REVIEW: जानें कैसी है Kangana Ranaut की फिल्म Dhaakad

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः दीपक मुकुट और सोहे मकलाई

निर्देशकः रजनीश घई

कलाकारः कंगना रनौत,  अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता, शाश्वत चटर्जी,  शारिब हाशमी और अन्य

अवधिः दो घंटे 13 मिनट

फिल्मकार रजनीश घई एक महिला प्रधान एक्शन जासूसी फिल्म ‘‘धाकड़’’लेकर आए हैं. जिसे देखने के बाद यही समझ में नहीं आया कि यह फिल्म बनायी क्यों गयी है? फिल्म में कथा पटकथा, निर्देशन, कंगना का अभिनय सब कुछ गड़बड़ है. फिल्म ‘‘धाकड़’’देखने के बाद मन में सवाल उठता है कि फिल्म ‘क्वीन’ में शानदार अभिनय करने वाली यही कंगना रानौट थी. ‘धाकड़’में कंगना की अभिनय क्षमता में जबरदस्त गिरावट नजर आती है. वैसे फिल्म देखकर यह समझ में आता है कि 2003 की सफलतम हालीवुड फिल्म ‘‘किलबिल’’ की नकल करने का प्रयास किया गया है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है बुद्धापेस्ट से, जहां एक महिला भारतीय जासूस अग्नि( कंगना रानौट) बंदूकों व तलवारों का उपयोग करते हुए अपनी जान को जोखिम में डाल कर ‘मानव तस्करी’ का व्यवसाय करने वालों के यहां से सैकड़ों छेाटे लड़के व लड़कियों को छुड़ाती है. यहां पर अग्नि को एक पेन ड्राइव मिलती है, जिसमें एशिया के सबसे बड़े बाल तस्कर रूद्रवीर सिंह(अर्जुन रामपाल) के बारे में जानकारी है, जो कि सरकार के खिलाफ नफरत भरकर अपनी साथी रोहिणी(दिव्या दत्ता) के साथ कोयला खदानों पर कब्जा करने के साथ ही छोटे बच्चों की मानव तस्करी करते है. अब अग्नि के बॉस(शाश्वत चटर्जी ) और जिन्होने उसे पाल पोस कर इस लायक बनाया है वह अग्नि को रूद्रवीर को खत्म करने के लिए भारत भेजते हैं. जहां अग्नि की मदद करने के लिए फजल(शारिब हाशमी) है.

पता चलता है कि रूद्रवीर जब अपने साथियों के साथ कोयला चोरी करता है, तो उसके पिता उसे रोकते हैं, तब वह अपने पिता की ही हत्या कर देता है. इसके बाद उसे रोहिणी का साथ मिलता है और देखते ही देखते वह एशिया का सबसे बड़ा मानव तस्कर बन जाता है.

अग्नि के भारत पहुंचने के बाद रूद्रवीर को खत्म करने के लिए अग्नि जुट जाती है. पर अंत में उसे रूद्रवीर को खत्म करने के लिए बुद्धापेस्ट ही जाना पड़ता है. तब रूद्रवीर से पता चलता है कि वह तो उसी इंसान की मोहरा बनी हुई है, जिसने बचपन में उसके माता पिता की हत्या की थी.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कहानी रजनीश घई ने चिंतन गांधी और रिनिश रवींद्र के साथ मिलकर लिखी है. कहानी काफी घिसी पिटी है. फिल्म का हर दृश्य किसी न किसी फिल्म से चुराया हुआ है. पटकथा बकवास है. पूरी फिल्म हिचकोले लेते हुए धीमी गति से आगे बढ़ती है. फिल्म देखते हुए अहसास होता है कि संवाद लेखक रितेश शाह ने अपना दिमाग कहीं रखने  के बाद ही संवाद लिखे हैं. फिल्म में ‘‘सो जा. . .  सो जा. . ’’गाना कई बार आता है. फिल्म के सभी एक्शन दृश्य अतार्किक हैं. कई दृश्यों का दोहराव भी नजर आता है. इमोशंंस का घोर अभाव है. लेखक व निर्देशक को यही पता नही है कि जब जासूस दुश्मन से भिड़ने जा रहा है, तो बंदूक आदि के साथ ही अपनी सुरक्षा के उपाय करते हुए बुलेट प्रुफ जैकेट वगैरह पहनकर जाता है न कि बिकनी या अति छोटे कपड़े पहनकर जाता है. निर्देशन अति कमजोर है. कहीं भी बेवजह सेक्स दृश्य ठॅंूस दिए गए हैं. मानव तस्करी के व्यवसाय को भी ठीक से रेख्ंााकित नही किया गया. मानव तस्करी के लिए ले जाने वाले बच्चों के साथ किस तरह का व्यवहार होता है, उसका भी कहीं जिक्र नहीं. पूरी फिल्म में कहानी तो कहीं है ही नही. दर्शक सिर्फ यही सोचता रहता है कि यह फिल्म कब खत्म होगी. कोयला खदान के मसले को भी सही ढंग से उठाया ही नहीं गया. रूद्रवीर कोयला खदानांे के व्यवसाय ेसे क्यों जुड़े है, कुछ भी स्पष्ट नही है. दर्शक को लगता है कि उसने इस फिल्म के लिए पैसे व अपना समय खर्च करके बहुत बड़ा अपराध कर दिया है.

कमजोर कहानी, कमजोर पटकथा,  कमजोर निर्देशन, कमजोर एक्शन दृश्य व कमजोर अभिनय ने फिल्म का बंटाधार करके रख दिया है.

अभिनयः

अग्नि के किरदार में कंगना रानौट अपने अभिनय से घोर निराश करती हैं. उन्होने ‘किलबिल’ की नायिका की तरह खुद को साबित करने का असफल प्रयास किया है. वह भूल गयीं कि नकल के लिए भी अकल चाहिए. एक्शन दृश्यों में ऐसा लगता है जैसे कोई बच्चा अपने खिलौने वाली बंदूक से खेल रहा हो. हकीकत में कंगना के लिए अग्नि का किरदार है ही नहीं. रूद्रवीर के किरदार में अर्जुन रामपाल नही जंचे. यह उनके कैरियर की सबसे कमजोर फिल्म है. उनका दिव्या दत्ता, शाश्वत चटर्जी व शारिब हाशमी का अभिनय ठीक ठाक है, मगर इन्हे कहानी व पटकथा से कोई मदद नहीं मिलती.

निर्देशक और एडिटर मनोज शर्मा से जानें उनके संघर्ष की कहानी

मैं आया तो था हीरो बनने, लेकिन 6 महीने में पता चल गया कि मुझे हीरो नहीं निर्देशक बनने की जरुरत है, इसलिए मेरे संघर्ष का दौर कम समय तक चला और आज मैने एक फिल्म डायरेक्ट की है, हँसते हुए कहते है निर्देशक, पटकथा लेखक, एडिटर मनोज शर्मा, उन्होंने एक फिल्म ‘देहाती डिस्को’ का निर्माण किया है, जिसे वे अब थिएटर में रिलीज किया जाएगा, आइये जाने उनके संघर्ष की कहानी उनकी जुबानी.

मिली प्रेरणा

बचपन से ही फिल्मों में काम करने की इच्छा रखने वाले मनोज शर्मा उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के खुर्जा से है. खुर्जा में परिवारवाले क्रोकरी का व्यवसाय करते है, लेकिन मनोज को इस व्यवसाय में काम करना पसंद नहीं था,घर में सबसे छोटे होने की वजह से वे चंचल स्वभाव के थे, किसी का ध्यान उन पर अधिक नहीं था, इसलिए बी.कॉम. की फर्स्ट इयर पूरा करने के बाद वे मुंबई आ गए. मनोज को फिल्में देखने का बहुत शौक था,वे अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेन्द्र आदि प्रसिद्ध कलाकारों की हर फिल्म देखा करते थे और फिल्म ने ही उन्हें इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी है.उनके परिवार वालों ने पहले उन्हें मुंबई आने से मना किया था, लेकिन बाद में उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने के लिए सहयोग भी दिया

कला को दी अहमियत

मनोज ने कई फिल्मों में निर्देशक का काम किये है, लेकिन उनकी ये फिल्म बहुत खास है, जिसमे उन्होंने भारतीय कला को आगे बढाने वाली एक इमोशनल ड्रामा फिल्म, जो पिता और बेटे की है. मनोज कहते है कि इसकी कहानी से मैं बहुत प्रभावित हुआ और इसे बनायीं. मैं अधिकतर कॉमेडी फिल्में बनाता हूं.

संघर्ष कैरियर की

मनोज अपने संघर्ष के बारें में कहते है कि मैं एक छोटे शहर से आया हूं. जैसा सभी जानते है कि छोटे शहरों में रहने वालों को बहुत कम फ़िल्मी दुनिया के बारें में पता होता है. सभी यहाँ हीरों बनने ही आते है, मैं भी हीरों बनने ही आया था, लेकिन 6 महीने के अंदर पता चल गया कि मैं हीरों नहीं बन सकता, क्योंकि ऑडिशन दिया, पर किसी ने मुझे हीरो बनने का मौका नहीं दिया. फिर मैंने मेरे एक परिचित की सहायता से फिल्म तहलका के लिए एडिटिंग का काम करने लगा. इस तरह से मैं एडिटिंग और निर्देशन में जुड़ गया और कई फिल्में बनायी. इससे मुझे प्रैक्टिकल ज्ञान अधिक मिला. इसके बाद पुलिस वाला गुंडा, माँ, आदि कई फिल्मों में निर्देशक और एडिटिंग का काम करने लगा. मुझे पहले लगता था कि फिल्मों में हीरो की अधिक क़द्र होती है, लेकिन बाद में पता चला कि एक निर्देशक, एडिटर और कैमरामैन को भी बहुत सम्मान मिलता है. इस क्षेत्र में पहले लर्निंग एसिस्टंट के आधार पर रखा जाता है, जो निर्देशक के साथ जरुरी काम करता है और फिल्म डायरेक्शन भी सीखता रहता है. इसके अलावा लोगों से परिचय बढती है और नया काम मिलने में आसानी होती है.

की मेहनत

पहले जब मनोज काम की तलाश कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात निर्देशक अनिल शर्मा से हुई और उन्हें काम मिला. वे कहते है कि मैं उनका 10वीं नंबर का निर्देशक था, जिसका काम भागा-दौड़ी के अलावा कुछ नहीं था. इस काम में किसी को कुर्सी ला देना,पानी देना, ड्रेस को आर्टिस्ट तक पहुँचाना आदि करता था और समय मिलने पर डायरेक्शन को देखता था. एडिटिंग में होने की वजह से मैं अधिकतर डायरेक्टर के साथ रहता था. इससे मुझे काम मिलना आसान हुआ.

इंडस्ट्री में काम करना नहीं आसान

वे आगे कहते है कि कड़े अनुभव मुझे शुरू में मिले, जब मैं एक्टर बनने की कोशिश कर रहा था और सभी प्रोडक्शन हाउस में घूम रहा था, लेकिन किसी ने अभिनय में नहीं लिया. करीब 6 महीने में ही मुझे पता चल गया था की मैं हीरों नहीं बन सकता. दरअसल जब मैं अपने शहर में था, तब इंडस्ट्री की कोई जानकारी नहीं थी, लगता था, सबकुछ आसानी से हो जायेगा, लेकिन मुबई आने के बाद ही पता चला कि यहाँ कुछ भी आसान नहीं है. जब सभी ने एक्टिंग देने से मना किया, तो मैं एक वीडियो लाइब्रेरी में गया और खुद संवाद लिखकर शूट करने को कहा और जब क्लिपिंग देखी तो मुझे समझ आ गया कि एक्टिंग मुझे नहीं आती. मुझे कुछ दूसरा काम करने की जरुरत है.

नहीं भूलता बीतें दिन

मनोज अपनी जर्नी में पीछे मुड़कर उन लोगों को देखते है, जिन लोगों ने उन्हें मुसीबत के समय काम किया.  ड्रीम एक्टर आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव के जैसे नए कलाकार है,जो बहुत अच्छा अभिनय करते है. इसके अलावा मेरी इच्छा राजकुमार हिरानी के जैसे फिल्में डायरेक्ट करने की है. एक अच्छी कहानी, प्रतिभावान कलाकारों के साथ करने की इच्छा रखता है.

है गोल्डन पीरियड

मनोज इस दौर को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का गोल्डन पीरियड कहते है, जो बहुत ही अच्छा है, जिसमें सभी नए कलाकारों को काम करने का अवसर मिल रहा है. कम बजट में फिल्में बन रही है, इसमें किसी को भी घाटा नहीं हो रहा है. यू-ट्यूब पर बनी एक आकर्षक क्लिप भी उस व्यक्ति के लिए लाभदायी हो सकता है अगर उसे लोग पसंद करें. इस समय सारे निर्देशक, टेक्नीशियन, सारे कलाकार सभी के लिए काम है. बड़ी फिल्में न मिलने पर, इन नए कलाकारों को लेकर वेब सीरीज बनाया जा सकता है.मैंने धर्मेन्द्र और मधु को लेकर फिल्म खली-बली बनाई है. निर्माता के अनुसार कलाकारों का चयन करना पड़ता है, ताकि फिल्म बजट के अंदर बने. इसके अलावा मैंने कोविड पर एक फिल्म ओंटू बनाई है, जो ओटीटी पर आने वाली है. मैं किसी भी फिल्म को उत्तेजित करने वाली नहीं बनाता, बैर और दुश्मनी को फिल्म में नहीं आने देना चाहिए.

ये भी पढ़ें- आर्यन के बाद Imlie ने किया प्यार का इजहार, देखें रोमोंटिक वीडियो

Cannes Film Festival 2022 में छाया दीपिका पादुकोण का देसी लुक

बॉलीवुड में बाजी राव मस्तानी के नाम से फेमस एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण कांस फिल्म फेस्टिवल 2022 में अपने देसी लुक की वजह से चर्चा में बनी हुई है.

आपको बता दे इस बार कांस में दीपिका पादुकोण पहली बार जूरी मेंबर के तौर पर शामिल हुई हैं. उन्होंने कान्स के रेड कारपेट के लिए जो रेट्रो लुक,अपनाया था वो फैंस को कुछ पसंद नहीं आया.

दीपिका पादुकोण ने रेड कारपेट के लिए बॉलीवुड के फेमस फैशन डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी की ब्लैक एंड गोल्ड सीक्वेंस साड़ी कैरी की थी. इसके साथ ही वह सब्यसाची एक्सेसरीज में नजर आई. साड़ी के साथ मेकअप में अल्ट्रा बोल्ड ड्रामेटिक आईलाइनर, न्यूड लिप्स करें और कानो में चंदेलियेर इयरिंग्स के साथ फंकी हेयर स्टाइल किया, गोल्डेन हैंड बैग के साथ अपने लुक को कंप्लीट किया.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Deepika Padukone (@deepikapadukone)

बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अक्सर ही अपने स्टाइल स्टेटमेंट को लेकर चर्चा का विषय बनी रहती हैं. यही कारण है कि इस बार भी कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 में अपने देसी लुक की वजह से एक्ट्रेस टॉक ऑफ द टाउन बनी हुई हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Deepika Padukone (@deepikapadukone)

आपको बता दे कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 की शुरुआत हो चुकी है. इस समारोह को लेकर दुनियाभर के फैंस उत्साहित हैं. इस साल कान्स फिल्म महोत्सव अपना 75वां संस्करण आयोजित कर रहा है. खास बात तो ये है कि इस बार कान्स के इतिहास में पहली बार भारत को कंट्री ऑफ ऑनर के रूप में शामिल किया गया है. इस महोत्सव का आयोजन 17 मई से 26 मई तक चलेगा. इस फिल्म फेस्टिवल में दुनियाभर की चुनिन्दा फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग होती है. इस साल, छह भारतीय फिल्मों को आधिकारिक तौर पर कान्स में प्रदर्शित किया जाएगा. इसमें आर माधवन की ‘रॉकेट्री द नांबी इफेक्ट’, निखिल महाजन की ‘गोदावरी’, अचल मिश्रा की ‘धुइन’, शंकर श्रीकुमार की ‘अल्फा बीटा गामा’, बिस्वजीत बोरा की ‘बूम्बा राइड’ और जयराज की ‘तोतों से भरा पेड़’ है.

ये भी पढ़ें- ब्राइट कलर्स पहनते समय रखें इन 5 बातों का ध्यान

‘वूमन इम्पॉवरमेट ’ की जरुरत को लेकर क्या कहती हैं Simrithi Bhatija, पढ़ें इंटरव्यू

मुंबई से सटे थाणे जिले के अंतर्गत एक छोटा सा शहर उल्हासनगर है.  इस शहर में सिंधी समुदाय के लोगों की ही बस्ती है. यह वह लोग हैं, जो कि बंटवारे के ेवक्त यहंा आकर बस गए थे. यह सभी निम्न मध्यमवर्गीय या मध्यमवर्गीय लोग हैं. इन परिवारों में लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियंा लगी हुई थी. लेकिन एक सिंधी मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की सिम्रिथि भटीजा ने बचपन से ही ‘मिस इंडिया’ के अलावा फिल्म अभिनेत्री बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था. उसके माता पिता ने अपनी कम्यूनिटी के विरोध के बावजूद अपनी बेटी का हौसला बढ़ाया. सिम्रिथि बचपन से कई तरह के खेल खेलने के अलवा नृत्य सीखती रही.  अपनी बेटी के उज्ज्वल भविष्य को गति देने के लिए सिम्रिथि के पिता ने उल्हासनगर से निकलकर मुंबई के मुलुंड उपनगर में रहना शुरू किया और अपनी बेटी को जयहिंद कालेज में पढ़ने के लिए भेजा. अंततः बहुमुखी प्रतिभा की धनी सिम्रिथि भटीजा ने सितंबर 2019 में टोक्यो, जापान में संपन्न ‘‘मिस इंडिया इंटरनेशनल ’’ का खिताब अपने नाम किया. फिर कुछ म्यूजिक वीडियो किए और अब बतौर हीरोईन उनकी पहली फिल्म ‘‘धूप छंाव’’ प्रदर्शन के लिए तैयार है. तो वहीं अब सिम्रिथि भटीजा अपनी सिंधी कम्यूनिटी और छोटे शहरों की लड़कियों के अंदर जागरूकता लाने के लिए काम कर रही हैं. वह हर सप्ताह उल्हासनगर जाकर वहंा की लड़कियों से बात करती हैं, उन्हे सेल्फ डिफेंस व रैंप वॉक करना सिखाती हैं. सिम्रिथि भटीजा राष् ट्ीय स्तर की एथलिट भी हैं.

प्रस्तुत है सिम्रिथि भटीजा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

क्या कोई ऐसा घटनाक्रम था, जिसकी वजह से आपके मन में ‘मिस इंडिया’ बनने की बात आयी थी?

-ऐसा तो कुछ नही हुआ. पर बचपन से ही मेरे मम्मी व डैड ने मुझे हर छोटी सी बात के लिए मेरा हौसला बढ़ाया. जब मैं दो वर्ष की थी, तभी से उन्होने मुझे डांस सिखवाना शुरू कर दिया था. दो वर्ष की उम्र से ही डांस करती आ रही हूं. तो डांस,  एक्सप्रेशन,  अदाकारी सब कुछ तभी सेे मेरे साथ चिपक गया. मुझे फिजिकल एक्टीविटी भी पसंद है. मैं स्पोर्ट्स खिलाड़ी भी हूं. मैं राष्ट्ीय स्तर पर फेनसिंग एथलिट खिलाड़ी रही हूं. मैं राज्य स्तर की ‘रोलबॉल ’ खिलाड़ी हूं. मैने राज्य स्तर पर स्कीपिंग खेल है. राज्य स्तर पर स्केटिंग किया है. स्कूल के दिनों में राष्ट्ीय स्तर पर डंास किया है. मैने बहुत कुद किया है. क्योंकि मेरे माता पिता हमेशा कहते थे कि, ‘इंसान को सब कुछ करना चाहिए. ’उस वक्त उनकी बातों पर गुस्सा आता था, पर अब समझ में आया कि इंसान का हर तरह का काम करना जरुरी होता है. पर नृत्य पूरी जिंदगी करनी है यह बात तो मेरे दिमाग में बैठी हुई है.  अभी मैं फिल्म की शूटिंग करती हूं, तो अभिनय के साथ मेरे नृत्य और व्यक्तित्व पर गौर किया जाता है. मेरा अपना व्यक्तित्व है, इसलिए मुझे ‘मिस इंडिया’ भी बनना ही था. मुझे संजना संवरना पसंद है. खुद को ग्लैमरस व अच्छे लुक में लोगों के सामने पेश करना अच्छा लगता है.

मैं छोटे शहर उल्हासनगर में रहती थी, तो वहां के लोगों के बीच इतनी अवेयरनेस नही है. उन्हे मॉडलिंग या ‘मिस इंडिया’ को लेकर कोई समझ नही है. सिंधी लोगों की सोच होती है कि दिन रात मेहनत करते हुए काम करो और आगे बढ़ते जाओ. उनकी नजर में मॉडलिंग व फिल्म इंडस्ट्ी अच्छी नही है. सिंधी परिवारों में कोई भी अपने कम्फर्ट लेबल से बाहर नही निकलना चाहता. लेकिन मेरे मन में अपने समुदाय की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनना था. मंै हरलड़की को बताना चाहती हूं कि हम तरह के सपने देखें और मेहनत करें, तो हर सपने पूरे हो सकते हैं. यह भी सच है कि मैने यह सब पा लिया क्योंकि मेरे माता पिता बहुत सपोर्टिब रहे. उन्होने कहीं कोई मेनमीख नही निकाली.

तो ‘मिस इंडिया’ के सपने का क्या हुआ?

-2017 में 18 वर्ष की होते ही मैंने ‘मिस इंडिया’ के लिए कोशिश शुरू कर दी थी. मैं अपनी एक दोस्त की सलाह पर ‘मिस मुंबई’ प्रतियोगिता का हिस्सा बनी. और मैं विजेता भी बनी. उसके बाद मुझे यकीन हो गया कि मैं ‘मिस इंडिया’ भी बन सकती हूं. मैने ‘कोकोबेरी’ को ज्वॉइन कर ट्ेनिंग शुरू की. फिर मैं ‘मिस इंडिया’ प्रतियोगिता का हिस्सा बनी. 2017 व 2018 में ‘मिस इंडिया’ प्रतियोगिता के लिए मेरा चयन ही नहीं हो पाया. मगर मैने अपनी हिम्मत नहीं हारी. 2019 में मैने ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल ग्लैम एंड सुपर मॉडल इंडिया’ में हिस्सा लिया. और विजेता बनी.  यह यात्रा आसान नही थी.

मिस इंडिया इंटरनेशनल. . . ’बनने तक आपने क्या क्या सीखा?

-मुझे पता था कि यह यात्रा आसान नही है. इंसान के तौर मानसिक व शारीरिक स्टेबिलिटी चाहिए. हमें बाहर से बहुत आसान लगता है, मगर बहुत दबाव रहते हैं. लेकिन इस तरह की प्रतियोगिताओं में आप किस तरह से चलते हो, आप किस तरह से बोलते हैं, आपका व्यक्तित्व,  आप किस तरह खुद को पेश करते हैं, सहित सब कुछ मायने रखता हैं. इसलिए हर एक बात पर ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है. इस मुकाम को पाना बहुत कठिन था. पर मैंने मेहनत की और सफलता दर्ज करा ली. मैं महत्वाकांक्षी हूं. मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल. . ’ जीतने के बाद मुझ पर बहुत बड़ा दबाव था. लोग आज भी मेरे बारे में कहते हैं-‘‘ए सिंधी गर्ल हू बिकम मिस इंडिया इंटरनेशनल’.

अब मैं भले ही उल्हासनगर में नहीं रहती हूं, लेकिन मेरे परिवार के तमाम सदस्य वहीं रहते हैं और मैं अक्सर उल्हासनगर जाती रहती हूं. मैं सिंधी व छोटे शहर की हर लड़की के अंदर जागरूकता लाने के लिए अपनी तरफ से काफी कुछ कर रही हूं. वहां के लोगों के लिए मैं सुपर स्टार हूं. ‘मिस इंडिया’ बनते ही मुझे उल्हासनगर में हमारे समुदाय के तमाम लोगो ने बुलाकर मेरा सम्मान किया. मेरे ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ बनने के बाद मेरी पहल पर तमाम सिंधी परिवार के लोगों ने अपनी लड़कियों को इस दिशा में आगे बढ़ने व आॅडीशन देने की छूट दी. यानी कि अब सिंधी समुदाय के बीच एक जागरूकता आयी है.

मुझे अपने समुदाय की लड़कियों के अंदर चेतना जगानी थी कि वह सभी यह सब कर सकती हैं, यह काम मैं लगातार कर रही हूं. अब तो मैं अपने समुदाय की उन लड़कियांे को मुफ्त में ट्ेनिंग भी दे रही हूं, जो मिस मुंबई या मिस इंडिया बनना चाहती हंै. मेरे मन में हमेशा यह रहा है कि कुछ बनने के बाद समाज को वह किसी न किसी रूप में वापस भी देना है. मुंबई में जब हम किसी भी सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से पहले इस तरह की ट्ेनिंग देने वाली एजंसी के पास जाते हैं, तो यह सभी बहुत बड़ी रकम ऐंठते हैं. तो मैने आज तक जो कुछ भी सीखा है, वह मैं दूसरी लड़कियों को सिखा रही हूं.

राष्ट्ीय स्तर की खिलाड़ी होने के बावजूद आपने खेल की बजाय अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय क्यों लिया?

-मैं खुद को फुल इंटरटेनर मानती हूं और बचपन से ही मुझे फिल्म इंडस्ट्री में कुछ करने की इच्छा रही है. मेरे डांस या स्पोटर्स महज शौक रहा है. मैने कैरियर उस क्षेत्र में बनाने का निर्णय लिया, जिसमें मैं अपना हजार प्रतिशत दे सकूं. मुझे पता था कि मुझे एक बेहतरीन अभिनेत्री बनना है, जिसके लिए आवश्यक गुण मेरे अंदर हैं. नृत्य को कलाकार की सबसे बड़ी खूबी है. स्पोटर्स तो मैं अपने आपकों फिट रखने के लिए खेलती थी. आज भी स्पोटर््स खेलना मेरा शौक है. वर्कआउट करना भी मुझे पसंद है. लेकिन मेरा अंतिम लक्ष्य हमेशा अभिनय ही रहा है. अभिनय के साथ बहुत कुछ आता है. कभी कभी कलाकार को शारीरिक ताकत की भी जरुरत होती है. मसलन, फाइटिंग दृश्यों को निभाते समय शारीरिक ताकत होनी ही चाहिए. म्यूजिक वीडियो करते समय नृत्य में महारत होना काम देता है. यदि मैं डांस व स्पोटर््स न कर रही होती, तो अभिनय में जो सफलता मिली है, वह मिलना ज्यादा कठिन हो जाता. स्पोटर्स खेलने से इंसान के अंदर स्पोर्टसमैन शिप आती है. हर खिलाड़ी हार को भी अच्छे से स्वीकार करना जानता है. यह खूबी फिल्मी ुदुनिया के लिए अत्यावश्क है. क्योंकि यहां हर बार आपको स्वीकार किया जाए, यह जरुरी नही है. यहां रिजेक्शन काफी होते हैं और हमें रिजेक्शन को हैंडल करना भी आना चाहिए. बॉलीवुड सदैव मेरा पहला प्यार रहा है. बॉलीवुड गाने बजते हैं, तो मेरे कान खड़े हो जाते हैं. बहुत खुशी मिलती है. स्पोटर््स संघर्ष करने के अलावा अनुशासित रहना भी सिखाता है. एक सेल्फ आत्मविश्वास पैदा होता है.

जब आपने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लिया, तो आपका किस तरह का संघर्ष रहा?क्या ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ का खिताब जीतना मददगार बना?

-जी हॉ!देखिए, मैने पहले ही कहा कि मुझे लगता था कि मेरी पर्सनालिटी ‘मिस इंडिया’ बनने लायक है. इसके अलावा मैं अपने समुदाय व छोटे शहरों की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनना चाहती थी कि यदि मैं ‘मिस इंडिया’ बन सकती हॅंू, तो वह क्यांे नहीं? ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ का खिताब जीतते ही मेरे सामने कई आपॉच्युर्निटी ख्ुाल गयीं. अब मैं ‘मिस मुंबई’ नही ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ थी. यानी कि राष्ट्ीय स्तर पर मेरी एक पहचान बन गयी थी. इस प्रतियोगिता के लिए मैं जापान में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही थी. वहा पर मुझे मेरे नाम से नही बल्कि ‘मिस इंडिया’ कह कर ही बुलाया जा रहा था. इसलिए अभिनय कैरियर में ज्यादा संघर्ष नही रहा. मेरी अपनी एक के्रडीबिलिटी है. लोग मानकर चलते हैं कि यदि कोई लड़की ‘मिस इंडिया’ है, तो इसके मायने यह हुए कि उसके अंदर कुछ तो टैलेंट है.

अभिनय कैरियर की शुरूआत कैसे हुई?

