न्याय

कहानी- नलिनी शर्मा

सांझ का धुंधलका गहराते ही मुझे भय लगने लगता है. घर के  सामने ऊंचीऊंची पहाडि़यां, जो दिन की रोशनी में मुझे बेहद भली लगती हैं, अंधेरा होते ही दानव के समान दिखती हैं. देवदार के ऊंचे वृक्षों की लंबी होती छाया मुझे डराती हुई सी लगती है. समझ में नहीं आता दिन की खूबसूरती रात में इतनी डरावनी क्यों लगती है. शायद यह डर मेरी नौकरानी रुकमा की अचानक मृत्यु होने से जुड़ा हुआ है.

रुकमा को मरे हुए अब पूरा 1 माह हो चुका है. उस को भूल पाना मेरे लिए असंभव है. वह थी ही ऐसी. अभी तक उस के स्थान पर मुझे कोई दूसरी नौकरानी नहीं मिली है. वह मात्र 15 साल की थी पर मेरी देखभाल ऐसे करती थी जैसे मां हो या कोई घर की बड़ी.

मेरी पसंदनापसंद का रुकमा को हमेशा ध्यान रहता था. मैं उस के ऊपर पूरी तरह आश्रित थी. ऐसा लगता था कि उस के बिना मैं पल भर भी नहीं जी पाऊंगी. पर समय सबकुछ सिखा देता है. अब रहती हूं उस के बिना पर उस की याद में दर्द की टीस उठती रहती है.

वह मनहूस दिन मुझे अभी भी याद है. रसोईघर का नल बहुत दिनों से टपक रहा था. उस की मरम्मत के लिए मैं ने वीरू को बुलाया और उसे रसोईघर में ले जा कर काम समझा दिया तथा रुकमा को देखरेख के लिए वहीं छोड़ कर मैं अपनी आरामकुरसी पर समाचारपत्र ले कर पसर गई.

सुबह की भीनीभीनी धूप ने मुझे गरमाहट पहुंचाई और पहाडि़यों की ओर से बहने वाली बयार ने मुझे थपकी दे कर सुला दिया था.

अचानक झटके से मेरी नींद खुल गई. ध्यान आया कि नल मरम्मत करने आया वीरू अभी तक काम पूरा कर के पैसे मांगने नहीं आया था. हाथ में बंधी घड़ी देखी तो उसे आए पूरा 1 घंटा हो चुका था. इतने लंबे समय तक चलने वाला काम तो था नहीं. फिर मैं ने रुकमा को कई बार आवाज दी पर उत्तर न पा कर कुछ विचित्र सा लगा क्योंकि वह मेरी एक आवाज सुनते ही सामने आ कर खड़ी हो जाती थी. मजबूर हो कर मैं खुद अंदर पता लगाने गई.

रसोईघर का दृश्य देख कर मैं चौंक गई. गैस बर्नर के ऊपर दूध उफन कर बह गया था जिस के कारण लौ बुझ गई थी और गैस की दुर्गंध वहां भरी हुई थी. वीरू और रुकमा अपने में खोएखोए रसोईघर में बने रैक के सहारे खडे़ हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. सहसा मुझे प्रवेश करते देख दोनों अचकचा गए.

मैं ने क्रोधित हो कर दोनों को बाहर निकलने का आदेश दिया. नाक पर कपड़ा रख कर पहले बर्नर का बटन बंद किया. फिर मरम्मत किए हुए नल की टोंटी की जांच की और बाहर आ गई. वीरू को पैसे दे कर चलता किया और रुकमा को चायनाश्ता लाने का आदेश दे कर मैं फिर आरामकुरसी पर आ बैठी.

वातावरण में वही शांति थी. लेकिन रसोईघर में देखा दृश्य मेरे दिलोदिमाग पर अंकित हो गया था. रुकमा चाय की ट्रे सामने तिपाई पर रखने के लिए जैसे ही मेरे सामने झुकी तो मैं ने नजरें उठा कर पहली बार उसे भरपूर नजर से देखा.

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मेरे सामने एक बेहद सुंदर युवती खड़ी थी. वह छोटी सी बच्ची जिसे मैं कुछ साल पहले ले कर आई थी, जिसे मैं जानती थी, वह कहीं खो गई थी. मेरा ध्यान ही नहीं गया था कि उस में इतना बदलाव आ गया था. मेरी दी हुई गुलाबी साड़ी में उस की त्वचा एक अनोखी आभा से दमक रही थी. उस की खूबसूरती देख कर मुझे ईर्ष्या होने लगी.

मैं ने चाय का घूंट जैसे ही भरा, मुंह कड़वा हो गया. वह चीनी डालना भूल गई थी. वह चाय रखने के बाद हमेशा की तरह मेरे पास न बैठ कर अंदर जा ही रही थी कि मैं ने रोक लिया और कहा,  ‘‘रुकमा, यह क्या? चाय बिलकुल फीकी है और मेरा नाश्ता?’’

बिना कुछ कहे वह अंदर गई और चीनी का बरतन ला कर मेरे हाथ में थमा दिया.

मैं ने फिर टोका, ‘‘रुकमा, नाश्ता भी लाओ. कितनी देर हो गई है. भूल गई कि मैं खाली पेट चाय नहीं पीती.’’

वह फिर से अंदर गई और बिस्कुट का डब्बा उठा लाई और मुझे पकड़ा दिया. मैं ने चिढ़ कर कहा, ‘‘रुकमा, मुझे बिस्कुट नहीं चाहिए. सवेरे नाश्ते में तुम ने कुछ तो बनाया होगा? जा कर लाओ.’’

वह अंदर चली गई. बहुत देर तक जब वह वापस नहीं लौटी तो मैं चाय वहीं छोड़ कर उसे देखने अंदर गई कि आखिर वह बना क्या रही है.

वह रसोईघर में जमीन पर बैठी धीरेधीरे सब्जी काट रही थी. उस का ध्यान कहीं और था. मेरे आने की आहट भी उसे सुनाई नहीं दी. कुछ ही घंटों में उस में इतना अंतर आ गया था. पल भर के लिए चुप न रहने वाली रुकमा ने अचानक चुप्पी साध ली थी.

रोज मैं उसे अधिक बोलने के लिए लताड़ लगाती थी पर आज मुझे उस का चुप रहना बुरी तरह अखर रहा था.

सिर से पानी गुजरा जा रहा था. मैं ने उस से दोटूक बात की, ‘‘रुकमा, जब से वह सड़कछाप छोकरा वीरू नल ठीक करने आया, तुम एकदम लापरवाह हो गई हो. क्या कारण है?’’

मेरे बारबार पूछने पर भी उस का मुंह नहीं खुला. मानो सांप सूंघ गया हो. उस के इस तरह खामोश होने से दुखी हो कर मैं ने उस वीरू के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि वह विवाहिता है तथा 2 छोटे बच्चे भी हैं. यह भी पता चला कि वह और रुकमा अकसर सब्जी की दुकान में मिला करते हैं.

मुझे रुकमा का विवाहित वीरू से इस तरह मिलने की बात सुन कर बहुत बुरा लगा. यह मेरी प्रतिष्ठा का प्रश्न था. उस की बदनामी के छींटे मेरे ऊपर भी गिर सकते थे. मैं रुकमा को बुला कर डांटने का विचार कर ही रही थी कि गेट के बाहर जोरजोर से बोलने की आवाज सुनाई दी. देखा, एक बूढ़ा व्यक्ति मैलेकुचैले कपड़ों में अंदर आने की कोशिश कर रहा है और चौकीदार उसे रोक रहा है. मैं ने ऊंचे स्वर में चौकीदार को आदेश दिया कि वह उसे अंदर आने दे.

आते ही वह बुजुर्ग मेरे पैरों पर गिर कर रोने लगा. बोला, ‘‘मां, मेरी बेटी का घर बचाओ. मेरा दामाद आप की नौकरानी रुकमा से शादी करने के लिए मेरी बेटी को छोड़ रहा है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारा दामाद कौन, वीरू?’’

प्रत्युत्तर में वह जमीन पर सिर पटक कर रोने लगा. मैं भौचक्की सी सोचने लगी ‘तो मामला यहां तक बिगड़ चुका है.’

मैं ने उसे सांत्वना देते हुए वचन दिया कि मैं किसी भी हालत में उस की बेटी का घर नहीं उजड़ने दूंगी.

आश्वस्त हो कर जब वह चला गया तो रुकमा को बुला कर मैं ने बुरी तरह डांटा और धमकाया, ‘‘बेशर्म कहीं की, तुझे शादी की इतनी जल्दी पड़ी है तो अपने बापभाई से क्यों नहीं कहती? विवाहित पुरुष के पीछे पड़ कर उस की पत्नी का घर बरबाद क्यों कर रही है? मैं आज ही तेरे भाई को बुलवाती हूं.’’

वह अपने बाप से ज्यादा हट्टेकट्टे भाई से डरती थी जो जरा सी बात पर झगड़ा करने और किसी को भी जान से मार देने की धमकी के लिए मशहूर था. रुकमा बुरी तरह से डर गई. बहुत दिनों बाद उस की चुप्पी टूटी. बोली, ‘‘अब मैं उस की ओर देखूं भी तो आप सच में मेरे भाई को खबर कर देना.’’

कान पकड़ कर वह मेरे पैरों में झुक गई. इस घटना के बाद सबकुछ सामान्य सा हो गया प्रतीत होता था. मैं अपने काम में व्यस्त हो गई.

मुश्किल से 15 दिन ही बीते थे कि एक दिन दोपहर में जब मैं बाहर से घर लौटी तो दरवाजे पर ताला लगा देख कर चौंक गई. रुकमा कहां गई? यह सवाल मेरे दिमाग में रहरह कर उठ रहा था. खैर, पर्स से घर की डुप्लीकेट चाबी निकाल कर दरवाजा खोला और अंदर गई तो घर सांयसांय कर रहा था. दिल फिर से आशंका से भर गया और रुकमा की अनुपस्थिति के लिए वीरू को दोषी मान रहा था.

शाम हो गई थी पर रुकमा अभी तक लौटी नहीं थी. चौकीदार सब्जी वाले के  यहां पता लगाने गया तो पता चला कि आज दोनों को किसी ने भी नहीं देखा. वीरू के घर से पता चला कि वह भी सवेरे से निकला हुआ था. आशंका से मेरा मन कांपने लगा.

2 दिन गुजर गए थे. वीरू व रुकमा का कहीं पता नहीं था. मैं ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी थी. किसी ने रुकमा के बाप व भाई को भी सूचित कर दिया था. सब हैरान थे कि वे दोनों अचानक कहां गुम हो गए. पुलिस जंगल व पहाडि़यों का चप्पाचप्पा छान रही थी. उधर रुकमा का भाई अपने हाथ में फसल काटने वाला चमचमाता हंसिया लिए घूमता दिखाई दे रहा था.

एक सप्ताह बाद मुझे पुलिस ने एक स्त्री की क्षतविक्षत लाश की शिनाख्त करने के लिए बुलवाया जोकि पहाडि़यों के  पास जंगली झाडि़यों के झुरमुट में पड़ी मिली थी. लाश के ऊपर की नीली साड़ी मैं तुरंत पहचान गई जोकि रुकमा ने मेरे घर से जाते समय चुरा ली थी. मुझे लाश पहचानने में तनिक भी समय नहीं लगा कि वह रुकमा ही थी.

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रुकमा का मृत शरीर मिल गया था. पर वीरू का कहीं पता नहीं था और उस का भाई अब भी हंसिया लिए घूम रहा था. चौकीदार ने बताया कि पहाड़ी लोग अपने घरपरिवार को कलंकित करने वाली लड़की या स्त्री को निश्चित रूप से मृत्युदंड देते हैं. साथ ही वह उस के प्रेमी को भी मार डालते हैं जिस के  कारण उन के घर की स्त्री रास्ता भटक जाती है.

मुझे दुख था रुकमा की मृत्यु का. उस से भी अधिक दुख था मुझे कि मैं वीरू की पत्नी का घर बचाने में असमर्थ रही थी. मैं बारबार यही सोचती कि आखिर वीरू गया कहां? मैं इसी उधेड़बुन में एक शाम रसोईघर में काम कर रही थी कि पिछवाड़े किसी के चलने की पदचाप सुनाई दी. सांस रोक कर कान लगाया तो फिर से किसी के दबे पैरों की पदचाप सुनाई दी. हिम्मत बटोर कर जोर से चिल्लाई ‘‘कौन है? क्या काम है? सामने आओ, नहीं तो पुलिस को फोन करती हूं.’’

रसोईघर के पिछवाड़े की ओर खुलने वाली खिड़की के सामने जो चेहरा नजर आया उसे देख कर मेरे मुंह से मारे खुशी के आवाज निकल गई, ‘‘तुम जीवित हो?’’

वह वीरू था. फटेहाल, बदहवास चेहरा, मेरे घर के पिछवाडे़ में घने पेड़ों के बीच छिपा हुआ था. किसी ने भी मेरे घर के पीछे उसे नहीं खोजा था. वह डर के मारे बुरी तरह कांप रहा था.

मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे चौकीदार की चौकन्नी आंखों से वह कैसे बचा रहा. मुझे भी उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उस ने नल ठीक करने के साथ रुकमा को बिगाड़ दिया था. मन करने लगा कि लगाऊं उसे 2-4 थप्पड़. पर उस की हालत देख कर मैं ने क्रोध पर काबू पाना ही उचित समझा.

पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर उसे रात के घुप अंधेरे में चुपचाप अंदर बुला लिया क्योंकि मुझे उस की पत्नी व बच्चों को उन का सहारा लौटाना था. मैं ने उसे खाने को दिया और वह उस पर टूट पड़ा. उस का खाना देख कर लगा कि भूख भी क्या चीज है.

वीरू के खाना खा लेने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने यह बहुत घिनौना काम किया है कि विवाहित हो कर भी एक कुंआरी लड़की को अपने जाल में फंसाया. तुम्हारे कारण ही उस की हत्या हुई है. तुम दोषी हो अपनी पत्नी व बच्चों के, जिन्हें तुम ने धोखा दिया. तुम ने तो रुकमा से कहीं अधिक बड़ा अपराध किया है. तुम्हारे साथ मुझे जरा भी सहानुभूति नहीं है पर मैं मजबूर हूं तुम्हारी रक्षा करने के लिए क्योंकि मैं ने तुम्हारी मासूम पत्नी के पिता को वचन दिया है कि उस की बेटी का घर मैं कदापि उजड़ने नहीं दूंगी.’’

ऐसा कहते हुए मैं ने उसे रसोईघर के भंडारगृह में बंद कर ताला लगा दिया. वीरू, रुकमा तथा उस का भाई तीनों अपराधी थे. लेकिन इन के अपराध की सजा वीरू की पत्नी व बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए. करे कोई, भरे कोई. इन्हें न्याय दिलवाना ही होगा तो इस के लिए मुझे वीरू की रक्षा करनी होगी.

मुझे वीरू से पता चला कि रुकमा की हत्या के अपराध में उस के जिस भाई को पुलिस ढूंढ़ रही थी वह उस के घर में घात लगाए उस की बीवी व बच्चों को बंधक बना कर छिपा बैठा था. इस रहस्य को केवल वही जानता था क्योंकि रात के अंधेरे में जब वह अपने बीवीबच्चों से मिलने गया था तो तब उस ने उस को वहां छिपा हुआ देखा था.

वीरू को सुरक्षित ताले में बंद कर मैं आश्वस्त हो गई और फिर तुरंत ही रुकमा के भाई को सजा दिलवाने के लिए मैं ने पुलिस को फोन द्वारा सूचित कर दिया. यही एक रास्ता था मेरे पास अपना वचन निभाने का और वीरू की पत्नी व बच्चों का सहारा लौटा कर घर बचाने का, उन्हें न्याय दिलाने का.

मेरी शिकायत पर पुलिस रुकमा के भाई को पकड़ कर ले गई. मैं ने ताला खोल कर वीरू को बाहर निकाल कर कहा, ‘‘जाओ, अपने घर निश्ंिचत हो कर जाओ. अब तुम्हें रुकमा के भाई से कोई खतरा नहीं है. वह जेल में बंद है.’’

वीरू ने अपने घर जाने से साफ मना कर दिया. वह अब भी भयभीत दिखाई दे रहा था. मेरा माथा ठनका. रहस्य और अधिक गहराता जा रहा था. मैं ने उस से बारबार पूछा तो वह चुप्पी साधे बैठा रहा.

मैं क्रोध से चीखी, ‘‘आखिर अपने ही घर में तुम्हें किस से भय है? मैं तुम्हें सदा के लिए यहां छिपा कर नहीं रख सकती. अगर तुम ने सच बात नहीं बताई तो मैं तुम्हें भी पुलिस के हवाले कर दूंगी. क्योंकि सारी बुराई की जड़ तो तुम्ही हो.’’

वह हकलाता हुआ बोला, ‘‘मांजी, किसी से मत कहिएगा, मेरे बच्चे बिन मां के हो जाएंगे. मेरी पत्नी ने मेरे ही सामने रुकमा की हत्या की थी और अब वह मेरे खून की भी प्यासी है. मुझे यहीं छिपा लो.’’

कहते हुए वह फफकफफक कर रोने लगा.

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Holi Special: गुप्त रोग: क्या फंस गया रणबीर

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“अब छोड़ो भी….जाने दो मुझे …..मेरे पति का रणबीर का फोन आता ही होगा ” रूबी ने अजय सिंह की बाहों में कसमसाते हुए कहा

“अच्छा तो अपने पति के वापस आते ही मुझसे नखरे दिखाने लगी तुम ”अजय सिंह ने रूबी के सीने पर हाथ का दबाव बढ़ाते हुए कहा

“क्या बताऊँ…..अजय ….जब से मेरा मर्द गुजरात से कमाई करके लौटा है तबसे  सेक्स का भूखा भेड़िया बन गया है रात में भी मुझे सोने नहीं देता ….. ” रूबी ने एक मादक अंगड़ाई लेते हुए कहा

“तो तुम भी सेक्स के मज़े लो …..इसमें परेशानी की क्या बात है भला ? ” एक भद्दी सी मुस्कुराहट के साथ अजय सिंह ने कहा

“रात में उसका बिस्तर गरम करूं और दिन में तुम्हारे जोश को ठंडा करूं …..अरे मैं एक औरत हूँ कोई सेक्स डॉल नहीं …..और फिर मैं प्यार तो तुमसे करती हूँ न …..मेरा वो तोंद वाला मोटा पति मुझे कतई पसंद नहीं ”

ये कहकर रूबी ने अजय सिंह को अपनी बाहों में भर लिया .

तीखे नैननक्श और भरे बदन वाली रूबी पर मोहल्ले के मनचलों की नज़र रहती  थी ,जब रूबी नाभि प्रदर्शना ढंग से साड़ी पहनकर बाहर निकलती तो लोग फटी आंखों से उसे घूरते रह जाते अपनी इस खूबसूरती का अच्छी तरह अहसास भी था रूबी को और मौका पड़ने पर वह इसका फायदा उठाने से भी नहीं चूकती थी .

रूबी इस  मकान में अकेली रहती थी जबकि उसके पति को गुजरात में काम के सिलसिले में  कई महीनों तक बाहर रुकना पड़  जाता था .

रूबी को अपने पति के मोटे होने से चिढ़ थी इसलिये उसने कई बार रणबीर से खुलकर कहा भी पर उसके पति को पैसे से इतना प्यार था कि वह अपने शरीर पर ध्यान नहीं देता  था अपने पति की गैर मौजूदगी में जब भी रूबी की तबीयत कुछ खराब होती तो  वह  मोहल्ले के नुक्कड़ पर बने अस्पताल में दवा लेने जाती थी ,तन्हाई की मारी हुई जवान और खूबसूरत रूबी की जानपहचान जल्दी ही उस अस्पताल में काम करने वाले कम्पाउंडर अजय सिंह से हो गई और रूबी और अजय सिंह एक दूसरे से प्यार करने लगे रूबी को  एक आदमी का सहारा मिला तो वह और भी निखर गई ,अजय सिंह का डॉक्टर जब कभी भी अस्पताल से बाहर कहीं जाता तो अजय सिंह रूबी को फोन करके अस्पताल में बुला लेता ,दोनो साथ में ही खाते पीते और अस्पताल में ही जिस्मानी सुख का मज़ा भी लेते ,दोनो की ज़िंदगी मज़े से गुज़र रही थी पर इसी बीच रूबी के पति रणबीर के गुजरात से वापस लौट आने से रूबी की आज़ादी पर ब्रेक सा लग गया था . अगले दिन रूबी ने भरे गले से अजय सिंह को फ़ोन करके ये बताया कि अब वह उससे मिलने नहीं आ पाएगी क्योंकि उसका पति उसे लेकर हमेशा ही बिस्तर पर पड़ा रहता है और पोर्न फिल्में दिखाकर अपनी “सेक्स फैंटेसी” पूरी करने के लिए रूबी पर दबाव डालता रहता है.

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रूबी को उसका पति परेशान कर रहा था ये बात अजय सिंह को अच्छी नहीं लग रही थी  ,रूबी का पति उसे एक दुश्मन की तरह लग रहा था ,एक तो रूबी से  दूरी अजय सिंह को  सहन नहीं हो रही थी और ऊपर से  ये बातें सुनकर अजय सिंह को गुस्सा आ रहा था इसलिए मन ही मन अजय सिंह रूबी के पति को उससे दूर रखने के लिए कुछ ऐसा प्लान सोचने लगा जिससे सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे.

फिर एक दिन अजय सिंह ने रूबी को अस्पताल में बुलाया

“बड़ी मुश्किल से आ पाई हूँ ….जल्दी बताओ क्या बात है  ” रूबी ने कहा

“ये लो ….ये एक किस्म का तेल है जिसमे मैने कई तरह की दवाएं मिलाई है ….इस तेल को तुम्हे अपने पति के प्राइवेट पार्ट अर्थात लिंग पर मलना है ” अजय सिंह ने एक छोटी शीशी

रूबी की ओर बढ़ाते हुए कहा

उसकी बातें सुनकर रूबी चौक पड़ी थी

“पर भला इससे क्या होगा? ”रूबी ने पूछा

“मैने इस तेल में कुछ ऐसे केमिकल मिलाए हैं जिनका पी. एच. का मान बहुत कम होता है और यदि कम पी.एच. के मान वाली चीजों को त्वचा पर दोचार दिन तक लगाया जाए तो त्वचा पर हल्का घाव या इन्फेक्शन हो सकता है ……  ”अपनी आंख को शरारती अंदाज़ में दबाते हुए अजय सिंह ने कहा

“ओह…..इसका मतलब है कि इसे लगाते ही रणबीर को इन्फेक्शन हो जाएगा  और फिर वह मुझे सेक्स के लिए तंग नहीं करेगा … पर फिर यह तेल  मेरे हाथ पर भी घाव बना सकता है न  ” रूबी ने अपनी घबराहट दिखाई

“ वेरी स्मार्ट ….. मेरी जान ये काम तुम दस्ताने पहनकर करोगी …..ये लो ग्लव्स ”

“पर इस तरह से तो रणबीर को मुझ पर शक हो जाएगा  ” रूबी ने शंका जाहिर करी तो अजय सिंह खीझ उठा

“उफ्फ….बहुत नासमझ हो तुम …..तुम्हे मोटे पति के साथ  न सोना पड़े इसका एकमात्र यही रास्ता था…..अब आगे का सफर कैसे तय करना है  वो सब तुम्हे सोचना है  ”

“ठीक है बाबा मैं ही कुछ सोचती हूँ” रूबी ने तेल की शीशी लेते हुए कहा

रोज़ रात की तरह रणबीर फिर से रूमानी होने लगा तो रूबी ने रजस्वला होने का झूठ बोला जिस पर रणबीर ने बुरा सा मुँह बना लिया

“अरे अब तुम नाराज़ मत हो  ….मेरे पास तुम्हे खुश करने के और भी बहुत से तरीके हैं …..मैं तुम्हारे पैरों में तेल से मसाज कर देती हूं ….तुम्हे अच्छी नींद आ जायेगी ” ये कहकर रूबी ने रणबीर की आंखों पर एक दुपपट्टा बांध दिया ,रणबीर मन ही मन कल्पना के गोते लगाने लगा कि न जाने उसकी पत्नी उसके साथ क्या करने जा रही है इस समय वह अपने आपको किसी अंग्रेज़ी फ़िल्म का हीरो समझ रहा था.

रनबीर को लिटा कर रूबी  ने हाथों में ग्लव्स पहन लिए और उसकी टांगों पर चढ़ कर बैठ गयी और रणवीर के पैरों और घुटनों में सादा यानि बिना मिलावट वाला तेल लगाया जबकि अजय सिंह के द्वारा दिए गए तेल को रणबीर के प्राइवेट अंग में लगा कर धीरधीरे मालिश करने लगी.

रणबीर आंखें बंद करके आनन्द के सागर मे गोते लगा रहा था क्योंकि इस मसाज से एक अजीब सी अदभुत अनुभूति हो रही थी उसे

“रूबी ….तुमने कल जिस तेल से मसाज करी थी ….वह बाद मुझे बहुत अच्छा लगी ….तुम आज भी ठीक वैसी ही मसाज देना ”रणबीर ने सुबह उठते ही कहा जिस पर रूबी मुस्कुराकर रह गई .

रणबीर ने तीन चार दिन ये मसाज करवा कर मज़ा लिया  पर उस बेचारे को क्या पता था  कि उसके साथ क्या होने वाला है .

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एक दिन सुबह जब रणवीर सोकर उठा तो उसके लिंग में हल्की सी जलन हो रही थी उसने ध्यान दिया कि अंग पर लाललाल दाने हैं जिसमे खुजली भी हो रही थी , दानों को खुजला भी दिया था रणबीर ने जिसके कारण ऊपर की त्वचा से हल्का सा खून निकलने लगा था .

“रूबी जबसे तुमने मेरे लिंग पर मसाज करी है तबसे वहाँ पर एलर्जी सी हो गई है ….देखो तो क्या हाल हो गया है मेरा ” रणबीर ने शिकायती लहज़े में रूबी से कहा

“देखिए इसमें मेरी कोई गलती नहीं है  ….आप महीनों घर से बाहर रहते हैं ,पत्नी का साथ आपको नसीब नहीं होता ऐसे में धंधेबाजऔरतों से संबंध भी आप ज़रूर ही बनाते होंगे ….. आपको किसी भी तरह का गुप्त रोग होना तो लाज़मी ही है ” रूबी ने नाकभौं सिकोड़ते हुए उपेक्षित स्वर में कहा

अपनी पत्नी से रणबीर को सहानुभूति की उम्मीद थी पर उसे तो नफरत मिल रही थी ,अपने बनाये हुए प्लान में रुबी और अजय कामयाब हो रहे थे और वे ये सोचकर खुश हो रहे थे कि रणबीर को अपने गुप्त रोगी होने का अहसास होगा और अब वह  रूबी के शरीर को हाथ नहीं लगा पायेगा और गुजरात जल्दी वापस लौट जाएगा जबकि दूसरी तरफ रणबीर  बहुत परेशान था .

रणबीर अपनी पत्नी से भले ही महीनों दूर रहता था पर किसी भी बाज़ारु औरत से कभी भी उसने संबंध नहीं बनाए थे ऐसे में उसके शरीर पर किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन का हो जाना उसे परेशानी और हैरत में डाल रहा था और उस पर उसकी पत्नी  भी उसे बारबार गुप्त रोगी होने का ताना दे रही थी  इसलिए वह सीधा शहर के एक अच्छे डॉक्टर के पास पहुचा और अपनी समस्या बताई .

“क्या आपने सड़क के किनारे तम्बू  लगाकर दवाई या तेल बेचने वालों से किसी तरह की दवा ली है क्या ? ” डॉक्टर ने पूछा

“नहीं सर नीमहकीम से तो नही  पर …..एक दोस्त ने ज़रूर एक तेल दिया था जिसे मैने ताकत बढ़ाने वाला तेल समझकर लगा लिया है ….ये घाव और जलन तबसे ही पनपा है “रणबीर ने अपनी पत्नी का नाम छुपा लिया क्योंकि उसकी पत्नी ने ही उसके लिंग पर तेल से मसाज करी है ऐसा कहने में भी उसे शर्म लग रही थी.

उस डॉक्टर ने रणबीर को ढाँढस बंधाया और वो तेल उन्हें लाकर दिखाने को कहा ताकि वे उसको जांच सकें .

जब रणबीर ने वो तेल की शीशी डॉक्टर को लाकर दिखाई तो तेल का शुरुआती टेस्ट करते ही डॉक्टर चौक गए और उन्होंने रणबीर को जो बताया उसे सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई

“ये एक ऐसा तेल है जिसके पी एच का मान बहुत कम है  और इतने कम पी.एच. का कोई भी मलहम या तेल हमारी त्वचा को नुकसान पहुचा सकता है साथ ही इसमें कुछ हानिकारक केमिकल्स भी मिले हुए हैं  इतना ही नहीं बल्कि इसके निरन्तर इस्तेमाल से आप नपुंसक भी हो सकते हैं …… ”डॉक्टर ने कहा

“रूबी…..  तो मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती तो क्या रूबी के साथ किसी ने नकली तेल देकर फ्रॉड किया है ?” इसी सोचविचार में उलझा हुआ रणबीर घर आया तो उसने रूबी को फोन पर किसी से बात करते हुए पाया ,रुबी उस समय अजय सिंह से ही बात कर रही थी रणबीर को अचानक से घर आया देखकर वह हड़बड़ा सी गई और उसने फोन काट दिया .

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परेशान रणबीर सोफे पर पसर गया और रूबी से एक कप चाय बना लाने को कहा और खुद अपनी मर्ज की दवाई ढूंढने  के लिए इंटरनेट खंगालने लगा पर रणबीर का मोबाइल हैंग कर रहा था इसलिए उसने किचन में जाकर रूबी का मोबाइल मांगा तो रूबी के चेहरे का रंग ही उतर गया ,और रूबी ने मोबाइल देने में हिचकिचाहट भी दिखाई पर भारी मन से उसने अपना मोबाइल रणबीर को दे दिया उसकी ये परेशानी  रणबीर से भी छुपी नही रह सकी इसलिए मोबाइल को अपने हाथ में लेते ही रणबीर ने मोबाइल के हाल में डायल किये गए नम्बरों पर सरसरी नज़र डाली तो उसमें पिछले डायल किये गए को “फ्रेंड” नाम से सेव किया गया था .

उत्सुकतावश रणबीर ने मोबाइल के व्हाट्सएप्प पर “फ्रेंड” नाम की डीपी देखी तो वह एक युवक की तस्वीर थी .

“भला ये आदमी कौन  है जिसका नंबर रूबी के मोबाइल में  फ्रेंड नाम से सेव है?” ये सवाल बारबार रणबीर के मन में संदेह पैदा कर रहा था .

रणबीर ने घाटघाट का पानी पिया था उसे कुछ शक हुआ तो मोबाइल  काल की रिकॉर्डिंग सुनने लगा और “फ्रेंड” नाम के युवक से हुई कई कॉल की रिकॉर्डिंग रणबीर ने सुन डाली और उसे सारा माजरा समझते देर नहीं लगी ,उसकी नसों में बहता खून बारबार उसकी कनपटियों तक जोर मार रहा था उसका मन कर रहा था कि वो जाकर रूबी की गर्दन मरोड़ दे पर कुछ सोचकर उसने ऐसा नहीं किया,रणबीर ने शांत भाव से मोबाइल को टेबल पर रख दिया और अपनी आंखें बंद करके बैठ गया .

रूबी जब चाय लेकर आई तो उसने रणबीर को सोता हुआ देखा तो उसकी जान में  जान आई उसने झट से अपना मोबाइल अपने कब्जे में कर लिया.

एकदो दिनों तक रणबीर बहुत ही शांत रहा और अपने को खुश दिखाता रहा फिर एक दिन उसने रूबी से कहा,

“मैं काम के सिलसिले में दो दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ  ……इस बीच तुम अपना ध्यान रखना ”

“हाँ और आप भी दवाई खाते रहिएगा और ज्यादा तला भुना मत खाइएगा” रूबी ने विरह का गम अपने चेहरे पर लाते हुए कहा

रणबीर के आ जाने से कई दिनों तक रूबी और अजय सिंह मिल नहीं पा रहे थे अब आज रणबीर के जाने के बाद उन्हें जी भरकर जिस्म का सुख उठाने का मौका मिलने वाला था .

रूबी के फ़ोन करते ही अजय सिंह उसके घर आ गया और दोनो पूरी तरह से निर्वस्त्र होकर यौन सुख लेने लगे ,इन पूरे दो दिनों में अजय सिंह रूबी के घर में ही रहा .

दो दिन के बाद रणवीर का फोन आया कि वह शहर में आ चुका है और घर पहुचने वाला है ,अजय सिंह ये जानकर वहां से निकल लिया.

रणवीर मुस्कुराते हुए आया और रूबी ने उसके गले लगते हुए कहा कि वह उसके लिए चाय बनाकर लाती है ,चाय पीते समय रणबीर ने उसे बताया कि कल शाम को उसे गुजरात जाना है ,रूबी ने प्रत्यक्ष में तो हैरानी दिखाई पर मन ही मन वह रणबीर के जाने की बात सुनकर बहुत खुश हो रही थी .

अगले दिन रणबीर गुजरात के लिए निकल गया .

रणबीर के जाने के करीब एक हफ्ते बाद उसे उसे एक पत्र मिला जिसे पढ़कर रूबी बुरी तरह चौंक गई .

“मैं तुम्हारे और तुम्हारे उस “फ्रेंड” के संबंधों के  बारे में सब कुछ जान चुका हूँ ,मैंने तुम्हें बहुत प्यार किया पर तुमसे बेवफाई ही मिली…. अब मेरे पास तुम्हे तलाक देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है , दो दिन के लिए बाहर जाने का बहाना करके मैने तुम्हारे बेडरूम में कैमरा लगाकर तुम्हारी हकीकत जान ली है  मेरे पास  गैर मर्द के साथ तुम्हारी संभोगरत वीडियो भी  है जिसको मैने सोशल मीडिया में वायरल कर दिया है जल्दी ही तुम पूरे शहर में फेमस हो जाओगी …..और अब तुम अपने प्रेमी के पास चली जाना क्योंकि मैंने ये मकान भी  बेच दिया है ”

सन्नाटे में  आ गयी थी रूबी. बदहवास हालत में रूबी अस्पताल जाकर अजय सिंह से मिलने पहुची पर वहां जाकर उसे पता चला कि उन दोनों का अश्लील वीडियो सोशल मीडिया के द्वारा शहर में वायरल हो चुका है और बदनामी के डर डॉक्टर साहब ने उसे नौकरी से निकाल दिया है  परेशान होकर रूबी ने अजय सिंह को फोन लगाया “ तूने मेरी ही सेक्स की वीडियो बनाकर पूरे शहर में मेरी बदनामी करवा दी है ….और इसके कारण मुझे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ गया है ”चीख रहा था अजय सिंह “मेरी बीवी बच्चों  को भी मेरे नाज़ायज़ संबंधों के बारे में पता चला गया है और इन सबकी ज़िम्मेदार सिर्फ तुम हो …पर इतनी ज़िल्लत के साथ मेरा जी पाना बहुत मुश्किल है इसलिए मैं ये दुनिया ही छोड़कर जा रहा हूँ  ”ये कहकर फोन कट गया था .

आतेजाते लोग रूबी को रोते हुए देख रहे थे ,युवा लड़के और पान की दुकानों पर खड़े पुरुष कभी मोबाइल की स्क्रीन पर देखते तो कभी रूबी के चेहरे की तरफ .

रूबी को उसकी बेवफाई की सज़ा मिल गयी थी.

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तेजतर्रार तिजोरी: क्या था रघुवीर का राज

crime story in hindi

कुंआ ठाकुर का: क्या कभी बच पाई झुमकी

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“तुम्हारे कष्टों का हल तब ही मिलेगा, जब तुम हमारे साथ भाग कर शहर चलोगी, वरना रोज़ रात की यही कहानी रहेगी तुम्हारे साथ,” कलुआ ने झुमकी को बांहों में लेते कहा.

“हां रे, मन तो हमारा भी यही कहता है कि अब हम वापस घर न जाएं लेकिन अगर न गए तो हमारा बाप हमारी मां को भूखा मार डालेगा,” झुमकी ने एक सर्द आह भरते हुए कहा.

“तेरा बाप, छी, मुझे तो घिन आती है तेरे बाप के नाम से. भला कोई बाप अपनी बीवी और बेटी से ऐसा काम भी करा सकता है? वह कम्बख्त मर जाए तो ही अच्छा है,” कलुआ ने गुस्से से कहा.

“ऐसा मत कहो. वह मेरा बाप है. मेरी मां उसी के नाम का सिंदूर लगाती है. और तुम क्या समझते हो, अगर अम्मा या मैं ने उस की बात मानने से इनकार किया तो, पहले तो वह गालीगलौच करता है और फिर कहता है कि हम लोग ने नीच जाति वाले घर में पैदा हो कर गलती कर दी है और अब ये सब करना तो हमारे करम में लिखा है. हम जब तक जिंदा रहेंगे तब तक हमें ये ही सब करना पड़ेगा,” सिसक उठी थी झुमकी.

झुमकी के बदन पर नोचनेखसोटने के निशान बने हुए थे. उन्हें प्यार से सहलाते हुए कलुआ  बोला, “हां, हम तुम्हारी इतनी मदद कर सकते हैं कि तुम्हें यहां  से खूब दूर अपने साथ शहर ले जाएं और वहां हम दोनों मजदूरी कर के अपना पेट पालें. तभी तुम इस नरक से मुक्ति पा सकती हो,” झुमकी को बांहों में समेट लिया  था कलुआ ने.

झुमकी की उम्र 20 बरस थी. छरहरी काया, पतली नाक और चेहरे का रंग ऐसा जैसे कि तांबा और सोना आपस में  घोल कर उस के चेहरे पर लगा दिया गया हो.

झुमकी के बाप को शराब की लत लग गई थी. गांव के पंडित और ठाकुर उसे शराब पिलाते और  बदले में वह अपनी पत्नी को इन लोगों का बिस्तर गरम करने के लिए भेज देता. दिनभर दूसरों के खेत और अपने घर के चूल्हेचौके में जान खपाने के बाद जब झुमकी की मां ज़रा आराम करने जा रही होती, तभी नशे में धुत हो कर झुमकी का बाप आता और झुमकी की अम्मा  को इन रसूखदार लोगों के यहां जाने को कहता. विरोध करने पर उन्हें उन की नीची जाति का हवाला देता और कहता कि ऐसा करना तो उन के समय में ही लिखा है. इसलिए उन्हें ये सब तो करना ही पड़ेगा. झुमकी की अम्मा समझ जाती कि उस की इज़्ज़त को तो पहले ही शराब पी कर  बेच आया है, इसलिए मन मार कर उन लोगों के बिस्तर पर रौंदी जाने के लिए चली जाती.

झुमकी जैसे ही 13 साल की हुई, तो ठाकुर ने तुरंत ही अपनी गिद्ध दृष्टि उस पर जमा दी और झुमकी के बाप से मांग करी कि आज के बाद वह अपनी पत्नी को नहीं, बल्कि झुमकी को उस के पास भेजा करेगा  और झुमकी को खुद ठाकुर के पास पहुंचा कर आया था झुमकी का बाप.

एक बार ऐसा हुआ, तो फिर तो मानो यह चलन हो गया. जब भी ठाकुरबाम्हन लोगों का मन होता, बुलवा भेजते झुमकी को और रातरातभर रौंदते उस के नाज़ुक जिस्म को.

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वह तो उस दिन झुमकी ने गांव की नदी में डूब कर आत्महत्या ही कर ली   होती, अगर उस मल्लाह के लड़के कलुआ ने उसे सही समय पर बचाया न होता. कलुआ ने जान बचाने के बाद जब जरा डांट और जरा पुचकार से झुमकी से ऐसा करने का कारण पूछा तो कलुआ के प्यार के आगे उस की आंसू की धारा बह निकली और रोरो कर  सब बता दिया कलुआ को.

“हम नीच जात के हैं, तो भला इस में हमारा का दोष है. और अगर वे लोग बाम्हन और ठाकुर हैं तो वे हमारे साथ जो चाहे, कर सकते हैं का?” झुमकी के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कलुआ के पास.

झुमकी को कलुआ से थोड़ा  स्नेह मिला और इस स्नेह में उसे वासना के कीड़े नहीं दिखाई दिए. तो, मन ही मन वह उसे अपना सबकुछ मान बैठी थी. कलुआ भी तो झुमकी पर ही जान न्योछावर किए रहता था. पर उसे ऐसे झुमकी का बाह्मन और ठाकुर द्वारा शोषण किया जाना पसंद नहीं था और इसीलिए वह शहर जाने की ज़िद करता था पर हर बार झुमकी अपनी मां की दुहाई दे कर बात टाल जाती थी.

लेकिन, कल जब झुमकी दालान में बैठी अपने शरीर पर रात में आई खरोंचों पर कड़वा तेल का लेप लगा रही थी, तभी झुमकी की अम्मा आई और बोली, “बिटिया, हम तुम को जने हैं, इसलिए तुम्हारा दर्द सब से अच्छी तरह जानते हैं. और यह भी जानते हैं कि वह कलुआ तुम्हें पसंद करता है. तुम अगर यहां गांव में ही रह गई, तो इसी तरह  पिसती रहोगी. शायद, नीच जाति में पैदा होना ही हमारा कुसूर बन गया है. पर अगर सच में ही जीना चाहती तो यहां से कहीं और भाग जाओ और हमारी  चिंता मत करो. हम तो बस काट ही लेंगे अपना जीवन. पर तुम्हारे सामने अभी पूरा जीवन है, तू यहां रह गई तो ये मांस के भेड़िए तुझे रोज़ रात में नोचेंगे. इसलिए चली जा यहां से, चली जा…”

अभी  झुमकी की मां उसे समझा ही रही थी कि झुमकी का बाप अंदर आ गया. उस ने सारी बातें सुन ली थीं, बोला, “हां, झुमकी ज़रूर जाएगी पर कलुआ के साथ नहीं, बल्कि संजय कुमार के साथ. मैं ने  इस की शादी संजय कुमार के साथ तय कर दी है. चल री झुमकी, जल्दी तैयार हो जा. तेरा दूल्हा  बाहर बैठा हुआ है.”

यह कैसी  शादी थी, न बरात, न धूम, न नाच, न गाना.

झुमकी और उस की मां समझ गई थीं कि झुमकी का सौदा कर डाला गया है. पर झुमकी के लिए आगे कुंआ और पीछे खाई जैसी हालत थी. फिर भी उस के मन में एक दूल्हे के नाम से यह उम्म्मीद जगी कि यहां रोज़रोज़ इज़्ज़त नीलाम होने से तो कुछ सही ही रहेगा कि किसी एक मर्द से बंध कर रहे.

और इसी उम्मीद में झुमकी उस आदमी के साथ चली गई. जाते समय झुमकी का मन तो भारी  था पर इतनी खुशी ज़रूर थी कि उसे बेचने के बदले में उस के पिता को जो पैसे मिल जाएंगे उन के बदले वह कुछ दिन आराम से शराब पी सकेगा.

और इस तरह बिहार के एक गांव से चल कर झुमकी उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में पहुंच गई.

“यह रहा हमारा कमरा,” संजय ने एक छोटे से कमरे में घुसते हुए कहा.

उस कमरे में कोई भी बिस्तर नहीं था, सिर्फ एक गद्दे पर चादर डाल कर उसे लेटने की जगह में तबदील कर दिया गया था. और इस समय उस गददे पर  2 आदमी बैठे हुए झुमकी को फाड़खाने की नज़रों से देख रहे थे.

“अरे, इन से शरमाने की ज़रूरत नहीं है. ये दोनों हमारे बड़े भाई हैं- विजय भैया और मनोज भैया. हम लोग  मजदूरी करते हैं और ये दोनों भी हमारे साथ इसी कमरे में रहते हैं. और एक बात बता  दें तुम्हें कि तुम्हें हमारे साथसाथ इन का भी ध्यान रखना होगा,” संजय कुमार ने ज़मीन पर बैठते हुए कहा.

“हम भाइयों ने दिन बांट रखे हैं. हफ्ते के पहले 2 दिन तुम को बड़े भैया के साथ सोना होगा और उसके बाद के 2 दिन तुम  मझले भैया के साथ सोओगी और मैं सब से छोटा हूं, इसलिए सब से बाद में मेरा नंबर आएगा.  तुम को शर्म न आए, इस के लिए हम बीच में एक परदा डाल लेंगे,” संजय ने बड़ी सहजता से ये सारी बातें कह डाली थीं.

“क….क्या मतलब,” चौंक उठी थी झुमकी.

“यही कि हम 3 भाई हैं और हमारे आगेपीछे माईबाप कोई नहीं हैं जो हम लोगों का ब्याह करवा सके  और न ही हम लोगों के पास इतना पैसा है कि हम लोग अलगअलग रहें और अपने लिए अलगअलग बीवी रख सकें. इसीलिए हम ने 3 भाइयों के बीच में एक ही बीवी खरीद कर रखने का प्लान  बनाया.”

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संजय कुमार की बात सुन कर जब झुमकी ने 3 पतियों की बीवी बनने से इनकार किया

तो तीनों ने उस के पिता को पूरे पैसे देने की बात कह कर बारीबारी से झुमकी के साथ मुंह काला किया और बाद में तृप्त हो कर गहरी नींद में सो गए और जब वे तीनों  आधी रात के बाद नींद की आगोश में थे, तब झुमकी दबेपांव वहां से भाग निकली और ढूंढतेढांढते पुलिस स्टेशन पहुंची और थानेदार को पूरी कहानी बताई.

“अरे, तो इस में बुराई ही क्या थी. और फिर, तुम्हें तो गांव में भी ऊंची जाति के लोगों के साथ सोने की आदत थी ही. यहां भी तीनों को खुश कर के रहतीं, तो वे सब रानी बना कर रख़ते. तुम छोटी जाति वालों के साथ यही समस्या है कि ज़रा सी बात में ही शोर मचाने लगते हो. अब रात के 3 बजे तू यहां आई है और मैं ने तेरी रिपोर्ट  भी लिख ली है. अब अगर बदले में तू मुझे थोड़ा खुश कर देगी, तो तेरा कुछ घिस थोड़े ही जाएगा,” यह कह कर थानेदार ने मेज़ पर ही झुमकी को लिटा दिया और उस का बलात्कार कर डाला.

रोती रही झुमकी. आज उसे कलुआ बहुत याद आ रहा था. उस ने एक नज़र थानेदार पर डाली

जो अपनी शर्ट और पैंट को संभालने की कोशिश कर रहा था.

सुबह हो रही थी. झुमकी भारी मन से उठी और बाहर निकल गई. कमज़ोरी, थकान और अपने ऊपर हुए जुल्मों के कारण उस से चला भी न जा रहा था. झुमकी किसी तरह सड़क तक पहुंची और सड़क पर ही गिर कर बेहोश हो गई.

झुमकी को होश आया, तो उस ने अपनेआप को बिस्तर पर पाया और उस की आंखों के सामने एक युवक खड़ा मुसकरा रहा था.

युवक की आंखों पर हलके लैंस का चश्मा और चेहरे पर घनी दाढ़ी थी.

“घबराओ नहीं, तुम सुरक्षित जगह हो. तुम सड़क पर बेहोश हो गई थीं. संयोग से मैं वहीं से गुज़र रहा था. तुम्हें देखा, तो यहां ले आया.” वह युवक इतना बोल कर चुप हो गया.

झुमकी अब भी उस को प्रश्नवाचक नज़रों से देख रही थी.

“मैं एक समाजसेवक हूं. मेरा नाम मलय है  और तुम जैसे गरीब व पिछड़े लोगों की मदद करना ही मेरा काम है. थोड़ा आराम कर लो और फिर मैं तुम से पूछूंगा कि तुम्हारी यह हालत किस ने कर दी है.”

वह मुसकराता हुआ वहां से चला गया और झुमकी की देखभाल के लिए एक नर्स वहां आ गई. कुछ घंटों बाद जब मलय वहां आया तो झुमकी अपनेआपको तरोताज़ा महसूस कर रही थी और पहली बार उसे ऐसा लग रहा था कि वह सुरक्षित हाथों में है.

झुमकी ने अपने साथ बीती हुई सारी बातें मलय को बता दीं. सुन कर मलय काफी दुखी हुआ और उस को न्याय दिलाने का वादा किया.

झुमकी की सेहत भी अब ठीक हो रही थी और अब भी वह मलय के सर्वेंटरूम में ही रह रही थी.

एक रात को 10 बजे मलय उस सर्वेंटरूम में आया. वह अपने साथ एक बाम ले कर आया था.

“मेरे सिर में बहुत दर्द है, ज़रा बाम तो लगा दो झुमकी, ” मलय ने झुमकी के बिस्तर पर लेटे हुए कहा.

झुमकी बाम लगाने लगी मलय के माथे पर. मलय उसे लगातार घूरे जा रहा था. अचानक कुछ अच्छा नहीं लगा  झुमकी को.

“मैं सोच रहा हूं कि भले ही तुम नीच जाति की हो, तुम्हारे साथ इतने लोगों ने बलात्कार किया, तो ज़रूर तुम में कोई कशिश रही होगी और मुझे लगता है कि उन्होंने कोई गलती नहीं करी,” कह कर मलय चुप हो गया.

झुमकी ने बाम लगाना बंद कर दिया और दूर जाने लगी.

तभी पीछे से उस ने अपनी पीठ पर मलय का हाथ महसूस किया. वह कुछ बोल पाती, इस से पहले ही मलय ने झुमकी को पकड़ कर बिस्तर पर गिरा दिया और उस का बलात्कार कर दिया.

झुमकी एक बार फिर उस नरक के अनुभव से गुज़र रही थी. लेकिन इस बार वह सहेगी नहीं,

वह बदला लेगी. पर कैसे?

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गुस्से में झुमकी ने कोने में पड़ा हुआ एक छोटा सा चाकू उठाया और पूरी ताकत से मलय पर वार कर दिया. मलय के हाथ पर हलाकि सी खरोंच आई. मलय नशे में तो था ही, खरोंच लगने से उसे और क्रोध आ गया और उस ने अपने दोनों हाथ झुमकी के गरदन पर कस दिए और अपना दबाव बढ़ाता गया. एक समाजसेवक  बलात्कारी के साथसाथ खूनी भी बन गया था.

और झुमकी, जो एक गांव में जन्म ले कर शहर तक आई, पिता से ले कर उस के जीवन में जो भी आया उसे झुमकी में सिर्फ वासनापूर्ति का साधन दिखाई दिया. यह उस के एक औरत होने की सज़ा थी या एक गरीब होने की या एक दलित महिला होने की एक प्रश्नचिन्ह अब भी बाकी है???

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तेजतर्रार तिजोरी: भाग 5- क्या था रघुवीर का राज

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

‘‘डाक्टर साहब, क्या मैं सुनील से मिल सकती हूं?’’

‘‘हां, ड्रैसिंग कंप्लीट कर के नर्स बाहर आ जाए तो तुम अकेली जा सकती हो. मरीज के पास अभी ज्यादा लोगों का होना ठीक नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

नर्स के बाहर आते ही तिजोरी लपक कर अंदर पहुंची. सुनील की चोट वाली आंख की ड्रैसिंग के बाद पट्टी से ढक दिया गया था, दूसरी आंख खुली थी.

तिजोरी सुनील के पास पहुंची. उस ने अपनी दोनों हथेलियों में बहुत हौले से सुनील का चेहरा लिया और बोली, ‘‘बहुत तकलीफ हो रही है न. सारा कुसूर मेरा है. न मैं तुम्हें गुल्लीडंडा खिलाने ले जाती और न तुम्हें चोट लगती.’’

तिजोरी को उदास देख कर सुनील अपने गालों पर रखे उस के हाथ पर अपनी हथेलियां रखता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है तिजोरी, मैं ही उस समय असावधान था. तुम्हारे बारे में सोचने लगा था… इतने अच्छे स्वभाव की लड़की मैं ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी,’’ कहतेकहते सुनील चुप हो गया.

तिजोरी समझ गई और बोली, ‘‘चुप क्यों हो गए… मन में आई हुई बात कह देनी चाहिए… बोलो न?’’

‘‘लेकिन, न जाने क्यों मुझे डर लग रहा है. मेरी बात सुन कर कहीं तुम नाराज न हो जाओ.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं होती. मुझे कोई बात बुरी लगती है, तो तुरंत कह देती हूं. तुम बताओ कि क्या कहना चाह रहे हो.’’

‘‘दरअसल, मैं ही तुम को चाहने लगा हूं और चाहता हूं कि तुम से ही शादी करूं.’’

तिजोरी ने सुनील के गालों से अपने हाथ हटा लिए और उठ कर खड़े होते हुए बोली, ‘‘मुझ से शादी करने के लिए अभी तुम्हें 2 साल और इंतजार करना होगा. ठीक होने के बाद तुम्हें मेरे पिताजी से मिलना होगा.’’

इतना कह कर तिजोरी बाहर चली आई. श्रीकांत और महेश तो वहां इंतजार कर ही रहे थे, लेकिन अपने पिता को उन के पास देख कर वह चौंक पड़ी. उन के पास पहुंच कर वह सीने से लिपट पड़ी, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘मेरे खेतों में कोई घटना घटे, और मुझे पता न चले, ऐसा कभी हुआ है? मैं तो बस उस लड़के को देखने चला आया और अंदर भी आ रहा था, पर तुम दोनों की बातें सुन कर रुक गया. अब तू यह बता कि तू क्या चाहती है?’’

‘‘मैं ने तो उस से कह दिया है कि…’’ तिजोरी अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी कि रघुवीर यादव ने बात पूरी की…  ‘‘2 साल और इंतजार करना होगा.’’

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अपने पिता के मुंह से अपने ही कहे शब्द सुन कर तिजोरी के चेहरे पर शर्म के भाव उमड़ आए और उस ने अपने पिता की चौड़ी छाती में अपना चेहरा छिपा लिया.

रघुवीर यादव अपनी बेटी की पीठ थपथपाने के बाद उस के बालों पर हाथ फेरने लगे. उन्होंने अपनी जेब से 10,000 रुपए निकाल कर श्रीकांत को दिए और बोले, ‘‘बेटा, यह सुनील के इलाज के लिए रख लो. कम पड़ें तो खेत में काम कर रहे किसी मजदूर से कह देना. खबर मिलते ही मैं और रुपए पहुंचा दूंगा,’’ इतना कह कर वे तिजोरी और महेश को ले कर घर की तरफ बढ़ गए.

अगले दिन तिजोरी अपने भाई महेश के साथ रोज की तरह खेत पर गई. आज उस का मन खेत पर नहीं लग रहा था. पानी पीने के लिए वह गोदाम की तरफ गई, तो उस ने किनारे जा कर बिजली महकमे के स्टोर की तरफ झांका.

तभी सामने वाली सड़क पर एक मोटरसाइकिल रुकी. उस पर बैठा लड़का सिर पर गमछा लपेटे और आंखों में चश्मा लगाए था. तिजोरी को देखते ही उस ने मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे ही हाथ हिलाया, पर तिजोरी ने कोई जवाब नहीं दिया. वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगी, पर दूरी होने के चलते पहचान न सकी.

तभी जब स्टोर में काम करते श्रीकांत की नजर तिजोरी पर पड़ी, तो श्रीकांत उसे वहां खड़ा देख उस के करीब चल कर जैसे ही आया, वह बाइक सवार अपनी बाइक स्टार्ट कर के चला गया.

तिजोरी के करीब आ कर श्रीकांत बोला, ‘‘हैलो तिजोरी, कैसी हो?’’

उस बाइक सवार को ले कर तिजोरी अपने दिमाग पर जोर देते हुए उसे पहचानने की कोशिश रही थी, लेकिन श्रीकांत की आवाज सुन कर वहां से ध्यान हटाती हुई बोली, ‘‘मैं ठीक हूं. यहां से खाली हो कर तुम्हारे बौस को देखने अस्पताल जाऊंगी. वैसे, कैसी तबीयत है उन की?’’

‘‘आज शाम तक उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. डाक्टर का कहना है कि चूंकि आंख के बाहर का घाव है, इसलिए वे एक आंख पर पट्टी बांधे काम कर सकते हैं. मैं शाम को उन्हें ले कर सरकारी गैस्ट हाउस में आ जाऊंगा.’’

‘‘लेकिन, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जब वे पूरी तरह से ठीक हो जाएं, तब काम करना शुरू करें?’’

‘‘चोट गंभीर होती तो वैसे भी वे काम नहीं कर पाते, पर जब डाक्टर कह रहा है कि चिंता की कोई बात नहीं, तो दौड़भाग का काम मैं देख लूंगा और इस स्टोर को वे संभाल लेंगे. फिर हमें समय से ही काम पूरा कर के देना है, तभी अगला कौंट्रैक्ट मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे कल भी खेत पर आना ही है. यहीं पर कल उस से मिल लूंगी. तुम्हें अगर प्यास लग रही हो, तो मैं फ्रिज से पानी की बोतलें निकाल कर देती जाऊं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. कल मिलूंगी,’’ कह कर तिजोरी उस खेत की तरफ चली गई, जहां बालियों से गेहूं और भूसा अलग कर के बोरियों में भरा जा रहा था.

अगले दिन पिताजी के हिसाबकिताब का बराबर मिलान करने के चलते तिजोरी को देर होने लगी. जैसे ही हिसाब मिला, तो वह उसे फेयर कर के लिखने का काम महेश को सौंप कर अकेले ही खेत की तरफ आ गई.

चूंकि तिजोरी तेज चलती हुई आई थी और उसे प्यास भी लग रही थी, इसलिए उस ने सोचा कि पहले गोदाम में जा कर घड़े से पानी पी ले और फिर सुनील का हालचाल लेने चली जाएगी.

तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ताले खोले और अंदर घुस कर घड़े की तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक शटर गिरने की आवाज सुन कर वह पलटी. कल जो बाइक पर सवार लड़का था, उसे वह पहचान गई, फिर उस के बढ़ते कदमों के साथ इरादे भांपते हुए वह बोली, ‘‘ओह तो तुम शंभू हो… मुझे लग रहा है कि उस दिन मैं ने तुम्हारी नीयत को सही पहचान लिया था… लगता है, उसी दिन से तुम मेरी फिराक में हो.’’

‘‘ऐसा है तिजोरी, शंभू जिसे चाहता है, उसे अपना बना कर ही रहता है. उस दिन तो मैं तुम्हें देखते ही पागल हो गया था. आज मौका मिल ही गया. अब तुम्हारे सामने 2 ही रास्ते हैं… या तो सीधी तरह मेरी बांहों में आ जाओ, नहीं तो…’’ कह कर वे उसे पकड़ने के लिए लपका.

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तिजोरी ने गोदाम के ऊपर बने रोशनदानों की ओर देखा और ऊपर मुंह कर के पूरी ताकत से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

तिजोरी को चिल्लाता देख शंभू तकरीबन छलांग लगाता उस तक पहुंच गया. तिजोरी की एक बांह उस की हथेली में आई, लेकिन तिजोरी सावधान थी, इसलिए पकड़ मजबूत होने से पहले उस ने अपने को छुड़ा कर शटर की तरफ ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाते हुए दौड़ लगानी चाही, पर इस बार शंभू ने उसे तकरीबन जकड़ लिया.

तभी शटर के तेजी से उठने की आवाज आई. जैसे ही शंभू का ध्यान शटर खुलने पर एक आंख में पट्टी बांधे इनसान की तरफ गया, तिजोरी ने उस की नाक पर एक झन्नाटेदार घूंसा जड़ दिया. और जब तक शंभू संभलता, सुनील ने उसे फिर संभाल लिया.

तेजतर्रार तिजोरी: भाग 4- क्या था रघुवीर का राज

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ताले खोले और अंदर घुस कर घड़े की तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक शटर गिरने की आवाज सुन कर वह पलटी. कल जो बाइक पर सवार लड़का था, उसे वह पहचान गई, फिर उस के बढ़ते कदमों के साथ इरादे भांपते हुए वह बोली, ‘‘ओह तो तुम शंभू हो. मुझे लग रहा है कि उस दिन मैं ने तुम्हारी नीयत को सही पहचान लिया था… लगता है, उसी दिन से तुम मेरी फिराक में हो.’’

‘‘ऐसा है तिजोरी, शंभू जिसे चाहता है, उसे अपना बना कर ही रहता है. उस दिन तो मैं तुम्हें देखते ही पागल हो गया था. आज मौका मिल ही गया. अब तुम्हारे सामने 2 ही रास्ते हैं… या तो सीधी तरह मेरी बांहों में आ जाओ, नहीं तो…’’ कह कर वे उसे पकड़ने के लिए लपका.

तिजोरी ने गोदाम के ऊपर बने रोशनदानों की ओर देखा और ऊपर मुंह कर के पूरी ताकत से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

तिजोरी को चिल्लाता देख शंभू तकरीबन छलांग लगाता उस तक पहुंच गया. तिजोरी की एक बांह उस की हथेली में आई, लेकिन तिजोरी सावधान थी, इसलिए पकड़ मजबूत होने से पहले उस ने अपने को छुड़ा कर शटर की तरफ ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाते हुए दौड़ लगानी चाही, पर इस बार शंभू ने उसे तकरीबन जकड़ लिया.

तभी शटर के तेजी से उठने की आवाज आई. जैसे ही शंभू का ध्यान शटर खुलने पर एक आंख में पट्टी बांधे इनसान की तरफ गया, तिजोरी ने उस की नाक पर एक झन्नाटेदार घूंसा जड़ दिया. और जब तक शंभू संभलता, सुनील ने उसे फिर संभलने का मौका नहीं दिया. अपनी आंख की चोट की परवाह न करते हुए उस ने अपने घूंसों की जोरदार चोटों से उस का जबड़ा तोड़ डाला.

तभी हालात की गंभीरता को देखते हुए श्रीकांत के भी आ जाने से शंभू ने भाग जाना चाहा, पर शटर के बाहर खेतिहर मजदूरों की भीड़ के साथ रघुवीर यादव को खड़ा देख कर सुनील की पीठ से चिपकी तिजोरी अपने पिता की तरफ दौड़ पड़ी.

उस को सांत्वना देते हुए रघुवीर यादव बोले, ‘‘2 साल तू इंतजार करने को राजी है, तो मैं इतना तो कर ही सकता हूं कि तेरी शादी सुनील से पक्की कर दूं…’’

उन्होंने सुनील को अपने पास बुला कर उसे भी अपने सीने से लगा लिया.

खेतिहर मजदूर शंभू को पकड़ कर कहीं दूर ले जा रहे थे.

पानी की बोतलें ले कर तिजोरी के बारे में ही सोचते हुए जब सुनील श्रीकांत के पास पहुंचा, तब तक हाथों में डंडा लिए और गुल्ली  को रखते हुए तिजोरी भी वहां पहुंच गई. वहां एक के ऊपर एक 9 खंभों की ऊंचाई की कुल 19 लाइनें थीं.

हाथ में लिए डंडे से तिजोरी ने ऊंचाई पर रखे खंभों को गिना, फिर चौड़ाई की लाइनों को गिन कर मन ही मन 19 को 9 से गुणा कर के बता दिया… कुल खंभे 171 हैं.

सुनील ने रजिस्टर से मिलान किया. स्टौक रजिस्टर भी अब तक आए खंभों की तादाद इतनी ही दिखा रहा था.

सुनील और श्रीकांत हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताकने लगे, तभी तिजोरी सुनील से बोली, ‘‘चल रहे हो गुल्लीडंडा खेलने?’’

अपने भरोसेमंद शादीशुदा असिस्टैंट श्रीकांत को जरूरी निर्देश दे कर सुनील तिजोरी के पीछेपीछे उस खाली खेत तक आ गया, जहां महेश बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.

सुनील को देख कर महेश भी पहचान गया. महेश के पास पहुंच कर तिजोरी बोली, ‘‘तुझे अगर प्यास लगी है, तो यह ले चाबी और गोदाम का शटर खोल कर पानी पी कर आ जा, फिर हम तीनों गुल्लीडंडा खेलेंगे.’’

‘‘नहीं, मुझे अभी प्यास नहीं लगी है. चलो, खेलते हैं. मैं ने यह छोटा सा गड्ढा खोद कर अंडाकार गुच्ची बना दी है, लेकिन पहला नंबर मेरा रहेगा.’’

‘‘ठीक है, तू ही शुरू कर,’’ तिजोरी बोली. फिर उस ने गुच्ची से कोई  5 मीटर की दूरी पर खड़े हो कर सुनील को समझाया, ‘‘महेश उस गुच्ची के ऊपर गुल्ली रख कर फिर उस के नीचे डंडा फंसा कर हमारी तरफ उछालेगा.

‘‘उस की कोशिश यही रहेगी कि हम से ज्यादा से ज्यादा दूर तक गुल्ली जाए और उसे कैच कर के भी न पकड़ा जा सके. तुम एक बार ट्रायल देख लो. महेश गुल्ली उछालेगा और मैं उसे कैच करने की कोशिश करूंगी.’’

फिर तिजोरी महेश के सामने 5 मीटर की दूरी पर खड़ी हो गई. महेश ने गुच्ची के ऊपर रखी गुल्ली तिजोरी के सिर के ऊपर से उछाल कर दूर फेंकना चाही, पर कैच पकड़ने में माहिर तिजोरी ने अपनी जगह पर खड़ेखड़े अपने सिर के ऊपर से जाती हुई गुल्ली को उछल कर ऐसा कैच पकड़ा, जो उतना आसान नहीं था.

कैच पकड़ने के साथ ही तिजोरी चिल्लाई, ‘‘आउट…’’

लेकिन साइड में खड़े सुनील की नजरें तो तिजोरी के उछलने, फिर नीचे जमीन तक पहुंचने के बीच फ्रौक के घेर के हवा द्वारा ऊपर उठ जाने के चलते नीचे पहनी कच्छी की तरफ चली गई थी. साथ ही, उस के उभारों के उछाल ने भी सुनील को पागल कर दिया.

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लेकिन तिजोरी इन सब बातों से अनजान सुनील से बोली, ‘‘अब खेल शुरू. इस बार मेरी जगह पर खड़े हो कर तुम्हें गुल्ली को अपने से दूर जाने से बचाना है. मैं तुम से एक मीटर पीछे खड़ी होऊंगी, ताकि तुम से गुल्ली न पकड़ी जा सके तो मैं पकड़ कर महेश को आउट कर सकूं और तुम्हारा नंबर आ जाए… ठीक?’’

सुनील अपनी सांसों और तेजी से धड़कने लग गए दिल को काबू करता हुआ सामने खड़ा हो गया. उस की नजरों से तिजोरी के हवा में उछलने वाला सीन हट नहीं पा रहा था. उस पर अजीब सी हवस सवार होने लगी थी.

तभी तिजोरी पीछे से चिल्लाई, ‘‘स्टार्ट.’’

आवाज सुनते ही महेश ने गुल्ली उछाली और चूंकि सुनील का ध्यान कहीं और था, इसलिए अपनी तरफ उछल कर आती गुल्ली से जब तक वह खुद को बचाता, गुल्ली आ कर सीधी उस की दाईं आंख पर जोर से टकराई.

सुनील उस आंख पर हाथ रखता हुआ जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय, मेरी आंख गई,’’ कह कर वह खेत की मिट्टी में गिरने लगा, तो पीछे खड़ी तिजोरी ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया और उस का सिर अपनी गोद में ले कर वहीं खेत में बैठ गई.

तिजोरी ने गौर किया कि सुनील की आंख के पास से खून तेजी से बह रहा है. आसपास काम करते मजदूर भी वहां आ गए. उन में से एक मजदूर बोल पड़ा, ‘‘कहीं आंख की पुतली में तो चोट नहीं लगी है? तिजोरी बिटिया, इसे तुरंत आंखों के अस्पताल ले जाओ.’’

सुनील की आंखों से खून लगातार बह रहा था. कुछ देर चीखने के बाद सुनील एकदम सा निढ़ाल हो गया. उसे यह सुकून था कि इस समय उस का सिर तिजोरी की गोद में था और उस की एक हथेली उस के बालों को सहला रही थी.

तिजोरी ने महेश को श्रीकांत के पास यह सूचना देने के लिए भेजा और एक ट्रैक्टर चलाने वाले मजदूर को आदेश दे कर खेत में खड़े ट्रैक्टर में ट्रौली लगवा कर उस में पुआल का गद्दा बिछवा कर सुनील को ले कर अस्पताल आ गई.

यह अच्छी बात थी कि उस गांव में आंखों का अस्पताल था, जिस में एक अनुभवी डाक्टर तैनात था. तिजोरी की मां के मोतियाबिंद का आपरेशन उसी डाक्टर ने किया था.

तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और डाक्टर से आंख में चोट लगने की वजह बताते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, इस की आंख को कुछ हो गया, तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

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‘‘तू चिंता न कर. मुझे चैक तो करने दे,’’ कह कर डाक्टर ने स्टै्रचर पर लेटे सुनील को अपने जांच कमरे में ले कर नर्स से दरवाजा बंद करने को कह दिया.

तिजोरी घबरा तो नहीं रही थी, पर लगातार वह अपने दिल में सुनील की आंख में गंभीर चोट न निकलने की दुआ कर रही थी. महेश के साथ श्रीकांत भी वहां पहुंच गया था.

अस्पताल के गलियारे में इधर से उधर टहलते हुए तिजोरी लगातार वहां लगी बड़े अक्षरों वाली घड़ी को देखे जा रही थी. तकरीबन 50 मिनट के बाद डाक्टर ने बाहर आ कर बताया, ‘‘बेटी, बड़ी गनीमत रही कि गुल्ली भोंहों के ऊपर लगी. थोड़ी सी भी नीचे लगी होती, तो आंख की रोशनी जा सकती थी.’’

आगे पढ़ें- तिजोरी को उदास देख कर सुनील …

तेजतर्रार तिजोरी: भाग 3- क्या था रघुवीर का राज

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

सुनील उस आंख पर हाथ रखता हुआ जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय, मेरी आंख गई,’’ कह कर वह खेत की मिट्टी में गिरने लगा, तो पीछे खड़ी तिजोरी ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया और उस का सिर अपनी गोद में ले कर वहीं खेत में बैठ गई.

तिजोरी ने गौर किया कि सुनील की आंख के पास से खून तेजी से बह रहा है. आसपास काम करते मजदूर भी वहां आ गए. उन में से एक मजदूर बोल पड़ा, ‘‘कहीं आंख की पुतली में तो चोट नहीं लगी है? तिजोरी बिटिया, इसे तुरंत आंखों के अस्पताल ले जाओ.’’

सुनील की आंखों से खून लगातार बहा जा रहा था. कुछ देर चीखने के बाद सुनील एकदम सा निढाल हो गया. उसे यह सुकून था कि इस समय उस का सिर तिजोरी की गोद में था और उस की एक हथेली उस के बालों को सहला रही थी.

तिजोरी ने महेश को श्रीकांत के पास यह सूचना देने के लिए भेजा और एक ट्रैक्टर चलाने वाले मजदूर को आदेश दे कर खेत में खड़े ट्रैक्टर में ट्रौली लगवा कर उस में पुआल का गद्दा बिछवा कर सुनील को ले कर अस्पताल आ गई.

यह अच्छी बात थी कि उस गांव में आंखों का अस्पताल था, जिस में एक अनुभवी डाक्टर तैनात था. तिजोरी की मां के मोतियाबिंद का आपरेशन उसी डाक्टर ने किया था.

तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और डाक्टर से आंख में चोट लगने की वजह बताते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, इस की आंख को कुछ हो गया, तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर, मुझे चैक तो करने दे,’’ कह कर डाक्टर ने स्टै्रचर पर लेटे सुनील को अपने जांच कमरे में ले कर नर्स से दरवाजा बंद करने को कह दिया.

तिजोरी घबरा तो नहीं रही थी, पर लगातार वह अपने दिल में सुनील की आंख में गंभीर चोट न निकलने की दुआ कर रही थी. महेश के साथ श्रीकांत भी वहां पहुंच गया था.

अस्पताल के गलियारे में इधर से उधर टहलते हुए तिजोरी लगातार वहां लगी बड़े अक्षरों वाली घड़ी को देखे जा रही थी. तकरीबन 50 मिनट के बाद डाक्टर ने बाहर आ कर बताया, ‘‘बेटी, बड़ी गनीमत रही कि गुल्ली भोंहों के ऊपर लगी. थोड़ी सी भी नीचे लगी होती, तो आंख की रोशनी जा सकती थी.’’

‘‘डाक्टर साहब, क्या मैं सुनील से मिल सकती हूं?’’

‘‘हां, ड्रैसिंग कंप्लीट कर के नर्स बाहर आ जाए तो तुम अकेली जा सकती हो. पेशेंट के पास अभी ज्यादा लोगों का होना ठीक नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

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नर्स के बाहर आते ही तिजोरी लपक कर अंदर पहुंची. सुनील की चोट वाली आंख की ड्रैसिंग के बाद पट्टी से ढक दिया गया था, दूसरी आंख खुली थी.

तिजोरी सुनील के पास पहुंची. उस ने अपनी दोनों हथेलियों में बहुत हौले से सुनील का चेहरा लिया और बोली, ‘‘बहुत तकलीफ हो रही है न. सारा कुसूर मेरा है. न मैं तुम्हें गुल्लीडंडा खिलाने ले जाती और न तुम्हें चोट लगती.’’

तिजोरी को उदास देख कर सुनील अपने गालों पर रखे उस के हाथ पर अपनी हथेलियां रखता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है तिजोरी, मैं ही उस समय असावधान था. तुम्हारे बारे में सोचने लगा था… इतने अच्छे स्वभाव की लड़की मैं ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी,’’ कहतेकहते सुनील चुप हो गया.

तिजोरी समझ गई और बोली, ‘‘चुप क्यों हो गए… मन में आई हुई बात कह देनी चाहिए…’’

‘‘लेकिन, न जाने क्यों मुझे डर लग रहा है. मेरी बात सुन कर कहीं तुम नाराज न हो जाओ.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं होती. मुझे कोई बात बुरी लगती है, तो तुरंत कह देती हूं. तुम बताओ कि क्या कहना चाह रहे हो.’’

‘‘दरअसल, मैं ही तुम को चाहने लगा हूं और चाहता हूं कि तुम से ही शादी करूं.’’

तिजोरी ने सुनील के गालों से अपने हाथ हटा लिए और उठ कर खड़े होते हुए बोली, ‘‘मुझ से शादी करने के लिए अभी तुम्हें 2 साल और इंतजार करना होगा. ठीक होने के बाद तुम्हें मेरे पिताजी से मिलना होगा.’’

इतना कह कर तिजोरी बाहर चली आई. श्रीकांत और महेश तो वहां इंतजार कर ही रहे थे, लेकिन अपने पिता को उन के पास देख कर वह चौंक पड़ी. उन के पास पहुंच कर वह सीने से लिपट पड़ी, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘मेरे खेतों में कोई घटना घटे, और मुझे पता न चले, ऐसा कभी हुआ है? मैं तो बस उस लड़के को देखने चला आया और अंदर भी आ रहा था, पर तुम दोनों की बातें सुन कर रुक गया. अब तू यह बता कि तू क्या चाहती है?’’

‘‘मैं ने तो उस से कह दिया है कि…’’ तिजोरी अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी कि रघुवीर यादव ने बात पूरी की…  ‘‘2 साल और इंतजार करना होगा.’’

अपने पिता के मुंह से अपने ही कहे शब्द सुन कर तिजोरी के चेहरे पर शर्म के भाव उमड़ आए और उस ने अपने पिता की चौड़ी छाती में अपना चेहरा छिपा लिया.

रघुवीर यादव अपनी बेटी की पीठ थपथपाने के बाद उस के बालों पर हाथ फेरने लगे. उन्होंने अपनी जेब से 10,000 रुपए निकाल कर श्रीकांत को दिए और बोले, ‘‘बेटा, यह सुनील के इलाज के लिए रख लो. कम पड़ें तो खेत में काम कर रहे किसी मजदूर से कह देना. खबर मिलते ही मैं और रुपए पहुंचा दूंगा,’’ इतना कह कर वे तिजोरी और महेश को ले कर घर की तरफ बढ़ गए.

अगले दिन तिजोरी अपने भाई महेश रोज की तरह के साथ खेत पर गई. आज उस का मन खेत पर नहीं लग रहा था. पानी पीने के लिए वह गोदाम की तरफ गई, तो उस ने किनारे जा कर बिजली महकमे के स्टोर की तरफ झांका.

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तभी सामने वाली सड़क पर एक मोटरसाइकिल रुकी. उस पर बैठा लड़का सिर पर गमछा लपेटे और आंखों में चश्मा लगाए था. तिजोरी को देखते ही उस ने मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे ही हाथ हिलाया, पर तिजोरी ने कोई जवाब नहीं दिया. वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगी, पर दूरी होने के चलते पहचान न सकी.

तभी जब स्टोर में काम करते श्रीकांत की नजर तिजोरी पर पड़ी, तो श्रीकांत उसे वहां खड़ा देख उस के करीब चल कर जैसे ही आया, वह बाइक सवार अपनी बाइक स्टार्ट कर के चला गया.

तिजोरी के करीब आ कर श्रीकांत बोला, ‘‘हैलो तिजोरी, कैसी हो?’’

उस बाइक सवार को ले कर तिजोरी अपने दिमाग पर जोर देते हुए उसे पहचानने की कोशिश रही थी, लेकिन श्रीकांत की आवाज सुन कर वहां से ध्यान हटाती हुई बोली, ‘‘मैं ठीक हूं. यहां से खाली हो कर तुम्हारे बौस को देखने अस्पताल जाऊंगी. वैसे, कैसी तबीयत है उन की?’’

‘‘आज शाम तक उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. डाक्टर का कहना है कि चूंकि आंख के बाहर का घाव है, इसलिए वे एक आंख पर पट्टी बांधे काम कर सकते हैं. मैं शाम को उन्हें ले कर सरकारी गैस्ट हाउस में आ जाऊंगा.’’

‘‘लेकिन, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जब वे पूरी तरह से ठीक हो जाएं, तब काम करना शुरू करें?’’

‘‘चोट गंभीर होती तो वैसे भी वे काम नहीं कर पाते, पर जब डाक्टर कह रहा है कि चिंता की कोई बात नहीं, तो दौड़भाग का काम मैं देख लूंगा और इस स्टोर को वे संभाल लेंगे. फिर हमें समय से ही काम पूरा कर के देना है, तभी अगला कौंट्रैक्ट मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे कल भी खेत पर आना ही है. यहीं पर कल उस से मिल लूंगी. तुम्हें अगर प्यास लग रही हो, तो मैं फ्रिज से पानी की बोतलें निकाल कर देती जाऊं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. कल मिलूंगी,’’ कह कर तिजोरी उस खेत की तरफ चली गई जहां बालियों से गेहूं और भूसा अलग कर के बोरियों में भरा जा रहा था.

अगले दिन पिताजी के हिसाबकिताब का बराबर मिलान करने के चलते तिजोरी को देर होने लगी. जैसे ही हिसाब मिला, तो वह उसे फेयर कर के लिखने का काम महेश को सौंप कर अकेले ही खेत की तरफ आ गई.

चूंकि तिजोरी तेज चलती हुई आई थी और उसे प्यास भी लग रही थी, इसलिए उस ने सोचा कि पहले गोदाम में जा कर घड़े से पानी पी ले और फिर सुनील का हालचाल लेने चली जाएगी.

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आगे पढ़ें- तिजोरी महेश के सामने 5 मीटर की …

तेजतर्रार तिजोरी: भाग 2- क्या था रघुवीर का राज

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

सुनील ने तिजोरी के चेहरे की तरफ देखा. एक निश्चिंतता और अपनी बात कहने के बाद चेहरे पर पसरी सहजता देख कर वह हैरान हुए बिना न रह सका, इसलिए बात बदलता हुआ बोला, ‘‘तुम गुल्लीडंडा किस के साथ खेलोगी?’’

‘‘छोटे भाई के साथ. ओह, वह वहां खेत में खड़ा मेरा इंतजार कर रहा होगा. मैं चलती हूं,’’ कह कर तिजोरी अधखुले गोदाम के शटर की तरफ बढ़ने के लिए मुड़ने को हुई, तभी जवान और गठीले बदन का कौंट्रैक्टर सुनील कलाई पकड़ कर उसे रोकता हुआ बोला, ‘‘लगता है, तुम नाराज हो गई. अच्छा, यह बताओ कि अगर हम भी गुल्लीडंडा खेलना चाहें, तो सिखा दोगी?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं. बहुत आसान है. बस गुच्ची में गुल्ली के कोने इधरउधर रखो और डंडे से गुल्ली फंसा कर दूर उछालो. अगर सामने वाला गुल्ली कैच कर ले या गिरी हुई गुल्ली की जगह पर खड़े हो कर गुच्ची पर रखा डंडा पीट दे तो खिलाड़ी आउट. उस के बाद दूसरे खिलाड़ी का नंबर.

‘‘और अगर सामने वाला कैच न कर पाए और डंडे को भी न पीट पाए तो…?’’

कलाई की पकड़ और उंगलियों की हरकत का आभास करते हुए तिजोरी ने एक गहरी नजर सुनील पर डाली, फिर अपनी कलाई की उस जगह को घूरा, जहां सुनील का हाथ था.

सुनील ने तुरंत तिजोरी की कलाई छोड़ दी. तब वह बोली, ‘‘बाकी बातें खेत के मैदान में. अगर तुम गुल्लीडंडा खेलना चाहोगे तो…’’

‘‘अब तो मैं तुम्हारे साथ जरूर गुल्लीडंडा खेलूंगा,’’ सुनील ने कहते हुए जब उस के चेहरे की तरफ देखा, तो तिजोरी श्रीकांत को एकएक खंभा गिनते देख कर पूछ बैठी, ‘‘वह तुम्हारा साथी एकएक कर के क्या गिन रहा है?’’

‘‘स्टौक चैक कर रहा है. बिजली के कुल खंभों की गिनती कर रहा है. पहले स्टोर में कुल जमा स्टौक का मिलान करना होता है, फिर सारा स्टौक आ जाने पर ही काम शुरू होता है.’’

‘इस का मतलब है कि उस का पूरा दिन तो खंभों की गिनती करने में ही निकल जाएगा?’’

‘‘हां, अकसर ऐसा ही होता है. कल रात से ही तो ये टेंपररी स्टोर बना कर सामान स्टौक होना शुरू हुआ है,’’ सुनील ने जैसे ही कहा, तो तिजोरी बोली, ‘‘लेकिन, मुझे यह काम मिला होता तो मैं सभी स्टौक की गिनती 1-2 घंटे में कर के बता देती.’’

‘‘ऐसा हो ही नहीं सकता,’’ सुनील ने कहा, तो वह हैरान होते हुए बोली, ‘‘इस समय मुझे गुल्लीडंडा खेलने के साथसाथ और भी बहुत से काम हैं. हां, तुम चाहो तो मैं 5 मिनट में कुल खंभों के स्टौक की गिनती कर के बता सकती हूं.’’

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‘‘अच्छा, चल कर बताओ तो हम जानें.’’

‘‘ठीक है, मैं गोदाम में रखे घड़े से ठंडा पानी पी कर आती हूं. आओ, चलो तुम्हें भी पिला दूं.’’

सुनील तिजोरी के पीछेपीछे अंदर आ गया. गोदाम में घड़े के साथसाथ फ्रिज भी रखा था, जिस की हलकी आवाज ही बता रही थी कि वह चालू हालत में है.

फ्रिज देख कर सुनील बोला, ‘‘वाह, यहां तो फ्रिज भी है,’’ लेकिन तिजोरी को घड़े की ओर बढ़ते देख कर पूछ बैठा, ‘‘तुम फ्रिज का पानी नहीं पीती?’’

‘‘नहीं, मुझे फ्रिज का पानी बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता, पर तुम पीना चाहो तो फ्रिज से ठंडी बोतल निकाल कर पी सकते हो और एक बोतल अपने दोस्त के लिए भी ले जा सकते हो.’’

इतना कह कर तिजोरी ने घड़े से पानी निकाल कर गटागट पी डाला और सुनील से बोली, ‘‘तुम फ्रिज से 2 ठंडी बोतलें निकाल कर चलो. मैं गुल्लीडंडा ले कर और गोदाम बंद कर के तुम्हारा काम आसान करने पीछे से आती हूं.’’

‘‘बोतलें वापस रखनी भी तो होंगी? तुम गोदाम बंद कर दोगी तो…?’’

‘‘बोतलें तुम से कल ले लूंगी. आजकल तो मैं रोज यहां आती हूं.’’

सुनील बोतलें ले कर तिजोरी के बारे में ही सोचता हुआ बाहर चला गया. वह तो शहरों की लड़कियों को ही तेजतर्रार और बातचीत में माहिर समझता था, पर यहां तो तिजोरी…

सीधी सी दिखने वाली तिजोरी की तो बात ही बिलकुल अलग है. सुनील ने मन बना लिया कि आज वह उस के साथ गुल्लीडंडा जरूर खेलेगा. उस के दिलोदिमाग में तिजोरी की तसवीर बस गई. उसे दिल के आसपास एक खिंचाव महसूस होने लगा था.

गोदाम के भीतर का एकांत और आधा उठा हुआ शटर, गांव की भोलीभाली सामान्य सी लड़की, लेकिन पाउसे गले लगाना तो दूर उसे छूने की भी वह हिम्मत न जुटा सका, शहर में रहने वाला समझदार जवान कौंट्रैक्टर.

हाथ में लिए डंडे से उस ने ऊंचाई पर रखे खंभों को गिना, फिर चौड़ाई की लाइनों को गिन कर मन ही मन 19 को 9 से गुणा कर के बता दिया… कुल खंभे 171 हैं.

सुनील ने रजिस्टर से मिलान किया. स्टौक रजिस्टर भी अब तक आए खंभों की तादाद इतनी ही दिखा रहा था.

सुनील और श्रीकांत हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताकने लगे, तभी तिजोरी सुनील से बोली, ‘‘चल रहे हो गुल्लीडंडा खेलने?’’

अपने भरोसेमंद शादीशुदा असिस्टैंट श्रीकांत को जरूरी निर्देश दे कर सुनील तिजोरी के पीछेपीछे उस खाली खेत तक आ गया, जहां महेश बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.

सुनील को देख कर महेश भी पहचान गया. महेश के पास पहुंच कर तिजोरी बोली, ‘‘तुझे अगर प्यास लगी है, तो यह ले चाभी और गोदाम का शटर खोल कर पानी पी कर आ जा, फिर हम तीनों गुल्लीडंडा खेलेंगे.’’

‘‘नहीं, मुझे अभी प्यास नहीं लगी है. चलो, खेलते हैं. मैं ने यह छोटा सा गड्ढा खोद कर अंडाकार गुच्ची बना दी है, लेकिन पहला नंबर मेरा रहेगा.’’

‘‘ठीक है, तू ही शुरू कर,’’ तिजोरी बोली. फिर उस ने गुच्ची से कोई  5 मीटर की दूरी पर खड़े हो कर सुनील को समझाया, ‘‘महेश उस गुच्ची के ऊपर गुल्ली रख कर फिर उस के नीचे डंडा फंसा कर हमारी तरफ उछलेगा.

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‘‘उस की कोशिश यही रहेगी कि हम से ज्यादा से ज्यादा दूर तक गुल्ली जाए और उसे कैच कर के भी न पकड़ा जा सके. तुम एक बार ट्रायल देख लो. महेश गुल्ली उछालेगा और मैं उसे कैच करने की कोशिश करूंगी.’’

फिर तिजोरी महेश के सामने  5 मीटर की दूरी पर खड़ी हो गई. महेश ने गुच्ची के ऊपर रखी गुल्ली तिजोरी के सिर के ऊपर से उछाल कर दूर फेंकना चाही, पर कैच पकड़ने में माहिर तिजोरी ने अपनी जगह पर खड़ेखड़े अपने सिर के ऊपर से जाती हुई गुल्ली को उछल कर ऐसा कैच पकड़ा, जो उतना आसान नहीं था.

कैच पकड़ने के साथ ही तिजोरी चिल्लाई, ‘‘आउट.’’

लेकिन साइड में खड़े सुनील की नजरें तो तिजोरी के उछलने, फिर नीचे जमीन तक पहुंचने के बीच फ्रौक के घेर के हवा द्वारा ऊपर उठ जाने के चलते नीचे पहनी कच्छी की तरफ चली गई थी. साथ ही, उस के उभारों के उछाल ने भी सुनील को पागल कर दिया.

लेकिन तिजोरी इन सब बातों से अनजान सुनील से बोली, ‘‘अब खेल शुरू. इस बार मेरी जगह पर खड़े हो कर तुम्हें गुल्ली को अपने से दूर जाने से बचाना है. मैं तुम से एक मीटर पीछे खड़ी होऊंगी, ताकि तुम से गुल्ली न पकड़ी जा सके तो मैं पकड़ कर महेश को आउट कर सकूं और तुम्हारा नंबर आ जाए, ठीक?’’

सुनील अपनी सांसों और तेजी से धड़कने लग गए दिल को काबू करता हुआ सामने खड़ा हो गया. उस की नजरों से तिजोरी के हवा में उछलने वाला सीन हट नहीं पा रहा था. अजीब सी हवस उस पर सवार होने लगी थी. तभी तिजोरी पीछे से चिल्लाई, ‘‘स्टार्ट.’’

आवाज सुनते ही महेश ने गुल्ली उछाली और चूंकि सुनील का ध्यान कहीं और था, इसलिए अपनी तरफ उछल कर आती गुल्ली से जब तक वह खुद को बचाता, गुल्ली आ कर सीधी उस की दाईं आंख पर जोर से टकराई.

आगे पढें- तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और …

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तेजतर्रार तिजोरी: भाग 1- क्या था रघुवीर का राज

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

बचपन में उस गेहुंए रंग की देहाती बाला का नाम तिजोरी रख दिया गया था. समय के साथसाथ वह निखरती चली गई और अब वह 16 सावन देखते हुए इंटर पास करने के बाद अपने पिता रघुवीर यादव का कामकाज देखती है. उस का तिजोरी नाम इसलिए रख दिया गया था कि उस के खेतिहर किसान पिता रघुवीर यादव ने चोरीडकैती के डर से उस के जन्म होने वाले दिन ही लोहे की मजबूत तिजोरी खरीद कर अपने घर के बीच वाले कमरे की मोटी दीवार में इतनी सफाई से चिनवाई थी कि दीवार देख कर कोई समझ नहीं सकता था कि उस दीवार में तिजोरी भी हो सकती है.

अनाज उपजाने के साथसाथ रघुवीर यादव की मंडी में आढ़त भी थी और छोटे  किसानों की फसलों को कम दामों में खरीद कर ऊंचे दामों पर बेचने का हुनर उन्हें मालूम था. उन का बेटा महेश, तिजोरी से 3 साल छोटा था. पढ़ाई से ज्यादा महेश का मन गुल्लीडंडा और कंचे खेलने में लगता था. पेड़ों पर चढ़ कर आम तोड़ने में भी उसे मजा आता था. इस के उलट तिजोरी को तीसरी जमात में ही 20 तक के सारे पहाड़े याद हो गए थे. 12वीं जमात तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि उस ने गणित में 100 में से 99 नंबर न पाए हों और सभी विद्यार्थियों को पछाड़ कर वह फर्स्ट डिवीजन न आई हो.

यही वजह थी कि दिनभर की सारी कमाई का हिसाब रघुवीर यादव ने 10वीं पास करते ही तिजोरी को सौंप दिया था. तिजोरी को उस लोहे की तिजोरी के

तीनों खानों की खबर थी कि कहां क्या रखा है.

रकम बढ़ी, तो रघुवीर यादव ने जेवरों को गिरवी रखने का काम भी शुरू कर दिया था और इस का लेखाजोखा भी तिजोरी के पास था.

12वीं जमात के बाद उस गांव में डिगरी कालेज खुलने की बात तो कई बार उठी, पर अभी तक खुल नहीं पाया था और इस के चलते तिजोरी की आगे की पढ़ाई न हो सकी.

घर के काम में मां का हाथ बंटाने के साथ खेतखलिहान और हाट बाजार का जिम्मा भी तिजोरी के पास था. पहले तो वह अकेली ही पूरे गांव में अपने काम से घूमती रहती थी, फिर जब महेश  बड़ा हुआ तो उस को साथ ले कर  अपने खेतों में गुल्लीडंडा खेलने या महेश के संगीसाथियों के साथ खेलने निकल जाती.

तिजोरी की हरकतें देख कर कोई अनजान आदमी सोच भी नहीं सकता था कि वह 5 फुट, 2 इंच की लड़की 12वीं जमात पास कर चुकी है.

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उन्हीं दिनों गांव में नए पावर हाउस बनाने और ऊंचे खंभे गाड़ कर उन पर बिजली के तार कसने का काम करने के लिए कौंट्रैक्टर सुनील के साथ शहर से कुछ अनुभवी व हलकेफुलके तकनीकी काम जानने वाले मजदूरों ने उस गांव में डेरा डाला.

वे सभी हाईस्कूल या इंटर तो पास थे ही और बिजली महकमे द्वारा ट्रेंड भी थे, पर नौकरी पक्की नहीं थी. एक दिन तिजोरी महेश के साथ गेहूं की कट चुकी फसल को बोरियों में भरवा कर खेत के पास ही बने अपने पक्के गोदाम में रखवाने घर से निकल कर जा रही थी, तो रास्ते में पड़ने वाले आम के पेड़ के पास रुक गई.

2 मोटीमोटी चोटियां और लंबी सी 2 जेब वाली फ्रौक पहने तिजोरी ने पहले तो 3-4 बार उछल कर सड़क की तरफ वाली पेड़ की झुकी डालियों से आम तोड़ने की कोशिश की और जब उसे लगा कि उस की पहुंच आमों तक नहीं हो पा रही है, तो उस ने महेश को पेड़ पर चढ़ा दिया.

ऊपर से जब महेश ने आम तोड़तोड़ कर नीचे फेंकने शुरू किए तो हर फेंके हुए आम को तिजोरी ने ऐसे कैच किया मानो कोई क्रिकेट का मैच चल रहा हो और उस से कहीं कोई कैच न छूट जाए.

बिजली के खंभों और तारों को एक ट्रैक्टरट्रौली में लदवा कर उस पेड़ के पास से गुजरते हुए असिस्टैंट श्रीकांत और दूसरे मजदूरों के साथसाथ जब कौंट्रैक्टर सुनील की नजर तिजोरी पर पड़ी, तो उस ने ट्रैक्टर को वहीं रुकवा दिया और गौर से उस के गंवारू पहनावे को देख कर बोला, ‘‘ऐ छोकरी, आज जितने आम तोड़ने हैं तोड़ ले, कल तो यहां पर इस पेड़ को काट कर खंभा गाड़ दिया जाएगा.’’

महेश को पेड़ से उतरने का इशारा करते हुए तिजोरी एकदम से सुनील की तरफ घूमी और बोली, ‘‘मेरा नाम छोकरी नहीं तिजोरी है, तिजोरी समझे. और बिजली के खंभे गाड़ने आए हो, तो सड़क के किनारे गाड़ोगे या किसी के खेत में घुस जाओगे.’’

‘‘अब यह पेड़ बीच में आ रहा है, तो इसे तो रास्ते से हटाना होगा न,’’ सुनील ने समझाना चाहा, तो तिजोरी बोली, ‘‘तुम गौर से देखो, तो पेड़ सड़क से 5 मीटर दूर है… हां, आमों से लदी 5-7 डालियां जरूर सड़क के पास तक आ रही हैं तो तुम पूरा पेड़ कैसे काट दोगे. मैं तो ऐसा नहीं होने दूंगी.’’

इतना कहते हुए तिजोरी ने आखिरी कैच करे कच्चे आम को भी अपने फ्रौक की जेब में ठूंसा और महेश के साथ अपने खेत की तरफ दौड़ पड़ी.

तिजोरी के जाते ही श्रीकांत बोला, ‘‘सुनील सर, वह छोकरी कह तो सही रही थी और मैं समझता हूं कि इस आम के पेड़ का मोटा तना 5 मीटर दूर ही होगा और हमारे खंभे गाड़ने में आड़े नहीं आएगा.’’

सुनील तिजोरी को दूर तक जाते हुए देखता रहा, फिर वह दोबारा ट्रैक्टर पर चढ़ कर उसी दिशा में बढ़ गया, जिधर तिजोरी गई थी और जहां बिजली महकमे ने अपना स्टोर बना रखा था.

एक बड़े गोदाम की ऊंची दीवार से सटी खाली पड़ी सरकारी जमीन पर कांटे वाले तारों से एक खुली जगह को चौकोर घेर कर खुले में टैंपरेरी स्टोर बना लिया गया था.

बिजली के खंभे, गोलाई में लिपटे मोटे एलुमिनियम तार के बड़े गुच्छे, लोहे के एंगल व चीनी मिट्टी के बने कटावदार हैंगर वगैरह सामान का वहां स्टौक किया जा रहा था. पास में ही इस गांव से दूसरे गांव को जाने वाली मेन सड़क थी.

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खेतों के बीच से होती हुई पीछे के गांव से आने वाले हाई टैंशन 440 वोल्ट की बिजली को पहले तो गांव में सप्लाई के लायक बनाने के लिए वहीं पास में बड़ा ट्रांसफार्मर लगा कर पावर हाउस बनाना था और उस पावर हाउस से बिजली के खंभे की मदद से उस गांव के बचे हुए बहुत सारे घरों तक बिजली पहुंचानी थी.

रघुवीर यादव के खेतों की सीमा भी स्टोर के पास आ कर मिलती थी. तिजोरी महेश के साथ जब मेन रास्ता छोड़ कर मेंड़ों पर चलती हुई अपने खेतों में पहुंची, तो मजदूर गेहूं की फसल काट कर गट्ठर बनाबना कर वहां पहुंचा रहे थे, जहां बालियों से दाने अलग और भूसा अलग किया जा रहा था.

तिजोरी को देख कर कुछ अधेड़ मजदूर चिल्लाए, ‘वह देखो मालकिन आ गईं.’

महेश के साथ कच्चे आमों की खटास का मजा लेती हुई तिजोरी एक मजदूर के पास आ कर रुक गई. वह बोली. ‘‘काका, यह तुम्हारे साथ मुस्टंडा सा लड़का कौन है? इसे मैं आज पहली बार देख रही हूं.’’

‘‘बिटिया, आज से मेरी जगह यही काम करेगा. यह मेरे ही गांव का है शंभू. मेरा भतीजा लगता है. जवान है और तेजी से काम कर लेगा. मुझे एक हफ्ते के लिए अपनी पत्नी को ले कर ससुराल जाना है. फसल काटने का समय है. ऐसे में एकएक दिन की अहमियत मैं समझता हूं.’’

शंभू लगातार उसे अजीब सी निगाहों से घूरे जा रहा था. तिजोरी को उस का यों घूरना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. वह बोली, ‘‘ठीक है काका, तुम जाओ, लेकिन अपने भतीजे को भी साथ ले जाओ. मुझे जरूरत पड़ेगी तो दूसरा इंतजाम कर लूंगी.’’

इतना कह कर दूसरे मजदूरों को तेज हाथ चलाने का निर्देश देते हुए तिजोरी आगे बढ़ गई. अगले खेत के गेहूं गट्ठर, बाली से दाना व भूसा निकलने वाली मशीन तक पहुंच चुके थे. काका उसी समय शंभू को ले कर चले गए. वे जानते थे कि तिजोरी बिटिया की इच्छा के बिना यहां कोई मजदूरी नहीं कर सकता.

शंभू काका के साथ वापस जाते हुए पीछे मुड़मुड़ कर दूर जाती तिजोरी को देखता रहा, पर वह अपनी ही धुन में कच्चे आमों का स्वाद लेती हुई अगले खेतों की तरफ बढ़ती जा रही थी.

तिजोरी ने चारों खेतों और एक खेत के कोने में चलती मशीन को देख कर समझ लिया कि काम ठीक से चल रहा है, लेकिन अभी खेतों को बिलकुल साफ होने और गेहूं व भूसे की बोरियों को ढंग से गोदाम पहुंचा कर रखने में कम से कम 2 से 3 दिन और लगेंगे.

निश्चिंत हो कर तिजोरी महेश से बोली, ‘‘तू यहीं रुक. मैं गोदाम से पानी पी कर आती हूं और लौटते में गुल्लीडंडा भी लेती आऊंगी. तू तब तक उस

खाली खेत में छोटा गड्ढा खोद कर गुच्ची बना कर रख, मैं अभी आई,’’ कहते हुए तिजोरी अपने खेतों के बीच होते हुए उस कोने में पहुंच गई, जहां एक पक्का गोदाम बना था. सवेरे साढ़े 10 बज चुके थे.

अपनी फ्रौक की जेब से चाभी का गुच्छा निकाल कर तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ओर लगे ताले खोल कर शटर उठाना शुरू ही किया था कि उस की नजर गोदाम की दीवार से सटा कर कांटेदार तारों से घेर कर बनाए हुए बिजली महकमे के उस स्टोर पर पड़ी, जहां श्रीकांत स्टौक चैक कर रहा था और कौंट्रैक्टर सुनील अपने जरूरी रजिस्टर के पन्ने पलट रहा था.

आधा शटर ऊपर उठा कर तिजोरी रुक गई, फिर गोदाम की शटर वाली दीवार के कोने पर जा कर उस ने उस खुले स्टोर में झांका.

श्रीकांत की नजर जब तिजोरी पर पड़ी,तो उस ने अपने बौस को इशारा किया. चूंकि सुनील की पीठ तिजोरी की तरफ थी, इसलिए इशारा पा कर वह पलटा और उसे देख कर दंग रह गया.

अपने रजिस्टर वहीं रख कर और श्रीकांत को स्टौक चैक करते रहने की कह कर सुनील तिजोरी के करीब आया और एक अजीब सी उमंग में भर कर बोला, ‘‘तुम यहां…?’’

‘‘हां, यह जिस दीवार से सटा कर तुम ने अपना स्टोर बनाया है, यह गोदाम मेरे पिताजी का है और इस के आसपास के चारों खेत भी हमारे ही हैं.’’

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‘‘पर, तुम यहां क्या करने आई हो?’’

‘‘मैं तो गोदाम से अपना गुल्लीडंडा निकालने आई थी, फिर प्यास भी लग रही थी तो सोचा कि पानी भी पी आऊं.’’

‘‘तो तुम्हारे गोदाम में प्यास बुझाने का भी इंतजाम है?’’ कहने के साथसाथ सुनील उस की देह को घूरने लगा.

तिजोरी बोली, ‘‘लगता है, शादी नहीं हुई अभी तक. जिस प्यास को तुम बुझाना चाह रहे हो उस के लिए तुम्हें कोई दूसरा दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.’’

सुनील तिजोरी के शब्द सुन कर चौंक गया. गांव की यह गंवार सी दिखने वाली लड़की को एक पल भी नहीं लगा उस का इरादा समझने में.

सुनील ने तो सुन रखा था कि गांव की भोलीभाली लड़कियों को तो अपने प्रेमजाल में फंसा लेना बहुत आसान  होता है.

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