पीछा करता डर: भाग 3- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

नंदन गिलास उठाता या कुछ बोलता, इस से पहले ही भानु का इशारा पा कर युवती ने कंपकपाते हाथों से गिलास उठा लिया. नंदन अभी सोच में डूबा बैठा था. भानु उस की ओर देख कर व्यंग्य में बोला, ‘‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. ज्यादा संयासी न बनो उठाओ गिलास.’’

नंदन का हाथ फिर भी आगे नहीं बढ़ा तो भानु अपना गिलास मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘यकीन मानो, तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं है. ये सब तो मजाक था. फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन जब तक मैं हूं, मेरे साथ इंजौय करो. मैं 2 पैग पी कर चला जाऊंगा. लेकिन ये 2 पैग मैं ने तुम दोनों के साथ पीने का वादा किया है.’’

नंदन समझ गए, भानु यूं मानने वाला नहीं है. मजबूरी थी, सो उन्होंने गिलास उठा लिया. युवती और नंदन दोनों ही आधे घंटे से भयानक तनाव में थे. उन्होंने गिलास हाथ में उठाए तो खाली होते देर न लगी. एक पैग ह्विस्की गले से नीचे उतरी, तो उन के चेहरों पर तनाव की रेखाएं कुछ कम हुईं.

उन दोनों के गिलास खाली देख भानु ने भी अपना गिलास खाली किया और तीनों के लिए एकएक पैग और बनाया. नंदन और उस युवती ने यह सोच कर दूसरे पैग भी जल्दी ही खाली कर दिए कि उन की देखादेखी वह भी जल्दी से गिलास खाली कर के चला जाएगा. लेकिन भानु ने दूसरा पैग पीने में कोई जल्दी नहीं की. वह चिकन खाते हुए आराम से सिप करता रहा.

खानेपीने के इस दौर में उन तीनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी. बीच में कुछ बोलता भी था, तो केवल भानु. नंदन और युवती के गिलास खाली देख भानु ने उन के गिलासों में ह्विस्की डालनी शुरू की, तो नंदन ने चौंकते हुए कहा, ‘‘ये क्या कर रहे हो भानु?’’

‘‘पैग बना रहा हूं. अपने लिए नहीं, तुम दोनों के लिए,’’ भानु मुस्कराते हुए बोला, ‘‘तुम्हें मेरा साथ देना है न…मेरे दो पैग तक. यही तो तय हुआ है.’’

नंदन भानु की चालाकी समझ गए. गलती उन की ही थी, जो उसे जल्दी भगाने के चक्कर में जल्दी से दोनों पैग चढ़ा गए. उन्होंने मन ही मन फैसला किया कि अब धीरेधीरे सिप करेेंगे. उन्होंने ही नहीं, युवती ने भी इस पर अमल किया. लेकिन भानु के बारबार अनुरोध पर जब उन दोनों ने गिलास हाथों में उठाए तो भानु ने गजब की फुर्ती से मोबाइल निकाला और वे लोग कुछ समझ पाते, इस से पहले ही दोनों का साथसाथ पीते हुए एक स्नैप ले लिया.

उस वक्त तक नंदन पर नशा हावी हो चुका था. वह गिलास मेज पर रख कर खड़े होते हुए गुस्से में बोले, ‘‘भानु, मैं मार डालूंगा तुम्हें. तुम ब्लैकमेल करना चाहते हो मुझे.’’

भानु ने भी अपना गिलास मेज पर रख दिया और मोबाइल जेब में डाल कर खड़े होते हुए शांत स्वर में बोला, ‘‘बात दोस्ती की चल रही थी और तुम दुश्मनी पर उतरने लगे. क्या इस के पहले तुम ने मेरे साथ कभी शराब नहीं पी? हर दूसरे तीसरे दिन तो… और हां, हिम्मत है, मुझे मार डालने की? जो आदमी अपनी प्रेयसी के साथ अपने शहर, अपने घर में ऐश करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता, वह किसी को क्या मारेगा.

‘‘तुम में अगर गैरत होती, तो इस खूबसूरत छलावे की जगह अपनी पत्नी और बच्चें के बीच होते. हिम्मत होती तो इसे ले कर अपने शहर से अस्सी किलोमीटर दूर यहां न आए होते. बहुत हो चुका. चुपचाप बैठो और अपना गिलास खाली करो.’’

नंदन को गुस्सा आया जरूर था, पर अपनी स्थिति का खयाल आते ही काफूर हो गया. वह हारे जुआरी की तरह बैठ गए और एक ही बार में गिलास खाली कर दिया. उन के खाली गिलास में ह्विस्की डालते हुए भानु युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘तुम लोग मुझे बिल्कुल गलत समझ रहे हो. मैं पहले ही बता चुका हूं कि मैं तुम्हें ब्लैकमेल नहीं करूंगा, बल्कि तुम लोगों के साथ एंजौय करना चाहता हूं. वह भी सिर्फ दो पैग तक.’’

‘‘तो फिर ये फोटोबाजी की क्या जरूरत है? ’’ नंदन ने तुनक कर पूछा, तो भानु उन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘मैं ने कह तो दिया, जाने से पहले फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन बात वही है कि जिसे अपने आप पर भरोसा न हो, वह दूसरों पर क्या भरोसा करेगा.’’

भानु ने नंदन के गिलास में थोड़ा पानी डाला, थोड़ा सोड़ा. इस के बाद उस ने एक ही झटके में अपना गिलास खाली किया और एक पैग ह्विस्की डाल कर उस में भी थोड़ा सोड़ा और पानी डाल लिया. वह उस का तीसरा पैग था, जो उस ने एक ही बार में खाली कर दिया.

भानु का गिलास खाली होते ही, नंदन माथुर शांत भाव से बोले, ‘‘भानु, तुम 2 नहीं, 3 पैग ह्विस्की पी चुके हो. वादा पूरा हो चुका. अब तुम अपने कमरे में जाओ. बाकी जो बात करनी हो, सुबह कर लेना.’’

‘‘बिल्कुल ठीक कहा तुम ने दोस्त,’’ भानु ने जान बूझ कर शराबियों वाले अंदाज में कहा, ‘‘वाकई अब मुझे जाना चाहिए. नशा भी काफी हो चुका है. लेकिन एक समस्या है. बातोंबातों में मैं दो की जगह 3 पैग पी गया और 3 सैद्धांतिक रूप से ठीक नहीं होते. देखो न, हम 3 हैं, इसलिए बीचबीच में तनाव और लड़ाईझगड़े की स्थिति बन जाती है. 2 या 4 होते, तो ऐसा कतई नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि तुम लोगों के साथ बिताया डेढ़ घंटे का समय कोई गंभीर स्थिति पैदा कर दे, इसलिए मेरा एक पैग और पीना जरूरी है.’’

भानु की इस बात के जवाब में न नंदन कुछ बोले, न युवती. भानु ने नंदन की ओर देख कर कहा, ‘‘सवा दस बजे हैं. ऐसा करो, रूम सर्विस को खाने के लिए बोल दो. साढ़े दस के बाद खाना नहीं मिलेगा. तुम लोगों के साथ 2 चपाती खा कर अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

भानु ने नंदन के कमरे में बैठ कर अपने दिमाग से जिस तरह जाल बुना था, उस में वह पूरी तरह फंस चुके थे. वह जानते थे कि भानु इतनी आसानी से नहीं टलेगा. अत: उन्होंने रूम सर्विस को फोन कर के खाने का आर्डर दे दिया.

पौने ग्यारह बजे जब वेटर खाना ले कर आया तो भानु, नंदन और युवती तीनों ही अपनेअपने गिलास खाली कर चुके थे. डोरबेल की आवज सुनते ही युवती अपना गिलास मेज के नीचे रख कर बेड पर जा लेटी.

नंदन और भानु के गिलास अभी भी मेज के ऊपर ही रखे थे. नंदन की जगह भानु ने ही दरवाजा खोला. वेटर ने अंदर आ कर मेज से खाली गिलास और प्लेटें हटाईं और मेज की साफसफाई कर के खाना लगा दिया.

जब वेटर अपना काम कर चुका तो भानु ने अपने कोट की अंदरवाली जेब में हाथ डाल कर 100 रुपए का नोट निकाला और वेटर को थमाते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू फौर गुड सर्विस. खाना खा कर हम अपने कमरे में चले जाएंगे. साहब को डिस्टर्ब नहीं करना, बर्तन सुबह उठा लेना.’’

‘‘यस सर.’’ कहते हुए वेटर चला गया. वेटर के जाते ही भानु ने स्वयं उठ कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा बंद करने के बाद भानु बेड पर लेटी लड़की के पास पहुंचा और उस की बांह पकड़ कर उठाते हुए बोला,

‘‘उठो डियर जान के जंजाल. अभी एक

पैग भी पीना है और खाना भी खाना है.’’

‘‘मुझे सोने दो, नींद आ रही है.’’ युवती ने भानु का हाथ झटकते हुए कहा, तो भानु हलके से उस की बांह मरोड़ते हुए बोला, ‘‘बनो मत, मैं सब जानता हूं, तुम कितने नशे में हो. मैं ने तुम्हारे गिलास में जान बूझ कर चारचार बूंद ह्विस्की डाली थी. इतनी ह्विस्की से तुम जैसी लड़की को कभी नशा नहीं हो सकता.’’

आगे पढ़ें- युवती ने एक ही बार में…

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पीछा करता डर: भाग 1- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

नंदन माथुर और भानु प्रकाश दोनों बड़े बिजनेसमैन थे. साथ खानेपीने और ऐश करने वाले. भानु विदेश गया तो एक जैसे 2 मोबाइल ले आया. एक अपने लिए दूसरा दोस्त के लिए. लेकिन नंदन ने उस का तोहफा नहीं लिया. फिर भानु ने उसी मोबाइल को हथियार बना कर नंदन को ऐसा नाच नचाया कि…

उस रात सर्दी कुछ ज्यादा ही थी. लेकिन आम लोगों के लिए, अमीरों के लिए नहीं. अमीरों की वह ऐशगाह भी

शीतलहर से महरूम थी, जिस का रूम नंबर 207 शराब और शबाब की मिलीजुली गंध से महक रहा था.

इस कमरे में नंदन माथुर ठहरे थे. पेशे से एक्सपोर्टर. लाखों में खेलने वाले इज्जतदार इंसान.

रात के पौने 9 बजे थे. कैनवास शूज से गैलरी के मखमली कालीन को रौंदता हुआ एक व्यक्ति रूम नंबर 207 के सामने पहुंचा. आत्मविश्वास से भरपूर वह व्यक्ति कीमती सूट पहने था. उस ने पहले ब्रासप्लेट पर लिखे नंबर पर नजर डाली और फिर विचित्र सा मुंह बनाते हुए डोरबेल का बटन दबा दिया.

दरवाजा खुलने में 5 मिनट लगे. कमरे के अंदर लैंप शेड की हलकी सी रोशनी थी, जिस में दरवाजे से अंदर का पूरा दृश्य देख पाना संभव नहीं था1 अलबत्ता कमरे के बाहर गैलरी में पर्याप्त प्रकाश था.

नंदन माथुर सर्दी के बावजूद मात्र बनियान व लुंगी पहने थे. उन के बाल भीगे थे और ऐसा लगता था, जैसे बाथरूम से निकल कर आ रहे हों. दरवाजे पर खड़े व्यक्ति को देख नंदन का समूचा बदन कंपकंपा कर रह गया. उन्होंने घबराए स्वर में कहा, ‘‘भानु तुम! इस वक्त…’’

‘‘ऐसे आश्चर्य से क्या देख रहे हो? मैं भूत थोड़े ही हूं,’’ सूटवाला कमरे में प्रवेश कते हुए बोला, ‘‘मैं भी इसी होटल में ठहरा हूं. कमरा नंबर 211 में. अकेला बोर हो रहा था, सो चला आया.’’

‘‘वो तो ठीक है, लेकिन…’’ नंदन माथुर दरवाजा खुला छोड़ कर भानु के पीछेपीछे चलते हुए बोले.

‘‘लेकिन वेकिन बाद में करना, पहले दरवाजा बंद कर के कपड़े पहन लो. सर्दी बहुत तेज है. सर्दी में पैसे और बदन की गरमी भी काम नहीं करती दोस्त,’’ भानु कुर्सी पर बैठते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘इतनी ठंड में नहा रहे थे. लगता है, पैसे की गरमी कुछ ज्यादा ही है तुम्हे.’’

नंदन की टांगे थरथरा रही थीं. कुर्सी पर पड़ा तौलिया उठा कर गीले बाल पोंछते हुए उन्होंने सशंकित स्वर में पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहां ठहरा हूं.’’

‘‘चाहने वाले कयामत की नजर रखते है दोस्त,’’ भानु ने उठ कर दरवाजे की ओर बढ़ते हुए व्यंग्य किया, ‘‘आया हूं, तो थोड़ी देर बैठूंगा भी. तुम कपड़े पहन लो. फिर आराम से सवाल करना.’’

भानु ने दरवाजा बंद किया, तो नंदन माथुर का दिल धकधक करने लगा. नंदन चाहते थे कि भानु किसी भी तरह चला जाए, जबकि भानु जाने के मूड में कतई नहीं था. मजबूरी में नंदन ने गर्म शाल लपेटा और भानु के सामने आ बैठे. उन के चेहरे पर अभी भी हवाइयां उड़ रही थीं. बैठते ही उन्होंने लड़खड़ाती आवाज में पूछा, ‘‘तुम्हें पता कैसे चला, मैं यहां ठहरा हूं?’’

‘‘इत्तफाक ही समझो,’’ भानु ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वरना तुम ने किलेबंदी तो बड़ी मजबूत की थी, अशरफ खान साहब उर्फ नंदन माथुर’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब कुछ नहीं यार! मैं ने पार्किंग में तुम्हारी गाड़ी खड़ी देखी तो समझा, तुम ठहरे होगे. रिसेप्शन से पता किया तो रजिस्टर में तुम्हारा नाम नहीं था. मैं ने सोचा 2 बजे तक तो तुम औफिस में थे. उस के बाद ही आए होगे. यहां 4-5 बजे पहुंचे होगे.

मैं ने रिसेप्शनिस्ट से 4 बजे के बाद आने वाले कस्टमर्स के बारे में पता किया तो पता चला, केवल एक मुस्लिम दंपत्ति आए हैं, जो कमरा नंबर 207 में ठहरे हैं. मैं सोच कर तो यही आया था कि इस कमरे में अशरफ खान और नाजिया खान मिलेंगे, लेकिन दरवाजा खुला तो नजर आए तुम… तुमने और भाभी ने धर्म परिवर्तन कब किया नंदन?’’

नंदन माथुर का चेहरा सफेद पड़ गया. जवाब देते नहीं बना. उन्हें चुप देख भानु इधरउधर ताकझांक करते हुए मुसकरा कर बोला, ‘‘लेकिन भाभी हैं कहां? कहीं बाथरूम में तो नहीं हैं? बाथरूम में हों तो बाहर बुला लो. ठंड बहुत है, कुल्फी बन जाएंगी.’’

‘‘फिलहाल तुम जाओ भानु. प्लीज डोंट डिस्टर्ब मी. हम सुबह बात करेंगे.’’ नंदन माथुर ने कहा तो भानु पैर पर पैर रख कर कुरसी पर आराम से बैठते हुए बोला, ‘‘मैं जानता हूं नंदन. बाथरूम में भाभी नहीं, बल्कि वो है, जिस के लिए तुम ने अपनी पहचान तक बदल डाली. फिर भी इतने रूखेपन से मुझे जाने को कह रहे हो. यह जानते हुए भी कि मैं बाहर गया तो तुम्हारा राज भी बाहर चला जाएगा.’’

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ नंदन ने आवाज थोड़ी तीखी करने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.

भानु मुस्कराते हुए बोला, ‘‘इस राज को शराब के गिलास में डुबो कर गले से नीचे उतार लेना चाहता हूं… तुम्हारी इज्जत की खातिर. तुम्हारे परिवार की खातिर. बस इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहता मैं.’’

‘‘यह मेरा व्यक्तिगत मामला है. मैं तुम्हें धक्के दे कर भी बाहर निकाल सकता हूं.’’ नंदन ने गुस्से में खड़े होते हुए कहा, तो भानु उसे बैठने का इशारा करते हुए धीरे से बोला, ‘‘धीर गंभीर व्यक्ति को गुस्सा नहीं करना चाहिए. जरा सोचो, तुम ने मुझे धक्के दे कर निकाला तो मैं चीखूंगा.

‘‘चीखूंगा तो वेटर आएंगे. मैंनेजर आएगा. कस्टमर आएंगे. जब उन्हें पता चलेगा कि मैं तुम्हारे कमरे में जबरन घुसा था तो वे पुलिस को बुलाएंगे.

‘‘पुलिस मुझ से पूछताछ करेगी. जाहिर है, मैं अपने बचाव के लिए नंदन माथुर उर्फ अशरफ खान की पूरी कहानी बता दूंगा. पुलिस से बात पत्रकारों तक पहुंचेगी और फिर अखबारों के जरीए यह खबर सुबह तुम से पहले तुम्हारे घर पहुंच जाएगी. खबर होगी एक्सपोर्टर नंदन माथुर होटल में अय्याशी करते मिला. मेरा ख्याल है, तुम ऐसा कतई नहीं चाहोगे.’’

पलभर में ही नंदन की सारी अकड़ ढीली पड़ गई. उन्होंने बैठते हुए थकी सी आवाज में पूछा, ‘‘क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘सिर्फ दो पैग ह्विस्की पीनी है, तुम्हारे और उस के साथ.’’

‘‘ह्विस्की नहीं है मेरे पास.’’ नंदन ने रूखे स्वर में कहा, तो भानु इधरउधर तांकझांक करते हुए बोला, ‘‘क्यों झूठ बोलते हो यार. पूरा कमरा तो महक रहा है.’’

मेज के नीचे दो खाली गिलास रखे थे. भानु ने बारीबारी से दोनों गिलास उठा कर सूंघे और मेज पर रखते हुए गर्दन हिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘हूं…उं…! दोनों ने पी है.’’

माथुर की हालत रंगेहाथों पकड़े गए चोर जैसी हो गई. वह बहुत कुछ कहना चाहते थे, विरोध करना चाहते थे, लेकिन चाह कर भी वे न विरोध कर सके, न कुछ कह सके.

भानु ने कुर्सी से उठ कर बेड के नीचे झांका. ह्विस्की की बोतल बेड के नीचे उल्टी पड़ी थी. भानु बोतल उठ कर देखते हुए बोला, ‘‘वाह विंटेज,…अच्छी चीज है. शबाब के साथ शराब भी तो बढि़या होनी चाहिए.’’

शराब की बोतल हाथ में उठाए भानु फिर कुर्सी पर आ बैठा. वह बोतल को एक हाथ में ऊपर उठा कर देखते हुए बोला, ‘‘दोनों ने दोदो पैग पिए हैं. इतनी सर्दी में दो पैग से क्या होता है.’’

बोतल मेज पर रख कर भानु ने मेज के नीचे फिर ताकझांक की. मेज के नीचे 2 प्लेंटे रखी थीं. उस ने दोनों प्लेंटे उठा कर मेज पर रख दीं. एक प्लेट में भुने काजू थे, दूसरी में सलाद. भानु प्लेटों की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘मुझे काजू और सलाद पसंद नहीं हैं. मुझे नानवेज चाहिए. रूमसर्विस को फोन कर के खाली गिलास, सोडा और रोस्ट चिकन लाने को बोलो.’’

नंदन माथुर किंकर्तव्यविमूढ से बैठे थे. उन्हें चुप देख भानु बोला, ‘‘एक काम करो, पहले उसे बाहर बुला लो. ठंड में अकड़ जाएगी. हां उस से बस इतना ही कहना कि मैं तुम्हारा दोस्त हूं.’’

आगे पढ़ें- मन मार कर नंदन माथुर उठे और…

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पीछा करता डर: भाग 2- नंदन का कौनसा राज था

लेखक- संजीव कपूर लब्बी

नंदन माथुर जड़वत् बैठे थे. चेहरे पर तनाव. आंखों में विचित्र सा भय. भानु खड़े हो कर उन का कंधा थपथपाते हुए बोला, ‘‘दोस्त, कोई गलत इरादा नहीं है मेरा. जिंदगी जीने का सबका अलगअलग ढंग होता है. यकीन करो, तुम्हारा ये राज इस कमरे से बाहर नहीं जाएगा. चलो उठो, बुला लो उसे.’’

मन मार कर नंदन माथुर उठे और बाथरूम की ओर बढ़ गए. भानु दोनों हाथ पीछे बांधे वहीं खड़ा रहा. नंदन ने बाथरूम का दरवाजा नौक करते हुए धीरे से आवाज दी, ‘‘बाहर आ जाओ.’’

पहले बाथरूम की कुंडी खुलने की आवाज आई, फिर दरवाजा खोल कर एक युवती ने बाहर झांका. नंदन बाथरूम के बाहर ही खड़े थे. वह उसे देखते ही बोले, ‘‘डरो मत, एक दोस्त है. अचानक चला आया.’’

25-25 साल की वह गौरांगी गुलाबी नाइटी में बड़ी खूबसूरत लग रही थी. ठंड के मारे उस का बुरा हाल था. उस के भीगे बालों से अभी तक पानी टपक रहा था, जिस से नाइटी का ऊपरी भाग भीग गया था.

बाथरूम से बाहर निकल कर उस युवती ने पहले एक नजर पास खड़े नंदन पर डाली, फिर भानु की ओर देखा. ठीक उसी समय भानु के पीछे सिमटे हाथ तेजी से आगे आए और क्लिक की आवाज के साथ युवती और नंदन के चेहरे फ्लैश की रोशनी में चमक उठे.

पलभर के लिए नंदन और युवती दोनों ही स्तब्ध रह गए. भानु की चालाकी भांप कर नंदन ने जैसेतैसे अपने आप को संभाला और भानु को देख कर आंखें तरेरते हुए पूछा, ‘‘यह क्या बद्तमीजी है?’’

‘‘इस में बद्तमीजी की क्या बात है?’’ भानु मोबाइल संभाले कुर्सी पर बैठते हुए बोला, ‘‘तुम दोनों इस पोज में प्रेमीप्रेमिका लग रहे थे. मुझे नेचुरल पोज लगा, सो खींच लिया. ऐसे पोज रोजरोज थोड़े ही बनते हैं.’

नंदन और वह युवती अभी तक सहमे खड़े थे, तभी भानु ने उन की ओर देख कर मोबाइल वाला हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘वंस मोर’’

नंदन और युवती ने अपनेअपने हाथ उठा कर मुंह छिपाने की कोशिश की, लेकिन तब तक भानु कैमरे का शटर दबा चुका था.

भानु मोबाइल जेब में डालते हुए बोला, ‘‘नंदन, तुम तो ऐसे डर रहे हो, जैसे मैं कोई ब्लैकमेलर हूं. डरो मत दोस्त, मेरा कोई भी गलत इरादा नहीं है.’’

‘‘इरादा तो मैं तुम्हारा समझ गया हूं.’’ नंदन ने गुस्से में कहा. भानु संभल कर बैठते हुए बोला, ‘‘समझ गए हो तो और भी अच्छा है. मुझे अपनी बात कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

नंदन तो डरे हुए थे ही, युवती उन से भी ज्यादा डर गई थी. उस ने मुंह फेर कर तौलिया उठाया और ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ गई. नंदन भानु के पास आ खड़े हुए और उस से पूछा, ‘‘तुम चाहते क्या हो, भानु?’’

‘‘सिर्फ दो पैग ह्विस्की,’’ भानु लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘तुम्हारे और उस के साथ. क्या नाम है उस का?’’

‘‘भाड़ में गया नाम. मुझे यह बताओ, मैं ने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा है क्या?’’

‘‘मैं भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ूंगा. मेरे खयाल से 2 पैग ह्विस्की पिलाने से तुम्हारा कुछ नहीं बिगडेगा.’’

‘‘बात ह्विस्की की नहीं है. तुम चाहो तो पूरी बोतल ले जाओ.’’

‘‘तो क्या बात है? तुम्हारे चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही है?’’

‘‘ये फोटो… क्या है ये सब?’’

‘‘मुझे पोज अच्छा लगा, खींच लिया. तुम्हें अच्छा नहीं लगा, बनवा कर तुम्हें दे दूंगा. इस में डरने की क्या बात है?’’

‘‘फोन से डिलीट कर दो, प्लीज.’’

‘‘मुझ से फोटो डिलीट करने को कह रहे हो और खुद 2 पैग ह्विस्की नहीं पिला सकते.’’

‘‘2 क्या 4 पैग पिलाऊंगा. पहले फोटो डिलीट कर दो.’’

‘‘ठीक है, डिलीट कर दूंगा, लेकिन 2 पैग पीने के बाद. रूम सर्विस को फोन कर के गिलास, सोडा और रोस्ट चिकन का आर्डर दो.’’

मजबूरी थी, नंदन ने रूम सर्विस को फोन कर के भानु के मनमुताबिक आर्डर दे दिया.

कमरा वातानुकूलित था. अंदर ज्यादा ठंड नहीं थी. बाथरूम के बाहर आ कर युवती को काफी राहत मिली थी.

जब तक वेटर सामान ले कर आया, तब तक नंदन और भानु के बीच कोई बात नहीं हुई. इस बीच भानु बैठा हुआ फिल्मी गीत गुनगुनाता रहा. ‘आज की रात… वेटर सामान दे गया, तो भानु ने पहले अपना पैग बनाया, फिर मेज के नीचे से दोनों गिलास निकाल कर उन में ह्विस्की डाली. उसे तीसरे गिलास में ह्विस्की डालते देख नंदन ने पूछा, ‘‘तीसरा पैग क्यों बना रहे हो?’’

‘‘उस के लिए.’’ भानु ने लड़की की ओर इशारा कर के कहा.

‘‘वो नहीं पिएगी.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता? यह तो उस की इच्छा पर निर्भर है. सामने आ कर बैठेगी तो खुद ब खुद इच्छा हो जाएगी.’’

‘‘मैं ने कहा न, नहीं पिएगी.’’ नंदन तीखी आवाज में बोले, तो भानु ने उन की आंखों में झांकते हुए व्यंग्य से कहा, ‘‘वो तुम्हारी बीवी है, जो तुम्हारे इशारों पर नाचेगी.’’

नंदन का मन कर रहा था अपने बाल नोच लेने का. उन का वश चलता तो वह एक पल में भानु को कमरे के बाहर कर देते. लेकिन मजबूरी थी. अत: गिड़गिड़ा कर दयनीय स्वर में बोले, ‘‘भानु प्लीज, तुम दो पैग पियो और जाओ.’’

‘‘जाने को तो मैं बिना पिए भी चला जाऊंगा. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘सो नहीं पाओगे रातभर. जिस मकसद से आए हो, वह भी अधूरा रह जाएगा.’’

‘‘तो तुम ही बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘कुछ नहीं, उसे बुला लो और प्यार से 2 पैग पिला दो. यकीन मानो, उस के बाद कतई डिस्टर्ब नहीं करूंगा.’’

नंदन सिर पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे, क्या करें?

भानु बोला, ‘‘क्या नाम है मोहतरमा का? मैं खुद ही बुला लेता हूं.’’

‘‘जी का जंजाल.’’ नंदन ने माथा पीटते हुए चिढ़ कर कहा, तो भानु खड़े होते हुए हंस कर बोला, ‘‘नाम अच्छा है. एकदम मौर्डन. चलो, इसी नाम से बुला लेते हैं.’’

युवती ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी बाल सुखा रही थी. भानु कुछ देर तक स्लीवलैस नाइटी से बाहर झांकती उस की गोरीगोरी बाहों को देखता रहा, फिर उस की नंगी बाहों को पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘उठो जी के जंजाल. दो पैग ह्विस्की हमारे साथ भी पी लो.’’

युवती ने खड़े हो कर तीखी नजरों से भानु की ओर देखा, फिर बांह छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘ये क्या बद्तमीजी है?’’

‘‘बद्तमीजी तब होती है डियर जान के जंजाल, जब सड़क चलती किसी अनजान लड़की का हाथ इस तरह पकड़ा जाए. होटल के बंद कमरे में किसी गैर मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही औरत का उसी कमरे में हाथ पकड़ लेना बद्तमीजी नहीं है. वैसे भी मैं ने हाथ ही तो पकड़ा है, और कुछ नहीं.’’

क्षणमात्र में युवती का ठंडा बदन गरम हो गया. चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. आंखों में बेबसी के भाव साफ झलक रहे थे. पलभर रूक कर भानु उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीरे से बोला, ‘‘तुम्हारे बारे में बहुत ज्यादा तो नहीं, पर थोड़ा बहुत जानता हूं. कुंवारी नहीं, शादीशुदा हो तुम.

‘‘बात पति और ससुराल तक पहुंच गई, तो घर की रहोगी, न घाट की. चल कर चुपचाप ह्विस्की पियो. उतने ही प्यार से जितने प्यार से नंदन के साथ पी रही थीं.’’

युवती का चेहरा पीला पड़ गया. वह बिना कुछ बोले मेज की ओर बढ़ गई. भानु की इस हरकत को देख कर नंदन खून का घूंट पी कर रह गए. भानु युवती को नंदन के पास वाली कुर्सी पर बैठाते हुए बोला, ‘‘देखो, बुरा आदमी नहीं हूं मैं. तुम लोगों का बुरा कतई नहीं चाहूंगा. जानता हूं. कपड़ों के नीचे सब नंगे होते हैं. जैसे तुम. वैसा मैं. अकेला था, सो चला आया. चलो उठाओ अपनेअपने पैग. मैं 2 पैग पी कर चला जाऊंगा.’’

आगे पढ़ें- नंदन का हाथ फिर भी आगे…

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टिट फौर टैट: क्या था हंसिका का प्लान

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

साल की बैस्ट कहानी का अवार्ड लेते ही पूरा हौल तालियों से गूंज उठा था. विजयी लेखिका अरुंधती ने डायस पर आ कर धन्यवाद प्रेषित किया और अपनी कहानी के बारे में बताना शुरू किया-

“आप सब का बहुत शुक्रिया जो आप ने मेरी कहानी को वोट कर के इसे नंबर वन कहानी होने का खिताब दिलवाया. यह इस बात की तस्दीक भी करता है कि मेरी कहानी सिर्फ कहानीभर नहीं, बल्कि बहुत सी औरतों के जीवन की सचाई भी है.

“इस कहानी में एक ऐसी खूबसूरत व हसीन लड़की है जो अपने पति को एक महिला के साथ जिस्मानी संबंध बनाते देख लेती है और पति से इस बात की शिकायत करने पर उस के पति के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती, बल्कि वह और भी बेशर्म व निडर हो जाता है. और अब तो वह खुलेआम दूसरी औरत को घर में भी लाने लगता है. मेरी नायिका दूसरी भारतीय नारियों की तरह इस घटना से रोती नहीं, टूटती नहीं, बल्कि अपने पति को सबक सिखाती है. अगर उस का शादीशुदा पति किसी औरत से शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे भी पूरा हक है कि वह अपने पति से तलाक ले और अपनी शर्तों पर जीवन जिए.”

अरुंधती ने कहना जारी रखा-

“मेरी कहानी की नायिका अपने पति की बेवफाई से आहत है. प्रतिशोध लेने के लिए वह एक के बाद एक 4 युवकों से दोस्ती कर लेती है. उन में से 2 युवक शादीशुदा हैं जो अपनी विवाहित जिंदगी से परेशान हैं, जबकि 2 लड़के कुंआरे हैं. और देखिए कि मेरी नायिका पुरुषों की कामुक प्रवत्ति को पहचान कर उन सब को एकसाथ कैसे हैंडल करती है.

“‘हंसिका, मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं, तुम अभी तक पहुची क्यों नहीं?’ शेखर ने फोन पर परेशान आवाज़ में हंसिका से कहा.

“‘ओह, आई एम सो सौरी. मैं तुम्हें बता नहीं पाई, आज कंपनी के काम से औफिस में ही देर हो जाएगी मुझे.’

“‘पर मैं ने तो आज शाम का पूरा मूड बना लिया था,’ शेखर परेशान हो उठा था.

“‘कोई बात नहीं, तुम अपना मूड बनाए रखो, मैं तुम्हारी कल की शाम हसीन बना दूंगी,’ हंसिका ने फोन पर शेखर को दिलासा देते हुए कहा.

“‘किस से बात कर रही हो जानेमन,’ होटल के कमरे में घुसते हुए आर्यन ने पूछा.

“‘कोई नहीं, बस, ऐसे ही एक सहेली थी.’

“‘साफ क्यों नहीं कहती कि वह बेचारा भी मेरी तरह ही तुम्हारे हुस्न की गरमी का सताया हुआ आशिक है. न जाने तुम में कौन सी कशिश है जो हम आशिकों को तुम्हारे पास बारबार आने को मजबूर करती है.

“‘हम परवानों की बस इतनी सी इबादत है,

बस, तेरे हुस्न में झुलसने की आदत है.’

“यह कह कर आर्यन ने अपनी हंसिका को बांहों में भरा. हंसिका उस की आगोश में सिमटती चली गई. कुछ देर बाद कमरे में कामोत्तेजक सिसकारियां गूंजने लगी थीं. हंसिका और आर्यन एकदूसरे के जिस्म में समा गए थे. जब दोनों का जोश ठंडा हुआ तब हंसिका ने आर्यन के सीने पर सिर रखा और उस से पूछने लगी-

“‘तुम्हारी बीवी तो मुझ से भी खूबसूरत है. फिर भी तुम मेरे आगेपीछे क्यों डोलते रहते हो?’

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“आर्यन ने अपनी बीवी का जिक्र आते ही बुरा सा मुंह बनाया और कहने लगा- ‘कहावत है कि मर्द के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. पर, मेरे लिए मेरे दिल तक आने का रास्ता इस बैड से हो कर जाता है. मुझे सैक्स में थोड़ा पावर और हीट गेम चाहिए पर वह बैड पर किसी ज़िंदा लाश की तरह पड़ी रहती है.’

“‘तो क्या, तुम्हें बिस्तर पर एक ऐथलीट की ज़रूरत है?’ हंसिका ने उस को बीच में रोकते हुए कहा.

“‘नहीं, पर मर्द और औरत के रिश्तों के लिए एक अच्छी सैक्सलाइफ बहुत ज़रूरी होती है. यह बात तो तुम भी मानोगी न,’ यह कह कर आर्यन ने हंसिका को चूम लिया.

“वैसे, हंसिका इन मर्दों का अश्लील वीडियो बनाना नहीं भूलती थी, क्या पता किस मोड़ पर काम आ जाएं.

“हंसिका पूरी रात आर्यन के साथ गुज़ारने के बाद सुबह अपने औफिस गई और फिर पूरा दिन काम करने के बाद अपने फ्लैट पर जाने से पहले उसने ब्यूटीपार्लर जाना जरूरी समझा. उस के साथ में उस की औफिसमेट माया थी.

“‘अरे हंसिका, अभी तूने 2 दिनों पहले ही तो अपने बालों को स्ट्रेट कराया था. और आज फिर से इन्हें कर्ली क्यों करा रही है,’ माया ने पूछा.

“‘क्योंकि आज मेरी आकाश के साथ डेट है,’ मुसकराते हुए हंसिका ने कहा.

“‘आकाश के साथ? पर तेरे बौयफ्रैंड का नाम तो युवराज है.’ चौंक पड़ी थी माया.

“‘तुम नहीं समझोगी, माया. अच्छा बताओ, इंद्रधनुष में कितने रंग होते हैं?’ हंसिका ने पूछा.

“‘सात.’

“‘और एक हफ्ते में कितने दिन?’

“‘सात,’

“‘तो फिर, बौयफ्रैंड एक क्यों, सात क्यों नहीं?’ अपने होंठों पर हलकी सी मुसकराहट लाते हुए हंसिका ने कहा.

“‘अरे, तू क्या सच में सात मान बैठी. सात नहीं, बल्कि सिर्फ 4 बौयफ्रैंड हैं मेरे.’

“‘ओफ्फो, तुझे समझना बहुत मुश्किल है.’

“यह कह कर माया बाहर की ओर जाने लगी, तो हंसिका ने उसे पास बुलाया और बोली, ‘सुन तो, देख, अजीब ज़रूर लग रहा होगा पर आर्थिकरूप से स्वतंत्र रहने का यही तो मज़ा है. चाहे जैसे रहो, कोई टोकने वाला नहीं. और ज़िन्दगी में ऐश करो. पति के सहारे रहने व उस की बेवफाई सहने में भला रखा ही क्या है.’ हंसिका का दर्द छलक आया था. उस ने सिगरेट सुलगाई. माया ने सहमति में सिर हिला दिया.

“करीब 5 फुट 9 इंच की हाइट वाली हंसिका का व्यक्तित्व देखते ही बनता था. गोरा रंग, पतला चेहरा और सुतवां नाक. इस के साथ उस के बाल कमर तक लहराते हुए. अपने बौडीमास को भी बहुत अच्छी तरह से मेन्टेन किया हुआ था हंसिका ने और इस के लिए वह सप्ताह में कम से कम 3 दिन जिम जाती थी.

“हंसिका एक मौडलिंग एजेंसी में काम करती थी जो बेंगलुरु जैसे शहर में अच्छी आय का स्रोत था और इसी पैसे के चलते हंसिका मनचाहे अंदाज़ से अपना जीवन जी रही थी.

“जो दिखता है वाही बिकता है के सिद्धांत को मानने वाली हंसिका अपने यौवन का भरपूर दिखावा करना अच्छी तरह से जानती थी. अपने अलगअलग बौयफ्रैंड्स के साथ वह सैक्स करने में पीछे कभी नहीं हटती. अलगअलग दिनों में हंसिका के शारीरिक संबंध अलगअलग बौयफ्रैंड से बनते.

“हंसिका के बौयफ्रैंड यह बात अच्छी तरह जानते थे कि हंसिका के संबंध उन लोगों के अलावा और लोगों से भी हैं पर उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि हंसिका जैसी खूबसूरत लड़की पर एकाधिकार दिखा कर वे उसे खोना नहीं चाहते थे. उन के लिए तो हंसिका जैसी दिलकश हसीना के शरीर को भोग लेना ही बहुत बड़ी बात थी.

“आज हंसिका की डेट आकाश नाम के व्यक्ति के साथ थी. आकाश एक समय में हंसिका का फेसबुक फ्रैंड था. आकाश शादीशुदा था. वह अपनी पत्नी की बेवफाई से दुखी था. उस की पत्नी का स्कूल के एक टीचर के साथ अफेयर था जिस के बारे में उसे भनक लग गई थी और दुखी हो कर आत्महत्या के बारे तक में सोचने लगा था. अपनी निराशा से जुड़ी बातें आकाश ने फेसबुक मैसेंजर पर हंसिका से शेयर कीं तो हंसिका को मामले की गंभीरता के बारे में पता चला.

“उस ने अपनी बातों से टूटे हुए आकाश को दिलासा दी और उसे मिलने के लिए बुलाया. दोनों में मुलाकातें होने लगीं. वहीं से आकाश पूरी तरह से हंसिका के रूप का दीवाना हो गया. और हंसिका ने उसे भी अपनी देह का स्वाद चखाने में देर नहीं की. हंसिका अपने इन बौयफ्रैंड्स को अच्छी तरह यूज़ करना जानती थी. कब किस से कितने पैसे की डिमांड करनी है, इस का अच्छी तरह ज्ञान था उस को.

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“हंसिका अनचाहे गर्भ से बचने के लिए कंडोम का प्रयोग एक अनिवार्य शर्त बना देती थी. पर इस बार पता नहीं किस से और कैसे चूक हुई कि हंसिका गर्भवती हो गई थी. अपने गर्भवती हो जाने की बात हंसिका ने किसी भी बौयफ्रैंड को नहीं बताई. दिन बीतते रहे. अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण जब हंसिका अपना गर्भपात कराने के लिए डाक्टर के पास पहुंची तो डाक्टर ने यह कह कर गर्भपात करने से मना कर दिया कि समय अधिक हो गया है, अब यह संभव नहीं है, इसलिए आप को बच्चे को जन्म देना ही होगा.

“हंसिका ने सब से पहले यह बात अपने एक पुराने बौयफ्रैंड आर्यन से बताई, ‘सुनो आर्यन, यार, बड़ीड़ा प्रौब्लम हो गई है.’

“‘ऐसा भी क्या हो गया मेरी जान जो तुम इतना घबरा कर बोल रही हो,’ आर्यन ने कहा.

“‘यू नो, आई एम प्रैग्नैंट,’ हंसिका ने फुसफुसा कर कहा.

“‘बधाई हो, मिठाई खिलाओ भाई,’ आर्यन ने चुटकी ली.

“‘मज़ाक मत करो, मैं बहुत परेशान हूं,’ हंसिका चिड़चिड़ा रही थी.

“‘अब तुम कोई दूध पीती बच्ची तो नहीं जो तुम्हें बताना पड़ेगा कि अगर तुम शादी से पहले प्रैग्नैंट हो गई हो तो बच्चे को अबौर्ट करवा दो.’

“‘तुम्हें क्या लगता है कि मैं डाक्टर के पास नहीं गई थी? गई थी पर डाक्टर ने गर्भपात करने से मना कर दिया. अब मुझे बच्चे को जन्म देना ही होगा.’

“ओह्ह, तो यह बात है,’ आर्यन ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा और चुप हो गया. कुछ देर बाद आर्यन ने ही कहना शुरू किया, ‘कोई बात नहीं, तुम फिक्र मत करो. अस्पताल का सारा खर्चा मैं देने के लिए तैयार हूं. पर क्या यह बच्चा वास्तव में मेरा ही है?’

“‘ये कैसी बातें कर रहे हो आर्यन, क्या मतलब है तुम्हारा?’

“‘मेरा मतलब है कि मेरे अलावा तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है?’ आर्यन ने कहा. जबकि, उसे अच्छी तरह पता था कि हंसिका अपने पति से अलग रह रही है और उस ने पति से तलाक लेने का मुकदमा दायर कर रखा है.

“‘अगर भरोसा नहीं है तो बच्चे का डीएनए टैस्ट करवा लो.’

“डीएनए टैस्ट करवाने की बात तो आर्यन के मन में भी आई थी पर अगर डीएनए टैस्ट में बच्चा किसी और का निकलता तो बहुत मुमकिन था कि आर्यन को हंसिका से विरक्ति हो जाती और वह उसे खो देता.

“‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम तो ज़रा सी बात में नाराज़ हो गई. मैं तो मज़ाक कर रहा था,’ आर्यन ने बात बनाते हुए कहा.

“हंसिका के संबंध कई मर्दों से थे. सभी मर्द इस बात को अच्छी तरह से जानते भी थे. हंसिका जैसी चिड़िया किसी एक पिंजरे में बंद हो कर नहीं रह सकती पर वे सब हंसिका जैसी सैक्सी व दिलकश लड़की को छोड़ना नहीं चाहते थे. इसलिए, वे सब उस की लगभग हर बात मानते थे.

हंसिका ने इसी तरह बारीबारी अपने सभी बौयफ्रैंड्स को अपने गर्भवती होने की बात बताई. और उन सब ने कमोबेश यही कहा कि हंसिका, बच्चे को अस्पताल में जन्म दे और वे लोग उसे हर तरह का खर्चा देने के लिए तैयार हैं.

“जब अपने चारों बौयफ्रैंड्स से हंसिका ने बात कर के उन से पैसे मिलने की बात कन्फर्म कर ली, तब जा कर उस को सुकून मिला और वह अपने होने वाले बच्चे के भविष्य को ले कर आश्वस्त हो गई.

“मेरी नायिका हंसिका ने अपने औफिस से मैटरनिटी लीव ली और समय आने पर बच्चे को जन्म दिया.

“हंसिका अपने हर बौयफ्रैंड को अलगअलग यही एहसास कराती रहती कि जैसे यह बच्चा उस का ही है और उन लोगों से अलगअलग बच्चे के पालनपोषण के लिए पैसे भी लेती रही.

“कालांतर में हंसिका के अविवाहित बौयफ्रैंड्स की शादी भी हो गई और कुछ समय बाद बच्चे भी. पर उन प्रेमियों ने हंसिका व उस के बच्चे का ध्यान रखना नहीं छोड़ा.

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“हंसिका के कई पुरुषों से संबंध को दुश्चरित्रता इसलिए भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मर्दों के इस समाज में हंसिका ने ‘टिट फौर टैट’ अर्थात ‘जैसे को तैसा’ वाला आचरण दिखा कर एक नई मिसाल पेश की है. और फिर, अगर एक औरत अपने पति की किसी भी तरह की बेवफ़ाई के खिलाफ किसी भी तरह का सार्थक कदम उठाती है तो उस का स्वागत किया जाना चाहिए. और मुझे पता है कि इस समाज में हंसिका जैसी बहुत औरते हैं जो पति की बेवफाई सह रही हैं. भले ही वे सब अपने मर्द के खिलाफ कुछ न कर पा रही हों पर मेरी इस कहानी को पसंद कर उन्होंने इस साल की बैस्ट कहानी बना कर हंसिका का साथ देने की मूक स्वीकृति तो दे ही दी है.”

हौल में लगातार तालियां बजे जा रही थीं हंसिका जैसी नायिका के लिए. पर यह बात केवल अरुंधती ही जानती थी कि हंसिका की यह कहानी किसी और की नहीं, बल्कि उस की अपनी है.

झगड़ा: क्यों भागा था लाखा

लेखक- युधिष्ठिर लाल कक्कड़

रात गहराने लगी थी और श्याम अभीअभी खेतों से लौटा ही था कि पंचायत के कारिंदे ने आ कर आवाज लगाई, ‘‘श्याम, अभी पंचायत बैठ रही?है. तुझे जितेंद्रजी ने बुलाया है.’’

अचानक क्या हो गया? पंचायत क्यों बैठ रही है? इस बारे में कारिंदे को कुछ पता नहीं था. श्याम ने जल्दीजल्दी बैलों को चारापानी दिया, हाथमुंह धोए, बदन पर चादर लपेटी और जूतियां पहन कर चल दिया.

इस बात को 2-3 घंटे बीत गए थे. अपने पापा को बारबार याद करते हुए सुशी सो गई थी. खाट पर सुशी की बगल में बैठी भारती बेताबी से श्याम के आने का इंतजार कर रही थी.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो भारती ने सांकल खोल दी. थके कदमों से श्याम घर में दाखिल हुआ.

भारती ने दरवाजे की सांकल चढ़ाई और एक ही सांस में श्याम से कई सवाल कर डाले, ‘‘क्या हुआ? क्यों बैठी थी पंचायत? क्यों बुलाया था तुम्हें?’’

‘‘मुझे जिस बात का डर था, वही हुआ,’’ श्याम ने खाट पर बैठते हुए कहा.

‘‘किस बात का डर…?’’ भारती ने परेशान लहजे में पूछा.

श्याम ने बुझी हुई नजरों से भारती की ओर देखा और बोला, ‘‘पेमा झगड़ा लेने आ गया है. मंगलगढ़ के खतरनाक गुंडे लाखा के गैंग के साथ वह बौर्डर पर डेरा डाले हुए है. उस ने 50,000 रुपए के झगड़े का पैगाम भेजा है.’’

‘‘लगता है, वह मुझे यहां भी चैन से नहीं रहने देगा… अगर मैं डूब मरती तो अच्छा होता,’’ बोलते हुए भारती रोंआसी हो उठी. उस ने खाट पर सोई सुशी को गले लगा लिया.

श्याम ने भारती के माथे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘नहीं भारती, ऐसी बातें क्यों करती हो… मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर हमारे गांव की पंचायत ने क्या फैसला किया? क्या कहा जितेंद्रजी ने?’’ भारती ने पूछा.

‘‘सच का साथ कौन देता है आजकल… हमारी पंचायत भी उन्हीं के साथ है. जितेंद्रजी कहते हैं कि पेमा का झगड़ा लेने का हक तो बनता है…

‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि या तो तू झगड़े की रकम चुका दे या फिर भारती को पेमा को सौंप दे, लेकिन…’’ इतना कहतेकहते श्याम रुक गया.

‘‘मैं तैयार हूं श्याम… मेरी वजह से तुम क्यों मुसीबत में फंसो…’’ भारती ने कहा.‘‘नहीं भारती… तुम्हें छोड़ने की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता… रुपयों के लिए अपने प्यार की बलि कभी नहीं दूंगा मैं…’’‘‘तो फिर क्या करोगे? 50,000 रुपए कहां से लाओगे?’’ भारती ने पूछा.

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‘‘मैं अपना खेत बेच दूंगा,’’ श्याम ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘खेत बेच दोगे तो खाओगे क्या… खेत ही तो हमारी रोजीरोटी है… वह भी छिन गई तो फिर हम क्या करेंगे?’’ भारती ने तड़प कर कहा.

यह सुन कर श्याम मुसकराया और प्यार से भारती की आंखों में देख कर बोला, ‘‘तुम मेरे साथ हो भारती तो मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं मेहनतमजदूरी करूंगा, लेकिन तुम्हें भूखा नहीं मरने दूंगा… आओ खाना खाएं, मुझे जोरों की भूख लगी है.’’

भारती उठी और खाना परोसने लगी. दोनों ने मिल कर खाना खाया, फिर चुपचाप बिस्तर बिछा कर लेट गए.

दिनभर के थकेहारे श्याम को थोड़ी ही देर में नींद आ गई, लेकिन भारती को नींद नहीं आई. वह बिस्तर पर बेचैन पड़ी रही. लेटेलेटे वह खयालों में खो गई.

तकरीबन 5 साल पहले भारती इस गांव से विदा हुई थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी. उन्होंने उसे लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. उस की शादी मंगलगढ़ के पेमा के साथ धूमधाम से की गई थी.

भारती के मातापिता ने उस के लिए अच्छा घरपरिवार देखा था ताकि वह सुखी रहे. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशियां ढेर हो गई थीं, क्योंकि पेमा का चालचलन ठीक नहीं था. वह शराबी और जुआरी था. शराब और जुए को ले कर आएदिन दोनों में झगड़ा होने लगा था.

पेमा रात को दारू पी कर घर लौटता और भारती को मारतापीटता व गालियां बकता था. एक साल बाद जब सुशी पैदा हुई तो भारती ने सोचा

कि पेमा अब सुधर जाएगा. लेकिन न तो पेमा ने दारू पीना छोड़ा और न ही जुआ खेलना.

पेमा अपने पुरखों की जमीनजायदाद को दांव पर लगाने लगा. जब कभी भारती इस बात की खिलाफत करती तो वह उसे मारने दौड़ता.

इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच भारती ने बहुत दुख झेले. पति के साथ कुदरत की मार ने भी उसे तोड़ दिया. इधर भारती के मांबाप गुजर गए और उधर पेमा ने उस की जिंदगी बरबाद कर दी. घर में खाने के लाले पड़ने लगे.

सुशी को बगल में दबाए भारती खेतों में मजदूरी करने लगी, लेकिन मौका पा कर वह उस की मेहनत की कमाई भी छीन ले जाता. वह आंसू बहाती रह जाती.

एक रात नशे की हालत में पेमा अपने साथ 4 आवारा गुंडों को ले कर घर आया और भारती को उन के साथ रात बिताने के लिए कहने लगा. यह सुन कर उस का पारा चढ़ गया. नफरत और गुस्से में वह फुफकार उठी और उस ने पेमा के मुंह पर थूक दिया.

पेमा गुस्से से आगबबूला हो उठा. लातें मारमार कर उस ने भारती को दरवाजे के बाहर फेंक दिया.

रोती हुई बच्ची को भारती ने कलेजे से लगाया और चल पड़ी. रात का समय था. चारों ओर अंधेरा था. न मांबाप, न कोई भाईबहन. वह जाती भी तो कहां जाती. अचानक उसे श्याम की याद आ गई.

बचपन से ही श्याम उसे चाहता था, लेकिन कभी जाहिर नहीं होने दिया था. वह बड़ी हो गई, उस की शादी हो गई, लेकिन उस ने मुंह नहीं खोला था.

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श्याम का प्यार इतना सच्चा था कि वह किसी दूसरी औरत को अपने दिल में जगह नहीं दे सकता था. बरसों बाद भी जब वह बुरी हालत में सुशी को ले कर उस के दरवाजे पर पहुंची तो उस ने हंस कर उस के साथ पेमा की बेटी को भी अपना लिया था.

दूसरी तरफ पेमा ऐसा दरिंदा था, जिस ने उसे आधी रात में ही घर से बाहर निकाल दिया था. औरत को वह पैरों की जूती समझता था. आज वह उस की कीमत वसूलना चाहता है.

कितनी हैरत की बात है कि जुल्म करने वाले के साथ पूरी दुनिया है और एक मजबूर औरत को पनाह देने वाले के साथ कोई नहीं है. बीते दिनों के खयालों से भारती की आंखें भर आईं.

यादों में डूबी भारती ने करवट बदली और गहरी नींद में सोए हुए श्याम के नजदीक सरक गई. अपना सिर उस ने श्याम की बांह पर रख दिया और आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन सुबह होते ही फिर पंचायत बैठ गई. चौपाल पर पूरा गांव जमा हो गया. सामने ऊंचे आसन पर गांव के मुखिया जितेंद्रजी बैठे थे. उन के इर्दगिर्द दूसरे पंच भी अपना आसन जमाए बैठे थे. मुखिया के सामने श्याम सिर झुकाए खड़ा था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू

करते हुए मुखिया जितेंद्रजी ने कहा, ‘‘बोल श्याम, अपनी सफाई में तू क्या कहना चाहता है?’’

‘‘मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है मुखियाजी… मैं ने ठुकराई हुई एक मजबूर औरत को पनाह दी है.’’

यह सुन कर एक पंच खड़ा हुआ और चिल्ला कर बोला, ‘‘तू ने पेमा की औरत को अपने घर में रख लिया है श्याम… तुझे झगड़ा देना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां श्याम, यह हमारा रिवाज है… हमारे समाज का नियम भी है… मैं समाज के नियमों को नहीं तोड़ सकता,’’ जितेंद्रजी की ऊंची आवाज गूंजी तो सभा में सन्नाटा छा गया.

अचानक भारती भरी चौपाल में आई और बोली, ‘‘बड़े फख्र की बात है मुखियाजी कि आप समाज का नियम नहीं तोड़ सकते, लेकिन एक सीधेसादे व सच्चे इनसान को तोड़ सकते हैं…

‘‘आप सब लोग उसी की तरफदारी कर रहे हैं जो मुझे बाजार में बेच देना चाहता है… जिस ने मुझे और अपनी मासूम बच्ची को आधी रात को घर से धक्के दे कर भगा दिया था… और वह दरिंदा आज मेरी कीमत वसूल करने आ खड़ा हुआ है.

‘‘ले लीजिए हमारा खेत… छीन लीजिए हमारा सबकुछ… भर दीजिए उस भेडि़ए की झोली…’’ इतना कहतेकहते भारती जमीन पर बेसुध हो कर लुढ़क गई.

सभा में खामोशी छा गई. सभी की नजरें झुक गईं. अचानक जितेंद्रजी अपने आसन से उठ खड़े हुए और आगे बढ़े. भारती के नजदीक आ कर वह ठहर गए. उन्होंने भारती को उठा कर अपने गले लगा लिया.

दूसरे ही पल उन की आवाज गूंज उठी, ‘‘सब लोग अपनेअपने हथियार ले कर आ जाओ. आज हमारी बेटी पर मुसीबत आई है. लाखा को खबर कर दो कि वह तैयार हो जाए… हम आ रहे हैं.’’

जितेंद्रजी का आदेश पा कर नौजवान दौड़ पड़े. देखते ही देखते चौपाल पर हथियारों से लैस सैकड़ों लोग जमा हो गए. किसी के हाथ में बंदूक थी तो किसी के हाथ में बल्लम. कुछ के हाथों में तलवारें भी थीं.

जितेंद्रजी ने बंदूक उठाई और हवा में एक फायर कर दिया. बंदूक के धमाके से आसमान गूंज उठा. दूसरे ही पल जितेंद्रजी के साथ सभी लोग लाखा के डेरे की ओर बढ़ गए.

शराब के नशे में धुत्त लाखा व उस के साथियों को जब यह खबर मिली कि दलबल के साथ जितेंद्रजी लड़ने आ रहे हैं तो सब का नशा काफूर हो गया. सैकड़ों लोगों को अपनी ओर आते देख वे कांप गए. तलवारों की चमक व गोलियों की गूंज सुन कर उन के दिल दहल उठे.

यह नजारा देख पेमा के तो होश ही उड़ गए. लाखा के एक इशारे पर उस के सभी साथियों ने अपनेअपने हथियार उठाए और भाग खड़े हुए.

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सैंडल: क्या हुआ था गुड्डी के साथ

लेखक- जितेंद्र छंगाणी

अपने बैडरूम के पीछे से किसी बच्ची के जोरजोर से रोने की आवाज सुन कर मैं चौंका. खिड़की से झांकने पर पता चला कि किशन की बेटी गुड्डी दहाड़ें मारमार कर रो रही थी.

मैं ने खिड़की से ही पूछा, ‘‘अरी लीला, छोरी क्यों रो रही?है?’’ इस पर गुड्डी की मां ने जवाब दिया, ‘‘क्या बताएं सरकार, छोरी इस दीवाली पर बहूरानी जैसे सैंडल की जिद कर रही है…’’ वह कुछ रुक कर बोली, ‘‘इस गरीबी में मैं इसे सैंडल कहां से ला कर दूं?’’

मैं अपनी ठकुराहट में चुप रहा और खिड़की का परदा गिरा दिया. मैं ने जब से होश संभाला था, तब से किशन के परिवार को अपने खेतों में मजदूरी करते ही पाया था. जब 10वीं जमात में आया, तब जा कर समझ आया कि कुछ नीची जाति के परिवार हमारे यहां बंधुआ मजदूर हैं.

सारा दिन जीतोड़ मेहनत करने के बाद भी मुश्किल से इन्हें दो जून की रोटी व पहनने के लिए ठाकुरों की उतरन ही मिल पाती थी. इस में भी बेहद खुश थे ये लोग. गुड्डी किशन की सब से बड़ी लड़की थी. भूरीभूरी आंखें, गोल चेहरा, साफ रंग, सुंदर चमकीले दांत, इकहरा बदन. सच मानें तो किसी ‘बार्बी डौल’ से कम न थी. बस कमी थी तो केवल उस की जाति की, जिस पर उस का कोई वश नहीं था. वह चौथी जमात तक ही स्कूल जा सकी थी.

अगले ही साल घर में लड़का पैदा हुआ तो 13 साल की उम्र में स्कूल छुड़वा दिया गया और छोटे भाई कैलाश की जिम्मेदारी उस के मासूम कंधों पर डाल दी गई. दिनभर कैलाश की देखभाल करना, उसे खिलानापिलाना, नहलानाधुलाना वगैरह सबकुछ गुड्डी के जिम्मे था. कैलाश के जरा सा रोने पर मां कहती, ‘‘अरी गुड्डी, कहां मर गई? एक बच्चे को भी संभाल नहीं सकती.’’

बेचारी गुड्डी फौरन भाग कर कैलाश को उठा लेती और चुप कराने लग जाती. इस काम में जरा सी चूक होने पर लीला उसे बड़ी बेरहमी से पीटती. फिर भी वह सारा दिन चहकती रहती. शायद बेटी होना ही उस का जुर्म था. मेरी शादी के बाद ‘ऊंची एड़ी के सैंडल’ पहनना गुड्डी का सपना सा बन गया था. गृहप्रवेश की रस्म के समय उस ने मेरी बीवी के पैरों में सैंडल देख लिए थे. बस, फिर क्या था, उस ने मन ही मन ठान लिया था कि अब तो वह सैंडल पहन कर ही दम लेगी.

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उस की सोच का दायरा बस सैंडल तक ही सिमट कर रह गया था. गुड्डी कभीकभार हमारी कोठी में आया करती थी. एक बार की बात है कि वह अपने हाथ में मुड़ातुड़ा अखबार का टुकड़ा लिए इठलाती हुई जा रही थी.

मैं ने पूछ लिया, ‘‘गुड्डी, क्या है तेरे हाथ में?’’ वह चुप रही. मैं ने मांगा तो कागज का टुकड़ा मुझे थमा दिया. मैं ने अखबार का पन्ना खोल कर देखा तो पाया कि वह सैंडल का इश्तिहार था, जिसे गुड्डी ने सहेज कर अपने पास रखा था.

मैं ने अखबार का टुकड़ा उसे वापस दे दिया. वह लौट गई. इस से पहले भी कमरे में झाड़ू लगाते समय मैं ने एक बार उसे अपनी बीवी के सैंडल पहनते हुए देख लिया था. मेरे कदमों की आहट सुन कर गुड्डी ने फौरन उन्हें उतार कर एक ओर सरका दिया. मैं ने भी बचकानी हरकत जान कर उस से कुछ नहीं कहा.

गुड्डी की जिद को देख कर मन तो मेरा भी बहुत हो रहा था कि उसे एक जोड़ी सैंडल ला दूं. मगर मां बाबूजी के आगे हिम्मत न पड़ती थी, अपने मजदूरों पर एक धेला भी खर्च करने की. बाबूजी इतने कंजूस थे कि एक बार गांव के कुछ लोग मरघट की चारदीवारी के लिए चंदा मांगने आए थे तो उन्हें यह कह कर लौटा दिया, ‘‘अरे बेवकूफों, ऐसी जगह पर चारदीवारी की क्या जरूरत है, जहां जिंदा आदमी तो जाना नहीं चाहता और मरे हुए उठ कर आ नहीं सकते.’’

बेचारे गांव वाले अपना सा मुंह ले कर लौट गए. गुड्डी को कुछ ला कर देना तो दूर की बात है, हमें उस से बात करने तक की इजाजत नहीं थी. हमारे घरेलू नौकरों तक को नीची जाति के लोगों से बात करने की मनाही थी. गांव में उन के लिए अलग कुआं, अलग जमीन पर धान, सागसब्जी उगाने का इंतजाम था.

वैसे तो किशन की झोंपड़ी हमारी कोठी से कुछ ही दूरी पर थी, मगर उस के परिवार में कितने लोग हैं, इस का मुझे भी अंदाजा नहीं था. मैं राजस्थान यूनिवर्सिटी से बीकौम का इम्तिहान पास कर वकालत पढ़ने विलायत चला गया. वहां भी गुड्डी मेरे लिए एक सवाल बनी हुई थी.

देर रात तक नींद न आने पर जब घर के बारे में सोचता तो गुड्डी के सैंडल की याद ताजा हो उठती. मैं मन ही मन उसे अपने परिवार का सदस्य मान चुका था.

4 साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. मैं ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली थी. अब बात आगे काम सीखने की थी, जो मैं यहां अपने देश में ही करना चाहता था. इधर पिताजी ने जोधपुर हाईकोर्ट में अपने वकील दोस्त भंडारी से मेरे बारे में बात कर ली थी इसलिए मैं भारत लौट रहा था.

चंद रोज बाद ही मैं मुंबई एयरपोर्ट पर था. एयरपोर्ट से रेलवे स्टेशन करीब डेढ़ किलोमीटर दूर था. 4 साल तक विदेश में रहने के बावजूद भी मैं मांबाबूजी के खिलाफ जाने की हिम्मत तो नहीं जुटा पाया था, फिर भी किसी तरह उन्हें मनाने का मन बना लिया था. ट्रेन के आने में अभी 5 घंटे का समय था, इसलिए रिकशे वाले को जूतों की किसी अच्छी सी दुकान पर ले चलने को कहा. वहां से गुड्डी के लिए एक जोड़ी सैंडल खरीदे और रेलवे स्टेशन पहुंच गया.

कुली ने सारा सामान टे्रन में चढ़ा दिया. मैं ने सैंडल वाली थैली अपने हाथ में ही रखी. यह थैली मुझे अपने मन की पोशाक जान पड़ती थी, जिस के सहारे मैं ऊंचनीच का भेद भुला कर पुण्य का पापड़ सेंकने की फिराक में था. मेरा गांव रायसिंह नगर मुंबई से तकरीबन 800 किलोमीटर दूर था. आज बड़ी लाइन के जमाने में भी वहां तक पहुंचने में 20 घंटे लग जाते हैं और

3 बार ट्रेन बदलनी पड़ती है. आजादी से 2 साल पहले तो 3 दिन और 2 रातें सफर में ही गुजर जाती थीं. अगले दिन शाम तकरीबन 5 बजे मैं थकाहारा गांव पहुंचा.

गांव में त्योहार का सा माहौल था. पूरा गांव मेरे विदेश से लौटने पर खुश था. गांवभर में मिठाइयां बांटी जा रही थीं. सभी के मुंह पर एक ही बात थी, ‘‘छोटे सरकार विदेश से वकालत पढ़ कर लौटे हैं.’’ मैं बीकानेर इलाके का पहला वकील था. उस जमाने में वकील को लोग बड़ी इज्जत से देखते थे.

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घर पहुंचने पर बग्घी से उतरते ही मैं ने किशन की झोंपड़ी की ओर एक नजर डाली, मगर वहां गुड्डी नहीं दिखाई दी. रात 9 बजे के बाद माहौल कुछ शांत हुआ. पर मेरा पूरा बदन टूटा जा रहा था. खाना खाया और दर्द दूर करने की दवा ले कर सो गया.

अगले दिन सुबह 9 बजे के आसपास मेरी आंख खुली. श्रीमतीजी मेरा सूटकेस व दूसरा सामान टटोल रही थीं. उस ने अपने मतलब की सभी चीजें निकाल ली थीं, जो मैं उस के लिए ही लाया था. यहां तक कि मां की साड़ी, पिताजी के लिए शाल, छोटे भाईबहनों के कपड़े वगैरह सबकुछ मेरे जगने से पहले ही बंट चुके थे. पर सैंडल वाली थैली नदारद थी. मैं ने सोचा कि सुधा ने अपना समझ कर कहीं रख दी होगी.

दोपहर के खाने के बाद मैं ने सोचा कि अब गुड्डी के सैंडल दे आऊं. उसे बड़ी खुशी होगी कि बाबूजी परदेश से मेरे लिए भी कुछ लाए हैं. मैं ने अपनी बीवी से पूछा, ‘‘सुधा, वह लाल रंग की थैली कहां रख दी, जिस में सैंडल थे?’’

सुधा ने जवाब दिया, ‘‘ऐसी तो कोई थैली नहीं थी आप के सामान में.’’ मैं ने फिर कहा, ‘‘अरे यार, मुंबई से लाया था. यहींकहीं होगी. जरा गौर से देखो.’’

सुधा ने सारा सामान उलटपुलट कर दिया, मगर वह लाल रंग की थैली कहीं नहीं मिली. काफी देर के बाद याद आया कि अजमेर रेलवे स्टेशन पर एक आदमी बड़ी देर से मेरे सामान पर नजर गड़ाए था, शायद वही मौका पा कर ले गया होगा. यह बात मैं ने सुधा को बताई

तो वह बोली, ‘‘चलो अच्छा ही हुआ. किसी जरूरतमंद के काम तो आएगी. वैसे भी मेरे पास तो 6-7 जोड़ी सैंडल पड़े हैं.’’ इस पर मैं ने कहा, ‘‘अरी सुधा, वह मैं तुम्हारे लिए नहीं गुड्डी के लिए लाया था.’’ गुड्डी का नाम सुनते ही सुधा सिसकने लगी. उस की आंखें भीग गईं. वह बोली, ‘‘किसे पहनाते, गुड्डी को मरे तो 4 महीने हो गए.’’

सुधा की पूरी बात सुन कर मैं भी रो पड़ा. सुधा ने बताया कि मेरे जाने के एक साल बाद ही बेचारी गरीब को एक ऐयाश शराबी के साथ ब्याह दिया गया. उम्र में भी वह काफी बड़ा था. गुड्डी लोगों के घरों में झाड़ूपोंछा कर जो भी 2-4 रुपए कमा कर लाती, उसे भी वह मारपीट कर ले जाता. चौबीसों घंटे वह शराब पी कर पड़ा रहता था. बहुत दुखी थी बेचारी. फिर भी उस ने अपने सपने को ज्यों का त्यों संजो कर रखा था. करीब 4 महीने पहले बड़ी मुश्किल से छिपछिपा कर बेचारी ने 62 रुपए जोड़ लिए थे.

करवाचौथ के दिन गांव में हाट लगा था, जहां से गुड्डी अपना सपना खरीद कर लाई थी. उसे क्या पता था कि यह सपना ही उस के लिए काल बन जाएगा. गुड्डी ने हाट से वापस आ कर सैंडल ऊपर के आले में रखे थे. एक बार पहन कर देखे तक नहीं कि कहीं मैले न हो जाएं.

शाम को न जाने कहां से उस के पति की नजर सैंडल पर पड़ गई. कहने लगा, ‘‘बता चुड़ैल, कहां से लाई इतने पैसे? किस के साथ गई थी?’’ और लगा उसे जोरजोर से पीटने. गुड्डी पेट से थी. उस ने एक लात बेचारी के पेट पर दे मारी. वही लात उस के लिए भारी पड़ गई. उस की मौत हो गई. उस का पति आजकल जेल में पड़ा सड़ रहा है.

यही थी गुड्डी की दर्दभरी कहानी, जिसे सुन कर कोई भी रो पड़ता था. पर अब न गुड्डी थी, न गुड्डी का सपना.

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लौट जाओ शैली: भाग 3- विनीत ने क्या किया था

लेखिका- विनिता राहुरीकर

विनीत को शैली और आकाश के बारे में कुछ भनक लग गई. शैली जिम की जिम्मेदारी निभाने और लोगों को इंप्रैस कर के जिम जौइन करने के लिए प्रेरित करने में बहुत माहिर थी. विनीत उस के कारण काफी कुछ निश्चिंत था. वह किसी भी कीमत पर शैली को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था. उस ने तुरंत ही शैली पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया. उस के लिए महंगे उपहार लाने लगा, उसे पार्टियों में ले जाने लगा और जिम में ज्यादा से ज्यादा समय उस के साथ गुजारने लगा. उस ने

शैली के घर आनाजाना भी बढ़ा दिया.

शैली जो आकाश के साथ रहते हुए विनीत से दूर होने लगी थी, अब आकाश को छोड़ कर वापस विनीत के साथ इन्वौल्व होने लगी. उस ने आकाश से शादी के लिए साफसाफ मना कर दिया. आकाश ने जिम आना छोड़ दिया और फिर शैली से उस का कोई संपर्क नहीं था. शैली का जीवन वापस उसी ढर्रे पर चलने लगा. अब तो उस की मां ने उस से शादी के लिए पूछना भी छोड़ दिया. पहले तो शैली दीपावली आदि त्योहारों पर घर भी जाती थी, लेकिन लोगों की कानाफूसियों और शादी के लिए की जा रही टोकाटाकी से तंग आ कर उस ने वहां जाना छोड़ दिया.

जिम की ऐनुअल पार्टी में शैली ने फिर विनीत के साथ खूब ऐंजौय किया. बेटे की तबीयत खराब होने की वजह से उस की पत्नी नहीं आ पाई तो शैली और विनीत देर तक डांस करते रहे. उस रात देर तक विनीत शैली के घर में भी रहा. शैली का पिछला सारा मलाल धुल गया.

शैली के विवाह के लिए इनकार करने की बात से थक कर आखिर उस के मातापिता ने उस के छोटे भाई का विवाह तय कर दिया. शैली विवाह में शामिल होने गई तो पहली बार उस के मन में एक कसक सी उठी. दोनों बहनें अपनेअपने पति व बच्चों में व्यस्त थीं. मातापिता, नातीनातिन व दामादों की खातिरदारी और नई बहू को ले कर ही व्यस्त और उत्साहित थे. कुछ वर्षों पहले जब शैली घर आती थी तो सब उस के आसपास मंडराते रहते. चारों ओर उस की पूछ होती रहती. पर आज सब अपने में मस्त और व्यस्त थे. शैली अपनेआप को बहुत उपेक्षित सा महसूस कर रही थी. वह हफ्ते भर के लिए आई थी मगर 3 दिनों में ही वापस चली गई.

दिनमहीने गुजरते गए. 8-10 महीने बाद पूनम की भी शादी हो गई. उस ने जिम की नौकरी छोड़ दी. पूनम उम्र में शैली से छोटी थी. शैली को थोड़ा अखरा. पूनम ने अपनी शादी में किसी को भी नहीं बुलाया था, न ही शादी का कार्ड दिया था. कोई नहीं जानता था कि उस की शादी कहां और किस से हुई है. जिम में शैली की एकमात्र सहेली पूनम ही थी, जो उस की राजदार थी और जिस से वह अपने दिल की बात कह देती थी. अब शैली को अकेलापन सा लगता.

इसी तरह 3 साल और गुजर गए और विनीत इस बीच एक और बेटे का बाप बन गया. उस की पत्नी ने अपने सासससुर को अपने पास बुलवा लिया था और बच्चों को उन के सुपुर्द कर के वह जिम आने लगी थी. धीरेधीरे उस ने चारों जिम का काफी कुछ काम संभाल लिया. जब तक विनीत जिम में होता, उस की पत्नी उस के साथ केबिन में बैठी रहती. अत: शैली को विनीत से बातचीत करने का मौका ही नहीं मिल पाता. उस के और विनीत के बीच बस काम को ले कर औपचारिक बातचीत ही हो पाती थी. विनीत उस के घर भी नहीं आ पाता था. शैली मन मसोस कर रह जाती थी. यों भी वह 32 वर्ष की हो चुकी थी और विनीत की नजरों में अपना आकर्षण खो चुकी थी. कसरत के कारण बदन भले ही चुस्तदुरुस्त था, लेकिन चेहरे पर उम्र का असर दिखाई देने लगा था.

और वैसे भी अब विनीत का मन रंजना नाम की नई लड़की से लगा हुआ था. रंजना 22 साल की चंचल, शोख, चुलबुली और आकर्षक युवती थी. विनीत उस के साथ वही कहानी दोहरा रहा था जो उस ने कभी शैली के साथ रची थी. शैली को रंजना को देख कर अफसोस होता. तरस आता कि इस का भी वही हश्र होगा जो मेरा हुआ. पर उसे पता था कि अगर वह रंजना को समझाने की कोशिश करे तो भी उसे कुछ समझ में नहीं आएगा. उस को भी तो उस समय कुछ समझ में नहीं आया था. चमकदमक से भरी ग्लैमरस लाइफ में उलझी यह उम्र ही ऐसी होती है. लेकिन शैली को बहुत दुख होता जब विनीत उस के काम में गलतियां निकालता, उसे झिड़क देता. शैली टूट जाती. तभी एक दिन मां का फोन आया कि उन्होंने बहू की ससुराल तरफ से किसी लड़के का फोटो कूरियर से उसे भेजा है. लड़का 38 साल का है और तलाकशुदा है. पर अच्छा यह है कि कोई बालबच्चा नहीं है. मां ने साफसाफ शब्दों में उसे कह दिया कि अब भी अगर उस ने शादी के लिए मना कर दिया तो वे उस से कोई रिश्ता नहीं रखेंगी, न ही उस के विवाह के लिए प्रयत्न करेंगी.

तीसरे दिन शैली को लड़के का फोटो मिल गया. साधारण नैननक्श वाला, सीधासाधा सा कुछ स्थूल सा आदमी था. शैली ने फोटो टेबल पर रख दिया. अब यही बचा है उस की किस्मत में.

दूसरे दिन शैली किसी काम से बाजार गई तो अचानक पीछे से आवाज आई, ‘‘अरे शैली तुम?’’

शैली ने पीछे देखा तो पूनम को देख कर एक सुखद आश्चर्य में डूब गई. फिर उस से बोली, ‘‘कितने सालों बाद मिली हो. तुम तो मुझे एकदम भूल ही गईं.’’

‘‘क्या करूं घरगृहस्थी में उलझ गई थी. और तुम कैसी हो? जिम में सब कैसे हैं?’’ पूनम ने कहा.

‘‘सब ठीक है…,’’ शैली कहतेकहते अचानक रुक गई. सामने से अचानक आकाश एक छोटे बच्चे को गोद में ले कर आया और शैली पर एक उपेक्षित सी उचटती हुई निगाह डाल कर पूनम से बोला, ‘‘जरा इसे पकड़ो, मैं सामान गाड़ी में रख दूं. यह और घूमने की जिद कर रहा है, मैं इसे ले जाता हूं…’’

कहते हुए आकाश ने बच्चे को पूनम की गोद में दिया और पास खड़ी चमचमाती गाड़ी का गेट खोल कर सामान की थैलियां रख कर बच्चे को ले कर वापस चला गया. अब शैली को समझ में आया कि पूनम ने अपनी शादी में किसी भी जिम वाले को क्यों नहीं बुलाया था.

‘‘मैं जानती हूं कि तुम्हारे मन में कई सवाल उठ रहे होंगे. आकाश का रिश्ता मेरे मौसाजी के भाई ले कर आए थे मेरे लिए. तुम ने उसे छोड़ने का निर्णय बड़ी जल्दी लिया शैली. आकाश की बहनों को अच्छे नंबरों की वजह से स्कौलरशिप मिल गई और साथ ही उन्होंने पार्ट टाइम नौकरी कर के अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं ही उठाया. पढ़ाई पूरी होने पर अपने कालेज में पढ़ने वाले अपनी पसंद के लड़कों से उन का विवाह हो गया. आज वे सुखी संपन्न हैं. हम ने उन की पढ़ाई और दहेज के लिए रखे रुपयों के अलावा कुछ लोन ले कर एक घर खरीद लिया और 2 गाडि़यां भी. आज मेरे पास प्यार करने वाले पति, स्नेह लुटाने वाले सासससुर और प्यारे से बेटे के अलावा घर, गाड़ी, संपन्नता सब कुछ है. आकाश तो मुझे जान से ज्यादा प्यार करता है,’’ पूनम ने बताया.

शैली के अंदर छन्न से कुछ टूट गया. उस ने गौर से पूनम को देखा. कीमती सूट, हाथ में हीरे की अंगूठी, हीरे के टौप्स, सोने की चूडि़यां और चेहरे का लावण्य उस के सुखी होने की गवाही दे रहा था. सचमुच 7 साल में उसे उम्र छू भी नहीं पाई थी. वह और अधिक निखर गई थी. आकाश भी तो पहले से अधिक निखरा और आकर्षक लग रहा था और उस का बेटा… शैली के कलेजे में एक हूक सी उठी. वह मूर्खता नहीं करती तो वह प्यारा सा बच्चा आज उस का होता. वह थोड़ा धीरज रखती, सामंजस्य करती तो आज यह सारा ऐश्वर्य उस का होता.

‘‘तुम्हारी स्थिति देख कर लगता है कि तुम ने अभी भी विवाह नहीं किया है. कब तक ऐसी रहोगी? इस से पहले कि सब कुछ हाथ से निकल जाए, शैली, लौट जाओ,’’ और पूनम उस से विदा ले कर अपने बच्चे और आकाश के पास चली गई. शैली भौचक्की सी थोड़ी देर तक खड़ी रही. फिर थकी हुई सी घर लौट आई. उस की आंखों के सामने रहरह कर पूनम और आकाश के सुखीसंतुष्ट चेहरे घूम जाते. बिस्तर पर लेटी वह देर तक रोती रही. शाम को जब थोड़ी संयत हुई तब उस ने मां को फोन लगाया, ‘‘मां, मैं घर वापस आ रही हूं. तुम उस लड़के को हां कह दो. मैं शादी करने को तैयार हूं.’

लौट जाओ शैली: भाग 2- विनीत ने क्या किया था

लेखिका- विनिता राहुरीकर

सच तो यह था कि शैली अब यह महसूस करने लगी थी कि विनीत जीवन में उसे क्या दे पाएगा? वह उस से शादी तो करेगी नहीं. ऐसे वह सिर्फ उस की प्रेमिका बन कर कैसे सारी उम्र गुजार दे? विनीत के साथ उस का क्या भविष्य होगा? आकाश दिखने में अच्छा है और अच्छी नौकरी भी है. अच्छी कार में आता है तो जाहिर है पैसे वाला ही होगा. शैली भी आकाश में अपनी खुली दिलचस्पी दिखाने लगी. हां, वह यह ध्यान जरूर रखती कि ये सारी बातें विनीत की जानकारी में न आ जाएं, क्योंकि वह आकाश के बारे में सब कुछ जानने और उस की तरफ से पक्का आश्वासन मिलने तक विनीत के मन में अपने प्रति व्यर्थ का कोई संशय पैदा नहीं करना चाहती थी.

मौका देख कर शैली आकाश के साथ बाहर भी जाने लगी. अब शैली को इंतजार था आकाश के प्यार का इजहार करने और शादी का वादा करने का.

अब उसे दोपहर में विनीत का इंतजार नहीं रहता था, बल्कि विनीत के आ जाने से उसे कोफ्त ही होती थी. अकसर वह दोपहर और रात में आकाश के साथ उस की कार या बाइक पर घूमती या दोनों किसी दूर और एकांत जगह पर जा कर बैठे रहते. विनीत के पूछने पर वह यह बहाना बना देती कि किसी सहेली के साथ गई थी. आकाश से एकांत में मिलने पर शैली का मन मचलने लगता था, लेकिन आकाश का मर्यादित व्यवहार देख कर उसे अपने ऊपर संयम रखना पड़ता था. आकाश कभी उसे हाथ तक न लगाता. अत: शैली को भी अपनी उच्छृंखल मनोवृत्तियों को काबू में रखना पड़ता ताकि आकाश के मन में उसे ले कर कोई गलत धारणा न बैठ जाए. वह नहीं चाहती थी कि किसी भी तरह से आकाश के मन में उस के उन्मुक्त आचरण को ले कर कोई संशय उभरे और वह उसे छोड़ दे. इसलिए आकाश के सामने वह अपनेआप को सौम्य, शालीन और मर्यादा में रहने वाली दिखाने की हर संभव चेष्टा करती.

आखिर करीब 3 महीने साथसाथ कुछ समय बिता लेने के बाद आकाश ने शैली के प्रति अपनी चाहत का इजहार कर ही दिया. शैली उस दिन बहुत खुश थी. आकाश के दिए लाल गुलाब को हाथ में लिए वह देर तक अपने सुनहरे भविष्य के सपनों में खोई रही. अब उसे विनीत की ‘कीप’ बनी रहने की कोई जरूरत नहीं है, अब वह आकाश की ब्याहता पत्नी बनेगी.

अगले दिन आकाश उसे अपने मातापिता से मिलवाने ले जाने वाला था. उस ने अपने मातापिता को शैली के बारे में बताया था. वे और आकाश की दोनों बहनें शैली से मिलने के लिए अत्यंत उत्सुक थीं. शैली उस दिन बहुत अच्छी तरह से तैयार हुई. वह आकाश के सामने किसी भी कीमत पर उन्नीस नहीं दिखना चाहती थी. वह आकाश के परिवार पर अपना पूरा प्रभाव जमाना चाहती थी कि वह आकाश से किसी माने में कम नहीं है.

शैली आकाश को बाइक पर आते देख कर ताला लगा कर नीचे उतर आई. उसे बाइक पर आया देख शैली को थोड़ा अखर गया कि आज तो इसे कार से आना चाहिए था.

‘‘आज तुम कार से नहीं आए. अपनी होने वाली पत्नी को तो तुम्हें अपने मातापिता से मिलवाले कार से ले जाना चाहिए था न,’’ शैली ने ठुनकते हुए आकाश से कहा.

‘‘अरे वह कार तो अनिल की है. अपनी सवारी तो यही है मैडम,’’ आकाश हंसते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मुझे ड्राइविंग का बहुत शौक है, इसलिए उस की कार हमेशा मैं ही चलाता हूं. अभी तो मेरे पास कार नहीं है पर तुम चिंता क्यों करती हो. हम दोनों मिल कर जल्दी ही कार भी ले लेंगे,’’ आकाश ने सहज रूप से कहा पर शैली का मन बुझ गया. हालांकि आकाश ने अपने बारे में कभी कुछ बढ़ाचढ़ा कर नहीं बताया तब भी शैली मान कर चली थी कि वह बहुत पैसे वाला और कारबंगले वाला है.

10 मिनट में ही वे दोनों आकाश के घर पहुंच गए. घर देख कर शैली का मन और खराब हो गया. वह तो सोच रही थी कि आकाश हाईफाई लग्जूरियस बंगले में रहता होगा, लेकिन यहां तो एक अत्यंत साधारण सा, पुराना सा मकान है. कालोनी भी पौश नहीं थी, साधारण मध्यवर्गीय लोगों के ही घर थे चारों ओर.

शैली भारी मन और बोझिल कदमों से आकाश के साथ घर में गई. ड्राइंगरूम की साजसज्जा अत्यंत साधारण थी. फर्नीचर भी पुराना था. वह जिस चमकदमक और ग्लैमर की उम्मीद लगाए बैठी थी, स्थिति उस से बिलकुल विपरीत थी. आकाश के घर वाले, मातापिता और दोनों बहनें उस से अत्यंत उत्साह से मिलीं. उन्होंने मन लगा कर शैली की आवभगत की, लेकिन शैली पूरे समय अपनी बातों का सिर्फ हांहां में जवाब देती रही. उस का दम घुट रहा था उस परिवेश में. वह जल्द से जल्द वहां से निकल जाना चाहती थी.

2 घंटे बाद आकाश उसे ले कर चला और उसे उस के घर छोड़ने से पहले एक रैस्टोरैंट ले गया. आकाश के घर से निकल कर शैली ने खुली हवा में आ कर ऐसे चैन की सांस ली जैसे वह जेल से छूटी हो. दोनों एक कोने वाली टेबल पर जा कर बैठ गए.

‘‘कैसा लगा तुम्हें मेरा परिवार, मम्मीपापा और बहनें?’’ आकाश ने उत्साह से शैली से पूछा और शैली उस की बात का कुछ जवाब देती इस से पहले ही वह बताने लगा कि उस के मातापिता और बहनें कितने अच्छी हैं. उसे कितना प्यार करते हैं सभी और शैली को भी कितने प्यार से रखेंगे वगैरह.

शैली अंदर ही अंदर कसमसा रही थी. वह आकाश से प्यार भी करती थी और उस के पुराने घर में बुझी हुई मध्यवर्गीय जिंदगी भी जीना नहीं चाहती थी. अजीब सी कशमकश में घिरी थी वह. आकाश ने भी भांप लिया कि उस के परिवार से मिल कर शैली खास खुश नहीं है.

‘‘आकाश, तुम तो इतना पैसा कमाते हो फिर ऐसे पुराने घर में क्यों रहते हो और अपनी कार क्यों नहीं खरीदते?’’ आखिर शैली के मन की बात उस की जबान पर आ ही गई.

‘‘ओहो इतनी सी बात को मन में पकड़ कर बैठी हो. खरीद लेंगे डियर वे दोनों चीजें. दरअसल, साल भर हुआ है पापा की बाईपास सर्जरी हुए. उस में काफी पैसा खर्च हुआ. मेरी पढ़ाई में भी बहुत पैसा लग गया और अब एक बहन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है और दूसरी पूना के प्रतिष्ठित कालेज से एमबीए करना चाह रही है. इन दोनों का खर्च कुल मिला कर क्व8-10 लाख हो जाएगा. फिर दोनों का विवाह करना है. पर तुम क्यों चिंता करती हो, हम दोनों मिल कर सब ठीक कर लेंगे. घरगाड़ी सब आ जाएगा. हां, कुछ साल लगेंगे,’’ आकाश ने बड़े प्यार और विश्वास से शैली की ओर देखते हुए कहा.

उस दिन शैली ने बात आगे नहीं बढ़ाई और घर आ गई. दूसरे दिन उस ने सारी बात पूनम को बताई.

‘‘आकाश जिस तरह से हर चीज खरीदने में ‘हमहम’ कह रहा था उस से तो साफ जाहिर है कि वह मेरे पैसों का उपयोग अपना घर चलाने में करना चाहता है,’’ शैली ने कहा.

‘‘मेरा से तेरा मतलब क्या? शादी के बाद तो वह तुम दोनों का होगा न?’’ पूनम ने सहज स्वर में कहा.

‘‘कम औन यार, अगर पैसा मैं उसे दे दूं घर या कार खरीदने के लिए तो मेरे पास क्या बचेगा? मैं क्या अपनी लाइफ ऐंजौय कर पाऊंगी?’’ शैली का स्वर तल्ख था.

‘‘ये क्या तेरामेरा कर रही है. घर तो तेरा ही होगा. कार में भी तो तू ही घूमेगी न,’’ पूनम ने उसे समझाया.‘‘क्यों उस का बड़ा कुनबा नहीं है क्या? अगर मैं अपने पैसों से घर खरीद भी लूं तो मुझे उस घर में क्या मिलेगा एक कमरा और क्या?’’ शैली ने भुनभुनाते हुए कहा.

‘‘इतनी स्वार्थी न बन शैली. अफसोस है कि तू इतनी संकीर्ण विचारों की है. दरअसल, तुझे उन्मुक्त जीवनशैली की आदत हो गई है, इसीलिए बस अपना सुख चाहिए घरपरिवार और रिश्ते नहीं. लेकिन एक वक्त आएगा जब तुझे परिवार और रिश्तों की तीव्र जरूरत महसूस होगी और तेरे पास कोई नहीं होगा. उस के पहले संभल जा. पैसावैसा सब ठीक है, लेकिन इस के लिए आकाश जैसे अच्छे लड़के को छोड़ देना अक्लमंदी नहीं है,’’ पूनम के स्वर में शैली के लिए तिरस्कार का भाव था.

‘‘मैं अपना पैसा उस के पिताजी की दवाओं या बहनों की पढ़ाई और शादीब्याह में खर्च कर दूं, तो बता मेरे पास जीवन का आनंद लेने के लिए क्या बचेगा? शादी को ले कर मेरे भी तो कुछ अरमान हैं वे दिन बीत जाने के बाद वापस थोड़े ही आएंगे,’’ शैली ने अपना तर्क रखा.

‘‘जैसी तेरी मरजी. सच तो यही है कि विनीत के साथ रहते हुए तू बस अपने लिए जीना सीख गई है. तुझे जीवन में और किसी से कोई लेनादेना नहीं रहा है. लेकिन विनीत पर अधिक भरोसा मत रखना. वह शादीशुदा है, अपनी पत्नी को छोड़ कर तुझे तो अपनाने से रहा. आकाश तुझे सच्चे मन से चाहता है. क्या हुआ अगर उस के साथ शुरुआती सालों में तू चकाचौंध भरी जिंदगी नहीं जी पाएगी. पर उस का भविष्य तो उज्ज्वल है,’’ पूनम ने कहा और उठ कर अपनी सीट पर वापस आ कर अपना काम करने लगी. वह जानती थी शैली की आंखों पर ग्लैमर की पट्टी चढ़ी हुई है. वह संघर्षपूर्ण जीवन या सामंजस्य के लिए किसी भी तरह से तैयार नहीं होगी.

आगे पढ़ें- शैली जो आकाश के साथ रहते हुए….

लौट जाओ शैली: भाग 1- विनीत ने क्या किया था

लेखिका- विनिता राहुरीकर

‘‘पूनम, राज को फोन कर के बता दो कि जिम का केबल टूट गया है और कोने वाली ट्रेडमिल की मोटर जल गई है. और राज आए तो क्रौस ट्रेनर के नटबोल्ट कसने को भी बोल देना. बहुत आवाज कर रहा है,’’ शैली ने कहा.

‘‘अच्छा मैं अभी फोन कर देती हूं,’’ कह कर फ्रंट डैस्क पर बैठी पूनम राज को फोन लगाने लगी. राज जिम का नियमित सर्विसमैन है. जब भी जिम के उपकरणों में कोई खराबी होती है वही आ कर ठीक करता है.

तभी जिम का मालिक विनीत आ गया. विनीत को देख कर शैली के चेहरे पर चमक आ गई. वह विनीत के केबिन में जा कर उस से बातें करने लगी. विनीत के शहर में 4 जिम थे. शैली फिजियोथेरैपिस्ट थी और ट्रेनर भी. वह विनीत को उस दिन के काम का ब्योरा देने लगी और नए ऐडमिशन के बारे में बताने लगी. विनीत प्रसन्न हो गया, क्योंकि शैली ने पिछले हफ्ते में 8 नए ऐडमिशन करवाए थे. विनीत ने उस के काम की तारीफ की तो शैली खुश हो गई. थोड़ी देर बातें करने के बाद विनीत शैली को साथ ले कर अपने दूसरे जिम की ओर चला गया. दूसरे जिम में सब जगह चक्कर लगाने के बाद विनीत और शैली केबिन में जा कर बैठ गए. विनीत घर से नाश्ता ले कर आया था. दोनों बैठ कर नाश्ता करने लगे. 1 घंटा बाद विनीत तीसरे जिम में चला गया. शैली वहीं रह गई और लोगों को ऐक्सरसाइज करने की ट्रेनिंग देने लगी. जिम बंद होने के बाद शैली घर चली गई. वह एक छोटे से बैडरूम वाले फ्लैट में किराए पर रहती थी. शैली कपड़े बदल कर सो गई क्योंकि जिम जाने के लिए वह सुबह साढ़े 4 बजे उठती थी. शाम को वह फिर जिम में चली जाती थी.

शैली सागर की रहने वाली है. उस के पिता एक स्कूल में अध्यापक हैं. शैली 4 भाईबहनों में तीसरे नंबर पर है. उस से बड़ी 2 बहनें और 1 छोटा भाई है. चारों बच्चों के पालनपोषण और पढ़ाईलिखाई का खर्च उस के पिता जैसेतैसे चला रहे थे. वे शाम को ट्यूशन भी पढ़ाते. दरअसल, 2 बड़ी बहनों का विवाह करने में वे गले तक कर्ज में डूब गए थे. शैली फिजियोथेरैपिस्ट की पढ़ाई करने भोपाल आ गई. उस के पिता उस की पढ़ाई और रहने का खर्च उठाने में समर्थ नहीं थे, लेकिन महत्त्वाकांक्षी शैली ने उस तंगहाली से बाहर निकलने के लिए कमर कस ली. थोड़े पैसे ले कर वह भोपाल आ गई. यहां पार्टटाइम नौकरी कर ली और वर्किंग विमंस होस्टल में रह कर अपनी पढ़ाई भी करती रही. पढ़ाई पूरी होने के बाद शैली ने कई जगह नौकरी के लिए कोशिश की. उसी दौरान अपनी एक सहेली के साथ वह विनीत के जिम आई.

जिम के एक ट्रेनर से ही शैली को पता चला था कि विनीत को एक फिजियोथेरैपिस्ट की जरूरत है. शैली विनीत से मिली. खूबसूरत, स्मार्ट शैली के बात करने के अंदाज से विनीत काफी प्रभावित हुआ. उस ने शैली को अपने जिम में बतौर फिजियोथेरैपिस्ट नियुक्त कर लिया. चतुर और महत्त्वाकांक्षी शैली ने बहुत जल्द ही विनीत की नजरों में अपनी साख बना ली. साल भर में ही वह विनीत के चारों जिम के कई महत्त्वपूर्ण काम संभालने लगी. उस ने अपने लिए एक स्कूटी खरीद ली और होस्टल छोड़ कर यह फ्लैट किराए पर ले लिया.

विनीत अपने बहुत कुछ काम शैली को सौंप कर निश्चिंत था. कुशाग्र बुद्धि शैली बहुत जल्द मशीनों के बारे में और ट्रेनिंग के बारे में भी सीख गई. जिम पर ही नहीं उस ने विनीत के दिल पर भी कब्जा कर लिया. पहले साथ में गाड़ी में घूमना, बाहर खाना खाना. फिर एक के बाद एक सीमाएं टूटती गईं और जिस दिन शैली ने होस्टल छोड़ कर फ्लैट में शिफ्ट किया, उस दिन के बाद से तो दोनों के बीच की सारी वर्जनाएं समाप्त हो गईं. यह फ्लैट भी बहुत कम किराए पर विनीत ने ही उसे दिलवाया था. यहां दोपहर में और रात में भी विनीत का आनाजाना प्रारंभ हो गया.

लेकिन जिम की ऐनुअल पार्टी में शैली को यह जान कर गहरा धक्का लगा कि विनीत न सिर्फ शादीशुदा है वरन जल्द ही बाप भी बनने वाला है. शैली उस दिन खूब रोई. 4 दिन तक वह जिम भी नहीं गई. उस ने सागर लौट जाने का फैसला कर लिया, लेकिन तभी विनीत ने अपनी पत्नी को डिलिवरी के लिए अपने मातापिता के पास भेज दिया और छोटे बच्चे की देखभाल के बहाने उसे महीनों अपने पास रखा. इस बीच उस ने शैली को अपनी मीठी बातों से मना लिया. ‘‘मेरी किस्मत का दोष है कि तुम मुझे पहले नहीं मिलीं. प्यार तो मैं तुम से ही करता हूं. तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी तो मैं कैसे जिऊंगा. अगर तुम मेरे जीवन में पहले आ जातीं, तो मैं तुम से ही शादी करता. मेरा सच्चा प्यार तो तुम्हीं हो शैली,’’ वह बारबार बोला तो शैली भावनाओं में बह गई. वैसे भी वह विनीत के साथ शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत गहराई से जुड़ गई थी.

शैली की मां ने उसे बहुत बार वापस बुलाया कि पढ़ाई खत्म हो चुकी है अब वापस आ जाओ, लेकिन बड़ा शहर उस पर विनीत से रिश्ता. और इन सब से ऊपर जिम का आधुनिक व उन्मुक्त ग्लैमरस वातावरण जिन के आकर्षण में वह ऐसी फंस गई कि घर वापस जाने को तैयार नहीं होती थी. फिर दिनबदिन वह चारों जिम की जिम्मेदारियों में उलझती गई. 2 साल बाद विनीत ने अपने दोस्त की सैकंड हैंड कार शैली को दिलवा दी. अब शैली कार से आतीजाती.

जिम के दूसरे ट्रेनर और पुराने कस्टमर शैली और विनीत के रिश्ते के बारे में जानने लगे मगर दोनों को ही कोई कुछ कहता नहीं था. विनीत की प्रतिष्ठा देख कर उसे तो कोई कुछ कहने की हिम्मत करता नहीं था, लेकिन ट्रेनर लोग आपस में बातें करते समय शैली को विनीत की ‘कीप’ यानी रखैल कहते थे. पूनम जो जिम में शैली की अच्छी सहेली थी, उस ने ही यह बात उसे बताई थी. सुन कर शैली को बहुत बुरा लगा मगर करती भी क्या, बात कोई गलत तो थी नहीं, इसलिए खून का घूंट पी कर रह गई. एक दिन शैली की मां का फोन आया, ‘‘बेटा, बहुत अच्छा रिश्ता आया है. लड़का दिखने में भी बहुत अच्छा है और घरपरिवार, रुपयापैसा सब अच्छा है. बस अब तू यहां आ जा.’’

‘‘मां मैं ने कितनी बार कहा है कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहती. अभी मेरी उम्र ही क्या है. अभी मुझे पढ़ने और काम करने दो प्लीज,’’ शैली ने उकताहट भरे स्वर में कहा.

‘‘अरी अभी नहीं तो क्या बुढ़ापे में शादी करेगी?’’ शैली की मां झल्ला कर बोलीं.

‘‘ओहो तुम भी मां… आजकल क्या लड़कियां इतनी जल्दी शादी करती हैं? शादी के बाद तो घरगृहस्थी में फंसे रहना है. कम से कम अभी तो मुझे चैन से और अपने मन की जिंदगी जीने दो. 2-4 साल बाद जैसा तुम कहोगी मैं वैसा ही करूंगी,’’ शैली हर बार अपनी शादी की बात को 2-4 साल के लिए टाल कर अपनी मां को निरुत्तर कर देती.

दूसरे दिन दोपहर में शैली जिम से घर आई और नहाने गई. नहा कर वह गैलरी में खड़ी हो कर बाल सुखा रही थी कि तभी नीचे पोर्च में विनीत की कार आ कर रुकी. शैली खुश हो गई, क्योंकि आज उस ने जिम में जब पूछा तो विनीत ने मना कर दिया था आने के लिए. विनीत के बैल बजाने से पहले ही शैली ने दरवाजा खोल दिया.

‘‘क्या बात है डार्लिंग, आज तो नहाधो कर फ्रैश हो कर हमारे स्वागत के लिए खड़ी हो?’’ विनीत ने दरवाजा खुलते ही शैली की कमर में अपनी बांह का घेरा डालते हुए कहा.

‘‘चलो हटो. तुम तो आज आने वाले नहीं थे न ?’’ शैली ने बड़ी अदा से कहा.

‘‘अरे जानेमन, हम ने सोचा कि चलो आप को सरप्राइज दें. हम आप के लिए एक तोहफा लाए हैं,’’ कह कर विनीत ने नीचे जा कर 2 आदमियों की सहायता से एक टीवी ऊपर ला कर ड्राइंगरूम में रखवा दिया.

उन आदमियों के जाने के बाद विनीत ने शैली को बांहों में लेते हुए कहा, ‘‘कल मैं इस का कनैक्शन करवा दूंगा. देखा मैं तुम्हारा कितना खयाल रखता हूं. अब तुम भी मेरा थोड़ा खयाल रखो,’’ और विनीत शैली को बैडरूम में ले गया. एक दिन जिम में 2 लड़के आए. उन्होंने 3 महीने का पैकेज लिया. शैली ने दोनों का ऐडमिशन करवा लिया. एक लड़के का नाम आकाश और एक का नाम अनिल था. दूसरे दिन से अनिल और आकाश नियमित रूप से जिम आने लगे. शैली ही उन लोगों को ट्रेनिंग देती. धीरेधीरे शैली को लगने लगा कि आकाश उस में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा है. वह कुछ भी पूछने या सिखाने के बहाने शैली को अपने आसपास ही बनाए रखता. शैली को भी आकाश अच्छा लगने लगा. वह भी उस के आसपास रहना पसंद करने लगी, क्योंकि आकाश था बहुत हैंडसम. विनीत के अलावा यदि किसी अन्य युवक ने शैली को अपनी ओर आकर्षित किया तो वह आकाश ही था.

Holi Special: रहने दो रिपोर्टर- क्या था विमल और गंगा का अतीत

लेखिका- नारायणी

वह आज पूरी तरह छुट्टी मनाने के मूड में था. सुबह देर से उठा, फिर धीरेधीरे चाय पीते हुए अखबार पढ़ता रहा था. अखबार पूरी तरह से चाटने के बाद उस का ध्यान घर में छाए सन्नाटे की तरफ गया. आज न पानी गिरने की आवाज, न बरतनों की खटरपटर, न झाड़ूपोंछे की सरसराहट, जबकि घर में कुल 2 छोटेछोटे कमरे हैं. वह एकाएक ही किसी आशंका से पीडि़त हो उठा. गंगा इतनी शांति से क्या कर रही है, वह उसे चौंकाने के विचार से ही नहीं उठा था.

बरामदे में पैर रखते ही वह सहम सा गया. गंगा वाशबेसिन के पास चुपचाप बैठी हुई थी और सामने रखी बोतल को ध्यान से देख रही थी.

‘‘गंगा, वह तेजाब की बोतल है,’’  उस ने आशंकित स्वर में कहा, ‘‘मैं बाथरूम साफ करने के लिए लाया था. काई जमी हुई है न, रोज तुम रगड़ती रहती हो. देखना, इसे जरा सा डाल कर रगड़ने से एकदम साफ हो जाएगा…किंतु तुम उसे नहीं छूना.’’

‘‘अच्छा,’’ उस ने कहा लेकिन अभी भी जैसे वह सोच में डूबी हुई थी.

‘‘क्या सोच रही हो, गंगा?’’ उस ने कंधा पकड़ कर उसे झकझोर दिया.

‘‘सोच रही हूं कि इस के लगाने से चेहरा बदल जाएगा, तब कोई

मुझे पहचान नहीं पाएगा, पहचान भी

ले तो…लेकिन तुम्हारी भावनाएं क्या होंगी?’’

‘‘मेरी भावनाओं का आदर करती हो तो अब से कभी यह विचार मन में न लाना.’’

‘‘पता नहीं क्यों, भय लगता है.’’

‘‘तुम भयभीत क्यों होती हो? मैं ने सबकुछ जानने के बाद ही तुम से विवाह किया है, हमारा विवाह कानूनसम्मत है, कोई हमें अलग नहीं कर सकता, समझीं.’’

तभी दरवाजे पर आहट हुई. विमल ने द्वार खोला. पड़ोसी जोशीजी की छोटी बेटी लतिका थी. बाहर से ही बोली, ‘‘काकी, आज हमारे घर में हलदी- कुमकुम होना है. मां ने  तुम को बुलाया है.  दिन में 2 से 5 बजे तक जरूर आ जाना. अच्छा, मैं जाती हूं. मुझे बहुत घरों में बोलने जाना है.’’

गंगा ने प्रश्न भरी आंखों से पति की ओर देखा, जैसे पूछ रही हो कि आज जोशीजी के घर क्या है?

‘‘सुहागिन महिलाओं को घर बुलाते हैं. टीका करने के बाद नाश्तापानी, गानाबजाना होता है. मेरे घर तो आज पहली बार इस तरह का बुलावा आया है और पहले आता भी कैसे, सुहागिन तो अभी आई है.’’

गंगा मुसकराई फिर गंभीर हो उठी. विमल ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘सोचा था दिनभर साथसाथ घूमते रहेंगे… जोशीजी को भी आज का ही दिन मिला.’’

‘‘मैं अपनी हाजिरी लगा कर शीघ्र ही आ जाऊंगी.’’

‘‘नहींनहीं, जब सब उठें तभी तुम भी उठना. पहली बार बुलाया है उन्होंने, मेरी चिंता न करो, तुम्हारे वापस आने तक मैं सोता रहूंगा.’’

‘‘कैसा रहा आज,’’ जोशी के घर से वापस आने पर विमल ने गंगा से पूछा.

‘‘बहुत अच्छा. बड़े अच्छे लोग हैं, मैं तो अभी किसी से मिली ही नहीं थी. आसपास की सभी महिलाएं आई थीं और सभी ने मुझ से खूब प्यार से बातें कीं..’’

‘‘अच्छा, सब की बोली समझ में आई?’’

‘‘हां, थोड़ीबहुत तो समझ में आ ही जाती है. वैसे मुझ से तो हिंदी में ही बोल रही थीं.’’

मेलमुलाकात का सिलसिला चल निकला तो बढ़ता ही रहा. विमल खुश था कि गंगा का मन बहल गया है.

अब वह पहले जैसी सहमीसहमी नहीं रहती बल्कि अब तो वह अपनी नईनई गृहस्थी की सुखद कल्पनाओं में खोई रहती है.

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एक दिन बेहद खुश हो कर गंगा ने  विमल से कहा, ‘‘सुनो, मैं भी सब को हलदीकुमकुम का बुलावा दे रही हूं. जोशी काकी ने कहा है कि वह सब तैयारी करवा देंगी. मैं ने सामान की सूची बना ली है.’’

‘‘ठीक है, हम कल शाम को बाजार चल कर सब सामान ले आएंगे.’’

बाजार में जाते हुए विमल फूलों की वेणी वाले को देख कर रुक गया. गंगा वेणी लगाने में सकुचाती थी. विमल ने हंस कर कहा, ‘‘अब तुम अपनी सहेलियों की तरह वेणी लगाया करो. हलदीकुमकुम करोगी, वेणी नहीं लगाओगी?’’

तभी विमल को  किसी ने टोकते हुए कहा, ‘‘नमस्ते, साहब. ऐसा लगता है, आप को कहीं देखा है…’’

‘‘मुझे…जी, मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘आप वही विमल साहब हैं न जिन्होंने अपना नाम समाचारपत्र में देने से मना किया था.’’

‘‘जी, जी…मैं आप को नहीं पहचानता,’’ और गंगा का हाथ पकड़ कर सामने से आते रिकशे को रोक कर उस पर बैठते हुए विमल ने कहा, ‘‘चलो गंगा, घर चलते हैं.’’

दूसरे दिन सुबह चाय का प्याला लिए विमल अपनी बालकनी में बैठा धूप की गरमाहट महसूस कर ही रहा था कि द्वार पर आहट हुई.

‘‘नमस्कार, मैं जयंत हूं.. आप जो समाचारपत्र पढ़ रहे हैं, मैं उसी का एक अदना सा रिपोर्टर हूं.’’

विमल का चेहरा बुझ गया. अनमने मन से स्वागत कर उन के लिए चाय मंगाई.

जयंत कहे जा रहा था, ‘‘कहते हैं कि बड़े लोग विनम्र होते हैं, आप तो साक्षात विनम्रता के अवतार लगते हैं. इतने उदार, समाज सुधारक, अभिमान तो नाम को नहीं…’’

विमल ने प्रतिवाद किया, ‘‘ऐसा लगता है आप किसी भ्रम में हैं. मुझे गलत समझ रहे हैं, मैं वह नहीं हूं जो आप समझ रहे हैं.’’

‘‘तभी तो मैं कह रहा हूं कि आप जैसा महान व्यक्ति प्रचार से दूर रहना चाहता है पर आप ने जो कुछ किया उसे जान कर मुझे गर्व का अनुभव हुआ.’’

‘‘मैं ने क्या किया…मैं तो किसी प्रशंसा के लायक नहीं…’’

‘‘आप संकोच न करें, गुप्ताजी ने मुझे सब बता दिया है. अरे, वही गुप्ताजी जो कल आप से मिले थे. आप ने उन्हें नहीं पहचाना हो पर वह तो आप को पहचान गए हैं. आप की पत्नी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की हैं न?’’

विमल मना न कर सका. रसोई के दरवाजे पर खड़ी गंगा का चेहरा उतरा हुआ था.

‘‘देखिए, मेरा कोई स्वार्थ नहीं,’’ रिपोर्टर जयंत ने कहा, ‘‘कोई लांछन का उद्देश्य नहीं, आप की इज्जत जितनी है वह आप को नहीं मिल रही है. मैं तो केवल इसलिए आप को प्रकाश में लाना चाहता हूं कि लोगों को आप से सबक मिले. ऐसा समाज सुधारक छिप कर नहीं बैठता है. इसलिए मैं आप को प्रकाश में लाना चाहता हूं कि लोगों को आप से प्रेरणा मिले. लोग जानेंगे कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं, प्यार आदमी को बदल देता है.

‘‘यह चित्र विवाह के बाद का है न,’’ कमरे में कोने की मेज पर गंगा का चित्र रखा हुआ देख कर उस ने उठा लिया, ‘‘मैं अभी आप को दे जाऊंगा, यह सिगरेट लीजिए न, विदेशी है…मेरा पेशा ही ऐसा है भाई, लोग बहुत आवभगत करते हैं समाचारपत्र में अपना नाम देखने के लिए. मेरा रुतबा ही

इतना है…भाभी, आप का एक चित्र

लेना है, रसोई में काम करते हुए…लोग देखेंगे. वह, कैसी सुघड़ गृहिणी हैं,

कैसी सुंदर गृहस्थी है…हां, तो आप ने जानकी को गंगा नाम दिया. बहुत

ठीक, गंगा तो पवित्र है, गंगा मैली थोड़े होती है.

‘‘अच्छा, धन्यवाद, मैं चलता हूं,’’ वह कागजकलम समेट कर उठ गया. विमल नीचे तक पहुंचा कर आया तो गंगा वैसे ही दीवार से सटी खड़ी थी. मौन,  चिंतित, भयाक्रांत, प्रशंसा के मद से मस्त. विमल को देर हो रही थी, ध्यान नहीं दिया.

शाम को उस ने हलदीकुमकुम के लिए सामान लाने को कहा तो गंगा ने मना कर दिया, ‘‘अभी ठहर कर लाऊंगी.’’

तीसरे दिन समाचारपत्र के तीसरे पेज पर वही चित्र था जो उन के घर की मेज पर रखा था. दूसरा चित्र गंगा का रसोई में काम करते हुए. साथ में संक्षेप से उस की यातना की कहानी के साथ ही विमल की महानता की कहानी छपी थी.

विमल को उठने में देर हो गई थी. समाचारपत्र ऊपरऊपर से देख कर वह काम पर जाने के लिए तैयार होने लगा कि उस से मिलने वाले एकएक कर आने लगे. फ्लैट के सभी लोग आए और उस के उदार नजरिए पर बधाई दी.

‘‘प्रचारप्रसार से इतनी दूर कि आज का समाचार- पत्र तक नहीं देखा, जबकि अपने बारे में आप को छपने की आशा थी.’’

‘‘वाह, आप धन्य हैं. आप दोनों सुखी रहें, हमारी कामना है.’’

गंगा भोजन तैयार न कर सकी और न नाश्ते का डब्बा ही. वह अपने अंदर एक अज्ञात भय महसूस कर रही थी.

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विमल तैयार हो कर आया तो बोला, ‘‘मैं वहीं कुछ खा लूंगा. तुम अपना ध्यान रखना.’’

पुरुषों के जाने के बाद महिलाओं की बारी आई. एकएक कर सब गंगा का हाल पूछने पहुंच गईं. सब में यह बताने की होड़ लगी थी कि सब से पहले किस ने समाचारपत्र देखा और कैसे एकदूसरे को जानकारी दी. फिर सभी ने एक स्वर से कहा कि हमें नहीं पता था कि आप का नाम जानकी है. वैसे नाम तो हम लोग भी पतिगृह का दूसरा रखते हैं. आप के गांव में ऐसा नहीं होता क्या?

‘‘जानकी तो पतिव्रता स्त्री का

नाम था,’’ एक के मुंह से निकला तो दूसरी ने कहा, ‘‘बेचारी औरत का क्या दोष.’’

इस तरह सभी ने गंगा से सहानुभूति दिखाई. खाली चौका देख कर कई घरों से खाना आ गया. जबरन कौरकौर खिलाया और आंसू पोंछे. अपने प्रति कोमल भावनाएं देख कर गंगा को लगा कि उस की आशंका निर्मूल थी, वह व्यर्थ ही इतनी भयभीत हो रही थी कि उस का अतीत जान कर कहीं लोग उस से घृणा न करने लगें, फिर भी वह आश्वस्त न हो पाई.

विमल ने सुबह कहा था कि शाम को तैयार रहना, डाक्टर को दिखाना है और बाजार भी जाना है. किंतु शाम को वह कहीं नहीं गई. 3 दिन हो गए वह घर से निकली ही नहीं.

काशी बाई 2 दिन बाद आई तो बाहर से ही बोली, ‘‘बाई, मेरी पगार जितनी बनती है दे दो.’’

गंगा चकित हो उस से काम न करने का कारण पूछने ही वाली थी कि तभी सुना, ‘‘जूठा साफ करते हैं तो क्या, हमारा धरमईमान तो बना है. छि:, ऐसी बाई के घर कौन काम करेगा.’’

कूड़ा फेंकने वाली मीनाबाई ने भी कहा, ‘‘गंदा साफ करते हैं तो क्या हुआ, हमारा भी धरम है, अपने मरद के लिए तो मैं सच्ची हूं.’’

भाजी वाला आया था. गंगा साहस कर के नीचे उतरी ताकि कुछ सब्जीभाजी खरीद ले. गोभी, मटर का भाव पूछते ही वह मुसकराया, ‘‘अजी, आप जो चाहे दे दें…’’

गंगा ने यथार्थ समझ लिया था. अंदर ही अंदर घुटती रही. एक घर से गीतों का बुलावा आया हुआ था. विमल ने कहा, ‘‘दिन में थोड़ी देर को चली जाना और शगुन दे देना.’’

गंगा कहीं जाने को तैयार नहीं थी. विमल समझाता रहा, ‘‘देखो, हमें कमजोर नहीं पड़ना है. हम ने कोई बुरा काम तो किया नहीं है. मजबूरी ने जो करा दिया उस के लिए लज्जित क्यों हों? तुम अवश्य जाओ और सब के बीच में मिलोजुलो अन्यथा लोग हमें गलत समझेंगे, दोषी समझेंगे, उन के घर लड़की का विवाह है. तुम को गीतों में बुलाया है. नहीं जाओगी तो कहीं वे लोग बुरा न मान जाएं कि पास में रह कर नहीं आई.

गंगा दुविधा में थी. जोशी काकी के मुख से सुन ही लिया था और लोग भी ऐसा ही कहें तब…उधर विमल का कहा भी मन में गूंजता रहा तो वह बड़ा साहस जुटा कर वहां गई थी.

गाना चल रहा था. कुछ महिलाएं नृत्य कर रही थीं. हंसीखुशी का वातावरण था, उसे देखते ही नृत्य थम गया, गाना बंद हो गया और सब की नजर उस की ओर थी. उसे याद आया जब पहले वह जोशी काकी के घर गई थी तो वहां भी गाना हो रहा था किंतु उस के जाते ही सब ने उस का स्वागत किया था और उन नजरों में कौतूहल था पहचान का, परिचय का किंतु स्नेह का भाव भी था.

आज पहले तो सब एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराईं, घर की मालकिन ने उसे बैठने का संकेत किया तो पास की महिलाएं इस तरह सरक कर बैठीं जैसे उस के स्पर्श से बच रही हों.

परस्पर फुसफुसाहट हुई, पर उस से न बोलने की चुप्पी  का प्रहार इतना मुखर था कि गंगा अधिक देर वहां बैठ न सकी. शगुन का लिफाफा हाथ में ही रह गया. वह उठी तब भी उस से किसी ने बैठने को न कहा, न जल्दी जाने का कारण पूछा.

कुहराम मचा हुआ था. गंगा ने स्नान घर में मिट्टी का तेल छिड़क कर अपने को जला लिया था. विमल के नाम एक पत्र रखा था जिस में लिखा था :

‘‘औरत पर कलंक लग जाए तो कलंक के साथ ही जीना होता है. आप पुरुष हैं दूसरा विवाह कर लेंगे किंतु मेरे साथ रह कर आप भी कलंकित ही रहेंगे. मैं इस लांछन को सह भी लेती पर मैं मां बनने वाली हूं. बेटा होगा तो वह भी कलंक का टीका ले कर, बेटी होगी तो और भी विडंबना होगी.

‘‘आत्महत्या कर के मैं पाप कर रही हूं पर आप को इन सब से मुक्ति दे रही हूं.

‘‘मुझे क्षमा करना. समाचारपत्र वाले फिर पूछने आएंगे. उन्हें यह पत्र दे देना, शायद मेरा चित्र लेना चाहें तो ले लेंगे.’’

विमल से पढ़ा नहीं जा रहा था. पत्र हाथ से छूट गया, क्या लिखा है…क्या कारण है, कई लोग पत्र पढ़ चुके थे. अब पत्र पकड़ते हुए जिसे देखा, विमल आक्रोश से फट पड़ा.

‘‘तसवीर भी ले लो न, वह भी…’’

रिपोर्टर ने सहम कर देखा…पत्र उस के हाथ से छूट गया.

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