जीवनसाथी: भाग 2- विभोर को अपनी पत्नी वसु से नफरत क्यों हुई

शुरू में तो वसु ने सोचा शांत रहेगी तो विभोर का ग़ुस्सा कम हो जाएगा. लेकिन वसु का शांत मृदु स्वभाव भी विभोर में कोई परिवर्तन नहीं ला पा रहा था.

रोज अपने और विभोर के बीच स्नेहसूत्र पिरोने का प्रयास करती लेकिन विभोर किसी पत्थर की तरह अपने विचारों पर अडिग रहता. वसु औफिस जाने के पहले सारे काम निबटा रही होती और विभोर आराम से टीवी पर नित्य नए बाबाओं की बेमानी बातें बड़े ध्यान से सुनता जो उस के मानसपटल पर अंकित हो उस के पुरुष अहम को पोषित करतीं. हर बात में सुनीसुनाई उन्हीं बातों को करता. कभी वसु कोई काम

कहती भी तो गुस्से में चिल्ला कर उस का अपमान करता. आज वसु सुबह जल्दी उठ गई थीप्त उसे औफिस जल्दी जाना था. उस ने अपने साथ सब की चाय बना ली और विभोर को देते हुए कहा, ‘‘विभोर, मैं ने दीदी की चाय भी बना दी है. मैं नहाने जा रही हूं. मुझे आज औफिस जल्दी जाना है. दीदी उठे तो आप उन्हें गरम कर के दे देना.’’

वसु की ननद भी अपने छोटे बच्चे के साथ रहने आई हुई थी.

इतना सुनते ही विभोर का मूड उखड़ गया. चिल्ला कर बोला, ‘‘वसु, मैं देख रहा

हूं, तुम मां को इगनोर कर रही हो, मां का नाश्ता तुम बना कर केसरोल में रख दोगी और आज तो तुम्हें छुट्टी लेनी चाहिए थी, सुमन आई हुई है.’’

‘‘मैं शाम को जल्दी आने की कोशिश करूंगी विभोर मगर छुट्टी नहीं ले सकती. मेरी प्रमोशन डियू है और विभोर आप चिल्ला क्यों रहे हो? शांति से भी तो कह सकते हो. अच्छा नहीं लगता जब आप चिल्लाते हो वह भी सब के सामने.’’

‘‘क्यों सब के सामने की क्या बात है? यहां बाहर का है ही कौन? मां हैं, मेरे भाईबहन हैं.’’

‘‘नहीं विभोर बात करने का तरीका होता है, इस विषय पर सोचना,’’ कह कर वसु औफिस निकल गई.

जब भी वसु औफिस को निकलती विभोर कुछ काम जरूर बता देता. वसु को कर के जाना होता, जिस वजह से अकसर औफिस के लिए देर हो जाती और फिर बौस की डांट पड़ती.

वसु की हमेशा कोशिश होती कि बात को समझ कर सुलझा लिया जाए, वह वैसे भी मुसकराती रहती थी. सोचती थी, पिता के असमय जाने से शायद स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया है, प्यार से धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. आशा की किरण उस के होंठों पर मुसकान बिखेर देती. कितनी भी बात हो वसु कभी मुंह बना कर नहीं घूमती. लेकिन इन कोशिशों में विभोर की स्त्री के प्रति अवमानना उस के रिश्ते में जहर घोल रही थी.

मार्च का महीना था. काम ज्यादा ही होता है, रात के 8 बजने को आए, वसु जल्दीजल्दी काम निबटाने में लगी हुई थी तभी फोन बज उठा, ‘‘क्या बात है अभी तक घर नहीं पहुंची?’’ विभोर कठोर स्वर में बोला.

‘‘बस निकल ही रही हूं विभोर.’’

‘‘क्या 8 बजे भी तुम औफिस में हो? खाने का समय हो रहा है, कब बनेगा? मैं कुछ करने वाला नहीं, जल्दी घर आओ.’’

‘‘मैं अभी बाहर से और्डर कर देती हूं.’’

‘‘नहीं बाहर का नहीं खाएंगे, तुम अभी चल दो, आ कर बनाओ,’’ कहते हुए विभोर फोन पर ही चिल्ला उठा,

वसु ने आसपास नजर घुमा कर देखा, साथ में काम कर रहे कुलीग ने विभोर की आवाज सुन ली थी. वसु की आंखों में अपमान के आंसू आ गए. वैसे विभोर जब चाहे बाहर से खाना मंगवा लेता लेकिन अगर वसु कहती तो कभी नहीं मंगवाता.

थकीहारी वसु घर में घुसी तो सब बैठे आराम से टीवी पर बाबाओं के प्रवचन सुन रहे थे. उस के घुसते ही सब ने ऐसी उदासीन सी नजर डाली जैसे वह घूम कर आ रही हो. फिर पुन: टीवी देखने लगे, जिस में अकसर चर्चा होती कि आजकल ये स्त्रियां जो घर से बाहर काम करने निकलती हैं वे सिर्फ एक बहाना है कि स्वतंत्रता से घूम सकें और काम से बच जाए, फैशन कर सकें. इसीलिए बाहर काम का बहाना ले कर जाती हैं. ये सब बातें सुन कर विभोर वसु के काम करने से चिढ़ा रहता था.

आज विभोर का पारा 7वें आसमान पर था क्योंकि उस की बहन आई हुई थी. वसु ने लैपटौप का बैग रख कर जल्दी से हाथमुंह धो कर चाय चढ़ा दी. थकान इतनी थी कि खाना बनाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन बनाना तो था ही. चाय पी कर वसु खुद को थोड़ा फ्रैश फील करती थी. फिर सोचा जा कर सब से पूछ ले कोई अगर चाय पीना चाहे तो.

‘‘मांजी, विभोर दीदी आप लोग चाय पीओगे क्या? मैं अपने लिए बना रही हूं,’’ उस ने पूछा.

‘‘अरे शाम के 7 बज रहे हैं यह कोई टाइम है चाय पीने का? जल्दी खाना बनाओ और हां मां ने अभी तक दवा नहीं ली है, वह भी ला कर दे दो,’’ विभोर बोला.

थकान और पति का आदेशात्मक स्वर वसु को तोड़ गया. जानती थी पति नहीं चाहता है वह औफिस में काम करे, उस के हिसाब से तो घर में ही स्त्री को कार्य करना चाहिए. बाहर निकल कर स्वच्छंद हो जाएगी. वसु चुप रही. उसे पता था नौकरी किसी भी कीमत पर नहीं छोड़नी है. उस ने ला कर मां को दवाई और पानी दे दिया. फिर चाय बनाने के साथ ही खाने की तैयारी शुरू कर दी. अभी बात को बढ़ाना ठीक नहीं समझ. शारीरिक थकान और विभोर की बातें मन को परेशान कर रही थीं.

समय अपनी रफ्तार से बढ़ने लगा. वसु शांत रहने की कोशिश करती, सब को मुसकरा कर ही जवाब देती. जब भी उस के चेहरे पर मुसकराहट होती जाने क्यों विभोर अजीब सी प्रतिक्रिया देता और अकसर ढीठ की संज्ञा से विभूषित करते, आज वसु खाना बनाते हुए गुनगुनाने लगी, गाना गाते हुए वसु की बोरियत दूर होती थी, मन भी हलका भी हो जाता था.

विभोर ने सुना तो बोला, ‘‘अम्मां, देखना कैसी ढीठ है, अभी डांट पड़ी है, अब गा रही है… जरा भी लिहाज नहीं.’’

असल में थोड़ी देर पहले विभोर उस को कपड़ों के लिए चिल्ला चुका था, उसे वही शर्ट पहननी थी जो गंदी थी, जबकि वसु इतवार को ही वाशिंगमशीन चलाती थी.

वसु ने सुन लिया. रसोई से आ कर बोली, ‘‘क्या मुंह बना कर घूमती रहूं, वह भी तो आप को अच्छा नहीं लगेगा.’’

वैसे भी 3 भाइयों में सब से छोटी वसु चंचल, खिलखिलाने वाली हंसमुख लड़की थी.

शादी के 4 साल बाद भी विभोर में कोई बदलाव नहीं था. अब वसु को लगने लगा था, उस से कहीं भूल तो नहीं हो गई. उस ने सोचा था पिता कि अनुपस्थिति ने विभोर को शालीन, जिम्मेदार बनाया होगा, पर वसु की सोच उसे झूठा साबित कर रही थी.

छुट्टी का दिन था, सास के पैर में दर्द था विभोर औफिस गया था, थोड़ी देर में विभोर आ गया और आते ही बोला, ‘‘अरे वसु, तुम ने अम्मां के सामने सिर पर पल्ला नहीं किया? सिर झुका सास के पैरों को तल्लीनता से दबाती वसु को ये भी पता नहीं चला विभोर औफिस से कब आ गया और जाने कब उस के सिर से पलला सरक गया.’’

अचानक विभोर ने एक तमाचा वसु के गाल पर मार दिया.

कराह उठी वसु, ‘‘तुम्हारी ढीठता को तो

2 मिनट में ठीक कर दूंगा, मां के सामने सिर पर पल्ला नहीं है, इतनी छोटी बात भी बतानी पड़ेगी.’’

वसु ने आंखों में आश्चर्यमिश्रित प्रश्न समेटते हुए पति की ओर देखा, शादी के इतने समय बाद सिर पर पल्ले की बात कही है पहले कभी कही ही नहीं थी. वह खुद ही सिर पर पल्ला रख रही थी और अगर सिर से हट भी गया तो उस के लिए तमाचा, उस का सारा अस्तित्व ही हिल गया.

वसु ने दर्द को पीते हुए सास की ओर  देखा, शायद सास ही बोल दे कि सेवा कर रही थी, पल्ला हट भी गया तो क्या हुआ? लेकिन वहां निस्तब्धता पसरी थी. ऐसा लग रहा था जैसे सास वहां हैं ही नहीं. वसु को इतने पराएपन की उम्मीद नहीं थी.

गालों पर छपी उंगलियां जैसे उस के दिल पर अंकित हो गई थीं. चुपचाप उठ कर अपने कमरे में आ गई. आज उसे अपनी हर कोशिश नाकामयाब लग रही थी.

वसु का मन विद्रोह कर उठा कि न जाने क्यों विभोर कुछ सम?ाना ही नहीं चाहता है. उस से भी ज्यादा बुरा लगा. सास का चुप रह जाना. अगर बड़े पहली ही बार में सम?ा दें तो शायद बच्चे आगे गलती न करें. वसु ने महसूस किया मां कभी किसी भी बात पर विभोर को कुछ नहीं कहती हैं. उस के लिए यह थोड़ा अजीब था.