-वैसे तो कालेज के दिनों में ही मैने नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया था. ‘मिस इंडिया’बनने के बाद मैने ‘मेरा हाल’, ‘की लग दी तेरी’ सहित कई पंजाबी म्यूजिक वीडियो किए. हिंदी म्यूजिक वीडियो ‘धीरे धीरे कदम’ किया है. इन्ही म्यूजिक वीडियो के चलते मेरी मुलाकात हेमंत सरन जी से हुई, जिन्होने मुझे फिल्म ‘‘धूप छांव’’ में हीरोईन बना दिया. जो कि बहुत जल्द प्रदर्शित होने वाली है.

तो आपने फिल्मों में अभिनय करने के लिए ‘‘धूप छांव’’स्वीकार कर ली ?

-ऐसा नही है. मैं एक ऐसी इंसान हूं, जो कि किसी भी काम को करने से पहले दस बार सोचती हूंू. ‘धूप छंाव’ से पहले भी मेरे पास कुछ फिल्मांे के आफर आए थे, पर मैने नहीं किए. मैं हर चीज के लिए बहुत  तैयार हूं. एक बात मैने देखी कि जब मैं किसी काम के लिए बहुत ज्यादा तैयारी कर लेती हूं,  तो वह काम नही होता है. मैने 2017 में ‘मिस ंइडिया’ के लिए काफी तैयारी की थी, पर वह नहीं हो पाया था. दो वर्ष बाद सितंबर 2019 में मैने टोक्यो, जापान में बड़ी सहजता से ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ का खिताब हासिल किया. तो जब भी अच्छा अवसर आए, उसे जाने नही देना चाहिए. इंसान को मानकर चलना चाहिए कि आप ख्ुाद अपनी जिंदगी के अच्छी या बुरी चीजों को तय नही कर सकते. आपको वही मिलना है, जो पहले से आपकी तकदीर में लिखा हुआ है. जब मेरे पास फिल्म ‘धूप छांव’ का आफर आया और किरदार के बारे में संक्षिप्त जानकारी मिली तो वह रोचक लगी. फिर पूरी कहानी सुनी तो उसने मुझे इसे करने के लिए प्रेरित किया. यह ऐसी पारिवारिक कहानी है, जो कई दशकों से फिल्मों से गायब हो गयी है. फिर मैने आॅडीशन दिया. उसी वक्त ‘कारोना’ शुरू हो गया. मैं सब कुछ भूल गयी. लगभग एक वर्ष ऐसे ही बीत गया. फिर जब शूटिंग शुरू करने की इजाजत मिली, तब मुझे पुनः याद किया गया. हमने शूटिंग की और अब फिल्म बनकर तैयार है.

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ क्या है?

-धूप छांव एक इमोशन है. इस फिल्म में भी यही है. यह एक परिवार की कहानी है. परिवार के अंदर चीजें उपर नीचे होती हैं, मगर खुशी भी परिवार ही देता है. परिवार के लोगों की परछाई हमारे उपर होती है या जब वह हमारे आस पास होते हैं, तो हमें ख्ुाशी मिलती ही है.

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ के किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

-मैने इसमें सिमरन का किरदार निभाया है. सिमरन शादी से पहले मेरी टाइप की लड़की है. उसका व्यक्तित्व काफी हद तक मेरे जैसा ही है. सिमरन महत्वाकांक्षी लड़की है, उसे सब कुछ करना है. वह ‘क्रेजी लव’ है. सिमरन पागल प्रेमी है. प्यार करेगी तो शिद्दत से करेगी. वह बहुत ही ज्यादा स्ट्रांग है. तो मैं भी ऐसी ही हूं. सिमरन अपने परिवार को कैसे हैंडल करती हैं, किस तरह अपने परिवार के लिए ताकत बनती है, उसी की कहानी है. परिवार के अंदर बहुत ज्यादा उतार चढ़ाव घटित हो रहे हंै, पर अकेले सिमरन सभी को ंसंभालती नजर आएगी. वह झगड़ने की बजाय हर चीज को संभाल रही है. उसके पास कुछ जिम्मेदारियंा हैं.  वह सिर्फ अपने बच्चों को और अपने पति को सहारा देना चाहती.

इस फिल्म में सिमरन के किरदार में कई शेडस हैं. कालेज गोइंग लड़की से शादीश्ुादा औरत, फिर मां और फिर शादी शुदा बच्चो की मंा तक का मेरा किरदार है.

एक ही किरदार में इतने शेड्स निभाना आपके लिए कितना सहज रहा?

-मैने सिमरन का किरदार निभाते हुए काफी इंज्वॉय किया. मैंने इस फिल्म के लिए तीस दिन शूटिंग की और यह तीस दिन मेरी जिंदगी के अति बेहतरीन दिन रहे. इन तीस दिनों मैने अपने आपको बहुत अधिक जाना . मुझे अपनी क्षमता को परखने का अवसर मिला. मैने समझा कि मैं अपनइमोश्ंास को किस हद तक लेकर जा सकती हॅंू. 22 वर्ष की उम्र में 42 वर्ष की औरत का किरदार निभाने के लिए उतनी मैच्योरिटी आनी आवश्यक है. फिल्म का एक हिस्सा वह है, जहंा मेरी अपनी हम उम्र का सिमरन का बेटा है. तो ऐसे में मुझे अपने अभिनय से किरदार की मैच्योरिटी को दिखाना ही था. यह सब करते हुए मैने काफी इंज्वॉय किया. इसलिए शूटिंग के तीस दिन की यात्रा बहुत बेहतरीन रही. इस किरदार को निभाने में मेरे आब्जर्वेशन की आदत ने काफी मदद की. बहुत कुछ मैने अपनी मां से सीखा. मै सेट पर सोचती थी कि बचपन मे मै जो काम कर रही थी, वही अब 40 साल की उम्र में भी करुंगी, तो उसमें कहीं न कहीं मैच्योरिटी होगी. वैसे 22 वर्ष की उम्र में 42 वर्ष की और युवा बेटे की मां का किरदार निभाना आसान नहीं था. उस तरह के इमोश्ंास को लाना आसान नहीं था. फिल्म के निर्देशक हेमंत सरन ने भी कफी कुछ सिखाया.

कोई दूसरी फिल्म कर रही हैं?

-जी हॉ! अभी एक दक्षिण भारत में तमिल  फिल्म कर रही हूं. इसके पहले शिड्यूल की शूटिंग हो गयी है. इसके निर्देशक शंाति चंद्रा हैं. इससे अधिक इस फिल्म के संदर्भ में अभी कुछ बताना ठीक नहीं होगा.

अक्सर देखा जाता है कि सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीतने के बाद लड़कियंा किसी न किसी एनजीओ के साथ मिलकर समाज सेवा से जुड़े कुछ काम करने लगती हैं?

-जी हॉ!ऐसा है. मैं भी मुंबई से सटे थाणे के एक ‘ओमन इंम्पावरमेंट’ के लिए काम करने वाले एनजीओ के साथ मिलकर काम कर रही हूं. ओमन इम्पॉवरमेंट के लिए कुछ प्रोजेक्ट किए हैं. मुझे मिक्स मार्शल आर्ट पसंद हैं. मैं लड़कियों को ‘सेल्फ डिफेंस’ करना सिखाती हूं. मैं उन्हे प्रोफेशनल गाइडेंस के साथ मिक्स मार्शल आर्ट सिखाती रहती हूं. मैने ‘बलात्कार पीड़िता’ लड़कियों के अंदर के आत्मविश्वास को जगाकर उन्हे फिर से नई जिंदगी शुरू करने के लिए प्रेरित किया. जिनके साथ मेंटल या शारीरिक अब्यूज हुआ था, उन्हे सेल्फ डिफेंस सिखाया. मैं हर लड़की के अंदर खुद का ताकतवर व्यक्तित्व बनाने के प्रति जागरूक करने की कोशिश करती रहती हूं. रैंप वॉक और सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की भी ट्ेनिंग देती हूं. मेरे लिए खुशी की बात है कि एक वक्त जिस ‘मिस मुंबई’ की मैं प्रतिस्पर्धी थी, आज उसी की मैं निदेशक हूं. मैं ‘मिस नई मुंबई’ की रैंप वॉक ट्रेनर हूं. और पूरे शो की कोरियोग्राफी करती हूं.

ओमन इम्पावरमेंट को लेकर आपकी अपनी सोच क्या है?

-मेरी राय में ‘ओमन इम्पॉवरमेट ’ की जरुरत ही नही होनी चाहिए. आज की तारीख में औरतंे हर क्षेत्र में काफी आगे निकल गयी हैं. हमने ‘मैन इम्पावरमेट’ नही सुना.  सिर्फ ‘ओमन इम्पॉवरमेंट’ ही सुना है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी भी औरतों को पिछड़़ा हुआ माना जाता है. इसी सोच को बदलने की जरुरत है. ‘ओमन इम्पावरमेट’ के नारे लगाने की जरुरत नही है. जबकि अब तो यह सभी के सामने है. जिस काम को पुरूष कर रहे हैं, उसी काम को उनसे ज्यादा बेहतर तरीके से औरतें कर रही हैं. औरतें अपने कैरियर में निरंतर सफलता दर्ज करा रही हैं. ‘ओमन इम्पावरमेंट’ का शब्द ही गलत है. सभी को एक समान देखा जाना चाहिए. नारीवाद नही बल्कि समानता की बात की जानी चाहिए. हमें यह नही भूलना चाहिए कि आज भी औरतें समानता के लिए लड़ रही हैं. अभी भी लोगों के अंदर जागरूकता आनी बाकी है. उल्हासनगर सहित छोटे शहरो में आज भी औरतों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है.

कुछ औरतों के नारी स्वतंत्रता व ओमन इम्पॉवरमेंट का अर्थ खुले आम‘शराब व सिगरेट पीना हो गया है?

