घर टूटने की वजह, महत्त्वाकांक्षी पति या पत्नी

निर्देशक गुलजार की 1975 में आई फिल्म ‘आंधी’ ने सफलता के तमाम रिकौर्ड तोड़ डाले थे. इस फिल्म पर तब तो विवाद हुए ही थे, यदाकदा आज भी सुनने में आते हैं, क्योंकि यह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी पर बनी थी. संजीव कुमार इस फिल्म में नायक और सुचित्रा सेन नायिका की भूमिका में थीं, जिन का 2014 में निधन हुआ था. ‘आंधी’ का केंद्रीय विषय हालांकि राजनीति था. लेकिन यह चली दरकते दांपत्य के सटीक चित्रण के कारण थी, जिस के हर फ्रेम में इंदिरा गांधी साफ दिखती थीं, साथ ही दिखती थीं एक प्रतिभाशाली पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह पति को भी त्याग देती है और बेटी को भी. लेकिन उन्हें भूल नहीं पाती. पति से अलग हो कर अरसे बाद जब वह एक हिल स्टेशन पर कुछ राजनीतिक दिन गुजारने आती है, तो जिस होटल में ठहरती है, उस का मैनेजर पति निकलता है.

दोबारा पति को नजदीक पा कर अधेड़ हो चली नायिका कमजोर पड़ने लगती है. उसे समझ आता है कि असली सुख पति की बांहों, रसोई, घरगृहस्थी, आपसी नोकझोंक और बच्चों की परवरिश में है न कि कीचड़ व कालिख उछालू राजनीति में. लेकिन हर बार उसे यही एहसास होता है कि अब राजनीति की दलदल से निकलना मुश्किल है, जिसे पति नापसंद करता है. राजनीति और पति में से किसी एक को चुनने की शर्त अकसर उसे द्वंद्व में डाल देती है. ऐसे में उस का पिता उसे आगे बढ़ने के लिए उकसाता रहता है. इस कशमकश को चेहरे के हावभावों और संवादअदायगी के जरीए सुचित्रा सेन ने इतना सशक्त बना दिया था कि शायद असल किरदार भी चाह कर ऐसा न कर पाता.

आरती बनीं सुचित्रा सेन दांपत्य के दूसरे दौर में खुलेआम अपने होटल मैनेजर पति के साथ घूमतीफिरती और रोमांस करती नजर आती है, तो विरोधी उस पर चारित्रिक कीचड़ उछालने लगते हैं.

स्वभाव से जिद्दी और गुस्सैल आरती इस पर तिलमिला उठती है, क्योंकि उस की नजर में वह कुछ भी गलत नहीं कर रही थी. चुनाव प्रचार के दौरान जब उस से यह सवाल हर जगह पूछा जाता है कि होटल मैनेजर जे.के. से उस का क्या संबंध है, तो वह हथियार डालती नजर आती है. ऐसे में पति उसे संभालता है. चुनाव प्रचार की आखिरी पब्लिक मीटिंग में वह पति को साथ ले कर जाती है और सच बताते हुए कहती है कि ये उस के पति हैं. अगर इन के साथ घूमनाफिरना गुनाह है, तो वह गुनाह उस ने किया है. आखिर में रोतीसुबकती आरती भावुक हो कर जनता से अपील करती है कि वह वोट नहीं इंसाफ मांग रही है.

जनता उसे जिता कर इंसाफ कर देती है. फिल्म के आखिरी दृश्य में जब वह हैलिकौप्टर में बैठ कर दिल्ली जा रही होती है तब संजीव कुमार उस से कहता है कि मैं तुम्हें हमेशा जीतते हुए देखना चाहता हूं

फिल्म इसी सुखांत पर खत्म हो जाती है. लेकिन बुद्धिजीवी दर्शकों के सामने यह सवाल छोड़ जाती है कि क्या कल कैरियर के लिए छोड़े गए पति को सार्वजनिक रूप से स्वीकारना भी राजनीति का हिस्सा नहीं था? यह जनता के साथ भावनात्मक ब्लैकमेलिंग नहीं थी?

साबित यह होता है कि राजनीति में सब कुछ जायज होता है. साबित यह भी होता है कि एक महत्त्वाकांक्षी पत्नी, जिसे हार पसंद नहीं, जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

इंदिरा गांधी: मिसाल व अपवाद

फिल्म से हट कर देखें तो इंदिरा गांधी भारतीय महिलाओं की आदर्श रही हैं. वजह एक निकाली जाए तो वह यह होगी कि 70 के दशक में औरतों पर बंदिशें बहुत थीं. उन का महत्त्वाकांक्षी होना गुनाह माना जाता था और इस महत्त्वाकांक्षा की हत्या तब बड़ी आसानी से प्रतिष्ठा, इज्जत और समाज के नाम के हथियारों से कर दी जाती थी. चूंकि इंदिरा गांधी इस का अपवाद थीं, इसलिए उन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षा को जिंदा रखा और दांपत्य व गृहस्थी के झंझट में ज्यादा नहीं पड़ीं तो वे मिसाल और अपवाद बन गईं. नई पीढ़ी उन के बारे में यही जानती है कि वे एक सफल और लोकप्रिय नेत्री थीं. पर यह सब उन्होंने किन शर्तों पर हासिल किया था, इस की झलक फिल्म ‘आंधी’ में दिखाई गई है.

इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी का पत्नी पर कोई जोर नहीं चलता था. इसीलिए इंदिरा अपने अंतर्जातीय प्रेम विवाह पर कभी पछताई नहीं न ही उन्होंने कभी सार्वजनिक तौर पर पति की निंदा या चर्चा की. इस खूबी ने भी जिसे पति का सम्मान समझा गया था उन्हें ऊंचे दरजे पर रखने में बड़ा रोल निभाया.

लेकिन जब पत्नी इतनी महत्त्वाकांक्षी हो कि घर तोड़ने पर ही आमादा हो जाए तब पति को क्या करना चाहिए ताकि गृहस्थी भी बनी रहे और पत्नी का नुकसान भी न हो? इस सवाल का एक नहीं, बल्कि अनेक जवाब हो सकते हैं, जो मूलतया सुझाव होंगे, क्योंकि स्पष्ट यह भी है कि पत्नी का महत्त्वाकांक्षी होना समस्या नहीं है, समस्या है पति द्वारा उसे मैनेज न कर पाना.

इसी कड़ी में गत अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान के मशहूर 63 वर्षीय क्रिकेटर इमरान खान का भी नाम आता है, जिन्होंने अपनी पत्नी रेहम खान को तलाक दे दिया. उल्लेखनीय है कि रेहम खान और इमरान दोनों की यह दूसरी शादी थी. रेहम को पहले पति से 3 बच्चे हैं और इमरान को भी पहली पत्नी से 2 बच्चे हैं. उम्र में रेहम इमरान से 20 साल छोटी हैं. इस तलाक की वजह दोनों की दूसरी शादी या बेमेल शादी नहीं, बल्कि इमरान खान की मानें तो रेहम की बढ़ती राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं. इमरान पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दल तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के संस्थापक और मुखिया हैं. चर्चा यह भी रही कि रेहम पीटीआई पर कब्जा जमाना चाहती थीं. वे नियमित पार्टी की मीटिंग में जाने लगी थीं और कार्यकर्ताओं की पसंद भी बनती जा रही थीं. पीटीआई का दखल पाकिस्तान की सत्ता में हो या न हो, लेकिन वहां की सियासत में खासा दखल है, जिस की वजह पाकिस्तान में इमरान के चाहने वालों की बड़ी तादाद है.

इस तनाव पर पेशे से कभी बीबीसी में टीवी ऐंकर रहीं रेहम ने यह बयान दे कर जता दिया कि इस तलाक की वजह वाकई उन की महत्त्वाकांक्षा है. रेहम का कहना है कि पाकिस्तान में उन्हें गालियां दी जाती थीं. वहां का माहौल औरतों के हक में नहीं है. वे तो पूरे देश भर की भाभी हो गई थीं. जो भी चाहता उन्हें गालियां दे सकता था. तलाक के बाद रेहम ने यह भी कहा कि इमरान चाहते थे कि वे रोटियां थोपती रहें यानी एक परंपरागत घरेलू बीवी की तरह रहें, जो उन्हें मंजूर नहीं था. जाहिर है, वाकई रेहम की महत्त्वाकांक्षाएं सिर उठाने लगी थीं और इमरान को यह मंजूर नहीं था.

एक फर्क शौहर होने का

क्या सभी पतियों से ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वे पत्नि की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करने के रास्ते में अड़ंगा नहीं बनेंगे? तो इस सवाल का जवाब साफ है कि नहीं, क्योंकि पुरुष का अपना अहम होता है. वह पत्नी को खुद से आगे बढ़ने का, अपनी अलग पहचान बनाने का और लोकप्रिय होने का मौका नहीं देता. इस बाबत पूरी तरह से उसे ही दोषी ठहराया जाना उस के साथ ज्यादती होगी. जब पत्नी कह सकती है कि वह ही क्यों झुके और समझौता करे, तो पति से यह हक नहीं छीना जा सकता. सवाल गृहस्थी और बच्चों के साथसाथ अघोषित विवाह नियमों का भी होता है.

1973 में अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी द्वारा अभिनीत फिल्म ‘अभिमान’ ने भी बौक्स औफिस पर झंडे गाड़े थे. इस फिल्म में पतिपत्नी दोनों गायक होते हैं. लेकिन पूछपरख पत्नी की ज्यादा होने लगती है, तो पति झल्ला उठता है. नौबत अलगाव तक की आ जाती है. पत्नी मायके चली जाती है और गर्भपात हो जाने से गुमसुम रहने लगती है. बाद में पति उसे मना कर स्टेज पर ले आता है और उस के साथ गाना गाता है. लेकिन ऐसा तब होता है जब पत्नी हार मान चुकी होती है. इस फिल्म की खूबी थी मध्यवर्गीय पति की कुंठा, जो पत्नी की सफलता और लोकप्रियता नहीं पचा पाता, इसलिए दुखी और चिड़चिड़ा रहने लगता है. उसे लगता है पत्नी के आगे बढ़ने पर दुनिया उस की अनदेखी कर रही है. पत्नी के कारण उस की प्रतिभा का सही मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है और लोग उस का मजाक उड़ा रहे हैं. अब नजर रील के बजाय रियल लाइफ पर डालें, तो अमिताभ शीर्ष पर हैं और हर कोई जानता है कि इस में जया भादुड़ी का योगदान त्याग की हद तक है. जिन्होंने पति के डूबते कैरियर को संवारने के लिए ‘सिलसिला’ फिल्म में काम करना मंजूर किया था.

ऐसा आम जिंदगी में होना और हर कहीं दिख जाना आम बात है कि प्रतिभावान महत्त्वाकांक्षी पत्नी का पति अकसर हीनभावना और कुंठा का शिकार रहने लगता है. वजह उस की कमजोरी उजागर करता एक सच उस के सामने आ खड़ा होता है. यहां से शुरू होता है द्वंद्व, कशमकश, चिढ़ और कुंठा. पति जानतासमझता है कि वह पत्नी से पीछे है और यह सच सभी समझ रहे हैं. दांपत्य का यह वह मुकाम होता है जिस पर वह पत्नी को नकार भी नहीं सकता और स्वीकार भी नहीं सकता. जबकि पत्नी की इस में कोई गलती नहीं होती. इधर सफलता और लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही पत्नी पति की कुंठा और परेशानी नहीं समझ पाती. लिहाजा, अपना सफर जारी रखती है. उधर पति को लगता है कि वह जानबूझ कर उसे चिढ़ाने और नीचा दिखाने के लिए ऐसा कर रही है. ऐसे में जरूरत ‘अभिमान’ फिल्म की बिंदु, असरानी और डैविड जैसे शुभचिंतकों की पड़ती है, जो पतिपत्नी को समझा पाएं कि दरअसल में गलत दोनों में से कोई नहीं है. जरूरत वास्तविकता को स्वीकार लेने की है, जिस में किसी की कोई हेठी नहीं होने वाली. पर ऐसे शुभचिंतक फिल्मों में ही मिलते हैं, हकीकत में नहीं. इसलिए पति की कुंठा हताशा में बदलने लगती है और वह कई बार क्रूरता दिखाने लगता है.

इस कुंठा से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि  पति पत्नी की हैसियत और पहुंच को दिल से स्वीकार करे और पत्नी को चाहिए कि वह पति को यह जताती रहे कि ये तमाम उपलब्धियां उस की वजह और सहयोग से हैं. इस में कोई शक नहीं कि महत्त्वाकांक्षी पत्नी की पहली प्राथमिकता उस की अपनी मंजिल होती है, गृहस्थी, बच्चे या पति नहीं. पर इस का मतलब यह भी कतई नहीं कि उसे इन की चिंता या परवाह नहीं होती. इस का मतलब यह है कि वह अपनी प्रतिभा पहचानती है, लक्ष्य तक पहुंचना उसे आता है और वह कोई समझौता करने में यकीन नहीं करती.

याद रखें

– पतिपत्नी में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा गृहस्थी और दांपत्य दोनों के लिए सुखद नहीं है, इसलिए इस से बचें. एकदूसरे की भावनाओं और इच्छाओं के सम्मान से ही दोनों वे सब पा सकते हैं, जो वे पाना चाहते हैं.

– पत्नी जिंदगी में कुछ बनना या हासिल करना चाहती है, तो कुछ गलत नहीं है. यह उस का हक है. लेकिन पत्नियों को यह देखसमझ लेना चाहिए कि वे जो पाना चाहती हैं उस से आखिरकार हासिल क्या होगा और पति की भावनाओं को जरूरत से ज्यादा ठेस तो इस से नहीं लग रही.

– पति का प्रोत्साहन और प्रशंसा पत्नी की प्रतिभा को निखारती है. उस की मंशा पति को नीचा दिखाने की नहीं होती. यह नौबत तब ज्यादा आती है जब पति कुढ़ने लगता है और पत्नी की उपलब्धियों में से खुद की भागीदारी खत्म कर लेता है.