जीवनसाथी: भाग 1- विभोर को अपनी पत्नी वसु से नफरत क्यों हुई

‘‘तुम से खाना तक तो ठीक से बनता नहीं और क्या करोगी?’’ कहते हुए विभोर ने खाने की थाली उठा कर फेंक दी.

सकपका कर सहमती वसु सिर्फ मूक सी थाली को देखती रह गई. थाली के साथ उस का सम्मान भी जाने कितने बल खाता जमीन पर दम तोड़ रहा था.

वसु ने अपने घर में कभी ऐसा अपमान खाने का नहीं देखा था न ही कभी पिता को मां से इस तरह व्यवहार करते देखा था. आश्चर्य और दुख से पलकें भीग गईं. उस ने भीगी पलकें

छिपा मुंह घुमा लिया. मन चीत्कार कर उठा अगर नमक कम तो सवाल, उस से ज्यादा तो सवाल. कौन सा पैरामीटर है जो नाप ले… उस का बस चलता तो किसी को शिकायत का मौका ही नहीं देती. घर और औफिस में तालमेल बैठाती अब वसु ख़ुद को थका हुआ महसूस करने लगी थी. थके होने पर भी बहुत लगन से विभोर का मनपसंद खाना बनाती.

उस का प्रयास रहता कि कभी तो विभोर के मन को छू सके. पर हर बार उस की आशाओं पर तुषारापात हो जाता.

वसु को लगने लगा था कि विभोर पूर्वाग्रह से ग्रस्त उस का प्रयास विफल कर देता है. जब भी सम?ाने का प्रयास करती टीवी पर बाबाओं के द्वारा दिखाए जाने वाले उपदेश विभोर के मानसपटल पर आच्छादित रहते और वह उन की परिधि से 1 इंच भी टस से मस न होता. जब कोई धारणा मनोविकार का रूप ले ले तब उसे छोड़ना आसान नहीं होता है. विभोर के साथ भी यही हो रहा था. सामाजिक व्यवस्था जिस में स्त्री सिर्फ भोग्या व पुरुष की दासी मानी जाती है. यह बात विभोर के मानसपटल पर कहीं गहरे बैठ गई थी. इस से आगे जाने या कुछ समझने को वह तैयार ही नहीं होता.

पति की फेंकी इडलीसांभर की प्लेट उठाती वसु बहुत कुछ सोच रही थी. अंतर्द्वंद्व ने उस के तनमन को व्यथित कर दिया था. किसी बात को कहने के लिए झल्लाना आवश्यक तो नहीं. प्रेमपूर्ण वचनों से सुलझाए मसले उचित फलदाई होते हैं.

मन के किसी कोने में रत्तीभर भी जगह हो तो इंसान कुछ भी कहता है तो प्यार से या सम?ाने के लिए न कि अपमान के लिए. वसु को लगता जैसे विभोर जलील करने का बहाना ढूंढ़ता है

और वसु मुंह बाए बात की तह तक जाने की कोशिश करती रह जाती है. क्यों हर बात को चिल्ला कर कहना? आज उस ने निश्चय किया कि विभोर से बात करेगी. जीवन इस तरह से तो नहीं जीया जा सकता.

‘‘विभोर आपसे एक बात कहनी है,’’ वसु

ने पूछा.

‘‘बोलो.’’

विभोर के स्वर में अनावश्यक आक्रोश था, फिर भी वसु ने अपने को सामान्य बनाते हुए कहा, ‘‘आप जैसा कहते हो मैं वैसा ही करने की कोशिश करती हूं. औफिस के जाने के पहले पूरा काम कर के जाती हूं, आ कर पूरा करती हूं, लेकिन आप की शिकायतें कम ही नही होती हैं.’’

‘‘मैं तो दुखी हो गया तुम्हारे कामों से, कोई काम ढंग से करती नहीं हो और जो ये घर के काम कर रही हो कोई एहसान नहीं है, तुम्हें ही करने हैं. सुना नहीं पूज्य नीमा बाबा कह रहे थे कि स्त्रियों का धर्म है पति की सेवा करना, घर को सुचारु रूप से चलाना यही तुम्हारे कर्तव्य हैं. परिवार में किसी को शिकायत का मौका न मिले… न ही घर से बाहर नौकरी करना.’’

‘‘और पुरुषों के लिए क्या कर्तव्य हैं? यह भी बताओ विभोर.’’

‘‘तुम तो बस हर बात में कुतर्क करती हो. जो कहता हूं वह तो मानती नहीं, फिर चाहती हो प्यार से बात करूं,’’ उपेक्षाभरे वचनों का उपदेश सा दे कर विभोर निकल गया.

वसु के आगे के शब्द उस के गले में घुट गए. कितने विश्वास से आज उस ने सम?ाने की कोशिश की थी.

वसु सोचने लगी कि क्या दुख की सिर्फ इतनी परिभाषा है कि सब्जी में नमक कम या ज्यादा हो और दुखी हो इंसान तड़प उठे. यह तो ऐसा लगता है कि दुख का उत्सव सा मना रहे हैं. बहुत अजीब व्यवहार है और ये जो प्रवचन देते रहते हैं, नित्य नए बाबा बनाम ढोंगी, कभी पंडालों में, कभी वीडियो बना जिन का सिर्फ एक ही मत है कि स्त्रियों को कैद कर दो.

एक भी सांस अपनी मरजी से न ले पाएं. क्या अन्य विषय ही खत्म हो गए हैं? बातें भी

सिर्फ स्त्री विरोधी. वैसे देवी की संज्ञा से विभूति करते नहीं थकते.

वसु का मन करता इसे काश पति को समझ पाती. हार कर वह खुद को ही समेट लेती. आखिर चुनाव भी तो उस का ही था.

पापा ने कहा था, ‘‘बेटा, देख ले विभोर के पिता नही हैं, जीवन में कठिनाइयां अधिक होंगी, उन लोगों को तेरा औफिस में काम करना पसंद नहीं, फिर भी मैं ने उन्हें मना लिया है. आगे तुझे ही संभालना है.’’

‘‘पापा मुझे पैसे की लालसा नहीं है  आप भी जानते हैं, समझदार, सुलझा जीवनसाथी हो तो जीवन खुशियों से भर हो जाता है.’’

तब आदर्श विचारों से भरी बिन देखे ही विभोर के प्रति अनुरक्त हो उठी थी और मन में सोचा था, पिता नहीं हैं तो जीवन की समझ अवश्य आ गई होगी, समझदार इंसान होगा, परेशानियां इंसान को अनुभवी जो बना देती हैं.

पापा ने एक बार फिर दोहराया था कि एक बार फिर सोच ले बेटा और भी रिश्ते हैं. लेकिन भावुक वसु ने अपना मन विभोर को सौंप दिया था और फिर दोनों की शादी हो गई. तब कहां जानती थी 21वीं सदी में भी कोई स्त्री स्वतंत्रता के इतने खिलाफ हो सकता है. सुबहशाम टीवी पर आने वाले बाबाओं को सुन मानसिक विकृति पाल सकता है, अपना समय जो व्यायाम आदि में लगाना चाहिए उसे इस तरह नष्ट कर सकता है. कोई बुजुर्ग हो तो समझ भी ले लेकिन इस तरह काम छोड़ नकारा बन अर्थरहित बातों के लिए समय नष्ट करना वसु को मूर्खता लगती.

पढ़ेलिखे विभोर का बाबाओं के प्रवचन सुनना वसु को आश्चर्यजनक भी लगता था. आज के समय में जब स्त्री के आर्थिक सहयोग के बिना घर की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाना संभव नहीं वहां ये बातें महज कुत्सित मानसिकता या पुरुष के बीमार अहम का हिस्सा भर हैं.

मम्मियां: आखिर क्या था उस बच्चे का दर्द- भाग 3

‘‘मैं ने तो सुना था कि किसी के साथ भाग…’’ वाक्य पूरा नहीं कर पाई तनूजा. ‘नहीं बहनजी, यह बात सरासर गलत है. अर्चना सीधे हमारे पास आई थी. वह ऐसी लड़की नहीं है.’’

‘‘पर आसपास के सभी लोग यही कहते हैं.’’

‘‘अर्चना पार्ट टाइम इंटीरियर डैकोरेटर का काम करती है. हर्षद चोपड़ा ने अपने नए औफिस के इंटीरियर के सिलसिले में ही उसे मिलने के लिए बुलाया था. बस वही एसएमएस देख लिया उत्तम ने, तो बिना कुछ जाने, बिना कुछ पूछे मेरी बेटी को जानवरों की तरह पीटा,’’ सुबकने लगीं अर्चना की मां.

तनूजा ने उन्हें गाड़ी में बैठा लिया. शांत होने पर वे बोलीं, ‘‘शरीर से अधिक मन घायल हो गया था अर्चना का. हमारे पास न आती तो कहां जाती? ऊपर से आसपड़ोस के लोगों ने जिस प्रकार चरित्रहनन किया है उस का, वह असहनीय बन गया है उस के लिए.’’

‘‘देखिए, मैं अर्चना की मनोदशा को सम?ा सकती हूं, किंतु वहां एक छोटा बच्चा भी है. रोज उस को उदास देखती हूं तो बहुत दुखी और असहाय महसूस करती हूं स्वयं को. दोनों पक्ष के बड़ेबुजुर्ग बातचीत कर इस को सुल?ाएं. आखिर पिता के दुर्व्यवहार का प्रतिफल एक छोटा बच्चा क्यों भुगते? वह तो निर्दोष है न,’’ कह कर तनूजा ने गाड़ी स्टार्ट की तो वे महिला गाड़ी से उतर गईं और वह चल दी.

मन ही मन लगता था कि अर्चना इस तरह का कार्य नहीं कर सकती और वह ठीक ही निकला सोच रही थी तनूजा. समाज किसी के भी चरित्र हनन में समय नहीं लगाता, इस का जीवंत उदाहरण थी अर्चना. हर व्यक्ति चटखारे लेले कर उस के विषय में बात करता.

चोपड़ा दंपती बहुत ही सभ्य, सुसंस्कृत थे. उन के बेटे हर्षद ने हाल ही में नया व्यवसाय शुरू किया था. उन के परिवार का कोई सदस्य नीचे दिखाई नहीं दे रहा था पिछले कई दिनों से. कारण अब सम?ा आया तनूजा को. दूसरी ओर अर्चना के पति उत्तम एक व्यवसायी थे. औटो पार्ट्स का पारिवारिक व्यवसाय, अपने पिता के साथ ही चलाते थे. सुशिक्षित थे या नहीं पर अपने गुस्सैल स्वभाव के चलते आएदिन उन की
ऊंची आवाज सुनाई दे जाती.

गरमी की छुट्टियां खत्म हो चली थीं. गले के संक्रमण से तनूजा अस्वस्थ थी, इसलिए कुछ दिन बच्चों के साथ नीचे नहीं जा पाई. ‘‘तन्मयी, मैं बालकनी में बैठी हूं. आज कुछ ठीक महसूस कर रही हूं,’’ चाय का कप
थामे तन्मयी से कहा तनूजा ने.

‘‘हां मम्मी, बहुत दिनों से आप ने बच्चों के खेल भी नहीं देखे. मिस कर रही होंगी न आप,’’ हंसतेहंसते तन्मयी बोली.

‘‘हां भई हां.’’

सभी बच्चे नीचे खेल रहे थे. कई दिनों बाद उन्हें देख कर अच्छा लगा. जरा गौर से देखा तो अक्षय को अपने मित्र चिरायु, नंदीश और वेनू के साथ मिट्टी का घर बनाते पाया. चिरायु को जाने क्या सू?ा उस ने ठोकर मार कर अक्षय का घर तोड़ दिया. फिर वह हुआ जो एक लंबे समय से नहीं हो रहा था. अक्षय ने दोनों मुट्ठियों में रेत भर चिरायु पर फेंक दी और उस के मिट्टी के घर को ठोकर लगा दी.

‘‘अरे वाह. वैरीगुड, वैरीगुड,’’ तनूजा खुशी से ताली बजा रही थी.

‘‘क्या हुआ मम्मी? किस बात पर क्लैप कर रही हो?’’ तन्मयी बालकनी में आ गई.
‘‘अरे कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही बच्चों का खेल…’’

‘‘क्या मम्मी आप भी…’’ आश्चर्यमिश्रित हंसी के साथ बोली वह.

सब कुछ हलकाहलका लग रहा था तनूजा को. सिरदर्द, गलादर्द जैसे छूमंतर हो गया था. बुखार मानो हुआ ही नहीं था. अगली सुबह सब के मना करने पर भी तनूजा बच्चों के साथ नीचे आ गई. फिर वही चिरपरिचित चेहरे क्रमानुसार दिखने लगे. कुछ परिवर्तन भी हुए थे. बिल्लू अपना बैग स्वयं ला रहा था, तो भांतिभांति के धब्बों से सजे अपने गाउन को शायद हेमा ने तिलांजलि दे दी थी. नया लाल गाउन पहने थी जो साइड से कटा नहीं था और अभी तक किसी भी प्रकार के धब्बों से वंचित था.

डिवाइन बड्स की बस खड़ी थी. अरे यह क्या? सामने से चमकतादमकता और फुदकता अक्षय अर्चना की उंगली थामे चला आ रहा था.

हर्षातिरेक में एक ही स्थान पर खड़ी रह गई तनूजा. अक्षय के पास आने पर उस की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘मम्मी आ गईं. अब तो खुश है न?’’ तो पहले की तरह शरमा गया वह.

मांबेटे को साथ देख तनूजा को जो सुखद अनुभूति हुई वह शब्दों में बयां नहीं की जा सकती. उसे लग रहा था जैसे वही लौटी थी किसी वनवास से. आज दोगुने उत्साह से वाक कर रही थी, तभी देखा अर्चना अपनी संयत चाल से उसी की ओर आ रही थी. अपनी गति कुछ कम कर दी तनूजा ने. पास आ कर कुछ क्षण सिर ?ाकाए खड़ी रही फिर प्रयास सा करते हुए बोली, ‘‘सौरी मैं ने…’’

बीच में ही उस की हथेली अपने हाथों में थाम बोली तनूजा, ‘‘ऐसा कुछ न कहो. आज मैं जितनी खुश हूं उतनी शायद पहले कभी नहीं थी.’’

तनूजा की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी, इसलिए वह जैसे ही घर पहुंची सलिल ने सीधे ही पूछ लिया, ‘‘क्या बात है, कल से बहुत चहक रही हो… हमें भी तो बताओ.’’
‘‘वह अक्षय की मम्मी हैं न, वापस आ गई हैं.’’

‘‘कौन अक्षय? कहां गई थीं उस की मम्मी? और उन के वापस आने से तुम्हारे इतना खुश होने से क्या लेनादेना?’’

‘‘छोड़ो, तुम नहीं सम?ोगे.’’

‘‘क्यों भाई, क्यों नहीं सम?ांगा?’’

‘‘तुम मम्मी नहीं हो न,’’ कह कर मुसकरा दी तनूजा.  जिस नन्हे बच्चे अक्षय की बालमन की शैतानियों को देख कर तनूजा खुश होती थी, उसे गुमसुम, उदास देख कर परेशान हो उठी थी वह.

आखिर क्या था उस बच्चे का दर्द? क्या तनूजा इस राज को समझ पाई…

अनुत्तरित प्रश्न: भाग 3- ज्योति कौन-सा अपमान न भूल सकी

क्या तुम मेरी दोस्ती का इतना भी मान नहीं रखोगी? मेरे इतने अनुनयविनय पर उस ने कहा कि वह सोच कर जवाब देगी. ये पत्र लौटाना शायद यही इंगित करता है कि वह अतीत भुला कर एक नई जिंदगी शुरू करने के लिए अपनेआप को तैयार कर रही है. पर उस ने ये पत्र आप को क्यों लौटाए, ये मेरी समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘अब छोड़ो न,’’ मैं ने पत्र समेटते हुए बात समाप्त करनी चाही. मैं नहीं चाहती थी

कि गड़े मुरदे उखड़ें और मेरा वह कठोर एकतरफा रूप जतिन के सामने आए, ‘‘मैं ये खत जला दूंगी. ज्योति का अतीत यहीं खत्म. अब वह आराम से एक नई जिंदगी की शुरुआत करेगी.’’

‘‘हां मां, काश ऐसा ही हो,’’ जतिन के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखा खिंच गई. उस ने सामने रखे खतों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. मैं समझ गई कि ज्योति का अध्याय इस की जिंदगी की किताब से निकल चुका है. संजना लौट आई थी.

जतिन और संजना लौट गए. मैं ज्योति के खत अलमारी से जलाने के लिए निकाल लाई. मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं ये खत वह मुझे क्यों दे गई है. मैं ने उस के चरित्र पर आक्षेप लगाते हुए उसे कालेज से निकालने की जो धमकी दी थी, उस से वह उस समय भले ही डर गई हो पर वह अपमान उसे हमेशा कचोटता रहा होगा. शायद अपनी बेगुनाही का सुबूत देने ही वह यहां आई थी. मुझे अपने सभी अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब मिल गया था, इसलिए इन पत्रों को जला देना ही उचित था.

मोमबत्ती की लौ में एक के बाद एक पत्र की होली जल रही थी. मेरे मस्तिष्क में विचारों का अंधड़ चल रहा था. मुझे शर्मिंदा करने आई थी यह लड़की. पर गुनहगार तो तुम हो ज्योति वर्मा. अपूर्ण होते हुए भी तुम ने प्यार करने का साहस कैसे किया और वह भी मेरे बेटे से? इन पत्रों को तुम ने अब तक संभाल कर रखा था, इसलिए न कि तुम जतिन से प्यार करती थीं.

अंतिम पत्र हाथ में लेते वक्त मुझे कुछ अजीब सा लगा. यह अन्य पत्रों के लिफाफों से अलग किस्म का लिफाफा था. मैं ने उसे मोमबत्ती की लौ से छुआ तो दिया, लेकिन पते पर नाम पढ़ते ही मुझे करंट सा लगा. यह तो मेरे नाम था. तुरंत मैं ने आग बुझाई. शुक्र है, लिफाफा ही जला था. कांपते हाथों से मैं ने अंदर से खत निकाला. पत्र मुझे संबोधित था:

डियर मैडम, सुना था वक्त के साथ इंसान के जख्म भर जाते हैं, किंतु यदि ये जख्म कटु वचनों ने दिए हैं तो युगों का अंतराल भी इन जख्मों को नहीं भर पाता. आप द्वारा दिए जख्म मेरे सीने

में अब तक हरे हैं. मैं अपनी गलती मानती हूं कि मुझे पढ़ाई पर ही ध्यान देना चाहिए था, लेकिन मुझ पर आरोप लगा कर और अपने

बेटे से एक बार भी पूछताछ किए बिना आप ने जो एकतरफा निर्णय सुना दिया, उस से मेरे दिल में बसी आप की सम्मानित छवि तारतार हो गई.

प्रिंसिपल की कुरसी पर एक पूर्वाग्रहग्रसित मां को बोलते देख मैं अवाक रह गई थी. चाहती तो ये पत्र मैं आप को अगले दिन ही ला कर दिखा सकती थी, लेकिन क्या फायदा? आप को मुझ पर विश्वास ही कहां था? आप ने मुझे अपनी सफाई पेश करने का एक मौका भी नहीं दिया. सीधा मुझे चरित्रहीन ठहराते हुए कालेज से निकालने की धमकी दे डाली. मामामामी के पास पल रही मुझ अनाथ के लिए अपमान का घूंट पी जाने के अलावा अन्य कोई चारा न था. जतिन को कहती, तो वह आप के खिलाफ विद्रोह पर उतर आता. मांबाप के प्यार को तरसती यह अनाथ मांबेटे के बीच दीवार नहीं बनना चाहती थी. प्यार तो और भी मिल सकता है, मां नहीं. इसलिए मैं ने एक मनगढ़ंत झूठ बोल कर जतिन से किनारा कर लिया…

पत्र थामे मेरे हाथ कांपने लगे थे पर नजरें उसी पर टिकी रहीं…

और देखिए संजना के रूप में जतिन को दूसरा प्यार भी मिल गया और मां भी साथ है. मेरा क्या, जिस के खाते में कोई प्यार नहीं लिखा, उसे कैसे मिल सकता है? मैं विदेश चली गई. नाम, दौलत सब कमा लेने के बावजूद जीवन में एक खालीपन सा महसूस होता रहा. शायद उसे ही भरने इंडिया लौट आई. दोस्त के रूप में जतिन से मिल कर अच्छा लगा, लेकिन दोस्त के रूप में उस की मुझ से जो अपेक्षाएं हैं वे शायद मैं पूरी नहीं कर पाऊंगी. मैं न तो उसे सच बता सकती हूं, न उस का प्रस्ताव मान सकती हूं. शायद मेरा इंडिया लौटने का निर्णय ही गलत था. मैं किसी को खुशी नहीं दे सकती, इसलिए मैं हमेशाहमेशा के लिए विदेश लौट रही हूं. जानेअनजाने आप लोगों की जिंदगी में आने और आप लोगों को दुख पहुंचाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं.

ज्योति पत्र समाप्त कर मैं देर तक शून्य में आंखें गड़ाए बैठी रही. अहंकार का किला लड़खड़ा कर धराशायी हो चुका था. मैं जतिन और ज्योति के सच्चे प्यार को नहीं पहचान पाई. बेटे को उस के प्यार से दूर कर दिया. न तो मैं एक अच्छी मां बन पाई और न एक अच्छी प्रिंसिपल. अंधी ममता के वशीभूत एक छात्रा का जीवन बरबाद करने पर उतर आई और एक तरह से कर ही डाला. कुछ प्रश्न दिमाग में फिर से उभरने लगे थे. ज्योति इंडिया क्यों आई थी? क्या इस उम्मीद में कि शायद जतिन अब भी उस का इंतजार कर रहा हो? मेरे बेटे का घर तो बस गया, लेकिन क्या ज्योति बेगुनाह होते हुए भी जिंदगी में कभी किसी का हाथ थाम पाएगी? अनुत्तरित प्रश्नों की बौछार ने मुझे निरुत्तर कर दिया.

अनुत्तरित प्रश्न: भाग 2- ज्योति कौन-सा अपमान न भूल सकी

इस कल्पना से कि उस ने मेरे खिलाफ सब उगल दिया होगा, मेरा सर्वांग कांप उठा. ‘‘जल्दी कर, संजना आती होगी,’’ मैं ने अपनी बेकाबू धड़कनों को संभालने का प्रयास किया.

‘‘संजना जानती है ज्योति के बारे में. मैं ने उसे सब बता दिया है… सिवा इन पत्रों के,’’ जतिन नजरें झुकाए धीरे से बोला.

‘‘क्या? उसे यह सब बताने की क्या जरूरत थी, वह भी ऐसी अवस्था में?’’ मुझे जतिन पर गुस्सा आने लगा था. यह एक के बाद एक नादानियां किए जा रहा था. इसे क्या व्यावहारिकता की जरा भी समझ नहीं?

‘‘जरूरत थी मां और वह बहुत खुश है ज्योति के बारे में जान कर.’’

मुझे लगा, इस लड़के का दिमाग घूम गया है.

‘‘आप पहले पूरी बात सुन लीजिए, फिर सब समझ आ जाएगा. ज्योति ने बताया कि वह मुझ से शादी नहीं कर सकती, क्योंकि वह अपूर्ण है. एक दुर्घटना में वह अपने मातापिता के साथ अपनी प्रजनन क्षमता खो चुकी है, इसलिए वह किसी से विवाह नहीं कर सकती. आप की तरह मैं भी उस वक्त यह सुन कर जड़ रह गया था. इतनी बड़ी बात और ज्योति मुझे अब बता रही थी? अंदर से दूसरी आवाज आई, शुक्र है बता दिया. शादी के बाद पता चलता तो? तभी तीसरी आवाज आई, कहीं यह मुझे परख तो नहीं रही? मुझे असमंजस में खड़ा देख ज्योति आगे बोली कि इस स्थिति में तुम क्या, कोई भी लड़का मुझ से विवाह नहीं करेगा. मुझे तुम्हें पहले बता देना चाहिए था. पता नहीं अब तक किस गफलत में डूबी रही. खैर… अब हमारे रास्ते अलग हैं. वह जाने लगी तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं ने आगे बढ़ कर उस का हाथ थाम लिया. नहीं ज्योति, मुझे छोड़ कर मत जाओ. मैं नहीं रह पाऊंगा. हम बच्चा गोद ले लेंगे.’’

मैं ने तमक कर जतिन को देखा, लेकिन इस वक्त उस पर मेरा रोब, खौफ, प्यार सब बेअसर था. वह ज्योति के खयालों में ही खोया हुआ था.

‘‘इस पर ज्योति का कहना था कि भावुकता में बह कर मैं न तुम्हारा जीवन बरबाद करना चाहती हूं, न अपना. आज भले ही तुम भावुकता में मेरा हाथ थाम लो, लेकिन कल लोगों के ताने, मां का विलाप तुम्हें यथार्थ के धरातल पर ला खड़ा करेगा. तब तुम्हें अपने निर्णय पर पछतावा होगा. फिर या तो तुम मेरी अवहेलना करोगे या सहानुभूति दर्शाओगे और मुझे दोनों ही मंजूर नहीं. मैं कालेज से निकल कर आगे और पढ़ना चाहती हूं. कुछ बन कर दिखाना चाहती हूं. अपनी अपूर्णता को अपनी प्रतिभा से मैं पूर्णता में बदल दूंगी. मैं ने उस से कहा था कि वह सब तुम मेरे साथ रह कर भी कर सकती हो ज्योति. लेकिन उस का कहना था कि नहीं जतिन, मुझे बैसाखियों पर चलने का शौक नहीं है.

‘‘उस समय जरूर मुझे ऐसा लगा था मां कि अति आत्मविश्वास ने इसे अंधा बना दिया है. यह अपना भलाबुरा नहीं सोच पा रही है. मैं स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा

था. लेकिन आज सोचता हूं तो लगता है उस ने जो भी किया, एकदम सही किया था. प्यार विशुद्ध प्यार होता है. जहां उस में दया, सहानुभूति, सहारे या विवशता का भाव आ जाता है, वहां प्यार खत्म हो जाता है. हम ने अपने प्यार को वहीं लगाम दी, तो कम से कम हमारा दोस्ताना तो जीवित रहा. कालेज खत्म कर के मैं नौकरी करने लगा और वह अपने सपने पूरे करने के लिए विदेश चली गई. व्यस्तता के कारण हमारा संपर्क घटतेघटते एकदम समाप्त हो गया.

‘‘कुछ महीने पहले मेरी उस से अचानक मुलाकात हो गई. पुणे की एक कंपनी में वह मैनेजर बन कर आई है. मैं तो अकसर पुणे जाता रहता हूं. एक व्यावसायिक मीटिंग में उसे देखा तो हैरान रह गया. मीटिंग के बाद हम मिले. दोस्तों की तरह साथ में डिनर भी किया. बहुत अच्छा लगा. पता चला, उस ने अभी तक शादी नहीं की है. बस मेरे दिमाग

में संजना के विधुर भैया का खयाल आ गया. आप तो जानती ही हैं मां, कितने संपन्न और अच्छे युवक हैं राजीव भैया. 2 साल होने को आए हैं सुरेखा भाभी के देहांत को. रिश्ते बहुत आ रहे हैं उन के लिए पर नन्ही सी नैना के मोह ने उन्हें जकड़ रखा है.

‘‘कहते हैं कि विवाह कर आने वाली लड़की खुद भी तो मां बनना चाहेगी और अपना बच्चा होते ही वह नैना की अवहेलना करने लग जाएगी. मां, यदि ज्योति की शादी उन से हो जाए तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी, क्योंकि ज्योति तो मां बन ही नहीं सकती. दोनों एकदूसरे के लिए उपयुक्त पात्र हैं. मैं ने संजना को ज्योति के बारे में बताया तो वह भी बहुत खुश हुई. मां, ज्योति की कमी उस की गृहस्थी बसाने में उस की खूबी बन जाएगी,’’ जतिन बेहद उत्साहित हो चला था.

‘‘तुम ने ज्योति से बात की?’’ मैं अब भी सशंकित थी.

‘‘हां मां. उस ने इतनी अच्छी दोस्ती निभाई तो अब उस का घर बसाना मेरा फर्ज बनता है. मैं ज्योति से मिला और उस के सामने सारी बात स्पष्ट खोल कर रख दी.’’

‘‘वह मान गई?’’ मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘नहीं मां, ज्योति इतनी आसानी से मानने वालों में नहीं है मैं जानता था. वह नाराज हो गई थी कि मैं क्यों उसे अपनी जिंदगी जीने नहीं देता? लेकिन मैं ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैं ने उसे अपनी दोस्ती का वास्ता दिया. जिंदगी की व्यावहारिकता समझाई कि इतनी पहाड़ सी जिंदगी बिना किसी सहारे के नहीं बिताई जा सकती. विशेषकर जीवन के संध्याकाल में जीवनसाथी की कमी तुम्हें अवश्य खलेगी. तुम आर्थिक रूप से सक्षम हो, अपने पैरों पर खड़ी हो, जब चाहो उचित न लगने पर संबंध तोड़ सकती हो. इस रिश्ते में तो कोई दया, सहानुभूति वाली बात भी नहीं है. राजीव भैया तुम्हारा सहारा बनेंगे तो तुम उन का सहारा बनोगी. 2 अपूर्ण मिल कर पूर्ण हो जाएंगे.

‘‘तुम ने मुझे यथार्थ के धरातल पर खड़ा कर के सोचने के लिए मजबूर किया था, आज मैं तुम से उसी यथार्थ के धरातल पर खड़ा हो कर सोचने की प्रार्थना कर रहा हूं.

अनुत्तरित प्रश्न: भाग 1- ज्योति कौन-सा अपमान न भूल सकी

ज्योति को इतने बरसों बाद एकाएक सामने देख कर मैं हैरान हो उठी. उस ने मुझे जतिन की शादी की बधाई दी.

‘‘मैं काफी समय से विदेश में थी. अभी कुछ समय पूर्व ही इंडिया लौटी हूं. जतिन की शादी की बात सुनी तो बेहद खुशी हुई. आप को बधाई देने के लिए मैं खुद को न रोक सकी, इसीलिए आप के पास चली आई. ये कुछ खत हैं, अब ये आप की अमानत हैं. आप इन का जो करना चाहें करें, मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे, कुछ देर तो बैठो… चाय वगैरह…’’ मैं कहती ही रह गई पर वह उठ कर खड़ी हो गई.

‘‘बस, आप को भी तो कालेज जाना होगा,’’ कह कर तेज कदमों से चल दी.

उस के जाने के बाद मैं ने खतों पर सरसरी निगाह डाली तो चौंक उठी. वे जतिन द्वारा ज्योति के नाम लिखे प्रेमपत्र थे. शुरू के 1-2 पत्र पढ़ कर मैं ने सब उठा कर रख दिए. कालेज में आएदिन ऐसे प्रेमपत्र पकड़े जाते थे, इसीलिए ऐसे पत्रों में मेरी कोई रुचि नहीं रह गई थी. पर चूंकि जतिन की लिखावट थी, इसलिए मैं ने 1-2 पत्र पढ़ लिए थे. उन से

ही मुझे प्रेम की गहराई का काफी कुछ अनुमान हो गया था. आश्चर्य था तो इस बात पर कि जतिन ने कभी मुझ से इस बारे में कुछ कहा क्यों नहीं?

कालेज में भी मेरा मन नहीं लगा. बारबार ज्योति का चेहरा आंखों के आगे घूमने लगा. वह पहले से भी ज्यादा आकर्षक लगी थी. सुंदरता में आत्मविश्वास के पुट ने उस के व्यक्तित्व को एक ओज और गरिमा प्रदान कर दी थी. यह मेधावी छात्रा कभी मेरी प्रिय छात्राओं में से एक थी, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मैं इसे नापसंद करने लगी. इसी कालेज में पढ़ने वाले अपने बेटे के संग मैं ने इसे 2-3 बार देख लिया था.

जतिन, मेरा बेटा हमेशा मेरी कमजोरी रहा है. सुधीर के निधन के बाद से तो मैं उसी के लिए जी रही हूं. अपनी प्रिय वस्तु के छिन जाने का भय मुझ पर हावी होने लगा. अपने चैंबर में ज्योति को बुला कर अकेले में मैं ने उसे डांट दिया था.

‘‘तुम कालेज में पढ़ने आती हो या अपनी खूबसूरती और प्रतिभा का प्रदर्शन कर उसे भुनाने? अपनी पढ़ाई से मतलब रखो, वरना कालेज से निकाल दी जाओगी. मैं तुम्हारा बैकग्राउंड अच्छी तरह जानती हूं. एक बार शिकायत घर चली गई तो कहीं की नहीं रहोगी. नाऊ गेट लौस्ट,’’ उस समय प्रिंसिपल के कड़क मुखौटे के पीछे मैं एक आशंकित मां का चेहरा छिपाने में सफल हो गई थी.

ज्योति ने फिर कभी मुझे शिकायत का मौका नहीं दिया. मैं आश्वस्त हो गई थी. जतिन को अवश्य मैं ने कुछ दिनों परेशान देखा था पर फिर परीक्षाएं नजदीक देख कर वह भी पढ़ाई में रम गया था. मैं ने राहत की सांस ली थी. डिग्री मिलते ही अपने रसूखों से मैं ने उस की नौकरी लगवा दी. फिर संजना जैसी सुंदर और सुशील कन्या से उस का विवाह भी करा दिया.

फिर भी जतिन ने एक बार भी ज्योति का जिक्र नहीं किया. जतिन और संजना का वैवाहिक जीवन हंसीखुशी चल रहा था. उन के विवाह को 2 वर्ष होने वाले थे. पिछली बार जतिन ने जब मुझे मेरे दादी बनने की खबर सुनाई थी तो मैं खुशी से उछल पड़ी थी. संजना पर आशीर्वाद और हिदायतों की झड़ी लगा दी थी मैं ने.

वे दोनों मेरे पास आने वाले थे. सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था और यह बीच में ज्योति जाने कहां से टपक पड़ी. वह भी जतिन के लिखे प्रेमपत्र ले कर. क्या चाहती है यह लड़की? ब्लैकमेल करना? तो फिर पत्र मुझे क्यों दिए? हो सकता है जेरौक्स कौपी हो उस के पास. यह भी हो सकता है कि जतिन की शादी का पता चला हो तब यह किस्सा ही खत्म कर देना चाहती हो. अगर ऐसा होता तो फिर खुद ही जला देती. जतिन को भी लौटा सकती थी. नहींनहीं, वहां तो संजना है.

आखिर, उस का क्या मंतव्य हो सकता है? शायद मेरी निगाहों में खुद को बेकुसूर साबित करना चाहती हो कि आप का बेटा मुझे प्यार करता था और खत लिखता था, मेरा कोई कुसूर नहीं था.

अनुत्तरित प्रश्नों की गूंज ने मुझे बेचैन कर दिया था. कभी मन करता खतों को जला डालूं. कभी मन करता इन्हें जतिन को दिखा कर पूछूं कि इन में कितनी सचाई थी? यदि उस का प्यार सच्चा था तो उस ने उस का इस तरह गला क्यों घोंटा? मेरे सभी प्रश्नों का जवाब जतिन ही दे सकता था. फोन पर पूछना संभव नहीं था. मैं उस के आने की राह देखने लगी.

जतिन आया मगर मुझे उसे खत दिखाने और बात करने का मौका नहीं मिल रहा था, जबकि उन के लौटने के दिन नजदीक आते जा रहे थे. मुझे बहू के लिए साड़ी और कुछ सामान खरीदने थे. जतिन से कहा तो उस ने हाथ खींच लिए.

‘‘मां, यह काम मेरे बस का नहीं है. आप दोनों हो आइए. मैं तब तक अपना कुछ काम कर लेता हूं.’’

मुझे उस की बात ठीक लगी. लौटते वक्त मैं ने अचानक गाड़ी रुकवाई, ‘‘संजना बेटी, मुझे यहीं उतार दो. मैं रिकशा कर के घर चली जाती हूं और खाने वगैरह की तैयारी कर लेती हूं. तुम तब तक नत्थू की दुकान से अपनी पसंद की मिठाई, नमकीन बंधवा लाओ और हां, थोड़े फल भी ले आना.’’

संजना ने मुझे उतार कर गाड़ी घुमा ली. मैं घर पहुंची तो जतिन चौंक पड़ा, ‘‘क्या हुआ मां, तुम अकेली कैसे आईं? तबीयत तो ठीक है न? संजना कहां है?’’

‘‘आ रही है नुक्कड़ से मिठाई ले कर. मुझे तुम से अकेले में कुछ जरूरी बात करनी थी,’’ कह कर मैं जल्दीजल्दी जा कर अपनी अलमारी से कपड़ों की तरह के नीचे दबे खत ले आई और जतिन के सामने रख दिए. पत्र देख कर वह सकपका गया.

‘‘ये आप के पास कैसे आए?’’ उस ने साहस कर के पूछा.

‘‘जाहिर सी बात है, ज्योति दे कर गई है. बहुत प्यार करते थे न तुम उस से? प्रेमपत्र लिखने का साहस था, शादी करने का नहीं? मुझ से कहने का भी नहीं?’’

‘‘ऐसी बात नहीं थी मां. मैं तो उसी से शादी करना चाहता था…’’

‘‘फिर?’’ पूछते हुए मैं मन ही मन कांप उठी. कहीं ज्योति ने डांट और धमकी की बात जतिन को तो नहीं बता दी थी? उस वक्त मुझे कहां पता था कि मेरा अपना ही सिक्का खोटा है.

‘‘वैसे मां ज्योेति कैसी लगती है तुम्हें?’’ जतिन अब तक सामान्य हो चला था पर अब चौंकने की बारी मेरी थी.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? कैसी ऊलजलूल बातें कर रहे हो तुम?’’ मैं गुस्से से बोली.

‘‘ओह मां, आप गलत समझ रही हैं. खैर, आप का भी दोष नहीं है. मैं आप को शुरू से सारी बातें बताता हूं. मैं कालेज के दिनों से ही ज्योति को पसंद करने लगा था. लेकिन वह मेरे बारे में क्या सोचती है, यह नहीं जान पाया.

मैं ने उसे खत लिखे पर उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मुझे उस की आंखों में अपने लिए प्यार नजर आता था, लेकिन न जाने क्यों वह मुझ से कतराती थी. फिर मुझे समझ आया वह आप से यानी अपनी प्रिंसिपल से खौफ खाती थी, इसलिए उन के बेटे से प्यार करने की जुर्रत नहीं कर पा रही थी. मैं अकेले में उस से मिला. समझाया कि मां से डरने की जरूरत नहीं है. हम वक्त आने पर अपने प्यार का इजहार करेंगे और वे शादी के लिए मान जाएंगी. वह कुछ आश्वस्त हुई थी, पर फिर न जाने क्या हुआ, उस ने अचानक मुझ से मिलना बंद कर दिया. सामने भी पड़ जाती तो कतरा कर निकल जाती. मैं परेशान हो उठा. आखिर एक दिन मैं ने उसे पकड़ लिया…’’

प्यार की धूपछांव: भाग 3- जब मंदा पर दौलत का खुमार चढ़ गया

मुंबई से निकलते वक्त उस ने मंदा के लिए एक खत लिख कर छोड़ दिया था कि घर जा रही हूं किसी जरूरी काम से… सारी बातें लौट कर बताती हूं.

क्लास से लौटने पर मंदा ने जब पूर्वी का लिखा खत देखा तो पहले तो वह सोच में पड़ गई कि ऐसा कौन सा काम अचानक आ गया जो पूर्वी इस तरह अचानक चली गई. फिर अगले ही पल उस के खुरापाती दिमाग में विचार आया कि यही सही मौका है, उस के फ्रैंड सलिल को अपने प्यार के झूठे जाल में फंसा कर अपना बनाने का.

बस फिर उस का माइंड बड़ी तेजी से सलिल को अपना बनाने के लिए षड्यंत्र रचने लगा. उस ने मन ही मन सोचा यदि सलिल उस का न हुआ तो पूर्वी का भी नहीं होने देगी.

इधर पूर्वी बरेली पहुंच कर मां की देखभाल में इस तरह व्यस्त हो गई कि उसे किसी बात का होश ही नहीं रहा. वह तो हरदम मां के जल्दी से जल्दी ठीक होने के लिए प्रार्थना करने लगी और अपना फोन भी साइलैंट मोड पर कर दिया.

इस बीच सलिल ने पूर्वी को कई बार फोन करने की कोशिश की, लेकिन उस का फोन हमेशा स्विच्ड औफ ही मिला. सलिल को पूर्बी के लिए चिंता होने लगी. फिर एक दिन सलिल ने मंदा को फोन मिला कर पूर्बी के बारे में जानने की कोशिश की तो मंदा के मन की तो कली खिल गई.

ऊपर से तो मंदा ने पूर्वी के बारे में चिंता जाहिर की फिर बोली, ‘‘देखो

तो मुझे भी कुछ बता कर नहीं गई,’’ और फिर पूर्वी के द्वारा लिखी चिट सलिल को दिखाई.

फिर तुरंत कहने लगी, ‘‘मुझे तो लगता है कि उस के मां, बाबूजी ने उसे शादी करने के लिए ही बुलाया होगा. मुझ से तो कम से कम कुछ बताती.’’

पूर्वी की शादी की बात सुन कर सलिल के चेहरे का रंग उड़ने लगा तो तुरंत मंदा कहने लगी, ‘‘अरे, इतना उदास क्यों होते हो ये छोटे शहर की लड़कियां होती ही ऐसी हैं. प्यार का नाटक किसी से व शादी किसी से. चिल करो यार, इस दुनिया में एक पूर्वी ही तो नहीं है, हम भी तो प्यार करते हैं तुम से, कभी मौका तो दो मुझे अपना प्यार साबित करने का.

‘‘मेरी आज कोई क्लास नहीं है. कहीं घूमने चलते हैं, तुम्हारा मूड भी ठीक हो जाएगा या ऐसा करते हैं आज होस्टल की वार्डन छुट्टी पर हैं. तुम कुछ ड्रिंक ले कर अपना मूड ठीक कर लेना, बाद में जैसा तुम चाहोगे वैसा ही करेंगे.

सलिल ने कहा, ‘‘नहीं, फिर कभी आता हूं,’’ पूर्वी की कोई खबर न मिलने पर सलिल का मन बहुत घबरा रहा था.

तभी मंदा ने उसे अपने बैड की तरफ खींच कर बैठाया और ?ाटपट ड्रिंक बना कर ले आई जिस में उस ने कुछ नशीली चीज मिला दी थी. जब सलिल ने ड्रिंक लेने से मना किया तो बोली, ‘‘अरे, इतना क्यों सोच रहे हो, कम से कम अपनी माशूका की खुशी के लिए ही पी लो. पूर्वी जहां भी होगी खुश होगी मेरा मन कहता है.’’

ड्रिंक पीते ही कुछ देर में सलिल अपने होश खोने लगा, तो मंदा ने उसे बैड पर लिटाया फिर अपने कपड़ों को फाड़ कर रूम से बाहर निकल कर शोर मचा कर लोगों को जमा कर लिया, ‘ख्देखो इस लड़के ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है. इस की गलत हरकत के लिए इसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, मैं तो कहती हूं इसे जेल होनी चाहिए.

आननफानन में पुलिस आई और सलिल को पकड़ कर ले गई और जेल में डाल दिया.

दूसरे दिन न्यूजपेपर में बडेबड़े अक्षरों में यह खबर छपी कि लखनऊ के रिटायर्ड डीएसपी के बेटे को किसी लड़की के साथ जबरदस्ती करने  के जुर्म में जेल में डाला.

पूर्वी की मां अब अस्पताल से घर आ चुकी थी. उन की तबीयत में काफी सुधार था. पूर्वी आज काफी हलका महसूस कर रही थी. अत: पेपर ले कर पढ़ने लगी, जैसे ही उस की नजर सलिल के जेल में होने पर पड़ी वह एकदम घबरा गई, उस ने तुरंत अपना फोन चैक किया, सलिल की ढेरों मिस्ड कौल्स थीं.

‘‘पूर्वी का मन कतई यह मानने को तैयार नहीं था कि उस का सलिल ऐसी गलत हरकत कर सकता है. इतने दिनों की मेलमुलाकात के दौरान सलिल ने कभी मर्यादा का उलंघन नहीं किया था उसे टच तक नहीं किया था.

पूर्वी ने तुरंत वापस जाने का मन बनाया. उधर सलिल के पापा भी इस खबर को पढ़ कर बहुत परेशान थे. वे भी तुरंत मुंबई पहुंचे और अपने बेटे से मिल कर सारी स्थित की जानकारी ली.

इधर पूर्वी ने भी सलिल के पापा को सारी बातें स्पष्ट रूप से बता दीं. मंदा को थाने में बुलाया गया, कुछ देर में ही उसने अपना जुर्म कुबूल कर लिया कि पूर्वी से जलन होने के कारण ही उस ने ऐसी गलत हरकत की. असली सजा की हकदार तो वह है, सलिल नहीं. सलिल को पुलिस ने बाइज्जत वरी कर दिया. सलिल के पापा सलिल व पूर्वी को लखनऊ ले गए. पूर्वी के मांबाबूजी को भी बहां बुला लिया और दोनों की शादी करवा दी. दोनों ही परिवार बहुत खुश थे. सलिल पूर्वी को कुछेक परेशानी का सामना करने के बाद सही मंजिल मिल गई. शायद इसी को जिंदगी कहते हैं कभी धूप तो कभी प्यार की ठंडीठंडी छांव.

प्यार की धूपछांव: भाग 2- जब मंदा पर दौलत का खुमार चढ़ गया

बतियाते हुए वे दोनों होस्टल के गलियारे तक पहुंच चुके थे, पूर्वी भी अब तक सलिल से काफी फ्रैंडली हो गई थी. इतना ही नहीं मन ही मन उसे चाहने भी लगी थी. रूम नंबर 4 आते ही पूर्वी ने रूम की घंटी बजाई, दरबाजा एक लड़की ने खोला. यह पूर्वी की रूममेट मंदाकिनी थी.

‘‘हाय मैं मंदाकिनी.’’

‘‘और मैं पूर्वी.’’

‘‘तुम मुझे मंदा कह सकती हो,’’ कह मंदा ने भेदती नजरों से सलिल की तरफ देखा जो पूर्वी का बैग अपने कंधे पर टांगे खड़ा था.

सलिल ने पूर्वी को उस का बैग थमाया और उसे बाय कहा, ‘‘सी यू टेक केयर,’’ और चला गया.

सलिल के जाते ही मंदा ने पूर्वी को घूरते हुए पूछा, ‘‘क्या यह तेरा बौयफ्रैंड था?’’

‘‘नहीं,’’ पूर्वी ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर तेरा भाई होगा जो तेरी फिक्र कर रहा था.’’

‘‘नहीं.’’

इस बार भी पूर्वी के मुंह से नहीं शब्द सुन कर मंदा बुरी तरह ?ाल्ला गई. कहने लगी, ‘‘भाई भी नहीं है, बौयफ्रैंड भी नहीं है तो यह लड़का आखिर है कौन, जो तेरा इतना खयाल रख रहा था कि तेरा बैग लटका कर तुझे यहां तक छोड़ने आया?’’

‘‘बस फ्रैंड है मेरा?’’

‘‘सिर्फ फ्रैंड या उस से कुछ अधिक?’’

पूर्वी ने कहा, ‘‘कहा न बस फ्रैंड है मेरा,’’ मंदाकिनी के बारे में अधिक कुछ जाने बिना पूर्वी का मन उसे अधिक कुछ बताने से डर रहा था पर मंदा से अनबन भी नहीं कर सकती, रूममेट जो है उस की.

‘‘अच्छा, चल तू फ्रैश हो ले, मैं तुझे अच्छी सी चाय पिलाती हूं. मगर हां मैं तुझे रोज चाय बना कर पिलाने वाली नहीं. वो क्या है कि तू आज नईनई आई है तो तेरा वैलकम तो बनता ही है.’’

यह सुन कर पूर्वी ने कुछ राहत की सांस ली. तभी मंदा चाय बना कर ले आई. साथ ही बिस्कुट भी थे. चाय पीतेपीते दोनों ने अपनेअपने घरपरिवार के बारे में ढेर सारी बातें कीं, साथ ही पूर्वी को होस्टल के रूल्स के बारे में भी जानकारी दी. शनिवार व इतवार के अलावा होस्टल से बाहर जाना मना था या फिर कोई छुट्टी होने पर होस्टल से बाहर जा सकते. हां, होस्टल के अंदर किसी लड़के के आने की तो सख्त मनाही है, सिवा लोकल गार्जियन के.

यह सुन कर पूर्वी एकदम चौंक गई, मन ही मन सोचने लगी हाय, अब वह अपने सलिल से न जाने कब व कैसे मिल पाएगी. उस की नशीली मुसकराहट उस का दिल जो चुरा कर ले गई थी.

तभी मंदा ने चुटकी बजाते हुए उसे टोका, ‘‘कहां खो गई? ये रूल्स सुन कर डर तो नहीं गई तू? धीरेधीरे तुझे आदत हो जाएगी इन सब की.’’

दूसरे दिन क्लास में कुछेक नया लोगों से उस की पहचान हुई. रूटीन शुरू हो

गया. क्लासेज शुरू हो गईं, इन सब के बीच पूर्वी सलिल को नहीं भूल पा रही थी. जबतब उस की आंखों के सामने सलिल के गालों में डिंपल पड़ने वाला मुसकराता चेहरा सामने आ जाता.

कहते हैं न दिल को दिल से राह होती है सो फ्राइडे रात को सलिल का फोन भी आ गया, ‘‘पूर्वी कल हम मिल रहे हैं. इस जगह व इतने बजे, देखो न मत कहना तुम से मिल कर अपने दिल की बहुत सारी बातें करनी हैं, फिर घूमेंफिरेंगे मस्ती करेंगे और क्या,’’ सलिल ने एकदम फिल्मी अंदाज में आमिर खान का डायलौग दोहरा दिया, ‘‘मैं तुम्हें नियत समय पर ही होस्टल छोड़ दूंगा.’’

थोड़ी देर नानुकर करने के बाद पूर्वी ने हां कर दी क्योंकि मन ही मन वह भी तो सलिल से मिलना चाह रही थी.

होस्टल के रूल्स के अनुसार सलिल उसे उस के होस्टल नियत समय पर छोड़ गया, साथ ही अगले शनिवार दोबारा मिलने का वायदा ले गया.

शनिवार आने पर जव पूर्वी तैयार होने लगी तो मंदा ने टोका, ‘‘आज फिर कहां चली इतना सजधज कर?’’

पूर्वी कुछ कहती उस से पहले ही सलिल की गाड़ी का हौर्न उस के कानों में पड़ा. बिना कुछ बोले पूर्वी बाहर आ गई, जहां सलिल उस का इंतजार कर रहा था. उस की कार में बैठते ही सलिल ने उस की तरफ देखा और कहा, ‘‘इस पिंक सूट में तुम सचमुच बहुत ही प्यारी लग रही हो. जानती हो पिंक मेरा पसंदीदा कलर है.

‘‘पूर्वी आज डिनर हम साथ में करने वाले हैं. मैं ने यहां के सब से महंगे व फेमस रैस्टोरैंट में टेबल बुक करा दी है ताकि तुम्हें लौटने में देर नहीं हो जाए क्योंकि आज का दिन मेरे लिए बहुत खास है, पूछो क्यों?’’

पूर्वी ने प्रश्नवाचक नजरों से उस की तरफ देखा.

‘‘अरे, अब बता भी दो कि आज के दिन क्या खास है?’’ पूर्वी ने पूछा.

‘‘आज मेरा हैप्पी बर्थडे है, सोचा तुम्हारे साथ मिल कर सैलिब्रेट करते हैं.’’

उसी समय रैस्तरां का वेटर एक बड़ा सा केक ला कर उन की टेबल पर रख गया. पूर्वी ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘जाओ मैं बात नहीं करती तुम से. मुझे पहले बता देते तो मैं कम से कम कोई गिफ्ट ले कर तो आती तुम्हारे लिए.’’

‘‘तुम गुस्सा होती हो तो और भी खूबसूरत लगती हो. रही गिफ्ट की बात सो मेरे लिए तो तुम ही एक खूबसूरत गिफ्ट हो. मैं ने तो मां से तुम्हारे बारे में बात भी कर ली है.’’

तभी एक रैड रोज पूर्वी की तरफ बढ़ाते हुए सलिल ने कहा, ‘‘बोलो क्या तुम मेरी

लाइफपार्टनर बनना पसंद करोगी?’’

‘‘पूर्वी ने शरमा कर अपनी नजरें नीची कर लीं. इस अप्रत्याशित खुशी से उस के दिल की धड़कन तेज हो गई थी, साथ ही गाल भी सुर्ख हो गए थे.

जब पूर्वी सलिल के साथ घूम कर होस्टल लौटी तो बहुत खुश थी. वह धीमे स्वर में गुनगुना रही थी, ‘‘छोटी सी मुलाकात प्यार बन गई, प्यार बन के गले का हार बन गई…’’

मंदा के कानों में जब पूर्वी के गाने के स्वर पड़े तो चौंक गई. फिर तुरंत पूर्वी की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘अरे, तू तो बड़ी घुन्नी निकली एकदम छिपी रुस्तम. मुझे खबर तक नहीं होने दी, तू तो इश्क फरमा रही है.’’

मंदा की बात सुन कर पूर्वी हलके से मुसकरा दी. ‘‘वाह, मुंबई आते ही तुझे तेरा प्यार मिला गया,’’ मंदा के दिल में जलन की आग धधक उठी. सोचने लगी भला ऐसा क्या है इस पूर्वी में जो सलिल जैसा बांका नौजवान इस छोटे शहर की लड़की पर फिदा हो कर अपना दिल हार बैठा. एक वह है पिछले 2 साल से मुंबई में है, इश्क के नाम पर 2-3 बार दिल टूट चुका है, छुट्टियों में घर जाने का भी दिल नहीं करता. वही मां, पापा की रोज की चिकचिक सुन कर कान पक गए हैं मेरे.

मेरी भावनाओं का तो उन्हें जरा भी खयाल नहीं है कि बेटी बड़ी हो रही है. बस यह कह कर अपना पल्ला झड़ लिया है कि तुम्हें जो भी पसंद आए हमें बता देना. उस से ही तुम्हारी शादी कर देंगे. रोने को मन हुआ मंदा का. लाइट औफ कर के पूर्वी के बैड की तरफ पीठ कर के लेट गई और थोड़ी देर आंसू बहाती रही.

नींद तो आ नहीं रही थी, सो मन ही मन प्लान बनाने लगी, जो भी हो इस पूर्वी को तो कभी भी सलिल का नहीं होने देगी. इस के लिए फिर मुझे चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े.

पूर्वी पर सलिल का प्यार परवान चढ़ रहा था, करीब हर शनिवार को वह सलिल के साथ घूमने निकल जाती. जब लौटती तो मंदा से अपने व सलिल के बीच हुई बातें शेयर करती.

एक दिन घूम कर जब लौटी तो पूर्वी ने बताया कि सलिल ने मेरे फोटो अपने घरवालों के पास भेजे थे. उन का अप्रूवल भी आ गया है. सलिल का एमबीए पूरा होते ही उस के घर वाले हम दोनों की शादी करवा देंगे.

‘‘अरे वाह, यह तो बहुत ही खुशी की बात है, तेरी तो सच में लौटरी ही लग गई पूर्वी, सलिल जैसा वांका नौजवान तुझे जीवनसाथी के रूप में मिल गया.’’

ऊपर से तो मंदा पूर्वी से बडी खुशी जाहिर करती, परंतु अंदर से मन ही मन उस की बातें सुन कर उस की छाती पर सांप लोटने लगते. वह ईर्ष्या की आग में बुरी तरह जल रही थी.

उधर पूर्वी उस की जलन की भावनाओं से अनजान, अपनी हरेक बात उस से शेयर करती क्योंकि पूर्वी तो मंदा को अपनी सखी मानती थी.

एक दिन जब पूर्वी क्लास अटैंड कर के अपने रूम की तरफ लौट रही थी कि तभी उस के बाबूजी का फोन आया. उन का स्वर एकदम घबराया हुआ था.

पूर्वी ने पूछा, ‘‘क्या बात है, बाबूजी, मां तो ठीक हैं न?’’

बाबूजी ने बताया, ‘‘तुम्हारी मां की तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही थी. पहले तो हम लोगों ने सोचा कि शायद तुम्हारे जाने की वजह से मन उदास है उन का, परंतु जब एक दिन चक्कर खा कर गिर पड़ी तो डाक्टर की राय लेना जरूरी हो गया. डाक्टर ने बताया कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है, तुरंत औपरैशन करना पड़ेगा क्योंकि ट्यूमर आखिरी स्टेज पर है, अत: अधिक देर करना खतरे से खाली नहीं है.’’

सारी बातें सुन पूर्वी भी एक बार तो बहुत घबरा गई फिर बाबूजी को धैर्य बंधाते हुए बोली, ‘‘मैं कल ही बरेली के लिए निकल रही हूं, आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा. आजकल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है, बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज संभव हो गया है.

पूर्वी के घर पहुंचने तक बाबूजी मां को हौस्पिटल में एडमिट कर चुके थे और औपरैशन की डेट भी ले ली थी. कहां तो पूर्वी घर पहुंचने पर मां को अपने व सलिल के प्यार की बावत बता कर सरप्राइज देने की सोच रही थी और यहां मां को इस हाल में देख कर उस का दिल कांप उठा.

मैं भी कमाऊंगी: क्या मेरा शौक पूरा हुआ

शादी से पहले हमारी मैडम एक दफ्तर में औफिस अस्सिटैंट थीं पर शहर बदले जाने के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. फिर पहली बेबी 1 साल में ही हो गया. अब वह 4 साल की है, थोड़ा काम खुद कर लेती हैं, इसलिए मैडम के पास काम कम और समय ज्यादा है. अत: एक दिन बोलीं, ‘‘सुनो शैलेष.’’

‘‘क्या है माधवी?’’

‘‘मैं आजकल घर में बहुत उकता जाती हूं. यहां मेरे पास काम ही कितना है. बिना काम के खाली बैठे रहना तो बेवकूफी है. मैं चाहती हूं कि मैं कुछ पैसे कमाऊं. हमारे घर की आर्थिक स्थिति भी तो अच्छी नहीं है,’’ माधवी बोली.

‘‘क्यों, क्या हुआ हमारी आर्थिक स्थिति को? सब ठीक तो है. मैं जितने पैसे कमा रहा

हूं उन्हीं में हम लोग सुखचैन से रह रहे हैं और क्या चाहिए.’’

‘‘नहीं, मैं चाहती हूं कि मेरा भी योगदान हो. जब मैं भी कमा सकती हूं तो क्यों न कमाया जाए. डबल इनकम का मतलब है डबल बचत.’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन घर को चलाने में तुम्हारा बड़ा योगदान है. मेरे अकेले के

बस की बात नहीं कि नौकरी भी करूं, बच्चों को भी देखूं और घर भी संभालूं. सुचारु रूप से घर चलाती रहो, यही बहुत है.’’

‘‘नहीं, मैं नौकरी करना चाहती हूं.’’

‘‘घर कौन देखेगा और फिर इस शहर में तुम्हें नौकरी कौन देगा?’’

‘‘इसी के पीछे तो इतने दिनों से मैं तुम से बोलने में  झिझक रही थी. तुम्हीं कोई उपाय बताओ न?’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह फैसला तो तुम्हें लेना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों न एक आया रख लें, फिर मैं किसी मौल में सेल्सगर्ल का काम तो कर सकूंगी.’’

‘‘कोई आया मां की तरह तो बच्चों को नहीं  देख सकती और फिर जितना तुम कमाओगी वह आया ले जाएगी और जो परेशानी होगी वह अलग से. सेल्सगर्ल्स को तो 12-12 घंटे खड़े रहना पड़ता है. अब तुम 35 साल की होने वाली हो, 20-21 साल की लड़कियों के सामने क्या टिक पाओगी?’’ शैलेष ने कहा.

‘‘तो मैं घर में रह कर भी कमा सकती हूं.’’

‘‘तुम घर भी चलाओ और कमाई भी करो, इस में मुझे क्या आपत्ति हो सकती है. मुझे तो खुशी होगी, लेकिन करोगी क्या?’’

‘‘सोच कर बताऊंगी,’’ कह माधवी चुप हो गई.

‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं कंटैंट राइटर बनूंगी,’’ 8-10 दिन बाद माधवी शैलेष से बोली.

‘‘वाह, क्या बात है. राइटर बन कर पैसे तो कमाओगी ही ख्याति अलग से होगी. क्या लिखोगी?’’

‘‘औनलाइन बहुत सी कंपनियां कटैंट राइटर मांगती हैं. मैं उन्हें अपना बायोडाटा भेज देती हूं.’’

2 दिन बाद माधवी फिर बोली, ‘‘शैलेष, मुझे क्रैडिट कार्ड देना, 2,000 रुपये का डिपौजिट एक कंटैंट कंपनी को भेजना है. वे कहते हैं कि उन के मूल कंटैंट का मिसयूज न हो इसलिए वे क्रैडिट कार्ड से पेमैंट मांगते हैं.’’

‘‘बहुत बड़े पैमाने पर आरंभ कर रही हो?’’ शैलेष बोला.

घर में 2-3 दिन शांति रही. माधवी दिन में 4-5 बार कंप्यूटर खोल कर देखती कि कोई मेल तो नहीं आया. फिर एक दिन बोली, ‘‘वे मुझे औनलाइन इंटरव्यू के लिए बुला रहे हैं पर मुझे उन का ऐप डाउनलोड करना होगा, जिस की फीस 2,000 रुपये है.’’

शैलेष के 2,000 रुपये और गए.

5 दिन बाद उसे पीडीएफ फाइल मिली जिस में शायद 500 पेज थे. उसे उस का संक्षेप में इंग्लिश से हिंदी अनुवाद करना था.

‘‘सुनो, यह बहुत कठिन काम है. कंप्यूटर पर पढ़ने में बहुत कठिनाई हो रही है. फौंट

बहुत छोटा है. इस के प्रिंट करा लाओ,’’

माधवी बोली.

शैलेष प्रिंट करा लाया पर कंप्यूटर पर माधवी हिंदी टाइपिंग न सीख पाई. उस ने हाथ

से लिखा तो शैलेष भी उसे नहीं पढ़ पाया. उसे स्कैन कर के भेजने का फायदा क्या था. इसलिए एक साइबर कैफे को हिंदी में लिखे को प्रति पृष्ठ पैसे दे कर टाइप कराने के लिए दिया. उसे प्रति पृष्ठ क्व400 मिलते थे इसलिए उसे यह खर्च ज्यादा नहीं लगा.

मगर 5 दिन बाद मेल आया कि काम पूरा हो जाने की मियाद 7 दिन थी इसलिए क्व2,000 जब्त किए जाते हैं और आगे से काम नहीं मिलेगा. 4,000 रुपये इस कंपनी को गए, 1,500 रुपये प्रिंट कराने में लगे और 10 दिन बाद हिंदी टाइप करने वाला अपने पैसे जबरन ले गया और मेल से हिंदी फाइल भेज दी.

शैलेष ने उत्सुकतावश उसे खोल कर देखा तो पता चला कि एक तो अनुवाद गलत था और दूसरे टाइप करने वाले ने हजार गलतियां छोड़ रखी थीं. काम के चक्कर में 1 महीने का चैन भी गया और पैसे भी बरबाद हुए.

माधवी बोली, ‘‘एक दिन अवश्य कुछ न कुछ कर दिखाऊंगी.’’

‘‘अवश्य, अवश्य.’’

‘‘अभी फिलहाल मैं ने पैसे कमाने का दूसरा जरीया ढूंढ़ निकाला है.’’

‘‘1,000 रुपये तो गंवा चुकी हो. अब क्या

इरादा है?’’

‘‘तुम्हारी इसी कंजूसी को देखते हुए तो

मैं ने पैसा कमाने की ठानी है. मैं ने तय कर

लिया है कि मैं बच्चों के कपड़ों का व्यापार करूंगी.’’

‘‘तुम कहां से कपड़े लाओगी,’’ शैलेष

ने पूछा.

माधवी बोली, ‘‘मै ने होलसेल मार्केट पता कर ली है. वहां 80% डिस्काउंट मिलता है उन्हें बेचूंगी तो पैसा ही पैसा होगा.’’

घर के बाहर एक बोर्ड लगा दिया, ‘नए फैशन के बच्चों के कपड़े.’

शैलेष बोला, ‘‘तुम्हारी युक्ति ठीक है. चलो, ले आते हैं क्व50 हजार के कपड़े.’’

‘‘हां, कुछ नए डिजाइनों के फ्रौक वगैरह… मैं ने एक स्टोर में शादी से पहले सेल्सगर्ल का काम किया था. मुझे इस लाइन का ऐक्सपीरियंस है,’’ यह बात बारबार दोहराती.

अगले दिन जब शाम को शैलेष घर लौटा तो ड्राइंगरूम में कपड़े बिखरे पड़े थे और घर के सारे गिलासप्याले इधरउधर लुढ़क रहे थे.

माधवी बोली, ‘‘पुरानी डिजाइनों के कपड़े ले आए. 10-20 औरतें आईं, चाय भी पी और सारे कपड़े खोलखाल कर चली गईं. एक पैसे की कमाई नहीं हुई. 4-5 अपने बच्चों को पहना कर देखने के लिए ले गई हैं.’’

शैलेष बोला, ‘‘पहले ही दिन 10 हजार रुपये का चूना लगा. अच्छा, अपनी लड़की को यह फ्रौक फिट लगेगा तो मानूंगा कि तुम्हारा टेस्ट अच्छा है.’’

माधवी ने पहना कर देखा टाइट था और खींचने पर फ्रौक फट गया.

तभी कोई खरीदार आया जो 5-6 कपड़े ले गया था उन्हें वापस कर गया कि साइज भी ठीक नहीं, कपड़ा भी खराब है और डिजाइन भी बेहूदा है.

बंटी ने भी एक भी कपड़ा पहनने से इनकार कर दिया.

मेड को देने की कोशिश की तो बोली, ‘‘मैडम, यह जो चीज 500 रुपये में आप बेच रही हैं, हमारे यहां मंगलवार बाजार में 50 रुपये में बिकती है,’’ और उस ने मुफ्त में भी ले जाने से इनकार कर दिया कि वह इन का क्या करेगी.

कुछ दिन बाद माधवी ने फिर शैलेष से कहां, ‘‘सुनो.’’

‘‘तुम ऐसे सुनो मत बोलो, मेरा दिल बैठ जाता है. मुझे लगता है तुम पैसा कमाने का कोई नया साहसिक धंधा शुरू करने वाली हो,’’ शैलेष घबरा कर बोला.

‘‘तुम सुनो तो सही.’’

‘‘सुनाओ.’’

‘‘यह कपड़े बेचने वाला व्यापार मुझ से नहीं होने का.’’

‘‘देर आयद दुरुस्त आयद.’’

‘‘तुम बताओ मेरी पेंटिंग्स कैसी हैं?’’

‘‘अपनी बेटी की ड्राइंग की कौपी में तुम्हें ड्राइंग करते देख कर कह सकता हूं कि तुम पेंटिंग में निपुण हो.’’

‘‘पेंटिंग का काम करूं तो कैसा रहेगा. आजकल तो पेंटिंग्स करोड़ों में बिकती हैं.’’

‘‘ठीक ही रहेगा. लोग अपने घर में आर्टिस्टों की पेंटिंग्स लगाना चाहते हैं. आरंभ कर दो बनाना,’’ शैलेष ने जान बचाने की खातिर कहा.

‘‘पहले सामान ला दो. फिर शुरू करूंगी.’’

‘‘सामान?’’

‘‘हां, पेंटिंग्स का सामान. लिख लो.’’

‘‘यह तो बहुत महंगा होगा.’’

लिस्ट क्या थी पूरा किचन रोल था. कोई 200 आइटम्स थीं.

‘‘तो क्या हुआ एक पेंटिंग बिकते ही लाभ ही लाभ है.’’

‘‘कितने लगेंगे?’’

‘‘सिर्फ क्व40 हजार के आसपास. मैं पूछ कर आई हूं.’’

‘‘बाप रे, न बाबा यह तो मेरी सारी बची जमापूंजी है. तुम कम से ही शुरू करो.’’

‘‘छोटे से शुरू कर कोई कुछ नहीं बन सकता है?’’

‘‘नहीं, मैं अपनी जमापूंजी खर्च नहीं कर सकता. 10-20 हजार रुपयों की बात अलग है.’’

‘‘अगले साल तक तुम्हारी पूंजी दोगुनी हो जाएगी.’’

‘‘नहीं.’’

‘‘देखो, सुनो तो सही.’’

‘‘एकदम नहीं.’’

‘‘यह तुम्हें क्या हो गया है. इस तरह घर में अशांति करने से क्या लाभ.’’

‘‘1 महीने से तुम तमाशा कर रही हो. मैं कोई करोड़पति नहीं जो तुम्हारे शौक के लिए लाखों रुपए खर्च कर दूं.’’

‘‘मैं सामान अपने शौक के लिए नहीं मांग रही हूं… मैं थोड़े पैसे कमा लूंगी, इसीलिए

तुम्हें जलन हो रही है.’’

‘‘मुझे जलन क्यों होने लगी. तुम्हीं सोचो, अगर तुम्हारी पेंटिंग्स नहीं बिकीं तो सारे पैसे पानी में चले जाएंगे. कभी पैसों की आवश्यकता पड़ी तो क्या करेंगे?’’

‘‘ठीक है अपने पैसों पर सांप बन कर कुंडली मारे बैठे रहो. मैं अपने गले की चेन बेच कर सामान ले आती हूं.’’

‘‘यानी तुम्हें इतना विश्वास है कि पेंटिंग्स बिक ही जाएंगी? इसीलिए गले की चेन तक बेचने तक को तैयार हो?’’

‘‘तुम्हारे जैसे आदमी से पाला पड़ा हो तो और किया ही क्या जा सकता है.’’

‘‘गले की चेन मत बेचो. कल बैंक से लोन ले लूंगा.’’

अब हमारे घर की सारी दीवारों पर पेंटिंगें हुई हैं, परदों पर रंग लगे हैं, ट्यूवें, शीशियां इधरउधर बिखरी रहती हैं. ड्राइंगरूम एक कोना माधवी ने हथिया लिया जहां उस का सामान पड़ा रहता और 30-40 कैनवास आधीअधूरी पड़ी हैं क्योंकि माधवी गेंदें के फूल और पहाड़ पर ?ोंपड़ी के आगे नहीं बढ़ पाई. हां, आजकल उस ने अपनी ड्रैस आर्टिस्टों वाली कर ली है.

अब वह मेकअप नहीं करती. बाल बिखरे रहते हैं. कौटन की साड़ी पहने रहती है.

नाखूनों पर पेंट लगा रहता है.

कोईर् भी आता है तो शैलेष झूठ कहता है कि माधवी को एक होटल से 50 कमरों के लिए पेंटिंगों का और्डर मिला है. जैसे ही होटल मालिक पेंटिंग्स खरीद लेगा वह चैक भेज देगा. माधवी ड्राइंगरूम में सोती है और शैलेष डबल बैड पर आराम से खर्राटे भरता है.

‘‘बिका कुछ?’’

‘‘मेरी पूरी फैक्टरी में केवल एक ही ऐसा आदमी था जिसे तुम्हारी बनी एक पेंटिंग पसंद आई. बाकी नहीं बिकीं. सारे पैसे पानी में चले गए.’’

‘‘थोड़ा मन लगा कर बेचते तो अवश्य बिक जातीं. इतनी खराब तो नहीं थीं?’’

‘‘हां, सारा दोष मेरा ही है. तुम इसी में संतुष्ट हो तो यही सही.’’

‘‘बहुत रुपयों की हानि हो गई है न. मुझे बहुत बुरा लग रहा है.’’

‘‘चलो, जो हुआ सो हुआ. अब पहले वाली अर्थव्यवस्था पर चलते हैं यानी मैं कमाता हूं और तुम खर्च करती रहो. अगर इसी तरह तुम भी कमाती रही तो भीख मांगने की नौबत आ जाएगी.’’

‘‘चलो, मजाक मत करो. एक बात सुनो.’’

‘‘कदापि नहीं. अब मैं कुछ नहीं सुनूंगा और इस अवस्था में हूं भी नहीं कि कुछ सुन सकूं.’’

‘‘क्या लिख रहे हो?’’

‘‘तुम्हारी लेखन सामग्री का सदुपयोग कर रहा हूं. कहानी लिख रहा हूं.’’

‘‘अच्छा. कैसी कहानी है?’’

‘‘घरेलू कहानी है.’’

‘‘मुझे भी सुनाओ.’’

‘‘पूरी हो जाने दो, पढ़ लेना.’’

‘‘छप जाएगी?’’

‘‘इस कहानी को पढ़ कर तो कठोर से कठोर संपादक भी पिघल उठेगा. छपने की पूरी उम्मीद है.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें