समाज में हर पति है खलनायक नहीं

क्या आप ने कभी किसी पुरुष को फूटफूट कर रोते देखा है? यह प्रश्न अजीब लगता है क्योंकि पुरुष के साथ आंसुओं का कोई संबंध हो सकता है, यह बात आमतौर पर गले नहीं उतरती. लेकिन यह सत्य है कि पुरुष भी रोते हैं खासतौर पर तब जब पुरुष किसी ऐसी स्त्री से शादी कर लेता है, जिस से तालमेल तो नहीं बैठता, लेकिन जीवन निभाने वाली स्थिति में भी नहीं रह पाता क्योंकि पत्नी के रूप में उस के जीवन में आई स्त्री उस का जीना दूभर कर देती है. ऐसी पत्नियों को आतंकवादी पत्नियां कहना कोई गलत न होगा.

पत्नी द्वारा आतंकवाद क्या और कैसे होता है? पतियों की यह आम शिकायत होती है कि जब पत्नियां अपनी समस्याओं के बारे में बात करती हैं तो सारा दोष पतियों पर मढ़ देती हैं, साथ ही पुरुषों के लिए यह भी कहा जाता हैं कि वे पत्नियों को बिलकुल नहीं समझते और उन का केवल ‘सैक्स’ के लिए इस्तेमाल किया जाता है. तभी तो छोटी सी बात पर भी पत्नियों को मारने के लिए हाथ तक उठा देते हैं. यहां तक कि जला भी डालते हैं.

पुरुष ही विलेन क्यों

भारतीय पुरुषों को तो मीडिया ने काफी हद तक विलेन बना कर दिखाया है. ज्यादातर भारतीय पुरुषों को संवेदनशीलता से दूर क्रूर और दुष्ट माना जाता है, लेकिन जैसे अच्छे और बुरे दोनों पुरुष होते हैं वैसे ही अच्छी और बुरी दोनों तरह की स्त्रियां होती हैं.

प्रमोद कुमार एक सफल डाक्टर हैं. उन का खुशमिजाज स्वभाव उन के अपने मरीजों से बातचीत करते समय साफ पता चलता है. लेकिन घर में पहुंचते ही उनकी यह मुसकराहट गायब हो जाती है. एक भरेपूरे संपन्न परिवार से संबंध रखते हुए डा. प्रमोद घर पहुंचते ही पूर्णया चुप्पी साध लेते हैं.

उन के अनुसार, ‘‘घर की चारदीवारी में मैं जो झेलता हूं उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता. मेरी पत्नी ने शादी के बाद सब से पहले मेरी डाक्टरी की डिगरी देखने की मांग की. उसे शक था कि कहीं मेरे मातापिता झठ तो नहीं बोले थे. उसे मेरे खानेपीने, पहनने से ले कर मेरे बातचीत करने तक में कमी नजर आती है. उस का रौद्ररूप मेरे कपड़े तक फाड़ देता है, मेरी किताबें जला देता है. यहां तक कि कई बार वह अपने बढ़े हुए नाखूनों से नोच भी देती है.’’

पतियों के बीच यह डर आज बहुत ज्यादा घर कर गया है कि पत्नी दहेज की मांग का डर दिखा कर उन्हें ब्लैकमेल कर सकती है. विवाह की जरूरत सिर्फ पुरुष को ही नहीं होती बल्कि स्त्री को भी होती है और हर पुरुष अपनी पत्नी को खुश रखना चाहता है. ज्यादातर पत्नियों को किसी के भी आगे रोनेधोने की आदत होती है, जबकि पुरुष को अपनी परेशानी बयां करने में शर्म आती है. पत्नी अगर आंसू बहाती है तो पति आंसू पीता है क्योंकि अदालतें, पुलिस और कानून सभी स्त्री का साथ देते हैं.

अविनाश एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत है तथा 2 लाख रुपए महीना वेतन ले रहा है. उस की पत्नी एक फाइव स्टार होटल में उच्च प्रशासनिक अधिकारी है.

झगड़े की वजह

दिल्ली के सुंदर व संपन्न इलाके में अपने घर और 2 बच्चों का भरापूरा परिवार छोड़ कर अविनाश की पत्नी अकसर एक सहयोगी के साथ शाम गुजारने चली जाती है. अविनाश की मजबूरी है कि वह अपने बच्चों के आगे इस बात को जाहिर नहीं करना चाहता और न ही यह चाहता है कि उस के मातापिता को इस दुख का सामना करना पड़े. अविनाश कभी लड़ कर तो कभी रो कर इस स्थिति को झेल रहा है.

वैवाहिक मामलों के सलाहकार सुभाष वधावन कहते हैं कि इस तरह की पत्नियों के पति यह शिकायत करते मिलते हैं कि उन की पत्नियां उन्हें सिर्फ एक लेबल की तरह इस्तेमाल करना चाहती हैं. पति के नाम के लेबल के नीचे वे कुछ भी कर के सुरक्षित बच निकलती हैं. इस तरह की पत्नियां अपने तौरतरीकों में किसी भी तरह का दखल पसंद नहीं करतीं. वे कहां जा रही हैं, कब लौटेंगी पूछना झगड़े की शुरुआत का कारण बन जाता है.

विवाह सलाहकार डा. राखी आनंद के अनुसार, ‘‘अकसर युवा पुरुष जो अपने कैरियर पर विशेषतौर पर ध्यान देते हैं, पत्नियों द्वारा थोपी जाने वाली लड़ाई से बचे रहना चाहते हैं. लेकिन कैरियर की सफलता पत्नी के रोज चढ़तेउतरते पारे की भेंट चढ़ जाती है.’’

हमारा सामाजिक परिवेश हमें यह सिखाता है कि पुरुषों को चुप रहना चाहिए तथा उन में सहनशीलता भी ज्यादा होनी चाहिए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. इस का प्रभाव पुरुष के मानसिक संतुलन पर पड़ता है, जिस के कारण वह गहरी उदासी में डूब जाता है.’’

पत्नी अत्याचार के विरोध में मोरचा

पारिवारिक मामलों में स्त्रियों की गलती पुरुषों से ज्यादा होती है. पुरुष समझौता करना चाहता है. वह क्लेश से भी बचना चाहता है, लेकिन आतंकवादी किस्म की पत्नियां क्लेश को बनाए रखना पसंद करती हैं.

सभी महिलाएं या पत्नियां बुरी नहीं होतीं, लेकिन पतिपत्नी या पारिवारिक विवादों में पुरुषों की बात भी सुनी जानी चाहिए. सुधीर के अत्यधिक धार्मिक मातापिता ने जन्मपत्री अच्छी तरह मिलाने व सारे धार्मिक रीतिरिवाजों के अनुसार अपने बेटे की शादी की थी. शादी के बाद कुछ रातें होटल में ठहरी बहू ने घर जाने से साफ इनकार कर दिया. उस का कहना था कि वह संयुक्त परिवार की भीड़ का हिस्सा नहीं बन सकती. मजबूरन सुधीर को अपनी पत्नी को होटल से सीधे किराए पर लिए गए फ्लैट में ले जाना पड़ा.

अजीबोगरीब सवाल

सुधीर का कहना है कि आज भी उस की पत्नी को मेरा अपने मातापिता से मिलना पसंद नहीं. कभी भी दफ्तर से देरी होने पर उस के प्रश्न कुछ इस प्रकार होते है कि मां से मिल कर आए हो? मां को कितने पैसे दिए? मुझे पहले क्यों नहीं बताया?

इस तरह प्रताडि़त पतियों का कहना है कि इस तरह की पत्नियों के शारीरिक और मानसिक व्यवहार की कोई गारंटी नहीं होती. यह मत करो, वह मत करो से बात शुरू हो कर कहां खत्म होगी इस का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है.

ऐसी पत्नियां अपने पति के संबंध किसी के साथ भी जोड़ देती हैं, फिर चाहे वह भाभी हो या रिश्ते की बहन. पत्नी को ‘बैटर हाफ’ कहने वाले यह जानने की कोशिश अवश्य करें कि क्या वह वाकई बैटर कहलाने के काबिल है?

विवाहेतर संबंध: कागज के फूल महकते नहीं

पतिपत्नी के शारीरिक संबंध जहां दांपत्य जीवन में प्रेम संबंध के मजबूत स्तंभ माने जाते है वहीं विवाहेतर पर स्त्री या पर पुरुष शारीरिक संबंध कई प्रकार की समस्याओं और अपराधों का कारण भी बनते हैं.

2011 का एनआरआई निरंजनी पिल्ले का उस के पति सुमीत हांडा द्वारा कत्ल का केस पुराना है. अपनी पत्नी को अपने बिस्तर पर मित्र कहलाने वाले पर पुरुष को साथ वासनात्मक शारीरिक संबंध की स्थिति में देखना सुमीत के लिए सदमा तो था ही, बरदाश्त से बाहर भी था. जलन, क्रोध और धोखे के एहसास ने उस के हाथों पत्नी की हत्या करवा दी.

नोएडा के निवासी मिश्रा को अपनी पत्नी पर संदेह था कि उस के पर पुरुष से संबंध हैं. मिश्रा ने पुष्टि करना भी आवश्यक नहीं समझ कि उस का संदेह केवल संदेह या वास्तविकता. संदेह के आधार पर ही मिश्रा ने पत्नी का कत्ल कर दिया.

एक मां के विवाहेतर शारीरिक संबंधों का पता उस के 20 वर्षीय बेटे को चल गया. उस ने जब इन संबंधों पर ऐतराज किया, तो मां ने अपने संबंध बरकरार रखने के लिए अपने ही बेटे की सुपारी दे कर मरवा दिया. यहां विवाहेतर संबंधों की वासना पर ममता की बलि चढ़ गई.

समस्या से उपजा असंतोष

ऐसे संबंधों से जुड़े इस प्रकार के कितने ही अपराध आए दिन सुनने को मिलते हैं. कत्ल के अतिरिक्त कारण से कितने ही तलाक और सैपरेशन के केस भी हो जाते हैं, जिन की गिनती ही नहीं. कितने परिवार ऐसे भी हैं जो सामाजिक सम्मान अथवा बच्चों के कारण मुखौटा लगाए जीए जा रहे हैं परंतु इस समस्या से उपजा असंतोष उन्हें भीतर ही भीतर खाए जा रहा है.

यदि हम अपनेअपने दायरे में अवलोकन करें तो कितने ही दंपतियों में यह समस्या दिखती है. भावना का पति तो भंवरा है. न जाने उस में वासना की इतनी भूख है या उच्छृंखलताकी अति है कि उस के एक नहीं कई लड़कियों से संबंध हैं. एक समय पर वह 1 से अधिक लड़कियों से संबंध बनाने को भी उत्सुक रहता है. भावना ने विरोध भी बहुत किया और बरदाश्त भी. अंतत: वही हुआ जिस के आसार बहुत पहले से दिख रहे थे. अपने मन की शांति पाने और अपने बच्चों को स्वस्थ वातावरण देने हेतु भावना पति से अलग हो गई.

सूरज की पत्नी ने न चाहते हुए भी सूरज के पर स्त्री संबंध स्वीकार किए. सूरज ने साफ  कह दिया कि वह दूसरी स्त्री से संबंध नहीं तोड़ेगा. पत्नी चाहे तो साथ रहे चाहे तो अलग हो जाए. वह किसी हाल में सूरज से अलग होना नहीं चाहती थी. इस मजबूर स्वीकृति से मन ने कितनी पीड़ा बरदाश की होगी.

टूटते हैं परिवार

भावना और सूरज के अतिरिक्त भी अन्य बहुत से उदाहरण हैं. यदि सब का वर्णन किया जाए तो ग्रंथ के ग्रंथ तैयार हो जाएंगे. प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जब विवाह के रूप में शारीरिक संबंधों को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो जाती है तो कभी पुरुष और कभी स्त्री क्यों विवाह से बाहर छिपछिपा कर संतुष्टि या तृप्ति ढूंढ़ते हैं?  सभी जानते हैं कि विवाहेतर संबंधों की कोई सामाजिक मान्यता नहीं है और उजागर हो जाने पर सुखी परिवार का सारा सुखसम्मान नष्ट हो जाता है.

मधुर दांपत्य संबंधों मं कटुता आ जाती है. इस सब जानकारी के होते हुए भी आए दिन इस तरह के संबंध बनते रहते हैं. इन संबंधों के कारण अनेक परिवार टूटते हैं, अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं और अनेक अपराध जन्म लेते हैं.

विचार करें तो अनेक कारण ऐसे हो सकते हैं जिन की वजह से विवाहेतर संबंध बनते हैं. इन में कुछ कारण तो ऐसे हैं जिन्हें बेहद खोखला कहा जा सकता है. जैसे- उच्छृंखलता, विलासिता, अहम आदि. ये ऐसे कारण हैं जिन्हें किसी भी प्रकार की कसौटी पर परखें, नैतिकता से गिरे हुए ही कहलाएंगे.

सम्मान खोने का भय

इस श्रेणी के स्त्री या पुरुष समाज में चरित्रहीन कहलाते हैं. ऐसे लोग न तो समाज में सम्मान योग्य माने जाते हैं और न ही परिवार में. इस श्रेणी के अधिकतर लोग बेशर्म होते हैं. ऐसे लोग या तो सबकुछ खुल्लमखुल्ला करते हैं या फिर जो अपने संबंध छिपा पाने में सक्षम होते हैं उन्हें उन के खुल जाने का कोई भय नहीं होता. उच्छृंखलता और विलासिता उन की प्राथमिकता होती है. इस के लिए चाहे कितना भी अपमान क्यों न झेलना पड़े. संस्कारहीनता, शिक्षा का अभाव, नैतिकता का अभाव, गलत माहौल, गलत संगीसाथी, गलत दृष्टिकोण ऐसे कारणों की नींव होते हैं.

इन के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी होते हैं जिन्हें इन खोखले कारणों से अलग रख कर देखा जा सकता है. जैसे असंतुष्टि, अलगाव, विवश्ता, ब्लैकमेलिंग, भावनात्मक लगाव, आकर्षण, असंयम आदि.

शारीरिक क्षुधा की चाहत

वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी के पारस्परिक शारीरिक संबंध विवाह का आवश्यक अंग होते हैं. ये संबंध पति और पत्नी दोनों की ही आवश्यकता होते हैं, परंतु कभीकभी पति पत्नी ये या पत्नी पति से अथवा दोनों एकदूसरे से इस रिश्ते में असंतुष्ट रहते हैं. यह असंतुष्टि दूसरे साथी में शारीरिक संबंधों के प्रति इच्छा के अभाव से भी उपजती है और किसी एक साथी में अत्यधिक अर्थात सामान्य से कहीं अधिक शारीरिक क्षुधा से भी. नैतिकता की दृष्टि से न चाहते हुए भी दोनों या कोई एक साथी शारीरिक क्षुधा की संतुष्टि हेतु विवाहेतर संबंध बना लेता है.

कई संबंधों में भावनात्मक अलगाव भी विवाहेतर संबंधों का कारण बन जाते हैं. कई बार घर वालों के दबाव के कारण या किसी प्रकार के लालच के कारण विवाह तो हो जाता है, परंतु पतिपत्नी में भावनात्मक स्तर पर प्रेम संबंध नहीं बन पाते. इस का कारण दोनों में बौद्धिक स्तर की भिन्नता, दृष्टिकोण की भिन्नता, आपसी समझ का अभाव या आर्थिक स्तर और लाइफस्टाइल में अत्यधिक अंतर आदि कुछ भी हो सकता है. एकदूसरे के प्रति अलगाव और अरुचि अकसर उन की दिशाएं बदल देती हैं.

भावनात्मक या शारीरिक आकर्षण

भावनात्मक अलगाव की भांति भावनात्मक लगाव भी अकसर विवाहेतर संबंधों का कारण बन जाता है. विवाहपूर्व के प्रेमीप्रेमिका जब अन्यत्र विवाह हो जाने के बाद भी एकदूसरे को भूल नहीं पाते तो चाहेअनचाहे उन का भावनात्मक लगाव उन्हें एकदूसरे के करीब ले आता है. ये नजदीकियां धीरेधीरे उन्हें इतना नजदीक ले आती हैं कि वे सामाजिक सीमाएं भूल कर एकदूसरे में खो जाते हैं.

कई बार पति या पत्नी का पर स्त्री या पर पुरुष पर मुग्ध और आकर्षित हो जाना भी विवाहेतर संबंधों का सूत्रपात कर देता है. एकतरफा आकर्षण भी कभीकभी सामने वाले को चुंबक की भांति आकर्षित कर लेता है और आकर्षण यदि दोतरफा हो तो परिणाम अकसर ऐसे संबंधों में परिवर्तित हो जाता है. अब आकर्षण का कारण शारीरिक सौंदर्य, प्रभावशाली व्यक्तित्व, वाकचातुर्य, आर्थिक स्तर अथवा उच्चपद आदि कुछ भी हो सकता है.

इन कारणों के अतिरिक्त भी विवाहेतर संबंधों के कई कारण होते है. जैसे कहीं बौस ने पदोन्नति का लालच दे कर या रिपोर्ट बिगाड़ने की धमकी दे कर किसी को विवश किया, तो कभी बास को प्रसन्न करने हेतु किसी ने अपनी इच्छा से स्वयं को परोस दिया. किसीकिसी को आर्थिक विवशता के कारण इच्छा के विरुद्ध भी यह अनैतिक कार्य करने को बाध्य होना पड़ता है.

कभीकभी परिस्थितियां और हालात 2 प्रेमियों या 2 लोगों को ऐसी स्थिति में डाल देते हैं कि उन्हें न चाहते हुए भी एकांत में परस्पर एकसाथ समय बिताना पड़ जाता है. ऐसे में एकांत वातावरण में कभीकभी कुछ लोग असंयम का शिकार हो जाते हैं और उन के विवाहेतर संबध बन जाते हैं.

विवाहेतर संबंध बनाते समय यह ध्यान रखें कि संबंध होने के बाद पति या पत्नी से संबंध तोड़ना आसान नहीं है. फरवरी, 2022 में केरल हाई कोर्ट ने एक मामले में डाइवोर्स ग्रांट करा क्योंकि पति के मना करने पर भी वह प्रेमी को फोन करती थी पर यह विवाद शुरू हुआ 2012 में. 10 साल बाद तलाक दिया, पत्नी ने हैरेसमैंट का केस 2012 में दायर किया था.

कारण और परिस्थितियां कुछ भी हों, ऐसे संबंधों के बन जाने और उन के खुलने के परिणाम अकसर विध्वंसक ही होते हैं. परिवारों का टूटना, सामाजिक प्रतिष्ठा का हनन, बच्चों की दृष्टि में मातापिता का सम्मान गिरना, बच्चों के लिए समाज में अपमानजनक स्थितियां उत्पन्न होना, विवाहेतर संबंधों से उत्पन्न बच्चों की उलझनें, संपत्ति व जायदाद के लिए झगड़ा, अलगाव, तनाव, मनमुटाव, सैपरेशन, तलाक, कत्ल आदि अनेक समस्याएं पगपग पर कांटे बन कर चुभने लगती हैं. सब से अधिक झेलना पड़ता है टूटे या तनावग्रस्त परिवारों के बच्चों को.

परिणाम विध्वंसक होते हैं

यद्यपि आज के युग में सामाजिक मान्यताएं बहुत बदल गई हैं, फिर भी जब गर्मजोशी का बुखार उतरता है तो व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री स्वयं को अकेला ही पाता है. 2 नावों का सवार डूबता ही है. लिव इन रिलेशनशिप में कोई वादा या वचन नहीं होता फिर भी धोखा चोट देता है, फिर विवाह तो नाम ही सुरक्षा और विश्वास का है. अत: स्वयं से विवाह को ईमानदारी से निभाने का वादा करते हुए ही इस बंधन में बंधें. खुले जमाने का अर्थ विवाहेतर संबंध नहीं अपितु संबंध जोड़ने से पहले खुल कर अपने होने वाले साथी से चर्चा करें और एकदूसरे से अपनी आशाएं तथा कमजोरियां न छिपाएं और दोनों साथी एकदूसरे को भलीभांति परख लें कि दोनों एकदूसरे के लिए उचित हैं या नहीं. इस प्रकार समस्या का अंत भले ही संभव न हो परंतु समस्या में कमी तो अवश्य संभव है.

पैसा और रिश्ते: ऐसे बैठाएं तालमेल

एक पुरानी लोकोवित है ‘जब गरीबी दरवाजे पर आती है तो प्यार खिड़की से कूद कर भाग जाता है.’ वाकई कहने वाले ने सच ही कहा है. रिश्ते में समर्पण, श्रद्धा, ईमानदारी प्यार की वजह से होती है. पर यह प्यार पैसों के अभाव में खत्म हो जाता है. एक समय ऐसा था जब संबंध और उस की संवेदनशीलता ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी.

रिश्ते बनते ही पैसों के तराजू में तोलने के बाद, संबंध बनाने की कोशिश शुरू करने से पहले उन में एकदूसरे के स्टेटस सिंबल को पहले आंका जाता है. यहां तक कि अपने रिश्तेदारों से भी भविष्य में संबंध बनाए रखने के लिए दोनों के आर्थिक स्तर को पहले तोला जाता है.

जिंदगी जीने के लिए जरूरत और सुविधा की चीजों को समेटने में पैसा ही काम आता है. सारी चीजों का मूल्य इसी पैसे के बदले तोला जाता है. वक्त के साथसाथ व्यक्ति के मूल्य को भी पैसे से ही आंका जाता है. जाहिर है संबंधों के फैले हुए तानेबाने भी इसी के इर्दगिर्द घूमने लगे.

यह जान कर भी कि जीवन जीने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा आसपास सुखद संबंध और उन का एहसास भी बहुत जरूरी होता है. अच्छे रिश्ते न केवल हमें हरदम भीतर से भरापूरा एहसास कराते हैं, साथ ही वक्तबेवक्त हमारी मदद भी करते हैं. यह अलग बात है कि रिश्तों में भी कैलकुलेशन होना नैचुरल है.

लोग पहले ही उन में एकदूसरे के लेनदेन का अनुमान लगा लेते हैं. तत्पश्चात यह निर्णय करते हैं कि किस रिश्ते को किस ढांचे में ढालना है. यह रिश्ता आसपास की कई सारी चीजों से प्रभावित होता है. इन में आर्थिक स्थिति प्राथमिक और अहम होती है.

डिपैैंडैंट रिलेशनशिप

इस बारे में चार्टड अकाउटैंट वर्षा कुमारी का मानना है कि हर रिश्ते को अच्छी तरह से बनाने के लिए पैसा अहम भूमिका निभाता है. माना कि रिश्तों के बनने और उन के स्वामित्व के लिए उन में प्यार, लगाव पर्सनैलिटी के तत्त्व समावेश होते हैं, लेकिन पैसे के बिना यह संबंध भी ज्यादा दिनों तक चलता.

प्यार को जाहिर करने, बनाए रखने के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ती ही है.

फैशन डिजाइनर पूनम गुलाटी का कहना है कि हमारे जीवन में सब से करीबी रिश्ता पतिपत्नी का होता है. शादी के बाद कुछ समय तक मैं ने काम करना छोड़ दिया था. 3 साल बाद जब मैं ने बाहर काम करना शुरू किया तो अब मेरे व्यवहार को मेरे पति दूसरे ही तरीके से लेने लगे. मतलब मेरी हर बात पर वे यह कहने से नहीं चूकते कि अरे, अब तो तुम कमाने वाली हो गई हो, जबकि पहले मेरी उन बातों को मेरा भोलापन समझ जाता था.

बाकी रिश्तों से ऐसी प्रतिक्रिया तो मैं बरदाश्त कर लेती हूं पर अपने पति से ऐसा सुन कर मुझे वाकई दुख होता है. इस पैसे ने सारे संबंधों को ही बदल दिया है.

बाजारवाद का प्रभाव

समय के साथसाथ उपभोक्तावाद की वजह से भी पैसों का महत्त्व बढ़ता जा रहा है, साथ ही दूसरी चीजों का मूल्य घट गया है. आधुनिक समाज की सारी चकाचौंध पैसों पर ही टिक गई है. हमारे आसपास चलने वाले सारे मानसम्मान और संबंध पैसे के पैमाने से नापे जाने लगे. वहीं विज्ञापन भी लोगों की भावनाओं को भड़काता है. एक विज्ञापन कुछ साल पहले चला था टीवी में जिस में एक छोटा बच्चा घर से भाग कर रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाता है. वहां पर गरमगरम जलेबियों को देख कर उन के लालच में वापस घर लौट आता है.

यानी अभी से उस मासूम के दिलोदिमाग में यह बात बैठा दी गई है कि उस से जुड़े रिश्ते वापस घर नहीं बुलाते वरन वे जलेबियां ही उस के भीतर लालच पैदा करती हैं और वही रिश्तों को बनाए रखती हैं. अब जलेबियां नहीं पिज्जा, बर्गर और आईफोन का दौर है. फर्क इतना ही है.

अकसर देखने में आता है कि पत्नियां अपने पति से कहती हैं कि लगता है तुम मुझे प्यार नहीं करते. तभी काफी दिनों से मेरे लिए कोई गिफ्ट नहीं लाए अर्थात पतिपत्नी के प्रेम के बीच भौतिक चीजें जरूरी हैं.

मगर इन सारी स्थितियों से संबंधों में विसंगतियां आ गई हैं. पैसों की अधिकता या अभाव से संबंध कटने और बंटने लगे हैं. परिणामस्वरूप हमारे समाज में अकेलेपन से ग्रस्त एक बड़ा वर्ग विकसित हो रहा है.

भावनात्मक  रुख

शिक्षिका रश्मि सहाय का इस बारे में विचार कुछ भिन्न है. वे कहती हैं कि माना कि आज रिश्तों के बीच पैसा बहुत बुरी तरह से आ गया है, पर व्यक्तिगत रूप से मैं अपने रिश्तों के बीच पैसा नहीं आने देती हूं. यह महज मेरी भावुकता भी कही जा सकती है. मगर मेरा मानना है कि जब रिश्तों में हिसाबकिताब आने लगता है तो वे बोझ बनने लगते हैं.

अत: मेरी कोशिश यही रहती है कि पैसा बीच में न आए और यदि आता भी है तो मैं उसे प्राथमिकता नहीं देती हूं. हां, कई बार मुझे इस की वजह से फाइनैंशियल लौस भी सहना पड़ा है, पर हमारी जिंदगी भूरीपूरी भी तो इन्हीं संबंधों की वजह से है. भले आप इसे मेरा ओवर इमोशनल कहें या आप मुझे प्रैक्टिकल न कहें.

तो गर्लफ्रैंड खुश हो जाएगी

पढ़ाई लिखाई और ऐग्जाम्स के बाद अगर किशोरों की सब से बड़ी कोई परेशानी है तो वह है गर्लफ्रैंड को खुश रखना. बेचारे अपनी तरफ से खूब कोशिश करते हैं कि गर्लफ्रैंड खुश रहे, लेकिन फिर भी जरा सी चूक होते ही गर्लफ्रैंड मुंह फुला लेती है. अगर आप भी इस समस्या से परेशान हैं तो जरा गौर फरमाएं इन अचूक नुसखों पर जो आप की गर्लफ्रैंड का दिल जीतने में मददगार साबित होंगे.

–  अपनी गर्लफ्रैंड की पसंदीदा चीजों व चाहतों की एक लिस्ट बनाएं. व्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि लड़कियों को ऐसी चीजें बहुत याद रहती हैं लेकिन लड़के भूल जाते हैं. इसलिए आप हाथोंहाथ नोट कर लेंगे तो खास मौकों पर उसे गिफ्ट देने में आसानी रहेगी और वह अपनी मनपसंद चीज पा कर बेहद खुश हो जाएगी.

–  गर्लफ्रैंड की कोई फ्रैंड साथ हो या उस से मिलने आई हो तो उस से बस, हायहैलो ही करें. ज्यादा हाहा, हीही करने की जरूरत नहीं. फ्लर्ट करने की तो भूल कर भी कोशिश न करें. उस के जाने के बाद अपनी गर्लफ्रैंड से कहें, क्या पकाऊ है यार. यकीन मानिए आप की गर्लफ्रैंड फूली नहीं समाएगी.

–  गर्लफ्रैंड से कभी हलकीफुलकी बहस हो जाए, तो अगले दिन उसे सौरी कहें और पूछें, ‘तुम कल बुरा तो नहीं मान गई? क्या बताऊं, कल मेरा मूड ठीक नहीं था.’

यकीन मानिए उस का दिल पिघल जाएगा, यह सोच कर कि आप वाकई उस की परवा करते हैं. कई बार गर्लफ्रैंड किसी छोटीमोटी बात को भूल जाती है या इग्नोर कर देती है और आप उस के लिए भी सौरी कहते हैं, तब तो वह आप से और भी ज्यादा इंप्रैस हो जाती है.

–  जब कभी वह अपनी किसी समस्या या किसी के साथ हुए विवाद की चर्चा आप के साथ करे, तो धैर्यपूर्वक, पूरी सहानुभूति से उस की बात सुनें. अगर आप को कहीं उस की गलती लगे, तो भी उस वक्त ऐसा न कहें उसे अपनी बात शेयर करने और उसे सुना कर मन हलका करने वाला चाहिए होता है न कि उस की कमी ढूंढ़ने वाला. उसे कहें, ‘मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं. जब भी मेरी जरूरत हो, याद करना तुम आधी रात को कौल करोगी तो भी मैं हाजिर हो जाऊंगा.’ समस्या का हल करने में पूरी शिद्दत से उस की मदद करें. ऐसे समय में वह आप को ‘कौल मी’ का मैसेज दे तो तुरंत कौल बैक करें.

–  अगर कभी आप का गर्लफ्रैंड से झगड़ा हो जाए, वह रूठी हो और आप का फोन रिसीव न कर रही हो या फिर मैसेज का जवाब न दे रही हो, तो सोशल मीडिया पर उस की तारीफ करते हुए कोई रोमांटिक पोस्ट भेज दें. अगर आप चाहते हैं कि इसे सब न देखें, तो प्राइवेसी सैटिंग पर लगा दें. यकीन मानिए, वह आप से भले बातचीत न कर रही हो लेकिन सोशल मीडिया पर आप की गतिविधियों पर पूरी नजर रखती है. अपनी तारीफ सुनते ही उस का गुस्सा काफूर हो जाएगा.

–  जैसे कि युवक किसी सुंदर युवती को देख कर घूरने लगते हैं ऐसा आप के साथ हो और आप की गर्लफ्रैंड आप को रंगेहाथों पकड़ ले, तो फुरती से काम लीजिए और कहिए शायद स्कूल में मेरे साथ पढ़ती थी. कितनी मोटी और मैच्योर हो गई है या फिर ‘यह ड्रैस अगर तुम ने पहनी होती तो कितनी अच्छी लगती.’

जब भी गर्लफ्रैंड कोई नई ड्रैस ट्राई करे तो तारीफ करते हुए कहें, ‘क्या बात है यार, आजकल डाइटिंग पर हो क्या? बड़ी स्लिमट्रिम लग रही हो.’ गर्लफ्रैंड ऊपर से भले ही कुछ न कहे, लेकिन मन ही मन खुश हो जाएगी.

–  गर्लफ्रैंड ने कोई नया कोर्स शुरू किया है या जौब में कोई प्रोजैक्ट हाथ में लिया है तो उस में दिलचस्पी दिखाएं. उस की मदद करने की कोशिश करें या उस प्रौपर व्यक्ति के बारे में उसे बताएं जो उस के लिए मददगार साबित हो सकता है. आप को मदद की इतनी कोशिश करते देख उसे यकीनन बहुत अच्छा लगेगा और वह आप के इस अपनेपन की मुरीद हो जाएगी.

–  गर्लफ्रैंड का मूड उखड़ा हुआ या उसे उदास देखें, तो उस की हर बात में हां कह दें. उस स्थिति में उस से उलझना ठीक नहीं बल्कि उस से उदासी या नाराजगी का कारण पूछते हुए कहें कि तुम तो कभी ऐसे उदास रहती ही नहीं, किसी ने तुम्हें परेशान किया है क्या?

–  गर्लफ्रैंड की आलोचना करने से बचें. अगर आप को उस की कोई कमी बतानी भी है, तो भी उस की तारीफ करते हुए कहें, ‘तुम वाकई आज के हिसाब से बहुत इनोसैंट हो, लेकिन लोग तुम्हें ठीक से समझते नहीं.’

–  गर्लफ्रैंड डै्रस खरीदते समय जब आप की चौइस पूछे तो कभी भी ऐसा न कहें, ‘देख लो, तुम को जो पसंद हो. दोनों ही ठीक हैं.’ ऐसे जवाब से वह झुंझला जाएगी. बेहिचक दोनों में से किसी एक ड्रैस को छांट कर अलग करें और कहें, ‘वैसे तो दोनों ड्रैस अच्छी हैं, लेकिन यह तुम पर सौ फीसदी सूट कर रही है.’

–  अगर आप उस का बर्थडे भूल गए हैं और अचानक दोपहर या शाम को याद आता है, तो कौल भूल से भी न करें. वह भड़क जाएगी कि तुम्हें शाम को मेरा बर्थ डे याद आया क्या? बल्कि संभव हो तो उस के लिए एक सरप्राइज पार्टी और्गेनाइज करें. उस की फ्रैंड्स और म्यूचुअल फ्रैंड्स को खबर दें या फिर उस के गिफ्ट और खानेपीने का सामान ले कर दलबल सहित उस के घर पहुंच जाएं या उसे किसी रेस्तरां में इनवाइट करें. वह खुश हो जाएगी कि आप उस की इतनी परवा करते हैं. इस से आप के रिश्ते में और मिठास आ जाएगी.

कैसी हो डार्लिंग कह कर तो देखें

‘‘हाय डार्लिंग कैसी हो? क्या कर रही हो?’’ अगर रोज शाम को अपनी पत्नी से ऐसा कहें तो पतिपत्नी के बीच कोई कलह न होगी. अरे भई यह हम ने नहीं, पिछले दिनों खरगौन मध्य प्रदेश के एक कोर्ट ने एक शादीशुदा जोड़े के बीच हो रही रोजरोज की कलह को सुलझाने के लिए फैसला देते हुए ऐसा कहा. यकीन मानिए कोर्ट के इस अनूठे फैसले के बाद शादीशुदा जोड़े के बीच की कलह खत्म हो गई और दोनों फिर से एक हो गए.

पतिपत्नी का रिश्ता बहुत ही खास होता है. शुरुआती दौर में तो सब अच्छा होता है, दोनों के बीच प्यारमनुहार सब होता है, लेकिन समय बीतने के साथ जीवन की आपाधापी और जिम्मेदारियों के बीच रिश्ते का नयापन खोने लगता है. जिंदगी भर साथ निभाने का वादा न जाने कहां खो जाता है. इस रिश्ते में नयापन, प्यार और विश्वास ताउम्र बना रहे, इस के लिए करने होंगे कुछ छोटेछछोटे प्रयत्न, जो इस रिश्ते की उम्र को बढ़ाएंगे.

1. छोटी छोटी बातों में बड़ी बड़ी खुशियां

कहते हैं खुशियां हमारे आसपास ही होती हैं. बस उन्हें ढूंढ़ने की जरूरत होती है, इसलिए पतिपत्नी दोनों को ही जीवन के हर पल में ढूंढ़नी होंगी खुशियां. ज्यादातर देखने में यही आता है कि 2 लोगों के बीच प्यार तो बड़ी आसानी से हो जाता है, लेकिन उस प्यार को निभाना बहुत मुश्किल होता है. बहुत से लोग इस तरह के संबंधों में रूटीन लाइफ जीने लगते हैं और उन की जिंदगी से प्यार और रोमानियत कहीं खो सी जाती है. अगर आप हैप्पी मैरिड लाइफ जीना चाहते हैं, तो यह कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं है. इस के लिए बस आप को कुछ बातों का खयाल रखना होगा. पतिपत्नी का रिश्ता एकदूसरे के लिए कई छोटीछोटी चीजें करने से मजबूत होता है. जैसे प्यार से गले लगाना, सराहना करना, उस के लिए कुछ खास करना, उस की तरफ देख कर मुसकराना या सच्चे दिल से यह पूछना कि आज तुम्हारा दिन कैसा रहा? यही छोटीछोटी चीजें शादीशुदा जिंदगी में बड़ीबड़ी खुशियां ला सकती हैं.

2. प्यार वाली झप्पी

शादी में प्यार और खुशियां बनी रहें, इस के लिए उसे हर समय प्यार के खादपानी से सींचते रहना होगा. पतिपत्नी के बीच वह पल सब से खुशनुमा होता है जब वे एकदूसरे को प्यार से गले लगाते हैं या प्यार से सहलाते हैं. उन का एकदूसरे के प्रति यह व्यवहार दर्शाता है कि वे एकदूसरे से कितना प्यार करते हैं. दरअसल, ऐसा करते समय दोनों एकदूसरे के साथ इमोशनली अटैच होते हैं. प्यार की छोटी सी झप्पी पतिपत्नी के रिश्ते में बड़ेबड़े कमाल दिखाती है. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जब हम झगड़े के दौरान सामने वाले को गले लगाते हैं, तो उस के शरीर से गुस्से को बढ़ाने वाले हारमोन तेजी से कम होने लगते हैं. वह गुस्से को भूल कर आप के प्यार को महसूस करने लगता है यानी आप की प्यार की झप्पी उस के गुस्से को पल भर में दूर कर देती है.

3. दिन की शुरुआत किस औफ लव से

पतिपत्नी दिन की शुरुआत किस औफ लव से कर के अपने डगमगाते रिश्ते में सुधार लाने के साथसाथ अपने प्यार को फिर से जवान बना सकते हैं. एकदूसरे को गले लगाना और किस करना पतिपत्नी के बीच दिन की शुरुआत के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है. यह पतिपत्नी के रिश्ते के बीच रोमांस के जनून को बनाए रखता है.

4. खास पलों को रखें याद

पतिपत्नी एकदूसरे की लाइफ से जुड़े खास पलों को याद रखें. एकदूसरे का बर्थडे, ऐनिवर्सरी, पहली मुलाकात, प्रमोशन आदि याद रखें. साथ ही इन खास अवसरों पर एकदूसरे के लिए कुछ खास सरप्राइज भी प्लान करें. यह कोई मुश्किल काम नहीं, लेकिन इन छोटेछोटे कामों से आप अपने लाइफपार्टनर की जिंदगी में अपनी एक खास जगह जरूर बना सकते हैं.

5. कनैक्टिविटी जोड़े दिल के तार

आप कितने ही बिजी क्यों न हों, एकदूसरे को दिन में फोन जरूर करें, मैसेज भेजें. बस यह जानने के लिए कि सब कैसा चल रहा है, लंच किया या नहीं. ऐसी छोटीछोटी बातें पतिपत्नी को एकदूसरे से जोड़ती हैं और एक कामयाब शादी को गुजरते समय के साथ और भी खूबसूरत और मजबूत बनाती हैं. इस के अलावा जब भी खाली समय मिले इस बात पर विचार करें कि क्या आप अपने पार्टनर की सोच और उस की भावनाओं को समझते हैं? कितनी बार उस की तारीफ करते हैं? क्या उस के उन गुणों के बारे में सोचते हैं, जिन्हें देख कर आप उन की तरफ आकर्षित हुए थे और अपना जीवनसाथी बनाने का निर्णय लिया था?

6. प्लीज, सौरी, थैंक्यू से चलाएं जादू

आप मैट्रो में किसी से टकरा जाने पर भी सौरी कह देते हैं. वे लोग जिंदगी में शायद ही दोबारा हमें मिलें. जब हम उन्हें छोटी सी बात पर सौरी बोल देते हैं, तो घर में पति या पत्नी एकदूसरे को इमोशनली हर्ट करने के बाद भी सौरी कहना जरूरी क्यों नहीं समझते? ऐसा हरगिज न करें. गलती होने पर माफी जरूर मांगें. सौरी कहना बुरी बात नहीं है और न ही माफ करना मुश्किल काम है, माफी मांगने से झगड़ा आगे नहीं बढ़ता, इसलिए माफी मांगने में कंजूसी न करें. इसी तरह अगर आप के पार्टनर ने आप के घर व आप के लिए कुछ स्पैशल किया है, तो उसे थैंक्यू जरूर कहें. आप के द्वारा कहा गया थैंक्यू उसे कितनी खुशी देगा, इस का अंदाजा आप नहीं लगा सकते.

7. तारीफ से जीतें दिल

आप के पार्टनर ने कोई नई डिश बनाई, कोई नई ड्रैस पहनी, नया हेयरस्टाइल बनाया तो उस की तारीफ करना न भूलें. यह तारीफ हो सके तो घर वालों, दोस्तों के सामने भी करें. इस से आप के लाइफपार्टनर के दिल में आप के लिए प्यार बढ़ेगा. अगर आप के पार्टनर ने कुछ नया किया है, तो उस की तारीफ जरूर करें.

8. अपशब्दों से रखें दूरी

आपसी बातचीत के दौरान हमेशा शालीनता का ध्यान रखें. कभी अपशब्द या दिल दुखाने वाली बातें न करें. बहस करते समय खुद पर कंट्रोल रखें, क्योंकि झगड़े के दौरान कहे गए अपशब्द दिल को आहत कर देते हैं और रिश्ते में दूरी पैदा करते हैं.

क्या शादी से पहले रिलेशन के बारे में मेरे पति को पता लग सकता है?

सवाल-

सुना है यदि विवाहपूर्व किसी युवती ने सैक्स संबंध बनाए हों तो उस के पति को इस बारे में पता चल जाता है. मैं जानना चाहती हूं कि यदि किसी युवती ने 2 बार किसी से सैक्स किया हो तो क्या कोई ऐसा उपाय है, जिस से सुहागरात को उस के पति को इस की भनक न लगे? क्या यौनांग में पहले जैसा कसाव रहता है?

जवाब-

1-2 बार शारीरिक संबंध बनाने से यौनांग में ढीलापन नहीं आता. जब तक आप स्वयं अपने मुंह से यह स्वीकार नहीं करेंगी कि पहले किसी से अवैध संबंध बना चुकी हैं तब तक पति पर यह बात जाहिर नहीं होगी. आप विवाह बाद पति से प्यार करेंगी तो वे इस फालतू बात को कभी कोई महत्त्व नहीं देंगे.

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अलकायदा के पूर्व प्रमुख ओसामा बिन लादेन की सब से बड़ी पत्नी ने दावा किया है कि ओसामा की सब से छोटी पत्नी चौबीसों घंटों सैक्स करना चाहती थी. द सन के अनुसार खैरियाह ने कहा कि अमल हमेशा ओसामा के साथ सोने के लिए झगड़ा करती थी. मुझे ओसामा के पास नहीं जाने देती थी.

क्या कहता है सर्वे

अमेरिका ने भी सैक्स की लत को 2012 में मानसिक विकृति करार दिया और इस काम को लास एंजिल्स की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया है. भारत में यह समस्या अभी शुरुआती दौर में है. लेकिन एक ओर मीडिया और इंटरनैट पर मौजूद तमाम उत्तेजना फैलाने वाली सामग्री की मौजूदगी तो दूसरी ओर यौन जागरूकता और उपचार की कमी के चलते वह दिन दूर नहीं जब सैक्स की लत महामारी बन कर खड़ी होगी. क्याआप को फिल्म ‘सात खून माफ’ के इरफान खान का किरदार याद है या फिर फिल्म ‘मर्डर-2’ देखी है? फिल्म ‘सात खून माफ’ में इरफान ने ऐसे शायर का किरदार निभाया है, जो सैक्स के समय बहुत हिंसक हो जाता है. इसी तरह ‘मर्डर-2’ में फिल्म का खलनायक भी मानसिक रोग से पीडि़त होता है. फिल्म ‘अग्नि साक्षी’ में भी नाना पाटेकर प्रौब्लमैटिक बिहेवियर से पीडि़त होता है. इसे न सिर्फ सैक्सुअल बीमारी के रूप में देखना चाहिए, बल्कि यह गंभीर मानसिक रोग भी हो सकता है.

सैक्सोलौजिस्ट डाक्टर बीर सिंह, डाक्टर एम.के. मजूमदार और मनोचिकित्सक डाक्टर स्मिता देशपांडे से बातचीत के आधार पर जानें कि सैक्सुअल मानसिक रोग कैसेकैसे होते हैं:

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जब अजीब हो सैक्सुअल व्यवहार

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मैरिड लाइफ बनाएं पहले जैसी खुशहाल

विवेक कई दिनों से अपनी पत्नी आशु के साथ अंतरंग संबंध बनाना चाह रहा था, पर आशु कोई न कोई बहाना बना कर टाल देती. रोज की नानुकर से तंग आ कर एक दिन आखिर विवेक ने झल्लाते हुए आशु से कहा कि आशु, तुम्हें क्या हो गया है? मैं जब भी तुम्हें प्यार करना चाहूं, तुम कोई न कोई बहाना बना कर टाल देती हो. कम से कम खुल कर तो बताओ कि आखिर बात क्या है?

यह सुन कर आशु रोते हुए बोली कि ये सब करने का उस का मन नहीं करता और वैसे भी बच्चे तो हो ही गए हैं. अब इस सब की क्या जरूरत है?

यह सुन कर विवेक हैरान रह गया कि उस की बीवी की रुचि अंतरंग संबंध में बिलकुल खत्म हो गई है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो गया जबकि उस की पत्नी पहले इस सब में बहुत रुचि लेती थी?

यह परेशानी सिर्फ विवेक की ही नहीं है, बल्कि ऐसे बहुत से पति हैं, जो मिडिल ऐज में आने पर या बच्चों के हो जाने पर इस तरह की समस्याओं से जूझते हैं.

कम क्यों हो जाती है दिलचस्पी

सैक्सोलौजिस्ट डा. बीर सिंह का कहना है कि कई बार पतिपत्नी के बीच प्यार में कोई कमी नहीं होती है, फिर भी उन के बीच सैक्स को ले कर समस्या खड़ी हो जाती है. विवाह के शुरू के बरसों में पतिपत्नी के बीच सैक्स संबंधों में जो गरमाहट होती है, वह धीरेधीरे कम हो जाती है. घरेलू जिम्मेदारियां बढ़ने के कारण सैक्स को ले कर उदासीनता आ जाती है. इस की वजह से आपस में दूरी बढ़ने लगती है. इस समस्या से बाहर आने के लिए पतिपत्नी को एकदूसरे से अपने सैक्स अनुभव शेयर

करने चाहिए. अपनी सैक्स अपेक्षाओं पर खुल कर बात करनी चाहिए. इस के अलावा उन कारणों को भी ढूंढ़ें जिन की वजह से साथी

सैक्स में रुचि नहीं लेता, फिर उन्हें दूर करने की कोशिश करें. ये कारण हर कपल के अलगअलग होंगे. आप को बस उन्हें दूर करना है, तब आप की सैक्स लाइफ फिर से पहले जैसी खुशहाल हो जाएगी.

यह भी एक कारण

उम्र बढ़ने के साथसाथ एक स्त्री कामक्रीड़ा में पहले जैसी दिलचस्पी क्यों नहीं लेती है? अमेरिका में चिकित्सकों और शोधकर्ताओं की पूरी टीम इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने में जुट गई. इस में एक अहम जानकारी सामने आई, जो निश्चित तौर पर एक स्त्री की सैक्स संबंधी दिलचस्पी की पड़ताल करती है. दरअसल, यह सवाल स्त्री की उम्र और सैक्स के रिश्ते से जुड़ा है. कई लोग मानते हैं कि स्त्री की उम्र उस की सैक्स संबंधी दिलचस्पी पर काफी असर डालती है. यह माना जाता है कि उम्र बढ़ने के साथसाथ एक स्त्री कामक्रीड़ा में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं लेती.

हालांकि शोध से यह बात साफ हो गई कि मध्य आयुवर्ग की महिलाओं में संभोग के प्रति दिलचस्पी होना अथवा न होना सिर्फ बढ़ती उम्र पर निर्भर नहीं करता. यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन के लाइफपार्टनर का स्वास्थ्य कैसा है? और सैक्स संबंधी गतिविधियों में वे कितनी रुचि लेते हैं.

भावनात्मक कारण

आम धारणा के विपरीत शोध में यह पाया गया कि मध्य आयु में भी महिलाएं न सिर्फ सैक्सुअली सक्रिय होती हैं, बल्कि कई मामलों में उन की दिलचस्पी बढ़ती हुई नजर आई. शोध के दौरान जब यह जानने की कोशिश की गई कि जो महिलाएं सैक्स में सक्रिय नहीं हैं उस के पीछे क्या वजह है तो पता चला कि कई भावनात्मक कारणों से उन की सैक्स और अपने पार्टनर में दिलचस्पी खत्म हो चुकी होती है. पार्टनर में दिलचस्पी घटना या किसी प्रकार की अक्षमता का सीधा असर महिलाओं की यौन सक्रियता पर पड़ता है. ऐसी भी महिलाएं हैं, जिन की सैक्स में दिलचस्पी खत्म होने की और भी वजहें हैं. मगर उन की संख्या कम है.

उम्र से नहीं है कोई संबंध

इस शोध में मध्य आयुवर्ग की सैक्स संबंधी हर दिलचस्पी को शामिल किया गया था, जिस में हस्तमैथुन भी शामिल था. शोध के दौरान महिलाओं का एक बड़ा वर्ग सैक्सुअल ऐक्टिविटीज में उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा सक्रिय होता पाया गया. शोध से यह स्पष्ट सामने आया कि किसी भी स्त्री की सैक्स संबंधी सक्रियता का उस की उम्र से कोई सीधा संबंध नहीं है. इस आधार पर मनोवैज्ञानिकों और सैक्स सलाहकारों ने कुछ कारण और सुझाव भी रखे:

– ध्यान दें कि आप का पार्टनर किसी दवा के साइड इफैक्ट की वजह से भी सैक्स में दिलचस्पी खो सकता है. यदि ऐसा है तो डाक्टर से सलाह लें.

– कई महिलाएं मानसिक दबाव के चलते भी सैक्स में रुचि नहीं लेतीं.

– बच्चों में ज्यादा व्यस्त हो जाने और सामाजिक मान्यताओं के चलते महिलाओं को लगता

है कि सैक्स में बहुत दिलचस्पी लेना उचित नहीं है.

– कई बार बच्चों के हो जाने के बाद महिलाएं अपने शरीर को ले कर असहज हो जाती हैं और हीनभावना का शिकार हो जाती हैं. इस के चलते भी वे सैक्स से जी चुराने लगती हैं.

– बढ़ती उम्र में घरपरिवार और कामकाज की बढ़ती जिम्मेदारियों के कारण वे थकने लगती हैं और सैक्स के लिए उन में पर्याप्त ऐनर्जी नहीं बचती.

– कई महिलाएं अपने पति के साथ एकांत चाहती हैं और ऐसा न होने पर सैक्स के प्रति उन की रुचि घटने लगती है.

– अगर पतिपत्नी के बीच तनाव रहता है और रिश्ता आपस में सही नहीं है तो इस से भी सैक्स लाइफ पर विपरीत असर पड़ता है.

गाइनोकोलौजिस्ट, डाक्टर अंजली वैश के अनुसार कुछ बीमारियां भी होती हैं, जिन की वजह से सैक्स में रुचि कम हो जाती है. ड्रग्स, शराब, धूम्रपान का सेवन करने से भी सैक्स में रुचि कम हो जाती है, डाइबिटीज की बीमारी भी महिलाओं में सैक्स ड्राइव को घटाती है, गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद हारमोन चेंज के कारण सैक्स में महिला कम रुचि लेती है, अगर डिप्रैशन की समस्या हो तो हर समय अवसाद में डूबी रहती हैं. वे ऊटपटांग बातें सोचने में ही अपनी सारी ऐनर्जी लगा देती हैं. सैक्स के बारे में सोचने का टाइम ही नहीं मिलता है.

कई महिलाएं बहुत मोटी हो जाती हैं. मोटापे के कारण सैक्स करने में उन्हें काफी दिक्कत होती है. अत: वे सैक्स से बचने लगती हैं.

दवा भी कम जिम्मेदार नहीं

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, कई ऐसी दवाएं हैं जिन से सैक्स लाइफ पर असर पड़ता है. सैक्स के लिए जरूरी हारमोंस शरीर की जरूरत व संदेशों को मस्तिष्क तक पहुंचाने वाले तत्त्व डोपामाइन व सैरोटोनिन और सैक्स अंगों के बीच तालमेल बहुत जरूरी होता है. डोपामाइन सैक्स क्रिया को बढ़ाता है और सैरोटोनिन उसे कम करता है. जब दवाएं इन हारमोंस के स्तर में बदलाव लाती हैं तो कामेच्छा में कमी आती है. पेनकिलर, अस्थमा, अल्सर की दवा, हाई ब्लडप्रैशर और हारमोन संबंधी दवा से कामेच्छा में कमी हो सकती है.

मगर यह जरूरी नहीं कि आप की सैक्स लाइफ में अरुचि सिर्फ दवा की वजह से ही हो. इसलिए अगर आप को अपनी सैक्स लाइफ में बदलाव महसूस हो रहा है, तो दवा बंद करने से पहले चिकित्सक की सलाह जरूर लें.

सैक्स में रुचि कैसे पैदा करें

सैक्स में जरूरी है मसाज: जब आप पार्टनर के नाजुक अंगों पर हाथों से हौलेहौले तेल लगा कर मसाज करेंगे तो यह उस के लिए बिलकुल नया अनुभव होगा. तेल आप के और पार्टनर के बीच जो घर्षण पैदा करता है उस से प्यार में बढ़ोतरी होती है और सैक्स की इच्छा जाग उठती है. मसाज एक ऐसी थेरैपी है, जिस से न सिर्फ शरीर को आराम मिलता है, बल्कि अपनी बोरिंग सैक्स लाइफ को भी फिर से पहले जैसी बना सकती हैं.

ऐक्सपैरिमैंट कर सकते हैं: अगर आप का पार्टनर सैक्सुअल ऐक्सपैरिमैंट नहीं करता है या ऐक्सपैरिमैंट करने से बचता है तो फेंटैसी की दुनिया में आप का स्वागत है. अगर आप सैक्स के बारे में अच्छी फेंटैसी कर सकती हैं तो अपने बैडरूम से बाहर निकले बिना आप अपने पार्टनर के साथ जंगल में मंगल कर सकती हैं. आप अपने पार्टनर के साथ जो चाहती हैं उसे फेंटैसी के जरीए महसूस करिए. आप की अपने पार्टनर से सारी शिकायतें दूर हो जाएंगी, क्योंकि आप का पार्टनर आप को खयालों में जो मिल गया है.

बारबार हनीमून मनाएं: सैक्स संबंधों में बोरियत न हो, इस के लिए पतिपत्नी को चाहिए कि हर साल वे हनीमून पर जाएं और इसे वे आपस में घूमने जाना न कह कर हनीमून पर जाना कहें. इस से उन के बीच ऐक्साइटमैंट बना रहता है. जब हनीमून पर जाएं तो एकदूसरे को वहां पहली बार बिताए लमहे याद दिलाएं. इस तरह घूमने और हनीमून के बारे में बात करने पर सैक्स संबंधों की याददाश्त ताजा हो जाएगी.

सैक्स में नयापन लाएं: कहीं ऐसा तो नहीं कि आप के सैक्स करने का एक ही तरीका हो और उस तरीके से आप की पत्नी बोर हो गई हो? अत: उस से इस विषय पर बात करें और सैक्स करने के परंपरागत तरीके छोड़ कर नएनए तरीके अपनाएं. इस से सैक्स संबंधों में एक नयापन आ जाएगा.

अपने साथी को समय दें: शादी के कुछ सालों बाद कुछ जोड़ों को लगता है कि सहवास में उन की रुचि कम होती जा रही है. सहवास उन्हें एक डेली रूटीन जैसा उबाऊ कार्य लगता है. इसलिए सहवास को डेली रूटीन की तरह न लें, बल्कि उसे पूरी तरह ऐंजौय करें. रोज करने के बजाय हफ्ते में भले ही 1 बार करें लेकिन उसे खुल कर जीएं और अपने पार्टनर को एहसास दिलाएं कि ऐसा करना और उस के साथ होना आप के लिए कितना खास है.

सैक्स ऐसा जिसे दोनों ऐंजौय करें: सिर्फ आप अपने मन की बात ही पार्टनर पर न थोपते रहें, बल्कि सैक्स में उस की इच्छा भी जानें और उस का सम्मान करें. जिन तरीकों में आप दोनों कंफर्टेबल हों और ऐंजौय कर सकें, उन्हें अपनाएं.

नियमित करें सैक्स: यह सच है कि तनाव और थकान का पतिपत्नी के यौन जीवन पर बुरा असर पड़ता है. मगर वहीं यह भी सच है कि सैक्स ही आप के जीवन में पैदा होने वाले दबावों और परेशानियों से जूझने का टौनिक बनता है. इसलिए कोशिश करें कि सप्ताह में कम से कम 3 बार संबंध जरूर बनाएं. इस से सैक्स लाइफ में मधुरता बनी रहेगी.

एकदूसरे के प्रति प्यार को बढ़ावा दें : अधिकतर जोड़ों के शादी के बाद कुछ सालों तक संबंध अच्छे रहते हैं, लेकिन जैसेजैसे समय बीतता जाता है वैसे काम व अन्य कारणों से उन के बीच दूरी बढ़ती जाती है, जिस से उन्हें आपस में प्यार करने का मौका नहीं मिलता. इस से उन के बीच सैक्स संबंधों में खटास आने लगती है. वैवाहिक जीवन में उत्पन्न हुई इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए आवश्यक है कि पतिपत्नी आपस में बातचीत करने के लिए कुछ समय निकालें. एकदूसरे से अच्छी बातें करें और एकदूसरे की बातों को सुनें, शिकायतों को दूर करने की कोशिश करें. एकदूसरे का सम्मान करें, इस से सैक्स लाइफ भी काफी बेहतर होगी.

पहल करें: अकसर महिलाएं सैक्स के लिए पहल करने में हिचकिचाती हैं, इसलिए आप द्वारा पहल करने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि आप का पहल करना महिला को सुखद एहसास में डुबो देता है. यदि बच्चे छोटे हैं तो सैक्स लाइफ में मुश्किलें तो आती ही हैं और महिलाएं इतनी खुली व रिलैक्स भी नहीं रह पातीं. ऐसे में बच्चों के सोने का इंतजार करने से अच्छा है कि जब मौका मिले प्यार में खो जाएं.

फिटनैस का भी खयाल रखें: अच्छी सैक्स लाइफ के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से फिट रहना भी जरूरी है. इस के लिए बैलेंस्ड डाइट लें. थोड़ीबहुत ऐक्सरसाइज करें. भरपूर नींद लें. सिगरेट, शराब का सेवन न करें.

कल्पना करें: अगर आप को सैक्स करते समय किसी और पुरुष की या फिर किसी बौलीवुड ऐक्टर आदि की कल्पना उत्तेजित करती है और सैक्स का आनंद बढ़ाती है तो ऐसा करें. इस के लिए मन में किसी तरह का अपराधबोध न आने दें. ऐसा करना गलत नहीं है क्योंकि सब का सैक्स करने और उस के बारे में सोचने का तरीका अलग होता है.

फ्रैश मूड में आनंद उठाएं: अगर पतिपत्नी दोनों वर्किंग हैं, व्यस्त हैं, रात को देर से आते हैं, तो उन की सैक्स लाइफ न के बराबर होती है और महिला ऐसे में इसे बोझ की तरह लेती है. इसलिए अगर वह थकी हुई है तो जबरदस्ती न करें. सुबह उठ कर फ्रैश मूड में सैक्स का आनंद उठाएं.

गंदी बातें अच्छी हैं: सैक्स के लिए मूड बनाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है.

आप को लगता है कि कहीं आप की डर्टी टौक्स और डार्क फेंटैसी सुन कर पार्टनर का मूड न बिगड़ जाए, इसलिए आप चाहते हुए भी उन से यह सब शेयर नहीं करते हैं तो जान लें कि ऐसा नहीं है. सच तो यह है कि हर लड़की अपने पार्टनर से ऐसी बातें सुनने के लिए बेकरार रहती है. इसलिए बेझिझक उन से ऐसी बातें करें. जैसे ही आप की बातें शुरू होंगी उन की बेचैनी भी बढ़ती जाएगी.

सैक्स लाइफ का अंत नहीं है बच्चे का आना

अगर आप का मानना है कि बच्चे के आने के बाद सैक्स लाइफ खत्म हो जाती है तो जरा रुकिए. दुनिया भर में हो रही स्टडी के मुताबिक मां बनने के कुछ समय बाद कामेच्छा स्वाभाविक रूप से लौट आती है. आमतौर पर बच्चे के जन्म के 6 हफ्ते बाद डाक्टर महिलाओं को सैक्स संबंध बनाने की इजाजत दे देते हैं. लेकिन इतने समय में भी सब महिलाएं सहज नहीं हो पातीं. कई महिलाओं की सैक्स संबंध इच्छा को लौटने में साल भर तक का समय लग जाता है. शुरू में अंतरंग पलों के लिए समय निकालना मुश्किल होता है. लेकिन धीरेधीरे गाड़ी ट्रैक पर लौटने लगती है, इसलिए बच्चे का होना सैक्स पर पूर्णविराम नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत है.

रिसर्च बताती है कि बच्चों के जन्म के बाद क्लाइमैक्स की तीव्रता बढ़ जाती है. इस का कारण है नर्व एंडिंग का ज्यादा सैंसिटिव होना.

बनाएं पत्नी का मूड ऐसे

– महिलाओं की पीठ काफी सेंसिटिव होती है. थोड़ा सा अंधेरा कीजिए, म्यूजिक प्ले कीजिए और पत्नी की पीठ पर हौलेहौले हाथ फिराते हुए मसाज कीजिए. फिर आगे का जादू खुद ही चल जाएगा.

– पार्टनर के कानों से खेलिए और हौले से कुछ कहिए. एकदम से यह न कहें कि आप का करने का मन है.

– गले में गुदगुदी कीजिए. देखिएगा कुछ ही देर में पत्नी आंहें भर रही होगी.

– फुट मसाज दीजिए. पत्नी के पैरों को सहलाते हुए बताएं कि आप उन से कितना प्यार करते हैं. बस वह एकदम से आप को बांहों में भर लेगी और उस के लिए पत्नी का तुरंत मूड बन जाएगा.

वियाग्रा: राइट चौइस है

कई हिंदी फिल्मों के सुहागरात के दृश्यों में दिखाया गया है कि दुलहन बनी नायिका रात को दूध का गिलास ले कर कमरे में दाखिल होती है. रोमांटिक मूड में बैठा बैचेन नायक गटागट दूध पीता है और फिर कमरे की बत्ती बुझा कर नायिका को आगोश में ले कर बिस्तर पर लुढ़क जाता है. कुछ फिल्मों में प्रतीकात्मक रूप से दिखाया गया है कि सुहागरात मन रही है. तब दर्शक मान लेता था कि हो न हो सहवास से पहले दूध पीने से सैक्स पावर बढ़ती है. समाज में फैली यह धारणा एकदम बेवजह भी नहीं है.

समाज बदल गया तो धारणाएं भी बदलीं. लेकिन दूध की महत्ता कम नहीं हुई पर यह शादी के शुरुआती दिनों तक ही सिमटी है शादी के कुछ साल बाद लोग सैक्स पावर बढ़ाने के लिए क्या लेते हैं इस सवाल का एक जबाब इंटरनैट पर भी मौजूद है. एक कंपनी की वैबसाईट में एक महिला पहले अपना दुखड़ा रोते बता रही है कि शादी के 8 साल बाद पिछले कुछ दिनों से पति के ढीलेपैन के चलते उसे सैक्स में पहले सा मजा नहीं आ रहा था जिस के चलते वह उदास व दुखी रहने लगी थी और चिड़चिड़ी भी हो गई थी.

फिर एक दिन उसे फलां टैबलेट के बारे में पता चला कि इस के सेवन से सैक्स घंटों चलता है और दुर्लभ जड़ीबूटियों से बने होने के कारण इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है पोर्न फिल्मों वाले कलाकार भी इसे लेते हैं. इसे लेने के बाद लंबे समय तक सैक्स कर पाते हैं. उस ने बिना वक्त गवाए तुरंत ये गोलियां और्डर कर दीं. छठे दिन कूरियर से कैश औन डिलिवरी पर आ गईं. उसी रात उस ने पति को यह खिला भी दी.

बस उस रात से उस विज्ञापनीय महिला की जिंदगी बदल गई. अब वह बहुत खुश है क्योंकि पति की शीघ्रपतन, अरुचि और कमजोरी जैसी कमियां इस गोली के सेवन से दूर हो गई हैं. उस का सैक्स ड्राइव न्यूट्रल से टौप गियर में आ गया है. इसे देख लगता ऐसा है कि सड़क छाप खानदानी नीमहकीम और कंपनियां स्क्रीन पर अपना धंधा चला रही हैं क्योंकि दौर डिजिटल है और इस के बिना आप नमक भी नहीं बेच सकते.

उक्त महिला अपने दुखड़े में यह तक कहते देखीसुनी जा सकती है कि विभिन्न उत्तेजक क्रियाओं से बात नहीं बनी तो उस ने पति को वियाग्रा तक खिलाई, लेकिन उस का भी कोई खास असर नहीं हुआ.

पत्नियां करें पहल

ऐसे लोगों के लिए वियाग्रा वरदान है. विज्ञापनीय महिला की तरह आम पत्नियां पतियों के ढीलेपन को ले कर इस हद तक चिंतित और दुखी नहीं हैं और न ही उन्हें होना चाहिए कि नीमहकीमी करने लगें क्योंकि इस के नुकसान आए दिन गुल खिलाते रहते हैं. पत्नियों को चाहिए कि वे पति को वियाग्रा दें क्योंकि यह सुरक्षित है बशर्ते इसे कुछ सावधानियों के साथ लिया जाए तो अच्छी बात यह भी है कि इस की लत नहीं पड़ती. अधिकतर पतियों का आत्मविश्वास 1-2 बार में लौट आता है.

भोपाल के पौश इलाके शाहपुरा की मनीषा मार्केट के एक कैमिस्ट अनिल लालवानी बताते हैं कि दौर जागरूकता का है. कई युवतियां अपने बौयफ्रैंड के लिए वियाग्रा खरीदती हैं, लेकिन महिलाओं की तादाद न के बराबर है. हां 30 पार के पुरुष जरूर वियाग्रा निस्संकोच ले जाते हैं. मुमकिन है उन की पत्नियों की सहमति इस में रहती हो. वैसे यह भी सच है कि दवाओं के

75 फीसदी कस्टमर पुरुष ही होते हैं. अनिल इस बात में सहमति दिखाते हैं कि अगर जरूरत महसूस हो तो पत्नियों को वियाग्रा खरीदने में हिचकना नहीं चाहिए.

अनिल की बात की पुष्टि करते और उसे विस्तार देते हुए सरकारी कालेज की एक अधेड़ उम्र की प्रोफैसर कहती हैं कि आमतौर पर भारतीय पत्नियां पति की सैक्स कमजोरियों से समझौता कर लेती हैं. उन्हें डर रहता है कि शिकायत करने या कहने पर पति इसे अन्यथा लेगा और हर्ट भी हो सकता है. अगर वह बुरा मान गया और एक सामान्य सी बात को उस ने आरोप समझा तो जिंदगी और गृहस्थी पर इस का बुरा असर पड़ेगा. एक पति हजार तरीकों से पत्नी को परेशान करने के अधिकार रखता है वैसे भी एक उम्र के बाद महिलाएं तमाम दूसरी परेशानियों के साथसाथ पति की सैक्स कमजोरी से भी समझौता कर लेती हैं और जो मिल जाता है उसी से संतुष्ट रहती हैं.

राइट औफ क्वालिटी सैक्स

मगर यह गलत नहीं तो सही भी नहीं है. ये प्रोफैसर आगे कहती हैं कि अच्छी गुणवत्ता बाला सैक्स किसी भी पत्नी का हक है और यह अगर वियाग्रा से मिले तो हरज क्या? सैक्स लाइफ में बोझिलता 40 के बाद आनी शुरू हो जाती है. इस में हैरानी की बात यह होती है कि कमी पतिपत्नी दोनों में ही नहीं रहती. दफ्तर और घर के काम का बोझ, जिम्मेदारियां उलटासुलटा खानपान, व्यायाम न करना आदि शरीर को पहले सा ऐक्टिव नहीं रहने देता फिर सैक्स के नाम पर क्या होगा, वही होगा जो इफरात से हो रहा है कि थोड़ी देर कोशिश की और जो भी बना कर के सो गए. न पहले सा रोमांस होता है न डायलोग होते, न फोर प्ले होता और न ही उसी अवस्था में लिपट कर दोनों सुबह तक सोते.

बात सच है क्योंकि एक उबाऊ सैक्स न केवल दिन बल्कि पूरी जिंदगी को नीरस बना देता है खासतौर से महिलाएं इस से ज्यादा प्रभावित होती हैं जो अर्ध को ही पूर्ण सुख मानने को मजबूर हो जाती हैं. लेकिन उन की खीज और अधूरापन. कोई नहीं समझ पाता कई बार तो वे खुद भी नहीं समझ पातीं कि वे बातबात में झल्ला क्यों रही हैं.

अधूरे सैक्स की वजह से झल्लाहट

यह झल्लाहट होती है अधूरे सैक्स की वजह से जिसे वे कोशिश करें तो नीना की तरह दूर कर सकती है. नीना पति अमन के ढीलेपन से आजिज आ गईं थीं. उन्होंने वियाग्रा के बारे में पढ़ासुना

था सो एक दिन हिम्मत कर कैमिस्ट से नीले रंग की 2 गोलियां खरीदे लाई. फिर पति को पूरे प्यार से बताया कि अब शादी के बाद वाले दिनों सा मजा नहीं आता, इसलिए आप के लिए वियाग्रा ले आई हूं. ट्राई कर के देखें. अमन उम्मीद के मुताबिक गुस्सा नहीं हुए बल्कि बोले कि मैं खुद कई दिनों से लाने का सोच रहा था पर लाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. चल अब जब तू ले ही आई है तो आज सालों बाद सालों पहले सा लुत्फ उठाते हैं और फिर दोनों ने वही लुत्फ उठाया भी.

यानी जरूरी नहीं कि वियाग्रा लाने और खाने की बात पर पति वही प्रतिक्रिया दे जो पत्नियों के दिलोदिमाग में बैठी हो. मुमकिन है पति पत्नी की इस पहल का स्वागत करे और यह बात मन में ही दबा जाए कि मैं तो कब से इसे खाने की सोच रहा था कि देखें इस से कुछ होता है या नहीं.

उलट इस के न्यू कपल्स इस झंझट में नहीं पड़ते. 26 वर्षीय श्वेता अपने पति को हर शनिवार वियाग्रा देती क्योंकि यह वीकैंड उन का सैक्स डे होता है. श्वेता ने वियाग्रा से संबंधित सारा लिटरेचर पढ़ रखा है और पति अपूर्व को भी पढ़ा रखा है. अभी तक इन दोनों को कोई परेशानी नहीं आई है.

सावधानी भी है जरूरी

अगर सावधानियों के साथ पति को वियाग्रा ला कर दी जाए तो ध्यान बस इतना रखना पड़ता है कि उस की सेहत का नुकसान न हो. अगर पति को शुगर हो, दिल की बीमारी हो, ब्लड प्रैशर रहता हो तो वियाग्रा डाक्टर से लाह कर खानी चाहिए. इस की 1 गोली पुरुष के प्राइवेट पार्ट में रक्तसंचार बढ़ा देती है जिस से वह इरेक्टाइल डिसफंक्शन से बच जाता है. उस का आत्मविश्वास वापस आ जाता है और फिर यह जरूरी नहीं कि वह हर बार इसे ले. कुछ जिम्मेदारी पत्नियों की भी बनती है कि वे पति के जोश को ठंडा न पड़ने दें जैसे पति के कपड़ों, सेहत और दूसरी चीजों का ध्यान रखती हैं वैसे ही पति के सैक्स का भी ध्यान रखें.

ऐसा होना निहायत मुमकिन है कि पत्नी पति के लिए वियाग्रा खरीद कर लाए. इस प्रतिनिधि ने 4 महिलाओं से यह सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि हां वे पति को वियाग्रा ला सकती हैं लेकिन पति से चर्चा के बाद. अगर पति एतराज जताएगा तो यह आइडिया वहीं ड्रौप हो जाएगा. लेकिन चोरीछिपे भी वियाग्रा दी जा सकती है. यह कोई हरज की बात नहीं. पति समझाने को तैयार हो जाए तो बात बहारों के लौटने जैसी होगी और लगेगा भी कि हम जिंदगी के एक बड़े सुख को पूरे मन से ऐंजौय कर रहे हैं.

छाई रहेगी एक खुमारी

आखिर में एक या कई उन जैसी पत्नियों की बात जिन्हें मालूम है कि सहवास से पहले पति वियाग्रा लेता है और कई बार तो उन्हें इस की खूबियां गिनाते लेता है, लेकिन वह सावधानियों का भी पालन करता है. ऐसे पतियों पर पत्नियां बलिहारी जाती हैं क्योंकि कोई रिस्क इस में नहीं हैं. मगर इश्क सौ फीसदी है. तो देर और झिझक किस बात की जाइए अनिल जैसे किसी कैमिस्ट के पास और ले आइए 2 गोलियां वियाग्रा की, फिर पति से अन्तरंग क्षणों में इसे खाने को कहिए और आनंद लीजिए. दूध वाली रात को याद करते गिलास के साथ प्लेट में एक गोली वियाग्रा की रखिए और आधा घंटे बाद बत्तियां बुझा दीजिए. अगली सुबह आप का जिस्म मीठे दर्द के साथ मुसकरा रहा होगा, होंठ पहले की तरह थरथरा रहे होंगे, आंखें मुंद रही होंगी. शरीर में एक अजीब सी खुमारी होगी.

फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स : दोस्त से सेक्स या सेक्स से दोस्ती?

पश्चिमी देशों में ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ का चलन कोई नया नहीं है. लेकिन भारत में जरूर इस टर्म को अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल और निभाया जाता है. जब साल 2011 में जस्टिन टिम्बरलेक और मिल्ला कुनिस की फिल्म ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ आई थी तो इस टर्म का मोटामोटी अर्थ यही निकला गया कि जब दो दोस्त अपने रिश्ते का इस्तेमाल सेक्सुअल रिलेशन के तौर पर करते हैं तो वो फ्रेंडशिप ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ के दायरे में आ जाती है. यानी जब दोस्ती से अन्य फायदे लिए जाने लगे तो यह फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स वाला रिश्ता बन जाता है.

अब आप सोचेंगी कि दोस्ती में क्या फायदा उठाना. लेकिन अगर आप मैरिड या एंगेज्ड होने के बावजूद अपनी बेस्टफ्रेंड के साथ सेक्स करना चाहती हैं तो यह दोस्ती से बेनिफिट लेने जैसा ही है. क्योंकि उक्त लड़की आपकी फ्रेंड हैं तो फिर बिस्तर पर जाने से पहले उसके साथ न तो किसी भी तरह की रोमांटिक इन्वोल्व्मेंट की जरूरत है और न भरोसा कायम रखने की. आप दोनों एकदूसरे को पहले से जानते हैं और आपसी सहमति है तो अपनी फ्रेंडशिप को बेनिफिट के साथ कायम रख सकती हैं.

ज्यादा बेनिफिट किसका

यों तो यह वेस्टर्न कौन्सेप्ट है. वहां कैजुअल सेक्स को लेकर एस्कौर्ट से लेकर फ्रेंड्स तक, वन नाइट स्टैंड से लेकर हुक अप्स तक सब खुलेख्याली के साथ कुछ डौलर्स में अवेलेबल है. लेकिन इस तरह के संबधों में पुरुष ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं. कारण वही सेक्स वाला है. लंदन की विस्कौन्सिन-यू क्लेयर यूनिवर्सिटी द्वारा 400 वयस्कों पर किए गए एक शोध से पता चला कि महिला और पुरुष के बीच दोस्ती में अगर किसी एक के द्वारा आकर्षण की भावना या सेक्स करने की चाहत की अभिव्यक्ति होती है, तो वह ज्यादातर पुरुष मित्र की ओर से ही होती है. यह स्वाभाविक भी है.

पुरुष ईजी सेक्स और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की चाहत में औफिस, पड़ोस और औनलाइन हर जगह सेक्सुअल फेवर वाला रिश्ता ढूंढ़ते हैं. और जब कभी उन गलियों में वो चाहत पूरी नहीं होती तो अपने दोस्त से फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स के तहत सेक्स संबंधों की मांग कर लेते हैं. अब इसमें दांव लगने की बात है क्योंकि इस डील में कुछ फ्रेंड नाराज हो जाते हैं तो कुछ राजी.

फ्रेंडजोंड बिरादरी का भला

ऐसा नहीं है कि इस तरह के रिलेशनशिप का इस्तेमाल सिर्फ पुरुष ही करते हैं. महिलाएं भी फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स की आड़ में अपनी सेक्सुअल फ्रीडम खोज लेती हैं. इनमें अक्सर वो महिलाएं होती हैं जो या तो बिखरती शादी का शिकार होती हैं या तलाक के दौर से गुजर रही होती हैं. कुछ विडोज भी ही सकती हैं. सेक्स की चाहत में ये किसी अजनबी के साथ डेट पर जाने के बजाए अपने दोस्तों, या कहें जो दोस्त कभी उन पर क्रश रखते थे लेकिन मुकम्मल रिश्ते तक नहीं पहुंच पाए, को तरजीह देती हैं.

ये अक्सर वही फ्रेंड होते हैं जो कभी इन महिलाओं द्वारा फ्रेंडजोंड कर दिए गए होते हैं. ऐसे में जब कैजुअल सेक्स की बात आती हैं तो पुरानी फीलिंग्स काम आती हैं और इस तरह से फ्रेंडजोंड बिरादरी का भला हो जाता है. दरअसल इस फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स वाले रिश्ते में आप किसी रिश्ते में होते हुए या न होते हुए भी किसी इंसान के साथ समय बिताने या शारीरिक संबंध बनाने के लिए आजाद हैं. लेकिन इसमें किसी तरह का कोई वादा या प्रतिबद्धता नहीं होती है.

दोस्ती-प्यार के बीच वाला सेक्स

आमतौर पर ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ का चलन सबसे ज्यादा सिंगल कौलेज गोअर्स लड़के या लड़कियों में देखा जाता है. ये ‘नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड’ वाले फलसफे पर चलते हैं. जब तक पढ़ाई की, कैम्पस में रहे, दोस्त के साथ सेक्स किया, बाद में करियर के लिए मूव औन कर गए. इसमें दोनों की मूक सहमति होती है लिहाजा कोई किसी के साथ सीरियस रिलेशनशिप के फेर में नहीं पड़ता. कई बार यह दोस्ती से ज्यादा और प्यार से कम वाला रिश्ता बन जाता है. इस तरह की स्थिति में दोनों में किसी एक के मन में सामने वाले के लिए फीलिंग्स आने लगती हैं. और बात ‘इट्स कौम्प्लीकेटेड’ तक पहुंच जाती है.

पहले पहल सुनने में एक रोमांचक चीज शायद जरूर लगे, लेकिन इंसानी तौर खासतौर पर भारत में अक्सर ईर्ष्या कहीं न कहीं बीच में आ ही जाती है और अंत में कड़वाहट कि वजह बन जाती है. इसलिए जरा सोच समझकर उतरें फेवर वाले रिश्ते में.

जब हो इट्स कौम्प्लीकेटेड

अपने देश में आप लड़के और लड़की की दोस्ती पर कुछ पूछेंगे तो वे इसमें सेक्स संबंधों की घुसपैठ को अनैतिक बताएंगे. इनके हिसाब से दोस्ती और प्यार दो अलग अलग चीजें हैं. हालांकि अक्सर लड़का लड़की की दोस्ती को प्यार में बदलते देखा जाता है. एक फिल्मी कहावत भी है, कि एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते. इस आशय पर कई फिल्में भी बनी हैं. लेकिन यहां मामला दोस्ती और प्यार का नहीं बल्कि सीधे तौर पर सेक्स का है. इसलिए इसे ‘इट्स कौम्प्लीकेटेड’ न बनाएं, तो खुश रहेंगे.

कुल मिलाकर ‘फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स’ वाला जुमला कई अलग लग अर्थों में फैल चुका है. अगर कोई लड़की या लड़का किसी से सिर्फ इसलिए दोस्ती करता है कि वो हर वक्त खर्च करने को तैयार रहता है तब यह भी ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ के दायरे में आएगा. ऐसी ही दोस्ती जब भी किसी फेवर की आड़ में की जाए तो यह असली दोस्ती नहीं होगी. बाकि आजकल बेनेफिट्स तो बेटे बेटी भी पैरेंट्स से उठा रहे हैं तो यह ‘संस/ डौटर विद बेनिफिट्स’ कहा जाए?

घर टूटने की वजह, महत्त्वाकांक्षी पति या पत्नी

निर्देशक गुलजार की 1975 में आई फिल्म ‘आंधी’ ने सफलता के तमाम रिकौर्ड तोड़ डाले थे. इस फिल्म पर तब तो विवाद हुए ही थे, यदाकदा आज भी सुनने में आते हैं, क्योंकि यह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी पर बनी थी. संजीव कुमार इस फिल्म में नायक और सुचित्रा सेन नायिका की भूमिका में थीं, जिन का 2014 में निधन हुआ था. ‘आंधी’ का केंद्रीय विषय हालांकि राजनीति था. लेकिन यह चली दरकते दांपत्य के सटीक चित्रण के कारण थी, जिस के हर फ्रेम में इंदिरा गांधी साफ दिखती थीं, साथ ही दिखती थीं एक प्रतिभाशाली पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह पति को भी त्याग देती है और बेटी को भी. लेकिन उन्हें भूल नहीं पाती. पति से अलग हो कर अरसे बाद जब वह एक हिल स्टेशन पर कुछ राजनीतिक दिन गुजारने आती है, तो जिस होटल में ठहरती है, उस का मैनेजर पति निकलता है.

दोबारा पति को नजदीक पा कर अधेड़ हो चली नायिका कमजोर पड़ने लगती है. उसे समझ आता है कि असली सुख पति की बांहों, रसोई, घरगृहस्थी, आपसी नोकझोंक और बच्चों की परवरिश में है न कि कीचड़ व कालिख उछालू राजनीति में. लेकिन हर बार उसे यही एहसास होता है कि अब राजनीति की दलदल से निकलना मुश्किल है, जिसे पति नापसंद करता है. राजनीति और पति में से किसी एक को चुनने की शर्त अकसर उसे द्वंद्व में डाल देती है. ऐसे में उस का पिता उसे आगे बढ़ने के लिए उकसाता रहता है. इस कशमकश को चेहरे के हावभावों और संवादअदायगी के जरीए सुचित्रा सेन ने इतना सशक्त बना दिया था कि शायद असल किरदार भी चाह कर ऐसा न कर पाता.

आरती बनीं सुचित्रा सेन दांपत्य के दूसरे दौर में खुलेआम अपने होटल मैनेजर पति के साथ घूमतीफिरती और रोमांस करती नजर आती है, तो विरोधी उस पर चारित्रिक कीचड़ उछालने लगते हैं.

स्वभाव से जिद्दी और गुस्सैल आरती इस पर तिलमिला उठती है, क्योंकि उस की नजर में वह कुछ भी गलत नहीं कर रही थी. चुनाव प्रचार के दौरान जब उस से यह सवाल हर जगह पूछा जाता है कि होटल मैनेजर जे.के. से उस का क्या संबंध है, तो वह हथियार डालती नजर आती है. ऐसे में पति उसे संभालता है. चुनाव प्रचार की आखिरी पब्लिक मीटिंग में वह पति को साथ ले कर जाती है और सच बताते हुए कहती है कि ये उस के पति हैं. अगर इन के साथ घूमनाफिरना गुनाह है, तो वह गुनाह उस ने किया है. आखिर में रोतीसुबकती आरती भावुक हो कर जनता से अपील करती है कि वह वोट नहीं इंसाफ मांग रही है.

जनता उसे जिता कर इंसाफ कर देती है. फिल्म के आखिरी दृश्य में जब वह हैलिकौप्टर में बैठ कर दिल्ली जा रही होती है तब संजीव कुमार उस से कहता है कि मैं तुम्हें हमेशा जीतते हुए देखना चाहता हूं

फिल्म इसी सुखांत पर खत्म हो जाती है. लेकिन बुद्धिजीवी दर्शकों के सामने यह सवाल छोड़ जाती है कि क्या कल कैरियर के लिए छोड़े गए पति को सार्वजनिक रूप से स्वीकारना भी राजनीति का हिस्सा नहीं था? यह जनता के साथ भावनात्मक ब्लैकमेलिंग नहीं थी?

साबित यह होता है कि राजनीति में सब कुछ जायज होता है. साबित यह भी होता है कि एक महत्त्वाकांक्षी पत्नी, जिसे हार पसंद नहीं, जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

इंदिरा गांधी: मिसाल व अपवाद

फिल्म से हट कर देखें तो इंदिरा गांधी भारतीय महिलाओं की आदर्श रही हैं. वजह एक निकाली जाए तो वह यह होगी कि 70 के दशक में औरतों पर बंदिशें बहुत थीं. उन का महत्त्वाकांक्षी होना गुनाह माना जाता था और इस महत्त्वाकांक्षा की हत्या तब बड़ी आसानी से प्रतिष्ठा, इज्जत और समाज के नाम के हथियारों से कर दी जाती थी. चूंकि इंदिरा गांधी इस का अपवाद थीं, इसलिए उन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षा को जिंदा रखा और दांपत्य व गृहस्थी के झंझट में ज्यादा नहीं पड़ीं तो वे मिसाल और अपवाद बन गईं. नई पीढ़ी उन के बारे में यही जानती है कि वे एक सफल और लोकप्रिय नेत्री थीं. पर यह सब उन्होंने किन शर्तों पर हासिल किया था, इस की झलक फिल्म ‘आंधी’ में दिखाई गई है.

इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी का पत्नी पर कोई जोर नहीं चलता था. इसीलिए इंदिरा अपने अंतर्जातीय प्रेम विवाह पर कभी पछताई नहीं न ही उन्होंने कभी सार्वजनिक तौर पर पति की निंदा या चर्चा की. इस खूबी ने भी जिसे पति का सम्मान समझा गया था उन्हें ऊंचे दरजे पर रखने में बड़ा रोल निभाया.

लेकिन जब पत्नी इतनी महत्त्वाकांक्षी हो कि घर तोड़ने पर ही आमादा हो जाए तब पति को क्या करना चाहिए ताकि गृहस्थी भी बनी रहे और पत्नी का नुकसान भी न हो? इस सवाल का एक नहीं, बल्कि अनेक जवाब हो सकते हैं, जो मूलतया सुझाव होंगे, क्योंकि स्पष्ट यह भी है कि पत्नी का महत्त्वाकांक्षी होना समस्या नहीं है, समस्या है पति द्वारा उसे मैनेज न कर पाना.

इसी कड़ी में गत अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान के मशहूर 63 वर्षीय क्रिकेटर इमरान खान का भी नाम आता है, जिन्होंने अपनी पत्नी रेहम खान को तलाक दे दिया. उल्लेखनीय है कि रेहम खान और इमरान दोनों की यह दूसरी शादी थी. रेहम को पहले पति से 3 बच्चे हैं और इमरान को भी पहली पत्नी से 2 बच्चे हैं. उम्र में रेहम इमरान से 20 साल छोटी हैं. इस तलाक की वजह दोनों की दूसरी शादी या बेमेल शादी नहीं, बल्कि इमरान खान की मानें तो रेहम की बढ़ती राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं. इमरान पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दल तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के संस्थापक और मुखिया हैं. चर्चा यह भी रही कि रेहम पीटीआई पर कब्जा जमाना चाहती थीं. वे नियमित पार्टी की मीटिंग में जाने लगी थीं और कार्यकर्ताओं की पसंद भी बनती जा रही थीं. पीटीआई का दखल पाकिस्तान की सत्ता में हो या न हो, लेकिन वहां की सियासत में खासा दखल है, जिस की वजह पाकिस्तान में इमरान के चाहने वालों की बड़ी तादाद है.

इस तनाव पर पेशे से कभी बीबीसी में टीवी ऐंकर रहीं रेहम ने यह बयान दे कर जता दिया कि इस तलाक की वजह वाकई उन की महत्त्वाकांक्षा है. रेहम का कहना है कि पाकिस्तान में उन्हें गालियां दी जाती थीं. वहां का माहौल औरतों के हक में नहीं है. वे तो पूरे देश भर की भाभी हो गई थीं. जो भी चाहता उन्हें गालियां दे सकता था. तलाक के बाद रेहम ने यह भी कहा कि इमरान चाहते थे कि वे रोटियां थोपती रहें यानी एक परंपरागत घरेलू बीवी की तरह रहें, जो उन्हें मंजूर नहीं था. जाहिर है, वाकई रेहम की महत्त्वाकांक्षाएं सिर उठाने लगी थीं और इमरान को यह मंजूर नहीं था.

एक फर्क शौहर होने का

क्या सभी पतियों से ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वे पत्नि की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करने के रास्ते में अड़ंगा नहीं बनेंगे? तो इस सवाल का जवाब साफ है कि नहीं, क्योंकि पुरुष का अपना अहम होता है. वह पत्नी को खुद से आगे बढ़ने का, अपनी अलग पहचान बनाने का और लोकप्रिय होने का मौका नहीं देता. इस बाबत पूरी तरह से उसे ही दोषी ठहराया जाना उस के साथ ज्यादती होगी. जब पत्नी कह सकती है कि वह ही क्यों झुके और समझौता करे, तो पति से यह हक नहीं छीना जा सकता. सवाल गृहस्थी और बच्चों के साथसाथ अघोषित विवाह नियमों का भी होता है.

1973 में अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी द्वारा अभिनीत फिल्म ‘अभिमान’ ने भी बौक्स औफिस पर झंडे गाड़े थे. इस फिल्म में पतिपत्नी दोनों गायक होते हैं. लेकिन पूछपरख पत्नी की ज्यादा होने लगती है, तो पति झल्ला उठता है. नौबत अलगाव तक की आ जाती है. पत्नी मायके चली जाती है और गर्भपात हो जाने से गुमसुम रहने लगती है. बाद में पति उसे मना कर स्टेज पर ले आता है और उस के साथ गाना गाता है. लेकिन ऐसा तब होता है जब पत्नी हार मान चुकी होती है. इस फिल्म की खूबी थी मध्यवर्गीय पति की कुंठा, जो पत्नी की सफलता और लोकप्रियता नहीं पचा पाता, इसलिए दुखी और चिड़चिड़ा रहने लगता है. उसे लगता है पत्नी के आगे बढ़ने पर दुनिया उस की अनदेखी कर रही है. पत्नी के कारण उस की प्रतिभा का सही मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है और लोग उस का मजाक उड़ा रहे हैं. अब नजर रील के बजाय रियल लाइफ पर डालें, तो अमिताभ शीर्ष पर हैं और हर कोई जानता है कि इस में जया भादुड़ी का योगदान त्याग की हद तक है. जिन्होंने पति के डूबते कैरियर को संवारने के लिए ‘सिलसिला’ फिल्म में काम करना मंजूर किया था.

ऐसा आम जिंदगी में होना और हर कहीं दिख जाना आम बात है कि प्रतिभावान महत्त्वाकांक्षी पत्नी का पति अकसर हीनभावना और कुंठा का शिकार रहने लगता है. वजह उस की कमजोरी उजागर करता एक सच उस के सामने आ खड़ा होता है. यहां से शुरू होता है द्वंद्व, कशमकश, चिढ़ और कुंठा. पति जानतासमझता है कि वह पत्नी से पीछे है और यह सच सभी समझ रहे हैं. दांपत्य का यह वह मुकाम होता है जिस पर वह पत्नी को नकार भी नहीं सकता और स्वीकार भी नहीं सकता. जबकि पत्नी की इस में कोई गलती नहीं होती. इधर सफलता और लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही पत्नी पति की कुंठा और परेशानी नहीं समझ पाती. लिहाजा, अपना सफर जारी रखती है. उधर पति को लगता है कि वह जानबूझ कर उसे चिढ़ाने और नीचा दिखाने के लिए ऐसा कर रही है. ऐसे में जरूरत ‘अभिमान’ फिल्म की बिंदु, असरानी और डैविड जैसे शुभचिंतकों की पड़ती है, जो पतिपत्नी को समझा पाएं कि दरअसल में गलत दोनों में से कोई नहीं है. जरूरत वास्तविकता को स्वीकार लेने की है, जिस में किसी की कोई हेठी नहीं होने वाली. पर ऐसे शुभचिंतक फिल्मों में ही मिलते हैं, हकीकत में नहीं. इसलिए पति की कुंठा हताशा में बदलने लगती है और वह कई बार क्रूरता दिखाने लगता है.

इस कुंठा से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि  पति पत्नी की हैसियत और पहुंच को दिल से स्वीकार करे और पत्नी को चाहिए कि वह पति को यह जताती रहे कि ये तमाम उपलब्धियां उस की वजह और सहयोग से हैं. इस में कोई शक नहीं कि महत्त्वाकांक्षी पत्नी की पहली प्राथमिकता उस की अपनी मंजिल होती है, गृहस्थी, बच्चे या पति नहीं. पर इस का मतलब यह भी कतई नहीं कि उसे इन की चिंता या परवाह नहीं होती. इस का मतलब यह है कि वह अपनी प्रतिभा पहचानती है, लक्ष्य तक पहुंचना उसे आता है और वह कोई समझौता करने में यकीन नहीं करती.

याद रखें

– पतिपत्नी में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा गृहस्थी और दांपत्य दोनों के लिए सुखद नहीं है, इसलिए इस से बचें. एकदूसरे की भावनाओं और इच्छाओं के सम्मान से ही दोनों वे सब पा सकते हैं, जो वे पाना चाहते हैं.

– पत्नी जिंदगी में कुछ बनना या हासिल करना चाहती है, तो कुछ गलत नहीं है. यह उस का हक है. लेकिन पत्नियों को यह देखसमझ लेना चाहिए कि वे जो पाना चाहती हैं उस से आखिरकार हासिल क्या होगा और पति की भावनाओं को जरूरत से ज्यादा ठेस तो इस से नहीं लग रही.

– पति का प्रोत्साहन और प्रशंसा पत्नी की प्रतिभा को निखारती है. उस की मंशा पति को नीचा दिखाने की नहीं होती. यह नौबत तब ज्यादा आती है जब पति कुढ़ने लगता है और पत्नी की उपलब्धियों में से खुद की भागीदारी खत्म कर लेता है.

– पत्नी कमाऊ हो, सार्वजनिक जीवन जी रही हो तो पति को चाहिए कि वह बजाय हीनभावना से ग्रस्त होने के पत्नी पर गर्व करे.

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