बांझपन का इलाज है न, पढ़ें खबर

जब गर्भनिरोधक के बिना 1 वर्ष तक कोशिश करने के बाद भी स्वाभाविक रूप से कोई विवाहित जोड़ा गर्भधारण करने में अक्षम रहता है तो उसे बां झपन कहा जाता है. भारत में 10 से 15% जोड़े बां झपन से पीडि़त हैं. यह कई कारणों से हो सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, मोटापा, हारमोनल समस्याएं और पौलिसिस्टिक  अंडाशय सिंड्रोम पीसीओएस.

इस के अलावा गलत लाइफस्टाइल की आदतें जैसे तंबाकू, शराब और खराब भोजन का सेवन और बिना शारीरिक मेहनत के जीवन जीने के परिणामस्वरूप होता है. यहां यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि बां झपन के कुल मामलों में एकतिहाई मामलों को महिला साथी, एकतिहाई मामलों में पुरुष साथी और बाकी मामलों में दोनों साथी इस में बराबर के भागीदार होते हैं. इसलिए यह सम झना आवश्यक है कि बां झपन सिर्फ एक महिला से जुड़ा मुद्दा नहीं है जैसाकि समाज अभी भी सोचता है.

अकसर देखा गया है कि पुरुष साथी में कई समस्याएं जैसे इरैक्टाइल डिस्फंक्शन यानी नपुंसकता और एजोस्पर्मिया यानी शुक्राणुओं की अनुपस्थिति होती है जिस से बां झपन की स्थिति आ जाती है. कुछ जोड़े समस्या की गहराई में पहुंचे बिना बच्चे पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं. उन में से कई बाबाओं से भी संपर्क करते हैं और उन के समाधान के लिए  झाड़फूंक का सहारा लेते हैं.

सर्वोत्तम समाधान का विकल्प

बां झपन एक मैडिकल समस्या है और इसे दूर करने के लिए चिकित्सकीय समाधान की आवश्यकता होती है. दुनिया में 25 जुलाई, 1978 को पहला ‘टैस्ट ट्यूब बेबी,’ लुईस ब्राउन, पैदा हुई थी. लुईस का जन्म इनविट्रो फर्टिलाइजेशन या आईवीएफ प्रक्रिया से हुआ था. ‘इनविट्रो’ शब्द का अर्थ ‘किसी के शरीर के बाहर’ है और फर्टिलाइजेशन या निषेचन वह प्रक्रिया है जहां मादा का अंडा और पुरुष के शुक्राणु को जीवन बनाने के लिए एकसाथ फ्यूज किया जाता है. इस प्रकार अंडा और शुक्राणु शरीर के बाहर महिला के गर्भाशय के बजाय एक लैब में मिलते हैं और इसे बाद में गर्भाशय में डाल दिया जाता है.

यहीं से असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी यानी एआरटी का भी जन्म हुआ. आईवीएफ, एआरटी की कई विधियों में से सिर्फ एक प्रक्रिया है. पिछले 44 वर्षों में दुनिया तकनीकी रूप से काफी आगे निकल चुकी है जिस से कई और एआरटी विकल्प उपलब्ध हुए हैं जिन में इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) और इंट्रायुटराइन इनसेमिनेशन (आईयूआई) शामिल हैं.

आइए इन चिकित्सा समाधानों को सम झते हैं ताकि विवाहित लोग अपनी बां झपन की समस्याओं के सर्वोत्तम समाधान का विकल्प चुन सकें.

जब एक दंपती 1 वर्ष से अधिक समय से स्वाभाविक रूप से बच्चा पैदा करने में असमर्थ रहें तो सर्वप्रथम उन्हें एक बां झपन विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए. हालांकि यहां यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि कुछ जोड़े अपने जीवन में अपनी इच्छा से बाद में गर्भधारण करना चाहते हैं, इसलिए 1 वर्ष की अवधि सभी जोड़ों के लिए लागू नहीं होती है. इस काउंसलिंग के दौरान दंपती से मैडिकल इतिहास पर चर्चा की जाती है. यहां यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि बां झपन उपचार 100% सफलता की गारंटी नहीं देता है, इसलिए जोड़ों को इस प्रक्रिया के किसी भी जोखिम और दुष्प्रभावों को पहले ही जानना चाहिए.

ब्लड टैस्ट अल्ट्रासाउंड

इस के बाद विवाहित दंपती की समस्या की जड़ को सम झने के लिए रक्त परीक्षण (ब्लड टैस्ट) और स्कैन किए जाते हैं ताकि मधुमेह, उच्च रक्तचाप या थायराइड जैसी किसी भी पूर्व मौजूदा स्थिति को सम झा जा सके. हारमोन के स्तर और अल्ट्रासाउंड की जांच के लिए ब्लड टैस्ट भी किया जाता है ताकि यह जांचा जा सके कि महिला के गर्भाशय और अंडाशय में पीसीओएस, फाइब्रौएड्स या ऐंडोमिट्रिओसिस जैसी कोई वृद्धि है या नहीं. इस से यह पता लगाने में भी मदद मिलती है कि क्या महिला के अंडाशय में अंडे हैं जिन का उपयोग इलाज के लिए किया जा सकता है?

वीर्य विश्लेषण

वीर्य तरल पदार्थ है जिस में शुक्राणु होते हैं. शुक्राणुओं की संख्या, उन के आकार और उन की गति की जांच के लिए पुरुष साथी के वीर्य का विश्लेषण किया जाता है क्योंकि ये तीनों एक जोड़े की प्रजनन क्षमता के लिए आवश्यक हैं.

फौलोअप कंसल्टेशन

इन परीक्षणों के परिणाम घोषित होने के बाद विशेषज्ञ के साथ एक फौलोअप कंसल्टेशन फिक्स की जाती है. इस में निष्कर्षों पर चर्चा की जाती है जिस के बाद उपचार पर चर्चा होती है. इस में एक सामान्य चिकित्सक या ऐंडोक्राइनोलौजिस्ट के साथ फौलोअप शामिल हो सकती है जिस में किसी भी मौजूदा बीमारी के लिए दवा शुरू करने के लिए जो प्रजनन में बाधा उत्पन्न कर रही है पर चर्चा की जाती है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि कई मामलों में अन्य बीमारियों के ठीक होने से दंपती जोड़े स्वाभाविक रूप से ही गर्भधारण कर लेते हैं. अन्यथा रोगियों के साथ एआरटी उपचार योजना पर चर्चा की जाती है, उन की सहमति ली जाती है और फिर उपचार शुरू होता है. कुछ मामलों में रोगियों को अधिक परीक्षण कराने के लिए भी कहा जा सकता है.

अंडाशय औषधि प्रयोग

इलाज के अंतर्गत महिला साथी को हारमोनल इंजैक्शन लेने की आवश्यकता होती है. एक सामान्य मासिकधर्म चक्र में हर महीने एक निश्चित संख्या में अंडा निकलता है. चूंकि एआरटी प्रक्रिया के लिए अधिक अंडों की उपलब्धता की आवश्यकता होती है, इसलिए हारमोनल इंजैक्शन द्वारा औषधि का प्रयोग यह सुनिश्चित करता है कि कई अंडे विकसित हों. महिला साथी को नियमित रूप से रक्त परीक्षण और अल्ट्रासाउंड की मदद से देखा जाता है कि दवाओं ने उसे कैसे प्रभावित किया है. फिर एक ट्रिगर इंजैक्शन दिया जाता है ताकि अंडे परिपक्व हो जाएं.

अंडा संग्रह/डिंब पिक और वीर्य संग्रह

अंडा संग्रह के दौरान मादा को ऐनेस्थीसिया के तहत रखा जाता है. अंडे की कल्पना करने के लिए योनि के माध्यम से एक अल्ट्रासाउंड छड़ी डाली जाती है जिस के बाद उन्हें सूई के साथ एकत्र किया जाता है. उसी दिन पुरुष साथी अपने वीर्य का नमूना प्रदान करता है. इस के बाद उन की गुणवत्ता की जांच की जाती है और अगले चरण के लिए केवल सर्वश्रेष्ठ वीर्य का ही उपयोग होता है.

फर्टिलाइजेशन और भू्रण स्थानांतरण

आईवीएफ और आईसीएसआई में फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया अलगअलग होती है. आईवीएफ में कई अंडों और शुक्राणुओं को फर्टिलाइजेशन के लिए एक इनक्यूबेटर में रखा जाता है.

आईसीएसआई में एक अच्छे शुक्राणु को अंडे में डाला जाता है. किसी भी प्रक्रिया में इस प्रकार बनने वाले भू्रण को 5-6 दिन यानी तब तक विकसित होने दिया जाता है जब तक कि वे ब्लास्टोसिस्ट नामक चरण तक नहीं पहुंच जाते. इन ब्लास्टोसिस्ट्स को प्रीइंप्लांटेशन जेनेटिक टैस्टिंग (पीजीटी) का उपयोग कर के उन के आनुवंशिक मेकअप के लिए जांचा जाता है जो किसी भी आनुवंशिक रूप से असामान्य ब्लास्टोसिस्ट को हटाने में मदद करता है.

ऐसा ही एक ब्लास्टोसिस्ट भू्रण स्थानांतरण नामक प्रक्रिया की मदद से गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है. यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि एकसाथ कई भू्रण स्थानांतरित न हों वरना वे गर्भावस्था की जटिलताओं का कारण बन सकते हैं.

गर्भावस्था परीक्षण

स्थानांतरण के 12 दिनों के बाद गर्भावस्था परीक्षण किया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि इस के परिणामस्वरूप गर्भावस्था हुई है या नहीं.

इंट्रायूटराइन इनसेमिनेशन (आईयूआई) आईवीएफ और आईसीएसआई के लिए आईयूआई चरण सही है. हालांकि आईयूआई के लिए प्रक्रिया थोड़ी अलग है. अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान वह प्रक्रिया है जिस में अंडे को निषेचित करने के लिए सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं को गर्भाशय में इंजैक्ट किया जाता है. यहां उद्देश्य शुक्राणुओं को जितना हो सके अंडे के करीब लाना है. यह आईवीएफ और आईसीएसआई से अलग है क्योंकि अंडाणु और शुक्राणु दोनों को बाहरी वातावरण में संभाला जाता है.

आईयूआई आमतौर पर तब किया जाता है जब महिला साथी को ऐंडोमिट्रिओसिस, ग्रीवा संबंधी समस्याएं होती हैं, पुरुष बां झपन का अनुभव करता है या युगल अस्पष्टीकृत बां झपन का अनुभव करता है. यहां वीर्य का नमूना लिया जाता है जिसे सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं का चयन करने और मलबे और वीर्य द्रव को हटाने के लिए धोया जाता है.

ओव्यूलेशन का समय (जब हर महीने महिला के अंडाशय से अंडा निकलता है) अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण की मदद से महिला साथी की बारीकी से निगरानी की जाती है. कुछ मामलों में रोगी प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए प्रजनन क्षमता की दवा भी ले सकता है. स्थानांतरण के 12 दिनों के बाद एक गर्भावस्था परीक्षण लिया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि इस के परिणामस्वरूप गर्भावस्था हुई है या नहीं.

सैल्फ साइकिल एवं डोनर साइकिल

जब एआरटी प्रक्रिया महिला और पुरुष भागीदारों के अंडों और शुक्राणुओं की मदद से की जाती है तो इसे सैल्फ साइकिल कहा जाता है. कुछ जोड़ों में या तो एक या दोनों फिर साथी पर्याप्त शुक्राणु या अंडे का उत्पादन नहीं कर सकते हैं. ऐसे मामलों में डोनर की आवश्यकता होती है.

यहां या तो अंडे या शुक्राणु या फिर दोनों ही डोनर से लिए जाते हैं, जैसा भी मामला हो, उस के अनुसार प्रक्रिया की जाती है. यह एक डोनर साइकिल है. इन विकल्पों पर बां झपन विशेषज्ञ द्वारा चर्चा की जाती है और इलाज शुरू करने से पहले रोगियों की सहमति ली जाती है.

-डा. क्षितिज मुर्डिया

सीईओ और सह संस्थापक, इंदिरा आईवीएफ.

9 टिप्स: डेंगू से बच्चों को बचाएं ऐसे

मौनसून में बीमारियों का खतरा सब से ज्यादा होता है क्योंकि इस समय आसपास जमा हुए पानी में मच्छर तेजी से पनपने लगते हैं, जो डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं. वहीं दूसरी ओर कपड़ों, दीवारों और हवा में मौजूद नमी के कारण बैक्टीरिया भी बढ़ने लगते है. ऐसे में इस मौसम में हाइजीन और मच्छरों से सुरक्षित रहना बहुत जरूरी होता है खासकर छोटे बच्चों को ले कर सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उन के बीमार होने की संभावना अधिक होती है.

इस बारे में माइलो ऐक्सपर्ट श्वेता गुप्ता कहती हैं कि मच्छरों को भगाने में कौइल और स्प्रे जैसी चीजों का इस्तेमाल करना इफैक्टिव हो सकता है, लेकिन इस से बच्चे को हैल्थ संबंधित समस्याएं होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसलिए मौनसून के मौसम में बच्चे का ध्यान रखने के लिए कुछ सु झाव निम्न हैं:

– 6 माह से कम उम्र के बच्चे को मच्छरों और कीटों से सुरक्षा देने के लिए सिर्फ अच्छे कपड़ों और बैड नैट का ही इस्तेमाल करें.

– हमेशा बच्चे को उठाने से पहले हाथों को अच्छी तरह साफ कर लें. हाथों को कुछ समय के अंतराल में धोते रहें. बच्चे की इम्यूनिटी कमजोर होती है, जिस वजह से वह जल्दी बीमार पड़ जाता है. साथ ही बच्चे के हाथों को भी साफ़ रखें. असल में बच्चा जिस भी चीज को देखता है उसे मुंह में डालने की कोशिश करते है. ऐसे में बच्चे के हाथों की सफाई भी मैडिकेटेड साबुन से करनी चाहिए क्योंकि उस की त्वचा बहुत ही नाजुक होती है.

– बच्चे को कौटन के ऐसे ढीले कपड़े पहनाएं, जो उस के हाथों और पैरों को अच्छे से कवर करते हों ताकि मच्छर उस की त्वचा तक न पहुंच सकें और उस की त्वचा को हवा भी लगती रहे. ध्यान रखें कि बच्चे को कपड़े पहनाने से पहले उस का शरीर पूरी तरह से सूख चुका हो क्योंकि अकसर गीली त्वचा पर बैक्टीरिया पनपने लगते हैं जिस से त्वचा पर फंगल इन्फैक्शन होने की संभावना रहती है.

– मच्छरों को दूर रखने में मौस्किटो रेपलैंट बहुत ही इफैक्टिव तरीके से काम करता है. इस में नैचुरल पदार्थ से बने रेपलैंट होता है और ये आसानी से मच्छरों को दूर भगा सकता है, लेकिन इस का ज्यादा उपयोग फफोले, मैमोरी लौस और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं को बढ़ा सकता है. इसलिए बच्चे की सुरक्षा के लिए डीईईटी फ्री और लैमनग्रास, सिट्रोनेला, नीलगिरी और लैवेंडर जैसी चीजों से बने रेपलैंट का ही इस्तेमाल करें.

– मौस्किटो पैचेस मच्छरों को दूर रखने में इफैक्टिव तरीके से काम करता है. आप इसे बच्चे के कपड़ों, क्रिब, बैड और स्ट्रौलर पर लगा सकते हैं.

– अपने बच्चे के स्ट्रौलर, कैरियर या क्रिब को मच्छरदानी से कवर कर दें ताकि मच्छर आप के बच्चे तक न पहुंच सकें. आप घर के अंदर और बाहर जाने पर भी मच्छरदानी का उपयोग कर सकते हैं. ऐसा करने से मच्छर आप के बच्चे की त्वचा तक नहीं पहुंच पाएंगे.

– घर में साफसफाई का विशेष तौर पर ध्यान रखें. एसी की पानी की ट्रे, प्लांट गमलों में पानी आदि किसी जगह पर पानी जमा न होने दें. यहां तक कि वाशरूम में बालटी में पानी भर कर न रखें. अगर कहीं से पानी लीक होता हो तो उस का भी ध्यान रखें. दरअसल, जमे हुए पानी में मच्छर और कीड़े तेजी से पनपते हैं.

– भले ही आप का घर कितना ही साफ क्यों न हो, लेकिन आप अपने बच्चे को किसी भी चीज को मुंह में रखने से नहीं रोक सकते. इसलिए यह जरूरी है कि आप के बच्चे के संपर्क में आने वाली हर चीज साफ हो, खासकर खिलौने. आप जहां ठोस खिलौनों को साबुन की मदद से धो सकते हैं, वहीं सौफ्ट खिलौनों को वौशिंग मशीन में धो सकते हैं.

– बेबी वाइप्स के साथ उस साबुन का ही इस्तेमाल करें जो आप के बच्चे की नाजुक त्वचा के अनुकूल हो. न्यू बौर्न बेबी के लिए अल्कोहलफ्री और पानी पर आधारित वाइप्स का ही उपयोग करें क्योंकि इस तरह कि वाइप्स बच्चे की त्वचा को खासतौर पर पोषण देती है.

– अगर आप के बच्चे को डेंगू हो जाता है, तो उस के लक्षणों पर नजर रखें ताकि उसे सही ट्रीटमैंट दिया जा सके. बुखार, उलटी, सिरदर्द, मुंह का सूखापन, पेशाब में कमी, रैशेज और ग्रंथि में सूजन आना आदि कुछ आम लक्षण हैं. इन लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. बच्चे में इन में से कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

इस छोटी उम्र में बच्चे अपना खयाल खुद नहीं रख सकते हैं. बीमारियों से बचने के लिए उन्हें खास केयर की जरूरत होती है. इसलिए इस मौनसून में आप इन टिप्स को फौलो कर अपना और अपने परिवार का बेहतर तरीके से खयाल रख सकती हैं.

क्या हो जब गर्भ में बच्चा उल्टा हो जाए? प्रेग्नेंसी से जुड़ी दिक्कतों के बारे में एक्सपर्ट से जानें

प्रैग्नेंसी के दौरान, अक्सर बच्चे उलटते-पलटते हैं. जैसे-जैसे सप्ताह आगे बढ़ते हैं, शिशु का आकार बढ़ने लगता है, जिससे उनको घूमने-फिरने की बहुत कम जगह बचती है. लेकिन इसके बावजूद, शिशु बेहद ही हैरतअंगेज जिम्मानास्टिक के करतब करते रहते हैं. 32वें से 38वें सप्ताह के बीच, ज्यादातर बच्चों का सिर नीचे की तरफ होने लगता है. प्रसव की इस आदर्श स्थिति में बच्चे का सिर आपके गर्भाशय ग्रीवा के बिलकुल करीब होता है और आमतौर पर उसका रुख आपके पीछे की ओर होता है.

डॉ. मनीषा रंजन, सीनियर कंसलटेंट, प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा की बता रही हैं यदि आपका बच्चा प्रसव के दिन भी ब्रीच यानी उल्टी अवस्था में है तो कैसे नार्मल डिलीवरी या सामान्य प्रसव मुश्किल या असंभव हो सकता है.

हालाँकि, हर भ्रूण का सिर गर्भ में दक्षिण की ओर नहीं हो पाता. अवधि पूरी होने के बाद, लगभग 3 से 4 प्रतिशत बच्चों का सिर उनके समय पूरा होने तक ऊपर की तरफ ही रहता है. चूँकि, आपके बच्चे का निचला हिस्सा आपकी तय तारीख के कुछ हफ्ते पहले तक नीचे की तरफ है तो इसका मतलब यह नहीं है कि प्रसव के समय भी वह उल्टा ही होगा. कुछ बच्चे अंत तक यह पता नहीं लगने देते कि क्या होगा. लेकिन यदि आपका बच्चा प्रसव के दिन भी ब्रीच यानी उल्टी अवस्था में है तो नार्मल डिलीवरी या सामान्य प्रसव मुश्किल या असंभव हो सकता है.

ब्रीच प्रेग्नेंसी के क्या कारण हैं?

ब्रीच प्रेग्नेंसी यानी गर्भ में बच्चे का उलटा होने की अवस्था तीन प्रकार की होती है : फ्रैंक, पूर्ण और फुटलिंग ब्रीच. यह गर्भाशय में बच्चे की स्थिति पर निर्भर करता है. फ्रैंक ब्रीच, सबसे आम ब्रीच स्थिति है, जिसमें आपके बच्चे का निचला हिस्सा नीचे की ओर होता है और उसके पैर ऊपर की तरफ और उसके तलवे उसके सिर के पास होते हैं. वहीं, पूर्ण ब्रीच की स्थिति में सिर ऊपर की तरफ और उसके नितंब नीचे की ओर, साथ ही उसके पैर क्रॉस की स्थिति में होते हैं. वहीं, दूसरी तरफ फुटलिंग ब्रीच में, बच्चे का एक या दोनों पैर नीचे की तरफ होते हैं (इसका मतलब है, यदि उसका प्रसव योनी मार्ग से होता है तो उसके पैर पहले बाहर आएंगे). गर्भ में बच्चा खुद ही कैसे “गलत” स्थिति में हो जाता है, उसके कई सारे कारण हैं.

कारण-

-यदि किसी महिला की कई सारी प्रेग्नेंसी रही है

-कई सारे शिशुओं के साथ प्रेग्नेंसी हो

-यदि महिला ने पहले समय पूर्व जन्म दिया हो

-यदि गर्भाशय में काफी ज्यादा या काफी कम एम्निओटिक फ्लूइड हो, यानी बच्चे को घूमने के लिये -काफी जगह हो या फिर घूमने के लिये बिलकुल ही फ्लूइड ना हो.

-यदि महिला के गर्भाशय का आकार असामान्य हो या -फिर गर्भाशय में फ्राइब्रॉयड जैसी अन्य समस्याएं हों.

-यदि महिला को प्लेसेंटा प्रीविया की परेशानी हो.

कैसे पता चले कि बच्चा उल्टा है?-

लगभग 35 या 36 हफ्ते तक शिशु को ब्रीच नहीं माना जाता है. सामान्य गर्भधारण में, एक शिशु आमतौर पर जन्म की तैयारी की स्थिति में आने के लिये सिर नीचे कर लेता है. 35 सप्ताह से पहले शिशुओं का सिर नीचे या बगल में होना सामान्य है. वैसे, उसके बाद जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है और अपने क्षेत्र से बाहर आता है, उसके के लिये मुड़ना और सही स्थिति में आना कठिन हो जाता है.

आपका डॉक्टर आपके पेट के माध्यम से आपके शिशु की स्थिति को महसूस करके यह बता पाएगा कि आपका शिशु ब्रीच कर रहा है या नहीं यानी उलटा हो रहा है या नहीं. वे आपके प्रसव से पहले अपने ऑफिस और अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के जरिए इस संभावना की सबसे अधिक पुष्टि कर पाएंगे कि बच्चा ब्रीच कर रहा है या नहीं.

ब्रीच प्रेग्नेंसी में क्या परेशानियाँ होती हैं?-

सामान्य तौर पर, ब्रीच प्रेग्नेंसी खतरनाक नहीं होती, जब तक कि बच्चे के जन्म का समय नहीं हो जाता. ब्रीच के साथ प्रसव होने पर इस बात का खतरा काफी ज्यादा होता है कि बच्चा बर्थ कैनाल में ना फंस जाए और गर्भनाल से बच्चे को हो रही ऑक्सीजन की आपूर्ति खत्म हो जाए.

इस तरह की स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि उल्टी स्थिति के बच्चे को जन्म देने का सबसे सुरक्षित तरीका क्या है? परम्परागत रूप से, जब सिजेरियन डिलीवरी (पेट का ऑपरेशन करके प्रसव कराना) का इतना आम प्रचलन नहीं हटा था, तब डॉक्टरों और सबसे आम तौर पर दाइयों को उलटे शिशु का सुरक्षित प्रसव (ब्रीच डिलीवरी) कराना सिखाया जाता था . करान और सबसे आम दाइयाँ, सुरक्षित रूप से ब्रीच प्रसव करवाने के लिये प्रशिक्षित होते थे. तथापि, योनी मार्ग से ब्रीच डिलीवरी में ज्यादा जटिलताओं का खतरा रहता है. कई सारे डॉक्टर्स के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर एक्सपर्ट जितना संभव हो सके, सुरक्षित रास्ता अपनाना पसंद करते हैं, इसलिए ब्रीच प्रेग्नेंसी वाली महिलाओं में सर्जरी को प्रसव का सबसे सही तरीका माना जाता है.

संभवत: आपके डॉक्टर आपको बताएंगे कि आपका बच्चा उल्टा है या नहीं. आपको बच्चे के उल्टे जन्म लेने की चिंता के बारे में अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए, जिसमें सारे जोखिमों और सर्जरी को चुनने के फायदे शामिल होंगे. उनसे पूछना चाहिए कि सर्जरी से क्या होगा और कैसे उसकी तैयारी करनी है.

एक्सपर्ट के अनुसार दिल की बीमारियों के बारे में ऐसे पैदा करें जागरूकता

कार्डियोवैस्कुलर बीमारी और इससे जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से आबादी के इसके संपर्क में आने की सम्भावना कम हो जाती है, जिससे कि सीवीडी से संबंधित मौतों की संख्या में भी कटोती होती है. जागरूकता के साथ हर बीमारी को रोका जा सकता है, सही समय पर पता लगने से उचित इलाज देकर लाखो ज़िन्दगीयाँ बचाई जा सकती हैं.

जब किसी इंसान को बीमारी के बारे में पता चलता है, तो वे उस बीमारी के निवारक के लिए’ कदम उठाता है , जैसे स्क्रीनिंग और परीक्षणों के लिए सक्रिय रूप से जाना, जिससे कि बीमारी के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सके.  यह तभी संभव है जब वे रेगुलर हेल्थ चेकअप करवाए.

ऐसा अनुमान है कि भारत में होने वाली 63 प्रतिशत मौतें नॉन -कम्युनिकेबल डिज़ीज़  के कारण होती हैं, जिनमें से 27 प्रतिशत मौतों का कारण हृदय रोग होता है.  इसके अतिरिक्त, 40 से 69 वर्ष की आयु के लोगों में होने वाली 45% मौतों, सीवीडी के कारण होती  है. इस बीमारी के लक्षणों में उच्च रक्तचाप, सीने में दर्द, और सांस लेने में कठिनाई शामिल है.  भारत में दिल के दौरे की घटनाएं इतनी खतरनाक दर पर हैं कि जागरूकता पैदा करना आवश्यक है. सीवीडी के लिए शारीरिक गतिहीन और अस्वस्थ जीवन शैली प्रमुख योगदानकर्ता हैं.  भारत में सीवीडी के मामले अस्वास्थ्य भोजन के सेवन, धूम्रपान और शराब पीने जैसे कारणों से भी बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, COIVD-19 ने  सीवीडी के जोखिम को और तीव्र गति से बड़ा दिया हैं.

डॉ अंबू पांडियन, चिकित्सा सलाहकार, अगत्सा इस  खतरनाक बीमारी के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के कुछ तरीके साझा कर रहे हैं जिनसे  विश्वभर में लाखों लोगों की जान बच सकती हैं.

सीपीआर पर सेमिनार और कार्यशालाओं का आयोजन –

अस्पताल के बाहर दिल का दौरा पड़ने से मरने वालों की संख्या 10 में से 8 है. अगर कार्डियक अरेस्ट के पहले कुछ मिनटों में ही मरीज़ को सीपीआर  दे दिया जाए तो इन नम्बर्स को कम किया जा सकता है.   जब दिल धड़कना बंद कर देता है तो किसी व्यक्ति की जान बचाने के लिए एक आपातकालीन प्रक्रिया –  सीपीआर दिया जाता है. अस्पताल के बाहर हजारों लोगों की जान बचाने के लिए पैरामेडिक्स और चिकित्सक भी कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित कर सकते हैं ताकि लाखों लोगो की जान बचाई जा सके.

नियमित जांच करवाना  –

हृदय रोग से पीड़ित लोगों का अज्ञानी होना भी आम बात है. ज्यादातर मामलों में, लक्षण अपरिचित लेकिन घातक होते हैं. उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप जैसे जोखिम कारक कार्डियक अरेस्ट के चेतावनी संकेत हैं. एक दूसरे को नियमित जांच के लिए प्र्रोत्साहन करने से सीवीडी से जुडी मौतों को कम किया जा सकता है.

फिटनेस बनाए रखें –

कार्डियक अरेस्ट का सबसे बड़ा कारण अनियमित शारीरिक गतिविधि हैं. बिना किसी शारीरिक गतिविधि के लम्भे समय तक बैठे रहने से दिल के दौरे का ख़तरा बढ़ जाता है.  इसलिए पूरे दिन में कम से कम एक बार एक्सेर्साइज़ करने की एडवाइस दी जाती है.  अगर एक्सेर्साइज़ न हो पाए तो कम से कम पूरे दिन में 30 मिनट के लिए पैदल चले.

भारत में, सीवीडी एक गंभीर खतरे के रूप में उभरा है. जिस प्रकार पच्छिमी देशों ने इस महामारी को नियंत्रण किया है ठीक उसी प्रकार भारत को भी इस बीमारी से बचने के लिए सख्त कदम उठाने का समय नज़दीक आगया हैं.  जनसंख्या स्तर पर सामान्य जोखिम कारकों और चिकित्सा उपचारों में परिवर्तन के कारण इन देशों में हृदय संबंधी मृत्यु दर में गिरावट आई है, जनसंख्या स्तर पर तंबाकू के उपयोग, कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप में परिवर्तन के कारण मृत्यु दर में आधे से अधिक कमी आई है. हृदय रोग के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए पच्छिमी देशों में नेशनल वियर रेड डे मनाया जाता हैं.  ठीक उसी प्रकार हमारा देश भी  जागरूकता पैदा करने के लिए इसी तरह की पहल करने की आवश्यकता है.

जानें कैसे पहचानें असली और नकली प्रसव

चूंकि, हर प्रेग्नेंसी अनोखी होती है, तो “सामान्य प्रसव” इससे जुड़ा एक शब्द है. ‘सामान्य’ संकुचन (कॉन्‍ट्रैक्‍शन) की परिभाषा महिला पर निर्भर करती है. संकुचन किसी भी अन्य चीज से बिलुकल अलग होता है, इसलिए इसकी व्याख्या उनसे कर पाना मुश्किल है जिन्होंने पहले ऐसा कभी अनुभव ना किया हो. यदि यह आपकी पहली प्रेग्नेंसी है, तो इस बात का ध्यान रखें कि कौन-सा संकुचन सामान्य है, इसका पता लगा पाना आपके लिये काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. और ये बता रही हैं डॉ. तनवीर औजला, सीनियर कंसल्‍टेंट, प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा.

ब्रैक्सटॉन हिक्स:-यह क्या होता है?

काफी महिलाओं को असली संकुचन से पहले ब्रैक्सटॉन हिक्स संकुचन होता है, जिसे आमतौर पर प्रैक्टिस संकुचन या नकली प्रसव के रूप में जाना जाता है.

यह कथित नकली प्रसव संकुचन, गर्भावस्था के दूसरे माह या तिमाही में शुरू हो सकता है. ऐसा माना जाता है कि सही प्रसव के पहले गर्भाशय खुद को तैयार कर रहा होता है. यह कसने जैसे अनुभव से लेकर झटका लगने जैसा हो सकता है, जोकि पूरी तरह से दर्दरहित होता है. इससे आप हांफ सकती हैं. जब दिन नजदीक आने लगते हैं तो सामान्यतौर पर यह जल्दी-जल्दी होने लगता है.

असली प्रसव संकुचन-

ब्रैक्सटन हिक्स संकुचन से अलग असली प्रसव संकुचन लयबद्ध होता है. जब यह शुरू होता है तो यह तब तक नहीं रुकता जब तक कि इसका अंतराल और तीव्रता बढ़ नहीं जाती. इसके साथ ही, यह सामान्य से ज्यादा तकलीफ देता है, खासकर जब संकुचन लगातार हो रहा हो. नकली संकुचन के उलट असली संकुचन आपके चलने-फिरने, जगह बदलने या लेटने से नहीं रुकता.

सांस लेना और मूत्रत्याग अचानक से आसान हो सकता है, क्योंकि बच्चा नीचे की तरफ आना शुरू हो जाता है, योनी डिस्चार्ज या म्युकस थोड़ा भूरा, गुलाबी या हल्के लाल रंग का हो सकता है, आपको पेट खराब या डायरिया का अनुभव हो सकता है, ब्लड प्रेशर हल्का बढ़ जाता है और आपका म्युकस प्लग बाहर आ सकता है या फिर कुछ दिनों में टूट सकता है. ये कुछ शुरूआती लक्षण होते हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत होती है.

अचानक से ऊर्जा का संचार महसूस होना और घर को नए बच्चे के आने के लिये तैयार करने की जरूरत महसूस होना, कुछ और आम परेशानयां होती हैं. इसे नेस्टिंग की सहज प्रवृत्ति मानी जाती है और इंसानों तथा जानवरों (एस्ट्राडियोल के ज्यादा मात्रा मे निर्माण की वजह से ऐसा होता है), दोनों में ऐसा होता है. हालांकि, गर्भावस्था के दौरान बच्चे के लिये घर तैयार करने की प्रवृत्ति किसी भी समय आ सकती है, लेकिन सामान्यतौर पर यह प्रसव शुरू होने के पहले होता है.

इस अंतर को समझें-

प्रसव के साथ हर महिला का एक अलग अनुभव होता है, जैसे प्रेग्नेंसी के साथ होता है. दूसरे दर्द या अन्य परिणामों का अनुभव नहीं करते. जब संकुचन का अनुभव हो रहा होता है, तो यह तारीख के काफी करीब या फिर आपकी तय तारीख से काफी पहले हो सकता है. इसके प्रकार की पहचान करने के सामान्यत: पांच तरीके हैं.

प्रसव: असली या नकली-

असली और नकली प्रसव के बीच अंतर को समझ पाना, संकुचन के समय पर निर्भर करता है. आपको यह ध्यान देने की भी जरूरत है कि जब आप अपनी स्थिति बदलती हैं, चलना रोकती हैं या फिर ब्रेक लेती हैं तो संकुचन में फर्क महसूस होता है. इसके साथ ही, संकुचन की तीव्रता में भी अंतर होता है, जैसा कि दर्द के स्थान में.

यदि संकुचन लगातार नहीं हो रहा है, एक साथ ना आए, चलने, आराम करने या करवट लेने पर रुक जाए, तो आप नकली प्रसव में हैं. यह दर्द आमतौर पर सामने की तरफ होता है और यह हल्के रूप में शुरू होकर और तेज हो जाता है या फिर तेज शुरू होता है और फिर कमजोर पड़ जाता है.

यदि आपको लगातार, 30-70 सेकंड का संकुचन हो रहा है, जोकि आ और जा रहा है, जो आप प्रसव पीड़ा में हैं. आप चल रही हों या नहीं, यह बना रहता है और समय के साथ बढ़ता जाता है. साथ ही यह सामान्यत: पीछे की तरफ शुरू होता है और फिर आगे की ओर आता है.

प्रसव के कुछ और संकेत-

5-1-1 का नियम:- कम से कम एक घंटे तक, यह संकुचन हर पांच मिनट पर होता है और हर बार एक मिनट तक बना रहता है.

तरल और अन्य लक्षण:-

थैली के जिस एम्योनॉटिक तरल में बच्चा होता है वह नजर आता है. हालांकि, यह सामान्यत: प्रसव का संकेत नहीं, बल्कि इस बात का संकेत हो सकता है कि वह आने वाला है.

एक “म्युकस प्लग” या खून का नजर आना गर्भाशय ग्रीवा में होने वाले बदलाव का संकेत हो सकता है, जो बताता है कि प्रसव बस शुरू ही होने वाला है.

संकुचन काफी शक्तिशाली होने और शरीर में हॉर्मोनल बदलाव के कारण, मितली और/या उल्टी हो सकती है.

वजाइनल टियर्स यह संकेत दे सकते हैं कि काफी गंभीर असुविधा हो रही है और चीजें बिगड़ती जा रही हैं.

बताने वाला एक संकेत: केवल एक चिकित्सक ही यह निर्धारित कर सकता है कि क्या आप वास्तव में प्रसव पीड़ा में हैं, जो तब होता है जब संकुचन के परिणामस्वरूप गर्भाशय ग्रीवा में परिवर्तन होता है.

कब फिजिशियन से संपर्क करें-

यदि आपको ऐसा लग रहा है कि आप तरल पदार्थ लीक कर सकती हैं या कर रही हैं

यदि आप भ्रूण की गति में गिरावट देखें

गर्भावस्था के 37 हफ्ते से पहले, यदि आपको रक्तस्राव हो रहा है या यदि आपको कम से कम छह मिनट पीड़ादाई संकुचन का अनुभव हो रहा है.

यदि आप तय नहीं कर पा रहे हैं या काफी ज्यादा ब्लीडिंग, ऐंठन या असहजता महसूस हो रही है तो डॉक्टर को कॉल करें या फिर नजदीकी इमरजेंसी संस्था जाएं. यदि कुछ नहीं भी हो रहा है तो यह देखना जरूरी है कि कहीं आपको समय पूर्व प्रसव पीड़ा या कोई अन्य परेशानी तो नहीं है.

कैसे PCOS एक महिला के रिप्रोडक्टिव हेल्थ को प्रभावित करता है

पॉलिसिस्टक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी स्थिति है, जिससे आज के दौर में हर उम्र की महिलाएं गुजर रही हैं. इंटरनेट और सोशल मीडिया की वजह से इस समस्‍या के बारे में लोगों को काफी जानकारी हो गई है. पीसीओएस एक महिला के लिए गर्भधारण करने में भी आम फैक्‍टर बन गया है.

डॉ मनीषा तोमर, सीनियर कंसल्‍टेंट, ऑब्‍सटेट्रिशियन एवं गायनेकोलॉजिस्‍ट (प्रसूति एवं स्‍त्री रोग विशेषज्ञ), मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि-

पीसीओएस एक ऐसी समस्या है, जिसकी वजह से अनियमित माहवारी की परेशानी होती है, क्योंकि इसमें मासिक ओव्यूलेशन नहीं होता है और एंड्रोजन (पुरुष हॉर्मोन) का स्तर बढ़ जाता है. एंड्रोजन के बढ़े हुए स्तर की वजह से चेहरे पर अत्यधिक मात्रा में बाल, एक्ने, और/या पुरुषों की तरह जड़ों से बाल कम होने लगते हैं. अधिकांशत:, लेकिन सभी महिलाएं पीसीओएस के कारण ओवरवेट या मोटी नहीं होतीं और उनमें डायबिटीज और ऑब्सट्रेक्टिव स्लीप एप्निया होने का खतरा बढ़ जाता है. पीसीओएस से पीड़ित जो भी महिलाएं गर्भवती होना चाहती हैं, उनके लिये प्रजनन की दवाओं की जरूरत होती है, जो ओव्यूलेशन को प्रेरित कर सके

पीसीओएस के संकेत और लक्षण

पीसीओएस से पीड़ित अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग तरह के लक्षण नजर आते हैं. सभी महिलाएं, जिन्हें पीसीओएस है, उनके अंडाशय में सिस्ट नहीं होता और ना ही अंडाशय में सिस्ट की समस्या होने पर सभी को पीसीओएस होता है. अधिकांश महिलाओं को निम्नलिखित में से कोई एक या दोनों लक्षण नजर आते हैं:

असामान्य माहवारी:

इसमें अधिक रक्तस्राव, माहवारी खत्म हो जाने के बीच में रक्तस्राव, माहवारी ना आना, हल्की माहवारी या साल में कुछेक बार ही माहवारी आना, शामिल है.

अत्यधिक एंड्रोजन का प्रमाण:

ये हॉर्मोन प्रजनन स्वास्थ्य और शरीर के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. लेकिन जिन महिलाओं में इनकी मात्रा काफी ज्यादा होती है, उनमें होने वाले लक्षण इस प्रकार हैं:-

टुड्डी, होंठ के ऊपरी हिस्से, स्तन के आस-पास और पेट के बीचोंबीच, अत्यधिक काले और सख्त बालों का उगना, इसे हिर्सूटिज्म कहा जाता है.

पुरुषों की तरह गंजा होना (बालों की संख्या कम होना) एक्ने.

पीसीओएस के अन्य लक्षणों में शामिल हैं:

पेट का मोटापा या अधिक वजन बढ़ना. यह लक्षण पीसीओएस वाली लगभग डेढ़ से दो-तिहाई महिलाओं में मौजूद है, हालांकि, दुबली-पतली महिलाओं को भी पीसीओएस हो सकता है.

गर्दन के पीछे और कांख की त्वचा का काला पड़ना, जिसे एकेथोसिस नाइग्रिकन्स कहा जाता है. यह इंसुलिन प्रतिरोध और पीसीओएस से जुड़े अतिरिक्त इंसुलिन की वजह से होता है. गर्भधारण में परेशानी आना.

चूंकि, महिलाएं अनचाहे बालों को हटा सकती हैं या फिर एक्ने का इलाज करा सकती हैं, तो हो सकता है डॉक्टर्स अपने रोगियों में पीसीओएस की पहचान ना कर पाए, जब तक वे असामान्य माहवारी और अनचाहे बालों के बढ़ने के बारे में बात ना करें. इसी तरह, यदि आपको भी असामान्य माहवारी या अनचाहे बालों के बढ़ने की समस्या हो रही है तो अपने डॉक्टर से बात करना अच्छा है कि कहीं आपको पीसीओसएस तो नहीं.

किस तरह पीसीओएस, प्रजनन को प्रभावित कर रहा है

वैज्ञानिक रूप से कहा जाए तो हर महीने महिलाओं की गर्भधारण की उम्र में, छोटे-छोटे तरल से भरे सिस्ट, जिन्हें फॉलिकल्स कहा जाता है अंडाशय की सतह पर विकसित हो जाते हैं. एस्ट्रोजन सहित, फीमेल सेक्स हॉर्मोन, उनमें से एक फॉलिकल्स को एक परिपक्व एग तैयार करने का कारण बनते हैं. इसके बाद अंडाशय इस एग को रिलीज कर देता है और यह फॉलिकल से बाहर निकल जाता है. ऐसी महिलाएं, जिन्हें पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम या पीसीओएस है, उनमें फीमेल सेक्स हॉर्मोन का असंतुलन होता है. यह असंतुलन विकास और परिपक्व एग को रिलीज करने से रोक सकता है. एक परिपक्व एग के बिना, ना तो ओव्यूलेशन होता है और ना ही प्रेग्‍नेंसी होती है.

पीसीओएस से ग्रसित महिलाओं में हॉर्मोनल असंतुलन होता है, जिसकी वजह से हॉर्मोन का स्तर अधिक हो सकता है, जिसे एंड्रोजन कहा जाता है. अंडाशय में छोटे, दर्दरहित,तरल से भरी थैलियों का निर्माण होता है

अंडाशय का बाहरी आवरण मोटा होने लगता है. आपके शरीर में इंसुलिन की काफी अधिक मात्रा होती है. ये सारी चीजें ओव्यूलेशन को प्रभावित कर सकती हैं. ऐसा होने का एक लक्षण है अनियमित माहवारी या माहवारी का ना आना.

पीसीओएस की पहचान कैसे करें-

वर्तमान में पीसीओएस का कोई इलाज नहीं है. हालांकि, इलाज से उन महिलाओं के लिये गर्भधारण करने की संभावना बढ़ जाती है, जोकि गर्भवती होना चाहती हैं. इससे महिलाओं को अपने लक्षणों को मैनेज करने में भी मदद मिल सकती है.

एक से दूसरे व्यक्ति के लक्षणों में फर्क हो सकता है और इसलिए इलाज भी हमेशा एक जैसा नहीं होता है. इसके विकल्प इस बात पर निर्भर करते हैं कि कोई महिला गर्भवती होना चाहती है या नहीं.

पीसीओएस के लक्षणों के उपचार में शामिल है:

हॉर्मोन संबंधी असंतुलन को ठीक करने के लिए गर्भनिरोधक गोलियां देना

इंसुलिन-संवेदनशील दवाएं देना ताकि शरीर द्वारा इंसुलिन के इस्‍तेमाल में सुधार किया जा सके और टेस्टोस्टेरोन के  उत्पादन में भी सुधार हो पाए.

डायबिटीज के मामले में, ब्लड ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने के लिये दवा देना.

संपूर्ण स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और वजन को नियंत्रित करने में मदद करने के लिये व्यायाम और स्वस्थ भोजन.

यदि दवाओं से प्रजनन में कोई सुधार नहीं है तो सर्जरी एक विकल्प हो सकता है. लैप्रोस्कॉपिक ओवेरियन ड्रिलिंग एक सर्जिकल विकल्प है. इस प्रक्रिया में, पेट में सर्जन छोटे-छोटे कट लगाता है और इलेक्ट्रिकल करंट के साथ एक सुई इंसर्ट की जाती है. वे इलेक्ट्रॉनिक करंट का इस्तेमाल करके उत्तकों की एक छोटी मात्रा को नष्ट करते हैं, जोकि अंडाशय पर टेस्टोस्टेरॉन का निर्माण करता है. टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम होने से नियमित ओव्यूलेशन होता है.

एक स्वस्थ वजन बनाए रखने से इंसुलिन और टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम करने में मदद मिलती है और लक्षणों में सुधार होता है.

रोजाना पीएं ग्रीन कॉफी, वजन होगा कम

सुबह चाय या कॉफी की एक घूंट आपकी पूरी थकान दूर कर देती है आपको दिनभर के लिए एनर्जी दे देती है. आप ग्रीन टी के बारे में अच्छी तरह से जानते होंगे. इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. शायद आप इसका सेवन भी करते होंगे, लेकिन कभी आपने ग्रीन कॉफी के बारे में सुना है या फिर इसका सेवन किया है. इसका सेवन करने से आप कई बीमारियों से निजात पा सकते है. कैफीन के कारण कई लोग इसे पीना सही नहीं मानते हैं. लेकिन इससे आप अपना वजन आसानी से कम कर सकते हैं.

जानिए, क्या है ग्रीन कॉफी?

ग्रीन टी के चलन के साथ ही ग्रीन कॉफी को लेकर भी बहुत चर्चाएं की जाने लगी हैं. यह असल में कच्चे, बिना सिके हुए कॉफी के बीज होते हैं. इन्हें इसी स्वरूप में पीसकर काम में लाया जाता है. चूंकि ये प्राकृतिक और कच्चे रूप में काम में लिए जाते हैं, इसलिए इसे ग्रीन कॉफी कहा जाता है.

शोध में सामने आई ये बात

कई शोध कोलोरोजेनिक एसिड के मेटाबॉल्जिम पर पड़ने वाले साकारत्मक प्रभावों की पुष्टि करते हैं. ग्रीन कॉफी के ऊपर एक शोध किया गया जिसमें प्रतिभागियों को दो सप्ताह तक ग्रीन कॉफी की काफी मात्रा, दो सप्ताह कम मात्रा और दो सप्ताह तर प्लेसबो का सेवन करने के लिए कहा गया. हर डोज के बीच दो सप्ताह का ब्रेक दिया गया. जिसके परिणामस्वरूप ये बात सामने आई कि ग्रीन कॉफी वजन कम करने में काफी फायदेमंद है. इसके साथ ही बॉडी मॉस इंडेक्स और बॉडी फैट परसेंटेज में भी काफी गिरावट आई थी.

अगर आप इसका सेवन खाली पेट रोजाना करें तो आपका वजन आसानी से कम हो सकता है. आमतौर में माना जाता है कि खाली पेट चाय या कॉफी पीने से आपको एसिडिटी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं.

शोध के अनुसार अगर आप अपना वजन कम करना चाहते हैं और डाइट फॉलों नहीं करना चाहते हैं, तो आप ग्रीन कॉफी का सेवन करें.

इसका सेवन करने से आप एक माह में कम से कम 2 किलों वजन कम कर लेगें.

अगर आप इसका सेवन करेगें तो इसमें मौजूद क्लोरोजेनिक एसिड आपकी आहार नली में शुगर की मात्रा को कम कर देगा. जिससे कारण फैट आसानी से जल्दी से खत्म हो जाता है.

इसमें मौजूद क्लोरोजेनिक एसिड आपके मूड को अच्छा बना देती है. साइको फॉर्मेसी में एक शोध सामने आई. साल 2012 में एक शोध किया गया जिसके मुताबिक कैफीनयुक्त और कैफीन रहित दोनों ही कॉफी जिनमें इसमें मौजूद क्लोरोजेनिक एसिड होता है. वह आपके मूड को सकारात्मक बनाने में मदद करता है. खासतौर में अधिक उम्र वालों को जरूर फायदा करता है.

बोन हैल्थ की लापरवाही करना पड़ सकता है भारी

पूरी ऊर्जा के साथ अपना काम करने और सही माने में जिंदगी जीने के लिए हड्डियों का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है. हड्डियों में होने वाली समस्या के कारण आप के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है. आप अपने परिवार और घर के काम को ठीक से मैनेज नहीं कर सकेंगी. वैसे तो उम्र के साथ हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है जिस से वे कमजोर हो जाती हैं. लेकिन इस स्थिति से निबटने के लिए पहले से ही तैयार रहना और बोन हैल्थ के बारे में जानकारी रखना बहुत आवश्यक है.

दरअसल, हड्डियां हमारे शरीर में कई भूमिकाएं निभाती हैं. ये हमें एक निश्चित संरचना प्रदान करती हैं, अंगों की सुरक्षा करती हैं और मांसपेशियों को सही रखने के साथ कैल्सियम का भंडार करती हैं. जिन लोगों की हड्डियां मजबूत रहती हैं वे स्वस्थ और सक्रिय जीवन जीते हैं. शरीर में पुरानी हड्डियां टूटती हैं और नई हड्डियां बनती रहती हैं.

इस की वजह से हमारा बोन मास या वेट बढ़ता है. 30 की उम्र तक व्यक्ति की पुरानी हड्डियां धीरेधीरे टूटती हैं और नई हड्डियां जल्दी बनती है. इस उम्र के बाद नई हड्डियों के बनने की प्रक्रिया धीमी होती जाती है, जिस की वजह से हड्डियां कमजोर होती रहती हैं. खास तौर पर महिलाओं में औस्टियोपोरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. पर अगर एक सही जीवनशैली, खानपान और ऐक्सरसाइज की जाए तो इस से आप की हड्डियां हमेशा मजबूत बनी रह सकती हैं.

बोन हैल्थ का खास खयाल

आइए जानते हैं कि महिलाओं को अपने हड्डियों के स्वास्थ्य के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता क्यों है:

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की हड्डियां कमजोर और छोटी होती हैं. उन में छोटे शरीर के कारण फ्रैक्चर का जोखिम ज्यादा रहता है. पश्चिम की महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं में हड्डियां की ताकत कम होती है. जिन महिलाओं की हड्डियां छोटी और पतली होती हैं उन में औस्टियोपोरोसिस से संबंधित फ्रैक्चर का खतरा भी अधिक होता है. जाहिर है अपनी शारीरिक संरचना की वजह से भी भारतीय महिलाओं को अपनी हड्डियों का खास खयाल रखना चाहिए.

महिलाओं में मेनोपौज उन की हड्डियों को जल्दी और तेजी से कमजोर कर सकता है: महिलाओं में ऐस्ट्रोजन हारमोन के कारण मासिकधर्म होता है. यह हारमोन हड्डियों के विकास और मजबूती के लिए बहुत जरूरी है. सामान्यतया 45-50 की उम्र तक मेनोपौज की शुरुआत हो जाती है. जब इस हारमोन का स्तर कम हो जाता है तो महिलाओं को मेनोपौज हो जाता है और इस उम्र के बाद महिलाओं में हड्डियों की ताकत तेजी से घटती है. यही वजह है कि मेनोपौज के समय उन्हें अपनी हड्डियों का खास खयाल रखना चाहिए.

महिलाओं की कमजोर डाइट: पुरुषों की तुलना में भारतीय महिलाओं को कैल्सियम युक्त खाद्यपदार्थों जैसे दूध और दही का नियमित रूप से सेवन करने की आदत कम होती है. इस के अतिरिक्त पुरुषों की तुलना में महिलाएं मांस, मछली और अंडे का सेवन करने से भी अधिक परहेज करती हैं. जबकि ये ऐसे खाद्यपदार्थ हैं जो मजबूत हड्डियों के लिए पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं. इन की कमी से महिला को बोन से संबंधित प्रौब्लम्स होने की संभावना ज्यादा रहती है.

महिलाओं में बोन हैल्थ के संदर्भ में जानकारी की कमी: अध्ययनों से पता चलता है कि भारतीय महिलाओं में हड्डियों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी है. यह कमी उन्हें इस संदर्भ में आवश्यक कदम उठाने से रोकती है. वे अपने बच्चों और परिवार के दूसरे सदस्यों की सेहत का तो पूरा खयाल रखती हैं, मगर अपनी सेहत के प्रति लापरवाह हो जाती हैं. इस से उन की हड्डियां कम उम्र में ही कमजोर होने लगती हैं.

हड्डियों को ऐसे रखें मजबूत

एक उम्र के बाद हड्डियों का कमजोर होना स्वाभाविक बात है, लेकिन अगर आप के लाइफस्टाइल में कुछ गलत आदतें शामिल हैं तो उम्र से पहले ही आप की हड्डियां कमजोर हो सकती हैं. हड्डियां कमजोर होने पर कई तरह की दूसरी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है. इसलिए इन बातों का खयाल जरूर रखें:

कैफीन और कार्बोनेटेड पेयपदार्थों से दूरी जरूरी: चाय, कौफी या फिर कार्बोनेटेड पेयपदार्थ जैसे कि सौफ्ट ड्रिंक, शैंपेन आदि हड्डियों से कैल्सियम खींच सकते हैं. हार्वर्ड में हुई एक रिसर्च के मुताबिक 16 से 20 साल की महिलाओं को सौफ्ट ड्रिंक के अधिक सेवन के कारण हड्डियों को क्षति पहुंचने की बात सामने आई थी. इन में फास्फेट ज्यादा होता है जो कैल्सियम को कम करने लगता है.

जरूरत से ज्यादा प्रोटीन लेना: जरूरत से ज्यादा प्रोटीन लेना भी अच्छा नहीं होता. अधिक मात्रा में प्रोटीन लेने से शरीर में ऐसिडिटी हो सकती है, जिस की वजह से पेशाब के जरीए शरीर से कैल्सियम बाहर निकल सकता है. अधिकतर लोगों को दिनभर में 0.12 कि.ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है. इस से ज्यादा मात्रा में प्रोटीन लेना हड्डियों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है.

ऐसिडिटी की दवाएं बढ़ा सकती हैं मुश्किलें: कई लोग शरीर में गैस महसूस होने या ज्यादा तीखा भोजन करने के बाद सावधानीवश ऐसिडिटी की दवाओं का सेवन करते हैं. कैल्सियम, मैग्नीशियम और जिंक जैसे खनिजपदार्थों के अवशोषण के लिए पेट में ऐसिड होना जरूरी होता है. अगर आप ऐसिड बनने से रोकने की कोई दवा ले रहे हैं तो इस से आप में औस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. अगर आप कौर्टिकोस्टेरौइड दवाओं का सेवन लंबे समय से कर रहे हैं तो इस से भी औस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है.

कौफी से दूर रहें: 1 कप कौफी पीने से पेशाब के जरीए 150 मि.ग्रा कैल्सियम शरीर से बाहर निकल जाता है. कौफी में और भी कई हानिकारक रसायन होते हैं जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में रुकावट पैदा कर सकते हैं. अगर आप कौफी पीना ही चाहते हैं तो प्रत्येक कप के बदले 150 मि.ग्रा से ज्यादा कैल्सियम लेने की आदत भी डाल लें.

सप्लिमैंट्स लें: अगर आप के शरीर में कैल्सियम और विटामिन डी की कमी है तो इस से आप की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. ऐसे में कैल्सियम से भरपूर खाद्यसामग्री का सेवन करना बेहद जरूरी है. विटामिन डी कैल्सियम के अवशोषण और उसे हड्डियों तक पहुंचाने में मदद करता है. जब आप धूप लेते हैं तो स्किन के जरीए शरीर में विटामिन डी का निर्माण होता है. धूप नहीं ले सकते हैं तो इस की जगह विटामिन डी के सप्लिमैंट भी ले सकते हैं. इसी तरह चूंकि आप का दैनिक आहार आप की कैल्शियम की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता है, इसलिए कैल्सियम सप्लिमैंट और विटामिन डी सप्लिमैंट लेने का विकल्प चुनें.

तनाव: स्ट्रैस से कौर्टिसोल हारमोन का स्तर बढ़ता है. अगर लंबे समय तक इस का स्तर बढ़ा हुआ रहे तो हड्डियों को नुकसान पहुंच सकता है. इस की वजह से ब्लड शुगर लैवल भी बढ़ सकता है और पेशाब के जरीए शरीर से कैल्सियम बाहर निकल सकता है. तनाव से दूर रहने के लिए ध्यान करें और पर्याप्त नींद लें.

व्यायाम: शारीरिक निष्क्रियता बढ़ने के कारण हड्डियों की सेहत प्रभावित हो सकता है जिस के कारण गठिया जैसी बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है. महिलाओं को पोस्टमेनोपौजल अवस्था के बाद खासकर शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित योगव्यायाम करते रहना आवश्यक है.

ऐक्सरसाइज के दौरान जब मांसपेशियां हड्डियों के विपरीत खिंचती हैं तो इस से हड्डियों में उत्तेजना पैदा होती है. पैदल चलने, साइक्लिंग, सीढि़यां चढ़ने और वेट लिफ्टिंग से हड्डियों के घनत्व में इजाफा होता है. दिनभर में 15 से 30 मिनट की ऐक्सरसाइज भी जरूरी होती है.

हड्डियों के लिए सुपर फूड

अगर आप अपना जीवन पूरी तरह स्वस्थ रह कर बिताना चाहती हैं तो आप को अपनी हड्डियों का खयाल रखना ही पड़ेगा. इस के लिए आप कुछ खाद्यसामग्री को अपनी डाइट में शामिल कर सकती हैं.

रोजाना 2 भीगे अखरोट से होंगी हड्डियां मजबूत: अखरोट को कच्चा खाने के बजाय अगर भिगो कर खाया जाए तो इस के फायदे कई गुणा बढ़ जाते हैं. इस के लिए रात में 2 अखरोट भिगो कर रख दें और सुबह खाली पेट खा लें. अखरोट में कई ऐसे घटक और प्रौपर्टीज पाई जाती हैं जो आप की हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाती हैं. अखरोट में अल्फालिनोलेनिक ऐसिड पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है.

प्रूंस फल का सेवन लाभकारी: हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे फाइबर युक्त फल के बारे में बताया है जिस का सेवन करना हड्डियों की क्षति को रोकने में मददगार हो सकता है. एडवांस्ड इन न्यूट्रिशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार डेयरी उत्पादों के साथ प्रूंस का सेवन करना भी लाभदायक माना जाता है. हड्डियों के घनत्व को बनाए रखने और उन्हें कमजोर होने से बचाने के लिए प्रूंस का सेवन लाभदायक हो सकता है.

आंकड़े बताते हैं कि पोस्टमेनोपौजल में महिलाओं में हड्डियों के कमजोर होने की समस्या अधिक होती है. 1 वर्ष तक दिन में लगभग 10 प्रूंस का सेवन करने वाली महिलाओं में इस से लाभ देखा गया. यह फल हड्डियों के घनत्व को कम होने से बचाने में काफी मददगार हो सकता है.

सोयाबीन: सोयाबीन के अंदर कैल्सियम पोटैशियम और प्रौटीन जैसे पोषक तत्त्व पाए जातेहैं. ये आप की हड्डियों को मजबूत बनाए रखते हैं. आप सोयाबीन या सोया प्रोडक्ट्स कई रूपों में यूज कर सकती हैं.

दही: दही आप की हड्डियों के लिए बेहद फायदेमंद है. इस के अंदर पाए जाने वाले पोषक तत्व जैसे प्रौटीन, कैल्सियम, फास्फोरस, पोटैशियम और विटामिन डी आप की हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करता और औस्टियोपोरोसिस से भी बचा कर रखते हैं.

ड्राई फ्रूट्स: नट्स या सूखे मेवे आप की हड्डियों को तो मजबूत करते ही हैं, साथ ही ये आप के हृदय और मस्तिष्क का भी खयाल रखते हैं. इसलिए रोजाना बादाम अंजीर, काजू, अखरोट, किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट अपने भोजन में शामिल करें.

हरी सब्जियां: हरी पत्तेदार सब्जियों में कई पोषक तत्त्व समेत ऐंटीऔक्सीडैंट गुण भी पाए जाते हैं जो आप की हड्डियों के लिए फायदेमंद हैं, हरी सब्जियों में आप ब्रोकली, पालक, पार्सले आदि का सेवन कर सकते हैं.

ग्रीन टी: ग्रीन टी का सेवन वैसे तो ओवरऔल हैल्थ के लिए फायदेमंद होता है, मगर बोन हैल्थ के लिए यह खासतौर पर लाभकारी है. यह न केवल आप को आर्थ्राइटिस से बचाकर रखती है बल्कि कमजोर हड्डियों को मजबूत भी बनाती है.

हलदी: हलदी का सेवन आप की हड्डियों के लिए लाभदायक होता है. दरअसल हल्दी में एक ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण होता है जिसे करक्यूमिन कहा जाता है. यह आप की हड्डियों को सेहतमंद रखेगा. आप सब्जी या दूध में मिला कर इस का सेवन कर सकते हैं.

पीरियड्स में ऐंठन और योनि में दर्द का क्या कारण है?

सवाल-

मैं 21 साल की हूं. मुझे मासिकधर्म के दौरान बहुत ऐंठन और योनि में दर्द रहता है. ऐसा कुछ ही महीनों से होने लगा है. बताएं क्या करूं?

जवाब-

मासिकधर्म के दौरान बहुत लड़कियों को यह परेशानी होती है. अत: आप नियमित व्यायाम करें. अपने पेट या पीठ के निचले हिस्से पर हीटिंग पैड रखें या फिर गरम पानी में स्नान लें. आप इन दिनों पूर्ण आराम करें. इस के बाद भी अगर फर्क नहीं पड़ता है तो स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें, क्योंकि ये सभी संकेत पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज, ऐंडोमिट्रिओसिस या फिर फाइब्रौयड्स के भी हो सकते हैं.

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पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों व मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है.

टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

न्यूट्रीकेयर प्रोग्राम की सीनियर डाइटिशियन प्रगति कपूर और डाइट ऐंड वैलनैस क्लीनिक की डाइटिशियन सोनिया नारंग बता रही हैं कि उन दिनों के लिए किस तरह की डाइट प्लान करें ताकि आप पीरियड्स में भी रहें हैप्पीहैप्पी.

इन से करें परहेज

– व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.

– बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.

– पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.

– कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.

– ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.

– कैफीन का सेवन भी न करें.

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ज्यादा एक्सरसाइज करना आपके दिल की हेल्थ को पहुंचा सकता है नुकसान, पढ़ें खबर

जब एक्सरसाइज करने की बात आती है तो हम अपने शरीर और दिमाग पर एक गतिहीन जीवन शैली के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बहुत कुछ सुनते है. लेकिन अत्यधिक एक्सरसाइज? “बहुत ज्यादा बहुत बुरा है,” और यह एक्सरसाइज के लिए भी सच है. जबकि कम एक्सरसाइज  भी एक गंभीर समस्या है, यह एक्सरसाइज का दूसरा पहलू भी है, जो अधिक एक्सरसाइज के साथ आता है. डॉ. सुब्रत अखौरी, निदेशक इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी एशियन हॉस्पिटल फरीदाबाद का कहना है- एक्सरसाइज, जब सही तरीके से किया जाता है, तो हमारे शरीर के लिए कई लाभ होते हैं – रक्त परिसंचरण में सुधार और आपके लसीका तंत्र को उत्तेजित करता है, हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालने में मदद करता हैं. लेकिन यहां, हमें ‘पर्याप्त’ शब्द पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि अधिक प्रशिक्षण आपके संपूर्ण स्वास्थ्य को पंगु बना सकता है और आपके दिल को तनाव में डाल सकता है.

एक अध्ययन से पता चला है कि बहुत अधिक एक्सरसाइज आपके हृदय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.

इससे पता चलता है कि जो लोग लंबे समय तक उच्च-तीव्रता वाले वर्कआउट में शामिल थे, उन्हें मध्य आयु तक पहुंचने तक कोरोनरी धमनी कैल्सीफिकेशन (CAC) विकसित होने का खतरा था. यह बताता है कि इतने सारे युवा और मध्यम आयु वर्ग के फिटनेस उत्साही अचानक दिल के दौरे से क्यों मर रहे हैं. जहां पर्याप्त एक्सरसाइज हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, वहीं अति-एक्सरसाइज आपके हृदय पर पूरी तरह से नकारात्मक प्रभाव डालता है.

जब आपके पास अपने स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त समय नहीं है तो आप अपने शरीर के सबसे अच्छे होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?  आज बहुत से युवा अति-प्रशिक्षण और कम खाने के प्रति जुनूनी हैं जो उनके शरीर को और अधिक क्षति पहुँचाता है.

नियमित एक्सरसाइज हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की कुंजी है. हमारे शरीर के लिए इसके अनगिनत लाभ हैं –

फिटनेस के स्तर को बढ़ाता है, और हमारे हृदय स्वास्थ्य में सुधार के अलावा स्वस्थ वजन बनाए रखने में मदद करता है. इसके अलावा, यह हमारे मूड को को अच्छा करता है, नींद में सुधार करता है और हमारे दैनिक जीवन में तनाव को कम करता है. और इन सबसे बढ़कर यह हमारे शरीर को शेप में रखने का काम करता है.

बहुत अधिक एक्सरसाइज कितना है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो कभी कभी एक्सरसाइज करने वालों और एथलीटों जैसे के मन में समान रूप से रहता है. हालांकि, ऐसा कोई एक उत्तर नहीं है जो सभी के लिए उपयुक्त हो. जो एक के लिए पर्याप्त हो, वह दूसरे के लिए नहीं हो सकता है. तो, आप कैसे जाने हैं कि आप सही दिशा में जा रहे हैं? कुछ संकेत हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए.

सबसे पहले, अपनी हृदय गति पर कड़ी नज़र रखें –

यदि यह आराम करते समय भी सामान्य से अधिक है, तो यह एक संकेत है कि आपको ध्यानकरने की आवश्यकता है. इसके बाद, अपने हृदय गति परिवर्तनशीलता (एचआरवी) की निगरानी करें. यह प्रत्येक दिल की धड़कन के बीच के समय का एक माप है और आपके दिल के समग्र स्वास्थ्य को दर्शाता है

कम एचआरवी का मतलब है कि आपका दिल एक्सरसाइज से स्वस्थ नहीं हो पा रहा है जिससे आगे समस्याएं हो सकती हैं. अपने शरीर पर ध्यान दे, यदि आप अत्यधिक थका हुआ या असामान्य रूप से बीमार महसूस करते हैं, तो अपना एक्सरसाइज कम करें और अपने शरीर को ठीक होने दें.

बहुत अधिक एक्सरसाइज आपके दिल को तनाव में डाल सकता है –

तीव्र एक्सरसाइज आपके हृदय गति को बढ़ाता है जिसके परिणामस्वरूप तनाव हार्मोन का स्राव होता है जिसके परिणामस्वरूप दिल का दौरा और हृदय गति रुकने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा, यदि आप हृदय रोग से पीड़ित हैं, तो बहुत अधिक एक्सरसाइज आपके लक्षणों और प्रभावी उपचारों को खराब कर सकता है. इसके अलावा, अति-एक्सरसाइज करने से अनियमित दिल की धड़कन तेज  होने का खतरा बढ़ सकता है, जो घातक हो सकता है. इसलिए, किसी भी नए एक्सरसाइज को शुरू करने से पहले एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है.

एक्सरसाइज और आराम- स्वस्थ संतुलन बनाए रखें

हम सभी नियमित एक्सरसाइज के स्वास्थ्य लाभों से सहमत हैं, यह भी महत्वपूर्ण है कि आप अपने शरीर को आराम देने   के लिए समय निकालें. अपने एक्सरसाइज दिनचर्या के साथ ओवरबोर्ड जाने से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. एक्सरसाइज और आराम के बीच स्वस्थ संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ सुझाव है

  • अपने शरीर को स्वस्थ रखने लिए अपने एक्सरसाइज दिनचर्या से कम से कम एक दिन की छुट्टी लें.
  • अपने आप को कगार पर न धकेलें. यदि आप थकावट महसूस करते हैं, तो कुछ दिनों के लिए ब्रेक लेना आपके शरीर के लिए अच्छा हो सकता है.
  • एक्सरसाइज के दौरान अपनी हृदय गति और एचआरवी पर नजर रखें. अगर आपको सांस लेने में तकलीफ या सीने में किसी प्रकार का दर्द महसूस होता है, तो यह एक संकेत है कि आपको ब्रेक लेने की जरूरत है.

एक्सरसाइज और आराम के बीच सही संतुलन खोजना हर किसी के लिए अलग होता है लेकिन ये टिप्स आपको स्वस्थ रहने और अधिक एक्सरसाइज से बचने में मदद कर सकते हैं.

 मुख्य बात

एक नियमित एक्सरसाइज दिनचर्या आपके हृदय स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाती है, इसका बहुत अधिक वास्तव में अच्छे से अधिक नुकसान कर सकता है. यदि आप सुनिश्चित नहीं हैं कि आपको फिट रहने के लिए सही मात्रा में एक्सरसाइज की आवश्यकता है या आप अपने हृदय स्वास्थ्य को ट्रैक करना चाहते हैं और समय के साथ बदलाव देखना चाहते हैं, तो नियमित रूप से इसकी निगरानी करने पर विचार करें. यह न केवल आपको वर्कआउट करते समय सुरक्षित रहने में मदद करेगा बल्कि आपके संपूर्ण हृदय स्वास्थ्य पर विभिन्न प्रकार के एक्सरसाइज के प्रभाव को समझने में भी आपकी मदद करेगा.

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