जब घर आएं माता पिता

मैं अपनी पड़ोसिन कविता को कुछ दिनों से बहुत व्यस्त देख रही थी. वह बाजार के भी खूब चक्कर लगा रही थी. हर दिन शाम की वाक हम साथ करती थीं पर अपनी व्यस्तता के कारण वह आजकल नहीं आ रही थी, तो पार्क में खेलती उस की बेटी काव्या को बुला कर मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘काव्या, बहुत दिनों से तुम्हारी मम्मी नहीं दिख रही हैं. सब ठीक तो है?’’

‘‘आंटी, दादादादी आने वाले हैं मेरे घर. मम्मी उन की आने की तैयारी में ही लगी हैं,’’ काव्या ने बताया.

पता नहीं क्यों ‘मेरे घर’ शब्द सुन देर तक हथौड़े से बजते रहे मेरे मन में. फिर दूसरे ही दिन कविता के पति कामेश को देखा. शायद वह अपने मातापिता को स्टेशन से ले कर आ रहा था. उस के बाद करीब 10 दिनों तक कविता बिलकुल नहीं दिखी. दफ्तर से भी उस ने छुट्टी ले रखी थी. शाम की वाक बंद थी ही उस की.

एक दिन मैं उस के सासससुर और उस से मिलने उस के घर जा पहुंची. सासससुर ड्राइंगरूम में बैठे थे. कविता अस्तव्यस्त सी रसोई और अन्य कमरों के बीच दौड़ लगा रही थी. मैं उस के सासससुर से बातें करने लगी.

भेदभाव क्यों

‘‘हमारे आने से कविता का काम बढ़ जाता है. मुझे बुरा लगता है,’’ उस के ससुर ने कहा.

‘‘सच, मुझेभी कोई काम करने नहीं देती, बिलकुल मेहमान बना कर रख दिया है,’’ उस की सासूमां ने कहा.

उन लोगों की बातचीत से लगा कि वे जल्दी चले जाएंगे ताकि कविता अपने दफ्तर जा सके. मैं लौटने लगी तो कविता मुझे गेट तक छोड़ने आई. तब मैं ने पूछा, ‘‘क्यों मेहमानों जैसा ट्रीट कर रही उन के साथ, जबकि वे दोनों अभी इतने भी बूढ़े या लाचार नहीं हैं?’’

‘‘नहीं बाबा, मुझे अपने सासससुर से कुछ भी नहीं कराना है. मेरी बहन ने अपनी सास को जब वे उस के साथ रहने आई थीं, कुछ करने को कह दिया था तो बात का बतंगड़ बन गया था. फिर मेरे पति की भी यही इच्छा रहती है कि मैं उन्हें हाथोंहाथ रखूं पर यह अलग बात है कि मैं अब इंतजार करने लगी हूं इन के लौटने का,’’ कविता ने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा.

मैं मजबूर हो गई कि क्यों बोझ बना दिया है कविता ने सासससुर की विजिट को. वे लोग अपने बेटे और बहू के साथ रहने आए हैं अपना घर समझते हुए, परंतु उन के साथ मेहमानों जैसा सुलूक किया जा रहा है. मुझे याद आया उस की बेटी काव्या का वह कथन ‘मेरे घर’ दादादादी आ रहे हैं, जबकि वास्तव में घर तो उन का ही है यानी सब का है.

एक अलग संरचना

वहीं तसवीर का एक और पहलू भी होता है, जब बहू सासससुर के आगमन को अपनी कलह और कटुता से रिश्तों में कड़वाहट भर लेती है. मेरी मौसी को जोड़ों में दर्द रहता था. रोजमर्रा के काम करने में भी उन्हें दिक्कत आने लगी तो वे मौसाजी के साथ अपने बेटे के पास चली गईं. मगर महीना पूरा होतेहोते वे वापस अपने घर का ताला खोलते दिख गईं. वहां बेटे के तीसरी मंजिल के घर की सीढि़यां चढ़नाउतरना और कष्टकर था. फिर वे उतना घरेलू कार्य करने में भी अक्षम थीं जितनी कि उन से वहां उम्मीद की जा रही थी.

विकसित देशों में वृद्धों के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ होता है ताकि वे अपने बच्चों के बगैर भी अच्छी जिंदगी जी सकें, पर विदेशों से उलट हमारे देश में मातापिता बच्चों की काफी बड़ी उम्र तक देखभाल करते हैं. मध्यवर्गीय पेरैंट्स के जीवन का मकसद ही होता है बच्चों को सैटल करना. वही बच्चे जब सैटल हो जाते हैं, उन का अपना घरसंसार बस जाता है तो मातापिता को बाहर वाला समझने लगते हैं.  बेटाबहू हो या बेटीदामाद क्या वे सहजता से मातापिता के आगमन को स्वीकार नहीं कर सकते? हो सकता है रहने का ढंग कुछ अलग हो पर क्या उन्हें अपनी दिनचर्या के हिसाब से इज्जत के साथ नहीं रखा जा सकता है? ये वही होते हैं, जो बिना बोले आप की जरूरतों को समझ लिया करते थे.

हमारे यहां सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा होता है कि सब आपस में जुड़े ही रहते हैं. संयुक्त परिवारों की एक अलग संरचना होती है. यहां हम वैसे मातापिता का जिक्र कर रहे हैं, जो साल 6 महीनों में अपने बच्चों से मिलने जाते हैं. कुछ दिन या महीने 2 महीने के लिए. ऐसे में बच्चे इन बातों का ध्यान रख लें तो आपस में मिलनाजुलना, साथ रहना सुखद हो जाएगा:

– मिलतेजुलते रहना चाहिए वरना एकदूसरे के बिना जीने की आदत हो जाएगी. हमेशा मिलते रहने से दोनों ही एकदूसरे की आदतों से परिचित रहेंगे.

खुद भी सोचिए

– यह बात सही है कि वे अपने स्थान पर खुश हैं, फिर भी बच्चों का यह फर्ज बनता है कि वे मातापिता को जल्दीजल्दी बुलाएं, कम से कम जब तक वे स्वस्थ हैं. 3-4 साल में 1 बार बुलाने की जगह 3-4 महीनों में बुलाते रहें, भले ही कम दिनों के लिए ही सही, क्योंकि निरंतर मेलजोल से प्यार बना रहता है. फिर 5-6 दिनों के आगमन हेतु उन्हें कोई विशेष तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी.

– वे ‘आप के घर’ नहीं वरन ‘अपने घर’ आते हैं. इस सोच का आभास उन्हें भी कराएं और अपने बच्चों को भी. घर के छोटे या बड़े होने से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना दिलों के संकुचन से पड़ता है. अकसर सुना जाता है पोतेपोती/नातीनातिन कहेंगे दादाजी मेरे कमरे में सोते हैं. कितनी बार देर रात तक बत्ती जलाए रखने पर दादी द्वारा टोकने पर पोती कह देगी उफ, तुम कब जाओगी दादी? सोचिए कि आप के मातापिता के दिल पर क्या गुजरेगी जब आप के बच्चे ऐसा बोलेंगे. यह आप ही की गलती है, जो आप ने अपने बच्चों के मन में ऐसे विचार डाले हैं कि दादादादी/नानानानी बाहर वाले हैं और घर सिर्फ आप और आप के बच्चों का है. सोच कर देखिए कल को इसी तरह आप भी अपने बच्चों के जीवन में हाशिए पर होंगे.

खयाल रखें

यदि आप सुनते हैं कि बच्चों ने ऐसा कहा है तो तुरंत मातापिता के समक्ष ही उन्हें सही बात समझाएं कि आप अपने मातापिता के घर में नहीं दादादादी के घर में रह रहे हैं.

उन के आने पर अपने रूटीन को न बदलें, बल्कि उन्हें भी अपने रूटीन के हिसाब से सैट कर लें अन्यथा उन का आना और रहना जल्दी बोझ महसूस होने लगेगा.

आप जो खाते हैं जैसा खाते हैं वही उन्हें भी खिलाएं. हां, यदि स्वास्थ्य की समस्या हो तो आप को उसी हिसाब से कुछ बदलाव करना चाहिए. नई पीढ़ी का खानपान अपनी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल बदल चुका है. रोटीसब्जी, दालचावल खाने वाले मातापिता कभीकभी ही बर्गरपिज्जा खा सकेंगे. अत: उन के स्वाद और स्वास्थ्य के अनुसार भोजन का प्रबंध अवश्य करें. यह आप का फर्ज भी है. तय करें कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व मिल रहे हों.

यदि वे स्वेच्छा से कुछ करना चाहें तो अवश्य करने दें. जितनी उन की सेहत आज्ञा दे उन्हें गृहस्थी में शामिल करें. इस से उन का मन भी लगेगा, व्यस्त भी महसूस करेंगे और भागीदारी की खुशी भी महसूस करेंगे.

समझदारी से काम लें

न अति चुप भली न ही अति बोलना. जब मातापिता साथ हों तो उन के लिए कुछ समय अवश्य रखें, क्योंकि वे उसी के लिए आप के पास आए हैं. साथ टहलने जाएं या छुट्टी वाले दिन साथ कहीं घूमने जाएं. कुछ अपनी रोजमर्रा की बातें शेयर करें तो कुछ उन की सुनें.

उन की बदलती आदतों को गौर से देखें. कहीं किसी बीमारी के लक्षण तो नहीं. जरूरत हो तो डाक्टर को दिखाएं. याद करें कि कैसे मां आप के चेहरे को देख आप की तकलीफों को भांप लेती थी.

यदि मिलना जल्दीजल्दी होता रहेगा तो आप समय पूर्व ही उन की बीमारियों को भांप लेंगे और इस से पहले कि उन की तकलीफें ज्यादा बढ़ें आप वक्त पर उन का इलाज करा सकेंगे.

अपने बच्चों को उन के नानानानी/दादादादी से जुड़ने दें. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे बूढ़े होते ग्रैंड पेरैंट्स को जानें. वे उन के प्रति संवेदनशील बनें. यह बात उन्हें एक बेहतर इनसान बनने में मदद करेगी. कल आप के बुढ़ापे को भी आप के बच्चे सहजता से ग्रहण कर लेंगे.

जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स से जुड़े रहते हैं वे अधिक समझदार व परिपक्व होते हैं. उन बच्चों की तुलना में जो इन से महरूम होते हैं. अकसर एकल परिवारों के बच्चे बेहद स्वार्र्थी और आत्मलीन प्रवृत्ति के हो जाते हैं.

कुछ बातों को नजरअंदाज करें. जब 2 बरतन साथ होंगे तो उन का टकराव स्वाभाविक है. छोटी बातों को छोटी समझ दफन कर देना ही समझदारी है.

सुमेधा के पति उस के पापा को बिलकुल पसंद नहीं करते थे, परंतु इस के बावजूद सुमेधा ने पापा को बुलाना नहीं छोड़ा. न चाहते हुए भी मिलतेजुलते रहने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे को समझने लगे. सुमेधा को एक बार 3 महीनों के लिए विदेश जाना पड़ा. उस के पीछे उस के पति की टांग में फ्रैक्चर हो गया. तब उस के ससुर ने  ही आ कर उसे संभाला.

दूरियां मिटाएं

सासबहू के रिश्ते को सब से ज्यादा बदनाम किया जाता है जबकि सचाई यह है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति को प्यार करती हैं और इस तरह यह वर्चस्व की लड़ाई बन जाती है. बेटे की समझदारी और सूझबूझ से आए दिन की टकराहट को टाला जा सकता है. पर इस के चलते मिलनाजुलना बंद कर देना रिश्तों का कत्ल है. साथ रहने से, मिलतेजुलते रहने से धीरेधीरे एकदूजे को समझने में मदद मिलेगी. मिलते रहने से ही समस्या सुलझेगी, दूरियों के मिटने से ही अंतरंगता बढ़ेगी.

मातापिता वे इनसान हैं जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया. जब वे आप की परवरिश कर सकते हैं तो खुद की भी कर सकते हैं. अभी जब वे स्वस्थ हैं, अकेले रहने में सक्षम हैं तो आप का यह फर्ज है कि आप हमेशा मिलतेजुलते रहने का मौका तलाश करते रहें. उन्हें हमेशा अपने पास बुलाएं और इज्जत और स्नेह दें. कल को जब वे आशक्त हों, आप के साथ रहने को मजबूर हो जाएं तो उन्हें तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत न हो. स्नेहपूर्वक बिताए हुए ये छोटेछोटे पल तब उन की जड़ों के लिए खादपानी का काम करेंगे.

रिश्ते कठपुलियों की तरह होते हैं, जिन की डोर हमारी आपसी सोच, समझदारी, सामंजस्य और सहजता में होती है. भारतीय सामाजिक संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि दूर रहें या पास सब रहते एकदूसरे के दिल और दिमाग में ही हैं हमेशा.

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अकेले हैं तो क्या गम है

महिलाएं अब शादी करने की सामाजिक बाध्यता से आजाद हो रही हैं. वे अपनी जिंदगी की कहानी अपने हिसाब से लिखना चाहती हैं और ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है. पहले दहेज के कारण ही शादी न होना एक बड़ा कारण होता था.

2015 में डी पाउलो ने औनलाइन ऐसे लोगों को अपने अनुभव शेयर करने को आमंत्रित किया जो अपनी इच्छा से सिंगल थे और इस स्टेटस से खुश थे. ‘कम्युनिटी औफ सिंगल पीपुल’ नाम के इस गु्रप में 5 महीनों के अंदर अलगअलग देशों से 600 से ज्यादा लोग शामिल हो गए और मई 2016 तक यानी 1 साल बाद यह संख्या बढ़ कर 1170 तक पहुंच गई.

इस औनलाइन ग्रुप में सिंगल लाइफ से जुड़े हर तरह के मसले व अच्छे अनुभवों पर चर्चा की जाती है न कि किसी संभावित हमसफर को आकर्षित करने के तरीके बताए जाते हैं.

बदलती सोच

पिछले दशक से जनगणना करने वाले अमेरिकी ‘यू. एस. सैंसस ब्यूरो’ द्वारा सितंबर के तीसरे सप्ताह को अनमैरिड और सिंगल अमेरिकन वीक के रूप में मनाया जा रहा है. पिछले 10 सालों से स्थिति यह है कि तलाकशुदों, अविवाहितों या विधवा/विधुरों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है.

दरअसल, अब विवाह को खुशियों की गोली नहीं माना जाता. जरूरी नहीं कि हर शख्स विवाह कर परिवार के दायरे में स्वयं को सीमित करे. पुरुष हो या स्त्री, सभी को अपनी मंजिल तय करने का हक है. इस दिशा में कुछ हद तक सामाजिक सोच भी बदल रही है.

लोग मानने लगे हैं कि सिंगल एक स्टेटस नहीं वरन एक शब्द है, जो यह बताता है कि यह शख्स मजबूत और दृढ़ संकल्प वाला है और किसी पर निर्भर हुए बगैर अपनी जिंदगी जी सकता है.

सामाजिक दबाव

ऐसा नहीं है कि हर जगह सिंगल्स की भावनाओं को समझा जाता है. ‘यूनिवर्सिटी औफ मिसौरी’ के शोधकर्ताओं के नए अध्ययन के मुताबिक भले ही मिड 30 की सिंगल महिलाओं की संख्या बढ़ी हो, मगर सामाजिक अकेलेपन से जुड़ा खौफ कम नहीं हुआ है. अविवाहित महिलाओं पर सामाजिक परंपरा को निभाने का सामाजिक दबाव कायम है.

टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा मध्यवर्ग की 32 अविवाहित महिलाओं का इंटरव्यू लिया गया. इन महिलाओं ने स्वीकार किया कि विवाह या दूसरे इस तरह के मौकों पर उन के सिंगल स्टेटस को ले कर बेवजह भेदते हुए से सवाल पूछे जाते हैं, तो वहीं बहुत से लोग यह कल्पना भी करने लगते हैं कि जरूर वह झूठ बोल रही है और उस की शादी हो चुकी होगी. पति से नहीं बनती होगी या वह तलाकशुदा होगी. कई लोग मुंह पर यह कह भी देते हैं कि शादी नहीं हुई तो जीवन बेकार है.

हाल के एक शोध के मुताबिक अविवाहित महिलाओं को दुख इस बात का नहीं होता कि वे सिंगल हैं बल्कि तकलीफ  यह रहती है कि समाज उन के सिंगल स्टेटस को स्वीकार नहीं करता और उन पर लगातार किसी से भी शादी कर लेने का दबाव बनाया जाता है.

‘ब्रिटिश सोशियोलौजिकल ऐसोसिएशन कौंन्फ्रैंस’ में किए गए एक अध्ययन में पूरे विश्व से 22,000 विवाहित और अविवाहित लोगों के प्रसन्नता के स्तर को मापा गया और पाया गया कि वैसे देश जहां विवाह से जुड़ी पारंपरिक सोच अधिक मजबूत है वहां अविवाहितों में अधिक अप्रसन्नता पाई गई क्योंकि वहां शादी न करने वाली महिलाओं को दया वाली या नीच निगाहों से देखा जाता है.

पाया गया है कि 35 साल से ऊपर की सिंगल महिलाएं फिर भी अपनी स्थिति से संतुष्ट रहती हैं, जबकि यंग वूमन खासकर 25 से 35 साल की जमाने से सब से ज्यादा खौफजदा होती हैं क्योंकि उन से सब से ज्यादा सवाल पूछे जाते हैं. 25 साल से पहले इस संदर्भ में ज्यादा चर्चा नहीं होती.

कुछ तो लोग कहेंगे

सिंगल महिलाओं के लिए जरूरी है कि मुफ्त की सलाह देने वालों की बातों से दिलोदिमाग पर दबाव न बनने दें. आप जरा अपनी निगाहें घुमा कर देखिए, जो शादीशुदा हैं, क्या उन्हें हर खुशी मिल रही है? क्या उन की जिंदगी में नई परेशानियों ने धावा नहीं बोल दिया? कोई भी काम करने से पहले घर वालों को सूचित करना, पैसों के लिए दूसरों का मुंह देखना, एकएक पैसे का हिसाब देना, अपने वजूद को भूल कर हर तरह के कंप्रोमाइज के लिए तैयार रहना, घर संभालना ये सब आसान नहीं होता. बहुत से तालमेल बैठाने पड़ते हैं, जिन से जुड़े तनाव से सिंगल वूमन आजाद रहती है.

जो महिलाएं आप पर शादी करने का दबाव डाल रही हैं, वे दरअसल आप की स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और झंझटों से मुक्त जिंदगी से जलती हैं.

आप अपने दिल की सुनिए. यदि आप किसी ऐसे शख्स का इंतजार कर रही हैं, जो आप की सोच और नजरिए वाला हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं. बस शादी करनी जरूरी है, इसलिए किसी से भी कर लो, भले ही वह आप के योग्य नहीं, इस बात का कोई औचित्य नहीं.

कुछ कर के दिखाना है

बहुत सी लड़कियों/महिलाओं के दिलों में कुछ करने का जज्बा होता है, मगर शादी के बाद आमतौर पर वे ऐसा कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाती हैं. एक तरफ  घरपरिवार की जिम्मेदारियां, तो दूसरी तरफ बच्चे. ऐसे में वे चाह कर भी अपने सपनों को जी नहीं पातीं. जिन लड़कियों की प्राथमिकता अपना पैशन होता है, शादी नहीं वे सहजता से शादी न करने का फैसला ले पाती हैं या फिर शादी करती भी हैं तो अपने ही जैसे पैशन या हौबी रखने वाले से.

गलत से बेहतर है न हो जीवनसाथी

पेशे से पत्रकार 32 वर्षीय अनिंदिता कहती हैं, ‘‘गलत व्यक्ति के साथ आप जुड़ जाती हैं तो आप को धोखा मिलता है या फिर आप का जीवनसाथी गालीगलौज और मारपीट करता है तो क्या इस कदर अपने सम्मान को दांव पर लगा कर भी विवाह बंधन में बंधना जरूरी है?’’

सिंगल्स होते हैं ज्यादा जिम्मेदार

अकसर माना जाता है कि सिंगल व्यक्ति सैल्फ सैंटर्ड होता है, पर ऐसा नहीं है. सिंगल अपनी जिंदगी की स्क्रिप्ट स्वयं लिखता है. जब व्यक्ति शादी करता है तो उस का फोकस अपने परिवार और बच्चों तक सिमट कर रह जाता है. मगर सिंगल व्यक्ति दिल से मांबाप, दोस्तों, रिश्तेदारों व सभी करीबी व्यक्तियों के करीब होता है. सही अर्थों में वह स्वार्थरहित और सभी के लिए स्नेहपूर्ण व्यवहार कर पाता है.

शोधों के मुताबिक  हम सभी के पास खुशी की एक बेसलाइन होती है और शादी साधारणगत इसे बदलती नहीं, उस अल्पकालीन खुशी के सिवा.

ऐक्सपर्ट्स के विचार

विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में शादी या जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं के बारे में सामाजिक अपेक्षाएं बनी रहती हैं और इन अपेक्षाओं को पूरा न करने पर चुनौतीपूर्ण एहसास का सामना करना पड़ता है. हालांकि यह ध्यान देना आवश्यक है कि हम में से प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को स्वयं स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होता है. हालांकि इस तरह के दबाव से निबटना दुखदाई हो सकता है.

यदि इस से आप को असहज लगता है तो इस बारे में अपनी राय जोर दे कर रखनी होगी. याद रखें कि किसी भी प्रकार का दबाव मन पर न डालें क्योंकि शादी अपने व्यक्तिगत जीवन का विकल्प है और आप को इस के लिए निर्णय लेने से पहले मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है.

समीर पारीख, मनोचिकित्सक 

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16 Tips: अच्छा पड़ोसी बनने के गुर

शांति जीवन के लिए बहुत जरूरी है. शांति का एक पक्ष पड़ोसियों से बेहतर तालमेल के जरीए पाया जा सकता है. आप के अच्छे व्यवहार से आप के पड़ोसी सदैव आप के बन सकते हैं. जानिए अच्छे पड़ोसी बनने के गुर ताकि आप की गुडी इमेज आप को सोसायटी में सिर उठा कर जीने का अधिकार दे:

1. आप कालोनी में नए आए हैं, तो पड़ोसी के समक्ष अपनी अकड़ू इमेज न बनाएं. नई जगह पर अपनी पहचान बनाएं. इस के लिए आप को स्वयं पहल करनी होगी. यकीन मानिए आप मुसकरा कर सामने वाले से बात करेंगे, तो सामने वाला भी आप के साथ वैसे ही पेश आएगा.

