रेतीली चांदी- भाग 4: क्या हुआ था मयूरी के साथ

अब मयूरी को अपनी मां व बहन की फिक्र सताने लगी थी. कहीं राहुल के गुर्गे उन्हें वहां परेशान न करें. पर चोरों के पैर ही कहां होते हैं. वहां जाने की उन की शायद ही हिम्मत होती. मां तो सोच रही होंगी, बेटी फ्रांस में आराम से अपने पति के साथ है और वह यहां पर. उन्हें हकीकत से दोचार कराना भी बहुत जरूरी था. सो, उस ने विस्तार में न जा कर संक्षेप में केवल अपनी सलामती, राहुल की असलियत व अपने सऊदी अरब में खान चाचा के परिवार के साथ रहने की पूरी खबर के साथ ही उन का पता व बाकी बाद में आ कर बताने के लिए लिख कर पत्र भेज दिया था.

रहने के लिए उसे खान चाचा ने छत दी ही थी. मयूरी अपना खर्च भी उन्हीं के ऊपर नहीं थोपना चाहती थी. सो, उस के बहुत अपील करने पर खान चाचा ने एक सीनियर डाक्टर की सिफारिश ले कर उसे अस्पताल में ही स्टोरकीपर की नौकरी दिलवा दी. जिस से उस की आर्थिक समस्या कुछ हद तक सुलझ गईर् थी. बीचबीच में वह भारतीय दूतावास से संपर्क कर के अपने पासपोर्ट आदि के बारे में पता करती रहती थी. दूतावास ने अपने लैवल पर इस पूरी घटना की छानबीन करवानी शुरू कर दी थी. घर से बाहर निकलते समय मयूरी हमेशा बुर्के में ही रहती, ताकि कहीं फिर वह उन लोगों के चंगुल में न फंस जाए.

सना से, जो लगभग उसी की हमउम्र थी, मयूरी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. जल्द ही वे दोनों एकदूसरे की हमराज भी बन गईं. कट्टरपंथी पारिवारिक माहौल के कारण सना घर में बहुत कम बोलने वाली व धर्मभीरु लड़की मानी जाती थी. परंतु मयूरी के सामने वह अपने दिल का हर राज बेहिचक खोल देती. रूढि़वादी परंपराओं से बंधी मां के सामने जो बात वह इतने दिनों तक न कह सकी थी, मयूरी को जानते देर न ली कि वह एक मुसलिम युवक से बेइंतहा प्यार करती है और उसी से विवाह करना चाहती  है.

उस की यह बात सुन कर मयूरी पूछ उठी, ‘‘तो मुश्किल क्या है? जब तुम्हारी जातबिरादरी एक है तो खान चाचा मान ही जाएंगे.’’

‘‘नहीं मयूरी आपा, वे कभी नहीं मानेंगे. क्योंकि उन्होंने बचपन में ही मेरी शादी खालाजान के साहबजादे रशीद से तय कर दी थी. और वे अपनी जबान

के बेहद पक्के हैं. पर मुझे वह रशीद एक आंख नहीं भाता. मेरा शिराज

उस से कहीं ज्यादा हसीन और अमीर है. कहां तेल मसालों की दुकान पर बैठा गंधाता रशीद, कहां इत्र की भीनीभीनी खुशबुओं में डूबा शिराज.’’

‘‘देखो सना, जहां तक मैं खान चाचा को समझी हूं, वे बहुत ही नेक और रहमदिल इंसान हैं. जब तुम जानती हो कि वे अपनी जबान के पक्के हैं तो गलत रास्ते पर बढ़ ही क्यों रही हो? रशीद से तुम्हारी शादी उन्होंने कुछ सोचसमझ कर ही तय की होगी. खूबसूरती केवल तन की ही नहीं, मन की भी होती है. हो सकता है जो उन्होंने देखा हो, वह तुम नहीं देख पा रही हो. आखिर वे तुम्हारे पिता हैं, तुम्हारा बुरा थोड़े ही चाहेंगे,’’ मयूरी उसे समझाती हुई बोली.

‘‘क्यों, मैं क्या नन्ही बच्ची हूं. अब मैं भी बालिग हो गई हूं और हमें अपनी मरजी से शादी करने का हक है. अब्बूजान अगर जिद करेंगे तो मैं भी उन्हीं की बेटी हूं, बगावत कर दूंगी या घर से भाग कर उस से निकाह कर लूंगी.’’

उसे जनून की हद तक शिराज की दीवानी देख मयूरी मन ही मन परेशान हो उठी. पर उसे डांटती हुई बोली, ‘‘मोहब्बत का मतलब भी समझती हो, मोहब्बत ऊपर उठना सिखाती है, न कि नीचे गिरना. खबरदार, तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी. पहले उन्हें सबकुछ सचसच बताओ और राजी करने की कोशिश करो. जिन मांबाप ने तुम्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया है, तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी की है, घर से भाग कर उन के मुंह पर कालिख पोतते तुम्हें जरा भी शर्म न आएगी? कितने दिनों से जानती हो उसे?’’

‘‘लगभग सालभर से, वह बहुत शरीफ लड़का है आपा. खानदानी रईस है, मगर घमंड जरा भी नहीं है.’’

‘‘करता क्या है?’’ मयूरी ने उसे और कुरेदते हुए पूछा.

‘‘कई कोठियां हैं कनाड़ा, पेरिस आदि में. यहां भी 2 कोठियां हैं. उन का किराया ही काफी आ जाता है. मैं ने बताया न, खानदानी रईस है. कुछ काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ती. हर महीने जमा होने वाले किराए का ब्याज ही काफी हो जाता है,’’ वह गर्व से बोली.

‘‘यानी निठल्ला है. बापदादाओं के पैसे पर ही ऐश कर रहा है. अपना कोई कामधाम नहीं है.’’

‘‘रहने दो मयूरी आपा, अब आप भी अम्मीजान की जबान मत बोलो. एक बार मैं ने अपनी एक सहेली की आड़ ले कर इस बारे में मां से बात की थी. तब वे भी कुछ ऐसे ही बोली थीं,’’ सना रूठते हुए बोली.

तो मयूरी उसे मनाती सी बोल उठी, ‘‘अच्छा लाड़ो रानी, हमें दिखाओ तो कौन है वह? कैसा है? अच्छा लगा तो मैं खुद खान चाचा से बात करने की कोशिश करूंगी. लेकिन यह घर से भागनेवागने की बात तुम अपने जेहन से बिलकुल निकाल दो, ठीक है?’’

‘‘ठीक है, मंजूर. पर मेरे पास उस का कोई फोटो तो है नहीं. हां, आप को उस से मिलवा सकती हूं,’’ सना खुश हो कर बोली.

मयूरी ने उस से खान चाचा से बात करने के लिए कह तो दिया पर वह समझ रही थी कि ये सब कितना मुश्किल होगा. अपनी दी हुई जबान से पलटना उन के लिए मौत से कम तकलीफदेह न होगा. पर सना को भी वह इस राह पर बढ़ने से कैसे रोके?

सना तो अभी नादान है. उम्र के उस पड़ाव पर है जब मन अपने ही ख्वाबों की दुनिया में खोया रहता है. उस में किसी की दखलंदाजी उसे नागवार गुजरती है. दुनिया की ऊंचनीच से अनजान सना को शिराज पर पूरा भरोसा था. क्या पता वह रशीद से बेहतर जीवनसाथी ही साबित हो, पर खान चाचा की दी हुई जबान? एक बार वह शिराज से मिल कर उसे पूरी हालत बता कर सना को समझाने के लिए अपील तो कर ही सकती है. शायद शिराज ही मान जाए और पीछे हट जाए. तब तो कोई दिक्कत ही नहीं बचेगी. फिर वह सना को भी समझाबुझा कर खान चाचा की पसंद से ही निकाह करने के लिए राजी कर लेगी. पर शिराज उस की बात मानेगा ही क्यों…?

जिस परिवार ने विषम परिस्थितियों में उसे सहारा दिया, उस की इज्जत बनाए रखना अब उस की जिम्मेदारी हो गई थी. किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने के लिए पहले शिराज से मिलना जरूरी था.

अगले 2-3 दिनों बाद ही सना ने मयूरी को बताया कि कल वह उसे शिराज से मिलाने ले चलेगी.

‘‘कोई फोन तो आया नहीं, मिलने का प्रोग्राम कैसे तय किया?’’ बात की तह तक जाने के लिए मयूरी उत्सुक थी.

‘‘हमारी कामवाली फरीदन उसी की कोठी के पास एक गली में रहती है. जब हमें मिलना होता है, फरीदन के हाथ ही एक कागज पर जगह व समय लिख कर भेज देते हैं,’’ सना भेदभरी धीमी आवाज में उसे अपना राजदार बनाती बोली.

‘‘ओह,’’ सबकुछ जान कर मयूरी हैरान रह गई थी कि फरीदन भी इस में एक कड़ी का काम कर रही थी.

अगले दिन वे दोनों बाजार तक जाने के लिए कह कर तय जगह व समय से थोड़ा पहले पार्क में पहुंच गईं. पहले दूर से ही बिना उसे बताए शिराज को देखनेपरखने, फिर अपनी राय देने के लिए सना को समझा कर मयूरी कुछ ही दूर पड़ी दूसरी बैंच पर बैठ गई.

बुर्का पहने होने से वह आसानी से अपनी पहचान छिपाए रखे थी, सबकुछ देखती रह सकती थी. उन्हें बैठे हुए 10 मिनट ही हुए थे. जब वह सना की तरफ देख रही थी, तभी उस की साइड से एक युवक निकल कर सना की तरफ बढ़ता दिखाई दिया. शायद यही शिराज था, क्योंकि उसे देखते ही सना का चेहरा फूल सा खिल उठा था. पर अभी वह उस की पीठ ही देख पा रही थी.

रेशमी चूड़ीदार व लंबी कढ़ी हुई अचकन उस की अमीरी बयां कर रही थी. सना को आदाब करता शिराज जैसे ही उस की बगल में बैठा, उस के चेहरे पर निगाह पड़ते ही मयूरी बुरी तरह चौंक उठी, क्योंकि शिराज के भेष में राहुल उस के सामने एक लाल मखमली डब्बी खोल कर मुसकराते हुए सना को कुछ तोहफा दे रहा था.

मयूरी का दिल चाहा अभी जा कर सना को उस की असलियत बता कर उसे वहां से उठा लाए. पर उठतेउठते, ठिठक कर वह फिर बैठ गई. उस के पास शिराज के ही राहुल होने का क्या सुबूत था. इस तरह उस के कहने मात्र से सना उस पर भला क्यों यकीन करेगी. सना मानेगी नहीं और राहुल भी चौकन्ना हो जाएगा. शहर से गायब भी हो सकता है या उसी को कुछ नुकसान पहुंचा सकता है.

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रेतीली चांदी- भाग 6: क्या हुआ था मयूरी के साथ

ताला तोड़ कर जब दरवाजा खोला गया तो एक पतलासंकरा सा गलियारा अंदर जाता दिखा. कुछ पुलिस वाले उस में से होते हुए अंदर बढ़ने लगे. अंदर चारों तरफ गंदगी व सीलन की बदबू फैली थी. कुछ दूर चलने पर वह गलियारा एक छोटे से कमरे में खुला. वहां बेडि़यों में जकड़ी, कोड़ों की मार से पड़ीं नीलीलाल धारियों वाली जख्म खाई, अर्धबेहोश सी 3 युवतियां बेहद दीनहीन हालात में, ठंडे नंगे फर्श पर पड़ी मिलीं.

कमरे में लोगों ही आहट पा कर उन की आंखों में खौफ की छाया उभर आई थी. पर उन की बेडि़यां खोल, उन के हमदर्द होने का यकीन दिलाते वे लोग एकएक कर के उन्हें किसी तरह सहारा दे कर बाहर लाए. बाहर आते ही उन्होंने खाना व पानी मांगा तो तुरंत ही जूस आदि की व्यवस्था कर के खाना खिलवाया गया. उन्हें तो यह भी याद नहीं था कि कितने दिनों बाद आज उन्हें कुछ खानापीना नसीब हुआ था.

उन्हीं में से एक पांखी थी. उस का सूजा हुआ मुंह व जिस्म पर जगहजगह जलती सिगरेट से दागे जाने के अनगिनत निशान, उस पर हुए क्रूर जुल्मों की दास्तान खुद ही बयान कर रहे थे. उस के कुछ संभलने पर मयूरी उस के गले से लिपट बुदबुदा उठी, ‘‘मुझे माफ कर दो पांखी, मेरे कारण तुम्हें कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ी हैं, मुझे माफ कर दो. तुम्हारी बेटी कहां है? यहां हमें कहीं नहीं मिली?’’

‘‘बीमार पड़ गई थी इस गंध से. छुटकारा पा कर दुनिया से चली गई,’’ बुझी हुई आवाज में पांखी धीरे से बुदबुदा उठी.

‘‘ओह, आई एम सौरी. मगर इलाज नहीं कराया?’’

पर तब तक अर्धबेहोश सी पांखी फिर बेहोश हो चुकी थी. एंबुलैंस आते ही तीनों युवतियों को अस्पताल भिजवा कर उन्हें मैडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं.

गिरफ्तार लोगों से पुलिस ने अभिरक्षा में कड़ी पूछताछ शुरू कर दी थी. उन की निशानदेही पर ही भारतीय दूतावास को सूचित कर के देहरादून स्थित उन के औफिस का मैनेजर व उस का सहायक भी तुरंत वहीं गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए और औफिस सीलबंद कर दिया गया. उन पर भारत में ही मुकदमा चलाने की प्रक्रिया शुरू हो गई. अब मयूरी को समझ आ रहा था कि क्यों सारा उस की छुट्टियां इतनी आसानी से सैंक्शन करवा देती थी और जो लड़कियां सारा के बहकावे में नहीं आती थीं, उन से बेहद कठोरता से काम लिया जाता था.

युवतियां बहलानेफुसलाने व बरगला

कर बेचने वालों के रैकेट का

परदाफाश होते ही उन के बचेखुचे साथी भी एक के बाद एक पकड़ लिए गए थे. जिन्हें समय से भनक लग गई वे फरार हो गए थे, परंतु उन की खोजबीन जारी थी. पूरे शहर में यह खबर आग की तरह फैल चुकी थी. अगले दिन के अखबार के मुख्यपृष्ठ की सुर्खियों में यही खबर उन लोगों की फोटो सहित छपी.

तब मयूरी, सना के सामने अखबार रखती हुई बोली, ‘‘अब देख सना, यह है तुम्हारे शिराज उर्फ मेरे राहुल की असलियत. मैं ने कहा था न, अभी सीरत परखनी बाकी है.’’

पूरी खबर पढ़ कर सना पागल सी बैठी रह गई थी. वह शिराज को क्या समझती रही और वह क्या निकला. कहीं वह उस की बातों में आ कर घर से भाग गई होती तो…? अपना संभावित हश्र सोच कर वह मन ही मन कांप उठी. एकाएक उस ने झुक कर मयूरी के पैर पकड़ लिए.

आंसूभरी आंखों से मयूरी को देखती, लरजती आवाज में बोली, ‘‘प्लीज आपा, आप घर में किसी को कुछ न बताइएगा.’’

‘‘पागल हुई है,’’ एक मीठी झिड़की देते मयूरी ने उसे उठा कर अपने पास बैठा लिया.

‘‘आप उसे पहले दिन ही पहचान गई थीं न, तभी क्यों नहीं बता दिया?’’

‘‘क्या तब तुम मेरी बात का यकीन करतीं? उलटे, उसी से सवाल करतीं,’’ मयूरी बोली.

‘‘शायद नहीं,’’ कुछ सोचती सी सना बोली.

‘‘बस, इसीलिए नहीं बताया. तब मेरे पास कोई सुबूत नहीं था. पर आज मैं तुम्हें उसी के राहुल होने का सुबूत दिखा सकती हूं,’’ कह कर मयूरी ने पिछले दिन ही पहुंचे अपनी शादी के फोटोग्राफ्स उसे दिखाए, और गौर से चेहरा देखती पूछ बैठी, ‘‘मेरे खयाल में अब तुम्हें बताने की जरूरत तो नहीं कि रशीद के बारे में तुम्हें क्या फैसला लेना है?’’

‘‘बिलकुल नहीं आपा, आप बेफिक्र रहिए. मेरी आंखें खुल गई हैं. अब्बू की जबान ही अब मेरी जिंदगी है.’’

तहखाने से बरामद युवतियों का सरकारी खर्च पर इलाज करा कर उन्हें उन की पसंद की जगह हिफाजत के साथ पहुंचवा दिया गया. पांखी को मयूरी अपने साथ ले आई. अपने भविष्य के प्रति चिंतित, निराश पांखी आत्मग्लानि में डूब गई थी. इतनी जिल्लतभरी जिंदगी जीने के बाद अब वह वापस मांबाप के पास लौटती भी है, तो क्या वे लोग उसे अपना लेंगे? पांखी के लिए यह सवाल था.

लोकलाज के बंधन ग्रामीण पर्वतीय समाज में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं. वह वापस जाने के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी, ‘‘वापस किस मुंह से जाऊं. मैं तो बहकावे में आ कर घर से भागी थी. मांबाप के लिए तो मैं उसी दिन मर गई होऊंगी. अब वापस जा कर उन की परेशानियां और नहीं बढ़ाना चाहती.’’

‘‘घर से भागी, वह गलती तो तुम ने की ही थी. परंतु अब वापस न लौट कर एक और गलती मत करो. वे लोग तुम्हें बुराभला कहें भी, तो इसे सजा समझ कर सुन लेना. यह दुनिया भूखेभेडि़यों से भरी हुई है.’’

‘‘मुझे यकीन नहीं है कि वे लोग मुझे माफ करेंगे,’’ पांखी सिसकसिसक कर रोने लगी.

तो उसे चुप कराती मयूरी उस के आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘तुम घबराओ नहीं पांखी. मेरी मानो तो एक बार वहां चलो जरूर. कहो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं, उन्हें समझाने की कोशिश करूंगी. अगर वे तुम्हें अपने साथ रखने को राजी नहीं हुए तो तुम मेरे साथ रहना. मैं सोच लूंगी, मेरी एक नहीं, 2 छोटी बहनें हैं.’’

मयूरी के बहुत समझाने पर पांखी को कुछ ढाढ़स बंधी.

पूरे गिरोह के खिलाफ कई पुख्ता सुबूतों व गवाहियों के आधार पर गिरोह के सदस्यों का जुर्म साबित होते देर नहीं लगी. और सब को जेल की सलाखों के पीछे उम्रकैद में डाल दिया गया

भारत में विदेश मंत्रालय के कुछ अधिकारी नकली पासपोर्ट बनाने के धंधे में शामिल पाए गए थे. वे गैरकानूनी ढंग से विदेश पहुंच चुके लोगों के पासपोर्ट जब्त कर के उन की फोटो के स्थान पर नए व्यक्ति की फोटो लगा कर फेरबदल कर देते थे, फिर वही पासपोर्ट दूसरे को दे दिया जाता था. इतने बड़े घोटाले का परदाफाश होने पर पूरा महकमा अंदर तक हिल गया था. दोषी व्यक्तियों को सस्पैंड कर देने के साथ ही उन के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही होने की मांग जोर पकड़ने लगी थी. इस बीच, जद्दा में मयूरी व पांखी के पासपोर्ट व वीजा आदि तैयार हो गए थे.

आखिर एक दिन वे दोनों खान चाचा के परिवार से भावभीनी विदाई ले कर, दिल में एकदूसरे की अनगिनत यादें समेटे, वापस इंडिया के लिए आसमान में उड़ चलीं. मयूरी ने शीशे से झांक कर एक आखिरी नजर नीचे डाली तो नीचे फैले विशाल समुद्र का अंतहीन रेतीला तट, सूरज की किरणों में चांदी की चादर सा चमकता नजर आ रहा था. पर आज वह इस मृगमरीचिका से दिग्भ्रमित नहीं हुई, क्योंकि वह इस रेतीली चांदी को खुद परख चुकी थी, जो, जब आंखों के सामने होती है तो मन को लुभाती है, छूनेसहेजने के लिए उद्यत कर देती है. पर उस के पास जाने पर जब वह पांव के नीचे आती है तो लहरों के बहाव के साथ पांव के नीचे से वह भी खिसक जाती है. और यदि वह हाथ में हो, तो मुट्ठी के बीच से फिसल जाती है. पीछे बचता है खाली हाथ.

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रेतीली चांदी- भाग 5: क्या हुआ था मयूरी के साथ

सना पर तो उस ने अपनी अमीरी व प्रेम का ऐसा रंग चढ़ा रखा है, जिस पर दूसरा रंग चढ़ना आसान न था. मगर अब मयूरी को जल्द ही इस का कोई हल निकालना ही था, वरना सना की जिंदगी बरबाद होते देर नहीं लगती. उसे याद आ रहा था जब मसूरी में राहुल उस से मिलता था तो इसी तरह अमीरी के दिखावे के साथसाथ बड़ी शराफत व नफासत के साथ उस से पेश आता था. उस में कोई छिछोरापन न पा कर ही मयूरी धीरेधीरे उस की हर बात पर खुद से ज्यादा यकीन करने लगी थी. यदि तब कोई उसे राहुल की असलियत बताता तो शायद वह भी उस पर यकीन न करती.

यहां तो सना उस के कहने का उलटा अर्थ भी निकाल सकती थी कि उस के पिता के एहसानों तले दबे होने से ही वह शिराज को उस की नजरों में गिरा कर रशीद से उस का निकाह कराना चाहती है. अपनी बात की सचाई साबित करने के लिए मयूरी के पास कोई पुख्ता सुबूत भी तो नहीं था, कोई फोटो तक न थी. फोटो से उसे ध्यान आया. यहां भले ही उस के पास फोटो न हो पर शादी के समय मां ने किसी से उन दोनों के कुछ फोटोज खिंचवाए थे. वहां से तो मिल ही सकते थे.

यही सब सोचतेसोचते उधेड़बुन में फंसी मयूरी को पता ही न चला कैसे आधा घंटा निकल गया. उस ने पलट कर सना की तरफ देखा. तब तक शिराज जा चुका था और सना उसी की तरफ बढ़ी चली आ रही थी.

दूर से ही लाल डब्बी दिखाती आ रही सना ने पास आ कर डब्बी खोल कर डायमंड रिंग उसे दिखाते हुए बड़ी उम्मीद से उस से पूछा.

‘‘आप ने उन्हें देखा आपा? कैसे लगे?’’

‘‘हां, सूरत को ठीकठाक ही है. अभी सीरत परखनी बाकी है. एक बार और मिलना पड़ेगा,’’ उस की बात का गोलमोल जवाब देती मयूरी उसे असलियत भी तो नहीं समझा सकती थी.

एक जरूरी काम याद आने का बहाना कर के उस ने सना को घर भेज दिया और खुद हैड पोस्टऔफिस पहुंच कर जल्दी से जल्दी लौटती डाक से अपनी शादी के फोटोग्राफ्स भेजने के लिए मां को एक पत्र लिख कर वहीं पोस्ट कर दिया. पता अपने अस्पताल का दे दिया था. पत्र का जवाब आने में कम से कम 8-10 दिन तो लगने ही थे.

वहां से निकल कर वह भारतीय दूतावास के औफिस पहुंची, जहां उस ने अपना पासपोर्ट व वीजा बनवाने के लिए अप्लीकेशन दी हुई थी. भारतीय दूतावास ने भारत में विदेश मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों को इस पूरे प्रकरण की जानकारी दे दी थी जिस की उच्चस्तरीय जांच शुरू हो चुकी थी.

भारतीय दूतावास के अधिकारियों के लिए यह काफी सनसनीखेज घटना थी. क्योंकि मयूरी के अनुसार उस का पासपोर्टवीजा आदि 2 दिनों के अंदर ही तैयार हो गया था. जबकि संवैधानिक तरीके से पूरी प्रक्रिया में कम से कम 20-22 दिनों का समय लगता ही है. इस का मतलब उस ने कहीं से नकली पासपोर्ट बनवा कर पूरी यात्रा की थी और वे दोनों कहीं पकड़े भी नहीं गए. यानी कुछ बड़े अधिकारी भी इस घोटाले में कहीं न कहीं शामिल थे. फर्जी पासपोर्ट की कुछ शिकायतें पहले भी आ चुकी थीं. पर कोई पुख्ता सुबूत न होने से मामला लटका रहा. परंतु इस बार मयूरी की तरफ से रिपोर्ट कराते ही पूरा महकमा हरकत में आ गया था.

भारत में विदेश मंत्रालय को इस घोटाले की लिखित खबर मिलने पर सीबीआई को जांच सौंप दी गई. उस ने तुरंत ही देहरादून स्थित उस औफिस के बारे में छानबीन करनी शुरू कर दी. मयूरी की मां से मिल कर भी सीबीआई को अपनी तफ्तीश में काफी जानकारी मिल गई थी. शादी पर खींचे गए फोटोज से उन्हें राहुल की फोटो मिल गई. भारत में काफी जानकारी इकट्ठा कर के सीबीआई ने संबंधित अधिकारियों को पूरी रिपोर्ट भेज दी थी. जो जद्दा में काउंसलेट को स्थानांतरित करा दी गई थी. वहां की पुलिस ने इस की मदद से रैड एलर्ट घोषित करते हुए राहुल की फोटो सब थानों में भेज दी थी ताकि उसे पहचानने व पकड़ने में मदद मिल सके.

इस केस की जांच कर रहे अधिकारी को जब मयूरी ने राहुल की फोटो 8-10 दिनों में भारत से आ जाने की जानकारी दी तो उसे चकित करते हुए उन्होंने पहले ही सीबीआई द्वारा भेजी जा चुकी तसवीर उस के हाथ पर रख दी. इतनी तेजी से इन्क्वायरी होते देख उसे काफी तसल्ली हो गई थी. तभी उस ने राहुल के पकड़े जा सकने की उम्मीद का जिक्र भी कर दिया. सना का नाम बीच में लाए बिना उस ने बताया कि घर में काम करने वाली फरीदन के साथ उस ने राहुल को बाजार में देखा था. वह राहुल के सामने पड़ना नहीं चाहती थी, सो, उस समय कुछ नहीं बोली, पर फरीदन का पता वह कल तक उन्हें दे देगी, उस से राहुल का ठौरठिकाना मिल सकता है.

मयूरी को साथ ले जा कर उन लोगों ने वह भव्य इमारत भी खोज निकाली थी, जहां राहुल उसे छोड़ कर गया था. बिल्ंिडग की शिनाख्त करा के वहां खुफिया पुलिस के आदमी सादी ड्रैस में तैनात कर दिए गए थे, जो उस बंगले में हर आनेजाने वाले की कड़ी निगरानी करते थे.

घर आ कर मयूरी ने बातोंबातों में फरीदन से उस के घर का पता जान लिया था, जो उस ने फौरन अधिकारियों तक पहुंचा दिया. और उस के घर की निगरानी भी शुरू हो गई थी.

मयूरी ने सना को बिना कुछ बताए उस की तरफ से फरीदन की मारफत शिराज के पास अगले दिन उसी पार्क में आने के लिए मैसेज भिजवाया.

घर पहुंच कर फरीदन मैसेज का पुरजा राहुल को देने के लिए जैसे ही घर से निकली, बुर्कानशीं मयूरी सादे कपड़ों की पुलिस के साथ उस के पीछे चल पड़ी. गली से निकल कर वह एक मकान के सामने जा कर रुकी और दरवाजे की घंटी दबा दी. दरवाजा राहुल ने ही खोला था. फरीदन को देखते ही उसे अंदर कर के दरवाजा फिर बंद हो गया.

मयूरी से उसी के राहुल होने की शिनाख्त करा कर पुलिस वालों ने उस घर को चारों तरफ से घेर लिया. जैसे ही फरीदन ने वापस जाने के लिए कदम बाहर रखा, उसे गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही, कुछ पुलिस वाले धड़धड़ाते हुए अंदर घुस गए. पुलिस को देख राहुल ने भागने की कोशिश की किंतु जल्द ही उसे भी गिरफ्त में ले लिया गया. मकान की तलाशी लेने पर नीचे बने तहखानेनुमा स्टोर में एक युवती छिपी हुई मिली, जिसे मयूरी ने राहुल की बहन सारा के रूप में पहचान लिया, किंतु फरीदन के अनुसार, वह राहुल की प्रेमिका ऐना थी.

इधर इन लोगों की गिरफ्तारी के साथ ही दूसरी टीम ने भव्य इमारत को भी घेर लिया था. और उस के चौकीदार, दरबान व कुछ कर्मचारियों के साथ ही अंदर मौजूद 2 शेखों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

इमारत से बरामद लोगों में पांखी व उस की बेटी को न पा कर मयूरी बेहद परेशान हो उठी. उस ने पांखी की बताई हुई कुछ जानकारियां अधिकारियों को बताईं, जिन के आधार पर उन्होंने पूरी इमारत का चप्पाचप्पा छान मारा, तब एक आदमकद शीशे के पीछे एक चोर दरवाजा मिला, जिस पर ताला पड़ा हुआ था.

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रेतीली चांदी- भाग 3: क्या हुआ था मयूरी के साथ

देहरादून से वापस लौटते ही मयूरी को मां का भेजा पत्र मिला कि उन्होंने एक अच्छे संभ्रांत परिवार में उस का रिश्ता तय कर दिया है. केवल औपचारिक तौर पर वे लोग एक बार आमनेसामने लड़की को देखना चाहते हैं. तभी वे शगुन की रस्म भी कर देंगी. सो, अगली गाड़ी से ही वह घर आ जाए.

मां का पत्र पढ़ कर मयूरी थोड़ा पसोपेश में पड़ गई. अब वह मां को अपने दिल की बात कैसे बताए कि वह केवल राहुल को चाहती है व उसी से शादी करना चाहती है. मां का पत्र राहुल व सारा ने भी पढ़ा.

राहुल के चेहरे पर कई रंग आ कर चले गए. कुछ सोच कर वह बोला, ‘देख लो, फैसला तुम्हारे हाथ में है. एक तरफ तुम्हारी पसंद का देखापरखा तुम्हारा प्यार है, दूसरी तरफ एक अनजान परिवार जिसे न तुम ने पहले देखा है न बिलकुल जानती हो. बालिग हो, अपना फैसला खुद लेने का हक है तुम्हें. हम लोग यहीं कोर्ट में विवाह कर लेते हैं, बाद में मां को बता देंगे.’

‘पर इस तरह शादी कर लेने से मां को बहुत दुख होगा. हम दोनों बहनों के लिए उन्होंने बहुत दुख उठाए है.’ मयूरी के संस्कार उसे मां से बगावत करने से रोक रहे थे, पर अमीर राहुल से विवाह होने पर सुखसुविधा संपन्न जीवनयापन की चाह मां के फैसले के उलट करने को उकसा रही थी.

राहुल द्वारा कोर्टमैरिज के लिए जोर देने पर, उस से विवाह करने की दिली इच्छा होते हुए भी, वह मां को अंधेरे में रख कर यह विवाह नहीं करना चाहती थी. उसे वह ठीक नहीं समझ रही थी. वह विवाह तो करना चाहती थी पर मां की खुशी के साथ.

आखिर सोचविचार कर, एक बार मां को मनाने की कोशिश करने के लिए वह राहुल व सारा के साथ अगले ही दिन मां के पास जा पहुंची थी. वहां राहुल ने अपना परिचय देने के साथ ही मयूरी का हाथ भी मांग लिया तो वे इस प्रस्ताव से चौंक उठी थीं, ‘कहां तुम लोग और कहां हम. रिश्ता तो बराबरी वालों में ही अच्छा रहता है.’

‘बराबरी केवल पैसों से ही थोड़े न होती है. मुझे आप की बेटी बेहद पसंद है. आप फिक्र न करें, हमें कोई दानदहेज नहीं चाहिए?  बस, अपनी बेटी 3 कपड़ों में विदा कर दीजिएगा,’ राहुल ने अपील की.

‘पर तुम्हारे मातापिता भी आ जाते, तभी बात पक्की करते,’ वे असमंजस में पड़ कर बोलीं. इतने बड़े घर से बेटी का रिश्ता मांगा जाता देख वे थोड़ी हतप्रभ थीं, साथ ही उन्हें खुशी भी थी कि बेटी इतने बड़े संपन्न घर जा कर चैन से जिंदगी बसर करेगी.

‘हमारी मौम तो अब रही नहीं. हां, डैडी हैं, पर वे इस समय बिजनैस के सिलसिले में हौंगकौंग गए हुए हैं. सो, उन का आना तो फिलहाल संभव नहीं है. अपने डैडी से मैं खुद मयूरी को मिलाने ले जाऊंगा. तभी शादी का रिसैप्शन दिया जाएगा. अभी तो बस आप इजाजत दे दीजिए, ताकि मैं मयूरी से कोर्टमैरिज कर सकूं. क्योंकि 2 दिनों बाद ही मुझे भी बिजनैस की कई मीटिंग्स अटैंड करने फ्रांस जाना है और फिर शायद जल्दी आना नहीं हो पाएगा.’

‘पर इतनी जल्दी मयूरी का पासपोर्ट वगैरह कैसे बन पाएगा?’ वसुंधरा के मुंह से निकला.

‘वह मैं अरैंज करा दूंगा. मेरी जानपहचान है.’

राहुल ने कहा तो वसुंधरा को फिर इस रिश्ते के लिए न कहने की कोई वजह नहीं दिखी. उसे सबकुछ स्वप्न सा लग रहा था. वसुंधरा अपने रीतिरिवाजों के अनुसार विवाह की रस्में पूरी करवाना चाहती थी. पर पैसे व समय दोनों की बचत करने पर जोर दे कर राहुल कोर्टमैरिज करने के फैसले पर ही अड़ा रहा और दोचार जानपहचान वालों की मौजूदगी में उन लोगों ने एक हलफनामे पर हस्ताक्षर कर के विवाह की फौर्मेलिटीज पूरी कर दीं. वसुंधरा के बहुत मना करने पर भी राहुल डेढ़ लाख रुपए अपने यहां की ‘हक’ की रस्म के नाम पर उन्हें दे ही गया.  क्रमश:

क्या जो हसीन सपने मयूरी देख रही थी वाकई पूरे होने वाले थे या कुछ ऐसा होने वाला था जो कोई सोच भी नहीं सकता था.

मयूरी को होश आया तो उस ने खुद को अस्पताल के बैड पर पाया. उस के एक हाथ में टेप से चिपकी सूई लगी हुई थी और ग्लूकोज चढ़ रहा था. उस ने धीरे से आंखें खोल एक नजर आसपास डाली पर कमजोरी के कारण फिर आंखें बंद कर लीं. कुछ पल तो उसे यह समझने में ही लग गए कि वह वहां कैसे आई…जरूर सुबह मजदूरों ने उसे बेहोश पा कर यहां अस्पताल में ला कर भरती करा दिया होगा. तभी एक नर्स आ कर उस का ब्लडप्रैशर नापने लगी तो उस की आंखें खुल गईं.

नर्स के साथ ही एक डाक्टर भी थे जो उसे होश में आया देख पूछ रहे थे, ‘‘होश आ गया आप को, अब कैसा फील कर रही हैं?’’

‘‘काफी ठीक लग रहा है, मैं यहां आई कैसे?’’

‘‘आप 2 दिनों से बेहोश पड़ी हैं…’’ उस का बीपी चैक करती नर्स ने बताया तो वह चौंक पड़ी.

‘‘2 दिनों से?’’

‘‘जी हां, 2 दिनों से,’’ इस बीच डाक्टर उस की रिपोर्ट भी पढ़ते रहे.

‘‘पर मुझे यहां लाया कौन?’’ वह कमजोर सी आवाज में पूछ उठी.

‘‘वह तो भला हो खान चाचा का, जो आप को कचरे के ढेर के पास से उठा कर यहां लाए थे. वरना कुछ भी हो सकता था. उस की बांह पर से बीपी इंस्ट्रूमैंट की पट्टी खोलती नर्स बोली.’’

‘‘खान चाचा कौन हैं? कहां हैं? वह पूरी बात जानना चाह रही थी.

‘‘हमारे अस्पताल में स्टाफ के चीफ हैं. अभी औपरेशन थिएटर में डाक्टर साहब के साथ हैं, आते ही होंगे,’’ नर्स उसे बता कर अगले मरीज के पास पहुंच गई.

थोड़ी देर बाद ही 45-50 वर्षीय, खिचड़ी बालों वाले खान चाचा, औपरेशन पूरा होने के बाद उस के पास आए. उसे होश में आया देख उन्होंने राहत की सांस ली, ‘‘शुक्र है तुम्हें होश तो आया. अब कैसी तबीयत है?’’

‘‘बहुत बेहतर, आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं, समझ नहीं पा रही,’’ उन्हें देखती मयूरी बोल उठी.

‘‘बेटा, शुक्रिया मेरा नहीं, समय का अदा करो. हम तो समय पर पहुंच गए थे.’’

‘‘मेरे लिए तो आप ही सबकुछ बन कर आए हैं.’’

‘‘अच्छा छोड़ो, यह बताओ तुम वहां कचरे के ढेर के पास कैसे पहुंच गईं? अपने घर का पता दो, तो तुम्हारे मातापिता को सूचना दूं. परेशान हो रहे होंगे वे लोग. यह तो कहो, मेरा घर वहीं पास में ही है. अपनी नाइट ड्यूटी खत्म कर के मैं वहां से गुजर रहा था, तब तुम्हारे कराहने की आवाज सुनी व बदन में हरकत देखी तो फौरन यहां ले आया.’’

मयूरी को समझ नहीं आ रहा था कि एक अजनबी पर वह कितना यकीन करे. एक बार धोखा खा चुकी थी, अब दोबारा नहीं खाना चाहती थी. पर उस के सामने कोई चारा न था. फिर खान चाचा तो नेक बंदे लग रहे थे. वरना आजकल की स्वार्थी दुनिया में, जहां लोग अपनों की मदद करने में हिचकते हैं, उस जैसी अनजान लड़की के लिए इतनी जहमत हरगिज नहीं उठाते. सो, उस ने संक्षेप में खान चाचा को सबकुछ सचसच बता दिया. वहां से भागते हुए वह तो उस बिल्ंिडग के अंदर पहुंचते ही बेहोश हो कर गिर पड़ी थी. सुबह वहां काम करने वालों ने शायद उसे मरा हुआ समझ कर पुलिस की झंझटों से बचने के लिए थोड़ी ही दूर पर बने कचरे के डलाव के पास डाल दिया होगा.

मयूरी के साथ घटी पूरी दास्तान सुन कर खान चाचा फिक्रमंद हो गए थे. उस की तबीयत थोड़ी संभल जाने पर अस्पताल से छुट्टी करा कर वे उसे अपने साथ अपने घर ले गए, जहां उन की पत्नी साबिया बेगम व बेटी सना थीं. उन्हें पहले ही संक्षेप में सबकुछ बता कर उन्होंने मयूरी को, भारत वापस लौटने तक अपने साथ ही रखने का मशवरा कर लिया था. सो, घर में सब ने उसे हाथोंहाथ लिया. जरा भी पराएपन का एहसास नहीं होने दिया. जानपहचान वालों से उसे अपना दूर का रिश्तेदार बता दिया गया था.

अगले दिन खान चाचा ने मयूरी की तरफ से राहुल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर पासपोर्ट बनवाने के लिए अप्लीकेशन जमा करवा दिया. साथ ही, पूरे घटनाक्रम की एक प्रति भारतीय दूतावास को भी भेज दी.

आगे पढ़ें- रहने के लिए उसे खान चाचा ने…

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रेतीली चांदी- भाग 2: क्या हुआ था मयूरी के साथ

वसुंधरा को बेटी का यों बदलना अच्छा नहीं लगा था. मयूरी अभी भी तरहतरह से खुद को सही साबित करने के लिए तर्क पर तर्क दिए जा रही थी. मांबेटी को इत्मीनान से बात करने के लिए अकेला छोड़, सारा कुछ काम का बहाना बना कर बाहर चली गई थी.

उस के जाते ही वसुंधरा मयूरी से बोली, ‘बेटी, तुम घर से बाहर पहली बार निकली हो. दस तरह के लोग तुम्हें मिलेंगे. जो भी करना बहुत सोचसमझ कर करना. अपनी जरूरत पूरी करना अच्छा है और जरूरी भी पर फुजूलखर्ची नहीं होनी चाहिए. तुम अब कमाने लगी हो तो उस में से कुछ बचत करने की आदत भी डालो. मौडर्न होने में कोई बुराई नहीं है पर याद रखो, जिस्म की खूबसूरती उसे ढकने में ही है, न कि उस की नुमाइश करने में. यह सारा कैसी लड़की है?’

‘बहुत ही अच्छी है मां. अमीर परिवार की है पर घमंड जरा भी नहीं है. मेरी तो वह बहुत अच्छी दोस्त बन गई है,’ और फिर मयूरी उस के परिवार के बारे में विस्तार से बताती रही.

‘इतने अमीर घर की हो कर भी यहां क्यों नौकरी कर रही है?’

‘नौकरी तो वह अपने दम पर कुछ कमाने के लिए करती है. खाली बैठने से तो अच्छा ही है. फिर मां, बड़े लोगों से दोस्ती करने में हर्ज ही क्या है. वास्तव में उसी ने मुझे यह ड्रैस सैंस दिया है.’

‘बेटा, ये सब उच्च वर्गीय अमीरों के चोंचले हैं कि जितना ज्यादा पैसा, उतने ही कम कपड़े,’ मां उसे बीच में टोकती हुई बोली.

‘ओह मां, आप भी क्या बेकार की बातें ले बैठीं. आजकल तो सभी लड़कियां ऐसे ही रहती हैं,’ मयूरी बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, पर आप चाहती हैं कि मैं फिर वही पुरानी बहनजी टाइप बन कर ही रहूं तो ठीक है.’

‘बेटा, मुझे गलत मत समझो. दुनिया चाहे कहीं पहुंच गई हो पर औरत के लिए वह आज भी नहीं बदली है. तुम से बस यही कहना है कि आगे कभी कोई गलत कदम न उठा लेना. बहकाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, संभालने वाला कोई नहीं मिलता. सारा तो अमीर घराने की है. उन के रहनसहन चालचलन और हमारे में बहुत फर्क है.’

वसुंधरा अपनी तरफ से बेटी को तरहतरह से समझा कर लौटती बस से वापस चली गई.

मयूरी ने मां की कुछ बातें समझीं, कुछ को उन के पुराने खयालों की सोच समझ कर एक कान से सुन कर, दूसरे से निकाल दीं. उस की जिंदगी उस की मनमरजी के अनुसार ही चलती रही. मां के समझाने से इतना असर जरूर हुआ कि उस ने कुछ पैसा घर भेजना व कुछ बैंक में जमा कराना शुरू कर दिया.

कुछ दिनों बाद सारा ने उसे बताया कि लंदन से उस के बड़े भाई राहुल बिजनैस के सिलसिले में दिल्ली आने वाले हैं. तब वे 2 दिनों के लिए उस के साथ मसूरी भी जाएंगे. उस ने मयूरी से भी साथ चलने व घूमने के लिए कहा.

‘अच्छा, मां से पूछ कर बताऊंगी.’

मयूरी के सहज ढंग से कहने पर सारा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘क्या दूध पीती बच्ची हो जो ये सब बातें भी अब मां से पूछ कर करोगी? कब तुम्हारी चिट्ठी वहां पहुंचेगी, कब वे जवाब देंगी. कोई फोन तो है नहीं तुम्हारे घर. तब तक तो राहुल भैया सब काम निबटा कर वापस भी जा चुके होंगे.’

उस के हंसी उड़ाने वाले अंदाज में हंसने से मयूरी झेंप गई.

‘नहीं, तब भी. औफिस से भी तो इतनी जल्दी छुट्टी नहीं मिलेगी,’ उस ने खुद का बचाव सा करते हुए कहा तो सारा चुटकी बजाते हुए बोली, ‘उस की तुम फिक्र मत करो, बौस से मैं बात कर लूंगी. वे मेरे डैडी के बहुत अच्छे दोस्तों में से हैं. मैं कहूंगी तो मना नहीं करेंगे.’

आखिर मसूरी घूमने की इच्छा तो मयूरी की भी थी. सो, सारा के जोर देने पर उस ने भी साथ चलने की हामी भर दी.

2 दिनों बाद मयूरी ने राहुल को पहली बार उस तीनसितारा होटल में देखा था जहां उस ने सारा व मयूरी को डिनर के लिए बुलाया था. किसी सीरियस बिजनैसमैन की जगह 25-30 वर्षीय अपटूडेट नौजवान राहुल को देख पहले तो वह उस से बातचीत में थोड़ा सकुचाती रही, पर उन दोनों के मधुर व्यवहार से वह प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी.

खूबसूरत डिजायनर मोमबत्तियों का हलका उजाला, तरहतरह की जलतीबुझती रोशनियां, गूंजता सुरीला संगीत और डांसफ्लोर पर एकदूसरे में खोए से प्रेमी युगल…सब कुछ मयूरी के लिए नए थे. अनजाने ही वह उधर देखती खुद को राहुल के साथ डांसफ्लोर पर थिरकने की कल्पना कर उठी. तभी, मयूरी ने राहुल को अपने सामने खड़ा पाया जो उस की तरफ हाथ बढ़ाए उसे ही देख रहा था.

‘मे आई प्लीज?’

‘पर मुझे डांस नहीं आता,’ वह एकदम घबरा सी गई, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

‘कोई बात नहीं, मेरे साथ आइए, अपनेआप आ जाएगा,’ वह मुसकरा कर बोला.

उस की आवाज की कशिश व देखने का अंदाज मयूरी को अंदर से कहीं कमजोर बना रहा था. तभी सारा ने भी उसे जाने के लिए कहा और लगभग ठेल सा ही दिया. अगले 2 घंटे मयूरी के लिए सपने की दुनिया में सैर करने के समान थे. माहौल का असर उस पर हावी होता जा रहा था. उस का दिल चाह रहा था, काश, यह संगीत कभी न रुके और वह इसी तरह पूरी जिंदगी राहुल के साथ एक लय पर थिरकती उस के करीब बनी रहे. उस के जिस्म से आती भीनीभीनी खुशबू उसे मदहोश बना रही थी.

वहां से लौट कर भी मयूरी राहुल के खयालों में ही खोई रही थी. अगले 2 दिनों का मसूरी ट्रिप भी उस के लिए कई यादगार लमहे छोड़ गया था. राहुल के वापस जाने के बाद मयूरी को सबकुछ कितना खालीखाली सा लगता रहा था. सारा उस के मन की हालत समझ रही थी. और अब गाहेबगाहे उसे राहुल का नाम लेले कर छेड़ने से बाज नहीं आती थी.

ऐसे मौकों पर मयूरी के लाख झुठलाने पर भी उस के लाल होते गाल उस के दिल की भावनाओं की चुगली कर जाते. अनजाने ही उस की आंखों में राहुल जैसा जीवनसाथी पाने का एक छोटा सा सपना पलने लगा था.

सपनों पर किसी देश, समाज या धर्म का बंधन तो होता नहीं. ये तो बस मन में उठती भावनाओं का रूप होते हैं. देशविदेश घूमने की चाह व उच्च सामाजिक रुतबा पाने की ख्वाहिश शायद उस के सपनों के मूल में थी. पर उन की सामाजिक स्थिति के बीच जमीनआसमान का अंतर होने से कभीकभी उसे खुद पर ही झुंझलाहट भी हो आती कि क्यों वह ऐसे सपने देखती ही है जिन के पूरा होने की कोई उम्मीद ही न हो. क्या दोचार दिन साथ घूम लेने से ही वह उस की प्रेयसी हो जाएगी.

राहुल अमीर है, स्मार्ट है. कितने ही बड़ों घरों से उस के लिए रिश्ते आते होंगे. ऐसे में वह तो कहीं भी नहीं ठहरती. किंतु राहुल के सामने आने पर, उस की आंखों में अपने लिए कुछ खास सा भाव देख वह फिर दिल के हाथों मजबूर हो, उस की तरफ एक खिंचाव सा महसूस करने लगती. इधर वसुंधरा भी अब मयूरी के लिए अपनी जातबिरादरी में लड़का ढूंढ़ने लगी थी.

हर 2 महीने बाद राहुल दिल्ली आता तो देहरादून जरूर जाता. तब अकसर ही सारा व मयूरी के साथ कभी मसूरी, कभी सहस्त्रधारा आदि का प्रोग्राम बना कर घूमने निकल जाता. वहां सारा कभी उन्हीं के साथ रहती, कभी अलग घूमने निकल जाती. तब केवल वे दोनों व उन की तनहाइयां ही रह जातीं. पर राहुल ने कभी उस का बेजा फायदा उठाने की कोशिश नहीं की. जिस से मयूरी का उस पर यकीन बढ़ता गया, साथ ही आपस में हंसीमजाक भी. आखिर जाने से एक दिन पहले राहुल ने उस से अपने दिल की बात कह ही दी.

‘मुझ से शादी करोगी?’

इतने दिनों से जो बात उस के ख्वाबोंखयालों में मंडराती रहती थी, आज हकीकत में सुन कर पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ, फिर मयूरी की पलकें झुक गईं और होंठों पर एक लजाई हुई मुसकराहट छा गई थी.

‘कुछ तो कहो?’ उस ने उस का चेहरा उठाते हुए पूछा.

‘अच्छा, मां से बात करो,’ कह कर उस ने सिग्नल दे दिया था.

आगे पढ़ें- मां का पत्र पढ़ कर मयूरी थोड़ा…

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भ्रम भंग

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स्पीचलेस मर्डर

लेखक- निखिल अग्रवाल  

प्राची सुंदर और प्रतिभावान नाट्य कलाकार थी. उस की गलती यह थी कि वसीम से प्रेमिल रिश्ते निभाते हुए उस ने कभी उस की प्रवृत्ति को जाननेसमझने की जरूरत नहीं समझी. यही वजह थी कि ब्रेकअप के बाद भी वह सिर्फ इसलिए उस की जान का प्यासा बन कर घूमने लगा क्योंकि वह अपने साथी कलाकार और दोस्त अंकित के साथ घूमनेफिरने लगी थी. आखिर उस ने…

तारीख – 25 अप्रैल, 2019

समय – सुबह 7 बजे

घटनास्थल – यूनाइटेड वे गरबा ग्राउंड

स्थान – गुजरात का महानगर वडोदरा.

सुबह भले ही अलसाई सी थी, लेकिन सूरज ऊपर चढ़ आया था. हल्की हवा जरूर चल रही थी, लेकिन गरमी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. कुछ लोग घरों से मौर्निंग वौक पर निकले थे तो कुछ दूध ब्रेड वगैरह लेने के लिए. कुछ लोग जब गरबा ग्राउंड के पास से निकल रहे थे तो उन की निगाह पेड़ के नीचे लेटी एक लड़की पर पड़ी. उस के आधे चेहरे पर दुपट्टा पड़ा हुआ था, जिस की वजह से चेहरा ठीक से नजर नहीं आ रहा था.

सुबहसुबह एक लड़की को इस तरह पड़ी देख लोगों के  कदम ठिठक गए. एक बुजुर्ग ने लोगों को उस के बारे में बात करते देखा तो बोले, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो, आवाज लगाओ, ठीक होगी तो कुछ बोलेगी.’’

लोगों को बुजुर्ग की बात ठीक लगी. एक दो ने आवाज दी, ‘‘ऐ लड़की, उठो, यहां क्यों सो रही हो?’’

लेकिन लड़की में कोई हलचल नहीं हुई. दोबारा आवाज लगाने का भी कोई परिणाम नहीं निकला. यह देख लोगों ने अपनीअपनी राय देनी शुरू कर दी. कुछ कह रहे थे कि संभव है किसी नशे में हो तो कुछ की राय थी कि उस के साथ कोई अनहोनी हुई है. तभी एक आदमी ने आगे बढ़ कर लड़की के चेहरे से दुपट्टा हटा दिया. एक करवट पड़ी वह लड़की 23-24 साल की थी, देखने में सुंदर.

लड़की के शरीर पर ऐसा कोई निशान नजर नहीं आया, जिस से यह लगता कि उस के साथ कोई अनहोनी हुई है. एक व्यक्ति ने लड़की की नब्ज टटोल कर देखी, तो उस में जीवन के लक्षण नजर नहीं आए. उस का शरीर ठंडा पड़ चुका था.

वहां मौजूद लोगों ने लड़की को पहचानने की कोशिश की लेकिन कोई भी पहचान नहीं पाया. अलबत्ता एक दो लोगों ने यह जरूर कहा कि इस लड़की को कभीकभार आसपास आतेजाते देखा जरूर था. उन्होंने यह अंदेशा भी जताया कि संभव है, वह कहीं आसपास की ही रहने वाली हो.

इस बीच किसी ने मोबाइल से पुलिस को सूचना दे दी थी. कुछ ही देर में जेपी रोड थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पुलिस ने लड़की को हिलाडुला कर देखा. पता चला कि उस की मृत्यु हो चुकी है. उस के शरीर पर किसी तरह के हमले के निशान नहीं थे. अलबत्ता गौर से देखने पर गले पर छीनाझपटी और दबाने के निशान जरूर दिखाई दिए.

इस से यह बात साफ हो गई कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई है. पुलिस ने सबूतों की तलाश में इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो लाश से कुछ दूरी पर एक स्कूटी खड़ी दिखाई दी. वहीं एक लेडीज पर्स भी पड़ा था. पुलिस ने पर्स खोल कर देखा तो उस में कुछ कागज मिले, जिन से यह पता चल गया कि मृतका का नाम प्राची मौर्य है.

इस बीच वहां काफी भीड़ एकत्र हो गई थी. लड़की की हत्या की सूचना मिलने पर पुलिस के कई अफसर भी मौके पर पहुंच गए थे. भीड़ में से कुछ लोगों ने उस लड़की के शव की शिनाख्त प्राची मौर्य के रूप में कर दी. लोगों से पता चला कि प्राची पुरानी पादरा रोड पर रिलायंस मौल की गली में स्थित आर्किड बंगला में रहती थी. जहां प्राची की लाश मिली थी, उस से उस का मकान करीब 200 मीटर दूर था.

थाना जेपी रोड पुलिस हत्या का केस दर्ज करने के बाद आर्किड बंगला पहुंची और प्राची की मां यशोदा और बहन साची से पूछताछ की. सुबहसुबह पुलिस को घर पर आया देख प्राची की मां और बहन डर गए. पुलिस ने उन्हें प्राची की लाश मिलने के बारे में बता कर पूछा कि उसे कौन मार सकता है?

प्राची की मौत की खबर सुन कर उस की मां व बहन रोने लगीं. पुलिस ने उन्हें ढांढस बंधा कर प्राची के दोस्तों आदि के बारे में पूछा. पता चला कि प्राची नाट्य कलाकार थी. वह एक दिन पहले यानी 24 अप्रैल को अपने थिएटर ग्रुप के साथ वडोदरा से खंभात गई थी. वह घर पर कह कर गई थी कि आधी रात के बाद तक वडोदरा लौट आएगी.

घर वाले रातभर प्राची के घर आने का इंतजार करते रहे, लेकिन वह नहीं आई. मां यशोदा ने रात को उस के मोबाइल पर फोन भी किया, पर बात नहीं हुई. इस के बाद घर वालों ने सोचा कि संभव है रात हो जाने की वजह से प्राची का थिएटर ग्रुप खंभात में ही रुक गया हो. सुबह आ जाएगी. इसलिए वे लोग निश्चित हो कर सो गए थे.

पुलिस को प्राची की मां यशोदा और बहन साची पूछताछ में ऐसी कोई खास बात तो पता नहीं चली लेकिन उस के एकदो दोस्तों के मोबाइल नंबर जरूर मिल गए. पुलिस ने प्राची के उन दोस्तों से बात की. उन से पता चला कि प्राची वडोदरा के एप्लौस थिएटर एंड आर्ट ग्रुप में काम करती थी. एप्लौस थिएटर ग्रुप 24 अप्रैल को एक परफौरमेंस देने के लिए खंभात गया था.

खंभात वडोदरा से करीब 70 किलोमीटर दूर है. इस थिएटर ग्रुप को खंभात के औयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ओएनजीसी) के औफिसर्स क्लब ने नाटक ‘स्पीचलैस’ की परफौरमेंस देने के लिए बुलाया था. नाटक के लिए प्राची के साथ 20 कलाकारों की टीम वडोदरा से खंभात गई थी.

प्राची के दोस्तों से पता चला कि रंगकर्मियों की टीम नाटक की परफौरमेंस दे कर 24-25 अप्रैल की रात को करीब साढ़े बारह-एक बजे के बीच खंभात से वडोदरा लौट आई थी. पुलिस को प्राची के दोस्तों से यह भी पता चला कि प्राची अपने थिएटर ग्रुप के साथी अंकित के साथ अपने घर चली गई थी.

पुलिस ने प्राची के दोस्तों से अंकित का मोबाइल नंबर ले लिया. एक पुलिस टीम ने पंचनामा बना कर प्राची के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया.

पुलिस ने अंकित को फोन किया तो पता चला कि जब वह प्राची को उस के घर छोड़ने जा रहा था, तो उस का पुराना बौयफ्रैंड वसीम मिला था. वसीम और प्राची के बीच काफी कहासुनी हुई थी, झगड़ा भी हुआ था.

अंकित ने यह भी बताया कि वसीम ने प्राची पर हमला भी किया था, लेकिन उस ने प्राची को बचा लिया था. बाद में रात करीब सवा 2 बजे वह प्राची को उस की सोसाइटी के पास मेन रोड पर छोड़ कर अपने घर चला गया था.

वसीम ने प्राची के साथ झगड़ा और मारपीट की थी. यह पता चलने पर पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने प्राची के दोस्तों से वसीम के घर का पता मालूम कर लिया. एक पुलिस टीम वसीम के घर पहुंची.

वसीम के पिता सीआईएसएफ के रिटायर्ड सबइंसपेक्टर हैं. वसीम के घर वालों से पुलिस को पता चला कि वह भरूच के इंजीनियरिंग कालेज में इलेक्ट्रौनिक एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. वह सुबह कालेज जाने की बात कह कर घर से निकल गया था.

पुलिस ने वसीम के घर से उस की एक फोटो ले ली. घर वालों से पता चला कि वसीम भरूच स्थित अपने कालेज ट्रेन द्वारा जाता है. भरूच शहर वडोदरा से करीब 70 किलोमीटर दूर है. वडोदरा से भरूच के लिए थोड़ीथोड़ी देर के अंतराल से रोजाना 45 से ज्यादा ट्रेनें हैं. इसलिए यह पता नहीं चल पाया कि वसीम कौन सी टे्रन से भरूच जाता है.

पुलिस की एक टीम तुरंत वडोदरा रेलवे स्टेशन पहुंच गई. पुलिस ने स्टेशन पर फोटो के सहारे वसीम की तलाश की. लेकिन लगातार ट्रेनों की आवाजाही और सैकड़ों यात्रियों की भीड़ में वसीम को खोजना मुश्किल था.

एक पुलिसकर्मी ने टिकट विंडो पर जा कर वहां मौजूद क्लर्क को वसीम की फोटो दिखा कर पूछा कि इस हुलिए के किसी युवक ने भरूच की टिकट ली है क्या. क्लर्क ने फोटो देख कर बताया कि कुछ देर पहले ही इस युवक ने टिकट ली थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि वसीम या तो किसी ट्रेन से भरूच के लिए निकल चुका है, या ट्रेन के इंतजार में स्टेशन पर ही होगा. पुलिस ने सब से पहले यह पता लगाया कि भरूच जाने वाली सब से पहली टे्रन कब और कौन से प्लेटफौर्म पर आएगी.

पता चला कि टे्रन आने वाली है. पुलिस टीम उस ट्रेन के आने से पहले ही प्लेटफार्म पर चारों तरफ फैल गई. फोटो के आधार पर पुलिस ने वसीम को प्लेटफौर्म पर ही पकड़ लिया.

पुलिस टीम उसे थाने ले आई और उस से पूछताछ की. पूछताछ में वसीम ने प्राची से दोस्ती होने की बात तो स्वीकार की, लेकिन उस से झगड़ा होने और उस की हत्या करने की बात से साफ इनकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उस ने प्राची मौर्य की हत्या करने की बात कबूल कर ली.

थिएटर कलाकार की हत्या की सूचना वडोदरा महानगर के रंगकर्मियों में आग की तरह फैली. रंगकर्मियों में इस से आक्रोश छा गया. सोशल मीडिया के जरिए प्राची हत्याकांड चर्चा का विषय बन गया था.

प्राची हत्याकांड का कुछ ही घंटों में खुलासा होने पर डीसीपी (अपराध) जयदेव सिंह जडेजा ने स्वयं वसीम से पूछताछ की. पूछताछ में प्राची मौर्य की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई वह वसीम की कुंठा और बदले की आग का परिणाम निकली.

प्राची और वसीम उर्फ अरहान मलेक इंजीनियरिंग के विद्यार्थी थे. प्राची सीनियर थी और वसीम जूनियर. करीब 4 साल पहले प्राची इंजीनियरिंग के 5वें सेमेस्टर में थी. उस समय वसीम तीसरे सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहा था. वसीम ने ठीक से पढ़ाई नहीं की थी, जिस की वजह से उस की बैक लग गई थी.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई वैसे भी काफी टफ होती है. उस पर वसीम की बैक लग गई. तो उसे पढ़ाई में पिछड़ने की चिंता होने लगी. अब उसे एक साथ 2 सेमेस्टर की परीक्षा देनी थी. वसीम ने दोस्त होने के नाते अपनी सीनियर साथी प्राची से मदद मांगी. प्राची ने आगे बढ़ कर उसे ट्यूशन देने की बात कही. वसीम भी यही चाहता था.

ट्यूशन पढ़ते पढ़ाते हुए दोनों में प्यार के बीज अंकुरित होने लगे. पहले वे कालेज के सीनियर और जूनियर स्टूडेंट होेने के नाते केवल दोस्त थे. अब वे दोस्ती से आगे बढ़ कर प्यार की पींगे बढ़ाने लगे. समय के साथ उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद दोनों पार्क में बैठ कर घंटों तक प्रेमप्यार की बातें करते. समय के साथ उन का प्यार प्रगाढ़ होता गया.

चढ़ते यौवन की उम्र ही ऐसी होती है कि अच्छाबुरा या आगेपीछे कुछ नहीं सूझता. प्राची और वसीम के साथ भी यही हुआ. एक मिनट भी एकदूसरे से जुदा नहीं होना चाहते थे. दिन में अधिकांश समय साथ बिताने के बाद भी उन का मन नहीं भरता था, तो दोनों देर रात तक चैटिंग करते थे. नित्य नियम से दोनों कम से कम 20 मिनट चैटिंग करते थे.

फिर अचानक ऐसा कुछ हुआ कि इसी साल फरवरी में प्राची और वसीम के बीच ब्रेकअप हो गया. 4 साल का प्यार एक ही झटके में परिंदों के घोंसलों के तिनकों की तरह बिखर गया. दोनों एकदूसरे से अलग हो गए. दिलों में एकदूसरे के लिए नफरत पैदा हो गई.

वसीम से अलग होने के बाद प्राची अभिनय पर ध्यान देने लगी. वह बेहतरीन ड्रामा आर्टिस्ट थी. उस की गिनती वडोदरा के मंझे हुए कलाकार के रूप में होती थी. कालेज के जमाने से ही वह नाटकों में भाग लेती थी, धीरेधीरे उस के अभिनय में निखार आ गया था.

प्राची ने अपने जीवन में खुशियों के रंग भरने के लिए करीब 2 महीने पहले एप्लौस थिएटर एंड आर्ट ग्रुप जौइन कर लिया था. वह एप्लौस के कलाकारों के साथ रंगकर्म में अभिनय करने लगी. अपने इस काम से वह पूरी तरह खुश थी और नए सिरे से अपनी जिंदगी को संवारने के बारे में सोचने लगी थी.

दूसरी ओर वसीम अपने पुराने प्यार को नहीं भूला. अलग होने के बावजूद उस ने कई बार प्राची को फोन किया. प्राची मोबाइल स्क्रीन पर वसीम का नाम देख कर ही झुंझला जाती थी. उस ने कई बार वसीम को प्यार से और कई बार फटकार कर समझाया. लेकिन वसीम ने उसे फोन करना बंद नहीं किया. थकहार कर प्राची ने वसीम का नंबर ब्लौक कर दिया.

नंबर ब्लौक कर दिए जाने के बाद वसीम गुस्से में भर उठा. वह प्राची से बदला लेने की सोचने लगा. उस ने प्राची की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी. वसीम को पता लगा कि प्राची रोजाना देर रात तक मोबाइल पर औनलाइन रहती है. इस से वसीम को शक हुआ कि प्राची अब किसी अन्य युवक के संपर्क में है.

वसीम ने प्राची के नए दोस्त के बारे में मालूमात किया. पता चला कि उस का अपने साथी कलाकार अंकित से दोस्ताना व्यवहार है. वसीम को लगा कि प्राची का अंकित से कोई चक्कर है. यह बात उसे नागवार लगी. पहले तो वह प्राची से बदला लेने की सोच रहा था. अब उस ने प्राची को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

प्राची एप्लौस ड्रामा स्टूडियो के थिएटर ग्रुप के साथ 24 अप्रैल को नाटक ‘स्पीचलैस’ की परफौरमेंस देने खंभात गई. वसीम ने पहले ही पता लगा लिया था कि प्राची और उस के साथी कब लौटेंगे. उस ने प्राची के रात को ही वापस लौटने की बात कंफर्म करने के लिए फेसबुक पर सर्च कर प्राची के एक साथी का नंबर हासिल किया.

फिर वसीम ने किसी कलाकार का घर वाला बन कर उस से बात की और पूछा कि आप लोग कहां हैं और कब लौटेंगे. प्राची के साथी ने जवाब दिया कि हम खंभात से वडोदरा आ रहे हैं, अभी रास्ते में हैं. रात करीब साढ़े 12 बजे के आसपास पहुंच जाएंगे.

इस पर वसीम वडोदरा में अलकापुरी इलाके में एप्लौस ड्रामा स्टूडियो के पास प्राची के आने का इंतजार करने लगा. रात करीब पौने एक बजे कलाकारों की गाड़ी अलकापुरी पहुंची. सारे कलाकार गाड़ी से उतर गए. इन में प्राची सहित कई युवतियां भी थीं. युवतियों को लेने के लिए उन के घर वाले आए थे. प्राची के साथ अंकित भी गया था, वह भी साथ लौट आया था.

प्राची की स्कूटी और अंकित की मोटरसाइकिल स्टूडियो में खड़ी थीं. दोनों ने अपनीअपनी गाडि़यां लीं. अंकित ने प्राची से कहा कि रात बहुत हो गई है. मैं तुम्हें घर छोड़ आता हूं. प्राची को अंकित से केई परेशानी नहीं थी, क्योंकि वह उस का दोस्त था. वसीम छिप कर दोनों पर नजर रखे हुए था.

दोनों अपनेअपने दुपहिया पर चल पड़े. वसीम ने अपनी गाड़ी से उन का पीछा किया. प्राची और अंकित रास्ते में रुक कर एक गार्डन में बैठ कर बातें करने लगे. दोनों को इतनी रात गए गार्डन में बैठ कर बातें करते देख वसीम को यकीन हो गया कि प्राची और अंकित के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है. यह देख कर वसीम आगबबूला हो उठा.

गार्डन में जा कर उस ने उन दोनों से कहा कि तुम इतनी रात गए यहां क्यों बैठे हो. इसी के साथ उस ने मोबाइल से दोनों की तसवीरें ले लीं. साथ ही कहा कि पुलिस को फोन करता हूं.

प्राची समझ गई कि ब्रेकअप होने के बावजूद वसीम अभी तक उस पर अपना हक जताता है. इसीलिए परेशान करने के मकसद से उस ने तसवीरें ली हैं, और पुलिस को बुलाने की धौंस दे रहा है.

प्राची ने वसीम को फटकारा, तो वह उस से झगड़ा करने लगा.  अंकित भी समझ गया कि वसीम के इरादे नेक नहीं है. इसलिए उस ने प्राची के साथ वहां से निकलने में ही भलाई समझी.

अंकित और प्राची गार्डन से निकल गए और अपनेअपने दुपहिया पर सवार हो कर चल दिए. रात करीब सवा 2 बजे अंकित ने प्राची को उस के घर के पास सोसायटी की बिल्डिंग के बाहर मेन रोड पर छोड़ दिया. अंकित प्राची को गुडनाइट बाय कह कर अपने घर चला गया.

अंकित के चले जाने के बाद प्राची अपने घर जाने लगी, तभी छिप कर पीछा कर रहा वसीम वहां आ गया. उस ने प्राची से पुराने प्रेम संबंध बनाए रखने की बात कहते हुए अंकित को ले कर सवाल किए. प्राची ने कहा कि मेरातुम्हारा ब्रेकअप हो चुका है. यह मेरा पर्सनल मामला है, तुम हमारे बीच में मत पड़ो और जाओ यहां से.

इस बात पर प्राची और वसीम में झगड़ा हो गया. प्राची ने गुस्से में आ कर वसीम के दो चांटे लगा दिए. इस से वसीम तिलमिला उठा. वह प्राची का गला दबाने लगा.

प्राची ने मुकाबला किया, तो उस के नाखून वसीम को चुभ गए. दोनों सड़क पर गिर गए. सड़क पर गिरते ही वसीम उस के गले को कस कर दबाने लगा. वसीम के हाथों की कसावट से प्राची बेहोश हो गई.

इस बीच एक मोटरसाइकिल सवार वहां से गुजरा तो वसीम ने खड़े हो कर मोबाइल पर बात करने का नाटक किया. बाइक सवार कुछ देर रुक कर वहां से चला गया. इस के बाद वसीम ने सड़क पर बेहोश पड़ी प्राची का गला एक बार फिर जोरों से दबाया. जब उसे लगा कि अब प्राची जीवित नहीं है. तो वह वहां से चला गया.

रास्ते में कुछ दूर जाने के बाद वसीम का दिमाग घूमा तो वह प्राची का मोबाइल उठाने के लिए वापस आया. जब वह प्राची के पास से मोबाइल उठा रहा था तो उस ने देखा कि प्राची की सांसें चल रही हैं.

इस बार उस ने प्राची के गले में पड़ा दुपट्टा निकाला और उसी से उस का गला घोंट दिया. प्राची के मरने का पक्का यकीन होने पर वसीम ने उस की लाश को घसीट कर सड़क के किनारे पेड़ और दीवार के बीच फेंक दिया. फिर उस ने उस के चेहरे पर उसी का दुपट्टा डाल दिया.

प्राची को मौत की नींद सुलाने के बाद वसीम रात करीब साढ़े 3 बजे गोरवा इलाके में स्थित अपने घर पहुंचा. घर जा कर वह अपने कमरे में सोने चला गया. लेकिन नींद नहीं आई. वह बैड पर करवटें बदलता रहा. बारबार उस के सामने प्राची का चेहरा घूमता रहा.

सुबह उठ कर वसीम नहायाधोया, फिर बैग उठा कर भरूच स्थित कालेज जाने के लिए घर से निकल गया. वडोदरा स्टेशन पहुंच कर उस ने भरूच की ट्रेन का टिकट लिया. वह ट्रेन का इंतजार कर ही रहा था कि तभी पुलिस टीम ने उसे स्टेशन पर ही दबोच लिया.

अगर पुलिस टीम 5-7 मिनट भी लेट हो जाती तो वसीम भरूच चला जाता. फिर पता नहीं कब हाथ आता और कब प्राची हत्याकांड का रहस्य उजागर हो पाता.

प्राची की मौत से रहस्य का पर्दा उठने और उस के कातिल के पकड़े जाने के बाद 26 अप्रैल को प्राची की अंतिम यात्रा के समय मां यशोदा और छोटी बहन साची के रुदन से माहौल गमगीन हो गया. मां मेरा बेटा चला गया. कह कर रो रही थी.

बहन आई लव यू, तू मत जा… कहते हुए प्राची की लाश से लिपट रही थी. मांबेटी के इस रुदन से वहां मौजूद लोगों की आंखों से आंसू आ गए. मध्य प्रदेश में रहने वाले प्राची के पिता बेटी के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच सके थे.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां) 

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