सीख: भाग 2- क्या सुधीर को कभी अपनी गलती का एहसास हो पाया?

सुधीर गुस्से से कहता चला जा रहा था कि मां ने बीच में टोका, ‘‘बेटा, वे लड़कियां फर्राटे से अंगरेजी बोल लेती हैं, बढि़या डांस कर लेती हैं, परंतु घरगृहस्थी के काम में अकसर उन्हें कुछ नहीं आता है. अंगरेजी बोल लेना, नाच लेना थोड़े दिनों की चकाचौंध है, बाद में घरगृहस्थी ही काम आती है. सामने त्रिपाठीजी के बेटे की बहू को देखते हो, स्मार्ट है, फर्राटे की अंगरेजी बोलती है, संगीत में प्रभाकर की डिगरी ले रखी है, परंतु मिसेज त्रिपाठी दिन भर काम में जुटी रहती हैं, बहूरानी कमरे में पलंग पर लेट कर स्टीरियो सुनती रहती हैं- न सास की लाज न ससुर की इज्जत. जया सुंदर है, पढ़ीलिखी है, घरेलू वातावरण में पलीबढ़ी है, शहर में रह कर सब सीख जाएगी,’’ मां ने सुधीर को समझाते हुए कहा.

‘‘मां, घरगृहस्थी का काम तो एक अनपढ़ लड़की भी कर लेती है. इतना तो मैं कमा ही लेता हूं कि घरगृहस्थी के काम के लिए एक नौकर रख सकता हूं. आजकल शहरों में जगहजगह रेस्टोरेंट व होटल खुल गए हैं, फोन कर दो, मनपसंद खाना घर बैठे आ जाएगा. कुछ सोशल लाइफ भी तो होती है.’’

सुधीर की बातें जया कमरे से सुन रही थी.  उस का एकएक शब्द उस का मन चीरता चला जा रहा था. जया को अपनी मां पर भी क्रोध आया कि उन्होंने कितने पुराने संस्कारों में उसे ढाल दिया. उस ने महिला कालेज से बी.ए. पास किया था और साइकोलोजी से एम.ए. करना चाहती थी. साइकोलोजी केवल क्राइस्टचर्च कालेज में पढ़ाई जाती थी, जहां सहशिक्षा थी. लड़केलड़कियां एकसाथ पढ़ते थे. मां कितनी मुश्किल से क्राइस्टचर्च में एडमिशन के लिए तैयार हुई थीं.

जया कालेज जाती थी मां तो हिदायतों की पूरी की पूरी लिस्ट उसे दे देती थी. कि लड़कों के पास मत बैठना, लड़कों से बात मत करना, अगर कुछ पूछना जरूरी हो तो नीचे नजर डाल कर धीरे से बोलना.

मां ने कितने उदाहरण दे डाले थे कि सीधीसादी लड़कियों को कालेज के लड़के बरगला कर गलत रास्ते पर ले जाते हैं. लाइब्रेरी में लड़कों के साथ बैठ कर पढ़ने की इजाजत मां ने कभी नहीं दी. इसी कारण उस का एम.ए. का डिवीजन बिगड़ गया था. मां ने घर से अकेले कभी निकलने ही नहीं दिया.

एक दिन मां के साथ वह पिक्चर देखने गई थी. उस के पास एक लंबी लड़की बौय कट बालों में जींस पहने बैठी थी. अंधेरे में मां को शक हुआ कि यह लड़का है. मां उचकउचक कर देखने लगीं तो उसे थोड़ा गुस्सा आ गया और ‘यह लड़का नहीं लड़की है’, उस के मुंह से चिल्लाहट भरे स्वर ऐसे निकले कि आसपास के लोग उन्हें घूरघूर कर देखने लगे.

मां तो आश्वस्त हो कर बैठ गई थीं, परंतु उस का मन पिक्चर में फिर न लग सका था. अगर इतने पुराने संस्कारों में पाला था तो इतने एडवांस घर में उस की शादी क्यों कर दी, जहां शालीनता को मूर्खता समझा जाता?

एक दिन मां कह रही थी कि तुम्हारे पिताजी चाहते थे कि उन की बेटी की शादी बड़े घर में हो, जहां नौकरचाकर, कार व बंगला जाते ही मिल जाए.

मां की कितनी निर्मूल धारणा है. ऐसे बड़े घर का क्या करना, जहां भौतिक सुख की सारी सुविधाएं हों, परंतु मन को एक पल भी चैन न मिले.

एक शाम कपड़े पहन कर तैयार हो कर सुधीर कहीं जा रहा था. उस ने इतना ही पूछ लिया था, ‘‘कहां जाने की तैयारी है?’’

सुधीर कितनी जोर से बिगड़ पड़ा था,

‘‘मैं कहां जाता हूं, कहां उठताबैठता हूं, किस से बात करता हूं, इस में तुम हर समय टांग अड़ाने वाली कौन होती हो? तुम्हें हाई सोसाइटी में उठनेबैठने की तमीज नहीं है, तो क्या मैं भी उठनाबैठना बंद कर दूं?’’

जया के संस्कार परंपरागत अवश्य थे, परंतु उस का व्यक्तित्व स्वाभिमानी था. रोजरोज का अपरोक्ष तिरस्कार तो वह किसी प्रकार सहन कर लेती थी, पर इस अनावश्यक प्रताड़ना से उस के मन में विद्रोह जाग उठा. उस ने सोच लिया कि वह अपने को बदल कर सुधीर को सीख जरूर देगी.

अगले जाड़ों में दिल्ली में उस की सहेली लता की बहन की शादी थी. उस ने शादी के निमंत्रणपत्र के साथ मम्मीजी के नाम एक विनयपूर्वक पत्र भी लिखा था, जया को इस विवाह समारोह में सम्मिलित होने की आज्ञा दे दें.

मम्मीजी ने पत्र सुधीर को दिखाया. सुधीर के पास छुट्टी नहीं थी और जया के

प्रति उस के मन में ऐसी खटास थी कि उसे जया से कुछ दिन दूरी की बात राहत देने वाली ही लगी. उस ने उसे अकेले चले जाने को तुरंत कह दिया. जाने के लिए निश्चित हुए दिन सुधीर जया को फर्स्ट क्लास एसी में ट्रेन में बैठा आया. ट्रेन के चलते ही जया ने भी एक स्वतंत्रता की सांस ली. उस के मन में स्फूर्ति भरती जा रही थी. रास्ते के दृश्य उसे बहुत सुहावने लग रहे थे.

नई दिल्ली स्टेशन पर उस की सहेली लता व उस के पति शैलेंद्र उसे लेने आए थे. जया के ट्रेन से उतरते ही लता जया से लिपट गई. कालेज छोड़ने के एक अरसे बाद दोनों सहेलियां आपस में मिल रही थीं.

लता के घर पहुंच कर जया को लगा कि वह किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गई है. विवाह हेतु घर की सज्जा सुरुचिपूर्ण थी.

दूसरे दिन बरात आने वाली थी. केले के पत्तों व फूलों से सजाया गया था. बाहर पंडाल में बरातियों के बैठने व खानेपीने की व्यवस्था थी. मेहमानों से घर भरा था, बरात मेरठ से दिल्ली आ रही थी.

दूसरे दिन शाम को बरात खूब धूमधाम से चढ़ी. दूल्हा पक्ष के लड़कों व कन्या पक्ष की लड़कियों में खूब हंसीमजाक चल रहा था. हंसी के फुहारे छूट रहे थे. जया इस प्रकार के खुलेपन को आश्चर्य से देख रही थी. रात में विवाह हुआ, दूसरे दिन अपराह्न को बरात विदा होने वाली थी. सुबह चायनाश्ते के बाद वर पक्ष की कुछ चुलबुली लड़कियों ने कन्या पक्ष के कुछ मनचले लड़कों को घेर लिया. लच्छेदार मीठीमीठी बातें कीं और शहर घुमाने का प्रोग्राम बना डाला.

लड़कियां लड़कों के साथ खूब घूमीं, पिक्चर देखी और रेस्टोरेंट में खायापिया.

बाद में लड़कों को अंगूठा दिखा कर बरातियों में आ मिलीं. जया ने आश्चर्यपूर्वक सुना कि लड़कियां आपस में ठहाके लगा रही थीं, ‘बड़े मजनू बनने चले थे, 2-4 हजार रुपयों के चक्कर में तो आ ही गए होंगे. सब को याद रहेंगी मेरठ की लड़कियां.’ अब जया सुधीर की तथाकथित स्मार्टनेस का मतलब समझ रही थी.

सीख: भाग 1- क्या सुधीर को कभी अपनी गलती का एहसास हो पाया?

जया नहा धो कर तैयार हुई, माथे तक घूंघट किया, फिर धीरेधीरे सीढि़यां उतर कर नीचे आ गई. आते ही मम्मीजी के पैर छूने के लिए जैसे ही झुकी, वैसे ही मम्मीजी ने हाथ पकड़ कर ऊपर उठा लिया.

‘‘पैर छूना पुरानी बातें हैं, दिल में इज्जत होनी चाहिए, इतना ही काफी है और ये घूंघट क्यों बना लिया है?’’ और मम्मीजी ने जया के सिर से घूंघट उठा दिया.

‘‘मेज पर नाश्ता लग गया है, सब लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं. चलो, नाश्ता कर लो,’’  मम्मीजी ने प्यार से कहा.

जया ने अपनी भाभियों को ससुर व जेठ के साथ बराबर बैठ कर खातेपीते नहीं देखा था. पहले तो वह थोड़ी सी झिझकी फिर जा कर एक कुरसी पर बैठ गई.

पापाजी ने एक पकौड़ी का टुकड़ा मुंह में रखा और कहने लगे कि शंभू ने पकौडि़यां ठंडी कर दी हैं.

जया कुरसी से उठी और पकौडि़यों की प्लेट किचन में ले गई. कड़ाही आंच पर चढ़ा कर पकौडि़यां गरम कर लाई. पापाजी खुश हो गए.

‘‘घनश्याम घंटा भर पहले पानी फ्रिज से निकाल कर जग भर के रख देता है, जब तक खाओपियो पानी गरम होने लगता है,’’  विपिन ने कहा.

जया ने पानी का जग उठाया, उस का पानी बालटी में उड़ेल कर फ्रिज से बोतल निकाल कर जग में ठंडा पानी भर मेज पर रख दिया.

‘‘भाभी, इतने नौकर घूम रहे हैं, किसी नौकर को आवाज दे देतीं, आप खुद क्यों दौड़ रही हैं?’’ विभा ने भौंहें सिकोड़ कर कहा.

सुधीर पहले दिन से ही जया को मिडिल क्लास मेंटैलिटी का मान कर कुपित था और आज जया के बारबार खुद उठ कर नौकरानी की तरह भागने से मन ही मन क्रोधित हो रहा था. अत: विभा की बात समाप्त करते ही सुधीर फूट पड़ा, ‘‘अपने घर में  नौकरचाकर देखे हों तो नौकरों से काम लेना आए.’’

जया सहम गई, उसे याद आया मां ने चलतेचलते समझाया था, ‘‘घर में चाहे कितने भी नौकरचाकर हों, अपने परिवार वालों का अपने हाथों से परोसनेखिलाने से प्यार बढ़ता है, बड़ों का सम्मान होता है.’’

सुधीर का ताना सुन कर जया की आंखों में आंसू आ गए. उसे पता ही नहीं चला कि उस ने क्या खाया. सब लोग उठे तो वह भी धीरे से उठ कर कमरे में चली गई.

जया को ब्याह कर ससुराल आए 2 हफ्ते हो गए थे. वह अपने पति सुधीर के साथ एडजस्ट नहीं कर पा रही थी. एक दिन सुधीर के कुछ दोस्त आने वाले थे. जया ने किचन में जा कर मठरियां सेंक कर रख दीं. हलवा बना कर हौटकेस में रख दिया. नौकर से समोसे बाहर से लाने को कह कर जैसे ही बाहर निकली, वैसे ही एकसाथ कई आवाजें सुनाई दीं कि भाभीजी हम लोग आप से मिलने आए हैं, आप कहां छिप कर बैठ गईं?

जया धीरे से बाहर निकली और नमस्ते कर के सीटिंगरूम में एक कुरसी पर बैठ गई.

‘‘वाह भाभीजी, हम लोग यह सोच कर आए थे, कुछ अपनी कहेंगे, कुछ आप की सुनेंगे, मगर आप तो छुईमुई की तरह सिमटीसिकुड़ी चुपचाप बैठी हैं,’’ सुनील ने कहा.

‘‘छुईमुई तो हाथ लगने से सिकुड़ती है, भाभीजी तो हमारी आवाज से ही सिकुड़ गईं,’’ जतिन ने हंसते हुए जोड़ा.

‘‘भाभीजी नईनवेली दुलहन हैं, इतनी जल्दी कैसे खुल जाएंगी?’’  ललित हंस कर बोला. तभी घनश्याम ने चायनाश्ते की ट्रे ला कर मेज पर रख दी.

‘‘हलवा कितना लजीज बना है,’’  सुनील ने 1 चम्मच हलवा मुंह में रखते ही कहा, ‘‘और मठरियां कितनी खस्ता है, लगता है सारा सामान भाभीजी ने ही बनाया है,’’ ललित ने मठरी तोड़ते हुए कहा.

परंतु सुधीर ने अपने मन की भड़ास निकालते हुए जया को ताना दिया, ‘‘इन्हें चौकाचूल्हे के सिवा और आता ही क्या है?’’

‘‘अच्छा भाभीजी, आप को चौकाचूल्हे के सिवा और कुछ नहीं आता?’’ कहतेकहते सब लोग ठहाका मार कर हंस पड़े. जया का मन झनझना उठा.

माहौल को सामान्य बनाने के उद्देश्य से प्रियंक बोला, ‘‘भाभीजी, सुना है आप के गांव के पास शारदा डैम बन गया है और वह बहुत रमणीय स्थल बन गया है. आप हम लोगों को बुलाइए, हम लोग पिकनिक मनाएंगे, डैम में जल विहार करेंगे, बड़ा मजा आएगा. सुधीर, चलने का प्रोग्राम बनाओ.’’

‘‘हां, इन के पिताजी के खेतखलिहान भी देख लेना,’’ सुधीर को जया पर कटाक्ष करने की आदत सी पड़ गई थी.

‘‘हांहां, आप लोग अवश्य आइए. आप लोग बड़े शहर में रहते हैं, आप ने गांव नहीं देखे होंगे. आप को वे अजीबोगरीब लगेंगे,’’ जया का स्वर हलका सा कठोर हो गया था.

‘‘क्या भाभीजी आप के गांव में बैलगाड़ी से आतेजाते हैं?’’ सुनील ने कुछ अज्ञानतावश तो कुछ व्यंग्यपूर्वक पूछा.

‘‘नहीं भाई साहब, हम लोग कसबे में रहते हैं, गांव में हमारा फार्म है, पिताजी के पास जीप है, पिताजी जीप से फार्म देखने जाते हैं, अगर खुद जा कर न देखें तो नौकरचाकर भट्ठा बैठा दें,’’ जया के स्वर में दृढ़ता थी.

थोड़ी देर गपशप कर के दोस्त तो चले गए, परंतु सुधीर का असंतोष उस के चेहरे से साफ झलक रहा था.

जया अपने कमरे में चली गई, जहां से उस ने सुना, सुधीर मां के पास बैठा  बड़बड़ा रहा था, ‘‘मां, आप ने कितने दकियानूसी परिवार की लड़की मेरे गले बांध दी. आखिर मुझ में क्या कमी है? स्मार्ट हूं, ऊंची पोस्ट पर हूं, मेरे कालेज की कितनी लड़कियां मुझ से शादी करने को तैयार थीं, परंतु आप की जिद के आगे मैं झुक गया.

जया कितनी पिछड़ी है, न उठनेबैठने की तमीज है न बोलने का सलीका, चार लोग आए तो सिमटसिकुड़ कर बैठ गई. बोली तो ऐसे बोली मानो पत्थर मार रही हो.

‘‘उस दिन एक दोस्त के बेटे के बर्थडे में गया, तो सब लड़कियां तालियां बजाबजा कर हैप्पी बर्थडे गा रही थीं, यह मुंह लटकाए चुपचाप खड़ी थी. कपड़े पहनने की तमीज नहीं, सर्दी में शिफान और गरमियों में सिल्क पहन कर चल देती है. एक हाई हील के सैंडल ला कर दिए तो पहन कर चलते ही गिर पड़ी. मुझे तो बहुत शर्म आती है. मेरे दोस्त अरुण की शादी अभी हाल ही में हुई है, उस की बीवी कितनी स्मार्ट है, फर्राटे से अंगरेजी बोलती है अरुण बता रहा था, लेडीज संगीत में उस की छोटी बहन ने उसे जबरदस्ती खड़ा कर दिया तो उस ने इतना अच्छा डांस किया कि सब लोग वाहवाह कर उठे.’’

पहचान: पति की मृत्यु के बाद वेदिका कहां चली गई- भाग 3

‘‘मम्मीपापा, आप यहां कैसे? कैसे हैं आप?’’ वेदिका मम्मी से लिपट गई. सालों के जमा गिलेशिकवे पानी बन कर बह गए.

एक पत्रिका में वेदिका का इंटरव्यू छपा था, जिसे पढ़ कर उन्हें वेदिका का पता चला और वे तुरंत उस से मिलने चले आए. कली को सीने से लगाते हुए दोनों को अपने किए पर पछतावा था.

पापा ने कहा, ‘‘बेटा, उस कठिन समय में हमें तुम्हारा साथ देना चाहिए था.’’

वेदिका तो उन का साथ पा कर सारे दुख भूल चुकी थी. कली के साथ वे भी इतने रम गए कि पुरानी बातें याद करने का उन्हें भी कहां होश था? देर रात तक वे उस के साथ खेलते रहे.

रात में मम्मी ने बताया…

वेदिका के जाने के बाद विदित के मातापिता उसे ढूंढ़ते हुए उन के घर पहुचे थे. कई दिनों तक उन के घर के आसपास लोग टोह लेते रहे. कई बार फोन पर उन्हें धमकियां भी मिलीं. पुलिस भी चक्कर लगाती रही. विदित के भाई ने तो यहां तक कहा कि वेदिका के साथ उन के घर का होने वाला वारिस भी गायब है… वे उन्हें छोड़ेंगे नहीं. हमें तो लगा कि उन लोगों ने तुम्हें कुछ कर दिया है… तुम्हारा कोई सुराग ही नहीं लगा… तुम्हें ढूंढ़ते भी तो कैसे?

2-3 दिन वहां रुक कर मम्मीपापा वापस जाने लगे. वेदिका की तरक्की से वे संतुष्ट थे. कली के प्यार से सराबोर. उन्होंने वेदिका से जल्दी आने का वादा लिया. विदित के मम्मीपापा को कहीं वेदिका के बारे में न पता चले, इस आशंका से वे भयभीत थे.

वेदिका ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करो. अब मेरी अपनी पहचान है, इसलिए मु?ो नुकसान पहुंचाना आसान नहीं होगा उन के लिए… मैं जल्दी ही वहां जाऊंगी.’’

दरवाजे की घंटी बजी तो नौकर ने दरवाजा खोला. सामने वेदिका को देख कर हतप्रभ रह गया. विदित के मम्मीपापा, भैयाभाभी भी चौंक उठे. मम्मीपापा के चेहरे पर उम्र लकीरों के रूप में कुछ ज्यादा ही फैल गई थी. उन्हीं लकीरों में पश्चात्ताप की एक लकीर उन की आंखों में भी ?िलमिला रही थी, जिसे देखने के लिए ही शायद वेदिका यहां आई थी. वेदिका का आंचल थामे खड़ी कली को सीने से लगा कर वे भावविभोर हो गए. विदित से नाराजगी के चलते उस के प्यार और उस की जिस निशानी को वे नजरअंदाज करते रहे थे, उन के जाने के बाद उन्होंने उस की कमी को महसूस किया था. कली पर उमड़े प्यार ने उस पीड़ा और पश्चात्ताप को उजागर कर दिया था. वेदिका खामोशी से उन के अनकहे शब्दों के भावों को सम?ाती और महसूस करती रही.

भैयाभाभी बहुत आत्मीय तो नहीं रहे, पर उन का आंखें चुराना बहुत कुछ कह गया. वेदिका की नई पहचान के आगे अपने ओछे विचारों के साथ वे खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहे थे. एक दिन वे उस के वजूद तक को नकार चुके थे. आज वही वजूद अपनी प्रभावशाली पहचान के साथ खड़ा है, जो उन की दी किसी पहचान का मुहताज नहीं था.

ममता: आकाश की मां को उसकी इतनी चिंता क्यों थी

पता नहीं कहां गया है यह लड़का. सुबह से शाम होने को आई, लेकिन नवाबजादे का कुछ पता नहीं कि कहां है. पता नहीं, सारा दिन कहांकहां घूमताफिरता है. न खाने का होश है न ही पीने का. यदि घर में रहे तो सारा दिन मोबाइल, इंटरनैट या फिर टैलीविजन से चिपका रहता है. बहुत लापरवाह हो गया है.

अगर कुछ कहो तो सुनने को मिलता है, ‘‘सारा दिन पढ़ता ही तो हूं. अगर कुछ देर इंटरनैट पर चैटिंग कर ली तो क्या हो गया?’’

फिर लंबी बहस शुरू हो जाती है हम दोनों में, जो फिर उस के पापा के आने के बाद ही खत्म होती है.

वैसे इतना बुरा भी नहीं है आकाश. बस, थोड़ा लापरवाह है. दोस्तों के मामले में उस का खुद पर नियंत्रण नहीं रहता है. जब दोस्त उसे बुलाते हैं, तो वह अपना सारा कामकाज छोड़ कर उन की मदद करने चल देता है. फिर तो उसे अपनी पढ़ाई की भी फिक्र नहीं होती है. अगर मैं कुछ कहूं तो मेरे कहे हुए शब्द ही दोहरा देगा, ‘‘आप ही तो कहती हैं ममा कि दूसरों की मदद करो, दूसरों को विद्या दान करो.’’

तब मुझे गुस्सा आ जाता, ‘‘लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि अपना घर फूंक कर तमाशा देखो. अरे, अपना काम कर के चाहे जिस की मदद करो, मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर अपना काम तो पूरा करो.’’

जब वह देखता कि मां को सचमुच गुस्सा आ गया है, तो गले में बांहें डाल देता और मनाने की कोशिश करता, ‘‘अच्छा ममा, आगे से ऐसा नहीं करूंगा.’’

उस का प्यार देख कर मैं फिर हंस पड़ती और उसे मनचाहा करने की छूट मिल जाती.

मेघना की शादी वाले दिन आकाश का एक अलग ही रूप नजर आया. एक जिम्मेदार भाई का. उस दिन तो ऐसा लग रहा था जैसे वह मुझ से भी बड़ा हो गया है. उस ने इतनी जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभाया था कि वहां मौजूद हर व्यक्ति के मुंह से उस की तारीफ निकल रही थी. मैं और आकाश के पापा भी हैरान थे कि यह इतना जिम्मेदार कैसे हो गया. मेघना भी उस की कर्तव्यनिष्ठता देख कर बेहद खुश थी.

शादी के दूसरे दिन जब मेघना पग फेरे के लिए घर आई तो जनाब घर 2 घंटे लेट आए. पूछने पर पता चला कि किसी दोस्त के घर चले गए थे. मेघना 1 दिन पहले की उस की कर्तव्यनिष्ठता भूल गई और उसे जम कर लताड़ा.

मुझे भी बहुत गुस्सा आया था कि बहन घर पर आई हुई है और जनाब को घर आने का होश ही नहीं है. पर मेरे साथ तो उस ने पूरी बहस करनी थी. अत: कहने लगा, ‘‘क्या ममा, आ तो गया हूं, चाहे थोड़ी देर से ही आया हूं. कौन सा दीदी अभी जा रही हैं… सारा दिन रहेंगी न?’’

गनीमत थी कि बहन के सामने कुछ नहीं बोला और सारा गुस्सा मुझ पर निकाला.

पर आकाश अभी तक आया क्यों नहीं?

मैं ने दीवार पर टंगी घड़ी देखी, 7 बज चुके थे. मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आने लगा कि आज आने दो बच्चू को… आज मुझ से नहीं बच पाएगा… आज तो उस की टांगें तोड़ कर ही रहूंगी.

उस से सुबह ही कहा था कि आज घर जल्दी आना तो आज और भी देर कर दी. उस दिन भी उस से कहा था घर जल्दी आने के लिए और उस दिन तो वह ठीक समय पर घर आ गया था. पता था कि मां की तबीयत ठीक नहीं है.

मैं उठने लगी तो कहने लगा, ‘‘आप लेटी रहो ममा, आज मैं खाना बनाऊंगा.’’

‘‘नहींनहीं, मैं बनाती हूं,’’ मैं ने उठने की कोशिश की पर उस ने मुझे उठने नहीं दिया और बहुत ही स्वादिष्ठ सैंडविच बना कर खिलाए.

लेकिन आज जब सुबह मैं ने कहा था कि आकाश छत से जरा कपड़े उतार लाना तो अनसुना कर के चला गया. अजीब लड़का है… पल में तोला तो पल में माशा. कुछ भी कभी भी कर देता है. उस दिन कामवाली बाई की बेटी की पढ़ाई के लिए किताबें खरीद लाया. लेकिन जब मैं ने कहा कि जरा बाजार से सब्जी ले आ तो साफ मना कर दिया, ‘‘नहीं ममा, मुझ से नहीं होता यह काम.’’

मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर चुप रही. बहुत देर हो गई है… सुबह का निकला हुआ है… अभी तक घर नहीं आया. अच्छा फोन कर के पूछती हूं कि कहां है. मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया तो आवाज आई कि जिस नंबर पर आप डायल कर रहे हैं वह अभी उपलब्ध नहीं है. थोड़ी देर बाद कोशिश करें. मुझे फिर से गुस्सा आने लगा कि पता नहीं फोन कहां रखा है. कभी भी समय पर नहीं लगता है.

मैं ने फिर फोन किया, लेकिन फिर वही जवाब आया. अब तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था कि अजीब लड़का है… फोन क्यों नहीं उठा रहा है?

मैं ने कई बार फोन किया, मगर हर बार एक ही जवाब आया. अब मेरा गुस्सा चिंता में बदल गया कि पता नहीं कहां है… सुबह का घर से निकला है. कह कर गया था कि ‘प्रोजैक्ट’ का काम है. उसे पूरा करना है. मोटरसाइकिल भी इतनी तेज चलाता है कि पूछो मत. कई बार समझा चुकी हूं कि धीरे चलाया कर, पर मानता ही नहीं.

कुछ दिन पहले ही पड़ोस के राहुल का?मोटरसाइकिल से ऐक्सिडैंट हो गया था. शुक्र है जान बच गई और चोट भी ज्यादा नहीं आई पर उस के मातापिता क्व50 हजार के नीचे आ गए. मैं और आकाश राहुल से मिलने अस्पताल गए थे. राहुल के पैरों में पट्टियां बंधी थीं, लेकिन चेहरे पर मुसकान थी.

वह आकाश से बोला, ‘‘आकाश तू भी मोटरसाइकिल बहुत तेज चलाता है… धीरे चलाया कर नहीं तो मेरे जैसा हाल होगा.’’

मेरे कुछ कहने से पहले ही राहुल की मां सुजाता बोल पड़ीं, ‘‘बेटा, ऐसा नहीं कहते.’’

‘‘नहीं सुजाताजी राहुल ठीक कह रहा है… यह लड़का भी मोटरसाइकिल बहुत तेज चलाता है. मैं इस से कई बार कह चुकी हूं पर यह मेरी सुनता ही नहीं. लेकिन राहुल, तुम तो बहुत आराम से चलाते हो, फिर यह ऐक्सिडैंट कैसे हो गया?’’

‘‘आंटी, अचानक आगे से एक गाड़ी आ गई और मेरी मोटरसाइकिल उस से टकरा गई. फिर जब होश आया तो मैं अस्पताल में था.’’

‘आकाश तो राहुल से कई गुना तेज चलाता है… उफ, अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं,’ सोच कर मैं ने फिर से फोन लगाया. मगर फिर से वही आवाज आई. अब तो मेरे पसीने छूटने लगे. चिंता के मारे मेरा बुरा हाल हो गया. पता नहीं किसकिस को फोन लगाया, पर आकाश का कुछ भी पता नहीं चला. समय बीतता जा रहा था और मेरी घबराहट भी बढ़ती जा रही थी.

‘आकाश के पापा भी आने वाले हैं,’ यह सोच कर मेरी हालत और खराब हो रही थी.

तभी फोन की घंटी बजी. मैं ने लपक कर फोन उठाया. उधर से आकाश बोल रहा था, ‘‘ममा, मैं घर थोड़ी देर में आऊंगा.’’

‘‘कहां है तू? कहां रखा था फोन? पता है मैं कब से फोन लगा रही हूं… पता है मेरी चिंता के कारण क्या हालत हो गई है?’’ मैं ने एक ही सांस में सब कुछ कह डाला.

‘‘घर आ कर बताऊंगा… अभी मैं फोन काट रहा हूं.’’

मैं हैलोहैलो करती रह गई. फोन बंद हो चुका था. अब मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया कि आज तो इस लड़के ने हद कर दी है, आने दो घर बताती हूं. यहां मेरा चिंता के मारे बुरा हाल है और जनाब को अपनी मां से बात करने तक की फुरसत नहीं है.

थोड़ी ही देर बाद डोर बैल बजी. मैं ने दरवाजा खोला. आकाश था. परेशान हालत में था. आते ही बोला, ‘‘ममा, जल्दी से खाना दे दो… आज सुबह से कुछ नहीं खाया है… प्रोजैक्ट के काम में लगा था… सारा दिन उसी में लगा रहा. अभी भी काम पूरा नहीं हुआ है… मुझे फिर से करण के घर जाना है कल ‘प्रैजेंटेशन’ है… वर्क पूरा करना है.’’

मेरा सारा गुस्सा, सारी चिंता जाती रही. मुझ पर ममता हावी हो गई. बोली, ‘‘जल्दी से हाथमुंह धो ले, मैं खाना लगा रही हूं.’’

लौटती बहारें: मीनू के मायके वालों में कैसे आया बदलाव

जाल: संजीव अनिता से शादी के लिए क्यों मना कर रहा था

बरखा खूबसूरत भी थी और खुशमिजाज भी. पहले ही दिन से उस ने अपने हर सहयोगी के दिल में जगह बना ली. सब से पक्की सहेली वह अनिता की बनी क्योंकि हर कदम पर अनिता ने उस की सहायता की थी. जब भी फालतू वक्त मिलता  दोनों हंसहंस कर खूब बातें करतीं.

उन दिनों अनिता का प्रेमी संजीव 15 दिनों की छुट्टी पर चल रहा था. इन दोनों की दोस्ती की जड़ों को मजबूत होने के लिए इतना समय पर्याप्त रहा.

संजीव के लौटने पर अनिता ने सब से पहले उस का परिचय बरखा से कराया.

‘‘क्या शानदार व्यक्तित्व है तुम्हारा, संजीव,’’ बरखा ने बड़ी गर्मजोशी के साथ जब संजीव से हाथ मिलाया तब ये तीनों अपने सारे सहयोगियों की नजरों का केंद्र बने हुए थे.

‘‘थैंक यू,’’ अपनी प्रशंसा सुन संजीव खुल कर मुसकराया.

‘‘अनिता, इतने स्मार्ट इंसान को जल्दी से जल्दी शादी के बंधन में बांध ले, नहीं तो कोई और छीन कर ले जाएगी,’’ बरखा ने अपनी सहेली को सलाह दी.

‘‘सहेली, तेरे इरादे तो नेक हैं न?’’ नाटकीय अंदाज में आंखें मटकाते हुए अनिता ने सवाल पूछा, तो कई लोगों के सम्मिलित ठहाके से हौल गूंज उठा.

पहले संजीव और अनिता साथसाथ अधिकतर वक्त गुजारते थे. अब बरखा भी इन के साथ नजर आती. इस कारण उन के  सहयोगियों को बातें बनाने का मौका मिल गया.

‘‘ये बरखा बड़ी तेज और चालू लगती है मुझे तो,’’ शिल्पा ने अंजु से अपने मन की बात कह दी थी, ‘‘वह अनिता से ज्यादा सुंदर और आकर्षक भी है. मेरी समझ से भूसे और

चिंनगारी को पासपास रखना अनिता की बहुत बड़ी मूर्खता है.’’

‘मेरा अंदाजा तो यह है कि संजीव को अनिता ने खो ही दिया है. उस का झुकाव बरखा की तरफ ज्यादा हो गया है, यह बात मुझे तो साफ नजर आती है, ’’ अंजु ने फौरन शिल्पा की हां में हां मिलाते हुए बोली.

अनिता से इस विषय पर गंभीरता से बात सुमित्राजी ने एक दिन अकेले में की. तब बरखा और संजीव कैंटीन से समोसे लाने गए हुए थे.

‘‘तुम संजीव से शादी कब कर रही हो?’’ बिना वक्त बरबाद किए सुमित्रा ने मतलब की बात शुरू की.

‘‘आप को तो पता है कि संजीव पहले एम.बी.ए. पूरा करना चाहता है और उस में अभी साल भर बाकी है,’’ अनिता ने अपनी बात पूरी कर के गहरी सांस छोड़ी.

‘‘यही कारण बता कर 2 साल से तुझे लटकाए हुए है. मैं पूछती हूं कि वह शादी कर के क्या आगे नहीं पढ़ सकता है?’’

‘‘मैडम जब मैं ने 2 साल इंतजार कर लिया है तो 1 साल और सही.’’

‘‘बच्चों जैसी बातें मत कर,’’ सुमित्रा तैश में आ गईं, ‘‘मैं ने दुनिया देखी है. संजीव के रंगढंग ठीक नहीं लग रहे हैं मुझे. उसे बरखा के साथ ज्यादा मत रहने दिया कर.’’

‘‘मैडम, आप इस के बारे में चिंतित न हों. मुझे संजीव और बरखा दोनों पर विश्वास है.’’

‘यों आंखें मूंद कर विश्वास करने वाला इंसान ही जिंदगी में धोखा खाता है, मेरी बच्ची.’’

‘उन के आपस में खुल कर हंसनेबोलने का गलत अर्थ लगाना उचित नहीं है, मैडम. बरखा तो अपने को संजीव की साली मानती है. अपने भावी जीवनसाथी या छोटी बहन पर शक करने को मेरा मन कभी राजी नहीं होगा.’’

‘‘देख, साली को आधी घर वाली दुनिया कहती ही है. तुम ध्यान रखो कि कहीं बरखा तुम्हारा पत्ता साफ कर के पूरी घर वाली ही न बन जाए,’’ अनिता को यों आगाह कर के सुमित्रा खामोश हो गईं, क्योंकि संजीव और बरखा कैंटीन से लौट आए थे.

संजीव और बरखा के निरंतर प्रगाढ़ होते जा रहे संबंध को ले कर कभी किसी ने अनिता को चिंतित, दुखी या नाराज नहीं देखा. उस के हर सहयोगी ने हंसीमजाक, व्यंग्य या गंभीरता का सहारा ले कर उसे समझाया, पर कोई भी अनिता के मन में शक का बीज नहीं बो पाया. जो सारे औफिस वालों को नजर आ रहा था, उसे सिर्फ अनिता ही नहीं देख पा रही थी.

पहले पिक्चर देखने, बाजार घूमने या बाहर खाना खाने तीनों साथ जाते थे. फिर एक दिन बरखा और संजीव को मार्केट में घूमते शिल्पा ने देखा. उस ने यह खबर अनिता सहित सब तक फैला दी.

खबर सुनने के बाद अनिता के हावभाव ने यह साफ दर्शाया कि उसे दोनों के साथसाथ घूमने जाने की कोई जानकारी नहीं थी. उस ने सब के सामने ही संजीव और बरखा से ऊंची आवाज में पूछा, ‘‘कल तुम दोनों मुझे छोड़ कर बाजार घूमने क्यों गए?’’

‘‘तेरा बर्थडे गिफ्ट लाने के लिए, सहेली,’’ बरखा ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, ‘‘अब ये बता कि हम सब को परसों इतवार को पार्टी कहां देगी?’’

बरखा का जवाब सुन कर अनिता ने अपने सहयोगियों की तरफ यों शांत भाव से मुसकराते हुए देखा मानो कह रही हो कि तुम सब बेकार का शक करने की गलत आदत छोड़ दो.

अनिता तो फिर सहज हो कर हंसनेबोलने लगी, पर बाकी सब की नजरों में बरखा की छवि बेहद चालाक युवती की हो गई और संजीव की नीयत पर सब और ज्यादा शक करने लगे.

बरखा ने अनिता के जन्मदिन की पार्टी का आयोजन अपने घर में किया.

‘‘आप सब को मैं अपने घर लंच पर बुलाना चाहती ही थी. मेरे मम्मीपापा सब से मिलना चाहते हैं. अनिता के जन्मदिन की पार्टी मेरे घर होने से एक पंथ दो काज हो जाएंगे,’’ ऐसा कह कर बरखा ने सभी सहयोगियों को अपने घर बुला लिया.

बरखा के पिता के बंगले में कदम रखते ही उस के सहयोगियों को उन की अमीरी का एहसास हो गया. बंगले की शानोशौकत देखते ही बनती थी.

बड़े से ड्राइंगहौल में पार्टी का आयोजन हुआ. वहां कालीन हटा कर डांसफ्लोर बनाय गया था. खानेपीने की चीजें जरूरत से ज्यादा थीं. घर के 2 नौकर सब की आवभगत में जुटे हुए थे.

पार्टी के बढि़या आयोजन से अनिता बेहद प्रसन्न नजर आ रही थी. बरखा और उस के मातापिता को धन्यवाद देते उस की जबान थकी नहीं.

‘‘ये मेरे जन्मदिन पर अब तक हुई 24 पार्टियों में बैस्ट है,’’ कहते हुए अनिता को जब भी मौका मिलता वह भावविभोर हो बरखा के गले लग जाती.

इस अवसर पर उन के सहयोगियों की पैनी दृष्टियों ने बहुत सी चटपटी बातें नोट की थीं. यह भी साफ था कि जो ऐसी बातें नोट कर रहे थे. वह सब अनिता की नजरों से छिपा था.

बंगले का ठाठबाट देख कर संजीव की नजरों में उभरे लालच के भाव सब ने साफ पढ़े. बरखा के मातापिता के साथ संजीव का खूब घुलमिल कर बातें करना उन्होंने बारबार देखा.

अनिता से कहीं ज्यादा संजीव बरखा को महत्त्व दे रहा था. वह उसी के साथ सब से ज्यादा नाचा. किसी के कहने का फिक्र न कर वह बरखा के आगेपीछे घूम रहा था.

अनिता से उस दिन किसी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि कोई भी उस की खुशी को नष्ट करने का कारण नहीं बनना चाहता था.

वैसे उस दिन के बाद से किसी को अनिता को समझाने या आगाह करने की जरूरत नहीं पड़ी. संजीव ने सब तरह की लाजशर्म त्याग कर बरखा को खुलेआम फ्लर्ट करना शुरू कर दिया.

बेचारी अनिता ही जबरदस्ती उन दोनों के साथ चिपकी रहती. उस की मुसकराहट सब को नकली प्रतीत होती. वह सब की हमदर्दी की पात्र बनती जा रही थी, लेकिन अब भी क्या मजाल कि उस के मुंह से संजीव या बरखा की शिकायत में एक शब्द भी निकल आए.

‘‘तुम सब का अंदाज बिलकुल गलत है. संजीव मुझे कभी धोखा नहीं देगा, देख लेना,’’ उस के मुंह से ऐसी बात सुन कर लगभग हर व्यक्ति उस की बुद्धि पर खूब तरस खाता.

जन्मदिन की पार्टी के महीने भर बाद स्थिति इतनी बदल गई कि संजीव को बरखा के रूपजाल का पक्का शिकार हुआ समझ लिया गया. अनिता की उपस्थिति की फिक्र किए बिना संजीव खूब खुल कर बरखा से हंसताबोलता. ऐसा लगता था कि उस ने अनिता से झगड़ा कर के संबंधविच्छेद करने का मन बना लिया था.

लेकिन सब की अटकलें धरी की धरी रह गई जब अचानक ही बड़े सादे समारोह में संजीव ने अनिता से शादी कर ली. बरखा उन की शादी में शामिल नहीं हुई. वह अपनी मौसी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए 20 दिन की छुट्टी ले कर मुंबई गई हुई थी.

यों जल्दीबाजी में संजीव का अनिता से शादी करने का राज किसी की समझ में नहीं आया.

लोगों के सीधा सवाल पूछने पर संजीव मुसकान होंठों पर ला कर कहता, ‘‘बरखा से हंसनेबोलने का मतलब यह कतई नहीं था कि मैं अनिता को धोखा दूंगा. आप सब ऐसा सोच भी कैसे सके? अरे, अनिता में तो मेरी जान बसती है और अब मैं उस से दूर रहना नहीं चाहता था.’’

अनिता की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस से कोई बरखा के साथ संजीव का जिक्र करता तो वह खूब हंसती.

‘‘अरे, तुम सब बेकार की चिंता करते थे. देखो, न तो मेरी छोटी बहन जैसी सहेली ने और न ही मेरे मंगेतर ने मुझे धोखा दिया. मुझे अपने प्यार पर पूरा विश्वास था, है और रहेगा.’’

उसे शुभकामनाएं देते हुए लोग बड़ी कठिनाई से ही अपनी हैरानी को काबू में रख पाते. संजीव और बरखा का चक्कर क्यों अचानक समाप्त हो गया, इस का कोई सही अंदाजा भी नहीं लगा पा रहा था.

दोनों सप्ताह भर का हनीमून शिमला में मना कर लौटे. बरखा ने फोन कर के अनिता को बता दिया कि वह शाम को दोनों से मिलने आ रही है.

उस के आने की खबर सुन कर संजीव अचानक विचलित नजर आने लगा. अनिता की नजरों से उस की बेचैनी छिपी नहीं रही.

‘‘किस वजह से टैंशन में नजर आ रहे हो, संजीव?’’ कुछ देर बाद हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपने सामने बैठाते हुए अनिता ने संजीव से सवाल पूछ ही लिया.

बहुत ज्यादा झिझकते हुए संजीव ने उस से अपने मन की परेशानी बयान की.

‘‘देखो, तुम बरखा की किसी बात पर विश्वास मत करना… वह तुम्हें उलटीसीधी बातें बता कर मेरे खिलाफ भड़काने की कोशिश कर सकती है,’’ बोलते हुए संजीव बड़ा बेचैन नजर आ रहा था.

‘‘वह ऐसा काम क्यों करेगी, संजीव? मुझे पूरी बात बताओ न.’’

‘‘वह बड़ी चालू लड़की है, अनिता. तुम उस के कहे पर जरा भी विश्वास मत करना.’’

‘‘पर वह ऐसा क्या कहेगी जिस के कारण तुम इतने परेशान नजर आ रहे हो?’’

‘‘उस दिन उस ने पहले मुझे उकसाया… मेरी भावनाओं को भड़काया और फिर… और फिर…’’ आंतरिक द्वंद्व के चलते संजीव आगे नहीं बोल सका.

‘‘किस दिन की बात कर रहे हो? क्या उस दिन की जब तुम उसे घर छोड़ने गए थे क्योंकि उसे स्टेशन जाना था?’’

‘‘हां.’’

‘‘जब तुम उस के घर पहुंचे, तब उस के मम्मीपापा घर में नहीं थे. तब अपने कमरे में ले जा कर उस ने पहले तुम्हारी भावनाओं को भड़काया और जब तुम ने उसे बांहों में भरना चाहा, तो नाराज हो कर तुम्हें उस ने खूब डांटा, यही बताना चाह रहे हो न तुम मुझे?’’ उस के चेहरे को निहारते हुए अनिता रहस्यमयी अंदाज में हौले से मुसकरा रही थी.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह फोन कर के पहले ही तुम्हें मेरे खिलाफ भड़का चुकी है,’’ गुस्सा दर्शाने का प्रयास कर रहे संजीव का चेहरा पीला भी पड़ गया था.

‘‘मेरे प्यारे पतिदेव, न उस ने मुझे भड़काने की कोशिश की है और न ही मुझे आप से कोई नाराजगी या शिकायत है. सच तो यह है कि मैं बरखा की आभारी हूं,’’ अनिता की मुसकराहट और गहरी हो गई.

‘‘ये क्या कह रही हो?’’ संजीव हैरान हो उठा.

‘‘देखिए, बरखा ने अगर आप के गलत व्यवहार की सारी जानकारी मुझे देने की धमकी न दी होती… और इस कारण आप के मन में मुझे हमेशा के लिए खो देने का भय न उपजा होता, तो क्या यों झटपट मुझ से शादी करते?’’ यह सवाल पूछने के बाद अनिता खिलखिला कर हंसी तो संजीव अजीब सी उलझन का शिकार बन गया.

‘‘मैं ने कभी तुम से शादी करने से इनकार नहीं किया था,’’ संजीव ने ऊंची आवाज में सफाई सी दी.

‘‘मुझे आप के ऊपर पूरा विश्वास है और सदा रहेगा,’’ अनिता ने आगे झुक संजीव के गाल पर प्यार भरा चुंबन अंकित कर दिया.

‘‘मुझ से तुम्हें भविष्य में कभी वैसी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा, अनिता,’’ संजीव ने उस से फौरन वादा किया.

‘‘उस तरफ से मैं बेफिक्र हूं क्योंकि किसी तितली ने कभी तुम्हारे नजदीक आने की कोशिश की तो मैं उस का चेहरा बिगाड़ दूंगी,’’ अचानक ही अनिता की आंखों में उभरे कठोरता के भाव संजीव ने साफ पहचाने और इस कारण उस ने अपने बदन में अजीब सी झुरझुरी महसूस की.

‘‘क्या बरखा से संबंध समाप्त कर लेना हमारे लिए अच्छा नहीं रहेगा?’’ उस ने दबे स्वर में पूछा.

‘‘वैसा करने की क्या जरूरत है हमें, जनाब?’’ अनिता उस की आंखों में आंखें डाल कर शरारती ढंग से मुकराई, ‘‘मुझे आप और अपनी छोटी बहन सी प्यारी सहेली दोनों पर पूरा विश्वास है. फिर उसे धन्यवाद देने का यह तो बड़ा गलत तरीका होगा कि मैं उस से दूर हो जाऊं.’’

संजीव ने लापरवाही से कंधे उचकाए पर उस का मन बेचैन व परेशान बना ही रहा. बाद में बरखा उन के घर आई तो वह संजीव के लिए सुंदर सी कमीज व अनिता के लिए खूबसूरत बैग उपहार में लाई थी. वह संजीव के साथ बड़ी प्रसन्नता से मिली. कोई कह नहीं सकता था कि कुछ हफ्ते पहले दोनों के बीच बड़ी जोर से झगड़ा हुआ था.

अनिता और बरखा पक्की, विश्वसनीय सहेलियों की तरह मिलीं. जरा सा भी खिंचाव दोनों के व्यवहार में संजीव पकड़ नहीं पाया.

जल्दी ही वह भी उन के साथ सहजता से हंसनेबोलने लगा. वैसे वह उन की मानसिकता को समझ नहीं पा रहा था क्योंकि उस के हिसाब से उन दोनों को उस से गहरी नाराजगी व शिकायत होनी चाहिए थी.

‘जो कुछ उस दिन बरखा के घर में घटा, वह कहीं इन दोनों की मिलीभगत से फैलाया ऐसा जाल तो नहीं था जिस में फंस कर उसे अनिता से फटाफट शादी करनी पड़ी?’ अचानक ही यह सवाल उस के मन में बारबार उठने लगा और उस का दिल कह रहा था कि जवाब ‘ऐसा ही हुआ है’ होना चाहिए.

नई जिंदगी की शुरुआत

शादीशुदा जिंदगी क्या होती है, दोनों ही इस का ककहरा भी नहीं जानते थे. भाग कर शहर तो आ गए, लेकिन बुतरू कोई काम ही नहीं करना चाहता था. वह बस्ती के बगल वाली सड़क पर दिनभर हंडि़या बेचने वाली औरतों के पास निठल्ला बैठा बातें करता और हंडि़या पीता रहता था. इसी तरह दिन महीनों में बीत गए और खाने के लाले पड़ने लगे.

फूलमनी कब तक बुतरू के आसरे बैठे रहती. उस ने अगलबगल की औरतों से दोस्ती गांठी. उन्होंने फूलमनी को ठेकेदारी में रेजा का काम दिलवा दिया. वह काम करने जाने लगी और बुतरू घर संभालने लगा. जल्द ही दोनों का प्यार छूमंतर हो गया.

बुतरू दिनभर घर में अकेला बैठा रहता. शाम को जब फूलमनी काम से घर लौटती, वह उस से सारा पैसा छीन लेता और गालीगलौज पर आमादा हो जाता, ‘‘तू अब आ रही है. दिनभर अपने भरतार के घर गई थी पैसा कमाने… ला दे, कितना पैसा लाई है…’’

फूलमनी दिनभर ठेकेदारी में ईंटबालू ढोतेढोते थक कर चूर हो जाती. घर लौट कर जमीन पर ही बिना हाथमुंह धोए, बिना खाना खाए लेट जाती. ऊपर से शराब के नशे में चूर बुतरू उस के आराम में खलल डालते हुए किसी भी अंग पर बेधड़क हाथ चला देता. वह छटपटा कर रह जाती.

एक तो हाड़तोड़ मेहनत, ऊपर से बुतरू की मार खाखा कर फूलमनी का गदराया बदन गलने लगा था. तरहतरह के खयाल उस के मन में आते रहते. कभी सोचती, ‘कितनी बड़ी गलती की ऐसे शराबी से शादी कर के. वह जवानी के जोश में भाग आई. इस से अच्छा तो वह सुखराम मिस्त्री है. उम्र्र में बुतरू से थोड़ा बड़ा ही होगा, पर अच्छा आदमी है. कितने प्यार से बात करता है…’

सुखराम फूलमनी के साथ ही ठेकेदारी में मिस्त्री का काम करता था. वह अकेला ही रहता था. पढ़ालिखा तो नहीं था, पर सोचविचार का अच्छा था. सुबहसवेरे नहाधो कर वह काम पर चला आता. शाम को लौट कर जो भी सुबह का पानीभात बचा रहता, उसे प्यार से खापी कर सो जाता.

शनिवार को सुखराम की खूब मौज रहती. उस दिन ठेकेदार हफ्तेभर की मजदूरी देता था. रविवार को सुखराम अपने ही घर में मुरगा पकाता था. मौजमस्ती करने के लिए थोड़ी शराब भी पी लेता और जम कर मुरगा खाता.

फूलमनी से सुखराम की नईनई जानपहचान हुई थी. एक रविवार को उस ने फूलमनी को भी अपने घर मुरगा खाने के लिए बुलाया, पर वह लाज के मारे नहीं गई.

साइट पर ठेकेदार का मुंशी सुखराम के साथ फूलमनी को ही भेजता था. सुखराम जब बिल्डिंग की दीवारें जोड़ता, तो फूलमनी फुरती दिखाते हुए जल्दीजल्दी उसे जुगाड़ मसलन ईंटबालू देती जाती थी.

सुखराम को बैठने की फुरसत ही नहीं मिलती थी. काम के समय दोनों की जोड़ी अच्छी बैठती थी. काम करते हुए कभीकभी वे मजाक भी कर लिया करते थे. लंच के समय दोनों साथ ही खाना खाते. खाना भी एकदूसरे से साझा करते. आपस में एकदूसरे के सुखदुख के बारे में भी बतियाते थे.

एक दिन मुंशी ने सुखराम के साथ दूसरी रेजा को काम पर जाने के लिए भेजा, तो सुखराम उस से मिन्नतें करने लगा कि उस के साथ फूलमनी को ही भेज दे.

मुंशी ने तिरछी नजरों से सुखराम को देखा और कहा, ‘‘क्या बात है सुखराम, तुम फूलमनी को ही अपने साथ क्यों रखना चाहते हो?’’

सुखराम थोड़ा झेंप सा गया, फिर बोला ‘‘बाबू, बात यह है कि फूलमनी मेरे काम को अच्छी तरह सम?ाती है कि कब मुझे क्या जुगाड़ चाहिए. इस से काम करने में आसानी होती है.’’

‘‘ठीक है, तुम फूलमनी को अपने साथ रखो, मुझे कोई एतराज नहीं है. बस, काम सही से होना चाहिए… लेकिन, आज तो फूलमनी काम पर आई नहीं है. आज तुम इसी नई रेजा से काम चला लो.’’

झक मार कर सुखराम ने उस नई रेजा को अपने साथ रख लिया, मगर उस से उस के काम करने की पटरी नहीं बैठी, तो वह भी लंच में सिरदर्द का बहाना बना कर हाफ डे कर के घर निकल गया. दरअसल, फूलमनी के नहीं आने से उस का मन काम में नहीं लग रहा था.

दूसरे दिन सुखराम ने बस्ती जा कर फूलमनी का पता लगाया, तो मालूम हुआ कि बुतरू ने घर में रखे 20 किलो चावल बेच दिए हैं. फूलमनी से उस का खूब ?ागड़ा हुआ है. गुस्से में आ कर बुतरू ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई. वह तो उसे मारे ही जा रहा था, पर बस्ती के लोगों ने किसी तरह उस की जान बचाई.

सुखराम ने पड़ोस में पूछा, ‘‘बुतरू अभी कहां है?’’

किसी ने बताया कि वह शराब पी कर बेहोश पड़ा है. सुखराम हिम्मत कर के फूलमनी के घर गया. चौखट पर खड़े हो कर आवाज दी, तो फूलमनी आवाज सुन कर झोपड़ी से बाहर आई. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

सुखराम से उस की हालत देखी न गई. वह परेशान हो गया, लेकिन कर भी क्या सकता था. उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘क्या हुआ, जो 2 दिन से काम पर नहीं आ रही हो?’’

दर्द से कराहती फूलमनी ने कहा, ‘‘अब इस चांडाल के साथ रहा नहीं जाता सुखराम. यह नामर्द न कुछ करता है और न ही मुझे कुछ करने देता है. घर में खाने को चावल का एक दाना तक नहीं छोड़ा. सारे चावल बेच कर शराब पी गया.’’

‘‘जितना सहोगी उतना ही जुल्म होगा तुम पर. अब मैं तुम से क्या कहूं. कल काम पर आ जाना. तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता है,’’ इतना कह कर सुखराम वहां से चला आया.

सुखराम के जाने के बाद बहुत देर तक फूलमनी के मन में यह सवाल उठता रहा कि क्या सचमुच सुखराम उसे चाहता है? फिर वह खुद ही लजा गई. वह भी तो उसे चाहने लगी है. कुछ शब्दों के एक वाक्य ने उस के मन पर इतना गहरा असर किया कि वह अपने सारे दुखदर्द भूल गई. उसे ऐसा लगने लगा, जैसे सुखराम उसे साइकिल के कैरियर पर बैठा कर ऐसी जगह लिए जा रहा है, जहां दोनों का अपना सुखी संसार होगा. वह भी पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाह रही थी. बस आगे और आगे खुले आसमान की ओर देख रही थी.

अचानक फूलमनी सपनों के संसार से लौट आई. एक गहरी सांस भरी कि काश, ऐसा बुतरू भी होता. कितना प्यार करती थी वह उस से. उस की खातिर अपने मांबाप को छोड़ कर यहां भाग आई और इस का सिला यह मिल रहा है. आंखों से आंसुओं की बूंदें टपक आईं. बुतरू का नाम आते ही उस का मन फिर कसैला हो गया.

अगले दिन सुबहसवेरे फूलमनी काम पर आई, तो उसे देख कर सुखराम का मन मयूर नाच उठा. काम बांटते समय मुंशी ने कहा, ‘‘सुखराम के साथ फूलमनी जाएगी.’’

साइट पर सुखराम आगेआगे अपने औजार ले कर चल पड़ा, पीछेपीछे फूलमनी पाटा, बेलचा, सीमेंट ढोने वाला तसला ले कर चल रही थी.

सुखराम ने पीछे घूम कर फूलमनी को एक बार फिर देखा. वह भी उसे ही देख रही थी. दोनों चुप थे. तभी सुखराम ने फूलमनी से कहा, ‘‘तुम ऐसे कब तक बुतरू से पिटती रहोगी फूलमनी?’’

‘‘देखें, जब तक मेरी किस्मत में लिखा है,’’ फूलमनी बोली.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती उसे?’’ सुखराम ने सवाल किया.

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘मैं जो तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘एक बार तो घर छोड़ चुकी हूं और कितनी बार छोडूं? अब तो उसी के साथ जीना और मरना है.’’

‘‘ऐसे निकम्मे के हाथों पिटतेपिटाते एक दिन तुम्हारी जान चली जाएगी फूलमनी. क्या तुम मेरा कहा मानोगी?’’

‘‘बोलो…’’

‘‘बुतरू एक जोंक की तरह है, जो तुम्हारे बदन को चूस रहा है. कभी आईने में तुम ने अपनी शक्ल देखी है. एक बार देखो. जब तुम पहली बार आई थीं, कैसी लगती थीं. आज कैसी लग रही हो. तुम एक बार मेरा यकीन कर के

मेरे साथ चलो. हमारी अपनी प्यार की दुनिया होगी. हम दोनों इज्जत से कमाएंगेखाएंगे.’’

बातें करतेकरते दोनों उस जगह पहुंच चुके थे, जहां उन्हें काम करना था. आसपास कोई नहीं था. वे दोनों एकदूसरे की आंखों में समा चुके थे.

दुनिया अगर मिल जाए तो क्या: भाग-3

ओनीर चुप रहा तो सहर को इस बात का दुख हुआ कि ओनीर ने यह नहीं कहा कि नहीं, मेरे लिए प्रेम ज्यादा जरूरी है. दोनों थोड़ी देर बाद एक जगह रेत पर बैठ गए. अंधेरा हो गया था. इतने में सहर का फोन बजा, ‘‘हां, मम्मी, आती हूं, ओनीर के साथ हूं. आप की मीटिंग कैसी रही? आती हूं, मम्मी. हां, अब सैलिब्रेट करेंगे.’’

ओनीर ने अंदाजा लगाया कि सहर और उस की मम्मी की बौंडिंग बहुत अच्छी है. वह जानता था कि कुछ साल पहले सहर के पिता नहीं रहे थे. उस की मम्मी वर्किंग थीं. सहर एक गहरी सांस ले कर चांद को देखने लगी. इस समय बीच पर बहुत ही खुशनुमा सा, कुछ रहस्यमयी सा माहौल होता है. छोटे बच्चे इधरउधर दौड़ते रहते हैं. इस समय जवान जोड़ों की बड़ी भीड़ होती है.

अंधेरे में दूर तक लड़केलड़कियां एकदूसरे से लिपटे, अपने प्रेम में खोए दुनिया को जैसे नकारने पर तुले होते हैं. ऐसा लगता है फेनिल लहरें हम से छिपमछिपाई खेल रही हैं, पास आती हैं, फिर अचानक चकमा दे

कर दूर हो जाती हैं. ओनीर ने कहा, ‘‘क्या सोचने लगी?’’

‘‘सितारों की गलियों में फिरता है तन्हा चांद भी,

किसी इश्क का मारा लगता है!’’

अब ओनीर से रुका न गया. उस ने सहर की हथेली अपने गीले से हाथ में पकड़ी और उस पर अपना प्यार रख दिया. सहर बस मुसकरा दी, शरमाई भी. कुछ पल यों ही गुजर गए. कोई कितना भी हाजिरजवाब हो, कुछ पल कभीकभी सब को चुप करवा देते हैं. सहर को भी कुछ सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या कहे, बस,

बोल पड़ी, ‘‘कभी घर आओ, मम्मी से मिलवाती हूं.’’

‘‘आऊंगा. आओ, कुछ खाते हैं, फिर घर चलते हैं. तुम्हें देर हो रही होगी.’’

कुछ दिन और बीते, दोनों फोन पर टच में थे. अब जौब ढूंढ़ी जा रही थी. बहुत सारे औप्शंस दिख भी रहे थे. चैताली

की मदद से सहर उसी कालेज में

प्रोफैसर बन गई. चैताली और भी स्टूडैंट्स को गाइड कर रही थीं कि उन्हें क्या

करना चाहिए.

एक दिन ओनीर सहर से मिला.

सहर ने अपने जौब की खुशी में दोस्तों

को पार्टी के लिए बुलाया था. सहर ने ओनीर को छेड़ा, ‘‘हम लोग तो नौकरी ही ढूंढ़ रहे थे, तुम्हारा क्या हुआ, कौन से इतिहास के पन्ने पलट कर दोबारा क्रांति लाओगे?’’

नितारा भी उस के पीछे पड़ गई, ‘‘बताओ न, कौन सी पार्टी जौइन कर रहे हो?’’ ओनीर और सहर प्रेम की राह पर साथ बढ़ चुके हैं, यह अब सब को पता था. ओनीर ने झेंपते हुए कहा, ‘‘मैं ने भी प्रोफैसर पद के लिए ही अप्लाई किया है, वेट कर रहा हूं.’’

सब उस का मुंह देखने लगे. सहर की आंखों में एक संतोष उभरा.

ओनीर को अच्छा लगा कि सहर को उस के कैरियर की इस चौइस से खुशी हुई है. दोस्त हंसने लगे. ‘एक ही कालेज में प्रोफैसर बन जाओ दोनों, मजा आएगा.’ यों ही हंसीमजाक होता रहा. फिर सब चले गए. ओनीर रुका रहा. कुछ इधरउधर की बात करने के बाद सहर ने कहा,

‘आओ, किसी दिन आ कर मम्मी से मिल लो.’

‘‘ठीक है, कल आता हूं.’’

‘‘मम्मी की कल छुट्टी है, लंच पर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है.’’

निकहत ने सहर से पूरी बात सुनी. वह बहुत खुश हुई. शानदार लंच मांबेटी ने मिल कर बनाया. उधर ओनीर अपनी उल?ानों में बुरी तरह बेचैन था. उसे सहर से प्यार था. वह उस से शादी करना चाहता था. उस ने जब अपने मम्मीपापा से इस बारे में बात

की तो उस के घर में एक तूफान आ

गया. उस के पिता विकास एक न्यूज चैनल में काम करते थे. मम्मी हाउसवाइफ थीं. किटी पार्टी, भजन, सत्संग वाली महिला

थीं वे.

दोनों ने सहर के बारे में सुन कर ओनीर को बुरी तरह दुत्कारा, छोटी बहन की शादी का वास्ता दिया. ओनीर को सहर के साथ आगे बढ़ना मुश्किल लगा. इस घर में तो सहर कभी खुश नहीं रह सकती थी, क्या करे. अब सहर को छोड़ नहीं सकता था पर मातापिता के प्रति भी फर्ज था. वही सदियों पुराना सवाल उस के सामने मुंहफाड़े खड़ा था कि फर्ज या प्रेम.

सहर के घर की डोरबैल बजाते हुए ओनीर ने नेमप्लेट पर लिखे नाम पढ़े, मानव नौटियाल, निकहत रिजवी, सहर रिजवी नौटियाल. उसे हंसी आ गई. अजीब ही परिवार था. सब की एक अलग ही अपनी पहचान थी. कैसी होंगी सहर की मम्मी! दरवाजा निकहत ने ही खोला. उन की एक स्माइल से ही ओनीर के सारे भ्रम, दुविधा दूर हो गए. वह सहज हो गया. निकहत ने उस से बहुत स्नेह, अपनेपन से बातें कीं.

सहर ने भी उस का खूब वैलकम किया. खानापीना बहुत अच्छे, स्नेहिल माहौल में हुआ. घर की साजसज्जा बहुत सलीके से, सुरुचिपूर्ण हुई थी. जब तक खाना खा कर सब फ्री हुए, तीनों के हंसीमजाक ऐसे हो रहे थे जैसे तीनों कब से एकदूसरे को जानते हैं.

निकहत बहुत जौली नेचर की महिला थीं. हर फील्ड की उन्हें खूब जानकारी थी. औस्कर में दीपिका के ब्लैक गाउन से ले कर ‘नाटूनाटू…’ तक बात करते हुए वे खूब उत्साहित थीं. वहीं, महाराष्ट्र की पलपल बदलती राजनीति पर उन की खूब पकड़ थी. ओनीर को बहुत अच्छा लग रहा था. उस ने पूछ लिया, ‘‘आंटी, आप मुंबई की, अंकल उत्तराखंड के? आप लोग कहां मिले? आप लोगों की शादी आराम से

हो गई?’’

निकहत का स्वर धीमा हो गया. चेहरा अचानक कुछ उदास हुआ. एक गहरी सांस ले कर बोलीं,

‘‘हमारे समाज में ऐसी शादियां आसानी से कहां हो सकती हैं. पढ़ेलिखे, आधुनिक बनते लोग जाति पर अटके रहते हैं.’’

यह सुन कर ओनीर मन ही मन कुछ शर्मिंदा सा हुआ पर परवरिश ने जोर मारा. मातापिता को याद किया. खुद को समझ लिया कि जाति का भी महत्त्व है. संस्कार चहक उठे. प्रेम कहीं दुबक गया.

निकहत आगे बताने लगीं, ‘‘जब बाबरी मसजिद के समय दंगों का माहौल था. मुझे अंदाजा नहीं था कि क्या होने वाला है. क्या हो सकता है. मैं किसी काम से घर से निकली हुई थी कि पता चला, मैं जिस जगह थी, वहां कर्फ्यू लगा दिया गया है. हम 2 बहनें ही थीं. मैं बड़ी थी. मैं एक जगह डरी खड़ी थी. मैं ने स्कार्फ पहना हुआ था. अपने सिर को ढक रखा था. तभी एक बाइक मेरे पास आ कर रुकी.

मानव थे. मानव ने अंदाजा लगा लिया कि मैं मुसलिम हूं. वे बोले, यहां मत रुको. मेरे सामने वाले फ्लैट में एक मुसलिम फैमिली रहती है, आप मु?ा पर तो यकीन नहीं करेंगी, अगर चाहो तो वहां रुक जाओ. सब ठीक हो जाए, तो अपने घर चली जाना. सामने वाली फैमिली बहुत अच्छी है, बुजुर्ग पतिपत्नी हैं. उन के इतना कहते ही कहीं शोर की आवाज हुई तो मैं घबरा गई.

‘‘उस समय कुछ और औप्शन नहीं था और दिल मानव पर विश्वास करने के लिए तैयार था. बगैर उन्हें जाने, उन का बात करने का ढंग और उन की आंखें जैसे एक सच्चे इंसान की तसवीर पेश कर रही थीं.

‘‘मैं यहीं आई थी सामने वाले फ्लैट में. तब मुझे पता नहीं था कि जिंदगी मुझे सामने वाले फ्लैट के रास्ते मानव के दिल और घर और फिर उस के जीवन तक ले आई है. बहुत दहशतभरा माहौल था. मैं 3 दिनों बाद बड़ी मुश्किल से अपने घर जा पाई थी.

खूब आगजनी हुई थी. वे 3 दिन मैं  लगातार मानव के फोन से ही अपने घरवालों के टच में थी. मेरे घर तक के रास्ते में बड़ी तोड़फोड़ हुई थी. कुछ लोग बड़े जिद्दी होते हैं, दिल के किसी कोने में रह ही जाते हैं. मानव ने मेरे दिल में उन दंगों के दौरान ऐसी जगह बनाई कि फिर मैं उस की मोहब्बत में सब भूल गई. सामने का फोन खराब था, वह अपने फोन से मेरे घरवालों से मेरी बात करवाता रहा. मेरे पास उस समय फोन नहीं था.

सामने वाले अंकलआंटी अब तो नहीं रहे पर जब तक वे रहे, मेरे सिर पर उन का हाथ हमेशा रहा. वह मेरे घर तक जा कर मुझे छोड़ कर आया पर मेरा एक जरूरी हिस्सा अपने साथ ले आया, मेरा दिल.’’

‘‘आप दोनों के घरवाले मान गए थे?’’

‘‘नहीं, कोई न माना. हम ने इंतजार किया कि वे हमें अपना आशीर्वाद दें पर कोई न माना. मानव का घर तो क्या, उत्तराखंड ही छूट गया. वे वहां फिर कभी नहीं गए. मेरे परिवार वालों ने भी हमें नहीं अपनाया पर हम क्या करते, न चाहते हुए भी उन के बिना जी ही लिए. कई बार प्रेम में बहुतकुछ छूटता है, बहुतकुछ मिलता भी है. हम ने बहुत प्यारमोहब्बत से अपना घरसंसार बसाया था. पर मानव के जाने के बाद, बस, अब सहर और मैं हूं. हमारा छोटा सा परिवार है जहां कम ही लोगों की आवाजाही है. अमजद इसलाम ने कहा है न-

‘‘कहां आके रुकने थे रास्ते, कहां मोड़ था उसे भूल जा. वो जो मिल गया उसे याद रख, जो नहीं मिला उसे भूल जा.’’

अब अचानक ओनीर को हंसी आ गई, बोला, ‘‘ओह, अब समझ. सहर ने यह शेरोशायरी कहां से सीखी.’’

निकहत और सहर भी इस बात पर हंस पड़ीं. तीनों और भी बहुत सी बातें करते रहे. फिर ओनीर उन से विदा ले अपने घर चला गया. उस के दिलोदिमाग की हालत अजीब थी. एक तरफ मातापिता और दूसरी तरफ सहर. क्या होगा! सोचने में कुछ दिन और बीत गए. इतने में ही उसे भी मुंबई के ही एक कालेज में जौब मिल गई.

सहर की खुशी का ठिकाना न था. ओनीर के घरवाले भी बहुत खुश हुए. ओनीर ने अब फिर उन से सहर से शादी के बारे में बात की. तो, घर का माहौल फिर बिगड़ गया. वह जा कर अपने बैडरूम में थका सा लेट गया. इतने में सहर का मैसेज आया. अब वह अकसर किसी भी गीत, शेर का कोई हिस्सा उसे भेजती रहती थी. उस का कहना था कि जब भी उसे ओनीर की याद आती है, वह ऐसा करती है.

सहर ने लिखा था, ‘‘ये दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है, वजह कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है, जहां प्यार की कदर ही कुछ नहीं है, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!’’

सहर ने आगे लिखा था, ‘इश्क न हुआ कुहरा हो जैसे, तुम्हारे सिवा कुछ दिखता ही नहीं.’

ओनीर फोन अपने सीने पर रख कर ऐसे लेट गया जैसे यह फोन नहीं, सहर का हाथ हो. कई महीनों से उस के दिमाग में जो उधेड़बुन चल रही थी, अचानक जैसे उस ने विराम पाया. उसे लगा, हां, सहर का प्यार अगर उस से दूर हो जाए, सहर को खो कर उसे सबकुछ मिल भी जाए तो उस के लिए कितना बेमानी होगा. क्या करना है उसे इस दुनिया का. फिर उस के लिए जीवन कितना बेरंग होगा.

उस ने एक ठंडी सांस ली. घरवाले खुशीखुशी मान गए तो ठीक, वरना वह प्रेम पर बढ़े अपने कदमों को किसी हाल में वापस नहीं रखेगा. उसे सहर के साथ बहुत दूर तक चलना है, चाहे कुछ भी हो जाए. फैसला हो चुका था. अब संस्कार दुबके थे. प्रेम मुसकरा रहा था.

उफ हो ही गया: उस रात नर्वस क्यों था मंयक

‘‘ऐसेकैसे किसी भी लड़की से शादी की जा सकती है? कोई मजाक है क्या?

जिसे न जाना न समझ उस के साथ जिंदगी कैसे निभ सकती है?’’ मयंक अपनी मां सुमेधा पर झंझलाया.

तभी पिता किशोर बातचीत में कूद पड़े, ‘‘जैसे हमारी निभ रही है,’’ किशोर ने प्यार से पत्नी की तरफ देखते हुए कहा तो गोरी सुमेधा गुलाबी हो गई.

मयंक से उन की यह प्रतिक्रिया कहां छिप सकी थी. यह अलग बात है कि उस ने अपनी अनदेखी जाहिर की.

‘‘आप तो बाबा आदम के जमाने के दिव्य स्त्रीपुरुष हो. वह सेब आप दोनों ने ही तो खाया था. आप का मुकाबला यह आज के जमाने का तुच्छ मानव नहीं कर सकता,’’ मयंक ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर जिस नाटकीय अंदाज में अपना ऐतराज दर्ज कराया उस पर किसी की भी हंसी छूटना स्वाभाविक था.

‘‘तो ठीक है करो अपनी पसंद की लड़की से शादी. हमें बुलाओगे भी या किसी दिन सामने ही ला कर खड़ी कर दोगे,’’ सुमेधा चिढ़ कर बोली तो मयंक नाक सिकोड़ कर गरदन झटकता हुआ अपने कमरे में घुस गया.

यह आज का किस्सा नहीं है. यह तो एक आम सा दृश्य है जो इस घर में पिछले 2 सालों से लगभग हर महीने 2 महीने में दोहराया जा रहा है. सुमेधा और किशोर का बेटे पर शादी करने का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. वैसे उन का ऐसा करना गलत भी नहीं है.

‘‘तीस का होने जा रहा है. अभी नहीं तो फिर कब शादी करेगा? शादी के बाद भी तो

कुछ साल मौजमजे के लिए चाहिए कि नहीं? फिर बच्चे कब करेगा? एक उम्र के बाद बच्चे होने में भी तो दिक्कत आने लगती है. फिर काटते रहो अस्पतालों के चक्कर और लगाते रहो डाक्टरों के फेरे. चढ़ाते रहो अपनी गाड़ी कमाई का चढ़ावा इन आधुनिक मंदिरों में,’’ सुमेधा गुस्से से बोली.

मयंक का खीजते हुए अपने कानों में इयरफोन ठूंस लेना घर में एक तनाव को पसार देता है. फिर शुरू होती है उस तनाव को बाहर का रास्ता दिखाने की कवायद. सुमेधा की रसोई में बरतनों की आवाजें तेज होने लगती हैं और राकेश का अंगूठा टीवी के रिमोट के वौल्यूम वाले बटन को बारबार ऊपर की तरफ दबाने लगता है.

घर का तनाव शोर में बदल जाता है तो मयंक गुस्से में आकर टीवी बंद कर देता है और मां को कमर से पकड़ कर खींचता हुआ रसोई से बाहर ले आता है. कुछ देर के सन्नाटे के बाद मयंक अदरक वाली चाय के 3 कप बना कर लाता है और उस की चुसकियों के साथ आपसी तनाव को भी पीया जाता है. सब सहज होते हैं तो घर भी सुकून की सांस लेता है.

आज भी यही हुआ. लेकिन आज बात इस से भी कुछ आगे बढ़ी. सुमेधा आरपार वाले मूड में थी. बोली, ‘‘बहुत बचपना हो गया मयंक. अब शादी कर ही लो. चलो, हमारी न सही अपनी पसंद की लड़की ही ले आओ. लेकिन उम्र को बुढ़ाने में कोई सम?ादारी नहीं है.’’

सुमेधा ने हथियार डालते हुए कहा तो मयंक मन ही मन अपनी जीत पर खुश हुआ. पलक ?ापके बिना ही कालेज की साथी और अपने साथ काम करने वाली कई लड़कियां 1-1 कर उस के सामने से रैंप वाक करती गुजरने लगीं.

‘‘तो अब आप सास बनने की तैयारी कर ही लो,’’ मयंक ने कुछ इस अंदाज में कहा मानो लड़की दरवाजे पर वरमाला हाथ में लिए खड़ी उसी का इंतजार कर रही है. मामले में सुलह होती देख कर राकेश ने भी राहत की सांस ली.

मां की चुनौती स्वीकार करते ही मयंक के जेहन में अपनी पहली क्रश मोहिनी की तसवीर कौंध गई. लेकिन मोहिनी से संपर्क टूटे तो 5 साल बीत गए. अब तो सोशल मीडिया पर भी संपर्क में नहीं है.

सोशल मीडिया का खयाल आते ही मयंक ने मोहिनी को सर्च करना शुरू किया. न जाने कितने फिल्टर लगाने के बाद आखिर मोहिनी उसे मिल गई. प्रोफाइल खंगालते ही उसे झटका सा लगा. लेटैस्ट अपडेट में उस ने अपने हनीमून की मोहक तसवीरें लगा रखी थीं. मयंक का दिल टूटा तो नहीं लेकिन चटक जरूर गया.

कालेज में फाइनल ईयर वाली शालिनी के साथ भी कुछ इसी तरह का अनुभव उसे हुआ. शालिनी की गोद में गोलमोल बच्चे को देख कर उस ने आह भर ली.

‘मां सही कह रही है. मेरी शादी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से साल 2 साल लेट चल रही है. मुझे अपनी ट्रेन भाग कर ही पकड़नी पड़ेगी,’ सोचते हुए मयंक ने स्कूलकालेज की साथियों को छोड़ कर अपनी सहकर्मियों पर ध्यान केंद्रित करना तय किया.

सब से पहले सूई वृंदा पर ही जा कर अटकी. मयंक वृंदा की नशीली आंखों को याद कर उन में गोते लगाने लगा. उस ने वृंदा को फोन लगाया, ‘‘हैलो वृंदा, आज शाम औफिस के बाद पार्किंग में मिलना. कौफीहाउस चलेंगे,’’ मयंक ने मन ही मन उसे प्रपोज करने की भूमिका साधते हुए कहा.

वृंदा ने उस का प्रस्ताव स्वीकार कर के उसे पहले पायदान पर जीत का एहसास दिलाया.

कौफी के घूंट के साथ कुछ इधरउधर की बातें चल रही थीं. आखिरी घूंट भर कर कप को मेज पर रखने के बाद मयंक ने अपनी आंखें वृंदा के चेहरे पर गड़ा दीं. वृंदा का कप अभी भी उस के होंठों से ही लगा था. उस ने कप के ऊपर से झंकती अपनी मोटीमोटी आंखों की भौंहों को चढ़ाते हुए इशारे से पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

मयंक ने इनकार में सिर हिला दिया. वह उस के कप नीचे रखने का इंतजार कर रहा था. जैसे ही उस ने कप नीचे रखा मयंक ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘आई लव यू.’’

मयंक ने जिस तरह कहा उसे सुन कर वृंदा अचकचा गई. फिर कुछ समझ तो मुसकरा दी, ‘‘मैं भी,’’ और उस ने आंखें  झुका कर अपनी स्वीकृति दे दी.

मयंक अपनी सफलता पर फूला नहीं समाया.

‘‘शादी करोगी मुझ से?’’ उत्साह में आए मयंक ने अगला प्रश्न दागा.

यह प्रश्न वृंदा को सचमुच गोली जैसा ही लगा. वह आश्चर्य से मयंक की तरफ देखने लगी. फिर बोली, ‘‘शादी नहीं कर सकती,’’ वृंदा ने ठंडा सा उत्तर दिया जिस की मयंक को कतई उम्मीद नहीं थी.

‘‘लेकिन अभी तो तुम ने कहा कि तुम भी मुझ से प्यार करती हो,’’ मयंक अब भी उस के जवाब पर विश्वास नहीं कर पा रहा था.

‘‘तो मैं कहां इनकार कर रही हूं. लेकिन शादी और प्यार 2 बिलकुल अलग तसवीरें हैं. शादी कोई बच्चों का खेल नहीं है. बहुत सी अपेक्षाओं, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का मिलाजुला नाम है शादी. मु?ो नहीं लगता कि मैं अभी ऐसी किसी भी स्थिति में पड़ने के लिए तैयार हूं. तुम अपने पेरैंट्स से कहो न कि तुम्हारे लिए कोई अच्छी सी लड़की तलाश करें. यकीन मानो इस मामले में उन की परख बहुत ही व्यावहारिक होती है. मैं तो अपने लिए ऐसा ही करने वाली हूं.’’

वृंदा की बेबाक टिप्पणी सुन कर मयंक को लगा जैसे उस ने किसी पत्थर के सनम को प्यार का फूल चढ़ाया है. वह अपना सा मुंह ले कर रह गया.

कुछ दिन देवदास का किरदार जीने के बाद मयंक को रीना का खयाल आया. रीना एक बहुत ही दिलचस्प लड़की है. मौडर्न सोसाइटी में एकदम फिट बैठने वाली. उस के साथ शामें बहुत ही शानदार गुजरती हैं. लेकिन इस के साथ ही उसे रीना का पी कर बहकना भी याद आ गया और वह उस की शादी की उम्मीदवारी से हट गई. रीना के बाद श्यामा और फिर इसी तरह मेघा भी दावेदारी से बाहर हो गई.

मयंक सकते में था कि शादी की बात आते ही वह इतनी दूर की क्यों सोचने लगा. कहां तो उसे यह वहम था कि वह चाहे तो शाम से पहले किसी भी लड़की को दुलहन बना मां के सामने ला कर खड़ी कर दे और कहां वह किसी एक नाम को अंतिम रूप नहीं दे पा रहा.

कई दिनों की माथापच्ची के बाद मयंक ने हार स्वीकार कर ली कि ऐसी लड़की जो खुद उस की पसंद की हो और मां की उम्मीदों पर भी खरी उतरे तलाश करना कम से कम उस के लिए तो आसान काम नहीं ही है. आखिर उस ने यह विशेषाधिकार फिर से मां को ही दे दिया. सुमेधा तो जैसे तैयार ही बैठी थी. झट काम्या की तसवीर और बायोडाटा मयंक के सामने रख दिया.

मुसकराती हुई आंखों वाली इंजीनियर काम्या मयंक को तसवीर देखने मात्र से ही अपनी सी लगने लगी. उसे इस एहसास पर आश्चर्य भी कम नहीं था. पूरा बायोडाटा पढ़ने के बाद पता चला कि काम्या मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती है. यह पढ़ते ही मयंक के जेहन में एक बार फिर से अपनी सहकर्मी लड़कियां डूबनेउतराने लगीं.

‘‘पता नहीं यह कैसी होगी? वृंदा, रीना जैसी या फिर मोहिनी शालिनी जैसी. क्या शादी निभा पाएगी या कहीं मैं ही न निभा पाया तो?’’ जैसे कई खयाल मन में उथलपुथल मचाने लगे. मयंक ने एक आजमाइश की सोची.

‘‘मुझे आप की पसंद पर एतराज नहीं लेकिन मैं इसे अपने तरीके से भी परखना चाहता हूं,’’ मयंक ने कहा तो सुमेधा चौंकी.

‘‘तुम्हारा तरीका कौन सा है?’’ सुमेधा ने पूछा.

‘‘वह काम्या समझ जाएगी,’’ मयंक ने कहा तो सुमेधा ने काम्या की मम्मी से बात कर के मयंक से मिलने की इजाजत ले ली.

आपस में बात कर के शनिवार शाम को दोनों ने एक क्लब में मिलना तय किया. काम्या जींस और खुले गले के टौप में काफी आकर्षक लग रही थी और मयंक की कल्पना से विपरीत भी.

कुछ देर की बातचीत के बाद मयंक ने सिगरेट सुलगा ली. 1-2 कश के बाद उस ने काम्या की तरफ बढ़ा दी.

‘‘पीती हो?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘यदि पीना आप के लिए सही है तो मेरे लिए गलत कैसे हो सकता है,’’ कह कर उसे गहरी आंखों से देखती काम्या ने सिगरेट अपनी उंगलियों में थाम ली और कश खींचने लगी.

मयंक उसे घूर रहा था, ‘‘अल्कोहल?’’ मयंक के इस बार पूछने में एक खीज भी शामिल थी.

काम्या मुसकरा दी, ‘‘सेम आंसर.’’

मयंक को माथे पर कुछ नमी सी महसूस हुई. उस ने टिशू पेपर उठा कर बूंदों को थपथपाया. काम्या अब भी शांत थी.

‘‘बेचारी भोली मां. इस के प्रपोजल फोटोग्राफ पर री?ा गई. काश, हकीकत जान पाती,’’ मयंक को सुमेधा के चयन पर तरस आ रहा था.

2-4 मुलाकातों के बाद भी मयंक काम्या को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाया. वह न तो उस के व्यवहार को ठीक से समझ पाया और न ही उस के बारे में कोई अच्छी या बुरी राय अपने मन में बना पाया. हर बार काम्या उसे पिछली बार से अलग एक नए ही अवतार में नजर आती. हार कर उस ने हर परिणाम भविष्य पर छोड़ दिया. इस एक मात्र निर्णय से ही उसे कितना सुकून मिला यह सिर्फ वही जान सका.

सगाई में हरेपीले लहंगे में सजी, लंबे बालों को फूलों की वेणी में बांधे काम्या उसे इस ट्रैडिशनल ड्रैस में भी उतनी ही सहज लग रही थी जितनी किसी वैस्टर्न ड्रैस में.

काम्या उसे एक पहेली सी लग रही थी और वही क्यों, काम्या से मिलने के बाद उसे तो सभी लड़कियां पहेली सी उलझ हुई ही लगने लगी थीं.

इसी पहेली की उलझन में भटकता मयंक एक रोज काम्या को अपनी शेष जिंदगी की हमसफर बना कर घर ले आया.

शादी के बाद जब उस के दोस्त उसे कमरे में छोड़ने की औपचारिकता कर रहे थे तब मयंक सचमुच ही बहुत नर्वस महसूस कर रहा था. इतना संकोच तो उसे अपनी सब से पहली गर्लफ्रैंड का हाथ पकड़ने पर भी नहीं हुआ था.

एक ही रात में ऐसा कुछ हो गया कि काम्या उसे अपने सब से अधिक नजदीक लगने लगी.

‘‘क्या तन से जुड़ाव ही मन से जुड़ाव की पहली सीढ़ी होती है?’’ यह प्रश्न मयंक के सामने आ कर खड़ा हो गया लेकिन वह कोई जवाब नहीं दे पाया. अब तक तो वह इस का उलट ही सही समझता आ रहा था. उस की थ्योरी के अनुसार तो पहले दिल मिलने चाहिए थे. शरीर का मिलन तो उस के बाद होता है. आज उसे समझ में आया कि थ्योरी पढ़ने और प्रैक्टिकल करने में कितना अंतर होता है.

हनीमून पर काम्या का साथ उस में एक अलग ही ऊर्जा का संचार कर रहा था. अनजानी काम्या उसे तिलिस्म से भरी किसी बंद किताब सी लग रही थी जिसे पन्ने दर पन्ने पढ़ना बेहद रोमांचकारी था. उस की आदतें, उस का व्यवहार, उस की पसंदनापसंद यानी काम्या से जुड़ी हर छोटी से छोटी बात भी मयंक को कुतूहल का विषय लग रही थी. उस में उस की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही थी.

‘‘आजकल सिगरेट नहीं पीते क्या?’’ एक शाम काम्या ने पूछा.

‘‘जो आदत मैं तुम्हारे लिए बुरी समझता हूं, वो मेरे लिए अच्छी कैसे हो सकती है?’’ मयंक ने जवाब दिया तो काम्या मुसकरा दी.

‘‘और अल्कोहल?’’ काम्या ने फिर पूछा.

‘‘सेम आंसर,’’ मयंक मुसकराया.

सुन कर काम्या पति के जरा और पास खिसक आई. हनीमून खत्म हो गया. दोनों ने अपनाअपना औफिस फिर से जौइन कर लिया. मयंक अब पूरे 10 घंटे काम्या से दूर रहता. वह काम्या के दिल का हाल तो नहीं जानता था लेकिन खुद वह लगभग हर 10 मिनट के बाद उस के बारे में सोचने लगता. काम्या कभी उसे बिस्तर पर लेटी उस का इंतजार करती नजर आती तो कभी चुपचाप बिस्तर पर पटका उस का गीला तौलिया उठा कर तार पर टांगने जाती दिखाई देती. कभी वह मां के साथ टेबल पर नाश्ता लगा रही होती तो कभी अपनी अलमारी में से पहनने के लिए कपड़े चुनने में मदद के लिए उस की तरफ देखती आंखों ही आंखों में सवाल करती और उस से सहमति लेती महसूस होती.

मयंक को इस तरह का अनुभव पहली बार हो रहा था. ऐसा नहीं है कि प्यार ने उस की जिंदगी में दस्तक पहली बार दी हो, लेकिन यह एहसास पिछली हर बार से अलग होता. यहां खोने या ब्रेकअप का डर नहीं है. नाराजगी के बाद मानने या न मानने की चिंता के बाद भी नहीं. किसी के देख लेने और पकड़े जाने की घबराहट नहीं है. दो घड़ी एकांत की तलाश में शहर के कोने खोजने की छटपटाहट नहीं है.

‘यह प्यार का कौनसा रूप है? इतनी लड़कियों से रिलेशन के बाद भी यह सौम्यता कभी महसूस क्यों नहीं हुई? रिश्ता इतना मुलायम क्यों नहीं लगा?’ मयंक सोचता और इतना सोचने भर से ही काम्या फिर से उस के खयालों में दखलंदाजी करने लगती.

मयंक का औफिस के बाद दोस्तों के साथ चिल करना भी इन दिनों काफी कम हो गया था. हर शाम वह खूंटा तुड़ाई गाय सा काम्या के पास दौड़ पड़ता.

आज शाम जैसे ही घर में घुसा, काम्या के पिताजी को बैठे देख कर चौंक गया. नमस्ते कर के भीतर गया तो देखा कि काम्या अपने कपड़े जमा रही थी.

‘‘ये कपड़े क्यों जमा रही हो?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘मम्मी का फोन आया था कि शादी के बाद आई ही नहीं. आगे 2 दिन छुट्टी है, तो पापा को भेज दिया लिवाने के लिए,’’ काम्या ने सूटकेस बंद करते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं ने वीकैंड प्लान कर रखा था. तुम ने मुझे बताया तक नहीं,’’ अपना प्लान चौपट होते देख कर मयंक खीज गया.

‘‘वीकैंड तो आते ही रहेंगे. हम फिर कभी चल लेंगे. इस बार मां से मिलने का बहुत मन है,’’ काम्या ने बहुत ही सहजता से कहा.

मयंक का मुंह लटक गया. वह यह सोच कर ही बोरियत महसूस करने लगा कि 2 दिन अकेला घर में बैठ कर करेगा क्या? क्या काम्या वाकई उस के लिए इतनी जरूरी हो गई है? क्या वह उस का आदी होने लगा है?

काम्या अपने पापा के साथ चली गई. शादी के बाद पहली बार वह अपने बिस्तर पर अकेला लेटा. कंबल में से आती काम्या के शरीर की खुशबू उसे बेचैन करने लगी तो वह बैड पर काम्या वाली साइड जा कर लेट गया और उस के तकिए को कस कर जकड़ लिया. लंबीलंबी सांसें ले कर उस की महक को अपने भीतर उतारने लगा. फिर अपनी इस बचकानी हरकत पर खुद ही झेंप गया.

किसी तरह रात ढली और दिन निकला. मां चाय लेकर आई तो वह बड़ी मुश्किल से बिस्तर से निकल पाया. काम्या अब भी तकिए की शक्ल में उस की बगल में मौजूद थी. शाम होतेहोते न जाने कितने ही पल ऐसे आए जब काम्या उसे शिद्दत से याद आई.

आज नहाने के बाद मयंक ने अपना गीला तौलिया खुद ही बालकनी में जा कर धूप में डाला. अपना बिस्तर भी समेटा और गंदे मौजे भी धुलने के लिए लौंड्री बैग में रखे. मां के साथ टेबल पर खाना लगवाया और शाम को चाय के साथ काम्या की पसंद की मेथी मठरी भी खाई. ये सब करते हुए उसे लग रहा था मानो वह काम्या को पलपल अपने पास महसूस कर रहा हो.

सच ही कहा है किसी ने कि जब हम अपने प्रिय व्यक्तियों से दूर होते हैं तो उन की आदतों को अपना कर उन्हें अपने पास महसूस करने की कोशिश करते हैं. शायद मयंक भी यही कर रहा था. टहलते हुए पास के बाजार गया तो एक दुकान पर लालकाले रंग का लहरिए का दुपट्टा टंगा हुआ देखा.

इस से पहले मयंक ने कभी कोई जनाना आइटम नहीं खरीदी थी बल्कि वह तो खरीदने वाले अपने दोस्तों का जीभर कर मजाक भी उड़ाता था, लेकिन आज पता नहीं क्यों वह यह दुपट्टा खरीदने का लोभ संवरण नहीं कर पाया. शायद काम्या ने कभी लहरिए पर अपनी पसंद जाहिर की थी.

मयंक को लग रहा था जैसेकि ये सब बहुत फिल्मी सा हो रहा है लेकिन वह भी न जाने किस अज्ञात शक्ति से प्रेरित हुआ ये मासूम हरकतें बस करता ही चला जा रहा था.

‘कहीं मुझे प्यार तो नहीं हो गया?’ सोच मयंक को खुद पर शक हुआ.

‘हो सकता है कि मांपापा के बीच भी इसी तरह प्यार की शुरुआत हुई हो,’ सोच कर उस ने मुसकराते हुए टीवी औन किया.

‘‘हो गया है तुझ को तो प्यार सजना… लाख कर ले तू इनकार सजना…’’ गाना बज रहा था. मयंक ने काम्या के तकिए को फिर से खींच कर भींच लिया और आंखें बंद कर लेट गया. उफ, कमबख्त प्यार हो ही गया.

दुनिया अगर मिल जाए तो क्या: भाग-2

‘‘बात ही ऐसी करती हैं मैम. आ जाएंगी अपनी दलित बस्ती को बीच में ले कर. कोई खबर आई नहीं कि उन्हें दुख होना शुरू हो जाता है.’’

सहर ने कहा, ‘‘तुम अपनी जाति को ले कर नहीं आते? कभी सोचा है कि इतनी बड़ी डिग्री लेने जाने वाला इंसान हिंदू राष्ट्र की बात करते हुए कैसा लगता होगा?’’ सहर के आगे तो ओनीर वैसे ही हारने लगता था, फिर भी बोला, ‘‘काफी दिनों से सोच रहा हूं कि तुम, सहर नौटियाल. यह सरनेम कम ही सुना है. मुंबई के तो नहीं हो तुम लोग?’’

‘‘तुम सचमुच जाति से बढ़ कर नहीं सोच सकते?’’

‘‘मुझे भविष्य में एक इतिहासकार बनना है, राजनीति में जाना है.’’

‘‘उस के लिए इतना पढ़ने की क्या जरूरत है?’’ सहर के इतना कहते ही सब हंस पड़े. सब के और्डर सर्व हो चुके थे, सब खानेपीने लगे. सब जानते थे कि ओनीर को सहर पसंद है पर सहर के पेरैंट्स में से कोई तो मुसलिम है, ओनीर इसलिए कुछ आगे नहीं बढ़ता है. बस, इतना ही पता था सब को. और यही सच भी था.

सहर ने नीबूपानी का एक घूंट भरते हुए कहा, ‘‘कोई हिंदू, कोई मुसलिम, कोई ईसाई है, सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है.’’ सहर की गंभीर आवाज पर कुछ सैकंड्स के लिए सन्नाटा छा गया.

ओनीर ने जलीकटी टोन में कहा, ‘‘बस, इसी से सब चुप हो जाते हैं, तुम्हें पता है.’’

सहर ने कहा, ‘‘ओनीर, वैसे तो तुम्हारा अपना सोचने का ढंग है पर मेरे खयाल से एक दोस्त की हैसियत से यह जरूर कहना चाहूंगी कि हम आज जहां बैठे हैं, हमारे और उन नफरत फैलाने वाले लोगों में कुछ फर्क तो होना ही चाहिए न? तुम वही भाषा बोलते हो जो एक सम?ादार इंसान को नहीं बोलनी चाहिए.’’

‘‘जो दिख रहा है, वही तो बोलता हूं.’’

‘‘नहीं, जो दिख रहा है, वह ज्यादातर मनगढ़ंत है, सही नहीं है. दूसरे स्किल की तरह हमें अब फैक्ट चैकिंग की स्किल भी डैवलप करनी चाहिए. तलाशना होगा कि क्या सच है और क्या ?ाठ. मैं ने तो पढ़ा है कि फिनलैंड और कुछ देशों में तो स्कूली कोर्स में आजकल फैक्ट चीकिंग पढ़ाई जा रही है. हमारे यहां भी यह कोर्स शुरू होना चाहिए क्योंकि अब इनफौर्मेशन कई जगहों से आ रही है और उसे बीच में कोई चैक करने वाला नहीं है. पहले मीडिया हमारे लिए यह काम करता था पर अब तो बीच में मीडिया भी नहीं है.’’

‘‘यह सब तुम मुझे क्यों सुना रही हो?’’

‘‘तुम्हें ही तो इतिहासकार बनना है न,’’ सहर मुसकरा दी, आगे कहा, ‘‘इतिहास लिखोगे तो सारे तथ्य लिखना. सच सब से ज्यादा जरूरी होता है, याद रखना. इतिहासकार को सच ही लिखना चाहिए. उस से फायदा होगा या नुकसान, यह देखना इतिहासकार का काम नहीं होता है.’’

‘‘पर यह सब मुझे सुनाने से क्या होगा, क्या मैं बेवकूफ हूं?’’

सहर हंस पड़ी, बोली, ‘‘अच्छा सुनने की सलाहियत से अच्छा कहने का शऊर आता है.’’

‘‘एक तो तुम पता नहीं कैसी हिंदी बोलती हो, कभी उर्दू. मुझे तो तुम्हारी आधी बातें समझ ही नहीं आतीं. ठीक से इंग्लिश में ही बात क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘फिर कहोगे, हिंदू राष्ट्र में सब को हिंदी ही बोलनी है. अंगरेजों ने गुलाम बनाया था न, इसलिए उन की भाषा नहीं बोल रही.’’ उस की इस बात पर सब जोर से हंसे, ओनीर ?ोंप गया. सिर्फ सहर ही उसे चुप करवा सकती थी. नएनए प्रेम में पड़े इंसान के लिए सबकुछ इतना भी आसान नहीं होता और ओनीर तो सहर के प्रेम में बुरी तरह डूबा था.

‘‘बहुत दिनों से पूछना चाह रहा था, तुम लोग उत्तराखंड से हो न? नौटियाल सरनेम वहीं से है न?’’

‘‘वाह, मुझ पर भी रिसर्च हो रही है.’’

सब हंसने लगे, ओनीर चिढ़ा, ‘‘कुछ ठीक से बताओगी अपने बारे में? अब तो कालेज भी खत्म होने को आए.’’

‘‘हम नौटियाल लोग करीब 700 साल पहले टिहरी से आ कर तली चांदपुर में नौटी गांव में आ कर बस गए थे. नौटियाल चांदपुर गढ़ी के राजा कनकपाल के साथ संवत 945 में मालवा से आ कर यहां बसे, इन के बसने के स्थान का नाम गोदी था जो बाद में नौटी के नाम में बदल गया और नौटियाल जाति मशहूर हुई. यह सब मेरे

पापा ने मेरी मम्मी को बताया

था और मुझे मम्मी ने. और कुछ पूछना है?’’

सहर के बोलने के ढंग में कुछ ऐसी बात थी कि जब वह बोलती, कोई उसे बीच में न टोकता. वह चुप हुई तो ओनीर, जो उसे अपलक देख रहा था, बोला, ‘‘फिलहाल इतना ही. बस, एक बात और, बुरा मत मानना, तुम्हारे पेरैंट्स में से कौन मुसलिम है?’’

‘‘मम्मी.’’

‘‘वे कहां की हैं?’’

‘‘यहीं मुंबई की.’’

‘‘तो पापा उत्तराखंड से आए थे?’’

‘‘हां,’’ कहते हुए सहर का चेहरा कुछ उदास सा हुआ. सब ने यह नोट किया तो युवान ने बात बदली, ‘‘चलो, अब सब क्लास में.’’

सहर और ओनीर दोनों ही जानते थे कि समय के साथ उन के दिल में एकदूसरे के लिए वैसे भाव नहीं हैं जैसे साथ में रहने वाले और दोस्तों के लिए हैं. कई बार ऐसा भी तो होता है न कि प्यार करने वाले अपने मुंह से कुछ भी नहीं कह रहे हैं पर आसपास के लोग दोनों की निगाहों में बहुतकुछ पढ़ लेते हैं. आंखों का काम सिर्फ देखना थोड़े ही होता है. आंखें बहुतकुछ कहतीसुनती भी तो हैं. इस तरह आंखें कभीकभी तो जबां और कानों का भी काम कर रही होती हैं.

कुछ महीने और बीते, पीएचडी हो गई. दीक्षांत समारोह के दिन ओनीर ने सहर से पूछा, ‘‘थोड़ी देर जुहू चलोगी?’’

पूरे दिन के सैलिब्रेशन के बाद ओनीर और सहर समुद्र के किनारे टहल रहे थे. अचानक ओनीर ने कहा, ‘‘सहर, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. क्या तुम भी मेरे लिए कुछ ऐसा सोचती हो?’’

ऐसे पल जीवन में इतने आम नहीं होते जितने लगते हैं. ये पल हमेशा के लिए स्मृतियों में अपनी पैठ बना लेते हैं. सहर को दिल ही दिल में ऐसे पलों की उम्मीद थी, यह कुछ बड़ा सरप्राइज नहीं था पर फिर भी ठंडी सी एक फुहार उस के अंदर तक उतर गई. उस ने बस ‘हां’ में सिर हिला दिया, फिर कुछ रुक कर कहा, ‘‘पर तुम जिस तरह से सोचते हो, हमारा रास्ता कभी

एक हो नहीं सकता. थोड़ा प्रैक्टिकल हो कर कहूं तो तुम कास्ट को ज्यादा महत्त्व देते हो, इसलिए तुम्हारा दिमाग दिल पर हावी ही रहेगा, हम साथ चल नहीं पाएंगे.’’

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