वो एक रात: क्या हो पाई अलका की शादी

आज का दिन ही कुछ अजीब था. सुबह से ही कुछ न कुछ हो रहा था. कालेज से आते समय रिकशे की टक्कर. बस बच गई वरना हाथपैर टूट जाते. फिर वह खतरनाक सा आदमी पीछे पड़ गया. बड़ी मुश्किल से रास्ता काट कर छिपतेछिपाते घर पहुंच पाई. उसे घबराया हुआ देख कर मम्मी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अलका बड़ी घबराई हुई है?’’

‘‘कुछ नहीं मम्मी बस यों ही मन ठीक नहीं है,’’ कह कर वह बात टाल गई.

फिर अभीअभी फोन आया कि मौसाजी के बेटे का ऐक्सीडैंट हो गया है सो मम्मीपापा तुरंत चल दिए. उस का सिविल परीक्षा का पेपर था, इसलिए वह नहीं गई. उस पर शाम से ही मौसम अलग रंग में था. रुकरुक कर बारिश हो रही थी. बिजली चमक रही थी. थोड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था, परंतु वह अपने को दिलासा दे रही थी बस एक रात की ही तो बात है, वह रह लेगी. रात के 11 बजे थे. अभी उसे और पढ़ना था. सोचा चलो एक कौफी पी ली जाए. फिर पढ़ाई करेगी. वह किचन की तरफ बढ़ी ही थी तभी जोरदार ब्रेक लगने की आवाज आई और फिर एक चीख की. पहले तो अलका थोड़ा घबराई, फिर उस ने मेनगेट खोला तो सामने एक युवक घायल पड़ा था, खून से लथपथ और अचेत. अलका ने इधरउधर देखा कि शायद कोई दिखाई दे, परंतु वहां कोई नहीं था जो उस की हैल्प करता. ‘अगर वह अंदर आ गई तो वह युवक मर भी सकता है,’ कुछ देर सोचने के बाद उस ने उसे उठाने का निश्चय किया. तभी सामने के घर से रवि निकला.

‘‘अरे, रवि देखो तो किसी ने टक्कर मार दी है. बहुत खून बह रहा है. जरा मदद करो… इसे हौस्पिटल ले चलते हैं.’’

‘‘अरे, अलका दीदी ऐक्सीडैंट का केस है, मैं किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहता. आप भी अंदर जाओ,’’ रवि ने कहा.

‘‘अरे, कम से कम इसे उठाओ तो… मैं फर्स्ट एड दे देती हूं… और जरा देखो कोई मोबाइल बगैरा पड़ा है क्या आसपास.’’

रवि ने इधरउधर देखा तो कुछ दूर एक मोबाइल पड़ा था. उस ने उठा कर अलका को दे दिया और फिर दोनों ने सहारा दे कर युवक को ड्राइंगरूम में सोफे पर लिटा दिया. उस के बाद रवि चला गया.

अलका ने उस की पट्टी कर दी. फिर उस ने देखा कि वह कांप

रहा है तो वह अपने भाई के कपड़े ले आई और बोली कि आप कपड़े बदल लीजिए, परंतु वह तो बेहोश था. फिर थोड़ा हिचकते हुए उस ने उस के कपड़े बदल डाले. उसे थोड़ा अजीब लगा, लेकिन अगर वह उस के कपड़े नहीं बदलती तो चोट के साथ उसे बुखार भी आ सकता था.

‘‘ओह गीता,’’ थोड़ा कराहते हुए वह अजनबी युवक बुदबुदाया. अचानक बेहोशी की हालत में उस अजनबी युवक ने अलका का हाथ कस कर पकड़ लिया.

एक पल को अलका घबरा गई. फिर बोली, ‘‘अरे हाथ तो छोडि़ए.’’

मगर वह तो बेहोश था. धीरेधीरे उस की हालत खराब होती जा रही थी.

अब अलका घबराने लगी थी. अगर इसे कुछ हो गया तो क्या होगा. मैं ही पागल थी जो इसे घर ले आई… रवि ने मना भी किया था, मगर मैं ही नहीं मानी. पर न लाती तो यह मर जाता. मैं ने तो सोचा कि पट्टी कर के घर भेज दूंगी पर अब क्या करूं?

तभी अचानक जोर से बिजली कड़की और उस ने बेहोशी में ही उस का हाथ जोर से खींचा और अलका उस के ऊपर गिर पड़ी और फिर अंधेरा छा गया.

सुबह होने को थी. उस की हालत बिगड़ती जा रही थी. अलका ने ऐंबुलैंस बुलाई और उसे हौस्पिटल ले गई. उपचार मिलने के बाद युवक को होश आया तो डाक्टर ने उसे अलका के बारे में बताया कि वही उसे यहां लाई थी.

तब वह युवक बोला, ‘‘धन्यवाद देना तो आप के लिए बहुत छोटी बात होगी अलकाजी… समझ नहीं पा रहा कि मैं आप को क्या दूं.’’

‘‘कुछ नहीं बस आप जल्दी से ठीक हो जाएं,’’ अलका ने कहा.

वह बोला, ‘‘मेरा नाम ललित है और मैं आर्मी में लैफ्टिनैंट हूं. कल मेरी गाड़ी खराब हो गई थी. मैं मैकेनिक की तलाश में अपनी गाड़ी से बाहर आया था. तभी एक कार मुझे टक्कर मार कर चली गई. फिर उस के बाद मेरी आंखें यहां खुलीं. आप ने मेरी जान बचाई आप का बहुतबहुत धन्यवाद वरना गीता मेरा इंतजार ही करती रह जाती.’

‘‘ललितजी क्या आप को रात की बात बिलकुल याद नहीं?’’ अलका ने पूछा.

‘‘क्या मतलब? कौन सी बात?’’

ललित बोला.

‘‘नहीं मेरा मतलब वह कौन था, जिस ने आप को टक्कर मारी थी?’’ अलका जानबूझ कर असलियत छिपा गई.

‘‘नहीं अलकाजी मुझे कुछ याद नहीं आ रहा,’’ दिमाग पर जोर डालते हुए ललित बोला, ‘‘हां, अगर आप को तकलीफ न हो तो कृपया मेरी वाइफ को फोन कर दीजिए. वह परेशान होगी.’’

अब अलका को अपने चारों ओर अंधेरा दिखाई देने लगा. उफ, यह इमोशनल हो कर मैं ने क्या कर डाला और ललित वह तो निर्दोष था और अनजान भी. जो कुछ भी हुआ वह एक  झटके में हुआ और बेहोशी में. ललित की हालत देख कर वह उस से कुछ न कह पाई, पर अब?

जैसेतैसे उस ने अपने को संभाल कर ललित के घर फोन किया और उस की पत्नी के आने पर उसे सबकुछ समझा कर अपने घर लौट आई. जब वह लौट कर आई तो देखा कि मम्मीपापा दरवाजे पर खड़े हैं.

‘‘अरे अलका कहां चली गई थी सुबहसुबह और यह तेरा चेहरा ऐसा लग रहा है जैसे पूरी रात सोई न हो?’’ पापा चिंतित स्वर में बोले.

‘‘ठीक कह रहे हैं अंकलजी… आजकल मैडम ने समाजसेवा का ठेका ले रखा है,’’ रवि

ने कहा.

‘‘चलो, मैं ने तो ले लिया पर तुम तो लड़के हो कर भी नजरें छिपा गए. किसी को मरने से बचाना गलत है क्या पापा?’’

उस के बाद रवि और अलका ने मिल कर पूरी बात बताई और ढूंढ़ा तो वहीं पास में ललित की गाड़ी भी खड़ी मिल गई. बाद में अलका ने ललित के घर वालों को फोन कर के बता दिया तो उस के घर वाले आ कर ले गए.

‘‘बेटा, यह तो ठीक किया परंतु आगे से हमारी गैरमौजूदगी में फिर ऐसा नहीं करना. यह तो ठीक है कि वह एक अच्छा इंसान है, परंतु अगर कोई अपराधी होता तो क्या होता,’’ अलका के पापा बोले.

‘‘अरे, अब छोडि़ए भी न. अंत भला तो सब भला. वैसे भी वह पूरी रात की जगी हुई है,’’ अलका की मम्मी बोलीं, ‘‘चल बेटी चाय पी कर थोड़ा आराम कर ले.’’

अलका अंदर चली गई साथ में एक तूफान भी वह उस रात अकेली थी, मगर पूरी थी और अब जब सब साथ हैं और वह घर में घुस रही है, तो उसे यह क्यों लग रहा है कि वह अधूरी है और यह कमी कभी पूरी होने वाली नहीं थी, क्योंकि जिस ने उसे अधूरा किया था वह तो एक अनजान इंसान था और इस बात से भी अनजान कि उस से क्या हो गया.

धीरेधीरे 1 महीना बीत गया. अलका की परीक्षा अच्छी हो गई और आज उसे लड़के वाले देखने आए थे. मम्मीपापा उन लोगों से बातें कर रहे थे. चायनाश्ता चल रहा था. लड़का डाक्टर था. परिवार भी सुलझा हुआ था.

‘‘रोहित बेटा तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं. कुछ तो लो?’’ अलका के पापा बोले.

‘‘बहुत खा लिया अंकल,’’ रोहित ने जवाब दिया.

‘‘भाई साहब, अब तो अलका को बुलवा लीजिए. रोहित कब से इंतजार कर रहा है,’’ थोड़ा मुसकरा कर रोहित की मम्मी बोलीं.

‘‘नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है,’’ रोहित थोड़ा झेंपता सा बोला.

‘‘अरे अलका की मां अब तो सचमुच बहुत देर हो गई है. अब तो अलका को ले आओ.’’

मम्मी अंदर जा कर बोलीं, ‘‘अलका, अब कितनी देर और लगने वाली है… सब इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘बस हो गया मम्मी चलिए,’’ अलका बोली और फिर वह और उस की मम्मी ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ने लगीं.

अचानक अलका को लगा कि सबकुछ गोलगोल घूम रहा है और वह

बेहोश हो कर गिर पड़ी. हर तरफ सन्नाटा छा गया कि क्या हुआ. उस के पापा और सब लोग उस तरफ बढ़े तो रोहित बोला कि ठहरिए अंकल मैं देखता हूं. मगर उस ने जैसे ही उस की नब्ज देखी तो उस के चेहरे के भाव बदल गए. हर कोई जानना चाहता था कि क्या हुआ. रोहित ने उसे उठा कर पलंग पर लिटाया और फिर उस के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो उसे थोड़ा होश आया. अलका ने उठने की कोशिश की तो वह बोला लेटी रहो.

‘‘मुझे क्या हो गया अचानक पता नहीं,’’ अलका ने कहा.

‘‘कुछ खास नहीं बस थोड़ी देर आराम करो,’’ कह रोहित ने एक इंजैक्शन लगा दिया.

अब सब को बेचैनी होने लगी खासतौर पर अलका के पापा को. वे बोले, ‘‘रोहित बेटा, बताओ न क्या हुआ अलका को?’’

‘‘कुछ खास नहीं अंकल थोड़ी कमजोरी है और नए रिश्ते को ले कर टैंशन तो हो ही जाती है… अब सबकुछ ठीक है. क्या मैं अलका से अकेले में बात कर सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं,’’ अलका के पिता बोले.

अलका कुछ असमंजस में थी. सोच रही थी कि क्या हुआ. तभी कमरे में रोहित ने प्रवेश किया. उसे देख कर अलका कुछ सकुचा कर बोली, ‘‘पता नहीं क्या हुआ रोहितजी… बस कमरे में आई और सबकुछ घूमने लगा और मैं बेहोश हो गई.’’

‘‘क्या तुम्हें सचमुच कुछ नहीं मालूम

अलका?’’ रोहित उसे गहरी नजरों से देखते हुए बोला.

‘‘आप तो डाक्टर हैं आप को तो पता होगा कि मुझे क्या हुआ है?’’

‘‘क्या तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो?’’ रोहित ने कहा.

‘‘रोहितजी न तो मैं आप को अच्छी तरह जानती हूं और न ही आप मुझे. फिर भी मैं आप के ऊपर पूरा भरोसा कर सकती हूं.’’

‘‘तो सुनो तुम प्रैगनैंट हो,’’ रोहित ने कहा.

अलका के सिर पर जैसे आसमान गिर गया हो. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस दिन की एक छोटी सी घटना इतने बड़े रूप में उस के सामने आएगी. वह आंसू भरी आंखों से रोहित

को देखती रह गई और वह सारा घटनाक्रम

ललित का ऐक्सीडैंट, वह बरसात की रात,

ललित का समागम सब उस की आंखों के सामने तैर गया.

‘‘कहां, कैसे क्या हुआ तुम मुझे बता सकती हो? बेशक हमारी शादी नहीं हुई पर मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा, उस धोखेबाज की तरह जो तुम्हें मंझधार में छोड़ कर चला गया.’’

‘‘नहीं वह धोखेबाज नहीं था रोहितजी,’’ अलका ने थरथराते हुए कहा.

‘‘फिर यह क्या है जरा बताओगी मुझे?’’ रोहित ने कुछ व्यंग्य से कहा.

‘‘वह तो हालात का मारा था. उस दिन बहुत बरसात हो रही थी. उस का ऐक्सीडैंट हुआ था. बहुत खून बह रहा था. मैं इमोशनल हो गई और उसे अंदर ले आई. सोचा था कि पट्टी बगैरा कर के घर भेज दूंगी पर उस की हालत बिगड़ती गई. वह बेहोश था और बेहोशी की हालत में बारबार अपनी वाइफ का नाम ले रहा था. बस तभी यह हादसा हो गया. मैं तो इसे एक हादसा समझ कर भूल गई थी पर यह इस रूप में सामने आएगा सोचा भी न था. अब क्या होगा राहितजी?’’ वह थरथराते होंठों से बोली.

‘‘कुछ नहीं होगा. जो कहता हूं ध्यान से सुनो. सामान्य हो कर बाहर आ जाओ.’’

रोहित बाहर आया तो सब इंतजार कर रहे थे खासतौर पर अलका के पापा.

‘‘हां रोहितजी, कहिए क्या फैसला है

आप का?’’

‘‘मुझे लड़की पसंद है पापाजी,’’ रोहित मुसकराते हुए बोला.

‘‘भई मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी,’’ रोहित के पापा हंसते हुए बोले.

‘‘पापाजी एक बात कहनी थी,’’ रोहित ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ अलका के पापा कुछ घबराते हुए बोले.

‘‘पापीजी आप डर क्यों रहे हैं? बस इतना कहना है कि जितनी भी रस्में हैं शादी सहित सब 1 महीने में ही कर दीजिए.’’

‘‘पर 1 महीने में हम पूरी तैयारी कैसे करेंगे बेटा? कुछ और समय दो.’’

‘‘बात यह है पापाजी मुझे आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना है तो मैं सोच रहा इस बीच में शादी भी निबटा ली जाए ताकि अलका भी मेरे साथ अमेरिका चले.’’

‘‘ठीक कह रहा है रोहित. वैसा ही करते हैं. क्यों रोहित की मां?’’ रोहित के पापा बोले.

‘‘जैसा आप लोग ठीक समझें,’’ अनमने से भाव से रोहित की मम्मी बोलीं.

अगले दिन रोहित अपने कमरे में बैठा था. तभी उस की मम्मी चाय ले कर आईं.

‘‘मैं जानता हूं मम्मी आप क्यों परेशान हो… लेकिन आप को मुझ से वादा करना पड़ेगा कि जो कुछ भी मैं आप को बताऊंगा उसे आप किसी से भी शेयर नहीं करेंगी.’’

‘‘चल वादा किया… अब तू इस आननफानन की शादी की मतलब बता.’’

रोहित ने उन्हें उस ऐक्सीडैंट से ले कर सारी बात बताई और वादा लिया कि वे किसी से भी इस बारे में कोई बात नहीं करेंगी यहां तक कि रोहित के पापा और अलका के किसी भी घर वाले से नहीं.

इस तरह चट मंगनी पट ब्याह कर के आज अलका और रोहित हनीमून पर जा रहे हैं. अलका आज बहुत भावुक थी.

रोहित से कहा, ‘‘आप ने न सिर्फ मेरी इज्जत बचाई, बल्कि मेरे पूरे परिवार की भी इज्जत बचा कर मुझे उन की नजरों से गिरने से बचा लिया. मैं आप का यह कर्ज कभी नहीं उतार पाऊंगी.’’

‘‘अलका अब अपने मन पर कोई बोझ मत रखो. जो हुआ उस में न तो तुम्हारा कोई दोष था न उस अनजाने का और न ही इस छोटी सी जान का जो इस दुनिया में अभी आई भी नहीं है. अब यह जो भी आएगा या आएगी वह मेरा ही अंश होगा, बस यह मानना.’’

तभी एअरहोस्टेस की आवाज गूंजी, ‘‘कृपया सभी यात्री अपनीअपनी सीट बैल्ट बांध लें.

इक घड़ी दीवार की: क्या थी चेष्ठा की कहानी

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विदाई- भाग 3: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते.

नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते.

‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’

नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’

वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता.

एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया.

उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा.

‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा.

‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’

कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए.

‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं.

आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती.

अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे.

‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही.

‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा.

‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’

‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी.

कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’

जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया.

कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी.

विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था.

विदाई- भाग 2: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे.

कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था.

‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’

नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया.

कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया.

उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे.

भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया.

सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ.

हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था.

अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई.

‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं.

अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में  रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए.

नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता.

उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते.

नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था.

इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया.

उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती.

एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’

‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई.

‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’

‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है.’’

‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए.

नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना.

उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया.

‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा.

नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया.

उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती.

‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा.

‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया.

नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है.

‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा.

‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं.

‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं.

कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा.

हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता.

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 4

तब तक नीरजा चाय बना लाई और मैं उस का सिर अपने कंधे पर टिका कर उसे सांत्वना देने लगी. अब तक हम उस की प्रेम कहानी को मजाक समझ कर हंस कर टाल देते थे पर आज अचानक लगा कि संगीता तो सचमुच गंभीर है. बात अब पृथ्वीराज के मातापिता तक पहुंच चुकी थी.

‘‘मैं तो कहती हूं कि इस प्रेमकथा को यहीं समाप्त कर दो. इसी में हम सब की भलाई है,’’ अंतत: मौन नीरजा ने तोड़ा.

‘‘क्या कह रही हो तुम? संगीता की तो जान बसती है पृथ्वीराज में,’’ सपना ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘हां, पर इस के चक्कर में इस के प्रेमी की जान भी जा सकती थी… फिर क्या होता इस की जान का?’’ नीरजा की बात कड़वी जरूर थी पर थी सच.

‘‘मैं अपने फैसले स्वयं ले सकती हूं. कृपया मुझे अकेला छोड़ दो,’’ संगीता ने आंसू पोंछ लिए. अब संगीता पढ़ाई में कुछ इस तरह जुट गई कि उसे दीनदुनिया का होश ही नहीं रहा. न पहले की तरह हंसतीबोलती न हमें हंसाती.

गनीमत है कि पृथ्वीराज को अधिक चोट नहीं आई थी. फिर भी उसे कालेज आने में 6 सप्ताह लग गए.

‘‘अब तेरे पृथ्वीराज की भविष्य की क्या योजना है?’’ एक दिन सपना ने संगीता से पूछ ही लिया.

‘‘हम ने इस विषय पर बहुत बात की. पृथ्वी तो फिर से घुड़सवारी शुरू करना चाहता है पर मैं ने ही मना कर दिया,’’ संगीता गंभीरता से बोली.

‘‘पर तेरा संयोगिता वाला स्वप्न?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘मैं अपने स्वप्न के लिए पृथ्वीराज को खोने का खतरा तो नहीं उठा सकती न. वैसे भी यह 21वीं सदी है. अब सपनों के राजकुमार घोड़े पर नहीं, बाइक पर आते हैं,’’ संगीता हंसी.

संगीता की हंसी में न जाने कैसी उदासी थी कि हम सब भी उदास हो गए पर कुछ कह कर हम उसे और उदास नहीं करना चाहते थे. संगीता अपनी पुस्तकों में डूब गई पर हम चाह कर भी अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे.

‘‘बेचारी संगीता, न जाने उस की खुशियों को कैसे ग्रहण लग गया,’’ सपना अचानक भावुक हो उठी.

‘‘क्या कह रही हो. संगीता की नादानी तो पृथ्वीराज को भी ले डूबी. बड़ी संयोगिता बनने चली थी. ऐतिहासिक चरित्र… मुझे तो पृथ्वीराज पर तरस आता है. संगीता प्रेम में कुएं में कूदने को कहती तो क्या कूद जाता वह?’’ नीरजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. प्रैक्टिकल, प्रोजैक्ट और थ्यौरी की तैयारी के बीच हम संगीता की प्रेम कहानी को लगभग भूल चुके थे. अंतिम पेपर के बाद हम बसस्टैंड पर खड़े अपनी सखियों से विदा ले रहे थे. भविष्य के सपनों में डूबे सब के मन में अजीब सी उदासी थी. हमारी कुछ सहपाठिनें तो इस अवसर पर अपने आंसू रोक नहीं पा रही थीं. फूटफूट कर रो रही थीं. तभी वहां अजीब सा शोर उभरा. घोड़े की टापें सुनाई दीं. इस से पहले कि हम कुछ समझ पाते घोड़ा हमारी आंखों से ओझल हो गया.

‘पृथ्वीराज… पृथ्वीराज…’’ नीरजा चीखी पर हमारी समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या है? पृथ्वीराज संगीता को उठा ले गया. देखा नहीं? घोड़े पर आया था. नीरजा अब भी कांप रही थी,’’ हमारा डर के मारे बुरा हाल था. हम घर पहुंचे तो हांफ रहे थे. मैं तो मम्मी को देखते ही रोते हुए उन से लिपट गई. सिसकियां थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

मम्मी ने हमें समझाबुझा कर शांत किया. पर जब हम ने सिसकियों के बीच टूटेफूटे शब्दों में उन्हें सारी बात बताई तो उन्होंने सिर थाम लिया.

‘‘इतनी बड़ी बात छिपा ली तुम सब ने? मेरा सिर तो सदा के लिए झुका दिया तुम ने… और वह संगीता… कितना नाज था मुझे उस पर. उस ने एक बार भी अपने मातापिता के संबंध में नहीं सोचा कि उन पर क्या बीतेगी. क्या करूं अब?’’

‘‘करना क्या है? पुलिस में रिपोर्ट लिखवाओ वरना संगीता का पता कैसे चलेगा?’’ मैं बोली.

‘‘पता है. तुम सब की होशियारी देख ली मैं ने. लड़की का मामला है, बहुत सोचसमझ कर कदम उठाना पड़ता है. पहले तो संगीता के मातापिता को सूचित करना पड़ेगा. पता नहीं बेचारों पर क्या बीतेगी. फिर जैसा वे कहेंगे वैसा ही करेंगे.’’ पर पुलिसकचहरी तक पहुंचने की नौबत नहीं आई. संगीता के मातापिता के पहुंचने से पहले ही संगीता का फोन आ गया था. इस बार दोनों को घोड़े से गिर कर चोट आई थी और दोनों ही नर्सिंगहोम में भरती थे. अब तो प्रेम कहानी ने बेहद जटिल रूप धारण कर लिया था. दोनों पक्षों के दर्जनों संबंधी आ जुटे थे और अपनाअपना पक्ष ले कर दूसरे पक्ष को दोषी ठहराने में जुटे थे. बीचबीच में हम तीनों को भी जी भर कर कोसा जाता कि हम ने सारी बात को तब तक छिपाए रखा जब तक पानी सिर से नहीं गुजर गया. हम मूर्ति बन सारी लानतें सह रह थे. अचानक एक दिन चमत्कार हो गया. न जाने कैसे दोनों पक्ष इस निर्णय पर पहुंच गए कि पृथ्वीराज और संगीता को खुला छोड़ना खतरे से खाली नहीं. अत: दोनों का विवाह ही एकमात्र समाधान है. दोनों बहुत गिड़गिड़ाए. पृथ्वीराज ने तो यहां तक कहा कि अपने पैरों पर खड़े हुए बिना वह विवाह मंडप में पैर भी नहीं रखेगा पर किसी ने दोनों की एक न सुनी और चट मंगनी पट विवाह की घोषणा कर दी. विवाह के अवसर पर पृथ्वीराज और संगीता ने लंगड़ाते हुए विवाह की रस्में पूरी कीं. स्वागत भोज के अवसर पर सपना से नहीं रहा गया. बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बड़े छिपेरुस्तम निकले? पैर तुड़वा लिए पर संगीता का सपना पूरा कर के ही माने.’’

‘‘यह राज की बात है किसी से कहना मत.’’

‘‘राज की बात? मैं कुछ समझी नहीं,’’ सपना बोली.

‘‘हम अपने घर वालों से विवाह की अनुमति लेने जाते तो जाति के नाम पर न जाने कितनी हायतोबा मचाते. अब देखो उन्होंने स्वयं हमें घेर कर विवाह करवा दिया,’’ पृथ्वीराज अपने विशेष अंदाज में मुसकराया. संगीता की आंखों में भी शरारत भरी मुसकान थी.

‘‘संगीता, सचमुच तुम इस खुशी की हकदार हो,’’ पहली बार नीरजा ने संगीता की प्रशंसा की. उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

हम उस का दर्द भलीभांति समझते थे. उस का मित्र अंकुश कब का उसे छोड़ कर किसी और के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रहा था. पर आज का दिन तो केवल संगीता के नाम था और हम सब कुछ भूल कर उस के विवाह का जश्न मना रहे थे.

विदाई- भाग 1: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

नीरज 3 महीने की टे्रनिंग के लिए दिल्ली से मुंबई गया था पर उसे 2 माह बाद ही वापस दिल्ली लौटना पड़ा था.

‘‘कविता की तबीयत बहुत खराब है. डा. विनिता कहती हैं कि उसे स्तन कैंसर है. तुम फौरन यहां आओ,’’ टेलीफोन पर अपने पिता से पिछली शाम हुए इस वार्त्तालाप पर नीरज को विश्वास नहीं हो रहा था.

कविता और उस की शादी हुए अभी 6 महीने भी पूरे नहीं हुए थे. सिर्फ 25-26 साल की कम उम्र में कैंसर कैसे हो गया? इस सवाल से जूझते हुए नीरज का सिर दर्द से फटने लगा था.

एअरपोर्ट से घर न जा कर नीरज सीधे डा. विनिता से मिलने पहुंचा. इस समय उस का दिल भय और चिंता से बैठा जा रहा था.

डा. विनिता ने जो बताया उसे सुन कर नीरज की आंखों से आंसू झरने लगे.

‘‘तुम्हें तो पता ही है कि कविता गर्भवती थी. उसे जिस तरह का स्तन कैंसर हुआ है, उस का गर्भ धारण करने से गहरा रिश्ता है. इस तरह का कैंसर कविता की उम्र वाली स्त्रियों को हो जाता है,’’ डा. विनिता ने गंभीर लहजे में उसे जानकारी दी.

‘‘अब उस का क्या इलाज करेंगे आप लोग?’’ अपने आंसू पोंछ कर नीरज ने कांपते स्वर में पूछा.

बेचैनी से पहलू बदलने के बाद डा. विनिता ने जवाब दिया, ‘‘नीरज, कविता का कैंसर बहुत तेजी से फैलने वाला कैंसर है. वह मेरे पास पहुंची भी देर से थी. दवाइयों और रेडियोथेरैपी से मैं उस के कैंसर के और ज्यादा फैलने की गति को ही कम कर सकती हूं, पर उसे कैंसरमुक्त करना अब संभव नहीं है.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं? मेरी कविता क्या बचेगी नहीं?’’ नीरज रोंआसा हो कर बोला.

‘‘वह कुछ हफ्तों या महीनों से ज्यादा हमारे साथ नहीं रहेगी. अपनी प्यार भरी देखभाल व सेवा से तुम्हें उस के बाकी बचे दिनों को ज्यादा से ज्यादा सुखद और आरामदायक बनाने की कोशिश करनी होगी. कविता को ले कर तुम्हारे घर वालों का आपस में झगड़ना उसे बहुत दुख देगा.’’

‘‘यह लोग आपस में किस बात पर झगड़े, डाक्टर?’’ नीरज चौंका और फिर ज्यादा दुखी नजर आने लगा.

‘‘कैंसर की काली छाया ने तुम्हारे परिवार में सभी को विचलित कर दिया है. कविता इस समय अपने मायके में है. वहां पहुंचते ही तुम्हें दोनों परिवारों के बीच टकराव के कारण समझ में आ जाएंगे. तुम्हें तो इस वक्त बेहद समझदारी से काम लेना है. मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ नीरज की पीठ अपनेपन से थपथपा कर डा. विनिता ने उसे विदा किया.

ससुराल में कविता से मुलाकात करने से पहले नीरज को अपने सासससुर व साले के कड़वे, तीखे और अपमानित करने वाले शब्दों को सुनना पड़ा.

‘‘कैंसर की बीमारी से पीडि़त अपनी बेटी को मैं ने धोखे से तुम्हारे साथ बांध दिया, तुम्हारे मातापिता के इस घटिया आरोप ने मुझे बुरी तरह आहत किया है. नीरज, मैं तुम लोगों से अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता हूं,’’ गुस्से में उस के ससुर ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘इस कठिन समय में उन की मूर्खतापूर्ण बातों को आप दिल से मत लगाइए,’’ थकेहारे अंदाज में नीरज ने अपने ससुर से प्रार्थना की.

‘‘इस कठिन समय को गुजारने के लिए तुम सब हमें अकेले छोड़ने की कृपा करो. बस,’’ उस के साले ने नाटकीय अंदाज में अपने हाथ जोड़े.

‘‘तुम भूल रहे हो कि कविता मेरी पत्नी है.’’

‘‘आप जा कर अपने मातापिता से कह दें कि हमें उन से कैसी भी सहायता की जरूरत नहीं है. अपनी बहन का इलाज मैं अपना सबकुछ बेच कर भी कराऊंगा.’’

‘‘देखिए, आप लोगों ने आपस में एकदूसरे से झगड़ते हुए क्याक्या कहा, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. मेरी गृहस्थी उजड़ने की कगार पर आ खड़ी हुई है. कविता से मिलने को मेरा दिल तड़प रहा है…उसे मेरी…मेरे सहारे की जरूरत है. प्लीज, उसे यहां बुलाइए,’’ नीरज की आंखों से आंसू बहने लगे.

नीरज के दुख ने उन के गुस्से के उफान पर पानी के छींटे मारने का काम किया. उस की सास पास आ कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

अब उन सभी की आंखों में आंसू छलक उठे.

‘‘कविता की मौसी उसे अपने साथ ले कर गई हैं. वह रात तक लौटेंगी. तुम तब तक यहां आराम कर लो,’’ उस की सास ने बताया.

अपने हाथों से मुंह कई बार पोंछ कर नीरज ने मन के बोझिलपन को दूर करने की कोशिश की. फिर उठ कर बोला, ‘‘मैं अभी घर जाता हूं. रात को लौटूंगा. कविता से कहना कि मेरे साथ घर लौटने की तैयारी कर के रखे.’’

आटोरिकशा पकड़ कर नीरज घर पहुंचा. उस का मन बुझाबुझा सा था. अपने मातापिता के रूखे स्वभाव को वह अच्छी तरह जानता था इसलिए उन्हें समझाने की उस ने कोई कोशिश भी नहीं की.

कविता की जानलेवा बीमारी की चर्चा छिड़ते ही उस की मां ने गुस्से में अपने मन की बात कही, ‘‘तेरी ससुराल वालों ने हमें ठग कर अपनी सिरदर्दी हमारे सिर पर लाद दी है, नीरज. कविता के इलाज की भागदौड़ और उस की दिनरात की सेवा हम से नहीं होगी. अब उसे अपने मायके में ही रहने दे, बेटे.’’

‘‘तेरे सासससुर ने शादी में अच्छा दहेज देने का मुझे ताना दिया है. सुन, अपनी मां से कविता के सारे जेवर ले जा कर उन्हें दे देना,’’ नीरज के पिता भी तेज गुस्से का शिकार बने हुए थे.

नीरज की छोटी बहन वंदना ने जरूर उस के साथ कुछ देर बैठ कर अपनी आंखों से आंसू बहाए पर कविता को घर लाने की बात उस ने भी अपने मुंह से नहीं निकाली.

अपने कमरे में नीरज बिना कपड़े बदले औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ा. इस समय वह अपने को बेहद अकेला महसूस कर रहा था. अपने घर व ससुराल वालों के रूखे व झगड़ालू व्यवहार से उसे गहरी शिकायत थी.

उस के अपने घर वाले बीमार कविता को घर में रखना नहीं चाहते थे और ससुराल में रहने पर नीरज का अपना दिल नहीं लगता. वह कविता के साथ रह कर कैसे यह कठिन दिन गुजारे, इस समस्या का हल खोजने को उसे काफी माथापच्ची करनी पड़ी.

उस रात कविता से नीरज करीब 2 माह बाद मिला. उसे देख कर नीरज को मन ही मन जबरदस्त झटका लगा. उस की खूबसूरत पत्नी का रंगरूप मुरझा गया था.

लुकाछिपी- भाग 4: क्या हो पाई कियारा औक अनमोल की शादी

अनमोल को पा कर कियारा बेहद खुश थी. वह अनमोल में कुछ इस तरह डूबी हुई थी कि उस ने अपना सबकुछ अनमोल पर लुटा दिया. अपनेआप को अनमोल को समर्पित दिया. अनमोल के प्यार में कियारा इस कद्र अंधी थी कि उसे अनमोल के आगे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था. वह यह भी देखने को तैयार नहीं थी कि संदीप भी उस से बेइंतहा मुहब्बत करता है, लेकिन यह बात अनमोल भाप चुका था और यही वजह थी कि कियारा का संदीप से मिलना उसे पसंद नहीं था.

अकसर वीकैंड पर कियारा अनमोल के फ्लैट में रात रुक जाती या जब

भी अजय नहीं होता वह अनमोल के साथ ही रातें गुजारती. अब कियारा जल्द से जल्द अनमोल के संग ब्याह के बंधन में बंध कर अपना घर बसाना चाहती थी, इसलिए एक रात जब वह अनमोल की बांहों में अपना सिर रख कर लेटी हुई थी तो उस ने अनमोल से कहा, ‘‘अनमोल अब हमें शादी कर लेनी चाहिए.’’

यह सुनते ही अनमोल कियारा के लबों पर अपने प्यार की निशानी अंकित करते हुए बोला, ‘‘माई डियर मैं भी यही सोच रहा हूं कोई तुम्हें उड़ा कर ले जाए, उस से पहले मैं तुम्हें उड़ा ले जाऊं.’’

उस के बाद अनमोल और कियारा ने अपने घर वालों के समक्ष अपनी शादी की इच्छा जाहिर की और दोनों के ही परिवार वाले भी इस शादी के लिए सहर्ष तैयार हो गए क्योंकि दोनों एक ही बिरादरी से थे और दोनों का सामाजिक स्तर भी बराबरी का था. कुछ ही हफ्तों बाद अनमोल और कियारा की सगाई हो गई और औफिस में चल रही सारी अठखेलियां कियारा और अनमोल के सगाई के बाद समाप्त हो गईं.

सलोनी की शादी भी उस की भाभी के छोटे भाई अंशु से फिक्स हो गई. यों लग रहा था जैसे सबकुछ सही हो गया है. सभी के सपनों को पंख मिल गए थे और सभी ऊंची उड़ान भरने लगे थे, लेकिन जिंदगी जितनी सरल दिखती है उतनी आसान होती कहां है. अभी जिंदगी को अपना एक अलग ही रंग दिखाना बाकी था.

तभी एक दिन कियारा किसी से कुछ भी बताए बगैर अनमोल के फ्लैट में जा पहुंची. सगाई के बाद से अनमोल के फ्लैट की एक चाबी कियारा के पास भी थी. फ्लैट पहुंच कर जैसे ही उस ने दरवाजा खोला और कियारा की आंखों ने जो देखा उसे देख कियारा को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. सलोनी को अनमोल की बांहों में देख कियारा स्तब्ध रह गई. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सलोनी और अनमोल उस के साथ ऐसा करेंगे. वह जानती थी कि सलोनी हर हफ्ते बौयफ्रैंड बदलती है, लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि अनमोल और सलोनी उस की पीठ पीछे लुकाछिपी का ऐसा गंदा खेल खेल रहे हैं. वह सम झती थी कि अजय और सलोनी के बीच में कुछ है शायद इसलिए सलोनी बारबार अनमोल के फ्लैट में अजय से मिलने जाती है. उसे तो कभी भनक तक नहीं लगी कि सलोनी और अनमोल उसे धोखा दे रहे हैं.

अनमोल और सलोनी के बीच का यह दृश्य देखने के बाद कियारा वहां से उलटे पांव अपने फ्लैट पर लौट आई. यह देख अनमोल और सलोनी भी उस के पीछे भागते हुए आए.

अनमोल अपनी सफाई देते हुए बोला, ‘‘देखो कियारा मैं और सलोनी

केवल फिजिकल रिलेशनशिप में हैं और कुछ नहीं, मैं  शादी सिर्फ और सिर्फ तुम से ही करना चाहता हूं और केवल तुम से ही करूंगा, किसी और से नहीं.’’

तभी सलोनी बोली, ‘‘हां कियारा मेरे और अनमोल के बीच में कुछ नहीं है. मेरा अजय और अनमोल के साथ एकजैसा ही रिलेशन है. तू तो जानती है न मेरा ऐसा रिलेशन कितनों के साथ रहा है. मैं ने तु झ से कहा भी था कि मैं किसी के साथ भी रिलेशनशिप में रहूं पर शादी अपनी कास्ट, अपनी बिरादरी के लड़के से ही करूंगी और तु झे भी ऐसा ही करना चाहिए. मु झे देख इतनों के साथ रिलेशन में होने के बावजूद मैं शादी तो अंशु से ही कर रही हूं.’’

यह सब चल ही रहा था कि संदीप भी वहां आ गया. संदीप को देखते ही कियारा उस से लिपट गई. यह देख अनमोल का पारा चढ़ गया और वह कियारा को संदीप से अलग करते हुए बोला, ‘‘ये सब क्या है कियारा? जब तक हमारी सगाई नहीं हुई थी, तब तक तुम्हारा इस संदीप के संग बेतकल्लुफ  होना मैं बरदाश्त कर सकता था, लेकिन अब ये सब नहीं चलेगा.’’

अनमोल का इतना कहना था कि कियारा की आंखों में खून खौल गया और बोली, ‘‘तुम सगाई के बाद किसी और लड़की से हमबिस्तर हो सकते हो और मैं अपने दोस्त के गले भी नहीं लग सकती?’’

अनमोल गुस्से में बोला, ‘‘नहीं, अब तुम मेरी होने वाली पत्नी हो और मैं किसी भी हाल

में नहीं चाहूंगा तुम इस संदीप के साथ कोई

रिश्ता रखो.’’

यह सुनते ही कियारा संदीप की ओर देखने लगी. आज पहली बार संदीप की आंखों में

कियारा अपने लिए प्यार देख पाई थी. कियारा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, ‘‘अनमोल अभी हमारी शादी हुई नहीं है और शादी से पहले मेरी एक शर्त है.’’

अनमोल ने कहा, ‘‘कैसी शर्त?’’

संदीप और सलोनी आश्चर्य से कियारा को देखने लगे. तभी कियारा बोली, ‘‘मैं शादी से पहले एक रात संदीप के साथ अकेले गुजारना चाहती हूं.’’

कियारा का इतना कहना था कि सभी की भौंहें तन गईं. कियारा को  झं झोड़ते हुए संदीप बोला, ‘‘पागल हो गई हो क्या? कुछ भी बोल रही हो…’’

तभी अनमोल बोला, ‘‘यह कैसी बेकार की शर्त

है. यह नहीं हो सकता. मेरी होने वाली बीवी किसी

पराए मर्द के साथ रात नहीं गुजार सकती.’’

‘‘मेरा होने वाला पति अगर पराई लड़की के साथ रात गुजार सकता है तो मैं क्यों नहीं? यदि शादी होगी तो इसी शर्त पर होगी नहीं तो नहीं होगी,’’ कहते हुए कियारा ने अपनी उंगली पर पहनी सगाई की अंगूठी निकाल कर अनमोल को थमा दी.

अनमोल ने फिर आगे कुछ नहीं कहा क्योंकि उसे यह शर्त मंजूर नहीं थी. वह कियारा को छोड़ सकता था, इस शादी को भी तोड़ सकता था, लेकिन एक ऐसी लड़की से शादी करने को तैयार नहीं था जो एक रात किसी दूसरे लड़के के साथ गुजार कर आई हो. अनमोल ने शर्त मानने से मना कर दिया.

तभी कियारा बोली, ‘‘हर लड़का एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता है जो लड़की जिस्मानी तौर पर पाक साफ हो, चाहे उस का खुद का कितनी भी लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध क्यों न हो. एक लड़की कई लड़कों से संबंध रखने के बाद शादी अपनी ही जातबिरादरी और धर्म में करना चाहती है ताकि समाज में उस की मानप्रतिष्ठा बनी रहे यह कैसी दोहरी मानसिकता है? यह कैसी सोच है? मु झे इस दोहरी सोच का हिस्सा नहीं बनना.

कियारा की शर्तों पर अनमोल ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया.

तभी संदीप बोला, ‘‘कियारा अनमोल सच कह रहा है, मैं ने आज तक तुम से यह

बात छिपाई कि मैं तुम से प्यार करता हूं. आज तुम यह बात जान चुकी हो, इसलिए पूछ रहा हूं क्या तुम एक विजातीय लड़के के संग यानी मेरे संग शादी करना चाहोगी?’’

संदीप के ऐसा कहते ही कियारा बोली, ‘‘संदीप क्या तुम यह जानते हुए भी मु झ से शादी करना चाहोगे कि मैं ने अपनी कई रातें अनमोल के साथ गुजारी हैं और मैं पाक साफ नहीं हूं?’’

‘‘प्यार तो बस प्यार होता है कियारा इस में किस ने किस के साथ रात गुजारी है यह नहीं देखा जाता, तुम ने किस के साथ कितनी रातें गुजारी हैं इस से मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मन की पवित्रता ही सब से बड़ी पवित्रता है और मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम दिल से पाक साफ हो, पवित्र हो और अपने जीवनसाथी के प्रति सदा ईमानदार थी और रहोगी. मु झे और क्या चाहिए,’’ ऐसा कहते हुए संदीप ने अपना हाथ कियारा की ओर बढ़ा दिया और कियारा ने बिना देर किए उस का हाथ थाम लिया. उस के बाद दोनों एकदूसरे की बांहों को थामे वहां से निकल गए. अनमोल और सलोनी उन्हें जाते हुए देखते रहे.

इक घड़ी दीवार की- भाग 3: क्या थी चेष्ठा की कहानी

सात्वत ने जेब से चाबी निकाल कर चेष्टा की ओर बढ़ा दी. दरवाजा खोल कर दोनों अंदर बैठ गए तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए चेष्टा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है? पहले अस्पताल चलें, ड्रेसिंग करवाने?’’

सात्वत जल्दी से बोला, ‘‘नहींनहीं, मेरे फ्लैट में ड्रेसिंग का सामान है. मैं कर लूंगा…अभी मुझे तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाना है.’’ कुछ पल की खामोशी रही. चेष्टा बिना कुछ बोले सामने की ओर देखती कार चलाती रही तो सात्वत ने पूछा, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? तुम तो पूना में थीं?’’

चेष्टा ने उस की ओर तीखी निगाहों से देखा फिर लंबा निश्वास ले कर उस ने कार को आगे बढ़ा दिया. लालबत्ती पार कर के कार सफदरजंग अस्पताल पहुंची. लेकिन चेष्टा ने वहां कार नहीं रोकी. उस ने आगे बढ़ कर सफदरजंग एनक्लेव में एक दोमंजिला भवन के गेट के अंदर जा कर पोर्टिको में कार रोकी. सात्वत इस बीच सीट पर पीछे सिर टिकाए खामोश बैठा रहा. केवल बीचबीच में वह 1-2 पल के लिए तिरछी निगाहों से चेष्टा की ओर देख लेता था.

चेष्टा ने कार का दरवाजा खोल कर बाहर आते हुए कहा, ‘‘चलो,’’ तो सात्वत चौंक कर दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चेष्टा ने सीढि़यां चढ़ते हुए आने का इशारा किया. दोनों पहली मंजिल में बरामदे के दाईं ओर एक आफिस के बाहर पहुंचे. चपरासी ने झट से दरवाजा खोला और चेष्टा के पीछे सात्वत अंदर गया. थोड़ा आश्चर्यचकित सा, हलका सा लंगड़ाता हुआ.

छोटा सा आफिस का कमरा था. एक मेज, कई कुरसियां, स्टूल, अलमारी, फाइलिंग कैबिनेट, एक टेलीफोन और एक कंप्यूटर आदि.

चेष्टा ने अपनी कुरसी पर बैठते हुए इशारा किया तो सात्वत भी सामने पड़ी दूसरी कुरसी खींच कर बैठ गया. चेष्टा ने जाते वक्त चपरासी से कहा कि डे्रसिंग का सामान और 2 कप चाय भेज देना. सात्वत ने सोचा कि चेष्टा यहां दिल्ली में इस आफिस में क्या कर रही है?

एक औरत तुरंत डे्रसिंग का सामान टे्र में ले कर आई. चेष्टा के इशारा करने पर उस ने सात्वत का जख्म साफ कर के दवा लगा कर पट्टी बांध दी. सात्वत ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘थैंक यू.’’

तब तक चाय आ गई और दोनों खामोश चाय पीने लगे, अपनेअपने खयालों में घिरे हुए.

सात्वत ने चेष्टा के सिर की ओर देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम्हारे हसबैंड?’’

चेष्टा ने सात्वत की ओर व्यथित नजरों से देखा, फिर अपने सूने सीमंत पर हाथ फेरती हुए, मुसकराने की नाकाम कोशिश करते हुए मंद स्वर में बोली, ‘‘मेरे पति जिंदा हैं, यानी जब तक जानती हूं तब तक थे, अब पता नहीं.’’

‘‘डाइवोर्स?’’

चेष्टा ने नकारात्मक सिर हिलाया और बिना जवाब दिए चाय की प्याली में कुछ तलाशती हुई सी खामोश बैठी रही.

‘‘सौरी, आई एम सौरी,’’ सात्वत को लगा कि उसे यह व्यक्तिगत प्रश्न नहीं पूछना चाहिए था.

चाय खत्म हो गई तो सात्वत ने बातों का सूत्र पुन: जोड़ने के लिए पूछा, ‘‘तुम पूना से यहां कब आईं? रहती कहां हो? अपना पता और टेलीफोन नंबर दे दो.’’

चेष्टा एक पल उस की ओर देख कर फिर नीचे देखने लगी, मानो पलकों के कोरों पर आए आंसुओं को वापस ढकेलने की कोशिश कर रही हो. फिर अचानक उस ने हंस कर कहा, ‘‘मेरी शादी के बारे में तो तुम्हें मालूम ही होगा?’’

‘‘हां, मैं पटना गया था मिलने.  तुम्हारी ही एक सहेली ने बताया कि शादी हो गई.’’

‘‘मालूम है,’’ चेष्टा बोली, ‘‘शायद तुम्हारे फोन कौल्स ने ही ममीडैडी को मेरी शादी करने के लिए फोर्स किया. उन्हें हम दोनों के प्रेम के बारे में मालूम हो गया था. शायद वे नहीं चाहते थे…कह नहीं सकती,’’ चेष्टा के चेहरे पर गहरी पीड़ा और वेदना की छाया उभरी. उस ने सात्वत के मन में उठते प्रश्नों को जान लिया और आगे बोली, ‘‘इनकार करना बहुत मुश्किल होता है. खासकर उन मांबाप की बात जिन्होंने जिंदगी में कुछ भी इनकार नहीं किया, कभी डांटा तक नहीं, हमेशा पूरी तरह से सपोर्ट किया. केवल एक के अलावा. वे तो मन में अच्छा ही चाहते होंगे. लेकिन हमेशा अच्छा नहीं होता. हजारों शादियां ऐसे ही होती हैं.’’

चेष्टा चुप हो गई मानो उस ने कुछ गलत कह दिया हो. सात्वत भी खामोश रहा क्योंकि उस के पास शब्द नहीं थे. कुछ क्षण गहरी खामोशी छाई रही. चेष्टा ने अचानक सात्वत की ओर देखा और बोली, ‘‘लंच का समय हो गया है,’’ मानो वह चेतना पर बोझ बनती इस खामोशी को दूर हटाना चाहती हो.

सात्वत चौंका फिर उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं लंच नहीं करता. हैवी ब्रेकफास्ट कर के निकलता हूं. दिन में कभीकभार कुछ स्नैक्स ले लेता हूं.’’

चेष्टा ने कौल बेल बजाई और चपरासी के अंदर आते ही उस से कहा, ‘‘2 कप चाय और कुछ बिस्कुट ले आओ.’’

दोनों थोड़ा सहज हुए. चेष्टा ने सात्वत की ओर देख कर उस की आंखों में उभरे प्रश्न को पढ़ लिया और बोली, ‘‘डैडी ने तुरंत रिश्ता तय कर दिया और 15 दिन बाद शादी कर दी.

‘‘मैं पूना आ गई. पति एक फर्म में एग्जीक्यूटिव थे. ससुर डी.जी. पुलिस थे. अब रिटायर्ड हैं. समाज की नजरों में तो सबकुछ परफेक्ट था. शिकायत की कोई वजह नहीं थी. पति ऊंची पोस्ट पर, अच्छी तनख्वाह. मैं शादी के 3 महीने बाद ही गर्भवती हो गई. डिलिवरी हुई तो बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ.’’

चेष्टा चुप हो गई और चाय पीने लगी. सात्वत व्यथित, अवाक् उस की ओर देखता रहा. फिर चेष्टा के इशारा करने पर वह बिस्कुट और चाय पीने लगा.

चेष्टा ने आगे कहा, ‘‘1 साल के बाद मैं दोबारा गर्भवती हो गई,’’ वह कुछ देर रुकी फिर फुसफुसा कर बोली, ‘‘वह भी मरा हुआ पैदा हुआ.’’

सात्वत के अंतर में पीड़ा का ऐसा वेग उभरा कि उस की जबान जड़ हो गई, सांत्वना के शब्द भी नहीं निकले और वह चुपचाप नीचे देखता रहा. चेष्टा ने सहज स्वर में आगे कहा, ‘‘तब डाक्टर ने ब्लड टेस्ट किया…इमैजिन, गर्भावस्था में नहीं किया और मैं एच.आई.वी. पाजिटिव थी.’’

‘‘ह्वाट?’’ सात्वत ने वेदना से अभिभूत हो कर चेष्टा की ओर देखा. उस के बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई.

चेष्टा धीरे से मुसकराई, मानो वह सात्वत को ढाढ़स दे रही हो. वह बोली,  ‘‘एड्स नहीं, केवल एच.आई.वी. पाजिटिव. मैं ने जिंदगी में कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिया था. कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं लिया था, कभी किसी पुरुष के साथ संबंध बनाने का कोई प्रश्न ही नहीं था. फिर शादी के बाद एच.आई.वी. पाजिटिव कैसे हो गई? समझ सकते हो?

‘‘उस डाक्टर को पहली बार गर्भवती होने पर टेस्ट कराना चाहिए था. मेरे पति का भी ब्लड टेस्ट कराना चाहिए था…उस ने टेस्ट की रिपोर्ट मेरे पति, सासससुर को दे दी और उन लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया, बिना कुछ पूछे, बिना कुछ जाने, बिना अपने बेटे के बारे में कुछ पता लगाए.’’

‘‘तुम ने केस नहीं किया?’’

‘‘केस…मुकदमा?’’ वह हंसी, जिस में केवल असीम व्यथा और निराशा की झलक और ध्वनि थी, ‘‘उस समय मुझे कुछ नहीं सूझा. मैं गहरे अंधकार में चली गई. बस, एक ही बात मन में आ रही थी, आत्महत्या…लेकिन उस समय मेरे मम्मीडैडी ने बहुत सहारा दिया. वे मुझे अपने साथ पटना ले आए. मुझे उस गहरे अंधकार से निकलने में महीनों लग गए. मैं धीरेधीरे सहारा ले कर, झिझकते, रुकते इस राह पर चल पड़ी. मैं ने एक एन.जी.ओ. ज्वाइन किया, डब्लू.एच.ओ. का सपोर्ट है. मैं ने एच.आई.वी. एड्स की टे्रनिंग ली. काउंसलर बनी. पूरे देश में घूमती हूं, टे्रनिंग और काउंसलिंग के लिए. समय कट जाता है, अब मन लग गया है. अब लगता है कि इस जीवन में कोई लक्ष्य है, कोई काम है.’’

लुकाछिपी- भाग 3: क्या हो पाई कियारा औक अनमोल की शादी

कियारा अपने अनुभाग में आते ही फौरन सलोनी के पास जा पहुंची और उसे अपना हाले दिल व अनमोल के बारे में बताने लगी.

यह सुनते ही सलोनी हंसती हुई बोली, ‘‘वाऊ… आखिर तु झे भी प्यार हो ही गया. अनमोल और तु झे मिलाने में मैं तेरी मदद कर सकती हूं.’’

यह सुनते ही कियारा बोली, ‘‘प्लीज बता न कैसे?’’

तब सलोनी थोड़ा इतराती हुई बोली, ‘‘मैं अनमोल के रूममेट को जानती हूं. पहले

वह तेरा दीवाना था और आजकल मेरा है.’’

कियारा आश्चर्य से बोली, ‘‘कौन?’’

सलोनी मुसकराती हुई बोली, ‘‘अजय.’’

कियारा मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘वह… अजय.’’

‘‘हां अजय… अजय और अनमोल रूममेट भी हैं और फ्रैंड भी. अनमोल से तो मैं उस के रूम में कई बार मिल चुकी हूं. जब भी अजय से मिलने जाती हूं अकसर मेरी मुलाकात अनमोल से होती है और अनमोल तो तु झे भी अच्छी तरह से जानता है.’’

यह सुन कर कियारा को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि अनमोल से बातें करते हुए उसे एक क्षण के लिए भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि अनमोल उसे जानता है.

वह यह सोच ही रही थी की कियारा के क्लासमेट संदीप का फोन आ गया. संदीप उस का स्कूल फ्रैंड था, उस के शहर दिल्ली से था और वह भी यहां बैंगलुरु की ही एक आईटी कंपनी में था. अकसर संदीप वीकैंड पर या फिर जब भी फ्री होता कियारा के साथ समय स्पैंड करने आ जाता या कियारा उस के पास चली जाती. दोनों के बीच इतना अच्छा तालमेल था कि लोगों को संदेह होता कि शायद संदीप और कियारा के बीच संबंध है.

कियारा के फोन रिसीव करते ही संदीप बोला, ‘‘हाय? किया क्या कर रही हो?’’

यहां बैंगलुरु में संदीप ही था जो कियारा को किया नाम से पुकारता था. उस के केवल कुछ खास दोस्त ही थे जो उसे किया पुकारते थे. उन में से एक संदीप भी था.

‘‘कुछ नहीं बस औफिस में हूं.’’

‘‘आज शाम मैं फ्री हूं डिनर पर चलोगी? बहुत दिनों से हम ने साथ डिनर नहीं किया है,’’ संदीप खुश होते हुए बोला.

कियारा डिनर के लिए मना कर देना चाहती थी क्योंकि उस का मन विचलित था, लेकिन वह संदीप को दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए बोली, ‘‘हां ठीक है. कहो मु झे कहां आना है?’’

‘‘अरे यार तुम्हें कहीं आने की जरूरत नहीं. मैं आ जाऊंगा तु झे लेने फिर साथ चलेंगे,’’ संदीप आत्मीयता और अपना पूरा हक जताते हुए बोला.

‘‘ओके आई विल वेट,’’ कह कर कियारा ने फोन रख दिया.

कियारा के फोन रखते ही सलोनी शरारती अंदाज में मुसकराती हुई बोली, ‘‘संदीप का फोन था?’’

कियारा के हां कहने पर सलोनी उसे छेड़ती हुई बोली, ‘‘क्या बात है कहां चलने को कह रहा है हीरो… तेरी तो ऐश है यार, संदीप जैसा हैंडसम लड़का भी तु झ पर ही मरता है और मु झ से ठीक से बात भी नहीं करता.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है वी आर जस्ट ए गुड फ्रैंड. तू भी साथ चलना… मजा आएगा.’’

डेढ़ साल पहले जब सलोनी संदीप से मिली थी तब से वह संदीप को आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन विफल ही रही. उसे इस बात से बहुत चिढ़ है कि संदीप का ध्यान केवल कियारा की ओर ही रहता है, लेकिन उस ने कभी कियारा को इस बात का आभास नहीं होने दिया.

‘‘ठीक है तू कह रही है तो मैं भी चलती हूं वरना संदीप के साथ कहीं जाना मु झे पसंद नहीं.’’

सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा ने कोई जवाब नहीं दिया और फिर दोनों अपनेअपने काम में लग गईं.

शाम को औफिस से लौटने के बाद कियारा डिनर पर जाने के लिए तैयार होने लगी.

तभी उस ने देखा सलोनी हैडफोन लगा कर शांत बैठी हुई है. यह देख कियारा ने कहा, ‘‘अरे संदीप आने ही वाला है तू रैडी कब होगी?’’

‘‘नहीं मैं नहीं चल रही, मेरा मन नहीं कर रहा. तुम जाओ मेरी वजह से तुम अपना प्रोग्राम ड्राप मत करो,’’ सलोनी गंभीर होती हुई बोली.

‘‘क्या हुआ? कुछ है तो बता न मैं संदीप को डिनर के लिए मना कर दूंगी,’’ कियारा बोली.

‘‘अरे कुछ नहीं तू जा न… आई विल मैनेज,’’ सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा अकेले ही संदीप के साथ डिनर पर चली गई.

जब वह डिनर से लौटी तो उस ने देखा सलोनी काफी खुश लग रही थी. कियारा को कुछ सम झ नहीं आया कि आखिर इन 2 घंटों में ऐसी क्या बात हो गई जो शांत उदास सलोनी अचानक इतनी खुश लग रही है. कियारा उस से यह जानना चाहती थी लेकिन चुप रही.

अगले दिन औफिस में अभी कियारा ने अपना डैस्कटौप खोला ही था कि वहां अनमोल आ गया. अनमोल को देखते ही सलोनी की धड़कनें तेज हो गईं. ऐसा पहली बार हुआ था

जब कियारा का दिल किसी के लिए इतना अधीर हुए जा रहा था. कियारा अपनी सीट से उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘अनमोल तुम? कहो कुछ काम है?’’

अनमोल ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘नहीं बस यों ही तुम से मिलने आ गया.’’

यह सुनते ही कियारा के आंखों में चमक आ गई और औफिस के बाकी लोगों के कान खड़े हो गए, कियारा थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘ प्लीज हेव ए सीट.’’

कियारा के ऐसा कहते ही अनमोल बैठ गया और थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच गहरी शांति ने स्थान ले लिया जिसे तोड़ते हुए अनमोल ने कहा, ‘‘कियारा कल रात मैं तुम से मिलने तुम्हारे फ्लैट पर आने वाला हूं यह जानते हुए भी तुम किसी संदीप के साथ डिनर पर चली गई, अगर तुम्हें मु झ से नहीं मिलना था तो फोन कर के मु झे बता भी सकती थी. सलोनी के पास तो मेरा और मेरे रूममेट अजय हम दोनों का नंबर है, लेकिन तुम इस तरह बिना बताए.

कियारा बीच में ही अनमोल को रोकती हुई बोली, ‘‘एक मिनट. एक मिनट. तुम ने मु झ से कब कहा कि तुम मु झ से मिलने आ रहे हो?’’

‘‘अरे… मैं ने सलोनी से फोन कर के कहा तो था कि मैं आ रहा हूं… तुम्हारा मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था, इसलिए मैं ने सलोनी से कहा था,’’ अनमोल थोड़ा हैरान होते हुए बोला.

कियारा को बात सम झने में देर नहीं लगी कि कल सलोनी उन के साथ डिनर पर क्यों नहीं गई और वह इतनी खुश क्यों लग रही थी.

कियारा के चेहरे पर दुख के भाव आ गए और वह बोली, ‘‘आई एम सौरी अनमोल मु झे नहीं पता था तुम आने वाले हो, सलोनी मु झे बताना भूल गई होगी.’’

अनमोल मुसकराते हुए बोला, ‘‘इट्स ओके अच्छा अब मैं चलता हूं.’’

अनमोल जैसे ही जाने लगा कियारा ने कहा ‘‘अनमोल फिर कभी आना हो तो…’’ ऐसा कहते हुए एक कागज का टुकड़ा उस की ओर बढ़ा दिया, जिस पर उस का फोन नंबर लिखा था. उस के बाद क्या था अनमोल और कियारा की प्यार की गाड़ी सुपरफास्ट ऐक्सप्रैस की तरह दौड़ने लगी. औफिस में भी अफसाने बनने लगे. किसी को कुछ सम झ नहीं आ रहा था. सभी के सम झ से परे थी यह बात कि आखिर किस का रिश्ता किस के साथ है.

कियारा का रिश्ता संदीप के संग है या अनमोल के संग, सलोनी कभी अजय के साथ नजर आती तो कभी अनमोल के साथ, लोगों को यह अंदाजा लगाना मुश्किल था. आखिर इन सभी पांचों में किस का संबंध किस के साथ. कियारा पहले की ही तरह संदीप के साथ आउटिंग पर जाती उस के साथ मूवी जाती और कभीकभी डिनर पर भी जाती, लेकिन जब संदीप और कियारा साथ जाते उन के साथ कोई तीसरा नहीं होता क्योंकि कोई भी संदीप के साथ कहीं जाना पसंद नहीं करता, लेकिन जब कियारा अनमोल के साथ कहीं जाती संदीप को छोड़ कर सलोनी और अजय भी साथ होते.

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 3

‘‘आजक्या हुआ मालूम है?’’ उस दिन घर लौटते ही संगीता का उत्साह छलक पड़ा.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पृथ्वी अचानक ही कहने लगा कि तुम्हारा नाम संयोगिता होना चाहिए था. क्या जोड़ी बनती हमारी.’’

‘‘अच्छा? फिर तूने क्या कहा?’’

‘‘मैं क्या कहती? मेरे मन की बात उस की जबान पर? मैं तो दंग रह गई. सच मन को मन से राह होती है. फिर तो मैं ने उसे सब कुछ विस्तार से बताया कि मैं अपना नाम बदल कर संयोगिता रखना चाहती थी पर पापा नहीं माने. वह मेरी बात तुरंत समझ गया. कहने लगा कि वह आगे से मुझे संयोगिता ही बुलाएगा. फिर मैं ने भी कह दिया कि मेरा भी एक सपना है कि मेरा पृथ्वीराज मुझे इतिहास वाले पृथ्वीराज की तरह घोड़े पर उठा कर ले जाए और सब देखते रह जाएं.’’

‘‘हाय, फिर क्या बोला वह?’’ सपना अपनी स्वप्निल आंखों को नचाते हुए बोली.

‘‘एक क्षण को तो वह चुप रह गया. फिर बोला कि उसे तो घुड़सवारी आती ही नहीं. पर मेरे लिए वह कुछ भी करेगा. वह घुड़सवारी भी सीखेगा और मुझे उठा कर भी ले जाएगा. लोग तो प्यार में आकाश से तारे तक तोड़ लाने तक की बात करते हैं. वह क्या इतना भी नहीं कर सकता?’’

अगले दिन संगीता ने हमें पृथ्वीराज से मिलवाया. उस का सुदर्शन व्यक्तित्व देख कर हम तीनों ठगे से रह गए.

‘‘तो आप तीनों हैं संगीता की अंतरंग सहेलियां. आप तीनों के बारे में संगीता ने इतना कुछ बताया है कि मैं बिना किसी परिचय के भी आप तीनों को पहचान लेता,’’ उस ने हमें हमारे नामों से बुला कर हैरान कर दिया.

‘‘इस में खूबी मेरी नहीं संगीता की है. उस ने जिस तरह मुझे आप के नामों से परिचित कराया उस में भ्रमित होने का कोई अवसर ही नहीं था,’’ उस ने हंसते हुए कहा. पता नहीं उस के व्यक्तित्व में कैसा आकर्षण था कि हमें लगा ही नहीं कि हम उस से पहली बार मिले.

‘‘संगीता को बचपन से ही पृथ्वीराज से बहुत लगाव रहा है. अच्छा हुआ जो उसे आप मिल गए.’’

‘‘जी हां, बताया था उस ने. वह तो अपना नाम भी बदल कर संयोगिता रखना चाहती थी पर सफल नहीं हुई. मैं ने उसे समझाया कि मेरे लिए तो संयोगिता ही रहेगी. वह इतने से ही प्रसन्न हो गई.’’

‘‘आप तो उस के लिए घुड़सवारी भी सीख रहे हैं. हम ने तो दांतों तले उंगली दबा ली,’’ सपना ने उस की प्रशंसा की.

‘‘मैं तो बस प्रयास कर रहा हूं. पर काम मुश्किल है. सच तो यह है कि मुझे घोड़ों से बहुत डर लगता है.’’

‘‘दाद देनी ही पड़ेगी कि संगीता की पसंद की जो आप उस के लिए इतना कठिन कार्य भी करने को तैयार हो गए,’’ सपना अपनी स्वप्निल आंखों को दूर कहीं टिकाते हुए बोली.

‘‘मैं भी कम खुश नहीं हूं जो मेरी भेंट संगीता से हो गई,’’ अपने मनभावन को खोजतेखोजते पृथ्वीराज भी सिर से पांव तक संगीतामय हुआ प्रतीत हुआ हमें.

हम कौफीहाउस में साथ कौफी पी कर लौट आए. पर संगीता और पृथ्वीराज एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले वहीं बैठे रहे.

घर में मम्मी हमारी प्रतीक्षा कर रही थीं, ‘‘कहां थीं तुम तीनों? मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूं? यह समय है घर लौटने का? और संगीता कहां रह गई? मुझे तो तुम लोगों के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे?’’

‘‘आ जाएगी अभी. आज उस की ऐक्स्ट्रा क्लास है. कुछ कह रही थी न वह आज सुबह?’’ मैं ने सपना और नीरजा से प्रश्न करने का दिखावा किया.

‘‘आप पार्क में घूम आइए न. तब तक संगीता भी आ जाएगी,’’ मैं ने मां के गले में बांहें डाल कर उन्हें शांत करना चाहा.

‘‘तू नहीं समझेगी. बेटियों की जिम्मेदारी कंधों पर हो तो पार्क में मन लगेगा? मेरा काम केवल तुम्हारे खानेपीने का प्रबंध करना ही नहीं है, बल्कि तुम्हारी गतिविधियों पर नजर रखना भी है,’’ मां को इतना गंभीर मैं ने पहले कभी नहीं देखा था.

‘‘ठीक कहा आप ने आंटी. इन तीनों के लक्षण तो मुझे भी ठीक नहीं लगते. पर आप चिंता न कीजिए, मैं इन पर कड़ी नजर रखती हूं,’’ संगीता मम्मी के पीछे खड़ी मंदमंद मुसकराते हुए उन की हां में हां मिला रही थी.

‘‘कहां थी अब तक? मेरी तो जान ही सूख गई थी,’’ मां अब भी नाराज थीं.

‘‘कालेज के अलावा और कहां जाऊंगी आंटी? मैं तो आप के डर से दौड़ती हुई घर आई हूं.’’

‘‘तू तो मेरी प्यारी बेटी है. तू तो कुछ गलत कर ही नहीं सकती. पर क्या करूं, मन में सदा डर लगा रहता है. अब तू आ गई है तो मैं पार्क में घूमने जा रही हूं,’’ कह मां सैर करने चली गईं.

नीरजा आगबबूला हो उठी, ‘‘सुन लिया तुम दोनों ने? प्रेमरस में डुबकी संगीता लगाए और डांट हम खाएं. यह सब मुझ से नहीं सहा जाएगा. संगीता सुधर जा नहीं तो मैं आंटी को सब कुछ बता दूंगी. फिर तू जाने और तेरा काम,’’ नीरजा ने धमकी दी.

‘‘उस की जरूरत नहीं पड़ेगी. आज से ठीक 4 दिन बाद पृथ्वीराज मुझे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा. बिलकुल इतिहास की संयोगिता की तरह और तुम सब देखती रह जाओगी. अब वह घुड़सवारी में दक्ष हो गया है. समझ में नहीं आ रहा कि मेरे सपनों का राजकुमार जब पूरी तरह सजधज कर मेरे सामने आ खड़ा होगा तो मैं उस का स्वागत कैसे करूंगी? मैं तो रहस्यरोमांच से भावविभोर हो उठी हूं,’’ संगीता आंखें मूंदे अपने स्वप्नलोक में खो गई. पर हमें लगा मानों कमरे की हवा थम गई हो. कुछ क्षणों के लिए हम में से किसी के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला. ‘‘बहुत हो गया. मैं अब चुप नहीं रहूंगी. अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है. मैं तो अब तक सब कुछ इस का बचपना समझ कर चुप थी. पर अब मैं आंटी को सब कुछ सचसच बता दूंगी. फिर वे जानें और संगीता,’’ नीरजा क्रोधित हो उठी.

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हारे अंकुश के विषय में कुछ नहीं जानती जिस के साथ तुम घंटों लाइब्रेरी में बैठी रहती हो… और क्लासें बंक कर के सिनेमा देखने जाती हो?’’ संगीता भी उतने ही क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘कौन है यह अंकुश?’’ मैं और सपना दंग रह गए.

‘‘नीरजा से पूछो न, जो सदा मुझे उपदेश देती रहती है.’’

‘‘मैं कौन सा डरती हूं. अंकुश दोस्त है मेरा.’’

‘‘पृथ्वीराज भी मेरा दुश्मन तो नहीं है?’’ संगीता ने तर्क दिया.

‘‘तुम दोनों अपनी बहस बंद करो तो मैं कुछ बोलूं?’’ मैं ने दोनों को टोका.

‘‘कहो, क्या कहना है तुम्हें?’’ दोनों ने कहा.

‘‘यही कि मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे कारण मेरी मम्मी को दुख पहुंचे. मैं उन्हें सब सच बता दूंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर मैं स्वयं उन्हें सब बता दूंगी,’’ संगीता ने आश्वासन दिया. उस के बाद हम सांस रोक कर उस घड़ी की प्रतीक्षा करने लगे जब संगीता पृथ्वीराज का राज मां को बताने वाली थी.

2 दिन बाद संगीता कालेज से लौटी तो बड़ी गमगीन थी.‘‘क्या हुआ?’’ उसे दुखी देख कर हम ने पूछा तो उत्तर में संगीता फफक उठी.

‘क्या हुआ?’’ सपना दौड़ कर पानी ले आई. हम ने किसी प्रकार उसे शांत किया.

‘‘कल घुड़सवारी करते समय पृथ्वीराज घोड़े से गिर पड़ा… बहुत चोट आई है,’’ संगीता ने हिचकियों के बीच बताया.

‘‘है कहां वह?’’ हम ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘नर्सिंगहोम में. उस के मातापिता भी आ गए हैं. पता नहीं उन्हें कैसे मेरे और पृथ्वीराज के संबंध के बारे में पता चल गया. उन्होंने मुझे बहुत बुराभला कहा,’’ उस के आंसू थम ही नहीं रहे थे.

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