जानें क्या हैं गर्भनिरोधक गोलियों के 10 साइड इफेक्‍ट

अनचाहे गर्भ को रोकने के लिये अक्‍सर महिलाएं बर्थ कंट्रोल पिल्‍स यानी गर्भ निरोधक गोलियों पर विश्‍वास रखती हैं. अगर इन्‍हें सही समय पर लिया जाए तो यह अपना काम असरदार तरीके से करती हैं.

किसी किसी चीज का फायदा है तो उसका नुकसान भी जरुर होगा इसलिये बर्थ कंट्रोल के भी कुछ साइड इफेक्‍ट होते हैं, जैसे मतली, यौन रुचि में बदलाव, वजन का बढ़ना, सिरदर्द, चक्कर आना, स्तन में सूजन आना आदि, जैसी बातें हर महिला को पता होती हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी साइड इफेक्‍ट हैं, जो डॉक्‍टर आपको नहीं बताएगा.

बर्थ कंट्रोल पिल शरीर में हार्मोन को कंट्रोल करता है, इसलिये इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं. आइये जानते हैं इनके बारे में.

1. सिरदर्द और माइग्रेन

शरीर में हार्मोन के उतार चढाव की वजह से सिरदर्द या माइग्रेन हो सकता है. कई बर्थ कंट्रोल पिल एस्‍ट्रोजन के लेवल को घटा देते हैं जिससे सिरदर्द होने लगता है. अगर आपको भी ऐसा साइडइफेक्‍ट होता है, तो अपनी पिल डॉक्‍टर से कह कर बदल लें.

2. मतली

अगर इसे खाने के बाद मतली महसूस हो तो, पिल को खाना खाते समय या सोने से पहले लें. इसे कई दिनों तक एक ही समय पर लें, जिससे इसका साइड इफेक्‍ट कम हो जाए.

3. ब्रेस्‍ट में सूजन या कड़ापन आना

पिल लेने से महिलाओं के ब्रेस्‍ट में सूजन आ जाती है, जो कि पिल लेने के कई हफ्तों बाद ठीक भी हो जाती है. यह केवल हार्मोन के बदलाव की वजह से होता है. इस दौरान कॉफी और नमक का सेवन कम कर दें और सपोर्ट वाली ब्रा ही पहनें. अगर आपको छाती में दर्द, सांस लेने में दर्द हो, तो आपको डाक्टरी सलाह लेनी ही चाहिए.

4. पीरियड के दरमियान असामान्य ब्लीडिंग

पिल लेने के दो या तीन महीने कें अंदर महिलाओं को पीरियड के दरमियान असामान्य ब्लीडिंग से जूझना पड़ता है. हार्मोनल पिल लेने से यूट्रस में एंडोमेट्रियल की लाइनिंग कमजोर हो कर गिरने लगती है और इसी वजह से ब्‍लीडिंग शुरु हो जाती है. अगर आपको पिल लेते वक्‍त 5 या उससे अधिक दिनों तक ब्‍लीडिंग हो तो डॉक्‍टर से मिलना ना भूलें.

5. वजन बढ़ना

गोलियां लेने के हफ्ते-महीने बाद शरीर का वजह बढ़ने लगता है, लेकिन यह केवल वॉटर रिटेंशन की वजह से होता है जो कि बाद में चला जाता है. बर्थ कंट्रोल में भारी मात्रा में एस्‍ट्रोजन होता है, जो भूख खतक कर के वजन बढाने का काम करता है. इससे जांघों, हिप्‍स और ब्रेस्‍ट पर चर्बी बढ़ जाती है.

6. वेजाइनल यीस्‍ट इंफेक्‍शन

इस दौरान योनि में खुजली, जलन, तथा यीस्‍ट इंफेक्‍शन होने की संभावना बढ़ जाती है. यह रोग तब और ज्‍यादा बढ सकता है अगर महिला को मधुमेह है या फिर वह बहुत ज्‍यादा शक्‍कर या शराब का सेवन करती हो या फिर उसका इम्‍यून सिस्‍टम कमजोर हो.

7. मूड में बदलाव

मूड स्‍विंग या फिर डिप्रेशन भी हो सकता है क्‍योंकि सिंथेटिक हार्मोन दिमागी नसों पर असर डालते हैं. अगर आपके घर में किसी को डिप्रेशन था, तो अपने डॉक्‍टर को यह बात जरुर बतलाएं.

8. आंखों की रौशनी में परिवर्तन

वे महिलाएं जो शुरु से ही चश्‍मा लगाती है, उन्‍हें गर्भ निरोधक गोली खाने पर आंखों की रौशनी में फरक देखने को मिल सकता है. हार्मोन की वजह से आंखों की पुतलियों में सूजन आ जाती है, जिसकी वजह से यह पेशानी होती है. लंबे समय तक ओरल पिल लेने से ग्‍लूकोमा जैसी बीमारी भी हो सकती है.

9. रक्‍त के थक्‍के जमना

ओरल पिल लेने के साइड इफेक्‍ट में, रक्‍त के थक्‍के जमना एक आम पर गंभीर समस्‍या है. महिलाएं जो ओवरवेट, 35 की उम्र पार कर चुकी है या फिर हाल ही में बच्‍चे को जन्‍म दिया है, वे इसके रिस्‍क पर सबसे ऊपर रहती हैं. अगर आपको सांस लेने में दिक्‍कत, सीने में दर्द या पैरों में सूजन महसूस हो तो यह फेफड़े या दिल में रक्‍त जमने का संकेत हो सकता है.

