सिद्धार्थ की वापसी -भाग 2 : सुमित और तृप्ति शादी के बाद भी खुश क्यों नहीं थे

देखा, आ गई न गाड़ी पटरी पर, खुल गई मित्रता की पोल,’ मां और पिताजी लगभग एकसाथ बोले थे. ‘ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप दोनों सोच रहे हैं. बस, हम दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता है,’ तृप्ति ने सफाई देनी चाही थी. ‘ठीक है, हमारी बात हमें अच्छी तरह समझ में आ गई. अब तुम भी तुम्हारी बात समझ लो. कल ही सुमित से बात करो और यदि वह विवाह के लिए तैयार है तो हम उस के मातापिता से बात आगे बढ़ाएंगे, नहीं तो हम तुम्हारा विवाह कहीं और कर देंगे,’ तृप्ति के पिता ने सख्ती से कहा था. ‘इसे आदेश समझूं या चेतावनी?’ कह कर तृप्ति ने मुसकराना चाहा था. ‘वह तुम्हारी इच्छा है, पर हम अब और चुप्पी नहीं साध सकते. इस पार या उस पार, हमें समाज में रहना है और उस के बनाए नियमकायदे हमें मानने पड़ते हैं.

अरे, यह क्या कोई विलायत है जो तुम खुलेआम अपने पुरुष मित्र के साथ घूमती रहोगी और कोई कुछ नहीं कहेगा? यह बात बिरादरी में फैल गई तो तुम्हारा विवाह करवाना कठिन हो जाएगा,’ तृप्ति के पिता ने गंभीरता से कहा था. ‘आप ऐसी बातें कर के मुझे नीचा दिखाने का प्रयत्न क्यों करते रहते हैं? आप डरते होंगे बिरादरी से, मैं नहीं डरती. फिर बिरादरी ने हमारे लिए किया ही क्या है कि हम हर पल उस से थरथर कांपते रहें,’ तृप्ति स्वयं पर नियंत्रण न रख सकी थी. ‘देखा, न कहती थी मैं कि लड़की को अधिक पढ़ाओलिखाओ मत. चलो, पढ़लिख भी ली तो कम से कम नौकरी तो मत करवाओ, पर मेरी सुनता ही कौन है. आप को तो बेटी को अपने पैरों पर खड़ा करना था. चलो, अच्छा हुआ, पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गई है आप की बेटी,’ तृप्ति की मां व्यंग्य से बोली थीं.

‘क्यों बात का बतंगड़ बना रही हैं आप. कह तो दिया है कि सुमित से बात करूंगी,’ कहती हुई तृप्ति अपने कक्ष की ओर चली गई थी और मातापिता देर तक बड़बड़ाते रहे थे. तृप्ति जब दूसरे दिन कार्यालय पहुंची तो किसी भी कार्य में उस का मन नहीं लगा था. उस ने कई बार सुमित को फोन किया, पर वह भी न जाने कहां चला गया था. ‘शाम को 5 बजे तक लौट आएगा वह,’ उस के सहकर्मी ने तृप्ति को बताया था. ‘क्या हुआ? कहां चले गए थे तुम? सुबह से मैं ने तुम्हें हजार बार फोन किया था,’ शाम को जब कार्यालय बंद होने पर तृप्ति नीचे उतरी तो सुमित को स्कूटर सहित सामने खड़ा देख वह भड़क उठी थी. ‘खैरियत तो है, आज तो आप पत्नी की तरह डांट रही हैं. बात क्या है? घर जल्दी पहुंचना है क्या? आइए, बैठिए. मिनटों में आप हवा से बातें कर रही होंगी,’ सुमित ने स्कूटर पर बैठने का इशारा करते हुए मुसकरा कर कहा था. ‘ऐसा कुछ नहीं है, पर मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है. मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती,’

कहते हुए तृप्ति रोंआसी हो उठी थी. ‘ऐसी क्या जरूरी बात है? चलो, कहीं बैठ कर चाय पीते हैं,’ अपना उपहास भूल कर सुमित ने प्रस्ताव दिया था, पर तृप्ति ने केवल हां में सिर हिला दिया था तो एक रैस्टोरैंट में जा कर वे दोनों एकदूसरे के सामने बैठ कर चाय पीने लगे. ‘हां, बोलो, समस्या क्या है? मैं तो तुम्हारी हालत देख कर घबरा ही गया था,’ कहते हुए सुमित ने अपनी आकुल नजरें तृप्ति के चेहरे पर टिका दी थीं. ‘मैं कल जब देर से घर पहुंची तो मां और पिताजी बहुत नाराज थे,’ तृप्ति ने अपने मन की बात कहनी शुरू की थी. ‘उन का नाराज होना सही था. यदि जवान बेटी रात को 10 बजे घर पहुंचे तो कौन से मातापिता नाराज नहीं होंगे,’ सुमित ने शालीन लहजे में समझाते हुए कहा था. ‘10 बजे? मैं पूरे 11 बजे घर पहुंची थी, वह भी तुम्हारे कारण क्योंकि तुम्हें मुझे अपने हाथ का पकाया भोजन कराने का शौक जो चढ़ आया था. फिर भी तुम यह निर्णय कर लो कि तुम मेरी तरफ हो या उन की तरफ,

’ तृप्ति झुंझला उठी थी. ‘मैं पूरी तरह अपनी तृप्ति के साथ हूं, पर बताओ तो सही कि आगे क्या हुआ?’ ‘पिताजी का आदेश है कि हमारे संबंध को जल्दी से जल्दी परिभाषित किया जाए,’ कहते हुए तृप्ति खिलखिला कर हंसी थी. तृप्ति ने सोचा था कि उस की बातें सुनते ही सुमित भावुक हो कर, उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कल्पनाओं में खो जाएगा या फिर कहेगा कि यह क्या प्रिये, इतनी सी बात के लिए तुम इतनी परेशान थीं. हम दोनों तो बने ही एकदूसरे के लिए हैं, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था वह गुमसुम बैठा रहा. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. ‘बात क्या है, सुमित? तुम तो बिलकुल गुमसुम हो गए. शायद तुम ने मेरी बात का मतलब नहीं, समझा?’ ‘मैं ने तुम्हारी बात का मतलब अच्छी तरह समझ लिया है, तृप्ति. पर मेरे लिए तुम्हारी बात का उत्तर दे पाना सरल नहीं होगा,’ सुमित गंभीर स्वर में बोला था. ‘अर्थात मेरे मातापिता जो सोच रहे थे, वही सही था? साथ घूमनाफिरना, सैरसपाटा अलग बात है, पर विवाह अपने लोगों में भारीभरकम दहेज ले कर ही करोगे?’ तृप्ति आवेशपूर्ण स्वर में बोली थी.

‘ऐसा कुछ नहीं है. तुम जैसी पत्नी तो किसी खुशमिजाज इंसान को ही मिलेगी.’ ‘हां, और तुम खुद को उस खुशमिजाजी से वंचित रख कर कितना बड़ा त्याग कर रहे हो,’ तृप्ति ने उलाहनाभरे अंदाज में कहा था. ‘तृप्ति, क्या हम केवल मित्र बन कर नहीं रह सकते? मैं कारण बता कर तुम्हें खोना नहीं चाहता?’ ‘यदि तुम ने आज ही मुझे सबकुछ नहीं बताया तो मैं तुम्हारा मुंह भी नहीं देखूंगी,’ तृप्ति ने तैश में आ कर कहा. ‘तो सुनो, मेरी शादी हो चुकी है. 2 वर्ष पहले मेरे बेटे सिद्धार्थ के जन्म के समय वह हम सब को रोताबिलखता छोड़ कर चली गई थी.’ ‘और आप का बेटा?’ ‘उझानी नाम का छोटा सा कसबा है, वहीं मेरे मातापिता के पास रहता है.’ ‘6 महीने से हम दोनों साथ घूमफिर रहे हैं. तुम ने इतनी बड़ी बात मुझ से छिपाए रखी?’ कहते हुए तृप्ति रोंआसी हो गई. ‘ऐसी कोई विशेष बात भी नहीं, फिर तुम ने कभी पूछा नहीं, तो मैं क्यों बताता? पर जब आज बात शादी की उठी तो तुम्हें खोने का खतरा उठा कर भी मैं ने यह बात बताई, क्या यही काफी नहीं है?’ सुमित ने अपनी बात स्पष्ट की थी. ‘नहीं, यह सच नहीं है. 6 माह तक तुम मेरे साथ घूमतेफिरते रहे, यों दुनियाभर की बातें करते हो, पर बातोंबातों में भी तुम ने कभी अपने विवाह या बेटे का नाम तक नहीं लिया,’ तृप्ति ने शिकायती लहजे में कहा. ‘यह तुम नहीं, तुम्हारी वह मानसिकता बोल रही है जिस में हमारे समाज का हर व्यक्ति एक पुरुष और स्त्री की मित्रता को सही परिप्रेक्ष्य में आंक ही नहीं पाता. उस की परिणति व लक्ष्य दोनों ही केवल वैवाहिक संबंध ही क्यों होते हैं,

तृप्ति?’ सुमित धीरगंभीर स्वर में बोला था. ‘सुमित, इतने आदर्शवादी बनने का प्रयास मत करो. क्या तुम ने इन महीनों में कभी विवाह के संबंध में नहीं सोचा?’ कहते हुए तृप्ति की आंखें छलछला आई थीं. ‘तृप्ति, मैं झूठ नहीं कहूंगा, तुम मुझे पहली ही नजर में भा गई थीं, पर मेरी पत्नी के निधन के बाद मेरा जीवन बहुत अस्तव्यस्त हो गया था. अभी तो उसे नए सिरे से संवारने का समय भी नहीं मिला. सोचा था कि तुम्हें धीरेधीरे सिद्धार्थ के संबंध में बताऊंगा, उस से मिलवाऊंगा शायद बात बन जाए. मैं सिद्धार्थ को भी बहुत चाहता हूं और नए संबंध बनाते समय पुराने संबंधों को तोड़ा तो नहीं जाता न?’ ‘ओह, तो तुम ने सोचा था कि यदि तुम मेरे बहुत आगे बढ़ने के बाद अपने पुत्र का प्रवेश हमारी कहानी में करोगे तो तुम गलती पर थे. आज के बाद तुम मुझ से मिलने का प्रयास मत करना.

तुम ने यह समझ भी कैसे लिया कि मैं तुम्हारे जैसे व्यक्ति को कभी स्वीकार कर पाऊंगी,’ कहते हुए तृप्ति उठ खड़ी हुई थी. ‘रुको तो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं,’ सुमित बोला था. ‘धन्यवाद, मुझे अपने घर की राह पता है, वह तो तुम्हारी संगति में पड़ कर भूल गई थी,’ कहते हुए तृप्ति रैस्टोरैंट से बाहर चली गई और सुमित पुकारता ही रह गया था. क्षणांश में ही तृप्ति उस की आंखों से ओझल हो गई थी. अगले दिन से सुमित उसी जगह खड़ा हो कर तृप्ति के कार्यालय की सीढि़यों की ओर ताकता रहता, पर तृप्ति पता नहीं कार्यालय आती भी थी या नहीं और आती थी तो किधर से निकल जाती थी, पता ही नहीं चलता था. कुछ दिनों बाद वह नजर भी आई थी तो मुंह फेर कर चल दी थी. ‘तृप्ति, मुझे तुम से जरूरी बातें करनी हैं,’ एक दिन कार्यालय से लौट कर तृप्ति आंखें मूंदे सोफे पर पसरी हुई थी,

बेटी की चिट्ठी: क्या था पिता का स्मृति के खत का जवाब

प्यारे पापा, नमस्ते.

सभी बच्चों की वरदियां बन गई हैं, पर मेरी अभी तक नहीं बनी है. मैडम रोज डांटती हैं. किताबें भी पूरी नहीं खरीदी हैं. जो खरीदी हैं, उन पर भी मम्मी ने खाकी जिल्द नहीं चढ़ाई है. अखबार की जिल्द लगाने के लिए मैडम मना करती हैं. कोई भी बच्चा अखबार की जिल्द नहीं चढ़ाता.

आप जल्दी घर पर आएं और वरदी व जिल्द जरूर लाएं. मम्मी ने मुझे जो टीनू की पुरानी वरदी दी थी, वह अब छोटी हो गई है. कई जगह से घिस भी गई है. मम्मी की आंख में दर्द रहता है.

आप की बेटी स्मृति.
कक्षा-5.

*प्यारे पापा, नमस्ते.

मेरे जूते और जुराबें फट गई हैं. मां ने जूते सिल तो दिए थे, मगर उन में अंगूठा फंसता है. ऐसे में दर्द होता है. मैडम कहती हैं कि जूते छोटे पड़ गए हैं, तो नए ले लो. ये सारी उम्र थोड़े ही चलेंगे. मेरे पास ड्राइंग की कलर पैंसिलें नहीं हैं. रोजरोज बच्चों से मांगनी पड़ती हैं. आप घर आते समय हैरी पौटर डब्बे वाली कलर पैंसिलें जरूर लाना.

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हमारे स्कूल में फैंसी बैग कंपीटिशन है, पर मेरा तो बैग ही फट गया है. आप एक अच्छा सा बैग भी जरूर ले आना, नहीं तो मैं उस दिन स्कूल नहीं जाऊंगी.

आप की बेटी स्मृति.
कक्षा-5.

*

प्यारे पापा, नमस्ते.

हमारे स्कूल का एनुअल फंक्शन 15 दिन बाद है. सभी बच्चे कोई न कोई प्रोग्राम दे रहे हैं. मुझे भी देना है. कोई अच्छी सी ड्रैस ले आना. मम्मी के सिर में दर्द रहता है. डाक्टर ने बताया कि चश्मा लगेगा, तभी दर्द ठीक होगा. उन की नजर बहुत कमजोर हो गई है.

सभी बच्चों ने गरम वरदियां ले ली हैं. ठंड बढ़ गई है. गरमी वाली वरदी रहने दें, अब सर्दी वाली वरदी ही ले आएं. मम्मी ने इस बार भी अखबार की जिल्द चढ़ाई थी. मैडम ने 10 रुपए जुर्माना कर दिया है. 2 महीने की फीस भी जमा करानी है. आप इस बार पैसे ले कर जरूर आना, नहीं तो मेरा नाम काट दिया जाएगा.

आप की बेटी स्मृति.
कक्षा-5.

*

प्यारे पापा, नमस्ते.

मैडम ने कहा है कि स्कूल बस का किराया नहीं दे सकते, तो पैदल आया करो. कम से कम फीस तो हर महीने भेज दिया करो, नहीं तो किसी खैराती स्कूल में जा कर धूप सेंको. स्कूल में डाक्टर अंकल ने हमारा चैकअप किया था. मेरे नाखूनों पर सफेदसफेद धब्बे हैं. डाक्टर अंकल ने बताया कि कैल्शियम की कमी है. मम्मी की आंखें ज्यादा खराब हो गई हैं. वे दिनरात अखबार के लिफाफे बनाती रहती हैं. मैडम ने कहा है कि अगर घर पर कोई पढ़ा नहीं सकता, तो ट्यूशन रख लो.

पापा, आप घर वापस क्यों नहीं आते? मुझे आप की बड़ी याद आती है. मम्मी कहती हैं कि आप रुपए कमाने गए हो, फिर भेजते क्यों नहीं?

आप की बेटी स्मृति.
कक्षा-5.

*

प्यारे पापा, नमस्ते.

मैं ने ट्यूशन रख ली है, मगर आप पैसे जरूर भेज देना. अगले महीने से इम्तिहान शुरू हो रहे हैं. सारी फीस देनी होगी. आप वरदी नहीं लाए. मुझे ठंड लगती है. मैडम कहती हैं कि यह लड़की तो ठंड में मर जाएगी. क्या मैं सचमुच मर जाऊंगी?

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पापा, ट्यूशन वाले सर भी रुपए मांग रहे हैं. वे कहते हैं कि जब रुपए नहीं हैं, तो पढ़ क्यों रही हो? किसी के घर जा कर बरतन साफ करो. हां पापा, मुझे ड्राइवर अंकल ने स्कूल बस से नीचे उतार दिया. आजकल पैदल ही स्कूल जा रही हूं. पढ़ने का समय नहीं मिलता. हमारी गाय भी थोड़ा सा दूध दे रही है. मम्मी कहती हैं कि चारा नहीं है. लोगों के खेतों से भी कब तक लाते रहेंगे.

पापा, आप हमारी बात क्यों नहीं सुनते?
आप की बेटी स्मृति.
कक्षा-5.

प्यारे पापा, नमस्ते.

मेरे सालाना इम्तिहान हो गए हैं. मां ने गाय बेच कर सारी फीस जमा करा दी. ट्यूशन वाले सर के भी रुपए दे दिए हैं. बाकी बचे रुपयों से मां के लिए ऐनक खरीदनी पड़ी. पिछले दिनों आए तूफान व बारिश से घर की छत उखड़ गई है.

पापा, आप खूब सारे रुपए ले कर जल्दी घर आएं, तब तक मेरे इम्तिहान का रिजल्ट भी निकल जाएगा. पापा, क्या आप को हमारी याद ही नहीं आती? हमें तो आप हर पल याद आते हैं.

आप की बेटी स्मृति.
कक्षा-5.

प्यारे पापा, नमस्ते.

मेरा रिजल्ट आ गया है. मैं अपनी क्लास में फर्स्ट आई हूं. मुझे बैग, जूते और वरदी लेनी है. और हां पापा, इस बार मैं पुरानी नहीं, नई किताबें लूंगी. पुरानी किताबों के कई पन्ने फटे होते हैं.

आजकल स्कूल में मेरी छुट्टियां चल रही हैं. सभी बच्चे बाहर घूमने जाते हैं. मैं भी मम्मी के साथ कागज के लिफाफे बनाना सीख रही हूं, ताकि इस बार मुझे स्कूल पैदल न जाना पड़े.

पापा, बारिश में छत से पानी टपकता है. बाकी बातें मैं आप के घर आने पर करूंगी. अब की बार आप घर नहीं आए, तो मैं आप को कभी चिट्ठी नहीं लिखूंगी. तब तक मेरी और आप की कुट्टी.

आप की बेटी स्मृति.
कक्षा-5.

स्मृति की लिखी इन सभी चिट्ठियों का एक बड़ा सा बंडल बना कर संबंधित डाकघर ने इस टिप्पणी के साथ उसे वापस भेज दिया, ‘प्राप्तकर्ता पिछले साल हिंदूमुसलिम दंगों में मारा गया, जिस की जांच प्रशासन ने हाल ही में पूरी की है, इसलिए ये सारी चिट्ठियां वापस भेजी जाती हैं.’

मां का दिल महान: क्या हुआ था कामिनी के साथ

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स्वीकृति के तारे: क्यों एक कठपुतली थी वह

वह हमेशा ही टुकड़ों में बंटी रही. दूसरों के हिसाब से जीने के लिए मजबूर किसी अधबनी खंडित मूर्ति की तरह. जिसे कभी तो अपने मतलब के लिए तराश लिया जाता, तो कभी निर्जीव पत्थर की तरह संवेदनहीन मान उस की उपेक्षा कर दी जाती. आज फलां दुखी है तो उसे उस के दुखों पर मरहम लगाना होगा. आज फलां खुश है तो उसे अपने आंसुओं को पी कर जश्न में शामिल होना होगा. आज फलां के जीवन में झंझावात आया है तो उसे भी अपने जीवन की दिशा बदल लेनी चाहिए. आज फलां की नौकरी छूटी है तो उसे उस की मदद करनी चाहिए. खंडित मूर्ति को अपने को संवारना सुनने में भी कितना अजीब लगता है. ऐसे में अपने पर खर्च करना फुजूलखर्ची ही तो होता है.

संपूर्णता वह कभी नहीं पा पाई. मूर्ति पर जब भी मिट्टी लगाई गई या रंग किया गया, तो उसे पूरी तरह से या तो सूखने नहीं दिया या फिर कई जगह ब्रश चलाना आवश्यक ही नहीं समझा किसी भी फ्रंट पर, इसलिए चाह कर भी वह संपूर्ण नहीं हो पाई क्योंकि उस से जो कडि़यां जुड़ी थीं, उस से जो संबंध जुड़े थे, उन्होंने उस की भावनाओं को नरम घास पर चलने का मौका ही नहीं दिया. उन की भी शायद कोई गलती नहीं थी. आखिर, ढेर सारा पैसा कमाने वाली लड़की भी तो किसी एटीएम मशीन से कम नहीं होती है. फर्क इतना है कि एटीएम में कार्ड डालना होता है जबकि उस के लिए तो मजबूरियों व भावनाओं का बटन दबाना ही काफी था.

घर की बड़ी लड़की होना और उस पर से जिम्मेदारियों को सिरमाथे लेना – ऐसे में कौन चाहेगा कि वह अपने सपनों को सच करने की चाह भी करे. दोष न तो उस के मांबाबूजी का है, न उस के भाई का और न ही उस की 2 छोटी बहनों का. दोष है तो सिर्फ उस का. अपने ही हाथों अपने अरमानों को कुचलते हुए सब को यह एहसास दिलाते रहने की उस की उस कोशिश का कि सब का खयाल रखना उस का दायित्व है और उस के लिए चाहे कितना ही खंडखंड होना, बिखरना ही क्यों न पड़े, वह तैयार है.

ऐसे में उम्र की तरह जीवन भी अपनी गति से हाथ से फिसलता रहा.

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घड़ी की रफ्तार भी उस की जिंदगी की तरह ही तेज है. 9 बज चुके थे. सवा 9 बजे की चार्टर्ड बस अगर छूट गई तो फिर 3 बसें बदल कर औफिस जाना होगा. मन हुआ कि एक बार शीशे के सामने खड़ी हो कर खुद को निहारे. पर फिर अपनी सूती साड़ी की प्लेटों को ठीक कर ऐसे ही बाहर आ गई. जानती थी कि चेहरे के खत्म होते लावण्य और आंखों में बसी उदासी देख आईना भी उस से अनगिनत सवाल पूछने लगेगा. उस क्यों का जवाब देने का न तो उस के पास समय था और न ही कोई तर्क.

‘‘औफिस से आते समय अपने बाबूजी की ये दवाइयां ले आना. उन की खांसी तो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही है,’’ मां ने उसे परचा थमाते हुए यह कहा तो मन में सवालों के गुंजल चक्कर काटने लगे.

‘‘क्या सोचने लगी?’’ मां ने फिर कहा.

‘‘मां, दवाइयां तो भुवन भी ला सकता है,’’ उस की आवाज में कंपकंपाहट थी.

‘‘क्यों, तुझे कोई दिक्कत है लाने में. उसे क्यों परेशान करती है. सारा दिन तो बेचारा पढ़ता रहता है. और सुन, आज सब्जी नहीं बन पाई है. रोटियां पैक कर दी हैं. सब्जी कैंटीन से ले लेना,’’ कागज में लिपटी रोटियां मां ने उसे ऐसे थमाईं मानो एहसान कर रही हों.

भीतर फिर कुछ टूटा. अपनी ही मां क्या ऐसा कर सकती है? स्वार्थ की ममता शायद ऐसी ही होती है. तभी तो उस के सामने और कुछ दिखाई नहीं देता है. न ही बेटी की खुशी, न उस की पीड़ा. बस, केवल एक डर मन में समाया रहता है कि कहीं अगर इस ने अपनी जिंदगी को ले कर कुछ ख्वाब बुनने शुरू कर दिए या अपने सपनों को पंख देने की चाह उस के अंदर पैदा होने लगी तो बाकी लोेगों का क्या होगा. बाबूजी की दवाइयां कहां से आएंगी.

भुवन और दोनों बेटियों की पढ़ाई

व शादी कैसे होगी, घर का खर्च और सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह कैसे होगा?

उसे मांबाबूजी की तकलीफ और मजूरियां सब दिखाई देती हैं. सब समझ भी आती हैं. इसलिए वह भी बिना कुछ कहे उन की डोर से बंधी कठपुतली की तरह नाचती रहती है. लेकिन, बस, एक ही कसक उसे टीस देती है कि सब की खुशियों का खयाल रखने वाली इस बेटी से मां को वैसी ममता क्यों नहीं है जैसी बाकी तीनों बच्चों से. वह तो उन की सौतेली बेटी भी नहीं है. सभी कहते हैं कि रिया की शक्ल बिलकुल मां से मिलती है. फिर वह क्यों उन के लाड़प्यार से वंचित है? क्यों मां को उस की बिलकुल भी परवाह नहीं है?

न ही उसे कभी अपने सवाल का जवाब मिल सकता, क्योंकि उसे सवाल पूछने का हक नहीं है. कौन यकीन करेगा कि इस जमाने में एक कमाने वाली आत्मनिर्भर लड़की भी इतनी असहाय हो सकती है. इतनी बेचारी कि उसे अपनी ही कमाई के एकएक पैसे का हिसाब देना पड़ता हो.

चार्टर्ड बस का सफर उस के लिए किसी राहत से कम नहीं होता है. घर के घुटनभरे माहौल की यातना से मुक्ति उसे यहीं मिलती है. हर तरह के कार्यक्षेत्रों से जुड़े लोग एकसाथ आधेपौने घंटे का सफर हंसतेगाते बिताते हैं. यह सच है कि थकावट आजकल हर इंसान की जीवनशैली का हिस्सा बन चुकी है और यही वह समय होता है जब कुछ समय बैठने का अवसर मिलता है. चाहे तो आंखें मूंद कर अपनी दुनिया में लीन हो जाओ या चैन से अपनी नींद पूरी कर लो या फिर अपने घरऔफिस की समस्या को बांट अपने मन को हलका कर लो. कभीकभी तो बात करतेकरते समाधान भी मिल जाता था.

बच्चों की समस्याएं चुटकी में सुलझ जाती थीं और दूसरों की परेशानियों के आगे अपनी परेशानी बौनी लगने लगती थी. किसी का जन्मदिन है, तो मिठाई बंट रही है. मंगलवार है, तो प्रसाद बंट रहा है. एक पूरी दुनिया ही जैसे बस में सिमट गई हो. रिया की कितनी ही सहेलियां बन गई हैं. रोज जिस के साथ बैठो, उस के साथ आत्मीयता पनप ही जाती है. मेहा और सपना के साथ उस की बहुत छनती है. हालांकि दोनों ही विवाहित और दोदो बच्चों की मां हैं, फिर भी उन की बातों का विषय केवल पति व बच्चों तक ही सीमित नहीं होता है. उन के साथ रिया हर तरह के विषय पर बिंदास हो बात कर सकती है.

‘‘ले रिया ढोकला खा. तेरे लिए खास बना कर लाई हूं. वैसे भी तुझे देख कर लग रहा है कि भूखी ही घर से आई है,’’ सपना ने ढोकले का डब्बा उस के सामने करते हुए कहा.

‘‘तेरे जैसा ढोकला तो कोई बना ही नहीं सकता है,’’ मेहा ने झट ढोकला उठा कर मुंह में डाल लिया.

‘‘कुछ तो शर्म कर. औफर मैं रिया को कर रही हूं और खुद खाने में लगी है,’’ सपना ने उसे प्यार से झिड़का.

‘‘अरे खाने दे न,’’ रिया ने कहा तो सपना हंसते हुए बोली, ‘‘जब से बस में चढ़ी है तब से ही चिप्स खा रही है. पिछले 2 सालों में कितनी मोटी हो गई है. देख तो सीट भी कितनी घेर कर बैठती है.’’ यह सुन मेहा ने उसे चिकोटी काटी. रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

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‘‘कितनी अच्छी लगती है हंसते हुए. बुझीबुझी सी मत रहा कर, रिया. घर से निकले तो दुखों की गठरी वहीं दरवाजे पर छोड़ आया कर. चल बाय, मेरा स्टैंड आ गया,’’ सपना ने उस के कंधे पर आश्वासन का हाथ रखा. उस का भी स्टैंड अगला ही था.

औफिस में वही एक  सा रूटीन. बस, एक ही तसल्ली थी कि यहां काम की क्रद होती थी. इसलिए उस को तरक्की करते देर नहीं लगी थी. कौर्पोरेट औफिस में जिस तरह एक व्यवस्था व नियम के अनुसार काम चलता है, वही कल्चर यहां भी था. काम करोगे तो आगे बढ़ोगे, वरना जूनियर भी तेजी से आगे निकल जाएंगे. काम पूरा होना चाहिए. उस के लिए कैसे मैनेज करना है, यह तुम्हारा काम है. मैनेजमैंट को इस से कोई मतलब नहीं.

मार्केटिंग हैड होने के नाते कंपनी की उस से उम्मीदें न सिर्फ काम को ले कर जुड़ी हैं, बल्कि मुनाफे की भी वह उम्मीद रखती है. रिया कार रख सकती है. बेहतरीन सुविधाओं से युक्त घर में रह सकती है और अपनी लाइफस्टाइल को बढि़या बना सकती है. क्योंकि, कंपनी उसे सुविधाएं देती है. पर रिया ऐसा कुछ भी नहीं कर पाती है, क्योंकि उसे बेहतरीन जिंदगी जीने का हक नहीं है. वह वैसे ही जीती है जैसे उस की मां चाहती है. सुविधाओं के लिए मिलने वाले पैसे मां उसे अपने पर खर्च भी नहीं करने देती, बल्कि उन से दोनों बहनों के लिए जेवर खरीद कर रखती है. और उस के लिए… क्या मां के मन में एक बार भी यह विचार नहीं आता कि इस बेटी के अंदर भी जान है, वह कोई बेजान मूर्ति नहीं है. उस के विवाह का खयाल क्यों नहीं उसे परेशान करता.

‘‘मैं जानती हूं कि तू हमारी खातिर कुछ भी कर सकती है. अब जब लोग पूछते हैं कि तेरा ब्याह क्यों नहीं हुआ, तो मैं यही समझाती हूं कि तू ने अपनी इच्छा से ब्याह न करने का फैसला किया है. वरना, क्या मैं तुझे कुंआरी रहने देती. आखिर, अपने भाईबहन की कितनी चिंता है तुझे,’’ मां की यह बात सुन वह हैरान रह जाती. उस ने आखिर ऐसा कब कहा, उस से कब उस की इच्छा पूछी गई है?

‘‘मैडम, मिस्टर दीपेश पांडे आप से मिलना चाहते हैं. क्या आप के केबिन में उन्हें भेज दूं?’’ इंटरकौम पर रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.

‘‘5 मिनट बाद.’’

दीपेश के आने से पहले खुद को संभालना चाहती थी वह. कंपनी जौइन किए हुए हालांकि उसे अभी 2 महीने ही हुए हैं, पर अपनी काबिलीयत और कंविंसिंग करने की क्षमता के कारण वह कंपनी को करोड़ों का फायदा करा चुका है. कंपनी के एक्स्पोर्ट डिपार्टमैंट को वही संभालता है. रिया से कोई 1-2 साल छोटा ही होगा. पर उस के सामने आते ही जैसे रिया की बोलती बंद हो जाती है. जब वह सीधे उस की आंखों में आंखें डाल कर किसी प्रोजैक्ट पर डिस्कस करता है तो वह हड़बड़ा जाती है. ऐसा लगता है मानो उस की आंखें सीधे उस के दिल तक पहुंच रही हों, मानो वे उस से कुछ कहना चाह रही हों. मानो उस में कोई सवाल छिपा हो.

ऐसा नहीं है कि रिया को उस का

साथ अच्छा नहीं लगता. उस का

बात करने का अंदाज, हर बात पर मुसकराना और जिंदादिली – सब उसे भाता है, लेकिन अपने ओहदे की गरिमा का उसे पूरा खयाल रहता है. पूरा औफिस उस की इज्जत उस के काम के अलावा उस की शिष्टता के लिए भी करता है. डिगनिटी को कैसे मेंटेन कर के रखा जाता है, यह वह बखूबी जानती है. इन 2 महीनों में न जाने कितनी बार उस के साथ इंटरैक्शन हो चुका है, फिर भी बिना इजाजत वह कमरे में नहीं आता. और रिया उस की इस बात की भी कायल है.

न जाने क्यों उस के हाथ बालों को संवारने लगे. बैग में से शीशा निकाल कर उस ने अपने को निहारा. 35 वर्ष की हो चली है, पर आकर्षण अभी भी है. इस खंडित मूर्ति को अगर नए सिरे से संवारा जाए तो इस में भी जान भर सकती है. प्यार और एहसास जैसे शब्द उस की जिंदगी के शब्दकोश में न हों, ऐसा कहना गलत होगा. बस, कभी उन पन्नों को खोलने की उस ने हिम्मत नहीं की जिन पर वे लिखे हुए हैं.

दीपेश से मिलने के बाद न जाने क्यों उस के अंदर उन पन्नों को छू कर पढ़ने की चाह जागने लगी है. इस से पहले भी कई पुरुषों ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, लेकिन उसे तब कभी ऐसा नहीं लगा कि वह उन के साथ किसी ऐसी राह पर कदम रख सकती है जो दूर तक जाती हो, पर…

‘‘मैम, कैन आई टेक योर फाइव मिनट्स,’’ दीपेश ने दरवाजे पर से ही पूछा.

‘‘प्लीज, डू कम इन ऐंड बाइ द वे, यू कैन कौल मी, रिया. यहां सभी एकदूसरे का नाम ले कर संबोधित करते हैं.’’

‘‘थैंक्स रिया. तुम ने मुझे कितनी बड़ी परेशानी से बचा लिया. वरना मैम कहतेकहते मैं बोर होने लगा था.’’ रिया उस के शरारती अंदाज को नजरअंदाज न कर सकी और खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘माई गौड, आप हंसती भी हैं. मुझे तो यहां का स्टाफ कहता है कि आप को किसी ने कभी हंसते हुए नहीं देखा. बट वन थिंग, आप हंसते हुए बहुत खूबसूरत लगती हैं. यू नो, यू आर अ कौंबीनेशन औफ ब्रेन ऐंड ब्यूटी.’’

उस की बात सुन रिया फिर सीरियस हो गई, ‘‘टैल मी, क्या डिस्कस करना चाहते थे?’’

‘‘दैट्स बैटर. अब लग रहा है कि किसी सीनियर कलीग से बात कर रहा हूं.’’ उस के गंभीर हो जाने को भी दीपेश एक सौफ्ट टच देने से बाज न आया. मन में उस समय अनगिनत फूल एकसाथ खिल उठे. उन की खुशबू उसे छूने लगी. उसे विचलित करने लगी. काश, दीपेश यों ही सामने बैठा रहे और वह उसे सुनती रहे.

‘‘तो रिया, मेरे इस प्रपोजल पर आप की क्या राय है?’’ चौंकी वह, कुछ सुना हो तो राय दे.

‘‘इस फाइल को यहीं छोड़ दो. एक बार पढ़ कर, फिर बताती हूं कि क्या किया जाए,’’ अपने को संभाल पाना इतना मुश्किल तो कभी नहीं था रिया के लिए. तो क्या पतझड़ में भी बहार आ जाती है?

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‘‘आजकल तू कुछ ज्यादा ही बनठन कर औफस नहीं जाने लगी है?’’ मां ने उसे टोका तो सचमुच उसे एहसास हुआ कि वह अपने पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी है. बालों का जूड़ा कस कर बांधने के बजाय ढीला छोड़ देती है. अलमारी में बंद चटख रंगों की साडि़यां पहनने लगी है और बारबार शीशा देखने की आदत भी हो गई है.

‘‘कोई ऐसा काम न करना जिस से हमारी बदनामी हो. तेरी दोनों बहनों की शादी भी करनी है,’’ मां ने कहा तो उस का मन पहली बार विरोध करने को आतुर हो उठा.

‘‘और मेरी? अच्छा मां, सच कहना, क्या मैं तुम्हारी बेटी नहीं हूं?’’

‘‘रिया, मां से कैसे बात कर रही है?’’ बाबूजी का स्वर गूंजा तो पलभर को उस का विरोध डगमगाया, लेकिन फिर जैसे भीतर से किसी ने हिम्मत दी. शायद, उन्हीं सतरंगी फूलों ने…

‘‘बाबूजी, आखिर क्यों मेरे साथ मां ऐसा व्यवहार करती हैं जैसे मैं…’’ उस के शब्द आंसुओं में डूबने लगे.

‘‘उस की मजबूरी है, बेटा. वह ऐसा न करे तो यह घर कैसे चले. तेरी कमाई है तो घर चल रहा है. बाकी और चार लोगों की जिंदगी बचाने के लिए वह तुझे ले कर स्वार्थी हो गई है ताकि कहीं तेरा मोह, तेरे प्रति उस की ममता उसे तुझे अपनी जिंदगी जीने देने की आजादी न दे दे.’’

उस ने मां को देखा. उन के दर्द से भीगे आंचल में उस के लिए भी ममता का सागर लहरा रहा था. फिर क्या करे वह. एक तरफ उस की उमंगें उसे दीपेश की ओर धकेल रही हैं तो दूसरी ओर मां की उस से बंधी आस उसे अपने को खंडित और अधूरा बनाए रखने के लिए मजबूर कर रही है. क्या वह कभी पूर्ण हो कर नहीं जी पाएगी? क्या उसे अपनी खुशियों के बारे में सोचने का कोई हक नहीं है? अपनी जिंदगी को रंगों से भरने की चाह क्या उसे नहीं है? लेकिन वह यह सब क्या सोचने लगी. दीपेश को ले कर इतनी आश्वस्त कैसे हो सकती है वह? उस ने तो खुल कर क्या, अप्रत्यक्ष रूप से भी कभी यह प्रदर्शित नहीं किया कि रिया को ले कर उस के मन में कोई भाव है. शायद वही अब अपनी अधूरी जिंदगी से ऊब गई है या शायद पहली बार किसी ने उस के मन के तारों को छुआ है.

‘‘मेरा प्रपोजल पसंद आया, अगर आप की तरफ से ओके हो तो मैं इस पर काम करना शुरू करूं?’’ दीपेश का आज बिना इजाजत लिए चले आना उसे अजीब तो लगा पर एक अधिकार व अपनेपन की भावना उसे सिहरा गई.

‘‘प्लीज गो अहेड,’’ उस ने अपने को संभालते हुए कहा.

‘‘आज शाम के गेटटूगेदर में तो आप आ ही रही होंगी न? मार्केटिंग की फील्ड के सारे ऐक्सपर्ट्स वहां एकत्र होंगे.’’

‘‘आना ही पड़ेगा. दैट इज अ पार्ट औफ माई जौब. वरना मुझे इस तरह की पार्टियों में जाना कतई पसंद नहीं है.’’

पार्टी में मार्केटिंग से जुड़े हर पहलू पर बात करतेकरते कब रात के 11 बज गए, इस का उसे अंदाजा ही नहीं हुआ. मां तो आज अवश्य ही हंगामा कर देंगी. वैसे भी आज जब वह तैयार हो रही थी, तो उन्होंने कितना शोर मचाया था. उस ने गुलाबी शिफौन की साड़ी के साथ मैचिंग मोतियों की माला पहनी थी. उस की सुराहीदार गरदन पर झूलता ढीला जूड़ा और मेकअप के नाम पर सिर्फ माथे पर लगी छोटी सी बिंदी के बावजूद उस की सुंदरता किसी चांदनी की तरह लोगों को आर्किषत करने के लिए काफी थी.

‘‘काम के नाम पर रात को घर से निकलना न जाने कैसा फैशन है.’’ मां की बड़बड़ाहट की परवा न करने की हिम्मत उस समय रिया के अंदर कैसे आ गई थी, वह नहीं जानती. इसलिए हाई हील की सैंडिल उन के सामने जोर से चटकाते हुए वह उन के सामने से निकली थी.

‘‘कैसे जाएंगी आप? मैं आप को छोड़ दूं,’’ दीपेश ने पूछा तो वह मना नहीं कर पाई. और कोई विकल्प भी नहीं था, क्योंकि कंपनी में ऐसा कोई नहीं था जो उस से इस तरह का सवाल करने की हिम्मत कर पाता. गलती उसी की थी जिस ने अपने ऊपर गंभीरता का लबादा ओढ़ा हुआ था. केवल काम की बातों तक ही सीमित था उस का अपने कलीग्स से व्यवहार.

कार में कुछ देर की खामोशी के बाद दीपेश बोला, ‘‘रिया, जानती हो, मैं ने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’ दीपेश के अचानक इस तरह के सवाल से हैरान रिया ने उसे देखा.

‘‘मैं चाहता था कि मेरा जीवनसाथी ऐसा हो जो समझदार व मैच्योर हो. मेरे काम और मेरे परिवार को समझ सके ताकि बैलेंस करने में न उसे दिक्कत आए, न मुझे. तुम से मिलने के बाद मुझे लगा कि मेरी खोज पूरी हो गई है, पर तुम अपने में इतनी सिमटी रहती हो कि तुम से कुछ कहने की हिम्मत कभी नहीं हुई.

‘‘तुम्हारे प्रति यह लगाव कोई कच्ची उम्र का आकर्षण नहीं है. एक एहसास है जिसे प्यार के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता है. मैं तुम्हारे और तुम्हारी घर की स्थितियों के बारे में सबकुछ जानता हूं. क्या तुम मेरे साथ जिंदगी की राह पर चलना पसंद करोगी? एक बार मजबूत हो कर तुम्हें फैसला लेना ही होगा. हम दोनों मिल कर तुम्हारे परिवार को संभालें तो?’’

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रिया चुप थी. उसे समझ नहीं आ

रहा था कि  क्या सचमुच उस की

जिंदगी में रंग भर सकते हैं, क्या सचमुच अपूर्ण, खंडित इस मूर्ति के अंदर भी लहू का संचार हो सकता है? उस का घर आ चुका था.

दीपेश ने जाती हुई रिया का आगे बढ़ कर हाथ थाम लिया. मां को बालकनी में खड़ी देख अचकचाई रिया. पर दीपेश की हाथों की दृढ़ता ने उसे संबल दिया. अपना दूसरा हाथ दीपेश के हाथ पर रखते हुए उस ने दीपेश को देखा. रिया की आंखों में स्वीकृति के असंख्य तारे टिमटिमा रहे थे.

घर के अंदर कदम रखते हुए मां को सामने खड़े देख रिया ने उन्हें ऐसे देखा, मानो अपना फैसला सुना रही हो. उस के चेहरे पर लालिमा बन छाई खुशी और उस की आंखों में झिलमिलाते रंगीन सपनों को देख मां कुछ नहीं बोलीं. बस, उसे अपने कमरे की ओर जाते देखती रहीं. उस ने अपनी बेजान सी बेटी के अंदर प्यार से सजे प्राणों का संचार होते जैसे देख लिया था. वे जान गई थीं कि अब नहीं रोक पाएंगी वे उसे.

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अम्मी कहां : कहां खो गईं थी अम्मी

लेखिका- रश्मि नायर

‘‘अम्मीजान, आप यहीं खड़ी रहना, मैं टिकट ले कर अभी आता हूं,’’ कह कर मोहिन खान अपनी मां को रेलवे प्लेटफार्म की तरफ जाने वाली सीढ़ी के पास छोड़ कर टिकट लेने चला गया.

टिकट खिड़की पर लाइन लंबी थी, जो बस स्टौप तक पहुंच गई. उसे इतनी भीड़ होने का अंदाजा न था. उस ने सोचा, ‘टिकट ही तो लेनी है. उस में कौन सी बड़ी बात है.’

पर जब वह टिकट लेने पहुंचा, तो सब ने उसे ‘लाइन से आओ’ कह कर पीछे भेज दिया. वह सब से पीछे जा कर खड़ा हो गया और लाइन आगे बढ़ने का इंतजार करता रहा. पर कहां? लाइन वहीं की वहीं, धीरेधीरे चींटी की तरह आगे बढ़ रही थी.

मोहिन खान को अपनी मां को ले कर भिंडी बाजार जाना था. कल उस के भतीजे का पहला जन्मदिन था.

चूंकि उस की मां की उम्र हो चुकी थी. उस ने सोचा कि आज मां को वहां छोड़ कर कल शाम अपनी बीवी और बच्चे को साथ ले जाएगा, इसलिए मां को भाई के घर छोड़ कर उसे किसी भी हाल में वापस लौटना था, क्योंकि नौकरों के भरोसे वह दुकान छोड़ नहीं सकता था, इसलिए उसे जल्दी थी.

वहां उस की अम्मी इंतजार कर के थक गईं. मन ही मन कुढ़ते हुए वे सोचने लगीं कि पता नहीं कहां चला गया. कह कर गया था कि टिकट लाने जा रहा हूं, पर इतनी देर हो गई और अब तक नहीं लौटा.

उन्होंने गुस्से में आव देखा न ताव धीरेधीरे सीढ़ी चढ़ कर 2 नंबर के प्लेटफार्म पर आ गईं. यह सोच कर कि उन का बेटा पीछेपीछे आ जाएगा.

जो ट्रेन आई, वे उस में चढ़ गईं.

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उन्हें अपनी सहेली की बेटी सुलताना मिली. उसे भी भिंडी बाजार जाना था. वे कई सालों बाद उस से मिलीं, तो बतियाने लगीं.

इधर मोहिन खान टिकट ले कर सीढि़यों के पास पहुंचा. वहां अपनी अम्मी को न देख कर वह घबरा गया. उस ने टिकटघर के आसपास का सारा इलाका छान मारा, पर उसे उस की अम्मी कहीं नहीं नजर आईं.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरा भी हो गया. सड़कें, दुकान, मकान, होटल यहां तक कि टिकटघर के साथ प्लेटफार्म भी बिजली की रोशनी से जगमगाने लगे थे.

उस ने सभी प्लेटफार्म देख लिए, पर अम्मी का कहीं पता नहीं चला. पूछताछ करे भी तो किस से? उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे.

मोहिन खान ने बारीबारी से सब को फोन कर के पूछ लिया, पर कहीं से भी उस की अम्मी के पहुंचने की खबर नहीं मिली. अब तो वह और भी डर गया. उस के परिवार वाले भी परेशान थे. भिंडी बाजार में फोन करने पर उस के भाईजान और भाभीजान दोनों परेशान हो गए. कुर्ला से भायखाला का आधे घंटे का सफर है, फिर वे कहां रह गईं.

