ज्यादा टीवी देखती हैं तो हो सकता है ये बड़ा नुकसान

वजन बढ़ने के लिए सबसे ज्‍यादा जिम्‍मेदार लाइफस्‍टाइल होती है. यदि आप अपनी लाइफस्‍टाइल में एक्टिव नहीं हैं तो मोटापे के शिकार हो सकती हैं. बढ़ते वजन को लेकर बहुत शोध हुए हैं और इससे बचाव के लिए तरीके भी ईजाद किये जा रहे हैं, क्‍योंकि मोटापा के कारण कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

जो लोग टीवी अधिक देखते हैं, उनका वजन बढ़ने का खतरा अधिक होता है. एक शोध में यह बात सामने आयी है कि हफ्ते में 5 घंटे टीवी देखने वालों की अपेक्षा 21 घंटे देखने वालों में मोटापा का खतरा दो गुना ज्यादा होता है. आइए हम आपको इसके बारे में विस्‍तार से जानकारी देते हैं.

क्‍या कहता है शोध

ज्यादा टीवी देखने को आंखों के लिए नुकसानदेह बताया जाता रहा है. लेकिन यह मोटापा भी बढ़ाता है. एक हालिया शोध में ज्यादा टीवी देखने को सुस्ती और मोटापा बढ़ाने के लिए जिम्मेदार बताया गया है. ‘सीडेंटरी बिहेवियर एंड ओबेसिटी’ (सुस्त व्यवहार और मोटापा) नामक शोध में मोटापे की समस्या को टीवी के सामने ज्यादा घंटे गुजारने का परिणाम बताया गया है.
इसके लिए विदेशों में 20 से 64 साल तक के 42,600 लोगों पर किए गए शोध में ज्यादा टीवी देखने वाले स्त्री-पुरुषों के मोटापे में वृद्धि देखी गई. शोध के मुताबिक हफ्ते में 5 घंटे या उससे कम टीवी देखने वाले लोगों की अपेक्षा 21 घंटे या उससे ज्यादा टीवी देखने वाले लोगों के मोटापे में दोगुनी वृद्धि पाई गई. साथ ही हफ्ते में औसतन 5 घंटे कंप्यूटर पर काम करने वाले लोगों की अपेक्षा 11 घंटे या उससे ज्यादा काम करने वाले लोगों में भी मोटापे का स्तर बढ़ा पाया गया.

मोटापे के अन्‍य कारण…

1. आजकल लोग शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होते हैं, खासकर बच्चे, जो बाहर खेलने-कूदने के बजाय कंप्यू्टर, मोबाइल और वीडियो गेम खेलना अधिक पसंद करते हैं. जिससे कारण वे मोटापे का शिकार हो रहे हैं. सिर्फ बच्चे ही नहीं, ऑफिस जाने वाले युवा भी आज निष्क्रिय जीवनशैली जी रहे हैं, जिससे मोटापे की समस्‍या बढ़ रही है.

2. फास्‍ट फूड और जंक फूड के सेवन के कारण भी वजन बढ रहा है. आजकल लोग घर के स्वादिष्ट  व्यंजन और पौष्टिक खाना खाने के बजाय जंकफूड खाना पसंद करते हैं जो कि मोटापे के प्रमुख कारणों में से एक हैं. जंकफूड से ना सिर्फ मोटापा बढ़ता है बल्कि कई बीमारियां होने का खतरा भी रहता है.

3. आजकल लोग व्‍यस्‍त दिनचर्या के कारण व्‍यायाम के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, यह भी मोटापे की प्रमुख वजहों में से एक है. यदि नियमित व्‍यायाम न किया जाये तो शरीर ऊर्जावान भी नहीं रहता और वजन भी बढ़ता है.

4. कुछ लोग फिट होने के लिए डायटिंग जैसी आदतों को अपनाते हैं, नतीजन वे डायटिंग ठीक तरह से नहीं कर पाते जिससे उनका मोटापा कम होने के बजाय बढ़ जाता हैं.

5. कुछ लोगों को हर समय खाने की आदत होती है फिर चाहे उन्होंने थोड़ी देर पहले ही खाना क्यों ना खाया हो. ऐसे में हर समय खाने की आदत भी मोटापे का कारण बनती हैं.

6. कई बार मोटापे के कारणों में आनुवांशिकता भी छिपी होती हैं यानी घर का कोई सदस्य या माता-पिता में से कोई मोटापे का शिकार है तो बच्चे को भी मोटापे की शिकायत होती है.

7. तनाव लेने से भी वजन बढ़ता है. कई बार लोग जरूरत से ज्यादा तनाव ले लेते हैं. तनाव, डिप्रेशन और अवसाद जैसी चीजें मोटापे को जन्म देती हैं.

8. दवाइयों और अन्‍य बीमारियों के कारण भी वजन बढ़ सकता है. किसी बीमारी के चलते लंबे समय तक दवाईयों का सेवन भी मोटापे का कारण बन सकता है. दरअसल दवाओं का साइड-इफेक्ट भी मोटापे के कारणों में से एक हैं.

9. मोटापे से बचने के लिए जरूरी है स्‍वस्‍थ दिनचर्या का पालन करना, पौष्टिक आहार के सेवन के साथ-साथ नियमित व्‍यायाम के द्वारा वजन को बढ़ने से रोका जा सकता है.

Winter Special: सर्द मौसम में ऐसे करें अपने दिल की हिफाजत

सर्दियों का मौसम और इस मौसम की सर्द हवाएं अपने साथ साथ आलस लेकर आती हैं. आलस की वजह से लोग अपने शरीर खासतौर से अपने दिल को तंदुरुस्त रखने पर ध्यान नहीं देते. जिसकी वजह से सबसे ज्‍यादा परेशानी उन लोगों को होती है जो दिल और फेफड़ों के मरीज हैं.

डाक्टरों का कहना है कि ठंडे मौसम की वजह से दिल की धमनियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे दिल में रक्त और आक्सीजन का संचार कम होने लगता है. इससे हाइपरटेंशन और दिल के ब्लड प्रेशर के बढ़ने सम्बन्धी समस्या सामने आती है. ठंडे मौसम में ब्लड प्लेट्लेट्स ज्यादा सक्रिय और चिपचिपे होते हैं, इसलिए रक्त के थक्के जमने की आशंका भी बढ़ जाती है.

50 फीसदी तक बढ़ते हैं दिल के रोग

क्या आप जानती हैं कि सर्दियों के मौसम में सीने का दर्द और दिल के दौरे का जोखिम 50 फीसदी तक बढ़ जाता है. इस मौसम में दिन छोटे हो जाते हैं, धूप कम और हल्की निकलती है और लोग भी ज्यादा समय घर के अंदर ही रहना पसंद करते हैं. जिसकी वजह से मानव शरीर में विटामिन ‘डी’ की कमी भी हो जाती है. ऐसे में इस्केमिक हार्ट डिसीज, कंजस्टिव हार्ट फेल्योर, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. इससे बचाव के लिए सर्दियों में उचित मात्रा में धूप सेंकना बेहद ही जरूरी है.