-इसीलिए कह रही हूं कि ‘ओमन इम्पावरमेंट’ शब्द ही गलत है. जरुरत है हर अवसर को एक समान दृष्टि से देखने की. आज पुरूष जिस पोजीशन पर है, उसी पोजीशन पर कोई औरत है, तो उसे समान रूप से देखा जाए. उसकी इज्जत की जाए. उसे पुरूष के बराबर ही पारिश्रमिक राशि दी जाए. ओमन इम्पॉवरमेंट का अर्थ पार्टी करना, पब में शराब पीना वगैरह कदापि नही है.

ये भी पढ़ें- GHKKPM: सई-विराट के बीच आएगा ‘पुराना आशिक’, सामने आया प्रोमो

REVIEW: जानें कैसी है रणवीर सिंह की फिल्म ‘जयेशभाई जोरदार’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा व मनीष शर्मा

लेखक व निर्देशकः दिव्यांग ठक्कर

कलाकारः रणवीर सिंह, शालिनी पांडेय, बोमन ईरानी,  रत्ना पाठक शाह,  पुनीत इस्सर व अन्य.

अवधिः दो घंटे चार मिनट

‘लिंग परीक्षण के बाद भ्रूण हत्या’ और ‘बेटी बचाओ’ जैसे अति आवश्यक मुद्दे पर कितनी घटिया कथा व पटकथा वाली फिल्म बन सकती है, इसका उदाहरण है फिल्म ‘‘जयेशभाई जोरदार’’.  लेखक व निर्देशक कथा व पटकथा लिखते समय यह भूल गए कि वह किस मुद्दे को उभारना चाहते हैं?वह अपनी फिल्म में ‘लिंग परीक्षण’ व भ्रूण हत्या के खिलाफ जनजागृति लाकर ‘बेटी बचाओ ’ की बात करना चाहते हैं अथवा  इस नेक मकसद की आड़ में दर्शकों को कूड़ा कचरा परोसते हुए उन्हे बेवकूफ बनाना चाहते हैं. फिल्म का नायक जयेश भाई कहीं भी अपनी पत्नी के गर्भ धारण करने पर अपने पिता द्वारा उसका लिंग परीक्षण कराने के आदेश का विरोध नहीं करता. बल्कि वह खुद अस्पताल में डाक्टर के सामने स्वीकार करता है कि ‘वारिस’ यानी कि लड़के की चाहत में उसकी पत्नी को छह बार गर्भपात करवाया जा चुका है. कहने का अर्थ यह कि यह फिल्म बुरी तरह से अपने नेक इरादे में असफल रही है. इस फिल्म के लेखक निर्देशक के साथ ही कलाकार भी कमजोर कड़ी हैं. यह फिल्म इस संदेश को देने में बुरी तरह से असफल रही है कि ‘परिवार में लड़का हो या लड़़की, सब एक समान हैं. ’’यह फिल्म लिंग परीक्षण के खिलाफ भी ठीक से बात नही रख पाती है. अदालती आदेश के बाद जरुर फिल्म मेंे दो तीन जगह लिखा गया है कि ‘लिंग परीक्षण कानूनन अपराध है. ’

फिल्म में दिखाया गया है कि हरियाणा के एक गांव में लड़कियों के जन्म न लेने के चलते गांव के सभी पुरूष अविवाहित हैं. मगर यदि हम सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में प्रति हजार पुरूष के पीछे 905 औरते हैं. जबकि गुजरात में प्रति हजार पुरूष के पीछे 909 औरतें हैं. इस हिसाब से दोनों राज्यों में बहुत बड़ा अंतर नहीं है.

कहानीः

फिल्म की कहानी गुजरात के एक गांव से शुरू होती हैं, जहां सरपंच के पद पर एक पृथ्विश (बोमन ईरानी) के परिवार का कब्जा है. जब सरपंच के लिए दूसरा उम्मीदवार मैदान में आया तो उन्होने ‘महिला आरक्षित सीट’ का हवाला देकर अपने बेटे जयेश भाई (रणवीर सिंह ) की बहू मुद्रा (शालिनी पांडे )को मैदान में उतारकर सरपंच अपने परिवार के अंदर ही रखा है. एक दिन पंचायत में जब गांव की एक लड़की सरपंच से कहती है कि स्कूल के बगल में शराब की बिक्री बंद करायी जाए,  क्योंकि शराब पीकर लड़के,  लड़कियों को छेड़ते हैं, तो पृथ्विश आदेश देते है कि गांव की लड़कियंा व औरतें साबुन से न नहाए. खैर, पृथ्विश को अपनी बहू मुद्रा से परिवार के वारिस के रूप में लड़की चाह हैं. मुद्दा की पहली बेटी सिद्धि(जिया वैद्य) नौ वर्ष की हो चुकी है. सिद्धि के पैदा होने के बाद ‘घाघरा पलटन’ नही चाहिए. वारिस के तौर पर लड़के की चाहत में पृथ्विश के आदेश की वजह से मुद्रा का छह बार लिंग परीक्षण के बाद गर्भपात कराया जा चुका है. मुद्रा अब फिर से गर्भवती हैं. इस बार भी लिंग परीक्षण में जयेश भाई को डाक्टर बता देती है कि लड़की है, तो पत्नी से प्रेम करने वाले जयेशभाई नाटक रचकर बेटी सिद्धि व मुद्रा के साथ घर से भागते हंै. पृथ्विश गांव के सभी पुरूषों के साथ इनकी तलाश में निकलते हैं. पृथ्विश ऐलान कर देते हैं कि अब पकड़कर मुद्रा को हमेशा के लिए खत्म कर जयेशभाई की दूसरी शादी कराएंगे. चूहे बिल्ली के इसी खेल के बीच हरियाणा के एक गांव के सरपंच अमर ताउ(पुनीत इस्सर) आ जाते हैं. जिनके गांव में लड़कियों के अभाव में सभी पुरूष अविवाहित हैं. एक मुकाम पर अमर ताउ अपने गांव के सभी पुरूषों के साथ सिद्धि के बुलाने पर मुद्रा अपनी बेटी को जन्म दे सकें, इसके लिए पहुॅच जाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी तो इसके लेखक व निर्देशक दिव्यांग ठक्कर ही हैं. खुद गुजराती हैं, इसलिए उन्होने कहानी गुजरात की पृष्ठभूमि में बुनी. गुजरात पर्यटन विभाग ने अपने राज्य की छवि को सुधारने में पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई सौ करोड़ रूपए खर्च कर दिए, जिसमें पलीटा लगाने में दिव्यांग ठक्कर ने कोई कसर नही छोड़ी. फिल्म शुरू होने के दस मिनट बाद से ही अविश्वसनीय सी लगने लगती है और इंटरवल तक फिल्म का बंटाधार हो चुका होता है. इंटरवल के बाद तो फिल्म नीचे ही गिरती जाती है.

‘शायद दिव्यांग ठक्कर ‘समाज की पिछड़ी सोच, लैगिक असमानता व ‘भ्रूण हत्या’ जैसे गंभीर मुद्दे पर नेक इरादे से कोई डाक्यूमेंट्री बनाना चाहते हांेगे, पर फीचर फिल्म का मौका मिला, तो बिना इस विषय की गहराई में गए अनाप शनाप घटनाक्रम जोड़कर भानुमती का पिटारा बना डाला. फिल्म में एक दृश्य में एक गांव में सरकारी स्तर पर आयोजित ‘‘बेटी बचाओ’ के मेेले का दृश्य दिखाया, पर इसका भी फिल्माकर सही ढंग से उपयोग नही कर पाएं.

फिल्म में एक कहानी जयेशभाई की बहन प्रीती का भी हैं. फिल्म में बताया गया है कि गुजरात की परंपरा के अनुसार जयेशभाई की बहन प्रीती की शादी जयेश की पत्नी मुद्रा के भाई से हुई है. जब जब  प्रीती का पति उसकी पिटायी करता है, तब तब जयेश को भी मुद्रा की पिटायी करने के लिए कहा जाता है. कई दशक पुरानी गुजरात के किसी अति पिछड़े गांव की इस तरह के घटनाक्रम का इस फिल्म की मूल कहानी से संबंध समझ से परे है. इतना ही नही पृथ्विश के गांव के सारे पुरूष पृथ्विश के साथ मुद्रा व सिद्धि पकड़ने की मुहीम में शामिल हैं, मगर इनमें से एक भी पुरूष अपनी पत्नी या बेटी के साथ गलत व्यवहार करते हुए नहीं दिखाया गया. इतना ही नही फिल्मसर्जक फिल्म में सोशल मीडिया की ताकत को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. यह सब जोकर की तरह आता जाता है.

फिल्मकार का दिमागी दिवालियापन उस दृश्य से समझा जा सकता है, जहां प्रसूति गृह यानी कि अस्पताल में मुद्रा बेन द्वारा बेटी को जन्म देने में आ रही तकलीफ से डाक्ठर परेशान हैं, मगर अचानक मुद्राबेन व जयेश भाई एक दूसरे की ‘पप्पी’ यानी कि ‘चंुबन’ लेने लगते हैं और बेटी का जन्म सहजता से हो जाता है. वाह क्या कहना. . .

पूरी फिल्म देखकर यही समझ में आता है कि लेखक व निर्देशक ने महसूस किया कि इन दिनों सरकारी स्तर पर ‘बेटी बचाओ’ मुहीम चल रही है. तो बस उन्होेने इसी पर फिल्म लिख डाली. पर वह विषय की गहराई में नहीं गए. उन्होने कथा पटकथा लिखने से पहले यह तय नही किया कि वह अपनी फिल्म में ‘लिंग परीक्षण’ के खिलाफ बात करने वाले हैं या उनका नजरिया क्या है. . . . उन्होने जो किस्से सुने थे, , उन सभी किस्सों को जोड़कर चूंू चूंू का मुरब्बा परोस दिया. जो कि इतना घटिया है, कि दर्शक सिनेमाघर से निकलते समय अपना माथा पीटता नजर आता है.

