मिथ की सच्चाई: मोटा बच्चा हमेशा स्वस्थ्य नहीं होता

अमुमन सभी माताओं की एक ही चिंता रहती है कि उनके बच्चे का सही तरीके से विकास नहीं हो रहा, क्यों कि वह काफी दुबला है. गोलमटोल चेहरे और उभरी हुई जांघों वाले बच्चे उच्च ‘‘कडल कोटेटिव‘‘ के कारण आपके रिश्तेदारों के बीच पसंदीदा हो सकते हैं, लेकिन वे सभी तंदुरूस्त नहीं हो सकते हैं. वास्तव में, एक बच्चा स्वस्थ है या नहीं यह उसके शारीरिक स्वास्थ्य द्वारा निर्धारित नहीं किया जा सकता है. नवजात शिशु की औसत ऊंचाई 50 सेमी और औसत वजन करीब 3.25 किलो होना चाहिए.

अब यदि आपके शिशु की लम्बाई में 55 सेमी है और उसका वजन 3.3 किलो है उसे दुबला कहा जा सकता है. लेकिन वह सामान्य व स्वस्थ बच्चा है. कुछ शिशु एक आनुवंशिक है जिसकी वजह से दुबले रहते हैं जबकि कुछ का मॉडरेशन के बावजूद वजन बढ़ सकता है.

इसलिए, जब तक आपके बच्चे की उचित ऊंचाई और वजन का अनुपात नहीं होता, तब तक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.

क्या फैट एक चिंता का विषय है?

हां, क्योंकि कुछ शोधों से पता चला है कि एक मोटे बच्चे को भविष्य में मोटापा बढ़ने की संभावना अधिक हो सकती है. एक ऐसे युग में जहां गैर-संचारी रोग (एनसीडी) मोटापे, जीवन शैली विकल्पों और जंक फूड से शुरू हुआ, महामारी के अनुपात तक पहुंच गया है, शुरुआत से ही वजन बनाए रखना एक अच्छी शुरुआत है. बच्चों में जल्द से जल्द वजन की समस्याओं और मोटापे को खत्म करना, गंभीर चिकित्सा स्थितियों को पैदा करने वाले कारणों को कम कर सकता है. क्योंकि वे बड़े हो जाते हैं और पूरे परिवार को शामिल करके, आप वजन की समस्याओं और मोटापे के घेरे को तोड़ सकते हैं. साथ ही अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं और उन्हें अच्छी डाइट सजेस्ट कर सकते हैं. यहां माता-पिता के लिए कुछ सरल मापदण्ड बताए जा रहे हैं ताकि वे अपने बच्चे को स्वस्थ्य वयस्कों के रूप में बड़ा कर सकें.

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1. स्तनपान:

कम से कम 6 महीने तक बच्चे को स्तनपान कराने से न चूकें. अध्ययनों से पता चला है कि इस अवधि के लिए स्तनपान करने वाले बच्चे दुबले हो सकते है लेकिन उनकी प्रतिरक्षा शक्ति अधिक होती है और संक्रमण और एलर्जीस होने की संभावना कम रहती है. भोजन पूरी तरह से बच्चे की पोषण सम्बन्धी जरूरतों के लिए बनाया गया है और हमेशा विकास की मांगों को पूरा करता है. इसके अलावा, स्तनपान करते समय आवश्यकता से अधिक खिलाना लगभग असंभव है, हालांकि, फार्मूला मिल्क फीडिंग के कारण  आमतौर पर अत्यधिक वजन बढ़ सकता  है.

2. बच्चे के रोते ही उसे फीड न कराए:

शिशु रो रहा है इसके मायने यह नहीं की उसे भूख ही लगी होगी. आमतौर पर ऐसा होता है कि माताएं बच्चे के रोते ही उसे फीड कराती हैं ताकि वह चुप हो जाए. बच्चे का वजन बढ़ने का एक प्रमुख कारण यह भी है. बच्चा क्यों रोता है कभी शायद भूख के कारण, लेकिन वे थके होने, असहज होने पर भी रो सकता हैं. यदि यह एक फीड के बाद से केवल कुछ समय के लिए है, तो आपको कुछ अन्य चीजों की कोशिश करनी चाहिए जैसे डायपर बदलने, पकड़ने , बात करने और खेलने की कोशिश करें. यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे को दूध पिलाने के बारे में सोचने की बजाय बच्चे के लिए क्या सही है क्या गलत जानने की कोशिश करें.  खाने के साथ एक अस्वास्थ्यकर सम्बन्ध बनाते है तो उसे पूर्ववत करना आपके लिए कठिन होगा.

3. ओवरफीड न करें:

जब तक कि डॉक्टर यह न बता दें कि शिशु को अधिक पोषण की आवश्यकता है, हर कीमत पर ऐसा करने से बचें. बच्चे को खाना ख़त्म करना है जरूरी है पर  जैसे ही बच्चा इसे खाना बंद कर देता है, आपको रोकना चाहिए.

4. स्वस्थ ठोस भोजन दें:

जब तैयार हों (लगभग 6 महीने तक), अपने बच्चे को फल और सब्जियां, फलियां, साबुत अनाज दें, और यदि आप मांसाहारी हैं, तो अंडे, मछली और थोडा सा मीट उसे दे सकती हैं. इससे पहले कि वे चूजी हो जाए इस समय का उपयोग करें. आयरन-फोर्टिफाइड बेबी सीरियल्स अधिक मात्रा में नहीं दें.

5. परिवार का भोजन जल्दी शुरू करें

जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ भोजन करते हैं, उनका वजन अधिक होने की संभावना कम होती है, इसलिए उन्हें खाने की मेज पर एक साथ बैठायें.   परिवार के साथ भोजन करना मजबूत रिश्ते बनाते हंै और बच्चों को स्कूल में सफल होने में मदद करते हैं.

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6. सुनिश्चित करें कि बच्चा सक्रिय रहे

अपने बच्चे को घुमाने ले जाएँ और  उसे व्यायाम की सलाह दें. चलना और दौड़ना सिखाएं, ‘टमी टाइम‘ करें, उसके चलने-फिरने या दौड़ने को प्रोत्साहित करें. उन्हें सैर के लिए बाहर ले जाएं और तय करें कि वे खुले स्थानों में चलते और दौड़ते हों.

7. अत्याधिक टीवी या गैजेट्स से दूर रखें:

अधिक समय तक टीवी या मोबाइल पर चिपके रहने से बच्चे की शारीरिक गतिविधिया कम हो जाती नतीजतन उसे भूख नहीं लगती, और इससे मोटापा बढ़ने की संभावना रहती है. इसके साथ ही उसके विकसित होते दिमाग पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है.

