पति-पत्नी के रिश्ते को निभाएं कैसे

अकसर छोटीछोटी बातों को ले कर पतिपत्नी इस हद तक झगड़ पड़ते हैं कि उन की जिंदगी में सिर्फ तनाव ही रह जाता है, जो उन पर इस हद तक हावी हो जाता है कि दोनों का एक छत के नीचे जीवन बसर करना मुश्किल हो जाता है और नौबत तलाक तक पहुंच जाती है. आम जिंदगी में यदि पतिपत्नी कुछ बातों को ध्यान में रखें तो तनाव से बच कर अपने घरेलू जीवन को खुशियों से भर सकते हैं. यदि पतिपत्नी के बीच कभी झगड़ा हो तो दोनों में से एक को शांत हो जाना चाहिए, जिस से बात आगे न बढ़े और फिर पतिपत्नी का झगड़ा तो पानी के बुलबुलों की तरह होता है, जो पल भर में ही खत्म हो जाता है.

आइए, जानते हैं कुछ नुसखे, जिन को अमल में ला कर जीवन को खुशगवार बनाया जा सकता है:

पतिपत्नी को चाहिए कि वे एकदूसरे को समझें, एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करें.

अपने रिश्ते में कभी भी ‘मैं’ भाव को हावी न होने दें.

कभीकभी चुप्पी भी बहुत कुछ ऐसी बातें कह जाती है, जिन्हें बोलने से सिर्फ कड़वाहट ही पैदा हो और फिर इस तरह दूसरे तक आप का संदेश सहजता से पहुंच जाता है.

घर का झगड़ा घर में ही सुलझा लें. बाहर वालों को इस की भनक तक न लगने दें वरना बात बिगड़ सकती है.

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यदि पति को औफिस से आने में देर हो जाए तो उन से लड़ें नहीं, न ही शक करें, पर एकदम विश्वास भी न करें, सामान्य बनी रहें.

कभीकभी पत्नी की नाजायज मांगों से तंग आ कर पति कुंठित हो जाते हैं खास तौर से तब जब वे उन मांगों को पूरा कर पाने में असमर्थ होेते हैं. इस कारण भी झगड़े होते हैं.

पत्नी को पति की सीमित आय में रहना सीखना चाहिए और सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहिए.

तानों से बचें

1. एकदूसरे को ताना न दें. जैसे, मुझे तो बहुत अमीर घरानों से रिश्ते आ रहे थे. मैं तो तुम से विवाह कर के फंस गई आदि. इस से पति का सम्मान चोटिल होता है, जो अंतत: झगड़े का कारण बनता है.

2. पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे को हर रूप में अपनाएं.

3. दोनों ही एकदूसरे की इच्छाओं की कद्र करें और एकदूसरे के मातापिता को समान रूप से सम्मान दें, क्योंकि अकसर देखने में आता है कि पतिपत्नी के बीच झगडे़ का एक बड़ा कारण मातापिता के सम्मान को ले कर भी होता है.

4. पतिपत्नी आपस में समर्पित रहें, अपनी इच्छाओं को दबाएं नहीं, व्यक्त करें, मगर उन्हें एकदूसरे पर थोपें नहीं.

5. कभी भी एकदूसरे के अतीत को न कुरेदें. आप का भविष्य ज्यादा महत्त्व रखता है. कल आप क्या थे, इस पर झगड़ना बेवकूफी है, आज आप क्या हैं और आज के आधार पर कल क्या होंगे, यह ज्यादा महत्त्व रखता है.

6. अगर कोई बात आप को तकलीफ पहुंचा रही है तो शांत हो कर, आराम से अपने पति से बातचीत करें. झगड़ा किसी परेशानी का हल नहीं बल्कि तनाव की जड़ है.

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बहन पर गुस्सा

भाई बहन के रिश्ते में बड़ा ही अपनापन होता है. इस अनमोल रिश्ते को संजोए रखना भाईबहन दोनों का ही कर्तव्य है, लेकिन कभीकभी इस रिश्ते में खटास उत्पन्न हो जाती है, जो दोनों के लिए जान देने को तैयार रहते थे वे एकदूसरे से ख्ंिचेख्ंिचे रहने लगते हैं. भाइयों का अपनी बहनों से खास लगाव होता है. अगर बहन छोटी है तो भाई जहां उस के हर नाजनखरे सहता है वहीं यह भी प्रयास करता है कि वह उस से रूठ न जाए. लेकिन कभीकभी जानेअनजाने ऐसी बात बन जाती है कि भाई को बहन पर गुस्सा आ जाता है. किशोर भाईबहनों में कुछ बातें हैं जिन के चलते भाई को बहन पर गुस्सा आता है.

परीक्षा की तैयारी में लापरवाही

अकसर लड़कियां पढ़ाई में लापरवाही करती हैं. सालभर तो वे सहेलियों के साथ मौजमस्ती करती रहती हैं और जब परीक्षा आने वाली होती है तो वे किताब उठाती हैं. ऐसे में पूरा कोर्स याद कर पाने में उन्हें परेशानी होती है और वे सिर पकड़ कर बैठ जाती हैं.

ऐसे में जब वे भाई से हैल्प करने को कहती हैं तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है. रश्मि की बोर्ड की परीक्षा थी. उस का भाई रमेश हमेशा उस से कहता रहता कि पढ़ ले, लेकिन रश्मि एक कान से सुनती, दूसरे से बाहर निकाल देती. यही नहीं वह भाई को कहती तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. मैं तो पास हो ही जाऊंगी.

परीक्षा में जब एक महीना बचा तो रश्मि भाई के पास साइंस की किताब ले कर आई और बोली, ‘‘भैया, बस तुम मुझे साइंस के कुछ चैप्टर्स समझा दो. मेरी समझ में नहीं आ रहे हैं.’’

इतना सुनना था कि रमेश का पारा चढ़ गया.  उस ने न केवल उस की किताब दूर फेंक दी बल्कि एक चांटा भी मार दिया.

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मिसबिहेव करना

ज्यादातर लड़कियां अपनी ईगो में रहती हैं. कब, कहां और किस से कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस का उन्हें ध्यान नहीं रहता. कुछ तो इतनी बिगड़ी होती हैं कि घर आए मेहमानों से भी बदतमीजी से पेश आती हैं. ऐसी लड़कियों को देख कर ऐसा लगता है जैसे उन के मातापिता ने उन्हें तमीज सिखाई ही नहीं.

मोनिका भी कुछ इसी तरह के स्वभाव की लड़की थी. अपनी सहलियों के साथ तो वह मिसबिहेव करती ही थी अपने कजिंस के साथ भी उस का व्यवहार ठीक नहीं था. बातबात में उन की खिंचाई करना उस की आदत थी. छोटीछोटी चीजों के लिए पेरैंट्स से जिद करती थी.

मोनिका का भाई दिनकर जो उस से 4 साल बड़ा था, उसे हमेशा समझाता कि वह अपनी यह आदत छोड़ दे, पर वह भाई से भी लड़ जाती और कहती कि तू कौन होता है मुझे तमीज सिखाने वाला.

एक दिन तो मोनिका ने हद ही पार कर दी. घर में चाचाजी आए हुए थे. उन्होंने मोनिका से बड़े प्यार से कहा कि बेटी, गरमियों की छुट्टियों में हमारे घर मम्मीपापा के साथ जरूर आना. मोनिका ने चाचाजी को टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘चाचाजी, आप के घर एसी तो है नहीं, मैं एसी के बिना एक पल भी नहीं रह सकती इसलिए मैं आप के घर नहीं आऊंगी.’’

ऐसा मुंहफट जवाब सुन कर चाचाजी का मुंह उतर गया. उन्हें देख कर ऐसा लगा कि उन्हें मोनिका का व्यवहार पसंद नहीं आया. चाचाजी के जाने के बाद दिनकर ने मोनिका की जम कर क्लास ली. मम्मीपापा ने भी उसे बहुत फटकारा. दिनकर ने तो उस से बात तक करनी छोड़ दी.

लेटनाइट पार्टी में जाने की जिद

कोई भी भाई यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की बहन अपने फ्रैंड्स के साथ लेटनाइट पार्टी में जाए. अगर कोई बहन लेटनाइट पार्टी में जाने की जिद करती है तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है. आज जमाना कितना खराब है. लेटनाइट पार्टी में जाना बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है. इन पार्टियों में अकसर फ्रैंड्स लड़कियों को नशीला पदार्थ खिला कर मनमानी कर सकते हैं. देर से आने पर रास्ते भर डर भी बना रहता है.

लेकिन कुछ लड़िकयां अपनेआप को इतना बोल्ड समझती हैं कि वे लेटनाइट पार्टी में जाने के लिए अपने मातापिता व भाई से लड़ जाती हैं. डेजी भी इसी तरह की बोल्ड लड़की थी. एक दिन वह भाई के  मना करने पर भी अपने बौयफ्रैंड और उस के दोस्तों के साथ डिस्कोथैक चली गई. वहां उस के साथ जो हुआ वह भूल नहीं पाती. जब वह घर आई तो रोरो कर उस ने सारा किस्सा घर वालों को सुनाया.

ऐसे में भाई को डेजी पर बहुत गुस्सा आया. कितना मना किया था वहां जाने को. डेजी ने भाई से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘भैया, अब यह गलती कभी नहीं करूंगी.’’ भाई ने डेजी को माफ तो कर दिया लेकिन जो हादसा हो गया वह कैसे रिवर्स होता. लड़कियां जब ऐसी हरकत करती हैं तो भाई को गुस्सा आता है, क्योंकि वह बहन की बदनामी बरदाश्त नहीं कर सकता.

व्हाट्सऐप, फेसबुक पर दोस्ती

लड़कियों को व्हाट्सऐप औैर फेसबुक का चसका लग गया है. वे अपने सारे काम छोड़ कर चैटिंग में लगी रहती हैं. वे अनजान लोगों से भी चैट करती हैं. कभीकभी यह चैट दोस्ती में बदल जाती है, पर लड़कियों को इस बात का ध्यान नहीं रहता कि वे जिस से फ्रैंडशिप कर रही हैं, उस का पताठिकाना क्या है, क्योंकि अकसर लड़के बहुत सी बातें गुप्त रखते हैं या गलत जानकारी दे कर लड़कियों को इंप्रैस करते हैं.

