सक्सेसर: भाग 5- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

जो चंदन उस की नजरों में गंवार और ऐं वैं ही था, आज उस की बातों से अत्यंत सुलझा हुआ व समझदार दिखाई पड़ रहा था. उस के बात करने के ढंग और उस की मदद के लिए उठे हुए उस के हाथ को देख कर वह गदगद हो उठी थी. उस के व्यवहार ने उस के दिल को छू लिया था.

चंदन का अनुमान सही निकला था…निशीथ ने लौ ट्रिब्यूनल में कंपनी का नाम बदल कर अपने नाम कर लेने की एप्लीकेशन लगा रखी थी और निश्चल के शेयर्स पर अपना कब्जा करने के लिए बोर्ड औफ डाइरैक्टर्स को अपनी तरफ मिलाने के लिए उन को तरहतरह का प्रलोभन देने में लगा हुआ था.

पावर औफ एटौर्नी के कैंसिल होते ही निशीथ के कान खड़े हो गए थे और अब उस के सुर बदलने लगे. लेकिन वह अंदर ही अंदर बोर्ड मैंबर्स से मिल रहा था और अपने को निश्चल का सक्सेर बता रहा था. निश्चल की जगह वह खुद मैनेजिंग डाइरैक्टर बनने के लिए गुटबंदी की कोशिश में लगा हुआ था. लोगों के सामने निभा को अयोग्य बता कर समय बिताने के प्रयास में लगा हुआ वह चाह रहा था कि किसी तरह लौ ट्रिब्यूनल में कंपनी उस के नाम रजिस्टर हो जाए. फिर एकएक को वह देख लेगा…

इधर, घर में निभा को अपनी तरफ मिलाने के लिए उस की चापलूसी करता रहता. अब भैया तो लौट कर आएंगें नहीं. अब सबकुछ उसे ही करना है.

वह सब से कहता फिर रहा था कि निभा भाभी तो एक घरेलू महिला हैं, वे भला कंपनी की एबीसीडी क्या जानें. इसीलिए तो उन्होंने पावर औफ एटौर्नी मुझे दे रखी है.

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‘…मैं तो भाभी का सेवक हूं. भैया की अमानत संभाल रहा हूं. रिनी और मिनी को तो विदेश में पढ़ने के लिए भेजूंगा. हर समय यही सोचता रहता हूं और यही चाहता हूं कि मेरी भाभी को भैया की कमी न महसूस होने पाए. अब वह उन दोनों के लिए कभी कुछ तो कभी कुछ खिलौना या कपड़ा ले कर आया करता. लेकिन निभा अब उस की नीयत को अच्छी तरह समझ चुकी थी, इसलिए उस के भुलावे में आने का सवाल ही न था.

अखिल दास ने बोर्ड मैंबर्स की मीटिंग बुला ली जिस में नए मैनेजिंग डाइरैक्टर को भी चुना जाना था. बड़ी गहमागहमी थी. चंदन और अखिल दास के सहयोग से वह अब कंपनी के कामकाज को अच्छी तरह समझ चुकी थी. लेकिन निशीथ आसानी से कंपनी अपने हाथ से जाने नहीं दे सकता था, इसलिए उस ने एक कागज पर निश्चल के दस्तखत के साथ बोर्ड औफ डाइरैक्टर्स के सामने रखा, जिस के अनुसार, निश्चल के 51 फीसदी शेयर्स और कंपनी निशीथ की हो जाएगी और वे चाहते थे कि कंपनी के मैनेजिंग डाइरैक्टर निशीथ ही बने. विल के अनुसार, निश्चल के शेयर्स, जमीनजायदाद और कंपनी का मालिक निशीथ ही होगा. बैठक बहुत हंगामेदार हुई और केस लौ ट्रिब्यूनल को सौंप दिया गया.

बोर्ड मैंबर्स निभा को निश्चल की उत्तराधिकारी मानते हुए उसे ही डाइरैक्टर चुनना चाहते थे लेकिन कानूनी दांवपेच में उलझ कर मामला लौ ट्रिब्यूनल से कोर्ट में पहुंच गया और विल की सचाई सिद्ध करने के लिए सिविल कोर्ट पहुंच गया था. परंतु चंदन के अकाट्य तर्कों के आगे निशीथ के वकील कहीं नहीं टिक पाए थे और लगभग 3 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद निभा के हक में फैसला हुआ.

निभा ने खुशी के मारे अपनी गर्म हथेलियां चंदन के हाथों पर रख दीं, “चंदन, तुम्हें धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं. मैं आजीवन तुम्हारी एहसानमंद रहूंगी.”

“निभा, आज पहले दिन औफिस जा रही हो. लो, दहीशक्कर से मुंह मीठा कर के जाओ.“ वह आश्चर्य से भर उठी थी…ये रिश्ते भी कितने स्वार्थी होते हैं. वह औफिस आई तो गेट को फूलों से सजा हुआ देख, उसे अच्छा लगा था. उस के लिए रेड कार्पेट बिछाई गई थी. फूलों की वर्षा के साथ वैलकम सौंग गाया गया. केबिन के बाहर नेमप्लेट पर ‘निभा सिंह’ और नीचे मैनेजिंग डाइरैक्टर देख उस की आंखें नम हो गई थीं.

वह फाइल पर साइन करती जा रही थी परंतु उस का मन चंदन में ही उलझा हुआ था. उस ने ईमानदारी से चैक साइन कर के जब उसे दिया तो उस ने उस का हाथ पकड़ लिया था, ”निभा प्लीज, यह एक दोस्त की तरफ से भेंट समझ लो.”

वह उसे एकटक निहारती रह गई थी, “चंदन, तुम शादी क्यों नहीं कर लेते?”

“बस, दिल में कोई बसा है.”

“तो उस से अपने दिल की बात कह दो.”

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“हिम्मत नहीं जुटा पाता, यदि उस ने ना कर दी तो…”

चंदन का जादू उस के सिर पर चढ़ता जा रहा था. वह हर पल उस की आंखों में अपने लिए प्यार ढूंढा करती लेकिन उस की सूनी आंखों में सिवा उदासी और खालीपन के कुछ न दिखता.

वह रात में लेटी, तो उस का मन चंदन की बातों में उलझा था. चंदन…चंदन…चंदन. उसे क्या होता जा रहा है… वह मन ही मन मुसकरा उठी थी. उस ने चंदन को अपना हमसफर बनाने का निश्चय कर लिया था. उस ने चंदन को फोन किया, “कल शाम को डिनर पर आ सकते हो?”

“आप बुलाएं और हम न आएं, ऐसा कभी हो ही नहीं सकता.”

अगले दिन… “मैडम नहीं, केवल निभा कहो चंदन.”

“मैं तो कब से इस पल का इंतजार कर रहा था.”

चंदन ने सब के सामने उस की हथेलियों को हमेशा के लिए अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया था.

सक्सेसर: भाग 1- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

लखनऊ के एक पौश इलाके गोमतीनगर में निश्चल कपूर ने अपनी मेहनत के बलबूते आलीशान तीनमंजिली कोठी बनवाई. और चंद वर्षों के अंदर ही उन्होंने समृद्ध और प्रतिष्ठित लोगों के बीच अपना स्थान बना लिया. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कहर ने सबकुछ बदल दिया.

“निश्चल, प्लीज मास्क ठीक से लगाओ. तुम्हारी नाक खुली हुई है. मास्क ठुड्डी पर लटका कर किसे धोखा दे रहे हो?”

“माई डियर निभा, तुम मेरी फिक्र छोड़ अपनी फिक्र करो. मुझ जैसे हट्टेकट्टे तंदुरुस्त इंसान को देख कर कोरोना खुद ही डर कर भाग जाएगा,” जोर का ठहाका लगाते हुए पत्नी निभा की ओर फ्लाइंग किस उछालते हुए वे गाड़ी स्टार्ट कर औफिस चले गए थे.

निभा जब भी कोरोना नियमों की बात करती, निश्चल उसे हंस कर टाल देते. इधर एक हफ्ता भी नहीं बीता कि निश्चल को हलका बुखारखांसी हुई. निभा टैस्ट करवाने को कहती रही लेकिन निश्चल ने उस की एक न सुनी और गोलियां निगल कर औफिस जाते रहे. जब सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो भी जबरदस्ती करने पर टैस्ट करवाया और पौजिटिव रिपोर्ट आते ही एंबुलैंस में निश्चल को हौस्पिटल जाते देख कर पूरा परिवार सदमे में आ गया. उन्हें यथार्थ सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल में एडमिट करवा दिया गया. चूंकि वे कोरोना पौजिटिव थे, इसलिए उन के छोटे भाई निशीथ दूसरी गाड़ी में अलग से गए और एडमिट करवा कर घर लौट आए थे.

यद्यपि सब लोग सदमे में थे परंतु फिर भी सब के मन में आशा की किरण थी कि निश्चल जल्दी ही स्वस्थ हो कर आ जाएंगे. लेकिन 3-4 दिन ही बीते थे कि निभा भी पौजिटिव हो गई और तब तक कोरोना अपना विकराल रूप धारण कर चुका था. पूरे दिन की जद्दोजेहद के बाद बहुत मुश्किलों में रात 11 बजे उन्हें बैड मिल पाया था. निश्चल के सीटी स्कैन में उन के लंग्स तक इन्फैक्शन पहुंच गया था, इसलिए वे आईसीयू में रखे गए थे.

