खिलाड़ियों के खिलाड़ी: भाग 3- क्या थी मीनाक्षी की कहानी

विशाल चाहता था कि मीनाक्षी और अरुण नाईक के गुंडों में जल्दी ही रजामंदी हो जाए, इस के लिए वह अपने लैवल पर बहुत कोशिश कर रहा था. उस ने इस बारे में पुलिस के आला अफसरों से भी बात कर ली थी. मीनाक्षी आएदिन उसे फोन करकर के परेशान कर रही थी.

एक दिन रात को करीब 2 बजे मीनाक्षी बिना पूर्व सूचित किए अपने 4 बैग ले कर विशाल के बंगले पर पहुंच गई. उस ने बताया कि अरुण नाईक के गुंडे उसे जान से मारने का प्लान बना रहे हैं. अब वह एक दिन भी अरुण नाईक के घर में नहीं रहेगी.

‘‘मीनाक्षी, अरे तुम इतनी रात को अचानक कैसे आ गईं. लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे? हमारे बंगलों के आसपास मीडिया वाले दिनरात मंडराते रहते हैं. कोई प्रैस वाला देख लेगा, तो हमारी शामत आ जाएगी, नौकरी से हाथ तो धोने पड़ेंगे और बदनामी होगी, सो अलग,’’ विशाल ने परेशान होते हुए कहा.

‘‘विशाल, वे लोग मुझे जान से मार डालेंगे. उन्हें पता चल गया है कि मैं उन को पकड़वाने या मरवाने की कोशिश कर रही हूं. उन्हें यह भी मालूम हो गया है कि अब मेरी ऊपर तक पहुंच है,’’ कहते हुए मीनाक्षी दोनों हाथ जोड़ कर अपने जीवन की भीख मांगने लगी.

विशाल भी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था. राज्य का चीफ सैक्रेटरी होने के कारण उस का कई तरह के लोगों से पाला पड़ता था. आज ऊंट पहाड़ के नीचे आ रहा था. विशाल इस मौके का पूरापूरा फायदा उठाना चाहता था. वह बहुत प्यार से बोला, ‘‘मीनाक्षी, बिलकुल चिंता न करो, कोई तुम्हारा बाल तक बांका नहीं कर सकता है. मैं हूं न.’’

विशाल आगे बोल ही रहा था कि मीनाक्षी सिसकते हुए विशाल से लिपट गई. विशाल ने उस की जुल्फों में उंगलियां फेरते हुए कहा, ‘‘पर मीनाक्षी, पहले मेरा एक काम कर दो न, वह वीडियो क्लिप डिलीट कर दो न जो तुम्हारे पास है. सुना है तुम ने मुख्यमंत्री के साथ वालों का भी वीडियो बनाया है, उसे भी डिलीट कर दो. अगर तुम दोनों वीडियो ईमानदारी से डिलीट कर देती हो तो मैं मुख्यमंत्री से बात कर के तुम्हारे लिए अपने फ्लैट में रहने की व्यवस्था कर सकता हूं.

‘‘यह फ्लैट मुझे मुख्यमंत्री ने अपने विशेष कोटे से अलौट किया है जिस में उन के और मेरे खास दोस्त ही ठहर सकते हैं. तुम कुछ दिन वहां रह लो, फिर मैं मुख्यमंत्री से बात कर के तुम्हें निराश्रित और आर्थिकरूप से कमजोर विधवा बता कर तुम्हारे नाम से एक आलीशान फ्लैट भी अलौट करवा दूंगा जहां तुम आराम से रहना, फिर रूपयोंपैसों की तो तुम्हारे पास कमी है नहीं. अगर जरूरत पड़ जाए तो हम लोग हैं ही.’’

‘‘लो, तुम्हारे सामने ही मैं वे सभी वीडियो डिलीट कर देती हूं,’’ कहते हुए मीनाक्षी ने अपना मोबाइल निकाला और विशाल के सामने सारे वीडियो डिलीट कर दिए, फिर लैपटौप में सेव किए हुआ वीडियोज का एक फोल्डर भी डिलीट कर दिया.

विशाल बड़े ध्यान से सब देख रहा था मगर उस ने मीनाक्षी के साथ जिस तरह की दोस्ती थी उस से उस ने यह जरूर जान लिया था कि मीनाक्षी बहुत शातिर है. जितनी सहजता से वह सब डिलीट कर रही है, इस का मतलब यही है कि उस ने ये सब कहीं और जरूर छिपा कर रखा होगा. विशाल ने देखा कि मीनाक्षी अपने लैपटौप और अन्य कुछ इलैक्ट्रौनिक डिवाइसेज हरे रंग के एक छोटे से बैग में रख कर उसे लाल रंग के सूटकेस में रख रही है.

विशाल ने मीनाक्षी के सामने सुनहरे सपनों का एक महल खड़ा कर दिया था. वह बेहद खुश हो गई थी. विशाल की बातें सुन कर मीनाक्षी खयालों में खो गई और अपने सुरक्षित एवं सुखद भविष्य की कल्पना करने लगी. कल्पना की दुनिया में खोई मीनाक्षी सोचने लगी कि उस ने अरुण के साथ हमेशा तनावग्रस्त जिंदगी जी है, अरुण उस के साथ बहुत अत्याचार करता था, अपनी जान बचाने के लिए वह अपनी पत्नी का उपयोग करने से भी बाज नहीं आता था. अब उसे इस तरह की घिनौनी जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा.

लेकिन, मीनाक्षी अपने गिरेबान में नहीं झंक रही थी. उस ने भी तो अरुण के नाम से बहुत फायदा उठाया था. ऐशोआराम की जिंदगी जीने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. महंगी कारों में घूमने और बड़े होटलों में पार्टियों से उसे फुरसत कहां मिलती थी. जब से उस ने सैक्रेटियट में एंट्री की थी तब से उस का रोब और भी बढ़ गया था. कई अफसरों व मंत्रियों से उस के बैडरूम कौन्टैक्ट्स भी थे. उस ने मुख्यमंत्री तक को अपना मोहरा बना कर रखा था.मीनाक्षी 2 दिनों बाद विशाल के वीआईपी फ्लैट में रहने के लिए चली गई. अब मीनाक्षी बहुत खुश थी और सोच रही थी कि अब उस के दिन बदल रहे हैं. मगर वह मुख्यमंत्री और विशाल के बीच जो खिचड़ी पक रही थी, उस से नावाकिफ थी. मुख्यमंत्री को उन के बहुत ही करीबी एक मीडियाकर्मी दोस्त ने सावधान करते हुए कहा था कि विरोधी पार्टी ने मीनाक्षी को उन के खेमे में सेंध लगाने के लिए भेजा है. विरोधी पार्टी के एक बड़े नेता के घर में मीनाक्षी का आनाजाना बढ़ गया है. उस ने यहां तक सुना है कि अगर वह सरकार गिराने मे सहयोग करेगी तो उसे मंत्री भी बनाया जा सकता है. कहते हैं कि राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता. आप का जिगरी दोस्त तक आप की आस्तीन का सांप बन जाता है.

एक दिन मुख्यमंत्री ने विशाल को अपने बंगले पर बुलाया और सारी बातें बताते हुए सचेत रहने की सलाह दी. फिर दोनों ने यह तय किया कि मीनाक्षी को रास्ते से हटाना ही उन के हित में होगा. दोनों ने रात देर तक बातें कर के अपने प्लान को अंतिम रूप दिया और एकदूसरे से गले मिलते हुए जुदा हुए.

4 दिनों बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन किया, ‘‘हैलो मीनाक्षी, कैसी हो, कोई परेशानी तो नहीं हो रही है तुम्हें?’’

‘‘नहीं तो, यहां तो बहुत अच्छा लग रहा है. मु?ो कोई तकलीफ नहीं है,’’ मीनाक्षी ने खुश होते हुए कहा.

‘‘मीनाक्षी, दरअसल, मैं ने इसलिए फोन किया कि मुख्यमंत्री के 2 खास दोस्त कल अपनी फैमिली के साथ यूएस से किसी बहुत ही जरूरी काम के लिए उन से मिलने आ रहे हैं. वे केवल 4 दिन इंडिया में रुकेंगे. मुख्यमंत्री उन से सीक्रेटली’ मिलना चाहते हैं. इस के लिए उन्होंने मुझ से अनुरोध किया है कि उन के ठहरने की व्यवस्था वीआईपी फ्लैट में करूं. मैं उन के अनुरोध को टाल नहीं सकता. तुम्हें थोड़ी परेशानी तो होगी मगर क्या कर सकते हैं.

‘‘प्लीज, मेरे लिए तुम्हें थोड़ी तकलीफ उठानी पड़ेगी. बस, 4 दिन की बात है. तुम अपना बहुत जरूरी सामान ले कर होटल हिलटोन में पहुंच जाना. वहां मैं ने तुम्हारे लिए एक डीलैक्स सूट 4 दिन के लिए तुम्हारे नाम से ही बुक करवा दिया है. सारा पेमैंट मैं ने एडवांस में ही पेड कर दिया है. तुम्हें वहां 4 दिन तक एक भी पैसा अपनी जेब से खर्च नहीं करना है. मुख्यमंत्री के दोस्त जैसे ही यूएस के लिए रवाना होंगे, तुम अपने फ्लैट में लौट जाना.’’

‘‘हां, क्यों नहीं विशाल, 4 दिन की ही तो बात है. मैं कल सुबह ही चली जाऊंगी, डोंट वरी.’’ शहर के सब से बड़े फाइवस्टार होटल में 4 दिन तक शान से मुफ्त में रहने को मिलेगा, इस खुशी में उछलते हुए मीनाक्षी ने आगे कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

विशाल ने फोन काट दिया और तुरंत मुख्यमंत्री को सारी बात बता दी.

‘‘वैरी गुड विशाल, तुम अब तैयार हो जाओ. हम दोनों आज रात 11 बजे की फ्लाइट से उदयपुर मेरे पिता से मिलने जा रहे हैं. उन की तबीयत बहुत खराब है. हमारे टिकट बुक हो चुके हैं,’’ मुख्यमंत्री ने खुश होते हुए कहा.

विशाल की समझ में नहीं आ रहा था कि मुख्यमंत्री अचानक उदयपुर जाने के लिए क्यों कह रहे हैं. प्लान तो कुछ अलग बना था. खैर, वह तैयार हो कर निश्चित समय पर एअरपोर्ट पहुंच गया. रात में करीब एक बजे वे दोनों उदयपुर पहुंच गए. मुख्यमंत्री के पिताजी बिलकुल स्वस्थ लग रहे थे, घर के बाकी सभी सदस्य भी ठीक लग रहे थे.

विशाल ने मुख्यमंत्री की तरफ देखा, तो उन्होंने अपनी बाईं आंख दबाते हुए कहा, ‘‘विशाल, एवरी थिंग इज गोइंग वैल. डोंट वरी. जा कर अपने कमरे में सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’

विशाल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. मगर मुख्यमंत्री देर तक सोते रहे. वे 10 बजे के बाद उठे और करीब 12 बजे तक नहाधो कर तैयार हुए. बाहर हौल में आ कर उन्होंने विशाल से कहा, ‘‘विशाल, जरा टीवी लगा कर समाचार तो सुनो.’’

विशाल ने जल्दी से टीवी औन किया, एक न्यूज चैनल लगाया जिस पर ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी- ‘कुख्यात गैंगस्टर अरुण नाईक की पत्नी मीनाक्षी नाईक की एक सड़क दुर्घटना में मौत. वे अपनी कार खुद चला रही थीं. एक विकट मोड़ पर उन की कार एक ट्रक से टकरा गई. कार का पैट्रोल टैंक फट जाने से उन का पूरा शरीर जल गया तथा कार में रखा सामान भी जल कर राख हो गया.’’

मुख्यमंत्री विशाल की पीठ पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘विशाल, हम भी पहुंचे हुए खिलाड़ी हैं. हम ने कच्ची गोटियां नहीं खेली हैं. तुम ने जिस लाल सूटकेस को हमारे लिए खतरा बताया था, उसे मीनाक्षी कार में अपने साथ ले जा रही थी. पलभर में खेल खत्म हो गया और हम दोनों शहर से बाहर हैं.’’ यह कहते हुए मुख्यमंत्री ने जोर से ठहाका लगाया और ताली के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया.

विशाल ने भी ठहाका लगा कर उन्हें ताली देते हुए कहा, ‘‘सरजी, आप केवल खिलाड़ी नहीं, आप तो खिलाडि़यों के भी खिलाड़ी हैं.’’

ये भी पढ़ें- दाग: एक गलती जब कर देती है कलंकित

लिली: अमित ने क्या किया था

romantic story in hindi

भ्रम भंग: भाग 3- क्या अभय को सजा दिला पाई लतिका

कैंटीन से बाहर निकली तो शाम के 6 बज रहे थे. तेजतेज कदमों से वह केंद्रीय पुस्तकालय की तरफ चल दी. वहां तक पहुंचने में उसे आधा घंटा लगा. उस ने पहुंचते ही पुस्तकालय के सभी कमरों में एक बार घूम कर पढ़ रहे लड़केलड़कियों को देखा. उन में वह लड़की भी दिखाई दी जो योगी के साथ कैंटीन में थी. बेहद सुंदर चेहरेमोहरे की उस लड़की को देख कर वह सकुचाई कि कहीं यही तो वह मुरगी नहीं जिसे आज हलाल करने का इन लोगों ने इरादा बनाया है.

‘‘मैं यहां बैठ सकती हूं?’’

लतिका के इस सवाल को सुन कर लड़की ने एक बार को ऊपर निगाह उठा कर देखा और फिर पढ़ने में डूब गई.

‘‘आप का नाम पूछ सकती हूं?’’ लतिका ने पूछा.

‘‘क्यों?’’ मुसकरा दी वह.

‘‘इसलिए कि मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘पर मैं तो आप को जानती नहीं.’’

‘‘मुझे जानना जरूरी भी नहीं है,’’ लतिका बोली, ‘‘लेकिन आप का यहां से उठ कर अभी घर चले जाना ज्यादा जरूरी है.’’

इस से पहले कि वह लड़की और कोई सवाल पूछे लतिका ने धीरे से पर्स से कागज की वह परची निकाल कर उसे पढ़वा दी.

‘‘आप जिस लड़के के साथ कैंटीन में थीं उस की जेब से निकल कर यह परची गिरी है. उस के 2-3 साथी हैं, यह आप भी जानती होंगी.’’

ये  भी पढ़ें- बेकरी की यादें

लड़की के काटो तो खून नहीं. चेहरा एकदम सफेद पड़ गया. डरीसहमी हिरनी की तरह वह लतिका को देखती रही फिर किसी तरह बोली, ‘‘तभी योगी का बच्चा मुझ से चिकनीचुपड़ी बातें करता रहा था. मुझे खूब नाश्ता कराया और कहा कि पुस्तकालय में देर तक पढ़ती हो तो भूख लग आती होगी, अच्छी तरह खापी कर जाओ.’’

वह एकदम उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘किताबें रख कर आती हूं. मुझे डर लग रहा है. आप साथ चल सकती हैं?’’

‘‘बशर्ते इस परची का जिक्र कभी मुंह पर मत लाना और मेरे बारे में उन लोगों को न बताना कि मैं ने तुम्हें आज यहां से निकाल दिया.’’

घर आ कर लतिका ने सारी बात नकुल को बताई तो वह गंभीर हो कर बोला, ‘‘उस लड़की को बचाया तो अच्छा किया लेकिन अगर उस ने उन लोगों से कभी यह बात कह दी तो वे लोग तुम्हारी जान के दुश्मन हो जाएंगे.’’

एक दिन कालिज में लतिका को अभय ने एक परची थमाई और बोला, ‘‘मुझे एक काम से अभी जाना है. प्लीज, लतिका, इस परची को तुम परमजीत को दे देना. पता नहीं वह कालिज में कितनी देर बाद आए.’’

‘‘अभय, तुम्हारा कोई काम करने में मुझे खुशी होती है.’’

‘‘जानता हूं, इसलिए तुम पर विश्वास भी करता हूं और कभीकभी छोटा सा काम भी सौंप देता हूं,’’ कहता हुआ अभय मोटरसाइकिल स्टार्ट कर चला गया.

बहुत देर तक उस परची को लतिका पढ़ती रही पर वह कुछ समझ नहीं पाई. सिर्फ एक पता लिखा हुआ था और पते के अंत में 9 की संख्या लिखी हुई थी. उस ने उस पते को वैसा का वैसा ही अपने पास लिख लिया और कालिज के बाहर ही एक बैंच पर बैठी पढ़ती रही ताकि परमजीत को देख सके.

लगभग डेढ़ घंटे बाद परमजीत आया तो लतिका ने उसे वह परची दे दी. परमजीत ने परची पढ़ी और फाड़ कर फेंक दी. फिर देर तक हंसता हुआ उस से बातें करता रहा. जब वह उठ कर कक्षा में चली गई तो वह भी कहीं चला गया. उस के जाते ही लतिका लपकी हुई आई और उस ने परची के फटे सारे टुकडे सावधानी से बटोर लिए और एक कागज में पुडि़या बना कर अपने पास रख लिए.

घर आ कर उस ने वे सारे कागज के टुकड़े नकुल को दिए और उस में क्या लिखा था यह नकुल को पढ़ा दिया. नकुल सावधान हुआ. तुरंत लतिका को ले कर थाने गया और अपने उस नौजवान पुलिस अफसर से मिला जो शोध मेें उस की बहुत मदद कर रहा था.

लतिका से मिल कर उसे भी प्रसन्नता हुई और वह बोला, ‘‘आप च्ंिता न करें. आज मैं इन लड़कों को रंगेहाथ पकड़ूंगा. फिर भले ही मेरी नौकरी क्यों न चली जाए.’’

पुलिस अफसर ने सिपाहियों को सावधान किया. कुछ हथियार लिए. फिर सब को जीप में साथ ले कर वह उस पते पर पहुंच गया जो लतिका ने लिख रखा था. इस सब में 8 बज गए. दरवाजे में लगी घंटी बजाई तो देर तक दरवाजा नहीं खुला. आखिर कोई काफी कठिनाई से चलता हुआ गैलरी में आया और उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’

‘‘पुलिस. दरवाजा खोलिए. आप से मिलना जरूरी है,’’ उस अफसर ने कहा.

बहुत समझाने पर उस बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला. पुलिस के साथ एक लड़की को देख कर वह महिला कुछ संतुष्ट हुई. लतिका ने तुरंत उस वृद्धा का हाथ पकड़ा और उसे भीतर ले जा कर सारी बात समझाई. फिर भी वह बूढ़ी महिला पुलिस की कोई मदद करने को तैयार नहीं हुई. उस का बारबार एक ही कहना था कि मैं ऐसा नहीं करूंगी. वे हत्यारे मुझे मार डालेंगे. पड़ोस के कसबे में भी एक बूढ़े दंपती को हत्यारों ने ऐसे ही मार डाला था. आप लोग यहां रहें जरूर पर मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी, उन्हें अंदर नहीं आने दूंगी, वे मुझे मार डालेंगे.’’

बहुत देर तक समझानेबुझाने पर वह तैयार हुई कि दरवाजा खोल देगी पर वे लोग पिछले कमरे में जहां छिपें वहां से आने में कतई देर न करें वरना वे बदमाश उस की जान ले लेंगे.

रात लगभग 9 बजे घंटी बजी. सब सावधान हो गए.

बूढ़ी महिला फिर भय से कांपने लगी पर किसी तरह टसकती हुई दरवाजे तक पहुंची, ‘‘कौन है?’’

‘‘हम हैं, नानी, तुम्हारे पोते.’’ एक आवाज बाहर से आई. लतिका ने आवाज पहचान ली. यह अभय की आवाज थी. लतिका की भी आंखें भय से फैल गईं. अभी तक वह भ्रम में रही थी. अभय का जादू उस के सिर पर सवार था पर आज उस का भ्रम भंग हो गया.