10. यौन रुचि में कमी

कई महिलाओं में यह गोलियां, यौन रूचि में कमी डाल सकती हैं. यह हार्मोनल गोलियां, टेस्‍टोस्‍ट्रोन का प्रॉडक्‍शन रोक देती हैं, जिससे आपकी सेक्‍स लाइफ पर असर पड़ सकता है. इससे सेक्‍स के दौरान दर्द भी होता है.

जरुरी टिप्‍स

– ओरल पिल्‍स को रोजाना एक ही समय पर लें.

– ये गोलियां आपको यौन संक्रमित बीमारियों से नहीं बचाएंगी.

– यह गोलियां उनको सूट नहीं करेंगी, जो स्‍मोकिंग करती हैं या फिर जिन्‍हें ब्‍लड क्‍लॉटिंग की बीमारी है.

– जैसे ही लगे कि आप प्रेगनेंट हो सकती हैं, वैसे ही यह गोली खाएं.

Winter Special: क्या आपके जोड़ो में भी है दर्द!

ये बात तो आप जानते ही हैं कि शरीर के वे हिस्से जहां हड्डियां आपस में मिलती हैं, उन्हें ही जोड़ कहते हैं. जैसे घुटने, कंधे, कोहनी आदि-आदि. अगर शरीर के इन जोड़ों में कठोरता या सूजन जैसी किसी भी तरह की तकलीफ हो जाती है तो इससे आपको दर्द शुरू हो जाता है और इसे ही जोड़ों में दर्द होने की शिकायत कहा गया है. आजकल देखा गया है कि शरीर में जोड़ों के दर्द की समस्या एक आम सी समस्या बनती जा रही है और इस कारण से लगातार अस्पताल जाते रहने और दवा खाना की मजबूरी हो ही जाती है.

एक बात जो आपके जाननी चाहिए कि ‘अर्थराइटिस’ की शिकायत, जोड़ों में दर्द होने का सबसे आम कारण है. पर इसके अलावा जोड़ों में दर्द होने की कई और भी अन्य वजहे होती हैं, जैसे कि लिगामेंट, कार्टिलेज या छोटी हड्डियों में से किसी की भी रचना में चोट लग जाने के कारण भी आपके जोड़ों में दर्द हो सकता है. ये शरीर का बहुत अहम हिस्सा होते हैं. इनके कारण ही आप उठना, बैठना, चलना, शरीर को मोड़ना आदि कर पाते हैं और ऐसा सब करना संभव हो पाता है. इसीलिए जोड़ों में दर्द होने पर पूरे आपके शरीर का संपूर्ण स्वास्थ्य प्रभावित हो जाता है.

आज हम आपको जोड़ों में दर्द से जुडी कई महत्वपूर्ण बातें बताएंगे. इनके कारण जानने के बाद आप इनसे परहेज कर सकेंगे. यहां हम आपको जोड़ों के दर्द से निजात पाने के लिए कुछ उपचार भी बता रहे हैं. इन्हें अपनाकर आप इस दर्द से जल्दी छुटकारा पा सकते हैं.

कारण :

1. कई बार उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों में दर्द की शिकायत हो जाती है.

2. आपकी हड्डियों में जब रक्त की पूर्ति होने में रूकावट आती है तब भी जोड़ों में दर्द से तकलीफ होने लगती है.

3. ये बात आप नहीं जैनते होंगे कि रक्त का कैंसर, जोड़ों में दर्द के लिए जिम्मेदार होता है.

4. हड्डियों में मिनरल्स यानि की शरीर में खनिज पदार्थों की कमी हो जाने पर भी जोड़ों में दर्द की शिकायत हो जाती है.

5. कभी-कभी, जल्दी-जल्दी चलने या भागने पर जोड़ों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ जाता है और जोड़ों में दर्द शुरू हो तातो है.

6. आपके जोड़ों में इंफेक्शन होना भी जोड़ों में दर्द का कारण है.

7. कई बार तो मोच आ जाने और चोट लगने से भी एसी शिकायत हो जाती है.

8. शरीर में कई बार हड्डियों के टूटने से जोड़ों में दर्द होता है.

9. अगर आपको हड्डियों में ट्यूमर आदि किसी भी प्रकार की शिकायत है तो जोड़ों में दर्द होने की संभावना होती है.

10. इनके अलावा अर्थराइटिस, बर्साइटिस, ऑस्टियोकोंड्राइटिस, कार्टिलेज का फटना, कार्टिलेज का घिस जाना आदि जोड़ों में दर्द की समस्या के प्रमुख कारण हैं.

निवारण :

1. जोड़ों को चोट से बचाना चाहिए

अगर जोड़ों पर चोट लगती है तो वो हड्डी को तोड़ भी सकती है,  इसलिए कोशिश करें कि जोड़ों को चोट से बचाकर रख सकें. जब भी कोई ऐसा खेल खेलें जिसमें जोड़ों पर चोट लगने का डर रहता हो तब शरीर पर ज्वाइंट सेफ्टी पेड्स पहनकर रखें.

2. गतिशील रहना चाहिए

जोड़ों के दर्द से राहत के लिए सदैव गतिशील रहें. अगर जोड़ों की मूवमेंट होती रही तो आपको लंबे समय किसी भी प्रकार का कोई दर्द नहीं सताएगा. बहुत देर तक एक ही स्थिति में बैठे रहने से भी जोड़ों में कठोरता महसूस होती है.

3. वजन को नियंत्रित रखना चाहिए

यदि आपका वजन नियंत्रण में रहेगा तो आपका शरीर और शरीर के सारे जोड़ भी स्वास्थ्य रहेंगे. शरीर का ज्यादा वजन घुटनों और कमर पर अधिक दबाव डालता है और इससे आपके शरीर के कार्टिलेज के टूटने का डर बना रहता है. अब ऐसे में आपको अपने वजन को नियंत्रण में रखना बेहद जरूरी है.