हम अपने बच्चों को जो भोजन खिलाते हैं, वह उनके जीवन के पोषण का आधार बनता है. माता-पिता बच्चों को स्वस्थ पौष्टिक खाने के ट्रैक पर लाने के लिए जिम्मेदार हैं. डॉक्टरों को निश्चित रूप से माता-पिता (और देखभाल करने वालों) को सरल शिक्षा के माध्यम से ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

डॉ. रोहित अरोड़ा, हेड नियोनेटोलॉजी एवं पीडियाट्रिक, मिराकेल मेडिक्लीनिक एण्ड  अपोलो क्रेडल हौस्पिटल, गुरूग्राम से बातचीत पर आधारित.

जब हों टेढ़े-मेढ़े दांत

कुछ लोग अपने दांतों के टेढ़ेपन से परेशान रहते हैं. उन्हें ठीक करते के लिए वे मैटल के तार लगाते हैं, जिस से उन्हें स्माइल करने पर तकलीफ के साथसाथ शर्मिंदगी भी महसूस होती है. मगर अब उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब मार्केट में इस परेशानी का नया सौल्यूशन आ गया है. आइए, ओडीएस क्लियर एलाइनर्स की संस्थापक डा. स्वप्निल गुप्ता से इनविजिबल ब्रेसेज के बारे में विस्तार से जानते हैं:

इनविजिबल ब्रेसेज और्थोडौंटिक्स के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक है. यह उन लोगों के लिए आदर्श है, जो अपने दांतों को सीधा करना चाहते हैं, लेकिन अपने लुक के बारे में सचेत रहते हैं. वे नहीं चाहते कि उन के दांतों में हर समय तार दिखते रहें.

यह प्रक्रिया मैटल, सिरैमिक, तार या लिंगुअल ब्रैकेट के उपयोग के बिना आप के टेढ़ेमेढ़े दांतों को सीधा करती है. ये ब्रेसेज परंपरागत तरीके से काम करते हैं और आगे निकलने वाले दांतों को सही करते हैं. वे लोग जो अपने लुक में दखल नहीं देना चाहते हैं और जिन के पास समय की कमी होती है वे इस थोड़ी अधिक महंगी प्रक्रिया के लिए जा सकते हैं. यह उपचार दर्दरहित है और अस्पताल में दाखिल होने की आवश्यकता नहीं होती है.

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कैसे किया जाता है इलाज

यह प्रक्रिया कई स्टेज में पूरी होती है. उपचार की प्रक्रिया आप के मसूढ़ों के इंप्रैशन के साथ दांतों और जबड़े का एक पूरा ऐक्सरे ले कर शुरू होती है. इन ब्रेसेज को प्लास्टिक या ऐक्रिलिक सामग्री से बाहर रखना होता है. इस में लगभग 1 महीना लग सकता है. यह सैट हटाने योग्य होता है, लेकिन खाने के दौरान ब्रशिंग या फ्लासिंग के समय को छोड़ पूरा दिन पहनना चाहिए. सैट को अगले सैट द्वारा प्रतिस्थापित करने से पहले 2-3 सप्ताह के लिए पहना जाता है.

इन बातों का रखें खयाल

– अपने चिकित्सक की सलाह के अनुसार 1 से

2 सप्ताह के लिए एलाइनर का प्रत्येक सैट पहनें. हर 6 से 8 सप्ताह में चैकअप कराएं.

– एलाइनर्स के प्रत्येक नए सैट को पहनने के बाद कुछ समय तक थोड़ा अतिरिक्त दबाव या असुविधा महसूस कर सकते हैं जो पूरी तरह से सामान्य है.

इनविजिबल ब्रेसेज दांतों के बीच गैप, टेड़ेमेढ़े दांत, ओवरबाइट, अंडरबाइट, डीप बाइट और ओपन बाइट जैसी परिस्थितियों का सामना करने वालों के लिए प्रभावी हैं.

सावधानियां

दांतों की अच्छी तरह देखभाल करें. पानी पीने के अलावा कुछ भी खाने या पीने से पहले ब्रेसेज को निकालना जरूर याद रखें. इस के अलावा एलाइनर्स को धब्बों से बचाने के लिए हर भोजन के बाद ब्रश करें.

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लगने वाला समय और कीमत

इनविजिबल ब्रेसेज के उपयोग से आप के दांतों  को सही करने में लगभग 1 वर्ष का समय लग सकता है. इस में ₹1 से ₹4 लाख तक का खर्च आ जाता है. इनविजिबल ब्रेसेज के परिणाम स्थाई हैं और ये पूरे जीवन चलते हैं.

कब और कितना दौड़ें

मौसम के अनुसार दौड़ने के समय में परिवर्तन किया जा सकता है. गरमियों में सुबह 5 से 7 बजे के बीच का समय अनुकूल हो सकता है, जबकि सर्दियों में सुबह 7 से 8 बजे के दौरान दौड़ सकते हैं. गरमी में डिहाइड्रेशन की आशंका अधिक रहती है. अत:  दौड़ने से पूर्व पानी अवश्य पीएं, क्योंकि दौड़ने में पसीना बहुत निकलता है. सर्दियों में मांसपेशियों को गरम रखना जरूरी है. इस के लिए वार्मअप किया जा सकता है.

यदि आप किसी कारण मौर्निंग में दौड़ना नहीं चाहते, तो यह कार्य ईवनिंग में भी कर सकते हैं. यह ध्यान रहे कि ईवनिंग स्नैक्स और दौड़ने के बीच 3 घंटे का अंतर अवश्य हो. खाते ही दौड़ना ठीक नहीं.

दौड़ने के लिए जगह भी उपयुक्त होनी चाहिए. बेहतर होगा कि लंबाचौड़ा मैदान हो या फिर ऐसी सड़क हो, जिस पर वाहनों की आवाजाही नहीं हो अन्यथा दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है. दौड़ने वाली जगह समतल हो तो अच्छा है. अधिक चढ़ाई या उबड़खाबड़, गड्ढों वाली जगह नहीं दौड़ना चाहिए.

रोजाना कितने समय या कितनी दूरी तक दौड़ा जाए, इस संबंध में कोई निश्चित पैमाना नहीं है. इस का संबंध व्यक्ति की उम्र, लिंग और शारीरिक क्षमता पर निर्भर करता है.

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दौड़ने से पहले

कुछ लोग नंगे पैर दौड़ते हैं जोकि ठीक नहीं है. दौड़ने के लिए विशेष किस्म के जूते मिलते हैं, उन्हें पहन कर ही दौड़ना चाहिए. जूते आप के पैरों की नाप के अनुसार ही हों. दूसरे के जूते पहन कर दौड़ना जोखिमभरा हो सकता है. अच्छे जूते दौड़ते समय पैरों को सपोर्ट देते हैं अन्यथा वे दौड़ने में बाधक भी बन सकते हैं.

दौड़ना भले ही एक अच्छा व्यायाम हो, लेकिन यह सभी के लिए उपयुक्त नहीं है. इसे शुरू करने से पहले डाक्टर से अपना पूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण करा लेना चाहिए. यदि वे दौड़ने को कहें तभी दौड़ना चाहिए. यदि आप को कोई बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या है, तो उस के बारे में डाक्टर को अवश्य बताएं जैसे हाई बीपी, डायबिटीज, थायराइड, अस्थमा, टीबी आदि हो तो डाक्टर की सलाह पर ही और पर्याप्त सावधानियों के साथ दौड़ना चाहिए.

यदि आप ने टीएमटी, ईसीजी और इकोकार्डियोग्राफी अभी तक नहीं कराई है, तो पहले ये टैस्ट करा लें. इस से डाक्टर यह तय कर सकेंगे कि आप को कोई हृदय संबंधी समस्या तो नहीं है. यदि कोई हृदय रोगी अधिक दौड़ने का प्रयास करता है, तो वह उस के लिए जानलेवा भी हो सकता है. उसे हार्टअटैक आ सकता है या हार्ट फेल्यर हो सकता है.

यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो दौड़ना आप के लिए ठीक नहीं है. बेहतर होगा कि दौड़ने से पूर्व डाक्टर से परामर्श ले लें.

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यदि हाल ही में कोई औपरेशन हुआ हो तो भी आप को नहीं दौड़ना चाहिए. शरीर में खून की कमी होने पर कमजोरी बनी रहती है. इसलिए जब तक हीमोग्लोबिन सामान्य स्तर पर नहीं आ जाता न दौड़ें.

आंखों को स्मौग से बचाएं ऐसे

लेखक- पारूल

बढ़ता स्मौग आज लोगों के लिए एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है. इस के कारण खतरनाक हैल्थ प्रौब्लम्स जैसे सांस लेने में दिक्कत, दिल संबंधी बीमारियों को  झेलना पड़ रहा है. यहां तक कि इस से हमारी आंखों पर भी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि आंखें बहुत ही सैंसिटिव जो होती हैं, जिन पर प्रदूषण का जल्दी असर पड़ने के कारण ऐलर्जी हो जाती है.

अभी हाल के दिनों में जिस तरह से ऐयर क्वालिटी इंडैक्स बढ़ा है उस से लोगों को आंखों में जलन, रैडनैस, ड्राईनैस, ऐलर्जी, आंखों में सूजन व धुंधलेपन की समस्या को फेस करना पड़ रहा है, जिस के कारण उन की दिनचर्या प्रभावित हो रही है. ऐसे में जरूरी है आंखों की खास केयर.

कैसे करें आंखों की केयर

कूलिंग आई ड्रोप

आंखों में जलन होने पर हम कंफर्टेबल फील नहीं कर पाते हैं. ऐसे में कूलिंग आई ड्रौप बैस्ट औप्शन है, क्योंकि यह तुरंत आंखों की जलन को कम कर उसे ठंडक पहुंचाने का काम करता है और साथ ही ड्राईनैस दूर कर आंखों को लूब्रिकेशन भी प्रदान करता है. डाक्टर के परामर्श से उस तरह के आई ड्रौप का प्रयोग करें. जब भी आंखों में इरिटेशन हो तो पानी के छींटे मारना न भूलें.

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इन बातों का भी रखें खास खयाल

– आंखों को कंफर्टेबल फील तभी होता है जब उन में पर्याप्त मौइस्चर हो. इस के लिए आप आंखों को थोड़ीथोड़ी देर में  झपकाते रहें, क्योंकि जबजब आप आंखों को  झपकाते हैं तो लारसिमल ग्लैंड द्वारा टियर फिल्म बनती है, जो आंखों की सतह के चारों ओर फैल कर उसे मौइस्चर प्रदान करती है. आप को बता दें कि टियर्स तीन लेयर्स पानी, औयल और मूसिन से मिल कर बनती है और हर लेयर आंखों को सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है. इसलिए जरूरी है कि आंखों के मौइस्चर को बनाए रखें.

– अगर आप की आंखों में जलन हो रही है तो उन्हें रगड़ें नहीं, क्योंकि इस से इन्फैक्शन फैलने का डर रहता है.

– बौडी को हाइड्रेट रखें. इस के लिए रोजाना 2 लिटर पानी पीएं.

– चिकित्सक के परामर्श से लूब्रिकेटिंग आई ड्रौप लें. ये आप को काफी आराम पहुंचाने का काम करेगा.

– घर से बाहर निकलने से पहले यूवी प्रोटैक्शन वाले सनग्लासेज पहनना न भूलें, क्योंकि इस से आंखें सेफ रहती हैं.

– अगर आंखों में थोड़ी सी भी जलन व रैडनैस है तो कौंटैक्ट लैंस व आई मेकअप को अवौइड करें, क्योंकि इस से इन्फैक्शन बढ़ने के चांसेज होते हैं.

– सुबह उठते ही व जब भी बाहर से आएं तो साफ पानी से अपनी आंखों को धोएं. इस से आंखों की गंदगी बाहर निकलती है.

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– आंखों की अच्छी सेहत के लिए हैल्दी डाइट लें. ऐसे भोजन को अपनी डाइट में शामिल करें, जिस में ओमेगा 35 और ऐंटीऔक्सीडैंट्स हों जैसे मछली, गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, बादाम, अखरोट आदि.

इस बात का भी खास ध्यान रखें कि ज्यादा प्रदूषण वाले इलाकों में जाने से बचें व अपने घर की खिड़कियां व दरवाजे बंद कर के रखें. जैसे ही आंखों में जलन की शिकायत हो तो चिकित्सक की सलाह जरूर लें. इस से आप काफी हद तक आंखों को हैल्दी रख सकते हैं.

हेल्थ से जुड़ी इन समस्याओं को न करें अनदेखा

हेल्थ एक्सपर्ट्स नम्रता गॉड ने, हेल्थ से सम्बंधित कई परेशानियों व उनके इलाज के बारे में जानकारी दी, जैसे, मेनोपॉज़, एनीमीया व ऐसिडिटी आदि जिनका स्वास्थ्य पर तो प्रभाव पड़ता ही है,साथ ही सुंदरता  भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती.

जब तक आप भीतर से स्वस्थ नहीं हैं तब तक,मँहग़े से महग़ा प्रोडक्ट व ट्रीटमेंट भी आपको सुंदर नहीं बना सकता.सुंदर व चमकदार बाँहें,रेशमी बाल,गालों की गुलाबी रंगत,कांतिमय स्किन- ये लक्षण हैं,जिन्हें देखकर आसानी से ये जाना जा सकता है कि अमुक व्यक्ति वास्तव में सुंदर है–

1-कमर दर्द

पतली बलखाती कमर,महिला के फिगर को तो आकर्षक बनाती है,लेकिन,यदि,महिला की वही कमर दर्द से ग्रस्त हो,और महिला सीधी भी खड़ी न हो सके तो,सुंदरता कैसी ?प्रसव के बाद,उचित व्यायाम ,सेंक या मालिश का अभाव,भारी वज़न उठाना,गर्भाशय के रोग,वात रोग,मेंरुदंड में ख़राबी,ग़लत फ़ुटवैअर का इस्तेमाल,आदि कुछ ऐसे कारण हैं,जिनसे कमर दर्द हो सकता है.