दरवाजा खुलते ही अभय ने एकदम चाकू उस बूढ़ी औरत की गरदन पर रख दिया और बोला, ‘‘बुढि़या, जल्दी से हमें बता कि माल कहांकहां रखा है. अगर न बताया तो हम तुझे अभी मार देंगे. फिर सारे घर को खंगाल कर सब ले जाएंगे. पास के कसबे की घटना सुनी है कि नहीं तू ने? उन लोगों ने बताने में आनाकानी की तो हम ने उन्हें नरक में भेज दिया और सब ले लिया. तू भी अगर नरक में जाना चाहती है तो मत बता वरना चुपचाप साथ चल और सब माल हमारे हवाले कर दे.’’

बुढि़या को ले कर वे लोग आगे बढ़े ही थे कि झपट कर सारे सिपाही और पुलिस अफसर हथियार ताने पिछले कमरे से निकल कर वहां आ गए. उन के साथ लतिका व नकुल को देख कर अभय सकपका गया. परमजीत और योगी भागने की कोशिश करने लगे पर हथियारबंद सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया और अभय को तुरंत हथकडि़यां पहना दीं.

अभय गरजा, ‘‘तुम ने अपनी मौत मोल ले ली, लतिका. हम देख लेंगे तुम्हें.’’

‘‘देख लेना बच्चू, पर पहले तो अपने दिए गए अभी हाल के बयान का यह टेप सुन लो जिस में तुम ने पास के कसबे के बूढ़े दंपती की हत्या की और लूट को स्वीकारा है,’’ पुलिस अफसर ने हंस कर कहा, ‘‘दूसरे, इस जगह वारदात करने के  इरादे से अपने ही हाथ के लिखे इस परचे को पढ़ो जिसे परमजीत ने फाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर वहीं फेंक दिया था.’’

सबकुछ देख कर परमजीत और योगी तो लगभग गिड़गिड़ाने लगे पर अभय के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी, ‘‘तुम चाहे जो कर लो इंस्पेक्टर, हमारा बाप नेता है. वह घुड़क  देगा तो तुम्हारे सारे होश ठिकाने लग जाएंगे.’’

‘‘वह सब तो अब अदालत में देखेंगे. फिलहाल तो तुम पुलिस के साथ थाने की हवालात में चलो,’’ पुलिस अफसर उन्हें साथ ले गया.

जाते समय लतिका और नकुल से बोला, ‘‘तुम लोग फ्रिक मत करना. डरने की जरूरत नहीं है. ऐसे जाने कितने अपराधियों को मैं ने सीधा किया है.’’

फिर अनायास ही लतिका का हाथ पकड़ कर धीरे से दबाया और कहा, ‘‘धन्यवाद देना चाहता हूं आप को. आप मदद न करतीं तो ये लोग कभी रंगेहाथों न पकड़े जाते.’’

कुछ दिनों बाद पुलिस अफसर लतिका और नकुल से मिलने उन के घर आया तो लतिका के पिता भी घर पर ही थे. खूब सत्कार किया उन का. फिर किसी तरह अपने संकोच को भूल कर पुलिस अफसर ने लतिका के पिता से कुछ कहने का साहस बटोरा, ‘‘मेरे मांबाप नहीं हैं. इसलिए यह बात मुझे ही आप से करनी पड़ रही है. अगर आप लोगों को एतराज न हो तो मैं लतिका जैसी बहादुर युवती से शादी करना चाहूंगा.’’

‘‘आप ने तो हम लोगों के मन की बात कह दी, इंस्पेक्टर,’’ बहुत खुश हुए लतिका के पिता, ‘‘अब विश्वास हो गया कि मेरी बेटी इस कांड के बाद सुरक्षित रह सकेगी वरना हम लोग भयभीत थे कि बदमाशों को सजा दिलवा कर कहीं हम लोग जान न गंवा बैठें.’’

‘‘जिम्मेदार नागरिकों के प्रति कुछ हमारी भी जिम्मेदारियां हैं, सर,’’ अफसर ने कहा तो सब मुसकराने लगे और लतिका लजा कर भीतर चली गई.

ये भी पढ़ें- पत्नी की देखभाल: संदीप को क्या हुआ था

खिलाड़ियों के खिलाड़ी: भाग 2- क्या थी मीनाक्षी की कहानी

मीनाक्षी विजयी मुद्रा में देररात अपने घर पहुंची. 2 ही दिनों के बाद विशाल का फोन आ गया कि उस ने डीआईजी से बात कर ली है. अरुण नाईक की जल्दी ही रिहाई हो जाएगी. डीआईजी के प्रमोशन के लिए विशाल ने ही मुख्यमंत्री से सिफारिश की थी, इसलिए उसे यकीन था कि डीआईजी उस का यह काम जरूर कर देंगे. डीआईजी को भी विशाल के उपकारों का कर्ज उतारना था, उन्होंने विशाल का काम कर दिया और कुछ ही दिनों में अरुण नाईक जेल से रिहा हो गया.

अपने पति की रिहाई के एक दिन बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन किया, ‘मीनाक्षी तुम्हारा काम हो गया है न, मुझे धन्यवाद देने नहीं आओगी?’

‘आऊंगी न सर, जरूर आऊंगी. आप ने जो काम किया है उस का दाम भी तो चुकाना पड़ेगा न,’ मीनाक्षी ने हंसते हुए कहा.

‘ठीक है, कल शाम को आ जाना. हम तो तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. मीनाक्षी, तुम ने तो हम पर जादू कर दिया है,’ खुशी से उछलते हुए विशाल ने कहा.

विशाल और मीनाक्षी की दोस्ती गहरी होती जा रही थी जिस का पूरापूरा फायदा अरुण नाईक उठा रहा था. वह अपनी रिहाई के बाद शहर में सांड की तरह घूमने लगा और छोटेमोटे अपराध करने शुरू कर दिए. अरुण नाईक को भी यह यकीन हो गया था कि अब मीनाक्षी अपनी पहुंच से उस को बचा लेगी. उधर मीनाक्षी ने विशाल के साथ अपनी खास दोस्ती का फायदा उठाना शुरू कर दिया. अब उस का उठनाबैठना हाई सोसाइटी में होने लग गया था. वह अफसर या किसी भी मंत्री की केबिन में सहज शिरकत कर सकती थी. मगर विशाल इस बात से अनजान था.

एक दिन विशाल ने बातोंबातों में मीनाक्षी से कहा, ‘मीनाक्षी, चीफ सैक्रेटरी का मेरा प्रमोशन अटका हुआ है. मेरी फाइल उन के पास पड़ी हुई है. फिर आजकल मुख्यमंत्री महोदय मुझ से नाराज चल रहे हैं. एक बार मैं तुम्हें उन से इंट्रोड्यूस करवाना चाहता हूं. क्या तुम उन से मिलना चाहोगी? एक बार उन से तुम्हारी दोस्ती हो जाएगी तो तुम्हें आगे बहुत फायदा होता रहेगा और मेरी फाइल भी…’

विशाल अपनी बात समाप्त करे इस से पहले मीनाक्षी मुसकराते हुए बोली, ‘समझ गई विशाल, मैं और किसी के लिए नहीं पर तुम्हारे लिए उन से जरूर मिलूंगी.’ यह कहते हुए वह विशाल की बांहों में झम गई.

मीनाक्षी को यह पता था कि 2-3 साल पहले मुख्यमंत्री की पत्नी का निधन हो गया था, उन का एक ही बेटा है जो यूएस में पढ़ाई कर रहा है. मुख्यमंत्री अकेले ही रहते हैं. एक दिन विशाल ने अपने जन्मदिन की छोटी सी पार्टी में मुख्यमंत्री से मीनाक्षी की मुलाकात करवा दी. विशाल ने देखा कि मुख्यमंत्री मीनाक्षी को ऐसे देख रहे थे मानो वे नजरों से ही उसे निगल जाएंगे. विशाल के चेहरे पर मुसकान की एक महीन लकीर फैल गई. कुछ ही दिनों बाद मीनाक्षी और मुख्यमंत्री में मुलाकातें बढ़ने लगीं. मीनाक्षी ने मुख्यमंत्री पर अपने हुस्न का ऐसा जादू किया कि 4 दिनों में ही विशाल राज्य का चीफ सैक्रेटरी बन गया.

अपने प्रमोशन से अपार खुश विशाल तो अब मीनाक्षी की उंगलियों पर नाचने लगा था. वहीं, मीनाक्षी के पास वीडियोरूपी दोचार ब्रह्मास्त्र थे जिन का उपयोग वह आपातकालीन हालात में कर सकती थी.

एक दिन मीनाक्षी ने विशाल को फोन किया. ‘हैलो विशाल, कौंग्रेचुलेशन. पार्टी कब दे रहे हो?’

‘थैंक्यू मीनाक्षी, तुम ने तो कमाल कर दिया. जो फाइल 6 महीने तक नहीं हिल रही थी, उसे तुम ने 6 दिनों में निबटा दिया. ग्रेट जौब, तुम बताओ पार्टी कब चाहिए?’

‘शुभस्य शीघ्रम. कल ही हो जाए.’

‘व्हाई नौट, मीनाक्षी.’

अब तो मीनाक्षी की आएदिन पार्टियां हो रही थीं. कभी किसी अफसर के साथ तो कभी किसी मंत्री के साथ, कई बार मुख्यमंत्री भी उसे अपने बंगले पर बुला लेते. अब मीनाक्षी का रहनसहन बदल गया था. अरुण नाईक ने भी महसूस किया कि मीनाक्षी के बरताव में अब बदलाव आ रहा है, मगर उस ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वह तो अपनी अपराध की दुनिया में निश्ंिचत हो कर मौजमस्ती लूटने में मशगूल था. उसे पता था कि अब मीनाक्षी की पहुंच मुख्यमंत्री तक है, तो उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

मगर इधर मीनाक्षी के दिमाग में अलग खिचड़ी पक रही थी. वह अब अरुण की करतूतों से तंग आ चुकी थी. उस के छोटेमोटे अपराधों के कारण जबजब उसे जेल हो जाती थी या उस पर मुकदमा चलता था तबतब उसे छुड़ाने के लिए उसे कभी किसी पुलिस के आला अफसर या मंत्री के साथ हमबिस्तर होना पड़ता था. एक दिन उस ने अपने मन की बात विशाल को बताई कि वह अरुण से अब दूर होना चाहती है. उस के आपराधिक जीवन से अब उसे घृणा हो गई है. विशाल कुमार की मदद से उस ने एक योजना बनाई कि किसी मुठभेड़ में फर्जी एनकाउंटर से अरुण का सफाया कर दिया जाए.

पहले तो विशाल ने इस के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया, पर मीनाक्षी ने जब उसे एक वीडियो क्लिप की झलक दिखाई तो उस के पसीने छूट गए. वह घबरा कर बोला, ‘मीनाक्षी, यह वीडियो तुम ने कब  शूट किया?’

मीनाक्षी ने मुसकराते हुए कहा, ‘जनाब, यह तो अपनी पहली मुलाकात का वीडियो है. ऐसे और भी वीडियो मेरे पास हैं. इसलिए, तुम मेरे रास्ते से अरुण को हटाने का इंतजाम कर दो, वरना ये वीडियो वायरल करने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा.’

विशाल के पैरोंतले की जमीन खिसकने लगी. उस ने गिडगिड़ाते हुए कहा, ‘मीनाक्षी, प्लीज इसे डिलीट कर दो. मैं तुम्हारा काम कर दूंगा.’

‘डोंट वरी विशाल, पहले मेरा यह काम कर दो, फिर मैं इसे तुम्हारे सामने ही डिलीट कर दूंगी,’ मीनाक्षी ने शरारती मुसकान बिखेरते हुए कहा.

विशाल का गला सूख गया, बदन पसीने से तरबतर हो गया. उस के सामने अंधकार छा गया. उसे नहीं पता था कि मीनाक्षी ने कोई वीडियो बनाया है. विशाल ने तुरंत हाथपैर मारना शुरू कर दिया. अपने डीआईजी दोस्त से बात की. फिर मुख्यमंत्री को जैसेतैसे पटाया. अरुण इन दिनों पुलिस कस्टडी में ही था. उसे तारीख के मुताबिक कोर्ट ले जाना पड़ता था. पुलिस मौके की तलाश में थी.

एक दिन पुलिस अरुण को उस की बीमार मां से मिलवाने के लिए गांव ले जा रही थी. रात को लौटते समय अरुण लघुशंका के बहाने पुलिस वैन से उतरा. उस ने उतरते समय एक पुलिस अधिकारी की पिस्तौल छीन ली और जंगल में भाग गया. वह पुलिस पर गोली चलाने लगा. जवाबी कार्रवाई में पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में अरुण ढेर हो गया. इस बार विशाल के नसीब से मुठभेड़ असली हुई जिस में अरुण नाईक मारा गया. मगर प्रैस ने इस मामले को नकली एनकाउंटर बता कर बहुत उछाला. कुछ दिनों तक मामला मीडिया में छाया रहा, बाद में धीरेधीरे ठंडा हो गया.

मीनाक्षी को पता नहीं चल सका कि अरुण नाईक की मौत फर्जी एनकाउंटर में हुई है या वह पुलिस पर गोलियां चलाते समय जवाबी कार्रवाई में मारा गया मगर इस का सारा श्रेय विशाल ने ले लिया. मीनाक्षी ने भी यह मान लिया कि विशाल के इशारे पर ही अरुण नाईक का सफाया किया गया है.

अरुण नाईक की मौत के बाद मीनाक्षी ने उस की सारी जायदाद बेच कर दूसरे शहर में बसने का मन बना लिया. वह चाहती थी कि अब वह एक साफसुथरी जिंदगी जिए. जब अरुण नाईक के गैंग के बाकी गुंडों को इस बारे में पता चला तो वे मीनाक्षी से उस जायदाद में अपना हिस्सा मांगने लगे. उन का कहना था कि वे अरुण नाईक के लिए ही काम करते थे, हफ्तावसूली और फिरौती से प्राप्त सारी रकम अरुण के पास जमा होती थी. वे उसी के लिए तो किसी का अपहरण, हत्या, मारपीट आदि करते थे. बंटवारे को ले कर गैंग के लोगों में मारपीट हो गई और गोलियां भी चलीं. मीनाक्षी ने सभी को समझने की कोशिश की. मगर सभी एकदूसरे की जान लेने पर उतारू हो रहे थे.

मीनाक्षी ने इस मामले में विशाल की मदद लेना उचित समझ. इसीलिए वह बारबार विशाल को फोन लगा रही थी.

‘‘मिस्टर विशाल, तुम्हारा ध्यान कहां है?’’ मुख्यमंत्री ने क्रोधित हो कर तेज आवाज में कहा तो विशाल अतीत से वर्तमान में लौटे, बोले, ‘‘सर कहीं नहीं, बस यों ही थोड़ा ध्यान भटक गया था फैमिली मैटर में.’’

मीटिंग खत्म होने के बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन लगाया, ‘‘क्या बात है मीनाक्षी, मैं मुख्यमंत्री के साथ एक मीटिंग में बिजी था.’’

‘‘विशाल, मैं इन गुंडों के बीच बुरी तरह फंस गई हूं. मुझे इन से छुटकारा दिलाओ यार, नहीं तो मैं एक दिन सब को गोली मार दूंगी,’’ गुस्से से तमतमाते हुए मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ओह, मीनाक्षी, थोड़ा धीरज रखो. मैं ने डीआईजी से बात कर ली है. वे एक दिन सब को अंदर डाल देंगे. तब तुम आराम से रहना. अपनी सारी जायदाद भी बेच देना,’’ विशाल ने समझते हुए कहा.

मगर मीनाक्षी राजी नहीं हुई. वह जानती थी कि विशाल का एक फ्लैट खाली पड़ा है जिस में वह इन गुंडों का खात्मा होने तक कुछ दिनों के लिए रह सकती है. मगर विशाल नहीं चाहता था कि मीनाक्षी इस फ्लैट में रहे. यह फ्लैट उस के औफिस के ठीक सामने वाली बिल्ंिडग में था.

आगे पढ़ें- एक दिन रात को करीब 2 बजे…

ये भी पढ़ें- मीठी अब लौट आओ: क्या किया था शर्मिला ने

खिलाड़ियों के खिलाड़ी: भाग 1- क्या थी मीनाक्षी की कहानी

राज्य के चीफ सैक्रेटरी विशाल दिल्ली से आए कुछ उच्च अधिकारियों के साथ हाईलेवल और मोस्ट सीक्रेट मीटिंग में अपना मोबाइल साइलैंट तथा वाइब्रेट मोड पर रख कर बैठे हुए थे. मीटिंग की अध्यक्षता राज्य के मुख्यमंत्री कर रहे थे. मीटिंग शुरू हुए आधा घंटा हुआ था कि उन के सामने उन का रखा मोबाइल वाइब्रेट हुआ.

विशाल ने देखा कि मोबाइल की एक्स्ट्रा लार्ज स्क्रीन पर ‘एम एन’ ये 2 अक्षर बारबार उभर रहे थे. विशाल को यह समझने में देर न लगी कि यह मीनाक्षी नाईक की कौल है. एसी रूम होने के बावजूद विशाल के माथे पर पसीने की बूंदें फैल गईं, उस ने धीरे से अपनी जेब से रूमाल निकाल कर माथे पर फेर दिया, फिर सब से नजरें चुराते हुए ‘मैं मीटिंग में हूं’ लिख कर मैसेज भेज दिया.

विशाल की आंखों के सामने ‘एम एन’ अर्थात मीनाक्षी नाईक की मदहोश करने वाली मोहक छवि उभर आई जिस ने पिछले कुछ समय से उस की नींद हराम कर दी थी. शहर के एक कुख्यात गुंडे अरुण नाईक की पत्नी मीनाक्षी अपने पति के मुकदमे के सिलसिले में करीब 4 साल पहले एक दिन उस से मिलने उस के औफिस आई थी जब वह राज्य के सचिव के पद पर आसीन था.

जब मीनाक्षी नाईक पहली बार उस की केबिन में दाखिल हुई थी तब वह उसे देखते ही रह गया था. विशाल की नजरें मीनाक्षी के चेहरे से हटने का नाम नहीं ले रही थीं. उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार इतनी खूबसूरत महिला देखी थी. बड़ेबड़े कजरारे नशीले नैन, गुलाब की पंखुडियों से रसभरे होंठ, उफनता वक्षस्थल जहां से साड़ी का पल्लू किंचित नीचे खिसक गया था जिसे वह उचित स्थान पर स्थिर करने की असफल कोशिश कर रही थी. काली और घनी रेशमी जुल्फों की लटें उस के चांद से चेहरे पर अठखेलियां करते हुए कभी आंखों, तो कभी गालों, तो कभी लरजते लबों को छू रही थीं जिन्हें वह बारबार कभी अपने कोमल हाथ से तो कभी अपनी सुराही सी गरदन से झटक कर हटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन हर बार उसे नाकामयाबी ही मिल रही थी.

मीनाक्षी ने मुसकराते हुए कहा, ‘गुडमौनिंग सर.’

मीनाक्षी नाईक की मधुर और खनकती आवाज से विशाल की तंद्रा टूटी, वह संभलते हुए बोला, ‘यस, यस वैरी गुडमौर्निंग, प्लीज हैव ए सीट.’

‘थैंक्यू सर,’ कहते हुए मीनाक्षी कुरसी पर बैठ गई. अब मीनाक्षी विशाल के बिलकुल समीप आ गई थी.

‘बोलिए मैडम, मैं आप की क्या सहायता कर सकता हूं,’ मीनाक्षी के चेहरे से नजर हटाते हुए विशाल ने कहा.

‘सर, मैं पहले अपना परिचय देना चाहूंगी. मैं मीनाक्षी नाईक, अरुण नाईक की पत्नी हूं. मैं अपने पति पर चल रहे मुकदमे के सिलसिले में आप से सहायता मांगने आई हूं.’

अरुण नाईक का नाम सुनते ही विशाल की भौंहें तन गईं. वह क्रोधित होते हुए बोला, ‘तो तुम नाईक गैंग के मुखिया अरुण नाईक की पत्नी हो जिस ने पुलिस और सरकार की नाक में दम कर रखा है. शार्पशूटर अरुण नाईक के अपराधों का कोई हिसाब नहीं है. मु?ो माफ करना इस बारे में मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता,’ कहते हुए विशाल ने दोनों हाथ जोड़ दिए.

‘सर, मेरी बात तो सुनिए. इस मामले को प्रैस ने जरूरत से ज्यादा उछाला है. दरअसल,’ मीनाक्षी अपनी बात पूरी भी न कर पाई थी कि तभी विशाल की केबिन में उन के सहायक ने आ कर बताया कि मुख्यमंत्री ने उन्हें तुरंत बुलाया है. इसी बीच मीनाक्षी ने विशाल का विजिटिंग कार्ड ले लिया और उन से विदा लेते हुए वह केबिन से बाहर आ गई.

मीनाक्षी नाईक केबिन से बाहर जरूर चली गई थी मगर उस की मादक और मोहक छवि युवा अफसर विशाल की नजरों के सामने बारबार आ रही थी. विशाल की पत्नी दिल्ली में थी, वह मायानगरी में अकेला ही रह रहा था. बैठेबैठे न जाने उस के मन में ऐसेवैसे विचार आने लग गए. वह अपनेआप को संयमित रखने की नाकाम कोशिश करता रहा. उस का काम में भी मन नहीं लग रहा था. विशाल सोचने लगा कि राज्य के ज्यादातर मंत्री भी तो भ्रष्ट हैं. वे कई बार उस से अपने रिश्तेदारों या यारदोस्तों के फेवर में काम करवाते रहते हैं. फिर उस के विभाग के छोटेमोटे अफसर भी तो दूध के धुले नहीं हैं.

काश, वह मीनाक्षी की पूरी बात सुन लेता. उसे अपनेआप पर गुस्सा आने लगा. दोचार दिन बीत गए. न तो मीनाक्षी का फोन आया न ही वह दोबारा मिलने औफिस में आई. शिकार खुद चल कर आया था और उस ने सुनहरा मौका गंवा दिया था. उस की फाइल ले कर रख लेता, फिर टिपिकल सरकारी अफसर की तरह ‘अभी देख रहा हूं’, ‘कोशिश कर रहा हूं’, ‘मैं ने ऊपर बात कर ली है’, ‘आगे बात हो रही है’, ‘कुछ वक्त लगेगा’, ‘मामला थोड़ा पेचीदा है मगर तुम्हारा काम हो जाएगा’ आदि जुमलों में तो वह भी माहिर है.

एक दिन दोपहर में विशाल लंच से फारिग हो कर अपनी केबिन में सुस्ताते हुए किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहा था. तभी टेबल के एक कोने में रखे मोबाइल की घंटी बजी. उस ने लपक कर मोबाइल उठाया. उधर से आवाज आई-

‘हैलो सर, मैं मीनाक्षी बोल रही हूं.’

मधुर आवाज सुन विशाल की सुस्ती पलभर में फुरती में बदल गई. ‘हां, बोलो मीनाक्षी, उस दिन मु?ो मुख्यमंत्री ने बुला लिया था, इसलिए मैं तुम्हारी बात ध्यान से नहीं सुन सका. फिर औफिस में दिनभर काम का टैंशन भी रहता है.’

‘कोई बात नहीं सर, मैं दोबारा आ जाती हूं. अगर आप बुरा न मानें तो मैं फाइल ले कर शाम को आप के बंगले पर आ जाऊं?’

विशाल मन ही मन खुश होते हुए बोला, ‘नेकी और पूछपूछ.’ फिर उस ने अपने उतावलेपन व उत्साह पर अंकुश रखते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘ठीक है, वैसे मैं बंगले पर किसी को बुलाता नहीं हूं, पर तुम आ जाना.’

‘ओके सर, मैं आज शाम को आती हूं,’ कहते हुए मीनाक्षी ने फोन काट दिया.

बंगले पर पहुंच कर विशाल ने सब से पहले अपने किचन स्टाफ को वीआईपी गैस्ट के आने की सूचना दी. फिर अन्य कर्मचारियों को बारबार यहांवहां न घूमने की सख्त हिदायत दी. रात को 8 बजे मीनाक्षी खूबसूरत गुलदस्ते के साथ विशाल के बंगले पर पहुंच गई.

विशाल ने धन्यवाद देते हुए गुलदस्ता स्वीकार किया. गुलदस्ता लेते वक्त मीनाक्षी के कोमल हाथों का जादुई स्पर्श उस के रोमरोम को रोमांचित कर गया. विशाल ने गुलदस्ता मेज पर रखा और मीनाक्षी को सोफे पर अपने करीब बैठने का इशारा किया. मीनाक्षी झक कर सोफे पर बैठने लगी तो उस की साड़ी का पल्लू उस के उभरे हुए वक्षस्थल से हट गया, जिसे उस ने तुरंत संभाला. पर विशाल की पैनी नजरों ने इस नजारे को कैद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

औपचारिक बातों के बाद मीनाक्षी अपने बैग से मुकदमे से संबंधित फाइल निकालने लगी. तो विशाल ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘अरे, रहने दो मीनाक्षी. इसे बाद में देख लेंगे. तुम पहली बार हमारे आशियाने में आई हो, पहले डिनर करेंगे, फिर तुम्हारी फाइल देख लेंगे.’

डाइनिंग हौल में डिनर लग चुका था. डिनर करने से पहले हौट डिं्रक की भी व्यवस्था थी. विशाल ने मीनाक्षी को डिं्रक की ओर चलने का इशारा किया तो पहले तो उस ने आनाकानी की, मगर विशाल के खास आग्रह करने पर वह मना नहीं कर सकी और अपने हाथ में पैग ले लिया.

मीनाक्षी अपने प्लान में कामयाब हो रही थी. वह पूरी तैयारी के साथ यहां पर आई थी. उस ने विशाल कुमार से हुई पहली मुलाकात में ही उस की नजरों में छलकती उस की ‘खास मंशा’ को भांप लिया था. कहते हैं कि औरतों में ‘सिक्स्थ सैंस’ भी होता है जो पुरुष की आंखों के भावों को अनायास ही समझ लेता है.

मीनाक्षी ने अपने बालों में लगे गजरे के बीच एक ‘हाई पावर माइक्रो कैमरा’ छिपाया था जिस का आकार हेयरपिन की तरह था. पहले जाम टकराए, मीनाक्षी ने बड़े प्यार से विशाल को दोएक जाम ज्यादा पिला दिए और स्वयं बेसिन में हाथ धोने के बहाने अपना प्याला खाली कर देती. इस के बाद डिनर हुआ और डिनर के बाद दोनों बैडरूम में पहुंच गए.

नशे में धुत विशाल भूखे भेडि़ए की तरह उस पर टूट पड़ा था. मीनाक्षी ने बहुत ही सावधानी से शूटिंग कर ली. फिर बाथरूम जाने का बहाना बना कर कैमरेरूपी हेयरपिन को अपने पर्स में संभाल कर रख दिया.

आगे पढ़ें- अपने पति की रिहाई के एक दिन बाद…

ये भी पढ़ें- गली नंबर 10: कौनसी कटु याद थी उसे के दिल में

इंसाफ: कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

crime story in hindi

लिली: भाग 3- अमित ने क्या किया था

दोनों को एकसाथ रहते हुए सालभर से ऊपर हो चुका था. न लिली अमित को अपने मांबाप से मिलवाती, न ही शादी के लिए उस के मन में कोई  खयाल आता.

आजिज आ कर एक दिन अमित ने साफसाफ लफ्जों में शादी करने के  लिए कहा.

‘‘ठीक है, मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, मगर हम रहेंगे कहां? क्या हमारे पास कोई अपना फ्लैट है?’’

‘‘शादी से फ्लैट का क्या ताल्लुक?’’ अमित के सवाल पर लिली तुनक उठी, ‘‘जब तक अपना फ्लैट नहीं होगा, मैं शादी नहीं करूंगी.’’

अमित की लिली के बगैर जिंदगी की कल्पना भी बेमानी थी. वह उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी थी. उस ने काफी दिमाग दौड़ाया. बनारस में पुश्तैनी मकान था. क्यों न उसे बेच कर मुंबई में फ्लैट खरीद लिया जाए? विचार बुरा नहीं था. लिली को अमित का आइडिया पसंद आया.

अमित अगले दिन औफिस से छुट्टी ले कर बनारस आया.

‘‘तुम ने कैसे सोच लिया कि हम पुश्तैनी मकान बेच कर मुंबई में रहने लगेंगे? रही शादी की बात, तो यहीं कोई लड़की देख कर शादी कर लो. मु झे वह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है,’’ अमित के पापा ने साफ शब्दों में कहा.

‘‘पापा, हम कई महीनों से लिव  इन रिलेशनशिप में हैं,’’ सुनते ही पापा भड़क गए.

‘‘शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते हुए. कैसी बेशर्म लड़की है, जो बिना शादी किए तुम्हारे साथ रहती है? और कैसे मांबाप हैं उस के, जो लड़की को बिना शादी किए किसी गैर लड़के के साथ रहने की इजाजत दे दी?’’

अमित अपनी मां की तरफ देख कर लाचार भरे लहजे में बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हीं पापा को सम झाओ. आजकल ऐसे ही चलता है. पहले हम साथ रह कर एकदूसरे को सम झते हैं, फिर ठीक लगता है तो शादी करते हैं, वरना एकदूसरे से अलग हो जाते हैं.’’

‘‘ऐसे तो वह और कइयों से साथ रही होगी?’’ अमित के पापा ने सच ही कहा था, मगर अमित के दिमाग में घुसे तब न. उस के ऊपर तो लिली का भूत सवार था. आखिरकार अमित की मां के आगे पापा को झुकना पड़ा. मकान का एक हिस्सा बेच कर उन्होंने अमित को रुपए दे दिए. जातेजाते एक नसीहत दी कि देखना, तुम एक दिन पछताओगे.

अमित रुपए पा कर मुंबई लौट आया.

फ्लैट लिली के नाम खरीदा. लिली का कहना था कि जब शादी करनी है, तो चाहे तुम अपने नाम खरीदो या फिर मेरे, बात तो एक ही है.

अब दोनों निश्चिंत थे. एक हफ्ते बाद अमित ने लिली से कोर्ट मैरिज करने के लिए कहा. वह टालती रही.

आजिज आ कर एक दिन अमित ने तल्ख शब्दों में कहा, ‘‘लिली, अब देर किस बात की है?’’

‘‘अमित, शादी कर के घरगृहस्थी में तो फंसना ही है. क्यों न कुछ दिन और मजे ले लें,’’ लिली की यह बात उसे अच्छी नहीं लगी.

दूसरे दिन औफिस के काम से अमित अहमदाबाद चला गया. 2 दिन बाद लौटा तो देखा कि एक आदमी उस के फ्लैट के अंदर था.

‘‘यह कौन है?’’ अंदर घुसते ही उस ने सब से पहले लिली से सवाल किया.

‘‘मेरा फुफेरा भाई. आज ही आया है.’’

अमित दूसरे कमरे में आया. पीछेपीछे लिली भी आई.

‘‘पहले तो तुम ने इस के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था. अब यह कहां से आ गया?’’

उस रोज किसी तरह लिली ने बहाना कर के फुफेरे भाई का मामला  टाला. मगर अमित इस से संतुष्ट नहीं था. वह अकसर उस से शादी की जिद करने लगा.

लिली के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. एक दिन उस ने भी त्योरियां चढ़ा लीं.

‘‘मान लो कि मैं तुम से शादी के लिए तैयार नहीं होती हूं, तो तुम क्या कर लेगे?’’ इस सवाल ने अमित को सकते में डाल दिया.

‘‘तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती  हो लिली? हम काफी दूर निकल  चुके हैं.’’

‘‘तुम्हारी गंवई सोच है, वरना तुम्हारे साथ रह कर मैं तो ऐसा नहीं सोचती?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘‘मतलब साफ है. मैं किसी और से शादी करना चाहती हूं.’’

अमित को काटो तो खून नहीं. उसे सपने में भी भान नहीं था कि लिली के मन में उस के प्रति इतना छल भरा है. उसे पापा की बात याद आने लगी, जब उन्होंने कहा था कि देखना, तुम एक  दिन पछताओगे.

लिली ने खुद बताया था कि उस के और भी कई अफेयर हैं. इस के बावजूद अमित नहीं चेता. अब सिवा पछतावे के उस के पास कोई रास्ता नहीं रहा.

फ्लैट लिली के नाम से था. अमित की तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा लिली के ऊपर खर्च होता रहा. वह यही सोचता रहा कि जिस के साथ जिंदगी गुजारनी है, उस से क्या हिसाब ले?

‘‘लिली, तुम मजाक तो नहीं कर रही हो?’’ अमित का स्वर डूबा था.

‘‘बिलकुल नहीं. जिस लड़के को  मैं फुफेरा भाई कह रही थी, वही मेरा पति होगा.’’

‘‘लिली, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया?’’

लिली के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई, ‘‘मैं तुम्हें एक हफ्ते की मोहलत दे रही हूं. इस फ्लैट को खाली कर दो,’’ लिली ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘नहीं छोड़ूंगा. यह मेरा फ्लैट है,’’ अमित की बात पर लिली ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘एक साल तक मेरे जिस्म पर तुम्हारा हक रहा. क्या उस की कीमत नहीं दोगे? थोड़ी सी नकदी, कुछ गहने और यह फ्लैट. इतना ही तो लिया है तुम से. क्या इतना भी नहीं देना चाहोगे  माई डियर…?’’

अमित के पास इस का कोई जवाब नहीं था. गलती तो उस से हुई है, सो दंड भुगतना ही होगा.

‘‘यही कीमत है लिव इन रिलेशनशिप की. मुफ्त में तुम्हें क्यों दूं? एक वेश्या भी अपने शरीर का सौदा करती है, वह भी कुछ घंटों के लिए.

मैं ने तो कई महीने तुम्हारे साथ  गुजार दिए.’’

अमित की आंखों से आंसू निकल पड़े. उसे यही चिंता खाने लगी कि वह अपने मांबाप को क्या मुंह दिखाएगा?

अगली सुबह भरे मन से अमित ने लिली का फ्लैट छोड़ कर वापस बनारस जाने का फैसला ले लिया. लिली के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी. वह खुश थी. चलो, छुटकारा तो मिला. अब किसी और को फांस कर वह लिव इन रिलेशनशिप का खेल खेलेगी.

ये भी पढ़ें- औप्शंस: क्या शैली को मिला उसका प्यार

लिली: भाग 2- अमित ने क्या किया था

अब लिली खुश थी. तकरीबन  2 महीने हो गए दोनों की दोस्ती को. बातोंबातों में लिली ने बताया था कि वह मुंबई में अकेली रहती है. मातापिता पूना में रहते हैं. क्यों न हम एकसाथ रहें?

अमित को यह अटपटा लगा. इस से अच्छा है कि दोनों शादी कर लें.  अमित यही चाहता था, मगर लिली तैयार नहीं हुई.

‘‘अमित, शादी कोई गुड्डेगुड्डी का खेल नहीं. पहले हम एकदूसरे को सम झ लें, फिर शादी कर लेंगे. लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे, तो एकदूसरे को सम झने में आसानी होगी,’’ दोटूक कह कर लिली ने अपनी मंशा जाहिर कर दी.

अब अमित को फैसला लेना था कि वह इसे स्वीकार करता है या नहीं.

अमित लिली को खोना नहीं चाहता था, वहीं उस के संस्कार बिना शादी किसी लड़की के साथ रहने की इजाजत नहीं दे रहे थे.

‘‘यह कैसा संबंध लिली? बिना शादी हम एकदूसरे के साथ रहें? क्या रह जाएगा हमारेतुम्हारे बीच? ऐसे ही  साथ रहना है, तो शादी कर लेने में क्या बुराई है?’’

‘‘कैसी दकियानूसी बात कर रहे हो? मैं बर्फ  नहीं, जो तुम्हारे साथ रह कर पिघल जाऊंगी? साल 6 महीने साथ  रह लेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा?’’  लिली ने उलाहना दिया, ‘‘तुम कौन  सी दुनिया में रह रहे हो अमित. यह  नई दुनिया है. पुराने रिवाज टूट रहे  हैं,’’ लिली के प्रस्ताव के आगे  अमित ने हाथ खड़े कर दिए.

लिली कुछ कपड़े और एक सूटकेस ले कर अमित के पास रहने चली आई. लिली रविवार को अपने मांबाप से मिलने पूना जाती थी. अमित भी जाना चाहता था, मगर वह मना कर देती. पर क्यों, यह उस की सम झ से परे था.

लिली के रूपरंग में पूरी तरह डूबे अमित को लिली के सिवा कुछ नहीं सू झता. आहिस्ताआहिस्ता लिली अमित के हर मामले में दखल देने लगी. अमित पूरी तरह से लिली पर निर्भर हो गया.

अपने महीने की तनख्वाह लिली के हाथ में सौंप कर अमित निश्चिंत रहता. एक दिन लिली पूना गई, तो 3 दिन  बाद लौटी.

अमित परेशान हो गया. लिली को फोन लगाता, तो स्विच औफ  मिलता.  3 दिनों के बाद लिली लौट आई.

अमित ने शिकायत भरे लहजे में उस से हुई देरी की वजह पूछी, तो वह नाराज हो गई. वह बोली, ‘‘अमित, मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं. हम दोस्त हैं. बेहतर होगा, मेरे बारे में ज्यादा खोजबीन न किया करो.’’

यह सुन कर अमित को बुरा लगा. मगर यह सोच कर चुप रहा कि लिली ने सही कहा कि वे सिर्फ  दोस्त हैं.

अमित के बिगड़े मूड को लिली ने भांप लिया. सो, गलती सुधारने की नीयत से वह अमित के करीब आ कर बैठ गई. उस के बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘डार्लिंग, नाराज मत होना. मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने रोक लिया, तो रुकना पड़ा.’’

लिली की सफाई पर अमित का मूड बदल गया.

‘‘तुम नहीं जानती कि मैं कितना परेशान था,’’ बच्चे सरीखा बरताव था अमित का. लिली उस की कमजोरी जानती थी.

सुबह दोनों अपनेअपने काम पर निकल गए. शाम को दोनों ने फिर से बाहर खाने की योजना बनाई. रात 10 बजे लौट कर आए. जैसे ही आराम करने के लिए बिस्तर पर गए, तभी लिली के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह बरामदे में आई. वह 15 मिनट बाद वापस आई. आते ही बिस्तर पर पड़ गई.

अमित ने इस बार कोई सवाल नहीं किया, क्योंकि वह जान चुका था कि लिली इसे अपना पर्सनल मामला कह कर चुप करा देगी.

अमित सोचने लगा यह कैसा संबंध है कि मेरी हर चीज पर लिली का हक है. बदले में कुछ पूछता हूं तो यह कह कर मुंह बंद करा देती है कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं?

एकबारगी अमित का मन हुआ कि वह लिली से साफ साफ  कह दे कि या तो वह उस से शादी कर ले, नहीं तो अपना बोरियाबिस्तर समेट कर चली जाए.

ऐसा करने की वह सोच ही रहा था कि अगली शाम लिली ने उसे एक शर्ट खरीद कर तोहफे में दी.

‘‘यह क्या…?’’ अमित ने सवाल किया.

‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है,’’ लिली बोली, तो अमित जज्बाती हो गया.  उस ने लिली को बांहों में भर लिया. अमित का सवाल सवाल ही रह गया.

अगले दिन रविवार था. लिली अपनी मां के पास जाने लगी.

‘‘क्या मैं तुम्हारी मां से नहीं मिल सकता?’’ अमित बोला, तो लिली सकपका गई.

‘‘अभी समय नहीं आया है,’’ कह कर लिली चली गई. एक ही छुट्टी मिलती थी, वह भी लिली अपनी मां के पास गुजार देती थी. अमित दिनभर बोर होता. आज उस ने अकेले ही घूमने का मन बनाया. मरीन ड्राइव पर बैठा वह समुद्र की लहरों को निहार रहा था कि लिली का फोन आया.

‘अमित मु झे एक लाख रुपए की सख्त जरूरत है. अभी और इसी वक्त मेरे खाते में डाल दो. सारी बातें आने पर बताऊंगी,’ कह कर लिली ने फोन काट दिया. लिली ने अपने एकाउंट की डिटेल भेजी थी.

अमित ने बिना देर किए उतने रुपए ट्रांसफर कर दिए.

लिली जब लौटी, तो बदहवास थी मानो किसी बहुत बड़ी मुसीबत से छूट कर आई हो.

‘‘तबीयत तो ठीक है न…?’’ अमित ने पूछा.

‘‘नहीं, आज मैं औफिस नहीं जाऊंगी,’’ कह कर लिली सो गई.

अमित अकेले ही काम पर चला गया. शाम को वह लौटा, तो लिली के लिए पिज्जा लेता आया. पिज्जा देख कर लिली खुश हो गई.

दोनों पिज्जा खाने लगे. बीच में अमित ने रुपयों की बात छेड़ी.

‘‘रुपए तुम को वापस मिल जाएंगे,’’ लिली के इस कथन से अमित संतुष्ट नहीं था. लिली ने भांप लिया. उस ने उस के मुंह में पिज्जा डालते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, क्यों परेशान होते हो? क्या अपनी लिली के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं सोच रहा था कि ऐसे कब तक चलेगा?’’

‘‘मैं सम झी नहीं?’’ लिली बोली.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘फिर वही शादी का रोना. अमित तुम सम झने की कोशिश करो. जब तक हम दोनों एकदूसरे को सम झ नहीं लेते, शादी का कोई मतलब नहीं है.’’

तभी लिली के मोबाइल की घंटी बजी. वह पिज्जा बीच में खाना छोड़ कर बरामदे में आई. अमित सोफे पर बैठा लिली का इंतजार करने लगा. तकरीबन 15 मिनट बाद वह आई.

‘‘किस का फोन था?’’ अमित से रहा न गया.

‘‘मेरे एक्स बौयफ्रैंड का फोन था.’’

‘‘क्या तुम्हारा किसी और से भी संबंध था?’’

‘‘हां, यह तो आम बात है. मैं उस के साथ एक साल तक रिलेशन में थी.’’

अमित को यह जान कर धक्का  सा लगा.

आगे पढ़ें- आजिज आ कर एक दिन अमित ने…

ये भी पढ़ें- कोरोना वायरस के जाल में: क्या हुआ गरिमा के साथ

लिली: भाग 1- अमित ने क्या किया था

लिली की बिंदास पहल ने अमित को मुश्किल में डाल दिया. एक दिन वह हंस कर बोली, ‘‘क्या तुम मुझसे दोस्ती करना पसंद करोगे?’’

उस रोज अमित  झेंप गया. उसे कोई जवाब नहीं सू झा. बस, मुसकरा दिया.

रातभर वह लिली के ही बारे में सोच रहा था. कल जब उस से मुलाकात होगी, तो वह क्या जवाब देगा? क्या उस के प्रस्ताव को ठुकरा देगा?

लिली पहली लड़की थी, जिस ने उसे प्रपोज किया. एक अदने से शहर  से जब वह मुंबई नौकरी करने  आया था, तब सिवा नौकरी के उसे

कुछ नहीं पता था. न ही यहां की लड़कियों के तौरतरीके, न ही इस शहर का मिजाज.

लिली अमित को एक रैस्टोरैंट में मिली थी, जहां वह अकसर खाना खाने जाता था. यहीं से दोनों में जानपहचान शुरू हुई.

लिली ने उसे अपना ह्वाट्सएप का नंबर दिया और कहा, ‘‘अगर हां हो, तो जरूर संदेश देना.’’

लिली खूबसूरत थी. छोटे शहर की लड़कियों से अलग उस का रूपरंग बहुत अच्छा. वह फैशनेबल थी.

अमित के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. सोचविचार कर उस ने फैसला लिया कि वह लिली की पहल को नहीं ठुकराएगा.

अगले दिन जब अमित रैस्टोरैंट गया, तो सब से पहले उस की नजर लिली की चेयर पर गई. यही समय होता था लिली के आने का.

अमित ने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, मगर वह नहीं दिखी. वह बेचैन हो गया. आज उस के दिल में एक खालीपन का अनुभव हुआ. कुरसी पर बैठ कर वह खाने का इंतजार करने लगा. रहरह कर उस की नजर दरवाजे पर चली जाती.  तभी लिली आती दिखी. अमित का चेहरा खिल गया.

लिली ने मुसकरा कर उसे विश किया. उस के बाद अपनी चेयर पर बैठ कर लिली मोबाइल पर उंगलियां फेरने लगी. अमित से रहा न गया. उस ने तत्काल उसे मैसेज दिया, ‘शाम को खाली हो?’

लिली ने मैसेज का तुरंत जवाब दिया, ‘हां.’

इस तरह दोनों ने शाम को साथ बिताने का फैसला लिया. एक तय जगह पर दोनों मिले. मोटरसाइकिल पर बैठ कर मरीन ड्राइव पर आए. समुद्र के किनारे लगे चबूतरे पर बैठ कर दोनों आपस में बातचीत करने लगे.

‘‘तुम किस कंपनी में हो?’’ लिली ने पूछा.

‘‘मैं यहीं एक सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में इंजीनियर हूं.’’

‘‘अकेले हो? मेरा मतलब शादी से है,’’ लिली ने पूछा.

‘‘अभी कुंआरा हूं,’’ कह कर अमित हंसा.

कुछ सोच कर अमित ने लिली से भी यही सवाल किया. जवाब में लिली ने बतलाया कि वह कुंआरी है. एक कुरियर कंपनी में नौकरी करती है.

इस तरह जब भी समय मिलता, वे दोनों एकदूसरे के साथ बिताना पसंद करते. धीरेधीरे दोनों के संबंध गाढ़े  होते गए.

एक रोज लिली गले में सुंदर सी चेन पहन कर आई थी. अमित ने देखा, तो तारीफ किए बिना न रह सका.

‘‘मां ने दी है. आज मेरा बर्थडे है,’’ लिली की इस बात से अमित को शर्मिंदगी हुई. बौयफ्रैंड होने के नाते यह हक सब से पहले उसे जाता था. काश, पहले पता होता, तो वह निश्चय  ही लिली को सरप्राइज दे कर निहाल  कर देता.

अमित कुछ सोच कर बोला, ‘‘देर से ही सही, आज तुम्हारा बर्थडे मेरे फ्लैट पर धूमधाम से मनेगा. मां से बोल दो कि आने में देर होगी.’’

अमित बहुत खुश था. लिली के साथ वह एक अच्छी सी दुकान में गया. वहां उस की पसंद के सोने के  झुमके दिलवाए. 40,000 रुपए का बिल चुकता किया.

लिली ने मना किया, मगर अमित के लिए अपने पहले प्यार का तोहफा था. उस के बाद केक और पिज्जा ले कर अपने फ्लैट पर आया. दोनों ने खूब मजे किए. रात 11 बजने को हुए. ‘‘अच्छा तो मैं चलती हूं,’’ कह कर लिली ने अपना पर्स संभाला.

अमित का मन तो नहीं था उसे छोड़ने का, मगर कैसे कहे. जुमाजुमा चार दिनों की मुलाकात थी. कहीं वह बुरा न मान ले.

लिली अमित के करीब आई. उस के गालों को हलके से चूम लिया. अमित का रोमरोम खिल उठा.

लिली के जाने के बाद अमित उस के ही ख्वाबों और खयालों में डूबा रहा. रहरह कर गालों पर अपनी उंगलियां फेरता तो ऐसा लगता लिली अब भी उस के करीब है. एक अजीब सी मादकता उस के ऊपर हावी हो गई. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन लिली का था.

‘‘पहुंच गई?’’ अमित ने पूछा.

‘हां,’ लिली का जवाब था, ‘क्या कर रहे हो? सोए नहीं?’ उस ने पूछा.

‘‘नींद नहीं आ रही,’’ अमित का जवाब था.

‘रात के 2 बज रहे हैं. औफिस नहीं जाना है?’

‘‘यार, तुम तो अभी से मेरी चिंता करने लगी?’’

‘क्या करूं. दिल के हाथों मजबूर हूं.’

‘‘ऐसा क्या देखा मु झ में?’’ पूछ कर अमित हंसा.

लिली सोच कर बोली, ‘कभीकभी भावनाओं के आगे शब्द कम पड़ जाते हैं,’ वह आगे बोली, ‘तुम ने मु झ में क्या देखा?’

अमित थोड़ा शरमाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे होंठ. जब गुलाबी लिपस्टिक लगा कर आती हो, तो ऐसा लगाता है मानो गुलाब की 2 पंखुडि़यां एकदूसरे को चूम रही हों.’’

‘ऐसा था तो पहल क्यों नहीं की?’ लिली ने शरारत की.

‘‘डरता था, कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘मन तो नहीं कर रहा, पर क्या करें नौकरी जो करनी है. अच्छा, गुडनाइट,’ लिली ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया.

आज लिली सफेद कपड़े पर गुलाब रंग के फूल बने छींटे वाला पहन कर आई थी. बालों को खास तरीके से गूंथा था. लट चेहरे पर  झूल रही थी. गोरा रंग उस पर सुर्ख गुलाबी होंठ कयामत ढा रहे थे. अमित उसे देखता ही रह गया.

आज शाम दोनों ने फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया. सिनेमाघर का सन्नाटा पा कर अमित की भावनाएं कुछ ज्यादा उबाल लेने लगीं. रहा न गया तो उस के होंठों को चूम लिया. लिली पहले तो सकपकाई, पर बाद में सहज हो गई.

यह सिलसिला अब ऐसे ही चलता रहा. अब दोनों के बीच कुछ भी परदा नहीं रहा.

एक रोज लिली परेशान थी. अमित ने उस की परेशानी की वजह पूछी, तो वह बोली, ‘‘मु झे 50,000 रुपए की सख्त जरूरत है.’’

यह पहला मौका था, जब लिली ने उस से रुपयों की डिमांड की. इज्जत का सवाल था, इसलिए वह मना न कर सका. तुरंत उस के खाते में 50,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए.

आगे पढ़ें- अमित को यह अटपटा लगा. इस से…

ये भी पढ़ें- प्रोफाइल पिक्चर: रंजीत ने क्या किया था

पीछा करता डर: भाग 4- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

युवती कुनमुनाते हुए उठी और मेज पर आ कर बैठ गई. नशे में धुत नंदन माथुर चुपचाप बैठे थे. भानु ने युवती के लिए बड़ा सा एक पैग बनाया और उस के हाथ में थमाते हुए बोला, ‘‘ये पियो और खाना खा कर सो जाओ. इस के बाद मैं भी अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

युवती ने एक ही बार में गिलास खाली कर दिया. पीने के बाद तीनों ने साथसाथ खाना खाया. खाना खातेखाते तीनों ही नशे में डूब चुके थे. खाना खाने के बाद भानु नंदन की ओर देख कर उठते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू फौर ड्रिंक्स एंड डिनर. अब चलता हूं.’’

‘‘फोटो तो डिलीट कर दो. तुम ने वादा किया था.’’ नंदन माथुर ने कहा, तो भानु कोट की जेब में डाथ डालते हुए बोला, ‘‘हां, वादा तो किया था. वादा निभाने में भी मुझे कोई एतराज नहीं है.’’ भानु जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लो, ये लो मोबाइल ही रख लो. तुम कोई गैर थोड़े ही हो. सुबह ले लूंगा.’’

नंदन ने मोबाइल लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो भानु ने हाथ पीछे खींच लिया. वह युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘दोस्त, मुझे फोटोग्राफी का बड़ा शौक है. अब एक क्लाइमेक्स सीन और बनाना है. उस के बाद मोबाइल तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘कौन सा सीन?’’

‘‘तुम दोनों एक बार गले लग जाओ.’’

‘‘ब्लैकमेल करना चाहते हो हमें’’ नंदन माथुर ने कहा, तो भानु बोला, ‘‘ब्लैकमेल ही करना होता तो इस सब की जरूरत नहीं थी. काफी सबूत जुटा लिए मैं ने नंदन माथुर को नंगा करने के लिए. तुम लोग हकीकत में एंजौय कर रहे हो और मैं केवल उस की एक झलक देखना चाहता हूं. चलो दोस्त, दोनों आलिंगनबद्ध हो जाओ. उस के बाद मैं इस कमरे की घुटन में एक पल भी नहीं रूकूंगा.’’

नंदन माथुर और युवती नशे में थे और भानु को किसी तरह टालना चाहते थे. अत: उसे खुश करने के लिए एकदूसरे की बाहों में सिमट गए. जब वे दोनों एकदूसरे की बांहों में सिमटे थे, तभी भानु ने तड़ातड़़ उन के 2-3 शौट खींच लिए.

फोटो खींचने के बाद भानु ने मोबाइल जेब में डाला और हाथ हिला कर दरवाजे की ओर बढ़ते हुए बोला, ‘‘गुड नाइट फ्रैंडस, सुबह चाय पर मुलाकात होगी.’’

‘‘भानु,’’ नंदन गुस्से में चीखे, ‘‘ये क्या बद्तमीजी है. तुम ने फोटो डिलीट करने की बात की थी. हम ने तुम्हारी हर बात मानी, अब मोबाइल दो मुझे.’’

भानु ने पीछे मुड कर नंदन की ओर देखा और मुस्कराते हुए व्यंग्य में बोला, ‘‘पता नहीं इतना बड़ा बिजनैस कैसे चलाते हो! अक्ल तो खाक की भी नहीं है तुम्हारे अंदर. जरा सोचो, जिस कैमरे में इतनी कीमती फोटो हों, उसे मैं तुम्हें मुफ्त में क्यों दूंगा.’’

‘‘ये बात पहले ही तय हो चुकी थी. तुम ने खुद ही वादा किया था.’’

भानु वापस लौट कर नंदन के पास आया और उस के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘दोस्त, यह मामला रुपएपैसे या बिजनैस का नहीं है. ऐसे धंधों में वादा खिलाफी आम बात है. बड़ी सीधी सी बात है, इस हाथ लो, इस हाथ दो. मेरा खयाल रखोगे तो मैं मोबाइल तुम्हारे हाथ में थमा दूंगा.’’

‘‘और क्या चाहिए तुम्हें?’’ नंदन ने गुस्से में पूछा, तो भानु युवती की ओर देख कर मुस्कराते हुए बोला, ‘‘ये…क्या नाम है इस का? ओह, आईसी, जान का जंजाल. आज की रात तुम्हारी जान के जंजाल को अपनी जान का जंजाल बनाना चाहता हूं. बोलो, हां या न?’’

‘‘भानु.’’ नंदन गुस्से में चीखे तो भानु सहज स्वर में बोला, ‘‘गुस्सा सेहत के लिए हानिकारक तो होता ही है नंदन! कभीकभी इज्जत के लिए भी दुखदाई बन जाता है. ठंडे दिमाग से सोचो, इस मोबाइल में तुम्हारी और इस लड़की की जिंदगी की हकीकत कैद है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो यह हकीकत यहीं दफन हो जाएगी और नहीं मानी तो यही हकीकत सजधज कर मेरठ की सड़कों पर भरतनाट्यम करेगी.’’

‘‘यह ठीक नहीं है भानु.’’ नंदन माथुर हथियार डालते हुए परेशान हो कर बोले, ‘‘किसी की इज्जत से इस तरह खेलना ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं इज्जत से कहां खेल रहा हूं. मैं तो सिर्फ अपना हक मांग रहा हूं.’’ भानु युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘बंद कमरे में तुम एक जवान लड़की के साथ ऐश कर सकते हो, तो क्या मैं नहीं कर सकता? मैं तो उम्र में भी तुम से साल 2 साल छोटा ही हूं.’’

‘‘ये लड़की कालगर्ल नहीं है भानु. मेरी…’’

‘‘तुम्हारी प्रेमिका है,’’ भानु नंदन का वाक्य पूरा करते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘दो बच्चों के बाप और चालीस साला आदमी की चौबीस साला कोई प्रेमिका भी हो सकती है, यह आज पहली बार पता चला. यह भी आज पहली बार जाना कि कोई शादीशुदा लड़की अधेड़ उम्र के अपने प्रेमी के लिए मायके जाने के नाम पर पति को धोखा दे कर ऐश करने के लिए मेरठ से दिल्ली आ सकती है.’’

पलभर रूक कर भानु युवती की बगल में खड़ा होते हुए बोला, ‘‘जो लड़की मानमर्यादा और पति को छोड अपने से डेढ़ गुनी उम्र वाले मर्द की बांहों में सिमट सकती है, वह कालगर्ल से कम नहीं होती.

तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, जैसा तुम्हारा पति, वैसा ही नंदन और वैसा ही मैं. इज्जत का जरा भी खयाल है तो हां कर दो.’’

नंदन समझ चुके थे कि बाजी भानु के हाथों में है. अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्हें मोबाइल हासिल करना जरूरी लगा. सोच विचार कर उन्होंने लड़की से बात की. युवती भी जान चुकी थी कि इज्जत बचाने का एक ही विकल्प है कि वह भानु के साथ जाए. उस ने हां कर दी, तो नंदन भानु से बोले, ‘‘मोबाइल दो, सुजाता तुम्हारे कमरे में जा रही है.’’

भानु ने इस बार कोइ नानुकुर नहीं की. सुजाता का हाथ थामते हुए उस ने जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन की ओर बढ़ा दिया. जातेजाते वह नंदन की ओर देख कर बोला, ‘‘दोस्त बुरा मत मानना. इस पर दिल आ गया था, इसलिए इतना प्रपंच करना पड़ा. 2 घंटे बाद इसे वापस भेज दूंगा. सोना नहीं, इंतजार करना.’’

भानु सुजाता के साथ कमरे से बाहर निकल गया. नंदन मोबाइल हाथ में थामे खड़े रह गए. मोबाइल गौर से देखा तो याद आया, भानु पिछले महीने विदेशी टुअर से लौटा था तो एक जैसे 2 मोबाइल ले कर आया था, एक अपने लिए, एक उन के लिए. लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया था. देखा, उस मोबाइल में उन का और सुजाता का कोई फोटो नहीं था. इस का मतलब भानु ने उन्हें दूसरा मोबाइल थमा दिया था.

हालांकि भानु ने कमरा नंबर बताया था. पर उन्हें भरोसा नहीं था कि उस ने सच बोला होगा. रात में तमाशा करना उन्हें वैसे भी ठीक नहीं लगा. वह बेड पर जा लेटे, लेकिन नशे के बावजूद वह सो नहीं सके. 2 घंटे बाद जब सुजाता वापस लौटी, तो वह जाग रहे थे. सुजाता नशे में भी थी और थकी हुई भी वह आते ही सो गई, लेकिन नंदन माथुर रातभर नहीं सो सके.

सुबह 7 बजे जब डोर बेल बजी तब भी नंदन जाग रहे थे. उन्होंने दरवाजा खोला, तो भानु को सामने खड़े पाया. वह कुछ कहते इस से पहले ही भानु बोला, ‘‘मैं जा रहा हूं. मेरा मोबाइल लौटा दो.’’

‘‘मैं ने तोड़ कर डस्टबिन में डाल दिया तुम्हारा मोबाइल. कहो तो ला दूं.’’ नंदन ने गुस्से में कहा, तो भानु ने मुस्कराते हुए जेब में हाथ डाल कर वैसा ही मोबाइल निकाल कर दिखाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं दोस्त, वो तुम्हारा ही था. मेरा मोबाइल तो मेरे पास है और उस में फोटो और रिकौर्डिंग दोनों हैं.’’

भानु अपनी बात कह कर आगे बढ़ गया नंदन मूक खड़े उसे जाते देखते रह गए.

अगले दिन शाम को भानु ने नंदन को पीनेपिलाने के लिए अपनी कंपनी में बुलाया तो वह डर की वजह से इनकार नहीं कर सके. दोनों आमनेसामने बैठे. हमेशा की तरह बातचीत कुछ नहीं.

एकएक पैग पीने के बाद भानु ने जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन के सामने रखते हुए कहा, ‘‘मुंह मत बना, ले खुद सब कुछ डिलीट कर दे. तू दोस्त है मेरा. तेरी इज्जत मेरी इज्जत. तू सुजाता को छुपा रहा था, इसलिए ऐसा करना पड़ा. मैं ने तो हमेशा हिस्सा बांटा है तुम से.’’

ये भी पढ़ें- कौन अपना कौन पराया: अमर ने क्या किया था

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें