जब पत्नी हो कमाऊ

आजकल के विवाह विज्ञापनों से पता चलता है कि नौजवान कमाऊ पत्नी ही चाहते हैं. ऐसे लोग पतिपत्नी की कमाई से शादी के बाद जल्दी साधनसंपन्न होना चाहते हैं. अगर कमाऊ लड़की को शादी करने के बाद अपने पति के परिवार के सदस्यों के साथ रहना पड़े तो संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के विचार और धारणाएं अलगअलग होने की वजह से उस को नए माहौल में ढलना पड़ता है. वह स्वावलंबी होने के साथसाथ अगर स्वतंत्रतापसंद होगी, तो उसे जीवन में नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. कुछ परिवारों में सभी कमाऊ सदस्य अपनीअपनी कमाई घर के मुखिया को सौंपते हैं. मुखिया घरेलू खर्च को वहन करता है. ऐसी स्थिति में कमाऊ नववधू को भी अपनी पूरी कमाई घर के मुखिया को सौंपनी पड़ेगी. लेकिन स्वतंत्र स्वभाव वाली युवती ऐसा नहीं करना चाहेगी. उस अवस्था में नववधू और परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव पैदा होगा. पति और पत्नी के बीच मनमुटाव भी हो सकता है, जो उन के जीवन में जहर घोल देगा. ऐसे जहर को विवाहविच्छेद में परिवर्तित होते देखा गया है.

क्या करे पति

अगर परिवार वाले अपनी कमाऊ बहू से उस की कमाई नहीं लेते तो कमाऊ नववधू खुश रहती है और स्वतंत्ररूप से अपने दोस्तों के साथ घूमती है. अगर पतिपत्नी के विचारों में समन्वय होता है तब तक जीवन की गाड़ी ठीक चलती है, लेकिन अगर कहीं पति अपनी पत्नी को शक की निगाह से देखने लगे तो समस्या गंभीर बन जाती है. शादी के पहले कोई लड़का अपनी होने वाली कमाऊ पत्नी से नहीं पूछता कि वह अपनी कमाई उसे देगी या नहीं. अगर पूछ ले तो शादी के बाद कोई समस्या खड़ी न हो. एक प्राचार्य ने एक लैक्चरर से शादी की. प्राचार्य की इतनी कमाई थी कि घर का खर्च आराम से चलता था. ऐसी स्थिति में लैक्चरर पत्नी ने अपनी कमाई अपने पति को नहीं दी और कहा कि घर का खर्च तो आराम से चल ही रहा है. धीरेधीरे प्राचार्य को शक होने लगा कि उस की पत्नी अपने साथियों को खिलानेपिलाने में खर्च कर रही है और उसे एक नया पैसा नहीं दे रही है. अत: धीरेधीरे मनमुटाव ने विकराल रूप धारण कर लिया और उन दोनों में विवाहविच्छेद हो गया.

ये भी पढ़ें- जब बच्चे करें वयस्क सवाल

ऐसा भी होता है

कुछ गुलछर्रे उड़ाने के लिए ही कमाऊ पत्नी चाहते हैं. ऐसे लड़के अपनी कमाई और अपनी बीवी की कमाई को मिला कर ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहते हैं. शादी के पहले ऐसे लड़कों का पता नहीं चलता. लेकिन शादी के बाद वे गुल खिलाने लगते हैं. कई बार तो अपनी बीवी की कमाई भी उन के लिए कम पड़ने लगती है. पतिपत्नी के बीच पैसों के लिए झगड़ा होने लगता है. कुछ अधिक संपन्न लड़कियां स्त्रीशासित परिवार बनाने के लिए अपने से कमाई में कमजोर पर प्रसिद्ध पुरुषों को उन की पत्नी से तलाक दिला कर शादियां करती हैं ताकि ऐसा पुरुष उन का जीवन भर कहना मानता रहे. ऐसी लड़कियां दकियानूसी परिवार के सदस्यों के साथ समझौता नहीं कर सकतीं.

होना क्या चाहिए

कमाऊ बहू या तो परिवार के सदस्यों की भावनाओं से समझौता करे या शांति से पतिपत्नी अपने परिवार से अलग रहें. इतना ही नहीं पुरुषशासित समाज में जहां पुरुषों की चलती है वहां कमाऊ बहू नाराज रहेगी इसलिए समाज के बदलते आयाम में कमाऊ बहू को घर के सभी आर्थिक खर्चों में राय देने का अधिकार होना चाहिए. आजकल पति और पत्नी को समान अधिकार है, इसलिए दोनों को अपने परिवार के माहौल में मिलजुल कर रहना चाहिए अन्यथा पारिवारिक परिवेश में अशांति रहेगी. 

ये भी पढ़ें- शादी का लड्डू: बनी रहे मिठास

जब बच्चे करें वयस्क सवाल

बहुत से बच्चे अभिभावकों से पूछते हैं, ‘मम्मी मैं कहां से आया’, ‘सैक्स क्या होता है?’ कल तक परियों व राजाओं की कहानियां सुनने वाले बच्चों के मुंह से ये सवाल सुन कर अभिभावक परेशान हो जाते हैं. जब मम्मी को नहीं सूझता कि वह इन सवालों के क्या जवाब दे या बच्चों को कैसे समझाए, तो वह उन्हें अभी आप छोटे हो कह कर या फिर डांट कर चुप करा देती है. मगर इस बारे में दिल्ली के अपोलो हौस्पिटल की चाइल्ड स्पैशलिस्ट डाक्टर रोशनी मेहता का कहना है कि बच्चों के ऐसे सवाल जिन के जवाब देने में आप सहज महसूस नहीं कर रही हैं, तो अभी आप की यह जानने की उम्र नहीं है, बड़े होगे तो खुद ही समझ जाओगे जैसे जवाब दे कर टालें नहीं, क्योंकि संचार क्रांति के युग के बच्चे इस से संतुष्ट नहीं होंगे.

अगर आप बात नहीं करेंगी तो वे इस की जानकारी अन्य माध्यमों, जैसे अपने दोस्तों, मीडिया, इंटरनैट या अन्य संचार माध्यमों से लेंगे. ऐसे में संभव है कि उन्हें सही जानकारी न मिले और उन के मन में यह बात बैठ जाए कि सैक्स एक ऐसा विषय है, जिस पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जाती है. यह वर्जित विषय है. इस से बेहतर है कि हम उन्हें घुमाफिरा कर, लेकिन सरल भाषा में जवाब दें.

जैसेकि 3-4 साल की उम्र का बच्चा यह पूछ सकता है कि उस के पास पेनिस है. लड़कियों के पास यह क्यों नहीं है? ध्यान रहे कि यह शरीर के अंगों के बारे में जानने की बच्चों की सहज और सामान्य उत्सुकता है, इसलिए मातापिता को चाहिए कि अपनी क्षमता के अनुसार वे बच्चे को भरसक संतुष्ट करने की कोशिश करें.

जैसे मातापिता अपनी स्थानीय भाषा में बच्चे को शरीर के हिस्सों के बारे में बताएं. लेकिन देरसवेर उन्हें बताना पड़ेगा कि लड़के के प्राइवेट पार्ट को पेनिस कहते हैं और लड़कियों के प्राइवेट पार्ट को वैजाइना. इस तरह बच्चे के मन में यह विश्वास जगाएं कि उस के सवालों के लिए आप हमेशा तैयार हैं. अगर उस के मन में कोई शंका है तो आप उस का निवारण करेंगे.

आइए जानें कुछ ऐसे ही सवाल और उन के जवाब जिन्हें बच्चों के लिए जानना जरूरी है ताकि वे जिम्मेदारी के साथ विकसित हों और साथ ही अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम.

4 से 9 साल के बच्चों के सवाल

मम्मी मैं कहां से आया?

यह सवाल इस उम्र के हर बच्चे के मन में उठना स्वाभाविक है और अगर पूछे जाने पर आप उसे सही जवाब नहीं देंगे और डांट देंगे तो यह गलत बात होगी. बच्चे से यह भी न कहें कि तुम भगवान या बाबा के घर से आए हो, बल्कि उसे सच बताएं. वरना बच्चा बचपन से अंधविश्वासी बन जाएगा और उसे लगेगा कि हर चीज भगवान के घर से मंगवाई जा सकती है. बच्चे इस उम्र में जानवरों या फूलपौधों के उदाहरणों से हर बात अच्छी तरह समझ जाते हैं, इसलिए उन के सवालों के जवाब उन्हें उन की इसी भाषा में समझाएं. फूलों का उदाहरण दे कर उन्हें बताएं कि वे कैसे पैदा होते हैं और फिर मां के शरीर से अलग हो कर कैसे अपनी बढ़ोतरी करते हैं. उन से यह भी कह सकते हैं कि मां के शरीर में एक खास अंग गर्भाशय होता है जहां से तुम आए हो. उन्हें जन्म की पूरी प्रक्रिया बिताने की जरूरत नहीं है.

ये भी पढ़ें- शादी का लड्डू बनी रहे मिठास

सैक्स क्या होता है?

इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि मम्मी और पापा एकदूसरे से खास तरह से प्यार करते हैं, जिसे सैक्स कहते हैं.

भैया और मेरे प्राइवेट पार्ट्स अलग क्यों हैं?

बच्ची को बताएं कि जिस तरह कुत्ते, हाथी, घोड़े, गाय इन सभी की शारीरिक बनावट अलगअलग होती है, उसी तरह लड़के और लड़की के शरीर की बनावट और उन के अंग भी अलगअलग होते हैं.

सैनिटरी नैपकिन क्या होता है?

टीवी में विज्ञापन देख कर यह सवाल बच्चे अकसर पूछते हैं? इस सवाल का घबरा कर उलटासीधा जवाब न दें, बल्कि उन्हें समझाएं कि जिस तरह नाक व हाथ पोंछने के लिए मम्मा तुम्हें नैपकिन देती हैं उसी तरह के ये नैपकिन भी हैं. बस फर्क इतना है कि ये नैपकिन सिर्फ प्राइवेट पार्ट्स पोंछने के लिए होते हैं और इन का इस्तेमाल बड़े होने पर किया जाता है. ये बच्चों के लिए नहीं होते. जिस तरह मम्मा और बच्चों के कपड़े और रूमाल अलगअलग होते हैं उसी तरह बच्चों और बड़ों के नैपकिन भी अलगअलग होते हैं.

कंडोम क्या होता है?

टीवी में विज्ञापन देख कर बच्चे यह सवाल भी पूछते हैं. इस स्थिति में बच्चे से कुछ छिपाएं नहीं, बल्कि बताएं कि जिस तरह हाथों को किसी बीमारी से बचाने के लिए हम दस्ताने पहन लेते हैं उसी तरह कंडोम भी एक तरह का दस्ताना ही होता है, जो पुरुषों को बीमारियों से बचाता है. हां, अगर बच्चा 10 साल से बड़ा है, तो उसे बता सकते हैं कि कंडोम सैक्स के दौरान पुरुषों को बीमारियों से बचाता है.

10-15 साल के बच्चों के सवाल

मेरी मूंछें और प्राइवेट पार्ट्स पर बाल क्यों आ रहे हैं? मेरी आवाज क्यों बदल रही है?

सब से पहले तो बच्चों को इस बात का विश्वास दिलाएं कि आवाज बदलना, मुंहासे होना, दाढ़ी आना आदि आम बात है. उन्हें कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह किशोरावस्था की सामान्य प्रक्रिया है. उन्हें तो खुश होना चाहिए कि वे बड़े हो रहे हैं. उन्हें बताएं कि आप भी ऐसे ही बड़े हुए थे. यह बदलाव लड़कों और लड़कियों में अलगअलग हो सकते हैं, इसलिए एकदूसरे के बदलाव को देख कर कन्फ्यूज न हों.

ये भी पढ़ें- जानें कैसी हो इकलौते की परवरिश

पीरियड्स क्या होते हैं?

पीरियड्स के बारे में हर मां को अपनी बेटी के पूछने से पहले ही बता देना चाहिए. 10 साल की उम्र में लड़की के पहुंचते ही उसे इस बारे में बता देना चाहिए. अगर उसे कहीं बाहर से पता चलेगा तो वह परेशान हो जाएगी. इसलिए बेटी को बताएं कि यह सामान्य प्रक्रिया है. हर लड़की को इस से गुजरना पड़ता है. आप उसे अपने पहले अनुभव के बारे में भी बताएं कि आप को भी दर्द हुआ था, पर धीरेधीरे आदत हो गई. इस समय की जाने वाली साफसफाई और अन्य बातें भी बेटी को समझाएं ताकि उसे कोई परेशानी न हो.

नाइटफाल क्या होता है?

बच्चे के इस तरह के सवाल पर सकपकाएं नहीं, क्योंकि हो सकता है कि वह इस उम्र से गुजर रहा हो, इसलिए उसे समझाएं कि यह बिलकुल नौर्मल बात है. जिस तरह हमारे शरीर में टौयलेट बनता रहता है और निकलता रहता है उसी तरह लड़कों के शरीर में हर वक्त सीमन बनता रहता है और जब यह ज्यादा इकट्ठा हो जाता है तो सोते वक्त निकल जाता है. इस में कुछ गलत नहीं है. इस से घबराएं नहीं.

मास्टरबेशन क्या होता है?

सीमन को जब खुद अपने प्राइवेट पार्ट को टच कर के निकाला जाता है तो उसे मास्टरबेशन कहते हैं. ऐसा करने पर शरीर में कोई कमजोरी नहीं आती है. हां, अति हर चीज की बुरी होती है. इसलिए अपना ध्यान पढ़ाई अथवा अन्य गतिविधियों में लगाएं. छोटे बच्चे को यह भी बताना जरूरी है कि शरीर के जो अंग ढके रहते हैं उन्हें छूने का हक सिर्फ मां को है. मां नहलाते वक्त ऐसा कर सकती है या फिर डाक्टर कर सकता है. लेकिन अगर इस के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा करता है फिर चाहे वह व्यक्ति आप के दादा, मामा, भाई ही क्यों न हो और यह कहता हो कि किसी को मत बताना तो तुम्हें यह बात अपने मम्मीपापा को जरूर बतानी चाहिए. बच्चे को यह भी सिखाइए कि अगर कोई उस के प्राइवेट पार्ट्स को छूने की कोशिश करता है तो उसे क्या करना चाहिए. आप उसे सिखा सकती हैं कि ऐसा होने पर वह यह कहे कि मुझे हाथ मत लगाना वरना मैं तुम्हारी शिकायत कर दूंगा या दूंगी. बच्चे को बताइए कि वह शिकायत करने से न डरे भले ही वह व्यक्ति डराएधमकाए.

रेप क्या होता है? अगर वह यह पूछे तो रेप शब्द को समझाने के लिए कहें कि जिस तरह आप अपनी गुडि़या को किसी दूसरे को छूने नहीं देतीं, वह आप की है, उसे प्यार करने का हक सिर्फ आप का है, उसी तरह आप हमारी गुडि़या हो. आप को सिर्फ मम्मापापा, दादादादी ही प्यार कर सकते हैं. यदि कोई अनजान व्यक्ति इस तरह छूता है या जानपहचान का व्यक्ति भी इस तरह छुए जो आप को खराब लगे तो उस जबरदस्ती और अच्छा न लगने वाले व्यवहार को रेप कह सकते हैं.

ये भी पढ़ें- जानें बेहतर मैरिड लाइफ से जुड़ी जानकारी

जानें कैसी हो इकलौते की परवरिश

आस्ट्रेलिया के मोनाश और क्लेयटन विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक इकलौते बच्चे दूसरे बच्चों के मुकाबले 16% कम जोखिम उठाना पसंद करते हैं. साथ ही उन में स्वार्थ की भावना भी ज्यादा होती है. यह निष्कर्ष चीन में 1979 में ‘एक परिवार एक ही बच्चा’ की नीति लागू होने के पहले और उस के बाद के वर्षों में पैदा हुए बच्चों का आपसी तुलनात्मक अध्ययन कर के निकाला गया है. इकलौते बच्चों को परिवार में बेहद लाड़प्यार मिलता है, जिस की वजह से उन में बादशाही जिंदगी जीने की आदत पड़ सकती है. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. वे स्वार्थी तो होते ही हैं, भाईबहनों के अभाव की वजह से बचपन से इन में प्रतियोगी भावना की कमी पाई जाती है. यही नहीं यूरोप में किए गए एक शोध के मुताबिक इकलौती संतान के मोटे होने की संभावना भी भाईबहन वाले बच्चों की तुलना में 50% अधिक होती है. यह निष्कर्ष यूरोप के 8 देशों के 12,700 बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया.

ऐसे बच्चे अन्य बच्चों की तरह घर से बाहर निकल कर कम खेलते हैं और टीवी देखने के ज्यादा आदी होते हैं. वे खानेपीने में भी मनमानी करते हैं. मांबाप प्यारदुलार में उन की हर मांग पूरी करते जाते हैं. इन वजहों से उन में मोटे होने की संभावना ज्यादा पाई जाती है.

एकल परिवार

आज के संदर्भ में देखा जाए तो इस तरह के शोधों और उन से निकाले गए निष्कर्षों पर गौर करना लाजिम है. आज बढ़ती महंगाई और बदलती जीवनशैली ने सामाजिक संरचना में परिवर्तन ला दिया है. संयुक्त परिवारों के बजाय अब एकल परिवारों को प्रमुखता मिल रही है. पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं. पत्नी को घर के साथ दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. ऐसे में कभी परिस्थितिवश तो कभी सोचसमझ कर लोग एक ही बच्चे पर परिवार सीमित करने का फैसला ले लेते हैं. हाल ही में भारत में एक मैट्रिमोनियल साइट (शादी.कौम) द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं की तुलना में पुरुष एक से अधिक बच्चों की इच्छा अधिक रखते हैं. सर्वे में जहां 62% पुरुषों ने एक से ज्यादा बच्चों की जरूरत पर बल दिया, वहीं सिर्फ 38% महिलाओं ने ही इस में रुचि दिखाई.

दरअसल, पुरुष सोचते हैं कि बच्चे उन के जीवन के केंद्र हैं और एक सफल शादी के सूचक हैं, इसलिए वे ज्यादा बच्चे पसंद करते हैं. इस के विपरीत महिलाएं, जिन्हें मूल रूप से बच्चों के देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, कम बच्चे चाहती हैं. मैट्रोज के कपल्स पर आधारित इस सर्वे में पाया गया कि 42% मैरिड कपल्स के पास सिंगल चाइल्ड थे, जबकि 28% मैरिड कपल्स के 1 से ज्यादा बच्चे थे. इस सर्वे में एक दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि लव मैरिज करने वाले कपल्स सिंगल चाइल्ड तो अरैंज मैरिज वाले कपल्स 1 से ज्यादा बच्चे पसंद करते हैं. लव मैरिज करने वाले कपल्स में से 49% ने सिंगल चाइल्ड की इच्छा जताई, जब कि अरैंज मैरिज करने वाले कपल्स में से 62% एक से अधिक बच्चों के ख्वाहिशमंद थे, क्योंकि वे बेटा और बेटी दोनों ही चाहते थे.

ये भी पढे़ं- जानें बेहतर मैरिड लाइफ से जुड़ी जानकारी

सोच में बदलाव

इस संदर्भ में मैट्रो हौस्पिटल की कंसल्टैंट साइके्रटिस्ट, अवनि तिवारी कहती हैं कि आजकल की बढ़ती महंगाई और टूटते संयुक्त परिवारों की परंपरा ने लोगों की सोच में बदलाव पैदा किया है. अब लोग बच्चे को जन्म देने का फैसला बहुत सोचविचार कर लेते हैं, क्योंकि पतिपत्नी दोनों को अपना कैरियर भी देखना होता है. उधर घर में सास, मां, मौसी, बूआ आदि की कमी रहती है. ऐसे में सारी जिम्मेदारी स्वयं उठानी पड़ती है. फिर अधिक उम्र में विवाह की वजह से भी रिप्रोडक्टिव कैपिसिटी घट रही है. बड़े शहरों में रहने वाले ज्यादातर कपल्स किसी तरह एक बच्चा तो मैनेज कर लेते हैं, क्योंकि ऐसा उन्हें समाज के लोगों का मुंह बंद करने और खुद भी मांबाप बनने का आनंद उठाने के लिए जरूरी लगता है. पर दूसरे बच्चे की बात पर उन्हें सोचना पड़ता है. अकसर यह भी होता है कि एक पार्टनर यदि इच्छुक भी है, तो दूसरा बढ़ती जिम्मेदारियों और खर्चों का वास्ता दे कर दूसरे को चुप करा देता है. ऐसे घरों में अब चूंकि बच्चा इकलौता होता है तो मांबाप की सारी उम्मीदें उसी से जुड़ी होती हैं. उन के पास यह विकल्प नहीं होता कि चलो एक बच्चा डाक्टर बनना चाहता है तो कोई बात नहीं, दूसरा मेरी मरजी के मुताबिक इंजीनियर या वकील वगैरह बन जाएगा. पतिपत्नी की सारी उम्मीदों का केंद्र वह इकलौता बच्चा रहता है.

बच्चा सोचता है कि सब कुछ तो मेरा ही है. इस से उस में न तो प्रतियोगी भावना पैदा होती है और न ही वह अच्छा पीयर रिलेशनशिप यानी हमउम्र साथियों से दोस्ती ही डैवलप कर पाता है. यदि समय पर ध्यान न दिया जाए तो संभव है कि बच्चा आत्मकेंद्रित हो जाए. पर मांबाप बचपन से उस में सही संस्कार और सोच पैदा करें तो इस स्थिति से बचा जा सकता है. मांबाप को चाहिए कि वे बच्चे को रिश्तेदारों और पड़ोसियों के हमउम्र बच्चों के साथ मिक्सअप होना सिखाएं. उस के हाथ से दूसरों को चीजें दिलवाएं. बच्चे को अकेला न छोड़ें. बड़े भाईबहन के रहने से छोटा बच्चा अकसर सारे काम जल्दी सीख जाता है, क्योंकि बड़ा भाई/बहन उसे सब सिखाता जाता है. पर चूंकि यहां बच्चा अकेला है, तो मांबाप को ही यह भूमिका निभानी होगी. बच्चे के साथ बच्चा बन कर रहना होगा, उस के साथ खेलना होगा और उसे अच्छी आदतें सिखानी होंगी.

मिथक और वास्तविकताएं

वैसे यह कहना कि बच्चा इकलौता है तो वह हमेशा ही हठी, स्वार्थी या आत्मकेंद्रित होगा, जरूरी नहीं है. यह बात महत्त्वपूर्ण है कि उस की परवरिश कैसे की गई है. आप महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध या फिर आइजैक न्यूटन का उदाहरण ले सकते हैं. ये भी इकलौते बच्चे थे पर मानवता और देशसेवा के नाम अपनी जिंदगी उत्सर्ग कर दी. दुनिया को नया ज्ञान दिया. बच्चे में आप शुरू से मिलजुल कर रहने और दूसरों के लिए परवाह करने की आदत डालें तो बड़े होने पर बच्चे का व्यक्तित्व संतुलित और उदात्त होगा. अकसर कहा जाता है कि अकेला बच्चा अकेलेपन का शिकार हो सकता है और आगे चल कर वह असामाजिक प्रवृत्ति का इंसान बनता है, पर यह भी जरूरी नहीं. ‘किंग औफ रौक ऐंड रौल’ कहे जाने वाले एल्विस प्रेश्ले को ही लीजिए. वे अपने असंख्य प्रशंसकों एवं दोस्तों के बीच काफी लोकप्रिय रहे. न सिर्फ गाने की वजह से वरन उदात्त और मिलनसार स्वभाव की वजह से भी. वे अपने दोस्तों की बहुत मदद करते थे और उन्हें हर तरह से सपोर्ट देते थे.

ये भी पढ़ें- जिद्दी पत्नी से कैसे निभाएं

रखें कुछ बातों का खयाल

  1. बच्चे से दोस्ताना व्यवहार करें. घर में उसे अकेला महसूस न होने दें.
  2. जब भी वक्त मिले, बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. उसे अच्छी किताबें पढ़ने को दें.
  3. बच्चे को थोड़ा स्पेस भी दें. उस की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप न करें.
  4. जब बच्चा भाईबहन न होने की शिकायत करे तो उसे समझाएं कि चचेरेममेरे भाई बहन भी उतने ही करीबी हो सकते हैं. उसे रिश्तेदारों के बच्चों से मिलाने ले जाएं. आसपास के बच्चों से दोस्ती करने को प्रेरित करें.
  5. बच्चे में स्कूल में दोस्तों और घर में रिश्तेदारों के बच्चों के साथ मिल कर रहने, अपनी चीजें शेयर करने और अच्छा बरताव करने की आदत डालें.
  6. बच्चे पर जरूरत से ज्यादा प्रैशर न डालें. अकेला बच्चा है तो आप उसे हर क्षेत्र में परफैक्ट देखना चाहेंगे. उस के जरीए अपना सपना पूरा करना चाहेंगे. पर ध्यान रखें, इस चक्कर में उस पर अनावश्यक दबाव न बनाएं. उसे अपना बचपन जीने दें.
  7. अपने बच्चे की केयर करने और उस की खुशियों की परवाह करने के साथ उसे अनुशासन में रहना भी सिखाएं. उस की हर जायज व नाजायज मांग पूरी न करें. उस की इच्छा का खयाल रखें. पर वह गलत बात की जिद करे तो मना करें.
  8. अपने बच्चे में अच्छे मानवीय गुणों, नैतिक मूल्यों और संस्कारों की नींव डालने का प्रयास करें.
  9. किसी भी चीज का सकारात्मक पक्ष देखने की आदत भी डालें.
  10. बच्चा आप के लिए अनमोल है पर उसे यह एहसास न दिलाएं कि वह दूसरों से बढ़ कर  है या उस की खुशी के लिए आप किसी भी हद तक जा सकते हैं. बच्चे को सामान्य जिंदगी जीने दें. उसे घमंडी या बदतमीज न बनाएं. कभीकभी उसे गलत काम करने पर डांटें और सजा भी दें.
  11. बच्चे में सदैव मखमली बिस्तर पर रहने की आदत न डालें. उस में अपना काम स्वयं करने की आदत बचपन से डालें. यही नहीं घरेलू कामों में भी उसे अपनी मदद के लिए बुलाएं. इस से जहां उसे काम में सहयोग देने की आदत पड़ेगी, वहीं आप के साथ अधिक वक्त बिताने का मौका भी मिलेगा.

ये भी पढ़ें- पति के बिहेवियर में आए बदलाव तो आजमाएं ये 8 Tips

रूठों को मनाए Sorry

सीमा उदास बैठी थी. तभी उस के पति का फोन आया और उन्होंने उसे ‘सौरी’ कहा. सीमा का गुस्सा एक मिनट में शांत हो गया. दरअसल, सुबह सीमा का अपने पति से किसी बात पर झगड़ा हो गया था. गलती सीमा की नहीं थी, इसलिए वह उदास थी. लड़ाईझगड़े हर रिश्ते में होते हैं पर सौरी बोल कर उस झगड़े को खत्म कर के रिश्तों में आई कड़वाहट दूर की जा सकती है. यह इतनी छोटी सी बात है. लेकिन बच्चे तो क्या, बड़ों की समझ में भी यह बात न जाने क्यों नहीं आती.

हर रिश्ते में कभी न कभी मतभेद होता है. अच्छा और बुरा दोनों तरह का समय देखना पड़ता है. कभीकभी रिश्तों में अहंकार हावी हो जाता है और दिन में हुआ विवाद रात में खामोशी की चादर बन कर पसर जाता है. अपने साथी की पीड़ा और उस से नाराजगी के बाद जीवन नरक लगने लगता है. फिर हालात ऐसे हो जाते हैं कि आप समझ नहीं पाते कि सौरी बोलें तो किस मुंह से. पर सौरी बोलने का सही तरीका आप के जीवन में आई कठिनाई और मुसीबत को काफी हद तक दूर कर रिश्तों में आई कड़वाहट को कम कर सकता है. यह तरीका हर किसी को नहीं आता. यह भी एक हुनर है. जब आप अपने रिश्तों के प्रति सतर्क नहीं होते और हमेशा अपनी गलतियों को नजरअंदाज करते रहते हैं, तभी हालात बिगड़ते हैं. आप इस बात से डरे रहते हैं कि आप का सौरी बोलना इस बात को साबित कर देगा कि आप ने गलतियां की हैं. यही बात कई लोग पसंद नहीं करते. अगर आप सौरी नहीं कहना चाहते तो आप के पास और भी तरीके हैं यह जताने कि आप अपने बरताव और अपने कहे शब्दों के लिए कितने दुखी हैं.

कैसे कहें सौरी

शुरुआत ऐसे शब्दों से करें जिन से आप के जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को यह लगे कि आप उस से अपने बरताव के लिए वाकई बहुत शर्मिंदा हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि लोग आपस में हो रहे विवाद या बहस को खत्म करने के लिए वैसे ही सौरी बोल देते हैं. लेकिन उन्हें अपने किए पर कोई भी पश्चात्ताप नहीं होता. अगर आप सच में अपने बरताव के लिए माफी मांग रहे हैं तो यह जरूर तय कर लें कि आप में अपनेआप को बदलने की इच्छा है. दूसरी बात यह है कि आप सौरी बोल कर अपनी सारी गलतियों को स्वीकार रहे हैं न कि सफाई दे कर अपने बरताव के लिए बहस कर रहे हैं. ये सारी बातें आप के साथी को यह एहसास कराएंगी कि आप सच में अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा हैं और उन सब को छोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं. बीती बातों को भूल कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- जब Tour पर हों पति

कई लोगों को सौरी बोलने में काफी असहजता महसूस होती है तो कई लोग सौरी बोलने से कतराते हैं. लेकिन सौरी कह कर आप न केवल मन का बोझ हलका करते हैं, बल्कि सामने वाले व्यक्ति के मन की पीड़ा को भी दूर कर देते हैं. इस के दूरगामी नतीजे सामने आते हैं. आप किसी भी गलती के लिए सौरी बोल कर उसे बड़ी बात बनने से रोक सकते हैं. सौरी एक ऐसा शब्द है, जिसे बोलने से टूट रहे रिश्ते को आप न केवल बचाते हैं, बल्कि उस से और भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. फिर धीरेधीरे पुरानी बातें खत्म हो जाती हैं.

भेंट भी दें

सौरी बोलने के साथ आप अपने साथी को फूल या जो भी उन्हें पसंद हो, वह भेंट कीजिए. अगर डांस करना पसंद है तो उन्हें बाहर डांस के लिए ले जाइए और डांस करतेकरते उन्हें सौरी बोल दीजिए. कौफी हाउस या रेस्तरां में बैठ कर एक नई पहल करते हुए भी अपने किए पर खेद जता सकते हैं. जिस ने भी झगड़ा शुरू किया है या झगड़े की कोई भी वजह रही हो, उस पर कभी तर्कवितर्क नहीं करना चाहिए. पीछे मुड़ कर देखने का कोई फायदा भी नहीं है. आप यह तय कर लें कि आप सच में खेद महसूस कर रहे हैं. तय कर लीजिए कि आप केवल सामने वाले को खुश करने के लिए उसे सौरी नहीं बोल रहे. अपने पार्टनर की भावनाओं की कद्र करें और उन्हें तकलीफ देने की कोशिश न करें. अगर झगड़ा बहुत बढ़ गया है तो थोड़ी देर के लिए उन्हें अकेला छोड़ दें. उन्हें काल कर के या एसएमएस कर के परेशान न करें. 1-2 दिन इंतजार करें, फिर सारी बातें भुला कर अपना और अपने साथी का झगड़ा वहीं खत्म करें. अपनी गलती मान लेना सब से बड़ी बात है. इस से आप का और दुखी साथी का मन निर्मल हो जाता है. इसलिए जहां कहीं भी यह लगे कि आप गलत हैं, अपना जीवनसाथी हो या दफ्तर का साथी या फिर कोई भी रिश्तेदार, उसे सौरी बोल कर गिलेशिकवे दूर कर लीजिए. देर मत कीजिए वरना गांठें बढ़ती जाएंगी. सच मानिए यह सौरी बोलना अपनेआप में जादू से कम नहीं.

ये भी पढ़ें- रिश्ते में है समर्पण जरूरी

जानें क्या होता है मिड एज सिंड्रोम

अकसर हम 40-45 साल के कुछ ऐसे लोगों को देखते हैं, जो युवाओं की तरह भड़कीले कपड़े पहने उन के जैसा ही व्यवहार करते नजर आते हैं. कुछ इस से भी आगे बढ़ कर अपने से काफी छोटी उम्र के लोगों की ओर आकर्षित होते हैं और उन्हें भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तरहतरह के नुसखे तथा पैतरे आजमाते दिखते हैं. इस तरह की स्थितियां जब सहजता की सीमा को पार करने लगती हैं, तो वे मिड लाइफ क्राइसिस, मिड लाइफ सिंड्रोम अथवा मिड एज सिंड्रोम कही जाती हैं. इस पर काफी अध्ययन और शोध भी हुए हैं.

होता क्या है

40-45 की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते व्यक्ति कैरियर, गृहस्थी आदि में काफी हद तक सैटल हो जाता है. तब उस के पास अपने बारे में सोचनेविचारने का समय रहता है. ऐसे में अकसर उसे यह महसूस होता है कि युवावस्था उस के हाथ से निकलती जा रही है. वह जीवन की रोजमर्रा की जुगत में ठीक से उस का उपयोग नहीं कर पाया. अत: वह तरहतरह से उसे ठहराना, पकड़ना तथा भरपूर जीना चाहता है. ऐसे में समाज की मान्यताएं, सोच, हदें और सीमाएं उस की इस मनमरजी में बाधक लगती और बनती हैं. तब उस के भीतरबाहर द्वंद्व की स्थिति होती है, जो मिड लाइफ क्राइसिस कही जाती है.

पुरुषों में ज्यादा

वैसे यह क्राइसिस स्त्रीपुरुष दोनों में होती है, परंतु पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में कम व देर से होती है और कम समय रहती है. पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा नेचर और स्थितियों के साथ समायोजन की क्षमता कम होती है तथा वे अपनी मरजी से जीवन जीने के अधिक अभ्यस्त होते हैं, इसलिए भी उम्र की फिसलन उन की इच्छाओं में ज्यादा बढ़ोतरी करने लगती है. मनोचिकित्सक डा. संजय चुघ के अनुसार, इस क्राइसिस में व्यक्ति को लगता है कि उस की आधी जिंदगी बीत चुकी है. बची हुई जिंदगी वह अपनी मरजी से जीए. वह पहनावे, फिटनैस वगैरह का खास ध्यान रखने लगता है और युवा दिखने की भी काफी कोशिश करता है. अपनी जिंदगी में आई रिक्तता को भरने के लिए वह उस में ऐक्साइटमैंट लाना चाहता है. इस फेर में वह रोमांस तथा फ्लर्टिंग खोजने लगता है. उस का व्यवहार किशोरावस्था के व्यवहार जैसा होने लगता है. सिर्फ मनोवैज्ञानिक कारण ही नहीं हारमोनल बदलाव को भी इस के लिए जिम्मेदार माना गया है.

ये भी पढ़ें-  पति-पत्नी के रिश्ते को निभाएं कैसे

स्त्रियों में कम क्यों

मनोचिकित्सकों के अनुसार स्त्रियां जीवन के तनावों, दबावों तथा हारमोनल बदलावों को सहज एवं प्राकृतिक रूप से टैकल कर लेती हैं. कई कार्यों, गतिविधियों में जीवन को व्यस्त कर लेती हैं. आमतौर पर खालीपन उन्हें खलता नहीं. वे उसे किसी न किसी तरह भर लेती हैं. इस मुद्दे पर कई स्त्रियों से बातचीत की तो उन्होंने इस के बारे में बताया. डा. पूनम आनंद लाजपत नगर, दिल्ली के विद्यालय में साइंस की शिक्षिका हैं. वे कहती हैं, ‘‘हम ने ये उम्र पार कर ली पर हमें इस की क्राइसिस का आभास इसलिए नहीं हुआ कि हमारे लिए बच्चों का कैरियर सैटलमैंट और जीवन के अन्य लक्ष्य भी महत्त्वपूर्ण हैं.’’ गुड़गांव केंद्रीय विहार में कार्यरत एक सौंदर्य विशेषज्ञा कहती हैं, ‘‘मेरे पास हर उम्र की महिलाएं आती हैं और वे सभी हर उम्र में सुंदर दिखना चाहती हैं. 44-45 की उम्र में भी एज क्राइसिस मैं ने उन में नहीं देखी. वे तो हमेशा ही जवान व सुंदर दिखना चाहती हैं.’’

डा. वीरेंद्र सक्सेना कहते हैं, ‘‘मैं फिल्मी पत्रिका ‘माधुरी’ का संपादक रहा. उस के लिए काम संबंधों पर शोध के दौरान किए गए इंटरव्यूज में मैं ने पाया कि स्त्रियां जीवन में मिले खाली समय को निरर्थक नहीं समझतीं, वे चीजों को बहुत सकारात्मकता से देखती हैं तथा खाली समय का भी सार्थक निवेश करती हैं.’’

क्या हो सकते हैं लक्षण

पदप्रतिष्ठा को भूल कर प्यार, रोमांस का तलबगार हो जाना.

कभीकभी पदप्रतिष्ठा को दांव पर भी लगा देना.

विवाहेतर संबंधों में दिलचस्पी.

दांपत्य में एकरसता, ऊब या बासीपन अनुभव करना.

सोशल साइट्स, इंटरनैट, अश्लीलता आदि की ओर रुझान बढ़ना.

हास्यास्पद हरकतें.

ब्रिटेन में मिड एज क्राइसिस पर हुए शोध में कई लक्षण प्रकाश में आए जैसे:

अपने से 20-25 वर्ष कम उम्र की लड़कियों से फ्लर्टिंग.

पुराने साथियों और लोगों को खोजना.

मित्र या अपनों की खुशी में खुश न होना.

उम्र छिपाना.

बाल झड़ने, तोंद बढ़ने अथवा बाल सफेद होने आदि की चिंता.

क्या इस क्राइसिस का है समाधान

जीवन की स्थितियों को सहजता से ले कर समायोजन कर लेते हैं, उन्हें इस क्राइसिस का अनुभव तो दूर, उन का तो इस का नाम तक लिए बिना जीवन गुजर जाता है. जीवन को लक्ष्य से जोड़े रखना बेहतर है. प्रोफैशनल जीवन के अलावा छोटेछोटे अन्य लक्ष्य भी बनाए जा सकते हैं. रुचियों और अधूरी इच्छाओं को समय दिया जा सकता है.

उम्र के हर पड़ाव का है चार्म

हर उम्र का अपना मजा है, अपना चार्म है. जिस बचपन या यौवन को इस उम्र की क्राइसिस में याद किया जा रहा है, उम्र के उस दौर में भी क्राइसिस कम न थी. अपनेआप को साबित करने, पढ़नेलिखने तथा अन्य हारमोनल तनावदबाव तथा आकर्षण भी बाधक थे. उम्र के अनुरूप व्यवहार, रहनसहन तथा हावभाव अच्छे लगते हैं. अगर बच्चे कहने लगें कि पापा को क्या हो गया? या डैडी तो बड़ी छिछोरी हरकतें करते हैं…, तो इस तरह की बातें कहीं का नहीं रहने देतीं. सर्दीगरमी, बरसात की तरह ही हर उम्र का मौसमी फ्लेवर है.

ये भी पढ़ें- जानें शादी से जुड़ी जिज्ञासाएं का जवाब

लाइफ बिगिन्स आफ्टर फोर्टी

40 के बाद सही आनंदमय जीवन के चार्म को इस कहावत के जरीए दर्शाया गया है. यही तो समय है जब पैसे से ले कर कैरियर तक की सही कमान हाथ में आती है. इस का आनंद लेना आसपास के लोगों से सीखा जा सकता है. दुनिया भर की कई मशहूर हस्तियां 40 के बाद ही मुकाम पर पहुंचीं.

काबू न किए जाने पर किरकिरी

इस उम्र की क्राइसिस को मैनेज न कर पाने पर बहुत किरकिरी होती है. पुरुषों में तो 60-70 साल की उम्र तक यह सिंड्रोम रह सकता है, जिस की वजह से बिल क्लिंटन, बलुस्की और दुनिया की कई और भी जानीमानी हस्तियों की बहुत किरकिरी हुई है. मैनेज न किए जाने पर यह तनाव दबाव का रूप ले कर सफलता को असफलता, चरित्र को चरित्रहीनता और गुण को अवगुण में तबदील कर सकता है.

आ रही है अवेयरनैस

इस क्राइसिस के प्रति दुनिया भर में जागरूकता लाई जा रही है. पुराने समय में भी इस तरह की मनोवृत्तियों को कहावतों, मुहावरों के जरीए दर्शाने का प्रयास रहा है. जैसे सींग कटा कर बछड़ों में शामिल होना, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम और पचपन में दिन बचपन के वगैरह.

बौलीवुड में भी ‘बीवी नं. 1’, ‘गैंड मस्ती’, ‘नो ऐंट्री’ जैसी फिल्में बनी हैं, जो इस एज क्राइसिस की ओर ध्यान दिला कर बचाव का संदेश देती हैं.

बच कर रहना ठीक

दांपत्य में एकरसता, उपेक्षा न आने दी जाए. जीवनसाथी के जीवन की रिक्तता को पूरा किया जाए. नवीनता और बदलाव की इच्छा को साथी द्वारा सैक्स, रहनसहन और लाइफस्टाइल की नईनई तकनीकें अपना कर टैकल किया जा सकता है. जब भी ऐसा एज सिंड्रोम सिर उठाए, तो उसे सकारात्मक व सही दिशा दे कर जीवन का और लुत्फ लिया जा सकता है. कुछ लोग जीवन में नए लक्ष्य और कार्यों के लिए उत्सुक, सीखने के लिए आतुर और घूमने के लिए व्याकुल नजर आते हैं वे काफी हद तक इसे सही दिशा में स्वयं ही मोड़ लेते हैं.

ये भी पढ़ें- जब बीवी बन जाए घर में बौस

पति-पत्नी के रिश्ते को निभाएं कैसे

अकसर छोटीछोटी बातों को ले कर पतिपत्नी इस हद तक झगड़ पड़ते हैं कि उन की जिंदगी में सिर्फ तनाव ही रह जाता है, जो उन पर इस हद तक हावी हो जाता है कि दोनों का एक छत के नीचे जीवन बसर करना मुश्किल हो जाता है और नौबत तलाक तक पहुंच जाती है. आम जिंदगी में यदि पतिपत्नी कुछ बातों को ध्यान में रखें तो तनाव से बच कर अपने घरेलू जीवन को खुशियों से भर सकते हैं. यदि पतिपत्नी के बीच कभी झगड़ा हो तो दोनों में से एक को शांत हो जाना चाहिए, जिस से बात आगे न बढ़े और फिर पतिपत्नी का झगड़ा तो पानी के बुलबुलों की तरह होता है, जो पल भर में ही खत्म हो जाता है.

आइए, जानते हैं कुछ नुसखे, जिन को अमल में ला कर जीवन को खुशगवार बनाया जा सकता है:

पतिपत्नी को चाहिए कि वे एकदूसरे को समझें, एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करें.

अपने रिश्ते में कभी भी ‘मैं’ भाव को हावी न होने दें.

कभीकभी चुप्पी भी बहुत कुछ ऐसी बातें कह जाती है, जिन्हें बोलने से सिर्फ कड़वाहट ही पैदा हो और फिर इस तरह दूसरे तक आप का संदेश सहजता से पहुंच जाता है.

घर का झगड़ा घर में ही सुलझा लें. बाहर वालों को इस की भनक तक न लगने दें वरना बात बिगड़ सकती है.

ये भी पढ़ें- जानें शादी से जुड़ी जिज्ञासाएं का जवाब

यदि पति को औफिस से आने में देर हो जाए तो उन से लड़ें नहीं, न ही शक करें, पर एकदम विश्वास भी न करें, सामान्य बनी रहें.

कभीकभी पत्नी की नाजायज मांगों से तंग आ कर पति कुंठित हो जाते हैं खास तौर से तब जब वे उन मांगों को पूरा कर पाने में असमर्थ होेते हैं. इस कारण भी झगड़े होते हैं.

पत्नी को पति की सीमित आय में रहना सीखना चाहिए और सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहिए.

तानों से बचें

1. एकदूसरे को ताना न दें. जैसे, मुझे तो बहुत अमीर घरानों से रिश्ते आ रहे थे. मैं तो तुम से विवाह कर के फंस गई आदि. इस से पति का सम्मान चोटिल होता है, जो अंतत: झगड़े का कारण बनता है.

2. पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे को हर रूप में अपनाएं.

3. दोनों ही एकदूसरे की इच्छाओं की कद्र करें और एकदूसरे के मातापिता को समान रूप से सम्मान दें, क्योंकि अकसर देखने में आता है कि पतिपत्नी के बीच झगडे़ का एक बड़ा कारण मातापिता के सम्मान को ले कर भी होता है.

4. पतिपत्नी आपस में समर्पित रहें, अपनी इच्छाओं को दबाएं नहीं, व्यक्त करें, मगर उन्हें एकदूसरे पर थोपें नहीं.

5. कभी भी एकदूसरे के अतीत को न कुरेदें. आप का भविष्य ज्यादा महत्त्व रखता है. कल आप क्या थे, इस पर झगड़ना बेवकूफी है, आज आप क्या हैं और आज के आधार पर कल क्या होंगे, यह ज्यादा महत्त्व रखता है.

6. अगर कोई बात आप को तकलीफ पहुंचा रही है तो शांत हो कर, आराम से अपने पति से बातचीत करें. झगड़ा किसी परेशानी का हल नहीं बल्कि तनाव की जड़ है.

ये भी पढ़ें- जब बीवी बन जाए घर में बौस

बहन पर गुस्सा

भाई बहन के रिश्ते में बड़ा ही अपनापन होता है. इस अनमोल रिश्ते को संजोए रखना भाईबहन दोनों का ही कर्तव्य है, लेकिन कभीकभी इस रिश्ते में खटास उत्पन्न हो जाती है, जो दोनों के लिए जान देने को तैयार रहते थे वे एकदूसरे से ख्ंिचेख्ंिचे रहने लगते हैं. भाइयों का अपनी बहनों से खास लगाव होता है. अगर बहन छोटी है तो भाई जहां उस के हर नाजनखरे सहता है वहीं यह भी प्रयास करता है कि वह उस से रूठ न जाए. लेकिन कभीकभी जानेअनजाने ऐसी बात बन जाती है कि भाई को बहन पर गुस्सा आ जाता है. किशोर भाईबहनों में कुछ बातें हैं जिन के चलते भाई को बहन पर गुस्सा आता है.

परीक्षा की तैयारी में लापरवाही

अकसर लड़कियां पढ़ाई में लापरवाही करती हैं. सालभर तो वे सहेलियों के साथ मौजमस्ती करती रहती हैं और जब परीक्षा आने वाली होती है तो वे किताब उठाती हैं. ऐसे में पूरा कोर्स याद कर पाने में उन्हें परेशानी होती है और वे सिर पकड़ कर बैठ जाती हैं.

ऐसे में जब वे भाई से हैल्प करने को कहती हैं तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है. रश्मि की बोर्ड की परीक्षा थी. उस का भाई रमेश हमेशा उस से कहता रहता कि पढ़ ले, लेकिन रश्मि एक कान से सुनती, दूसरे से बाहर निकाल देती. यही नहीं वह भाई को कहती तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. मैं तो पास हो ही जाऊंगी.

परीक्षा में जब एक महीना बचा तो रश्मि भाई के पास साइंस की किताब ले कर आई और बोली, ‘‘भैया, बस तुम मुझे साइंस के कुछ चैप्टर्स समझा दो. मेरी समझ में नहीं आ रहे हैं.’’

इतना सुनना था कि रमेश का पारा चढ़ गया.  उस ने न केवल उस की किताब दूर फेंक दी बल्कि एक चांटा भी मार दिया.

ये भी पढ़ें- कब बोरिंग होती है मैरिड लाइफ

मिसबिहेव करना

ज्यादातर लड़कियां अपनी ईगो में रहती हैं. कब, कहां और किस से कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस का उन्हें ध्यान नहीं रहता. कुछ तो इतनी बिगड़ी होती हैं कि घर आए मेहमानों से भी बदतमीजी से पेश आती हैं. ऐसी लड़कियों को देख कर ऐसा लगता है जैसे उन के मातापिता ने उन्हें तमीज सिखाई ही नहीं.

मोनिका भी कुछ इसी तरह के स्वभाव की लड़की थी. अपनी सहलियों के साथ तो वह मिसबिहेव करती ही थी अपने कजिंस के साथ भी उस का व्यवहार ठीक नहीं था. बातबात में उन की खिंचाई करना उस की आदत थी. छोटीछोटी चीजों के लिए पेरैंट्स से जिद करती थी.

मोनिका का भाई दिनकर जो उस से 4 साल बड़ा था, उसे हमेशा समझाता कि वह अपनी यह आदत छोड़ दे, पर वह भाई से भी लड़ जाती और कहती कि तू कौन होता है मुझे तमीज सिखाने वाला.

एक दिन तो मोनिका ने हद ही पार कर दी. घर में चाचाजी आए हुए थे. उन्होंने मोनिका से बड़े प्यार से कहा कि बेटी, गरमियों की छुट्टियों में हमारे घर मम्मीपापा के साथ जरूर आना. मोनिका ने चाचाजी को टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘चाचाजी, आप के घर एसी तो है नहीं, मैं एसी के बिना एक पल भी नहीं रह सकती इसलिए मैं आप के घर नहीं आऊंगी.’’

ऐसा मुंहफट जवाब सुन कर चाचाजी का मुंह उतर गया. उन्हें देख कर ऐसा लगा कि उन्हें मोनिका का व्यवहार पसंद नहीं आया. चाचाजी के जाने के बाद दिनकर ने मोनिका की जम कर क्लास ली. मम्मीपापा ने भी उसे बहुत फटकारा. दिनकर ने तो उस से बात तक करनी छोड़ दी.

लेटनाइट पार्टी में जाने की जिद

कोई भी भाई यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की बहन अपने फ्रैंड्स के साथ लेटनाइट पार्टी में जाए. अगर कोई बहन लेटनाइट पार्टी में जाने की जिद करती है तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है. आज जमाना कितना खराब है. लेटनाइट पार्टी में जाना बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है. इन पार्टियों में अकसर फ्रैंड्स लड़कियों को नशीला पदार्थ खिला कर मनमानी कर सकते हैं. देर से आने पर रास्ते भर डर भी बना रहता है.

लेकिन कुछ लड़िकयां अपनेआप को इतना बोल्ड समझती हैं कि वे लेटनाइट पार्टी में जाने के लिए अपने मातापिता व भाई से लड़ जाती हैं. डेजी भी इसी तरह की बोल्ड लड़की थी. एक दिन वह भाई के  मना करने पर भी अपने बौयफ्रैंड और उस के दोस्तों के साथ डिस्कोथैक चली गई. वहां उस के साथ जो हुआ वह भूल नहीं पाती. जब वह घर आई तो रोरो कर उस ने सारा किस्सा घर वालों को सुनाया.

ऐसे में भाई को डेजी पर बहुत गुस्सा आया. कितना मना किया था वहां जाने को. डेजी ने भाई से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘भैया, अब यह गलती कभी नहीं करूंगी.’’ भाई ने डेजी को माफ तो कर दिया लेकिन जो हादसा हो गया वह कैसे रिवर्स होता. लड़कियां जब ऐसी हरकत करती हैं तो भाई को गुस्सा आता है, क्योंकि वह बहन की बदनामी बरदाश्त नहीं कर सकता.

व्हाट्सऐप, फेसबुक पर दोस्ती

लड़कियों को व्हाट्सऐप औैर फेसबुक का चसका लग गया है. वे अपने सारे काम छोड़ कर चैटिंग में लगी रहती हैं. वे अनजान लोगों से भी चैट करती हैं. कभीकभी यह चैट दोस्ती में बदल जाती है, पर लड़कियों को इस बात का ध्यान नहीं रहता कि वे जिस से फ्रैंडशिप कर रही हैं, उस का पताठिकाना क्या है, क्योंकि अकसर लड़के बहुत सी बातें गुप्त रखते हैं या गलत जानकारी दे कर लड़कियों को इंप्रैस करते हैं.

वनीता को भी चैटिंग का शौक लग गया था. उस का भाई अकसर उसे टोक कर पूछता कि वह इतनी देरदेर तक किस से चैटिंग करती है? तो वह कोई न कोई बहाना बना देती कि वह किसी सहेली से पढ़ाई के बारे में चैट कर रही थी. एक दिन वनीता का मोबाइल उस के भाई के हाथ लग गया. मोबाइल पर किसी लड़के ने उसे बहुत गंदे मैसेज भेज रखे थे. भाई को वनीता पर बहुत गुस्सा आया और उस ने उस का मोबाइल तोड़ दिया.

ये भी पढ़ें- जिए तो जिए कैसे संग आपके

ऊटपटांग फैशन करना

हर भाईर् चाहता है कि उस की बहन अच्छे कपड़े पहने और जहां भी जाए लोग उस की ड्रैस सैंस की तारीफ करें पर आज लड़कियां ऊटपटांग फैशन करने लगी हैं. वे ऐसे कपड़े पहनती हैं जिन में उस का पूरा शरीर झलकता है. ऐसे में मनचले उन पर फबतियां कसें तो कोई भाई बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगा इसलिए भी भाईबहन में अकसर तकरार हो जाती है.

अकसर लड़कियों को अपने भाइयों से यह भी शिकायत रहती है कि वे उन की निजी जिंदगी में दखलंदाजी करते हैं और उन्हें अपनी मरजी से जीने नहीं देते, पर इस के पीछे भाई की जो मानसिकता होती है उस का अंदाजा शायद वे नहीं लगा पातीं. हर भाई को अपनी बहन से प्यार होता है और जब बहन उस की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है.

बहनों को भी चाहिए कि वे मर्यादा में रहें. भाईबहन के रिश्ते को अच्छी तरह निभाएं. ऐसा कोई काम न करें, जिस से भाई को गुस्सा आए और परिवार की बदनामी हो.

इकलौते लड़के से शादी

जैसे ही किसी की बेटी की शादी इकलौते लड़के से तय होती है, त्योंही उसे सुखसमृद्धि की गारंटी मान लिया जाता है. एक दंपती ने जब अपनी बेटी की शादी के कार्ड बांटे तो हर किसी से अपनी बेटी के ससुराल में लड़के के इकलौते होने की चर्चा जरूर की. एक संबंधी ने कहा कि तब तो उन के यहां हमारे घर जैसी रौनक नहीं होगी. हमारे यहां तो मामूली अवसर पर भी इतने लोग इकट्ठा हो जाते हैं कि घर में उत्सव जैसा माहौल बन जाता है. फिर भी वे इकलौते लड़के के गुण गाते रहे तो उस रिश्तेदार ने आक्रोश में कहा कि अगर इतना ही इकलौतेपन का क्रेज है तो अपने बेटे को भी इकलौता रहने दिया होता. तब किसी और परिवार को भी आप के इस सुख जैसा सुख मिलता.

सब कुछ इस का है

अकसर शादी की बात चलते ही लड़की वाले इसी बात को अहमियत देते हैं और लड़के वाले भी पसंद की जगह बात बनाने के लिए इस बात का सहारा लेते हैं. भले ही यह बात सच है पर इस तरह की अपेक्षा पालना अकसर अनाधिकार चेष्टा को जन्म देता है. शैलेंद्र व सीता दंपती ने जब एक ट्रस्ट बनाया तो सब दंग थे. लेकिन उन्होंने बेटे को ट्रस्टी न बनाया तो उस ने रिश्तेदारों पर अपने मातापिता को समझाने का दबाव बनाया. तब मातापिता की बातों से स्पष्ट हुआ कि बेटाबहू तो सब कुछ उन का है यह मान कर बैठे हैं. इन की कमाई बहुत है फिर भी ये हारीबीमारी तक में नहीं पूछते. पता नहीं हमारे पालनपोषण में कहां कमी रह गई. हम अपना पूरा पैसा गरीबों की शिक्षा व संस्कार पर खर्चेंगे. खैर, समय रहते बेटाबहू सुधरे तो मांबाप ने अपनी वसीयत थोड़ी बदली. उन्होंने बेटाबहू के लिए गुंजाइश निकाली, लेकिन ट्रस्ट वाला मुद्दा नहीं बदला.

सब कुछ अपना मान लेने की मानसिकता फर्ज अदायगी में बाधक है. कुमार अच्छा कमाने के बावजूद जबतब मांबाप से मोटी रकम वसूलते रहते हैं. कुछ कहने पर कहते हैं कि आगे लूं या पीछे, इस से क्या फर्क पड़ता है. सब कुछ तो मेरा ही है. मांबाप को यह पसंद नहीं. उन्होंने अब दूसरी तरह सोचना शुरू कर दिया है.

ये भी पढ़ें- जब अजीब हो सैक्सुअल व्यवहार

लड़की वाले हावी

ज्यादातर परिवारों में लड़के का छोटा परिवार होने के कारण लड़की के पीहर वाले हावी हो जाते हैं. इन के यहां है ही कौन हम ही तो हैं, यही सोचते हैं वे. ऐसी स्थितियां लड़की की ससुराल में उत्साह भंग करने वाली होती है. कुसुम को बारबार सुनना पड़ता है कि हमारे घर में उसी के घर वाले नजर आते हैं. कोई मौका हो तो पूरी फौज हाजिर हो जाती है. कुसुम ने पीहर वालों को जब ताकीद कराया कि बुलाने का मतलब यह नहीं कि उन के यहां अड्डा ही जमा लिया जाए तो कहीं बात बनी. बहुत से इकलौते लड़के के मांबाप बड़े परिवार में रिश्ता कर के खुश होते हैं. उन की इच्छा रहती है कि वकत पर वे लोग उन के पास आएंजाएं. क्योंकि छोटे परिवार की कमी वे  देख चुके होते हैं. फिर भी उन के यहां डेरा जमाना कुछ लड़की वालों को नहीं जंचता. उन्हें लगता है कि लड़के वालों की पहल तथा इच्छा से उन के यहां आनाजाना अच्छा व सम्मानजनक रहता है. साथ ही बेटी या बहन को ताने या चुहलबाजी का सामना नहीं करना पड़ता.

उस पर अगर इकलौता लड़का अपनी ससुराल से ज्यादा जुड़ जाता है तो उसे अपने करीबी लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं. विजय के चचेरे भाईबहन उसे इसीलिए खरीखोटी सुनाते हैं, ‘यार अब हम हैं ही क्या? अब तो तुम्हें सिर्फ ससुराल वाले ही दिखते हैं.’ विजय को पत्नी पर गुस्सा आता है. पत्नी को पीहर वालों पर.

इकलौते नहीं रहे

एक दंपती ने इकलौते बेटे की सगाई करते ही उस से कह दिया कि अब उन्हें एक बेटी भी मिल गई है. अब वह अपनेआप को इकलौता न समझे. ये दंपती कहते हैं कि ऐसा उन्होंने बेटे की मानसिकता को ध्यान में रख कर किया. वह किसी और बच्चे को हमारी गोद में बैठा देख कर उसे मारता, रुलाता था. उस की चीजें तोड़फोड़ देता था. हम ने इस का इलाज भी कराया, फिर भी उस में वह भावना कुछ बची हुई है. एक दंपती कहते हैं कि हमारा बेटा ऐसी मनोवृत्ति का शिकार है कि उसे हमारा उसी के बेटाबेटी से प्यार करना अच्छा नहीं लगता. हम उसे कैसे ठीक करें, यह समझ में नहीं आ रहा. उसे समझाना आसान नहीं. हमारे घर में बातबात पर कलह आम बात है.

केयरिंग शेयरिंग की आदत नहीं

अकेले लड़के से शादी करना मखमली या फूल जैसी नहीं, बल्कि चुनौतीपूर्ण है. एक तो ऐसे लड़के वैसे ही नाजों से पाले जाते हैं, उस पर इकलौते लड़कों की तो बात ही क्या है. चूंकि उन्हीं की केयर ज्यादा की जाती है, इसलिए वे दूसरों की केयर करने में उतने उत्सुक या जागरूक नहीं होते. चूंकि उन्हें सब कुछ बहुतायत में मिलता है, इसलिए शेयर करने की आदत उन में नहीं आती. इसीलिए पत्नी के रूप में ही सही, उन की ही इच्छा से कोई उन के जीवन में प्रवेश करता है, तो भी वे उतने मन से उस का स्वागत नहीं कर पाते. ऐसे व्यक्ति के जीवन में स्पेस बनाना पत्नी के लिए चुनौती होता है. एक इकलौते व्यक्ति की पत्नी बताती है कि इन्हें तो रात के अलावा मेरा कमरे में रहना तक पसंद नहीं. बस इन का मन या गरज हो तभी. भावनाओं की कद्र करना तो आता ही नहीं इन्हें. ये तो लोगों को वस्तु समझते हैं.

ऐसी ही एक और इकलौती बहू कहती है कि मैं भरेपूरे परिवार से आई और यहां एकदम अकेली पड़ गई. इन्हें ही क्या, इन के मातापिता तक को मेरा किसी से शेयर करना अच्छा नहीं लगता. किसी से बोलनाबतियाना उन्हें मुंह लगाना लगता है, लेनादेना आफत मोल लेना तथा रिश्तों की कद्र करना लिफ्ट देना. मैं ने साफ कहा कि हम अपनेअपने अंदाज से जीएं. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी कोई सोच है. इन्हें यह सब अच्छा तो नहीं लगता पर सहन करना सीख गए हैं.

ये भी पढ़ें- 40 पार की तैयारी करने के 5 टिप्स

हर इकलौता एक सा नहीं

गुड्डू भरेपूरे ससुराल को पा कर खुश है. वह मानता है कि उस के ससुराल वालों ने उस के जीवन की कमी को पूरा किया है. अपनी सालियों और पत्नी के चचेरेममेरे भाइयों तक को अपने परिवार का हिस्सा मानता है. उन से मिलने के लिए पार्टी के बहाने ढूंढ़ता है. सब उसे जीजूभाई, जीजूदादा, जीजूचाचा, जीजूमामा आदि कह कर खूब लाड़ करते हैं. उस की पत्नी इसे बावलापन समझती है. उस के सासससुर कहते हैं कि गुड्डू शुरू से ही मिलनसार है. इस ने कभी अकेला होना नहीं चाहा. बचपन में जब भी अस्पताल के सामने से निकलता, हम पर जोर देता कि जाओ, मेरे लिए खूब सारे भाईबहन ले कर आओ. हम से बारबार अकेलेपन का दुख कहता. हम ने अन्य संतानों की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली. हमें तो पछतावा है. हम ने किसी अनाथ लड़की को गोद ले लिया होता. गुड्डू की जिंदगी में इकलौतापन मजबूरीवश आया. वह मन से इकलौता नहीं है.

इकलौतेपन को लौटरी न मान कर सहज भाव से लिया जाए. सब कुछ अपना मान कर चलना दुख बढ़ाता है. अधिकार के साथसाथ कर्तव्य भाव जिम्मेदार बनाता है. इकलौते लड़केलड़की की शादी देखने में भले अच्छी लगे पर कांटों भरे ताज जैसी होती है. क्योंकि उन्हें सहज रिश्तों में भी एकदूसरे तथा एकदूसरे के परिवारों की उपेक्षा का भाव अनुभव होता है. लड़की को इकलौते लड़के से शादी कर के केवल पत्नी बन कर ही नहीं रहना पड़ता, बल्कि उस की मां, बहन, रिश्तेदार, दोस्त व सहेली सब कुछ बन कर रहने का दायित्व भी वहन करना पड़ता है. इकलौते लड़के के नखरे भी उठाने पड़ सकते हैं. उस के मूड के अनुसार चलना पड़ सकता है. उस की इच्छाओं के आगे झुकना पड़ सकता है. पत्नी बन कर हम उस पर कब्जा नहीं जमा सकते. उस के स्वेच्छाचारी मन को जीतने के लिए कुछ खास जतन करने के लिए भी अपनेआप को तैयार करना पड़ सकता है. तभी इकलौते लड़के से शादी अच्छी तरह चल व निभ सकती है.

ये भी पढ़ें- घरवालों की ढूंढी पत्नी, पति को जब नापसंद

40 पार की तैयारी करने के 5 टिप्स

40 की उम्र निकलते ही महिलाओं में अकेलेपन की समस्या घर करने लगती है कामकाजी की अपेक्षा होममेकर महिलाओं में यह समस्या अधिक देखी जाती है क्योंकि जब बच्चे छोटे होते हैं तो घर के कार्यों और बच्चों के पालन पोषण के कारण इन्हें सिर तक उठाने का अवसर नहीं मिलता परन्तु अब तक अधिकतर परिवारों में बच्चे पढने के लिए बाहर चले जाते हैं और यदि नहीं भी जाते हैं तो 18-20 की उम्र में उनकी अपनी ही दुनिया हो जाती है जिसमें वे व्यस्त रहते हैं. बच्चों की परवरिश में हरदम व्यस्त रहने वाली मां की उम्र भी अब तक 40 पार हो जाती है. पति अपने व्यवसाय या नौकरी में ही मसरूफ रहते हैं और बच्चे अपनी पढाई, दोस्तों और कैरियर में. वर्तमान समय में घरेलू कार्यों के लिए भी हर घर में मेड और मशीनें मौजूद हैं. जिससे घरेलू कार्यों में लगने वाला समय भी बहुत कम हो गया है. इन्हीं सब कारणों से जीवन के इस पड़ाव में महिलाओं के जीवन में रिक्तता आना प्रारंभ हो जाती है यदि समय रहते इस रिक्तता का इलाज नहीं किया जाता तो कई बार यह काफी गंभीर समस्या बन जाती है. घर में बच्चों के न होने से महिलाओं की व्यस्त दिनचर्या में अचानक विराम लग जाता है और कई बार तो वे स्वयं को घर का सबसे बेकार सदस्य समझने लगती हैं जिसकी किसी को भी आवश्यकता नहीं है. परंतु इस समस्या से निपटने का उपाय भी महिलाओं के स्वयं के हाथ में ही है. जैसे ही बच्चे कुछ बड़े होने लगें तो प्रत्येक महिला को यह कटु सत्य स्वीकार कर लेना चाहिए कि एक न एक दिन बच्चे अपनी दुनियां में व्यस्त हो जाएगें. जिस प्रकार कामकाजी महिलाओं को रिटायरमेंट के बाद सक्रिय रहने के लिए किसी गतिविधि में व्यस्त रहना आवश्यक है उसी प्रकार आज प्रत्येक महिला को चाहे वह कामकाजी हो या घरेलू, स्वयं को व्यस्त रखने के उपाय खोज लेने चाहिए ताकि बच्चों के बाद जीवन में आयी रिक्तता से स्वयं को दूर रखकर खुशहाल और स्वस्थ जीवन व्यतीत किया जा सके.

अक्सर महिलाओं को यह कहते सुना जाता है कि करना तो मैं भी कुछ चाहती हूं परंतु क्या करूं यह समझ नहीं आता. मेरी क्यूरी कहती हैं कि, ‘‘हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि हमारे अंदर भी कोई न कोई हुनर छुपा है जिसे खोजना अनिवार्य है.’’यह सही है कि छोटे बच्चों के पालन पोषण की व्यस्तता में स्वयं के लिए थोड़ा सा भी वक्त निकालना काफी चुनौतीभरा कार्य होता है परंतु जहां चाह वहां राह वाले सिद्धांत पर अमल करें और जब भी वक्त मिले अपनी जिजीविषा को कायम रखें और जब आवश्यकता हो तो अपने इस हुनर को बाहर लाएं. वर्तमान में परिवार का स्वरूप एक या दो बच्चों तक ही सीमित हो गया है इसलिए अपने बच्चों के लिए माताएं बहुत अधिक पजेसिव हैं. उनका प्रत्येक छोटा बड़ा कार्य करके वे उन्हें पंगु तो बनाती ही हैं स्वयं भी पूरे समय व्यस्त रहती हैं इसकी अपेक्षा बच्चों को प्रारंभ से ही आत्मनिर्भरता का पाठ पढाएं, परिवार में कार्यों का विभाजन करें, आवश्यकतानुसार हेल्पर रखें ताकि आप अपने लिए भी चंद लम्हे निकाल सकें. यह आवश्यक नहीं है कि आप कोई भी कार्य धनार्जन के लिए ही करें बल्कि वह करें जिसमें आप खुशी महसूस कर सकें, अपने जीवन को जीवंत बना सकें, जिससे आप अपने जीवन के इस दूसरे दौर को पहले दौर से भी अधिक रोचक और आनंदकारी बना सकें.

1. रुचियों को जीवंत रखें

आमतौर पर विवाहोपरांत अपने घर प्ररिवार में महिलाएं इतनी अधिक व्यस्त हो जाती हैं कि वे अपनी रुचियां तो क्या अपने अस्तित्व तक को विस्मृत कर देती हैं. जीवन का भले ही कोई भी दौर क्यों न हो, सिलाई, कढ़ाई, रीडिंग, लेखन या कुकिंग जैसी अपनी रुचियों का परित्याग कदापि न करें क्योंकि वही तो आपका अस्तित्व और वजूद है जो आपको दूसरों से पृथक करता है. जब भी समय मिले कुछ न कुछ अंशों में अपनी हॉबी को कायम अवश्य रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उसमें स्वयं को व्यस्त रख सकें यदि आप अपनी हॉबी पर काम नहीं करेंगी तो जीवन के एक पड़ाव पर खुद को अकेलेपन से घेर लेंगी.

ये भी पढ़ें- घरवालों की ढूंढी पत्नी, पति को जब नापसंद

2. सीखना जारी रखें

एक से ढर्रे पर चलते चलते जीवन में बोरियत सी आने लगती है. सीखने की कोई उम्र नहीं होती लियोनार्डो द विंची कहते हैं कि ‘‘सीखने की प्रवृत्ति से मस्तिष्क कभी थकता नही है तथा जीवन उत्साह से परिपूर्ण रहता है.’’ अपनी रूटीन दिनचर्या से कुछ समय अपने लिए निकालकर अपनी रूचि के कार्य को अपडेट करने और जीवन में जीवन्तता बनाये रखने के लिए हमेशा कुछ नया सीखती अवश्य रहें ताकि जीवन में सदैव उत्साहजनक तरंगों का संचार होता रहे.

3. पति की सहभागी बनें

पति की सहयोगी बनना आपके लिए व्यस्त रहने का सर्वोत्तम उपाय है. कई बार जब पति अपने व्यवसाय या नौकरी के बारे में पत्नी को बताना चाहते हैं तो पत्नियां ‘‘तुम्हारी तुम जानो’’ कहकर पति की आफिसियल या व्यवसायिक बातों से पल्ला झाड़ लेतीं हैं इसकी अपेक्षा आप प्रारंभ से ही उनके काम में हाथ बटाएं, उन्हें रुचिपूर्वक सुनें आवश्यकता पड़ने पर  अपनी राय भी दें इससे आप स्वयं तो अपडेट रहेंगी ही पति भी आपके महत्व से अवगत रहेंगे. साथ ही आगे चलकर जब आपके बच्चे बड़े हो जाएँ तो आप उनके कार्य में भी अपना भरपूर योगदान दे सकेंगीं.

4. सक्रिय और सकारात्मक रहें

एक निश्चित समय के बाद रहना अकेले ही है इस कटु सत्य को स्वीकार कर अपने को व्यस्त रखने के उपाय खोजने में ही बुद्धिमानी है. नकारात्मकता जहां आपके जीवन को निष्क्रिय कर देती है, जीवन को तनाव और अवसाद जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर देती है वहीं सकारात्मकता जीवन में सक्रियता का संचार कर जीवन को उत्साह से सराबोर कर देती है इसलिए सदैव पाजिटिव और सक्रिय रहें.

5. स्वयं पर ध्यान दें

इस उम्र में अपने जीवन मे योगा, व्यायाम और टहलने को प्राथमिकता दें ताकि आप शरीर और मन से स्वस्थ रह सकें. जीवन की समस्यायों और अकेलेपन का रोना रोते रहने की अपेक्षा कुछ अपने मन का करें अपने व्यक्तित्व को निखारने का भी प्रयास करें. योग, व्यायाम और वाकिंग से स्वयं को फिट रखने के साथ साथ ब्यूटी पार्लर जाकर अपने सौन्दर्य में भी चार चांद लगाएं अब तक जो भी करने की इच्छा आपके मन में रह गयी है उस सबको पूरा करने का वक्त है यह, अतः अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति करें.

ये भी पढ़ें- 11 टिप्स: रिलेशनशप बनाएं बेहतर

5 बातें रिजैक्ट कर देतीं Proposal

जब प्रपोज करने पर हमेशा नाकामयाबी ही मिलती हो तो दिल टूट जाता है. समझ नहीं आता कि आखिर हम में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो हमारा प्यार अधूरा रह गया. इस स्थिति में आप के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि पार्टनर ने आप को क्यों न कहा आइए, जानते हैं इस संबंध में:

ऐटिट्यूड भरा प्रोपोजल

भले ही आप ने अपने क्रश को प्रपोज तो कर दिया, लेकिन वह प्रोपोजल आप का ऐटिट्यूड से भरा हुआ हो, तो हमेशा आप को न ही सुनने को मिलेगी क्योंकि आप जिसे भी प्रपोज करें वह नहीं चाहेगा कि जिस से वह संबंध जोड़ने जा रहा, उस में ऐटिट्यूड हो. फिर चाहे आप कितनी भी गुड लुकिंग क्यों न हों.

आप के प्रोपोजल को न करने पर मजबूर कर ही देगा क्योंकि जिस में अभी इतना ऐटिट्यूड है आगे कितना होगा, कहा नहीं जा सकता. इसीलिए आप को हमेशा अपने क्रश को प्रपोज करने में असफलता मिलती है.

टिप: जब भी आप अपने पार्टनर को प्रपोज करने जाएं तो आप के प्रोपोजल का तरीका बहुत ही सौफ्ट व उसे आकर्षित करने वाला होना चाहिए न कि रोब व ऐटिट्टूड से भरा हुआ हो.

आप का गुड लुकिंग नहीं होना

हो सकता है कि आप जब भी अपने क्रश को प्रपोज करते हों, तो आप को न ही सुनने को मिलता हो. ऐसा इसलिए क्योंकि आप उसे प्रपोज करने तो पहुंच गए, लेकिन अपने हुलिए पर जरा ध्यान नहीं दिया. ऐसे में आप के क्रश से आप को न ही सुनने को मिलेगी, क्योंकि कोई भी लड़की यह नहीं चाहेगी कि उस का पार्टनर दिखने में अच्छा न हो, क्योंकि कहते हैं न कि बातों का इफैक्ट लोगों पर बाद में पड़ता है पहले तो चेहरा ही वर्क करता है. ऐसे में प्रपोज करने से पहले अपने हुलिए पर ध्यान जरूर दें.

ये भी पढ़ें- पत्नी की कमाई पर हक किस का

टिप: भले ही आप को टिपटौप रहने का शौक न हो, लेकिन जब आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हों तो खुद को टिपटौप बना कर ही जाएं ताकि लड़की की नजर में आप पहली बार ही बस जाएं और वह आप के प्रोपोजल को न न कर पाए. गुड लुकिंग, हैंडसम बौय की चाह हर लड़की को होती है.

इशारों के बाद प्रपोज करना

कुछ लड़कों की यह आदत होती है कि वे जिसे पसंद करते हैं उसे इशारों से अपने मन का हाल बताने की कोशिश करते हैं, जबकि लड़कियां ऐसे लड़कों से दूरी बनाने में ही समझदारी समझती हैं, क्योंकि ऐसे लड़के उन्हें नियत के सही नहीं लगते. उन्हें लगता है कि जो अभी ऐसी हरकत कर रहा है वह आगे किस हद तक चला जाएगा, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में वे उस के प्रपोज करते ही उसे साफ इनकार कर देती हैं.

टिप: जिस पर भी आप का क्रश है और आप उसे प्रपोज करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि आप भले ही उसे छिपछिप कर देखें, लेकिन उसे इशारे न करें. जब भी उसे प्रपोज करें तो आप की आंखों में उस के लिए प्यार दिखे न कि एक अजीब सी शरारत.

शो औफ कर के प्रपोज करना

अगर आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हैं और उसे अपने पैसों का रुतबा दिखा कर प्रपोज कर रहे हैं तो यकीन मानिए आप को न ही सुनने को मिलेगी, क्योंकि जो शुरुआत में ही इतना दिखावा कर रहा है वह आगे भी अपने पैसों के बल पर मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करेगा, ऐसा सोच कर लड़की आप के गुड लुकिंग होते हुए भी आप को न करने में ही समझदारी समझेगी.

टिप: जब प्रपोज करने के लिए जाएं तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आप की पर्सनैलिटी व आप के प्रपोज करने के अंदाज में पैसों का दिखावा जरा भी न हो.

ज्यादा स्मार्ट बनना

कुछ लड़कों की यह आदत होती है कि वे लड़कियों के सामने खुद को जरूरत से ज्यादा स्मार्ट दिखाने की कोशिश करते हैं. इसी चक्कर में जब वे अपने क्रश को अपना बनाने के बारे में सोचते हैं तब उन की यह स्मार्टनैस उन के रिजैक्शन के रूप में सामने आती है, क्योंकि कोई भी लड़की जरूरत से ज्यादा स्मार्ट बनने वाले लड़के को पसंद नहीं करना चाहती. ऐसे में बस वे यही सोचते रह जाते हैं कि लड़की ने उन्हें रिजैक्ट क्यों किया, जबकि उन्होंने तो उन्हें पहल कर के पहले प्रपोज किया.

टिप: ओवर स्मार्टनैस को एक तरफ रख कर कूल डाउन हो कर इस अंदाज में प्रपोज करें कि आप का क्रश आप को हां कहे बिना न रह सके.

ये भी पढ़ें- दीवानगी जब हद से जाए गुजर

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें