लगातार बढ़ते जा रहे क्लेश ने मेरी भतीजी अंजलि की तबीयत और ज्यादा खराब कर दी. जुकाम- बुखार से पैदा हुआ सिरदर्द रोने के कारण इतना बढ़ा कि सिर फटने लगा.
‘‘बूआ, यह अरुण अगर घर छोड़ कर चला जाएगा तो मैं मर नहीं जाऊंगी,’’ अंजलि अपने भाई के बारे में बोलते हुए सुबक रही थी, ‘‘पिताजी और मां के मरने का सदमा सहा है मैं ने. दोनों छोटे भाइयों को काबिल बना कर इज्जत की जिंदगी देने के लिए मैं ने अपना घर नहीं बसाया…आज अरुण घर छोड़ कर जाने को तैयार है…कितना अच्छा फल मिल रहा है मुझे अपने त्याग और बलिदान का.’’
‘‘तू इतनी परेशान मत हो अंजलि, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने उसे दिलासा देते हुए बारबार समझाया, पर उस का रोना नहीं थमा.
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मेरा बड़ा भतीजा अरुण अपने कमरे में अपनी पत्नी सीमा से ऊंची आवाज में झगड़ रहा था. आमतौर पर अरुण से डरनेदबने वाली सीमा उस दिन जबरदस्त विद्रोही मूड में उस से खूब लड़ रही थी.
‘‘मैं नहीं रहूंगी…नहीं रहूंगी…अब इस घर में, मैं बिलकुल भी नहीं रहूंगी,’’ सीमा की गुस्से से भरी आवाज हम साफ सुन सकते थे, ‘‘रातदिन की रोकटोक अब मुझ से नहीं सही जाती है. आप की बहन जानबूझ कर मुझे दुखी और परेशान करती हैं…हमें नहीं चाहिए उन की सहायता, उन का पैसा. मैं और मेरा बच्चा एक वक्त की रोटी खाएंगे, पर मैं अब सुखचैन से अलग घर में ही रहूंगी.’’
जिस बात को ले कर घर का माहौल इतना खराब हो गया था, वह बहुत छोटी सी थी.
सीमा सुबह अपनी बड़ी बहन से मिलने जाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी थी, लेकिन अंजलि ने अपनी खराब तबीयत को कारण बना उसे जाने से रोक दिया.
सीमा की प्रतिक्रिया अप्रत्याशित रूप से तेज रही. वह बुरी तरह पहले अंजलि से उलझी फिर अरुण से. उस का देवर अनुज, देवरानी प्रिया और मैं उसे समझा कर शांत करने में पूरी तरह असफल रहे थे.
घटनाचक्र ने खतरनाक मोड़ तब लिया जब अरुण ने गुस्से में आ कर सीमा के गाल पर 2 थप्पड़ मार दिए.
सीमा ने एकदम खामोश हो कर अपना और अपने बेटे समीर का जरूरी सामान एक सूटकेस में भरना शुरू कर दिया. वह घर छोड़ कर मायके जाने की तैयारी कर रही थी.
प्रिया की पूरी सहानुभूति अपनी जेठानी के साथ है, यह उस के हावभाव से साफ पता चल रहा था. उस का फूला मुंह उस के खराब मूड की निशानी था.
अनुज भावुक स्वभाव का है. वह अपनी दीदी की बेहद इज्जत करता है. उसे मैं ने ऊंची आवाज में अंजलि से बातें करते कभी नहीं सुना.
प्रिया और अनुज का प्रेम विवाह हुआ था. प्रिया अच्छी पगार पाती है. बाहर घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने में उस का मन बहुत लगता है. मेरा यह मानना है कि अगर अनुज अपनी बहन के साथ इतनी ज्यादा मजबूती से न जुड़ा होता तो प्रिया अब तक जरूर घर से अलग हो गई होती.
प्रिया की तुलना में सब सीमा को ज्यादा सीधा और सरल मानते थे पर आज वही घर छोड़ कर मायके जाने की तैयारी कर रही थी.
अरुण नाराजगी भरे अंदाज में सीमा को सूटकेस में सामान भरते देखता रहा. जब सीमा सूटकेस बंद करने को तैयार हुई, तब वह झटके से उठा और सूटकेस उठा कर उलटा कर दिया.
