मार से नहीं सुधरते बच्चे

कभी खिलौने तोड़ने, कभी होमवर्क न करने, कभी टीवी ज्यादा देर तक देखने, कभी सुबह जल्दी न उठने को ले कर हर बच्चे को कभी न कभी बचपन में अभिभावकों से अवश्य मार पड़ी होगी. जब बच्चे पेरैंट्स के अनुसार काम नहीं करते तो पेरैंट्स को गुस्सा आता है और गुस्से में वे पहले बच्चों को डरातेधमकाते हैं और जब ऐसा करने से बात बनती नहीं दिखती, तो वे बच्चों पर हाथ उठा देते हैं. पेरैंट्स ऐसा करते समय सोचते हैं कि वे ऐसा बच्चों की भलाई के लिए कर रहे हैं, उन्हें सुधारने के लिए कर रहे हैं. पर क्या बच्चों पर हाथ उठाना सच में बच्चों की भलाई के लिए होता, आइए जानते हैं :

हाथ उठाने के पीछे कारण :

साइकोलौजिस्ट प्रांजलि मल्होत्रा के अनुसार, ‘‘पेरैंट्स को लगता है कि बच्चों को मारना उन को सिखानेसमझाने का तरीका है, मारने से वे समझ जाएंगे और दोबारा वही गलती नहीं करेंगे. लेकिन, ऐसा नहीं है.

‘‘कई बार तो बच्चे यह भी नहीं समझ पाते कि उन्हें मार किस बात पर पड़ी है. कई बार बच्चे अकारण भी मार खा जाते हैं. बच्चों पर हाथ उठाने से न सिर्फ उन्हें शारीरिक रूप से चोट पहुंचती है बल्कि वे मानसिक रूप से भी कमजोर पड़ जाते हैं.

‘‘कई मामलों में बच्चों पर हाथ न उठा कर यदि प्यार से समझाया जाए तो उन पर सकारात्मक प्रभाव होता है. शारीरिक हिंसा बच्चों को गलत रास्ता दिखाती है. साथ ही, बच्चे यह समझ बैठते हैं कि सभी समस्याओं का हल केवल एक हाथ उठाने से हो सकता है. ऐसे में वे अपने आसपास दोस्तों के साथ भी मारपीट का रवैया अपनाने लगते हैं.’’

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हाउसवाइफ ज्यादा उठाती हैं हाथ :

मुंबई के एक एजुकेशनल गु्रप पोद्दार इंस्टिट्यूट औफ एजुकेशन द्वारा देश के 10 शहरों में किए गए सर्वे के अनुसार, घर में रहने वाली मांएं बच्चों पर पुरुषों की तुलना में अधिक हाथ उठाती

हैं. हैरानी की बात यह है कि 77 प्रतिशत मामलों में मां ही बच्चों को पीटती हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि कामकाजी महिलाओं के पास बच्चों के लिए बहुत कम समय होता है, इसलिए वे कम हाथ उठाती हैं जबकि हाउसवाइफ बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताती हैं, इसलिए उन की गलतियों को ले कर वे ज्यादा सख्त होती हैं.

रिश्ते में आ सकती हैं दूरियां :

बच्चों को मार खाना न केवल अपमानित लगता है बल्कि मार उन्हें अशांत या डरपोक बना सकती है. बातबात पर हाथ उठाने से जहां कुछ बच्चे उग्र हो जाते हैं वहीं कुछ बच्चे हर समय डरेसहमे रहने लगते हैं, वे किसी से बात करने से भी कतराने लगते हैं. बड़े होने पर ये सारी समस्याएं उन के विकास में बाधक बन सकती हैं. बारबार मारने से बच्चों में पेरैंट्स का डर खत्म हो जाता है और हो सकता है आप का यह व्यवहार आप के और बच्चों के रिश्ते में दूरियां भी ला दे.

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बेटी नहीं बेटे की परवरिश पर भी दें ध्यान

“मां, मुझे अपनी सहेली निशा के घर जाना है आज. उस ने क्लास में बहुत अच्छा नोट बनाया है. कल टैस्ट है. एक बार उस के घर जा कर पढ़ आती हूं. पास ही तो रहती है. स्कूटी से तुरंत जा कर आ जाऊंगी,’’ राशि ने अपनी मां सुधा से कहा.

‘‘यह कोई वक्त है लड़कियों का घर से बाहर निकलने का? देख रही हूं सुधा तूने इसे कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है. कुछ ऊंच-नीच हो जाएगी, तो सिर धुनती रहना जीवन भर,’’ मां के कोई जवाब देने से पहले ही राशि की दादी बोल उठीं.

‘‘तुम्हें क्लास में ही उस से नोट ले लेना चाहिए था. आखिर रात होने का तुम ने इंतजार ही क्यों किया?’’ पापा ने घर में घुसते ही कहा.

‘‘बेटा, उस नोट को छोड़, खुद नोट बना ले. अब रात के 9 बजे तुम्हारा बाहर जाना उचित नहीं,’’ मां ने भी समझाया.

मन मसोस कर राशि अपने कमरे में जा कर पढ़ने बैठ गई.

करीब 1 घंटे के बाद राशि का भाई अपने कमरे से निकला और मां से बोला, ‘‘मां, शाम से बाहर नहीं निकला हूं, एक चक्कर लगा कर आता हूं,’’ और फिर बाइक ले बाहर चला गया. कहीं से कोई आवाज नहीं आई. किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा या कहा.

दोहरी सोच

आम भारतीय घरों में कमोबेश यही स्थिति होती है. बेटी को तो हर समय आचारव्यवहार सिखाते रहेंगे. कभी दूसरे के घर जाने के नाम पर तो कभी जमाना बहुत खराब है के नाम पर. ऐसे न बोलो, ऐसे न चलो, ऐसे न करो आदि की लंबी सूची होती है बेटियों को सिखाने के लिए. कभी सीधेसीधे तो कभी घुमाफिरा कर बेटियों को बताया जाता है कि रास्ते में शोहदों को कैसे नजरअंदाज करना है. कोई फबती कसे तो कैसे चुपचाप कोई बखेड़ा खड़ा किए निकल लेना चाहिए. अगर कोई ऊंचनीच हो भी जाए तो गलतियां खोज कर लड़की को ही कुसूरवार ठहराया जाता है कि उस ने कपड़े ही ऐसे पहन रखे थे या रात के वक्त भला कहीं अच्छे घर की लड़कियां बाहर घूमती हैं? अखबार में छपी बलात्कार क ी खबरों को सुना कर उन्हें और भीरु बनाया जाता है. मगर बेटों के लिए यही सोच है कि अरे लड़का है इस के लिए क्या सोचना. कोई लड़की है क्या जो फिक्र की जाए कि कहां जा रही है? क्या कर रही है? दरअसल, परेशानी इसी सोच से है.

क्या ऐसा नहीं लगता कि परेशानी दरअसल लड़कों से ही है? क्या आप ने कभी सुना है कि कुछ लड़कियों ने मिल कर एक लड़के के साथ छेड़खानी की, बलात्कार किया या कुछ ऐसा ही और? नहीं न? सड़कों पर तेजी से दोपहिया वाहन चलाते हुए कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो दुर्घटनाग्रस्त या मरने वाले भी ज्यादातर लड़के ही होते हैं जबकि दोपहिया अब तो लड़कियां भी चलाती हैं.

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बचपन से ही सिखाएं

लड़कियां शुरू से ही बहुत समझदार और संवेदनशील होती हैं. अब कुछ ज्ञान लड़कों को भी दिया जाना चाहिए. बेटों से बचपन से ही कहा जाता है, ‘अरे लड़की हो क्या जो रो रहे हो?’ ‘डरपोक, तुम लड़की हो क्या?’ ‘चूडि़यां पहन रखी हैं क्या?’ ‘अरे, तुम किचन में क्या कर रहे हो?’ वगैरहवगैरह. ऐसा बोल कर उन्हें शुरू से ही संवेदनहीन बना दिया जाता है.

बेटों को भी बचपन से ही सिखाना चाहिए कि लड़कियों की इज्जत करें. मां का यह कर्तव्य है कि अपने जिगर के टुकड़े को सिखाए कि राह चलती लड़कियों को घूरा न जाए. उन्हें कैसे इज्जत दी जाए.

दोष किस का

घर में बेटियों को नालायक लड़कों से बचने के गुण सिखाने के साथसाथ बेटों को लायक बनने के गुण भी बताए जाएं. बच्चे तो बच्चे होते हैं, कच्ची मिट्टी की तरह. जैसा चाहें हम उन्हें गढ़ सकते हैं, जैसा चाहें हम उन में सोच रोपित कर दें. फिर क्या लड़का और क्या लड़की.

आज जब हम किसी सड़क छाप मजनू या किसी बलात्कारी अथवा हिटलरशाही पति को देखते हैं, जो मनमानी करने को अपना हक समझता है, तो यह समझ लेना चाहिए कि दोष उस की परवरिश का भी है. सुधा ने तो बेटी को बाहर नहीं जाने दिया कि कुछ अनर्थ न हो जाए पर हो सकता है उस का भोला सा दिखने वाला लाल ही बाहर कोई अनर्थ कर आया हो.

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पिता के अमीर दोस्त, मां के गरीब रिश्तेदार

रिश्तों की अपनी अहमियत होती है. बिना रिश्तेदारों के जिंदगी नीरस हो जाती है व अकेलापन कचोटने लगता है. जिंदगी में अनेक अवसर ऐसे आते हैं जब रिश्तों के महत्त्व का एहसास होता है.

अकसर देखने में आता है कि किशोरकिशोरियां उन रिश्तेदारों को ज्यादा अहमियत देते हैं जो आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न होते हैं और गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते, गरीब रिश्तेदारों को अपने घर बुलाना उन्हें अच्छा नहीं लगता. वे खुद भी उन के घर जाने से कतराते हैं. भले ही बर्थडे पार्टी या शादी हो, अगर जाते भी हैं तो बेमन से.

आज के किशोरकिशोरियों में एक बात और देखने को मिलती है. वे अपने पिता के अमीर दोस्तों का दिल से स्वागत करते हैं. अपने मातापिता की बर्थडे पार्टी या मैरिज ऐनिवर्सरी में वे उन्हें खासतौर से इन्वाइट करते हैं. उन की पसंद की चीजें बनवाते हैं, लेकिन मां के गरीब रिश्तेदारों को बुलाना जरूरी नहीं समझते. यदि मां के कहने पर उन्हें बुला भी लिया, तो उन के साथ उन का बिहेवियर गैरों जैसा रहता है.

सुरेश के मम्मीपापा की मैरिज ऐनिवर्सरी थी. सुरेश और उस की बहन सुषमा एक महीना पहले ही तैयारियों में जुट गए थे. दोनों ने मिल कर मेहमानों की लिस्ट तैयार की और अपनी मम्मी को दिखाई.

लिस्ट में पिता के सभी अमीर दोस्तों का नाम शामिल था. मां को लिस्ट देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ. वे बोलीं, ‘‘अरे, तुम दोनों ने अपने मामामामी, मौसामौसियों के नाम तो लिखे ही नहीं. केवल मुंबई वाले मौसामौसी का ही नाम तुम्हारी लिस्ट में है.’’

यह सुनते ही सुरेश का चेहरा तमतमा उठा. वह बोला, ‘‘मैं आप के गरीब रिश्तेदारों को बुला कर अपनी व पापा की नाक नहीं कटवाना चाहता. न उन के पास ढंग के कपड़े हैं न ही उन्हें पार्टी में मूव करना आता है. क्या सोचेंगे पापा के दोस्त?’’

यह सुन कर मम्मी का चेहरा उतर गया. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का बेटा ऐसा सोचता होगा. उन की मैरिज ऐनिवर्सरी मनाने की सारी खुशी काफूर हो चुकी थी.

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सुरेश के पिता ने भी सुरेश और सुषमा को बहुत समझाया कि बेटे रिश्तेदार अमीर हों या गरीब, अपने होते हैं. हमें अपने हर रिश्तेदार का सम्मान करना चाहिए.

सुरेश ने मातापिता के कहने पर मम्मी के रिश्तेदारों को इन्वाइट तो कर लिया पर मैरिज ऐनिवर्सरी वाले दिन जब वे आए तो उन से सीधे मुंह बात तक नहीं की. वह पापा के अमीर दोस्तों की आवभगत में ही लगा रहा.

सुरेश की मम्मी को उस पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर रंग में भंग न पड़ जाए, इसलिए वे शांत रहीं और स्वयं अपने भाई, भाभी और अन्य रिश्तेदारों की खातिरदारी करने लगीं.

मेहमानों के जाने के बाद सुरेश और सुषमा मम्मीपापा को मिले गिफ्ट के पैकेट खोलने लगे. उन्होंने मामामामी के गिफ्ट पैकेट खोले तो उन्हें यह देख कर बड़ा ताज्जुब हुआ. उन के दिए गिफ्ट सब से अच्छे व महंगे थे. रोहिणी वाले मामामामी ने तो महंगी घड़ी का एक सैट उपहार में दिया था और पंजाबी बाग वाली मौसीमौसा ने मम्मीपापा दोनों को एकएक सोने की अंगूठी गिफ्ट की थी, जबकि पापा के ज्यादातर अमीर दोस्तों ने सिर्फ बुके भेंट कर खानापूर्ति कर दी थी.

सुरेश व सुषमा ने अपने मम्मीपापा से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘हमें माफ कर दीजिए. हम गलत थे. जिन्हें हम गरीब समझ कर उन का अपमान करते थे, उन का दिल कितना बड़ा है, यह आज हमें पता चला. आज हमें रिश्तों का महत्त्व समझ आ गया है.’’

ऐसी ही एक घटना मोहित के साथ घटी जब उसे गरीब रिश्तेदारों का महत्त्व समझ में आया. मोहित के पापा बिजनैस के सिलसिले में मुंबई गए हुए थे. एक दिन अचानक उस की मम्मी को सीने में दर्द उठा. मम्मी को दर्द से तड़पता देख मोहित ने पापा के दोस्त हरीश अंकल को फोन मिलाया और अस्पताल चलने को कहा तो उन्होंने साफ कह दिया, ‘‘बेटा, रात को मैं कार ड्राइव नहीं कर सकता, तुम किसी और को बुला लो.’’

मोहित ने पापा के कई दोस्तों को फोन किया, पर सभी ने कोई न कोई बहाना बना दिया. मोहित की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. अचानक उसे मम्मी के चचेरे भाई का खयाल आया जो पास में ही रहते थे. उस ने उन्हें फोन पर मम्मी का हाल बताया तो वे बोले, ‘‘बेटा, तुम परेशान मत हो, मैं तुरंत आ रहा हूं.’’

चाचाजी तुरंत मोहित के घर पहुंच गए. वे अपने पड़ोसी की कार से आए थे. वे मोहित की मम्मी को फौरन अस्पताल ले गए. डाक्टर ने कहा कि उन्हें हार्टअटैक पड़ा है. अगर अस्पताल लाने में थोड़ी और देर हो जाती तो उन्हें बचाना मुश्किल था.

यह सुनते ही मोहित की आंखों में आंसू आ गए. उसे आज रिश्तों का महत्त्व समझ में आ गया था. पिछले दिनों इन्हीं चाचाजी की बेइज्जती करने से वह नहीं चूका था.

किशोरकिशोरियों को रिश्तों के महत्त्व को समझना चाहिए. अमीरगरीब का भेदभाव भूल कर सभी रिश्तेदारों से अच्छी तरह मिलना चाहिए. उन्हें पूरा सम्मान देना चाहिए.

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रिश्तों में मिठास घोलें

रिश्ते अनमोल होते हैं. किशोरकिशोरियों को मां के गरीब रिश्तेदारों को भी इज्जत देनी चाहिए. उन के यहां अगर कोई शादी या अन्य कोई फंक्शन हो तो जरूर जाना चाहिए. ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए कि उन्हें अपनी बेइज्जती महसूस हो. चाचाचाची, मामामामी, मौसामौसी से समयसमय पर फोन पर या उन के घर जा कर हालचाल लेते रहना चाहिए, इस से रिश्तों में मिठास घुलती है और रिश्तेदार हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं.

रिश्तेदारों के बच्चों से भी बनाएं संपर्क

किशोरकिशोरियों को चाहिए कि वे अपने गरीब रिश्तेदारों से न केवल संपर्क बनाए रखें बल्कि उन के बच्चों से भी दोस्त जैसा व्यवहार रखें. उन से फेसबुक, व्हाट्सऐप द्वारा जुड़े रहें. परिवार के फोटो आदि शेयर करते रहें. उन्हें कभी इस बात का एहसास न कराएं कि वे गरीब हैं. चचेरे व ममेरे भाईबहनों से भी अपने सगे भाईबहन जैसा ही व्यवहार करें. इस से उन्हें भी अच्छा लगेगा. आजकल वैसे भी एकदो भाईबहन ही होते हैं. कहींकहीं तो एक भी भाई या बहन नहीं होता. ऐसे में कजिंस को अपना सगा समझें और उन के साथ लगातार संपर्क में रहें.

छुट्टियों में रिश्तेदारों के घर जाएं

स्कूल की छुट्टियों में अपने मम्मीपापा के साथ रिश्तेदारों के घर जरूर जाएं. खासतौर से मम्मी के गरीब रिश्तेदारों के घर. जब आप उन के घर जाएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा. उन के बच्चों यानी अपने कजिंस के लिए कोई न कोई गिफ्ट जरूर ले जाएं. इस से आपस में प्यार बढ़ता है.

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‘मैं’ फ्रैंड से कैसे निबटें

हम सब के फ्रैंडसर्कल में ऐसे फ्रैंड्स जरूर होते हैं जो हमेशा अपनी तारीफ करते रहते हैं जैसे ‘मेरा फोन सब से अच्छा है, इस में सैल्फी बहुत अच्छी आती है. मेरे पास भी एकदम ऐसी ही ड्रैस है, तुम्हारी थोड़ी सस्ती क्वालिटी की है, लेकिन मैं ने तो काफी महंगी खरीदी थी.

कोई उन की बात सुने चाहे न सुने, लेकिन वे अपनी बात जरूर कहते हैं. कई बार तो ऐसा भी होता है कि उन्हें आते देख सब इधरउधर हो जाते हैं कि कौन इस की बात सुन कर बोर हो?

क्या करते हैं ऐसे फ्रैंड्स

दरअसल, हम ऐसे फ्रैंड्स को ‘मैं’ फ्रैंड कह सकते हैं. सामने वाले की चीज कितनी भी अच्छी क्यों न हो ये उस की तारीफ करने के बजाय अपनी ही तारीफ करते हैं. इन्हें लगता है कि इन के पास जो है वही अच्छा है.

‘मैं’ फ्रैंड बनना नुकसानदायक

भले ही आप अपने फ्रैंडसर्कल में अपनी बात मनवा कर खुद को श्रेष्ठ साबित करते होंगे, लेकिन ‘मैं’ फ्रैंड बनने के नुकसान भी हैं. आप के फ्रैंड्स आप से बातें शेयर नहीं करते. उन्हें लगता है कि आप से शेयर कर के क्या फायदा. अगर इस से कुछ कहेंगे तो भी यह सौल्यूशन देने के बजाय अपनी ही तारीफ करेगा.

अगर आप के सर्कल में भी कोई ‘मैं’ फ्रैंड है तो क्या करें

कटें नहीं फेस करें : अकसर ‘मैं’ फ्रैंड को जानने के बाद हम उस से कटने लगते हैं, उस से अलग रहने की कोशिश करने लगते हैं, सोचते हैं क्यों अपना मूड खराब करें. ऐसा करना गलत है. ऐसा कर के आप अपने लिए एक सुरक्षित दायरा बनाने लगते हैं और आप को इस तरह की पर्सनैलिटी के साथ ऐडजस्ट करने में प्रौब्लम होने लगती है इसलिए कटने के बजाय सामना करना सीखें. अपने ‘मैं’ फ्रैंड के सामने अपनी बात रखिए. भले ही वे आप की बात को बारबार काट, लेकिन अपनी बात पूरी करें.

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पहली ‘मैं’ में सहमति जताएं लेकिन दूसरी में नहीं : अगर आप कहीं बाहर घूमने गए हैं और आप के साथ ‘मैं’ फ्रैंड भी है तो मुंह न बनाते रहें कि इसे क्यों साथ ले कर आए हो बल्कि धैर्य से काम लें. किसी बात पर रिऐक्ट न करें. अगर वह कहे कि मुझे यह नहीं खाना, मैं यह नहीं खाता तो उस से कहें कि पिछली बार हम ने तुम्हारी पसंद की डिश खाई थी, इस बार तुम हमारी पसंद की डिश खाओ.

कभी-कभी नजरअंदाज करना भी सही है : कभी-कभी आप अपने ‘मैं’ फ्रैंड की बातों को अनसुना भी करें. वह कुछ कहे तो ऐसे बिहेव करें जैसे कि आप ने कुछ सुना ही नहीं ताकि धीरेधीरे उसे समझ आए कि आप उस की बातों में रुचि नहीं दिखा रहे और वह खुद को बदलने का प्रयास करे.

ग्रुप में न समझाएं : आप अपने ‘मैं’ फ्रैंड से परेशान हैं इस का मतलब यह नहीं है कि आप ग्रुप बना कर समझाएं या ग्रुप में सब के सामने कहें, बल्कि अकेले में मौका देख कर कहें क्योंकि किसी को भी यह अच्छा नहीं लगेगा कि सब के सामने आप उस की कमियां गिनवाएं.

खुद से पहल कर के बताएं : हम अपने फ्रैंड को उस की कमियों व खराब आदतों के बारे में नहीं बताते, क्योंकि हमें लगता है कि अगर हम बताएंगे तो उसे बुरा लगेगा और हमारी दोस्ती में दरार आ जाएगी. लेकिन इन बातों को सोचने के बजाय पहल कर के अपने फ्रैंड की कमियों को बताएं ताकि वह इन आदतों को सुधार सके.

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जब कोई दिल का राज जानना चाहे

किसी से कोई बात उगलवाने के लिए प्राय: हम अपनी कोशिश तब तक जारी रखते हैं, जब तक कि पूरी बात अपने मन की तसल्ली लायक न उगलवा लें.

रीना और सविता ननदभाभी हैं. सविता की रीना के अलावा 2 ननदें और हैं. किसी अवसर पर सविता की अपनी बीच वाली ननद से कुछ कहासुनी हो गई, जिस से संबंधों में कड़वाहट आ गई. छुट्टियों में जब रीना भाभी के घर रहने आई, तो उस ने बातोंबातों में चर्चा की कि बीच वाली जीजी आई थीं. कुछ खरीदारी करनी थी.

चूंकि सविता के मन में चोर था, इसलिए वह यह मान ही नहीं सकती थी कि बीच वाली ननद ने कोई बुराई न की हो. अत: उस ने तत्काल पूछा, ‘‘क्या कह रही थीं?’’

जवाब मिला, ‘‘कुछ खास नहीं. वही राजीखुशी की बातें कर रही थीं.’’

अनावश्यक कान भरना

पर चूंकि सविता का तनाव बीच वाली ननद से चल रहा था. अत: वह मान ही नहीं सकती थी कि वे अपनी बहन के घर जाएं और दोनों बहनों में उस की बाबत कोई चर्चा ही न हो. अत: उस के मन के चोर ने उसे उकसाया तो उस ने फिर कहा, ‘‘कुछ तो चर्चा हुई ही होगी. आखिर रही तो घर पर ही थीं. क्या कह रही थीं, बताती क्यों नहीं? मैं तो बस यों ही यह जानना चाह रही हूं कि आखिर वे क्या कह रही थीं?’’

रीना चूंकि पूरी बात जानती थी अत: समझदारी से काम लेते हुए बोली, ‘‘सच भाभी, जीजी ने तो कुछ भी नहीं कहा. कुछ कहा होता तभी तो बताती.’’

सविता अब भी भरोसा नहीं कर पाई. उसे लगा दोनों बहनें एक हो गई हैं. मिल कर उस की खूब बुराई की होगी, नमकमिर्च लगा कर. अब देखो कैसे भोली बन रही है. जैसे कुछ कहासुना ही न हो.

फिर तुनक कर बोली, ‘‘नहीं बताना है, तो मत बताओ. मैं क्या जानती नहीं.’’

पूरी बातचीत में सविता वह जानने की कोशिश करती रही, जो उस ने मन में सोच रखा था. पर जब वैसा कुछ भी सुनने को नहीं मिला, तब उसे भरोसा नहीं हुआ और परिणाम यह हुआ कि वह बीच वाली ननद से तो तनाव ले ही चुकी थी, इस ननद से भी उलझ पड़ी और मन का चैन पूरी तरह गंवा बैठी.

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बेवजह तनाव

ऐसा प्राय: होता है. लोग अपने बारे में दूसरों की राय जानना चाहते हैं. कोई न बताए तो भी कुरेदकुरेद कर जानना चाहते हैं मानो जिन की राय, विचार उन्हें जानने हैं, वे कोई जज हों जो कह देंगे अच्छा तो अच्छा ही माना जाएगा.

हमारे एक परिचित हैं. वे जब आएंगे तो कहेंगे, ‘‘भाभीजी अभी कुछ दिन पहले आप के जेठजी मिले थे. आप लोगों की चर्चा होती रही. बहुत शिकायतें हैं उन्हें आप से और भैया से.’’

संभवतया वे यह बात इसलिए कहते हैं कि हम लोग चिढ़ कर उन से कुछ कहें और वे तमाशे का आनंद उठाएं. वास्तव में यह कह कर कि फलां कह रहा था, जो उत्सुकता जगाई जाती है, वह बिना पैसे का तमाशा बन उन का बखूबी मनोरंजन करती है. मैं अकसर ऐसी किसी आधीअधूरी बात पर कान देने के बजाय कहने वाले को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से कहती हूं, ‘‘कहने दो, क्या फर्क पड़ता है? जब कभी आमनेसामने पड़ेंगे और वे मुझ से कुछ कहेंगे तब जो उचित होगा जवाब दे दूंगी. अभी क्या बेवजह तनाव मोल लें?’’

एक दिन इन्हीं सज्जन ने मिलने पर कहा, ‘‘भाभीजी, आप के जेठजी तमाम किस्म की बातें आप लोगों के बारे में कहते रहते हैं. हमारा तो सुन कर खून खौल जाता है. आप को तनाव नहीं होता?’’ मैं ने मुसकरा कर यह कहते हुए बात टाल दी, ‘‘जब कभी मुझ से कहेंगे तब देख लूंगी. हर किसी के कहने पर क्या जानूं कि क्या सच है और क्या झूठ?’’

वास्तव में भीतर की बात उगलवाना व बेवजह किसी को भी तनाव देना और खुद आनंद लेना आज आम बात हो गई है. 2 की लड़ाई में तीसरा हाथ सेंकता ही है यानी मजे लेले कर तमाशा देखता है और अपरिपक्व लोग समझदारी का दामन छोड़ तमाशा दिखाते भी हैं.

झूठी तसल्ली

बताने वाला सच बताए या झूठ सुनने वाले को कभी तसल्ली नहीं होती. उसे सदैव लगता है, कुछ छिपा रहा है. फिर जब सुनने वाला कुरेद कर पूछता है कि और क्याक्या बातें हुईं, तो बताने वाला उस की झूठी तसल्ली के लिए सच के अलावा भी मन से जोड़ कर बहुत कुछ बता देता है. इधर पूछने वाले को चैन तो मिलता नहीं, हां तनाव जरूर बढ़ने लगता है. वह आक्रामक रुख इख्तियार कर बुराभला बोल मन की भड़ास निकालता जरूर है, पर यह भूल जाता है कि जिसे बता रहा है, वह यदि यही बातें उस संबंधित व्यक्ति को बता देगा तब क्या होगा?

ऐसे में यह याद रखना जरूरी है कि पूछने वाला न तो हमारा हितैषी है और न ही उस का जिस की बात कह रहा है. वह तो मात्र मजे लेने को ऐसा कर रहा है. ऐसे लोगों से सावधान रहना जरूरी है ताकि अपने जी का चैन बना रहे व संबंधों में खटास न बढ़े.

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चाइल्ड फ्री ट्रिप

मुंबई निवासी सुनीता के बच्चे 9वीं क्लास में थे, तो वे और उस के पति निलिन पुणे एक शादी में गए थे. शादी में जाना जरूरी था और बच्चों की परीक्षाएं थीं. बहुत सोचविचार के बाद पतिपत्नी बच्चों को खूब सम झाबु झा कर मेड को निर्देश दे कर 2 रातों के लिए पुणे चले गए थे.

वे बताती हैं, ‘‘पहले तो मेरा मन ही उदास रहा कि बच्चों को कोई परेशानी न हो जाए, हम सोसाइटी में भी नएनए थे. मैं भी कई दिन से घर में बोर हो रही थी. इस से पहले बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ा था. पर जब चले गए तो हैरान रह गई. बेकार की जिस चिंता में मैं डरतेडरते गई थी, पहली रात में ही बच्चों से बात कर के इतनी खुशी हुई जब देखा दोनों मस्त हैं, अपनाअपना काम कर रहे हैं, हमारे बिना सब मैनेज कर लिया है, उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई है. तब जा कर मैं ने अपनी पहली चाइल्ड फ्री ट्रिप जी भर कर ऐंजौय किया. उस के बाद तो हम अकसर 1-2 रात के लिए दोनों घूम

आते, बच्चों ने भी यही कहा कि हम तो स्कूलकालेज में उल झे रहते हैं, आप लोग आराम से जाया करें.

‘‘बच्चे जब फ्री हुए तो उन के साथ कभी चले गए वरना फिर तो हम 2-3 रातों से 1 हफ्ते के ट्रिप पर भी आ गए और अब अकसर जाते रहते हैं. कुछ दिन वी टाइम बिता कर फ्रैश हो कर वापस लौटते हैं. मन खुश रहता है.’’

अब तो कोरोनाकाल के चलते लौकडाउन में फैमिली टाइम कुछ ज्यादा ही हो गया. बहुत से लोगों पर वर्क फ्रौम होम का काफी प्रैशर रहा, घर के अन्य सदस्यों की जरूरतें और बच्चों की औनलाइन क्लासेज के चलते पतिपत्नी को एकदूसरे के साथ बिताने के लिए फुरसत के पल बहुत ही मुश्किल से मिल रहे थे. दोनों पर काम का काफी प्रैशर रहा. शायद यही कारण है कि कुछ नौर्मल होने पर पतिपत्नी एकदूसरे के साथ कुछ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए बच्चों के बिना ट्रिप प्लान करते दिखाई दिए जो शायद जरूरी भी हो गया था.

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एक मजेदार किस्सा

नीता तो अपना एक मजेदार किस्सा बताते हुए कहती हैं, ‘‘एक बार पति अपने औफिस की किसी मीटिंग में दूसरे शहर जा रहे थे. वहां मेरी एक अच्छी फ्रैंड रहती थी, मेरा मन हुआ कि मैं भी चली जाऊं और उस से मिल आऊं. एक ही बेटा है जो उस टाइम 8वीं क्लास में था. उस के दोस्त की मम्मी ने कहा कि बेटे को उन के पास छोड़ कर जा सकती हूं.

‘‘मैं एक रात के लिए चली गई. बेटे ने टाइम अपने फ्रैंड के घर इतना ऐंजौय किया कि उस के बाद कई दिन तक कहता रहा कि मम्मी, वापस किसी फ्रैंड के यहां मिलने जाओगी तो मैं रह लूंगा. उस के बाद हम पतिपत्नी जब भी बाहर गए, वह अकेला होने पर कभी अपने दोस्तों को बुला लेता, कभी उन के घर चला जाता. हम भी एक छोटा हनीमून टाइप चीज मना आते और बेटा भी अपना टाइम बढि़या ऐंजौय करता.’’

बहुत सारी हौस्पिटैलिटी इंडस्ट्री एडल्ट्स को इस तरह का टाइम बिताने के लिए कई तरह के औप्शंस और औफर देती रहती हैं. लग्जरी रिजौर्ट्स बढ़ते जा रहे हैं. कुछ एअरलाइंस तो छोटे बच्चों से दूर बैठने के लिए सीट्स चुनने का भी औप्शंस देती हैं. आइए अब इसी ट्रैंड पर बात करते हैं:

प्राइवेसी भी मस्ती भी

बच्चों के बिना पतिपत्नी का अकेले ट्रिप पर जाना नई बात नहीं है. 90 के दशक में कैरेबियन सिंगल्स रिजोर्ट ने इस आइडिया को सामने रखा था. यह ट्रैंड किसी को भी एक रूटीन से हट कर अपनी पर्सनल स्पेस देने की बात करता है. चाहे सनसैट क्रूसेस पर जाना हो, शानदार स्पा ट्रीटमैंट हो, किसी भी तरह की रोचक ऐक्टिविटी प्लान की जा सकती है.

आजकल इंडिया में यह ट्रैंड काफी कारणों से चलन में है. व्यस्त रूटीन, बच्चों की देखभाल और उन के कभी न खत्म होने वाले काम और अन्य जिम्मेदारियां निभातेनिभाते आजकल एडल्ट्स एकदूसरे के साथ टाइम बिताना भूल ही जाते हैं या चाह कर भी बिता नहीं पाते हैं. आजकल दोनों जब इस तरह का प्लान बनाते हैं, अच्छी जगह पर प्राइवेसी की आशा रखते हैं.

वी टाइम ऐंजौय

इंडिया में अकसर पार्टनर्स गोवा, जयपुर, कूर्ग और नौर्थ के हिल स्टेशंस पर जाना पसंद करते हैं. आजकल कई लोग थाईलैंड, मैक्सिको और सैशल्स जाना पसंद कर रहे हैं. एडल्ट्स औनली हौलिडेज में कैंडल लाइट डिनर्स,

स्कूबा डाइविंग, जंगल सफारीज और रेन फौरेस्ट का मजा लिया जा सकता है. पार्टनर्स अब वी टाइम को ऐंजौय करना चाहते हैं और कर भी रहे हैं.

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एडल्ट औनली हौलिडेज प्लान

– जहां भी जाना हो, ऐंडवांस में प्लान कर लें. ऐन मौके पर बुकिंग की परेशानी हो सकती है.

– दोनों मिल कर ऐसी चीजों को ऐक्स्प्लोर करें जिन में दोनों की ही सामान रुचि हो.

– यदि पहली बार बच्चों के बिना जा रहे हैं तो शुरू में 2 या 3 दिनों के लिए ही जाएं.

– अगर आप बच्चों को अकेले छोड़ कर जा रहे हैं तो धीरेधीरे इस आइडिया पर उन से बाते करते हुए कई बातों का ध्यान रखने के लिए सम झाते रहें जिस से वे मैंटली तैयार हो जाएं.

– हर तरह की इमरजैंसी में आप बच्चों से बात करने की पहुंच में हों, इस बात का ध्यान रखें.

– जब बच्चे साथ नहीं हैं, तो कुछ रोमांटिक नए अनुभव ले कर रोमांस रिचार्ज करें.

– कपल स्पा थेरैपी से अपनी इस छुट्टी को यादगार बना सकते हैं.

– अपनी अनुपस्थिति में किसी भरोसे के व्यक्ति को उन्हें बीचबीच में देखने के लिए कह कर जाएं.

– बच्चों को वीडियोकौल कर के उन्हें जुड़े रहने का एहसास दिलाते रहें.

– जिसे बच्चों की केयर करने के लिए कह कर जा रहे हैं, उन्हें बच्चों की मैडिकल केयर के बारे में भी जरूर बता दें.

समय की कमी के कारण क्या पिता को किसी वृद्धाश्रम में रख सकते हैं?

सवाल-

मैं 42 वर्षीय हूं. 1 बेटा है जो होस्टल में रह कर पढ़ाई करता है. मैं और मेरी पत्नी दोनों कामकाजी हैं. समस्या वृद्ध पिता को ले कर है. वे चलनेफिरने में लाचार हैं और उन की विशेष देखभाल करनी पड़ती है. समय की कमी की वजह से हम उन की उचित देखभाल नहीं कर पा रहे. क्या उन्हें किसी वृद्धाश्रम में रख सकते हैं? किसी वृद्धाश्रम की जानकारी मिले तो हमारा काम आसान हो जाएगा?

जवाब-

बेहतर यही होगा कि आप अपने वृद्ध पिता की देखभाल के लिए दिन में कोई केयर टेकर रख लें. इस अवस्था में वृद्धों को सिर्फ आर्थिक ही नहीं शारीरिक व मानसिक रूप से भी अपनों का साथ पसंद होता है. फिर सुबहशाम और छुट्टी के दिन तो उन्हें आप का साथ मिल ही रहा है. इस से वे बोर भी नहीं होंगे और उचित देखभाल की वजह से स्वस्थ भी रहेंगे.

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जाड़े की कुनकुनी धूप में बैठी मैं कई दिनों से अपने अधूरे पड़े स्वैटर को पूरा करने में जुटी थी. तभी अचानक मेरी बचपन की सहेली राधा ने आ कर मुझे चौंका दिया.

‘‘क्यों राधा तुम्हें अब फुरसत मिली है अपनी सहेली से मिलने की? तुम ने बेटे की शादी क्या की मुझे तो पूरी तरह भुला दिया… कितनी सेवा करवाओगी और कितनी बातें करोगी अपनी बहू से… कभीकभी हम जैसों को भी याद कर लिया करो.’’

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‘‘कहां की सेवा और कैसी बातें? मेरी बहू को तो अपने पति से ही बातें करने की फुरसत नहीं है… मुझ से क्या बातें करेगी और क्या मेरी सेवा करेगी? मैं तो 6 महीनों से घर छोड़ कर एक वृद्धाश्रम में रह रही हूं.’’

यह सुन कर मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पैरों तले से जमीन खींच ली हो. मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. क्या बोलती उस राधा से जिस ने अपना सारा जीवन, अपनी सारी खुशियां अपने बेटे के लिए होम कर दी थीं. आज उसी बेटे ने उस के सारे सपनों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं…

अपने बेटे मधुकर के लिए राधा ने क्या नहीं किया. अपनी सारी इच्छाओं को तिलांजलि दे, अपने भविष्य की चिंता किए बिना अपनी सारी जमापूंजी निछावर कर उसे मसूरी के प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ाया. उस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे दिल्ली भेजा. इस सब के लिए उसे घोर आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा. फिर भी वह हमेशा बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर खुशीखुशी सब सहती रही. जब भी मिलती अपने बेटे की प्रगति का समाचार देना नहीं भूलती. वह अपने बेटे को खरा सोना कहती.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

इन 5 बातों से रिजेक्ट हो जाते हैं प्रपोजल 

क्रश कब किसको किस पर हो जाए , पता नहीं होता. लेकिन ये भी हर किसी के बस में नहीं कि  उस क्रश को सही से प्रपोज करके प्यार में बदलना. ऐसे में जब प्रपोज करने पर आपको हमेशा नाकामयाबी ही मिलती हो तो दिल टूट जाता है और समझ नहीं आता कि आखिर हम में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो हमारा प्यार अधूरा रह गया. ऐसे में आपके लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि पार्टनर ने आपको क्यों न कहा है. आइए जानते हैं इस संबंध में.

1. ऐटिटूड भरा प्रपोजल 

भले ही आपने अपने क्रश को प्रपोज तो कर दिया, लेकिन वो प्रपोजल आपका ऐटिटूड से भरा हुआ हो, तो हमेशा आपको न ही सुनने को मिलेगी. क्योंकि आप जिसे भी प्रपोज करें वो नहीं चाहेगा कि जिससे मैं संबंध जोड़ने जा रही हूं , उसमें ऐटिटूड हो. फिर चाहे आप कितने भी गुड लुकिंग क्यों न हो, आपके प्रपोजल को न करने पर मजबूर कर ही देगा. क्योंकि जिसमें अभी इतना ऐटिटूड है आगे कितना होगा, कहा नहीं जा सकता. और शायद इसलिए ही आपको हमेशा अपने क्रश को प्रपोज करने में असफलता मिलती हो.

टिप जब भी आप अपने पार्टनर को प्रपोज करने जाएं तो आपके प्रपोजल का तरीका बहुत ही सोफ्ट व सामने वाले को अपनी तरफ मोहित करने वाला होना चाहिए. न कि रौब व ऐटिटूड से भरा हुआ हो.

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2. आपका गुड लुकिंग नहीं होना 

क्रश होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन हो सकता है कि आप जब भी अपने क्रश को प्रपोज करते हो, तो आपको न ही या बगर ऑफ यानि निकल जाओ मेरी जिंदगी से ही सुनने को मिलता हो. ऐसा इसलिए क्योंकि आप उसे प्रपोज करने तो पहुंच गए लेकिन अपने हुलिए पर जरा ध्यान देना ही भूल गए हैं. ऐसे में आपके क्रश से आपको न ही सुनने को मिलेगी. क्योंकि कोई भी लड़की ये नहीं चाहेगी कि उसका पार्टनर दिखने में अच्छा न हो. क्योंकि कहते हैं न कि बातों का इफेक्ट बाद में लोगों पर पड़ता है पहले तो चेहरा ही वर्क करता है. ऐसे में प्रपोज करने से पहले अपने हुलिए पर ध्यान जरूर दें.

टिप  भले ही आपको टिप टोप रहने का शौक न हो, लेकिन जब आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हो तो खुद को टिप टोप बनाकर ही जाएं. ताकि लड़की की नजरों में आप पहली नजर में ही बस जाएं. और वे आपके प्रपोजल को न न कर पाए. क्योंकि गुड लुकिंग, हैंडसम बोय की कामना हर लड़की को होती है.

3. इशारों के बाद प्रपोज करना 

कुछ लड़कों की ये आदत होती है कि वे जिसे पसंद करते हैं , उसे इशारों से अपने मन का हाल बताने की कोशिश करते हैं. जबकि लड़कियां ऐसे लड़कों से दूरी बनाने में ही समझदारी समझती हैं. क्योंकि ऐसे लड़के उन्हें नियत के सही नहीं लगते. उन्हें लगता है कि जो अभी ऐसी हरकत करता है वो आगे किस हद तक चला जाएगा, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में वे उनके प्रपोज करते ही उन्हें साफ इंकार कर देती हैं.

टिप  जिस पर भी आपका क्रश है ,और आप उसे प्रपोज करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि आप भले ही उसे छुपछुप कर देखें जरूर , लेकिन उसे इशारे न करें. जब भी उसे प्रपोज करें तो आपकी आंखों में उसके लिए प्यार दिखे, न कि एक अजीब सी शरारत.

4. शो ऑफ करके प्रपोज करना 

ये सच है कि आज अधिकांश लड़कियां पैसा , शोहरत देखकर ही लड़कों के प्रपोजल को मंजूर करती हैं. लेकिन हर स्तिथि में ये जरूरी नहीं है कि लड़कियां गाड़ी , पैसा देखकर ही इम्प्रेस हो. ऐसे में अगर आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हैं और आप अगर उसे अपने पैसों का रुतबा दिखाकर प्रपोज कर रहे हैं तो यकीन मानिए आपको न ही सुनने को मिलेगा. क्योंकि जो शुरूवात में इतना दिखावा कर रहा है वो आगे भी अपने पैसों के बल पर मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करेगा, ऐसा सोच कर लड़की आपके गुड लुकिंग होते हुए भी आपको कई बार न करने में ही समझदारी समझेगी.

टिप जब प्रपोज करने के लिए जाएं तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आपकी पर्सनालिटी व आपके प्रपोज़ करने के अंदाज में पैसों का दिखावा जरा भी न हो.

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5. ज्यादा स्मार्ट बनना 

कुछ लड़कों की ये आदत होती है कि वे लड़कियों के सामने खुद को जरूरत से ज्यादा स्मार्ट दिखाने की कोशिश करते हैं. इसी चक्कर में जब वे अपने क्रश को अपना बनाने के बारे में सोचते हैं तब उनकी ये स्मार्टनेस उनके रिजेक्शन के रूप में सामने आती है. क्योंकि कोई भी लड़की जरूरत से ज्यादा स्मार्ट बनने वाले लड़के को पसंद नहीं करना चाहती. ऐसे में बस वे यही सोचते रह जाते हैं कि लड़की ने हमें रिजेक्ट क्यों किया, जबकि हमने तो उन्हें पहल करके पहले प्रपोज किया है.

टिप  जब भी लड़की को प्रपोज करें तो ओवर स्मार्टनेस को एक तरफ रखकर कूल डाउन होकर इस अंदाज में प्रपोज करें कि आपका क्रश आपको हां कहे बिना रह न सके. क्योंकि जब आप में कुछ खास होगा, तभी तो कोई आपकी और अट्रैक्ट होगा.

जादुई झप्पी के 11 फायदे

जादू की मीठी झप्पी सचमुच कितनी जादुई है, इस को वही महसूस कर सकता है, जो अपने प्यार को एक नर्म, सुंदर स्पर्श से अभिव्यक्त करना जानता है. चिकित्सक भी मानते हैं कि कुछ सैकंड के झप्पी या आलिंगन दवा सा प्रभाव दिखाता है.

यों पूरी दुनिया में गले लगा कर झप्पी देनेलेने के तरीके सिखाने वाले क्लब तक बने हुए हैं और आलिंगन से जुड़े अनेक उत्सव पूरी दुनिया में मनाए जा रहे हैं, फिर भी अचानक या किसी बधाई के रूप में एकदूजे को दिया जाने वाला आलिंगन तो अपनेआप में अनूठा है ही.

सार्वजनिक रूप से शुरुआत

सब से पहले सार्वजनिक रूप से आलिंगन को अमेरिका में विधिवत रूप से किया जाना शुरू किया गया था. हालांकि कुछ स्रोतों का कहना है कि जब से दुनिया शुरू हुई प्रेमीप्रेमिका या मित्र आलिंगन करते हैं.

हां, यह बात जरूर है कि सीने से लगाने की यह भावना चोरीछिपे पूरी की जाती होगी और मारे शर्म से कोई इस का लाभ ही नहीं ले पाता होगा, तब किसी जागरूक व्यक्ति ने इस को खूब फैलाया होगा.

फिर भी यह माना जाता है कि लगभग 50 साल पहले यह प्रथा कुछ यूरोपीय छात्रों द्वारा आविष्कृत की गई थी. उस समय बोझिल लैक्चरों से उकता कर कुछ छात्रों द्वारा यह तरीका खोजा गया था.

यूरोप के छात्रों को तकनीकी विषयों ने लगातार सुस्त और निराश कर दिया तो यह उपाय खोजा गया. उन्होंने पठनपाठन के दौरान उदास करने वाले और ऊब पैदा करने वाले सत्र के अवसाद के बाद जम्हाई लेते सहपाठियों को प्यार से हग कर के सत्र खत्म होने का जश्न मनाने का फैसला किया. इस के परिणाम बेहद शानदार रहे थे. हौलेहौले ही सही, यह हग किसी स्वार्थ और विशेष कारण के बिना भी गले लगाने का एक बहाना बनता चला गया.

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पूरे संसार का समर्थन

अब आलिंगन की संस्कृति को पूरे संसार में समर्थन मिल गया है और आज अगर कोई अपने विपरीतलिंगी को भी सब के सामने गले लगा ले तो यह गलत या अनैतिक नहीं माना जाता.

हग करना स्नेह की गरमाहट और प्रेम का आदानप्रदान है. चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने प्रेमी के लिए न केवल गले लगाने के रोमांच, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी पर्याप्त शोध किया है. तो फिर आइए, जानते हैं आलिंगन के लाभ :

मजबूत होता है आत्मविश्वास :

जादू की यह झप्पी सच्चे साथी के रूप में पूर्ण सुरक्षा की भावना अंकुरित करती है. युगल साफ कहते हैं कि जब प्रेमी ने स्नेह से गले लगाया, तो कोई और डर या परेशानी नहीं थी. आलिंगन से आत्मविश्वास मजबूत होता है और आपसी जुड़ाव में भी तीव्र बढ़ोत्तरी होती है.

गले लगाते हुए प्रेमी सुकून और आराम महसूस करते हैं. कई अध्ययनों से पता चला है कि अकसर गले लगाना मानसिक और रचनात्मक विकास को आगे ले जाता है.

थकावट को दूर भगाता है :

अगर आप बहुत ज्यादा थके हुए हैं, तो आप के लिए भी आलिंगन बहुत जरूरी है. आलिंगन में यह माद्दा है कि यह चुटकी में थकान को दूर भगाता है. आलिंगन से दिमाग शांत होता है. आप का ध्यान उस चीज से हटता है जिसे ले कर आप परेशान हैं.

ऐनर्जी बूस्ट करता है :

अगर आप अकेलेपन और आलस्य के शिकार हैं, तो आलिंगन आप के लिए फायदेमंद हो सकता है. खून में बढ़ी औक्सीटोसिन की मात्रा मोरल बूस्टअप करती है. इसलिए आलिंगन के बाद लोग तरोताजा महसूस करने लगते हैं और अकेलेपन का एहसास भी दूर हो जाता है.

स्ट्रेस बूस्टर भी है :

जब कोई अपने बहुत करीबी साथी को गले लगाता है, तो उस के अंदर का सारा तनाव पलक झपकते दूर हो जाता है. यह खून में बढ़ते औक्सीटोसिन का कमाल है. इसलिए कई विशेषज्ञ तनावग्रस्त लोगों को अपने प्रियतम से आलिंगन की सलाह देते हैं.

दिल के लिए लाभप्रद :

अपने किसी खास का नियमित रूप से आलिंगन से दिल की धड़कन नियंत्रित रहती है, जो औक्सीटोसिन और मेटाबौलिज्म का निर्माण करता है. दिल के मरीजों को अपने जीवनसाथी या प्रेमीप्रेमिका को नियमित रूप से हग करना चाहिए.

अनिद्रा का दुश्मन :

आलिंगन को अनिद्रा का दुश्मन माना जाता है. जिन्हें रात में नींद न आती हो या कम नींद आती हो उन्हें अपने प्रिय से प्यार की झप्पी लेनी चाहिए. इस से उन्हें खूब नींद आएगी. विशेषज्ञ कहते हैं कि आलिंगन के बाद बहुत अच्छी नींद आती है और जो लोग खूब हग करते हैं, वे जम कर सोते हैं.

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बढ़ती है मैमोरी पावर :

रिसर्च में यह भी पता चला है कि नियमित रूप से आलिंगन सुख लेने वाले स्त्रीपुरुष की स्मरणशक्ति बहुत लंबे समय तक दुरुस्त रहती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि आलिंगन न करने वालों की तुमना में नियमित आलिंगन करने वाले स्त्रीपुरुष की स्मरण शक्ति भी बेहतर होती है.

लंबी उम्र में फायदेमंद :

औक्सीटोसिन के रिसाव से शारीरिक दमखम बढ़ता है. इसलिए नियमित रूप से आलिंगन करना एक औषधि साबित होता है. इस से दिल की धड़कनें नियंत्रित रहती हैं, जिस से औक्सीटोसिन के साथसाथ मेटाबौलिज्म भी बेहतर होता है.

आलिंगन के बाद बहुत अच्छी नींद आती है. वैज्ञानिक दावा करते हैं कि नियमित आलिंगन से उम्र बढ़ती है. इतना ही नहीं, आलिंगन मानसिक स्वास्थ्य भी सही रखता है. अगर कोई उदास है और उस का कोई साथी आ कर उसे हग कर ले तो अच्छा लगता है और उदासी दूर हो जाती है.

सकारात्मक सोच :

आलिंगन से हर किसी की सोच सकारात्मक हो जाती है, क्योंकि इस से दिमाग में सकारात्मक प्रतिक्रिया होती है. इस आधार पर कह सकते हैं कि आलिंगन इंसान की जिंदगी को सकारात्मकता से भर देती है और नियमित आलिंगन करने वाले के स्वभाव से नकारात्मकता दूर हो जाती है.

बेचैनी होती है दूर :

खून में औक्सीटोसिन नाम के हारमोन का जितना ज्यादा रिसाव होगा, कोई भी व्यक्ति उतना ही ज्यादा हैल्दी होगा. यह हारमोन इंसान की बेचैनी को भी खत्म करता है यानी आप अगर बेचैनी महसूस कर रहे हैं तो अपने प्रिय को गले लगा लीजिए, आप की बेचैनी खत्म हो जाएगी.

मेहनती बनाता है :

इटली की एक लोककथा में बताया गया है कि एक कमजोर शरीर वाले युवक को उस की प्रेमिका सीने से लगा कर ऊर्जा देती थी और वह मजदूरी करता था. हौलेहौले उस युवक का शरीर मजबूत हो गया और वह खूब मन लगा कर मेहनत करने लगा. उस के बाद उस युवक ने यह रहस्य अपने दोस्तों से साझा किया और उन्होंने भी अपनी प्रेमिका को हर रोज सीने से लगाने का संकल्प लिया.

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DIWALI 2021: शादी के बाद पहली दीवाली ऐसे बनाएं यादगार

शादी के बाद सृष्टि की पहली दीवाली थी. उस के सासससुर और जेठजेठानी पास ही दूसरे फ्लैट में रहते थे. सृष्टि के पति मनीष को कंपनी की तरफ से अलग मकान दिया गया था जिस में दोनों पतिपत्नी अकेले रहते थे. सृष्टि भी जौब करती थी इसलिए घर में दिन भर ताला लगा रहता था.

औफिस में दीवाली की छुट्टी एक दिन की ही थी पर सृष्टि ने 2 दिनों की छुट्टी ले ली. वह अपनी पहली दीवाली यादगार बनाना चाहती थी. दीवाली वाले दिन मनीष को जरूरी मीटिंग के लिए बाहर जाना पड़ा. मीटिंग लंबी खिंच गई. लौटतेलौटते शाम हो गई. मनीष ने सृष्टि को फोन किया तो उस ने उठाया नहीं. घर लौटते वक्त मनीष यह सोचसोच कर परेशान था कि जरूर आज सृष्टि उस की खिंचाई करेगी या नाराज बैठी होगी.

असमंजस के साथ उस ने घंटी बजाई. दरवाजा खुला पर अंदर अंधेरा था. वह पल भर में ही तनाव में आ गया और जोर से चिल्लाया, ‘‘सृष्टि कहां होयार, आई एम सौरी.’’  तभी अचानक सृष्टि आ कर उस से लिपट गई और धीमे से बोली, ‘‘आई लव यू डियर हब्बी, हैप्पी दीवाली.’’

तभी दोनों के ऊपर फूलों की बारिश होने लगी. पूरे कमरे में रंगबिरंगी कैंडल्स जल उठीं और मनमोहक खुशबू से सारा वातावरण महक उठा. सामने बेहद आकर्षक कपड़ों और पूरे श्रृंगार के साथ सृष्टि खड़ी मुसकरा रही थी. मनीष ने लपक कर उसे बाहों में उठा लिया. सारा घर खूबसूरती से सजा हुआ था. टेबल पर ढेर सारी मिठाइयां और फायरक्रैकर्स रखे थे. सृष्टि मंदमंद मुसकरा रही थी. दोनों ने 1-2 घंटे आतिशबाजी का मजा लिया. तब तक मनीष के मातापिता, भाईभाभी और उन के बच्चे भी आ गए, सृष्टि ने सभी को पहले ही आमंत्रित कर रखा था. पूरे परिवार ने मिल कर दीवाली मनाई. यह दीवाली मनीष और सृष्टि के जीवन की यादगार दीवाली बन गई.

दिलों को भी रोशन करें

इसे कहते हैं पहली दीवाली की रौनक जो घरआंगन के साथसाथ दिलों को भी रोशन कर जाए. शादी के बाद की पहली दीवाली का खास महत्त्व होता है. यदि इस दिन को लड़ाईझगड़ों या तनातनी में गंवा दिया तो समझिए आप ने बेशकीमती लमहे यों ही लुटा दिए. जिंदगी खुशियों को सैलिब्रेट करने का नाम है तो फिर दीवाली जैसे रंग और रोशनी के त्योहार के दिन अपना मनआंगन क्यों न जगमगाएं?

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अक्सर शादी के बाद जब लड़की ससुराल में पहली दीवाली मनाती है तो उसे होम सिकनैस और घरवालों की कमी महसूस होती है. ऐसा होना स्वाभाविक है पर इस का मतलब यह नहीं कि दीवाली जैसे मौके का मजा किरकिरा कर  दें. बेहतर होगा कि नए माहौल और नए लोगों के साथ दीवाली इतने प्यार से मनाएं कि आप का आने वाला समय भी नई खुशियों से रोशन  हो जाए.

इनलौज के साथ करें शौपिंग

मौके को यादगार बनाना है तो अपनी सास या ननद के साथ जी भर कर शौपिंग करें. पूरे परिवार के लिए तोहफे खरीदें. किस के लिए क्या खरीदना है, इस की एक लिस्ट पहले ही बना कर रख लें. इस काम में अपनी सास की सहायता ले सकती हैं. वह आप को पूरे परिवार की पसंदनापसंद बता सकेंगी. सारे गिफ्ट्स खूबसूरती से रैप कर के सरप्राइज के लिए सुरक्षित जगह  पर रख दें. गिफ्ट्स के अलावा मिठाइयां, चौकलेट्स, फायरक्रैकर्स और सजावटी सामानों की शौपिंग भी कर लें.

रोशन करें घर का कोनाकोना

दीवाली रोशनी का त्योहार है इसलिए पूरे घर को दीपों मोमबत्तियों और दूसरे डिजाइनर बल्बस से सजा दें. लाइटिंग अरैंजमैंट ऐसी करें कि आप का घर अलग ही जगमगाता नजर आए.

घर में बनाएं मिठाइयां

यह एक पुरानी मगर सटीक कहावत है कि किसी के दिल तक पहुंचने का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. शादी के बाद अपने इनलौज व हसबैंड के दिल तक इसी रास्ते पहुंचा जा सकता है. आप को अपनी पाक कला में निखार लाना होगा. स्वादिष्ठ फैस्टिव मील्स और स्वीट्स तैयार करने होंगे. ज्यादा नहीं जानतीं तो अपनी मां या सास की सहायता लेने से हिचकें नहीं. पत्रिकाओं में भी हर तरह की रैसिपीज छपी होती हैं. उन की सहायता लें और सब को खुश कर दें.

दीवाली पार्टी

अपनी पहली दीवाली यादगार बनाने आसपड़ोस के लोगों व रिश्तेदारों को जाननेसमझने व रिश्तों को प्रगाढ़ करने का इस से बेहतर मौका नहीं मिलेगा. घर में दीवाली पार्टी और्गनाइज करें और लोगों को बुला कर खूब मस्ती करें.

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एकल परिवार

यदि आप शादी के बाद किसी वजह से इनलौज से अलग रह रही हैं तो आप की चुनौतियां कुछ अलग होंगी. आप को ध्यान रखना होगा कि जिस प्रकार आप होमसिकनैस महसूस कर रही हैं वैसे ही आप के पति भी परिवार से दूर पहली दफा दीवाली मना रहे हैं. ऐसे में आप को प्रयास करना होगा कि पति को खास महसूस कराएं और उन के लिए खास सरप्राइज तैयार कर के रखें.

इस संदर्भ में आप अपनी मां से यह पूछ सकती हैं कि उन्होंने अपनी पहली दीवाली में क्या खास किया था? अपनी सास को फोन करें और बताएं कि आप ने दीवाली के लिए क्या स्पैशल सरप्राइजेज तैयार किए हैं. उन से कहिए कि वह आप के पति को ज्यादा बेहतर जानती हैं इसलिए आप की सहायता करें. आप की सास यह जान कर स्पैशल महसूस करेंगी कि आप उन के बेटे के जीवन में उन की खास जगह को स्वीकार करती हैं और महत्त्व देती हैं. वह आप की सहायता कर के खुश होंगी.

अपने पति के लिए एक खास दीवाली तोहफा खरीदें. यह कोई गैजेट हो सकता है या नई ड्रैस या फिर अपनी बजट के हिसाब से कुछ और खरीदें. उन की पसंद की मिठाइयां तैयार करें, फैवरिट डिश बनाएं और फिर खास उन के लिए सजें. रात में घर का कोनाकोना रोशन करें. आज के समय में आप स्काइप या फेसबुक आदि की सहायता से इस खास मौके को यादगार बनाते हुए इन लमहों को दूसरों से शेयर भी कर सकती हैं.

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