लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर
जहां एक तरफ नलिनी लेडी डाक्टर वी. डिसूजा के मैटरनिटी हौस्पिटल के लेबररूम में सहज प्रसव के लिए असहनीय पीड़ा से तड़प रही थी वहीं उस के पति पारस और राबर्ट के बीच शर्त लग रही थी.
राबर्ट यूनिवर्सिटी में साथ पढे़ अपने परम मित्र पारस से शर्त लगाने में जुटा था. अपने स्वभाव के अनुसार मजे लेने के लिए या यों भी कहा जा सकता है कि डिलिवरीरूम के बाहर वाले चौड़े गलियारे में चेहरे पर अजीब सा तनाव लिए. इधर से उधर टहलते पारस का मूड रिफ्रैश करने की गरज से राबर्ट यह शर्त लगा बैठा.
‘‘देखना तुम्हारे दोनों जुड़वां बच्चे काले होंगे.’’
‘‘तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?’’
‘‘क्योंकि मुझ से दोस्ती होने से पहले तुम मेरे काले रंग को ले कर कितना क्रिटिसाइज करते थे. तुम ने तो मेरी शादी होने से पहले क्लास में ही यह शर्त भी लगा ली थी कि साथ पढ़ने वाली गोरे रंग की मानसी मुझ से कभी शादी के लिए राजी न होगी और याद है वह शर्त तू हार गया था.’’
‘‘हां याद है. तू ने केवल उस से केवल शादी ही नहीं की उसे प्यार के बंधन में बांधने के बाद मानसी से मैस्सी भी बना दिया.’’
‘‘तो फिर इस बार भी लगा
ले शर्त.’’
‘‘शर्तवर्त मैं नहीं लगाने वाला, मुझे विश्वास है कि जब नलिनी और मैं दोनों ही गोरे रंग के हैं. तो काले बच्चे हो ही नहीं सकते.’’
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तभी लेबररूम के बाहर लगी स्टील की लंबी बैंच पर बच्चों के कुशलतापूर्वक प्रसव होने की सूचना का इंतजार करती राबर्ट की वाइफ मैस्सी बोल पड़ीं, ‘‘तुम दोनों न समय देखते हो न स्थान बस शर्तें लगाने में जुट जाते हो. वह सामने वाला बोर्ड भी नहीं दिख रहा है क्या. देखो क्या लिखा है.’’
मैस्सी ने ध्यान दिलाया तो दोनों की नजरें उधर घूम गईं जिधर छोटा सा इंसट्रक्शन बोर्ड दीवार पर फिक्स था, लिखा था, ‘‘कीप साइलैंस.’’
दोनों बोर्ड की तरफ देख कर अचानक चुप हो गए. लेकिन ज्यादा देर तक चुप रहना दोनों की फितरत में ही न था, इसलिए वे वहां से उठ कर हौस्पिटल के बाहर बने कैफेटेरिया में कौफी पीने चले गए. ‘‘वैसे तो मैं वह एक शर्त छोड़ कर अधिकतर शर्तें तुझ से हारा ही हूं
पर इस बार मेरी बात सच न निकले तो आगे से मैं तुझ से शर्त लगाना छोड़ दूंगा.’’
‘‘राबर्ट तुम, छोड़नेपकड़ने वाली बात कम से कम मुझ से तो न किया करो. जैसे तुम हार्ट पेशैंट होने के बाद भी वादा कर के सिगरेट पीना आज तक नहीं छोड़ पाए तो मुझे विश्वास है कि शर्तें लगाना भी नहीं छोड़ पाओगे.’’
‘‘अच्छा यह बताओ कि अगर मैं शर्त जीत गया तो तुम मुझे कौन सी पिक्चर दिखाओगे?’’ राबर्ट न फिर छेड़ा.
‘‘मुझे न शर्त लगानी है न कोई पिक्चर दिखानी है. वैसे भी सारे पिक्चरहौल और मौल खोलने की इजाजत अभी नहीं मिली है. मैं तो यही मना रहा हूं कि सही ढंग से डिलिवरी हो जाए. वैसे भी डाक्टर डिसूजा के अनुसार नलिनी का होमोग्लोबिन कम है और डिलिवरी कौंप्लिकेटेड है.’’
‘‘अरे तुम चिंता न करो. डाक्टर डिसूजा का इस शहर में कोई मुकाबला नहीं है. इस से भी ज्यादा कौंप्लिकेटेड केस उन्होंने सुलझाए हैं. सब से बड़ी बात है कि उन की कोशिश पहले तो नौर्मल डिलिवरी कराने की होती है. सिजेरियन डिलिवरी तो बहुत मजबूरी में करती हैं,’’ राबर्ट ने कहा.
इस पर पारस बोला, ‘‘तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे डाक्टर डिसूजा द्वारा होने वाली हर डिलिवरी की खबर तुम्हें सब से पहले मिल जाती हो.’’
‘‘अरे तू यह क्यों भूल जाता है वह हमारी रैड क्रौस सोसाइटी की सब से होशियार डाक्टर हैं. पर ये सब बातें छोड़. मैं यह शर्त लगाने को भी तैयार हूं कि नलिनी की डिलिवरी नौर्मल होगी.’’
दोनों के कौफी के कप खाली हो चुके थे. राबर्ट द्वारा काउंटर पर भुगतान करने के बाद दोनों कैफेटेरिया से बाहर निकल कर हौस्पिटल के कौरीडोर से गुजरते हुए वहां पहुंच गए जहां मैस्सी खुशखबरी का इंतजार कर रही थी.
उन के पहुंचने के 10 मिनट बाद ही लेबररूम से एक नर्स ने निकल कर खुश होते हुए समाचार दिया, ‘‘सिजेरियन डिलिवरी हुई है और दोनों लड़कियां हैं. मजेदार बात यह है कि दोनों ही काली हैं.’’
‘‘सिस्टर क्या मैं अपनी वाइफ से मिलने अंदर जा सकता हूं?’’ पारस ने पूछा तो नर्स बोली, ‘‘नहीं सर आप अभी मिलने नहीं जा सकते. क्लीनिंग चल रही है. अभी कुछ देर बाद जब हम उन्हें प्राइवेट रूम मे शिफ्ट कर देंगे तब आप मिल लीजिएगा. हां मैडम आप मेरे साथ अंदर जा कर मिल सकती हैं.’’
मैस्सी सिस्टर के साथ अंदर चली गईं तो दोनों मित्र बैंच पर बैठ गए. बैठते ही राबर्ट बोला, ‘‘अच्छा ही हुआ जो तुम ने शर्त नहीं लगाई वरना तुम आज तो अवश्य ही हार जाते. चलो कोई बात नहीं. सब से पहले तो मेरी गुड विशेज स्वीकार करो फिर यह बताओ कि
2-2 कन्या रत्नों की प्राप्ति के बाद किस होटल में ट्रीट दे रहे हो?’’ कहते हुए राबर्ट अपने स्वभाव के अनुसार खिलखिला कर हंस पड़ा. फिर जब उस की नजर पारस के चेहरे पर पड़ी तो अपनी हंसी रोकते हुए बोला, ‘‘अरे तुम खुश होने के बजाय यह मायूस सा चेहरा बना कर क्यों बैठ गए हो और मुझे क्यों इस तरह लगातार घूरे जा रहे हो?’’
राबर्ट ने टोका तो जैसे गहरे खयालों की दुनिया से निकल कर अपने सिर को झटकते हुए पारस खुद को ही समझाते हुए बड़बड़ाया, ‘‘तुम इन्हें रत्न कह रहे हो, रत्न कभी काले नहीं होते. काला रंग हमेशा से बुरा माना जाता रहा है.’’
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‘‘ऐसा नहीं है पारस, काला रंग अपना अलग ही महत्त्व रखता है,’’ अब बताओ मेरा रंग भी कितना डार्क है और क्या कमी है मुझ में, खूबसूरत वाइफ. मैस्सी, एक अच्छा रुतवा, तुम्हारे जैसे प्यारेप्यारे मित्र.’’
राबर्ट बोलता रहा, लेकिन पारस फ्यूज बल्ब की तरह मुंह लटकाए ही रहा तो उस ने टोक दिया, ‘‘अजीब नेचर है तुम्हारा. खुश होने के बजाय रोनी सूरत बना रखी है. क्या चल रहा है तुम्हारे मन में?’’
‘‘मैं तो अपने प्रारब्ध को कोस रहा हूं.’’
पारस के मुंह से ऐसा सुनते ही राबर्ट ने उसे समझाया, ‘‘देखो पारस मेरे और मैस्सी के हिस्से में तो संतानसुख था ही नहीं. लेकिन अगर मैस्सी का गर्भाशय की पथरी के कैंसर बन जाने के कारण औपरेशन करवा कर पूरा गर्भाशय निकलवाना न पड़ता और वह प्रैगनैंट होती तो मैं लड़की ही चाहता.’’
‘‘पता है आजकल लड़कों से ज्यादा लड़कियां ज्यादा रिलायबिल होती हैं. तुझे शायद पता नहीं कि कोविड के बाद से शादीशुदा लड़कों का नया डायलौग क्या हो गया है,’’ राबर्ट लगातार बोले जा रहा था.
‘‘क्या?’’ पारस ने पूछा तो राबर्ट बोला, ‘‘मैं ने सोसायटी के पार्क में मौर्निंगवाक करते समय अकसर सीनियर्स को अपने शादीशुदा बच्चों का हवाला देते हुए सुना है.’’
‘‘कोविड में सब चले गए पर यह बुड्ढा पता नहीं कब तक जीएगा,’’ कोई अपने लड़के का जिक्र करते हुए कहता है.
‘‘अच्छाखासा कोविड पौजिटिव अटैक आया था पर यह बुड्ढा कोरोना जंग जीत कर फिर घर वापस आ गया.’’
‘‘लेकिन पारस मैं ने किसी के भी मुख से अपनी लड़की की बुराई नहीं सुनी बल्कि पता यह चला कि अपने पिता की दयनीय स्थिति देख कर कई लड़कियां उन्हें अपने साथ ले गईं.’’
‘‘राबर्ट, यह जरूरी तो नहीं कि सब लड़के ऐसे ही विचार रखते हों. हमारे पड़ोस के अमन साहब के दोनों लड़के और बहुएं तो कोरोना से ठीक होने वाले अपने बूढ़े सासससुर का बहुत खयाल रखते हैं,’’ पारस से चुप न रहा गया.
उस के इतना कहते ही राबर्ट बोला, ‘‘पारस इसी बात पर मैं तुम से शर्त लगा सकता हूं कि उन की सेवा के पीछे, अमन साहब की लाखों की पूंजी या जमीनजायदाद का जरूर चक्कर होगा जिसे उन्होंने दबा रखा होगा.’’
इन दोनों का वार्त्तालाप अभी और खिंचता अगर मैस्सी बाहर निकल कर इन दोनों के पास आ कर यह न बतातीं, ‘‘राबर्ट मैं ने अपने 30 साल के जीवन में कभी इतने सुंदर काले बच्चे एक साथ कभी नहीं देखे. एक की सुंदरता काले गुलाब पर पड़ती धूप जैसी और दूसरे की जगमगाती रात्रि की तरह आकर्षक.’’
‘‘तुम्हें जब से स्कूल मे इंग्लिश के साथसाथ औप्शनल सब्जैक्ट हिंदी भी पढ़ाने को मिली है, बड़ी सुंदरसुंदर उपमाएं देने लगी हो.’’
राबर्ट ने अपने स्वभाव के अनुसार चहकते हुए जब मैस्सी से कहा तो वे बोलीं, ‘‘यह पारस भाई साहब को क्या हो गया है? ये तो खुश होने की जगह उदास बैठे हैं,’’ उन का ध्यान पारस के चेहरे की तरफ चला गया था.
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‘‘अरे यह नलिनी से शर्त हार गया है. कितनी बार मैं इसे समझा चुका हूं कि कभी शर्त लगानी ही पड़े तो मुझ से लगाया कर,’’ कहते हुए राबर्ट फिर हंस पड़ा.
माहौल को हलका बनाने के लिए राबर्ट के कथन के बाद भी जब मैस्सी ने पारस को वैसे ही गंभीर देखा तो बोलीं, ‘‘पारस भाई साहब, नलिनी को प्राइवेट वार्ड मे शिफ्ट कर दिया गया है आइए वहीं चल कर बैठते हैं. दोनों बच्चियों को देख कर आप खुश हो जाऐंगे. बहुत प्यारी बच्चियां हैं. मैं ने तो उन का नामकरण भी कर दिया है. रातिका और दिनिका.’’
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