कोविड ने आज सबकी लाइफस्टाइल बदल दी है, कोविड की वजह से किसी का किसी के साथ मिलना, मौज-मस्ती करना, फेस्टिवल का आनंद लेना सब बदल चुका है, आज भी लोग जरुरत के बिना घर से बाहर निकलना पसंद नहीं करते. आसपास के माहौल में काफी डर है. अभी भी कोरोना के मरीज हर कोविड अस्पतालों में है.खुलकर जीने की जो आदत लोगों की विश्व में थी, उसे फिर से वापस पाने में शायद कुछ साल और बीत जायेगे, लेकिन इस कोविड ने फिल्म इंडस्ट्री के वयस्कों के मानसिक और शारीरिक क्षमता को कमजोर किया है, फलस्वरूप इरफ़ान खान, ऋषि कपूर, सौमित्र चटर्जी, दिलीपकुमार, लतामंगेशकर, संध्या मुखर्जी और बप्पी लहड़ी जैसे कई प्रसिद्ध लोग पिछले दो सालों में गुजर चुके है, ऐसे में किसी के भी जीवन गारंटी आज नहीं है, जितना समय मिलता है, उसे अच्छी तरह से बिता लेना ही अच्छा होता है,ऐसा कहते है 60 और 70 के सुपरस्टार, अभिनेता, प्रोड्यूसर, सिंगर विश्वजीत चटर्जी. उनके हिसाब से बचना और जिन्दा रहना ये दो अलग बाते है, जो किसी के हाथ में नहीं है. इसका प्रभाव आज कोविड की वजह से हर किसी के जीवन पर है. हालाँकि वैक्सीन से कुछ राहत मिली है, पर विश्वजीत का परिवार सभी निर्देशों को पालन कर भी कोविड की दूसरी लहर के शिकार हुए और बहुत मुश्किल से ठीक हुए. उनकी पत्नी ईरा चटर्जी बहुत खुश मिजाज स्वभाव की है और विश्वजीत चटर्जीअपने लम्बे जीवन में उनका सौ प्रतिशत हाथ मानते है. मध्यप्रदेश की ईरा चटर्जी को गृहशोभा बहुत पसंद है. विश्वजीत ने खास गृहशोभा के लिए बात की और उन नौस्टाल्जिक पहलूओं को याद किया, आइये जानते है, क्या कहा उन्होंने.
हुई फिल्म इंडस्ट्री की क्षति
बिश्वजीत इस महामारी की वजह से फिल्म इंडस्ट्री पर हुए प्रभाव से दुखी है और कहते है कि इस बीमारी पर अभी तक सही रिसर्च नहीं हो पाया है, इसलिए आगे कुछ भी कह पाना संभव नहीं है.इसे जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करने और विश्व को नाश करने के उद्देश्य से ही तैयार किया गया है. इसलिए इसका इलाज भी उनके पास है, जिन्होंने इसका निर्माण किया है.कोविड की वजह से आज पूरा विश्व एक अलग तरह से जी रहा है. मेरा विश्वास है कि इस समय सभी को साहस के साथ रहना है, ताकि सभी मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत रहे, क्योंकि मन से शरीर का सम्बन्ध होता है और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति शारीरिक रूप से भी कमजोर हो जाता है. डर को अपने पास से हटायें, ताकि आप किसी भी परिस्थिति से उबरने में सक्षम हो.
काम में रही पारदर्शिता
इन दिनों विश्वजीत ऑटोबायोग्राफी लिख रहे है और उन्हें संगीत से लगाव हमेशा रहा है,कोलकाता में उनके बांग्ला गीत आज भी बजते है. वे विवेकानंद के विचार से बहुत प्रभावित है. विश्वजीतअपने जमाने के सुपर स्टार माने जाते रहे और आज भी उनके नाम के आगे कोई सुपर स्टार लगाना नहीं भूलता, लेकिन 60 और 70 के दशक में कलाकारों के काम में पारदर्शिता और काम करने का पैटर्न के बारें में पूछने पर वे हँसते हुए कहते है कि मैंने उस दौर में काम किया जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, जिसे आज बॉलीवुड भी कहते है,वह ‘गोल्डन पीरियड ऑफ़ फिल्म’ कहा जाता था. ये केवल कहने के लिए नहीं, असल में भी गोल्डन ही था, क्योंकि तब कोशिश ये होती थी कि कलाकार का अभिनय इतनी अच्छी हो कि लोग सालों तक उन्हें याद रखें और यही जुनून मुझमे भी था. पैसे के बारें में तब कोई सोचते नहीं थे या कुछ अच्छा पैसा मिलने पर एक फिल्म छोड़कर दूसरी फिल्म में काम करने लगे,ऐसा भी नहीं था. अच्छा काम और समय से काम करना मुख्य था. उस समय निर्देशक भी वैसे ही हुआ करते थे, जो बड़ी लगन से एक फिल्म को बनाते थे. आज सब कुछ बदल गया है, अब काम के तरीके भी वैसे नहीं है, इसलिए अगर मुझे काम मिले, तो भी करना मुश्किल होगा, क्योंकि आज इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद, खेमेबाजी आदि कई चीजे घुस चुकी है, जो मेरे समय में ट्रांसपेरेंट था.
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दौर भाई-भतीजावाद की
विश्वजीत कहते है किसी का किसी से कोई झगडा या मनमुटाव नहीं था. एक कलाकार दूसरे कलाकार को अपना दोस्त मानते थे और दोस्ती कर अच्छा समय सेट पर बिताते थे. किसी का किसी से इर्ष्या नहीं होती थी, दो एक्टर एक ही ग्रीन रूम में बैठकर मेकअप करवाते थे. दिलीपकुमार, राजकपूर, देवानंद आदि सभी में एक दूसरे के प्रति प्यार था. ये सभी नए कलाकरों को गाइडेंस देते थे. बलराज साहनी, पृत्वीराजकपूर, अशोक कुमार आदि सभी ने मुझे एक्टिंग सिखाया है. ये मेरे बड़े भाई की तरह थे. मेरा नाम कैसे हो, इसके लिए बड़े एक्टर्स कोशिश करते थे, जबकि आज ऐसा नहीं है, एक बड़े स्टार को कैसे नीचे गिराना है, उसके बारें में आज के कलाकार सोचते है. मेरा दौर अब फिर से लौटकर नहीं आ सकता. इसके अलावा एक व्यक्ति जो उभर कर आगे आ रहा है, उसकी जिंदगी भी खत्म कर देते है. इस इंडस्ट्री से मुझे दुःख होता है.
हावी स्टार पॉवर
दुखी स्वर में विश्वजीत कहते है कि आज फिल्मकार फिल्म अपने हिसाब से नहीं बना सकते, स्टार पॉवर आज अधिक चलता है. मेरे समय में कोस्टार का चुनाव भी निर्देशक करते थे, जिसमें कभी आशा पारेख, माला सिन्हा या वहीदा रहमान होती थी. डायरेक्टर , कैप्टेन ऑफ़ द शिप होते थे, उन्हें फिल्म कैसे बनानी है, उनका ही विजन होता था. आज तो हीरों डिक्टेट करते है, उनके हिसाब से ऐक्ट्रेस चुनी जाती है. यहाँ तक की कई बार एक्टर ही प्ले बैक सिंगर तय करते है. मैं तो इंडस्ट्री की हर बात को देख रहा हूँ, कि फिल्म इंडस्ट्री का हाल कैसा हो रहा है. ये हाल तबसे शुरू हुई है जब से कॉर्पोरेट हाउस इसमें घुसी है. इंडस्ट्री का हाल बुरा हो रहा है, वे व्यवसाई दिमाग से है, क्रिएटिविटी का उनपर कोई असर नहीं, वे ही एक्टर और एक्ट्रेस का निर्णय लेते है, ताकि उन्हें अच्छा पैसा मिल जाए, यही वजह है कि आज बड़े-बड़े अच्छे निर्देशक, कैमरामैन, कलाकार, सिंगर्स आदि सब घर पर बैठे है.
है कॉर्पोरेट का जमाना
विश्वजीत मानते है कि अभी कॉर्पोरेट का ही बोलबाला है और वे अपनी शर्तों पर फिल्में बनाते है. प्रोडक्शन का एक स्पॉट बॉय अगर किसी कॉर्पोरेट में जाकर किसी बड़े हीरो को लाने की बात कहता है, तो तुरंत कॉर्पोरेट हाउस उसे निर्देशक बना देता है, क्योंकि वह उस स्टार का चमचा है. जबकि उसे फिल्म मेकिंग की जानकारी नहीं है. फिल्म भी वैसी ही बनती है, स्टार के नाम से कॉर्पोरेट वाले पैसे कमा लेते है, लेकिन फिल्म दर्शकों के मन पर छाप नहीं डाल पाती. फिल्म के गाने तब तक हिट रहते है, जबतक फिल्म थिएटर में रहती है.मेरे समय के गाने आज भी लोग सुनते है, यूथ को भी वही गाने पसंद है. मेरे कई गानों को रिमिक्स भी किया गया है.
भावना परिवारवाद की
विश्वजीत आगे कहते है कि मैं जब फिल्मों में काम करता था, तब पूरी यूनिट एक परिवार की तरह हुआ करता था. मैं किसी भी एक्ट्रेस से बहुत जल्दी फ्रेंडली हुआ करता था, क्योंकि फ्रेंडली होने से क्रिएटिव काम अच्छा होता था. आज भी मेरी उन एक्ट्रेसेस के साथ अच्छे व्यवहार है. देश और विदेश में मेरे किसी भी शो में आशा पारेख और वहीदा रहमान जाती है.
आसान नहीं था मुंबई आना
कोलकाता से मुंबई आने की वजह के बारें में पूछने परविश्वजीतकहते है कि कोलकाता में मैं अमेचर थिएटर में कभी – कभी एक्टिंग कर लिया करता था. इससे पहले स्कूल में भी एक्टिंग किया है. इसके अलावा मेरी माँ की लेडिस क्लब में माँ ने चित्रांगदा, नटी विनोदिनी आदि कई डांस ड्रामा किया था और वह मुझे वहां ले जाती थी, वही से मुझे अभिनय की प्रेरणा जगी, लेकिन 13 साल की उम्र में मैंने माँ को खो दिया. मेरे पिता आर्मी के डॉक्टर थे,लेकिन बहुत कंजरवेटिव स्वभाव के थे. उन्हें एक्टिंग और गाना कुछ भी पसंद नहीं था. लेकिन मैंने अपनी पढाई पूरी कर थिएटर ज्वाइन किया, वहां धीरे-धीरे मैं जूनियर आर्टिस्ट से बड़ा एक्टर बन गया.कई बांग्ला फिल्म में मुझे हीरो की भूमिका मिली और सभी फिल्में हिट हुई, जिसमें माया मृग, दुई भाई आदि कई फिल्में थी. फिल्मों में काम करते हुए भी मैंने स्टेज का काम नहीं छोड़ा, मैं एक बांग्ला नाटक ‘साहब बीबी और गुलाम’ में हीरो की भूमिका कर रहा था. शो फुल हाउस चल रहा था,तब सिंगर हेमंत मुखर्जी ने मुझे स्टेज छोड़कर उनके साथ मुंबई आने को कहा , क्योंकि वह फिल्म ‘’20 साल बाद’बनाने वाले है. मैं उनके साथ मुंबई आया और बीस साल बाद फिल्म में एक्टिंग की, फिल्म सुपर हिट रही. इसके बाद मुझे सस्पेंस वाली फिल्में ही मिलने लगी जैसे कोहरा, बिन बादल बरसात, ये रात फिर न आएगी, जाल आदि सभी फिल्मों में सस्पेंस ही रहा, लेकिन मैंने अपना स्टाइल बदला और मेरे सनम , अप्रैल फूल, फेसबुक आदि मनोरंजक फिल्में की, इसके बाद कुछ घरेलू फिल्में आसरा, पैसा या प्यार, नई रौशनी, दो कलियाँ जैसे हर तरह की फिल्मों में अभिनय किये है.
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कुछ नौस्टाल्जिक बातें
दिलीप कुमार के साथ मैंने ‘फिर कब मिलोगी’ फिल्म में काम किया जिसके निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी थे. बहुत अच्छा अनुभव रहा. उन्हें मैं युसूफ भाई कहता था, वे बहुत ही अच्छे और सधे हुए कलाकार थे. वे हमारे बीच नहीं है, पर उन्हें मैं अमर मानता हूँ. मैं इंडस्ट्री में अशोक कुमार और दिलीप कुमार बनने की इच्छा से ही आया था. मैंने हर तरह के निर्देशकों के साथ अच्छा काम किया है, जैसे ऋषिकेश मुखर्जी, किशोर कुमार, मनमोहन देसाई, अनिल गांगुली ये सभी बहुत ही अच्छे निर्देशक रहे और उनके साथ काम करने में मजा भी खूब आया.
कुछ मजेदार बातें
- विश्वजीत हँसते हुए कहते है कि अभिनेता महमूद, पंचम यानि राहुलदेव बर्मन और मैं बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे, उस समय में हीरो बन गया था. पंचम को ‘भूत’ फिल्म में लिया गया. महमूद हमेशा सबको खूब हंसाते थे. महमूद बांग्ला फिल्म ‘पाशेर बाड़ी’ का राईट लेकर आया और पड़ोसन फिल्म हिंदी में बनाई, लेकिन इसमें किशोर कुमार की भूमिका केवल वे ही कर सकते है, कोई दूसरा उसमें काम नहीं कर सकता, ऐसा सोचकर वे उनके पीछे पड़गए, फिल्म के लिए सुनील दत्त और शायरा बानू दोनों ने साईन कर दिया था पर किशोर कुमार उन्हें समय नहीं दे रहे थे. महमूद बहुत परेशान था और रोज मेरे सामने आकर रोता था, आखिर किशोर कुमार ने साईन की, फिल्म बनी और जबरदस्त हिट भी रही.
- एक बार कश्मीर में दो से तीन यूनिट गए थे उसमें शशि कपूर और माला सिन्हा ‘जब जब फूल खिले’ फिल्म के लिए, मैं और आशा पारेख फिल्म ‘मेरे सनम ‘ के लिए शूट कर रहे थे, रात को मिलकर सभी गपशप करते थे, एक दिन एक कॉल आया कि मुझसे कोई मिलना चाहता है, मैं गया और बुर्का डाले एक लेडी आशापारेख के साथ बैठी थी,आशा पारेख ने मेरा परिचय करवाया, मैं सोफे पर बैठा था, वह महिला भी सोफे पर बैठ गयी, लेकिन वह महिला धीरे-धीरे खिसक कर मेरे पास आने लगी, मैं थोडा एलर्ट हो गया कि ये लेडी मेरे पास क्यों आ रही है? फिर वह मेरे गोद में बैठ गयी, मैं कूदकर गिरते हुए खड़ा हुआ और देखा कि वह शशि कपूर है. असल में आशा पारेख और शशि कपूर ने मिलकर मुझे बुद्धू बनाने का प्लान बनाया था.
बिछड़े कई लेजेंड्री
विश्वजीत ने तक़रीबन हर एक्ट्रेस के साथ काम किया है. उनका कहना है कि एक एक्टर हूँ इसलिए राजा हो या रंक किसी भी भूमिका से परहेज नहीं किया. मेरी एक बेटी राइमा चटर्जी है, वह डांसर और एक एक्ट्रेस है.कोरोना के कम होने की वजह से फिल्में अच्छी तरह से अब रिलीज हो रही है, कितने आर्टिस्ट आज नहीं है. सब ठीक होने के बाद भी बहुत सारे लोग गुजर चुके है और ये इंडस्ट्री के लिए गहरा धक्का है. पहले मेरी मैच्युरिटी नहीं थी और उस समय के काम को आज देखने पर लगता है कि मैं इसे और अधिक अच्छा कर सकता था. बांग्ला अभिनेता उत्तम कुमार काफी प्रसिद्ध इंसान थे, 4 से 5 फिल्में मैंने उनके साथ की है. वे हमेशा चुपरहकर अपना काम करते थे. हिंदी फिल्मों में अभी शाहरुख़ खान, नसीरुद्दीन शाह बहुत अच्छा काम करते है. सौमित्र चटर्जी जो बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री के एक महान कलाकार थे. मैं जब आकाशवाणी में प्ले करता था. तब वे एनाउंस किया करते थे, इससे मेरी दोस्ती उनसे हो गयी थी. उन्हें भारत रत्न निर्माता निर्देशक सत्यजीत रॉय ने फिल्म ‘अपूर संसार’के लिए साइन किया. बांग्ला फिल्म मोनिहार में मैंने उनके साथ काम किया. फिल्म प्लेटिनम जुबली हुई थी. सौमित्र कभी भी हिंदी फिल्मों में नहीं आना चाहते थे. वे सत्यजीत रॉय के फेवोरिट एक्टर थे. उनके गुजरने से बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री को बहुत आघात पहुंचा है, क्योंकि उन्होंने अंतिम दिनों तक काम किया है.
अंत में विश्वजीत चटर्जी का यूथ से कहना है कि जीवन में आये किसी भी चीज से खुश होना सीखे, क्योंकि सबको मौका अवश्य मिलता है. केवल धैर्य ही उन्हें मंजिल तक पहुंचा सकती है.
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