बच्चों को आत्मनिर्भर बनाएंगी ये 5 बातें

जिस तरह गीली मिट्टी को किसी भी आकार में ढाल कर खूबसूरत बरतन में बदला जा सकता है, ठीक उसी तरह बच्चों में अगर शुरुआत से ही अच्छी आदतें पैदा की जाएं तो वे बड़े हो कर अच्छे नागरिक बनते हैं और ये आदतें उन में जीवन भर बनी रहती हैं. आज की प्रतिस्पर्धी दुनिया में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता बेहद जरूरी है जो व्यक्ति को जीवन के हर संघर्ष का सामना करने के लिए तैयार करती है. अगर बच्चों में ये गुण कम उग्र से ही विकसित हो जाएं तो ये जीवन भर उन के साथ बने रहते हैं.

बच्चों में आत्मनिर्भरता की भावना विकसित करने के लिए उन के आसपास का माहौल ऐसा होना चाहिए. जिस से उन में आत्मविश्वास पैदा हो. बच्चों के व्यवहार और व्यक्तित्व पर उन के मातापिता, अध्यापकों और साथियों का गहरा असर पड़ता है. जिस बच्चे को सहयोग, सराहना, प्रोत्साहन और सही मार्गदर्शन मिलता है वह आगे चल कर एक अच्छे व्यक्ति के रूप में विकसित होता है, उस में आत्मसम्मान की भावना होती है.

आत्मनिर्भर बनने के लिए जरूरी है कि अपने फैसलों पर भरोसा रखें और इन फैसलों के परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें. एक व्यक्ति जीवन की सभी मुश्किलों का सामना आसानी से कर सकता है बशर्ते उस में आत्मविश्वास हो. बच्चों में इस तरह का आत्मविश्वास पैदा करना मुश्किल है, लेकिन यह बहुत जरूरी है क्योंकि इसी से तय होता है कि बच्चे आगे कैसे व्यक्ति के रूप में उभरेंगे.

1. उदाहरण दे कर समझएं

मातापिता ही बच्चों की सब से बड़ी ताकत होते हैं. बच्चे अकसर हर स्थिति में अपने मातापिता जैसा व्यवहार करने की कोशिश करते हैं. इसीलिए अगर मातापिता में आत्मविश्वास है तो बच्चों में आत्मविश्वास की भावना स्वाभाविक रूप से आ जाती है. वे मातापिता जो अपने बच्चों के साथ डांटडपट करते हैं या छोटी सी बात के लिए भी उन की पिटाई तक कर देते हैं, वे न केवल बच्चों के लिए बुरा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं बल्कि अपने खुद के आत्मसम्मान को भी नुकसान पहुंचाते हैं.

शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से पीडि़त बच्चे आत्मसम्मान की भावना खो देते हैं. इसलिए मातापिता को ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि बच्चा गलत व्यवहार या मारपिटाई के बिना ही अपनी गलती को समझ जाए.

ऐसा व्यवहार करें जिस से बच्चे में अच्छी आदतें पैदा हों. आप अपने अच्छे व्यवहार से बच्चों के लिए रोल मौडल बनें. इस से उन में खुदबखुद आत्मविश्वास पैदा होगा. धीरेधीरे वे आत्मनिर्भर बनने लगेंगे. सुनिश्चित करें कि बच्चों में ओवर कौन्फिडैंस यानी जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास न हो.

2. ध्यान रखें कि आत्मविश्वास अहंकार न बने

आत्मविश्वास जरूरी है, लेकिन बच्चे की इतनी ज्यादा सराहना भी न करें कि आत्मविश्वास अहंकार बन जाए. अच्छे व्यवहार की सराहना करना जरूरी है, मगर बिना कारण सराहना करने से बच्चे में अनावश्यक अहंकार पैदा होता है. अगर बच्चे ने वास्तव में अच्छा प्रयास किया है तो उस की सराहना करनी चाहिए और अगर वह किसी काम में असफल होता है तो अनावश्यक प्रशंसा न करें.

यह समझना जरूरी है कि हमेशा हर चीज एकदम परफैक्ट नहीं हो सकती. आप के बच्चे को मेहनत, कोशिश का महत्त्व पता होना चाहिए. लेकिन उसे यह बात भी समझनी चाहिए कि कभीकभी आप बहुत कोशिश के बाद भी कामयाब नहीं हो पाते. ऐसी स्थिति में हार मानने के बजाय आगे बढ़ें और कोशिश करना जारी रखें.

ऐसे व्यवहार से बच्चा यह समझ जाएगा कि उस के मातापिता हर स्थिति में उसे चाहते हैं और तभी वह आप की हर सलाह पर भरोसा करेगा, घर के नियमों का पालन करेगा. प्यार से ही आत्मविश्वास की नींव तैयार होती है. आप के बच्चे को यह पता होना चाहिए कि आप उसे हमेशा प्यार करते हैं, फिर चाहे वह पढ़ाई, खेलों या अन्य गतिविधियों में कैसी भी परफौर्मैंस दे. बच्चों को सिखाएं कि उन्हें हमेशा कामयाबी पाने के लिए कोशिश करनी है, लेकिन असफल होने पर कभी निराश नहीं होना है.

3. उन की उत्सुकता को दबाएं नहीं

बच्चों में हर चीज को जानने की इच्छा, जिज्ञासा होती है, उन में अनूठा रोमांच होता है. कई बार यह मातापिता के लिए सिरदर्द का कारण बन जाता है. लेकिन बच्चों के उत्साह को दबाने के बजाय मातापिता को इसे हैंडल करना आना चाहिए.

बच्चों की ऐनर्जी को सही दिशा में लगाएं. मातापिता को बच्चों पर चौबीसों घंटे निगरानी रखनी होती है खासतौर पर तब जब वे बहुत छोटे होते हैं.

लेकिन उन्हें आजादी भी मिलनी चाहिए ताकि वे अपनी पसंदनापसंद, अच्छेबुरे के बारे में सीख सकें. जब आप उन्हें खुद दुनिया को जानने का मौका देते हैं, तो उन में आत्मविश्वास पैदा होता है खासतौर पर तब जब उन्हें पता हो कि आप हर समय उन की मदद के लिए उन के साथ हैं.

4. बच्चों को आजादी देना

बच्चों को आजादी देने से पहले उन के लिए कुछ नियम तय कर दें. लेकिन ध्यान रखें कि ये नियम उचित हों जो उन की आजादी में बेवजह रुकावट पैदा न करें. अगर बच्चों को पता है कि आप उन से क्या उम्मीद करते हैं तो उन में बेहतर आत्मविश्वास होता है.

ऐसी स्थिति में अगर आप के बच्चे को अपने दोस्तों और साथियों के बीच कोई फैसला लेना है, तो वह इस बात को समझेगा कि उसे क्या करना है और क्या नहीं. ऐसे में वह सहज हो कर सही फैसला ले सकेगा.

हर व्यक्ति हमेशा सफल नहीं हो सकता, जीवन में हम गलतियों से ही सीखते हैं. आप सफलता और असफलता का मुकाबला कैसे करते हैं, उसी से आप में आत्मविश्वास पैदा होता है. बच्चे हर चीज को दिल से लगाते हैं. इसलिए अभिभावक होने के नाते आप का कर्तव्य है कि आप उन्हें समझएं कि असफलता से निराश नहीं होना है. लेकिन इसी के साथ उन्हें यह एहसास भी होना चाहिए कि उन्हें फिर से सफलता पाने के लिए कोशिश करनी है.

5. आत्मविश्वास सिखाना भी जरूरी

कोई भी मातापिता अपने बच्चों को पालने में गलतियां कर सकते हैं. हर स्थिति में आप की भूमिका तय नहीं होती, लेकिन बच्चों को सहानुभूति, दयालुता जैसे गुण सिखाने के साथसाथ आत्मविश्वास भी सिखाना जरूरी है. बच्चों को रिश्तों के उतारचढ़ाव के बारे में भी समझना चाहिए. अगर आप जिम्मेदार अभिभावक हैं तो आप बचपन से ही अपने बच्चों को आत्मनिर्भरता सिखाते हैं, जिस से आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के गुण जीवन भर उन के साथ बने रहते हैं.

बच्चों को जरूर सिखाएं ये 5 बातें

आवश्यकता से अधिक बच्चों को बांध कर रखना बच्चों के विकास के लिए हानिकारक हो सकता है. दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है और बच्चों को हमेशा दुनिया की परेशानियों से दूर ऐसी दुनिया में नहीं रख सकते जहां उन्हें हमेशा यह महसूस हो कि सब बहुत अच्छा है. हाल ही में गुजरात के एक हीरा व्यापारी ने अपने इकलौते बेटे को खुद अपने बल पर कुछ कमाने के लिए कहा. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की 15 वर्षीया बेटी का सीफूड रेस्तरां में काम करना इस बात का प्रमाण है कि जीवन में शिक्षा के साथ और भी बहुतकुछ महत्त्वपूर्ण है. कुछ तरीकों से आप अपने बच्चे को आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बना सकते हैं, जैसे–

1. उन्हें सिखाएं कि ‘न’ कैसे कहना है :

यह सुननेपढ़ने में आसान लगता है पर न कहना सीखना वाकई मुश्किल होता है. दुनिया अपने हिसाब से हमें चलाने की उम्मीद रखती है. ऐसे में न कहने के लिए काफी हिम्मत चाहिए. बच्चों को जल्दी ही न कहना सिखा देना उन्हें कई चीजों में मदद करता है. उन्हें सिखाएं कि जो तुम्हें पसंद नहीं आ रहा है उस के बारे में वे साफसाफ कहें. इस से उन का आत्मविश्वास बढ़ेगा, कोई उन्हें हलके में नहीं लेगा. अगर न कहना नहीं आएगा तो उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. वे तनाव नहीं झेल पाएंगे, झूठ बोल सकते हैं या किसी की भी बातों में फंस सकते हैं.

2. घर में कभीकभी अकेला छोड़ें :

बहुत सारे मातापिता को घर में बच्चों को अकेला छोड़ना मुश्किल लगेगा लेकिन सीसीटीवी कैमरा, आप के फोन कौल्स, पड़ोसी, इन सब सुरक्षाओं के साथ आप थोड़ा निश्चिंत हो सकते हैं. एक पेपर पर इमरजैंसी नंबर लिख कर रखें. बच्चों को गैस रैगुलेटर बंद करना सिखाएं. उन्हें फिनायल, कीटनाशक दवाओं या इस तरह की चीजों से दूर रखना सिखाएं. सब से जरूरी बात, उन्हें दरवाजा खोलने से पहले पीपहोल का प्रयोग करना सिखाएं.

10 वर्षीया बेटी की मां सरिता शर्मा कहती हैं, ‘‘कभीकभी बैंक या सब्जी या कुछ और खरीदने के लिए बेटी को घर में छोड़ कर जाना पड़ता है. इसलिए मैं ने उसे डिलीवरी बौयज या किसी अजनबी के लिए दरवाजा खोलने से मना किया हुआ है. दूसरा, यदि मैं घर पर नहीं हूं तो कोई लैंडलाइन पर फोन करता है तो उसे समझाया है कि वह यह कहे कि मम्मी व्यस्त हैं और बस, वह मैसेज ले ले. इस से बच्चे अपना समय ज्यादा अच्छी तरह बिताना सीख लेते हैं और अपनेआप ही उन्हें कई काम करने आ जाते हैं.’’

3. घूमने और अनुभव लेने दें :

चाहे कौमिक पढ़ना हो, मूवी देखना हो, कैंप में जाना हो या ट्रैकिंग के लिए जाना हो, उन्हें  मना न करें. उन से अपनी पसंद की पुस्तकें चुनने के लिए कहें. उन से दोस्तों के साथ समय बिताने दें. उन पर हमेशा हावी न रहें. उन्हें भविष्य में बड़े, महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे. 4 वर्षीय बेटे के पिता गौरव कपूर कहते हैं, ‘‘जब मेरा बेटा 7 साल का था तब से ही मैं उसे अपनी बिल्डिंग में नीचे ही सामान खरीदने भेज दिया करता था. उसे स्कूल एजुकेशनल ट्रिप पर भी भेजा करता था. वह अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा आत्मनिर्भर है और बातचीत करने में उस में बहुत आत्मविश्वास है.’’

4. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बारे में बताएं :

अंजू गोयल ने अपने 2 साल के बेटे का जन्मदिन अपने पति के साथ मुंबई में ‘बैस्ट’ बस में बिताया. वे कहती हैं, ‘‘जब भी हम बाहर जाते हैं, मेरा बेटा बस को बहुत शौक से देखता है. मैं ने सोचा अपने जन्मदिन पर वह बस में बैठ कर खुश होगा और वह बहुत खुश हुआ भी. जब वह और बड़ा होगा, मैं उस से पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करने के लिए ही कहूंगी.’’ भले ही आप अपने बच्चे को कार का आराम देना चाहें, उन्हें पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बारे में बताना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. सामान्य ट्रैफिक नियम बताएं, सड़क के शिष्टाचार सिखाएं.

5. यदि ऐसा हो तो :

जीवन में कई स्थितियों में अपने बच्चों को ऐक्सिडैंटप्रूफ बनाने के लिए, ‘यदि ऐसा हो जाए’ वाली स्थिति से निबटने के लिए समझाएं. 8 और 10 साल के बच्चों की मां रीता शर्मा कहती हैं, ‘‘हम दोनों कामकाजी हैं. हमारे बच्चे डेकेयर में रहते हैं. मैं ने बच्चों को लोकप्रिय गानों की ट्यून पर इमरजैंसी नंबर, पास में रहने वाले रिश्तेदारों के नंबर बताए हैं. अब जब गाना बजता है, वे नंबर दोहराने लगते हैं.’’ बच्चों को अजनबियों से सचेत रहने के लिए कहें. उन्हें असुरक्षित जगहों के बारे में बताएं. अपने घर के आसपास महत्त्वपूर्ण लैंडमार्क समझा दें. भले ही वे सुरक्षित माहौल में हों, आप खुद भी उन पर, उन के आसपास की चीजों पर नजर जरूर रखें. उन की बातें ध्यान से सुनें, उन्हें अपना समय दें.

सिंगल लाइफ बेहतर या मैरिड लाइफ

अकेलेपन और सिंगल लाइफ को अकसर लोग एकदूसरे से जोड़ कर देखते हैं. व्यक्ति सिंगल है, इस का मतलब उस की जिंदगी बेहद नीरस, एकाकी और बेचारगीपूर्ण होगी. लोग उसे दया की दृष्टि से देखने लगते हैं. शादी हो जाना यानी जिंदगी की एक बड़ी उपलब्धि या फिर यों कहें कि जिंदगी वास्तव में संपूर्ण होने की पहली शर्त.

सिंगल व्यक्तियों को लोग अधूरा मानते हैं, भले ही शादी किसी ऐसे शख्स से ही क्यों न हो जाए जो किसी भी तरह उस के लायक न हो. शादीशुदा हो जाना ही एक अचीवमैंट माना जाता है.

मगर आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि बहुत से लोग ऐसे हैं, जो स्वयं अपनी इच्छा से कुंआरा रहना पसंद करते हैं. उन के लिए शादी से कहीं और बड़े मकसद जिंदगी में होते हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं, जो गलत व्यक्ति के साथ जीने के बजाय सिंगल लाइफ जीना ज्यादा पसंद करते हैं.

एक टीवी चैनल में ऐसोसिएट ऐडिटर, 35 वर्षीय निकिता राज कहती हैं, ‘‘मुझ से अकसर लोग पूछते हैं कि अब तक शादी क्यों नहीं हुई तुम्हारी? तो मैं जवाब देती हूं कि दरअसल अभी मैं ने शादी करने के बारे में सोचा ही नहीं.’’

सामान्य रूप से देखा जाए तो इन 2 वाक्यों में कोई खास अंतर नहीं दिखता. मगर जब आप इन में छिपे अर्थ पर गौर करेंगे तो काफी अंतर दिखेगा. शादी नहीं हुई यानी बेचारगी. कोशिश तो की पर कहीं बात बन नहीं पाई, किसी ने आप को पसंद नहीं किया. वहीं दूसरी तरफ शादी नहीं की यानी अभी वक्त ही नहीं मिला इस बारे में सोचने का.

इस संदर्भ में कोलंबिया एशिया हौस्पिटल और अपोलो क्लीनिक के कंसलटैंट व द रिट्रीट रिहैबिलिएशन सैंटर, मानेसर के निदेशक व मुख्य मनोरोग चिकित्सक, डा. आशीष कुमार मित्तल कहते हैं, ‘‘कई वजहों से आजकल लोग काफी समय तक अविवाहित रहते हैं, जिन में प्रमुख वजहें हैं, व्यक्तिगत मरजी, कैरियर को अधिक तरजीह देना, अतीत में प्रेम का कटु अनुभव, चिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक समस्याएं वगैरह.’’

ऐसा जरूरी नहीं कि जो अविवाहित हैं, वे खुश नहीं रह सकते. डा. आशीष कहते हैं, ‘‘पश्चिमी देशों में करीब आधी शादियों का अंत तलाक में ही होता है. इसलिए शादी करना सामाजिक जीवन में सफल होने का एकमात्र तरीका नहीं. दोनों ही विकल्पों में जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह ही अलगअलग जोखिम हैं. बहुत से लोग हैं जो भावनात्मक रूप से शादीशुदा युवक या युवती की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि परिवार का वंश बढ़ाने के लिए हमें शादी करनी चाहिए, एक बच्चे को जन्म देना चाहिए. जबकि कुछ लोग बच्चे को गोद लेना पसंद करते हैं ताकि इस दुनिया में वे कम से कम एक अनाथ बच्चे का जीवन सुधार सकें.’’

सिंगल लाइफ की वकालत करने वाली और इसी विषय पर किताब लिख चुकीं सोशल साइकोलौजिस्ट बेला डी पाउलो के मुताबिक, ‘‘यदि इसी तरह का अध्ययन विवाहित जिंदगी की तारीफ में छपा होता तो इसे काफी लंबीचौड़ी मीडिया कवरेज मिलती. मगर चूंकि यह अध्ययन सिंगल लाइफ के समर्थन में छपा था, इसलिए इसे कोई मीडिया अटैंशन नहीं मिला.’’

विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि विवाहित जिंदगी में कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज का रिस्क स्त्रीपुरुष दोनों के लिए 2% तक बढ़ जाता है.

अधिक लंबी शादी के साथ कम हैल्दी बिहैवियर जुड़ा हुआ है, जो हाइपरटैंशन, डायबिटीज और हाई कोलैस्ट्रौल आदि के लिए जिम्मेदार है.

फायदे और भी

तनाव की कमी: एक विवाहित की जिंदगी में तनाव की कमी नहीं रहती. बच्चों के जन्म से ले कर लालनपालन, शिक्षा और फिर रिश्तों को निभाने की जंग उन्हें मुश्किल में डाले रखती है. जबकि सिंगल लाइफ इन समस्याओं से दूर होती है.

– अविवाहित ज्यादा स्वस्थ रहते हैं. अध्ययनों के मुताबिक, सिंगल व्यक्ति अधिक ऐक्सरसाइज करते हैं. वे स्वयं को ज्यादा फिट रख पाते हैं.

– अध्ययनों में यह पाया गया कि शादी के बाद महिलाएं मोटी हो जाती हैं. जबकि अविवाहित महिलाएं बेहतर ढंग से अपनी फिगर और हैल्थ मैंटेन कर पाती हैं.

– महिलाएं जो सदैव अविवाहित रही हैं उन की ओवरऔल हैल्थ ज्यादा बेहतर रहती है. नैशनल हैल्थ इंटरव्यू की स्टडी में पाए गए निष्कर्षों के मुताबिक, अविवाहित महिलाएं बुखार या दूसरी आम बीमारियों के कारण बैड पर कम समय रहती हैं.

ज्यादा सामाजिक: शादी के बाद इनसान अपने दोस्तों और अभिभावकों से कम कनैक्टेड रह जाता है. यह सिर्फ तुरंत शादी के बाद ही नहीं वरन इस के कई सालों बाद भी यह स्थिति बनी रहती है.

– वे लोग जो सदैव अविवाहित रहे हैं, वे अपने दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों से ज्यादा विनीत और उदार पाए गए, उन के बजाय जो विवाहित हैं.

– सिंगल लोगों के सिविक और्गनाइजेशंस के लिए वौलंटियर करने की संभावना ज्यादा होती है.

– पुरुषों पर की गई एक स्टडी के मुताबिक, विवाहित पुरुष वैसे काम कम करते हैं, जिन में मौद्रिक लाभ न छिपा हो.

– फ्रिन कौर्नवैल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि सिंगल व्यक्ति विवाहितों की तुलना में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ कम समय बिताते हैं. 2000 से 2008 के बीच 35 से ऊपर की आयु पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि पार्टनर के साथ रहने वाले लोग दोस्तों के साथ अपनी शामें नहीं बिता पाते.

– लोग सिंगल लोगों की कंपनी ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वे ज्यादा इंट्रैस्टिंग और फन लविंग होते हैं जबकि विवाहित अपनी पारिवारिक समस्याओं से त्रस्त नजर आते हैं. इसलिए उन की बातों में समस्याएं ज्यादा नजर आती हैं.

– सिंगल व्यक्ति अकेले ज्यादा वक्त बिता पाते हैं, इसलिए उन्हें अकेले में सोचने और खुद का साक्षात्कार करने का वक्त ज्यादा मिलता है. सिंगल लोगों को अकेलापन हासिल होता है, जो क्रिएटिविटी के लिए बहुत जरूरी है. हमारे बहुत से महान कलाकार और लेखकों ने इस एकाकीपन के फायदे पर काफी कुछ लिखा है.

– सिंगल व्यक्ति दुनिया को बदल रहे हैं. यूरोप, जापान, अमेरिका में अकेले रहने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 50 सालों में यह बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन है. यूएस सैंसस ब्यूरो के मुताबिक, 2012 में वहां की ऐडल्ट पौपुलेशन का करीब 47% अविवाहित था.

कुछ बातें, जिन्हें करने से सिंगल महिलाओं को बचना चाहिए :

टाइमटेबल फ्रेम कर के जीना

जिंदगी में कभी हम स्वयं तो कभी हमारे हितैषी हमारे लिए एक टाइमटेबल सैट कर देते हैं. इस उम्र में पढ़ाई, इस उम्र में शादी तो इस उम्र में बच्चे. वैसे तो जिंदगी में सब कुछ समय पर होना जरूरी है, मगर कई दफा इस तरह की अपेक्षाएं जिंदगी को बहुत ही रोबोटिक बना डालती हैं और यदि समय पर कुछ करने में सफल न हो पाएं तो मानसिक तनाव पैदा हो जाता है.

क्या करना चाहिए: स्वस्थ या पौजिटिव अपेक्षाएं तो स्वीकार कीजिए, मगर जिन पर हमारा वश नहीं उन की वजह से नैगेटिव सोच डैवलप करने से बचें. अपनी मैंटल अलार्म क्लौक को बंद कर दीजिए और वर्तमान में जीने का प्रयास कीजिए, जो हालात मिले हैं उन्हीं में बेहतरीन जिंदगी जीने का प्रयास करें. भविष्य की योजना तो बनाएं पर अपने आज को नजरअंदाज न करें. प्यार और शादी होनी है तो किसी भी उम्र में हो जाएगी, इन मामलों में स्वयं को स्वतंत्र छोड़ दें. फिर देखिए, जिंदगी खूबसूरत रूप में सामने आएगी.

साथ का इंतजार

कई महिलाएं जो स्काई डाइविंग, ट्रैवलिंग या दूसरे रोमांचक ट्रिप्स में रुचि रखती है, मगर सिर्फ इस वजह से निकलने में हिचकिचाती हैं, क्योंकि उन के साथ कोई नहीं. यह सच है कि प्रेमी या पति और बच्चों के साथ घूमने का मजा कुछ और होता है, मगर सिर्फ इस वजह से कि आप को अकेला घूमता देख कोई क्या सोचेगा, अपनी इच्छाओं को होल्ड पर रखना कतई समझदारी नहीं. जिंदगी बहुत छोटी है.

क्या करना चाहिए: आप सुरक्षाचक्र के बंधन से बाहर निकलें. कभीकभी सब से बेहतर अनुभव अपने हिसाब से कुछ करने से होता है. जब आप 10 लोगों के बीच होते हैं, तो आप एक घिसेपिटे अंदाज से व्यवहार करने को बाध्य होते हैं, मगर जब आप अपनी इच्छा से अकेले, अपने हिसाब से निकलती हैं तो आप वह सब कर पाती हैं, जो कभी न करतीं. ऐसा करना जरूरी भी है, क्योंकि इस से आप को अपनी क्षमताओं के बारे में पता चलता है.

स्वयं को पहचानें

प्रत्येक शख्स किसी खास मकसद के साथ इस दुनिया में आया है. यदि आप सिंगल हैं तो इस का तात्पर्य यह है कि संभवतया अकेले रह कर ही आप अपना मकसद पा सकती हैं. तभी आप की सोच और परिस्थितियां इस के अनुरूप हैं, यह भी हो सकता है कि आने वाले समय में आप स्वयं शादी के बंधन में बंध जाएं, मगर जब तक सिंगल हैं, अपने इस स्टेटस का पौजिटिव यूज करें. नैगेटिव न सोचें. ऐसी स्थिति में आप के पास सलाहों का अंबार लग सकता है. यह आप को सोचना होगा कि आप को सलाहों के हिसाब से अपनी जिंदगी जीनी है या अपनी शर्तों पर.

सपोर्ट नैटवर्क मजबूत बनाएं

हम सब की जिंदगी में दोस्त बहुत बड़े सपोर्ट सिस्टम का काम करते हैं. अपने सामाजिक दायरे को बढ़ाएं. पासपड़ोस, रिश्तेदार, कुलीग्स और दोस्तों के साथ मजबूत नैटवर्क कायम करें. फिर देखिए, आप को कभी अकेलेपन का एहसास नहीं होगा.

मस्ती भी करें

आप अकेली महिला हैं, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप जिंदगी ऐंजौय न करें. उन कामों के लिए समय निकालें जो आप को खुशी देते हैं. रोमांटिक नौवल्स पढ़ें, मूवी देखें, लड़कियों के साथ मिल कर नाइट पार्टी करें, अपनी हौबी को समय दें, नियमित ऐक्सरसाइज करें, स्वयं को पैंपर करें, हर सप्ताह एक नए व्यक्ति से मिलने और परिचय बढ़ाने का नियम बनाएं. ग्रुप में ट्रैवलिंग के लिए निकलें, वूमंस कौन्फ्रैंस अटैंड करें. ग्रुप ट्रैवलिंग आप के लिए अच्छा जरीया हो सकता है, क्योंकि जब आप ग्रुप में ट्रैवल करती हैं तो नई जगहों के बारे में जानने के साथसाथ नए लोगों के बारे में भी जानती हैं.

हम ऐसा कतई नहीं कह रहे कि सिंगल लाइफ मैरिड लाइफ की तुलना में ज्यादा बेहतर है. वस्तुत: शादी करना गलत नहीं, मगर उस के साथ करना सही है, जिस के साथ आप कंफर्टेबल महसूस करती हों,  जो आप की भावनाओं को समझता हो, आप जैसी सोच रखता हो, जिस से आप प्यार करती हों.

जिंदगी ने हमें जो भी परिस्थिति दी है, उसे सकारात्मक रूप में देखें. क्योंकि जो वर्तमान में आप को मिला है, वह आप के लिए सब से अच्छा है. ये लमहे फिर लौट कर नहीं आएंगे. इन्हें लाइक कीजिए.

सास के साथ

आप जल्दीजल्दी नहाधो कर किचन में घुसती हैं और सब की पसंद की डिशेज बनाने लगती हैं, मगर पीछे से सास की चिकचिक भी आप लगातार सुन रही हैं. वे न तो आप के बनाने के सलीके से खुश हैं और न ही तैयार खाने से.

– सास का तीखा स्वर आप के कानों में पड़ता है कि कैसा जमाना आ गया है, अब तक बहू सो रही है और मुझे चाय बनानी पड़ रही है.

– आप औफिस जा कर भी अपनी सास की बातों को नहीं भूल पातीं. उन की बातें आप के कानों में गूंजती रहती हैं.

– घर जा कर आप को सास का भड़का चेहरा देखने को मिलता है. किचन जैसे की तैसी पड़ी है. आप सफाई और खाना बनाने में जुट जाती हैं. उधर बच्चा पूरा वक्त आप को डिस्टर्ब करता रहता है.

बिना सास के

आप आराम से उठ कर चाय बना कर पीती हैं. फिर अपना मनपसंद नाश्ता बनाती हैं. घर में मां हैं तो शानदार नाश्ता तैयार मिल जाता है.

– आप की अभी उठने की इच्छा नहीं है. अत: आप करवट बदल कर फिर से सो जाती हैं.

– औफिस जा कर आप सुकून के साथ अपना काम करती हैं.

– आप घर जाती हैं तो मम्मी ने खाना बना कर रखा है. होस्टल में हैं या फ्रैंड के साथ रूम ले कर रह रही हैं तो भी नजारा बहुत अलग होगा.

2010 में प्रकाशित, प्यू रिसर्च रिपोर्ट के निष्कर्ष काफी रोचक हैं. इस नैशनल सर्वे में सिंगल लोगों से की गई बातचीत के आधार पर पाया गया कि इन में से केवल 46% लोग ही शादी करने के इच्छुक थे. 25% लोगों ने कहा कि वे शादी करना ही नहीं चाहते, क्योंकि उन्होंने अपनी इच्छा से अकेले रहने का निर्णय लिया है. बाकी के 29% लोग इस बारे में दुविधा में थे कि वे मौका मिलने पर शादी करेंगे या नहीं.एक नजर विवाहित और अविवाहित महिला की जिंदगी पर

विवाहिता की दिनचर्या

सुबह 6.00 बजे

बच्चे को चुप कराने के चक्कर में आप सो नहीं पाईं. बच्चे ने बिस्तर गंदा कर रखा है. न चाहते हुए भी आप को उठना पड़ता है.

सुबह 6.30 बजे

– आप बच्चे को थोड़ी देर और सुलाना चाहती हैं, मगर वह सोने को तैयार नहीं. जाहिर है, आप भी बिस्तर छोड़ कर फ्रैश होने चली जाती हैं.

सुबह 7.00 बजे

– आप ने आज नाश्ते में आलू के परांठे बनाए हैं. मगर बड़ी बेटी परांठे खाने को तैयार नहीं. वह चाउमिन की रट लगाए बैठी थी.

सुबह 8.00 बजे

आप नहाने जा रही हैं और टब में पानी भर कर आती हैं. कपड़े ले कर अंदर घुसती हैं तब तक छोटू टब में साबुन डाल देता है.

सुबह 9.00 बजे

– आप तेजी से सीढि़यां चढ़ कर जा रही हैं. मगर आप ने यह नहीं देखा कि बच्चे ने वहां तेल गिरा रखा है. आप फिसल कर गिर पड़ती हैं.

सुबह 10.00 बजे

बच्चे को चुप करा कर आप मेकअपरूम में आती हैं. मगर वहां सारा मेकअप का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा है.

पूरा दिन

– आप पूरा दिन बच्चे और घर के टैंशन में हैं कि कैसे जल्दी घर पहुंचें और बच्चे को संभालें.

शाम 6.30 बजे

– आप जल्दी से किचन में घुस जाती हैं. आप सब्जी काट रही हैं और बच्चा कटी सब्जी फेंक रहा है, बरतन इधरउधर फेंक रहा है. आधे घंटे के काम में 1 घंटा लग जाता है.

संडे

आप ने कहीं घूमने का प्रोग्राम तय किया, मगर बच्चा वहां जाने को तैयार नहीं. वह जू में जाने की जिद कर रहा है.

 

अविवाहिता की दिनचर्या

सुबह 6.00 बजे

सुबह उठ कर आप ने घड़ी देखी और करवट ले कर फिर सो गईं. उठने की कोई हड़बड़ी नहीं है.

सुबह 6.30 बजे

– अभी आप ने अपनी नींद तोड़ी है. उठ कर फिर सोने का जो मजा है, उसे कैसे छोड़ सकती हैं.

सुबह 7.00 बजे

– आप आराम से सो कर उठीं और तकिया दूर फेंका. फिर रात को देखा हुआ सपना याद कर मुसकराने लगीं.

सुबह 8.00 बजे

आप अपना बिस्तर और कमरा ठीक करने के बाद नहाने चली जाती हैं. इस बीच मां ने गीजर औन कर दिया है.

सुबह 9.00 बजे

– आप जब तक नहा कर निकलती हैं, तब तक मम्मी या रसोइए ने नाश्ता तैयार कर रखा होता है.

सुबह 10.00 बजे

आप अपनी स्कूटी निकालती हैं और अपनी सहेली को साथ ले कर औफिस के लिए निकल जाती हैं.

पूरा दिन

– पूरी तत्परता के साथ दिन भर औफिस का काम करती हैं और दोस्तों के साथ हंसीमजाक में भी शरीक होती रहती हैं.

शाम 6.30 बजे

– आप आराम से शाम को अपनी सहेली के घर से खा कर लौटती हैं या घर जा कर चायनाश्ते के बाद किचन में मां की सहायता करती हैं, फिर टीवी पर मनचाहा प्रोग्राम देखने लगती हैं.

संडे

आप अपनी इच्छानुसार दोस्तों के साथ मूवी और शौपिंग का प्रोग्राम बनाती हैं. फिर डिनर कर के घर लौटती हैं.

फिजिकल रिलेशनशिप में एड्स होने का डर लगा हुआ है, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 32 साल का हूं. मैंने पड़ोस की औरत के साथ हमबिस्तरी की है, पर डर है कि कहीं मुझे एड्स न हो जाए. वैसे, जिस्मानी संबंध बनाने के 5 दिन बाद मैंने जांच कराई, तो नतीजा निगेटिव रहा. औरत ने 10 दिन बाद जांच कराई, तो उस का नतीजा भी निगेटिव ही था. कोई डर तो नहीं है?

जवाब

एक ओर तो आप को जिस्मानी संबंधों का मजा चाहिए, वहीं दूसरी ओर मौत का डर भी है. आखिर ऐसा काम किया ही क्यों जाए, जिस में खौफ हो. वैसे, जांच रिपोर्टों के मुताबिक आप दोनों ही महफूज हैं, लेकिन यह खेल दूसरे तरीके से भी खतरनाक हो सकता है. औरत के पति को पता चलेगा, तो वह एड्स से भी ज्यादा दर्द देगा.

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2017 के अंत तक भारत में अनुमानत: 21.40 लाख लोग एचआईवी संक्रमित है. खतरनाक बात ये है कि उनमें से 20 प्रतिशत अपने संक्रमित होने को ले कर अनजान हैं. हालांकि एचआईवी पर जागरूकता पैदा करने, एड्स के साथ जीने, असुरक्षित यौन संबंधों से बचने को ले कर बहुत कुछ किया जा रहा है. लेकिन आज जरूरी है कि भारत की बड़ी आबादी को विभिन्न तरीकों से एचआईवी संक्रमण के संचारित होने को ले कर जागरूक किया जाए. लोगों को इस घातक संक्रमण से बचने के लिए रक्ताधान से पहले रक्त परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है, ताकि जो संक्रमित है वे आगे संक्रमण न फैलाए.

2016 में किए रक्त बैंकों का राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) ने मूल्यांकन किया था. इसके मुताबिक, देश में कुल 2626 कार्यात्मक रक्त बैंक हैं. भारत को प्रति वर्ष 12.2 मिलियन करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है, जिसमें से केवल 11 मिलियन ब्लड यूनिट ही मिल पाते हैं. ऐसे में, सुरक्षित रक्ताधान पर ध्यान केंद्रित करना बहुत आवश्यक है.

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आप डैमीसैक्सुअल तो नहीं, अगर हां तो पढ़ें ये खबर

आप ने अब तक सैक्सुअलिटी को ले कर कई शब्द सुने होंगे जैसे बाईसैक्सुअल, पैनसैक्सुअल, पौलिसैक्सुअल, असैक्सुअल, सेपोसैक्सुअल और भी कई तरह के शब्द. पर अब एक और नया शब्द सैक्सुअलिटी को ले कर एक नए रूप में आ रहा है और वह है डैमीसैक्सुअल. ये वे लोग हैं जो असैक्सुअलिटी के कगार पर हो सकते हैं पर पूरी तरह से अलैंगिक नहीं हैं. यदि आप किसी से सैक्सुअली आकर्षित होने से पहले अच्छे दोस्त होना पसंद करते हैं तो आप निश्चित रूप से डैमीसैक्सुअल हैं.

सैक्सुअलिटी की पहचान

यह जानने के कई तरीके हैं कि आप डैमीसैक्सुअल हैं या नहीं. सब से मुख्य तरीका यह है कि जब तक आप किसी से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ते, आप सैक्सुअल फीलिंग्स महसूस नहीं करते. आप के लिए भावनाएं महत्त्वपूर्ण हैं. आप सारी उम्र एक ही व्यक्ति से संबंध बना कर रह सकते हैं. आप प्रयोग से डरते हैं.

आप सैक्सुअल इंसान नहीं हैं, इस में कोई बुराई नहीं है. सैक्स के पीछे भागने से ज्यादा आप को जीवंत, वास्तविक बातचीत करना ज्यादा अच्छा लगता है. यदि आप किसी से रिलेशनशिप में हैं और उस से इमोशनली जुड़ हुए हैं तभी आप अपने पार्टनर के प्रति सैक्सुअली आकर्षित होते हैं. यदि आप सिंगल हैं, तो आप निश्चित रूप से सैक्स से ज्यादा पार्क में एक अच्छी सैर या अपनी पसंद की कोई चीज खाना पसंद करेंगे.

जिसे आप पसंद करती हैं, उस से मिलने के बाद आप उस के व्यक्तित्व से प्रभावित होंगी, उस के लुक्स से नहीं, इसलिए किसी भी चीज से पहले आप की उस से दोस्ती होगी. आप किसी से मिलने पर सैक्सुअल होने या फ्लर्टिंग में विश्वास नहीं रखते. यदि एक व्यक्ति ने आप को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित किया है तो आप पहले दोस्ती में अपना हाथ बढ़ाएंगे. घंटों, हफ्तों, महीनों में ही डेटिंग शुरू करने की आप सोच भी नहीं सकते, फ्लर्टिंग आप के दिमाग में आती ही नहीं है.

आकर्षण के प्रकार

आकर्षण 2 तरह का होता है-प्राइमरी और सैकेंडरी. प्राइमरी आकर्षण में आप किसी के लुक्स से आकर्षित होते हैं और सैकेंडरी आकर्षण में आप किसी के व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं. यदि आप डैमीसैक्सुअल हैं तो आप निश्चित रूप से सैकेंडरी पर्सनैलिटी टाइप में फिट बैठते हैं. अब इस का मतलब यह नहीं है कि आप को कोई आकर्षित नहीं करता. बहुत लोग आप को आकर्षक लगे होंगे पर आप लुक्स पर ही संबंध नहीं बना सकते. आप तभी आगे बढ़ते हैं जब किसी का व्यक्तित्व आप को प्रभावित करता है.

जब आप के दिल में किसी के लिए फीलिंग्स पैदा होने लगती हैं, विशेषरूप से सैक्सुअल फीलिंग, तो आप दुविधा में पड़ जाते हैं, क्योंकि आप उतने सैक्सुअल पर्सन नहीं हैं. आप नहीं जानते कि इन फीलिंग्स पर क्या प्रतिक्रिया दें या उस व्यक्ति से कैसे शारीरिक कनैक्शन बनाएं. एक बार आप घबराहट और दुविधा की स्थिति से बाहर निकल गए, तो आप अपने पार्टनर से ही सैक्स करना चाहेंगे और किसी से भी नहीं. किसी से सैक्सुअली खुलने के लिए उसे बताएं कि आप उसे कितना प्यार करते हैं, क्योंकि आप बहुत भावुक हैं और फिर सैक्स आप दोनों के लिए बहुत कंफर्टेबल हो जाएगा.

लोगों का आप के प्रति नजरिया

क्योंकि आप सैक्स को ले कर ज्यादा नहीं सोचते, लोग सोच सकते हैं कि आप विवाह होने का इंतजार कर रहे हैं. वे आप को घमंडी और पुराने विचारों का समझ सकते हैं पर इस से आप विचलित न हों. जैसे हैं वैसे ही रहें. आप किसी स्विच को औनऔफ करने की तरह किसी से भी सैक्स नहीं कर सकते. लोगों को अपने मनोभावों पर स्पष्टीकरण देने की चिंता में पड़ें ही नहीं. आप को अपने आसपास हाइली सैक्सुअल लोगों से कोई समस्या भी नहीं होती है. बस आप स्वयं इस स्थिति से खुद को दूर रखते हैं, क्योंकि आप वैसे नहीं हैं. आप सही इंसान का इंतजार कर रहे हैं और अपना जीवन उस के साथ ही सैक्स कर के बिताना चाहते हैं. इस में कुछ भी गलत नहीं है.

डैमीसैक्सुअल होने का मतलब यह नहीं है कि आप को सैक्स पसंद नहीं है. आप को सैक्स पसंद है, सब को सैक्स पसंद होता है पर आप उसी के साथ सैक्स करना चाहते हैं जिस से आप का भावनात्मक जुड़ाव हो. जब सही इंसान आप को मिलता है, आप सैक्सुअली उस से जुड़ जाते हैं. बातचीत और बौंडिंग दोनों आप के लिए ज्यादा महत्त्व रखते हैं.

आप डैमीसैक्सुअल हैं तो आप को यह नहीं सोचना है कि यह कुछ गलत है. आप भावुक हैं, मन के मिले बिना तन से न जुड़ पाएं, तो इस में बुरा क्या है और मन मिलने पर तो आप खुल कर जीते ही हैं. यह बहुत अच्छा है. तो अपनी पसंद का व्यक्ति मिलने पर जीवन का आनंद उठाएं, प्रसन्न रहें.

अगर जिद्दी हो बच्चा

कई बार बच्चा अपनी जिद्द मनवाने के लिए रोता है. आप ने न कहा तो उस ने अपना सिर पटका, आप ने फिर न कहा. लेकिन जब वह जमीन पर लोटने लगा तो आप ने घबरा कर उसे हां कह दिया. यहीं से बच्चा समझ जाता है कि रोने से कुछ नहीं होता. जमीन पर लोटने से जिद मनवाई जा सकती है. बस, तब से वह वही काम करने लगता है. इस प्रकार मूल बात है कि बिहेवियर मौडिफिकेशन या मोल्डिंग अर्थात जिस तरह से आप उसे आकार देंगे वह वैसा ही करेगा. जैसा कि कुम्हार करता है. जो घड़ा उसे चाहिए उसे वह अपनी तरह से आकार देता है. लेकिन यहां बात बच्चे की है. अगर बच्चे को आप ने किसी वस्तु के लिए न कहा है तो आप उस का कारण अवश्य बताइए. बच्चा कितना भी रोएचिल्लाए, आप अपनी बात पर कायम रहें, दृढ़ रहें ताकि उसे अपनी सीमा रेखा पता चले. यह काम बचपन से ही करना चाहिए.

खुद को बदलें

बच्चे को बचपन से ही समझ लेना चाहिए कि अगर आप ने न कहा है तो इस का अर्थ नहीं है. पहली न के बाद दूसरी या तीसरी न कहने की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. बचपन में अगर आप ने एक बार न कहा, फिर थोड़ी जिद के बाद उसे हां कह दिया तो बड़ा हो कर वही बच्चा जिद्दी बनता है. अपने एक अनुभव के बारे में मुंबई के राजीव गांधी मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सक डा. मित्तल बताते हैं कि एक दंपती का इकलौता बेटा, जो 18 वर्ष का था, वह किसी की बात नहीं मानता था. सारे पैसे उड़ा देता था. समय पर घर नहीं आता था. उस की इस जिद को तोड़ने के लिए नानानानी, दादादादी, मातापिता सब एकजुट हुए. पूरे परिवार ने उसे समय पर घर आने की चेतावनी दी. पर वह नहीं माना. पुलिस का सहारा लेना पड़ा. उस लड़के को एक रात पुलिस स्टेशन में बितानी पड़ी. तीसरी बार जब वह फिर घर लेट पहुंचा तो किसी ने दरवाजा नहीं खोला. बरसात में उसे बिल्ंिडग के चौकीदार के साथ 1 रात केबिन में गुजारनी पड़ी. अंत में जब वह समझ गया कि उसे खुद को बदलना है तो वह समय पर घर आने लगा. यहां एक बात ध्यान रखनी है कि मातापिता अगर बच्चे को अनुशासित करें तो बाकी घर के सदस्यों को भी चुप रह कर उन का साथ देना चाहिए.

बच्चे के जिद्दी होने की एक वजह आज की जीवनचर्या भी है. आज परिवार संयुक्त नहीं हैं. मातापिता दोनों ही नौकरीपेशा हैं. ऐसे में उन के पास समय की कमी होती है. दिन भर की भागदौड़ के बाद जब वे घर पहुंचते हैं तो बच्चे की जिद अनायास ही पूरी कर देते हैं.

सारे पहलू को देखना जरूरी

इस के अलावा आज के बच्चे ठीक से खातेपीते नहीं हैं. जंक फूड पर उन का ध्यान अधिक रहता है, जिस से वे एनीमिक बन जाते हैं. स्कूल का माहौल भी कभीकभी उन्हें जिद्दी बनाता है. कोई ऐसी घटना, जिसे वह किसी से बांट नहीं पाता, कह नहीं पाता तो जिद्दी बन कर ही उसे सामने लाता है. इस विषय पर मुंबई की शुश्रुत अस्पताल की मनोचिकित्सक प्रद्दान्या दीवान कहती हैं कि जब बच्चा हमेशा जिद्द करे तो उस के सारे पहलू को देखना जरूरी है. मातापिता उस की बात को सुनें. उस के साथ अपना कुछ समय बिताने की कोशिश करें, जिस से बच्चे को अकेलापन महसूस न हो. वह अपनी बात आप से कहे. अगर यह बात आप से हल नहीं हो रही हो तो किसी मनोचिकित्सक का सहारा लें.

गर्लफ्रैंड को मैने नाराज कर दिया है, उसे मनाने के लिए क्या करुं?

सवाल

मैं एक युवती से पिछले 2 वर्ष से प्यार करता हूं, लेकिन एक महीना पहले हम एक पार्क में बैठे आपस में बातें कर रहे थे. शाम गहरा रही थी. थोड़ा अंधेरा भी था तो एकांत पा कर मैं ने उसे बांहों में ले लिया और उस के कपड़ों के अंदर हाथ फेरने लगा. शुरू में तो उस ने मना नहीं किया पर जब अंतरंग अंगों तक मेरा हाथ पहुंचा तो हटाने लगी और उठ कर चल दी. फिर उसी रात फोन पर कभी न मिलने को कह दिया. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? एक महीने से हम मिले भी नहीं, उसे फोन करूं तो काट देती है व मिलने भी नहीं आती?

जवाब

दरअसल, प्रेम की बात जब सैक्स तक पहुंचती है तो युवती खुद को असुरक्षित महसूस करती है. युवती प्यार में सब से अधिक प्रेमी द्वारा उस की सुरक्षा, प्यारभरी बातें और बांहों का आगोश चाहती है, लेकिन आप के सीमा लांघते ही उसे लगने लगता है कि वह असुरक्षित है. आज समाज में ऐसी कई घटनाएं सामने हैं जिन में प्रेमीप्रेमिका में सैक्स के बाद दूरी बढ़ी, ब्रेकअप हुआ या फिर एकदूसरे से मनमुटाव हुआ.

आप के मामले में उस से जब तक आप प्रेममयी बातें करते रहे तब तक तो सब ठीक रहा, लेकिन जब आप उस के अंतरंग अंगों तक पहुंचे तो उस ने आप से पीछा छुड़ा लिया. हाथ रोक दिया. दरअसल, सैक्स की कामना तो उस की भी रही होगी, लेकिन वह इस धारा में नहीं बही और आप को भी बचाया. इसी कारण वह अब आप से मिलती नहीं है कि कहीं फिर कभी ऐसा न हो जाए.

आप उस से किसी मित्र के जरिए मिलें और आगे से ऐसा नहीं होगा, यह बात उसे समझाएं. सुरक्षित सार्वजनिक स्थान पर मिलें, एकांत में नहीं. जब उसे लगेगा कि वह सुरक्षित है तो जरूर सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा.

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Married Life को Happy बनाने के 11 टिप्स

क्या आप अपने रिलेशन को ले कर अकसर चिंतित रहते हैं? अगर हां तो इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. आप की चिंता का कारण आप का स्वयं का ऐटिट्यूड अथवा आप दोनों की कैमिस्ट्री हो सकती है. ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रख कर आप वैवाहिक जीवन को सुचारु रूप से चला सकते हैं:

1. कम्यूनिकेशन:

अपनी भावनाएं, विचार, समस्याएं एकदूसरे को बताएं. वर्तमान और भविष्य के बारे में बात करें. दूसरे को बताएं कि आप दोनों के बारे में क्या प्लान करते हैं. बोलने के साथ सुनना भी जरूरी है. मौन भी अपनेआप में संवाद है. अपने हावभाव, स्पर्श में भी साथी के प्रति प्यार व आदर प्रदर्शित करें.

2. सारी उम्मीदें एक ही से न रखें:

अगर आप अपने साथी से गैरवाजिब उम्मीदें रखेंगे तो आप का निराश होना लाजिम है. पार्टनर से उतनी ही उम्मीद रखें जितनी वह पूरी कर सके. बाकी उम्मीदें दूसरे पहलुओं में रखें. पार्टनर को स्पेस दें. उस की अच्छाइयोंबुराइयों को स्वीकारें.

3. बहस से न बचें:

स्वस्थ रिश्ते के लिए बहस अच्छी भी रहती है. बातों को टालते रहने से तिल का ताड़ बन जाता है. मन में रखी उलझनों को बढ़ाएं नहीं, बोल डालें. आप का साथी जब आप से झगड़ रहा हो तो चुप्पी न साधें और न ही बुरी तरह से प्रतिक्रिया दें. ध्यान से सुनें और इत्मिनान से समझें. हाथापाई या गालीगलौच तो कतई न करें.

4. खराब व्यवहार को दें चुनौती:

कभी भी साथी के खराब व्यवहार से आहत हो कर अपना स्वाभिमान न खोएं. कई बार हम साथी के व्यवहार से इतने हैरान हो जाते हैं कि अपनी पीड़ा बयां करने के बजाय स्वयं को अपराधी महसूस करने लगते हैं या मान लेते हैं. साथी आप को शारीरिक/मानसिक रूप से चोट पहुंचाता है तो भी आप उसे मना नहीं करते. यह गलत है. खराब व्यवहार न स्वीकारें. इस से रिश्ते में ऐसी दरार पड़ जाती है जो कभी नहीं पटती.

5. एकदूसरे को समय दें:

एकदूसरे के साथ समय बिताने और क्वालिटी टाइम शेयर करने से प्यार बढ़ता है. साथी के साथ ट्रिप प्लान करें. घर पर भी फुरसत के क्षण बिताएं. इस समय को सिर्फ अच्छी बातें याद करने के लिए रखें, इस में मनमुटाव की बातें न करें. फिर देखें इस वक्त को जब भी आप याद करेंगे आप को अच्छा महसूस होगा.

6. विश्वास करें और इज्जत दें:

क्या आप साथी की बहुत टांग खींचते हैं? क्या आप उस पर हमेशा शक करते हैं? यदि ऐसा हो तो रिश्ता कभी ठीक से नहीं चलेगा. एकदूसरे पर विश्वास करना सब से अधिक जरूरी है. एकदूसरे की इज्जत करना भी जरूरी है. विश्वास और इज्जत किसी भी रिश्ते की नींव है. अत: इन्हें मजबूत रखें.

7. कन फौर ग्रांटेड न लें:

शादी हो जाने के बाद भी टेकन फौर ग्रांटेड न लें. साथी की पसंदनापसंद पर खरे उतरते रहने का प्रयास करते रहें. उस के अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करते रहें. जैसे पौधा अच्छी तरह सींचे जाने के बाद ही मजबूत पेड़ बनता है, सही देखभाल से ही वह पनपता है, वैसे ही वैवाहिक जीवन को 2 लोग मिल कर ही सफल बना सकते हैं.

8. यह टीम वर्क है:

पतिपत्नी तभी खुशनुमा जीवन जी सकते हैं जब दोनों टीम की तरह काम करें. दोनों समझें कि एकदूसरे से जीतने के बजाय मिल कर जीतना जरूरी है. सुखी विवाह दोनों पक्षों की मेहनत का परिणाम होता है.

9. एकदूसरे का खयाल रखें:

जीवन की प्रत्येक चीज से ऊपर यदि आप एकदूसरे को रखेंगे तो सुरक्षा की भावना पनपेगी. यह भावना रिश्तों को मजबूत बनाती है. हर पतिपत्नी को एकदूसरे से बेपनाह प्यार और इज्जत चाहिए होती है.

10. ध्यान से चुनिए दोस्त:

आप के दोस्त आप के जीवन को बना या बिगाड़ सकते हैं. दोस्तों का प्रभाव आप के व्यक्तित्व व व्यवहार पर बहुत अधिक होता है. इसलिए ऐसे दोस्त चुनें जो अच्छे हों.

11. वाणी पर संयम:

वैवाहिक जीवन में कई बार आप की वाणी आप के विवाह को खत्म कर देती है. अपने शब्दों का प्रयोग कटाक्ष, गालीगलौच या फबतियां कसने में न करें वरन इन से तारीफ करें, मीठा बोलें. आप का शादीशुदा जीवन अच्छा बीतेगा.

जानें क्या है डबल बर्डन सिंड्रोम

प्रसव के डेढ़ महीने ही बीते थे कि मोनिका ने औफिस जाना शुरू कर दिया. अगले 6 महीनों तक घर पर बच्चे की देखभाल मोनिका की गैरमौजूदगी में कभी उस की सास तो कभी उस की मां करती रहीं. मगर बच्चे के साल भर के होते ही दोनों ने ही अपनीअपनी मजबूरी के चलते बच्चे को संभालने में आनाकानी शुरू कर दी.

अब बच्चे को क्रेच में डालने के अलावा मोनिका के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. वह जौब नहीं छोड़ना चाहती थी. मगर बच्चे को भी क्रेच में डाल कर खुश नहीं थी. औफिस में काम के दौरान कई बार उस का मन बच्चे की ओर चला जाता तो वहीं घर में बच्चे के साथ रहने पर उसे औफिस में अपनी खराब होती परफौर्मैंस का एहसास होता.

दोनों जिम्मेदारियों के बीच मोनिका पिसती जा रही थी. चिड़चिड़ाहट और घबराहट के कारण काम करने में उस से गलतियां होने लगी थीं. घर वालों के ताने और बौस की डांट धीरेधीरे मोनिका को डबल बर्डन सिंड्रोम जैसी मानसिक बीमारी का शिकार बना रही थी. एक समय ऐसा भी आया जब मोनिका खुद को बच्चे और अपने बौस का अपराधी समझने लगी. आखिरकार उस ने जौब छोड़ दी और गृहिणी बन कर बच्चे की परवरिश में जुट गई.

क्या कहता है सर्वे

मोनिका जैसी हजारों महिलाएं हैं, जो अच्छे पद, अच्छी आमदनी होने के बावजूद प्रसव के बाद या तो बच्चे और औफिस की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं या फिर अपने कैरियर से समझौता कर के घर और बच्चे तक खुद को सीमित कर लेती हैं.

केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वे के अनुसार, शादी के बाद लगभग 40% भारतीय महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं वहीं 60% महिलाएं मां बनने के बाद बच्चे की परवरिश को अधिक महत्त्व देती हैं और नौकरी छोड़ देती हैं. इस के अतिरिक्त 20% महिलाएं जो घर और नौकरी दोनों जिम्मेदारियां निभा रही होती हैं, वे कभी न कभी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं.

इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की मनोचिकित्सक डाक्टर मीनाक्षी मनचंदा का कहना है, ‘‘भारतीय समाज है ही ऐसा. यहां महिला सशक्तीकरण की बड़ीबड़ी बातें की जाती हैं, मगर महिलाएं जब सशक्त  होने का प्रयास करती हैं, तो यही समाज उन्हें परिवार की जिम्मेदारी की बेडि़यों में जकड़ देता है.’’

पुष्पावती सिंघानियां रिसर्च इंस्टिट्यूट की मनोचिकित्सक डाक्टर कौस्तुबि शुक्ल का मानना है, ‘‘यह सिंड्रोम महिला और पुरुष दोनों को होता है. मगर भारत में इस सिंड्रोम की शिकार अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. इस की बड़ी वजह यहां की संस्कृति है, जो कहती है कि महिलाएं अपने पेशेवर जीवन में कितनी भी उन्नति कर लें, मगर घर के प्रमुख कार्यों की जिम्मेदारी उन्हें ही संभालनी होगी. हालांकि नौकरों और आधुनिक तकनीकों की मदद से जिम्मेदारियों का बोझ कुछ हद तक हलका हो जाता है, मगर बच्चा होने के बाद इन जिम्मेदारियों का स्वरूप बदल जाता है. आधुनिक तकनीक और नौकरों के साथ मातापिता को खुद भी बच्चे की देखभाल में समय देना पड़ता है. इस स्थिति में भी बच्चे की जिम्मेदारी मां पर डाल दी जाती है और पिता खुद को आर्थिक मददगार बनने की बात कह कर बचा लेता है.’’

मगर सवाल यह उठता है कि इस से फायदा क्या है? देखा जाए तो घर के किसी सदस्य के नौकरी छोड़ने पर परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के स्थान पर कमजोर ही होती है. वहीं जिम्मेदारियों का सही बंटवारा परिवार की आर्थिक जरूरतों में रुकावट भी पैदा नहीं होने देता और महिलाओं को इस सिंड्रोम का शिकार होने से भी बचा लेता है. मगर अब दूसरा सवाल यह उठता है कि जिम्मेदारियों का बंटवारा हो कैसे?

सास के साथ सही साझेदारी

मनोचिकित्सक मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘आर्थिक मददगार तो महिलाएं भी बन सकती हैं. वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने पुरुषों के वर्चस्व को न तोड़ा हो.  मगर घरेलू काम में पतियों से सहायता लेना आज भी महिलाओं के लिए एक चुनौती बना हुआ है.  खासतौर पर उन घरों में जहां रिश्तेदारों का दखल ज्यादा होता है.’’

रिश्तेदारों की इस सूची में सब से पहले लड़के की मां का नाम आता है. घर के कामकाज में बेटे और बहू की हिस्सेदारी का वर्गीकरण भी यही मुहतरमा करती हैं, जिस में बच्चे के कामकाज से बेटे का कोई लेनादेना नहीं होता. बहू नौकरीपेशा है तब भी बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी उसी की है. भले ही बहू की घर पर गैरमौजूदगी में सास बच्चे की देखरेख कर भी लें, मगर इस बात को सुनहरे शब्दों में बहू पर जताने से भी वे पीछे नहीं हटतीं.

मीनाक्षी का मानना है कि इन स्थितियों में महिलाओं को थोड़ी सूझबूझ दिखानी चाहिए. सब का अपनाअपना स्वभाव होता है, मगर सास के साथ बहू की सही साझेदारी ऐसे मौकों पर बहुत काम आ सकती है. यह बात तो पक्की है कि रूढिवादी सोच वाली सास बेटे को भले ही घर के काम न करने दें, मगर बहू से सही तालमेल बैठा कर घर की कुछ जिम्मेदारियां वे खुद संभाल लेती हैं. यहां जरूरत है कि महिलाएं सास पर थोड़ा विश्वास करें. उन की दिल को चुभने वाली बातों को अनसुना कर दें. रिश्तों में थोड़ा तालमेल बैठा कर चलें ताकि घर और कार्यस्थल दोनों ही स्थानों पर अच्छी परफौर्मैंस दे सकें.

पार्टनर से बात करें

सास के साथ ही अपने पति को भी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में बताएं. दरअसल, भारतीय समाज की इस रूढिवादी मानसिकता के चलते ही कई औरतें स्वीकार कर लेती हैं कि सहूलत से यदि बच्चे की देखभाल और नौकरी के बीच संतुलन बैठाया जा सकता है, तो ठीक है नहीं तो मानसिक तौर पर वे खुद को नौकरी छोड़ने और बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए तैयार कर लेती हैं.

इस बाबत डाक्टर कौस्तुबि कहती हैं,  ‘‘आजकल महिलाएं शादी से पूर्व अपने कैरियर को अधिक महत्त्व देती हैं. फिर अब शादी भी

देर से ही होती है. ऐसे में महिलाओं की रीप्रोडक्टिव लाइफ छोटी हो जाती है. उन्हें यह फैसला जल्दी लेना पड़ता है कि वे मां कब बनना चाहती हैं.  अब यदि यह कहा जाए कि कैरियर के लिए मां बनने की ख्वाहिश ही छोड़ दें, तो शायद यह सही नहीं होगा. लेकिन मां बनने के लिए नौकरी छोड़ दें, यह भी कोई हल नहीं है. इसलिए महिलाओं को अपने पार्टनर से पहले ही अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का जिक्र कर लेना चाहिए और उस के हिसाब से भविष्य की प्लानिंग करनी चाहिए.’’

आज का दौर पढ़ेलिखों का है. पतिपत्नी इस बात को बखूबी समझते हैं कि महंगाई के इस जमाने में दोनों की कमाई से ही परिवार रूपी गाड़ी खींची जा सकती है. इसलिए आपस में समझौता कर लेना ही सही निर्णय है. इस समझौते में बहुत सारी बातों का जिक्र किया जा सकता है, जो महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी के बोझ और बेरोजगारी दोनों से बचा सकता है.

मनोचिकित्सक कौस्तुबि ऐसे ही कुछ समझौतों के बारे में बताती हैं:

– आज के वर्क कल्चर में शिफ्ट में काम करना चलन में है और यह गलत भी नहीं है.  नौकरीपेशा दंपती अपनी सहूलत के हिसाब से शिफ्ट का चुनाव कर सकते हैं और बारीबारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकते हैं.

– यदि कंपनी में वर्क फ्रौम होम की सुविधा है, तो कभीकभी पतिपत्नी इस सुविधा का फायदा भी उठा सकते हैं. इस से घर और कार्यालय दोनों का ही काम बाधित नहीं होता.

– कुछ कार्यक्षेत्रों में फ्रीलांसिंग काम भी किया जा सकता है और इस में भी अच्छी आमदनी की गुंजाइश होती है. पति या पत्नी में से कोई एक अपनी फुलटाइम नौकरी छोड़ कर फ्रीलांसिंग में भी हाथ आजमा सकता है.

दांपत्य जीवन में थोड़ी सूझबूझ से फैसले लिए जाएं, तो आपसी मनमुटाव डबल बर्डन सिंड्रोम से बचा जा सकता है.

क्या मुझ में मां बनने में कोई कमी है?

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. अपने बौयफ्रैंड के साथ 1 साल से कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं पर मुझे कभी संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई. मैं जानना चाहती हूं कि क्या मुझ में कोई कमी है और क्या मैं भविष्य में मां बन पाऊंगी या नहीं?

जवाब

सहवास के दौरान आनंदानुभूति न होने की मुख्य वजह सैक्स के प्रति आप की अनभिज्ञता ही है. जहां तक संतानोत्पत्ति का प्रश्न है तो उस का इस से कोई संबंध नहीं है. पीरियड के तुरंत बाद के कुछ दिनों में पति पत्नी समागम के बाद स्त्री गर्भ धारण कर लेती है, बशर्ते दोनों में से किसी में कोई कमी न हो. इसलिए आप कोई पूर्वाग्रह न पालें.

पर विवाह से पहले किसी से संबंध बनाना किसी भी नजरिए से उचित नहीं है. अत: इन संबंधों पर तुरंत विराम लगाएं वरना पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा.

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सैक्स से शर्म कैसी

तान्या की शादी तय हो गई थी और उस की विवाहित सहेलियां जबतब उसे छेड़ती रहती थीं. कभी सुहागरात की बात को ले कर, तो कभी पति के साथ हनीमून पर जाने की बात को ले कर. उन की बातें सुन कर अगर एक तरफ तान्या के शरीर में सिहरन दौड़ जाती, तो दूसरी ओर वह यह सोच कर सिहर जाती कि आखिर कैसे वह सैक्स संबंधों का मजा खुल कर ले पाएगी?

उसे तो सोचसोच कर ही शर्म आने लगती थी. आज तक वह यही सुनती आई थी कि सैक्स संबंधों के बारे में न तो खुल कर बात करनी चाहिए, न ही उसे ले कर उत्सुकता दिखानी चाहिए. पति के सामने शर्म का एक परदा पड़ा रहना आवश्यक है. नहीं तो पता नहीं वह क्या सोचे. दूसरी ओर उसे यह डर भी सता रहा था कि कहीं उस के पति को उस की देहयष्टि में कोई कमी तो महसूस नहीं होगी?

कितनी बार तो वह शीशे के सामने जा कर खड़ी हो जाती और हर कोण से अपने शरीर का मुआयना करती. पता नहीं, उस की फिगर ठीक है भी कि नहीं. कभी वह शरीर के गठन को ले कर कौंशस हो जाती, तो कभी यह सोच कर परेशान हो उठती कि पता नहीं वह अपने पति के साथ मधुर संबंध बना भी पाएगी या नहीं.

कहां से उपजती है शर्म

तान्या जैसी अनेक लड़कियां हैं, जो सैक्स को शर्म के साथ जोड़ कर देखती हैं, जिस की वजह से इस सहजस्वाभाविक प्रक्रिया व आवश्यकता को ले कर कई बार उन के मन में कुंठा भी पैदा हो जाती है. सैक्स के प्रति शर्म की भावना हमारे भीतर से नहीं वरन हमारे परिवेश से उत्पन्न होती है.

यह हमारे परिवारों से आती है, हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक परंपराओं से आती है, फिर हमारे मित्रों व हमारे समुदाय से हम तक पहुंचती है. आगे चल कर हम एक तरफ तो उन चित्रों और संदेशों को देख कर यह सीखते हैं जो हैं कि सैक्स एक सुखद एहसास है और जीवन में खुश रहने के लिए सफल सैक्स जीवन एक अनिवार्यता है तो दूसरी ओर उन संदेशों के माध्यम से सैक्स को शर्म से जोड़ कर देखते हैं, जो बताते हैं कि सैक्स संबंध बनाना गलत व एक तरह का पाप है. 

समाजशास्त्री कल्पना पारेख मानती हैं कि ज्यादातर ऐसा उन स्थितियों में होता है, जब लड़कियां यौन शोषण का शिकार होती हैं. सैक्स से संबंधित कोई भी मनोवैज्ञानिक, शारीरिक या भावनात्मक शोषण उस के प्रति अनासक्ति तो पैदा कर ही देता है, साथ ही अनेक वर्जनाएं भी लगा देता है.

जुड़ी हैं कई भ्रांतियां

शर्म इसलिए भी है क्योंकि हमारे समाज में सैक्स एक टैबू है और उस के साथ हमेशा कई तरह की भ्रांतियां जुड़ी रही हैं. अगर एक स्वाभाविक जरूरत की तरह कोई लड़की इस की मांग करे, तो भी शर्म की बात है. इस के अलावा सैक्स संबंधों को ले कर लड़कियों के मन में यह बात डाल दी जाती है कि इस के लिए उन का शरीर सुंदर और अनुपात में होना चाहिए.

ऐसे में जब तक वे युवा होती हैं समझ चुकी होती हैं कि उन का शरीर कैसा लगना चाहिए और जब उन का शरीर उस से मेल नहीं खाता, तो उन्हें शर्मिंदगी का एहसास होने लगता है. मैत्रेयी का विवाह हुए 1 महीना हो गया है, पर वह अभी भी पति के साथ संबंध बनाने में हिचकिचाती है. वजह है, उस का सांवला और बहुत अधिक पतला होना. उसे लगता है कि पति उस की रंगत और पतलेपन को पसंद नहीं करेंगे, इसलिए वह उन के निकट जाने से घबराती है. 

पति जब नजदीक आते हैं, तो वह कमरे में अंधेरा कर देती है. अपने शरीर के आकार को ले कर वह इतनी परेशान रहती है कि सैक्स संबंधों को ऐंजौय ही नहीं कर पाती है.

मनोवैज्ञानिक संध्या कपूर कहती हैं कि सैक्स के प्रति शर्म पतिपत्नी के बीच दूरियों की सब से बड़ी वजह है. पत्नी कभी खुले मन से पति के निकट जा नहीं पाती. फिर वे संबंध या तो मात्र औपचारिकता बन कर रह जाते हैं या मजबूरी. उन में संतुष्टि का अभाव होता है. यह शर्म न सिर्फ औरत को यौन आनंद से वंचित रखती है, वरन प्यार, सामीप्य व साहचार्य से भी दूर कर देती है. 

न छिपाएं अपनी इच्छाएं

यह एक कटु सत्य है कि भारतीय समाज में औरतों की यौन इच्छा को महत्त्व नहीं दिया जाता है. वे सैक्स को आनंद या जरूरत मानने के बजाय उसे विवाह की अनिवार्यता व बच्चे पैदा करने का जरिया मान कर या तो एक दिनचर्या की तरह निभाती हैं या फिर संकोच के चलते पति से दूर भागती हैं. उन की सैक्स से जुड़ी शर्म की सब से बड़ी वजह यही है कि बचपन से उन्हें बताया जाता है कि सैक्स एक वर्जित विषय है, इस के बारे में उन्हें बात नहीं करनी चाहिए. 

‘‘ऐसे में विवाह के बाद सैक्स के लिए पहल करने की बात तो कोई लड़की सोच भी नहीं पाती. इस की वजह वे सामाजिक स्थितियां भी हैं, जो लड़की की परवरिश के दौरान यह बताती हैं कि सैक्स उन के लिए नहीं वरन पुरुष के ऐंजौय करने की चीज है. जबकि संतुष्टिदायक सैक्स संबंध तभी बन सकते हैं, जब पतिपत्नी दोनों की इस में सक्रिय भागीदारी हो और वे बेहिचक अपनी बात एकदूसरे से कहें,’’ कहना है संध्या कपूर का.

संकोच न करें

सैक्स का शर्म से कोई वास्ता नहीं है, क्योंकि यह न तो कोई गंदी क्रिया है न ही पतिपत्नी के बीच वर्जित चीज. बेहतर होगा कि आप दोनों ही सहज मन से अपने साथी को अपनाते हुए सैक्स संबंधों का आनंद उठाएं. इस से वैवाहित जीवन में तो मधुरता बनी ही रहेगी, साथ ही किसी तरह की कुंठा भी मन में नहीं पनपेगी. पति का सामीप्य और भरपूर प्यार तभी मिल सकता है, जब आप उसे यह एहसास दिलाती हैं कि आप को उस की नजदीकी अच्छी लगती है. 

आंखों में खिंचे शर्म के डोरे पति को आप की ओर आकर्षित करेंगे, पर शर्म के कारण बनाई दूरी उन्हें नागवार गुजरेगी. मन में व्याप्त हर तरह की हिचकिचाहट और संकोच को छोड़ कर पति के साहचर्य का आनंद उठाएं.          

सफल सैक्स एक अनिवार्यता है

  1. विशेषज्ञों द्वारा किए गए कई शोधों से यह साबित हो चुका है कि सैक्स एक नैसर्गिक प्रक्रिया है और इस से न सिर्फ वैवाहिक जीवन में मधुरता बनी रहती है, बल्कि शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न रहता है.
  2. धार्मिक आडंबरों में फंस कर सैक्स को बुरी नजर से देखना गलत है. हकीकत में हमारी उत्पत्ति ही इसी की देन है.
  3. सैक्स सुरक्षित और साथी की सहमति से करना चाहिए.
  4. सैक्स में असंतुष्टि अथवा शर्म से दांपत्य संबंधों में मौन पसर सकता है. इसलिए इस पर खुल कर बात करें और इसे भरपूर ऐंजौय करें.
  5. नीमहकीम या झोलाछाप डाक्टरों के चक्कर में फंस कर सैक्स जीवन प्रभावित हो सकता है. इन से दूर रहें.
  6. सैक्स में निरंतरता के लिए मानसिक मजबूती व भावनात्मक संबंध जरूरी है.

पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी लें सेक्स का आनंद

‘‘और्गेज्म क्या होता है? क्या यह सैक्स से जुड़ा है? मैं ने तो कभी इस का अनुभव नहीं किया,’’ मेरी पढ़ीलिखी फ्रैंड ने जब मुझ से यह सवाल किया तो मैं हैरान रह गई.‘‘क्यों, क्या कभी तुम ने पूरी तरह से सैक्स को एंजौय नहीं किया?’’ मैं ने उस से पूछा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘सैक्स मेरे एंजौयमैंट के लिए नहीं है, वह तो मेरे पति के लिए है. सब कुछ इतनी जल्दी हो जाता है कि मेरी संतुष्टि का तो प्रश्न ही नहीं उठता है, वैसे भी मेरी संतुष्टि को महत्त्व दिया जाना माने भी कहां रखता है.’’

यह एक कटु सत्य है कि आज भी भारतीय समाज में औरत की यौन संतुष्टि को गौण माना जाता है. सैक्स को बचपन से ही उस के लिए एक वर्जित विषय मानते हुए उस से इस बारे में बात नहीं की जाती है. उस से यही कहा जाता है कि केवल विवाह के बाद ही इस के बारे में जानना उस के लिए उचित होगा. ऐसा न होने पर भी अगर वह इसे प्लैजर के साथ जोड़ती है तो पति के मन में उस के चरित्र को ले कर अनेक सवाल पैदा होने लगते हैं. यहां तक कि सैक्स के लिए पहल करना भी पति को अजीब लगता है. इस की वजह वे सामाजिक स्थितियां भी हैं, जो लड़कियों की परवरिश के दौरान यह बताती हैं कि सैक्स उन के लिए नहीं वरन पुरुषों के एंजौय करने की चीज है.

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