सेंसर बोर्ड की लापरवाही से फिल्म #Theconversion के प्रदर्शन को लेकर गहराया रहस्य

‘‘लव जेहाद’’ और जबरन धर्म परिवर्तन का एक लड़की पर क्या असर होता है,इस विशय पर फिल्मकार विनोद तिवारी ने सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ बनायी है,जिसे वह आठ अक्टूबर को देश के सिनेमाघरों में प्रदर्षित करना चाहते थें,लेकिन अफसोस की बात यह है कि सेंसर बोर्ड की लापरवाही के चलते ऐसा संभव ही नही हो पाया.हालात यह हैं कि ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ यानी कि सेंसर बोर्ड ने अभी तक फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को प्रमाणपत्र ही नही दिया है,जबकि फिल्म के निर्माताओं ने अपनी तरफ से सेंसर बोर्ड की मांग के अनुरूप सारे कागज,फिल्म व रकम समय पर ही अदा कर दी थी.

निर्माता ने अपनी फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ’’ से प्रमाणित करवाने के लिए  16 अगस्त को ही निवेदन कर दिया था.लेकिन यह फिल्म तभी से सेंसर बोर्ड के पास अटकी हुई है.सेंसर बोर्ड की परीक्षण समिति अब तक तीन बार फिल्म को देख चुका है.लेकिन सेंसर बोर्ड शायद खुद किसी निर्णय पर नही पहुॅच पा रहा है, इसीलिए अभी तक सेंसर बोर्ड ने फिल्म में दृश्यों या संवादों पर किसी भी आपत्ति के बारे में निर्माताओं को सूचित नहीं किया है.मगर सेंसर बोर्ड की लापरवाही का आलम यह है कि फिल्म के निर्माता व निर्देशक द्वारा बार बार गुहार लगाने और फिल्म क ेप्रदर्षन की तारीख के बारे में सूचित किए जाने के बावजूद सेंसर बोर्ड फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को पारित या अस्वीकार करने को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है.अब तक फिल्म के निर्माता को सेंसर बोर्ड से इस संबंध में लिखित में कोई जवाब नही मिला है.

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आठ अक्टूबर की तारीख टलने के बाद अब फिल्म के निर्माता ‘‘द कंवर्जन’’को देशभर और विदेशों में 15 अक्टूबर को प्रदर्षन करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है.पूरे भारत में सिनेमाघरों में प्रमोशन के लिए पोस्टर भेजे जा चुके हैं. सिनेमाघरों को तो ठीक कर दिया गया है, लेकिन ऐसे समय में सेंसर बोर्ड के निर्णय की कमी से फिल्म को भारी नुकसान हो सकता है.

फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ के निर्माता का कहना है कि अगर फिल्म 15 अक्टूबर को प्रदर्षित नहीं होगी, तो इससे उन्हें करोड़ो का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा.इससे पहले भी निर्माता अपनी फिल्म के प्रदर्षन की तारीख दो बार बदल चुके हैं.मगर सेंसर बोर्ड का रवैया समझ से परे हैं.

बनारस के खूबसूरत घाटों पर फिल्माई गई फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ भारत में प्रेम विवाह के दौरान होने वाले धार्मिक रूपांतरणों की दुविधा की पड़ताल करती है.यानी कि यह फिल्म ‘लव जेहाद’ को लेकर है.इस फिल्म के संबंध में कुछ समय पहले निर्देशक विनोद तिवारी ने कहा था-‘‘यह कालेज की पृष्ठभूमि में एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी है.किस एक लड़की ‘लव’ट्ैप में फंसती है,किस तरह प्रेम में पड़ती है और फिर किस किस पीड़ा से गुजरती है,उसकी इसी दर्दनाक यात्रा की दास्तान है फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’.मैं आपसे साफ साफ कहता हॅूं कि हमारी यह फिल्म किसी भी जाति, किसी भी धर्म,किसी भी मजहब,किसी भी संप्रदाय के खिलाफ नही है.यह फिल्म एक पीड़ा है.यह फिल्म एक गंदी सोच के खिलाफ लड़ाई है.इंसान बुरा नही होता,इंसान की सोच बुरी होती है. ’’

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फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-विंध्या तिवारी, रवि भाटिया, प्रतीक शुक्ला, विभा छिब्बर, अमित बहल, मनोज जोशी, सुनीता रजवार, संदीप यादव, सुशील सिंह.

कानूनी दांव-पेंच में बुरे फंसे किंग खान के बेटे Aryan Khan

2 अक्तूबर को अभिनेता शाहरुख खान (Shahrukh Khan) के बेटे आर्यन खान (Aryan Khan ) को मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज में चल रही ड्रग्स पार्टी (Drugs Party) मामले में एनसीबी (NCB) (नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो) ने गिरफ्तार किया. मामले में आर्यन के अलावा गिरफ्तार दो अन्य अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमेचा को मुंबई के किला कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को 7 अक्टूबर तक कस्टडी में रखने का फैसला सुनाया गया. पता चला है कि आर्यन के पास भी ड्रग्स मिले है. इस मामले में इन तीनों के अलावा 5 अभियुक भी गिरफ्तार किये गए है, जिनसे पूछताछ जारी है. आज आर्यन खान को बेल मिलेगी या नहीं इसपर कोर्ट में बहस चल रही है. इस मामले की चर्चा में आने के बाद देशभर में रेव पार्टी की जमकर आलोचना हो रही है. लोग जानना चाहते है, आखिर रेव पार्टी में कई बार मॉडल्स और सेलेब्रिटी किड्स ही क्यों पकडे जाते है और इसमें होता क्या है? आइये जाने रेव पार्टी की शुरुआत कहाँ और कैसे हुई.

दम मारो दम…….’ वर्ष 1971 की इस गाने को शायद सभी जानते होंगे, क्योंकि उस दौर की इस गाने को यूथ ने बहुत पसंद किया था. ये गाना फिल्म ‘हरे कृष्ण हरे राम’ की रेव पार्टी का ही है, जिसमें सभी यूथ ड्रग्स लेते हुए मौज-मस्ती करते हुए दिख रहे है और अभिनेता देवानंद अपनी बहन और अभिनेत्री जीनत अमान को वहां से घर ले जाने की कोशिश कर रहे है. दरअसल रेव पार्टी होती ही ऐसी है, जहाँ आने वाले लोग सब भूलकर मौज मस्ती में डूब जाते है और वहां उन्हें एक अनुभूति होती है.

कब हुई शुरुआत

रेव पार्टी (Rave Party) की शुरुआत यूरोप के देशों में 60 के दशक में होने वाली पार्टियां शराब और शवाब तक सीमित थी, लेकिन 80 के दशक में इसका स्वरूप बदलने लगा और इसने रेव पार्टी का रूप ले लिया. 90 के दशक के शुरुआत में कई देशों में रेव पार्टियां होने लगी.‘रेव’ शब्द का अर्थ एक डांस पार्टी से है, जो रातभर चलती रहती है. इसमें एक डीजे गाना बजाता है और उसमे लोग संगीत की धुन पर थिरकने के साथ-साथ खूब मौज-मस्ती करते है. ये पार्टिया अधिकतर बंद कमरे में कम रौशनी में चलती है. इसकी जानकारी केवल उसमे आने वाले चंद लोगों को ही होती है.

 

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अमेरिकी कानून विभाग कहता है कि 80 के दशक की डांस पा​र्टीज से ही रेव पार्टी की शुरुआत हुई. डांस पार्टीही धीरे-धीरे रेव पार्टी में बदल गई. इसमें संगीत की धुन के साथशौक और ड्रग्‍स जुड़ते चले गए, इससे यूथ में रेव पार्टियों की लोकप्रियता बढ़ती गई.

भारत में इसकी शुरुआत गोवा से हुई, जहाँ हिप्पियों ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन अब ये हिमाचल की कुल्लू घाटी, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, चेन्नई आदि कई शहर रेव हॉटस्पॉट बनकर उभरे है.

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रेव पार्टी में होता क्या है

रेव पार्टियों में डांस, मस्ती, धमाल, शराब, ड्रग्स आदि की पूरी छूट होती है. ये पार्टियां रात-रात भर चलती हैं. इन पार्टियों में जाने वाले लोगों को मोटा फीस के तौर पर मोटा पैसा देना पड़ता है. पार्टियों में अंदर लाऊड संगीत बजते रहते हैं और युवा मस्ती और नशे में चूर होते है. खाना-पीना, ड्रिंक्स, शराब, सिगरेट आदि के अलावा कोकीन, हशीश, चरस, एलएसडी(लिसर्जिक एसिड डाईएथिलेमाइड)आदि ड्रग्‍स का इंतजाम रहता है.

कुछ रेव पार्टियों में सेक्स के लिए ‘चिल रूम्‍स’ भी होते है. एनसीबी के अधिकारियों की मानें तो रेव पार्टियां केवल पार्टी सर्किट से जुड़े हुए कुछ चुनिंदा लोगों के लिए आयोजित की

 

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क्या है रिश्ता दोनों से

आर्यन के साथ दो नाम जिनकी कस्टडी 7 अक्तूबर तक है, उसमें मुनमुन धमेचा और अरबाज़ मर्चेंट का नाम जुड़ा है, आखिर ये दोनों है कौन और आर्यन के साथ इनका रिश्ता क्या है?

39 वर्षीय मुनमुनधमेचा फैशन जगत की एक चर्चित मॉडल है, जो मध्यप्रदेश के सागर जिले की है, लेकिन सागर में उनके परिवार का कोई भी नहीं रहता. व्यवसायी परिवार की मुनमुन ने पिछले साल अपनी माँ और इससे पहले अपनी पिता को खो चुकी है. उनका एक भाई प्रिंस धमेचा है, जो नौकरी की वजह से दिल्ली में रहते है. इस मॉडल की इन्स्टाग्राम पर 70 हज़ार से अधिक फैन फोलोवर्स है, जबकि अरबाज़ खान एक अभिनेता है और फिल्मों में काम के लिए संघर्ष कर रहा है उसकी पहचान आर्यन खान और सुहाना खान दोनों के अलावा कई स्टार किड्स के साथ है,इन्स्टाग्राम पर अरबाज़ की तस्वीरें कई बार अभिनेत्री पूजा बेदी की बेटी अलाया फ़र्निचरवाला के साथ देखी गयी, जिन्हें वह डेटिंग कर रहा था. अरबाज़ के पिता असलम मुंबई में एक वकील है और लकड़ी की व्यवसाय भी सम्हालते है. उनके नाना मुंबई हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज है, जो बांद्रा में रहते है. आर्यन खान और अरबाज़ मर्चेंट दोनों स्कूल फ्रेंड है.

फिल्मों में आने की थी तैयारी

ये सही है कि ये पार्टियाँ काफी महँगी होती है, इसलिए इसमें आने वाले सभी पैसे वाले घरों से होते है. हालाँकि अभिनेता शाहरुख़ खान ने अपने बेटे को अच्छी परवरिश के लिए इंडस्ट्री से दूर विदेश में रखा था, लेकिन गलत संगत और नशे के आदी होने की वजह से जेल की हवा खानी पड़ रही है. बॉलीवुड सितारे या उनके बच्चे कानून और पुलिस के लिए सॉफ्ट टारगेट होते है, इसलिए इन्हें पकड़ने पर लोगों में चर्चा अधिक होती है और उन्हें इसका हर्जाना भुगतना पड़ता है. इसके कई सबूत है, जिसकी वजह से बॉलीवुड के कई सितारे बदनाम हुए, उनका कैरियर बर्बाद हो गया. आर्यन खान अब फिल्मों में उतरने के लिए तैयार हो रहे है, ऐसे में इस तरह की बदनामी उनकी फ़िल्मी कैरियर पर असर अवश्य डालेगी.

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रहना पड़ेगा जेल में

आर्यन खान की एनसीबी कस्टडी आज 7 अक्टूबर को खत्म होने वाली थी. आज उनके वकील उनकी जमानत के लिए अर्जी भी दी थी,लेकिन आज देर शाम फैसला आया है कि आर्यन जेल जाएंगे, हालांकि बेल के लिए उनके वकील ने अर्जी दी थी, पर जज ने आर्यन खान और 7 अभियुक्तों को जेल भेजने को कहा है, लेकिन परिवार वालों को सभी अभियुक्तों से मिलने की अनुमति भी दी है, जिसके परिणामस्वरुप गौरी खान अपने बेटे आर्यन से मिलने एनसीबी दफ्तर पहुंची है. आज रात ये सभी 8 अभियुक्त एन सी बी के दफ्तर के लॉकअप में न्यायायिक हिरासत में रहेंगे, क्योंकि इन सभी ने कोविड 19 का टेस्ट नहीं करवाया है और जेल अधिकारी ने इन्हें जेल में रखने से इनकार कर दिया है.

कितनी घातक होती है ये पार्टियाँ

ड्रग का ये धंधा विश्वव्यापी है, इसमें फंसने वाले अधिकतर यूथ ही होते है. बॉलीवुड ही नहीं, देश के अधिकतर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में खासकर होस्टल में रहने वाले यूथ इसकी चपेट में आते है, जिन्हें पेरेंट्स काफी पैसे खर्च कर उच्च शिक्षा के लिए भेजते है, जिसकी जानकारी उन्हें नहीं होती. इस धंधे का फायदा इन ड्रग्स माफियाओं को होता है और नशे की आदी से यूथ खुद को नहीं निकाल पाते और इस दलदल में फंसते जाते है, इससे उनकी शिक्षा उनका भविष्य सब बेकार हो जाती है, क्योंकि ये बदनाम हो जाते है और आम लोगों के बीच अपनी जिंदगी नहीं बिता पाते, जिससे असामयिक मृत्यु और कई जानलेवा बीमारी के शिकार हो जाते है. ड्रग्स के विरुद्ध हर देश में कानून सख्त है, लेकिन इन ड्रग सप्लायरों का काम चलता रहता है, वजह समझना मुश्किल है, पर एक यूथ का भविष्य बेकार हो जाता है.

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Instagram Credit- Viral Bhayani

Akshay Kumar की मां का निधन, सेलेब्स ने दी श्रद्धांजलि

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में इन दिनों बुरी खबरें सुनने को मिल रही हैं. जहां बीते दिनों एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला के अचानक निधन से फिल्म और टीवी इंडस्ट्री सदमे में है तो वहीं बौलीवुड एक्टर अक्षय कुमार (Akshay Kumar) ने फैंस को अपनी मां के निधन की जानकारी दी है, जिसके चलते सेलेब्स सोशलमीडिया पर उनकी मां को श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

ट्वीट करके दी मां के निधन की खबर

कुछ देर पहले ही एक्टर अक्षय कुमार ने ट्वीट करके फैंस और दोस्तों को जानकारी दी है कि उनकी मां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. दरअसल, अक्षय कुमार की मां की तबीयत पिछले कुछ दिनों से नाजुक चल रही थी, जिसके कारण अक्षय अपनी फिल्म की शूटिंग बीच में ही छोड़कर विदेश से भारत लौट आए थे. वहीं आईसीयू में भर्ती होने के बाद अक्षय कुमार की मां की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी, जिसके चलते उन्होंने फैंस से भी दुआ करने की अपील की थी. हालांकि आज सुबह उनका निधन हो गया.

 

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सेलेब्स ने दी श्रद्धांजलि

एक्टर अक्षय कुमार की मां के निधन की खबर मिलते ही सेलेब्स ने सोशलमीडिया के जरिए श्रद्धांजलि देना शुरु कर दिया है. अक्षय कुमार के दोस्त और साथी कलाकार अजय देवगन ने भी उनकी मां के लिए प्रार्थना करते हुए लिखा , ‘डियर अक्की, मुझे बहुत दुख है कि तुम्हारी मां अब इस दुनिया में नहीं हैं. मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं. भगवान तुम्हारे परिवार के लिए शक्ति दें.’ वहीं दीया मिर्जा, शंकर महादेवन जैसे सितारे सोशलमीडिया पर ट्वीट के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

बता दें, हाल ही में एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का निधन हो गया था, जिसके चलते पूरी इंडस्ट्री में शोक का माहौल हो गया था.

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रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः विपुल डी शाह, अश्विन वर्दे व राजेश बहल

निर्देशकः अशीश आर शुक्ला

कलाकारः रिचा चड्ढा, रोनित रॉय, मनु रिषि चड्ढा, गोपाल दत्त तिवारी, नकुल रोशन सहदेव, रिद्धि कुमार, अंजू अलवा नायक, विजयंत कोहली, अब्बास अली गजनवी,  आदित्य राजेंद्र नंदा, बोधिसत्व शर्मा, मिहिर आहुजा, प्रसन्ना बिस्ट,  आएशा प्रदीप कदुसकर,  राजकुमार शर्मा,  मिखाइल कंटू,  आदित्य सियाल व अन्य

अवधिः तीन घंटे दस मिनट,  35 से 44 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः वूट सेलेक्ट

कई डाक्यूमेंट्री व एड फिल्में का निर्देशन करने के बाद फिल्म ‘‘बहुत हुआ सम्मान’’ और चर्चित वेब सीरीज ‘‘अनदेखी’’के निर्देशक अशीश आर शुक्ला इस बार ड्रग्स,  हत्या,  रहस्य,  आशा,  भय,  राजनीति से भरपूर रहस्यप्रधान रोमांचक वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’ का पहला सीजन लेकर आए हैं, जो कि आठ सितंबर से ‘‘वूट सेलेक्ट’’पर स्ट्रीम होगी.

कहानीः

वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’की कहानी है हिमालय की ठंड सर्दियों जैसे एक काल्पनिक शहर रूद्रकुंड की. कहानी के केंद्र में रूद्रकुंड शहर स्थित रूद्र वैली हाई स्कूल के एक छात्र मेहुल अवस्थी(मिहिर आहुजा  )की भयानक हत्या से जुड़ा रहस्य है. रूद्र कंुड की डीएसपी रत्ना संखवार (रिचा चड्ढा), हवलदार आत्मानाथ (राजकुमार शर्मा )व दूसरे पुलिस कर्मियों के साथ मेहुल की हत्या की खबर मिलने पर जंगल  में पहुॅचती है, जहां घने जंगल के बीच एक पेड़ से लटकी हुई मेहुल अवस्थी की लाश मिलती है. पुलिस अपनी जांच की कार्यवाही शुरू करती है, तभी उसी जगह दूसरे पुलिसकर्मी के साथ स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक जयंत पारिख (रोनित रॉय बसु )पहुॅच जाते हैं. जयंत पारिख की बेटी बिन्नी ड्ग्स की लत के चलते आग लगाकर मर चुकी है,  जिसके सदमें से उनकी पत्नी सोनालिखा पारिख(अंजु अल्वा नाइक)आज तक उबर नही पायी है. जयंत पारिख भी अपनी बेटी को बहुत चाहते थे. इसलिए मोहित की हत्या को लेकर जयंत पारिख कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेने लगते हैं. इधर डीएसपी अपनी जांच करते हुए स्कूल पहुंचकर चर्च के फादर मारकस (विजयंत कोहली), स्कूल के प्रिंसिपल थॉमस (गोपाल दत्त तिवारी)के अलावा लड़कांे व लड़कियों से बात करती है. मेहुल अवस्थी को परेशान करने वाले तीन लड़कों इमरान अहमद(बोधिसत्व शर्मा ) , संजय सोनोवाल (आदित्य राजेंद्र नंदा)व जॉन(अब्बास अली)से पूछ ताछ करती है. मेहुल के स्कूल के लॉकर से कैंडी का पैकेट लेकर जाती है और यह पैकेट वह वायु राणावत(नकुल रोशन सहदेव )को दे देती है. अंततः चर्चा शुरू हो जाती है कि मसान ने हत्या की है. पुलिस अफसर रत्ना संखावर और वायु के बीच गहरे संबंध हैं. पता चलता है कि ड्ग्स युक्त कैंडी बनाने व बेचने का काम वायु राणावत कर रहा है, जो कि स्थानीय विधायक मणि राणावत (मनु रिषि चड्ढा )का बेटा है. विधायक होने के साथ साथ मणि शहर के सबसे शक्तिशाली व्यवसायी हंै. वह चाहते हैं कि रूद्रकंुड उनकी उंगलियों के इशारे पर चले. अपनी सत्ता को काबिज रखने के लिए उन्होने बहुत पाप भी किए हैं.

तो वहीं मेहुल अवस्थी की खास दोस्त कलकी रावत(रिद्धि कुमार )भी गायब है. कलकी रात के अंधेरे में रोते हुए बदहवाश सी जयंत पारिख के पास पहॅुंचती है. कलकी को जयंत अपने घर मे छिपाकर रखता है. पता चलता है कि वायु द्वारा जंगल में आयोजित एक पार्टी में छिपकर मेहुल व कलकी, वायु के खिलाफ ड्ग्स से जुड़े होने के सबूत जमा कर रहे थे, जब वहां से बाहर निकलने लगते हैं, तो एक लड़की जबरन कलकी को कैंडी चटा देती है. मेहुल व कलकी जंगल में लेट कर बातें करते हैं और उनके बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. उसके बाद किसी ने मेहुल की हत्या कर दी. सच जानने के लिए प्रयासरत जयंत की वायु व उसके गुंडे पिटायी कर देते हैं. जयंत को वायु के खिलाफ सबूत मिल जाता है. पर रत्ना को जयंत के सबूतों में रूचि नही है. इधर मेहुल की हत्या के लिए कलकी के पिता नरेश रावत (पवन कुमार सिंह) के खिलाफ सबूत मिलते हैं, वायु ही नरेश को पकड़कर रत्ना के हवाले करता है. जयंत की जंाच के अनुसार नरेश निर्दोष है. इसलिए जयंत सारे सबूत गुस्से मंे पुलिस स्टेशन आकर रत्ना शंखवार को दे देता है. रत्नी शंखवार वह सबूत आत्मानाथ को रखने के लिए देती है. मणि राणावत पुलिस स्टेशन में बंद नरेश रावत से मिलने आते हैं. रात में रूद्र कंुड के लोग ‘खून का बदला खून’के नारे के साथ पुलिस स्टेशन पर हमलाकर सबूत के साथ ही नरेश को ले जाकर पुल के उपर बांधकर जिंदा जला देते हैं. यह सब जयंत व कलकी देखकर भी कुछ नही कर पाते. इसके बाद मणि राणावत अपनी राजनीतिक चाल चलता है.  रत्ना को सस्पंेड कर उनके खिलाफ जांच बैठायी जाती है. तब रत्ना को अहसास होता है कि वह गलत लोगांेे के हाथ बिकी हुई थी और अब उसका जमीर जागता है. अब जयंत व रत्ना मिलकर सच की तलाश शुरू करते हैं. तो वहीं नए नए रहस्य सामने आते हैं. हत्याओं का सिलसिला बढ़ जाता है.  जयंत की चर्च के फादर मार्केस से भी बहस होती है. प्रिंसिपल से भी होती है. इधर जिन जिन लोगों पर दर्शक को शक होता है, वह मारे जाने लगते हैं. कहानी में कई मोड़ आते हैं. कई चेहरो ंपर से मुखौटा उतरता है. रहस्य,  डर,  उम्मीद, राजनीति,  इंसानी महत्वाकांक्षा, ड्ग्स का कारोबार,  किशोर वय लड़कियो संग सेक्स करने के अपराध सहित बहुत कुछ सामने आता जाता है.

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लेखन व निर्देशनः

पटकथा लेखकद्वय अग्रिम जोशी और देबोजीत दास पुरकायस्थ साधुवाद के पात्र है. लेखकों ने लोककथा और आधुनिक अपराध कथ का बेहतरीन संमिश्रण किया है. इस वेब सीरीज में काल्पनिक शहर रूद्रकंुड के माध्यम से लेखक ने राजनीतिक गंध,  हत्या, राजनीति का अपराधीकरण, उम्मीद, डर, अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए इंसान किस हद तक जा सकता है, रिश्तों की हत्या से लेकर धर्म की आड़ मेंं होने वाले गंभीर आपराध जैसे सारे मुद्दों को बाखूबी पेश करते हुए रहस्य व रोमांच को बरकरार रखा है. इसमें इस बात का भी बाखूबी चित्रण है कि ड्ग्स माफिया किस तरह स्कूली बच्चों को ड्ग्स की लत का शिकार बनाकर बर्बाद कर रहा है. वेब सीरीज ‘कैंडी’ की कहानी के केंद्र में आवासीय विद्यालय,  किशोरवय बच्चे व ड्रग्स है. लेकिन निर्देशक आशीश आर शुक्ला ने कहीं भी ड्ग्स के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए उपदेशात्मक भाषणबाजी का सहारा नही लिया है.

कहानी की शुरूआत धीमी गति से होती है, मगर दर्शक बोरनही होता. उसका दिमाग सच जानने की  उत्सुकतावश वेब सीरीज ‘कैंडी’ के साथ जुड़ा रहता है. आठवें एपीसोड तक दर्शक असली हत्यारे तक नही पहुंच पाता और जब आठवें एपीसोड के अंत में सच सामने आता है, तो दर्शक हैरान रह जाता है. यह कुशल लेखन व अशीश आर शुक्ला के उत्कृष्ट निर्देशन के ही चलते संभव हो पाया है. लेखक व निर्देशक ने हर चरित्र को कई परतों में लपेट कर रहस्य को गहराने का काम किया है. निर्देशक ने कथानक के उपयुक्त तथा रहस्य को गहराने के लिए लोकेशन का भी बेहतरीन उपयोग किया है. घने और अंधेरे जंगल,  घुमावदार सड़कें,  सुरम्य पहाड़ियाँ और नैनीताल की भव्य जमी हुई झील का निर्देशक ने अपनी कथा को बयंा करने के लिए बेहतर तरीके से उपयोग किया है.  इमोशंस भी कमाल का पिरोया गया है. काल्पनिक कहानी होते हुए भी वास्तविकता का आभास कराती है. जयंत पारिख व उनकी पत्नी सोनालिखा के बीच के पारिवारिक रिश्तों को ठीक से नही गढ़ा गया है. जबकि लेखक व निर्देशक ने इसमें स्वाभाविक तरीके से अपरंपरागत संबंधों को उकेरा है. इस वेब सीरीज को देखकर दर्शक यह कहे बिना नही रह सकता कि रूद्रकुंड  शहर में जो दिखता है, वह होता नहीं. .

नैनीताल में फिल्मायी गयी इस वेब सीरीज के कैमरामैन बधाई के पात्र हैं, उन्होने यहां की प्राकृतिक सुंदरता को इस तरह से कैमरे के माध्यम से पकड़ा है कि दर्शक इस जगह जाने के लिए लालायित हो उठता है.

 

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अभिनयः

कुटिल व सशक्त पुलिस अफसर तथा सिंगल मदर रत्ना शंखावर के किरदार को अपने शानदार अभिनय से रिचा चड्ढा ने जीवंतता प्रदान की है. कई दृश्यों में रिचा अपने चेहरे के भावों से बहुत कुछ कह जाती हैं. रिचा ने पुलिस अफसर के कर्तव्य को निभाने वक्त अपने रोमांस की कमजोरी के चलते अपराधी को नजरंदाज करने के दृश्यों को काफी वास्तविकता प्रदान की है. सच को सामने लाने और स्कूली बच्चों को ड्ग्स के चंगुल से छुड़ाने के लिए तड़पते शिक्षक जयंत के किरदार में रोनित रॉय ने एक बार फिर अपनी अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता का परिचय दिया है. कलकी के किरदार में रिद्धि कुमार अपने अभिनय से आश्चर्य चकित करती हैं. कई दृश्यों में वह बिना कुछ कहें बहुत कुछ कह जाती हैं. ड्ग्स व सिगरेट में डूबे रहने वाले वायु राणावत के किरदार के साथ नकुल रोशन सहदेव ने पूरा न्याय किया है. नकुल ने अपने दांतों, बॉडी लैंगवेज ,  बार-बार आँख झपकना और किसी की परवाह न करना आदि के माध्यम से अपने किरदार वायु को एक  अपराधी के रूप में पेश करने में सफल रहे हैं. कई दृश्यों में वह अपने अभिनय से रहस्य को गहराई प्रदान करते हैं. मनु ऋषि चड्ढा अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. अन्य सह कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही हैं.

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REVIEW: अति नाटकीय ऐतिहासिक कास्ट्यूम ड्रामा है ‘द एम्पायर’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः निखिल इडवाणी, मधु भोजवानी

निर्देशकः मिताक्षरा कुमार

कलाकारः कुणाल कपूर,  दृष्टि धामी,  डिनो मोरिया,  शबाना आजमी,  राहुल देव,  आदित्य सील, साहेर बंबा व अन्य.  

अवधिः कुल अवधि – पांच घंटे 42 निमट ,  35 से 52 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी

इन दिनों जब वर्तमान सरकार भारत के इतिहास के पुर्नलेखन पर  काम कर रही है, तभी निर्माता निखिल आडवाणी और निर्देशक मिताक्षरा कुमार भारत में मुगल साम्राज्य के उत्थान व पतन पर  छह सीजन तक चलने वाली वेब सीरीज ‘‘द एम्म्पायर ’’ का पहला सीजन लेकर आए हैं. जो कि ब्रिटिश लेखक एलेक्स रदरफोर्ड के छह भाग के उपन्यासों ‘‘एम्पायर औफ द मोगुलः रेडर्स फ्रॉम द नॉर्थ’’पर आधारित है. आठ एपीसोड की यह सीरीज ‘‘हॉट स्टार डिज्नी’’ पर 27 अगस्त से स्ट्रीम हो रही है. अफसोस की बात यह है कि इसमें इतिहास कम, बौलीवुड मसाला फिल्मों के सारे तत्व मौजूद हैं. पहले सीजन में उत्तर मध्य एशिया में 14 वर्ष की उम्र में बादशाह बनने से हिंदुस्तान के शासक बनने व उनकी मौत तक बाबर के जीवन की कहानी है. शायद फिल्मकारों ने वर्तमान हालात में विवादों से बचने के लिए कम से कम इतिहास को छूने की कोशिश की है.

कहानीः

वर्तमान उज्बेकिस्तान 14वीं-15वीं सदी में तुर्क-मंगोलों के अधीन था. वहां स्थित समरकंद और फरगना राज्यों से बाबर की कहानी शुरू होती है. कहानी ‘शुरू होती है 1526 एडी, पानीपत की पहली लड़ाई से, जहां जहां युद्ध के मैदान में लगभग परास्त हो चुका जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर अपनी जिंदगी की यात्रा को याद कर रहा है. फिर कहानी फ्लैशबैक में समरकंद और फरगना पहुंचती है.

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कहानी शुरू होती है खंूखार शासक शैबानी खान (डिनो मोरिया) के अत्याचारों व समरकंद के शासक व उनके तीन बेटांे का सरेआम बुरी तरह से कत्लेआम से. अब उसकी नजर फरगान पर है. फिर कहानी फरगान पहुॅचती है.  किशोरवय बाबर के पिता उसे विश्व के सर्वाधिक खूबसूरत देश हिंदुस्तान में बसने का का ख्वाब दिखाते हैं, जो कि फरगना से काफी दूर है. बाबार के रहम दिल व शेरो शायरी के पिता की राय में तुर्क-मंगोलों-अफगानों की धरती पर जिंदगी की कभी खत्म न होने वाली मुश्किलें हैं और आततायी दुश्मनों से कड़ा संघर्ष है.  जबकि हिंदुस्तान इस धरती की जन्नत है.

तभी शैबानी खान (डिनो मोरिया) की तरफ से धमकी भरा पत्र आता है. और कई लोग गद्दारी कर शैबानी खान की मदद करते हैं, तथा बाबर के पिता मारे जाते हैं.  जिसके चलते 14 वर्ष की उम्र में बाबर को उनकी नानी अर्थात शाह बेगम (शबाना आजमी) फरगना के तख्त पर बैठा देती है. पर शैबानी खान की नजरें समरकंद के बाद फरगना पर भी हैं. बाबर अमन पसंद है.  उसे परिवार तथा आवाम की चिंता है.  वह खून-खराबा नहीं चाहता.  उसे पिता का दिखाया ख्वाब भी याद है.  बाबर, शैबानी खान के सामने प्रस्ताव रखता है कि अगर उसे परिवार और शुभचिंतकों समेत किले से निकल जाने दे,  वह हमेशा के लिए चला जाएगा.  शैबानी मान जाता है मगर इस शर्त पर कि बाबर अपनी खूबसूरत बहन खानजादा (दृष्टि धामी) वहीं उसके पास छोड़ जाए. बाबर अपनी बहन खानजादा को शैबानी खान का गुलाम बनाकर अपने खानदान व विश्वास पात्र लोगों के साथ दर दर भटकता है. उसके साथ उसका दोस्त कासिम भी है और बहन के गम में अपने शरीर पर कोड़े बरसाने व शराब पीने लगता है. अंततः रानी, वजीर खान उसे उसका मसकद याद दिलाते हैं. फिर बाबर धीरे धीरे अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने लगते हैं. पहले माहम से विवाह करते हैं, फिर काबुल की शहजादी से विवाह कर काबुल के बादशाह बना जाते हैं. अलग अलग रानियों से हुमायंू व कामरान सहित तीन बेटों के पिता बनते हैं. फिर पिता की बात याद कर इब्राहिम लोधी को हरकार हिंदुस्तान की सल्तनत पर काबिज होेते हैं. पर घर की कलह और अपनी विरासत दो काबिल बेटों,  हुमायूं और कामरान में से किसे सौंपे की चिंता अंततः उन्हे मौत तक ले जाती है.

लेखन व निर्देशनः       

वेब सीरीज में बाबर की जिंदगी के उतार-चढ़ाव और संघर्षों का चित्रण है. जिसमें राजनीतिक व पारिवारिक संघर्ष भी है. तो वहीं बाबर की जिंदगी पर उनकी नानी के अलावा बहन खानजादा और बेगमों के असर का भी चित्रण है. तो वहीं बाबर और कासिम के बीच ‘गे’सबंध पर भी हलका सा इशारा है. सीरीज में बार-बार बाबर के साथ उसकी किस्मत का भी जिक्र होता है.  इस सीरीज में बाबर को खून का प्यास नही बल्कि नर्मदिल,  विचारवान और दार्शनिक व्यक्ति की तरह पेश किया गया है.

इसका हर एपीसोड भव्यता के साथ बनाया गया है. कास्ट्यूम वगैरह पर भी खास ध्यान दिया गया है. मगर इतिहास पर गहराई से ध्यान नही दिया गया. बतौर निर्देशक मिताक्षरा कुमार ने कहानी को इतिहास के नजदीक रखने के बजाय भावनाओं के करीब रखा है.  युद्ध के दृश्यों को आकर्षक और भव्य ढंग से शूट किया गया है.  पहले दो एपीसोड जिस तरह से फिल्माए गए हैं, वह काफी कुछ भ्रमित करते हैं. पहले दो एपीसोड मेंे उर्दू के कठिन शब्द वाले संवाद भी हैं. जिसके चलते दर्शक अगले एपीसोडों की तरफ बढ़ने से पहले सोचने पर विवश हो जाता है. तीसरे एपीसोड से पटकथा सही ढर्रे पर चलती है. लेकिन कहानी कई बार 10 से 18 साल आगे बढ़ी , पर फिल्मकार बता नही पाए कि यह वक्त कैसे गुजरा?1526 में शुरू हुई कहानी 30 से 40 वर्ष पीछे जाती है. इन तीस वर्षों की कथा का सही अंदाज में चित्रण नहीं किया गया है. तीस वर्ष का समय बीतता है, मगर किरदारों के चेहरे से उम्र में बदलाव नही आता. जवानी व चमकदमक ज्यो की त्यों बरकरार रहती है. यह सब अखरता है. यह निर्देशक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है.

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अभिनयः

खूंखार व निर्दयी शैबानी खान के किरदार को डिनो मोरिया ने बड़ी मश्क्कत के साथ चित्रित किया है. बाबर के किरदार में कुणाल कपूर का अभिनय शानदार है. कई जगहों पर उनके भावुक दृश्य बढ़िया हैं. बाबार की बहन खानजादा के किरदार में दृष्टि धामी सुंदर दिखने के साथ खानजादा को अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. दृष्टि धामी लोगों को याद रह जाती हैं. वह अपनी चैड़ी आँखों से काफी कुछ कह जाती हैं. सख्त दिल और अपने मकसद को पूरा कराने वाली नानी के किरदार में शबाना आजमी अपना प्रभाव छोड़ती हैं. वैसे भी शबाना आजमी एक बेहतरीन अदाकारा हैं, इसमें कोई दो राय नही है. राहुल देव,  इमाद शाह,  आदित्य सील (हुमायूं) समेत अन्य कलाकारो का अभिनय ठीक ठाक है.

मॉडल यावर मिर्जा को अभिनय में किसका मिला साथ?

दबंग,बाडीगार्ड,रेडी,दबंग 2,फुगली, प्रेम रतन धन पायो, मस्तीजादे,मित्रों ,राधे जैसी फिल्मों के नृत्य निर्देशक मुदस्सर खान के नए म्यूजिक वीडियो ‘‘सात समुंदर पार’’से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत बटोर चुके मॉडल यावर मिर्जा ने अभिनय की शुरूआत की है. इस म्यूजिक वीडियो में यावर मिर्जा के साथ टीवी अदाकारा निया शर्मा नजर आ रही हैं,जो कि ‘एक हजारों में मेरी बहना’, ‘कालीः एक अग्निपरीक्षा’,‘जमाई राजा’जैसे सीरियलों और विक्रम भट्ट की ईरोटिक रोमांचक वेब सीरीज ‘‘ट्विस्टेड’’ में अभिनय कर शोहरत बटोर चुकी हैं.

मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वाले यावर मिर्जा कहते हैं-‘‘मैं हमेशा से अभिनय को कैरियर बनाने के अलावा बौलीवुड का हिस्सा बनना चाहता था. मुझे हमेशा मॉडलिंग में सराहना मिली.  शोहरत मिली. पर जब मैं मुंबई आया, तो मैंने अभिनय करने का अवसर पाने के लिए अॉडीशन देने के साथ ही अपने शरीर को उपयुक्त बनाने के लिए लगातार काम करता रहा. कुछ दिन बाद मुझे अहसास हुआ कि मुझे पहले मॉडल के रूप में शोहरत बटोरनी चाहिए.

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उसके बाद मुझे म्यूजिक वीडियो,टीवी सीरियल, वेब सीरीज और फिल्मों में अभिनय करने के लिए प्रयास करना चाहिए. कड़ी मेहनत का फल तब मिला,जब मुझे टीवी स्टार निया शर्मा के साथ म्यूजिक वीडियो ‘सात समुंदर पार‘ में हीरो बनकर अभिनय करने  का अवसर मिला. जब मुझे यह गाना सुनाया गया,तो मैं उत्साहित हो गया. इस गाने में हम दोनों की केमेस्ट्री और एनर्जी कमाल की है. यह गाना मशहूर नृत्य निर्देशक मुदस्सर खान ने निर्देशित किया है,जबकि इसका निर्माण ‘टी वाई एफ प्रोडक्शन फिल्म्स’और सह निर्माण रुचिका महेश्वरी ने किया है. ’’

गीत ‘‘सात समुंदर पार’’को  देव नेगी और निकिता गांधी ने अपनी आवाज में स्वरबद्ध किया है. जबकि रैपर एनबी निखिल बुधराजा ने गाने में रैपिंग पार्ट किया है. इसके संगीतकार विवेक कर हंै. टी वाई एफ की प्रोडक्शन मैनेजर अनुशी अरोड़ा और प्रोडक्शन कंट्रोलर लविश कुकरेजा ने मुंबई में शूटिंग के वक्त सारे प्रबंध किए. यह गाना बहुत जल्द ही बाजार में आएगा.

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डेल्फिक काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र’ के आधिकारिक ‘लोगो’ का हुआ अनावरण, सेलेब्स हुए शामिल

2500 वर्ष पहले प्राचीन ग्रीस में ‘‘डेल्फिक गेम्स’’की शुरूआत हुई थी और इन्हें ओलंपिक के समान माना जाता है.  ओलंपिक शारीरिक खेलों के लिए जाने जाते हैं, जबकि ‘डेल्फिक गेम्स’कला और संस्कृति को बढ़ावा देते हैं. डेल्फिक गेम्स – संगीत और ध्वनि,  परफॉर्मिंग आर्ट्स,  भाषा-आधारित कला,  व्हिज्युअल आर्ट्स,  सामाजिक कला,  पर्यावरण कला और वास्तुकला सहित छह प्रमुख कला श्रेणियों का प्रतिनिधित्व कर,  सैकड़ों उप- श्रेणियों और शैलियों को तथा कई नए प्रकार की कला,  कलाप्रेमी और विभिन्न कलाकारों के लिए एक सामान मंच प्रदान करने का एक अमूल्य काम करता है. आधुनिक डेल्फिक खेलों को 1994 में पुनर्जीवित किया गया था. कला और संस्कृति की उन्नति और उस संदर्भ में विचार- विमर्श करने के लिए डेफ्लिक गेम्स एकमात्र वैश्विक मंच है.  बर्लिन स्थित आंतरराष्ट्रीय डेल्फिक गेम्स का आयोजन दुनिया भर में हर चार वर्ष में एक बार किया जाता है. अब तक यह प्रतियोगिता आठ देशों की यात्रा कर चुकी है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे विभिन्न देशों में डेल्फिक गेम्स के कुल 3 सत्रों में भाग लेकर स्वर्ण और रजत पदक जीते हैं.

भारत में ‘डेल्फिक खेलों’’को बढ़ावा देन के मकसद से कुछ वर्ष पहले भारत में ‘‘इंडियन डेल्फिक काउंसिल’’का गठन किया गया था. धीरे धीरे इस तरह के खेलों को लेकर भारत के राज्यो में काम किया गया. अब तक महाराष्ट् राज्य सहित देश के 22 राज्यों मंे डेल्फिक खेलों को लेकर संगठन बने हुए हैं. महाराष्ट् राज्य में हाल ही में ‘‘डेल्फिक काउंसिल आफ महाराष्ट्’’का गठन किया गया, जिसके प्रतीक चिन्ह ‘लोगो’का अनावरण कई फिल्मी हस्तियो की मौजदूगी में महाराष्ट्र के राज्यपाल माननीय भगत सिंह कोश्यारी के हाथों किया गया. ‘‘डेल्फिक काउंसिल अॉफ महाराष्ट्र’’ का प्रतीक चिन्ह(लोगो) ‘पानी‘ है और प्राचीन काल से डेल्फिक गेम्स का यह एक अनूठा प्रतीक है. ‘कई कलाओं के माध्यम से शांति’ प्रस्थापित करने का रूपक ‘पानी‘ है. अंतर्राष्ट्रीय डेल्फिक काउंसिल एक गैर- सरकारी,  गैर-राजनीतिक,  गैर- सांप्रदायिक,  गैर-धार्मिक संगठन है.  यह दुनिया का एकमात्र मंच है, जो कला और संस्कृतियों का पोषण कर समाज में शांति का संदेश देता है.

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इस मौके पर शास्त्रीय नृत्यांगना,  अभिनेत्री और सांसद हेमा मालिनी उद्घाटन समारोह में सम्मानित अतिथि, वरिष्ठ अभिनेता और राष्ट्ीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष परेश रावल मुख्य अतिथि के अलावा प्रसिद्ध उद्योगपति यश बिरला, अभिनेत्री भाग्यश्री,  हफीज कॉन्ट्रॅक्टर,  देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर,  सलीम-सुलेमान,  श्रेयस तलपड़े, गणेश आचार्य,  बॉस्को-सीजर,  तेजस्विनी कोल्हापुरे व इंडियन डेल्फिक काउंसिल के प्रतिनिधि रमेश प्रसन्ना और डेल्फिक काउंसिल अॉफ महाराष्ट्र के अन्य अधिकारी भी इस समारोह में मौजूद थे.

‘‘डेल्फिक काउंसिल अॉफ महाराष्ट्र’’के अध्यक्ष साहिल सेठ, उपाध्यक्ष सुरेश थॉमस, महासचिव अपराजित अवि मित्तल व संयुक्त महासचिव श्रीमती.  प्रणिता पंडित, अली अकबर रिजवी को कोषाध्यक्ष के तौर पर चुना गया. जबकि डेल्फिक काउंसिल ने कुछ श्रेणियों को विभाजित कर उनके कई संचालक भी घोषित किए. संगीत कला एवं ध्वनि के विभाग पर सुलेमान मर्चेंट, सामाजिक कला विभाग पर राजवीर कौशिक,  व्हिजुअल आर्ट्स विभाग पर श्रीमती बीना तलत,  पर्यावरणीय कला और वास्तुकला (आर्किटेक्चर) इस विभाग पर विनय अग्रवाल, तो परफॉर्मिंग आर्टस् एवं इरोबटिक्स विभाग पर अमित कपूर को नियुक्त किया गया. जबकि श्रीमती अमिता भट और श्रीमती रचना पुरी को क्रमशः भाषा कला और वक्तृत्व व डेल्फिक क्लब और सदस्यता विभाग के संचालक पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है. तो वहीं सलाहकार के तौर पर यश बिरला (बिरला ग्रुप), देवेंद्र सिंह तोमर (केंद्रीय कृषी मंत्री), डॉ.  अली इराणी (नानावटी हॉस्पिटल), क्वेझर खालिद (पोलीस कमिशनर रेल्वे मुंबई),  सलीम मर्चंट (संगीत निर्देशक),  साक्षी तंवर (अभिनेत्री) हैं. डेल्फिक कौंसिल की अलग अलग समितियांे के साथ नृत्य निर्देशक बॉस्को, फैशन डिजायनर एमी बिलामोरिया, अभिनेत्री सुचित्रा कृष्णमूर्ती , नृत्य निर्देशक गणेश आचार्य, अभिनेत्री तेजस्वनी कोल्हापुरी, फिल्ू निर्देशक निवेदिता बसु, जरीन खान, तेज सप्रू, राघव सच्चर,  टिस्का चोपड़ा व पवन नागपाल का समावेश है.

इस अवसर पर हेमा मालिनी ने कहा-“महामारी के कारण पिछले वर्ष से दुनिया में निराशा की भावना है, लेकिन इस कठिन अवसर ने हमारे जीवन में कला और संस्कृति के महत्व को मजबूत किया है. हमें कुछ ऐसा चाहिए, जो हमारे दिल और आत्मा को छू जाए और हमारे मन को शांत करे और हमारे भीतर प्रेरणा निर्माण करे ऐसे कुछ शब्दों की हमें जरुरत है. भारत में अपार प्रतिभा है. योग को दुनिया के सामने लाने में आपने जो मेहनत की है,  मुझे उम्मीद है कि ठीक उसी तरह डेल्फिक आंदोलन के नेतृत्व में आप नई प्रतिभाओं को दुनिया के सामने लाने में सफल होंगे. ‘‘

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‘डेल्फिक काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र’ के अध्यक्ष व भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी साहिल सेठ ने कहा- “भारत में डेल्फिक काउंसिल से जुड़ना और कला और संस्कृति के विकास को बढ़ावा देना मेरे लिए गर्व की बात है. यह न केवल लोगों को एक साथ लाने का बल्कि राज्य और उसके लोगों के लिए वैश्विक मौका प्रदान करने का एक साधन है. महाराष्ट्र में कला और संस्कृति की समृद्ध विरासत और डेल्फिक काउंसिल के कारण, हम इस विरासत के माध्यम से समाज प्रबोधन का कार्य करने की कोशिश करेंगे.  हम जल्द ही अपनी पहली पहल की घोषणा करेंगे,  जिसमें बच्चों के लिए कला,  एक लघु फिल्म समारोह और बहुत कुछ शामिल होगा. ‘‘

आखिर Actor विनय पाठक को किस बात का है पछतावा, पढ़ें इंटरव्यू

अभिनेता विनय पाठक का नाम आज दिग्गज कलाकारों की सूची में शामिल है. उन्होंने कभी ह्यूमर के साथ हंसाया,तो कभी संजीदा अभिनय से दर्शकों को रुलाया. यही वजह है कि उन्हें हर निर्माता, निर्देशक अपनी फिल्मों में कास्ट करना चाहते है. विनय पाठक ने अभिनय की शुरुआत थिएटर से किया, इसके बाद विदेश में पढ़ाई करते हुए उन्होंने फिल्म ‘खोसला का घोसला’ और ‘भेजा फ्राई’ दो फिल्में की. दोनोंफिल्मों के हिट होने के बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. विनय पाठक अभिनेता के अलावा टीवी प्रेजेंटर और निर्माता भी है. बिहार के रहने वाले विनय पाठक थिएटर में काम करना सबसे अधिक पसंद करते है.वे सामाजिक काम करते है, पर किसी से बताना पसंद नहीं करते. उनके हिसाब से हर व्यक्ति को अपने आसपास कुछ काम दूसरों के लिए करते रहना चाहिए. अमेजन मिनी टीवी पर उनकी एंथोलोजी ‘काली पिली टेल्स’ रिलीज होने वाली है. उन्होंने अपनी जर्नी को शेयर किया, आइये जाने उन्हीँ से.

सवाल- इस तरह की एंथोलोजी में  कामकरने की वजह क्या रही?

मुझे निर्देशक ने कहानी सुनाई और मुझे लगा कि ये फीचर फिल्म है, लेकिन जब काम करने गया तब पता चला कि ये शार्ट फिल्म की फोर्मेट पर मुंबई की मॉडर्न लाइफ, जिसमें प्यार , रिश्ते, बेवफाई, समलैंगिक, शादी आदि विषयों को लेकर 6 छोटी-छोटी कहानियोंपर बनी एंथोलोजी है, जिसमें मैं और सोनी राजदान एक कपल की भूमिका निभा रहे है, हमारी शादी नहीं हुई है, पर एक बेटी है. इसके अलावा नयी कांसेप्ट, स्क्रिप्ट और सोनी राजदान के साथ काफी सालों बाद अभिनय करना मेरे लिए खास थी.

सवाल- इस तरह की एंथोलोजी को ओटीटी प्लेटफार्म पर दर्शक अभी कोविड पीरियड में एन्जॉय कर रहे है, क्या सबकुछ नार्मल होने के बाद दर्शकों को थिएटर तक लाना कठिन होगा?

अभी हम सब ने इन नन्ही-नन्ही फिल्मों को बनाया है और दर्शक घर पर बैठकर इसे एन्जॉय करें,क्योंकि लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में है और उनका मनोरंजन करवाना मेरा दायित्व है.

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सवाल- आजकल ओटीटी पर काफी अच्छी-अच्छी कहानियों की फिल्में और वेब सीरीज आ रही है,लोग दिन-रात मोबाइल पर लगे है, लेकिन मुंबई जैसे शहर में लोग पहले भी मोबाइल पर फिल्म देखते हुए लोकल ट्रेन में चढ़ते-उतरते थे, जिससे कई बार हादसे की शिकार होने सेलड़कियां बची है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

लोकल ट्रेन की बात करें, तो हर शहर का मिजाज अलग होता है. कोलकाता जैसी शहर में उतनी भीड़ लोकल ट्रेन में नहीं होती, जितनी मुंबई में होती है. मनोरंजन हर किसी के लिए जरुरी है, लेकिन समय के अनुसार करने पर किसी प्रकार की समस्या नहीं होती.

सवाल- आप हर फिल्म में अपनी एक जगह बना लेते है और दर्शक आपको याद रखते है, इसे कैसे कर पाते है?

ये तो स्क्रिप्ट और डायरेक्टर का कमाल होता है.  मैं तो उनके अनुसार काम करता रहता हूं. इसके अलावा सोनी राजदान के साथ काम कर बहुत अच्छा लगा, क्योंकि अभिनय की शुरुआत में मैंने सोनी राजदान  के साथ एक सीरीज ‘साहिल’ की एक दृश्य में अभिनय किया था और अब हम दोनों एक कपल के रूप में आये है. बहुत मजा आया, बहुत सारी बातें राजनीति, आसपास की घटनाओं के बारें में चर्चा की है.

सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी इंडस्ट्री में तय की है, कैसे इसे लेते है?

मैं अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूं, क्योंकि मैंने कभी किसी भी काम के लिए कोई प्लान नहीं किया था. प्लान करें भी, तो वैसा जिंदगी में होता नहीं है. अच्छी बात यह है कि मुझे हमेशा अच्छे लोगों का साथ मिला. शुरुआत मैंने रंगमंच के साथ किया. अभी भी मैं नाटकों में काम करता हूं. इससे मुझे अच्छे कलाकार दोस्त मिले. मुझे बहुत सीखने को मिला और मैं आगे बढ़ता गया.

सवाल- आप अभिनय के बाद अपने चरित्र को कितने समय में भूल पाते है? क्या यह मुश्किल होता है?कभी अपने काम से पछतावा हुआ?

मैंने अपने अभिनय को तीन प्लगों में बांटा है. लाल रंग के प्लग, जिसमें बहुत ही सीरियस भूमिका ,सफ़ेद प्लग जो कॉमिक रोल के लिए होता है और काली प्लग ऐसी है, जिसमें मैं अपनी भूमिका को समझ नहीं पाता और निर्देशक के कहने पर कर देता हूं. इसी तरह प्लग केअनुसार मैं अपनी भूमिका निभाता हूं. जिससे एक्टिंग करने में आसानी होती है और घर मैं किसी चरित्र को भी लेकर नहीं जाता. जब मैं किसी भी कहानी को सुनता हूं और वह अगर पसंद आ जाती है तो उसी में कूद पड़ता हूं. बाद में गलत समझ आने पर भी कुछ नहीं कर पाता. पछतावा होता है, क्योंकि पछतावे के बिना कोई जिंदगी नहीं.

सवाल- हंसी का सफ़र आपके जिंदगी में कबसे शुरू हुआ?

ये मुझे आजतक भी पता नहीं चल पाया कि ये कैसे शुरू हो गया. मैंने कभी कुछ क्रिएट नहीं किया. परिस्थिति के अनुसार होता गया. कॉमेडी वही है,जिसमें आप जो सोचते है, होता कुछ और है, जिससे दर्शकों और पाठकों को हंसी आती है.

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सवाल- अभिनय के अलावा और क्या करना पसंद करते है?

मैं थिएटर करता हूं ,इसके अलावा समय मिले, तो लिखता और बहुत भ्रमण करता हूं. मेरा पहला प्यार ट्रेवल है, इसके बाद आर्ट आती है. मैंने कहानी लिखी है, उसकी फिल्म बनाने की इच्छा है.

सवाल- आपके यहाँ तक पहुँचने में परिवार का सहयोग कितना रहा है?

परिवार के सहयोग के बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, जहाँ पैसे की हमेशा कमी होती है औरमैं अपनी इच्छा के अनुसार काम नहीं कर पाता था. सामंजस्य हर जगह करनी पड़ती है. मेरे माता-पिताने बहुत सपोर्ट किया है.उनका कहना था कि तुम जिस क्षेत्र में जा रहे हो, मुझे पता नहीं और हम चाहे भी तो कुछ तुम्हारे लिए नहीं कर सकते,क्योंकि उस क्षेत्र के बारें में मेरी जानकारी नहीं है. मैं अपनी मंशा से इस क्षेत्र मेंआया.माता-पिता अगर बच्चों के सपनों को पूरा करने मेंमानसिक सहयोग देते है, तो ये बहुत बड़ी बात होती है. अभी मुझे मेरी पत्नी और बच्चे भी सहयोग देते है.

पहली बार कैमरे में कैद हुआ करीना के बेटे Jeh Ali Khan का चेहरा, वीडियो वायरल

बीते कुछ दिनों से बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) अपने दूसरे बेटे जेह अली खान के चलते सुर्खियों में हैं. जहां फैंस उनके नाम जानने के बाद बेहद खुश हैं. तो वहीं ट्रोलर्स उन्हें ट्रोल करते नजर आ रहे हैं. इसी बीच करीना कपूर के दूसरे बेटे जेह अली खान (Jeh Ali Khan) का चेहरा फैंस के सामने आ गया है, जिसकी वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

वायरल हुई जेह की वीडियो

 

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दरअसल, करीना बीते दिन अपने पिता रणधीर कपूर (Randhir Kapoor) के घर, परिवार के साथ पहुंची तो उनके नन्हे बेटे जेह अली खान की एक झलक मीडिया के कैमरे में कैद हो गई है, जिसमें उनका चेहरा साफ नजर आ रहा है. वहीं सोशलमीडिया पर यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है.

 

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फैंस कर रहे हैं तारीफें

 

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करीना के दूसरे बेटे जेह अली खान की पहली झलक देखने के बाद फैंस उन्हें बिल्कुल अपने बड़े भाई तैमूर अली खान का हमशक्ल बता रहे हैं. इसी बीच जहां जेह अली खान (Jeh Ali Khan) की वायरल वीडियो देखने के बाद जहां कुछ लोग उनकी क्यूटनेस की तारीफें कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग मीडिया के अचानक फोटोज खींचने से नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.

बता दें, करीना कपूर खान के दूसरे बेटे जेह का पूरा नाम जहांगीर अली खान है, जिसे जानने के बाद वह काफी ट्रोलिंग का सामना भी कर रहे हैं. इसी बीच करीना कपूर ने अपनी सरोगेसी को लेकर भी कई खुलासे किए हैं, जिसे जानने के बाद फैंस काफी हैरान हैं. हालांकि कई लोग उनका सपोर्ट कर रहे हैं.

वीडियो एंड फोटोज क्रेडिट- Viral Bhayani

REVIEW: जानें कैसी है सिद्धार्थ मलहोत्रा और कियारा अडवाणी की फिल्म Shershah

रेटिंगः चार स्टार

निर्माताः काश इंटरटेनमेंट और धर्मा प्रोडक्शन

निर्देशकः विष्णु वर्धन

कलाकारः सिद्धार्थ मलहोत्रा, कियारा अडवाणी, शिव पंडित, जावेद जाफरी, निकितन धीर, हिमांशु मल्होत्रा, साहिल वैद्य, राज अर्जुन, कृष्णय बत्रा, मीर सरवर व अन्य.

अवधिः दो घंटा 17 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम

1999 में पाकिस्तान ने कारगिल की पहाड़ियों पर कबजा कर लिया था, मगर बाद में भारतीय  जवानों ने 16 हजार फिट की उंचाई पर बर्फीली पहाड़ी पर बैठे पाक सैनिको को अपने शौर्य के बल पर खत्म कर पुनः कारगिल पर कब्जा जमाया था. उसी कारगिल युद्ध के परमवीर चक्र विजेता शहीद विक्रम बत्रा पर फिल्म ‘शेरशाह’आयी है. उसी कारगिल युद्ध पर  एलओसी,  लक्ष्य,  स्टंप्ड,  धूप,  टैंगो चार्ली और मौसम से लेकर गुंजन सक्सेना जैसी फिल्में बनी हैं.  मगर शेरशाह इनसे अलग है.

कहानीः

कहानी जम्मू कश्मीर राइफल की 13 बटाइलन की है, जो कि रिजर्ब फोर्स है. मगर कारगिल युद्ध में इसे ही कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में पाक सेना द्वारा कब्जा की गयी कारगिल की जमीन को वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, जिसे कैप्टन विक्रम बत्रा व उनके साथियों ने अपनी जान गंवाकर पूरी करते हुए पाकिस्तानी सेना का सफाया कर दिया था.

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फिल्म की शुरूआत विक्रम बत्रा के बचपन से होती है, और टीवी कार्यक्रम देखकर वह सैनिक बनने का निर्णय लेते हैं. कालेज में पढ़ाई करते हुए डिंपल(कियारा अडवाणी) से उनका प्यार हो जाता है. डिंपल का परिवार सिख है और विक्रम बत्रा(सिद्धार्थ मल्होत्रा) पंजाबी खत्री हैं. इस वजह से डिंपल के पिता इस व्याह के लिए तैयार नही होते. तब विक्रम मर्चेंट नेवी मंे जाने की बात करता है. इसी आधार पर डिंपल अपने पिता से लड़कर विक्रम से ही शादी करने का फैसला सुना देती है. लेकिन विक्रम का दोस्त सनी उसे समझाता है कि महज शादी करने के लिए वह अपने सैनिक बनने के सपने को छोड़कर गलती कर रहा है. तब फिर से विक्रम सेना में जाने का फैसला करता है, इससे डिंपल को तकलीफ होती है. पर वह विक्रम के साथ खड़ी नजर आती है. ट्रेनिंग लेकर विक्रम बत्रा जम्मू कश्मीर राइफल की तेरहवीं बटालियन में पहुंचकर अपने सहयोगियों के साथ ही कश्मीर की जनता के बीच घुल मिल जाते हैं. पहले वह आतंकवादी गिरोह के अयातुल्ला को पकड़ता है,  फिर वह आतंकवादियों का सफाया करते हुए हैदर का सफाया करता है. इससे उसके वरिष्ठों को उस पर नाज होता है. वह छुट्टी लेकर पालमपुर आता है और गुरूद्वारा में डिंपल की चुनरी पकड़कर फेरे लेने के बाद कहता है कि अब वह मिसेस बत्रा बन गयी. अपने आतंकियों के सफाए से बौखलाया पाकिस्तान कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर लेता है. तब विक्रम मल्होत्रा को वापस जाना पड़ता है. जब विक्रम ड्यूटी पर लौटने लगता है, तो जब उनका दोस्त सनी उससे कहता है कि जल्दी लौटना. तो विक्रम का जवाब होता हैः तिरंगा लहरा कर आऊंगा,  नहीं तो उसमें लिपट कर आऊंगा. इस बार उसकी बटालियन को विक्रम बत्रा के नेतृत्व में कारगिल की पहाड़ी पर पुनः कब्जा करने की जिम्मेदारी दी जाती है. तथा विक्रम बत्रा को कोडनेम ‘‘शेरशाह’’दिया जाता है. विक्रम बत्रा के नेतृत्व में  सेना के जांबाजों ने 16 हजार से 18 हजार फीट ऊंची ठंडी-बर्फीली चोटियों पर चढ़ते-बढ़ते हुए दुश्मन पाकिस्तानी फौज को परास्त कर कारगिल की पहाड़ी पर पुनः भारत का कब्जा हो जाता है, मगर विक्रम बत्रा सहित कई सैनिक शहीद हो जाते हैं. मगर उनके शौर्य को पूरा देश याद रखता है.

लेखन व निर्देशनः

बेहतरीन पटकथा वाली युद्ध पर बनी एक बेहतरीन फिल्म है. पूरी फिल्म यथार्थपरक है. तमिल में बतौर निर्देशक आठ फिल्में बना चुके विष्णुवधन की यह पहली हिंदी में हैं. विष्णु वर्धन ने हर बारीक से बारीक बात को पूरी इमानदारी के साथ उकेरा है. अमूूमन सत्य घटनाक्रम पर आधारित फिल्म बनाते समय फिल्मकार वास्तविक किरदारों के नाम बदल देते हैं. लेकिन निर्देशक विष्णु वर्धन ने फिल्म ‘शेरशाह’ में सभी किरदारों,  घटनाक्रम और जगह आदि के नाम हूबहू वही रखे हंै, जो कि यथार्थ में हैं.

फिल्म के संवाद कमजोर है. संवाद वीरोचित व भावपूर्ण नही है.

फिल्म में विक्रम बत्रा और डिंपल के बीच रोमांस को पूरी तरह  से फिल्मी कर दिया है. फिल्म में कारगिल की पहाड़ी पर एक पाक सैनिक, विक्रम बत्रा से कहता है कि  ‘हमें माधुरी दीक्षित दे दो, हम कारगिल छोड़ देंगे. ’’यह संदर्भ कितना सच है, यह तो निर्माता व निर्देशक ही बता सकते हैं. मगर बॉलीवुड के फिल्मकार अक्सर सत्यघटनाक्रम पर फिल्म बनाते समय इस तरह की चीजें परोसते ही हैं.

फिल्म का क्लायमेक्स कमाल का है. यह फिल्म कैप्टन विक्रम बत्रा और कारगिल युद्ध में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपनी जान गंवाने वाले वीर जवानों को सच्ची श्रृद्धांजली हैं. पटकथा अच्छी ढंग से लिखी गयी है।फिल्म की खासियत यह है कि इसमें देशभक्ति के नारे नही है. निर्देशक ने विक्रम बत्रा के सेना में पहुंचने के बाद उनकी निडरता, वीरता और नेतृत्व की खूबी को ही उभारा है. निर्देशक विष्णु वर्धन बधाई के पात्र हैं कि उन्होने भारतीय सिनेमा और विक्रम बत्रा के शौर्य को पूरे सम्मान के साथ उकेरा है. फिल्म यह संदेश देने में पूरी तरह से कामयाब रहती है कि फौजी के रुतबे से बड़ा कोई रुतबा नहीं होता.  वर्दी की शान से बड़ी कोई शान नहीं होती.  देश प्रेम से बड़ा कोई धर्म नहीं होता.

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मगर युद्ध के दृश्य काफी कमजोर हैं.

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि फिल्म के अंत में कारगिल के योद्धाओं की निजी तस्वीरें, उनके संबंध में जानकारी और फिल्म में उनके किरदार को निभाने वाले कलाकार की तस्वीरों के साथ पेश किया गया है.

वीएफएक्स भी कमाल का है.

कैमरामैन कलजीत नेगी ने कमाल का काम किया है. उन्होेने लोकेशन को सही अंदाज में पेश किया है.

अभिनयः

विक्रम बत्रा के किरदार में अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा नही जमते. जो वीरोचित भाव और वीरोचित छवि उभरनी चाहिए थी, वह नहीं उभरती. रोमांस व कालेज के दृश्यों में वह जरुर जमे हैं. कियारा अडवाणी ने संजीदा अभिनय किया है. वैसे उनके हिस्से करने को कुछ खास रहा नही. अन्य सभी कलाकारों ने अपने अपने किरदार को बेहतर तरीके से जिया है.

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