अभिनयः

फिल्म में किसी भी कलाकार का अभिनय सराहनीय नही है. लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर रणवीर सिंह जैसे उम्दा कलाकार ने यह फिल्म क्यों की? शायद वह यशराज फिल्मस व आदित्य चोपड़ा को इंकार करने की स्थिति में नही रहे होंगें. पर इस फिल्म से एक बात साफ तौर पर सामने आती है कि रणवीर सिंह जैसे कलाकार से अदाकारी करवाने के लिए संजय लीला भंसाली जैसा निर्देशक ही चाहिए. फिल्म की नायिका शालिनी पांडे भी इस फिल्म की कमजोर कड़ी हैं. उनके चेहरे पर कहीं कोई हाव भाव एक्सप्रेशन आते ही नही है. उन्हे तो नए सिरे से अभिनय क्या होता है, यह सीखना चाहिए. जयेशभाई के पिता के किरदार में बोमन इरानी का चयन ही गलत रहा. रत्ना पाठक शाह भी अपने अभिनय का जलवा नही दिखा पायी. पुनीत इस्सर के हिस्से करने को कुछ था ही नहीं.

ये भी पढ़ें- Anupama- Anuj का रोमांस देख फैंस ने लुटाया प्यार तो वनराज का उतरा चेहरा

नहीं रहे प्राख्यात संगीतकार और संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा

भारत केप्राख्यात पद्मविभूषण, संगीतकार और संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन हो गया, वे 84 वर्ष के थे. पिछले छह महीने से किडनी संबंधी समस्याओं से पीड़ित पंडित जी डायलिसिस पर थे.पंडित शिवकुमार शर्मा का निधन 10 मईसुबह 8 से 8.30 बजे के करीब हुआ. उनका अंतिम संस्कार उनके आवास राजीव आप्स, जिग जैग रोड, पाली हिल, बांद्रा से किया जायेगा. पंडित शिव कुमार शर्मा का सिनेमा जगत में अहम योगदान रहा. बॉलीवुड में ‘शिव-हरी’ नाम से मशहूर शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया की जोड़ी ने कई सुपरहिट गानों में संगीत दिया था. इसमें से सबसे प्रसिद्ध गाना फिल्म ‘चांदनी’ का ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां’ रहा, जो दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी पर फिल्माया गया था.15 मई को शिव-हरि दोनों की जुगलबंदी एक बार फिर होने वाली थी. जिसका इंतज़ार दर्शक कोविड के बाद उत्सुकता से कर रहे थे.

प्रतिभामयी व्यक्तित्त्व

एक साधारण व्यक्तित्व, शांत, मृदुभाषी और हंसमुख स्वभाव के पंडित शिव कुमार शर्मा का चले जाना शास्त्रीय संगीत जगत में बहुत बड़ी क्षति है. उन्होंने हमेशा समाज से जो मिला, उसे वापस देना पसंद करते थे और संगीत की परंपरा सालों तक बने रहने के लिए गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करने थे, जिसमें शिष्य को मुफ्त में संतूर बजाना सिखाया जाता है. उनका कहना था कि मेरी तीन पीढ़ी इस वाद्ययंत्र की परंपरा को बनाये रखने की कोशिश कर रही है और इसमें सभी का योगदान आपेक्षित है. इसके अलावा मैं एक कलाकार सिर्फ तब होता हूँ, जब मैं बजाता हूँ, इसके अलावा घर में रास्ते-चौराहे पर लोगों से सलाम दुआ करते हुए जाता हूँ. मैं संतूर वादक होने के साथ-साथ एक पति, पिता, दादा और एक जिम्मेदार नागरिक भी हूँ. मेरे कुछ सामाजिक और पारिवारिक दायित्व भी है, उन्हें मैं कैसे भूल सकता हूँ.

संघर्ष से किया दो चार

कश्मीर से सिर्फ 500 रूपये लेकर पंडित शिवकुमार शर्मा मुंबई अपने एक मित्र के पास आये थे और एकदिन आल इंडिया रेडियो से निकलकर घर पहुंचने पर  उनका सामान बाहर फेका हुआ देखते है, बाद में पता चला कि दोस्त ने कमरे का किराया नहीं चुकाया है, इसलिए मकान मालिक ने उसे घर से निकाल दिया था, जिसमें उनके समान भी बाहर थे. उन्हें उस दिन बाहर बेंच पर रात गुजारनी पड़ी थी.

संगीत रही जीवन

कश्मीर की घाटी की संगीतज्ञ परिवार में जन्मे पंडित शिवकुमार शर्मा ने बचपन से ही संगीत सुना और वही उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया था, जिसमें हमेशा साथ दिया उनकी पत्नी मनोरमा ने.उनके छोटे बेटे राहुल को वे अपना शिष्य मानते थे और आज वह भी अपने पिता की तरह संतूर बजाता है. उनका दूसरा पुत्र रोहित भी संगीत के क्षेत्र से जुड़ा है.

जब भी पंडित शिव कुमार शर्मा से मिलना हुआ हमेशा एक संगीत की प्रतिमूर्ति नजर आती थी. यही वजह थी कि संगीत उनके परिवार और मुंबई की पाली हिल की घर में रची-बसी है. कालिंग बेल से लेकर हर जगह संतूर की मधुर आवाज अनायास ही सबका मन मोह लेती है.

संतूर को मिली पहचान

पंडित शिव कुमार शर्मा अपने माता-पिता के इकलौते संतान थे, पर उन्होंने संगीत के साथ-साथ अर्थशास्त्र में पढाई भी पूरी की है. उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा से उन्होंने पांच वर्ष की उम्र से गायन और तबला वादन की शिक्षा शुरू की थी.पंडित शिव कुमार शर्मा संतूर को शास्त्रीय संगीत में प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति है, क्योंकि इससे पहले संतूर केवल सूफी संगीत में होता था.

पंडितजी जब भी संतूर बजाते थे उनके दाई हाथ की अनामिका में नीले रंग की अंगूठी बहुत ही खूबसूरत लगती थी, उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि ये अंगूठी उन्हें प्रेरणा देती है, इसलिए इसे वे हमेशा पहनते है. संतूर पंडित शिव कुमार शर्मा के हाथों में आते ही ऐसा जादुई वाद्य यंत्र हो गया कि ना केवल ये यंत्र शास्त्रीय संगीत का हिस्सा बना, बल्कि इसकी जादुई आवाज भारत से निकल कर विश्व के हर देश में जा पहुंची.उनके हाथों का कमाल था कि संतूर पर काफी काम हुआ और विश्व पटल पर अब संतूर को फ्यूजन में भी शामिल करके नई संगीत दिए जाने पर काम हो रहा है. आज वे नहीं रहे लेकिन इस मनमोहक व्यक्ति की संगीत और संतूर वादन को हमेशा याद किया जाएगा.

Ex वाइफ्स के साथ आमिर खान ने मनाया बेटी Ira का बर्थडे, देखें फोटोज

बौलीवुड स्टार आमिर खान (Aamir Khan) आए दिन सुर्खियों में रहते हैं. जहां बीते दिनों उनका तलाक चर्चा का कारण बना था तो वहीं हाल ही में बेटी आइरा खान (Ira Khan) के 25th बर्थडे पार्टी के कारण वह सोशलमीडिया पर छाए हुए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ट्रोल हुई आइरा

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ira Khan (@khan.ira)

दरअसल, हाल ही में आइरा खान ने अपने 25वें बर्थडे के पूल पार्टी की फोटोज फैंस के साथ शेयर की थीं, जिसमें वह बिकिनी में पार्टी (Ira Khan Pool Party)करती हुई नजर आ रही हैं. वहीं उनमें से एक फोटोज में वह बिकिनी में ही अपने पेरेंट्स के साथ केक कटिंग करती हुई दिख रही हैं. फोटोज देखकर जहां फैंस उन्हें जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं तो वहीं सोशलमीडिया पर उनके केक काटते समय बिकिनी पहनने पर ट्रोल भी कर रहे हैं.

बेटी के बर्थडे पर एक्स वाइफ्स के साथ पहुंचे एक्टर

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

ट्रोलिंग के अलावा बर्थडे पार्टी की बीत करें तो आइरा खान की खास पूल बर्थडे पार्टी में पापा आमिर खान, मां रीना दत्ता और भाई आजाद राव खान के साथ-साथ उनकी एक्स वाइफ किरन राव भी नजर आईं. वहीं इस पार्टी में आइरा अपने बौयफ्रेंड संग मस्ती करती हुई भी नजर आईं.

अपने लुक्स को लेकर सुर्खियों में रहती हैं आइरा

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ira Khan (@khan.ira)

आमिर खान की बेटी आइरा अपने लुक्स को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. जहां वह अतरंगी फैशन शो में हिस्सा बनती नजर आती हैं तो वहीं हौट लुक से फैंस का ध्यान खींचती हुई नजर आती हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है कि वह ट्रोलिंग का शिकार नही है. लेकिन इस बार वह पिता के साथ-साथ ट्रोल हो रही हैं.

ये भी पढ़ें- GHKKPM: भवानी के बाद सई के सामने आएगी नई मुसीबत, पाखी चलेगी चाल

Mother’s Day पर इन एक्ट्रेसेस ने शेयर की बेबी की First फोटो, देखें पोस्ट

बीते दिन दुनिया में मदर्स डे सेलिब्रेट किया गया. इस मौके पर बौलीवुड से लेकर टीवी के सेलेब्स ने अपनी मां संग फोटोज शेयर कीं. वहीं कई एक्ट्रेसेस और सेलेब्स ने पहली बार अपने बच्चे के साथ फोटोज शेयर की हैं, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं बौलीवुड से लेकर टीवी सेलेब्स के बच्चों की पहली बार शेयर की गई फोटोज की झलक….

बेटी और पति संग शेयर की फोटोज

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Priyanka (@priyankachopra)

बीते दिनों सरोगेसी के जरिए बेटी के पिता बने एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) और सिंगर निक जोनस ने मदर्स डे के मौके पर बेटी संग फोटो शेयर करते हुए स्पेशल पोस्ट किया है. दरअसल, फोटो में प्रियंका जहां अपनी बेटी मालती मैरी चोपड़ा जोनस के साथ बैठी दिख रही हैं. तो वहीं निक जोनस बेटी का हाथ थामे नजर आ रहे हैं. इसके अलावा प्रियंका चोपड़ा ने पोस्ट में बताया है कि उनकी बेटी 100 दिन अस्पताल में रहने के बाद मदर्स डे के मौके पर घर आई हैं, जिसे सुनकर फैंस और सेलेब्स उन्हें बधाई दे रहे हैं.

मोहेना ने भी शेयर की बेटे की फोटो

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mohena Kumari Singh (@mohenakumari)

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम एक्ट्रेस मोहेना कुमारी सिंह  (Mohena Kumari Singh) ने भी मदर्स डे के मौके पर अपने बेटे के साथ पहली फोटो शेयर की हैं, जिसे देखकर फैंस बेहद खुश हैं और फोटोज पर जमकर प्यार लुटा रहे हैं.

बेटे संग शेयर की काजल अग्रवाल ने फोटोज

प्रैग्नेंसी के चलते सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली साउथ और बौलीवुड एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) ने भी मदर्स डे के मौके पर बेटे नील किचलू संग फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह बेटे को गले लगाती हुई नजर आ रही हैं. वहीं इसके अलावा कुछ फोटोज में एक्ट्रेस की मां और बेटा साथ नजर आ रहे हैं. हालांकि फोटोज में बेटे का चेहरा छिपाया हुआ दिख रहा है.

जुड़वां बच्चों की शेयर की फोटो

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Preity G Zinta (@realpz)

मदर्स डे के मौके पर एक्ट्रेस प्रीति जिंटा (Preity Zinta)  ने भी अपने जुड़वां बच्चों की फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह अपनी मां और बच्चों के साथ नजर आ रही हैं. फोटोज को देखकर फैंस बेहद खुश हैं.

ये भी पढ़ें- Imlie-आर्यन के रिश्ते में जहर घोलेगी ज्योति, करेगी ये काम

ऋषि कपूर के जाने के बाद कितनी बदल गई है नीतू कपूर की जिंदगी

जब अभिनेता ऋषि कपूर जिन्दा थे, वे मेरे लिए फुल टाइम जॉब थे, मेरे किसी फ्रेंड का घर पर आना या मेरा कहीं जाना उन्हें पसंद नहीं था, उनकी आवाज मेरी आवाज बनी थी, लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव में जब बच्चे बड़े हो गए है, उनकी शादियाँ भी हो गयी है, मैं अब फ्री हूं और अपने हिसाब से जी सकती हूं, ऐसी ही बातों को कह रही थी, एक सफल और खूबसूरत अभिनेत्री नीतू कपूर, जिन्होंने कई सुपर हिट फिल्मे दी और अपनी एक अलग पहचान बनायीं. नीतू कपूर आज भी उतनी ही खूबसूरत और हंसमुख दिख रही हैं, जितना वह पहले दिखती थी. नीतू इन दिनों कलर्स टीवी की रियलिटी शो ‘डांस दीवाने जूनियर्स’ में एक जज बनी है, जो डांस के साथ उनके एक्सप्रेशन को भी देख रही हैं.

हंसमुख, शांत और खूबसूरत अभिनेत्री नीतू कपूर किसी परिचय की मोहताज नहीं. पिता की मृत्यु के तुरंत बाद उन्होंने केवल 5 साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरू किया. नीतू ने लेट 1960 से लेकर, 1970 और 1980 के शुरुआत तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सफल फिल्मों की झड़ी लगा दी थी. वर्ष 1980 में उन्होंने ऋषि कपूर के साथ शादी की और दो बच्चों रिद्धिमा कपूर साहनी और रणवीर कपूर की माँ बनी. रणबीर आज एक अभिनेता हैं.

सवाल – इतनी सालों बाद इंडस्ट्री में वापस करने की वजह क्या है?

जवाब –मुझे जिंदगी में जो मिला,उससे मैं बहुत खुश हूं और कभी भी कुछ कमी मुझे महसूस नहीं हुई. अगर किसी बात से दुखी होती थी, तो जल्दी ही उसमें से निकल जाने की कोशिश करती हूं. पिछले 2 से 3 साल तक मेरी जिंदगी में जो सैड पार्ट आई, उससे निकलने के लिए मैंने फिल्म की. हालाँकि मेरी कॉंफिडेंट लेवल बहुत कम हो चुकी थी, फिर भी मैं एक्टिंग करने चली गयी और चंडीगढ़ में पहली शॉट पर मेरी हालत ख़राब हो रही थी, पर धीरे-धीरे अच्छा करती गयी, क्योंकि कई बार माइंड को किसी दुःख की परिस्थिति से निकालना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन कुछ छोटे-छोटे शोज में गेस्ट जज बनकर गयी और कई लोगों से मिली. इसके बाद ये बच्चों की रियलिटी शो आई और मैंने इसे करने के लिए हाँ कह दी, क्योंकि बच्चों के साथ कुछ भी करना मुझे पसंद है. अकेली जिंदगी में कितना फ्रेंड्स के साथ रहूं, कितना ट्रेवल करूँ? मेंटल ऑक्यूपेशन बहुत जरुरी होता है.

सवाल – आप हमेशा अपने ड्रेसेस को लेकर चर्चित रहती है, क्योंकि आपकी ड्रेसिंग सेंस बहुत अच्छी है, इसके बारें में आप क्या कहना चाहती है?

जवाब – मेरे पास जो भी है, उसे मैं अपने हिसाब से पहनती हूं. मैंने हमेशा अपने ड्रेसेस खुद स्टाइल किया है.

सवाल – रियलिटी शो में काम करने में किसी प्रकार का प्रेशर अनुभव करती है?

जवाब – प्रेशर बहुत होता है, क्योंकि काफी समय इसमें देना पड़ता है. मेरी आदत सुबह लेट उठना, आराम से सब कुछ करना था. अब सुबह जल्दी उठकर भागम-भाग में सब करना पड़ता है, लेकिन अच्छी बात ये है कि इस शो में छोटे-छोटे बच्चे इतना अच्छा डांस करते है, जिसे देखकर मैं चकित हो जाती हूं. ये बच्चे छोटे-छोटे गांव से आये है, पर उनमें कुछ बनने कीउत्साह मुझे भी प्रेरित करती है.

सवाल – आपका बचपन कैसा था,क्या आपको बचपन याद आता है?

जवाब – मेरा बचपन था कहाँ? मैने 5 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था, उस समय न तो कोई फ्रेंड था, न ही बचपन था. बाल कलाकार के बाद ऋषि कपूर के साथ मेरा कैरियर शुरू हुआ.14 साल की उम्र से मैंने ऋषि कपूर के साथ डेटिंग शुरू कर दी थी,तब मुझे दुनिया का कुछ पता नहीं था, मेरी माँ भी बहुत स्ट्रिक्ट थी. जब मुझे बहुत सारे काम मिलने शुरू हो गए तो मेरे पति ने मुझसे शादी करने का प्रस्ताव रखा और मैंने शादी कर ली. 7 साल में मैंने 70 से 80 फिल्में की. 21 की उम्र में मेरी शादी हो गयी और बेटी भी हो गयी, दो साल बाद रणवीर का जन्म हो गया. मेरे जीवन में सबकुछ फटाफट हो गया. इसके बाद लाइफ इतनी बिजी हो गयी कि मुझे काम छोड़ना पड़ा, क्योंकि ऋषि कपूर मेरे लिए फुलटाइम जॉब थे.

सवाल –आपके हिसाब से,क्या कम उम्र में शादी करना अच्छा होता है? आपकी राय क्या है?

जवाब – आज के बच्चे इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें पहले उस इंसान को जानने की जरुरत है, जिससे वे शादी कर रहे है. मेरी सोच यह है कि पति-पत्नी दोनों ही इन्नोसेंट होने पर शादी के बाद वे धीरे-धीरे साथ में ग्रो करते है, पर आज मेरी ये सोच गलत है, क्योंकि पहले हम दोनों एडजस्ट करते थे, लेकिन अब कोई एडजस्ट करना नहीं चाहता और एक दूसरे की आदतें उन्हें पहले से पता होती है. इसके अलावा दोनों मैच्योर होने पर उनकी एक राय बन जाती है, जिससे वे निकल नहीं पाते.

सवाल – क्या आपने काम को कभी नहीं मिस किया?

जवाब – मैंने बहुत काम किया और मैं अभिनय करते हुए ऊब चुकी थी, हर दिन एक स्टूडियो से दूसरी स्टूडियो जाना, ऑउटफिट बदलना, मेकअप लेना आदि मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए काम को छोड़ते हुए मुझे कोई परेशानी नहीं हुई.

सवाल –आपने बहुत कम उम्र में डेटिंग की है, जबकि आपकी माँ बहुत स्ट्रिक्ट थी, ऐसे में आप कैसे घर से निकलती थी या आपकी माँ का रिएक्शन कैसा था?

जवाब –मैं अकेले कभी निकली नहीं, मेरे साथ मेरा एक कजिन भाई जाता था, पर मैं उसे आधे रास्ते में छोड़ दिया करती थी. हमारी डेटिंग खाना खाया, थोड़ी गप-शप की, घर आते वक्त कजिन को उठा लिया और घर आ गए, आजकल की तरह डेटिंग नहीं थी.

सवाल –फिल्म जुग-जुग जियो में आपने अलग भूमिका निभाई है, क्या अभी भी खुद को एक्स्प्लोर कर रही है?

जवाब – मैंने हमेशा चोर, उचक्कों, पाकेटमार जैसी चुलबुली भूमिका निभाई है. इस फिल्म में मेरी भूमिका सीरियस है,मैंने ऐसी ठहरी हुई भूमिका पहले कभी निभाई नहीं है. आगे चलकर देखती हूं कि दर्शकों को मेरी भूमिका कितनी पसंद होती है.

सवाल – आपने सफल जर्नी पूरी की है, पिछले 30 से 40 वर्षों में कितना बदलाव हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में देखती है?

जवाब –बदलाव हुआ है और ये अच्छा बदलाव है. नई कहानियां कही जा रही है. फिल्मे बनाने की तकनीक, दर्शकों के टेस्ट, उनकी सोच सब पूरी तरह से बदल चुकी है. इसे मैं सही मानती हूं. आज लोग अधिक प्रोफेशनल हो चुके है, जो पहले नहीं था. मैं हर दिन सेट पर आने का समय पूछती थी, मोनिटर करने वाला कोई नहीं था. फिर भागती हुई सेट पर पहुँचती थी. बहुत बड़ी बदलाव है और ये अच्छे के लिए है, लेकिन अगर मेरी बात करूँ, तो मुझे वही लाइफस्टाइल पसंद थे.

सवाल –आज फिल्मों से एंटरटेनमेंट गायब हो चुका है, हर कोई रियल फिल्में बनाने की कोशिश कर रहे है, ऐसे में जो बाते घर-घर में होती है, वही पर्दे पर है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

जवाब – ये सही है कि आज की फिल्में अधिक वास्तविकता की ओर जा रही है, मुझे तो आज भी मेरी फिल्मे और उनके गाने पसंद है. असल में पहले एक कहानी में बच्चे का बिछड़ना, बलात्कार हो जाना,गाना आदि होते थे, पर अब ये दौर नहीं आएगा, क्योंकि वह हमारा समय था और हमारा ही रहेगा.

सवाल – आपके काम को बच्चे कितना सराहते है?

जवाब – दोनों बच्चे मेरे काम को सराहते है और देखते भी है. एक विज्ञापन में हम दोनों साथ थे, रणवीर वहां मुझे एक्टिंग के तरीके बता रहा था. मुझे मन ही मन हंसी आ रही थी. मैं हमेशा एक स्ट्रिक्ट मोम रही, जबकि ऋषि कपूर ने कभी बच्चों को डाटा नहीं, लेकिन उनका डर बच्चों को बहुत था. रणवीर कभी आँख उठाकर पिता से बात नहीं करते थे, लेकिन बेशर्म फिल्म में ऋषि और रणवीर दोनों ने साथ मिलकर काम किया है,जिसमें रणवीर ने पहली बार अपने पिता की आँखों का रंग देखा था, जिसे सुनकर मैं चकित हो गयी थी.

ये भी पढ़ें- अनुज को पापा कहेंगे Anupamaa के बच्चे, वनराज का होगा बुरा हाल

REVIEW: जानें कैसी है Tiger Shroff की Heropanti 2

रेटिंगः आधा स्टार

निर्माताः साजिद नाड़ियादवाला

निर्देशकः अहमद खान

कलाकारः टाइगर श्राफ,तारा सुतारिया, नवाजुद्दीन सिद्दिकी,

अवधिः दो घंटे  22 मिनट

2014 की सफल फिल्म ‘‘हीरोपंती’’ से अपने कैरियर की शुरूआत की थी,जिसका लेखन संजीव दत्ता,निर्देशन सब्बीर खान और निर्माण साजिद नाड़ियादवाला ने किया था. अब पूरे आठ वर्ष बाद उसी फिल्म का सिक्वअल ‘‘हीरोपंती’’ 29 अप्रैल को सिनेमाघरो में पहुंची है. फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ के  निर्माता साजिद नाड़ियादवाला ने खुद ही इस बार कहानी लिखी है. यह बात गले नहीं उतरती कि साजिद ने क्या सोचकर अपनी इस बकवास कहानी पर फिल्म के निर्माण पर पैसे खर्च कर डाले. इससे ज्यादा बकवास फिल्म अब तक नही बनी है.

एक फिल्म के निर्माण में तकरीबन सौ से अधिक लोगों की मेहनत लगी होती है. एक फिल्म की सफलता व असफलता का असर हजार से अधिक परिवारों की रसोई पर पड़ता है. इस वजह से अमूमन मैं फिल्म की समीक्षा लिखते दर्शक फिल्म देखने न जाएं,ऐसा लिखने से बचने का प्रयास करता हॅूं,मगर ‘‘हीरोपंती 2’’ देखने का अर्थ सिरदर्द मोल लेेन के साथ ही समय व पैसे का क्रिमिनल वेस्टेज ही होगा.

कहानीः

लैला जादूगर (नवाजुद्दीन सिद्दिकी ) की आड़ में पूरे विश्व के साइबर क्राइम के मुखिया हैं. जिसने योजना बनायी है कि 31 मार्च के दिन भारत के सभी बैंको में सभी नागरिको के बैंक एकाउंट को हैककर सारा धन अपने पास ले लेंगें. बबलू( टाइगर श्राफ )दुनिया का सबसे बड़ा हैकर है,जिसकी सेवाएं कभी सीबाआई प्रमुख खान( जाकिर हुसेन ) के लिया करते थे. अब बबलू अपनी सेवाएं लैला को दे रहे हंै. लैला की बहन इनाया( तारा सुतारिया) ,बबलू से प्यार करती है. फिर बबलू का हृदय परिवर्तन भी होता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ में ऐसा कुछ नही है,जिसे अच्छा कहा जा सके. घटिया कहानी,घटिया पटकथा और घटिया निर्देशन अर्थात फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ है. लेखक व निर्देशक के दीमागी दिवालिएपन की हालत यह है कि एम्बूलेंस ड्रायवर का मकान अंदर से किसी आलीशान बंगले से कमतर नही है. टाइगर श्राफ की पहचान बेहतरीन डांसर व एक्शन दृश्यों को लेकर होती है,लेकिन इस फिल्म में यह दोनो पक्ष भी कमजोर हैं. फिल्म में कई एक्शन दृश्य ऐसे है, जिन्हे देखते हुए लगता है हम मोबाइल पर एक्शन का वीडियो देख रहे हो. मजेदार बात यह है कि एक्शन दृश्य देखकर हंसी आती है. एक व्यक्ति दोनों हाथांे में मशीनगन पकड़कर टाइगर श्राफ पर गोलियां चला रहा है,मगर टाइगर पर असर नही पड़ता. तो वहीं कहीं किसी भी दृश्य के बाद कोई भी गाना ठूंस दिया गया है. फिल्म में एक भी दृश्य ऐसा नही है,जिसमें कुछ नयापना हो. सब कुद बहुत बचकाना सा है. अब तीन मिनट के सिंगल गानों के जो म्यूजिक वीडियो बन रहे हैं,उनमें भी एक अच्छी कहानी होती है,मगर ‘हीरोपंती 2’’ की पटकथा इतनी खराब लिखी गयी है कि दर्शक अपना माथा पीटता रहता है.

अहमद खान अच्छे नृत्य निर्देशक रहे हैं,मगर बतौर निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. वैसे अहमद खान ने इससे पहले ‘बागी 2’ और ‘बागी 3’ जैसी अर्थहीन फिल्मंे  निर्देशित कर चुके हैं.

फिल्म में एक दृश्य पांच सितारा होटल के अंदर से शुरू होता है,जहां इयाना (तारा सुतारिया ) बबलू (टाइगर श्राफ ) की होटल के बाहर बीच सड़क पर अपने आदमियों से बबलू की पैंट उतरवाकर  पीठ के नीचे कमर पर तिल की तलाश करवाती है. यह अति भद्दा व वाहियात दृश्य है. इसे करने के लिए टाइगर श्राफ क्या सोचकर तैयार हुए,पता नही. जबकि इस दृश्य से कहानी का कोई लेना देना नही है.

इसके संवाद भी अति घटिया हैं. फिल्म में नवाजुद्दीन का संवाद है-‘‘यह तुम्हारी मां है और यह मेरी बहन है. अब तुम दोनो जाकर मां बहन करो. ’’

लैला यानी कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी के कम्प्यूटर रूम में सीसीटीवी कैमरा लगा है,जो कि अजीब ढंग से घूमता रहता है. यह कैमरा क्यों लगा हुआ है,किस पर निगाह रख रहा है,पता ही नहीं चलता.

अभिनयः

इनाया के किरदार में तारा सुतारिया का अभिनय अति घटिया है. पूरी फिल्म में वह विचित्र से कपड़े पहने,विचित्र सी हरकतें करते हुए नजर आती है.

जादूगर लैला के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अब तक का सबसे निम्न स्तर का अभिनय किया है. वह कभी ट्रांसजेंडर की तरह हाव भाव करते व चलते नजर आते हैं,तो कभी कुछ अलग ही चाल ढाल होती है. नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने इस फिल्म में क्यों काम किया,यह समझ से परे है. शायद वह सिर्फ पैसा बटोरने के चक्कर में कला व अभिनय को तिलांजली देने पर उतारू हो चुके हैं.

टाइगर श्राफ हर दृश्य में अपना सपाट सा चेहरा लिए हुए नजर आते हैं. उनके चेहरे पर कहीं कोई भाव नहीं आते. बेवजह उछलकूद करते हुए नजर आते हैं.

अफसोस की बात यह है कि इस बकवास फिल्म के गीतों को संगीत से ए आर रहमान ने संवारा है. फिल्म के गाने घटिया हैं और बेवजह फिल्म के बीच बीच में ठॅूंसे गए हैं. फिल्म के अंत में ‘व्हिशल बाजा’ प्रमोशनल गाने में कृति सैनन को देखकर लगा कि शायद अब उनका कैरियर पतन की ओर जाने लगा है.

ये भी पढ़ें- Anupama-Anuj की रिंग हुई गायब, वनराज पर लगेगा सगाई में इल्जाम

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें