Family Story in Hindi
Family Story in Hindi
मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.
मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर.
थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा.
मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली.
तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.
मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’
‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.
कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’
‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’
इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’
और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई.
मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.
लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’
उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’
मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’
उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी.
मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.
मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’
‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.
फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’
‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’
हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई.
मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’
मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था.
फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’
‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’
‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’
‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’
‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली.
मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’
‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’
‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’
‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.
‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’
मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी.
थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया.
इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे.
प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.
‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’
प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे.
मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’
‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’
‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’
‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’
‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’
‘‘क्यों?’’
मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’
‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’
प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था.
मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा.
तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया.
प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.
प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’
‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’
इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’
वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’
‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’
‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’
‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’
मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’
‘‘और कुछ लोगी?’’
‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’
मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’
इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’
मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’
डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.
‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.
‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे.
‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.
प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था.
‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.
मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’
‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.
‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’
मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’
‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’
इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था.
इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’
प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’
‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’
‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’
मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी.
प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई.
थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई.
सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.
मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’
‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’
‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’
प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले.
नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’
‘‘बेशक दूंगी.’’
थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी.
‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’
प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’
प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई.
सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’
मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’
‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’
‘‘एयरपोर्ट.’’
मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’
‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’
और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’
‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.
मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’
‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’
और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं.
मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है.
एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’
‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’
आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.
पूरे घर में तूफान से पहले की शांति छाई हुई थी. पूरे महल्ले में एक हमारा ही घर ऐसा था जहां 4 पीढि़यां एकसाथ रह रही थीं. मेरी दादीसास इस का सारा क्रैडिट मेरी सासूमां को देती थीं, जिन्होंने अपनी उम्र के 15वें वसंत में ही उन के घर को खुशियों से भर दिया था और मेरे ससुरजी के 5 छोटे भाईबहनों सहित खुद अपनी 7 संतानों को पालपोस कर बड़ा किया.
दरअसल, मेरे पति सुमित मम्मीजी की गोद में तभी आ गए थे, जब वे स्वीट सिक्सटीन की थीं. उन्होंने अपनी सास को पोता थमा दिया और उन से घर की चाबियां हथिया लीं. वह दिन और आज का दिन, मजाल है किसी की जो हमारी मम्मीजी के सामने 5 मिनट भी नजरें उठा कर बातें कर ले.
हमारी दादीसास अपने बच्चों को भुला कर अपने पोतेपोतियों में व्यस्त हो गईं. कहते हैं न कि सूद से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है. उन के सभी बच्चे अपने हर छोटेछोटे काम के लिए अपनी भाभी यानी हमारी मम्मीजी पर आश्रित हो गए.
समय बीता, सब का अपनाअपना घर बस गया. मैं बड़ी बहू बन कर इस घर में आ गई और मेरे पीछेपीछे मेरी 2 देवरानियां भी आ गईं. ननदें ब्याह कर अपनेअपने घर चली गईं. दादीजी की जबान से मम्मीजी की बहुत सी वीरगाथाएं सुनी थीं, परंतु लाख चाह कर भी मैं वह स्थान न ले पाई, जो मम्मीजी ने बरसों पहले ले लिया था.
वे थी हीं कुछ हिटलर टाइप की. अपनी सत्ता छोड़ने को तैयार ही नहीं, इसलिए मैं ने भी उन की सीट हथियाने का विचार छोड़ कर दादी के लाड़लों की लिस्ट में शामिल होने का मन बना लिया था.
परंतु कल शाम हमारी फैमिली डाक्टर कुलकर्णी के क्लीनिक से जो फोन आया, उस ने तो पूरे घर में तहलका मचा दिया.
हमारी मम्मीजी पेट से थीं. फोन मैं ने ही सुना था. सुन कर मुंह खुला का खुला रह गया. दूसरी तरफ से डाक्टर की सहायक का सुरीला स्वर उभरा था, ‘‘कांग्रैचुलेशंस, मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट.’’
मैं शायद संसार की ऐसी पहली बहू थी, जो अपनी सास के गर्भवती होने की खबर उन्हें दे रही थी.
पूरे घर में तहलका मच गया. मम्मीजी अपने कमरे में नजरबंद हो गईं. दादीजी की खुशी सातवें आसमान पर थी. घर में पुरुषों के आने से पहले ही उन्होंने मेरे 7 वर्षीय बेटे अजय से मोबाइल से नंबर लगवा कर सारे रिश्तेदारों को यह खुशखबरी सुना कर अपने सास होेने के कर्तव्य का निर्वाह भी कर लिया.
हम तीनों बहुओं में से मैं ने और मझली देवरानी ने यह तय किया कि अपनेअपने पति को यह खबर सारे कामों से निबट कर रात को शयनकक्ष में ही सुनाएंगे. मगर छोटी देवरानी मोनाली को पति अतुल को अभी यह खबर सुनाने से सख्त मना कर दिया, क्योंकि वह इस समय शहर से बाहर था और बेवजह उसे तनाव देना ठीक नहीं लगा.
जब रात के खाने के समय मम्मीजी के साथसाथ पापाजी को भी नदारद पाया, तो हम समझ गए कि उन्हें भी खबर मिल गई होगी.
सुमित तो यह सुनते ही मुंह तक चादर ओढ़ कर सो गए, परंतु उस रात किसी की भी आंखों में नींद नहीं थी, क्योंकि रात भर सभी के कमरों के दरवाजों के बारबार खुलने व बंद होने की आवाजें आती रही थीं.
सुबह 6 बजतेबजते मेरी व मझली देवरानी सोनू की सहेलियों के फोन भी आ गए. किस ने बताया होगा इन लोगों को, मैं आंखें मलती हुई सोच रही थी. तभी दूध वाली की याद आई, क्योंकि 4-5 दिन पहले दूध लेते समय मम्मीजी को उसी के सामने उलटी आई थी. उस ने हंस कर पूछा भी था, ‘‘क्यों, दीदीजी सब ठीक तो है न? इस उम्र में भी उलटी आ रही है?’’
और कल जब फोन आया था तब भी वह यहीं पर थी. किसी ने बौखलाहट की वजह से उस पर ध्यान ही नहीं दिया था.
आज सुबह से ही मम्मीजी के दर्शन नहीं हुए. इत्तफाक से आज रविवार भी था, इसलिए सभी घर पर ही थे.
सुबह से ही मम्मी के काम बंट गए. स्नान के बाद जहां दादीजी ने पूजा घर संभाला, वहीं मुझे रसोई की ड्यूटी मिली.
जहां सुबह से दादीजी ने यह खबर पेपर वाले, सब्जी वाले को खुशीखुशी सुनाई, वहीं मोनाली थोड़ी शर्मिंदा थी. आखिर उस के रहते मम्मीजी ने जो बाजी मार ली थी.
‘‘कुसुम दीदी, यह कैसे संभव है?’’ उस ने आंखें फाड़ते हुए पूछा.
‘‘अरे मोनाली, हमारी मम्मीजी अभी सिर्फ 48 साल की ही तो हैं. उन की माहवारी भी अभी तक पूरी तरह से नहीं रुकी है. कुछ रेयर केसेज में ऐसा कभीकभी हो जाता है,’’ मैं ने उस की अवस्था को भांपते हुए उसे
आश्वस्त किया.
‘‘मैं ने भी नोटिस किया था, जब से मम्मीजी बरेली वाली शादी से लौटी हैं, उन का चेहरा बुझाबुझा सा है. पहले वाली चुस्तीफुरती नहीं है,’’ सोनू ने भी सोचते हुए कहा.
दादीजी को धोबिन से इस खबर की चर्चा करते देख कर मझले देवर राहुल, दादी के पास आ कर बोले, ‘‘दादी, प्लीज चुप हो जाइए. यह कोई शान की बात नहीं है.’’
‘‘तू चुप कर और पंडितजी को बुला ला. पूजा करवानी है. पूरे महल्ले में मिठाई बांटनी है,’’ दादीजी ने उसे डांटते हुए कहा तो राहुल अपना सिर पकड़ कर लौट गए और धोबिन मुसकराने लगी.
अब दादीजी की जबान पर कौन ताला लगाए. वे तो सभी से अपने बहादुर पुत्र की मर्दानगी का बखान बढ़ाचढ़ा कर कर रही थीं.
‘‘भैया, रिपोर्ट गलत भी तो हो सकती है,’’ नाश्ते की मेज पर राहुल ने सुमित से कहा.
‘‘काश, ऐसा ही हो,’’ गहरी सांस लेते हुए सुमित बोले.
मुझे दोनों भाइयों की शक्ल देख कर हंसी भी आ रही थी और दया भी.
सुबह की सैर पर पापाजी की अनुपस्थिति, आज उन के दोस्तों को घर तक खींच लाई. चाय सर्व करते समय इस उम्र में भी उन लोगों के गुलाबी होते झुर्रियों वाले गाल और पास बैठी मुसकराती हुई दादीजी को देख कर मैं समझ गई थी कि उन लोगों को भी खुशखबरी मिल गई है.
आज पूरे घर में मेरा ही राज था. माली, महाराज, धोबिन, चमकी, सोनू, मोनाली आदि मेरे नेतृत्व में अपनेअपने काम को अंजाम दे रहे थे. हां, बीचबीच में दादीजी आ कर मेरा मार्गदर्शन कर रही थीं. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. किसी महिला के राष्ट्रपति बनने की उस खुशी को आज मैं ने पहली बार पर्सनली महसूस किया था.
मम्मीजी और पापाजी का नाश्ता ले कर मैं दादीजी के साथ उन के कमरे में पहुंची. वहां का नजारा तो और भी रोमांचक था. हमेशा शेरनी की तरह गरजने वाली हमारी मम्मीजी आज मेमने की तरह नजरें झुकाए बैठी थीं. मेरा दिल यह देख कर बल्लियों उछल रहा था. जी चाह रहा था कि उन्हें चूम लूं, पर कहते हैं न कि घायल भी हो तब भी शेरनी तो शेरनी ही होती है.
पापाजी कमरे के दूसरे कोने में बैठे थे. अचानक मेरी नजरों ने नीचे से ऊपर तक उन का मुआयना किया, परंतु मुझे कहीं से भी यह नहीं लगा कि उन का यह दीनहीन शरीर ऐसा गुल भी खिला सकता है.
दादीजी को मम्मीजी की नजरें उतारते देख पापाजी कमरे से बाहर आ गए, तो उन के पीछेपीछे मैं भी बाहर आ गई.
‘‘दादाजी, चमकी आंटी कह रही थीं कि घर में मेहमान आने वाला है, कौन है वह?’’ मेरे बेटे अजय ने मासूमियत से पूछा, तो आंगन में खड़े माली, चमकी, सोनू सभी मुसकरा दिए. पापाजी जल्द ही गेट से बाहर हो लिए.
‘‘दीदीजी, आज क्या पकवान बनाए?’’ चमकी ने चहकते हुए पूछा.
‘‘क्यों, कोई त्योहार है क्या?’’ मैं ने त्योरियां चढ़ाते हुए पूछा.
‘‘कुछ ऐसा ही तो है. थोड़ी देर में तीनों चाचा अपने परिवारों समेत आ रहे हैं,’’ चमकी मुसकराते हुए बोली.
‘‘उफ, लगता है दादीजी का बुलावा है,’’ मैं ने खीजते हुए कहा.
‘‘तू इतना मुसकरा क्यों रही है?’’ सोनू ने चिढ़ते हुए चमकी से पूछा.
‘‘हमें तो मांजी के बारे में सोचसोच कर गुदगुदी हो रही है. हम ने भी अपने लल्ला के पापा को आज जल्दी काम से लौट आने को फोन कर दिया है,’’ चमकी मुंह में साड़ी का पल्लू ठूंसती हुई शरमा कर बोली.
कुछ देर बाद बाहर शोरगुल सुन कर मैं ने महाराज व चमकी को कुछ निर्देश दिए व रसोई से बाहर आई.
बाहर हमारा आधा खानदान पधार चुका था. मम्मीजी की सभी देवरानियां मेरे पीछेपीछे मम्मीजी के कमरे की ओर लपकीं. सोनू, मोनाली और मैं भी वहीं थे.
‘‘अब मैं बच्चों को, महल्ले वालों को क्या मुंह दिखाऊंगी छोटी. अपने पोतेपोतियों से क्या कहूंगी कि तुम्हारे छोटे चाचा आने वाले हैं,’’ अपनी देवरानी के गले लगते हुए मम्मीजी फूटफूट कर रो पड़ीं.
मुझे तो सुबह से इस नए रिश्ते का आभास ही नहीं हुआ था.
‘‘मैं ने इन से कितना मना किया, पर ये मेरी सुनते ही कहां हैं,’’ मम्मीजी रोती हुई अपना दुखड़ा सुना रही थीं.
‘‘अरे दीदी, क्या नहीं सुनते? भैयाजी तो सारी उम्र आप की हां में हां मिलाते आए हैं. अब थोड़ी सी अपने मन की कर ली तो क्या बुरा किया? एक मेरे वे हैं, पत्थर हैं पत्थर,’’ मम्मीजी की सब से छोटी देवरानी अपने पति को कोसते हुए बोलीं.
उन को हम तीनों की उपस्थिति का शायद आभास ही नहीं था.
‘‘पापाजी इस उम्र में भी मम्मीजी के साथ…’’ आंखें फाड़ते हुए मोनाली ने कहा तो मैं ने कुहनी मार कर उसे चुप रहने का इशारा किया.
मम्मीजी को यों रोता देख कर हम बहुओं का भी दिल पसीज गया था, परंतु हमारे अंदर तो उन्हें सांत्वना देने की हिम्मत नहीं थी.
पूरे घर में मेला सा लगा हुआ था. अब तक सुमित और राहुल भी चाचा लोगों के पास आ गए थे. बच्चे ऐंजौय कर रहे थे. उन्हें अचानक इस गैटटुगैदर का अर्थ समझ नहीं आ रहा था. जिसे देखो वही होंठ दबा कर मुसकरा रहा था, परंतु पूरी भीड़ में पापा नहीं थे.
अचानक मेरे मोबाइल पर मेरी सहेली सीमा की आवाज आई, ‘‘एक मजेदार बात सुनाऊं कुसुम?’’
‘‘क्या है?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘मेरे पापाजी आज सुबह तेरे घर से लौट कर आए हैं न, तभी से मम्मी के साथ बाहर घूमने गए हैं. दोनों बड़े खुश लग रहे थे,’’ उस ने चहकते हुए कहा.
मुझे समझते देर न लगी कि उस के पापाजी में यह खुशहाल परिवर्तन हमारे यहां की खुशखबरी सुनने से ही आया है.
‘‘डाक्टर से एक बार और कन्फर्म कर लेते हैं,’’ चाचाजी झेंपते हुए सुमित से बोले.
‘‘आज संडे है, क्लीनिक बंद है और वैसे भी डाक्टर 2 दिनों के लिए चेन्नई गई हैं. फोन किया था मैं ने तो पता चला,’’ मैं ने बड़ी बहू होने का फर्ज निभाते हुए कहा.
‘‘अरे क्या पक्का करना रह गया है अब. उस का चेहरा नहीं देखा, कैसा पीला पड़ गया है. कुछ दिनों पहले ही तो वह लल्ला के संग गई थी अपनी जांच करवाने उसी डाक्टरनी के पास,’’ दादीजी ने झिड़कते हुए कहा तो सब चुप हो गए.
आज मम्मीजी की सत्ता लगभग मेरे हाथों में थी, इसलिए भागदौड़ भी कुछ ज्यादा थी और खीज भी हो रही थी. इसलिए मम्मीजी के कमरे के आसपास मोनाली को तैनात कर जेठानीदेवरानियों की खबरें एकत्र करने का निर्देश दे कर मैं सोनू को साथ ले रसोई की ओर बढ़ गई.
रसोई में भी मन कहां लग रहा था. थोड़ी देर बाद मोनाली ने आ कर एक खबर सुनाई. उन लोगों के बीच यह तय हुआ है कि अपने पूरे प्रसवकाल में मम्मीजी दुबई वाली बूआजी के पास रहेंगी और फिर बच्चा भी उन्हें दे दिया जाएगा. उन की अपनी औलाद नहीं है. बूआजी से फोन पर इस की स्वीकृति भी ले ली गई है.
इस खबर ने मुझे खुशी से भर दिया कि चलो उतना समय ही सही, मम्मीजी की कुरसी पर बैठने का मौका तो मिलेगा.
खैर, दोपहर का भोजन समय पर तैयार हो गया. खाने पर सभी मम्मीजी को मिस कर रहे थे.
दोपहर के कामों से निबट कर मैं और चमकी रात के भोजन का सामान लाने मार्केट निकले.
‘‘कुसुम, अब मिसेज अवस्थी की तबीयत कैसी है?’’ पड़ोस की चावला आंटी ने चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान बिखेरी.
‘‘जी…जी…ठीक है,’’ मैं ने झेंपते हुए कहा और आगे बढ़ गई.
‘‘कुसुम भाभी, मम्मी पूछ रही थीं कि हमारा टैलीफोन का बिल भी आप जमा कर देंगी?’’ 2 घर छोड़ 14 वर्षीय चंचल ने अपने घर के गेट पर से ही पूछा.
‘‘क्यों, मम्मी को कहीं जाना है क्या?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हां, मम्मीपापा ने आज सुबह अचानक ही माउंट आबू जाने का प्रोग्राम बना लिया. इस बार दोनों ही जा रहे हैं. हमें नहीं ले जा रहे हैं,’’ रूठते हुए चंचल बोली.
‘‘लो दीदी, बम तो आप के घर फूटा है, पर धमाके दूरदूर तक हो रहे हैं,’’ चमकी मुसकराते हुए बोली.
हर 2 घर छोड़ कर अलगअलग लोगों की अलगअलग प्रतिक्रियाएं देखीं हम ने. ये सब हमारे घर के उस महान समाचार की ही उपज था.
‘‘दीदी, आज 6 बजे ही फ्लाइट से अतुल आ रहे हैं,’’ घर पहुंची तो मोनाली ने चहकते हुए कहा.
‘‘पर उन्हें तो कल आना था न?’’ मैं ने पूछा.
‘‘काम जल्दी खत्म हो गया, इसलिए आज ही पहुंच जाएंगे. वैसे भी कल रात से मुझे उन की कुछ ज्यादा ही याद आ रही है,’’ मोनाली शरमा कर बोली, तो हम सब भी मुसकरा दिए.
वैसे मम्मीजी के इस समाचार ने महल्ले के प्रौढ़ जोड़ों में जहां नई ऊर्जा का संचार किया था, वहीं नवविवाहितों की गरमी को भी और बढ़ा दिया था.
‘‘भाभी, सब ठीक तो है न? रास्ते में शर्माजी मुझे रोक कर कहने लगे कि घर जल्दी पहुंचो, सब इंतजार कर रहे हैं,’’ मेरे चरणस्पर्श करते हुए घर का माहौल देख हैरानपरेशान से अतुल ने पूछा.
मोनाली ने उस के कान में कुछ कहा तो थोड़ी देर सोच कर वह जोरजोर से हंसने लगा.
उस की हंसी देख कर हम सब सकते में आ गए. परंतु अतुल ने कुछ न कहा और इशारे से मम्मीजी के कमरे में आने को कहा. सभी बुत की तरह उस के पीछे हो लिए.
‘‘बधाई हो मम्मीजी,’’ उस ने शरारत से हंसते हुए कहा.
मम्मीजी को काटो तो खून नहीं.
‘‘क्या कहा था डाक्टर की सहायक ने?’’ उस ने हंसते हुए हम लोगों से पूछा.
‘‘यही कि मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट,’’ मैं ने सफाई दी.
‘‘तो आप सब ने मम्मीजी को…’’ और वह पेट पकड़ कर हंसने लगा.
अब की बार मम्मीजी ने धीरे से गरदन उठाई.
‘‘हंसना बंद कर और साफसाफ बता,’’ दादीजी बोलीं.
‘‘उफ दादी, इस घर में मम्मी के अलावा 3 और मिसेज अवस्थी भी हैं,’’ मुश्किल से हंसी रोकते हुए अतुल बोला.
अब सब की निगाहें मुझ पर और सोनू पर थीं. हम दोनों शर्म से पानीपानी हो रहे थे. न जाते बन रहा था न रुकते. मोनाली पर कोई इसलिए शक नहीं कर रहा था, क्योंकि हमारे खानदान के रिवाज के अनुसार, उसे तो 3 सप्ताह पहले ही गौना करा कर यहां लाया गया था.
‘‘तो क्या कुसुम या सोनू में से कोई?’’ दादी के शब्दों में हैरानी थी.
यह सुनते ही मम्मीजी के तेवर भी बदलने लगे.
‘‘सौरी दादी, वह मोनाली है,’’ अतुल बोला.
इस के बाद मोनाली तो कमरे से ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सिर से सींग. मेरी और सोनू की जान में जान आई.
दरअसल, हुआ यह कि रिवाज के मुताबिक शादी के 7 महीने तक मोनाली को मायके में ही रहना था, परंतु दोनों के घर एक ही शहर में होने की वजह से अतुल और मोनाली को एकदूसरे से मिलने की छूट थी. इन्हीं मुलाकातों ने मोनाली को गर्भवती कर दिया.
घर वालों के डर से अतुल ही गुप्त रूप से मोनाली को डाक्टर कुलकर्णी के पास यूरिन टैस्ट के लिए ले गया था. परंतु उस का परिणाम स्वयं डाक्टर ने अतुल को बता दिया था. वह यह खुशखबरी घर वापस आ कर देना चाहता था.
उधर शादी से लौटने के बाद बदहजमी व अन्य परेशानियों के कारण मम्मीजी की तबीयत भी ढीली हो गई थी और संयोग से उन का भी यूरिन टैस्ट उन्हीं डाक्टर के क्लीनिक पर हुआ. मम्मीजी के तो डाक्टर के पास जाने की बात हम सभी जानते थे, परंतु अतुल और मोनाली भी वहां गए थे, यह कोई नहीं जानता था. उस पर मम्मीजी की ढीली तबीयत ने आग में घी का काम कर दिया.
बस, इतनी छोटी सी गलतफहमी ने न सिर्फ हमारे घर की सत्ता पलट दी थी, बल्कि प्रेम के नाम पर महल्ले में नई क्रांति भी आ गई थी.
अब दनदनाते हुए मम्मीजी खड़ी हो गईं. मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरे एक दिन के राजपाट का अंत हो चुका है.
अब सभी पापाजी को ढूंढ़ रहे थे.
‘‘रीगल थिएटर में बैठे होंगे, जाओ बुला लाओ,’’ मम्मीजी की रोबदार आवाज गरजी.
‘‘आप को कैसे पता दादीजी?’’ मेरे बेटे अजय ने हैरानी से पूछा.
‘‘अरे बेटा, जब तुम्हारे दादाजी हद से ज्यादा परेशान होते हैं न तो अंगरेजी फिल्म देखने चले जाते हैं और इस समय अंगरेजी फिल्म रीगल में ही लगी है,’’ मम्मीजी ने अनजाने पापाजी के व्यक्तित्व की एक पोल खोल दी.
‘‘कुछ भी हो दीदी, पापाजी हैं बड़े हीरो वरना मम्मीजी की जबान पर यह बात कभी न आती कि मैं ने इन से कितना मना किया, यह हैं कि सुनते ही नहीं हैं,’’ सोनू ने धीरे से मम्मी की नकल करते हुए कहा तो मेरी भी हंसी छूट गई.
मम्मीजी अपने रोब के साथ रसोई की ओर चल दीं, रात के खाने का इंतजाम करने.
अब सभी खुशी मनाने के मूड में थे, क्योंकि मिसेज अवस्थी इज रीयली प्रैग्नैंट.
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‘‘शहीद की शहादत को तो सभी याद रखते हैं, मगर उस की पत्नी, जो जिंदा भी है और भावनाओं से भरी भी. पति के जाने के बाद वह युद्ध करती है समाज से और घर वालों के तानों से. हर दिन वह अपने जज्बातों को शहीद करती है.
‘‘कौन याद रखता है ऐसी पत्नी और मां के त्याग को. वैसे भी इतिहास गवाह है कि शहीद का नाम सब की जबान पर होता है, पर शहीद की पत्नी और मां का शायद जेहन पर भी नहीं,’’ जैसे ही रुकमा ने ये चंद लाइनें बोलीं, तो सारा हाल तालियों से गूंज गया.
ब्रिगेडियर साहब खुद उठ कर आए और रुकमा के पास आ कर बोले, ‘‘हम हैड औफिस और रक्षा मंत्रालय को चिट्ठी लिखेंगे, जिस से वे तुम्हारे लिए और मदद कर सकें,’’ ऐसा कह कर रुकमा को चैक थमा दिया गया और शहीद की पत्नी के सम्मान समारोह की रस्म अदायगी भी पूरी हो गई.
चैक ले कर रुकमा आंसू पोंछते हुए स्टेज से नीचे आ गई. पतले काले सफेद बौर्डर वाली साड़ी, माथे पर न बिंदी और काले उलझे बालों के बीच न सुहाग की वह लाल रेखा. पर बिना इन सब के भी उस का चेहरा पहले से ज्यादा दमक रहा था. थी तो वह शहीद की बेवा. आज उस के शहीद पति के लिए सेना द्वारा सम्मान समारोह रखा गया था. समारोह के बाद बुझे कदमों से वह स्टेशन की तरफ चल दी.
ट्रेन आने में अभी 7-8 घंटे बाकी थे. सोचा कि चलो चाय पी लेते हैं. नजरें दौड़ा कर देखा कि थोड़ी दूर पर रेलवे की कैंटीन है. सोचा, वहीं पर चलते हैं दाम भी औसत होंगे.
रुकमा पास खड़े अपने पापा से बोली, ‘‘पापा, चलो कुछ खा लेते हैं. अभी तो ट्रेन आने में बहुत देर है.’’
बापबेटी अपना पुराना सा फटा बैग समेट कर चल दिए.
चाय पीतेपीते पापा बोले, ‘‘क्या तुम्हें लगता है कि वे बात करेंगे या ऐसे ही बोल रहे हैं कि रक्षा मंत्रालय को चिट्ठी लिखेंगे.’’
‘‘पता नहीं पापा, कुछ भी कह पाना मुश्किल है.’’
‘‘रुकमा, तुम आराम करो. मैं जरा ट्रेन का पता लगा कर आता हूं,’’ कहते हुए पापा बाहर चले गए.
रुकमा ने अपने पैरों को समेट कर ऊपर सीट पर रख लिया और बैग की टेक लगा कर लेट गई और धीरे से सौरभ का फोटो निकाल कर देखने लगी.
देखतेदेखते रुकमा भीगी पलकों के रास्ते अपनी यादों के आंगन में उतरती चली गई. कितनी खुश थी वह जब पापा उस का रिश्ता ले कर सौरभ के घर गए थे. पूरे रीतिरिवाज से उस की शादी भी हुई थी. मां ने अपनी बेटी को सदा सुहागन बने रहने के लिए कोई भी रिवाज नहीं छोड़ा था. यहां तक कि गांव के पास वाले मन्नत पेड़ पर जा कर पूर्णमासी के दिन दीया भी जलाया था. शादी भी धूमधाम से हुई थी.
सौरभ को पा कर रुकमा धन्य हो गई थी. सजीला, बांका, जवान, सांवला रंग, लंबा गठा शरीर, चौड़ा सीना, जो देखे उसे ही भा जाए. रुकमा भी कम सुंदर न थी. हां, मगर लंबाई उतनी न थी.
सौरभ हर समय उसे उस की लंबाई को ले कर छेड़ता था. जब सारा परिवार एकसाथ बैठा हो तो तब जरूर ‘जिस की बीवी छोटी उस का भी बड़ा नाम है…’ गाना गा कर उसे छेड़ता था. वह मन ही मन खीजती रहती थी, मगर ज्यादा देर नाराज न हो पाती थी क्योंकि सौरभ झट से उसे मना लेना जानता था.
पर यह सुख कुछ ही समय रह पाया. उसी समय सीमा पर युद्ध शुरू हो गया था और सौरभ की सारी छुट्टियां कैंसिल हो गई थीं. उसे वापस जाना पड़ा था.
उस रात रुकमा कितना रोई थी. सुबह तक आंसू नहीं थमे थे, सौरभ उस को समझाता रहा था. उस की सुंदर आंखें सूज कर लाल हो गई थीं. सौरभ के जाने में अभी 2 दिन बाकी थे.
सौरभ कहता था, ‘ऐसे रोती रहोगी तो मैं कैसे जाऊंगा.’
घर में सभी लोग कहते हैं कि ये 2 दिन तुम दोनों खुश रहो, घूमोफिरो, पर जैसे ही कोई जाने की बात करता तो अगले ही पल रुकमा की आंखों से आंसू लुढ़कने लगते.
सौरभ उसे छेड़ता, ‘यार, तुम्हारी आंखों में नल लगा है क्या, जो हमेशा टपटप गिरता रहता है.’
सौरभ की इस बचकानी हरकत से रुकमा के चेहरे पर कुछ देर के लिए हंसी आ जाती, मगर अगले ही पल फिर चेहरे पर उदासी छा जाती.
जिस दिन सौरभ को जाना था, उस रात रुकमा सौरभ के सीने पर सिर रख कर रोती ही रही और अब तो सौरभ भी अपने आंसू न रोक पाया. आखिर सिपाही के अंदर से बेइंतिहा प्यार करने वाला पति जाग ही गया जो अपनी नईनवेली दुलहन के आगोश में से निकलना नहीं चाहता था, पर छुट्टी की मजबूरी थी, वापस तो जाना ही था.
‘‘रुकमा, उठ…’’ पापा ने हिलाते हुए रुकमा को जगाया और कहा, ‘‘ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 2 पर आ रही है.’’
पापा की आवाज से रुकमा अपनी यादों से बाहर आ गई. आंखों को हाथों से मलते हुए वह उठ खड़ी हुई, जैसे किसी ने उस की चोरी पकड़ ली हो.
‘‘क्या बात है बेटी… तुम फिर से…’’
‘‘नहीं पापा… ऐसा कुछ भी नहीं…’’
थोड़ी देर में ट्रेन आ गई और रुकमा ट्रेन में बैठते ही फिर यादों में खो गई. कैसे भूल सकती है वह दिन, जब सौरभ को खुशखबरी देने को बेकरार थी लेकिन सौरभ से बात ही न हो पाई. शायद लाइन और किस्मत दोनों ही खराब थीं और तभी कुछ दिन में ही खबर आ गई कि सौरभ सीमा पर लड़ते हुए शहीद हो गए हैं. उस वक्त रुकमा ड्राइंगरूम में बैठी थी, तभी सौरभ के दोस्त उस का सामान ले कर आए थे.
आंखों और दिल ने विश्वास ही नहीं किया. रुकमा को लगा, वह भी आ रहा होगा. हमेशा की तरह मजाक कर रहा होगा. होश में ही नहीं थी. मगर होश तो तब आया जब ससुर ने पापा से कहा था, ‘रुकमा को अपने साथ वापस ले जाएं. मेरा बेटा ही चला गया तो इसे रख कर क्या करेंगे.’
उस ने अपने सासससुर को समझाया था कि वह सौरभ के बच्चे की मां बनने वाली है लेकिन उन्होंने तो उसे शाप समझ कर घर से निकाल दिया.
तभी सिर के ऊपर रखा बैग रुकमा के सिर से टकराया और वह चीख पड़ी. बाहर झांक कर देखा कि कोई स्टेशन आने वाला है. कुछ ही देर में वह झांसी पहुंच गए.
घर पहुंचते ही मां बोलीं, ‘‘बड़ी मुश्किल से यह सोया है. कुछ देर इसे गोद में ले कर बैठ जा.’’
रुकमा कुछ ही महीने पहले पैदा हुए अपने बेटे को गोद में ले कर प्यार करने लगी.
मां ने पूछा, ‘‘वहां सौरभ के घर वाले भी आए थे क्या?’’
‘‘नहीं मां,’’ रुकमा बोली.
शाम को खाने में साथ बैठते हुए पापा ने रुकमा से पूछा, ‘‘अब आगे क्या सोचा है? तेरे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है.’’
रुकमा ने लंबी गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां पापा, मैं ने सबकुछ सोच लिया है. मेरे बेटे ने अपने फौजी पिता को नहीं देखा, इसलिए मैं फौज में ही जाऊंगी.’’
रुकमा के मातापिता हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे. बेटे को मां के पास छोड़ कर रुकमा दिल्ली में एमबीए करने आ गई और नौकरी भी करने लगी.
रुकमा को यह भी चिंता थी कि कार्तिक बड़ा हो रहा था. उसे भी स्कूल में दाखिला दिलाना होगा.
रुकमा यह सब सोच ही रही थी कि मां की अचानक हुई मौत से वह फिर बिखर गई और अब तो कार्तिक की भी उस के सिर पर जिम्मेदारी आ गई. उसे अब नौकरी पर जाना मुश्किल हो गया.
बेटा अभी बहुत छोटा था और घर पर अकेले नहीं रह सकता था. पापा भी अभी रिटायर नहीं हुए थे.
जब कोई रास्ता नजर नहीं आया, तभी सहारा बन कर आए गुप्ता अंकल यानी उस के साथ में काम कर रही दोस्त अर्चना के पिताजी.
अर्चना ने कहा, ‘‘रुकमा, आज मेरे भतीजे का बर्थडे है. तू कार्तिक को ले कर जरूर आना, कोई बहाना नहीं चलेगा और तू भी थोड़ा अच्छा महसूस करेगी.’’
‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ रुकमा ने हंस कर हां कर दी और औफिस से बाहर आ गई.
घर आ कर कार्तिक से कहा, ‘‘आज मेरा बाबू घूमने चलेगा. वहां पर तेरे बहुत सारे फ्रैंड्स मिलेंगे.’’
‘‘हां मम्मी…’’ कार्तिक खुशी से मां के गले लग गया.
मां बेटे खूब तैयार हो कर पार्टी में पहुंचे. पार्टी क्या थी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई शादी हो. शहर की सारी नामीगिरामी हस्तियां मौजूद थीं. तभी किसी ने पीछे से पुकारा. रुकमा ने पीछे पलट कर देखा कि उस के औफिस का सारा स्टाफ मौजूद था.
केक वगैरह काटने के बाद अर्चना ने उसे अपने पिताजी से मिलवाया. वे बोले, ‘‘बेटी, तुम्हारे बारे में सुन कर बड़ा दुख हुआ कि आज भी ऐसी सोच वाले लोग हैं. बेटी, जो सज्जन सामने आ रहे हैं, वे उसी रैजीमैंट में पोस्टेड हैं जिस में तुम्हारे पति थे. मुझे अर्चना ने सबकुछ बताया था.
‘‘कर्नल साहब, ये रुकमा हैं. फौज में जाना चाहती हैं. अगर आप की मदद मिल जाती तो अच्छा होता,’’ और फिर उन्होंने रुकमा के बारे में उन्हें सबकुछ बता दिया.
‘‘बेटी, तुम मुझे 1-2 दिन में फोन कर लेना. मुझ से जो बन पड़ेगा, मैं जरूर मदद करूंगा.’’
कर्नल के सहयोग से रुकमा देहरादून जा कर एसएसबी की कोचिंग लेने लगी और वहीं आर्मी स्कूल में पार्टटाइम बच्चों को पढ़ाने भी लगी. बेटे कार्तिक का दाखिला भी एक अच्छे स्कूल में करा दिया.
मगर मंजिल आसान न थी. हर रोज सुबह 4 बजे उठ कर फौज जैसी फिटनैस लाने के लिए दौड़ने जाती, फिर 20 किलोमीटर स्कूटी से बेटे को स्कूल छोड़ती और लाती, फिर शाम को वह फिजिकल ट्रेनिंग लेने जाती, लौट कर बच्चे का होमवर्क और घर का पूरा काम करती.
रोज की तरह रुकमा एक दिन जब बच्चे को सुलाने जा ही रही थी तभी पापा का फोन आया और फिर से वही राग ले कर बैठ गए, ‘रुकमा, मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम क्यों इतना सब बेकार में कर रही हो. दीपक का फिर फोन आया था. वह तुम्हें और तुम्हारे बेटे को खूब खुश रखेगा. मेरी बात मान जा बेटी, तेरे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है, मेरा क्या भरोसा. मैं भी तेरी मां की तरह कब चला जाऊं, तो तेरा क्या होगा.’
‘‘पापा, मैं अपने बेटे कार्तिक और सौरभ की यादों के साथ बहुत खुश हूं. मैं किसी और को प्यार कर ही न पाऊंगी, यह उस रिश्तों के साथ उस से बेईमानी होगी. मैं सौरभ की जगह किसी और को नहीं दे सकती.
‘‘मुझे सौरभ से बेइंतिहा मुहब्बत करने के लिए सौरभ की जरूरत नहीं है, उस की यादें ही मेरी मुहब्बत को पूरी कर देंगी. मैं जज्बात में उबलती हुई नसीहतों की दलीलें नहीं सुनना चाहती.’’
पापा ने कहा, ‘क्या कोई इस तरह जाने के बाद पागलों सी मुहब्बत करता है.’
‘‘सौरभ मेरे दिलोदिमाग पर छाया हुआ है. एकतरफा प्यार की ताकत ही कुछ ऐसी होती है कि वह रिश्तों की तरह 2 लोगों में बंटता नहीं है. उस में फिर मेरा हक होता है,’’ यह कहते हुए रुकमा ने फोन काट दिया, फिर प्यार से सो रहे पास लेटे बेटे कार्तिक का सिर सहलाने लगी.
तभी रुकमा ने फौज में भरती का इश्तिहार अखबार में पढ़ा. रुकमा और भी खुश हो गई कि एक सीट शहीद की विधवाओं के लिए आरक्षित है. अब उसे सौरभ के अधूरे ख्वाब पूरे होते नजर आने लगे.
इन सब मुश्किल तैयारियों के बाद फौज का इम्तिहान देने का समय आ गया. मेहनत रंग लाई. लिखित इम्तिहान के बाद उस ने एसएसबी के भी सभी राउंड पास कर लिए. लेकिन यहां तक पहुंचने के बाद एक नई परेशानी खड़ी हो गई, वहां पर एक और शहीद की पत्नी थी पूजा और उस ने भी सारे टैस्ट पास कर लिए थे और सीट एक थी.
आखिरी फैसले के लिए सिलैक्शन अफसर ने अगले दिन की तारीख दे दी और कहा कि पास होने वाले को इत्तिला दे दी जाएगी.
उदास मन से रुकमा वापस आ गई, लेकिन इतने पर भी वह टूटी नहीं. उसे अपने ऊपर विश्वास था. उस का दुख बांटने अर्चना आ जाती थी और दिलासा भी देती थी. तय तारीख भी निकल चुकी थी.
रुकमा को यकीन हो गया कि उस का सिलैक्शन नहीं हुआ इसलिए फिर उस ने उसी दिनचर्या से एक नई जंग लड़नी शुरू कर दी.
तभी एक दिन औफिस से लौट कर उसे सिलैक्शन अफसर की चिट्ठी मिली जिस में उसे हैड औफिस बुलाया गया था. सिलैक्शन का कोई जिक्र न होने के चलते रुकमा उदास मन से बुलाए गए दिन पर हैड औफिस पहुंच गई. वहां जा कर देखा कि साहब के सामने पूजा भी बैठी थी.
साहब ने दोनों को बुला कर पूछा कि तुम दोनों की काबिलीयत और जज्बे को देखते हुए हम ने रक्षा मंत्रालय से 2 वेकैंसी की मांग की थी. रक्षा मंत्रालय ने एक की जगह 2 वेकैंसी कर दी हैं और तुम दोनों ही सिलैक्ट हो गई हो. बाहर औफिस से अपना सिलैक्शन लैटर ले लो.
रुकमा यह सुनते ही शून्य सी हो गई. सौरभ को याद कर उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. लैटर ले कर उस ने सब से पहले अर्चना को फोन कर शुक्रिया अदा किया.
पापा उस समय देहरादून में बेटे कार्तिक के पास थे. घर पहुंच कर रुकमा पापा से लिपट गई और खुशखबरी दी.
पापा बोले, ‘‘तू बचपन से ही जिद्दी थी, पर आज तू ने अपने प्यार को ही जिद में तबदील कर दिया. और अपने बेटे को उस के फौजी पिता कैसे थे, यह बताने के लिए तू खुद फौजी बन गई. हम सभी तेरे जज्बे को सलाम करते हैं.’’
रुकमा ने देखा कि अर्चना और उस के स्टाफ के लोग बाहर दरवाजे पर खड़े थे. रुकमा इस खुशी का इजहार करने के लिए अर्चना से लिपट गई.
अजय अभी भी अपनी बात पर अडिग थे, ‘‘नहीं शोभा, नहीं… जब बेटी के पास हमारे लिए एक दिन का भी समय नहीं है तब यहां रुकना व्यर्थ है. मैं क्यों अपनी कीमती छुट्टियां यहां रह कर बरबाद करूं…और फिर रह तो लिए महीना भर.’’
‘‘पर…’’ शोभा अभी भी असमंजस में ही थीं.
‘‘हम लोग पूरे 2 महीने के लिए आए हैं, इतनी मुश्किल से तो आप की छुट्टियां मंजूर हो पाई हैं, फिर आप जल्दी जाने की बात कहोगे तो रिचा नाराज होगी.’’
‘‘रिचा…रिचा…अरे, उसे हमारी परवा कहां है. हफ्ते का एक दिन भी तो नहीं है उस के पास हमारे लिए, फिर हम अभी जाएं या महीने भर बाद, उसे क्या फर्क पड़ता है.’’
अजय फिर बिफर पड़े थे. शोभा खामोश थीं. पति के मर्म की चोट को वह भी महसूस कर रही थीं. अजय क्या, वह स्वयं भी तो इसी पीड़ा से गुजर रही थीं.
अजय को तो उस समय भी गुस्सा आया था जब फोन पर ही रिचा ने खबर दी थी, ‘‘ममा, जल्दी यहां आओ, आप को सौरभ से मिलवाना है. सच, आप लोग भी उसे बहुत पसंद करेंगे. सौरभ मेरे साथ ही माइक्रोसौफ्ट में कंप्यूटर इंजीनियर है. डैशिंग पर्सनैलिटी, प्लीजिंग बिहेवियर…’’ और भी पता नहीं क्याक्या कहे जा रही थी रिचा.
अजय का पारा चढ़ने लगा, फोन रखते ही बिगड़े थे, ‘‘अरे, बेटी को पढ़ने भेजा है. वह वहां एम.एस. करने गई है या अपना घर बसाने. दामाद तो हम भी यहां ढूंढ़ लेंगे, भारत में क्या अच्छे लड़कों की कमी है, कितने रिश्ते आ रहे हैं. फिर हमारी इकलौती लाड़ली बेटी, हम कौन सी कमी रहने देंगे.’’
बड़ी मुश्किल से शोभा अजय को कुछ शांत कर पाई थीं, ‘‘आप गुस्सा थूक दीजिए…देखिए, पसंद तो बेटी को ही करना होगा, तो फिर यहां या वहां क्या फर्क पड़ता है. अब हमें बुला रही है तो ठीक है, हम भी देख लेंगे.’’
‘‘अरे, हमें तो वहां जा कर बस, उस की पसंद पर मुहर लगानी है. उसे हमारी पसंद से क्या लेनादेना. हम तो अब कुछ कह ही नहीं सकते हैं,’’ अजय कहे जा रहे थे.
बाद में रिचा के और 2-3 फोन आए थे. बेमन से ही सही पर जाने का प्रोग्राम बना. अजय को बैंक से छुट्टी मंजूर करानी थी, पासपोर्ट, वीजा बनना था, 2 महीने तो इसी में लग गए…अब इतनी दूर जा रहे हैं, खर्चा भी है तो कुछ दिन तो रहें, यही सब सोच कर 2 महीने रुकने का प्रोग्राम बनाया था.
पर यहां आ कर तो महीना भर काटना भी अजय को मुश्किल लगने लगा था. रिचा का छोटा सा एक कमरे का अपार्टमेंट. गाड़ी यहां अजय चला नहीं सकते थे, बेटी ही कहीं ले जाए तो जाओ…थोड़ेबहुत बस के रूट पता किए पर अनजाने देश में सभी कुछ इतना आसान नहीं था.
फिर सब से बड़ी बात तो यह कि रिचा के पास समय नहीं था. सप्ताह के 5 दिन तो उस की व्यस्तता के होते ही थे. सुबह 7 बजे घर से निकलती तो लौटने में रात के 8 साढे़ 8 बजते. दिन भर अजय और शोभा अपार्टमेंट में अकेले रहते. बड़ी उत्सुकता से वीक एंड का इंतजार रहता…पर शनिवार, इतवार को भी रिचा का सौरभ के साथ कहीं जाने का कार्यक्रम बन जाता. 1-2 बार ये लोग भी उन के साथ गए पर फिर अटपटा सा लगता. जवान बच्चों के बीच क्या बात करें…इसलिए अब खुद ही टाल जाते, सोचते, बेटी स्वयं ही कुछ कहे पर रिचा भी तो आराम से सौरभ के साथ निकल जाती.
‘‘सबकुछ तो बेटी ने तय कर ही लिया है. बस, हमारी पसंद का ठप्पा लगवाना था उसे, पर बुलाया क्यों था हमें जब सप्ताह का एक दिन भी उस के पास हमारे लिए नहीं है,’’ अजय का यह दर्द शोभा भी महसूस कर रही थीं, पर क्या कहें?
अजय ने तो अपना टिकट जल्दी का करवा लिया था. 1 ही सीट खाली थी. कह दिया रिचा से कि बैंक ने छुट्टियां कैंसल कर दी हैं.
‘‘मां, तुम तो रुक जातीं, ठीक है, पापा महीना भर रह ही लिए, छुट्टियां नहीं हैं, और अभी फिलहाल तो सीट भी 1 ही मिल पाई है.’’
शोभा ने चुपचाप अजय की ओर देखा था.
‘‘भई, तुम्हारी तुम जानो, जब तक चाहो बेटी के पास रहो, जब मन भर जाए तो चली आना.’’
अजय की बातों में छिपा व्यंग्य भी वह ताड़ गई थीं, पर क्या कहतीं, मन में जरूर यह विचार उठा था कि ठीक है रिचा ने पसंद कर लिया है सौरभ को, पर वह भी तो अच्छी तरह परख लें, अभी तो ठीक से बात भी नहीं हो पाई है और फिर उस के इस व्यवहार से अजय को चोट पहुंची है. यह भी तो समझाना होगा बेटी को.
अजय तीसरे दिन चले गए थे.
अब और अकेलापन था…बेटी की तो वही दिनचर्या थी. क्या करें…इधर सुबह टहलने का प्रोग्राम बनाया तो सर्दी, जुकाम, खांसी सब…
जब 2-3 दिन खांसते हो गए तो रिचा ने ही उस दिन सुबहसुबह मां से कह दिया, जब वह चाय बना रही थीं, ‘‘अरे, आप की खांसी ठीक नहीं हो रही है, पास ही डा. डेनियल का नर्सिंग होम है, वहां दिखा दूं आप को…’’
‘‘अरे, नहीं,’’ शोभा ने चाय का कप उठाते हुए कहा, ‘‘खांसी ही तो है. गरम पानी लूंगी, अदरक की चाय तो ले ही रही हूं. वैसे मेरे पास कुछ दवाइयां भी हैं, अब यहां तो क्या है, हर छोटीमोटी बीमारी के लिए ढेर से टेस्ट लिख देते हैं.’’
‘‘नहीं मां, डा. डेनियल ऐसे नहीं हैं. मैं उन से दवा ले चुकी हूं. एक बार पैर में एलर्जी हुई थी न तब…बिना बात में टेस्ट नहीं लिखेंगे, और उन की पत्नी एनी भी मुझे जानती हैं, अभी मेरे पास टाइम है, आप को वहां छोड़ दूं. वैसे क्लिनिक पास ही है. आप पैदल ही वापस आ जाना, घूमना भी हो जाएगा.’’
रिचा ने यह सब इतना जोर दे कर कहा था कि शोभा को जाना ही पड़ा.
डा. डेनियल का क्लिनिक पास ही था… सुबह से ही काफी लोग रिसेप्शन में जमा थे. नर्स बारीबारी से सब को बुला रही थी.
यहां सभी चीजें एकदम साफसुथरी करीने से लगी हुई लगती है और लोग कितने अनुशासन में रहते हैं.
शोभा की विचार शृंखला शुरू हो गई थी, उधर रिचा कहे जा रही थी, ‘‘मां, डा. डेनियल ने अपनी नर्स से विवाह कर लिया था और अस्पताल तो वही संभाल रही हैं, किसी डाक्टर से कम नहीं हैं, अभी पहले डा. डेनियल की मां आप का बायोडाटा लेंगी…75 से कम उम्र क्या होगी, पर सारा सेके्रटरी का काम वही करती हैं.’’
‘‘अपने बेटे के साथ ही रहती होंगी,’’ शोभा ने पूछा.
‘‘नहीं, रहती तो अलग हैं. असल में बहू से उन की बनती नहीं है, बोलचाल तक नहीं है पर बेटे को भी नहीं छोड़ पाती हैं, तो यहां काम करती हैं.’’
शोभा को रिचा की बातें कुछ अटपटी सी लगने लगी थीं. उधर नर्स ने अब शोभा का ही नाम पुकारा था.
‘‘अच्छा, मां, मैं अब चलूं, आप अपनी दवा ले कर चली जाना, रास्ता तो देख ही लिया है न, बस 5 मिनट पैदल का रास्ता है, यह रही कमरे की चाबी,’’ कह कर रिचा तेजी से निकल गई थी.
नर्स ने शोभा को अंदर जाने का इशारा किया.
अंदर कमरे में बड़ी सी मेज पर कंप्यूटर के सामने डा. मिसेज जौन बैठी थीं.
‘‘हाय, हाउ आर यू,’’ वही चिर- परिचित अंदाज इस देश का अभिवादन करने का.
‘‘सो, मिसेज शोभा प्रसाद…व्हाट इज योर प्रौब्लम…’’ और इसी के साथ मिसेज जौन की उंगलियां खटाखट कंप्यूटर पर चलने लगी थीं.
शोभा धीरेधीरे सब बताती रहीं, पर वह भी अभिभूत थीं, इस उम्र में भी मिसेज जौन बनावशृंगार की कम शौकीन नहीं थीं. करीने से कटे बाल, होंठों पर लाल गहरी लिपस्टिक, आंखों में काजल, चुस्त जींस और जैकेट.
हालांकि उन के चेहरे से उम्र का स्पष्ट बोध हो रहा था, हाथ की उंगलियां तक कुछ टेढ़ी हो गई थीं, क्या पता अर्थराइटिस रहा हो. फिर भी कितनी चुस्ती से सारा काम कर रही थीं.
‘‘अब आप उधर जाओ…
डा. डेनियल देखेंगे आप को.’’
शोभा सोच रही थीं कि मां हो कर भी यह महिला यहां बस, जौब के एटीकेट्स की तरह ही व्यवहार कर रही हैं…कहीं से पता नहीं चल रहा है कि डा. डेनियल उसी के बेटे हैं.
डा. डेनियल की उम्र भी 50-55 से कम क्या होगी…लग भी रहे थे, एनी भी उसी उम्र के आसपास होगी…पर वह काफी चुस्त लग रही थी और उस की उम्र का एहसास नहीं हो रहा था. बनावशृंगार तो खैर यहां की परंपरा है.
‘‘यू आर रिचाज मदर?’’ डा. डेनियल ने देखते ही पूछा था.
शायद रिचा ने फोन कर दिया होगा.
खैर, उन्होंने कुछ दवाइयां लिख दीं और कहा, ‘‘आप इन्हें लें, फिर फ्राइडे को और दिखा दें…आप को रिलीफ हो जाना चाहिए, नहीं तो फिर मैं और देख लूंगा.’’
‘‘ओके, डाक्टर.’’
शोभा ने राहत की सांस ली. चलो, जल्दी छूटे. दवाइयां भी बाहर फार्मेसी से मिल गई थीं. पैदल घर लौटने से घूमना भी हो गया. दिन में कई बार फिर मिसेज जौन का ध्यान आता कि वह भी तो मां हैं पर रिचा ने कैसे इतनी मैकेनिकल लाइफ से अपनेआप को एडजस्ट कर लिया है. वहां देख कर तो लगता ही नहीं है कि मां की बेटेबहू से कोई बात भी होती होगी. रिचा भी कह रही थी कि मां अकेली हैं, अलग रहती हैं. अपने टाइम पर आती हैं, कमरा खोलती हैं, काम करती हैं.
पता नहीं, शायद इन लोगों की मानसिकता ही अलग हो.
जैसे दर्द इन्हें छू नहीं पाता हो, तभी तो इतनी मुस्तैदी से काम कर लेते हैं.
शोभा को फिर रिचा का ध्यान आया. इस वीक एंड में वह बेटी से भी खुल कर बात करेंगी. भारत जाने से पहले सारी मन की व्यथा उड़ेल देना जरूरी है. वह थोड़े ही मिसेज जौन की तरह हो सकती हैं.
वैसे डा. डेनियल की दवा से खांसी में काफी फायदा हो गया था. फिर भी रिचा ने कहा, ‘‘मां, आप एक बार और दिखा देना…चाहो तो इन दवाओं को और कंटीन्यू करा लेना.’’
वह भी सोच रही थीं कि फ्राइडे को जा कर डाक्टर को धन्यवाद तो दे ही दूं. पैदल घूमना भी हो जाएगा.
सब से रहस्यमय व्यक्तित्व तो उन्हें मिसेज जौन का लगा था. इसलिए उन से भी एक बार और मिलने की इच्छा हुई थी…आज अपेक्षाकृ त कम भीड़ थी, नर्स ने बताया कि आज एनी भी नहीं आई हैं, डाक्टर अकेले ही हैं,…
‘‘क्यों…’’
‘‘एनी छुट्टी रखती हैं न फ्राइडे को.’’
‘‘अच्छा, पर सेक्रेटरी,’’
‘‘हां, आप इधर चली जाओ, पर जरा ठहरो, मैं देख लूं.’’
मिसेज जौन के कमरे के बाहर अब शोभा के भी पैर रुक गए थे. शायद वह फोन पर बेटे से ही बात कर रही थीं.
‘‘पर डैनी…पहले ब्रेकफास्ट कर लो फिर देखना पेशेंट को…यस, मैं ने मफी बनाए थे…लाई हूं और यहां काफी भी बना ली है…यस कम सून…ओके.’’
‘‘आप जाइए…’’
नर्स ने कहा तो शोभा अंदर गईं… वास्तव में आज मिसेज जौन काफी अच्छी लग रही थीं…आज जौन वाला एटीट्यूड भी नहीं था उन का.
‘‘हलो, मिसेज शोभा, यू आर ओके नाउ,’’ चेहरे पर मुसकान फैल गई थी मिसेज जौन के.
‘‘यस…आय एम फाइन…’’ डाक्टर साहब ने अच्छी दवाइयां दीं.’’
‘‘ओके, ही इज कमिंग हिअर… यहीं आप को देख लेंगे. आप काफी लेंगी,’’ मिसेज जौन ने सामने रखे कप की ओर इशारा किया.
‘‘नो, थैंक्स, अभी ब्रेकफ ास्ट कर के ही आई हूं.’’
शोभा को आज मिसेज जौन काफी बदली हुई और मिलनसार महिला लगीं.
‘‘यू आर आलसो लुकिंग वेरी चियरफुल टुडे,’’ वह अपने को कहने से रोक नहीं पाई थीं.
‘‘ओह, थैंक्स…’’
मिसेज जौन भी खुल कर हंसी थीं.
‘‘बिकौज टुडे इज फ्राइडे…दिस इज माइ डे, मेरा बेटा आज मेरे पास होगा, हम लोग नाश्ता करेंगे, आज एनी नहीं है इसलिए, यू नो मिसेज शोभा, वीक का यही एक दिन तो मेरा होता है. दिस इज माई डे ओनली डे इन दी फुल वीक,’’ मिसेज जौन कहे जा रही थीं और शोभा अभिभूत सी उन के चेहरे पर आई चमक को देख रही थीं.
शब्द अभी भी कानों में गूंज रहे थे …ओनली वन डे इन ए वीक…
फिर अजय याद आए, बेटी के पास सप्ताह भर में एक दिन भी नहीं है हमारे लिए …अजय का दर्द भरा स्वर…और आज उसे लगा, मानसिकता कहीं भी अलग नहीं है.
वही मांबाप का हृदय…वही आकांक्षा फिर अलग…कहां हैं हम लोग.
‘ओनली डे इन ए वीक…’ वाक्य फिर ठकठक कर दिमाग पर चोट करने लगा था.
इसी तरह करते-करते 8 दिन निकल गए. अनिश्चय के झूले में उलझती मैं निश्चिय नहीं कर पाई कि मुझे क्या करना चाहिए कि तभी एक और घटना घट गई. दीवाली पास आ रही थी. शायद 9-10 दिन थे दीवाली में. मेरा जी चाह रहा था कि सुवीर पहले जैसे हो जाएं और हम फिर से नई उमंग के साथ अपनी शादी की पहली सालगिरह से पहले उमंगभरी पहली दीवाली मनाएं.
मैं मन ही मन उस दिन निश्चय कर रही थी कि यदि सुवीर वक्त पर घर आ जाएं तो मैं अब तक के अपने व्यवहार की माफी मांग लूंगी. यही सब सोचते हुए खिड़की के पास बैठ कर सुवीर का इंतजार करने लगी.
तभी आशा के विपरीत सुवीर मुझे वक्त पर आते दिखाई दिए. किंतु यह क्या? सुवीर अकेले नहीं थे. साथ में सविता भी थी. वही सुंदर, दबंग युवती, जिस ने मेरी सारी दुनिया उजाड़ कर रख दी थी.
मैं उसे देखकर अंदर ही अंदर सुलगने लगी. मुझे निश्चय हो गया कि सुवीर रोज इसी के साथ रंगरलियां मनाते हैं. इस वक्त भी दोनों हंस-हंसकर बातें कर रहे थे. तभी उन दोनों ने मुझे देख लिया. मैं बिना कुछ कहे उन्हें अजीब खा जाने वाली नजरों से देख कर उठ गई और बिस्तर पर आकर बिलख-बिलख कर रोने लगी.
थोड़ी देर बाद सुवीर कमरे में आए, पर अकेले ही, वह लड़की उन के साथ नहीं थी. सुवीर ने कहा, ‘‘सविता तुम से कुछ कहने आई है.’’ बस, इस के बाद और कुछ नहीं कहा उन्होंने. 8 दिन बाद हमारी बातचीत हुई थी, वह भी इतनी छोटी और वह भी सविता के बारे में.मन में तो आया कि खूब खरीखोटी सुनाऊं पर न जाने क्या सोच कर चुप रह गई. सुवीर ने यह नहीं बताया कि वह क्या कहने आई है.
मु?ो लगा यही कहने आई होगी कि मैं उन दोनों के रास्ते से हट जाऊं. तलाक ले लूं ताकि वे आपस में शादी कर सकें. यही सब सोचसोच कर मैं अंदर ही अंदर कुढ़तीजलती रही. क्षमायाचना के सारे फंदे यतन से समेटने पर भी जिद की सलाई से निकल ही गए. मैं ने आंख उठा कर देखा तो सुवीर बिलकुल स्वस्थ नजर आ रहे थे, ताजे से मानो कुछ हुआ ही न हो, फिर यह कह कर कि बाकी बातें रात में बताऊंगा, सुवीर कमरे से बाहर
चले गए.वह शाम मैं ने बहुत कठिनाई से बिताई थी. लगा था, उस अप्रिय बात को रात को कैसे सुन पाऊंगी.
रात के खाने के वक्त भी मुझे लगा कि सुवीर कुछ कहना चाहते हैं पर मन इस कदर भन्नाया हुआ था कि मैं ने उन्हें बात करने का मौका ही नहीं दिया. वे रोज पहले सो जाते थे. उस दिन मैं उन के कमरे में आने से पहले ही आ कर सोने का बहाना बना कर लेट गई. मुझे लगा था इस कड़वी, विषैली अप्रिय बात को जितनी देर न सुनूं, उतना ही अच्छा है.
मगर मुझे सचमुच सोई हुई समझकर सुवीर भी लेट गए. थोड़ी देर बाद सुबीर के खर्राटे सुनाई देने लगे. उन के खर्राटों के साथसाथ मेरा गुस्सा भी बढ़ने लगा. अचानक मैं ने निश्चय कर लिया कि मैं सुवीर के जीवन से निकल जाऊंगी. जब वह लड़की भी सुवीर को चाहती है तो बिना प्यार के इस घर में टिकना फुजूल है. दांपत्य संबंधों को जोड़ने वाली रेखा ही जब टूट गई तो रहने से क्या फायदा? सुबह होने को थी, तब कहीं जा कर मैं सो पाईर् थी. उठी तो सुवीर फैक्टरी जा चुके थे.
मेरा मायका और ससुराल एक ही शहर में थे पर सुवीर के प्यार से बंधी मैं शादी के बाद 3-4 घंटों से ज्यादा मायके में कभी नहीं बिता पाई थी. पर अब अचानक ?झटके से उस कच्ची डोरी को तोड़ सुवीर के घर आने से पहले ही सास को यह कह कर कि मैं मायके जा रही हूं, उन से कह दीजिएगा कि अब वे जो चाहें कर सकते हैं. मैं अपने मांबाप के घर चल दी. यह सोच कर कि मैं सदैव के लिए ससुराल छोड़ कर आ गई हूं.
घर वालों ने मुझे लौट जाने को समझाया था. स्वयं चल कर छोड़ आने को भी कहा था, किंतु मैं दोबारा सुवीर के पास जाने को तैयार नहीं हुई. मैंने घर वालों को और भी नमक-मिर्च लगा कर सुवीर पर ऐसेऐसे इलजाम लगाए कि वे भी चुप बैठ गए.
किंतु कुछ दिनों बाद ही मुझे लगने लगा कि सुवीर के साथ बिताए क्षण मुझे पागल बना देंगे. तब मुझे लगता, सुवीर मनाने आएं तो मैं जा सकती हूं. पर जब सुवीर को ही मेरी जरूरत नहीं तो लद कर अनचाहे ही वहां टिकना बेकार है. और मैं नहीं गई थी. न ही सुवीर लेने आए थे. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था. एक ही लमहे ने जीवन का रुख बदल दिया था. 8 दिन रुकरुक कर गुजर ही गए. अपनी शादी की पहली दीवाली मैं ने सब से छिपछिप कर रो कर कैसे गुजारी, यह सिर्फ मैं ही जानती थी.
मां-बाप ने उस के बाद एड़ी-चोटी का जोर लगा कर यह मामला सुलझाना चाहा. अकेले में शायद पिताजी सुवीर से मिलने भी गए थे, किंतु यह उत्तर पाकर कि यदि मैं स्वयं आना चाहूं तो आ सकती हूं क्योंकि अपनी इच्छा से ही मैं ने वह घर छोड़ा है, वे वापस आ गए थे.
उसके बाद बासी से दिन गुजरते चले गए. काफी कोशिशों के बाद मुझे एक अलग 1 रूम फ्लैट भी मिल गया. मैं ने उन का नंबर अपने मोबाइल से ब्लौक कर दिया. एक दिन मैं स्कूल से पढ़ा कर लौट रही थी कि मैं ने सुवीर को उसी लड़की के साथ चलते और बातें करते देख लिया. यद्यपि सुवीर की दाढ़ी बढ़ी हुई थी, शक्ल से वे काफी उदास और टूटे हुए से लग रहे थे. परेशान से वे सविता से न जाने क्या धीमेधीमे बातें कर रहे थे. वे दोनों मु?ो नहीं देख पाए थे, किंतु उन को एकसाथ फिर बाजार में देख कर मेरा तनमन बुरी तरह जल गया और उसी दिन मैं ने निश्चय कर लिया कि मैं सुवीर से तलाक ले लूंगी.
काफी परेशानियों के बावजूद इस जिद को मैं ने क्रियान्वित करने के लिए कदम भी उठा डाला. सोचा सुवीर इस ?ाटके को सह नहीं सकेंगे और मु?ो लेने आ जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ था. फिर कचहरी में तारीखें लगती रहीं. एक बार अतिरिक्त जिला जज ने हम दोनों को एक अलग कमरे में बुला कर हमें सम?ाया कि हम तलाक लेने से पहले इस के परिणामों के बारे में अच्छी तरह सोच लें. यदि अब भी कोईर् गुंजाइश हो तो पिछली बातों को भूल कर फिर से एकसाथ जीवन बिताने की कोशिश करें. किंतु मेरा कहना था कि सुवीर को जिस लड़की की जरूरत थी, वह उसे मिल गई है. अब चूंकि
उसे मेरी जरूरत नहीं है, इसलिए मैं तलाक चाहती हूं.’’ किंतु आश्चर्य की बात यह कि सुवीर ने अपनी तरफ से कोई वकील नहीं कर रखा था. अदालत में वे चुपचाप नीची निगाहें कर के खड़े रहते और मेरे वकील के कुछ भी कहने के बाद यही कहते, ‘‘जैसी इन की इच्छा हो, वैसा ही कीजिए.’’
कभीकभी मु?ो उन पर तरस आने लगता था. उन के साथ बिताए प्यार के क्षण याद आते. साथसाथ घूमना और प्यारभरा जीवन जीना याद आता. जी में आता, तलाक की अर्जी वापस ले लूं. पर फिर मन कहता वह सब सुवीर की नाटकबाजी है. यदि वे मु?ो चाहते हैं तो उस लड़की से क्यों मिलते हैं और हर बार कचहरी से आ कर टूटीटूटी सी उदास शामों में घिरी रहती थी.’’
मगर अब दीवाली फिर आ रही थी और मैं न चाहते हुए भी अब से 3 साल पहले की स्याह हो गई दीवाली फिर दोहराने जा रही थी. शायद जीवनपर्यंत के लिए क्योंकि उस दिन मुकदमे की आखिरी पेशी थी, उस दिन जज साहब ने अपना फैसला सुनाना था.
अचानक मैं यादों के बवंडर से निकल आई. 9 बज गए थे. मैं कोर्ट जाने के लिए शीशे के आगे खड़ी हो कर कंघी कर ही रही थी कि अचानक बड़े जोर से घंटी बज उठी. सविता अंदर आते ही बोली, ‘‘माफ करना भाभी, सुवीर भैया के बेहद मना करने के बावजूद मैं आज यहां आई हूं, सिर्फ इसलिए कि गलतफहमी इंसान को कहीं का नहीं छोड़ती.’’ ‘‘मैं ने पहले भी कई बार आना चाहा था पर सुवीर भैया ने ही मु?ो नहीं आने दिया और न आप का पता बताया.’’
कुछ देर रुक कर और स्वयं ही सोफे पर बैठते हुए वह फिर बोली, ‘‘सुवीर मु?ो शादी से पहले बहुत प्यारकरते थे, यह बात मुझे बाद में मालूम हुई. असल में मैं ने उन्हें कभी इस नजर से देखा ही नहीं था. इन के घर में शुरू से ही थोड़ाबहुत आनाजाना था. उम्र में भी वे मुझे से काफी बड़े थे, इसलिए मैं अपने सवाल अकसर उन से हल करवाया करती थी और हमेशा उन्हें बड़े भाई की तरह ही समझती थी.
‘‘किंतु सुवीर के विचारों से मैं बिलकुल अनभिज्ञ थी, इसलिए जब पिताजी का अचानक तबादला हुआ तो मैं उन से मिले बिना ही चली गई.‘बाद में सुना कि सुवीर बहुत निराश हो गए थे. मैं तो इलाहाबाद जा कर अपनी पढ़ाई में लग गई और उन को लगभग भूल ही गई. इत्तफाक से 4 साल के बाद मेरी नौकरी इसी शहर में लग गई. उस दिन ?ाल पर सुवीर को देखा तो मु?ो लगा कि उन्हें कहीं देखा है पर याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है. तभी आप ने सुवीर को जोर से हिलाया तो मु?ो अपनी गलती महसूस हुई और मैं अपने होस्टल में लौट गई.
‘‘बाद मैं याद आया कि वे सुवीर ही थे. इस के बाद सुवीर से मेरी मुलाकात 8 दिन बाद हुई. अचानक सुवीर ने ही मुझे बुलाया. मैं ने शादी के लिए उन को मुबारकबाद दी तो कुछ देर तो वे चुप रहे, फिर उन्होंने हंसतेहंसते मुझे अपनी एकतरफा प्यार की गलतफहमी बताई. मैं उस दिन उन के साथ आप के घर आ रही थी, पर जब आप हमें घूर कर अंदर चली गईं तो सुवीर बोले कि मैं मीनू को स्वयं बता दूंगा, कहीं वह गुस्से में तुम्हें उलटासीधा न कह दें.
‘‘इसीलिए मैं उस दिन आप के घर भी नहीं आई. उस के बाद हमारी मुलाकात नहीं हो पाई. अचानक डेढ़ साल बाद एक दिन वे बाजार में मिले तो उन्होंने बताया कि आप उन्हें छोड़ कर चली गई हैं. ‘‘मैं उस दिन भी उन से यही जिद करती रही कि वे इस गलतफहमी को स्वयं आप से मिल कर खत्म कर दें नहीं तो मु?ो आप का पता दे दें मैं जा कर खुद कह दूंगी.
‘‘किंतु सुवीर बोले कि मैं अपनी तरफ से मीनू को सब बात खोल कर बता चुका हूं पर उसे यकीन नहीं आया है. फिर वह मु?ा से कुछ कह या पूछ कर भी नहीं गई तो उसे अपनेआप ही आना चाहिए और इस तरह आप दोनों के स्वाभिमान की वजह से बात टलती रही, बढ़ती रही.
‘‘अभी पिछले साल ही मुझे पता चला कि आप ने कोर्ट में तलाक की अर्जी दे दी है. मुझे यह सुन कर बड़ी तकलीफ हुई, भाभी. गलतफहमी इंसान को कहां से कहां पहुंचा देती है, इस बात का अंदाजा मुझे उसी दिन हुआ.
‘‘आप को एक बात कह दूं कि सुवीर बेहद सीधे, भावुक, अंतर्मुखी और स्वाभिमानी हैं. काफी बार कहने पर भी उन्होंने मुझे आप का पता नहीं दिया. मैं तो जिन से प्यार करती हूं, उन से मेरा विवाह हो रहा है. कल शाम को जब मैं अपनी शादी का निमंत्रणपत्र उन्हें देने गई तो सुवीर की माताजी ने रोतेरोते मुझे बताया कि कल सुवीर के मुकदमे की आखिरी पेशी है, पर मुझे नहीं लगता कि वह कभी दोबारा शादी भी करेगा. मीनू ने जरा सी बात का बतंगड़ बना कर अपना घर बरबाद कर लिया है और सुवीर है कि ?ाकने को तैयार ही नहीं है. मुझे और अपने पिता को भी मीनू के पास नहीं जाने दिया और बात यहां तक आ पहुंची.
‘‘मां ने ही मुझे आप का पता दिया और सुबह उठते ही मैं आप के पास आ गई. अभी भी वक्त है, भाभी, आखिरी पेशी में भी आप अपनी गलती स्वीकार कर के अपनी अर्जी वापस ले लेंगी तो बात बन जाएगी. अब जल्दी कीजिए, देर न कीजिए. कहिए तो मैं भी आप के साथ चलूं? कृपया अपनी और सुवीर की जिंदगी बिखरने से बचा लीजिए.’’
सविता और कुछ कहती उस से पहले ही मैं ने उमड़ते आंसुओं को रोक कर उसे गले से लगा लिया था और बोली, ‘‘नहीं, मैं अकेली ही सब संभाल लूंगी.’’ और सविता से उस की शादी का निमंत्रणपत्र ले कर और कांपते बदन से उसे प्यार कर के जब उसे विदा किया तो मुझे लगा कि
एक घोंसला टूटते-टूटते रह गया. मैं हार्दिक क्षमायाचना का शब्द जाल बुनते, अपने सुनहरे दिनों के ख्वाब संजोती, अपनी उदास दीवाली को खुशगवार और रोशन करने का ताना बुनती हुई आखिरी पेशी का सुखद अंत करने के लिए कचहरी की ओर चल दी.