गुस्सैल पार्टनर को प्रेम से करें कंट्रोल

प्रेमी प्रेमिका में भले कितना प्रेम हो, फिर भी कई बार छोटीछोटी बातों पर तूतू मैंमैं हो ही जाती है. ऐसे में अगर प्रेमी गुस्सैल है तो गुस्से में कुछ भी कह देता है या मिलने आना तक छोड़ देता है. ऐसे में अगर प्रेमिका सोचती है कि मैं क्यों मनाऊं, मैं क्यों झुकूं इस के सामने, कुछ दिन दूरी बनाए रखूंगी तो खुद ही कौल करेगा और इसे सबक भी मिलेगा, तो रिलेशन में यह ईगो कभी काम नहीं करती और अगर प्रेमी गुस्सैल है तो उम्मीद के विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है.

ऐसे में अगर बे्रकअप हो जाए तो प्रेमीप्रेमिका अपनेअपने स्तर पर यह कहते पाए जाते हैं कि पार्टनर ने हमें प्रेम में धोखा दे दिया जबकि यह धोखा नहीं बल्कि ईगो का सवाल होता है. ऐसे में जरूरत है उसे प्यार से समझने व समझाने की, इस से धीरेधीरे आप उस का बिहेव भी अपने प्रति पौजिटिव देखने लगेंगी.

कैसे करें कंट्रोल

ऐक्शन में रिऐक्शन नहीं

आप के प्रेमी ने आप को मिलने के लिए बुलाया था लेकिन आप ट्रैफिक जाम या फिर अन्य किसी कारण से टाइम पर नहीं पहुंच पाईं जिस कारण प्रेमी को काफी देर तक वेट करना पड़ा और आते ही वह आप पर बरस पड़ा, तो आप भी चिल्लाने न लग जाएं कि तुम्हारी तो आदत ही ऐसी है, मैं ने गलती की जो तुम से मिलने आई.

ऐसे में दोनों तरफ गरमागरमी का माहौल होने के कारण बात बिगड़ सकती है. इसलिए खुद को कंट्रोल करते हुए कहें कि बेबी मेरे स्वीटहार्ट, नैक्स्ट टाइम से ऐसा नहीं होगा प्लीज, कूल डाउन. आप की यह बात सुन कर वह खुद को कूल करने पर मजबूर हो जाएगा. आप की इस समझदारी के कारण आप का रिलेशन भी मजबूत होगा.

छोटी छोटी बात का इश्यू न बनाएं

आप का अपने प्रेमी के साथ कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम था, लेकिन ऐन वक्त पर उस ने यह कह कर मना कर दिया कि मुझे आज राहुल के साथ शौपिंग पर जाना ज्यादा जरूरी है, इसलिए आज का प्लान कैंसिल.

उस की ऐसी बात सुन कर आप की नाराजगी जायज है, लेकिन चाहे आप को कितना भी गुस्सा आए, क्योंकि आप जानती हैं कि ऐन वक्त पर ऐसे नाटक करने की उसे आदत है, तब भी आप दिल पर न लें और न ही इस बात को ले कर इश्यू बनाएं. जब आप की तरफ से कोई रिऐक्शन नहीं होगा तो उसे भी अपनी गलती का एहसास होगा. इस से बात बिगड़ेगी नहीं और उस के मन में आप के लिए प्रेम भी बढ़ेगा.

रोमांस से करें कंट्रोल

प्रेमी अकसर प्रेमिका का स्पर्श चाहता है और अगर उसे एक बार स्पर्श मिल जाए तो चाहे वह कितने भी गुस्से में हो, उस का गुस्सा पल में छूमंतर हो जाता है.

ऐसे में जब वह गुस्सा करे तो उसे कौंप्लिमैंट दें कि वाहवाह तुम गुस्से में कितने स्मार्ट लगते हो, उस के लिप्स पर किस करें, उसे अपनी बांहों में लेते हुए कहें कि तुम ही मेरी दुनिया हो, हाथों में हाथ डालें, बारबार उस के हाथों पर किस करें. इस से आप उसे कंट्रोल में करने में कामयाब हो जाएंगी और वह  आप के इस रोमांटिक अंदाज के सामने अपना गुस्सा भी भूल जाएगा.

अकेले छोड़ कर न भागें, बात सुनें

हो सकता है आप का बौयफ्रैंड ऐसी सिचुऐशन से गुजर रहा हो, जिस के कारण उसे छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ जाता हो और वह आप को अपने मन की बात भी न बता पा रहा हो. ऐसे में यह सोच कर कि ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है उस की प्रौब्लम को समझें. उसे अकेला छोड़ने की भूल न करें, क्योंकि ऐसे वक्त पता होने के बावजूद मेरी गलती है वह फिर भी आप का साथ चाहेगा. इसलिए चाहे वह कितना भी रूठा हो उसे मनाएं जरूर और अकेला न छोड़ें वरना इस से आप के बीच दूरियां ही बढ़ेंगी. धीरेधीरे हो सकता है वह भी अपनी आदतों को छोड़ दे.

नापसंद चीजों को अवौइड करें

आप अपने प्रेमी के नेचर को अच्छी तरह जानती हैं और उस की पसंदनापसंद से भी वाकिफ हैं, तो ऐसे में जब आप को पता है कि उसे लेट आना या फिर जब आप उस के साथ हों, तब किसी का फोन अटैंड करना पसंद नहीं है तो इन सब चीजों को अवौइड करें. आप की तरफ से इस तरह का एफर्ट आप के गुस्सैल प्रेमी को कंट्रोल में रखने में मददगार साबित होगा, क्योंकि उसे तो यही लगेगा कि आप सिर्फ दुख की साथी हैं सुख की नहीं.

फेवरिट डिश से करें गुस्सा ठंडा

आप ने बिजी होने के कारण उस का फोन नहीं उठाया. इस कारण वह आप से रूठ गया है, तो ऐसे में आप की जिम्मेदारी है कि आप उस का रोमांटिक अंदाज में गुस्सा ठंडा करें. इस के लिए उस की फेवरिट डिश खुद अपने हाथों से बना कर उस पर प्यार की बौछार कर दें और साथ ही उस की डैकोरेशन भी काफी सैक्सी अंदाज में करें कि उसे देख कर उस का खुद पर कंट्रोल ही न रहे.

सरप्राइज दें

किसी बात को ले कर आप में और आप के प्रेमी के बीच काफी समय से अनबन चल रही है, तो ऐसे में फोन पर बात करने से मिसअंडरस्टैंडिंग और बढ़ेगी ही. इस से अच्छा है कि उस के औफिस जा कर उसे सरप्राइज दें. इस से उसे काफी खुशी मिलेगी. उसे लगेगा कि आप की लाइफ में उस की वैल्यू है तभी आप उस के लिए इतनी दूर तक आई हैं. इस से वह भी आप को गले लगाने में देर नहीं लगाएगा.

उस की पसंद की चीजों में हामी भरें

भले ही आप दोनों की पसंद न मिलती हो, लेकिन फिर भी आप को अपने प्रेमी की खुशी के लिए उस की पसंद को अपनी पसंद बनाने की कोशिश करनी होगी. ऐसा बिलकुल न करें कि वह कोई भी चीज दिखाए और आप बस हर बार यही कहें कि मुझे तो यह बिलकुल पसंद नहीं बल्कि कहें कि तुम्हारी पसंद कितनी अच्छी है, मुझे भी बिलकुल ऐसी चीज ही पसंद आती है. आप के ऐेसे पौजिटिव ऐटिट्यूड को देख कर वह भी खुद को आप के लिए इंप्रूव करेगा.

पुरानी यादों से बिखेरें स्माइल

प्रेमी के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए या फिर उसे कूल करने के लिए उस के सामने पुरानी यादों का पिटारा खोल डालिए, जिस में आप एकदूसरे को हग कर रहे थे, एकदूसरे के साथ खूबसूरत लमहे बिता रहे थे, एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले हुए थे. जब वह पुरानी यादों को इन फोटोज के जरिए याद करेगा तो निश्चित ही वह कितने भी गुस्से में हो उस के चेहरे पर मुसकान लौट आएगी.

रोमांटिक पलों के लिए टाइम निकालें

हर प्रेमी चाहता है कि उस की प्रेमिका उस के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के साथसाथ रोमांटिक टाइम भी बिताए और उस के कहे बिना जब आप उस के साथ खूबसूरत पलों को ऐंजौय करेंगी तो वह चाह कर भी आप से ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह पाएगा.

इस तरह आप अपने गुस्सैल प्रेमी को प्रेम से बड़ी आसानी से कंट्रोल कर पाएंगी.

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बच्चों में डालें बचत की आदत

पटना की रहने वाली शालिनी इस बात को ले कर अकसर टैंशन में रहती हैं कि नोएडा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा उन का बेटा दिलीप हर महीने जरूरत से ज्यादा रुपए खर्च कर देता है. उस के कालेज, होस्टल और मैस की पूरे सालभर की फीस तो एक बार ही जमा कर दी जाती है. इस के बाद भी मोबाइल रिचार्ज कराने, इंटरनैट पैक डलवाने, होटलों में खाने, पिक्चर देखने और डिजाइनर कपड़े आदि खरीदने में वह 8-10 हजार रुपए अलग से खर्चकर देता है. वे बेटे के बैंक अकाउंट में इतने रुपए रख देती हैं कि वक्तबेवक्त उस के काम आ सके, लेकिन वह सारे रुपए निकाल कर अंटशंट कामों में खर्च कर डालता है. उन्होंने कई बार अपने बेटे को फुजूलखर्च बंद करने के बारे में समझाया. कई दफे शालिनी के पति ने भी बेटे को डांटफटकार लगाई, पर वह अपनी फुजूलखर्ची की आदत से बाज नहीं आ रहा है.

रांची हाईकोर्ट के वकील अभय सिन्हा इस बात को ले कर काफी परेशान रहते हैं कि शहर के ही एक मशहूर स्कूल में पढ़ रही उन की बेटी की फरमाइशों का कोई अंत नहीं है. एक फरमाइश पूरी होते ही उस की दूसरी डिमांड सामने आ जाती है. इस बारे में उन्होंने कई बार अपनी बिटिया को समझाया कि उन की आमदनी का बड़ा हिस्सा उस की स्कूल फीस और ट्यूशन फीस पर खर्च हो जाता है, इसलिए वह सोचसमझ कर ही रुपए खर्च किया करे.

उन के लाख समझाने के बावजूद वह कुछ समझने के लिए तैयार नहीं है. उस की फरमाइशों की वजह से कई बार अभय मुश्किलों में घिर चुके हैं और उस से निबटने के लिए कई बार उन्हें दोस्तों से उधार मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा.

माता पिता की परेशानी

अकसर पेरैंट्स इस बात को ले कर परेशान रहते हैं कि वे अपने बच्चों के बढ़ते जेबखर्च पर कैसे काबू रखें. हर महीने जेबखर्च की निश्चित रकम देने के बाद भी बच्चे जबतब पैसे मांगते रहते हैं. कभी बाइक मरम्मत के लिए तो कभी पैट्रोल के लिए, कभी मोबाइल फोन रिचार्ज कराने के लिए. कभी फ्रैंड्स के बर्थडे पर गिफ्ट देने के लिए तो कभी सैरसपाटे के लिए. पौकेटमनी को वे 8-10 दिनों में ही खर्च कर डालते हैं और महीने के बाकी दिनों के लिए पेरैंट्स को परेशान करते रहते हैं.

पेरैंट्स चाहते हैं कि उन के बच्चे जेबखर्च के लिए मिले पैसे पूरे महीने चलाएं और उस में से कुछ बचा कर जमा करने की आदत भी डालें, लेकिन ज्यादातर घरों में ऐसा हो नहीं पाता है.

रवि की मम्मी सीमा इस बात को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं कि उस का बेटा पौकेटमनी को 10-12 दिनों में ही खत्म कर देता है और हमेशा कुछ न कुछ पैसे की डिमांड करता रहता है. दोस्तों के साथ फास्टफूड आदि खा कर और कभी पैंट, शर्ट, जूता, जैकेट आदि खरीद कर पौकेटमनी को तुरंत खर्च कर डालता है. पौकेटमनी से बचत की बात तो दूर, जरूरत से ज्यादा अंटशंट खर्च करने की आदत से सीमा की चिंता बढ़ती जा रही है. ऊपर से उन्हें पति की फटकार भी सुननी पड़ती है कि वे रवि को रोज पैसे दे कर बिगाड़ रही हैं.

फुजूलखर्ची पर लगाम जरूरी

बच्चों की फुजूलखर्ची और उन में बचत की आदत नहीं पैदा होने की समस्या से ज्यादातर मातापिता जूझते हैं. चार्टर्ड अकाउंटैंट श्यामबाबू शर्मा कहते हैं कि पेरैंट्स को बच्चों के बढ़ते जेबखर्च और फुजूलखर्च के अंतर को समझना पड़ेगा. बच्चों की बढ़ती आयु के साथ उन की जरूरतें भी बढ़ने लगती हैं. आज के जमाने में बाइक के लिए पैट्रोल, मोबाइल फोन, किताबें, कौपियां, इंटरनैट, सैरसपाटा, पहनावा आदि पर होने वाले खर्च को फुजूलखर्ची नहीं कह सकते. हां, इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि इन सब पर होने वाला खर्च हद से ज्यादा न हो. पार्टी, मौजमस्ती, घूमनेफिरने और पहनावे पर किए जाने वाले खर्च पर लगाम लगाने की बहुत जरूरत है. पढ़ाई छोड़ कर बच्चे दोस्ती, मटरगश्ती और फैशन की रंगीनियों में बहकें नहीं, इन सब चीजों पर अगर बच्चे ज्यादा खर्च कर रहे हों तो मातापिता को सतर्क हो जाना चाहिए.

बिहार सरकार में कभी अफसर रहे जितेंद्र सहाय कहते हैं कि अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को शुरू से ही बचत की आदत डालें, क्योंकि बचत की आदत उन की आगे की जिंदगी को आसान बना सकती है. बच्चों की आयु बढ़ने के बाद उन में बचत के प्रति समझ पैदा करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. वे बताते हैं कि नौकरी के सिलसिले में वे अकसर पटना से बाहर रहते थे. उन्होंने अपने चारों बच्चों के अकाउंट पास के बैंक में खुलवा दिए. हर महीने उन में बच्चों की जेबखर्च की रकम डाल देते हैं. जरूरत पड़ने पर बच्चे बैंक से ही पैसे निकाल कर अपना काम कर लेते हैं. इस से जहां उन के खर्च पर नियंत्रण लग सका, वहीं बच्चों में बचत की आदत भी डैवलप होती गई.

जरूरी खर्च क्या, क्यों, कब और कितना जरूरी है और फुजूलखर्च का क्या मतलब है व उस से क्याक्या नुकसान हैं? यह हर मातापिता को चाहिए कि अपने बच्चों को समझाएं. बच्चों को पैसे दे कर उस के बाद उन के द्वारा फुजूलखर्च करने पर डांटने और पीटने का कोई औचित्य ही नहीं है. आप ने पैसे दिए तभी तो बच्चे ने खर्च किए. उस के बाद हंगामा या मारपीट करने का क्या औचित्य?

स्कूल टीचर रजनी माथुर कहती हैं कि बच्चों को छोटी आयु से ही फुजूलखर्ची से होने वाले नुकसानों और बचत से होने वाले फायदों का पाठ पढ़ाना बहुत जरूरी है. बच्चे मन से चाहेंगे, तभी उन से कुछ बेहतर करवाया जा सकता है. समय गंवाने के बाद फटकार और मारपीट से न उन की फुजूलखर्ची पर नकेल कसी जा सकती है और न ही उन में बचत करने की आदत डाली जा सकती है.

बच्चों में समझ पैदा करें

अकसर यह देखनेसुनने में आता है कि कई पेरैंट्स इन सब के लिए बच्चों की पिटाई कर देते हैं. ऐसा कर के वे अपने बच्चों में खुद के प्रति नफरत और गुस्से की भावना ही पैदा कर लेते हैं जिस का बुरा असर बच्चों और पेरैंट्स दोनों पर पड़ता है. इसलिए समय रहते बच्चों में खर्च और फुजूलखर्च की समझ पैदा करें वरना बाद की हरकतें फुजूल ही साबित होती हैं. कई बार पैरेंट्स बच्चों की गैरजरूरी मांगें पूरी करते रहते हैं, जो गलत है.

आप खुद जानते हैं कि लचीले पेड़ को अपने हिसाब से मोड़ सकते हैं, तने के कठोर हो जाने के बाद उसे मोड़ने की कोशिशें बेवकूफी ही कहलाती हैं.

मैरिज रजिस्ट्रेशन है जरूरी

कानूनन जरूरी होने के बावजूद लोग शादी का रजिस्टे्रशन तभी कराते हैं जब उन्हें वीजा आदि के लिए आवेदन करना होता है. शादी या उस के बाद और बातों का तो बड़ा ध्यान रखा जाता है, लेकिन शादी का रजिस्ट्रेशन कराने को प्राथमिकता नहीं दी जाती है. अनपढ़ लोगों का ही नहीं शिक्षित लोगों का भी यही हाल है.

चलिए, बात करते हैं कि शादी का रजिस्ट्रेशन कितना जरूरी है तथा यह करवाना कितना आसान है और आगे चल कर इस के क्या फायदे हैं:

मैरिज सर्टिफिकेट इस बात का आधिकारिक प्रमाण होता है कि 2 लोग शादी के बंधन में बंधे हैं. आजकल जन्म प्रमाणपत्र को उतनी अहमियत नहीं दी जाती, जितनी विवाह प्रमाणपत्र को दी जाती है. लिहाजा, इसे बनवाना अहम है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. अत: यहां 2 ऐक्ट्स के तहत शादियों का रजिस्ट्रेशन होता है- हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 और स्पैशल मैरिज ऐक्ट 1954.

आप की शादी हुई है और अमुक तारीख को हुई है, इस बात का अनिवार्य कानूनी सुबूत है मैरिज सर्टिफिकेट. आप बैंक खाता खोलने, पासपोर्ट बनवाने या किसी और दस्तावेज के लिए आवेदन करते हैं, तो वहां मैरिज सर्टिफिकेट काम आता है. जब कोई दंपती ट्रैवल वीजा या किसी देश में स्थाई निवास के लिए आवेदन करता है, तो मैरिज सर्टिफिकेट काफी मददगार साबित होता है.

भारत या विदेश में स्थित दूतावास पारंपरिक विवाह समारोहों के सुबूत को मान्यता नहीं देते. उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट देना होता है. जीवन बीमा के फायदे लेने के लिए भी मैरिज सर्टिफिकेट जमा कराना (जिन मामलों में पति या पत्नी में से किसी की मौत हो गई हो) होता है. नौमिनी अपने आवेदन की पुष्टि में कानूनी दस्तावेज पेश नहीं करे तो कोई बीमा कंपनी अर्जी को गंभीरता से नहीं लेती. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य घोषित कर दिया था.

कैसे कराएं रजिस्ट्रेशन

हिंदू ऐक्ट या स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन कराना कतई मुश्किल नहीं है. पति या पत्नी जहां रहते हैं, उस क्षेत्र के सबडिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के दफ्तर में अर्जी दे सकते हैं. अर्जी पर पतिपत्नी दोनों के हस्ताक्षर होने चाहिए. अर्जी देते वक्त उस के साथ लगाए गए दस्तावेज की जांचपरख होती है. उस के बाद औफिस की ओर से एक दिन तय किया जाता है. इस की सूचना दंपती को दे दी जाती है. उस वक्त पहुंच कर पतिपत्नी शादी को रजिस्टर्ड करा सकते हैं. उस वक्त एसडीएम के सामने पतिपत्नी के साथ एक गैजेटेड औफिसर को भी मौजूद रहना पड़ता है, जो शादी में मौजूद रहा हो. प्रमाणपत्र उसी दिन जारी कर दिया जाता है.

आवेदन के लिए क्याक्या है जरूरी

  1. पूरी तरह भरा आवेदनपत्र, जिस पर पतिपत्नी और उन के मातापिता के हस्ताक्षर हों. रिहाइश का प्रमाणपत्र जैसे वोटर आईडी/राशन कार्ड/पासपोर्ट/ड्राइविंग लाइसैंस, पति और पत्नी दोनों का जन्म प्रमाणपत्र, 2-2 पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ्स, शादी का एक फोटोग्राफ.
  2. सारे दस्तावेज सैल्फ अटैस्टेड होने चाहिए. आवेदन के साथ शादी का एक निमंत्रणपत्र भी लगाना होता है.
  3. अर्हताएं: दूल्हा या दुलहन उस तहसील का निवासी हो जहां शादी रजिस्टर्ड कराई जानी है. शादी के वक्त दुलहन की उम्र 18 और दूल्हे की 21 साल से कम न हो.
  4. जुर्माना: अगर कोई शख्स विवाह प्रमाणपत्र नहीं दे पाता है, तो उसे क्व10 हजार जुर्माना भरना पड़ सकता है.
  5. विवाह प्रमाणपत्र के लिए अर्जी देने में कोई ज्यादा खर्च नहीं आता है और न ही यह लंबी प्रक्रिया है. हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत प्रमाणपत्र लेने के लिए आवेदन फीस 100 रुपए और स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत लेने के लिए क्व150 है. फीस डीएम औफिस के कैशियर के पास जमा कराई जाती है और उस की रसीद अर्जी के साथ लगानी होती है. सरकार ने औनलाइन रजिस्ट्रेशन की पहल भी की है.

विवाह प्रमाणपत्र के फायदे

  1. भारत में स्थित विदेशी दूतावासों या विदेश में किसी को पतिपत्नी साबित करने के लिए विवाह प्रमाणपत्र देना अनिवार्य होता है.
  2. विवाह प्रमाणपत्र होने से महिलाओं में विश्वास और सामाजिक सुरक्षा का एहसास जगता है. पतिपत्नी के बीच किसी तरह का विवाद (दहेज, तलाक, गुजाराभत्ता लेने आदि) होने की स्थिति में विवाह प्रमाणपत्र काफी मददगार साबित होता है.
  3. इस से प्रशासन को बाल विवाह पर लगाम लगाने में मदद मिलती है. अगर आप की उम्र शादी लायक नहीं है तो विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा.
  4. शादीशुदा हों या तलाकशुदा, दोनों ही सूरत में विवाह प्रमाणपत्र काम आता है. इस के अलावा इस प्रमाणपत्र की सब से ज्यादा उपयोगिता तलाकशुदा महिलाओं के लिए है क्योंकि तलाक के बाद महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा की जरूरत पुरुषों की तुलना में ज्यादा होती है.

स्पैशल मैरिज ऐक्ट 1954

  1. स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत भी आसानी से शादी रजिस्टर्ड कराई जा सकती है. इस के लिए निम्न स्टैप्स हैं:
  2. पतिपत्नी जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां के मैरिज अफसर को शादी की सूचना देनी होती है.
  3. नोटिस की तारीख से कम से कम 1 महीना पहले से उस क्षेत्र में रिहाइश होनी जरूरी है.
  4. नोटिस मैरिज अफसर के औफिस में किसी ऐसी जगह पर चस्पां करना चाहिए जहां सब की नजर पड़े.
  5. अगर पतिपत्नी दोनों अलगअलग इलाके में रहते हैं तो नोटिस की एक कौपी दूसरे क्षेत्र के मैरिज अफसर को भेजनी होगी. नोटिस पब्लिश होने के 1 महीने बाद शादी को कानूनी वैधता दे दी जाती है.
  6. अगर कहीं से कोई आपत्ति आती है तो मैरिज अफसर दंपती से संपर्क कर पूछता है कि शादी को वैधता प्रदान की जाए या नहीं.

शादी रजिस्टर्ड कराने के स्टैप्स

  1. हिंदु मैरिज ऐक्ट के तहत कोई भी अपनी शादी को रजिस्टर्ड करा सकता है. इस के लिए निम्न स्टैप्स हैं:
  2. दंपती को रजिस्ट्रार के यहां आवेदन करना होता है. यह रजिस्ट्रार या तो उस क्षेत्र का होगा जहां शादी हुई हो या फिर वहां का जहां पतिपत्नी में से कोई कम से कम 6 महीने से रह रहा हो.
  3. दंपती को शादी के 1 महीने के भीतर गवाह के साथ रजिस्ट्रार के सामने हाजिर होना होगा. बतौर गवाह मातापिता, अभिभावक, दोस्त कोई भी हो सकता है.
  4. रजिस्ट्रेशन में देरी होने पर 5 साल तक रजिस्ट्रार को माफी देने का अधिकार है. इस से ज्यादा वक्त होने पर संबंधित डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार के पास इस का अधिकार ह – विपुल माहेश्वरी (सीनियर ऐडवोकेट)

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अपनों के बिना फीकी सफलता

जीवविज्ञान की कक्षा चल रही थी. अध्यापक छात्रों को ककून से तितली बनने की प्रक्रिया के बारे में बता रहे थे. उन के सामने एक ककून रखा हुआ था और उस में बंद तितली बाहर आने के लिए लगातार कठिन संघर्ष कर रही थी. इतने में ही अध्यापक कुछ कार्यवश थोड़ी देर के लिए कक्षा से बाहर निकल गए. छात्रों ने देखा कि तितली को अपने ककून से बाहर आने में काफी कष्ट व असहनीय पीड़ा हो रही है तो उन्होंने बालसुलभ सहानुभूतिवश ककून से तितली को निकलने में मदद करने की कोशिश की.

छात्रों ने ककून से बाहर आ रही अति नाजुक तितली को हाथ से पकड़ कर बाहर की तरफ खींच लिया. तितली बाहर तो आई किंतु इस प्रक्रिया के दौरान उस की मौत हो गई. जब अध्यापक कक्षा में वापस आए, छात्रों को मौन देख कर बड़ी हैरत में पड़ गए. किंतु पास में ही जब उन्होंने तितली को मृत देखा तो उन्हें सारी बातें समझने में तनिक भी देर नहीं लगी.

अध्यापक ने कहा, ‘‘तुम लोगों ने तितली को उस के ककून से बाहर आने में मदद कर उस की जान ले ली है. तितली अपने ककून से बाहर आने में जिस संघर्ष का सामना करती है, जिस दर्द को बरदाश्त करती है, वह उस के जीवन के अस्तित्व के लिए अनिवार्य होता है.

‘‘इस धरती पर जीवित रहने के लिए उसे वह पीड़ा सहनी ही पड़ती है. जन्म के समय के इस संघर्ष में जीवन जीने के लिए अनिवार्य गुणों को तितलियां बड़ी आसानी से सीख लेती हैं. कोई भी केटरपिलर अपने जीवन के इन कष्टों को सहन किए बिना जीवित नहीं रह सकता है. तुम लोगों ने उस तितली को उन जीवनदायी कष्टों से बचा कर उस की जान ले ली है.’’

सच पूछिए तो जीवन में कामयाबी प्राप्त करने तथा इस दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखने का फार्मूला भी इस जीवनदर्शन से अलग नहीं है. इस धरती पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति को अपने जीवन के हिस्से के दुखदर्द तथा संताप को खुद सहन करना होता है.

सफर आसान नहीं

महान कूटनीतिज्ञ तथा राजनीतिज्ञ बेंजामिन डिजरायली कहा करते थे, ‘सफलता प्राप्त करना एक नया जीवन प्राप्त करने सरीखा होता है. जैसे एक नए जीव के जन्म के लिए प्रसवपीड़ा अनिवार्य तथा सर्वविदित सत्य है, उसी प्रकार सफलता के मुरीद व्यक्ति को जीवन की बेशुमार पीड़ाओं का सामना करना होता है.

‘सफलता बहुत संघर्ष व बलिदान मांगती है. निश्चय सुदृढ़ हो तथा अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यदि कोई शख्स आने वाली हर मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हो तो फिर कामयाबी पाने में कोई संदेह शेष नहीं रह जाता है.’

महात्मा गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी पूरी जिंदगी में रोजाना 2 घंटे से अधिक कभी भी नहीं सोए. थौमस अल्वा एडीसन को अपने अनुसंधानों के समय रात और दिन का फर्क मालूम नहीं होता था. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बेतरतीब बाल तथा बढ़ी दाढ़ी के साथ घुटने तक फटे हुए पतलून में किसी ट्रेन के थर्ड क्लास कंपार्टमैंट में यात्रा करने वाले तथा अति साधारण दिखने वाले व्यक्ति के अंदर महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन का जादुई व्यक्तित्व भी छिपा हो सकता है?

आशय यह है कि जीवन के किसी क्षेत्र तथा मानव ज्ञान की किसी भी विधा में सफलता का सफर आसान नहीं होता. हमें हर मोड़ पर त्याग करने तथा कुरबानी देने की दरकार होती है.

त्याग काफी नहीं

किंतु केवल बलिदान तथा त्याग का होना ही सफलता की कसौटी नहीं है. अहम बात यह है कि सफलता के लिए किया जा रहा संघर्ष सच्चा है या नहीं. संघर्ष सही दिशा में किया जा रहा है या नहीं? क्योंकि समर्पण जितना सच्चा होता है, जितना सुदृढ़ होता है, सफलता उतनी ही निश्चित मानी जाती है.

यहां पर सब से अधिक जरूरी तथा विचारणीय प्रश्न यह उठता है कि संघर्ष करने तथा सफल होने की उत्कट लालसा में कहीं हम अपनों को ही नजरअंदाज तो नहीं कर रहे हैं? कामयाबी की रोशनी में चकाचौंध हो कर हम जिस अहम चीज को नकार जाते हैं वह होती है हमारी अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तथा कर्तव्य का भाव.

इस सच से कदाचित ही कोई इनकार कर पाए कि सफलता के लिए त्याग की जरूरत होती है, किंतु अहम प्रश्न यह उठता है कि सफलता त्याग की किस कीमत पर एवं कितनी कीमत पर?

कहानी जिंदगी की

प्रतीक की जिंदगी की कहानी उस के खुद के परिवार की खुशियों तथा निरंतर सफल होने की चाहत के मध्य की सुविधा से परे नहीं है. प्रतीक किसी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता था. वह अपनी महत्त्वाकांक्षा की प्राप्ति की राह में इस कदर व्यस्त हो गया था कि उस के पास अपनी पत्नी तथा बेटे के साथ अपने गम व खुशियों को बांटने का न तो वक्त होता था और न ही वह इस की कोई आवश्यकता समझता था. उस की पत्नी स्वाति को भी इस बात की हमेशा शिकायत रहती थी कि प्रतीक के पास उस के लिए कोई समय नहीं होता है. इस वजह से आएदिन परिवार में कलह तथा अशांति का माहौल रहता था. स्वाति ने कुछ दिनों के बाद इसे ही अपनी नियति मान कर प्रतीक से शिकायतें करनी बंद कर दीं.

प्रतीक के इकलौते बेटे आकाश को भी अकसर यही शिकायत रहती थी. ‘पापा, आप के पास तो मेरे लिए कोई वक्त ही नहीं है. आप तो मेरे साथ कभी खेलते भी नहीं हैं. यदि आप आज मेरे साथ नहीं खेलेंगे तो जान लीजिए, मैं कभी भी आप से बात नहीं करूंगा.’

सच पूछिए तो अपने बेटे की इन दोटूक बातों से प्रतीक के दिल को बहुत ठेस लगती थी और वह भावनात्मक रूप से थोड़ी देर के लिए परेशान हो उठता था. किंतु नौकरी की जिम्मेदारियों तथा सब से आगे बढ़ने की महत्त्वाकांक्षा के चक्रव्यूह में वह फिर से उलझ जाता.

वक्त गुजरता गया. प्रतीक व उस के परिवार के मध्य की नाराजगी धीरेधीरे उसे अपनों से दूर करती गई. सब लोगों ने उस से बातें करनी बंद कर दी. हां, उस का बेटा कभीकभी जरूर उस से आ कर चिपक जाता था, किंतु जब वह अपनी मम्मी को देखता तो शीघ्र भागने की कोशिश करने लगता. साथ रहते भी तनहातनहा रहने का क्रम कुछ दिनों तक इसी प्रकार जारी रहा.

सहसा एक दिन अपनी पत्नी के एक प्रश्न ने प्रतीक को अंदर से झकझोर कर रख दिया. ‘आखिर आप चाहते क्या हैं? आप को यदि अपनी नौकरी से इतनी ही मुहब्बत थी तो फिर आप ने मुझ से शादी क्यों की? यदि आप के पास अपनी पत्नी तथा अपने बेटे के लिए वक्त नहीं है तो फिर आप हम लोगों को छोड़ क्यों नहीं देते हैं?’

‘मैं आज जो कुछ भी कर रहा हूं,

वह तुम लोगों के सुखद जीवन के लिए कर रहा हूं. जीवन के भोगविलास तथा ऐशोआराम के लिए मेरी कोशिश केवल मेरे जीवन के लिए नहीं है, यह सब केवल और केवल तुम लोगों के लिए है,’ प्रतीक अकसर यही उत्तर दे कर अपनी पत्नी का मुंह बंद कर दिया करता था.

‘मैं मानती हूं कि आप की महत्त्वाकांक्षा में, आप के सपनों में हम सभी की सुख तथा सुविधाएं निहित हैं, किंतु सोच कर देखिए यदि मैं ही जीवित नहीं रही तो आप की शोहरत व सफलता की दुहाई देने वाले कौन होंगे? आप अपनी शानोशौकत किसे दिखाएंगे व आप किस पर गर्व करेंगे?

‘सफलता के शिखर पर पहुंच कर आप दुनिया की नजर में नाम तो कमा लेंगे, किंतु जब आप के खुद अपने ही आप के करीब नहीं होंगे तो क्या आप की वे खुशियां अधूरी तथा निरर्थक नहीं रह जाएंगी?’ प्रतीक की पत्नी ने बड़ी संजीदिगी से ये बातें कहीं.

अपनी पत्नी के आत्मदर्शन पर प्रतीक ने बड़ी गंभीरता से सोचा और आखिरकार उसे जो आत्मबोध हुआ, उस की स्निग्ध छांह में उस के मन पर वर्षों से जमी भ्रम की तपिश किसी मोम की तरह पिघलती गई और उसे अपने मन के जख्म पर किसी मरहम सरीखे ठंडक की अनुभूति हुई. उस आत्मानुभूति ने उस के जीवन की दिशा व दशा दोनों में कई अहम तबदीलियां ला दीं.

ऐसा नहीं है कि प्रतीक ने सपने देखना छोड़ दिया है. आज भी वह जीवन के वही सारे सपने देखता है, किंतु उस के पास उन सपनों को साकार करने की वो बेचैनी अब नहीं रही. परिवार की खुशियों की कीमत पर प्रतीक ने सपनों का पीछा करना छोड़ दिया. वह अब अपने बेटे के साथ खेलने के लिए तथा भागनेदौड़ने के लिए पूरा वक्त निकालता है. ऐसे में पत्नी भी खुश रहने लगी है.

परिवार की भूमिका

सच पूछें तो आधुनिक अर्थव्यवस्था की सूचना क्रांति के वर्तमान जादुई युग में जनमानस की सोच तथा जीवनशैली में जिस प्रकार के बदलाव आए हैं, उन के चलते हम ने आज यदि कुछ खोया है, तो वह है मानसिक शांति व आत्मिक सुकून. भौतिक भोगविलास की अंतहीन खोज में हम ने यदि कुछ खोया है, तो वह पारिवारिक सुखसुकून की वो स्निग्धता, जिस के कोमल एहसास में जीवन का परम सुख निहित होता है.

कदाचित इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते कि मानव जीवन में परिवार की भूमिका उस कुशन या गद्दे की तरह की होती है, जो हमें जीवन में सफलता की ऊंचाइयों से अचानक गिरने पर हमें जख्मी होने से बचाती है. इसीलिए सफलता पाने की कोशिश में केवल संघर्ष ही अनिवार्य नहीं है, बल्कि उन अपनों के प्यार व सहानुभूति की भी दरकार होती है जिन की उपस्थिति के बिना जीवन तथा जहान की सारी खुशियां अधूरी प्रतीत होती हैं.

आप के अपने आप के सपनों के पीछे भागने की रेस में आप के साथ होंगे तो आप को एक अद्भुत ऊर्जा तथा प्रेरणा का एहसास पलप्रतिपल होगा. अपनों के प्यार को खो कर पाई गई किसी भी कामयाबी की कीमत कभी भी इतनी अधिक नहीं होती, जो आप के जीवन की भावनात्मक कमी की भरपाई कर सके.

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इन 5 तरीकों से संवारें बच्चों का भविष्य

एकल परिवारों के बढ़ते चलन और मातापिता के कामकाजी होने की वजह से बच्चों का बचपन जैसे चारदीवारी में कैद हो गया है. वे पार्क या खुली जगह खेलने के बजाय वीडियो गेम खेलते हैं. उन के दोस्त हमउम्र बच्चे नहीं, बल्कि टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल हैं. इस से बच्चों के व्यवहार और उन की मानसिकता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है. वे न तो सामाजिकता के गुर सीख पाते हैं और न ही उन के व्यक्तित्व का सामान्य रूप से विकास हो पाता है.

क्यों जरूरी है सोशल स्किल सही भावनात्मक विकास के लिए सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के मनोवैज्ञानिक, डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह समाज से अलग नहीं रह सकता. सफल और बेहतर जीवन के लिए जरूरी है कि बच्चों को दूसरे लोगों से तालमेल बैठाने में परेशानी न आए. जिन बच्चों में सोशल स्किल विकसित नहीं होती है उन्हें बड़ा हो कर स्वस्थ रिश्ते बनाने में समस्या आती है. सोशल स्किल बच्चों में साझेदारी की भावना विकसित करती है और आत्मकेंद्रित होने से बचाती है. उन के मन से अकेलेपन की भावना कम करती है.’’

आक्रामक व्यवहार पर लगाम कसने के लिए डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘आक्रामक व्यवहार एक ऐसी समस्या है, जो बच्चों में बड़ी आम होती जा रही है. पारिवारिक तनाव, टीवी या इंटरनैट पर हिंसक कार्यक्रम देखना, पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन का दबाव या परिवार से दूर होस्टल वगैरह में रहने वाले बच्चों में आक्रामक बरताव ज्यादा देखा जाता है. ऐसे बच्चे सब से कटेकटे रहते हैं. दूसरे बच्चों द्वारा हर्ट किए जाने पर चीखनेचिल्लाने लगते हैं. अपशब्द कहते हुए मारपीट पर उतर आते हैं. ज्यादा गुस्सा होने पर कई बार हिंसक भी हो जाते हैं.’’ बचपन से ही बच्चों को सामाजिकता का पाठ पढ़ाया जाए तो उन में इस तरह की प्रवृत्ति पैदा ही नहीं होगी.

बच्चों को सामाजिकता का पाठ एक दिन में नहीं पढ़ाया जा सकता. इस के लिए बचपन से ही उन की परवरिश पर ध्यान देना जरूरी है.

1. जब बच्चा छोटा हो:

एकल परिवारों में रहने वाले 5 साल तक की उम्र के बच्चे आमतौर पर मांबाप या दादादादी से ही चिपके रहते हैं. इस उम्र से ही उन्हें चिपकू बने रहने के बजाय सामाजिक रूप से ऐक्टिव रहना सिखाना चाहिए.

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2. अपने बच्चों से बातें करें:

पारस ब्लिस अस्पताल की साइकोलौजिस्ट, डा. रुबी आहुजा कहती हैं, ‘‘उस समय से जब आप का बच्चा काफी छोटा हो, उसे उस के नाम से संबोधित करें, उस से बातें करते रहें. उस के आसपास की हर चीज के बारे में उसे बताते रहें. वह किसी खिलौने से खेल रहा है, तो खिलौने का नाम पूछें. खिलौना किस रंग का है, इस में क्या खूबी है जैसी बातें पूछते रहें. नएनए ढंग से खेलना सिखाएं. इस से बच्चा एकांत में खेलने की आदत से बाहर निकल पाएगा.’’ बच्चे को दोस्तों, पड़ोसियों के साथ मिलवाएं: हर रविवार कोशिश करें कि बच्चा किसी नए रिश्तेदार या पड़ोसी से मिले. पार्टी वगैरह में छोटा बच्चा एकसाथ बहुत से नए लोगों को देख कर घबरा जाता है. पर जब आप अपने खास लोगों और उन के बच्चों से उसे समयसमय मिलवाते रहेंगे तो बच्चा जैसेजैसे बड़ा होगा, इन रिश्तों में अधिक से अधिक घुलमिल कर रहना सीख जाएगा.

3. दूसरे बच्चों के साथ घुलनेमिलने और खेलने दें:

अपने बच्चे की अपने आसपास या स्कूल के दूसरे बच्चों के साथ घुलनेमिलने में मदद करें ताकि वह सहयोग के साथसाथ साझेदारी की शक्ति को भी समझ सके. जब बच्चे खेलते हैं, तो एकदूसरे से बात करते हैं. आपस में घुलतेमिलते हैं. इस से सहयोग की भावना और आत्मीयता बढ़ती है. उन का दृष्टिकोण विकसित होता है और वे दूसरों की समस्याओं को समझते हैं, दूसरे बच्चों के साथ घुलमिल कर वे जीवन के गुर सीखते हैं, जो उन के साथ उम्र भर रहते हैं. जब बच्चे बड़े हो रहे हों

4. परवरिश में बदलाव लाते रहें:

डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘बच्चों की हर जरूरत के समय उन के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से उपलब्ध रहें, लेकिन उन्हें थोड़ा स्पेस भी दें. हमेशा उन के साथ साए की तरह न रहें. बच्चे जैसेजैसे बड़े होते हैं वैसेवैसे उन के व्यवहार में बदलाव आता है. आप 3 साल के बच्चे और 13 साल के बच्चे के साथ एक समान व्यवहार नहीं कर सकते. जैसेजैसे बच्चों के व्यवहार में बदलाव आए उस के अनुरूप उन के साथ अपने संबंधों में बदलाव लाएं. गैजेट्स के साथ कम समय बिताने दें. गैजेट्स का अधिक उपयोग करने से बच्चों का अपने परिवेश से संपर्क कट जाता है. मस्तिष्क में तनाव का स्तर बढ़ने लगता है, जिस से व्यवहार थोड़ा आक्रामक हो जाता है. इस से सामाजिक, भावनात्मक और ध्यानकेंद्रन की समस्या हो जाती है. स्क्रीन को लगातार देखने से इंटरनल क्लौक गड़बड़ा जाती है. बच्चों को गैजेट्स का उपयोग कम करने दें, क्योंकि इन के साथ अधिक समय बिताने से उन्हें खुद से जुड़ने और दूसरों से संबंध बनाने में समस्या पैदा हो सकती है. एक दिन में 2 घंटे से अधिक टीवी न देखने दें.

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5. धार्मिक गतिविधियों से दूर रखें:

अपने बच्चों को शुरु से ही विज्ञान और तकनीक की बातें बताएं. उन्हें धार्मिक क्रियाकलाप, पूजापाठ, अवैज्ञानिक सोच से दूर रखें.

12 Tips: छोटी-छोटी तारीफों में होंगे बड़े फायदे

अपनी तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता? तारीफ के 2 मीठे बोल कानों में मिठास घोल देते हैं. तारीफ छोटेबड़े सभी में ऊर्जा का संचार करती है. बात पुरुषों की की जाए तो वे स्वभाव से थोड़े कड़क जरूर होते हैं पर उन के भीतर भी कहीं एक नन्हा सा दिल छिपा होता है, जो अपनी प्रशंसा सुनते ही तेजी से धड़कने लगता है.

आइए जानें कि पुरुष किस तरह की तारीफ सुनना पसंद करते हैं:

1. आज खूब जम रहे हैं:

लुक्स की तारीफ महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी पसंद है. अपने ड्रैसिंग सैंस, अपने हेयरस्टाइल, अपने ब्रैंडेड जूतों को ले कर मिला कोई भी कौंप्लीमैंट पुरुषों को बेहद पसंद आता है. कपड़े खरीदने आदि में अगर कोई उन का सहयोग मांगे तो वे उसे बहुत अच्छा मानते हैं

2. यू आर वैरी सपोर्टिव:

कौंप्लीमैंट कंसीडिरेट होना, सहयोगियों के प्रति कोऔपरेटिव होना पौरुष की निशानी है. यह कौंप्लीमैंट यदि पुरुष सहकर्मियों से मिले तो सिर्फ अच्छा लगता है पर यदि महिलाएं यह कौंप्लीमैंट दें तो पुरुषों का स्वाभिमान कई गुना बढ़ जाता है, सीना गर्व से फूल जाता है.

3. आप का सैंस औफ ह्यूमर बहुत अच्छा है:

चतुर, हाजिरजवाब, खुशमिजाज पुरुष सभी को अच्छे लगते हैं. हर महफिल की वे शान होते हैं. यदि यह कौंप्लीमैंट अपने जानने वालों, मिलने वालों से मिले तो पुरुष गद्गद हो उठते हैं.

4. लविंग ऐंड केयरिंग:

जीवनसाथी या बच्चे, फ्रैंड्स अथवा कुलीग्स लविंग और केयरिंग कहें तो पुरुषों का आत्मबल बढ़ जाता है. परिवार के लिए वे जो कुछ भी करते हैं उस के लिए उन्हें यदि घर के सदस्य केयरिंग मान लें तो बस इतना ही काफी है.

5. ऐक्सीलैंट इन वर्क:

अपनी फील्ड में यदि पुरुष को उस का बौस, सहकर्मी या कोई सीनियर सर्वश्रेष्ठ कह दे या उस के प्रयासों की सराहना करे तो वह प्रफुल्लित हो उठता है. अपने कार्य की सराहना हर पुरुष में स्वाभिमान व कौन्फिडैंस भर देती है.

6. यू आर रीयली वैरी टैलेंटेड:

नौकरी, व्यापार के अतिरिक्त यदि कोई गुण आप में है और उस में आप उम्दा हैं, तो कोई उसे रेकगनाइज करे तो बहुत अच्छा लगता है. समाजसेवा, गाना, लिखना, खेलना किसी भी क्षेत्र में अपनी प्रतिभा की स्वीकृति न केवल पुरुषों को खुशी देती है, बल्कि उन्हें और अच्छा करने को भी लालायित करती है.

7. लुकिंग वैरी हौट टुडे:

महिलाओं की तरफ से खासतौर पर गर्लफ्रैंड की ओर से मिला यह कौंप्लीमैंट पुरुषों को घंटों, हफ्तों, महीनों तक खुश रख सकता है. आज के जमाने में यदि यह तारीफ सहकर्मियों से भी सुनने को मिले तो पुरुष उसे बेहद अच्छा मानते हैं.

8. आप अपनी उम्र से कम दिखते हैं:

पुरुषों को भी अपनी उम्र से कम दिखना अच्छा लगता है और यह कौंप्लीमैंट अगर महिलाओं से मिले तो सोने में सुहागा. किसी भी उम्र के पुरुष को अपनी उम्र से छोटा दिखना हमेशा पसंद होता है.

9. आप को तो बहुत लोग पसंद करते हैं:

कहने वाला न केवल इस से अपनी चाहत दर्शाता है, बल्कि वह खास व्यक्ति कितना प्रसिद्ध है यह भी बताता है. पुरुषों को ऐसे जुमले बहुत पसंद होते हैं. इस से उन की काम करने की शक्ति दोगुनी हो जाती है.

10. आप बड़े टैक्नोसेवी हैं:

गैजेट्स पर मास्टरी आज के जमाने में एक अतिरिक्त टैलेंट है. यदि पुरुष कंप्यूटर, लेटैस्ट ऐप्लीकेशंस, कैमरा, मोबाइल के विषय में कौंप्लीमैंट पाते हैं, तो इस से वे अच्छा फील करते हैं और उन की कार्यक्षमता भी निखरती है.

11. आप विश्वास के योग्य हैं:

किसी भी पुरुष को यह सुन कर बेहद अच्छा लगता है कि लोग उस पर विश्वास करते हैं. फिर चाहे बात चरित्र की हो या काम की, रिश्ते निभाने की हो या सहयोग करने की.

12. यू आर वैरी कूल:

कूल कहलाना आज के जमाने में कौंप्लीमैंट है. यह स्मार्टनैस और धैर्य को दर्शाता है. वर्कप्लेस पर, घर पर, कहीं भी यदि आप कूल कहे जाते हैं तो इस का मतलब आप में कोई बात है.

अकेले में पति की तारीफ पत्नी करे तो अच्छा लगता है, पर यदि सोसाइटी में सब के सामने पत्नी पति की तारीफ करे तो समझिए जीवन सुधर गया.

जब घर आएं माता पिता

मैं अपनी पड़ोसिन कविता को कुछ दिनों से बहुत व्यस्त देख रही थी. वह बाजार के भी खूब चक्कर लगा रही थी. हर दिन शाम की वाक हम साथ करती थीं पर अपनी व्यस्तता के कारण वह आजकल नहीं आ रही थी, तो पार्क में खेलती उस की बेटी काव्या को बुला कर मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘काव्या, बहुत दिनों से तुम्हारी मम्मी नहीं दिख रही हैं. सब ठीक तो है?’’

‘‘आंटी, दादादादी आने वाले हैं मेरे घर. मम्मी उन की आने की तैयारी में ही लगी हैं,’’ काव्या ने बताया.

पता नहीं क्यों ‘मेरे घर’ शब्द सुन देर तक हथौड़े से बजते रहे मेरे मन में. फिर दूसरे ही दिन कविता के पति कामेश को देखा. शायद वह अपने मातापिता को स्टेशन से ले कर आ रहा था. उस के बाद करीब 10 दिनों तक कविता बिलकुल नहीं दिखी. दफ्तर से भी उस ने छुट्टी ले रखी थी. शाम की वाक बंद थी ही उस की.

एक दिन मैं उस के सासससुर और उस से मिलने उस के घर जा पहुंची. सासससुर ड्राइंगरूम में बैठे थे. कविता अस्तव्यस्त सी रसोई और अन्य कमरों के बीच दौड़ लगा रही थी. मैं उस के सासससुर से बातें करने लगी.

भेदभाव क्यों

‘‘हमारे आने से कविता का काम बढ़ जाता है. मुझे बुरा लगता है,’’ उस के ससुर ने कहा.

‘‘सच, मुझेभी कोई काम करने नहीं देती, बिलकुल मेहमान बना कर रख दिया है,’’ उस की सासूमां ने कहा.

उन लोगों की बातचीत से लगा कि वे जल्दी चले जाएंगे ताकि कविता अपने दफ्तर जा सके. मैं लौटने लगी तो कविता मुझे गेट तक छोड़ने आई. तब मैं ने पूछा, ‘‘क्यों मेहमानों जैसा ट्रीट कर रही उन के साथ, जबकि वे दोनों अभी इतने भी बूढ़े या लाचार नहीं हैं?’’

‘‘नहीं बाबा, मुझे अपने सासससुर से कुछ भी नहीं कराना है. मेरी बहन ने अपनी सास को जब वे उस के साथ रहने आई थीं, कुछ करने को कह दिया था तो बात का बतंगड़ बन गया था. फिर मेरे पति की भी यही इच्छा रहती है कि मैं उन्हें हाथोंहाथ रखूं पर यह अलग बात है कि मैं अब इंतजार करने लगी हूं इन के लौटने का,’’ कविता ने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा.

मैं मजबूर हो गई कि क्यों बोझ बना दिया है कविता ने सासससुर की विजिट को. वे लोग अपने बेटे और बहू के साथ रहने आए हैं अपना घर समझते हुए, परंतु उन के साथ मेहमानों जैसा सुलूक किया जा रहा है. मुझे याद आया उस की बेटी काव्या का वह कथन ‘मेरे घर’ दादादादी आ रहे हैं, जबकि वास्तव में घर तो उन का ही है यानी सब का है.

एक अलग संरचना

वहीं तसवीर का एक और पहलू भी होता है, जब बहू सासससुर के आगमन को अपनी कलह और कटुता से रिश्तों में कड़वाहट भर लेती है. मेरी मौसी को जोड़ों में दर्द रहता था. रोजमर्रा के काम करने में भी उन्हें दिक्कत आने लगी तो वे मौसाजी के साथ अपने बेटे के पास चली गईं. मगर महीना पूरा होतेहोते वे वापस अपने घर का ताला खोलते दिख गईं. वहां बेटे के तीसरी मंजिल के घर की सीढि़यां चढ़नाउतरना और कष्टकर था. फिर वे उतना घरेलू कार्य करने में भी अक्षम थीं जितनी कि उन से वहां उम्मीद की जा रही थी.

विकसित देशों में वृद्धों के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ होता है ताकि वे अपने बच्चों के बगैर भी अच्छी जिंदगी जी सकें, पर विदेशों से उलट हमारे देश में मातापिता बच्चों की काफी बड़ी उम्र तक देखभाल करते हैं. मध्यवर्गीय पेरैंट्स के जीवन का मकसद ही होता है बच्चों को सैटल करना. वही बच्चे जब सैटल हो जाते हैं, उन का अपना घरसंसार बस जाता है तो मातापिता को बाहर वाला समझने लगते हैं.  बेटाबहू हो या बेटीदामाद क्या वे सहजता से मातापिता के आगमन को स्वीकार नहीं कर सकते? हो सकता है रहने का ढंग कुछ अलग हो पर क्या उन्हें अपनी दिनचर्या के हिसाब से इज्जत के साथ नहीं रखा जा सकता है? ये वही होते हैं, जो बिना बोले आप की जरूरतों को समझ लिया करते थे.

हमारे यहां सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा होता है कि सब आपस में जुड़े ही रहते हैं. संयुक्त परिवारों की एक अलग संरचना होती है. यहां हम वैसे मातापिता का जिक्र कर रहे हैं, जो साल 6 महीनों में अपने बच्चों से मिलने जाते हैं. कुछ दिन या महीने 2 महीने के लिए. ऐसे में बच्चे इन बातों का ध्यान रख लें तो आपस में मिलनाजुलना, साथ रहना सुखद हो जाएगा:

– मिलतेजुलते रहना चाहिए वरना एकदूसरे के बिना जीने की आदत हो जाएगी. हमेशा मिलते रहने से दोनों ही एकदूसरे की आदतों से परिचित रहेंगे.

खुद भी सोचिए

– यह बात सही है कि वे अपने स्थान पर खुश हैं, फिर भी बच्चों का यह फर्ज बनता है कि वे मातापिता को जल्दीजल्दी बुलाएं, कम से कम जब तक वे स्वस्थ हैं. 3-4 साल में 1 बार बुलाने की जगह 3-4 महीनों में बुलाते रहें, भले ही कम दिनों के लिए ही सही, क्योंकि निरंतर मेलजोल से प्यार बना रहता है. फिर 5-6 दिनों के आगमन हेतु उन्हें कोई विशेष तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी.

– वे ‘आप के घर’ नहीं वरन ‘अपने घर’ आते हैं. इस सोच का आभास उन्हें भी कराएं और अपने बच्चों को भी. घर के छोटे या बड़े होने से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना दिलों के संकुचन से पड़ता है. अकसर सुना जाता है पोतेपोती/नातीनातिन कहेंगे दादाजी मेरे कमरे में सोते हैं. कितनी बार देर रात तक बत्ती जलाए रखने पर दादी द्वारा टोकने पर पोती कह देगी उफ, तुम कब जाओगी दादी? सोचिए कि आप के मातापिता के दिल पर क्या गुजरेगी जब आप के बच्चे ऐसा बोलेंगे. यह आप ही की गलती है, जो आप ने अपने बच्चों के मन में ऐसे विचार डाले हैं कि दादादादी/नानानानी बाहर वाले हैं और घर सिर्फ आप और आप के बच्चों का है. सोच कर देखिए कल को इसी तरह आप भी अपने बच्चों के जीवन में हाशिए पर होंगे.

खयाल रखें

यदि आप सुनते हैं कि बच्चों ने ऐसा कहा है तो तुरंत मातापिता के समक्ष ही उन्हें सही बात समझाएं कि आप अपने मातापिता के घर में नहीं दादादादी के घर में रह रहे हैं.

उन के आने पर अपने रूटीन को न बदलें, बल्कि उन्हें भी अपने रूटीन के हिसाब से सैट कर लें अन्यथा उन का आना और रहना जल्दी बोझ महसूस होने लगेगा.

आप जो खाते हैं जैसा खाते हैं वही उन्हें भी खिलाएं. हां, यदि स्वास्थ्य की समस्या हो तो आप को उसी हिसाब से कुछ बदलाव करना चाहिए. नई पीढ़ी का खानपान अपनी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल बदल चुका है. रोटीसब्जी, दालचावल खाने वाले मातापिता कभीकभी ही बर्गरपिज्जा खा सकेंगे. अत: उन के स्वाद और स्वास्थ्य के अनुसार भोजन का प्रबंध अवश्य करें. यह आप का फर्ज भी है. तय करें कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व मिल रहे हों.

यदि वे स्वेच्छा से कुछ करना चाहें तो अवश्य करने दें. जितनी उन की सेहत आज्ञा दे उन्हें गृहस्थी में शामिल करें. इस से उन का मन भी लगेगा, व्यस्त भी महसूस करेंगे और भागीदारी की खुशी भी महसूस करेंगे.

समझदारी से काम लें

न अति चुप भली न ही अति बोलना. जब मातापिता साथ हों तो उन के लिए कुछ समय अवश्य रखें, क्योंकि वे उसी के लिए आप के पास आए हैं. साथ टहलने जाएं या छुट्टी वाले दिन साथ कहीं घूमने जाएं. कुछ अपनी रोजमर्रा की बातें शेयर करें तो कुछ उन की सुनें.

उन की बदलती आदतों को गौर से देखें. कहीं किसी बीमारी के लक्षण तो नहीं. जरूरत हो तो डाक्टर को दिखाएं. याद करें कि कैसे मां आप के चेहरे को देख आप की तकलीफों को भांप लेती थी.

यदि मिलना जल्दीजल्दी होता रहेगा तो आप समय पूर्व ही उन की बीमारियों को भांप लेंगे और इस से पहले कि उन की तकलीफें ज्यादा बढ़ें आप वक्त पर उन का इलाज करा सकेंगे.

अपने बच्चों को उन के नानानानी/दादादादी से जुड़ने दें. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे बूढ़े होते ग्रैंड पेरैंट्स को जानें. वे उन के प्रति संवेदनशील बनें. यह बात उन्हें एक बेहतर इनसान बनने में मदद करेगी. कल आप के बुढ़ापे को भी आप के बच्चे सहजता से ग्रहण कर लेंगे.

जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स से जुड़े रहते हैं वे अधिक समझदार व परिपक्व होते हैं. उन बच्चों की तुलना में जो इन से महरूम होते हैं. अकसर एकल परिवारों के बच्चे बेहद स्वार्र्थी और आत्मलीन प्रवृत्ति के हो जाते हैं.

कुछ बातों को नजरअंदाज करें. जब 2 बरतन साथ होंगे तो उन का टकराव स्वाभाविक है. छोटी बातों को छोटी समझ दफन कर देना ही समझदारी है.

सुमेधा के पति उस के पापा को बिलकुल पसंद नहीं करते थे, परंतु इस के बावजूद सुमेधा ने पापा को बुलाना नहीं छोड़ा. न चाहते हुए भी मिलतेजुलते रहने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे को समझने लगे. सुमेधा को एक बार 3 महीनों के लिए विदेश जाना पड़ा. उस के पीछे उस के पति की टांग में फ्रैक्चर हो गया. तब उस के ससुर ने  ही आ कर उसे संभाला.

दूरियां मिटाएं

सासबहू के रिश्ते को सब से ज्यादा बदनाम किया जाता है जबकि सचाई यह है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति को प्यार करती हैं और इस तरह यह वर्चस्व की लड़ाई बन जाती है. बेटे की समझदारी और सूझबूझ से आए दिन की टकराहट को टाला जा सकता है. पर इस के चलते मिलनाजुलना बंद कर देना रिश्तों का कत्ल है. साथ रहने से, मिलतेजुलते रहने से धीरेधीरे एकदूजे को समझने में मदद मिलेगी. मिलते रहने से ही समस्या सुलझेगी, दूरियों के मिटने से ही अंतरंगता बढ़ेगी.

मातापिता वे इनसान हैं जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया. जब वे आप की परवरिश कर सकते हैं तो खुद की भी कर सकते हैं. अभी जब वे स्वस्थ हैं, अकेले रहने में सक्षम हैं तो आप का यह फर्ज है कि आप हमेशा मिलतेजुलते रहने का मौका तलाश करते रहें. उन्हें हमेशा अपने पास बुलाएं और इज्जत और स्नेह दें. कल को जब वे आशक्त हों, आप के साथ रहने को मजबूर हो जाएं तो उन्हें तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत न हो. स्नेहपूर्वक बिताए हुए ये छोटेछोटे पल तब उन की जड़ों के लिए खादपानी का काम करेंगे.

रिश्ते कठपुलियों की तरह होते हैं, जिन की डोर हमारी आपसी सोच, समझदारी, सामंजस्य और सहजता में होती है. भारतीय सामाजिक संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि दूर रहें या पास सब रहते एकदूसरे के दिल और दिमाग में ही हैं हमेशा.

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अकेले हैं तो क्या गम है

महिलाएं अब शादी करने की सामाजिक बाध्यता से आजाद हो रही हैं. वे अपनी जिंदगी की कहानी अपने हिसाब से लिखना चाहती हैं और ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है. पहले दहेज के कारण ही शादी न होना एक बड़ा कारण होता था.

2015 में डी पाउलो ने औनलाइन ऐसे लोगों को अपने अनुभव शेयर करने को आमंत्रित किया जो अपनी इच्छा से सिंगल थे और इस स्टेटस से खुश थे. ‘कम्युनिटी औफ सिंगल पीपुल’ नाम के इस गु्रप में 5 महीनों के अंदर अलगअलग देशों से 600 से ज्यादा लोग शामिल हो गए और मई 2016 तक यानी 1 साल बाद यह संख्या बढ़ कर 1170 तक पहुंच गई.

इस औनलाइन ग्रुप में सिंगल लाइफ से जुड़े हर तरह के मसले व अच्छे अनुभवों पर चर्चा की जाती है न कि किसी संभावित हमसफर को आकर्षित करने के तरीके बताए जाते हैं.

बदलती सोच

पिछले दशक से जनगणना करने वाले अमेरिकी ‘यू. एस. सैंसस ब्यूरो’ द्वारा सितंबर के तीसरे सप्ताह को अनमैरिड और सिंगल अमेरिकन वीक के रूप में मनाया जा रहा है. पिछले 10 सालों से स्थिति यह है कि तलाकशुदों, अविवाहितों या विधवा/विधुरों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है.

दरअसल, अब विवाह को खुशियों की गोली नहीं माना जाता. जरूरी नहीं कि हर शख्स विवाह कर परिवार के दायरे में स्वयं को सीमित करे. पुरुष हो या स्त्री, सभी को अपनी मंजिल तय करने का हक है. इस दिशा में कुछ हद तक सामाजिक सोच भी बदल रही है.

लोग मानने लगे हैं कि सिंगल एक स्टेटस नहीं वरन एक शब्द है, जो यह बताता है कि यह शख्स मजबूत और दृढ़ संकल्प वाला है और किसी पर निर्भर हुए बगैर अपनी जिंदगी जी सकता है.

सामाजिक दबाव

ऐसा नहीं है कि हर जगह सिंगल्स की भावनाओं को समझा जाता है. ‘यूनिवर्सिटी औफ मिसौरी’ के शोधकर्ताओं के नए अध्ययन के मुताबिक भले ही मिड 30 की सिंगल महिलाओं की संख्या बढ़ी हो, मगर सामाजिक अकेलेपन से जुड़ा खौफ कम नहीं हुआ है. अविवाहित महिलाओं पर सामाजिक परंपरा को निभाने का सामाजिक दबाव कायम है.

टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा मध्यवर्ग की 32 अविवाहित महिलाओं का इंटरव्यू लिया गया. इन महिलाओं ने स्वीकार किया कि विवाह या दूसरे इस तरह के मौकों पर उन के सिंगल स्टेटस को ले कर बेवजह भेदते हुए से सवाल पूछे जाते हैं, तो वहीं बहुत से लोग यह कल्पना भी करने लगते हैं कि जरूर वह झूठ बोल रही है और उस की शादी हो चुकी होगी. पति से नहीं बनती होगी या वह तलाकशुदा होगी. कई लोग मुंह पर यह कह भी देते हैं कि शादी नहीं हुई तो जीवन बेकार है.

हाल के एक शोध के मुताबिक अविवाहित महिलाओं को दुख इस बात का नहीं होता कि वे सिंगल हैं बल्कि तकलीफ  यह रहती है कि समाज उन के सिंगल स्टेटस को स्वीकार नहीं करता और उन पर लगातार किसी से भी शादी कर लेने का दबाव बनाया जाता है.

‘ब्रिटिश सोशियोलौजिकल ऐसोसिएशन कौंन्फ्रैंस’ में किए गए एक अध्ययन में पूरे विश्व से 22,000 विवाहित और अविवाहित लोगों के प्रसन्नता के स्तर को मापा गया और पाया गया कि वैसे देश जहां विवाह से जुड़ी पारंपरिक सोच अधिक मजबूत है वहां अविवाहितों में अधिक अप्रसन्नता पाई गई क्योंकि वहां शादी न करने वाली महिलाओं को दया वाली या नीच निगाहों से देखा जाता है.

पाया गया है कि 35 साल से ऊपर की सिंगल महिलाएं फिर भी अपनी स्थिति से संतुष्ट रहती हैं, जबकि यंग वूमन खासकर 25 से 35 साल की जमाने से सब से ज्यादा खौफजदा होती हैं क्योंकि उन से सब से ज्यादा सवाल पूछे जाते हैं. 25 साल से पहले इस संदर्भ में ज्यादा चर्चा नहीं होती.

कुछ तो लोग कहेंगे

सिंगल महिलाओं के लिए जरूरी है कि मुफ्त की सलाह देने वालों की बातों से दिलोदिमाग पर दबाव न बनने दें. आप जरा अपनी निगाहें घुमा कर देखिए, जो शादीशुदा हैं, क्या उन्हें हर खुशी मिल रही है? क्या उन की जिंदगी में नई परेशानियों ने धावा नहीं बोल दिया? कोई भी काम करने से पहले घर वालों को सूचित करना, पैसों के लिए दूसरों का मुंह देखना, एकएक पैसे का हिसाब देना, अपने वजूद को भूल कर हर तरह के कंप्रोमाइज के लिए तैयार रहना, घर संभालना ये सब आसान नहीं होता. बहुत से तालमेल बैठाने पड़ते हैं, जिन से जुड़े तनाव से सिंगल वूमन आजाद रहती है.

जो महिलाएं आप पर शादी करने का दबाव डाल रही हैं, वे दरअसल आप की स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और झंझटों से मुक्त जिंदगी से जलती हैं.

आप अपने दिल की सुनिए. यदि आप किसी ऐसे शख्स का इंतजार कर रही हैं, जो आप की सोच और नजरिए वाला हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं. बस शादी करनी जरूरी है, इसलिए किसी से भी कर लो, भले ही वह आप के योग्य नहीं, इस बात का कोई औचित्य नहीं.

कुछ कर के दिखाना है

बहुत सी लड़कियों/महिलाओं के दिलों में कुछ करने का जज्बा होता है, मगर शादी के बाद आमतौर पर वे ऐसा कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाती हैं. एक तरफ  घरपरिवार की जिम्मेदारियां, तो दूसरी तरफ बच्चे. ऐसे में वे चाह कर भी अपने सपनों को जी नहीं पातीं. जिन लड़कियों की प्राथमिकता अपना पैशन होता है, शादी नहीं वे सहजता से शादी न करने का फैसला ले पाती हैं या फिर शादी करती भी हैं तो अपने ही जैसे पैशन या हौबी रखने वाले से.

गलत से बेहतर है न हो जीवनसाथी

पेशे से पत्रकार 32 वर्षीय अनिंदिता कहती हैं, ‘‘गलत व्यक्ति के साथ आप जुड़ जाती हैं तो आप को धोखा मिलता है या फिर आप का जीवनसाथी गालीगलौज और मारपीट करता है तो क्या इस कदर अपने सम्मान को दांव पर लगा कर भी विवाह बंधन में बंधना जरूरी है?’’

सिंगल्स होते हैं ज्यादा जिम्मेदार

अकसर माना जाता है कि सिंगल व्यक्ति सैल्फ सैंटर्ड होता है, पर ऐसा नहीं है. सिंगल अपनी जिंदगी की स्क्रिप्ट स्वयं लिखता है. जब व्यक्ति शादी करता है तो उस का फोकस अपने परिवार और बच्चों तक सिमट कर रह जाता है. मगर सिंगल व्यक्ति दिल से मांबाप, दोस्तों, रिश्तेदारों व सभी करीबी व्यक्तियों के करीब होता है. सही अर्थों में वह स्वार्थरहित और सभी के लिए स्नेहपूर्ण व्यवहार कर पाता है.

शोधों के मुताबिक  हम सभी के पास खुशी की एक बेसलाइन होती है और शादी साधारणगत इसे बदलती नहीं, उस अल्पकालीन खुशी के सिवा.

ऐक्सपर्ट्स के विचार

विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में शादी या जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं के बारे में सामाजिक अपेक्षाएं बनी रहती हैं और इन अपेक्षाओं को पूरा न करने पर चुनौतीपूर्ण एहसास का सामना करना पड़ता है. हालांकि यह ध्यान देना आवश्यक है कि हम में से प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को स्वयं स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होता है. हालांकि इस तरह के दबाव से निबटना दुखदाई हो सकता है.

यदि इस से आप को असहज लगता है तो इस बारे में अपनी राय जोर दे कर रखनी होगी. याद रखें कि किसी भी प्रकार का दबाव मन पर न डालें क्योंकि शादी अपने व्यक्तिगत जीवन का विकल्प है और आप को इस के लिए निर्णय लेने से पहले मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है.

समीर पारीख, मनोचिकित्सक 

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16 Tips: अच्छा पड़ोसी बनने के गुर

शांति जीवन के लिए बहुत जरूरी है. शांति का एक पक्ष पड़ोसियों से बेहतर तालमेल के जरीए पाया जा सकता है. आप के अच्छे व्यवहार से आप के पड़ोसी सदैव आप के बन सकते हैं. जानिए अच्छे पड़ोसी बनने के गुर ताकि आप की गुडी इमेज आप को सोसायटी में सिर उठा कर जीने का अधिकार दे:

1. आप कालोनी में नए आए हैं, तो पड़ोसी के समक्ष अपनी अकड़ू इमेज न बनाएं. नई जगह पर अपनी पहचान बनाएं. इस के लिए आप को स्वयं पहल करनी होगी. यकीन मानिए आप मुसकरा कर सामने वाले से बात करेंगे, तो सामने वाला भी आप के साथ वैसे ही पेश आएगा.

2. कालोनी में नए आए हैं, तो पासपड़ोस में चेहरे पर मुसकराहट लिए नमस्तेसलाम या वैलकम गिफ्ट से जानपहचान बढ़ाएं.

3. पड़ोसी से उन का लाइफस्टाइल जानें. ऐसा करने से लड़ाईझगड़े से बचा जा सकता है. मसलन, आप के पड़ोसी नाइट शिफ्ट में काम करते हैं. ऐसे में सुबह व शाम आराम के लिहाज से उन के लिए बहुत अहम हैं. आप का बच्चा स्कूल के बाद गानेबजाने की प्रैक्टिस करता है. यह बात पड़ोसी को बताने से होने वाले झगड़े से बच जाएंगे. ऐसे में दोनों अपनीअपनी समस्या का बीच का रास्ता खोज सकते हैं.

4. आप दूसरी मंजिल पर रहते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि भारीभरकम उपकरणों के खिसकाने आदि से उपजे शोर से पहली मंजिल वाले को खीज हो सकती है. फिर खीज लड़ाईझगडे़ का रूप भी ले सकती है. ऐसे में समझदारी इसी में है कि आप भारी उपकरणों के नीचे मोटा रबर मैट बिछाएं ताकि शोर कम हो.

5. टहलने, चलने की तहजीब भी बहुत जरूरी है. खटखट की आवाज करते जूते या सैंडल किसी भी को डिस्टर्ब कर सकते हैं. अत: आज से ही अपनी कालोनी, ब्लौक या गलीमहल्ले में खटखट की आवाज करने वाले जूते या सैंडल पहनना बंद कर दें. जूतेचप्पल ऐसे हों जो आवाज न करें.

6. घर में पैट है, तो ध्यान रहे वह हमेशा चेन से बंधा रहे. कालोनी में पैट के साथ बाहर हैं, तो उसे चेन से बांध कर रखें. आप को उस से भले डर न लगता हो, लेकिन दूसरों को लग सकता है. यही नहीं, अगर पैट चेन से बंधा न हो तो किसी को काट भी सकता है, जो झगड़े की वजह बन सकता है.

7. पार्किंग ऐटिकेट्स से भी जरूर वाकिफ हों. गाड़ी, स्कूटर या बाइक ऐसे पार्क करें कि किसी का रास्ता ब्लौक न हो. किसी के घर के आगे गाड़ी पार्क न करें. पार्किंग ऐटिकेट्स से वाकिफ होने से पासपड़ोस में झगड़े से बच सकते हैं.

8. पड़ोसियों से मेलजोल बनाए रखें. स्वयं पहल कर के पड़ोसी को अपने घर चायनाश्ते पर बुलाएं. अच्छा माहौल आप को मानसिक सुकून तो प्रदान करेगा ही, जरूरत के समय आप के पड़ोसी भी आप के साथ होंगे.

9. धीमा बोलना बहुत जरूरी है. आप किसी से फोन पर बात कर रहे हैं और आप की कालोनी में महिलाएं तेज आवाज में बात कर रही हैं तो उन्हें मना करने पर झगड़ा हो सकता है. ऐसे में घर के हर छोटेबड़े सदस्य को सिखाएं कि घर, टैरेस, पार्क आदि जगहों पर धीमी आवाज में बोलें. आप की तेज आवाज दूसरे की शांति भंग कर सकती है.

10. पड़ोसियों से संवाद बनाए रखें. उन के हर सुखदुख में उन का साथ दें. समय की कमी रहती है, तो अपने पड़ोसियों से व्हाट्सऐप, फेसबुक से जुड़ें.

11. घर में पार्टी करने वाले हैं, तो पहले ही अपने पड़ोसियों को इस बारे में बता दें अन्यथा पार्टी के दौरान आप के पड़ोसी मूड खराब कर सकते हैं. पहले बताने से पड़ोसी शोरशराबा होने पर ऐडजस्ट करने की कोशिश करेंगे.

12. घर का कूड़ाकरकट डस्टबिन में डालें. यहांवहां न फेंकें. यहांवहां बिखरा कूड़ा झगड़े का कारण बन सकता है. इसी तरह कालोनी में बिखरे कूड़े को नजरअंदाज न करें. उसे उठा कर डस्टबिन में डालें. आप को देख कर दूसरे लोग भी ऐसा करेंगे यानी कालोनी साफसुथरी रहेगी.

13. आसपास के इलाके में कोई दिल दहलाने वाली घटना घटी है, तो इस बारे में पड़ोसियों से बात करें ताकि यह बात वैलफेयर ऐसोसिएशन के हैड के कानों तक पहुंच जाए और कालोनी में वैसी कोई घटना न घटे.

14. बड़ेबुजुर्गों की खैरखबर लेते रहें. कालोनी में जरूरतमंदों की सहायता करने से पीछे न हटें.

15. चौकन्ने रहें कि कहीं आप का व्यवहार, आप का रहनसहन या किसी भी प्रकार का आचरण पड़ोसी को कष्ट तो नहीं दे रहा.

16. अपने पड़ोसियों से सरलता से पूछें कि कहीं उन्हें आप की वजह से कोई दिक्कत तो नहीं. यह जान कर झगड़े की जड़ को ही नष्ट कर सकते हैं.

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स्मार्ट पेरैंट्स तो स्मार्ट बच्चे

सभी मातापिता अपने बच्चों को सब से आगे और सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहते हैं. इस के लिए वे क्याक्या नहीं करते. सुखसुविधाओं के साधन जुटाते हैं, पौष्टिक आहार खिलाते हैं, फिर भी ऐसा क्यों होता है कि कुछ बच्चे बेहद विलक्षण बुद्धि के होते हैं तो कुछ सामान्य व औसत बुद्धि के? दरअसल, जन्म के समय बच्चे के दिमाग के सैल्स सांस लेने, दिल की धड़कन जैसी कुछ खास क्रियाओं से ही जुड़े होते हैं. मस्तिष्क का बाकी हिस्सा जन्म के 5 साल के भीतर विकसित होता है. न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के चाइल्ड स्टडी सैंटर के मैनेजिंग डायरेक्टर पी. ल्यूकास के अनुसार, ‘‘जन्म के शुरुआती 5 सालों में शिशु के जीवन में घटने वाली घटनाएं न सिर्फ उस के मस्तिष्क का तत्कालीन विकास निर्धारित करती हैं, बल्कि यह भी निर्धारित करती हैं कि आने वाले जीवन में उस का मस्तिष्क कितना विकसित होगा.’’

यद्यपि शिशु के मस्तिष्क विकास के रहस्य को विशेषज्ञ अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं पाए हैं, लेकिन फिर भी यह तो तय है कि अभिभावकों द्वारा किए गए प्रयास बच्चे के मस्तिष्क के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

बनें स्मार्ट पेरैंट्स

यदि आप को लगता है कि बाजार में उपलब्ध बेबी डेवलपमेंट सीडी से या जल्द से जल्द उसे प्ले स्कूल में भेजने से आप के बच्चे का दिमाग तेजी से चलने लगेगा तो आप का सोचना गलत है. विशेषज्ञों की राय में बच्चे के मस्तिष्क का विकास इस पर निर्भर करता है कि आप ने उस के साथ कितना वक्त बिताया है. जी हां, बेशक यह बच्चे पालने का पारंपरिक तरीका हो, लेकिन यह बात सही है कि कंप्यूटर, वैबसाइट्स और टीवी की तुलना में बच्चे के साथ खेले गए छोटेमोटे सरल खेल, अभिभावकों का सान्निध्य बच्चे को ज्यादा ऐक्टिव और स्मार्ट बनाता है, क्योंकि इस दौरान शिशु को जो आत्मीयता और स्नेह मिलता है उस की बराबरी कोई नहीं कर सकता.यदि आप भी अपने शिशु को स्मार्ट बेबी बनाना चाहती हैं तो पहले स्मार्ट मदर बनें और उस की स्मार्ट टीचर भी. आप के द्वारा कही गई हर बात और किया गया हर कार्य आप का नन्हामुन्ना गौर से देखसुन रहा है और उस पर उस का प्रभाव भी पड़ र हा है. इसलिए उस के सर्वश्रेष्ठ विकास के लिए निम्न बातों पर गौर करें:

जन्म से 4 माह तक

उसे कुछ पढ़ कर सुनाएं, लोरी गा कर सुनाएं. शिशु के सामने तरहतरह के चेहरे बनाएं, उसे गुदगुदी करें, बच्चे की आंखों के आगे धीरेधीरे कोई रंगबिरंगी वस्तु, खिलौना या झुनझुना घुमाएं, ऐसे गाने या पोयम्स सुनाएं, जिन में शब्दों का दोहराव हो, आप और शिशु जो भी कर रहे हैं, उसे बोल कर बताएं जैसे ‘अब हम गाड़ी में जा रहे हैं’, ‘अब हम ने आप को कार की सीट पर बैठा दिया है’, ‘अब मम्मी भी कार में बैठेंगी’ आदि.

4 से 6 माह तक

स्टफ टौयज को हग करने में शिशु की मदद करें, छोटेछोटे प्लास्टिक के ब्लाक्स शिशु के आगे रख दें और देखें कि आप का नन्हामुन्ना किस तरह उन को गिरा कर अपने लिए रास्ता बनाता है. अलगअलग रिदम वाला संगीत सुनाएं, रंगबिरंगी तसवीरों वाली किताबें दिखाएं और उस की प्रतिक्रिया देखें. कोमल, खुरदरी सतह वाली विभिन्न वस्तुएं उसे स्पर्श करने को दें ताकि उन के अंतर को वह महसूस कर सके.

6 माह से 18 माह तक

बच्चे से ज्यादा से ज्यादा बातचीत करें ताकि वह विभिन्न ध्वनियों और शब्दों में तालमेल बैठा सके. परिचितों, परिवार के सदस्यों व रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुओं से उस का रोज परिचय कराएं, सब के नाम बारबार दोहराएं, शब्दों के दोहराव वाले गाने और पोयम्स हाथों से एक्शन कर के उसे सिखाएं, उस के साथ लुकाछिपी खेलें.

18 से 24 माह

विभिन्न वस्तुओं व रंगों की पहचान कराने वाले खेल उस के साथ खेलें जैसे कई रंगों के बीच में से किसी खास रंग की वस्तु जैसे फूल, कुरसी, उस के तकिए आदि की पहचान, उस के सामने कई सारी चीजें, जिन्हें वह रोज देखता है, रख दें और उन में से कोई भी एक चीज उठाने को कहें. जितना अधिक हो सके अपने शिशु से बातचीत करें, रंगों और कागज से अब धीरेधीरे उस की पहचान कराना शुरू करें, किसी किताब में से उसे कोई कहानी पढ़ कर सुनाएं और इस दौरान उस से कुछ न कुछ सवाल पूछते रहें जैसे कब, कहां पर क्या हुआ आदि उस के खिलौने उसे स्वयं खेलने या चलाने को दें.

24 से 36 माह

जैसेजैसे शिशु साइकिल चलाना या अन्य कोई गतिविधि बखूबी करना शुरू कर दे, उसे पर्याप्त सराहना व प्रोत्साहन दें, अपने खिलौनों से विभिन्न प्रकार के खेल खेलने को प्रोत्साहित कर उस की कल्पनाशक्ति बढ़ाएं, खेलखेल में कुछ ऐसे काम उसे करने को प्रेरित करें, जो आप असल जिंदगी में करते हैं जैसे फोन पर बात करना, गाड़ी चलाना, चाय या दूध पीना आदि. कोई कहानी पढ़ कर सुनाते हुए उस से विभिन्न सवाल पूछते रहें ताकि उस की रुचि बरकरार रहे, कुछ पढ़ कर सुनाते समय विभिन्न अक्षरों या शब्दों की पहचान कराएं, फिर उस से किताब के पेज पर उन्हें ढूंढ़ने को कहें या उन की ध्वनि से परिचय कराएं.

3 से 5 वर्ष

शिशु को अपनी चीजें दूसरों से बांटना सिखाएं, इस के लिए विभिन्न उदाहरण दें, बच्चों के लिए बनाए गए गेम्स उस के साथ खेलें, जिन से उस की सोचनेसमझने और सीखने की क्षमता में वृद्धि हो, बच्चे के द्वारा टीवी देखने के समय को दिन में 1 से 2 घंटे तक सीमित करें व उस के साथ बैठ कर टीवी देखें और उस दौरान उसे बताते रहें कि टीवी में क्या हो रहा है. यदि बच्चा रुचि दिखाता है तो किताब पढ़ने या कोई पहेली हल करने जैसे विकल्प उसे दें. बच्चे को हर छोटीबड़ी चीज करने से रोकेंटोकें नहीं, बल्कि नएनए काम स्वयं करने और अपनी जिज्ञासा स्वयं शांत करने के अवसर प्रदान करें. अपने बच्चे व उस की इच्छा को पर्याप्त सम्मान व अटेंशन दें. उस की हर बात, हर नया अनुभव, चाहे वह अजीबोगरीब ही क्यों न हो, ध्यान से सुनें. रोज अपने बच्चे के साथ कुछ फुरसत के पल जरूर बिताएं और उस से पूछें कि आज दिन भर उस ने क्या किया. बच्चे को नए काम करने, नए अनुभव लेने और उन का बखान करने के लिए भी प्रोत्साहित करें.

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