भिवंडी में मझले भाई असलम को पता चला, तो वह भी परेशान हो गया. गोवंडी में मोहिन खान की आपा को जब यह बात पता चली, तो वे बहुत गुस्से में बिफर कर फोन पर ही चिल्लाईं, ‘कितने लापरवाह हो तुम लोग? अभी कल ही तो छोड़ आई थी मैं उन्हें, कहीं कोई झगड़ा तो नहीं कर लिया किसी ने?’ कह कर गुस्से से फोन रख दिया.

मझला भाई भी अपने परिवार के साथ अम्मी को ढूंढ़ता हुआ पहुंच गया. फिर सब ने मिल कर अंदाजा लगाया कि कहीं वे वापस मोहिन खान के घर तो नहीं चली गईं?

यह सोच कर मझले भाई ने उसे फोन लगा कर कहा, ‘‘देखो मोहिन, तुम घबराना मत. तुम एक काम करो, एक बार घर जा कर देख लो. कहीं वे वापस न चली गई हों. अगर वे घर पर न हों, तो भी फिक्र मत करो. तुम दुकान बंद कर के बीवीबच्चों के साथ यहां चले आओ. हम सब मिल कर ढूंढ़ते हैं.’’

‘‘अच्छा भाईजान,’’ कह कर मोहिन खान सीधा घर गया. वहां अम्मी को न पा कर दोनों मियांबीवी कुछ देर बाद भिंडी बाजार पहुंच जाते हैं.

सब कितने खुश थे कि कल असलम के बच्चे का पहला जन्मदिन मनाया जाने वाला था. सब सोच रहे थे कि बड़े धूमधाम से जन्मदिन मनाएंगे कि अचानक यह खबर मिली. जहां कल के जश्न की तैयारियां होनी थीं, आज वहां एक अजीब सी खामोशी छाई थी.

जैसेजैसे रात होती गई, सब की फिक्र भी बढ़ती जा रही थी. सब के चेहरे मायूस थे. फिर सब ने तय किया कि अगर कल शाम तक कोई खबर नहीं मिली या अम्मी नहीं लौटीं, तो पुलिस में शिकायत दर्ज करेंगे. रात के साढ़े 11 बजे थे. सब थक चुके थे, पर किसी को भी न भूख थी, न आंखों में नींद.

अचानक दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खुलते ही सामने अम्मी को एक अजनबी के साथ देख कर सब को हैरानी हुई. सब के चेहरे खुशी से चमक उठे.

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अम्मी ने उस अजनबी को भीतर बुलाया और सोफे पर बैठाया. बहू से कहा, ‘‘शबनम, जरा पानी तो लाना.’’

‘‘जी अम्मीजान,’’ कह कर वह रसोईघर में गई और एक ट्रे में एक जग पानी भर कर और कुछ खाली गिलास भी ले आई.

तब तक अम्मी भी बैठ चुकी थीं. उन को पानी पिला कर वह जाने लगी, तो अम्मी ने कहा, ‘‘बहू, ये हमारे मेहमान हैं, आज रात यहीं रुकेंगे. इन के खानेपीने का इंतजाम करो.’’

‘‘जी अम्मीजान,’’ कह कर वह वापस रसोईघर में चली गई.

अब अम्मी बेटों और दामाद की ओर मुड़ कर बोलीं, ‘‘यह मेरी सहेली का बेटा है, जो मुझे छोड़ने आया है. हुआ यों कि मैं मोहिन खान के इंतजार में खड़ीखड़ी थक कर यह सोच कर धीरेधीरे चल पड़ी कि मेरे पीछे चला आएगा, पर वह नजर ही नहीं आया…

‘‘मैं यह सोच कर गाड़ी में भी चढ़ गई कि वह पीछे ही होगा, पर इस का तो पता ही नहीं था.

‘‘फिर मुझे मेरी सहेली की बेटी सुलताना मिली. उस से पता चला कि उस की मां की तबीयत आजकल खराब चल रही है, इसलिए मैं उसे देखने चली गई थी. वह भिंडी बाजार में ही रहती है.’’

यह सुन कर सब खामोश हो गए. कुछ ही देर में शबनम ने आ कर अम्मी के कान में कहा, ‘‘अम्मीजान, खाना लग चुका है.’’

‘‘चलो, खाना लग चुका है,’’ अम्मी ने कहा.

बाद में अम्मी अपनी सहेली के बेटे अजीज को मेहमानों के कमरे में पहुंचा कर खुद भी आराम करने अपने कमरे में चली गईं. बाकी सब भी सोने के लिए जाने की तैयारी में थे कि ऐसे में असलम के मोबाइल फोन की घंटी बजी. सामने से पूछा गया… ‘अम्मी कहां…’

इस से पहले कि उस की बात पूरी होती, असलम ने कहा, ‘‘अम्मी यहां…’’ और इस से आगे वह खुशी के मारे कुछ भी नहीं कह पाया.

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असुविधा के लिए खेद है: भाग 4- जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

जाने जीजी के मन में क्या था. उस ने इन्हीं दिनों सेल्विना को अपना और तनय का वीडियो भेज कर अपने घर बुला लिया. वह भी उस वक्त जब तनय जीजी के साथ था.

सेल्विना का रोतेराते बुरा हाल था. वह लौट गई. सुबह तनय सेल्विना के पास वापस नहीं

लौट सका.

तनय समझ गया था कि वह सेल्विना को खो चुका है. जीजी ने उसे समझ लिया कि

जीजी तनय को हमेशा के लिए अपना बनाना चाहती है, इधर डेढ़ महीना होने को आया था- मम्मीपापा को बिहार के पास रखे हुए. अब जल्दी नतीजे पर पहुंचना जरूरी था. आखिर सेल्विना कौन थी? क्यों जीजी ने उस की जिंदगी उजाड़ी? तनय ही क्यों?

मैं ने अनादि को एक कौफी शौप में बुलाया. उस से कहा, ‘‘क्या तुम भी इस गेम में उतर रहे हो अनादि?’’

‘‘ऐसा क्यों लगा तुम्हें?’’

‘‘फिर ये सब क्या है? चाहने की बात क्यों करने लगे.’’

‘‘इस में बुराई तो कुछ नहीं न. हमउम्र हैं दोनों और दोनों की आय भी अच्छी है, दोस्त भी हैं. मैं तुम्हें पसंद भी करता हूं.’’

‘‘और मैं? पूछोगे नहीं या जरूरी नहीं है?’’

‘‘प्लीज बताओ.’’

‘‘बताऊंगी. पहले मेरे लिए हमारे इस काम को खत्म करो.’’

‘हांहां क्यों नहीं.’’

‘‘चलो फिर सेल्विना के स्कूल.’’

स्कूल पहुंच कर सेल्विना हमें नहीं मिली तो एक बच्चे की मदद से पास ही उस के फ्लैट में पहुंचे. शाम के 5 बज रहे थे. सेल्विना ने दरवाजा खोला तो पूरे घर में अंधेरा पसरा था. खिड़कीदरवाजे सब बंद. सेल्विना एक स्लीवलैस औफ व्हाइट बनियान फ्रौक में बड़ी मुरझई सी लग रही थी. ब्रेकअप का दर्द साफ था उस के चेहरे पर.

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सेल्विना हमें ड्राइंगरूम में ले गई. हम ने अपना परिचय देकर अपनी

मंशा जताई. उस ने पूरी जानकारी देने का वादा किया. मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारे बौयफ्रैंड का नाम

तनय है?’’

‘‘हां.’’

‘‘कब मिली थी उस से?’’

‘‘लगभग 3 साल पहले. मैं रशिया के समारा शहर की लड़की हूं, सौतेले पिता के 2 बेटों की मुझ पर बुरी नजर थी, मैं वहां से अमेरिका चली गई पढ़ने. वहां तनय मिला मुझे.

‘‘उसे ग्राफिक्स कंपनी में जल्द नौकरी

मिल गई. हमारी आपस में बौंडिंग अच्छी हो गई थी. पेंटिंग्स का वह दीवाना था और अपनी ग्राफिक्स डिजाइनिंग में मुझ से आइडिया लेता रहता था.’’

‘‘तनय का बैकग्राउंट बताओ. कहां का है व कहां से पढ़ा है?’’

‘‘वे लोग कोलकाता से हैं… ये असल में राजस्थान के लाला हैं.’’

‘‘हमारे रिश्तेदार भी हैं कुछ जिन की लाला में शादी हुई थी. पढ़ा कहां से है?’’

‘‘मुंबई.’’

‘‘इस के पिता का नाम हरिनाथ और मां का नाम सुभागी है?’’

‘‘हां ऐसा ही कुछ है.’’

‘‘तनय तो तुम्हारे ही साथ रहता है, उस की मां कहां है?’’

‘‘यहां से पास ही है उन लोगों का घर. वह शाम को नौकरी के बाद वहां जाता था, कभीकभी मैं भी.’’

‘‘सेल्विना तनय का कोई पुराना सर्टिफिकेट है तुम्हारे पास जिस में उस के पिता का नाम

दर्ज हो?’’

सेल्विना ने अलमारी से एक फाइल निकाल कर दिखाई.

हां, यह तो वही शख्स है जिस पर जीजी ने बदले का प्रण किया था यानी हमारी नानी के चचिया सास की बेटी के बेटे यानी हमारी नानी की चचेरी ननद के बेटे यानी हमारे चचेरेफुफेरे मामा तनय लाला.

धन्य हो जीजी. तुम्हारे बदले की भावना हम सब को कहां ले कर गई. अब और तुम क्या करने वाली हो. तुम ने तो बदले की भावना से न सिर्फ सेल्विना और तनय को बरबाद किया, बल्कि और भी कई लोगों को उलझया. अब और क्या हासिल करना चाहती हो?’’

सेल्विना ने ही बताया कि जीजी तनय से पहले ही से जुड़ी थी, बाद में तनय ने सल्विना से जोड़ा जीजी को. मगर तनय धीरेधीरे जीजी के जाल में कब फंस गया, खुद ही नहीं समझ पाया.

हम सेल्विना को मदद का वादा कर बाहर आ गए. अनादि से मैं ने पूछा ‘‘क्या अब तुम्हें मेरी मदद करने के लिए किसी शर्त की जरूरत पड़ेगी?’’

‘‘नहींनहीं पड़ेगी, मेरी कोई शर्त भी नहीं है, यह तो तुम्हारी इच्छा पर है कि तुम मेरी बनना चाहोगी या नहीं.’’

‘‘तो पहले एक निर्दोष का दुख दूर करें, उस के बाद दूसरी बातें.’’

‘‘जी आज्ञा,’’ अनादि मुसकराया.

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मैं अनादि के फ्लैट में रहने चली गई. अनादि मुझ से चाबी ले कर मेरे घर पहुंच कर मेरे कमरे में जा कर सो गया. तनय सुबह वहीं से औफिस के लिए निकल गया. सभी यही समझते रहे कि बंद कमरे में मैं हूं.

जीजी अभी नहा कर निकली थी और वह टौवल लपेटे थी. अनादि कमरे से निकला. जीजी उसे सामने देख अचंभित हो गई.

अनादि उसे आगे कुछ समझने का मौका दिए बिना मेरे कमरे में खींच ले गया. अनादि अपने शिकार को काबू में करता हुआ धीरेधीरे उसे इस तरह तैयार कर चुका था कि वह  खुद शिकारी बन जाए.

गोरी रंगत का नया लड़का, जीजी खुद पर काबू नहीं रख पा रही थी जो उठ कर इस का विरोध करे.

आधे चंद्रमा के सामने जब आधी रात

जीजी तड़प उठी तो उस ने खुद ही यह बीड़ा उठा लिया.

अनादि इसी इंतजार में था. सतर्कता से रखे कैमरे को अनादि ने अब औन कर लिया था.

मैं ने अनादि से क्षमा मांगी और उस के पैन में लगे कैमरे में कैद दृश्यों को देखा और उन्हें अपने फोन में लिया. मेरा काम बन गया था.

सेल्विना और निहार को वे वीडियो भेजे और नोट लिखा, ‘‘बुराई को फांसा गया है, अब न्याय होगा.’’

मैं ने सेल्विना से संपर्क किया और कहा, ‘‘जल्द ही तुम्हें तुम्हारा प्यार वापस मिलेगा. तनय का फोन नंबर दो.’’

उस ने तुरंत दिया और मैं ने तनय से उस के औफिस में लंच के समय मिलने का तय किया.

मैं ने जीजी, उस के और हमारे बीच के परिचय सूत्र

और बदले के इतिहास का पूरा विवरण दे डाला. इस के साथ ही जीजी के साथ उस का वीडियो उसे यह कह कर दिखाया कि यह जीजी ने तुम्हारे विरुद्ध इस्तेमाल के लिए दिया था. किस तरह जीजी उस की मेहनत की कमाई लूट रही थी, याद दिलाया और अंतत: जीजी और अनादि का वीडियो यह कह कर दिखाया कि कैमरा मैं ने अपने कमरे में पहले से लगा रखा था. मुझे जीजी पर बिलकुल भी भरोसा नहीं था.

तनय खूबसूरत तो था, लेकिन वाकई कुछ नासमझ था.

वह डर गया, ‘‘यह औरत मेरे औफिस तक न आ जाए.’’

‘‘तुम अपने फोन की सिम बदल लो, साथ ही अपने बौस से मिला दो मुझे, तुम किस कदर मुश्किल में फंसे हो, वह भी पहले की किसी गलती के बिना, उन्हें समझ दूंगी. फिर तुम पर आंच नहीं आएगी.’’

तनय ने हमारे सामने सेल्विना से माफी

मांग ली. सेल्विना ने भी अपने प्यार को माफ  कर नया जीवन शुरू करने का ठान लिया. अब बारी थी निहार और अनादि की. अनादि के दिल में अब तूफान मचा था. चौंतीस साल के निहार

जिम और डायट कंट्रोल से छब्बीस के लग रहे थे. मैं ने मम्मीपापा और निहार को जीजी का

1-1 कारनामा बताया.

कहा मैं ने, ‘‘जीजी के अविकसित दिमाग में बदला, ईर्ष्या और वासना का अजब तालमेल है. इसलिए वह जिंदगी से तालमेल नहीं बैठा पाई. जो जैसा है उसे उस का प्रतिफल मिलता ही है. यही न्याय है. न्याय अपनापराया नहीं देखता और उसे देखना भी नहीं चाहिए.’’

अनादि अपनी बात के लिए चंचल हो

रहा था.

मैं ने अनादि से कहा, ‘‘अनादि तुम ने जो हमारे लिया किया, वह पूरी तरह निस्वार्थ था. किसी न किसी रूप में हम सब का स्वार्थ जुड़ा था. एक तुम ही ऐसे थे, जिन्हें इस केस से कुछ भी लेनादेना नहीं था. तुम्हारे लिए जो भी मेरे मन में है निहार से कहना जरूरी है.’’

मैं ने देखा उन दोनों की सांसें लगभग रुक चुकी थीं.

मैं ने निहार से कहा, ‘‘अनादि अब मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और निहार, शादी के बाद…’’ मैं जानबूझ कर रुक गई थी.

निहार का चेहरा देखने लायक था, पर अनादि का सताना सही नहीं था. मैं बोल पड़ी, ‘‘शादी के बाद हम अनादि के लिए दुनिया की सब से अच्छी लड़की मिल कर

ढूंढ़ेंगी निहार. निहार की रुकी हुई सांसें जैसे चल पड़ी थीं.

‘‘ईशु,’’ निहार के मुंह से निकला.

अनादि उठ कर निहार से गले मिला. फिर मुझ से और निहार से संपर्क में रहने की बात कह वह चला गया. उधर तनय और सेल्विना की शादी में जीजी को छोड़ सभी उपस्थित थे.

जीजी को मम्मीपापा ने अपने गहनों और रुपयों से कुछ हिस्स देकर बाहर का

रास्ता दिखा दिया. जीजी के असामाजिक कृत्यों की वजह से जल्द ही निहार को जीजी से डिर्वोस मिल गया और मैं निहार की बन गई हमेशा के लिए. जीजी दिल्ली चली गई थी और वहीं एक स्कूल में नौकरी कर ली थी.

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दिल्ली से एक दिन जीजी का मुझे संदेश आया, ‘‘उम्मीद नहीं थी तू मुझे धोखा दे कर जड़ से काट फेंकेगी.’’

मैं ने उसे कोई जवाब नहीं दिया. मन ही मन मथ रही थी मैं कि बदले की आग में इंसान खुद तो जल मरता है, दूसरों को भी अकारण जला देता है. अब अगर बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए मैं ने धोखा दिया तो दिया… जीजी, इस असुविधा के लिए खेद है, पर अफसोस नहीं.

खुद ही : नरेन और रेखा के बीच क्या था

लेखक- दिलीप रामचंद्र नीमा

रात के साढ़े 10 बजे थे. नरेन के आने का कोई अतापता नहीं था. हालांकि उस ने विभा को फोन कर दिया था कि उसे आने में देर हो जाएगी, सो वह खाना खा कर, दरवाजा बंद कर सो जाए, उस का इंतजार न करे. चाबी उस के पास है ही. वह आ कर दरवाजा खोल कर जोकुछ खाने को रखा है, खा कर सो जाएगा. यह जानते हुए भी विभा नरेन के आने के इंतजार में करवटें बदल रही थी. वह देखना चाहती थी कि आखिर उस के आने में कितनी देर होती है, जबकि बेटी अंशिता सो चुकी थी.

समय काटने के लिए विभा ने रेडियो पर पुराने गाने लगा दिए थे, जिन्हें सुनतेसुनते उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला. एकाएक विभा की नींद टूटी. उस ने चालू रेडियो को बंद करना चाहा कि उस गाने को सुन कर उस के हाथ रेडियो बंद करतेकरते रुक गए. गाने के बोल थे, ‘अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं. बीच भंवर में नाव है मेरी कैसे पार लगाऊं…’ गाने ने जैसे मन की बात कह दी. गाने जैसी खींचातानी उस की जिंदगी में भी हो रही थी.

‘कोई कामधाम नहीं है, यह सब बहानेबाजी है,’ विभा ने मन ही मन कहा. दरअसल, नरेन उस रेखा के चक्कर में है जिस से वह उस से एक बार मिलवा भी चुका था. विभा से वह घड़ी आज भी भुलाए नहीं भूलती. कितना जोश में आ कर उस ने परिचय कराया था. ‘इन से मिलो विभा, ये मेरे औफिस में ही हैं, हमारे साथ काम करने वाली रेखा. बहुत अच्छा स्वभाव है इन का… और रेखा, ये हैं मेरी पत्नी विभा…’

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विभा को शक हो गया था. एक पराई औरत के प्रति ऐसा खिंचाव. और तो और बाद में वह उसे छोड़ने भी गया था. चाहता तो किसी बस में बिठा कर विदा भी कर सकता था, पर नहीं. गाना खत्म हुआ तो विभा ने रेडियो बंद कर दिया और सोने की कोशिश करने लगी. आखिरकार नींद लग ही गई.

पता नहीं, कितना समय हुआ कि उस ने अपने शरीर पर किसी का हाथ महसूस किया. उसे लग गया था कि यह नरेन ही है. उस ने उस के हाथ को अपने पर से हटाया और उनींदी में कहने लगी, ‘‘सोने दो. नींद आ रही है. कहां थे इतनी देर से. समय से आना चाहिए न.’’ ‘‘क्या करूं डार्लिंग, कोशिश तो जल्दी आने की ही करता हूं,’’ नरेन ने विभा को अपनी ओर खींचते हुए कहा.

‘‘आप रेखा से मिल कर आ रहे हैं न…’’ विभा ने अपनेआप को छुड़ाते हुए ताना सा कसा, ‘‘इतनी अच्छी है तो मुझ से शादी क्यों की? कर लेते उसी से…’’ ‘‘विभा, छोड़ो भी न. यह भी कोई समय है ऐसी बातों का. आज अच्छा मूड है, आओ न.’’

‘‘तुम्हारा तो अच्छा मूड है, पर मेरा तो मूड नहीं है न. चलो, सो जाओ प्लीज,’’ विभा दूसरी ओर मुंह कर के सोने की कोशिश करने लगी. ‘‘तुम पत्नियां भी न… कब समझोगी अपने पति को,’’ नरेन ने निराश हो कर कहा.

‘‘पहले तुम मेरे हो जाओ.’’ ‘‘तुम्हारा ही तो हूं बाबा. पिछले

15 सालों से तुम्हारा ही हूं विभा. मेरा यकीन मानो.’’ ‘‘तो सच बताओ, इतनी देर तक उस रेखा के साथ ही थे न?’’

‘‘देखो, जब तक मैं उस कंपनी में था, उस के पास था. जब मैं वहां से जौब छोड़ कर अपनी खुद की कौस्मैटिक की मार्केटिंग का काम कर रहा हूं तो अब वह यहां भी कहां से आ गई?’’ ‘‘मुझे तो यकीन नहीं होता. अच्छा बताओ कि तुम ने नहीं कहा था कि अब जब मैं अपना काम कर रहा हूं तब तो मैं समय से आ जाया करूंगा. तुम तो अब भी ऐसे ही आ रहे हो जैसे उसी कंपनी में काम करते हो.’’

‘‘अपना काम है न. सैट करने में समय तो लगता ही है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. मेरी बात मानो. अब सब तुम्हारे हिसाब से चलने लगेगा. ठीक है, अच्छा अब तो मान जाओ.’’ ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. मुझे तो बिलकुल यकीन नहीं होता. तुम एक नंबर के झूठे हो. मैं कई बार तुम्हारा झूठ पकड़ चुकी हूं.’’

‘‘तो तुम नहीं मानोगी?’’ ‘‘जब तक मुझे पक्का यकीन नहीं हो जाता,’’ निशा ने कहा.

‘‘तो तुम्हें यकीन कैसे होगा?’’ ‘‘बस, सच बोलना शुरू कर दो और समय से घर आना शुरू कर दो.’’

‘‘अच्छी बात है. कोशिश करता हूं,’’ रंग में भंग पड़ता देख नरेन ने अपने कदम पीछे खींच लेने में ही भलाई समझी. वह नहीं चाहता था कि बात आगे बढ़े. वह भी करवट बदल कर सोने की कोशिश करने लगा. विभा का शक नरेन के प्रति यों ही नहीं था. दरअसल, कुछ महीने पहले की बात है. वह और विभा बच्ची अंशिता के साथ शहर के एक बड़े गार्डन में घूमने गए थे जहां वह रेखा के साथ भी घूमने जाता रहा था. वहां से वे अपने एक परिचित भेल वाले के यहां नाश्ते के लिए चले गए.

भेल वाले ने सहज ही पूछ लिया था कि आज आप के साथ वे बौबकट बालों वाली मैडमजी नहीं हैं? बस, यह सुनते ही विभा के तनबदन में आग लग गई थी और घर लौट कर उस ने नरेन की अच्छे से खबर ली थी.

नरेन ने लाख सफाई दी, पर विभा नहीं मानी थी. जैसेतैसे आगे न मिलने की कसम खा कर नरेन ने अपना पिंड छुड़ाया था. विभा की बातों में सचाई थी इसलिए नरेन कमजोर पड़ता था. नरेन रेखा के चक्कर में इस कदर पड़ा था कि वह चाह कर भी खुद को रेखा से अलग नहीं कर पा रहा था.

रेखा का खूबसूरत बदन और कटार जैसे तीखे नैन. नरेन फिदा था उस पर. अब एक ही रास्ता था कि रेखा शादी कर ले और अपना घर बसा ले, पर एक तरह से रेखा यह जानते हुए कि नरेन शादीशुदा है, वह खुद को उसे सौंप चुकी थी. नरेन में उसे पता नहीं क्या नजर आता था. यहां तक कि जब विभा गांव में कुछ दिनों के लिए अपनी मां के यहां जाती तो रेखा नरेन के यहां आ जाती और फिर दोनों मजे करते.

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पर विभा को किसी तरह इस बात की भनक लग गई थी, इसलिए उस ने अब मां के यहां जाना कम कर दिया था. विभा संबंधों की असलियत को समझ नहीं पा रही थी क्योंकि जहां एक ओर वह मां बनने के बाद नरेन से प्यार में कम दिलचस्पी लेती थी या लेती ही नहीं थी, वहीं दूसरी ओर नरेन अब भी विभा से पहले वाले प्यार की उम्मीद रखता था. उस की तो इच्छा होती थी कि हर रात सुहागरात हो. पर जब विभा से उस की मांग पूरी नहीं होती तो वह रेखा की तरफ मुड़ जाता था. इस तरह नरेन का रेखा से जुड़ाव एक मजबूरी था जिसे विभा समझ नहीं पा रही थी.

विभा ने रेखा वाली सारी बातें अपने तक ही सीमित रखी थीं. अगर वह नरेन के रेखा से प्रेम संबंध वाली बात अपने मां या बाबूजी को बताती तो उन्हें बहुत दुख पहुंचता, जो वह नहीं चाहती थी. विभा के सामने यह जो रेखा वाली उलझन है वह इसे खुद ही सुलझा लेना चाहती थी.

2 बच्चों में से एक बच्चा यानी अंशिता से बड़ा लड़का अर्पित तो अपने ननिहाल में पढ़ रहा है, क्योंकि यहां पैसे की समस्या है. अभी मकान हो जाएगा, तो हो जाएगा, फिर बच्चों का कैरियर, उन की शादी का काम आ पड़ेगा. ऐसे में खुद का मकान तो होने से रहा. नरेन के प्यार के इस तेज बहाव को ले कर विभा एक बार डाक्टर से मिलने की कोशिश भी कर चुकी थी कि प्यार में अति का भूत उस पर से किसी तरह उतरे. ऐसा होने पर वह रेखा से भी दूर हो सकेगा. उस ने यह भी जानने की कोशिश की थी कि कहीं वह कुछ करता तो नहीं है, पर ऐसी कोई बात नहीं थी. अब वह अंशिता को ज्यादातर अपने आसपास ही रखती थी ताकि नरेन को भूल कर भी एकांत न मिले.

अगले दिन नरेन ने काम पर जाते हुए विभा के हाथ में 200 रुपए रखे और मुसकराते हुए उस की कलाई सहलाई. विभा ने आंखें तरेरीं. नरेन सहमते हुए बोला, ‘‘जानू, आज साप्ताहिक हाट है. सब्जी के लिए पैसे दे रहा हूं. भूलना मत वरना फिर रोज आलू खाने पड़ेंगे,’’ कहते हुए टीवी देख रही अंशिता को प्यार से अपने पास बुलाते हुए उस से शाम को आइसक्रीम खिलाने का वादा करते हुए अपने बैग को थामते हुए बाहर निकल गया. विभा दरवाजा बंद कर अपने काम में जुट गई. उसे तो याद ही नहीं था कि सचमुच आज तो हाट का दिन है और उसे हफ्तेभर की सब्जी भी लानी है. वह अंशिता की मदद ले कर फटाफट काम पूरा करने में जुट गई.

कामकाज खत्म कर अंशिता को पढ़ाई की हिदायत दे कर बड़ा सा झोला उठाए विभा दरवाजा लौक कर बाजार की ओर निकल गई. उसे अंशिता के चलते घर जल्दी लौटने की फिक्र थी. अभी विभा कुछ सब्जियां ही ले पाई थी और एक सब्जी का मोलभाव कर रही थी कि किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रखा. विभा पलटी तो एक अजनबी औरत को देख कर अचरज करने लगी.

‘‘तुम विभा ही हो न,’’ उस अजनबी औरत ने विभा को हैरानी में देखा तो पूछा, ‘‘जी. पर, आप कौन हैं? ‘‘अरे, तारा दीदी आप… दरअसल, आप को जूड़े में देखा तो…’’ झटपट विभा ने तारा टीचर के पैर छू लिए.

‘‘सही पहचाना तुम ने. कितनी कमजोर थी तुम पढ़ने में, जब तुम मेरे घर ट्यूशन लेने आती थी. इसी से तुम मुझे याद हो वरना एक टीचर के पास से कितने स्टूडैंट पढ़ कर निकलते हैं. कितनों को याद रख पाते हैं हम लोग,’’ आशीर्वाद देते हुए तारा दीदी ने कहा. ‘‘मेरा घर यहां नजदीक ही है. आइए न. घर चलिए,’’ विभा ने कहा.

‘‘नहींनहीं, फिर कभी. अब मैं रिटायर हो चुकी हूं और पास की कालोनी में रहती हूं. लो, यह है मेरा विजिटिंग कार्ड. घर आना. खूब बातें करेंगे. अभी इस वक्त थोड़ा जल्दी है वरना रुकती. अच्छा चलती हूं विभा.’’ विभा ने कार्ड पर लिखा पता पढ़ा और अपने पर्स में रख कर सब्जी के लिए आगे बढ़ गई.

विभा ने तय किया कि वह अगले दिन तारा दीदी से मिलने उन के घर जरूर जाएगी. उसे लगा कि तारा दीदी उस की उलझन को सुलझाने में मदद कर सकती हैं. अगले दिन सारा काम निबटा कर वह अंशिता को पड़ोस में रहने वाली उस की हमउम्र सहेली के पास छोड़ कर तारा दीदी के घर की ओर चल पड़ी. उसे घर ढूंढ़ने में जरा भी परेशानी नहीं हुई. उस ने डोर बेल बजाई तो दरवाजा खोलने वाली तारा दीदी ही थीं.

‘‘आओ विभा,’’ कह कर अपने साथ अंदर ड्राइंगरूम में ले जा कर बिठाया. सबकुछ करीने से सजा हुआ था. शरबत वगैरह पीने के बाद तारा दीदी ने विभा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा, ‘‘कहो, क्या बात है विभा. सबकुछ ठीकठाक है. जिंदगी किस तरह चल रही है? तुम्हारे मिस्टर, तुम्हारे बच्चे…’’ विभा फिर जो शुरू हुई तो बोलती चली गई. तारा दीदी बड़े गौर से सारी बातें सुन रही थीं. उन्हें लगा कि विभा की मुश्किल हल करने में अभी भी एक टीचर की जरूरत है. स्कूल में विभा सवाल ले कर जाती थी, आज वह अपनी उलझन ले कर आई है.

अपनी उलझन बता देने से विभा काफी हलका महसूस हो रही थी जैसे कोई सिर पर से बोझ उतर गया हो. तारा दीदी ने गहरी सांस ली. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे गर्व है कि तुम मेरी स्टूडैंट हो. अपना यह सब्र बनाए रखना. ऐसा कोई गलत कदम मत उठाना जिस से घर बरबाद हो जाए. आखिर ये 2 बच्चों के भविष्य का भी सवाल है.’’

‘‘तो बताओ न दीदी, मुझे क्या करना चाहिए?’’ विभा ने पूछा. ‘‘देखो विभा, समस्या होती तो छोटी है, केवल हमारी सोच उसे बड़ा बना देती है. एक तो तुम अपनी तरफ से किसी तरह से नरेन की अनदेखी मत करो. उसे सहयोग करो. आखिर तुम बीवी हो उस की. अगर वह तुम से प्यार चाहता है तो उसे दो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. रहा सवाल रेखा का तो इतना समझ लो इस मामले में जो भी मुझ से हो सकेगा मैं करूंगी.’’

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‘‘मैं अब आप के भरोसे हूं दीदी. अच्छा चलती हूं क्योंकि घर पर अंशिता अकेली है.’’ ‘‘बिलकुल जाओ, अपना फर्ज, अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाओ.’’

विभा अब ठीक थी. उसे लगा नरेन पर से अब रेखा का साया उठ जाएगा और उस की जिंदगी में खुशहाली छा जाएगी. शाम को जब नरेन घर लौटा तो उन के साथ एक साहब भी थे. नरेन ने विभा से उन का परिचय कराया और बताया, ‘‘आज जब मैं एक बड़े मौल में मार्केटिंग के काम से गया था तो एक शौप पर इन से मुलाकात हुई.

‘‘दरअसल, इन का वडोदरा में कौस्मैटिक का कारोबार है और इन्हें वहां एक मैनेजर की सख्त जरूरत है. जब इन्होंने उस दुकानदार से मेरा बातचीत का लहजा और स्टाइल देखी तो ये बहुत प्रभावित हुए. मुझ से मेरा सारा जौब ऐक्सपीरियंस सुना. मेरी लाइफ के बारे में जाना और कहने लगे कि तुम में मुझे मैनेजर की सारी खूबियां दिखती हैं. मैं तुम्हें अपने यहां मैनेजर की पोस्ट औफर करता हूं. अच्छी तनख्वाह, फ्लेट, गाड़ी, सब सहूलियतें मिलेंगी. ‘‘मैं ने इन से कहा कि अपनी पत्नी से बात किए बिना मैं कोई फैसला नहीं ले सकता, इसलिए इन्हें यहां ले आया हूं. क्या कहती हो. क्या मैं इन का प्रस्ताव स्वीकार कर लूं?’’

‘‘पहले तुम कुछ दिनों के लिए वहां जा कर सारा कामकाज देख लो, समझ लो. अच्छा लगे तो स्वीकार कर लो,’’ विभा ने खुश होते हुए कहा. विभा को यह अच्छा लगा कि नरेन कितनी तवज्जुह देते हैं उसे. आज पहली बार उसे लगा कि वह अब तक नरेन से बुरा बरताव करती रही है, वह भी सिर्फ एक रेखा के पीछे. और यह उलझन भी अब उसे सुलझती नजर आ रही थी.

नरेन वडोदरा की ओर निकल पड़ा था. रोज रात को विभा से बात करने का नियम था उस का. विभा भी बातचीत में पूरी दिलचस्पी लेती. प्रतिदिन के कामकाज के बारे में, मालिक के बरताव के बारे में वह सबकुछ बताता. नए मिलने वाले फ्लैट जो वह देख भी आया था, के बारे में बताया और कहा कि अब वडोदरा शिफ्ट होने में फायदा ही है. विभा ने झटपट तारा दीदी के घर की ओर रुख किया. उन्हें नरेन के वडोदरा की जौब और वहीं शिफ्ट होने के बारे में बताया.

तारा दीदी के मुंह से निकला, ‘‘तब तो तुम्हारी सारी उलझनें अपनेआप ही सुलझ रही हैं विभा. जब तुम लोग शहर ही बदल रहे हो तो रेखा इतनी दूर तो वहां आने से रही.’’ सबकुछ इतना जल्दी तय हुआ कि विभा का इस पहलू की ओर ध्यान ही नहीं गया. तारा दीदी की इस बात में दम था. एक तीर से दो शिकार हो रहे थे. अब इस के पहले कि रेखा के पीछे नरेन का मन पलट जाए, उस ने वडोदरा जाना ही सही समझा.

रात को नरेन का फोन आया तो उस ने झटपट यह काम कर लेने को कहा. अभी छुट्टियां भी चल रही हैं. नए सैक्शन में बच्चों के एडमिशन में भी दिक्कत नहीं होगी. लगे हाथ अर्पित को भी मां के यहां से बुलवा लिया जाएगा. अब वह उस के पास ही रह कर आगे की पढ़ाईलिखाई करेगा. आननफानन यह काम कर लिया जाने लगा. पूरी गृहस्थी के साथ नरेन ने शिफ्ट कर लिया. विभा नए शहर में नया घर देख कर अवाक थी. ऐसे ही घर का तो उस ने कभी सपना देखा था. दोनों बच्चे तो यह सब देख कर चहक उठे.

नरेन में शुरूशुरू में उदासी जरूर नजर आई. विभा समझ गई थी कि ऐसा क्यों है. पर उस ने अब अपना प्यार नरेन पर उड़लेना शुरू कर दिया था. एक शाम जब नरेन काम से घर लौटा तो बुझाबुझा सा था. यह कामकाज की वजह से नहीं हो सकता था. उसे कुछ खटका हुआ जिसे उस ने जाहिर नहीं होने दिया. बालों में उंगलियां घुमाते हुए विभा ने बस इतना ही कहा, ‘‘क्यों न एकएक कप कौफी हो जाए.’’

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नरेन ने हामी भरी. विभा कुछ सोचते हुए किचन में दाखिल हो गई. अगले ही दिन दोपहर में कामकाज से फुरसते पाते ही उस ने तारा दीदी को फोन घुमा दिया.

तब तारा दीदी ने उसे यह सूचना सुनाई कि रेखा की शादी हो गई है. सुन कर विभा उछल पड़ी, ‘‘थैंक्यू,’’ बस इतना ही कह पाई विभा और फोन बंद कर बिस्तर पर बिछ गई.

अब उसे नरेन के बुझे चेहरे की वजह भी समझ में आ गई थी. लेकिन अब सबकुछ ठीक भी हो गया था. गृहस्थी की गाड़ी बिना रुकावट एक बार फिर पटरी पर सरपट दौड़ने के लिए तैयार थी.

असुविधा के लिए खेद है: भाग 3- जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

आखिर वह कौन था? सेल्विना का बौयफ्रैंड? मगर क्यों? कनैक्शन क्यों जमा आखिर? अचानक अंधेरे में रोशनी की तरह अपना नेपाली दोस्त अनादि याद आया, कालेज में 3 साल हम अच्छे ही दोस्त थे. अब वह कोलकाता में ही रहता है और सिक्यूरिटी गार्ड सप्लाई संस्थान चलाता है. बैचलर है, घरपरिवार का झंझट नहीं, मेरी मदद कर पाएगा.

हमारे कालेज के वाल्सअप गु्रप में हम सभी जुड़े हैं और इस लिहाज से उस के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी मुझे थी. शाम के 6 बज रहे थे. मैं चल पड़ी उस के ठिकाने की ओर.

पहली मंजिल में उस का औफिस और दूसरी मंजिल में उस का घर था.

वह औफिस में ही मिल गया मुझे.

मुझे देख वह इतना खुश हुआ कि मुझे कुछ हद तक यह भी लगा कि मैं पहले ही इस से अपनी दोस्ती जारी रख सकती थी.

थोड़ी देर की बातचीत और कुछ स्नैक्सकौफी के बाद मैं मुद्दे पर आ गई. मैं ने उस से कहा, ‘‘अनादि, बात उतनी खतरनाक न सही, चिंता वाली तो है. मैं प्रोफैशनल तरीका अपना कर ज्यादा होहल्ला नहीं मचाना चाहती. बस जीजी की खुराफात बंद हो. मैं जानती हूं उस में बदले की भावना बचपन से ही कुछ ज्यादा है. अगर किसी पर उस ने टारगेट बना लिया तो उस की खैर नहीं.’’

मैं ने अपनी शादी और उस लड़के के इनकार की घटना बताई ताकि कुछ सूत्र मिल

सके अनादि को. सारी बातें सुन कर उस की दिलचस्पी जगी, कहा, ‘‘चलो कुछ तो खास

करने का मौका मिला वरना यह बिजनैस ऊबाने वाला है.’’

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‘‘देखो, हमारे पास 2 पौइंट हैं. एक बदला जीजी का, दूसरा जीजू से पीछा छुड़ा कर किसी सुंदर लड़के के प्रेम में पड़ कर अपनी जिंदगी को अपनी मरजी से जीना, तो इन 2 बातों में से कौन सी के लिए जीजी इतनी डैस्परेट है?’’

‘‘आज रात को वह सेल्विना के बौयफ्रैंड को बुला रही है. सेल्विना के स्कूल में जीजी पेंटिंग्स सिखाती है.’’

‘‘बाप रे काफी मसले हैं. हमें क्या

करना है?’’

‘‘समस्या यह है कि जीजी के पास उस वक्त कैसे पहुंचा जाए जब जीजी का बुलाया व्यक्ति वहां मौजूद हो क्योंकि मुझे घर में

देखते ही वह पैतरा बदल देगी और विश्वास में

न लूं तो गेम डबल कर के मुझे उलझएगी.

बेहतर यही होगा कि उसे विश्वास दिलाया जाए कि हम से उसे कोई खतरा नहीं. तो एक बात

हो सकती है तुम मेरे बौयफ्रैंड बन कर मेरे साथ घर चलो.

‘‘जीजू के घर मम्मीपापा को छोड़ जब आ रही थी तो  तुम से मुलाकात हुई और कालेज के दिनों से मुझ से प्रेम करने वाले तुम अब मुझे पा कर खोना नहीं चाहते, जीजी हमारी शादी में मदद करे, मम्मीपापा और रिश्तेदारों को समझने में मदद करे. तो हम भी उन की करतूतों पर आंख मूंदे ही साथ रहे हैं,’’ मैं ने प्लान बताया जो जीजी से कहना था.

‘‘ऐसा क्या?’’ नेपाली बाबू ने मेरी ओर बड़ी गहरी दृष्टि डाली.

मुझे कुछ अटपटा लगा. फिर भी मैं ने

सहज रह कर बाकी बातें पूरी की, ‘‘जब

जानेगी कि हमें उस की जरूरत है तो वह हमारा भी फायदा उठाना चाहेगी, और वक्तवक्त पर हमें भी अपनी कारगुजारियों से अनजाने ही अवगत करा देगी. इस के लिए वह कुछ हद तक हमारी ओर से निश्चिंत रहेगी. वह मेरे इस प्रेम वाले कमजोर पक्ष की वजह से मेरी ओर से लापरवाह हो जाएगी क्योंकि उसे लगेगा कि अब मैं ही

खुद अपनी जरूरत के लिए उस के सामन

झकी रहूंगी.’’

अनादि सामान्य दिख रहा था. बोला, ‘‘ग्रेट आइडिया, लैट्स प्रोसीड.’’

रात 9 बजे जब मैं और अनादि घर पहुंचे अपनी चाबी से दरवाजा खोल हम अंदर गए, जीजी के कमरे में लाइट जल रही थी. दोनों बिस्तर पर व्यस्त थे.

लड़का मेरी ही उम्र का लगभग 27 के आसपास, गोरा स्मार्ट और बहुत खूबसूरत था.

हम ने अपना वीडियो कैमरा औन कर लिया.

हमें प्रमाण चाहिए था और इस के लिए ग्रिल वाली खिड़की और परदे की आड़ हमारे लिए काफी थी. जीजी बीचबीच में लड़के से बातें भी करती जाती.

‘‘सेल्विना को वापस जाने को कब कहोगे?’’

‘‘रहने दो न उसे, बेचारी का बहुत पैसा लगा है स्कूल में.’’

‘‘तो मैं तुम्हें कैसे पा सकूंगी. शादी कैसे होगी हमारी?’’

‘‘तुम बड़ी हो उस से 4 साल, मां नहीं मानेगी.’’

‘‘अच्छा तो सिर्फ  मजे के लिए मैं?’’ जीजी होश खो रही थी.

जीजी ने आगे कहा, ‘‘और वह नैकलैस लाए?’’

‘‘हां.’’

‘‘हीरे की लौकेट वाला न?’’

‘‘हां बाबा.’’

‘‘कल, 20 हजार ट्रांसफर करने को बोला था बैंक में. किए?’’

‘‘करता हूं.’’

‘‘अभी करो.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है?’’

‘‘फिर इस वीडियो को देखो, सेल्विना तो क्या हर जगह पहुंच जाएगा. अच्छा लगेगा?

तुम्ही बताओ?’’

तनय वीडियो देख कर तनाव में आ कर उठ बैठा, ‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’

‘‘नहीं तनय. मैं तो बस सावधान कर रही हूं, सुख मुझे अकेले नहीं मिल रहा है, तुम्हें भी मिल रहा है, तो कुछ तो चुकाओगे न?’’

तनय ने मोबाइल से तुरंत रुपए ट्रांसफ र कर दिए. जीजी शातिर गेम खेल सकती है, मैं जानती नहीं थी. मैं उलझती ही जा रही थी.

हम ने कैमरा बंद कर दरवाजा खटखटाया. दोनों संभल गए. कुछ देर बाद जीजी ने कमरे का दरवाजा खोला.

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हम ने अपनी तय बातें उन के सामने रखीं. जैसाकि पहले से मालूम था वह भी इसी शर्त पर हमारी शादी में मदद को राजी हुई कि घर पर वे कुछ भी करें, हम उस के मामले में न दखल दें, न ही किसी से कुछ कहें.

हम ने उस का आभार माना और अपने कमरे में चले आए. 10 मिनट में अनादि चला गया. तनय भी थोड़ी देर बाद चला गया.

जीजू यानी निहार का संदेश मिला, ‘‘कब आओगी ईशा? साथ ही फोटो भी लाना. वाकई, जीजू ने कमाल किया. बेहद स्मार्ट और स्लिम हो गए. सच प्यार में बड़ी शक्ति है. उन की तसवीर देख चकित थी.’’

पता कर लिया था कि उन्होंने पार्कस्ट्रीट की एक कालोनी में सेल्विना के साथ मिल कर फ्लैट खरीदा था और सेल्विना के साथ तब तक लिवइन में था, जब तक न सेल्विना को भारतीय नागरिकता मिले और उस से कानूनी प्रक्रिया के तहत शादी हो जाए.

अनादि ने मुझे पता करने को कहा कि जीजी का इस तनय के साथ पहले से फेसबुक और चैटिंग का कोई रिश्ता है क्या?

जीजी से यह पूछने की फिराक में थी कि अनादि का संदेश आया, ‘‘ईशा क्या

मेरी बनोगी? बड़ा मिस करने लगा हूं यार तुम्हें.’’

‘‘यह क्या? जीजी के केस के बीच यह नया गेम क्या है?’’

5 फुट 7 ईंच का अनादि देखनेभालने में गोरा, सीधा, सरल नेपाली नहीं. कहती कि मुझे

5 फुट 7 ईंच की हाइट की लड़की के साथ बिलकुल नहीं जमेगा. लेकिन मैं तो…

मैं मन ही मन झल्ला गई. पर कोई जवाब नहीं दिया. क्या पता नहीं क्यों उसे दुखी कर

पाई. उस का हंसता सा चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया.

आगे पढें- तनय समझ गया था कि वह ..

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