खिलाड़ियों के खिलाड़ी: भाग 1- क्या थी मीनाक्षी की कहानी

राज्य के चीफ सैक्रेटरी विशाल दिल्ली से आए कुछ उच्च अधिकारियों के साथ हाईलेवल और मोस्ट सीक्रेट मीटिंग में अपना मोबाइल साइलैंट तथा वाइब्रेट मोड पर रख कर बैठे हुए थे. मीटिंग की अध्यक्षता राज्य के मुख्यमंत्री कर रहे थे. मीटिंग शुरू हुए आधा घंटा हुआ था कि उन के सामने उन का रखा मोबाइल वाइब्रेट हुआ.

विशाल ने देखा कि मोबाइल की एक्स्ट्रा लार्ज स्क्रीन पर ‘एम एन’ ये 2 अक्षर बारबार उभर रहे थे. विशाल को यह समझने में देर न लगी कि यह मीनाक्षी नाईक की कौल है. एसी रूम होने के बावजूद विशाल के माथे पर पसीने की बूंदें फैल गईं, उस ने धीरे से अपनी जेब से रूमाल निकाल कर माथे पर फेर दिया, फिर सब से नजरें चुराते हुए ‘मैं मीटिंग में हूं’ लिख कर मैसेज भेज दिया.

विशाल की आंखों के सामने ‘एम एन’ अर्थात मीनाक्षी नाईक की मदहोश करने वाली मोहक छवि उभर आई जिस ने पिछले कुछ समय से उस की नींद हराम कर दी थी. शहर के एक कुख्यात गुंडे अरुण नाईक की पत्नी मीनाक्षी अपने पति के मुकदमे के सिलसिले में करीब 4 साल पहले एक दिन उस से मिलने उस के औफिस आई थी जब वह राज्य के सचिव के पद पर आसीन था.

जब मीनाक्षी नाईक पहली बार उस की केबिन में दाखिल हुई थी तब वह उसे देखते ही रह गया था. विशाल की नजरें मीनाक्षी के चेहरे से हटने का नाम नहीं ले रही थीं. उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार इतनी खूबसूरत महिला देखी थी. बड़ेबड़े कजरारे नशीले नैन, गुलाब की पंखुडियों से रसभरे होंठ, उफनता वक्षस्थल जहां से साड़ी का पल्लू किंचित नीचे खिसक गया था जिसे वह उचित स्थान पर स्थिर करने की असफल कोशिश कर रही थी. काली और घनी रेशमी जुल्फों की लटें उस के चांद से चेहरे पर अठखेलियां करते हुए कभी आंखों, तो कभी गालों, तो कभी लरजते लबों को छू रही थीं जिन्हें वह बारबार कभी अपने कोमल हाथ से तो कभी अपनी सुराही सी गरदन से झटक कर हटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन हर बार उसे नाकामयाबी ही मिल रही थी.

मीनाक्षी ने मुसकराते हुए कहा, ‘गुडमौनिंग सर.’

मीनाक्षी नाईक की मधुर और खनकती आवाज से विशाल की तंद्रा टूटी, वह संभलते हुए बोला, ‘यस, यस वैरी गुडमौर्निंग, प्लीज हैव ए सीट.’

‘थैंक्यू सर,’ कहते हुए मीनाक्षी कुरसी पर बैठ गई. अब मीनाक्षी विशाल के बिलकुल समीप आ गई थी.

‘बोलिए मैडम, मैं आप की क्या सहायता कर सकता हूं,’ मीनाक्षी के चेहरे से नजर हटाते हुए विशाल ने कहा.

‘सर, मैं पहले अपना परिचय देना चाहूंगी. मैं मीनाक्षी नाईक, अरुण नाईक की पत्नी हूं. मैं अपने पति पर चल रहे मुकदमे के सिलसिले में आप से सहायता मांगने आई हूं.’

अरुण नाईक का नाम सुनते ही विशाल की भौंहें तन गईं. वह क्रोधित होते हुए बोला, ‘तो तुम नाईक गैंग के मुखिया अरुण नाईक की पत्नी हो जिस ने पुलिस और सरकार की नाक में दम कर रखा है. शार्पशूटर अरुण नाईक के अपराधों का कोई हिसाब नहीं है. मु?ो माफ करना इस बारे में मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता,’ कहते हुए विशाल ने दोनों हाथ जोड़ दिए.

‘सर, मेरी बात तो सुनिए. इस मामले को प्रैस ने जरूरत से ज्यादा उछाला है. दरअसल,’ मीनाक्षी अपनी बात पूरी भी न कर पाई थी कि तभी विशाल की केबिन में उन के सहायक ने आ कर बताया कि मुख्यमंत्री ने उन्हें तुरंत बुलाया है. इसी बीच मीनाक्षी ने विशाल का विजिटिंग कार्ड ले लिया और उन से विदा लेते हुए वह केबिन से बाहर आ गई.

मीनाक्षी नाईक केबिन से बाहर जरूर चली गई थी मगर उस की मादक और मोहक छवि युवा अफसर विशाल की नजरों के सामने बारबार आ रही थी. विशाल की पत्नी दिल्ली में थी, वह मायानगरी में अकेला ही रह रहा था. बैठेबैठे न जाने उस के मन में ऐसेवैसे विचार आने लग गए. वह अपनेआप को संयमित रखने की नाकाम कोशिश करता रहा. उस का काम में भी मन नहीं लग रहा था. विशाल सोचने लगा कि राज्य के ज्यादातर मंत्री भी तो भ्रष्ट हैं. वे कई बार उस से अपने रिश्तेदारों या यारदोस्तों के फेवर में काम करवाते रहते हैं. फिर उस के विभाग के छोटेमोटे अफसर भी तो दूध के धुले नहीं हैं.

काश, वह मीनाक्षी की पूरी बात सुन लेता. उसे अपनेआप पर गुस्सा आने लगा. दोचार दिन बीत गए. न तो मीनाक्षी का फोन आया न ही वह दोबारा मिलने औफिस में आई. शिकार खुद चल कर आया था और उस ने सुनहरा मौका गंवा दिया था. उस की फाइल ले कर रख लेता, फिर टिपिकल सरकारी अफसर की तरह ‘अभी देख रहा हूं’, ‘कोशिश कर रहा हूं’, ‘मैं ने ऊपर बात कर ली है’, ‘आगे बात हो रही है’, ‘कुछ वक्त लगेगा’, ‘मामला थोड़ा पेचीदा है मगर तुम्हारा काम हो जाएगा’ आदि जुमलों में तो वह भी माहिर है.

एक दिन दोपहर में विशाल लंच से फारिग हो कर अपनी केबिन में सुस्ताते हुए किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहा था. तभी टेबल के एक कोने में रखे मोबाइल की घंटी बजी. उस ने लपक कर मोबाइल उठाया. उधर से आवाज आई-

‘हैलो सर, मैं मीनाक्षी बोल रही हूं.’

मधुर आवाज सुन विशाल की सुस्ती पलभर में फुरती में बदल गई. ‘हां, बोलो मीनाक्षी, उस दिन मु?ो मुख्यमंत्री ने बुला लिया था, इसलिए मैं तुम्हारी बात ध्यान से नहीं सुन सका. फिर औफिस में दिनभर काम का टैंशन भी रहता है.’

‘कोई बात नहीं सर, मैं दोबारा आ जाती हूं. अगर आप बुरा न मानें तो मैं फाइल ले कर शाम को आप के बंगले पर आ जाऊं?’

विशाल मन ही मन खुश होते हुए बोला, ‘नेकी और पूछपूछ.’ फिर उस ने अपने उतावलेपन व उत्साह पर अंकुश रखते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘ठीक है, वैसे मैं बंगले पर किसी को बुलाता नहीं हूं, पर तुम आ जाना.’

‘ओके सर, मैं आज शाम को आती हूं,’ कहते हुए मीनाक्षी ने फोन काट दिया.

बंगले पर पहुंच कर विशाल ने सब से पहले अपने किचन स्टाफ को वीआईपी गैस्ट के आने की सूचना दी. फिर अन्य कर्मचारियों को बारबार यहांवहां न घूमने की सख्त हिदायत दी. रात को 8 बजे मीनाक्षी खूबसूरत गुलदस्ते के साथ विशाल के बंगले पर पहुंच गई.

विशाल ने धन्यवाद देते हुए गुलदस्ता स्वीकार किया. गुलदस्ता लेते वक्त मीनाक्षी के कोमल हाथों का जादुई स्पर्श उस के रोमरोम को रोमांचित कर गया. विशाल ने गुलदस्ता मेज पर रखा और मीनाक्षी को सोफे पर अपने करीब बैठने का इशारा किया. मीनाक्षी झक कर सोफे पर बैठने लगी तो उस की साड़ी का पल्लू उस के उभरे हुए वक्षस्थल से हट गया, जिसे उस ने तुरंत संभाला. पर विशाल की पैनी नजरों ने इस नजारे को कैद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

औपचारिक बातों के बाद मीनाक्षी अपने बैग से मुकदमे से संबंधित फाइल निकालने लगी. तो विशाल ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘अरे, रहने दो मीनाक्षी. इसे बाद में देख लेंगे. तुम पहली बार हमारे आशियाने में आई हो, पहले डिनर करेंगे, फिर तुम्हारी फाइल देख लेंगे.’

डाइनिंग हौल में डिनर लग चुका था. डिनर करने से पहले हौट डिं्रक की भी व्यवस्था थी. विशाल ने मीनाक्षी को डिं्रक की ओर चलने का इशारा किया तो पहले तो उस ने आनाकानी की, मगर विशाल के खास आग्रह करने पर वह मना नहीं कर सकी और अपने हाथ में पैग ले लिया.

मीनाक्षी अपने प्लान में कामयाब हो रही थी. वह पूरी तैयारी के साथ यहां पर आई थी. उस ने विशाल कुमार से हुई पहली मुलाकात में ही उस की नजरों में छलकती उस की ‘खास मंशा’ को भांप लिया था. कहते हैं कि औरतों में ‘सिक्स्थ सैंस’ भी होता है जो पुरुष की आंखों के भावों को अनायास ही समझ लेता है.

मीनाक्षी ने अपने बालों में लगे गजरे के बीच एक ‘हाई पावर माइक्रो कैमरा’ छिपाया था जिस का आकार हेयरपिन की तरह था. पहले जाम टकराए, मीनाक्षी ने बड़े प्यार से विशाल को दोएक जाम ज्यादा पिला दिए और स्वयं बेसिन में हाथ धोने के बहाने अपना प्याला खाली कर देती. इस के बाद डिनर हुआ और डिनर के बाद दोनों बैडरूम में पहुंच गए.

नशे में धुत विशाल भूखे भेडि़ए की तरह उस पर टूट पड़ा था. मीनाक्षी ने बहुत ही सावधानी से शूटिंग कर ली. फिर बाथरूम जाने का बहाना बना कर कैमरेरूपी हेयरपिन को अपने पर्स में संभाल कर रख दिया.

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लिली: भाग 3- अमित ने क्या किया था

दोनों को एकसाथ रहते हुए सालभर से ऊपर हो चुका था. न लिली अमित को अपने मांबाप से मिलवाती, न ही शादी के लिए उस के मन में कोई  खयाल आता.

आजिज आ कर एक दिन अमित ने साफसाफ लफ्जों में शादी करने के  लिए कहा.

‘‘ठीक है, मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, मगर हम रहेंगे कहां? क्या हमारे पास कोई अपना फ्लैट है?’’

‘‘शादी से फ्लैट का क्या ताल्लुक?’’ अमित के सवाल पर लिली तुनक उठी, ‘‘जब तक अपना फ्लैट नहीं होगा, मैं शादी नहीं करूंगी.’’

अमित की लिली के बगैर जिंदगी की कल्पना भी बेमानी थी. वह उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी थी. उस ने काफी दिमाग दौड़ाया. बनारस में पुश्तैनी मकान था. क्यों न उसे बेच कर मुंबई में फ्लैट खरीद लिया जाए? विचार बुरा नहीं था. लिली को अमित का आइडिया पसंद आया.

अमित अगले दिन औफिस से छुट्टी ले कर बनारस आया.

‘‘तुम ने कैसे सोच लिया कि हम पुश्तैनी मकान बेच कर मुंबई में रहने लगेंगे? रही शादी की बात, तो यहीं कोई लड़की देख कर शादी कर लो. मु झे वह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है,’’ अमित के पापा ने साफ शब्दों में कहा.

‘‘पापा, हम कई महीनों से लिव  इन रिलेशनशिप में हैं,’’ सुनते ही पापा भड़क गए.

‘‘शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते हुए. कैसी बेशर्म लड़की है, जो बिना शादी किए तुम्हारे साथ रहती है? और कैसे मांबाप हैं उस के, जो लड़की को बिना शादी किए किसी गैर लड़के के साथ रहने की इजाजत दे दी?’’

अमित अपनी मां की तरफ देख कर लाचार भरे लहजे में बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हीं पापा को सम झाओ. आजकल ऐसे ही चलता है. पहले हम साथ रह कर एकदूसरे को सम झते हैं, फिर ठीक लगता है तो शादी करते हैं, वरना एकदूसरे से अलग हो जाते हैं.’’

‘‘ऐसे तो वह और कइयों से साथ रही होगी?’’ अमित के पापा ने सच ही कहा था, मगर अमित के दिमाग में घुसे तब न. उस के ऊपर तो लिली का भूत सवार था. आखिरकार अमित की मां के आगे पापा को झुकना पड़ा. मकान का एक हिस्सा बेच कर उन्होंने अमित को रुपए दे दिए. जातेजाते एक नसीहत दी कि देखना, तुम एक दिन पछताओगे.

अमित रुपए पा कर मुंबई लौट आया.

फ्लैट लिली के नाम खरीदा. लिली का कहना था कि जब शादी करनी है, तो चाहे तुम अपने नाम खरीदो या फिर मेरे, बात तो एक ही है.

अब दोनों निश्चिंत थे. एक हफ्ते बाद अमित ने लिली से कोर्ट मैरिज करने के लिए कहा. वह टालती रही.

आजिज आ कर एक दिन अमित ने तल्ख शब्दों में कहा, ‘‘लिली, अब देर किस बात की है?’’

‘‘अमित, शादी कर के घरगृहस्थी में तो फंसना ही है. क्यों न कुछ दिन और मजे ले लें,’’ लिली की यह बात उसे अच्छी नहीं लगी.

दूसरे दिन औफिस के काम से अमित अहमदाबाद चला गया. 2 दिन बाद लौटा तो देखा कि एक आदमी उस के फ्लैट के अंदर था.

‘‘यह कौन है?’’ अंदर घुसते ही उस ने सब से पहले लिली से सवाल किया.

‘‘मेरा फुफेरा भाई. आज ही आया है.’’

अमित दूसरे कमरे में आया. पीछेपीछे लिली भी आई.

‘‘पहले तो तुम ने इस के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था. अब यह कहां से आ गया?’’

उस रोज किसी तरह लिली ने बहाना कर के फुफेरे भाई का मामला  टाला. मगर अमित इस से संतुष्ट नहीं था. वह अकसर उस से शादी की जिद करने लगा.

लिली के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. एक दिन उस ने भी त्योरियां चढ़ा लीं.

‘‘मान लो कि मैं तुम से शादी के लिए तैयार नहीं होती हूं, तो तुम क्या कर लेगे?’’ इस सवाल ने अमित को सकते में डाल दिया.

‘‘तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती  हो लिली? हम काफी दूर निकल  चुके हैं.’’

‘‘तुम्हारी गंवई सोच है, वरना तुम्हारे साथ रह कर मैं तो ऐसा नहीं सोचती?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘‘मतलब साफ है. मैं किसी और से शादी करना चाहती हूं.’’

अमित को काटो तो खून नहीं. उसे सपने में भी भान नहीं था कि लिली के मन में उस के प्रति इतना छल भरा है. उसे पापा की बात याद आने लगी, जब उन्होंने कहा था कि देखना, तुम एक  दिन पछताओगे.

लिली ने खुद बताया था कि उस के और भी कई अफेयर हैं. इस के बावजूद अमित नहीं चेता. अब सिवा पछतावे के उस के पास कोई रास्ता नहीं रहा.

फ्लैट लिली के नाम से था. अमित की तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा लिली के ऊपर खर्च होता रहा. वह यही सोचता रहा कि जिस के साथ जिंदगी गुजारनी है, उस से क्या हिसाब ले?

‘‘लिली, तुम मजाक तो नहीं कर रही हो?’’ अमित का स्वर डूबा था.

‘‘बिलकुल नहीं. जिस लड़के को  मैं फुफेरा भाई कह रही थी, वही मेरा पति होगा.’’

‘‘लिली, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया?’’

लिली के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई, ‘‘मैं तुम्हें एक हफ्ते की मोहलत दे रही हूं. इस फ्लैट को खाली कर दो,’’ लिली ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘नहीं छोड़ूंगा. यह मेरा फ्लैट है,’’ अमित की बात पर लिली ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘एक साल तक मेरे जिस्म पर तुम्हारा हक रहा. क्या उस की कीमत नहीं दोगे? थोड़ी सी नकदी, कुछ गहने और यह फ्लैट. इतना ही तो लिया है तुम से. क्या इतना भी नहीं देना चाहोगे  माई डियर…?’’

अमित के पास इस का कोई जवाब नहीं था. गलती तो उस से हुई है, सो दंड भुगतना ही होगा.

‘‘यही कीमत है लिव इन रिलेशनशिप की. मुफ्त में तुम्हें क्यों दूं? एक वेश्या भी अपने शरीर का सौदा करती है, वह भी कुछ घंटों के लिए.

मैं ने तो कई महीने तुम्हारे साथ  गुजार दिए.’’

अमित की आंखों से आंसू निकल पड़े. उसे यही चिंता खाने लगी कि वह अपने मांबाप को क्या मुंह दिखाएगा?

अगली सुबह भरे मन से अमित ने लिली का फ्लैट छोड़ कर वापस बनारस जाने का फैसला ले लिया. लिली के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी. वह खुश थी. चलो, छुटकारा तो मिला. अब किसी और को फांस कर वह लिव इन रिलेशनशिप का खेल खेलेगी.

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लिली: भाग 2- अमित ने क्या किया था

अब लिली खुश थी. तकरीबन  2 महीने हो गए दोनों की दोस्ती को. बातोंबातों में लिली ने बताया था कि वह मुंबई में अकेली रहती है. मातापिता पूना में रहते हैं. क्यों न हम एकसाथ रहें?

अमित को यह अटपटा लगा. इस से अच्छा है कि दोनों शादी कर लें.  अमित यही चाहता था, मगर लिली तैयार नहीं हुई.

‘‘अमित, शादी कोई गुड्डेगुड्डी का खेल नहीं. पहले हम एकदूसरे को सम झ लें, फिर शादी कर लेंगे. लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे, तो एकदूसरे को सम झने में आसानी होगी,’’ दोटूक कह कर लिली ने अपनी मंशा जाहिर कर दी.

अब अमित को फैसला लेना था कि वह इसे स्वीकार करता है या नहीं.

अमित लिली को खोना नहीं चाहता था, वहीं उस के संस्कार बिना शादी किसी लड़की के साथ रहने की इजाजत नहीं दे रहे थे.

‘‘यह कैसा संबंध लिली? बिना शादी हम एकदूसरे के साथ रहें? क्या रह जाएगा हमारेतुम्हारे बीच? ऐसे ही  साथ रहना है, तो शादी कर लेने में क्या बुराई है?’’

‘‘कैसी दकियानूसी बात कर रहे हो? मैं बर्फ  नहीं, जो तुम्हारे साथ रह कर पिघल जाऊंगी? साल 6 महीने साथ  रह लेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा?’’  लिली ने उलाहना दिया, ‘‘तुम कौन  सी दुनिया में रह रहे हो अमित. यह  नई दुनिया है. पुराने रिवाज टूट रहे  हैं,’’ लिली के प्रस्ताव के आगे  अमित ने हाथ खड़े कर दिए.

लिली कुछ कपड़े और एक सूटकेस ले कर अमित के पास रहने चली आई. लिली रविवार को अपने मांबाप से मिलने पूना जाती थी. अमित भी जाना चाहता था, मगर वह मना कर देती. पर क्यों, यह उस की सम झ से परे था.

लिली के रूपरंग में पूरी तरह डूबे अमित को लिली के सिवा कुछ नहीं सू झता. आहिस्ताआहिस्ता लिली अमित के हर मामले में दखल देने लगी. अमित पूरी तरह से लिली पर निर्भर हो गया.

अपने महीने की तनख्वाह लिली के हाथ में सौंप कर अमित निश्चिंत रहता. एक दिन लिली पूना गई, तो 3 दिन  बाद लौटी.

अमित परेशान हो गया. लिली को फोन लगाता, तो स्विच औफ  मिलता.  3 दिनों के बाद लिली लौट आई.

अमित ने शिकायत भरे लहजे में उस से हुई देरी की वजह पूछी, तो वह नाराज हो गई. वह बोली, ‘‘अमित, मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं. हम दोस्त हैं. बेहतर होगा, मेरे बारे में ज्यादा खोजबीन न किया करो.’’

यह सुन कर अमित को बुरा लगा. मगर यह सोच कर चुप रहा कि लिली ने सही कहा कि वे सिर्फ  दोस्त हैं.

अमित के बिगड़े मूड को लिली ने भांप लिया. सो, गलती सुधारने की नीयत से वह अमित के करीब आ कर बैठ गई. उस के बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘डार्लिंग, नाराज मत होना. मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने रोक लिया, तो रुकना पड़ा.’’

लिली की सफाई पर अमित का मूड बदल गया.

‘‘तुम नहीं जानती कि मैं कितना परेशान था,’’ बच्चे सरीखा बरताव था अमित का. लिली उस की कमजोरी जानती थी.

सुबह दोनों अपनेअपने काम पर निकल गए. शाम को दोनों ने फिर से बाहर खाने की योजना बनाई. रात 10 बजे लौट कर आए. जैसे ही आराम करने के लिए बिस्तर पर गए, तभी लिली के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह बरामदे में आई. वह 15 मिनट बाद वापस आई. आते ही बिस्तर पर पड़ गई.

अमित ने इस बार कोई सवाल नहीं किया, क्योंकि वह जान चुका था कि लिली इसे अपना पर्सनल मामला कह कर चुप करा देगी.

अमित सोचने लगा यह कैसा संबंध है कि मेरी हर चीज पर लिली का हक है. बदले में कुछ पूछता हूं तो यह कह कर मुंह बंद करा देती है कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं?

एकबारगी अमित का मन हुआ कि वह लिली से साफ साफ  कह दे कि या तो वह उस से शादी कर ले, नहीं तो अपना बोरियाबिस्तर समेट कर चली जाए.

ऐसा करने की वह सोच ही रहा था कि अगली शाम लिली ने उसे एक शर्ट खरीद कर तोहफे में दी.

‘‘यह क्या…?’’ अमित ने सवाल किया.

‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है,’’ लिली बोली, तो अमित जज्बाती हो गया.  उस ने लिली को बांहों में भर लिया. अमित का सवाल सवाल ही रह गया.

अगले दिन रविवार था. लिली अपनी मां के पास जाने लगी.

‘‘क्या मैं तुम्हारी मां से नहीं मिल सकता?’’ अमित बोला, तो लिली सकपका गई.

‘‘अभी समय नहीं आया है,’’ कह कर लिली चली गई. एक ही छुट्टी मिलती थी, वह भी लिली अपनी मां के पास गुजार देती थी. अमित दिनभर बोर होता. आज उस ने अकेले ही घूमने का मन बनाया. मरीन ड्राइव पर बैठा वह समुद्र की लहरों को निहार रहा था कि लिली का फोन आया.

‘अमित मु झे एक लाख रुपए की सख्त जरूरत है. अभी और इसी वक्त मेरे खाते में डाल दो. सारी बातें आने पर बताऊंगी,’ कह कर लिली ने फोन काट दिया. लिली ने अपने एकाउंट की डिटेल भेजी थी.

अमित ने बिना देर किए उतने रुपए ट्रांसफर कर दिए.

लिली जब लौटी, तो बदहवास थी मानो किसी बहुत बड़ी मुसीबत से छूट कर आई हो.

‘‘तबीयत तो ठीक है न…?’’ अमित ने पूछा.

‘‘नहीं, आज मैं औफिस नहीं जाऊंगी,’’ कह कर लिली सो गई.

अमित अकेले ही काम पर चला गया. शाम को वह लौटा, तो लिली के लिए पिज्जा लेता आया. पिज्जा देख कर लिली खुश हो गई.

दोनों पिज्जा खाने लगे. बीच में अमित ने रुपयों की बात छेड़ी.

‘‘रुपए तुम को वापस मिल जाएंगे,’’ लिली के इस कथन से अमित संतुष्ट नहीं था. लिली ने भांप लिया. उस ने उस के मुंह में पिज्जा डालते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, क्यों परेशान होते हो? क्या अपनी लिली के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं सोच रहा था कि ऐसे कब तक चलेगा?’’

‘‘मैं सम झी नहीं?’’ लिली बोली.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘फिर वही शादी का रोना. अमित तुम सम झने की कोशिश करो. जब तक हम दोनों एकदूसरे को सम झ नहीं लेते, शादी का कोई मतलब नहीं है.’’

तभी लिली के मोबाइल की घंटी बजी. वह पिज्जा बीच में खाना छोड़ कर बरामदे में आई. अमित सोफे पर बैठा लिली का इंतजार करने लगा. तकरीबन 15 मिनट बाद वह आई.

‘‘किस का फोन था?’’ अमित से रहा न गया.

‘‘मेरे एक्स बौयफ्रैंड का फोन था.’’

‘‘क्या तुम्हारा किसी और से भी संबंध था?’’

‘‘हां, यह तो आम बात है. मैं उस के साथ एक साल तक रिलेशन में थी.’’

अमित को यह जान कर धक्का  सा लगा.

आगे पढ़ें- आजिज आ कर एक दिन अमित ने…

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लिली: भाग 1- अमित ने क्या किया था

लिली की बिंदास पहल ने अमित को मुश्किल में डाल दिया. एक दिन वह हंस कर बोली, ‘‘क्या तुम मुझसे दोस्ती करना पसंद करोगे?’’

उस रोज अमित  झेंप गया. उसे कोई जवाब नहीं सू झा. बस, मुसकरा दिया.

रातभर वह लिली के ही बारे में सोच रहा था. कल जब उस से मुलाकात होगी, तो वह क्या जवाब देगा? क्या उस के प्रस्ताव को ठुकरा देगा?

लिली पहली लड़की थी, जिस ने उसे प्रपोज किया. एक अदने से शहर  से जब वह मुंबई नौकरी करने  आया था, तब सिवा नौकरी के उसे

कुछ नहीं पता था. न ही यहां की लड़कियों के तौरतरीके, न ही इस शहर का मिजाज.

लिली अमित को एक रैस्टोरैंट में मिली थी, जहां वह अकसर खाना खाने जाता था. यहीं से दोनों में जानपहचान शुरू हुई.

लिली ने उसे अपना ह्वाट्सएप का नंबर दिया और कहा, ‘‘अगर हां हो, तो जरूर संदेश देना.’’

लिली खूबसूरत थी. छोटे शहर की लड़कियों से अलग उस का रूपरंग बहुत अच्छा. वह फैशनेबल थी.

अमित के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. सोचविचार कर उस ने फैसला लिया कि वह लिली की पहल को नहीं ठुकराएगा.

अगले दिन जब अमित रैस्टोरैंट गया, तो सब से पहले उस की नजर लिली की चेयर पर गई. यही समय होता था लिली के आने का.

अमित ने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, मगर वह नहीं दिखी. वह बेचैन हो गया. आज उस के दिल में एक खालीपन का अनुभव हुआ. कुरसी पर बैठ कर वह खाने का इंतजार करने लगा. रहरह कर उस की नजर दरवाजे पर चली जाती.  तभी लिली आती दिखी. अमित का चेहरा खिल गया.

लिली ने मुसकरा कर उसे विश किया. उस के बाद अपनी चेयर पर बैठ कर लिली मोबाइल पर उंगलियां फेरने लगी. अमित से रहा न गया. उस ने तत्काल उसे मैसेज दिया, ‘शाम को खाली हो?’

लिली ने मैसेज का तुरंत जवाब दिया, ‘हां.’

इस तरह दोनों ने शाम को साथ बिताने का फैसला लिया. एक तय जगह पर दोनों मिले. मोटरसाइकिल पर बैठ कर मरीन ड्राइव पर आए. समुद्र के किनारे लगे चबूतरे पर बैठ कर दोनों आपस में बातचीत करने लगे.

‘‘तुम किस कंपनी में हो?’’ लिली ने पूछा.

‘‘मैं यहीं एक सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में इंजीनियर हूं.’’

‘‘अकेले हो? मेरा मतलब शादी से है,’’ लिली ने पूछा.

‘‘अभी कुंआरा हूं,’’ कह कर अमित हंसा.

कुछ सोच कर अमित ने लिली से भी यही सवाल किया. जवाब में लिली ने बतलाया कि वह कुंआरी है. एक कुरियर कंपनी में नौकरी करती है.

इस तरह जब भी समय मिलता, वे दोनों एकदूसरे के साथ बिताना पसंद करते. धीरेधीरे दोनों के संबंध गाढ़े  होते गए.

एक रोज लिली गले में सुंदर सी चेन पहन कर आई थी. अमित ने देखा, तो तारीफ किए बिना न रह सका.

‘‘मां ने दी है. आज मेरा बर्थडे है,’’ लिली की इस बात से अमित को शर्मिंदगी हुई. बौयफ्रैंड होने के नाते यह हक सब से पहले उसे जाता था. काश, पहले पता होता, तो वह निश्चय  ही लिली को सरप्राइज दे कर निहाल  कर देता.

अमित कुछ सोच कर बोला, ‘‘देर से ही सही, आज तुम्हारा बर्थडे मेरे फ्लैट पर धूमधाम से मनेगा. मां से बोल दो कि आने में देर होगी.’’

अमित बहुत खुश था. लिली के साथ वह एक अच्छी सी दुकान में गया. वहां उस की पसंद के सोने के  झुमके दिलवाए. 40,000 रुपए का बिल चुकता किया.

लिली ने मना किया, मगर अमित के लिए अपने पहले प्यार का तोहफा था. उस के बाद केक और पिज्जा ले कर अपने फ्लैट पर आया. दोनों ने खूब मजे किए. रात 11 बजने को हुए. ‘‘अच्छा तो मैं चलती हूं,’’ कह कर लिली ने अपना पर्स संभाला.

अमित का मन तो नहीं था उसे छोड़ने का, मगर कैसे कहे. जुमाजुमा चार दिनों की मुलाकात थी. कहीं वह बुरा न मान ले.

लिली अमित के करीब आई. उस के गालों को हलके से चूम लिया. अमित का रोमरोम खिल उठा.

लिली के जाने के बाद अमित उस के ही ख्वाबों और खयालों में डूबा रहा. रहरह कर गालों पर अपनी उंगलियां फेरता तो ऐसा लगता लिली अब भी उस के करीब है. एक अजीब सी मादकता उस के ऊपर हावी हो गई. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन लिली का था.

‘‘पहुंच गई?’’ अमित ने पूछा.

‘हां,’ लिली का जवाब था, ‘क्या कर रहे हो? सोए नहीं?’ उस ने पूछा.

‘‘नींद नहीं आ रही,’’ अमित का जवाब था.

‘रात के 2 बज रहे हैं. औफिस नहीं जाना है?’

‘‘यार, तुम तो अभी से मेरी चिंता करने लगी?’’

‘क्या करूं. दिल के हाथों मजबूर हूं.’

‘‘ऐसा क्या देखा मु झ में?’’ पूछ कर अमित हंसा.

लिली सोच कर बोली, ‘कभीकभी भावनाओं के आगे शब्द कम पड़ जाते हैं,’ वह आगे बोली, ‘तुम ने मु झ में क्या देखा?’

अमित थोड़ा शरमाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे होंठ. जब गुलाबी लिपस्टिक लगा कर आती हो, तो ऐसा लगाता है मानो गुलाब की 2 पंखुडि़यां एकदूसरे को चूम रही हों.’’

‘ऐसा था तो पहल क्यों नहीं की?’ लिली ने शरारत की.

‘‘डरता था, कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘मन तो नहीं कर रहा, पर क्या करें नौकरी जो करनी है. अच्छा, गुडनाइट,’ लिली ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया.

आज लिली सफेद कपड़े पर गुलाब रंग के फूल बने छींटे वाला पहन कर आई थी. बालों को खास तरीके से गूंथा था. लट चेहरे पर  झूल रही थी. गोरा रंग उस पर सुर्ख गुलाबी होंठ कयामत ढा रहे थे. अमित उसे देखता ही रह गया.

आज शाम दोनों ने फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया. सिनेमाघर का सन्नाटा पा कर अमित की भावनाएं कुछ ज्यादा उबाल लेने लगीं. रहा न गया तो उस के होंठों को चूम लिया. लिली पहले तो सकपकाई, पर बाद में सहज हो गई.

यह सिलसिला अब ऐसे ही चलता रहा. अब दोनों के बीच कुछ भी परदा नहीं रहा.

एक रोज लिली परेशान थी. अमित ने उस की परेशानी की वजह पूछी, तो वह बोली, ‘‘मु झे 50,000 रुपए की सख्त जरूरत है.’’

यह पहला मौका था, जब लिली ने उस से रुपयों की डिमांड की. इज्जत का सवाल था, इसलिए वह मना न कर सका. तुरंत उस के खाते में 50,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए.

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पीछा करता डर: भाग 4- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

युवती कुनमुनाते हुए उठी और मेज पर आ कर बैठ गई. नशे में धुत नंदन माथुर चुपचाप बैठे थे. भानु ने युवती के लिए बड़ा सा एक पैग बनाया और उस के हाथ में थमाते हुए बोला, ‘‘ये पियो और खाना खा कर सो जाओ. इस के बाद मैं भी अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

युवती ने एक ही बार में गिलास खाली कर दिया. पीने के बाद तीनों ने साथसाथ खाना खाया. खाना खातेखाते तीनों ही नशे में डूब चुके थे. खाना खाने के बाद भानु नंदन की ओर देख कर उठते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू फौर ड्रिंक्स एंड डिनर. अब चलता हूं.’’

‘‘फोटो तो डिलीट कर दो. तुम ने वादा किया था.’’ नंदन माथुर ने कहा, तो भानु कोट की जेब में डाथ डालते हुए बोला, ‘‘हां, वादा तो किया था. वादा निभाने में भी मुझे कोई एतराज नहीं है.’’ भानु जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लो, ये लो मोबाइल ही रख लो. तुम कोई गैर थोड़े ही हो. सुबह ले लूंगा.’’

नंदन ने मोबाइल लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो भानु ने हाथ पीछे खींच लिया. वह युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘दोस्त, मुझे फोटोग्राफी का बड़ा शौक है. अब एक क्लाइमेक्स सीन और बनाना है. उस के बाद मोबाइल तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘कौन सा सीन?’’

‘‘तुम दोनों एक बार गले लग जाओ.’’

‘‘ब्लैकमेल करना चाहते हो हमें’’ नंदन माथुर ने कहा, तो भानु बोला, ‘‘ब्लैकमेल ही करना होता तो इस सब की जरूरत नहीं थी. काफी सबूत जुटा लिए मैं ने नंदन माथुर को नंगा करने के लिए. तुम लोग हकीकत में एंजौय कर रहे हो और मैं केवल उस की एक झलक देखना चाहता हूं. चलो दोस्त, दोनों आलिंगनबद्ध हो जाओ. उस के बाद मैं इस कमरे की घुटन में एक पल भी नहीं रूकूंगा.’’

नंदन माथुर और युवती नशे में थे और भानु को किसी तरह टालना चाहते थे. अत: उसे खुश करने के लिए एकदूसरे की बाहों में सिमट गए. जब वे दोनों एकदूसरे की बांहों में सिमटे थे, तभी भानु ने तड़ातड़़ उन के 2-3 शौट खींच लिए.

फोटो खींचने के बाद भानु ने मोबाइल जेब में डाला और हाथ हिला कर दरवाजे की ओर बढ़ते हुए बोला, ‘‘गुड नाइट फ्रैंडस, सुबह चाय पर मुलाकात होगी.’’

‘‘भानु,’’ नंदन गुस्से में चीखे, ‘‘ये क्या बद्तमीजी है. तुम ने फोटो डिलीट करने की बात की थी. हम ने तुम्हारी हर बात मानी, अब मोबाइल दो मुझे.’’

भानु ने पीछे मुड कर नंदन की ओर देखा और मुस्कराते हुए व्यंग्य में बोला, ‘‘पता नहीं इतना बड़ा बिजनैस कैसे चलाते हो! अक्ल तो खाक की भी नहीं है तुम्हारे अंदर. जरा सोचो, जिस कैमरे में इतनी कीमती फोटो हों, उसे मैं तुम्हें मुफ्त में क्यों दूंगा.’’

‘‘ये बात पहले ही तय हो चुकी थी. तुम ने खुद ही वादा किया था.’’

भानु वापस लौट कर नंदन के पास आया और उस के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘दोस्त, यह मामला रुपएपैसे या बिजनैस का नहीं है. ऐसे धंधों में वादा खिलाफी आम बात है. बड़ी सीधी सी बात है, इस हाथ लो, इस हाथ दो. मेरा खयाल रखोगे तो मैं मोबाइल तुम्हारे हाथ में थमा दूंगा.’’

‘‘और क्या चाहिए तुम्हें?’’ नंदन ने गुस्से में पूछा, तो भानु युवती की ओर देख कर मुस्कराते हुए बोला, ‘‘ये…क्या नाम है इस का? ओह, आईसी, जान का जंजाल. आज की रात तुम्हारी जान के जंजाल को अपनी जान का जंजाल बनाना चाहता हूं. बोलो, हां या न?’’

‘‘भानु.’’ नंदन गुस्से में चीखे तो भानु सहज स्वर में बोला, ‘‘गुस्सा सेहत के लिए हानिकारक तो होता ही है नंदन! कभीकभी इज्जत के लिए भी दुखदाई बन जाता है. ठंडे दिमाग से सोचो, इस मोबाइल में तुम्हारी और इस लड़की की जिंदगी की हकीकत कैद है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो यह हकीकत यहीं दफन हो जाएगी और नहीं मानी तो यही हकीकत सजधज कर मेरठ की सड़कों पर भरतनाट्यम करेगी.’’

‘‘यह ठीक नहीं है भानु.’’ नंदन माथुर हथियार डालते हुए परेशान हो कर बोले, ‘‘किसी की इज्जत से इस तरह खेलना ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं इज्जत से कहां खेल रहा हूं. मैं तो सिर्फ अपना हक मांग रहा हूं.’’ भानु युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘बंद कमरे में तुम एक जवान लड़की के साथ ऐश कर सकते हो, तो क्या मैं नहीं कर सकता? मैं तो उम्र में भी तुम से साल 2 साल छोटा ही हूं.’’

‘‘ये लड़की कालगर्ल नहीं है भानु. मेरी…’’

‘‘तुम्हारी प्रेमिका है,’’ भानु नंदन का वाक्य पूरा करते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘दो बच्चों के बाप और चालीस साला आदमी की चौबीस साला कोई प्रेमिका भी हो सकती है, यह आज पहली बार पता चला. यह भी आज पहली बार जाना कि कोई शादीशुदा लड़की अधेड़ उम्र के अपने प्रेमी के लिए मायके जाने के नाम पर पति को धोखा दे कर ऐश करने के लिए मेरठ से दिल्ली आ सकती है.’’

पलभर रूक कर भानु युवती की बगल में खड़ा होते हुए बोला, ‘‘जो लड़की मानमर्यादा और पति को छोड अपने से डेढ़ गुनी उम्र वाले मर्द की बांहों में सिमट सकती है, वह कालगर्ल से कम नहीं होती.

तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, जैसा तुम्हारा पति, वैसा ही नंदन और वैसा ही मैं. इज्जत का जरा भी खयाल है तो हां कर दो.’’

नंदन समझ चुके थे कि बाजी भानु के हाथों में है. अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्हें मोबाइल हासिल करना जरूरी लगा. सोच विचार कर उन्होंने लड़की से बात की. युवती भी जान चुकी थी कि इज्जत बचाने का एक ही विकल्प है कि वह भानु के साथ जाए. उस ने हां कर दी, तो नंदन भानु से बोले, ‘‘मोबाइल दो, सुजाता तुम्हारे कमरे में जा रही है.’’

भानु ने इस बार कोइ नानुकुर नहीं की. सुजाता का हाथ थामते हुए उस ने जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन की ओर बढ़ा दिया. जातेजाते वह नंदन की ओर देख कर बोला, ‘‘दोस्त बुरा मत मानना. इस पर दिल आ गया था, इसलिए इतना प्रपंच करना पड़ा. 2 घंटे बाद इसे वापस भेज दूंगा. सोना नहीं, इंतजार करना.’’

भानु सुजाता के साथ कमरे से बाहर निकल गया. नंदन मोबाइल हाथ में थामे खड़े रह गए. मोबाइल गौर से देखा तो याद आया, भानु पिछले महीने विदेशी टुअर से लौटा था तो एक जैसे 2 मोबाइल ले कर आया था, एक अपने लिए, एक उन के लिए. लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया था. देखा, उस मोबाइल में उन का और सुजाता का कोई फोटो नहीं था. इस का मतलब भानु ने उन्हें दूसरा मोबाइल थमा दिया था.

हालांकि भानु ने कमरा नंबर बताया था. पर उन्हें भरोसा नहीं था कि उस ने सच बोला होगा. रात में तमाशा करना उन्हें वैसे भी ठीक नहीं लगा. वह बेड पर जा लेटे, लेकिन नशे के बावजूद वह सो नहीं सके. 2 घंटे बाद जब सुजाता वापस लौटी, तो वह जाग रहे थे. सुजाता नशे में भी थी और थकी हुई भी वह आते ही सो गई, लेकिन नंदन माथुर रातभर नहीं सो सके.

सुबह 7 बजे जब डोर बेल बजी तब भी नंदन जाग रहे थे. उन्होंने दरवाजा खोला, तो भानु को सामने खड़े पाया. वह कुछ कहते इस से पहले ही भानु बोला, ‘‘मैं जा रहा हूं. मेरा मोबाइल लौटा दो.’’

‘‘मैं ने तोड़ कर डस्टबिन में डाल दिया तुम्हारा मोबाइल. कहो तो ला दूं.’’ नंदन ने गुस्से में कहा, तो भानु ने मुस्कराते हुए जेब में हाथ डाल कर वैसा ही मोबाइल निकाल कर दिखाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं दोस्त, वो तुम्हारा ही था. मेरा मोबाइल तो मेरे पास है और उस में फोटो और रिकौर्डिंग दोनों हैं.’’

भानु अपनी बात कह कर आगे बढ़ गया नंदन मूक खड़े उसे जाते देखते रह गए.

अगले दिन शाम को भानु ने नंदन को पीनेपिलाने के लिए अपनी कंपनी में बुलाया तो वह डर की वजह से इनकार नहीं कर सके. दोनों आमनेसामने बैठे. हमेशा की तरह बातचीत कुछ नहीं.

एकएक पैग पीने के बाद भानु ने जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन के सामने रखते हुए कहा, ‘‘मुंह मत बना, ले खुद सब कुछ डिलीट कर दे. तू दोस्त है मेरा. तेरी इज्जत मेरी इज्जत. तू सुजाता को छुपा रहा था, इसलिए ऐसा करना पड़ा. मैं ने तो हमेशा हिस्सा बांटा है तुम से.’’

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पीछा करता डर: भाग 3- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

नंदन गिलास उठाता या कुछ बोलता, इस से पहले ही भानु का इशारा पा कर युवती ने कंपकपाते हाथों से गिलास उठा लिया. नंदन अभी सोच में डूबा बैठा था. भानु उस की ओर देख कर व्यंग्य में बोला, ‘‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. ज्यादा संयासी न बनो उठाओ गिलास.’’

नंदन का हाथ फिर भी आगे नहीं बढ़ा तो भानु अपना गिलास मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘यकीन मानो, तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं है. ये सब तो मजाक था. फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन जब तक मैं हूं, मेरे साथ इंजौय करो. मैं 2 पैग पी कर चला जाऊंगा. लेकिन ये 2 पैग मैं ने तुम दोनों के साथ पीने का वादा किया है.’’

नंदन समझ गए, भानु यूं मानने वाला नहीं है. मजबूरी थी, सो उन्होंने गिलास उठा लिया. युवती और नंदन दोनों ही आधे घंटे से भयानक तनाव में थे. उन्होंने गिलास हाथ में उठाए तो खाली होते देर न लगी. एक पैग ह्विस्की गले से नीचे उतरी, तो उन के चेहरों पर तनाव की रेखाएं कुछ कम हुईं.

उन दोनों के गिलास खाली देख भानु ने भी अपना गिलास खाली किया और तीनों के लिए एकएक पैग और बनाया. नंदन और उस युवती ने यह सोच कर दूसरे पैग भी जल्दी ही खाली कर दिए कि उन की देखादेखी वह भी जल्दी से गिलास खाली कर के चला जाएगा. लेकिन भानु ने दूसरा पैग पीने में कोई जल्दी नहीं की. वह चिकन खाते हुए आराम से सिप करता रहा.

खानेपीने के इस दौर में उन तीनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी. बीच में कुछ बोलता भी था, तो केवल भानु. नंदन और युवती के गिलास खाली देख भानु ने उन के गिलासों में ह्विस्की डालनी शुरू की, तो नंदन ने चौंकते हुए कहा, ‘‘ये क्या कर रहे हो भानु?’’

‘‘पैग बना रहा हूं. अपने लिए नहीं, तुम दोनों के लिए,’’ भानु मुस्कराते हुए बोला, ‘‘तुम्हें मेरा साथ देना है न…मेरे दो पैग तक. यही तो तय हुआ है.’’

नंदन भानु की चालाकी समझ गए. गलती उन की ही थी, जो उसे जल्दी भगाने के चक्कर में जल्दी से दोनों पैग चढ़ा गए. उन्होंने मन ही मन फैसला किया कि अब धीरेधीरे सिप करेेंगे. उन्होंने ही नहीं, युवती ने भी इस पर अमल किया. लेकिन भानु के बारबार अनुरोध पर जब उन दोनों ने गिलास हाथों में उठाए तो भानु ने गजब की फुर्ती से मोबाइल निकाला और वे लोग कुछ समझ पाते, इस से पहले ही दोनों का साथसाथ पीते हुए एक स्नैप ले लिया.

उस वक्त तक नंदन पर नशा हावी हो चुका था. वह गिलास मेज पर रख कर खड़े होते हुए गुस्से में बोले, ‘‘भानु, मैं मार डालूंगा तुम्हें. तुम ब्लैकमेल करना चाहते हो मुझे.’’

भानु ने भी अपना गिलास मेज पर रख दिया और मोबाइल जेब में डाल कर खड़े होते हुए शांत स्वर में बोला, ‘‘बात दोस्ती की चल रही थी और तुम दुश्मनी पर उतरने लगे. क्या इस के पहले तुम ने मेरे साथ कभी शराब नहीं पी? हर दूसरे तीसरे दिन तो… और हां, हिम्मत है, मुझे मार डालने की? जो आदमी अपनी प्रेयसी के साथ अपने शहर, अपने घर में ऐश करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता, वह किसी को क्या मारेगा.

‘‘तुम में अगर गैरत होती, तो इस खूबसूरत छलावे की जगह अपनी पत्नी और बच्चें के बीच होते. हिम्मत होती तो इसे ले कर अपने शहर से अस्सी किलोमीटर दूर यहां न आए होते. बहुत हो चुका. चुपचाप बैठो और अपना गिलास खाली करो.’’

नंदन को गुस्सा आया जरूर था, पर अपनी स्थिति का खयाल आते ही काफूर हो गया. वह हारे जुआरी की तरह बैठ गए और एक ही बार में गिलास खाली कर दिया. उन के खाली गिलास में ह्विस्की डालते हुए भानु युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘तुम लोग मुझे बिल्कुल गलत समझ रहे हो. मैं पहले ही बता चुका हूं कि मैं तुम्हें ब्लैकमेल नहीं करूंगा, बल्कि तुम लोगों के साथ एंजौय करना चाहता हूं. वह भी सिर्फ दो पैग तक.’’

‘‘तो फिर ये फोटोबाजी की क्या जरूरत है? ’’ नंदन ने तुनक कर पूछा, तो भानु उन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘मैं ने कह तो दिया, जाने से पहले फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन बात वही है कि जिसे अपने आप पर भरोसा न हो, वह दूसरों पर क्या भरोसा करेगा.’’

भानु ने नंदन के गिलास में थोड़ा पानी डाला, थोड़ा सोड़ा. इस के बाद उस ने एक ही झटके में अपना गिलास खाली किया और एक पैग ह्विस्की डाल कर उस में भी थोड़ा सोड़ा और पानी डाल लिया. वह उस का तीसरा पैग था, जो उस ने एक ही बार में खाली कर दिया.

भानु का गिलास खाली होते ही, नंदन माथुर शांत भाव से बोले, ‘‘भानु, तुम 2 नहीं, 3 पैग ह्विस्की पी चुके हो. वादा पूरा हो चुका. अब तुम अपने कमरे में जाओ. बाकी जो बात करनी हो, सुबह कर लेना.’’

‘‘बिल्कुल ठीक कहा तुम ने दोस्त,’’ भानु ने जान बूझ कर शराबियों वाले अंदाज में कहा, ‘‘वाकई अब मुझे जाना चाहिए. नशा भी काफी हो चुका है. लेकिन एक समस्या है. बातोंबातों में मैं दो की जगह 3 पैग पी गया और 3 सैद्धांतिक रूप से ठीक नहीं होते. देखो न, हम 3 हैं, इसलिए बीचबीच में तनाव और लड़ाईझगड़े की स्थिति बन जाती है. 2 या 4 होते, तो ऐसा कतई नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि तुम लोगों के साथ बिताया डेढ़ घंटे का समय कोई गंभीर स्थिति पैदा कर दे, इसलिए मेरा एक पैग और पीना जरूरी है.’’

भानु की इस बात के जवाब में न नंदन कुछ बोले, न युवती. भानु ने नंदन की ओर देख कर कहा, ‘‘सवा दस बजे हैं. ऐसा करो, रूम सर्विस को खाने के लिए बोल दो. साढ़े दस के बाद खाना नहीं मिलेगा. तुम लोगों के साथ 2 चपाती खा कर अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

भानु ने नंदन के कमरे में बैठ कर अपने दिमाग से जिस तरह जाल बुना था, उस में वह पूरी तरह फंस चुके थे. वह जानते थे कि भानु इतनी आसानी से नहीं टलेगा. अत: उन्होंने रूम सर्विस को फोन कर के खाने का आर्डर दे दिया.

पौने ग्यारह बजे जब वेटर खाना ले कर आया तो भानु, नंदन और युवती तीनों ही अपनेअपने गिलास खाली कर चुके थे. डोरबेल की आवज सुनते ही युवती अपना गिलास मेज के नीचे रख कर बेड पर जा लेटी.

नंदन और भानु के गिलास अभी भी मेज के ऊपर ही रखे थे. नंदन की जगह भानु ने ही दरवाजा खोला. वेटर ने अंदर आ कर मेज से खाली गिलास और प्लेटें हटाईं और मेज की साफसफाई कर के खाना लगा दिया.

जब वेटर अपना काम कर चुका तो भानु ने अपने कोट की अंदरवाली जेब में हाथ डाल कर 100 रुपए का नोट निकाला और वेटर को थमाते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू फौर गुड सर्विस. खाना खा कर हम अपने कमरे में चले जाएंगे. साहब को डिस्टर्ब नहीं करना, बर्तन सुबह उठा लेना.’’

‘‘यस सर.’’ कहते हुए वेटर चला गया. वेटर के जाते ही भानु ने स्वयं उठ कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा बंद करने के बाद भानु बेड पर लेटी लड़की के पास पहुंचा और उस की बांह पकड़ कर उठाते हुए बोला,

‘‘उठो डियर जान के जंजाल. अभी एक

पैग भी पीना है और खाना भी खाना है.’’

‘‘मुझे सोने दो, नींद आ रही है.’’ युवती ने भानु का हाथ झटकते हुए कहा, तो भानु हलके से उस की बांह मरोड़ते हुए बोला, ‘‘बनो मत, मैं सब जानता हूं, तुम कितने नशे में हो. मैं ने तुम्हारे गिलास में जान बूझ कर चारचार बूंद ह्विस्की डाली थी. इतनी ह्विस्की से तुम जैसी लड़की को कभी नशा नहीं हो सकता.’’

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पीछा करता डर: भाग 1- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

नंदन माथुर और भानु प्रकाश दोनों बड़े बिजनेसमैन थे. साथ खानेपीने और ऐश करने वाले. भानु विदेश गया तो एक जैसे 2 मोबाइल ले आया. एक अपने लिए दूसरा दोस्त के लिए. लेकिन नंदन ने उस का तोहफा नहीं लिया. फिर भानु ने उसी मोबाइल को हथियार बना कर नंदन को ऐसा नाच नचाया कि…

उस रात सर्दी कुछ ज्यादा ही थी. लेकिन आम लोगों के लिए, अमीरों के लिए नहीं. अमीरों की वह ऐशगाह भी

शीतलहर से महरूम थी, जिस का रूम नंबर 207 शराब और शबाब की मिलीजुली गंध से महक रहा था.

इस कमरे में नंदन माथुर ठहरे थे. पेशे से एक्सपोर्टर. लाखों में खेलने वाले इज्जतदार इंसान.

रात के पौने 9 बजे थे. कैनवास शूज से गैलरी के मखमली कालीन को रौंदता हुआ एक व्यक्ति रूम नंबर 207 के सामने पहुंचा. आत्मविश्वास से भरपूर वह व्यक्ति कीमती सूट पहने था. उस ने पहले ब्रासप्लेट पर लिखे नंबर पर नजर डाली और फिर विचित्र सा मुंह बनाते हुए डोरबेल का बटन दबा दिया.

दरवाजा खुलने में 5 मिनट लगे. कमरे के अंदर लैंप शेड की हलकी सी रोशनी थी, जिस में दरवाजे से अंदर का पूरा दृश्य देख पाना संभव नहीं था1 अलबत्ता कमरे के बाहर गैलरी में पर्याप्त प्रकाश था.

नंदन माथुर सर्दी के बावजूद मात्र बनियान व लुंगी पहने थे. उन के बाल भीगे थे और ऐसा लगता था, जैसे बाथरूम से निकल कर आ रहे हों. दरवाजे पर खड़े व्यक्ति को देख नंदन का समूचा बदन कंपकंपा कर रह गया. उन्होंने घबराए स्वर में कहा, ‘‘भानु तुम! इस वक्त…’’

‘‘ऐसे आश्चर्य से क्या देख रहे हो? मैं भूत थोड़े ही हूं,’’ सूटवाला कमरे में प्रवेश कते हुए बोला, ‘‘मैं भी इसी होटल में ठहरा हूं. कमरा नंबर 211 में. अकेला बोर हो रहा था, सो चला आया.’’

‘‘वो तो ठीक है, लेकिन…’’ नंदन माथुर दरवाजा खुला छोड़ कर भानु के पीछेपीछे चलते हुए बोले.

‘‘लेकिन वेकिन बाद में करना, पहले दरवाजा बंद कर के कपड़े पहन लो. सर्दी बहुत तेज है. सर्दी में पैसे और बदन की गरमी भी काम नहीं करती दोस्त,’’ भानु कुर्सी पर बैठते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘इतनी ठंड में नहा रहे थे. लगता है, पैसे की गरमी कुछ ज्यादा ही है तुम्हे.’’

नंदन की टांगे थरथरा रही थीं. कुर्सी पर पड़ा तौलिया उठा कर गीले बाल पोंछते हुए उन्होंने सशंकित स्वर में पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहां ठहरा हूं.’’

‘‘चाहने वाले कयामत की नजर रखते है दोस्त,’’ भानु ने उठ कर दरवाजे की ओर बढ़ते हुए व्यंग्य किया, ‘‘आया हूं, तो थोड़ी देर बैठूंगा भी. तुम कपड़े पहन लो. फिर आराम से सवाल करना.’’

भानु ने दरवाजा बंद किया, तो नंदन माथुर का दिल धकधक करने लगा. नंदन चाहते थे कि भानु किसी भी तरह चला जाए, जबकि भानु जाने के मूड में कतई नहीं था. मजबूरी में नंदन ने गर्म शाल लपेटा और भानु के सामने आ बैठे. उन के चेहरे पर अभी भी हवाइयां उड़ रही थीं. बैठते ही उन्होंने लड़खड़ाती आवाज में पूछा, ‘‘तुम्हें पता कैसे चला, मैं यहां ठहरा हूं?’’

‘‘इत्तफाक ही समझो,’’ भानु ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वरना तुम ने किलेबंदी तो बड़ी मजबूत की थी, अशरफ खान साहब उर्फ नंदन माथुर’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब कुछ नहीं यार! मैं ने पार्किंग में तुम्हारी गाड़ी खड़ी देखी तो समझा, तुम ठहरे होगे. रिसेप्शन से पता किया तो रजिस्टर में तुम्हारा नाम नहीं था. मैं ने सोचा 2 बजे तक तो तुम औफिस में थे. उस के बाद ही आए होगे. यहां 4-5 बजे पहुंचे होगे.

मैं ने रिसेप्शनिस्ट से 4 बजे के बाद आने वाले कस्टमर्स के बारे में पता किया तो पता चला, केवल एक मुस्लिम दंपत्ति आए हैं, जो कमरा नंबर 207 में ठहरे हैं. मैं सोच कर तो यही आया था कि इस कमरे में अशरफ खान और नाजिया खान मिलेंगे, लेकिन दरवाजा खुला तो नजर आए तुम… तुमने और भाभी ने धर्म परिवर्तन कब किया नंदन?’’

नंदन माथुर का चेहरा सफेद पड़ गया. जवाब देते नहीं बना. उन्हें चुप देख भानु इधरउधर ताकझांक करते हुए मुसकरा कर बोला, ‘‘लेकिन भाभी हैं कहां? कहीं बाथरूम में तो नहीं हैं? बाथरूम में हों तो बाहर बुला लो. ठंड बहुत है, कुल्फी बन जाएंगी.’’

‘‘फिलहाल तुम जाओ भानु. प्लीज डोंट डिस्टर्ब मी. हम सुबह बात करेंगे.’’ नंदन माथुर ने कहा तो भानु पैर पर पैर रख कर कुरसी पर आराम से बैठते हुए बोला, ‘‘मैं जानता हूं नंदन. बाथरूम में भाभी नहीं, बल्कि वो है, जिस के लिए तुम ने अपनी पहचान तक बदल डाली. फिर भी इतने रूखेपन से मुझे जाने को कह रहे हो. यह जानते हुए भी कि मैं बाहर गया तो तुम्हारा राज भी बाहर चला जाएगा.’’

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ नंदन ने आवाज थोड़ी तीखी करने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.

भानु मुस्कराते हुए बोला, ‘‘इस राज को शराब के गिलास में डुबो कर गले से नीचे उतार लेना चाहता हूं… तुम्हारी इज्जत की खातिर. तुम्हारे परिवार की खातिर. बस इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहता मैं.’’

‘‘यह मेरा व्यक्तिगत मामला है. मैं तुम्हें धक्के दे कर भी बाहर निकाल सकता हूं.’’ नंदन ने गुस्से में खड़े होते हुए कहा, तो भानु उसे बैठने का इशारा करते हुए धीरे से बोला, ‘‘धीर गंभीर व्यक्ति को गुस्सा नहीं करना चाहिए. जरा सोचो, तुम ने मुझे धक्के दे कर निकाला तो मैं चीखूंगा.

‘‘चीखूंगा तो वेटर आएंगे. मैंनेजर आएगा. कस्टमर आएंगे. जब उन्हें पता चलेगा कि मैं तुम्हारे कमरे में जबरन घुसा था तो वे पुलिस को बुलाएंगे.

‘‘पुलिस मुझ से पूछताछ करेगी. जाहिर है, मैं अपने बचाव के लिए नंदन माथुर उर्फ अशरफ खान की पूरी कहानी बता दूंगा. पुलिस से बात पत्रकारों तक पहुंचेगी और फिर अखबारों के जरीए यह खबर सुबह तुम से पहले तुम्हारे घर पहुंच जाएगी. खबर होगी एक्सपोर्टर नंदन माथुर होटल में अय्याशी करते मिला. मेरा ख्याल है, तुम ऐसा कतई नहीं चाहोगे.’’

पलभर में ही नंदन की सारी अकड़ ढीली पड़ गई. उन्होंने बैठते हुए थकी सी आवाज में पूछा, ‘‘क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘सिर्फ दो पैग ह्विस्की पीनी है, तुम्हारे और उस के साथ.’’

‘‘ह्विस्की नहीं है मेरे पास.’’ नंदन ने रूखे स्वर में कहा, तो भानु इधरउधर तांकझांक करते हुए बोला, ‘‘क्यों झूठ बोलते हो यार. पूरा कमरा तो महक रहा है.’’

मेज के नीचे दो खाली गिलास रखे थे. भानु ने बारीबारी से दोनों गिलास उठा कर सूंघे और मेज पर रखते हुए गर्दन हिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘हूं…उं…! दोनों ने पी है.’’

माथुर की हालत रंगेहाथों पकड़े गए चोर जैसी हो गई. वह बहुत कुछ कहना चाहते थे, विरोध करना चाहते थे, लेकिन चाह कर भी वे न विरोध कर सके, न कुछ कह सके.

भानु ने कुर्सी से उठ कर बेड के नीचे झांका. ह्विस्की की बोतल बेड के नीचे उल्टी पड़ी थी. भानु बोतल उठ कर देखते हुए बोला, ‘‘वाह विंटेज,…अच्छी चीज है. शबाब के साथ शराब भी तो बढि़या होनी चाहिए.’’

शराब की बोतल हाथ में उठाए भानु फिर कुर्सी पर आ बैठा. वह बोतल को एक हाथ में ऊपर उठा कर देखते हुए बोला, ‘‘दोनों ने दोदो पैग पिए हैं. इतनी सर्दी में दो पैग से क्या होता है.’’

बोतल मेज पर रख कर भानु ने मेज के नीचे फिर ताकझांक की. मेज के नीचे 2 प्लेंटे रखी थीं. उस ने दोनों प्लेंटे उठा कर मेज पर रख दीं. एक प्लेट में भुने काजू थे, दूसरी में सलाद. भानु प्लेटों की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘मुझे काजू और सलाद पसंद नहीं हैं. मुझे नानवेज चाहिए. रूमसर्विस को फोन कर के खाली गिलास, सोडा और रोस्ट चिकन लाने को बोलो.’’

नंदन माथुर किंकर्तव्यविमूढ से बैठे थे. उन्हें चुप देख भानु बोला, ‘‘एक काम करो, पहले उसे बाहर बुला लो. ठंड में अकड़ जाएगी. हां उस से बस इतना ही कहना कि मैं तुम्हारा दोस्त हूं.’’

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पीछा करता डर: भाग 2- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

नंदन माथुर जड़वत् बैठे थे. चेहरे पर तनाव. आंखों में विचित्र सा भय. भानु खड़े हो कर उन का कंधा थपथपाते हुए बोला, ‘‘दोस्त, कोई गलत इरादा नहीं है मेरा. जिंदगी जीने का सबका अलगअलग ढंग होता है. यकीन करो, तुम्हारा ये राज इस कमरे से बाहर नहीं जाएगा. चलो उठो, बुला लो उसे.’’

मन मार कर नंदन माथुर उठे और बाथरूम की ओर बढ़ गए. भानु दोनों हाथ पीछे बांधे वहीं खड़ा रहा. नंदन ने बाथरूम का दरवाजा नौक करते हुए धीरे से आवाज दी, ‘‘बाहर आ जाओ.’’

पहले बाथरूम की कुंडी खुलने की आवाज आई, फिर दरवाजा खोल कर एक युवती ने बाहर झांका. नंदन बाथरूम के बाहर ही खड़े थे. वह उसे देखते ही बोले, ‘‘डरो मत, एक दोस्त है. अचानक चला आया.’’

25-25 साल की वह गौरांगी गुलाबी नाइटी में बड़ी खूबसूरत लग रही थी. ठंड के मारे उस का बुरा हाल था. उस के भीगे बालों से अभी तक पानी टपक रहा था, जिस से नाइटी का ऊपरी भाग भीग गया था.

बाथरूम से बाहर निकल कर उस युवती ने पहले एक नजर पास खड़े नंदन पर डाली, फिर भानु की ओर देखा. ठीक उसी समय भानु के पीछे सिमटे हाथ तेजी से आगे आए और क्लिक की आवाज के साथ युवती और नंदन के चेहरे फ्लैश की रोशनी में चमक उठे.

पलभर के लिए नंदन और युवती दोनों ही स्तब्ध रह गए. भानु की चालाकी भांप कर नंदन ने जैसेतैसे अपने आप को संभाला और भानु को देख कर आंखें तरेरते हुए पूछा, ‘‘यह क्या बद्तमीजी है?’’

‘‘इस में बद्तमीजी की क्या बात है?’’ भानु मोबाइल संभाले कुर्सी पर बैठते हुए बोला, ‘‘तुम दोनों इस पोज में प्रेमीप्रेमिका लग रहे थे. मुझे नेचुरल पोज लगा, सो खींच लिया. ऐसे पोज रोजरोज थोड़े ही बनते हैं.’

नंदन और वह युवती अभी तक सहमे खड़े थे, तभी भानु ने उन की ओर देख कर मोबाइल वाला हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘वंस मोर’’

नंदन और युवती ने अपनेअपने हाथ उठा कर मुंह छिपाने की कोशिश की, लेकिन तब तक भानु कैमरे का शटर दबा चुका था.

भानु मोबाइल जेब में डालते हुए बोला, ‘‘नंदन, तुम तो ऐसे डर रहे हो, जैसे मैं कोई ब्लैकमेलर हूं. डरो मत दोस्त, मेरा कोई भी गलत इरादा नहीं है.’’

‘‘इरादा तो मैं तुम्हारा समझ गया हूं.’’ नंदन ने गुस्से में कहा. भानु संभल कर बैठते हुए बोला, ‘‘समझ गए हो तो और भी अच्छा है. मुझे अपनी बात कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

नंदन तो डरे हुए थे ही, युवती उन से भी ज्यादा डर गई थी. उस ने मुंह फेर कर तौलिया उठाया और ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ गई. नंदन भानु के पास आ खड़े हुए और उस से पूछा, ‘‘तुम चाहते क्या हो, भानु?’’

‘‘सिर्फ दो पैग ह्विस्की,’’ भानु लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘तुम्हारे और उस के साथ. क्या नाम है उस का?’’

‘‘भाड़ में गया नाम. मुझे यह बताओ, मैं ने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा है क्या?’’

‘‘मैं भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ूंगा. मेरे खयाल से 2 पैग ह्विस्की पिलाने से तुम्हारा कुछ नहीं बिगडेगा.’’

‘‘बात ह्विस्की की नहीं है. तुम चाहो तो पूरी बोतल ले जाओ.’’

‘‘तो क्या बात है? तुम्हारे चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही है?’’

‘‘ये फोटो… क्या है ये सब?’’

‘‘मुझे पोज अच्छा लगा, खींच लिया. तुम्हें अच्छा नहीं लगा, बनवा कर तुम्हें दे दूंगा. इस में डरने की क्या बात है?’’

‘‘फोन से डिलीट कर दो, प्लीज.’’

‘‘मुझ से फोटो डिलीट करने को कह रहे हो और खुद 2 पैग ह्विस्की नहीं पिला सकते.’’

‘‘2 क्या 4 पैग पिलाऊंगा. पहले फोटो डिलीट कर दो.’’

‘‘ठीक है, डिलीट कर दूंगा, लेकिन 2 पैग पीने के बाद. रूम सर्विस को फोन कर के गिलास, सोडा और रोस्ट चिकन का आर्डर दो.’’

मजबूरी थी, नंदन ने रूम सर्विस को फोन कर के भानु के मनमुताबिक आर्डर दे दिया.

कमरा वातानुकूलित था. अंदर ज्यादा ठंड नहीं थी. बाथरूम के बाहर आ कर युवती को काफी राहत मिली थी.

जब तक वेटर सामान ले कर आया, तब तक नंदन और भानु के बीच कोई बात नहीं हुई. इस बीच भानु बैठा हुआ फिल्मी गीत गुनगुनाता रहा. ‘आज की रात… वेटर सामान दे गया, तो भानु ने पहले अपना पैग बनाया, फिर मेज के नीचे से दोनों गिलास निकाल कर उन में ह्विस्की डाली. उसे तीसरे गिलास में ह्विस्की डालते देख नंदन ने पूछा, ‘‘तीसरा पैग क्यों बना रहे हो?’’

‘‘उस के लिए.’’ भानु ने लड़की की ओर इशारा कर के कहा.

‘‘वो नहीं पिएगी.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता? यह तो उस की इच्छा पर निर्भर है. सामने आ कर बैठेगी तो खुद ब खुद इच्छा हो जाएगी.’’

‘‘मैं ने कहा न, नहीं पिएगी.’’ नंदन तीखी आवाज में बोले, तो भानु ने उन की आंखों में झांकते हुए व्यंग्य से कहा, ‘‘वो तुम्हारी बीवी है, जो तुम्हारे इशारों पर नाचेगी.’’

नंदन का मन कर रहा था अपने बाल नोच लेने का. उन का वश चलता तो वह एक पल में भानु को कमरे के बाहर कर देते. लेकिन मजबूरी थी. अत: गिड़गिड़ा कर दयनीय स्वर में बोले, ‘‘भानु प्लीज, तुम दो पैग पियो और जाओ.’’

‘‘जाने को तो मैं बिना पिए भी चला जाऊंगा. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘सो नहीं पाओगे रातभर. जिस मकसद से आए हो, वह भी अधूरा रह जाएगा.’’

‘‘तो तुम ही बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘कुछ नहीं, उसे बुला लो और प्यार से 2 पैग पिला दो. यकीन मानो, उस के बाद कतई डिस्टर्ब नहीं करूंगा.’’

नंदन सिर पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे, क्या करें?

भानु बोला, ‘‘क्या नाम है मोहतरमा का? मैं खुद ही बुला लेता हूं.’’

‘‘जी का जंजाल.’’ नंदन ने माथा पीटते हुए चिढ़ कर कहा, तो भानु खड़े होते हुए हंस कर बोला, ‘‘नाम अच्छा है. एकदम मौर्डन. चलो, इसी नाम से बुला लेते हैं.’’

युवती ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी बाल सुखा रही थी. भानु कुछ देर तक स्लीवलैस नाइटी से बाहर झांकती उस की गोरीगोरी बाहों को देखता रहा, फिर उस की नंगी बाहों को पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘उठो जी के जंजाल. दो पैग ह्विस्की हमारे साथ भी पी लो.’’

युवती ने खड़े हो कर तीखी नजरों से भानु की ओर देखा, फिर बांह छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘ये क्या बद्तमीजी है?’’

‘‘बद्तमीजी तब होती है डियर जान के जंजाल, जब सड़क चलती किसी अनजान लड़की का हाथ इस तरह पकड़ा जाए. होटल के बंद कमरे में किसी गैर मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही औरत का उसी कमरे में हाथ पकड़ लेना बद्तमीजी नहीं है. वैसे भी मैं ने हाथ ही तो पकड़ा है, और कुछ नहीं.’’

क्षणमात्र में युवती का ठंडा बदन गरम हो गया. चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. आंखों में बेबसी के भाव साफ झलक रहे थे. पलभर रूक कर भानु उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीरे से बोला, ‘‘तुम्हारे बारे में बहुत ज्यादा तो नहीं, पर थोड़ा बहुत जानता हूं. कुंवारी नहीं, शादीशुदा हो तुम.

‘‘बात पति और ससुराल तक पहुंच गई, तो घर की रहोगी, न घाट की. चल कर चुपचाप ह्विस्की पियो. उतने ही प्यार से जितने प्यार से नंदन के साथ पी रही थीं.’’

युवती का चेहरा पीला पड़ गया. वह बिना कुछ बोले मेज की ओर बढ़ गई. भानु की इस हरकत को देख कर नंदन खून का घूंट पी कर रह गए. भानु युवती को नंदन के पास वाली कुर्सी पर बैठाते हुए बोला, ‘‘देखो, बुरा आदमी नहीं हूं मैं. तुम लोगों का बुरा कतई नहीं चाहूंगा. जानता हूं. कपड़ों के नीचे सब नंगे होते हैं. जैसे तुम. वैसा मैं. अकेला था, सो चला आया. चलो उठाओ अपनेअपने पैग. मैं 2 पैग पी कर चला जाऊंगा.’’

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टिट फौर टैट: क्या था हंसिका का प्लान

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

साल की बैस्ट कहानी का अवार्ड लेते ही पूरा हौल तालियों से गूंज उठा था. विजयी लेखिका अरुंधती ने डायस पर आ कर धन्यवाद प्रेषित किया और अपनी कहानी के बारे में बताना शुरू किया-

“आप सब का बहुत शुक्रिया जो आप ने मेरी कहानी को वोट कर के इसे नंबर वन कहानी होने का खिताब दिलवाया. यह इस बात की तस्दीक भी करता है कि मेरी कहानी सिर्फ कहानीभर नहीं, बल्कि बहुत सी औरतों के जीवन की सचाई भी है.

“इस कहानी में एक ऐसी खूबसूरत व हसीन लड़की है जो अपने पति को एक महिला के साथ जिस्मानी संबंध बनाते देख लेती है और पति से इस बात की शिकायत करने पर उस के पति के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती, बल्कि वह और भी बेशर्म व निडर हो जाता है. और अब तो वह खुलेआम दूसरी औरत को घर में भी लाने लगता है. मेरी नायिका दूसरी भारतीय नारियों की तरह इस घटना से रोती नहीं, टूटती नहीं, बल्कि अपने पति को सबक सिखाती है. अगर उस का शादीशुदा पति किसी औरत से शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे भी पूरा हक है कि वह अपने पति से तलाक ले और अपनी शर्तों पर जीवन जिए.”

अरुंधती ने कहना जारी रखा-

“मेरी कहानी की नायिका अपने पति की बेवफाई से आहत है. प्रतिशोध लेने के लिए वह एक के बाद एक 4 युवकों से दोस्ती कर लेती है. उन में से 2 युवक शादीशुदा हैं जो अपनी विवाहित जिंदगी से परेशान हैं, जबकि 2 लड़के कुंआरे हैं. और देखिए कि मेरी नायिका पुरुषों की कामुक प्रवत्ति को पहचान कर उन सब को एकसाथ कैसे हैंडल करती है.

“‘हंसिका, मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं, तुम अभी तक पहुची क्यों नहीं?’ शेखर ने फोन पर परेशान आवाज़ में हंसिका से कहा.

“‘ओह, आई एम सो सौरी. मैं तुम्हें बता नहीं पाई, आज कंपनी के काम से औफिस में ही देर हो जाएगी मुझे.’

“‘पर मैं ने तो आज शाम का पूरा मूड बना लिया था,’ शेखर परेशान हो उठा था.

“‘कोई बात नहीं, तुम अपना मूड बनाए रखो, मैं तुम्हारी कल की शाम हसीन बना दूंगी,’ हंसिका ने फोन पर शेखर को दिलासा देते हुए कहा.

“‘किस से बात कर रही हो जानेमन,’ होटल के कमरे में घुसते हुए आर्यन ने पूछा.

“‘कोई नहीं, बस, ऐसे ही एक सहेली थी.’

“‘साफ क्यों नहीं कहती कि वह बेचारा भी मेरी तरह ही तुम्हारे हुस्न की गरमी का सताया हुआ आशिक है. न जाने तुम में कौन सी कशिश है जो हम आशिकों को तुम्हारे पास बारबार आने को मजबूर करती है.

“‘हम परवानों की बस इतनी सी इबादत है,

बस, तेरे हुस्न में झुलसने की आदत है.’

“यह कह कर आर्यन ने अपनी हंसिका को बांहों में भरा. हंसिका उस की आगोश में सिमटती चली गई. कुछ देर बाद कमरे में कामोत्तेजक सिसकारियां गूंजने लगी थीं. हंसिका और आर्यन एकदूसरे के जिस्म में समा गए थे. जब दोनों का जोश ठंडा हुआ तब हंसिका ने आर्यन के सीने पर सिर रखा और उस से पूछने लगी-

“‘तुम्हारी बीवी तो मुझ से भी खूबसूरत है. फिर भी तुम मेरे आगेपीछे क्यों डोलते रहते हो?’

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“आर्यन ने अपनी बीवी का जिक्र आते ही बुरा सा मुंह बनाया और कहने लगा- ‘कहावत है कि मर्द के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. पर, मेरे लिए मेरे दिल तक आने का रास्ता इस बैड से हो कर जाता है. मुझे सैक्स में थोड़ा पावर और हीट गेम चाहिए पर वह बैड पर किसी ज़िंदा लाश की तरह पड़ी रहती है.’

“‘तो क्या, तुम्हें बिस्तर पर एक ऐथलीट की ज़रूरत है?’ हंसिका ने उस को बीच में रोकते हुए कहा.

“‘नहीं, पर मर्द और औरत के रिश्तों के लिए एक अच्छी सैक्सलाइफ बहुत ज़रूरी होती है. यह बात तो तुम भी मानोगी न,’ यह कह कर आर्यन ने हंसिका को चूम लिया.

“वैसे, हंसिका इन मर्दों का अश्लील वीडियो बनाना नहीं भूलती थी, क्या पता किस मोड़ पर काम आ जाएं.

“हंसिका पूरी रात आर्यन के साथ गुज़ारने के बाद सुबह अपने औफिस गई और फिर पूरा दिन काम करने के बाद अपने फ्लैट पर जाने से पहले उसने ब्यूटीपार्लर जाना जरूरी समझा. उस के साथ में उस की औफिसमेट माया थी.

“‘अरे हंसिका, अभी तूने 2 दिनों पहले ही तो अपने बालों को स्ट्रेट कराया था. और आज फिर से इन्हें कर्ली क्यों करा रही है,’ माया ने पूछा.

“‘क्योंकि आज मेरी आकाश के साथ डेट है,’ मुसकराते हुए हंसिका ने कहा.

“‘आकाश के साथ? पर तेरे बौयफ्रैंड का नाम तो युवराज है.’ चौंक पड़ी थी माया.

“‘तुम नहीं समझोगी, माया. अच्छा बताओ, इंद्रधनुष में कितने रंग होते हैं?’ हंसिका ने पूछा.

“‘सात.’

“‘और एक हफ्ते में कितने दिन?’

“‘सात,’

“‘तो फिर, बौयफ्रैंड एक क्यों, सात क्यों नहीं?’ अपने होंठों पर हलकी सी मुसकराहट लाते हुए हंसिका ने कहा.

“‘अरे, तू क्या सच में सात मान बैठी. सात नहीं, बल्कि सिर्फ 4 बौयफ्रैंड हैं मेरे.’

“‘ओफ्फो, तुझे समझना बहुत मुश्किल है.’

“यह कह कर माया बाहर की ओर जाने लगी, तो हंसिका ने उसे पास बुलाया और बोली, ‘सुन तो, देख, अजीब ज़रूर लग रहा होगा पर आर्थिकरूप से स्वतंत्र रहने का यही तो मज़ा है. चाहे जैसे रहो, कोई टोकने वाला नहीं. और ज़िन्दगी में ऐश करो. पति के सहारे रहने व उस की बेवफाई सहने में भला रखा ही क्या है.’ हंसिका का दर्द छलक आया था. उस ने सिगरेट सुलगाई. माया ने सहमति में सिर हिला दिया.

“करीब 5 फुट 9 इंच की हाइट वाली हंसिका का व्यक्तित्व देखते ही बनता था. गोरा रंग, पतला चेहरा और सुतवां नाक. इस के साथ उस के बाल कमर तक लहराते हुए. अपने बौडीमास को भी बहुत अच्छी तरह से मेन्टेन किया हुआ था हंसिका ने और इस के लिए वह सप्ताह में कम से कम 3 दिन जिम जाती थी.

“हंसिका एक मौडलिंग एजेंसी में काम करती थी जो बेंगलुरु जैसे शहर में अच्छी आय का स्रोत था और इसी पैसे के चलते हंसिका मनचाहे अंदाज़ से अपना जीवन जी रही थी.

“जो दिखता है वाही बिकता है के सिद्धांत को मानने वाली हंसिका अपने यौवन का भरपूर दिखावा करना अच्छी तरह से जानती थी. अपने अलगअलग बौयफ्रैंड्स के साथ वह सैक्स करने में पीछे कभी नहीं हटती. अलगअलग दिनों में हंसिका के शारीरिक संबंध अलगअलग बौयफ्रैंड से बनते.

“हंसिका के बौयफ्रैंड यह बात अच्छी तरह जानते थे कि हंसिका के संबंध उन लोगों के अलावा और लोगों से भी हैं पर उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि हंसिका जैसी खूबसूरत लड़की पर एकाधिकार दिखा कर वे उसे खोना नहीं चाहते थे. उन के लिए तो हंसिका जैसी दिलकश हसीना के शरीर को भोग लेना ही बहुत बड़ी बात थी.

“आज हंसिका की डेट आकाश नाम के व्यक्ति के साथ थी. आकाश एक समय में हंसिका का फेसबुक फ्रैंड था. आकाश शादीशुदा था. वह अपनी पत्नी की बेवफाई से दुखी था. उस की पत्नी का स्कूल के एक टीचर के साथ अफेयर था जिस के बारे में उसे भनक लग गई थी और दुखी हो कर आत्महत्या के बारे तक में सोचने लगा था. अपनी निराशा से जुड़ी बातें आकाश ने फेसबुक मैसेंजर पर हंसिका से शेयर कीं तो हंसिका को मामले की गंभीरता के बारे में पता चला.

“उस ने अपनी बातों से टूटे हुए आकाश को दिलासा दी और उसे मिलने के लिए बुलाया. दोनों में मुलाकातें होने लगीं. वहीं से आकाश पूरी तरह से हंसिका के रूप का दीवाना हो गया. और हंसिका ने उसे भी अपनी देह का स्वाद चखाने में देर नहीं की. हंसिका अपने इन बौयफ्रैंड्स को अच्छी तरह यूज़ करना जानती थी. कब किस से कितने पैसे की डिमांड करनी है, इस का अच्छी तरह ज्ञान था उस को.

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“हंसिका अनचाहे गर्भ से बचने के लिए कंडोम का प्रयोग एक अनिवार्य शर्त बना देती थी. पर इस बार पता नहीं किस से और कैसे चूक हुई कि हंसिका गर्भवती हो गई थी. अपने गर्भवती हो जाने की बात हंसिका ने किसी भी बौयफ्रैंड को नहीं बताई. दिन बीतते रहे. अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण जब हंसिका अपना गर्भपात कराने के लिए डाक्टर के पास पहुंची तो डाक्टर ने यह कह कर गर्भपात करने से मना कर दिया कि समय अधिक हो गया है, अब यह संभव नहीं है, इसलिए आप को बच्चे को जन्म देना ही होगा.

“हंसिका ने सब से पहले यह बात अपने एक पुराने बौयफ्रैंड आर्यन से बताई, ‘सुनो आर्यन, यार, बड़ीड़ा प्रौब्लम हो गई है.’

“‘ऐसा भी क्या हो गया मेरी जान जो तुम इतना घबरा कर बोल रही हो,’ आर्यन ने कहा.

“‘यू नो, आई एम प्रैग्नैंट,’ हंसिका ने फुसफुसा कर कहा.

“‘बधाई हो, मिठाई खिलाओ भाई,’ आर्यन ने चुटकी ली.

“‘मज़ाक मत करो, मैं बहुत परेशान हूं,’ हंसिका चिड़चिड़ा रही थी.

“‘अब तुम कोई दूध पीती बच्ची तो नहीं जो तुम्हें बताना पड़ेगा कि अगर तुम शादी से पहले प्रैग्नैंट हो गई हो तो बच्चे को अबौर्ट करवा दो.’

“‘तुम्हें क्या लगता है कि मैं डाक्टर के पास नहीं गई थी? गई थी पर डाक्टर ने गर्भपात करने से मना कर दिया. अब मुझे बच्चे को जन्म देना ही होगा.’

“ओह्ह, तो यह बात है,’ आर्यन ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा और चुप हो गया. कुछ देर बाद आर्यन ने ही कहना शुरू किया, ‘कोई बात नहीं, तुम फिक्र मत करो. अस्पताल का सारा खर्चा मैं देने के लिए तैयार हूं. पर क्या यह बच्चा वास्तव में मेरा ही है?’

“‘ये कैसी बातें कर रहे हो आर्यन, क्या मतलब है तुम्हारा?’

“‘मेरा मतलब है कि मेरे अलावा तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है?’ आर्यन ने कहा. जबकि, उसे अच्छी तरह पता था कि हंसिका अपने पति से अलग रह रही है और उस ने पति से तलाक लेने का मुकदमा दायर कर रखा है.

“‘अगर भरोसा नहीं है तो बच्चे का डीएनए टैस्ट करवा लो.’

“डीएनए टैस्ट करवाने की बात तो आर्यन के मन में भी आई थी पर अगर डीएनए टैस्ट में बच्चा किसी और का निकलता तो बहुत मुमकिन था कि आर्यन को हंसिका से विरक्ति हो जाती और वह उसे खो देता.

“‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम तो ज़रा सी बात में नाराज़ हो गई. मैं तो मज़ाक कर रहा था,’ आर्यन ने बात बनाते हुए कहा.

“हंसिका के संबंध कई मर्दों से थे. सभी मर्द इस बात को अच्छी तरह से जानते भी थे. हंसिका जैसी चिड़िया किसी एक पिंजरे में बंद हो कर नहीं रह सकती पर वे सब हंसिका जैसी सैक्सी व दिलकश लड़की को छोड़ना नहीं चाहते थे. इसलिए, वे सब उस की लगभग हर बात मानते थे.

हंसिका ने इसी तरह बारीबारी अपने सभी बौयफ्रैंड्स को अपने गर्भवती होने की बात बताई. और उन सब ने कमोबेश यही कहा कि हंसिका, बच्चे को अस्पताल में जन्म दे और वे लोग उसे हर तरह का खर्चा देने के लिए तैयार हैं.

“जब अपने चारों बौयफ्रैंड्स से हंसिका ने बात कर के उन से पैसे मिलने की बात कन्फर्म कर ली, तब जा कर उस को सुकून मिला और वह अपने होने वाले बच्चे के भविष्य को ले कर आश्वस्त हो गई.

“मेरी नायिका हंसिका ने अपने औफिस से मैटरनिटी लीव ली और समय आने पर बच्चे को जन्म दिया.

“हंसिका अपने हर बौयफ्रैंड को अलगअलग यही एहसास कराती रहती कि जैसे यह बच्चा उस का ही है और उन लोगों से अलगअलग बच्चे के पालनपोषण के लिए पैसे भी लेती रही.

“कालांतर में हंसिका के अविवाहित बौयफ्रैंड्स की शादी भी हो गई और कुछ समय बाद बच्चे भी. पर उन प्रेमियों ने हंसिका व उस के बच्चे का ध्यान रखना नहीं छोड़ा.

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“हंसिका के कई पुरुषों से संबंध को दुश्चरित्रता इसलिए भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मर्दों के इस समाज में हंसिका ने ‘टिट फौर टैट’ अर्थात ‘जैसे को तैसा’ वाला आचरण दिखा कर एक नई मिसाल पेश की है. और फिर, अगर एक औरत अपने पति की किसी भी तरह की बेवफ़ाई के खिलाफ किसी भी तरह का सार्थक कदम उठाती है तो उस का स्वागत किया जाना चाहिए. और मुझे पता है कि इस समाज में हंसिका जैसी बहुत औरते हैं जो पति की बेवफाई सह रही हैं. भले ही वे सब अपने मर्द के खिलाफ कुछ न कर पा रही हों पर मेरी इस कहानी को पसंद कर उन्होंने इस साल की बैस्ट कहानी बना कर हंसिका का साथ देने की मूक स्वीकृति तो दे ही दी है.”

हौल में लगातार तालियां बजे जा रही थीं हंसिका जैसी नायिका के लिए. पर यह बात केवल अरुंधती ही जानती थी कि हंसिका की यह कहानी किसी और की नहीं, बल्कि उस की अपनी है.

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