एचएफएमडी के मामले में कैसे करें बच्चों की देखभाल, जानें एक्सपर्ट की राय

कोविड-19 महामारी के बाद स्कूलों के खुलने और बच्चों के क्लास में वापस लौटने के साथ पेरेंट्स को हैंड, फुट एंड माउथ डिजीज (एचएफएमडी) की चिंता सता रही है. यह रोग बहुत ही तेजी से फैलता है और खासकर बच्चों को नुकसान पहुँचाता है. एचएफएमडी क्या होता है. इसके कारण और लक्षण और उपाय बता रहे हैं-

डॉ. अमित गुप्ता, वरिष्ठ सलाहकार, बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा

एचएफएमडी क्या होता है – कारण और लक्षण

हैंड-फुट-माउथ डिजीज (एचएफएमडी) एक वायरस रोग है, जो काफी संक्रामक होता है और यह आमतौर पर बच्चों और नवजातों को प्रभावित करता है. रोग एंटेरोवायरस प्रजाति के वायरस द्वारा आता है, जो अक्सर कॉक्ससैकीवायरस के कारण होता है. कॉक्ससैकीवायरस ए6 और ए16 और एंटेरोवायरस 71 एचएफएमडी के व्यापक रूप से फैलने का प्रमुख कारक है. यह सामान्य तौर पर संक्रमण होने के बाद त्वचा से त्वचा के संपर्क में आने, खाँसने और छींकने से फैलता है. इस वायरस के कारण मुँह में अल्सर के साथ-साथ बच्चे के हाथ, पैर और मुँह में छाले हो जाते हैं.

इसे बढ़ने से रोकने के क्या उपाय हैं-

ऐसे कई तरीके हैं, जिससे कि एचएफएमडी को फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है. इस वायरस से बचने के लिये बच्चों को अपनी साफ-सफाई का ख्याल रखना सिखाना चाहिए. बच्चों को हाथ धोने के लिये प्रेरित करें. हाथों को किस तरह धोना है, यह सिखाने के बाद इस बात का ध्यान रखें कि वे नियमित रूप से अपने हाथों की सफाई कर रहे हों. ये आदतें संपूर्ण सेहत और स्वच्छता बनाए रखने में बेहद अहम भूमिका निभा सकते हैं.

एचएफएमडी को फैलने से रोकने का एक महत्वपूर्ण, लेकिन सरल तरीका है कि यदि पेरेंट्स को त्वचा पर रैश, बुखार और मुँह में छाले जैसे आम लक्षण नजर आ रहे हैं तो बच्चों को किंडरगार्टन, स्कूल, नर्सरी या किसी भी अन्य तरह की एक्टिविटी में जाने से रोकें ताकि वे किसी दूसरे बच्चे के संपर्क में नहीं आएं.

जब आपका बच्चा एचएफएमडील से संक्रमित हो जाए तो पेरेंट्स को क्या करना चाहिए?

यदि उन्हें बच्चे में कोई लक्षण नजर आते हैं तो तुरंत ही डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती है. ऐसी स्थिति में घबराएं नहीं. सही इलाज से संक्रमित को दर्द से छुटकारा मिल सकता है, जो इस समस्या की वजह से उत्पन्न हुआ है. इस समस्या के लक्षणों के इलाज में शामिल है, दर्दनाशक दवाएँ, रैशेज के लिये त्वचा को शांत करने वाली दवाएँ, और खुजली होने पर एंटीएलर्जिक दवाएं.

हैंड-फुट-माउथ डिजीज एक हफ्ते से लेकर 10 दिनों तक चलता है और प्रभावित बच्चों को मुँह में छाले होने की वजह से निगलने में परेशानी हो सकती है. हैंड, फुट ऐंड माउथ डिजीज से पीड़ित लोग, जब बीमार होते हैं तो पहले हफ्ते सबसे ज्यादा संक्रामक होते हैं. कई बार लोग लक्षणों के खत्म हो जाने या कोई भी लक्षण ना होने के कुछ दिनों या हफ्तों तक इस वायरस को दूसरों तक पहुँचा सकते हैं.

भले ही वयस्कों में हैंड, फुट ऐंड माउंथ डिजीज आम नहीं होता, लेकिन उन्हें निम्न सावधानियों का पालन करना चाहिए ताकि उन्हें यह रोग न हो और वे घर के बच्चों तक इसे नहीं पहुँचायें.

सावधानियां-

-अपने बच्चे के शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ के संपर्क में आने, यानी उनके छालों को छूने, उनकी नाक साफ करने, उनके डायपर बदलने और रेस्टरूम इस्तेमाल करने में उनकी मदद करने आदि के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह धोएं.

-इस बात का ध्यान रखें कि आपका बच्चा कपड़े, तौलिए, टूथब्रश, कप और बर्तन जैसी चीजें कभी शेयर नहीं करें.

-जब तक कि आपके बच्चे के फफोलों का सारा तरल पूरी तरह सूख नहीं जाता, उन्हें प्रीस्कूल, किंडरगार्टन या किसी भी प्रकार के आफ्टर-स्कूल एक्टिविटीज में भेजने से बचना चाहिए.

कब होता है चिंताजनक बच्चों का अंगूठा चूसना और इसे कैसे रोकें?

सभी नवजात शिशुओं में चूसने की अनैच्छिक प्रवृत्ति होती है क्योंकि उनके लिए भोजन और तरल पदार्थों का सेवन करना आवश्यक होता है. कई माता-पिता इस आदत के बारे में चिंतित हो जाते हैं, जबकि यह शिशुओं में एक सामान्य अनैच्छिक क्रिया है. इसे गैर-पोषक चूसने के रूप में भी जाना जाता है, जिसके कुछ सकारात्मक पहलू हैं, जैसे कि यह नवजात शिशुओं को शांति देता है और उन्हें आराम करने और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. ज्यादातर बच्चे 2 से 4 साल तक की उम्र में अंगूठा चूसना अपने आप बंद कर देते हैं. बच्चे अगर पाँच साल की उम्र से पहले तक ही ऐसा करते हैं, तो अंगूठा चूसने से आमतौर पर लंबे समय तक समस्याएं नहीं होती हैं.

इस बारे में बता रहे हैं डॉ निशांत बंसल, कंसल्टेंट नियोनैटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा

बच्चे अंगूठा चूसने का सहारा क्यों लेते हैं?

अंगूठा चूसना अधिकांश लत की तरह है, यह सहन या सामना करने की एक तकनीक है. यहाँ तक कि सामान्य बेचैनी या चंचलता में हिलना-डुलना, नाखून काटना, पैर हिलाना, अंगुलियों को मरोड़ना जैसे आदि कार्य करते है, अंगूठा चूसना भी उससे बहुत अलग नहीं हैं. शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए, उनका अंगूठा चूसना स्वाभाविक रूप से आत्म-संतुष्टि और सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देता है.

क्या नहीं करना चाहिए?

अपने बच्चे को अंगूठा चूसने से रोकने के लिए कुछ माता-पिता चरम विधियों का उपयोग करते हैं.  कुछ माता-पिता तो बच्चे के अंगूठे को सिरके या मिर्च की चटनी में डुबाने की हद तक भी चले जाते हैं. लेकिन, ऐसे जबर्दस्‍ती किये जाने वाले तरीकों का प्रयोग करने से बचना सबसे अच्छा है क्योंकि इससे नन्हे बच्चों में विद्रोह की प्रवृत्ति पैदा हो सकती है.

आपको कब हस्तक्षेप करना चाहिए?

याद रखें कि अंगूठा चूसना अविश्वसनीय रूप से व्यसनकारी है और यदि आप अपने बच्चे को अंगूठा चूसना बंद कराने का प्रयास कर रहे हैं, तो आपको धैर्य रखने की आवश्यकता है. आपको उन्हें रोकने की कोशिश कब आरम्भ करनी चाहिए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके अंगूठा चूसने की तीव्रता कितनी है या फिर वह कितना जिद्दी है. आदतन लगातार अंगूठा चूसने से त्वचा पर बुरा असर हो सकता है और इससे जिस उंगली को बच्चा चूसता रहता है उस पर कैलस या त्वचा फटने की समस्याओं का खतरा हो सकता है. 5 साल की उम्र के बाद अंगूठा चूसना जारी रहता है तो इस उम्र में गलत तरीके से काटने जैसी दंत समस्याएँ उभर सकती हैं. फिर भी, अपने बच्चे को इस आदत से जल्द से जल्द छुड़ाना एक अच्छा विचार हो सकता है ताकि अधिक गंभीर रूप से जकड़ी हुई प्रवृत्ति को रोका जा सके.

अपने बच्चे को अंगूठा चूसने से रोकने में मदद करने के तरीके-

-उनके तनाव से राहत पाने वाले व्यवहार को कुछ अधिक रचनात्मक उपायों से बदलें, जैसे कि कोई प्यारा खिलौना, टेडी बियर, मनपसंद खिलौने, या प्रतिबिम्ब दिखाने वाले खिलौने आदि.

-उनके व्‍यवहार पर नजर रखने के लिए स्टिकर का उपयोग कर एक चार्ट बनाएं, और जब वे एक विशेष संख्या में स्टिकर जमा करते हैं, तो उन्हें पुरस्कृत करें.

-अपने बच्चे को विकल्प देने का प्रयास करें. विकल्प खिलौने, खेल, गतिविधियों, शिल्प, किताब और खुद करने वाले कार्य (डीआईवाई) जैसी चीजें हो सकती हैं.

-ऐसी बातों से बचें जिनसे बच्चे को तनाव हो सकता है, जैसे कि अंगूठा चूसने के लिए उन्हें लज्जित करना, आलोचना करना या  डाँटना-फटकारना.

-अंगूठा नहीं चूसने के सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार और प्रशंसा का प्रयोग करें.

-रात में उनके अंगूठे पर पट्टी बांधकर या कपड़े से हाथ ढँकने कर आप इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित कर सकते हैं.

-अपने बच्चे को उनकी परेशानी और तनाव को कम करने और प्रबंधित करने में मदद करें.

यदि आपका बच्चा काफी बड़ा है, तो उसे समझाएँ कि अंगूठा चूसने से उनके मुँह में क्या-क्या समस्या हो सकती है.

फायदेमंद सुझाव –

यदि अंगूठा चूसने से रोकने के लिए आपके अपने उपाय कारगर नहीं हो रहे हैं तो अपने दन्त-चिकित्सक से सलाह करना बेहतर है. अंगूठा चूसने को हतोत्साहित करने के लिए, वे कोई कड़वी दवा, अंगूठा चूसने वाले कवर, या एक दंत उपकरण (असामान्य परिस्थितियों में)  के प्रयोग का सुझाव दे सकते हैं.

प्रैग्नेंसी के दौरान मॉर्निंग सिकनेस को इस तरह करें दूर

यूं तो एक मां बनने का सफर रोमांचक होता है, लेकिन कुछ  महिलाओं के लिये यह काफी मुश्किल भी हो सकता है. कई महिलाओं को प्रैग्नेंसी के दौरान मॉर्निंग सिकनेस की समस्या होती है, और उन्‍हें मितली और उल्टी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, अपने नाम से उलट मॉर्निंग सिकनेस दिन या रात किसी भी वक्त हो सकता है.

डॉ.आस्था जैन माथुर, कंसलटेंट  प्रसूति एवं स्‍त्री रोग विशेषज्ञ, मैकेनिक नगर इंदौर का कहना है कि-

प्रैग्नेंट महिलाओं में यह समस्या बेहद आम है, खासकर पहली तिमाही में. हालांकि, कुछ महिलाओं को गर्भवस्था की पूरी अवधि में ही मॉर्निंग सिकनेस का अनुभव होता है.

कुछ घरेलू उपचार, जैसे थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ-कुछ खाते रहना और अदरक का रस (जिंजर ऐल) पीने के साथ-साथ मितली को कम करने के लिये ओवर-द-काउंटर दवाएं भी उपलब्ध हैं. इसे अपनी जरूरत के हिसाब से लिया जा सकता है. ऐसा बहुत कम होता है कि मॉर्निंग सिकनेस एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाए कि वह हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम में तब्दील हो जाए.

हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम, तब होता है जब किसी को प्रैग्नेंसी-संबंधी मितली और उल्टी होती है. इसके गंभीर लक्षण होते हैं, जिससे काफी डिहाड्रेशन हो सकता है या फिर प्रैग्नेंसी से पहले शरीर का वजन 5% तक कम हो सकता है. हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम में अस्पताल में भर्ती कराने और इंट्रावीनस (आईवी) फ्लूड्स, दवाएं देने की जरूरत पड़ सकती है. कई बार इसमें फीडिंग ट्यूब लगाने की जरूरत भी पड़ सकती है.

मॉर्निंग सिकनेस के आम लक्षणों और संकेतों में जी मचलाना और उल्टी शामिल है, जो अक्सर किसी खास प्रकार की गंध, मसालेदार खाने, गर्मी, अत्यधिक लार या कई बार बिना कारण भी होता है. मॉर्निंग सिकनेस अक्सर प्रैग्नेंसी के नौ सप्ताह बाद शुरू होती है और पहली तिमाही के दौरान सबसे अधिक पाई जाती है. दूसरी तिमाही के मध्य से अंत तक, अधिकांश प्रैग्नेंट मांओं के लक्षणों में सुधार होने लगता है.

डॉक्टर को कब दिखाएं?

  1. यदि आपको लगातार या गंभीर मितली या उल्टी की समस्या हो रही हो
  2. कम मात्रा में यूरीन निकल रहा हो या फिर उसका रंग गहरा हो
  3. तरल निगलने में मुश्किल आ रही हो
  4. खड़े होने पर सिर में हल्कापन या चक्कर महसूस हो रहा हो
  5. धड़कनें तेज चल रही हों

अभी तक यह अस्‍पष्‍ट है कि आखिर किस वजह से मॉर्निंग सिकनेस होती है. मॉर्निंग सिकनेस, हॉर्मोनल बदलावों की वजह से होता है. ऐसा बहुत कम होता है कि प्रैग्नेंसी से असंबंधित समस्या जैसे थायरॉइड या लीवर की समस्या, गंभीर या क्रॉनिक मितली या उल्टी का कारण बने.

कुछ महिलाओं को इस बात की चिंता होती है कि उल्टी करने से उनके गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुंच सकता है. उल्टी करने की शारीरिक प्रक्रिया गर्भवस्थ शिशु को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है, लेकिन यह पेट की मांसपेशियों पर दबाव डाल सकती है और पेट के आस-पास के हिस्से में दर्द और सूजन हो सकती है. एमिनियाटिक सैक के चारों ओर, भ्रूण अच्छी तरह से सुरक्षित होता है.

कई सारे अध्ययनों में मॉर्निंग सिकनेस और गर्भपात के हल्के खतरे के बीच संबंध पाया गया है. फिर भी, लगातार उल्टी (जिसकी वजह से डिहाइड्रेशन और वजन कम होता है) होने से आपके बच्चे को सही पोषण नहीं मिल पाता और जन्म के समय बच्चे का कम वजन होने का जोखिम हो सकता है. यदि आपको मितली और उल्टी हो रही है तो, अपने डॉक्टर से बात करें.

गंभीर मॉर्निंग सिकनेस (हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम)

1000 में से एक प्रैग्नेंट महिला को हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम (एचजी) या गंभीर मॉर्निंग सिकनेस की समस्या होती है. डिहाइड्रेशन, लगातार उल्टी होना और वजन का कम होना, एचजी के लक्षण हैं. अस्पताल में भर्ती होना और इंट्रावीनस फ्लूएड्स और पोषण देना इस उपचार की आम प्रक्रिया है. हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम का इलाज ना कराने से कई सारी समस्याएं हो सकती हैं, जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन, गंभीर रूप से एंजाइटी की समस्या और अवसाद, भ्रूण का कुपोषित होना और शरीर के प्रमुख अंगों जैसे लीवर, हार्ट, किडनी और ब्रेन पर बेवजह दबाव पड़ना.

मॉर्निंग सिकनेस में कैसे रखें ख्याल

किसी भी प्रकार की दवा का उपयोग करने से बचें जब तक कि आपके डॉक्टर ने प्रैग्नेंसी के दौरान खासकर उसे लेने के लिए नहीं कहा हो और वह आपकी स्थिति से अवगत न हों.

सुबह बिस्तर से उठने से पहले हल्के-फुलके, स्वीट क्रैकर्स या ड्राई क्रैकर्स खा लें.

कोई भी ऐसी चीज जो आपको लगता है कि बीमार कर सकती है, लेने से बचें. अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन अक्सर सही तरीके से सहन हो जाता है.

थोड़े-थोड़े अंतराल पर कुछ-कुछ खाएं, क्योंकि खाली पेट होने से मितली का अनुभव होता है.

खाना बनाने की तैयारी या पकाने से बचना फायदेमंद होता है.

जितना हो सके तरल पदार्थ लें. कई बार फलों के पतले जूस, कॉर्डियल, वीक टी, जिंजर टी, सूप, या बीफ एक्सट्रैक्ट वाले पेय लेना फायदेमंद हो सकता है. यदि इनमें से कुछ नहीं ले पा रहे हैं तो थोड़े बहुत आइस क्यूब चूसना मददगार हो सकता है.

बी6 विटामिन वाले सप्लीमेंट से मदद मिल सकती है, हालांकि रोजाना 200 एमजी से ज्यादा लेना खतरनाक हो सकता है. डॉक्टर की सलाह का पालन करें.

कलाई पर एक्यूपंचर या एक्यूप्रेशर के बारे में विचार कर सकते हैं.

ढीले-ढाले कपड़े पहनें ताकि पेट पर किसी प्रकार की बाधा ना आए.

चलने-फिरने पर मॉर्निंग सिकनेस गंभीर हो सकता है. जितना हो सके, आराम करें.

बचाव

मॉर्निंग सिकनेस से पूरी तरह बचा नहीं जा सकता. बहुत तेज गंध, ज्यादा थकान, मसालेदार खाना और अधिक शक्कर वाले खाद्य पदार्थ जैसे ट्रिगर्स से बचाव करने से काफी मदद मिल सकती है.

कैसे प्रभावित करती हैं बच्चों की ओरल हेल्थ को खाने की आदतें और न्यूट्रिशन

सामान्य स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता के लिए ओरल हेल्थ (मुँह का या मौखिक स्वास्थ्य) महत्वपूर्ण है. बीते वर्षों में यह साबित हो चुका है कि मौखिक स्वास्थ्य और सामान्य स्वास्थ्य परस्पर सम्बंधित होते हैं. मुँह की अनेक गड़बड़ियां और असंचारी दीर्घकालिक रोग काफी हद तक एक-दूसरे से जुड़े हैं. इसके अलावा, पोषण और मौखिक स्वास्थ्य के बीच सकारात्मक सह-सम्बन्ध है. खाने की कार्यात्मक क्षमता पर मौखिक लक्षणों और भोजन तथा पोषण सम्बन्धी परिस्थितियों के साथ मुँह के संक्रामक रोगों, और तीव्र, दीर्घकालिक, और असाध्य शारीरिक खराबी का प्रभाव पड़ता है.

डॉ. अमित गुप्ता, सीनियर कंसल्‍टेंट पीडियाट्रीशियन एवं नियोनैटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि आहार और पोषण मुख गुहिका की वृद्धि के साथ-साथ मुख गुहिका के रोगों की प्रगति को प्रभावित कर सकते हैं. ये तत्व ऑरो-फेशियल (मुँह और चेहरा) रोगों और विकारों के एटियलजि और रोगजनन में महत्वपूर्ण बहुक्रियात्मक पर्यावरणीय कारक भी हैं.

बच्चों में मुँह के खराब स्वास्थ्य और स्वच्छता को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक-

आपके बच्चे के लिए कौन से खाद्य पदार्थ स्वास्थ्यप्रद हैं, यह जानना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं. किराना दुकान पर स्मार्ट पैकेजिंग की वजह से आपकी पसंद भी मुश्किल हो सकती है. एक बार जब आप जान जाते हैं कि क्या देखना है, तो किराने की गलियों में घूमते समय कुछ आहार अपराधियों की पहचान करना आसान हो जाता है. भोजन और पोषण के अलावा कई अन्य कारक हैं जो आपके बच्चे के मुँह के स्वास्थ्य और स्वच्छता को प्रभावित करते हैं.

पोषण और मुँह का स्वास्थ्य-

किशोरों में खाने से सम्बंधित खराब आदतें आम हैं, जिससे दांतों में सड़न हो सकती है. वे अक्सर फास्ट फूड, मिठाई और मीठे पेय पदार्थ ग्रहण करते हैं. भोजन के बाद या अधिक चीनी युक्त पदार्थ/स्नैक्स के बाद, बैक्टीरिया एसिड का उत्सर्जन होता हैं जो दांतों के इनेमल को नष्ट कर देते हैं. इनेमल के खराब होने पर कैविटी बन सकती है. कैविटी के कारण दर्द, चबाने में कठिनाई और दांतों में फोड़ा हो सकता है. कैंडी दांतों से चिपक जाती है और आपके किशोर के मुँह के स्वास्थ्य के लिए विशेष रूप से हानिकारक होती है क्योंकि वे दाँतों के कोनों और दो दाँतों के बीच दरारों में फंस जाती हैं.

खाने में गड़बड़ी  (भोजन विकार)-

लड़कों की तुलना में किशोर लड़कियों में खाने को लेकर समस्या होने की संभावना अधिक होती है, जो लड़कों में भी बढ़ रही है. तीन सबसे प्रचलित हैं जल्दी-जल्दी बहुत ज्यादा खाना, बहुत ज्यादा भूख महसूस करना और वजन बढ़ने के मानसिक डर के कारण भोजन में कमी करना. भोजन विकार के कारण आपके बच्चे की दंतपंक्ति में विसंगति, मुँह में सूखापन, दाँतों का क्षरण, गले में लाली और तालू छिल जाने से नुकसान हो सकता है .

चीजों को चबाना-

कुछ किशोर अपने नाखूनों को काटते हैं या पेन और पेंसिल जैसी वस्तुओं को चबाते हैं. इन चीजों के परिणामस्वरूप मसूड़े खराब हो सकते हैं या दांत टूट सकते हैं. इसके अतिरिक्त, उन पर कीटाणु होते हैं जो मुंह में संक्रमण का कारण बन सकते हैं. शक्कर रहित गम देकर, जो दांतों की सड़न को रोकने में मदद कर सकता है, आप अपने बच्चे को इन बुरे व्यवहारों से लड़ने में मदद कर सकते हैं.

दांतों की सफाई के गलत तरीके-

अनेक युवा यह याद नहीं रखते कि नियमित रूप से फ्लॉस करना और दिन में कम से कम दो बार अपने दाँत साफ करना ज़रूरी है. मुँह में स्वच्छता और आरोग्य का ठीक से पालन नहीं करने से मसूढ़े के रोग और दांत पर तथा दाँतों के बीच कैविटी बनने का खतरा बढ़ जाता है.

आपको क्या करने की आवश्यकता है ?

यह सुनिश्चित करने के लिए कि बच्चे का दंत स्वास्थ्य सबसे अच्छा है, अपने बच्चे को मुँह की आरोग्यकारी स्वच्छता की आदतों का पालन करने, जैसे कि दिन में दो बार ब्रश करने और अच्छी तरह से फ़्लॉस करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. उन्हें विशेष रूप से मीठा खाने के बाद अपने दाँत ब्रश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इसके अतिरिक्त, अपने किशोरों के दाँतों को साल में दो बार जाँच और सफाई के लिए समय निर्धारित करना महत्वपूर्ण है.

छोटे बच्चों के माता-पिता हैं तो अपने बच्चे के आहार से कुछ वस्तुओं को हमेशा के लिए नकार देना व्यावहारिक नहीं है, लेकिन उनमें से वे कितना खाते हैं इसे आप सीमित कर सकते हैं. आपने वह अच्छी कहावत जरूर सुनी होगी कि “संतुलन में सब कुछ ठीक रहता है”. अक्सर मीठा खाने के बजाय, छुट्टियों या जन्मदिन जैसे विशेष आयोजनों पर ही मीठा खाने के लिए समझाएँ. भोजन  के प्रति सचेत दृष्टिकोण से दाँतों को अच्छी तरह स्वच्छ और स्वस्थ रखने में मदद मिलेगी.

सीमित प्रयोग वाले खाद्य पदार्थ

निम्नलिखित खाद्य पदार्थों पर सतर्कता के साथ नज़र रखें :-

शर्करायुक्त खाद्य पदार्थ, जैसे कि आइसक्रीम, फलों के रस, सोडा, कैंडीज, केक, और फलों के जेल

अम्लीय और खट्टे फल, जैसे कि संतरा, अंगूर, लाइम और लेमन

स्टार्चयुक्त भोजन, जैसे कि पास्ता, ब्रेड, चिप्स और स्पगेटी.

चिपचिपे और चबाने वाले खाद्य पदार्थ, जैसे कि च्यूईंग गम, टॉफ़ी और कैरामेल

स्वास्थ्यकर भोजन और नाश्ता चुनने की प्रक्रिया

मन में सवाल उठ सकता है, “अच्छा, मेरे बच्चे को क्या खाना चाहिए?” निम्नलिखित खाद्य पदार्थ एक संतुलित आहार का हिस्सा होने चाहिए;

शामिल करने योग्य खाद्य पदार्थ-

साबुत अनाज

सब्जियाँ और फल युक्त आहार

दुग्ध उत्पाद

स्वास्थ्यकर प्रोटीन

बच्चों को मीठा भोजन और स्नैक्स आकर्षित करते हैं, लेकिन उनका बहुत अधिक मात्रा में सेवन करने से ओरल हेल्थ और सामान्य स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. आपका बच्चा क्या खाता है, इसका पूरी सावधानी के साथ चयन करने, उसे अच्छी तरह से ब्रश करवाने और फ्लॉस करने के लिए प्रोत्साहित करने और प्रत्येक छह महीने पर नियमित रूप से दाँतों की सफाई कराने से आपके बच्चे के मुँह को स्वस्थ स्थिति में रखने में मदद मिल सकती है.

जब विटामिन डी की हो कमी तो ऐसे करें ठीक

विटामिन डी का उपनाम “सनशाइन विटामिन” मुख्य रूप से शरीर द्वारा त्वचा पर सूर्य के प्रकाश की क्रिया से शुरू होने वाली प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित होता है. स्वस्थ हड्डियों को विकसित करने और बनाए रखने के लिए शरीर को कैल्शियम की आवश्यकता होती है – और विटामिन डी शरीर द्वारा कैल्शियम के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. विटामिन डी के आहार स्रोतों में डेयरी उत्पाद और नाश्ता अनाज (दोनों विटामिन डी के साथ मजबूत होते हैं), गढ़वाले सोया और चावल के पेय, गढ़वाले संतरे का रस, मार्जरीन, और डी विटामिन की थोड़ी मात्रा भी पनीर और अंडे की जर्दी में पाए जाते हैं.

डॉ महेंद्र डडके, विभागाध्यक्ष – इंटरनल मेडिसिन, जुपिटर अस्पताल पुणे का कहना है-

हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होने के अलावा यह विटामिन आपके पूरे शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्य करता है. और जबकि कुछ खाद्य पदार्थ जैसे फोर्टिफाइड डेयरी उत्पाद और वसायुक्त मछली में यह विटामिन होता है, अकेले अपने आहार के माध्यम से पर्याप्त प्राप्त करना मुश्किल है.इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि विटामिन डी की कमी सबसे आम पोषण संबंधी कमियों में से एक है, दुनिया भर में अनुमानित 1 अरब लोगों में विटामिन के निम्न रक्त स्तर होते हैं.

पर्याप्त विटामिन डी की आवश्यकता और कैसे प्राप्त करें-

विटामिन डी एक मोटा-घुलनशील विटामिन है जो हड्डियों के स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा समारोह सहित आपके शरीर के समुचित कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कैंसर को रोकने में मदद करने के अलावा, यह कई पुरानी स्थितियों जैसे अवसाद, टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग और मल्टीपल स्केलेरोसिस से भी सुरक्षा प्रदान कर सकता है. जबकि विटामिन डी की कमी का कोई एक कारण नहीं है, कई पर्यावरणीय, आहार, जीवन शैली, आनुवंशिक और चिकित्सा कारकों की भूमिका हो सकती है. इसके अलावा, विटामिन डी की कमी बहुत कम या कोई लक्षण प्रस्तुत नहीं करती है जिससे यह पता लगाना और भी मुश्किल हो जाता है कि क्या किसी व्यक्ति में सनशाइन विटामिन का स्तर कम है. इसके प्रकट होने के कुछ तरीकों में पीठ दर्द, थकान, बालों का झड़ना, खराब घाव भरना और अवसाद के लक्षण शामिल हैं.

उपचार और रोकथाम

यदि आपको विटामिन डी की कमी हो रही है, तो आपका स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल आपके स्तर को ठीक करने के लिए निम्नलिखित विकल्पों में से किसी एक की सिफारिश कर सकता है.

  • विटामिन डी की खुराक आम तौर पर प्रचलित उपचार है और इसे आसानी से काउंटर पर खरीदा जा सकता है, लेकिन अपने स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल से खुराक की जांच करें. गंभीर कमी के लिए, डॉक्टर मजबूत खुराक की सिफारिश कर सकता है या विटामिन डी इंजेक्शन पर भी विचार कर सकता है.
  • खाद्य स्रोत जैसे अधिक विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थ जैसे वसायुक्त मछली, अंडे की जर्दी, फोर्टिफाइड दूध, जूस, दही आदि खाने से भी आपके विटामिन डी के स्तर में वृद्धि हो सकती है.
  • इसके अलावा, पूरक और विटामिन डी से भरपूर आहार के अलावा, डॉक्टर विटामिन को उसके प्राकृतिक स्रोत – सूरज की रोशनी से लेने की भी सिफारिश कर सकता है. हालांकि, अतिरिक्त पराबैंगनी जोखिम के नकारात्मक प्रभावों से सावधान रहें और आवश्यक सावधानी बरतें.

क्या अतिरिक्त विटामिन डी अच्छे से ज्यादा नुकसान कर सकता है?

हां, विटामिन डी विषाक्तता के रूप में जाना जाने वाला अतिरिक्त विटामिन डी हानिकारक हो सकता है और विषाक्तता के लक्षणों में मतली, उल्टी, कमजोरी और वजन कम होना शामिल है. साथ ही, यह रक्त में कैल्शियम के बढ़ते स्तर के साथ-साथ किडनी के लिए भी हानिकारक हो सकता है जिससे हृदय गति में भ्रम, समस्या आदि हो सकती है.

विटामिन डी शरीर के कई कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है, और इसलिए, इस विटामिन के पर्याप्त स्तर को बनाए रखना आवश्यक है. हालांकि, अधिक मात्रा में सेवन करने पर अधिक नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप सही खुराक के लिए अपने स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल के संपर्क में हैं और उपचार कब तक जारी रखना है.

तब तक, बाहर जाओ और धूप का आनंद लो… .. सनशाइन विटामिन की अपनी दैनिक खुराक पाने के लिए.

मैं प्रैग्नेंसी में अकेली हूं, क्या आगे जाकर कोई प्रौब्लम होगी?

सवाल-

मैं एक युवक से (जो सैनिक है) बहुत प्यार करती हूं. हम दोनों ने अपने घर वालों से चोरीछिपे विवाह कर लिया है. हमारी शादी रजिस्टर्ड नहीं है. विवाह के बाद मैं ने अपना घर छोड़ दिया और 5 महीनों से दिल्ली में अकेली रह कर नौकरी कर रही हूं. मैं 2 महीने की गर्भवती हूं. मेरा पति अपनी ड्यूटी पर चला गया है. कहता है कि नवंबर में आ कर मुझे ले जाएगा. मैं चिंतित हूं कि यहां अकेले में मुझे कोई समस्या हुई तो क्या करूंगी? मैं अपने घर भी नहीं जा सकती.

जवाब-

आप ने पूरा खुलासा नहीं किया कि क्या वजह थी कि आप दोनों ने ही अपने घर वालों को विश्वास में लिए बिना चोरीछिपे शादी की. यदि दोनों ही परिवार शादी के खिलाफ थे तो भी आप को कोर्ट मैरिज करनी चाहिए थी अथवा जिस भी विधि से विवाह किया था उस का रजिस्ट्रेशन तो कराना चाहिए था. अब भी समय गंवाए बिना अपनी शादी को रजिस्टर कराएं. जहां तक अपनी गर्भावस्था को ले कर आप की चिंता है वह सही है. जब तक आप अकेली रह रही थीं संतानोत्पत्ति के लिए जल्दी नहीं करनी चाहिए थी. अब भी आप को लगता है कि आप दोनों अभी संतानोत्पत्ति की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं हैं तो पति की सहमति से गर्भपात करवा लें. बाद में जब स्थिति अनुकूल हो तब इस विषय में सोच सकते हैं.

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गर्भावस्था के दौरान मां की सेहत का तुरंत और लंबे समय में बच्चे की सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है. गर्भकाल की डायबिटीज और एनीमिया, यानी कि मां में एनीमिया और डायबिटीज बच्चे की सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं. मां में एनीमिया हो तो बच्चे का जन्म के समय 6.5 प्रतिशत मामलों में वजन कम होने और 11.5 प्रतिशत मामलों में समय से पहले प्रसव की समस्या हो सकती है. गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की वजह से बच्चे को 4.9 प्रतिशत मामलों में एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) में भरती होने और 32.3 प्रतिशत मामलों में सांस प्रणाली की समस्याएं होने का खतरा रहता है.

गर्भावस्था में इन समस्याओं की वजह से पैदा हुए बच्चों में मोटापे, दिल के विकार और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा उम्रभर रहता है.

गर्भावस्था के दौरान हाइपरटैंशन, जो कि 20वें सप्ताह में होता है, पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस से गर्भनाल (एअंबीलिकल कौर्ड) की रक्तधमनियां सख्त हो जाती हैं जिस से भू्रूण तक औक्सीजन और पोषण उचित मात्रा में नहीं पहुंच पाता. इस वजह से गर्भाशय में बच्चे की वृद्धि में रोक, जन्म के समय बच्चे का कम वजन, ब्लडशुगर में कमी और लो मसल टोन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ मामलों में आगे चल कर किशोरावस्था में बच्चे में हाइपरटैंशन की समस्या भी हो सकती है.

मां में मोटापा हो तो गर्भावस्था में डायबिटीज होने की संभावना होती है जिस वजह से समय से पहले प्रसव और बच्चे में डायबिटीज व मोटापा होने के खतरे रहते हैं. गर्भावस्था के दौरान मां के पोषण में मामूली कमी का भी प्रतिकूल असर बच्चे की सेहत पर पड़ सकता है, जैसे कि गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी से आगे चल कर जच्चा और बच्चा दोनों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- प्रैग्नेंसी में रखें ये सेहतमंद आदतें

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ब्यूटीफुल और शाइनी नेचुरल स्किन के लिए हेल्थ से जुड़े 5 टिप्स

आजकल प्रदूषण का स्तर बहुत ही तेज़ी से दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है तथा आज की दुनिया में खुद को साबित करने की दौर में हम सभी इस कदर लगे हुए हैं की उस अवस्था का मेन्टल और फिजिकल प्रेशर हमारी स्किन की कई परेशानिओं को जन्म देता है.हमारे वातावरण में होने वाली हर एक गतिविधि स्किन को प्रभावित करती है.

रिया वशिष्ठ सेलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट

प्रोस्थेटिक एफएक्स और विशेष प्रभाव विशेषज्ञ (यूएसए प्रमाणित) का कहना है कि कुछ लोगों की चमकदार, खूबसूरत स्किन प्राकृतिक यानी नेचुरल होती है. जबकि जेनेटिक होर्मोनेस कभी-कभी एक अहम भूमिका निभा जाते हैं, इन फैक्ट्स के अलावा अक्सर दैनिक आदतें होती हैं जो आपकी स्किन के रंग-रूप को प्रभावित करती हैं. कई मामलों में, अद्भुत स्किन वाले लोग अपने ताजा, सुंदर रूप को बनाए रखने के लिए इन पांच प्रभावी आदतों का उपयोग करते हैं.

सुंदर और चमकदार प्राकृतिक स्किन पाना इतना कठिन नहीं है. बस कुछ छोटी आदतें और आप रॉक करने के लिए तैयार हैं. इसीलिए आगे, एक चमकदार स्किन के लिए कुछ स्वस्थ आदतें जानने के लिए पढ़ें.

हल्दी वाला गर्म पानी पिएं –

हम अक्सर ठंडे पानी का सेवन करना पसंद करते हैं, लेकिन यकीन मानिए ग्लोइंग स्किन पाने के लिए गर्म या गुनगुना पानी पीना सही विकल्प है. गुनगुने पानी का सेवन करना अपनी दिनचर्या की एक आदत बनालें, इस आदत से आपकी स्किन में एक नेचुरल ग्लो आएगा.

हल्दी का सेवन-

सबसे जरुरी आदत जो आपकी स्किन के साथ साथ अपनी पूरी बॉडी को प्रभावित करेगी वो है, रोज़ाना रात को सोने से पहले हल्दी के साथ गर्म पानी का सेवन करें. हल्दी में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं और यह इम्युनिटी बढ़ाने का एक अच्छा स्रोत है. हल्दी शरीर में किसी भी प्रकार के दर्द को ठीक करने में फलदायक होती है और आपकी स्किन के स्वास्थ्य को बढ़ाती है. यह एक देसी डिटॉक्स पानी है जो आपकी स्किन पर जादुई प्रभाव छोड़ेगा.

घर पर हल्दी का पानी कैसे बनाएं:

  1. एक पैन में एक कप पानी डालकर उबाल लें. अगर आप कच्ची हल्दी का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो इसे उबालते समय डालें.
  2. अब एक और कप लें और उसमें एक चम्मच हल्दी पाउडर (उबलते समय कच्ची हल्दी का इस्तेमाल किया हो तो हल्दी पाउडर न डालें) और आधा चम्मच नींबू का रस मिलाएं.
  3. ऊपर से गर्म पानी डालें.
  4. अंत में, आप चाहें तो इसे थोड़ा मीठा करने के लिए कुछ बुँदे शहद की मिला सकते हैं. इसे अच्छी तरह मिलाएं और गुनगुना सेवन करें.

इस डिटॉक्स हल्दी पानी को नियमित रूप से पिएं और अपने स्वास्थ्य और स्किन में धीरे-धीरे सुधार देखें.

सोने से पहले मेकअप हटाना है जरूरी, क्यों ?  –

मेकअप सिर्फ आपकी खूबसूरती को बढ़ाने के लिए होता है, लेकिन इसके साथ साथ आपको प्राकृतिक रूप से भी खूबसूरत होने की जरूरत है. अगर आप अपनी स्किन पर मेकअप लगा रही हैं, तो सोने से पहले इसे हटाना कभी न भूलें. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने थके हुए हैं, इस आदत का पालन करने के लिए आपका सख्त नियम होना चाहिए. मेकअप रिमूवर से हमेशा मेकअप हटाएं, वर्तमान में कई मेकअप रिमूवर फेस वाश हैं जो विशेष रूप से मेकअप रिमूवर आवश्यक और मॉइस्चराइज़र के साथ बनाये गए हैं. मेकअप हटाने के बाद अपनी स्किन को मॉइस्चराइजर या सीरम से हाइड्रेट करना बहुत जरूरी है. कम से कम 5 मिनट के लिए चेहरे की मालिश करें और फिर स्लीपिंग मास्क लगाएं, और इस तरह आप एक स्वस्थ एवं सुंदर स्किन के साथ तैयार हैं.

विटामिन सी – विटामिन सी का सेवन और उपयोग दोनों ही हमारी कोमल और नाजुक स्किन के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. विटामिन सी का उपयोग और सेवन स्किन को फ्री रेडिकल्स से बचाने में मदद करता है जिसके कारण स्किन में कई नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं. आप शायद सोच रहे होंगे कि फ्री रेडिकल्स का मतलब क्या होता है, तो इसके कुछ उदाहरण हैं यूवी किरणें, धूम्रपान और प्रदूषण. विटामिन सी स्किन को उज्ज्वल करता है, काले धब्बों को हल्का करता है, झुर्रियों को वक़्त से पहले आने से रोकता है, और इसके कई और सकारात्मक लाभ हैं.

ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं –

हमारे शरीर में 70% पानी होने के कारण, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना आपकी स्किन को स्वस्थ और हाइड्रेटेड रखने का सबसे आसान तरीका है. पर्याप्त पानी पीने से हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है, पिंपल्स और मुंहासों को रोका जा सकता है और स्किन की इलास्टिसिटी को बढ़ाया जा सकता है. कोई आश्चर्य नहीं, जल को जीवन का अमृत कहा जाता है.

जरुरी है अपनी स्किन को बार बार छुने की आदत को सुधारना –

यदि आप उन लोगों में से हैं जो 5 मिनट में 3 से 4 बार अपने चेहरे को छूते हैं, तो आपको वास्तव में यह समझने की जरूरत है कि चेहरा छूना नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन का एक रूप है, और यह आपकी स्किन में कीटाणुओं और संक्रमणों को संचारित करने का आसान तरीका. दिन भर में, हम सैकड़ों वस्तुओं को छूते हैं: दरवाज़े की कुंडी, कार की चाबियां, आस पास की और नजाने कितनी चीज़ें. इन वस्तुओं में लाखों रोगाणु और संभावित एलर्जेंस होते हैं. ये सूक्ष्म जीवाणु आपके शरीर में आँख वे चेहरे को बार बार छुने के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं जो तब होता हैं जब आप अपनी आँखें रगड़ते हैं या अपने गालों को खरोंचते हैं. संभावित रूप से बीमार होने के अलावा, ये कीटाणु और एलर्जी संभावित रूप से फफोले, सिस्ट, मुंहासे या अन्य अवांछनीय स्किन समस्याओं का कारण बन सकते हैं. अपने चेहरे को दूषित होने से बचाने के लिए नियमित रूप से अपने हाथ बार बार धोएं. इस आदत को तोड़ने का सबसे आसान तरीका है कि आप अपने चेहरे को जितना हो सके साफ रखें और उसे ड्राई न होने दें.

“सुबह और रात एक सौम्य क्लीन्ज़र का उपयोग करें. मुँहासे को नियंत्रित करने के लिए, दिन में एक बार पैड का उपयोग करें जिसमें ग्लाइकोलिक या सैलिसिलिक एसिड होता है, जो स्किन को साफ़ एवं शुद्ध रखने में मदद करता है. “और अपना मेकअप लगाने से पहले, हाइलूरोनिक एसिड के साथ बना हुआ मॉइस्चराइज़र या किसी नेचुरल एस्सेटीएल आयल का उपयोग करें. ”

खुद के लिए समय निकाले-

यह एक  तथ्य है कि तनाव में रहने से मुंहासों का होना संभव है. तनाव के कारण मस्तिष्क अधिक हार्मोन जारी करता है, जिससे मुंहासे होते हैं. इसलिए, भले ही आप काम के बोझ और तनाव से भरे हों, फिर भी कम से कम 5 मिनट आराम करने और खुद को तरोताजा करने के लिए कुछ समय निकालने का प्रयास जरूरी करें.  उस समय अपनी पसंदीदा और संभावित गतिविधियाँ करें, अपने आप को संगीत, नृत्य, ड्राइंग, लेखन या अपनी पसंद के किसी व्यक्ति के साथ बातचीत में शामिल करें, कम से कम कुछ ऐसा जो आपको मानसिक खुशी दे. क्योंकि स्वस्थ चमकती स्किन के लिए खुश रहना सबसे जरूरी है.

बच्चों में मोटापे की बढ़ती समस्याएं और आत्मविश्वास की कमी

युवाओं और बच्चों में तेजी से फैलती फास्ट फूड की संस्कृति ने घर के खाने से मिलने वाले पोषक तत्वों को उनसे छीन लिया है, जिससे युवाओं और बच्चों में स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएँ हो रही हैं. कुछ दशकों पहले की तुलना में आजकल बच्चों और किशोरों में मोटापा एक बहुत बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है. इसके अलावा, महामारी ने पहले से मौजूद कठिन परिस्थति को और भी बढ़ाने का काम किया है. वायरस को बढ़ने से रोकने के लिये घरों में रहने के आदेश ने गंभीर रूप से लोगों के बाहर निकलने को सीमित कर दिया और परिवारों के लिये कई सारी परेशानियाँ लेकर आया, जिनमें मोटापा और ज्यादा वजन शामिल है, खासकर बच्चों में. स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई होने से बच्चों के खानपान, एक्टिविटी और सोने के पैटर्न पर काफी प्रभाव पड़ा.

डॉ. निशांत बंसल, कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि खाने-पीने की पैकेटबंद चीजें और सुविधाजनक खाने से भी वजन में अस्वास्थ्यकर वृद्धि हो रही है. बच्चों में मोटापे के लिये पेरेंट्स का खाना नहीं बना पाना या सेहतमंद खाना नहीं पका पाना, इसका बहुत बड़ा कारक रहा. ज्यादातर बच्चे शरीर और दिमाग पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को जाने बिना, कैंडीज और सॉफ्ट ड्रिंक्स के रूप में काफी सारा शक्कर लेते हैं.

समय की कमी-

बच्चों के मोटापे में शारीरिक गतिविधि और खेलने के समय में कमी का भी योगदान है. यदि कोई व्यक्ति कम ऐक्टिव है तो उनका वजन बहुत तेजी से बढ़ जाता है, चाहे वे किसी भी उम्र के हों. एक्सरसाइज करने से कैलोरी जलाकर सेहतमंद वजन बनाए रखने में मदद मिलती है. मैदान पर खेलने का समय और बाकी एक्टिविटीज से बच्चों को ज्यादा कैलोरी बर्न करने में मदद मिलती है, लेकिन यदि आप ऐसा करने के लिये प्रेरित नहीं करते हैं तो हो सकता है वे ऐसा नहीं करें. वर्तमान दौर में बच्चे आमतौर पर कंप्यूटर, टेलीविजन या गेमिंग स्क्रीन पर अपना समय बिताते हैं, क्योंकि समाज कहीं ज्यादा असक्रिय हो गया है. पहले के दिनों की तुलना में अब बहुत कम बच्चे ही साइकिल चलाकर स्कूल जाते हैं.

मनोवैज्ञानिक समस्या-

एक और महत्वपूर्ण कारण जिसे अक्सर दरकिनार कर दिया जाता है, वह यह है कि कुछ बच्चों का मोटापा मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण भी हो सकता है. बच्चे और किशोर जो ऊब गए हैं, चिंतित हैं, या परेशान हैं, वे अपनी नकारात्मक भावनाओं से निपटने में मदद के लिये अधिक खाना खा सकते हैं.

शारीरिक रूप से सक्रिय रहे-

खाने के साथ बच्चों का यह हानिकारक रिश्ता उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, दोनों को प्रभावित करता है. छोटे बच्चों में अक्सर बीमारियाँ होने की काफी अधिक संभावनाएं होती है, जोकि आगे चलकर उनकी जिंदगी को प्रभावित करती हैं. मोटे या ओवरवेट बच्चों को अक्सर अपने व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष करना पड़ता है. उनका निम्न आत्मविश्वास उनके शरीर के बढ़े हुए वजन के कारण हो सकता है. वे बदमाशी या मजाक का केंद्र बन सकते हैं. ऐसा हो सकता है कि वे शारीरिक गतिविधि नहीं कर पाएँ और अपने वजन को लेकर शर्म महसूस करें.

अपने बच्चे का सेहतमंद वजन बनाए रखने और उन्हें शारीरिक रूप से सक्रिय बनाए रखने के लिये, कई ऐसे उपाय हैं जो किए जा सकते हैं. अपने बच्चे के बढ़े वजन के पीछे के मुख्य कारण को जानना भी जरूरी है. कई ऐसे तरीके हैं जिससे बचपन में होने वाले मोटापे से वजन बढ़ने से रोका जा सके और चाइल्डहुड ओबिसिटी का इलाज किया जा सकता है. इसके साथ ही, समस्या पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों को रोकना भी जरूरी है. शक्कर और स्टार्च युक्त स्नैक्स की जगह सेहतमंद विकल्प, हेल्दी लंच पैक करना और लो-फैट, हाई-फाइबर वाला डिनर बच्चे की संपूर्ण सेहत को बेहतर बना सकता है और बार-बार लगने वाली भूख को शांत कर सकता है.

ऐक्टिविटीज में हिस्सा ले-

बच्चों को शारीरिक गतिविधियों के लिये अनुकूल सुरक्षित माहौल प्रदान करना, जैसे कि बाइक रूट, खेल का मैदान और ऐक्टिव रहने के लिये सुरक्षित जगहें, बच्चे के पूरे स्वास्थ्य के लिये जरूरी हैं. बच्चों को ऐक्टिव रहने के लिये प्रेरित करने का एक सबसे मजेदार तरीका है कि पेरेंट्स का ऐक्टिव रहना और शारीरिक गतिविधि में शामिल होना. पेरेंट्स को थोड़ा वक्त निकालकर और बच्चों के साथ उनकी पसंदीदा ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेना चाहिए, इससे पेरेंट-बच्चे का रिश्ता बेहतर होगा. साथ ही उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और खुद को देखने का बच्चे का नजरिया भी बेहतर होगा.

सोने से पहले भूलकर भी न खाएं ये 5 चीजें

काम का दबाव, परिवार का तनाव, आर्थिक उलझन और ऐसी ही कुछ दूसरी परेशानियों के चलते अक्सर लोगों को नींद नहीं आने या चैन की नींद नहीं आने की शिकायत हो जाती है. जिसके चलते कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं भी हो जाती हैं.

पर इन कारणों के अलावा एक कारण और भी है जिससे नींद प्रभावित होती है. शायद आपको पता नहीं हो लेकिन हमारी नींद, काफी हद तक हमारे डिनर पर भी निर्भर करती है.

खाने-पीने की कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनसे नींद अच्छी आती है तो वहीं कुछ ऐसी भी हैं जिनके सेवन से आपकी नींद खराब हो सकती है. सामान्य तौर पर एक शख्स को करीब 7 से 8 घंटे की नींद लेने की सलाह दी जाती है.

ऐसे में ये सुनिश्च‍ित करना बहुत जरूरी हो जाता है कि हम रात में कुछ भी ऐसा न खाएं जिससे नींद खराब हो या कोई दूसरी समस्या हो जाए.

सोने से पहले नहीं करें इन चीजों का सेवन:

1. कैफीन

कैफीन का सीधा असर हमारे मस्त‍िष्क पर पड़ता है. कैफीन की मात्रा वाली किसी भी चीज के सेवन से नींद पर असर पड़ता है. कैफीन का असर उसे लेने के पांच घंटे बाद तक बना रहता है.

2. बहुत अधिक मसालेदार खाना

रात के समय बहुत स्पाइसी खाना खाना सही नहीं है. बहुत अधिक मसालेदार खाना खाने से जलन और गैस की समस्या हो जाती है. जिससे अच्छी नींद नहीं आती.

3. मीट

मीट में उच्च मात्रा में फैट और प्रोटीन होते हैं. जिन्हें पचने में काफी समय लगता है. ऐसे में रात के समय मीट खाने से आप रातभर बेचैन हो सकते हैं.

4. जंक फूड

जंक फूड में उच्च मात्रा में सैचुरेटेड फैट होता है. जिसे पचने में काफी लंबा समय लगता है. रात के समय जंक फूड खाकर, चैन की नींद सो पाना थोड़ा मुश्क‍िल है.

5. फल

अगर आप सोने के ठीक पहले फल खाने जा रहे हैं तो रुक जाइए. फलों में नेचुरल शुगर होती है जिसे पचने में वक्त लगता है.

क्यों आती है प्रैग्नैंसी में रुकावट

मानव शरीर एक ऐसी जटिल मशीन है जिस का प्रत्येक भाग दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है. ऐसे में महिलाओं में बां झपन का कारण उन के जीवन में आई बीमारियों, गलत जीवनशैली और आनुवंशिक रोगों के साथसाथ उम्र का फैक्टर भी हो सकता है. डायबिटीज, ऐनीमिया और मोटापा जैसी स्थितियां या लापरवाह जीवनशैली जैसे तंबाकू और शराब का सेवन किसी के भी स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और यह बां झपन का बड़ा कारण हो सकता है. इस के अतिरिक्त कुछ महिलाएं जन्मजात ऐसी पैदा हो सकती हैं जिन का शरीर प्रजनन के लिए अनुकूल नहीं होता है.

आइए, इन में से कुछ फैक्टर्स को सम झते हैं:

ओव्यूलेशन विकारों का प्रभाव

ओव्यूलेशन वह घटना है जब एक परिपक्व अंडा अंडाशय से बाहर निकलता है जो शुक्राणु द्वारा निषेचित होने के लिए तैयार होता है. ओव्यूलेशन से संबंधित विकारों का मतलब है कि प्रजनन पीरियड के दौरान अंडे अनुपस्थित हैं जिस से स्वाभाविक रूप से कोई भू्रण (ऐंब्रो) नहीं बनता है.

ऐंडोमिट्रिओसिस का प्रभाव

ऐंडोमिट्रिओसिस वह स्थिति है जिस में ऐंडोमिट्रियम जो गर्भाशय को लाइनिंग करने

वाला टिशू होता है, इस के बाहर बढ़ता है. यह 10-15% महिलाओं में प्रजनन आयु के दौर में पाया गया है. इसलिए यह कई फर्टिलिटी पैरामीटर्स को प्रभावित करता है यानी व्यवहार्य अंडों (बाइबल एग्स) की कम संख्या (लो ओवेरियन रिजर्व), अंडे और भू्रण की खराब क्वालिटी और साथ ही इंप्लांटेशन में बाधा डालता है.

गर्भाशय फाइब्रौयड का प्रभाव

गर्भाशय फाइब्रौयड गैरकैंसर वाले ट्यूमर हैं जो कंसीव कर सकने की उम्र में महिलाओं के गर्भाशय में बढ़ते हैं. वे विभिन्न आकारों और गर्भाशय के विभिन्न भागों में पाए जा सकते हैं. हारमोन ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन जब ज्यादा होता है तो ये इन की वृद्धि का कारण बन सकते हैं. वे गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को बढ़ाते हैं और महिलाओं में बां झपन की संभावना बढ़ा देते हैं.

डायबिटीज और पीसीओएस का प्रभाव

टाइप 1 डायबिटीज के रोगियों में मासिकधर्म में देरी और रजोनिवृत्ति की शुरुआत में देरी होती है, साथ ही ओव्यूलेशन में देरी और अनियमित माहवारी भी होती है. इस के अलावा इस से गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है या गर्भपात तथा मरे बच्चे को जन्म देने की संभावना बढ़ जाती है.

टाइप 2 डायबिटीज में जहां अतिरिक्त इंसुलिन होता है, वहां इस का प्रतिरोध देखा जाता है जिस का उपयोग नहीं किया जा रहा है. इस के अलावा ब्लड शुगर की अधिकता भी पाई जाती है. पौलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) प्रजनन आयु वाली 5-13% महिलाओं को प्रभावित करता है और यह इंसुलिन प्रतिरोध और बढ़े हुए टेस्टोस्टेरौन के स्तर से जुड़ा होता है. डायबिटीज होने पर महिलाओं के लिए गर्भधारण करना मुश्किल हो सकता है.

मोटापे का प्रभाव

मोटापे को गर्भधारण के लिए हानिकारक माना गया है. माहवारी संबंधी विकार और एनोव्यूलेशन (जब मासिकधर्म के दौरान अंडाशय से अंडा नहीं निकलता है) मोटी महिलाओं में आम बात होती है. अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में गर्भपात के साथसाथ बां झपन का खतरा भी अधिक होता है. इस के साथ ही गर्भधारण, गर्भपात और गर्भावस्था की समस्याओं के खतरे भी बढ़ जाते हैं.

तंबाकू के सेवन का प्रभाव

अध्ययनों से पता चला है कि धूम्रपान करने वाली 60% से अधिक महिलाएं दूसरों की तुलना में बां झपन से जू झती हैं. यह भी पाया गया है कि तंबाकू का धूम्रपान ओवेरियन के काम को बाधित करता है और हारमोन की एकाग्रता को कम करता है. तंबाकू शरीर में जहरीले तत्त्व लाता है जिन में अंडों को नुकसान पहुंचाने और उन की संख्या को कम करने की क्षमता होती है. इस के अलावा यह अनियमित मासिकधर्म के कारण मासिकधर्म को बाधित करता है और इस के परिणामस्वरूप जल्दी रजोनिवृत्ति (अर्ली मेनोपौज) भी हो सकती है. तंबाकू के सेवन से अस्थानिक गर्भावस्था (ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी) की संभावना भी बढ़ जाती है.

तंबाकू का सेवन न केवल प्रजनन प्रणाली (ह्म्द्गश्चह्म्शस्रह्वष्ह्लद्ब1द्ग ह्य4ह्यह्लद्गद्व) को खराब करता है बल्कि गर्भावस्था को भी जटिल कर सकता है. गर्भधारण करने वाले और जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा सकता है. पूर्ण अवधि के जन्म (फुल टर्म बर्थ) के बावजूद बच्चे बहुत छोटे पैदा हो सकते हैं, मस्तिष्क और फेफड़ों में क्षति के साथसाथ कटे होंठ आदि जन्मजात दोषों का खतरा भी बढ़ जाता है.

ब्लौक्ड फैलोपियन ट्यूब का प्रभाव

फैलोपियन ट्यूब अंडाशय (ओवरी) को गर्भाशय (यूटरस) से जोड़ती है और यह वह मार्ग है जिस के माध्यम से अंडे गर्भ में पहुंचते हैं. जब फैलोपियन ट्यूब ठीक से काम नहीं कर रही होती है, तो इस से बां झपन हो सकता है क्योंकि निषेचन (फर्टिलाइजेशन) की प्रक्रिया ही नहीं होती है. ऐसा ब्लौकेज और संक्रमण के कारण हो सकता है.

फैलोपियन ट्यूब ब्लौकेज एक ऐसी स्थिति है जहां या तो एक या दोनों मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं, जिस से विभिन्न स्वास्थ्य और प्रजनन संबंधी जटिलताएं पैदा होती हैं. ये रुकावटें शुक्राणुओं के अंडों तक पहुंचने के मार्ग को बाधित करने के साथसाथ निषेचित अंडे (फर्टिलाइज्ड एग) के मार्ग को भी बाधित करती हैं. फैलोपियन ट्यूब बैक्टीरिया सहित विभिन्न रोगजनकों से संक्रमित हो सकती है और उन्हें पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज (पीआईडी) के तहत वर्गीकृत किया जाता है. रुकावटें जन्मजात भी सकती हैं और पूर्व सर्जरी के कारण भी.

उम्र का प्रभाव

महिलाएं अपने अंडाशय में सीमित अंडे के रिजर्व के साथ पैदा होती हैं जो उम्र के साथ घटती जाती है. 10 लाख से अधिक अपरिपक्व अंडे यौवन आतेआते लगभग 3 लाख अंडे तक रह जाते हैं जो माहवारी के प्रत्येक ओव्यूलेशन के साथ और कम हो जाते हैं और कुछ नष्ट भी हो जाते हैं. 30 के दशक के मध्य में अंडों की मात्रा और गुणवत्ता खराब हो जाती है और महिलाओं के 40 वर्ष की उम्र में लगभग 50% अंडे का पूल आनुवंशिक रूप से असामान्य हो जाता है. रजोनिवृत्ति यौवन के अंत और व्यवहार्य अंडों की अनुपलब्धता का प्रतीक है. अंडों का कम होना प्रजनन क्षमता में कमी का एक स्पष्ट संकेत है. रजोनिवृत्ति शरीर में कई संबंधित परिवर्तनों को प्रेरित करती है और इस में स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने की क्षमता भी शामिल है.

इलाज क्या है

जिस प्रकार बां झपन का कारण भिन्न होता है, उसी प्रकार इस का इलाज भी भिन्नभिन्न होता है. जो महिलाएं डायबिटीज, पीसीओएस और मोटापे जैसी परिस्थितियों के कारण स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थ हैं, उन के लिए पहला उपाय इस पर नियंत्रण पाना है. यह नियमित रूप से डाक्टरों से परामर्श कर के किया जा सकता है ताकि स्वस्थ आहार, शारीरिक गतिविधि के साथसाथ नियमित रूप से दवा की मौनिटरिंग होती रहे. इस के अलावा यह भी देखा गया है कि शराब और तंबाकू के सेवन न करने से प्राकृतिक गर्भाधान की संभावना काफी बढ़ जाती है.

हालांकि कुछ मामलों में बीमारियों से पहुंची क्षति या जन्मजात परिस्थितियों के कारण प्राकृतिक गर्भधारण संभव नहीं है. ऐसे में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी या एआरटी इन महिलाओं के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. एआरटी में इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ), इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) और अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (आईयूआई) जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं.

यदि कोई दंपती बां झपन से परेशान है और यहां तक कि मौजूदा बीमारियों के लिए उपाय भी कर रहे हैं, तो भी उन्हें अपनी मैडिकल हिस्ट्री पर चर्चा करने के लिए प्रजनन क्षमता/आईवीएफ विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए. यहां यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि एआरटी 100% सफलता की गारंटी नहीं देता है और इस के संभावित दुष्प्रभावों को सम झ लेना चाहिए. इस के बाद कई परीक्षण और स्कैन किए जाते हैं जो दोनों पार्टनर्स के मैडिकल कंडीशन की जांच करते हैं.

महिलाओं के प्रजनन अंगों की जांच करने के लिए अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण, ऐंटीमुलरियन हारमोन (एएमएच) के स्तर या गर्भाधान में बाधा डालने वाली किसी भी वृद्धि की जांच शामिल हो सकती है. इस के बाद ट्रीटमैंट का सु झाव दिया जाता है जिस में परिपक्व अंडों के लिए हारमोनल इंजैक्शन, उन का कलैक्शन, स्पर्म के साथ फर्टिलाइजेशन और भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसफर करना शामिल है. अंत में बीटाह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (बीटाएचसीजी) परीक्षण गर्भावस्था की पुष्टि करता है.

     -डा. क्षितिज मुर्डिया

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