सारा सामान पलंग पर फैला देख सीमा पहले जोर से रोई और फिर बाहर के दरवाजे की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.
उस के पीछे पहले अरुण घर से बाहर गया, करीब 5 मिनट बाद अनुज और प्रिया भी समीर को ले कर उन्हें ढूंढ़ने के लिए घर से बाहर चले गए.
मैं बाहर का दरवाजा बंद कर के अंजलि के कमरे में लौटी, तो उसे बेहद उदास और दुखी पाया.
‘‘बूआ, क्या मैं इतनी बुरी हूं कि इस घर का हर सदस्य मुझे नफरत की नजरों से देखने लगा है?’’ अंजलि के इस सवाल के जवाब में मैं ने उसे छाती से लगा लिया तो वह सुबकने लगी थी.
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मेरे बड़े भैया करीब 10 साल पहले हमें छोड़ गए थे और भाभी उन से 3 साल बाद. भैया ने सदा के लिए आंखें मूंदने से पहले अपनी बेटी अंजलि पर परिवार की देखभाल की सारी जिम्मेदारी डाल दी थी.
अंजलि ने अपने पापा को दिए गए वादे को जरूरत से ज्यादा गंभीरता के साथ निभाया था. उस ने अपना ही नहीं अपने भाइयों का कैरियर भी अच्छा बनाया. जो रुपए उस की शादी के लिए मातापिता ने जोड़े थे, उन से अनुज को इंजीनियर बनाया. उस के लिए रिश्ते आते रहते थे पर वह शादी से इनकार करती रही.
अपने से पहले अंजलि ने अरुण की शादी की. घर में जल्दी बहू ला कर वह अपनी मां को सुख और आराम देना चाहती थी.
अनुज ने अभी 2 साल पहले प्रिया से प्रेम विवाह कर लिया था. उस वक्त तक अंजलि 30 साल की हो चुकी थी. वह तब तक कभी शादी न करने का मन पूरी तरह बना चुकी थी.
मेरी समझ से उस की शादी न होने के अलगअलग समय पर अलगअलग कारण रहे.
जब तक वह 26-27 की हुई, तब तक अपने दिवंगत पिता को दिए गए वचन के चलते उस ने शादी करने से इनकार किया था.
इस उम्र के बाद लड़कियों के लिए उचित रिश्ते आने कम हो जाते हैं. बाद में वह अनुज को इंजीनियर बनाने व अरुण की शादी की जिम्मेदारियों के चक्कर में फंस कर अपनी शादी टालती गई.
शादी की सही उम्र निकलती जा रही है, इस बात का एहसास किस सामान्य लड़की को नहीं होगा? अंजलि भी जरूर मन ही मन परेशान व चिंतित रही होगी. तभी उस के चेहरे का नूर कम होने लगा. कैरियर बेहतर हो रहा था, पर विवाह के बाजार में उस की कीमत कम होती गई.
अनुज का इंजीनियर बनते ही अपने एक सहपाठी की छोटी बहन प्रिया से प्रेम विवाह कर लेना अंजलि को सदमा पहुंचा गया. इस शादी के बाद उस ने कभी शादी न करने की बात सब के सामने कुछ शिकायती अंदाज में खुल कर कहनी शुरू कर दी थी, ‘‘बूआ, मेरे दोनों भाइयों के घर बस गए हैं, यह मेरे लिए बडे़ संतोष की बात है. इन के परिवार ही अब मेरे अपने हैं. इन सब के साथ मैं आराम से जिंदगी गुजार लूंगी,’’ अंजलि के ऐसे मनोभावों को मैं कभी बदल नहीं पाई थी.
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अनुज की शादी के बाद पहले से चली आ रही एक समस्या ने ज्यादा विस्फोटक रूप हासिल कर लिया था. समस्या पैदा हुई थी अंजलि के स्वभाव को ले कर. वह दोनों भाइयों से बड़ी थी. जिम्मेदारियों का बड़ा सा बोझ वह अपने कंधों पर सालों से ढो रही थी. दोनों भाई उसे पूरा मानसम्मान देते थे. उस के कहे को कभी नहीं टालते थे.
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