पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:
मेहुल से शादी होने के बाद राधिका अमीर घराने की बहू तो बन गई, पर पति के शराब पीने की आदत से वह परेशान थी. मेहुल बेटे को भी बिगाड़ रहा था. इस तरह वह राजन के करीब आ गई और उस के साथ दूसरे शहर में रहने लगी. राजन ने उस को रानी बना कर रखा. एक दिन वह मुसीबत में फंस गया.
अब पढ़िए आगे…
‘‘मैं ने 10 करोड़ के प्रोजैक्ट के लिए बैंक से 5 करोड़ का लोन पास करवाया था, लेकिन पिछला टैंडर पास नहीं होने से बैंक का मैनेजर लोन पास नहीं कर रहा है. कोटेशन वगैरह सब भर दिए गए हैं… समझ में नहीं आता कि क्या करूं…?
‘‘अगर मेरा यह करोड़ों का प्रोजैक्ट इस बार क्लियर नहीं हुआ, तो हम सड़क पर आ जाएंगे. हमारा दफ्तर, घर, मिल सबकुछ चला जाएगा. प्लीज राधिका, कुछ सोचो… कुछ करो…’’
अब बेचारी राधिका क्या करे… वह तो सिर्फ दिलासा व हौसला ही देती रही, ‘‘सब ठीक हो जाएगा राजन, तुम जा कर एक बार मैनेजर से फिर मिल लो.’’
‘‘नहीं राधिका, अब मिलने से कुछ नहीं होगा. हां, अब ठीक केवल एक शर्त पर हो सकता है… सुना है कि वह मैनेजर राहुल थोड़ा शराब और शबाब का रसिया है. अगर एक चांस ले लें तो शायद.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘अगर तुम राहुल को शीशे में उतार सको, तो…’’ राजन कहतेकहते नजरें नहीं मिला पा रहा था.
‘‘यह तुम क्या कह रहे हो राजन? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? तुम अपनी राधिका को सिर्फ एक लोन पास करने के लिए किसी पराए मर्द के बिस्तर में परोस रहे हो?’’ तकरीबन चिल्लाते हुए राधिका गुस्से से बोली, ‘‘मुंबई में तो सैकड़ों कार्लगर्ल्स हैं. किसी को भी वहां भेज दो.’’
‘‘राधिका, मुझे माफ कर दो,’’ कह कर राजन ने राधिका की ओर प्यार से हाथ बढ़ाया, तो उस ने हिकारत भरी नजरों से घूर कर हाथ को छिटक दिया.
राजन अपनी सफाई में कह रहा था, ‘‘राधिका, मुझे यह कहना तो नहीं चाहिए था, पर मैं किसी कार्लगर्ल पर एकदम से भरोसा नहीं कर सकता. कब किस के सामने किस का राज फाश कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता.
‘‘मुझे यह सब कहते हुए बहुत शर्म महसूस हो रही है कि मैं अपनी जिंदगी को किसी और के बिस्तर पर सोने को मजबूर कर रहा हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर देना…
‘‘मेरे पास अब खुदकुशी के सिवा कोई चारा नहीं है. मैं दिवालिया हो कर नहीं जी सकता.’’
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अब राधिका के सामने इधर कुआं उधर खाई वाली हालत हो गई. जिस्म का सौदा कर राजन के कारोबार को बचाए या फिर जिस्म को बचा कर उस को मरता देखे? फिर इतने बड़े मुंबई शहर में अकेली, कैसे और कहां रहेगी? सब गिद्धों की तरह नोच डालेंगे… मेहुल के पास वापस मैं लौट नहीं सकती. आखिरकार उस ने अपने जमीर को मार कर ही यह कदम उठाया.
बैंक मैनेजर राहुल तो राधिका का इतना मुरीद हुआ कि उस ने यहां तक कह दिया, ‘‘राजन, आज से आप मेरे फैमिली फ्रैंड हुए. अब आप को कभी भी कोई दिक्कत हो, तो बेहिचक मुझे कह दीजिएगा.’’
बस वहीं से राधिका का कालगर्ल बनने का सफर शुरू हो गया. हर रात लिपपुत कर किसकिस के गुलिस्तां को महकाती फिरती, अब उसे याद नहीं है. राजन तरक्की की सीढि़यों को पार करता रहा…
राधिका कभी नफरत से पूछती, ‘‘राजन, तुम ने ऐसा क्यों किया? किस जन्म का बैर निकाला है तुम ने?’’
राजन बड़ी बेशर्मी से हंसने लगता. राधिका कभी जाने को मना करती, तो वह हाथ भी उठा देता था. ऐसी दहशतभरी जिंदगी जीतेजीते… यों ही 15 साल बीत गए.
राधिका ने यह बात अब अच्छी तरह से समझ ली थी कि औरत केवल खिलौना है. कभी उसे पैरों तले रौंदा जाता है, तो कभी उसे हाथों द्वारा मसलाकुचला जाता रहा है. उस ने राजन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपना बसाबसाया घर उजाड़ दिया. कभी तनहाई में अपने बच्चे और मेहुल का अक्स उभरता, तो वह सिसक पड़ती.
राधिका अपनी यादों के दायरे से बाहर निकल आई. आज भी बाहर से कोई डैलिगेशन ग्रुप आया है, जिस में से एक को ‘ताज’ होटल में ठहराया गया है, जहां राधिका को अभी पहुंचना है.
ड्राइवर ने होटल ताज के सामने कार रोक दी. इठलाती, लहराती राधिका मैनेजर से रूम नंबर पूछ कर चल पड़ी. उस ने 205 नंबर रूम खटखटाया. अंदर से आवाज आई, ‘कम इन.’
दरवाजा बंद नहीं था, केवल ढलका हुआ था. हाथ लगते ही खुल गया. सामने फोन पर झुका कोई नौजवान रिसैप्शन में बात कर रहा था और एक 40-45 का रसिया किस्म का आदमी साथ खड़ा उसे समझा रहा था. हाथ के इशारे से सामने पड़े सोफे पर राधिका को बैठने को कहा और बोला, ‘‘आप जरा बैठिए… बंटी, रिसैप्शन में कुछ और्डर देना मेरे व मैडम के लिए. तुम तो कोल्ड ड्रिंक लेते हो, पर मैं और मैडम पनीरपकौड़ा और वैज कबाब लेंगे और व्हिस्की लेंगे. थैंक्स…’’
तभी वह नौजवान राधिका की तरफ मुड़ा. उसे देख कर राधिका कांप उठी. वह वहां एक पल भी रुक नहीं पाई, उलटे पैरों लौट गई… और वह आदमी ‘हैलो… हैलो, मैडम…’ कहता ही रह गया. वह नौजवान भी हैरान खड़ा रह गया.
राधिका अपनी नजरों में तो गिर ही चुकी थी, आज वह सरेबाजार नंगी भी हो गई. उस के झूठे सपनों का महल तहसनहस हो गया. उस की ऐसी भयानक तसवीर देख राधिका ने अपने दोनों कानों पर हथेलियां रखीं.
राधिका बहुत जोर से चीखी, ‘‘नहीं…’’ उस की हिचकियां बंधने लगीं. घर पर आवाज सुन कर सभी नौकरनौकरानियां मैडम राधिका के कमरे में आ गए. देखा कि मैडम ने गुस्से में मेकअप का सारा सामान जमीन पर फेंक दिया है. ड्रैसिंग का आईना तोड़ दिया है. वे सब डर कर कमरे से बाहर चले गए.
राजन से उसे जितना प्यार था, आज… उस से भी ज्यादा नफरत हो रही थी.
उस के मासूम और खूबसूरत मुखड़े पर परेशानी की लकीरें खिंच गईं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली.
कभी सोचा न था कि उस का अतीत ऐसे शर्मनाक रूप से वर्तमान में सामने आएगा. उस ने अपना सिर बैड के किनारे पर जोर से दे मारा. वह 2 मर्दों द्वारा छली गई. एक ने उस के वजूद को पैरों तले रौंदा, तो दूसरे ने उस के जिस्म को इस्तेमाल करने का जरीया बनाया. पहले अपने लिए, फिर पैसों के लिए खुद ने भी नोचाखसोटा और दूसरो से भी नुचवा ही रहा है.
आज राधिका शौवर में घंटों खड़े हो कर अपने को भिगोती रही. बरसों से मन पर पड़े मैल की परतों को साबुन से रगड़रगड़ कर साफ करती रही… उसे आईने में अपनेआप को देखने में भी डर लग रहा था.
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राधिका ने उस रात अपनेआप को बैडरूम में कैद कर लिया. कितनी बार दरवाजे पर दस्तक हुई. राजन की आवाज आ रही थी, ‘‘जानू, दरवाजा खोलो… मैं तुम्हारा राजन… नींद आ गई होगी… शायद थकी हुई हो.’’
पर कोई आवाज न पा कर राजन ने सोचा, ‘लगता है, वह सो गई है. जब वह सुबह उठेगी, तब बात करूंगा.’
दरवाजे को जोरजोर से खटखटाने से राधिका की नींद टूटी. कब वह सोई, उसे उस का एहसास ही नहीं हुआ. हड़बड़ा कर वह उठी और दरवाजा खोला.
‘‘अरे, रात में कैसे बेसुध सो गई थीं तुम? तुम्हें मेरा भी खयाल नहीं आया? और तुम ने खाना भी नहीं खाया? डिनर के लिए कितना दरवाजा खटखटाया, पर तुम ने दरवाजा खोला ही नहीं…. क्या हुआ मेरी जान?’’
राजन ने राधिका को बांहों में लेने की कोशिश की, तो वह पीछे हट गई. नफरत भरी निगाहों से उसे घूरा, तो हंसते हुए राजन का चेहरा अचानक सफेद सा पड़ गया. उस के हिकारत भरे चेहरे को राजन बखूबी समझ रहा था, इसलिए शर्मिंदा व बौखलाया हुआ सा बगलें झांकने लगा.
तभी सिक्योरिटी गार्ड ने आ कर कहा, ‘‘कोई साहब आए हैं. मैडम को पूछ रहे हैं.’’
(क्रमश:)
राधिका से मिलने कौन आया था? होटल में किसे देख कर राधिका डर कर भाग आई थी? पढ़िए अगले अंक में…