Relationship Tips : बौयफ्रैंड के साथ सैक्स करने के बाद मैं Pregnant हो जाऊंगी क्या?

Relationship Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा बौयफ्रैंड मेरे साथ सोना चाहता है, पर मुझे पेट से होने का डर लगता है. मुझे उसे मना करना अच्छा नहीं लगता. ऐसे में क्या ठीक है?

जवाब

बौयफ्रैंड को सोने का मौका कतई न दें. आप पेट से हो गईं, तो वह किनारा कर लेगा. सिर्फ बातचीत तक ही सीमित रहें. हमबिस्तरी शादी के बाद ही करें.

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प्यार के बदले सैक्स नहीं

प्यार एक गहरा और खुशनुमा एहसास है. जब किसी से प्यार होने लगता है तो हम शुरुआत में अकसर उस की सकारात्मक चीजें ही देखते हैं. उस समय हमें अपना अच्छाबुरा कुछ समझ नहीं आता और यही वह खुमारी होती है जब हम प्रेमी के प्यार के बदले में उस की हर जायजनाजायज मांग भी पूरी करने लगते हैं. लेकिन कुछ पल ठहर कर एक बार सोच लें कि कहीं आप प्रेमी को प्यार के बदले अपना शरीर तो नहीं सौंप रही हैं. अगर ऐसा है तो संभल जाइए, क्योंकि यह सही नहीं है. यह वक्त सिर्फ प्यार करने का है, सैक्स तो शादी के बाद भी हो सकता है. इस में आखिर इतना उतावलापन और जल्दबाजी क्यों?

प्यार को प्यार ही रहने दें

प्यार एक खूबसूरत एहसास है, इसे दिल से महसूस करें न कि शरीर से. एकदूसरे के साथ समय बिताएं, एकदूसरे को समझें, प्यारभरी बातें करें, भविष्य के सपने बुनें, एकदूसरे की केयर करें, अपनेपन का एहसास साथी के मन में जगाएं, उसे विश्वास दिलाएं कि आप उस के लिए एकदम सही जीवनसाथी साबित होंगे. अपने कैरियर पर ध्यान दें. खुद खुश रहें और साथी को भी खुश रखें. यह वक्त बस यही करने का है बाकी जो भावनाएं हैं उन्हें शादी के बाद के लिए बचा कर रखें.

प्यार में आकर्षण बना रहेगा

अगर आप किसी से प्यार करती हैं और सैक्स नहीं किया है तो सैक्स को ले कर चाह और एक आकर्षण बना रहने के कारण साथी के प्रति खिंचाव हमेशा बना रहेगा, लेकिन एक बार सैक्स हो जाने के बाद कोई नयापन नहीं रहेगा और वह आकर्षण जो आप को एकदूसरे के प्रति खींचता था, खत्म हो जाएगा.

अपराधबोध नहीं होगा

एक बार संभोग करने के बाद उसे बदला नहीं जा सकता. कई बार बाद में पता चलता है कि प्रेमी आप के लिए सही नहीं है तब वक्त से पहले संबंध बना लेने का अपराधबोध होता है. इसलिए जरूरी है कि जब तक पूरी तरह से आश्वस्त न हो जाएं तब तक संबंध न बनाएं.

उत्सुकता बनी रहेगी

जब कोई भी काम समय पर करते हैं तो उस का आनंद ही अलग होता है, लेकिन जब आप सैक्स शादी से पहले ही कर लेते हैं तो इसे ले कर कोई उत्सुकता नहीं रहती. यदि सैक्स न करने से आप की उत्सुकता बनी रहती है तो बेहतर है इसे शादी तक न किया जाए.

यौन रोगों से बचे रहेंगे

सैक्स के प्रति लापरवाही यौन रोग होने का खतरा काफी हद तक बढ़ा देती है. उस समय आप की प्राथमिकताएं शारीरिक आकांक्षाओं को पूरा करना होता है, लेकिन सैक्स करते समय किनकिन सावधानियों का खयाल रखना चाहिए यह बात आप सोचते नहीं हैं और गंभीर बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं.

सच्चे प्यार में सैक्स का कोई मतलब नहीं

सच्चा प्यार किसी को देखते ही नहीं हो जाता, यह एकदूसरे को जानने और समझने के बाद होता है. सच्चे प्यार में कोई जल्दबाजी नहीं होती, इस में ठहराव होता है. एकदूसरे की आपसी अंडरस्टैंडिंग होती है, एकदूसरे पर भरोसा होता है, एकदूसरे की कद्र होती है. सच्चा प्यार हमेशा के लिए होता है. इस में प्रेमी एकदूसरे से दिल की गहराइयों से जुड़े होते हैं. एकदूसरे के प्रति अपनीअपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है इसलिए उन्हें पता होता है कि सैक्स का सही समय शादी के बाद ही है और ऐसा करने के लिए वे एकदूसरे पर जोर भी नहीं डालते, क्योंकि इस के लिए इंतजार करना भी उन के इसी सच्चे प्यार का एक अहम हिस्सा होता है.

प्रेमी की पहचान करने का सही वक्त

यदि प्रेमी बारबार आप से शारीरिक संबंध बनाने पर जोर दे रहा है तो इस का मतलब उसे आप से ज्यादा इंट्रस्ट संबंध बनाने में है. उसे आप की भावनाओं का खयाल रखते हुए शादी तक इस चीज के लिए सब्र रखना चाहिए, लेकिन अगर वह ऐसा नहीं कर पा रहा है तो या तो उस की नीयत में खोट है या फिर वह आप का साथ निभाने के काबिल ही नहीं है.

सैक्स के नुकसान

बोरियत हो जाएगी

कुछ लोगों के लिए सैक्स ही सबकुछ होता है और जब उन्हें उस की पूर्ति हो जाती है तो उन की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और फिर उन्हें प्रेमिका में कोई रुचि नहीं रहती. उन्हें उस के साथ समय बिताने, घूमने, हंसीमजाक करने में बोरियत लगने लगती है. ऐसे में रिश्ते का लंबे समय तक खिंच पाना मुश्किल हो जाता है.

प्रैग्नैंट हो गईं तो मुश्किल

बाजार में कई तरह के गर्भनिरोधक उपलब्ध हैं, लेकिन कई बार वे भी पूरी तरह से सक्षम नहीं होते. कई बार आप को पता भी नहीं चलता कि आप गर्भवती हैं और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. इस के बाद मानसिक परेशानी का ऐसा दौर शुरू होता है जो आप को अंदर तक तोड़ कर रख देता है.

शादी न हुई तो दिक्कत

आज सारी परिस्थितियां आप के पक्ष में हैं और आप को लग रहा है कि आप के प्रेमी से ही आप की शादी होगी, लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती, हो सकता है कल परिस्थितियां कुछ और हों. आप दोनों की किन्हीं कारणों से शादी न हो पाए, तो फिर क्या करेंगी?

जिस के साथ आप की शादी होगी अगर उस को आप के शादी से पहले के संबंधों के बारे में पता चल गया तो जिंदगी दूभर हो जाएगी या फिर हमेशा आप डरती रहेंगी कि कहीं यह बात खुल गई तो? ऐसे में आप शादी के बाद के खूबसूरत पलों को ढंग से ऐंजौय नहीं कर पाएंगी.

रिश्ते से बाहर आना मुश्किल

अगर आप अपने बौयफ्रैंड के साथ बिना संबंध बनाए डेट कर रहे हैं और आप को लगता है कि आप दोनों इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में सहमत नहीं हैं तो रिश्ता खत्म करना आप के लिए काफी आसान होता है, लेकिन एक बार शारीरिक संबंध बन जाने के बाद उस रिश्ते से बाहर आना भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर बहुत कठिन हो जाता है.

मलाल न हो

आप जिस व्यक्ति के साथ संबंध बना रही हैं वह आप के लिए काफी महत्त्वपूर्ण होना चाहिए. केवल शारीरिक जरूरतें पूरी करने के लिए संबंध बनाना सही नहीं है.

ब्लैकमेलिंग का शिकार न हों

कई बार देखने में आता है कि जिस पर हम सब से ज्यादा भरोसा करते हैं वही हमारा विश्वास तोड़ता है. आएदिन अखबार ऐसी सुर्खियों से भरे रहते हैं कि प्यार करने के बाद सैक्स किया, फिर धोखा दिया. अकसर प्रेमी इस तरह की वारदात को अंजाम देते हैं इसलिए अगर बौयफ्रैंड धोखेबाज निकला और उस ने आप का कोई वीडियो बना लिया और फिर इस के जरिए आप को ब्लैकमेल करने लगा तो फिर क्या होगा?

माना कि आप का बौयफ्रैंड ऐसा नहीं है पर यह काम उस का कोई दोस्त या कोई अनजान भी तो कर सकता है, तब क्या करेंगी? किस से मदद मांगेंगी? इसलिए ऐसा काम करना ही क्यों, जिसे करने के बाद परेशानी भुगतनी पड़े. इसलिए तमाम बातों को ध्यान में रख कर ही आगे कदम बढ़ाएं अन्यथा ताउम्र इस का दंश झेलना पड़ेगा.      

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Latest Hindi Stories : आहटें

Latest Hindi Stories : पड़ोस के घर की घंटी की आवाज सुनते ही शिखा लगभग दौड़ती हुई दरवाजे के पास गई और फिर परदे की ओट कर बाहर झांकने लगी. अपने हिसाबकिताब में व्यस्त सुधीर को शिखा की यह हरकत बड़ी शर्मनाक लगी. वह पहले भी कई बार शिखा को उस की इसी आदत पर टोक चुका है, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आती.  ज्यों ही आसपास के किसी के घर की घंटी बजती शिखा के कान खड़े हो जाते. कौन किस से मिलजुल रहा है, किस पतिपत्नी में कैसा बरताव चल रहा है, इस की पूरी जानकारी रखने का मानो शिखा ने ठेका ले रखा हो.

सुधीर ने कभी ऐसी मनोवृत्ति वाली पत्नी की कामना नहीं की थी. अपना दर्द किस से कहे वह… कभी प्रेम से, कभी तलखी से झिड़कता जरूर है, ‘‘क्या शिखा, तुम भी हमेशा पासपड़ोसियों के घरों की आहटें लेने में लगी रहती हो… अपने घर में दिलचस्पी रखो जरा ताकि घर घर जैसा लगे…’’  सुधीर की लाई तमाम पत्रपत्रिकाएं मेज पर पड़ी शिखा का मुंह ताकती रहतीं.. शिखा अपनी आंखें ताकझांक में ही गड़ाए रखती.

मगर आज तो सुधीर शिखा की इस हरकत पर आगबबूला हो उठा और फिर परदा इतनी जोर से खींचा कि रौड सहित गिर गया.  ‘‘लो, अब ज्यादा साफ नजर आएगा,’’ सुधीर गुस्से से बोला.

शिखा अचकचा कर द्वार से हट गई. देखना तो दूर वह तो अनुमान भी न लगा पाई कि जतिन के घर कौन आया और क्योंकर आया.  सुधीर के क्रोध से कुछ सहमी जरूर, पर झेंप मिटाने हेतु मुसकराने लगी. सुधीर का मूड उखड़ चुका था. उस ने अपने कागज समेट कर अलमारी में रखे और तैयार होने लगा.

शिखा उसे तैयार होते देख चुप न रह सकी. पूछा, ‘‘अब इस वक्त कहां जा रहे हो? शाम को मूवी देखने चलना है या नहीं?’’

‘‘तुम तैयार रहना… मैं आ जाऊंगा वक्त पर,’’ कह कर सुधीर कहां जा रहा है, बताए बिना गाड़ी स्टार्ट कर निकल गया.

गुस्से से भरा कुछ देर तो सुधीर यों ही सड़क पर गाड़ी दौड़ाता रहा. वह मानता है कि थोड़ीबहुत ताकझांक की आदत प्राय: प्रत्येक व्यक्ति में होती है पर शिखा ने तो हद कर रखी है. 1-2 बार उसे ताना भी मारा कि इतनी मुस्तैदी से अगर किसी अखबार में न्यूज देती तो प्रतिष्ठित संवाददाता बन जाती. लेकिन शिखा पर किसी शिक्षा का असर ही नहीं पड़ता था.  पिछले हफ्ते की ही बात है. वह शाम को औफिस से काफी देर से लौटा था. वह ज्यों ही घर में घुसा कि कुछ देर में ही शिखा का रिकौर्ड शुरू हो गया. बच्चों को पुलाव खिला कर सुला चुकी थी. उस के सामने भी दही, अचार, पुलाव रख शुरू कर दिया राग, ‘‘आजकल अमनजी औफिस से 1-2 घंटे पहले ही घर आ जाते हैं. मेरा ध्यान तो काफी पहले चला गया था इस बात पर… इधर उन की माताजी प्रवचन सुनने गईं और उधर से उन की गाड़ी गेट में घुसती. दोनों लड़कियां तो स्कूल से सीधे कोचिंग चली जाती हैं और 7 बजे तक लौटती हैं… अमनजी के घर में घुसते ही दरवाजेखिड़कियां बंद…’’

‘‘अरे बाबा मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है दूसरों के दरवाजों में… तुम पापड़ तल कर दे सको तो दे दो.’’  सुधीर की नाराजगी देख शिखा को चुप हो जाना पड़ा वरना वह आगे भी बोलती.

खाना खा कर सुधीर टीवी देखने लगा. शिखा रसोई निबटा कर उस के पास आ कर बैठी तो सुधीर को बड़ा सुखकर लगा. छोटी सी गृहस्थी जोड़ ली है उस ने… शिखा भी पढ़ीलिखी है. अगर यह भी अपने समय का सदुपयोग करना शुरू कर दे तो घर में अतिरिक्त आय तो होगी ही खाली समय में इधरउधर ताकनेझांकने की आदत भी छूट जाएगी.  ‘धीरेधीरे स्वयं समझ जाएगी,’ सोचते हुए सुधीर भावुकता में शिखा को गले लगाने के लिए उठा ही था कि शिखा चहक उठी, ‘‘अरे यार, वह अमनजी का किस्सा तो अधूरा ही रह गया… मैं समझ तो गई थी पर आज पूरा राज खुल गया… खुद उन की पत्नी आशा ने बताया नेहा को कि लड़कियां बड़ी हो गई हैं… तो एकांत पाने का यह उपाय खोजा है अमनजी ने…’’ कह कर शिखा ने ऐसी विजयी मुसकान फेंकी मानो किला जीत लिया हो.

किंतु सुन कर सुधीर ने तो सिर थाम लिया अपना. उस ने ऐसी पत्नी की भी कल्पना नहीं की थी. वह तो आज भी यही चाहता है उस की शिखा परिवार के प्रति समर्पण भाव रखते हुए पासपड़ोसियों का भी खयाल रखे, उन के सुखदुख में शामिल हो. पर यह नामुमकिन था.  नामुमकिन शब्द सुधीर को हथौड़े सा लगा. ‘भरपूर प्रयास करने  पर तो हर समस्या का हल निकल आता है,’ सोच कर सुधीर को कुछ राहत मिली. उस ने घड़ी देखी. शो का वक्त हो चुका था, मगर आज शिखा के नाम से चिढ़ा था…  सुधीर घर न जा कर एक महंगे रेस्तरां में अकेला जा बैठा. रविवार होने की वजह से ज्यादातर लोग बीवीबच्चों के संग थे… उसे अपना अकेलापन कांटे सा चुभा… बैठे या निकल ले सोच ही रहा था कि नजरें कोने की टेबल पर पड़ते ही सकपका गया. उस के पड़ोसी दस्तूर अपनी पत्नी और बेटी के संग बैठे खानेपीने में मशगूल थे. सुधीर तृषित नजरों से क्षण भर उस परिवार को देखता रह गया.

सुधीर और दस्तूर एक ही संस्थान में तो हैं, साथ में पड़ोसी होने की वजह से बातचीत, आनाजाना भी है. मगर शिखा को दस्तूर परिवार फूटी आंख नहीं सुहाता है. दस्तूर की पत्नी अर्चना से तो ढेरों शिकायतें हैं उसे कि क्या पता दिन भर घर में घुसेघुसे क्या करती रहती है… औरतों से भी मिलेगी तब भी एकदम औपचारिक… मजाल उस के अंतरंग क्षणों का एक भी किस्सा कोई उगलवा सके… ऐसी बातों पर एकदम चुप.

इस के विपरीत सुधीर अर्चना का काफी सम्मान करता है. विवाह से पूर्व वे शिक्षिका थीं और आज एक सफल गृहिणी हैं. लेकिन शिखा ने उन्हें भी नहीं छोड़ा. शिखा के खाली और शैतानी दिमाग से सुधीर भीतर ही भीतर कुंठित हो चला था. इसीलिए दस्तूर दंपती से नजरें चुराता वह रेस्तरां से बाहर निकल आया. रात के 9 बज रहे थे पर उस का मन घर जाने को नहीं कर रहा था. करीब 11 बजे घर पहुंचा ही था कि घंटी बजाते ही शिखा ने द्वार खोल प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

सुधीर आज कुछ तय कर के ही लौटा था. अत: चुपचाप कपड़े बदलता रहा. शिखा परेशान सी उस के आगेपीछे घूम रही थी, ‘‘जब कोई और प्रोग्राम था तो मुझे क्यों बहलाया कि शाम को पिक्चर चलेंगे… किस के साथ थे पूरी शाम?’’

‘‘बस यों समझ लो कि अर्चनाजी के संग था पूरी शाम.’’

शिखा उसे अवाक देखती रह गई. सुधीर भी देख रहा था. वह अभी तक सजीसंवरी कीमती साड़ी में ही थी. सुधीर को अच्छा लगा उसे यों तैयार देख कर, पर स्वयं पर नियंत्रण रख वह सोफे पर बैठा रहा.

‘‘शिखा, तुम ने ही तो अर्चना के बारे में इतनी बातें बताईं कि उन्हें पास से देखने का… यानी तुम्हारे मुताबिक उन के लटकेझटके देखने का कई दिनों से बड़ा मन होने लगा था… आज मौका मिल गया तो क्यों छोड़ता. वे सब भी उसी रेस्तरां में थे… वाकई मैं तो उन की सुखी व शालीनता भरी आंखों में खो गया… इतनी देर मैं उन्हीं के सामने की मेज पर बैठा रहा, पर उन्हें अपने पति व बेटी से फुरसत ही नहीं मिली, अगलबगल ताकनेझांकने की… मुझे ही क्या उन्होंने तो किसी को भी नजर उठा कर नहीं देखा… अपने में ही मस्तव्यस्त… मुझे तो बड़ा अजीब लगा. अरे, कम से कम मुझे अकेला बैठा देख पूछतीं तो कि मैं अकेला क्यों? पर मेरी तरफ ध्यान ही नहीं… पर मैं ने खूब ध्यान से देखा उन्हें… अर्चना साड़ी बड़ी खूबसूरती से बांधती हैं… और साड़ी में लग भी बहुत अच्छी रही थीं.’’

सुधीर की बातें सुन शिखा का मन रोने को हो आया. वह दूसरे कमरे में जाने लगी तो सुधीर भी चल पड़ा, ‘‘अब एकाध दिन आशा… शैली… नेहा… इन सब को भी नजदीक से देखना है.’’ जब शिखा की बरदाश्त से बाहर हो गया तो उस ने रोना शुरू कर दिया. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि नितांत एकांत क्षणों में उस के साथ होने के बावजूद सुधीर पराई स्त्रियों के रूपशृंगार की बात कर सकता है. दूसरों के घरों की आहटें लेने में वह इतनी तल्लीन थी कि उसे खयाल ही नहीं रहा कि उस की इस हरकत पर कभी उस के ही घर में इतना बड़ा धमाका हो सकता है. आहटों से अनुमान लगाने में माहिर शिखा फूटफूट कर रो रही थी.

‘‘अब रोगा कर क्या पासपड़ोस को इकट्ठा करोगी… अर्चना से कुछ सबक लो…

उन्हें तो उस रात दस्तूर ने कई चांटे मारे थे फिर भी उफ न की थी उन्होंने,’’ सुधीर ने शिखा को मनाने के बजाय उसी का सुनाया किस्सा उसे याद दिला दिया.

उस रोज तो वह बिस्तर में ही था कि शिखा ने उसे यह खबर दी थी गुड मौर्निंग न्यूज की भांति. सुधीर जानता था कि आज भी दस्तूर को डीजल शेड नाइट इंसपैक्शन जाना है, मगर शिखा यों बता रही थी जैसे वही सब कुछ जानती हो, ‘‘तुम सोते रहो… पता भी है कल रात को क्या हुआ? दस्तूर साहब इंसपैक्शन कर के करीब 2 बजे रात को लौटे. मेरी नींद तो उन की गाड़ी रुकते ही खुल गई… बेचारे खूब हौर्न बजाते रहे… मगर घर में सन्नाटा. फिर देर तक घंटी बजाते रहे… मुझे तो लगता है मेरी क्या पूरे महल्ले की नींद खुल गई होगी, पर तुम्हारी अर्चना पता नहीं कितनी गहरी नींद में थी… क्या कर रही थी? बड़ी देर बाद दरवाजा खोला… मैं ने दरार में से झांक कर देखा था. दस्तूर साहब दरवाजे में ही खूब नाराज हो रहे थे. फिर जब कुछ देर बाद मैं ने अपने बैडरूम की खिड़की से उन के बैडरूम की आहट ली तो दस्तूर साहब के जोरजोर से बड़बड़ाने की आवाजें आ रही थीं और फिर चाटें मारने की आवाजें भी आईं…’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो सुबहसुबह…’’

सुधीर की बात काटते हुए शिखा और ढिठाई से बोली, ‘‘मैं ने खुद अपने कानों से चांटे की स्पष्ट आवाजें सुनी हैं… खुल गई न पोल तुम्हारी अर्चना की… बड़े फिदा हो न उस के सलीके, सुघड़ता और शालीनता पर…’’

सुधीर उस रोज वाकई स्तब्ध रह गया था. यों वह शिखा की बातें कभी गंभीरता से नहीं लेता था पर उस रोज मामला दस्तूर दंपती का था. दस्तूर दंपती जिन्हें वह काफी मानसम्मान देता है उन लोगों के बीच हाथापाई हो जाए चौंकाने वाली बात है. कोई भी सुसंस्कृत, सभ्य पुरुष अपनी पत्नी पर हाथ उठाए… ऐसा कभी हो सकता है और फिर दस्तूर साहब तो अपनी पत्नी व बेटी पर निछावर हैं. उस रोज इसी खलबली में औफिस पहुंचते ही मौका पा कर सुधीर दस्तूरजी के पास जा बैठा. चूंकि एकदम व्यक्तिगत प्रश्न तो किया नहीं जा सकता था, इसलिए औफिस… मौसम आदि की बातें करते हुए गरमी की परेशानी का जिक्र निकाल भेद लेने का पहला प्रयास किया, ‘‘एक बात है दस्तूर साहब… गरमी में नाइट ड्यूटी बढि़या रहती है… मस्त ठंडक… कूलकूल.’’

‘‘नाइट ड्यूटी… अरे नहीं भाई खुद की नींद खराब… फैमिली की नींद हराम… कल रात घर पहुंचा… परेशान हो गया.’’

दस्तूर की बात सुनते ही सुधीर उछल पड़ा, ‘‘क्यों क्या भाभीजी ने घर में नहीं घुसने दिया?’’

‘‘ऐसा होता तो मुझे मंजूर था पर वह भलीमानस एकडेढ़ बजे रात तक मेरा इंतजार करते पढ़ती रही. थक कर उस की झपकी लगी ही होगी कि मैं पहुंचा. दरवाजा देर से खुला तो घबरा ही गया था, क्योंकि बीपी की वजह से आजकल ज्यादा ही परेशान है. उसे सहीसलामत देख कर जान में जान आई.

‘‘खुशीखुशी बैडरूम में पहुंचा तो वहां का नजारा देख बहुत गुस्सा आया मांबेटी पर… बगैर मच्छरदानी लगाए दोनों सोतेजागते मेरी राह देख रही थीं. 10 मिनट तो कमरे में मच्छर मारने पड़े चटाचट… भई बीवीबच्चों को मच्छर काटें… ऐसी ठंडक में काम करने से तो गरमीउमस ही भली…’’

दस्तूर साहब की बातें सुन सुधीर पर घड़ों पानी पड़ गया. शिखा की सोच और अनुमान के आधार पर गढ़े किस्से पर उसे शर्मिंदगी महसूस होनी ही थी. शिखा से वह इतना विरक्त हो चला था कि औफिस से आ कर उस ने बताई तक नहीं यह बात… पर आज बताना ही पड़ा उस चटाचट का रहस्य.

सुन कर शिखा हतप्रभ सी सुधीर को देखती रह गई. वह क्या जवाब देती और किस मुंह से देती? सुधीर एक ही प्रश्न बारबार दोहराए जा रहा था, ‘‘अरे, जो आदमी अपनी पत्नी और बिटिया को मच्छर का काटना बरदाश्त नहीं कर सकता वह अपने हाथों से उन्हें चांटे मारेगा? बोलो शिखा मार सकता है?’’

शिखा अवाक थी. पूरे वातावरण में सन्नाटा पसर गया. दूरदूर तक उसे कोई  आहट सुनाई नहीं दे रही थी. उसे पति द्वारा दिखाए गए आईने में अपनी छवि देख वास्तव में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. उस ने मन ही मन ठान लिया कि अब वह पासपड़ोस की ताकझांक छोड़ कर अपने घर की साजसंभाल पर ही ध्यान देगी.  कुछ दिन तक तो शिखा अपने मन को मारने में कामयाब रही, पर फिर पुन: उसी राह पर चल पड़ी. ज्यों ही पति एवं बच्चे घर से निकलते, वह उन्हें गेट तक छोड़ने जाने के बहाने एक सरसरी निगाह कालोनी के छोर तक डाल ही लेती.

उस की ताकझांक की आदत को इस दीवाली पर एक और सुविधा भी मिल गई. दीवाली पर इस बार उन्हें दोगुना बोनस मिलने से खरीदारी का जोश भी ज्यादा था.  सुधीर और शिखा दोनों ने जम कर खरीदारी की. ड्राइंगरूम की सजावट पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया. सोफा कवर, कुशन, बैडशीट्स तो नए खरीदे ही, शिखा ने स्टोर पर जैसे ही नैट के परदे देखे वह लुभावने परदों पर मर मिटी और परदों का पूरा सैट ले आई. दीवाली पर जिस ने उस के घर की सजावट देखी, तारीफ की. शिखा तो तारीफ सुन कर 7वें आसमान पर थी. एक खासीयत यह थी कि अब शिखा को सड़क का नजारा या पड़ोसियों के गेट की आहट लेने के लिए दरवाजेखिड़की की आड़ में छिपछिप कर उचकउचक कर देखने की मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी, क्योंकि अब खिड़कीदरवाजों पर जालीदार परदे जो डले थे. इन परदों के पीछे खड़े हो कर वह आराम से बाहर देख सकती थी, किंतु बाहर के व्यक्ति को भनक भी नहीं मिल पाती कि परदे की आड़ में खड़ा कोई उन पर निगरानी कर रहा है.

हां, शिखा को इन परदों से रात को थोड़ी असुविधा होती थी, क्योंकि शाम को लाइट जलते ही बाहर से उस के घर के अंदर का दृश्य स्पष्ट हो जाता था. इसीलिए शाम होते ही वह लाइनिंग के परदे भी सरका लेती.  शाम को उसे ताकझांक की फुरसत कम ही मिल पाती. खाना पकाना, बच्चे और सुधीर उसे पूरी तरह व्यस्त कर देते. मगर सुबह होते ही वही दिनचर्या. घर के काम को ब्रेक दे कर कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, सारी जानकारी से अपडेट रहती.  कल ही शिखा मेथी साफ करने के बहाने खिड़की के सामने रखी कुरसी पर बैठी बाहर भी नजर डालती जा रही थी. तभी उस का ध्यान एक कर्कश से हौर्न से भंग हुआ. चौकन्नी तो वह तब हुई जब उसे अनंत साहब के घर का गेट खुलने की आवाज आई.

शिखा तुरंत खड़ी हो कर झांकने लगी कि इतनी दुपहरी में ऐसी खटारा मोटरसाइकिल से कौन आया है?  शिखा ने देखा 3 नवयुवक गेट खुला छोड़ कर बजाय कालबैल बजाने के अनंत साहब के कमरे की खुली खिड़की की तरफ आए और देखते ही देखते खिड़की पर चढ़े और अंदर कमरे में कूद गए.  दृश्य देख कर शिखा के हाथपैर फूल गए. पल भर में अखबार, टीवी में पढ़ीदेखी लूट की सैकड़ों वारदातें उस के दिमाग में घूम गईं.  शिखा अच्छी तरह जानती थी कि इस वक्त रुचि घर में बिलकुल अकेली होती है. अनंत साहब तो बैंक से प्राय: लेट आते हैं. दोनों बेटे होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. ये सब सोचने में शिखा को क्षण भर लगा.  अगले ही पल अगलबगल 2-4 घरों में मोबाइल पर जानकारी देते हुए दरवाजे पर ताला मार वह अनंत साहब के घर की ओर दौड़ी.

शिखा का अनुमान सच निकला. रुचि के चीखने की आवाजें बाहर तक आ रही थीं. शिखा ने उन के द्वार पर लगी कालबैल लगातार बजानी शुरू कर दी. तब तक पासपड़ोस के काफी लोग जमा हो चुके थे.  किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी थी. मगर पुलिस के आने से पूर्व ही लोगों ने खिड़की फांद कर भागते चोरों को धर दबोचा. भीड़ ने उन की मोटरसाइकिल भी गिरा दी और उस पर कब्जा कर लिया.   रुचि ने दरवाजा खोला. तीनों लड़के उन से चाबियां  मांगते हुए जान से मारने की धमकी दे रहे थे. तीनों के पास चाकू थे और उन्हें घर के बारे में पूरी जानकारी थी.

‘‘शिखा, आज तुम ने मेरा घर लुटने से बचा लिया. ये लुटेरे तो मुझे मार ही डालते,’’ कहते हुए रुचि फूटफूट कर रोने लगी.

पूरी कालोनी के लोग शिखा की प्रशंसा कर रहे थे. आहट से अनुमान लगाने की जिस आदत पर वह कई बार सुधीर से डांट खा कर अपमानित हो चुकी थी, आज उस की इसी आदत ने अनंत साहब का परिवार बचा लिया था.  महिला इंस्पैक्टर ने भी शिखा को शाबाशी देते हुए सभी महिलाओं से अपील की, ‘‘यह बहुत अच्छी बात है कि महिलाएं जागरूक रह कर न सिर्फ अपने घर का, बल्कि अपने पासपड़ोस का भी खयाल रखें और जब भी किसी संदिग्ध व्यक्ति को देखें, उस पर कड़ी नजर रख कर उचित कदम उठाने से न घबराएं. एकदूसरे को जानकारी जरूर दें.’’  शाम को घर आने से पूर्व ही सुधीर को बाहर ही शिखा की बहादुरी एवं समझबूझ का किस्सा सुनने को मिल गया.

सुधीर मुसकराते हुए घर में आया और आते ही शिखा को गले से गा लिया, ‘‘शिखा, आहटों से अनुमान लगाने की तुम्हारी इस विशेषता का तो आज मैं भी कायल हो गया.’’

सुन कर शिखा छिटक गई. रोंआसी हो कर बोली, ‘‘आज भी मेरा मजाक उड़ा रहे हैं न?’’

‘‘नहीं, आज मुझे वाकई तुम्हारी इस आदत से खुशी मिली. लेकिन भविष्य की सोच कर चिंतित हूं कि अब तो तुम रोज ही नया किस्सा सुनाओगी तो भी मैं उफ नहीं कर सकूंगा. अब तुम्हारी विशेषता की धाक जो जम गई है,’’ कहते हुए सुधीर ने शिखा को फिर से गले लगा लिया.

शिखा के होंठों पर भी मुसकान खिल उठी.

Hindi Fiction Stories : पीला गुलाब

Hindi Fiction Stories :  ‘यार, हौट लड़कियां देखते ही मुझे कुछ होने लगता है.’

मेरे पतिदेव थे. फोन पर शायद अपने किसी दोस्त से बातें कर रहे थे. जैसे ही उन्होंने फोन रखा, मैं ने अपनी नाराजगी जताई, ‘‘अब आप शादीशुदा हैं. कुछ तो शर्म कीजए.’’

‘‘यार, यह तो मर्द के ‘जिंस’ में होता है. तुम इस को कैसे बदल दोगी? फिर मैं तो केवल खूबसूरती की तारीफ ही करता हूं. पर डार्लिंग, प्यार तो मैं तुम्हीं से करता हूं,’’ यह कहते हुए उन्होंने मुझे चूम लिया और मैं कमजोर पड़ गई.

एक महीना पहले ही हमारी शादी हुई थी, लेकिन लड़कियों के मामले में इन की ऐसी बातें मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थीं. पर ये थे कि ऐसी बातों से बाज ही नहीं आते. हर खूबसूरत लड़की के प्रति ये खिंच जाते हैं. इन की आंखों में जैसे वासना की भूख जाग जाती है.

यहां तक कि हर रोज सुबह के अखबार में छपी हीरोइनों की रंगीन, अधनंगी तसवीरों पर ये अपनी भूखी निगाहें टिका लेते और शुरू हो जाते, ‘क्या ‘हौट फिगर’ है?’, ‘क्या ‘ऐसैट्स’ हैं?’ यार, आजकल लड़कियां ऐसे बदनउघाड़ू कपड़े पहनती हैं, इतना ज्यादा ऐक्सपोज करती हैं कि आदमी बेकाबू हो जाए.’

कभी ये कहते, ‘मुझे तो हरी मिर्च जैसी लड़कियां पसंद हैं. काटो तो मुंह ‘सीसी’ करने लगे.’ कभीकभी ये बोलते, ‘जिस लड़की में सैक्स अपील नहीं, वह ‘बहनजी’ टाइप है. मुझे तो नमकीन लड़कियां पसंद हैं…’

राह चलती लड़कियां देख कर ये कहते, ‘क्या मस्त चीज है.’

कभी किसी लड़की को ‘पटाखा’ कहते, तो कभी किसी को फुलझड़ी. आंखों ही आंखों में लड़कियों को नापतेतोलते रहते. इन की इन्हीं हरकतों की वजह से मैं कई बार गुस्से से भर कर इन्हें झिड़क देती.

मैं यहां तक कह देती, ‘सुधर जाओ, नहीं तो तलाक दे दूंगी.’

इस पर इन का एक ही जवाब होता, ‘डार्लिंग, मैं तो मजाक कर रहा था. तुम भी कितना शक करती हो. थोड़ी तो मुझे खुली हवा में सांस लेने दो, नहीं तो दम घुट जाएगा मेरा.’

एक बार हम कार से डिफैंस कौलोनी के फ्लाईओवर के पास से गुजर रहे थे. वहां एक खूबसूरत लड़की को देख पतिदेव शुरू हो गए, ‘‘दिल्ली की सड़कों पर, जगहजगह मेरे मजार हैं. क्योंकि मैं जहां खूबसूरत लड़कियां देखता हूं, वहीं मर जाता हूं.’’

मेरी तनी भौंहें देखे बिना ही इन्होंने आगे कहा, ‘‘कई साल पहले भी मैं जब यहां से गुजर रहा था, तो एक कमाल की लड़की देखी थी. यह जगह इसीलिए आज तक याद है.’’

मैं ने नाराजगी जताई, तो ये कार का गियर बदल कर मुझ से प्यारमुहब्बत का इजहार करने लगे और मेरा गुस्सा एक बार फिर कमजोर पड़ गया.

लेकिन, हर लड़की पर फिदा हो जाने की इन की आदत से मुझे कोफ्त होने लगी थी. पर हद तो तब पार होने लगी, जब एक बार मैं ने इन्हें हमारी जवान पड़ोसन से फ्लर्ट करते देख लिया. जब मैं ने इन्हें डांटा, तो इन्होंने फिर वही मानमनौव्वल और प्यारमुहब्बत का इजहार कर के मुझे मनाना चाहा, पर मेरा मन इन के प्रति रोजाना खट्टा होता जा रहा था.

धीरेधीरे हालात मेरे लिए सहन नहीं हो रहे थे. हालांकि हमारी शादी को अभी डेढ़दो महीने ही हुए थे, लेकिन पिछले 10-15 दिनों से इन्होंने मेरी देह को छुआ भी नहीं था. पर मेरी शादीशुदा सहेलियां बतातीं कि शादी के शुरू के महीने तक तो मियांबीवी तकरीबन हर रोज ही… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या थी. इन की अनदेखी मेरा दिल तोड़ रही थी. मैं तिलमिलाती रहती थी.

एक बार आधी रात में मेरी नींद टूट गई, तो इन्हें देख कर मुझे धक्का लगा. ये आईपैड पर पौर्न साइट्स खोल कर बैठे थे और…

‘‘जब मैं यहां मौजूद हूं, तो तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या मुझ में कोई कमी है? क्या मैं ने तुम्हें कभी ‘न’ कहा है?’’ मैं ने दुखी हो कर पूछा.