– पत्नी कमाऊ हो, सार्वजनिक जीवन जी रही हो तो पति को चाहिए कि वह बजाय हीनभावना से ग्रस्त होने के पत्नी पर गर्व करे.

कुछ यों मनाएं मैरिड लाइफ का जश्न

पिछले एक विश्व पुस्तक मेले में पोलैंड गैस्ट औफ औनर देश रहा. पोलैंड पैवेलियन पर हिंदी बोलते लोग बहुत आकर्षित कर रहे थे. ऐसा नहीं था कि कुछ शब्द ही उन्होंने याद कर रखे थे, बल्कि वे दिल से धाराप्रवाह हिंदी बोल रहे थे. वहीं की एस कुमारी याहन्ना ने बताया कि भारत की परंपराओं और पारिवारिकता का पोलैंड में बहुत सम्मान है. भारत ने पोलैंड को द्वितीय विश्व युद्ध में इस का परिचय भी दिया. इस विश्व युद्ध में अनाथ हुए 500 बच्चों को भारत ने अपने यहां पाला. इस बात का बहुत सम्मान है. पोलैंडवासी जब भी कभी बलात्कार, भू्रण हत्या, दरकते दांपत्य या ऐसे ही पारिवारिक मूल्य विघटन की भारतीय खबर पढ़तेसुनते या देखते हैं तो उन्हें बहुत दुख होता है.

सुदीर्घ दांपत्य का जश्न

60 के दशक से पोलैंड में वैवाहिक जीवन की स्वर्ण जयंती मनाने वाले जोड़ों को राष्ट्रपति मैडल से सम्मानित किया जाता है. यह आयोजन पोलैंड की राजधानी में होता है परंतु पोलैंड के और भी कई शहरों में इस प्रकार के आयोजन की परंपरा है.

इस अवसर पर पोलैंड की राजधानी में काफी गहमागहमी रहती है. रुपहले रंग के मैडल पर, प्यार के प्रतीक गुलाब के परस्पर लिपटे और गुलाबी रिबन से बंधे फूल होते हैं, जो दंपती के प्यार के प्रतीक होते हैं. रैड कारपेट पर चलते दंपती इस सम्मान को ग्रहण कर के बहुत गौरवान्वित अनुभव करते हैं.

आसान नहीं इतना लंबा साथ

अर्द्ध शताब्दी का साथ कम नहीं होता. इस के लिए स्नेह, सम्मान, स्वस्थता, समर्पण आदि तमाम गुणों की आवश्यकता होती है.

रिलेशनशिप काउंसलर निशा खन्ना से जब हम ने पूछा कि जोड़ों में तालमेल कैसे आए कि हर जोड़ा इस तरह का सफल दांपत्य जीवन पा सके? तो इस पर उन का कहना था कि बच्चों का पालनपोषण अच्छी पेरैंटिंग से हो. वे बच्चों को होशियार, इंटैलिजैंट बनाने के साथ ही परिपक्व बनाएं. आजकल हर कोई अपने फायदे से रिश्ते बनाता है. पहले यह बात बाहर वालों के लिए थी, परंतु अब निजी, आपसी तथा घरेलू संबंधों में भी यह बहुत घर करती जा रही है. इस से रिश्तों में छोटीछोटी बातों को ले कर तनाव, क्रोध, खीज, टूटन, तलाक आदि बातें कौमन होती जा रही हैं. पहले औरतें दब जाती थीं. पति को परमेश्वर मान लेती थीं पर अब बदलते जीवनमूल्यों में उन्हें दबाना आसान नहीं रहा.

हमारे यहां भी है यह परंपरा

शादी की रजत जयंती एवं स्वर्ण जयंती मनाने का चलन पिछले कुछ वर्षों से काफी जोर पकड़ता जा रहा है. नडियाद, गुजरात के एक दंपती ने बताया कि 52 साल पहले गांव में हमारी शादी हुई. हमें पुराने रीतिरिवाजों का पालन करना पड़ा. परंतु शादी की स्वर्ण जयंती में हम ने अपनी नई हसरतें पूरी कीं. हम शादी के रिसैप्शन में नए जोड़ों की तरह बैठे और खूब फोटो खिंचवाए. एकदूसरे को वरमाला भी पहनाई. दूरदूर के रिश्तेदार तथा मित्रगण आए. हम उत्साह से भर गए. नईपुरानी पीढ़ी के अंतर मिट गए. पर हमारे यहां ऐसे आयोजनों में दिखावा बढ़ रहा है, इस पर लगाम कसनी जरूरी है.

कौरपोरेट हाउस का एक जोड़ा कहता है कि हम ने आपस में ही दोबारा विवाह किया. हम अपनी पहले की तलाक लेने की गलती पर शर्मिंदा हैं. हम ने आपसी सहमति से तलाक ले तो लिया, परंतु दोनों ही बिना शादी लंबे समय तक रहे. एक वक्त ऐसा आया कि एकदूसरे को मिस करना शुरू किया. न हमारे पास पैसे की कमी थी, न घर वालों का दखल और न ही निजी संबंधों की दूरी, फिर भी छोटीछोटी टसल, क्रोध प्रतिशोध जैसी भावनाएं हावी थीं. फिर दोनों सोचते थे जब कमाते हैं किसी पर निर्भर नहीं, तो क्यों झुकें और सहें? इसी में हम भूल गए कि सिर्फ कागजी रुपयों या सुख के साधनों से खुशी नहीं आती. तब हम औपचारिक तौर पर मिले फिर काउंसलिंग ली और दोबारा ब्याह किया. घर वालों ने खूब खरीखोटी सुनाई. हम ने शादी के 26वें साल का फंक्शन किया और उस में अपनेअपने अनुभव सुझाए. इतना ही नहीं हम ने अपनी गलतियां कबूलीं और एकदूसरे की खूबियां भी मन से बखानीं. जोड़ों से अनुभव सुने.

एक कर्नल कहते हैं कि हम ने जीवन में बहुत जोखिम व रिस्क देखे. 2 युद्धों में सीमा पर गया. अत: जीवन में परिवार और खुशियों का मोल बेहतर तरीके से जान सका. मेरी पत्नी ने शुरुआती दौर में मेरे बच्चे अकेले पाले. मैं ने हमेशा उन को सामाजिक फंक्शंस में थैंक्स कहा.

इन की पत्नी कहती हैं कि ये उत्सवप्रिय हैं. मांबाप की शादी की 50वीं सालगिरह में 50 जोड़ों को आमंत्रित किया था. मैं 40 की हुई तो ‘लाइफ बिगिंस आफ्टर पार्टी’ शीर्षक से पार्टी दी. हाल ही में अपने गांव व खेत में इन्होंने गंवई स्टाइल में अपना 60वां जन्मदिन ‘साठा सो पाठा’ शीर्षक से मनाया.

परिपक्वता का दौर

शादी के शुरुआती दिन व्यस्तता, अपरिपक्वता और अलगअलग स्वभाव से भरे होते हैं. पर बाद के दिन काफी सैटलमैंट वाले होते हैं. सिंघल दंपती कहते हैं कि एक समय हम मुंबई में स्टोव पर मां से रैसिपीज पूछपूछ कर खाना बनाते थे. 50वीं सालगिरह तक हमारे सब बच्चे सैटल हो गए तो हम ने पूरे यूरोप का ट्रिप किया. कहां तो कूलर तक के पैसे न थे. हम चादर गीला कर के गरमी की रातें काटते थे. अत: हम ने पुराने दिनों का जश्न जरूरत की चीजें डोनेट कर के भी मनाया. शादी की 50वीं सालगिरह के जश्न ने हमें यह बोध कराया कि असली जीवन क्या है. हम ने जीवन में क्या पाया, क्या खोया. अच्छी मेहनत, प्यार भरा साथ, दुख, संघर्ष, दूरी आदि जीवन को कितना कुछ देते हैं. सच पूछो तो हम ने अपने जीवन की खुशियों का इस फंक्शन के माध्यम से अभिनंदन किया.

तनमनधन का तालमेल जरूरी

दांपत्य जीवन में उम्र के साथ जरूरतें और भावनाएं भी अलग रुख लेती हैं. एक जोड़ा कहता है कि शुरूशुरू में बहुत झगड़ते थे. शायद ही कोई ऐसी बात हो जिस पर बिना लड़ाई हमारी सहमति बन जाती रही हो. एक बार पत्नी गुस्से में 5 दिन तक बच्चे को मेरे पास छोड़ कर चली गई. तब मैं ने बच्चे को पाला तो मेरी हेकड़ी ठिकाने आ गई. मैं ईगो भूल कर इन के घर चला गया तो मैं ने पाया ये भी सब भूल गई हैं. तब से हम ने सोचा हम लड़ेंगे नहीं. वह दिन है और आज का दिन है, मन के प्यार के बिना तन के प्यार का मजा नहीं और धन के बिना दोनों ही स्थितियां अधूरी हैं. अत: मैं ने घर की शांति से बिजनैस भी ढंग से किया. पैसा भी सुखशांति के लिए जरूरी है पर सुखशांति को दांव पर लगा कर कमाया पैसा निरर्थक लगता है. यही बात हम हर जोडे़ को समझाते हैं. छोटीछोटी खुशियां पाना सीखना चाहिए. बड़ी खुशियों का रास्ता बनाने में छोटीछोटी बातों का कारगर योगदान रहता है.

अन्य देशों में भी है ऐसी परंपरा

विवाह संस्था सभ्य समाज की सब से पुरानी संस्था है, जो सम्यक रूप से सृष्टि और दुनिया को चलाती है. आमतौर पर अच्छे दांपत्य संबंधों को हम अपने या एशियाई देशों की धरोहर मानते हैं परंतु अच्छी बात, परंपरा व संस्कारों का पूरी दुनिया खुले मन से स्वागत करती है.

हमारे यहां पाश्चात्य देशों के पारिवारिक मूल कमजोर माने जाते हैं. फ्री सैक्स के चलते समाज को मुक्त एवं उच्छृंखल समाज मान लेते हैं. परंतु वहां ऐसा नहीं है कि उन की पारिवारिक मूल्यों में आस्था न हो. हां, यह जरूर है कि वहां शादी को निभाने का आग्रह, दुराग्रह अथवा थोपन नहीं है, न ही अन्य रिश्तेदारों का इतना दखल कि उन की चाहत, अनचाहत का शादी के चलने, न चलने पर असर पड़े. वहां 7 पुश्तों के लिए धन जोड़ना और अपना पेट काट कर औलाद को मौज उड़ाने देने का रिवाज नहीं है, लेकिन वहां भी अच्छी शादी चलना प्रशंसनीय कार्य माना जाता है. चुनावी उम्मीदवार का पारिवारिक निभाव उस की इमेज बनाता है. जो घर न चला सका वह देश क्या चलाएगा की मान्यता पगपग पर देखी जाती है. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा अपनी पत्नी व बच्चों के साथ छुट्टियां बिताते देखे जाते हैं.

अमेरिका में शादी का गोल्डन जुबली मनाने पर जोड़ों को व्हाइट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से बधाई संदेश भेजा जाता है. इंगलैंड में भी शादी के 60 वर्ष पूरे होने पर महारानी की ओर से बधाई भेजी जाती है.

यदि जरूरी हो

यकीनन विदेशों में राष्ट्र के प्रथम नागरिक और गणमान्यों द्वारा दांपत्य का यह अभिनंदन देखसुन कर हमारी भी इच्छा होती है. कि हमारे देश में भी ऐसा हो. लेकिन यह सब हमारे यहां राष्ट्रपति चाहें तब भी इतना आसान नहीं है, क्योंकि विवाह का पंजीकरण पूरी तरह नहीं होता. कई जोड़े तो ऐसे हैं जिन्हें अपने विवाह तथा जन्म की सही तिथि तक पता नहीं है.

यदि विधिवत पंजीकरण किया जाए तो संबंध विभाग ऐसे जोड़ों का अपनेअपने शहर में अभिनंदन कर सकता है. इसी तरह मृत्यु पंजीकरण भी पुख्ता हो ताकि सही सूचना के अभाव में स्थिति गड्डमड्ड न हो जाए. इसी प्रकार स्वस्थ और चलताफिरता जीवन भी ऐसे मौकों को ज्यादा ऊर्जा व जोश से भरता है, जिस में जीवन बोझिल तथा पीड़ादायक न हो. अन्यथा मजबूरी या सिर्फ दिनों की संख्या उस का उतना तथा वैसा लुत्फ नहीं उठाने देती, जिस के लिए मन मचलता है या उत्साही रहता है.

सास बहू के रिश्ते में किस काम की ऐसी रस्में

अमला और सुयश का विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया. घर में बहुत ही हंसीखुशी का माहौल था. सुयश की मां माया और पति अमला सासबहू कम, मांबेटी ज्यादा लग रही थीं.  सारे मेहमान चले गए तो माया ने कहा, ‘‘अमला, अब फ्री हुए हैं. आ जाओ, हिसाब  कर लें.’’

अमला कुछ समझी नहीं. बोली, ‘‘कैसा हिसाब? मांजी, मैं समझी नहीं.’’

‘‘अरे, वह जो तुम्हें मुंहदिखाई में कैश मिला है. सब ले आओ.’’

अमला अपना पर्स ले आई. सारा कैश निकाल कर माया को पकड़ा दिया. अमला ने सोचा, देख रही होंगी कि किस ने क्या दिया है. फिर उसी को पकड़ा देंगी.  सारा कैश गिन कर माया ने अपने पर्स में रख लिया तो अमला के मुंह से निकल गया, ‘‘मांजी, इन्हें आप रखेंगी?’’

‘‘हां, और क्या? इतने सालों से सब को दे ही तो रही हूं. यह मेरा दिया हुआ ही तो वापस आया है.’’