वनीता को भी चैटिंग का शौक लग गया था. उस का भाई अकसर उसे टोक कर पूछता कि वह इतनी देरदेर तक किस से चैटिंग करती है? तो वह कोई न कोई बहाना बना देती कि वह किसी सहेली से पढ़ाई के बारे में चैट कर रही थी. एक दिन वनीता का मोबाइल उस के भाई के हाथ लग गया. मोबाइल पर किसी लड़के ने उसे बहुत गंदे मैसेज भेज रखे थे. भाई को वनीता पर बहुत गुस्सा आया और उस ने उस का मोबाइल तोड़ दिया.

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ऊटपटांग फैशन करना

हर भाईर् चाहता है कि उस की बहन अच्छे कपड़े पहने और जहां भी जाए लोग उस की ड्रैस सैंस की तारीफ करें पर आज लड़कियां ऊटपटांग फैशन करने लगी हैं. वे ऐसे कपड़े पहनती हैं जिन में उस का पूरा शरीर झलकता है. ऐसे में मनचले उन पर फबतियां कसें तो कोई भाई बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगा इसलिए भी भाईबहन में अकसर तकरार हो जाती है.

अकसर लड़कियों को अपने भाइयों से यह भी शिकायत रहती है कि वे उन की निजी जिंदगी में दखलंदाजी करते हैं और उन्हें अपनी मरजी से जीने नहीं देते, पर इस के पीछे भाई की जो मानसिकता होती है उस का अंदाजा शायद वे नहीं लगा पातीं. हर भाई को अपनी बहन से प्यार होता है और जब बहन उस की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है.

बहनों को भी चाहिए कि वे मर्यादा में रहें. भाईबहन के रिश्ते को अच्छी तरह निभाएं. ऐसा कोई काम न करें, जिस से भाई को गुस्सा आए और परिवार की बदनामी हो.

इकलौते लड़के से शादी

जैसे ही किसी की बेटी की शादी इकलौते लड़के से तय होती है, त्योंही उसे सुखसमृद्धि की गारंटी मान लिया जाता है. एक दंपती ने जब अपनी बेटी की शादी के कार्ड बांटे तो हर किसी से अपनी बेटी के ससुराल में लड़के के इकलौते होने की चर्चा जरूर की. एक संबंधी ने कहा कि तब तो उन के यहां हमारे घर जैसी रौनक नहीं होगी. हमारे यहां तो मामूली अवसर पर भी इतने लोग इकट्ठा हो जाते हैं कि घर में उत्सव जैसा माहौल बन जाता है. फिर भी वे इकलौते लड़के के गुण गाते रहे तो उस रिश्तेदार ने आक्रोश में कहा कि अगर इतना ही इकलौतेपन का क्रेज है तो अपने बेटे को भी इकलौता रहने दिया होता. तब किसी और परिवार को भी आप के इस सुख जैसा सुख मिलता.

सब कुछ इस का है

अकसर शादी की बात चलते ही लड़की वाले इसी बात को अहमियत देते हैं और लड़के वाले भी पसंद की जगह बात बनाने के लिए इस बात का सहारा लेते हैं. भले ही यह बात सच है पर इस तरह की अपेक्षा पालना अकसर अनाधिकार चेष्टा को जन्म देता है. शैलेंद्र व सीता दंपती ने जब एक ट्रस्ट बनाया तो सब दंग थे. लेकिन उन्होंने बेटे को ट्रस्टी न बनाया तो उस ने रिश्तेदारों पर अपने मातापिता को समझाने का दबाव बनाया. तब मातापिता की बातों से स्पष्ट हुआ कि बेटाबहू तो सब कुछ उन का है यह मान कर बैठे हैं. इन की कमाई बहुत है फिर भी ये हारीबीमारी तक में नहीं पूछते. पता नहीं हमारे पालनपोषण में कहां कमी रह गई. हम अपना पूरा पैसा गरीबों की शिक्षा व संस्कार पर खर्चेंगे. खैर, समय रहते बेटाबहू सुधरे तो मांबाप ने अपनी वसीयत थोड़ी बदली. उन्होंने बेटाबहू के लिए गुंजाइश निकाली, लेकिन ट्रस्ट वाला मुद्दा नहीं बदला.

सब कुछ अपना मान लेने की मानसिकता फर्ज अदायगी में बाधक है. कुमार अच्छा कमाने के बावजूद जबतब मांबाप से मोटी रकम वसूलते रहते हैं. कुछ कहने पर कहते हैं कि आगे लूं या पीछे, इस से क्या फर्क पड़ता है. सब कुछ तो मेरा ही है. मांबाप को यह पसंद नहीं. उन्होंने अब दूसरी तरह सोचना शुरू कर दिया है.

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लड़की वाले हावी

ज्यादातर परिवारों में लड़के का छोटा परिवार होने के कारण लड़की के पीहर वाले हावी हो जाते हैं. इन के यहां है ही कौन हम ही तो हैं, यही सोचते हैं वे. ऐसी स्थितियां लड़की की ससुराल में उत्साह भंग करने वाली होती है. कुसुम को बारबार सुनना पड़ता है कि हमारे घर में उसी के घर वाले नजर आते हैं. कोई मौका हो तो पूरी फौज हाजिर हो जाती है. कुसुम ने पीहर वालों को जब ताकीद कराया कि बुलाने का मतलब यह नहीं कि उन के यहां अड्डा ही जमा लिया जाए तो कहीं बात बनी. बहुत से इकलौते लड़के के मांबाप बड़े परिवार में रिश्ता कर के खुश होते हैं. उन की इच्छा रहती है कि वकत पर वे लोग उन के पास आएंजाएं. क्योंकि छोटे परिवार की कमी वे  देख चुके होते हैं. फिर भी उन के यहां डेरा जमाना कुछ लड़की वालों को नहीं जंचता. उन्हें लगता है कि लड़के वालों की पहल तथा इच्छा से उन के यहां आनाजाना अच्छा व सम्मानजनक रहता है. साथ ही बेटी या बहन को ताने या चुहलबाजी का सामना नहीं करना पड़ता.

उस पर अगर इकलौता लड़का अपनी ससुराल से ज्यादा जुड़ जाता है तो उसे अपने करीबी लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं. विजय के चचेरे भाईबहन उसे इसीलिए खरीखोटी सुनाते हैं, ‘यार अब हम हैं ही क्या? अब तो तुम्हें सिर्फ ससुराल वाले ही दिखते हैं.’ विजय को पत्नी पर गुस्सा आता है. पत्नी को पीहर वालों पर.

इकलौते नहीं रहे

एक दंपती ने इकलौते बेटे की सगाई करते ही उस से कह दिया कि अब उन्हें एक बेटी भी मिल गई है. अब वह अपनेआप को इकलौता न समझे. ये दंपती कहते हैं कि ऐसा उन्होंने बेटे की मानसिकता को ध्यान में रख कर किया. वह किसी और बच्चे को हमारी गोद में बैठा देख कर उसे मारता, रुलाता था. उस की चीजें तोड़फोड़ देता था. हम ने इस का इलाज भी कराया, फिर भी उस में वह भावना कुछ बची हुई है. एक दंपती कहते हैं कि हमारा बेटा ऐसी मनोवृत्ति का शिकार है कि उसे हमारा उसी के बेटाबेटी से प्यार करना अच्छा नहीं लगता. हम उसे कैसे ठीक करें, यह समझ में नहीं आ रहा. उसे समझाना आसान नहीं. हमारे घर में बातबात पर कलह आम बात है.

केयरिंग शेयरिंग की आदत नहीं

अकेले लड़के से शादी करना मखमली या फूल जैसी नहीं, बल्कि चुनौतीपूर्ण है. एक तो ऐसे लड़के वैसे ही नाजों से पाले जाते हैं, उस पर इकलौते लड़कों की तो बात ही क्या है. चूंकि उन्हीं की केयर ज्यादा की जाती है, इसलिए वे दूसरों की केयर करने में उतने उत्सुक या जागरूक नहीं होते. चूंकि उन्हें सब कुछ बहुतायत में मिलता है, इसलिए शेयर करने की आदत उन में नहीं आती. इसीलिए पत्नी के रूप में ही सही, उन की ही इच्छा से कोई उन के जीवन में प्रवेश करता है, तो भी वे उतने मन से उस का स्वागत नहीं कर पाते. ऐसे व्यक्ति के जीवन में स्पेस बनाना पत्नी के लिए चुनौती होता है. एक इकलौते व्यक्ति की पत्नी बताती है कि इन्हें तो रात के अलावा मेरा कमरे में रहना तक पसंद नहीं. बस इन का मन या गरज हो तभी. भावनाओं की कद्र करना तो आता ही नहीं इन्हें. ये तो लोगों को वस्तु समझते हैं.

ऐसी ही एक और इकलौती बहू कहती है कि मैं भरेपूरे परिवार से आई और यहां एकदम अकेली पड़ गई. इन्हें ही क्या, इन के मातापिता तक को मेरा किसी से शेयर करना अच्छा नहीं लगता. किसी से बोलनाबतियाना उन्हें मुंह लगाना लगता है, लेनादेना आफत मोल लेना तथा रिश्तों की कद्र करना लिफ्ट देना. मैं ने साफ कहा कि हम अपनेअपने अंदाज से जीएं. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी कोई सोच है. इन्हें यह सब अच्छा तो नहीं लगता पर सहन करना सीख गए हैं.

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हर इकलौता एक सा नहीं

गुड्डू भरेपूरे ससुराल को पा कर खुश है. वह मानता है कि उस के ससुराल वालों ने उस के जीवन की कमी को पूरा किया है. अपनी सालियों और पत्नी के चचेरेममेरे भाइयों तक को अपने परिवार का हिस्सा मानता है. उन से मिलने के लिए पार्टी के बहाने ढूंढ़ता है. सब उसे जीजूभाई, जीजूदादा, जीजूचाचा, जीजूमामा आदि कह कर खूब लाड़ करते हैं. उस की पत्नी इसे बावलापन समझती है. उस के सासससुर कहते हैं कि गुड्डू शुरू से ही मिलनसार है. इस ने कभी अकेला होना नहीं चाहा. बचपन में जब भी अस्पताल के सामने से निकलता, हम पर जोर देता कि जाओ, मेरे लिए खूब सारे भाईबहन ले कर आओ. हम से बारबार अकेलेपन का दुख कहता. हम ने अन्य संतानों की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली. हमें तो पछतावा है. हम ने किसी अनाथ लड़की को गोद ले लिया होता. गुड्डू की जिंदगी में इकलौतापन मजबूरीवश आया. वह मन से इकलौता नहीं है.