‘‘सौरी डार्लिंग, ऐसी बात नहीं है. क्या है कि मैं तुम्हें नींद में डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था. एक टैलीविजन प्रोग्राम देख कर बेकाबू हो गया, तो भीतर से इच्छा होने लगी.’’

‘‘अगर मैं भी तुम्हारी तरह इंटरनैट पर पौर्न साइट्स देख कर यह सब करूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?’’

‘‘अरे यार, तुम तो छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही हो,’’ ये बोले.

‘‘लेकिन, क्या यह बात इतनी छोटी सी थी?’’

कभीकभी मैं आईने के सामने खड़ी हो कर अपनी देह को हर कोण से देखती. आखिर क्या कमी थी मुझ में कि ये इधरउधर मुंह मारते फिरते थे?

क्या मैं खूबसूरत नहीं थी? मैं अपने सोने से बदन को देखती. अपने हर कटाव और उभार को निहारती. ये तीखे नैननक्श. यह छरहरी काया. ये उठे हुए उभार. केले के नए पत्ते सी यह चिकनी पीठ. डांसरों जैसी यह पतली काया. भंवर जैसी नाभि. इन सब के बावजूद मेरी यह जिंदगी किसी सूखे फव्वारे सी क्यों होती जा रही थी. एक रविवार को मैं घर का सामान खरीदने बाजार गई. तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए मैं जरा जल्दी घर लौट आई. घर का बाहरी दरवाजा खुला हुआ था. ड्राइंगरूम में घुसी तो सन्न रह गई. इन्होंने मेरी एक सहेली को अपनी गोद में बैठाया हुआ था.

मुझे देखते ही ये घबरा कर ‘सौरीसौरी’ करने लगे. मेरी आंखें गुस्से और बेइज्जती के आंसुओं से जलने लगीं. मैं चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी. पति नाम के इस प्राणी का मुंह नोच लेना चाहती थी. इसे थप्पड़ मारना चाहती थी. मैं कड़कती बिजली बन कर इस पर गिर जाना चाहती थी. मैं गहराता समुद्र बन कर इसे डुबो देना चाहती थी. मैं धधकती आग बन कर इसे जला देना चाहती थी. मैं हिचकियां लेले कर रोना चाहती थी. मैं पति नाम के इस जीव से बदला लेना चाहती थी. मुझे याद आया, अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके बिल क्लिंटन भी अपनी पत्नी हिलेरी क्लिंटन को धोखा दे कर मोनिका लेविंस्की के साथ मौजमस्ती करते रहे थे, गुलछर्रे उड़ाते रहे थे. क्या सभी मर्द एकजैसे बेवफा होते हैं? क्या पत्नियां छले जाने के लिए ही बनी हैं. मैं सोचती.

रील से निकल आया उलझा धागा बन गई थी मेरी जिंदगी. पति की ओछी हरकतों ने मेरे मन को छलनी कर दिया था. हालांकि इन्होंने इस घटना के लिए माफी भी मांगी थी, फिर मेरे भीतर सब्र का बांध टूट चुका था. मैं इन से बदला लेना चाहती थी और ऐसे समय में राज मेरी जिंदगी में आया. राज पड़ोस में किराएदार था. 6 फुट का गोराचिट्टा नौजवान. जब वह अपनी बांहें मोड़ता था, तो उस के बाजू में मछलियां बनती थीं. नहा कर जब मैं छत पर बाल सुखाने जाती, तो वह मुझे ऐसी निगाहों से ताकता कि मेरे भीतर गुदगुदी होने लगती. धीरेधीरे हमारी बातचीत होने लगी. बातों ही बातों में पता चला कि राज प्रोफैशनल फोटोग्राफर था.

‘‘आप का चेहरा बड़ा फोटोजैनिक है. मौडलिंग क्यों नहीं करती हैं आप?’’ राज मुझे देख कर मुसकराता हुआ कहता.

शुरूशुरू में तो मुझे यह सब अटपटा लगता था, लेकिन देखते ही देखते मैं ने खुद को इस नदी की धारा में बह जाने दिया. पति जब दफ्तर चले जाते, तो मैं राज के साथ उस के स्टूडियो चली जाती. वहां राज ने मेरा पोर्टफोलियो भी बनाया. उस ने बताया कि अच्छी मौडलिंग असाइनमैंट्स लेने के लिए अच्छा पोर्टफोलियो जरूरी था. लेकिन मेरी दिलचस्पी शायद कहीं और ही थी.

‘‘बहुत अच्छे आते हैं आप के फोटोग्राफ्स,’’ उस ने कहा था और मेरे कानों में यह प्यारा सा फिल्मी गीत बजने लगा था :

‘अभी मुझ में कहीं, बाकी थोड़ी सी है जिंदगी…’

मैं कब राज को चाहने लगी, मुझे पता ही नहीं चला. मुझ में उस की बांहों में सो जाने की इच्छा जाग गई. जब मैं उस के करीब होती, तो उस की देहगंध मुझे मदहोश करने लगती. मेरा मन बेकाबू होने लगता. मेरे भीतर हसरतें मचलने लगी थीं. ऐसी हालत में जब उस ने मुझे न्यूड मौडलिंग का औफर दिया, तो मैं ने बिना झिझके हां कह दिया. उस दिन मैं नहाधो कर तैयार हुई. मैं ने खुशबूदार इत्र लगाया. फेसियल, मैनिक्योर, पैडिक्योर, ब्लीचिंग वगैरह मैं एक दिन पहले ही एक अच्छे ब्यूटीपार्लर से करवा चुकी थी. मैं ने अपने सब से सुंदर पर्ल ईयररिंग्स और डायमंड नैकलैस पहना. कलाई में महंगी घड़ी पहनी और सजधज कर मैं राज के स्टूडियो पहुंच गई.

उस दिन राज बला का हैंडसम लग रहा था. गुलाबी कमीज और काली पैंट में वह मानो कहर ढा रहा था.

‘‘हे, यू आर लुकिंग गे्रट,’’ मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर वह बोला. यह सुन कर मेरे भीतर मानो सैकड़ों सूरजमुखी खिल उठे.

फोटो सैशन अच्छा रहा. राज के सामने टौपलेस होने में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ. मेरी देह को वह एक कलाकार सा निहार रहा था. किंतु मुझे तो कुछ और की ही चाहत थी. फोटो सैशन खत्म होते ही मैं उस की ओर ऐसी खिंची चली गई, जैसे लोहा चुंबक से चिपकता है. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था. मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘नहीं नेहा, यह ठीक नहीं. मैं ने तुम्हें कभी उस निगाह से देखा ही नहीं. हमारा रिलेशन प्रोफैशनल है,’’ राज का एकएक शब्द मेरे तनमन पर चाबुक सा पड़ा.

‘…पर मुझे लगा, तुम भी मुझे चाहते हो…’ मैं बुदबुदाई.

‘‘नेहा, मुझे गलत मत समझो. तुम बहुत खूबसूरत हो. पर तुम्हारा मन भी उतना ही खूबसूरत है, लेकिन मेरे लिए तुम केवल एक खूबसूरत मौडल हो. मैं किसी और रिश्ते के लिए तैयार नहीं और फिर पहले से ही मेरी एक गर्लफ्रैंड है, जिस से मैं जल्दी ही शादी करने वाला हूं,’’ राज कह रहा था.

तो क्या वह सिर्फ एकतरफा खिंचाव था या पति से बदला लेने की इच्छा का नतीजा था?

कपड़े पहन कर मैं चलने लगी, तो राज ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया. उस ने स्टूडियो में रखे गुलदान में से एक पीला गुलाब निकाल लिया था. वह पीला गुलाब मेरे बालों में लगाते हुए बोला, ‘‘नेहा, पीला गुलाब दोस्ती का प्रतीक होता है. हम अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं.’’

राज की यह बात सुन कर मैं सिहर उठी थी. वह पीला गुलाब बालों में लगाए मैं वापस लौट आई अपनी पुरानी दुनिया में…

उस रात कई महीनों के बाद जब पतिदेव ने मुझे प्यार से चूमा और सुधरने का वादा किया, तो मैं पिघल कर उन के आगोश में समा गई. खिड़की के बाहर रात का आकाश न जाने कैसेकैसे रंग बदल रहा था. ठंडी हवा के झोंके खिड़की में से भीतर कमरे में आ रहे थे. मेरी पूरी देह एक मीठे जोश से भरने लगी. पतिदेव प्यार से मेरा अंगअंग चूम रहे थे. मैं जैसे बहती हुई पहाड़ी नदी बन गई थी. एक मीठी गुदगुदी मुझ में सुख भर रही थी. फिर… केवल खुमारी थी. और उन की छाती के बालों में उंगलियां फेरते हुए मैं कह रही थी, ‘‘मुझे कभी धोखा मत देना.’’ कमरे के कोने में एक मकड़ी अपना टूटा हुआ जाला फिर से बुन रही थी.

इस घटना को बीते कई साल हो गए हैं. इस घटना के कुछ महीने बाद राज भी पड़ोस के किराए का मकान छोड़ कर कहीं और चला गया. मैं राज से उस दिन के बाद फिर कभी नहीं मिली. लेकिन अब भी मैं जब कहीं पीला गुलाब देखती हूं, तो सिहर उठती हूं. एक बार हिम्मत कर के पीला गुलाब अपने जूड़े में लगाना चाहा था, तो मेरे हाथ बुरी तरह कांपने लगे थे.

लेखक- सुशांत सुप्रिय

Interesting Hindi Stories : ख्वाहिश – क्या हट पाया शोभा का ‘बांझ’ होने का ठप्पा

Interesting Hindi Stories :  ट्रिंग… ट्रिंग… फोन की घंटी बज रही थी. घड़ी में देखा, तो रात के साढ़े 12 बजे थे. इतनी रात में किस का फोन हो सकता है. किसी बुरी आशंका से मन कांप उठा. रिसीवर उठाया तो दूसरी ओर से अशोक की भर्राई हुई आवाज थी, “दीदी शोभा शांत हो गई. वह हम सब को छोड़ कर दिव्यलोक को चली गई.”

कुछ पल को मैं ठगी सी बैठी रही. फोन की आवाज से मेरे पति सुनील भी जाग गए थे. मैं ने उन्हें स्थिति से अवगत कराया. हम ने आपस में सलाह की और फिर मैं ने अशोक को फोन मिलाया, “अशोक, हम जल्दी ही सुबह जयपुर पहुंच जाएंगे, हमारा इंतजार करना.”

सुबह 5 बजे हम दोनों अपनी गाड़ी से जयपुर के लिए रवाना हो गए. दिल्ली से जयपुर पहुंचने में 5 घंटे लगते हैं. वैसे भी सुबहसुबह सड़कें खाली थीं. अत: 4 घंटे में ही पहुंच जाने की आशा थी. रास्तेभर शोभा का खयाल आता रहा.

अतीत की यादें चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूमने लगीं.

शोभा मेरे छोटे भाई अशोक की पत्नी थी. वह बहुत मृदुभाषी, कार्यकुशल और खुशमिजाज की थी. याद हो आया वह दिन, जब विवाह के बाद वरवधू का स्वागत करने के लिए मां ने पूजा का थाल मेरे हाथ में पकड़ा दिया. वैसे, बड़ी भाभी का हक बनता था वरवधू को गृहप्रवेश करवाने का. किंतु बड़ी भाभी की तबियत ठीक नहीं थी, वह पेट से थीं और डाक्टर ने उन्हें बेडरेस्ट के लिए कहा हुआ था. अत: आरती का थाल सजा कर मैं ने ही वरवधू को गृहप्रवेश कराया था. बनारसी साड़ी में लिपटी हुई सिमटी सी संकुचित सी खड़ी थी.

अशोक ने उसे मेरा परिचय देते हुए कहा, “ये मेरी बड़ी दीदी हैं, मुझ से 10 साल बड़ी हैं, मेरे लिए मां समान हैं.”

दोनों ने मेरे पैर छुए. मैं ने भी दोनों को प्यार से गले लगा लिया. विवाह के बाद की प्रथाएं संपन्न करवा कर मैं वापस दिल्ली लौट आई.
2 महीने बाद भाभी की जुड़वा बच्चियों हुईं, जिन का नाम सिया और जिया रखा गया.

प्रसव के बाद भाभी बहुत कमजोर हो गई थीं. अत: घर का सारा कार्यभार शोभा ने संभाल लिया. उसे बच्चों से बहुत प्यार था. वह बच्चों का खयाल बहुत उत्साहित हो कर रखती थी.

मां सारी रिपोर्ट विस्तार से मुझे फोन पर बतलाया करती थीं. बच्चों के प्रति शोभा का अपनत्व देख कर भाभी को बहुत अच्छा लगता था.

जब सिया और जिया का नर्सरी स्कूल में दाखिला हुआ तो शोभा उन्हें तैयार करने से ले कर उन के जूते पौलिश करती, उन्हें नाश्ता करवा के टिफिन पैक कर के उन के स्कूल बैग में रख देती और टिफिन पूरा खत्म करना है, यह भी हिदायत दे देती थी. कभीकभी उन को होमवर्क करने में भी वह मदद करती थी. घर में सब सुचारू रूप से चल रहा था.
शोभा के विवाह को 4 वर्ष हो गए थे. मां जब भी मुझे फोन करती थीं, उन की बातों में कुछ बेचैनी का आभास होता था. वे दिल की मरीज थीं. मैं ने जोर दे कर उन की बेचैनी का कारण जानना चाहा, तो उन्होंने बताया, “अब अशोक की शादी को 4 साल हो गए हैं. अगर उस को एक बेटा हो जाता तो मैं पोते का मुंह देख कर दुनिया से जाती.

“न जाने कब मुझे बुला लें,” मैं उन्हें सांत्वना देती रहती थी कि धैर्य रखो. सब ठीक हो जाएगा.

मैं ने मां की इच्छा शोभा तक पहुंचा दी तो वह हंस कर बोली, “दीदी आजकल पोता और पोती में कोई फर्क नहीं होता. सिया और जिया भी तो अपनी हैं. वही मेरे बच्चे हैं,” बच्चों के प्रति उस की आत्मीयता मुझे बहुत अच्छी लगी.

जिस बात का डर था, वही हुआ. अचानक मां को दिल का दौरा पड़ा और पोते की चाहत लिए हुए वे इस दुनिया से चल बसीं.

शोभा के विवाह को 6 वर्ष हो चुके थे. मैं ने लक्ष्य किया कि अब उस के मन में संतान की चाह प्रबल हो रही थी. अशोक ने कई डाक्टरों से संपर्क किया. कुछ डाक्टरी जांच भी हुई, किंतु नतीजा संतोषप्रद नहीं था. मेरे आग्रह पर दोनों दिल्ली भी आए. मेरी जानकार डाक्टर ने रिपोर्ट देख कर यही निष्कर्ष निकाला कि शोभा मां नहीं बन सकती.

अशोक ने सब तरह के उपचार किए, चाहे आयुर्वेदिक हो या होमियोपैथी. यहां तक कि कुछ रिश्तेदारों के कहने पर झाड़फूंक का भी सहारा लिया, किंतु निराश ही होना पड़ा. इस का असर शोभा के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा.
शोभा प्राय: फोन कर के मुझे इधरउधर की बहुत सी खबरें देती रहती थी. उस ने एक घटना का जिक्र किया कि कुछ दिन पहले उस के किसी दूर के रिश्तेदार के यहां पुत्र जन्म का उत्सव था. वहां अशोक और शोभा के साथसाथ बड़े भैयाभाभी भी आमंत्रित थे. वहां पहुंच कर जब शोभा ने नवागत शिशु को पालने में झूलते देखा तो वह अपने को रोक ना पाई और आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में उठा लिया. तभी पीछे से बच्चे की दादी ने उस के हाथ से बच्चे को छीन लिया और अपनी बहू को डांटते हुए कहा, “तेरा ध्यान कहां है? देख नहीं रही बच्चे को बांझ ने उठा लिया है.”

शोभा ने बताया कि बड़ी भाभी भी वहीं खड़ी थीं. यह बात बतलाते समय शोभा की आवाज में पीड़ा झलक रही थी. मेरा मन संवेदना से भर उठा.

आशोभा ने बतलाया कि अब सिया और जिया उस के पास नहीं आती हैं. या यों कहिए कि भाभी उन बच्चों को शोभा के पास नहीं आने देतीं. इस का कारण भी वह समझ गई थी.

बांझपन का एहसास शोभा को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा था. मैं अपनी गृहस्थी में बहुत व्यस्त हो गई थी. मेरे दोनों बच्चे विवाह योग्य थे. अगले वर्ष मेरे पति रिटायर होने वाले थे. अतः हम भविष्य की योजनाओं में व्यस्त हो गए थे. कभीकभी मैं शोभा को फोन कर के उन की कुशलक्षेम जान लेती थी.
फिर एक दिन अशोक का फोन आया. बातचीत से लगा कि वह बहुत परेशान है. मैं ने 3-4 दिन के लिए जयपुर का प्रोग्राम बना लिया. फीकी मुसकराहट से शोभा ने स्वागत किया. वह बहुत कमजोर हो गई थी. अशोक उस की स्थिति से बहुत चिंतित हो गया था. मुझे लगा कि ‘बांझ’ शब्द ने उस को भीतर तक आहत कर दिया है. वह बोली, “अब तो सिया और जिया भी मेरे पास नहीं आती.”

मैं ने प्यार से शोभा को अपने पास बैठाया और कहा, “मेरी बात ध्यान से सुनो और समझने की कोशिश करो. मैं चाहती हूं कि तुम किसी नवजात शिशु को गोद ले लो या कुछ अच्छी संस्थाएं हैं, जहां से बच्चे को लिया जा सकता है. ऐसा करने से एक बच्चे का भला हो जाएगा. उसे एक प्यारी मां मिल जाएगी और तुम्हें एक प्यारा बच्चा मिल जाएगा. यह एक नेक कार्य होगा. एक बच्चे का जीवन अच्छा बन जाएगा. तुम चाहो तो इस में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं.”

लेकिन शोभा ने गंभीरता से उत्तर दिया, “दीदी, मैं अपनी तकदीर तो बदल नहीं सकती. यदि मेरी तकदीर में संतान का सुख लिखा ही नहीं है तो गोद ले कर भी मैं सुखी नहीं रह पाऊंगी,” कुछ रुक कर वह फिर बोली, “दीदी, मैं अपनी कोख से जन्मा बच्चा चाहती हूं, गोद लिया हुआ नहीं.”

वह अपने फैसले पर अडिग थी और मैं उस के फैसले के आगे निरुतर हो गई.

15 दिन बाद अशोक का फोन आया, वह आवाज से बहुत परेशान लग रहा था. उस ने बताया कि शोभा अब अकसर बीमार रहती है. उसे भूख नहीं लगती है और जबरदस्ती कुछ खाती है तो हजम नहीं होता उलटी हो जाती है. मैं ने सलाह दी कि तुरंत डाक्टरी जांच करवाओ. शोभा की तरफ से मुझे चिंता हो गई. अत: अशोक को सहारा देने के मकसद से मैं ने 3-4 दिन का जयपुर जाने का कार्यक्रम बना लिया.

अशोक ने शोभा के सारे टेस्ट करवा लिए थे. मेरे पहुंचने के अगले दिन वह अस्पताल से रिपोर्ट ले आया. वह बहुत उदास था. मेरे पूछने पर उस ने बताया कि शोभा की किडनी में कैंसर है, जो बहुत फैल गया है. अगर एक महीने पहले जांच करवा लेते तो शायद आपरेशन द्वारा किडनी निकाल देते, लेकिन अब तो कैंसर किडनी के बाहर तक फैल गया है. एक और विशेष बात जो डाक्टर ने बतलाई, वह यह कि शोभा प्रेग्नेंट भी है. प्रेगनेंसी की अभी शुरुआत ही है. एक हफ्ते बाद निश्चित तौर पर पता चल पाएगा. अचरज से मेरा मुंह खुला रह गया. समझ नहीं आया कि दुखी होऊं या खुशी मनाऊं.

शोभा ने मेरी और अशोक की बातें सुन ली थीं. वह मुसकराते हुए बोली, “दीदी, अशोक तो यों ही घबरा जाते हैं. मैं सहज में इन का पीछा छोड़ने वाली नहीं हूं और अब तो मुझे जीना ही है. उस की बातें आज भी मेरे कानों में गूंज रही हैं.
बाद में अशोक ने मुझे बतला दिया था कि डाक्टरों के अनुसार गर्भ को गिरा देने में ही बेहतरी है, क्योंकि कैंसर किडनी से बाहर निकल कर फैल रहा है, अगर तुरंत आपरेशन कर के किडनी निकाल भी दें, फिर भी शोभा का जीवन एक वर्ष से अधिक नहीं होगा और अगर गर्भपात नहीं करवाया तो कैंसर के आपरेशन के बाद की थेरेपी से बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है. या तो वह बचेगा ही नहीं और अगर बच भी जाए तो एब्नार्मल भी हो सकता है. अत: डाक्टर की राय में गर्भपात ही उचित होगा.

शोभा ने सबकुछ सुन लिया था. वह खुश नजर आ रही थी. वह बोली, ”दीदी, मुझे यही खुशी है कि अब मुझे कोई बांझ नहीं कहेगा. डाक्टरों का निर्णय ठीक ही है. मेरे जीवन का सूर्य अस्त हो रहा है. मैं बच्चे को देख पाऊंगी या नहीं, पता नहीं. अगर बच्चा बच भी गया और विकलांग हो गया तो और भी दुःख होगा. तसल्ली यही है कि अब मेरे ऊपर से ‘बांझ’ होने का लांछन हट गया. अब मैं शांतिपूर्वक मर सकूंगी.”

सहसा कार एक झटके के साथ रुक गई. सुनील ने ब्रेक मारा था, क्योंकि सामने एक बड़ा सा गड्ढा आ गया था. मेरी विचार श्रृंखला टूट गई. अब हम जयपुर की सीमा में पहुंच गए थे. बाजार के बीच से गुजरते हुए याद आया कि यहां कई बार शोभा के साथ चाट खाने आती थी, फिर खूब शौपिंग कर के हम दोनों शाम तक घर पहुंचते थे. अब तो केवल याद ही बाकी है.

ठीक साढ़े 9 बजे हम घर पहुंच गए. गाड़ी की आवाज सुन कर अशोक बाहर आ गया. सहारा दे कर उस ने गाड़ी से उतारा और मेरे गले से लग कर जोर से रो पड़ा. अंदर पहुंच कर देखा, शोभा का शव भूमि पर रखा था, बड़ी शांत मुख मुद्रा थी जैसे कुछ कहना चाहती हो. मैं अपने को ना रोक सकी और फफक कर रो पड़ी.
वह समाप्त हो गई. 2 दिन बाद बहुत बोझिल मन से हम दोनों वापस लौट आए. रास्तेभर सोचती रही कि समाज के उलाहनों ने शोभा को बहुत चोट पहुंचाई, लेकिन मरने से पहले उसे यह खुशी थी कि वह बांझ नहीं थी, पर बच्चे की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई.

लेखिका- पुष्पा गोयल

Hindi Folk Tales : बुजदिल – कलावती का कैसे फायदा उठाया

Hindi Folk Tales : सुंदर के मन में ऐसी कशमकश पहले शायद कभी भी नहीं हुई थी. वह अपने ही खयालों में उलझ कर रह गया था.

सुंदर बचपन से ही यह सुनता आ रहा था कि औरत घर की लक्ष्मी होती है. जब वह पत्नी बन कर किसी मर्द की जिंदगी में आती है, तो उस मर्द की किस्मत ही बदल जाती है.

सुंदर सोचता था कि क्या उस के साथ भी ऐसा ही हुआ था? कलावती के पत्नी बन कर उस की जिंदगी में आने के बाद क्या उस की किस्मत ने भी करवट ली थी या सचाई कुछ और ही थी?

खूब गोरीचिट्टी, तीखे नाकनक्श और देह के मामले में खूब गदराई कलावती से शादी करने के बाद सुंदर की जिंदगी में जबरदस्त बदलाव आया था. पर इस बदलाव के अंदर कोई ऐसी गांठ थी, जिस को खोलने की कोशिश में सुंदर हमेशा बेचैन हो जाता था.

एक फैक्टरी में क्लर्क के रूप में 8 हजार रुपए महीने की नौकरी करने वाला सुंदर अपनी माली हालत की वजह से खातेपीते दोस्तों से काफी दूर रहता था

सुंदर अपने दोस्तों की महफिल में बैठने से कतराता था. उस के कतराने की वजह थी पैसों के मामले में उस की हलकी जेब. सुंदर की जेब में आमतौर पर इतने पैसे ही नहीं होते थे कि वह दोस्तों के साथ बैठ कर किसी रैस्टोरैंट का मोटा बिल चुका सके.

लेकिन शादी हो जाने के बाद एकाएक ही सबकुछ बदल गया था. सुंदर की अहमियत उस के दोस्तों में बहुत बढ़ गई थी. बड़ीबड़ी महंगी पार्टियों से उस को न्योते आने लगे थे. बात दूरी की हो, तो एकाएक ही सुंदर पर बहुत मेहरबान हुए अमीर दोस्त उस को लाने के लिए अपनी चमचमाती गाड़ी भेज देते थे.

पर किसी भी दोस्त के यहां से आने वाला न्योता अकेले सुंदर के लिए कभी भी नहीं होता था. उस को पत्नी कलावती के साथ ही आने के लिए जोर दिया जाता था.

कई दोस्त तो बहाने से सुंदर के घर तक आने लगे थे और कलावती के हाथ की गरमागरम चाय पीने की फरमाइश भी कर देते थे. चाय पीने के बाद दोस्त कलावती की जम कर तारीफ करना नहीं भूलते थे.

एक दोस्त ने तो कलावती के हाथ की बनी चाय की तारीफ में यहां तक कह डाला था, ‘‘कमाल दूध, चीनी या पत्ती में नहीं, भाभीजी के हाथों में है.’’

कम पढ़ीलिखी और बड़े ही साधारण परिवार से आई कलावती अपनी तारीफ से फूली नहीं समाती थी. उस के गोरे गाल लाल हो जाते थे और जोश में वह तारीफ करने वाले दोस्त को फिर से चाय पीने के लिए आने का न्योता दे देती थी.

सुंदर अपने दोस्तों को घर आने के लिए मना भी नहीं कर सकता था. आखिर दोस्ती का मामला जो था. लेकिन वह उन दोस्तों से इतना तंग होने लगा था कि उसे अजीब सी घुटन महसूस होने लगती थी.

सुंदर का एक दोस्त हरीश विदेशी चीजों का कारोबार करता था. वह कारोबार के सिलसिले में अकसर दिल्ली और मुंबई जाता रहता था. वह उम्र में सुंदर से ज्यादा होने के बावजूद अभी भी कुंआरा था.

हरीश काफी शौकीन किस्म का इनसान था. दोस्तों की मंडली में सब से ज्यादा रुपए खर्च करने वाला भी.

हरीश जब कभी सुंदर के घर उस से मिलने जाता था, तो कलावती के लिए विदेशी चीजें तोहफे में ले जाता था. हरीश के लाए तोहफों में महंगे परफ्यूम और लिपस्टिक शामिल रहती थीं.

ऐसे तोहफों को देख कर कलावती खिल जाती थी. इस तरह की चीजें औरतों की कमजोरी होती हैं और इस कमजोरी को हरीश पहचानता था.

सुंदर को अपनी बीवी कलावती पर हरीश की मेहरबानी और दरियादिली अखरती थी. वैसे तो शादी के बाद सभी दोस्त ही सुंदर पर मेहरबान नजर आने लगे थे, मगर हरीश की मेहरबानी जैसे एक खुली गुस्ताखी में बदल रही थी.

सुंदर को उस वक्त हरीश उस की मर्दानगी को ही चुनौती देता नजर आता, जब वह विदेशी लिपस्टिक कलावती को ताहफे में देते हुए साथ में एक गहरी मुसकराहट से कहता, ‘‘मैं शर्त के साथ कहता हूं भाभीजी कि इस लिपस्टिक का रंग आप की पर्सनैलिटी से गजब का मैच करेगा.’’

हरीश के तोहफे से खुश कलावती ‘थैंक्यू’ कह कर जब उस को स्वीकार करती, तो सुंदर को ऐसा लगता जैसे वह उस के हाथों से फिसलती जा रही है.

हरीश के पास अपनी गाड़ी भी थी. उस की गाड़ी में बैठते हुए कलावती की गरदन जैसे शान से तन जाती थी. कलावती को गाड़ी में ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठना अच्छा लगता था, इसलिए वह गाड़ी की अगली सीट पर हरीश के पास ही बैठती थी. मजबूरन सुंदर को गाड़ी की पिछली सीट पर बैठ कर संतोष करना पड़ता था.

शहर में जब कोई नई फिल्म लगती थी, तो हरीश सुंदर से पूछे बिना ही 3 टिकटें ले आता था, इसलिए मना करने की गुंजाइश ही नहीं रहती थी.

जब कलावती फिल्म देखने के लिए तैयार होती थी, तो मेकअप के लिए उन्हीं चीजों को खासतौर पर इस्तेमाल करती, जो हरीश उसे तोहफे में देता रहता था.

सिनेमा जाने के लिए जब कलावती सजधज कर तैयार हो जाती, तो बड़े बिंदास अंदाज में हरीश उस की तारीफ करना नहीं भूलता था. वह कलावती के होंठों पर पुती लिपस्टिक के रंग की खासतौर पर तारीफ करता था.

यह देख कर सुंदर एक बार तो जैसे अंदर से उबल पड़ता था. मगर यह उबाल बासी कढ़ी में आए उबाल की ही तरह होता था.

सिनेमाघर में कलावती सुंदर और हरीश के बीच वाली सीट पर बैठती थी. उस के बदन में से निकलने वाली परफ्यूम की तीखी और मादक गंध दोनों के ही नथुनों में बराबर पहुंचती थी.

परफ्यूम की गंध ही क्यों, बाकी सारे एहसास भी बराबर ही होते थे. अंधेरे सिनेमाघर में अगर कलावती की एक मरमरी नंगी बांह रहरह कर सुंदर को छूती थी, तो वह इस खयाल से बेचैन हो जाता था कि कलावती की दूसरी मरमरी बांह हरीश की बांह को छू रही होगी.

सिनेमाघर में हरीश दूसरी गुस्ताखियों से भी बाज नहीं आता था. सुंदर से कानाफूसी के अंदाज में बात करने के लिए वह इतना आगे को झुक जाता था कि उस का चेहरा कलावती के उभारों को छू लेता था.

जब सुंदर उस दौर से गुजरता, तब मन में इरादा करता कि वह खुले शब्दों में हरीश को अपने यहां आने से मना करेगा, पर बाद में वह ऐसा कर नहीं पाता था. शायद उस में ऐसा करने की हिम्मत नहीं थी. वह शायद बुजदिल था.

हरीश की हिम्मत और बेबाकी लगातार बढ़ती गई. पहले तो सुंदर की मौजूदगी में ही वह उस के घर आता था, मगर अब वह उस की गैरमौजूदगी में भी आनेजाने लगा था.

कई बार सुंदर काम से घर वापस आता, तो हरीश उस को घर में कलावती के साथ चाय की चुसकियां भरते हुए मिलता.

हरीश को देख सुंदर कुछ कह नहीं पाता था, मगर गुस्से के मारे ऐंठ जाता. सुंदर को देख हरीश बेशर्मी से कहता, ‘‘इधर से गुजर रहा था, सोचा कि तुम से मिलता चलूं. तुम घर में नहीं थे. मैं वापस जाने ही वाला था कि भाभीजी ने जबरदस्ती चाय के लिए रोक लिया.’’

सुंदर जानता था कि हरीश सरासर झूठ बोल रहा था, मगर वह कुछ भी कर नहीं पाता. जो चीज अब सुंदर को ज्यादा डराने लगी थी, वह थी कलावती का हाथों से फिसल कर दूर होने का एहसास.

कुछ दिन तक सुंदर के अंदर विचारों की अजीब सी उथलपुथल चलती रही, पर हालात के साथ समझौता करने के अलावा उस को कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा था.

सुंदर को मालूम था कि उस जैसे साधारण आदमी की सोसाइटी में जो शान एकाएक बनी थी, वह उस की हसीन बीवी के चलते ही बनी थी, वरना पांचसितारा होटलों, फार्महाउसों की महंगी पार्टियों में शिरकत करना उस के लिए एक हसरत ही रहती.

एक सच यह भी था कि पिछले कुछ महीनों से सुंदर को इन सब चीजों से जैसे एक लगाव हो गया था. यह लगाव ही जैसे कहीं न कहीं उसे उस की मर्दानगी को पलीता लगाता था.

कलावती भी जैसे अपने रूपरंग की ताकत को पहचानने लगी थी, तभी तो सुंदर के हरीश सरीखे दोस्तों से कई फरमाइश करने से वह कभी झिझकती नहीं थी. देखा जाए, तो शादी के बाद कलावती की ख्वाहिशें सुंदर की जेब से नहीं, बल्कि उस के दोस्तों की जेब से पूरी हो रही थीं.

सुंदर को यह भी एहसास हो रहा था कि झूठी मर्दानगी में खुद को धोखा देने से कोई फायदा नहीं. अगर उस का कोई दोस्त उस की बीवी के होंठों के लिए लिपस्टिक का रंग पसंद करता था, तो उस के असली माने क्या हो सकते थे?

अपनी खूबसूरत बीवी के खोने का डर सुंदर को लगातार सता रहा था. इस डर के बीच कई तरह की बातें सुंदर के मन में अचानक ही उठने लगी थीं. पति की जगह एक लालची इनसान उस के विचारों पर हावी होने लगा.

सुंदर को लगने लगा था कि उस की बीवी वास्तव में खूबसूरत थी और उस के यारदोस्त काफी सस्ते में ही उस को इस्तेमाल कर रहे थे. अगर उस की खूबसूरत बीवी अमीर दोस्तों की कमजोरी थी, तो उन की इस कमजोरी का फायदा वह अपने लिए क्यों नहीं उठाता था?

इस बात में कोई शक नहीं कि हरीश जैसे अमीर और रंगीनमिजाज दोस्त कलावती के कहने पर उस के लिए कुछ भी कर सकते थे.

सुंदर की सोच बदली, तो उस की वह तकलीफ भी कम हुई, जो दोस्तों के अपनी बीवी से रिश्तों को ले कर उस के मन में बनी हुई थी.

शर्म और मर्दानगी से किनारा कर के सुंदर ने मौका पा कर कलावती से कहा, ‘‘क्या तुम को नहीं लगता कि हमारे पास भी रहने के लिए एक अच्छा घर और सवारी के लिए अपनी कार होनी चाहिए?’’

इस पर कलावती के होंठों पर एक अजीब तरह की मुसकराहट फैल गई. उस ने जवाब में कहा, ‘‘तुम्हारी 8 हजार रुपए की तनख्वाह को देखते हुए मैं इन चीजों के सपने कैसे देख सकती हूं?’’

‘‘कुछ कोशिश करने से सबकुछ हासिल हो सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अगर हमारी आमदनी का कोई ऐक्स्ट्रा जरीया बन जाए, तो कुछ दिनों में ही हमारे दिन भी बदल सकते हैं.’’

‘‘मगर, ऐसा कोई जरीया बनेगा कैसे?’’ कलावती ने पूछा.

‘‘हरीश का काफी अच्छा कारोबार है. अगर वह चाहे तो बड़ी आसानी से हमारे लिए भी कोई आमदनी का अच्छा सा जरीया बन सकता है,’’ एक बेशर्म और लालच से भरी मुसकराहट होंठों पर लाते हुए सुंदर ने कहा.

सुंदर की बात पर कलावती की आंखें थोड़ी सिकुड़ गईं. पति उस से जो कहने के लिए भूमिका तैयार कर रहा था, उसे वह समझ गई थी.

जिस दिन सुंदर ने कलावती से आमदनी का अच्छा जरीया वाली बात की, उसी दिन कलावती काफी रात हुए घर आई. हरीश उस को अपनी गाड़ी से घर के बाहर तक छोड़ने आया था.

यह शायद पहला मौका था, जब हरीश घर के अंदर नहीं आया था.

कलावती अकेले ही अंदर आई थी. उस के होंठों की फीकी पड़ी लिपस्टिक और बिखरेबिखरे बाल जैसे खुद ही कोई कहानी बयान कर रहे थे.

सबकुछ समझते हुए भी सुंदर आज उसे अनदेखा करने के मूड में था. कलावती ने सुंदर को कुछ कहने या सवाल करने का मौका ही नहीं दिया.

होंठों के एक कोर पर फैली लिपस्टिक को हाथ के अंगूठे से साफ करते हुए कलावती ने कहा, ‘‘मैं ने हरीश से बात की है. वह बिना किसी इंवैस्टमैंट के ही हमें अपने काम में 10 फीसदी की पार्टनरशिप देने को तैयार है. इस के लिए मुझे उस के दफ्तर में बैठ कर ही कामकाज में उस का हाथ बंटाना होगा.

‘‘हरीश जो भी सामान बेचता है, वह सब औरतों के इस्तेमाल में आने वाला है, इसलिए उस को लगता है कि एक औरत होने के नाते मैं उस के कारोबार को बेहतर तरीके से देख सकती हूं. जब ऐक्स्ट्रा आमदनी रैगुलर आमदनी की शक्ल ले लेगी, तो मैं बेशक नौकरी छोड़ दूंगी. तुम को मेरे इस फैसले पर कोई एतराज तो नहीं…?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ सुंदर ने उतावलेपन से कहा.

इस के बाद कलावती हरीश के दफ्तर में जाने लगी. कई बार कलावती खुद चली जाती और कभी उस को लेने के लिए हरीश की गाड़ी आ जाती. रात को कलावती अकसर 9-10 बजे से पहले घर नहीं आती थी. कभी रात को हरीश का ड्राइवर घर पर उसे छोड़ने आता था और कभी हरीश खुद.

कलावती अकसर खाना भी खा कर ही आती थी. अगर वह खाना खा कर नहीं आती, तो घर पर नहीं बनाती थी. सुंदर किसी ढाबे या होटल से खाना ले आता और दोनों मिल कर खा लेते थे.

कलावती के रंगढंग और तेवर लगातार बदल रहे थे. कई बार तो वह रात को घर आती, तो उस के मुंह से तीखी गंध आ रही होती थी. यह तीखी गंध शराब की होती थी.

कलावती के बेतरतीब कपड़ों और बिगड़ा हुआ मेकअप भी खामोश जबान में बहुतकुछ कहता था.

मगर सुंदर ने इन सब चीजों की तरफ से जैसे आंखें मूंद ली थीं. उस का खून अब जोश नहीं मारता था.

जो दोस्त कभी सुंदर को घास नहीं डालते थे, वे अपनी की गई मेहरबानियों की कीमत वसूले बिना कैसे रह सकते थे?

अब तो सारा खेल जैसे खुला ही था. एक मर्द अपनी बीवी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहा था और बीवी सबकुछ समझते हुए भी अपनी खुशी से इस्तेमाल हो रही थी.

इस सारे खेल में हरीश भी खुद को एक बड़े और चतुर खिलाड़ी के रूप में ही देखता था. कारोबार में 10 फीसदी की साझेदारी का दांव खेल कर उस ने अपने दोस्त की खूबसूरत बीवी पर एक तरह से कब्जा ही कर लिया था. अब उस को कई बहाने से दोस्त के घर जाने की जरूरत नहीं रह गई थी. वह पति की रजामंदी से खुद ही उस के पास जो आ गई थी.

जल्दी ही कलावती अपने बैग में नोटों की गड्डियां भर कर लाने लगी थी. कहने को तो नोटों की ये गड्डियां साझेदारी में 10 फीसदी हिस्सा थीं, मगर असलियत में वह कलावती के जिस्म की कीमत थी.

दिन बदलने लगे. केवल एक साल में ही किराए के घर को छोड़ कर सुंदर और कलावती अपने खरीदे हुए नए मकान में आ गए. नया खरीदा मकान जल्दी ही टैलीविजन, वाशिंग मशीन, फ्रिज और एयरकंडीशन से सज भी गया.

दूसरे साल में उन के घर के बाहर एक कार भी सवारी के लिए नजर आने लगी.

लेकिन, इस के साथ ही साथ कलावती जैसे नाम की ही सुंदर की पत्नी रह गई थी. कलावती में घरेलू औरतों वाली कोई भी बात नहीं रह गई थी. अपने पति के कहने पर ही वह पैसा बनाने वाली एक मांसल मशीन बन गई थी.

लोग सुंदर के बारे में तरहतरह की बातें करने लगे थे. कुछ लोग तो पीठ पीछे यह भी कहने लगे थे कि कलावती बीवी तो थी सुंदर की, मगर सोती थी उस के दोस्त हरीश के साथ.

10 फीसदी की मुंहजबानी साझेदारी के नाम पर अगर हरीश उन को कुछ दे रहा था, तो बदले में पूरी शिद्दत से वसूल भी कर रहा था. कलावती के मांसल जिस्म को उस ने ताश के पत्तों के तरह फेंट डाला था.

सुंदर जब लोगों का सामना करता था, तो उन की शरारत से चमकती हुई आंखों में बहुतकुछ होता था. कुछ लोग तो इशारों ही इशारों में कलावती को ले कर सुंदर से बहुतकुछ कह भी देते थे, मगर इस से न ही तो अब सुंदर की मर्दानगी को चोट लगती थी और न ही उस का खून खौलता था. उस की सोच मानो बेशर्म हो गई थी.

हरीश जैसे रंगीनमिजाज रईस मर्दों और कलावती जैसी शादीशुदा औरतों के संबंध ज्यादा दिनों तक टिकते नहीं हैं और न ही इस की उम्र ज्यादा लंबी होती है.

हरीश का मन भी कलावती से भरने लगा था. उस ने कलावती से छुटकारा पाने के लिए उस के प्रति बेरुखी दिखानी शुरू कर दी थी.

कलावती ने उस की बदली हुई नजरों को पहचान लिया, मगर उस को इस की कोई परवाह नहीं थी. हरीश से साफतौर पर कलावती के लेनदेन वाले संबंध थे और वह काफी हद तक इन संबंधों को कैश कर भी चुकी थी. मकान, घर का सारा कीमती सामान और गाड़ी हरीश की बदौलत ही तो थी.

वैसे, कलावती की नजरों में भी हरीश बेकार होने लगा था. उस को और निचोड़ना मुश्किल था.

हरीश ने साफ शब्दों में कलावती से छुटकारा मांगा. इस के बदले में कलावती ने भी एक बड़ी रकम मांगी. हरीश ने वह मांगी रकम दे दी.

हरीश से संबंध खत्म करने पर सुंदर ने कलावती से कहा, ‘‘हमारे पास अब सबकुछ है, इसलिए हमें पतिपत्नी के रूप में अपनी पुरानी जिंदगी में लौट आना चाहिए.’’

सुंदर की बात पर कलावती खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘मुझ को नहीं लगता कि अब ऐसा हो सकता है. पतिपत्नी का रिश्ता तो इस मकान की बुनियाद में कहीं दफन हो चुका है. क्या तुम को नहीं लगता कि पति बनने के बजाय तुम केवल अपनी बीवी के दलाल बन कर ही रह गए? ऐसे में मुझ से दोबारा कोई सती सावित्री बनने की उम्मीद तुम कैसे कर सकते हो?’’

कलावती के जवाब से सुंदर का चेहरा जैसे सफेद पड़ गया. कलावती ने जैसे उस को आईना दिखा दिया था.

कलावती वह औरत नहीं रह गई थी, जो अब घर की चारदीवारी में बंद हो कर रह पाती.

सुंदर भी जान गया था कि उस ने अपनी बीवी को दोस्तों के सामने चारे के रूप में इस्तेमाल कर के हासिल तो बहुतकुछ कर लिया था, मगर अपने जमीर और मर्दानगी दोनों को ही गंवा दिया था.

हरीश को छोड़ने के बाद कलावती ने सुंदर के एक और अमीर दोस्त दिनेश से संबंध बना लिए.

उधर कलावती बाहर मौजमस्ती कर रही थी, इधर सुंदर ने खूब शराब पीनी शुरू कर दी. कभीकभी शराब पी कर सुंदर इतना बहक जाता कि गलीमहल्ले के बच्चे उस का मजाक उड़ाते और उस पर कई तरह की फब्तियां भी कसते.

कुछ फब्तियां तो ऐसी कड़वी और धारदार होतीं कि नशे में होने के बावजूद सुंदर खड़ेखड़े ही जैसे सौ बार मर जाता.

जैसे शराब के नशे में एक बार जब सुंदर लड़खड़ा कर गली में गंदी नाली के पास गिर पड़ा, तो वहां खेल रहे कुछ लड़के खेलना छोड़ उसे उठाने के लिए लपकने को हुए, तो उन में से एक लड़के ने उन को रोक लिया और बोला, ‘‘रहने दो, मेरा बापू कहता है कि यह अपनी औरत की घटिया कमाई खाने वाला एक गंदा इनसान है. इज्जतदार और शरीफ लोगों को इस से दूर रहना चाहिए.’’

एक लड़के का इतना ही कहना था कि बाकी लड़कों के कदम वहीं रुक गए. शराब के नशे में लड़खड़ा कर सुंदर गिर जरूर गया था, मगर बेहोश नहीं था. लड़के के कहे हुए शब्द गरम लावे की तरह उस के कानों में उतर गए.

अपनी बुजदिली और लालच के चलते आज सुंदर कितना नीचे गिर चुका था, इस का सही एहसास गली में खेलने वाले लड़के के मुंह से निकले शब्दों से उसे हो रहा था.

Hindi Story Collection : शिलाखंड

Hindi Story Collection : शोभना की नींद खुली तो उस ने देखा कि किताबें, कागज, पेन, पैंसिल लैपटौप, चार्जर सब सिरहाने वैसे ही तकिए के नीचे दबे पड़े हैं, जैसे रात छोड़े थे. उस ने उठ कर घड़ी देखी. सुबह

के 5 बजे थे. दिल्ली की दिसंबर की ठंड, उस पर 2 दिन से बारिश लगी थी. उस का मन हुआ कि फिर से रजाई में दुबक कर सो जाए और फिर गहरी नींद में डूब गई शोभना.

‘‘लो, चाय पी लो,’’ आवाज सुन कर शोभना चौंकी. अरे, यह तो तरुणाजी की आवाज है. वही स्नेह और अपनत्व से पूर्ण स्वर. बड़ी हिचक और शर्म के साथ शोभना उठ बैठी. साथ की मेज पर गरम चाय रखी थी. बहुत चाह कर भी शोभना बैड टी लेने की आदी नहीं हो पाई थी. सुबह की चाय पीने से पहले हाथमुंह जरूर धो लेती है, कुल्ला कर लेती है.

शोभना गुसलखाने से निकली तो देखा कि तरुणाजी उस के सामान को समेट कर करीने से रख रही है. सिमटी हुई चादर भी सीधी कर दी थी. इस अपनेपन के बो?ा से दबी शोभना इतना ही बोली, ‘‘क्यों शर्मिंदा करती हो भाभीजी? आप तो मेरी आदत ही खराब किए दे रही हैं.’’

तरुणा भाभी हंस कर कुछ कहना चाहती थी किंतु मेड के आने की आहट सुन उठ कर चली गई.

शोभना अपने डाक्टरी पेशे में व्यस्त रहने के बाद भी इस क्षेत्र में आगे शोध के लिए इच्छुक थी. वह जयपुर के एक बड़े नर्सिंगहोम में सहचिकित्सक के रूप में पिछले 10 वर्षों से काम कर रही थी. उस के पति तथा दोनों बच्चे कभी स्थाई रूप से साथ नहीं रह पाए. दादी को

व्यस्त बहू पर अपने एकमात्र बेटे की दोनों संतानों का दायित्व डालना शायद ममतावश सहन नहीं होता था, इसलिए उन के पति व बच्चे आगरा में ही रहते थे. छुट्टियों में कभी बच्चे साथ रहने आ जाते, कभी स्वयं शोभना कुछ

दिनों के लिए आगरा चली जाती. पति सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, निजी इंजीनियरिंग के व्यवसाय में व्यस्त.

दिल्ली में डाक्टर प्रशांत को एक विख्यात डाक्टर के रूप में जाना जाता था. इन के मार्गदर्शन में अध्ययन करने पर संभव था कि उसे बच्चों

के रोगों के विषय में ऐसी जानकारी हासिल हो जाती, जिस के बारे में वह जिज्ञासु रही थी. साथ ही वह ‘बालरोग एवं उन के उपचार’ नामक लेख को तैयार कर सकती थी, जिसे वह ‘ब्रिटिश मैडिकल जर्नल’ में भेजने के लिए इच्छुक थी. शोभना के गुरु डाक्टर नमन ने ही डाक्टर प्रशांत का पता दिया था.

फिर एक दिन दोपहर को अपना थोड़ा सा आवश्यक सामान और अध्ययन लेखन की सामग्री लिए शोभना बड़े संकोच के साथ डाक्टर प्रशांत के घर आ गई थी. पर उस के संकोच के ठीक विपरीत तरुणा ने बड़े प्यार से शोभना को ड्राइंगरूम में बैठा कर कहा, ‘‘डाक्टर नमन का मैसेज परसों मिला था जब डाक्टर साहब मीटिंग में गए हुए थे. आज ही लौटे हैं. अभी नहा कर निकलते ही होंगे. तब तक आप हाथमुंह धो लीजिए, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

शोभना बड़े ध्यान से तरुणा को देख रही थी. वह सोच रही थी कि यह कितनी सरलहृदया, आकर्षक और मृदुभाषिणी है, पूरा घर बड़े सलीके से और रूचि के साथ सजाया हुआ था.

चाय पीतेपीते तरुणा ने बताया, ‘‘बेटी बीए औनर्स में पढ़ रही है और बेटा इसी साल एमबीबीएस में आया है,’’ उन का बेटा शायद शोभना के बेटे का ही समवयस्क हो क्योंकि बब्बू का भी इसी साल बीएससी कर के इंजीनियरिंग में दाखिल हुआ है. डाक्टर प्रशांत का बेटा सौमित्र लखनऊ मैडिकल कालेज में पढ़ रहा है, यह तो शोभना जानती थी. बेटी भी ननिहाल यानी लखनऊ में ही पढ़ रही थी. शायद स्वभाव से ही शांत और संकोची डाक्टर प्रशांत को दिल्ली की मशीनी जिंदगी और महानगरीय कोलाहल से चिढ़ थी या लखनऊ से पुराना मोह, जिस वजह से उन्होंने बच्चों को बाहर अध्ययन के लिए भेज दिया था.

शोभना जब तक कुछ सहज हुई, डाक्टर साहब नहा कर निकल चुके थे. उन के होंठों पर किसी गीत की धीमी गुनगुनाहट थी, जिस से वातावरण मधुर हो गया था. कुछ ही देर में डाक्टर प्रशांत ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. लंबा, पुष्ट शरीर, गेहुआं रंग, चेहरे पर शांति और सौम्यता का भाव. उन्होंने बड़ी आत्मीयता भरी मुसकराहट के साथ शोभना से यात्रा के बारे में पूछा, फिर घर तक  पहुंचने के बारे में. उस के बाद अध्ययन के विषय पर आ गए. इसी बीच तरुणा फिर आ कर बैठ गई थी.

शोभना नहाधो कर छत की बालकनी पर आई तो देखा, डाक्टर प्रशांत बड़े स्नेह और प्यार के साथ तरुणा के जूड़े में फूल लगा रहे थे. ठिठक कर शोभना लौटने लगी पर तभी उसे डाक्टर प्रशांत की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे शोभना, अब जब आप गुरुबहन हो कर आई हैं तो आप से क्या छिपाना? यों उम्र में भी आप में और तरुणा में ज्यादा अंतर नहीं होगा. यह ‘ड्यूटी’ तो मंडल में भांवरों के समय ही सौंप दी गई थी और कहा गया था कि अपनी पत्नी के अलावा मैं और किसी को फूल न लगाऊं,’’ और फिर एक खुला हुआ अट्टाहास.

तरुणा एक नवयौवना सी शरमा गई. 2 घंटे पहले अतिथि रूप में आई शोभना ऐसा महसूस कर रही थी जैसे वह अपने घर लखनऊ के आंगन में खड़ी हो और उस के भैयाभाभी एकदूसरे को चिढ़ा रहे हों.

डाक्टर प्रशांत ने अध्ययन का समय रात 10 बजे से दो बजे तक तय किया था. दोपहर में खाना खाने से पहले तक शोभना ने बहुत कुछ लेखन सामग्री तैयार कर ली थी. धीमी गुनगुनाहट के साथ तरुणा रसोई में खाना बना रही थी. इसी बीच एक तरफ कौफी चुपचाप उस के पास रख गई थी. जब डाक्टर प्रशांत दोपहर के भोजन के लिए आए तब तक शोभना व तरुणा एकदूसरे से काफी बातचीत कर चुकी थीं. तरुणा भी यह जान गई थी कि  शोभना के पति कितने सुल?ो हुए, सरल एवं उदार व्यक्ति हैं. वे मां के वात्सल्य को नहीं ठुकरा सकते और पत्नी के प्रति अपनी आत्मीयता और प्यार आज शादी के 22 वर्षों के बाद भी वैसा ही बना हुआ है.

शादी से पहले उस के पति सोमेश इंजीनियर ही थे, पर रोजरोज वरिष्ठ अफसरों के रोब को सहना और अनावश्यक रूप से उन्हें प्रसन्न रखने के प्रयास करना सोमेश के स्वभाव के विपरीत था. शोभना ने अपने उदार और मेधावी पति के सामने एक ही बात रखी थी कि वह डाक्टर है और अपना यह काम वह शादी के बाद भी जारी रखेगी. सोमेश ने बड़ी सहृदयता से उस के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया था.

विवाह के समय शोभना की 2 छोटी ननदें थीं. दोनों देवर क्रमश: एमएससी तथा बीए में पढ़ रहे थे. ससुर नहर विभाग में इंजीनियर थे, पर विवाह के कुछ साल बाद ही एक जीप दुर्घटना में उन की मृत्यु हो गई थी. शादी के 4 वर्ष बाद ही शोभना ने अपनी सास, ननदों और दोनों देवरों का जो दायित्व संभाला, उसे वह आज तक निभा रही थी. अब उस के दोनों देवर अच्छे पदों पर हैं तथा ननदें अच्छे घरों में विवाह के बाद सुखी हैं. सास को जो आदरमान शोभना ने पहले दिन दिया वही आज भी उस के और सोमेश के मन में है. बच्चे तो बिना दादीमां के रह ही नहीं सकते.

आगरा और जयपुर की दूरी इतनी कम है कि पिछले 6 सालों से शोभना हर 15-20 दिन बाद अपने पति से मिल लेती है. देवरों के अध्ययन एवं विवाह के लिए लिया गया ऋण कब और कैसे सोमेश व शोभना ने लौटा दिया, यह अम्माजी जान भी न पाई थीं. हालांकि, शोभना को लगता है कि  अम्माजी का स्नेहिल चेहरा सदैव उसे एवं उस के परिवार को आशीष देता रहता है.

पिछले 3 दिनों से शोभना डाक्टर प्रशांत के साथ रात 2 बजे तक काम करती रही. घंटेभर बाद ही डाक्टर प्रशांत स्वयं उठ कर कौफी बनाते और 1 कप शोभना को पकड़ा कर कहते, ‘‘लीजिए, थोड़ी देर दिमाग को आराम दीजिए,’’ फिर अनायास ही कुछ याद करते से उठते और बैडरूम की ओर चले जाते. आ कर कहते, ‘‘तरुणा जब थक कर चूर हो जाती है तब सोते समय उसे होश नहीं रहता कि रजाई कहां जा रही है. दवाई कभी मैं ही पिलाऊं तो ले लेगी, अपनेआप नहीं ले सकती. मैं तो मरीजों में या फिर शोध लेखन में ही व्यस्त रहता हूं. किंतु यह कभी शिकायत नहीं करती. न जाने किस चीज की बनी है, हर बात में संतोष, हर परिस्थिति से सम?ौता.’’

शोभना डाक्टर प्रशांत के गरिमामय व्यक्तित्व, ज्ञान तथा शालीनता से प्रभावित होती चली गई. 1 हफ्ते तक पढ़ाई का यही क्रम चलता रहा. उस के लेख और शोधपत्र को न जाने कितनी बार डाक्टर प्रशांत ने सुधारा. पर बड़ा आश्चर्य था कि तरुणा ने उस के रात ढाईतीन बजे तक डाक्टर प्रशांत के साथ बैठ कर पढ़नेलिखने, बात करने पर कभी कोई संदेह व्यक्त नहीं किया.

दिसंबर की रात्रि के एकांत क्षणों में स्त्रीपुरुष का यों साथ बैठ कर बातें करना, किसी विषय पर देर तक तर्कवितर्क करना, कौफी, चाय आदि पीना किसी भी महिला के ईर्ष्या का विषय हो सकता है. पर तरुणा भाभी के प्रशांत गंभीर हृदय में कौन सा ऐसा स्नेहिल ठोस हिमखंड है, जो धीरेधीरे पिघल कर अपनी उदारता एवं स्नेह की अमृतधारा में शोभना को डुबोता चला जा रहा है, यह स्वयं शोभना भी सम?ा नहीं पाती.

कल रात बहुत देर तक शोभना को नींद नहीं आई. वह अपने सरल हृदय पति के बार में ही सोचती रही. वे कितने उदार हैं. पर रंजना ने जब फैक्टरी में 3 महीने तक रिसैपशनिस्ट का काम किया था तब शोभना जैसी सुल?ा हुई पत्नी के मन में भी ईर्ष्या और संदेह की भावना जड़ पकड़ने लगी थी. वह कभी 15 दिन से ज्यादा छुट्टी नहीं लेती, पर उस बार 1 महीना आगरा रह गई थी. शायद उस के पति सोमेश ने भी उस के मन के संदेह को भांप लिया था.

महीने में 1-2 बार किसी काम से फैक्टरी जाने वाली शोभना अब रोज किसी न किसी बहाने सोमेश के दफ्तर में पहुंचने लगी. वह रंजना को ऊपर से नीचे तक आलोचक निगाहों से देखती. अकारण ही सोमेश के कोट के कालर पर कभी लिपस्टिक के दाग ढूंढ़ती और कभी रंजना द्वारा प्रयुक्त सैंट की खुशबू पहचानती, पर सोमेश उस की इन बातों को जान कर भी नजरअंदाज करते रहे.

शोभना को याद आया कि उस के बड़े बेटे की सालगिरह थी. सभी तैयारियां हो चुकी थीं. तभी सोमेश का फोन आया कि वह पार्टी में शरीक नहीं हो सकेगा. उस ने कहा कि रंजना की बेटी की हालत बहुत खराब हो गई है और उसे ले कर मैडिकल कालेज जाना है. शोभना के संशय ने अब विकृत रूप ले लिया और वह भूल गई कि पति के अभाव में रंजना को अपने बच्चों की पूरी जिम्मेदारी पिता के ढंग से भी निभानी होती है.

सुंदर, आकर्षक पर पति द्वारा परित्यक्ता रंजना एक संभ्रांत परिवार की सुशील, शिक्षित महिला थी. मगर शोभना ने उस दिन सोमेश के वापस आने पर उस से बात तक नहीं की. उस ने भद्दे शब्दों में रंजना पर लांछन लगा दिए.

सोमेश ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘इतनी पिड़ली बातें करते तुम्हें शर्म नहीं आती? रंजना की बेटी की  हालत खराब देख कर अगर मैं ने अपनी गाड़ी में बैठा कर उन दोनों को ले जाने का, बच्ची को अस्पताल में दाखिल कराने का काम कर दिया तो कौन सा पहाड़ टूट गया. लानत है तुम्हारी पढ़ाई और काबिलीयत पर. इतने सालों से तुम नौकरी कर रही हो, सब तरह के डाक्टरों और मरीजों से पाला पड़ता है पर मैं ने तो कभी तुम्हें कुछ नहीं कहा. तुम नहीं जानतीं कि रंजना कितनी शरीफ और काबिल है. मेरी सम?ा में नहीं आता कि औरतआदमी का रिश्ता इतना सस्ता क्यों होता जा रहा है? क्या हम एकदूसरे के लिए सहकर्मी, मित्र, सहायक या हमदर्द नहीं हो सकते?’’

पता नहीं क्यों शोभना तब कुछ बोल नहीं सकी. पार्टी के बरतन उठाते हुए फैक्टरी के नौकर शंभू ने शायद ये सभी बातें सुनी थीं. दूसरे दिन रंजना शाम को अपना त्यागपत्र ले कर आई. शोभना उस से आंखें न मिला सकी थी. सोमेश ने चुपचाप वह त्यागपत्र रख लिया. सोमेश की यह खामोशी उसे अंदर ही अंदर सालती रही.

अब तरुणा को देख कर उसे अपने ऊपर ग्लानि होती जा रही थी. कहने को शोभना एक पढ़ीलिखी डाक्टर है पर मात्र बीए पास तरुणा के मन की महत्ता और गहराई की तुलना में वह अपनेआप को एक हलका तिनका ही पाती रही. मन के विश्वास के शिलाखंड के सामने वह अपनेआप को बड़ा बौना महसूस कर रही थी.

परसों शोभना को वापस जाना है. यहां रहते हुए उस ने काफी शोधकार्य कर लिया है. अपने व्यवसाय के क्षेत्र में वह बच्चों के अनेक रोगों के बारे में बहुत सी उपयोगी सामग्री इकट्ठा कर चुकी है. जो पेपर वह ‘ब्रिटिश मैडिकल जर्नल’ में भेजना चाहती थी वह भी बहुत सी काटछांट व बदलाव के बाद डाक्टर प्रशांत के निरीक्षण में पूरा हो चुका था. साथ ही आगरा में अपने पति के साथ रहने के प्रयास में वह डाक्टर प्रशांत व उन के सहयोगियों से पर्याप्त मदद भी ले चुकी थी. संभव है कि उस की नियुक्ति राजस्थान की गुलाबी नगरी से हट कर मुगल शहनशाहों के प्रिय क्षेत्र में हो ही जाए. कई पड़ोसियों से भी शोभना का परिचय तरुणा करवा चुकी थी.

डाक्टर प्रशांत को उस ने बहुत करीब से देखा है. कहीं मन में कोई कुंठा नहीं. मरीजों, दवाइयों और किताबों में डूबे प्रशांत उसे गुरु जैसे लगते. पर कुछ ही समय बाद वह देखती कि अपनी पत्नी तरुणा के साथ लान में टहलतेटहलते वे हलके ढंग से कुछ गुनगुनाने लगते और तरुणा का हाथ पकड़ कर जब वह उसे क्यारी पार करवाने लगते और उस की पीठ पर एक धौल लगा देते तब शोभना अपने कमरे की जालीदार खिड़की के पीछे खड़ी देखती रह जाती. दोनों के मन में कितना विश्वासपूर्ण प्यार है. शायद तभी अत्यधिक व्यस्त 24 घंटों में से 24 मिनट का समय निकाल कर वे दोनों सहज स्वाभाविक रूप से जीना नहीं भूलते.

शोभना को याद आता है कि पिछले ही वर्ष उस की सहकर्मी डाक्टर सुल?ा ने अपने पति से तलाक लिया था. कारण मात्र यह था कि जरमनी से लौटने के बाद उन्होंने अपने विभाग में वहीं के विश्वविद्यालय की एक मेधावी छात्रा को अपने निरीक्षण में रिसर्च फैलोशिप दे दी थी. वह दिनभर व्यस्त रहने लगे थे. सदैव से सीधे और सरल तथा पत्नी का अत्यधिक खयाल रखने वाले डाक्टर मनोज से मात्र इसी आधार पर उन की पत्नी ने तलाक लिया था कि वे जरमन छात्रा के शोध कार्य में अधिक समय देने लगे थे. उन की पत्नी ने डाक्टर मनोज के इस तथ्य को बिलकुल नहीं माना था कि विदेशी छात्रा होने के नाते उस के पास समय कम था और उसे भारत में चल रहे अपने शोध कार्य की मासिक प्रगति भी अपने देश भेजनी पड़ी है.

डाक्टर प्रशांत के घर आ कर शायद शोभना की मनोचिकित्सा सी होती  जा रही थी. लगातार 3 दिन वह घर से 14 किलोमीटर दूर डाक्टर प्रशांत के साथ मैडिकल इंस्टिट्यूट जाती रही. कितने प्यार से तरुणा उसे टिफिन में नाश्ता रख कर पकड़ाती, ‘‘इसे रख लीजिए. यह दिल्ली है, यहां यह नहीं कि 1-2 किलोमीटर चले आए और खाना खा लिया. फिर बाजार का खाना भी ठीक नहीं रहता. मैं ने 4 परांठे और भुना मीट रख दिया है. आप और डाक्टर साहब खा लीजिएगा. हां, कौफी का जिम्मा आप के डाक्टर साहब का है.’’

शोभना अपनी आंखें उस निश्छल उदार हृदय की स्वामिनी तरुणा के चेहरे पर गड़ा देती थी. जी चाहता था कि उस से लिपट कर प्यार से पूछे, ‘‘किस धातु की बनी हो तरुणा तुम? कहां से आया इतना विश्वास? तुम्हारे पति के साथ रोज रात 2-2 बजे तक काम करती हूं. उन की कार की अगली सीट पर बैठ कर जाती हूं. कभी शक नहीं किया, कुछ नहीं पूछा.’’

मैं ने तो सुना है कि यहां महिलाएं आती रहती हैं, कभी स्थानीय तो कभी बाहरी. सभी डाक्टर प्रशांत के ज्ञान, अनुभव व यश से कुछ लाभ उठाने व सीखने आती हैं. यह नहीं कि

कोई कुछ कहता नहीं है. यही दिल्ली की एक लेडी डाक्टर ने मात्र 2 दिन के परिचय के बाद ही शोभना से मजाक में कहा था, ‘‘अच्छा,

आप डाक्टर प्रशांत के यहां रुकी हैं, अरे भई, डाक्टर प्रशांत तो एकाध ऐक्स्ट्रा के बिना रह ही नहीं सकते. चलिए, बढि़या कटती होगी. सुना है पत्नी उपेक्षित रहती है. मु?ो उस पर बड़ी दया आती है.’’

शोभना का मन हुआ कि अपना पर्स खींच कर उस लेडी डाक्टर के मुंह पर दे मारे और उस से कहे कि क्यों अपने से सब को तौलती हो? देखने में तो पढ़ीलिखी औरत हो, पर मन से तो तुम एक अनपढ़, गंवार से भी बदतर हो. तुम्हें क्या मालूम डाक्टर प्रशांत किस पुण्य गंगा के कमल हैं और उन की पत्नी तरुणा उस कमल पर पड़ी शीतल ओस की बूंद है.

मगर शोभना ने अपने मन के आवेश पर काबू किया और इतना ही बोली, ‘‘जरा संभल

कर बोलो. किसी को कुछ कहने से पहले

अगर इनसान अपनी बात को मन में दोहरा ले तो शायद किसी महान व्यक्ति के लिए इतने छिछले शब्द मुंह से न निकलें,’’ और वह लेडी डाक्टर शोभना को जलती हुई नजरों से घूरती हुई वहां से चली गई.

आज शोभना को वापस आगरा जाना है. इस बीच वह अकसर पति तथा बच्चों से फोन पर बात करती रही थी, पर आज जा कर उन से मिलेगी. दिनभर तरुणा बारबार दोबारा दिल्ली आने का आग्रह करती रही. दोनों बाजार से घर लौटीं तो देखा कि फाटक पर ही सुशीला मिल गई.

तरुणा शोभना की ओर संकेत करती हुई बोली, ‘‘आज विक्की की बूआ वापस जा रही है आगरा, इसलिए हम लोग बाजार खरीदारी के लिए निकल गए थे.’’

‘बूआ… हां बूआ… मात्र शब्द ही नहीं, उस में उस शब्द के स्नेहिल, अपनत्वपूर्ण प्यार भरे परिचय से शोभना का मन हुआ कि वह पैर छू ले तरुणा के. उस की आंखें भर आईं. ऐसा लगा कि उस ने अपने अम्मांपिताजी का ही प्यार भाभी के दुलार भरे शब्दों में पा लिया हो.

घर आते ही वे तरुणा का हाथ थाम कर वहीं दालान में पड़े सोफे पर बैठ गई और बोली, ‘‘भाभी, आप ने कहां से पाया है इतना उदार और निच्छल मन? इतने दिन से आप के पास हूं. आप के समान ही उम्र मेरी भी होगी. आप रसोई में बैठ कर नौकरों और गृहस्थी में उल?ा रहती हैं. मैं घंटों डाक्टर साहब के कमरे में बैठ कर उन से पढ़तीलिखती हूं और बातें करती हूं. पूरापूरा बाहर रहती हूं, कभी शक नहीं आया आप के मन में?’’

तरुणा हंस कर हलके से दुलारती हुई बोली, ‘‘शोभना, तुम मुझ से कहीं ज्यादा पढ़ीलिखी हो. पर शायद अनुभव और व्यवहार की जितनी कसौटियों पर मैं ने अपनेआप को परखा है, उतना तुम ने नहीं. मैं इतनी ज्ञानी और बुजुर्ग तो नहीं कि तुम्हें भाषण दूं या समझाऊं. एक बहन की सी सलाह दे रही हूं कि निरर्थक शक या संदेह पतिपत्नी को ही नहीं, मांबाप से बेटीबेटे को तथा भाई से बहन को अलग कर देता.

‘‘कभीकभी बात कुछ भी नहीं होती, पर हम एक छोटे से कारण को तूल बना देते हैं. युवा होते बेटाबेटी दिए गए समय से आधापौन घंटे लेट हो गए कि बस आफत खड़ी कर दी कि कहां थे? क्यों देर लगाई? कौन साथ था? मैं फोन कर के पूछूं तेरे दोस्त के घर? यही जहर बिंधे शब्द बच्चों को विद्रोही बना देते हैं.

‘‘शोभना, यह तो बच्चों की बात है. आज जिस अवस्था में मैं और मेरे पति डाक्टर प्रशांत

या तुम और तुम्हारे पति खड़े हैं, वहां इन छोटीछोटी बातों को ले कर यदि शक और अकारण संदेह को मन में जगह दी तो हमारे पारस्परिक प्यार और विश्वास की नींव ही ढह जाएगी. फिर पति और पत्नी का संबंध बच्चों का बालू का घरौंदा तो नहीं, जो जरा सी ठोकर मारने से ढह जाए. तुम जो जानती हो, उमड़ती वेगवान नदियों के बीच भी शिलाखंड अडिग, स्थिर, शान से खड़े रहते हैं. वही हैं मेरे और डाक्टर प्रशांत के संबंधों के प्रतीक.

‘‘अपने पति के बड़प्पन को मैं ने जितना पहचाना है, उतना कोई क्या जानेगा? प्रशांत मुझे आज भी उतना ही प्यार देते हैं क्योंकि मैं ने उन पर कभी संदेह नहीं किया, अपने विश्वास और स्नेह को शिलाखंड सा अडिग बनाए रखा. फिर अनेक छिछले व्यक्तित्व के पुरुषों की भांति उन के व्यक्तित्व में आज तक कहीं कोई ऐसा अशोभनीय रूप न देख पाई जो मैं आमतौर से लोगों से सुनती हूं. शोभना, जिंदगी को अच्छा व सुंदर बनाना बहुत कुछ अपने हाथ में होता है.’’

शोभना शायद एक नई शोभना बन कर अपने घर जा रही थी. वह जानती थी कि तरुणा ने जिस शिलाखंड की ओर संकेत किया है वह सिर्फ उन का ही नहीं है, किसी का भी हो सकता है. हां, उस का भी.

Short Stories In Hindi : फैसला – क्या अंकुर को खुद से दूर कर पाई अंजलि

Short Stories In Hindi : अंकुर मेरा नैनीताल जाना बहुत जरूरी है. एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में कल ही जाना है. बट सोच रही हूं अकेली कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई नहीं मैं चलता हूं साथ,’’ 1 मिनट की भी देरी किए बिना अंकुर ने तुरंत कहा.

अंजलि थोड़ी चकित हो कर बोली, ‘‘मगर औफिस में क्या कहोगे? बौस नाराज नहीं होंगे?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं कह दूंगा कि तबीयत सही नहीं. इस तरह 2-4 दिन आराम से छुट्टी मिल जाएगी.’’

‘‘ओके फिर आ जाना. हम कैब से चलेंगे. मैं ने कैब वाले से बात कर ली है. कल सुबहसुबह निकलते हैं,’’ अंजलि निश्चित हो कर अपने काम में लग गई.

अंकुर और अंजलि करीब 1 साल से संपर्क में हैं. दोनों औफिस में मिले थे. अंजलि को अच्छी कंपनी से जौब औफर हुई तो वह वहां चली गई मगर अंकुर ने उस से संपर्क बनाए रखा. अब समय के साथ दोनों के बीच एक अच्छी दोस्ती डैवलप हो गई थी. इस दोस्ती की वजह अंकुर का केयरिंग नेचर था जो अंजलि को बहुत पसंद था. अंजलि को जब भी कोई समस्या होती या किसी का साथ चाहिए होता वह अंकुर को कौल करती और उसे कभी निराश नहीं होना पड़ता. अंकुर हमेशा उस का साथ देने के लिए आ जाता.

अंजलि का कोई भाई नहीं था इसलिए वह चाहती थी कि उस का पति उस के घर वालों की भी परवाह करने वाला हो. अंकुर इस माने में बिलकुल फिट बैठता था. वह अकसर अंजलि के घर जाता और उस की मम्मी की हैल्प करने की कोशिश में रहता. कभी मार्किट से कुछ लाना है, कभी शौपिंग के लिए साथ जाना है, कभी कोई खास डिश बनानी है तो वह हमेशा आगे रहता.

हाल ही में जब रात के 11 बजे अचानक अंजलि के पापा को हार्ट प्रौब्लम हुई तो उस ने अंकुर को ही फोन किया. अंकुर तुरंत अपनी बाइक ले कर हाजिर हो गया. आननफानन में ऐंबुलैंस बुलाई गई और दोनों पिता को ले कर सिटी हौस्पिटल पहुंचे. डाक्टर ने सर्जरी के लिए

2 दिन बाद की डेट दे दी. अंजलि को अगले दिन औफिस में जरूरी प्रेजैंटेशन देना था इसलिए किसी भी हाल में औफिस पहुंचना था. अंकुर को जब यह बात पता चली तो उस ने अंजलि से औफिस जाने को कहा. वह खुद  4 दिन की छुट्टी ले कर अस्पताल में रुक कर सब काम देखने लगा. अंजलि अंकुर के इस व्यवहार और प्यार से अभिभूत हो उठी. उसे यकीन नहीं आ रहा था कि अंकुर जैसा दोस्त उस के पास है. वह किसी भी तरह उसे हमेशा के लिए अपनी जिंदगी में शामिल करने को उत्सुक थी. 2-3 बार वह उस की दोनों बहनों से भी मिल चुकी थी. अंकुर अंजलि को बहनों से मिलाने उन के कालेज ले गया था.

एक नजर में अंकुर बहुत हैंडसम या आकर्षक नहीं दिखता था मगर उस का व्यवहार अच्छा था. कपड़े बहुत महंगे नहीं होते थे मगर वे कपड़े उस पर जंचते थे. वह सौम्य, शालीन और दूसरों की प्रौब्लम्स सम?ाने वाला बंदा था खासकर अंजलि के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता.

इधर अंजलि काफी खूबसूरत और स्मार्ट थी. 5 फुट 4 इंच का कद, गोरा रंग, घुंघराले बाल और सधी हुई खूबसूरत फिगर. वह अपने काम के प्रति भी बहुत सिंसियर रहती थी. उस ने बेहतर सैलरी पैकेज में नई कंपनी जौइन की थी और बहुत जल्दी उसे प्रमोशन भी मिलने वाली थी. उसे अपनी जिंदगी में बहुत आगे बढ़ना था और इस के लिए वह हमेशा मेहनत करती थी.

अंजलि के घर में मातापिता के अलावा दादाजी थे जिन्हें वह बहुत प्यार करती थी. पिता 5-6 साल बाद रिटायर होने वाले थे और उस से पहले वह अंजलि के लिए एक अच्छा लड़का ढूंढ़ कर शादी करना चाहते थे.

इधर अंजलि के दिल में धीरेधीरे अंकुर जगह बनाने लगा था. उस के सिवा किसी लड़के के बारे में वह सोच ही नहीं सकती थी. मगर वह इंतजार कर रही थी जब अंकुर उसे प्रपोज करे.

उस दिन भी सुबहसुबह अंकुर हाजिर हो गया और अंजलि के साथ नैनीताल के ट्रिप पर निकल पड़ा. नैनीताल में काम खत्म होने के बाद दोनों ने कुछ अच्छा समय साथ बिताया. वहां अंजलि की मौसी रहती थी सो दोनों उन्हीं के घर ठहरे.

एक दिन में ही अपने अच्छे व्यवहार की वजह से अंकुर ने अंजलि की मौसी का दिल भी जीत लिया. मौसी ने इशारोंइशारों में अंजलि से दोनों के रिश्ते के बारे में कन्फर्म भी किया. अगले दिन लौटने का प्लान था मगर अंजलि ने यह प्लान एक दिन आगे बढ़ा दिया. आज वह अंकुर के दिल की बात जानना चाहती थी. इसलिए उस ने सारा दिन अंकुर के साथ नैनीताल घूमने का प्लान बनाया.

शाम में जब दोनों नैनीताल की वादियों में घूम रहे थे तो अचानक अंकुर का हाथ थामते हुए अंजलि ने पूछा, ‘‘अंकुर क्या हम हमेशा दोस्त ही रहेंगे?’’

‘‘हां, हम हमेशा दोस्त रहेंगे,’’  जल्दी में अंकुर ने कह दिया मगर जब उस ने अंजलि की आंखों में देखा तो उसे समझ आ गया कि अंजलि क्या सुनना चाहती है.

अंकुर ने अंजलि की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘अगर तुम चाहो तो हम कुछ और भी बन सकते हैं.’’

‘‘कुछ और बन सकते हैं? मगर कुछ और क्या?’’ अनजान बनते हुए अंजलि मुसकराई.

‘‘मसलन, शौहरबीवी या पतिपत्नी या हस्बैंडवाइफ या फिर तुम कहो तो…’’

‘‘बस करो. कभी प्यार का इजहार तो किया नहीं और चले पतिपत्नी बनने,’’ मुंह बनाते हुए अंजलि बोली तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. बोला, ‘‘यार हर धड़कन में तुम हो. हमेशा आंख खुलते ही तुम्हारी याद और नींद लगने से पहले तक बस तुम्हारी बातें,’’ कहते हुए अंकुर ने अंजलि को बाहों में लेना चाहा तो वह दूर भागती हुई बोली, ‘‘इतना फिल्मी बनने की जरूरत नहीं. प्यार है तो वे 3 शब्द बोलो और प्रौमिस करो कि यह प्यार कभी खत्म नहीं होगा.’’

‘‘आई लव यू,’’ कहते हुए अंकुर थोड़ा शरमा गया.

अंजलि इस बात का मजा लेती हुई उसे चिढ़ाने लगी. फिर बोली, ‘‘चलो अपनी जेब ढीली करो और मु?ो कहीं कुछ खिलाओपिलाओ.’’

अंकुर उसे एक ढाबे में ले गया और समोसेचाय और्डर करता हुआ बोला, ‘‘इस से ज्यादा रोमांटिक डिश और कुछ नहीं हो सकती.’’

अंजलि उस के भोलेपन और सादगी पर फिदा हुए जा रही थी. उस ने मन ही मन तय किया कि वह इस रिश्ते को आगे ले जाएगी क्योंकि इस से बेहतर लड़का उसे फिर नहीं मिलेगा.

अब दोनों की दोस्ती ने प्यार का रंग ले लिया था. वे डेट पर जाने लगे. जब भी अंजलि की तरफ से ट्रीट होती तो वह अच्छे रैस्टोरैंट में ले कर जाती मगर अंकुर किसी ढाबे या चाय की दुकान पर ले जाता और कभी चाऊमीन, कभी समोसे या कभी गोलगप्पे खिला देता. अंजलि को अंकुर के इस अंदाज पर प्यार आता.

करीब 6 महीने डेटिंग करने के बाद एक दिन दोनों ने तय किया कि इस रिश्ते को आगे बढ़ाने का समय आ गया है. दोनों के घर वालों ने सगाई की तारीख तय कर दी. छोटेमोटे समारोह के रूप में अंजलि के घर में ही करीबी रिश्तेदारों के बीच सगाई संपन्न हो गई.

अब तक अंकुर ही अंजलि के घर आताजाता रहता था. सगाई के बाद पहली बार अंजलि एक दिन बिना बताए अचानक यह देखने के लिए अंकुर के घर पहुंच गई कि उस की ससुराल कैसी है. अंकुर ने उसे बता रखा था कि लक्ष्मी नगर में उस का 2 कमरों का घर है. मगर आज वह यह देख कर चौंक गई कि उस का घर तो बहुत छोटा और तंग सा है. एक हौल के अलावा 2 छोटेछोटे से कमरे थे जिन में मुश्किल से 1 बैड और 1 टेबल लगी हुई थी. हाल में पुराने जमाने का एक सोफा सैट था और किचन के बाहर एक मध्यम साइज का फ्रिज था. घर बिलकुल साफसुथरा नहीं था खासकर जिस कमरे को अंकुर ने अपना कमरा बताया वह तो और भी ज्यादा अव्यवस्थित और गंदा था. अंकुर की बहनें जो उसे कालेज में अच्छे कपड़े पहने नजर आई थीं आज मैले से फालतू कपड़ों में घूम रही थीं. अंकुर का भी यही हाल था.

घर में साफसफाई की कमी के साथ साफ हवा के आवागमन यानी वैंटिलेशन की भी सही व्यवस्था नहीं थी. ऐसे घर में रहने की कल्पना से उस का दम घुटने लगा. अंकुर आज तक उसे अपनी माली हालत के बारे में गलत जानकारी देता था. उस ने कहा था कि उस के पापा बड़े अधिकारी हैं जबकि वह एक छोटी सी कंपनी में प्राइवेट जौब करते थे. खुद अंकुर की नौकरी 4 महीने पहले छूट चुकी थी. बाद में एक महीने के लिए उस ने दूसरी नौकरी पकड़ी मगर वहां से भी निकाल दिया गया था. अब वह फिर से जौब के लिए इंटरव्यू दे रहा था.

अंकुर के घर में सब उस से बहुत प्यार से पेश आ रहे थे मगर घर से निकलते ही अंजलि ने अंकुर से पहला सवाल किया, ‘‘हम अलग एक नया घर ले कर रहेंगे न?’’

अंकुर ने हैरानी से पूछा, ‘‘नया घर मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि यहां रहना मेरे लिए पौसिबल नहीं,’’ अंजलि ने साफ जवाब दिया.

सुन कर अंकुर की गरदन ?ाक गई. उसे समझ आ गया कि अंजलि इतने छोटे घर में सब के साथ नहीं रहना चाहती. उस ने मजबूर नजरों से उस की तरफ देखा और बोला, ‘‘मगर मम्मीपापा को छोड़ कर मैं कहीं और कैसे रह सकता हूं?’’

‘‘जैसे मैं रहूंगी,’’ अंजलि ने तुरंत कहा, ‘‘मैं भी तो अपने मम्मीडैडी को छोड़ कर आऊंगी न अंकुर.’’

‘‘ओके मैं बात करूंगा घर में,’’ अंकुर ने बुझे मन से कहा.

इधर अंजलि भी बहुत परेशान सी घर लौटी. उसे अपने फैसले पर संदेह होने लगा था कि अंकुर को जीवनसाथी बनाने का उस का फैसला सही है या नहीं. उस ने मां से सारी बात कही तो वे भी सोच में पढ़ गईं. फिर उन्होंने बेटी को समझाया कि इंसान सही होना चाहिए घर और पैसा तो बाद में भी आ सकता है. उन्होंने उसे इस रिश्ते को थोड़ा वक्त देने की सलाह दी और कुछ समय अंकुर को और परखने को कहा.

अंजलि ने मां की बात पर अमल किया और अंकुर से पहले की तरह मिलती रही ताकि उसे बेहतर ढंग से समझ सके.

अंजलि ने अंकुर को सलाह दी कि वह जल्दी कोई अच्छी जौब ढूंढे़ और लाइफ में सैटल होने की कोशिश करे तभी शादी करने का मतलब है. अंकुर ने इस के बाद जौब की तलाश में एड़ीचोटी का दम लगा दिया और वाकई उसे एक अच्छी जौब मिल भी गई.

यह खबर सुन कर अंजलि को थोड़ी राहत मिली मगर अंकुर के स्वभाव में बदलाव नहीं आया. वह अभी भी अपनी जौब को बहुत हलके में ले रहा था. अकसर अंजलि से मिलने या उसे ड्रौप करने के चक्कर में वह औफिस देर से पहुंचता या फिर जल्दी निकल आता. अपनी बहन को इंटरव्यू दिलाने को ले जाने के लिए उस ने नई जौब में 4 दिन की छुट्टी ले ली. उस दिन अंजलि का बर्थडे सैलिब्रेट करने के लिए भी उस ने छुट्टी ले ली. अंजलि समझती थी कि वह दूसरों की खुशी या जरूरत के लिए ही छुट्टियां लेता है मगर कहीं न कहीं उसे अंकुर का यह व्यवहार गैरजिम्मेदाराना भी लगता.

एक दिन औफिस में जब बाहर से गैस्ट आने वाले थे तब भी अंकुर सोता रह गया और औफिस देर से पहुंचा. उस के बौस को गुस्सा आ गया और उन्होंने अंकुर को सस्पैंड कर दिया. यह बात उसे अंकुर की बहन से पता चली.

अंजलि सम?ा गई कि अंकुर में मैच्योरिटी बिलकुल नहीं है. उस का फ्यूचर ब्राइट नहीं. वह अपने काम में बिजी रहने लगी और अंकुर को इग्नोर करने लगी. अंकुर बारबार फोन कर उस से मिलने की कोशिश करता मगर वह व्यस्त होने का बहाना बना देती.

इधर एक दिन अंकुर की मौसी मिलने आई. अंकुर और अंजलि की सगाई के बाद वह पहली दफा आईं थीं. आते ही वे अंकुर के साथ अंजलि से मिलने उस के घर पहुंच गईं. संडे का दिन था इसलिए अंजलि ने उन के लिए अपने हाथों से अच्छा खाना तैयार किया और सब साथ में खाना खाने लगे. बातचीत के दौरान मौसी ने अंजलि की कास्ट पूछी. अंजलि सुनार थी जबकि अंकुर राजपूत घराने से था.

मौसी उस की कास्ट सुनते ही चौंक सी गईं और मुंह बनाती हुई बोलीं, ‘‘पुराने समय में हमारे यहां तो सुनार के घर का खाना भी नहीं खाते थे. शादी की तो बात ही दूर है. मगर अंकुर आज का बच्चा है. क्या पता उस ने इस बारे में कुछ सोचा भी या नहीं.’’

‘‘मौसी मुझे अंजलि पसंद है इस के सिवा क्या सोचना?’’ अंकुर ने कहा.

‘‘हां ठीक है. तुम दोनों जानो. बाकी तुम्हारा परिवार जाने. मुझे क्या करना,’’ मौसी मुंह बनाती हुई बोलीं.

मौसी तो चली गईं मगर अंजलि को उन की बात बहुत बुरी लगी कि सुनार के घर का खाते भी नहीं. 2 दिन तक उस के दिमाग में यही सब घूमता रहा. सगाई और शादी के बीच का यह समय अंजलि के लिए काफी कठिन गुजर रहा था. उस का दिमाग शादी के इस फैसले से लगातार बगावत कर रहा था.

एक दिन अंजलि मम्मीडैडी के पास बैठ कर बोली, ‘‘मैं एक बात सोच रही हूं. सम?ा नहीं आ रहा कि क्या फैसला लूं?’’

‘‘क्या हुआ बेटा सब ठीक तो है?’’ वे चिंतित हो कर पूछने लगे.

‘‘ऐक्चुअली मैं सोच रही थी कि अंकुर अच्छा लड़का है. उस के परिवार के लोग भी अच्छे हैं. अंकुर मु?ा से प्यार भी बहुत करता है और मेरी केयर भी करता है. कई मौकों पर उस ने मेरी मदद भी की है. किसी से शादी करने के लिए यह सब बहुत अच्छी क्वालिटीज हैं. मगर क्या सिर्फ इतना काफी है? क्या उस के गैरजिम्मेदाराना रवैए की अनदेखी की जा सकती है? क्या भविष्य में मु?ो पछताना नहीं पड़ेगा?’’

अंजलि के मम्मीपापा नि:शब्द रह गए. वाकई यह उन की बेटी के भविष्य का मसला था. सिर्फ अच्छे व्यवहार या केयरिंग नेचर की वजह से उस  से शादी कर लेना कहां तक उचित होगा? उन्होंने बेटी का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेटा यह तेरे जीवन की बात है. इस से जुड़े फैसले तेरे अपने होने चाहिए ताकि बाद में तुझे पछताना न पड़े. वह तुझे प्यार करता है. इतना प्यार करने वाला शायद तु?ो फिर न मिले. इसलिए तू अपने दिल की सुन मगर साथ में अपने दिमाग की भी सुन. दिमाग की बातें भी नजरअंदाज करना सही नहीं होगा. फैसला तुझे खुद लेना है. हम हर हाल में तेरे साथ हैं.’’

अंजलि फैसला ले चुकी थी. अगले दिन रोज डे था. अंजलि ने अंकुर को अपने औफिस के पास वाले रैस्टोरैंट में बुलाया. वह अपने हाथों में गुलाब का फूल ले कर आया था. उस ने बहुत प्यार से रोज थमाते हुए उस के हाथों को किस किया.

अंजलि भी उतने ही प्यार से उस की तरफ देखती हुई बोली, ‘‘हैप्पी रोज डे अंकुर. मु?ो तुम बहुत अच्छे लगते हो. आई रियली लव यू.’’

‘‘मुझे पता है. तभी तो हमारा प्यार इतना खूबसूरत है.’’

‘‘प्यार खूबसूरत है मगर रास्ते जुदा हैं. अंकुर मैं तुम से अब रोज नहीं मिल सकती. ऐक्चुअली मैं आज तुम्हें हमारे रिश्ते से आजाद करती हूं. यह कहते हुए मुझे बहुत तकलीफ हो रही है मगर हम दोनों के लिए यही सही होगा.’’

‘‘मगर ऐसा क्यों कह रही हो?’’ अंकुर की आवाज कांप उठी.

‘‘देखो अंकुर, हमारी कास्ट अलग है, हमारी सोच अलग है और हमारे जीने का तरीका भी अलग है. यानी हमारी दुनिया ही अलग है. हम शादी कर लेंगे मगर हम रोज लड़ते रहेंगे. उस से बेहतर है कि हम अपने लिए अपने जैसा कोई ढूंढ़ें ताकि हम रोज खुश रह सकें. तुम मेरी बात समझ रहे हो न?’’ कहते हुए अंजलि की आंखें भीग गईं.

फिर तुरंत चेहरे पर मुसकान लाती हुई वह उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘आई ऐम सौरी अंकुर. मैं तुम्हारा दिल नहीं तोड़ना चाहती थी. मगर जिंदगीभर एकदूसरे का दिल तोड़ने से अच्छा है हम आज यह तकलीफ सह लें,’’ कह कर अंजलि चली गई. रोज डे के दिन अंकुर को शौक दे कर. अंकुर कुछ कह नहीं सका मगर अंजलि के फैसले की वजह वह समझ रहा था.

Summer Tips : गरमियों में अपने घर को ऐसे करें तैयार, ताकि घर रहे कूलकूल

Summer Tips :  गरमियों का आगमन हो चुका है.मार्च अप्रैल के महीने में ही गरमी ने पसीने छुड़ाने शुरू कर दिए हैं.आने वाले महीनो में क्या होगा, यह सोच कर ही मन में बेचैनी सी होने लगती है.

इसलिए परेशानी आने से पहले उस का निदान करना ही बेहतर है.गरमियों में कैसे हम अपने घर को ठंडा रख सकते हैं, इस के लिए कुछ तरीके अपनाने होंगे जिस की तैयारी हम अभी से शुरू कर दें तो बेहतर होगा.

गरमियों में बिना एसी चलाए भी घर को ठंडा रखने के कई आसान और किफायती उपाय अपना सकते हैं. इस इकोफ्रैंडली स्टाइल से बिजली की बचत होगी और घर प्राकृतिक रूप से ठंडा रहेगा और स्टाइलिश भी लगेगा.