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मोबाइल फोन ही ऐसा माध्यम था जिस के द्वारा किसी से संपर्क किया जा सकता था. 3-4 दिनों तक तो वह निश्चल और परिवार के संपर्क में रही, फिर वह अपनी बीमारी में उलझती चली गई. वह खुद ही अपना होश खोती चली गई. अपनी सांसों के लिए संघर्ष करते रहने में वह सबकुछ भूलती चली गई. आईसीयू में औक्सीजन मास्क लगाए हुए वह अकेलेपन से जूझती रही थी. उस के चारों तरफ उस का कोई अपना नहीं दिखाई पड़ता था. कभी उसे प्यास लगती, तो सिस्टर की ओर आसभरी नजरों से देखती- ‘सिस्टर, मुझे प्यास लग रही है.’ उस समय यह अनुभूति हुई कि पानी की एक बूंद भी कितनी मूल्यवान है क्योंकि सिस्टर के लिए तो बहुत सारे सीरियस मरीज होते थे जिन को देखना उन के लिए ज्यादा जरूरी होता था.

एक रात उसे बहुत ठंड लग रही थी. सिस्टर दूर कुरसी पर बैठी जम्हाई ले रही थी. उस ने डूबती हुई आवाज में सिस्टर को आवाज दी थी परंतु कमजोर तन से इतनी धीमी आवाज निकल रही थी कि कोई बिलकुल उस के करीब हो, तभी सुनसमझ सकता था. सिस्टर भी तो आखिर इंसान ही थी, वह सारी रात ठंड से ठिठुरती रही थी. मुंह में औक्सीजन मास्क लगा हुआ था. मास्क निकालते ही सांसें उखड़ने को बेताब हो उठती थीं. उन्हीं दिनों यह एहसास हुआ था कि एकएक सांस कितनी मूल्यवान है. उस मर्मांतक पीड़ा को याद कर वह आज भी कांप उठती है…

लगभग 2 महीने तक वह जीवन मौत के झूले में झूलती हुई कभी आईसीयू तो कभी बाहर एकएक सांस के लिए संघर्ष करती हुई, डाक्टर और नर्सों के अथक परिश्रम के फलस्वरूप कोरोना से जंग जीतने में सफल हो गई और अपने घर आ गई. परंतु, पोस्टकोविड के कारण वह नित नई परेशानियों व तकलीफों से गुजर रही थी. न ही वह अपनी नन्ही परियों को ढंग से प्यार कर पा रही थी और न ही निश्चल की आवाज उसे सुनाई पड़ रही थी. जब भी वह निश्चल को फोन लगाती, तो निशीथ भैया उठाते. वे अकसर आते और किसी न किसी कागज पर उस के दस्तखत करवा कर ले जाया करते.

जब एक दिन वह फफक कर रो पड़ी कि निश्चल कहां हैं, वे क्यों नहीं दिखाई पड़ रहे? तो मम्मी जी ने बताया कि निश्चल तो कोविड से जंग में हार गए. अब पोंछ दो माथे का सिंदूर. तुम्हारा सुहाग उजड़ चुका है. सहसा वह विश्वास ही न कर पाई थी, लेकिन समझ में आते ही वह रोतेरोते बेहोश हो गई थी. उस का ब्लडप्रैशर 100 से नीचे चला गया था. डाक्टर आए. वह रोतीबिलखती रही थी. वह सोच ही नहीं पा रही थी कि निश्चल के बिना वह कैसे जीवित रह पाएगी. 2 नन्हीं मासूम बेटियां… वह क्या करेगी, कैसे जिएगी…. इस समय वह तन से तो टूटी थी ही, अब मन से भी टूट चुकी थी. उस को अपने जीवन के चारों ओर घना अंधकार पसरा दिखाई दे रहा था.

निश्चल ने बिजनैस से उस को बिलकुल अलगथलग रखा था. एक बार वह औफिस पहुंच गई थी तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था. वह उस पर बहुत नाराज भी हुए थे. औफिस से उसे बस इतना वास्ता था कि …इस कागज पर अपना साइन कर दो, तो कभी चैक पर साइन कर दो… वह भी अधिकतर ऐसा समय होता जब वे औफिस जाने के लिए जल्दी में होते. वह दस्तखत कर के उन्हें पकड़ा देती. कभी क्या लिखा है, यह जाननेसमझने की न ही इच्छा हुई और न ही जरूरत ही समझी थी उस ने.

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सास सुनैना उसे हिम्मत बंधाती रहतीं. उसे बेटी की तरह ही प्यार करतीं. समयसमय पर दवाई, फल, दूध, खाना आदि सब उस के कमरे में पहुंचा देतीं.

“निभा, निश्चल तो अब लौट कर नहीं आने वाला लेकिन वह जो अपने प्रतिरूप नन्हीं परियों की जिम्मेदारी तुम्हें सौंप कर गया है, उन्हें संभालो. अपनी घरगृहस्थी में अपना मन लगाओ.’ सास ने कहा तो वह सुनैना जी के गले से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी थी. उस की सिसकी नहीं रुक रही थी.

“निभा, तुम ठीक हो गईं, यह इन बेटियों के लिए अच्छा है. निश्चल तो तुझे मझधार में छोड़ कर चला ही गया.” बहुत ही कारुणिक दृश्य था. निशा भी फूटफूट कर रो पड़ी, बोली, “भाभी अपने को संभालो.”

थोड़े दिनों बाद एक दिन निशीथ औफिस से आ कर बोले, ”भाभी, भैया तो अब लौट कर आने वाले नहीं. रोजरोज आप से साइन करवाने के चक्कर में अकसर जरूरी काम अटक जाता है. आप ‘पावर औफ अटौर्नी’ मुझे दे दें तो फिर हर समय आप के पास दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी और काम भी नहीं रुका करेगा.”

उस ने तुरंत कागज पर साइन कर के भैया को दे दिया था.

आगे पढ़ें- आखिर कब तक वह अपने कमरे की…

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सक्सेसर: भाग 2- पति के जाने के बाद क्या हुआ निभा के साथ

उस की मां भी उस से मिलने के लिए आई थीं. उन्होंने उसे समझाया कि इस तरह से जिंदगी थोड़े ही कटेगी. अपनी मासूम बच्चियों में मन लगाओ, अपने भविष्य के बारे में सोचो. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है, मात्र 32 वर्ष. आजकल तो इतनी उम्र में लड़कियां शादी कर रही हैं. मां उसे अपने साथ कुछ दिनों के लिए ले जाना चाहती थीं लेकिन वह तो किसी के सामने ही नहीं जाना चाहती थी. वे रोती हुई लौट गई थीं.

आखिर कब तक वह अपने कमरे की छतों पर नजर गड़ाए शून्य में निहारती रहती. वह अपने कमरे से बाहर निकल कर ड्राइंगरूम में आई तो वहां का नया फर्नीचर और रेनोवेशन देख कर आश्चर्य से भर उठी. घर में इतना बड़ा हादसा हो चुका है, घर का मालिक इस दुनिया से विदा हो गया है और ऐसी हालत में ड्रांइगरूम का सौंदर्यीकरण… वह निशीथ से पूछ बैठी थी- “इस समय रिनोवेशन?” उस के पूछते ही निशीथ का चेहरा सफेद पड़ गया और वह सकपका कर बोला, “भाभी, यह सब तो भैया की ही प्लानिंग थी और उन्होंने ही सब और्डर कर रखा था. मैं ने सोचा कि उन की योजना का सम्मान किया जाना चाहिए.“ और वह उस से नजरें चुरा कर तेजी से अपने कमरे की ओर चला गया था.

निभा की आंखें छलछला उठी थीं. निश्चल ने तो इस बारे में उस से कभी कुछ नहीं बताया. अब उसे अपना घर ही बदला बदला सा दिखाई पड़ रहा था. सबकुछ अनजाना, अनपहचाना सा लग रहा था. बस, बदला नहीं था तो उस का अपना कमरा.

वह देख रही थी कि जब से उस ने निशीथ को ‘पॉवर औफ एटौर्नी’ दी थी, उस के प्रति सब की निगाहें बदल सी गई थीं.

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“मम्मी जी, मैं जब से हौस्पिटल से लौट कर आई हूं, सुदेश काका मुझे नहीं दिखाई पड़ रहे हैं?”

मम्मी ने बताया, “निश्चल ने उसे बहुत सिर चढ़ा रखा था. एक दिन निशीथ के साथ वे बहस करते चले जा रहे थे. बस, उस को गुस्सा आ गया. अपने देवर को तो जानती ही हो कि उस की नाक पर गुस्सा रक्खा रहता है, उस ने कह दिया, ‘निकल जाओ और अपना मनहूस चेहरा यहां फिर मत दिखाना.’ वे भी चिल्ला कर बोले थे, ‘मालिक, हम तो बड़े भैया की वजह से यहां पर बने हुए थे, वरना मेरा लड़का तो मुझे कब से बुला रहा है.“ और वे अपना सामान ले कर चले गए, फिर लौट कर न तो फोन किया, न ही आए.”

यह सब सुन कर निभा दुखी हो गई थी. काका उन लोगों के दाहिने हाथ की तरह से थे, वे हर समय किसी भी काम के लिए तैयार रहते थे.

वह किचेन में गई तो उस का भी रंगरूप बदल चुका था. अब उस ने मौन रहना ही ठीक समझा. जहां उस का राजपाट था, अब वहां की मालकिन निशा बन चुकी थी. वह बच्चों के लिए दूध बनाने लगी तो बोर्नविटा नहीं दिखाई दिया. ”निशा, बोर्नविटा नहीं दिखाई दे रहा, उस का डब्बा कहां रखा है?”

“भाभी, बोर्नविटा तो खत्म हो गया है, कोई जरूरी थोड़े ही है कि बोर्नविटा डाल कर ही दूध पिया जाए. सादा दूध दे दीजिए.“ उस के भीतर कुछ दरक सा गया था.

उस ने चुपचाप बच्चों को दूध दिया और अपने कमरे में जा कर निश्चल की फोटो के सामने फफक पड़ी थी. जब नन्हें हाथों से रिनी और मिनी ने उस के आंसू पोछे तो उस ने दोनों को बांहों में भर लिया था.

नया नौकर प्रकाश निशा और मम्मीजी को पहचानता था लेकिन निभा को नहीं. निभा ने आवाज दी, “प्रकाश, बाजार से बोर्नविटा और 2 किलो सेब ले आना.”

“जी मैडम, रुपए दे दीजिए.“

वह यहांवहां बगलें झांकने लगी थी, तभी निशा तेजी से आई और एक फाइल उसे पकड़ा कर बोली, “प्रकाश, सर को पहले औफिस में यह फाइल दे कर आओ.”

निभा विस्फरित नेत्रों से सब देखती रह गई थी. वह मन ही मन कहने लगी, ‘प्लीज निश्चल, कुछ रास्ता दिखाइए ऐसे जिंदगी कैसे कटेगी…’

अगली सुबह प्रकाश बोर्नविटा का डब्बा और सेब की थैली उस को देते हुए बोला, “मैडमजी बोलीं हैं कि जो सामान चाहिए, एक दिन पहले बता दिया करिए, तभी आ पाएगा.“

यदि निशा या मम्मी जी कहतीं तो शायद उसे इतना बुरा न लगता लेकिन प्रकाश के यह कहने पर वह व्यथित हो उठी थी.

उसे घर आए लगभग 6 महीने से ज्यादा बीत चुका था. वह अपने लिए चाय बना रही थी. तभी निशा उसे सुनाने के लिए कह रही थी, ‘मम्मी जी, भाभी को समझा देना, अब भाईसाहब नहीं हैं और कोविड के कारण काम पहले जैसा नहीं चल रहा है, इसलिए अपनी राजशाही न दिखाया करें, सोचसमझ कर सामान मंगाया करें.’

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उस के दिल पर आघात पर आघात लगता जा रहा था. बच्चों के लिए बोर्नविटा नहीं, फल नहीं…

वह अपने कमरे में उदास बैठी थी. तभी मम्मी जी ने आवाज दी, “निभा, आज बूआ जी आ रही हैं. कोई हलके रंग का सूट पहन लेना. वे पुराने खयालों की हैं. माथे पर बिंदी भी मत लगाना.” समझदार के लिए इशारा काफी होता है. उस दिन उस ने अपने वार्डरोब से सारी रंगबिरंगी साड़ियां और सूट हटा दिए. फिर वह रो पड़ी… निश्चल, जब इतनी जल्दी आप को जाना था तो मेरे जीवन में इतने सारे रंग क्यों भर दिए थे.

अब तो सिलसिला चल निकला था. कभी बूआ तो कभी ताई तो कभी चाची- मिलने के नाम पर उसे रुलाने को आया करती थीं. वह कुछ नौर्मल होने की कोशिश करती कि फिर कोई आ धमकता और फिर वही गमगीन माहौल…

मम्मी जी का भी रवैया बदल गया था, “निभा, अब तुम निश्चल की विधवा हो. थोड़ा समझदारी से पहनाओढा करो. अब तुम्हारे हाथों में रंगबिरंगी चूड़ियों को देख कर लोग क्या कहेंगे. विधवा हो विधवा की तरह रहा करो.”

वे व्यंग्यबाण चला उस के अंतर्मन को लहुलुहान कर बाहर निकल रही थीं तभी निश्चल की बड़ी मौसी आ गईं. वे मम्मी जी पर नाराज हो कर बोलीं, “कैसी बात करती हो सुनैना, फूल सी बच्ची को ऐसा बोलते तुम्हारा जी नहीं दुखता?“ उन्होंने मम्मी जी के सामने ही उस के माथे पर बिंदी लगा दी थी और कहा, ”बेटी, तुम जैसे पहले रहतीं थीं वैसे ही रहा करो. सुनैना को तो तेरे से ज्यादा दूसरों की फिक्र हो रही है.” निभा उन के गले लग कर घंटों सिसकती रही थी.

आगे पढ़ें- सुबह के समय निशीथ निभा के कमरे में….

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- भाग 1- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

जयंत औफिस के बाद पुलिस थाने होते हुए घर पहुंचे थे. बहुत थक गए थे. शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत ज्यादा थके थे. शारीरिक श्रम जीवन में प्रतिदिन करना ही पड़ता है, परंतु पिछले 1 महीने से जयंत के जीवन में शारीरिक व मानसिक श्रम की मात्रा थकान की हद तक बढ़ गई थी. घर पर पत्नी मृदुला उन की प्रतीक्षा कर रही थी. प्रतिदिन करती है. उन के आते ही जिज्ञासा से पूछती है, ‘‘कुछ पता चला?’’ आज भी वही प्रश्न हवा में उछला. पत्नी को उत्तर पता था. जयंत के चेहरे की थकी, उदास भंगिमा ही बता रही थी कि कुछ पता नहीं चला था.

जयंत सोफे पर गिरते से बोले, ‘‘नहीं, परंतु आज पुलिस ने एक नई बात बताई है.’’

‘‘वह क्या?’’ पत्नी का कलेजा मुंह को आ गया. जिस बात को स्वीकार करने में जयंत और मृदुला इतने दिनों से डर रहे थे, कहीं वही सच तो सामने नहीं आ रहा था. कई बार सच जानतेसमझते हुए भी हम उसे नकारते रहते हैं. वे दोनों भी दिल की तसल्ली के लिए झूठ को सच मान कर जी रहे थे. हृदय की अतल गहराइयों से वे मान रहे थे कि सच वह नहीं था जिस पर वे विश्वास बनाए हुए थे. परंतु जब तक प्रत्यक्ष नहीं मिल जाता, वे अपने विश्वास को टूटने नहीं देना चाहते थे.

पत्नी की बात का जवाब न दे कर जयंत ने कहा, ‘‘एक गिलास पानी लाओ.’’

मृदुला को अच्छा नहीं लगा. वह पहले अपने मन की जिज्ञासा को शांत कर लेना चाहती थी. पति की परेशानी और उन की जरूरतों की तरफ आजकल उस का ध्यान नहीं जाता था. वह जानबूझ कर ऐसा नहीं करती थी, परंतु चिंता के भंवर में फंस कर वह स्वयं को भूल गई थी, पति का खयाल कैसे रखती?

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जल्दी से पानी का गिलास ला कर पति के हाथ में थमाया और फिर पूछा, ‘‘क्या बताया पुलिस ने?’’

पानी पी कर जयंत ने गहरी सांस ली, फिर लापरवाही से कहा, ‘‘कहते हैं कि अब हमारा बेटा जीवित नहीं है.’’

मृदुला उन को पकड़ कर रोने लगी. वे उस को संभाल कर पीछे के कमरे तक लाए और बिस्तर पर लिटा कर बोले, ‘‘रोने से क्या फायदा मृदुल, इस सचाई को हम स्वयं नकारते आ रहे थे, परंतु अब हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए.’’

मृदुला उठ कर बिस्तर पर बैठ गई, ‘‘क्या उन को कोई सुबूत मिला है?’’

‘‘हां, प्रमांशु के जिन दोस्तों को पुलिस ने पकड़ा था, उन्होंने कुबूल कर लिया है कि उन्होंने प्रमांशु को मार डाला है.’’

सुन कर मृदुला और तेजी से रोने लगी. इस बार जयंत ने उसे चुप कराने का प्रयास नहीं किया, बल्कि आगे बोलते रहे, ‘‘लाश नहीं मिली है. पुलिस ने कुछ हड्डियां बरामद की हैं, उन से पहचान असंभव है.’’

मृदुला का विलाप सिसकियों में बदल गया. फिर नाक सुड़कती हुई बोली, ‘‘हो सकता है, वे प्रमांशु की हड्डियां न हों.’’

‘‘हां, संभव है, इसीलिए पुलिस उन का डीएनए टैस्ट कर के पता करेगी कि वे प्रमांशु के शरीर की हड्डियां हैं या किसी और व्यक्ति की. उन्होंने हमें कल बुलाया है. हमारे ब्लड सैंपल लेंगे.’’

‘‘ब्लड सैंपल…’’ मृदुला चौंक गई. उस ने आतंकित भाव से जयंत को देखा.

जयंत ने आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘इस में डरने की क्या बात है? ब्लड सैंपल देने में कोई तकलीफ नहीं होती.’’

‘‘नहीं, लेकिन…’’ मृदुला का स्वर कांप रहा था.

‘‘इस में परेशानी की कोई बात नहीं है. डीएनए मिलेगा तो वह हमारा प्रमांशु होगा, नहीं मिलेगा तो कोई अनजान व्यक्ति होगा.’’ जयंत के कहने के बावजूद मृदुला के चेहरे से भय का साया नहीं गया. उस का हृदय ही नहीं, पूरा शरीर कांप रहा था. उस के शरीर का कंपन जयंत ने भी महसूस किया. उन्होंने समझा, बेटे की मृत्यु से मृदुला विचलित हो गई है. उन्होंने उस को दवा दे कर बिस्तर पर लिटा दिया. नींद कहां आनी थी, परंतु जयंत उसे अकेला छोड़ कर ड्राइंगरूम में आ गए. सोफे पर अधलेटे से हो कर वे अतीत के जाल में उलझ गए.

जयंत का पारिवारिक जीवन काफी सुखमय रहा था. मनुष्य के पास जब धन, वैभव और वैचारिक संपन्नता हो तो उस के जीवन में आने वाले छोटेछोटे दुख, कष्ट और तकलीफें कोई माने नहीं रखतीं. उन के पिताजी केंद्र सरकार की सेवा में उच्च अधिकारी थे. मां एक कालेज में प्रोफैसर थीं. उन की शिक्षा शहर के सब से अच्छे अंगरेजी स्कूल और फिर नामचीन कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने भी प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की और आज राजस्व विभाग में उच्च अधिकारी थे. उन की पत्नी मृदुला भी उच्च शिक्षित थी, परंतु वह नौकरी नहीं करती थी. वह समाजसेवा और घूमनेफिरने की शौकीन थी. शादी के बाद जब उस का उठनाबैठना जयंत के सीनियर अधिकारियों की बीवियों के साथ हुआ, तो उस की पहचान का दायरा बढ़ा और वह शहर के कई क्लबों और सभासमितियों की सदस्या बन गई थी. जयंत खुले विचारों के शिक्षित व्यक्ति थे, सो, पत्नी की आधुनिक स्वतंत्रता के पक्षधर थे. वह पत्नी के घूमनेफिरने, अकेले बाहर आनेजाने पर एतराज नहीं करते थे. पत्नी के चरित्र पर वे पूरा भरोसा करते थे.

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शादी के 5 साल तक उन के घर बच्चे का पदार्पण नहीं हुआ. जयंत इच्छुक थे, परंतु मृदुला नहीं चाहती थी. शादी के तुरंत बाद वह बच्चा पैदा कर के अपने सुंदर, सुगठित शरीर को बेडौल नहीं करना चाहती थी. वैसे भी वह घर और पति की तरफ अधिक ध्यान नहीं देती थी. इस के बजाय वह किटी पार्टियों व क्लबों में रमी खेलने में ज्यादा रुचि लेती थी. तब जयंत के मातापिता जीवित थे, परंतु मृदुला अपने ऊपर किसी का प्रतिबंध नहीं चाहती थी. वह वैचारिक और व्यावहारिक स्वतंत्रता की पक्षधर थी. इसलिए बाहर आनेजाने के मामले में वह किसी की बात नहीं सुनती थी. जयंत बेवजह घर में कोई झगड़ा नहीं चाहते थे, इसलिए पत्नी को कभी टोकते नहीं थे. उन का मानना था कि एक बच्चा होते ही वह घर और बच्चे की तरफ ध्यान देने लगेगी और तब वह क्लब की मौजमस्ती और किटी पार्टियां भूल जाएगी.

परंतु ऐसा नहीं हो सका. शादी के 5 साल बाद उन के यहां बच्चा हुआ, तो भी मृदुला की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. कुछ दिन बाद ही उस ने क्लबों की पार्टियों में जाना प्रारंभ कर दिया. बच्चा आया (मेड) और जयंत के भरोसे पलने लगा. जब तक जयंत के मातापिता जीवित रहे तब तक उन्होंने प्रमांशु को संभाला, परंतु जब वह 10 साल का हुआ तो उस के दादादादी एकएक कर दुनिया से चल बसे. बच्चा स्कूल से आ कर घर में अकेला रहता, टीवी देखता या बाल पत्रिकाएं पढ़ता, जिन को जयंत खरीद कर लाते थे ताकि प्रमांशु का मन लगा रहे. वह आया से भी बहुत कम बात करता था.

आगे पढ़ें- धीरेधीरे प्रमांशु बड़ा हो रहा था. परंतु…

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- भाग 2- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

शाम को जयंत घर लौटते तो वे उस का होमवर्क पूरा करवाते, कुछ देर उस के साथ खेलते और खाना खिला कर सुला देते. रात के 10 बजने के बाद कहीं मृदुला किटी पार्टियों या क्लब से लौट कर आती. तब उसे इतना होश न रहता कि वह प्रमांशु के साथ दो शब्द बोल कर उस के ऊपर ममता की दो बूंदें टपका सके. उस ने तो कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि उस का पेटजाया बच्चा किस प्रकार पलबढ़ रहा था, उसे कोई दुख या परेशानी है या नहीं, वह मां के आंचल की ममतामयी छांव के लिए रोता है या नहीं. वह मां से क्या चाहता है, कभी मृदुला ने उस से नहीं पूछा, न प्रमांशु ने कभी उसे बताया. उन दोनों के बीच मांबेटे जैसा कोई रिश्ता था ही नहीं. मांबेटे के बीच कभी कोई संवाद ही नहीं होता था.

धीरेधीरे प्रमांशु बड़ा हो रहा था. परंतु मृदुला उसी तरह क्लबों व किटी पार्टियों में व्यस्त थी. अब भी वह देर रात को घर लौटती थी. जयंत ने महसूस किया कि प्रमांशु भी रात को देर से घर लौटने लगा है, घर आते ही वह अपने कमरे में बंद हो जाता है, जयंत मिलने के लिए उस के कमरे में जाते तो वह दरवाजा भी नहीं खोलता. पूछने पर बहाना बना देता कि उस की तबीयत खराब है. खाना भी कई बार नहीं खाता था. जयंत की समझ में न आता कि वह इतना एकांतप्रिय क्यों होता जा रहा था. वह हाईस्कूल में था. जयंत को पता न चलता कि वह अपना होमवर्क पूरा करता है या नहीं. एक दिन जयंत ने उस से पूछ ही लिया, ‘बेटा, तुम रोजरोज देर से घर आते हो, कहां रहते हो? और तुम्हारा होमवर्क कैसे पूरा होता है? कहीं तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ?’

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‘पापा, आप मेरी बिलकुल चिंता न करें, मैं स्कूल के बाद अपने दोस्तों के घर चला जाता हूं. उन्हीं के साथ बैठ कर अपना होमवर्क भी पूरा कर लेता हूं,’ प्रमांशु ने बड़े ही आत्मविश्वास से बताया. जयंत को विश्वास तो नहीं हुआ, परंतु उन्होंने बेटे की भावनाओं को आहत करना उचित नहीं समझा. बात उतनी सी नहीं थी, जितनी प्रमांशु ने अपने पापा को बताई थी. जयंत भी लापरवाह नहीं थे. वे प्रमांशु की गतिविधियों पर नजर रखने लगे थे. उन्हें लग रहा था, प्रमांशु किन्हीं गलत गतिविधियों में लिप्त रहने लगा था. घर आता तो लगता उस के शरीर में कोई जान ही नहीं है, वह गिरतापड़ता सा, लड़खड़ाता हुआ घर पहुंचता. उस के बाल उलझे हुए होते, आंखें चढ़ी हुई होतीं और वह घर पहुंच कर सीधे अपने कमरे में घुस कर दरवाजा अंदर से बंद कर लेता. जयंत के आवाज देने पर भी दरवाजा न खोलता. दूसरे दिन भी दिन चढ़े तक सोता रहता.

यह बहुत चिंताजनक स्थिति थी. जयंत ने मृदुला से इस का जिक्र किया तो वह लापरवाही से बोली, ‘इस में चिंता करने वाली कौन सी बात है, प्रमांशु अब जवान हो गया है. अब उस के दिन गुड्डेगुडि़यों से खेलने के नहीं रहे. वह कुछ अलग ही करेगा.’

और उस ने सचमुच बहुतकुछ अलग कर के दिखा दिया, ऐसा जिस की कल्पना जयंत क्या, मृदुला ने भी नहीं की थी.

प्रमांशु ने हाईस्कूल जैसेतैसे पास कर लिया, परंतु नंबर इतने कम थे कि किसी अच्छे कालेज में दाखिला मिलना असंभव था. आजकल बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा और कोचिंग आदि की सुविधा होने के कारण वे शतप्रतिशत अंक प्राप्त करने लगे थे. हाई स्कोरिंग के कारण 90 प्रतिशत अंक प्राप्त बच्चों के ऐडमिशन भी अच्छे कालेजों में नहीं हो पा रहे थे. जयंत ने अपने प्रभाव से उसे जैसेतैसे एक कालेज में ऐडमिशन दिलवा दिया, परंतु पढ़ाई जैसे प्रमांशु का उद्देश्य ही नहीं था. उस की 17-18 साल की उम्र हो चुकी थी. अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि वह ड्रग्स के साथसाथ शराब का सेवन भी करने लगा था. जयंत के पैरों तले जमीन खिसक गई. प्यार और ममता से वंचित बच्चे क्या इतना बिगड़ जाते हैं कि ड्रग्स और शराब का सेवन करने लगते हैं? इस से उन्हें कोई सुकून प्राप्त होता है क्या? अपने बेटे को सुधारने के लिए मांबाप जो यत्न कर सकते हैं, वे सभी जयंत और मृदुला ने किए. प्रमांशु के बिगड़ने के बाद मृदुला ने क्लबों में जाना बंद कर दिया था. सोसायटी की किटी पार्टियों में भी नहीं जाती थी.

प्रमांशु की लतों को छुड़वाने के लिए जयंत और मृदुला ने न जाने कितने डाक्टरों से संपर्क किया, उन के पास ले कर गए, दवाएं दीं, परंतु प्रमांशु पर इलाज और काउंसलिंग का कोई असर नहीं हुआ. उलटे अब उस ने घर आना ही बंद कर दिया था. रात वह अपने दोस्तों के घर बिताने लगा था. उस के ये दोस्त भी उस की तरह ड्रग एडिक्ट थे और अपने मांबाप से दूर इस शहर में पढ़ने के लिए आए थे व अकेले रहते थे. जयंत के हाथों से सबकुछ फिसल गया था. मृदुला के पास भी अफसोस करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. प्रमांशु पहले एकाध रात के लिए दोस्तों के यहां रुकता, फिर धीरेधीरे इस संख्या में बढ़ोतरी होने लगी थी. अब तो कई बार वह हफ्तों घर नहीं आता था. जब आता था, जयंत और मृदुला उस की हालत देख कर माथा पीट लेते, कोने में बैठ कर दिल के अंदर ही रोते रहते, आंसू नहीं निकलते, परंतु हृदय के अंदर खून के आंसू बहाते रहते. अत्यधिक ड्रग्स के सेवन से प्रमांशु जैसे हर पल नींद में रहता. लुंजपुंज अवस्था में बिस्तर पर पड़ा रहता, न खाने की सुध, न नहानेधोने और कपड़े पहनने की. उस की एक अलग ही दुनिया थी, अंधेरे रास्तों की दुनिया, जिस में वह आंखें बंद कर के टटोलटटोल कर आगे बढ़ रहा था.

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जयंत के पारिवारिक जीवन में प्रमांशु की हरकतों की वजह से दुखों का पहाड़ खड़ा होता जा रहा था. जयंत जानते थे, प्रमांशु के भटकने की असली वजह क्या थी, परंतु अब उस वजह को सुधार कर प्रमांशु के जीवन में सुधार नहीं लाया जा सकता था. मृदुला अब प्रमांशु के ऊपर प्यारदुलार लुटाने के लिए तैयार थी, इस के लिए उस ने अपने शौक त्याग दिए थे, परंतु अब समय उस के हाथों से बहुत दूर जा चुका था, पहुंच से बहुत दूर. इस बात को ले कर किसी को दोष देने का कोई औचित्य भी नहीं था. जयंत और मृदुला परिस्थितियों से समझौता कर के किसी तरह जीवन के साथ तालमेल बिठा कर जीने का प्रयास कर रहे थे कि तभी उन्हें एक और झटका लगा. पता चला कि प्रमांशु समलैंगिक रिश्तों का भी आदी हो चुका था.

जयंत की समझ में नहीं आ रहा था, यह कैसे जीन्स प्रमांशु के खून में आ गए थे, जो उन के खानदान में किसी में नहीं थे. जहां तक उन्हें याद है, उन के परिवार में ड्रग्स लेने की आदत किसी को नहीं थी. पार्टी आदि में शराब का सेवन करना बुरा नहीं माना जाता था, परंतु दिनरात पीने की लत किसी को नहीं लगी थी. और अब यह समलैंगिक संबंध…?

जयंत की लाख कोशिशों के बावजूद प्रमांशु में कोई सुधार नहीं हुआ. घर से उस ने अपना नाता पूरी तरह से तोड़ लिया था. उस की दुनिया उस के ड्रग एडिक्ट और समलैंगिक दोस्तों तक सिमट कर रह गई थी. उन के साथ वह यायावरी जीवन व्यतीत कर रहा था. बेटा चाहे घरपरिवार से नाता तोड़ ले, मांबाप के प्रति अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाए, परंतु मांबाप का दिल अपनी संतान के प्रति कभी खट्टा नहीं होता. जयंत अच्छी तरह समझ गए थे कि प्रमांशु जिस राह पर चल पड़ा था, उस से लौट पाना असंभव था. ड्रग और शराब की आदत छूट भी जाए तो वह अपने समलैंगिक संबंधों से छुटकारा नहीं पा सकता था. इस के बावजूद वे उस की खोजखबर लेते रहते थे. फोन पर बात करते और मिल कर समझाते, मृदुला से भी उस की बातें करवाते. वे दोनों ही उसे बुरी लतों से छुटकारा पाने की सलाह देते.

आगे पढ़ें- जयंत और मृदुला को नहीं लगता था कि…

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- भाग 3- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

जयंत और मृदुला को नहीं लगता था कि प्रमांशु कभी अपनी लतों से छुटकारा पा सकेगा. परंतु नहीं, प्रमांशु ने अपनी सारी लतों से एक दिन छुटकारा पा लिया. उस ने जिस तरह से अपनी आदतों से छुटकारा पाया था, इस की जयंत और मृदुला को न तो उम्मीद थी न उन्होंने ऐसा सोचा था. एक दिन प्रमांशु के किसी मित्र ने जयंत को फोन कर के बताया कि प्रमांशु कहीं चला गया है और उस का पता नहीं चल रहा है. जयंत तुरंत उस मित्र से मिले. पूछने पर उस ने बताया कि इन दिनों वह अपने पुराने दोस्तों को छोड़ कर कुछ नए दोस्तों के साथ रहने लगा था. इसी बात पर उन लोगों के बीच झगड़ा और मारपीट हुई थी. उस के बाद प्रमांशु कहीं गायब हो गया था. उस मित्र से नामपता ले कर जयंत उस के नएपुराने सभी दोस्तों से मिले, खुल कर उन से बात की, परंतु कुछ पता नहीं चला. जयंत ने अनुभव किया कि कहीं न कहीं, कुछ बड़ी गड़बड़ है और हो सकता है, प्रमांशु के साथ कोई दुर्घटना हो गई हो.

दुर्घटना के मद्देनजर जयंत ने पुलिस थाने में प्रमांशु की गुमशुदगी की रपट दर्ज करा दी. जवान लड़के की गुमशुदगी का मामला था. पुलिस ने बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया. परंतु जब जयंत ने प्रमांशु की हत्या की आशंका व्यक्त की और पुलिस के उच्च अधिकारियों से बात की तो पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया और प्रमांशु के दोस्तों से गहरी पूछताछ की. जयंत लगभग रोज पुलिस अधिकारियों से बात कर के तफ्तीश की जानकारी लेते रहते थे, स्वयं शाम को थाने जा कर थाना प्रभारी से मिल कर पता करते. थानेदार ने उन से कहा भी कि उन्हें रोजरोज थाने आने की जरूरत नहीं थी. कुछ पता चलनेपर वह स्वयं उन को फोन कर के या बुला कर बता देगा, परंतु जयंत एक पिता थे, उन का दिल न मानता.

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और आज पुलिस ने संभावना व्यक्त की थी कि प्रमांशु की हत्या हो चुकी थी. उस के दोस्तों की निशानदेही पर पुलिस ने कुछ हड्डियां भी बरामद की थीं. चूंकि प्रमांशु की देह नहीं मिली थी, उस की पहचान सिद्ध करने के लिए डीएनए टैस्ट जरूरी था. जयंत और मृदुला का खून लेने के लिए पुलिस ने कल उन्हें थाने बुलाया था. वहां से अस्पताल जाएंगे. रात में फिर मृदुला ने शंका व्यक्त की, ‘‘पता नहीं, पुलिस किस की हड्डियां उठा कर लाई है और अब उन्हें प्रमांशु की बता कर उस की मौत साबित करना चाहती है. मुझे लगता है, हमारा बेटा अभी जिंदा है.’’

‘‘हो सकता है, जिंदा हो. और पूरी तरह स्वस्थ हो. फिर भी मैं चाहता हूं, एक बार पता तो चले कि हमारे बेटे के साथ क्या हुआ है. वह जिंदा है या नहीं, कुछ तो पता चले.’’

‘‘परंतु जंगल से किसी भी व्यक्ति की हड्डियां उठा कर पुलिस कैसे यह साबित कर सकती है कि वे हमारे बेटे की ही हड्डियां हैं?’’

‘‘इसीलिए तो वह डीएनए परीक्षण करवा रही है,’’ जयंत ने मृदुला को आश्वस्त करते हुए कहा.

दूसरे दिन वे दोनों ब्लड सैंपल दे आए. एक महीने के बाद जयंत के पास थानेदार का फोन आया, ‘‘डीएनए परीक्षण की रिपोर्ट आ गई है. आप थाने पर आ कर मिल लें.’’

‘‘क्या पता चला?’’ उन्होंने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘आप आ कर मिल लें, तो अच्छा रहेगा,’’ थानेदार ने गंभीर स्वर में कहा. जयंत औफिस में थे. मन में शंका पैदा हुई, थानेदार ने स्पष्ट रूप से क्यों नहीं बताया? उन्होंने मृदुला को फोन कर के बताया कि डीएनए की रिपोर्ट आ गई है. वे घर आ रहे हैं, दोनों साथसाथ थाने चलेंगे. घर से मृदुला को ले कर जंयत थाने पहुंचे. थानेदार ने उन का स्वागत किया. मृदुला कुछ घबराई हुई थी, परंतु जयंत ने स्वयं को तटस्थ बना रखा था. किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए वे तैयार थे.

थानेदार ने जयंत से कहा, ‘‘आप मेरे साथ आइए,’’ फिर मृदुला से कहा, ‘‘आप यहीं बैठिए.’’ जयंत को एक अलग कमरे में ले जा कर थानेदार ने जयंत से कहा, ‘‘सर, बात बहुत गंभीर है, इसलिए केवल आप से बता रहा हूं. हो सकता है सुन कर आप को सदमा लगे, परंतु सचाई से आप को अवगत कराना भी मेरा फर्ज है. डीएनए परीक्षण के मुताबिक जिस व्यक्ति की हड्डियां हम ने बरामद की थीं, वे प्रमांशु की ही हैं.’’

जयंत को यही आशंका थी. उन्होंने अपने हृदय पर पत्थर रख कर पूछा, ‘‘परंतु उस की हत्या कैसे और क्यों हुई?’’

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‘‘उस के जिन दोस्तों को हम ने पकड़ा था, उन से पूछताछ में यही पता चला था कि प्रमांशु ने अपने कुछ पुराने दोस्तों से संबंध तोड़ कर नए दोस्त बना लिए थे. पुराने दोस्तों को यह बरदाश्त नहीं हुआ. उन्होंने उस से संबंध जारी रखने के लिए कहा, तो प्रमांशु ने मना कर दिया. यही उस की हत्या का कारण बना.’’

‘‘क्या हत्यारे पकड़े गए?’’

‘‘हां, वे जेल में हैं. अगले हफ्ते हम अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर देंगे.’’ जयंत ने गहरी सांस ली.

‘‘सर, एक और बात है, जो हम आप से छिपाना नहीं चाहते क्योंकि अदालत में जिरह के दौरान आप को पता चल ही जानी है.’’

‘क्या बात है’ के भाव से जयंत ने थानेदार के चेहरे को देखा.

‘‘सर, प्रमांशु आप की पत्नी का बेटा तो है, परंतु वह आप का बेटा नहीं है,’’ थानेदार ने जैसे धमाका किया. जयंत की आंखें फटी की फटी रह गईं और मुंह खुला का खुला रहा गया. उन्हें चक्कर सा आया. कुरसी पर न बैठे होते तो शायद गिर जाते. जयंत कई पल तक चुपचाप बैठे रहे. थानेदार भी नहीं बोला, वह जयंत के दिल की हालत समझ सकता था. कुछ पल बाद जयंत ने शांत स्वर में कहा, ‘‘थानेदार साहब, जो होना था, हो गया. अब प्रमांशु कभी वापस नहीं आ सकता, परंतु जिस झूठ को अनजाने में हम सचाई मान कर इतने दिनों से जी रहे थे, वह झूठ सचाई ही बना रहे तो अच्छा है. यह हमारे दांपत्य जीवन के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘क्या मतलब, सर?’’ थानेदार की समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘आप मेरी पत्नी को यह बात मत बताइएगा कि मुझे पता चल गया है कि मैं प्रमांशु का पिता नहीं हूं.’’

थानेदार सोच में पड़ गया, फिर बोला, ‘‘जी सर, यही होगा. मैं आप की पत्नी को गवाह नहीं बनाऊंगा.’’

‘‘हां, यही ठीक होगा. बाकी मैं संभाल लूंगा.’’

‘‘जी सर.’’

जयंत थके उदास कदमों से मृदुला को कंधे से पकड़ कर थाने के बाहर निकले. मृदुला बारबार उतावली सी पूछ रही थी, ‘‘क्या हुआ? थानेदार ने क्या बताया? डीएनए परीक्षण से क्या पता चला? क्या वह हमारा प्रमांशु ही था?’’

गाड़ी में बैठते हुए जयंत ने मृदुला के सिर को अपने कंधे पर टिकाते हुए कहा, ‘‘मृदुल, तुम अपने को संभालो, वह हमारा ही बेटा था. अब वह इस दुनिया में नहीं रहा.’’ मृदुला हिचकियां भर कर रोने लगी.

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Social Story In Hindi: मैं कमजोर नहीं हूं- भाग 2- मां और बेटी ने किसे सिखाया सबक

कहने लगा, ‘तुम बिन ब्याही बच्चे की मां हो,?’ इस सवाल पर मैं सन्न रह गई. मेरे बुरे समय ने यहां भी मेरा पीछा न छोड़ा. पहले तो खुद को संयत किया, फिर बोली, ‘इतने बड़े आरोप के पीछे आप के पास सुबूत क्या है?’

कहने लगा कि जिस अस्पताल में तुम ने बच्चा जना था उस की नर्स मुझे जानती थी. वह मेरे गांव की रहने वाली थी. एक दिन तुम और मैं एक मौल में खरीदारी कर रहे थे. तभी उस नर्स नें तुम्हें पहचान लिया. उस ने एक दिन मुझे अपने घर बुलाया, फिर तुम्हारे बारे में पूछा. मैं ने बताया कि तुम मेरी पत्नी हो. मैं ने महसूस किया कि वह मुझ से कुछ बताना चाहती है मगर संकोचवश नहीं कह रही थी. मैं ने जोर दिया. तो वह बेाली, ‘क्या अपनी पत्नी के बारे में तुम ने कुछ पता किया था?’

‘मैं कुछ समझा नहीं?’

‘जैसे, वह कहां की रहने वाली है, उस का घरपरिवार कैसा है, लड़की का चालचलन कैसा है?’

‘मेरे पापा और उस के पापा एक ही औफिस में काम करते थे. सजातीय होने के कारण मेरे पापा ने बात चलाई. लड़की देखी, अच्छी लगी, पढ़ीलिखी थी. उन्होंने दहेज भी काफी दिया. नर्स ने यहीं बात खत्म करनी चाही मगर मैं ने सत्य उगलवा कर ही दम लिया.

मेरे पति के कथन से मुझे गहरी निराशा हुई. एक स्त्री से मुझे ऐसी उम्मीद न थी. उस ने मेरा बसाबसाया घर उजाड़ दिया. सत्य सत्य होता है. वह लाख छिपाने पर भी नहीं छिपता. मुझे मांपापा दोनों पर गुस्सा आया क्यों नहीं साफसाफ बता कर शादी की. अगर उसे मेरी जरूरत होती तो शादी करता, वरना मैं जैसे थी वैसी ही खुश थी.

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दुख तो बहुत हुआ मगर मैं ने भी सोच लिया था कि रोनेधोने से काम नहीं चलेगा. शादी कोई अंतिम रास्ता नहीं. मुझे बरगला कर मेरा यौनशोषण करने वाला चैन की जिंदगी जिए और मैं तिलतिल कर खुद को जलाऊं और अपने समय को कोसूं. नहीं, ऐसा नहीं होगा. मैं जिऊंगी और अपनी शर्तो पर.

मांपापा दोनों दुखी थे. मैं ने कहा, ‘आप मुझे या खुद को क्यों अपराधी मानते हैं? शादी का संबंध बच्चे पैदा करना होता है. तो वह मैं ने बिन ब्याहे कर दिया. अब रहा किसी के साथ का, तो मेरे समय में लिखा होगा तो कोई न कोई मिल ही जाएगा जो सबकुछ जानते हुए भी मुझे अपनाने से गुरेज नहीं करेगा. वास्तव में मुझे ऐसे ही इंसान की जरूरत है.’

चित्त शांत हुआ तो मैं ने एक कंपनी में नौकरी कर ली. एक रोज एक दंपती ने मेरे फ्लैट के दरवाजे पर दस्तक दी. मां ने दरवाजा खोला. उस वक्त मैं दूसरे कमरे में थी. वे लोग मां के जानपहचान के थे. उन्हें देख कर मां के माथे पर बल पड़ गए. मां ने उन्हें डाइंनिग रूम में बिठाया. उन के साथ एक 8 साल का लड़का भी था. लड़के को मेरे कमरे में भेज कर मां न जाने क्या उन के साथ खुसुरफुसुर करती रहीं. इस बीच वह लड़का मेरे साथ घुलमिल गया. करीब आधे घंटे के बाद मैं ने देखा कि वे दंपती जा चुके थे. मुझे आश्चर्य हुआ क्येांकि वह लडका तो यहीं रह गया. जब उस लडके को पता चला कि उस के कथित मांबाप चले गए तो वह रोने लगा. मुझे दया आई. उसे सीने से लगा कर चुप कराने लगी.

‘मम्मी, इसे क्यों नहीं ले गई?’ मैं ने अपनी मां से पूछा. मां ने इशारे से मुझे चुप करा दिया.

‘अब यह यहीं रहेगा.’ कहने को तो मां ने कह दिया मगर तत्काल उस में सुधार करते हुए बोलीं, ‘कुछ दिनेां के लिए. जैसे ही इस के मांबाप विदेश से आ जाएंगे, यह उन्हीं के पास चला जाएगा.‘

मुझे मां के कथन संदिग्ध लगे. उन्हें अन्य कमरे में ले जा कर वस्तुस्थिति की सहीसही जानकारी हासिल करने का प्रयास किया तो मां कहने लगीं, ‘तुम से क्या छिपाना. यह तुम्हारा ही बेटा है.’ यह सुनते ही मैं क्षणांश भावविभोर हो गई. मां आगे बोलीं, ‘इसी बच्चे को तुम ने जन्म दिया था. लोकलाज के भय से मैं ने इस बच्चे को जन्मते ही अपने एक रिश्तेदार को दे दिया था. वे निसंतान थीं. मगर अब उन की अपनी औलाद हो चुकी है. वे इसे रखने के लिए तैयार नहीं हैं.’

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मैं ने उस लड़के को देखा. वह अब भी रोए जा रहा था. मेरे दिल में मां की ममता उमड़ पड़ी. कितना अभागा था यह बच्चा. असल मां जिंदा थी तो भी गैर के पास पल रहा था? यह सोच कर मेरा कलेजा फट गया. उसे सीने से लगाया, मेरा मन भीग गया था. वह लड़का मेरे लिए अंधेरे में चिराग की तरह था. कुदरत को मैं ने लाखलाख धन्यवाद दिया जिस ने मुझे जीने का मकसद दे दिया. मैं ने बच्चे का नाम पूछा, तो उस ने आकाश बताया. जब वह शांत हुआ तो मां ने मुझे एकांत में बुला कर दबे स्वर में कहा, ‘अभी इस के सामने तुम्हें मां बताना मुनासिब नहीं होगा. तुम इसे इतना प्यार दो कि वह अपने पूर्व मांबाप को भूल जाए. फिर मौका देख कर बता देना कि तुम इस की असली मां हो.’

‘क्या वह मानेगा, क्या वह यह नहीं पूछेगा कि मैं इतने दिन कहां रही, मेरे पिता कहां है? तब?’

‘तब की तब देखी जाएगी. अभी मैं जैसा कह रही हूं वैसा ही करो.’ मां ने यह कहा तो मुझे उन से तर्क करना मुनासिब न लगा. मैं कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में आई. उस के करीब आ कर प्यार से पुचकारते हुए बोली, ‘मैं तुम्हें आकाश नाम से पुकारूं, तो कैसा लगेगा?’ नाक सुघड़ते हुए वह बोला, ‘अच्छा.’

‘तो ठीक है आकाश, आज मैं तुम्हें आइसक्रीम खिलाने ले चलती हूं, कैसा रहेगा?’ मैं खुश थी. मेरे प्यार की तपिश पा कर उस के चेहरे पर मुसकान की रेखाएं खिंच गईं. जल्दीजल्दी मैं ने अपने कपड़े बदले. उस को ले कर आइसक्रीम पार्लर में पहुंची. उस दिन मैं ने आकाश पर जीभर प्यार उड़ेला. क्यों न उड़ेलती. वह मेरे शरीर का अंश था. वर्षों तक उस के रूपरंग को ले कर तरसती रहती थी कि आज मेरा बेटा जिंदा होता तो कैसा होता. मां ने कहा था कि वह मरा हुआ पैदा हुआ था. अगर जिंदा भी बतातीं तो क्या मैं उसे पालने लायक थी? मैं तो उस वक्त खुद एक बच्ची थी.

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Social Story In Hindi: मैं कमजोर नहीं हूं- भाग 4- मां और बेटी ने किसे सिखाया सबक

‘‘वे करते क्या हैं?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम. बस, इतना जानती थी कि उन का परिवार बहुत अमीर और संपन्न था.’’

‘‘उन्होंने आप से शादी क्येां नहीं की?‘‘

“मेरे मम्मीपापा जानते थे कि वे लेाग काफी अमीर हैं. वे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. बिना वजह बदनामी होगी, इसलिए उन्होंने कभी पहल नहीं की.’’

अब आकाश को निर्णय लेना था कि वह इसे किस रूप में लेता है. उस के चेहरे के बनतेबिगड़ते भावों को देख कर लगा कि वह अंदर से बेचैन था. यह देख कर मैं डर गई. कहीं कोई ऊंचनीच न कर बैठे. तब तो मैं कहीं की न रहूंगी. आधा घंटा गुजर गया. आकाश ऐसे ही गुमसुम किन्हीं बेखयालों में खोया रहा. मैं उस के करीब बैठी रही. दुखद स्मृतियां मन पर बोझ होती हैं. बेशक कह कर मैं ने अपना बोझ हलका कर लिया, इस के बावजूद मन के एक कोने में भविष्य को ले कर आशंकाएं हिलोरें मार रही थीं. मेरा भविष्य आकाश था. यदि आकाश को कुछ हो गया तो मैं कहीं की न रहूंगी, यह सोच कर मैं बुरी तरह भय से कांप गई. उठ कर किचेन में गई. आकाश के लिए एक गिलास पानी लाई. गिलास उस की तरफ बढ़ाया. गिलास पकड़ते हुए उस ने एक नजर मेरी तरफ फेंका. उस की नजर में मैं ने एक बदलाव देखा, जो आशाजनक लगा.

‘‘मैं ने एक निश्चय किया है.’’ उस के कथन ने मुझे संशय में डाल दिया.

“मम्मी, जिस ने तुम्हारी जिंदगी बरबाद की है, मैं उसे दंड दिलाना चाहता हूं. क्या तुम इस के लिए तैयार हो?’’ मेरे लिए यह आशा की किरण की तरह था. आकाश को ले कर जैसा सोचा था वह उस के विपरीत निकला. यह मेरे लिए सुकून की बात थी. वहीं, यह सोच कर दिल बैठने लगा कि फिर से गड़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे. जिन्हें नहीं पता होगा, वे भी जान जाएंगे. ऐसे में जो सामाजिक रुसवाइयां होंगी, उन का कैसे सामना करूंगी?

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“मम्मी, ज्यादा सोचविचार की जरूरत नहीं. जब मुझे परेशानी नहीं, तो आप क्यों परेशान हैं? मैं उस व्यक्ति को बेनकाब करना चाहता हूं जिस ने हम दोनों की जिंदगी तबाह की है और खुद इज्जत की जिंदगी जी रहा है.’’

‘‘फिर भी, लेाग क्या कहेंगे?’’ मैं बोली.

‘‘इस की चिंता अब क्यों कर रही हैं? जिस से छिपाना था उस से तो छिप न सका यानी मुझ से, तो समाज से क्या छिपाना. सच सामने आएगा, तो निश्चय ही लोग हमारी तारीफ करेंगे. समय बदल रहा है.’’

आकाश के कथन से मुझे बल मिला. क्यों स्त्री ही हमेशा पुरुष के व्यभिचार को सहे. कुकर्म पुरुष करे और ताउम्र स्त्री छिपाए? बिन अपराध के अपराधबोध के बोझ को ढोए? क्या यह खुद के प्रति अन्याय नहीं है?

“तुम क्या उसे पिता मानोगे?’’ मैं ने पूछा?

‘‘जन्म दिया है, तो पिता कहलाएगा ही. मगर जो सम्मान उसे देना चाहिए वह उसे कभी नहीं. उस ने तुम्हें, हमें जिल्लत की जिंदगी दी है. मैं चाहता हूं कि उसे उस के किए की सजा मिले.’’ आकाश के दृढ़ निश्चय के सामने मैं नतमस्तक हो गई. मेरे मन से दुविधा की धुंध छंट चुकी थी. एक लंबी लडाई के लिए हम मांबेटे संघर्ष के रास्ते पर चल पड़े.

‘‘यह इतना आसान नहीं होगा, वे बड़े लेाग हैं. आप को पहचानेंगे ही नहीं. हो सकता है रुपयों का लालच दें. तिस पर नहीं मानी तो जान से मारने की धमकी दें,” वकील ने कहा.

‘‘इस जिल्लतभरी जिंदगी से अच्छा है मर जाना. जब मेरा कोई बाप ही नहीं है तो मैं क्या मुंह दिखा कर समाज में जिऊंगा?’’आकाश ने वकील से कहा. वकील संवेदनशील था. कुछ सोच कर बोला, ‘‘ठीक है, मैं जल्द ही तुम्हारी तरफ से केस दायर करता हूं. कानूनी अडचनें आएंगी. समय लगेगा. मगर मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हें न्याय मिलेगा.’’

‘‘समय क्येां लगेगा?’’

‘‘वे जल्दी जैवकीय टैस्ट करवाने के लिए तैयार नहीं होंगे. हजार बहाने बनाएंगे.’’

‘‘तो क्या हुआ, एक न एक दिन उन्हें तैयार होना ही पड़ेगा,’’ आकाश बोला.

आकाश के पिता का कोई वारिस नहीं था. उन्होंने शादी तो की थी पर निसंतान थे. करोड़ों की संपत्ति थी. संयुक्त परिवार था. लिहाजा, उन्होंने अपने जीतेजी अपनी सारी संपत्ति संयुक्त परिवार के नाम कर दी थी. यह बात वकील की मारफत मुझे पता चली. विडंबना देखिए, जिस से औलाद हुई वह संबंध अवैध था, वहीं जो वैध था उस से केाई संतान हीं नहीं.

अनुज को नेाटिस मिली तो वे बेहद विचलित हो गए. इस उम्र में उन के दामन पर दाग लगे, यह उन्हें गवारा न था. पहले तो छिपाया, मगर छिपा न सके. सब को पता चल गया कि उन्होंने कुंआरेपन में एक लड़की का यौनशोषण किया था. वे भूल चुके थे. वे तो यह भी नहीं जानते थे कि मैं एक बच्चे की मां हूं. सोचे होगें कि यदि मैं मां बनी भी होगी तो कौन कुंआरी मां बनना चाहेगा, लिहाजा, एबौर्शन करा कर छुटटी कर ली होगी. पर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था.

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बदनामी के भय से उन्होंने मेरे वकील को अपने घर बुलाया. वकील ने मेरे हक की बात की.

‘‘वह झूठ भी तो बोल सकती है. एक करोड़पति आदमी की संपत्ति पर हक जताने के लिए ऐसा कर रही हो?’’ अनुज बोले.

‘‘इस के लिए जैवकीय टैस्ट है न. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा,’’ वकील बोले, ‘‘वैसे, एक रास्ता है.’’ वकील ने आगे कहा.

‘‘वह क्या?’’ अनुज की पेशानी पर बल पड़ गए.

‘‘आप अच्छी तरह जानते हैं कि वह कौन है. इसलिए मैं आप को यही राय दूंगा कि उसे स्वीकार कर लीजिए. बिना वजह कोर्ट में उलटेपुलते सवाल पूछे जाएंगे. उस के बाद जैवकीय टैस्ट होगा, फिर आप को उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है, मगर मेरे परिवार वाले कैसे मानेंगे कि वह मेरा ही पुत्र है. उन्हें पुख्ता सुबूत चाहिए. मेरी भी शंका का समाधान होना चाहिए.’’

‘‘यानी, आप आकाश को पुत्र के रूप स्वीकार करने के लिए तैयार हैं?’’

कुछ सोच कर अनुज बोले, “अपनी औलाद का मोह किसे नहीं होता?’’ उन का स्वर नम्र पड़ गया, ‘‘कहने को तेा मेरे चचेरे भाईभतीजे बहुत हैं मगर मेरा अपना कहने वाला कोई नहीं.’’ अनुज के कथन से लगा कि उन्हें संतान न होने की कसक थी. कोर्ट के फैसले के तहत पिता व पुत्र का जैवकीय टैस्ट हुआ. रिपोर्ट पौजिटिव थी, जान कर हम दोनों की खुशी की सीमा न रही. अनुज को आकाश को पिता का नाम देना ही पड़ा. चचेरे भाइयों ने आकाश का भरसक विरोध किया. उन्होंने अपने वकील से भी राय ली.

‘‘यदि उन दोनों के शारीरिक संबध से कोई संतान होती है तो कानूनन जैवकीय पिता की संपत्ति पर उस संतान और उस की मां का पत्नी के समान हक है. यह नियम लिवइन रिलेशन में भी लागू होता है,’’ वकील ने समझाया.

‘‘शादी न हुई हो, तब भी?’’ चेचेरे भाई ने पूछा.

‘‘हां, तब भी. वह स्त्री, पत्नी के रूप में ही जानी जाएगी.’’

वे सब कानून के आगे लाचार थे.

‘‘मम्मी, न्याय ही दंड था मेरे पिता के लिए. अब मैं सिर उठा कर कह सकूंगा कि मैं अनुज का बेटा हूं,” आकाश की आंखों में झलकती आत्मविश्वास की झलक से मैं अभिभूत थी.

“और उन की करोड़ों रुपयों की संपत्ति के मालिक तुम्हीं होगे,’’ वकील साहब अचानक कमरे में दाखिल हुए.

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‘‘नहीं सर. मुझे संपत्ति का कतई लालच नहीं है. मैं सिर्फ अपने उस कलंक को धोना चाहता था जिस का अपराधी मैं था ही नहीं. मेरी मां ने मुझे जन्म दे दिया, मगर ऐसी कितनी मांएं होंगी जो लोकलाज के भय से अजन्मे बच्चे को गर्भ में ही मार देती हैं. मुझे ऐसी मांओं से सहानुभूति है. वहीं ऐसे पुरूषों से नफरत है जो किसी अपरिपक्व लड़की को बरगला कर उस का यौनशोषण करते हैं. फिर उसे नारकीय जीवन जीने के लिए छोड़ कर भाग जाते हैं. मेरी और मेरी मां की कोशिशें उन के लिए एक सबक साबित होंगी.”

Social Story In Hindi: मैं कमजोर नहीं हूं- भाग 3- मां और बेटी ने किसे सिखाया सबक

आहिस्ताआहिस्ता आकाश हम सब से घुलतामिलता गया. एक रोज मैं ने उस से कहा कि वह मुझे मम्मी कह कर पुकारे. पहले तो वह सकुचाया, फिर बोला, ’मम्मी को क्या कहूंगा? जब उसे पता चलेगा कि मैं ने आप को मम्मी कहना शुरू कर दिया है? उन्हें बुरा लगेगा.’ कुछ सोच कर मैं बोली, ‘बड़ी मम्मी. यह ठीक रहेगा.‘ उस ने बिना नानुकुर के स्वीकार कर लिय.

उस के मुख से मेरे लिए मम्मी का संबोधन तपती रेत पर बारिश की फुहार की तरह था. मेरा रोम रोम पुलक उठा. मैं भावविभोर हो गई. वक्त गुजरता रहा. एक बात की कसक रहती, इतना प्यारदुलार देने के बावजूद वह अपनी पहली मां को भूल नहीं पाया. कभीकभी उन का जिक्र करता, तो मेरा मन आशंकाओं से घिर जाता. हमेशा की तरह झूठ बोल देती कि वे जल्द आएंगी. एक रोज तो हद हो गई जब वह अपने दत्तक मांबाप के पास जाने की जिद कर बैठा.

उस रेाज मुझे अपनी कोख पर लज्जा आई. इतना प्यारदुलार देने के बावजूद भी आकाश को अपना न बना सकी? इसे बिडंबना ही कहेंगे कि वह उन के पास जाना चाहता है जिन्होंने बड़े निर्मोही तरीके से उस का परित्याग कर दिया. आज जाना कि सिर्फ जन्म देने से कोई मां नहीं बन जाती. मां बनने के लिए बच्चे की बेहतर परवरिश जरूरी है, जो आसान नहीं. मम्मी ने पापा से सलाहमशवरा कर के उस की दत्तक मां से बात की.

‘एक बार आप उसे समझाइए, मुझे पूरा विश्वास है कि वह आप की बात को समझेगा,’ मम्मी बोलीं.

‘क्या कहूंगी?’ उधर से जवाब आया.

‘यही कि आप उस के असली मांबाप नहीं हैं. असली मां मेरी बेटी है.’

‘क्या वह मानेगा?’

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‘और कोई रास्ता हो तो बताइए?’ मम्मी के इस सवाल का उन के पास जवाब न था. क्षणांश चुप्पी के बाद वह बोली, ‘ठीक है, आप आकाश को फोन दीजिए.’ आकाश को दूसरे कमरे से बुला कर उसे मोबाइल थमाया. वह असमंजस में था. तभी उधर से आवाज आई, ‘कैसे हो आकाश?’ आकाश को आवाज पहचानने में देर न लगी. ‘मम्मी’ कहते ही उस का स्वर भर्रा गया, ’आप कहां हैं?’ आकाश रुंधे कंठ से बोला.

‘मैं यहीं हूं. पहले यह बताओ, क्या ये लेाग तुम्हें प्यार नहीं करते?’

‘करते हैं. खूब करते हैं. बड़ी मम्मी तो हर वक्त मेरी ही चिंता करती रहती हैं. एक पल के लिए मुझे अकेला नहीं छोड़तीं. परंतु…’ कहतेकहते उस का गला भर आया.

‘आप की याद हमेशा आती रहती है. क्या आप मुझे लेने नहीं आएंगी?’ पलभर के लिए उस की दत्तक मां भी भावुक हो गई. एक पल वह सोची, आकाश को ले आए मगर यह सोच कर बढ़ते कदम रुक गए कि कल जब उस की अपनी औलाद बड़ी होगी तो निश्चय ही आकाश की असलियत सब के सामने आएगी, तब वह क्या करेगी. जब वे पूछेंगे कि आकाश किस का बेटा है, क्यों लाई थी इसे? तब तो न मैं इधर की रहूंगी न उधर की. आकाश किसी की नाजायज औलाद है. इस कलंक को कैसे धोऊंगी. फिर क्या गारंटी है कि मैं अपनेपराए का भेद न करने लगूंगी? यही सब सोच कर दिमाग ने फैसला लिया कि जो कल होने वाला है उसे आज ही कहसुन कर खत्म किया जाए.

‘आकाश, मैं यहीं हूं. कहीं जाने वाली नहीं. तुम जब चाहे मेरे पास आ सकते हो, परंतु…?’

‘परंतु क्या मम्मी?’

‘मेरा एक कहा मानेागे?’

‘बिलकुल मानूंगा, मगर आप मेरे पास आने का वादा करो.’

‘करती हूं, मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो. जिसे तुम बड़ी मम्मी कहते हो वही तुम्हारी असली मां है. मैं तब बेऔलाद थी. दूरदूर तक औलाद होने की संभावना नहीं दिख रही थी, तब तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें जन्मते मुझे दे दिया था.’

‘क्यों?’

‘इस का जवाब तुम अपनी बड़ी मम्मी से पूछना,’ कह कर दत्तक मां ने फोन काट दिया. आकाश गुमसुम सोफे पर बैठ गया. मैं उस के करीब आई, देखा, उस के गालों पर आंसुओं की बूंदें ढुलक आई थीं. मैं अधीर हो उठी. उसे कलेजे से लगा लेना चाहा मगर उस ने मुझे झटक कर अलग कर दिया.

‘पहले मुझे जवाब दो कि क्या तुम मेरी असली मां हो?’

‘हां,’ भीगेमन से मैं बोली.

‘अब तक कहां थी?’ आकाश के इस कथन का क्या जवाब दूं.

‘तुम ने मुझे उन के पास क्यों भेजा? मेरे पापा कौन हैं?’

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उस के इस सवाल पर मेरी मम्मी ने बात संभाली, ‘समय आने पर सब पता चल जाएगा.’ मम्मी के इस कथन का उस पर कोई असर न पड़ा. वह अपनी जिद पर अड़ा रहा. उस का हठपन देख कर मैं रोने लगी. आकाश था तो बच्चा ही, मेरे आंसुओं को देख कर उस का मन द्रवित हो गया. मेरे पास आ कर बोला, ’बड़ी मम्मी, अब मैं आप को कभी परेशान नहीं करूंगा.’ उस के मुख से यह सुन कर मुझे तसल्ली हुई. उसे अंक में भींच कर देर तक मैं सुबकती रही.

पढ़ाईलिखाई में लग जाने के कारण आकाश अपने अतीत को भूला रहा. अब वह 25 साल का युवा था. एक रोज मैं ने देखा कि वह अपने कमरे में उदास बैठा था. करीब आ कर उस के उदासी का कारण पूछा तो बोला, ’मम्मी, तुम ने एकबार कहा था कि समय आने पर पापा का नाम बताओगी. क्या वह समय नहीं आया?’ आकाश ने फिर से मुझे उसी चैराहे पर ला खड़ा कर दिया जिसे मैं ने अपने सीने में दफन कर के भूल चुकी थी. एकएक कर के अतीत की सारी घटनाएं चलचित्र की भांति मेरी नजरों के सामने घूमने लगीं. जब उबरी, तो आकाश से पूछा, ‘‘क्या जानना जरूरी है?’’

‘‘मम्मी, मेरे लिए यह जानना जरूरी है कि मेरा पिता कौन है क्येांकि आज भी मेरे दिल के कोने में एक खालीपन महसूस होता है. यह खालीपन उस पिता के लिए है जिन का मैं ने कभी मुख तक नहीं देखा. यदि वे जीवित नहीं हैं तो कोई बात नहीं. बस, उन का परिचय बता दो.’’

आकाश समझदार हो गया था. समझदार बेटे को भ्रमित करना आसान न था. मैं ने आत्मचिंतन किया तो पाया कि आज नहीं तो कल, मुझे इस सत्य से आकाश को परिचित करवाना ही पड़ेगा. वह कल आ गया. अब न बताऊंगी तो वह मुझ पर शक करेगा. इस तरह से उस की नजरों में मेरा चरित्र संदेहास्पद हो जाएगा, जो किसी भी स्थिति में उचित न हेागा. कोई भी रिश्ता ईमानदारी पर टिकता है, फिर वह चाहे मांबेटे का हो या पिता पुत्र का. जिन रिश्तों की बुनियाद शक पर टिकी हो, उन का बिखरना तय है. मेरे लिए आकाश ही सबकुछ था. मैं आकाश को खोना नहीं चाहती थी. सो, एकएक कर मैं ने उस उम्र में घटी सारी घटनाओं का खुलासा कर दिया.

आगे पढ़ें- अब आकाश को निर्णय लेना था कि वह…

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