रूठे मंगेतर को कैसे मनाएं

आप की सगाई हो चुकी है और शादी होने में कुछ वक्त बाकी है, तो ऐसे में आप मोबाइल पर एकदूसरे से बात भी करते होंगे या व्हाट्सऐप के जरिए संदेशों का आदानप्रदान करते होंगे. यदि मंगेतर उसी शहर में है, तो व्यक्तिगत रूप से मुलाकात भी होती होगी. यहां तक तो सब सामान्य है, लेकिन जब आप घंटों आपस में बतियाते हैं या रूबरू होते हैं तो जानेअनजाने कोई बात बुरी भी लग सकती है, जिस की वजह से मंगेतर रूठ सकता है.

यदि आप का मंगेतर आप से रूठ गया है तो क्या किसी बिचौलिए का इंतजार करेंगी या स्वयं इस की पहल करेंगी? कैसे मनाएंगी रूठे मंगेतर को?

रूठे मंगेतर को मनाना आसान भले ही न हो, लेकिन मुश्किल भी नहीं है. उस का आप से रूठना, नाराज होना थोड़े समय के लिए ही होता है, क्योंकि लंबे समय तक वह भी बात किए बिना नहीं रह सकता. हां, पुरुष होने का अहम उसे हो सकता है, इस के चलते वह सोचता है कि आप उसे मनाएंगी.

यदि आप दोनों के बीच असंवाद की स्थिति बनी हुई है, तो इसे लंबा न खींचें. कई बार यह रिश्ता टूटने का कारण भी बन जाती है. इसलिए सौरी कहने में देर न करें.

जब आप अकेली होती हैं और मोबाइल पर उस से बात करते नहीं थकतीं, तो कई बार कोई ऐसी बात निकल जाती है, जो उसे चुभ जाती है. यही नहीं फोन पर या व्हाट्सऐप पर आप झगड़ भी लेती हैं. इस लड़ाईझगड़े को आप तूल देती हैं तो रिश्ता टूटते देर नहीं लगती.

यदि छोटीमोटी बात को ले कर तकरार हुई भी हो तो उसे प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं. आप को लगता है कि गलती उस की है और उसे लगता है कि आप गलत हैं. इस का फैसला कौन करेगा? बेहतर होगा कि आप ही झुक जाएं ताकि उस का ईगो शांत हो जाए.

कई बार गलतफहमी की वजह से अर्थ का अनर्थ हो जाता है, जिस से बात का बतंगड़ बन जाता है. इस स्थिति से बचने और गलतफहमी दूर करने के लिए संवाद स्थापित करना बहुत जरूरी है.

रूठे मंगेतर को मनाना भी एक कला है और यदि यह कला आप को आती है तो आप को उसे मनाने में देर नहीं लगेगी. आप की एक मुसकराहट से उस का सारा गुस्सा काफूर हो जाएगा. बस, प्यार भरी दो बातें कर के तो देखिए, वह घुटनों के बल आप के सामने नतमस्तक न हो जाए तो कहिएगा, लेकिन यदि आप यह सोचती हैं कि मैं उसे क्यों मनाऊं? तो बैठी रहिए उस के इंतजार में. यह इंतजार कब खत्म होगा, कह नहीं सकते?

याद रहे, मानमनौअल से प्यार बढ़ता है और रिश्ते में मजबूती आती है. आप चाहें तो उसे मनाने के लिए किसी कवि, गीतकार की प्यार भरी कोईर् कविता, गजल उसे व्हाट्सऐप कर दें या फिर सुंदर खिला गुलाब या गुलदस्ता व्हाट्सऐप कर दें. हां, यदि व्यक्तिगत रूप से मिलना संभव हो तो उस के लिए गुलाब के साथसाथ कोई अच्छा तोहफा भी ले जाएं. और हां, उसे आई लव यू कहने में कोताही न बरतें.

दो बातें युवकों से

आप उस के होने वाले पति हैं. यदि वह आप से नाराज है, तो उस की नाराजगी दूर होने तक इंतजार करें.

यदि आप की मंगेतर किसी बात पर आप से रूठ जाती है तो क्या आप उसे नहीं मनाएंगे? अपने पुरुष अहम को छोड़ कर उसे मनाने की कोशिश करें. सौरी कह कर देखिए, वह मान जाएगी. एक सौरी सारे गिलेशिकवे दूर कर देती है.

युवतियां स्वभाव से काफी भावुक होती हैं. यदि मंगेतर रूठ जाए तो उन की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं लेते. क्या आप उस के आंसू पोंछने नहीं जाएंगे? उसे मनाने के लिए एक चौकलेट ही काफी है. युवतियां इस की दीवानी होती हैं तथा इसे प्रेम का प्रतीक भी मानती हैं. यदि व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात हो तो चौकलेट के साथ कोई अच्छा सा तोहफा और प्यार का प्रतीक गुलाब देना न भूलें.

– डा. अनुभा गुप्ता बडेस

बच्चों के बदलते रंगढंग, पेरेंट्स हो रहे तंग

राहुल के पेरैंट्स को उस समय गहरा सदमा लगा जब उन्हें पता चला कि उन के बेटे का लिवर खराब हो चुका है. उन्होंने 2 साल पहले राहुल को इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए बेंगलुरु भेजा था. अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा वे अपने लाड़ले की पढ़ाई पर खर्च कर रहे थे. उन्हें भरोसा था कि पढ़लिख कर राहुल का कैरियर संवर जाएगा. बेटे से मिलने जब वे बेंगलुरु पहुंचे तो डाक्टरों ने बताया कि काफी ज्यादा नशा लेने की वजह से राहुल का लिवर खराब हो गया है. यह सुन कर उन्हें झटका लगा. पढ़ने के बजाय राहुल नशाखोरी करता रहा. सिर पीटने के अलावा उन के पास कोई चारा न था.  इस तरह के ढेरो वाकए हैं कि जब मातापिता बेटे को पढ़नेलिखने के लिए बाहर भेजते हैं और बेटा नशे के जाल में फंस कर अपनी जिंदगी व कैरियर चौपट कर लेता है.

पटना के एक बैंक अधिकारी हीरा सिन्हा के साथ कुछ ऐसा ही हादसा हुआ. 4 साल पहले उन्होंने बड़े ही जतन से अपने इकलौते बेटे रौशन को मैडिकल की कोचिंग के लिए दिल्ली भेजा था.  वे हर महीने बेटे के बैंक अकाउंट में 10 हजार रुपए डाल देते और निश्ंिचत थे कि उन का बेटा मैडिकल की जम कर तैयारी कर रहा है. एक दिन उन के पास पुलिस का फोन आया कि उन के बेटे ने खुदकुशी कर ली है. दिल्ली पहुंचे तो पता चला कि शुरुआत में एक महीना कोचिंग करने के बाद वह कभी कोचिंग करने गया ही नहीं. शराब और ड्रग्स की चपेट में फंस कर उस ने अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली.

स्कूल, कालेज और कोचिंग क्लासेज करने वाले काफी ज्यादा बच्चे नशे के शिकार बन रहे हैं. जब नशे की वजह से किसी गंभीर और खतरनाक बीमारी की चपेट में आ जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि नशे ने उन का क्या बरबाद कर के रख दिया. ग्लानि और मातापिता के डर से कई खुदकुशी कर लेते हैं तो कईर् बीमारी का इलाज करातेकराते ही अपने जीवन का सुनहरा दौर खत्म कर लेते हैं.  रमेश कदम पटना में सैंकंड ईयर इंजीनियरिंग का स्टूडैंट है. पढ़ाई के दौरान ही उस की संगति नशेडि़यों से हो गई और शराब पीने की लत लग गई. उस की आंखें हमेशा लाल और चढ़ीचढ़ी रहने लगीं और वह बातबात पर चिड़चिड़ाने व झल्लाने लगा. घर वाले उसे डाक्टर के पास ले गए तो डाक्टर ने बताया कि रमेश नशे का आदी है. डाक्टर ने कहा कि नशामुक्ति केंद्र में डाल कर उस का इलाज कराएं.

बच्चे के रोज की दिनचर्या और उस की बदल रही गतिविधियों पर मातापिता को नजर रखनी चाहिए. बच्चे के रंगढंग में बदलाव दिखने पर सतर्क हो जाना चाहिए. नशा या किसी भी गलत काम करने वाला लड़का दिन या शाम में कोई खास समय पर घर से गायब होने लगता है. वह पढ़ाई करने, दोस्तों से नोट्स लेने, टीचर के पास जाने, दोस्तों द्वारा पार्टी देने आदि का बहाना बना कर रोज घर से निकलने लगेगा.  रोजरोज ऐसे बहाने बना कर बच्चा बाहर जाने की कोशिश करे तो शुरू में ही उसे समझाबुझा कर या हलकी डांटफटकार लगा कर पढ़ाई के लिए बैठने को कहें.  आखिर पढ़ाईलिखाई की उम्र में बच्चे कैसे और क्यों नशे के जाल में फंस जाते हैं? बच्चों के प्रति मातापिता और परिवार का ध्यान न देना इस की सब से बड़ी वजह है. ज्यादातर मातापिता बच्चों को किताब, कपड़े, मोबाइल, कंप्यूटर, रुपया दे कर अपनी जिम्मेदारी का खत्म होना समझ लेते हैं. जबकि उन्हें चाहिए कि रोज बच्चों के साथ बैठ कर पढ़ाई, टीचर, दोस्तों और उन के शौक के बारे में उन से बातें करें.

इस से बच्चा मातापिता और परिवार वालों से घुलामिला रहेगा. कभीकभार अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ मार्केटिंग, फिल्म देखने, डीवीडी लेने, पार्कों में घूमने भी जाएं, ताकि मनोरंजन के लिए उसे गलत रास्ता न अपनाना पड़े.  नशामुक्ति केंद्र में 6 माह तक इलाज करवा कर नशे से तोबा करने वाला रवि बताता है कि ग्रुप प्रैशर यानी दोस्तों के दबाव में उस ने शराब पीनी शुरू की. दोस्त उसे शराब पीने को कहते और वह मना करता तो उस की खिल्ली उड़ाई जाती. दूधपीता बच्चा, नामर्द, बबुआ और न जाने क्याक्या कहा जाता. इस से आजिज हो कर एक दिन शराब पी ली और फिर उस में ऐसा डूबा कि फिर निकलना मुश्किल हो गया.  मातापिता से आसानी से रुपया मिल जाना, कदमकदम पर आसानी से शराब, गुटखा, गांजा व नशे का अन्य सामान मिल जाना, पश्चिमी शैली की नकल, समाज में बढ़ता खुलापन, तनाव, अवसाद आदि वजहों से भी युवा नशे की गिरफ्त में फंसते हैं.

कम आयु में ही बच्चों को नशे की लत लगने से उन का जीवन, कैरियर, शरीर, परिवार और समाज पर काफी बुरा असर होता है. जिस आयु में उन्हें खुद को और परिवार व समाज को बनानेसंवारने का समय होता है, उस में नशाबाजी कर वे सब चौपट कर लेते हैं. सो, मातापिता को बच्चों के प्रति सतर्क होने की जरूरत है.

चेत जाएं मातापिता जब…

बच्चा बेसमय या किसी खास समय पर घर से रोज निकलने लगे.

अलमारी, दराज या आप के पौकेट से रुपए गायब होने लगें.

बच्चों की आंखें लाल और सूजी लगने लगें.

उलटी करें और नींद न आने की बात करें.

घर से कीमती सामान गायब होने लगें.

बाथरूम में ज्यादा समय गुजारें.

बच्चे सुबह देर से जगें.

परिवार के सदस्यों से दूरी बनाने लगें.

चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाएं.

खांसी का दौरा पड़ने लगे.

झूठ बोलने की आदत पड़ जाए.

क्या आपको पता हैं महिलाओं के ये 12 सीक्रेट

बहुत सी ऐसी बातें है जिसकी चाहत हर महिला को होती है लेकिन वो स्‍वयं इन्हें अपनी जुबां से कभी नहीं कहती. जैसे उनका प्रेमी उनके नखरे उठाएं, उनके आगे-पीछे घूमें, उन्हें महत्‍वपूर्ण समझें, उनकी हर बात मानें.

1. महिलाओं के सीक्रेट

महिलाओं का स्‍वभाव बहुत शार्मिला होता है. इसलिए उनके दिल की बात को जुबां तक आने में काफी समय लगता हैं. लेकिन बहुत सी बातें ऐसी है जो हर महिला चाहती हैं. जैसे अपने प्रेमी से प्‍यार और देखभाल की उम्‍मीद, साथ ही यह भी की उनका प्रेमी उनके नखरे उठाएं, उनके आगे-पीछे घूमें, उन्हें महत्‍वपूर्ण समझें, उनकी हर बात मानें. आइये इसके अलावा महिलाओं की सीक्रेट के बारे में जानें.

2. अपनी तारीफ सुनना

महिलाओं को हमेशा उनकी तारीफ करने वाले पुरुष बहुत अच्‍छे लगते हैं. ऐसे में उन्‍हें बहुत अच्‍छा लगता है जब प्रेमी उनमें किसी भी तरह का बदलाव दिखने पर तुरंत उनकी प्रशंसा करें. जैसे अगर महिला फिट दिखें, कोई नया हेयरकट करवाया हो या आकर्षक लगें, तो उनकी तारीफ जरुर करें.

3. ध्यान रखने वाला पुरुष

महिलाओं को केयर करने वाले पुरुष बहुत पसंद होते है. महिलाएं संवेदनशील होती है इसलिए उन्‍हें ऐसे ही पुरुष बहुत अच्‍छे लगते है. जो परेशानी के समय उनकी अच्‍छे से देखभाल कर सकें.

4. कपड़ों से प्रभावित होना

ज्‍यादातर महिलाएं पुरूषों को उनके पहनावे से भी पसंद करती है. इसलिए पुरुषों को चाहिए कि वह महिलाओं को अपने कपड़ों से प्रभावित करने की कोशिश करें. पुरुषों को हमेशा अपने सौंदर्य और कपडों पर ध्यान देना चाहिए. अगर, महिलाएं आपको टाइट जींस में देखना पसंद करती है, तो उनके लिए ज्यादातर टाइट जींस पहनें.

5. पुराने संबंधों के बारे में जानना

अगर महिलाएं आप से आपके पुराने संबंधों के बारे में बात करना चाहे, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आपने कुछ गलत किया है. अपने संबंधों के बारे में बात करने से ना डरें. यह तो आप दोनों के लिए अच्छी बात है, क्‍योंकि सच्चाई और लंबी बातचीत आप लोगों को एक दूसरे के करीब ला सकती है.

6. सुझावों को थोपें नहीं

अकसर पुरुष महिलाओं की समस्‍या सुने बिना अपने सुझावों को उनपर थोपने लगते हैं. पुरुष, अपने राय को उन पर थोप कर उनकी दुनिया को सीमित कर देते हैं. इसलिए अगर वह किसी बात से परेशान है, तो उन्हें सलाह देने से पहले उनकी बात को अच्‍छे से सुनें.

7. रिश्‍ते में रोमांस

महिलाएं अपने रिश्‍ते की कद्र करने के साथ रिश्‍ते में रोमांस को निरंतर बनाये रखना चाहती हैं. इसलिए यह जरूरी है कि आपका रिश्‍ता चाहे वह 5 म‍हीने से हो या 5 सालों से उसमें रोमांस को हमेशा बनाये रखें.

8. कमियों को जानना

महिलाओं को प्रशंसा करने वाले पुरुषों के साथ-साथ कमियां बताने वाले पुरुष भी पसंद होते हैं. जैसे, अगर महिला लंबे समय तक काम करने के बाद काफी थक गई हैं और चिडचिडापन महसूस कर रहीं हैं तो उस समय उनकी कमी को बताने वाले पुरुष पसंद आते हैं.

9. बातों को ध्‍यान से सुनना

महिलाएं अकसर यह जानने की कोशिश करती हैं कि उनकी बातों को आप कितनी ध्‍यान से सुनते हो और कैसे प्रतिक्रिया देते हैं. इसलिये महिलाओं से बात करते समय केवल सर हिलाना काफी नहीं है उनकी बात को महत्वपूर्ण ढंग से सुने.

10. सेक्स में उनकी चाहत

महिला अकसर सेक्‍स के बारे में बात करना और अपने साथी को खुश करना चाहती हैं. इसलिए आप भी सेक्‍स के दौरान वह करें जो महिला साथी चाहती है. इसके लिए विनम्र दृष्टिकोण अक्सर सबसे अच्छा होता है. पहले, यह पूछे कि वह क्या चाहती है. फिर अपनी इच्छा को सकारात्मक और सही तरीके से उनके सामने व्यक्त करें.

11. शिष्टता का व्‍यवहार

जब रोमांस की बात आती है तो बहुत सारी महिलाएं पुरुषों की पारंपरिक मर्दाना भूमिका ही पसंद करती है. जैसे लड़की बैठने के लिये खुद ही कुर्सी खीच सकती हो, लेकिन वह आपका इंतजार करती है कि आप उसको कुर्सी खींच कर दें. तो समय आ गया है कि आप उसकी नजरों में सज्जन पुरुष बन जाएं.

12. आपकी शर्ट उनके लिए प्यार का चुंबक

क्‍या आपकी महिला साथी आपके स्‍वेटर में सिकुड़ने या शर्ट में घुसने का प्रयास करती हैं. कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, महिलाओं को पुरुष के पसीने की गंध से आरामदायक प्रभाव पड़ता है. क्‍या आप महिलाओं के इस सीक्रेट के बारे में जानते हैं.

बच्चों को जरूर सिखाएं ये 5 बातें

आवश्यकता से अधिक बच्चों को बांध कर रखना बच्चों के विकास के लिए हानिकारक हो सकता है. दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है और बच्चों को हमेशा दुनिया की परेशानियों से दूर ऐसी दुनिया में नहीं रख सकते जहां उन्हें हमेशा यह महसूस हो कि सब बहुत अच्छा है. हाल ही में गुजरात के एक हीरा व्यापारी ने अपने इकलौते बेटे को खुद अपने बल पर कुछ कमाने के लिए कहा. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की 15 वर्षीया बेटी का सीफूड रेस्तरां में काम करना इस बात का प्रमाण है कि जीवन में शिक्षा के साथ और भी बहुतकुछ महत्त्वपूर्ण है. कुछ तरीकों से आप अपने बच्चे को आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बना सकते हैं, जैसे–

1. उन्हें सिखाएं कि ‘न’ कैसे कहना है :

यह सुननेपढ़ने में आसान लगता है पर न कहना सीखना वाकई मुश्किल होता है. दुनिया अपने हिसाब से हमें चलाने की उम्मीद रखती है. ऐसे में न कहने के लिए काफी हिम्मत चाहिए. बच्चों को जल्दी ही न कहना सिखा देना उन्हें कई चीजों में मदद करता है. उन्हें सिखाएं कि जो तुम्हें पसंद नहीं आ रहा है उस के बारे में वे साफसाफ कहें. इस से उन का आत्मविश्वास बढ़ेगा, कोई उन्हें हलके में नहीं लेगा. अगर न कहना नहीं आएगा तो उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. वे तनाव नहीं झेल पाएंगे, झूठ बोल सकते हैं या किसी की भी बातों में फंस सकते हैं.

2. घर में कभीकभी अकेला छोड़ें :

बहुत सारे मातापिता को घर में बच्चों को अकेला छोड़ना मुश्किल लगेगा लेकिन सीसीटीवी कैमरा, आप के फोन कौल्स, पड़ोसी, इन सब सुरक्षाओं के साथ आप थोड़ा निश्चिंत हो सकते हैं. एक पेपर पर इमरजैंसी नंबर लिख कर रखें. बच्चों को गैस रैगुलेटर बंद करना सिखाएं. उन्हें फिनायल, कीटनाशक दवाओं या इस तरह की चीजों से दूर रखना सिखाएं. सब से जरूरी बात, उन्हें दरवाजा खोलने से पहले पीपहोल का प्रयोग करना सिखाएं.

10 वर्षीया बेटी की मां सरिता शर्मा कहती हैं, ‘‘कभीकभी बैंक या सब्जी या कुछ और खरीदने के लिए बेटी को घर में छोड़ कर जाना पड़ता है. इसलिए मैं ने उसे डिलीवरी बौयज या किसी अजनबी के लिए दरवाजा खोलने से मना किया हुआ है. दूसरा, यदि मैं घर पर नहीं हूं तो कोई लैंडलाइन पर फोन करता है तो उसे समझाया है कि वह यह कहे कि मम्मी व्यस्त हैं और बस, वह मैसेज ले ले. इस से बच्चे अपना समय ज्यादा अच्छी तरह बिताना सीख लेते हैं और अपनेआप ही उन्हें कई काम करने आ जाते हैं.’’

3. घूमने और अनुभव लेने दें :

चाहे कौमिक पढ़ना हो, मूवी देखना हो, कैंप में जाना हो या ट्रैकिंग के लिए जाना हो, उन्हें  मना न करें. उन से अपनी पसंद की पुस्तकें चुनने के लिए कहें. उन से दोस्तों के साथ समय बिताने दें. उन पर हमेशा हावी न रहें. उन्हें भविष्य में बड़े, महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे. 4 वर्षीय बेटे के पिता गौरव कपूर कहते हैं, ‘‘जब मेरा बेटा 7 साल का था तब से ही मैं उसे अपनी बिल्डिंग में नीचे ही सामान खरीदने भेज दिया करता था. उसे स्कूल एजुकेशनल ट्रिप पर भी भेजा करता था. वह अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा आत्मनिर्भर है और बातचीत करने में उस में बहुत आत्मविश्वास है.’’

4. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बारे में बताएं :

अंजू गोयल ने अपने 2 साल के बेटे का जन्मदिन अपने पति के साथ मुंबई में ‘बैस्ट’ बस में बिताया. वे कहती हैं, ‘‘जब भी हम बाहर जाते हैं, मेरा बेटा बस को बहुत शौक से देखता है. मैं ने सोचा अपने जन्मदिन पर वह बस में बैठ कर खुश होगा और वह बहुत खुश हुआ भी. जब वह और बड़ा होगा, मैं उस से पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करने के लिए ही कहूंगी.’’ भले ही आप अपने बच्चे को कार का आराम देना चाहें, उन्हें पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बारे में बताना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. सामान्य ट्रैफिक नियम बताएं, सड़क के शिष्टाचार सिखाएं.

5. यदि ऐसा हो तो :

जीवन में कई स्थितियों में अपने बच्चों को ऐक्सिडैंटप्रूफ बनाने के लिए, ‘यदि ऐसा हो जाए’ वाली स्थिति से निबटने के लिए समझाएं. 8 और 10 साल के बच्चों की मां रीता शर्मा कहती हैं, ‘‘हम दोनों कामकाजी हैं. हमारे बच्चे डेकेयर में रहते हैं. मैं ने बच्चों को लोकप्रिय गानों की ट्यून पर इमरजैंसी नंबर, पास में रहने वाले रिश्तेदारों के नंबर बताए हैं. अब जब गाना बजता है, वे नंबर दोहराने लगते हैं.’’ बच्चों को अजनबियों से सचेत रहने के लिए कहें. उन्हें असुरक्षित जगहों के बारे में बताएं. अपने घर के आसपास महत्त्वपूर्ण लैंडमार्क समझा दें. भले ही वे सुरक्षित माहौल में हों, आप खुद भी उन पर, उन के आसपास की चीजों पर नजर जरूर रखें. उन की बातें ध्यान से सुनें, उन्हें अपना समय दें.

सिंगल लाइफ बेहतर या मैरिड लाइफ

अकेलेपन और सिंगल लाइफ को अकसर लोग एकदूसरे से जोड़ कर देखते हैं. व्यक्ति सिंगल है, इस का मतलब उस की जिंदगी बेहद नीरस, एकाकी और बेचारगीपूर्ण होगी. लोग उसे दया की दृष्टि से देखने लगते हैं. शादी हो जाना यानी जिंदगी की एक बड़ी उपलब्धि या फिर यों कहें कि जिंदगी वास्तव में संपूर्ण होने की पहली शर्त.

सिंगल व्यक्तियों को लोग अधूरा मानते हैं, भले ही शादी किसी ऐसे शख्स से ही क्यों न हो जाए जो किसी भी तरह उस के लायक न हो. शादीशुदा हो जाना ही एक अचीवमैंट माना जाता है.

मगर आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि बहुत से लोग ऐसे हैं, जो स्वयं अपनी इच्छा से कुंआरा रहना पसंद करते हैं. उन के लिए शादी से कहीं और बड़े मकसद जिंदगी में होते हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं, जो गलत व्यक्ति के साथ जीने के बजाय सिंगल लाइफ जीना ज्यादा पसंद करते हैं.

एक टीवी चैनल में ऐसोसिएट ऐडिटर, 35 वर्षीय निकिता राज कहती हैं, ‘‘मुझ से अकसर लोग पूछते हैं कि अब तक शादी क्यों नहीं हुई तुम्हारी? तो मैं जवाब देती हूं कि दरअसल अभी मैं ने शादी करने के बारे में सोचा ही नहीं.’’

सामान्य रूप से देखा जाए तो इन 2 वाक्यों में कोई खास अंतर नहीं दिखता. मगर जब आप इन में छिपे अर्थ पर गौर करेंगे तो काफी अंतर दिखेगा. शादी नहीं हुई यानी बेचारगी. कोशिश तो की पर कहीं बात बन नहीं पाई, किसी ने आप को पसंद नहीं किया. वहीं दूसरी तरफ शादी नहीं की यानी अभी वक्त ही नहीं मिला इस बारे में सोचने का.

इस संदर्भ में कोलंबिया एशिया हौस्पिटल और अपोलो क्लीनिक के कंसलटैंट व द रिट्रीट रिहैबिलिएशन सैंटर, मानेसर के निदेशक व मुख्य मनोरोग चिकित्सक, डा. आशीष कुमार मित्तल कहते हैं, ‘‘कई वजहों से आजकल लोग काफी समय तक अविवाहित रहते हैं, जिन में प्रमुख वजहें हैं, व्यक्तिगत मरजी, कैरियर को अधिक तरजीह देना, अतीत में प्रेम का कटु अनुभव, चिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक समस्याएं वगैरह.’’

ऐसा जरूरी नहीं कि जो अविवाहित हैं, वे खुश नहीं रह सकते. डा. आशीष कहते हैं, ‘‘पश्चिमी देशों में करीब आधी शादियों का अंत तलाक में ही होता है. इसलिए शादी करना सामाजिक जीवन में सफल होने का एकमात्र तरीका नहीं. दोनों ही विकल्पों में जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह ही अलगअलग जोखिम हैं. बहुत से लोग हैं जो भावनात्मक रूप से शादीशुदा युवक या युवती की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि परिवार का वंश बढ़ाने के लिए हमें शादी करनी चाहिए, एक बच्चे को जन्म देना चाहिए. जबकि कुछ लोग बच्चे को गोद लेना पसंद करते हैं ताकि इस दुनिया में वे कम से कम एक अनाथ बच्चे का जीवन सुधार सकें.’’

सिंगल लाइफ की वकालत करने वाली और इसी विषय पर किताब लिख चुकीं सोशल साइकोलौजिस्ट बेला डी पाउलो के मुताबिक, ‘‘यदि इसी तरह का अध्ययन विवाहित जिंदगी की तारीफ में छपा होता तो इसे काफी लंबीचौड़ी मीडिया कवरेज मिलती. मगर चूंकि यह अध्ययन सिंगल लाइफ के समर्थन में छपा था, इसलिए इसे कोई मीडिया अटैंशन नहीं मिला.’’

विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि विवाहित जिंदगी में कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज का रिस्क स्त्रीपुरुष दोनों के लिए 2% तक बढ़ जाता है.

अधिक लंबी शादी के साथ कम हैल्दी बिहैवियर जुड़ा हुआ है, जो हाइपरटैंशन, डायबिटीज और हाई कोलैस्ट्रौल आदि के लिए जिम्मेदार है.

फायदे और भी

तनाव की कमी: एक विवाहित की जिंदगी में तनाव की कमी नहीं रहती. बच्चों के जन्म से ले कर लालनपालन, शिक्षा और फिर रिश्तों को निभाने की जंग उन्हें मुश्किल में डाले रखती है. जबकि सिंगल लाइफ इन समस्याओं से दूर होती है.

– अविवाहित ज्यादा स्वस्थ रहते हैं. अध्ययनों के मुताबिक, सिंगल व्यक्ति अधिक ऐक्सरसाइज करते हैं. वे स्वयं को ज्यादा फिट रख पाते हैं.

– अध्ययनों में यह पाया गया कि शादी के बाद महिलाएं मोटी हो जाती हैं. जबकि अविवाहित महिलाएं बेहतर ढंग से अपनी फिगर और हैल्थ मैंटेन कर पाती हैं.

– महिलाएं जो सदैव अविवाहित रही हैं उन की ओवरऔल हैल्थ ज्यादा बेहतर रहती है. नैशनल हैल्थ इंटरव्यू की स्टडी में पाए गए निष्कर्षों के मुताबिक, अविवाहित महिलाएं बुखार या दूसरी आम बीमारियों के कारण बैड पर कम समय रहती हैं.

ज्यादा सामाजिक: शादी के बाद इनसान अपने दोस्तों और अभिभावकों से कम कनैक्टेड रह जाता है. यह सिर्फ तुरंत शादी के बाद ही नहीं वरन इस के कई सालों बाद भी यह स्थिति बनी रहती है.

– वे लोग जो सदैव अविवाहित रहे हैं, वे अपने दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों से ज्यादा विनीत और उदार पाए गए, उन के बजाय जो विवाहित हैं.

– सिंगल लोगों के सिविक और्गनाइजेशंस के लिए वौलंटियर करने की संभावना ज्यादा होती है.

– पुरुषों पर की गई एक स्टडी के मुताबिक, विवाहित पुरुष वैसे काम कम करते हैं, जिन में मौद्रिक लाभ न छिपा हो.

– फ्रिन कौर्नवैल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि सिंगल व्यक्ति विवाहितों की तुलना में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ कम समय बिताते हैं. 2000 से 2008 के बीच 35 से ऊपर की आयु पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि पार्टनर के साथ रहने वाले लोग दोस्तों के साथ अपनी शामें नहीं बिता पाते.

– लोग सिंगल लोगों की कंपनी ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वे ज्यादा इंट्रैस्टिंग और फन लविंग होते हैं जबकि विवाहित अपनी पारिवारिक समस्याओं से त्रस्त नजर आते हैं. इसलिए उन की बातों में समस्याएं ज्यादा नजर आती हैं.

– सिंगल व्यक्ति अकेले ज्यादा वक्त बिता पाते हैं, इसलिए उन्हें अकेले में सोचने और खुद का साक्षात्कार करने का वक्त ज्यादा मिलता है. सिंगल लोगों को अकेलापन हासिल होता है, जो क्रिएटिविटी के लिए बहुत जरूरी है. हमारे बहुत से महान कलाकार और लेखकों ने इस एकाकीपन के फायदे पर काफी कुछ लिखा है.

– सिंगल व्यक्ति दुनिया को बदल रहे हैं. यूरोप, जापान, अमेरिका में अकेले रहने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 50 सालों में यह बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन है. यूएस सैंसस ब्यूरो के मुताबिक, 2012 में वहां की ऐडल्ट पौपुलेशन का करीब 47% अविवाहित था.

कुछ बातें, जिन्हें करने से सिंगल महिलाओं को बचना चाहिए :

टाइमटेबल फ्रेम कर के जीना

जिंदगी में कभी हम स्वयं तो कभी हमारे हितैषी हमारे लिए एक टाइमटेबल सैट कर देते हैं. इस उम्र में पढ़ाई, इस उम्र में शादी तो इस उम्र में बच्चे. वैसे तो जिंदगी में सब कुछ समय पर होना जरूरी है, मगर कई दफा इस तरह की अपेक्षाएं जिंदगी को बहुत ही रोबोटिक बना डालती हैं और यदि समय पर कुछ करने में सफल न हो पाएं तो मानसिक तनाव पैदा हो जाता है.

क्या करना चाहिए: स्वस्थ या पौजिटिव अपेक्षाएं तो स्वीकार कीजिए, मगर जिन पर हमारा वश नहीं उन की वजह से नैगेटिव सोच डैवलप करने से बचें. अपनी मैंटल अलार्म क्लौक को बंद कर दीजिए और वर्तमान में जीने का प्रयास कीजिए, जो हालात मिले हैं उन्हीं में बेहतरीन जिंदगी जीने का प्रयास करें. भविष्य की योजना तो बनाएं पर अपने आज को नजरअंदाज न करें. प्यार और शादी होनी है तो किसी भी उम्र में हो जाएगी, इन मामलों में स्वयं को स्वतंत्र छोड़ दें. फिर देखिए, जिंदगी खूबसूरत रूप में सामने आएगी.

साथ का इंतजार

कई महिलाएं जो स्काई डाइविंग, ट्रैवलिंग या दूसरे रोमांचक ट्रिप्स में रुचि रखती है, मगर सिर्फ इस वजह से निकलने में हिचकिचाती हैं, क्योंकि उन के साथ कोई नहीं. यह सच है कि प्रेमी या पति और बच्चों के साथ घूमने का मजा कुछ और होता है, मगर सिर्फ इस वजह से कि आप को अकेला घूमता देख कोई क्या सोचेगा, अपनी इच्छाओं को होल्ड पर रखना कतई समझदारी नहीं. जिंदगी बहुत छोटी है.

क्या करना चाहिए: आप सुरक्षाचक्र के बंधन से बाहर निकलें. कभीकभी सब से बेहतर अनुभव अपने हिसाब से कुछ करने से होता है. जब आप 10 लोगों के बीच होते हैं, तो आप एक घिसेपिटे अंदाज से व्यवहार करने को बाध्य होते हैं, मगर जब आप अपनी इच्छा से अकेले, अपने हिसाब से निकलती हैं तो आप वह सब कर पाती हैं, जो कभी न करतीं. ऐसा करना जरूरी भी है, क्योंकि इस से आप को अपनी क्षमताओं के बारे में पता चलता है.

स्वयं को पहचानें

प्रत्येक शख्स किसी खास मकसद के साथ इस दुनिया में आया है. यदि आप सिंगल हैं तो इस का तात्पर्य यह है कि संभवतया अकेले रह कर ही आप अपना मकसद पा सकती हैं. तभी आप की सोच और परिस्थितियां इस के अनुरूप हैं, यह भी हो सकता है कि आने वाले समय में आप स्वयं शादी के बंधन में बंध जाएं, मगर जब तक सिंगल हैं, अपने इस स्टेटस का पौजिटिव यूज करें. नैगेटिव न सोचें. ऐसी स्थिति में आप के पास सलाहों का अंबार लग सकता है. यह आप को सोचना होगा कि आप को सलाहों के हिसाब से अपनी जिंदगी जीनी है या अपनी शर्तों पर.

सपोर्ट नैटवर्क मजबूत बनाएं

हम सब की जिंदगी में दोस्त बहुत बड़े सपोर्ट सिस्टम का काम करते हैं. अपने सामाजिक दायरे को बढ़ाएं. पासपड़ोस, रिश्तेदार, कुलीग्स और दोस्तों के साथ मजबूत नैटवर्क कायम करें. फिर देखिए, आप को कभी अकेलेपन का एहसास नहीं होगा.

मस्ती भी करें

आप अकेली महिला हैं, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप जिंदगी ऐंजौय न करें. उन कामों के लिए समय निकालें जो आप को खुशी देते हैं. रोमांटिक नौवल्स पढ़ें, मूवी देखें, लड़कियों के साथ मिल कर नाइट पार्टी करें, अपनी हौबी को समय दें, नियमित ऐक्सरसाइज करें, स्वयं को पैंपर करें, हर सप्ताह एक नए व्यक्ति से मिलने और परिचय बढ़ाने का नियम बनाएं. ग्रुप में ट्रैवलिंग के लिए निकलें, वूमंस कौन्फ्रैंस अटैंड करें. ग्रुप ट्रैवलिंग आप के लिए अच्छा जरीया हो सकता है, क्योंकि जब आप ग्रुप में ट्रैवल करती हैं तो नई जगहों के बारे में जानने के साथसाथ नए लोगों के बारे में भी जानती हैं.

हम ऐसा कतई नहीं कह रहे कि सिंगल लाइफ मैरिड लाइफ की तुलना में ज्यादा बेहतर है. वस्तुत: शादी करना गलत नहीं, मगर उस के साथ करना सही है, जिस के साथ आप कंफर्टेबल महसूस करती हों,  जो आप की भावनाओं को समझता हो, आप जैसी सोच रखता हो, जिस से आप प्यार करती हों.

जिंदगी ने हमें जो भी परिस्थिति दी है, उसे सकारात्मक रूप में देखें. क्योंकि जो वर्तमान में आप को मिला है, वह आप के लिए सब से अच्छा है. ये लमहे फिर लौट कर नहीं आएंगे. इन्हें लाइक कीजिए.

सास के साथ

आप जल्दीजल्दी नहाधो कर किचन में घुसती हैं और सब की पसंद की डिशेज बनाने लगती हैं, मगर पीछे से सास की चिकचिक भी आप लगातार सुन रही हैं. वे न तो आप के बनाने के सलीके से खुश हैं और न ही तैयार खाने से.

– सास का तीखा स्वर आप के कानों में पड़ता है कि कैसा जमाना आ गया है, अब तक बहू सो रही है और मुझे चाय बनानी पड़ रही है.

– आप औफिस जा कर भी अपनी सास की बातों को नहीं भूल पातीं. उन की बातें आप के कानों में गूंजती रहती हैं.

– घर जा कर आप को सास का भड़का चेहरा देखने को मिलता है. किचन जैसे की तैसी पड़ी है. आप सफाई और खाना बनाने में जुट जाती हैं. उधर बच्चा पूरा वक्त आप को डिस्टर्ब करता रहता है.

बिना सास के

आप आराम से उठ कर चाय बना कर पीती हैं. फिर अपना मनपसंद नाश्ता बनाती हैं. घर में मां हैं तो शानदार नाश्ता तैयार मिल जाता है.

– आप की अभी उठने की इच्छा नहीं है. अत: आप करवट बदल कर फिर से सो जाती हैं.

– औफिस जा कर आप सुकून के साथ अपना काम करती हैं.

– आप घर जाती हैं तो मम्मी ने खाना बना कर रखा है. होस्टल में हैं या फ्रैंड के साथ रूम ले कर रह रही हैं तो भी नजारा बहुत अलग होगा.

2010 में प्रकाशित, प्यू रिसर्च रिपोर्ट के निष्कर्ष काफी रोचक हैं. इस नैशनल सर्वे में सिंगल लोगों से की गई बातचीत के आधार पर पाया गया कि इन में से केवल 46% लोग ही शादी करने के इच्छुक थे. 25% लोगों ने कहा कि वे शादी करना ही नहीं चाहते, क्योंकि उन्होंने अपनी इच्छा से अकेले रहने का निर्णय लिया है. बाकी के 29% लोग इस बारे में दुविधा में थे कि वे मौका मिलने पर शादी करेंगे या नहीं.एक नजर विवाहित और अविवाहित महिला की जिंदगी पर

विवाहिता की दिनचर्या

सुबह 6.00 बजे

बच्चे को चुप कराने के चक्कर में आप सो नहीं पाईं. बच्चे ने बिस्तर गंदा कर रखा है. न चाहते हुए भी आप को उठना पड़ता है.

सुबह 6.30 बजे

– आप बच्चे को थोड़ी देर और सुलाना चाहती हैं, मगर वह सोने को तैयार नहीं. जाहिर है, आप भी बिस्तर छोड़ कर फ्रैश होने चली जाती हैं.

सुबह 7.00 बजे

– आप ने आज नाश्ते में आलू के परांठे बनाए हैं. मगर बड़ी बेटी परांठे खाने को तैयार नहीं. वह चाउमिन की रट लगाए बैठी थी.

सुबह 8.00 बजे

आप नहाने जा रही हैं और टब में पानी भर कर आती हैं. कपड़े ले कर अंदर घुसती हैं तब तक छोटू टब में साबुन डाल देता है.

सुबह 9.00 बजे

– आप तेजी से सीढि़यां चढ़ कर जा रही हैं. मगर आप ने यह नहीं देखा कि बच्चे ने वहां तेल गिरा रखा है. आप फिसल कर गिर पड़ती हैं.

सुबह 10.00 बजे

बच्चे को चुप करा कर आप मेकअपरूम में आती हैं. मगर वहां सारा मेकअप का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा है.

पूरा दिन

– आप पूरा दिन बच्चे और घर के टैंशन में हैं कि कैसे जल्दी घर पहुंचें और बच्चे को संभालें.

शाम 6.30 बजे

– आप जल्दी से किचन में घुस जाती हैं. आप सब्जी काट रही हैं और बच्चा कटी सब्जी फेंक रहा है, बरतन इधरउधर फेंक रहा है. आधे घंटे के काम में 1 घंटा लग जाता है.

संडे

आप ने कहीं घूमने का प्रोग्राम तय किया, मगर बच्चा वहां जाने को तैयार नहीं. वह जू में जाने की जिद कर रहा है.

 

अविवाहिता की दिनचर्या

सुबह 6.00 बजे

सुबह उठ कर आप ने घड़ी देखी और करवट ले कर फिर सो गईं. उठने की कोई हड़बड़ी नहीं है.

सुबह 6.30 बजे

– अभी आप ने अपनी नींद तोड़ी है. उठ कर फिर सोने का जो मजा है, उसे कैसे छोड़ सकती हैं.

सुबह 7.00 बजे

– आप आराम से सो कर उठीं और तकिया दूर फेंका. फिर रात को देखा हुआ सपना याद कर मुसकराने लगीं.

सुबह 8.00 बजे

आप अपना बिस्तर और कमरा ठीक करने के बाद नहाने चली जाती हैं. इस बीच मां ने गीजर औन कर दिया है.

सुबह 9.00 बजे

– आप जब तक नहा कर निकलती हैं, तब तक मम्मी या रसोइए ने नाश्ता तैयार कर रखा होता है.

सुबह 10.00 बजे

आप अपनी स्कूटी निकालती हैं और अपनी सहेली को साथ ले कर औफिस के लिए निकल जाती हैं.

पूरा दिन

– पूरी तत्परता के साथ दिन भर औफिस का काम करती हैं और दोस्तों के साथ हंसीमजाक में भी शरीक होती रहती हैं.

शाम 6.30 बजे

– आप आराम से शाम को अपनी सहेली के घर से खा कर लौटती हैं या घर जा कर चायनाश्ते के बाद किचन में मां की सहायता करती हैं, फिर टीवी पर मनचाहा प्रोग्राम देखने लगती हैं.

संडे

आप अपनी इच्छानुसार दोस्तों के साथ मूवी और शौपिंग का प्रोग्राम बनाती हैं. फिर डिनर कर के घर लौटती हैं.

आप डैमीसैक्सुअल तो नहीं, अगर हां तो पढ़ें ये खबर

आप ने अब तक सैक्सुअलिटी को ले कर कई शब्द सुने होंगे जैसे बाईसैक्सुअल, पैनसैक्सुअल, पौलिसैक्सुअल, असैक्सुअल, सेपोसैक्सुअल और भी कई तरह के शब्द. पर अब एक और नया शब्द सैक्सुअलिटी को ले कर एक नए रूप में आ रहा है और वह है डैमीसैक्सुअल. ये वे लोग हैं जो असैक्सुअलिटी के कगार पर हो सकते हैं पर पूरी तरह से अलैंगिक नहीं हैं. यदि आप किसी से सैक्सुअली आकर्षित होने से पहले अच्छे दोस्त होना पसंद करते हैं तो आप निश्चित रूप से डैमीसैक्सुअल हैं.

सैक्सुअलिटी की पहचान

यह जानने के कई तरीके हैं कि आप डैमीसैक्सुअल हैं या नहीं. सब से मुख्य तरीका यह है कि जब तक आप किसी से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ते, आप सैक्सुअल फीलिंग्स महसूस नहीं करते. आप के लिए भावनाएं महत्त्वपूर्ण हैं. आप सारी उम्र एक ही व्यक्ति से संबंध बना कर रह सकते हैं. आप प्रयोग से डरते हैं.

आप सैक्सुअल इंसान नहीं हैं, इस में कोई बुराई नहीं है. सैक्स के पीछे भागने से ज्यादा आप को जीवंत, वास्तविक बातचीत करना ज्यादा अच्छा लगता है. यदि आप किसी से रिलेशनशिप में हैं और उस से इमोशनली जुड़ हुए हैं तभी आप अपने पार्टनर के प्रति सैक्सुअली आकर्षित होते हैं. यदि आप सिंगल हैं, तो आप निश्चित रूप से सैक्स से ज्यादा पार्क में एक अच्छी सैर या अपनी पसंद की कोई चीज खाना पसंद करेंगे.

जिसे आप पसंद करती हैं, उस से मिलने के बाद आप उस के व्यक्तित्व से प्रभावित होंगी, उस के लुक्स से नहीं, इसलिए किसी भी चीज से पहले आप की उस से दोस्ती होगी. आप किसी से मिलने पर सैक्सुअल होने या फ्लर्टिंग में विश्वास नहीं रखते. यदि एक व्यक्ति ने आप को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित किया है तो आप पहले दोस्ती में अपना हाथ बढ़ाएंगे. घंटों, हफ्तों, महीनों में ही डेटिंग शुरू करने की आप सोच भी नहीं सकते, फ्लर्टिंग आप के दिमाग में आती ही नहीं है.

आकर्षण के प्रकार

आकर्षण 2 तरह का होता है-प्राइमरी और सैकेंडरी. प्राइमरी आकर्षण में आप किसी के लुक्स से आकर्षित होते हैं और सैकेंडरी आकर्षण में आप किसी के व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं. यदि आप डैमीसैक्सुअल हैं तो आप निश्चित रूप से सैकेंडरी पर्सनैलिटी टाइप में फिट बैठते हैं. अब इस का मतलब यह नहीं है कि आप को कोई आकर्षित नहीं करता. बहुत लोग आप को आकर्षक लगे होंगे पर आप लुक्स पर ही संबंध नहीं बना सकते. आप तभी आगे बढ़ते हैं जब किसी का व्यक्तित्व आप को प्रभावित करता है.

जब आप के दिल में किसी के लिए फीलिंग्स पैदा होने लगती हैं, विशेषरूप से सैक्सुअल फीलिंग, तो आप दुविधा में पड़ जाते हैं, क्योंकि आप उतने सैक्सुअल पर्सन नहीं हैं. आप नहीं जानते कि इन फीलिंग्स पर क्या प्रतिक्रिया दें या उस व्यक्ति से कैसे शारीरिक कनैक्शन बनाएं. एक बार आप घबराहट और दुविधा की स्थिति से बाहर निकल गए, तो आप अपने पार्टनर से ही सैक्स करना चाहेंगे और किसी से भी नहीं. किसी से सैक्सुअली खुलने के लिए उसे बताएं कि आप उसे कितना प्यार करते हैं, क्योंकि आप बहुत भावुक हैं और फिर सैक्स आप दोनों के लिए बहुत कंफर्टेबल हो जाएगा.

लोगों का आप के प्रति नजरिया

क्योंकि आप सैक्स को ले कर ज्यादा नहीं सोचते, लोग सोच सकते हैं कि आप विवाह होने का इंतजार कर रहे हैं. वे आप को घमंडी और पुराने विचारों का समझ सकते हैं पर इस से आप विचलित न हों. जैसे हैं वैसे ही रहें. आप किसी स्विच को औनऔफ करने की तरह किसी से भी सैक्स नहीं कर सकते. लोगों को अपने मनोभावों पर स्पष्टीकरण देने की चिंता में पड़ें ही नहीं. आप को अपने आसपास हाइली सैक्सुअल लोगों से कोई समस्या भी नहीं होती है. बस आप स्वयं इस स्थिति से खुद को दूर रखते हैं, क्योंकि आप वैसे नहीं हैं. आप सही इंसान का इंतजार कर रहे हैं और अपना जीवन उस के साथ ही सैक्स कर के बिताना चाहते हैं. इस में कुछ भी गलत नहीं है.

डैमीसैक्सुअल होने का मतलब यह नहीं है कि आप को सैक्स पसंद नहीं है. आप को सैक्स पसंद है, सब को सैक्स पसंद होता है पर आप उसी के साथ सैक्स करना चाहते हैं जिस से आप का भावनात्मक जुड़ाव हो. जब सही इंसान आप को मिलता है, आप सैक्सुअली उस से जुड़ जाते हैं. बातचीत और बौंडिंग दोनों आप के लिए ज्यादा महत्त्व रखते हैं.

आप डैमीसैक्सुअल हैं तो आप को यह नहीं सोचना है कि यह कुछ गलत है. आप भावुक हैं, मन के मिले बिना तन से न जुड़ पाएं, तो इस में बुरा क्या है और मन मिलने पर तो आप खुल कर जीते ही हैं. यह बहुत अच्छा है. तो अपनी पसंद का व्यक्ति मिलने पर जीवन का आनंद उठाएं, प्रसन्न रहें.

अगर जिद्दी हो बच्चा

कई बार बच्चा अपनी जिद्द मनवाने के लिए रोता है. आप ने न कहा तो उस ने अपना सिर पटका, आप ने फिर न कहा. लेकिन जब वह जमीन पर लोटने लगा तो आप ने घबरा कर उसे हां कह दिया. यहीं से बच्चा समझ जाता है कि रोने से कुछ नहीं होता. जमीन पर लोटने से जिद मनवाई जा सकती है. बस, तब से वह वही काम करने लगता है. इस प्रकार मूल बात है कि बिहेवियर मौडिफिकेशन या मोल्डिंग अर्थात जिस तरह से आप उसे आकार देंगे वह वैसा ही करेगा. जैसा कि कुम्हार करता है. जो घड़ा उसे चाहिए उसे वह अपनी तरह से आकार देता है. लेकिन यहां बात बच्चे की है. अगर बच्चे को आप ने किसी वस्तु के लिए न कहा है तो आप उस का कारण अवश्य बताइए. बच्चा कितना भी रोएचिल्लाए, आप अपनी बात पर कायम रहें, दृढ़ रहें ताकि उसे अपनी सीमा रेखा पता चले. यह काम बचपन से ही करना चाहिए.

खुद को बदलें

बच्चे को बचपन से ही समझ लेना चाहिए कि अगर आप ने न कहा है तो इस का अर्थ नहीं है. पहली न के बाद दूसरी या तीसरी न कहने की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. बचपन में अगर आप ने एक बार न कहा, फिर थोड़ी जिद के बाद उसे हां कह दिया तो बड़ा हो कर वही बच्चा जिद्दी बनता है. अपने एक अनुभव के बारे में मुंबई के राजीव गांधी मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सक डा. मित्तल बताते हैं कि एक दंपती का इकलौता बेटा, जो 18 वर्ष का था, वह किसी की बात नहीं मानता था. सारे पैसे उड़ा देता था. समय पर घर नहीं आता था. उस की इस जिद को तोड़ने के लिए नानानानी, दादादादी, मातापिता सब एकजुट हुए. पूरे परिवार ने उसे समय पर घर आने की चेतावनी दी. पर वह नहीं माना. पुलिस का सहारा लेना पड़ा. उस लड़के को एक रात पुलिस स्टेशन में बितानी पड़ी. तीसरी बार जब वह फिर घर लेट पहुंचा तो किसी ने दरवाजा नहीं खोला. बरसात में उसे बिल्ंिडग के चौकीदार के साथ 1 रात केबिन में गुजारनी पड़ी. अंत में जब वह समझ गया कि उसे खुद को बदलना है तो वह समय पर घर आने लगा. यहां एक बात ध्यान रखनी है कि मातापिता अगर बच्चे को अनुशासित करें तो बाकी घर के सदस्यों को भी चुप रह कर उन का साथ देना चाहिए.

बच्चे के जिद्दी होने की एक वजह आज की जीवनचर्या भी है. आज परिवार संयुक्त नहीं हैं. मातापिता दोनों ही नौकरीपेशा हैं. ऐसे में उन के पास समय की कमी होती है. दिन भर की भागदौड़ के बाद जब वे घर पहुंचते हैं तो बच्चे की जिद अनायास ही पूरी कर देते हैं.

सारे पहलू को देखना जरूरी

इस के अलावा आज के बच्चे ठीक से खातेपीते नहीं हैं. जंक फूड पर उन का ध्यान अधिक रहता है, जिस से वे एनीमिक बन जाते हैं. स्कूल का माहौल भी कभीकभी उन्हें जिद्दी बनाता है. कोई ऐसी घटना, जिसे वह किसी से बांट नहीं पाता, कह नहीं पाता तो जिद्दी बन कर ही उसे सामने लाता है. इस विषय पर मुंबई की शुश्रुत अस्पताल की मनोचिकित्सक प्रद्दान्या दीवान कहती हैं कि जब बच्चा हमेशा जिद्द करे तो उस के सारे पहलू को देखना जरूरी है. मातापिता उस की बात को सुनें. उस के साथ अपना कुछ समय बिताने की कोशिश करें, जिस से बच्चे को अकेलापन महसूस न हो. वह अपनी बात आप से कहे. अगर यह बात आप से हल नहीं हो रही हो तो किसी मनोचिकित्सक का सहारा लें.

जानें क्या है डबल बर्डन सिंड्रोम

प्रसव के डेढ़ महीने ही बीते थे कि मोनिका ने औफिस जाना शुरू कर दिया. अगले 6 महीनों तक घर पर बच्चे की देखभाल मोनिका की गैरमौजूदगी में कभी उस की सास तो कभी उस की मां करती रहीं. मगर बच्चे के साल भर के होते ही दोनों ने ही अपनीअपनी मजबूरी के चलते बच्चे को संभालने में आनाकानी शुरू कर दी.

अब बच्चे को क्रेच में डालने के अलावा मोनिका के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. वह जौब नहीं छोड़ना चाहती थी. मगर बच्चे को भी क्रेच में डाल कर खुश नहीं थी. औफिस में काम के दौरान कई बार उस का मन बच्चे की ओर चला जाता तो वहीं घर में बच्चे के साथ रहने पर उसे औफिस में अपनी खराब होती परफौर्मैंस का एहसास होता.

दोनों जिम्मेदारियों के बीच मोनिका पिसती जा रही थी. चिड़चिड़ाहट और घबराहट के कारण काम करने में उस से गलतियां होने लगी थीं. घर वालों के ताने और बौस की डांट धीरेधीरे मोनिका को डबल बर्डन सिंड्रोम जैसी मानसिक बीमारी का शिकार बना रही थी. एक समय ऐसा भी आया जब मोनिका खुद को बच्चे और अपने बौस का अपराधी समझने लगी. आखिरकार उस ने जौब छोड़ दी और गृहिणी बन कर बच्चे की परवरिश में जुट गई.

क्या कहता है सर्वे

मोनिका जैसी हजारों महिलाएं हैं, जो अच्छे पद, अच्छी आमदनी होने के बावजूद प्रसव के बाद या तो बच्चे और औफिस की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं या फिर अपने कैरियर से समझौता कर के घर और बच्चे तक खुद को सीमित कर लेती हैं.

केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वे के अनुसार, शादी के बाद लगभग 40% भारतीय महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं वहीं 60% महिलाएं मां बनने के बाद बच्चे की परवरिश को अधिक महत्त्व देती हैं और नौकरी छोड़ देती हैं. इस के अतिरिक्त 20% महिलाएं जो घर और नौकरी दोनों जिम्मेदारियां निभा रही होती हैं, वे कभी न कभी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं.

इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की मनोचिकित्सक डाक्टर मीनाक्षी मनचंदा का कहना है, ‘‘भारतीय समाज है ही ऐसा. यहां महिला सशक्तीकरण की बड़ीबड़ी बातें की जाती हैं, मगर महिलाएं जब सशक्त  होने का प्रयास करती हैं, तो यही समाज उन्हें परिवार की जिम्मेदारी की बेडि़यों में जकड़ देता है.’’

पुष्पावती सिंघानियां रिसर्च इंस्टिट्यूट की मनोचिकित्सक डाक्टर कौस्तुबि शुक्ल का मानना है, ‘‘यह सिंड्रोम महिला और पुरुष दोनों को होता है. मगर भारत में इस सिंड्रोम की शिकार अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. इस की बड़ी वजह यहां की संस्कृति है, जो कहती है कि महिलाएं अपने पेशेवर जीवन में कितनी भी उन्नति कर लें, मगर घर के प्रमुख कार्यों की जिम्मेदारी उन्हें ही संभालनी होगी. हालांकि नौकरों और आधुनिक तकनीकों की मदद से जिम्मेदारियों का बोझ कुछ हद तक हलका हो जाता है, मगर बच्चा होने के बाद इन जिम्मेदारियों का स्वरूप बदल जाता है. आधुनिक तकनीक और नौकरों के साथ मातापिता को खुद भी बच्चे की देखभाल में समय देना पड़ता है. इस स्थिति में भी बच्चे की जिम्मेदारी मां पर डाल दी जाती है और पिता खुद को आर्थिक मददगार बनने की बात कह कर बचा लेता है.’’

मगर सवाल यह उठता है कि इस से फायदा क्या है? देखा जाए तो घर के किसी सदस्य के नौकरी छोड़ने पर परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के स्थान पर कमजोर ही होती है. वहीं जिम्मेदारियों का सही बंटवारा परिवार की आर्थिक जरूरतों में रुकावट भी पैदा नहीं होने देता और महिलाओं को इस सिंड्रोम का शिकार होने से भी बचा लेता है. मगर अब दूसरा सवाल यह उठता है कि जिम्मेदारियों का बंटवारा हो कैसे?

सास के साथ सही साझेदारी

मनोचिकित्सक मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘आर्थिक मददगार तो महिलाएं भी बन सकती हैं. वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने पुरुषों के वर्चस्व को न तोड़ा हो.  मगर घरेलू काम में पतियों से सहायता लेना आज भी महिलाओं के लिए एक चुनौती बना हुआ है.  खासतौर पर उन घरों में जहां रिश्तेदारों का दखल ज्यादा होता है.’’

रिश्तेदारों की इस सूची में सब से पहले लड़के की मां का नाम आता है. घर के कामकाज में बेटे और बहू की हिस्सेदारी का वर्गीकरण भी यही मुहतरमा करती हैं, जिस में बच्चे के कामकाज से बेटे का कोई लेनादेना नहीं होता. बहू नौकरीपेशा है तब भी बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी उसी की है. भले ही बहू की घर पर गैरमौजूदगी में सास बच्चे की देखरेख कर भी लें, मगर इस बात को सुनहरे शब्दों में बहू पर जताने से भी वे पीछे नहीं हटतीं.

मीनाक्षी का मानना है कि इन स्थितियों में महिलाओं को थोड़ी सूझबूझ दिखानी चाहिए. सब का अपनाअपना स्वभाव होता है, मगर सास के साथ बहू की सही साझेदारी ऐसे मौकों पर बहुत काम आ सकती है. यह बात तो पक्की है कि रूढिवादी सोच वाली सास बेटे को भले ही घर के काम न करने दें, मगर बहू से सही तालमेल बैठा कर घर की कुछ जिम्मेदारियां वे खुद संभाल लेती हैं. यहां जरूरत है कि महिलाएं सास पर थोड़ा विश्वास करें. उन की दिल को चुभने वाली बातों को अनसुना कर दें. रिश्तों में थोड़ा तालमेल बैठा कर चलें ताकि घर और कार्यस्थल दोनों ही स्थानों पर अच्छी परफौर्मैंस दे सकें.

पार्टनर से बात करें

सास के साथ ही अपने पति को भी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में बताएं. दरअसल, भारतीय समाज की इस रूढिवादी मानसिकता के चलते ही कई औरतें स्वीकार कर लेती हैं कि सहूलत से यदि बच्चे की देखभाल और नौकरी के बीच संतुलन बैठाया जा सकता है, तो ठीक है नहीं तो मानसिक तौर पर वे खुद को नौकरी छोड़ने और बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए तैयार कर लेती हैं.

इस बाबत डाक्टर कौस्तुबि कहती हैं,  ‘‘आजकल महिलाएं शादी से पूर्व अपने कैरियर को अधिक महत्त्व देती हैं. फिर अब शादी भी

देर से ही होती है. ऐसे में महिलाओं की रीप्रोडक्टिव लाइफ छोटी हो जाती है. उन्हें यह फैसला जल्दी लेना पड़ता है कि वे मां कब बनना चाहती हैं.  अब यदि यह कहा जाए कि कैरियर के लिए मां बनने की ख्वाहिश ही छोड़ दें, तो शायद यह सही नहीं होगा. लेकिन मां बनने के लिए नौकरी छोड़ दें, यह भी कोई हल नहीं है. इसलिए महिलाओं को अपने पार्टनर से पहले ही अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का जिक्र कर लेना चाहिए और उस के हिसाब से भविष्य की प्लानिंग करनी चाहिए.’’

आज का दौर पढ़ेलिखों का है. पतिपत्नी इस बात को बखूबी समझते हैं कि महंगाई के इस जमाने में दोनों की कमाई से ही परिवार रूपी गाड़ी खींची जा सकती है. इसलिए आपस में समझौता कर लेना ही सही निर्णय है. इस समझौते में बहुत सारी बातों का जिक्र किया जा सकता है, जो महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी के बोझ और बेरोजगारी दोनों से बचा सकता है.

मनोचिकित्सक कौस्तुबि ऐसे ही कुछ समझौतों के बारे में बताती हैं:

– आज के वर्क कल्चर में शिफ्ट में काम करना चलन में है और यह गलत भी नहीं है.  नौकरीपेशा दंपती अपनी सहूलत के हिसाब से शिफ्ट का चुनाव कर सकते हैं और बारीबारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकते हैं.

– यदि कंपनी में वर्क फ्रौम होम की सुविधा है, तो कभीकभी पतिपत्नी इस सुविधा का फायदा भी उठा सकते हैं. इस से घर और कार्यालय दोनों का ही काम बाधित नहीं होता.

– कुछ कार्यक्षेत्रों में फ्रीलांसिंग काम भी किया जा सकता है और इस में भी अच्छी आमदनी की गुंजाइश होती है. पति या पत्नी में से कोई एक अपनी फुलटाइम नौकरी छोड़ कर फ्रीलांसिंग में भी हाथ आजमा सकता है.

दांपत्य जीवन में थोड़ी सूझबूझ से फैसले लिए जाएं, तो आपसी मनमुटाव डबल बर्डन सिंड्रोम से बचा जा सकता है.

ऐसे बनेगा बच्चा वैल बिहेव्ड

रीटा अपने 5 साल के बच्चे के साथ अपनी सहेली के घर गई. वहां पर बच्चे ने प्लेट में रखी सारी चीजें उठा कर अपनी जेब में रख लीं और फिर रीटा की सहेली की 4 साल की बेटी को धक्का दे दिया. रीटा के समझाने पर वह उस से भी ऊंची आवाज में बात करने लगा. बच्चे के इस व्यवहार से रीटा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई.

जब आप अपने छोटे बच्चे को ले कर किसी के घर जाती हैं, तो वह वहां किस तरह का व्यवहार करेगा, यह समझ पाना मुश्किल होता है. कई बार वह घर में अच्छा व्यवहार करता है, लेकिन बाहर जाने पर अजीब सा व्यवहार करने लगता है. इस संबंध में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. अतुल वर्मा का कहना है कि बच्चा जैसा भी व्यवहार करता है वह अपने परिवार से ही सीखता है. आप घर में जिस तरह से किसी से बात करती हैं बच्चा उसे ही फौलो करता है. कई बार वह ध्यान आकर्षित करने के लिए भी उलटीसीधी हरकतें करता है.

पेरैंटिंग का अर्थ अपने बच्चे की हर जायजनाजायज मांग को पूरा करना नहीं वरन अपनी सही बात को बच्चे के नजरिए का ध्यान रखते हुए उसे उसी तरीके से सिखाना है जैसे वह चाहता है. आप अपने बच्चे को अच्छीबुरी बातों की जानकारी तो देती हैं, लेकिन उसे अपने से छोटों और बड़ों को संयमित व्यवहार कैसे करना है जैसे बुनियादी बातों की सीख देना भूल जाती हैं, जिस की वजह से वह कब किस से कैसा व्यवहार करता है जैसी बातें नहीं सीख पाता.

कुछ छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर आप अपने बच्चे को संयमित व्यवहार करना सिखा सकती हैं. मसलन:

1. खुद को बदलें

अपने बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाने के लिए आप को स्वयं को भी बदलना होगा. आप अपने परिवार के साथ जैसा व्यवहार करती हैं, आप का बच्चा भी वैसा ही व्यवहार करना सीखेगा. आप चाहती हैं कि आप का लाडला अपने बड़ों की इज्जत करे, उन से ऊंची आवाज में बात न करे, तो इस के लिए आप को खुद को परिवार की इज्जत करनी होगी. अपने सासससुर और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ मैत्रीपूर्ण और सम्मानपूर्ण व्यवहार करना होगा. यकीन मानिए, अगर आप अपने बच्चे से कहेंगी कि आप अपने बड़ों से अच्छी तरह बात करो या फिर झूठ न बोलो, तो वह नहीं करेगा. बच्चे को समझाने के लिए आप को खुद में बदलाव लाना होगा, क्योंकि बच्चे की समझ इतनी विकसित नहीं होती है कि वह आप के कहे को समझ कर उसे व्यवहार में लाए. आप अपने बच्चे के सामने किसी से झूठ बोल रही हैं और उस से यह अपेक्षा कर रही हैं कि वह झूठ न बोले तो ऐसा संभव नहीं है.

2. अपने बनाए नियम पर प्रतिबद्ध रहें

आप ने अपने बच्चे के लिए कुछ नियम बना रखे होंगे. मसलन, आप उसे सप्ताह में 2 बार चौकलेट देंगी या फिर वह दिन में 2 घंटों के लिए ही अपना मनपसंद कार्टून शो देख सकता है आदि. अगर आप चाहती हैं कि आप का  बच्चा अपने जीवन में नियमों का पालन करे, तो इस के लिए आप को भी अपने बनाए रूल्स को फौलो करना होगा. ऐसा नहीं है कि जब आप का मूड हो या फिर आप किसी काम में बिजी हों तो नियमों में ढील दे दें. जैसे कि आप घर या औफिस का जरूरी काम कर रही हैं और आप का बच्चा आप को डिस्टर्ब कर रहा है, तो आप ने उस समय भी उस के लिए टीवी चला दिया जो उस के टीवी देखने का समय नहीं है. इस तरह की बातों से बच्चा कन्फ्यूज होता है. अत: आप जो रूल्स बना रही हैं, उन पर अडिग रहें. अगर आप संयुक्त परिवार में रहती हैं, तो भी परिवार के सदस्यों से इस बाबत बात कर लें कि वे आप के बच्चे को नियमों का पालन करने में मदद करें न कि रूल्स तोड़ने में.

3. मारने पीटने से करें तोबा

आप की आदत अपने बच्चे को बिना बात के पीटने की है, तो अपनी इस आदत पर तुरंत विराम लगा दें, क्योंकि आप मारपीट कर बच्चे को कुछ सिखाने की बजाय उस से अपने संबंधों को ही खराब कर रही हैं. अगर आप को उस की किसी बात पर गुस्सा आ रहा है, तो उसे मारने के बजाय प्यार से समझाएं कि वह जो कर रहा है वह गलत है. इस के अलावा उसे डांटते समय गालीगलौज न करें. अगर आप उस से गालीगलौज करेंगी या फिर बिना बात के उसे पीटेंगी तो इन बातों से बच्चे के मन में विद्रोह की भावना पनपती है. छोटा हो या बड़ा हर किसी को इज्जत की जरूरत होती है. आप चाहती हैं कि आप का बच्चा आप की और परिवार के दूसरे सदस्यों की इज्जत करे, तो आप भी उसे पूरा सम्मान दें.

4. गलत मांगों को न करें पूरा

अपने बच्चे को प्यार करना अच्छी बात है, लेकिन इस का अर्थ यह नहीं है कि आप उस की जिद को भी पूरा करें. कभीकभार जब आप मार्केट जाती हैं या फिर कोई घर में आ जाता है तो उस समय बच्चा फालतू की जिद करने लगता है. वह बेकार में गुस्सा दिखाने लगता है. अगर आप उस की बात को पूरा करेंगी, तो उस में अपनी बात को पूरा कराने के लिए जिद करने की आदत विकसित होगी जोकि उस के संयमित विकास के लिए ठीक नहीं है. अत: उस की जिद को इग्नोर करें. 1-2 बार ऐसा करने से उसे समझ आ जाएगा कि जिद कर के सारी मांगों को पूरा नहीं कराया जा सकता है.

5. ढेर सारा प्यारदुलार और खूब सारी बातें

बच्चे की सही परवरिश के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उस से खूब सारी बातें करें. जब वह स्कूल से आता है, तो उस ने स्कूल में क्या किया, उसे स्कूल में कोई दिक्कत तो नहीं है या फिर उसे क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं जैसी बातें करें. इस से आप के बच्चे में आप के साथ अपनी बातें शेयर करने की हिम्मत आएगी. बच्चा गलत व्यवहार सिर्फ आप का अटैंशन पाने के लिए करता है. इस से बचने के लिए जब भी वह कुछ अच्छा करता है उस की तारीफ करें. उसे खूब सारा प्यार करें और गले लगाएं. इस से बच्चे के मन में सुरक्षित होने का एहसास आएगा और वह अच्छा व्यवहार करना सीखेगा.

6. इन बातों का भी रखें ध्यान

– बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उस के सम्मान का ध्यान रखें. अगर उस से कोई गलती हो गई है, तो उस के लिए उसे सब के सामने डांटने के बजाय अकेले में समझाने की कोशिश करें.

– आप जिस तरह का व्यवहार अपने बच्चे से चाहती हैं, उस के साथ वैसा ही व्यवहार करें. अगर यह कहा जाए कि बच्चा बहुत बड़ा कौफी कैट होता है, तो गलत नहीं होगा. अगर आप चाहती हैं कि आप के बच्चे में पढ़ने की आदत विकसित हो, तो इस के लिए आप को खुद भी पढ़ना होगा.

– अपने बच्चे में किसी काम के लिए आभार जताने और गलती को महसूस करने के लिए उसे थैंक्यू और सौरी जैसे छोटेछोटे शब्दों का महत्त्व बताएं. इस के लिए अगर उस ने आप का छोटा सा भी काम किया है, तो आप उसे थैंक्यू कहना न भूलें और गलती होने पर उसे सौरी बोलने से न हिचकें. आप के द्वारा किए गए ये छोटेछोटे प्रयास आप के लाड़ले को वैल बिहेव्ड बनाने में मददगार साबित होंगे.

सैक्स ऐजुकेशन

बच्चे के सही विकास के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप के बच्चे के साथ ऐसा कुछ न हो, जिस की वजह से उस का बचपन अनायास खत्म हो जाए. हर जगह होने वाले चाइल्ड ऐब्यूज को देखते हुए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने बच्चे को समयसमय पर सैक्स संबंधित जानकारी देती रहें. उसे यह बताएं कि अगर कोई उस के प्राइवेट पार्ट को छूने की कोशिश करता हो, तो वह इस बारे में आप से बताए. बच्चा आप से अपने मन की बातें बांट सके, इस के लिए उसे सहज बनाना जरूरी है ताकि कोई उस के साथ किसी तरह का दुराचार न कर सके.

साथ खाना बनाने के 4 फायदे

लंबे समय तक साथ रहने के बाद चाहे पतिपत्नी हों या लिव इन पार्टनर, दोनों एकदूसरे के प्रति लापरवाह होने लगते हैं. लापरवाही धीरेधीरे आदत में बदल जाती है और रिश्ते में दरार का कारण बनती है. ऐसे में समझदारी से काम न लिया जाए तो रिश्ते की नींव कमजोर होने लगती है. इसलिए रिश्ता चाहे नया हो या पुराना, समयसमय पर एकदूसरे को स्पैशल फील कराते रहना जरूरी है. इस से आपसी प्यार और भरोसा बढ़ता है .

आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में अधिकतर घरों में कपल्स औफिस जाते हैं या फिर वर्क फ्रौम होम कर रहे हैं. कई बार दोनों के औफिस टाइम भी अलगअलग होते हैं, जिस के कारण उन के पास समय का अभाव बना रहता है. वे एकदूसरे के लिए भी वक्त नहीं निकल पाते हैं. ऐसे में एकदूसरे के लिए वक्त की कमी के चलते धीरेधीरे कपल्स के बीच दूरी आने लगती है, जो आगे चल कर उन के रिश्ते में दरार पैदा कर सकती है.

याद रखें किसी भी रिश्ते को सफल और मजबूत बनाए रखने के लिए व्यक्ति को उचित समय देना पड़ता है. यदि आप बहुत व्यस्त रहते हैं तो अपने पार्टनर के साथ कुछ पल क्वालिटी टाइम जरूर बिताएं. वर्क फ्रौम होम  में भी आप दोनों छुट्टी ले कर एकदूसरे के साथ एक यादगार समय बिता सकते हैं. ऐसा करने से आप न सिर्फ उन के मन में चल रही नकारात्मकता बल्कि उन के अकेलेपन को भी दूर कर पाएंगे.

भरें दांपत्य में मिठास

दांपत्य में मिठास बनाए रखने के लिए कुछ स्पैशल करें. एकदूसरे को स्पैशल फील कराने के लिए कहीं बाहर जाने के बजाय घर पर ही पार्टनर संग हैल्दी और टेस्टी डिश बनाएं. ऐसी डिश का चुनाव करें जिसे आप दोनों मिल कर बना सकें ताकि आप एकदूसरे की मदद कर सकें एवं एकदूसरे के साथ ज्यादा समय और यादगार समय बिता सकें. साथ बैठ कर खाने का मजा ले सकते हैं. भले ही आप के घर खाना बनाने के लिए प्रोफैशनल कुक हो, फिर भी किसी छुट्टी के दिन पतिपत्नी दोनों मिल कर खाना बनाएं और एकसाथ खाएं.

हो सकता है आप के हस्बैंड को खाना बनाना नहीं आता हो. ऐसे में आप उन की मदद सब्जी काटने, खाने की टेबल सजाने, खाना बनाते समय जो चीजें आप को चाहिए उन की मदद ले सकते हैं और साथसाथ बातें कर सकते हैं तथा उन्हें खाना बनाने के गुर भी सिखा सकती हैं.

पार्टनर संग साथ में कुछ भी बनाने से पहले एकदूसरे से डिस्कस जरूर कर लें और एकदूसरे से सु?ाव मांगने में संकोच न करें. इस तरह आप एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं और अपनी छुट्टी का भरपूर मजा ले सकते हैं अगर पत्नी ने पति की पसंदीदा डिश बनाई है तो पति उन की पसंद की कोई चीज बनाएं. इस से दोनों स्पैशल फील करेंगे और एकदूसरे के लिए प्यार और भरोसा बढ़ेगा.

अपने रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए मिल कर खाना बनाने के बाद या दौरान इन बातों का अवश्य ध्यान रखें:

1. थैंक्यू बोलें

किचन में उन के द्वारा की गई हर मदद के लिए उन्हें थैंक्यू कहना न भूलें आप के ऐसा करने से उन्हें काफी अच्छा फील होगा और आप की बौंडिंग भी बेहतर बनेगी.

2. कौंप्लिमैंट जरूर दें

पार्टनर को दिया आप का एक कौंप्लिमैंट बहुत बड़ा कमाल कर सकता है. आप के ऐसा करने से आप के साथी का कौन्फिडैंस बढ़ जाता है जिस से आपसी प्यार बढ़ता है.

3. तारीफ करना न भूलें

तारीफ के दो बोल दुनिया के हर रिश्ते को मजबूती देते हैं. इसलिए पार्टनर की अच्छी आदतों, अच्छे काम, केयरिंग नेचर और सकारात्मक नजरिए की हमेशा तारीफ करें. जब भी पार्टनर कुछ नया और क्रिएटिव करें उन की  तारीफ करना न भूलें. आप के द्वारा तारीफ का हर शब्द उन्हें अलग ही खुशी देगा. इस से आप एकदूसरे के और करीब आ जाएंगे और आप के रिश्ते को मजबूती मिलेगी.

4. बदलें अपने बोलने के लहजे को

यदि आप को पार्टनर के संग किसी काम से कोई परेशानी हो रही है या कोई बात पसंद न हो तब तो उसे उस लहजे में कहें कि बुरा न लगे. जैसे पार्टनर का कोई काम पसंद न आए तो यह न कहें कि यह काम आप ने अच्छे से नहीं किया या आप को नहीं आता बल्कि यों कहें कि आप ने मेरी बहुत मदद कर दी इस के लिए थैंक्यू. उन्हें सिखाएं कि देखिए ऐसे करते हैं ताकि अगली बार वे आप के हिसाब से काम कर सकें.

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