वैंटीलेशन है जरूरी

दिन के समय कमरों की खिड़की बंद रखें जिस से गरमी अंदर न आ सके.शाम के समय खिड़कियां खोल दें जिस से ताजा हवा आ सके और उमस घर से बाहर निकल सके.

हरियाली दें ठंडक और सौंदर्य

अपने घर में इंडोर पौधे लगाएं जो घर को ठंडक तो देंगे ही साथ में आप के घर का सौंदर्य भी बढ़ाएंगे.साथ ही आप छत पर व बालकनी में पौधे लगाएं क्योंकि जितनी ज्यादा हरियाली रहेगी, गरमी उतनी दूर रहेगी साथ ही घर का वातावरण भी प्रदूषण रहित रहेगा.

छत पर रखें पौधों पर ग्रीन शैड

एरिया अवश्य बनाएं.इस से पौधे भी तेज गरमी से बचे रहेंगे और छत भी कम गरम रहेगी.कोशिश करें कि यदि आप के घर के आसपास खाली जगह है तो वहां पर भी नीम, बरगद, पीपल जैसे औक्सीजन देने वाले पौधे लगाएं.

परदे हैं सहायक

परदे घर को ठंडा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं.इसलिए यदि आप को गरमी से बचने के लिए परदे लगाने हों तो ब्लैकआउट कर्टेन लगवाएं.

एलईडी बल्ब का करें उपयोग

यह बल्ब कम गरम होते हैं जिस से घर का तापमान भी अधिक नहीं बढ़ता.कोशिश करें कि जरूरत न हो तो बल्ब औफ ही रखें.ऐसा करने से आप का बिजली बिल भी कम आएगा और घर भी ठंडा रहेगा.

कारपेट हटाएं

कारपेट कमरे को गरम रखते हैं. इसलिए ज्यादा जरूरत पड़ने पर ही इन्हें बिछाएं.लकड़ी की फ्लोरिंग, मार्बल या टाइल्स घर को ठंडा रखने में सहायक होते हैं.

Beauty vs Intelligence : कैरियर हो या फिर शादी, ब्यूटी जरूरी है या स्मार्टनैस, जरूर जानिए

Beauty vs Intelligence : कई लड़कियां कम सुंदर होने की वजह से हीन भावना से ग्रस्त हो जाती हैं कि हम लोगों की पसंद की दौड़ में कहीं हैं ही नहीं और हमें इस दौड़ में शामिल भी नहीं होना. वे अपने पर बिलकुल ही ध्यान देना बंद कर देती हैं जिस की वजह से उन्हें हर जगह रिजैक्शन मिलती है और उस का कारण उन की सुंदरता नहीं, बल्कि उन की अपनी सोच है जिस वजह से उन्हें लगता है कि हमें तो कुछ करने की जरूरत नहीं है, हम जैसे हैं लोग हमें वैसे ही पसंद करें. आइए, जानें इस सोच से कैसे बाहर निकलें…

रिजैक्टेड क्यों समझती हैं

जहां एक तरफ सुंदर लड़कियां अपनी ब्यूटी को और भी अधिक चमकाने के लिए रोजरोज ब्यूटी पार्लर और शौपिंग मौल के चक्कर लगाती नहीं थकतीं, वहीं दूसरी तरफ कई बार देखने में आता है कि जो कम सुंदर लड़कियां होती हैं उन्हें लगता है कि हम तो जैसे हैं वैसे ही रहेंगे और सुंदर लड़कियों से हम कहीं मुकाबले में नहीं हैं. इसलिए वे अपनेआप को पहले ही हारा हुआ मान कर बैठ जाती हैं.

लोगों से खुद के बारे में कई तरह के कमैंट्स सुनती हुए वे बड़ी होती हैं. जैसे,”अरे देखो, इस का रंग कितना काला है. यह तो कुछ भी लगा लें काली ही रहेंगी”. कोई कहता है,”इस के फीचर्स और इस का डीलडौल इतना बेकार है कि इस पर तो कुछ जंचता ही नहीं है,” वगैरह.

ये सब बातें इस तरह की थोड़ी कम सुंदर लड़कियां अपने मन में कुछ इस तरह बैठा लेती हैं कि उन का खुद पर तवोज्जो देना, खुद से प्यार करना खुद को परखना लगभग खत्म ही हो जाता है. ये लड़कियां जब किसी जौब के लिए इंटरव्यू देने जाती हैं या फिर शादी के लिए किसी लड़के से मिलने जाती हैं तो पहले से ही खुद को रिजैक्टेड मान कर जाती हैं.

खुद को कमतर मान लेती हैं

उन्हें लगता है भला कोई लड़का मुझे क्यों पसंद करेगा. दुनिया में इतनी स्मार्ट लड़कियां हैं तो वे मुझे क्यों हां करेगा और अगर करना ही है तो मैं जैसी हूं वे मुझे वैसे ही हां करें.

इसी तरह इन्हें लगता है कि जौब में मेरी काबिलियत और एजुकेशन ही काम आएगी, वहां मेरी ब्यूटी का क्या काम. यही सब सोच कर ये लड़कियां बिलकुल तैयार हो कर नहीं रहतीं। इस का नतीजा यह होता है कि अच्छी फिगर होते हुए भी ये अपने बेकार ड्रैसिंग सैंस और नौन स्मार्ट बिहेवियर की वजह से रिजैक्ट हो जाती हैं न कि अपने कम सुंदर होने की वजह से.

स्मार्ट बनने में क्या बुराई है

अगर आप सुंदर नहीं हैं, तो क्या हुआ, आप को तो और भी ज्यादा अपनी ब्यूटी पर काम करने की जरूरत है. रैगुलर पार्लर जाएं, खूब मनपसंद शौपिंग करें, जिम जाएं और फिट रहें, नएनए फैशन को फौलो करें, अपने पर सूट करने वाले मेकअप को यूज करें, खुद में कौन्फिडेंस लाएं, खुश रहें फिर देखें कि कैसे आप के चेहरे पर निखार आता है. फिर लोग आप को रिजैक्ट नहीं करेंगे बल्कि हर गैदरिंग में आप का वेट करेंगे कि आप आज क्या खास पहन कर आ रही हैं.

जरूरी है ड्रैसिंग सैंस

आप की परफौर्मेंस के अलावा आप की पर्सनैलिटी भी आप को नौकरी देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. अगर इंटरव्यू देने जा रही हैं तो आप को अपने आउटफिट से ले कर कई बातों पर ध्यान देना होगा.

इंटरव्यू के लिए ऐसे आउटफिट का चयन करें जिस में आप प्रोफैशनल लगें. कोशिश करें कि ऐसा आउटफिट पहनें जिस में आप का व्यक्तित्व निखर कर सामने आए. इंटरव्यू में फौर्मल लुक ही कैरी करें। लेकिन अगर आप चाहें तो अपने कैजुअल आउटफिट को भी सही तरीके से लेयरिंग कर के पहन सकती हैं, ताकि ये फौर्मल का लुक दें। इस के लिए अपने साथ हमेशा एक ब्लैजर कैरी करें। आप चाहे जींस या ट्राउजर्स के साथ फौर्मल दिखने वाली टौप पहन सकती हैं.

अगर आप किसी जगह इंटरव्यू के गई हैं जहां का माहौल ज्यादा फौर्मल है तो ऐसे में ब्लैजर पहन कर आप अपने कैजुअल लुक फौर्मल टच दे सकती हैं.

जौब इंटरव्यू के लिए आप 2 पीस सूट भी पहन सकती हैं, जो आप की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता है. पर उस की लुक ग्रेसफुल होनी चाहिए। इस में आप का लुक भी बहुत अच्छा नजर आता है.

आप को अपने फुटवियर पर भी ध्यान देना चाहिए कि वे कम हील्स के साथ कंफर्टेबल होने चाहिए. यदि मौडर्न ड्रैस पहन रही हैं तो फुटवियर भी उस के अनुसार हों और यदि ट्रैडिशनल आउटफिट पहनें तो फुटवियर भी वैसा ही होना चाहिए.

अगर आप इंटरव्यू के लिए नए कपडे पहन रही हैं तो एक बार पहले तय जरूर करें कि आप उन में कौन्फिडेंट फील कर रही हैं या नहीं.

इंटरव्यू के लिए जा रही हैं तो भी मेकअप जरूर करें लेकिन मेकअप बहुत लाइट होना चाहिए और डिसेंट लगना चाहिए.

ज्वैलरी भी बेहद सिंपल होनी चाहिए. ऐसा न हो कि बिना इयरिंग के ही आप इंटरव्यू देने पहुंच जाएं. इस से आप का लुक बहुत खराब लगेगा. आप अपने लुक में घड़ी के साथ लाइट वेट ब्रैसलेट, चेन और स्टड ईयररिंग्स ऐड कर सकती हैं.

शादी के लिए किसी लड़के से मिलने जा रही हैं तो थोड़ा तैयार हो कर जाएं

अगर किसी लड़के से मिलने जाना हो तो ₹500-1000 खर्च कर के ब्यूटी पार्लर जरूर चली जाएं. थोड़ी फेस क्लींजिंग, वैक्स, आइब्रो आदि थोड़ीबहुत चीजे करवा लें. इस से लुक चेंज हो जाता है.

अगर लड़के की पूरी फैमिली मिलने आ रही हो तो उसी हिसाब से तैयार हों और अगर लड़का अकेले मिलने आ रहा है तो उसी हिसाब से तैयार हों. जैसेकि अगर पूरी फैमिली आ रही है तो आप हलकी साड़ी या फिर कोई डिसेंट सा सूट पहन लें. पार्लर जा कर हलका मेकअप भी करा सकती हैं. ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जो लड़के वाले आप को देखने आ रहें है वे भी आप से अपने स्टैंडर्ड के अकौर्डिंग कुछ तो चाहेंगे। आप उन की सोसाइटी में उठनेबैठने लायक तो लगें, तभी वे आप को पसंद करेंगे. इसलिए थोड़ाबहुत तैयार होने में कोई बुराई नहीं है.

अगर अकेले लड़के से मिलने जा रही हैं तो आप जींस आदि कुछ भी अच्छा सा पहनें जो आप पर सूट करता हो. बल्कि 1-2 अच्छे जोड़े इस चीज के लिए खरीद कर रख लें ताकि कभी किसी लड़के से मिलने जाना हो तो आप को सोचना न पड़े कि क्या पहनें.

अकेले लड़के से मिलने जा रही हैं तो अपने पास कुछ मेकअप की चीजें रखें जैसे फाउंडेशन, लिपस्टिक, कौंपैक्ट, हेयर स्ट्रैटनर आदि ताकि अगर आप को खुद घर पर ही तैयार होना हो तो आप के पास किसी भी चीज की कमी न हो.

दूसरे शब्दों में कहें तो जौब हो या शादी, आप को थोड़ी सी स्टडी करनी होगी कि जो दूसरा व्यक्ति है उस का घरबार कैसा है जो आप को मिलने आ रहा है, मैं इस के लायक हूं या नहीं, अगर नहीं हूं तो किस तरह से बन सकती हूं. यह कहने से काम नहीं चलने वाला कि जिसे पसंद करना होगा वह ऐसे ही कर लेगा. जौब में भी इस तरह से रिजैक्शन के चांस रहते हैं. आप के पास डिग्री है लेकिन आप का अच्छा बन कर नहीं आ रही हैं तो लोग आप को पसंद नहीं करेंगे. औफिस में काम करने के लिए लोगों को स्मार्ट लड़कियों की तलाश रहती है सुंदर लड़कियों की नहीं.

इसलिए भले ही आप सुंदर न हों लेकिन स्मार्ट तो आप को बनना ही पड़ेगा तभी आप सोसाइटी में मूव कर पाएंगी.

बच्चों की खातिर Divorce न ले कर मजबूरी में साथ रहने वाले शादीशुदा जोड़े बच्चों के लिए हो सकते हैं घातक

Divorce :  आज के समय में शादी करना उतना मुश्किल नहीं है जितना शादी को निभाना क्योंकि पहले जब एक बार शादी हो जाती थी तो पत्नी हजारों मुश्किलों के बावजूद पति का घर नहीं छोड़ती थी. कहते हैं, शादी एक समझौता है और यह समझौता दोनों तरफ से होता है जिस के लिए सहनशीलता, एकदूसरे का सम्मान, एकदूसरे पर विश्वास ही पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाता है. लेकिन आज के दौर में जबकि ज्यादातर औरतें आत्मनिर्भर हैं, पति के टक्कर का कमाती हैं, स्वाबलंबी हैं, ऐसे में शादी के रिश्ते को बनाए रखने के लिए पति और पत्नी दोनों में ही सहनशीलता और विश्वास की कमी आ जाती है और स्वाभिमान से ज्यादा अभिमान बीच में आ जाता है.

वजह क्या है

आज के समय में न तो कोई किसी से दबना चाहता है, न तो कोई किसी को अपनेआप से कम समझता है, जिस की वजह से शादी के कुछ महीनों बाद ही पतिपत्नी में प्रौब्लम शुरू हो जाती है। कभी वह बहस तक सीमित रहती है, तो कभीकभी मारपीट तक पहुंच जाती है. धीरेधीरे यह प्यारभरा रिश्ता कड़वाहट में बदल कर तलाक तक पहुंच जाता है.

अगर फिल्म इंडस्ट्री की बात करें तो यहां पर भी 15 से 25 साल पुराने शादीशुदा रिश्ते टूटने की कगार पर हैं क्योंकि कोई भी अपनेआप को कमतर नहीं समझता. यही वजह है कि कई सारे रिश्ते जैसे ऐश्वर्या अभिषेक, गोविंद सुनीता, मलाइका अरबाज, ऋतिक सुजेन आदि के शादीशुदा रिश्ते कड़वाहट से गुजर रहे हैं.

दरकते रिश्ते

शादी में कड़वाहट के बावजूद तलाक न ले कर बिना मन और मजबूरी में बच्चों की खातिर एक ही घर में अजनबी की तरह रहना और एकदूसरे को नापसंद करते हुए भी रिश्ता निभाना कहां तक सही और कहा तक आसान है? क्या उन टूटे रिश्तों में रहने वाले पतिपत्नी के बच्चे ऐसे मांबाप के साथ खुश रह पाएंगे, जिन मांबाप में खुद ही प्यार नहीं है? क्या वे अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य दे पाएंगे? क्या ऐसे मांबाप के साथ बच्चे खुश रहेंगे? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

जब प्यार के बीच झगङा होने लगें

कई मातापिता जो एक समय में प्यार करने वाले पतिपत्नी थे, एकदूसरे के लिए जान देने वाले जीवनसाथी थे, वे लगातार झगड़ों के चलते अब एकदूसरे का मुंह भी नहीं देखना चाहते. लेकिन फिर भी बच्चों की खातिर एकदूसरे के साथ रहने को मजबूर हैं क्योंकि ऐसे लोगों का मानना है कि अगर वे तलाक ले लेंगे तो इस का असर बच्चों पर पङेगा. बच्चों का भविष्य अंधेरे में चला जाएगा.

देखा जाए तो वे अपने तरीके से सही भी सोच रहे हैं क्योंकि अपने बच्चों को अपने आपस के झगड़े और तनाव से दूर रखना हर मातापिता चाहते हैं. लेकिन एक ही घर में एक ही साथ रहने वाले पतिपत्नी और बच्चे क्या इस तनाव से बेखबर रह सकते हैं? मांबाप के बीच का झगड़ा, गालीगलौच और तनाव क्या बच्चों के मानसिक स्तर पर बुरा प्रभाव नहीं छोड़ते? ऐसे तनावपूर्ण माहौल में जहां मांबाप एकदूसरे को जरा भी पसंद नहीं करते और हमेशा एकदूसरे को ताने मारते रहते हैं, ऐसे घरों में क्या बच्चा खुश रह पाएगा?

ऐक्ट्रैस मलाइका अरोङा का दर्द

हाल ही में ऐक्ट्रैस मलाइका अरोड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन का बेटा भी चाहता था कि मलाइका अपने पति से अलग हो जाएं क्योंकि उन का बेटा अपनी मां को दुखी या रोते हुए नहीं बल्कि खुश देखना चाहता था. मलाइका के अनुसार, अरबाज से तलाक के बाद उन के बेटे ने हमेशा उन का साथ दिया. यहां तक कि दोनों ने साथ मिल कर रैस्टोरेंट भी शुरू किया.

वहीं सोहेल खान की पत्नी ने भी अपने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि वे अपने बेटे से कुछ नहीं छिपातीं बल्कि अपनी हर बात अपने बेटे से शेयर करती हैं.

सोहेल की पत्नी के अनुसार, सोहेल से तलाक के बाद उन का बेटा हमेशा उन के साथ रहा और अपने पिता को भी उस ने पूरी इज्जत और सम्मान दिया क्योंकि बेटा चाहता था कि वे अपनी जिंदगी जीना शुरू करें, बजाए दुखी होने के.

कैसे खत्म हो मनमुटाव

इन दोनों की बातों से यही लगता है कि अगर पतिपत्नी बच्चों की खातिर साथ रह भी जाते हैं तो मांबाप के बीच मनमुटाव कभी खत्म नहीं होगा और न ही उन के बीच प्यार वाला रिश्ता फिर से बन पाएगा.

अगर ऐसे मांबाप जो बच्चों की खातिर तलाक न ले कर एकदूसरे से नफरत के बावजूद साथ में रहते हैं, ऐसा सोचते हैं कि तलाक न ले कर वे बच्चों पर एहसान कर रहे हैं। उन के तलाक न लेने से बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा, तो वे गलत सोच रहे हैं. उस के बजाए अगर पतिपत्नी बिना तलाक लिए भी अलग रह कर बच्चों का पालनपोषण करते हैं तो बच्चों का भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा क्योंकि हो सकता है कि मांबाप के खराब रिश्तों को देखने के बाद वे खुद भी शायद भविष्य में शादी के खिलाफ हो जाएं क्योंकि उन्होंने अपने मांबाप को शादी के बाद हमेशा लड़तेझगड़ते ही देखा है.

वक्त किसी के लिए नहीं ठहरता 

लिहाजा, मांबाप को अगर सही में बच्चों की चिंता है तो अपने झगड़े को साइड में रख कर बच्चों की खातिर ही सही अगर तलाक नहीं भी लेना चाहते तो कम से कम अलग हो कर बच्चों को सारी सचाई बता कर ठोस निर्णय के साथ अपनी आगे की जिंदगी जीना शुरू करें क्योंकि वक्त किसी के लिए नहीं ठहरता और जिंदगी भी बारबार नहीं मिलती, इसलिए इसे लड़झगड़ कर या रोपीट कर जाया न करें. जिंदगी में आगे बढ़ें, रास्ते अपनेआप बन जाएंगे.

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