यह क्या हो गया: भाग 1- नीता की जिद ने जब तोड़ दिया परिवार

हर रोज की तरह जब शेखर औफिस से घर आए तो लतिका का मुंह फिर फूला हुआ था. उन्होंने अपने मांपिताजी को ड्राइंगरूम में उदास बैठे देखा तो उन्हें तुरंत अंदाजा हो गया कि क्या हुआ होगा. पिता सोमेश, मां राधिका ने उन्हें आता देख दीर्घ निश्वास ले कर फीकी सी मुसकराहट लिए देखा. शेखर ने पूछा, ‘‘तबीयत तो ठीक है न?’’

दोनों ने  ‘हां’ में बस गरदन हिला दी. लतिका वहीं खड़ी सब को घूर रही थी. शेखर को देख उस ने त्योरियां चढ़ा लीं, पानीचाय कुछ नहीं पूछा. शेखर के छोटे भाई अजय की पत्नी नीता किचन से निकल कर आदरपूर्वक बोली,  ‘‘भैया, आप फ्रैश हो जाएं, मैं चाय लाती हूं.’’ शेखर  ‘ठीक है’ कह कर फ्रैश होने चले गए. वे समझ गए थे आज लतिका ने कुछ हंगामा किया होगा. मां, पिता अजय, नीता सब को बेकार के ताने दिए होंगे. अपनी मुंहफट झगड़ालू पत्नी के व्यवहार से वे मन ही मन दुखी ही रहते थे. शेखर एक एमएनसी में अच्छे पद पर थे. कोई आर्थिक तंगी नहीं थी. घर में फुलटाइम मेड नैना थी. तब भी लतिका किसी को सुनाने का मौका नहीं छोड़ती थी. उसे हमेशा इस बात पर चिढ़ होती थी कि शेखर अपने परिवार पर अच्छाखासा खर्च करते हैं. शेखर का कहना था कि उन की जिम्मेदारी है. वे उस से मुंह नहीं मोड़ सकते. लतिका का मायका भी उसी शहर बनारस में ही था जहां से उसे यही सीख मिलती थी कि अलग रहने पर वह दोनों बच्चों सौरभ और तन्वी के साथ ज्यादा आराम से रह सकती है. सोमेश रिटायर हो चुके थे. उन की पैंशन पर लतिका की नजरें रहतीं तो शेखर को गुस्सा आ जाता, कहते, ‘तुम्हें किस बात की कमी है. वे पिताजी के पैसे हैं. उन्हें वे जहां चाहें खर्च करेंगे कोई भी त्योहार, कोई मौका हो, वे कभी हम सब को कुछ न कुछ देने का मौका नहीं छोड़ते.’

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इस पर लतिका हमेशा यही कहती, ‘तो उन्हें देना भी चाहिए, सारा खर्च हम ही तो उठा रहे हैं.’ ये सब बातें सोचतेसोचते ही शेखर फ्रैश हो व कपड़े बदल कर आए. बच्चे भी आ गए थे. अजय भी आ चुका था. नीता ने सब के लिए चायनाश्ता लगाया. लतिका मुंह फुलाए बैठी रही. किसी से कुछ नहीं बोली. नीता फिर किचन में जा कर नैना के साथ मिल कर डिनर की तैयारी में जुट गई. रात को सोते समय लतिका ने पुराना राग छेड़ दिया, ‘‘शेखर, आप मेरी बात क्यों नहीं सुनते? आगे बच्चों के खर्चे बढें़गे. हमें वह सब भी तो सोचना है. मैं यही तो कह रही हूं कि हम कहीं एक घर ले लेते हैं. अब अजय को संभालने दो यहां के खर्चे. क्या हमेशा हम ही संभालते रहेंगे सब कुछ?’’

‘‘मैं थक गया हूं रोजरोज की तुम्हारी इन बातों से, लतिका. अब मैं सोना चाहता हूं,’’ कह कर शेखर ने करवट ले ली. लतिका थोड़ी देर गुस्से में बुदबुदाती रही, फिर वह भी सोने की कोशिश करने लगी. लतिका शेखर को अलग रहने के लिए मजबूर करती है, यह बात सब ने महसूस की थी. एक दिन सोमेश ने ही कहा, ‘‘शेखर, बहू जो कह रही है, मान जाओ. तुम अलग…’’ शेखर ने पिता की बात पूरी नहीं होने दी, ‘‘नहीं, पिताजी. यह असंभव है. मैं अपने परिवार से अलग नहीं हो सकता.’’

‘‘बेटा, बड़ी बहू सब से नाराज ही रहती है. अलग रह कर वह खुश रह ले तो क्या बुरा है. हम सब दूर थोड़े ही हो जाएंगे. बस, यही आसपास कोई घर देख लो.’’ फिर सब के बहुत जोर देने पर, बहुत विचारविमर्श के बाद शेखर मजबूर हो गए और उन्होंने बहुत पास ही में एक घर खरीद लिया. लतिका की मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. सौरभ और तन्वी नहीं जाना चाहते थे नए घर में. वे भी शेखर की तरह उदास थे. अब घर तो 2 थे पर शेखर और बच्चों का अधिकतर समय मां, पिताजी के साथ ही बीतता था. लतिका अकेले ही खुश थी.

एक दिन शेखर ने औफिस से आ कर बताया, ‘‘मुझे प्रमोशन मिल रहा है नैशनल मैनेजर के पद पर, पर मुंबई पोस्ंिटग होगी.’’ सुन कर लतिका और बच्चे बहुत खुश हुए. शेखर ने आगे कहा, ‘‘पर एक प्रौब्लम है, तन्वी का नयानया जौब है, सौरभ का कालेज है. बच्चों को इस समय शहर बदलना मुश्किल हो सकता है. मेरे रिटायरमैंट में 3 साल ही बचे हैं, वापस यहीं आना है फिर.’’ सौरभ, तन्वी समझदार बच्चे थे. तन्वी ने कहा, ‘‘पापा, आप अकेले कैसे रहेंगे वहां. आप मम्मी को ले जाओ हम दादादादी के पास रह लेंगे. कोई प्रौब्लम नहीं है, पापा.’’ लतिका नहीं चाहती थी बच्चों को उस घर में किसी से ज्यादा लगाव हो, फौरन बोली, ‘‘ऐसा करते हैं, आप ही चले जाओ, हम लोग आतेजाते रहेंगे और आप का तो टूर चलता रहेगा न?’’

‘‘हां, अब तो पूरा इंडिया कवर करना है.’’

‘‘तो ठीक है, उत्तर प्रदेश टूर रहेगा तो घर आना होता ही रहेगा. हां, यह ठीक है, आप ही शिफ्ट करना.’’

शेखर पत्नी का मुंह देखते रह गए, लतिका के साथ न जाने का कारण वे अच्छी तरह समझते थे. पत्नी की नसनस से वे वाकिफ थे. उन्हें दुख हुआ. वे नए शहर में हर चीज का प्रबंध कैसे करेंगे, इस बात की लतिका को जरा भी चिंता नहीं हुई. शेखर ने मातापिता के घर जा कर होने वाले प्रमोशन के बारे में बताया, आगे की प्लानिंग के बारे में भी बात की. उन्होंने शुभकामनाओं की झड़ी लगा दी. राधिका ने उदास स्वर में कहा, ‘‘पर बेटा, प्रबंध करना मुश्किल होगा अकेले, लतिका को ले जाओ, बच्चों को हम देख लेंगे.’’ शेखर ने दुखी होते हुए कहा, ‘‘मां, लतिका को यहीं रहना है.’’

यह सुन कर सब चुप हो गए. सोमेश ने पूछा, ‘‘जाना कब है?’’

‘‘अगले महीने.’’

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सब उदास तो थे लेकिन शेखर एक बड़े प्रमोशन पर जा रहे थे, इस बात की खुशी भी थी. मुंबई जाने के दिन करीब आ रहे थे. लतिका के दिमाग में फिर एक फितूर आया, ‘‘शेखर, आप के मातापिता का जो घर है, मैं सोच रही हूं आप उस में से अपना हिस्सा पिताजी से मांग लें.’’

शेखर बुरी तरह नाराज हुए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? यह बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘क्यों, तुम्हारा हिस्सा तो बनता है उस घर में. अपना हक लेने की तो बात कर रही हूं.’’

‘‘आगे से कभी यह बात छेड़ने की कोशिश करना भी मत.’’

‘‘नहीं, मैं ने सोच लिया है, हम अपना हिस्सा लेंगे उस घर में.’’

‘‘लतिका, मैं तुम्हें आखिरी बार कह रहा हूं, इस तरह की बात सोचना भी मत. यह कभी नहीं होगा.’’

‘‘नहीं, तुम्हें करना पडे़गा.’’

शेखर ने लतिका को डांटा, ‘‘बकवास बंद करो, लतिका.’’

लतिका ने क्रोधभरी नजरों से उन्हें घूरते हुए कहा, ‘‘आप को मेरी बात नहीं माननी है तो मुझे भी नहीं करनी आप से बात.’’

‘‘तो ठीक है, मत करो, शांति से जीने दो मुझे.’’

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टाइमपास: भाग 3- क्यों वीरान और सूनी हो गई थी रीना की जिंदगी

अम्माजी के कान में भनक लग गई थी. वे नाराज हो उठी थीं क्योंकि उन्हें पार्वती फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि सब से ज्यादा काम वह उन्हीं का करती थी. उन को रोज नहलाधुला कर उन के कपड़े धोती थी. उन के बाल बनाती थी. रोज उन के पैरों में मालिश किया करती थी. उन की नजर में वह बदचलन औरत थी. काश, उस समय वह उन की बातों पर ध्यान दे देती तो आज उसे यह दिन न देखना पड़ता. रोमेश और उस के डर से अम्माजी उसे भगा नहीं पाती थीं वरना वे उसे एक दिन न टिकने देतीं. कुछ ही दिनों में पता चला कि पूजा अपने प्रेमी के साथ, वह सोने का हार ले कर रफूचक्कर हो गई. पार्वती के रोनेधोने के कारण महेश ने शादी के लिए जोड़े हुए रुपए लड़के वालों को दे कर किसी तरह मामले को निबटाया था. परंतु बिरादरी में वह उस की बदनामी तो बहुत कर गई थी. सालभर बाद जब पूजा के बेटी हुई तो भागती हुई सब से पहले वह बेटी के पास पहुंची थी. यहांवहां भाग कर चांदी के कड़े खरीद लाई थी और 5-6 फ्रौक भी खरीद लाई थी. उस की आवाज और चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी. बोली थी, ‘भाभी, हम नानी बन गए हैं. वह है तो मेरी ही नातिन.’ रीना मुसकरा कर उस को देखती रह गई थी. मन ही मन वह बोली थी, ‘कितनी भोली है बेचारी.’

उस ने पार्वती को 500 रुपए का नोट पकड़ा दिया था. उसे याद आया था कि जब ईशा के बेटा हुआ था तो वह कितनी खुश हुई थी. रोमेश औफिस से आ गए थे. उन्होंने उसे रुपए देते हुए देख लिया था. वे बोले, ‘यह बहुत चालू है. तुम्हें बेवकूफ बना कर अपना मतलब सीधा करती है.’ वह बोल पड़ी थी, ‘रहने भी दीजिए. जरूरत के समय वह हमेशा हाजिर रहती है, यह नहीं देखते आप?’

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‘ठीक है, यह तुम्हारी दुनिया है, जो ठीक समझो, करो.’ इधर महेश दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गया था. वह रोज शराब पीने लगा था. वह पी कर देर रात में आता और हंगामा करता. अकसर पार्वती पर हाथ भी उठाने लगा था. पार्वती सुस्त और अनमनी रहने लगी थी. एक दिन रोमेश रीना से बोले थे, ‘तुम्हारी छम्मकछल्लो आजकल चुपचुप रहती है. शायद किसी परेशानी में है. पूछ लो उस से, यदि पैसों की जरूरत हो तो दे दो.’ ‘नहीं, पैसे की बात नहीं है. महेश और दीप दोनों शराब पीने लगे हैं. महेश किसी दूसरी औरत के चक्कर में भी पड़ गया है.’

रोमेश आश्चर्य से बोले थे, ‘इतनी सुंदर और सलीकेदार औरत होने के बावजूद वह दूसरी पर मुंह मार रहा है.’ पार्वती इधर काम पर आती थी, उधर महेश की प्रेमिका उस के घर पर आ जाती थी. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ गई थी. वह उस के घर में ही अपना हक जताने लगी थी. यदि वह कोई शिकायत करती तो महेश पार्वती की पिटाई कर देता था. पार्वती किसी भी तरह अपने और महेश के रिश्ते को बचाना चाहती थी. जब उस का नशा उतर जाता था तो वह पार्वती के पैरों पर गिर कर माफी मांगने लगता था. वह पिघल जाती थी. यह सिलसिला काफी दिन से चल रहा था. वह अपनी परेशानियों में उलझी हुई थी. इधर, दीप भी आवारा लड़कों के साथ चोरी, जुआ, शराब आदि का शौकीन बन गया था. पार्वती के यहांवहां छिपाए हुए पैसे वह चुपचाप गायब कर लेता था और महेश का नाम लगा कर घर में महाभारत मचवा देता था. एक बार उस के नए मोबाइल को देख कर उस ने पूछा था तो बोला, ‘हमारे मालिक ने हमें इसे ठीक करवाने के लिए दिया है.’ एक दिन दीप के पर्स में रुपयों की गड्डी को देख उस का माथा ठनका था, परंतु दीप ने उसे पट्टी पढ़ा दी थी. वह भी ममता की मारी भुलावे में आ गई थी. परंतु एक दिन वह चाल की एक लड़की को फुसला कर ले भागा था.

लड़की नाबालिग थी, उस के पिता ने पुलिस में शिकायत कर दी. पुलिस ने महेश और पार्वती को थाने में ले जा कर पिटाई की और 2 दिन के लिए बंद कर दिया था. 4-5 दिन के अंदर पुलिस ने दीप को ढूंढ़ निकाला था. नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में दीप को जेल में बंद कर दिया था. महेश की प्रेमिका माधुरी ने अपनी कोशिशों से महेश को छुड़ा लिया था. पुलिस ने पार्वती को भी छोड़ दिया था. अब महेश का घर उस के लिए पराया हो चुका था. उस की सौत माधुरी का हक महेश और उस के घर दोनों पर हो गया था.  पार्वती लुटीपिटी रीना के पास पहुंची थी. उस का रोनाबिलखना देख उस का दिल पिघल उठा था. रोमेश के लाख मना करने पर भी उस ने पार्वती को घर पर रख लिया था. वह बहुत खुश थी. रीना को पार्वती के घर पर रहने से बहुत आराम हो गया था. वह उस के घर व बाजार के सारे काम करती थी. उस को यहां रहते हुए लगभग 2 साल हो गए थे. अकसर वह अपने बच्चों और महेश को याद कर के आंसू बहाने लगती थी. यह देख रीना का दिल पिघल उठता था. आज इसी पार्वती की वजह से उस के घर का सुखचैन लुट गया था. शाम ढल चुकी थी. कमरे में अंधेरा छाया हुआ था. उसे बिजली जलाने का भी होश नहीं था. आज उस के जीवन में ही अंधकार छा गया था. वह जब से यहां आई, अपने मुंह में पानी की एक बूंद भी नहीं डाली थी. आज वह बहुत व्यथित थी. जीवन से निराश हो कर उस का मन फूटफूट कर रोने को हो रहा था.

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रोमेश की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. वे उसे मोबाइल दे कर बोले, ‘‘लो, त्रिशा का 2 बार फोन आ चुका है, कह रही है, क्या बात है? मां का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है. उन की तबीयत तो ठीक है. सुबह यहां से गई थीं तब तो बिलकुल ठीक थीं. उन को फोन दीजिए. वे मुझ से बात करें. गुडि़या बहुत रो रही है.’’ रीना के हैलो बोलते ही त्रिशा खीझ कर बोली थी, ‘‘क्यों मां, पापा मिल गए तो मुझे और मेरी गुडि़या सब को भूल गईं. कम से कम पहुंचने की खबर तो दे देतीं.’’ रीना अपनी बेटी को जानती थी, यथासंभव अपनी आवाज को सामान्य करती हुई बोली थी, ‘‘न बेटा, फ्लाइट में फोन बंद किया था, फिर उसे औन करना ही भूल गई थी. गुडि़या को घुट्टी पिला दो और उस के पेट पर हींग मल दो. पेटदर्द से रो रही होगी,’’ उस ने फोन काट दिया था. सामने खड़े रोमेश का मुंह उतरा हुआ था. वे हाथ जोड़ कर उस से बेटी को कुछ न बताने और कान पकड़ कर माफी का इशारा कर रहे थे.

रीना कशमकश में थी. क्या उस का और रोमेश का इतना पुराना रिश्ता पलभर में टूट जाएगा? वह सिर पर हाथ रख कर चिंतित मुद्रा में ही बैठी थी. रोमेश अपने अनगढ़ हाथों से सैंडविच और दूध बना कर लाए थे, ‘‘रीना, तुम मुझे जो चाहे वह सजा दे दो, लेकिन प्लीज, पहले यह सैंडविच खा लो.’’ रीना को याद आया कि रोमेश तो डायबिटिक हैं और पिछले कई घंटों से उन्होंने कुछ नहीं खाया.

रोमेश बोले थे, ‘‘मुझे 2-3 दिन से बुखार आ रहा था. आज सुबह से मेरे सिर में बहुत दर्द भी हो रहा था, इसलिए नाश्ता भी नहीं किया था.’’ अब रीना ने सिर उठा कर रोमेश पर भरपूर निगाह डाली तो वे काफी कमजोर दिख रहे थे. उन का मासूम चेहरा डरे हुए बच्चे की तरह लग रहा था. सबकुछ भूल कर उस का दिल कसक उठा था. यदि रोमेश को कुछ हो गया तो… उस ने चुपचाप सैंडविच उठा ली थी. रोमेश ने भी सिर झुका कर सैंडविच और दूध पी लिया था. रातदिन मजाक करने वाले हंसोड़ रोमेश को चुप और गुमसुम देख उसे अटपटा लग रहा था. परंतु आज वह मन ही मन एक निश्चय कर चुकी थी. वह आहिस्ताआहिस्ता अलमारी से अपना सामान हटा कर दूसरे बैडरूम में ले जा रही थी. वह रोमेश की परछाईं से भी इस समय दूर जाना चाह रही थी. रोमेश की उदास और पनीली आंखें चारों तरफ उस का पीछा कर रही थीं. आज रीना दुनिया में बिलकुल अकेली हो चुकी है, जहां कोई ऐसा नहीं था जिस से वह अपने दर्द को कह कर अपना मन हलका कर सके. उसे घुटन महसूस हो रही थी. उस को अपनी दुनिया सूनी और वीरान लग रही थी. पीछे से रोमेश की धीमी सी आवाज उस के कानों में पड़ी थी, ‘डियर, तुम्हारे बिना मेरा टाइमपास कैसे होगा?’ आज उस के बढ़ते कदम नहीं रुके थे. वह रोमेश को अनदेखा कर के दूसरे बैडरूम की ओर चल पड़ी थी.

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टाइमपास: भाग 2- क्यों वीरान और सूनी हो गई थी रीना की जिंदगी

‘‘तो ठीक है. जो बाकी है, वह भी कर के अपनी इच्छा पूरी कर लो. मेरे यहां रहने से परेशानी है तो मैं फिर से चली जाती हूं. त्रिशा को इस समय मेरी बहुत जरूरत है. मैं तो तुम्हारे लिए भागी आई हूं. परंतु तुम तो दूसरी दुनिया बसा चुके हो. मैं बेकार में अपना माथा खाली कर रही हूं. व्यर्थ का तमाशा मत बनाओ. मेरे सामने से हट जाओ.’’ घर में सन्नाटा छाया हुआ था. पार्वती की सिसकियों की आवाज और सामान समेटने की आवाज बीचबीच में आ जाती थी. घर उजड़ रहा था, रीना दुखी थी. उसे पार्वती से ज्यादा रोमेश दोषी लग रहे थे. वह मन ही मन सोच रही थी कि जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरे को क्यों दोष दे. कुछ भी हो, पार्वती को यहां से हटाना आवश्यक था. वह उस घड़ी को कोस रही थी जब उस ने पार्वती को अपने घर पर काम करने के लिए रखा था. लगभग 20 वर्ष पहले सुमित्राजी ने पार्वती को उस के पास काम के लिए भेजा था. उस की कामवाली भागवती हमेशा के लिए गांव चली गई थी. 2 बेटियां, पति और बूढ़ी अम्माजी के सारे काम करतेकरते उस की हालत खराब थी. उसे नई कामवाली की सख्त जरूरत थी. सुमित्राजी ने कह दिया था, ‘पार्वती नई है, इसलिए निगाह रखना.’ वह अतीत में खो गई थी. पार्वती का जीवन तो उस के लिए खुली किताब है.

21-22 वर्ष की पार्वती का रंग दूध की तरह सफेद था, गोल चेहरा, उस की बड़ीबड़ी आंखों में निरीहता थी. अपने में सिकुड़ीसिमटी हुई एक बच्चे की उंगली पकड़े हुए तो दूसरे को गोद में उठाए हुए कातर निगाहों से काम की याचना कर रही थी. उसे काम की सख्त जरूरत थी. उस के माथे के जख्म को देख रीना पूछ बैठी थी, ‘ये चोट कैसे लगी तुम्हारे?’ पार्वती धीरे से बोली थी, ‘मेरे आदमी ने हंसिया फेंक कर मारा था, वह माथे को छूता हुआ निकल गया था. उसी से घाव हो गया है.’

‘ऐसे आदमी के साथ क्यों रहती हो?’

‘अब मैं उसे छोड़ कर शहर आ गई हूं. यहां नई हूं, इसलिए ज्यादा किसी को जानती नहीं.’ रीना को पार्वती पर दया आ गई थी, ‘तुम्हारे बच्चे कहां रहेंगे?’ वह पूछ बैठी.

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‘जी, जब तक कोठरी नहीं मिलती, वे दोनों बरामदे में बैठे रहेंगे.’ अम्माजी अंदर से बोली थीं, ‘इस को रखना बिलकुल बेकार है. 2-2 बच्चे हैं, सारे घर में घूमते फिरेंगे.’ रीना को रसोई के अंदर पड़े हुए ढेर सारे जूठे बरतन याद आ रहे थे. उस ने पार्वती से बरतन साफ करने को कहा. उस ने फुरती से अच्छी तरह बरतन साफ किए. स्टैंड में लगाए. स्लैब और गैस साफ कर के रसोई में पोंछा भी लगा दिया था. उस के काम से वह निहाल हो उठी थी. धीरेधीरे वह उस की मुरीद होती गई. बच्चे सीधे थे, बरामदे में बैठे रहते थे. मेरे बच्चों के पुराने कपड़े पहन कर खुश होते. टूटेफूटे खिलौनों से खेलते और बचाखुचा खाना खाते. पार्वती मेरे घर के सारे कामों को मन लगा कर करती थी. मेहमानों के आने पर वह घर के कामों के लिए ज्यादा समय देती. वह भी उस का पूरा ध्यान रखती. तीजत्योहार पर वह बच्चों के लिए नए कपड़े बनवा देती थी. पार्वती भी रीना के एहसान तले दबी रहती थी. रीना को अपना आत्मीय समझ वह अपने दिल की बातें कह देती थी.

2 छोटेछोटे बच्चों को पालना आसान नहीं था. पार्वती ने धीरेधीरे आसपास के कई घरों में काम पकड़ लिया था. कहीं झाड़ू तो कहीं बरतन तो कहीं खाना बनाना. वह देखती थी, जैसे चिडि़या अपनी चोंच में दाने भर कर सीधा अपने घोंसले में रुकती है, वैसे ही वह कहीं से कुछ मिलता तो सब इकट्ठा कर के बच्चों के लिए ले आती थी. कपड़े मिलते तो उन्हें काटपीट कर बच्चों की नाप के बना कर पहनाती. उस की कर्मठता से रीना बहुत प्रभावित थी. उस ने अपनी पुरानी सिलाई मशीन उसे दे दी थी जिसे पा कर वह बहुत खुश थी. पार्वती एक दिन महेश को ले कर आई थी, ‘भाभी, मैं इस के साथ शादी करना चाहती हूं.’ रीना उसे हिम्मत बंधाते हुए बोली थी कि आदमी को अच्छी तरह जांचपरख लेना. कहीं पहले वाले की तरह दूसरा भी हाथ न उठाने लगे.

पार्वती ने खुशीखुशी बताया था कि वह मेरे बच्चों को अपनाएगा और वह पहले की तरह ही काम करती रहेगी. वह 8-10 दिन की छुट्टी ले कर चली गई थी. रोमेश को पता चला तो बोले, ‘गई भैंस पानी में. वह तुम्हें गच्चा दे गई. अब दूसरी ढूंढ़ो. इस के भी पर निकल आए हैं.’ पार्वती अपने वादे की पक्की निकली. वह 10 दिन बाद आ गई थी. परंतु यह क्या? उस का तो रूप ही बदल गया था. अब वह नईनवेली के रूप में थी. लाल बड़ी सी बिंदिया उस के माथे पर सजी हुई थी. होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक, गोरेगोरे पैर पायल, बिछिया और महावर से सजे हुए थे. हाथों में भरभर हाथ चूडि़यां और चटक लाल चमकीली साड़ी पहने हुए थी वह. चेहरे पर शरम की लाली थी. रीना ने मजाकिया लहजे में उस से पूछा था, ‘क्यों री, क्या मंडप से सीधे उठ कर चली आई है?’ रोमेश तो एकटक उस को निहारते रह गए थे. धीरे से बोले, ‘ये तो छम्मकछल्लो दिख रही है.’

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वह तो बहुत खुश थी कि चलो इस के जीवन में खुशियों ने दस्तक तो दी. जबकि आसपड़ोस की महिलाओं को गौसिप का एक नया विषय मिल गया था. काश, उस दिन मिसेज गुलाटी की बात रीना मान लेती, उन्होंने उसे सावधान करते हुए कहा था, ‘इस से सावधान रहिएगा. यह बदचलन औरत है. इस के संबंध कई आदमियों से हैं.’ शोभाजी ने नहले पर दहला मारा था, ‘यह बहुत बदमाश औरत है. हम लोगों से साड़ीसूट मांग कर ले जाती है और अपनी झुग्गी पर जाते ही बेच देती है.’ रीना तल्खी से बोली थी, ‘इन बातों से उसे क्या मतलब है. उस का काम वह ठीक से करती है. बस, इतना काफी है.’ पार्वती ने अपने बच्चों के लिए ख्वाब पाल रखे थे. दोनों बच्चों का स्कूल में नाम लिखा दिया था. महेश से शादी के बाद बच्चों से उस का ध्यान बंटने लगा था. वह बच्चों को स्कूल और ट्यूशन भेज कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठी थी. दोनों स्कूल जाने का बहाना कर के इधरउधर घूमा करते थे.

बेटा दीप पानमसाला खाता, पैसा चुरा कर जुआ खेलता. बेटी पूजा चाल के लड़कों से नजरें लड़ाती. दोनों बच्चों की वजह से उस के और महेश के बीच अकसर लड़ाई हो जाती. महेश भी नकली चेहरा उतार कर खूब शराब पीने लगा था. एक दिन वह पूजा को ले कर आई थी. बोली, ‘यह दिनभर आप के पास रहेगी तो चार अच्छी बातें सीख लेगी.’ पूजा को देखे हुए उसे काफी दिन हो गए थे. वह जींसकुरती पहन कर आई थी. उस के कानों में बड़ेबड़े कुंडल थे. वह स्वयं उस खूबसूरत परी को एकटक देखती रह गई थी. वह हाथ में मोबाइल पकड़े हुई थी. उस का मोबाइल थोड़ेथोड़े अंतराल में बजता रहा. वह कमरे से बाहर जा कर देरदेर तक बातें करती रही. वह समझ गई थी कि पूजा का किसी के साथ चक्कर जरूर है. उस ने पार्वती को आने वाले खतरे के लिए आगाह कर दिया. शायद वह भी उन बातों से वाकिफ थी. उस ने महेश की सहायता से आननफानन उस की सगाई करवा दी थी. पार्वती खुश हो कर लड़के वालों के द्वारा दिया हुआ सोने का हार, उसे दिखाने भी लाई थी. उस ने इशारों में उस से 10 हजार रुपए की फरियाद भी कर दी थी. रोमेश ने उसे रुपए देने के लिए हां कर दी थी.

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टाइमपास: भाग 1- क्यों वीरान और सूनी हो गई थी रीना की जिंदगी

‘‘पार्वती, तुम आज और अभी यह कमरा खाली कर दो और यहां से चली जाओ.’’

‘‘भाभी, मैं कहां जाऊंगी?’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं. तुम कहीं भी जाओ. जिओ, मरो, मेरी बला से. मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहती.’’ रीना का दिल पिघलाने के लिए पार्वती आखिरी अस्त्र का प्रयोग करते हुए उन के पैर पकड़ कर फूटफूट कर रोने लगी. अपना सिर उन के पैरों पर रख कर बोली, ‘‘भाभी, माफ कर दो, मुझ से गलती हो गई.’’

‘‘तुम अपना सामान खुद बाहर निकालोगी कि मैं वाचमैन से कह कर बाहर फिंकवाऊं?’’ रीना खिड़की से चोरनिगाहों से रोमेश के घबराए हुए चेहरे को देख रही थी. वे ड्राइंगरूम में बेचैनी से चहलकदमी करते हुए चक्कर काट रहे थे. साथ ही, बारबार चेहरे से पसीना पोंछ रहे थे. रीना की कड़कती आवाज और उस के क्रोध से पार्वती डर गई और निराश हो कर उस ने अपना सामान समेटना शुरू कर दिया. उस की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. आज रोमेश ने रीना के विश्वास को तोड़ा था. रीना के मन में विचारों की उमड़घुमड़ मची हुई थी. 30 वर्ष से उस का वैवाहिक जीवन खुशीखुशी बीत रहा था. रोमेश जैसा पति पा कर वह सदा से अपने को धन्य मानती थी. वे मस्तमौला और हंसोड़ स्वभाव के थे. बातबात में कहकहे लगाना उन की आदत थी. रोते हुए को हंसाना उन के लिए चुटकियों का काम था. रोमेश बहुत रसिकमिजाज भी थे. महिलाएं उन्हें बहुत पसंद करती थीं.

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62 वर्षीया रीना 2 प्यारीप्यारी बेटियों की सारी जिम्मेदारी पूरी कर चुकी थी. त्रिशा और ईशा दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर, उन की शादीब्याह कर के अपनी जिम्मेदारियों से छुट्टी पा चुकी थी. वह और रोमेश दोनों आपस में सुखपूर्वक रह रहे थे. बड़ी बेटी त्रिशा की शादी को 8 वर्ष हो चुके थे परंतु वह मां नहीं बन सकी थी. अब इतने दिनों बाद कृत्रिम गर्भाधान पद्धति से वह गर्भवती हुई थी. डाक्टर ने उसे पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी. उस की देखभाल के लिए उस के घर में कोई महिला सदस्य नहीं थी. इसलिए रीना का जाना आवश्यक था. लेकिन वह निश्ंिचत थी क्योंकि उसे पार्वती पर पूर्ण विश्वास था कि वह घर और रोमेश दोनों की देखभाल अच्छी तरह कर सकती थी. रोमेश हमेशा से छोटे बच्चे की तरह थे. अपने लिए एक कप चाय बनाना भी उन के लिए मुश्किल काम था. पार्वती के रहने के कारण रीना बिना किसी चिंता के आराम से चली गई थी. कुछ दिनों बाद त्रिशा के घर में प्यारी सी गुडि़या का आगमन हुआ. वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी. रोमेश भी गुडि़या से मिलने आए थे. वे 2-3 दिन वहां रहे थे और चिरपरिचित अंदाज में बेटी त्रिशा से बोले, ‘तुम्हारी मम्मी को मेरे लिए टाइमपास का अच्छा इंतजाम कर के आना चाहिए था. घर में बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’ उन की बात सुन कर सब हंस पड़े थे. रीना शरमा गई थी. वह धीमे से बोली थी, ‘आप भी, बच्चों के सामने तो सोचसमझ कर बोला करिए.’ वह चुपचाप उठ कर रसोई में चली गई थी.

मुंबई से वह 3 महीने तक नहीं लौट सकी. त्रिशा की बिटिया बहुत कमजोर थी और उसे पीलिया भी हो गया था. वह 10-12 दिन तक इन्क्यूबेटर में रही थी. त्रिशा के टांके भी नहीं सूख पा रहे थे. इसलिए वह चाह कर भी जल्दी नहीं लौट सकी. उस का लौटने का प्रोग्राम कई बार बना और कई बार कैंसिल हुआ. इसलिए आखिर में जब उस का टिकट आ गया तो उस ने मन ही मन रोमेश को सरप्राइज देने के लिए सोच कर कोई सूचना नहीं दी और बेटी त्रिशा को भी अपने पापा को बताने के लिए मना कर दिया. दोपहर का 1 बजा था. वह एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर सीधी अपने घर पहुंची. गाड़ी पोर्च में खड़ी देख उस का मन घबराया कि आज रोमेश इस समय घर पर क्यों हैं? वह दबेपांव घर में घुस गई. उस को बैडरूम से पार्वती और रोमेश के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी. वह अपने को रोक नहीं पाई. उस ने खिड़की से अंदर झांकने का प्रयास किया. पार्वती बैड पर लेटी हुई थी. यह देख रीना की आंखें शर्म से झुक गईं. पार्वती तो पैसे के लिए सबकुछ कर सकती है, परंतु रोमेश इतना गिर जाएंगे, वह भी इस उम्र में, वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी.

आज रोमेश को देख कर लग रहा था उन में और जानवर में भला क्या अंतर है? जैसे पशु अपनी भूख मिटाने के लिए यहांवहां कहीं भी मुंह मार लेता है वैसे ही पुरुष भी. इतने दिन बाद घर आने की उस की सारी खुशी काफूर हो चुकी थी. उसे लग रहा था कि वह जलते हुए रेगिस्तान में अकेले झुलस कर खड़ी हुई है. दूरदूर तक उसे सहारा देने वाला कोई नहीं है. फिर भी अपने को संयत कर के उस ने जोर से दरवाजा खटखटा दिया था. जानीपहचानी आवाज रोमेश की थी, ‘पार्वती, देखो इस दोपहर में कौन आ मरा?’ पार्वती अपनी साड़ी और बाल ठीक करती हुई दरवाजे तक आई, उस ने थोड़ा सा दरवाजा खोल कर झांका. रीना को देखते ही उस के होश उड़ गए. रीना ने जोर से पैर मार कर दरवाजा पूरा खोल दिया. रोमेश और बिस्तर दोनों अस्तव्यस्त थे. वे पत्नी को अचानक सामने देख आश्चर्य से भर उठे थे. अपने को संभालते हुए बोले, ‘तुम ने अपने आने के बारे में कुछ बताया ही नहीं? मैं गाड़ी ले कर एअरपोर्ट आ जाता.’

‘मैं तुम्हारी रंगरेलियां कैसे देख पाती?’

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‘तुम कैसी बात कर रही हो? मुझे बुखार था, इसलिए पार्वती से मैं ने सिर दबाने को कहा था.’

‘रोमेश, कुछ तो शर्म करो.’ मिमियाती सी धीमी आवाज में रोमेश बोले, ‘तुम जाने क्या सोच बैठी हो? ऐसा कुछ भी नहीं है.’ रीना ने हिकारत से रोमेश की ओर देखा था. क्रोध में वह थरथर कांप रही थी. उस ने जोर से पार्वती को आवाज दी, ‘वाह पार्वती वाह, तुम ने तो जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया. मैं ने तुम पर आंख मूंद कर विश्वास किया. सब लोग तुम्हारे बारे में कितना कुछ कहते रहे, लेकिन मैं ने किसी की नहीं सुनी थी. अभी यहां से निकल जाओ, मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहती.’

रीना आज खुद को कोस रही थी, क्यों पार्वती पर इतना विश्वास किया. वह ड्राइंगरूम में आ कर चुपचाप बैठ गई थी. थोड़ी देर में रोमेश उस के लिए खुद चाय बना कर लाए. उस के पैरों के पास बैठ कर धीरे से बोले, ‘‘रीना, प्लीज मुझे माफ कर दो. वह तो मैं बोर हो रहा था, इसलिए टाइमपास करने के लिए उस से बातें कर रहा था.’’ ‘‘रोमेश, तुम इस समय मुझे अकेला छोड़ दो. आज मैं ने जो कुछ अपनी आंखों से देखा है, सहसा उस पर विश्वास नहीं कर पा रही हूं. प्लीज, तुम मेरी नजरों से दूर हो जाओ. मुझे एक बात बता दो, यह सब कब से चल रहा था?’’

‘‘रीना, तुम्हारी कसम खाता हूं, ऐसा कुछ नहीं हुआ है जो तुम सोच रही हो.’’

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सुसाइड: भाग 2- क्या पूरी हो पाई शरद की जिम्मेदारियां

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- सुसाइड: भाग 1

एक गुटखा थूकने के तुरंत बाद फिर गुटखा खाने की तलब लगती थी. यही गुटखे की खासीयत है.

मुसीबत की शुरुआत मसूढ़ों के दर्द से हुई. पहले हलकाहलका दर्द था. खाना खाते समय मुंह चलाते समय दर्द बढ़ जाता था. फिर ब्रश करते समय मुंह खोलने में दर्द होने लगा.

शरद ने कुनकुने पानी में नमक डाल कर खूब कुल्ले किए, पर कोई आराम न हुआ. धीरेधीरे औफिस के लोगों को पता चला. उन्होंने उसे डाक्टर को दिखाने को कहा. पर उसे लगा शायद यह दांतों का साधारण दर्द है, ठीक हो जाएगा. यह गुटखे के चलते है, यह मानने को उस का मन तैयार नहीं हुआ. कितने लोग तो खाते हैं, किसी को कुछ नहीं होता. उस के महकमे के इंजीनियर साहब महेशजी तो गुटखे की पूरी लड़ी ले कर आते थे. उन का मुंह तो कभी खाली नहीं रहता था. उन की तो उम्र भी 50 के पार है. जब उन्हें कुछ नहीं हुआ, तो उसे क्या होगा. वह खाता रहा.

फिर शरद के मुंह में दाहिनी तरफ गाल में मसूढ़े के बगल में एक छाला हुआ. छाले में दर्द बिलकुल नहीं था, पर खाने में नमकमिर्च का तीखापन बहुत लगता था. छाला बड़ा हो गया. बारबार उस पर जबान जाती थी. फिर छाला फूट गया. अब तो उसे खानेपीने में और भी परेशानी होने लगी.

वह महल्ले के होमियोपैथिक डाक्टर से दवा ले आया. वे पढ़ेलिखे डाक्टर नहीं थे. रिटायरमैंट के बाद वे दवा देते थे. उन्होंने दवा दे दी, पर आराम नहीं हुआ. आखिरकार रजनी के जोर देने, पर वह डाक्टर को दिखाने के लिए राजी हुआ.

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‘क्या मु झे सच में कैंसर हो गया है,’ शरद ने स्कूटर में किक लगाते हुए सोचा, ‘अब क्या होगा?’

शरद ने तय किया कि अभी वह रजनी को कुछ नहीं बताएगा. डाक्टर ने भी 5 दिन की दवा तो दी ही है. वह 5-6 दिनों की छुट्टी लेगा. रजनी से कह देगा कि डाक्टर ने आराम करने को कहा है. अभी से उसे बेकार ही परेशान करने से क्या फायदा. यही ठीक रहेगा.

घर पहुंच कर उस ने स्कूटर खड़ा किया और घंटी बजाई. दरवाजा रजनी ने ही खोला. रजनी को देखते ही वह अपने को रोक न सका और फफक कर रो पड़ा.

रजनी एकदम से घबरा गई और शरद को पकड़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘क्या हुआ…? क्या हो गया? सब ठीक तो है?’’

‘‘मु झे कैंसर हो गया है…’’ कह कर शरद जोर से रजनी से लिपट गया, ‘‘यह क्या हो गया रजनी. अब क्या होगा?’’

‘‘क्या… कैंसर… यह आप क्या कह रहे हैं. किस ने कहा?’’

‘‘डाक्टर ने कहा है,’’ शरद से बोलते नहीं बन रहा था.

रजनी एकदम घबरा गई, ‘‘आप जरा यहां बैठिए.’’

उस ने शरद को जबरदस्ती सोफे पर बिठा दिया, ‘‘और अब मु झे ठीक से बताइए कि डाक्टर ने क्या कहा है.’’

‘‘वही,’’ अब शरद फिर रो पड़ा, ‘‘मुंह में इंफैक्शन हो चुका है. 5 दिन के लिए दवा दी है. कहा है, अगर आराम नहीं हुआ तो 5 दिन बाद टैस्ट करना पड़ेगा.’’

‘‘क्या डाक्टर ने कहा है कि आप को कैंसर है? साफसाफ बताइए.’’

‘‘अभी नहीं कहा है. टैस्ट वगैरह हो जाने के बाद कहेगा. तब तो आपरेशन भी होगा.’’

‘‘जबरदस्ती. आप जबरदस्ती सोचे जा रहे हैं. हो सकता है कि 5 दिन में आराम हो जाए और टैस्ट भी न कराना पड़े.’’

‘‘नहीं, मैं जानता हूं. यह गुटखा के चलते है. कैंसर ही होता है.’’

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‘‘गुटखा तो आप छोड़ेंगे नहीं,’’ रजनी ने दुख से कहा.

‘‘छोड़ूंगा. छोड़ दिया है. पान भी नहीं खाऊंगा. लोग कहते हैं कि यह आदत एकदम छोड़ने से ही छूटती है.’’

‘‘खाइए मेरी कसम.’’

‘‘तुम्हारी और सोनू की कसम तो मैं पहले ही कई बार खा चुका हूं, पर फिर खाता हूं कि नहीं खाऊंगा. पर अब क्या हो सकता है. नुकसान तो हो ही गया है रजनी. अब तुम्हारा क्या होगा? सोनू का क्या होगा?’’ शरद फिर मुंह छिपा कर रो पड़ा.

‘‘रोइए नहीं और घबराइए भी नहीं. हम लड़ेंगे. अभी तो आप को कन्फर्म भी नहीं है. कानपुर वाले चाचाजी का तो गाल और गले का आपरेशन भी हुआ था. देखिए, वे ठीकठाक हैं. आप को कुछ नहीं होगा. हम लड़ेंगे और जीतेंगे. आप को कुछ नहीं होगा,’’ रजनी की आवाज दृढ़ थी.

रजनी शरद को पकड़ कर बैडरूम में लाई. वह दिनभर घर में पड़ा रहा. नींद तो नहीं आई, पर टैलीविजन देखता रहा और सोचता रहा. कहते हैं, कैंसर का पता चलने के बाद आदमी ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक जिंदा रह सकता है. उस की सर्विस अभी 10 साल की हुई है. पीएफ में कोई ज्यादा पैसा जमा नहीं होगा. ग्रैच्यूटी तो खैर मिल ही जाएगी. आवास विकास का मकान कैंसिल कराना पड़ेगा. रजनी किस्त कहां से भर पाएगी. अरे, उस का एक बीमा भी तो है. एक लाख रुपए का बीमा था. किस्त सालाना थी.

तभी शरद को याद आया, इस साल तो उस ने किस्त जमा ही नहीं की थी. यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई. वह लपक कर उठ कर गया व अलमारी से फाइल निकाल लाया. बीमा की पौलिसी और रसीदें मिल गईं. सही में 2 किस्तें बकाया थीं. वह चिंतित हो गया. कल ही जा कर वह किस्तों का पैसा जमा कर देगा. उस ने बैग से चैकबुक निकाल कर चैक

भी बना डाला. फिर उस ने चैकबुक रख दी और तकिए पर सिर रख कर बीमा पौलिसी के नियम पढ़ने लगा.

‘‘मैं खाना लगाने जा रही हूं…’’ रजनी ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘यह आप क्या फैलाए बैठे हैं?’’

‘‘जरा बीमा पौलिसी देख रहा था.2 किस्तें बकाया हो गई हैं. कल ही किस्तें जमा कर दूंगा.’’

‘‘अरे, तो तुम वही सब सोच रहे हो. अच्छा चलो, पहले खाना खा लो.’’

रजनी ने बैड के पास ही स्टूल रख कर उस पर खाने की थाली रख दी. शरद खाना खाने लगा. तकलीफ तो हो रही थी, पर वह खाता रहा.

‘‘रजनी, एक बात बताओ?’’ शरद ने खाना खाते हुए पूछा.

‘‘क्या है…’’ रजनी ने पानी का गिलास रखते हुए कहा.

‘‘यह सुसाइड क्या होता है?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘मतलब यह कि गुटखा खाना सुसाइड में आता है या नहीं?’’

‘‘अब मु झ से बेकार की बातें मत करो. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’

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‘‘नहीं, असल में पौलिसी में एक क्लौज है कि अगर कोई आदमी जानबू झ कर अपनी जान लेता है तो वह क्लेम के योग्य नहीं माना जाएगा. गुटखा खाने से कैंसर होता है सभी जानते हैं और फिर भी खाते हैं. तो यह जानबू झ कर अपनी जान लेने की श्रेणी में आएगा कि नहीं?’’

अब रजनी अपने को रोक न सकी. उस ने मुंह घुमा कर अपना आंचल मुंह में ले लिया और एक सिसकी ली.

दूसरे दिन शरद तैयार हो कर औफिस गया. वह सीधे महेंद्रजी के पास गया. उस का बीमा उन्होंने ही किया था. उस ने उन्हें अपनी किस्त का चैक दिया.

‘‘अरे महेंद्रजी, आप ने तो याद भी नहीं दिलाया. 2 किस्तें पैंडिंग हैं.’’

‘‘बताया तो था,’’ महेंद्रजी ने चैक लेते हुए कहा, ‘‘आप ही ने ध्यान नहीं दिया. थोड़ा ब्याज भी लगेगा. चाहिए तो मैं कैश जमा कर दूंगा. आप बाद में दे दीजिएगा.’’

‘‘महेंद्रजी एक बात पूछनी थी आप से?’’ शरद ने धीरे से कहा.

‘‘कहिए न.’’

‘‘वह क्या है कि… मतलब… गुटखा खाने वाले का क्लेम मिलता है न कि नहीं मिलता?’’

‘‘क्या…?’’ महेंद्रजी सम झ नहीं पाए.

‘‘नहीं. मतलब, जो लोग गुटखा वगैरह खाते हैं और उन को कैंसर हो जाता है, तो उन को क्लेम मिलता है कि नहीं?’’

‘‘आप को हुआ है क्या?’’

‘‘अरे नहीं… मु झे क्यों… मतलब, ऐसे ही पूछा.’’

‘‘अच्छा, अब मैं सम झा. आप तो जबरदस्त गुटखा खाते हैं, तभी तो पूछ रहे हैं. ऐसा कुछ नहीं है. दुनिया पानगुटखा खाती है. ऐसा होता तो बीमा बंद हो जाता.’’

‘‘पर… उस में एक क्लौज है न.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘वही सुसाइड वाला. बीमित इनसान का जानबू झ कर अपनी जान देना.’’

महेंद्रजी कई पलों तक उसे हैरानी से घूरते रहे, फिर ठठा कर हंस पड़े, ‘‘बात तो बड़े काम की आई है आप के दिमाग में. सही में गुटखा खाने वाला अच्छी तरह से जानता है कि उसे कैंसर हो सकता है और वह मर सकता है. एक तरह से तो यह सुसाइड ही है. पर अभी तक कंपनी का दिमाग यहां तक नहीं पहुंचा है. बस, आप किसी को बताइएगा नहीं.’’

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टूटे घरौंदे: भाग 4- सालों बाद पत्नी और बच्चों से मिलकर क्यों हैरान था मुरली

किशोर और मुरली चुपचाप खड़े थे और बोलने वाले मुंह केवल गांव के लोगों के थे. सभी कुछ न कुछ कहे जा रहे थे.

“देखो अब भी कैसे खड़ी है, बोल किसकिस के साथ चक्कर चल रो है तेरा,” मुखिया वृद्ध ने कहा.

“मैं सुमन के सिर पर हाथ रख के बोलरी हूं मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं है,” आखिर में सुबकते हुए ललिता ने कहा.

“इतना सब कर के भी मुंह खोलने की हिम्मत है इस की,” एक औरत ने कहा.

“मुंह दिखाने लायक न छोड़ा खानदान को,” यह किशोर की दूर के रिश्ते की बुआ थी जिस ने ललिता के कंधे पर जोर से प्रहार करते हुए कहा था. यह देख गांव की एकदो और औरतें भी ललिता को गाली देने लगीं और कभी उस की पीठ पर कोई जोर से मारती तो कोई सिर पर.

अपनी मम्मी के साथ यह सब होता देख सुमन जोरजोर से रोने लगी. ललिता ने सुमन का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे उन दोनों का ही यहां कोई नहीं है.

“धक्के मार के गांव से निकालो इस औरत को, हमारी संस्कृति को मजाक बनाके रख दियो. गांव की बाकी छोरियां क्या सीखेंगी इस से, जातबिरादरी में किसी को मुंह ना दिखा सकते अब,” मुखिया ने कहा.

“मुझे इतना ज्ञान देने की बजाए आप इन को कुछ क्यों नहीं कहते? इन में कमी है पूछो इन से?” ललिता ने चिल्ला कर कहा.

“यह क्या बके जा रही है?” आसपास मौजूद सभी लोग चौंक कर कहने लगे.

“क्या बके जा रही हूं? शादी के बाद कोई सुख नहीं मिला इन से तो मेरे जो मन में आया मैं ने किया, इन से कोई कुछ क्यूं नहीं पूछा रहा है,” ललिता ने कहा तो किशोर वहां से उठ कर जाने लगा. किशोर के मुंह पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

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“अरे, कैसी बेशर्म छोरी है, जा अपनी नाजायज औलाद को ले कर मर कहीं चुल्लू भर पानी में,” किशोर की दूर की बुआ चिल्ला कर बोली.

“खबरदार जो मेरी बेटी के लिए कुछ भी कहा. मेरा मुंह ना खुलवाओ नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. जो सुबह शाम महाभारत देखती हो उस में तो बड़ा गुणगान करती हो अर्जुन का, भीम का, वो कौन सा अपने बाप के जने है. उन्हें तो कभी नाजायज नहीं कहा,” ललिता ने कहा.

यह सुन कर दूर की बुआ के कानों से धुआं निकल गया. उन्होंने ललिता के बाल पकड़ लिए और उसे गालियां देने लगीं, अपशब्द कहने लगीं. वहां मौजूद लोगों में से कोई ललिता के साथ नहीं था न किसी ने उस के हक में कुछ कहा. मुरली भी चुपचाप यह सब देख रहा था. यह सब सुनते हुए कोमल भी कमरे से निकल आई थी और सुमन की ही तरह वह भी यह दृश्य देख रही थी.

ललिता ने उन बुआ का हाथ पकड़ा तो एक और औरत ललिता पर हावी होने आ गई. यह देख कविता अपनी जगह से ललिता के बगल में आई और उन औरतों को हटाते हुए बोली, “गलत क्या कह रही है वो. गलती इस अकेली की तो है नहीं न. इस को मारनेपीटने से या बच्ची को नाजायज कहने से आप लोगों को क्या मिलेगा?”

“तू बीच में मत बोल यह हमारे गाम का मामलो है,” एक आदमी ने कहा.

“आप से ज्यादा यह मेरे घर का मामला है. जाइए आप यहां से सभी,” कविता ने कहा.

“यह औरत हमारे घर नहीं आएगी न इस की छोरी को हम घर में घुसने देंगे,” रिश्तेदार बुआ बोलीं.

इस बात पर अन्य लोग भी हामी भरने लगे कि अब ललिता यहां नहीं रहेगी.

“ललिता, इन की बात मत सुनो, किशोर तुम्हारा पति है ऐसे कैसे छोड़ सकता है तुम्हें,” कविता ने कहा.

ललिता ने कविता के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, “मैं अपनी मां के घर अतरौली चली जाऊंगी, अब मेरा यहां कुछ नहीं है, लेकिन, मेरी छोरी को ले गई तो उस की जिंदगी खराब हो जाएगी. न वो पढ़लिख पाएगी और न उस के सिर पे बाप का साया होगा,” कहते हुए ललिता मुरली की तरफ मुड़ी, “तुम बाप हो न इस के, रख लो इसे. मैं तुम्हारा घर नहीं तोड़ना चाहती लेकिन मैं इसे ले जाने लायक नहीं हूं और इस के पापा को लगता था कि यह भगवान की कृपा से पैदा हुई है लेकिन, सचाई जान कर वो इसे अब नहीं आपनाएंगे. बच्चे किसी की कृपा से नहीं होते यह समझने में उन्हें इतने साल लग गए.”

“पर…,” मुरली कुछ कहता उस से पहले ही कविता बोल पड़ी, “सुमन हमारे साथ रहेगी, मेरी न सही इन की बेटी तो है न.”

लोग बढ़बढ़ाने लगे और ‘कैसी औरत है’, “बेचारा ‘घोर कलयुग आ गया है’, ‘बेचारा किशोर किस के पल्ले पड़ गया’,  कहते हुए निकलने लगे.

आखिर में ललिता जाने लगी तो सुमन उस से लिपट गई.

“मम्मी, कहां जारी है,” सुमन ने रोते हुए कहा, “मुझे भी ले चल.”

“नहीं, अब यही तेरा घर है,” ललिता ने घूंघट हटाया और पल्लू से सुमन के आंसू पोंछने लगी.

“नहीं, मुझे अपने घर जाना है, पापा के पास जाना है, मुझे भी ले चल.”

“एकबार कह दिया ना यहीं रहना है. ना मैं तेरी मां हूं न वो तेरे पापा. बचपन में मांग लिया था तुझे हम ने. अब और नहीं पाल सकते, जा अब,” ललिता ने सुमन का हाथ झड़कते हुए कहा.

कविता की आंखे भर आईं थी यह सब देखते हुए. ललिता वहां से चली गई और कुछ देर बाद एक बैग में सुमन के कपड़े और कुछ खिलौने दे गई. मुरली ने ललिता को देने के लिए कविता के हाथ में कुछ पैसे दिए थे जिन्हें लेने से कविता ने यह कह कर मना कर दिया था कि उन के इतने एहसान वह नहीं चुका पाएगी. जाते हुए वह सुमन को गले से लगा कर गई थी और सुमन उसे नहीं छोड़ रही थी. आखिर ललिता को उसे छोड़ जाना ही पड़ा.

किशोर ललिता के जाते ही अपने चाचा के घर रहने चला गया था, लोगों के मुंह से बारबार जो कुछ हुआ वह सुनना उस की बर्दाश्त के बाहर था. जाते हुए वह सुमन से मिल कर भी नहीं गया था.

शाम हो चुकी थी. सुमन कोने में खड़ी रो रही थी. कविता खुद नहीं समझ पा रही थी कि आखिर यह सब कैसे हो गया. कोमल मुरली के साथ चारपाई पर बैठी हुई थी.

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कविता ने सुमन को अपने पास बुलाना चाहा पर वह नहीं आई. वह खुद उठ कर उस के पास गई, बोली, “यह तुम्हारा घर है और यह तुम्हारी बहन है. हमें तुम चाची चाचा कह सकती हो. भूख लगी होगी न कुछ खा लो.”

“मुझे नहीं खाना है,” सुमन ने सुबकते हुए कहा.

“नहीं खाओगी तो बीमार हो जाओगी,” कह कर कविता ने कोमल को देखते हुए कहा, “कोमल इधर आ.”

कोमल आ गई.

“स्कूल में मैडम क्या कहतीं हैं, जब कोई खाना नहीं खाता तो क्या होता है?” कविता ने कोमल से पूछा.

“खाना नहीं खाते तो पेट में दर्द होने लगता है और चक्कर आने लगते हैं और दिमाग कमजोर हो जाता है,” कोमल बोली.

“लेकिन, मम्मी तो कुछ और कहवे है,” सुमन ने कहा.

“क्या कहती है?” कविता ने पूछा.

“मम्मी तो कह रही कि पेट में भूख के मारे चूहे मर जाते हैं और बदबू आने लगती है.”

“तू चिंता मत कर, मैं बिल्ली पकड़ कर ले आउंगी, वो तेरे चूहे खा जाएगी और बदबू भी नहीं आएगी,” कोमल ने कहा तो सुमन उस की बात सुन कर खिलखिला कर हंस दी.

यह देख मुरली और कविता मुस्कराने लगे. उन्हें इस नई जिंदगी में ढलने में वक्त लगेगा पर उम्मीदें थीं कि सब ठीक हो जाएगा.

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टूटे घरौंदे: भाग 3- सालों बाद पत्नी और बच्चों से मिलकर क्यों हैरान था मुरली

वह किसी को कुछ समझा नहीं सकता था न कोई सफाई दे सकता था. ललिता ने सबकुछ क्यों किया यह तो उसे आजतक नहीं पता चला न उस ने जानना चाहा लेकिन उस के दिमाग में कई बार यह बात जरूर कौंधी थी कि सुमन ललिता की एकलौती बेटी थी. क्या इस का मतलब यह कि किशोर में कुछ कम… नहीं नहीं वह इस तरह की कोई बात सोचना भी नहीं चाहता था.

वह अब क्या करेगा नहीं जानता. लेकिन कविता को सब सच बता देगा यह तो तय है. लेकिन, कविता से माफी मांग लेने से या माफी मिल भी जाए तब भी गांववालों और किशोर से कैसे सामना करेगा यह वह नहीं जानता. उस की एक गलती इतने सालों बाद उस का घरौंदा तोड़ देगी मुरली ने इस की कल्पना भी नहीं की थी.

दिन लंबा था और उसे काटना बेहद मुश्किल. कोमल बाहर आंगन में अपने खिलौनों में गुम थी और कविता कभी धम से एक परात पटकती तो कभी भगौना.

सुबह के वाकेया को 3 घंटे बीत चुके थे. धूप गहराई हुई थी. मुरली और कोमल अंदर कमरे में थे और कविता ने रसोई को अपना कमरा बना रखा था. घर में लाइट नहीं थी और यह दिल्ली तो थी नहीं कि इनवर्टर चला पंखें की हवा खा सकें. गरमी से मुरली का सिर भन्ना रहा था, पंखा ढुलकाते हुए उस के हाथ दुखने लगे थे. कोमल सो रही थी और मुरली उसे भी हवा कर रहा था. लेकिन, छोटी सी रसोई में कविता गरमी से कम और आक्रोश से ज्यादा तप रही थी.   मुरली को चिंता होने लगी कि कविता कहीं बीमार न पड़ जाए.

“कविता,” मुरली ने रसोई के दरवाजे पर खड़े हो कर कहा

कविता पसीने से लथपथ थी. उस आंखें गुस्से में रोने से लाल थीं यह मुरली देख पा रहा था. कविता की जिंदगी में दुखों के बादल कभी नहीं छाए थे. वह अच्छे घर की लड़की थी, 10वीं पास थी जो उस के लिए कालेज से कम न था. घर में 3 और बहनें थीं जो आसपास के गांवों में बिहा दी गईं थी और दो भाई थे जिन के पास पिता के छोड़े हुए खेतखलिहान थे, मकान था और मां के कुछ गहने भी. कविता के हिस्से नाममात्र की चीजें आईं थी लेकिन घर में सब से छोटी होने के नाते उसे इस की भी कोई उम्मीद नहीं थी, सो वह खुश थी.

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अपने घर और आसपास की सहेलियों में वह पहली थी जो शादी कर दिल्ली आई थी. मुरली सुंदर लड़का था और शादी के बाद जो कुछ एक पत्नी को अपने पति से चाहिए होता है वह सब उस से उसे मिला था. मुरली की बातें, रवैया, बोलचाल सभी से कविता प्रभावित थी और उस पर मर मिटती थी. कोमल के जन्म के बाद से तो उसे जैसे सब कुछ मिल गया था. उस का मानना था कि एक बच्ची को वह जितना सुख दे सकते हैं उतना दो बच्चों को नहीं दे पाएंगे और इसलिए वह दूसरा बच्चा नहीं चाहती थी. मुरली उस की इस बात से बेहद प्रभावित हुआ था और हामी भर दी थी.

जीवन का यह पहला और सब से बड़ा आघात कविता को इस तरह लगेगा यह उस की कल्पना से परे था. वह मुरली को किसी और से बांटने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, और किसी गैर औरत के साथ संबंध रखने की बात उस के दिल में उतर नहीं रही थी. उसे लगने लगा जैसे मुरली इतने साल उस से प्यार करने का केवल ढोंग रचता आया है और उस की खुशियों का संसार केवल झूठ की इमारतों से बना हुआ था.

“कविता, एक बार बात सुन लो,” मुरली ने एक बार फिर कहा लेकिन कविता ने उसे देख कर मुंह फेर लिया था.

“जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है, मेरा उस औरत…” मुरली कह ही रहा था कि कविता ने उस की बात बीच में ही काट दी और बोली, “इसीलिए आते थे तुम यहां. और कितनी औरतों के साथ घर बसाएं हैं तुम ने और कितने बच्चे पाले हुए हैं यहां,” उस का गला रूंध गया था.

“ऐसा कुछ नहीं है, मैं ऐसा आदमी नहीं हूं तुम जानती हो. यह बस सालों पहले की गलती थी और बस एक ही बार हुआ था जो हुआ था. मैं इस औरत से उस के बाद कभी मिला भी नहीं, न मुझे कुछ सालों पहले तक सुमन के बारे में पता था. मेरे लिए तुम और कोमल ही मेरा सब कुछ हो और कोई भी नहीं….”

“हां, इसलिए तो धोखा दिया है इतना बड़ा. मैं कल ही अपने भैया के घर चली जाऊंगी मनीना. रख लेना अपनी दोनों बेटियों को और उस औरत को अपने पास. मुझे न यहां रहना है न किसी से कोई रिश्ता रखना है. यह दिन देखने से अच्छा तो मैं शहर में कोरोना से ही मर जाती,” कविता कहती ही जा रही थी.

“तुम कहीं नहीं जाओगी और न मरने की बातें करोगी,” मुरली की आंखों में आंसू थे. वह कविता के आगे घुटनों के बल झुक गया और उस के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कहने लगा, “मैं ने कभी उस से प्यार नहीं किया, किसी से नहीं किया तुम्हारे अलावा, सच कह रहा हूं. हम जल्द ही दिल्ली चलेंगे और इस गांव की तरफ मुड़ कर नहीं देखेंगे. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई, मुझे माफ कर दो,” मुरली सुबकने लगा था. कविता और मुरली दोनों ही रोये जा रहे थे और अब शब्द भी उन के कंठ में अटक कर रह गए थे.

कुछ देर ही बीती थी कि दरवाजे पर एकबार फिर दस्तक हुई. मुरली उठा और मुंह पोंछ कर दरवाजा खोलने गया. कविता ने सिर पर दुपट्टे से पल्ला डाला और रसोई से बाहर खड़ी हो देखने लगी.

दरवाजे पर खुद को मुखिया समझने वाले कुछ बुजुर्ग, चौधरी बन घूमने वाले कुछ नौजवान जिन में से कईयों को मुरली जानता था, लाठी लिए एक बूढ़ी औरत जिसे उम्र के चलते चौधराइन बनने की पूरी इजाजत थी, कुछ औरतें जो मुंह पर पल्ला डाले चुगली के इस सुनहरे अवसर को छोड़ना नहीं चाहती थीं, और कुछ बिना किसी मतलब के आए बच्चे थे. किशोर भी वहीं था लेकिन उस के चहरे पर कोई गुस्सा नहीं था बल्कि असमंजस के भाव मालूम पड़ते थे.

मुरली ने हाथ जोड़े तो बाहर खड़े लोगों में से मुरली के दूर के ताऊ लगने वाला वृद्ध पूरे अधिकार से आंगन में आने लगा जिन के पीछे पूरी फौज भी आ धमकी. मुरली जानता था अब यहां पंचायती होगी और उस पर खूब कीचड़ उछलेगा पर वह यह नहीं जानता था कि असल कीचड़ में किशोर लथपथ होने वाला है.

लोगों ने आंगन का कोनाकोना घेर लिया और कोई चारपाई तो कोई जमीन पर ही चौकड़ी जमा बैठ गया.

“गांव में सुबह से तुम लोगों के बारे में बाते हो रही हैं, हम ने सोची कि पूछें गाम में का माजरो है,” बुजुर्ग मुखिया ने कहा.

“तेरे और किशोर की लुगाई के बीच का चलरो है तू खुद ही बता दे,” दूसरे बुजुर्ग ने कहा.

“मुखिया जी, मैं तुम से कह रहा हूं के ऐसी कोई बात ना है, दोनों छोरियों की शकल मिल रही है तो बस इत्तेफाक है,” किशोर ने कहा.

किशोर के मुंह से यह सुन कर मुरली को हैरानी हुई. मतलब या तो किशोर सब जानता है या जानना नहीं चाहता है.

“जा दुनिया में एक शक्ल के 7 आदमी होते हैं, तुम लोग गांव के गवार ही रहोगे, बेमतलब बहस कर रहे हैं. मैं तुम से कह रहा हूं ना घर कू चलो, यह पंचायती करने का कोई फायदा नहीं है. बात का बतंगड़ मत बनाओ,” किशोर ने फिर कहा.

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मुरली सब के बीच चुप बैठा था और कविता कोने में खड़ी सब सुन रही थी.

“ऐसे कैसे मान लें के कोई बात ना है. हम कोई आंधरे थोड़ी हैं. तेरी बीवी का चक्कर है इस मुरली के साथ, हम जा बात की सचाई जानीवो चाहत हैं,” एक ने कहा.

“मुखिया जी, तुम मेरे घर के मामले में मत कूदो, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं,” किशोर बोला.

“ऐसे कैसे न बोलें, यह तेरे घर का मामला नहीं है अब गाम को मामला है, गाम की इज्जत को मामलो है,” बूढ़ी औरत ने कहा.

“अरे, चम्पा जा तू जाके इस की लुगाई को बुलाके ला,” दूसरे बुजुर्ग ने कहा.

ललिता भी मुरली के आंगन में आ गई. उस ने मुंह घूंघट से ढका हुआ था और हाथ बांधे खड़ी थी. सुमन उस के साथ ही थी.

“हां, ये छोरी तेरी और मुरली की है बता अब सब को,” पीछे से आवाज आई.

“गाम से निकाल दो ऐसी औरत को तो, पति के पीठपीछे रंगरलियां मनाने वाली औरत है ये,” किसी औरत ने कहा.

“मैं न कहता था ललिता भाभी के चालचलन अच्छे न हैं, अब देख लो,” यह गली का ही कोई लड़का था जिस की किशोर से अच्छी दोस्ती थी और ललिता से भी बेधड़ंग मजाक किया करता था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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टूटे घरौंदे: भाग 2- सालों बाद पत्नी और बच्चों से मिलकर क्यों हैरान था मुरली

गांव के जो एकदो लोग किशोर के साथ दरवाजे पर थे वह भी दोनों बच्चियों की एक सी शक्ल देख कर हैरान थे. किशोर की आंखें भी लगभग फटी हुई थीं, कविता को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ और सब से अलग मुरली अपनी नजरें सभी से छुपाने लगा.

हरतरफ से आवाज आने लगी, कोई कहता “ये तो एक ही शक्ल की हैं,” तो कहीं से आवाज आती “बिलकुल जुड़वां बहनें लग रही हैं”.

ऐसा लग रहा था जैसे सचमुच किसी फिल्म का दृश्य हो. जैसे गोविंदा की एक फिल्म में उस की दो बीवियों से दो बच्चे थे और दोनों की ही शक्लें बिलकुल एक जैसी थीं.

सुमन और कोमल की उम्र में एक साल का अंतर था लेकिन शक्ल में रत्ती बराबर का भी नहीं. सुमन की आंखें भी बड़ी और गोल थीं, कोमल की आंखें भी. सुमन के होंठ भी पतले थे, कोमल के होंठ भी. सुमन का माथा भी चौड़ा था, कोमल का भी. यहां तक कि सुमन का रंग भी गोरा था और कोमल का भी. आखिर, यह कैसे संभव था कि दो अलगअलग कोख से जन्मी बच्चियां एक सी हों बजाए कि उन का पिता एक हो.

सभी के दिमाग में यह बात आने में देर नहीं लगी. किशोर सुमन को ले कर अपने घर चला गया.  किशोर की पत्नी ललिता घर में पसीनापसीना हो रखी थी. किशोर ने उसे देखा और देखते ही उस की बांह कसकर भींच ली.

“चल कमरे में,” किशोर ने कहा.

“क्या… हुआ?” ललिता ने हकलाते हुए कहा.

“इस छोरी की शक्ल उस मुरली की छोरी से कैसे मिलती है?”

“मुझे क्या पता, और आप पूछ क्यों रहे हैं, भला मुझे कैसे पता होगा.”

किशोर ललिता की बात सुन कर कुछ नहीं बोला. वह वहां से उठ कर बाहर निकल गया.

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सुमन समझ नहीं पाई कि उस की शक्ल किसी से मिलने पर पापा खुश होने की बजाए नाराज क्यों हो रहे हैं. उस ने मम्मी से जा कर पूछा, “मम्मी, पापा को क्या हुआ?”

“कुछ नहीं, जा कमरे में जा कर खेल,” इतना कह ललिता कुछ सोचते हुए अपने काम में लग गई.

मुरली ने दरवाजा बंद किया तो कविता की आंखों में उसे ढेरों सवाल साफ दिखाई दे रहे थे. उसे समझ आ गया था कि जो राज उस ने 12 सालों तक छुपा कर रखा था अब वह और नहीं छुपा पाएगा.

“तुम जो सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” मुरली ने कविता से कहा तो वह रसोई में जा बर्तन धोने लगी जोकि ऐसा लग रहा था जैसे बर्तन पटक रही हो.

मुरली चारपाई पर लेट गया और हाथ अपनी आंखों पर रख अतीत में गुम होने लगा.

मुरली जवान तंदरुस्त लड़का था जिस की सुबह दिनभर खेत में घूमने और रात दोस्तों के साथ महल्ले में मटरगश्ती करते निकलती थी. किशोर मुरली का बचपन का दोस्त था. दोनों का घर अगलबगल में ही था तो जब देखो तब दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना रहता था. किशोर की शादी जब ललिता से हुई थी तब मुरली और किशोर दोनों ही 19 वर्ष के थे और ललिता 18 वर्ष की. शादी में जब पहली बार मुरली ने ललिता को देखा था तो उसे वह बेहद अच्छी लगी थी.

शादी के बाद जब भी मुरली किशोर के घर जाता तो ललिता को निहारने से खुद को रोक नहीं पाता था. ललिता मुरली के सामने अकसर घूंघट में रहती थी. सासससुर के होते हुए तो उसे लगभग 24 घंटे ही घूंघट में रहने की हिदायतें दी गईं थीं. मुरली समझता था कि जिस नजर से वह ललिता को देख रहा है वह सही नहीं है लेकिन उस के खयाल उस के काबू में नहीं थे. ललिता खूबसूरत थी, उस का गोरा रंग, हिरणी सा शरीर, पतली बाहें, सबकुछ मुरली को अपनी तरफ खींचता था, लेकिन उस की ललिता को पाने की ख्वाहिश पूरी नहीं होगी यह वह जानता था.

‘भाभी, किशोर को भेजना तो जरा,’ एक दोपहर मुरली ने दरवाजे पर खड़े हो कर कहा.

‘वह सो रहे हैं, आप जगाना चाहें तो आ जाइए,’ ललिता ने मुरली से कहा.

मुरली ललिता के पीछेपीछे कमरे तक चला गया. ललिता के सासससुर दोनों ही घर पर नहीं थे तो उस ने कमरे में घुसते हुए अपना घूंघट हटा लिया. मुरली किशोर को उठाने तो गया था लेकिन ललिता को देख वह चुपचाप सोते हुए किशोर के बगल में बैठ गया. ललिता की नजरें भी मुरली पर टिकी थीं. मुरली को यकीन नहीं हुआ कि सच में ललिता उसे इस तरह देख रही है. वह थोड़ा सकपका गया और किशोर को जगाने लगा.

अगले दिन से मुरली किसी न किसी बहाने छत पर जाने लगा जहां उसे दूसरे कोने पर ललिता उसी समय पर दिख जाती थी. उसे पता था कि यह कोई इत्तेफाक नहीं है, ललिता जानबूझ कर छत पर आती है.

लेकिन, वह यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर ललिता किशोर की बजाय उस में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रही है. मुरली तो अविवाहित है लेकिन ललिता किसी की पत्नी होते हुए यह सब क्यों कर रही है.

मुरली ललिता की तरफ आकर्षित था लेकिन ललिता का आकर्षण कितना खतरनाक साबित हो सकता था यह भी वह अच्छी तरह समझता था. और फिर एक दिन वही हुआ जो वह सोच रहा था.

किशोर के मातापिता दूसरे गांव एक शादी में गए हुए थे. घर पर सिर्फ किशोर और ललिता ही थे. मुरली और किशोर अपने बाकी दोस्तों के साथ मुरली के घर खानेपीने में लगे थे. किशोर ने एक के बाद एक गिलास शराब पी ली जिस कारण उस के लिए होश संभालना मुश्किल होने लगा. रात गहराने लगी थी और सभी दोस्त एकएक कर अपने घर जाने लगे. किशोर ने इतनी पी ली थी कि उसे ठीक से खड़े होने में भी परेशानी हो रही थी.

मुरली किशोर को उस के घर ले जाने लगा. रात गहरी थी और लोग अपने घरों में सोए थे. मुरली ने पहले सोचा था कि किशोर को उस की छत से ही छोड़ आए पर फिर सोचा कि उसे सीढ़ियों पर चढ़ाना मुश्किल होगा तो सीधा दरवाजे से ही ले गया.

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घर में घुसा तो मुरली की मदद करने के लिए ललिता किशोर को पकड़ने लगी. किशोर को पकड़तेपकड़ते ललिता के हाथ मुरली के हाथों को बारबार छू रहे थे. मुरली के लिए इस तरह किसी औरत का छूना बहुत नया था. खुद को रोक पाना मुरली के लिए कठिन था, और आज तो मौका भी था और ललिता की ‘हां’ थी यह भी वह जानता था. किशोर को कमरे में लेटा कर वह कमरे से बाहर निकला तो ललिता ने कमरे से निकल दरवाजे पर कुंडी लगा दी और मुरली को देखने लगी.

उस ने मुरली को दूसरे कमरे में आने का इशारा किया और मुरली उस के पीछे चला गया. उसे ललिता से कुछ पूछने की सुध नहीं थी और ललिता उसे कुछ बताना नहीं चाहती थी. लगभग 45 मिनट मुरली और ललिता का जिस्मानी संबंध चलता रहा. मुरली उत्तेजित था और उस ने वासना के चलते एक दोस्त की भूमिका भुला दी थी.

वह अपने घर गया तो इस ग्लानी ने उसे घेर लिया. एक तरफ वह ललिता के साथ इस प्रसंग को दोहराना चाहता था और दूसरी तरफ इस बात को स्वीकारना नहीं चाहता था कि उस ने अपने दोस्त की पीठ में छूरा घोंपा है. उस ने किशोर के घर जाना छोड़ दिया. किशोर और बाकी दोस्त उसे बुलाने आते तो साफ मना कर देता. ललिता की तो शक्ल ही नहीं देखना चाहता था वह.

एक हफ्ता ही हुआ था कि उस ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया था. दिल्ली में उस के दूर की रिश्तेदारी का एक लड़का नौकरी कर रहा था. उसी के भरोसे वह दिल्ली आ गया. समयसमय पर घर पर बात हो जाती तो सभी की खबर मिल जाती. 6 महीने बाद घर आया तो ललिता के गर्भवती होने की बात जान कर भी उसे कोई हैरानी नहीं हुई. वह दो दिन के लिए आया था और किसी से मिले बिना ही चला गया था. किशोर और बाकी दोस्त उसे बड़ा आदमी तो कभी घमंडी कहते और अपनी दिनचर्या में रम जाते.

ललिता की बच्ची को ले कर मुरली को पहली बार हैरानी तब हुई जब उस की बेटी कोमल 4 साल और ललिता की बेटी सुमन 5 साल की थी. वह गांव आया था जमीन के किसी मसले को ले कर जब उस ने सुमन को पहली बार देखा था. उस का चेहरा हूबहू कोमल जैसा था. मुरली समझ चुका था कि उस रात ललिता और उस के बीच जो कुछ भी हुआ उस से ललिता गर्भवती हुई थी और यह बच्ची किशोर की नहीं बल्कि मुरली की थी.

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उस ने फैसला कर लिया था कि कभी दोनों बच्चियों का न सामना होने देगा न किसी को यह बात पता चलने देगा. पर अब इतने सालों बाद बात हाथ से निकल चुकी थी. उस के पास गांव वापस आने के अलावा कोई चारा ही नहीं था. शहर में भूखों मरने की नौबत आने से पहले निकल जाना जरूरी था. राज खुलने की आशंका तो उसे थी लेकिन यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा यह उस ने नहीं सोचा था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

टूटे घरौंदे: भाग 1- सालों बाद पत्नी और बच्चों से मिलकर क्यों हैरान था मुरली

“पापा, वहां क्या कुएं से पानी पीते हैं?”

“नहीं, नलका लगा है घर में.”

“मिट्टी के घर हैं क्या वहां?”

“नहीं, जैसे यहाँ हैं वैसे ही हैं.”

“और लालटेन जलानी पड़ेगी क्या?”

“नहीं, लाइट आतीजाती रहती है, अब चुप हो जा गांव जा कर पूछना,” मुरली ने अपनी 11 वर्षीया बेटी के एक के बाद एक प्रश्न से झेंप कर उसे चुप कराते हुए कहा.

मुरली अपनी पत्नी कविता और बेटी कोमल को 11 वर्षों बाद अपने गांव माकरोल ले कर जा रहा था. माकरोल उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले का छोटा सा गांव है. मुरली ने 13 साल पहले यह गांव छोड़ा था. वह गांव से अकेला दिल्ली आया था जिस के एक साल बाद ही उस की मां भी यहां आ गई थीं. यहीं उस की शादी मनीना में रहने वाली कविता से करा दी गई थी. जब मुरली की बेटी दो साल की हुई तो मां उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी थीं.

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वर्तमान में दिल्ली की हालत तो किसी से छुपी हुई नहीं है. कोरोना के चलते जितना सरकारी धनकोश लोगों के लिए खाली है उस से कही ज्यादा आम आदमी की जेब खाली हो चुकी है. दो महीने से काम न होने के चलते शहर के बोर्डर खुलते ही मुरली ने परिवार के साथ वापस गांव लौटने का फैसला कर लिया था.

बस में 6 घंटों का सफर अब समाप्त हो चुका था. मुरली, कविता और कोमल अपने सामान से लदालद भरे 4 बैग ले कर बस से उतरे. कविता का मुंह उस के दुपट्टे से, मुरली का गमछे और कोमल का मास्क से ढका हुआ था. गांव का नजारा शहर से बेहद अलग था. लग रहा था मानो कोरोना ने यहां किसी को छूआ ही न हो. लोग अब भी गुट बनाए बैठे बातें करते साफ दिख रहे थे.

गांव में जैसेजैसे मुरली बढ़ने लगा, उस के माथे पर बल पड़ने लगे. पसीना ऐसे झूटने लगा जैसे जून की गर्मी ने उस अकेले को ही जकड़ा हो. गली में आगे बढ़तेबढ़ते लोगों की नजरें टकटकी लगाए आने वाले उन छह कदमों को देख रही थीं. मुरली ने अपना गमछा हटाया और गली के कोने में बैठे आदमी को देख बोला, “और भैया का हाल है, सब ठीकठाक है?”

“अरे, भैया, कैसे हो, बहुत दिनों बाद आए हो.”

“हां, हम तो सब ठीक हैं, तुम सुनाओ तुम्हारे का हाल हैं,” मुरली बोला.

“हां भैया, कर रहे हैं हम तो अपना गुजारो,” वह कविता और कोमल की तरफ देखते हुए बोला, “भाभी नमस्ते, हम बिजेंदर, हम जेइ महल्ला में रेहत हैं कभी घर घूमने आइयों.”

कविता ने नमस्ते की मुद्रा में सिर हिला दिया.

“और चाची नजर ना आरीं कहां हैं?” मुरली ने बिजेंदर से पूछा.

“भैया, वो भैंस नभाईवे गई हैं,” बिजेंदर बोला.

यह सुन कोमल जोरजोर से हंसने लगी. वह अपने आसपास के इस नए माहौल को देखने में व्यस्त थी. कभी पूछती कि मम्मी यह कौन है वो कौन है, तो कभी कहती घर कितना दूर है जल्दी चलो. वहीं, मुरली आसपास जो भी जानपहचान का मिलता उसे नमस्ते कहता हुआ तो कभी हालचाल का आदानप्रदान करता हुआ जा रहा था.

थोड़ी दूरी पर ही मुरली एक घर के आगे आ कर रुका और अपना बैग खोल चाबी निकालने लगा. लाल रंग के गेट वाला यह घर मुरली का था. मुरली गेट खोलने लगा, तभी सामने वाले घर से एक बुजुर्ग बाहर निकल कर आए. उन्हें देख मुरली बोला, “ताऊ नमस्ते. ताई नजर नहीं आ रही, कहां गईं.”

“भैया तेरी ताई मर गई,” उन ताऊजी ने जवाब दिया.

“हैं, कैसे?” मुरली ने हैरानी से पूछा.

“खेत में घांस लेने गई, सांप खा गयो,” उन्होंने बात पूरी की.

मुरली सुन कर थोड़ा सकुचाया पर फिर नमस्ते कह घर के अंदर बढ़ गया. कविता और कोमल भी घर में घुस चैन की सांस ले पा रहे थे. कोमल ने अपना मास्क उतारा और घर को निहारने लगी. दो मिनट के लिए मुरली की नजरें कोमल पर टिकीं और लगने लगा जैसे वह किसी खयाल में डूब गया हो. उस ने कोमल से अपना ध्यान हटाया और जूते उतारने लगा.

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घर बिलकुल गंदा पड़ा था, कहीं जाले लटक रहे थे, तो कहीं तसवीरों पर मिट्टी की परतें जमी हुई थीं. मुरली साल में दो बार 4-6 दिनों के लिए यहां आता था लेकिन अकेला, इसलिए हलकीफुलकी साफसफाई हो जाती थी.

सुबह 11 से शाम 7 बजे तक कविता, कोमल और मुरली घर की सफाई में ही रम गए. चारपाई के नीचे से घासफूस हटाई गई, खिड़की से जाले झाड़े गए, बर्तनों को मांजा गया, चादरें बिछाई गईं और ढुलकाने के लिए हाथ वाले पंखें निकाले गए. दिनभर की मशक्कत के बाद तीनों खाना खाने बैठे तो एकबार फिर मुरली किसी सोच में खो गया.

“क्या सोच रहे हो?” कविता ने पूछा.

“नहीं, कुछ नहीं,” मुरली ने कहा.

“पापा, यहां मेरे दोस्त बन जाएंगे न?” कोमल बोलने लगी.

“कोई जरूरत नहीं है किसी से दोस्ती करने की. मेरा मतलब कि… कोरोना फैला है न बेटा तो जितना हो सके घर में रहो बाहर मत जाना,” मुरली की आवाज में हिचकिचाहट थी.

“हां, लेकिन थोड़ा तो बाहर निकलेंगे ही, किसी से हांहूं तो करेंगे ही न,” कविता ने कहा.

“कह दिया न कोई जरूरत नहीं है. तुम किसी को जानते नहीं हो तो ज्यादा रिश्ते जोड़ने की जरूरत नहीं है, वैसे भी हमें जिंदगी भर यहां नहीं रहना है.”

“पर..,” कविता कुछ बोलने ही जा रही थी कि मुरली ने उसे अचानक टोकते हुए कहा, “अब क्या चैन से खाना भी नहीं खाने दोगी क्या?”

कविता ने आगे कुछ नहीं कहा. कोमल का चेहरा भी मुरझाने लगा था, उसे लगा कि इस नए घर में बिना किसी दोस्त के वह बहुत बोर होने वाली है.

मुरली वैसे तो अपने परिवार से बेहद प्यार करता था, उन के साथ हंसताखेलता था, लेकिन इस गांव के जिक्र से ही वह हमेशा खिन्न जाता था. अब गरीबी में आटा गीला वाली बात तो यह हुई थी कि आखिर उसे यहीं रहने आना पड़ा, और इस बार अपने परिवार समेत.

मुरली के घर के बगल वाले घर की दीवार बिलकुल बराबर की थी. दोनों छतें आपस में जुड़ी हुई थीं और उस पर सब से अलग तो यह कि दोनों ही छतों पर बाउंडरी नहीं थी. वह घर किशोर का था. किशोर, एक जमाने में मूरली का दोस्त हुआ करता था पर अब सब बदल चुका था.

अगली सुबह कोमल छत पर अपने खिलौने ले कर गई तो उसे बगल वाली छत पर एक लड़की दिखी. कोमल ने उसे देखा तो देखती ही रह गई. उस ने उसे एक बार देखा, फिर पलक झपका कर एकबार फिर देखा, आंखों को मसल कर फिर देखने लगी. जितनी बार देखती उतनी ही ज्यादा हैरान होती.

वह उस लड़की के पास गई और कहने लगी, “तू कौन है, और तू…. एक मिनट बस यहीं रुक मैं अभी आई,” कह कर कोमल भागती हुई नीचे गई.

“मम्मी….मम्मी… जल्दी चलो देखो उस लड़की को.”

“क्या देखना है, बेटा काम करने दे जा. अभी तेरे पापा उठेंगे तो चिल्लाने लगेंगे,” कविता ने झाड़ू लगाते हुए कहा.

“अरे मम्मी, लेकिन एक बार देखो तो,” कोमल मम्मी के दाएंबाएं घूमती हुई बोली.

“कोमल, बेटा जा कर खेल और काम करने दे मुझे,” कविता ने गुस्से से कहा तो कोमल मुंह बनाते हुए निकल गई.

कोमल वापस छत पर पहुंची तो वह लड़की वहां से जा चुकी थी. उस ने यहांवहां झांकने की कोशिश की तो उसे वह लड़की कहीं नहीं दिखी. आखिर कोमल अपने खिलौने ले कर वापस कमरे में आ गई. खिड़की पर टंगे शीशे में वह बारबार अपना चेहरा देखने लगी. कभी मुंह दाईं तरफ करने लगती तो कभी बाईं तरफ, कभी ऊपर तो कभी नीचे.

उसे देख कविता पूछने लगी, “यह क्या नौटंकी लगा रखी है तू ने सुबहसुबह.”

“अरे, मम्मी आप को नहीं पता वहां छत पर जो लड़की थी न बिलकुल मेरी जैसी दिख रही थी. बिलकुल मेरी जैसी मतलब बिलकुल मेरी ही जैसी.”

“बिलकुल तेरी जैसी का क्या मतलब, कुछ भी बोलती है.”

पास सो रहे मुरली की आंख खुल गई. “क्या हो रहा है,” वह बोला.

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“पापा, मैं ने न बिलकुल अपनी जैसी एक लड़की देखी ऊपर छत पर,” कोमल कहने लगी.

“क्या…?” मुरली अचानक उठ कर बैठ गया. “बिलकुल तेरी जैसी नहीं दिख रही होगी, नींद में तुझे कुछ भी दिखता है. और तुझे कहा था न यहांवहां नहीं मंडराना. एक दिन हुआ नहीं और नाटक शुरू.”

“छत पर ही तो गई थी. अब क्या कैद हो जाए घर में, बच्ची एक तो अकेली है यहां ऊपर से छत पर भी न जाए. आप को दो दिन नहीं हुए यहां आए और आप का तो मानो रवैया ही बदल गया है,” कविता शिकायती लहजे में बोलने लगी.

“ऐसा कुछ नहीं है और तुम…..” मुरली कह ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

मुरली दरवाजा खोलने गया. सामने किशोर और उस की बेटी सुमन को देख हक्काबक्का हो गया. ऐसा नहीं था कि वह उन दोनों को पहली बार देख रहा हो लेकिन आज वह उसे साक्षात यम नजर आ रहे थे.

“भैया, शहर ते कब लौटे हो गांव, बताया भी नहीं चुपचाप आ गए,” किशोर कहने लगा.

“कल ही आए हैं. सबेरेसबेरे कैसे आना हुआ?” कहते हुए मुरली के माथे से पसीने की बूंदें गिरने लगीं.

“हमारी छोरी सुमन बोल रही कि पापा बगल वाली छत पर को मेरे जैसे छोरी दीखी, तो हम ने सोची देख लें,” किशोर ने कहा तो अंदर से कविता और कोमल भी निकल आए.

“मम्मी देखो बिलकुल मेरे जैसी दिख रही है,” कोमल कविता से कहने लगी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

सुसाइड: भाग 4- क्या पूरी हो पाई शरद की जिम्मेदारियां

‘‘जी…?’’ रजनी ने हैरानी से कहा. वह कुछ समझ न पाई.

‘‘शरद की हालत इतनी खराब नहीं है. उन की हालत ठीक भी नहीं है. समझ लीजिए कि कैंसर ने अभी दस्तक दी है. अंदर नहीं आया है.’’

‘‘यानी, उन्हें कैंसर नहीं है?’’

‘‘कहना मुश्किल है, पर दवाओं ने असर किया है. मानिए, 5 फीसदी सुधार हुआ है.’’

‘‘तो अभी इन का टैस्ट नहीं होना है?’’

‘‘टैस्टवैस्ट नहीं करना है. वह मैं ने इन्हें डराने के लिए कहा था. ये डर भी गए हैं, अच्छा हुआ. इन्हें पान मसाला या गुटखा खाने से डर लगने लगा है. इस डर ने ही इन्हें गुटखे से 5 दिन दूर रखा है. अब मैं ने इन्हें 5 दिन की दवा और दी है. अगर ये 10 दिन तक गुटखे से दूर रहे, तो गुटखा इन से छूट सकता है.

‘‘यह स्टडी है कि टोबैको ऐडिक्ट अगर 10 दिन तक टोबैको से दूर रहे, और उस की विल पावर स्ट्रौंग हो तो टोबैको की आदत छूट सकती है.’’

‘‘पर, इन का मुंह तो पूरा नहीं खुल पा रहा है.’’

‘‘देखिए मिसेज शरद, हर गंभीर बीमारी अपने आने का संकेत देती है और संभलने का मौका भी देती है. माउथ कैंसर का भी यही हाल है. पहली दस्तक मुंह का न खुलना या कम खुलना है. उन की यह हालत 2-3 महीने से होगी. यह फर्स्ट स्टेज है.

‘‘फिर आता है, मुंह का छाला. एक या 2 छाले. ये छाले होने के 5 या 6 दिनों में अपनेआप ठीक हो जाते हैं. इन में कोई दर्द वगैरह भी नहीं होता. 10-15 दिनों के बाद एकाध छाला और होता है और ठीक हो जाता है. इसे आप सैकंड स्टेज समझिए. यहां तक लोग इस की सीरियसनैस नहीं समझते.

फिर आती है, थर्ड स्टेज. एकसाथ कई छाले होते हैं. ये सूखते नहीं हैं. इन में घाव हो जाते हैं और अंदर ही इन में पस पड़ जाती है.

‘‘इस के बाद आती है, लास्ट स्टेज. जब छाले का घाव गाल के दूसरी तरफ यानी बाहरी तरफ आ आता है. यह स्टेज बहुत तेजी से आती है और घाव व कैंसर सेल की ग्रोथ गाल से गले तक हो जाती है. यह लाइलाज है.’’

‘‘यानी, ये सैकंड स्टेज पर पहुंच गए थे.’’

‘‘कह सकते हैं. सैकंड स्टेज की प्राइमरी स्टेज पर.’’

‘‘इस का इलाज क्या है?’’

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‘‘सैकंड स्टेज तक ही इलाज किया जाता है. थर्ड स्टेज आने पर आपरेशन कभीकभी कामयाब होता है. फोर्थ स्टेज लाइलाज है. इस का एक ही इलाज है. पहली स्टेज होते ही तंबाकू से परहेज, खासकर पान मसाला या गुटखा से. 1, 2 या 5 रुपए के गुटखे में क्वालिटी की उम्मीद आप कैसे कर सकते हैं. यह सामान्य सी बात लोग क्यों नहीं समझते. फिर इस के बनाने वाले इसी 1-2 रुपए से करोड़पति हो जाते हैं और सरकारें हजारों करोड़ टैक्स से भी कमा लेती हैं. 2 रुपए के पाउच की क्वालिटी शायद 20 पैसे की भी नहीं होती.’’

‘‘जब ऐसा है, तो सरकार इसे रोक क्यों नहीं देती?’’

‘‘छोडि़ए. यह बड़ी बहस की बात है.’’

‘‘तो ये बच सकते हैं?’’

‘‘शरद बाबू बच जाएंगे, बशर्ते ये तंबाकू से दूर रहें.

रजनी से रहा न गया. उस ने सिर पर आंचल रख लिया और उठ कर डाक्टर साहब के पैर छू लिए.

‘‘अरे… यह आप क्या कर रही हैं. उठिए.’’

‘‘आप… आप डाक्टर नहीं हैं…’’ रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे.

‘‘बड़ी हत्यारी चीज है यह गुटखा मिसेज शरद…’’ डाक्टर साहब गमगीन हो गए. ‘‘मैं ने अपना बेटा खोया है. मैं… मैं उसे बचा नहीं पाया. उस का चेहरा देखने लायक नहीं रहा था.

‘‘हां बेटी, मेरा बेटा भी पान मसाला खाता था. एक दिन एकएक डब्बा खा जाता था. यह चीज ही ऐसी है, जो गरीबअमीर, ऊंचानीचा कुछ नहीं देखती है. बस इसलिए मैं अपने को रोक नहीं पाता हूं. आउट औफ द वे जा कर भी कोशिश करता हूं कि इस से किसी को बचा सकूं.’’

रजनी कुछ कह न सकी. बस एकटक डाक्टर को देखती रही, जो अब एक गमगीन पिता लग रहे थे.

‘‘अब तुम जाओ और वैसा ही करो, जैसा मैं ने कहा है. याद रखना, शरदजी को ठीक करने में जितनी मेरी कोशिश है, उतनी ही जिम्मेदारी तुम्हारी भी है. जाओ और अपनी गृहस्थी, अपने परिवार को बचाओ.’’

रजनी बाहर आ गई. शरद बेचैन हो रहा था.

‘‘क्या कह रहे थे डाक्टर साहब?’’ बाहर आते ही उस ने पूछा.

‘‘चलो, घर चल कर बात करते हैं,’’ रजनी ने गमगीन लहजे में कहा. वे रिकशा से ही आए थे, रिकशा से ही वापसी हुई.

‘‘अब तो बताओ. क्या डाक्टर साहब ने बता दिया है कि मेरे पास कितने दिन बचे हैं?’’

‘‘तुम कैंसर की सैकंड स्टेज पर पहुंच गए हो…’’ रजनी ने साफसाफ कह दिया, ‘‘अब अगर तुम गुटखा खाओगे, तो लास्ट स्टेज पर पहुंचोगे. फिर कोई इलाज नहीं होगा.’’

‘‘अरे, गुटखे का तो अब नाम न लो. अब तो मैं गुटखे की तरफ देखूंगा भी नहीं. अभी कोई इलाज है क्या?’’

‘‘अभी डाक्टर साहब ने साफसाफ नहीं बताया है. 10 दिन बाद बताएंगे. तुम्हें पूरा आराम करना होगा. तुम्हें छुट्टी बढ़ानी होगी.’’

‘‘मैं कल ही एक महीने की छुट्टी बढ़ा दूंगा.’’

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शरद ने एक महीने की छुट्टी बढ़ा दी, पर उसे 2 महीने लग गए.

शरद के औफिस जौइन करने से 2 दिन पहले औफिस के सभी कुलीग उस से मिलने घर आए. सभी खुश थे. तभी रजनी ने प्रस्ताव रखा कि शरद के ठीक होने की खुशी में कल यानी रविवार को सभी सपरिवार रात के खाने पर उन के यहां आएं. सभी ने तालियां बजा कर सहमति दी.

‘‘पर, भाभीजी हमारी एक शर्त है,’’ नीरज ने कहा.

‘‘बताइए नीरजजी?’’ रजनी ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हमारी भी एक शर्त है…’’ नीरज ने नाटकीयता से कहा, ‘‘कि सभी अतिथितियों का स्वागत पान मसाले से किया जाए.’’

यह सुन कर वहां सन्नाटा पसर गया.

‘‘भाड़ में जाओ…’’ तभी शरद ने मुंह बना कर कहा, ‘‘मेरे सामने कोई पान मसाले से स्वागत तो क्या कोई पान मसाले का नाम भी न ले. पार्टीवार्टी भी जाए भाड़ में.’’

‘‘अरे… अरे… गलती हो गई भाभीजी. पान मसाले से नहीं, बल्कि हमारी शर्त है कि अतिथियों का स्वागत शरबत के गिलासों से किया जाए.’’

‘‘मंजूर है,’’ रजनी ने कहा तो सभी की हंसी गूंज उठी. शरद की भी, क्योंकि अब उस का मुंह पूरा खुल रहा था.

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