रेटिंगः साढ़े तीन स्टार
निर्माताः अल्लू अरविंद, दिल राजू प्रोडक्शन, सितारा इंटरटेनमेंट
लेखक व निर्देशकः गौतम तिन्नानुरी
कलाकारः शाहिद कपूर, पंकज कपूर, मृणाल ठाकुर, रोनित कामरा, गीतिका महेंद्रू, शिशिर शर्मा, रूद्राशीश मजुमदार व अन्य.
अवधिः दो घंटे पचास मिनट
तेलगू फिल्मकार गौतम तिन्नानुरी लिखित व निर्देशित तेलगू फिल्म ‘‘जर्सी’’ ने 2019 में सफलता का जश्न मनाया था, जिसमें मुख्य भूमिका तेलगू सिनेमा के सुपरस्टार नानी ने निभायी थी. गौतम तुन्नारी अपनी उसी तेलगू फिल्म का हिंदी रीमेक ‘‘जर्सी’’ लेकर आए हैं, जिसमें मुख्य भूमिका शाहिद कपूर ने निभायी है. हिंदी फिल्म के संवाद सिद्धार्थ – गरिमा ने लिखे हैं. यह हिंदी रीमेक उस वक्त आयी है, जब बौलीवुड बनाम दक्षिण सिनेमा को लेकर बहस छिड़ी हुई है. फिल्म की कहानी क्रिकेट खेल की पृष्ठभूमि में पिता पुत्र, पति व पत्नी के अलावा क्रिकेटर व उसके कोच के बीच के रिश्तों की भावनात्मक यात्रा है. फिल्म की कहानी उन 95 प्रतिशत असफल लोगो को ट्ब्यिूट के तौर पर है, जिनकी कहानी बयां करने में किसी की रूचि नहीं होती.
कहानीः
कहानी शुरू होती है केतन तलवार द्वारा दुकान से अपने पिता पर लिखी गयी किताब ‘जर्सी’ को खरीदने से, जो कि वह इस किताब को पढ़ने के लिए बेताब एक लड़की को उपहार में दे देता है. क्योंकि दुकानों पर किताब बिक चुकी है. फिर जब वह लड़की पूछती है कि क्या वास्तव में इस किताब के नायक अर्जुन तलवार तुम्हारे पिता हैं. तब कहानी शुरू होती है चंडीगढ़ के एक सरकारी मकान से. जहां लगभग छत्तीस वर्षीय बेरोजगार अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) अपनी पत्नी विंद्या( मृणाल ठाकुर ) व आठ सात वर्ष के बेटे केतन उर्फ किट्टू(रोनित कामरा ) के साथ रहते हैं. विद्या एक होटल में रिशेप्शनिस्ट हैं. किट्टू क्रिकेट खेलता है, उसे रोज सुबह उठकर खेल के मैदान पर अर्जुन लेकर जाता है. अर्जुन को क्रिकेट से जबरदस्त प्यार है. केतन के अंदर भी क्रिकेट को लेकर जुनून है. एक दिन केतन अपने पिता से जन्मदिन पर उपहार में जर्सी की मांग कर देता है. अपने बेटे को खुद से ज्यादा चाहने वाला अर्जुन क्या करे? पता चलता है कि अर्जुन कभी पंजाब टीम के सर्वाधिक सफल क्रिकेटर थे. उनके क्रिकेट खेल को देखकर मद्रासी विंद्या को उससे प्यार हुआ था और माता पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर अर्जुन से विवाह कर लिया था. पर 26 साल की उम्र मेंएक बड़ी वजह के चलते अर्जुन ने क्रिकेट को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था. इससे विंद्या व उनके कोच को तकलीफ हुई थी. उसे एफसीआई में नौकरी मिली थी, पर वहां से सस्पेंडेड चल रहे हैं और मामला कोर्ट में हैं. वकील का दावा है कि अर्जुन पचास हजार खर्च करे तो उसे एक दिन के अंदर पुनः नौकरी पर रख लिया जाएगा. पर घूस देना अर्जन को मंजूर नही. इन हालातो के चलते घर पर कर्ज हो गया है. कई माह से किराया नहीं दे पाए. उधर दुकान वाले ने कह दिया कि पांच सौ रूपए की जर्सी उधर मे नही देगा. बेटे को जर्सी दिलाने के लिए पांच सौ रूपए के लिए अर्जुन को काफी अपमानित होना पड़ता है. उधर उसके व्यवहार से पत्नी विंद्या भी झुंझलाहट में ही उससे बात करती है. सारे रास्ते बंद हैं. जन्मदिन पर बेटे को जर्र्सी न दिला पाने से वह खुद को सभी की नजरों से गिरा हुआ पाता है. फिर 36 साल की उम्र में अर्जुन पुनः क्रिकेट भारतीय टीम के लिए क्रिकेट खेलने के मकसद से खेल के मैदान में उतारता है. वह बेटे को कब जर्सी दिला पाएगा? भारतीय टीम के साथ क्रिकेट खेलेगा या नहीं, इन सवालों के जवाब के लिए फिल्म देखना ही बेहतर होगा.
लेखन व निर्देशनः
बेहतरीन पटकथा है, पर फिल्म में कई जगह कसावट की जरुरत थी. एडीटिंग टेबल पर इसे कसा जा सकता था. यह उनकी निर्देशकीय प्रतिभा का ही कमाल है कि उन्होने पिता पुत्र, क्रिकेटर व कोच के रिश्तों को भावनात्मक स्तर बहुत ही बेहतरीन तरीके से फिल्म में उकेरा है. क्रिकेट के खेल में जो रोमांच व रहस्य सदैव बना रहता है, उसे निर्देशक फिल्म में पेश करने में विफल रहे हैं. क्रिकेट का रोमांच नजर नही आता. दर्शक की निगाहें क्रिकेट के मैदान की बजाय सिर्फ शाहिद के किरदार पर ही टिकी रहती हैं, यह भी निर्देशक व पटकथा की कमजोर कड़ी है. फिल्म मे जर्सी के प्रसंग को बेवजह तीस मिनट से भी अधिक समय तक खींचा गया है, इस वजह से फिल्म की लंबाई बढ़ गयी. कुछ संजीदा दृश्यों में भावनात्मक पक्ष को बनाए रखने में निर्देशक विफल रहे हैं. लेकिन निर्देशक पिता-पुत्र के बीच अपराजेय बंधन, एक जोड़े का चट्टानी रिश्ता और अर्जन की आंतरिक यात्रा को परदे पर सही ढंग से उकेरने में सफल रहे हैं.
अभिनयः
अर्जुन के किरदार में शाहिद कपूर ने अपने अभिनय से साबित कर दिखाया कि उनके अंदर भरपूर अभिनय क्षमता है. क्रिकेट को अलविदा कहने, बेटे को जर्सी न दिला पाने की बेबसी , प्रेमिका व फिर पत्नी संग रोमांस से लेकर दोबारा क्रिकेट के मैदान में उतरने तक के भावों को अपने अभिनय से उकेर कर शाहिद कपूर ने शानदार अभिनय किया है. एक असफल क्रिकेटर व उसके अंदर के फ्रस्टे्शन को परदे पर पेश करने में शाहिद कपूर सफल रहे हैं. लेकिन कुछ दृश्यों में उनके अभिनय में ‘कबीर सिंह’ वाली झलक नजर आती है. यानी कि वह खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. उनके क्रिकेट कोच के किरदार में पंकज कपूर ने भी शानदार अभिनय किया है. वैसे भी पंकज कपूर दमदार अभिनेता हैं, इससे कभी कोई इंकार नहीं कर सकता. छोटे किरदार में भी मृणाल ठाकुर अपनी छाप छोड़ जाती हैं. वैसे उनके विंद्या के किरदार में कई परते हैं. बाल कलाकार रोनित कामरा का अभिनय आश्चर्य जनक है.
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