नवजात बच्चे की सही ग्रोथ के लिए मददगार है रागी

हर मां अपने बच्चे को कुछ ऐसा खिलाना चाहती है जिसमें प्रोटीन, कौर्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन, फाइबर सरीखे तमाम जरूरी पोषक तत्व हो, जिसे खाकर बच्चे को संपूर्ण पोषण मिलें और बच्चा सेहतमंद रहे. अगर आप भी कुछ ऐसी ही खोज में हैं, तो रागी सबसे बेहतरीन विकल्प है, जिसे आप विभिन्न तरीकों से अपने बच्चे की डाइट में शामिल कर सकती हैं. शैली मेहरा (होममेकर) कहती हैं कि अपनी बेटी को उसके पहले आहार (दूध छूटने के बाद) से ही मैं ने रागी खिलाना शुरू कर दिया था क्योंकि मुझे मेरी दादी ने इसके उच्च पौष्टिक गुणों के बारे में बताया था और इसे अपनी बेटी को खिलाने के बाद मुझे उस के पोषण से जुड़ी कोई चिंता नहीं होती है.

बाल चिकित्सक डा. संजय निरंजन कहते हैं कि रागी कई लाभ और पौष्टिक गुणों के कारण एक अनोखा अनाज है. आप बच्चे को कई तरह से रागी खिला सकती हैं. रागी में महत्वपूर्ण अमीनो एसिड जैसे आइसोल्यूसिन, ल्यूसिन, मेथिओनीन एवं फिनाइल एलिनीन होते हैं जो स्टार्च वाले अन्य खा- पदार्थों जैसे चावल में नही होते हैं.

कैल्शियम से भरपूर

आपने डाक्टर को यह कहते सुना होगा कि बच्चों को कैल्शियम से भरपूर आहार देना चाहिए क्योंकि बढ़ते बच्चे को कैल्शियम की जरूरत होती है. कैल्शियम बच्चों की हडिड्यों व दांतों को मजबूत बनाने के साथ लंबाई बढ़ाने में भी मदद करता है, इसलिए बच्चे को ऐसा आहार देना जरूरी है, जो कैल्शियम से भरपूर हो और रागी उन्हीं में से एक है, जो बच्चों में हड्डी के फ्रैक्चर के जोखिम को कम करने और हड्डियों की समस्याओं को दूर रखने में मदद करती है और बच्चों में कैल्शियम की कमी को पूरा करती है.

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आयरन की न होने दे कमी

बच्चे के लिए आयरन बहुत आवश्यक होता है क्योंकि आयरन की कमी से बच्चे में रक्तलपता रोग हो सकता है, इसलिए जरूरी है कि दो साल की उम्र तक बच्चे को अधिक आयरन वाले आहार दें. वैसे कुछ ऐसे खा- पदार्थ होते हैं, जो शरीर में आयरन की कमी को पूरा करते हैं और रागी उन्ही में से एक है, क्योंकि इस के सेवन से शरीर में खून की कमी नहीं होती है. यह हीमोग्लोबिन के लेवल को भी बढ़ाने का काम करता है. इसे खाने से बच्चे में स्ट्रेस, डिप्रेशन, अनिद्रा की समस्या भी घट जाती है, इसमें मौजूद एंटीऔक्सीडेंट्स, ट्रिप्टोफेन और अमीनो एसिड प्राकृतिक रूप से तनाव से छुटकारा दिलाते हैं.

कब्ज से राहत दिलाए

छोटे बच्चों में कब्ज होते ही उन्हें पेट दर्द की समस्या हो जाती है. लेकिन बच्चों को रागी खिलाने से उन्हें कब्ज नहीं बनती है क्योंकि रागी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है और फाइबरयुक्त आहार के सेवन से कब्ज और अपच में सहायता मिलती है.

भूख को करें कम

कई बार बिना भूख के भी बच्चे खाना मांगते हैं और मोटापे के शिकार हो जाते हैं. लेकिन रागी खाने से आपके बच्चे की बार-बार खाना मांगने की आदत छूट सकती है क्योंकि रागी में ट्राइपोफान एमिनो एसिड होता है, जो भूख को कम करता है और बच्चे के स्वास्य्ं को बेहतर बनाता है.

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ताकि बच्चा ले पूरी नींद

दूध पी लेने भर से बच्चे का पेट नहीं भरता है, बल्कि पेट भरने के लिए बच्चे को ठोस आहार खिलाना पड़ता है और रागी से बेहतर और सेहतमंद आहार भला क्या होगा, जिसे खाकर बच्चे का पेट भरे और बच्चा लंबे समय तक सोए.

इम्यूनिटी रहे मजबूत

अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होनी चाहिए, तो उसे रागी से बने आहार खिलाइए क्योंकि इसमें उच्च पोषक तत्व होते हैं, जो इम्यूनिटी मजबूत करते हैं और बच्चे को अंदर से मजबूत बनाते हैं.

रागी एक फायदे अनेक

रागी को अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि बिहार में रागी को मडुआ तो अंग्रेजी में इसे फिंगर मिलेट कहा जाता है, जिस तरह से इसके नाम अनेक एक उसी तरह से इसमें गुण भी अनेक है.

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– 6 महीने के बाद बच्चे को ठोस आहार खिलाना जरूरी होता है और आप अपने बच्चे को रागी से बना दलिया खिला सकती हैं क्योंकि यह शिशु के लिए लाभप्रद होता है, जो पौषक तत्वों से भरपूर होता है.

– जहां रागी शिशुओं की पाचन शक्ति को सही रखती है, वहीं इसमें मौजूद कैल्शियम और आयरन विकास में सहायक है.

– मां का दूध छूटने के बाद रागी से बनी खिचड़ी, हल्वा बच्चे को खिलाने के लिए अच्छे विकल्प हैं.

– दूध पिलाने वाली मां भी रागी को अपने आहार में शामिल कर सकती हैं.

जानिए क्यों प्रेग्नेंसी के दौरान लात मारता है बच्चा

प्रेग्नेंसी के दौरान प्रैग्नेंट महिलाओं को खुद में अनेक प्रकार के बदलाव देखने को मिलते हैं. जैसे-जैसे समय बीतता है यह बदलाव बढ़ता चला जाता है इस बदलाव के साथ प्रैग्नेंट महिलाओं को पेट में पल रही नन्हीं सी जान यानी की बच्चा और उसकी हरकतों में भी बदलाव महसूस होने लगता है. जैसे की बच्चे का पेट में पैर मारना हालांकि यह एहसास मां और परिवार वालों के लिए बहुत ही खास होता है. इसको महसूस करने का मजा तो सभी लेते है, लेकिन इस के पीछे का कारण क्या है इस से सभी अंजान है. प्रैग्नेंट महिलाएं भी समझ नहीं पाती आखिर बच्चा पैर क्यों मारता है. अगर आप भी इस के बारे में नहीं जानते तो आप नीचे दिए गए पौइंट्स को जरूर पढे. इसमें हम आपको बताएंगे ऐसे 6 कारण जिस वजह से प्रेंग्नेसी के दौरान बच्चें पैर मारते हैं.

प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चे के पैर मारने से जुड़े 6 कारण

1. बच्चा है हेल्दी

अगर महिला की प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चा पेट में लात मारता है या ऐसी कुछ हरकत करता है, तो इसका मतलब है कि बच्चा अंदर बिल्कुल स्वस्थ है. यह एक प्रकार से बच्चे का स्वस्थ होने का संकेत है.

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2. सही पोषण भरपूर एनर्जी

प्रैग्नेंट महिला जब कुछ खाती है तब बच्चा अधिक लात मारता है. दरअसल, मां के खाना खाने के बाद शिशु को उस भोजन से एनर्जी और पोषक तत्व मिलते है, जिससे बच्चा पेट में हलचल या लात मरने लगता है.

3. जब प्रैग्नेंट महिला लेटती है बाईं तरफ

बाईं तरह लेटने या सोने से शिशु के तरफ रक्त की आपूर्ति में वृद्धि हो जाती है. जब प्रैग्नेंट महिलाएं बाईं तरफ सोती है तब बच्चा पेट में हलचल या लात मरने लगता है.

4. जब बच्चा बाहरी परिवर्तन महसूस करने लगें

गर्भ में पल रहा बच्चा जब बाहरी परिवर्तन को महसूस करने लगता है तब वह भी अपनी प्रतिक्रिया देने की कोशिश करता है. ऐसे में बच्चा पेट में लात मारना शुरू कर देता है.

5. औक्सीजन में जब न हो रुकावट

सही रूप से औक्सीजन मिलने पर बच्चा अंदर स्वस्थ और एक्टिव रहता है. अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लात नहीं मारता इसका मतलब है उसे औक्सीजन लेने में  दिक्कत है या फिर उसे पर्याप्त रूप से औक्सीजन नहीं मिल रहा है.

6. नौवें हफ्ते के बाद शुरू होती है शिशु का लात मारने का प्रतिक्रिया

प्रैग्नेंट महिला के पेट में पल रहा बच्चा 9 सप्ताह बाद पेट में लात मारना शुरू करता है. अगर महिला दूसरी बार प्रैग्नेंट होती है तो शिशु 13 सप्ताह बाद यह प्रक्रिया शुरू करता है.

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Edited by Rosy

अब पेट भी रहेगा फिट

रिया एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत युवा, उत्साही सौफ्टवेयर इंजीनियर है. अभी हाल तक सब कुछ ठीक-ठाक था. फिर एक दिन उसे सीने में जलन होने लगी. लंच के बाद पेट जैसे फूलने लगा. उस के बार-बार टौयलेट के चक्कर लगने लगे. इस सब से परेशान रिया के जहन में बस एक ही बात आ रही थी कि मैं ने ऐसा क्या खाया है.

यह सच है कि हमारे पेट में जब भी कोई प्रौब्लम होती है हम उसे अपने खानपान से जोड़ कर देखते हैं, जबकि पेट की हर बीमारी सिर्फ खाने की वजह से हो ऐसा बिल्कुल नहीं है. बल्कि इस के लिए बैक्टीरिया कारण हो सकता है. आस्ट्रेलियाई डाक्टर बैरी जे. मार्शल ने यह पाया कि पेट में जितने भी विकार होते हैं उस का कारण एक बैक्टीरिया है, जिसे हेलिकोबैक्टर पायलोरी कहते हैं. यह सच है कि पूरी दुनिया की आबादी के 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग हेलिकोबैक्टर पायलोरी से संक्रमित हैं और पेट से जुड़ी जितनी भी बीमारियों होती हैं उन सब के लिए यह अकेला ही जिम्मेदार है. अगर इस बैक्टीरिया का सफाया हो जाए, तो आप पेट की किसी भी बीमारी से पीडि़त नहीं होंगे.

1. नौर्मल प्रौब्लम है पेट में एसिड

हमारे पेट में एसिड भोजन को पचाने का काम करता है, लेकिन कई बार पेट में एसिड जरूरत से ज्यादा बनने लगता है. अब पेट में भोजन कम और एसिड ज्यादा हो जाता है, जिस से एसिडिटी की प्रौब्लम हो जाती है. मसालेदार और वसायुक्त भोजन करने से एसिडिटी होने लगती है. इसके अलावा समय पर भोजन न करने से भी एसिडिटी हो जाती है. विशेषज्ञों का मानना है कि एसिडिटी का एक कारण तनाव लेना भी है.

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ऐसे करें इलाज

एसिडिटी की प्रौब्लम से परेशान लोग सुबह उठने के बाद पानी पीएं. इस के अलावा रोज खाने के साथ केला, तरबूज, पपीता और खीरा खाएं. एसिडिटी के उपचार में तरबूज का रस फायदा करता है. नारियल पानी पीने से भी एसिडिटी से निजात मिलती है.

2. गैस की प्रौब्लम को करें दूर

अधिक समय तक खाना न मिलने से पेट में गैस की प्रौब्लम हो जाती है. पेट में आवश्यकता से अधिक गैस बनने से वह शरीर के बाकी अंगों के लिए खतरनाक होने लगती है. इसलिए गैस की प्रौब्लम होते ही इस पर ध्यान देना चाहिए.

ऐसे करें इलाज

गैस की शिकायत होने पर ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए. वहीं गैस को ठीक करने के लिए एक नीबू के रस में दो चम्मच पानी और स्वादानुसार काला नमक मिलाकर चुटकीभर खाने का सोडा मिलाकर पीएं. इस के अलावा गैस से राहत पाने के लिए पवन मुक्त आसन करना बहुत लाभदायक है.

3. पानी कम पीने से भी होता है कब्ज

कब्ज पानी कम पीने से भी होती है. कब्ज की प्रौब्लम होने पर भूख नहीं लगती और शौच में प्रौब्लम होती है.

ऐसे करें इलाज

कब्ज की प्रौब्लम से छुटकारा पाने के लिए हरी सब्जियां खाएं क्योंकि इन में रेशे की मात्रा अधिक होती है. इसके अलावा आप फल और चोकर युक्त आटा खा सकते हैं.

4. पेट की प्रौब्लम में से एक है उल्टी होना

बार-बार उल्टी आना और जी मिचलाना पेट में रोग का कारण हो सकता है. ऐसा होने पर रोग का पता लगाना और इलाज करना जरूरी हो जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ताकि आगे चल कर कोई बड़ा रोग न हो जाए.

ऐसे करें इलाज

उल्टी आने या जी मिचलाने पर हल्का भोजन करना चाहिए. कोशिश करनी चाहिए इस दौरान अधिक से अधिक दही का सेवन किया जाए. पुदीने का शरबत भी काफी असरदार हो सकता है.

5. मौसम बदलने पर लूज मोशन है नौर्मल

अकसर देखा जाता है कि मौसम बदलने पर लूज मोशन की शिकायत हो जाती है. इस के अलावा खराब भोजन खाने पर भी कई बार लूज मोशन का शिकार हो जाते हैं. इस के बाद शारीरिक कमजोरी होने लगती है.

 ऐसे करें इलाज

लूज मोशन की शिकायत होने पर मूंग दाल की खिचड़ी और दलिया ही खाना चाहिए. इस के साथ आप दही का सेवन भी कर सकते हैं. वहीं केला और कब्ज वाली भूसी खाने से भी लूज मोशन ठीक करने में सहायता मिलती है.

6. बेहतरीन सेहत के लिए अपनाएं ये मंत्र

– दही, तरबूज, खरबूज, पालक, गाजर, सेब समेत अन्य फाइबरयुक्त खानपान लें. इस से आंतों की गति संतुलित रहती है.

– मानसिक तनाव से भी अपच, गैस व दस्त हो सकते हैं. योग व साधना करें.

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– बेवजह दवाएं न खाएं. इस से ड्रग इंड्यूज्ड डायरिया होने का रिस्क रहता है.

घरेलू उपचार के अलावा एक और विकल्प है

दशकों से विश्वसनीय एवं विश्वस्तरीय स्टोमाफिट अपनाएं और पेट की बीमारियों को कहें बाय-बाय. यह दवा आप के स्टमक को एकदम फिट रखती है. साथ ही गैस्ट्राइटिस के लिए यह किसी अमृत से कम नहीं है. एसिडिटी, पेट फूलना, गैस, बदहजमी, पेट दर्द, डायरिया, कब्ज़, उल्टी, आंव यह एक दवा आपको इतनी सारी बीमारियों से मुक्ति दिलाती है और पहली ही खुराक में फायदा करती है. इस दवा की एक खास बात यह है कि मधुमेह से पीडि़त लोग भी इसका सेवन कर सकते हैं, क्योंकि यह दवा शुगर फ्री है.

बच्चों को ना पिलाएं प्लास्टिक बोतल से दूध, हो सकता हैं प्रोस्टेट कैंसर

एक शोध में कहा गया है कि बच्चों के प्लास्टिक बोतलों में पाया जाने वाला रसायन उनके बाद के जीवन में प्रोस्टेट कैंसर की संभावना को बढ़ा देता है. वैज्ञानिकों ने इसका परीक्षण चूहों के जन्मे बच्चों पर किया. परीक्षण में चूहों को बिसफेनोल-ए खिलाया गया. बिसफेनोल-ए रसायन का इस्तेमाल ज्यादातर प्लास्टिक के निर्माण में किया जाता है. परीक्षण में चूहों की उम्र बढ़ने के साथ ही उनमें पूर्व कैंसर कोशिकाओं के विकास होने की संभावना देखी गई.

वैज्ञानिकों का कहना है कि उनका यह निष्कर्ष बच्चों के स्वास्थ्य से सीधे तौर पर जुड़ा है. पत्रिका रिप्रोडक्टिव टॉक्सीकोलोजी के अनुसार वैज्ञानिकों की यह चेतावनी यूरोप के खाद्य पदार्थो की निगरानी करने वाली एजेंसी के उस बयान के बाद आया है,जिसमें कहा गया है कि इतनी रसायन की मात्रा मनुष्य रोजाना ग्रहण करता है.

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रसायन की इस मात्रा से नुकसान पहुंचने की संभावना काफी कम है. एक समाचार पत्र के मुताबिक फूट स्टैंडर्ड एजेंसी ने कहा है कि रसायन बिसफेनोल-ए में नुकसान करने की क्षमता नहीं है. लेकिन ताजा अध्ययन ने इस रसायन को लेकर चिंता जाहिर की है. इस रसायन का इस्तेमाल सीडी, धूप के चश्मे, प्लास्टिक चाकू, कांटे, मोबाइल फोन के निर्माण में किया जाता है.

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इलीनाएस विश्वविद्यालय के शोधकर्ता गेल प्रिंस ने बताया, “प्रोस्टेट स्वास्थ्य के बारे में जो नतीजे सामने आए हैं, वे बिसफेनोल-ए के संपर्क में आने वाले मनुष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.” उल्लेखनीय है कि बिसफेनोल-ए को पहले भी स्तन, प्रोस्टेट कैंसर और हृदयघात से जोड़कर देखा गया है.

 

पीरियड्स में रखें अपनी डाइट का ख्याल

पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों और मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है. टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

इन से करें परहेज

  1. व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.
  2. बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.
  3. पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.
  4. कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.
  5. ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.
  6. कैफीन का सेवन भी न करें.

अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-

  •  ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.
  • पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.
  • अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.
  • थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.
  • यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.

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यह भी रहे ध्यान

  • 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.
  • ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.
  • 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.
  • अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.

अन्य सावधानियां

  • पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.
  • भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.
  • पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.
  • पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.
  • अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.

डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.

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कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.

आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.

खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.

विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.

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प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.

अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.

पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.

प्रैगनैंसी में करें ये डाइट फौलो

प्रैगनैंसी से लेकर लैक्टेशन के पीरियड तक मां अनेक शारीरिक और हारमोनल बदलावों से गुजरती है. ऐसे में अगर शरीर को सभी जरूरी पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो उस का हैल्थ पर सीधा प्रभाव पड़ता है. जानिए, इस संबंध में डा. वंदना सी शर्मा, एमबीबीएस, एमडी, ओब्सटट्रिशियन ऐंड गाइनोकोलौजिस्ट, इंटीग्रेटेड वैलनैस कंसल्टैंट से:

जब हों गर्भवती

इस दौरान मां को अपनी सेहत के साथसाथ गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत भी सुनिश्चित करनी होती है. इस दौरान डाइट में इन चीजों का ध्यान रखें:

फौलिक ऐसिड: जितना हो सके विटामिन बी युक्त भोजन को अपनी डाइट में शामिल करें. इस के लिए आप हरी पत्तेदार सब्जियां, बींस, साबूत अनाज, दूध, नट्स ज्यादा मात्रा में लें. कई बार शरीर को इस की जितनी मात्रा की जरूरत होती है उस की पूर्ति इन खाद्यपदार्थों से नहीं हो पाती है, जिस के लिए फौलिक ऐसिड के टैबलेट दिए जाते हैं. खासकर प्रैगनैंसी के 3 से 6 महीने पहले से ये टैबलेट दिए जाते हैं.

कैल्सियम: कैल्सियम एक खनिज है, जिस के माध्यम से बच्चे की हड्डियां व दांत मजबूत होते हैं और अगर प्रैगनैंट वूमन इसे भरपूर मात्रा में नहीं लेती है तो बच्चे में इस की कमी रह जाती है. इसलिए इतने महत्त्वपूर्ण समय में हरी पत्तेदार सब्जियां, सोयाबीन, टोफू, नट्स बगैरा खाना न भूलें.

प्रोटीन: प्रैगनैंसी के समय ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन रिच फूड लें, क्योंकि यह बच्चे के शरीर के जरूरी अंगों जैसे ब्रेन और हार्ट के निर्माण में सहायक होता है. इस के लिए आप बींस, मटर, अंडे, नट्स, टोफू को अपने खाने में शामिल करें.

लिक्विड: शरीर में पानी की कमी न होने दें. इस के लिए दिन में 2-3 बार नारियल पानी, पानी, फ्रैश जूस पीएं. इस से शरीर के हाइड्रेट रहने से ताजगी बनी रहती है.

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डेयरी प्रोडक्ट्स: इस समय आप दूध, दही, छाछ, पनीर आदि जितना हो सके लें, क्योंकि इन से शरीर को विटामिन बी-12, कैल्सियम, प्रोटीन भरपूर मात्रा में मिलता है.

नट्स: ओमेगा 3 फैटी ऐसिड व अन्य हैल्दी फैट्स के अच्छे स्रोत होने के कारण बच्चे के मस्तिष्क के विकास में काफी मददगार होते हैं. इसलिए बादाम व अखरोट खूब खाएं.

फ्रूट्स: मौसमी फल खाएं, क्योंकि इस से शरीर हाइड्रेट रहता है. बस ध्यान रखें कि बहुत ज्यादा न खाएं.

गर्भावस्था में आयरन का महत्त्व

इन सभी पोषक तत्त्वों के साथ-साथ महिलाओं के लिए आयरन की सही मात्रा शरीर में बनाए रखना भी जरूरी है. खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को अपनी व गर्भ में पल रहे बच्चे की अच्छी सेहत सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में आयरनयुक्त डाइट लेनी चाहिए.

आइए, जानते हैं कि गर्भवती महिलाओं के लिए आयरन का क्या महत्त्व है:

शरीर में आयरन की भूमिका: आयरन खून में हीमोग्लोबिन का सब से बड़ा धारक होता है, जो शरीर में औक्सीजन पहुंचाने के साथसाथ उसे ऊर्जा देने का भी काम करता है. यही नहीं यह शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है और अगर इस की कमी हो जाती है तो हर समय कमजोरी, थकान बगैरा रहती है.

प्रैगनैंसी के दौरान निम्न तरह की समस्याएं पैदा होने का खतरा रहता है:

हीमोग्लोबिन के स्तर का कम होना: जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में आयरन नहीं होता है, तो हीमोग्लोबिन का स्तर गिरने लगता है. हीमोग्लोबिन लाल रक्तकोशिकाओं में पाया जाता है, जो फेफड़ों के साथसाथ शरीर के विभिन्न अंगों तक भी औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. लेकिन आयरन की कमी के कारण इस प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है और थकान का एहसास होने लगता है.

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फौलेट की मात्रा पर असर: फौलेट एक विटामिन है, जो पोषण व आयरन युक्त खाने से आसानी से प्राप्त हो जाता है. यह नए सैल्स के साथसाथ हैल्दी ब्लड सैल्स को बनाने का भी काम करता है. लेकिन प्रैगनैंसी के दौरान ज्यादा फौलेट की जरूरत होती है जो खाने से पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है. ऐसे में डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट जैसे लिवोजिन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

आयरन की कमी से बच्चे पर प्रभाव: वैसे तो प्रैगनैंसी के दौरान ऐनीमिया की कमी से हर महिला को जूझना पड़ता है, लेकिन जब यह कमी ज्यादा बढ़ जाती है तो अन्य समस्याएं भी ले कर आती है जैसे समय से पहले बच्चे का जन्म, बच्चे का वजन कम होना व उस का विकास धीमी गति से होना.

ऐसे करें आयरन की कमी पूरी

प्रैगनैंसी के दौरान आप जो भी खाएं वह पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर हो, खासकर उस में आयरन की मात्रा भरपूर हो. जानिए, आयरन रिच फूड के बारे में:

टूना फिश: यह स्वादिष्ठ होने के साथसाथ पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होती है. इस में आयरन की मात्रा बहुत अधिक होता है.

पालक: पालक आयरन का बेहतरीन स्रोत होने के साथसाथ यह खून की कमी को दूर करता है. इस में विटामिन सी भी बहुत अधिक मात्रा में होता है जो शरीर में आयरन को अवशोषित करने में मदद करता है.

रैड मीट: रैड मीट पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होता है, साथ ही इस में प्रोटीन, जिंक और विटामिन बी भी पाया जाता है. शोधों के अनुसार, आयरन की कमी उन में नहीं होती जो मीट, मछली आदि खाते हैं.

ब्रोकली: ब्रोकली में आयरन की मात्रा काफी अधिक होती है. ऐंटीऔक्सिडैंट से भरपूर होने के कारण यह शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करती है.

साबूत अनाज: खून की कमी को दूर करने के लिए साबूत अनाज को अपनी डाइट में जरूर शामिल करें, क्योंकि इस में आयरन भरपूर मात्रा में होता है.

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लैक्टैटिंग मदर्स

गर्भवती महिला से अधिक दूध पिलाने वाली मां को ज्यादा पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है. उन के लिए जरूरी है कि वह दूध, दही, दलिया, पनीर, बादाम जरूर खाए. ध्यान रखें कि अकसर डिलिवरी के बाद महिलाएं घी वाले लड्डू, घी की चीजों का सेवन ज्यादा करती हैं. इस से बेहतर है कि आप ज्यादा से ज्यादा हैल्दी चीजें खाएं. थोड़ीथोड़ी देर में फ्रूट, सलाद खाती रहें.

Edited by Neelesh Singh Sisodia 

युवाओं को भी हो सकता है आर्थराइटिस का दर्द

कुछ दिनों तक वह अपनी तकलीफ नजरअंदाज करती रही. समय के साथ उस के हाथों और उंगलियों में सूजन आने लगी. डॉक्टर ने जांच के बाद पाया कि उसे रूमेटॉयड आर्थराइटिस (आरए) है. श्रुति को लगा कि उस के डौक्टर से शायद कोई गलती हुई है क्यों कि आर्थराइटिस होने के लिए उस की उम्र अभी बहुत ही कम है. वह अपने परिवार के कुछ ऐसे लोगों को जानती थी जो आर्थराइटिस से पीडि़त थे लेकिन उन में से किसी की भी उम्र 50 वर्ष से कम नहीं थी.

युवाओं में यह एक आम सोच है कि आर्थराइटिस बुजुर्गों की बीमारी है इसलिए उन में से अधिकांश अपनी हड्डियों की सेहत को ले कर सतर्क नहीं रहते हैं. उन्हें लगता है कि वे अभी यंग हैं. लेकिन अब लोगों को अपनी सोच बदलने का समय आ गया है. उन्हें यह मान लेना चाहिए कि आज के समय में युवाओं को भी किसी भी तरह की बीमारी हो सकती है. जरुरी है कि उस से दूर भागने की जगह समय रहते उपचार करवाएं.

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इस बात का भी ख्याल रखें कि अपनई सेहत अपने हांथों में ही होती है. समयसमय पर जांच और शरीर की देखभाग हर तरह की समस्याओं से बचा सकती है. मूल रूप से ओस्टियोआर्थराइटिस आर्थराइटिस का ही एक रूप है जो कि उम्र के बढऩे पर अधिक पाई जाती है लेकिन रूमेटॉयड आर्थराइटिस किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है.

सच तो यह है कि आर्थराइटिस से पीड़ित युवाओं की संख्या में अचानक ही काफी तेजी आ गई है. यह परेशानी खासकर ऑफिस जाने वाले लोगों में ज्यादा देखी जाती है. वे अक्सर जोड़ों के दर्द, सूजन या कड़ेपन की शिकायत करते हैं. इस के कई कारण हो सकते हैं लेकिन सब से बड़ा कारण है गलत जीवनशैली और कमजोर डाइट. आज के युवा न तो व्यायाम में दिलचस्पी लेते है और न ही उन में खानपान की स्वस्थ आदत का विकास हो पाता है.

क्या है रूमेटौयड आर्थराइटिस

रूमेटौयड आर्थराइटिस एक औटोइम्यून बीमारी है जिस में आप का इम्यून सिस्टम अत्यधिक सक्रिय हो जाता है और आप के शरीर के अंदरूनी जोड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है. यह आप को किसी भी उम्र में प्रभावित कर सकता है. इस के सामान्य लक्षणों में शामिल है जोड़ों में सूजन, सुबह उठने पर उन में कड़ापन, दर्द जो खत्म नहीं होता-या कई हफ्तों तक बना रहता है आदि. हालांकि इस बीमारी से लडऩे के कई तरीके हैं. इस सन्दर्भ में सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर ,गाजियाबाद के डॉ. अखिलेश यादव बचाव के कुछ उपाय बताते हैं;

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हड्डियों को बनाएं मजबूत – हड्डियों की सेहत के लिए सुबह की धूप लेना महत्वपूर्ण है. ज्यादातर युवा जिन का अधिकांश समय कार या ऑफिस के अंदर बीतता है, उन्हें सुबह के समय थोड़ी देर धूप में जरूर बिताना चाहिए. साथ ही उन्हें सेहतमंद जीवनशैली जीने पर जोर देना चाहिए जैसे नियमित रूप से जिम जाना, उछलकूद वाले खेलों में हिस्सा लेना, जॉगिंग, स्वीमिंग, टेनिस खेलना आदि. इस से जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां मजबूत बनी रहती हैं.

हौबी आधारित शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए जैसे डांसिंग, एरोबिक्स, योगा, और टहलना आदि, क्यों कि हड्डियों को दबाव की जरूरत होती है जिस के लिए ये तरीके लाभदायक साबित होते हैं.हर दिन कम से कम दो घंटे अपने पैरों पर थोड़ा दबाव जरूर डालें. आर्थराइटिस के कई मरीजों को ऐसा लगता है कि वे अपने पसंद की काम नहीं कर सकते, जैसे दौडऩा, तेज गति वाले खेल, लेकिन सही इलाज के साथ लोग इस तरह की गतिविधियों के भी लाभ उठा सकते हैं.

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आर्थराइटिस से बचाव के उपाय

  • आर्थराइटिस के प्रभाव को कम करने के लिए युवाओं को अपने भोजन में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम लेना चाहिए.
  • औफिस में घंटों एक जगह बैठ कर या खड़े हो कर काम करने वाले लोगों को हर आधे घंटे पर 5 मिनट का ब्रेक ले कर हांथों और पैरों को स्ट्रेच करना चाहिए.
  • धूम्रपान, उचित रूप से भोजन न करना, शराब पीने जैसी अस्वस्थकर आदतें हड्डियों की कार्यप्रणाली पर विपरीत प्रभाव डालते हैं और इस से उन लोगों में आरए होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए इन आदतों को सुधारें.
  • प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ लें, जिस में वसा की मात्रा कम हो और पर्याप्त मात्रा में खनिज हों.
  • जंक फूड खाने से बचना चाहिए क्यों कि इस से केवल वजन बढ़ता है.
  • यदि किसी को बचपन में मिरगी की समस्या रही हो तो उन के शरीर में कैल्शियम का अवशोषण होने में परेशानी होती है. इस बारे में अपने डॉक्टर से जरूर बात करें.
  • यदि आप के पैरों में एक हफ्ते से अधिक दर्द या कड़ापन महसूस हो तो देर न करें और तुरंत ही रूमेटोलॉजिस्ट से सलाह लें. यदि जरूरत होगी तो वे आप को ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देंगे.

Edited by – Neelesh Singh Sisodia 

साइकिलिंग से रहे सेहतमंद जाने कैसे…

शारीरिक फिटनेस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइकिलिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

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फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइक्लिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

शारीरिक फिटनैस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइक्लिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

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फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइकिलिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग  के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

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साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

 

-शिव इंदर सिंह

एम.डी., फायरफौक्स बाइक्स प्रा.लि.

वर्ल्ड थायराइड डे: जाने क्यों होता है थायराइड

बात करें साल 2018 की तो पूरे भारत में करीब 42 मिलियन भारतीयों में अलग-अलग प्रकार के थायराइड डिसऔर्डर पाए जा चुके हैं. भारत में थायराइड की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं और खासकर महिलाओं में. इसका कारण यह है कि पुरुषों की तुलना में एक महिला के शरीर में हार्मोन असंतुलन की संभावना अधिक होती. महिलाएं हार्मोन संबंधी बदलावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं

थायराइड डिसऔर्डर

यह बीमरी आमतौर पर थायराइड ग्रंथि(Gland)  की अधिक सक्रियता या फिर कम सक्रियता से होते हैं. सर्वाधिक पाए जाने वाले थायराइड डिसऔर्डर हैं – हायपरथायरौइडिज्‍म (थायराइड गतिविधि में असाधारण वृद्धि), हाइपोथायरौइडिज्‍म (थायराइड गतिविधि में असाधारण गिरावट), थायरौइडाइटिस (थायराइड ग्रंथि में सूजन), गोइटर और थायराइड कैंसर. थायराइड की बीमारियों की जांच और इलाज बेहद आसान है.

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 “प्राथमिक उपचार”

अगर थायराइड ग्रंथि (Gland) में थोड़ी सी भी सूजन नज़र आती है तो बिना किसी लापरवाही के इसकी तुरंत जांच करानी चाहिए. जब भी इसके संकेत देखने को मिलें तो तत्काल डॉक्टर की सलाह लेनी ज़रूरी है. थायराइड पर नियंत्रण के लिए इसकी जल्द पहचान और इलाज दोनों ही महत्वपूर्ण है.

गर्भवती महिलाओं को ज्यादा खतरा”

एक गर्भवती महिला को थायराइड डिसऔर्डर का खतरा अधिक होता है, खासकर तब जब उसके शरीर में थायराइड गतिविधि असाधारण रूप से अधिक या कम हो जाती है. महिला के शरीर में हार्मोन स्तर असंतुलित होने से विभिन्न प्रभाव देखने मिलते हैं, जैसे असामान्य माहवारी(Menstruation), असंतुलित या गैर-मौजूद ओव्युलेशन चक्र (Ovulation cycle),मिसकैरेज,समय पूर्व प्रसव,गर्भ में मृत शिशु की डिलीवरी,प्रसव के बाद रक्तस्राव और जल्द रजोनिवृत्ति(Menopause) की शुरुआत भी हो सकती है.

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बचाव-

शरीर में आयोडीन की कमी को आसानी से अपने आहार में नियंत्रण रखे साथ ही नियमित व्यायाम से थायराइड के खतरे को दूर किया जा सकता है. थायराइड की समस्याएं रोकने के लिए व्यस्कों को 150 एमसीजी आयोडीन का प्रतिदिन सेवन करने की सलाह दी जाती है. वहीं, गर्भवती महिलाओं के लिए यह मात्रा अधिक होती है.

लक्षण

1.थकान

2.एकाग्रता में कमी

3.रूखी त्वचा

4.कब्ज़

5.ठंड लगना

6.शरीर में तरल पदार्थों का रुकना / वजन बढ़ना

7.मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द

डिप्रेशन

8.बाल झड़ना

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थायराइड डिसऔर्डर की जांच एवं पुष्टि के लिए शारीरिक जांच के अलावा कुछ विशेष परीक्षण भी किये जाते हैं. आमतौर पर खून की जांच के द्वारा थायराइड हार्मोन और टीएसएच (थायराइड स्टिम्यूलेटिंग हार्मोन्स) स्तर की जांच भी की जाती है. उपरोक्त कोई भी लक्षण महसूस होने पर थायराइड हार्मोन्स स्तर और टीएसएच जांच की सलाह दी जाती है. अधिकतर मामलों में थायराइड डिसऔर्डर को इलाज के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है और इनसे जान को खतरा नहीं होता. हालांकि कुछ स्थितियों के लिए सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है.

क्या आप जानते हैं सेहत से जुड़े इन 5 मिथों का सच

“गोरे पन को बढ़ाना हो या खूबसूरती को निखारना, दाग धब्बे हटाना हो या चेहरे को चमकाना”. हम अक्सर टीवी पर दिखने वाली फैंसी बोतलों और उनपर लिखी चंद पंक्तियों के दावों को सच मानकर दुकानों पर जाकर प्रोडक्ट्स को खरीद लेते हैं. हमारी इस लालसा को और बढ़ाती है उस प्रोडक्ट्स पर छपी तस्वीरें. खूबसूरती को बढ़ाने के चक्कर में हम ये भूल जाते है की त्वचा की देखभाल के लिए सभी प्रोडक्ट्स फिट नहीं बैठते. आपकी स्किन के लिए क्या सही है और क्या गलत, आपकी स्किन के लिए कौनसा प्रोडक्ट्स असर करेगा कौनसा नहीं,आपका बजट और अन्य चीजों की उधेड़बुन में हम अक्सर गलत उत्पादों को खरीद बैठते हैं और कई समस्याओं का शिकार हो जाते हैं. इसलिए आज हम आपको बतायेंगे वो पांच मिथों के बारे में जिसकी सच्चाई जानना आपके लिए बेहद जरूरी है.

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1.“छोटी मात्रा

यह मिथ हमारे बालों से लेकर त्वचा की देखभाल तक के लिए है. आम तौर पर कंपनियों अपने प्रमोशन के दौरान कहती हैं की इस  प्रोडक्ट को छोटी मात्रा में लगाते ही भरपूर निखार और सुंदर त्वचा हो जायेगी तो ये एक भ्रम हैं. इसलिए जब भी आप संदेह की स्थिति में हो तो बोतल के पीछे लिखी मात्रा से थोड़ा ज्यादा प्रयोग करें क्योंकि हर किसी व्यक्ति के चेहरे का आकार अलग होता है और उसके चेहरे द्वारा सोखी जानी वाली मात्रा भी. उदाहरण के ले फेस क्रीम का तो दो बूंदें संतुलित औयली स्किन के लिए बेहद ज्यादा हैं लेकिन जब इसे डिहाइड्रेटेड स्किन पर प्रयोग किया जाएगा तो यह बहुत कम होगी।

2.“टोनर की बिल्कुल जरूरत है

मॉस्चराइजर लगाने से पहले अगर आप स्टैंडर्ड टोनर का प्रयोग करते हैं तो वह त्वचा पर जमा अत्याधित धूल और तेल को हटाता है. ब्रांड पर निर्भर होने के नाते वह आपकी त्वचा को चमक और नरम बनाने में मदद का वादा करते हैं. जबकि एक्सपर्ट का मानना है कि टोनर केवल आपके ब्यूटी रूटिन में सहायता कर सकता है, और हर किसी को इसकी जरूरत नहीं है. बहुत से प्रोडक्ट्स का प्रयोग आपकी त्वचा को खराब कर सकता है.

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3.“चेहरे को हाथों से नहीं छुएं

त्वचा से जुड़े मिथ कहीं से भी आ सकते हैं विशेषकर किसी के भी मुंह से.

आपने अक्सर सुना होगा कि मुंहासों को रोकने के लिए अपने चेहरे को छूना बंद करें लेकिन इन्हें दूर करने के लिए छूना ही एकमात्र रास्ता है. त्वचा विशेषज्ञ कहते हैं कि फोन पर स्क्रॉल करने और फिर बाद में चेहरे को छूने से यह समस्या बढ़ सकती है. जाहिर तौर पर टॉयलेट सीट से अधिक बैक्टीरिया हमारे फोन पर जमा होते हैं. दरअसल इसकी वजह हमारे नाखून हैं, जिनसे अधिकतर बीमारियां फैलती हैं. लंबे नाखूनों में गंद ज्यादा जमा होता है और अगर उसमें बैक्टीरिया है तो यह आपके चेहरे पर फैल सकता है और संक्रमण का कारण बन सकता है.

4.“मेकअप हटाओं बस मेकअप वाइप्स से

अगर आपको हाइपर पिग्मेंटेशन का खतरा है, तो मेकअप वाइप्स वास्तव में रगड़ का कारण बन सकता है और अगर आप रोजाना इनका इस्तेमाल करते हैं तो धीरे-धीरे आपकी त्वचा हार्श हो सकती है. इसके अलावा बहुत सारे मेकअप वाइप्स में अल्कोहल होता है, जो सेंसिटिव स्किन के लिए चुभन का कारण बन सकता है.

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5.“प्राइस बताता है प्रोडक्ट्स अच्छा या बुरा

कभी-कभी एक सस्ता प्रोडक्ट भी महंगे की अपेक्षा ज्यादा कारगर होता है इसका कारण है उसमें मौजूद सामग्री की. ऐसी धारणा रही है कि हर महंगी चीज हमारी सेहत व त्वचा के लिए फायदेमंद होती है जबकि ऐसा नहीं है। चूंकि बाजार में कई कंपनियां है और इस प्रतिस्पर्धी दौर में हर कंपनी अपना सामान बेचने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है इसलिए उत्पादों का मिलान करना बहुत जरूरी है. एक बड़ी कंपनी वहीं सामान अधिक कीमत पर बेच रही है और दूसरी कंपनी कम कीमत पर वह उत्पाद बेच रही है तो यह मत समझिए की कम कीमत वाला उत्पाद खराब या कम प्रभावकारी होगा.  इसलिए किसी भी सामान को खरीदने से पहले उसके पीछे लिखी सामग्री को पढ़िए.

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