बिजली कहीं गिरी असर कहीं और हुआ- भाग 1: कौन थी खुशबू

अखबार में छपी एक खबर की वजह से एक ही दिन में जैसे खुशबू की सारी दुनिया ही बदल गई. अपनों के बीच जैसे खुशबू एकाएक बेगानी हो गई.

देखने में तो अब भी सबकुछ पहले जैसा ही दिखता था, लेकिन नजरों के साथसाथ दिलों में भी कहीं फर्क  आ गया था. मम्मी के स्पर्श से भी खुशबू इस फर्क को महसूस कर सकती थी. मम्मी के स्पर्श में वैसे अब एक संकोच और दुविधा थी.

खुशबू के वजूद पर ही जैसे एक सवालिया निशान लग गया था. मगर सवाल यह भी था कि खुशबू का कुसूर क्या था? उस  के जन्म के समय कहां पर क्या हुआ था, किस ने क्या बेईमानी की थी उसे क्या मालूम.

अखबार में छपी खबर ने 7 वर्षीय खुशबू को उस के अपने ही घर में अजनबी जैसा बना दिया था. बाहर के एक नर्सिंगहोम के स्कैंडल को ले कर भी इस प्राइवेट नर्सिंगहोम को पुलिस ने सील कर के उस की संचालिका और नर्सिंगहोम में काम करने वाली कुछ नर्सों को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने यह सारी काररवाई उस नर्सिंगहोम में बच्चे को जन्म देने वाली एक महिला की शिकायत पर की थी. शिकायत करने वाली महिला का आरोप था कि नर्सिंगहोम में उस के बच्चे को बदल दिया गया, महिला के अनुसार उस ने नर्सिंगहोम में  जिस बच्चे को जन्म दिया था वह एक लड़का था. मगर उस के बदले में उसे एक लड़की मिली थी.

शिकायत करने वाली महिला ने बच्चे को बदले जाने के संबंध में नर्सिंगहोम की 2 नर्सों पर अपना शक जाहिर किया था.

महिला की शिकायत पर पुलिस ने काररवाई करते हुए दोनों नर्सों को अपनी हिरासत में ले कर जब कड़ाई से पूछताछ की तो एक बहुत बड़ा और सनसनीखेज स्कैंडल सामने आया. स्कैंडल  में नर्सिंगहोम को जाली डाक्टरी सर्टिफिकेट के साथ चलाने वाली उस की मालकिन भी शामिल थी. उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस की तफतीश से खुलासा हुआ कि 16 वर्ष पहले अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही नर्सिंगहोम लोगों की आंखों में धूल झोंक रहा था. वहां न केवल गैरकानूनी तरीके से कुंआरी मां बनने वाली लड़कियों के गर्भपात किए जाने थे बल्कि बच्चा गोद लेने के इच्छुक लोगों को भी बच्चा मोटी रकम में बेचा जाता था.

यहां डिलिवरी कराने वाली कई युवतियों के बच्चों को भी गुपचुप बदल दिया था. इस काम के बदले में भी एक खूब मोटी रकम बसूल की जाती थी.

नर्सिंगहोम की संचालिका और बाकी स्टाफ से पूछताछ करने पर पुलिस को मालूम हुआ कि इस की कोई गिनती या रिकौर्ड नहीं था कि नर्सिंगहोम में कितनी युवतियों के शिशुओं को बदला गया. बेटे की चाह रखने वाले कितने लोगों को उन के यहां बेटी होने की सूरत में किसी दूसरे का बेटा मोटी रकम बसूल कर दे दिया गया था. इस का भी कोई रिकौर्ड नहीं था. 7 वर्ष पहले खुशबू ने भी पुलिस के द्वारा सील किए गए इसी नर्सिंगहोम में जन्म लिया था.

खुशबू की दोनों बड़ी बहनों ने तो सरकारी अस्पताल में जन्म लिया था. इस के लिए घर की माली हालात की मजबूरी थी. खुशबू के पापा रमाकांत अपनी पहली दोनों बेटियों के जन्म के समय किसी प्राइवेट नर्सिंगहोम का खर्चा नहीं उठा सकते थे.

मगर खुशबू के जन्म के समय उस के पापा रमाकांत के हाथ में थोड़े पैसे थे अगर नहीं भी होते तो वे उधार ले कर भी किसी नर्सिंगहोम का खर्चा उठाते क्योंकि ऐसा खुशबू की मम्मी शारदा भी चाहती थीं.

2 बेटियों की मां बन चुकीं शारदा के लिए तीसरा बच्चा बड़ा माने रखता था और वे कोई भी रिस्क नहीं लेते हुए पूरी एहतियात से काम लेना चाहती थीं.

वास्तव में तीसरे बच्चे के जन्म के समय शारदा बेटे की चाहत और कल्पनाओं से सराबोर थी.

बेटे की चाहत में शारदा ने पंडित रामकुमार तिवारी को पकड़ा था. उन्होंने ही दोनों को वृंदावन जाने को कहा था. आश्रम का पता दिया था. वहां के पहुंचे हुए स्वामी को फोन कर दिया था. दोनों ने कई हजार रुपयों की भेंट दी थी.

रामकुमार तिवारी दावे से कह रहे थे कि शारदा के गर्भ में मौजूद उस का तीसरा बच्चा एक लड़का ही होगा. लिंग निर्धारण टैस्ट चूंकि गैरकानूनी था, इसलिए कोई भी टैस्ट लेबोरट्री अलट्रासाउंड करने के उपरांत लिखित रूप से यह गारंटी देने को तैयार नहीं थी कि शारदा के गर्भ में मौजूद बच्चा एक लड़का है जुबानी तौर पर शारदा से यही कहा गया कि उस की गर्भ में मौजूद तीसरा बच्चा एक लड़का ही.

मगर एक बेटे की मां बनने की शारदा की सारी उम्मीदों पर तब कुठाराघात हुआ जबउसे बताया गया कि उस का तीसरा बच्चा भी लड़की है.

शारदा का तो जैसे दिल ही टूट गया. रामकुमार तिवारी पंडित और अन्य ज्योतिषियों की सारी बातें गलत साबित हुई थीं. अल्ट्रासाउंड करने वाली लैबोरटरी की जबानी कही बात भी गलत निकली. रामकुमार तिवारी फिर भी कह रहे थे कि यह कोई चमत्कार है. उन का कहा गलत हो ही नहीं सकता. लड़की होने पर भी वे क्व20 हजार  झटक गए थे.

शारदा को ही नहीं, तीसरी बेटी के आने से रमाकांत को भी सदमा लगा था. बेटे की चाहत में चौथी संतान के खयाल से भी उन दोनों ने तोबा कर ली.

तीसरी बेटी खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा काफी दिनों तक बु झीबु झी रही थीं. पूजापाठ और उपवासों पर से जैसे उन का विश्वास ही डगमगा गया. रामकुमार तिवारी ने आना बंद नहीं किया पर अब वे दक्षिणा नहीं मांगते पर चौथे बच्चे के लड़के होने की गारंटी देने लगे थे. वे अभी भी गलती मानने को तैयार न थे.

खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा ने बु झे मन के कारण उस के प्रति 1-2 दिन बेरुखी दिखाई थी, मगर जब शारदा की ममता ने जोर मारा तो अपनी मायूसियों को भूल खुशबू को स्वीकार कर लिया.

खुशबू को स्वीकार करने के बाद एक मां के रूप में शारदा ने न तो उसे अपनी पहली दोनों बेटियों से कम प्यार दिया और न ही उस की कभी उपेक्षा ही की.

खुशबू के जन्म के बाद शारदा को उस की मायूसी से निकालने में रमाकांत का भी काफी योगदान था. उन्होंने शारदा को सांत्वना देते हुए कहा था कि आज के युग में बेटियां किसी भी लिहाज से बेटों से कम नहीं. हमें जो भी मिला है उसे हमें खुशीखुशी स्वीकार करना चाहिए.

खुशबू को स्वीकार कर लिया गया था. वह छोटी होने की वजह से मांबाप की लाड़ली बन गई थी.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि उस नर्सिंगहोम की काली करतूतों का पुलिस के द्वारा भंडाफोड़ कर दिया गया जहां 7  वर्ष पहले खुशबू का भी जन्म हुआ था.

नर्सिंगहोम की करतूतों का भंडा फोड़ होने के बाद बीता हुआ कल जैसे एक सवाल की शक्ल में सामने आ कर खड़ा हो गया था. पंडित रामकुमार तिवारी फिर बारबार आने लगे थे. इस नर्सिंगहोम की करतूतों की चर्चा वे जोरशोर से करते थे.

शारदा दुविधा और संदेह में घिर गई थी. वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि क्या 7 वर्र्ष पहले नर्सिंगहोम में उस के साथ भी कोई धोखा ही हुआ था? क्या पंडितों और ज्योतिषियों की कही बातें वास्तव में सही थीं? लैबोरटरी वालों  ने भी कोई गलतबयानी बच्चे के लिंग को ले कर नहीं की थी. दूसरों महिलाओं की तरह नर्सिंगहोम में उस के साथ भी तो कोईर् धोखा नहीं हो गया था?

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सम्मान की जीत- भाग 3: क्या हुआ था रूबी के साथ

इस के बाद करन बोला, ‘‘मैं ने तो गले में कंठी धारण कर रखी है. मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता. और सारा गांव जानता है कि जब रूबी काम पर जाती है, तो मैं अपनी बेटियों के साथ घर पर रहता हूं. अब अपनी बेटियों के सामने कोई भला ऐसा काम कैसे कर सकता है… फिर भी रूबी के पास मेरे खिलाफ कोई सुबूत हो तो वह अभी पेश करे. अगर आरोप सही निकलेगा, तो मैं तुरंत ही तलाक दे दूंगा.’’

पारस तो पहले से ही रूबी से बदला लेना चाहता था, पर ऐसा कर नहीं पा रहा था. आज उस के सामने रूबी को जलील करने का अच्छा मौका था और पंचायत में भी सभी पारस की मंडली के ही लोग थे.

पारस द्वारा पंचायत का फैसला सुनाया गया, ‘‘रूबी किसी भी तरह से अपने पति को गुनाहगार साबित नहीं कर पाई और न ही करन के खिलाफ कोई सुबूत ही पेश कर पाई है. पंचायत को लगता है कि करन बेकुसूर है, इसलिए पंचायत के मुताबिक दोनों को एकसाथ ही रहना होगा. इन का तलाक नहीं कराया जा सकता.

‘‘रूबी ने अपने बेकुसूर पति पर बेवजह आरोप लगाए और पंचायत का समय खराब किया, इसलिए रूबी को सजा भुगतनी होगी.

‘‘रूबी को यह पंचायत 30,000 रुपए बतौर जुर्माना जमा करने का हुक्म देती है. और पैसे न जमा कर पाने की हालत में रूबी पर कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है. जुर्माना परसों शाम तक प्रधान के पास जमा हो जाना चाहिए.’’

यह फैसला सुन कर रूबी टूट गई थी. जो रूबी कुछ दिनों पहले तक महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जगा रही थी, वही रूबी जिस ने अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी की थी, उसे ही धोखा मिला.

और सब बातों के साथसाथ रूबी के सामने इतने पैसे जुर्माने के तौर पर जमा करने का हुक्म भी बजाना था, नहीं तो जालिम पंचायत न जाने क्या करवा दे.

एक दिन बीत गया था. पोस्ट औफिस में कुछ पैसे जमा थे और कुछ संदूक में थे, उन्हें मिला कर 20,000 रुपए ही हो सके. जब और पैसे का इंतजाम नहीं हो सका, तो तय समय पर रूबी इतने ही पैसों को ले कर पंचायत के सामने पहुंची और जुर्माने के पूरे पैसे जमा कर पाने में अपनी मजबूरी दिखाई.

प्रधान पारस ने बोलना शुरू किया, ‘‘रूबी हमारी भाभी लगती हैं… ये कहें तो हम सारा जुर्माना खुद ही जमा कर देंगे, पर क्यों करें, इंसाफ और धर्म के हाथों मजबूर हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते… और हमारी रूबी भाभी जुर्माना नहीं जमा कर पाई हैं, इसलिए पंचों का फैसला है कि इन को बाकी के बचे 10,000 रुपयों के बदले दूसरी तरह का जुर्माना देना होगा.

‘‘और वह जुर्माना यह होगा कि हमारे खेत में जितना कटा हुआ गेहूं पड़ा हुआ है, उसे किसी भी तरह से हमारे आंगन तक पहुंचाना होगा.’’

एक बार फिर यह पंचायती फरमान सुन कर रूबी दंग रह गई थी,

हां, शायद भाग ही जाती, पर दो बच्चियों को छोड़ कर जाना संभव नहीं था. और फिर करन का क्या भरोसा?

‘‘बोलो… जुर्माने के तौर पर दी जाने वाली सजा मंजूर है तुम्हें?’’ प्रधान पारस की आवाज गूंजी. कोई चारा नहीं था उस अबला रूबी के पास, पर वह इस समय एक ऐसे दर्द में थी, जिस से एक दूसरी औरत ही समझ सकती है.

रूबी ने हिम्मत जुटाई और सभी के सामने बोल दिया, ‘‘फैसला मंजूर है, पर मैं अभी यह सजा नहीं झेल सकती.’’

‘‘पर क्यों?’’ एक पंच बोला.

‘‘क्योंकि, मैं रजस्वला हूं…’’

सारी बैठी औरतें सन्न रह गईं और आपस में खुसुरफुसुर करने लगीं.

‘‘मैं इस समय कोई भारी चीज नहीं उठा पाऊंगी, इसलिए मैं विनती करती हूं कि मेरी यह सजा माफ कर दी जाए.’’

प्रधान और पंचायत के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. और नहीं किसी औरत के प्रति इस हालत में जरा भी हमदर्दी आई.

लिहाजा रूबी को पंचायत की बात माननी पड़ी. उस ने खेत में पड़ा गेहूं बोरियों में भरना शुरू किया और बोरी को लादलाद कर प्रधान के घर में रखना शुरू कर दिया, सूरज ऊपर तप रहा था, रूबी की आंखों में आंसू थे, पर वह अपने को किसी जाल में फंसा हुआ महसूस कर रही थी.

वह अभी कुछ ही बोरे रख पाई थी कि उस के पैर कांपने लगे. उस की जांघें छलनी हो गई थीं. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह और नहीं सह सकी और वहीं बेहोश हो गई.

रूबी की आंख जब खुली, तो उस ने अपने आसपास सभी साथियों को पाया, जो समाजसेवा के काम में रूबी के साथ ईरिकशे पर बैठ कर जाती थीं, उन लोगों ने ही रूबी को अस्पताल में भरती कराया और उस से बिलकुल भी चिंता न करने की सलाह दी.

जब अस्पताल से रूबी को छुट्टी मिली, तो वह वहां से अपनी साथियों की मदद से महिला आयोग पहुंची, जहां उस ने अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तां बताई और यह भी बताया कि किस तरह से उस का पति एक दूसरी औरत के साथ जिस्मानी संबंध रखे हुए है, जबकि उन दोनों ने आपसी सहमति से प्रेम विवाह किया था.

महिला आयोग ने रूबी से हमदर्दी तो दिखाई, पर यह भी कहा कि आप पढ़ीलिखी लगती हैं… और जब तक आप के पास अपने पति के खिलाफ दूसरी महिला के साथ संबंध होने का कोई सुबूत नहीं होगा. तब तक हम

चाह कर भी आप की कोई मदद नहीं कर पाएंगे.

रूबी निराश हो कर वहां से लौट आई और यह सोचने लगी कि सुबूत कैसे जुटाया जाए.

फिर कुछ दिन बीतने के बाद रूबी एक दिन दोपहर में चोरीछुपे अपने गांव के घर में पहुंची और दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा करन ने खोला और रूबी को देखते ही बिफर गया, ‘‘तू फिर यहां आ गई अपनी शक्ल दिखाने के लिए.’’

‘‘करन… एक मिनट मेरी बात तो सुनो… हम ने तो प्रेम विवाह किया था, फिर मुझ से इतनी नफरत क्यों?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘प्रेम विवाह… हुंह… क्या तुम नहीं जानती कि हम दोनों अलगअलग जाति से संबंध रखते हैं… और हमारे गांव में किसी भी छोटी जाति वाली लड़की से शादी करने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता… पूरे गांव ने मेरा बहिष्कार कर दिया… मैं अब और नहीं सह सकता… और फिर तुम्हारे अंदर भी मैं ने एक कमाऊ औरत होने का अहंकार देखा… तुम काम से आ कर मुझ पर अहसान दिखाती थी और अकसर ही मेरा बिस्तर बिना गरम किए ही सो जाती थी. और मैं रातभर करवट बदलता रहता था… और फिर तुम्हारे भी तो बाहर और भी कई मर्दों के साथ संबंध हैं, इसीलिए मैं ने भी इस औरत के साथ संबंध बना लिया है और आगे भी मैं इसी के साथ रहूंगा,’’ करन ने सब स्वीकार कर लिया.

‘‘पर, मैं ने तुम से प्रेम…’’ रूबी का स्वर बीच में ही रुक गया.

‘‘हट साली… गड़रिया की जाति… चली है एक ब्राह्मण से इश्क लड़ाने… भाग जा यहां से और दोबारा इस दरवाजे पर मत आना,’’ दहाड़ उठा था करन.

रूबी पीछे चल दी, आगे चल कर उस ने अपने हैंडबैग में छुपा खुफिया कैमरा निकाला और उस में होने वाली रिकौर्डिंग बंद की और अब उस के चेहरे पर विजयी मुसकान थी.

ये वीडियो रिकौर्डिंग उस ने कोर्ट में पेश की, जहां पर करन को अपने पत्नी को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के लिए और दूसरी महिला से संबंध रखने के आरोप में सजा सुनाई गई.

यही नहीं, पंचायत द्वारा एक स्त्री पर अमानवीय व्यवहार करने के जुर्म में पंचायत के सभी सदस्यों को भी सजा दी गई और प्रधान को तत्काल प्रभाव से उस के पद से भी हटा दिया गया.

ये एक औरत की जीत थी, उस के सम्मान की जीत…

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सम्मान की जीत- भाग 2: क्या हुआ था रूबी के साथ

दिनभर जनसंपर्क के बाद जब रूबी शाम को घर लौटती, तो पति और बच्चे घर के दरवाजे पर इंतजार करते मिलते. उन्हें देख कर उस की सारी थकान मिट जाती और वह अपनी बच्चियों को अपने बांहों में भर लेती और अपनी स्नेहभरी आंखों से अपने पति को भी धन्यवाद देती कि उस ने बेटियों का ध्यान रखा.

आज जब काम के बाद रूबी घर लौट रही थी, तो उस की दोनों बेटियां गांव की टौफी और चिप्स की दुकान पर चिप्स खरीदती दिखीं, उन्हें इस तरह बाहर का सामान खरीदने के लिए रूबी ने पैसे तो दिए नहीं थे, फिर इन के पास पैसे कहां से आए…?

‘‘अरे, तुम यहां चिप्स खरीद रही हो… पर यह तो बताओ कि तुम्हारे पास चिप्स के लिए पैसे कहां से आए…?’’ रूबी ने उन्हें बहला कर पूछा.

‘‘मां… हमें पापा ने पैसे दिए थे और यह भी कह रहे थे कि बाहर जा कर खेलना… तभी हम लोग बाहर घूम रहे हैं,’’ बड़ी बेटी ने जवाब दिया.

न जाने क्यों, पर रूबी को यह बात कुछ अजीब सी लगी, पर फिर भी उस ने सोचा कि बच्चे अकेले करन को परेशान कर रहे होंगे, तभी उस ने पैसे दे कर बाहर भेज दिया होगा. इसी सोच के साथ वह बच्चों को ले कर घर आ गई.

घर में करन बिस्तर पर पड़ा हुआ आराम कर रहा था. रूबी के घर पहुंचने पर भी वह लेटा रहा और सिरदर्द होने की बात भी बताई. रूबी ने हाथपैर धो कर चाय बनाई और दोनों साथ बैठ कर पीने लगे.

चाय पीने के बाद जब रूबी रसोईघर में काम करने गई, तो वहां उस को एक पायल मिली. पायल देख कर उसे लगा कि क्या उस के पीछे किसी से करन का मामला तो नहीं चल रहा है?

रूबी ने वह पायल अपने पास रख ली और करन से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.

एक दिन की बात है. रूबी काम से थकीहारी आ रही थी. उस ने देखा कि उस की दोनों बेटियां उसी दुकान पर फिर से कुछ खाने का सामान खरीद रही थीं. आज वह चौंक उठी थी, क्योंकि इस तरह से बच्चियों को पैसे ले कर दुकान पर आना उसे ठीक नहीं लग रहा था.

‘‘अरे आज फिर पापा ने पैसे दिए क्या?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘नहीं मां… आज हमारे घर में गांव की एक आंटी आईं और उन्होंने ही हमें पैसे दिए.’’

बच्चों की बात पर सीधा भरोसा करने के बजाय रूबी ने घर जा कर देखना ही उचित समझा.

घर का दरवाजा अंदर से बंद था. अंदर क्या हो रहा है, यह जानने के लिए रूबी ने दरवाजे के र्झिरी से आंख लगा दी तो अंदर का सीन देख कर वह दंग रह गई. कमरे में करन किसी औरत पर झुका हुआ था और अपने होंठों से उस औरत के पूरे शरीर पर चुंबन ले रहा था, वह  औरत भी करन का पूरा साथ दे रही थी.

यह सब देख कर रूबी वहीं धम्म से दरवाजे पर बैठ गई. आंसुओं की धारा उस की आंखों से बहे जा रही थी.

कुछ देर बाद ‘खटाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला और एक औरत अपनी साड़ी के पल्लू को सही करते हुए बाहर निकली. रूबी ने उसे पहचान लिया था. यह गांव की ही एक औरत थी, जिस का पति बाहर शहर में ही रहता है और तीजत्योहार पर ही आता है. गांव में यह औरत अपने ससुर के साथ रहती है.

रूबी उस औरत से एक भी शब्द न कह पाई, अलबत्ता वह औरत पूरी बेशर्मी से रूबी को देख कर मुसकराते हुए चली गई.

रूबी बड़ी मुश्किल से अंदर गई. करन ने रूबी से हाथ जोड़ लिए. ‘‘मैं बेकुसूर हूं रूबी… यह औरत गांव में बिना मर्द के रहती है… आज जबरन कमरे में घुस आई… और बच्चों को बाहर भेज दिया. फिर मुझ से कहने लगी कि अगर मैं ने उस की प्यास नहीं

बुझाई, तो वह मुझ पर बलात्कार का आरोप लगा देगी… अब तुम्हीं बताओ… मैं क्या करता… मैं मजबूर था,’’ रोने लगा था करन.

रूबी कुछ नहीं बोल सकी. शायद अभी उस में सहीगलत का फैसला करने की हिम्मत नहीं रह गई थी.

अगले 15 दिनों तक रूबी अपने पति का बरताव देखने और नजर रखने की गरज से काम पर नहीं गई और न ही घर से बाहर निकली. इन दिनों में करन ने बड़ा ही संयमित जीवन बिताया. रोज नहाधो कर पूजापाठ में ही रमा रहना उस के रोज के कामों में शामिल था. उस का आचरण देख कर रूबी को लगने लगा कि करन जो कह रहा था, वही सही है. गलती करन की नहीं है, गलती उसी औरत की ही है.

कुछ दिनों बाद सबकुछ पहले की  तरह ही हो गया. फिर रूबी काम पर जाने लगी. उसे विश्वास हो चला था कि उस का पति उस से सच बोल रहा है, पर उस का यह विश्वास तब गलत साबित हो गया, जब उस ने एक बार फिर करन और उस औरत को एकसाथ संबंध बनाते हुए पकड़ लिया.

रूबी दुख और गुस्से में डूब गई थी और अब उस ने मन ही मन कुछ कठोर फैसला ले लिया था.

रूबी अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर सीधे गांव के प्रधान पारस के पास पहुंची. उसे देख कर पारस की बांछें खिल गईं.

‘‘अरे… अरे भाभीजी… आज हमारे दरवाजे पर आई हैं… अरे, धन्य भाग्य हमारे… बताइए, हमारे लिए क्या

आदेश है?’’

‘‘करन का एक दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है… मैं खुद अपनी आंखों से उन दोनों को गलत काम करते देख चुकी हूं… मुझे इंसाफ मिलना चाहिए… अब मैं करन के साथ और नहीं रहना चाहती हूं… तुम इस गांव के प्रधान हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘सही कहा आप ने भाभीजी…  मैं इस गांव का प्रधान हूं… और इस नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं लोगों की मदद करूं और आप की भी… पर, गांव का प्रधान कोई भी फैसला अकेला नहीं

सुना सकता. उस के लिए पंचायत बुलानी पड़ेगी…

‘‘और भाभीजी आप का मामला तो बहुत संगीन है… तो हम ऐसा करते हैं कि कल ही पंचायत बुला लेते हैं. आप कल सुबह 11 बजे पंचायत भवन में आ जाना… तब तक हम करन भैया को भी संदेश पहुंचवा देते हैं.’’

यह सुन कर रूबी वहां से चली आई और अगले दिन 11 बजने का इंतजार करने लगी.

अगले दिन ठीक 10 बजे पंचायत बुलाई गई, जिस में दोनों पक्षों के लोग भी थे. रूबी के मातापिता भी थे, पर करन के मातापिता ने यह कह कर आने से मना कर दिया कि लड़के ने अपनी मरजी से निचली जाति में शादी की है, अब हमें उस से कोई मतलब नहीं है… जैसा किया है… वैसा भुगते… लिहाजा, करन अपना पक्ष खुद ही रखने वाला था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू हुई. पहले रूबी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया.

‘‘मैं कहना चाहती हूं कि मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर करन से शादी की थी, जिस से मैं

खुश भी थी, पर अब मेरे पति के गांव की ही दूसरी औरत के साथ गलत संबंध बन गए हैं, जिन्हें मैं ने अपनी आंखों से देखा है.

‘‘इस के बावजूद मैं ने करन को संभलने का एक मौका भी दिया, पर वह फिर भी गलत काम करता रहा, इसलिए मैं उस के साथ और नहीं रहना चाहती. मैं करन से तलाक लेना चाहती हूं. कार्यवाही आगे कोर्ट तक ले जाने से पहले मैं पंचायत की इजाजत चाहती हूं.’’

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सम्मान की जीत- भाग 1: क्या हुआ था रूबी के साथ

‘‘तुम्हें मुझ से शादी कर के पछतावा होता होगा न रूबी…’’ करन ने इमोशनल होते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, पर आज आप ऐसी बातें क्यों ले कर बैठ गए हैं,’’ रूबी ने कहा.

‘‘क्योंकि… मैं एक नाकाम मर्द हूं… मैं घर में निठल्ला बैठा रहता हूं … तुम से शादी करने के 6 साल बाद भी तुम्हें वे सारी खुशियां नहीं दे पाया, जिन का मैं ने तुम से कभी वादा किया था,’’ करन ने रूबी की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है. आप ने मुझे सबकुछ दिया है… 2 इतने अच्छे बच्चे… यह छोटा सा खूबसूरत घर… यह सब आप ही बदौलत ही तो है,’’ रूबी ने करन के चेहरे पर प्यार का एक चुंबन देते हुए कहा. करन ने भी रूबी को अपनी बांहों में कस लिया.

गोपालगंज नामक गांव में ही रूबी और करन के घर थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना होता था और घर के बाहर दोनों का प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ रहा था. दोनों ने शादी की योजना भी बना ली थी, साथ ही दोनों यह भी जानते थे कि यह शादी दोनों के घर वालों को मंजूर नहीं होगी, क्योंकि दोनों की जातियां इस मामले में सब से बड़ा रोड़ा थीं.

करन ब्राह्मण परिवार का लड़का था और उस का छोटा भाई पारस राजनीति में घुस चुका था और गांव का प्रधान बन गया था. रूबी एक गड़रिया की बेटी थी.

इस इश्क के चलते रूबी शादी से पहले ही पेट से हो गई थी और अब इन दोनों पर शादी करने की मजबूरी और भी बढ़ गई थी. फिर क्या था, दोनों ने अपनेअपने घर पर विवाह प्रस्ताव रखा,  पर दोनों ही परिवारों ने शादी के लिए मना कर दिया. इस के बाद इन दोनों ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ एक मंदिर में शादी कर ली.

पर दोनों के ही घर वाले उन्हें अपनाने और घर में पनाह देने के खिलाफ थे, इसलिए रूबी और करन को उसी गांव में अलग रहना पड़ा.

दोनों ने गांव के एक कोने में एक झोंपड़ी बना ली थी, दोनों का जीवन प्रेमपूर्वक गुजरने लगा. करन के पास तो कोई कामधाम नहीं था, इसलिए रूबी को ही घर के मुखिया की तरह घर चलाने की जिम्मेदारी लेनी पड़ी.

गोपालगंज से 15 किलोमीटर दूर एक कसबे के एक पोस्ट औफिस में रूबी को कच्चे तौर पर लिखापढ़ी का काम मिल गया था. उसे रोज सुबह 12 बजे से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी देनी पड़ती थी, पर वह मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटी.

धीरेधीरे रूबी की मेहनत रंग लाई. घर में चार पैसे आने लगे, तो समय को मानो पंख लग गए और इसी दौरान रूबी 2 बेटियों की मां भी बन गई थी.

रूबी ने उन के पालनपोषण और अपने काम में बहुत अच्छा तालमेल बिठा लिया था. बच्चों की दिक्कत कभी उस के काम के आड़े नहीं आई, जिस का श्रेय करन को भी जाता है, क्योंकि जब भी रूबी बाहर जाती है, करन पर घर रह कर बच्चों का ध्यान रखता है.

रूबी ने कसबे के स्कूल जा कर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई कर ली थी और उस के बाद प्राइवेट फार्म भर कर ग्रेजुएशन भी कर ली थी.

बचपन से ही रूबी को समाजसेवा करने का बहुत शौक था. उस के मन में गरीबों के लिए खूब दया का भाव था, इसलिए वह अब पोस्ट औफिस में डाक को छांटने और लिखापढ़ी के काम के साथसाथ शहर की एक समाजसेवी संस्था के साथ जुड़ गई थी, जो महिलाओं पर हो रहे जोरजुल्म के खिलाफ काम करती थी.

इस संस्था से जुड़ कर रूबी को मशहूरी मिलनी भी शुरू हो गई थी. शुरुआत में तो वह महिलाओं में जनजागरण करने के लिए पैदल ही गांवगांव घूमती थी, इस काम में उस की सहायक महिलाएं भी उस के साथ होती थीं, पर जब काम का दायरा बढ़ा तो

उस ने अपने लिए एक ईरिकशा भी खरीद लिया.

फिर क्या था, वह खुद आगे ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती और पीछे अपनी सहायक महिला दोस्तों को

वह खुद बिठा लेती और गांवों में महिलाओं को सचेत करती और उन्हें आत्मनिर्भर होने का संदेश देती.

…धीरेधीरे रूबी पूरे इलाके में रिकशे वाली भाभी के नाम से जानी जाने लगी.

समाजसेवा का काम बढ़ जाने के चलते रूबी ने पोस्ट औफिस वाला काम भी छोड़ दिया था और अपने को पूरी तरह से समाजसेवा में लगा दिया.

गैरजाति में शादी कर लेने के चलते रूबी और करन पहले से ही गांव के सवर्ण लोगों की आंख में बालू की तरह खटक रहे थे, ऊपर से रूबी के इस समाजसेवा वाले काम ने घमंडी मर्दों के लिए एक और परेशानी खड़ी कर दी थी.

गांव के लोगों को लगने लगा कि अगर रूबी इसी तरह से लोगों को अपने होने वाले जोरजुल्म के खिलाफ जागरूक करती रही, तो एक दिन मर्दों का दबदबा ही खत्म हो जाएगा.

एक दिन जब रूबी अपने ईरिकशा से काम के बाद वापस आ रही थी, तो करन के छोटे भाई पारस, जो गांव का प्रधान भी था, ने उस का रास्ता रोक लिया.

‘‘क्या भाभी… कहां चक्कर में पड़ी हो… इस झमेले वाले काम के चक्कर में जरा अपनी कोमल काया को तो देखो… कैसी काली पड़ गई हो,’’ पारस ने रूबी के सीने पर नजरें गड़ाते हुए कहा. दिनरात मेहनत करने से तुम्हारा मांस तो गल ही गया है… सूख कर कांटा होती जा रही हो और इन कोमल हाथों में ईरिकशा चला कर छाले पड़ गए हैं…

‘‘क्या इसी दिन के लिए तुम ने भैया से शादी की थी कि तुम्हें गलियों की धूल खानी पड़े…’’ पारस की नजरें अब भी रूबी के शरीर का मुआयना कर रही थीं.

‘‘क्या… भैया… आज बड़ी चिंता हो रही है मेरी…’’ रूबी ने ऊंची आवाज

में कहा.

‘‘क्यों नहीं होगी चिंता… अब आप भले ही नीची जाति की हों… पर अब तो मेरी भाभी बन गई हो न… तो हम लोग अपनी भाभी की चिंता नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?

‘‘वैसे, सच कहते हैं भाभी… तुम्हें देखने से यह नहीं लगता है कि तुम

2 बच्चों को पैदा कर चुकी हो… बड़ा फिगर मेंटेन किया है आप ने.’’

‘‘ये आप किस तरह की बातें कर रहे हो? आखिर चाहते क्या हो…?’’ रूबी की आवाज तेज थी.

‘‘कुछ नहीं भाभी… बस इतना चाहते हैं कि आप एक रात के लिए हमारे साथ सो जाओ. बस… कसम से… खुश कर देंगे आप को…’’

पारस अपनी बात को अभी खत्म भी नहीं कर पाया था कि तभी रूबी के एक तेज हाथ का जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा

पारस गाल पकड़ कर रह गया. कुछ दूरी पर खड़े लोगों ने भी यह मंजर देख लिया था.

अचानक पड़े थप्पड़ के चलते और मौके की नजाकत को देखते हुए पारस वहां से तुरंत हट गया. मन में रूबी से बदला लेने की बात ठान ली.

उस दिन की घटना का जिक्र रूबी ने किसी से नहीं किया और सामान्य हो कर काम करती रही.

जिस समाजसेवी संस्था के लिए रूबी काम करती थी, वह संस्था उस के द्वारा की जा रही कोशिशों से काफी खुश थी और रूबी अपने काम को और भी बढ़ाने में लगी हुई थी.

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उलटी गंगा- भाग 3: योगेश को क्या था डर

मन ही मन योगेश ने उस चपरासी को हजारों गालियां दी और बेचारे को ‘कामचोर’ का नाम दे कर औफिस से निकलवा दिया. मगर मुक्ता अब अलर्ट रहने लगी थी. वक्त के साथ काम करती और सब के साथ ही निकल जाती. लेकिन योगेश मौका तलाश रहा था किसी तरह उसे अपने चंगुल में फंसाने का.

उस रोज योगेश ने उसे फोन कर के बोला कि कल औफिस के काम से उसे उस के

साथ दूसरे शहर जाना होगा. वह तैयार रहे मगर वह बहाने बनाने लगी.

‘‘मैं तुम से पूछ नहीं रहा हूं, बता रहा हूं और खुशी मनाओ कि तुम्हारा बौस तुम्हें अपने साथ बाहर ले जा रहा है. वरना तुम जैसी लड़कियों को पूछता कौन है,’’ अजीब तरह से हंसते हुए योगेश ने कहा.

योगेश उस से देहसुख चाहता था, यह बात मुक्ता समझ गई थी, इसलिए जितना भी हो सकता, वह उस से दूर रहने की कोशिश करती. यह भी जानती थी कि योगेश बहुत ही पावरफुल आदमी है. चाहे तो उस की नौकरी भी छीन सकता है. इसलिए वह उस से पंगा भी नहीं लेना चाहती थी. कभीकभी तो उस का मन होता अपनी मां को सब बता दे, पर इसलिए अपने होंठ सी लेती कि जानने के बाद उस की मां जीतेजी मर जाएगी. जब घर में सब सो जाते तब वह अपनी बेबसी पर रोती. कभी उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. कभी करता आत्महत्या कर ले, पर जब मां और भाईबहन का खयाल आता तो अपना इरादा बदल लेती.

अब मुक्ता इसी कोशिश में थी कि कहीं और नौकरी मिल जाए, तो योगेश जैसे राक्षस का सामना न करना पड़े और अब तो उस की शादी भी होने वाली थी, तो इस बात का भी उसे डर सताने लगा था कि अगर लड़के वालों को कुछ भनक मिल गई तो क्या होगा.

आखिरकार उसे दूसरी जगह नौकरी मिल ही गई. कुछ महीने बाद उस की शादी भी हो गई. जानबूझ कर उस ने अपना फोन नंबर बदल लिया ताकि भविष्य में कभी योगेश उसे परेशान न करे. कहते हैं, बीते दुखों और आने वाले सुखों के बीच देहरीभर का फासला होता है और वह यह देहरी ढहने नहीं देना चाहती थी. कटी पतंग का आसमान में उड़ कर गुम हो जाना उस की हार नहीं, बल्कि जीत है और मुक्ता जीतना चाहती थी.

मगर यह बात मुक्ता को नहीं पता थी कि आज योगेश खुद ही उस से भय खाए हुए है. मुक्ता के नाम से भी अब उसे डर लगने लगा है. रातरात भर वह सो नहीं पाता. सोचता है पता नहीं कब मुक्ता नाम का यमराज उस के ऊपर बंदूक तान कर खड़ा हो जाए. कोई अनजान व्यक्ति घर में आ जाए या कूरियर वाला कुछ दे कर चला जाए तो उसे लगता मुक्ता ने ही कुछ भेजा होगा. दरवाजे की एक छोटी सी घंटी भी उस का दिल दहला देती. जोरजोर से सांसें भरने लगता. लगता मुक्ता ही आई होगी.

परसों की ही बात है. एक आदमी नीलिमा के हाथ में एक लिफाफा दे गया. योगेश को लगा जरूर मुक्ता ने ही कुछ भेजा होगा. नीलिमा के हाथ लग गया तो वह तो गया काम से. ‘‘क… कौन है? क्या… क्या है इस में?’’ घबराते हुए उस ने पूछा.

‘‘पता नहीं, लगता है कोई फोटोवोटो है,’’ लिफाफा खोलते हुए नीलिमा बोली.

मगर जब तक नीलिमा लिफाफा खोल पाती, योगेश ने उस के हाथ से पैकेट छीन लिया और कहने लगा कि ऐसे कैसे बिना जाने वह यह लिफाफा खोल सकती है?

‘‘अरे, पागल हो गए हो क्या? क्या हो गया है तुम्हें? क्यों नहीं खोल सकती मैं यह लिफाफा? डर तो ऐसे रहे हो जैसे इस में तुम्हारा कोई पुराना राज छिपा हो?’’

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नीलिमा की बातें उस के दिल में तीर की तरह चुभ गईं. कहते हैं न चोर की दाढ़ी में तिनका वही यागेश के साथ हो रहा था. हर बात पर उसे डर लगता कि कहीं वह पकड़ा न जाए. पुराने राज न खुल जाएं. लेकिन उस ने तब राहत की सांस ली जब लिफाफे में कुछ और निकला.

जैसेजैसे मीटू का प्रचार गरमाता जा रहा था, योगेश की दिल की धड़कनें बढ़ती ही जा रही थीं. उस की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ था. पलपल वह डर के साए में जी रहा था. कभी सोतेसोते जाग जाता, तो कभी बैठेबैठे अचानक उठ कर यहांवहां घूमने लगता.

अचंभित थी नीलिमा उस के व्यवहार से. सोचती, कहीं पगला तो

नहीं गया यह? मगर योगेश के दिल की हालत वह क्या जाने भला. सालों पहले उस के किए पाप अब उस के गले की हड्डी बन चुके थे. सोचता, काश, मुक्ता मिल जाए और वह अपने किए की उस से माफी मांग ले, तो सब ठीक हो जाएगा. कभी सोचता काश, बीते पल वापस लौट आएं और वह सब सुधार दे. मगर क्या बीते पल कभी वापस आए हैं.

फिर सोचा, क्यों न खुद जा कर मुक्ता से उस बात की माफी मांग ले. जरूर वह उसे माफ कर देगी. आखिर औरतों का दिल बहुत बड़ा होता. बहुत ढूंढ़ने पर मुक्ता का पता उसे मिल ही गया. मगर तब उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. जब उस ने मुक्ता को उस वकील के साथ थाने में प्रवेश करते देखा. उसे लगा जरूर वह उस के खिलाफ ही शोषण का केस करने गई होगी. खड़ेखड़े योगेश को लगा वह गश खा कर वहीं गिर पड़ेगा. अगर उस राहगीर ने न संभाला होता, तो सच में गिर ही पड़ता.

‘‘धन्यवाद भाई,’’ उस बचाने वाले आदमी को धन्यवाद कह योगेश थाने के आसपास ही चक्कर काटने लगा ताकि मुक्ता निकले तो उस से बात कर सके, अपने किए की माफी मांग सके. मगर वह कब किस रास्ते से निकल गई पता ही नहीं चला.

इस तरह उसे हफ्तों बीत गए, पर मुक्ता से बात न हो पाई और न ही पता लग पाया कि क्यों वह थाने आई थी. लेकिन एक दिन उसे पता चल ही गया कि वह यहां अपने भाई की पत्नी की शिकायत पर पैरवी कर रही है. किसी तरह अपने भाई को सजा से बचाना चाह रही है और इसलिए वह वकील के साथ थाने आई थी. दरअसल, उस की भाभी ने उस के भाई पर उसे मारनेपीटने को ले कर पुलिस में शिकायत कर दी थी. इसलिए वह थाने के चक्कर काट रही थी. सारी बातें जानने के बाद योगेश ने राहत की सांस ली. लगा वह बच गया. तभी उस का फोन घनघना उठा. देखा, तो नीलिमा का फोन था. चिल्लाए जा रही थी कि वह कहां है और अब तक घर क्यों नहीं आया.

जैसी ही योगेश घर पहुंचा, दैत्य की तरह नीलिमा उस के सामने खड़ी हो गई और पूछने लगी कि अब तक वह कहां था? फिर बताने लगी कि अमन अंकल फिलहाल तो जमानत पर छूट गए, मगर बच नहीं पाएंगे. उन का किया पाप एक न एक दिन ले ही डूबेगा उन्हें.

अब फिर योगेश को डर सताने लगा. सोचने लगा कि पता नहीं कहीं मुक्ता का दिमाग फिर गया तो…

भले ही योगेश आज खुद को बचा हुआ समझ रहा है, पर तलवार तो उस की भी गरदन पर टंगी है, जो जाने कब गिर जाए. जैसी उलटी गंगा बही है न, शायद ही योगेश बच पाए. जाने कब मुक्ता का दिमाग फिर जाए और वह योगेश के खिलाफ मीटू का केस कर दे. यह बात योगेश भी अच्छी तरह समझता था और जान रहा था कि अब बाकी की जिंदगी ऐसे ही डरडर कर कटेगी उस की. भविष्य में उस के साथ क्या होगा, नहीं पता.

उलटी गंगा- भाग 2: योगेश को क्या था डर

उस के पति को बदनाम करना चाहती है, क्योंकि उस ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था. गुस्सा तो मुझे उन की पत्नी पर भी आ रहा है, क्योंकि वह एक गुनहगार को बचाने पर तुली है, पर बचेगा नहीं. मैं तो कहती हूं उस की पत्नी को भी जेल में डाल देना चाहिए, जो एक गुनहगार की अगुआई कर रही है,’’ गुस्से से अपनी आंखें लाल कर नीलिका बोली.

‘‘हो सकता है अमनजी सही कह रहे हों और वह लड़की झूठ…’’

‘‘झूठ…? बीच में ही नीलिमा बोल पड़ी,’’ और वे सच बोल रहे हैं? क्यों, क्या वह लड़की पागल है जो खुद को ही बदनाम करेगी? जरूर कुछ किया ही होगा तभी तो वह बोल रही होगी… इसलिए गुनाह कर के भी मर्द बच निकलते हैं, क्योंकि उन की पत्नियां उन्हें बचाने के लिए दीवार बन कर उन के सामने खड़ी हो जाती हैं. जानती हैं कि पति गुनहगार है फिर भी… सच कहती हूं अगर उस की जगह मेरा पति होता न, तो मैं उसे नहीं छोड़ती. जेल भिजवा कर ही रहती साले को, ‘‘नीलिमा के मुंह से ऐसी बातें सुन कर योगेश के रोंगटे खड़े हो गए.’’

‘‘सोचो, खुद की भी बेटी है, अगर उस के साथ कोई ऐसा करे तो? छि:, अरे, औरत क्या कोई वस्तु है, जो जिस का जब मन चाहे इस्तेमाल कर लो, बिना उस की मरजी के?’’

आज नीलिमा के तेवर देख योगेश की रूह कांप रही थी. बस मन ही मन यही प्रार्थना किए जा रहा था कि वह इस सब से बचा रहे किसी तरह.

‘‘अब तुम्हें क्या हुआ?’’ योगेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख नीलिमा कहने लगी, ‘‘हां, पता है मुझे, तुम्हें भी सुन कर बुरा लग रहा होगा, है न? अरे किसी भी शरीफ इंसान को सुन कर बुरा लगेगा, मगर देखो, हम उन्हें क्या समझते थे और क्या निकले?’’ किसी का कुछ कहा नहीं जा सकता,’’ भुनभुनाते हुए नीलिमा किचन की तरफ बढ़ गई.

योगेश धम्म से वहीं सोफे पर बैठ गया. सोचने लगा कि आज जिस तरह से संस्कारी अमन अंकल की थूथू हो रही है, कल उस की बारी न हो. फिर कैसे नजरें मिलाएगा वह अपनी बेटियों से? गुमसुम सा वह आ कर कमरे में बैठ गया. नीलिमा ने पूछा, ‘‘कुछ खाओगे?’’

बच्चे और नीलिमा तो सो गए, उस की आंखें अब भी जाग रही थीं. अचानक उस के दिल में एक शूल सा उठता, फिर शांत हो जाता. कभी वह अपने सो रहे बच्चों को निहारता, तो कभी एकटक नीलिमा को देखता. आज नीलिमा उसे उस की पत्नी नहीं, बल्कि चंडिका का रूप लग रही थी, जो छूते ही भस्म कर देगी. इसलिए वह हौल में जा कर सोफे पर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन वहां भी उसे कहां चैन.

घर का 1-1 सामान जैसे उस के मुंह चिढ़ा रहा हो, हंस रहा हो उस पर और कह रहा हो, ‘‘देख रहे हो, कैसी उलटी गंगा बह रही है? नहीं बच पाओगे तुम भी योगेश बाबू. देरसबेर ही सही, पर कर्मों का फल तो सब को मिलता ही है. तुम्हें भी जरूर मिलेगा. उन की बातें सुन वह घबरा कर उठ बैठता और लंबीलंबी सांसें लेने लगता. डर के मारे हालत खराब हो रही थी उस की, पर बताए तो किसे और क्या? सोच कर ही कंपकंपा उठता कि अगर उस के किए गुनाह सब के सामने आ गए, तब क्या होगा? उस की तो बसीबसाई गृहस्थी ही उजड़ जाएगी.’’

‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा. क्यों मैं बेकार की बातें सोच रहा हूं? वह कभी अपना मुंह नहीं खोलेगी और अगर खोल दिया तो? तो मैं उसे झूठा साबित कर दूंगा. कह दूंगा वही मुझ पर डोरे डाल रही थी. जब दाल नहीं गली, तो मुझ पर इलजाम लगा रही है. मगर उस ने कोई सुबूत पेश कर दिया या गवाह खड़ा कर दिया तो, तो क्या होगा? कौन गवाह? किस की  इतनी हिम्मत है कि जो मेरे खिलाफ बोले,’ वह खुद से ही सवालजवाब किए जा रहा था और परेशान हुए जा रहा था. मुक्ता के साथ किए 1-1 अत्याचार आज उस की आंखों के सामने चलचित्र की तरह नाचने लगे.

बात 7-8 साल पहले की है. जिस कंपनी में योगेश बौस था. उसी कंपनी में मुक्ता भी काम करती थी, पर छोटे पद पर. चूंकि योगेश मुक्ता का बौस था, इसलिए उस की मजबूरी थी उस की हर बात को मानना. गोरा रंग, लंबे घने बाल, मोटीमोटी झील सी आंखें और उस का छरहरा बदन देख योगेश उसे देखता ही रह जाता. जिस तरह वह उसे नजरें गड़ाए देखा करता. उस से मुक्ता एकदम असहज हो जाती और अपने कपड़े ठीक करने लगती.

जानती थी वह कि उसे ले कर योगेश के विचार कुछ ठीक नहीं हैं, इसलिए वह अपना काम समय के साथ कर लिया करती ताकि योगेश को उसे कुछ कहने का मौका ही न मिले. फिर भी किसी न किसी बहाने वह उसे अपने कैबिन में बुला ही लेता और घंटों बेमतलब के कामों में उलझाए रखता. जब वह कामों में उलझी रहती, योगेश लगातार अपनी नजरें उस पर ही टिकाए रखता.

आप कितने भी अपने काम में व्यस्त क्यों न हों अगर कोई आप को एकटक निहार रहा हो, तो आप की नजरें खुदबखुद उस ओर चली जाती हैं. ऐसा अकसर होता है. जब मुक्ता की नजर योगेश पर पड़ती, तब भी ढीठ की तरह वह उसे उसी प्रकार निहारता रहता. हार कर मुक्ता ही अपनी नजरें नीची कर लेती या वहां से हट जाती.

मुक्ता को अब योगेश के सामने जाने से भी डर लगने लगा था, क्योंकि जिस तरह से वह उस के सीने पर अपनी नजरें गड़ाए रहता, उस से वह सहम सी जाती. योगेश के डर से ही अब उस ने जींस टीशर्ट और स्लीवलैस कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. जानबूझ कर ढीलेढाले कपड़े पहन कर औफिस जाती, ताकि योगेश उसे न देखे, पर उस की गंदी नजरें फिर भी उसे घूरती रहतीं.

कई बार तो वह जानबूझ कर उस से टकरा जाता, फिर भी मुक्ता ही सौरी बोलती. एक बार तो उस ने उस के सीने पर हाथ ही रख दिया और फिर सौरीसौरी कहने लगा, लेकिन योगेश ने ऐसा जानबूझ कर किया, यह बात मुक्ता जानती थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी मौका मिलता, वह मुक्ता को यहांवहां छू देता और बेचारी कुछ न बोल कर आगे बढ़ जाती.

रोना आता उसे अपनी हालत पर. सोचती क्या लड़की होना इतना बड़ा पाप है? शुरू से ही मुक्ता पर उस की गंदी नजर थी. जानता था वह कि यह नौकरी उस के लिए कितना माने रखती है, क्योंकि उस के घर में कमाने वाला उस के सिवा और कोई नहीं था. पिता की असमय मौत ने घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी उस के कंधों पर डाल दी थी. इसी कारण वक्तबेवक्त योगेश उस का फायदा उठाता रहता था.

उस दिन जानबूझ कर योगेश ने मुक्ता को देर रात तक औफिस में रोक लिया और कहा कि वह उसे घर छोड़ देगा. औफिस के चपरासी को भी उस ने छुट्टी दे दी. लेकिन मुक्ता जल्दीजल्दी अपना काम निबटा कर वहां से जाने ही लगी कि पीछे से आ कर योगेश ने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया और उसे यहांवहां छूने लगा.

‘‘सर, यह क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे,’’ कह कर मुक्ता ताकत लगा कर उस की पकड़ से निकली ही कि फिर से उस ने उसे दबोचना चाहा, यह बोल कर कि इसी मौके की तो उसे कब से तलाश थी. मगर ऐन वक्त पर वही चपरासी वहां पहुंच गया और मुक्ता बच गई. वरना तो आज योगेश उसे नहीं छोड़ता. शायद वह चपरासी भी योगेश के गंदे इरादे भांप गया था, इसलिए अपना खाने का डब्बा छूट जाने का बहाना कर वापस आ गया और मुक्ता बरबाद होने से बच गई.

उलटी गंगा- भाग 1: योगेश को क्या था डर

‘‘देश में लाखों युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. किसान आत्महत्या कर रहे हैं, देश बदहाली की ओर जा रहा है और यहां लोग फालतू की बातों में समय बरबाद कर रहे हैं. अरे, मैं पूछता हूं और कोई काम नहीं बचा है क्या इन औरतों के पास, जो मीटू मीटू का नारा लगाए जा रही हैं. मैं पूछता हूं कि जिस समय इन का शोषण हुआ, तब क्यों नहीं आवाज उठाई, जो अब चिल्ला रही हैं? झूठा प्रचार कर रही हैं, षड्यंत्र रच रहीं पुरुषों के खिलाफ और कुछ नहीं या फिर हो सकता है फेम में रहने के लिए ये मीटू अभियान से जुड़ गई हों. बंद करो टीवी, कुछ नहीं रखा है इन सब में,’’  झल्लाते हुए योगेश ने खुद ही टीवी औफ कर दिया और फिर रिमोट को एक तरफ फेंकते हुए औफिस जाने के लिए तैयार होने लगा.

‘‘अच्छा, ये औरतें बकवास कर रही हैं और तुम सारे मर्द दूध के धुले हो, क्यों?’’ रोटी को तवे पर पटकती हुई नीलिमा कहने लगी, ‘‘हूं, स्वाभाविक भी है जिस समाज में महिला की चुप्पी को उस की शालीनता और गरिमामय व्यक्तित्व का मूलाधार माना जाता रहा हो, वहां शोषण के विरुद्ध उस की आवाज झूठी ही मानी जाएगी?’’ नीलिमा तलखी से बोली.

‘‘मैं ऐसा नहीं कर रहा हूं, पर अब 10-20 या 30 साल पुरानी बातों को कुरेदने का क्या मतलब है बताओ? जब उन के साथ ऐसा कुछ हुआ था तब क्यों नहीं आवाज उठाई थी

जो अब चिल्ला रही हैं, मैं यह कह रहा हूं,’’ शर्ट का बटन लगाते हुए योगेश बोला.

योगेश की बातों पर नीलिमा को हैरानी भी हुई और गुस्सा भी आया. बोली, ‘‘तुम्हें यह चीखनाचिल्लाना लगता है पर मुझे तो इस में एकदम सचाई नजर आ रही है योगेश. दरअसल, गलती सिर्फ मर्दों की ही नहीं, समाज की भी है, जहां प्रताडि़त होने के बाद भी लड़कियों को ही चुप रहने को कहा जाता है.

‘‘अगर औफिस में लड़कियां शोषण के प्रति आवाज उठाती हैं, तो नौकरी चली जाती है और घरेलू महिला ऐसा करे, इतनी उस की हिम्मत कहां. समाज में औरतों को बचपन से ही यह शिक्षा दी जाती है कि वे शर्म का चोला पहन कर रखें. मगर मर्दों के लिए खुली छूट क्यों? महिलाएं क्या पहनें क्या नहीं, यह उन की अपनी मरजी होनी चाहिए न कि दूसरों की. फिर वैसे भी शर्महया देखने वालों की आंखों में होती है योगेश, कपड़ों या आचरण में नही. लेकिन लद गया अब वह जमाना.

‘‘सच कहूं, तो मुझे बड़ी खुशी हो रही है यह देख कर कि भारत के इतिहास में शायद यह पहला अवसर है जब पुरुष भयभीत दिखाई दे रहे हैं कि कहीं उन के वर्षों पूर्व किए गए गुनाह का पिटारा न खुल जाए,’’ गर्व से सिर ऊंचा कर नीलिमा बोली, ‘‘बहुत दे चुकी सीता अग्नि परीक्षा. अब राम की बारी है, क्योंकि स्त्री सिर्फ देह नहीं है, बल्कि उस में सांस और स्पंदन भी है और यह बात अब पुरुष को समझनी पड़ेगी कि औरत का भी अपना वजूद है. वह सिर्फ सहती नहीं, सोचती भी है.’’

नीलिमा की लंबीचौड़ी बातें सुन योगेश का दिमाग भन्ना गया. अत:

झल्लाते हुए बोला, ‘‘बस हो गया… अब क्या भाषण ही देती रहोगी या खाना भी मिलेगा? वैसे भी आज मुझे देर हो गई है.’’

खाने की प्लेट योगेश के सामने रखती हुई नीलिमा बोली, ‘‘वैसे तुम क्यों इतना बौखला रहे हो? कहीं तुम ने भी तो किसी के साथ… डर तो नहीं रहे हो कि कहीं तुम्हारा भी कोई पुराना पाप न खुल जाए?’’

यह सुनते ही रोटी का कौर योगेश के गले में ही अटक गया. फिर किसी तरह हलक से रोटी को नीचे उतारते हुए बोला, ‘‘प… प… पागलों सी बातें क्यों कर रही हो तुम? मुझे क्यों बिना वजह इन सब में घसीट रही हो? करे कोई और भरे कोई…? मुझे तो बख्श दो और दुनिया जानती है कि मैं कैसा इंसान हूं. सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है मुझे.’’

‘‘हूं, और दुनिया उन्हें भी जानती है जिन का पिटारा खुला… पता चले कि जनाब ने भी कभी किसी लड़की के साथ… मैं सिर्फ कह रही हूं,’’ खाने का डब्बा योगेश के सामने रखते हुए नीलिमा बोली.

नीलिका की बातों से योगेश तमतमा उठा. मन तो किया उस का कि खाने का डब्बा उठा कर फेंक दे और कहे कि हां, दुनिया के सारे मर्द खराब हैं. सिर्फ औरतें ही पावन पवित्र हैं. मगर उस की इतनी हिम्मत कहां, जो नीलिमा के सामने औरतों के खिलाफ कुछ बोले, क्योंकि आखिर वह महिलाओं की हमदर्द जो ठहरी. किसी शोषित महिला के बारे में कुछ सुना नहीं कि सखियों सहित मोरचा ले कर निकल पड़ती है.

‘‘क्या अब अपने पति पर भी तुम्हें भरोसा नहीं रह गया और क्या मैं तुम्हें इतना गिरा हुआ इंसान लगता हूं जो ऐसी बातें बोल रही हो?’’

नीलिमा को लगा कि कहीं योगेश उस की बातों को दिल से न लगा बैठे, इसलिए खुद को शांत कर बोली, ‘‘अरे, मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी और क्या मैं तुम्हें नहीं जानती… चलो अब निकलो औफिस के लिए वरना कहोगे मैं ने ही देर करवा दी.’’

‘‘हूं, वैसे भी आज मेरी जरूरी मीटिंग है,’’ योगेश ने मुसकराते हुए कहा और फिर हमेशा की तरह बाय कह कर औफिस निकल गया. लेकिन उस के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं. डर तो उसे सताने ही लगा था अपने भविष्य को ले कर. सोच कर ही सिहर उठता कि अगर मीटू की चपेट में वह भी आ गया, तो क्या होगा. नीलिमा तो एक पल भी उसे बरदाश्त नहीं करेगी. और तो और उसे सजा दिलवाने में भी पीछे नहीं रहेगी. अपने बच्चों की नजरों में भी उस की छवि धूमिल पड़ जाएगी सो अलग. कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. समाज में बनीबनाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

मीटिंग में भी योगेश बस यही सब सोचता रहा. औफिस के किसी काम में आज उसे मजा नहीं आ रहा था और न ही किसी स्टाफ को वह कुछ काम करने को कह रहा था वरना तो किसी को ठीक से सांस तक नहीं लेने देता. सब के सिर पर सवार रहता.

‘‘क्या बात है यार, आज बौस बड़े चुपचुप लग रहे हैं? न चीखना, न चिल्लाना, बस चुपचाप जा कर कैबिन में बैठ गए. गुडमौर्निंग बोला तो कोई जवाब भी नहीं दिया. कहीं इन पर भी किसी देवी ने मीटू का केस तो नहीं कर दिया?’’ ठहाके लगाते हुए संदीप ने कहा तो उस की बात पर औरों को भी हंसी आ गई.

‘‘सही कह रहा हूं यार वरना तो आते ही हमें घूरने लगते थे, मगर आज नजरें नीची किए किसी गहरी चिंता में डूबे हैं. क्या बात हो सकती है?’’ संदीप फिर बोला.

‘‘हां यार, मुझे तो लगा था डांटने के लिए बुलाया है, पर कहने लगे कि उन्होंने मेरी छुट्टी मंजूर कर दी है,’’ नमन ने कहा, तो वहां बैठे सभी हैरान रह गए. क्योंकि मजाल थी जो किसी को वह बिना नाक रगड़ाए छुट्टी दे दे.

‘‘खैर, जाने दो न हमें क्या. हो गई होगी पत्नी से लड़ाई और क्या,’’ कह कर सभी अपनेअपने काम में लग गए.

भरे मन से जैसे ही योगेश घर पहुंचा, देखा नीलिमा किसी से फोन पर बातें कर रही

थी. जोरजोर से कह रही थी, ‘‘एकदम नहीं छूटना चाहिए वह इंसान. समझता क्या है? भेडि़या कहीं का. बड़ा संस्कारी बना फिरता था, पर चलन तो देखो. नातीपोता वाला हो कर ऐसे कुकर्म और वह भी अपनी बेटी समान लड़की से?’’

‘‘क्या हुआ?’’ धीरे से योगेश ने पूछा,

‘‘आ गए तुम? अभी मैं तुम्हें ही फोन लगाने वाली थी. पता है, वे अमनजी अरे हमारे  पड़ोसी… उन पर किसी लड़की ने हैरेसमैंट का केस किया है. देखो, कितने संस्कारी बने फिरते थे.

‘‘मैं तो कहती हूं ऐसे इंसान का मुंह काला कर चौराहे पर खड़ा कर हजार जूते मारने चाहिए. पता है तुम्हें, उस की पत्नी तो यह बोलबोल कर चिल्लाए जा रही थी कि वह लड़की झूठी है.

दरिंदे से बदला: क्या हुआ था राजेश सिंह के साथ

पड़ोसी राजेश सिंह के घर मन रहे जश्न का शोर सोनाली के कानों में पिघले सीसे की तरह उतर रहा था. सारे खिड़कीदरवाजे बंद कर कानों को कस कर दबाए वह अपना सिर घुटनों में छिपा कर बैठी थी लेकिन रहरह कर एक जोर का कहकहा लगता और सारी मेहनत बेकार हो जाती.

पास बैठा सोनाली का पति सुरेंद्र भरी आवाज में उसे दिलासा देने में जुटा था, ‘‘ऐसे हिम्मत मत हारो… ठंडे दिमाग से सोचेंगे कि आगे क्या करना है.’’

सुरेंद्र के बहते आंसू सोनाली की साड़ी और चादर पर आसरा पा रहे थे. बच्चों को दूसरे कमरे में टैलीविजन देखने के लिए कह दिया गया था.

6 साल का विकी तो अपनी धुन में मगन था लेकिन 10 साल का गुड्डू बहुतकुछ समझने की कोशिश कर रहा था. विकी बीचबीच में उसे टोक देता मगर वह किसी समझदार की तरह उसे कोई नया चैनल दिखा कर बहलाने लगता था.

2 साल पहले तक सोनाली की जिंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था. पति की साधारण सरकारी नौकरी थी, पर उन के छोटेछोटे सपनों को पूरा करने में कभी कोई अड़चन नहीं आई थी. पुराना पुश्तैनी घर भी प्यार की गुनगुनाहट से महलों जैसा लगता था. बूढ़े सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने सोनाली को मांबाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी.

एक दिन सुरेंद्र औफिस से अचानक घबराया हुआ लौटा और कहने लगा था, ‘कोई नया मंत्री आया है और उस ने तबादलों की झड़ी लगा दी है. मुझे भी दूसरे जिले में भेज दिया गया है.’

‘क्या…’ सोनाली का दिल धक से रह गया था. 2 घंटे तक अपने परिवार से दूर रहने से घबराने वाला सुरेंद्र अब

2 हफ्ते में एक बार घर आ पाता था. बच्चे भी बहुत उदास हुए, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता. मनचाही जगह पर पोस्टिंग मिल तो जाती, मगर उस की कीमत उन की पहुंच से बाहर थी.

हार कर सोनाली ने खुद को किसी तरह समझा लिया था. वीडियो काल, चैटिंग के सहारे उन का मेलजोल बना रहता था. जब भी सुरेंद्र घर आता था, सोनाली को रात छोटी लगने लगती थी. सुरेंद्र की बांहों में भिंच कर वह प्यार का इतना रस निचोड़ लेने की कोशिश करती थी कि उन का दोबारा मिलन होने तक उसे बचाए रख सके. उस के दिल की इस तड़प को समझ कर निंदिया रानी तो उन्हें रोकटोक करने आती नहीं थी. बिस्तर से ले कर जमीन तक बिखरे दोनों के कपड़े भी सुबह होने के बाद ही उन को आवाज देते थे.

जिंदगी की गाड़ी चलती रही, लेकिन अपनी दुनिया में मगन रहने वाली सोनाली एक बड़े खतरे से अनजान थी. उस खतरे का नाम राजेश सिंह था जो ठीक उन के पड़ोस में रहता था.

शरीर से बेहद लंबेतगड़े राजेश को न अपनी 55 पार कर चुकी उम्र का कोई लिहाज था और न ही गांव के रिश्ते से कहे जाने वाले ‘चाचा’ शब्द का. उस की गंदी नजरें खूबसूरत बदन की मालकिन सोनाली पर गड़ चुकी थीं.

दबंग राजेश सिंह हत्या, देह धंधा जैसे अनेक मामलों में फंस कर कई बार जेल जा चुका था लेकिन हमेशा किसी न किसी से पैरवी करा कर बाहर आ जाता था. सुरेंद्र का साधारण समुदाय से होना भी राजेश सिंह की हिम्मत बढ़ाता था.

राजेश सिंह का कोई तय काम नहीं था. बेटों की मेहनत पर खेतों से आने वाला अनाज खा कर पड़े रहना और चुनाव के समय अपनी जाति के नेताओं के पक्ष में इधर से उधर दलाली करना उस का पेशा था. हालांकि बेटे भी कोई दूध के धुले नहीं थे. बाकी सारा समय अपने दरवाजे पर किसीकिसी के साथ बैठ कर यहांवहां की गप हांकना राजेश सिंह की आदत थी.

सोनाली बाहर कम ही निकलती थी, लेकिन जब भी जाती और राजेश सिंह को पता चल जाता तो घर से निकलने से ले कर वापस लौटने तक वह उस को ही ताकता रहता. उस के उभारों और खुले हिस्सों को तो वह ऐसे देखता जैसे अभी खा जाएगा.

एक दिन सोनाली जब आटोरिकशा पर चढ़ रही थी तो उस की साड़ी के उठे भाग के नीचे दिख रही पिंडलियों को घूरने की धुन में राजेश सिंह अपने दरवाजे पर ठोकर खा कर गिरतेगिरते बचा. उस के साथ बैठे लोग जोर से हंस पड़े. सोनाली ने घूम कर उन की हंसी देखी भी, पर उन की भावना नहीं समझ पाई.

आखिर वह दिन भी आया जिस ने सोनाली का सबकुछ छीन लिया. उस के सासससुर किसी संबंधी के यहां गए हुए थे और छोटा बेटा विकी नानी के घर था. बड़ा बेटा गुड्डू स्कूल में था. बाहर हो रही तेज बारिश की वजह से मोबाइल नैटवर्क भी खराब चल रहा था जिस के चलते सोनाली और सुरेंद्र की ठीक से बात नहीं हो पा रही थी. ऊब कर उस ने मोबाइल फोन बिस्तर पर रखा और नहाने चली गई.

सोनाली ने दोपहर के भोजन के लिए दालचावल चूल्हे पर पहले ही चढ़ा दिए थे और नहाने के बीच में कुकर की सीटियां भी गिन रही थी. हमेशा की तरह उस का नहाना पूरा होतेहोते कुकर ने अपना काम कर लिया. सोनाली ने जल्दीजल्दी अपने बालों और बदन पर तौलिए लपेटे और बैडरूम में भागी आई. बालों को झटपट पोंछ कर उस ने बिस्तर पर रखे नए सूखे कपड़े पहनने के लिए जैसे

ही अपने शरीर पर

बंधा तौलिया हटाया कि अचानक

2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया.

अचानक हुए इस हमले से बौखलाई सोनाली ने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर राजेश सिंह था जो छत के रास्ते उस के घर में घुस आया था और कमरे में पलंग के नीचे छिप कर उस का ही इंतजार कर रहा था. उस के मुंह से शराब की तेज गंध भी आ रही थी.

सोनाली चीखती, इस से पहले ही किसी दूसरे आदमी ने उस का मुंह भी दबा दिया. वह जितना पहचान पाई उस के मुताबिक वह राजेश सिंह का खास साथी भूरा था और उम्र में राजेश सिंह के ही बराबर था.

सोनाली के कुछ सोचने से पहले ही वे दोनों उसे पलंग पर लिटा कर वहां रखी उस की ही साड़ी के टुकड़े कर उसे बांध चुके थे. सोनाली के मुंह पर भूरा ने अपना गमछा लपेट दिया था.

इस के बाद राजेश सिंह ने पहले तो कुछ देर तक अपनी फटीफटी आंखों

से सोनाली के जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उस के ऊपर झुकता चला गया.

काफी देर बाद हांफता हुआ राजेश सिंह सोनाली के ऊपर से उठा. भयंकर दर्द से जूझती, पसीने से तरबतर सोनाली सांयसांय चल रहे सीलिंग फैन को नम आंखों से देख रही थी. टैलीविजन पर रखा सोनाली, सुरेंद्र और बच्चों का ग्रुप फोटो गिर कर टूट चुका था. रसोईघर में चूल्हे पर चढ़े दालचावल सोनाली के सपनों की तरह जल कर धुआं दे रहे थे.

इस के बाद भूरा बेशर्मी से हंसता हुआ अपनी हवस मिटाने के लिए बढ़ा. राजेश सिंह बिस्तर पर पड़े सोनाली के पेटीकोट से अपना पसीना पोंछ रहा था.

भूरा ने अपने हाथ सोनाली के कूल्हों पर रखे ही थे कि तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई.

राजेश सिंह ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो गुड्डू की स्कूल वैन का ड्राइवर उसे साथ ले कर खड़ा था.

राजेश सिंह ने जल्दी से भूरा को हटने का इशारा किया. वह झल्लाया चेहरा लिए उठा और अपने कपड़े ठीक करने लगा.

‘तुम ने बहुत ज्यादा समय ले ही लिया इस के साथ, नहीं तो हम को भी मौका मिल जाता न,’ भूरा भुनभुनाया. लेकिन राजेश सिंह ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसेतैसे अपने कपड़े पहन कर जिधर से आया था, उधर से ही भाग गया.

जब दरवाजा नहीं खुला तो गुड्डू के कहने पर ड्राइवर ने ऊपर से हाथ घुसा कर कुंडी खोली. घुसते ही अंदर के कमरे का सब नजारा दिखता था. ड्राइवर के तो होश उड़ गए. उस ने शोर मचा दिया.

सुरेंद्र आननफानन आया. सोनाली के बयान पर राजेश सिंह और भूरा पर केस दर्ज हुए. दोनों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन राजेश सिंह ने अपनी पहचान के नेता से बयान दिलवा लिया कि घटना वाले दिन वह और भूरा उस के साथ मीटिंग में थे. मैडिकल जांच पर भी सवाल खड़े कर दिए गए.

कुछ समाचार चैनलों और स्थानीय महिला संगठनों ने थोड़े दिनों तक अपनीअपनी पब्लिसिटी के लिए प्रदर्शन जरूर किए, बाद में अचानक शांत

पड़ते गए.

सालभर होतेहोते राजेश सिंह और भूरा दोनों बाइज्जत बरी हो कर निकल आए. ऊपरी अदालत में जाने लायक माली हालत सुरेंद्र की थी नहीं.

आज राजेश सिंह के घर पर हो रही पार्टी सुरेंद्र और सोनाली के घावों पर रातभर नमक छिड़कती रही. इस के बाद राजेश सिंह और भी छुट्टा सांड़ हो गया. छत पर जब भी सोनाली से नजरें मिलतीं, वह गंदे इशारे कर देता. इस सदमे से सोनाली के सासससुर भी बीमार रहने लगे थे.

राजेश सिंह के छूट जाने से सोनाली के मन में भरा डर अब और बढ़ने लगा था. रातों को अपने निजी अंगों पर सुरेंद्र का हाथ पा कर भी वह बुरी तरह से चौंक कर जाग उठती थी.

कई बार सोनाली के मन में खुदकुशी का विचार आया, लेकिन अपने पति और बच्चों का चेहरा उसे यह गलत कदम उठाने नहीं देता था.

दिन बीतते गए. गुड्डू का जन्मदिन आ गया. केवल उस की खुशी के लिए सोनाली पूरे परिवार के साथ होटल चलने को राजी हो गई. खाना खाने के बाद वे लोग काउंटर पर बिल भर रहे थे कि तभी सामने राजेश सिंह दिखाई दिया. सफेद कुरतापाजामा पहने हुए वह एक पान की दुकान की ओट में किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा था.

राजेश सिंह पर नजर पड़ते ही सोनाली के मन में उसी दिन का उस का हवस से भरा चेहरा घूमने लगा. उस के द्वारा फोन पर कहे जा रहे शब्द उसे वही आवाज लग रहे थे जो उस की इज्जत लूटते समय वह अपने मुंह से निकाल रहा था.

सोनाली का दिमाग तेजी से चलने लगा. उबलते गुस्से और डर को काबू

में रख वह आज अचानक कोई फैसला ले चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के कान में कुछ कहा.

सुरेंद्र ने बच्चों से खाने की मेज पर ही बैठ कर इंतजार करने को बोला और होटल के दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया.

सोनाली ने आसपास देखा और राजेश सिंह के ठीक पीछे आ गई. वह अपनी धुन में था इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला. सोनाली ने अपने पेटीकोट की डोरी पहले ही थोड़ी ढीली कर ली थी. उस ने राजेश सिंह का दूसरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट में डाल लिया.

राजेश सिंह ने चौंक कर सोनाली की तरफ देखा. वह कुछ समझ पाता, इस

से पहले ही सोनाली उस का हाथ पकड़ेपकड़े रोते हुए चिल्लाने लगी, ‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत करने की?’’

सोनाली के चिल्लाते ही सुरेंद्र होटल से भागाभागा वहां आया और उस ने राजेश सिंह पर मुक्कों की बरसात कर दी. वह मारतेमारते जोरजोर से बोल रहा था, ‘‘राह चलती औरत के पेटीकोट में हाथ डालेगा तू?’’

जिन लोगों ने राजेश सिंह का हाथ सोनाली के पेटीकोट में घुसा देख लिया था, वे भी आगबबूला हुए उधर दौड़े और उस को पीटने लगे.

भीड़ जुटती देख सुरेंद्र ने अपने जूते के कई जोरदार वार राजेश सिंह के पेट और गुप्तांग पर कर दिए और मौका पा कर भीड़ से निकल गया.

जब तक कुछ लोग बीचबचाव करते, तब तक खून से लथपथ राजेश सिंह मर चुका था. जो सजा उसे बलात्कार के आरोप में मिलनी चाहिए थी, वह उसे छेड़खानी के आरोप ने दिलवा दी थी.

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