‘जी, मैं दे दूंगी. बेफिक्र रहें.’ अपने बच्चों की मासूम जिदों का गला घोंट कर भी मैं वकील और मुंशी की फीस तनख्वाह मिलते ही अलग डब्बे में रखने लगी.
खूबसूरत ख्वाबों का मृगजाल दिखलाने वाली जिंदगी का बेहद तकलीफजदा घटनाक्रम इतनी तेजी से घटा कि मुझे अपने स्लम एरिया में हाल में किस्तों पर अलौट हुए आवास विकास के 2 कमरों के मकान पर जाने का मौका ही नहीं मिला.
4 महीने बाद चाबी पर्स में डाल कर अपनी चचेरी बहन और बच्चों के साथ उस महल्ले में पहुंचने ही वाली थी कि नुक्कड़ पर सार्वजनिक नल से पानी भरती परिचित महिला मुझे देख कर जोर से चिल्लाई, ‘अरे बाजी, आप? बड़े दिनों बाद दिखलाई दीं. मास्टर साहब तो कह रहे थे आप का दूर कहीं तबादला हो गया है. और वह औरत क्या आप की रिश्तेदार है जिस के साथ मास्टर साहब रह रहे हैं?’ भीतर तक दरका देने वाले समाचार ने एक बार फिर मुझ को आजमाइश की सलीब पर लटका दिया.
‘उन्होंने क्या दूसरा निकाह कर लिया है? भरे बदन वाली गोरीचिट्टी, बिलकुल आप की तरह है. मगर आप की तरह हंसमुख नहीं है. हर वक्त मुंह में तंबाकू वाला पान दबाए पिच्चपिच्च थूकती रहती है.’ मु झ को चुप देख कर पड़ोसिन ने पूरी कहानी एक सांस में सुना दी.
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कलेजा निचोड़ लेने वाली अप्रत्याशित घटना की खबर मात्र ने मु झ को हिला कर रख दिया. गरम गोश्त के सौदागर, औरतखोर मुकीम ने 4 महीनों में ही अपनी शारीरिक भूख के संयम के तमाम बांध तोड़ डाले. घर से मेरे निकलते ही उस ने दूसरी औरत घर में बिठा ली. जैसे औरत का अस्तित्व उस के सामने केवल कमीज की तरह बदलने वाली वस्तु बन कर रह गया हो. एक नहीं तो दूसरी, फिर तीसरी, फिर चौथी. मात्र खिलौना. दिल भर गया, कूड़ेदान में डाल दिया. हाड़मांस के शरीर और संवेदनशील हृदय वाली त्यागी, ममतामयी, सहनशील, कर्मशील औरत के वजूद की कोई अहमियत नहीं पुरुषप्रधान मुसलिम भारतीय परिवारों में. यही कृत्य अगर औरत करे तो वह वेश्या, कुलटा. कठमुल्लाओं ने मर्दों को कौन सी घुट्टी पिला दी कि वे खुद को हर मामले में सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिकारी होने का भ्रम पालने लगे हैं.
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से चचेरी बड़ी आपा की तरफ देखा. ‘तुम यहीं पेड़ के नीचे खड़ी रहो, मैं देखती हूं, माजरा क्या है,’ यह कह कर उन्होंने कंधे पर हाथ रख कर मु झे तसल्ली दी थी.
उन के जाने और आने के बीच लगभग एक घंटे तक मैं बुरे खयालों के साथ आंखें मींच कर खड़ी रही. कौन है वह औरत, क्या सचमुच मुकीम ने दूसरा निकाह कर लिया है? मेरी हसरतों की लाश पर अपनी ऐयाशी का महल तामीर करते हुए उसे अपने पिता होने का जरा भी खयाल नहीं आया. औरत सिर्फ बच्चा पैदा करने वाली मशीन और मर्द केवल बीज बोने वाला हल. फसल के लहलहाने या बरबाद होने से उस का कोई वास्ता नहीं. निर्ममता का ऐसा कठोर और स्पंदनहीन हादसा क्या हर युग में ऐसा ही अपना रूप बदलबदल कर घटता होगा.
नफरत की आग में पूरा शरीर धधकने लगा था. एक अदद 2 कमरों का मकान जिसे अपना पेट काटकाट कर बड़ी मुश्किल से किस्तों में खरीदने की हिम्मत की थी मैं ने अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए, बहेलिया ने परिंदों को जाल में फंसाने के बाद कितनी बेदिली से उन के घोंसलों के तिनके भी हवा में उड़ा दिए. घर, पति, इज्जत, सबकुछ लूट लिया. जीवन के चौराहे पर हर तरफ त्रासदियों की दहकती आग ही आग थी. कौन सा रास्ता मिलेगा बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए? शायद कोई नहीं.
आपा वापस लौट आईं उदास और निरीह चेहरा लिए हुए ‘केस की हर पेशीयों में वह औरत अकसर मुकीम को कोर्ट में मिल जाती थी. 4 बच्चों की मां ने शौहर के उत्पीड़न से पीडि़त हो कर घर छोड़ दिया और खानेखर्चे का दावा पति पर ठोंक दिया. उन की मुलाकातें बढ़ती गईं. एकदूसरे की झूठीसच्ची दर्दीली कहानी और अत्याचार का मुलम्मा चढ़ा कर सुनाया गया फर्जी फसाना, एकदूसरे की शारीरिक, मानसिक भूख की क्षुधा मिटाने का जरिया बनता चला गया.’
मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. चुपचाप थके कदमों से वापस लौट आई. अपने अधिकारों का हनन करने और करवाने के प्रति आक्रोश व्यक्त करूं या वक्त की अदालत के फैसले का इंतजार करते हुए अपने और बच्चों के जीवित रखने के प्रयासों में लग जाऊं या फिर अतीत और भविष्य से आंखें मूंद लूं?
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‘मैडम, कल स्कूल इंस्पैक्शन टीम में असिस्टैंट कमिश्नर आ रहे हैं. अगर आप कहें तो आप के ट्रांसफर के लिए सिफारिश कर दूं?’ मुकीम के भेजे कागजी जानवर के तेजी से बढ़ते खूनी पंजों के नाखूनों से खुद भी आहत होते प्राचार्य ने मु झ से हमदर्दी से पूछा, ‘यहां तो आप के शौहर ने आप का जीना हराम कर ही रखा है, ऊपर से स्टाफ को भी अनर्गल बकवास का मौका दे दिया है. टीचर्स बच्चों पर कम, आप के बारे में ही चर्चारत रहते हैं. ये लीजिए आप के ओरिजिनल सर्टिफिकेट, सब सही पाए गए हैं. चैक कर के रिसीविंग दे दीजिए.’
सच झूठ की लड़ाई में हर युग में सच का ही परचम लहराते देखा गया है. वकील साहब ने यकीन दिलाया था, ‘आप फिक्र न कीजिए. हियरिंग पर ही आप को आना पड़ेगा कोर्ट में, बाकी मैं संभाल लूंगा. बस, फीस टाइम पर मनीऔर्डर करती जाइएगा.’ लुटे मुसाफिर की जरूरत के वक्त उस का पैरहन तक उतारने में नहीं हिचकते वकील लोग.
मुकीम ने स्टाफ के पुरुष शिक्षकों के सामने अपने उजड़ जाने की कपोलकल्पित कहानियां सुना कर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया. फिर मु झे डराधमका कर कंप्रोमाइज करने के कई हथकंडे अपनाए. लेकिन मैं शिलाखंड बनी बदसूरते हाल के हर झं झावात सहते हुए उस की हर कोशिश, चाल को नाकाम करती हुई नौकरी, बच्चे और अपनी मर्यादा के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान रही.
एक दिन डाक से आया लिफाफा खोला तो उस में दोनों बच्चों के नाम सौसौ रुपए के चैक थे. दूसरे दिन बैंक में जमा करवा दिए. 5वें दिन बैंक मैनेजर ने उन चैक्स के बाउंस हो जाने की खबर दी. चालबाजी, शातिरपन, मक्कारी भला कब तक सचाई के सूरज का सामना कर पाएगी. कोर्ट में वही चैक उस की कमजर्फी और बच्चों के प्रति गैरजिम्मेदाराना बरताव का ठोस सुबूत बन गए.
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ट्रांसफर और्डर हाथ में थमाते हुए प्राचार्य ने मुसकरा कर कहा था, ‘आप जब चाहेंगी, आप का रिलीविंग और्डर और बच्चों की टीसी तैयार करवा दूंगा.’
मैं ने अब्बू को बतलाए बगैर जरूरत का सामान पैक किया और चल पड़ी सौ द्वीपों के बीच सब से ज्यादा आबाद टापू की ओर. जुल्म सहती औरत का अरण्य रुदन सुनते गूंगे, बहरे और अंधे नाकारा शहर से हजारों मील दूर अंडमान निकोबार की तरफ. पानी के जहाज का सफर, उछाल मारती लहरों का बारबार किनारे से सिर पटकना. नहीं, अब और नहीं सहूंगी जिल्लत, रुसवाई और लोगों की आंखों में उगते चुभते सवालों के प्रहारों को. नहीं होने दूंगी अपने दामन को और जख्मी. अब मैं, मेरे बच्चे और मेरा भविष्य… खुशियों की आस की एक किरण क्षितिज से चलती हुई अंतस में कही समा जाती.
अगले भाग में पढ़ें- पतझड़ सावन में, सावन बंसत में तबदील होते रहे.