2. कालोनी में नए आए हैं, तो पासपड़ोस में चेहरे पर मुसकराहट लिए नमस्तेसलाम या वैलकम गिफ्ट से जानपहचान बढ़ाएं.

3. पड़ोसी से उन का लाइफस्टाइल जानें. ऐसा करने से लड़ाईझगड़े से बचा जा सकता है. मसलन, आप के पड़ोसी नाइट शिफ्ट में काम करते हैं. ऐसे में सुबह व शाम आराम के लिहाज से उन के लिए बहुत अहम हैं. आप का बच्चा स्कूल के बाद गानेबजाने की प्रैक्टिस करता है. यह बात पड़ोसी को बताने से होने वाले झगड़े से बच जाएंगे. ऐसे में दोनों अपनीअपनी समस्या का बीच का रास्ता खोज सकते हैं.

4. आप दूसरी मंजिल पर रहते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि भारीभरकम उपकरणों के खिसकाने आदि से उपजे शोर से पहली मंजिल वाले को खीज हो सकती है. फिर खीज लड़ाईझगडे़ का रूप भी ले सकती है. ऐसे में समझदारी इसी में है कि आप भारी उपकरणों के नीचे मोटा रबर मैट बिछाएं ताकि शोर कम हो.

5. टहलने, चलने की तहजीब भी बहुत जरूरी है. खटखट की आवाज करते जूते या सैंडल किसी भी को डिस्टर्ब कर सकते हैं. अत: आज से ही अपनी कालोनी, ब्लौक या गलीमहल्ले में खटखट की आवाज करने वाले जूते या सैंडल पहनना बंद कर दें. जूतेचप्पल ऐसे हों जो आवाज न करें.

6. घर में पैट है, तो ध्यान रहे वह हमेशा चेन से बंधा रहे. कालोनी में पैट के साथ बाहर हैं, तो उसे चेन से बांध कर रखें. आप को उस से भले डर न लगता हो, लेकिन दूसरों को लग सकता है. यही नहीं, अगर पैट चेन से बंधा न हो तो किसी को काट भी सकता है, जो झगड़े की वजह बन सकता है.

7. पार्किंग ऐटिकेट्स से भी जरूर वाकिफ हों. गाड़ी, स्कूटर या बाइक ऐसे पार्क करें कि किसी का रास्ता ब्लौक न हो. किसी के घर के आगे गाड़ी पार्क न करें. पार्किंग ऐटिकेट्स से वाकिफ होने से पासपड़ोस में झगड़े से बच सकते हैं.

8. पड़ोसियों से मेलजोल बनाए रखें. स्वयं पहल कर के पड़ोसी को अपने घर चायनाश्ते पर बुलाएं. अच्छा माहौल आप को मानसिक सुकून तो प्रदान करेगा ही, जरूरत के समय आप के पड़ोसी भी आप के साथ होंगे.

9. धीमा बोलना बहुत जरूरी है. आप किसी से फोन पर बात कर रहे हैं और आप की कालोनी में महिलाएं तेज आवाज में बात कर रही हैं तो उन्हें मना करने पर झगड़ा हो सकता है. ऐसे में घर के हर छोटेबड़े सदस्य को सिखाएं कि घर, टैरेस, पार्क आदि जगहों पर धीमी आवाज में बोलें. आप की तेज आवाज दूसरे की शांति भंग कर सकती है.

10. पड़ोसियों से संवाद बनाए रखें. उन के हर सुखदुख में उन का साथ दें. समय की कमी रहती है, तो अपने पड़ोसियों से व्हाट्सऐप, फेसबुक से जुड़ें.

11. घर में पार्टी करने वाले हैं, तो पहले ही अपने पड़ोसियों को इस बारे में बता दें अन्यथा पार्टी के दौरान आप के पड़ोसी मूड खराब कर सकते हैं. पहले बताने से पड़ोसी शोरशराबा होने पर ऐडजस्ट करने की कोशिश करेंगे.

12. घर का कूड़ाकरकट डस्टबिन में डालें. यहांवहां न फेंकें. यहांवहां बिखरा कूड़ा झगड़े का कारण बन सकता है. इसी तरह कालोनी में बिखरे कूड़े को नजरअंदाज न करें. उसे उठा कर डस्टबिन में डालें. आप को देख कर दूसरे लोग भी ऐसा करेंगे यानी कालोनी साफसुथरी रहेगी.

13. आसपास के इलाके में कोई दिल दहलाने वाली घटना घटी है, तो इस बारे में पड़ोसियों से बात करें ताकि यह बात वैलफेयर ऐसोसिएशन के हैड के कानों तक पहुंच जाए और कालोनी में वैसी कोई घटना न घटे.

14. बड़ेबुजुर्गों की खैरखबर लेते रहें. कालोनी में जरूरतमंदों की सहायता करने से पीछे न हटें.

15. चौकन्ने रहें कि कहीं आप का व्यवहार, आप का रहनसहन या किसी भी प्रकार का आचरण पड़ोसी को कष्ट तो नहीं दे रहा.

16. अपने पड़ोसियों से सरलता से पूछें कि कहीं उन्हें आप की वजह से कोई दिक्कत तो नहीं. यह जान कर झगड़े की जड़ को ही नष्ट कर सकते हैं.

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स्मार्ट पेरैंट्स तो स्मार्ट बच्चे

सभी मातापिता अपने बच्चों को सब से आगे और सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहते हैं. इस के लिए वे क्याक्या नहीं करते. सुखसुविधाओं के साधन जुटाते हैं, पौष्टिक आहार खिलाते हैं, फिर भी ऐसा क्यों होता है कि कुछ बच्चे बेहद विलक्षण बुद्धि के होते हैं तो कुछ सामान्य व औसत बुद्धि के? दरअसल, जन्म के समय बच्चे के दिमाग के सैल्स सांस लेने, दिल की धड़कन जैसी कुछ खास क्रियाओं से ही जुड़े होते हैं. मस्तिष्क का बाकी हिस्सा जन्म के 5 साल के भीतर विकसित होता है. न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के चाइल्ड स्टडी सैंटर के मैनेजिंग डायरेक्टर पी. ल्यूकास के अनुसार, ‘‘जन्म के शुरुआती 5 सालों में शिशु के जीवन में घटने वाली घटनाएं न सिर्फ उस के मस्तिष्क का तत्कालीन विकास निर्धारित करती हैं, बल्कि यह भी निर्धारित करती हैं कि आने वाले जीवन में उस का मस्तिष्क कितना विकसित होगा.’’

यद्यपि शिशु के मस्तिष्क विकास के रहस्य को विशेषज्ञ अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं पाए हैं, लेकिन फिर भी यह तो तय है कि अभिभावकों द्वारा किए गए प्रयास बच्चे के मस्तिष्क के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

बनें स्मार्ट पेरैंट्स

यदि आप को लगता है कि बाजार में उपलब्ध बेबी डेवलपमेंट सीडी से या जल्द से जल्द उसे प्ले स्कूल में भेजने से आप के बच्चे का दिमाग तेजी से चलने लगेगा तो आप का सोचना गलत है. विशेषज्ञों की राय में बच्चे के मस्तिष्क का विकास इस पर निर्भर करता है कि आप ने उस के साथ कितना वक्त बिताया है. जी हां, बेशक यह बच्चे पालने का पारंपरिक तरीका हो, लेकिन यह बात सही है कि कंप्यूटर, वैबसाइट्स और टीवी की तुलना में बच्चे के साथ खेले गए छोटेमोटे सरल खेल, अभिभावकों का सान्निध्य बच्चे को ज्यादा ऐक्टिव और स्मार्ट बनाता है, क्योंकि इस दौरान शिशु को जो आत्मीयता और स्नेह मिलता है उस की बराबरी कोई नहीं कर सकता.यदि आप भी अपने शिशु को स्मार्ट बेबी बनाना चाहती हैं तो पहले स्मार्ट मदर बनें और उस की स्मार्ट टीचर भी. आप के द्वारा कही गई हर बात और किया गया हर कार्य आप का नन्हामुन्ना गौर से देखसुन रहा है और उस पर उस का प्रभाव भी पड़ र हा है. इसलिए उस के सर्वश्रेष्ठ विकास के लिए निम्न बातों पर गौर करें:

जन्म से 4 माह तक

उसे कुछ पढ़ कर सुनाएं, लोरी गा कर सुनाएं. शिशु के सामने तरहतरह के चेहरे बनाएं, उसे गुदगुदी करें, बच्चे की आंखों के आगे धीरेधीरे कोई रंगबिरंगी वस्तु, खिलौना या झुनझुना घुमाएं, ऐसे गाने या पोयम्स सुनाएं, जिन में शब्दों का दोहराव हो, आप और शिशु जो भी कर रहे हैं, उसे बोल कर बताएं जैसे ‘अब हम गाड़ी में जा रहे हैं’, ‘अब हम ने आप को कार की सीट पर बैठा दिया है’, ‘अब मम्मी भी कार में बैठेंगी’ आदि.

4 से 6 माह तक

स्टफ टौयज को हग करने में शिशु की मदद करें, छोटेछोटे प्लास्टिक के ब्लाक्स शिशु के आगे रख दें और देखें कि आप का नन्हामुन्ना किस तरह उन को गिरा कर अपने लिए रास्ता बनाता है. अलगअलग रिदम वाला संगीत सुनाएं, रंगबिरंगी तसवीरों वाली किताबें दिखाएं और उस की प्रतिक्रिया देखें. कोमल, खुरदरी सतह वाली विभिन्न वस्तुएं उसे स्पर्श करने को दें ताकि उन के अंतर को वह महसूस कर सके.

6 माह से 18 माह तक

बच्चे से ज्यादा से ज्यादा बातचीत करें ताकि वह विभिन्न ध्वनियों और शब्दों में तालमेल बैठा सके. परिचितों, परिवार के सदस्यों व रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुओं से उस का रोज परिचय कराएं, सब के नाम बारबार दोहराएं, शब्दों के दोहराव वाले गाने और पोयम्स हाथों से एक्शन कर के उसे सिखाएं, उस के साथ लुकाछिपी खेलें.

18 से 24 माह

विभिन्न वस्तुओं व रंगों की पहचान कराने वाले खेल उस के साथ खेलें जैसे कई रंगों के बीच में से किसी खास रंग की वस्तु जैसे फूल, कुरसी, उस के तकिए आदि की पहचान, उस के सामने कई सारी चीजें, जिन्हें वह रोज देखता है, रख दें और उन में से कोई भी एक चीज उठाने को कहें. जितना अधिक हो सके अपने शिशु से बातचीत करें, रंगों और कागज से अब धीरेधीरे उस की पहचान कराना शुरू करें, किसी किताब में से उसे कोई कहानी पढ़ कर सुनाएं और इस दौरान उस से कुछ न कुछ सवाल पूछते रहें जैसे कब, कहां पर क्या हुआ आदि उस के खिलौने उसे स्वयं खेलने या चलाने को दें.

24 से 36 माह

जैसेजैसे शिशु साइकिल चलाना या अन्य कोई गतिविधि बखूबी करना शुरू कर दे, उसे पर्याप्त सराहना व प्रोत्साहन दें, अपने खिलौनों से विभिन्न प्रकार के खेल खेलने को प्रोत्साहित कर उस की कल्पनाशक्ति बढ़ाएं, खेलखेल में कुछ ऐसे काम उसे करने को प्रेरित करें, जो आप असल जिंदगी में करते हैं जैसे फोन पर बात करना, गाड़ी चलाना, चाय या दूध पीना आदि. कोई कहानी पढ़ कर सुनाते हुए उस से विभिन्न सवाल पूछते रहें ताकि उस की रुचि बरकरार रहे, कुछ पढ़ कर सुनाते समय विभिन्न अक्षरों या शब्दों की पहचान कराएं, फिर उस से किताब के पेज पर उन्हें ढूंढ़ने को कहें या उन की ध्वनि से परिचय कराएं.

3 से 5 वर्ष

शिशु को अपनी चीजें दूसरों से बांटना सिखाएं, इस के लिए विभिन्न उदाहरण दें, बच्चों के लिए बनाए गए गेम्स उस के साथ खेलें, जिन से उस की सोचनेसमझने और सीखने की क्षमता में वृद्धि हो, बच्चे के द्वारा टीवी देखने के समय को दिन में 1 से 2 घंटे तक सीमित करें व उस के साथ बैठ कर टीवी देखें और उस दौरान उसे बताते रहें कि टीवी में क्या हो रहा है. यदि बच्चा रुचि दिखाता है तो किताब पढ़ने या कोई पहेली हल करने जैसे विकल्प उसे दें. बच्चे को हर छोटीबड़ी चीज करने से रोकेंटोकें नहीं, बल्कि नएनए काम स्वयं करने और अपनी जिज्ञासा स्वयं शांत करने के अवसर प्रदान करें. अपने बच्चे व उस की इच्छा को पर्याप्त सम्मान व अटेंशन दें. उस की हर बात, हर नया अनुभव, चाहे वह अजीबोगरीब ही क्यों न हो, ध्यान से सुनें. रोज अपने बच्चे के साथ कुछ फुरसत के पल जरूर बिताएं और उस से पूछें कि आज दिन भर उस ने क्या किया. बच्चे को नए काम करने, नए अनुभव लेने और उन का बखान करने के लिए भी प्रोत्साहित करें.

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शादी के बाद भी जिएं आजादी से

स्वाति की नईनई शादी हुई है. वह मेहुल को 5 सालों से जानती है. दोनों ने एकदूसरे को जानासमझा तो दोनों को ही लगा कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं. फिर अभिभावकों की मरजी से विवाह करने का निर्णय ले लिया. लेकिन आजाद खयाल की स्वाति ने विवाह से पहले ही मेहुल के सामने अपनी सारी टर्म्स ऐंड कंडीशंस ठीक वैसे ही रखीं जैसे कोई बिजनैस डील करते समय 2 लोग एकदूसरे के सामने रखते हैं. हालांकि ये लिखी नहीं गईं पर बातोंबातों में स्पष्ट कर दी गईं.

आइए, जरा स्वाति की टर्म्स ऐंड कंडीशंस पर एक नजर डालते हैं:

  1. शादी के बाद भी मैं वैसे ही रहूंगी जैसे शादी से पहले रहती आई हूं. मसलन, मेरे पढ़ने, पहननेओढ़ने, घूमनेफिरने, जागनेसोने के समय पर कोई पाबंदी नहीं होगी.
  2. तुम्हारे रिश्तेदारों की आवभगत की जिम्मेदारी मेरी अकेली की नहीं होगी.
  3. अगर मुझे औफिस से आने में देर हो जाए, तो तुम या तुम्हारे परिवार वाले मुझ से यह सवाल नहीं करेंगे कि देर क्यों हुई?
  4. मुझ से उम्मीद न करना कि मैं सुबहसुबह उठ कर तुम्हारे लिए पुराने जमाने की बीवी की तरह बैड टी बना कर कहूंगी कि जानू, जाग जाओ सुबह हो गई है.
  5. मेरे फाइनैंशियल मैटर्स में तुम दखल नहीं दोगे यानी जो मेरा है वह मेरा रहेगा और जो तुम्हारा है वह हमारा हो जाएगा.
  6. अपने मायके वालों के लिए जैसा मैं पहले से करती आ रही हूं वैसा ही करती रहूंगी. इस पर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. मेरे और अपने रिश्तेदारों को तुम बराबर का महत्त्व दोगे.

स्वाति की इन टर्म्स ऐंड कंडीशंस से आप भी समझ गए होंगे कि आज की युवती विवाह के बाद भी पंछी बन कर मस्त गगन में उड़ना चाहती है. पहले की विवाहित महिला की तरह वह मसालों से सनी, सिर पर पल्लू लिए सास का हुक्म बजाती, देवरननद की देखभाल करती बेचारी बन कर नहीं रहना चाहती. दरअसल, आज की युवती पढ़ीलिखी, आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर है. वह हर स्थिति का सामना करने में सक्षम है. अपने किसी भी काम के लिए पति या ससुराल के अन्य सदस्यों पर निर्भर नहीं है. इसीलिए वह विवाह के बाद भी अपनी आजादी को खोना नहीं चाहती.

जिंदगी की चाबी हमारे खुद के हाथ में

आज की पढ़ीलिखी युवती विवाह अपनी मरजी और अपनी खुशी के लिए करती है. वह नहीं चाहती कि विवाह उस की आजादी की राह में रोड़ा बने. वह अपनी आजादी की चाबी पति या ससुराल के दूसरे सदस्यों को सौंपने के बजाय अपने हाथ में रखना चाहती है. वह चाहती है कि अगर सासससुर साथ रहते हैं, तो वे उस की मदद करें. पति और वह मिल कर बराबरी से घर की जिम्मेदारी उठाएं. आज की युवती का दायरा घर और रसोई से आगे औफिस और दोस्तों के साथ मस्ती करने तक फैल गया है. वह जिंदगी का हर निर्णय खुद लेती है. फिर चाहे वह विवाह का निर्णय हो, पसंद की नौकरी करने का हो अथवा विवाह के बाद मां बनने का.

रहूंगी लिव इन की तरह

आज की युवती के लिए विवाह का अर्थ बदल गया है. अब उस के लिए विवाह का अर्थ पाबंदी या जिम्मेदारी न हो कर आजादी हो गया है. आज वह विवाह कर के वे चीजें अपनाती है, जो उसे अच्छी लगती हैं और उन्हें सिरे से नकार देती है, जो उस की आजादी की राह में रुकावट बनती हैं. मसलन, व्यर्थ के रीतिरिवाज, त्योहार और अंधविश्वास, जो उस के जीने की आजादी की राह में बाधा बनते हैं उन्हें वह नहीं अपनाती. वह उन रीतिरिवाजों और त्योहारों को मनाती व मानती है, जो उसे सजनेसंवरने और मौजमस्ती करने का मौका देते हैं. वह अपने होने वाले पति से कहती है कि हम विवाह के बंधन में बंध तो रहे हैं, लेकिन रहेंगे लिव इन पार्टनर की तरह. हम साथ रहते हुए भी आजाद होंगे. एकदूसरे के मामलों में दखल नहीं देंगे. एकदूसरे को पूरी स्पेस देंगे. एकदूसरे के मोबाइल, लैपटौप में ताकाझांकी नहीं करेंगे. हमारी रिलेशनशिप फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स वाली होगी, जिस में तुम यानी पति फ्रैंड विद बैनिफिट पार्टनर की तरह रहोगे, जिस में कोई कमिटमैंट नहीं होगी. हमारा रिश्ता फ्रीमाइंडेड रिलेशनशिप वाला होगा, जिस में कोई रोकटोक नहीं होगी. जब हमें एकदूसरे की जरूरत होगी, हम मदद करेंगे, लेकिन इस मदद के लिए कोई एकदूसरे को बाध्य नहीं करेगा. हमारे बीच पजैसिवनैस की भावना नहीं होगी. मैं अपने किस दोस्त के साथ चैटिंग करूं, किस के साथ घूमनेफिरने जाऊं इस पर कोई पाबंदी नहीं होगी.

आजादी मांगने व देने के पीछे का कारण

युवतियों में शादी को ले कर आए इस बदलाव के पीछे एक कारण यह भी है कि उन्होंने अपनी दादीनानी और मां को घर की चारदीवारी में बंद अपनी इच्छाओं व खुशियों को मारते देखा है. वे अपनी हर खुशी के लिए पति पर निर्भर रहती थीं. लेकिन आज स्थिति विपरीत है. आज की पढ़ीलिखी व आत्मनिर्भर युवतियां चाहती हैं कि जब वे बराबरी से घर के काम और आर्थिक मोरचे को संभाल रही हैं, तो वे विवाह के बाद आजाद क्यों न रहें? क्यों वे विवाह के बाद पति और ससुराल के बाकी सदस्यों की मरजी के अनुसार अपनी जिंदगी जीएं? आज की पढ़ीलिखी युवतियां अपनी शिक्षा व योग्यता को घर बैठ कर जाया नहीं होने देना चाहतीं. वे चाहती हैं कि जब पति घर से बाहर व्यस्त है, तो वे घर बैठ कर क्यों उस के आने का इंतजार करें और अगर वह औफिस के बाद अपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने का अधिकार रखता है तो उन्हें भी विवाह के बाद ऐसा करने का पूर्ण अधिकार है.

दूसरी ओर पति भी चाहता है कि उस की पत्नी विवाह के बाद छोटीछोटी आर्थिक जरूरतों के लिए उस पर निर्भर न रहे. अगर पत्नी कामकाजी नहीं है, तो उस के घर आने पर घरपरिवार की समस्याओं का रोना उस के सामने रो कर उसे परेशान न करे, इसलिए वह उसे आजादी दे कर अपनी आजादी को कायम रखना चाहता है. तकनीक ने भी आज युवतियों को आजाद खयाल का होने में मदद की है. तकनीक के माध्यम से वे दूर बैठी अपने दोस्तों से जुड़ी रहती है और अपनी आजादी को ऐंजौय करती हैं. पति भी चाहता है कि वह व्यस्त रहे ताकि उस की आजाद जिंदगी में कोई रोकटोक न हो.

आजादी के नाम पर गैरजिम्मेदार न बनें

विवाह के बाद आजाद बन कर मस्त गगन में उड़ने की चाह रखने वाली युवती को ध्यान रखना होगा कि कहीं वह आजादी के नाम पर गैरजिम्मेदार तो नहीं बन रही? उस की आजादी से उस के घरपरिवार, बच्चों पर कोई बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है, क्योंकि सिर्फ अपनी टर्म्स ऐंड कंडीशंस पर जीना आजादी नहीं, अपनी बात मनवाना आजादी नहीं, महज घर से बाहर निकल कर मल्टीटास्किंग करना ही आजाद खयाल का होना नहीं. विवाह बंधन नहीं, जिस में आप आजादी चाहते हैं. विवाह का अर्थ एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार होना है. पढ़नेलिखने, आत्मनिर्भर होने का अर्थ जरूरी नहीं कि आप नौकरी ही करें. आप चाहें तो अपने आसपास के बच्चों को मुफ्त शिक्षा दें. अपनी घर की जिम्मेदारियां सुचारु रूप से निभाएं. आजादी का अर्थ है विचारों की स्वतंत्रता, पढ़नेलिखने की स्वतंत्रता, निर्णय लेने की आजादी, अपने ढंग से घर चलाने की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी, रुढियों व दकियानूसी विचारों से आजादी, अपना जीवन संवारने की आजादी न कि कर्तव्यों से भटकने की आजादी. प्रकृति ने महिला व पुरुष को अपनीअपनी योग्यता के अनुसार जिम्मेदारियां सौंपी हैं. उन्हीं जिम्मेदारियों का अपनी सीमाओं में रह कर पालन करना ही सही माने में आजादी है, जिस से प्रकृति का संतुलन भी कायम रहेगा और कोई किसी की आजादी का भी उल्लंघन नहीं करेगा. इसलिए सामाजिक दायरे में रह कर अपनी क्षमताएं पहचान कर अपने दायित्वों को निभाना ही सही में आजादी है.

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ऐसे बनाएं टीनएजर्स को जिम्मेदार

इकलौती संतान 13 वर्षीय नीलिमा जिस भी चीज की मांग करती वह मातापिता को देनी पड़ती थी वरना नीलिमा पहले तो आसपास की चीजों को पटकने लगती थी और फिर बेहोश होने लगती. परेशान हो कर मातापिता उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर को पता नहीं चल पा रहा था कि वह बेहोश क्यों होती है, क्योंकि सारी जांचें करने पर भी कुछ नहीं निकला. फिर कुछ लोगों की सलाह पर मातापिता नीलिमा को मुंबई के 7 हिल्स हौस्पिटल के मनोरोग चिकित्सक डा. श्याम मिथिया के पास ले गए. पहले दिन तो उन्हें भी नीलिमा के बेहोश होने का कारण पता नहीं चल पाया, पर 1-2 दिन बाद पता चला कि उसे अगर किसी चीज के लिए मना करो तो वह बेहोश हो जाती है. लेकिन वह वास्तव में बेहोश नहीं होती, बल्कि घर वालों को डराने के लिए बेहोश होने का ड्रामा करती है ताकि उसे अपनी मनचाही चीज मिल जाए.

तब डाक्टर ने नीलिमा को बिहैवियर थेरैपी से 2 महीनों में ठीक किया. फिर मातापिता को सख्त हिदायत दी कि आइंदा यह बेहोश होने लगे तो कतई परवाह न करना. तब जा कर उस की यह आदत छूटी. 14 साल के उमेश को अगर कुछ करने को कहा जाता मसलन बिजली का बिल जमा करने, बाजार से कुछ लाने को तो वह कोई न कोई बहना बना देता. ऐसी समस्या करीबकरीब हर घर में देखने को मिल जाएगी. दरअसल, आज के युवा कोई जिम्मेदारी ही नहीं लेना चाहते. ऐसे ही युवा आगे चल कर हर तरह की जिम्मेदारी से भागते हैं. धीरेधीरे यह उन की आदत बन जाती है. फिर वे अपने मातापिता की, औफिस की, समाज की जिम्मेदारियों आदि से खुद को दूर कर लेते हैं. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि बचपन से ही उन में जिम्मेदारियां उठाने की आदत डाली जाए. डा. श्याम कहते हैं कि बच्चे को थोड़ा बड़े होते ही जिम्मेदारियां सौंपनी शुरू कर देनी चाहिए. आजकल एकल परिवार और कम बच्चे होने की वजह से मातापिता अपने बच्चों को जरूरत से अधिक पैंपर करते हैं. जैसेकि अगर बच्चा कुछ मांगे, रोए तो मातापिता दुखी हो कर भी उस चीज को ला देते हैं.

4-5 साल की उम्र स बच्चा अपने आसपास की चीजों को औब्जर्व करना शुरू कर देता है. जैसे कि मातापिता के बात करने के तरीके को, उन के हावभाव आदि को. इसलिए बच्चे के इस उम्र में आने से पहले मातापिता अपनी आदतें सुधारें ताकि बच्चे पर उन का गलत असर न पड़े. जरूरत से अधिक प्यार और दुलार भी बच्चे को बिगाड़ता है.

पेश हैं, इस संबंध में कुछ टिप्स:

बच्चा जब स्कूल जाने लगता है, तो उसे जिम्मेदारियों का एहसास वहीं से करवाएं. जैसे अपनी कौपीकिताबों को ठीक से रखना, उन्हें गंदा न करना, क्लास में पढ़ाई गई चीजों को ठीक से नोट करना आदि. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसे अपने पास बैठा कर समझाएं.

जब बच्चा टीनएज में आता है तो उस में शारीरिक बदलाव के साथसाथ मानसिक बदलाव भी शुरू हो जाते हैं. उस के मन में कई जिज्ञासाएं भी उत्पन्न होती हैं. उस समय मातापिता को उस के साथ बैठ कर उस के प्रश्नों के तार्किक रूप से उत्तर देने चाहिए. ध्यान रहे कि उस के किसी भी प्रश्न का उत्तर समझदारी से दें, हवा में न उड़ा दें, हंसे नहीं, मजाक न बनाएं, क्योंकि इस उम्र में बच्चे में ईगो आना शुरू हो जाता है. अगर आप ने उस के ईगो को हर्ट किया तो वह अपनी बात आप से शेयर करना पसंद नहीं करेगा. दोस्ती के साथ उसे उस की सीमाएं भी बताते जाएं. इस उम्र में बच्चे को अपनी यूनिफौर्म, शूज, किताबें आदि संभालने की जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए.

डा. श्याम कहते हैं कि बच्चों को जिम्मेदार बनाने के लिए मातापिता को भी जिम्मेदार होना पड़ता है. कुछ टीनएज बच्चे कई बार बुरी संगत में पड़ कर नशा करने लगते हैं. अत: मातापिता को हमेशा बच्चे के हावभाव नोट करते रहना चाहिए ताकि कुछ गलत होने पर समय रहते उसे सुधारा जा सके. यह सही है कि आज के टीनएजर्स का जिम्मेदारी से परिचय कराना आसान नहीं होता. हर बात के पीछे उन के तर्क हाजिर होते हैं, लेकिन आप का प्रयास ही उन्हें बेहतर नागरिक बनने में मदद करता है. इस की शुरुआत मातापिता को बच्चे के बचपन से ही कर देनी चाहिए, ताकि जिम्मेदारियां उठाना उन की आदत बन जाए. जरूरत पड़े तो इमोशन का भी सहारा लें. अगर फिर भी आप सफल नहीं हो पाते हैं, तो ऐक्सपर्ट की राय लें.

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दूसरी शादी को अपनाएं ऐसे

जैसे जैसे स्नेहा के विवाह के दिन नजदीक आते जा रहे थे, वैसेवैसे उस की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं. अतीत के भोगे सुनहरे पल उसे बारबार कचोट रहे थे. विवाह के दिन तक वह उन पलों से छुटकारा पा लेना चाहती थी, लेकिन सौरभ की यादें थीं कि विस्मृत होने के बजाय दिनबदिन और गहराती जा रही थीं. बीते सुनहरे पल अब नुकीले कांटों की तरह उस के दिलदिमाग में चुभ रहे थे. मातापिता भी स्नेहा के मन के दर्द को समझ रहे थे, लेकिन उन के सामने स्नेहा के दूसरे विवाह के अलावा कोई और रास्ता भी तो नहीं था. स्नेहा की उम्र भी अभी महज 23 साल थी. उसे अभी जिंदगी का लंबा सफर तय करना था. ऐसे में उस के मातापिता अपने जीतेजी उसे तनहाई से उबार देना चाहते थे. यही सोच कर उन्होंने स्नेहा की ही तरह अपने पूर्व जीवनसाथी के बिछुड़ जाने की वेदना झेल रहे एक विधुर व्यक्ति से उस का विवाह तय कर दिया.

शादी जो असफल रही

कई मामलों में औरत दूसरा विवाह करने के बावजूद अपने पहले पति से पूरी तरह से नाता नहीं तोड़ पाती है. दूसरी बार तलाक की शिकार 32 साल की देवयानी बताती हैं, ‘‘दूसरा विवाह मेरे लिए यौनशोषण के अलावा कुछ नहीं रहा. मेरा पहला विवाह महज इसलिए असफल रहा था, क्योंकि मेरे पूर्व पति नपुंसक थे और संतान पैदा करने में नाकाबिल. विवाह के बाद मेरे दूसरे पति ने पता नहीं कैसे यह समझ लिया था कि सैक्स मेरी कमजोरी है. इसीलिए अपना पुरुषोचित अहं दिखाने के लिए वे मेरा यौनशोषण करने लगे. इस से उन के अहं की तो संतुष्टि होती थी, लेकिन वे मेरे लिए मानसिक रूप से बहुत ही पीड़ादायक सिद्ध होते थे.

‘‘मुझे लगा कि उन से तो मेरा पहला पति ही बेहतर था, जो संवेदनशील तो था. मेरे मन के दर्द और प्यार को समझता तो था. पहले पति से तलाक और दूसरे से विवाह का मुझे काफी पछतावा होता था, लेकिन अब मैं कुछ कर नहीं सकती थी. इसी बीच एक दिन शौपिंग के दौरान मेरी मुलाकात अपने पहले पति से हुई. तलाक की वजह से वे काफी टूटे से लग रहे थे. चूंकि उन की इस हालत के लिए मैं खुद को कुसूरवार समझती थी, इसलिए उन से मिलने लगी. मेरे दूसरे पति चूंकि शुरू से शक्की थे, इसलिए मेरा पीछा करते या निगरानी कराते. मेरे दूसरे पति का व्यवहार इस हद तक निर्मम हो गया कि मुझे एक बार फिर अदालत में तलाक के लिए हाजिर होना पड़ा. अब मैं ने दृढ़संकल्प कर लिया है कि तीसरा विवाह कभी नहीं करूंगी. सारी जिंदगी अकेले ही काट दूंगी.’’

नमिता बताती है, ‘‘जब मुझे शादी का जोड़ा पहनाया गया तथा विवाह मंडप में 7 फेरों के लिए खड़ा किया गया, तो मेरे मन में दूसरे विवाह का उत्साह कतई नहीं था. फूलों से सजे पलंग पर बैठी मैं जैसे एकदम बेजान थी. इन्होंने जब पहली बार मेरा स्पर्श किया तो शुभम की यादों से चाह कर भी मुक्त नहीं हो पाई. इसलिए दूसरे पति को अंगीकार करने में मुझे काफी समय लगा.’’

यह समस्या बहुत सी महिलाओं की यह समस्या सिर्फ स्नेहा, देवयानी व नमिता की ही नहीं है, बल्कि उन सैकड़ोंहजारों महिलाओं की है, जो वैधव्य या तलाक अथवा पति द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद दोबारा विवाह करती हैं. पहला विवाह उन की जिंदगी में एक रोमांच पैदा करता है. किशोरावस्था से ही मन में पलने वाले विवाह की कल्पना के साकार होने की वे सालों प्रतीक्षा करती हैं. पति, ससुराल और नए घर के बारे में वे न जाने कितने सपने देखती हैं. लेकिन वैधव्य या तलाक से उन के कोमल मन को गहरा आघात पहुंचता है. दूसरा विवाह उन के लिए तो लंबी तनहा जिंदगी को एक नए हमसफर के साथ काटने की विवशता में किया गया समझौता होता है. इसलिए दूसरे पति, उस के घर और परिवार के साथ तालमेल बैठाने में विधवा या तलाकशुदा औरत को बड़ी कठिनाई होती है.

जयपुर के एक सरकारी विभाग में नौकरी करने वाली स्मृति को यह नौकरी उन के पति की मौत के बाद उन की जगह मिली थी. स्मृति ने बताया, ‘‘यह विवाह मेरी मजबूरी थी. चूंकि पति के दफ्तर वाले मुझे बहुत परेशान करते थे. वे कटाक्ष कर इसे सरकार द्वारा दान में दी गई बख्शीश कह कर मेरी और मेरे दिवंगत पति की खिल्ली उड़ाते थे. मेरे वैधव्य और अकेलेपन के कारण वे मुझे अवेलेबल मान कर लिफ्ट लेने की कोशिश करते, लेकिन जब मैं ने उन्हें किसी तरह की लिफ्ट नहीं दी, तो वे अपने या किसी और के साथ मेरे झूठे संबंधों की कहानियां गढ़ते. वे दफ्तर में अपने काम किसी न किसी बहाने मेरे सिर मढ़ देते और बौस से मेरी शिकायत करते कि मैं दफ्तर में अपना काम ठीक से नहीं करती हूं. बौस भी उन्हीं की बात पर ध्यान देते. ऐसे में मुझे लगा दूसरा विवाह कर के ही इन परेशानियों से बचा जा सकता है.

‘‘संयोगवश मुझे एक भला आदमी मिला, जो मेरा अतीत जानते हुए भी मुझे सहर्ष स्वीकारने को राजी हो गया. हम दोनों अदालत में गए, जरूरी खानापूर्ति की और जब विवाह का प्रमाणपत्र ले कर बाहर निकले, तो एहसास हुआ कि मैं अब विधवा नहीं, सुहागिन हूं. पर सुहागरात का कोई रोमांच नहीं हुआ. वह दिन आम रहा और रात भी वैसी ही रही जैसी आमतौर पर विवाहित दंपतियों की रहती है. बस, खुशी इस बात की थी कि अब मैं अकेली नहीं हूं. घर में ऐसा मर्द है जो पति है. इस के बाद दफ्तर वालों ने परेशान करने की कोशिश करना खुद छोड़ दिया.’’

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

मनोचिकित्सक डा. शिव गौतम कहते हैं, ‘‘दरअसल, दूसरे विवाह की मानसिक तौर पर न तो पुरुष तैयारी करते हैं और न ही महिलाएं. दोनों ही उसे सिर्फ नए सिरे से अपना टूटा परिवार बसाने की एक औपचारिकता भर मानते हैं, जिस का खमियाजा दोनों को ही ताजिंदगी भुगतना पड़ता है.

‘‘दूसरे पति को हमेशा यह बात कचोटती है कि उस की पत्नी के शरीर को एक व्यक्ति यानी उस का पहला पति भोग चुका है, उस के तन और मन पर राज कर चुका है. उस की पत्नी का शरीर बासी खाने की तरह उस के सामने परोस दिया गया है. इसलिए ऐसे बहुत से पति दूसरा विवाह करने वाली पत्नी के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं.’’

महिलाओं की मानसिक समस्याओं का निदान करने वाली मनोचिकित्सक डा. मधुलता शर्मा ने बताया, ‘‘मेरे पास इस तरह के काफी मामले आते हैं. पति दूसरा विवाह करने वाली पत्नी को मन से स्वीकार नहीं कर पाता. उसे हमेशा अपनी पत्नी के बारे में शक बना रहता है खासकर तब जब उस की पत्नी तलाकशुदा हो. उसे लगता है कि उस के साथ विवाह के बावजूद उस की पत्नी का गुप्त संबंध अपने पूर्व पति से बना हुआ है. उस की गैरमौजूदगी में पत्नी अपने पूर्व पति से मिलतीजुलती है. उस का शक इस हद तक पहुंच जाता है कि उस की निगरानी करना शुरू कर देता है.’’

खुद को विवाह के लिए तैयार करें

डा. मधुलता के यहां एक काफी मौडर्न महिला सुनैना से मुलाकात हुई. उस ने अब तक 4 शादियां कीं और अब 5वीं शादी की तैयारी में थी. सुनैना ने हंसते हुए बताया, ‘‘जब मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी, तब मातापिता ने शादी कर दी. लेकिन डेढ़ साल बाद हमारा तलाक हो गया. दूसरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. तीसरे व चौथे पति से भी तलाक हो गया. लेकिन चारों पतियों के साथ मैं ने यादगार समय बिताया. जिन तीनों पतियों ने मुझे तलाक दिए, आज भी मेरी उन से अच्छी दोस्ती है. अकसर हम लोग मिलते रहते हैं. अब मैं ने 5वां पति तलाश लिया है. मेरे मन में इस विवाह के प्रति वही उत्साह, रोमांच और उत्सुकता है, जो पहले विवाह के समय थी. इस बार हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड जाएंगे.’’ सुनैना ने पुनर्विवाह के बारे में अपना मत कुछ इस तरह व्यक्त किया, ‘‘शादी दूसरी हो या तीसरी या फिर चौथी या 5वीं, खास बात यह है कि आप खुद को विवाह के लिए इस तरह तैयार कीजिए जैसे आप पहली बार विवाह करने जा रही हैं. आप के नए पति को भी इस से मतलब नहीं होना चाहिए कि आप विवाह के अनुभवों से गुजर चुकी हैं. दरअसल, वह तो बस इतना चाहता है कि आप उस के साथ बिलकुल नईनवेली दुलहन की तरह पेश आएं.’’

गौरतलब है कि कम उम्र से ही लड़कियां अपने पति, ससुराल और सुहागरात की जो कल्पनाएं और सपने संजोए रहती हैं, वे बड़े ही रोमांचक होते हैं. लेकिन विवाह के बाद तलाक व वैधव्य के हादसे से गुजर कर उसे जब दोबारा विवाह करना पड़ता है, तो उस में पहले विवाह का सा न तो खास उत्साह रहता है, न रोमांच.

ऐसा क्यों होता है

एक ट्रैवेल ऐजैंसी में कार्यरत महिला प्रमिला ने बताया, ‘‘15-16 साल की उम्र से ही लड़कियां अपने पति और घर के बारे में सपने देखना शुरू कर देती हैं. वे सुहागरात के दौरान अपना अक्षत कौमार्य अपने पति को बतौर उपहार प्रदान करने की इच्छा रखती हैं. इसलिए अधिकतर लड़कियां अपने बौयफ्रैंड या प्रेमी को चुंबन की हद तक तो अपने शरीर के अंगों का स्पर्श करने की इजाजत देती हैं, लेकिन कौमार्य भंग करने की इजाजत नहीं देतीं. साफ शब्दों में कह देती हैं कि यह सब तुम्हारा ही है, लेकिन इसे तुम्हें विवाह के बाद सुहागरात को ही सौंपूंगी.

‘‘लेकिन दूसरी बार विवाह करने वाली औरत के पास अपने दूसरे पति को देने के लिए ऐसा उपहार नहीं होता. अगर दूसरा पति समझदार हुआ, तो उस के मन में यह आत्मविश्वास पैदा कर सकता है कि तुम्हारा पिछला जीवन जैसा भी रहा हो, लेकिन मेरे लिए तुम्हारा प्रेम ही कुंआरी लड़की है. मेरे दूसरे पति मनोज ने यही किया था. उस ने विवाह को जानबूझ कर 6 महीने के लिए टाला और इस दौरान मेरे प्रति अपना प्रेम प्रगाढ़ करता रहा. हम लोग अकसर डेटिंग पर जाते. वह मेरे साथ प्रेमी का सा व्यवहार तो करता, लेकिन शारीरिक संबंध की बात न करता. इसीलिए कभीकभी तो मुझे उस के पुरुषत्व पर शक होने लगता.

‘‘संभवतया उस ने मेरे शक को भांप लिया था, इसलिए एक दिन वह मुझे गोवा ले गया. समुद्र के किनारे हम प्रेमियों की तरह एकदूसरे के साथ प्रेम करते रहे. वह बोला कि प्रमिला, मैं इस समय चाहूं तो तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता हूं और तुम मना भी नहीं कर सकतीं, लेकिन मैं चाहता हूं कि विवाह के पहले तुम से उसी स्थिति में आ जाऊं, जिस में तुम अपने पहले विवाह के समय थीं.

‘‘मनोज की इस बात ने मेरे आत्मविश्वास को काफी बल दिया. उस का मानना था कि औरत हमेशा तनमन से अपने पति के प्रति समर्पित रहती है, क्योंकि विवाह के बाद उस का संबंध सिर्फ अपने पति से रहता है. और सचमुच मनोज ने 6 माह के दौरान मेरे मन को तलाकशुदा के बजाय कुंआरी लड़की बना दिया था. सुहागरात के समय मैं अपना कौमार्य किसी और को उपहारस्वरूप दे चुकी थी, लेकिन मनोज के साथ सब कुछ नयानया तथा रोमांचकारी लग रहा था.’’

फर्ज मातापिता का

मनोवैज्ञानिक डा. मधुलता बताती हैं, ‘‘औरत 2 बार विवाह करे या 3 बार, असली बात उस माहौल की है, जिस में उसे दूसरी या तीसरी बार विवाह के बाद जिंदगी गुजारनी होती है. यह बात सही है कि पहले पति की मीठीकड़वी यादों से वह दूसरे विवाह के समय खुद को आजाद नहीं कर पाती. ऐसे में उस के मातापिता का फर्ज बनता है कि दूसरे विवाह के पहले ही वे उसे मानसिक रूप से तैयार करें, विवाह के प्रति उस के मन में उत्साह पैदा करें. लेकिन ऐसे मामलों में अकसर मातापिता तथा परिवार के अन्य लोग पहले से ही ऐसा माहौल तैयार कर देते हैं गोया लड़की का विवाह वे महज इसलिए कर रहे हैं ताकि उस का घर बस जाए और उसे जिंदगी अकेले न काटनी पड़े. यह व्यवहार उस के मन में निराशा पैदा करता है.’’

दूसरेतीसरे विवाह की स्थिति वैधव्य की वजह से उपजी हो या तलाक के कारण, परिवार वालों को चाहिए कि बेटी के पुनर्विवाह से पूर्व, विवाह के बाद में भी उस के साथ ऐसा ही स्नेहपूर्ण व्यवहार करें, गोया वे अपना या बेटी का बोझ हलका नहीं कर रहे, बल्कि समाज की इकाई को एक परिवार को प्रतिष्ठित सदस्य दे रहे हैं.

ऐसे मामलों में सगेसंबंधियों और परिचितों का भी कर्तव्य बनता है कि वे पुनर्विवाह के जरीए जुड़ने वाले पतिपत्नी के प्रति उपेक्षा का भाव न रख कर जहां तक हो सके अपनी रचनात्मक भूमिका निभाएं. विधवा या तलाकशुदा महिला का पुनर्विवाह मौजूदा वक्त की जरूरत है. इस से औरत को सामाजिक व माली हिफाजत तो मिलती ही है, साथ ही वह चाहे तो अतीत को भुला कर खुद में वसंत के भाव पैदा कर के दूसरे विवाह को भी प्रथम विवाह जैसा ही उमंगों से भर सकती है.

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Entertainment: गैजेट्स बनाम परिवार

आज किशोर अपनों से ज्यादा गैजेट्स के इतने अधिक आदी हो गए हैं कि उन्हें उन के बगैर एक पल भी रहना गवारा नहीं, भले ही अपनों से दूर रहना पड़े या फिर उन की नाराजगी झेलनी पड़े. अब तो आलम यह है कि किशोर सुबह उठते ही भले ही मम्मीपापा, दादादादी, बहनभाई से गुडमौर्निंग न कहें पर स्मार्टफोन पर सभी दोस्तों को विशेज का मैसेज भेजे बिना चैन नहीं लेते.

यह व्याकुलता अगर अपनों के लिए हो तो अच्छी लगती है, लेकिन जब यह वर्चुअल दुनिया के प्रति होती है जो स्थायी नहीं तो ऐक्चुएलिटी में सही नहीं होती. इसलिए समय रहते गैजेट्स के सीमित इस्तेमाल को सीख लेना ही समझदारी होगी.

गैजेट्स परिवार की जगह नहीं ले सकते

स्मार्टफोन से नहीं अपनों से संतुष्टि

आज स्मार्टफोन किशोरों पर इतना अधिक हावी हो गया है कि भले ही वे घर से निकलते वक्त लंच रखना भूल जाएं, लेकिन स्मार्टफोन रखना नहीं भूलते, क्योंकि उन्हें उस पर घंटों चैट जो करनी होती है ताकि पलपल की न्यूज मिलती रहे और उन की खबर भी औरों तक पहुंचती रहे. इस के लिए ऐडवांस में ही नैट पैक डलवा लेते हैं ताकि एक घंटे का भी ब्रेक न लगे.

भले ही किशोर गैजेट्स से हर समय जुड़े रहते हैं, लेकिन इन से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल पाती जबकि अपनों संग अगर हम आराम से आधा घंटा भी बात कर लें, उन की सुनें अपने मन की कहें तो भले ही हम पूरा दिन भी उन से दूर रहें तब भी हम संतुष्ट रहते हैं, क्योंकि उन की कही प्यार भरी बातें हमारे मन में पूरे दिन गूंजती जो रहती हैं.

गैजेट्स भावनाहीन, अपनों से जुड़ीं भावनाएं

चाहे आज अपनों से जुड़ने के लिए ढेरों ऐप्स जैसे वाइबर, स्काइप, व्हाट्सऐप, फेसबुक मौजूद हैं जिन के माध्यम से जब हमारा मन करता है हम दूर बैठे अपने किसी फ्रैंड या रिश्तेदार से बात करते हैं. दुखी होते हैं तो अपना दर्द इमोटिकोन्स के माध्यम से दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं.

भले ही हम ने अपनी खुशी या दर्द इमोटिकोन्स से शेयर कर लिया, लेकिन इस से देखने वाले के मन में वे भाव पैदा नहीं होते जो हमारे अपने हमारी दर्द भरी आवाज को सुन कर या फिर हमारी आंखों की गहराई में झांक कर महसूस कर पाते हैं. उन्हें सामने देख कर हम में दोगुना उत्साह बढ़ जाता है, जो गैजेट्स से हरगिज संभव नहीं.

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इंटरनैट अविश्वसनीय, अपने विश्वसनीय

भले ही हम ने इंटरनैट को गुरु मान लिया है, क्योंकि उस के माध्यम से हमें गूगल पर सारी जानकारी मिल जाती है लेकिन उस पर बिखरी जानकारी इतनी होती है कि उस में से सच और झूठ में फर्क करना मुश्किल हो जाता है, जबकि अपनों से मिली जानकारी भले ही थोड़ी देर से हासिल हो लेकिन विश्वसनीय होती है. इसलिए इंटरनैट के मायाजाल से खुद को दूर रख कर अपने बंद दिमाग के ताले खोलें और कुछ क्रिएटिव सोच कर नया करने की कोशिश करें.

गैजेट से नहीं अपनों से ऐंटरटेनमैंट

अगर आप के किसी अपने का बर्थडे है और आप उस के इस दिन को खास बनाने के लिए अपने फोन से उसे कार्ड, विशेज पहुंचा रहे हैं तो भले ही आप खुद ऐसा कर के संतुष्ट हो जाएं, लेकिन जिसे विशेज भेजी हैं वह इस से कतई संतुष्ट नहीं होगा, जबकि अगर यह बर्थडे वह अपने परिवार संग मनाएगा तो उसे भरपूर मजा आएगा, क्योंकि न सिर्फ गिफ्ट्स मिलेंगे बल्कि ऐंटरटेनमैंट भी होगा व स्पैशल अटैंशन भी मिलेगी.

गैजेट में वन वे जबकि परिवार में टू वे कम्युनिकेशन

जब भी हम फेसबुक या व्हाट्सऐप पर किसी को मैसेज भेजते हैं तो जरूरी नहीं कि उस वक्त रिप्लाई आए ही और अगर आया भी तो थंब सिंबल या स्माइली बना कर भेज दी जबकि आप उस मैसेज पर खुल कर बात करने के मूड में होते हैं. ऐसे में आप सामने वाले को जबरदस्ती बात करने के लिए मजबूर भी नहीं कर पाएंगे.

परिवार में हम जब किसी टौपिक पर चर्चा करते हैं तो हमें उस पर गुड फीडबैक मिलती रहती है, जिस से हमें कम्युनिकेट करने में अच्छा लगता है और सामने होने के कारण फेस ऐक्सप्रैशंस से भी रूबरू हो जाते हैं.

गैजेट्स से बेचैनी, अपनों से करीबी का एहसास

गैजेट्स से थोड़ा दूर रहना भी हमें गवारा नहीं होता, हम बेचैन होने लगते हैं और हमारा सारा ध्यान उसी पर ही केंद्रित रहता है तभी तो जैसे ही हमारे हाथ में स्मार्टफोन आता है तो हमारे चेहरे की मायूसी खुशी में बदल जाती है और हम ऐसे रिऐक्ट करते हैं जैसे हमारा अपना कोई हम से बिछुड़ गया हो.

यहां तक कि फोन की बैटरी खत्म होने पर या उस में कोई प्रौब्लम आने पर हम फोन ठीक करवाने का विकल्प होने के बावजूद अपने पेरैंट्स से जिद कर के नया फोन ले लेते हैं. इस से साफ जाहिर है कि हम गैजेट्स से एक पल भी दूर नहीं रहना चाहते, उन से दूरी हम में बेचैनी पैदा करती है.

हैल्थ रिस्क जबकि परिवार संग फिट ही फिट

हरदम गैजेट्स पर व्यस्त रहने से जहां आंखों पर असर पड़ता है वहीं कानों में लीड लगाने से हमारी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है. यहां तक कि एक सर्वे से पता चला है कि अधिक समय तक स्मार्टफोन और लैपटौप पर बिजी रहने वाले किशोर तनावग्रस्त भी रहने लगते हैं.

जबकि परिवार के साथ यदि हम समय बिताते हैं तो उस से स्ट्रैस फ्री रहने के साथसाथ हमें ज्ञानवर्धक जानकारियां भी मिलती रहती हैं, जो हमारे भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं.

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भारी खर्च जबकि परिवार संग मुफ्त टौक

आज यदि हमें गैजेट्स के जरिए अपना ऐंटरटेनमैंट करना है तो उस के लिए रिचार्ज करवाना पड़ेगा या फिर नैट पैक डलवाना पड़ेगा, जिस का भार हमारी जेब पर पड़ेगा.

जबकि परिवार में बैठ कर अगर हम अंत्याक्षरी खेलें या फिर अपनी बातों से एकदूसरे को गुदगुदाएं तो उस के लिए पैसे नहीं बल्कि अपनों का साथ चाहिए, जिस से हम खुद को काफी रीफ्रैश भी महसूस करेंगे.

इसलिए समय रहते पलभर की खुशी देने वाले गैजेट्स से दूरी बना लें वरना ये एडिक्शन आप को कहीं का नहीं छोड़ेगा साथ ही यह भी मान कर चलें कि जो मजा परिवार संग है वह गैजेट्स संग नहीं.

ताकि तलाक के बाद न हों बर्बाद

जब निशा और रमेश ने शादी के 15 साल बाद एकदूसरे से अलग होने का फैसला किया तब निशा को मालूम नहीं था कि उस के हक क्या हैं, किसकिस चीज पर उसे हक मांगना चाहिए और किस चीज पर नहीं. इसलिए उस ने घर की संपत्ति में से अपना हिस्सा नहीं मांगा, जिस पर दोनों का अधिकार था. चूंकि रमेश ने बच्चे निशा के पास ही रहने दिए तो घर की संपत्ति पर उस का ध्यान ही नहीं गया जबकि निशा भी कामकाजी थी और मुंबई के उपनगर मीरा रोड में दोनों जिस फ्लैट में रहते थे, उसे दोनों के कमाए गए साझे पैसे से खरीदा गया था.

दरअसल, तलाक के समय निशा इतनी टूट गई थी कि भविष्य की किसी सोचसमझ या आ सकने वाली परेशानी पर अपना ध्यान ही नहीं लगा सकी. वास्तव में तलाक इमोशनल लैवल पर ऐसी ही चोट पहुंचाता है. लेकिन इस के आर्थिक परिणाम और भी खतरनाक होते हैं.

तलाक के कुछ महीनों बाद ही निशा को एहसास हो गया कि वह बड़ी गलती कर बैठी है. कुछ ही दिनों की अकेली जिंदगी के बुरे अनुभवों से वह जान गई कि सारी संपत्ति रमेश को दे कर उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है. तब उस ने रमेश से अपना हिस्सा मांगा और याद दिलाया कि मकान उन दोनों ने मिल कर खरीदा था.

प्रौपर्टी पर कानूनन हक

कानून के मुताबिक, वैवाहिक जीवन के दौरान खरीदी गई कोई भी प्रौपर्टी पतिपत्नी दोनों की होती है. उस पर दोनों का ही मालिकाना हक होता है. याद रहे यह नियम तब भी लागू होता है, जब संपत्ति खरीदने में पत्नी की कोई भूमिका न हो. हां, मगर विरासत में मिली या कोई दूसरी प्रौपर्टी इस कानून के दायरे में नहीं आती. लेकिन जिन चीजों में पत्नी का हक बनता है उन में अगर सुबूत न भी हों तो भी उन में पत्नी को हक मिलता है.

निशा के मामले में प्रौपर्टी यानी मकान रमेश के नाम था. लेकिन घर के लिए गए लोन में वह सहआवेदक और सहऋ णी थी. साथ ही उस ने अपने अकाउंट से घर के लिए कई ईएमआई भी अदा की थीं. तलाक के बाद अभी तक उस ने होम लोन ईएमआई का ईसीएस मैंडेट भी खत्म नहीं किया था. इस वजह से पति से अलग होने के बाद भी 2 महीने तक होम लोन की 2 ईएमआई उस के खाते से निकल गईं. इसे देख निशा ने अपने बैंक को आगे की ईएमआई रोकने के लिए कहा. इस पर बैंक ने इस के लिए लंबाचौड़ा प्रोसैस बता दिया, जिसे पूरा किए बिना इसे रोक पाना मुमकिन नहीं.

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मुआवजे की मांग

तलाक के कुछ ही महीनों बाद सामने आ गई यह अकेली परेशानी नहीं थी. कई और परेशानियों ने उसे अचानक आ घेरा. दरअसल, निशा ने तलाक के वक्त पति से बच्चों की परवरिश के लिए किसी किस्म के मुआवजे की कोई मांग नहीं की थी. उस समय उसे लग रहा था कि वह जो कमाती है, उसी में कैसे भी कर के पूरा कर लेगी. उसे आर्थिक दिक्कत महसूस होने लगी.

निशा को बहुत जल्द समझ में आ गया कि उस ने अपना हक न मांग कर बड़ी गलती कर दी है.

अगर साथ रहना संभव न रह गया हो और तलाक लेना जरूरी बन गया हो तो किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, आइए जानते हैं:

अपना हिस्सा जरूर लें:

कानून के मुताबिक अगर शादी के दौरान कोई प्रौपर्टी  खरीदी गई है, तो उस में पतिपत्नी दोनों की बराबर की हिस्सेदारी होती है. भले किसी एक ने ही अपनी कमाई से उसे खरीदा हो. यह हिस्सा तब भी मांगें जब आप आर्थिक रूप से मजबूत हों, क्योंकि तलाक के बाद किसी की भी जिंदगी में बड़ा आर्थिक बदलाव आ सकता है. जब लग रहा हो कि अब तलाक हो ही जाएगा तो उस समय कुछ और आर्थिक सजगता अमल में लाना जरूरी है जैसे साझे बैंक अकाउंट्स और क्रैडिट कार्ड्स जितनी जल्दी हो बंद कर दें.

इस मामले में विकास मिश्र का अनुभव आप को बहुत कुछ बता सकता है. विकास का जब शादी के 3 साल बाद सुनीता से तलाक हो गया तो उस के कुछ दिनों बाद उसे कूरियर से मिला पत्नी के एड औन क्रैडिंट कार्ड का भारीभरकम बिल बहुत नागवार गुजरा. वह गुस्से में भड़क उठा.

उस ने एक पल को तो सोचा कि क्रैडिट कार्ड बिल फाड़ कर फेंक दे. पैसा वह किसी भी कीमत पर नहीं चुकाना चाहता था. लेकिन उस के फाइनैंस ऐडवाइजर ने बताया कि पेमैंट डिफाल्ट से उस के क्रैडिट स्कोर पर भारी असर पड़ेगा. इसलिए विकास ने वह बिल चुका कर अपने बैंक को फोन कर के उस क्रैडिट कार्ड को ब्लौक करने को कहा.

बकाया लोन चुकाएं:

जब राजेश और सुमन तलाक ले रहे थे, तो कार सुमन ने अपने पास रखी, जिस के लिए दोनों ने मिल कर लोन लिया था. कार की 11 ईएमआई बची हुई थीं. तलाक के बाद जब राजेश ने किस्तें देना बंद कर दीं तो लोन चुकाने के लिए बैंक की ओर से उन से संपर्क किया गया.

राजेश ने पैसा सुमन से वसूलने के लिए कहा. सुमन ने कर्ज की बाकी रकम चुका भी दी. फिर भी बैंक ने राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया. ऐसा क्यों किया गया. इस पर क्रैडिट इन्फौरमेशन ब्यूरो (सिबिल) में सीनियर अधिकारी कहते हैं कि अगर किसी कपल ने ज्वौइंट लोन लिया है, तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी दोनों की है. तलाक के बाद भी वे इस फाइनैंशियल लायबिलिटी से मुक्त नहीं हो सकते.

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क्रैडिट स्कोर पर रखें नजर:

अलग होने वाले कपल को अपने क्रैडिट स्कोर के बारे में खास सावधानी बरतनी चाहिए. अगर कोई ज्वौइंट लोन बकाया है, तो उस की पेमैंट को ले कर कभी भी विवाद हो सकता है. इस का असर दोनों के ही क्रैडिट स्कोर पर पड़ सकता है. यह तब भी हो सकता है जब बैंक अपना कर्ज वसूल ले.

राजेश और सुमन के मामले में राजेश ने सुमन के लिए ही कार का लोन लिया था और अंतत: चुकाया भी उसी ने. लेकिन इस के बाद भी राजेश डिफाल्टर हो गया, क्योंकि बुनियादी तौर पर किस्त वही भरता था. उसी की अकाउंट से जाती थी. मगर तलाक के बारे में उस ने बैंक को अपनी तरफ से सूचित नहीं किया और न ही ऐसे समय में पूरा किया जाने वाला प्रोसैस पूरा किया, इसलिए बैंक ने अपना कर्ज वापस पाने के बाद भी राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया.

दरअसल, डिवौर्स सैटलमैंट में किसी एक को लोन चुकाने के लिए भी अगर कहा जाता है, तो भी बैंक के साथ औरिजनल ऐग्रीमैंट नहीं बदलेगा. जिस में दोनों पार्टनर की लोन चुकाने की जवाबदेही है.

परिसंपत्तियों का बंटवारा:

अगर तलाक आपसी सहमति से होता है तो संपत्तियों के बंटवारे जैसी तमाम परेशानियों से बचा जा सकता है. हालांकि यह तभी हो पाता है, जब अलग होने वाले पार्टनर सही डिमांड करें. अलग होते वक्त दोनों को एसैट्स और लायबिलिटी की लिस्ट बना लेनी चाहिए. उन की मार्केट वैल्यू का ठीकठीक पता लगा लेना चाहिए.

कपल आपसी सहमति से इन सभी चीजों का बंटवारा कर सकते हैं और बकाया लोन के लिए जवाबदेही भी आपस में बांट सकते हैं. हालांकि यह काम करना इतना आसान नहीं है, जितना लगता है. फिर भी कोशिश की जाए तो दोनों को ही फायदा है. दोनों मिल कर तय कर सकते हैं कि पत्नी को घर मिले और दूसरे एसैट्स पति को.

ऐसा इसलिए क्योंकि पत्नी घर मिलने से खुद को आर्थिक तौर पर सुरक्षित महसूस करेगी. यह अलग बात है कि इस के बाद भी उसे फिक्स्ड इनकम की जरूरत होगी जो घर से नहीं मिल सकती. इसलिए पत्नी को ऐसे एसैंट्स की मांग करनी चाहिए. जिन से उसे नियमित इनकम हो सके.

वैसे समझदारी तो इसी में है कि रिश्ता बिगड़ने की तरफ बढ़े उस से पहले ही चौकन्ना हो घर को टूटने से बचा लें. अगर यह कतई मुमकिन न हो तो इन तमाम बातों का ध्यान जरूर रखें. ताकि तलाक के बाद बिलकुल बरबाद होने से बचा जा सके.

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कामयाबी की पहली शर्त

अगर आप को जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो रास्ता कितना भी कठिन हो आप उसे तय अवश्य कर सकती हैं. एक युवती तभी सफल हो सकती है जब उसे अपनी क्षमता के बारे में पूरी जानकारी हो और अपने काम पर पूरी तरह फोकस्ड हो.

पुरुषों के साथ उद्योग के क्षेत्र में काम करना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता जा रहा हो. अब और ज्यादा युवतियां अपना खुद का काम शुरू कर रही हैं. महिला हो या पुरुष दोनों की जर्नी शुरू में बराबर की होती है, जिस के लिए दोनों को परिवार का सहयोग जरूरी है. कई बार आप ऐसी परिस्थितियों में पड़ जाते हैं जब आप चाह कर भी वह काम नहीं कर पाते क्योंकि पिता या पत्नी या फिर भाईबहन विरोध करते हैं.

ऐसे में युवती को देखना है कि करना क्या है. कई ऐसी युवतियां हैं जिन्हें काम करने की आजादी तो है पर अगर समय से देर तक उन्हें काम करना पड़े तो उन के पति या बच्चे सहयोग नहीं देते. ऐसे में उन्हें सोचना पड़ता है कि आखिर उन के जीवन में क्या जरूरी है परिवार या कैरियर.

डबल इनकम

यही वजह है कि आज की बहुत युवतियां अच्छा कमाती हैं तो शादी नहीं करना चाहतीं जिम्मेदारी नहीं लेना चाहतीं. वे इन सुखों का त्याग अपने कैरियर के लिए करती हैं क्योंकि आज के जमाने में वित्तीय मजबूती उन के लिए परिवार से भी अधिक जरूरी है. इस का फैसला हर युवती को खुद लेना पड़ता है. डबल इनकम उन के जीवन में अच्छा सुख दे सकती है, यह उन्हें अपने पति और परिवार को समझेना पड़ता है. कई बार तो बात बन जाती है पर कई बार उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ती है.

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व्यवसायी परिवार से निकली और व्यवसायी परिवार में शादी हुई युवतियों को यह समस्या कम झेलनी पड़ती है क्योंकि ससुराल वाले समझेते हैं कि सफलता के लिए कितनी मेहनत करनी होती है और मां, सास, बहन या जेठानी साथ दे देते हैं.

अगर कोई युवती किसी अनूठे व्यवसाय में है जिस में कम महिलाएं हैं तो समस्या बढ़ जाती है. उसे पता रखना होता है कि कल क्या करना है और वह उसे करे.

हर कामकाजी युवती को हर उम्र में खूबसूरत दिखना चाहिए. जब भी समय मिले वह ‘स्पा’ में जाए. शारीरिक व मानसिक व्यायाम करे. तनावमुक्त और ऐनर्जेटिक रहे.

ऐसे मिलेगी सफलता

जो अपने खुद के बिजनैस में हैं वे अभी रिटायर्ड नहीं होते. हमेशा आगे काम करते जाना उद्देश्य होना चाहिए. नई जैनरेशन और पुरानी जैनरेशन के बीच तालमेल बैठा कर रखना जरूरी है. नई जैनरेशन हर काम को अलग तरीके से लेती है. पुरानी जेनरेशन की महिलाओं के नामों को धैर्य से सुनना चाहिए.

अपनी विचारधारा में परिवर्तन करना चाहिए ताकि मनमुटाव न हो क्योंकि कई बातें नई जैनरेशन की सही होती है जबकि कुछ बातें पुरानी. दोनों के मिश्रण से जो परिणाम सामने आता है वह हमेशा अच्छा ही होता है.

ध्यान रखें कि सफलता वह है जिस से व्यक्ति को खुशी मिले. जब भी कोई काम करें तो कैसे करना है और कितनी खुशी आप को उस से मिल रही है सोच सकेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी. सफलता एक दिन में कभी नहीं मिलती.

आज की युवतियां उद्योग के क्षेत्र में बहुत सफल हो सकती हैं क्योंकि आज की टैक्नोलौजी जैंडर नहीं पूछती.

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बदला है नजरिया

वैसे भी आज लोगों का नजरिया युवाओं के लिए बदला है. हमारे देश में अगर महिला औथौरिटी के साथ है तो उसे बहुत सम्मान मिलता है. यही वजह है कि भारत की राजनीति में भी ममता बनर्जी और प्रियंका गांधी वाड्रा जैसी महिलाएं काफी संख्या में हैं. आज उद्योगों में भी महिलाएं हैं बहुत बड़े घरानों की और नई पीढ़ी की बेटियां भी लगातार काम पर आ रही हैं.

आम महिला की तरह फैशन, ज्वैलरी, खाना सब पसंद करें. अपना फैमिनिज्म न छोड़ें. संगीत सुनें और किताबें अवश्य पढ़ें. पति और बच्चों के साथ समय अवश्य बिताएं. सासससुर और अपने मांबाप की बराबर देखभाल भी करें. 24 घंटे काम करना सफलता की पहली शर्त है.

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