‘‘पर यह तो बहू का होता है न.’’

‘‘नहीं अमला, इस पर सास का हक होता है, क्योंकि मैं ही तो दे रही हूं सालों से, न देती तो कौन दे कर जाता?’’

नईनवेली बहू अमला चुप रही, पर मन ही मन सास पर इतना गुस्सा आया कि कई रिश्तेदारों, परिचितों से इस बात की शिकायत कर दी. माया को पता चला तो अमला पर बहुत गुस्सा हुईं.

रिश्ते में दरार

मांबेटी जैसा प्यार धरा का धरा रह गया. शुरुआती दिनों में ही दिलों में ऐसी कटुता जन्मी कि रिश्ता फिर मधुर हो ही नहीं पाया. माया सब से कहती कि अमला को खुद ही ये पैसे ‘उन्हीं का हक है’ कह कर खुशीखुशी दे देने चाहिए थे. उधर अमला का कहना था कि यह उन की मुंहदिखाई का उपहार है, पैसे उसे ही मिलने चाहिए थे.

एक रस्म ने सासबहू के रिश्ते में उपजी मिठास को पल भर में खत्म कर दिया. 4 दिन में ही इस रिश्ते में जो प्यार व सम्मान दिखाई दे रहा था, पैसे की बात आई तो दरार पड़ गई. माया और अमला दोनों ही सासबहू के रिश्ते को प्यार  व सम्मान से निभाने की तैयार कर रही थीं पर फिर ऐसी दरार उभरी जो कभी न भर पाई. आज  3 साल बाद भी माया और अमला को किसी के भी विवाह के समय यह बात याद आ जाती है तो आज भी बहस छिड़ जाती है.

बढ़ती हैं दूरियां

सुशीला ने अपनी बड़ी बहू नीता जो साधारण परिवार से आई थी और दहेज में भी कुछ खास नहीं लाई थी, उसे मुंहदिखाई में  100 रुपए पकड़ा दिए थे. छोटी बहू नताशा अमीर परिवार की लड़की थी जो अपने साथ बहुत  कुछ लाई थी, उस की मुंहदिखाई में सुशीला ने उसे सोने का सैट दिया तो नीता को बहुत दुख हुआ.

उस ने मुंह से तो कुछ नहीं कहा पर सास के इस भेदभाव ने उस का मन इतना आहत कर दिया कि वह उन से धीरेधीरे दूर होती चली गई. नताशा के समय मुंहदिखाई का पैसा भी सुशीला ने नहीं लिया जबकि नीता से 1-1 रुपया ले लिया था. यह बात सुशीला के बड़े बेटे रमेश ने भी नोट की तो उसे मां का यह भेदभाव अच्छा नहीं लगा. मन में दूरियां बढ़ती चली गईं.

ऐसी रस्मों से फायदा ही क्या जो किसी का मन दुखा दें. विवाह का अवसर घर में, जीवन में खुशियां लाता है पर कुछ रस्में घर के आपसी संबंधों में कटुता उत्पन्न करती हैं. हमारा समाज आडंबरों, रीतिरिवाजों से घिरा है और आजकल तो परिवार में गिनेचुने ही लोग होते हैं. उन में भी अगर ऐसी रस्मों के चलते कड़वाहट भर जाए तो ऐसी रस्में जीवन भर कचोटती हैं. कोई भी रिश्ता किसी रस्म के चंद पैसों से बढ़ कर नहीं है.

कुछ इस तरह से बनाएं पहले मिलन को यादगार

अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास:

वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग:

पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

प्यार भरा उपहार:

पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए आप एकदूसरे के लिए गिफ्ट भी खरीद सकते हैं. जो आप दोनों का पर्सनलाइज्ड फोटो फ्रेम, की रिंग या सैक्सी इनरवियर भी हो सकता है. ऐसा कर के आप माहौल को रोमांटिक और उत्तेजक बना सकती हैं.

खुल कर बात करें:

पहले मिलन को रोमांचक और यादगार बनाने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करें. अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें. अपने मन में उठ रहे सवालों के हल पूछें. एकदूसरे की पसंदनापसंद पूछें. जितना हो सके पौजिटिव रहने की कोशिश करें.

सैक्स सुरक्षा:

संबंध बनाने से पहले सैक्सुअल सुरक्षा की पूरी तैयारी कीजिए. सैक्सुअल प्लेजर को ऐंजौय करने से पहले सैक्स प्रीकौशंस पर ध्यान दें. आप का जीवनसाथी कंडोम का प्रयोग कर सकता है. इस से अनचाही प्रैगनैंसी का डर भी नहीं रहेगा और आप यौन रोगों से भी बच जाएंगी.

सैक्स के दौरान

 – सैक्सी पलों की शुरुआत सैक्सी फूड जैसे स्ट्राबैरी, अंगूर या चौकलेट से करें.

– ज्यादा इंतजार न कराएं.

– मिलन के दौरान कोई भी ऐसी बात न करें जो एकदूसरे का मूड खराब करे या एकदूसरे को आहत करे. इस दौरान वर्जिनिटी या पुरानी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड के बारे में कोई बात न करें.

– संबंध के दौरान कल्पनाओं को एक तरफ रख दें. पोर्न मूवी की तुलना खुद से या पार्टनर से न करें और वास्तविकता के धरातल पर एकदूसरे को खुश करने की कोशिश करें.

– बैडरूम में बैड पर जाने से पहले अगर आप घर में या होटल के रूम में अकेली हों तो थोड़ी सी मस्ती, थोड़ी सी शरारत आप काउच पर भी कर सकती हैं. ऐसी शरारतों से पहले सैक्स का रोमांच और बढ़ जाएगा.

– सैक्स संबंध के दौरान उंगलियों से छेड़खानी करें. पार्टनर के शरीर के उत्तेजित करने वाले अंगों को सहलाएं और मिलन को चरमसीमा पर ले जा कर पहले मिलन को यादगार बनाएं.

– मिलन से पहले फोरप्ले करें. पार्टनर को किस करें. उस के खास अंगों पर आप की प्यार भरी छुअन सैक्स प्लेजर को बढ़ाने में मदद करेगी.

– सैक्स के दौरान सैक्सी टौक करें. चाहें तो सैक्सुअल फैंटेसीज का सहारा ले सकती हैं. ऐसा करने से आप दोनों सैक्स को ज्यादा ऐंजौय कर पाएंगे. लेकिन ध्यान रहे सैक्सुअल फैंटेसीज को पूरा के लिए पार्टनर पर दबाव न डालें.

– संयम रखें. यह पहले मिलन के दौरान सब से ज्यादा ध्यान रखने वाली बात है, क्योंकि पहले मिलन में किसी भी तरह की जल्दबाजी न केवल आप के लिए नुकसानदेह होगी, बल्कि आप की पहली सैक्स नाइट को भी खराब कर सकती है.

सैक्स के दौरान बातें करते हुए सहज रह कर संबंध बनाएं. तभी आप पहले मिलन को यादगार बना पाएंगे. संबंध के दौरान एकदूसरे के साथ आई कौंटैक्ट बनाएं. ऐसा करने से पार्टनर को लगेगा कि आप संबंध को ऐंजौय कर रहे हैं.

दिल का नया रिश्ता: वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड

आप को उस के दोस्तों के नाम पता हैं. आप उस की पसंदीदा फिल्मों के नाम जानती हैं. आप उस की जिंदगी में घटी तमाम खास घटनाएं जानती हैं. आप उस पर आंख मूंद कर भरोसा करती हैं. कभीकभी वह आप को डांटता है, फिर भी आप उस की शिकायत किसी और से नहीं करतीं, न ही आप को यह सब बुरा लगता है. आप को उस के बोलने के अंदाज का पता है. उस के मन में क्या चलता रहता है, आप को इस का भी अंदाजा रहता है.

सवाल- आखिर आप का वह कौन है?

आप उस से उम्मीद करते हैं कि वह आप के पसंदीदा कपड़े पहने. आप चाहते हैं जब आप दोनों लंच करने बैठें तो खाना वह परोसे. आप चाहते हैं जब आप कुछ बोल रहे हों, भले गुस्से में तो भी वह चुपचाप सुन ले, पलट कर उस समय जवाब न दे, बाद में भले उलटे आप को डांट दे. आप उसे अपने फ्यूचर के प्लान बताते हैं, यात्राओं के दौरान घटी दिलचस्प घटनाएं बताते हैं. आप उस के साथ बैठ कर काम करने की बेहतर रणनीति पर विचार करते हैं.

सवाल- आखिर वह आप की कौन है?

जी हां पहले सवाल का जवाब है पति और दूसरे सवाल का जवाब है पत्नी. लेकिन रुकिए ये सामान्य जीवन के पतिपत्नी नहीं हैं. ये वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ हैं. वर्क हसबैंड यानी कार्यस्थल या दफ्तर का पति. इसी तरह वर्क वाइफ का भी मतलब है कार्यस्थल या दफ्तर की पत्नी. सुनने में यह भले थोड़ा अटपटा लगे या झेंप जाएं, मगर हकीकत यही है. कामकाज की नई संस्कृति के फलनेफूलने के साथ ही दुनिया भर में ऐसे पतिपत्नियों की संख्या दफ्तरों में काम करने वाले कुल लोगों के करीब 40 फीसदी है.

1950 के दशक में अमेरीका में ऐसे रिश्तों के लिए बड़ी शिद्दत से एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता था- वर्कस्पाउस. ये वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड वास्तव में उसी शब्द के विस्तार हैं. कहने का मतलब यह है कि कामकाजी दुनिया में यह कोई नया रिश्ता नहीं है. बस, नया है तो इतना कि अब इस रिश्ते को दुनिया के ज्यादातर देशों में साफसाफ शब्दों में स्वीकार किया जाने लगा है.

इसलिए हमें इस रिश्ते को ले कर आश्चर्य प्रकट करने की कोई जरूरत नहीं है. सालों से दुनिया में इस तरह के संबंधों की मौजूदगी है और हो भी क्यों न? यह बिलकुल स्वाभाविक है कि जब हम दिन का ज्यादातर समय साथसाथ गुजारते हैं तो आखिर भावनात्मक रिश्ते क्यों नहीं विकसित होंगे?

औस्कर वाइल्ड ने कहा था, ‘‘औरत और आदमी बहुत कुछ हो सकते हैं, मगर सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते. दोस्त होते हुए भी उन में औरत और आदमी का रिश्ता विकसित हो जाता है.’’

मनोविद भी कहते हैं कि जब 2 विपरीत सैक्स के लोग एकदूसरे के साथ लगाव महसूस करते हैं, तो उन का यह लगाव उन की स्वाभाविक भूमिकाओं वाला आकार ले लेता है यानी पुरुष, पुरुष हो जाता है और औरत, औरत हो जाती है.

पहले भी रहे ऐसे रिश्ते

ऐसे रिश्ते हमेशा रहे हैं और जब भी औरत और आदमी साथसाथ होंगे हमेशा रहेंगे. ऐसे रिश्ते पहले भी थे, पर उन की संख्या बहुत कम थी. इस की वजह थी औरतों का घर से बाहर निकलना मुश्किल था, दफ्तरों में आमतौर पर पुरुष ही पुरुष होते थे. मगर अब जमाना बदल चुका है. आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनों ही घर से बाहर निकल कर साथसाथ काम कर रहे हैं. दोनों का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथसाथ मिल कर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा, एक ही दफ्तर में काम करते हुए 2 विपरीत सैक्स के बीच प्रोफैशनल के साथसाथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी भी बहुत स्वाभाविक है.

एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था सिर्फ 8 घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज 8 घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट कौलर जौब वाले प्रोफैशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिस में हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभीकभी लगातार 24 से 36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथसाथ रहने वाले 2 लोग अपने सुखदुख भी साझा करेंगे, क्योंकि जब 2 लोग साथसाथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बौस की बुराई भी मिल कर करते हैं और एकदूसरे को तरोताजा रखने के लिए एकदूसरे को चुटकुले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से कैबिन में संपन्न होता है, जहां 2 सहकर्मी बिलकुल पासपास होते हैं.

ऐसी स्थिति में वे एकदूसरे को चाहेअनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्यूजिक पसंद है यह आप को भी पता होता है और उसे भी. उसे चौकलेट पसंद है या आइसक्रीम यह बात दोनों सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.

जब साथ काम करतेकरते काफी वक्त गुजर जाता है, तो हम एकदूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, बल्कि मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में 2 विपरीत सैक्स के सहकर्मी एकदूसरे के लिए अपनेआप को कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन जाते हैं. उन में आपस में झगड़ा नहीं होता. दोनों मिल कर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनों साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं यानी ऐसे सहकर्मी मियांबीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ की श्रेणी में रखा जाता है.

हो रही बढ़ोतरी

पहले इसे सैद्धांतिक तौर पर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कैरिअर वैबसाइट वाल्ट डौटकौम ने एक सर्वे किया और पाया कि 2010 में ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ करीब 30 फीसदी थे, जो 2014 में बढ़ कर 44 फीसदी हो गए हैं.

इस स्टडी के लेखकों ने एक बहुत ही जानासमझा उदाहरण दे कर दुनिया को समझाने की कोशिश की है कि वर्क वाइफ और वर्क हसबैंड कैसे होते हैं? उदाहरण यह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जौर्ज बुश व उन की विदेश मंत्री व राष्ट्रीय सलाहकार रहीं कोंडालिजा राइस के बीच जो कामकाजी कैमिस्ट्री थी, वह वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ के दायरे में आने वाली कैमिस्ट्री थी.

कितना जायज है यह रिश्ता

सवाल है क्या यह रिश्ता जायज है? क्या यह रिश्ता विश्वसनीय है? वाल्ट डौटकौम का सर्वेक्षण निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करता है कि लोग इसे एक जरूरी और मजबूत रिश्ता मानते हैं. इस सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने कहा कि दफ्तर में पसंदीदा सहकर्मी के साथ जो रिश्ते बनते हैं, वे ज्यादा विश्वसनीय और ज्यादा मजबूत होते हैं. लोग इन रिश्तों को बखूबी निभाते हैं. करीब वैसे ही जैसे कोई शादीशुदा जोड़ा अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से निभाने की कोशिश करता है. इस रिश्ते को पश्चिम में समाजशास्त्रियों ने व्यावहारिकता की कई कसौटियों में रख कर देखा है और उन्होंने पाया है कि यह रिश्ता न सिर्फ बेहद खास, बल्कि बहुत ही समझदारी भरा भी होता है.

इस रिश्ते में रोमांस नहीं होता, बस जोड़े एकदूसरे के साथ जज्बाती लगाव रखते हैं और एकदूसरे की परेशानियों और हकीकतों को बेहतर समझते हुए उस रिश्ते के लिए जमीन तलाशते हैं. हालांकि ज्यादातर ऐसे जोड़े जो ऐसे रिश्तों के दायरे में आते हैं, गहरे जिस्मानी रिश्ते नहीं रखते. लेकिन थोड़े बहुत रिश्ते तो सभी के होते हैं, मगर समाजशास्त्रियों ने अपने व्यापक विश्लेषणों में पाया है कि जिन जोड़ों के बीच जिस्मानी रिश्ते भी होते हैं, वे भी एकदूसरे की वास्तविक स्थितियों का सम्मान करते हैं और मौका पड़ने पर बहुत आसानी से एकदूसरे से दूरी बना लेते हैं, बिना किसी झगड़े, मनमुटाव के.

प्रोफैसर मैकब्राइट जिन्होंने इस सर्वे का वृहद विश्लेषण किया, उन के मुताबिक बहुत कम लोगों के बीच इन कामकाजी रिश्तों के साथ रोमानी रिश्ता होता है.

सवाल है आखिर इस रिश्ते का फायदा क्या है? इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों की मानें और सर्वेक्षण के दौरान लोगों से किए गए साक्षात्कारों से निकले निष्कर्षों पर भरोसा करें तो जब 2 सहकर्मियों के बीच वर्क वाइफ या वर्क हसबैंड का रिश्ता बन जाता है, तो वे दोनों कर्मचारी अपने काम के प्रति ज्यादा ईमानदार हो जाते हैं. उन्हें काम से ज्यादा लगाव हो जाता है और ज्यादा काम भी होता है. यही वजह है कि दुनिया की तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती हैं कि उन के कर्मचारियों के बीच वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड का रिश्ता बने तो बेहतर है.

आज दुनिया की तमाम कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए जिस किस्म का आरामदायक कार्य माहौल प्रदान कर रही हैं और दफ्तरों में जिस तरह महिलाओं और पुरुषों को करीब समान अनुपात में रख रही हैं, उस के पीछे एक सोच यह भी रहती है कि तमाम कर्मचारी अपनेअपने जोड़े तय कर के काम करें.

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक जब पुरुष और महिला एकसाथ बैठ कर काम करते हैं, तो उन में बिना किसी वजह के भी 10 फीसदी खुशी की भावनाएं होती हैं यानी जब अकेलेअकेले पुरुष या अकेलेअकेले महिलाएं काम करती हैं, तो वे काम से जल्द ऊब जाते हैं. उन का कार्य उत्पादन भी कम होता है और काम करने के प्रति कोई लगाव या रोमांच भी नहीं रहता.

मगर जब महिला और पुरुष मिल कर साथसाथ काम करते हैं, तो उन्हें एक आंतरिक खुशी का एहसास होता है, भले ही इस खुशी का कोई मतलब न हो. वास्तव में 2 विपरीत सैक्स के लोग एकसाथ समय गुजारते हुए एकदूसरे से चार्ज होते रहते हैं.

बढ़ती है काम की गुणवत्ता

तमाम सर्वेक्षणों और शोधों में यह भी पाया गया है कि जब महिला और पुरुष मिल कर काम करते हैं, तो वे न केवल ज्यादा काम करते हैं, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला काम भी करते हैं. साथ ही नएनए आइडियाज भी विकसित करते हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसी रणनीति के तहत अपने कर्मचारियों को आपस में घुलनेमिलने हेतु माहौल प्रदान करने के लिए अकसर पार्टियां आयोजित करती हैं. कर्मचारियों को एक खुशगवार माहौल में रखती हैं ताकि सब एकदूसरे की कमजोरियों और खूबियों को पहचान सकें ताकि कर्मचारियों को अपनेअपने अनुकूल साथी चुनने में दिक्कत न आए.

वर्क हसबैंड और वर्कवाइफ का चलन तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि हिंदुस्तान जैसे समाज में ही नहीं अमेरिका और यूरोप जैसे समाजों में कर्मचारी इस शब्द के इस्तेमाल से झिझकते हैं. शादीशुदा या गैरशादीशुदा दोनों ही किस्म के कर्मचारी अपने परिवार और दोस्तों के बीच इस शब्द का इस्तेमाल भूल कर भी नहीं करते. यहां तक कि आपस में भी वे कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करते या एकदूसरे को नहीं जताते कि हां, ऐसा है. मगर वे एकदूसरे से इस भावना से जुड़े हैं, यह बात दोनों जानते हैं.

ये रिश्ते टूटते हैं

जिस तरह शादीशुदा जोड़ों के बीच तलाक होता है या कईर् बार रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं अथवा कई बार उन में अलगाव हो जाता है, उसी तरह ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ के बीच भी अलगाव होता है. कई बार आप की वर्क वाइफ किसी दूसरी कंपनी में चली जाती है और आप को नए सिरे से नए साथी की तलाश करनी पड़ती है. ठीक ऐसे ही उसे भी नए सिरे से वर्क हसबैंड की तलाश करनी पड़ती है. लेकिन ऐसे मौकों पर इस तरह के अलगाव को दिल से नहीं लेना चाहिए और न ही इस का अपने कामकाज पर प्रभाव पड़ने देना चाहिए.

कई बार कुछ वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ एकदूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और वे एकदूसरे का साथ पाने के लिए अपनी उन्नतितरक्की को भी दांव पर लगा देते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक यह व्यावहारिक कदम नहीं है. इस तरह के रिश्तों के भावनात्मक जाल में फंस कर अपनी बेहतरी के मौके को गंवा देना ठीक नहीं. अगर कामयाबी की सीढि़यां चढ़ने का मौका मिला है तो हर हाल में चढ़ें, क्योंकि क्या मालूम ऊपर की सीढि़यों में कोई और बेहतर साथी आप का इंतजार कर रहा हो, जो आप की प्रोफैशनल और भावनात्मक दोनों ही किस्म की जरूरतों को पहले साथी से बेहतर ढंग से पूरा कर सकता हो.

आखिर कहां खींचें लक्ष्मणरेखा

विशेषज्ञ कहते हैं कि कार्यस्थल पर किसी के साथ प्रोफैशनल झुकाव होना यानी वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना अनैतिकता नहीं है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह रिश्ता हमेशा हमारी वास्तविक यानी घरेलू जिंदगी के लिए चिंता का विषय बना रहता है. सवाल है ऐसा क्या करें जिस से इस तरह के डर या इस तरह की चिंताओं से दूर रहा जा सके?

– कार्यस्थल पर वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना तो ठीक है लेकिन यह अक्लमंदी नहीं है कि आप घर जा कर पूरे दिन की दफ्तर की गतिविधियों की कौमैंट्री करें और सुबह दफ्तर पहुंच कर अपने विपरीतलिंगी सहकर्मी के साथ पूरी रात की गतिविधियों पर डिस्कस करें. घर और दफ्तर के बीच एक स्पष्ट सीमारेखा तय होनी चाहिए.

– यह बात हमेशा याद रखें कि न आप के वास्तविक पति का विकल्प वर्क हसबैंड हो सकता है और न ही आप के वर्कहसबैंड का विकल्प आप का वास्ततिक पति का हो सकता है. दोनों के बीच अपनीअपनी जगह, जरूरतें हैं और दोनों का अपनाअपना महत्त्व है. यही बात वर्क वाइफ और वास्तविक वाइफ के संदर्भ में भी लागू होती है. आप दोनों के बीच जिस दिन तुलना करने लगते हैं और दोनों को दोनों में तलाशने लगते हैं, उसी दिन से तनाव शुरू हो जाता है, क्योंकि कोईर् एक कमतर हो जाता है और दूसरा बेहतर.

– अपने वर्क हसबैंड के साथ कुछ मामलों में बिलकुल स्पष्ट रहें उस के साथ जितना हो सके. उस के साथ गुजारे गए समय को ही शेयर करें. न तो उसे जानबूझ कर नीचा दिखाने की कोशिश करें और न ही उस की अपने वास्तविक पति से तुलना करें. तुलना करें भी तो कभी भी यह बात उसे न बताएं. दरअसल, पुरुषों की यह कमजोर नस है कि वे खुद को सब से ऊपर ही मानना और देखना चाहते हैं. ऐसे में विशेष कर वर्क वाइफ के लिए यह दिक्कत पैदा हो सकती है. अगर वह दोनों के बारे में दोनों से बताती है. भले ही वह अलगअलग समय पर अलगअलग पुरुषों को दूसरे से बेहतर ही क्यों ने बताती हो?

Monsoon Special: रिमझिम फुहार जगाए प्यार

जेठ महीने की चिलचिलाती गरमी ने किरण के स्वभाव में इतना चिड़चिड़ापन भर दिया था कि उस का किसी से बात करने का मन नहीं करता था. लेकिन मौसम ने करवट क्या ली, सब कुछ बदलाबदला महसूस होने लगा. एक ओर जहां बादलों ने सूरज की तपिश को छिपा लिया, वहीं दूसरी ओर बारिश की बूंदों ने महीनों से प्यासी धरती को शीतलता प्रदान कर दी. बारिश की बूंदों ने किरण के तनमन को छुआ तो मानो उस के बेजान जिस्म में जान आ गई और स्वभाव का चिड़चिड़ापन भी जाता रहा. रात को औफिस से किरण के पति सुनील घर लौटे तो दरवाजे पर उसे सजधज कर इंतजार करते हुए खड़ा पाया. वे कमरे में दाखिल हुए, तो सब कुछ रोमांटिक अंदाज में सजा कर रखा हुआ पाया. फ्रैश हो कर डिनर पर बैठे तो देखा रोमांटिक कैंडल लाइट डिनर का आयोजन था और किरण की आंखों में रोमांस और प्यार साफ नजर आ रहा था. खाना परोसा गया तो उन्हें प्लेट में सारी अपनी पसंद की डिशेज नजर आईं. सुनील को समझते देर नहीं लगी कि ये सब बारिश की बूंदों का असर है. उस ने भी पौकेट से खूबसूरत फूलों का गजरा निकाला और किरण के लंबे, घने और काले खुले केशों पर बड़े प्यार से सजा दिया. दरअसल, सुनील के औफिस से निकलते ही जब बारिश होने लगी, तो रिमझिम फुहारों ने उसे भी रोमांटिक बना दिया. तभी किरण के लिए उस ने गजरा खरीद लिया था.

जब रिमझिम बरसा पानी

कैंडल लाइट डिनर को अभी दोनों ऐंजौय कर ही रहे थे कि बादलों ने एक बार फिर से रिमझिम बरसना शुरू कर दिया. किरण तो मानो इस पल के इंतजार में थी. उस ने हौले से सुनील की कलाई थामी और आंखों में आंखें डाल कर सुनील को बगीचे तक ले गई. बारिश की रिमझिम फुहारें, हाथों में उन का हाथ और ‘रिमझिम से तराने ले के आई बरसात…’, ‘ये रात भीगीभीगी ये मस्त फिजाएं…’, ‘एक लड़की भीगीभागी सी…’, ‘आज रपट जाएं तो हमें न…’, ‘रिमझिम गिरे सावन उलझउलझ जाए मन…’ जैसे रोमांटिक गानों का साथ मिल जाने पर भला कौन ऐसा प्रेमी होगा, जो खुद को थिरकने से रोक सकेगा. दोनों खूब थिरके. कुछ ऐसा ही मौका एक प्रेमी युगल को भी मिला. लंबे समय बाद इस बार दोनों को एकांत में मिलने का मौका मिला था. उन की ग्रैजुएशन की पढ़ाई के दौरान किसी ने कभी भी उन्हें अलग नहीं देखा था. दोनों ने तभी तय कर लिया था कि जौब मिलते ही वे शादी कर लेंगे, लेकिन एक कांपिटीशन क्लीयर करने के बाद टे्रनिंग के लिए जब दोनों को अलग होना पड़ रहा था, तो उन के दोस्त उन का रोनाधोना देख कर बाहर निकल गए थे.

अब जब 2 साल बाद दोनों मिले हैं, तो बस एकदूसरे को देखे ही जा रहे हैं. न तो सचिन की आवाज निकल रही है और न ही स्मिता की. दोनों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या पूछें, कैसे पूछें. तभी बाहर बिजली के कड़कने की आवाज हुई और पल भर में ही पड़ने लगीं फुहारें. बाहर धरती गीली हो रही होती है तो अंदर मन भी भीगता है, तभी तो स्मिता के जड़ पड़े होंठ कह उठे, ‘‘आज भी नहीं बदले, बिलकुल वैसे ही हो. सारा सामान बिखेर कर रखा हुआ है. हटो, मैं ठीक कर देती हूं.’’ सचिन भी कहां खामोश रहना चाहता था. बारिश की बूंदों ने उसे भी तो गीला कर दिया था. मन से भी और तन से भी. उसे याद आने लगा था वह मंजर, जब दोनों पहली बार बारिश में मतवाले हो कर भीगे थे और हाथों में हाथ थामे एकदूसरे पर रीझे थे. आज एक बार फिर उसी अंदाज में भीगने को आतुर हो रहे हैं दोनों. ऐसे में सचिन ने भूख का बहाना बना कर स्मिता से बाहर जाने के लिए पूछा. स्मिता कहां मना करने वाली थी. वह भी तो उन यादों का हिस्सा थी. बाहर निकलते ही पल भर में ही दोनों पूरी तरह से भीग चुके थे, लेकिन खानेवाने की बात दोबारा किसी ने नहीं की.