बढ़ता है अवसाद

इस मौमस में अक्सर बड़ी उम्र के लोगों में सर्दियों से जुड़ा अवसाद देखने को मिलता हैं. अवसाद से पीड़ित लोग ज्यादा चीनी, ट्रांसफैट और सोडियम व ज्यादा कैलोरी वाला आरामदायक भोजन खाने लगते हैं, जो मोटापे, दिल के रोगों और हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों के लिए यह बेहत ही खतरनाक साबित हो सकता है. इससे तनाव बढ़ता है और हाइपरटेंशन होने से, पहले से कमजोर दिल पर और दबाव पड़ जाता है. शरीर को गर्मी प्रदान करने के लिए हमारा दिल ज्यादा जोर से काम करने लगता है, रक्त धमनियां और सख्त हो जाती हैं. ये सब चीजें मिलकर हार्ट अटैक को बुलावा देती हैं.

सर्दियों में नजरअंदाज न करें सेहत

उम्रदराज और उन लोगों को, जिन्हें पहले से दिल की समस्याएं हैं, उन्हें छाती में असहजता, पसीना आना, जबड़े, कंधे, गर्दन और बाजू में दर्द के साथ ही सांस फूलने से सम्बन्धित समस्या बढ़ जाती है. जिसे नजरअंदाज करना उनके लिए और उनके दिल के लिए घातक हो सकती है. इसके बचाव के लिए नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ ही संतुलित व पौष्टिक भोजन लेना आवश्यक है.

सर्दियों मे अपने दिल की हिफाजत के लिए अपनाएं ये उपाय

मौसम के हिसाब से अपने जीवनशैली में बदलाव लाएं, साथ ही सुबह जल्दी और देर रात तक बाहर रहने से परहेज करें.

ठंडे मौसम में वह व्यायाम करें, जो आपके शरीर को थकान का एहसास कराएं. जौगिंग, योग और एरोबिक्स करते हों, तो उसे जारी रखें.

सर्दियों में शराब और सिगरेट से दूर ही रहें तो अच्छा.

इस मौसम में अगर आपके रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) में कोई असामान्य बदलाव नजर आए, तो तुरंत अपने डाक्टर की सलाह लें.

ये 4 आदतें बढ़ाती हैं आपका मोटापा

अपने चारों ओर मोटापा या मोटे लोगों को देखना एक सामान्य बात है, पर मोटापा कोई आम बात नहीं है बल्कि यह एक बीमारी का नाम है जिसे नियंत्रण में करना और रखना बहुत ही मुश्किल है. मोटापे के लिए कौन जिम्मेदार है. आप स्वयं ही इस बामारी के लिए उत्तरदीयी होते हैं.

यूं तो मोटापे के कई कारण होता हैं. जंक फ़ूड, अनियमित भोजन, तनाव, पूरी नींद न ले पाना आदि वजन को बढ़ाने के कारण होते हैं. मोटापे के कारण शरीर को कई अन्य बीमारियाँ घेर लेती हैं. आप जानते हैं कि मोटापा कई बीमारियों की जड़ होता है, आज हम आपको बताएंगे मोटापे के बढने के कारण .

कई लोग मोटे होने के बाद सोचते हैं कि कल से अपनी डाइटिंग और एक्सरसाइज शुरुआत कर देंगे, लेकिन सभी में कुछ गंदी आदते होती हैं जो कि आपको पतला नहीं होने देती. यदि आप अपने खाने-पीने पर कंट्रोल नहीं करते तो आप भले ही कितनी भी कोशिश कर लें, मोटापा कम नहीं कर सकेगें.

अगर आप मोटापा कम करना चाहते हैं, तो आपको अपनी कुछ आदतों को सुधारना चाहिए. यहां हैं कुछ गंदी आदते जिन्हें सुधार कर आप मोटापे से बच सकते हैं..

1. अधिक मीठा खाना

अगर नाश्ते की बात करें तो पैक्ड दही, चाय या कॉफी हर चीज में आपको शुगर या मीठे की मात्रा मिल ही जाती है. जो आपके शरीर में इकट्ठा होकर चर्बी का रूप धारण कर लेती है, इसलिए जब भी आप बाजार जाएं तो कुछ भी खरीदने से पहले उसमें उसका शुगर लेवल चेक कर लें.

2. रोज मिठाई का सेवन

आज के समय में कुछ लोगों को मीठा खाने की इतनी आदत पड़ चुकी है कि वे खाने के बाद मीठा जरूर खाते हैं. किसी-किसी डेजर्ट में काफी अधिक मात्रा में शुगर होती है जिसे रात में खाने से मोटापा तेजी से बढ़ता है .

3. हर समय खाते रहना

कुछ लोग फ्री टाइम में या अपने ऑफिस में बैठकर कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं. ऐसी आदतों के चलते आप कभी पतले नहीं हो सकेंगे.यदि आप पैकिट में बंद स्नेक्स वगैरह लेते हैं तो उनमें काफी मात्रा में सोडियम, कार्बोहाइड्रेट और शुगर होता है, जो मोटापा बढ़ाने में मददगार होता है. अगर आप स्नैक्स ही खाना चाहते हैं तो घर पर बने हुए फाइबर युक्त आहार का सेवन करें.

दिनभर मुंह में कुछ लेकर चबाते रहना भी एक बहुत ही गंदी आदत होती है. ये आपको मोटापे को और अधिक बढ़ाती है.

4. रोजाना शराब की आदत

जो लोग डिनर के साथ में शराब भी लेते हैं उनके पेट में सीधे तौर पर शक्कर जाती है, जो उन्हें चाहकर भी पतला नहीं होने देती. यदि आप अपनी आदत को थोड़ा काबू में कर लेंगे तो कुछ ही दिनों में आप अपना वजन कम कर सकते हैं.

व्यायाम न करना

अपने शरीर से लगातार काम लेते रहिए. अगर आप अपने शरीर से लगातार काम नहीं लेतो हैं और खाना खाने के बाद लेटे ही रहते हैं, तो आप कभी भी पतले नहीं हो पाएंगे. मोटापे को घटाने के लिए शरीर का वर्कआउट करना जरुरी है. शरीर से रोज खूब सरा पसीना बहाने पर आपका फेट अपने आप कम हो जाता है.

Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें नवजात की देखभाल

नवजात शिशु परिवार के सभी सदस्यों के लिए खुशियां और आशा की नई किरण ले कर आता है. परिवार के सभी सदस्य उस के पालनपोषण का दायित्व खुशीखुशी लेते हैं और डाक्टर मां को सही राय देते हैं ताकि उस का शिशु स्वस्थ रहे.

गरमियों की तपिश के बाद जब सर्दी शुरू होती है तो लोग राहत महसूस करते हैं. पर सर्दी भी अपने साथ लाती है खुश्क हवाएं, खांसी और जुकाम जैसी कुछ तकलीफें, जिन से नवजात शिशु को खासतौर से बचाना चाहिए और उस की देखभाल में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

त्वचा की देखभाल

सर्दी के मौसम में हवा की नमी चली जाती है, जिस से शिशु की त्वचा शुष्क हो जाती है. ऐसे में बच्चे की मालिश जैतून के तेल से करने से बहुत लाभ होता है. उस से मालिश करने से खून का संचार सही रहता है और उस का इम्यूनिटी पावर यानी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. मालिश करते समय बच्चे को गरम और आरामदेह जगह पर लिटाना चाहिए. मालिश के कुछ देर बाद नहलाना चाहिए. बच्चे की त्वचा अत्यधिक नरम होती है, इसलिए साबुन ग्लिसरीन युक्त होना चाहिए और पानी कुनकुना होना चाहिए. जिस दिन ज्यादा सर्दी हो, उस दिन स्नान के बजाय साफ तौलिए को पानी में भिगो कर व निचोड़ कर उस से बच्चे का बदन पोंछ सकते हैं.

