दीवाली का त्योहार पास ही था, इसलिए कभीकभी पटाखों की आवाज सुनाई दे जाती थी. मौसम काफी सुहाना था. अपने शानदार कमरे में आदविक आराम से सो रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बजी. नींद में ही जरा सी आंख खोल कर उस ने समय देखा. रात के 2 बज रहे थे. इस वक्त किस का फोन आ गया.
सोच वह बड़बड़ाया और फिर हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से फोन उठाया बोला, ‘‘हैलो.’’
‘‘जी क्या आप आदविक बोल रहे हैं?’’
‘‘जी आदविक बोल रहा हूं आप कौन?’’
आदविकजी मैं सिटी हौस्पिटल से बोल रहा हूं, क्या आप निर्वेद को जानते हैं? हमें आप का नंबर उन के इमरजैंसी कौंटैक्ट से मिला है.’’
‘‘जी निर्वेद मेरा दोस्त है. क्या हुआ उस को?’’ बैड से उठते हुए आदविक घबरा कर बोला.
‘‘आदविकजी आप के दोस्त को हार्टअटैक हुआ है.’’
‘‘कैसा है वह?’’
‘‘वह अब ठीक है… खतरे से बाहर है…
‘‘मैं अभी आता हूं.’’
‘‘नहीं, अभी आने की जरूरत नहीं है. हम ने उन्हें नींद का इंजैक्शन दे दिया है. वे सुबह से पहले नहीं उठेंगे. आप सुबह 11 बजे तक आ जाइएगा. उस वक्त तक डाक्टर भी आ जाएंगे. आप की उन से बात भी हो जाएगी.’’
‘‘ठीक है,’’ कह कर आदविक ने फोन रख दिया और बैड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस का मन बेचैन हो गया था. वह आंखें बंद कर के एक बार फिर सोने की कोशिश करने लगा. मगर नींद की जगह उस की आंखों में आ बसे थे 20 साल पुराने कालेज के वे दिन जब आदविक इंजीनियरिंग करने गया था. मध्यवर्गीय परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते आदविक से उस के परिवार को बहुत उम्मीदें थीं और वह भी जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो कर अपने भाईबहनों की पढ़ाई में मातापिता की मदद करना चाहता था.
कालेज में आ कर पहली बार आदविक का पाला उस तबके के छात्रों से
पछ़ा, जिन्हें कुदरत ने दौलत की नेमत से नवाजा था. उन छात्रों में से एक था निर्वेद, लंबा कद, गोरा रंग और घुंघराले घने बालों से घिरा खूबसूरत चेहरा. निर्वेद जहां एक ओर आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था वहीं दूसरी ओर पढ़ाईलिखाई में भी अव्वल था. अमीर मातापिता की सब से छोटी संतान होने के नाते दौलत का सुख और परिवार का प्यार हमेशा ही उसे मिला. हर प्रकार की कला के प्रति उस की पारखी नजर उस के व्यक्तित्व को एक अलग ही निखार देती थी.
अपनी तमाम खूबियों के कारण निर्वेद लड़कियों में पौपुलर था. कालेज की सब से सुंदर और स्मार्ट लड़की एक डिफैंस औफिसर की बेटी अधीरा थी और कालेज के शुरू के दिनों से ही निर्वेद को बहुत पसंद करती थी.
निर्वेद को देख कर कभीकभी सामान्य रंगरूप वाले आदविक को ईर्ष्या होती थी. उसे लगता था कि जैसे कुदरत ने सबकुछ निर्वेद की ही झोली में डाल दिया है. दोनों में कहीं कोई समानता नहीं थी. कहां आदविक एक मध्यवर्गीय परिवार का बड़ा बेटा तो निर्वेद एक अमीर परिवार का छोटा बेटा. दोनों में कहीं कोई समानता नहीं थी.
फिर भी इन दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी. पहले साल दोनों रूममेट्स थे क्योंकि फर्स्ट ईयर में रूम शेयर करना होता है. उन्हीं दिनों इन दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि बाकी के 3 साल अगलबगल के कमरों में ही रहे. दोनों की दोस्ती बड़ी अनोखी थी. एक अगर सोता रह तामा तो मैस बंद होने से पहले दूसरा उस का खाना रूम तक पहुंचा देता.
एक का प्रोजैक्ट अधूरा देख कर दूसरा उसे बिना कहे ही पूरा कर देता था. दोनों एकदूसरे को सपोर्ट करते. अगर एक पढ़ाई में ढीला पड़ता तो दूसरा उसे पुश करता. कभी कोई झगड़ा नहीं, कोई गलतफहमी नहीं. उन के सितारे कालेज के शुरू के दिनों से ही कुछ ऐसे अलाइन हुए थे कि दोनों के बीच आर्थिक, सामाजिक, रंगरूप जैसी कोई भी असमानता कभी नहीं आई. दोनों अपने बाकी मित्रों के साथ भी समय बिताते, घूमतेफिरते, लेकिन आदविक निर्वेद की दोस्ती कुछ अलग ही थी.
कभी दोनों एकदूसरे के साथ घंटों बैठे रहते और एक शब्द भी न बोलते तो कभी बातें खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं. एक को दूसरे की कब जरूरत है यह कभी बताना नहीं पड़ता था.
एक बार छुट्टियों में आदविक को निर्वेद के घर जाने का अवसर मिला. पहली बार उस के परिवार से मिलने का मौका मिला था. उस के मातापिता और 2 बड़े भाइयों के साथ 2 दिन तक आदविक एक पारिवारिक सदस्य की तरह रहा. खूब मजा किया और पहली बार पता चला कि समाज के इतने खास लोगों का व्यवहार इतना सामान्य भी हो सकता है. आदविक ने देखा कि इतना पैसा होने के बाद भी निर्वेद के परिवार वालों के पैर जमीन पर ही टिके थे. उस की दोस्ती निर्वेद के साथ क्यों फूलफल रही थी यह बात उसे अब सम झ में आ गई थी. वापस आने के बाद भी आदविक उस के परिवार के साथ खासकर उस की मां के साथ फोन पर जुड़ा रहा.
एक बार सैमैस्टर की फाइनल परीक्षा आने वाली थी. हर छात्र मस्ती भूल कर पढ़ाई में डूबा था. आदविक पढ़तेपढ़ते निर्वेद के कमरे से कोई किताब उठाने गया तो देखा कि वह बेहोश पड़ा था. माथा छुआ तो पता चला कि वह तो बुखार में तप रहा है. आदविक ने बिना वक्त गंवाए तुरंत दोस्तों की मदद से उसे अस्पताल पहुंचाया. वहां डाक्टर ने जाते ही इंजैक्शन दिया और कहा कि अभी इन्हें एडमिट करना पड़ेगा. बुखार काफी तेज है, इसलिए एक रात अंडर औब्जर्वेशन में रखना होगा. सुबह तक हर घंटे में बुखार चैक करना होगा.
‘‘मैं इस का ध्यान रखूंगा और जरूरत पड़ने पर डाक्टर को भी बुला लूंगा. अब तुम लोग जा सकते हो,’’ आदविक ने दोस्तों से कहा तो सभी दोस्त हौस्टल चले गए.
सुबह जब निर्वेद की आंख खुली तो देखा कि आदविक भी वहीं बराबर वाले बैड पर सो रहा था, ‘‘अरे तू यहां क्या कर रहा है? तु झे तो रातभर पढ़ना था न,’’ निर्वेद ने हैरानी से पूछा.
‘‘अरे नहीं यार, सोना ही तो था सो गया.’’
तभी नर्स और डाक्टर दोनों साथ कमरे में दाखिल हुए. नर्स डाक्टर से बोली, ‘‘सौरी डाक्टर रात को नींद लग गई तो हर घंटे बुखार चैक नहीं कर सकी, लेकिन मैं ने इंजैक्शन दे दिया था.’’
डाक्टर ने निर्वेद के पीछे से चार्ट उठाते हुए कहा, ‘‘लेकिन चार्ट में तो हर घंटे की रीडिंग है.’’
इस के साथ ही निर्वेद की निगाहें आदविक की ओर घूमीं तो वह आंखें मीच कर
मुसकरा दिया. थोड़ी देर में निर्वेद की मां का फोन आया, ‘‘बेटा अब कैसी तबीयत है?’’
‘‘ठीक है मां, लेकिन आप को कैसे पता चला?’’
‘‘आदविक का फोन आया था… बहुत ही प्यारा लड़का है. आज मैं तु झे भी बोल रही हूं हमेशा उस का भी ध्यान रखना, उसे कभी भी परेशानी में अकेला मत छोड़ना,’’ मां ने कहा.
वक्त की रफ्तार कालेज में कुछ ज्यादा ही तेज होती है. 4 साल पलक झपकते ही बीत गए. कालेज के इन 4 सालों में सभी को इंजीनियरिंग की डिगरी दे कर उन के पंखों को नई उड़ान के लिए मजबूत कर दिया था और इस एक नए आकाश पर अपने नाम लिखने के लिए छोड़
दिया था.
निर्वेद और अधीरा की खूबसूरत जोड़ी के प्यार का पौधा भी अब तक एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था. हरकोई अपने कैरियर के चलते कहांकहां जा बसा, बता पाना मुश्किल हो गया. धीरेधीरे सब की शादियां होने लगीं.
आदविक की शादी एक मध्यवर्गीय परिवार की पढ़ीलिखी लड़की खनक से हो गई. दोनों की अच्छी निभ रही थी. एक साल बाद खनक ने बेटे को जन्म दिया तो ऐसा लगा कि घर खुशियों से भर गया. उधर निर्वेद और अधीरा दोनों को भी अच्छी नौकरी मिल गई थी, लेकिन दोनों अभी शादी नहीं करना चाहते थे. कुछ और दिन अपनी बैचलर लाइफ ऐंजौय करना चाहते थे.
उधर आदविक अपनी घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां निभा रहा था. लेकिन अपने प्यारे से बेटे को गोद में ले कर जब आदविक उसे प्यार करता तो उस के सामने दुनिया की हर नेमत
छोटी लगती. अगले साल बड़ी धूमधाम से निर्वेद और अधीरा की भी शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद निर्वेद को किसी असाइनमैंट के लिए विदेश जाना पड़ा. फिर पता नहीं क्यों और कैसे, लेकिन वापस आते ही अधीरा ने उस के सामने तलाक की मांग रख दी. निर्वेद का प्यार आज तक उस की किसी मांग को नकार नहीं सका था, लिहाजा इस मांग को भी उस की खुशी मान कर न नहीं कर पाया. यह शादी उतने दिन भी नहीं चली जितने दिन उस की तैयारियां चली थीं. गलती किस की थी, क्या थी इन सब बातों की फैसले के बाद कोई अहमियत नहीं रह जाती. तलाक हो गया.
निर्वेद का तलाक हुए काफी वक्त बीत चुका था. सभी के सम झानेबु झाने के
बाद भी निर्वेद का मन किसी की ओर नहीं झुका. अधीरा से टूटे हुए रिश्ते ने उस को इस कदर तोड़ दिया था कि फिर वह किसी से जुड़ ही नहीं सका. निर्वेद की उम्र पैसा कमाने और दोस्तों से मिलने में ही बीत रही थी.
निर्वेद का मिलनसार व्यवहार और गाने का शौक हर महफिल में जान डाल देता था. अपने हर दोस्त के घर उस का स्वागत प्यार से होता था. अपने कलात्मक सु झाव और मस्तमौला अंदाज के कारण वह दोस्तों के परिवार के बीच भी उतना ही पौपुलर था जितना दोस्तों के बीच. दुनिया के न जाने कितने देशों में अपने काम के सिलसिले में निर्वेद का जाना हुआ लेकिन आज भी वह अपने आलीशान मकान में अकेला रह रहा था. सारी रात आदविक इन्हीं यादों में डूबता तैरता रहा.
सुबह की पहली किरण के साथ जब आदविक की पत्नी खनक की आंख खुली तो उस ने आदविक को खिड़की के पास खड़ा पाया जो बाहर देख रहा था. जल्दी उठने का कारण पूछने पर आदविक ने पूरी कहानी खनक को बता दी फिर जल्दी तैयार हो कर वक्त के कुछ पहले ही वह अस्पताल पहुंच गया और आईसीयू की विंडो से निर्वेद को देखता रहा. डाक्टर से बात कर के उसे पता चला कि करीब रात एक बजे उसे अस्पताल लाया गया था. हार्ट अटैक सीवियर था, लेकिन समय पर सहायता मिल गई. अब स्थिति काबू में है. बता कर डाक्टर चला गया. आदविक पूछता ही रह गया कि डाक्टर उसे अस्पताल लाया कौन था?
तभी आदविक ने देखा कि एक औरत उसी डाक्टर को आवाज लगाती हुई आई और उस से निर्वेद के बारे में पूछताछ करने लगी. आदविक हैरानी से उस की ओर देख रहा था. वह करीब 39-40 साल की खूबसूरत औरत थी जो भारतीय नहीं थी. उस का फ्रैच जैसा अंगरेजी बोलना यह बता रहा था कि वह इंग्लिश स्पीकिंग देश से भी नहीं है. नैननक्श से अरबी लग रही थी. आदविक खुद भी काम के सिलसिले में कई देशों में रह चुका था, इसलिए वह पहचान गया.
तभी नर्स ने आ कर कहा कि आप रोगी से मिल सकते हैं. उन्हें रूम में शिफ्ट कर दिया गया है. आदविक रूम में पहुंचा तो वह महिला पहले से ही निर्वेद के बैड के पास कुरसी पर बैठी थी. उस की हालत ठीक लग रही थी.
निर्वेद ने उस से मिलवाते हुए कहा, ‘‘आदविक, यह मेरी दोस्त आबरू है और आबरू यह मेरा दोस्त आदविक.’’
आबरू की आंखों में निर्वेद के लिए झलकते चिंता के भाव काफी कुछ
कह रहे थे. निर्वेद की तबीयत अब ठीक लग रही थी, आदविक उन दोनों को अकेला छोड़ कर डाक्टर से बात करने के बहाने वहां से चला गया और बाहर बैंच पर बैठ गया. आदविक की कल्पना की उड़ान इस कहानी के सिरे ढूंढ़ने लगी. उसे यह तो पता था कि निर्वेद करीब 4 साल पहले किसी फौरेन असाइनमैंट के लिए इजिप्ट गया था और वहां वह 2 साल रहा था पर यह आबरू की क्या कहानी है?
तभी डाक्टर को सामने से आता देख आदविक उन से निर्वेद के अपडेट्स लेने लगा. डाक्टर ने दवाइयों और इंस्ट्रक्शंस की लिस्ट के साथ घर ले जाने की आज्ञा दे दी.
कमरे में आ कर आदविक ने सब बताते हुए निर्वेद से कहा, ‘‘तू मेरे घर चल, मैं तु झे अकेले नहीं छोड़ूंगा.’’
निर्वेद ने सवालिया निगाहों से आबरू की तरफ देखा तो वे अपनी फ्रैंच इंग्लिश में बोली, ‘‘आदविक आप निर्वेद की चिंता बिलकुल न करें मैं उस का ध्यान रखूंगी. कोई जरूरत हुई तो आप को बता दूंगी.’’
आदविक ने हैरानी और परेशानी से निर्वेद की ओर देखा, ‘‘यार यह कैसे संभालेगी? न तो यह यहां की भाषा जानती है न ही इसे यहां का सिस्टम सम झ आएगा.’’
आबरू उन की हिंदी में हो रही बातचीत को न सम झ पाने के कारण कुछ असमंजस में थी सो बोली, ‘‘आप यहां बैठो मैं तब तक डाक्टर से मिल कर आती हूं.’’
उस के जाते ही आदविक ने अपने प्रश्नों भरी निगाहें निर्वेद की तरफ मोड़ीं.
निर्वेद अपनी सफाई देते हुए बोला, ‘‘तु झे पता है मैं कुछ साल पहले इजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था. आबरू वहीं मेरी ही कंपनी में काम करती थी. यह वहां के एक जानेमाने परिवार की है. इस का उसी दौरान तलाक हुआ था. इसीलिए इस का नौकरी से भी मन उचट गया था और काफी परेशान रहने लगी थी. फिर इस ने नौकरी छोड़ दी.
‘‘तो फिर अब क्या करती है?’’
‘‘इसे कला और कलाकृतियों की काफी अच्छी परख है और यही उस का शौक भी था. तु झे तो पता ही है कि मु झे भी कला से काफी लगाव है. तो बस इस के नौकरी छोड़ने के बाद भी हमारे शौक समान होने के कारण हमारी दोस्ती बरकरार रही. फिर मेरी सलाह पर इस ने भारतीय कलाकृतियां भी रखनी शुरू कर दीं.’’
‘‘पर तु झे तो आए 2 साल हो गए, फिर अब यह यहां कैसे?’’
‘‘यहां से भारतीय कलाकृतियां को ले जाने के लिए यहां आई हुई है. अभी उस का काम पूरा नहीं हुआ है इसलिए यहीं है. लेकिन जैसा तू सम झ रहा है वैसा कुछ भी नहीं है,’’ निर्वेद ने नजरें झुका कर कहा.
निर्वेद और आबरू निर्वेद के घर लौट गए, 1-2 बार आदविक उस से मिलने निर्वेद के घर भी गया और उस के चेहरे की लौटती रौनक देख कर आबरू द्वारा की जा रही देखभाल से आश्वस्त हो कर लौट आया.
आज छोटी दीवाली का दिन था. आदविक के पास सुबहसुबह निर्वेद का फोन
आया, ‘‘क्या तू कल सुबह 9 बजे मेरे घर आ सकता है… मु झे अस्पताल जाना है.’’
‘‘क्या हुआ, सब ठीक तो है न?’’
‘‘हांहां सब ठीक है. चैकअप के लिए बुलाया है.’’
‘‘ठीक है.’’
जब आदविक अगले दिन उस के घर पहुंचा तो उसे निर्वेद और आबरू दोनों कुछ ज्यादा ही अच्छे से तैयार लगे. वह सम झ न पाया कि अस्पताल जाने के लिए भला इतना तैयार होने की क्या जरूरत है. फिर सोचा छोड़ो यार जैसी इन की मरजी. बाहर निकले तो निर्वेद बोला, ‘‘गाड़ी मैं चलाऊंगा.’’
‘‘अरे लेकिन मैं हूं न.’’
‘‘नहीं मैं ही चलाऊंगा. अब तो मैं ठीक हूं,’’ वह जिद करने लगा.
हार कर आदविक ने उसे गाड़ी की चाबी देते हुए कहा, ‘‘ओके, यह ले.’’
मगर थोड़ी देर में गाड़ी को अस्पताल की तरफ न मुड़ते देख आदविक बोला, ‘‘अरे यार अस्पताल का कट तो पीछे रह गया तेरा ध्यान कहां है?’’
निर्वेद मुसकराते हुए बोला, ‘‘ध्यान सीधा मंजिल पर है.’’
‘‘मंजिल कौन सी…’’ आदविक का वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि उस ने देखा गाड़ी मैरिज रजिस्टरार के औफिस के सामने जा रुकी.
‘‘निर्वेद यार यहां क्यों, कैसे…’’
‘‘अरे यार मैरिज के लिए और कहां जाते हैं,’’ निर्वेद ने गाड़ी से निकलते हुए ठहाका लगाया.
‘‘मैरिज किस की, कैसे?’’
गाड़ी से निकल कर निर्वेद और आबरू ने एकदूसरे की बांहों में बांहें डालते हुए हाथ पकड़ कर एकसाथ कहा, ‘‘ऐसे और हमारी,’’ और दोनों खिलखिला उठे.
आदविक ने आबरू की ओर देखा तो उस के शर्म से लाल चेहरे से नईनवेली दुलहन झलक रही थी?
‘‘अच्छा तो यह बात है तो फिर यह भी बता दो कि इस बेचारे गरीब की दौड़ क्यों लगवाई सुबहसुबह?’’
‘‘तो क्या गवाह हम खुद ही बन जाते?’’ मुसकराते हुए निर्वेद ने अपने उसी अंदाज में कहा.
आदविक सोचने पर मजबूर हो गया कि जिस की जिंदगी जीने की किरण भी बु झ गई
थी, जिस की किश्ती किनारे पर डूब गई थी उसे पार भी लगाया तो उजाले के साथ, दीयों के साथ, ऊपर से उसे दीवाली की सतरंगी रोशनी से लबरेज भी कर दिया. यह सतरंगी रोशनी वाली प्यार की दुनिया तु झे बहुतबहुत मुबारक हो मेरे दोस्त. दीवाली के पटाखों की आवाजें चारों तरफ से आ रही थीं सभी प्रसन्न थे. निर्वेद भी दीवाली के उपहार के रूप में आबरू को पा कर प्रसन्न था.