दोपहर का समय था. सात्वत दिल्ली के रिंग रोड से अपनी कार मोड़ कर बाईं ओर डब्लू.एच.ओ. भवन के नजदीक पहुंचा ही था कि पल भर को उस की नजर उस ओर मुड़ी और उसी पल स्वत: उस का पैर तेजी से ब्रेक पर पड़ा और कार चीत्कार करती हुई रुक गई.
सात्वत झटके से कार का दरवाजा खोल कर उतरा और तेजी से बाईं ओर भागा. वह भवन के आगे शीशे के दरवाजे तक पहुंच चुकी थी. सात्वत इतनी दूर से भी वर्षों बाद उसे देख कर पहचान गया था…शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. वह चेष्टा ही थी…वही लंबा, छरहरा बदन, गर्दन तक कटे बाल, वही हलके कदमों वाली चाल. पलभर को ही दिखाई दी, किंतु वही आंखें, वही नाक और होंठ…शर्तिया वही है. वह तेजी से उधर बढ़ना चाहता था कि अचानक खयाल आया, उस की कार बीच रोड पर खड़ी है और सीट पर उस का लैपटाप, मोबाइल और हैंड बैग रखा है.
सात्वत ने फौरन जा कर कार को बाईं ओर लगाया, शीशा चढ़ा कर गाड़ी लौक की फिर दौड़ता हुआ डब्लू.एच.ओ. भवन की ओर गया. जब तक वह गेट के पास पहुंचा चेष्टा ओझल हो चुकी थी. शीशे के द्वार के बाहर वह पल भर रुका तो द्वार अपनेआप खुल गया. वह तेजी से लौबी के अंदर गया और चारों ओर देखने लगा. वह कहीं नहीं थी. शायद वह भवन के अंदर चली गई थी. तब तक एक वरदीधारी उस के पास आया और बोला, ‘‘आप कौन हैं? क्या चाहिए?’’
उसे खामोश पा कर उस ने फिर कहा, ‘‘प्लीज, रिसेप्शन पर जाइए,’’ और एक ओर इशारा किया.
सात्वत ने रिसेप्शन पर जा कर वहां बैठी महिला से इस तरह आने के लिए माफी मांगी फिर बोला, ‘‘मैडम, वह लड़की जो अभीअभी अंदर आई थी, वह किधर गई?’’
महिला ने उसे ऊपर से नीचे तक गौर से देखा फिर अंगरेजी में पूछा, ‘‘आप को क्या काम है?’’
सात्वत ने कहा, ‘‘मैं उसे जानता हूं, उस से मिलना चाहता हूं, उस से पुरानी जानपहचान है.’’
रिसेप्शन पर बैठी युवती ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘आप बिना पूर्व समय लिए यहां किसी से नहीं मिल सकते.’’
सात्वत ने अनुरोध भरे स्वर में कहा, ‘‘मैडम, मुझे यहां आप के आफिस में किसी से नहीं मिलना है. अभी जो लेडी यहां अंदर आई हैं मैं केवल उन से मिलना चाहता हूं. मैडम, मेरा उन से मिलना बहुत जरूरी है.’’
उस महिला और गार्ड के चेहरों पर हठ और आक्रोश के भाव को देख कर सात्वत समझ गया कि उन से कुछ भी अनुरोध करना बेकार है. वह कोई अनावश्यक सीन नहीं खड़ा करना चाहता था इसलिए ‘आई एम सौरी’ बोल कर बाहर आ गया.
सात्वत धीरेधीरे चलता हुआ, अपनी कार के पास आ गया और गेट खोल कर अंदर बैठ गया. उस ने शीशा नीचे किया और सेल फोन निकाल कर अपने आफिस फोन किया. उस ने अपनी सेक्रेटरी को कहा, ‘‘कुछ जरूरी काम से मुझे आने में देर हो जाएगी…चीफ को खबर कर देना.’’
वह कार में बैठा डब्लू.एच.ओ. बिल्ंिडग की ओर देखता हुआ सोचने लगा कि चेष्टा को तो पूना में होना चाहिए, यहां दिल्ली में क्या कर रही है. हो सकता है, उस के पति का ट्रांसफर हो गया हो. 5 साल पहले, पटना छोड़ने के बाद सात्वत ने पहली बार चेष्टा की झलक देखी. हालांकि बीते 5 साल में वह अपने मन में चेष्टा को हमेशा से देखता आया है.
सात्वत की चेष्टा से मुलाकात पटना में 7 साल पहले हुई थी और उस के बाद ही दोनों गहरे दोस्त हो गए थे और कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे को चाहने भी लगे थे. हालांकि दोनों के स्टेटस में बहुत अंतर था.
सात्वत छोटी जाति का था और चेष्टा ऊंची जाति की. एक निम्न- मध्यवर्गीय परिवार का सात्वत गांव से पटना पढ़ने आया था. चेष्टा के पिता आई.जी. पुलिस थे और पटना की एक पौश कालोनी में उन का बड़ा भव्य मकान था. चेष्टा की शुरू से ही शिक्षा पटना में हुई थी. फिर भी दोनों में कुछ समानताएं थीं. मसलन, दोनों पढ़ने में तेज थे और दोनों को एथलेटिक का शौक था. दोनों की मुलाकात दौड़ के मैदान में ही हुई थी. चेष्टा 100 और 200 मीटर की दौड़ में चैंपियन थी और सात्वत मिडिल डिस्टेंस दौड़ में हमेशा प्रथम आता था. शाम को दोनों अकसर साइंस कालिज के मैदान में साथसाथ प्रैक्टिस करते थे.
विश्वविद्यालय एथलेटिक प्रति- योगिताओं में दोनों कानपुर, बंगलौर और कोलकाता गए थे. इस दौरान दोनों काफी घनिष्ठ मित्र हो गए थे किंतु सात्वत हकीकत को जानता था. अपने और चेष्टा के बीच के वर्गों की दूरी को वह पहचानता था. उस ने सोचा था, चेष्टा के साथ उस की शादी का एक ही उपाय है कि वह जल्दी से किसी अच्छी नौकरी में लग जाए, पर्याप्त कमाने लगे. हो सकता है तब चेष्टा के पिता जाति को नजर- अंदाज कर विवाह के लिए राजी हो जाएं. इसलिए उस ने और भी मेहनत से पढ़ना शुरू किया. एम.एससी. में टौप करने के बाद ही उस ने अच्छी नौकरी की तलाश शुरू की.
अपने एक प्रोफेसर के सुझाव पर उस ने दिल्ली की एक मल्टीनेशनल फर्म में ईमेल से अपना आवेदन और सी.वी. भेज दिया था. प्रारंभिक वेतन 40 हजार रुपए था. इंटरव्यू के लिए उसे बुलावा आ गया था और जैसेतैसे कर वह दिल्ली पहुंचा था. फर्म के आफिस में इंटरव्यू के लिए अंदर जाने से पहले उसे लगा था कि वह बेकार आया…ये लोग शायद उसे बाहर से ही भगा देंगे.
इंटरव्यू कार्ड दिखाने पर उसे अंदर ले जा कर बैठाया गया. वह चुपचाप, दुबका, सिकुड़ा रिसेप्शन में बैठा रहा. एक चपरासी एक ट्रे में पानी का गिलास ले कर लोगों को पिलाते हुए घूम रहा था पर उसे पानी पीने में भी संकोच महसूस हो रहा था. खैर, उस का नाम पुकारा गया और उसे घोर आश्चर्य हुआ जब 5 मिनट के बाद ही उसे चुन लिया गया. चीफ आफिसर ने उस से कहा था कि वह बाहर लौबी में बैठ कर चाय पीए. उसे 1 घंटे के अंदर ही नियुक्तिपत्र मिल जाएगा. आज ही ज्वाइन कर लो, कल से 1 महीने की ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी.
उसे पटना वापस जाने की इजाजत नहीं मिली. फर्म के एक बड़े अधिकारी ने पी.ए. को बुला कर कहा था, ‘‘इन साहब के लिए कंपनी के गेस्ट हाउस में एक कमरा बुक करा दो,’’ उस के बाद उसे कैशियर से 10 हजार का एडवांस दिला कर कहा गया, ‘‘कंपनी की गाड़ी से मार्केट चले जाओ और अपने लिए कुछ कपड़े खरीद लो.’’
सबकुछ इतनी जल्दी और तेजी से हुआ कि उसे कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला. चंद घंटों में ही सात्वत का जीवन बदल गया. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक लगातार ट्रेनिंग. आज 5 साल बाद उस का वेतन 2 लाख रुपए प्रतिमाह हो गया है. उस ने अपना फ्लैट खरीद लिया है.