होंठों की देखभाल

सर्दी में शिशु के होंठ उस के थूक निकालने से गीले हो जाते हैं. उन की ऊपरी परत हट जाती है और उन पर सूखापन आ जाता है. उस के लिए पैट्रोलियम जैली या लिपबाम का उपयोग करना चािहए.

आंखों की देखभाल

सर्दी में कभीकभी शिशु की आंखों के कोने से सफेद या हलके पीले रंग का बहाव हो सकता है. इसे न तो हाथ से रगड़ें और न ही खींच कर निकालने की कोशिश करें. कुनकुने पानी में रुई डाल कर उसे हाथों से दबाएं फिर उस से आंखों को अंदर से बाहर की तरफ साफ करें. अगर शिशु की आंखें लाल हों या उन से पानी निकल रहा हो तो तुरंत आंखों के विशेषज्ञ को दिखलाना चाहिए.

शिशु के कपड़े

सर्दियों में शिशु के कपड़े गरम, नरम और आरामदेह होने चाहिए, जिन में कोई जिप या टैग न लगा हो.

बच्चे के हाथपैर गरम रखने के लिए उसे दस्ताने और मोजे पहनाने चाहिए और उस का सिर टोपी से ढकना चाहिए.

बच्चे के कपड़े धोने का डिटर्जैंट माइल्ड होना चाहिए.

बच्चे को कई बार ऊनी कपड़ों से ऐलर्जी हो जाती है जिस से उस के शरीर पर रैशेज हो जाते हैं. इसलिए कपड़े तापमान के हिसाब से ही पहनाने चाहिए. बच्चे को सीधा ऊनी कपड़ा पहनाने के बजाय पहले एक सूती कपड़े पहनानी चाहिए.

बच्चे को जूते पहनाने की आवश्यकता नहीं होती.

शिशु को सुलाते वक्त जब कंबल डालें तो ध्यान रखें कि कंबल से मुंह न ढक जाए, जिस से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो.

शिशु के कपड़े अच्छी क्वालिटी के होने चाहिए और ज्यादा तंग नहीं होने चाहिए.

जरूरी कपड़े

6-8 मुलायम सूती की बनियान.

6-8 गरम इनर या गरम कपड़े.

6-8 पूरी बाजू के सूती या होजरी के टौप.

6-8 पाजामी.

7-8 बौडी सूट.

4 गरम पाजामा.

4-6 ऊनी जुराब.

2-4 ऊनी टोपी.

2 सूती टोपी.

4-6 स्वैटर, 4 जैकेट.

7-8 मोटी सूती जुराब.

4 दस्ताने.

6 तौलिए, 6 बिब.

3-4 नहाने के लिए इस्तेमाल होने वाले तौलिए.

डायपर रैशेज से बचाव

सर्दी में डायपर और सूती नैपीज की ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि शिशु सर्दी में जल्दी गीला करता है और सूखने में ज्यादा समय लगता है. कुछ खास बातें ऐसी हैं जिन का खयाल रखना आवश्यक है, जिस से डायपर रैशेज से बचाव हो पाए:

इस बात का खयाल रखना चाहिए कि डायपर समय पर बदला जाए.

डायपर ज्यादा टाइट नहीं होना चाहिए. उसे सही नाप का चुनना चाहिए.

डायपर बदलने से पहले और बाद में अपने हाथ अच्छी तरह धो लेना चाहिए.

डायपर बदलते वक्त ध्यान रखें कि शिशु की त्वचा सूखी और साफ हो.

गुप्तांगों को रगड़ें नहीं कोमलता से साफ करें.

नैपी रैश क्रीम का इस्तेमाल करें.

घर का वातावरण

आप को घर और बच्चे के कमरे को गरम रखना चाहिए, जिस के लिए कमरे की खिड़कीदरवाजे बंद रखने चाहिए. दीवारों पर गीलापन नहीं होना चाहिए. क्योंकि इस से फफूंदी लग सकती है, जिस से बच्चे को ऐलर्जी या सर्दी व खांसी हो सकती है.

यदि घर का कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो उसे घर से बाहर जा कर करना चाहिए. कमरे और बाथरूम के फर्श को अच्छे डिटर्जैंट से धोना चािहए.

सर्दी में मच्छर वैसे कम होते हैं लेकिन अगर कीड़े या मच्छर हैं तो पेस्ट कंट्रोल करवाना चाहिए और बच्चे को उस दिन उस कमरे में नहीं ले जाना चाहिए. इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि घर के आसपास पानी इकट्ठा न हो और घर की नियमित रूप से सफाई हो. आजकल बाजार में स्टिकर के रूप में भी मौसक्यूटो उपलब्ध हैं, जो बच्चे की चारपाई या गाड़ी में भी लगाए जा सकते हैं.

मां के लिए कुछ निर्देश

अपने शिशु का टीकाकरण समयसमय पर नियमित रूप से करवाएं ताकि वह वायरस और बैक्टीरिया से दूर रहें.

बारबार अपने हाथ धोएं ताकि बच्चे को फ्लू और सर्दीखांसी के कीटाणुओं से दूर रख सकें.

अपने बच्चे के हाथ भी धोएं, क्योंकि बच्चा मुंह में हाथ डालता है.

शिशु के लिए मां का दूध सर्वोत्तम है, क्योंकि इस से उस का इम्यूनिटी पावर बढ़ता है और शरीर में पानी की कमी नहीं होती.

सर्दियों में बच्चे को ज्यादातर बीमारियां उस के करीब किसी बीमार व्यक्ति के खांसनेछींकने और उस के संपर्क में आने से होती हैं, इसलिए बच्चे को रोगी व्यक्ति से दूर रखें.

शिशु को डियोड्रैंट, परफ्यूम्स और धुएं से दूर रखें, क्योंकि इन से सांस की बीमारी हो सकती है.

सर्दियों में होने वाली बीमारियां

सर्दियों में शिशु को ये बीमारियां हो सकती हैं:

सामान्य जुकाम.

बुखार (वायरल फीवर).

फ्लू.

निमोनिया.

ब्रौंकाइटिस.

कान का संक्रमण.

मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क ज्वर).

रोटावायरस.

कब ले जाएं डाक्टर के पास

बुखार आने पर.

खांसी आने पर.

अगर शिशु दूध कम पी रहा हो. दूध कम पीने से शिशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है.

अगर शिशु अत्यधिक सुस्त है तो.

प्राथमिक उपचार

आप के पास शिशु के लिए कुछ जरूरी दवाएं होनी चाहिए ताकि कभी भी रात में अगर जरूरत पड़े तो आप उन को उपयोग कर सकें. जैसे क्रोसिन सिरप, विक्स वेपोरब, सेवलौन, नोजीवियान ड्रौप्स और थर्मामीटर.

जब शिशु बीमार पड़े तो उस को कंफर्टेबल रखना और गोद में ले कर प्यार करना बहुत जरूरी है. नाक बंद होने पर नोजीवियान ड्रौप डालने से नाक खुल जाएगी. बच्चे को जितना आराम मिलेगा, वह बेहतर महसूस करेगा. उसे सर्दी के मौसम की ज्यादातर बीमारियां 1 हफ्ते में ठीक हो जाती हैं और उन से आप के शिशु की इम्यूनिटी बढ़ती है. इसलिए घबराएं नहीं.

