात के लिए वो आज तक रोमी को माफ नहीं कर पाया है. उधर श्वेता जब भी मौका मिलता रोमी से उस के बैडरूम सीक्रेट पूछती और चटकारे लेले कर पूरे गु्रप में बता देती.

भूमिका का जब विवाह हुआ तो उस की विवाहित दोस्त एकता उस की सैक्स गुरु बनी हुई. भूमिका भोलेपन में अपनी हर छोटीबड़ी बात एकता को बता देती थी. एकता जो अपने पति से संतुष्ट नहीं थी, भूमिका के बैडरूम सीक्रेट सुन कर उस के पति की ओर आकर्षित हो गई. मौका मिलते ही एकता ने भूमिका के पति को अपनी और खींच लिया था. भूमिका उस दिन को कोस रही है जब उस ने एकता के साथ अपनी बैडरूम लाइफ शेयर करनी शुरू की थी.

आज भी बहुत सारे नवविवाहित जोड़े विवाह से पहले सैक्स से अछूते रहते हैं. इसलिए जब विवाह के पश्चात वे इस नई दुनिया में कदम रखते हैं तो उन्हें समझ नहीं आता है कि वे अपनी बातें किस से शेयर करें. बहुत सारे अनजाने डर होते हैं, कुछ अछूती बातें होती हैं, कुछ रहस्य होते हैं तब समझ नहीं आता कि किस के साथ साझ करें. ऐसे में अपने दोस्तों के सिवा और कोई नहीं सूझता है. अपने दोस्तों के साथ बैडरूम सीक्रेट शेयर करना कई बार आप के लिए फायदेमंद भी हो सकता है.

जैसेकि मोहनी को अपने परफौर्मैंस को ले कर बेहद स्ट्रैस रहता था. मगर जब एक दिन बातों ही बातों में उस ने अपनी दोस्त वर्षा से इस बारे में बात करी तो मोहनी को समझ आ गया कि वह बेकार में ही स्ट्रैस्ड महसूस कर रही थी.

लड़कियां शादी के बाद सैक्स से संबंधित बातों को अपनी सहेलियों के साथ ही शेयर करने में कंफर्टेबल रहती हैं. मगर अपने बैडरूम सीक्रेट अपनी सहेलियों से आप किस हद तक साझ कर सकती हैं, यह अवश्य तय कर लें. अपने बैडरूम सीके्रट शेयर करने से पहले यह बात अवश्य ध्यान कर लें कि अगर आप के पति भी अपनी बैडरूम लाइफ अपने दोस्तों के साथ साझ करेंगे तो आप को कैसा लगेगा?

कोशिश करें वही बातें शेयर करें जिन से आप के पार्टनर की छवि धूमिल न हो और न ही वे हंसी के पात्र बनें.

ये बातें भूल कर शेयर न करें

सैक्सुअल फैंटेसी:

आप के पार्टनर की कोई वाइल्ड सैक्सुअल फैंटेसी हो सकती है. आप का पार्टनर आप पर ट्रस्ट कर के ही वह फैंटेसी आप के साथ शेयर करता है, मगर अगर आप ये बातें अपनी फ्रैंड्स से शेयर करती हैं और पार्टनर को पता चल जाता है तो वे ताउम्र आप के सामने कभी खुल नही पाएंगे. उन्हें हमेशा यह डर बना रहेगा कि न जाने आप कब सब के सामने उन्हें बेपरदा कर दें.

साइज डिस्कशन:

अपने पार्टनर का पेनिस साइज डिस्कस करना एक बेहद बुरा आइडिया है. थोड़ा सा सोच कर देखें अगर आप के पार्टनर आप के स्तन या किसी और अंग के साइज का जिक्र अपने दोस्तों के सामने करेंगे तो आप को कैसा लगेगा? आप के पार्टनर की ऐसी डिस्कशन उन्हें आप की सहेलियों के मध्य डेजीराबल भी बना सकती है. फिर बाद में अगर कोई बात हो जाती है तो ये पूरी तरह से आप की जिम्मेदारी है.

इरैक्शन प्रौब्लम:

पार्टनर की इरैक्शन प्रौब्लम को उजागर करना एक बेहद संवेदनशील विषय है. अगर आप को मदद चाहिए तो सहेली के बजाय डाक्टर की मदद लीजिए. ऐसी बातें हर फ्रैंड के साथ डिस्कस नहीं कर सकते हैं. आप की फ्रैंड्स आप की बैडरूम लाइफ को पब्लिक भी कर सकती है और ऐसी बातों का कुछ लोग गलत फायदा भी उठा सकते हैं जो आप के विवाहित जीवन के लिए ठीक नहीं होगा.

सैक्सुअल वोकैबुलरी है बेहद निजी:

पार्टनर की सैक्सुअल वोकेबुलरी को सहेलियों के साथ साझ करना भी एक खराब आइडिया है. याद रखें आप की बैडरूम लाइफ आप और आप के पार्टनर के बेहद निजी पल हैं. इन्हें आप अपनी सभी फ्रैंड्स के साथ नहीं बांट सकती हैं. ऐसा न हो कि आप अपनी बैडरूम लाइफ डिस्कस करतेकरते अपनी सहेलियों के सामने एक ऐसी पिक्चर पेंट करती हैं जिस पेंटिंग का वे अनजाने में हिस्सा बन जाती हैं.

मगर जरूरी नहीं बैडरूम सीक्रेट्स शेयर करने के हमेशा नुकसान ही होते हैं. अगर आप सोचसमझ कर और भरोसेमंद सहेलियों के साथ अपने सीके्रट शेयर करती हैं तो इस के निम्न फायदे भी होते हैं:

बैडरूम लाइफ को स्पाइसी बनाने में सहायक:

बहुत बार सहेलियों के साथ बातों ही बातों में आप को कुछ ऐसी बातें पता चल जाती हैं जो आप की बैडरूम लाइफ को स्पाइसी बना सकती हैं. किस तरह की लौंजरी पार्टनर को अट्रैक्ट करती है या किस तरह के परफ्यूम बैडरूम लाइफ को और अधिक रोमांचक बनाते हैं ये सब आप आराम से अपनी फ्रैंड्स के साथ डिस्कस कर सकती हैं.

फोरप्ले के नए तरीके:

फोरप्ले सैक्स ड्राइव को बेहतर बनाता है. इस का कोई सैट मेथड नहीं होता है. हर किसी का फोरप्ले का तरीका अलग होता है. यह जानकारी आप एकदूसरे के साथ शेयर कर सकती हैं परंतु याद रखें जानकारी बेहद जनरल तरीके से साझ की जाए. इसे स्पैसिफिक मत करिए.

और्गेज्म से परिचय:

और्गेज्म पर बस पुरुषों का ही हक नहीं होता है, महिलाओं का भी यह मौलिक अधिकार होता है. नईनई शादी में अधिकतर महिलाएं इस से अछूती ही रहती हैं. अगर आप की सहेली किसी खास पोजीशन के बारे में बताती है जिस से उसे और्गेज्म प्राप्त होता है तो आप भी उस पोजीशन को अगली बार अपना सकती हैं.

कन्फ्यूजन से मिल सकता है छुटकारा:

बहुत सारे रहस्य होते हैं या बहुत सारी ऐसी बातें होती हैं जो बेहद नौर्मल होती हैं, मगर नईनई शादी में ये बेहद अजीब लगती हैं. पर्सनल हाइजीन से ले कर सैक्स टौयज तक बहुत सारे कन्फ्यूजन होते हैं जो आपस मे बात कर के सौल्व हो सकते हैं.

सैक्स लाइफ की बेहतर समझ:

सैक्स लाइफ की बेहतर समझ के लिए बहुत बार सहेलियों के साथ आप खुल कर बात कर सकती हैं पर 2 बातों का ध्यान हमेशा रखें पहला किसी भी महफिल में बैठ कर अपनी सैक्स गाथा आरंभ मत कीजिए नहीं तो आप की स्थिति हास्यस्पद हो जाएगी और दूसरी बात सैक्स से जुड़ी बातें शेयर करते हुए अपने पार्टनर का जिक्र न करें.

लड़का देखते वक्त ध्यान रखें ये 17 बातें

अब वह जमाना नहीं रहा जब युवकयुवती देखने जा कर अपनी पसंदनापसंद बताता था. बदलते दौर में अब न सिर्फ युवक बल्कि युवती भी लड़का देखने जाती है और दस तरह की बातें पौइंट आउट करती है जैसे वह दिखने में कैसा है? उस का वे औफ टौकिंग कैसा है? बौडी फिजिक बोल्ड है या नहीं ममाज बौय तो नहीं है? वगैरावगैरा.

आज बराबर की हिस्सेदारी के कारण युवतियां किसी चीज से समझौता करना पसंद नहीं करतीं. यह ठीक भी है कि जिस के साथ ताउम्र रहना है उस के बारे में जितना हो सके जान लेना चाहिए ताकि आगे किसी तरह का कोई डाउट न रहे.

ऐसे में आप जब लड़का देखने जाएं तो कुछ बातें ध्यान में रखें और खुद भी ऐसा कुछ न करें जो आप की नैगेटिव पर्सनैलिटी को दर्शाए.

1. जब भी आप युवक से पहली बार मिलें तो उस की बौडी लैंग्वेज पर खास ध्यान दें. इस से आप को उस की आधी पर्सनैलिटी का तो ऐसे ही अंदाजा हो जाएगा. बात करते हुए देख लें कि कहीं वह बात करने से ज्यादा अपने हाथपैर तो नहीं हिला रहा. बात करते हुए फेस पर अजीब से रिऐक्शन तो नहीं आ रहे. इस से आप को उसे जज करने में काफी आसानी होगी.

2. बात करते समय इस बात पर गौर फरमाएं कि कहीं वह तू से बात करना तो शुरू नहीं करता कि यार, मुझे तो बिलकुल तेरे जैसी लड़की चाहिए, तू तो आज बहुत क्यूट लग रही है. अगर ऐसा कहे तो समझ जाएं कि वह आप के लायक युवक नहीं है, क्योंकि जो पहली बातचीत में ही तू तड़ाक पर आ जाए उस से भविष्य में रिस्पैक्ट की उम्मीद नहीं की जा सकती.

3. भले ही उस युवक का सैलरी पैकेज काफी अच्छा हो, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि उस की हर बात में सैलरी का ही जिक्र हो. जैसे अगर हम दोनों की शादी हो गई तो तुम ऐश करोगी, तुम्हें ब्रैंडेड चीजें यूज करने का मौका मिलेगा, क्योंकि मैं औफिस के काम से विदेश भी जाता रहता हूं. इस से आप को अंदाजा हो जाएगा कि उसे अपनी सैलरी पर घमंड है.

4. युवक को जानने के साथसाथ आप उस की फैमिली को भी एकनजर में जानने की कोशिश करें. आप को उन की बातचीत के तरीके से पता लग जाएगा कि वे कैसे विचारों के लोग हैं. लड़की को जौब करवाने के फेवर में हैं या नहीं. घर में लड़की से ज्यादा लड़के को तो महत्त्व नहीं देते. इन सारी बातों का पता होने पर आप को डिसीजन लेने में काफी आसानी होगी.

5. बातोंबातों में कहीं दहेज की ओर तो इशारा नहीं है. जैसे हमारी बड़ी बहू तो शादी में हर चीज लाई थी, हमारा लड़का तो 15 लाख रुपए सालाना कमाता है, हमारे यहां तो रिश्तेदारों का शादी में खास खातिरदारी का रिवाज है. आप को जो देना है अपनी लड़की को देना है, हमें कुछ नहीं चाहिए जैसी बातें अगर मीटिंग में की जा रही हैं तो समझ जाएं कि उन्हें लड़की से ज्यादा दहेज में इंट्रस्ट है.

6. आप की फैमिली लड़की को आप से बात करने के लिए कह रही है और वह इस के लिए मम्मी से परमिशन ले कर खुद को ममाज बौय दिखाने की कोशिश करे तो समझ जाएं कि लड़के की खुद की कोई पर्सनैलिटी नहीं है और वह हर बात के लिए मम्मी पर डिपैंड रहता है.

7. अगर थोड़ी सी सीरियस बात के बाद वह सीधा कपड़ों पर आ जाए जैसे मुझे तो सूट वगैरा बिलकुल पसंद नहीं हैं. मैं तो चाहता हूं कि मेरी लाइफ पार्टनर हमेशा हौट ड्रैसेज पहने, इस से आप को यह समझने में आसानी होगी कि उसे आप से ज्यादा छोटे कपड़ों में इंट्रस्ट है, जो हैप्पी मैरिड लाइफ के लिए सही नहीं है.

8. कहीं ऐसा तो नहीं कि फर्स्ट मीटिंग में ही युवक आप से फ्यूचर प्लानिंग के बारे में बात करना शुरू कर दे कि हम तो शादी के बाद अकेले रहेंगे, इस तरह चीजों को मैनेज करेंगे, मुझे तो लड़के बहुत पसंद हैं इस से आप को उस की मैच्योरिटी के बारे में पता चल जाएगा.

9. जरूरी नहीं कि जब हम इस तरह की मीटिंग के लिए कहीं बाहर जाएं तो हमेशा लड़की वाले ही बिल पे करें. भले ही आप के पेरैंट्स उन्हें बिल पे न करने दें, लेकिन फिर भी यह बात जानने के लिए थोड़ी देर तक बिल पे न करें. अगर वह एक बार भी बिल पे करने का जिक्र न करे तो समझ जाएं कि वह सिर्फ फ्री में खानेपीने वाले सिद्धांत पर चलने वाला है.

10. भले ही आप काफी स्मार्ट हों, लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि आप लड़के के गुणों को देखने के बजाय उस की स्मार्टनैस के बेस पर ही उसे पौइंट्स दें. एक बात मान कर चलें कि स्मार्टनैस थोड़े दिन ही अच्छी लगती है उस के बाद तो व्यक्ति के गुणों के बल पर ही जिंदगी चलती है. इसलिए आउटर के साथसाथ इनर पर्सनैलिटी को भी ध्यान में रखें.

11. हमारे घर में यह होता है, हम ऐसे रहते हैं, हम यह नहीं खाते, मौल्स के अलावा हम कहीं और से शौपिंग नहीं करते. भले ही आप का लिविंग स्टैंडर्ड काफी हाई हो, लेकिन अगर आप इस तरह की बातें लड़के से करेंगी तो वह चाहे आप कितनी भी सुंदर क्यों न हों, आप से शादी नहीं करेगा.

12. माना कि युवतियों को शौपिंग का शौक होता है, लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं कि आप युवक से 20 मिनट में 15 मिनट शौपिंग को ले कर ही बात करें. जैसे मैं हफ्ते में जब तक एक बार शौपिंग नहीं कर लेती तब तक मुझे चैन नहीं आता, क्या तुम्हें शौपिंग पसंद है? अगर हमारी शादी हो गई तो क्या तुम मेरे साथ हर वीकैंड पर शौपिंग पर चला करोगे? ऐसी बातों से सिर्फ यही शो होगा कि आप को मैरिज से ज्यादा शौपिंग में इंट्रस्ट है जो आप की नैगेटिव पर्सनैलिटी को शो करेगा.

13. आज सोशल मीडिया का जमाना है, लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि हर जगह सोशल मीडिया ही हावी हो. ऐसे में जब आप लड़के से बात कर रही हैं तो यह न पूछ बैठें कि आप सोशल साइट्स पर ऐक्टिव हैं कि नहीं. अगर हैं तो अपनी आईडी दीजिए ताकि मैं अपनी फ्रैंडलिस्ट में आप को ऐड कर सकूं. इस से लड़के तक यही मैसेज जाएगा कि आप सोशल मीडिया को ले कर कितनी क्रेजी हैं तभी इतनी सीरियस टौक में आप सोशल मीडिया को ले आई हैं.

14. जब भी आप लड़के से मिलने जाएं तो उस का बायोडाटा अच्छी तरह पढ़ लें कि वह कहां जौब करता है, इस से पहले उस ने किनकिन कंपनियों में जौब की है, उस की फैमिली में कितने मैंबर्स हैं और कौन क्या करता है. यहां तक कि उस की कंपनी व पद के बारे में भी जानकारी रखें. इस से जब वह अपनी कंपनी के बारे में बता रहा होगा तो आप की तरफ से भी अच्छा फीडबैक मिल पाएगा.

15. पहली मुलाकात में ही आप उस से अपना नंबर शेयर न करें, क्योंकि आप को क्या पता कि बात बनेगी या नहीं. इसलिए इस बात को अपने पेरैंट्स पर छोड़ दें, क्योंकि अगर आप का रिश्ता बना तो पेरैंट्स खुद ही आप को नंबर दिलवा देंगे ताकि आप को एकदूसरे को जानने का मौका मिल सके.

16. अगर बड़े किसी टौपिक पर बात कर रहे हैं कि जैसे हम शादी तो अपने होम टाउन से ही करेंगे तो ऐसे में आप बीच में टांग न अड़ाने लगें कि नहीं आंटी ऐसा नहीं होगा. आप के इस व्यवहार से आप की बदतमीजी ही शो होगी इसलिए जब तक जरूरी न हो तब तक बीच में न बोलें.

17. अगर आप को लड़के की कोई बात पसंद नहीं आ रही तो एकदम से गुस्से में न आ जाएं बल्कि शांत तरीके से अपनी बात रखें, इस से उस पर आप का अच्छा प्रभाव पड़ेगा और उसे लगेगा कि आप चीजों को अच्छे से ऐडजस्ट करना जानती हैं.

इस तरह आप को अपने लाइफ पार्टनर के सिलैक्शन में आसानी होगी.   

क्या जरूरी है शादी करना

सोनिया 20 साल की हुई नहीं कि उस की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगी. लेकिन सोनिया ने तो ठान लिया है कि वह पहले पढ़ाई पूरी करेगी, फिर नौकरी करेगी और तब महसूस हुआ तो शादी करेगी वरना नहीं. सोनिया की इस घोषणा की जानकारी मिलते ही परिवार में हलचल मच गई. सभी सोनिया से प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगे तो वह फट पड़ी, ‘‘बताओ भला, शादी में रखा ही क्या है? एक तो अपना घर छोड़ो, दूसरे पराए घर जा कर सब की जीहुजूरी करो. अरे, शादी से पतियों को होता आराम, लेकिन हमारा तो होता है जीना हराम. पति तो बस बैठेबैठे पत्नियों पर हुक्म चलाते हैं. खटना तो बेचारी पत्नियों को पड़ता है. कुदरत ने भी पत्नियों के सिर मां बनने का बोझ डाल कर नाइंसाफी की है. उस के बाद बच्चे के जन्म से ले कर खानेपीने, पढ़ानेलिखाने की जिम्मेदारी भी पत्नी की ही होती है. पतियों का क्या? शाम को दफ्तर से लौट कर बच्चों को मन हुआ पुचकार लिया वरना डांटडपट कर दूसरे कमरे में भेज आराम फरमा लिया.’’

यह बात नहीं है कि ऐसा सिर्फ सोनिया का ही कहना है. पिछले दिनों अंजु, रचना, मधु, स्मृति से मिलना हुआ तो पता लगा अंजु इसलिए शादी नहीं करना चाहती, क्योंकि उस की बहन को उस के पति ने दहेज के लिए बेहद तंग कर के वापस घर भेज दिया. रचना को लगता है कि शादी एक सुनहरा पिंजरा है, जिस की रचना लड़कियों की आजादी को छीनने के लिए की गई है. स्मृति को शादीशुदा जीवन के नाम से ही डर लगता है. उस का कहना है कि यह क्या बात हुई. जिस इज्जत को ले कर मांबाप 20 साल तक बेहद चिंतित रहते हैं, उसे पराए लड़के के हाथों निस्संकोच सौंप देते हैं. उन की बातें सुन कर मन में यही खयाल आया कि क्या शादी करना जरूरी है. उत्तर मिला, हां, जरूरी है, क्योंकि पति और पत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों को एकदूसरे के साथ की जरूरत होती है. शादी करने से घर और जिंदगी को संभालने वाला विश्वसनीय साथी मिल जाता है. व्यावहारिकता में शादी निजी जरूरत है, क्योंकि पति/पत्नी जैसा दोस्त मिल ही नहीं सकता.

सामाजिक सम्मान

पतिपत्नी का रिश्ता एक आवश्यकता है. दुनिया में हर आदमी अच्छे स्वस्थ संबंधों की कामना करता है. अच्छे संबंध पतिपत्नी को बेहतर इनसान बनाने में मदद करते हैं. इस बात से आप मुंह नहीं मोड़ सकते. लंबी आयु के लिए भी शादीशुदा होना जरूरी है. इस सुझाव में न तो खानपान पर रोक है न ही कोई बंदिश. यानी हींग लगे न फिटकरी रंग भी आए चोखा. लंदन स्कूल आफ इकोनोमिक्स के जानेमाने रिसर्चर प्रोफैसर माइक मर्फी के मुताबिक शादी खुद ही एक तरह का फायदा है. उन की रिसर्च के अनुसार अविवाहित लोगों के मुकाबले शादीशुदा लोग न केवल लंबी जिंदगी जीते हैं, बल्कि उन की सेहत भी ज्यादा ठीक रहती है.

उम्र ढलने पर उन्हें ज्यादा देखभाल भी हासिल होती है. जहां 34 साल से कम उम्र के अविवाहित पुरुषों में मृत्युदर इस उम्र के शादीशुदा पुरुषों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा पाई गई, वहीं अविवाहित बुजुर्ग महिलाओं में भी उन की शादीशुदा साथियों के मुकाबले मृत्युदर कहीं ज्यादा पाई गई. विवाह तो इनसानी सभ्यता की न जाने कितनी पुरानी रस्म है. हजारों सालों से विवाह होते आ रहे हैं. यदि शादी नाम की संस्था न होती तो क्या होता? जंगलराज. कोई भी किसी के साथ जब तक मन होता रहता, फिर छोड़ कर अपना अलग रास्ता नापता, जबकि स्त्रीपुरुष शादी के बंधन में बंध कर सम्मान का रास्ता बनाते हैं. यह सच है कि इस संस्था में दहेज जैसी कुरीति का प्रवेश हो गया है, जिस से लड़कियों की खुशियों का मोल लगाया जाता है और उस से उन्हें लगता है कि जैसे उन का कोई वजूद ही नहीं है. पर यह कुरीति तो जानेअनजाने हम सभी ने अपनाई है और इसे बढ़ावा दिया है. आज जरूरत है तो दहेज जैसी कुरीति को समाप्त करने की न कि विवाह संस्था को समाप्त करने की.

सामंजस्य जरूरी

वे दिन लद गए जब पत्नियों से पति और ससुराल वालों के हर जुल्म को सहने की उम्मीद की जाती थी. अब तो बराबरी का जमाना है. गलत बात पर आवाज उठाना और अपने हक के लिए लड़ना पत्नियों का अधिकार है. फिर आज की युवा लड़कियों को विवाहित जिंदगी में पांव रखने में हिचकिचाहट क्यों? दरअसल, घरपरिवार बनाना और विवाहित जीवन सफल बनाना पति और पत्नी दोनों के ही हाथ में होता है, जो बातें कुदरत ने अलगअलग दी हैं, वे तो हमेशा ही रहेंगी. जरूरत है आपसी सामंजस्य, सूझबूझ और प्रेम की. इस धरती पर कोई भी 2 लोग एकजैसे नहीं होते. खून के रिश्तों में यहां तक कि जुड़वा जन्मे बच्चों में भी कोई भिन्नता अवश्य होती है. फिर पतिपत्नी जो एकदूसरे से विपरीत पारिवारिक माहौल में रहने वाले व अलगअलग संस्कार वाले होते हैं, उन में परस्पर वैचारिक और स्वभावगत भिन्नता हो तो अचरज कैसा. इसलिए विवाह संस्था पर उंगली उठाने से पूर्व निम्न पूर्वाग्रहों से मुक्त हो जाएं :

कोई भी पूर्ण नहीं होता. अत: दूसरे को उस की कमियों के साथ ही स्वीकारें.

सिर्फ लड़के/लड़कियों की कमियों का ही विश्लेषण न करें, बल्कि अपनी कमियों पर भी गौर करें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें.

किसी को सुधारने के चक्कर में उस के अहं को ठेस न पहुंचाएं.

परस्पर सम्मान और भावनात्मक लगाव बनाएं.

समानता का अर्थ टक्कर लेना नहीं बल्कि एकदूसरे के लिए समान रूप से उपयोगी साबित होने से है, इस सचाई को समझें और खुले दिल से स्वीकारें.        

शादी न करने पर होने वाले अभाव

व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता.

स्वभावगत भिन्नता से मिलने वाला आत्मविकास नहीं हो पाता.

विवाहित लोगों की जिंदगी लंबी होती है अविवाहितों की कम.

शादीशुदा रिश्ता जिंदगी की अहम जरूरतों को पूरा करता है, जो गैरशादीशुदा होने पर पूरी नहीं हो पातीं.

कठिन वक्त पर सब से विश्वसनीय साथी की कमी बेहद खलती है.

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