लेखक- सुकेश कुमार श्रीवास्तव
पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : शरद के एक दूर के साले ने उसे पान खाने का चसका लगा दिया. पहले मीठा, फिर तंबाकू वाला. धीरेधीरे शरद गुटखा खाने लगा. एक दिन मुंह में छाला हुआ तो डाक्टर ने उसे चेतावनी देते हुए दवा लिख दी. शरद को लगा कि उसे कैंसर हो गया है. इस से उस की हालत पतली हो गई..
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‘‘पर, यह छिपेगा कैसे महेंद्रजी? आपरेशन होगा. आपरेशन और दवा के खर्चों का बिल औफिस से पास होगा. पता तो चल ही जाएगा न.’’
‘‘अरे, कंपनी को कैसे पता चलेगा?’’
‘‘वह डैथ सर्टिफिकेट होता है न. कंपनी डैथ सर्टिफिकेट तो मांगेगी न?’’
‘‘तो…?’’
‘‘उस में तो मौत की वजह लिखी होती है न. उस में अगर कैंसर लिखा होगा तो समस्या हो सकती है न.’’
‘‘अरे, आप इतनी फिक्र मत कीजिए भाई. आप के डैथ सर्टिफिकेट में हम लोग कुछ और लिखा देंगे. इतना तो हम लोग कर ही लेते हैं. अब जाइए, मैं कुछ काम कर लूं.’’
शरद चिंतित सा उठ गया. पीछे से महेंद्रजी ने आवाज दी, ‘‘शरद बाबू, एक बात सुनिए.’’
शरद पलट गया, ‘‘जी…’’
‘‘आप पान-गुटखा खाना छोड़ दीजिए. अगर कौज औफ डैथ में कोई और वजह लिखी होगी तो क्लेम में कोई परेशानी नहीं आएगी. समझ गए न…’’
‘‘जी, समझ गया. छोड़ दिया है.’’
आधे घंटे के अंदर पूरे औफिस में खबर फैल गई कि शरद को कैंसर हो गया है.
चपरासी ने आ कर शरद को बताया कि इंजीनियर साहब उसे बुला रहे हैं.
शरद उन के केबिन में गया. उन्होंने इशारे से बैठने को कहा.
‘‘कौन सी स्टेज है?’’ उन्होंने गुटखा थूक कर कहा.
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‘‘जी, अभी तो कंफर्म ही नहीं है. टैस्ट होना है.’’
‘‘इस का पता ही लास्ट स्टेज पर चलता है. आप लोग बड़ी गलती करते हैं. निगल जाते हैं. अब मुझे देखिए. जब से पान मसाला चला है, खा रहा हूं, पर मजाल है कि कभी निगला हो.
‘‘कभीकभी हो जाता है.’’
‘‘तभी तो यह परेशानी होती है. मैं आप की फाइल देख रहा था. आप की पत्नी का नाम रजनी है न?’’
‘‘जी, हां.’’
‘‘वह ग्रेजुएट है न?’’
‘‘जी. साइंस में ग्रेजुएट है.’’
‘‘बहुत बढि़या. कंप्यूटर का कोई कोर्स किया है क्या?’’
‘‘नहीं साहब. वह तो उस ने नहीं किया है.’’
‘‘करा दीजिए. 3 महीने का कोर्स करा दीजिए. आप तो जानते ही हैं कि आजकल कंप्यूटर के बिना काम नहीं चलता.’’
‘‘जी, मैं जल्दी ही करा दूंगा.’’
‘‘उसे आप की जगह नौकरी मिल जाएगी. आप के पीएफ में कुछ प्रौब्लम है, पर मैं उसे देख लूंगा.’’
‘‘पर, अभी कंफर्म नहीं हुआ है. टैस्ट होने हैं.’’
‘‘कंफर्म ही समझिए और क्या आप लेंगे?’’ उन्होंने नया पाउच तोड़ते हुए पूछा.
‘‘नहीं साहब, मैं ने खाना छोड़ दिया है.’’
‘‘अरे, आराम से खाइए…’’ उन्होंने पाउच सीधे मुंह में डालते हुए कहा, ‘‘जितना समय बचा है, जो मन हो खाइए. जितना नुकसान होना था हो चुका है. अब कोई फर्क नहीं पड़ना है, खाइए या छोडि़ए. खुश रहिए और मस्त रहिए.
‘‘शरद बाबू, दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी. बीवी को जौब मिल जाएगी और बच्चा पल जाएगा. कुछ समय बाद किसी को आप की याद भी नहीं आएगी. पर उस ने कंप्यूटर कोर्स किया होता तो अच्छा था. उस की अंगरेजी कैसी है?’’
‘‘ठीक ही है.’’
‘‘आप की अंगरेजी कमजोर थी. आप की ड्राफ्टिंग भी कमजोर थी. हम तो यही चाहते हैं कि औफिस को काम का स्टाफ मिले.’’
‘‘मैं करा दूंगा सर. मैं उसे कंप्यूटर कोर्स करा दूंगा. 3 महीने वाला नहीं, 6 महीने वाला करा दूंगा.’’
‘‘नहीं. 3 महीने वाला ही ठीक है. बीच में छोड़ना न पड़े.’’
‘‘ठीक है सर.’’
‘‘आल माई बैस्ट विशेज.’’
‘‘थैंक्यू सर,’’ कह कर शरद बाहर आ कर अपनी सीट पर पहुंचा.
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इंजीनियर की बात सुन कर शरद का मन घबराने लगा. उस ने एक हफ्ते की मैडिकल लीव की एप्लीकेशन लिखी व सीधे इंजीनियर साहब के कमरे में आ गया. वे खाना खा कर नया पाउच तोड़ रहे थे.
‘‘सर, मैं घर जा रहा हूं एक हफ्ते की मैडिकल लीव पर,’’ शरद ने अपना निवेदन उन की सीट पर रखा.
‘‘मैं तो पहले ही कह रहा था. जाइए और भी छुट्टी बढ़ानी हो तो बढ़ा दीजिएगा. एप्लीकेशन देने की भी जरूरत नहीं है. फोन कर दीजिएगा. मैं संभाल लूंगा.’’
शरद घर आ गया. वह बहुत निराश था. पर इंजीनियर साहब की एक बात से उसे तसल्ली मिली. रजनी को नौकरी मिल जाएगी और वह बेसहारा नहीं रहेगी.
5वें दिन शाम को शरद डाक्टर के यहां पहुंचा. रजनी भी जिद कर के साथ गई थी. उन की बारी आई तो वे डाक्टर के चैंबर में गए.
‘‘आइए, कैसे हैं आप?’’ डाक्टर साहब ने उन्हें पहचान लिया.
‘‘क्या हाल बताएं डाक्टर साहब,’’ शरद ने कहा, ‘‘अब आप ही देखिए और बताइए.’’
‘‘आप के छाले का क्या हाल है?’’
‘‘दर्द तो कम है, लेकिन खाना खाने में तकलीफ होती है.’’
‘‘अच्छा, मुंह खोलिए.’’
शरद ने मुंह खोला. उसे लगा कि मुंह पहले से कुछ ज्यादा खुल रहा है.
‘‘यह देखिए…’’ डाक्टर ने एक शीशा लगे यंत्र को मुंह में डाल कर दिखाया, ‘‘यह गाल देखिए. दूसरी तरफ भी यह देखिए. पूरा चितकबरा हो गया है. इस में जलन या दर्द है क्या?’’
‘‘नहीं डाक्टर साहब. जलन या दर्द तो पहले भी नहीं था, पर जबान से छूने पर पता नहीं चलता है.’’
‘‘सैंसिविटी खत्म हो गई है. आजकल पान मसाला के पाउच का क्या स्कोर है?’’
‘‘छोड़ दिया है डाक्टर साहब…’’ अब रजनी बोली, ‘‘जिस दिन से आप के पास से गए हैं, उस दिन के बाद से नहीं खाया है.’’
‘‘आप को क्या मालूम? आप जरा चुप रहिए. आप से बाद में बात करता हूं. ये बाहर जा कर खा आते होंगे, तो आप को क्या पता चलेगा’’
‘‘नहीं डाक्टर साहब, मैं ने उस दिन से पान मसाला का एक दाना भी नहीं खाया है,’’ शरद की आवाज भर्रा गई.
‘‘क्यों नहीं खाया है? आप तो दिनभर में 20 पाउच खा जाते थे.’’
‘‘डर लगता है साहब.’’
‘‘वैरी गुड. तभी आराम दिख रहा है. मैं 5 दिन की दवा और दे रहा हूं. उस के बाद दिखाइएगा.’’
‘‘डाक्टर साहब, वह कैंसर वाला टैस्ट…’’ शरद ने कहना चाहा.
‘‘5 दिन बाद. जरा और प्रोग्रैस देख लें, उस के बाद. और आप अब जरा बाहर बैठिए. मुझे आप की पत्नी से कुछ बात करनी है.’’
शरद उठ कर धीरेधीरे बाहर आ गया व दरवाजा बंद कर दिया. रजनी हैरान सी बैठी रही.
‘‘पिछले 5 दिन आप लोगों के कैसे बीते?’’ डाक्टर साहब ने रजनी से पूछा.
रजनी जवाब न दे पाई. उस की आंखें भर आई व गला रुंध गया. उस ने आंचल मुंह पर लगा लिया.
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