Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के- भाग 2

लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

नितिनने अपना ब्रीफकेस उठाया और पीछे वेटिंग बैंच पर बैठी अनिला की तरफ हाथ वेव करता हुआ तेजी से एअरपोर्ट के ऐक्जिट गेट की तरफ बढ़ गया.

सैल्फ सर्विस ट्रौली पर अपने दोनों सूटकेस और हैंड बैग लिए जब अनिला के साथ तान्या बाहर निकली तो सफेद ड्रैस में ड्राइवर गोपाल उन्हें रिसीव करने खड़ा था.

गोपाल ने लपक कर तान्या के हाथ से ट्रौली ले ली और कार पार्किंग की तरफ बढ़ गया. अपनेअपने पर्स कंधे पर लटकाए दोनों गोपाल को फौलो करते हुए पार्किंग में खड़ी कार में बैठ गईं. अनिला ने मास्क निकाल कर पर्स में रख लिया था. उन्हें मास्क पहनने में घुटन सी हो रही थी.

एअरपोर्ट से बाहर निकल कर नवी मुंबई के पलवल एरिया की पौश लोकैलिटी में बने खूबसूरत प्राइवेट बंगलौ की तरफ जाने वाली सड़क पर नीली हौंडा सिटी कार ने मुड़ कर जैसे ही गति पकड़ी, तान्या ने पूछा, ‘‘गोपाल, सुना है कि कोरोना वायरस महाराष्ट्र में तेजी से फैल रहा है. हमारे एरिया की पोजीशन क्या है?’’

आप की हाउसिंग सोसाइटी में तो अभी कोई केस नहीं निकला है पर हां आसपास की दूसरी सोसाइटियों में केसेज हैं.

‘‘मैडम आप तो जानती ही हैं कि मेरा परिवार धारावी क्षेत्र में रहता है वहां कोरोना ने कहर बरपा रखा है. उसे कंटेनमैंट जोन घोषित कर दिया गया है. 4 डैथ भी हो चुकी हैं.

‘‘मेरे बड़े भाई और भाभी भी कोरोना पौजिटिव होने के कारण हौस्पिटल में भरती हैं. कहते हैं कि इस में मास्क पहनना, सैनिटाइजर इस्तेमाल करते रहना, दूरी बना कर रखना और कुछ भी छूने के बाद लगातार 20 सैकंड तक हाथ धोने बहुत जरूरी है.

‘‘हम तो डर के मारे अपनी फैमिली को आप के दिए हुए सर्वैंट क्वार्टर में ले आए थे. सुनते हैं बड़ा खतरनाक वायरस है पहले गले को जकड़ता है फिर फेफड़ों को, आदमी तेज बुखार से परेशान हो कर दम तोड़ देता है,’’ कहतेकहते गोपाल एकदम चुप हो कर ड्राइव करता रहा.

कुछ देर खामोश ड्राइविंग के बाद गोपाल बोला, ‘‘मैडम, अभी 45 मिनट के बाद मुंबई ही नहीं पूरा भारत अपनेअपने घर में कैद हो जाएगा. सब का मूवमैंट बंद, मौल, थिएटर्स, रैस्टोरैंट, यूनिवर्सिटी, सारे कालेज और सभी ट्रेनिंग सैंटर बंद.’’

ट्रेनिंग सैंटर की बात सुनते ही उस ने तेजस को फोन लगाया, ‘‘उधर से खुशी भरा स्वर उभरा,’’ हैलो तान्या, वैलकम बैक टु मुंबई, आई वाज मिसिंग यू.’’

तान्या ने सीधे मतलब की बात पूछी, ‘‘क्या अपना ऐविएशन एडवांस स्टडी सैंटर भी क्लोज रहेगा?’’

‘‘हां, टिल फरदर इंस्ट्रक्शन.’’

‘‘ओह,’’ तान्या के मुंह से निकला.

उधर से तान्या की तरफ की खामोशी को समझते हुए तेजस बोला, ‘‘ओके तान्या, जैसे ही मुझे कोई सूचना मिलेगी मैं तुम्हें तुरंत कौल करूंगा और हां इस लौकडाउन में बहुत सावधानी से रहना. अपना ध्यान रखना. बाहर निकलने की सोचना भी नहीं. महाराष्ट्र में यह वायरस बहुत तेजी से स्प्रैड हो रहा है. सी यू गुड नाइट,’’ और फोन कट गया.

चिरपरिचित बंद शौपिंग कौंप्लैक्स के सामने से कार गुजरते देख वह समझ गई कि अभी 15 मिनट घर पहुंचने में और लगेंगे. बाइ रोड कोई 37 किलोमीटर की ड्राइव थी एअरपोर्ट से ‘पलवल’ तक की.

वह अपने ऐंड्रौयड मोबाइल फोन गूगल खोल कर कोविड-19 वायरस से संबंधित जानकारी जुटाने में लग गई. कुछ बातों ने उसे थोड़ा विचलित कर दिया.

चीन से चले इस वायरस ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है. असावधानी के कारण लोगों के जीवन को यह लील रहा है. छींकनेखांसने से जो मुंह और नाक से निकलने वाले सुआब के छींटे पड़ने या संक्रमित व्यक्ति द्वारा छुई गई किसी सतह, वस्तु, कपड़े आदि को छू लेने मात्र से यह वायरस 5 दिन बाद अपना असर दिखाना शुरू कर देता है.

इस के अलावा उस ने गूगल से अन्य जानकारी भी इकट्ठी की जैसे किस सतह पर यह वायरस कितने घंटे जीवित रहता है, इस के प्रारंभिक लक्षण क्या हैं, तुरंत उपचार के लिए क्या करना चाहिए आदि.

घर पहुंचतेपहुंचते तान्या यह समझ चुकी थी कि यह महामारी बहुत खतरनाक है.

बंगले के मेन गेट के ठीक सामने गोपाल ने कार रोकी. उतर कर पहले अनिला वाली साइड का डोर खोला.

अनिला के उतरते ही लपक कर तान्या वाली साइड का डोर खोला. दोनों उतर कर

खड़ी हुईं तो उन की नजर गोपाल की पत्नी और 14 साल की लड़की पर पड़ी. साफसुथरे कपड़ों में. गोपाल जानता था कि मालकिन से ज्यादा तान्या को साफसफाई से रहना बेहद पसंद है.

वे दोनों कार से कुछ दूर पर आ कर खड़ी हो गई थीं. गोपाल ने परिचय कराया यह मेरी पत्नी रानी और यह मेरी बेटी निंदिया,’’ फिर उस ने रानी और निंदिया को आदेश दिया कि अरे टुकुरटुकुर क्या देख रहीं यह हमारी मालकिन हैं. वह तान्या बिटिया… बढ़ कर दोनों के पैर छूओ.’’

अनिला ने तो पैर छुआ लिए पर तान्या पीछे हटते हुए बोली, ‘‘मेरे पैर छूने की जरूरत नहीं बस नमस्ते करो,’’ कह कर वह मेन गेट खुलवा कर घर के अंदर प्रवेश कर गई, रानी पीछेपीछे थी.

गोपाल ने डिक्की से पहिएदार सूटकेस निकाल कर निंदिया को अंदर ले चलने को कहा और बाकी सामान खुद लाया.

तान्या तो सीधी फ्रैश होने चली गई थी. अनिला ड्राइंगरूम में अपने उस चिरपरिचित सोफे पर बैठ गई थीं जहां से उन्हें अपने पति का बड़ा सा तैल चित्र लगातार दिखता रहता.

गोपाल सूटकेसों को उन के निर्धारित स्थान पर रख कर अनिला के

सामने आया और अपने दोनों हाथों की हथेलियां आगे फंसा कर खड़ा होते हुए बोला, ‘‘मालकिन, आप के और बिटिया के लिए गरमगरम चाय बनवाऊं या कौफी? रानी सब बनाना जानती है.’’

गोपाल की बात का उत्तर देते हुए अनिला बोलीं, ‘‘तान्या को आने दो उस की जो इच्छा होगी वह बना लेना,’’ फिर उन्होंने रानी और निंदिता पर एक गहरी नजर डाली और गोपाल से पूछा, ‘‘क्यों गोपाल, बरतन माजने वाली मंजरी और झड़ूपोंछे वाली कामिया आ रही है न?’’

‘‘नहीं मैडम, संक्रमण को देखते हुए प्रत्येक बाई का घर के अंदर आना प्रतिबंधित कर दिया गया है. पिछले 4 दिनों में मैं ने इन दोनों को सारे काम सिखा और बता दिए हैं. अपने क्वार्टर में गरम पानी से सवेरे शाम नहाना… हर काम करने से पहले और बाद में हाथ धोना मैं ने सिखा दिया है.’’

‘‘लेकिन अभी तो इन्होंने हाथ नहीं धोए हैं, निंदिया ने हमारा सूटकेस उठाया, रानी ने मेन डोर का लौक खोला, दरवाजा हाथ से धकेला और तुम ने भी एअरपोर्ट पर ट्रौली छुई, हमारा लगेज छूआ पर हाथ कहां धोए?’’ तान्या शावर बाथ लेने के बाद फ्रैश हो कर बाथरूम से निकल कर अनिला के पास आ कर बैठती हुई बोली.

तान्या की बात सुनते ही गोपाल सकपका गया. वह बाहर बगीचे वाले नल पर जा कर हाथ धोने के लिए निंदिया का हाथ पकड़ कर लपका. रानी भी पीछेपीछे जाने लगी तो तान्या सर्विस वाशबेसिन की तरफ इशारा करते हुए तीनों से बोली, ‘‘अभी तो वहां रखे साबुन से हाथ धो लो और सभी करीब 20 सैकंड तक साबुन से हाथ रगड़रगड़ कर धोएंगे.’’

वे तीनों जब हाथ धोने चले गए तो तान्या मां के सामने बैठती हुई बोली, ‘‘मां, आप भी फ्रैश हो लो, मैं ने गीजर औन कर दिया है… शावर बाथ ले लोगी तो अच्छा लगेगा. मन न करे तो गरम पानी से हाथमुंह धो लेना.’’

मां की वहां से उठने की इच्छा तो नहीं थी वह कुछ देर और अपने पति की तसवीर से मौन बातें कर लेना चाहती थीं, पर तान्या की बात थी, सफर की थकान भी थी इसलिए वे जल्दी फ्रैश हो कर आ गईं.

तान्या की कौफी पीने की इस समय इच्छा नहीं थी. उस का ग्रीन टी पीने का मन था, इसलिए रानी को उस के लिए बोल कर उस ने मां से पूछा, ‘‘आप को भूख तो नहीं लगी है?’’

अनिला ने घड़ी देखी 12:30 बज चुके थे. वे तान्या से बोली, ‘‘समय बहुत हो गया है… स्नैक चाय के साथ ले लेते हैं.’’

चाय के साथ थोड़े से स्नैक ले कर तान्या आज अनिला वाले कमरे में ही सो गई. उन के कमरे में जाते ही गोपाल ने घर का मेन डोर लोक किया और अंदर के बरामदे से होता हुआ रानी तथा निंदिया के साथ अपने क्वार्टर में जा कर लेट गया. कार उस ने गैरेज में खड़ी कर दी थी.

सवेरे वातावरण खामोश था. लौकडाउन का पहला दिन. पक्षियों ने भी मानो चहकना बंद कर दिया था. तान्या ने पूरी सतर्कता के साथ रानी और निंदिया को पूरा दिन कोविड 19 की सावधानियों के साथसाथ कई बार हाथ धोने के निर्देश दिए.

गोपाल का पूरा दिन घरबाहर के सारे उपयोग में आने वाले सर्फेस और अपने क्वार्टर के भीतर की वस्तुओं को सैनिटाइजर करने में बीता.

लौकडाउन के 5 दिन ऐसे ही बीते. इस बीच तान्या ने 2 बार तेजस से यूनिवर्सिटी के हालचाल लिए. यह पता चलते ही कि यूनिवर्सिटी अनिश्चित काल के लिए बंद कर दी गई है, वह थोड़ी निराश और उदास हो गई.

कर भी क्या सकती थी रोज न्यूज चैनल पर भारत और विदेशों में संक्रमण के बढ़ते आंकड़े देखदेख कर चिंतित होने के.

घर के बाहर जाने का सवाल ही नहीं था. अपने कमरे से निकल कर दिन में कई बार मां के पास भी जा कर बैठी, अपनी कोर्स की किताबों में भी उस का मन नहीं लगा. उस ने कई बार ऐरोप्लेन में नितिन के साथ गुजरे पलों को याद किया.

आगे पढ़ें- पिता के मरने के बाद उन के अपने कमरे में….

बड़बोला: भाग-1

‘‘गुडमार्निंग सर,’’ केबिन में  प्रवेश करते हुए विपुल ने कहा और मुझे अपना नियुक्तिपत्र दिया. अकाउंट विभाग का हैड होने के नाते मैं ने उसे कुरसी पर बैठने का संकेत किया और इंटरकौम पर अपने सहायक महेश को केबिन में आने को कहा.

महेश ने केबिन में आते ही नमस्ते की और कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘सर, आज 2 घंटे पहले मुझे जाना है. श्रीमतीजी शाम की टे्रन से मायके से वापस आ रही हैं.’’

‘‘चले जाना पर पहले इन से मिलो,’’ मैं ने महेश को इशारा करते हुए कहा, ‘‘विपुल, तुम्हारे सहायक रहेंगे. काफी दिनों से तुम शिकायत कर रहे थे कि काम अधिक है, एक आदमी की जरूरत है. विपुल अब तुम्हारे अधीन काम करेंगे. विपुल के अलावा सुरेश को भी अगले सप्ताह ज्वाइन करना है. आफिस में स्टाफ पूरा हो जाएगा, जिस के बाद पेंडिंग काम पूरा हो जाएगा. अच्छा विपुल, तुम अब से महेश के साथ काम करोगे. अब तुम अपनी सीट पर जा कर काम शुरू कर दो.’’

20 साल का विपुल बी.काम. करने के बाद पिछले सप्ताह जब इंटरव्यू देने आया था तो उस को काम का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन एक गजब का आत्मविश्वास उस में जरूर था, जिस को देख कर मैं ने उसे नौकरी पर रखा था. मझले कद का गोराचिट्टा, हंसमुख नौजवान विपुल नवगांव में रहता था.

नवगांव नवयुग सिटी से लगभग 80 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कसबा है. बस से एक तरफ का सफर लगभग ढाई घंटे में पूरा होता है. आफिस का समय सुबह 10 से शाम 6 बजे है. 8 घंटे की ड्यूटी के बाद बस पकड़ने के लिए आधा घंटा और फिर लगभग 5 घंटे बस में, यानी लगभग 14 घंटे की ड्यूटी देने की बात जब इंटरव्यू में विपुल को मैं ने बताई और पूछा कि किस तरह वह समय को मैनेज कर पाएगा. कहीं कुछ दिन काम करने के बाद नौकरी तो नहीं छोड़ देगा तो उस के आत्मविश्वास और जवाब देने के ढंग ने मुझे निरुत्तर कर दिया. उस ने कहा कि हर हालत और मौसम में सुबह 10 बजने से 10 मिनट पहले ही आफिस पहुंच जाएगा. और यही हुआ, बिना नागा आफिस खुलने से पहले विपुल पहुंच जाता और 2 महीने के छोटे से समय के अंदर सभी कार्यों में निपुण हो गया. आफिस का पेंडिंग काम समाप्त हो गया और काम रुटीन पर आ गया.

विपुल काम में तेज, स्वभाव में विनम्र लेकिन उस की एक बात मुझे पसंद नहीं थी. वह बात उस के अधिक बोलने की थी. वह चुप नहीं रह सकता था. कई बार मुझे लगता था कि वह बात को बढ़ाचढ़ा कर करता था. विपुल ने अपनी बातों से धीरेधीरे पूरे आफिस को यकीन दिला दिया कि वह एक अमीर घर से ताल्लुक रखता है. अच्छे और महंगे कपड़े, जूते अपनेआप में उस के अमीर होने का एहसास कराते थे. आफिस में अपने सहयोगियोेंको अकसर दावत देना उस का नियम बन गया था.

आफिस में कंप्यूटर आपरेटर श्वेता और टेलीफोन आपरेटर सुषमा के आसपास उसे मंडराते देख कर मुझे ऐसा लगा था कि आफिस की लड़कियों में विपुल की कुछ खास रुचि थी. लंच वह सुषमा और श्वेता के साथ ही करता था. उन दोनों को प्रभावित करने में उस का खाली समय व्यतीत होता था. इन सब बातों को देख कर मैं ने विपुल को कभी टोका नहीं, क्योंकि आफिस का काम उस ने कभी पेंडिंग नहीं किया. इसलिए बाकी सब हरकतों को उस का निजी मामला समझ कर नजरअंदाज करता रहा क्योंकि वह कंपनी के काम में सदा आगे रहता था.

एक दिन मैं आफिस में रिपोर्ट देख रहा था. शाम के 4 बजे चाय के साथ चपरासी समोसा, गुलाबजामुन और पनीर पकौड़ा मेज पर रखता हुआ बोला, ‘‘सर, समोसा पार्टी विपुल की तरफ से है.’’

‘‘किस खुशी में दावत हो रही है?’’ मैं चपरासी से पूछ रहा था, तभी महेश केबिन में आता हुआ बोला, ‘‘सर, विपुल तो छिपा रुस्तम निकला. मोटा असामी है. यह दावत तो कुछ नहीं, बड़ी पार्टी लेनी पड़ेगी विपुल से. ऐसे नहीं छूट सकता. आज उस ने 2 ट्रक खरीदे हैं, 16 ट्रक पहले से ही नवगांव की दाल मिल में चल रहे हैं. टोटल 18 ट्रकों का मालिक है. समोसा पार्टी तो शुरुआत है, फाइव स्टार दावत पेंडिंग है, सर.’’

‘‘महेश, एक बात समझ में नहीं आती कि 18 ट्रकों के मालिक को एक क्लर्क की नौकरी करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘सर, मुझे लगता है कि अनुभव लेने के लिए विपुल नौकरी कर रहा है. साल दो साल के बाद नौकरी छोड़ कर वह अपने व्यापार में पिता का हाथ बटाएगा.’’

‘‘मेरा अनुभव यह कहता है कि अमीर घराने के बच्चे कभी नौकरी नहीं करते हैं, पढ़ाई के बाद अपने घर के व्यापार में जुट जाते हैं. आई.ए.एस. की नौकरी या मैनेजमेंट डिगरी के बाद किसी मैनेजर के पद पर नौकरी तो समझ में आती है, लेकिन एक क्लर्क की नौकरी कोई बड़ा व्यापारी अपने बच्चों से नहीं करवाता है.’’

‘‘आप के कहने में वजन है, सर,’’ महेश बोला, ‘‘लेकिन हमें इस से क्या मतलब, अपन तो दावत का मजा लेते हैं.’’

महेश के जाने के बाद मेरी नजर रिसेप्शन पर गई तो देखा, विपुल श्वेता और सुषमा के साथ हंसहंस कर अपनी दी हुई पार्टी के मजे ले रहा था. मैं सोचने लगा कि कहीं यह दावत लड़कियों को प्रभावित करने के लिए तो नहीं कर रहा.

एक दिन आफिस से घर जाते हुए सामान खरीदने के लिए बाजार गया. शाम के समय बाजार में बहुत भीड़ रहती है, बाजार में सामान खरीदते समय मुझे एहसास हुआ कि विपुल श्वेता के साथ हंसता हुआ हाथ में हाथ डाले टहल रहा था. दोनों एकदूसरे से चिपके हुए अपने में मस्त दुनिया से बेखबर मुझे भी नहीं देख सके. 2 हंसों का जोड़ा पे्र्रम की गहराई में उतर चुका था. युवा प्रेमी को डिस्टर्ब करना मैं ने उचित नहीं समझा. मैं सामान खरीद कर घर आ गया.

घर आ कर मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि विपुल कब नवगांव जाता होगा और कैसे टाइम मैनेज करता होगा. आफिस में विपुल और श्वेता की नजदीकियां अधिक बढ़ने लगीं. चाय ब्रेक में दोनों एकसाथ चाय पीते नजर आते और लंच टाइम में एकसाथ खाना खाते. काम के बीच में विपुल झट से किसी न किसी बहाने श्वेता से चंद बातें कर आता. धीरेधीरे विपुल और श्वेता का प्रेम परवान चढ़ गया. आफिस में सब की जबान पर सिर्फ विपुल और श्वेता के प्रेम प्रसंग के चर्चे थे.

बड़बोला: भाग-2

एक दिन लंच में मैं आराम कर रहा था. महेश केबिन में आ कर सामने कुरसी खींच कर बैठ गया.

‘‘सर, आप ने नई खबर सुनी?’’

‘‘मुझे पुरानी की खबर नहीं, तुम नई की बात कर रहे हो. तुम्हारी शक्ल से लगता है कि कोई सनसनीखेज खबर है.’’

‘‘सर, आप के लिए सनसनी होगी. आप आफिस आते हैं, काम कर के चले जाते हैं. आप को दीनदुनिया की कोई खबर नहीं होती है. हम तो परदा उठने की फिराक में कब से टकटकी लगाए बैठे हैं.’’

‘‘लेखकों की तरह भूमिका मत बांधो, महेश, सीधे बात पर आओ.’’

‘‘सीधी बात यह है सर कि विपुल और श्वेता का प्रेम एकदम परवान चढ़ चुका है. बस, अब तो शहनाई बजने की देरी है. सर, आप को मालूम नहीं, विपुल आजकल नवगांव न जा कर श्वेता के घर पर ही रह रहा है. हफ्ते में 1 या 2 दिन ही नवगांव जाता है. अंदर की खबर बताता हूं कि शादी की घोषणा होते ही श्वेता नौकरी छोड़ देगी. इतने अमीर घर जा रही है. नौकरी की क्या जरूरत है, सर.’’

‘‘क्या श्वेता के घर वाले एतराज नहीं करते? शादी से पहले घर आनाजाना तो आजकल आम बात है, लेकिन रात को सोना क्या वाकई हो सकता है? कहीं तुम लंबी तो नहीं छोड़ रहे हो?’’

‘‘कसम लंगोट वाले की, एकदम सच बोल रहा हूं.’’

‘कसम लंगोट वाले की,’ यह महेश का तकिया कलाम था. मैं समझ गया कि बात में कुछ सचाई तो है, ‘‘महेश, लगता है आजकल हम लोग आफिस में काम कम और इधरउधर की बातों में अधिक ध्यान दे रहे हैं,’’ मैं ने बात पलटते हुए कहा.

‘‘सर, आप ऐसी बातें मुझ से नहीं कर सकते हैं. आप को मालूम है कि सारा काम समाप्त करने के बाद ही मैं आप से गपशप करता हूं,’’ महेश मेरी बात का बुरा मान गया.

‘‘महेश, मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा हूं. मैं विपुल की सोच रहा हूं कि आजकल जब देखो, वह श्वेता के इर्दगिर्द ही मंडराता नजर आता है. अपना काम कब करता है?’’ मैं ने कुछ हैरान हो कर पूछा.

महेश हंसते हुए बोला, ‘‘सर, आप इस बात की फिक्र मत कीजिए. उस का काम जब तक समाप्त नहीं हो जाता, उसे शाम को घर जाने नहीं देता हूं, श्वेता के प्यार से उस के काम की रफ्तार गोली की तरह हो गई है. शाम तक सारा काम निबटा देता है.’’

चूंकि आफिस के काम में मुझे कोई शिकायत नहीं मिली, इसलिए विपुल और श्वेता के आपसी रिश्तों में मैं ने विशेष महत्त्व देना छोड़ दिया. दिन बीतते गए और विपुल और श्वेता के प्रेमप्रसंग के किस्से कुछ और अधिक सुनाई देने लगे. एक दिन लंच टाइम में मैं कौफी पी रहा था. तभी विपुल और महेश ने केबिन में प्रवेश किया.

‘‘सर, बधाई हो, विपुल की बहन की शादी है. आप का निमंत्रणपत्र,’’ महेश ने शादी का कार्ड मुझे दिया.

‘‘विपुल, बहुतबहुत बधाई हो,’’ मैं ने विपुल से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘सर, सूखी बधाई से काम नहीं चलेगा. शादी में आप को अवश्य आ कर रौनक करनी है,’’ विपुल ने आग्रह किया.

‘‘जरूर शादी में रौनक करेंगे,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

शादी से 1 दिन पहले महेश ने लंच समय में कहा, ‘‘सर, कल विपुल की बहन की शादी है, पूरा स्टाफ शादी में जाएगा, कल लंच के बाद आफिस की छुट्टी. आप ने भी चलना है, कोई बहाना नहीं चलेगा.’’

‘‘देखो, महेश, शादी नवगांव में है, रात को वापस आने में देर हो सकती है, वहां से आने के लिए कोई सवारी भी नहीं मिलेगी,’’ मैं ने आशंका जताई.

‘‘सर, इस की चिंता आप मत कीजिए, वापसी का सारा प्रबंध विपुल ने कर दिया है. नवगांव के सब से अमीर परिवार में विवाह बहुत ही भव्य तरीके से हो रहा है, इसीलिए तो सारा स्टाफ जा रहा है. वहां पहुंचते ही एक चमचमाती कार हमारे और सिर्फ हमारे लिए होगी. हम उसी कार से वापस आएंगे. इसलिए आप बिलकुल चिंता न कीजिए,’’ महेश ने बहुत आराम से कहा, ‘‘ऐसी शादी देखने का मौका जीवन में केवल एक बार मिलता है, पूरे नवगांव में कारपेट बिछे होंगे, एक पुरानी हवेली में शादी का भव्य समारोह होगा.’’

विवरण सुन कर मैं ने हामी भर दी. मना किस तरह करता, आखिर इतनी भव्य शादी हम जैसे मध्यम वर्ग के लोगों को नसीब से ही देखने का मौका मिलेगा.

बड़बोला: भाग-3

विपुल की बहन की शादी के दिन पूरे आफिस का स्टाफ नए शानदार चमकते कपड़े पहन कर आफिस आया. ऐसा लगा मानो आफिस बरातघर बन गया हो.

महेश को संबोधित करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘क्या बात है, श्वेता नजर नहीं आ रही?’’

‘‘सर, आप भी क्या मजाक करते हैं, शादी से पहले अपनी ससुराल कैसे जा सकती है. बस, आज बहन की शादी हो जाए, अगले महीने विपुल का भी बैंड बजा समझें.’’

लंच के बाद सभी बस अड्डे पहुंच गए. थोड़ी देर इंतजार करने के बाद नवगांव की बस मिली. लगभग 4 बजे बस चली. बस चलते ही महेश और सुषमा शादी की बातें करने लगे, खासतौर से शादी के इंतजाम के बारे में और मैं उन की पिछली सीट पर बैठा मंदमंद मुसकराने लगा. तभी मेरे साथ सीट पर बैठे सज्जन ने बीड़ी सुलगाई और मेरे से पूछा, ‘‘भाई साब, क्या आप भी इन लोगों के साथ नवगांव जा रहे हैं बिहारी की छोरी की शादी में?’’

‘‘आप की बात मैं समझा नहीं,’’ मैं ने बीड़ी वाले सज्जन से पूछा.

बीड़ी का कश लगाते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम बांके है. मैं और बिहारी अनाज मंडी में दलाली करते हैं. बिहारी का छोरा नवयुग सिटी में किसी बड़े दफ्तर में काम करता है. ऐसा लगता है कि आप लोग उसी दफ्तर में काम करते हैं और उस की बहन की शादी में जा रहे हैं. मैं आप लोगों की बातों से समझ गया कि आप वहीं जा रहे हो, क्योंकि इतनी लंबी बातें पूरे नवगांव में बिहारी का खानदान ही कर सकता है. अगर इतना ही अमीर होता तो उस का लड़का 3 हजार की नौकरी करता, ठाट से 18 ट्रक चलाता.

‘‘बिहारी के महल्ले में रहता हूं, आप सब जिस दाल मिल की बात कर रहे हैं उसे बंद हुए 10 साल हो गए हैं. मैं और बिहारी उस दाल मिल में नौकरी करते थे. जब मिल बंद हुई तब से अनाज मंडी में दलाली कर रहे हैं,’’ बीड़ी का कश लगाते हुए बांके की आवाज में व्यंग्य था.

बांके की बातें सुन कर हम सब सकते में आ गए. सब की बोलती बंद हो गई और भौचक से एकदूसरे की शक्ल देखने लगे. साहस जुटा कर बड़ी मुश्किल से आवाज निकाल कर सुषमा बोली, ‘‘अंकल, आप सच कह रहे हो, कहीं मजाक तो नहीं कर रहे हो.’’

बांके ने एक और बीड़ी सुलगाई, फिर कश लगाते हुए बोला, ‘‘नवगांव पहुंच कर देख लेना. मेरी कोई दुश्मनी थोड़े है. इतना गपोड़ी निकलेगा, पता नहीं था. पूरा नवगांव बिहारी को एक नंबर का गपोड़ी मानता है पर बेटा तो बाप से भी दस कदम आगे निकला.’’

अब बाकी का रास्ता काटना दूभर हो गया. सभी इस सोच में थे कि जल्दी से नवगांव आ जाए और हकीकत से सामना करें. तभी बस एक पुरानी बिल्ंिडग के सामने रुकी. तब बांके ने कहा, ‘‘नवगांव आ गया, यह खंडहर ही दाल मिल है, जहां बिहारी क ा छोरा 18 ट्रक चला रहा है.’’

हम सब टूटे मन से बस से उतरे. अब करते भी क्या, कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. जो दाल मिल 10 साल से बंद है उस की हालत खंडहर से कम क्या और ज्यादा क्या. कच्ची टूटी सड़क पर हम कारपेट ढूंढ़ते रह गए. अब स्टाफ का सब्र टूट गया, सब विपुल को गालियां निकालने लगे, अपनी झूठी शान के लिए विपुल इतना बड़ा झूठ बोलेगा, इस की उम्मीद किसी को नहीं थी.

तभी सामने से एक तांगे में कुछ कारपेट और कुरसियों के साथ विपुल आता दिखाई दिया. उसे देख कर सुषमा जोर से चिल्लाई, ‘‘विपुल के बच्चे, नीचे उतर. हमें बेवकूफ बना कर कहां जा रहा है. इन टूटी गड्ढे वाली सड़कों पर चल कर हमारी टांगें टूट गई हैं और तू मजे में तांगे की सवारी कर रहा है.’’

हमें देख कर विपुल तांगे से नीचे आ कर बोला, ‘‘आइए सर, कारपेट बिछने के लिए गली में जा रहे हैं. बांके अंकल, तांगे का सामान घर पहुंचवा दो, मैं सर के साथ हवेली जाता हूं.’’

महेश ने विपुल का कालर पकड़ कर पूछा, ‘‘बेटे, इतना झूठ बोलने की क्या जरूरत थी. इतने महंगे कपड़े पहन कर आए, सब खराब करवा दिए, अगर सच बता देता तब भी शादी में आते, तब और ज्यादा खुशी होती. पागल बना कर रख दिया, अब राष्ट्रपति भवननुमा हवेली के दर्शन भी करवा दे, उस को भी देख कर तृप्त हो जाएं.’’

शायद विपुल को हमारे आने की उम्मीद नहीं थी. एक पल के लिए वह हमें देख कर सन्न रह गया, लेकिन हर बड़बोले की तरह चतुराई से बातें बनाने लगा. ऐसे व्यक्ति आदत से मजबूर…हार नहीं मानते. बात को पलटते हुए बोला, ‘‘आइए सर, हवेली चलते हैं. आप सफर में थक गए होंगे, कुछ जलपान कर लेते हैं.’’

थोड़ी देर पैदल चलने के बाद हम सब हवेली में पहुंच गए. हवेली एक पुरानी इमारत निकली. हवेली को देख कर लगता था कि किसी समय जमींदार की रिहाइश रही होगी, जो अब एक धर्मशाला बन कर रह गई है, जिस के 2 तरफ कमरे बने हुए थे और बाकी 2 तरफ खाली मैदान. रोशनी के नाम पर 3-4 खंभों पर बल्ब लटक रहे थे. 2-3 कमरों में कुछ हलचल हो रही थी, जहां वरपक्ष के पुरुष तैयार हो रहे थे, कुछ महिलाएं तैयार हो कर तांगे पर बैठ कर जा रही थीं. तभी विपुल ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘हमारे यहां औरतें बरात के साथ नहीं जातीं, इसीलिए पहले हमारे घर जा रही हैं.’’

हलवाई ने विपुल के आग्रह पर कुछ पकौड़े तल दिए और चाय बना दी. जलीभुनी बैठी सुषमा जलीकटी सुनाने लगी, ‘‘विपुल, तू ने यह अच्छा काम नहीं किया, इतना झूठ तो कोई अपने दुश्मन से भी नहीं बोलता. सारा मेकअप खराब हो गया, इतनी महंगी साड़ी धूल से सन गई, ड्राईक्लीनिंग के पैसे तेरे से लूंगी.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ झेंपती हंसी के साथ विपुल बोला.

‘‘इतनी भूख लग रही है और खिलाने को तुझे ये सड़े हुए बैगन और सीताफल के पकौड़े ही मिले थे. नहीं चाहिए तेरी दावत. इस से तो उपवास अच्छा,’’ कहते हुए सुषमा ने पकौड़े की प्लेट विपुल को ही पकड़ा दी. विपुल ने एक पकौड़ा मुंह में डालते हुए कहा, ‘‘सुषमा, नाराज नहीं होते, फाइव स्टार होटल से अच्छे पकौड़े हैं.’’

‘‘तेरे घर का एक बूंद पानी भी नहीं पीना,’’ सुषमा तमतमाती हुई बोली.

‘‘सर, इस में नाराजगी की क्या बात है. आप इतनी दूर से आए हैं, कुछ तो लीजिए,’’ पकौड़ों की प्लेट मेरे आगे करते हुए विपुल ने कहा.

एक पकौड़ा खाते हुए मैं सुषमा से बोला, ‘‘छोड़ो नाराजगी, भूखे पेट रहना ठीक नहीं, कुछ खा लो,’’ लेकिन सुषमा टस से मस नहीं हुई. उस ने कुछ नहीं खाया.

सुषमा और महेश ने अपनी नाराजगी विपुल को जाहिर कर दी. बाकी स्टाफ चुप रहा, लेकिन मेरे समेत सभी दुखी थे.

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बड़बोला: भाग-4

हम विपुल के घर गए तो वहां घर के साथ वाला प्लाट खाली था, जहां खाने का प्रबंध था. शहरी वातावरण से बिलकुल उलट दरियों पर बैठ कर खाने का प्रबंध था. शादी का माहौल देख कर पूरा स्टाफ दंग रह गया. तभी बरात आ गई. आतिशबाजी के नाम पर बंदूक के दोचार फायर देखने को मिले.

भूख से बुरा हाल हुआ जा रहा था, इसलिए चुपचाप दरियोें पर बैठ गए, लेकिन सुषमा ने तो जैसे प्रण कर लिया था. वह अपने इरादे से नहीं पलटी. उस ने खाना तो दूर, पानी की एक बूंद भी नहीं ली. विपुल ने काफी आग्रह किया, लेकिन सब बेकार.

महेश का मन खाने से अधिक वापस जाने की जुगाड़ में लगा था. अत: गुस्से में भुनभुनाता बोला, ‘‘कसम लंगोट वाले की, ऐसी बेइज्जती कभी नहीं हुई. विपुल से ऐसी उम्मीद नहीं थी. सर, मुझे चिंता वापस जाने की है. यहां रहने का कोई इंतजाम नहीं है, रात को कोई बस भी नहीं जाती है. सुबह आफिस कैसे पहुंचेंगे. स्टाफ की लड़कियां परेशान हैं, उन के घर कैसे सूचना दें कि हम यहां फंस गए हैं.’’

हमारी बातें सुन कर साथ में बैठे वरपक्ष के एक सज्जन बोेले, ‘‘आप कितने व्यक्ति हैं, हमारी एक बस खाना खत्म होने के बाद वापस मेरठ जाएगी. हम आप को नवयुग सिटी के बाईपास पर छोड़ देंगे. शहर के अंदर बस नहीं जाएगी, क्योंकि वहां जाने से हमें देर हो जाएगी.’’

यह बात सुन कर पूरा स्टाफ खुशी से झूम उठा. जहां दो पल पहले खाने का एक निवाला गले के नीचे जाने में अटक रहा था, अब भूख से ज्यादा खाने लगे. ऐसा केवल खुशी में ही हो सकता है. वरपक्ष के उस सज्जन को धन्यवाद देते हुए हम सब बस में जा बैठे. यह उन का बड़प्पन ही था कि बस में जगह न होते हुए भी हम 8 लोगों को बस में जगह दी, स्टाफ की लड़कियों को सीट दी और खुद ड्राइवर के केबिन में बोनट पर बैठ गए.

रात के 1 बजे नवयुग सिटी के बाईपास पर बस ने हमें उतारा. चारों तरफ सन्नाटा, सब से बड़ी समस्या बस अड्डे जाने की थी, जहां हमारे स्कूटर खड़े थे. मन ही मन सब विपुल को कोस रहे थे कि कहां फंसा दिया, कोई आटो- रिकशा भी नहीं मिला. आधे घंटे इंतजार के बाद एक रोडवेज की बस रुकी, तब जान में जान आई. हालांकि बस ने पीछे से किराया वसूल किया. उस समय हम कोई भी किराया देने को तैयार थे, हमारा लक्ष्य केवल अपने घरों को पहुंचने का था.

अगले दिन गिरतापड़ता आफिस पहुंचा. पूरे आफिस में सन्नाटा. सिर्फ कंप्यूटर आपरेटर श्वेता ही आफिस में थी. मैं कुरसी पर बैठेबैठे कब सो गया, पता ही नहीं चला. दोपहर के 2 बजे महेश ने आ कर मुझे जगाया. बाकी समय हम दोनों सिर्फ शादी की बातें करते रहे. श्वेता के कान हमारी तरफ थे. हम ने तो अपनी भड़ास कह कर निकाल दी, लेकिन वज्रपात श्वेता पर हुआ, बेचारी के सारे सपने टूट गए. कहां तो उस ने एक राजकुमार से शादी का सपना संजोया था और वह राजकुमार फक्कड़ निकला.

बात को बढ़ाचढ़ा कर कहने की आदत तो बहुतों की होती है, लेकिन 1 का 500 विपुल बना गया. श्वेता इस आडंबरपूर्ण झूठ को सह नहीं सकी और उस ने 3-4 दिन बाद त्यागपत्र दे दिया. आफिस में सब विपुल के व्यवहार

से नाराज थे, लेकिन हम कर भी कुछ नहीं सकते थे. जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा वाली कहावत आखिर चरितार्थ हो गई.

एक दिन शाम को जब विपुल आफिस से निकला तो श्वेता के भाई ने अपने 3 दोस्तों के साथ उसे घेर लिया और हाकी से उस की जम कर पिटाई करने लगे. विपुल अपने बचाव में जोरजोर से चिल्लाने लगा, लेकिन ऐसे मौके पर लोग केवल तमाशबीन बन कर रह जाते हैं, कोई बचाने नहीं आता. तभी हम और महेश वहां से गुजरे तो भीड़ देख कर महेश रुक गया. विपुल की आवाज सुन कर महेश मुझ से बोला, ‘‘सर, यह तो अपना विपुल है.’’

विपुल को पिटता देख कर हम दोनों उसे बचाने की कोशिश करने लगे. उस के बचाव के चक्कर में हम भी पिट गए. हमारे कपड़े भी फट गए. हमें देख कर भीड़ में से कुछ लोग बचाव को आगे बढ़े तो हमलावर भाग गए. विपुल की बहुत पिटाई हुई थी. आंखें सूज गईं, शरीर पर जगहजगह नीले निशान पड़ गए थे. उसे पास के नर्सिंगहोम में इलाज के लिए ले गए, जहां उसे 2 दिन रहना पड़ा.

‘‘देख लिया अपने बड़बोलेपन का नतीजा, इतनी सुंदर सुशील कन्या का दिल तोड़ दिया. क्याक्या सपने संजो कर रखे थे उस ने, सब बरबाद कर दिया. शुक्र कर हम वहां पहुंच गए वरना तेरा तो क्रियाकर्म आज हो जाता. मैं तो कहता हूं कि अब भी समय है, संभल जा और आज की पिटाई से सबक ले.’’

विपुल चुपचाप सुनता रहा. महेश का भाषण जले पर नमक का काम कर रहा था, लेकिन कड़वी दवा तो पीनी ही पड़ती है. ऐसा आदमी अपनी आदत से मजबूर होता है, फिर उसी रास्ते पर चल पड़ता है. कुछ दिन खामोश रहने के बाद विपुल की बोलने की आदत फिर शुरू हो गई, लेकिन अब स्टाफ के लोग उस की बातों को गंभीरता से नहीं लेते थे.

एक दिन विपुल मेरे केबिन में आया और बोला, ‘‘सर, आप की हेल्प की जरूरत है.’’

‘‘बोलो, विपुल, अगर मेरे बस में होगा तो जरूर करूंगा.’’

यहां नवयुग सिटी में सरकार ने प्लाट काटे हैं. डैडी ने नवगांव का मकान बेच कर यहां एक प्लाट खरीदा है और कोठी बनवानी है. आप को मालूम है कि ठेकेदार, मजदूरों के सिर पर बैठना पड़ता है, नहीं तो वे काम नहीं करते. सुबह कुछ देर से आने की इजाजत मांगनी है, शाम को देर तक बैठ कर आफिस का काम पूरा कर लूंगा, कोई काम पेंडिंग नहीं होगा. हम ने यहां किराए पर मकान ले लिया है, शाम को डैडी कोठी के कंस्ट्रेक्शन का काम देख लेंगे. बस, 1 महीने की बात है, सर.’’

मैं ने उस को इजाजत दे दी और सोचने लगा कि 1 महीने में कौन सी कोठी बन कर तैयार होती है, तभी महेश केबिन में आया.

‘‘विपुल अंगरेजों के जमाने का बड़बोला है, जिंदगी में कभी नहीं सुधरेगा.’’

‘‘अब क्या हो गया?’’

‘‘सर, सेक्टर 20 में तो 25 और 50 गज के प्लाट प्राधिकरण काट रहा है, वहां कौन सी कोठी बनवाएगा. मकान कहते शर्म आती है, इसलिए कोठी कह रहा है. यदि उस की 50 गज में कोठी है, तो सर, मेरा 100 गज का मकान तो महल की श्रेणी में आएगा.’’

मैं महेश की बातें सुन कर हंस दिया और जलभुन कर महेश विपुल को जलीकटी सुनाने लगा. खैर, विपुल ने 1 महीना कहा था, लेकिन लगभग 4 महीने बाद मकान बन कर तैयार हो गया. मकान के गृहप्रवेश पर विपुल ने पूरे स्टाफ को आमंत्रित किया, लेकिन स्टाफ ने कोई रुचि नहीं दिखाई. सब बड़े आराम से आफिस के काम में जुट गए. मेरे कहने पर सब ने एकजुट हो कर विपुल के यहां जाने से मना कर दिया.

‘‘महेश, बड़े प्रेम से विपुल ने गृहप्रवेश पर बुलाया है, हमें वहां जाना चाहिए.’’

‘‘सर, मुझे चलने को मत कहिए, उस की कोठी मैं बरदाश्त नहीं कर सकूंगा. मैं अपने झोंपड़े में खुश हूं.’’

‘‘महेश, आफिस से 2 घंटे जल्दी चल कर बधाई दे देंगे, उस की कोठी हो या झोंपड़ा, हमें इस से कुछ मतलब नहीं. वह अपनी कोठी में खुश और हम अपने झोंपड़े में खुश.’’

यह बात सुन कर महेश खुशी से उछल पड़ा और बोला, ‘‘कसम लंगोट वाले की, आप की इस बात ने दिल बागबाग कर दिया. अब आप का साथ खुशीखुशी.’’

शाम को 4 बजे हम आफिस से चल कर विपुल की कोठी पहुंचे. 50 गज के प्लाट पर दोमंजिला मकान था विपुल का. महेश ने चुटकी ली, ‘‘यार, कोठी के दर्शन करवा, बड़ी तमन्ना है, दीदार क रने की.’’

‘‘हांहां, देखो, यह ड्राइंगरूम, रसोई, बैडरूम…’’ अपनी आदत से मजबूर साधारण काम को भी बढ़ाचढ़ा कर बताने लगा कि कोठी के निर्माण में 50 लाख रुपए लग गए.

‘‘सुधर जा, विपुल, 5 के 50 मत कर.’’

‘‘नहींनहीं, आप को पता नहीं है कि हर चीज बहुत महंगी है. जिस चीज को हाथ लगाओ, लाखों से कम आती नहीं है,’’ विपुल आदत से मजबूर सफाई देने लगा.

‘‘विपुल, समय बड़ा बलवान है, इतना झूठ बोलना छोड़ दे, एक

दिन तेरा सच भी हम झूठ मानेंगे. सुधर जा.’’

‘‘बाई गौड, झूठ की बात नहीं है, बिलकुल सच है,’’ विपुल सफाई पर सफाई दे रहा था.

हम ने वहां से खिसकने में ही अपनी बेहतरी समझी. विपुल से बहस करना बेकार था. हम ने उसे शगुन का लिफाफा पकड़ाया और विदा ली.

मकान से बाहर आ कर हम दोनों के मुख से एकसाथ बात निकली :

‘‘विपुल कभी नहीं सुधरेगा. बड़बोला था, बड़बोला है और बड़बोला रहेगा.’

अछूत: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

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टेलीफोन: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

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अछूत- भाग 3: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

यानी यह डर कि जाति के आधार पर भेदभाव किया तो आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है. पर विवाह संस्था आपराधिक मुकदमों के दायरे से बाहर रही. इसलिए अगर कुछ नहीं बदला तो वह है अंतर्जातीय विवाह पर सामाजिक प्रतिबंध. एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तमाम सर्वेक्षणों में जिन लोगों ने अंतर्जातीय विवाह के संबंध में सकारात्मक उत्तर दिए हैं, वे भी समय आने पर अपने जीवन में जातिगत विवाह को ही प्राथमिकता देते हैं. यहां तक कि अमेरिका में लंबे समय से बसे भारतीय भी विवाह अपनी जाति में ही करना पसंद करते हैं.”

“पापा, बहुसंख्यक वर्ग का कहा सत्य नहीं हो जाता. जाति और विवाह के नियम समाज द्वारा बनाए गए हैं. समाज जिसे बना सकता है, उसे मिटा भी सकता है. पर क्या ऐसा होगा? निकट भविष्य में यह संभव होता नहीं दिखाई देता क्योंकि वर्चस्व की लालसा कोई भी समाज त्यागने को आसानी से तैयार नहीं होता. ऐसे में कथित ऊंची जातियां अपना यह मोह भला क्यों त्यागना चाहेंगी? लेकिन, मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि जातिगत भेदभाव को मिटाने का अचूक उपाय एक ही है और वह है अंतर्जातीय विवाह. मेरे जैसे युवा यह परिवर्तन लाएंगे.”

“तो तुम समाज परिवर्तन करने निकले हो?”

“पापा, मैं कोई विद्यासागर तो हूं नहीं. लेकिन, इतना जरूर कह सकता हूं कि यदि हर व्यक्ति स्वयं को सुधार ले, तो समाज स्वयं ही सुधर जाएगा!”

“शिशिर, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं, लेकिन यह सुधार का काम तुम मेरे घर से बाहर निकल कर करो. इस शादी के बाद मेरा तुम से कोई संबंध नहीं रहेगा.”

“पापा.”

“सोच लो. अभी समय है तुम्हारे पास. लौकडाउन समाप्त होने तक तो भोपाल नहीं लौट पाओगे.”

समय न तो रुकता है और न किसी के कहे अनुसार चलता है. संसार का यह चक्र कितना नियमित है, कितना समय का पाबंद है. कौन सा पल हमारे लिए क्या ले कर आने वाला है, मनुष्य कहां जानता है? फिर भी झूठे दंभ और स्वार्थ और में लगा रहता है.

उस शाम बलराज क्रोध में घर से निकल आया था. कालिंदी ने समझाया भी था कि शिशिर दवा औनलाइन मंगा देगा. लेकिन क्रोध और अहंकार मनुष्य का विवेक खत्म कर देता है. घर के दरवाजे पर वह उस का अंतिम स्पर्श था. वह घर से निकला तो था अपनी ब्लड प्रैशर की दवा खरीदने, लेकिन साथ ले आया था महामारी.

दवा की दुकान पर उसे पिछली गली में रहने वाले एक जानकार मिल गए थे. उन का बेटा कुछ दिन पहले ही कनाडा से लौटा था. उसके लिए ही सर्दीजुकाम की दवाई खरीदने आए थे. अभी वे बात कर ही रहे थे कि उन के सामने से पुलिस की 3 गाड़ियों के साथ एक ऐंबुलैंस भी गुजरी.

वह उन से कुछ पूछता, उस से पहले ही एक पुलिसकर्मी सामने आ कर बोला,”मनोहर शर्मा आप ही हैं ना?”

घबराहट के मारे परिचित के हाथ से दवा वाला थैला गिर गया था. बलराज को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था.

उस ने पूछा था,”क्या बात है?”

उस के प्रश्न का उत्तर परिचित के स्थान पर पुलिसकर्मी ने दिया,”आप के मोहल्ले में कोरोना वायरस विस्फोट हो सकता है, क्योंकि आप के पड़ोस में एक पढ़ालिखा गैरजिम्मेदार मूर्ख परिवार है.”

उस ने आगे कहा,”इन के बेटे को एअरपोर्ट पर समझाया गया था. लेकिन न तो उस ने सैल्फ आइसोलेशन किया और न ही उस का परिवार घर के अंदर रहा. इन पर कोरोनोवायरस की सलाह की उपेक्षा करने, सुरक्षा जांच से भागने और बहुत कुछ करने के लिए कई आरोप लगाए गए हैं. हम लोग कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए दिनरात एक कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग हैं जो नियमों का पालन नहीं कर रहे और सभी के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं. अब देखिए इन के कारण पूरा मोहल्ला परेशान होगा और आप भी.”

बलराज चौंक पड़ा,”मैं…मैं क्यों?”

उस ने सहानुभूति से उस के कंधे पर हाथ रखा और बोला,”भाई साहब, आप तो डाइरैक्ट कौंटैक्ट में आ गए ना इन के…”

उस के बाद घटनाक्रम तेजी जे बदलता चला गया. वह घर जा नहीं सकते थे, शिशिर और कालिंदी को संक्रमण का खतरा था. शिशिर ही बैग लेकर होस्पिटल आया था. अगले 20 दिन उस ने मृत्यु के पहले मृत्यु को देखा.

लैटिन भाषा में कोरोना का अर्थ ‘मुकुट’ होता है और इस वायरस के कणों के इर्दगिर्द उभरे हुए कांटे जैसे ढांचों से माइक्रोस्कोप में मुकुट जैसा आकार दिखता है, जिस पर इस का नाम रखा गया. बलराज तो सदा से स्वयं को राजा माना करता था, तो यह मुकुट तो उस के सिर पर सजना ही था.

उस दौरान बलराज ने जाना कि मृत्यु से अधिक डर मृत्यु के इंतजार में होता है. ब्लड प्रैशर के मरीज के लिए यह बीमारी घातक थी. यह मुकुट वे अपने सिर से कभी उतार ही नहीं पाए और इसे सिर पर धारण किए हुए ही इस संसार को विदा कह दिया. देह भी घर नहीं लौट पाई थी.

ऐंबुलैंस में बलराज की मृत शरीर को को डालषकर शिशिर उसे होस्पिटल से यहां इलैक्ट्रिक क्रिमेटोरियम में ले आया था. नियमों के अनुसार कोरोना पौजिटिव मरीज के शव का संस्कार मुखाग्नि से नहीं किया जा सकता था.

महामारी ने उस की शरीर को अछूत बना दिया था. कोई भी उस के मृत शरीर के अंतिम संस्कार में आने को तैयार नहीं था. यहां तक कि श्मशान के स्टाफ ने भी शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था. पिछले 1 घंटे से शिशिर फोन पर लोगों को समझाने में ही व्यस्त था.

श्मशान वह स्थान है जहा पर मुरदे जलाए जाते हैं, लेकिन श्मशान तो किसी मंदिर अथवा मसजिद से भी अधिक पवित्र स्थान है. यहां मनुष्य को अपनी वास्तविक हैसियत का पता चलता है. देखा जाए तो केवल जन्म के पलों में और मौत के पलों में ही कुछ सार्थक घटित होता है. प्रसूतिगृह और श्मशान घाट ये 2 ही समझदारी भरी जगहें हैं. इन दोनों स्थान पर मनुष्य वास्तविक जीवन को समझता है.

अभीअभी नगर निगम की टीम पहुंच गई. उन के कहने पर सिक्योर बौडी बैग में पैक बलराज के शरीर को बाहर निकाला गया. उस के बेटे को मेरे शव को छूने की भी अनुमति नहीं थी. मोर्चरी स्टाफ ने भी उस के शरीर को छूने से पूर्व पर्सनल प्रोटैक्टिव इक्विपमैंट ले लिया था. उस की अंतिम यात्रा को उस पीपीई स्टाफ ने पूरा कराया, जिस की जाति अज्ञात थी.

उस के शरीर को अंदर डाल कर स्विच औन कर दिया गया. अब उस का शरीर जल कर मिनटों में राख हो जाएगा.

अछूत- भाग 2: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

बलराज शिशिर के मन में भी कटुता के बीज को रोपना चाहता था. लेकिन उस की हर बात का एक मौन के साथ  समर्थन करने वाली उस की पत्नी कालिंदी ने यहां उस की नहीं सुनी. उस ने अपने बेटे के मस्तिष्क की कोमल धरती पर प्रश्न का बीज अंकुरित कर दिया. शिशिर ने प्रश्न करना आरंभ कर दिया और जहां प्रश्न अंकुरित होने लगते हैं, वह धरती बंजर अथवा विषैली नहीं रह जाती.

शिशिर अलग था. जो विशेषाधिकार बलराज को प्रफुल्लित किया करते थे, उन से उस का दम घुटता था.

वह कहता,”यह ब्राह्मणवादी विशेषाधिकार, मेरे उन विशेषाधिकारों का हनन करती है, जो एक मनुष्य होने के नाते मुझे मिलने चाहिए. जैसे, खुल कर जीने की इच्छा, अपनी उन आदिम व सभी भावनाओं को प्रगट करने की इच्छा, जो मनुष्य होने का प्रमाण है. मगर समाज को इस सब की फिक्र कहां, उसे तो अपनी उस सड़ीगली, बदबूदार व्यवस्था को बचाए रखने की चिंता है, जो सारे सांस्कृतिक विकास पर एक बदनुमा दाग है. आज न तो देश, न सरकार और न ही युवा, ऐसी सड़ीगली व्यवस्था को मानते हैं.”

जब इंजीनियरिंग कालेज में उस ने एक दलित मित्र को अपना रूमपार्टनर बनाया, तब बलराज ने उसे खूब कोसा, फब्तियां कसी, चुटकियां ली, पर वह डटा रहा.

बलराज कुढ़ता रहता, लेकिन शिशिर मुसकराता और कहता,”अस्वीकार्य को अधिक दिनों तक लादा नहीं जा सकता. जाति का जहर मेरे शरीर में हमेशा चुभता रहा है.”

बलराज कहता,”तुम्हारा भाग्य है कि तुम्हें इतने महान कुल में जन्म प्राप्त हुआ है. तनिक सोचो, क्या होता यदि तुम्हारा जन्म एक निम्न जाति में हुआ होता? मनुष्य को जो आसानी से मिल जाता है, वह उस का मूल्य ही नहीं जान पाता.”

“पापा, मैं भी तो यही कह रहा हूं. उस जाति अथवा समाज पर क्या अभिमान करना जिस का प्राप्त होना, महज हेड ऐंड टैल का खेलमात्र हो. ब्राह्मण बन कर जन्म लेने में मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि क्या है? अभिमान के स्थान पर मुझे तो शर्म आती है, जब मात्र मेरी जाति के कारण मुझे सम्मान दिया जाता है. मुझे मेरे व्यक्तित्व के लिए सम्मान चाहिए, न कि किसी विशेष सरनेम के कारण. जन्म के लिए जिस कुल को चुनने पर आप का कोई अधिकार ही नहीं, उस कारण जब आप का अपमान किया जाता है, तो जरा सोचिए कि कितनी पीड़ा होती होगी?”

बलराज अहंकार के साथ कहता,”तो आरक्षण तो मिल गया ना उन्हें. यह उचित है क्या?”

“बिलकुल. वैसे आरक्षण कोई एहसान नहीं, उन का अधिकार है. एक समय था जब उच्च पदों पर तथाकथित उच्च जातियों का आधिपत्य था. आज वहां उन की मोनोपोली कम हो रही है. यह बात दूसरी है कि वर्तमान समय में आरक्षण राजनीतिक पार्टियों का एक हथियार भी बन गई है.”

बलराज कहता,”अरे सभी को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व होता है! सभी स्वयं को अन्य से बेहतर साबित करते हैं. तुम मात्र ब्राह्मणों को दोष नहीं दे सकते.”

शिशिर कहता,”मुझे ब्राह्मणों से नहीं, उस सोच से दिक्कत है, जो स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ आँकती है. ऐसी सोच रखने वाला जिस धर्म, जाति, देश अथवा क्षेत्र से संबंध रखता हो, वह गलत ही है.”

थोड़ी देर विराम ले कर वह फिर कहता,”आप को पता है पापा, मेरी प्रगतिशील दलित मित्रों की मंडली भी ‘ब्राह्मण’ कह कर मेरा उपहास करती है, मानो मैं ब्राह्मणशाही का प्रतिनिधि करता हूं और ब्राह्मण परिवार में पैदा हो जाने के कारण ब्राह्मणशाही का सारा गुनाह मेरे सिर पर है. मैं जानता हूं कि वे मेरे मित्र हैं, और यह उन का मजाक है, मगर यह भी सच है कि आज घृणा और क्रोध दोनों तरफ है. लेकिन हमें इस घृणा का अंत करना है, उसे बढ़ाने का कारण नहीं बनना.”

धीरेधीरे उन के बीच बातचीत कम होती चली गई. शिशिर मेधावी था, अतः जीवन के सोपान पर आगे बढ़ने में उसे अधिक कठिनाई नहीं हुई. मध्य प्रदेश सरकार के बिजली विभाग में अभियंता के पद पर चयनित हो कर शिशिर भोपाल चला गया और दोनों पतिपत्नी इंदौर में अकेले रह गए. मांऔर बेटे की बातचीत लगभग प्रतिदिन हो जाया करती पर बलराज और शिशिर के बीच अबोला बढ़ता ही चला गया.

बलराज यह सोच कर संतोष कर लेता कि समय के साथ उस की सोच बदल जाएगी. वैसे भी वह अपने आसपास यह सब होता हुआ देख रहा था. आजकल की पीढ़ी दोहरी मानसिकता के साथ जी रही थी. सोशल नेटवर्किंग साइट पर जिस प्रथा और मान्यता का विरोध करते, लंबेलंबे आलेख शेयर किया करते, उसी प्रथा का अपने जीवन में निस्संकोच पालन किया करते थे.

इस समाज को अधिक खतरा उन से नहीं है जो गलत सोच रखते हैं, बल्कि उन से हैं जो अच्छी सोच होने का ढोंग करते हैं.

वैसे संख्या में कम, लेकिन सोच में अधिक एक वर्ग ऐसा भी है, जिस की कथनी और करनी अलग नहीं है. उस का बेटा शिशिर भी ऐसा ही था. अपने जीवनकाल में वह यह जान तो पाया, लेकिन समझ नहीं पाया.

शिशिर अपनी एक सहकर्मी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव लेषकर उन के पास आया था. बलराज का संस्कारी मन इस प्रेम विवाह को समय की मांग सोच कर मान भी लेता यदि लड़की किसी उच्च जाति की होती. लेकिन साक्षी एक दलित परिवार की लड़की थी और एक दलित परिवार की लड़की को पुत्रवधू बना कर लाना उसे स्वीकार्य नहीं था. उस दिन वर्षों बाद पितापुत्र के बीच बात हुई थी.

बलराज ने ही बात को शुरू किया,”दलित और मुसलमान छोड़ कर तुम अपनी मरजी से किसी भी जाति में शादी कर सकते हो.”

एक मुसकान के साथ शिशिर बोला,”हम दोनों ने ही कभी यह नहीं सोचा कि हमारी जाति क्या है? हम उस विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं, जहां इंसान जाति और धर्म की पहचान से बहुत ऊपर उठ जाता है. यह भी सच है कि प्रेम इंटरव्यू ले कर नहीं होते.”

उस दिन कालिंदी ने भी शिशिर को समझाया,”बेटा, पापा को भी तो समझो, हम जिस समाज में रहते हैं, वहां एक दलित से विवाह सही नहीं है.”

शिशिर चौंक गया था,”मां, जब दलित से मित्रता सही है, फिर विवाह गलत कैसे हो गया? वैसे भी समाज बदल गया है.”

इस बार बलराज मुसकराया था,”बेटा, सच यही है कि जाति एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में भारत में सिर्फ अपना रूप बदल रही है. जाति की शुद्धता बनाए रखने के लिए समाज में उस की खास जगह, खानपान और सामाजिक व्यवहार पर प्रतिबंध, व्यवसाय के स्वतंत्र चुनाव का अभाव और अंतर्जातीय विवाह पर रोक जरूरी माने गए हैं. आज इन लक्षणों में परिवर्तन आया है, जिस का सब से बड़ा कारण कानूनी बाध्यता है.

टेलीफोन- भाग 2: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

यह कहते हुए कृष्णा ने ताला खोला और अंदर चली गई. फिर वाशरूम से आ खिड़की बंद करती है और एक बार आईने में खुद को देख हाथों से अपना बाल ठीक कर सूटकेश उठा बाहर निकल आती है. बाहर आ कर आश्चर्य में पड़ जाती है. यह देख कि गुप्ता मैडम का पति उस से फिर कहता है, ‘‘मैडम आप बात कर लीजिए न आप कल कह रही थीं कि बहुत जरूरी है बात करना.’’

‘‘नहीं इतना जरूरी नहीं है,’’ कहते हुए कृष्णा ताला लगाती है, अब उसे थोड़ा गुस्सा भी आने लगा था. सोचती है यह आदमी तो पीछे ही पड़ गया, कैसे इस से पीछा छुड़ाऊं? ताला लगा कर जब वह पीछे मुड़ी तो उस आदमी को अजीब स्थिति में पाती है जैसे आंखें चढ़ी हों और सांसें बेतरतीब चल रही हो, कृष्णा को अब थोड़ा डर लगा और वह सूटकेश ले कर से तेजी से निकल पड़ती है. गुप्ता का पति अभी भी पीछे से पुकार रहा है.

‘‘मैडम फोन कर लीजिए.’’

कृष्णा ‘नो थैंक्स’ ‘नो थैक्स’ कहते लगभग भागते हुए सड़क तक पहुंची.

रास्ते भर कृष्णा सोच में डूबी रही कि अजीब आदमी है. कल जब फोन करनी थी तो इस ने एक बार भी फोन करने को नहीं कहा और आज पीछे पड़ गया- फोन कर लीजिए, बिलकुल सिरफिरा लगता है. थोड़ी देर में वह औफिस पहुंच गई. जैसे ही वह औफिस पहुंची गुप्ता मैडम से उस का सामना हुआ और वह उस के सूटकेश को देख अजीब नजरों से उसे ताकने लगी फिर पूछा, ‘‘क्या तुम गेस्ट हाउस गई थी’’ और उसे से पीछा छुड़ा यह सोचते हुए कि दोनों ही पतिपत्नी बड़े अजीब हैं, नर्गिस के पास पहुंची.

नर्गिस लंच ले चुकी थी. कृष्णा का बड़बड़ाते देख पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ?’’

कृष्णा ने बताया, ‘‘अरे ये गुप्ता मैडम और उस के पति दोनों बड़े अजीब लोग हैं. अभी मैं सूटकेश लेने गई थी गेस्ट हाउस में तो उस का पति कह रहा था कि मेरे लैंडलाइन से घर पर फोन कर लीजिए. अब मुझे फोन नहीं करना तो नहीं करना उसे क्या पड़ी है,’’ इस पर नर्गिस ने बताया, ‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई कि उस के बारे में बड़े अजीबअजीब से किस्से प्रचलित हैं, जरा बच के रहना उस से.’’ जब कृष्णा ने कोंचा तो उस ने बताया, ‘‘अस्पताल में एक बार इस आदमी ने एक नर्स को छेड़ा था. नर्स ने जब हल्ला किया तो लोग जमा हो गए. कहा जाता है ऐसे ही किसी मामले में एक बार वह सस्पेंड भी हो चुका है. अफवाह तो ऐसी ही थी पता नहीं सच क्या है और झूठ क्या? लेकिन इतना तो तय है कि इस की रैप्यूटेशन अच्छी नहीं है. तरहतरह की अफवाहें उड़ती रही हैं उस के बारे में.’’

‘‘मुझे तुम्हें पहले बताना चाहिए था,’’ कहते हुए कृष्णा के शरीर में एक झुरझुरी सी उठी लेकिन जाने की हड़बड़ी में सब भूल कर जल्दजल्दी काम निबटाने में लग गई. समय से पहले सब काम निबटा बास से छुट्टी ले वह स्टेशन के लिए रवाना हो गई.

स्टेशन पहुंची तो ट्रेन लगी हुई थी, अब फोन करने का समय नहीं था. वह जल्दी में ट्रेन में चढ़ गई. थोड़ी देर में ट्रेन खुल भी गई. खिड़की के बाहर हर पल दृश्य बदल रहा था. सांझ हो आई थी, खेतों के बीच से पशुपखेरू, लोगबाग अपनेअपने घरों को लौट रहे थे. कृष्णा को खयाल आया कि कल इस समय मैं भी अपने परिवार के साथ अपने घर में रहूंगी.

धीरेधीरे रात उतर आई और बाहर कुछ बत्तियों के सिवाय अब कुछ भी दिखाई पड़ना बंद हो गया. कृष्णा खाना खा कर कल के सपने देखती हुई सो गई. सुबहसुबह उस की नींद खुली तो उस का स्टेशन आने वाला था. जल्दीजल्दी उस ने अपना सामान समेटा. सोच रही थी पता नहीं जय स्टेशन आएगा या नहीं. वैसे जय को मालूम तो था कि वह आने वाली है पर 2 दिन से बात नहीं होने के कारण ठीक से प्रोग्राम नहीं बता पाई थी. पर उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उस ने जय को हाथों में फूलों का बुके लिए खड़े देखा. शादी के बाद शायद यह उन की सब से लंबी जुदाई का वक्त रहा था. अत: दोनों मिलने को बेकरार थे. घर आ कर वह घर की सफाई और बच्चों के साथ मिल कर दीवाली की तैयारी में जुट गई. खुशी के 2-3 दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

अपने परिवार के साथ मस्ती भरी दीवाली बीत गई. अब उसे कावेरी से मिलना

था. जैसा कि पहले से तय था दोनों कौफी हाउस में मिले और कौफी की चुस्कियों के साथ बातों का सिलसिला चल निकला. दोनों एकदूसरे को अपनी नई पोस्टिंग और नए जगह के बारे में बताने लगे. दोनों पहली बार अपने घरपरिवार से दूर अलग रहने के अनुभव को शेयर करने लगीं. कृष्णा ने बातों ही बातों में यात्रा से तुरंत पहले की वह टेलीफोन वाली बात कावेरी को बताया. कावेरी ने जोर का ठहाका लगाया और अपने बिंदास अंदाज में उस से पूछने लगी, ‘‘तुझे क्या लगता है क्यों वह तुझे फोन करवाने को इतना आतुर था और तुझ पर इतनी मेहरबानी कर रहा था?’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘मुझे तो वह कुछ सिरफिरा लगा, हो सकता है रिटायरमैंट के बाद सठिया गया हो.’’

कावेरी ने उसी बिंदास अंदाज में एक और ठहाका लगाया और कहा, ‘‘अरे बुद्धू तू बालबाल बच गई इंनकार कर के वरना वह तुझे लपेटने वाला था. अगर तू उस के रूम में चली जाती तो वह पीछे से दरवाजा बंद करता और तुझ पर टूट पड़ता. तू खुद कह रही है न कि औफिस का समय था और उस समय कौरिडोर में कोई नहीं था और उस की आवाज भी उखड़ीउखड़ी सी थी.’’

‘‘अरे नहीं, क्या बात करती हो तुम, मैं एक अधेड़ उम्र की महिला वह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता था.’’

‘‘तेरे गोरे रंग पर मर मिटा होगा ये बता तुझ से तो बड़ा था न? तू कह रही है रिटायर्ड था तो कम से कम 15 साल तो बड़ा होगा ही तुझ से.’’

‘‘ये तू क्या कह रही है कावेरी मैं ने इस ऐंगल से तो सोचा ही नहीं.’’

‘‘तो सोच, अगर वह सिर्फ तुझ पर मेहरबानी कर रहा था तो शाम में जब तुम सब साथ चाय पी रहे थे और उस की पत्नी साथ थी उस ने तुझे फोन करने को क्यों नहीं कहा?’’

‘‘हां, तेरी यह बात भी सही है.’’

‘‘जी हां, मैं हमेशा सही ही कहती हूं. दिन में जब गेस्ट हाउस में निश्चय ही सारे

लोग औफिस जा चुके थे और कारिडोर

बिलकुल सूना पड़ा था तभी वह दरियादिल क्यों बन गया था और तभी उस ने तुझ से फोन करने को क्यों कहा? इस के पीछे कुछ तो वजह रही होगी.’’

‘‘हां, यह बात भी सही है कि उस समय पूरे कौरिडोर में कोई नहीं था.’’

‘‘यस और नर्गिस ने तुझे बताया भी कि उस का रिकौर्ड ठीक नहीं.’’

‘‘हां, पर उस ने पहले नहीं बताया न.’’

‘‘अगर नर्गिस ने पहले बताया होता तो तुम्हें उसी समय माजरा समझ में आ गया होता.’’

‘‘अच्छा ये बता उस की पत्नी ने औफिस में मुझ से क्यों पूछा कि तुम गेस्ट हाउस गई थी क्या?’’

‘‘वह इसलिए कि इसे अपने पति का चालचलन मालूम था और उसे हमेशा अपने पति पर संदेह रहता होगा कि वह फिर से कोई करामात कर सकता है.’’

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