2 दिनों बाद रक्षाबंधन था. बड़ी हवेली में ही सब आते और यहीं राखी मनाई जाती. वह बेताबी से रक्षाबंधन का इंतजार करने लगी. उसे पूरा भरोसा था सब उसी का साथ देंगे. उस की सेवा और पूरे परिवार के लिए समर्पण किसी से छिपा न था. बेटा अतुल भी आने वाला था. राजेश्वर की प्रेमकहानी उसी दिन सुनाई जाएगी.
रक्षाबंधन वाले दिन सवेरे उठ कर सुधा ने पकवान और खाना बना कर रख दिया. देखतेदेखते सभी आ गए. राखी बांध कर बहनें नेग के लिए सुधा की ओर देखने लगीं. पर सुधा चुप बैठी रही. उस ने देवरानी को भोजन परोसने को कहा तो सब हैरान रह गए. सौसौ मनुहार से खाना खिलाने वाली सुधा को क्या हो गया? खाने के बाद सुधा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘आज सब के सामने अपनी एक समस्या बता रही हूं. कृपया, मुझे आज इस का कोई समाधान बताएं.’’ यह कह कर सुधा ने राजेश्वर की सारी प्रेमकहानी आरंभ से अंत तक सुना दी.
इस बीच न जाने कब राजेश्वर उठ कर बाहर चले गए. कुछ देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा. फिर बड़ी ननद बोली, ‘‘भाभी, इस उम्र में आप को भैया पर यही लांछन लगाने को मिला था.’’ छोटी ननद बोली, ‘‘भैया इतने बड़े ओहदे पर हैं आप तो उन के पद की गरिमा भी भूल गई हैं. आप उन के सामने क्या हैं? उन के मुकाबले में कुछ भी नहीं, फिर भी भैया को आप से कोई शिकायत नहीं है.’’
सुधा ननदों की बातें सुन कर हैरान हो रही थी कि देवर बोला, ‘‘भाभी, मेरे राम जैसे भाई पर इलजाम लगाते शर्म न आई.’’ देवरानी मुंह में पल्लू दिए अपनी हंसी को भरसक दबाने की कोशिश कर रही थी. बस, अतुल ही सिर नीचा किए बैठा था.
अब सुधा का धैर्य जवाब दे गया. वह सोचने लगी, ये वही ननदें, देवर और पति हैं जिन की सेवा में मैं ने खुद को भुला दिया. जिन के लिए मैं ने अपने संगीत, रूपरंग की बलि चढ़ा दी. मेरे अस्तित्व और स्वाभिमान पर इतना बड़ा आघात. अपने गहने, कपड़े, सेवाएं दे कर आज तक इन की मांगें पूरी करती आई हूं.
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सब बहाने से उठ कर जाने लगे तो सुधा तिलमिला उठी, बोली, ‘‘तो सुनिए आप के उसी राम सदृश्य भाई ने मेरे साथ विश्वासघात किया है. आज मैं ने भी उन से तलाक ले कर अलग रहने का फैसला लिया है.’’ सुधा को उम्मीद थी कि सब मुझे मनाने आगे आएंगे.
अभी वह यह सोच ही रही रही थी कि राजेश्वर की आवाज आई, ‘‘आज सब राखी का नेग ले कर नहीं जाएंगे?’’ देखतेदेखते राजेश्वर ने 500 रुपए के नोट की गड्डी निकाली. बहनों के साथ छोटी भाभी को भी रुपए दिए. नेग ले कर सब घर जाने को तैयार हो गए. सुधा मूर्ति की तरह बैठी रही.
जातेजाते ननदें सुधा को गीता का ज्ञान देने लगीं, ‘‘भाभी बुजुर्ग हो गई हो, बेतुकी बातें बोलना छोड़ समझदार बनो.’’ देवर भी कहां पीछे रहने वाले थे, बोले, ‘‘इस उम्र में तलाक ले कर पूरे खानदान का नाम रोशन करोगी क्या?’’ और पत्नी का हाथ पकड़ निकल गए.
अतुल ही खिन्न सा बैठा रहा. सब के जाते ही घर में मरघट सा सन्नाटा पसर गया. अतुल भी घर में आने वाले भयंकर तूफान के अंदेशे से बचने के लिए घर से बाहर निकल गया.
अब सुधा और राजेश्वर दोनों ही सांप और नेवले की तरह एकदूसरे पर आक्रमण करने लगे. सुधा अपनी सेवाओं और घर के लिए की कुरबानियों की दुहाई देती रही तो राजेश्वर उस की पत्नी के रूप में नाकाबिलीयत के किस्से सुनाते रहे.
राजेश्वर ने आखिरकार सोचा, सुधा तलाक की गीदड़ भभकी दे रही है. जाएगी कहां? मायके में एक भाईभाभी रह गए थे. वे भी जायदाद बेच कर विदेश जा बसे. पढ़ाईलिखाई में कुछ खास न तो डिगरी ही है, न 46 की उम्र में कोईर् नौकरी के योग्य है. इसलिए सुधा से मुखातिब हो कर बोले, ‘‘जो जी में आए करो. तुम्हारी योग्यता तो बस किचन तक की है. यह तुम भी जानती हो.’’
सुधा तिलमिला कर बोली, ‘‘मैं ग्रेजुएट हूं, संगीत जानती हूं. तुम ने मेरे स्वाभिमान को ललकारा है और कुरबानियों को नकारा है. अब क्या तुम्हें ऐसे ही छोड़ दूंगी, गुजाराभत्ता भी लूंगी और हवेली में हिस्सा भी. मेरा बेटा है अपने दादा की जायदाद पर उस का भी हक है.’’
यह सुन राजेश्वर सन्न रह गए. पैर पटकते घर से बाहर चले गए. सुधा सिर से पैर तक सुलग रही थी. उस ने अंजू को फोन कर बुलवा लिया. अंजू आ गई तो उस ने सारी बातें कह सुनाईं.
अंजू बोली, ‘‘अच्छी तरह सोचसमझ लो बूआ. एक बार तलाक की अर्जी लग गई, फिर लौटने पर किरकिरी होगी.’’
सुधा बोली, ‘‘सब स्वार्थ से मेरे साथ जुड़े थे. स्वार्थ खत्म होते ही दूर हो गए. तुम अर्जी लगा दो.’’
अतुल घर आ गया था. यह सब जान कर बोला, ‘‘मां, अकेले रह लोगी न? मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है. आप के साथ अन्याय तो हुआ है पर मैं पापा को भी नहीं छोड़ूंगा. वैसे भी मम्मी, मैं ने अपनी एक सहपाठिन से विवाह करने का मन बना लिया है. आप दोनों के पास आताजाता रहूंगा. शादी कोर्ट में करूंगा.’’
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अतुल की व्यावहारिकता देख सुधा हैरान रह गई. काश, उस के पास भी ऐसी व्यावहारिक बुद्धि होती तो वह समय रहते संभल जाती और अपनों से न छली जाती.
तलाक की अर्जी पर राजेश्वर ने भी साइन कर दिए. वे गरिमा के साथ सुखमय जीवन के सपने देखने लगे. पहली पेशी पर जज द्वारा कारण पूछे जाने में दोनों ने खुल कर एकदूसरे की कमियों का बखान किया. जज ने समझौते के लिए 6 महीने का समय दिया. सुधा को 40 हजार रुपए गुजारे भत्ते और हवेली के पिछले हिस्से में रहने का अधिकार मिला. बाद में विधिवत म्यूचुअल तलाक हो गया. राजेश्वर गरिमा के फ्लैट में शिफ्ट हो गए.
अब सुधा को अपनेपराए की पहचान हो गई. सेवाभाव, परिवार के लिए त्याग, बलिदान की नाकामी का एहसास अच्छी तरह हो गया. सब से बड़ी सीख सुधा को यह मिली कि इस जीवन में उस ने अपने वजूद को, गुणों को, रूपरंग को दांव पर लगा कर जो फैसले किए वे गलत थे. चाहे जितनी सेवा कर लो, परिवार के लिए कुरबानी दे दो पर अपने वजूद को दरकिनार न करो. अब वह अपनी बाकी जिंदगी को संवारने के लिए कटिबद्ध हो गई. 2 कमरे, 4 लड़कियों को किराए पर दे दिए. रौनक भी रहेगी और कुछ आमदनी भी हो जाएगी. कालेज के रिटायर्ड संगीत सर के घर जा नियमित रियाज करना शुरू कर दिया. कुछ ही समय बाद संगीत सम्मेलनों में अपने गुरुजी के साथ जा कर शिरकत भी करने लगी.
समय का पहिया आगे निकल गया था. एक दिन सुधा एक संगीत प्रोग्राम में जजमैंट करने आ रही थी कि उस की कार लालबत्ती पर रुक गई. कार की खिड़की से बाहर देखने पर सड़कपार किसी डाक्टर के क्लिनिक से राजेश्वर एक युवक का सहारा लिए निकल रहे थे. एकदम कमजोर हो चुके थे. आसपास गरिमा या कोई और नहीं था. तभी हरी बत्ती हो गई. गाड़ी बढ़ गई.
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