Social Story In Hindi: सच्चाई सामने आती है पर देर से- भाग 3

जनानखाने के नाम पर एक पुरुष का कमरा और औरत के स्थान पर एक पुरुष.

‘‘तशरीफ रखिए मोहतरमा.’’ महल के शेख मोहम्मद बिन अब्दुल्ला बिन अब्दुल्ला ने कहा.

तभी चुस्त पायजामा और चुस्त चोली पहने एक किशोर उम्र की लड़की एक ट्रे ले कर अंदर आई. उस में शरबत के 2 गिलास और कटे फल रखे थे.

‘‘नोश फरमाइए.’’ अरब शेख ने कहा.

गुलबदन और शाहिदा बानो ने एकदूसरे की तरफ देखा. पहली बार की होम सर्विस का वाकया शाहिदा बानो को याद था. क्या पता इन शरबत के गिलासों में भी नशीला पदार्थ हो.

सकुचातेसकुचाते दोनों ने मेज पर रखी ट्रे से गिलास उठाया और चुस्कियां लेने लगीं.

‘‘शरबते बनफशा  शरीर को ठंडक पहुंचाता है.’’ हुक्के की नली से धुआं खींचते हुए मोहम्मद बिन अब्दुल्ला ने कहा.

सोफे पर बैठी उन दोनों ने शरबत का गिलास खत्म कर के मेज पर रखा ही था कि अरबी वेशभूषा में 4 अधेड़ावस्था के पुरुष कमरे में दाखिल हुए.

इतने पुरुषों को एक साथ देख कर दोनों चौंकीं.

‘‘मोहतरमा, आप के ब्यूटीपार्लर की मैडम कहती हैं कि आप वापस जाना चाहती हैं. बिना पासपोर्ट आप की वापसी संभव नहीं है. आप हमारी एक शर्त पूरी कर दें, आप का पासपोर्ट प्लेन की टिकट सहित वापस हो जाएगा.’’ हुक्के का कश ले कर धुआं छोड़ते हुए अब्दुल्ला बिन अब्दुल्ला ने कहा.

‘‘क्या शर्त है?’’ दोनों ने एक साथ पूछा.

‘‘आप दोनों अपनेअपने जिस्मों का दीदार करवा दें.’’ कुटिल मुसकराहट के साथ अब्दुल्ला ने कहा. उस के साथ बैठे चारों साथी कहकहा लगा कर हंसे.

गुलबदन की अस्मत कई बार लुट चुकी थी. शाहिदा बानो भी खुद को लुटापिटा समझती थी. वापस जा कर अपने शौहर से कैसे नजर मिला सकेगी.

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‘‘इस बात की क्या तसल्ली है कि आप अपना कहा पूरा करोगे?’’ गुलबदन ने पूछा.

‘‘मैं अपनी शर्त पूरी हो जाने पर अपना कहा पूरा करता हूं. मैं चाहूं तो अभी थाने से पुलिस दारोगा को बुला कर तुम दोनों को बदकारी के इलजाम में जेल भिजवा सकता हूं.’’  कहते हुए मोहम्मद बिन अब्दुल्ला ने टेलीफोन का चोंगा उठाया.

दोनों सहम कर सोफे पर सिमट गईं. फिर गुदबदन उठी, उस ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए. शाहिदा बानो उसका अनुसरण करने लगी. पूर्णतया… दोनों अपना वक्षस्थल दोनों बांहों से ढांप कर खड़ी हो गईं.

‘‘वल्लाह! सुभान अल्लाह! क्या जिस्म है…’’ शराब का जाम पीते हुए अरब शेखों ने सीत्कारी भरते हुए कहा.

‘‘तुम दोनों मेरी इस बांदी के साथ थोड़ी देर के लिए अरबी डांस कर के दिखा दो फिर तुम दोनों आजाद कर दी जाओगी.’’

साकी बन कर शराब के प्याले भरती किशोर बाला उठ खड़ी हुई और लयबद्ध हो ठुमके लगाती हुई अरब शैली का नृत्य करने लगी. विवशता थी, सो वे दोनों भी उस के साथ नाचने लगीं.

थोड़ी देर बाद शराब पीते 2 अरब शेख उठे और उन्होंने उन दोनों को अपने बाहुपाश में दबोच लिया.

शाम तक उन 5 अरब शेखों ने उन को बारबार रौंदा. लुटीपिटी दोनों चुपचाप ब्यूटीपार्लर लौट आईं. मैडम ने उन को करेंसी से भरे लिफाफे दे कर घर रवाना कर दिया. अपनेअपने फ्लैट में बिस्तर पर लेटी दोनों न रो पा रही थीं और बोल सकती थीं.

‘‘पापा, अम्मी फोन काल का कोई जवाब नहीं दे रही.’’ शाहिदा बानो की बेटी ने अपने पापा को फोन काल का जवाब न मिलने पर कहा.

अहमद सिराज चौंका. मिडल ईस्ट के अरब देशों में नौकरानियों या हाउस मेड के साथ दुर्व्यवहार की खबरें आम थीं. उन्हें कहीं संपर्क करने से भी रोका जाता था. मगर सऊदी अरब के ब्यूटीपार्लर में इस तरह यौनशोषण हो सकता है, इस की उसे कल्पना भी नहीं थी.

‘‘तुम दोनों को आज फिर होम सर्विस के लिए जाना है.’’ मैडम ने फरमान सुनाया.

‘‘ना जाएं तो?’’ शाहिदा बानो ने पलट कर कहा.

‘‘अभी पता चल जाएगा.’’ मैडम ने अपना फोन टच किया. कुछ खुसरफुसर की. थोड़ी देर में गहरे हरे रंग की एक बड़ी जीप ब्यूटीपार्लर के बाहर आ कर रुकी.

हरे रंग की वरदी, पी-कैप पहने कमर में पिस्तौल, चुस्त शरीर का पुलिस इंसपेक्टर.

‘‘सर, ये दोनों बदकारी करती हैं. दूसरी औरतों को भी गलत काम के लिए उकसाती हैं.’’

नक्कारखाने में तूती की आवाज? दोनों चुपचाप जीप में पिछवाड़े बैठ गईं.

डेविड आर्थर एक स्वीडिश नागरिक था. वह फ्रीलांस फोटोग्राफर था. दुनिया भर में घूमताफिरता था. अनेक समाचारपत्रों, टीवी चैनल्स के साथ उस का अनुबंध था.

अपनी साथी सोफिया वारेन के साथ इन दिनों वह सऊदी अरब के भ्रमण पर था. मक्कामदीना में हज करने आए मुसलमानों के फोटो खींचने के बाद वापस लौटते समय दम्माम शहर से गुजर रहा था. उस की गाड़ी के सामने से आ रही एक अन्य गाड़ी ने टक्कर मार दी.

गाड़ी एक शेख की थी. मामला थाने तक पहुंच गया. डेविड आर्थर अपनी साथी के साथ थाने बैठा था. तभी पुलिस जीप दोनों को थाने में ले आई.

2 एशियाई स्त्रियों को थाने आया देख डेविड आर्थर चौंका. हर अलग स्थिति की फोटो खींच कर समाचारपत्रों और टीवी चैनल्स को प्रेषित करने में वह नहीं चूकता था.

‘‘सर, ये दोनों बदकारी करती हैं.’’ ब्यूटीपार्लर से पकड़ कर लाए नौजवान पुलिस अधिकारी ने थाना इंचार्ज के सामने दोनों को पेश करते हुए कहा.

अरबी भाषा का थोड़ाथोड़ा ज्ञान रखने वाली पत्रकार सोफिया वारेन चौंकी. उस ने उन दोनों औरतों की तरफ देखा. विवशता और बेबसी के भाव उन दोनों के चेहरों से साफ दिखते थे.

दोनों को हवालात में बंद कर दिया गया. अरब देशों में मेड, होम हैल्पर से यौनशोषण की खबरें आम थीं. घरेलू दिखती अपने देश से आई अधेड़ावस्था को छू रही दोनों औरतें भला इतनी दूर आ कर बदकारी कैसे कर सकती हैं?

डेविड आर्थर ने अपनी साथी सोफिया वारेन की तरफ देखा. सोफिया वारेन ने नजर बचा कर अपने स्मार्टफोन से हवालात में बंद दोनों की फोटो खींच ली.

‘‘मिस्टर आर्थर, आप राजीनामा कर लें. अगर हम केस दर्ज कर चालान काटते हैं तब आप को अदालत में पेशियां भुगतने आना पड़ेगा.’’ थाना इंचार्ज ने कहा.

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‘‘मगर गलती हमारी नहीं है.’’

‘‘मिस्टर आर्थर यह सऊदी अरब है. आप बाहर से आए हैं. केस दर्ज हो जाने पर आप के खिलाफ दर्जनों गवाह गवाही देने के लिए हाजिर हो जाएंगे. तब आप पर उलटा मामला बनेगा, आप को सजा भी हो सकती है.’’

इस धक्केशाही पर दोनों तिलमिलाए.

‘‘मिस्टर आर्थर, हम चाहें तो आप की इस साथी को बदकारी करने के लिए उकसाने के इलजाम में अंदर कर सकते हैं. दरजन भर गवाह कह देंगे कि आप की यह साथी अश्लील इशारे कर के आतेजाते राहगीरों को फुसला रही थी.’’ थाना इंचार्ज कुटिलता से मुसकराया.

यह सुन कर मिस्टर डेविड आर्थर ने अपनी साथी की तरफ देखा. सोफिया वारेन ने सहमति से सिर हिलाया.

‘‘ओके सर.’’

सादे कागज पर राजीनामा लिखवाने के बाद दोनों थाने से बाहर की ओर चल दिए. एक नजर हवालात में बंद दोनों बेबस स्त्रियों की तरफ देख कर उन्हें आश्वासन देने का मूक इशारा किया. शहिदा बानो ने अपने दोनों हाथ मिला कर सजदा किया.

कार थाने से बाहर निकाल कर डेविड आर्थर ने थोड़ी दूर खड़ी कर दी और फिर अपने शक्तिशाली कैमरे से थाने की इमारत की कुछ फोटो खींचीं.

‘‘इन एशियाई देशों में सब पुलिस वाले एक जैसे हैं. हवालात में बंद दोनों औरतें यौनशोषण के लिए इनकार करने पर बदकारी के झूठे इलजाम में बंद हैं.’’ सोफिया वारेन ने कहा.

‘‘अब हम क्या करें?’’

‘‘आप अपना दिमाग इस्तेमाल करो, मैं अपना. मैं ने अपने स्मार्टफोन के वायस रिकौर्डर में थाने में हुई सारी बातचीत रिकौर्ड कर ली है, साथ ही काफी फोटो भी हैं.’’

शाम होतेहोते विश्व भर के अनेक टीवी चैनलों पर सऊदी अरब के दम्माम शहर के थाने में बंद 2 औरतों की फोटो दिखाई जाने लगीं. साथ ही दुर्घटनाग्रस्त कार की फोटो.

फोटोग्राफर और पत्रकार जोड़ी की स्टेटमेंट और लाइव बयान भी दिखाया जाने लगा. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अरेबियन संभाग के अधिकारियों ने तुरंत सऊदी सरकार से संपर्क साधा. भारतीय दूतावास भी सक्रिय हुआ.

मात्र 24 घंटे के अंदर गुलबदन और शाहिदा बानो थाने से मुक्त हो गईं. साथ ही ब्यूटीपार्लर में कार्यरत सभी लड़कियों को भी मुक्त कराया गया.

सऊदी अरब से वापस लौटी शाहिदा बानो हवाईअड्डे पर अपने पति के कंधे से लग कर सुबकसुबक रो रही थी. सब कुछ समझने वाला अहमद सिराज खामोश था.

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Social Story In Hindi: सच्चाई सामने आती है पर देर से- भाग 2

ब्यूटीपार्लर की संचालिका ने एक नजर शाहिदा बानो के चेहरे पर डाली और समझ गई कि कि होम सर्विस की ड्यूटी निपटा आई थी.

शाहिदा बानो स्टाफरूम में चली गई. 5 ब्यूटीशियन लड़कियां चुपचाप इधरउधर बैठी थीं. तभी कमरे में लगा इंटरकौम बजा. एक लड़की ने रिसीवर उठा कर फोन सुना. फिर बाहर चली गई. चंद मिनटों बाद वापस लौटी. उस के हाथ में एक लिफाफा था.

लिफाफा उस ने शाहिदा बानो की तरफ बढ़ाया. प्रश्नवाचक नजरों से शाहिदा बानो ने उस की तरफ देखा.

‘‘मैडम ने कहा है, होम सर्विस के लिए मिली बख्शीश है. इसे ठुकराओ मत. धन सिर्फ धन ही होता है. धन को ठुकराना नहीं चाहिए.’’ उस ने लिफाफा शहिदा बानो के पास रख दिया.

शाहिदा बानो ने पहले लिफाफे की ओर फिर कमरे में बैठी पांचों लड़कियों की तरफ देखा. सब के चेहरे उन की एक जैसी कहानी बयान कर रहे थे.

तभी शाहिदा बानो का सेलफोन बजा. उस के पति का फोन था. रोजाना कभी वह फोन करती थी, कभी उस का पति.

रोज उत्साह से वह अपने पति को उस रोज की गतिविधियों के बारे में बताती कि आज ब्यूटीपार्लर में कितने ग्राहक निपटाए. बच्चे भी अपनी मम्मी से बारीबारी से चैट करते. मगर आज?

सेलफोन अटेंड करते ही शाहिदा बानो को जैसे करेंट लगा.

‘‘हैलो! कैसी हो? अपनी शाहिना ने सारे कालेज में टौप किया है. सारे मोहल्ले से बधाइयां मिल रही हैं. तुम को भी बधाई हो.’’ उस के पति अहमद सिराज का उत्साह भरा स्वर सुनाई दिया.

‘‘आप सब को भी बधाई हो.’’ शाहिदा बानो ने बुझे स्वर में जवाब दिया.

फिर तीनों बेटियों ने भी अपनी मम्मी से बात की. फोन बंद होने के बाद शाहिदा बानो खामोश हो गई. क्या करे? तभी इंटरकौम बजा. एक लड़की ने फोन सुना फिर रिसीवर रख कर शाहिदा बानो की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मैडम, कह रही हैं आप की ड्यूटी खत्म हुई. आप घर जाओ.’’

इस को सुन कर शाहिदा बानो का खून खौलने लगा. मगर वह विवश थी. उस ने अपना पर्स कंधे पर लटकाया और उठ कर बाहर की तरफ बढ़ी, ‘‘तुम्हारा लिफाफा.’’ फोन सुनने वाली अमीना ने मेज पर रखा लिफाफा उठा कर उस की तरफ बढ़ाया.

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शाहिदा बानो ने कशमकश भरी नजरों से लिफाफे की ओर देखा. उस की अस्मत लुटने की कीमत. क्या करे? उस की मन:स्थिति समझ कर अमीना ने उस का पर्स खोला और लिफाफा उस में डाल दिया.

हलकेहलके लड़खड़ाती सी चलती शाहिदा बानो ब्यूटीपार्लर से बाहर चली आई. सारे सपने सारी उम्मीदें एक झटके में खत्म हो गई थीं. ब्यूटीपार्लर द्वारा दिया स्कूटर छूते हुए उसे हाथ में आग सी लग रही थी.

जैसेतैसे फ्लैट में पहुंची. रोजाना उत्साह से खाना बनाती थी. मगर आज पानी भी नहीं पिया जा रहा था. बत्ती बुझा कर बिस्तर पर लेटी. काफी देर बाद पता नहीं कब उस की आंख लग गई.

काफी दिन चढ़े जब उस का सेलफोन थरथराया तो उस की नींद टूटी. उस ने स्क्रीन पर नजर डाली. ब्यूटीपार्लर की संचालिका का फोन था. स्विच औन करते ही मैडम का रौबीला स्वर गूंजा.

‘‘क्या हुआ, अभी तक नहीं आई?’’

‘‘मेरी तबीयत खराब है.’’

‘‘जब अपने शौहर के साथ हमबिस्तर होती हो तब तबीयत खराब नहीं होती?’’

शाहिदा बानो खामोश रही.

‘‘जल्द से जल्द हाजिर होओ वरना…’’ मैडम ने फोन काट दिया.

मैडम के स्वर में धमकी साफ थी. शाहिदा बानो फटाफट तैयार हो कर ब्यूटीपार्लर पहुंची.

‘‘आज दूसरी लड़कियां होम सर्विस को गई हैं. यहां कई क्लाइंट बैठी हैं, उन को अटेंड करो.’’ वेटिंग हाल में बहुत सी खातूनें मौजूद थीं.

शाहिदा बानो सब को बारीबारी से निपटाने लगी. सभी क्लाइंट्स निपट गईं तो शाहिदा बानो कैश काउंटर पर बैठी मैडम के पास पहुंची.

‘‘मेरा पासपोर्ट दे दीजिए और मेरा हिसाब कर दीजिए. मुझे वापस जाना है.’’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

मैडम की भौंहें तन गईं.

‘‘तुम्हारा कौन्ट्रैक्ट 3 साल का है. मियाद से पहले तुम वापस नहीं जा सकती. चुपचाप काम करो वरना…’’

‘‘आप मेरी तनख्वाह जब्त कर लो, मगर मेरा पासपोर्ट दे दो.’’

‘‘मैं एक फोन करूंगी, 5 मिनट में पुलिस आ जाएगी. तुम्हें बदकारी के इल्जाम में अंदर कर देगी.’’ मैडम के स्वर में साफसाफ धमकी थी.

‘‘बदकारी..? मेरी अस्मत लुटवा कर मुझे बदकार कहती हैं.’’ शाहिदा बानो चिल्लाई.

‘‘यह सऊदी अरब है, तुम्हारा इंडिया नहीं. यहां जिस्मफरोशी सख्त अपराध है. इस की सख्त सजा है, चौराहे पर कोड़े लगाए जाएंगे. कम से कम 3 साल जेल की सजा काटनी पड़ेगी.’’ मैडम किसी वकील की तरह बोल रही थी.

शाहिदा बानो सहम गई. 5 हजार रियाल यानी 90 हजार रुपए महीना. सारे सपने, सारी उमंगें एकदम खत्म हो गईं. ब्यूटीपार्लर की आड़ में जिस्मफरोशी का एक रैकेट था. इस दलदल से, दुष्चक्र से क्या छुटकारा पा सकेगी?

वह खामोश हो कर सर्विस रूम में चली गई. होम सर्विस के लिए गई लड़कियां लौटने लगीं. सब के चेहरे खामोश थे. भुक्तभोगी शाहिदा बानो उन के चेहरे से उन की मन:स्थिति समझ रही थी. सब ने किस्मत और हालात से समझौता कर लिया था. स्टाफरूम में सब खामोश थीं. सब के चेहरे उन की मजबूरी बयान कर रहे थे.

सब अलगअलग देशों से, अलगअलग इलाकों से आई थीं. कई शादीशुदा थीं, कई कुंवारी. बड़ी रकम वाली तनख्वाह के बदले उन को अपना शरीर सौंपना पड़ा था.

आमतौर पर सब में हलकाफुलका वार्तालाप होता था. घरपरिवार की बातें होती थीं. सब के पासपोर्ट और कागजात ब्यूटीपार्लर की संचालिका के पास जमा थे. इकरारनामे की मियाद पूरी होने से पहले किसी को वापस नहीं भेजा जा सकता था.

इस का मतलब था मियाद खत्म होने तक सब को बारबार होम सर्विस के बहाने अपनी अस्मत लुटवानी थी.

सब के दिमाग में एक ही सवाल था, मगर अनजाने भय से सब खामोश थीं. क्या पता स्टाफरूम में कोई टेपरिकौर्डर लगा हो. क्या पता कोई सीसीटीवी कैमरा उन पर नजर रख रहा हो.

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वास्तव में ब्यूटीपार्लर के हर कक्ष में गुप्त कैमरे फिट थे. ब्यूटीपार्लर की संचालिका या मैडम अपनी सीट पर बैठी सामने रखी स्क्रीन पर नजर डाल हर जगह की खबर रखती थी.

शाम का अंधेरा छाया. ब्यूटीपार्लर बंद हुआ. सब अपनीअपनी स्कूटी, स्कूटर पर सवार हो अपने घर चलीं.

होम सर्विस की ड्यूटी भुगते शाहिदा बानो को 4 दिन बीत गए. ब्यूटीपार्लर की असलियत सामने आने पर काम के प्रति सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. पार्लर में आने वाले ग्राहकों को अब वह बड़ी फुरती से निपटाती थी.

‘‘गुलबदन…’’ इंटरकौम पर मैडम की आवाज गूंजी.

‘‘जी, फरमाइए.’’

‘‘तुम्हें और शाहिदा बानो को होम सर्विस पर जाना है.’’

‘‘इकट्ठे?’’

‘‘शेख अब्दुल्ला बिन मोहम्मद अब्दुल्ला के यहां बड़ा प्रोग्राम है. कई खातूनें मसाज करवाना चाहती हैं. उन की कार अभी थोड़ी देर में आ रही है.’’

मैडम का फरमान सुन कर गुलबदन खामोश रही. शाहिदा बानो सहम गई. एक दरिंदे को 4 दिन पहले सह चुकी थी. अब पता नहीं क्या होगा.

‘‘अगर मैं ना जाऊं तो?’’ शाहिदा बानो के इस सवाल का जवाब गुलबदन क्या देती. इस से पहले इंटरकौम का बजर बजा. मैडम का स्वर गूंजा, ‘‘इनकार करने की सूरत में थाने से लेडी पुलिस के साथ पुलिस इंसपेक्टर आएगा और तुम्हें बदकारी के इलजाम में हवालात में बंद कर देगा. थाने में भी होम सर्विस करनी पड़ेगी.’’

स्टाफरूम में बैठी सब सहम गईं. ब्यूटीपार्लर के बाहर कार लगते ही शाहिदा बानो और गुलबदन चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गईं.

अरब शेख अब्दुल्ला बिन मोहम्मद अब्दुल्ला का विला या महल काफी आलीशान था. एक बुरकाधारी खातून उन को लिवा कर जनानखाना में ले गई.

अधेड़ और नौजवान लड़कियों का समूह उन का इंतजार कर रहा था. किसी पुरुष की जगह औरतों को देख कर दोनों आश्वस्त हुईं.

विला में सभी सुविधाओं से युक्त ब्यूटीपार्लर था. सब औरतें बारीबारी से अपनी सर्विस करवाने लगीं. सब निपट गईं तो दोनों ने राहत की सांस ली. मगर क्या उन की ड्यूटी समाप्त हो गई थी?

सब औरतें चली गईं तब उन को अंदर लिवा लाने वाली खातून ने कहा, ‘‘आप दोनों को अंदर जनानखाने में भी सर्विस करनी है.’’

जनानखाना महल के काफी अंदर एक लंबा गलियारा पार कर के था.

पुराने जमाने के मुसलिम शासकों के महलों की साजसज्जा. बड़ा हाल कमरा सजा था. फर्श पर धवल सफेद गद्दा बिछा था. गावतकिए के सहारे एक अधेड़ अरब शेख जिस के चेहरे पर खिचड़ी दाढ़ी थी, बैठा था.

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उस के हाथ में सुनहरे रंग की नक्काशीदार धुआं खींचने वाली पाइप थी, जिस का दूसरा सिरा एक नक्काशीदार सुनहरे हुक्के से जुड़ा था.

उस के पास अरबी चुस्त पोशाक पायजामा और चोली पहने एक लड़की बैठी थी, जिस के हाथ में एक सुराही थी और एक प्याला.

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सक्सेसर: पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

सक्सेसर: भाग 3- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

महराज तो कोविड और लौकडाउन की वजह से आ नहीं रहे थे. निशा प्रैग्नैंट थी. वह कंप्लीट बैडरेस्ट पर थी और मम्मी जी को गठिया के कारण परेशानी थी.

सुबह के समय निशीथ निभा के कमरे में आ कर बोले, “भाभी, आप के हाथ के मूली के परांठे खाए बहुत दिन हो गए. आज बना दीजिए. निशा का बहुत मन हो रहा है.“

वह खुशीखुशी बनाने में जुट गई थी.

“वाह भाभी, यू आर ग्रेट.”

वह इन तारीफों के जाल में उलझ कर खुशीखुशी रोज नएनए पकवान बनाने में उलझती गई. मम्मी जी बोलीं, “निभा के खाना बनाने की वजह से सब को बढिया खाना मिल जाता है और उस का समय भी अच्छी तरह बीत जाता है.“

मम्मी जी निशा की सेवा में लगी रहतीं क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस खानदान का वारिस आने वाला है. उसे बैड से नीचे पैर न रखने देतीं, जबकि वह ‘डाक्टर के यहां जा रही हूं’ कह कर घंटों के लिए घर से बाहर रहा करती.

कोविड की लहर उतार पर थी. निशा के बेबी शावर की तैयारी धूमधाम से करने के लिए रोज बैठकें हो रही थीं, जिन में निभा का प्रवेश निषेध था क्योंकि वह विधवा थी. उस की बुरी नजर से कुछ अशगुन हो जाता तो… निशा के मायके वाले और मम्मी जी और निशीथ सब बैठ कर प्रोग्राम को शानदार व यादगार बनाने के लिए प्लानिंग करते रहते.

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तभी एक दिन निभा के मोबाइल की घंटी बजी. उधर उस के पुराने ज्वैलर थे, कह रहे थे कि, ”मैडम, जो आप ने डायमंड सैट का और्डर दिया था वह बन कर आ गया है. उस को आप के घर पर पहुंचा दें या फिर यहां आकर देखेंगी.”

अब तो उस का दिमाग चकरा उठा था. परदे के पीछे चल क्या रहा है?

उस के साथ मीठीमीठी बातें बना कर उसे खाना बनाने वाली बना कर रख छोड़ा है… निभा, तुम्हारे हाथ का खाना खा कर मन खुश हो जाता है, सब को स्वाद वाला बढिया खाना मिल जाया करता है…

पहले तो वह कुछ समझ नहीं पाई थी और घरेलू कामों में ही उलझती चली गई. वह अपने मन का दर्द कहे तो किस से कहे.

ज्वैलर के फोन से मानो उस की आंखें खुल गईं. उस को ऐसा लगा मानो निश्चल कह रहे हों, घरेलू कामों में उलझ कर क्यों नौकरानी की तरह काम करती रहती हो.

अगली सुबह जब वह तैयार हो कर घर से निकलने लगी तो मम्मी जी नाराजगीभरे स्वर में बोलीं, “हाय, कुछ तो शरम करो. अभी निश्चल को गए साल भी पूरा नहीं हुआ है और तुम सजधज कर निकल पड़ीं. हायहाय, मेरा तो समय ही फूटा है. बेटा तो चला ही गया और तुम घर की इज्जत सरेआम बाजार में नीलाम करने में लगी हो. लोग क्या कहेंगे. बिरादरी वालों को क्या जवाब देंगे.“ वे यह कह कर झूठमूठ रोने का नाटक करने लगीं.

असमंजस में उस के कदम क्षणभर के लिए ठिठक कर रुक गए थे. परंतु फिर उस ने अपने मन को पक्का किया और बोली, “मम्मी जी, रामदीन नहीं दिखाई पड़ रहे हैं?”

“निशीथ ने रामदीन को हटा दिया. आखिर कब तक उसे बैठेबैठे की तनख्वाह दी जाती,” वे रोतीबिसूरती हुई बोलीं, “निश्चल तो अब लौट कर आने वाला नहीं.” निभा को दिखाने के लिए वे अपने आंसू पोंछने का नाटक करने लगी थीं.

तभी उस का मोबाइल बज उठा था. निशीथ का फोन था, ”भाभी, मैं गाड़ी भेज रहा हूं, आप को कहां जाना है?”

“नहीं, निशीथ भैया, मैं ने ओला बुक कर ली है. वह आने ही वाली है.”

‘ओला’ शब्द सुनते ही सब के कान खड़े हो गए थे.

“ठहरो भाभी, मैं खुद ही आ रहा हूं.”

“नहीं भैया, मैं अपनी फ्रैंड से मिलने जा रही हूं.” तब तक मम्मी जी तेजी से दौड़ती हुई आईं, “निभा, तुम अकेले मत जाओ, मैं तुम्हारे साथ चलती हूं.”

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वह अनसुना करती हुई टैक्सी में बैठ गई थी और सीधा ज्वैलर्स के शोरूम पर पहुंची तो वहां मालूम हुआ कि निशीथ और निशा ने इन दिनों में काफी सारी ज्वैलरी खरीदी है. डायमंड सैट देख कर उस की आंखें चुंधिया गई थीं.

अब वह सीधा औफिस पहुंची थी. निशीथ उस को औफिस में देखते ही घबरा उठा था.

निश्चल का केबिन और उस की कुरसी अब निशीथ की हो चुकी थी. हां, निश्चल की फोटो जरूर दीवार पर टंगी थी और उस पर माला देख उस की आंखें नम हो उठी थीं.

उस ने जाकर पति की फोटो को नमन किया और मन ही मन उन से मार्ग प्रशस्त करते रहने के लिए विनती की.

“भाभी, आप को औफिस आने की क्या जरूरत पड़ गई. आप तो जानती हैं कि भैया को तो आप का औफिस आना बिलकुल भी पसंद नहीं था. लोग यह कहेंगे कि मैं आप की सही से देखभाल नहीं कर रहा हूं.”

“ऐसा कुछ नहीं है. लोगों का तो काम ही है कुछ कहना. अब मैं रोज औफिस आया करूंगी और तुम्हारी मदद किया करूंगी. इस समय निशा को तुम्हारी जरूरत है और तुम सारा दिन औफिस के कामों में उलझे रहते हो.“

निशीथ के चेहरे के हावभाव से उस का आक्रोश साफ दिखाई पड़ रहा था. लेकिन समय की नाजुकता देख कर वह वहां सब के सामने बोला, “भाभी के लिए कौफी लाओ.“ और निभा को अपनी कुरसी पर बिठा दिया था.

मैडम निभा आज औफिस आईं हैं, यह खबर हवा की तरह पूरे औफिस में पहुंच गई थी और लोग मिलने के लिए आने लगे थे. निश्चल के प्रति उन लोगों का प्यार देख उस की आंखें छलक उठी थीं.

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सक्सेसर: भाग 4- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

निशीथ जल्दी ही उसे अपनी गाड़ी में बिठा कर घर ले आए थे. वह समझ रही थी कि निशीथ को उस का औफिस आना बिलकुल भी पसंद नहीं आएगा लेकिन अब वह घर से निकल कर निश्चल के अधूरे काम को पूरा करने की कोशिश करेगी.

घर आते ही वह बोला, “आप को औफिस आने की क्या जरूरत पड़ गई? आखिर आप को क्या कमी है जो आप आज औफिस पहुंच गईं. सब को दिखाना चाहती हैं कि मैं आप की देखभाल सही से नहीं कर रहा हूं? और तो और, सीधा ज्वैलर्स के पास पहुंच गईं. आखिर आप चाहती क्या हैं, क्या मैं कंगाल हूं कि अपनी बीवी के लिए एक सैट नहीं खरीद कर दे सकता?” मम्मी जी और निशा वहां खड़ी हो कर जलती निगाहों से उसे घूर रहीं थीं और उस की हां में हां भी मिला रही थीं.
“क्या कंपनी में मेरे शेयर नहीं हैं? भैया का ‘सक्सेसर’ तो मैं ही हूं. आप को क्या पता कि कंपनी को कैसे चलाते हैं? कुछ समझ है क्या? चुपचाप घर में बैठिए जैसे इतने दिनों से रह रही थीं. ज्यादा हाथपैर मारने की जरूरत नहीं है.”

अपना गुस्सा निकालने के बाद अब वह आराम से बोला, “मुझे भूख लग रही है, कुछ खाने को दीजिए, ज्यादा पंख फड़फड़ाने की जरूरत नहीं है.”

वह डर कर चुप हो गई थी और फिर निशीथ और मम्मी जी के हाथ की कठपुतली बन कर रह गई थी. वह मन ही मन सोचा करती कि निश्चल उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते थे, आज उस की स्थिति कोने में रखे कचरे की तरह हो गई है.

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निश्चल को इस दुनिया से विदा हुए एक वर्ष हो गया था. सब को दिखाने के लिए निशीथ ने एक प्रार्थना सभा का आयोजन किया था. वहां पर निभा की मुलाकात अखिल भैया से हुई. उन्होंने और निश्चल ने मिल कर यह कंपनी बनाई थी. फिर उन की पत्नी कोरोना की शिकार हो गई थीं. वे उन्हें अकेला कर गई थीं. इन्हीं परेशानियों से घिरे रहने के कारण काफी दिनों से उन्हें ज्यादाकुछ मालूम नहीं था परंतु उन की अनुभवी आंखों ने एक नजर में सबकुछ समझ लिया था.

निशीथ और मम्मी जी ने होशियारी से सभी पुराने नौकरों को हटा कर नए रख लिए थे जो केवल निशा और निशीथ को ही मालिक समझते थे. मम्मी जी अपना स्वार्थ देख कर निशीथ और निशा का साथ दे रही थीं.

निभा साधारण परिवार से थी. मम्मी जी का सोचना था कि उस ने निश्चल को अपने प्रेमपाश में बांध कर उसे शादी करने के लिए मजबूर कर दिया जिस के कारण उसे लवमैरिज करनी पड़ी थी. सोने पर सुहागा था कि उस के जल्दीजल्दी 2 बेटियां भी हो गईं, जिस की वजह से वह उन की आंख की किरकिरी हमेशा से थी. लेकिन निश्चल के सामने उस की ओर उंगली उठाने की किसी की हिम्मत न होती थी. अब उस के जाते ही दोनों ने मिल कर उसे घर और कंपनी दोनों से किनारे करने की ठान ली थी.

एक दिन निशीथ फोन पर किसी से कह रहे थे कि ‘पावर औफ एटौर्नी’ तो मेरे पास है, वह भला क्या कर सकती है. इस एक वाक्य ने उस के ज्ञानचक्षु जागृत कर दिए थे. वह पावर औफ एटौर्नी कैंसिल करवाएगी और अपना हक हासिल करेगी.

उस ने गूगल पर सर्च किया और सोचने लगी कि शायद ये लोग नहीं जानते कि निभा किस मिट्टी की बनी है. उस ने जीवन की जंग जीती है तो यह कौन बड़ी बात है. उस ने प्यार से अपनी दोनों बेटियों को अपने गले से लगा कर उन के माथे पर प्यार किया और फिर, ओला बुक कर के वह रजिस्ट्रार औफिस में जा कर अपनी पावर औफ एटौर्नी कैंसिल करवाने के काम में जुट गई.

इस तरह के काम करने का उस का पहला अवसर था, इसलिए वह थोड़ी नर्वस थी लेकिन यदि इरादे बुलंद हों तो सबकुछ संभव है. वहां पर वह लोगों से पूछताछ कर रही थी, तभी वहां पर उस का पुराना क्लासफैलो चंदन वर्मा दिखाई पड़ा था.

वह रजिस्ट्रार औफिस में उसे अकेले उस के श्रंगारविहीन और कांतिहीन चेहरे को देख कर चौंक उठा, बोल पड़ा, “निभा कैसी हो?”

“बस, कोरोना की मार झेल रही हूं.”

“तुम ने तो निश्चल के साथ लवमैरिज की थी.”

“हां चंदन, निश्चल को कोरोना ने निगल लिया,” उस की आंखें बरस पड़ी थीं.

“रजिस्ट्रार औफिस में कैसे आना हुआ?”

“चंदन, तुम ने तो लौ किया था न.’’

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“हां, हां, लेकिन अभी भी बेकार सा घूम रहा हूं. छोटेमोटे कामों से बस किसी तरह गुजर हो पा रहा है.”

“तुम ने तो अपने बैच में टौप किया था न?”

“जिंदगी में तो कछुए की तरह रेंग रहा हूं.“

“मेरी कुछ हैल्प करोगे?”

“यह पूछने की बात है.”

“आओ सामने रैस्टोरैंट में कौफी पीते हैं, वहीं बैठ कर बातें होंगी.“

चंदन शुरू से क्लास में पढ़ने में बहुत होशियार था लेकिन वह गरीब और अनुसूचित जाति के कोटे से आता था, इसलिए क्लास में कोई उस को भाव नहीं देता था. वह अलगअलग सा रहता, डरासहमा सा रहता कि कब कोई उस का मजाक न बना दे. फिर वह लौ करने लगा और उस ने एमए किया तो लगभग मिलनाजुलना बंद सा हो गया.

उस ने लगभग सकुचाते हुए अपनी लिखी हुई एप्लिकेशन दिखाई, जो पावर औफ एटौर्नी कैंसिल करवाने के लिए थी. चंदन ने एप्लिकेशन में कुछ सुधार किया और बोला, “पावर औफ एटौर्नी तो मैं एक दिन में कैंसिल करवा दूंगा लेकिन यह समझ लो यदि तुम्हारे देवर की नीयत खराब है तो वह खुद ही कंपनी का मैनेजिंग डाइरैक्टर बन जाने की कोशिश कर रहा होगा या फिर वह तुम्हारी कंपनी को अपने नाम पर करवाने की कोशिश में लगा होगा. इसलिए “पावर औफ एटौर्ऩी कैंसिल करवाने के बाद यह पता लगाने की कोशिश करो कि कंपनी में निश्चल जी के कितने फीसदी शेयर थे. वे सब शेयर अपनेआप तुम्हारे नाम ट्रांसफर हो जाएंगे क्योंकि तुम निश्चल जी की पत्नी और उन की सक्सेसर हो.“

“लेकिन निश्चल ने तो मुझे कभी कुछ बताया ही नहीं,” वह रोंआसी हो उठी थी.

“कोई बात नहीं, निभा. तुम घबराओ मत. मैं तुम्हारा हक तुम्हें अवश्य दिलवाऊंगा. रो कर कमजोर मत बनो बल्कि हिम्मत रखो.”

“चंदन, यदि तुम मुझे मेरा हक दिलवा दोगे तो मैं तुम्हें मुंहमांगे 20 लाख रुपए या उस से कहीं ज्यादा रकम दूंगी. यदि तुम यह केस मुझे जिता दोगे तो तुम्हारा नाम हो जाएगा. और फिर तुम्हें बहुत सारे केस मिलने लगेंगे. लेकिन इस समय तो बस तुम्हें जरूरी खर्च वाले पैसे ही दे पाऊंगी.“

“निभा, तुम बोर्ड औफ डाइरैक्टर्स में निश्चल के किसी विश्वासी मित्र को जानती हो… तो तुम्हारा काम आसान हो जाएगा.“

“हां, अखिल भैया और निश्चल ने मिल कर यह कंपनी बनाई थी.

“लेकिन मुझे लगता है कि अब निशीथ खुद डाइरैक्टर बनना चाहता होगा.“

वह भोलेपन से बोली थी, “फिर कौन बनेगा?”

“तुम बनोगी, अपने पति की सक्सेसर हो तुम.”

“मुझे तो कुछ समझ नहीं आता, कैसे हो पाएगा?“

“सब काम मैनेजर और टीम करती है. धीरेधीरे सब समझ में आने लगेगा. ठीक है निभा, तुम मेरे संपर्क में रहना. इस विषय पर दूसरे केसेज को स्टडी करूंगा. उन के फैसले और डीटेल्स समझूंगा. तब आगे क्या करना होगा, मैं तुम्हें बताऊंगा.”

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“एक बात ध्यान रखना, घर में इन बातों की किसी से भी चर्चा मत करना क्योंकि इस समय तुम्हारा देवर तुम्हारी कंपनी पर अपना कब्जा कर के तुम्हारे अधिकार को छीन कर, तुम्हें घर से बाहर कर देने की कोशिश में लगे होंगे. मुझे पक्का विश्वास है कि निशीथ ने कंपनी कोर्ट या लौ ट्रिब्यूनल में कंपनी अपने नाम करने के लिए एप्लिकेशन डाल रखी होगी. हो सकता है कि वह तुम्हारा फोन ट्रैक कर रहा हो. इसलिए तुम्हें बहुत होशियार रहना होगा. यदि तुम्हारे फोन में अखिल का नंबर हो तो मुझे दे दो. मैं सबकुछ तुम्हारे हक में करवा कर ही चैन लूंगा.“

आगे पढ़ें- चंदन का अनुमान सही निकला था…

सक्सेसर: भाग 5- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

जो चंदन उस की नजरों में गंवार और ऐं वैं ही था, आज उस की बातों से अत्यंत सुलझा हुआ व समझदार दिखाई पड़ रहा था. उस के बात करने के ढंग और उस की मदद के लिए उठे हुए उस के हाथ को देख कर वह गदगद हो उठी थी. उस के व्यवहार ने उस के दिल को छू लिया था.

चंदन का अनुमान सही निकला था…निशीथ ने लौ ट्रिब्यूनल में कंपनी का नाम बदल कर अपने नाम कर लेने की एप्लीकेशन लगा रखी थी और निश्चल के शेयर्स पर अपना कब्जा करने के लिए बोर्ड औफ डाइरैक्टर्स को अपनी तरफ मिलाने के लिए उन को तरहतरह का प्रलोभन देने में लगा हुआ था.

पावर औफ एटौर्नी के कैंसिल होते ही निशीथ के कान खड़े हो गए थे और अब उस के सुर बदलने लगे. लेकिन वह अंदर ही अंदर बोर्ड मैंबर्स से मिल रहा था और अपने को निश्चल का सक्सेर बता रहा था. निश्चल की जगह वह खुद मैनेजिंग डाइरैक्टर बनने के लिए गुटबंदी की कोशिश में लगा हुआ था. लोगों के सामने निभा को अयोग्य बता कर समय बिताने के प्रयास में लगा हुआ वह चाह रहा था कि किसी तरह लौ ट्रिब्यूनल में कंपनी उस के नाम रजिस्टर हो जाए. फिर एकएक को वह देख लेगा…

इधर, घर में निभा को अपनी तरफ मिलाने के लिए उस की चापलूसी करता रहता. अब भैया तो लौट कर आएंगें नहीं. अब सबकुछ उसे ही करना है.

वह सब से कहता फिर रहा था कि निभा भाभी तो एक घरेलू महिला हैं, वे भला कंपनी की एबीसीडी क्या जानें. इसीलिए तो उन्होंने पावर औफ एटौर्नी मुझे दे रखी है.

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‘…मैं तो भाभी का सेवक हूं. भैया की अमानत संभाल रहा हूं. रिनी और मिनी को तो विदेश में पढ़ने के लिए भेजूंगा. हर समय यही सोचता रहता हूं और यही चाहता हूं कि मेरी भाभी को भैया की कमी न महसूस होने पाए. अब वह उन दोनों के लिए कभी कुछ तो कभी कुछ खिलौना या कपड़ा ले कर आया करता. लेकिन निभा अब उस की नीयत को अच्छी तरह समझ चुकी थी, इसलिए उस के भुलावे में आने का सवाल ही न था.

अखिल दास ने बोर्ड मैंबर्स की मीटिंग बुला ली जिस में नए मैनेजिंग डाइरैक्टर को भी चुना जाना था. बड़ी गहमागहमी थी. चंदन और अखिल दास के सहयोग से वह अब कंपनी के कामकाज को अच्छी तरह समझ चुकी थी. लेकिन निशीथ आसानी से कंपनी अपने हाथ से जाने नहीं दे सकता था, इसलिए उस ने एक कागज पर निश्चल के दस्तखत के साथ बोर्ड औफ डाइरैक्टर्स के सामने रखा, जिस के अनुसार, निश्चल के 51 फीसदी शेयर्स और कंपनी निशीथ की हो जाएगी और वे चाहते थे कि कंपनी के मैनेजिंग डाइरैक्टर निशीथ ही बने. विल के अनुसार, निश्चल के शेयर्स, जमीनजायदाद और कंपनी का मालिक निशीथ ही होगा. बैठक बहुत हंगामेदार हुई और केस लौ ट्रिब्यूनल को सौंप दिया गया.

बोर्ड मैंबर्स निभा को निश्चल की उत्तराधिकारी मानते हुए उसे ही डाइरैक्टर चुनना चाहते थे लेकिन कानूनी दांवपेच में उलझ कर मामला लौ ट्रिब्यूनल से कोर्ट में पहुंच गया और विल की सचाई सिद्ध करने के लिए सिविल कोर्ट पहुंच गया था. परंतु चंदन के अकाट्य तर्कों के आगे निशीथ के वकील कहीं नहीं टिक पाए थे और लगभग 3 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद निभा के हक में फैसला हुआ.

निभा ने खुशी के मारे अपनी गर्म हथेलियां चंदन के हाथों पर रख दीं, “चंदन, तुम्हें धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं. मैं आजीवन तुम्हारी एहसानमंद रहूंगी.”

“निभा, आज पहले दिन औफिस जा रही हो. लो, दहीशक्कर से मुंह मीठा कर के जाओ.“ वह आश्चर्य से भर उठी थी…ये रिश्ते भी कितने स्वार्थी होते हैं. वह औफिस आई तो गेट को फूलों से सजा हुआ देख, उसे अच्छा लगा था. उस के लिए रेड कार्पेट बिछाई गई थी. फूलों की वर्षा के साथ वैलकम सौंग गाया गया. केबिन के बाहर नेमप्लेट पर ‘निभा सिंह’ और नीचे मैनेजिंग डाइरैक्टर देख उस की आंखें नम हो गई थीं.

वह फाइल पर साइन करती जा रही थी परंतु उस का मन चंदन में ही उलझा हुआ था. उस ने ईमानदारी से चैक साइन कर के जब उसे दिया तो उस ने उस का हाथ पकड़ लिया था, ”निभा प्लीज, यह एक दोस्त की तरफ से भेंट समझ लो.”

वह उसे एकटक निहारती रह गई थी, “चंदन, तुम शादी क्यों नहीं कर लेते?”

“बस, दिल में कोई बसा है.”

“तो उस से अपने दिल की बात कह दो.”

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“हिम्मत नहीं जुटा पाता, यदि उस ने ना कर दी तो…”

चंदन का जादू उस के सिर पर चढ़ता जा रहा था. वह हर पल उस की आंखों में अपने लिए प्यार ढूंढा करती लेकिन उस की सूनी आंखों में सिवा उदासी और खालीपन के कुछ न दिखता.

वह रात में लेटी, तो उस का मन चंदन की बातों में उलझा था. चंदन…चंदन…चंदन. उसे क्या होता जा रहा है… वह मन ही मन मुसकरा उठी थी. उस ने चंदन को अपना हमसफर बनाने का निश्चय कर लिया था. उस ने चंदन को फोन किया, “कल शाम को डिनर पर आ सकते हो?”

“आप बुलाएं और हम न आएं, ऐसा कभी हो ही नहीं सकता.”

अगले दिन… “मैडम नहीं, केवल निभा कहो चंदन.”

“मैं तो कब से इस पल का इंतजार कर रहा था.”

चंदन ने सब के सामने उस की हथेलियों को हमेशा के लिए अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया था.

सक्सेसर: भाग 1- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

लखनऊ के एक पौश इलाके गोमतीनगर में निश्चल कपूर ने अपनी मेहनत के बलबूते आलीशान तीनमंजिली कोठी बनवाई. और चंद वर्षों के अंदर ही उन्होंने समृद्ध और प्रतिष्ठित लोगों के बीच अपना स्थान बना लिया. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कहर ने सबकुछ बदल दिया.

“निश्चल, प्लीज मास्क ठीक से लगाओ. तुम्हारी नाक खुली हुई है. मास्क ठुड्डी पर लटका कर किसे धोखा दे रहे हो?”

“माई डियर निभा, तुम मेरी फिक्र छोड़ अपनी फिक्र करो. मुझ जैसे हट्टेकट्टे तंदुरुस्त इंसान को देख कर कोरोना खुद ही डर कर भाग जाएगा,” जोर का ठहाका लगाते हुए पत्नी निभा की ओर फ्लाइंग किस उछालते हुए वे गाड़ी स्टार्ट कर औफिस चले गए थे.

निभा जब भी कोरोना नियमों की बात करती, निश्चल उसे हंस कर टाल देते. इधर एक हफ्ता भी नहीं बीता कि निश्चल को हलका बुखारखांसी हुई. निभा टैस्ट करवाने को कहती रही लेकिन निश्चल ने उस की एक न सुनी और गोलियां निगल कर औफिस जाते रहे. जब सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो भी जबरदस्ती करने पर टैस्ट करवाया और पौजिटिव रिपोर्ट आते ही एंबुलैंस में निश्चल को हौस्पिटल जाते देख कर पूरा परिवार सदमे में आ गया. उन्हें यथार्थ सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल में एडमिट करवा दिया गया. चूंकि वे कोरोना पौजिटिव थे, इसलिए उन के छोटे भाई निशीथ दूसरी गाड़ी में अलग से गए और एडमिट करवा कर घर लौट आए थे.

यद्यपि सब लोग सदमे में थे परंतु फिर भी सब के मन में आशा की किरण थी कि निश्चल जल्दी ही स्वस्थ हो कर आ जाएंगे. लेकिन 3-4 दिन ही बीते थे कि निभा भी पौजिटिव हो गई और तब तक कोरोना अपना विकराल रूप धारण कर चुका था. पूरे दिन की जद्दोजेहद के बाद बहुत मुश्किलों में रात 11 बजे उन्हें बैड मिल पाया था. निश्चल के सीटी स्कैन में उन के लंग्स तक इन्फैक्शन पहुंच गया था, इसलिए वे आईसीयू में रखे गए थे.

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मोबाइल फोन ही ऐसा माध्यम था जिस के द्वारा किसी से संपर्क किया जा सकता था. 3-4 दिनों तक तो वह निश्चल और परिवार के संपर्क में रही, फिर वह अपनी बीमारी में उलझती चली गई. वह खुद ही अपना होश खोती चली गई. अपनी सांसों के लिए संघर्ष करते रहने में वह सबकुछ भूलती चली गई. आईसीयू में औक्सीजन मास्क लगाए हुए वह अकेलेपन से जूझती रही थी. उस के चारों तरफ उस का कोई अपना नहीं दिखाई पड़ता था. कभी उसे प्यास लगती, तो सिस्टर की ओर आसभरी नजरों से देखती- ‘सिस्टर, मुझे प्यास लग रही है.’ उस समय यह अनुभूति हुई कि पानी की एक बूंद भी कितनी मूल्यवान है क्योंकि सिस्टर के लिए तो बहुत सारे सीरियस मरीज होते थे जिन को देखना उन के लिए ज्यादा जरूरी होता था.

एक रात उसे बहुत ठंड लग रही थी. सिस्टर दूर कुरसी पर बैठी जम्हाई ले रही थी. उस ने डूबती हुई आवाज में सिस्टर को आवाज दी थी परंतु कमजोर तन से इतनी धीमी आवाज निकल रही थी कि कोई बिलकुल उस के करीब हो, तभी सुनसमझ सकता था. सिस्टर भी तो आखिर इंसान ही थी, वह सारी रात ठंड से ठिठुरती रही थी. मुंह में औक्सीजन मास्क लगा हुआ था. मास्क निकालते ही सांसें उखड़ने को बेताब हो उठती थीं. उन्हीं दिनों यह एहसास हुआ था कि एकएक सांस कितनी मूल्यवान है. उस मर्मांतक पीड़ा को याद कर वह आज भी कांप उठती है…

लगभग 2 महीने तक वह जीवन मौत के झूले में झूलती हुई कभी आईसीयू तो कभी बाहर एकएक सांस के लिए संघर्ष करती हुई, डाक्टर और नर्सों के अथक परिश्रम के फलस्वरूप कोरोना से जंग जीतने में सफल हो गई और अपने घर आ गई. परंतु, पोस्टकोविड के कारण वह नित नई परेशानियों व तकलीफों से गुजर रही थी. न ही वह अपनी नन्ही परियों को ढंग से प्यार कर पा रही थी और न ही निश्चल की आवाज उसे सुनाई पड़ रही थी. जब भी वह निश्चल को फोन लगाती, तो निशीथ भैया उठाते. वे अकसर आते और किसी न किसी कागज पर उस के दस्तखत करवा कर ले जाया करते.

जब एक दिन वह फफक कर रो पड़ी कि निश्चल कहां हैं, वे क्यों नहीं दिखाई पड़ रहे? तो मम्मी जी ने बताया कि निश्चल तो कोविड से जंग में हार गए. अब पोंछ दो माथे का सिंदूर. तुम्हारा सुहाग उजड़ चुका है. सहसा वह विश्वास ही न कर पाई थी, लेकिन समझ में आते ही वह रोतेरोते बेहोश हो गई थी. उस का ब्लडप्रैशर 100 से नीचे चला गया था. डाक्टर आए. वह रोतीबिलखती रही थी. वह सोच ही नहीं पा रही थी कि निश्चल के बिना वह कैसे जीवित रह पाएगी. 2 नन्हीं मासूम बेटियां… वह क्या करेगी, कैसे जिएगी…. इस समय वह तन से तो टूटी थी ही, अब मन से भी टूट चुकी थी. उस को अपने जीवन के चारों ओर घना अंधकार पसरा दिखाई दे रहा था.

निश्चल ने बिजनैस से उस को बिलकुल अलगथलग रखा था. एक बार वह औफिस पहुंच गई थी तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था. वह उस पर बहुत नाराज भी हुए थे. औफिस से उसे बस इतना वास्ता था कि …इस कागज पर अपना साइन कर दो, तो कभी चैक पर साइन कर दो… वह भी अधिकतर ऐसा समय होता जब वे औफिस जाने के लिए जल्दी में होते. वह दस्तखत कर के उन्हें पकड़ा देती. कभी क्या लिखा है, यह जाननेसमझने की न ही इच्छा हुई और न ही जरूरत ही समझी थी उस ने.

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सास सुनैना उसे हिम्मत बंधाती रहतीं. उसे बेटी की तरह ही प्यार करतीं. समयसमय पर दवाई, फल, दूध, खाना आदि सब उस के कमरे में पहुंचा देतीं.

“निभा, निश्चल तो अब लौट कर नहीं आने वाला लेकिन वह जो अपने प्रतिरूप नन्हीं परियों की जिम्मेदारी तुम्हें सौंप कर गया है, उन्हें संभालो. अपनी घरगृहस्थी में अपना मन लगाओ.’ सास ने कहा तो वह सुनैना जी के गले से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी थी. उस की सिसकी नहीं रुक रही थी.

“निभा, तुम ठीक हो गईं, यह इन बेटियों के लिए अच्छा है. निश्चल तो तुझे मझधार में छोड़ कर चला ही गया.” बहुत ही कारुणिक दृश्य था. निशा भी फूटफूट कर रो पड़ी, बोली, “भाभी अपने को संभालो.”

थोड़े दिनों बाद एक दिन निशीथ औफिस से आ कर बोले, ”भाभी, भैया तो अब लौट कर आने वाले नहीं. रोजरोज आप से साइन करवाने के चक्कर में अकसर जरूरी काम अटक जाता है. आप ‘पावर औफ अटौर्नी’ मुझे दे दें तो फिर हर समय आप के पास दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी और काम भी नहीं रुका करेगा.”

उस ने तुरंत कागज पर साइन कर के भैया को दे दिया था.

आगे पढ़ें- आखिर कब तक वह अपने कमरे की…

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सक्सेसर: भाग 2- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

उस की मां भी उस से मिलने के लिए आई थीं. उन्होंने उसे समझाया कि इस तरह से जिंदगी थोड़े ही कटेगी. अपनी मासूम बच्चियों में मन लगाओ, अपने भविष्य के बारे में सोचो. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है, मात्र 32 वर्ष. आजकल तो इतनी उम्र में लड़कियां शादी कर रही हैं. मां उसे अपने साथ कुछ दिनों के लिए ले जाना चाहती थीं लेकिन वह तो किसी के सामने ही नहीं जाना चाहती थी. वे रोती हुई लौट गई थीं.

आखिर कब तक वह अपने कमरे की छतों पर नजर गड़ाए शून्य में निहारती रहती. वह अपने कमरे से बाहर निकल कर ड्राइंगरूम में आई तो वहां का नया फर्नीचर और रेनोवेशन देख कर आश्चर्य से भर उठी. घर में इतना बड़ा हादसा हो चुका है, घर का मालिक इस दुनिया से विदा हो गया है और ऐसी हालत में ड्रांइगरूम का सौंदर्यीकरण… वह निशीथ से पूछ बैठी थी- “इस समय रिनोवेशन?” उस के पूछते ही निशीथ का चेहरा सफेद पड़ गया और वह सकपका कर बोला, “भाभी, यह सब तो भैया की ही प्लानिंग थी और उन्होंने ही सब और्डर कर रखा था. मैं ने सोचा कि उन की योजना का सम्मान किया जाना चाहिए.“ और वह उस से नजरें चुरा कर तेजी से अपने कमरे की ओर चला गया था.

निभा की आंखें छलछला उठी थीं. निश्चल ने तो इस बारे में उस से कभी कुछ नहीं बताया. अब उसे अपना घर ही बदला बदला सा दिखाई पड़ रहा था. सबकुछ अनजाना, अनपहचाना सा लग रहा था. बस, बदला नहीं था तो उस का अपना कमरा.

वह देख रही थी कि जब से उस ने निशीथ को ‘पॉवर औफ एटौर्नी’ दी थी, उस के प्रति सब की निगाहें बदल सी गई थीं.

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“मम्मी जी, मैं जब से हौस्पिटल से लौट कर आई हूं, सुदेश काका मुझे नहीं दिखाई पड़ रहे हैं?”

मम्मी ने बताया, “निश्चल ने उसे बहुत सिर चढ़ा रखा था. एक दिन निशीथ के साथ वे बहस करते चले जा रहे थे. बस, उस को गुस्सा आ गया. अपने देवर को तो जानती ही हो कि उस की नाक पर गुस्सा रक्खा रहता है, उस ने कह दिया, ‘निकल जाओ और अपना मनहूस चेहरा यहां फिर मत दिखाना.’ वे भी चिल्ला कर बोले थे, ‘मालिक, हम तो बड़े भैया की वजह से यहां पर बने हुए थे, वरना मेरा लड़का तो मुझे कब से बुला रहा है.“ और वे अपना सामान ले कर चले गए, फिर लौट कर न तो फोन किया, न ही आए.”

यह सब सुन कर निभा दुखी हो गई थी. काका उन लोगों के दाहिने हाथ की तरह से थे, वे हर समय किसी भी काम के लिए तैयार रहते थे.

वह किचेन में गई तो उस का भी रंगरूप बदल चुका था. अब उस ने मौन रहना ही ठीक समझा. जहां उस का राजपाट था, अब वहां की मालकिन निशा बन चुकी थी. वह बच्चों के लिए दूध बनाने लगी तो बोर्नविटा नहीं दिखाई दिया. ”निशा, बोर्नविटा नहीं दिखाई दे रहा, उस का डब्बा कहां रखा है?”

“भाभी, बोर्नविटा तो खत्म हो गया है, कोई जरूरी थोड़े ही है कि बोर्नविटा डाल कर ही दूध पिया जाए. सादा दूध दे दीजिए.“ उस के भीतर कुछ दरक सा गया था.

उस ने चुपचाप बच्चों को दूध दिया और अपने कमरे में जा कर निश्चल की फोटो के सामने फफक पड़ी थी. जब नन्हें हाथों से रिनी और मिनी ने उस के आंसू पोछे तो उस ने दोनों को बांहों में भर लिया था.

नया नौकर प्रकाश निशा और मम्मीजी को पहचानता था लेकिन निभा को नहीं. निभा ने आवाज दी, “प्रकाश, बाजार से बोर्नविटा और 2 किलो सेब ले आना.”

“जी मैडम, रुपए दे दीजिए.“

वह यहांवहां बगलें झांकने लगी थी, तभी निशा तेजी से आई और एक फाइल उसे पकड़ा कर बोली, “प्रकाश, सर को पहले औफिस में यह फाइल दे कर आओ.”

निभा विस्फरित नेत्रों से सब देखती रह गई थी. वह मन ही मन कहने लगी, ‘प्लीज निश्चल, कुछ रास्ता दिखाइए ऐसे जिंदगी कैसे कटेगी…’

अगली सुबह प्रकाश बोर्नविटा का डब्बा और सेब की थैली उस को देते हुए बोला, “मैडमजी बोलीं हैं कि जो सामान चाहिए, एक दिन पहले बता दिया करिए, तभी आ पाएगा.“

यदि निशा या मम्मी जी कहतीं तो शायद उसे इतना बुरा न लगता लेकिन प्रकाश के यह कहने पर वह व्यथित हो उठी थी.

उसे घर आए लगभग 6 महीने से ज्यादा बीत चुका था. वह अपने लिए चाय बना रही थी. तभी निशा उसे सुनाने के लिए कह रही थी, ‘मम्मी जी, भाभी को समझा देना, अब भाईसाहब नहीं हैं और कोविड के कारण काम पहले जैसा नहीं चल रहा है, इसलिए अपनी राजशाही न दिखाया करें, सोचसमझ कर सामान मंगाया करें.’

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उस के दिल पर आघात पर आघात लगता जा रहा था. बच्चों के लिए बोर्नविटा नहीं, फल नहीं…

वह अपने कमरे में उदास बैठी थी. तभी मम्मी जी ने आवाज दी, “निभा, आज बूआ जी आ रही हैं. कोई हलके रंग का सूट पहन लेना. वे पुराने खयालों की हैं. माथे पर बिंदी भी मत लगाना.” समझदार के लिए इशारा काफी होता है. उस दिन उस ने अपने वार्डरोब से सारी रंगबिरंगी साड़ियां और सूट हटा दिए. फिर वह रो पड़ी… निश्चल, जब इतनी जल्दी आप को जाना था तो मेरे जीवन में इतने सारे रंग क्यों भर दिए थे.

अब तो सिलसिला चल निकला था. कभी बूआ तो कभी ताई तो कभी चाची- मिलने के नाम पर उसे रुलाने को आया करती थीं. वह कुछ नौर्मल होने की कोशिश करती कि फिर कोई आ धमकता और फिर वही गमगीन माहौल…

मम्मी जी का भी रवैया बदल गया था, “निभा, अब तुम निश्चल की विधवा हो. थोड़ा समझदारी से पहनाओढा करो. अब तुम्हारे हाथों में रंगबिरंगी चूड़ियों को देख कर लोग क्या कहेंगे. विधवा हो विधवा की तरह रहा करो.”

वे व्यंग्यबाण चला उस के अंतर्मन को लहुलुहान कर बाहर निकल रही थीं तभी निश्चल की बड़ी मौसी आ गईं. वे मम्मी जी पर नाराज हो कर बोलीं, “कैसी बात करती हो सुनैना, फूल सी बच्ची को ऐसा बोलते तुम्हारा जी नहीं दुखता?“ उन्होंने मम्मी जी के सामने ही उस के माथे पर बिंदी लगा दी थी और कहा, ”बेटी, तुम जैसे पहले रहतीं थीं वैसे ही रहा करो. सुनैना को तो तेरे से ज्यादा दूसरों की फिक्र हो रही है.” निभा उन के गले लग कर घंटों सिसकती रही थी.

आगे पढ़ें- सुबह के समय निशीथ निभा के कमरे में….

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- भाग 1- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

जयंत औफिस के बाद पुलिस थाने होते हुए घर पहुंचे थे. बहुत थक गए थे. शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत ज्यादा थके थे. शारीरिक श्रम जीवन में प्रतिदिन करना ही पड़ता है, परंतु पिछले 1 महीने से जयंत के जीवन में शारीरिक व मानसिक श्रम की मात्रा थकान की हद तक बढ़ गई थी. घर पर पत्नी मृदुला उन की प्रतीक्षा कर रही थी. प्रतिदिन करती है. उन के आते ही जिज्ञासा से पूछती है, ‘‘कुछ पता चला?’’ आज भी वही प्रश्न हवा में उछला. पत्नी को उत्तर पता था. जयंत के चेहरे की थकी, उदास भंगिमा ही बता रही थी कि कुछ पता नहीं चला था.

जयंत सोफे पर गिरते से बोले, ‘‘नहीं, परंतु आज पुलिस ने एक नई बात बताई है.’’

‘‘वह क्या?’’ पत्नी का कलेजा मुंह को आ गया. जिस बात को स्वीकार करने में जयंत और मृदुला इतने दिनों से डर रहे थे, कहीं वही सच तो सामने नहीं आ रहा था. कई बार सच जानतेसमझते हुए भी हम उसे नकारते रहते हैं. वे दोनों भी दिल की तसल्ली के लिए झूठ को सच मान कर जी रहे थे. हृदय की अतल गहराइयों से वे मान रहे थे कि सच वह नहीं था जिस पर वे विश्वास बनाए हुए थे. परंतु जब तक प्रत्यक्ष नहीं मिल जाता, वे अपने विश्वास को टूटने नहीं देना चाहते थे.

पत्नी की बात का जवाब न दे कर जयंत ने कहा, ‘‘एक गिलास पानी लाओ.’’

मृदुला को अच्छा नहीं लगा. वह पहले अपने मन की जिज्ञासा को शांत कर लेना चाहती थी. पति की परेशानी और उन की जरूरतों की तरफ आजकल उस का ध्यान नहीं जाता था. वह जानबूझ कर ऐसा नहीं करती थी, परंतु चिंता के भंवर में फंस कर वह स्वयं को भूल गई थी, पति का खयाल कैसे रखती?

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जल्दी से पानी का गिलास ला कर पति के हाथ में थमाया और फिर पूछा, ‘‘क्या बताया पुलिस ने?’’

पानी पी कर जयंत ने गहरी सांस ली, फिर लापरवाही से कहा, ‘‘कहते हैं कि अब हमारा बेटा जीवित नहीं है.’’

मृदुला उन को पकड़ कर रोने लगी. वे उस को संभाल कर पीछे के कमरे तक लाए और बिस्तर पर लिटा कर बोले, ‘‘रोने से क्या फायदा मृदुल, इस सचाई को हम स्वयं नकारते आ रहे थे, परंतु अब हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए.’’

मृदुला उठ कर बिस्तर पर बैठ गई, ‘‘क्या उन को कोई सुबूत मिला है?’’

‘‘हां, प्रमांशु के जिन दोस्तों को पुलिस ने पकड़ा था, उन्होंने कुबूल कर लिया है कि उन्होंने प्रमांशु को मार डाला है.’’

सुन कर मृदुला और तेजी से रोने लगी. इस बार जयंत ने उसे चुप कराने का प्रयास नहीं किया, बल्कि आगे बोलते रहे, ‘‘लाश नहीं मिली है. पुलिस ने कुछ हड्डियां बरामद की हैं, उन से पहचान असंभव है.’’

मृदुला का विलाप सिसकियों में बदल गया. फिर नाक सुड़कती हुई बोली, ‘‘हो सकता है, वे प्रमांशु की हड्डियां न हों.’’

‘‘हां, संभव है, इसीलिए पुलिस उन का डीएनए टैस्ट कर के पता करेगी कि वे प्रमांशु के शरीर की हड्डियां हैं या किसी और व्यक्ति की. उन्होंने हमें कल बुलाया है. हमारे ब्लड सैंपल लेंगे.’’

‘‘ब्लड सैंपल…’’ मृदुला चौंक गई. उस ने आतंकित भाव से जयंत को देखा.

जयंत ने आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘इस में डरने की क्या बात है? ब्लड सैंपल देने में कोई तकलीफ नहीं होती.’’

‘‘नहीं, लेकिन…’’ मृदुला का स्वर कांप रहा था.

‘‘इस में परेशानी की कोई बात नहीं है. डीएनए मिलेगा तो वह हमारा प्रमांशु होगा, नहीं मिलेगा तो कोई अनजान व्यक्ति होगा.’’ जयंत के कहने के बावजूद मृदुला के चेहरे से भय का साया नहीं गया. उस का हृदय ही नहीं, पूरा शरीर कांप रहा था. उस के शरीर का कंपन जयंत ने भी महसूस किया. उन्होंने समझा, बेटे की मृत्यु से मृदुला विचलित हो गई है. उन्होंने उस को दवा दे कर बिस्तर पर लिटा दिया. नींद कहां आनी थी, परंतु जयंत उसे अकेला छोड़ कर ड्राइंगरूम में आ गए. सोफे पर अधलेटे से हो कर वे अतीत के जाल में उलझ गए.

जयंत का पारिवारिक जीवन काफी सुखमय रहा था. मनुष्य के पास जब धन, वैभव और वैचारिक संपन्नता हो तो उस के जीवन में आने वाले छोटेछोटे दुख, कष्ट और तकलीफें कोई माने नहीं रखतीं. उन के पिताजी केंद्र सरकार की सेवा में उच्च अधिकारी थे. मां एक कालेज में प्रोफैसर थीं. उन की शिक्षा शहर के सब से अच्छे अंगरेजी स्कूल और फिर नामचीन कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने भी प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की और आज राजस्व विभाग में उच्च अधिकारी थे. उन की पत्नी मृदुला भी उच्च शिक्षित थी, परंतु वह नौकरी नहीं करती थी. वह समाजसेवा और घूमनेफिरने की शौकीन थी. शादी के बाद जब उस का उठनाबैठना जयंत के सीनियर अधिकारियों की बीवियों के साथ हुआ, तो उस की पहचान का दायरा बढ़ा और वह शहर के कई क्लबों और सभासमितियों की सदस्या बन गई थी. जयंत खुले विचारों के शिक्षित व्यक्ति थे, सो, पत्नी की आधुनिक स्वतंत्रता के पक्षधर थे. वह पत्नी के घूमनेफिरने, अकेले बाहर आनेजाने पर एतराज नहीं करते थे. पत्नी के चरित्र पर वे पूरा भरोसा करते थे.

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शादी के 5 साल तक उन के घर बच्चे का पदार्पण नहीं हुआ. जयंत इच्छुक थे, परंतु मृदुला नहीं चाहती थी. शादी के तुरंत बाद वह बच्चा पैदा कर के अपने सुंदर, सुगठित शरीर को बेडौल नहीं करना चाहती थी. वैसे भी वह घर और पति की तरफ अधिक ध्यान नहीं देती थी. इस के बजाय वह किटी पार्टियों व क्लबों में रमी खेलने में ज्यादा रुचि लेती थी. तब जयंत के मातापिता जीवित थे, परंतु मृदुला अपने ऊपर किसी का प्रतिबंध नहीं चाहती थी. वह वैचारिक और व्यावहारिक स्वतंत्रता की पक्षधर थी. इसलिए बाहर आनेजाने के मामले में वह किसी की बात नहीं सुनती थी. जयंत बेवजह घर में कोई झगड़ा नहीं चाहते थे, इसलिए पत्नी को कभी टोकते नहीं थे. उन का मानना था कि एक बच्चा होते ही वह घर और बच्चे की तरफ ध्यान देने लगेगी और तब वह क्लब की मौजमस्ती और किटी पार्टियां भूल जाएगी.

परंतु ऐसा नहीं हो सका. शादी के 5 साल बाद उन के यहां बच्चा हुआ, तो भी मृदुला की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. कुछ दिन बाद ही उस ने क्लबों की पार्टियों में जाना प्रारंभ कर दिया. बच्चा आया (मेड) और जयंत के भरोसे पलने लगा. जब तक जयंत के मातापिता जीवित रहे तब तक उन्होंने प्रमांशु को संभाला, परंतु जब वह 10 साल का हुआ तो उस के दादादादी एकएक कर दुनिया से चल बसे. बच्चा स्कूल से आ कर घर में अकेला रहता, टीवी देखता या बाल पत्रिकाएं पढ़ता, जिन को जयंत खरीद कर लाते थे ताकि प्रमांशु का मन लगा रहे. वह आया से भी बहुत कम बात करता था.

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