इकलौतेपन को लौटरी न मान कर सहज भाव से लिया जाए. सब कुछ अपना मान कर चलना दुख बढ़ाता है. अधिकार के साथसाथ कर्तव्य भाव जिम्मेदार बनाता है. इकलौते लड़केलड़की की शादी देखने में भले अच्छी लगे पर कांटों भरे ताज जैसी होती है. क्योंकि उन्हें सहज रिश्तों में भी एकदूसरे तथा एकदूसरे के परिवारों की उपेक्षा का भाव अनुभव होता है. लड़की को इकलौते लड़के से शादी कर के केवल पत्नी बन कर ही नहीं रहना पड़ता, बल्कि उस की मां, बहन, रिश्तेदार, दोस्त व सहेली सब कुछ बन कर रहने का दायित्व भी वहन करना पड़ता है. इकलौते लड़के के नखरे भी उठाने पड़ सकते हैं. उस के मूड के अनुसार चलना पड़ सकता है. उस की इच्छाओं के आगे झुकना पड़ सकता है. पत्नी बन कर हम उस पर कब्जा नहीं जमा सकते. उस के स्वेच्छाचारी मन को जीतने के लिए कुछ खास जतन करने के लिए भी अपनेआप को तैयार करना पड़ सकता है. तभी इकलौते लड़के से शादी अच्छी तरह चल व निभ सकती है.

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40 पार की तैयारी करने के 5 टिप्स

40 की उम्र निकलते ही महिलाओं में अकेलेपन की समस्या घर करने लगती है कामकाजी की अपेक्षा होममेकर महिलाओं में यह समस्या अधिक देखी जाती है क्योंकि जब बच्चे छोटे होते हैं तो घर के कार्यों और बच्चों के पालन पोषण के कारण इन्हें सिर तक उठाने का अवसर नहीं मिलता परन्तु अब तक अधिकतर परिवारों में बच्चे पढने के लिए बाहर चले जाते हैं और यदि नहीं भी जाते हैं तो 18-20 की उम्र में उनकी अपनी ही दुनिया हो जाती है जिसमें वे व्यस्त रहते हैं. बच्चों की परवरिश में हरदम व्यस्त रहने वाली मां की उम्र भी अब तक 40 पार हो जाती है. पति अपने व्यवसाय या नौकरी में ही मसरूफ रहते हैं और बच्चे अपनी पढाई, दोस्तों और कैरियर में. वर्तमान समय में घरेलू कार्यों के लिए भी हर घर में मेड और मशीनें मौजूद हैं. जिससे घरेलू कार्यों में लगने वाला समय भी बहुत कम हो गया है. इन्हीं सब कारणों से जीवन के इस पड़ाव में महिलाओं के जीवन में रिक्तता आना प्रारंभ हो जाती है यदि समय रहते इस रिक्तता का इलाज नहीं किया जाता तो कई बार यह काफी गंभीर समस्या बन जाती है. घर में बच्चों के न होने से महिलाओं की व्यस्त दिनचर्या में अचानक विराम लग जाता है और कई बार तो वे स्वयं को घर का सबसे बेकार सदस्य समझने लगती हैं जिसकी किसी को भी आवश्यकता नहीं है. परंतु इस समस्या से निपटने का उपाय भी महिलाओं के स्वयं के हाथ में ही है. जैसे ही बच्चे कुछ बड़े होने लगें तो प्रत्येक महिला को यह कटु सत्य स्वीकार कर लेना चाहिए कि एक न एक दिन बच्चे अपनी दुनियां में व्यस्त हो जाएगें. जिस प्रकार कामकाजी महिलाओं को रिटायरमेंट के बाद सक्रिय रहने के लिए किसी गतिविधि में व्यस्त रहना आवश्यक है उसी प्रकार आज प्रत्येक महिला को चाहे वह कामकाजी हो या घरेलू, स्वयं को व्यस्त रखने के उपाय खोज लेने चाहिए ताकि बच्चों के बाद जीवन में आयी रिक्तता से स्वयं को दूर रखकर खुशहाल और स्वस्थ जीवन व्यतीत किया जा सके.

अक्सर महिलाओं को यह कहते सुना जाता है कि करना तो मैं भी कुछ चाहती हूं परंतु क्या करूं यह समझ नहीं आता. मेरी क्यूरी कहती हैं कि, ‘‘हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि हमारे अंदर भी कोई न कोई हुनर छुपा है जिसे खोजना अनिवार्य है.’’यह सही है कि छोटे बच्चों के पालन पोषण की व्यस्तता में स्वयं के लिए थोड़ा सा भी वक्त निकालना काफी चुनौतीभरा कार्य होता है परंतु जहां चाह वहां राह वाले सिद्धांत पर अमल करें और जब भी वक्त मिले अपनी जिजीविषा को कायम रखें और जब आवश्यकता हो तो अपने इस हुनर को बाहर लाएं. वर्तमान में परिवार का स्वरूप एक या दो बच्चों तक ही सीमित हो गया है इसलिए अपने बच्चों के लिए माताएं बहुत अधिक पजेसिव हैं. उनका प्रत्येक छोटा बड़ा कार्य करके वे उन्हें पंगु तो बनाती ही हैं स्वयं भी पूरे समय व्यस्त रहती हैं इसकी अपेक्षा बच्चों को प्रारंभ से ही आत्मनिर्भरता का पाठ पढाएं, परिवार में कार्यों का विभाजन करें, आवश्यकतानुसार हेल्पर रखें ताकि आप अपने लिए भी चंद लम्हे निकाल सकें. यह आवश्यक नहीं है कि आप कोई भी कार्य धनार्जन के लिए ही करें बल्कि वह करें जिसमें आप खुशी महसूस कर सकें, अपने जीवन को जीवंत बना सकें, जिससे आप अपने जीवन के इस दूसरे दौर को पहले दौर से भी अधिक रोचक और आनंदकारी बना सकें.

1. रुचियों को जीवंत रखें

आमतौर पर विवाहोपरांत अपने घर प्ररिवार में महिलाएं इतनी अधिक व्यस्त हो जाती हैं कि वे अपनी रुचियां तो क्या अपने अस्तित्व तक को विस्मृत कर देती हैं. जीवन का भले ही कोई भी दौर क्यों न हो, सिलाई, कढ़ाई, रीडिंग, लेखन या कुकिंग जैसी अपनी रुचियों का परित्याग कदापि न करें क्योंकि वही तो आपका अस्तित्व और वजूद है जो आपको दूसरों से पृथक करता है. जब भी समय मिले कुछ न कुछ अंशों में अपनी हॉबी को कायम अवश्य रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उसमें स्वयं को व्यस्त रख सकें यदि आप अपनी हॉबी पर काम नहीं करेंगी तो जीवन के एक पड़ाव पर खुद को अकेलेपन से घेर लेंगी.

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2. सीखना जारी रखें

एक से ढर्रे पर चलते चलते जीवन में बोरियत सी आने लगती है. सीखने की कोई उम्र नहीं होती लियोनार्डो द विंची कहते हैं कि ‘‘सीखने की प्रवृत्ति से मस्तिष्क कभी थकता नही है तथा जीवन उत्साह से परिपूर्ण रहता है.’’ अपनी रूटीन दिनचर्या से कुछ समय अपने लिए निकालकर अपनी रूचि के कार्य को अपडेट करने और जीवन में जीवन्तता बनाये रखने के लिए हमेशा कुछ नया सीखती अवश्य रहें ताकि जीवन में सदैव उत्साहजनक तरंगों का संचार होता रहे.

3. पति की सहभागी बनें

पति की सहयोगी बनना आपके लिए व्यस्त रहने का सर्वोत्तम उपाय है. कई बार जब पति अपने व्यवसाय या नौकरी के बारे में पत्नी को बताना चाहते हैं तो पत्नियां ‘‘तुम्हारी तुम जानो’’ कहकर पति की आफिसियल या व्यवसायिक बातों से पल्ला झाड़ लेतीं हैं इसकी अपेक्षा आप प्रारंभ से ही उनके काम में हाथ बटाएं, उन्हें रुचिपूर्वक सुनें आवश्यकता पड़ने पर  अपनी राय भी दें इससे आप स्वयं तो अपडेट रहेंगी ही पति भी आपके महत्व से अवगत रहेंगे. साथ ही आगे चलकर जब आपके बच्चे बड़े हो जाएँ तो आप उनके कार्य में भी अपना भरपूर योगदान दे सकेंगीं.

4. सक्रिय और सकारात्मक रहें

एक निश्चित समय के बाद रहना अकेले ही है इस कटु सत्य को स्वीकार कर अपने को व्यस्त रखने के उपाय खोजने में ही बुद्धिमानी है. नकारात्मकता जहां आपके जीवन को निष्क्रिय कर देती है, जीवन को तनाव और अवसाद जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर देती है वहीं सकारात्मकता जीवन में सक्रियता का संचार कर जीवन को उत्साह से सराबोर कर देती है इसलिए सदैव पाजिटिव और सक्रिय रहें.

5. स्वयं पर ध्यान दें

इस उम्र में अपने जीवन मे योगा, व्यायाम और टहलने को प्राथमिकता दें ताकि आप शरीर और मन से स्वस्थ रह सकें. जीवन की समस्यायों और अकेलेपन का रोना रोते रहने की अपेक्षा कुछ अपने मन का करें अपने व्यक्तित्व को निखारने का भी प्रयास करें. योग, व्यायाम और वाकिंग से स्वयं को फिट रखने के साथ साथ ब्यूटी पार्लर जाकर अपने सौन्दर्य में भी चार चांद लगाएं अब तक जो भी करने की इच्छा आपके मन में रह गयी है उस सबको पूरा करने का वक्त है यह, अतः अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति करें.

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5 बातें रिजैक्ट कर देतीं Proposal

जब प्रपोज करने पर हमेशा नाकामयाबी ही मिलती हो तो दिल टूट जाता है. समझ नहीं आता कि आखिर हम में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो हमारा प्यार अधूरा रह गया. इस स्थिति में आप के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि पार्टनर ने आप को क्यों न कहा आइए, जानते हैं इस संबंध में:

ऐटिट्यूड भरा प्रोपोजल

भले ही आप ने अपने क्रश को प्रपोज तो कर दिया, लेकिन वह प्रोपोजल आप का ऐटिट्यूड से भरा हुआ हो, तो हमेशा आप को न ही सुनने को मिलेगी क्योंकि आप जिसे भी प्रपोज करें वह नहीं चाहेगा कि जिस से वह संबंध जोड़ने जा रहा, उस में ऐटिट्यूड हो. फिर चाहे आप कितनी भी गुड लुकिंग क्यों न हों.

आप के प्रोपोजल को न करने पर मजबूर कर ही देगा क्योंकि जिस में अभी इतना ऐटिट्यूड है आगे कितना होगा, कहा नहीं जा सकता. इसीलिए आप को हमेशा अपने क्रश को प्रपोज करने में असफलता मिलती है.

टिप: जब भी आप अपने पार्टनर को प्रपोज करने जाएं तो आप के प्रोपोजल का तरीका बहुत ही सौफ्ट व उसे आकर्षित करने वाला होना चाहिए न कि रोब व ऐटिट्टूड से भरा हुआ हो.

आप का गुड लुकिंग नहीं होना

हो सकता है कि आप जब भी अपने क्रश को प्रपोज करते हों, तो आप को न ही सुनने को मिलता हो. ऐसा इसलिए क्योंकि आप उसे प्रपोज करने तो पहुंच गए, लेकिन अपने हुलिए पर जरा ध्यान नहीं दिया. ऐसे में आप के क्रश से आप को न ही सुनने को मिलेगी, क्योंकि कोई भी लड़की यह नहीं चाहेगी कि उस का पार्टनर दिखने में अच्छा न हो, क्योंकि कहते हैं न कि बातों का इफैक्ट लोगों पर बाद में पड़ता है पहले तो चेहरा ही वर्क करता है. ऐसे में प्रपोज करने से पहले अपने हुलिए पर ध्यान जरूर दें.

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टिप: भले ही आप को टिपटौप रहने का शौक न हो, लेकिन जब आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हों तो खुद को टिपटौप बना कर ही जाएं ताकि लड़की की नजर में आप पहली बार ही बस जाएं और वह आप के प्रोपोजल को न न कर पाए. गुड लुकिंग, हैंडसम बौय की चाह हर लड़की को होती है.

इशारों के बाद प्रपोज करना

कुछ लड़कों की यह आदत होती है कि वे जिसे पसंद करते हैं उसे इशारों से अपने मन का हाल बताने की कोशिश करते हैं, जबकि लड़कियां ऐसे लड़कों से दूरी बनाने में ही समझदारी समझती हैं, क्योंकि ऐसे लड़के उन्हें नियत के सही नहीं लगते. उन्हें लगता है कि जो अभी ऐसी हरकत कर रहा है वह आगे किस हद तक चला जाएगा, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में वे उस के प्रपोज करते ही उसे साफ इनकार कर देती हैं.

टिप: जिस पर भी आप का क्रश है और आप उसे प्रपोज करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि आप भले ही उसे छिपछिप कर देखें, लेकिन उसे इशारे न करें. जब भी उसे प्रपोज करें तो आप की आंखों में उस के लिए प्यार दिखे न कि एक अजीब सी शरारत.

शो औफ कर के प्रपोज करना

अगर आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हैं और उसे अपने पैसों का रुतबा दिखा कर प्रपोज कर रहे हैं तो यकीन मानिए आप को न ही सुनने को मिलेगी, क्योंकि जो शुरुआत में ही इतना दिखावा कर रहा है वह आगे भी अपने पैसों के बल पर मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करेगा, ऐसा सोच कर लड़की आप के गुड लुकिंग होते हुए भी आप को न करने में ही समझदारी समझेगी.

टिप: जब प्रपोज करने के लिए जाएं तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आप की पर्सनैलिटी व आप के प्रपोज करने के अंदाज में पैसों का दिखावा जरा भी न हो.

ज्यादा स्मार्ट बनना

कुछ लड़कों की यह आदत होती है कि वे लड़कियों के सामने खुद को जरूरत से ज्यादा स्मार्ट दिखाने की कोशिश करते हैं. इसी चक्कर में जब वे अपने क्रश को अपना बनाने के बारे में सोचते हैं तब उन की यह स्मार्टनैस उन के रिजैक्शन के रूप में सामने आती है, क्योंकि कोई भी लड़की जरूरत से ज्यादा स्मार्ट बनने वाले लड़के को पसंद नहीं करना चाहती. ऐसे में बस वे यही सोचते रह जाते हैं कि लड़की ने उन्हें रिजैक्ट क्यों किया, जबकि उन्होंने तो उन्हें पहल कर के पहले प्रपोज किया.

टिप: ओवर स्मार्टनैस को एक तरफ रख कर कूल डाउन हो कर इस अंदाज में प्रपोज करें कि आप का क्रश आप को हां कहे बिना न रह सके.

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दीवानगी जब हद से जाए गुजर

प्यार एक खूबसूरत एहसास है. प्यार से सुंदर कुछ नहीं पर जिद या ग्रांटेड ले कर प्यार करना बेकार है. प्यार को प्यार की नजर से करना ही सही है. कई बार व्यक्ति प्यार समझ नहीं पाता. प्यार अचानक होता है और इस में ऐज फैक्टर, कास्ट, क्रीड आदि कोई माने नहीं रखते.

1. प्रेम बन सकता है तनाव का सबब

प्यार किसी के लिए दवा का काम करता है तो किसी के लिए तबाही और बदले का सबब भी बन जाता है. हर इंसान अपने व्यतित्त्व और परिस्थितियों के हिसाब से प्यार को देखता है. प्यार अंधा होता है पर कितना यह बाद में पता चलता है. इसीलिए फौल इन लव कहते हैं यानी आप प्यार में गिर जाते हैं. गिर जाना यानी अपनी आईडैंटिटी, अपना सबकुछ भूल जाते हैं. इस के अंदर आप खुद को भूल कर दूसरे को सिर पर चढ़ा लेते हैं. इसलिए प्यार में बहुत से लोग पागल हो जाते हैं, तो कुछ आत्महत्या तक कर लेते हैं.

प्यार किस तरह की पर्सनैलिटी वाले शख्स ने किया है इस पर काफी कुछ डिपैंड करता है. इमोशनली अनस्टेबल पर्सनैलिटी के लिए प्यार हमेशा डिपैंडैंट फीचर रहता है. उस की सोच होती है कि दूसरा शख्स उस का ध्यान रखेगा, उसे प्यार करेगा, उसे संभालेगा. इस तरह के लोग काफी कमजोर होते हैं. वे बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं तो बहुत जल्दी डिप्रैशन में भी आ जाते हैं.

प्यार में 3 फैक्टर्स बहुत हाई लैवल पर रहते हैं- पहला त्याग, दूसरा कंपैटिबिलिटी और तीसरा दर्द. दूसरा बंदा आप को किस तरह से देख रहा है, आप को कितने अंकों पर आंक रहा है यह भी काफी महत्त्वपूर्ण है. वह आप से किस लैवल तक क्या चाहता है, यह देखना भी जरूरी होता है.

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2. हारमोंस का लोचा

प्यार में कई तरह के हारमोंस निकलते हैं जिन का असर हमारी पूरी पर्सनैलिटी पर पड़ता है. प्यार से व्यक्ति को एक तरह की किक मिलती है. कोई सामने वाला जब आप की मनपसंद, प्यारभरी बातें कर रहा होता है तो आप खुश हो जाते हैं. प्यार का कनैक्शन एक तरह के ऐंजाइम से रहता है, जो आप को खुश और दुखी दोनों रख सकता है. इस में जब खुशी मिलती है तो डोपामाइन हारमोंस सीक्रेट होते हैं. इस से कई बार आप बहुत ज्यादा वेट गेन कर लेते हैं और प्यार में आप फिट भी हो जाते हैं, क्योंकि आप को सामने वाले को खुश भी करना होता है. प्यार में कई तरह के पर्सनैलिटी चेंजेज होते रहते हैं.

3. असुरक्षा की भावना

प्यार में असुरक्षा की भावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. आप सामने वाले पर हमेशा नजर रखते हैं कि वह किसी और को तो नहीं देख रहा, किसी और से तो बातें नहीं कर रहा, किसी और के करीब तो नहीं हो रहा, दूसरा व्यक्ति कहीं मुझ से मेरे प्यार को तो छीन नहीं लेगा जैसी बातें आप के दिमाग में चलती रहती हैं. प्यार में हम डिपैंडैंट हो जाते हैं. अपना चोला बदल लेते हैं. अपना सबकुछ भूल जाते हैं, यहां तक कि अपना काम भी. हमारा पूरा ध्यान एक ही बंदे पर केंद्रित हो जाता है. इस से हमारा काम, हमारा शेड्यूल सबकुछ प्रभावित हो जाता है.

4. डिपैंडैंसी

आप किसी पर पूरी तरह डिपैंडैंट हो जाते हैं तो आप की अपनी पर्सनैलिटी खो जाती है. आप किसी और का चोला पहन लेते हैं. उसे खुश करने के लिए आप उस की पसंद की बात करते हैं, उस की पसंद के कपड़े पहनते हैं, दूसरों से भी उसी की बातें करते रहते हैं, उसी को समझने का प्रयास करते हैं. सारा दिन उसी के खयालों में खोए रहने लगते हैं. दिनभर उस से फोन पर बातें कर टच में रहने की कोशिश में रहते हैं. एक समय आता है जब वह कहीं न कहीं आप को यूज करने लगता है. आप उस के लिए फौर ग्रांटेड हो जाते हैं. साइकोलौजिकली आप ड्रैंड आउट हो जाते हैं. आप की जिंदगी में भारी परिवर्तन होने लगता है. कोई व्यक्ति आप के सिस्टम में घुस जाता है.

5. जब टूटता है नशा

प्यार का नशा जब टूटता है तो हम कहते हैं कि हमारी आंखों पर पट्टी बंधी थी. हम प्यार में अंधे हो गए थे. सचाई से अवगत होने पर इस चीज को बरदाश्त नहीं कर पाते कि हम कहीं न कहीं ऐसे आदमी से जुड़े थे जो डबल डेटिंग कर रहा था. आप के साथसाथ किसी और के भी क्लोज था. अकसर लड़कियां स्मार्टनैस या पैसे देख कर फंस जाती हैं. प्यार एक बहुत ही मिसअंडरस्टुड शब्द है. प्यार में कभी भी आप को 100% वापस नहीं मिलता. फिर आप को इस बात का डिपै्रशन होता है कि आप उसे जितना प्यार करती हैं वह उतना आप का खयाल क्यों नहीं रखता? आप को पूछता क्यों नहीं? आप उस के लिए अपने मांबाप, दोस्तों और यहां तक कि जिम्मेदारियों को भी भूल जाती हैं पर संभव है कि वह आप को ही छोड़ दे.

प्यार में धर्म की वजह से अकसर ओनर किलिंग्स के केसेज होते हैं. सुसाइड होते हैं, वैबसुसाइड होते है, व्हाट्सऐप पर ही इंसान दूसरे को दिखाते हुए आत्महत्या कर लेता है. प्यार में फ्रौड केसेज भी काफी होते हैं. कई बार जिस से आप प्यार कर रही होती हैं वही व्यक्ति एकसाथ कई लड़कियों के साथ डेट कर रहा होता है.

कई बार मुसलिम युवक हिंदू लड़की को मुसलिम बनाने के लिए प्यार का नाटक करते हैं. कई बार बदला लेने के लिए भी लोग किसी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर आप की जिंदगी को खतरे में डाल सकते हैं. इसी तरह के मामलों में ऐसिड अटैक या मर्डर की घटनाएं होती हैं.

वन साइडेड लव है, तो साइको लवर्स पैदा हो जाते हैं. सामने वाले पर ऐसिड अटैक कर देने या मार डालने की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. अपने साथी के साथ मिल कर पुराने प्रेमी को खत्म करना जैसे क्राइम ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स की वजह से जन्म लेते हैं.

6. कैसे बचें

– कभी भी किसी इंसान को अपना सबकुछ मान कर अपना पूरा वक्त न दें. हमेशा एक सीमा में रह कर ही किसी से प्यार करें.

– कभी भी किसी के लिए अपनी आईडैंटिटी खत्म न करें. अपनी आईडैंटिटी हमेशा बचा कर रखें, क्योंकि आप की पहचान आप से है किसी और से नहीं.

– अपनी पसंद का काम करते रहें ताकि आप जीवन से किसी के जाने पर बिलकुल खाली और बरबाद न हो जाएं.

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क्या कहता है कानून

रिस्ट्रिक्शन आर्डर: यदि कोई ऐसा शख्स आप से प्यार करने का दावा करता है, जिस के प्रति आप के मन में कोई सौफ्ट कौर्नर नहीं और वह जबरदस्ती पीछे पड़ा है व बेवजह परेशान करने लगा है तो आप उस पर रिस्ट्रिक्शन और्डर लगवा सकती हैं. इस के तहत वह व्यक्ति 100 मीटर की दूरी तक आप के आसपास भी नहीं दिख सकता. इस के अलावा आप दूसरे कई कानूनों का सहारा ले सकती हैं. मसलन, आईपीसी की धाराएं जैसे-

धारा 509: यदि कोई बातों और हावभाव से आप को परेशान कर रहा हो जबकि आप का रुझान उस की तरफ  नहीं है.

धारा 506: यदि कोई भी व्यक्ति धमकी देता है जैसेकि जान से मारने की धमकी, रेप करने की धमकी तो इस तरह की धमकियां देने पर आईपीसी की धारा 506 लगती है.

धारा 376: यदि रेप हुआ हो तो यह धारा लग सकती है.

धारा 354: सैक्सुअल हैरसमैंट और स्टौकिंग आदि के केसेज में धारा 354 लगती है.

धारा 302: कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है.

धारा 366: विवाह के लिए विवश करने के मकसद से किडनैप किए जाने पर धारा 366 लगाई जा सकती है.

धारा 326: यह धारा ऐसिड अटैक के केसेज में लगाई जाती है.

-क्रिमिनल साइकोलौजिस्ट अनुजा कपूर

से गरिमा पंकज द्वारा की गई बातचीत पर आधारित

पति का टोकना जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो उन्हें इस तरह कराएं एहसास

कविता शादी से पहले ही शहर के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. जब उस की शादी हुई तो वह जो कुछ उस के ससुराल वाले कहते उसे मानने लगी. फिर उसी के अनुसार उस ने अपने रहने, खाने व पहननेओढ़ने की जीवनशैली बना ली. कविता का ससुराल पक्ष ग्रामीण क्षेत्र से था, लेकिन शहरी होने के बावजूद भी उस ने हर एक पारंपरिक रीतिरिवाज को बड़ी आसानी से अपना लिया. लेकिन परिवार, पति, बच्चों व नौकरी के साथ बढ़ती जिम्मेदारियों का चतुराई से सामंजस्य बैठाना उस के लिए शादी के 15 साल बाद भी एक चुनौती है. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है. लेकिन कविता की ससुराल में कुछ भी नहीं बदला. बदलाव के इंतजार में वह घुटघुट कर जीती आई है और अभी भी जी रही है.

उस के पति की धारणा यह थी कि शादी के बाद पत्नी का एक ही घर होता है, और वह है पति का घर. दकियानूसी सोच की वजह से अकसर कविता के घर से उस की अनर्गल बातें सुनाई पड़ जाती थीं. जैसे, साड़ी ही पहनो, सिर पर पल्लू रख कर चला करो, घर में मम्मीपापा के सामने घूंघट निकाल कर रहा करो, सुबह नाश्ते में यह बनाना… दोपहर का खाना ऐसा बनाना… रात का खाना वैसा बनाना आदि. कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं हाथ से ही धोने चाहिए, क्योंकि मशीन में कपड़े साफ नहीं धुलते. कविता को बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होने का शौक था और इस जनून को पूरा करने के लिए वह हालात से समझौता करने के लिए तैयार थी.

समय बीतने पर वह प्रमोट हो कर प्रथम ग्रेड टीचर बन गई. उस के बच्चे 9वीं और 10वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे. लेकिन अभी भी उसे स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि बस से आयाजाया करो. अगर पैदल जाओ तो इसी रास्ते से पैदल वापस आया करो और ध्यान रहे स्कूल के अलावा अकेली कहीं मत जाना. मानसिक तनाव झेलती कविता इन सब बातों से झल्ला उठी, क्योंकि वह स्कूल में सहयोगियों और पड़ोसिनों के लिए उपहास का पात्र बन गई थी. उस ने मन में ठान ली कि वह अब यह सब धीरेधीरे खत्म कर देगी और खुद की जिंदगी जिएगी. हर गलत बात का पालन और समर्थन नहीं करेगी.

आधुनिकता का वास्ता

उस ने ऐसा सोचा और फिर एक बार बोल क्या दिया तानों, बहस व कोसने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन कविता ने परिवर्तन करने की ठान ली. वह धीरेधीरे घूंघट हटा कर सिर तक पल्ला लेने लगी. फिर आधुनिकता का वास्ता दे कर सूट भी पहनने लगी तो पति तिलमिला गया. उस के तिलमिलाने से कविता ने जब यह कहा कि मैं थक चुकी हूं और अब नौकरी नहीं करना चाहती. जितना करना था कर लिया. अब मैं आप का, बच्चों और परिवार का ध्यान रखूंगी और इस के लिए मैं घर पर ही रहूंगी. सुनते ही पति बौखला गया और यह कह कर, ‘‘धौंस देती है नौकरी की… छोड़ दे… अभी ही छोड़ दे… क्या तेरे नौकरी नहीं करने से मेरा घर नहीं चलेगा,’’ घर से बाहर निकल गया. 2 घंटे बाद वह वापस आया और बोला, ‘‘ठीक है, पहन लो सूट लेकिन लंबे और पूरी बांहों वाले कुरते ही पहनना और चूड़ीदार नहीं, सलवार पहनोगी.’’ आधुनिकता की दिखावटी केंचुली में खुद को फंसा पा कर कविता खुद को बेहद अकेला महसूस कर रही थी और उस की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे, जिन्हें समझने का दम न उस के पति के पास था और न घर के अन्य सदस्यों के पास.

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रूढि़वादी सोच

अशोक 5 भाइयों में मझला भाई है. वह पढ़ालिखा है लेकिन उस की सोच शुरू से ही, मातापिता व अन्य भाइयों से बिलकुल विपरीत कट्टर, रूढि़वादी और परंपरावादी रहा है. उस के मातापिता व घर के अन्य सदस्य वक्त के साथ बदले लेकिन वह बिलकुल नहीं बदला. उस की बेबुनियादी बातें, व्यवहार एवं आचरण पहले जैसा है. अशोक की शादी निशा से हुई. शादी के बाद होली निशा का पहला त्योहार था. उसे होली के एक दिन पहले ही अशोक द्वारा कठोर निर्देश मिल गए थे कि कल होली है, ध्यान रहे रंग नहीं खेलना है. निशा बोली, ‘‘क्यों…?’’ तो अशोक ने कहा, ‘‘क्यों कोई मतलब नहीं, बस नहीं खेलना तो नहीं खेलना.’’ निशा ने सोचा कि हो सकता है कि इन के यहां होली के त्योहार पर कभी कोई दुखद घटना घटी हो, इसलिए इन के यहां नहीं खेलते होंगे. दूसरे दिन देखा कि घर के सभी लोग चहकचहक कर होली खेल रहे हैं. वह दिल ही दिल में अचंभित हो रही थी कि अशोक ने मुझे तो मना किया है तो ये सब क्या है… सब क्यों खेल रहे हैं?

वह सोच ही रही थी कि सब ने आ कर होली है भई होली है कह कर उसे गुलाबी रंग के गुलाल से रंग दिया. यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि वह सकपका गई और इनकार करने का भी समय उसे नहीं मिल पाया. फिर वह अशोक की कही बात सोच ही रही थी कि अशोक आ गया और आवाज दी, ‘‘निशा.’’ निशा आवाज सुन कर बहुत खुश हुई कि चलो अच्छा हुआ जो ये आ गए. आज हमारी पहली होली है. उस का दिल गुदगुदा रहा था. अशोक के पास आते ही उस ने हरे रंग का गुलाल मुट्ठी में भर लिया और ज्यों ही अशोक के गाल पर लगाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, अशोक ने उस का हाथ झटक दिया. उस के हाथ का सारा गुलाल हवा में फैल कर बिखर गया. इस अप्रत्याशित आक्रामकता के लिए निशा कतई तैयार नहीं थी.

अशोक की आंखें तर्रा रही थीं. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘जब तुम्हें मना किया था कि होली नहीं खेलना है तब क्यों होली खेली?’’ निशा सिर झुका कर बाथरूम में चली गई. फिर पूरे दिन निशा का मूड खराब रहा. रात को बिस्तर पर अशोक ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘होली नहीं खेलना. मैं ने सिर्फ इसलिए कहा था कि इस के रंगों से घर में गंदगी हो जाती है साथ ही चमड़ी भी खराब हो जाती है.’’

बातबात पर टोकना

निशा ने अपने पति की इस बात को सकारात्मक लिया तो बात आईगई हो गई. लेकिन धीरेधीरे विचारों की परतें उधड़ने और खुलने लगीं. हर बात पर टोकाटाकी फिर तो जैसे उस की झड़ी ही लग गई.

‘‘पड़ोसिनों से ज्यादा बात मत किया करो… टाइम पास औरतें हैं वे.’’

‘‘बाल खुले मत रखा करो… ऐसी चोटी नहीं वैसी बनाया करो, नहीं तो बाल खराब हो जाएंगे.’’

‘‘सहेलियों से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं किया करो… बारबार बात करने से मोबाइल खराब हो जाता है और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही पैसे का मीटर भी खिंचता है.’’

‘‘टीवी ज्यादा मत देखो, आंखें कमजोर हो जाएंगी.’’

‘‘घर की बालकनी में मत खड़ी हुआ करो, कई तरह के लोग यहां से गुजरते हैं.’’

‘‘सभी के खाना खाने के बाद तुम खाना खाया करो. मर्यादा और लक्ष्मण रेखा में रहा करो.’’

निशा भीतर ही भीतर कसमसा गई. फिर उस के द्वारा अपने अधिकारों की मांग शुरू हुई तो अशोक उस को छोड़ देने की बारबार धमकी देने लगा. समय रुका नहीं और अशोक की आदतें भी नहीं छूटीं. अब निशा चिड़चिड़ी रहने लगी. उस के गर्भ में अशोक का बच्चा पल रहा था. वह आवाज उठाने का प्रयास करती तो सीधे उस के खानदान को गाली मिलती. धीरेधीरे वह अवसाद में आने लगी. उस से उबरने और अपना ध्यान हटाने के लिए कभी मैगजीन पढ़ती या कोई संगीत सुनती तो भी ताने कि पैसा खर्च होता है… समय खराब होता है… स्वास्थ्य खराब होता है.

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बदलनी होगी सोच

निशा अब अपना दिमागी संतुलन खोने लगी, क्योंकि अशोक का छोटीछोटी बातों में मीनमेख निकालना और उसे बातबात पर ताने देना कम नहीं हो रहा था. वह रोती तो उस के आंसू मगरमच्छ के आंसू समझ लिए जाते. निशा अधिक घुटन नहीं सह सकी तो अपने मायके आ गई. वहां उस को बेटा हुआ. अशोक उसे देखने नहीं आया, उस ने तलाक के कागज पहुंचा दिए. पर निशा ने तलाक के पेपर साइन नहीं किए. उस का बेटा 4 साल का हो चुका है, वह आज भी प्रयासरत है कि अशोक उसे अपने घर ले जाएं. पर अशोक ऐसा बिलकुल नहीं सोचता. वह कहता है कि निशा उस की एक नहीं सुनती. जबकि सच तो यह है कि अहंकारी, जिद्दी एवं स्वार्थी अशोक को हां में हां करने वाली गुडि़या चाहिए. सहयोगिनी एवं अर्द्धांगिनीनहीं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा अहं और स्वार्थ पति पत्नी पर लाद देने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि कोई पत्नी दिल से ऐसे रिश्तों को कैसे पाल सकती है और निभा सकती है? ऐसे रिश्ते चलते नहीं घिसटते हैं और बाद में नासूर बन जाते हैं. जुल्म बड़ा आसान लगता है मगर पत्नी की भावनाओं को दफना कर क्या पति खुद सुख के बिस्तर पर सो पाता है?

यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार सुबह उठ कर दांतमुंह व शरीर की सफाई जरूरी है वैसे ही सुखद एवं स्थायी रिश्तों के लिए मानसिक एवं विचारात्मक सफाई भी जरूरी है. पतिपत्नी दोनों का ही दायित्व बनता है कि वे अपनी गलतियां सुधारें और एकदूसरे की भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक जरूरतें समझ कर कदम से कदम मिला कर साथसाथ चलने को तत्पर रहें. वे इस बात का खयाल रखें कि एकदूसरे के प्रति कभी नफरत के बीज न पनपने पाएं.

जब जबान नहीं हाथ चलाएं बच्चे

‘‘पापा, सुनो… सुनो न…’’ थोड़ी देर बाद तेज आवाज में चिंटू चिल्लाया, ‘‘पापा… पापा ऽऽऽ, मुझे दाल नहीं खानी, मेरे लिए पिज्जा और्डरकरो.’’ पिज्जा की जिद के चक्कर में चिंटू ने खाना फेंक दिया और कमरे में बंद हो जोरजोर से चिल्लाने लगा.उस की इस हरकत पर पापा को भी गुस्सा आ गया. उन्होंने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम कितने बदतमीज हो गए हो,अब तुम्हें आगे से कुछ नहीं मिलेगा.’’ यह सुनते ही चिंटू ने रोना शुरू कर दिया. इकलौते बच्चे को रोते देख किस बाप का दिल नहीं पिघलेगा.

‘‘अलेअले, मेरा बेटा, अच्छा बाबा, कल तुम्हारे लिए पिज्जा मंगा देंगे.’’ इतना सुनना था कि चिंटू की बाछें खिल गईं, ‘‘ये…ये, हिपहिप हुर्रे. पापा, लव यू.’’

‘‘लव यू टू माय सन,’’ पापा ने प्रत्युत्तर में कहा. क्या आप और आप का बेटा/बेटी चिंटू की तरह ही रिऐक्ट करते हैं? अगर हां, तो आप का बच्चा न केवल जिद्दी है बल्कि उस की परवरिश में आप की तरफ से कमी है. बच्चे अकसर अपना गुस्सा मारपीट या रो कर निकालते हैं ताकि उन की मुंह से निकली ख्वाहिश पूरी हो सके. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे ऐसा व्यवहार अपने आसपास की घटनाओं से ही सीखते हैं.

यहां कुछ पेरैंट्स के साथ हुई घटनाओं के उदाहरण पेश किए जा रहे हैं :

उदाहरण-1

दिल्ली के मयूरविहार, फेज वन, इलाके में रहने वाले रोहन और साक्षी को एक फैमिली गैट टूगैदर में जाना था. वे अपने 8 वर्षीय बेटे सारांश को भी साथ ले कर गए. वैसे तो साक्षी कभी भी सारांश को अकेले नहीं भेजती थी क्योंकि वह बड़ा शैतान बच्चा था. पार्टी में पहुंच कर भी साक्षी ने सारांश का हाथ नहीं छोड़ा क्योंकि साक्षी जानती थी कि हाथ छोड़ते ही वह उछलकूद करने लगेगा. साक्षी को देख उस की फ्रैंड लीजा आ गई. उस ने कहा कि चल, वहां चल कर मजे करते हैं. अब अपनी पूंछ को छोड़ भी दे. उस के कहते ही साक्षी ने सारांश से बच्चों के ग्रुप में शामिल होने को कहा. थोड़ी देर बाद ही चीखनेचिल्लाने के साथ रोने की आवाजें आने लगीं. मुड़ कर देखा, तो सारांश ने एक बच्चे की धुनाई शुरू कर दी थी, जिस कारण वह खूब रो रहा था. साक्षी भाग कर वहां पहुंची और सारांश को समझा कर उसे सौरी बोलने को कहा. फिर साक्षी वहां से चली आई. दरअसल, सारांश जैसे बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और जब मिलते हैं तो लड़ाईझगड़ा शुरू कर देते हैं.

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उदाहरण-2

मैं ने एक दिन डिनर के लिए अपने एक रिश्तेदार दंपती को घर पर आमंत्रित किया. वे लोग तय समय पर अपनी 6 वर्षीय बेटी सना के साथ आ गए. बातों का दौर शुरू हुआ. बातें इतनी रुचिकर थीं कि काफी देर तक जारी रहीं. बीचबीच में उन की बेटी सना, जो स्वभाव से ऐंठू और कम बोलने वाली थी, ने तो बात करना व बैठना ही मुश्किल कर दिया. वह कुछ सैकंडों में बीचबीच में पापापापा आवाजें लगाए. ‘बसबस, बेटा शांत बैठो’ जैसे शब्द भाईसाहब भी कहते जा रहे थे. कुछ देर बाद सना भाईसाहब की गोद में चढ़ी और उन के गालों पर चांटे मारने लगी. भाईसाहब तो बेटी के लाड़ में इतने अंधे दिखे कि कहने लगे, ‘अरे, मेरा सोना बेटा…अच्छा बताओ, क्या कह रही थी.’ यह देख मैं और मेरे पति एकदूसरे का मुंह देखने लगे. बेटी की ऐसी हरकत के बावजूद भाईसाहब ने उसे कुछ नहीं कहा. बच्चों के प्रति मांबाप का प्यार स्वाभाविक है पर बच्चे को इतना लाड़ देना कि वह मारने लगे या बीच में बोलने लगे गलत है.

ऐसे करें पहचान

डेढ़ से 2 साल : इस उम्र के बच्चे अपनी जरूरत को सही से बता नहीं पाते. इसी उम्र में बच्चों की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पड़ती है. इस उम्र के बच्चे दांत काटना, हाथ चलाना, खिलौने पटकना, लात मारना या रोने जैसी हरकतें ज्यादा करते हैं. बच्चा अगर इस तरह का नैगेटिव व्यवहार करे तो उसे फौरन समझाएं क्योंकि इस उम्र में नहीं समझाएंगे तो वह बड़ा हो कर भी ऐसी हरकतें करता रहेगा. यह समझें कि वह कहना क्या चाह रहा है और यह सीख कहां से रहा है.

3-6 साल : अगर 2 साल तक उस का व्यवहार नहीं सुधरता तो इस उम्र में वही व्यवहार बच्चों की आदत बन जाती है और वे समझते हैं कि कौन सी चीज पाने के लिए उन्हें क्या करना है. मान लीजिए अगर कोई खिलौना या उन्हें कोई मनपसंद चीज खानी है तो वे मार्केट में बुरी तरह से फैल जाते हैं और चीजें देख कर रोने लगते हैं और तब तक रोते हैं जब तक कि उन्हें वह चीज न मिल जाए.

7-10 साल : इस उम्र के कई बच्चे शैतानी में पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं. ऐसे बच्चों को बातें खूब आती हैं और वे अपनेआप को नुकसान पहुंचा कर अपनी बातों को मनवाते हैं, जैसे चीखतेचिल्लाते हैं, झल्लाते हैं, मारते हैं, चुप हो जाते हैं, चिड़चिड़ करते हैं, बातें छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, बातें बनाते हैं. ऐसे बच्चे अपने आसपास नेगेटिव व्यवहार देखते हैं, उस का असर उन पर पड़ता है.

क्यों होता है ऐसा

सिंगल चाइल्ड : हम दो हमारा एक कौंसैप्ट यानी सिंगल चाइल्ड के चलते भी अब बच्चों में एकाधिकार की भावना आती है, जिस के चलते भी बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और उन्हें अपनी चीजें भी नहीं देते. वे जहां दूसरे बच्चों या भीड़भाड़ को देखते हैं तो असहज हो जाते हैं. ऐसे बच्चों के दोस्त भी कम होते हैं. ऐसे बच्चे पर पेरैंट्स हमेशा समाजीकरण का विशेष ध्यान दें.

खेल खेलें : इंडोर गेम्स में भी बच्चे सिर्फ वीडियो गेम्स ही खेलना पसंद करते हैं या फिर ज्यादा हुआ तो टीवी खोल कर कार्टून देखते हैं. अगर बच्चों में पेरैंट्स आउटडोर खेल खेलने के लिए प्रेरित करें तो इस से बच्चा बहुतकुछ सीखता है. आउटडोर गेम्स से चीजों की शेयरिंग तो होती ही है, इस से बच्चा अपनी पारी का इंतजार करना भी सीखता है. बच्चे को ऐसे में यह भी एहसास होगा कि हर जगह मनमानी नहीं चल सकती. अगर आप का बच्चा शर्मीला है तो उसे पार्क में ले जाएं ताकि बच्चा और बच्चों के समूह को देखे और खेलने के लिए उत्सुक भी हो.

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घर स्कूल से भी सीखते हैं बच्चे

देखा जाए तो ज्यादातर बच्चे नेगेटिव व्यवहार सब से पहले अपने घर से सीखते हैं. घर के आसपास का माहौल भी अच्छा होना चाहिए ताकि बच्चे पड़ोस से कुछ गलत न सीखें. कुछ बच्चे स्कूल से भी नेगेटिव व्यवहार सीखते हैं. घर में तो टीवी में हिंसा देखने से भी गलत सोच बनती है, जैसे एक कार्टून में अगर भीम ने किसी को मारा तो मारने वाली हिंसा को बच्चे जल्दी अपना लेते हैं. बच्चे कहा जाए तो हर एक गलत चीज जल्दी सीखते हैं और फिर वे प्रैक्टिकली करने की कोशिश भी करते हैं. पहले टीवी पर कोई ऐक्शन या ‘शक्तिमान’ सीरियल आता था तो शक्तिमान अपनी उन शक्तियों और ऐक्शन सीन को अंत में बच्चों को करने से मना करता था, ठीक वैसे ही अगर बच्चा मारधाड़ वाली चीजें देखे तो उसे प्यार से समझाएं.

बुजुर्गों को दें अपना प्यार भरा साथ      

मुंबई की एक पॉश सोसाइटी में रहने वाले 70 वर्षीय मिश्रा जी आजकल बेहद डरे हुए हैं उन्हें अपने घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर में वे अपने बुजुर्ग माता पिता को खो चुके हैं. जब से कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोंन ने भारत में दस्तक दी है वे दोनों पति पत्नी बेहद सहम गये हैं यहां तक कि अब उन्हें बेंगलोर में रहने वाले अपने बच्चों के पास जाने में भी डर लग रहा है. वे कहते हैं, “”मार्च 2020 में कोरोना काल से पूर्व हमउम्र दोस्तों से हर दिन मॉर्निग ईवनिंग वॉक पर मिलते थे कुछ अपने दिल की कहते थे तो कुछ उनकी सुनते थे और वह कहना सुनना हमारे लिए पूरे दिन टॉनिक का कार्य करता था पर कोरोना के बाद से हम अपने घरों में बंद हैं. दूसरी लहर में अपने माता पिता को खोने के बाद अब तो कोरोना के नाम से ही रूह कांप जाती है, अब ये ओमिक्रोंन न जाने क्या कहर बरपायेगा यकीन मानिए कभी कभी तो मन घोर निराशा में घिरने लगता है.’’

भोपाल में रहने वाली 70 वर्षीया मीता जी के दोंनों बच्चे यू. एस. में हैं……वे यहां अपने 75 वर्षीय पति के साथ अकेली रहतीं हैं. कोरोना की दूसरी लहर में उन्होंने अपने कुछ करीबियों को खो दिया था. वे कहतीं हैं, “अपने आसपास होने वाली करीबियों की असामयिक मौतों ने हमें तोड़कर रख दिया…..उस समय एक दूसरे का हाथ पकड़कर बेड पर लेटे लेटे बिना खाए पिए हमने कई रातें गुजारीं…..हरदम यही डर सताता रहता था कि यदि हमें कोरोना हो गया तो क्या होगा क्योंकि इस समय कोई मददगार हमें मिल नहीं सकता और बच्चे हमारे पास आ नहीं सकते, पिछले कुछ महीनो में अपने जैसे तैसे खुद को सम्भाला था पर अब इस तीसरी लहर की आहट ने तो हमें मानो फिर से वहीँ पहुंचा दिया है पता नहीं अब इस लहर में हम जैसे बुजुर्ग बचेगें भी या नहीं.’’

वास्तव में कोरोना महामारी ने यूं तो समूची दुनिया को ही प्रभावित किया है परंतु इससे सर्वाधिक पीड़ित बुजुर्ग हैं. यदि वे अकेले रह रहे हैं तो कोरोना के खौफ से भयभीत हैं और यदि अपने बच्चों के साथ भी हैं तो भी वे अकेले ही हैं क्योंकि वर्क फ्राम होम में बड़े और ऑनलाइन क्लास में बच्चे व्यस्त हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त बच्चों की यूं भी अपनी एक अलग दुनिया होती है, कोरोना से पूर्व वे मार्निंग ईवनिंग वॉक पर जाकर कुछ बाहर की आबोहवा ले लेते थे तो अपने हमउम्र साथियों से मिलकर दुख सुख की कह सुन भी लेते थे जिससे उनका मन भी हल्का हो जाया करता था. परंतु कोरोना ने उन्हें एकदम अकेला कर दिया है. घर में रहकर भी वे बेगानों से हो गए हैं. एक हालिया रिसर्च के अनुसार इस समय देश के करीब 82 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं. 70 प्रतिशत नींद न आना, और रात को आने वाले डरावने सपनों से जूझ रहे हैं, 63 प्रतिशत अकेलेपन या सामाजिक अलगाव के कारण अवसाद की ओर अग्रसर हैं, वहीं 55 प्रतिशत बुजुर्ग प्रतिबंधों के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से स्वयं को कमजोर अनुभव कर रहे हैं. पहली और तीसरी लहर को किसी तरह झेल लेने वाले बुजुर्ग अब तीसरी लहर की आहट से ही बहुत खौफ में हैं.”

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक निधि तिवारी कहतीं हैं, “पिछले लॉकडाउन के समय रामायण, महाभारत जैसे धारावाहिक देखने से उनका समय कट जाता था परंतु कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता ने उन्हें डरा दिया है और अब कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोंन के द्वारा आने वाली इस तीसरी लहर के आने से तो वे एकदम टूट से गये हैं क्योंकि  शायद कहीं न कहीं उनके अवचेतन में यह बैठ गया है कि अब शायद बाकी जीवन यूं ही मास्क और परिचितों से मिले बिना ही गुजारना पड़ सकता है.’’ वे आगे कहतीं हैं, ‘मेरे पास प्रतिदिन ऐसे 8 से 10  बुजुर्गों के फोन आते हैं जिसमें वे कहते हैं कि ऐसी कैद की जिंदगी से तो अच्छा है कि भगवान उन्हें उठा ही ले’’

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क्या हो उपाय

बुजुर्ग हमारे समाज और परिवार के आधारस्तंभ हैं… संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा यू एन फार एजिंग अपने वक्तव्य में कहती हैं कि, ‘’युवा पीढी बुजुर्गों को यह अहसास दिलाएं कि वे उनके लिए बहुत कीमती है.. उन्हें कभी यह नहीं लगना चाहिए कि वे अब जीवन के अंतिम चरण में हैं और उनके जीवन की कोई अहमियत नहीं है.’’ भारत ही नहीं समूचे विश्व के बुजुर्ग कोरोना के बाद से भयावह अकेलेपन के दौर से गुजर रहे हैं. यूं भी बच्चों के दूसरे शहर या विदेश चले जाने पर वे अकेले रह जाते हैं पर उस अकेलेपन को वे समय समय पर बच्चों के पास जाकर, कभी बच्चों को अपने पास बुलाकर, नाते रिश्तेदारों से मिलजुलकर खुशी खुशी काट लेते थे. बच्चों के लिए अपने हर सुख दुःख को कुर्बान करने वाले बुजुर्गों का इस प्रकार डर कर जीना बेहद चिंताजनक है……..यह सही है कि बच्चे अपनी नौकरी छोड़कर उनके साथ नहीं रह सकते परंतु दूर रहकर भी उन्हें हरदम अपनेपन का अहसास तो कराया ही जा सकता है. लंबे समय से अपने शहर और घर को छोड़कर स्थायी रूप से बच्चों के साथ रहना भी उनके लिए व्यवहारिक नहीं हो पाता. कोरोना हाल फिलहाल तो हमारे बीच से जाने वाला नहीं है समय समय पर इसकी लहरें और लाकडाउन मानव जाति केा झेलना ही होगा. ऐसे में परिवार के अन्य सभी सदस्यों को उनके बेहतर स्वास्थ्य और मनोदशा के लिए प्रयास करने ही होंगें.

क्या करें युवा सदस्य

–परिवार के सदस्य चाहे उनके साथ हों या दूर हर दिन उन्हें यह अहसास कराएं कि यह वक्त बहुत जल्दी ही गुजर जाएगा और हर समय वे उनके साथ हैं.

-कई बार उन्हें लगता है कि अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद अब उनके जीने का कोई मकसद ही नहीं बचा है इसलिए घर के प्रत्येक निर्णय में उन्हें शामिल करें और उनकी राय पर अमल करने का भी प्रयास करें और ताकि उन्हें अपनी महत्ता महसूस हो सके.

-घर के युवा सदस्य उनके हमउम्र दोस्तों और नाते रिश्तेदारों के साथ वीडियो कॉल, जूम कॉल, गूगल मीट आदि पर मीटिंग करवाएं.

-व्हाट्स अप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर निरंतर आने वाली नकारात्मक खबरों से उन्हें दूर करने का प्रयास करें ताकि वे नकारात्मकता से बचे रहें. घर के सदस्य उन्हें संगीत, साहित्य या जोक्स आदि की एप डाउन लोड करके दें ताकि उसमें व्यस्त रह सकें. उनके लिए विभिन्न पत्रिकाओं के सब्सक्रिप्शन करके दें.

-छोटे बच्चों को पढाने, उनके साथ खेलने, किचिन तथा अन्य घरेलू कार्यों में उनका भरपूर सहयोग लें, उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना भी करें.

-जितना अधिक हो सके उनके साथ समय बिताने का प्रयास करें, दूर होने पर सप्ताह में कम से कम एक या दो बार उनसे वीडियो काल पर अवश्य बातचीत करें.

-अपने पडोस या सोसाइटी में रहने वाले बुजुर्गों को अपना कुछ समय दें, अक्सर वे ज़ूम मीटिंग, विडिओ कालिंग, जैसी नयी तकनीकों से अनभिज्ञ होते हैं ऐसे में आप इन तकनीकों को ओपरेट करना उन्हें सिखाएं ताकि वे अपनों से टच में रहें.

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बुजुर्ग स्वयं भी करें प्रयास

-निम्हांस-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज बेंगलूर के अनुसार बच्चे ही नहीं बुजुर्गों को स्वयं भी इस अकेलेपन से उबरने के प्रयास करने होंगें ताकि कोराना का भय उन पर हावी न हो सके.

–इस समय अपनी मनपसंद गतिविधियों जैसे कार्ड्स वर्ड पहेली हल करना, संगीत सुनना, बागवानी, शतरंज, कैरम या ताश के पत्ते खेलने में स्वयं को व्यस्त रखें.

-अपने शरीर को फिट रखने के लिए घर में ही कुछ चहलकदमी, योगा, व्यायाम करें साथ ही अपने परिजनों की यथासंभव मदद करने का प्रयास करें.

-रूटीन के समाचार सुनने के अतिरिक्त बेवजह की बहस अथवा किसी भी प्रकार की नकारात्मक खबरें टी. वी. पर सुनने से बचें. अपने मनपसंद टी. वी. शोज, वेब सीरीज अथवा मूवी देखें.

-छोटों के सहयोग से सोशल मीडिया, वीडियो कालिंग आदि पर एक्टिव होना सीखें ताकि अकेलेपन का अहसास न हो सके.

बच्चा न होना बदनसीबी नहीं

मातृत्व एक ऐसा सुख है जिस की चाह हर औरत को होती है? शादी के बाद से ही औरत इस ख्वाब को देखने लगती है. लेकिन कहते हैं न कि ख्वाब अकसर टूट जाते हैं. हां कई बार कुछ कारणों से या किसी समस्या की वजह से अगर कोई औरत मां बनाने के सुख से वंचित रह जाती है तो उस से बड़ा सदमा और दुख उस के जीवन में कुछ और नहीं होता. दुनिया मानो जैसे उस के लिए खत्म सी हो जाती है.

उस पर अगर उसे बांझ, अपशकुनी, मनहूस और न जाने कैसेकैसे ताने सुनाने को मिलें तो उस के लिए कोई रास्ता नहीं बचता. ताने देने वालों में बहार वाले ही नहीं बल्कि उस के अपने ही घर के लोग शामिल होते हैं.

जैसे ही एक नवयुवती को विवाह के कुछ साल बाद पता चलता है कि वह मां नहीं बन सकती तो आधी तो वह वैसे ही मर जाती है बाकी रोजरोज के अपनों के ताने मार देते हैं. टीवी पर दिखाए गए एक सीरियल ‘गोदभराई’ में घर की बहू खुद बांझ न होने के बावजूद अपने पति की कमी की वजह से मां नहीं बन पाती. इसी कारण उसे पासपड़ोसियों के ताने सुनने पड़ते हैं जिस वजह से वह दुखी होती है. उस के अपने ही उसे नीचा दिखने का कोई मौका नहीं छोड़ते. गलती किसी की भी हो ताने हमेशा उसे ही सुनने पड़ते हैं.

औरतों के खिलाफ प्रचार

टीवी पर दिखाए जाने वाले सोप ओपेरा तो उन औरतों के खिलाफ प्रचार करते हैं जो मां नहीं बन पातीं और लोग इसे बड़े चाव से देखते हैं. यह मनोरंजन के लिए कहानी ही नहीं है बल्कि इस में कहीं न कहीं समाज की सचाई छिपी हुई है. वह दर्द है जिसे बहुत सारी महिलाओं को सहना पड़ता है.

अब सुनीता का ही उदाहरण ले लीजिए. इन की शादी को 4 साल हो गए और शादी के 6 महीने बाद से ही सास को अपने पोतेपोतियों को खिलने की इच्छा होने लगी और फिर देखते ही देखते 4 साल बीत गए. बीच में सुनीता ने कई टैस्ट भी करवाए जिन का नतीजा सिर्फ यह बयां करता है कि वह मां नहीं बन सकती और बस फिर शुरू हो गया आईवीएफ सैंटरों के चक्कर लगाने का. उस के गर्भाशय में ही कमजोरी है जिस से वह मां नहीं बन सकती. तानों इस सिलसिले में सिर्फ सास ही नहीं बल्कि सुनीता की ननद, देवरानी और पति भी इस में शामिल हैं.

असल में दोस्तों और सहेलियों के बीच भी ऐसी औरतें कटीकटी सी रहती हैं, क्योंकि उन की बातें तो बच्चों के बारे में ही होती हैं. परिवार और दूसरों के ताने तो फिर भी वे सह लेतीं पर पति के भी साथ न देने पर जैसे उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो.

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मां न बन पाने का गम तो उन्हें पहले ही था पर पति की बेरुखी ने और तोड़ कर रख दिया. बुरे समय में आखिर दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी होते हैं पर किसी एक के बुरे समय में दूसरे का साथ न होना तोड़ कर रख देता है.

अनचाहा दर्द

सुनीता अपना दर्द बयां करते हुए कहती हैं कि शुरुआत में तो वे अपनी ससुराल वालों के तानों से परेशान हो कर कई ओझओं और तांत्रिकों के पास गईं जिन्होंने उन्हें कई पूजापाठ और दान करने को कहा. उन्होंने सब किया पर फिर भी उस का कोई नतीजा नहीं निकला इन सब के नाम पर उन ओझओं और तांत्रिकों ने उन के परिवार वालों से हजारों रुपए वसूले पर उस का फायदा कुछ नहीं हुआ.

फिर उन लोगों ने उन्हें श्रापित बताया और कहा कि भगवान ही नहीं चाहते कि उन्हें कोई औलाद हो. आईवीएफ सैंटरों में जो पैसा खर्च हुआ वह अलग.

फिर क्या था इन सब के बाद तो परिवार वाले उन्हें और ज्यादा ताने देने लगे और नफरत करने लगे. सास तो पति की दूसरी शादी तक करवाना चाहती थीं पर उन्हें जब पता चला कि तलाक आसान नहीं है और कहीं वे पुलिस में चली गईं तो चुप हो कर रह गईं. सब लोग उन से दूरी बनाने लगे और हर शुभ काम से भी दूरी रखी जाने लगी. फिर धीरेधीरे वे भी खुद को ही दोष देने लगीं. उन्हें लगने लगा कि वे मनहूस हैं. कई बार मन में खयाल आने लगा कि कहीं जा कर आत्महत्या कर लें.

मगर एक दिन सुनीता की मुलाकात अपनी सहेली से हुई जिस के समझने पर सुनीता का खोया आत्मविश्वास लौटने लगा. सुनीता की सहेली ने समझया कि वह खुद को मनहूस न मान कर हालात का सामना करे. अगर वह खुद को ही मनहूस समझने लगेगी तो बाहर वाले तो उसे ताने देंगे ही.

उस की सहेली ने समझया कि खुद को मनहूस समझने से कुछ नहीं होगा उलटा खुद का आत्मविश्वास कम होगा. बच्चे होने और न होने से कोई मनहूस नहीं हो जाता. तांत्रिकों को यह कैसे पता हो सकता है कि तुम श्रापित हो.

अंधविश्वास भरी बातें

बस फिर क्या था सुनीता को इस बात का एहसास हुआ की वाकई में इस में उन की कोई गलती नहीं है और न ही वे मनहूस है और न ही अपशकुनी. पहले सुनीता को इस बात का एहसास हुआ और फिर उन्होंने सोचा कि अब इस बात का एहसास वे अब अपने पति को भी करवाएंगी और फिर अपने ससुराल वालों को.

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सुनीता को तो इस का मौका मिला और उन्हें उन की सहेली का सहारा भी जो उन की जिंदगी में एक उम्मीद की किरण ले कर आया वरना शायद उन्होंने खुदकुशी कर ली होती या पूरी जिंदगी खुद को कोसतेकोसते बितातीं लेकिन आज भी कई महिलाएं ऐसी हैं जो पूरे परिवार के ताने सुनसुन कर जी रही हैं. न ससुराल और समाज में उन्हें इज्जत मिलती है और न ही पति का प्यार. फिर भी वे अपने रिश्ते निभाती हैं और उफ तक नहीं करतीं.

जरा सोचिए क्या खुद को मनहूस समझना या खुद को दोष देना वह भी उस बात के लिए जिस में आप का कोई कुसूर नहीं है और न ही कोई दोष ठीक है? तांत्रिक लोग सिर्फ आप की भावनाओं का फायदा उठा कर पैसा ऐंठने के लिए श्राप या पाप जैसी अंधविश्वास भरी बातें आप के दिमाग में डालते हैं. विडंबना तो यह है कि पढ़ेलिखे लोग भी आजकल इन सब बातों में यकीन रखते हैं और घर की बहुओं को ताने देते हैं, जबकि आजकल विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हर चीज का इलाज संभव है. तांत्रिकों और बाबाओं की बातों में आने के बाद के बजाय महिलाओं को अकेला बिना बच्चों के जीना सीखना होगा. फिर यह न भूलें कि वृद्धावस्था में बच्चों का भी भरोसा नहीं रहता कि वे साथ रहेंगे.

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