शादी के 5 माह बाद अचानक ही राहुल की सेहत तेजी से गिरनी शुरू हो गई. राहुल का वजन कम हो रहा था. उस के चेहरे की जर्दी बढ़ रही थी और यह देख कर घर के लोग परेशान थे.
‘‘राहुल की सेहत लगातार खराब हो रही है बहू, पता नहीं क्या बात है. वह काफी लापरवाह किस्म का इनसान है. तुम ही उसे किसी अच्छे डाक्टर को दिखलाओ,’’ आखिर एक दिन सास शकुंतला ने पूजा को कह ही दिया. उस के कहने के अंदाज से पता चलता था कि वह बेटे की गिरती सेहत को स्त्रीपुरुष के सेक्स संबंधों से जोड़ कर देख रही थीं.
पूजा को इस से हैरानी नहीं हुई थी. वह जानती थी कि राहुल की गिरती सेहत को देख कर लोग ऐसा ही सोच सकते थे. अब किसी को क्या मालूम अधिक सेक्स तो एक तरफ, उन में तो सेक्स संबंध बना भी नहीं था.
अपने सारे मनोभावों को छिपाते हुए पूजा ने सास से कहा, ‘‘आप ठीक कह रही हैं मांजी, मैं कल ही इन्हें किसी अच्छे डाक्टर को दिखलाने ले जाऊंगी.’’
अगले दिन राहुल को साथ ले कर किसी डाक्टर के पास जाने का दिखावा करती हुई पूजा घर से बाहर निकली. किंतु किसी डाक्टर के यहां जाने के बजाय उन्होंने 2-3 घंटे एक मौल में बिताए.
थकावट होने पर उन दोनों ने मौल के रेस्तरां में बैठ कर कोल्ड डिं्रक पी और साथ में हलका सा फास्ट फूड भी लिया.
रेस्तरां में बैठे थकीथकी आंखों से पूजा को देखते हुए राहुल ने कहा, ‘‘हम जो कर रहे हैं क्या वह अपनों के साथ धोखा नहीं?’’
‘‘नहीं, मैं नहीं मानती कि हम किसी को कोई धोखा दे रहे हैं,’’ पूजा ने जवाब दिया.
‘‘एड्स से रोजाना दुनिया में सैकड़ों लोग मरते हैं. अगर मैं भी मर जाऊंगा तो कौन सी अनोखी बात होगी? मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम मेरी बीमारी को छिपा कर क्यों रखना चाहती हो? एकदम से मेरी मौत के सदमे को झेलने से बेहतर होगा कि हकीकत को जान कर मां, बाबूजी, रश्मि और दूसरे लोग मेरी मौत के सदमे को झेलने के लिए खुद को पहले से ही तैयार कर लें.’’ राहुल ने भारी आवाज में कहा.
‘‘मैं भी ऐसा ही चाहूंगी. मगर तुम को एड्स है, मैं ऐसा कभी जाहिर नहीं होने दूंगी. ऐसी दूसरी लाइलाज बीमारियां भी तो हैं जिन से इनसान की मौत यकीनी होती है, जैसे कैंसर. किंतु कैंसर की मौत एड्स से होने वाली मौत से कहीं अधिक सम्मानजनक है. कैंसर डरावना है और एड्स बदनाम. एड्स के बारे में लोगों में अनेक गलतफहमियां हैं. इसलिए कैंसर से तो केवल इनसान मरता है लेकिन एड्स से मरने वाले इनसान के परिवार की उस के साथ ही सामाजिक मौत हो जाती है.
एड्स से मरने वाले इनसान के परिवार को लोग शक और घृणा की नजरों से देखते हुए एक तरह से उस का सामाजिक बहिष्कार कर देते हैं. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे बाद तुम्हारे अपनों के साथ कुछ ऐसा हो. एक एड्स संक्रामक व्यक्ति की पत्नी होने के कारण समाज में मेरी क्या स्थिति होगी इस की शायद तुम ठीक से कल्पना भी नहीं कर सकते. हमारे विवाहित जीवन के अंदरूनी सच को दुनिया तो नहीं जानती. मैं एक शापित जीवन बिताऊं, ऐसा तो तुम भी नहीं चाहोगे,’’ राहुल का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूजा ने कहा.
राहुल की समझ में आने लगा था कि पूजा उस की बीमारी को किन कारणों से छिपा कर रखना चाहती थी. उस की सोच में केवल आज नहीं, आने वाला कल भी था.
जैसेजैसे वक्त करीब आ रहा था राहुल अंदर से टूट रहा था. अपने प्यार से पूजा टूट रहे राहुल को सहारा देने की कोशिश करती.
डाक्टर को दिखलाने की बात कह कर पूजा राहुल को साथ ले कर घर से बाहर जाती. किसी पार्क या रेस्तरां में 2-3 घंटे बिता कर दोनों वापस आ जाते. राहुल एड्स की दवाएं ले रहा था, मगर वे बेअसर हो रही थीं.
ऐसी स्थिति बन रही थी कि पूजा को लग रहा था कि उस को राहुल की बीमारी को ले कर एक और झूठ बोलना ही होगा.
एक रोज मांजी ने पूजा को हाथ से पकड़ अपने पास बिठा लिया और बोलीं, ‘‘राहुल की यह कैसी बीमारी है बहू जो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही? तुम जरूर मुझ से कुछ छिपा रही हो. मुझ को किसी धोखे में मत रखो. मैं राहुल की बीमारी का सच जानना चाहती हूं.’’
‘‘मैं आप से कुछ भी छिपाना नहीं चाहती, मांजी, लेकिन सच बड़ा ही निर्मम और कठोर है. आप सुन नहीं सकेंगी. आप के बेटे को कैंसर है,’’ हिम्मत कर के पूजा को जो कहना था उस ने कह दिया.
उस के शब्द जैसे बम बन कर मांजी के सिर पर फूटे. सदमे में अपना माथा पकड़ते हुए वह सोफे पर लुढ़क सी गईं.
उधर सच को छिपाने के लिए पूजा ने जो झूठ बोला उस का चेहरा छिपाए गए सच से कम डरावना नहीं था.
पूजा के द्वारा राहुल की बीमारी को कैंसर बतलाने के बाद घर का सारा माहौल ही गमगीन और मातमी हो गया था.
मांजी, बाबूजी और रश्मि की आंखों में से बहने वाले आंसू जैसे थम नहीं रहे थे. कोई ठीक से खा नहीं रहा था. कैंसर का भी दूसरा नाम मौत ही तो था. जब मौत का पहरा बैठ गया हो तो किसी को चैन कैसे आ सकता था?
अंत शायद बहुत करीब था. राहुल का शरीर इतना कमजोर हो गया था कि कई बार बाथरूम तक जाने के लिए उसे पूजा के सहारे की जरूरत पड़ती.
पूजा किसी तरह भी कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. हालांकि राहुल की बातें कभीकभी उस को कमजोर करने की कोशिश जरूर करती थीं.
मांजी और बाबूजी बेटे की हालत देख उस को किसी अस्पताल में दाखिल कराने की बातें करते.
लेकिन पूजा इस से मना कर देती.
‘‘इस से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कैंसर अपने अंतिम स्टेज में है. अस्पताल में रेडियो थेरैपी से इन की जिंदगी और ज्यादा कष्टपूर्ण हो जाएगी. मैं ऐसा नहीं चाहती,’’ पूजा उन से कहती.
राहुल की अंदर को धंसती निस्तेज आंखें और पीला चेहरा खामोश जबान में बतलाने लगे थे कि उस के जीवन की टिमटिमाती लौ किसी भी घड़ी बुझ सकती थी.
एक रात अचानक राहुल ने पूजा के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए वे शब्द कहे तो पूजा को लगा वह घड़ी कुछ फासले पर ही है.
‘‘शायद मेरा वक्त आ गया है मेरे हमसफर. मेरी जिंदगी के उदास सफर में हमसफर बनने के लिए शुक्रिया. दुनिया और समाज कुछ भी समझे, मगर हम दोनों जानते हैं कि हमारे बीच में पतिपत्नी नहीं, दो इनसानों का रिश्ता है. इसलिए मेरे मरने के बाद कभी अपनेआप को विधवा मत मानना. अपने लिए जो भी विकल्प ठीक लगे उसी को चुनना.’’
राहुल के उक्त शब्द पूजा के मर्म को चीर गए.
बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला था.
राहुल ने पूजा से कमरे की खिड़की खोलने का अनुरोध किया और यह भी कहा कि वह उस के पास बैठी रहे.
खिड़की के बाहर चांद चमक रहा था. रात ढल रही थी.
राहुल की बेचैनी भी लगातार बढ़ रही थी.
पूजा हौसला देने वाले अंदाज से बीचबीच में उस के ललाट पर अपना हाथ फेर देती थी. डाक्टर के बताए अनुसार उस ने राहुल को दवा दी तो उस ने आंखें बंद कर लीं.
बैठेबैठे ही न जाने कब पूजा को कुछ मिनटों के लिए नींद की झपकी आ गई.
झपकी जब टूटी तो सब खत्म हो चुका था. राहुल की खुली आंखें पथरा चुकी थीं.