-डा. शिवानी सचदेव गौड़

(निदेशक, एससीआई हैल्थकेयर, आईवीएफ व स्त्री रोग विशेषज्ञा)

ऐसे रखें बच्चे की सेहत का ध्यान

हर मां चाहती है कि उस का बच्चा हमेशा हैल्दी व फिट रहे. इस के लिए वह हर प्रयत्न करती है. फिर चाहे बच्चे की डाइट की बात हो या फिर उस के साथ समय व्यतीत करने की. फिर भी कई बार प्रयासों के बावजूद बच्चे की ग्रोथ सही ढंग से नहीं हो पाती है, जिस से मां का परेशान होना स्वाभाविक है. ऐसे में मार्केट में कुछ स्पैशलाइज्ड प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, जो बच्चों को पर्याप्त पोषण देने का काम करते हैं जिस से मां भी रहती है टैंशन फ्री और बच्चा भी रहता है हैल्दी.

आइए जानते हैं कि मांएं अपने बच्चों को किस तरह सेहतमंद बनाए रख सकती हैं:

आउटडोर ऐक्टिविटीज में भागीदारी

आज गैजेट्स आने से बच्चे हरदम खुद को उसी में बिजी रखना पसंद करते हैं, जिस से वे शारीरिक गतिविधियों में ज्यादा शामिल नहीं हो पाते, जो उन्हें बीमारियों की गिरफ्त में ले जाता है. ऐसे में मां उन्हें आउटडोर ऐक्टिविटीज जैसे उन के साथ भागना, फुटबौल खेलना, बैडमिंटन इत्यादि में खुद को शामिल कर इन के प्रति उन की रुचि को बढ़ा सकती हैं ताकि उन का शारीरिक विकास हो सके.

लाइफस्टाइल को बदलना

मां की नजर अपने बच्चे की ऐक्टिविटीज पर होती है कि वह क्या कर रहा है, कितने बजे सो कर उठ रहा है, कैसे उठबैठ रहा है और उसे जहां भी कोई गड़बड़ लगती है तो वह उसे तुरंत सुधारने का प्रयास करती है.

ईटिंग हैबिट्स में सुधार

अगर देखादेखी बच्चा हरदम फास्टफूड इत्यादि खाने में ही दिलचस्पी लेता है, तो मां उसे मार्केट में मिलने वाले कुछ स्पैशलाइज्ड प्रोडक्ट्स जो न तो टेस्ट के मामले में और न ही पौष्टिकता के मामले में कम होते हैं, को उस की डाइट में शामिल कर उसे भीतर व बाहर दोनों तरफ से स्ट्रौंग बनाने की कोशिश करती है, जिस से उस का संपूर्ण विकास हो सके. साथ ही अपनी हैल्दी रैसिपीज से भी बच्चे को फिट रखने की कोशिश करती है.

वजन व लंबाई बढ़ाने पर ध्यान

कई बार गलत खानपान या फिर किन्हीं अन्य कारणों से बच्चों की लंबाई व वजन प्रभावित होते हैं और वे उस अनुपात में नहीं बढ़ पाते, जिस अनुपात में उन्हें बढ़ना चाहिए. ऐसे में मांएं उन्हें मार्केट में मिलने वाले कुछ स्पैशलाइज्ड पौष्टिक सप्लिमैंट्स या ड्रिंक्स देती हैं जिस से उन के बच्चों का वजन व हाइट सामान्य बच्चों की तरह बढ़ने लगती है. इस में उतना प्रोटीन होता है जिस की शरीर को जरूरत होती है और यह पचने में भी आसान होता है.

क्यों फैट देने से ज्यादा प्रोटीन है फायदेमंद

भले ही फास्टफूड बच्चों की भूख को तुरंत शांत कर देते हो लेकिन ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही होते हैं क्योंकि इस में ज्यादा कैलोरीज होने के कारण ये वजन तो बढ़ाते ही हैं साथ ही इस से शारीरिक व मानसिक विकास भी प्रभावित होता है. ऐसे में स्पैशलाइज्ड पौष्टिक सप्लिमैंट्स जिस में प्रोटीन उचित अनुपात में मौजूद होता है देने से बच्चे हैल्दी व स्ट्रौंग बनते हैं व मोटापे से ग्रसित बच्चों के वजन को कम करने में भी सहायक है. ये न सिर्फ हड्डियों को मजबूत बनाता है बल्कि इम्यून सिस्टम को भी स्ट्रौंग करता है यानी बहुत ज्यादा कैलोरी गए बिना ही इस के माध्यम से बच्चों को प्रोपर न्यूट्रिशन मिल पाता है.

इस तरह मां अपनी हैल्दी रैसिपीज के साथसाथ कुछ स्पैशलाइज्ड पौष्टिक सप्लिमैंट्स देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ती ताकि बच्चे की सही ग्रोथ हो पाए. तो फिर अपने बच्चों को पौष्टिक डाइट दे कर बनाएं हैल्दी.

मनोवैज्ञानिक सेहत पर इनफर्टिलिटी का प्रभाव

इनफर्टिलिटी या बांझपन का इलाज करा रहे दंपतियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इसके कई कारण है, जिसमें अनुवांशिकता, जीवनशैली का तरीका और सवाईकल म्युकस जैसी समस्याएं, फाइब्रॉयड, एंडोमेट्रियोसिस, पेल्विक इंफ्लेमेटरी जैसी परेशानियां शामिल हैं. प्रजनन का चक्र किशोरावस्था के बाद और बीसवें साल शुरू होता है. 30 की उम्र के बाद, प्रजनन क्षमता कम होने लगती है  और अंडों की संख्या कम होने के साथ-साथ अंडों की गुणवत्ता भी कम होने लगती है. इस तरह की परेशानियां, तनाव और चिंता को बढ़ाती है. इसका हानिकारक प्रभाव रिश्तों और व्यक्तिगत विकास पर पड़ता है. इस बारे में बता रही हैं डायना क्रस्टा, चीफ साइकोलॉजिस्ट, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी.

बांझपन एक चिकित्सा स्थिति है जोकि आपके जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है. यह दूसरों के साथ आपके रिश्तों को, जिंदगी को लेकर आपके नजरिये और खुद के लिये आपकी सोच को प्रभावित कर सकता है. आप इन भावनाओं का सामना किस तरह करेंगे, वह आपके व्यक्तित्व और जीवन के अनुभवों पर निर्भर करता है. ज्यादातर लोग परिवार, दोस्तों, चिकित्सा देखभाल करने वालों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के समर्थन से लाभ उठा सकते हैं. शुक्राणु, अंडा, या भ्रूण दान या गर्भकालीन वाहक जैसे बांझपन उपचार विकल्पों पर विचार करते समय, प्रजनन परामर्शदाता की सहायता प्राप्त करना विशेष रूप से सहायक हो सकता है. निम्नलिखित जानकारियां आपको यह फैसला लेने में मदद कर सकती हैं कि फर्टिलिटी संबंधी तनाव के इलाज के लिये या आपके उपचार के विकल्पों का चुनाव करने के लिये आपको प्रोफेशनल मदद की जरूरत है या नहीं.

कब दिखाएं इनफर्टिलिटी काउंसलर को?

पूरी दुनिया में बांझपन और उसके इलाज से भावनात्मक तनाव से गुजरने की वजह से, बांझपन से जूझ रहे दंपतियों को मनोवैज्ञानिक मदद प्रदान करने की सिफारिश की गई. इसके अलावा, कई सारे दंपतियों ने स्वयं भी मनोवैज्ञानिक मदद लेने की इच्छा जाहिर की है. बांझपन को जीवन में होने वाले प्रमुख तनावों में से  सबसे मुख्य कारणों में से एक माना गया है. इसे अक्सर आत्मविश्वास की कमी, वयस्क होने की तरफ कदम बढ़ाने की धारणा में व्यवधान, भविष्य के लिये योजना बनाने में असमर्थता, पहचान और दुनिया को लेकर राय में बदलाव के रूप में परिभाषित किया जाता है. साथ ही व्यक्तिगत, आपसी और सामाजिक रिश्तों में भी बदलाव के रूप में माना जाता है. बांझपन और इसके उपचार से जूझ रहे दंपतियों में तनाव और चिंता का स्तर काफी ज्यादा होता है. वैसे तो तनावपूर्ण स्थितियों में चिंता होना एक सामान्य प्रतिक्रिया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय शोध में यह बात सामने आई कि आम आबादी की तुलना में बांझ दंपतियों में चिंता का स्तर कहीं ज्यादा होता है. प्रजनन समाधान जैसे एआरटी उपचार-संबंधी अनुभव के परिणाम अक्सर नकारात्मक भाव के रूप में आते हैं. दरअसल, गर्भधारण की अनिश्चितता के साथ-साथ उपचार की विफलताओं को लेकर निराशा की वजह से ऐसा होता है. इसके साथ ही, क्रॉनिक और गंभीर तनाव और मनोवैज्ञानिक बीमारियां, एआरटी उपचार की सफलता को काफी ज्यादा प्रभावित करती है, जिसमें फॉलो-अप संभवत: एक दुष्चक्र बना रही है.

विशिष्ट बांझपन-

तनाव के आयामों में सामाजिक चुनौतियां शामिल हैं (जैसे, अकेलापन; अलगाव महसूस होना; परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताने में असहजता और तनाव महसूस होना; टिप्पणियों को लेकर संवेदनशीलता और बांझपन के रिमांडर्स), वयस्क के रूप में विकसित होने संबंधी चिंताएं (जैसे, अपनी पहचान पाने के लिये पितृत्व एक जरूरी पड़ाव और जीवन का मुख्य लक्ष्य), भावनात्मक निकटता और यौन सुख में कमी; आत्मविश्वास का कम होना. इसलिये, बांझपन से जूझ रहे दंपतियों के लिये विशेष सहायता समूहों  की जरूरत को काफी महत्व मिला है, खासकर आज के कोविड के समय में.

सहायता समूह किस तरह सहायता करने के तंत्र में मदद कर रहे हैं?

कई बार रोगियों और दंपतियों को उपचार के दौरान एक मनोवैज्ञानिक या थैरेपिस्ट के पास जाने के बारे में पूछा जाता है. हालांकि, बांझपन से जूझ रहे कई दंपति इच्छाओं को पूरा करने के क्रम में, अपनी भावनाएं प्रभावित दंपतियों से साझा करने के लिये आगे आए हैं. ऐसे में सहायता करने वाले कम्युनिटी ग्रुप एकजुट होते हैं और बांझपन के कलंक से बाहर आने में मदद कर सकते हैं. साथ ही इस ग्रुप ने अन्य दंपतियों के साथ समान अनुभवों को जानने का मौका दिया. इससे दंपतियों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि बांझपन की समस्या से गुजरने वाले वे अकेले नहीं हैं, साथ ही यह एहसास दिलाया कि उनकी प्रतिक्रियाएं, भावनाएं और संघर्ष सामान्य हैं और इस तरह उनके अकेलेपन को कम किया.

सहायता करने के कई सारे मॉडल्स के साथ, विशेष सपोर्ट ग्रुप, तनाव के उनके कारकों से लड़ने में उनकी मदद करते हैं. सहायक मॉडल, इनफर्टिलिटी संबंधी तनाव के विभिन्न आयामों का प्रबंधन करने के साथ-साथ परेशानी के अनुरूप मदद विकसित करने में अहम भूमिका निभाता है. हालांकि, सपोर्ट ग्रुप भी गहराई में जाकर, आत्मनिरीक्षण, मूल्यांकन कर समस्या के मूल कारण का पता लगाते हैं और फिर मन को शांति मिलती है. रोगी के अनुरूप काउंसलिंग सेंटर्स, विभिन्न रोचक थैरेपीज जैसे फोकस ग्रुप चर्चा, व्यक्तिगत मूल्यांकन के जरिए उन्हें अपने डर, चिंताओं और घबराहट को बाहर निकालने में मदद करते हैं और संतुलित आहार, सोने के सेहतमंद रूटीन के साथ दंपतियों को सेहतमंद दिनचर्या बनाए रखने में मदद करते हैं. साथ ही उनकी मानसिक और शारीरिक समस्याओं को कम करते हैं.

लंबे समय तक इनफर्टिलिटी होने से दोनों ही पार्टनर में अकेलापन और टूट जाने का गंभीर अनुभव हो सकता है. बांझपन जीवन की सबसे निराशानजक समस्या है, जिसका सामना दंपति करते हैं. सेहत से जुड़ी ढेर सारी चर्चाओं और अनिश्चितताओं के साथ, यह बांझपन अधिकांश दंपतियों में भावनात्मक उथल-पुथल पैदा कर सकती है. संयोग से, बांझपन उपचार के लिये नई और ज्यादा प्रभावी तकनीकें और सहयोगी तंत्र, लगातार विकसित हो रहे हैं.

अनियोजित गर्भ, निबटें ऐसे

‘नहीं, मैं प्रैगनैंट नहीं हो सकती,’ यह एक ऐसा वाक्य है, जो उन युवतियों के मुंह से अचानक निकल जाता है जो अनचाहे गर्भ की शिकार होती हैं. सही तौर पर चला आ रहा पीरियड साइकिल अगर 2-3 दिन के लिए भी डगमगा जाए तो युवतियों के मन में तब तक बेफिक्री बनी रहती है जब तक उन का शरीर ठहर चुके गर्भ को ले कर उन्हें तरहतरह के संकेत देना शुरू नहीं करता. जैसे:

भूख न लगना या खाना देखते ही मितली आना.

कुछ खाते ही उलटी कर देना.

खाने की वस्तुओं से बदबू आने का एहसास होना.

नींद के झोंके आना आदि.

दरसअसल, मासिकधर्म कैलेंडर की तारीख के साथ बहुत कम चलता है, इसलिए बहुत सी महिलाएं अचानक अपनेआप को अनचाहे गर्भ की चपेट में पाती हैं. इस प्रकार का अनचाहा गर्भ अनेक महिलाओं को परेशान कर देता है. फिर अनचाहे गर्भ के ठहरने की टैंशन का बुखार शुरू हो जाता है.

कैसी परिस्थितियां गर्भ को अनचाहा बनाती हैं:

विवाह के 2-3 महीनों के बाद या साल भर के अंदर गर्भ का ठहर जाना कई दंपतियों के लिए  अनियोजित गर्भ होता है.

पहला बच्चा 1 साल का या उस से भी छोटा होने पर जब दंपती बच्चा नहीं चाहते.

2 बच्चे पहले ही हैं, तीसरा चाहते ही नहीं तो गर्भ का ठहर जाना अनचाहे गर्भ की शक्ल ले लेता है.

35+ या 40+ की उम्र के पास पहुंचने पर ओव्यूलेशन के अनियमित होने पर गर्भ का ठहर जाना.

थायराइड, डायबिटीज, कैंसर या एनीमिया होने पर डाक्टरी सलाह के विरुद्ध गर्भ ठहरना.

पतिपत्नी दोनों का नौकरीपेशा होना और कैरियर के बीच में बच्चा न चाहना.

बच्चे को अफोर्ड नहीं कर सकने की परेशानी होना. मानसिक, शारीरिक व आर्थिक असमर्थता होना.

अविवाहित होने या विवाहेतर संबंधों के कारण गर्भ ठहरना.

डा. विशाखा मुंजाल के अनुसार, किन्हीं भी कारणों से बच्चा न चाहने वाली महिलाओं के लिए प्रैगनैंसी एक नागवार विषय है. आजकल के युवा दंपतियों को तो वैसे भी अनियोजित गर्भ बोझ इसलिए लगता है, क्योंकि वे मातापिता बनने के लिए अपनेआप को भावनात्मक व आर्थिक रूप से तैयार नहीं समझते हैं. कैरियर को प्राथमिकता देते व लाइफस्टाइल के गठजोड़ों में उलझे ऐसे दंपती बच्चे को पैदा करने की बात को अपनी महत्त्वपूर्ण कार्यों की सूची में सब से आखिर में रखते हैं. लेकिन गर्भ के ठहर जाने पर गर्भ को रखने या न रखने का निर्णय उन के लिए सब से कष्टपूर्ण होता है. जिस व्यक्ति को प्यार करो, उस का बच्चा न रख पाने का निर्णय जीवन का सब से कठिन निर्णय होता है.

प्रश्न यह उठता है कि अनियोजित गर्भ क्यों ठहरते हैं? इन के प्रति कैसी प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है और इन से कैसे निबटा जाए?

आप सैक्स को ले कर सक्रिय महिला हैं. आप और आप का साथी दोनों बर्थ कंट्रोल के किसी तरीके को अपनाते रहे हैं. इस के बावजूद भी गर्भ ठहर जाता है तो वह समस्या को जटिल रूप दे देता है. आकस्मिक गर्भ विवाहिताओं व अविवाहिताओं को 2 ही कारणों से ठहरता है या तो उन की गर्भनिरोधक प्रक्रिया असफल हो जाती है या वे गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के मामले में लापरवाह हो जाती हैं. वास्तव में विवाहित महिलाओं में लापरवाही अधिक देखी जाती है. वे सावधानियां बरतती भी हैं और नहीं भी. कहींकहीं पत्नियां पति को इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं. 10 महिलाओं से घुमाफिरा कर बात करने पर पता चला कि उन में से 4 महिलाएं अनियोजित गर्भ का शिकार हो गर्भपात करा चुकी हैं. महिलाओं से बात करने पर यह बात सामने आई कि बर्थ कंट्रोल को लास्ट मूवमैंट भूल जाना इन महिलाओं की आम समस्या है. कई पतिपत्नी के बीच दूसरे या तीसरे बच्चे को जन्म देने को ले कर मतभेद पाया जाता है. ऐसी परिस्थितियों में एक बर्थ कंट्रोल को भूल जाने का रास्ता अपनाता है.

स्त्रीरोग विशेषज्ञों के अनुसार, स्त्री का गर्भधारण करना कई बार कलह का कारण बनता है और रिश्ते की सारी खुशियों को समाप्त कर देता है. अनचाहे गर्भ से जुड़ी बहस संबंधों को भी नष्ट कर देती है. कुंआरी और शादीशुदा स्त्री के गर्भधारण से जुड़े भय चाहे अलगअलग तरह के हों पर गर्भपात से जुड़े भय एक ही से होते हैं. अनियोजित गर्भ हमेशा कड़वा पक्ष दर्शाता है. अविवाहित युवतियों को अनचाहा गर्भ पराजित महसूस कराता है व अपने शारीरिक संबंधों के जरीए हुई अपनी हार उन्हें निश्चित रूप से दहला देती है, क्योंकि गर्भधारण देह को दिए गए दंड जैसा लगता है. इस स्थिति में युवती को लगता है कि वह स्वयं को धोखा दे बैठी है. विवाहित दंपतियों के बीच पति को क्रोध आता है व पत्नी को ग्लानि होती है.

अनियोजित गर्भ से ऐसे निबटें

अनियोजित गर्भ की समस्या की जड़ में जाने का प्रयास करें.

क्सुअली ऐक्टिव हैं तो इस दुर्घटना के लिए हमेशा तैयार रहें, भले आप गर्भनिरोधक करती इस्तेमाल हों.

अपने पारिवारिक, दांपत्य व परिवेश से जुड़े तथ्यों पर विशेषतौर से गौर करें.

आप को अपने परिवार, मित्रों व परिस्थितियों से अनेक प्रकार के दबावों का सामना करना पडे़गा. इस के लिए तैयार रहें.

आप को लगता है कि आप को काउंसलिंग की जरूरत है तो काउंसलर के पास जाने से हिचकिचाएं नहीं.

गर्भ रखना है या गर्भपात कराना है, यह निर्णय शीघ्र करें.

बच्चा गोद देना चाहती हैं तो इस विषय पर भी सोचें और इस प्रक्रिया से जुड़ी जटिलता पर गौर करना न भूलें.

अपनी शारीरिक और भावनात्मक क्षमता आंकें.

बच्चा नहीं चाहिए हो तो 6 से 12 हफ्तों के भीतर ही गर्भपात करा लें.

खाना खाते वक्त इन बातों का रखें ध्यान

इतने सालों तक आपने विभिन्न आहार नियम और क्या सही है व क्या नहीं, क्या खाना ठीक होता है क्या नहीं, इस पर बहुत कुछ पढ़ा है और बहुत सी बातें की है. पर आज भी आप या हम में से कोई भी यह नहीं कह सकता कि कौन सा डाइट रुटीन वाकई उचित और लाभकारी है. आज हम बात करेंगे आपकी डाइट को लेकर, भोजन संबंधी कुछ नए दिशा निर्देश और नियमों की जो वास्तव में आपको, आपके लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करेगा..

भोजन करने से पहले :

दोनों हाथ और पैरों को अच्छी तरह से धोकर ही खाना खाने बैठना चाहिए. वैसे ऐसा जरूरी नहीं पर प्रयास यही करना चाहिए कि भोजन, किचन में बैठकर परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर हो.

भोजन का समय :

ऐसा माना जाता है कि पाचनक्रिया सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2.30 घंटे पहले तक अच्छी होती है, इसीलिए समयानुसार खाना खा लेना चाहिए.

ऐसे में न करें भोजन :

खड़े-खड़े और लेट कर कभी खाना नहीं खाना चाहिए. आराम से बैठकर भोजन करना, शरीर और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. लैपटॉप, फोन आदि चलाते समय खाना नहीं खाना चाहिए.

ऐसा भोजन न करें :

बहुत तीखा, बहुत मीठा या तेज मिर्च मसाले वाला खाना नहीं खाना चाहिए. आधा खाया हुआ फल, मिठाइयां आदि फिर नहीं खाना चाहिए.

खाना खाते समय, खाना कभी भी बीच में छोड़कर नहीं उठना चाहिए.

खाना खाते वक्त क्या करें :

मौन रहें.

भोजन को अच्छे से चबा-चबाकर खाएं.

अगर आपक बोलना वाकई बहुत जरूरी हो तो, खाते वक्त सिर्फ सकारात्मक बातें ही करें. प्रसन्न मन से किया गया भोजन शरीर को जल्दी लगता है.

किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा, खाना खाने वक्त नहीं करनी चाहिए.

भोजन के बाद :

खाने के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए.

घुड़सवारी करना, दौड़ना आदि मेहनत के काम, खाना खाने के बाद करने से आपकी सेहत को नुकसान हो सकता है.

दिन में और रात में खाना खाने के बाद टहलना चाहिए. रात में भी टहलकर बाईं करवट लेट कर सोने से पाचन अच्छा होता है. खाने के एक घंटे बाद मीठा दूध एवं फल खाने से भी भोजन का पाचन अच्छा होता है .

क्या क्या है हानिकारक :

रात को दही, सत्तू, तिल जैसा भोजन नहीं करना चाहिए.

दूध के साथ नमक, दही, खट्टे पदार्थ, मछली, कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए.

इसके अलावा शहद व घी को एक साथ, एक समान मात्रा में लेकर खाने के साथ नहीं खाना चाहिए.

दूध और खीर के साथ खिचड़ी नहीं खाना चाहिए.

प्रैग्नेंसी एक महिला के शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का समय है, पढ़ें खबर

गीता बाफना

फाउंडर, हॉलिस्टिक प्रेगनेंसी

मैं बच्चों के माटेसरी हाउस, वीस्कूल की निदेशक और संस्थापक हूं. मैंने वाणिज्य में विशेषज्ञता रखते हुए चेन्नई से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. इसके अलावा, मैंने बच्चों को उनकी अधिकतम क्षमता तक बढ़ने में मदद करने की इच्छा के साथ भारतीय माँटेसरी प्रशिक्षण केंद्र (आईएमटीसी) से प्राथमिक मोंटेसरी डिप्लोमा भी उत्तीर्ण किया है.

बच्चों की व्यापक सीखने की प्रक्रिया को बदलना और शैक्षिक विधियों में प्रारंभिक दृष्टिकोण विकसित करने, हमने एक ऑनलाइन गर्भावस्था का कोर्स बनाया है. गर्भावस्था, प्रसव और पितृत्व जीवन के प्रमुख विकल्प हैं जो चीजों को कई तरह से बदलते हैं. जब आप माता-पिता बनते हैं तो जीवन नाटकीय रूप से बदल जाता है, इसलिए केवल यह सम झ में आता है कि जब आप प्रसव पूर्व देखभाल के बारे में सोच रहे हों तो आप गर्भावस्था के भौतिक पक्ष से अधिक पर विचार करना चाहेंगे. समग्र दृष्टिकोण वह है जिस पर महिलाएं बढ़ती संख्या में विचार कर रही हैं, क्योंकि इस दृष्टिकोण में शरीर, मन और आत्मा शामिल है, जिससे महिलाओं को एक से अधिक तरीकों से स्वस्थ गर्भावस्था का आनंद लेने में मदद मिलती है.

कॉन्शियस कॉन्सेप्शन

‘कॉन्शियस कॉन्सेप्शन’ शब्द आपके बच्चे को बुलाने के लिए एक प्यार भरा स्थान बनाने और धारण करने के इरादे को स्थापित करने का विचार रखता है. यह विचार इस बात को स्वीकार करता है कि आज हम जिन बच्चों का सपना देखते हैं- हमारे पूर्वज और भविष्य के नेता, कार्यकर्ता, माता-पिता और कल के पृथ्वी प्रबंधक, हमारे वर्तमान विकल्पों से प्रभावित हैं. यह भोजन से लेकर भागीदारों तक, विचारों से लेकर पर्यावरण तक और उससे आगे तक होता है. हमारा मानना है कि जब आप गर्भधारण की तैयारी के बारे में सोचते हैं, तो आपको अपने शरीर, दिमाग और आत्मा को और भी अधिक परिवर्तनकारी अनुभव के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिए तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए.

‘हमारा आदर्श वाक्य’, ‘चेतना मानवता का निर्माण’ है और हम आप में सर्वश्रेष्ठ लाने का प्रयास करते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके गर्भ में आत्मा शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ है. हमारा लक्ष्य आपकी गर्भावस्था के दौरान आपका अच्छी तरह से मार्गदर्शन करना है, और वास्तव में हम मानते हैं कि गर्भावस्था की अवधि ठीक उसी दिन से शुरू होती है जब आप माता-पिता बनने के बारे में सोचते हैं. हमारा मानना है कि प्लानिंग या प्री-कॉन्सेप्शन बहुत जरूरी है.

जैसा कि हम स्वस्थ शरीर बनाने के लिए खुद को समर्पित करते हैं, अपने आंतरिक और बाहरी वातावरण की देखभाल करते हैं, यह गर्भसंस्कार पाठ्यक्रम आपको यह सम झने में मदद करेगा कि शारीरिक रूप से गर्भधारण करने से पहले भी प्रसव पूर्व देखभाल समान रूप से महत्वपूर्ण है. हमारे वीडियो पाठों के माध्यम से, आप प्रसवपूर्व संबंध के महत्व को सम झ सकेंगे, हम सा झा करते हैं कि अंदर रहने वाली नई जान से कैसे जुड़ना है.

गर्भावस्था के दौरान

आपको यह सोचने की ज़रूरत है कि आप क्या खा रहे हैं, आप कैसा महसूस कर रहे हैं और आपका शरीर आपको क्या बता रहा है. एक सचेत गर्भावस्था के दौरान, आप अपने बच्चे से जुड़ती हैं और आप अपने भावनात्मक जीवन को सम झने में सक्त्रिय भूमिका निभा रही हैं क्योंकि आप स झती हैं कि यह न केवल आपको, बल्कि आपके जन्म के अनुभव और बच्चे को कैसे प्रभावित कर सकता है.

गर्भ संस्कार के अनुसार (संस्कृत में गर्भ का अर्थ है भ्रूण और संस्कार का अर्थ है मन की शिक्षा), आपका बच्चा बाहरी प्रभावों को सम झने और प्रतिक्रिया करने में सक्षम है. इसलिए, हम आपको यह सम झाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि अपने शरीर, आदतों और उन परिवर्तनों का अध्ययन कैसे करें जो आपको एक स्वस्थ जीवन शैली के लिए हर तरह से लाने की आवश्यकता है.

मन और आत्मा के विषहरण पर ध्यान केंद्रित करने से लेकर अपने भावनात्मक भागफल में सुधार करने तक, सही आहार योजना बनाने से लेकर स्वस्थ वजन सीमा बनाए रखने तक, हर मुद्दे की पहचान करने से लेकर सभी संभावित समाधानों को सूचीबद्ध करने तक, स्वस्थ आदतों के निर्माण से लेकर चिंतन अभ्यास में संलग्न होने तक खेती करने के लिए अपने स्वयं के अस्तित्व, तनाव से निपटने के तरीके खोजने से लेकर दिमाग को मजबूत बनाने तक, हम आपको शुरुआती और जन्म से पहले के अनुभवों की सराहना करने के लिए और अधिक खोलने के लिए सचेत करते हैं.

हम, एक टीम के रूप में, भावी माता-पिता में सर्वोत्तम प्रथाओं को आत्मसात करने की इच्छा रखते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नवजात शिशु एक आदर्श बच्चा बन सके जो माता-पिता चाहते हैं. हमारी दृष्टि समग्र गर्भावस्था की अवधारणा पर हमारे वीडियो पाठों के

माध्यम से माता-पिता का मार्गदर्शन करना है. हमारा दृढ़ विश्वास है कि मनुष्य की शिक्षा जन्म से पहले शुरू होनी चाहिए और जीवन भर जारी रहनी चाहिए. और हम जो विश्वास करते हैं उसे हासिल करने के लिए आपका मार्गदर्शन करने के लिए हम यहां हैं.

जब बच्चा गर्भ में हो

आपको एक गहरे और व्यक्तिगत परिवर्तन में बुलाया गया है क्योंकि गर्भ में नई जान आपको महसूस करने और उन चीजों को सीखने में सक्षम होगी जो आप पहले से कर रहे हैं. जब बच्चा गर्भ में होता है तो आप जो करते हैं वह मायने रखता है और इसलिए गर्भाधान से पहले ही अवचेतन रूप से अतिरिक्त देखभाल विकसित करने से हमारे हावभाव अपने आप गिर जाएंगे.

आपकी सहायता टीम आपके प्रसवपूर्व और जन्म के अनुभव को बढ़ाने के लिए यहां है. हमारा मिशन है कि आप अपने, अपने बच्चे और अपने परिवार के लिए सबसे अच्छा काम करने के लिए सशक्त महसूस करें.

अपनी सुविधानुसार किसी भी समय, किसी भी उपकरण से संपूर्ण पाठ्यक्रम देखें. ठीक वहीं से फिर से शुरू करें जहां आपने छोड़ा था. गर्भावस्था मॉड्यूल के माध्यम से, हम आपके बीजों को उनकी लंबी उम्र, स्वास्थ्य, सद्भाव और उद्देश्य की स्पष्टता के लिए पोषण देना चाहते हैं.

‘‘हम अपने बच्चों के लिए किस तरह की दुनिया छोड़ रहे हैं’’ के बारे में जागरूक होना न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सम झना और विचार करना भी महत्वपूर्ण है कि हम इस दुनिया के लिए किस तरह के बच्चे छोड़ रहे हैं.

जिस 9-10 महीने में शिशु मां के गर्भ में भू्रण के रूप में रहता है, वह मानव-जाति का आधार है. हर इंसान की पहली पाठशाला उसकी मां की कोख होती है. सबसे बड़ी शिक्षक अपेक्षित मां है. हमारे पाठ्यक्रम वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हैं, समकालीन प्रथाओं के साथ प्राचीन पद्धति शामिल हैं. हमारा विजन 11 मिलियन जोड़ों तक पहुंचकर जागरूक मानवता का निर्माण करना है और इसे आगे बढ़ाना है.

हम नियमित रूप से गर्भ संस्कार कार्यशालाएं आयोजित करते हैं, ज्यादातर हर पखवाड़े, जहां कई जोड़े आध्यात्मिकता का अनुभव करने के लिए जुड़ते हैं. हम 21 दिनों की दिनचर्या कार्यशाला भी आयोजित करते हैं जो एक 6 सप्ताह का कार्यक्रम है जिसमें एक गर्भवती जोड़े के आवश्यक कार्यान्वयन सिखाया जाता है. हमारे द्वारा समग्र पाठशाला ‘‘हर घर में गुरुकुल’’ एक 30 सप्ताह का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें सभी नामांकित गर्भवती जोड़े सप्ताह में एक बार विशेष रूप से एक साथ शामिल होते हैं.

हम ‘माइंड मैप’ नाम से एक कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं जिसमें सभी व्यक्ति जो अपने भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं, भाग लेते हैं और बेहतर व्यक्ति बनने का प्रयास करते हैं.

लो ब्‍लड प्रेशर होने पर करें ये 5 उपाय

शरीर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए दिल का स्‍वस्‍थ होना बहुत जरूरी है. लेकिन वर्तमान में अनियमित खानपान और अस्‍वस्‍थ दिनचर्या के कारण उच्‍च रक्‍तचाप और निम्‍न रक्‍तचाप की समस्‍या बढ़ रही है.

जब किसी के शरीर में रक्त-प्रवाह सामान्य से कम हो जाता है तो उसे लो ब्लड प्रेशर कहते हैं. सामान्‍यतया ब्लड प्रेशर 120/80 होता है. यदि ब्‍लड प्रेशर 90 से कम हो जाए तो उसे लो ब्लड प्रेशर कहते हैं. इसे अगर गंभीरता से न लिया जाये तो इसका असर शरीर के दूसरे अंगों पर पड़ता है.

ऐसे में शरीर में ब्लड का दबाव कम होने से आवश्यक अंगों तक पूरा ब्लड नहीं पहुंच पाता जिससे उनके कार्यो में बाधा पहुंचती है. ऐसे में दिल, किडनी, फेफड़े और दिमाग आंशिक रूप से या पूरी तरह से काम करना भी बंद कर सकते हैं. लो ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या होने पर तुरंत ये काम करें.

1. लेमन जूस पियें

लेमन जूस उच्च रक्तचाप में काफी फायदेमंद होता है लेकिन ये निम्‍न रक्तचाप में भी फायदेमंद होता है. जब डीहाइड्रेशन की समस्‍या हो तो यह बहुत ही उपयोगी है. कई बार लेमन जूस में हल्का सा नमक और चीनी डालकर पिया जा सकता है. इससे शरीर को एनर्जी मिलेगी. साथ ही लीवर भी सही से काम करता है.

2. नमक का पानी

नमक का पानी लो ब्‍लड प्रेशर के लिए बड़े काम का है. इससे ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है. नमक में सोडियम मौजूद होता है और यह ब्‍लड प्रेशर बढ़ाता है. ध्यान रहे, नमक की मात्रा इतनी भी ना दें कि इससे स्वास्‍थ्य पर बुरा असर पड़े. बहुत ज्यादा मात्रा में नमक सेहत के लिए फायदेमंद नहीं माना जाता. कम ब्लड प्रेशर में एक गिलास पानी में डेढ़ चम्मच नमक मिलाकर पी सकते हैं.

3. गुणकारी है तुलसी

तुलसी कम होते ब्‍लड प्रेशर को सामान्य करने में मददगार साबित होती है. इसमें विटामिन सी, पोटैशियम, मैग्नीशियम जैसे कई तत्व पाए जाते हैं जो दिमाग को संतुलित करते हैं और तनाव को भी दूर करते हैं. जूस में 10 से 15 प‌त्तियां डाल दें. एक चम्मच शहद डाल दें और रोजाना खाली पेट इसका सेवन करें.

4. कैफीन का सेवन करें

कॉफी भी बड़े काम की है. ब्‍लड प्रेशर कम होने पर स्ट्रांग कॉफी, हॉट चॉकलेट, कोला और कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करने से रक्तचाप सामान्‍य हो जाता है. यदि आपको अक्सर निम्न रक्तचाप रहता है तो आपको रोजाना सुबह एक कप कॉफी पीना चाहिए. लेकिन यह भी ध्‍यान रखें कि इसके साथ कुछ न कुछ जरूर खायें.

5. फायदेमंद है किशमिश

किशमिश को पारंपरिक आयुर्वेदिक दवा के रूप में देखा जाता है. लो ब्‍लड प्रेशर होने पर किशमिश खाना बहुत फायदेमंद होता है. रात में 30 से 40 किशमिश भिगो दें और सुबह खाली पेट इसका सेवन करें. जिस पानी में किशमिश भिगोई थी आप उस पानी को भी पी सकते हैं. महीने में आप ऐसा एक बार कर सकते हैं. इसके अलावा एक गिलास दूध में 4-5 बादाम, 15-20 मूंगफली और 10 से 15 किशमिश भी मिलाकर ले सकते हैं.

हेल्‍दी खानपान और हेल्‍दी लाइफस्‍टाइल अपनाने से भी लो ब्लड प्रेशर की समस्‍या नहीं होती है.

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