दरअसल, भूख का तो महज बहाना था. असल में तो उन्हें एकदूसरे के करीब आना था. हुआ भी वही. बारिश की बूंदों में फूट पड़े दोनों के पुराने प्यार के अंकुर. अब तो एकदूसरे की बांहों में समाने की इच्छा भी जोर मारने लगी थी. लगातार तेज होती जा रही बारिश में दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था, तो दोनों लिपट पड़े एकदूसरे से.

जगाता तनमन में प्यार

सचमुच, सावन चीज ही ऐसी है. कमबख्त इश्क की तरह मन पर छा जाए तो तन भी अपने बस में नहीं रहता, मचलने लगता है. तभी तो रचनाकारों की रचनाओं और गीतकारों के गीतों में सावन और रिमझिम फुहारों को अलगअलग भाव, अंदाज और ढंग से पेश किया जाता रहा है. एक दार्शनिक की नजर से देखें तो धरती और आसमान के खूबसूरत समागम का प्रतीक है सावन का मौसम और अन्य प्राणियों के लिए यह संदेश कि सृजन का मौसम आ गया. धरती यानी स्त्री और आसमान यानी पुरुष, जब तक दोनों पास नहीं आते, सृजन का आधार अधूरा रहता है. तभी तो गरमी और लू के थपेड़ों से फटी धरती आसमान से बूंदों की बौछार पाते ही नवयौवना सी खिल उठती है. मानो कह रही हो कि सृजन के लिए अब वह पूरी तरह से तैयार है. ये रिमझिम फुहारें ही तो हैं, जो पुरुष और स्त्री के बीच भी ऐसे भाव जगाती हैं. समाजशास्त्री अमित कुमार कहते हैं, ‘‘हर मौसम का अपना महत्त्व और मिजाज है. जेठ की दोपहर न हो तो सावन की रिमझिम बेमानी है. आज हम कहते हैं कि ताउम्र प्यार बनाए रखना है, तो बीचबीच में एकदूसरे से दूर रहने की आदत डाल लो. न रिश्ते बासी होंगे, न प्यार फीका होगा, क्योंकि दूरियों के बाद ही एकदूसरे के प्रति मुहब्बत और उस की जरूरत का एहसास हो पाता है. कुछ ऐसी ही फिलौसफी प्रकृति की भी है. तभी तो लू के थपेड़ों के बाद होती है मीठी रिमझिम और यही कुदरती तालमेल प्रेमी युगलों को उन्मादी बनाता है.’’

दांपत्य और प्रेम के रिश्तों पर खास पकड़ रखने वाली मैरिज काउंसलर विनीता महापात्रा बताती हैं, ‘‘अजीब इत्तफाक है, मगर एक खूबसूरत सच लिए. मैरिज काउंसलिंग के दौरान हम ने अकसर पाया है कि उलझे हुए रिश्तों को सुलझाने या पार्टनर के दिल में प्यार जगाने में सावन का महीना या यों कहें कि रिमझिम फुहारें बेहद कारगर साबित होती हैं. मनोविज्ञान से जुड़ा है यह मौसम. ‘‘आप ही बताइए, प्यार और रोमानियत के लिए किन बुनियादी चीजों की जरूरत होती है. खूबसूरत माहौल, खुशगवार मौसम, आसपास खिले रंगबिरंगे फूल, भीनीभीनी खुशबू और तरंगित मन, है न. लेकिन रिमझिम फुहारों के बीच बिना कुछ किए ही स्वत: सब कुछ हो जाता है. कई बार हम ने पाया है कि जिन रिश्तों की आग आपसी तकरार से ठंडी पड़ने लगी थी, उन्हें जब हम ने सावन के मौसम में किसी खूबसूरत इलाके में चंद दिन एकांत में गुजारने की सलाह दी, तो उम्मीद से बढ़ कर परिणाम आए. उन जोड़ों ने माना कि मौसम में इतनी कशिश होती है, यह अब जाना.’’

क्या कहता है शोध

सावन के महीने को ले कर भले पहले जैसी कशिश न रह गई हो, लेकिन मौसम और मन का संबंध तो आज भी नहीं बदला. जरा सी बारिश होते ही हम आज भी खुशी से गुलफाम हो जाते हैं. यदि प्यार में गिरफ्तार हैं तो मन मचलने लगता है, क्योंकि प्यार करने वालों को प्यार के लिए ऐसे ही किसी मौके की तलाश रहती है. प्यार पर शोध करने वाले मानते हैं कि रिमझिम फुहारों और हारमोनल स्राव का गहरा रिश्ता है. प्यार का हारमोन फूलों की मादक खुशबू, खूबसूरत माहौल या किसी खास तरह का खाना खाने के बाद स्रावित होता है, जो प्यार करने को उकसाता है. ऐसे ही यह हारमोन सावन के मौसम में भी सक्रिय हो जाता है. गरमियों में यह जितना सुस्त होता है, बरसात में उतना ही चुस्त. इंसानों का ही नहीं, बाकी जीवों के लिए भी है यह ‘मेटिंग सीजन’ यानी सहवास का मौसम. अब तो आप मानेंगे न कि रिमझिम फुहारें जगाती हैं तनमन में प्यार.

कब करें सैकंड बेबी प्लानिंग

पेरैंट्स बनने का सपना हर किसी का होता है. जिस के लिए वे काफी ऐक्साइटेड रहते हैं और जैसे ही घर में पहले बच्चे की किलकारियां गूंजती हैं तो मेहमान, फ्रैंड्स यही बोल कर उन्हें और ब्लैस्सिंग्स देते हैं कि जल्द ही दूसरे बच्चे की भी खुशखबरी सुना कर अपनी फैमिली को कंपलीट कर लें, जिस के लिए कुछ पेरैंट्स तो पहले बच्चे के 2 से 3 साल के अंदर ही दूसरा बच्चा प्लान कर लेते हैं, तो कुछ पेरैंट्स सालों तक इस बारे में सोचते ही नहीं है.

वैसे तो दूसरा बच्चा चाहिए या नहीं, यह हर पेरैंट्स की अपनी चौइस पर निर्भर करता है, लेकिन अगर आप के मन में सैकंड बेबी का प्लान है तो ऐसे में सवाल यह है कि दोनों बच्चों के बीच में सही में कितना गैप होना चाहिए, आइए जानते हैं इस बारे में:

पहला बच्चा लेट होने पर चौइस नहीं

आज सब अपना कैरियर बनाने में इतने अधिक बिजी हो गए हैं कि न तो शादी को अधिक प्राथमिकता देते हैं और न ही बच्चों को, जिस कारण एक तो लेट मैरिज करते हैं और दूसरा फिर बच्चे भी लेट होते हैं. ऐसे में अगर आपका पहला बच्चा 32 या फिर 33 साल की उम्र में हो रहा है तो आप के पास सैकंड बच्चे की प्लानिंग के लिए ज्यादा चौइस या फिर सोचने का समय नहीं होता है क्योंकि ज्यादा लेट होने पर शारीरिक चैलेंजेज होने के साथसाथ जरूरी नहीं कि जब आप बच्चा प्लान करें, तब हो ही जाए क्योंकि बढ़ती उम्र में महिलाओं की ओवरीज में अंडे बहुत कम हो जाते हैं, जिस के कारण कंसीव करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इसलिए पहला बच्चा 32 या फिर 33 साल की उम्र में होने पर अगर आप सैकंड बेबी चाहते हैं तो अगले डेढ़दो साल में दूसरे बच्चे की प्लानिंग कर लें ताकि बढ़ती उम्र में कंसीव करने में दिक्कत न है और आप का सैकंड बेबी का सपना भी पूरा हो सके.

तुरंत कंसीव करने पर भी कई शारीरिक चैलेंजेस

कई बार जानकारी के अभाव में या फिर घर वालों के ज्यादा प्रैशर के चक्कर में पेरैंट्स पहले बच्चे के होने के 1 साल के भीतर ही दूसरा बच्चा प्लान कर लेते हैं, जो महिलाओं के लिए किसी बड़े शारीरिक चैलेंज से कम साबित नहीं होता है क्योंकि पहले बच्चे को जन्म देने के कारण उन के शरीर में हीमोग्लोबिन की काफी कमी हो जाती है. ऐसे में अगर वे 1 साल के अंतराल में ही दूसरे बच्चे की प्लानिंग कर लेती हैं, तो न तो शरीर को उस तरह से उबरने का समय मिल पाता है और साथ ही अनेक स्टडीज में यह भी साबित हुआ है कि 1 साल में दोबारा प्रैगनैंट होने वाली महिलाओं में कमियां रहने के कारण ऐसे बच्चों का वजन कम होने के साथसाथ प्रीमैच्योर डिलिवरी का भी डर बना रहता है. इसलिए सैकंड बेबी के लिए तुरंत कंसीव करने की भी भूल न करें.

6-7 साल से ज्यादा का गैप न रखें

सैकंड बेबी चाहिए लेकिन कब चाहिए यह सवाल पेरैंट्स के मन में बना रहता है. ऐसे में कई पेरैंट्स जौब में बिजी रहने के कारण इस बारे में सालोंसाल नहीं सोचते हैं, जो बिलकुल सही नहीं है क्योंकि बढ़ती उम्र में बायोलौजिकल क्लौक जिसे महिलाओं में ओवुलेशन कहते हैं, जो एक समय सीमा तक होता है और अगर 35 के बाद होता भी है तो स्लो होने के साथ एग और स्पर्म की क्वालिटी काफी डाउन हो जाती है. इसलिए जब सैकंड बेबी के बारे में प्लान करें तो बायोलौजिकल क्लौक का ध्यान रखने के साथसाथ दोनों बच्चों में 6-7 साल से ज्यादा का गैप न रखें क्योंकि इस से दोनों बच्चों पर अच्छी तरह ध्यान देने के साथसाथ सिबलिंग्स भी एकदूसरे को अच्छी तरह सम?ा पाते हैं वरना ज्यादा साल का गैप सिबलिंग्स अंडरस्टैंडिंग में प्रौब्लम का कारण बनता है. इसलिए बेहतर है कि समय पर बच्चा होने से आप उस की अपब्रिंगिंग में भी हैल्दी रोल निभा सकें.

3-4 साल का गैप आइडियल

अगर आप के मन में सैकंड बेबी की प्लान में शुरू से ही है तो आप को सैकंड बेबी के लिए

3-4 साल के बीच में ही प्लानिंग कर लेनी चाहिए क्योंकि यही गैप आइडियल होता है. ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि दोनों बच्चों में इतना गैप होने से पहले बच्चे को प्रौपर केयर मिलने के साथसाथ वह थोड़ा सम?ादार हो जाता है, जिस से मां को दूसरे बच्चे को संभालने व उस की केयर करने में आसानी होती है. साथ ही आगे के बारे में भी अच्छी तरह प्लानिंग हो जाती है वरना बच्चों के बीच में ज्यादा गैप किसी भी लिहाज से सही नहीं होता है.

डाक्टर की सलाह जरूर लें

आप जब भी सैकंड बेबी प्लान करने के बारे में सोचें तो उस से कुछ समय पहले इस बारे में डाक्टर की सलाह जरूर लें. अपने और अपने हस्बैंड की मैडिकल कंडीशंस से उन्हें अवगत करवाएं, फर्स्ट प्रैगनैंसी में किस तरह की परेशानियां फेस करनी पड़ीं ताकि समय से पहले आप दोनों के सभी जरूरी टैस्ट्स हो सकें और आप को समय पर सही सलाह मिलने के साथसाथ सैकंड प्रैगनैंसी में किसी भी तरह की कोई दिक्कत न हो.

एकमत होना जरूरी

बहुत सारे मामलों में देखने में आया है कि महिलाएं ही अपने पार्टनर पर सैकंड बेबी का प्रैशर डालती हैं, जिस की वजह से कई बार आपस में तनातनी का माहौल भी पैदा हो जाता है. ऐसे में जरूरी है कि इस मामले में दोनों की एक राय जब तक न बने तब तक जबरदस्ती सैंकंड बेबी की प्लानिंग के बारे में नहीं सोचना चाहिए.

प्रौपर स्पेस

जब घर में सदस्य बढ़ते हैं तो स्पेस की भी ज्यादा जरूरत होती है खासकर के बच्चों को तो ज्यादा स्पेस की जरूरत होती है. इसलिए जब भी सैकंड बेबी के बारे में प्लान करें तो इस बात का ध्यान रखें कि भले ही ज्यादा नहीं, लेकिन घर में बच्चों के खेलने के लिए थोड़ीबहुत स्पेस होनी बहुत जरूरी है.

उम्र का ध्यान रखना

रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जिस तरह से 35 के बाद महिलाओं के एग कम होने के साथसाथ उन की क्वालिटी भी प्रभावित होने लगती है, ठीक उसी तरह पुरुषों के स्पर्म की क्वालिटी भी 35 के बाद लो होने लगती है. ऐसे में अगर आप सैकंड बेबी के बारे में प्लान कर रहे हैं तो दोनों पार्टनर अपनी उम्र का ध्यान जरूर रखें ताकि जब सही समय पर प्लानिंग करें तो गड़बड़ न हो.

पति-पत्नी के बीच जब वो आ जाए

अमृता प्रीतम ऐसी पहली साहित्यकार हैं जिन के साहित्य से ज्यादा उन से जुड़े प्रेमप्रसंग पढ़े जाते हैं. आज का युवा यह जान कर हैरत में पड़ सकता है कि घोषित तौर पर लिविंग टूगैदर का चलन दरअसल में अमृता प्रीतम ने ही शुरू किया था जो अपने एक प्रेमी इमरोज के साथ 40 साल एक छत के नीचे रहीं.

लेकिन वे अपने ही दौर के अपने ही जितने मशहूर गजलकार साहिर लुधियानवी से भी प्यार करती थीं और इस के भी और पहले वे अपने शादीशुदा कारोबारी पति प्रीतम सिंह से प्यार करती थीं इसीलिए उन्होंने अपना तखल्लुस यानी उपनाम प्रीतम कभी हटाया नहीं वरना तो शादी के पहले उन का नाम अमृता कौर हुआ करता था. प्रीतम से उन्हें 2 बच्चे भी हुए थे, लेकिन तलाक के बाद लोग इमरोज जो पेशे से चित्रकार थे को ही उन का पति समझते थे. प्रीतम का रोल तो तलाक के साथ ही खत्म हो गया था.

कहने का मतलब यह नहीं कि अमृता प्रीतम नाम की साहित्यकार जिन्हें अपनी रचनाओं के लिए ढेरों छोटेबड़े  पुरस्कार और सम्मान देशविदेश से मिले ने प्यार और व्यभिचार में फर्क ही खत्म कर दिया था बल्कि सच तो यह है कि उन्होंने प्यार के असल माने उस दौर में समझए थे जब किसी तलाकशुदा या शादीशुदा और विवाहित महिला का प्यार करना पाप और किसी अविवाहिता का प्यार में पढ़ना चरित्रहीनता अपराध, नादानी, बहकना या गलती समझ जाता था.

आज का युवा अमूमन अमृता इमरोज और साहिर जैसा ही प्यार कर रहा है जिस में घर और समाज के दखल के लिए कोई स्पेस ही न हो और प्यार में हमेशा बंधे रहने की कसमेंरस्में यानी वर्जनाएं भी न हों. 2019 में अमृता प्रीतम की जन्मशताब्दी पर गूगल पर सब से ज्यादा उन के प्रेमप्रसंग सर्च किए गए थे. इन में भी युवाओं की खासी तादाद थी जिस के मद्देनजर कहा जा सकता है कि उन में से अधिकांश इस ट्राइऐंगुलर में अपनी किसी परेशानी का हल ढूंढ़ रहे थे.

बहुत बड़ी चुनौती

अब न अमृता हैं, न साहिर हैं और न ही प्रीतम और इमरोज हैं, लेकिन उन के प्यार के किस्से मिसाल और सबक नई पीढ़ी के लिए बन रहे हैं तो उस की खासीयत यह है कि कोई कभी किसी के लिए न तो पजैसिव हुआ और न ही किसी ने जरूरत से ज्यादा त्याग किया. चारों किरदारों ने जो कुछ भी था उसे सहज रूप से स्वीकार लिया था जिस से लगता है कि सच्चा प्यार करने की पहली शर्त बहुत बड़ा दिल और उदारता है जिस में आप अपनी पत्नी के ऐक्स प्रेमी या पति को सहज स्वीकार लें.

एक भारतीय पति के लिए यह सिचुएशन बहुत बड़ा चैलेंज होती है कि वह अपनी पत्नी के पूर्व पति या प्रेमी के सामने पड़ने पर कैसे रिएक्ट करे. हरकोई इमरोज या साहिर लुधियानवी तो नहीं हो सकता जो कबीर दास के दोहे- प्रेम गली अति सांकरी जा में दो न समाय… बाला मिथक तोड़ दे. हरकोई प्रीतम भी नहीं हो सकता जो यह जानतेसमझते कि पत्नी किसी और से प्यार करने लगी है इसलिए सहूलियत से तलाक दे दे.

दिलचस्त बात

हालांकि एक बड़ी दिलचस्प बात देशभर से पिछले दिनों में यह सामने आनी है कि कुछ पतियों ने दीनदुनिया की परवाह न करते हुए अपनीअपनी पत्नी की शादी उस के प्रेमी से करवा कर एक नई मिसाल कायम कर दी नहीं तो रोजरोज ऐसी खबरें आना भी आम बात है जिन में पति ने पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी क्योंकि वह उस का कहीं और अफेयर बरदाश्त नहीं कर पा रहा था या फिर यह कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ठिकाने लगा डाला.

इन में समझदार कौन? इस सवाल का जवाब बहुत स्पष्ट है कि वे पति जिन्होंने अपनी पत्नी का हाथ उस के प्रेमी के हाथों में सौंप कर खुद की चैन की नींद और सुकून भरी जिंदगी का इंतजाम कर लिया. वे शक और बदले की आग में नहीं जले और न ही होश या नशे में पत्नी को कुलटा कहा या उस से मारपीट की यानी उस के प्रति हिंसा नहीं की जो कई परेशानियों और कलह की वजह बनती है और इस से किसी को कुछ हासिल नहीं होता.

‘वो’ के चक्कर में तबाही

पत्नी के पूर्व पति या प्रेमी से सामना होने पर क्या करें यह सवाल ही किसी भी पति को असहज कर देने वाला है. सभ्य और आधुनिक होते समाज का यह वह दौर है जिस में इस वो को ले कर आए दिन हंसतेखेलते घर उजड़ रहे हैं. अभी तक प्यार करना पुरुष का ही अधिकार माना जाता था, लेकिन अब उलटी गंगा बहने लगी है जो अपने साथ तबाही का तूफान ले कर आती है और हैरत की बात यह कि इस का खमियाजा अकसर पति को ही भुगतना पड़ता है. ऐसे हादसे रोजमर्रा की बात हो चले हैं जिन में पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी.

बीती 25 फरबरी को राजस्थान के बीकानेर जिले के महाजन नाम के कसबे में नहर के पास

22 वर्षीय आमिर की लाश मिली. पुलिस की जांच में उजागर हुआ कि हत्या आमिर की पत्नी सुलताना और उस के प्रेमी समीर ने की थी. 19 वर्षीय सुलताना को बीती 16 मार्च को गिरफ्तार किया गया.

आमिर और उस के परिवारजनों को सुलताना के प्रेमप्रसंग की भनक शादी के वक्त से ही थी, लेकिन इज्जत के चलते वे खामोश रहे. पतिपत्नी में कलह इस बात को ले कर होती रहती थी. तंग आ कर समीर ने सुलताना से कहा कि जब तक तुम्हारा पति जिंदा है तब तक हम एक नहीं हो पाएंगे फिर दोनों ने मिल कर आमिर को ठिकाने लगा दिया पर अब जेल में हैं यानी एक नहीं हो पाए.

खतरनाक अंजाम

दिल्ली के बेगमपुर इलाके के 35 वर्षीय करोड़पति डेयरी कारोबारी प्रदीप की लाश 21 फरवरी को मिली थी. पुलिस जांच में पता चला कि यह साजिश पत्नी सीमा और उस के प्रेमी गौरव ने रची थी जो सीमा और प्रदीप की शादी के पहले से ही एकदूसरे को प्यार करते थे और इतना करते थे कि गौरव ने उत्तर प्रदेश से दिल्ली आकर प्रदीप के मकान में एक कमरा ही किराए पर ले लिया था. एक होने के लिए प्रदीप को रास्ते से हटाने के लिए इन्होने प्लानिंग कर भाड़े के हत्यारों को 20 लाख रुपए दिए थे.

होते हैं विवाद

यानी पत्नी के ‘वो’ को ले कर फसाद अब ऊंची सोसायटी में भी आम होने लगे हैं. एक दिलचस्प मामला भोपाल के पौश इलाके कटारा हिल्स का है. पत्नी संगीता और उस के सौफ्टवेयर इंजीनियर प्रेमी आशीष पांडे ने पति धनराज मीणा की अपने फ्लैट में डंडे से पीटपीट कर हत्या कर दी और दूसरे दिन लाश को ठिकाने लगाने की गरज से दिनभर शहर में घूमते रहे? लेकिन कोई मौका या एकांत जगह नहीं मिली तो दोनों कटारा हिल्स थाने पहुंचे और कार की डिग्गी खोल कर धनराज की लाश खुद पुलिस वालों को बरामद करवा दी.

यहां संगीता ने बड़ी मासूमियत से स्वीकारा कि उस ने प्रेमी के सहयोग से अपने पति की हत्या कर दी. आशीष को ले कर धनराज और संगीता में आए दिन विवाद होता था.

ऐसे 90 फीसदी मामलों में मारा पति ही गया तो जाहिर है इस की वजह पत्नी के वो को सहज स्वीकार न कर पाना है जिस की बहुत ज्यादा उम्मीद भी नहीं करने चाहिए. खुद महिलाएं भी इस बात को जानतीसमझती हैं कि पति उन के विवाह पूर्व पति या प्रेमी को बहुत ज्यादा दरियादिली से नहीं ले पाएगा क्योंकि शादी की पहली रात उस का पहला सवाल यही होता है कि देखो तुम्हारा पहले कभी कहीं अफेयर रहा हो तो अभी बता दो.

मगर अब पूरी तरह ऐसा नहीं है. बैंगलुरु में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब कर रहे भोपाल के आर्यमान का कहना है कि अधिकांश युवा जानते हैं कि लगभग सभी लड़कियां शादी के पहले प्यार करती ही हैं क्योंकि आजकल आजादी और प्यार के मौके उन्हें भी बराबर मिल रहे हैं.

बदलता नजरिया

आजकल लड़कियां अपने अफेयर छिपाती नहीं हैं जो भविष्य के लिहाज से अच्छी बात है. आर्यमान अपने 2 दोस्तों का हवाला देते बताते हैं कि उन्हें पत्नी के अफेयर के बारे में मालूम था. इन में से एक तो बाकायदा पत्नी के पहले प्रेमी से मिला भी था और उसे घर पर डिनर के लिया इनवाइट भी किया था. तो क्या नए दौर के पतियों ने इस मसले पर रोना, कल्पना, चिढ़ना छोड़ दिया है और उन्हें पत्नी की बेवफाई से कोई गिलाशिकवा नहीं रह गया है? क्या भारतीय समाज अंगरेजी दां हो गया है?

इन सवालों पर आर्यमान के मुंबई के एक बड़े मल्टीनैशनल बैंक में काम कर रहे सारांश (बदला नाम) कहते हैं कि नहीं ऐसा नहीं है पत्नी का अफेयर पूरी दुनिया में कहीं सहज स्वीकार नहीं किया जाता.

मैं ने अपनी पत्नी के प्रेमी को डिनर पर आमंत्रित इसलिए किया था कि दोनों को समझ आ जाए कि अब उन के बीच मामूली दोस्ती भर रह गई है और पत्नी नेहा (बदला नाम) भी मुझ पर पूरा भरोसा कर सके क्योंकि उस ने मुझे शादी के पहले ही सब बता दिया था. हां अचानक यह सब हुआ होता तो जरूर मुझे तनाव होता.

जब हटता है राज पर से परदा

मगर आमतौर पर सभी युवा इतने समझदार नहीं होते. भोपाल की 28 वर्षीय वर्तिका (बदला नाम) को उन के पति ने 3 साल पहले शादी के 4 महीने बाद ही छोड़ दिया था क्योंकि एक दिन उन का प्रेमी घर आ धमका था. तब दोनों पुणे में नौकरी करते हुए किराए के फ्लैट में रहते थे.

पति पहले तो अचकचाया और सामान्य होने की कोशिश या यों कह लें कि सच का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर ही रहा था कि प्रेमी ने अपने और वर्तिका के नैनीताल ट्रिप का जिक्र कर डाला. इस ट्रिप के कुछ अंतरंग पलों के बारे में वह कुछ बोला ही था कि पति ने आपा खोते हुए भद्दी गालियां बकते हुए उसे घर से निकाल दिया. जातेजाते गुस्से में प्रेमी ने भी कह दिया कि मैं तो अच्छी दोस्ती और रिलेशन की उम्मीद ले कर आया था, लेकिन तुम तो निहायत घटिया इंसान निकले जो इत्तफाक से वर्तिका जैसी सुंदर और प्रतिभावान लड़की का पति बन गया. अब जिंदगीभर मेरी जूठन चाटते मुझे याद करते रहना.

उस के जाने के बाद पति ने वर्तिका की तुलना वेश्याओं से कर डाली. यह सीन मानसिकता और व्यवहार के मामले में ठीक झग्गीझेंपड़ी सरीखा था. फर्क इतना भर था कि किरदार साफ सुथरे कपडे़ पहने थे, अंगरेजी स्कूलकालेज में पड़े थे, अच्छी नौकरियां कर रहे थे और सभ्य व आधुनिक समाज का हिस्सा माने जाते. उस के जाने के बाद तो मेरी घरगृहस्थी बसने के पहले ही उजड़ गई.

वर्तिका बताती है कि पति ने एक बार फिर मुझे केरैक्टरलैस कहते घर से बाहर कर दिया. वह रात मैंने एक होटल में बिताई और दूसरे दिन की फ्लाइट से भोपाल आ कर मम्मीपापा को सारी बात बताई. दुख तो तब और बढ़ा जब उन दोनों ने भी मुझे गलत ठहराया, लेकिन मुझे चिंता न करने की भी हिदायत दी कि कभीकभी ऐसा होता है और वे पति से बात कर उसे समझ लेंगे.

क्या करें जब कोई हल न निकले

मगर आज तक कोई हल नहीं निकला. दोनों के तलाक का मामला अदालत में चल रहा है. पति ने उस के पिता से साफ कह दिया कि अब कुछ नहीं हो सकता. मैं किसी और की झठन चाट कर स्वाभिमान के साथ जिंदा नहीं रह सकता. आप ने और आप की लड़की ने मुझे धोखा दिया है.

अगर वह पहले बता देती कि वह शादी के पहले किसी और के साथ नैनीताल के एक होटल में 2 रातें गुजार चुकी है तो मैं शायद एडजैस्ट कर लेता, लेकिन उस के ऐक्स ने मेरी बेइज्जती की है, मेरी मर्दानगी को ललकारा है. मैं आत्महत्या नहीं कर रहा हूं यही बहुत है. अब आप तलाक के बाद उस के प्रेमी से ही उस की शादी करवा दें तभी सब सुखी और खुश रहेंगे.

अप्रत्याशित घटना

इस मामले में सब से बड़ी गलती वर्तिका के ‘वो’ की है. शक उस की मंशा और नीयत पर भी किया जा सकता है. इस के बाद खुद वर्तिका की गलती है जिस ने पति को अल्ट्रामाडर्न समझ और प्रेमी को घर आने दिया वह भी शादी के तुरंत बाद जब दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह समझ भी नहीं पाए थे.

वर्तिका के पति ने वही रिएक्ट किया जो कोई भी पति करता लेकिन उसने बहुत बड़े दिल से काम नहीं लिया. अगर बारीकी से देखें तो उस के गुस्से की वजह पत्नी के ऐक्स की वे बातें ज्यादा थीं जो इस वक्त में करना गैरजरूरी था. सामान्य बातचीत होती तो यह नौबत नहीं आती.

खुद वर्तिका अब यह मानने लगी है कि जो भी उस शाम हुआ वह अप्रत्याशित था और एकदम कुछ न सोच पाने के कारण वह प्रेमी को टरका नहीं पाई और इस से भी ज्यादा अहम बात यह कि उसे पति को शादी के पहले सबकुछ बता देना चाहिए था. लेकिन प्रौस्टीट्यूट कहने और घर से निकालने के फैसले पर सोचना उसे भी चाहिए था. किसी को भी इस तरह पत्नी तो क्या किसी भी औरत का अपमान करने का हक नहीं. ऐसे गंवार के साथ कोई लड़की जिंदगी नहीं गुजार सकती. मैं ने और लड़कियों की तरह प्यार किया था कोई गुनाह नहीं किया था.

महंगा पड़ता है सच बताना

ठीक ऐसी ही परिस्थिति से डेढ़ साल पहले कानपुर के युवा पिंटू को दोचार होना पड़ा था जब शादी के चंद दिनों बाद ही खुमारी उतरने से पहले ही उसे लगा कि पत्नी कोमल मोबाइल फोन पर किसी से कुछ ज्यादा ही बतियाती रहती है. उस ने इस बाबत उस से पूछा तो शुरुआती नानुकुर के बाद कोमल ने सच बता दिया कि यह शादी तो उस ने घर वालों के दबाव में की नहीं तो वह तो स्कूल के दिनों से ही पंकज नाम के लड़़के से प्यार करती है और उसे कभी भूल नहीं पाएगी.

सुन कर पिंटू को जोर का झटका लगा, लेकिन उस ने खुद को संभाल लिया और अपने ‘सौत’ से खुद मिला.

पिंटू जलाभुना नहीं, न ही उस ने पत्नी व ससुराल वालों पर धोखा देने का आरोप लगाया और न ही वर्तिका के पति की तरह पत्नी के चरित्र पर ऊंगली उठाई बल्कि कोमल और पंकज के सच्चे प्यार का कायल हो गया. इस के पहले उस ने पति का फर्ज निभाते हुए कोमल को समझया पर उस ने अपना दिल खोल कर रख दिया तो वह पसीज उठा और पत्नी की शादी प्रेमी से करवा दी.

इस के लिए पहले उस ने बाकायदा कोमल को तलाक दिया और खुद की मौजूदगी में पत्नी के 7 फेरे प्रेमी से पड़वा दिए. कोई अनहोनी या अड़ंगा पेश न आए इस के लिए उस ने पुलिस की मदद भी ली. इस त्याग और समझ की चर्चा देश भर में हुई जिस का असर भी हुआ था. इस के बाद से ऐसी खबरें भी आने लगीं जिन में पति ने पत्नी के प्रेमी को सहज स्वीकार लिया.

पौराणिक मानसिकता

यह भी सच है कि अमृता, इमरोज और साहिर जैसे आभिजात्य कलाकार अपना एक अलग समाज बना लेते हैं, जिस में स्वतंत्रता और उच्छृंखलता में कोई खास फर्क नहीं रह जाता, लेकिन औसत समाज अपने ही बनाए कायदेकानूनों के मकड़जाल में फंसा छटपटाता रहता है. यह पौराणिक मानसिकता है कि कोई पति, पत्नी के ‘वो’ को ले कर तिलमिला उठता है और उस का सामना आमतौर पर सहज दिखने की कोशिश करता हुआ करता है, लेकिन बाद में उस की मर्दानगी हिंसा और शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना की शक्ल में पत्नी पर उतरती है.

यहां से अकसर एक अपराध कथा की स्क्रिप्ट का भी जन्म होता है. जितना पति पत्नी को अपनी दासी और जायदाद मानते हुए परेशान और प्रताडि़त करता है पत्नी उतनी ही शिद्दत से प्रेमी के और नजदीक पहुंचती जाती है और फिर एक दिन अखबार की सुर्खी इस तरह के शीर्षक के साथ बनती है कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी.

कानपुर का पिंटू भी यही सब करता तो मुमकिन है उस का हश्र भी भोपाल के धनराज या दिल्ली के प्रदीप जैसा होता, इसलिए पत्नी के प्रेमी से पेश आने के पहले बहुत सोचसमझ लेना चाहिए. किसी भी तरह की हिंसा या पत्नी को किश्तों में कल्पा कर सजा देना और खुद भी घुटते रहना इस समस्या का हल नहीं.

मम्मियां: जब रिश्तों में दूरी बढ़ाएं

मां बेटी का रिश्ता बहुत प्यारा रिश्ता है. हर मां दिल से चाहती है कि उस की बेटी अपनी ससुराल में बहुत खुश रहे, इसलिए वह बचपन से ही अच्छे संस्कार देती है परंतु समय के साथ इस सीख में बहुत फर्क आ गया है. आधुनिक परिवेश में विवाह के माने बदल गए हैं. जहां पहले समस्या लड़की के एक नए व अनजाने ससुराल के माहौल को समझने और तालमेल बैठाने में आती थी, वहीं अब लड़केलड़की की आपस में ही बन जाए तो शादी सफल मानी जाती है.

आजकल नई पीढ़ी के पास किताबी ज्ञान और डिगरियां तो बहुत हैं परंतु व्यावहारिक बुद्धि का अभाव है. शादी के बाद पतिपत्नी दोनों को ही काफी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, इस के लिए दोनों का आपसी सहयोग बेहद आवश्यक है, परंतु देखा यह जा रहा है कि लड़कियां पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को भूल कर बातबात पर एकदूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लग जाती हैं.

शादी को सफल बनाने में जहां पतिपत्नी दोनों की समझदारी काम देती है वहीं घर वालों का सकारात्मक रवैया भी काफी मददगार होता है.

मतभेद बढ़ाता है मोबाइल

पतिपत्नी के रिश्ते में फोन के कारण अकसर कड़वाहट आ जाती है. आजकल फोन के माध्यम से लड़की के मायके वाले, दोस्त आदि लगातार संपर्क में रहते हैं. हर समय बेटी का फोन बजता ही रहता.

न्यायाधिकारी मालिनी शुक्ला का कहना है कि आजकल बेटी ससुराल पक्ष की हर छोटीछोटी बात अपनी फ्रैंड या दूसरों से डिस्कस करती है और फिर वे अपनी राय भी थोपते है, अपनी सलाह भी देते हैं कि तुम्हें जरा भी दबने की जरूरत नहीं है. तुम घूमने चली जाया करो.

सारी जिम्मेदारी तुम्हारी थोडे़ ही है आदि भड़काऊ बातें कर के उस के मन में उलटासीधा भरते रहते हैं. इस तरह की बातें पतिपत्नी के बीच में गलतफहमियां पैदा कर के रिश्ते में दरार डाल देती हैं.

हर घर का अपना तरीका होता है, अपना बजट होता है और अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. संपन्न परिवार से आई आरुषि ससुराल मैं कदम रखते ही कभी परदे बदलने की बात करती तो कभी सोफा तो कभी पति से गाड़ी लेने की डिमांड करती. पति अमोल उसे प्यार से समझने का प्रयास करता रहा. लेकिन उस की फ्रैंड्स और रिश्तेदारों का रोज कौल पर कहना. परदे कितने पुराने हैं. सोफा तो जाने किस जमाने में खरीदा गया होगा आदि बातों ने दोनों के प्यारभरे रिश्ते में दरार पैदा कर दी.

झगड़ों के छोटेछोटे कारण

अमोल की अपनी सोच थी कि वह कर्ज ले कर घी पीयो पर विश्वास नहीं करता. वह अपने भविष्य के प्रति जागरूक था. वह अपना फ्लैट खरीदने की योजना के अनुसार बचत कर रहा था. परंतु आरुषि की रोजरोज की अनावश्यक डिमांड्स की वजह से दोनों के रिश्ते बिगड़ गए. आज आरुषि मायके में रह रही है और उस घड़ी को कोस रही है, जब उस ने फुजूल की बातों में आ कर अपने सुखी संसार में आग लगा ली.

डिस्ट्रिक जज रूपा महर्षि कहती हैं कि फोन के कारण दूसरों के अनाधिकृत हस्तक्षेप ने बेटियों के जीवन में कटुता घोल दी है. यह बीमारी अब शहरों से गांवों तक पहुंच चुकी है. घरेलू हिंसा के मुकदमों में सुलहसमझते के प्रयास में झगड़ों के छोटेछोटे कारण सामने आते हैं, जिन की वजह दूसरों का लगातार संपर्क में रहना होता है.

उन का कहना है कि आजकल की वीडियोकौल के कारण घर के हर कोने में मायके वालों की नजर पड़ने लगी है और बेटी को किचन में देखते ही हितैषी बन कर बहन या भाभी कहेगी, ‘‘तुम्हारी सास का मैनेजमैंट बिलकुल अच्छा नहीं है. खुद तो एसी में बैठी गप्पें मार रही हैं, मेरी लाडली बेचारी गरमी में पसीना बहा रही है.’’

‘‘पार्टी में तेरी ननद ने तेरी ड्रैस पहन रखी थी. उस ने पहन कर पुरानी कर दी, अब जब तुम पहनोगी तब सोचेंगे कि तुम ने नीरजा से मांग कर पहनी है.’’

‘‘रोहन तो दिनभर अपनी मां और भाईभाभी के आगेपीछे घूमता रहता है. तुझे प्यार भी करता है कि नहीं?’’

‘‘लवी तुम ने अपना हार सास को क्यों पहनने को दिया?’’

‘‘उन्हें अच्छा लग रहा था. मैं भी तो मम्मीजी का हार पहना था… दीदी बेमतलब की बात मत किया करो,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

इन्हें कौन समझाए

ममतामए मोह से भरे हितचिंतक का दिखावा करने वालों को कौन समझए कि बेटी स्वयं समझदार है. उस के मुंह में भी जबान है. वह खुद मैनेज कर लेगी. हर घर के अपने तौरतरीके होते हैं. वह यदि खुश है, उसे काम ज्यादा करना पड़ रहा है, तो वह ससुराल वालों के दिल में सदा के लिए जगह बना लेगी और इस के लिए उन्हें भी तो तारीफ मिलेगी कि बेटी को कितने अच्छे संस्कार दिए हैं.

उन्नाव निवासी उर्वशी की शादी 6 महीने पहले लखनऊ के सुदेश से खूब धूमधाम से हुई थी, लेकिन कुछ महीनों में ही दोनों का झगड़ा कोर्ट तक पहुंच गया. जब समझते के लिए प्रोबेशन अधिकारी के पास पहुंचा तो काउंसलिंग के दौरान उर्वशी ने बताया कि भाभी ने नया लहंगा खरीदा तो उन के सामने वह नीचा नहीं देखना चाहती थी. उस के चचेरे भाई की शादी थी, तो वह जबरदस्ती नया लहंगा खरीदने के लिए जोर डाल रही थी. सुदेश का कहना था कि शादी वाला लहंगा या दूसरी कोई साड़ी पहन लो, लेकिन लहंगे पर 40-50 हजार रुपए खर्च करना सरासर बेवकूफी है. शादी का लंहगा एक बार ही पहना है इसलिए वही पहन लो.

बस बहस बढ़ती चली गई और वह रूठ कर मायके चली गई. फिर तो वकील जो कहते रहे वही सारे इलजाम लगाए जाते रहे.

कानून का बेजा इस्तेमाल

कानपुर के किदवई नगर की उच्चशिक्षित सोमा की शादी प्रयागराज के दिलीप से हुई. दोनों ने लव मैरिज की थी. घर वाले भी काफी सुलझे हुए थे. दोनों बहुत प्यार से 1 साल तक रहते रहे, फिर दूसरों की बातों में आ कर आपस में झगड़ा शुरू हो गया.

एक दिन किसी बात पर दिलीप ने नाराज पत्नी का हाथ पकड़ लिया. बस घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवा दिया गया. काउंसलिंग के समय सोमा ने बताया कि दिलीप उसे बहुत प्यार करता है. उस ने उसे कभी भी नहीं मारा. सब लोग कहते हैं कि हर समय तुम काम में ही लगी रहती हो. तुम्हें मुझ से बात करने की भी फुरसत नहीं रहती. दिन भर के लिए कामवाली रख लो और आराम से रहो. धीरेधीरे दूसरों की सीख की वजह से घर के काम करने बंद कर दिए और फिर इसी कारण घर में तनाव, अव्यवस्था और झगड़े होने लगे. हंसताखेलता परिवार टूटने की कगार पर पहुंच गया.

‘‘गूंज… गूंज कहां हो? सुबहसुबह फोन पर लग जाती हो. मेरी शर्ट प्रैस नहीं है. बटन भी तुम ने नहीं लगाया,’’ राहुल जोर से चिल्ला रहा था.

गूंज के कुलीग का फोन था. उसे बहुत बेइज्जती महसूस हुई. वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम

से मैं ने कितनी बार कहा है कि जब मैं फोन पर रहूं तो तुम चिल्लाया मत करो, लेकिन तुम भला क्यों मानो.’’

राहुल नाराज हो कर औफिस चला गया. गूंज का मूड खराब था. उधर सास ने नाश्ता बनाया था और राहुल नाराज हो कर गया तो वाजिब था, उन्होंने भी चार बातें सुनाईं उस का मूड दिनभर खराब रहा. औफिस में भी उस का मन नहीं लगा और काम में गलती होने की वजह से बौस की डांट और पड़ गई.

अपनी गलती मानने के बजाय वह सोचती रही कि क्या राहुल अपनी शर्ट प्रैस नहीं कर सकता? अब गूंज हर समय राहुल से अपने काम खुद करने को कहती. राहुल को बिलकुल भी नहीं अच्छा लगता. वह गूंज के रवैए से आहत हो जाता. धीरेधीरे दोनों के रिश्ते में कड़वाहट बढ़ने लगी. आपस की जरा सी नासमझ के कारण रिश्ते में दरार पड़ गई. पति को इतना तो समझना ही चाहिए कि पत्नी फोन पर किसी जरूरी कौल पर ही होगी.

बेटी की हर तकलीफ पर दूसरों का दुखी होना स्वाभाविक और उचित है परंतु ससुराल की छोटीछोटी बातों पर अपनी बेटी का पक्ष लेने पर रिश्तों में कड़वाहट आने में देर नहीं लगती.

एक नई समस्या

एक नई समस्या देखने में आ रही है कि आजकल लड़कियों को घर संभालने की जिम्मेदारी उठाना यह कह कर नहीं सिखाया जाता कि दूसरे घर जाना है. वहां तो काम करना ही होगा, इसलिए अभी आराम करो. जिंदगी भर काम ही करना है.

यही वजह है कि लड़कियां शादी को अपने सपने पूरे करने का साधन मानने लगी हैं. मगर यथार्थ के धरातल पर जब उन के सपने जिम्मेदारियों के नीचे धराशायी हो जाते हैं तो वैवाहिक जीवन से चिढ़ होने लगती है और ससुराल पक्ष का हर व्यक्ति अपना दुश्मन सा दिखने लगता है, जिस का शिकार मुख्य रूप से सास या पति बन जाता है क्योंकि लड़कियों का ज्यादा समय उस के साथ ही बीतता है. लड़कियां आते ही पति और घर पर अपना पूरा अधिकार जमाना चाहती हैं, ऐसे में लड़का यदि मां, बहन, भाई किसी को भी कुछ दिनों तक प्राथमिकता देता है या आर्थिक सहायता करना चाहता है तो लड़की परेशान हो कर बात का बतंगड़ बना कर घर में अशांति फैला देती है. शादी का अर्थ ही है जिम्मेदारी और आपसी तालमेल, इसलिए लड़की को पति और परिवार की जिम्मेदारी और तालमेल से रहते देख कर खुश होने की जरूरत है न कि परेशान होने की.

दूसरों को समझदारी दिखाते हुए बेटी और उस के ससुराल वालों के घर में दखलंदाजी न कर के बेटी को तालमेल बना कर रहने की सीख देनी चाहिए.

हां, यह आवश्यक है कि बेटी को अपने साथ अन्याय या अत्याचार, दुर्व्यवहार सहन नहीं करना है और उस के विरोध में अवश्य आवाज उठानी है, यह समझने की जरूरत है.

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के साइड इफैक्ट्स

शादी के बाद पतिपत्नियों को यह जानने में जरा भी देर नहीं लगती कि उन का साथी पहले जैसा नहीं रहा. आखिर इस मनमुटाव का क्या कारण है? दरअसल, अधिकांश केसों में पतिपत्नी के बीच झगड़े का मुख्य कारण अतृप्त सैक्स संबंध हैं. सैक्स संबंधों की वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी दोनों को आवश्यकता होती है.

महिलाओं में शुरू से ही लज्जा, शर्म और संकोच होता है. वैवाहिक जीवन के बाद भी वे सैक्स संबंधों के बारे में खुल कर बात नहीं कर पातीं. यही कारण है कि स्त्री सैक्स का चरमसुख प्राप्त करने के बारे में स्वयं कुछ नहीं कहती. लेकिन सैक्स एक ऐसी आग है, जो भड़कने के बाद आसानी से शांत नहीं होती.

स्त्रियों की परपुरुष के प्रति आसक्ति

‘‘जब मैं ने पहली बार परपुरुष से संबंध बनाया तब मुझे पता चला कि शारीरिक सुख का असल मजा क्या है वरना पति के साथ तो बस खानापूर्ति ही थी. वे तो अपना काम कर के सो जाते थे. एक बार भी पूछने की जरूरत नहीं  समझते थे कि मुझे संतुष्टि हुई या नहीं. जैसे मैं एक खिलौना हूं. जब तक मन हुआ खेला, फिर सो गए. अब तो मुझे परपुरुष से ही मजा आता है. वैसे भी इस में हरज ही क्या है,’’ यह कहना है मेरी एक फ्रैंड का.

जब मैं ने पूछा कि डर नहीं लगता तो वह बोली, ‘‘इस में डर कैसा?’’

कभीकभी कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं जो अपनी सैक्स की भूख को शांत करने के लिए सुखसुविधा भरे जीवन को ठोकर मार ऐसे पुरुष के पास चली जाती हैं, जो उन की सैक्स इच्छा को पूरी कर सके.

सपना ने भी तो यही किया था. उस की शादी दानिश से हुई थी. दानिश के पास काफी पैसा था. जब दोनों की शादी हुई थी तब पहली रात को ही सैक्स संबंध के दौरान सपना को पता चल गया था कि दानिश शीघ्रपतन का रोगी है. लेकिन दानिश अपनी पत्नी की अतृप्त इच्छा से बेखबर सिर्फ अपने काम में उलझा रहता. इस के बारे में सोचने का समय ही नहीं था.

अपने पति से सैक्स संबंधों में संतुष्टि न मिलने से वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगी. एक तो सपना घर में अकेली थी फिर घर में करने के लिए कोई काम भी नहीं था. ऐसे में वह अपने पड़ोस में रहने वाले एक कालेज के विद्यार्थी के प्रति आकर्षित हो गई. धीरेधीरे आकर्षण बढ़ने लगा. सपना जब भी उस के साथ होती उस के मन में दबी सैक्स की इच्छा बढ़ने लग जाती.

एक दिन सपना अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई. उस से लिपट उसे बेतहाशा चूमने लगी. इस तरह सपना के लिपटने और चुंबन करने से वह लड़का भी अपनेआप को रोक नहीं पाया और दोनों में सैक्स संबंध बन गया. दोनों ने उस दिन सैक्स का भरपूर आनंद उठाया. सपना को उस दिन सैक्स से जो शारीरिक व मानसिक सुख मिला वह पहले कभी नहीं मिला था.

धीरेधीरे दोनों के बीच सैक्स इच्छा बढ़ने लगी. एक दिन सपना ने घर छोड़ कर जाने का फैसला किया और मौका पा कर अपने घर से जितना हो सका उतने पैसे जेवर ले कर उस के साथ भाग गई. उस लड़के के दिखाए सपने में शायद उसे अच्छेबुरे का ध्यान ही नहीं रहा.

एक दिन वह लड़का सारे जेवर ले कर भाग गया. अब सिवा पछतावे के उस के पास कुछ नहीं था. घर लौटना चाहा पर सपना को उस के पति ने अस्वीकार कर दिया. इस तरह सैक्स का अधूरापन स्त्री को दूसरे पुरुष के पास जाने पर मजबूर कर सकता है.

सैक्स का ज्ञान

सैक्स के मामले में पुरुष की मानसिकता अजीब होती है. वह सैक्स करते समय स्वयं तो सैक्स का पूरा आनंद लेना चाहता है, जबकि वह कभी यह जानने की कोशिश नहीं करता कि क्या इस सैक्स संबंध से स्त्री को आनंद मिला? वह संतुष्ट हो पाई?

पुरुषों में सैक्सक्षमता प्रभावित होने के भी बहुत से कारण हैं जैसे लिंग में तनाव न आना या लिंग का जल्दी ढीला पड़ जाना अथवा शीघ्र स्खलन आदि. इन सभी सैक्स संबंधी समस्याओं से पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां बहुत अधिक प्रभावित होती हैं. जब इस प्रकार की समस्याएं हर सैक्स संबंध के दौरान आती हैं, तब वे अपनेआप को बहकने से नहीं रोक पातीं. वे ऐसे पुरुष की ओर आकर्षित होने लगती हैं जो उन की सैक्स इच्छा को पूरी कर सके.

लेकिन जब पत्नी के इन अनैतिक संबंधों का पता उस के पति को चलता है तो उन का वैवाहिक जीवन तो नष्ट होता ही है, साथ ही परिवार में झगड़ा, विघटन व अन्य सामाजिक परेशानियां भी उत्पन्न हो जाती हैं.

पतिपत्नी के बीच झगड़ा

ऊंची महत्त्वाकांक्षा: अपने पति को छोड़ कर किसी दूसरे पुरुष से विवाह कर लेने या उस के साथ भाग जाने का कारण केवल सामाजिक रीतिरिवाज, पारिवारिक समस्या और यौन संबंधों में कमी ही नहीं है, बल्कि स्त्री के मन में उत्पन्न इच्छाएं और आकांक्षाएं भी हैं. अच्छी सुखसुविधा की इच्छा करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन उस इच्छा और कल्पना में अपनी वास्तविकता को भूल जाना मूर्खता है.

आजकल अधिकांश लड़कियां अपनी इन्हीं इच्छाओं के कारण अनेक प्रकार की समस्याओं में फंस जाती हैं और गलत रास्ते पर चल पड़ती हैं.

रीता ग्रैजुऐशन करतेकरते ऐसे पति की कल्पना करने लगी जो उसे शारीरिक संतुष्टि के साथसाथ उस की सभी इच्छाओं को भी पूरी कर सके. कुछ समय बाद रीता की शादी जिस लड़के से हुई वह एक कंपनी में अकाउंटैंट था. इस काम में उसे जितना पैसा मिलता था वह घर चलाने के लिए काफी होता था. लेकिन यह पैसा रीता की इच्छाओं को पूरी करने के लिए काफी नहीं था. इसलिए वह नौकरी की तलाश करने लगी. एक औफिस में उसे पर्सनल सैक्रेटरी की नौकरी मिल गई. उस की सुंदरता पर उस का बौस लट्टू हो गया. वह रीता को समयसमय पर पैसे देने लगा. इस के बाद वह उसे महंगे उपहार देने लगा. कभीकभी दोनों होटल में खाना खाने भी जाने लगे. ये नजदीकियां जल्द ही शारीरिक संबंधों में तबदील हो गईं.

अब रीता का मन अपने पति के लिए बदलने लगा. काम के बहाने 2-4 दिनों के लिए घर से बाहर चली जाती और जगत के साथ खूब ऐश करती.

कुछ समय तक दोनों इसी तरह मौज करते रहे. इस के बाद धीरेधीरे रीता ने उस से शादी की बात करनी शुरू कर दी. वह अकसर सैक्स संबंध के दौरान बौस से शादी के लिए कहती. वह अकसर टाल देता कि पहले अपने पति से तलाक ले ले. रीता तलाक लेने के लिए तैयार हो गई और उस ने तलाक ले लिया. फिर दोनों एकसाथ एक ही घर में रहने लगे.

एक सुबह जब रीता उठी तो घर में वर्तमान पति को कहीं न पा कर परेशान हो गई. वह औफिस में गई तो पता चला कि वह लंदन चला गया है और उस के नाम का एक लैटर छोड़ गया है.

लैटर में लिखा था, ‘‘प्यारी रीता, मैं आज सुबह की फ्लाइट से लंदन जा रहा हूं. मैं ने जितना समय तुम्हारे साथ बिताया है वह मुझे हमेशा याद रहेगा. मैं कंपनी के काम से यहां आया था और यहां मेरा काम खत्म हो जाने के बाद मैं वापस जा रहा हूं. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता था, क्योंकि जो स्त्री अपने पति की न हो सकी वह मेरी क्या होगी? जो मेरे पैसे को देख कर अपने पति का घर छोड़ सकती है, वह कल मुझ से अधिक पैसे वाले के लिए मुझे भी छोड़ सकती है.’’

अब रीता के पास खुद को कोसने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.

पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव: हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों से आज भी जहां पूरी दुनिया प्रभावित होती है, वहीं हम अपने संस्कारों और संस्कृति को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपना रहे हैं. हाई सोसाइटी में इस तरह का व्यवहार आम होता जा रहा है.

कुछ साल पहले की बात है. मुरादाबाद से 3 नवविवाहित जोड़े हनीमून पर नैनीताल गए. तीनों ने दूसरी रात पत्नियों की अदलाबदली की. पर उन में से एक की पत्नी ऐसे संबंधों को तैयार नहीं हुई और उस ने शोर मचाने की धमकी दे डाली. कहने का अर्थ है कि दूसरे देशों के प्रभाव में आ कर हमें अपने देश की संस्कृति, सभ्यता और संस्कार को नहीं भूलना चाहिए वरन इन्हें बचाने के लिए पश्चिमी देशों के प्रभावों से बचना चाहिए.

निराशा, तालमेल की कमी, खटपट और बेरुखी तो सिर्फ चंद वजहें हैं, जिन की वजह से शादीशुदा जिंदगी में प्यार की कमी हो सकती है. बेशक इस की कई और भी वजहें हैं, मगर वजह चाहे जो भी हो, क्या उन पतिपत्नियों के लिए कोई आशा है जो शादी के ऐसे बंधन में बंधे हैं?

एकदूसरे को एक मौका जरूर दें. साथ बिताए पलों को साथ बैठ याद करें. कोई भी गलत कदम उठाने से पहले उस के साइड इफैक्ट्स के बारे में जरूर सोचें.

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