लेखिका- सरला अग्रवाल
पिछली रात जब वे दोनों बातें करने बैठी थीं तो विक्की के उन के पास आ कर चिपट कर बैठने पर रिचा ने उसे वहां से भगाने की चेष्टा की थी. पर वह वहां से जाना नहीं चाहता था. तब रिचा फूट पड़ी थी, ‘‘देखा दीदी, यह तो मेरी जान का दुश्मन बना हुआ है, कभी किसी से दो बातें नहीं कर सकती. देखिए, कैसे मुंह से मुंह जोड़ कर बैठा हुआ है. यहां सब बातें सुनेगा और वहां जा कर मांजी व अपने पिता से एक की दस लगाएगा. हर बात में अपनी टांग अड़ाएगा. मेरी छोटी बहन आई थी, तब भी इस ने बातें नहीं करने दीं. पीहर भी जाती हूं तो मां, बहनों, भाभी व सहेलियों से जरा भी बात नहीं करने देता. सच कहती हूं, बड़ी परेशान हो गई हूं, अब तो इस के मारे कहीं जाने का मन भी नहीं करता.’’
‘‘ठीक है, ठीक है. मैं आप के पास रहना ही कब चाहता हूं. मैं तो अब बड़े ताऊजी के पास बरेली जा रहा हूं. पिताजी ने उन से बात कर ली है,’’ विक्की बेफिक्री से बोला.
‘‘अरे, यह बरेली जाने की क्या बात है?’’ विभा ने पूछा.
‘‘दीदी, यह इतना बिगड़ता जा रहा है, इसी कारण हम लोग इसे बड़े भैया के पास भेजने की सोच रहे हैं.’’
‘‘वहां कोई अच्छा स्कूल है क्या?’’
‘‘न सही, पर उन का अनुशासन तो रहेगा ही. हमारी तो सुनता नहीं है, उन की तो सुनेगा. अब तो 7वीं कक्षा में आ गया है.’’
‘‘मतलब, अपनी बला औरों के सिर डालने से है? जब तुम सारा दिन बच्चे के सामने यही राग अलापती रहोगी कि हमारी तो सुनता नहीं, हमारी तो सुनता नहीं है, तो वह क्यों सुनेगा तुम्हारी?’’ विभा कुछ नाराजगी के साथ बोली.
‘‘दीदी, आप तो हर बात का दोष मुझे ही दे देती हो, बस.’’
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‘‘रिचा, समझने की कोशिश तो करो. बच्चे प्यार के भूखे होते हैं. यों थोड़ीबहुत सख्ती कर लो, पर हर समय उसे सुनाते रहना, ताने देना, व्यंग्य कसना, बातबात पर डांटना, मारना, हर एक से उस की बुराई करना, किसी मां को शोभा नहीं देता. दूसरे के पास भेज तो दोगी, पर वे भी इस के साथ क्या सख्ती बरत सकेंगे? और यदि सिखाने के लिए सख्ती करेंगे तो कल को तुम्हें ही नागवार गुजरेगा. इस से तो अच्छा है कि किसी अच्छे होस्टल में इसे डाल दो.’’ ‘‘पहली बात तो यह है कि इसे इतने कम नंबरों पर किसी अच्छे स्कूल में दाखिला मिलेगा ही नहीं, फिर अच्छे महंगे स्कूलों के होस्टलों में ‘ड्रग्स’ का कितना चलन हो गया है आजकल, यह तो कुछ भी कर सकता है. दीदी, आप को पता नहीं है, इसे तो केवल मैं ही समझ सकती हूं. अभी से अपने पास पर्स रखता है, वह भी रुपयों से भरा होना चाहिए, नहीं तो रोनाधोना मचा देता है. इस से बाजार से सब्जी मंगवाती हूं तो बाकी के रुपए वापस नहीं करता. एक मुसीबत है क्या इस लड़के के साथ… अब मैं इस से लिख कर हिसाब मांगती हूं,’’ रिचा सिसकती हुई बोली.
‘बच्चे को मेरे प्रश्न से कितना आघात लगा है,’ सोच कर विभा अनमनी सी हो आई. बच्चे का कोमल हृदय दुखाने के लिए उस ने यह सब नहीं पूछा था, वह तो केवल यही जानना चाहती थी कि बच्चे की मानसिक दशा कैसी है? क्यों वह इस प्रकार का अभद्र व्यवहार अपनी मां के साथ करता है? विभा वहां अपने पति के साथ 8-10 दिन के लिए आई हुई थी. रिचा उस की सब से छोटी देवरानी थी. आयु में भी वह विभा से काफी छोटी थी. इस कारण विभा उस पर अपना अधिकार जमा लेती थी. विभा बहुत समझदार थी और पूरे परिवार में उस का बड़ा मान था. रिचा भी उस से परामर्श लेने हेतु उसे अपने मन की सब बातें बता दिया करती थी. दोनों भाइयों में भी बहुत स्नेहभाव था.
विक्की रिचा के विवाह के कई वर्षों के बाद हुआ था. इस से पूर्व उस के 2 बेटे जन्मते ही जाते रहे थे. सो, विक्की से परिवार के सब ही लोगों का असीम स्नेह था. रिचा हर समय अपने इकलौते बेटे के भविष्य के लिए चिंतित रहती थी. संयुक्त परिवार होने के कारण वह अपने मनोनुकूल अधिक कर नहीं पाती थी. पिछले 2-3 वर्षों से विक्की बिगड़ने लगा था, बड़ों के अत्यधिक लाड़प्यार ने उसे जिद्दी और चटोरा तो बनाया ही था, साथ ही अपनी बात मनवाने के लिए वह झूठ भी बोलने लगा था.
ऐसे में रिचा का दुख क्रोध के रूप में बाहर निकलता था. पति तो बच्चे की शिक्षा पर तनिक भी ध्यान केंद्रित नहीं करते थे, अधिक से अधिक ट्यूटर लगा दिया. पुत्र को अपने पिता द्वारा जिस व्यवहार, शिष्टाचार, शिक्षा, मार्गदर्शन, स्नेह और दुलार की अपेक्षा होती है, विक्की उस से पूर्णतया वंचित रहा था. हां, बच्चे के प्रति उन के लाड़प्यार में कोई कमी नहीं थी, उस की मुंहमांगी वस्तु उसे तत्क्षण प्राप्त हो जाती थी. इस कारण वह और भी अधिक ढीठ और आलसी होता जा रहा था. घर के किसी भी कार्य की आशा उस से नहीं की जा सकती थी, हर समय उस के पीछे होहल्ला मचा ही रहता. एक दिन विभा के काफी समझाने पर रिचा ने बेटे को वह टेपरिकौर्डर दे दिया. तब वह दौड़ता हुआ विभा के पास आया और उन के दोनों गालों की पप्पी लेते हुए बोला, ‘‘धन्यवाद, ताईजी. देखिए, मां ने मुझे टेपरिकौर्डर दे दिया है. सुनेंगी?’’
इतना कह कर विक्की ने टेपरिकौर्डर चला दिया. टेप में से उस की सुमधुर आवाजें सुनाई देने लगीं.
‘‘अरे विक्की, यह तो तुम्हारी आवाज है? तो तुम्हें गाना भी आता है?’’ विभा ने प्रसन्न होते हुए अचरज से पूछा.
‘‘देख लीजिए ताईजी,’’ विक्की मटकते हुए बोला. उस की सुंदर आंखों में उस समय विचित्र चमक भर उठी थी. विभा ने टेपरिकौर्डर को हाथ में ले कर देखा, नन्हा सा लाल रंग का वह जापानी रिकौर्डर बहुत ही प्यारा था. तब विभा को समझ में आया कि बच्चा उसे अपना गायन सुना कर प्रभावित करने के लिए ही टेपरिकौर्डर लेने की जिद कर रहा था. पर रिचा ने मां हो कर भी इस तथ्य को नहीं समझा. वह सोचने लगी, ‘आखिर इतना छोटा भी तो अब विक्की नहीं है, 11 वर्ष का हो चला है.’
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विभा को सुबहशाम घूमने की आदत थी. वहां की सड़कों के विषय में अधिक जानकारी न होने के कारण उस ने पहले दिन अपने साथ विक्की को ले लिया था. उस के बाद उस के वहां रहने तक एक दिन भी उसे विक्की को साथ चलने के लिए कहना नहीं पड़ा था. वह स्वयं ही उन के साथ दौड़ा चला आता. विक्की को बिना बताए भी वह घर से निकल पड़ती, तो भी वह जाने कहां से सूंघ लेता और झटपट साथ हो लेता. तब विभा को बराबर लगता रहता था कि विक्की केवल प्यार का भूखा है. यदि उस के साथ प्यार व समझदारी से व्यवहार किया जाए तो वह हर बात मानने व करने को तैयार रहेगा. विभा एवं ताऊजी की तो वह हर बात बड़े ही ध्यान से सुनता था, केवल सुनता ही नहीं, बल्कि उस पर अमल भी करता. जैसे ही कोई काम उसे बताते, वह झटपट कर देता तब क्यों अपनी मां एवं घर के अन्य सदस्यों की बातों की वह इतनी अवहेलना करता है? क्यों सब को इतना छकाता है, इतना परेशान करता है? विभा बारबार सोचती. उधर मांजी कहतीं, ‘‘अरे, क्या बताऊं विभा, रिचा को तो विक्की फूटी आंखों नहीं सुहाता. रातदिन इस के पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती है. कभी प्यार से बात नहीं करती. देखो, कब से वह ‘नाइटसूट’ बनवाने को कह रहा है, सारे पजामे फट गए हैं, पर यह है कि कपड़ा घर में ला कर रखा हुआ है, तो भी दरजी को नहीं दे रही, न ही अखिल को बाजार से बनेबनाए सूट लाने देती है. कहती है कि मैं स्वयं सिलूंगी, 6 महीने तो हो गए हैं ऐसे ही कहते…अब तू ही देख कि कितना परेशान हो रहा है बेचारा विक्की, इतनी घोर गरमी में भी पैंट पहन कर सोता है.’’
आगे पढ़ें- विक्की हंसता हुआ ताईजी से लिपट गया और…
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