4. ज्यादा स्ट्रेच नहीं करना चाहिए

अगर आप नियमित व्यायाम करते हैं तो, व्यायाम के साथ आपको स्ट्रेचिंग करने की भी सलाह दी जाती है, तब ये बात हमेशा ध्यान में रखें कि व्यायाम करते समय स्ट्रेचिंग हफ्ते में केवल तीन बार करें. स्ट्रेचिंग को एकदम शुरू नहीं करना चाहिए. ऐसा करने की जगह पहले थोड़ा वार्म अप भी करें.

5. दूध पीएं

दूध में कैल्श्यिम और विटामिन डी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो जोड़ों को मजबूत रखने के बेहद जरुरी होता है. इसीलिए हर रोज दूध जरूर पीना चाहिए. जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं. अगर आपको दूध पसंद नहीं है तो दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जैसे पनीर, दही आदि.

6. सही आसन बनाकर रखें

जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए सही पोश्चर या आसन में उठना, बैठना और चलना बेहद आवश्यक है. आपका सही पोश्चर ही गर्दन से लेकर घुटनों तक शरीर के सभी जोड़ों की रक्षा करता है.

7. व्यायाम करें

जोड़ों के दर्द से निजात के लिए और अपने स्वास्थ्य की सही देखभाल के लिए आपको, व्यायाम को अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बना लेना चाहिए. तैराकी करना जोड़ों के दर्द के लिए सबसे फायदेमंद व्यायाम होता है.

Winter Special: ठंड में अगर हाथ-पैर सुन्न पड़ जाए तो अपनाएं ये 7 उपाय

सर्दियों में कभी-कभी हमारे हाथ-पैर और उनकी उंगलियां के सुन्न पड़ जाती है. जिससे हमें किसी भी चीज को छूने का एहसास मालूम नहीं पड़ता. इसके साथ ही हो सकता है कि आपको प्रभावित स्‍थान पर दर्द, कमजोरी या ऐठन भी महसूस होती हो. इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे लगातार हाथों और पैरों पर प्रेशर, किसी ठंडी चीज को बहुत देर तक छूते रहना, तंत्रिका चोट, बहुत अधिक शराब का सेवन, थकान, धूम्रपान, मधुमेह, विटामिन या मैग्‍नीशियम की कमी आदि. ऐसे में प्रभावित जगह पर झनझनाहट, दर्द, कमजोरी और ऐंठन के लक्षण दिखाई देते हैं.

इस समस्या का प्रमुख कारण रक्त वाहिनियों का संकुचित होना है. दरअसल सर्दियों में दिल पर काफी जोर पड़ता है जिससे रक्त वाहिनियां संकुचित हो जाती हैं और शरीर के विभिन्न अंगों में आक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है. रक्त संचार पर असर पड़ने की वजह से शरीर के विभिन्न अंग सुन्न पड़ जाते हैं.

वैसे तो सर्दियों में हाथ-पैर का सुन्न होना या उनमें झनझनाहट होना एक आम समस्या है पर अगर यह समस्या आपके शरीर के किसी अंग में लम्बे समय तक बनी रहती है तो यह एक गम्भीर बिमारी का रूप भी ले सकती है ऐसे में इसका उपचार करना बेहद जरूरी है.

तो आइये जानते हैं कि आप कैसे इस तरह की समस्या से निजात पा सकती हैं

1. मसाज करें

जब भी हाथ पैर सुन्‍न हो जाएं तो हल्के हाथों से उस पर मसाज करें. इससे ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ता है. मसाज करने के लिए जैतून, नारियल या फिर सरसो के तेल को गुनगुना कर प्रभावित अंगो पर लगाकर हल्के हाथों से मले. इसके अलावा आप प्रभावित जगह पर रक्त संचार बढ़ाने के लिए गर्म पानी से भी सेंक सकती हैं. इससे मांसपेशियों और नसों को काफी आराम मिलता है.

2. डाइट में शामिल करें विटामिन्स

अगर हाथ पैरों में झनझनाहट होती है तो उसे दूर करने के लिए अपने आहार में विटामिन बी, बी6 और बी12 शामिल करें. इसके अलावा ओटमील,दूध, पनीर, दही, मेवा, केला, बींस आदि को भी अपने आहार का हिस्सा बनाएं.

3. व्‍यायाम

व्‍यायाम करने से शरीर में ब्‍लड र्स्‍कुलेशन होता है और वहां पर आक्‍सीजन की मात्रा बढ़ती है. इसलिए रोजाना 15 मिनट व्‍यायाम करना चाहिये. इसके अलावा रोजाना 15 मिनट एरोबिक्‍स करें, जिससे आप हमेशा स्‍वस्‍थ बनी रहें.

4. हल्दी है फायदेमंद

हल्दी में रक्त संचार बढ़ाने वाले तत्व पाए जाते हैं. साथ ही यह सूजन और दर्द कम करने में भी लाभकारी होता है. हल्दी-दूध का सेवन करने से हाथों-पैरों की झनझनाहट दूर होती है. इसके अलावा हल्दी और पानी के पेस्ट से प्रभावित जगह की मसाज करने से भी यह समस्या दूर होती है.

5. दालचीनी

दालचीनी में कैमिकल और न्‍यूट्रियंट्स होते हैं जो हाथ और पैरों में ब्‍लड फ्लो को बढ़ाते हैं. एक्‍सपर्ट बताते हैं रोजाना 2-4 ग्राम दालचीनी पावडर को लेने से ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ता है. इसको लेने का अच्‍छा तरीका है कि एक गिलास गरम पानी में 1 चम्‍मच दालचीनी पाउडर मिलाएं और दिन में एक बार पियें या फिर 1 चम्‍मच दालचीनी और थोड़ा शहद मिला कर सुबह के समय कुछ दिनों तक सेवन करें.

6. धूम्रपान से रहें दूर

हाथ-पैर के सुन्न पड़ने की समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि आप लंबे समय तक ठंड में रहने से बचें. अचानक अगर हाथ व पैर सुन्न हो जाते हैं तो तुरंत रगड़कर रक्त संचार बढ़ाएं. इसके अलावा धूम्रपान से दूरी बनाए रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पेरिफेरल आर्टरी डिसीज होता है और पैरों में रक्त का संचार ठीक तरीके से नहीं हो पाता.

7. प्रभावित हिस्‍से को ऊपर उठाएं

हाथ और पैरों के खराब ब्‍लड सर्कुलेशन से ऐसा होता है. इसलिये उस प्रभावित हिस्‍से को ऊपर की ओर उठाइये जिससे वह नार्मल हो सके. इससे सुन्‍न वाला हिस्‍सा ठीक हो जाएगा. आप अपने प्रभावित हिस्‍से को तकिये पर ऊंचा कर के भी लेट सकती हैं.

प्रैग्नेंसी की गलत दवाई खाने से हेल्थ से जुड़ी कौनसी परेशानी होगी?

सवाल-

मैं 24 वर्षीय युवती हूं. मेरा अपने बौयफ्रैंड के साथ कई बार शारीरिक संबंध बन चुका है. इसी के चलते इस बार मैं गर्भवती हो गईं. मैं ने कैमिस्ट से दवा ले कर खा ली, जिस से मुझे लगातार 2 महीने तक रक्तस्राव होता रहा. मैं जानना चाहती हूं कि इस से मुझे किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानी तो नहीं होगी?

जवाब-

गर्भ ठहर जाने के बाद आप को किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा की सलाह से दवा लेनी चाहिए थी. खासकर तब जब आप को लगातार 2 माह तक रक्तस्राव होता रहा. यदि भविष्य में माहवारी नियमित रूप से न आए या और कोई दिक्कत आए तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

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मैं बच्चों के माटेसरी हाउस, वीस्कूल की निदेशक और संस्थापक हूं. मैंने वाणिज्य में विशेषज्ञता रखते हुए चेन्नई से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. इसके अलावा, मैंने बच्चों को उनकी अधिकतम क्षमता तक बढ़ने में मदद करने की इच्छा के साथ भारतीय माँटेसरी प्रशिक्षण केंद्र (आईएमटीसी) से प्राथमिक मोंटेसरी डिप्लोमा भी उत्तीर्ण किया है.

बच्चों की व्यापक सीखने की प्रक्रिया को बदलना और शैक्षिक विधियों में प्रारंभिक दृष्टिकोण विकसित करने, हमने एक ऑनलाइन गर्भावस्था का कोर्स बनाया है. गर्भावस्था, प्रसव और पितृत्व जीवन के प्रमुख विकल्प हैं जो चीजों को कई तरह से बदलते हैं. जब आप माता-पिता बनते हैं तो जीवन नाटकीय रूप से बदल जाता है, इसलिए केवल यह सम झ में आता है कि जब आप प्रसव पूर्व देखभाल के बारे में सोच रहे हों तो आप गर्भावस्था के भौतिक पक्ष से अधिक पर विचार करना चाहेंगे. समग्र दृष्टिकोण वह है जिस पर महिलाएं बढ़ती संख्या में विचार कर रही हैं, क्योंकि इस दृष्टिकोण में शरीर, मन और आत्मा शामिल है, जिससे महिलाओं को एक से अधिक तरीकों से स्वस्थ गर्भावस्था का आनंद लेने में मदद मिलती है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special: सर्दी-जुकाम में इन 4 टिप्स से जल्द मिलेगा आराम

सर्दी-जुकाम ऐसा संक्रामक रोग है जो जरा सी लापरवाही ही लोगों को अपने गिरफ्त में ले लेता है. यह इंसानों में सबसे ज्यादा होने वाला रोग है. सर्दी या फिर जुकाम कोई ऐसी गंभीर बीमारी नहीं है जिसकी वजह से परेशान हुआ जाए. साल भर में वयस्कों को दो से तीन बार और बच्चों को छः से बारह बार जुकाम की समस्या होना आम है.

सामान्य जुकाम के लिए कोई खास उपचार नहीं होता लेकिन इसके लक्षणों का इलाज किया जाता है. इसके आम लक्षणों में खांसी, नाक बहना, नाक में अवरोध, गले की खराश, मांसपेशियों में दर्द, सर में दर्द, थकान और भूख का कम लगना शामिल हैं. ये लक्षण 7 – 8 दिनों तक शरीर में दिखाई पड़ते हैं. ऐसे कई घरेलू उपचार हैं जो सर्दी-जुकाम से राहत दिलाने में आपकी मदद कर सकते हैं. तो चलिए आज  ऐसे ही कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में आपको बताते हैं.

1. अदरक और तुलसी का काढ़ा

अदरक के यूं तो स्वास्थ्य संबंधी अनेक फायदे होते हैं लेकिन सर्दी-जुकाम को दूर करने में इसका अहम रोल होता है. अदरक जुकाम के लिए सर्वोत्तम औषधि है. थोड़े से अदरक को एक कप पानी के साथ उबालें और इसमें तुलसी की 10-12 पत्तियां डाल दें. इस मिश्रण को तब तक उबाले, जब तक पानी आधा न रह जाए. अब इस काढ़े का सेवन करें. यह सर्दी को जड़ से ठीक करने में काफी फायदेमंद है.

2. शहद

शहद खांसी के बेहतरीन इलाज में से एक है. इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-माइक्रोबियल गुणों से भरपूर होता है. गले की खराश और दर्द से राहत पाने के लिए नींबू की चाय मे शहद मिलाकर पीना चाहिए इसके अलावा दो चम्मच शहद में एक चम्मच नींबू का रस एक ग्लास गर्म पानी या गर्म दूध में मिलाकर पीने से काफी लाभ होता है, लेकिन एक साल से कम के बच्चों को शहद नहीं देना चाहिए.

3. भाप लें

गर्म पानी के बर्तन के ऊपर सिर रखकर नाक से सांस लें. आप चाहे तो इसमें जरूरत के हिसाब से मिंट मिला सकती हैं. अब सिर को किसी हल्के तौलिए से ढककर कटोरे से तकरीबन 30 सेंटीमीटर की दूरी से भाप लें. इससे बंद नाक से राहत मिलती है.

4. ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थो का सेवन

सर्दी और जुकाम की बीमारी में ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन श्वांसनली को नम रखता है और आपको डिहाइड्रेट होने से भी बचाता है. ऐसे में गर्म पानी, हर्बल चाय, ताजा फलों के जूस और अदरक की चाय का सेवन सर्दी और खांसी दोनों से ही राहत दिलाते हैं.

डायबिटीज के चपेट में परिवार भी

भारत में हर व्यक्ति किसी न किसी ऐसे व्यक्ति को जानता होगा जिसे डायबिटीज की बीमारी होगी क्योंकि यहां 6.20 करोड़ लोग इस मर्ज से पीडि़त हैं. अनुमान है कि 2030 तक पीडि़तों की संख्या 10 करोड़ तक पहुंच जाएगी. अस्वस्थ खानपान, शारीरिक व्यायाम की कमी और तनाव डायबिटीज का मुख्य कारण बनते हैं.

इस बीमारी से भविष्य में मरीजों के साथसाथ उन के परिवारों और देश पर पड़ने वाले आर्थिक व मानसिक बोझ को देखते हुए इस से बचाव और समय पर इस का प्रबंधन बेहद जरूरी है. एक अध्ययन के मुताबिक, डायबिटीज और इस से जुड़ी बीमारियों के इलाज व मैनेजमैंट का खर्च भारत में 73 अरब रुपए है.

पेनक्रियाज जब आवश्यक इंसुलिन नहीं बनाती या शरीर जब बने हुए इनसुलिन का उचित प्रयोग नहीं कर पाता तो डायबिटीज होती है जो कि एक लंबी बीमारी है. इंसुलिन वह हार्मोन है जो ब्लडशुगर को नियंत्रित करता है. अनियंत्रित डायबिटीज की वजह से आमतौर पर ब्लडशुगर की समस्या हो जाती है. इस के चलते आगे चल कर शरीर के नाड़ी तंत्र और रक्त धमनियों सहित कई अहम अंगों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है.

रोग, रोगी और बचाव

डायबिटीज बचपन से ले कर बुढ़ापे तक किसी भी उम्र में हो सकती है. गोरों के मुकाबले भारतीयों में यह बीमारी 10-15 साल जल्दी हो जाती है. चूंकि इस का अभी तक कोई पक्का इलाज नहीं है और नियमित इलाज पूरी उम्र चलता है, इसलिए बाद में दवा पर निर्भर होने से बेहतर है अभी से बचाव

कर लिया जाए. जीवनशैली में मामूली बदलाव कर के डायबिटीज होने के खतरे को कम किया जा सकता है, कुछ मामलों में तो शुरुआती दौर में इसे ठीक भी किया गया है.

परिवार पर मार

दूसरी बीमारियों के मुकाबले डायबिटीज एक पारिवारिक रोग सरीखा है. इस के प्रभाव एक व्यक्ति पर नहीं पड़ते. घर के किसी सदस्य के डायबिटीज से पीडि़त होने पर पूरे परिवार को अपने खानपान व जीवन के अन्य तरीके बदलने पड़ते हैं. रोग का परिवार के बजट पर भी गहरा असर पड़ता है.

पर्सन सैंटर्ड केयर इन द सैकंड डायबिटीज एटीट्यूड, विशेज ऐंड नीड्स: इंसपीरेशन फ्रौम इंडिया नामक एक मल्टीनैशनल स्टडी में पता चला कि डायबिटीज की वजह से शारीरिक, आर्थिक व भावनात्मक बोझ पूरे परिवार को उठाना पड़ता है. इस के तहत दुनियाभर के 34 प्रतिशत परिवार कहते हैं कि किसी परिवारजन को डायबिटीज होने से परिवार के आर्थिक हालात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जबकि भारत में ऐसे परिवारों की संख्या 93 से 97 प्रतिशत तक है.

दुनियाभर में 20 प्रतिशत पारिवारिक सदस्य मानते हैं कि डायबिटीज की वजह से लोग उन के अपनों से भेदभाव करते हैं. दरअसल, जिस समाज में वे रहते हैं उसे डायबिटीज पसंद नहीं है जबकि भारत में ऐसे 14-32 प्रतिशत परिवार ऐसा ही महसूस करते हैं.

वक्त पर इस का प्रबंधन करने के लिए डायबिटीज के रोगी के परिवार की भूमिका अहम होती है. यह साबित हो चुका है कि परिवार का सहयोग न मिलने पर रोगी अकसर अपनी दवा का नियमित सेवन और ग्लूकोज पर नियंत्रण नहीं रख पाता. इसलिए जरूरी है कि परिवार का एक सदस्य शुरुआत से ही इन सब बातों का ध्यान रखने में जुट जाए. डाक्टर के पास जाते वक्त साथ जा कर पारिवारिक सदस्य न सिर्फ काउंसलिंग सैशन का हिस्सा बन सकता है बल्कि यह भी समझ सकता है कि इस हालत को वे बेहतर तरीके से कैसे मैनेज कर सकते हैं.

कैसे करें शुगर प्रबंधन

डायबिटीज को मैनेज किया जा सकता है. अगर उचित कदम उठाए जाएं तो इस के रोगी लंबा व सामान्य जीवन गुजार सकते हैं. प्रबंधन के लिए कुछ कदम इस प्रकार हैं :

–  पेट के मोटापे पर नियंत्रण रख के इस से बचा जा सकता है क्योंकि इस का सीधा संबंध टाइप 2 डायबिटीज से है. पुरुष अपनी कमर का घेरा 40 इंच और महिलाएं 35 इंज तक रखें. सेहतमंद और संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम मोटापे पर काबू    पाने में मदद कर सकता है.

–  गुड कोलैस्ट्रौल 50 एमजी रखने से दिल के रोग और डायबिटीज से बचा जा सकता है.

–  ट्रिग्सीसाइड एक आहारीय फैट है जो मीट व दुग्ध उत्पादों में होता है जिसे शरीर ऊर्जा के लिए प्रयोग करता है और अकसर शरीर में जमा कर लेता है. इस का स्तर 150 एमजी या इस से ज्यादा होने पर यह डायबिटीज का खतरा बढ़ा सकता है.

–  आप का सिस्टौलिक ब्लडप्रैशर 130 से कम और डायस्टौलिक ब्लडप्रैशर 85 से कम होना चाहिए. तनावमुक्त रह कर ऐसा किया जा सकता है.

–  खाली पेट ग्लूकोज 100 एमजी या ज्यादा होने से डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.

–  दिन में 10,000 कदम चलने की सलाह दी जाती है.

परिवार मिल कर सप्ताह में 6 दिन सेहतमंद खानपान और रविवार को चीट डे के रूप में अपना सकते हैं ताकि नियमितरूप से हाई ट्रांस फैट और मीठा खाने से बचा जा सके. रविवार को बाहर जा कर शारीरिक व्यायाम करने के लिए भी रखा जा सकता है. परिवार में तनावमुक्त जीवन जीने की प्रभावशाली तकनीक बता कर सेहतमंद व खुशहाल जीवन जीने के लिए उत्साहित कर के एकदूसरे की मदद की जा सकती है.

(लेखक एंडोक्राइनोलौजिस्ट हैं.)

जानें नवजात की देखभाल से जुड़े मिथक

किसी भी महिला के जीवन में मातृत्व दुनिया का सब से अद्भुत अनुभव होता है. जब कोईर् महिला पहली बार मां बनती है, तो अपनी इस अनमोल खुशी का ध्यान रखने के बारे में उसे अपने करीबियों से ढेरों सलाहें मिलना स्वाभाविक है. मगर एक समझदार मां होने के नाते यह जरूरी है कि वह विशेषज्ञ की राय के अनुसार ही चले, क्योंकि एक छोटा सा निर्णय भी बच्चे के बढ़ने की उम्र पर असर डाल सकता है.  मांओं में नवजातों की देखभाल को ले कर निम्न मिथक पाए जाते हैं:

नवजात की दिनचर्या तय करना अच्छा होता है:

हर मां का अपने बच्चे के जीवन में थोड़ा अनुशासन लाने की कोशिश करना स्वाभाविक है. हालांकि बच्चे को दिनचर्या के लिए दबाव डालना आसान नहीं है. बड़ों से सलाह लेने और किताबें पढ़ने के बावजूद आमतौर पर शिशु के सोने का पैटर्न मांओं के लिए सब से अधिक परेशानी का सबब बनता है.  ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कुछकुछ घंटों के अंतराल पर सोने के कारण हर 3-4 घंटे में स्तनपान कराना होता है. बच्चे के बड़े होने के साथसाथ इस में धीरेधीरे बदलाव आने लगता है.

दांत आने पर बुखार होता है:

हर मां को यह गलतफहमी होती है कि जब भी नवजात को बुखार आता है, तो वह दांत आने की वजह से हो रहा होता है, लेकिन सामान्यतौर पर दांत 6 से 24 महीने के बीच निकलते हैं. यह एक ऐसा समय होता है जब बच्चों में भी संक्रमण होने की आशंका होती है. इसलिए मांओं के लिए यही बेहतर है कि अनुमान लगाने के बजाय कुछ दिन शिशु पर निगरानी रखें और यदि लक्षण बने रहते हैं, तो फिर डाक्टर को दिखाएं.  बहुत अधिक स्तनपान कराना अच्छा नहीं होता: एक नवजात शिशु की मां को हर डाक्टर की ओर से सब से पहली सलाह यही होती है कि वह अपने नवजात को स्तनपान कराए. स्तनपान करवाना प्राकृतिक रूप से सब से बुनियादी चीज होती है, जो नवजातों की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. मां का दूध सिर्फ शिशु का पेट भरने के लिए भोजन ही नहीं है, बल्कि इस में बढ़ने और विकास करने के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्त्व भी मौजूद होते हैं. स्तनपान कराने के कई फायदे हैं, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं- यह बच्चों में बारबार बीमार पड़ने को कम करता है, इस से मांओं को गर्भावस्था के बाद रिकवर, वजन कम करने, ब्रैस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर के खतरे को कम करने में मदद मिलती है.

मां का दूध बच्चों की प्यास नहीं  बुझाता :

नवजातों को ले कर सब से बड़े मिथकों में से एक यह है कि खासकर गरमी के मौसम में यह जरूरी है कि बच्चों को हाइड्रेट बनाए रखने के लिए सही मात्रा में पानी दिया जाए. बहुत  कम लोगों को पता है कि मां के दूध में 88% तक पानी होता है और बच्चों के स्वास्थ्य के हित  में यह जरूरी है कि जब तक बच्चा 6 महीने  का न हो जाए, उसे सिर्फ मां का दूध ही दिया जाना चाहिए.  आमतौर पर नवजातों को शहद पिलाने की आदत होती है, यह माना जाता है कि मां के दूध की तुलना में यह पोषक तत्त्वों का बेहतर स्रोत होता है. यह पूरी तरह से आधारहीन है. ऐसा साबित हुआ है कि शिशुओं के लिए यह अधिक नुकसानदायक होता है, क्योंकि इस से कई गंभीर संक्रमण हो सकते हैं.

शिशु के 6 माह का होने तक उसे सिर्फ मां का दूध ही पिलाया जाना चाहिए. 6 महीनों के बाद उसे कुछ सेहतमंद पूरक आहार देने की शुरुआत की जा सकती है जैसेकि पकी रागी, चावल, उबली सब्जियां, अंडे, अनाज आदि.

– डा. लीना एन. श्रीधर, अपोलो क्रैडल

Winter Special: थोड़ी सी लापरवाही दे सकती है बीमारियों को न्यौता

बरसात जाने और फिर ठंड के आने के बीच मौसम में जिस तरह का बदलाव होता है, वह कई तरह की बीमारियों को न्यौता देने का सबसे बड़ा कारण होता है. इस बदलते मौसम में स्वास्थ्य के प्रति थोड़ी सी भी लापरवाही हमें बीमार करने के लिए काफी है. इस मौसम में मच्छरों का प्रकोप काफी बढ़ जाता है. ऐसे में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारियां आपके घर दस्तक देने को तैयार रहती हैं. इनसे बचाव के लिए आपको काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होता है. आज हम ऐसी ही कुछ बीमारियों तथा उनसे बचाव के बारे में आपको बताने जा रहे हैं-

डायरिया

शरीर में पानी की कमी से डायरिया रोग होता है. इसमें दस्त, पेशाब न आना, पेट में ऐंठन या तेजदर्द, बुखार और उल्टी आना जैसे लक्षण प्रदर्शित होते हैं. इससे सर्वाधिक खतरा बच्चों को होता है. समय पर इलाज न करने पर यह बीमारी आपके लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है. इससे राहत मिलने पर भी एक हफ्ते तक उपचार करते रहना बेहद जरूरी है.

इससे बचने के लिए जरूरी है कि शरीर में पानी की कमी न होने दें. इलेक्ट्राल व ओआरएस घोल डायरिया का सबसे सस्ता व कारगर उपचार है. इसके अलावा फलों का रस नियमित रूप से लेते रहे. यह घरेलू उपचार करने के बाद भी यदि समस्या बढ़ती दिखे तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

वायरल फीवर

यह वायरस के इंफेक्शन से होता है इसलिए इसे इन्फ्लूएंजा वायरस भी कहते हैं. जब शरीर में 100 डिग्री से ज्यादा बुखार और सर्दी-जुकाम, गले में दर्द के साथ बदन दर्द के लक्षण महसूस हों तो यह वायरल फीवर का संकेत होता है.

बचाव के लिए हमेशा भोजन करने से पहले व बाद में हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं. घर में और आसपास साफ-सफाई रखें. बीमार व्यक्ति से ज्यादा संपर्क न बनाएं क्योंकि यह वायरस से फैलने वाला रोग है. इसके अलावा छींकते समय मुंह पर रुमाल जरूर रखें.

डेंगू

एडीज नामक मच्छर के काटने से डेंगू रोग होता है. डेंगू होने पर ठंड के साथ तेज बुखार महसूस होता है. इसके अलावा सिर, हाथ, पैर व बदन में तेज दर्द, उल्टी, जोड़ों में दर्द, दस्त व प्लेटलेट्स का अनियंत्रित रूप से घटना आदि समस्याएं देखने को मिलती हैं.

डेगू से बचाव के लिए मच्छरदानी में सोएं. अपने घर के आसपास पानी जमा न होनें दें. खाली गमले, कूलर आदि को साफ रखें. जहां भी पानी जमा है वहां किरोसिन डाल दें या फिर कीटनाशक छिड़काव करें.

Winter Special: क्या आपको भी आता है बार बार बुखार

कई बार बदलता मौसम और आपकी जीवनशैली में होने वाली कमी की वजह से आपको वायरल फीवर या बार-बार बुखार आता है. इसके कई कारण होते हैं. बदलते मौसम में तापमान के उतार-चढ़ाव से शरीर को कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर थोड़ सा फर्क तो पड़ता ही है.

बार-बार आने वाले इस बुखार से बचने के लिए आपको दवाआयों की दुकानों पर कई सारी अलग-अलग प्रकार की दवाईयां मिल जाऐंगी. लेकिन हम आपको ये बताना चाहते हैं कि अगर आप बुखार के लिए कुछ घरेलू उपाय भी अपनाएंगे तो इस बुखार से जल्दी राहत पा सकेंगे.

तो यहां हम आपको कुछ घरेलू उपाय बता रहे हैं, इन चीजों की मदद से आपको शीघ्र बुखार से निजात पाने में मदद मिल सकती है..

सूखे अदरक का मिश्रण

अदरक अनगिनत गुणों से भरपूर होता है. स्वास्थ्य संबंधी दोषों में अदरख बेहद लाभकारी होता है. अदरक में एन्टी- इन्फ्लैमटोरी और एन्टी-ऑक्सिडेंट सर्वाधिक मात्रा में होते हैं और ये दोनों ही तत्व आपको बुखार के लक्षणों से राहत दिलाते हैं.

आप सूखा अदरक, थोड़ा सा हल्दी और एक छोटा चम्मच काली मिर्च का पाउडर बना लें. अब इस पाउडर में थोड़ा-सा चीनी और एक कप पानी डालकर उबालें. इस मिश्रण को तब तक उबालें जब तक ये सूखकर आपके पास आधा बचे. अब इस मिश्रण को दिन में चार बार पीएं. ऐसा 3-4 दिनों तक लगातार करें. ये उपाय आपको बुखार से तुरंत राहत देगा.

मेथी

आपके वायरल फीवर के लिए रामबाण होता है मेथी. मेथी अधिकांश औषधिय गुणों से भरपूर होता है. जब भी आरको बुखार की समस्या होती है, तब एक कप पानी में, एक बड़ा चम्मच मेथी के दाने भिगोकर रख दें और रात भर उसे ऐसे ही रखे रहने दे. अब अगले दिन सुबह इसको छानकर थोड़े-थोड़े समय में पीते रहें.

इसके अलावा सुबह-सुबह मेथी के दाने में नींबू का रस और शहद मिलाकर, इसका सेवन करने से बुखार कुछ हद तक ठीक हो जाता है.

धनिया चाय

धनिया, फाइटोनूट्रीअन्ट और विटामिन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है. धनिया वाली चाय अपने आप बार-बार आने वाले बुखार से प्राकृतिक तरीके से लड़ने में मदद करता है. इसको रोजाना खाया जाए तो इससे प्रतिरक्षी या प्रतिरोधी तंत्र भी ठीक रहता है.

इसका इस्तेमाल करने के लिए, एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच धनिए के दाने डालकर थोड़ा उबाल लें अब उसके बाद इसे कप में छानकर, अपने स्वादानुसार थोड़ा दूध और चीनी डालकर पी लीने से आपको बुखार से राहत मिलेगी.

राइस स्टार्च

फीवर से बचने के लिए आप राइस स्टार्च का भी सेवन कर सकते हैं. ये चावल आपके शरीर से दूषित पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देता है, जिसके कारण प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जो आपको विभिन्न वायरसों से लड़ने की शक्ति देती है. पूरी तरह पौष्टिक पदार्थों से भरपूर राइस स्टार्च को रोज खाने से रोगों से बचने की शक्ति मिलती है.

तुलसी

बुखार पर तुरंत असरकारी तुलसी में स्वाद के साथ-साथ कई गुण भी होते हैं. जब भी आपको बुखार आए, अठारह से बीस ताजा तुलसी के पत्तों को लेकर लगभग एक लीटर पानी के साथ, एक चम्मच लौंग पावडर मिलाकर उबालें. इन तीनों को तब तक उबालें जब तक ये उबलकर आधा न हो जाये. अब इसके बाद इसे छानकर हल्का ठण्डा कर दिन में हर दो घंटे में पाते रहें. एक हफ्ते लगातार ऐसा करने से बुखार से बचा जा सकता है.

तुलसी में एन्टी बायोटीक और एन्टी बैक्टिरीअल गुण होते हैं जो कि वायरल फीवर या मौसम के बदलने पर आने वाले बुखार के लक्षणों से राहत दिलाता है.

एक्सीडेंट के कई साल बाद कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी माताजी की उम्र 52 साल है. उन का युवावस्था में ऐक्सीडैंट हो गया था, जिस से उन के कूल्हे के सौकेट में फ्रैक्चर हो गया था. उस समय औपरेशन नहीं किया गया था. इतने सालों तक उन्हें कोई समस्या नहीं थी, लेकिन अब उन्हें कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है और चलनेफिरने में भी परेशानी हो रही है. बताएं क्या करें?

जवाब-

लगता है आप की माताजी कूल्हे के जोड़ के पोस्ट ट्रौमैटिक आर्थ्राइटिस की शिकार हैं. उन के कूल्हे का एक्सरे कराएं. बेहतर डायग्नोसिस के लिए एमआरआई और सीटी स्कैन भी कराएं. अगर समस्या गंभीर है तो हिप रिप्लेसमैंट सब से बेहतर समाधान है.

हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी में हिप जौइंट के क्षतिग्रस्त भाग को सर्जरी के द्वारा निकाल कर धातु या बहुत ही कड़े प्लास्टिक के इंप्लांट से बदल दिया जाता है. इस सर्जरी का परिणाम भी बहुत बेहतर आता है और औपरेशन के बाद ठीक होने में अधिक समय भी नहीं लगता है.

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शरीर के मजबूत जोड़ हमें सक्रिय रखते हैं और चलने-फिरने में मदद करते हैं. जोड़ों को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने के लिए क्या जरूरी है, इस बारे में सटीक जानकारी जरूरी है. जोड़ों की देखभाल और मांसपेशियों तथा हड्डियों को मजबूत रखने के लिए सबसे अच्छा तरीका है, स्थिर रहें. जोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए यहां कुछ ऐसे सुझाव दिए गए हैं, जिन्हें आजमा कर आप अपनी सर्दियां बिना किसी दर्द के काट सकते हैं…

• जोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए सबसे जरूरी है शरीर के वजन को नियंत्रण में रखना. शरीर का अतिरिक्त वजन हमारे जोड़ों, विशेषकर घुटने के जोड़ों पर दबाव बनाता है.

• व्यायाम से अतिरिक्त वजन को कम करने और वजन को सामान्य बनाए रखने में मदद मिल सकती है. कम प्रभाव वाले व्यायाम जैसे तैराकी या साइकिल चलाने का अभ्यास करें.

• वैसे लोग जो अधिक समय तक कंप्यूटर पर बैठे रहते हैं, उनके जोड़ों में दर्द होने की संभावना अधिक रहती है. जोड़ों को मजबूत बनाने के लिए अपनी स्थिति को लगातार बदलते रहिए.

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