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कमर दर्द को दूर भागने के लिए अपनी जीवन शैली बदलें.लम्बी झाड़ू से घर की सफ़ाई करें,जिससे आगे की ओर झुकना न पड़े.वज़न न बढाएँ.बार बार कमर को आगे की ओर न झुकाए पंजों के बल चलने का अभ्यास करें.सीधे बैठें.सीधे चलने का अभ्यास करें.ठंडी चीज़ें कम खाएँ.सर्दी का मौसम हो तो गुनगुना पानी पिएँ,और गुनगुने पानी से ही स्नान करें.यदि फिर भी आराम न मिले तो डॉक्टर को दिखाएँ.

2-स्किन

उन के अनुसार यदि स्किन में पीले या गुलाबी रंग के चकत्ते बन जायँ तो ,ये सूर्य किरणो से होने वाले  स्किन के ट्यूमर हो सकते हैं,जिनका इलाज समय पर होना ज़रूरी है.स्किन पर यदि सफ़ेद रंग के छोटे छोटे दाग़ बढ़ रहे हों तो,यह एक क़िस्म का स्किन का कैंसर हो सकता है.

3-पैर व पंजेप

लाख पेडिक्योर करवाएँ यदि पंजों में सूजन है,स्किन साफ़ नहीं है,उँगलियों में लालिमा है ,पंजो में गर्र्माहट है अधिक पसीना आता है तो पैरों में कभी निखार नहीं आ सकता .ये सब ,ग्रंथियों में अधिक असंतुलन की निशानी है .इसके विपरीत यदि आप ,पंजों में ठंडक,रूखी स्किन तथा नाख़ूनों के टूटने से परेशान हों तो ये, पंजों में ख़ून का सही दौरा न होने का संकेत देते हैं.पंजों का सुन्न हो जाना या हल्की हल्की झनझनाहट ,डाइबिटीज की निशानी है.स्किन का रंग बदलना तथा एड़ी के पास के हिस्सों में सूजन,ह्रदय से सम्बंधित रोगों का संकेत देते हैं.

4-हेअर फ़ौल

यदि आपके बालों में स्वाभाविक चमक व मज़बूती है तो आपका स्वास्थ्य ठीक है.रूखे बाल,हल्के थाइरायड के कारण भी हो सकते हैं,जब की फूले फूले बालों का अर्थ है शरीर में ज़िंक व मैगनेशियम की कमी.सिर की स्किन में रूसी,तनाव या स्किन के अन्य किसी रोग के कारण भी हो सकती है.१०० से१५० बालों का झड़ना सामान्य सी बात है ,लेकिन इससे अधिक यदि बाल झड़ते हैं तो यह गम्भीर समस्या है.

प्रोटीन की कमी-  डाइट में इसकी कमी फंगल इन्फ़ेक्शन और रूसी को जन्म देती है,जिससे बालों के झड़ने की समस्या होती है.इसके लिए किसी स्किन रोग विशेषज्ञ की सलाह लें.

5-हाथ व नाख़ून

हाथों में नीला पन बताता है कि,रक्त का दौरा,सुचारू रूप से नहीं चल रहा है.हाथों में सूजन का कारण थाइरोइड हो सकता है. हाथों का कम्पन–उक्त रक्त चाप या न्यूरोलोजिकल गड़बड़ी की निशानी है.

स्वस्थ नाख़ून गुलाबी रंग के होते हैं और नीचे की ओर सफ़ेद रंग की गोलाई लिए होते हैं.शरीर में लौह तत्व की कमी के कारण ,नाख़ून सख़्त होकर टूटते हैं.रूखे ,खुरदरे,उठे हुए या मोटे नाख़ून संक्रमण के कारण हो सकते हैं.नाखूनों पर सफ़ेद निशान,ज़िंक या प्रोटीन की कमी या अत्यधिक शुगर की वजह से होते हैं.यदि नाख़ून हरे या पीले हैं तो ऐसा फ़ंगस इन्फ़ेक्शन की वजह से होता है

नियमित रूप से अपनी डाइयट में  ज़िंक,रेड मीट,सी फ़ूड,गेहूँ,दाल,अंडे,पनीर की मात्रा बढ़ायें कहती हैं न्यूट्रिशनिस्ट दिव्या

6-झाईयाँऔर आँखों के इर्द गिर्द काले गड्ढे-

आँखों के इर्द गिर्द काले गड्ढेअनिद्रा,तनाव व खुराक में पोषक तत्वों की कमी के कारण होते हैं.झाईयाँ एनेमीया की वजह से होती हैं,भारत में लगभग७०% महिलाएँ एनीमीया की शिकार हैं,जिसकी वजह से शरीर में,हीमग्लोबिन की कमी हो जाती है.यह,पिरीयड्ज़ के दौरान,अत्यधिक ब्लीडिंग के कारण भी हो सकता है.इससे  थकान,महसूस होना ,चेहरे पर सफ़ेदी आ जाना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं.

आइरनयुक्त पदार्थों जैसे,पालक,आँवला,सेब,टमाटर,एल्लोवीरा,किशमिश का नियमित सेवन करने से एनेमीया से बचा जा सकता है.ठंडे गुलाब जल/या ठडी चाय के पानी में कॉटन भिगोकर आँखों पर रखें.भरपूर नींद लें तनाव से दूर रहें.

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7-पी॰सी.ओ.ड़ी.

पोलीसिसटिक ओवेरीयन डिज़ीज़,ओवर्री से सम्बंधित है,जिसकी शुरुआत १५ से २२ साल तक युवतियों में हो जाती है, लेकिन इसका पता,काफ़ी समय बाद लग पाता है इस सिंड्रोम के कारण ब्यूटी से सम्बंधित परेशनियाँ जैसे,हिरसोटिज़्म,पिग्मेंटेशन,पिरीयड्ज़ में देरी जैसी कई समस्याएँ देखने को मिलती हैं.कई बार इन परेशानियों का इलाज करवाने पर भी ये ठीक नहीं होतीं.ऐसे स्थिति में ,ब्यूटीशिअन को चाहिए कि वो अपने क्लाइयंट को डॉक्टर के पास जाने की सलाह दे या टेस्ट आदि करवाने की सलाह दे.पी.सी.ओ.ड़ी.के लिए,पैल्विस का अल्ट्रा साउंड,थाईरायड,और डी.एच.ई.एस का टेस्ट करवाएँ ट्रीटमेंट में दवाईयों के साथ वज़न कम करने पर ज़ोर दिया जाता है.

8- झुर्रियाँ

झुर्रियाँ बढ़ती उम्र का तो संकेत होती ही हैं इनमे,जींस की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.इस के अतिरिक्त धूम्रपान कुपोषण,मुँह बिराने से भी झुर्रियाँ पड़ती हैं.

चीनी या शक्कर का सेवन कम करें क्योंकि ये ,ब्लड शुगर लेवल को बढाकर शर्करा बनने की प्रक्रिया को तेज़ करता है जिससे कोलाजन और इलास्टिक बनने की क्षमता कम हो जाती है और झुर्रियाँ जल्द ही नज़र आने लगती हैं.पर्याप्त पानी पियें,मेवे और दालों का सेवन करें.ये खाद्य,स्किन पर क़ुदरती तेल प्रदानों करके उसमें कसाव और चमक लाते हैं.कार्बोरेटेड ड्रिंक्स कुकीज़,कैंडीज का प्रयोग कम करें.नियमित फ़ेशिअल करवाएँ.

जानें क्या है वल्वा कैंसर

आमतौर पर महिलाओं को अन्य कैंसर किसी भी उम्र में हो सकते हैं, लेकिन वल्वा कैंसर 60 और उस से ज्यादा उम्र की महिलाओं को ही होता है. मगर छोटी उम्र की महिलाएं इस से अछूती ही रहें, यह भी जरूरी नहीं है. हालांकि वल्वा कैंसर बहुत आम नहीं है, लेकिन गंभीर बहुत है, क्योंकि यह एक महिला की सैक्सुअल लाइफ को प्रभावित कर सकता है. यह सैक्स को दर्दनाक और कठिन बना सकता है.

ऐसा ही कुछ अंजना के साथ हुआ. उसे योनि पर एक गांठ का एहसास होता था, लेकिन उस ने कभी इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मगर 2 साल बाद जब परेशानी होने लगी, तो डाक्टर को दिखाया. तब पता चलता कि उसे वल्वा कैंसर है.

अंजना कहती है कि कैंसर शुरुआती स्टेज में था, इसलिए डाक्टर ने 6 हफ्ते तक रैडिएशन थेरैपी दी, जिस से वहां की त्वचा जल गई और छाले पड़ गए. इसे ठीक होने में महीनों लग गए. लेकिन अभी भी कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वल्वा कैंसर के ट्रीटमैैंट के बाद सैक्स करने में इतना दर्द होता है कि उस के सामने शायद आप को प्रसवपीड़ा भी कम लगे.

क्या है वल्वा कैंसर

इस बाबत डा. अनिता गुप्ता कहती हैं कि वैजाइना के बाहर जो लिप्स होते हैं उन्हें वल्वा कहते हैं और जब इन में कैंसर होता है तो वह वल्वा कैंसर कहलाता है. यह वल्वा कैंसर ह्यूमन पैपिलोमा वायरस यानी एचपीवी के कारण होने वाला यौन रोग है और सैक्सुअली ऐक्टिव किसी भी महिला में संक्रमण फैला सकता है. वल्वा कैंसर जल्दी संकेत या लक्षण पैदा नहीं करता है. शुरुआत में बस सफेद पैच या खुजली होती है, जिसे महिलाएं फंगल इन्फैक्शन सम झ कर नजरअंदाज कर देती हैं और बाद में यही नजरअंदाजी उन की परेशानी बढ़ा देती है.

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इन्हें न करें नजरअंदाज

अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार यूएस में 2017 में वल्वा कैंसर के करीब  6 हजार मामले सामने आए और इन में 1,150 महिलाएं वल्वा कैंसर की उस स्टेज पर पहुंच चुकी थीं जहां इलाज संभव नहीं था. दरअसल, इन महिलाओं को इस बात का आभास ही नहीं था कि इन्हें कैंसर है. इसलिए अगर कभी आप को वैजाइना में या उस के आसपास खुजली, घाव, गांठ, वल्वा पर उभार या वल्वा छूने पर दर्द हो या फिर पानी के फफोले, पेशाब करने में दर्द हो तो इन लक्षणों को हलके में न लें.

कैसे निबटें

वल्वा कैंसर के इलाज के बहुत तरीके हैं, लेकिन यह उस के प्रकार और स्टेज पर निर्भर करता है कि कब, कौन सा इलाज बेहतर है:

रैडिएशन थेरैपी: इस प्रकार की थेरैपी में हाई ऐनर्जी लाइट निकलती है, जो कैंसर कोशिकाओं को खत्म करती है. लेकिन यह आसपास की त्वचा को काफी नुकसान पहुंचाती है.

कीमोथेरैपी: इस थेरैपी में या तो दवा के जरीए कैंसर को खत्म करने की कोशिश की जाती है या फिर कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने की.

सर्जरी: वल्वा कैंसर के इलाज का मुख्य तरीका सर्जरी है. इस इलाज का उद्देश्य वैजाइना को कोई नुकसान पहुंचाए बिना इस कैंसर को दूर करना होता  है, जिस में लेजर सर्जरी, ऐक्शिसन, स्किनिंग वल्वेक्टोमी, रैडिकल वल्वेक्टोमी आदि शामिल हैं.

वल्वा मेलानोमा: इस में डार्क पैच उभरते हैं. इस प्रकार के कैंसर का शरीर के अन्य भागों में फैलने का जोखिम भी होता है और इस की इस प्रक्रिया को मैटास्टेसिस कहा जाता है और इस का असर कम उम्र की महिलाओं पर पड़ता है.

ऐडेनोकार्किनोमा: यह कैंसर ग्लैंड्युलर कोशिकाओं में शुरू होता है और इस के स्क्वैमस सैल का कार्सिनोमा के मुकाबले फेफड़ों और लिंफ नोड्स में फैलने की अधिक संभावना होती है.

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रिकोज कार्सिनोमा: यह स्क्वैमस सैल कैंसर का एक उपप्रकार है और धीरेधीरे बढ़ने वाले मस्से के रूप में प्रकट होता है.

स्क्वैमस सैल कार्सिलोना: यह  कैंसर कोशिकाओं में होता है और धीरेधीरे फैलता है. यह अधिकतर वैजाइना के आसपास ही रहता है, लेकिन फेफड़ों, लिवर या हड्डियों में भी फैल सकता है. यह कैंसर का सब से आम प्रकार है.

सरकोमा: यह कैंसर जितना दुर्लभ है उतना ही घातक भी होता है और संयोजी ऊतक यानी कनैक्टिव टिशू में होता है.

खतरनाक हैं टाइट कपड़े

अभी हाल की ही घटना है दिल्ली के ही पीतमपुरा निवासी 30 वर्षीय सौरभ कुछ समय पहले टाइट जींस पहन अपनी नई कार से दोस्तों के साथ ऋषिकेश के लिए रवाना हुए थे. करीब चार से पांच घंटे की यात्रा करने के बाद उन्हें पैर सोने का एहसास हुआ, लेकिन दोस्तों का साथ होने की वजह से उन्होंने इस पर गौर नहीं किया.तीन दिन बाद वापस दिल्ली आने के बाद उन्हें सांस फूलने में तकलीफ हुई तो अस्पताल पहुंचने पर पता चला कि उन्हें हार्ट अटैक आया है. डौक्टरों ने पल्मोनरी इम्बौल्मिंग  की पुष्टि की.

क्या है ये

पल्मोनरी इम्बौल्मिंग (पीई) एक ऐसी स्थिति है जिसमें टाइट कपड़े या लंबे समय तक एक ही स्थान पर बैठे रहने से रक्त संचार शरीर में रुकता है और रक्त का थक्का जमने लगता है. ऐसा होने से इंसान को दिल या दिमाग का अटैक आ सकता है.फेफड़ों में जब रक्त संचार रुकने लगता है तो मरीज जानलेवा स्थिति में आ जाता है. भारत में हर साल करीब 10 लाख मामले ऐसे सामने आ रहे हैं.

खुद  डॉक्टरों का कहना है कि टाइट कपड़े पहनना बहुत लोगों की पसंद होती है, उन्हें लगता है ऐसा पहनने से हम ज्यादा स्मार्ट नजर आएंगे. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. ऐसा करने से एक दिन आपके सेहत को भारी नुकसान हो सकता है. रिसर्च में भी ये बात सामने आ चुकी है उनके यहां हर महीने एक या दो मामले आ ही जाते हैं.

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जानते हैं कैसे–

टाइट जीन्स न केवल आपके सवेंदनशील अंगो को नुक्सान पंहुचा सकता हैं. बल्कि ये ओवर आल हेल्थ को बिगाड़ सकता हैं.

1. टाइट जींस पहनने की वजह से महिलाओं को कमर से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.बहुत ज्यादा टाइट जींस पूरा दिन पहने रहने से कमर दर्द के अलावा धीरे-धीरे स्लिप डिस्क होने की आशंका भी बढ़ सकती है.

2. पुरुषों की सेहत के लिए भी टाइट जींस पहनना हानिकारक हो सकता है. दरअसल, इससे अंडकोष तक होने वाला रक्त-संचार रुकने के साथ ही अंडकोष में विकृति भी हो सकती है.जींस पहनने से रक्त-संचार की स्वाभाविक प्रक्रिया बाधित हो जाती

3. टाइट जींस पहनने से वेरिकोज वैन बीमारी जिसमें बढ़ी हुई नसें,जो आमतौर पर पैरों और तलवों में दिखती हैं, होने की आशंका रहती है.इसके अलावा टाइट जींस के कारण पैरों में ऐंठ की समस्या भी बढ़ सकती है.

4. ऐसा भी माना जाता है कि टाइट जींस पहनने से गर्भाशय का संकुचन और बांझपन का खतरा भी बढ़ सकता है.साथ ही टाइट होने की वजह से पेट पर काफी जोर पड़ता है जो आगे चलकर समस्या पैदा कर सकता है.

5. बहुत ज्यादा टाइट कपड़े पहनने से आपको उठने-बैठने में तो दिक्कत होती ही हैं साथ में आपके शरीर का शेप खराब हो जाता है. आपके पैरों की नसें दब जाती हैंजिस से आपके शरीर में झंझनाहट, सुन्न पड़ना या फिर दर्द होना शुरू हो जाता है.

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6. ज्‍यादा देर तक टाइट कपड़े पहनने से सांस लेने में भी दिक्‍कत होने लगती है. इससे शरीर में ऑक्‍सीजन प्रवाह पर दबाव पड़ता है जिस वजह से घबराहट और बैचेनी होने के साथ ही बेहोश होने की स्थिति भी हो सकती है. इसके अलावा ज्‍यादा ही टाइट कपड़े पहनने से खून प्रवाह भी बाधित हो सकता है.

7. ज्यादा टाइट जीन्स या फिर स्कर्ट पहनने से आपके पेट में दिक्कत आ सकती है. ज्यादा टाइट कपड़े पहनने से आपके पेट का फूड पाइप दब जाता है जिससे आपके फूड पाइप में एसिड बनना शुरू हो जाता है. अगर आपको भी बहुत ज्यादा टाइट कपड़े पहनने का शौक है, तो सावधान हो जाइए.

एकेडमी ऑफ फेमेली फिजिशियंस औफ इंडिया नोएडा के अध्यक्ष ,डॉ. रमन कुमार से बातचीत पर आधारित..

गौर सिटी 1 ,नोएडा एक्सटेंशन, सेक्टर 4

अगर बूढ़ा नही होना तो खूब करो प्रदूषण!

जी हां आपको मेरा टाइटल देख कर लग रहा होगा की बुढ़ापे से बचने का उपाय मिल गया, पर मैं आपकी जानकारी के लिए ये बता दूं कि यदि इसी तरह प्रदूषण बढ़ता रहा तो शायद हम सच में कभी बूढ़े नही हो पाएंगे, क्योंकि जैसे- जैसे प्रदूषण बढ़ेगा हमारी उम्र अपने आप कम होती जाएगी.

प्रदूषण हमारे आने वाले कल के लिए एक बहुत ही चिंता का विषय है. यह हवा में घुल कर हमारे और हमारे बच्चों के लिए एक स्लो प्वाइजन की तरह काम कर रहा है.प्रदूषण से होने वाली बीमारियां जैसे अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर और हार्ट अटैक का खतरा हमारे सिर पर मंडराता रहता है.

ग्लोबल बर्डेन ऑफ़ डिजीज (GBD) 2017 के विश्लेषण के अनुसार, हवा में जहरीले तत्व मिले होने के कारण भारत में हर 3 मिनट में एक बच्चे की मृत्यु हो जाती है.एक शोध के अनुसार विश्व के30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 शहर भारत के हैं. वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2018 में लगभग 1.2 मिलियन भारतीयों की अकाल मृत्यु हुई थी.

क्या आपको पता है कि यूरोप मेंमार्निंग विजिबिलिटी 1000 m है और यही मॉर्निंग विज़िबिलिटी हमारी राजधानी दिल्ली में नवम्बर के महीने में10 m तक ही रह जाती है.

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हमे लगता है कि प्रदूषण बढ्ने का मुख्य कारण केवल पराली है लेकिन शायद हम यह नही जानते कि हम हर वक़्त खतरे के निशान के ऊपर जी रहे है.हमारे शहर का PM2.5 लेवल हमेशा 200 से 300 के बीच रहता है जबकि W.H.O की गाईड लाइन के अनुसारPM2.5 लेवल 50 से नीचे रहना बहुत जरूरी है, पर क्या आप जानते है कि 8 नवंबर को PM2.5 लेवल 726 पार कर गया था. इस प्रदूषण में सांस लेना 1 दिन में 40 सिगरेट पीने के बराबर है. चलिए जानते है कि प्रदूषण कम करने के उपाय और उनसे होने वाले फायदे के बारे में:

सबसे पहले

1-कागज़ का उपयोग कम करें

कागज़ का उपयोग एकदम कम कर दीजिए क्योंकि कागज़ की डिमांड के कारण हर साल लगभग 700 करोड़ पेड़ काटे जाते है.अगर पेड़ कम कटेगें तो प्रदूषणभी काफी हद तक नियंत्रित होगा.कागज़ का उपयोग कम करने से हम डिजिटल होंगे,हमारा डाटा लंबे समय तक रिटेन रहेगा और हमारी कॉस्ट बचेगी.

2- खाने की बर्बादी न करे

हमें पुराने जमाने मे जो संस्कार मिलते थे वो खुद के लिए भी अच्छे थे और जमाने के लिए भी. शायद लोगो को नही पता कि खाने की बर्बादी भी एक प्रकार का प्रदूषण है.जो खाना हम बर्बाद करते है उनसे एक प्रकार की मीथेन गैसनिकलती है जो कि कार्बन डाई ऑक्साइड गैस से 25 गुना ज्यादा खतरनाक है.1 किलो खाना बर्बादकरनेसे 4 किलो मीथेन गैस निकलती है. एक सर्वे के अनुसार आम घरों में 20% खाना हर महीने बर्बाद होता है.कॉरपोरेट फंक्शन,पार्टीज या किसी भी इवेंट में 30% खाना बर्बाद होता है.यदि हम खाने की वेस्टेज को न्यूनतमकर दें तो हमारापैसा बचेगा और प्रदूषण भी कम होगा.

3पानी बचाये

हमारी धरती पर सिर्फ 1% पानी पीने लायक है बाकी का 99% पानी हम पीने में उपयोग नही कर सकते.पानी की कमी को पूरा करने के लिए हम जमीन से पानीखीचते है जिससे पानी का लेवल काफी नीचे जा रहा है. इसका असर हमारे पेड़ो पर हो रहा है.अगर पेड़ ख़त्म होंगे तो न ही शुद्ध हवा होगी और न ही पानी. इसलिए जितना हो सके पानी बचाइये.

4पब्लिकट्रांसपोर्ट प्लान करें

आजकल गाड़ियों की संख्या इंसानो से ज्यादा हो गयी है गाड़ियों की संख्या में बढ़ोत्तरी के कारण प्रदूषण का लेवल बढ़ता जा रहा है. जितना हो सके पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें. अपनी गाड़ियों का समय समय पर प्रदूषण चेक कराएं. आप अपने सहकर्मियों के साथ कारपूल प्लान कर सकते हैं. इससे आपका सर्कल बढ़ेगा,पैसा भी बचेगा और प्रदूषण भी कम होगा.

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5पेड़ लगाए

प्रदूषण को रोकने में सबसे बड़ा योगदान पेड़ लगाना है. अपने ऑफिस/घर के आस पास हर महीने एक एक्टिविटी रखें जिसमे यह सुनिश्चित करें कि हर व्यक्ति पेड़ लगाए. सामाजिक रूप से जिम्मेदार बनिये.प्रतिष्ठा एक नई मुद्रा है.

हमारे घर/औफिस के अंदर के प्रदूषण को नियंत्रित करने में कुछ पौधे मुख्य भूमिका निभाते है. आइये जानते है कुछ ऐसे पौधों के बारे में जिन्हें घर मे लगाने से इंडोर प्रदूषण से काफी हद तक निपटा जा सकता है. यह पौधे किसी भी नर्सरी में बहुत आसानी से हमें उचित रेट में मिल सकते हैं:

a)अलोवेरा

यह हवा में उपस्थित खराब तत्वों को नियंत्रित करने में मदद करता है और आसानी से कहीं भी लगाया जा सकता है.

b)मनीप्लांट

मनीप्लांट घर के अंदर या बाहर आसानी से लग जाता है. यह हवा को साफ करने में काफी मददगार है और हमारे घर के ऑक्सीजन की मात्रा को भी बढ़ा देता है.

c)पाम ट्री

इस पौधे को लिविंग रूम प्लांट भी कहते हैं. यह हवा में उपस्थित कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों को दूर करता है और ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है. इस पौधे को घर के सभी दरवाजों के पास लगाएं.

d)तुलसी

यह पौधा हमारे घरों में आसानी से मिल जाता है. इस पौधे का हमारे वेदों में भी बहुत महत्व है. तुलसी की पत्तियों का रोज सुबहनियमित रूप से सेवन करने सेवायरल बुखार और अस्थमाजैसी बीमारियों से काफी हद तक छुटकारा मिल जाता है.

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e)स्पाइडर प्लांट

यह पौधा वायुमंडल में उपस्थित बहुत से जहरीले केमिकल से हमारी रक्षा करता है. इस पौधे को लगाना बहुत ही आसान है. इसे ना ही ज्यादा पानी की जरूरत है और ना ही सनलाइट की.

f)करी पत्ता

करी पत्ता बैड कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है, जिससे कि दिल की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है.

आइये हम सब मिलकर अपनी आने वाली पीढ़ी को एक स्वच्छ वातावरण दे और प्रदूषण मुक्त भारत बनाये.

सर्दियों में इन लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है अदरक का सेवन

सर्दियों के मौसम में अदरक का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है, ये बौडी को गरम रखने के साथ-साथ खांसी, जुकाम, गले की खराश की प्रौब्लम से भी छुटकारा दिलाने में मदद करता है, लेकिन कभी-कभी ये कुछ लोगों के लिए जानलेवा भी हो सकता है. अदरक हर कोई नही खा सकता. ऐसे की परेशानियां हैं, जिनमें अदरक का सेवन बौडी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. आइए आपको बताते हैं क्या है वह बीमारियां, जिनमें अदरक खाना नुकसानदायक हो सकता है.

1. रोजाना दवाई लेने वाले लोगों के लिए है खतरनाक

जो लोग किसी भी बीमारी के चलते रोजाना दवाई का सेवन करते हैं, उन्हें अदरक के सेवन से बचना चाहिए. क्योंकि इन दवाइयों में मौजूद ड्रग्स जैसे बेटा-ब्लौकर्स, एंटीकोगुलैंट्स और इंसुलिन अदरक के साथ मिलकर खतरनाक मिश्रण बनाते हैं.

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2. प्रैग्नेंसी में अदरक का सेवन हो सकता है खतरनाक

प्रैग्नेंसी के दौरान आपको अदरक से दूरी बना लेनी चाहिए. शुरुआती महीनों में ये आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. पर आखिरी के तीन महीनों में खतरनाक हो सकता है. क्योंकि इससे प्रीमेच्योर डिलीवरी और लेबर होने का खतरा बना रहता है.

3. पित्त में पथरी में न करें सेवन

पित्त की पथरी होने पर अदरक का सेवन खतरनाक हो सकता है. दरअसल अदरक के सेवन से शरीर में बाइल जूस (पाचक रस) ज्यादा मात्रा में बनना शुरू हो जाता है. पित्त की पथरी होने पर ये ज्यादा बाइल जूस का निर्माण खतरनाक हो सकता है. इसलिए ऐसी स्थिति में अदरक का सेवन न करें.

4. सर्जरी या औपरेशन में भी रहें दूर

किसी सर्जरी या औपरेशन से 2 सप्ताह पहले आपको अदरक का सेवन बंद कर देना चाहिए. इसका कारण यह है कि अदरक का सेवन करने से खून पतला हो जाता है, जो सामान्य स्थिति में शरीर के लिए सही है. मगर सर्जरी के समय अदरक का सेवन करने से आपके शरीर से ज्यादा मात्रा में खून बह सकता है.

5. दुबले-पतले लोग अदरक का सेवन कम करें

अगर आप दुबले-पतले हैं, तो आपको अदरक का सेवन कम करना चाहिए. अदरक में फाइबर होता है और ये शरीर के पीएच लेवल को बढ़ा देता है, जिससे भोजन को पचाने वाले एंजाइम्स एक्टिवेट हो जाते हैं. इससे आपका फैट तेजी से बर्न होता है और भूख कम लगती है, जिससे वजन कम होने लगता है.

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6. खून विकार वाले लोगों को

जिन लोगों को खून विकार की शिकायत होती है उन्हें अदरक से दूरी बना लेनी चाहिए. अदरक के सेवन से खून पतला होता है. यही कारण है कि कुछ लोगों को हल्की चोट में भी खून का ज्यादा बहाव होता है.

मड कुकीज से पेट भरने को मजबूर

क्या आपने कभी मिट्टी की रोटी की कल्पना की है. नहीं न, क्योंकि आप को तो सुबह उठते ही बेड टी, हैल्दी ब्रेकफास्ट , लंच व डिनर जो मिल जाता है. मन करा तो खा लिया वरना आधा अधूरा ही छोड़कर व्यस्त हो गए अपनी ज़िन्दगी में. जिससे खाना खराब होने व बासी होने के कारण फेंकने के सिवाए कोई दूसरा औप्शन नहीं रहता. अगर पसंद का हो भी तो खाना फ्रेश व गरम होना चाहिए. हमारी खाने को लेकर ख्वाइशे कम होने का नाम ही नहीं लेती हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में ऐसा भी एक देश है, जहां के गरीब लोग पेट भरने के लिए ‘मड कुकीज़ ‘  खाकर अपना गुजारा करते हैं. यह नज़ारा अच्छेअच्छों को रुला देता है.

आपको बता दें कि हैती कैरीबीयन देश है , जहाँ के गरीब लोग अपना पेट भरने के लिए  ‘मड कुकीज़ ‘ का सहारा लेते हैं, जो उन्हें बीमारियों की गिरफ्त में ही ले जाने का काम कर रही है. लेकिन कहते है न कि पेट भरने के लिए या फिर पेट की भूख को शांत करने के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. यूनाइटेड नेशन्स के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन के अनुमान के अनुसार,  करीब 1.3  टन खाने योगय चीज़ें कचरे में फेंक दी जाती हैं और ये दुनियाभर में कई करोड़ लोगों का पेट भर सकती है.

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कैसे तैयार करते हैं मड कुकीज

हैती के लोग पहाड़ी मिट्टी को खुद के लिए वरदान समझते हैं. क्योंकि  उनके पास हैल्थी चीज़ें खाने के लिए पैसे जो नहीं होते. इसलिए वे इसी पहाड़ी मिट्टी में पानी व वनस्पति तेल मिलाकर एक लेप तैयार करते हैं और फिर उसे बिस्कुट का आकार देकर धूप में सुखाकर उससे अपनी व अपने बच्चों की भूख को शांत करने का काम करते हैं. यही कारण  है कि वहां के लाखों लोग कुपोषण के शिकार हैं.

गंदगी में रहने व खाने को मजबूर

देखिए क्या खेल है ज़िंदगी का. किसी के पास खाने के लिए ढेरों चीज़ें होती हैं और कई बार वे उसमें से चूज़ करने में भी कन्फूज़ हो जाते हैं. और किसी को अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए  सिर्फ मिट्टी के बिस्कुट से ही गुजारा चलना पड़ता है. भला कौन गंदगी में अपना जीवन गुज़ारना चाहता है. लेकिन हैती वासियों को जीना है तो ऐसे ही अपना जीवन वयतीत  करना होगा. क्योंकि उनके पास अन्य चीज़े खाने के लिए पैसे जो नहीं होते.

फल, दूध, दही सपने जैसा

फल, दूध, दही, दाल, सब्ज़ियां जिनमें विटामिन्स, मिनरल्स , प्रोटीन  भरपूर मात्रा  में होते हैं और हर पेरेंट्स अपने व अपने बच्चों को हैल्थी फ़ूड देने की इच्छा रखते हैं , क्योकि इससे शरीर की सभी  जरूरतें जो पूरी होती है. लेकिन हेतिवासियो के  लिए तो  पौष्टिकता का मतलब ही  कीचड़ के बिस्कुट से होता है.

न करें खाने की बर्बादी

भले ही आप के घर में किसी चीज़ की कमी न हो. जो बोला वो हाज़िर हो जाए , जिसके कारण आपको चीज़ों की कद्र नहीं होती है. मन करा तो खाया वार्ना छोड़ कर उठ गए. आपको अपनी यह आदत जल्दी ही छोड़नी होगी. क्योकि ऐसा करके आप अपने साथसाथ कइयों का पेट भर पाएंगे. इससे हर जरूरतमंद को खाना मिल पाएगा.

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10  जरुरी तथ्य 

1. हैती वेस्टर्न हेमीस्फेर में सबसे गरीब देश होने के साथ कैरिबियन का तीसरा बड़ा देश है.

2. हैती में जनसंख्या का 7 परसेंट लोग ही केवल पढ़, लिख सकते हैं.

3. देश में अनुचित श्रम प्रथाएँ प्रचलित हैं और आदिकांष लोग बेरोज़गार हैं. ख़राब सड़कों की स्थिति का उन किसानों पर बुरा प्रभाव पड़ा है , जो अपने माल को बाज़ारों , कस्बों , शहरो तक ले जाने में गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं.

4. 79 परसेंट के लगभग हैती के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं.

5. हैती में प्रतेक 10000 लोगों के लिए एक हॉस्पिटल है और उनके लिए सिर्फ 8 डॉक्टर व 10 नर्स हैं.

6. हैती के लोगों का जीवन कम होता है. पुरुषों की 50 के आसपास व महिलाओं की 53 के आसपास.

7. हैती के लगभग 59 परसेंट के लगभग बच्चे एनीमिया के शिकार होते है.

8. जो लोग भी हैती में रहते हैं उन्हें अपनी आमदनी का 60 परसेंट भोजन पर खर्च करना पड़ता है.

9. हुकवर्म और टाइफाइड हैती में बहुत सामान्य सी बीमारियां हैं , जो दूषित पानी व भोजन के कारण फेलती है.

10. हैती में सबसे ज्यादा और्फन्स हैं.

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